SEERATUN NABI {HINDI)

  


✭﷽✭

                .   *✿_سیرت النبی ﷺ_✿*

      *✭ SEERATUN NABI S.A.✭*

          *✿_सीरतुन नबी स. अ. _✿*

        *🌹صلى الله على محمدﷺ🌹*

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*┱✿_ ज़मज़म की खुदाई -_,*

★__ हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम के बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम के 12 बेटे थे उनकी नस्ल इस कदर हुई मक्का मुकर्रमा में ना समा सकी और पूरे हिजाज़ में फ़ैल गई , इनके एक बेटे क़ैयदर की औलाद में अदनान हुए ,अदनान के बेटे मा'द और पोते का नाम नज़ार था, नज़ार के चार बेटे थे ,उनमें से एक का नाम था मुज़िर था , मुज़िर की नस्ल से क़ुरेश बिन मालिक पैदा हुए , ये फहर मालिक भी कहलाये ,

★_क़ुरेश की औलाद बहुत हुई उनकी औलाद मुख्तलिफ कबीलों में बंट गई , उनकी औलाद से कुसयी ने इक्तदार हासिल किया । कुसयी के आगे तीन बैटे हुए उनमें से एक अब्दे मुनाफ थे  जिनकी अगली नस्ल में हासिम पैदा हुए , हासिम ने मदीना के एक सरदार की लड़की से शादी की ,उनके यहां एक लड़का पैदा हुआ, उसका नाम शीबा रखा गया, यह पैदा ही हुआ था कि हाशिम का इंतकाल हो गया , उनके भाई मुत्तलिब  मक्का के हाकिम हुए , हाशिम का बेटा मदीना मुनव्वरा में परवरिश पाता रहा।

★_ जब मुत्तलिब को मालूम हो गया कि वह जवान हो गया है तो भतीजे को लेने के लिए खुद मदीना गए ,उसे लेकर मक्का मुकर्रमा पहुंचे तो लोगों ने ख्याल किया यह नौजवान उनका गुलाम है , मुत्तलिब ने लोगों को बताया - यह हाशिम का बेटा और मेरा भतीजा है , इसके बावजूद लोगों ने उसे मुत्तलिब का गुलाम ही कहना शुरू कर दिया । इस तरह शीबा को अब्दुल मुत्तलिब कहा जाने लगा , इन्हें अब्दुल मुत्तलिब के यहां अबू तालिब हमज़ा अब्बास अब्दुल्लाह अबु लहब हारीस ज़ैद ज़िरार और अब्दुल रहमान पैदा हुए । उनके बेटे अब्दुल्लाह से हमारे नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पैदा हुए ।

★__ अब्दुल मुत्तलिब के तमाम बेटों में हजरत अब्दुल्लाह सबसे ज्यादा खूबसूरत और सबसे ज्यादा पाक दामन थे , अब्दुल मतलब को ख्वाब में ज़मज़म का कुआं खोदने का हुक्म दिया गया यानी हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम के कुएं को । उस कुएं को क़बीला जरहम ‌के सरदार मिजा़ज़ ने पाट दिया था । क़बीला  जरहम के लोग उस जमाने में मक्का के सरदार थे, बैतुल्लाह के निगरां थे , उन्होंने बैतुल्लाह की बेहुरमती शुरू कर दी ।

★_उनका सरदार मिज़ाज बिन अमरु था। वह अच्छा आदमी था। उसने अपने क़बीले को समझाया कि बैतुल्लाह की बेहुरमती ना करो मगर उन पर असर ना हुआ। जब मिजा़ज़ ने देखा कि उन पर कोई असर ना होता तो कौम को उसके हाल पर छोड़ कर वहां से जाने का फैसला किया। उसने तमाम माल व दौलत तलवारें और जिरें वगैरा खाना काबा से निकाल कर ज़मज़म के कुएं में डाल दिए और मिट्टी से उसको पाट दिया । कुआं इससे पहले ही खुश हो चुका था ,अब उसका नामोनिशान मिट गया ।

★__  मुद्दतों यह कुआं बंद पड़ा रहा ,उसके बाद बनु खुज़ा'अ ने बनु जरहम को वहां से मार भगाया । बनु खुजा़आ और क़ुसई के सरदारी का जमाना इसी हालत में गुजरा । कुआं बंद रहा यहां तक कि क़ुसई के बाद अब्दुल मुत्तलिब का जमाना आ गया । उन्होंने ख्वाब देखा । ख्वाब में उन्हें जमजम के कुएं की जगह दिखाई गई और उसके खोदने का हुक्म दिया गया।

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अब्दुल मुत्तलिब ने बताया :- मैं हजरे अस्वद के मुकाम पर सो रहा था, मेरे पास एक आने वाला आया उसने मुझसे कहा -तैबा को खोदो। मैंने उससे पूछा- तैबा क्या है ? मगर वह कुछ बताए बगैर चला गया ।

दूसरी तरफ रात फिर ख्वाब में वही शख्स आया -कहने लगा बराह को खोदो,  मैंने पूछा बराह क्या है ? वह कुछ बताए बगैर चला गया ।

तीसरी रात में अपने बिस्तर पर सो रहा था कि फिर वह शख्स ख्वाब में आया उसने कहा- मजनूना खोदो । मैंने पूछा- मजनूना क्या है ? वह बताएं बगैर चला गया।

इससे अगली रात में फिर बिस्तर पर सो रहा था कि वही शख्स फिर आया और बोला ज़मज़म खोदो।  मैंने उससे पूछा- ज़मज़म क्या है ?

इस बार उसने कहा ज़मज़म वह है जिसका पानी कभी खत्म नहीं होता जो हाजियों के बड़े-बड़े मजमुओं को सैराब करता है ।

अब्दुल मुत्तलिब कहते हैं मैंने उससे पूछा- यह कुआं किस जगह है ? उसने बताया जहां गंदगी और खून पड़ा है और कौवा ठौंगे मार रहा है ।

★__ दूसरे दिन अब्दुल मुत्तलिब अपने बेटे हारिस के साथ वहां गये , उस वक्त उनके यहां यही एक लड़का था । उन्होंने देखा वहां गंदगी और खून पड़ा था और एक कौवा ठौंगे मार रहा था , उस जगह के दोनों तरफ बुत मौजूद थे और यह गंदगी और खून दरअसल उन बुतों पर कुर्बान किए जाने वाले जानवरों का था। पूरी निशानी मिल गई तो अब्दुल मुत्तलिब कुदाल ले आए और खुदाई के लिए तैयार हो गए लेकिन उस वक्त कुरैश वहां आ पहुंचे।

★__  उन्होंने कहा - अल्लाह की कसम हम तुम्हें यहां खुदाई नहीं करने देंगे , तुम हमारे इन बुतों के दरमियान कुआं खोदना चाहते हो जहां हम इनके लिए कुर्बानियां करते हैं ।

अब्दुल मुत्तलिब ने उनकी बात सुन कर अपने बेटे हारिस से कहा- तुम इन लोगों को मेरे करीब ना आने दो ,मैं खुदाई का काम करता हूं इसलिए कि मुझे जिस काम का हुक्म दिया गया है मैं उसको जरूर पूरा करूंगा ।

★_क़ुरेश ने जब देखा कि वह बाज़ आने वाले नहीं हैं तो रुक गए , आखिर उन्होंने खुदाई शुरू कर दी,  जल्दी ही कुंवे के आसार नजर आने लगे । यह देखकर उन्होंने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया और पुकार उठे -"_यह देखो यह इस्माईल अलैहिस्सलाम की तामीर है _।"

★__ जब कुरैश ने यह देखा कि उन्होंने कुआं तलाश कर लिया तो उनके पास आए और कहने लगे अब्दुल मुत्तलिब अल्लाह की कसम यह हमारे बाप इस्माइल अलैहिस्सलाम  का कुआं है और इस पर हमारा भी हक है इसलिए हम इसमें तुम्हारे शरीक होंगे ।

यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा- मैं तुम्हें इसमें शरीक नहीं कर सकता यह मुझे अकेले का काम है।

इस पर कुरेश ने कहा-  तब फिर इस मामले में हम तुमसे झगड़ा करेंगे । अब्दुल मुत्तलिब बोले किसी से फैसला करवा लो ।

उन्होंने बनी साद इब्ने हुज़ैम की काहिना से फैसला कराना मंजूर किया ।यह काहिना मुल्के शाम के बालाई इलाके में रहती थी । आखिर अब्दुल मुत्तलिब और दूसरे कुरेश उसकी तरफ रवाना हुए ।

★_अब्दुल मुत्तलिब के साथ अब्दे मुनाफ के लोगों की एक जमात थी जबकि दीगर क़बाइल कुरेश की भी एक एक जमात साथ थी । इस जमाने में मुल्क हिजाज़ और शाम के दरमियान बियावान मैदान था वहां कहीं पानी नहीं था उस मैदान में उनका पानी खत्म हो गया । सब लोग प्यास से बेहाल हो गए यहां तक कि उन्हें अपनी मौत का यकीन हो गया उन्होंने कुरेश के दूसरे लोगों से पानी मांगा लेकिन उन्होंने पानी देने से इनकार कर दिया उन्होंने इधर-उधर पानी तलाश करने का इरादा किया ।

★__अब्दुल मुत्तलिब उठकर अपनी सवारी के पास आए ज्यूं ही उनकी सवारी उठी उसके पांव के नीचे से पानी का चश्मा उबल पड़ा उन्होंने पानी को देखकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। फिर अब्दुल मुत्तलिब सवारी से उतर आए सब ने खूब सैर हो कर पानी पिया और अपने मशकीजे  भर लिए । अब उन्होंने कुरेश की दूसरी जमात से कहा- आओ तुम भी सैर हो कर पानी पी लो ।अब वह भी आगे आए और खूब पानी पिया। पानी पीने के बाद वह बोले- अल्लाह की कसम ए अब्दुल मुत्तलिब ! यह तो तुम्हारे हक़ में फैसला हो गया ,अब हम ज़मज़म के बारे में तुमसे कभी झगड़ा नहीं करेंगे ,जिस जात ने तुम्हें इस बियाबान में सैराब कर दिया वही जात तुम्हें ज़मज़म से भी सैराब करेगा, इसलिए यहीं से वापस चलो।

★_ इस तरह क़ुरेश ने जान लिया कि अल्लाह ताला अब्दुल मुत्तलिब पर मेहरबान है लिहाजा उनसे झगड़ा बेसूद है और काहिना के पास जाने का कोई फायदा नहीं । चुनांचे सब लोग वापस लौटे । वापस आकर अब्दुल मुत्तलिब  ने फिर कुएं की खुदाई शुरू की । अभी थोड़ी सी खुदाई की होगी कि माल दौलत तलवारे और जिरें निकल आईं । उस में सोना और चांदी वगैरह भी थे । यह माल व दौलत  देखकर क़ुरेश के लोगों को लालच ने आ घेरारा ।

उन्होंने कहा -इसमें हमारा भी हिस्सा है ।

उनकी बात सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा -नहीं इसमें तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं ,तुम्हें इंसाफ का तरीक़ा अख्तियार करना चाहिए ,आओ पांसों के तीरों से कु़रआ डालें।

★_उन्होंने ऐसा करना मंजूर कर लिया , 2 तीर काबे के नाम से रखे गए , 2 अब्दुल मुत्तलिब के और 2 कुरेश के बाकी लोगों के नाम के ...।

पांसा फैका गया तो माल व दौलत काबा के नाम निकला, तलवारे और जिरें अब्दुल मुत्तलिब  के नाम और कु़रेश के नाम के जो तीर थे वह किसी चीज़ को ना निकले । इस तरह फैसला हो गया। अब्दुल मुत्तलिब  ने काबा के दरवाजे को सोने से सजा दिया।

★_ज़मज़म की खुदाई से पहले अब्दुल मुत्तलिब ने दुआ मांगी थी कि ए अल्लाह इसकी खुदाई को मुझ पर आसान कर दे, मैं अपना एक बेटा तेरे रास्ते में क़ुर्बान करूंगा । अब जबकि कुआं निकल आया तो उन्हें ख्वाब में हुक्म दिया गया - "_अपनी मन्नत पूरी करो यानी एक बेटे को जिबह करो ।

*📕_सीरतुन नबी ﷺ _,*

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*┱✿_ सौ ऊंटों की कुर्बानी -*

★__ अब्दुल मुत्तलिब  को यह हुक्म उस वक्त दिया गया जब वह अपनी मन्नत भूल चुके थे पहले ख्वाब में उनसे कहा गया-" मन्नत पूरी करो " , उन्होंने एक मेंढा जिबह करके गरीबों को खिला दिया। फिर ख्वाब आया-" इससे बड़ी पेश करो",  इस मर्तबा उन्होंने एक बेल जिबह कर दिया। ख्वाब में फिर यही कहा गया-" इससे भी बड़ी पेश करो",  अब उन्होंने ऊंट जिबह किया , फिर ख्वाब आया इससे भी बड़ी चीज़ पेश करो । उन्होंने पूछा इससे भी बड़ी चीज़ क्या है ?  तब कहा गया अपने बेटों में से किसी को जिबह करो जैसा कि तुमने मन्नत मानी थी ।

★__ अब उन्हें अपनी मन्नत याद आई अपने बेटों को जमा किया उनसे मन्नत का जिक्र किया सबके सर झुक गए कौन खुद को जिबह करवाता । आखिर अब्दुल्लाह बोले- अब्बा जान आप मुझे जिबह कर दें ।

ये सबसे छोटे और सबसे खूबसूरत थे , सबसे ज्यादा मुहब्बत भी अब्दुल मुत्तलिब को इन्ही से थी । लिहाजा उन्होंने कु़रा अंदाजी करने का इरादा किया तमाम बेटों के नाम लिखकर क़ुरा डाला गया। अब्दुल्लाह का नाम निकला । अब उन्होंने छुरी ली, अब्दुल्लाह को बाजू़ से पकड़ा और उन्हें जिबह करने के लिए नीचे लिटा दिया , ज्यूंही बाप ने बेटे को लिटाया अब्बास से ज़ब्त ना हो सका । फौरन आगे बढ़े और भाई को खींच लिया ,उस वक्त खुद भी छोटे से थे । इधर बाप ने अब्दुल्लाह को खींचा ।इस खींचातानी में अब्दुल्लाह के चेहरे पर खराशें भी आई उन खराशों के निशाना मरते दम तक बाकी रहे।

★_ इस दौरान बनु मखज़ूम के लोग आ गए उन्होंने कहा आप इस तरह बेटे को जिबह ना करें इसकी मां की जिंदगी खराब हो जाएगी अपने रब को राजी करने के लिए बेटे का फिदिया दे दें ।

★__ अब सवाल यह था कि फिदया क्या दिया जाए ? इस की तरकीब यह बताई गई एक कागज पर 10 ऊंट लिखे जाएं दूसरे पर अब्दुल्लाह का नाम लिखा जाए अगर द ऊंट वाली पर्ची निकले तो 10 ऊंट कुर्बान कर दिए जाएं अगर अब्दुल्लाह वाली पर्ची निकले तो 10 ऊंट का इज़ाफा कर दिया जाए,  फिर बीस ऊंट वाली पर्ची और अब्दुल्लाह वाली पर्ची डाली जाए अब अगर 20 ऊंट वाली पर्ची निकले तो 20 ऊंट कुर्बान कर दिए जाएं वरना दस ऊंट और बढ़ा दिए जाए इस तरह 10-10 करके ऊंट बढ़ाते जाएं।

★_ अब्दुल  मुत्तलिब ने ऐसा ही किया है 10-10 ऊंट बढ़ाते चले गए हर बार अब्दुल्लाह का नाम निकलता चला गया यहां तक कि ऊंटों की तादाद 100 तक पहुंच गई तब कहीं जाकर ऊंटों वाली पर्ची निकली। इस तरह उनकी जान के बदले 100 ऊंट कुर्बान किए गए । अब्दुल मुत्तलिब को अब यकीन हो गया कि अल्लाह ताला ने अब्दुल्लाह के बदले 100 ऊंटों की कुर्बानी मंजूर कर ली है। उन्होंने काबा के पास सो ऊंट कुर्बान किए और किसी को खाने से ना रोका,  सब इंसान और जानवरों और परिंदों ने उनको खाया ।

★_इमाम ज़हरी कहते हैं कि अब्दुल मुत्तलिब पहले आदमी हैं जिन्होंने आदमी की जान की कीमत 100 ऊंट देने का तरीक़ा शुरू किया इससे पहले 10 ऊंट दिए जाते थे । इसके बाद यह तरीक़ा सारे अरब में जारी हो गया गोया क़ानून बन गया कि आदमी का फिदया १०० ऊंट है।

★_  नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने जब यह जिक्र आया तो आपने इस फिदिये की तस्दीक फरमाई यानी फरमाया कि यह दुरुस्त है और इसी बुनियाद पर नबी करीमﷺ_  फरमाते हैं - मैं दो ज़बीहो यानी हजरत इस्माइल अलेहिस्सलाम और हजरत अब्दुल्लाह की औलाद हूं ।

★__ हजरत अब्दुल्लाह क़ुरेश में सबसे ज्यादा हसीन थे उनका चेहरा रोशन सितारे की मानिंद था कुरेश की बहुत सी लड़कियां इनसे शादी करना चाहती थी मगर हजरत अब्दुल्लाह की हजरत आमना से शादी हुई। हजरत आमना वहब बिन अब्दे मुनाफ बिन ज़ुहरा की बेटी थी शादी के वक्त हजरत अब्दुल्लाह की उम्र 18 साल थी ।

★_यह शादी के लिए अपने  वालिद के साथ जा रहे थे रास्ते में एक औरत काबे के पास बैठी नजर आई यह औरत वर्क़ा बिन नौफल की बहन थी । वर्क़ा बिन नौफल कुरेश के एक बड़े आलिम थे । वर्क़ा बिन नौफल से इनकी बहन ने सुन रखा था कि वक्त के आखिरी नबी का ज़हूर होने वाला है और उनकी निशानियों में से एक निशानी यह होगी कि उनके वालिद के चेहरे में नबूवत का नूर चमकता होगा। जूंही इसने अब्दुल्लाह को देखा फौरन इसके ज़हन में यह बात आई । इसने सोचा हो ना हो यह वह शख्स है जो पैदा होने वाले नबी के बाप होंगे।

चुनांचे इसने कहा- अगर तुम मुझसे शादी कर लो तो मैं बदले में तुम्हें उतने ही ऊंट दूंगी जितने तुम्हारी जान के बदले में जिबह किए गए थे।

इस पर उन्होंने जवाब दिया -मैं अपने बाप के साथ हूं उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता ना उनसे अलग हो सकता हूं और मेरे वालिद बा इज्जत आदमी है अपनी कौम के सरदार है ।

★_ बहरहाल इनकी शादी हजरत आमना से हो गई ।आप कुरेश की औरतों में नसब और मुका़म के एतबार से अफज़ल थी ।

★__ हजरत आमना हजरत अब्दुल्लाह के घर आ गई ।आप फर्माती है -जब मैं मां बनने वाली हुई तो मेरे पास एक शख्स आया यानी एक फरिश्ता इंसानी शक्ल में आया उस वक्त में जागने और सोने की दरमियानी हालत में थी उसने मुझसे कहा -क्या तुम्हें मालूम है ? तुम इस उम्मत के सरदार और नबी की मां बनने वाली हो ।

इसके बाद वह फिर उस वक्त आया जब नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पैदा होने वाले थे इस मर्तबा उसने कहा - जब तुम्हारे यहां पैदाइश हो तो कहना मैं इस बच्चे के लिए अल्लाह की पनाह चाहती हूं हर हसद करने वाले के शर और बुराई से ,फिर तुम इस बच्चे का नाम मोहम्मद रखना क्योंकि इनका नाम तौरात में अहमद है और ज़मीन और आसमान वाले इनकी तारीफ़ करते हैं जबकि क़ुरान में इनका नाम मोहम्मद है और क़ुरान इनकी किताब है । *(अल बिदाया व अन निहाया )*

★_ एक रिवायत के मुताबिक फरिश्ते ने इनसे यह कहा :- तुम वक्त के सरदार की मां बनने वाली हो , इस बच्चे की निशानी यह होगी कि इसके साथ एक नूर ज़ाहिर होगा जिससे मुल्के शाम और बसरा के महल्लात भर जाएंगे जब वह बच्चा पैदा हो जाएगा तो उसका नाम मोहम्मद रखना क्योंकि तौरात में उनका नाम अहमद है कि आसमान और ज़मीन वाले उनकी तारीफ़ करते हैं और इंजील में उनका नाम अहमद है कि आसमान और ज़मीन वाले उनकी तारीफ करते हैं और क़ुरान में उनका नाम मोहम्मद है । *( अल बिदाया व अन निहाया)*

★_ अब्दुल्लाह के चेहरे में जो नूर चमकता था शादी के बाद वह हजरत आमना के चेहरे में आ गया । इमाम ज़हरी फरमाते हैं हकीम ने यह रिवायत बयान की है और इसको सहीह क़रार दिया है । सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम  ने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज किया:-  अल्लाह के रसूल ! हमें अपने बारे में कुछ बताएं ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- मैं अपने बाप इब्राहिम अलैहिस्सलाम की दुआ ,अपने भाई ईशा अलैहिस्सलाम की बशारत हूं और खुशखबरी हूं , जब मैं अपनी वाल्दा के शिकम में आया तो उन्होंने देखा गोया उनसे एक नूर ज़ाहिर हुआ है जिससे मुल्के शाम में बसरा के महल्लात रोशन हो गए ।

★_ हज़रत आमना ने हज़रत हलीमा सादिया से फरमाया था:-  मेरे इस बच्चे की शान निराली है यह मेरे पेट में थे तो मुझे कोई बोझ और थकन महसूस नहीं हुई ।

★__ हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम वह आखरी पैगंबर है जिन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की आमद की खुशखबरी सुनाई है इस बशारत का जिक्र कुरान में भी है । सुरह सफ मे अल्लाह ताला फरमाते हैं :-

"__ और इसी तरह वह वक्त भी काबिले जिक्र है जबकि ईसा इब्ने मरियम अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि- ए बनी इस्राईल ! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुआ आया हूं कि मुझसे पहले जो तौरात आ चुकी है मैं उसकी तस्दीक करने वाला हूं और मेरे बाद जो एक रसूल आने वाला है उनका नाम मुबारक अहमद होगा मैं उनकी बशारत देने वाला हूं ।"

★_  अब चूंकि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बशारत सुना चुके थे इसलिए हर दौर के लोग आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की आमद का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे । इधर आप की पैदाइश से पहले ही हजरत अब्दुल्लाह इंतकाल कर गए । साबका़ कुतुब में आपकी नबूवत की एक अलामत यह भी बताई गई है कि आपके वालिद का इंतकाल आप की विलादत से पहले हो जाएगा।  हजरत अब्दुल्लाह एक तिजारती काफिले के साथ तिजारत के लिए गए थे इस दौरान बीमार हो गए और कमजोर होकर वापस लौटे काफिला मदीना मुनव्वरा से गुजरा तो हज़रत अब्दुल्लाह अपनी ननिहाल यानी बनु नजार के यहां ठहरे । इनकी वालिदा बनु नजार से थी । एक माह तक बीमार रहे और इंतकाल कर गए इन्हें यही दफन कर दिया गया ।

★_  तिजारती काफला जब हज़रत अब्दुल्लाह के बगैर मक्का मुकर्रमा पहुंचा और अब्दुल मुत्तलिब को पता चला कि उनके बेटे अब्दुल्लाह बीमार हो गए हैं और मदीना मुनव्वरा में अपने ननिहाल में हैं तो उन्हें लाने के लिए अब्दुल मुत्तलिब ने अपने बेटे ज़ुबैर को भेजा । जब यह वहां पहुंचे अब्दुल्लाह का इंतकाल हो चुका था । मतलब यह कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इस दुनिया में अपने वालिद की वफात के चंद माह बाद तशरीफ लाए।

*📕_सीरतुन नबी ﷺ _,*

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   *┱✿_ माहे नबुवत तुलु हुवा -_,*

★__ हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इस दुनिया में तशरीफ़ लाएं तो आपकी आनोल नाल कटी हुई थी । (आनोल नाल को बच्चे पैदा होने के बाद दाया काटती है )

आप खतना सुदा पैदा हुए ।अब्दुल मुत्तलिब यह देख कर बेहद हैरान हुए और खुश भी । वह कहा करते थे- मेरा बेटा निराली शान का होगा।

*(अल हिदाया )*

★_  आप की पैदाइश से पहले मक्का के लोग खुश्क साली और क़हत का शिकार थे लेकिन ज्योंहि आपके दुनिया में तशरीफ लाने का वक्त करीब आया बारिश शुरू हो गई , खुश्कसाली दूर हो गई । दरख़्त हरे भरे हो गए और फलों से लद गए , ज़मीन पर सब्ज़ा ही सब्ज़ा नज़र आने लगा।

पैदाइश के वक्त आप अपने हाथों पर झुके हुए थे सर आसमान की तरफ था। एक रिवायत के अल्फाज़ यह हैं कि घुटनों के बल झुके हुए थे। मतलब यह कि सजदे की सी हालत में थे ।

*( तबक़ात )*

★__ आपकी मुट्ठी बंद थी और शहादत की उंगली उठी हुई थी जैसा कि हम नमाज में उठाते हैं । हुजूर अनवर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाते हैं :- मेरी वालिदा ने मुझे जन्म दिया तो उनसे एक नूर निकला उस नूर से शाम के महल्लात जगमगा उठे । *( तबका़त )*

★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वालिदा सैयदा आमना फरमाती है :-  मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) की पैदाइश के वक्त ज़ाहिर होने वाले नूर की रोशनी में मुझे बसरा में चलने वाले ऊंटो की गर्दनें तक नज़र आई ।

★_ अल्लामा सहली रहमतुल्लाह ने लिखा है कि जब आप पैदा हुए तो आपने अल्लाह की तारीफ की । एक रिवायत में यह अल्फाज़ आए हैं  :-

"_ अल्लाहु अकबर कबीरा वल हमदुलिल्लाहि कसीरा वा सुबहानल्लाहि बुकरतौव वा असीला _,"

(अल्लाह ताअला सबसे बड़ा है अल्लाह ताला की बेहद तारीफ है और मैं सुबह व शाम अल्लाह की पाकी बयान करता हूं )

★__ आप की विलादत किस दिन हुई ?  इस बात पर सबका इत्तेफाक है कि वह पीर का दिन था आप सुबह फज़र तुलु होने के वक्त दुनिया में तशरीफ़ लाएं ।

★_ तारीफ पैदाइश के सिलसिले में बहुत से कौ़ल हैं। एक रिवायत के मुताबिक 12 रबीउल अव्वल को पैदा हुए एक रिवायत आठ रबीउल अव्वल  की है,  एक रिवायत 12 रबीउल अव्वल को पैदा हुए । इस सिलसिले में और भी बहुत सी रिवायात है ज्यादातर मोरखीन का ख्याल है कि आप 8 रबीउल अव्वल को पैदा हुए । तक़वीम ( कैलेंडर ,जंत्री) के तरीक़े के हिसाब से जब तारीख निकाली गई तो नौ रबीउल अव्वल निकली । मतलब यह कि इस बारे में बिल्कुल सही बात किसी को मालूम नहीं। इस बात पर सब को इत्तेफाक है कि महीना रबीउल अव्वल का था और दिन पीर का ।

यह भी कहा जाता है कि आपको पीर के दिन ही नबुवत मिली, पीर के रोज़ ही आपने मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत फरमाई और पीर के रोज़ ही आप की वफात हुई ।

★_ आप आमुल फील में पैदा हुए यानी हाथियों वाले साल में । इस साल को हाथी वाला साल इसलिए कहा जाता है कि अबरहा ने हाथियों के साथ मक्का मुकर्रमा पर चढ़ाई की थी ।आप की पैदाइश इस वाक्य के कुछ ही दिन बाद हुई थी ।

★__ वाकि़या कुछ इस तरह है कि अब्राहा ईसाई हकीम था । हज के दिनों में उसने देखा कि लोग बैतुल्लाह का हज करने जाते हैं ।उसने अपने लोगों से पूछा यह लोग कहां जाते हैं ? उसे जवाब मिला बैतुल्लाह का हज करने के लिए मक्का जाते हैं । उसने पूछा बैतुल्लाह किस चीज का बना हुआ है? उसे बताया गया पत्थरों का है। उसने पूछा उसका लिबास क्या है ? बताया गया हमारे यहां से जो धारीदार कपड़ा जाता है उससे उसकी पोशाक तैयार होती है।

अब्राहा ईसाई था ।सारी बात सुनकर उसने कहा- मसीह की क़सम मैं तुम लोगों के लिए इससे अच्छा घर तामीर करूंगा ।

★_ इस तरह उसने सुर्ख सफेद ज़र्द और सियाह पत्थरों से एक घर बनवाया सोने और चांदी से उसको सजाया उसमें कई दरवाजे रखवाये  उसमें सोने के पत्तर जडवाये उसके दरमियां में जवाहर लगवाए , उस मकान में एक बड़ा सा याकूत लगवाया पर्दे लगवाए । वहां खुशबुएं सुलगाने का इंतजाम किया । उसकी दीवारों पर इस कदर मुश्क मला जाता था कि वह सियाह रंग की हो गई यहां तक कि जवाहर भी नज़र नहीं आते थे । फिर लोगों से कहा अब तुम्हें बेतुल्लाह का हज करने के लिए मक्का जाने की जरूरत नहीं रही मैंने यहीं तुम्हारे लिए बैतुल्लाह बनवा दिया है, लिहाजा अब तुम इस का तवाफ करो ।

★_ इस तरह कुछ क़बाइल कई साल तक इसका हज करते रहे उसमें एतिकाफ करते रहे हज वाले मनासिक भी यहीं अदा करते रहे । अरब के एक शख्स नोफेल खश्मी से यह बात बर्दाश्त ना हो सकी ,वह इस नकली खाना काबा के खिलाफ दिल ही दिल में कुड़ता रहा। आखिर उसने दिल में ठान ली कि वह अबरहा की इस इमारत को गंदा करके छोड़ेगा । फिर एक रात उसने चोरी छिपे बहुत ही गंदगी उसमें डाल दी ।

★_ अब्राहा को मालूम हुआ तो सख्त गज़बनाक हुआ कहने लगा यह कार्यवाही किसी अरब ने अपने काबा के लिए की है मैं उसे ढ़हा दूंगा उसका एक एक पत्थर तोड दूंगा ।

★__उसने शाम व हबशा को यह तफसीलात लिख दी , उससे दरखास्त की कि वह अपना हाथी भेज दे । उस हाथी का नाम महमूद था, यह इस कदर बड़ा था कि इतना बड़ा हाथी रूए जमीन पर देखने में नहीं आया था। जब हाथी उसके पास पहुंच गया तो वह अपनी फौज लेकर निकला और मक्का का रूख किया । यह लश्कर जब मक्का के क़ुर्बो जवार में पहुंचा तो अबरहा ने फौज को हुक्म दिया कि इन लोगों के जानवर लूट लिये जाएं। उसके हुक्म पर फौजियों ने जानवर पकड़ लिए उनमें अब्दुल मुत्तलिब के ऊंट भी थे।

★_नुफैल भी इस लश्कर में अबरहा के साथ मौजूद था और यह अब्दुल मुत्तलिब का दोस्त था।  अब्दुल मुत्तलिब इससे मिले ऊंटों के सिलसिले में बात की । नुफैल ने अबरहा से कहा - कुरेश का सरदार अब्दुल मुत्तलिब मिलना चाहता है यह शख्स तमाम अरब का सरदार है सर्फ और बुजुर्गी इसे हासिल है लोगों में इसका बड़ा असर है लोगों को अच्छे अच्छे घोड़े देता है उन्हें अतियात देता है खाना खिलाता है।

★_ यह गोया अब्दुल मुत्तलिब का तार्रूफ था। अब रहा ने उन्हें मुलाकात के लिए बुलाया अबरहा ने इनसे पूछा -बताइए आप क्या चाहते हैं ? उन्होंने जवाब दिया मैं चाहता हूं मेरे ऊंट मुझे वापस मिल जाए।

★_ इनकी बात सुनकर अबरहा बहुत हैरान हुआ ।उसने कहा मुझे तो बताया गया था कि आप अरब के सरदार हैं बहुत इज्जत और बुजुर्गी के मालिक हैं लेकिन लगता है मुझसे गलत बयानी की गई है क्योंकि मेरा ख्याल था आप मुझसे बैतुल्लाह के बारे में बात करेंगे जिसको मैं गिराने आया हूं और जिसके साथ आप सबकी इज्जत वाबस्ता है लेकिन आपने तो सिरे से इसकी बात ही नहीं की और अपने ऊंटों का रोना लेकर बैठ गए ,यह क्या बात हुई ।

उसकी बात सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बोले -आप मेरे ऊंठ मुझे वापस दे दे बेतुल्लाह के साथ जो चाहे करें इसलिए कि उस घर का एक परवरदिगार है वह खुद ही उसकी हिफाज़त करेगा मुझे उसके लिए फिक्र बंद होने की जरूरत नहीं।

★_ उनकी बात सुनकर अबरहा ने हुक्म दिया इनके ऊंट वापस दे दिए जाएं ।

जब इन्हें इनके ऊंट वापस मिल गए तो इन्होंने उनके समो पर चमड़े  चढ़ा दिए उन पर निशान लगा दिए उन्हें कुर्बानी के लिए वक्फ करके हरम में छोड़ दिया ताकि फिर कोई उन्हें पकड़ ले तो हरम का परवरदिगार उस पर गज़ब नाक हो।

★__ फिर अब्दुल मुत्तलिब हीरा पहाड़ पर चढ़ गए उनके साथ उनके कुछ दोस्त थे उन्होंने अल्लाह से दरखास्त की :- ऐ अल्लाह ! इंसान अपने सामान की हिफाज़त करता है तू अपने सामान की हिफाजत कर।

★_ उधर से अबरहा अपना लश्कर लेकर आगे बढ़ा वो खुद हाथी पर सवार लश्कर के दरमियान मौजूद था। ऐसे में उसके हाथी ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया वह जमीन पर बैठ गया हाथी बानों ने उसे उठाने की कोशिश की लेकिन वह ना उठा। उन्होंने उसके सर पर ज़िरे लगाई ,आक्स चुभोऐ  मगर वो खड़ा ना हुआ । कुछ सोच कर उन्होंने उसका रूख यमन की तरफ किया तो वह फौरन उस तरह चलने लगा ।

★_उसका रुख फिर मक्का की तरफ किया गया तो फिर रूक गया ।हाथी बानो ने यह तजुर्बा बार बार किया । आखिर अबरहा ने हुक्म दिया :-  हाथी को शराब पिलाई जाए ताकि नशे में उसे कुछ होश ना रह सके और हम उसे मक्का की तरफ आगे बढ़ा सकें ।

★_उसे शराब पिलाई गई लेकिन उस पर इसका भी असर ना हुआ ।

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*┱✿_ अबरहा का अंजाम -_,*

★__ अबरहा के हाथी को उठाने की मुसलसल कोशिश जारी थी कि अचानक समुंदर की तरफ से उनकी तरफ अल्लाह ताअला ने अबाबीलों को भेज दिया वह टिड्डियों के झुंड की तरह आई ।

★_ दूसरी तरफ अब्दुल मुत्तलिब मक्का में दाखिल हुए हरम में पहुंचे और काबा के दरवाजे की जंजीर पकड़ कर अबरहा और उसके लश्कर के खिलाफ फतेह की दुआ मांगी ,उनकी दुआ के अल्फाज यह थे :-

"_ ऐ अल्लाह ! यह बंदा अपने का़फिले और अपनी जमात की हिफाज़त कर रहा है तू अपने घर (यानी बैतुल्लाह) की हिफाजत फरमा ,अबरहा का लश्कर फतह ना हासिल कर सके , उनकी ताकत तेरी ताकत के आगे कुछ भी नहीं ,आज सलीब कामयाब ना हो _।"

★_ सलीब का लफ्ज़ इसलिए बोला कि अबरहा ईसाई था और सलीब को ईसाई अपने निशान के तौर पर साथ लेकर चलते हैं। अब उन्होंने अपनी क़ौम को साथ लिया और हीरा पहाड़ पर चढ़ गए क्योंकि उनका ख्याल था , वह अबरहा का मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे ।

★__और फिर अल्लाह ताला ने परिंदों के झुंड के झुंड भेज दिए यह परिंदे चिड़िया से क़द से बड़े थे उनमें से हर परिंदे की चोंच में पत्थर के तीन तीन टुकड़े थे यह पत्थर परिंदों ने अब्राहा के लश्कर पर गिराने शुरू किए । जूंही यह पत्थर उन पर गिरे उनके टुकड़े टुकड़े हो गए बिल्कुल इस तरह जैसे आज किसी जगह ऊपर से बम गिराया जाए तो जिस्मों के टुकड़े उड़ जाते हैं । अबरहा का हाथी महमूद अलबत्ता उन कंकरिया से महफूज़ रहा बाक़ी सब हाथी तहस-नहस हो गए । यह हाथी 13 अदद थे  सब के सब खाए हुए नहूसत के मानिंद हो गए जैसा की सूरह फील में आता है ।

★__ अबरहा और उसके कुछ साथी तबाही का मंजर देख कर बुरी तरह भागे लेकिन परिंदों ने उसको भी ना छोड़ा । अब्राहा के बारे में तबका़त में लिखा है कि उसके जिस्म का एक एक उज्व अलग होकर गिरता चला गया यानी वह भाग रहा था और उसके जिस्म का एक एक हिस्सा अलग होकर गिर रहा था ।

★_दूसरी तरफ अब्दुल मुत्तलिब इस इंतजार में थे कि कब हमला होता है लेकिन हमलावर जब मक्का में दाखिल ना हुए तो यह हालात मालूम करने के लिए नीचे उतरे मक्का से बाहर निकले तब इन्होंने देखा सारा लश्कर तबाह हो चुका है खूब माले गनीमत उनके हाथ लगा बेशुमार सामान हाथ आया , माल में सोना चांदी भी बेतहाशा था ।

★_लश्कर में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो वापस नहीं भागे थे यह मक्का में रह गए थे उनमें अब्राहा के हाथी का महावत भी था जो महमूद को आगे लाने में नाकाम रहा था ।

★_ हमारे नबी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इस वाक्य के चंद दिन बाद पैदा हुए। आप जिस मकान में पैदा हुए वह सफा पहाड़ के करीब था । हजरत का़'ब अहबार रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं:- मैंने तौरात में पढ़ा था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पैदाइश मक्का में होगी । यह का़'ब पहले यहूदी थे इसलिए तौरात पढ़ा करते थे।

★__ दुनिया में आते ही हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम रोए । हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु की वाल्दा कहती हैं कि जब हजरत आमना के यहां विलादत हुई तो मैं वहां मौजूद थी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मेरे हाथों में आए यह गालिबन दाया थी इनका नाम शिफा था । फरमाती हैं -जब आप मेरे हाथों में आए तो रोए ।

★_ आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब को विलादत की इत्तेला दी गई वह उस वक्त खाना काबा का तवाफ कर रहे थे । इत्तेला मिलने पर घर आए ,बच्चे को गोद में लिया । उस वक्त आपकी वाल्दा ने उनसे कहा :- यह बच्चा अजीब है सजदे की हालत में पैदा हुआ है यानी पैदा होते ही इसने पहले सजदा किया फिर सजदे से सर उठा कर उंगली आसमान की तरफ उठाई।

★_  अब्दुल मुत्तलिब ने आपको देखा उसके बाद आपको काबा में ले आए आपको गोद में लिए रहे और तवाफ करते रहे । फिर वापस लाकर हजरत आमना को दिया आपको और अरब के दस्तूर के मुताबिक एक बर्तन से ढांपा गया लेकिन वह बटन टूट कर आप के ऊपर से हट गया उस वक्त आप अपना अंगूठा चूस रहे थे ।

★_ इस मौके पर शैतान बुरी तरह चीखा। तफसीर में है कि शैतान सिर्फ 4 मर्तबा चीखा। पहली बार उस वक्त जब अल्लाह ताअला ने उसे मलऊन ठहराया, दूसरी बार उस वक्त जब उसे जमीन पर उतारा गया ,तीसरी बार उस वक्त चीखा जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पैदाइश हुई और चौथी मर्तबा उस वक्त जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर सूरह फातिहा नाजिल हुई ।

★__ इस मौक़े पर हजरत हस्सान बिन साबित रजियल्लाहु अन्हु  कहते हैं :-  मैं 8 साल का था जो कुछ बोलता और सुनता था उसको समझता था एक सुबह मैंने यसरिब यानी मदीना मुनव्वरा में एक यहूदी को देखा वह एक ऊंचे टीले पर चढ़कर चिल्ला रहा था लोग उस यहूदी के गिर्द जमा हो गए और बोले क्या बात है क्यों चीख रहे हो ?  यहूदी ने जवाब दिया :- अहमद का  सितारा तुलू हो गया है और वह आज पैदा हो गये है।

★__ हजरत हस्सान बिन साबित रजियल्लाहु अन्हु बाद में 60 साल की उम्र में मुसलमान हो गए थे 120 साल की उम्र में इन्होंने वफात पाई, गोया  ईमान की हालत में 60 साल जिंदा रहे । बहुत अच्छे शायर थे। नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अपने अशआर में तारीफ किया करते थे और दुश्मनों की बुराई अश'आर में बयान करते भे , गज़वात के मौके पर अशआर के जरिए मुसलमानों को जोश दिलाते थे। इसी बात पर इन्हें शायर ए रसूल का खिताब मिला था।

★__ हजरत काब अहबार रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं मैंने तोरात में पढ़ा है कि अल्लाह ताला ने हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को आन हजरत सल्लल्लाहो वाले वसल्लम की विलादत के वक्त की खबर दे दी थी और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम बनी इसराईल को इसकी इत्तला दे दी थी । इसी सिलसिले में उन्होंने फरमाया था :- तुम्हारे नज़दीक जो मशहूर चमकदार सितारा है जब वह हरकत में आए हैं तो वही वक्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पैदाइश का होगा। यह खबर बनी इसराइल के उल्मा एक दूसरे को देते चले आए थे और इसी तरह बनी इसराईल को भी आन हजरत विलादत की विलादत का वक्त यानी उसकी अलामत मालूम थी।

★__हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि एक यहूदी आलिम मक्का में रहता था जब वह रात आई जिसमें आन हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम पैदा हुए तो वह कुरेश की एक मजलिस में बैठा था। उसने कहा:- क्या तुम्हारे यहां आज कोई बच्चा पैदा हुआ है ?

लोगों ने कहा:-  हमें तो मालूम नहीं ।

इस पर उस यहूदी ने कहा:-  मैं जो कुछ कहता हूं उसे अच्छी तरह सुन लो आज इस उम्मत का आखिरी नबी पैदा हो गया है और ऐ कुरेश के लोगों ! वह तुमने से है यानी वह कुरेशी है उसके कंधे के पास एक अलामत है (यानी मोहरे नबूवत ) उसमें बहुत ज्यादा बाल है यानी घने बाल और यह नबूवत का निशान है नबुवत की दलील है , उस बच्चे की अलामत है कि वह 2 रात तक दूध नहीं पिएगा , इन बातों का जिक्र उसकी नबुवत की अलामत के तौर पर पुरानी कुतुब में मौजूद है ।

अल्लामा इब्ने हजर ने लिखा है की यह बात दुरुस्त है आपने 2 दिन तक दूध नहीं पिया था।

★_ यहूदी आलिम ने जब यह बातें बताई तो लोग वहां से उठ गए उन्हें यहूदी की बातें सुनकर बहुत हैरत हुई थी जब यह लोग अपने घरों में पहुंचे तो उनमें से हर एक ने उसकी बातें अपने घर के अफराद को बताई, औरतों को चुंकि हजरत आमना के यहां बेटा पैदा होने की खबर हो चुकी थी इसलिए उन्होंने अपने मर्दों को बताया ।

ज़रा चलकर मुझे बच्चा दिखाओ । लोग उसे साथ लिए हजरत आमना के घर के बाहर आए उनसे बच्चा दिखाने की दरख्वास्त की ।आपने बच्चे को कपड़े से निकाल कर उन्हें दे दिया ।

लोगों ने आप के कंधे पर से कपड़ा हटाया, यहूदी की नज़र जोंही मोहरे नबुवत पर पड़ी वह फौरन बेहोश होकर गिर पड़ा । उसे होश आया तो लोगों ने उससे पूछा -तुम्हें क्या हो गया था ?

जवाब में उसने कहा- मैं इस गम से बेहोश हुआ था कि मेरी क़ौम में से नबुवत खत्म हो गई और ऐ क़ुरैश ! अल्लाह की कसम ! यह बच्चा तुम पर जबरदस्त गलबा हासिल करेगा और इसकी शोहरत मशरिक़ से मगरिब तक फैल जाएगी ।

*📕_सीरतुन नबी ﷺ _,*

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*┱✿_ मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का सितारा चमका -_,*

★__मुल्के शाम का एक यहूदी उयेस मक्का से कुछ फासले पर रहता था वह जब भी किसी काम से मक्का आता वहां के लोगों से मिलता तो उनसे कहता :- बहुत क़रीब के ज़माने में तुम्हारे दरमियान एक बच्चा पैदा होगा सारा आलम उसके रास्ते पर चलेगा उसके सामने ज़लील और पस्त हो जाएगा वह अजम और उसके शहरों का भी मालिक हो जाएगा यही उसका जमाना है । जो उसकी नबुवत के जमाने को पाएगा और उसकी पैरवी करेगा वह अपने मक़सद में कामयाब होगा , जिस खैर और भलाई की वह उम्मीद करता है वह उसको हासिल होगी और जो शख्स उसकी नबुवत का जमाना पाएगा मगर उसकी मुखालफत करेगा वह अपने मकसद और आरजूओं में नाकाम होगा।

★_मक्का मोअज़्ज़मा में जो भी बच्चा पैदा होता वह यहूदी उस बच्चे के बारे में तहकी़क़ करता और कहता ,अभी बच्चा पैदा नहीं हुआ । आखिर जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इस दुनिया में तशरीफ़ लाएं तो अब्दुल मुत्तलिब अपने घर से निकल कर इसी यहूदी के पास पहुंचे । उसकी इबादतगाह के दरवाजे पर पहुंच कर उन्होंने आवाज दी , उयेस ने पूछा -कौन है ?

इन्होंने अपना नाम बताया ,फिर उससे पूछा -तुम इस बच्चे के बारे में क्या कहते हो ? उसने इन्हें देखा फिर बोला- हां तुम ही उसके बाप हो सकते हो । बेशक वह बच्चा पैदा हो गया है जिसके बारे में मैं तुम लोगों से कहा करता था वह सितारा आज तुलु हो गया हैं जो उस बच्चे की पैदाइश की अलामत है और उसकी अलामत यह है कि इस वक्त उस बच्चे को दर्द हो रहा है ,यह तकलीफ उसे तीन दिन रहेगी और उसके बाद यह ठीक हो जाएगा।

★_ राहिब ने जो यह कहा था बच्चा 3 दिन तक तकलीफ में रहेगा तो उसकी तफसील यह है कि आपने 3 दिन तक दूध नहीं पिया था और यहूदी ने जब यह कहा था कि हां आप ही उसके बाप हो सकते हैं, इससे यह मुराद है कि अरबों में दादा को भी बाप कह दिया जाता है और नबी करीम सल्लल्लाहो वसल्लम ने एक बार खुद फरमाया था- मैं अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूं ।

★_यहूदी ने अब्दुल मुत्तलिब से यह भी कहा था - इस बारे में अपनी जुबान बंद रखें यानी किसी को कुछ ना बताएं वरना लोग इस बच्चे से ज़बरदस्त हसद करेंगे इतना हसद करेंगे कि आज तक किसी ने नहीं किया और इसकी इस क़दर सख्त मुखालफत होगी कि दुनिया में किसी और की इतनी मुखालफत नहीं होगी ।

पोते के मुताल्लिक यह बातें सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने उयेस से पूछा :- इस बच्चे की उम्र कितनी होगी ?

यहूदी ने सवाल के जवाब में कहा:-  अगर इस बच्चे की उम्र तब'ई हुई तो भी 70 साल तक नहीं होगी बल्कि इससे पहले ही 61 या 63 साल की उम्र में वफात हो जाएगी और इसकी उम्मत की औसत उम्र भी इतनी होगी , इस की पैदाइश के वक्त दुनिया के बुत टूट कर गिर जाएंगे ।

★__ यह सारी अलामात उस यहूदी ने गुज़िस्ता अंबिया की पेशीन गोइयों से मालूम की थी और सब बिल्कुल सच साबित हुई कुरेश के कुछ लोग अमरू बिन नुफेल और अब्दुल्ला बिन जहश वगैरा एक बुत के पास जाया करते थे उस रात भी उसके पास गये जिस रात आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की पैदाइश हुई। इन्होंने देखा वह बुत उंधे मुंह गिरा पड़ा है इन लोगों को यह बात बुरी लगी इन्होंने उसको उठाया सीधा कर दिया मगर वह फिर गिर गया इन्होंने फिर उसको सीधा किया वह फिर उल्टा हो गया । इन लोगों को बहुत हैरत हुई, यह बात बहुत अजीब लगी । तब उस बुत से आवाज निकली :- यह एक ऐसे बच्चे की पैदाइश की खबर है जिसके नूर से मशरिक और मगरिब में जमीन के तमाम गोशे मुनव्वर हो गए हैं।

★_ बुत से निकलने वाली आवाज ने इन्हें और ज्यादा हैरतज़दा कर दिया । इसके अलावा एक वाक्या यह पेश आया कि ईरान के शहंशाह किसरा नौशेरवान का महल हिलने लगा और उसमें शगाफ पड़ गए । नोशेरवान का यह महल निहायत मजबूत था । बड़े-बड़े पत्थरों और चूने से तामीर किया गया था । इस वाक्य से पूरी सल्तनत में दहशत फैल गई ।सगाफ पडने से खौफनाक आवाज भी निकली थी। महल के 14 कंगूरे टूट कर नीचे आ गिरे थे।

★_ आप की पैदाइश पर एक वाक्या यह पेश आया कि फारस के तमाम आतिश क़दों की वह आग बुझ गई जिसकी वह लोग पूजा करते थे और उसको बुझने नहीं देते थे , लेकिन उस रात में एक ही वक्त में तमाम के तमाम आतिश क़दो की आग आनन-फानन बुझ गई । आग के पूजने वालों में रोना पीटना मच गया।

किसरा को ये तमाम इत्तेलात मिली तो उसने एक काहिन को बुलाया । उसने अपने महल में शगाफ पढ़ने और आतिश क़दो की आग बुझने के वाक़यात उसे सुना कर पूछा :- आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ?

वह का़हिन खुद तो जवाब न दे सका , ताहम उसने कहा :- इन सवालात के जवाबात मेरा मामू दे सकता है । उसका नाम सतीह है।

नौशेरवान ने कहा :-  ठीक है तुम जाकर इन सवालात के जवाबात  लाओ।

वह गया ,सतीह से मिला, उसे यह वाक़यात सुनाएं, उसने सुन कर कहा :- एक असा वाले नबी ज़ाहिर होंगे जो अरब और शाम पर छा जाएंगे और जो कुछ होने वाला है होकर रहेगा ।

उसने यह जवाब कि़सरा को बताया । उस वक्त तक कि़सरा ने दूसरे काहिनो से भी मालूमात हासिल कर ली थी चुनांचे यह सुनकर उसने कहा :- तब फिर अभी वह वक्त आने में देर है ।( यानी उनका गलबा मेरे बाद होगा)

★__ पैदाइश के सातवें दिन अब्दुल मुत्तलिब ने आपका अकी़का़ किया और नाम " मोहम्मद " रखा। अरबों में इससे पहले यह नाम किसी का नहीं रखा गया था। कुरेश को यह नाम अजीब सा लगा ।चुनांचे कुछ लोगों ने अब्दुल मुत्तलिब से कहा :- ऐ अब्दुल मुत्तलिब ! क्या वजह है कि तुमने इस बच्चे का नाम इसके बाप दादा के नाम पर नहीं रखा बल्कि मोहम्मद रखा है और यह नाम ना तुम्हारे बाप दादा में से किसी का है ना तुम्हारी कौम में से किसी का है ।

अब्दुल मुत्तलिब ने उन्हें जवाब दिया :-  मेरी तमन्ना है कि आसमानों में अल्लाह ताला इस बच्चे की तारीफ फरमाएं और जमीन पर लोग इसकी तारीफ करें। ( मोहम्मद के मा'अनी हैं जिसकी बहुत ज्यादा तारीफ की जाए)

★__ इसी तरह वाल्दा की तरफ से आपका नाम " अहमद " रखा गया । अहमद नाम भी इससे पहले किसी का नहीं रखा गया था। मतलब यह कि इन दोनों नामों की अल्लाह ताला ने हिफाज़त की और कोई भी यह नाम ना रख सका । अहमद का मतलब है सबसे ज्यादा तारीफ करने वाला।

अल्लाह सहली ने लिखा है आप अहमद पहले हैं और मोहम्मद बाद में । यानी आपकी तारीफ दूसरों ने बाद में की इससे पहले आप की शान यह हैं कि आप अल्लाह ताला की सबसे ज़्यादा हम्दो सना करने वाले हैं । पुरानी किताबों में आपका नाम अहमद जिक्र किया गया है।

★__ अपनी वाल्दा के बाद आप ने सबसे पहले सोबिया का दूध पिया, सौबिया नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चाचा अबू लहब की बांदी थी। उनको अबु लहब ने आप की पैदाइश की खुशी में आज़ाद कर दिया था । सोबिया ने आपको चंद दिन तक दूध पिलाया । उन्हीं दिनों सोबिया के यहां अपना बेटा पैदा हुआ था । आपकी वाल्दा ने आपको सिर्फ 9 दिन तक दूध पिलाया ,उनके बाद सोनिया ने पिलाया । फिर दूध पिलाने की बारी हजरत हलीमा सादिया रजि़यल्लाहु अन्हा की आई।

★__ हजरत हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा अपनी बस्ती से रवाना हुई , इनके साथ इनका दूध पीता बच्चा और शौहर भी थे । हज़रत हलीमा रज़ियल्लाहु अन्हा दूसरी औरतों के बाद मक्का में दाखिल हुई , इनका खच्चर बहुत कमजोर और मरियल था , इनके साथ इनकी कमज़ोर और बूढ़ी ऊंटनी थी । वह बहुत आहिस्ता चलती थी । इनकी वजह से हलीमा रज़ियल्लाहु अन्हा क़ाफिले से बहुत पीछे रह जाती थी । इस वक्त भी ऐसा ही हुआ, वह सबसे आखिर में मक्का में दाखिल हुई ।

*📕_सीरतुन नबी ﷺ _,*

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*┱✿_ हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा की गोद में -_,*

★__ उस ज़माने में अरबों का दस्तूर यह था की जब उनके यहां कोई बच्चा होता तो वह देहात से आने वाली दाइयों के हवाले कर देते थे ताकि देहात में बच्चे की नशो नुमां बेहतर हो और वह खालिस अरबी जुबान सीख सकें ।

दाइयों का काफिला मक्का में दाखिल हुआ उन्होंने उन घरों की तलाश शुरू की जिनमें बच्चे पैदा हुए थे । इस तरह बहुत सी दाइयां जनाब अब्दुल मुत्तलिब के घर भी आई । नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा , जब उन्हें मालूम हुआ कि बच्चा तो यतीम पैदा हुआ है तो इस खयाल से छोड़ कर आगे बढ़ गई कि यतीम बच्चे के घराने से उन्हें क्या मिलेगा। इस तरह दाइयां आती रही जाती रही। किसी ने आप को दूध पिलाना मंजूर ना किया और करती भी कैसे यह स'आदत तो हजरत हलीमा रजियल्लाहु अन्हा के हिस्से में आना थी।

★_जब हलीमा रजियल्लाहु अन्हा मक्का पहुंची तो उन्हें मालूम हुआ सब औरतों को कोई ना कोई बच्चा मिल गया है और आप सिर्फ वह बगैर बच्चे के रह गई हैं और अब कोई बच्चा बाक़ी नहीं बचा । हां ! एक यतीम बच्चा जरूर बाक़ी है जिसे दूसरी औरतें छोड़ गई हैं। हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने शौहर अब्दुल्लाह इब्ने हारिस से कहा- खुदा की कसम ! मुझे यह बात बहुत नागवार गुज़र रही है कि मैं बच्चे के बगैर जाऊं, दूसरी सब औरतें बच्चे लेकर जाएं । यह मुझे ताने देंगे, इसलिए क्यों ना हम इसी यतीम बच्चे को ले लें ।

अब्दुल्लाह बोले - कोई हर्ज नहीं । हो सकता है अल्लाह इस बच्चे के ज़रिए हमें खैरों बरकत अता फरमा दें ।

★_ चुनांचे हजरत हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा अब्दुल मुत्तलिब के घर गई ।जनाब अब्दुल मुत्तलिब और हजरत आमना ने उन्हें खुश आमदीद कहा , फिर उन्हें बच्चे के पास ले आई , आप उस वक्त एक ऊनी चादर में लेटे हुए थे वह चादर सफेद रंग की थी आप के नीचे एक सब्ज़ रंग का रेशमी कपड़ा था ।आप सीधे लेटे हुए थे आप के सांस की आवाज के साथ मुश्क की सी खुशबू निकल कर फैल रही थी। हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा आपके हुस्नो जमाल को देख कर हैरत ज़दा रह गई ।आप उस वक्त सोए हुए थे, उन्होंने जगाना मुनासिब न समझा लेकिन जोंही उन्होंने प्यार से अपना हाथ आपके सीने पर रखा आप मुस्कुराए और आंखें खोल कर उनकी तरफ देखने लगे ।

★__ हजरत हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- मैंने देखा आपकी आंखों से एक नूर निकला जो आसमान तक पहुंच गया मैंने आपको गोद में उठाकर आपकी दोनों आंखों के दरमियां जगह पर प्यार किया फिर मैंने आपकी वाल्दा और अब्दुल मुत्तलिब से इजाज़त चाही , बच्चे को लिए काफ़िले में आई । मैंने आप को दूध पिलाने के लिए गोद में लिटाया तो आप दाईं तरफ से दूध पीने लगे ,पहले मैंने बाई तरफ से दूध पिलाना चाहा लेकिन आपने उस तरफ से दूध ना पिया दाईं तरफ से आप फौरन दूध पीने लगे । बाद में भी आप की यही आदत रही ,आप सिर्फ दाईं तरफ से दूध पीते रहे बाई तरफ से मेरा बच्चा दूध पीता रहा।

★_फिर काफ़िला रवाना हुआ ।  हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:-  मैं अपने खच्चर पर सवार हुई,  आप को साथ ले लिया । अब जो हमारा खच्चर चला तो इस कदर तेज़ चला कि उसने पूरे काफ़िले की सवारियों को पीछे छोड़ दिया । पहले वह मरियल होने की बिना पर सबसे पीछे रहता था । मेरी खवातीन साथी हैरानगी से मुखातिब हुई :-  ऐ हलीमा !  यह आज क्या हो रहा है तुम्हारा खच्चर इस कदर तेज़ कैसे चल रहा है क्या यह वही खच्चर है जिस पर तुम आई थी और जिसके लिए एक एक कदम उठाना मुश्किल था ?

जवाब में मैंने उनसे कहा बेशक यह वही खच्चर है अल्लाह की कसम ! इस का मामला अजीब है।

★_फिर यह लोग बनु सा'द बस्ती पहुंच गए । उन दिनों यह इलाका़ खुश्क और क़हत ज़दा था । हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- उस शाम जब हमारी बकरियां चरकर वापस आईं तो उनके थन दूध से भरे थे जबकि इससे पहले ऐसा नहीं था। उनमें से दूध बहुत कम और बहुत मुश्किल से निकलता था । हमने उस दिन अपनी बकरियों का दूध दोहा तो हमारे सारे बर्तन भर गए और हमने जान लिया कि यह सारी बरकत इस बच्चे की वजह से है । आसपास की औरतों में भी यह बात फैल गई ।उनकी बकरियां बदस्तूर बहुत कम दूध दे रही थी।

★__ गर्ज़ हमारे घर में हर तरफ हर चीज में बरकत नजर आने लगी । दूसरे लोग ताज्जुब में रहे इस तरह 2 माह गुजर गए , 2 माह में आप चलने फिरने लगे,  आप 8 माह के हुए तो बातें करने लगे और आपकी बातें समझ में आती थी,  9 माह की उम्र में तो आप बहुत साफ गुफ्तगू करने लगे । इस दौरान आप की बहुत सी बरक़ात देखने में आई । हलीमा सादिया फरमाती हैं :- जब मैं आपको अपने घर ले आई तो बनु सा'द का कोई घराना ऐसा ना था जिससे मुश्क की खुशबू ना आती हो इस तरह सब लोग आपसे मोहब्बत करने लगे ।

★_जब हमने आपका दूध छुड़ाया तो आपकी जुबान मुबारक से यह अल्फाज़ निकले :-

*"_ अल्लाहु अकबर क़बीरा वलहमदुलिल्लाहि कसीरा व सुब्हानल्लाहि बुकरतंव व असीला _,"*

यानी अल्लाह ताला बहुत बड़ा है अल्लाह ताला के लिए बेहद तारीफ है और उसके लिए सुबह व शाम पाकी है।

★_फिर जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम 2 साल के हो गए तो हम आप को लेकर आपकी वाल्दा के पास आए ।इस उम्र को पहुंचने के बाद बच्चों को मां-बाप के हवाले कर दिया जाता था। इधर हम आपकी बरकात देख चुके थे और हमारी आरजू थी कि अभी आप कुछ और मुद्दत हमारे पास रहें । चुनांचे हमने इस बारे में आप की वाल्दा से बात की उनसे यूं कहा :-

आप हमें इजाजत दे दीजिए कि हम बच्चे को 1 साल और अपने पास रखें । मैं डरती हूं कहीं इस पर मक्का की बीमारियों और आबो  हवा का असर ना हो जाए ।


★__ जब हमने उनसे बार-बार कहा तो हजरत आमना मान गई और हम आपको फिर अपने घर ले आए। जब आप कुछ बड़े हो गए तो बाहर निकल कर बच्चों को देखते थे ,वह आपको खेलते नजर आते ,आप उनके नज़दीक ना जाते । एक रोज़ आपने मुझसे पूछा :- 

अम्मी जान ! क्या बात है दिन में मेरे भाई बहन नज़र नहीं आते ?  आप अपने दूध शरीक भाई अब्दुल्लाह और बहनों अनीसा और शीमा के बारे में पूछ रहे थे।

 हलीमा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं मैंने आपको बताया :-  वह सुबह सवेरे बकरियां चराने जाते हैं शाम के बाद घर आते हैं।

 यह जानकर आप ने फरमाया:- तब मुझे भी उनके साथ भेज दिया करें।


★_ उसके बाद आप अपने भाई-बहनों के साथ जाने लगे ।आप खुशी-खुशी जाते और वापस आते । ऐसे में एक दिन मेरे बच्चे खौफ ज़दा अंदाज में दौड़ते हुए आए और घबरा कर बोले :- 

अम्मी जान ! जल्दी चलिए वरना भाई (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम )खत्म हो जाएंगे । 

यह सुनकर हमारे तो होश उड़ गए ,दौड़कर वहां पहुंचे। हमने आपको देखा आप खड़े हुए थे, रंग उड़ा हुआ था ,चेहरे पर ज़र्दी छाई हुई थी और यह इसलिए नहीं था कि आपको सीना चाक किए जाने से कोई तकलीफ हुई थी बल्कि उन फरिश्तों को देखकर आप की हालत हुई थी ।


★_हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं, हमने आपसे पूछा :- क्या हुआ था ? 

आपने बताया :- मेरे पास दो आदमी आए थे वह सफेद कपड़े पहने हुए थे (वह दोनों हजरत जिब्राइल और हजरत मिकाईल अलैहिस्सलाम थे )उन दोनों में से एक ने कहा :- क्या यह वही हैं?

 दूसरे ने जवाब दिया:-  हां यह वही हैं।

 फिर वह दोनों मेरे करीब आए मुझे पकड़ा और लिटा दिया। उसके बाद उन्होंने मेरा पेट चाक किया और उसमें से कोई चीज़ तलाश करने लगे, आखिर उन्हें वह चीज़ मिल गई और उन्होंने उसे बाहर निकाल कर फेंक दिया। मैं नहीं जानता वह क्या चीज थी ।

"_उस चीज़ के बारे में दूसरी रिवायात में यह वजाहत मिलती है कि वह स्याह रंग का एक दाना सा था , यह इंसान के जिस्म में शैतान का घर होता है और शैतान इंसान के बदन में यहीं से असरात डालता है।


★_ हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा फरमाती है फिर हम आपको घर ले आए ।उस वक्त  मेरे शौहर अब्दुल्लाह बिन हारिस ने मुझसे कहा :-  हलीमा मुझे डर है कहीं इस बच्चे को कोई नुकसान ना पहुंच जाए इसलिए इसे इसके घर वालों के पास पहुंचा दो ।

मैंने कहा:- ठीक है ।

फिर हम आपको लेकर मक्का की तरफ रवाना हो गए । जब मैं मक्का के बालाई इलाक़े में पहुंची तो आप अचानक गायब हो गए ।मैं हवास बाख्ता हो गई।


★__ हलीमा सादिया फरमाती हैं- मैं परेशानी की हालत में मक्का पहुंची आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब के पास पहुंचते ही मैंने कहा -मैं आज रात मोहम्मद को लेकर आ रही थी ,जब मैं बालाई इलाक़े में पहुंची तो वह अचानक कहीं गुम हो गए ,अब खुदा की कसम मैं नहीं जानती वह कहां है ?

अब्दुल मुत्तलिब यह सुनकर काबा के पास खड़े हो गए, उन्होंने आप के मिल जाने के लिए दुआ की ,फिर आप की तलाश में रवाना हुए। उनके साथ वर्क़ा बिन नोफल भी थे। गर्ज़ दोनों तलाश करते करते तहामा की वादी में पहुंचे एक दरख्त के नीचे उन्हें एक लड़का खड़ा नजर आया उस दरख्त की शाखें बहुत घनी थी,  अब्दुल मुत्तलिब ने पूछा -लड़के तुम कौन हो?


★_हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस वक्त तक क़द निकाल चुके थे इसलिए अब्दुल मुत्तलिब पहचान ना सके ।आपका क़द तेजी से बढ़ रहा था। जवाब में आप ने फरमाया -मैं मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब हूं ।

यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बोले- तुम पर मेरी जान कुर्बान ! मैं हीं तुम्हारा दादा अब्दुल मुत्तलिब हूं । फिर उन्होंने आप को उठाकर सीने से लगाया और रोने लगे ,आपको घोड़े पर अपने आगे बैठाया और मक्का की तरफ चले। घर आकर उन्होंने बकरियां और गायें जिबह की और मक्का वालों की दावत की।


★__ आप के मिल जाने के बाद हजरत हलीमा सादिया हजरत आमना के पास आईं, तो उन्होंने पूछा- हलीमा! अब आप बच्चे को क्यों ले आई? आपकी तो ख्वाहिश थी कि यह अभी आपके पास ही रहे ।

उन्होंने जवाब दिया -यह अब बड़े हो गए हैं और अल्लाह की क़सम मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी हूं । मैं खौफ महसूस करती रहती हूं कहीं इन्हें कोई हादसा ना पेश आ जाए लिहाजा इन्हें आप के सुपुर्द करती हूं । 

हजरत आमना को यह जवाब सुनकर हैरत हुई बोली- मुझे सच सच बताओ माजरा क्या है ?


★__ तब उन्होंने सारा हाल कह सुनाया , हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा ने दरअसल कई अजीबो-गरीब वाक्यात देखे थे , उन वाक्यात की वजह से वह बहुत परेशान हो गई थी । फिर सीना मुबारक चाक किए जाने वाला वाक्या पेश आया तो वह आप को फौरी तौर पर वापस करने पर मजबूर हो गईं । वह चंद वाक्यात हजरत हलीमा रजियल्लाहु अन्हा इस तरह बयान करती है :- 


"_ एक मर्तबा यहूदी की एक जमात मेरे पास से गुजरी ,यह लोग आसमानी किताब तौरात को मानने का दावा करते थे। मैंने उनसे कहा -क्या आप लोग मेरे इस बेटे के बारे में कुछ बता सकते हैं ? साथ ही मैंने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पैदाइश के बारे में उन्हें तफसिलात सुनाई । यहूदी तफसिलात सुनकर आपस में कहने लगे- इस बच्चे को क़त्ल कर देना चाहिए।

यह कहकर उन्होंने पूछा क्या यह बच्चा यतीम है ?

मैंने उनकी बात सुनी थी कि वे उनके क़त्ल करने का इरादा कर रहे हैं सौ मैने जल्दी से अपने शोहर की तरफ इशारा करते हुए कहा -नहीं ! यह रहे इस बच्चे के बाप ।

तब उन्होंने कहा अगर यह बच्चा यतीम होता तो हम जरूर इसे क़त्ल कर देते ।


★_यह बात उन्होंने इसलिए कहीं कि उन्होंने पुरानी किताबों में पढ़ रखा था कि एक आखरी नबी आने वाले हैं उनका दिन सारे आलम में फैल जाएगा हर तरफ उनका बोलबाला होगा उनकी पैदाइश और बचपन की यह यह अलामात होंगी और यह कि वो यतीम होंगे । अब क्योंकि उनसे हलीमा सादिया ने यह कह दिया कि यह बच्चा यतीम नहीं है, तो उन्होंने ख्याल कर लिया कि यह वह बच्चा नहीं है । इस तरह उन्होंने बच्चे को कत्ल करने का इरादा तर्क कर दिया।


★__ इसी तरह उनके साथ यह वाक़्या पेश आया । एक मर्तबा वह आपको उक़ाज़ के मेले मे ले आई , जिहालत के दौर में यहां बहुत मशहूर मेला लगता था यह मेला ताइफ और नखला के दरमियान में लगता था । अरब के लोग हज करने आते तो शव्वाल का महिला इस मेले में गुजारते, खेलते कूदते और अपनी बड़ाई बयान करते । हलीमा सादिया रजियल्लाहु अन्हा आपको लिए बाजार में घूम रही थी कि एक काहिन  की नज़र आप पर पड़ गई ,उसे आप में नबुवत की तमाम अलामात नज़र आ गई। उसने पुकार कर कहा -लोगों इस बच्चे को मार डालो । 

हलीमा उस काहिन की बात सुनकर घबरा गई और जल्दी से वहां से निकल गई , इस तरह अल्लाह ताला ने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिफाजत फरमाई।


★_ मैले में मौजूद लोगों ने काहिन की आवाज सुनकर इधर-उधर देखा कि किसी बच्चे को क़त्ल करने के लिए कहा गया है मगर उन्हें वहां कोई बच्चा नज़र नहीं आया अब लोगों ने काहिन से पूछा -क्या बात है आप किस बच्चे को मार डालने के लिए कह रहे हैं ? 

उसमें उन लोगों को बताया- मैंने अभी एक लड़के को देखा है माबूदों की क़सम वह तुम्हारे दीन के मानने वालों को क़त्ल करेगा, तुम्हारे बुतों को तोड़ेगा और वह तुम पर गालिब आएगा। 

यह सुनकर लोग आपकी तलाश में इधर उधर दौड़े लेकिन नाकाम रहे।


★_हलीमा सादिया आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम को लिए वापस आ रही थी कि ज़िल हिजाज़ से उनका गुज़र हुआ यहां भी मेला लगा हुआ था इसी बाजा़र में एक नजूमी था लोग उसके पास अपने बच्चों को लेकर आते थे वह बच्चों को देखकर उनकी किस्मत के बारे में अंदाजा लगाता था । हलीमा सादिया उस के नज़दीक से गुज़री तो नजूमी की नज़र आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर पड़ी , नजूमी को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मोहरे नबुवत नज़र आ गई, साथ ही आप सल्लल्लाहु वसल्लम की आंखें की खास सुर्खी उसने देख ली। वह चिल्ला उठा -

ए अरब के लोगों ,इस लड़के को क़त्ल कर दो यह यकी़नन तुम्हारे दीन के मानने वालों को क़त्ल करेगा तुम्हारे बुतों को तोड़ेगा और तुम पर गालिब आएगा । 

यह कहते हुए वह आपकी तरफ झपटा लेकिन उसी वक्त वह पागल हो गया और उसी पागलपन में मर गया।


★__ एक वाक्या और सीरत इब्ने हिशाम में है की हबशा के ईसाइयों की एक जमात हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास से गुज़री उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हलीमा सादिया के साथ थे और वह आपको आपकी वाल्दा के हवाले करने जा रही थी । ईसाइयों ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मोंढ़ों के दरमियान मोहरे नबूवत को देखा और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की आंखों की सुर्खी को भी देखा उन्होंने हलीमा सादिया से पूछा -क्या इस बच्चे की आंखों में कोई तकलीफ है ?

उन्होंने जवाब में कहा- नहीं कोई तकलीफ नहीं यह सुर्खी तो इनकी आंखों में कुदरती है ।

उन ईसाइयों ने कहा- तब इस बच्चे को हमारे हवाले कर दो हम इसे अपने मुल्क ले जाएंगे यह बच्चा पैगंबर और बड़ी शान वाला है ,हम इसके बारे में सब कुछ जानते हैं।


★_हलीमा सादिया यह सुनते ही वहां से जल्दी से दूर चली गई यहां तक कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को आपकी वालिदा के पास पहुंचा दिया ,इन वाक़यात में जो सबसे अहम वाक़्या है वह सीना मुबारक चाक करने वाला था।  रिवायात से यह बात साबित है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सीना मुबारक पर सिलाई के निशानात मौजूद थे जैसा कि आज कल डॉक्टर हजरात ऑपरेशन के बाद टांके लगाते हैं टांके खोल दिए जाने के बाद भी सिलाई के निशानात मौजूद रहते हैं। इस वाक्य़ के बाद हलीमा सादिया और उनके खाविंद ने फैसला किया कि अब बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहिए।


★_जब हजरत हलीमा सादिया ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत आमना के हवाले किया उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उम्र 4 साल थी एक रिवायत यह मिलती है कि उस वक्त उमर शरीफ 5 साल थी , एक तीसरी रिवायत के मुताबिक उम्र मुबारक 6 साल हो चुकी थी, जब हलीमा सादिया ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजरत आमना के हवाले किया तो उसके कुछ दिनों बाद हजरत आमना इंतकाल कर गई । वाल्दा का साया भी सर से उठ गया। हजरत आमना की वफात मक्का और मदीना के दरमियान अबवा के मुकाम पर हुई, आपको यही दफन किया गया ।


"_हुआ यह कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वाल्दा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को ले को लेकर अपने मायके मदीना मुनव्वरा गई आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ उम्मे ऐमन भी थी । उम्मे ऐमन कहती हैं कि - एक दिन मदीना के दो यहूदी मेरे पास आए और बोले- ज़रा मोहम्मद को हमारे सामने लाओ हम उन्हें देखना चाहते हैं। वह आप सल्लल्लाहो वसल्लम को उनके सामने ले आई, उन्होंने अच्छी तरह देखा फिर एक ने अपने साथी से कहा -

"_यह इस उम्मत का नबी है और यह शहर इनकी हिजरत गाह है यहां जबरदस्त जंग होगी कैदी पकड़े जाएंगे ।

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वाल्दा को यहूदियों की इस बात का पता चला तो आप डर गई और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को लेकर मक्का की तरफ रवाना हुई... मगर रास्ते ही में अबवा के मुका़म पर वफात पा गईं।

*📕_सीरतुन नबी ﷺ _,*

 ╨─────────────────────❥ 

❥_ निराली शान का मालिक -_,*


★__ हजरत आमना के इंतकाल के 5 दिन बाद उम्मे ऐमन आपको लेकर मक्का पहुंची, आपको अब्दुल मुत्तलिब के हवाले किया,  आपके यतीम हो जाने का उन्हें इतना सदमा था कि बेटे की वफात पर भी उतना नहीं हुआ था।


★__ अब्दुल मुत्तलिब के लिए काबा के साए में एक कालीन बिछाया जाता था वह उस पर बैठा करते थे उनका एहतराम इस क़दर था कि कोई और उस कालीन पर बैठता नहीं था उनके बेटे और कुरेश के सरदार उस कालीन के चारों तरफ बैठते थे, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम वहां तशरीफ लाते तो सीधे उस कालीन पर जा बैठते । उस वक्त आप एक तंदुरुस्त लड़के थे ,आपकी उम्र 9 साल के करीब हो चली थी । आपके चाचा अब्दुल मुत्तलिब के अदब की वजह से आपको उस कालीन से हटाना चाहते तो अब्दुल मुत्तलिब कहते-  मेरे बेटे को छोड़ दो अल्लाह की कसम यह बहुत शान वाला है ।

फिर वह आपको मोहब्बत से फर्श पर बिठाते आपकी कमर पर शफक़त से हाथ फैरते, आपकी बातें सुनकर हद दर्जे खुश होते रहते।


★_ कभी वह दूसरों से कहते :-  मेरे बेटे को यहीं बैठने दो , उसे खुद भी एहसास है कि इसकी बड़ी शान है और मेरी आरजू है यह इतना बुलंद रुतबा पाए जो किसी अरब को इससे पहले हासिल में हुआ हो और ना बाद में किसी को हासिल हो सके ।

एक बार उन्होंने यह अल्फाज़ कहे :- मेरे बेटे को छोड़ दो इसके मिज़ाज में तबई तौर पर बुलंदी है... इसकी शान निराली होगी ।"


"_ यहां तक की उम्र के आखिरी हिस्से में हजरत अब्दुल्ला की आंखें जवाब दे गई थी आप नाबीना हो गए थे ,ऐसी हालत में एक रोज़ वह उस कालीन पर बैठे थे कि आप तशरीफ ले आए और सीधे उस कालीन पर जा पहुंचे, एक शख्स ने आपको कालीन से खींच लिया। इस पर आप रोने लगे , आप के रोने की आवाज सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बेचैन हुए और बोले - मेरा बेटा क्यों रो रहा है ?

आपके कालीन पर बैठना चाहता है ...हमने इसे कालीन से उतार दिया है ।

यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा-  मेरे बेटे को कालीन पर ही बिठा दो , यह अपना रुतबा पहचानता है। मेरी दुआ है कि यह उस रुतबे को पहुंचे जो इससे पहले किसी और को ना मिला हो, इसके बाद किसी को ना मिले _,"


★_ इसके बाद फिर किसी ने आपको कालीन पर बैठने से नहीं रोका ।

   

★__ एक रोज़ बनू मुदलज के कुछ लोग अब्दुल मुत्तलिब से मिलने के लिए आए उनके पास उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी तशरीफ़ फरमा थे। बनू मुदलज के लोगों ने आपको देखा । यह लोग कि़याफा शनाश थे ,आदमी का चेहरा देखकर उसके मुस्तकबिल के बारे में अंदाजे बयान करते थे। उन्होंने अब्दुल मुत्तलिब से कहां - इस बच्चे की हिफाज़त करें इसलिए कि मक़ामें इब्राहिम पर जो हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम  के क़दम का निशान है इस बच्चे के पांव का निशान बिल्कुल उस निशान से मिलता जुलता है, इस कदर मुशाबहत हमने किसी और के पांव के निशान में नहीं देखी.. हमारा ख्याल है... यह बच्चा निराली शान का मालिक होगा... इसलिए इसकी हिफाज़त करें।


★_ मक़ामें इब्राहिम खाना काबा में वह पत्थर है जिस पर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम काबे की तामीर के वक्त खड़े हुए थे । मौजज़े के तौर पर उस पत्थर पर इब्राहिम अलैहिस्सलाम के पैरों के निशान पड़ गए थे लोग इस पत्थर की जियारत करते हैं । यहीं मक़ामें इब्राहिम है । चूंकि आप हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं इसलिए उनके पांव की मुशाबहत आप में होना कु़दरती बात थी।


★_ एक रोज़ हजरत अब्दुल मुत्तलिब खाना काबा में हजरे अस्वद के पास बैठे हुए थे ।ऐसे में उनके पास नजरान के ईसाई आ गए । उन्हें एक पादरी भी था ।उस पादरी ने अब्दुल मुत्तलिब से कहा-  हमारी किताबों में एक ऐसे नबी की अलामात है जो इस्माईल की औलाद में होना बाकी़ है ,यह शहर उसकी जाए पैदाइश होगा, उसकी यह यह निशानियां होगी।

 अभी बात हो रही थी कि कोई शख्स से आपको लेकर वहां आ पहुंचा । पादरी की नजर जोंही आप पर पड़ी वह चौक उठा आपकी आंखों, कमर और पैरों को देखकर वह चिल्ला उठा - वह नबी यही हैं यह तुम्हारे क्या लगते हैं ?

अब्दुल मुत्तलिब बोले - यह मेरे बेटे हैं ।

इस पर वह पादरी बोला- ओहो ! तब यह वह नहीं इसलिए कि हमारी किताबों में लिखा है कि उनके वालिद का इंतकाल उनकी पैदाइश से पहले हो जाएगा ।

यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बोले- यह दरअसल मेरे पोते हैं , इनके बाप का इंतकाल हो गया था जब यह पैदा ही नहीं हुए थे।

इस पर पादरी बोला- हां ! यह बात हुई ना ...आप इनकी पूरी तरह हिफाजत करें।


★__ अब्दुल मुत्तलिब की आपसे मोहब्बत का यह आलम था कि खाना खाने बैठते तो कहते मेरे बेटे को ले आओ । आप तशरीफ लाते तो अब्दुल मुत्तलिब आपको अपने पास बिठाते आपको अपने साथ खिलाते ।

बहुत ज्यादा उम्र वाले एक सहाबी हैदह बिन मुआविया रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं मैं एक मर्तबा इस्लाम से पहले जाहिलियत के ज़माने में हज के लिए मक्का मुअज्जमा गया वहां बेतुल्ला का तवाफ कर रहा था, मैंने एक ऐसे शख्स को देखा जो बहुत बूढ़ा और बहुत लंबे कद का था वह बैतुल्लाह का तवाफ कर रहा था और कह रहा था- ए मेरे परवरदिगार मेरी सवारी को मोहम्मद की तरफ फैर दे और उसे मेरा दस्त व बाजू़ बना दे ।

मैंने उस बूढ़े को जब यह शेर पढ़ते सुना तो लोगों से पूछा -यह कौन है ? 

लोगों ने बताया कि वे अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम है,  उन्होंने अपने पोते को अपने एक ऊंट की तलाश में भेजा है वह गुम हो गया है और वह पौता ऐसा है कि जब भी किसी गुमशुदा चीज़ की तलाश में उसे भेजा जाता है तो वह चीज़ लेकर ही आता है, पौते से पहले अपने बेटों को उस ऊंट की तलाश में भेज चुके हैं लेकिन वह नाकाम लौट आए हैं अब चुंकि पौते को गए हुए देर हो गई है ,इसलिए परेशान है और दुआ मांग रहे हैं।


"_ थौड़ी ही देर गुज़री थी कि मैंने देखा कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ऊंट को लिए तशरीफ ला रहे हैं ।अब्दुल मुत्तलिब ने आपको देखकर कहा- मेरे बेटे! मैं तुम्हारे लिए इस क़दर फिक्र बंद हो गया था कि शायद इसका असर कभी मेरे दिल से ना जाए।


★_ अब्दुल मुत्तलिब की बीवी का नाम रुकैया बिंते अबू सैफी था वह कहती हैं;-  क़ुरेश कई साल से सख्त क़हत साली का शिकार थे बारिशें बिल्कुल बंद थी सब लोग परेशान थे उस ज़माने में मैंने एक ख्वाब देखा कोई शख्स ख्वाब में कह रहा था :-

ऐ क़ुरेश के लोगों तुम में से एक नबी ज़ाहिर होने वाला है उसके ज़हूर का वक्त आ गया है उसके ज़रिए तुम्हें जिंदगी मिलेगी यानी खूब बारिशें होंगी सर सब्जी़ और शादाबी होगी तुम अपने लोगों में से एक ऐसा शख्स तलाश करो जो लंबे कद का हो गोरे रंग का हो उसकी पलके घनी हो ,भंवें और अबरो मिले हुए हो , वह शख्स अपनी तमाम औलाद के साथ निकले और तुम में से हर खानदान का एक आदमी निकले सब पाक साफ हों और खुशबू लगाएं ,वह हजरे अस्वद को बोसा दे फिर सब जबले अबु क़ैश पर चढ़ जाएं ,फिर वह शख्स जिसका हुलिया बताया गया है आगे बढ़े और बारिश की दुआ मांगें और तुम सब आमीन कहो तो बारिश हो जाएगी। 


★_ सुबह हुई तो रुकैया ने अपना यह ख्वाब कुरेश से बयान किया उन्होंने उन्होंने उन निशानियों को तलाश किया तो सब की सब निशानियां उन्हें अब्दुल मुत्तलिब में मिल गई । चुनांचे सब उनके पास जमा हो गए हर खानदान से एक एक आदमी आया उन सब ने शराइत पूरी की, उसके बाद सब अबु के़श पहाड़ पर चढ़ गए ,उनमें नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम भी थे आप उस वक्त नव उम्र थे । फिर अब्दुल मुत्तलिब आगे बड़े और उन्होंने यूं दुआ की :- 

"_ ऐ अल्लाह ! यह सब तेरे गुलाम है तेरे गुलामों की औलाद है तेरी बांदिया है और तेरी बांदियों की औलाद है हम पर जो बुरा वक्त आ पड़ा है तू देख रहा है हम मुसलसल क़हत साली का शिकार हैं अब ऊंट गायें घोड़े खच्चर और गधे सब कुछ खत्म हो चुके हैं और जानवरों पर बन आई है इसलिए हमारी यह खुश्कसाली खत्म फरमा दे हमें जिंदगी और सर सब्जी़ और शादाबी अता फरमा दे।


★_अभी यह दुआ मांग ही रहे थे कि बारिश शुरू हो गई, वादियां पानी से भर गई लेकिन उस बारिश में एक बहुत अजीब बात हुई और वह अजीब बात यह थी कि क़ुरेश को यह सैराबी ज़रूर हासिल हुई मगर यह बारिश कबीला क़ैस और क़बीला मुज़िर की क़रीबी बस्तियों में बिल्कुल ना हुई। अब लोग बहुत हैरान हुए कि यह क्या बात हुई ,एक क़बीले पर बारिश और आसपास के सभी क़बीले बारिश से महरूम ...तमाम क़बीलों के सरदार जमा हुए इस सिलसिले में बातचीत शुरू हुई एक सरदार ने कहा :- हम ज़बरदस्त क़हत और खुश्क़साली का शिकार हैं जबकि कुरेश को अल्लाह ताला में बारिश अता की है और यह अब्दुल मुत्तलिब की वजह से हुआ है। इसलिए हम सब उनके पास चलते हैं अगर वह हमारे लिए दुआ कर दें तो शायद अल्लाह हमें भी बारिश दे दे।


★_ यह मशवरा सबको पसंद आया । चुनांचे सब लोग मक्का मुअज्जमा में आए और अब्दुल मुत्तलिब से मिले उन्हें सलाम किया फिर उनसे कहा :- ऐ अब्दुल मुत्तलिब ! हम कई साल से खुश्कसाली के शिकार हैं हमें आपकी बरकत के बारे में मालूम हुआ है इसलिए मेहरबानी करके आप हमारे लिए भी दुआ करें इसलिए कि अल्लाह ने आपकी दुआ से कु़रेश को बारिश अता की है।

 उनकी बात सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा:- अच्छी बात है, मैं कल मैदाने अराफात में आप लोगों के लिए भी दुआ करूंगा।


★__ दूसरे दिन सुबह सवेरे अब्दुल मुत्तलिब मैदाने अराफात की तरफ रवाना हुए उनके साथ दूसरे लोगों के अलावा उनके बेटे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम भी थे ।अराफात के मैदान में अब्दुल मुत्तलिब के लिए एक कुर्सी बिछाई गई वह उस पर बैठ गए ,नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को उन्होंने गोद में बिठा लिया फिर उन्होंने हाथ उठाकर यह दुआ की :- 

ऐ अल्लाह ,चमकने वाली बिजली के परवरदिगार और गरजने वाली गरज के मालिक पालने वालों के पालने वाले और मुश्किलात को आसान करने वाले यह क़बीला कैश और कबीला मुज़िर के लोग हैं ,यह बहुत परेशान हैं इनकी कमरे झुक गई हैं यह तुझसे अपनी लाचारी और बेबसी की फरियाद करते हैं और जान माल की बर्बादी की शिकायत करते हैं। ए अल्लाह इनके लिए खूब बरसने वाले बादल भेज दे और आसमान से इनके लिए रहमत अता फरमा। ताकि ज़मीने सर सब्ज़ हो जाएं और उनकी तकलीफ दूर हो जाएं।


★_अब्दुल मुत्तलिब अभी यह दुआ कर ही रहे थे कि एक सियाह बादल उठा अब्दुल मुत्तलिब की तरफ आया और उसके बाद उसका रूख क़बीला कैश और बनु मुज़िर की बस्तियों की तरफ हो गया यह देखकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा :-  ऐ गिरोह क़ुरेश और मुज़िर, जाओ तुम्हें सैराबी हासिल हो गई ।

चुनांचे यह लोग जब अपनी बस्ती में पहुंचे तो वहां बारिश शुरू हो चुकी थी।


★_आप 7 साल के हो चुके थे कि आपकी आंखें दुखने को आ गई, मक्का में आंखों का इलाज कराया लेकिन इफाक़ा ना हुआ अब्दुल मुत्तलिब से किसी ने कहा- उकाज़ के बाज़ार में एक राहिब रहता है वह आंखों की तकालीफ का इलाज करता है। अब्दुल मुट्टलिब आपको उसके पास ले गए उसकी इबादतगाह का दरवाजा बंद था उन्होंने इसे आवाज दी। राहीब ने कोई जवाब ना दिया, अचानक इबादत गाह में शदीद ज़लज़ला आया ,वह डर गया कि कहीं इबादत खाना उसके ऊपर ना गिर पड़े इसलिए एकदम बाहर निकल आया ।अब उसने आपको देखा तो चौंक उठा। उसने कहा:- ए अब्दुल मुत्तलिब यह लड़का इस उम्मत का नबी है अगर मैं बाहर ना निकल आता तो यह इबादत गाह ज़रूर मुझ पर गिर पड़ता, इस लड़के को फौरन वापस ले जाओ और इसकी हिफाजत करें, कहीं यहूदियों या ईसाइयों में से कोई इसे क़त्ल ना कर दें, 

फिर उसने कहा - और रही बात इनकी आंखों की ...तो आंखों की दुआ तो खुद के इनके पास मौजूद है ।

अब्दुल मुत्तलिब यह सुनकर हैरान हुए और बोले -इनके अपने पास है ? मैं समझा नहीं ।

हां इनका लूआबे दहन इनकी आंखों में लगाएं ।

उन्होंने ऐसा ही किया आंखें फौरन ठीक हो गई ।


★__ पुरानी आसमानी किताबों में आपकी बहुत सी निशानियां लिखी हुई थी इसकी तफ्सील बहुत दिलचस्प है । 

यमन में एक क़बीला हमीर था वहां एक शख्स सेफ बिन यज़्न  था वह सेफ हमीरी कहलाता था। किसी जमाने में उसके बाप दादा उस मुल्क पर हुकूमत करते थे लेकिन फिर हब्शियों ने यमन पर हमला किया और उस पर कब्ज़ा कर लिया वहां हब्शियों की हुकूमत हो गई 70 साल तक यमन हब्शियों के क़ब्जे़ में रहा जब यह सैफ बड़ा हुआ तो उसके अंदर अपने बाप दादा का मुल्क आज़ाद कराने की उमंग पैदा हुई । उसमें एक फौज तैयार की, उस फौज के ज़रिए हब्शियों पर हमला किया और उन्हें यमन से भगा दिया । इस तरह वह बाप दादा के मुल्क को आज़ाद कराने में कामयाब हो गया ,वहां का बादशाह बन गया । यह यमन अरब का इलाका था जब उस पर हब्शियों ने कब्जा किया था तो अरबों को बहुत अफसोस हुआ। 70 साल बाद जब यमन के लोगों ने हब्शियों को निकाल बाहर किया तो अरबों को बहुत खुशी हुई ।उनकी खुशी की एक वजह तो यह थी कि इन्ही हब्शियों ने अब्राहा के साथ मक्का पर चढ़ाई की थी । चारों तरफ से अरबों के वफद सेफ को मुबारकबाद देने के लिए आने लगे।


★_ क़ुरेश का भी एक वफद मुबारक बु देने के लिए गया उस वफद के सरदार अब्दुल मुत्तलिब थे ।यह वफद जब यमन पहुंचा तो सैफ अपने महल में था उसके सर पर ताज था सामने तलवार रखी थी और हमीरी सरदार उसके दाएं बाएं बैठे थे । सेफ क़ुरेश के वफद की आमद के बारे में बताया गया उसे यह भी बताया गया कि यह लोग किस रुतबे के हैं । उसने उन लोगों को आने की इजाजत दे दी । यह वफद दरबार में पहुंचा अब्दुल मुत्तलिब आगे बढ़कर उसके सामने जा खड़े हुए उन्होंने बात करने की इजाजत चाही। सैफ ने कहा- अगर तुम बादशाहो के सामने बोलने के आदाब से वाकि़फ हो तो हमारी तरफ से इजाज़त है ।

अब्दुल मुत्तलिब ने कहा- ए बादशाह हम काबा के खादिम है , अल्लाह के घर के मुहाफिज़ है हम आपको मुबारकबाद देने आए हैं यमन पर हब्शी हुकूमत हमारे लिए भी बोझ बनी हुई थी आपको मुबारक हो आपके इस कारनामे से आपके बुजुर्गों को भी इज्ज़त मिलेगी और आने वाली नस्लों को भी वका़र हासिल होगा।


★_सैफ उनके अल्फा़ज़ सुनकर बहुत खुश हुआ बे अख्तियार बोल उठा - ऐ शख्स तुम कौन हो क्या नाम है तुम्हारा ?

उन्होंने कहा -मेरा नाम अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम है।

 सैफ ने हाशिम का नाम सुनकर कहा - तब तो तुम हमारी बहन के लड़के हो ।


"_ अब्दुल मुत्तलिब की वाल्दा मदीने के क़बीला खज़रज की थी और खज़रज का क़बीला दरअसल यमन का था इसलिए सैफ ने हाशिम का नाम सुनकर कहा-  तब तो तुम हमारी बहन के लड़के हो । 

फिर उसने कहा -हम आप सब को खुशामदीद कहते हैं आपके जज़्बात की कद्र करते हैं।


★__ उसके बाद क़ुरेश के वफद को सरकारी मेहमान खाने में ठहरा दिया गया उनकी खूब खातिर मदारत की गई यहां तक कि एक महीना गुजर गया।एक माह की मेहमान नवाजी के बाद सैफ में उन्हें  बुलाया ,अब्दुल मुत्तलिब को अपने पास बुला कर उसने कहा :-

"_ ए अब्दुल मुत्तलिब मैं अपने इल्म के पोशीदा राज़ों में से एक राज़ तुम्हें बता रहा हूं तुम्हारे अलावा कोई और होता तो मैं हरगिज़ ना बताता तुम इस राज़ के उस वक्त तक राज़ ही रखना जब तक कि खुद अल्लाह ताला इस राज़ को ज़ाहिर ना फरमा दे। हमारे पास एक पोशीदा किताब है वह पोशीदा राज़ों का एक खज़ाना है हम दूसरों से इसको छुपा कर रखते हैं । मैंने उस किताब में एक अज़ीमुश शान खबर और एक बड़े खतरे के बारे में पढ़ लिया है और वह आपके बारे में है ।


अब्दुल मुत्तलिब यह बातें सुनकर हद दर्जे हैरत ज़दा हुए और पुकार उठे :- मैं समझा नहीं आप कहना क्या चाहते हैं ।

सुनो अब्दुल मुत्तलिब , जब तहामा की वादी यानी मक्का में ऐसा बच्चा पैदा हो कि जिसके दोनों कंधों के दरमियान बालों का गुच्छा( यानी मोहरे नबुवत) हो तो उसे इमामत और सरदारी हासिल होगी और इसकी वजह से तुम्हें क़यामत तक के लिए ऐज़ाज़ मिलेगा, इज्जत मिलेगी ।

अब्दुल मुत्तलिब ने यह सुनकर कहा:-  ऐ बादशाह , अल्लाह करे आपको भी ऐसी खुशबख्ती मयस्सर हो आपकी हैयत मुझे रोक रही है वरना मैं आपसे पूछता कि उस बच्चे का जमाना कब होगा ?

 बादशाह ने जवाब में कहा :- यही उसका जमाना है वह इसी जमाने में पैदा होगा या पैदा हो चुका है उसका नाम मोहम्मद होगा उसकी वाल्दा का इंतकाल हो जाएगा उसके दादा और चाचा उसकी परवरिश करेंगे हम भी उसके आरजूमंद रहे कि वह बच्चा हमारे यहां पैदा हो । अल्लाह ताला उसे खुले आम ज़ाहिर फरमाएगा और उसके लिए हममे से (यानी मदीना के क़बीला खज़रज में ) उस नबी के मददगार बनाएगा (हममे से उसने इसलिए कहा कि खज़रज असल में यमन के लोग थे ) उनके जरिए उस नबी के खानदान और क़बीले वालों को इज्जत हासिल होगी और उनके ज़रिए उसके दुश्मनों को जिल्लत मिलेगी और उनके जरिए वह तमाम लोगों से मुक़ाबला करेगा और उनके ज़रिए ज़मीन के अहम इलाक़े फयह हो जाएंगे। वह नबी रहमान की इबादत करेगा शैतान को धमकाया आतिश क़दो को ठंडा करेगा ( यानि आग के पुजारियों को मिटाएगा) बुतों को तोड़ डालेगा, उसकी हर बात आखरी फरमान होगी उसके अहकामात इंसाफ वाले होंगे वह नेक कामों का हुक्म देगा खुद भी उन पर अमल करेगा बुराइयों से रोकेगा उनको मिटा डालेगा ।


★_ अब्दुल मुत्तलिब ने सैफ बिन यज़न को दुआ दी फिर कहा :- कुछ और तफसील बयान करें।


"_ बात ढ़ंकी छिपी है और अलामतें पोशीदा है मगर ए अब्दुल मुत्तलिब इसमें शुबहा नहीं कि तुम उसके दादा हो।

अब्दुल मुत्तलिब यह सुनकर फौरन सज्दे में गिर गये और सैफ ने उनसे कहा -अपना सर उठाओ अपनी पेशानी ऊंची करो और मुझे बताओ जो कुछ मैंने तुमसे कहा है क्या तुमने इनमें से कोई अलामत अपने यहां देखी है ? 

इस पर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा:- हां मेरा एक बेटा था , मैं उसे बहुत चाहता था , मैंने एक शरीफ और मोअज्जज़ लड़की आमना बिन्ते वहब बिन अब्दे मुनाफ से उसकी शादी कर दी वह मेरी क़ौम के इंतेहाई बा इज्ज़त खानदान से थी, उससे मेरे बेटे के यहां एक लड़का पैदा हुआ । मैंने उसका नाम मोहम्मद रखा , उस बच्चे का बाप और मां दोनों फौत हो चुके हैं, अब मैं और उसका चचा अबु तालिब उसकी देखभाल करते हैं।


अब सैफ ने उनसे कहा -मैंने तुम्हें जो कुछ बताया है वह वाकि़या इस तरह है,  अपने पोते की हिफाज़त करो इसे यहूदियों से बचाये रखो इसलिए कि वह उसके दुश्मन है ,यह और बात है कि अल्लाह ताला हरगिज़ उन लोगों को उन पर काबू नहीं पाने देगा और मैंने जो कुछ आपको बताया है इसका अपने कबीले वालों से ज़िक्र ना करना ,मुझे डर है कि इन बातों की वजह से उन लोगों में हसद और जलन ना पैदा हो जाए , यह लोग सोच सकते हैं यह इज्जत और बुलंदी आखिर उन्हें  क्यों मिलने वाली है यह लोग उनके रास्ते में रुकावटें खड़ी करेंगे , अगर यह लोग उस वक्त तक जिंदा ना रहे तो उनकी औलाद यह काम करेगी अगर मुझे मालूम ना होता कि उस नबी के ज़हूर से पहले ही मौत मुझे आ लेगी तो मैं अपने ऊंटों और काफ़िले के साथ रवाना होता और उनकी सल्तनत के मरकज़ यसरिब पहुंचता , क्योंकि मैं उस किताब में यह बात पाता हूं कि शहर यसरिब उनकी सल्तनत का मरकज होगा उनकी ताकत का सरचश्मा होगा उनकी मदद और नुसरत का ठिकाना होगा और उन की वफात की जगह होगी और उन्हें दफन भी यही किया जाएगा और हमारी किताब पिछले उलूम से भरी पड़ी है।


"_ मुझे पता है अगर मैं इस वक्त उनकी अज़मत का ऐलान करूं  तो खुद उनके लिए और मेरे खतरात  पैदा हो जाएंगे , यह डर ना होता तो मैं उनके बारे में तमाम बातें सबको बता देता, अरबों के  सामने उनकी सर बुलंदी और ऊंचे रुतबे की दास्तानें सुना देता, लेकिन मैंने यह राज़ तुम्हें बताया है ... तुम्हारे साथियों में से भी किसी को नहीं बताया ।


★_ इसके बाद उसने अब्दुल मुत्तलिब के साथियों को बुलाया उनमें से हर एक को 10 हबशी गुलाम दश हबशी बांदियां और धारीदार यमनी चादरें बड़ी मिक़दार में सोना चांदी सौ सौ ऊंट और अंबर के भरे डिब्बे दिये ,  फिर अब्दुल मुत्तलिब को उससे दस गुना ज्यादा दिया और बोला- साल गुजरने पर मेरे पास उनकी खबर लेकर आना और उनके हालात बताना।

साल गुजरने से पहले ही बादशाह का इंतकाल हो गया।


★_ अब्दुल मुत्तलिब अक्सर उस बादशाह का जिक्र किया करते थे,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उम्र है 8 साल की हुई तो अब्दुल मुत्तलिब का इंतकाल हो गया । इस तरह एक अज़ीम सरपरस्त का साथ छूट गया ।उस वक्त अब्दुल मुत्तलिब की उमर 95 साल थी , तारीख की बाज़ किताबों में उनकी उम्र इस से भी ज्यादा लिखी है ।


★_ जिस वक्त अब्दुल मुत्तलिब का इंतकाल हुआ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनकी चारपाई के पास मौजूद थे। आप रोने लगे । अब्दुल मुत्तलिब को अजवन के मुकाम पर उनके दादा कु़शई के पास दफन किया गया ।मरने से पहले उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अपने बेटे अबू तालिब के हवाले किया , अबू तालिब आपके निगरां हुए। उन्हें भी आपसे बेतहाशा मोहब्बत हो गई उनके साथ अब्बास और जुबेर भी आपका बहुत खयाल रखते थे फिर जुबेर भी इंतकाल कर गए तो आप की निगरानी आपके चाचा अबू तालिब ही करते रहे।


★_ उन्हें भी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बहुत मोहब्बत थी जब उन्होंने आपकी बरकात देखी, मोजजे़ देखें तो उनकी मोहब्बत में और इज़ाफ़ा हो गया। यह माली एतबार से कमजोर थे दो वक्त सारे घराने को पेट भर कर खाना नहीं मिलता था लेकिन जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उनके साथ खाना खाते तो थोड़ा खाना भी उन सब के लिए काफी हो जाता सबके पेट भर जाते इसलिए जब दोपहर या रात के खाने का वक्त होता तो और सब दस्तरखान पर बैठते तो अबु तालिब उनसे कहते -अभी खाना शुरु ना करो मेरा बेटा आ जाए फिर शुरू करना।


★_ फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तशरीफ ले आते और उनके साथ बैठ जाते आपकी बरकात इस तरह ज़ाहिर होती कि सबके सैर होने के बाद भी खाना बच जाता, अगर दूध होता तो पहले नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पीने के लिए दिया जाता , फिर अबु तालिब के बेटे पीते , यहां तक कि एक ही प्याले से सब के सब दूध पी लेते, खूब सैर हो जाते और दूध फिर भी बच जाता । अबु तालिब के लिए एक तकिया रखा रहता था वह उससे टेक लगा कर बैठते थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाते तो सीधे उस तकिए के साथ बैठ जाते यह देखकर अबु तालिब कहते- मेरे बेटे को अपने बुलंद मर्तबे का एहसास है।


★_ एक बार मक्का में क़हत पड़ गया बारिश बिल्कुल नहीं हुई, लोग एक दूसरे से कहते थे लात और उजया से बारिश की दुआ करो । कुछ कहते थे तीसरे बड़े बुत मनात पर भरोसा करो । इसी दौरान एक बूढ़े ने कहा- तुम हक़  और सच्चाई से भाग रहे हो , तुमने इब्राहिम अलैहिस्सलाम और इस्माइल अलैहिस्सलाम की निशानी मौजूद है तुम उसे छोड़कर गलत रास्ते पर क्यों जा रहे हो।

 इस पर उन्होंने कहा क्या आपकी मुराद अबू तालिब से है ।

उसने जवाब ने कहा -हां मैं यही कहना चाहता हूं ।

अब सब लोग अबू तालिब के घर की तरफ चले वहां पहुंच कर उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी तो एक खूबसूरत आदमी बाहर आया उसने तेहबंद लपेट रखा था सब लोग उसकी तरफ बड़े और बोले - ऐ अबू तालिब वादी में क़हत पड़ि है बच्चे भूखे मर रहे हैं इसलिए आओ और हमारे लिए बारिश की दुआ करो।


★_ चुनांचे अबू तालिब बाहर आए  उनके साथ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी थे आप ऐसे लग रहे थे जैसे अंधेरे में सूरज निकल आया है । अबु तालिब के साथ और भी बच्चे थे लेकिन उन्होंने आप ही का बाजू पकड़ा हुआ था। उसके बाद अबू तालिब ने आपकी उंगली पकड़कर काबे का तवाफ किया। यह तवाफ कर रहे थे और दूसरे लोग आसमान की तरफ नज़र उठा कर देख रहे थे जहां बादल का एक टुकड़ा भी नहीं था लेकिन फिर अचानक हर तरफ से बादल घिर घिर कर आने लगे , इस क़दर जोरदार बारिश हुई और जंगल सैराब हो गए।


★_ अबू तालिब एक बार जि़ल हिजाज़ के मेले में गए यह जगह  अराफात से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर है उनके साथ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम भी थे ,  ऐसे में अबू तालिब को प्यास मेहसूस हुई , उन्होंने आपसे कहा -भतीजे मुझे प्यास लगी है ।

यह बात उन्होंने इसलिए नहीं कही थी कि आपके पास पानी था.. बल्कि अपनी बेचैनी जा़हिर करने के लिए कही भी। चाचा की बात सुनकर आप फोरन सवारी से उतर आए और बोले चाचा जान आपको प्यास लगी है।

 उन्होंने कहा- हां भतीजे , प्यास लगी है ,‌

यह सुनते ही आपने एक पत्थर पर अपना पांव मारा ।


 *📕_ सीरतुन नबी ﷺ _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी) ,*

 ╨─────────────────────❥

❥_ शाम का सफर _,*


★_: ज्योंही आपने पत्थर पर पांव मारा उसके नीचे से साफ और उम्दा पानी फूट निकला उन्होंने ऐसा पानी पहले कभी नहीं पिया था खूब सैर हो कर पिया , फिर उन्होंने पूछा -भतीजे क्या आप सैर हो चुके हैं ? नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया -हां।

आपने उस जगह अपनी एड़ी फिर मारी और वह जगह दोबारा ऐसी खुश्क़ हो गई जैसे पहले थी।


★_हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम चंद साल अपने दूसरे चाचा जुबेर बिन अब्दुल मुत्तलिब के साथ भी रहे थे इस ज़माने में एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु सल्लम अपने उन चचा के साथ एक काफिले में यमन तशरीफ ले गए , रास्ते में एक वादी से गुजर हुआ उस वादी में एक सरकस ऊंट रहता था  गुजरने वालों का रास्ता रोक लेता था ।  ज्योंही उसने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को देखा तो फौरन बैठ गया जमीन से अपनी छाती रगड़ने लगा आप अपने ऊंट से उतरकर उस पर सवार हो गए। अब वो ऊंट आपको लेकर चला और वादी के पार तक ले गया इसके बाद आपने उसको छोड़ दिया


★__यह काफिला जब सफर से वापस लौटा तो एक ऐसी वादी से गुज़र हुआ जब तूफानी पानी से भरी हुई थी पानी मौजे मार रहा था । यह देखकर आप ने काफ़िले वालों से फरमाया -मेरे पीछे-पीछे आओ ।

फिर आप इतमिनान से वादी में दाखिल हो गए बाक़ी लोग भी आपके पीछे थे, अल्लाह ताला ने अपनी कु़दरत से पानी खुश्क कर दिया और आप पूरे काफिले को लिए पार हो गए ।

का़फिला मक्का पहुंचा तो लोगों ने यह हैरतनाक वाक्या़त बयान किए , लोग सुनकर बोले उठे :- उस लड़के की तो शान ही निराली है।


 ★_इब्ने हिशाम लिखते हैं बनु लहब का एक शख्स बहुत बड़ा क़ियाफा सनाश था , यानी  लोगों की शक्ल व सूरत देखकर उनके हालात और मुस्तकबिल के बारे में अंदाजा लगाया करता था। मक्का आता तो लोग अपने बच्चों को उसके पास लाते हैं उन्हें देख देख कर उनके बारे में बताता था। एक बार यह आया तो अबू तालिब आपको भी उसके पास ले गए और उस वक्त आप अभी नव उम्र लड़के ही थे । क़ियाफा सनाश ने आपको एक नज़र देखा फिर दूसरे बच्चों को देखने लगा। फारिग होने के बाद उसने कहा:-  इस लड़के को मेरे पास लाओ।


★_अबू तालिब ने यह बात महसूस कर ली थी कि क़ियाफा सनाश ने  उनके भतीजे को अजीब नज़रों से देखा है लिहाजा वह आपको लेकर वहां से निकल आए थे । जब कि़याफा सनाश को मालूम हुआ कि आप वहां मौजूद नहीं हैं तो वह चीखने लगा :-  तुम्हारा बुरा हो उस लड़के को मेरे पास लाओ जिसे मैंने अभी देखा है ,अल्लाह की कसम वह बड़ी शान वाला है।"

अबू तालिब ने निकलते हुए उसके यह अल्फाज़ सुन लिए थे


★_अबू तालिब ने तिजारत की गर्ज़ से शाम जाने का इरादा किया। नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने भी साथ जाने का शौक जाहिर फरमाया। बाज़ रिवायात में आया है कि आपने जाने के लिए खास तौर पर फरमाइश की । अबू तालिब ने आपका शौक देख कर कहा :-  अल्लाह की कसम मैं इसे साथ जरूर ले जाऊंगा, ना यह कभी मुझसे जुदा हो सकता है ना मैं इसे कभी अपने से जुदा कर सकता हूं।

एक रिवायत में यूं भी आया है, आपने अबु तालिब की ऊंटनी की लगाम पकड़ ली और फरमाया- चाचा जान आप मुझे किस के पास छोड़े जा रहे हैं मेरी ना मां है ना बाप ।


: ★_ उस वक्त आप की उमर मुबारक 9 साल थी, आखिर अबू तालिब आपको साथ लेकर रवाना हुए आपको अपनी ऊंटनी पर बिठाया । रास्ते में ईसाइयों की एक इबादत गाह के पास ठहरे , खानकाह  के राहिब ने नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को देखा तो चौंक उठा । उसने अबू तालिब से पूछा- यह लड़का तुम्हारा कौन है ?

उन्होंने जवाब दिया- यह मेरा बेटा है ।

यह सुनकर राहिब ने कहा -यह तुम्हारा बेटा नहीं हो सकता ,

यह सुनकर अबू तालिब बहुत हैरान हुए, बोले -क्या मतलब.. यह क्यों मेरा बेटा नहीं हो सकता भला ?

उसने कहा -यह मुमकिन ही नहीं कि इस लड़के का बाप जिंदा हो, यह नबी है।


★__ मतलब यह था कि उनमें जो निशानियां है वह दुनिया के आखरी नबी की हैं और उनकी एक अलामत यह है कि वह यतीम होंगे उनके बाप का इंतकाल उसी जमाने में हो जाएगा जबकि वह अभी पैदा होने वाले होंगे । इस लड़के में आने वाले नबी की तमाम अलामात मौजूद हैं , उनकी एक निशानी यह है कि बचपन में उनकी वाल्दा का भी इंतकाल हो जाएगा।


★__ अब अबू तालिब ने उस राहिब से पूछा- नबी क्या होता है ?

राहिब ने कहा - नबी वह होता है जिसके पास आसमान से खबरें आती हैं और फिर वह जमीन वालों को उनकी इत्तेला देता है... तुम यहूदियों से इस लड़के की हिफाज़त करना _,"


★_ इसके बाद अबु तालिब वहां से आगे रवाना हुए, रास्ते में एक राहिब के पास ठहरे, यह भी एक खानकाहा का आबिद था, उसकी नज़र भी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पड़ी तो यही पूछा - यह लड़का तुम्हारा क्या लगता है।

अबु तालिब ने उससे भी यही कहा -यह मेरा बेटा है।

राहिब यह सुनकर बोला - यह तुम्हारा बेटा नहीं हो सकता, इसका बाप जिंदा हो ही नहीं सकता ।

अबू तालिब ने पूछा - वह क्यों ?

राहिब ने जवाब में कहा- इसलिए कि इसका चेहरा नबी का चेहरा है इसकी आंखें एक नबी की आंखें हैं यानी नबी जैसी ,जो आखरी उम्मत के लिए भेजे जाने वाले हैं, उनकी अलामात पुरानी किताबों में मौजूद है ।


: ★__ इसके बाद यह काफिला रवाना होकर बसरा पहुंचा यहां बहिरा नाम का एक राहिब अपनी खानकाह में रहता था उसका असल नाम जरज़ीश था बहिरा उसका लक़ब था वह बहुत जबरदस्त आलिम था। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के ज़माने से उस खानकाह का राहिब, नस्ल दर नस्ल यह आलिम फाजिल खानदान ही चला आ रहा था। इस तरह उस ज़माने में उनका सबसे बड़ा आलिम बहीरा ही था।


★__ क़ुरेश के लोग अक्सर बहिरा के पास से गुज़रा करते थे मगर उसने कभी उनसे कोई बात नहीं की थी मगर इस बार उसने काफ़िले में आपको देख लिया तो पूरे काफ़िले के लिए खाना तैयार करवाया ।बहिरा ने यह मंजर भी देखा कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर एक बदली साया किए हुए थी, जब यह काफ़िला एक दरख्त के नीचे आकर ठहरा तो उसने बदली की तरफ देखा वह अब उस दरख्त पर साया डाल रही थी और उस  दरख्त की शाखें उस तरफ झुक गई थी जिधर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मौजूद थे उसने देखा बहुत सी शाखों ने आपके ऊपर जमघटा सा कर लिया था। असल में हुआ यह था कि जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस दरख़्त के पास पहुंचे तो क़ाफिले के लोग पहले ही सायादार जगह पर कब्जा कर चुके थे अब आपके लिए कोई सायादार जगह  नहीं बची थी। चुनांचे आप जब धूप में बैठे तो शाखों ने अपना रुख तब्दील कर लिया और आपके ऊपर जमा हो गई । इस तरह आप मुकम्मल तौर पर साए में हो गए । बहीरा ने यह मंजर साफ देखा था । आपकी निशानी देखकर उसने काफ़िले वालों को पैगाम भिजवाया :-

"_ ए क़ुरेशियों मैंने आप लोगों के लिए खाना तैयार करवाया है मेरी ख्वाहिश है कि आप तमाम लोग खाना खाने आएं यानी बच्चे बूढ़े और गुलाम सब आएं।"

बहिरा का यह पैगाम सुनकर काफ़िले में से एक ने कहा:- 

ए बहीरा , आज तो आप नया काम कर रहे हैं हम तो अक्सर इस रास्ते से गुज़रते हैं आपने कभी दावत का इंतजाम नहीं किया फिर आज क्या बात है ?

बहीरा ने उन्हें सिर्फ इतना जवाब दिया:-  तुमने ठीक कहा , लेकिन बस आप लोग मेहमान हैं और मेहमान का इक़राम करना बहुत अच्छी बात है।


★_इस तरह तमाम लोग बहिरा के पास पहुंच गए लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उनके साथ नहीं थे उन्हें पड़ाव ही में छोड़ दिया गया था।

[

: ★_ आपको काफिले के साथ इसलिए नहीं ले जाया गया था कि आप कम उम्र थे आप वहीं दरख़्त के नीचे बैठ गए । उधर बहीरा ने लोगों को देखा और उनमें से किसी में उसे वह सिफ्त नज़र ना आई जो आखिरी नबी के बारे में उसे मालूम थी , ना उनमें से किसी पर वह बदली नजर आई बल्कि उसने अजी़ब बात देखी कि वह बदली वही पड़ाव की जगह पर ही रह गई थी, इसका साफ मतलब यह था बदली वहीं है जहां अल्लाह के रसूल है ।

तब उसने कहा-  ऐ क़ुरैश के लोगों ! मेरी दावत से आप में से कोई भी पीछे नहीं रहना चाहिए।

इस पर कुरैश ने कहा- ए बहिरा जिन लोगों को आपकी इस दावत में लाना ज़रूरी था उनमें से तो कोई रहा नहीं... हां एक लड़का रह गया है जो सबसे कम उम्र है।

बहीरा बोला- तब फिर मेहरबानी फरमा का उसे भी बुलाएं यह किस क़दर बुरी बात है कि आप सब आएं और आप में से एक रह जाए और मैंने उसे आप लोगों के साथ देखा था।


★_तब एक शख्स गया और आप को साथ लेकर बहिरा की तरफ रवाना हुआ। उस वक्त वह बदली आपके साथ साथ चली और तमाम रास्ते उसने आप पर साया किये रखा। बहीरा ने यह मंजर देखा ।वह अब आपको और ज़्यादा गौर से देख रहा था और आपके जिस्म  मुबारक में वह अलामात तलाश कर रहा था जो उनकी कुतुब में दर्ज थी।


★_जब लोग खाना खा चुके और इधर उधर हो गए तब बहीरा  आपके पास आया और बोला-  मैं लात और उज़या के नाम पर आपसे चंद बातें पूछना चाहता हूं जो मैं पूछूं आप मुझे बताएं ।

उसकी बात सुनकर आप ने फरमाया - लात और उज़या (बुतों के नाम) के नाम पर मुझसे कुछ ना पूछो अल्लाह की कसम मुझे सबसे ज़्यादा नफरत इन्हीं से है।

अब बहीरा बोला- अच्छा तो फिर अल्लाह के नाम पर बताएं जो मैं पूछना चाहता हूं ।

तो आपने फरमाया -पूछो क्या पूछना है ।

उसने बहुत से सवालात किये, आपकी आदात के बारे में पूछा, उसके बाद उसने आपकी कमर पर से कपड़ा हटाकर मोहरे नबूवत को देखा वह बिल्कुल वैसी ही थी जैसा कि उसने अपनी किताबों में पढ़ा था ।उसने फौरन मोहरे नबूवत की जगह को बोसा दिया। क़ुरैश के लोग यह सब देख रहे थे और हैरान हो रहे थे आखिर लोग कहे बगैर ना रह सके - यह राहिब  मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) में बहुत दिलचस्पी ले रहा है ,शायद इसके नज़दीक  इनका मर्तबा बहुत बुलंद है।


★_इधर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बातचीत करने के बाद बहिरा अबू तालिब की तरफ आया और बोला :- यह लड़का तुम्हारा क्या लगता है ?

अबू तालिब ने कहा -यह मेरा बेटा है ।

इस पर बहीरा ने कहा- नहीं यह तुम्हारा बेटा नहीं हो सकता ,यह नहीं हो सकता कि इसका बाप जिंदा हो ।

अबू तालिब को यह सुनकर हैरत हुई फिर उन्होंने कहा- दरअसल यह मेरे भाई का बेटा है ।

इनका बाप कहां है ?

वह फौत हो चुका है ,उसका इंतकाल उस वक्त हो गया था जब यह अभी पैदा नहीं हुए थे। 

यह सुनकर बहीरा बोल उठा- हां यह बात सही है और इनकी वाल्दा का क्या हुआ ?

उनका अभी थोड़े अरसे ही पहले इंतकाल हुआ है।


★_ यह सुनते ही बहीरा ने कहा-  बिल्कुल ठीक कहा अब तुम यूं करो कि अपने भतीजे को वापस वतन ले जाओ। यहूदियों से इनकी पूरी तथा हिफाज़त करो अगर उन्होंने इन्हें देख लिया और इनमें वह  निशानियां देख ली जो मैंने देखी हैं तो वह इन्हें कत्ल करने की कोशिश करेंगे ।तुम्हारा यह भतीजा नबी है इसकी बहुत शान है ।इनकी शान के बारे में हम अपनी किताबों में भी लिखा हुआ पाते हैं और हमने अपने बाप दादाओं से भी बहुत कुछ सुन रखा है । मैंने यह नसीहत करके अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया है और इन्हें वापस ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।


★_ अबू तालिब बहिरा की बात सुनकर खौफ ज़दा हो गए। आपको लेकर मक्का वापस आ गए । इस वाक्य के वक्त आपकी उमर 9 साल थी।


★__ इस उम्र के लड़के आमतौर पर खेलकूद में जरूर हिस्सा लेते हैं उन खेलों में खराब और गंदे खेल भी होते हैं अल्लाह ताला ने आपको इस सिलसिले में भी बिल्कुल महफूज़ रखा।


★__ जाहिलियत के ज़माने में अरब जिन बुराइयों में जकड़े हुए थे ,उन बुराइयों से भी अल्लाह ताला ने आपकी हिफाज़त फरमाई। एक वाक़या आपने खुद बयान फ़रमाया :- 

"_एक कुरैशी लड़का मक्का के बालाई हिस्से में अपनी बकरियां लिए मेरे साथ था मैंने उससे कहा तुम ज़रा मेरी बकरियों का ध्यान रखो ताकि मैं कि़स्सागोई की मजलिस में शरीक हो सकूं वहां सब लड़के जाते हैं ।

उस लड़के ने कहा- अच्छा ।

इसके बाद मैं रवाना हुआ मैं मक्का के एक मकान में दाखिल हुआ तो मुझे गाने और बाजे की आवाज सुनाई दी मैंने लोगों से पूछा कि क्या हो रहा है ? मुझे बताया गया एक कुरैशी की फलाह शख्स  की बेटी से शादी हो रही है । मैंने उस तरफ तवज्जो दी ही थी कि मेरी आंखें  नींद से झुकने लगी यहां तक कि मैं सो गया फिर मेरी आंख उस वक्त खुली जब धूप मुझ पर पड़ी ।


★__ आप वापस उस लड़के के पास पहुंचे तो उसने पूछा -तुमने वहां जाकर क्या किया ? मैंने उसे वाक्या सुना दिया। दूसरी रात फिर ऐसा ही हुआ। मतलब यह कि कुरेश की लगु मजलिसों से अल्लाह ताला ने आप को महफूज़ रखा ।


★__ कु़रेश के एक बुत का नाम हवाना था, कुरेश हर साल उसके पास हाजिरी दिया करते थे उसकी बेहद इज्जत करते थे उसके पास कुर्बानी का जानवर ज़िबह करते, सर मुंडवाते ,सारा दिन उसके पास ऐतकाफ करते , अबू तालिब भी अपनी कौम के साथ उस बुत के पास हाज़री देते इस मौके को कुरेश ईद की तरह मनाते थे ।

अबू तालिब में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कहा -भतीजे आप भी हमारे साथ ईद में शरीक हों। 

आपने इनकार फरमा दिया ।अबू तालिब हर साल आपको शरीक होने के लिए कहते रहे लेकिन आप हर बार इनकार करते रहे। आखिर एक बार अबू तालिब को गुस्सा आ गया आपकी फूफियों को भी आप पर बेतहाशा गुस्सा आया वह आपसे बोली- तुम हमारे माबूदों से इस तरह बचते हो और परहेज़ करते हो हमें डर है कि तुम्हें कोई नुकसान ना पहुंचे। 

उन्होंने यह भी कहा- मोहम्मद ! आखिर तुम ईद में क्यों शरीक नहीं होते ?

उनकी बातों से तंग आकर आप उनके पास से उठकर कहीं दूर चले गए । इस बारे में आप फरमाते हैं - मैं जब भी हवाना या किसी और बुत के नज़दीक हुआ, मेरे सामने एक सफेद रंग का बहुत कद्दावर आदमी जाहिर हुआ उसने हर बार मुझसे यह कहा- मोहम्मद ! पीछे हटो उसको छूना नहीं ।

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*┱✿_ फुजार की लड़ाई -_,*


★__खाना काबा में तांबे के दो बुत थे उनके नाम असाफ और नाऐला थे ।तवाफ करते वक्त मुशरिक बरकत हासिल करने के लिए उन को छुआ करते थे ।

हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं -एक मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बैतुल्लाह का तवाफ कर रहे थे मैं भी आपके साथ था जब मैं तवाफ के दौरान उन बुतों के पास से गुजरा तो मैंने भी उनको छुआ । नबी पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फौरन फरमाया- उनको हाथ मत लगाओ।


★_ इसके बाद हम तवाफ करते रहे मैंने सोचा एक बार फिर बुतों को छूने की कोशिश करूंगा ताकि पता तो चले उनको छूने से क्या होता है और आपने किस लिए मुझे रोका है । चुनांचे मैंने उनको फिर छू लिया। तब आप ने सख्त लहजे में फरमाया -क्या मैंने तुम्हें उनको छूने से मना नहीं किया था।

और मैं क़सम खाकर कहता हूं, नबी पाक सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कभी भी किसी बुत को नहीं छुआ यहां तक कि अल्लाह ने आपको नबूवत अता फरमा दी और आप पर वही नाज़िल होने लगी।


★__ इसी तरह अल्लाह ताला हराम चीजों से भी आप की हिफाज़त फरमाते थे, मुशरिक बुतों के नाम पर जानवर कुर्बान करते थे फिर यह गोस्त तक़सीम कर दिया जाता था या पकाकर खिला दिया जाता था लेकिन आपने कभी भी ऐसा गोश्त ना खाया । खुद आपने एक बार इरशाद फरमाया - मैंने कभी कोई ऐसी चीज नहीं चखी जो बुतों के नाम पर जिबह की गई हो यहां तक कि अल्लाह ताला ने मुझे नबूवत अता कर दी _,"


★__ इसी तरह आप से पूछा गया- क्या आपने बचपन में कभी बुत परस्ती की ?

आपने इरशाद फरमाया- नहीं ।

आपसे फिर पूछा गया -क्या आपने कभी शराब पी ?

जवाब में इरशाद फरमाया -नहीं।

 हालांकि उस वक्त मुझे मालूम नहीं था कि किताबुल्लाह क्या है और ईमान (की तफसील )क्या है। 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के अलावा भी उस ज़माने में कुछ लोग जानवरों के नाम ज़िबह किया गया गोस्त नहीं खाते थे और शराब को हाथ नहीं लगाते थे ।



★__ बचपन में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बकरियां भी चराई , आप मक्का के लोगों की बकरियां चराया करते थे। मुआवज़े के तौर पर आपको एक सिक्का दिया जाता था। आप फरमाते हैं - अल्लाह ताला ने जितने नबी भेजें उन सब ने बकरियां चराने का काम किया मैं मक्का वालों की बकरियां सिक्के के बदले चराया करता था ।

मक्का वालों की बकरियों के साथ आप अपने घर वालों और रिश्तेदारों की बकरियां भी चराया करते थे।

पैगंबरों ने बकरियां क्यों चराई, इसकी वजह यूं बयान की जाती है :- 


★__ इस काम में अल्लाह ताला की ज़बरदस्त हिकमत है ।बकरी कमजोर जानवर है , लिहाजा जो शख्स बकरियां चराता है उसमें  कुदरती तौर पर नरमी, मोहब्बत और इंकसारी का जज़्बा पैदा हो जाता है। हर काम और पेशे की कुछ खुसूसियात होती हैं, मसलन क़साब के दिल में सख्ती होती है लोहार ज़फाकस होता है माली नाज़ुक तबीयत होता है । 


"_अब जो शख्स बकरियां चराता रहा जब वह मखलूक की तरबियत का काम शुरू करेगा उसकी तबीयत में से गर्मी और सख्ती निकल चुकी होती है । मखलूक की तरबियत के लिए वह बहुत नरम मिजाज हो चुका होता है और तबलीग के काम में नर्म मिज़ाजी की बहुत ज़रूरत होती है।


★__ अरबों में एक शख्स बदर बिन मा'शर गिफारी था यह उकाज़ के मेले में बैठा करता था लोगों के सामने अपनी बहादुरी के किस्से सुनाया करता था अपनी बड़ाई बयान करता था एक दिन उसने पैर फैलाकर और गर्दन अकड़ा कर कहा :- मैं अरबों में से सबसे ज्यादा इज्जत दार हूं और अगर कोई ख्याल करता है कि वह ज्यादा इज्जत वाला है तो तलवार के ज़ोर पर यह बात साबित कर दिखाएं ।


★_उसके यह बड़े बोल सुनकर एक शख्स को गुस्सा आ गया वह अचानक उस पर झपटा और उसके घुटने पर तलवार दे मारी उसका इतना कट गया यह भी कहा जाता है यह घुटना सिर्फ जख्मी हुआ था इस पर दोनों के क़बीले आपस में लड़ पड़े उनमें जंग शुरू हो गई। इस लड़ाई को फुजार की पहली लड़ाई कहा जाता है । उस वक्त आपकी उम्र 10 साल थी ।


★__ फुजार की एक और लड़ाई बनु आमिर की एक औरत की वजह से हुई । इसमें बनु आमिर बनु कनाना से लड़े क्योंकि कनाना के एक नौजवान ने उस कबीले की किसी औरत को छेड़ा था। फुजार की तीसरी लड़ाई भी बनु आमिर और बनु कनाना के दरमियान हुई थी यह लड़ाई क़र्ज़ की अदायगी के सिलसिले में हुई ।


★_फुजार की इन तीनों लड़ाइयों में नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कोई हिस्सा नहीं लिया अलबत्ता फुजार की चौथी लड़ाई में आप ने शिरकत फरमाई थी ।

अरबों के यहां 4 महीने ऐसे थे कि उसमें किसी का खून बहाना जायज़ नहीं था ,यह महीने ज़िलक़ा'दा, ज़िलहज, मोहर्रम और रज्जब थे। यह लड़ाई चूंकि हुरमत के इन महीनों में हुई इसलिए इनका नाम फुजार की लड़ाइयां रखा गया , फुजार के मा'ने है गुनाह, यानी यह लड़ाइयां उनका गुनाह था ।


★__ चौथी लड़ाई जिसमें नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने भी हिस्सा लिया उसका नाम फुजार बराज़ है यह लड़ाई इस तरह शुरू हुई :- क़बीला कनाना के बराज़ नामी एक शख्स ने एक आदमी उरवाह को क़त्ल कर दिया । उरवाह का ताल्लुक कबीला हवाजिन से था यह वाक़या हुरमत वाले महीने में पेश आया । बराज़ और उरवाह के खानदान के लोग यानी बनु कनाना और बनु हवाजिन उस वक्त उकाज़ के मेले में थे। वहीं किसी ने बनु कनाना को यह खबर पहुंचादी कि बराज़ ने उरवाह  को क़त्ल कर दिया है यह खबर सुनकर बनु कनाना के लोग परेशान हुए कि कहीं मेले ही में हवाजिन के लोग उन पर हमला ना कर दे इस तरह बात बहुत बढ़ जाएगी।चुनांचे वह लोग मक्का की तरफ भाग निकले । हवाजिन को उस वक्त तक खबर नहीं हुई थी उन्हें कुछ दिन या कुछ वक्त गुजरने पर खबर हुई , यह बनु कनाना पर चढ़ दौड़े लेकिन बनु कनाना हरम में पनाह ले चुके थे।


★_ अरबों में हरम के अंदर खून बहाना हराम था इसलिए हवाजिन रुक गए उस दिन लड़ाई ना हो सकी लेकिन दूसरे दिन कनाना के लोग खुद ही मुकाबले के लिए बाहर निकल आए उनकी मदद करने के लिए कबीला कुरैश भी मैदान में निकल आया । इस तरह फुजार की यह जंग शुरू हुई। यह जंग 4 या 6 दिन तक जारी रही। अब चूंकि क़ुरेश भी इसमें शरीक़ थे लिहाजा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चचा आपको भी साथ ले गए मगर आपने जंग के सब दिनों में लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया अलबत्ता जिस दिन आप मैदाने जंग में पहुंच जाते तो बनु कनाना को फतेह होने लगती और जब आप वहां ना पहुंचते तो उन्हें शिकस्त होने लगती। आपने इस जंग में सिर्फ इतना हिस्सा लिया कि अपने चाचा उनको तीर पकड़ाते रहे और बस...,।


★__ 6 दिन की जंग के बाद भी कोई फैसला ना हो सका आखिर दोनों गिरोहों में सुलह हो गई लेकिन काफी खून खराबे के बाद हुई थी 


★_इसके फौरन बाद हल्फे फज़ूल का वाक़या पेश आया यह वाक़या इस तरह हुआ कि क़बीला ज़ैद का एक शख्स अपना कुछ माल लेकर मक्का आया । उससे यह माल आस बिन वाइल ने खरीद लिया यह आस बिन वाइल मक्का के बड़े लोगों में से था उसकी बहुत इज्जत थी । उसने माल तो ले लिया लेकिन कीमत अदा नहीं की । ज़ैदी उससे अपनी  रक़म का मुतालबा करता रहा लेकिन आस बिन वाइल ने रकम अदा ना की । अब यह ज़ैदी शख्स अपनी फरियाद लेकर मुख्तलिफ कबीलों के पास गया उन सब को बताया कि उस पर जुल्म किया है लिहाजा उसकी रकम दिलवाई जाए । अब चूंकि आस बिन वाइल मक्का के बड़े लोगों में से था इसलिए उन सब लोगों ने आप के खिलाफ उसकी मदद करने से इंकार कर दिया उल्टा उसे डांट डपट कर वापस भेज दिया । जब ज़ैदी ने उन लोगों की हालत देखी तो दूसरे दिन सुबह सवेरे वह अबु क़ैस नामी पहाड़ी पर चढ़ गया । क़ुरेश अभी अपने घरों ही हीं थे ऊपर चढ़कर उसने बुलंद आवाज से चंद शेर पढ़ें जिनका खुलासा यह है :- 

ऐ फहर की औलाद ! एक मज़लूम की मदद करो जो अपने वतन से दूर है इसकी तमाम पूंजी इस वक्त मक्का के अंदर ही है।


★_उस ज़ैदी शख्स की यह फरियाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के चाचा जुबेर बिन अब्दुल मुत्तलिब ने सुनी  उन पर बहुत असर हुआ उन्होंने अब्दुल्लाह बिन जद'आन को साथ लिया और उस आदमी की मदद के लिए उठ खड़े हुए । फिर उनके साथ बनु हाशिम , बनु ज़ोहरा और बनु असद के लोग भी शामिल हो गए यह सब अब्दुल्लाह बिन जद'आन के घर जमा हुए यहां इन सब को खाना खिलाया गया उसके बाद उन सब से खुदा के नाम पर हल्फ लिया गया ,हल्फ के अल्फाज यह थे :- 

"_ हम हमेशा मज़लूम का साथ देते रहेंगे और उसका हक़ उसे दिलाते रहेंगे ।"

इस हल्फ का नाम हल्फुल फज़ूल रखा गया। इस अहद और हल्फ के मौक़े पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क़ुरेश के साथ मौजूद थे ।

 *📕_ सीरतुन नबी ﷺ _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी) ,*

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१_ नस्तवार की मुलाकात 


★__हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उस अहद यानी हल्फुल फज़ूल को बहुत पसंद फरमाया ।आप फरमाते थे :-  मैं उस अहदनामे में शरीक था यह अहदनामा बनु जद'आन के मकान में हुआ था अगर कोई मुझसे कहे कि इस अहदनामे से दस्त बरदार हो जाएं और इसके बदले में 100 ऊंट लें  तो मैं नहीं लूंगा , इस अहदनामे के नाम पर अगर कोई आज भी मुझे आवाज दे तो मैं कहूंगा- मैं हाजिर हूं ।


★__ आपके इस इरशाद का मतलब यह था कि अगर आज भी कोई मज़लूम यह कहकर आवाज़ दे - ऐ हल्फुल फज़ूल वालों । तो मैं उसकी फरियाद को जरूर पहुंचुंगा क्योंकि इस्लाम तो आया ही इसलिए है कि सच्चाई का नाम बुलंद करें और मज़लूम की मदद और हिमायत करें।  

यह हल्फुल फज़ूल बाद में भी जारी रहा।


★__ मक्का में आपकी अमानत और दयानत की वजह से आपको अमीन कहकर पुकारा जाने लगा था आपका यह लक़ब बहुत मशहूर हो गया था लोग आपको अमीन के अलावा और किसी नाम से नहीं पुकारते थे ।


★_उन्हीं दिनों अबू तालिब ने आपसे कहा - ए भतीजे ! मैं एक बहुत गरीब आदमी हूं और क़हत साली की वजह से और ज्यादा सख्त हालात का सामना है काफी अरसे से खुश्क साली का दौर चल रहा है कोई ऐसा ज़रिया नहीं कि अपना काम चला सके और ना हमारी कोई तिजारत है । एक तिजारती काफ़िला शाम जाने वाला है उसमें कुरेश के लोग शामिल हैं क़ुरेश की एक खातून खदीज़ा बिन्त खुवेल्द शाम की तरफ अपना तिजारती सामान भेजा करती है जो शख्स उनका माल लेकर जाता है वह अपनी उजरत उनसे तय कर लेता है । अब अगर तुम उनके पास जाओ और उनका माल ले जाने की पेशकश करो तो वह ज़रूर अपना माल तुम्हें दे देंगी क्योंकि तुम्हारी अमानत दारी की शोहरत उन तक पहुंच चुकी है अगरचे में इस बात को पसंद नहीं करता कि तुम शाम के सफर पर जाओ यहूदी तुम्हारे दुश्मन है लेकिन हालात की वजह से मैं मजबूर हूं ।इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं।


 ★_ यहां तक कह कर अबू तालिब खामोश हो गए तब आपने फरमाया- मुमकिन है वह खातून खुद मेरे पास किसी को भेजें ।

यह बात आपने इसलिए कहीं थी कि सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा को एक बा एतमाद आदमी की जरूरत थी और उस वक्त मक्का में आपसे ज्यादा शरीफ, पाकबाज़ ,अमानत दार ,समझदार और क़ाबिले एतमाद आदमी कोई नहीं था


★_ अबू तालिब उस वक्त बहुत परेशान थे आपकी यह बात सुनकर उन्होंने कहा -अगर तुम ना गए तो मुझे डर है वह किसी और से मामला तय कर लेंगी।

 यह कहकर अबू तालिब उठ गए।


★__ इधर आपको यकीन सा था कि सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा खुद उनकी तरफ किसी को भेजेंगी और हुआ भी यही सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बुलवा भेजा फिर आपसे कहा :- 

"_मैंने आप की सच्चाई ,अमानत दारी और नेक अखलाक के बारे में सुना है और इसी वजह से मैंने आपको बुलाया है जो मुआवजा आपकी कौम के दूसरे आदमियों को देती हूं आपको उनसे दोगुना दूंगी।


★_ आपने  उनकी बात मंजूर फरमा ली , फिर आप अपने चचा अबु तालिब से मिले उन्हें यह बात बताई , अबू तालिब सुन कर बोले :-  यह रोज़ी तुम्हारे लिए अल्लाह ने पैदा फरमाई है ।"

इसके बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा का सामाने तिजारत लेकर शाम की तरफ रवाना हुए । सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के गुलाम मैयसराह आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ थे ।

रवानगी के वक्त हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने मैयसराह से कहा:-  किसी मामले में इनकी नाफरमानी ना करना जो यह कहें वही करना, इनकी राय से इख्तिलाफ ना करना ।


★__ आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के चचाओं ने काफिले वालों से आप की खबर गिरी रखने की दरखास्त की इसकी वजह यह भी थी की ज़िम्मेदारी के लिहाज़ से यह आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का पहला तिजारती सफर था । गोया आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इससे काम में बिल्कुल नए थे।


★__ इधर आप रवाना हुए उधर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का मोजजा़ शुरू हो गया ।एक बदली ने आपके ऊपर साया कर लिया । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ साथ चलने लगी ।जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शाम पहुंचे तो बसरा शहर के बाजार में एक दरख्त के साए में उतरे । यह दरख्त एक ईसाई राहिब नस्तवार की खानकाह के सामने था। इस राहिब ने मैसराह को देखा तो खानकाह से निकल आया , उस वक्त उसने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को देखा ,आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम दरख़्त के नीचे ठहरे हुए थे। 

उसने मैसराह से पूछा - यह शख्स कौन है? जो उस दरख्त के नीचे मौजूद है ।

मैंसराह ने कहा - यह एक कुरेशी शख्स है हरम वालों में से है ।

यह सुनकर राहिब ने कहा -उस दरख़्त के नीचे नबी के सिवा कभी कोई आदमी नहीं बैठा।


★__ मतलब यह था कि उस दरख़्त के नीचे आज तक कोई शख्स नहीं बैठा । अल्लाह ताला ने उस दरख्त को हमेशा इससे बचाया है कि उसके नीचे नबी के सिवा कोई दूसरा शख्स बैठे ।

इसके बाद उसने मैसराह से पूछा-  क्या उनकी आंखों में सुर्खी है ?

मैसराह ने जवाब दिया - हां बिल्कुल है और यह सुर्खी उनकी आंखों में मुस्तकिल रहती है ।

अब नस्तवार ने कहा- यह वही हैं_,"

मैसराह ने हैरान होकर उसकी तरफ देखा और बोले -  क्या मतलब ...यह वही है ...कौन वही? 

यह आखिरी पैगंबर हैं। काश मैं वह जमाना पा सकता जब उन्हें ज़हूर का हुक्म मिलेगा यानी जब उन्हें नबुवत मिलेगी ।


 ★__ इसके बाद वह चुपके से आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास पहुंचा पहले तो उसने आप सल्लल्लाहच अलेही वसल्लम के सर को बोसा दिया फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के क़दमों का बोसा दिया और बोला :- मैं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर ईमान लाता हूं और गवाही देता हूं कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम वही हैं जिनका जिक्र अल्लाह ताला ने तौरात में फरमाया है।


★_ इसके बाद नस्तवार ने कहा :-  ऐ मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! मैंने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम में वह तमाम निशानियां देख ली है जो पुरानी किताबों में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नबुवत की अलामातों के तौर पर दर्ज हैं सिर्फ एक निशानी बाक़ी है इसलिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ज़रा अपने कंधे से कपड़ा हटाऐं _,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने शाना मुबारक से कपड़ा हटा दिया तब नस्तवार ने वहां मोहरे नबुवत को जगमगाते देखा वह फौरन मोहरे नबुवत को चूमने के लिए झुक गया । 

फिर बोला :- मैं गवाही देता हूं अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और मैं गवाही देता हूं कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह ताला के पैगंबर है, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बारे में हज़रत ईसा इब्ने मरियम अलैहिस्सलाम ने खुशखबरी दी थी और उन्होंने कहा था- मेरे बाद इस दरख़्त के नीचे कोई नहीं बैठेगा सिवाय उस पैगंबर के जो उम्मी (यानी अनपढ़)  हाशमी अरबी और मक्की (यानी मक्का के रहने वाले) होंगे , क़यामत में हौजे कौसर और शफा'अत वाले होंगे ।


★_ इस वाक्य के बाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम बसरा के बाजार तशरीफ ले गए वहां आप सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम ने माल फरोख्त किया जो साथ लाए थे और कुछ चीजें खरीदी । इस खरीद फरोख्त के दौरान एक शख्स ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कुछ झगड़ा किया और बोला लात और उज़या की क़सम खाओ।

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया- मैंने इन बुतों के नाम पर कभी क़सम नहीं खाई ।

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह जुमला सुनकर वह शख्स चौक उठा ।

*

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★: हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा से निकाह,


 ★_  शायद वह गुजिश्ता आसमानी किताब का कोई आलिम था और उसने आपको पहचान लिया था चुनांचे बोला :-  आप ठीक कहते हैं ।

इसके बाद उसने मैसराह से अलहदगी में मुलाकात की। कहने लगा :- मैसराह यह नबी हैं, कसम है उस जा़त की जिसके हाथ में मेरी जान है यह वही हैं जिनका जिक्र हमारे राहिब अपनी किताबों में पाते हैं _,"


★__ मैसराह ने उसकी इस बात को जहन नशीन कर लिया। रास्ते में एक और वाकि़या पेश आया। सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के दो ऊंट बहुत ज्यादा थक गए थे और चलने के काबिल ना रहे उनकी वजह से मैसराह काफ़िले के पीछे रह गया। नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम काफ़िले के अगले हिस्से में थे ।मैसराह ऊंटों की वजह से परेशान हुआ तो दौड़ता हुआ अगले हिस्से की तरफ आया और अपनी परेशानी के बारे में आपको बताया। आप उसके साथ उन दोनों ऊंटों के पास तशरीफ लाए उनकी कमर और पिछले हिस्से पर हाथ फेरा कुछ पढ़कर दम किया आपका ऐसा करना था कि वह उसी वक्त ठीक हो गए और इस क़दर तेज़ चले कि काफ़िले के अगले हिस्से में पहुंच गए अब वह मुंह से आवाजें निकाल रहे थे और चलने में जोश व खरोश का इज़हार कर रहे थे।


★__ फिर क़ाफिले वालों ने अपना सामान फरोख्त किया इस बार उन्हें इतना नफा हुआ कि पहले कभी नहीं हुआ था। चुनांचे मैसराह ने आपसे कहा:-  ए मुहम्मद ! हम साल हा साल से सैयदा खदीजा के लिए तिजारत कर रहे हैं मगर इतना जबरदस्त नफा हमें कभी नहीं हुआ जितना इस बार हुआ है ।


★__ आखिर काफ़िला वापस मक्का की तरफ रवाना हुआ। मैसराह ने इस दौरान साफ तौर पर यह बात देखी जब गर्मी का वक्त होता था नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने ऊंट पर होते थे तो दो फरिश्ते धूप से बचाने के लिए आप पर साया किए रहते थे। इन तमाम बातों की वजह से मैसराह के दिल में आपकी मोहब्बत घर कर गई थी और यूं लगने लगा जैसे वह आपका गुलाम हो।


 ★__ आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम दोपहर के वक्त मक्का में दाखिल हुए आप बाकी काफिले से पहले पहुंच गए थे। आप सीधे हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के घर पहुंचे। वह इस वक्त चंद औरतों के साथ बैठी थी उन्होंने दूर से आपको देख लिया । आप ऊंट पर सवार थे और दो फरिश्ते आप पर साया किए हुए थे। हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने यह मंजर दूसरी औरतों को भी दिखाया । वह सब बहुत हैरान हुई।


★__ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा को तिजारत के हालात सुनाएं मुनाफे के बारे में बताया, इस मर्तबा पहले की निसबत दोगुना मुनाफा हुआ था। हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा बहुत खुश हुई, उन्होंने पूछा मैसराह कहां है ?

आपने बताया वह अभी पीछे हैं।

यह सुनकर सैयदा ने कहा- आप फौरन उसके पास जाइए और उसे जल्द से जल्द मेरे पास लाऐं।


★__ आप वापस रवाना हो गए हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने दरअसल आपको इसलिए भेजा था कि वह फिर से वही मंजर देखना चाहती थी, जानना चाहती थी क्या अब भी फरिश्ते उन पर साया करते हैं या नहीं। जूंही आप रवाना हुए यह अपने मकान के ऊपर चढ़ गई और वहां आपको देखने लगी आप की शान अब भी वही नजर आई , अब उन्हें यक़ीन हो गया कि उनकी आंखों ने धोखा नहीं खाया था। कुछ देर बाद आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम मैसराह के साथ उनके पास पहुंच गए । हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने मैसराह से कहा-  मैंने उन पर दो फरिस्तों को साया करते हुए देखा है क्या तुमने भी कोई ऐसा मंजर देखा है।

जवाब में मैसराह ने कहा -मैं तो यह मंजर उस वक्त से देख रहा हूं जब काफिला यहां से शाम जाने के लिए रवाना हुआ था।


★_ इसके बाद मैसराह ने नस्तवार से मुलाकात का हाल सुनाया, दूसरे आदमी ने जो कहा था वह भी बताया- जिसने लात और उज्जा़ की कसम खाने के लिए कहा था । फिर ऊंटों वाला वाक़या बताया। ये तमाम बातें सुनने के बाद सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने आपको तयशुदा उजरत से दोगुना दी जबकि तयशुदा उजरत पहले ही दूसरे लोगों की निस्बत 2 गुना थी।

इन तमाम बातों से सैयद खदीजा रजियल्लाहु अन्हा बहुत हैरान हुई। अब वह अपने चचाजाद भाई वरक़ा बिन नोफिल से मिली , यह पिछली किताबों के आलिम थे। सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने जो कुछ देखा और मैसराह की ज़ुबानी सुना था वह सब कह सूनाया । वरका बिन नोफिल ईसाई मजहब से ताल्लुक रखते थे इससे पहले यहूदी थे। सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा की तमाम बातें सुनकर वरक़ा बिन नोफिल ने कहा :-  खदीजा ! अगर यह बात सच है तो समझ लो मोहम्मद इस उम्मत के नबी है । मैं यह बात जान चुका हूं कि वह इस उम्मत के होने वाले नबी हैं, दुनिया को इन्हीं का इंतजार था यही इनका जमाना है।


 ★_ यहां यह बात भी वाज़े हो जाए कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के लिए तिजारती  सफर सिर्फ एक बार ही नहीं किया चंद सफर और भी किए। सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा एक शरीफ और पाक़बाज़ खातून थी , नसब के एतबार से भी क़ुरेश में सबसे आला थी उन्हें कुरेश की सैयदा कहा जाता था। क़ौम के बहुत से लोग उनसे निकाह के ख्वाहिशमंद थे, कई नौजवानों के पैगाम उन तक पहुंच चुके थे लेकिन उन्होंने किसी के पैगाम को कुबूल नहीं किया था।


★_ नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तिजारत के सफ़र से वापस आए तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खुशुसियात देखकर और आपकी बातें सुनकर वह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बहुत ज्यादा मुतास्सिर हो चुकी थी लिहाज़ा उन्होने एक खातून नफीसा बिन्ते मुनीहा को आपकी खिदमत में भेजा उन्होंने आकर आपसे कहा कि अगर कोई दौलतमंद और पाक़बाज़ खातून खुद आपको निकाह की पेशकश करें तो क्या आप मान लेंगे ?

उनकी यह बात सुनकर आप ने फरमाया :-  वह कौन हैं ?

नफीसा ने फौरन कहां - खदीजा बिन्त खुवेल्द ।

आपने उन्हें इजाजत दे दी,  नफीसा बिन्ते मुनिहा सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा  के पास आई, उन्हें सारी बात बताई। सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने  अपने चाचा अमर् बिन असद को इत्तेला कराई ताकि वह आकर निकाह कर दें।


★__ सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा की इससे पहले दो मर्तबा शादी हो चुकी थी उनका पहला निकाह अतीक़ इब्ने  माइद से हुआ था उससे बेटी हिंदा पैदा हुई थी । अतीक़ के फौत हो जाने के बाद सैयदा का दूसरा निकाह अबु हाला नामी शख्स से हुआ । अबु हाला की वफात के बाद सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा बेवगी  की जिंदगी गुजार रही थी कि उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से निकाह का इरादा कर लिया। उस वक्त सैयदा की उम्र 40 साल के लगभग थी।


★__ सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के चाचा अमरु बिन असद वहां पहुंच गए। इधर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम भी अपने चाचाओं को लेकर पहुंच गए । निकाह किसने पढ़ाया इस बारे में रिवायात मुख्तलिफ है, एक रिवायत यह है कि यह निकाह चचा अबू तालिब ने पढ़ाया था। मैहर की रक़म के बारे में भी रिवायात मुख्तलिफ हैं, एक रिवायत यह है कि मैहर की रक़म 12 ओक़िया के क़रीब थी, दूसरी रिवायत यह है कि आपने मैहर में 20 जवान ऊंटनियां दी ।

निकाह के बाद नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने वलीमे की दावत खिलाई और उस दावत में आपने एक या दो ऊंट ज़िबह किए ।

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★__ तीन तहरीरें _,"*


★__ आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की उमर 35 साल हुई तो मक्का में जबरदस्त सैलाब आया,  क़ुरेश ने सैलाब से महफूज रहने के लिए एक बंद बना रखा था, मगर यह सैलाब इस क़दर जबरदस्त था कि बंद तोड़कर काबे में दाखिल हो गया। पानी के जबरदस्त रेले और पानी के अंदर जमा होने की वजह से काबे की दीवारों में सगाफ पड़ गए। इससे पहले एक मर्तबा यह दीवारें आग लग जाने की वजह से कमजोर हो चुकी थी और यह वाक़या इस तरह हुआ था की एक मर्तबा कोई औरत काबे को धूनी दे रही थी कि उस आग में से एक चिंगारी उड़कर काबे के पर्दे तक पहुंच गई इससे पर्दे को आग लग गई और दीवारें तक जल गई । इस तरह दीवारें बहुत कमजोर हो गई थी यही वजह थी कि सैलाब ने उनकी कमजोर दीवारों में सगफ कर दिए।


★__ सैयदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबे की जो दीवार उठाई थी वह 9 गज ऊंची थी उन पर छत नहीं थी । लोग काबे के लिए नजराने वगैरह लाते थे यह नजराने कपड़े और खुशबूऐं वगैरह होती थी । काबे के अंदर जो कुआं था यह सब नजराने उस कुएं में डाल दिए जाते थे । कुआं अंदरूनी हिस्से में दाएं तरफ था उसको काबे का खजाना कहा जाता था । काबे के खजाने को एक मर्तबा एक चोर ने चुराने की कोशिश की ,चोर कुएं में गिर गया , उसके बाद अल्लाह ताला ने उसकी हिफाजत के लिए एक सांप को मुकर्रर कर दिया। सांप कुएं की मुंडेर पर बैठा रहता था किसी को खजाने के नजदीक नहीं आने देता था । कुरैशी भी उससे खौफज़दा रहते थे । अब जबकि काबे की दीवारों में सगाफ पड़ गए और नए सिरे से उसको तामीर का मसला पेश आया तो अल्लाह ताला ने एक परिंदे को भेजा वह उस उस सांप को उठा ले गया ।

*( अल बिदाया वा अन निहाया )*


★__ यह देखकर कुरेश के लोग बहुत खुश हुए ।अब उन्होंने नए सिरे से काबे की तामीर का फैसला कर लिया और प्रोग्राम बनाया की बुनियादें मजबूत बनाकर दीवारों को ज्यादा ऊंचा उठाया जाए इस तरह दरवाजे को भी ऊंचा कर दिया जाएगा ताकी काबे में कोई दाखिल ना हो, सिर्फ वही शख्स दाखिल हो जिसे वह इजाजत दें ।


★_ अब उन्होंने पत्थर जमा किए हर कबीला अपने हिस्से के पत्थर अलग जमा कर रहा था ।चंदा भी जमा किया गया। चंदे में उन्होंने पाक कमाई दी नापाक कमाई नहीं दी । मसलन तवायफ की आमदनी ,सूद की कमाई ,दूसरे का माल गस्ब करके हासिल की गई दौलत चंदे में नहीं दी गई और पाक कमाई उन्होंने बिना वजह नहीं दी थी एक खास वाकि़या पेश आया था जिससे वह इस नतीजे पर पहुंचे थे कि इस काम में सिर्फ पाक कमाई लगाई जाएगी ।


 ★__ वह वाकि़या यूं था :- एक क़ुरेश सरदार अबु वहब अमरू बिन आबिद ने जब यह काम शुरू करने के लिए एक पत्थर उठाया तो पत्थर उसके हाथ से निकल कर फिर उस जगह पहुंच गया जहां से उसे उठाया था । इस पर क़ुरेश हैरान व परेशान हुए,  आखिर खुद वहब खड़ा हुआ और बोला :- 

"_ ऐ क़ुरेश !  काबे की बुनियाद में सिवाय पाक माल के कोई दूसरा माल शामिल मत करना बैतुल्लाह की तामीर में किसी बदकार औरत की कमाई, सूद की कमाई या जबरदस्ती हासिल की गई दौलत हरगिज़ शामिल ना करना_,"


★__ यह वहब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के वालिद हजरत अब्दुल्लाह का मामू था और अपनी कौम में एक शरीफ आदमी था। 

जब क़ुरेश के लोग खाना काबा की तामीर के लिए पत्थर ढ़ो रहे थे तो उनके साथ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम भी पत्थर ढोने में शरीक थे आप पत्थर अपनी गर्दन पर रख कर ला रहे थे , तामीर शुरू करने से पहले क़ुरेश के लोगों ने खौफ महसूस किया की दीवारें गिराने से कहीं उन पर कोई मुसीबत ना नाजिल हो जाए । आखिर एक सरदार वलीद बिन मुगीरा ने कहा :-  काबे की दीवार गिराने से तुम्हारा इरादा इस्लाह और मरम्मत का है या उसको खराब करने का ?

जवाब में लोगों ने कहा - ज़ाहिर है हम मरम्मत और इस्लाह चाहते हैं। 

यह सुनकर वलीद ने कहा- तब फिर समझ लो अल्लाह ताला इस्लाह करने वालों को बर्बाद नहीं करता _,"


★__ फिर वलीद ही ने गिराने के काम की इब्तिदा की लेकिन उसने भी सिर्फ एक हिस्सा ही गिराया ताकि मालूम हो जाए कि उन पर कोई तबाही तो नहीं आती । जब वो रात खैरियत से गुजर गई तब दूसरे दिन सब लोग उसके साथ शरीक हो गए और पूरी इमारत गिरा दी ,यहां तक कि इसकी बुनियाद तक पहुंच गए ।

यह बुनियाद इब्राहिम अलैहिस्सलाम के हाथ की रखी हुई थी । हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने बुनियादों में सब्ज़  रंग के पत्थर रखे थे, यह पत्थर ऊंट की कौहान की तरह के थे और एक दूसरे से जुड़े हुए थे उन लोगों के लिए इन को तोड़ना बहुत मुश्किल काम साबित हुआ ।


★__ दाएं कोने से नीचे से क़ुरेश को एक तहरीर मिली, वह तहरीरें सुरयानी जुबान में लिखी हुई थी, उन्हें सुरियानी जुबान नहीं आती थी। आखिर एक यहूदी को तलाश करके लाया गया उसने वो तहरीर पढ़कर उन्हें सुनाई ।


 ★__ तहरीर यह थी :- मैं अल्लाह हूं मक्का का मालिक जिसको मैंने उस दिन पैदा किया जिस दिन मैंने आसमानों और ज़मीनों को पैदा किया जिस दिन मैंने सूरज और चांद बनाएं मैंने इसको यानी मक्का को सात फरिश्तों के जरिए घैर दिया है इस की अज़मत उस वक्त तक खत्म नहीं होगी जब तक इसके दोनों तरफ के पहाड़ मौजूद हैं, इन पहाड़ों से मुराद एक तो कैस पहाड़ है जो कि सफा पहाड़ी के सामने है और दूसरा कैकि़यान पहाड़ है जो मक्का के करीब है और जिसका रुख अबु क़ैस पहाड़ की तरफ है और यह शहर अपने बाशिंदों के लिए पानी और दूध के लिहाज़ से बहुत बा बरकत और नफा वाला है_,"


★__ यह पहली तहरीर थी। दूसरी मक़ामें इब्राहिम से मिली उसमें लिखा था :-  मक्का अल्लाह ताला का मोहतरम और मौअज्ज़म शहर है इसका रिज़्क़ 3 रास्तों से इसमें आता है ।"

यहां तीन रास्तों से मुराद क़ुरेश के तीन तिजारती रास्ते हैं ,उन रास्तों से काफ़िले आते जाते थे।


★__ तीसरी तहरीर इसके कुछ फासले से मिली उसमें लिखा था :-  जो भलाई होएगा लोग उस पर रश्क़ करेंगे यानी उस जैसे बनने की कोशिश करेंगे और जो शख्स रुसवाई होयेगा वह रुसवाई और नदामत पाएगा ,तुम बुराइयां करके भलाई की आस लगाते हो । हां ! यह ऐसा ही है जैसे कीकर यानी कांटेदार दरख्त में कोई अंगूर तलाश करें _,"


★__ यह तहरीरें काबा के अंदर पत्थर पर खुदी हुई मिली ,काबा की तामीर के सिलसिले में क़ुरेश को पत्थरों के अलावा लकड़ी की भी जरूरत थी, छत और दीवारों में लकड़ी की जरूरत थी ।लकड़ी का मसला इस तरह हल हुआ कि एक जहाज अरब के साहिल से आकर टकरा गया ,आज उस मुकाम को जद्दा का साहिल कहा जाता है पहले यह मक्का का साहिल कहलाता था इसलिए कि मक्का का करीब तरीन साहिल यही था।


★__ साहिल से टकराकर जहाज टूट गया वह जहाज किसी रूमी ताजिर का था उस जहाज में शाहे रोम  के लिए संगेमरमर ,लकड़ी और लोहे का सामान ले जाया जा रहा था। कुरेश को इस जहाज के बारे में पता चला तो यह लोग वहां पहुंचे और उन लोगों से लकड़ी खरीद ली ।इस तरह छत की तामीर में इस लकड़ी को इस्तेमाल किया गया । आखिर खाना काबा की तामीर का काम हजरे अस्वद तक पहुंच गया ।




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★__ हजरे अस्वद कौन रखेगा ?*


★__ अब यहां एक नया मसला पैदा हो गया । सवाल यह पैदा हुआ की हजरे अस्वद कौन उठाकर उसकी जगह पर रखेगा। हर कबीला यह फजी़लत खुद हासिल करना चाहता था ।यह झगड़ा इस हद तक बड़ा कि मरने मारने तक नौबत आ गई ,लोग एक दूसरे को क़त्ल करने पर तुल गए । कबीला अब्द अल दार ने तो कबीला अदी के साथ मिलकर एक बर्तन में खून भरा और उसमें अपने हाथ डुबो कर कहा :- हजरे अस्वद हम रखेंगे _,"

इसी तरह दूसरे क़बीले भी अड़ गए ,तलवारे नियामों से निकल  आई।


★__ आखिर वह सब बैतुल्लाह में जमा हो गए । उन लोगों में अबु उमैया बिन मुगीरा था उसका नाम हुज़ैफा था । क़ुरेश के पूरे कबीले में सबसे ज्यादा उम्र वाला था । यह उम्मुल मोमिनीन सैयदा उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा का बाप था । क़ुरेश के इंतेहाई शरीफ लोगों में से था। मुसाफिरों को सफरे सामान और खाना वगैरह देने के सिलसिले में बहुत मशहूर था । जब कभी सफर करता तो अपने साथियों के खाने-पीने का सामान खुद करता था।


★__ इस वक्त इस शदीद झगड़े को खत्म करने के लिए उसने एक हल पेश किया। उसने सब से कहा :- ऐ क़ुरेश के लोगों अपना झगड़ा खत्म करने के लिए तुम यूं करो कि हरम के सफा नामी दरवाजे से जो शख्स सबसे पहले दाखिल हो उससे फैसला करा लो, वह तुम्हारे दरमियान जो फैसला करें वह सब उसको मान लें । 

यह तजवीज़ सब ने मान ली । आज उस दरवाजे को बाबुल सलाम कहा जाता है । यह दरवाजा रुकने यमानी और रुकने अस्वद के दरमियानी हिस्से के सामने है।


★__ अल्लाह की कुदरत इस दरवाजे से सबसे पहले हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाए। क़ुरेश ने जैसे ही आपको देखा पुकार उठे :- यह तो अमीन है ,यह तो मोहम्मद है, हम इस पर राजी हैं ।"

 और उनके ऐसा कहने की वजह यह थी कि क़ुरेश अपने आपस के झगड़ों के फैसले आप ही से कराया करते थे आप किसी की बेजा हिमायत नहीं करते थे, ना बिला वजह किसी की मुखालफत करते थे।

★_ उन्होंने अपने झगड़े की तफसील आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को सुनाई, सारी तफसील सुनकर आपने फरमाया :- एक चादर ले आओ ।

वो लोग आए , आपने उस चादर को बिछाया और अपने दस्ते मुबारक से हजरे अस्वद को उठाकर उस चादर पर रख दिया। इसके बाद आप ने इरशाद फरमाया :-हर क़बीले के लोग इस चादर का एक किनारा पकड़ लें, फिर सब मिलकर इस को उठाएं _,"


★___ उन्होंने ऐसा ही किया, चादर को उठाते हुए वह उस मुका़म तक आ गए जहां हजरे अस्वद को रखना था । इसके बाद नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरे अस्वद को उठाकर उसकी जगह रखना चाहा लेकिन ऐन उसी वक्त एक नज़दी शख्स आगे बढ़ा और तेज आवाज में बोला :-  बड़े ताज्जुब की बात है कि आप लोगों ने एक कम उम्र नौजवान को अपना रहनुमा बना लिया इसकी इज्जत अफजा़ई में लग गए हो , याद रखो यह शख्स सबको गिरोहों में तक़सीम कर देगा तुम लोगों को पारा पारा कर देगा _,"

क़रीब था कि लोगों में उसकी बातों से एक बार फिर झगड़ा हो जाए ,लेकिन फिर खुद ही उन्होंने महसूस कर लिया कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जो फैसला किया है वह लड़ाने वाला नहीं लड़ाई खत्म करने वाला है। चुनांचे हजरे अस्वद को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने मुबारक हाथों से उसकी जगह पर रख दिया _,"


★_ मोरखों ने लिखा है यह नजदी शख्स दरअसल इब्लीस था जो इस मौके पर इंसानी शक्ल में आया था ।


★_ जब काबे की तामीर मुकम्मल हो गई तो कुरेश ने अपने बुतों को फिर से उसमें सजा दिया ।

काबे की यह तामीर जो कुरैश ने की चौथी तामीर थी सबसे पहले काबे को फरिश्तों ने बनाया था बाज़ सहाबा ने फरमाया है कि जमीन व आसमान को पैदा करने से पहले अल्लाह ताला का अर्श पानी के ऊपर था जब अर्श को पानी पर होने की वजह से हरकत हुई तो उस पर यह कलमा लिखा गया :-

"_ ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह _,"

अल्लाह ता'ला के सिवा कोई माबूद नहीं मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह ता'ला के रसूल हैं_,"


★__ इस कलमें के लिखे जाने के बाद अर्श साकिन हो गया ,फिर जब अल्लाह ता'ला ने आसमान और जमीन को पैदा करने का इरादा फरमाया तो उसने पानी पर हवा को भेजा उससे पानी में मौजे उठने लगी और बुखारात उठने लगे । अल्लाह ताला ने उन बुखारात यानी भाप से आसमान को पैदा फरमाया । फिर अल्लाह ता'ला ने काबे की जगह से पानी को हटा दिया जगह खुश्क हो गई, चुनांचे यही बेतुल्लाह की जगह सारी ज़मीन की असल है और इसका मरकज़ है। यही खुश्की बढ़ते बढ़ते 7 बर्रे आज़म बन गई , जब ज़मीन ज़ाहिर हो गई तो उस पर पहाड़ क़ायम किए गए। जमीन पर सबसे पहला पहाड़ अबू कैस है ।

★__ फिर अल्लाह ताला ने फरिश्तों को हुक्म फरमाया :-  ज़मीन पर मेरे नाम का एक घर बनाओ ताकि आदम की औलाद उस घर के ज़रिए मेरी पनाह मांगे, आसमान उस घर का तवाफ करें जिस तरह तुमने मेरे अर्श के गिर्द तवाफ किया है ,ताकि मैं उनसे राज़ी हो जाऊं _,"


★_फरिश्तों ने हुक्म की तामील की , फिर आदम अलैहिस्सलाम ने खाना काबा की तामीर शुरू की, उसके बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खाना काबा की तामीर की, इस तरह क़ुरेश के हाथों यह तामीर चौथी बार हुई थी।


★_हुजूर अकरम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम की उम्र मुबारक 40 साल के करीब हुई तो वही के आसार शुरू हो गए ।इस सिलसिले में सबसे पहले आपको सच्चे ख्वाब दिखाई देने लगे ,आप जो ख्वाब देखते वह हक़ीक़त बन कर सामने आ जाता। अल्लाह ता'ला ने सच्चे ख्वाबों का सिलसिला इसलिए शुरू किया कि अचानक फरिश्ते की आमद से कहीं आप खौफज़दा ना हो जाएं , उन दिनों एक बार आपने सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा से फरमाया :-

"_ जब मैं तनहाई में जाकर बैठता हूं तो मुझे आवाज सुनाई देती है ....कोई कहता है.... ए मुहम्मद ए ....मुहम्मद...,"

एक बार आपने फरमाया :-

"_मुझे एक नूर नज़र आता है यह नूर जागने की हालत में नज़र आता है, मुझे डर है इसके नतीजे न कोई बात ना पेश आ जाए _,"

एक बार आपने यह भी फरमाया :-

"_ अल्लाह की क़सम ! जितनी नफरत इन बुतों से है उतनी किसी और से नहीं _,"


★_वहीं के लिए आपको ज़हनी तौर पर तैयार करने के लिए अल्लाह ता'ला ने फरिश्ते इसराफील को आपका हमदम बना दिया था। आप उनकी मौजूदगी को महसूस तो करते थे मगर उन्हें देख नहीं सकते थे ।इस तरह आपको नबूवत की खुशखबरियां दी जाती रही, आपको वही के लिए तैयार किया जाता रहा।

अल्लाह ता'ला ने आपके दिल में तनहाई का शौक पैदा फरमा दिया था । चुनांचे आपको तनहाई अज़ीज़ हो गई । आप गारे हिरा में चले जाते और वहां वक्त गुजा़रते, उस पहाड़ से आपको एक बार आवाज भी सुनाई दी थी :- "_ मेरी तरफ तशरीफ़ लाइए ऐ अल्लाह के रसूल _,"


★_ उस गार में आप मुस्तकिल कई कई रातें गुजा़रते, अल्लाह की इबादत करते ,कभी आप तीन रातों तक वहां ठहरे रहे , कभी सात रातों तक ,कभी पूरा महीना वहां गुजार देते । आप जो खाना साथ ले जाते थे जब खत्म हो जाता तो घर तशरीफ़ ले जाते,  खाना आमतौर पर जैतून का तेल और खुश्क रोटी होता था ,कभी खाने में गोश्त भी होता था। गारे हिरा में क़याम के दौरान कुछ लोग वहां से गुज़रते और उनमें कुछ मिस्कीन लोग होते तो आप उन्हें खाना खिलाते ।

गारे हिरा में आप इबादत किस तरह करते थे रिवायत में इसकी वजाहत नहीं मिलती, उल्मा किराम ने अपना अपना ख्याल ज़रूर जा़हिर किया है, उनमें से एक ख्याल यह है कि आप कायनात की हक़ीक़त पर गौरो  फिक्र करते थे और यह गौरो फिक्र लोगों से अलग रहकर ही हो सकता था ।


★_फिर आखिरकार वो रात आ गई जब अल्लाह ता'ला ने आपको नबुवत और रिसालत अता फरमा दी ,आपकी नबूवत के ज़रिए अपने बंदों पर अजीब एहसान फरमाया। वह रबी उल अव्वल का महीना था और तारीख 17 थी , बाज़ उलमा ने लिखा है कि वह रमज़ान का महीना था क्योंकि क़ुरान रमज़ान में नाजि़ल होना शुरू हुआ था । आठवीं और तीसरी तारीख भी रिवायत में आई है और यह पहला मौका था जब जिब्राइल अलैहिस्सलाम वही लेकर आप की खिदमत में हाजिर हुए इससे पहले वह आपके पास नहीं आए थे । जिस सुबह  जिब्राइल अलैहिस्सलाम वही लेकर आए वह पीर की सुबह थी और पीर की सुबह ही आप इस दुनिया में तशरीफ़ लाए थे ।आप फरमाया करते थे :- 

"_ पीर के दिन का रोज़ा रखो क्यूंकि मैं पीर के दिन पैदा हुआ ,पीर के दिन ही मुझे नबूवत मिली _,"



बहरहाल इस बारे में रिवायत मुख्तलिफ हैं ,यह बात तैय है कि उस वक्त आपकी उम्र मुबारक का 40 वा साल था, आप उस वक्त नींद में थे कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम तशरीफ ले आए, उनके हाथ में एक रेशमी कपड़ा था और उस कपड़े में एक किताब थी।

*💕ʀєαd, ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd 💕,*

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*┱✿___ पहली वही _,"*

★__ उन्होंने आते ही कहा :- "इक़रा " यानी पढ़िए ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- मैं नहीं पढ़ सकता (यानी मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं)

इस पर जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आपको सीने से लगाकर भींचा। आप फरमाते हैं उन्होंने मुझे इस जोर से भींचा कि मुझे मौत का गुमान हुवा ।इसके बाद उन्होंने मुझे छोड़ दिया ,फिर कहा :- पढ़िए , यानी जो मैं कहूं वह पढ़िए , इस पर आप ने फरमाया:- मैं क्या पढ़ूं ?

★_ तब जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने सूरह अल अ़लक़ की यह आयात पढ़ी :-

( तर्जुमा ) ए पैगंबर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! आप (पर जो क़ुरान नाजिल हुआ करेगा ) अपने रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए( यानी जब पढ़ें बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहकर पढ़ा कीजिए ) जिसने मखलुका़त को पैदा किया जिसमें इंसान को खून के लो थोथड़े से पैदा किया, आप क़ुरान पढ़ा कीजिए और आपका रब बड़ा करीम है ( जो चाहता है अता करता है और ऐसा है) जिसने लिखे पढ़ों को क़लम से तालीम दी ( और आलम तौर पर)  इंसानों को (दूसरे ज़रियों से) उन चीजों की तालीम दी जिनको वह नहीं जानता था ।

★__आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं :- मैंने इन आयतों को उसी तरह पढ़ दिया, जिसके बाद वह फरिश्ता मेरे पास से चला गया , ऐसा लगता था गोया मेरे दिल में एक तहरीर लिख दी गई हो , यानी यह कलमात मुझे जुबानी याद हो गए,

इसके बाद आप घर तशरीफ़ लाएं _,

बाज़ रिवायात में आता है कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम जब गार में आए तो पहले उन्होंने यह अल्फाज़ कहे थे :-

"_ ऐ मोहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्राइल हूं ।

★__ आपके घर तशरीफ़ आवरी  से पहले सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा हू  ने हस्बे मामूल आपके लिए खाना तैयार करके एक शख्स के हाथ आपके पास भिजवा दिया था मगर उस शख्स को आप गार में नज़र ना आए उस शख्स ने वापस आकर यह बात सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा को बताई, उन्होंने आप की तलाश में आपके अजी़जो़ अक़ारिब के घर आदमी भेजे मगर आप वहां भी ना मिले। इसलिए सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा परेशान हो गई वह अभी इसी परेशानी में थी कि आप तशरीफ ले आए ।आपने जो कुछ देखा और सुना था कि तफसील सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा से बयान फरमाई, हजरत जिब्राइल का यह जुमला भी बताया कि - "_ए मुहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं_,"

★_ यह सुनकर सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने कहा- आपको खुशखबरी हो ...आप यकीन कीजिए ! क़सम है उस जा़त की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है आप इस उम्मत के नबी होंगे ।

★__ फिर सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा आपको  अपने चाचा जाद भाई वरक़ा बिन नोफिल के पास ले गई । गार वाला सारा वाकि़या उन्हें सुनाया,  वरक़ा बिन नोफिल पुरानी किताबों के आलिम थे । सारी बात सुनकर वह पुकार उठे :-

क़ुद्दूस...क़ुद्दूस... क़सम है उस जा़त की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है , खदीजा अगर तुम सच कह रही हो तो इसमें शक नहीं इनके पास वही नामूसे अकबर यानी जिब्राइल आए थे जो मूसा अलैहिस्सलाम के पास आया करते थे। मुहम्मद इस उम्मत के नबी हैं । ये इस बात पर यकीन कर लें।

क़ुद्दूस का मतलब है, वह जा़त जो हर ऐब से पाक हो ।यह लफ्ज़ ताज्जुब के वक्त बोला जाता है जैसे हम कह देते हैं ,अल्लाह.. अल्लाह _,

★_ वरका़ बिन नोफिल को जिब्राइल का नाम सुनकर हैरत इसलिए हुई थी कि अरब के दूसरे शहरों में लोगों ने यह नाम सुना भी नहीं था । यह भी कहा जाता है कि वरक़ा बिन नोफिल ने आपके सर को बोसा दिया था और फिर कहा था :-

काश मैं उस वक्त तक जिंदा रहता जब आप लोगों को अल्लाह ताला की तरफ दावत देंगे, मैं आपकी मदद करता ,इस अजी़म काम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता , काश मैं उस वक्त तक जिंदा रहूं जब आपकी कौम आपको झुठलाएगी, आपको तकालीफ पहुंचाएगी , आपके साथ जंगे लड़ी जाएंगी और आपको यहां से निकाल दिया जाएगा। अगर मैं उस वक्त तक जिंदा रहा तो आपका साथ दूंगा ,अल्लाह के दीन की हिमायत करूंगा ।

आप यह सुनकर हैरान हुए और फरमाया :- मेरी कौम मुझे वतन से निकाल देगी ?

जवाब में वरक़ा ने कहा -हां ! इसलिए जो चीज़ आप लेकर आए हैं उसे लेकर जो भी आया उस पर जुल्म ढाए गए ...अगर मैंने वह जमाना पाया तो मैं ज़रूर आपकी पूरी मदद करूंगा _,"

वरक़ा ने हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा से यह भी कहा :- तुम्हारे खाविंद बेशक सच्चे हैं , दर हक़ीक़त यह बातें नबूवत की इब्तिदा है ...यह इस उम्मत के नबी है ।

★_ लेकिन इसके कुछ ही मुद्दत बाद वरक़ा बिन् नोफिल का इंतकाल हो गया , उन्हें हुजून के मुकाम पर दफन किया गया । चूंकि उन्होंने आपकी तसदीक़ की थी इसलिए नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके बारे में फरमाया है :-

मैंने वरक़ा  को जन्नत में देखा है उनके जिस्म पर सुर्ख लिबास था।"

★__ वरका़ से मुलाकात के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम घर तशरीफ ले आए , उसके बाद एक मुद्दत तक जिब्राइल अलैहिस्सलाम आपके सामने नहीं आए ।दरमियान में जो वक़फा डाला गया इसमें अल्लाह ताला की यह हिकमत थी कि आपके मुबारक दिल पर जिब्राइल अलैहिस्सलाम को देखकर जो खौफ पैदा हो गया था उसका असर जाइल हो जाए और उनके ना आने की वजह से आपके दिल में वही का शौक पैदा हो जाए । चुंनाचे ऐसा ही हुआ जिब्राइल अलैहिस्सलाम की आमद के बाद सिलसिला रुक जाने के बाद आपको सदमा हुआ । कई बार आप पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ गए ताकि खुद को वहां से गिरा कर खत्म कर दें लेकिन जब भी आप ऐसा करने की कोशिश करते  जिब्राइल अलैहिस्सलाम आपको पुकारते:- "_ ए मुहम्मद ! आप हक़ीक़त में अल्लाह ता'ला के रसूल हैं।"

★__ यह कलिमात सुनकर आप सुकून महसूस करते लेकिन जब फिर वही का वक़फा कुछ और गुज़र जाता तो आप बेक़रार हो जाते ,रंज महसूस करते हैं और उसी तरह पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाते , चुनांचे फिर जिब्राइल अलैहिस्सलाम आ जाते और आप को तसल्ली देते ,आखिर दोबारा वही हुई , सूरह मुदस्सिर की पहेली तीन आयात उतरी :-

"_ तर्जुमा ए कपड़े में लेटने वाले उठो ! ( यानी अपनी जगह से उठो और तैयार हो जाओ) फिर काफिरों को डराओ और फिर अपने रब की बढ़ाईयां बयान करो और अपने कपड़े पाक रखो _,"

★__ इसी तरह आपको नबूवत के साथ तबलीग का हुक्म दिया गया। इब्ने इसहाक़ लिखते हैं :-

"_ सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा पहली खातून है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाईं और अल्लाह की तरफ से जो कुछ आप हजरत  लेकर आए उसकी तस्दीक़ की। मुशरिकीन की तरफ से आपको जब भी तकलीफ पहुंची, सदमा पहुंचा, सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने आपको दिलासा दिया ।

★_सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के बाद दूसरे आदमी हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु हैं, जो आपके पुराने दोस्त थे, उन्होंने आपकी जु़बान से नबूवत मिलने का जिक्र सुनते ही फौरन आपकी तसदीक़ की और ईमान ले आए । बच्चों में सैयदना अली रजियल्लाहु अन्हु हैं जो आप पर पहले ईमान लाए और उनके ईमान लाने का वाकि़या कुछ इस तरह है :-

★__ एक दिन आप हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास तशरीफ लाए उस वक्त सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा भी आपके साथ थी और आप उनके साथ छुपकर नमाज पढ़ रहे थे । उन्होंने यह नई बात देखकर पूछा:-  यह आप क्या कर रहे हैं ?

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "_यह वह दीन है जिसको अल्लाह ताला ने अपने लिए पसंद फरमाया है और इसके लिए अल्लाह ताला ने अपने पैगंबर भेजे हैं मैं तुम्हें भी अल्लाह की तरह बुलाता हूं लात और उज्जा़ की इबादत से रोकता हूं _,"

हजरत अली ने यह सुनकर अर्ज़ किया :- यह एक नई बात है इसके बारे में मैंने आज से पहले कभी नहीं सुना इसलिए मैं अपने बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता, मैं अपने वालिद से मशवरा कर लूं _,"

उनका जवाब सुनकर आपने इरशाद फरमाया :- अली अगर तुम मुसलमान नहीं होते तो भी इस बात को छुपाए रखना _,"

उन्होंने वादा किया और इसका ज़िक्र किसी से ना किया। रात भर सोचते रहे । आखिर अल्लाह ता'ला ने उन्हें हिदायत अता फरमाई। सवेरे आप की खिदमत में हाज़िर हुए और मुसलमान हो गए।

उल्मा ने लिखा है उस वक्त हजरत अली की उमर 8 साल के क़रीब थी , इससे पहले भी उन्होंने कभी बुतों की इबादत नहीं की थी ,वह बचपन ही से नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ रहते थे।

★__ लेकिन एहतियात के बावजूद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद को उनके क़ुबूले  इस्लाम का इल्म हो गया तो उन्होंने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से इसके मुताल्लिक इस्तफ्सार किया ।

अपने वालिद का सवाल सुनकर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :-अब्बा जान ! मैं अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान ला चुका हूं और जो कुछ अल्लाह के रसूल लेकर आए हैं उसकी तस्दीक़ कर चुका हूं लिहाज़ा उनके दीन में दाखिल हो गया हूं और उनकी पैरवी अख्तियार कर चुका हूं _,"

यह सुनकर अबू तालिब ने कहा:-  जहां तक उनकी बात है (यानी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ) तो वह तुम्हें भलाई के सिवा किसी दूसरे रास्ते पर नहीं लगाएंगे लिहाज़ा उनका साथ ना छोड़ना ।

★_अबू तालिब अक्सर यह कहा करते थे :- मैं जानता हूं मेरा भतीजा जो कहता है हक़ है ,अगर मुझे यह डर ना होता कि कुरैश की औरतें मुझे शर्म दिलाएंगी तो मैं ज़रूर उनकी पैरवी क़ुबूल कर लेता _,"

★_अफीफ कंदी रजियल्लाहु अन्हु एक ताजिर थे, उनका बयान है :- इस्लाम लाने से पहले मैं एक मर्तबा हज के लिए आया, तिजारत का कुछ माल खरीदने के लिए मैं अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब के पास गया वह मेरे दोस्त थे और यमन से अक्सर अतर् खरीद कर लाते थे फिर हज के मौसम में मक्का में फरोख्त करते थे । मैं उनके साथ मीना में बैठा था । एक नौजवान आया, उसने गुरूब होते सूरज की तरफ गौर से देखा जब उसने देख लिया कि सूरज गुरुब हो चुका, तो उसने बहुत अहतमाम से वज़ु किया, फिर नमाज पढ़ने लगा यानी काबा की तरफ मुंह करके ..फिर एक लड़का आया जो बालिग होने के क़रीब था उसने वजू किया और उस नौजवान के बराबर खड़े होकर नमाज पढ़ने लगा, फिर एक औरत खैमे से निकली और उनके पीछे नमाज़ की नियत बांधकर खड़ी हो गई, इसके बाद उस नौजवान ने रुकू किया तो उस लड़के और औरत में भी रुकू किया, नौजवान  सजदे में गया तो वह दोनों भी सजदे में चले गए। यह मंजर देख कर मैंने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब से पूछा :-

"_ अब्बास यह क्या हो रहा है ?"

उन्होंने बताया :- यह मेरे भाई अब्दुल्लाह के बेटे का दीन है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दावा है कि अल्लाह ताला ने उसे पैगंबर बनाकर भेजा है, यह लड़का मेरा भतीजा अली इब्ने अबु तालिब है और यह औरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बीवी खदीजा है _,"

★_यह अफीफ कंदी रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए तो कहा करते थे :- काश उस वक्त उन में चौथा आदमी में होता।

इस वाक्य के वक्त गालिबन हज़रत ज़ैद बिन हारिसा और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु वहां मौजूद नहीं थे अगरचे उस वक्त तक दोनों मुसलमान हो चुके थे।

★__ हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु गुलामों में सबसे पहले ईमान लाए थे, यह हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम थे ,पहले यह हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के गुलाम थे, शादी के बाद उन्होंने ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की गुलामी में दे दिया था ।

★_यह गुलाम किस तरह बने ? यह भी सुन लें। जाहिलियत के ज़माने में इनकी वालीदा इन्हें लिए अपने मां-बाप के यहां जा रही थी कि काफ़िले को लूट लिया गया, डाकू इनके बेटे जै़द बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को भी ले गए,  फिर इन्हें उकाज़ के मेले में बेचने के लिए लाया गया । इधर सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ने हकीम बिन हुज़ाम रजियल्लाहु अन्हु को मेले में भेजा ,वह एक गुलाम खरीदना चाहती थी, आप हकीम बिन हुज़ाम रजियल्लाहु अन्हु  की फूफी थी । हकीम बिन हुज़ाम रजियल्लाहु अन्हु मेले में आए तो वहां इन्होंने ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को बिकते देखा ,उस वक्त उनकी उम्र 8 साल थी । हकीम बिन हुज़ाम रजियल्लाहु अन्हु को यह अच्छे लगे चुनांचे इन्होंने सैयदा खदीजा रजियल्लाहु अन्हा के लिए इन्हें खरीद लिया ।हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा को भी यह पसंद आए और उन्होंने इन्हें अपनी गुलामी में ले लिया , फिर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हदिया कर दिया ।इस तरह हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के गुलाम बने।

★_फिर जब आपने इस्लाम की दावत दी तो फौरन आप ईमान ले आए । बाद में हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इन्हें आज़ाद कर दिया था मगर यह उम्र भर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में रहे । इनके वालिद एक मुद्दत से इनकी तलाश में थे किसी ने उन्हें बताया कि जैद मक्का में देखे गए हैं ,इनके वालिद और चाचा इन्हें लेने फौरन मक्का मुअज़्ज़मा की तरफ चल पड़े, मक्का पहुंचकर यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और आपको बताया कि जैद इनके बेटे हैं ।

सारी बात सुनकर आपने इरशाद फरमाया :- तुम ज़ैद से पूछ लो, अगर यह तुम्हारे साथ जाना चाहे तो मुझे कोई एतराज़ नहीं और यहां मेरे पास रहना चाहे तो इनकी मर्जी।

ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु से पूछा गया तो इन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ रहना पसंद किया।

★_इस पर बाप ने कहा:-  तेरा बुरा हो ज़ैद... तू आजादी के मुक़ाबले में गुलामी को पसंद करता है _,"

जवाब में हजरत ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :- हां इनके (हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के)  मुक़ाबले में मैं किसी और को हरगिज़ नहीं चुन सकता _,"

आपने हजरत ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु की यह बात सुनी तो आपको फौरन हजरे अस्वाद के पास ले गए और ऐलान फरमाया :-  आज से ज़ैद मेरा बेटा है ।

इनके वालिद और चाचा मायूस हो गए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें इजाज़त दे दी कि वह जब चाहे ज़ैद से मिलने आ सकते हैं चुनांचे वह मिलने के लिए आते रहे।

★_तो यह थे हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु जो गुलामों में सबसे पहले ईमान लाए,  हजरत ज़ैद वाहिद सहाबी हैं जिनका क़ुरआने करीम में नाम लेकर जि़क्र किया गया है।

★_मर्दों में सबसे पहले सैयदना अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ईमान लाए,  आप नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पहले ही दोस्त थे, हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अक्सर उनके घर आते और उनसे बातें किया करते थे। एक दिन हजरत हकीम बिन हुज़ाम रजियल्लाहु अन्हु के पास बैठे थे कि उनकी एक बांदी वहां आई और कहने लगी -आज आपकी फूफी खदीजा ने यह दावा किया है कि उनके शौहर अल्लाह ताला की तरफ से भेजे हुए पैगंबर है जैसा कि मूसा अलैहिस्सलाम थे।

★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जूंही हकीम रजियल्लाहु अन्हु की बांदी की यह बात सुनी चुपके से वहां से उठे और नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आ गए और आपसे इस बारे में पूछा, इस पर आप ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को वही आने का पूरा वाक़या सुनाया और बताया कि आपको तबलीग का हुक्म दिया गया है यह सुनते ही अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :-

मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान आप बिल्कुल सच कहते हैं वाक़ई आप अल्लाह के रसूल हैं ।

आपके इस तरह फौरन तस्दीक़ करने की बिना पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आपको सिद्दीक का लक़ब आता फरमाया।

★_इस बारे में दूसरी रिवायत यह है कि सिद्दीक का लक़ब उस वक्त दिया था जब आप मैराज़ के सफर से वापस तशरीफ लाए थे मक्का के मुशरिकीन ने आपको झुठलाया था । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने इस वाक्य को सुनते ही फौरी तौर पर आपकी तसदीक़ की थी और आपने उन्हें सिद्दीक का लक़ब अता फरमाया था ।

गर्ज़ अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आपकी नबूवत की तस्दीक़ फौरी तौर पर कर दी थी।


★__ गर्ज़ इस्लाम में यह पहला लक़ब है जो किसी को मिला , कुरेश में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का मर्तबा बहुत बुलंद था आप बहुत खुश अखलाक थे कुरेश के सरदारों में से एक थे। शरीफ सखी और दौलतमंद थे ,रुपया पैसा बहुत फराख दिली से खर्च करते थे । इनकी क़ौम के लोग इन्हें बहुत चाहते थे । लोग इनकी मजलिस में बैठना पसंद करते थे। अपने जमाने में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु  ख्वाब की ताबीर बताने में बहुत माहिर और मशहूर थे । चुनांचे अल्लामा इब्ने शिरीन रहमतुल्लाह कहते हैं:-

"_ नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु इस उम्मत में सबसे बेहतरीन ताबीर बताने वाले आलिम है _,"

★__ अल्लामा इब्ने शिरीन रहमतुल्लाह ख्वाबों की ताबीर बताने में बहुत माहिर थे और इस सिलसिले में उनकी किताबें मौजूद हैं इन किताबों में ख्वाबों की हैरतअंगेज ताबीरे दर्ज हैं उनकी बताई हुई ताबीरे बिल्कुल दुरुस्त साबित होती रही । मतलब यह है कि इस मैदान के माहिर इस बारे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बाद सबसे बेहतर ताबीर बताने वाले फरमा रहे हैं।

★_ अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु नसब नामा बयान करने में भी बहुत माहिर थे बल्कि कहा जाता है इस इल्म के सबसे बड़े आलिम थे हजरत जुबेर बिन मुत'अम भी इस इल्म के माहिर थे । वह फरमाते हैं :-

"_मैंने नसब नामों का फन और इल्म खासतौर पर कुरेश के नसब नामों का इल्म हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से ही हासिल किया है इसलिए कि वह कुरेश के नसब नामों के सबसे बड़े आलिम थे।"

★__क़ुरेश के लोगों को कोई मुश्किल पेश आती तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से राब्ता करते थे । अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु  के बारे में नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाया करते थे:-

"_ मैंने जिसे भी इस्लाम की दावत दी उसने कुछ ना कुछ सोच विचार और किसी क़दर वक़फा  के बाद इस्लाम कुबूल किया सिवाय अबू बकर के वह बगैर हिचकिचाहट के फौरन मुसलमान हो गए , अबू बकर सबसे बेहतर राय देने वाले हैं मेरे पास जिब्राइल अलैहिस्सलाम आए और उन्होंने कहा कि अल्लाह ताला आपको हुक्म देता है अपने मामलात में अबू बकर से मशवरा किया करें_"

★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु वज़ीर के दर्जे में थे ।आप हर मामले में उनसे मशवरा लिया करते थे। एक हदीस में आता है:- 

नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम फरमाते हैं -

"_अल्लाह ताला ने मेरी मदद के लिए चार वज़ीर मुकर्रर फरमाए हैं इनमें से दो आसमान वालों में से हैं यानी कि जिब्राइल और मिका़ईल (अलेहिमुस्सलाम ) और दो जमीन वालों में से एक अबू बकर और दूसरे उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुम)_,"

★__ इस्लाम लाने से पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने एक ख्वाब देखा था , ख्वाब में आपने देखा चांद मक्का में उतर आया है और उसका एक एक हिस्सा मक्का के हर घर में दाखिल हो गया है और फिर सारा का सारा अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु की गोद में आ गया । आपने यह ख्वाब एक ईसाई आलिम को सुनाया उसने इस ख्वाब की ताबीर बयान की कि तुम अपने पैगंबर की पैरवी करोगे जिसका दुनिया इंतजार कर रही है और जिसके ज़हूर का वक़्त करीब आ गया है और यह पेरूकारों में से सबसे ज्यादा खुशकिस्मत इंसान होंगे।

★_एक रिवायत के मुताबिक आलिम ने कहा था- अगर तुम अपना ख्वाब बयान करने में सच्चे हो तो बहुत जल्द तुम्हारे गांव में से एक नबी ज़ाहिर होंगे तुम उस नबी की जिंदगी में उसके वज़ीर बनोगे और उनकी वफात के बाद उनके खलीफा होंगे।

★_कुछ अरसे बाद अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को यमन जाने का इत्तेफाक हुआ था। यमन में एक बूढ़े आदमी के घर ठहरे उसने आसमानी किताबें पढ़ रखी थी। अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को देखकर उसने कहा:- मेरा ख्याल है तुम हरम के रहने वाले हो और मेरा ख्याल है तुम कुरैश हो और तैयमी खानदान से हो _,"

अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब में फरमाया:- हां ! तुमने बिल्कुल ठीक करना ।

अब उसने कहा :-मैं तुमसे एक बात और कहता हूं ...तुम ज़रा अपने पेट पर से कपड़ा हटा का दिखाओ ।

हजरत अबू बकर सिद्दीक उसकी बात सुनकर हैरान हुए और बोले :- ऐसा मैं उस वक्त तक नहीं करूंगा जब तक कि तुम इसकी वजह नहीं बता दोगे।

इस पर उसने कहा :-मैं अपने मज़बूत इल्म की बुनियाद पर कहता हूं कि हरम के इलाक़े में एक नबी का ज़हूर होने वाला है उनकी मदद करने वाला एक नौजवान होगा और एक पुख्ता उमर वाला होगा। जहां तक नौजवान का ताल्लुक़ है वो मुश्किलात में कूद जाने वाला होगा , जहां तक पुख्ता उम्र के आदमी का ताल्लुक है वह सफेद रंग का कमजोर जिस्म वाला होगा, उसके पेट पर एक बालदार निशान होगा ,हरम का रहने वाला तैयमी खानदान का होगा और अब यह ज़रूरी नहीं कि तुम मुझे अपना पेट दिखाओ क्योंकि बाक़ी सब अलामतें तुम में मौजूद है ।

★_उसकी इस बात पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अपने पेट पर से कपड़ा हटाया ,वहां उनकी नाफ़ के ऊपर स्याह और सफेद बाल वाला निशान मौजूद था ,तब वह पुकार उठा :- परवरदिगार ए काबा की कसम ! तुम वही हो।

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★_ हज़रत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की दावत_,"*

★__ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- जब मैं यमन में अपनी खरीदारी और तिजारती  काम कर चुका तो रुखसत होने के वक्त उसके पास आया , उसने मुझसे कहा :- मेरी तरफ से चंद शेर सुन लो जो मैंने उस नबी की शान में कहे हैं ।

इस पर मैंने कहा- अच्छी बात है , सुनाओ ।

तब उसने मुझे वो शेर सुनाएं। उसके बाद जब मैं मक्का मुअज्ज़मा पहुंचा तो नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपनी नबूवत का ऐलान कर चुके थे । फौरन ही मेरे पास कुरेश के बड़े-बड़े सरदार आए उनमें ज्यादा अहम उक़्बा बिन अबी मुईत, शिबा, अबू जहल और अबुल बखतारी थे। उन लोगों ने मुझसे कहा :- अबू बकर ! अबू तालिब के यतीम ने दावा किया है कि वह नबी हैं अगर आपका इंतजार ना होता तो हम इस वक्त तक सब्र ना करते ,अब जबकि आप आ गए हैं उनसे निबटना आप ही का काम है_,"

★__ और यह बात उन्होंने इसलिए कही थी कि हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के क़रीबी दोस्त थे । अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने अच्छे अंदाज से उन लोगों को टाल दिया और खुद आपके घर पहुंच कर दरवाजे पर दस्तक दी । आप बाहर तशरीफ लाए, मुझे देखकर आपने इरशाद फरमाया - ए अबू बकर! मैं तुम्हारी और तमाम इंसानों की तरफ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूं , इसलिए अल्लाह ताला पर ईमान ले आओ _,"

आपकी बात सुनकर मैंने कहा:- आपके पास इस बात का सबूत है?

आपने मेरी बात सुनकर इरशाद फरमाया :- उस बूढ़े के वह शेर जो उसने आपको सुनाए थे।

यह सुनकर मैं हैरान रह गया और बोला :- मेरे दोस्त ! आपको उनके बारे में किसने बताया ?

आपने इरशाद फरमाया :-उस अज़ीम फरिश्ते ने जो मुझसे पहले भी तमाम नबियों के पास आता रहा है _,"

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- अपना हाथ लाइए , मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि आप अल्लाह के रसूल है _,"

★_आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मेरे ईमान लाने पर बहुत खुश हुए ,मुझे सीने से लगाया। फिर कलमा पढ़कर मैं आपके पास से वापस आ गया।

मुसलमान होने के बाद हज़रत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जो सबसे पहला काम किया वह था इस्लाम की तबलीग । उन्होंने अपने जानने वालों को इस्लाम का पैगाम दिया उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की तरफ बुलाया चुनांचे उनकी तबलीग के नतीजे में हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गये । हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के मुसलमान होने की खबर उनके चाचा हमक को हुई तो उसने उन्हें पकड़ लिया और कहा तू अपने बाप दादा के दीन  को छोड़कर मोहम्मद का दीन कुबूल करता है, अल्लाह की कसम मैं तुझे उस वक्त तक नहीं छोडूंगा जब तक कि तू इस दीन को नहीं छोड़ेगा ।

उसकी बात सुनकर हजरत उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- अल्लाह की कसम मैं इस दीन को कभी नहीं छोडूंगा ।

उनके चाचा ने जब उनकी पुख्तगी और साबित क़दमी देखी तो उन्हें धुंवें में खड़ा करके तकलीफ पहुंचाई , हज़रत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु साबित क़दम रहे। उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की फजी़लत में एक हदीस में आया है ,नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया :-

"_जन्नत में हर नबी का एक रफीक़ यानी साथी होता है और मेरे साथी वहां उस्मान बिन अफ्फान होंगे _,"

[

★__ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने  इस्लाम की तबलीग ज़ारी रखी, आपकी कोशिश से हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के बाद हजरत जु़बेर बिन आवाम रजियल्लाहु अन्हु भी मुसलमान हो गए उस वक्त उनकी उम्र 8 साल थी। इसी तरह हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की कोशिश से मुसलमान हुए , जाहिलियत के ज़माने में इनका नाम अब्दुल अल-का'बा था, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आपका नाम अब्दुर्रहमान रखा,  यह अब्दूर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि उमैया इब्ने खल्फ मेरा दोस्त था एक रोज़ उसने मुझसे कहा- तुमने उस नाम को छोड़ दिया जो तुम्हारे बाप ने रखा था ।

जवाब में मैंने कहा& हां छोड़ दिया ।

यह सुनकर वह बोला मैं रहमान को नहीं जानता इसलिए मैं तुम्हारा नाम अब्द इलाला रखता हूं ।चुनांचे मुशरिक उस रोज़ से मुझे अब्द इलाला कहकर पुकारने लगे।

★_ हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु अपने इस्लाम लाने का वाक़या इस तरह बयान करते हैं :-  मैं अक्सर यमन जाया करता था ,जब भी वहां जाता असकान बिन अवाकिफ हमीरी के मकान पर ठहरा करता था और जब भी उसके यहां जाता वह मुझसे पूछा करता था -क्या वह शख्स तुम लोगों ने ज़ाहिर हो गया है जिसकी शोहरत और चर्चे हैं ,क्या तुम्हारे दीन के मामले में किसी ने मुखालफत का ऐलान किया है ? मैं हमेशा यही कहा करता था कि नहीं , ऐसा कोई शख्स जा़हिर नहीं हुआ ।

यहां तक कि वह साल आ गया जिसमें नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का ज़हूर हुआ , मैं उस साल यमन गया तो उसी के यहां ठहरा, उसने यही सवाल पूछा ,तब मैंने उसे बताया -हां उनका ज़हूर हो गया है उनकी मुखालफत भी हो रही है।

★_हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ के बारे में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- तुम ज़मीन वालों में भी अमानत दार हो और आसमान वालों में भी ।"

★_हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत साद बिन अबी वक़ास रजियल्लाहु अन्हु को भी इस्लाम की दावत दी, उन्होंने कोई हिचकिचाहट ज़ाहिर ना की फोरन हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास चले आए, आपसे आपके पैगाम के बारे में पूछा, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बताया तो यह उसी वक्त मुसलमान हो गए, उस वक्त उनकी उम्र 19 साल थी ।

यह बनी ज़ोहरा के खानदान से थे,  आपकी वाल्दा माजिदा आमना भी उस खानदान से थी इसलिए हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हु  हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम के मामू कहलाते थे । आपने हजरत साद बिन वक़ास रजियल्लाहु अन्हु के लिए एक बार फरमाया :-

"_यह मेरे मामू हैं , हे कोई जिसके ऐसे मामू हो ! _,"

★__ हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहु अन्हु जब इस्लाम लाएं और इनकी वाल्दा को इनके मुसलमान होने का पता चला तो यह बात उन्हें बहुत नागवार गुज़री । इधर यह अपनी वाल्दा के बहुत फरमाबरदार थे। वालदा ने इनसे कहा :-  क्या तुम यह नहीं समझते कि अल्लाह ताला ने तुम्हें अपने बड़ों की खातिरदारी और मां-बाप के साथ अच्छा मामला करने का हुक्म दिया है ।

हजरत साद रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया :-  हां बिल्कुल ऐसा ही है ।

यह जवाब सुनकर वाल्दा ने कहा:- बस तो खुदा की कसम मैं उस वक्त तक खाना नहीं खाऊंगी जब तक मुहम्मद के लाए हुए पैगाम को कुफ्र नहीं कहोगे और असाफ और नायला बुतों को जाकर छुओगे नहीं _,"

★_उस वक्त के मुशरिकीन का तरीक़ा यह था कि वह इन बुतों के खुले मुंह में खाना और शराब डाला करते थे । अब वालदा ने खाना पीना छोड़ दिया , हजरत साद रजियल्लाहु अन्हु ने अपनी वाल्दा से कहा :- खुदा की कसम मां तुम्हें नहीं मालूम अगर तुम्हारे पास 1000 जिंदगियां होती और वह सब एक-एक करके इस वजह से खत्म होती तब भी मैं नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के दीन को हरगिज़ ना छोड़ता, इसलिए अब यह तुम्हारी मर्जी है खाओ या ना खाओ_,"

★_जब मां ने इनकी यह मजबूती देखी तो खाना शुरु कर दिया , ताहम उसने अब एक और काम किया दरवाज़े पर आ गई और चीख चीख कर कहने लगी :- क्या मुझे ऐसे मददगार नहीं मिल सकते जो साद के मामले में मेरी मदद करें ताकि मैं इसे घर में क़ैद कर दूं और क़ैद की हालत में यह मर जाए या अपने नए दीन को छोड़ दें ।

हजरत साद फरमाते हैं मैंने यह अल्फाज़ सुने तो मां से कहा- मैं तुम्हारे घर का रुख से भी नहीं करूंगा_"

★_इसके बाद हजरत साद रजियल्लाहु अन्हु कुछ दिन तक घर ना गए , वालदा तंग आ गई और उसने पैगाम भेजा- तुम घर आ जाओ दूसरों के मेहमान बन कर हमे शर्मिंदा ना करो।

चुनांचे यह घर चले आए अब घर वालों ने प्यार व मोहब्बत से समझाना शुरू किया,  वह इनके भाई आमिर की मिसाल देकर कहती :- देखो आमिर कितना अच्छा है उसने अपने बाप दादा का दीन नहीं छोड़ा ।

लेकिन फिर इनके भाई आमिर भी मुसलमान हो गए अब तो वालदा के गैज़ व गज़ब की इंतेहा ना रही ।

★__ मां ने दोनों भाइयों को बहुत तकालीफ पहुंचाई , आखिर आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तंग आकर हबशा को हिजरत कर गए,  आमिर रज़ियल्लाहु अन्हू के हबशा हिजरत कर जाने से पहले एक रोज़ हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हु  घर आए तो देखा कि मां और आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु के चारों तरफ बहुत सारे लोग जमा हैं ।मैंने पूछा- लोग क्यों जमा है ?

लोगों ने बताया -यह देखो तुम्हारी मां ने तुम्हारे भाई को पकड़ रखा है और अल्लाह से अहद कर रही है कि जब तक आमिर बे-दीनी नहीं छोड़ेगा उस वक्त तक यह ना तो खजूर के साए में बैठेगी और खाना खाएगी और ना पानी पिएगी _,

हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हु ने यह सुनकर कहा:-  अल्लाह की क़सम !  तुम उस वक्त तक खजूर के साए में ना बैठो और उस वक्त तक कुछ ना खाओ पियो जब तक कि तुम जहन्नम का ईंधन ना बन जाओ ।"

★__ गर्ज़ उन्होने मां की कोई परवाह नहीं की और दीन पर डटे रहे । इसी तरह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की कोशिशों से हजरत तल्हा तयमी रज़ियल्लाहु अन्हु भी इस्लाम ले आए । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजि अल्लाह इन्हें हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में लाए , यह आपके हाथ पर मुसलमान हुए । इसके बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और हजरत तल्हा रजियल्लाहु अन्हु ने अपने इस्लाम लाने का खुल कर ऐलान कर दिया।  उनका एलान सुन कर नोफिल इब्ने उदविया ने इन्हें पकड़ लिया क्षय, उस शख्स को कुरेश का शेर कहा जाता था । उसने दोनों को एक ही रस्सी से बांध दिया, उसकी इस हरकत पर उनके कबीले बनू तमीम ने भी इन्हें ना बचाया । अब चुंकी नोफिल दोनों को एक ही रस्सी से बांधा था और दोनों के जिस्म आपस में बिल्कुल मिले हुए थे इसलिए इन्हें क़रीनीन कहा जाने लगा यानी मिले हुए ।

नोफिल बिन उदविया के जुल्म की वजह से नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाया करते थे - अल्लाह इब्ने उदविया के शर से हमें बचा _,"

★_हजरत तल्हा रजियल्लाहु अन्हु अपने इस्लाम कुबूल कर लेने का सबब इस तरह बयान करते हैं :-

"_  मैं एक मर्तबा बसरा के बाज़ार में गया , मैंने वहां एक राहिब को देखा , वह अपनी खानकाह में खड़ा था और लोगों से कह रहा था :- इस मर्तबा हज  से आने वालों से पूछो क्या इनमें कोई हरम का बाशिंदा भी है ।

मैंने आगे बढ़ कर कहा- मैं हूं हरम का रहने वाला ।

मेरा जुमला सुनकर उसने कहा- क्या अहमद का ज़हूर हो गया है?

मैंने पूछा -अहमद कौन?

तब उस राहिब ने कहा- अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब... यह उसका महीना है, वह इस महीने में ज़ाहिर होगा ,वह आखरी नबी है , उसके ज़ाहिर होने की जगह हरम है और उसकी हिजरत की जगह वो इलाका़ है जहां बागात हैं सब्ज़ा जा़र है इसलिए तुम पर ज़रूरी है कि तुम उस नबी की तरफ बढ़ने में पहल करो _,"

उस राहिब की बात मेरे दिल में नक्श कर गई। मैं तेजी के साथ वहां से वापस रवाना हुआ और मक्का पहुंचा ।

★_यहां पहुंचकर मैंने लोगों से पूछा :- क्या कोई नया वाक़्या पेश आया है ?

लोगों ने बताया -हां मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह अमीन ने लोगों को अल्लाह की तरफ दावत देना शुरू की है,  अबू बकर ने उनकी पैरवी क़ुबूल कर ली है _,"

मैं यह सुनते ही घर से निकला और अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पास पहुंच गया। मैंने उन्हें राहिब की सारी बात सुना दी। सारी बात सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खिदमत में गये और आपको यह पूरा वाक़या सुनाया । आप सुनकर बहुत खुश हुए, उसी वक्त में भी मुसलमान हो गया ।

यह हजरत तल्हा रजियल्लाहु अन्हु अशरा मुबश्शरा में से हैं यानी जिन सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दुनिया ही में जन्नत की बशारत दी, उनमें से एक हैं।

 

★__ इसी तरह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की कोशिश से जिन सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने कलमा पढ़ा उनमें से पांच अशरा मुबश्शरा में शामिल हैं ।वह यह है -हजरत जु़बेर, हजरत उस्मान, हजरत तल्हा, हजरत अब्दुर्रहमान, हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हुम , बाज़ ने इनमें छठे सहाबी का भी इज़ाफ़ा किया है ,वह है -हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु।

★_इन हजरत में हजरत अबू बकर, हजरत उस्मान, हजरत अब्दुर्रहमान और हजरत तल्हा रजियल्लाहु अन्हुम कपड़े के ताजिर थे । हजरत जु़बेर रजियल्लाहु अन्हु जानवर ज़िबह करते थे और हजरत साद रजियल्लाहु अन्हु तीर बनाने का काम करते थे।

★__ इनके बाद हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए, वह अपने इस्लाम लाने का वाकि़या यूं बयान करते हैं :- 

"_ मैं एक दिन उक़बा बिन अबी मुईत के खानदान की बकरियां चरा रहा था उस वक्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम वहां आ गए अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु भी आपके साथ थे । आपने पूछा- क्या तुम्हारे पास दूध है ?

मैंने कहा -जी हां , लेकिन मैं तो अमीन हूं ( यानी यह दूध तो अमानत है)

आपने फरमाया - क्या तुम्हारे पास कोई ऐसी बकरी है जिसने अभी कोई बच्चा ना दिया हो? 

मैंने कहा -जी हां , एक ऐसी बकरी है। 

मैं उस बकरे को आपके क़रीब ले आया उसके अभी थन पूरी तरह नहीं निकले थे । आपने उसके थन की जगह पर हाथ फैरा, उसी वक्त उस बकरी के थन दूध से भर गए _,"

"_ यह वाक्य दूसरी रिवायत में यूं बयान हुआ है कि उस बकरी के थन सूख चुके थे आपने उन पर हाथ फेरा तो वह दूध से भर गए।

★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहू अन्हू यह देखकर हैरान रह गए । वह आपको एक साफ पत्थर पर ले आए । वहां बैठकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बकरी का दूध दोहा । आपने दूध अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को पिलाया, फिर मुझे पिलाया और आखिर में आपने खुद पिया । फिर आपने बकरी के थन से फरमाया - सिमट जा _",

चुनांचे थन फौरन ही फिर वैसे हो गए जैसे पहले थे।

★__ हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहू अन्हू फरमाते हैं -जब मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह मोज्जा़ देखा तो आपसे अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे इसकी हकीकत बताएं ।

आपने मेरी बात सुनकर मेरे सर पर हाथ फेरा और फरमाया :- अल्लाह तुम पर रहम फरमाए तुम तो जानकार हो ।

★_यह अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद बाप की बजाय मां की तरफ से ज्यादा मशहूर थे , इनकी मां का नाम उम्मेअब्द था । इनका क़द बहुत छोटा था, निहायत दुबले पतले थे । एक मर्तबा सहाबा इन पर हंसने लगे तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ अब्दुल्लाह अपने मर्तबे के लिहाज़ से तराजू में सबसे भारी हैं।"

इन्हीं के बारे में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था :- 

"_अपनी उम्मत के लिए मैं भी उसी चीज़ पर राज़ी हो गया जिस पर इब्ने उम्मे अब्द यानी अब्दुल्लाह इब्ने मस'ऊद राज़ी हो गए और जिस चीज को अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद ने उम्मत के लिए नागवार समझा मैंने भी उसको नागवार समझा _,"

★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इनकी बहुत इज्ज़त करते थे , इन्हें अपने क़रीब बिठाया करते थे , इनसे किसी को छुपाया नहीं करते थे। इसीलिए यह आपके घर में आते जाते थे। यह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के आगे आगे या साथ-साथ चला करते थे । आप जब गुस्ल फरमाते तो यही पर्दे के लिए चादर तान कर खड़े होते थे,  आप जब सो जाते तो यही आपको वक्त पर जगाया करते थे। इसी तरह जब आप कहीं  जाने के लिए खड़े होते थे तो हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहू अन्हू आपको जूते पहनाते थे, फिर जब कहीं पहुंच कर बैठ जाते तो यह आपके जूते उठाकर अपने हाथ में ले लिया करते थे। इनकी इन्हीं बातों की वजह से बाज़ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम मैं मशहूर था कि यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घराने वालों में से हैं। 

इन्हें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जन्नत की बशारत दी थी।

★_हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहु अन्हु फरमाते थे :-  दुनिया तमाम की तमाम गमों की पूंजी है इसमें अगर कोई खुशी है तो वह सिर्फ वक्ति फायदे के तौर पर है।

★__ हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहू अन्हू के बाद हजरत अबुज़र गफारी रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए, हजरत अबूज़र गफारी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने इस्लाम लाने का वाक़या बयान करते हुए फरमाते हैं :- आन हज़रत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर वही आने से 3 साल पहले से मैं अल्लाह ताला के लिए नमाज़ पढ़ा करता था और जिस तरफ अल्लाह ताला मेरा रूख कर देते मैं उसी तरफ चल पडता था, उसी ज़माने में हमें मालूम हुआ कि मक्का में एक शख्स जाहिर हुआ है उसका दावा है कि वह नबी है। यह सुनकर मैंने अपने भाई अनीस से कहा- तुम उस शख्स के पास जाओ उससे बातचीत करो और आकर मुझे उस बातचीत के बारे में बताओ।

★_चुनांचे अनीस ने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मुलाकात की । जब वह वापस आए तो मैंने उनसे आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के बारे में पूछा उन्होंने बताया :-  अल्लाह की कसम मैं एक ऐसे शख्स के पास आ रहा हूं जो अच्छाइयों का हुक्म देता है और बुराइयों से रोकता है ।

और एक रिवायत में है कि मैंने तुम्हें उसी शख्स के दीन पर पाया है , उसका दावा है कि उसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है मैंने उस शख्स को देखा है कि वह नेकी और बुलंद अखलाक़ की तालीम देता है _,"

मैंने पूछा-  लोग उसके बारे में क्या कहते हैं ? 

अनीस ने बताया - लोग उसके बारे में कहते हैं कि यह काहिन और जादूगर है ,मगर अल्लाह की क़सम वह शख्स सच्चा है और वह लोग झूठे हैं ।

यह तमाम बातें सुनकर मैंने कहा- बस काफी है मैं खुद जाकर उनसे मिलता हूं _,"

अनीस ने फौरन कहा- ज़रूर जाकर मिलो मगर मक्का वालों से बच कर रहना_,"

★_चुनांचे मैंने अपने मोजे़ पहने लाठी हाथ में ली और रवाना हो गया । जब मैं मक्का पहुंचा तो मैंने लोगों के सामने ऐसा जाहिर किया जैसे मैं उस शख्स को जानता ही नहीं और उसके बारे में पूछना भी पसंद नहीं करता । मैं एक माह तक मस्जिद ए हराम में ठहरा रहा। मेरे पास सिवाय जमजम के खाने को कुछ नहीं था इसके बावजूद में जमजम की बरकत से मोटा हो गया,  मेरे पेट की सिलवटें खत्म हो गई ,मुझे भूख का बिल्कुल एहसास नहीं होता था।  एक रोज़ जब हरम में कोई तवाफ करने वाला नहीं था अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम एक साथी (अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ) के साथ वहां आए और बैतुल्लाह का तवाफ करने लगे । इसके बाद आपने और आपके साथी ने नमाज़ पढ़ी । जब आप नमाज से फारिग हो गए तब मैं आपके नज़दीक चला गया और बोला :-

"_  अस्सलामु अलैकुम या रसूलल्लाह , मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और यह कि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।

 ★__ मैंने महसूस किया हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चेहरे पर खुशी के आसार नमूदार हो गए फिर आपने मुझसे पूछा -तुम कौन हो?

 मैंने जवाब में कहा- जी मैं गफार कबीले का हूं ।  

आपने पूछा- यहां कब से आए हो? 

मैंने अर्ज़ किया -30 दिन और 30 रातों से यहां हूं। 

आपने पूछा- तुम्हें खाना कौन खिलाता है ?

मैंने अर्ज़ किया -मेरे पास सिवाय जमजम के कोई खाना नहीं इसको पी पीकर मोटा हो गया हूं यहां तक कि मेरे पेट की सिलवटें तक खत्म हो गई है और मुझे भूख का बिल्कुल एहसास नहीं होता ।

आपने फरमाया- मुबारक हो यह जमजम बेहतरीन खाना और हर बीमारी की दवा है।

★_ जमजम के बारे में अहादीस में आता है, अगर तुम आबे जमजम को इस नियत से पियो कि अल्लाह ताला तुम्हें इसके जरिए बीमारियों से शिफा अता फरमाए, तो अल्लाह ताला शिफा अता फरमाता है और अगर इस नियत से पिया जाए कि इसके जरिए पेट भर जाए और भूख ना रहे तो आदमी शिकमशेर हो जाता है और अगर इस नियत से पिया जाए कि प्यास का असर बाकी ना रहे तो प्यास खत्म हो जाती है ,इसके जरिए अल्लाह ताला ने इस्माइल अलैहिस्सलाम  को सैराब किया था।

एक हदीस में आता है कि जी भर कर जमजम का पानी पीना अपने आप को निफाक़ से दूर करना है। हदीस में है कि हममे और मुनाफिको में यह फर्क है कि वह लोग जमजम से सैराबी हासिल नहीं करते।

★__ हां तो बात हो रही थी अबूजर गफ्फारी  रजियल्लाहु अन्हु की... कहा जाता है कि अबूजर गफारी इस्लाम में पहले आदमी हैं जिन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को इस्लामी सलाम के अल्फ़ाज़ के मुताबिक सलाम किया ,उनसे पहले किसी ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को इन अल्फ़ाज़ में सलाम नहीं किया था।

अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु ने  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से इस बात पर बैत की कि  अल्लाह ताला के मामले में वह किसी मलामत करने वाले की मलामत से नहीं घबराएंगे और यह कि हमेशा हक और सच्ची बात कहेंगे चाहे हक़ सुनने वाले के लिए कितना ही कड़वा क्यों ना हो _,"

★_यह  हजरत अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वफात के बाद मुल्के शाम के इलाके में हिजरत कर गए थे फिर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत में इन्हें शाम से वापस बुला लिया गया और फिर यह रबज़ा के मुकाम पर आकर रहने लगे थे , रकबज़ा के मुकाम पर ही इनकी वफात हुई थी । 

★__इनके ( अबुज़र गफारी रज़ियल्लाहु अन्हु के ) ईमान लाने के बारे में एक रिवायत यह हैं कि जब यह मक्का मुअज्ज़मा आए तो इनकी मुलाक़ात हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से हुई थी और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इनको आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मिलाया था।

★__ अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं- बैत करने के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इन्हें साथ ले गए एक जगह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने एक दरवाजा खोला, हम अंदर दाखिल हुए, अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हमें अंगूर पेश किए इस तरह यह पहला खाना था जब मैंने मक्का में आने के बाद खाया_,"

इसके बाद नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया - ऐ अबूजर इस मामले को अभी छुपाए रखना ,अब तो तुम अपनी क़ौम में वापस जाओ और उन्हें बताओ ताकि वह लोग मेरे पास आ सके ,फिर जब तुम्हें मालूम हो कि हमने खुद अपने मामले का खुल्लम खुल्ला ऐलान कर दिया है तो उस वक्त तुम हमारे पास आ जाना।

★__ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बात सुनकर हजरत अबूजर गफारी रजियल्लाहु अन्हु बोले - क़सम है उस जात की जिसने आपको सच्चाई देकर भेजा मैं उन लोगों के दरमियान खड़े होकर पुकार पुकार कर ऐलान करूंगा। 

हजरत अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं-  मैं ईमान लाने वाले देहाती लोगों में से पांचवा आदमी था _,"

गर्ज़ जिस वक्त क़ुरेश के लोग हरम में जमा हुए इन्होंने बुलंद आवाज में चिल्लाकर कहा -मैं गवाही देता हूं सिवाय अल्लाह ताला के कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह ताला के रसूल हैं।


★__ बुलंद आवाज में यह ऐलान सुनकर क़ुरेशियों ने कहा -इस बद दीन को पकड़ लो _,

उन्होंने हजरत अबूजर गफा़री रज़ियल्लाहु अन्हु को पकड़ लिया और बेइंतेहा मारा। एक रिवायत में अल्फाज़ यह हैं कि वह लोग इन पर चढ़ दौड़े पूरी कुव्वत से इन्हे मारने लगे, यहां तक कि यह बेहोश होकर गिर पड़े । उस वक्त हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु दरमियान में आ गए, वो इन पर झुक गए और क़ुरेशियों से कहा - तुम्हारा बुरा हो ! क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यह शख्स क़बीला गफार से है इनका इलाका़ तुम्हारी तिजारत का रास्ता है।


★_ उनके कहने का मतलब यह था कि कबीला गफार के लोग तुम्हारा रास्ता बंद कर देंगे। इस पर उन लोगों ने इन्हें छोड़ दिया।

अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं -इसके बाद मै जमजम के कुएं के पास आया ,अपने बदन से खून धोया । अगले दिन मैंने फ़िर ऐलान किया- 

"_मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल है।


★__ उन्होंने फिर मुझे मारा उस रोज़ भी हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ही ने मुझे उन से छुड़ाया । फिर मैं वहां से वापस हुआ और अपने भाई अनीस के पास आया।   

        

*📕_ सीरतुन नबी ﷺ _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी) ,*

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★__ अबूजर गफा़री रज़ियल्लाहु अन्हु की अपनी क़ौम को दावत_,*

★__ अनीस ने मुझसे कहा -तुम क्या कर आए हो ?

मैंने जवाब दिया- मुसलमान हो गया हूं और मैंने मुहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की तस्दीक कर दी है ।

इस पर अनीस ने कहा- मैं भी बुतों से बेजार हूं और इस्लाम कुबूल कर चुका हूं ।

इसके बाद हम दोनों अपनी वाल्दा के पास आए ,तो वह बोली- मुझे पिछले दीन से कोई दिलचस्पी नहीं रही, मैं भी इस्लाम कुबूल कर चुकी हूं, अल्लाह के रसूल की तस्दीक कर चुकी हूं ।

★_उसके बाद हम अपनी क़ौम ग़िफार के पास आए ,उनसे बात की ,उनमें से आधे तो उसी वक्त मुसलमान हो गए । बाक़ी लोगों ने कहा -जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाएंगे हम उस वक्त मुसलमान होंगे । चुनांचे जब रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेहीवसल्लम मदीना मुनावारा तशरीफ लाए क़बीला ग़िफार के बाक़ी लोग भी मुसलमान हो गए।

इन हजरात में जो यह कहा था कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तशरीफ लाएंगे हम उस वक्त मुसलमान होंगे तो उनके यह कहने की वजह यह थी कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मक्का में हजरत अबूजर गफा़री रज़ियल्लाहु अन्हु से इरशाद फरमाया था :-

"_मैं नखलिस्तान यानी खजूरों के बाग की सरज़मीन में जाऊंगा, जो यसरिब के सिवा कोई नहीं है ,तो क्या तुम अपनी क़ौम को यह खबर पहुंचा दोगे ? मुमकिन है इस तरह तुम्हारे ज़रिए अल्लाह ताला उन लोगों को फायदा पहुंचा दें और तुम्हें उनकी वजह से अज्र मिले।

★__ इसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास क़बीला असलम के लोग आए उन्होंने आपसे अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! हम भी उसी बात पर मुसलमान होते हैं जिस पर हमारे भाई क़बीला ग़िफार के लोग मुसलमान हुए हैं ।

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह सुनकर फरमाया :- अल्लाह ताला ग़िफार के लोगों की मग्फिरत फरमाए और क़बीला असलम को अल्लाह सलामत रखे।

★_यह हजरत अबूजर ग़फारी रज़ियल्लाहु अन्हु एक मर्तबा हज के लिए मक्का गए , तवाफ के दौरान काबे के पास ठहर गए, लोग इन के चारों तरफ जमा हो गए। उस वक्त उन्होंने लोगों से कहा :-भला बताओ तो ! तुममे से कोई सफर में जाने का इरादा करता है तो क्या वह सफर का सामान साथ नहीं लेता ?

लोगों ने कहा- बेशक साथ लेता है।

तब आपने फरमाया- तो फिर याद रखो क़यामत का सफर दुनिया के हर सफर से कहीं ज्यादा लंबा है और जिसका तुम यहां इरादा करते हो ,इसीलिए अपने साथ उस सफर का वो सामान ले लो जो तुम्हें फायदा पहुंचाए_," 

लोगों ने पूछा- हमें क्या चीज़ फायदा पहुंचाएगी ?

हजरत अबूजर बोले - बुलंद मक़सद के लिए हज करो, क़यामत के दिन का ख्याल करके ऐसे दिनों में रोजे रखो जो सख्त गर्मी के दिन होंगे और क़ब्र की वहशत और अंधेरे का ख्याल करते हुए रात की तारीकी में उठ कर नमाज़े पढ़ो।

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★_ हज़रत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु का ख्वाब _,"*

★_ हजरत अबूजर गफारी रजियल्लाहु अन्हु के बाद हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए, कहा जाता है देहात के लोगों में से मुसलमान होने वालों में यह तीसरे या चौथे आदमी थे । एक क़ौल यह है कि 5 वे थे , यह अपने भाइयों में सबसे पहले मुसलमान हुए।

★_ इनके इस्लाम लाने का वाकि़या यूं है :- इन्होंने ख्वाब में जहन्नम को देखा ,उसकी आग बहुत खौफनाक अंदाज में भड़क रही थी ,यह खुद जहन्नम के किनारे खड़े थे । ख्वाब में इन्होंने देखा कि उनका बाप इन्हें जहन्नम में धकेलना चाहता है मगर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इनका दामन पकड़ कर इन्हें दोजख में गिरने से रोक रहे हैं। उसी वक्त घबराहट के आलम में इनकी आंख खुल गई, इन्होंने फौरन कहा:-  मैं अल्लाह की क़सम खाकर कहता हूं यह ख्वाब सच्चा है।

★__ साथ ही इन्हें यकीन हो गया कि जहन्नम से इन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ही बचा सकते हैं । फौरन अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पास आए उन्हें अपना ख्वाब सुनाया। अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:-  इस ख्वाब में तुम्हारी भलाई और खैर पोशीदा है ,अल्लाह के रसूल मौजूद है उनकी पेरवी करो ।

★__ चुंनाचे हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन ही नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, इन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा :- ए मोहम्मद ! आप किस बात की दावत देते हैं ?

आपने इरशाद फरमाया :- मैं इस बात की दावत देता हूं कि अल्लाह एक है उसका कोई शरीक़ नहीं, कोई उसके बराबर का नहीं और यह कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और रसूल है और तुम जो यह पत्थरों की इबादत करते हो उसको छोड़ दो यह पत्थर ना सुनते हैं ना देखते हैं ना नुकसान पहुंचा सकते हैं और ना फायदा पहुंचा सकते हैं ।

यह सुनते ही हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए। 

★_ इनके वालिद का नाम सईद बिन आस था, उसे बेटे के इस्लाम कबूल करने का पता चला तो आग बबूला हो गया । बेटे को कोड़े से मारना शुरू किया यहां तक कि इतने कोड़े मारे कि कोड़ा टूट गया । फिर उसने कहा :- तूने मुहम्मद की पैरवी की हालांकि तू जानता है वह पूरी क़ौम के ख़िलाफ़ जा रहा है वह अपनी क़ौम के मा'बूदों को बुरा कहता है। 

यह सुनकर हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - अल्लाह की क़सम ! वह जो पैगाम लेकर आए हैं मैंने उसको क़ुबूल कर लिया है ।

इस जवाब पर वह और गजब नाक हुआ और बोला- खुदा की क़सम !  मैं तेरा खाना पीना बंद कर दूंगा ।

हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया - अगर आप मेरा खाना पीना बंद कर देंगे तो अल्लाह ताला मुझे रोटी देने वाला है_,"

★_ तंग आ कर सईद ने बेटे को घर से निकाल दिया साथ ही अपने बाक़ी बेटों से कहा- अगर तुममें से किसी ने भी इससे बातचीत की मैं उसका भी यही हश्र करूंगा ।

हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु घर से निकलकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में आ गए। इसके बाद वह आपके साथ ही रहेने लगे । बाप से बिल्कुल बे-ताल्लुक हो गए, यहां तक की जब मुसलमानों ने काफीरो के मजा़लिम से तंग आकर हबशा की तरफ हिजरत की तो यह हिजरत करने वालों में से पहले आदमी थे ।

★_एक मर्तबा इनका बाप बीमार हुआ । उस वक्त उसने कसम खाई -अगर खुदा ने मुझे इस बीमारी से सहत दे दी तो मैं मक्का में कभी मुहम्मद के खुदा की इबादत नहीं होने दूंगा ।

बाप की यह बात हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु तक पहुंची तो उन्होंने कहा - अल्लाह उसे इस मर्ज से कभी निजात ना देना ।

चुनांचे इनका बाप उसी मर्ज में मर गया। खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु पहले आदमी हैं जिन्होंने "_बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम _," लिखी ।

★__ इनके बाद इनके भाई अमरू बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए । इनके  मुसलमान होने का सबब यह हुआ कि इन्होंने ख्वाब में एक नूर देखा... नूर ज़मज़म के पास से निकला और उससे मदीना के बाग तक रोशन हो गए और इतने रोशन हुए कि उनमें मदीने की ताजा खजूरे नजर आने लगी । इन्होंने यह ख्वाब लोगों से बयान किया तो इनसे कहा गया ज़मज़म अब्दुल मुत्तलिब के खानदान का कुआं है और यह नूर भी उन्हीं में से जाहिर होगा । फिर जब इनके भाई खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो जाए तो इन्हें ख्वाब की हकीकत नजर आने लगी चुनांचे यह भी मुसलमान हो गए।

★_इनके अलावा सईद की औलाद में से रयान और हकम भी मुसलमान हुए । हकम का नाम नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अब्दुल्लाह रखा।

★_ इसी तरह इब्तेदाई दिनों में मुसलमान होने वालों में हज़रत सुहेब रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे। इनका बाप ईरान के बादशाह किसरा का गवर्नर था ।एक मर्तबा क़ैसर की फौजों ने इसके इलाके पर हमला किया । उस लड़ाई में सोहेब रज़ियल्लाहु अन्हु गिरफ्तार हो गए यह गुलाम बना लिये गये । उस वक्त यह बच्चे थे चुंनाचे यह गुलामी की हालत में ही रूम में पले बढ़े वहीं जवान हुए फिर अरब के कुछ लोगों ने इन्हें खरीद लिया और फरोख्त करने के लिए मक्का के करीब उका़ज के बाजार में ले आए । इस बाजार में मेला लगता था और मेले में गुलामों की खरीद-फरोख्त होती थी मेले से एक शख्स अब्दुल्लाह ने खरीद लिया।

★_इस तरह यह मक्का में गुलामी की जिंदगी गुजार रहे थे कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का ज़हूर हो गया । इनके दिल में आई कि जाकर बात तो सुनूं... यह सोचकर घर से निकले , रास्ते में इनकी मुलाकात अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई ।उन्होंने इनसे पूछा :- सुहेब कहां जा रहे हो ?

यह फौरन बोले :- मैं मुहम्मद के पास जा रहा हूं ताकि उनकी बात सुनूं और देखू... वह किस चीज की तरफ दावत देते हैं ।

यह सुनकर अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- मैं भी इसी इरादे से घर से निकला हूं ।

यह सुनकर सुहेब रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- तब फिर इकट्ठे ही चलते हैं । 

अब दोनों एक साथ कदम उठाने लगे।,*

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★_ इस्लाम का पहला मरकज़ _,*


★__ हजरत सुहेब और हजरत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, आपने दोनों को अपने पास बिठाया । जब यह बैठ गए तो आपने इनके सामने इस्लाम पेश किया और क़ुरान ए करीम की जो आयात आप पर उस वक्त तक नाजि़ल हो चुकी थी वह पढ़कर सुनाई, इन दोनों ने उसी वक्त इस्लाम क़ुबूल कर लिया । उस रोज़ शाम तक यह दोनों नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास रहे ,शाम को दोनों चुपके से चले आए ।


★_हजरत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु सीधे अपने घर पहुंचे तो इनके मां-बाप ने इनसे पूछा कि दिन भर कहां थे ? इन्होंने फौरन ही बता दिया कि वह मुसलमान हो चुके हैं ,साथ ही इन्होंने आपके सामने भी इस्लाम पेश किया और उस दिन इन्होंने कुराने पाक का जो हिस्सा याद किया था वह इनके सामने तिलावत किया । दोनों को यह कलाम बेहद पसंद आया ,दोनों फौरन ही बेटे के हाथ पर मुसलमान हो गए । इसी बुनियाद पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हजरत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु को अल तैयब अल मुतीब कहा करते थे यानी पाक़बाज़ और पाक करने वाले।


★_ इसी तरह हजरत इमरान रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम लाए तो कुछ अरसे बाद इनके वालिद हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु भी मुसलमान हो गए।  इनके इस्लाम लाने की तफसील यूं हैं :-

"_  एक मर्तबा क़ुरेश के लोग नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मुलाक़ात के लिए आए , इनमें हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु भी थे, क़ुरेश के लोग तो बाहर रह गए हुसैन रजियल्लाहु अन्हु अंदर चले गए। नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इन्हें देख कर फरमाया -इन बुजुर्ग को जगह दो । 

जब वह बैठ गए तब हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने कहा- यह आपके बारे में हमें कैसी बातें मालूम हो रही हैं , आप हमारे मा'बूदों को बुरा कहते हैं ? 

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-ए हुसैन आप कितने मा'बूदों को पूजते हैं ? 

हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया-  हम सात मा'बूदों की इबादत करते हैं ,इनमें छः तो ज़मीन में है, एक आसमान पर ।

इस पर आप ने फरमाया :- और अगर आपको कोई नुकसान पहुंच जाए तो फिर आप किस से मदद मांगते हैं?


★_हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु बोले - इस सूरत में हम उससे दुआ मांगते हैं जो आसमान में है।

यह जवाब सुनकर आप ने फरमाया :-  वह तो तन्हा तुम्हारी दुआएं सुनकर पूरी करता है और तुम उसके साथ दूसरों को भी शरीक़ करते हो। ए हुसैन क्या तुम अपने इस शिर्क से खुश हो ? इस्लाम क़ुबूलबूल करो अल्लाह ताला तुम्हें सलामती देगा ।

हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु यह सुनते ही मुसलमान हो गए । उसी वक्त इनके बेटे हजरत इमरान रज़ियल्लाहु अन्हु बाप की तरफ बढ़े और इनसे लिपट गए।


★_ इसके बाद हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने वापस जाने का इरादा किया तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया -  इन्हें इनके घर तक पहुंचा कर आएं । 

हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु जब दरवाजे से बाहर निकले ,वहां क़ुरेश के लोग मौजूद थे ,इन्हें देखते ही बोले - लो यह भी बे-दीन हो गया ।

इसके बाद वह सब लोग अपने घरों को लौट गए। सहाबा किराम ने हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु को इनके घर पहुंचाया।

: ★__ इसी तरह 3 साल नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खुफिया तौर पर तबलीग करते रहे। इसी दौरान जो शख्स भी मुसलमान होता था वह मक्का की घाटियों में छुपकर नमाजे अदा करता था।


★_फिर 1 दिन ऐसा हुआ कि हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हु कुछ दूसरे सहाबा के साथ मक्का की एक घांटी में थे कि अचानक वहां कुरेश की एक जमात आ गई , उस वक्त सहाबा नमाज पढ़ रहे थे। मुशरिकों को यह देखकर बहुत गुस्सा आया , वह इन पर चढ़ दौड़े ,साथ में बुरा भला भी कह रहे थे। ऐसे में हजरत साद बिन अबी वका़स रजियल्लाहू अन्हु ने उनमें से एक को पकड़ लिया और उसको एक जर्ब लगाई, इससे उसकी खाल फट गई खून बह निकला ।यह पहला फूल है जो इस्लाम के नाम पर बहाया गया।


★_अब कुरैशी दुश्मनी पर उतर आए । इस बिना पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हजरत अरक़म रजियल्लाहु अन्हु के मकान पर तशरीफ ले आएं ताकि दुश्मनों से बचाव रहे ।इस तरह हजरत अरक़म रजियल्लाहु अन्हु का यह मकान इस्लाम का पहला मरकज़ बना । इस मकान को दारे अरक़म कहा जाता है। नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दारे अरक़म में तशरीफ लाने से पहले लोगों की एक जमात मुसलमान हो चुकी थी । अब नमाज दारे अरक़म में अदा होने लगी ।नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को यहीं पर नमाज पढ़ाते, यहीं बैठ कर इबादत करते और मुसलमानों को दीन की तालीम देते । इस तरह 3 साल गुज़र गए, फिर अल्लाह ताला ने आपको एलानिया तबलीग का हुक्म फरमाया ।


★_ एलानिया तबलीग की इब्तदा भी दारे अरक़म से हुई ,पहले आप यहां खुफिया तौर पर दावत देते रहे थे यहां तक कि अल्लाह ताला ने सूरह शू'अरा मे आपको हुक्म फरमाया :- 

"_और आप अपने नज़दीक के अहले खानदान को डराएं _,"

 यह हुक्म मिलते ही आप काफी परेशान हुए यहां तक कि आपकी फूफियों ने खयाल किया कि आप कुछ बीमार हैं । चुनांचे वह आपकी बीमार पुर्सी के लिए आपके पास आईं, तब आपने उनसे फरमाया-  मैं बीमार नहीं हूं बल्कि मुझे अल्लाह ताला ने हुक्म दिया है कि मैं अपने करीबी रिश्तेदारों को आखिरत के अज़ाब से डराऊं , इसलिए मैं चाहता हूं तमाम बनी अब्दुल मुत्तलिब को जमा करूं और उन्हें अल्लाह की तरफ आने की दावत दूं। 

यह सुनकर आपकी फूफियों  ने कहा -ज़रूर जमा करें मगर अबू लहब  को ना बुलाइएगा क्योंकि वह हरगिज आपकी बात नहीं मानेगा।

[22/10, 7:27 am] ★☝🏻★: ★__ अबू लहब का दूसरा नाम अब्द उज्जा था। यह आपका चाचा था और बहुत खूबसूरत था मगर बहुत संगदिल और मगरूर था ।

दूसरे दिन नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने बनी अब्दुल मुत्तलिब के पास दावत भेजी इस पर वह सब आपके यहां जमा हो गए । इनमें अबु लहब भी था, उसने कहा:-  यह तुम्हारे चाचा और उनकी औलादे जमा है तुम जो कुछ कहना चाहते हो कहो और अपनी बेदीनी को छोड़ दो, साथ ही तुम यह भी समझ लो कि तुम्हारी कौम में यानी हम में इतनी ताकत नहीं है कि तुम्हारी खातिर सारे अरबो से दुश्मनी ले सके लिहाजा अगर अपने मामले पर अड़े रहे तो खुद तुम्हारे खानदान वालों ही का सबसे ज्यादा फर्ज होगा कि तुम्हें पकड़ कर कैद कर दे क्योंकि कुरेश के तमाम खानदान और कबीले तुम पर चढ़ दौड़े इससे तो यही बेहतर होगा कि हम ही तुम्हें कि हम ही तुम्हें क़ैद कर दें,

मेरे भतीजे हक़ीक़त यह है कि तुमने जो चीज अपने रिश्तेदारों के सामने पेश की है इससे बदतर चीज किसी और शख्स ने आज तक पेश नहीं की होगी।


★_आपने उसकी बात की तरफ कोई तवज्जो नहीं फरमाई और हाजरीन को अल्लाह का पैगाम सुनाया, आपने फरमाया :- ए क़ुरेश ! कहो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं ।

आपने उनसे यह भी फरमाया :- ए कुरेश अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचावो ।


★_वहां सिर्फ आपके रिश्तेदार ही जमा नहीं थे बल्कि कुरेश के दूसरे कबीले भी मौजूद थे इसलिए आपने उन कबीलों के नाम ले लेकर उन्हें मुखातिब फरमाया यानी  आपने यह अल्फाज़ अदा फरमाएं :- ए बनी हाशिम अपनी जानों को जहन्नम के अज़ाब से बचाव ,..ए बनी अब्द शम्श अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचाव , ए बनी अब्द मुनाफ, ए बनी ज़ोहरा, ए काब बिन लुवई ,ए बनी मरू बिन काब अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचावो, ए सफिया मोहम्मद की फूफी, अपने आपको जहन्नम की आग से बचावो ।


*★_एक रिवायत के मुताबिक आपने यह अल्फाज़ भी फरमाए :- न मैं दुनिया मैं तुम्हें फायदा पहुंचा सकता हूं ना आखिरत में कोई फायदा पहुंचाने का अख्त्यार रखता हूं सिवाय इस सूरत के कि तुम कहो  " ला इलाहा इलल्लाह _" क्योंकि तुम्हारी मुझसे रिश्तेदारी है इसलिए इसके भरोसे पर कुफ्र और शिर्क के अंधेरों में गुम ना रहना।

इस पर अबु लहब आग बबूला हो गया उसने तिल मिलाकर कहा :- तू हलाक हो जाए क्या तूने हमें इसलिए जमा किया था। 

फिर सब लोग चले गए।

 ★__ इसके बाद कुछ दिन तक आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खामोश रहे । फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास जिब्राइल अलैहिस्सलाम नाजि़ल हुए उन्होंने आपको अल्लाह की जानिब से अल्लाह ताला के पैगाम को हर तरफ फैला देने का हुक्म सुनाया।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दोबारा लोगों को जमा फरमाया,  उनके सामने यह खुत्बा इरशाद फरमाया :- 

"_अल्लाह की कसम ! जिस के सिवा कोई माबूद नहीं ,मैं खासतौर पर तुम्हारी तरफ आमतौर पर सारे इंसानों की तरफ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूं ।अल्लाह की क़सम ! तुम जिस तरह जागते हो उसी तरह एक दिन हिसाब किताब के लिए दोबारा जगाए जाओगे ,फिर तुम जो कुछ कर रहे हो उसका हिसाब तुम से लिया जाएगा अच्छाइयों और नेक आमाल के बदले में तुम्हें अच्छा बदला मिलेगा और बुराई का बदला बुरा मिलेगा । वहां बिला शुब्हा हमेशा हमेशा के लिए जन्नत है या हमेशा के लिए जहन्नम है।

 अल्लाह की क़सम ! ए बनी अब्दुल मुत्तलिब मेरे इल्म में ऐसा कोई नौजवान नहीं जो अपनी कौम के लिए इससे बेहतर और आला कोई चीज लेकर आया हो, मैं तुम्हारे वास्ते दुनिया और आखिरत की भलाई लेकर आया हूं।


★_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इस खुत्बे को सुनकर अबू लहब बोला - ए बनी अब्दुल मुत्तलिब अल्लाह की कसम ! यह एक फितना है इससे पहले कि कोई दूसरा इस पर हाथ डाले बेहतर यह है कि तुम ही इस पर काबू पा लो । यह मामला ऐसा है कि अगर तुम इसकी बात सुनकर मुसलमान हो जाते हो तो यह तुम्हारे लिए ज़िल्लत व रुसवाई की बात होगी, अगर तुम इसे दूसरे दुश्मनों से बचाने की करोगे तो तुम खुद क़त्ल हो जाओगे _,"


उसके जवाब में उसकी बहन यानी नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की फूफी सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा  ने कहा - भाई क्या अपने भतीजे को इस तरह रूसवा करना तुम्हारे लिए मुनासिब है और फिर अल्लाह की क़सम ! बड़े बड़े आलिम खबर देते आ रहे हैं कि अब्दुल मुत्तलिब के खानदान में से एक नबी ज़ाहिर होने वाले हैं लिहाज़ा मैं तो कहती हूं ,यही वह नबी है ।

अबुलहब को यह सुनकर गुस्सा आया वह बोला - अल्लाह की क़सम ! यह बिल्कुल बकवास और घरों में बैठने वाली औरतों की बातें हैं। जब कुरेश के खानदान हम पर चढ़ाई करने आएंगे और सारे अरब उनका साथ देंगे तो उनके मुकाबले में हमारी क्या चलेगी । खुदा की कसम उनके लिए हम एक तर  निवाले की हैसियत होंगे ।

इस पर अबू तालिब बोल उठे :- अल्लाह की कसम! जब तक हमारी जान में जान है हम इनकी हिफाजत करेंगे ।


★_अब  नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सफा पहाड़ी पर चढ़ गए और तमाम कुरेश को इस्लाम की दावत दी, उन सब से फरमाया :-

"_ ए  क़ुरेश ! अगर मैं तुमसे यह कहूं कि इस पहाड़ के पीछे से एक लश्कर आ रहा है और वह तुम पर हमला करना चाहता है तो क्या तुम मुझे झूठा ख्याल करोगे ? 

सब ने एक ज़ुबान होकर कहा - नहीं ,इसलिए कि हमने आपको आज तक झूठ बोलते हुए नहीं सुना ।

अब आपने फरमाया :- ए गिरोह कुरेश अपनी जानों को जहन्नम से  बचाओ इसलिए कि मैं अल्लाह ताला के यहां तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगा , मैं तुम्हें उस जबरदस्त अज़ाब से साफ डरा रहा हूं जो तुम्हारे सामने है, मैं तुम लोगों को दो कल्में कहने की दावत देता हूं ,जो ज़ुबान से कहने में बहुत हल्के हैं लेकिन तराजू में बेहद वजन वाले हैं ।

एक इस बात की गवाही कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, दूसरे यह कि मैं अल्लाह का रसूल हूं ।अब तुम में से कौन है जो मेरी इस बात को कुबूल करता है।


★_आपके खामोश होने पर उनमें से कोई ना बोला तो आपने अपनी बात फिर दोहराई फिर आपने तीसरी बात दोहराई मगर इस बार भी सब खामोश खड़े रहे । इतना हुआ कि सबने आपकी बात खामोशी से सुन ली और वापस चले गए ।

[24/10, 8:53 pm] ★☝🏻★: ★__ एक दिन कुरेश के लोग मस्जिद ए हराम में जमा थे, बुतों को सजदे कर रहे थे , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह मंजर देखा तो फरमाया :- ए गिरोह कुरेश ! अल्लाह की क़सम , तुम अपने बाप इब्राहिम अली सलाम के रास्ते से हट गए हो _,"

आपकी बात के जवाब में क़ुरेश बोलें :- हम अल्लाह ताला की मोहब्बत ही में बुतों को पूजते हैं ताकि इस तरह हम अल्लाह ताला के करीब हो सके।

( अफसोस आजकल अनगिनत लोग क़ब्रों को सजदा इस खयाल से करते हैं और खुद को मुसलमान कहते हैं )


इस मौके पर अल्लाह ताला ने उनकी बात के जवाब में वहीं नाजिल फरमाई :- 

*(तर्जुमा )*_ आप फरमा लीजिए ! अगर तुम अल्लाह ताला से मोहब्बत रखते हो तो मेरी पेरवी करो अल्लाह ताला तुमसे मुहब्बत करने लगेंगे और तुम्हारे सब गुनाहों को माफ कर देंगे _," *( सूरह आले इमरान-३१)*


★__ कुरेश को यह बात बहुत नागवार गुजरी , उन्होंने अबू तालिब से शिकायत की :- अबू तालिब !  तुम्हारे भतीजे ने हमारे मा'बूदों को बुरा कहा है हमारे दीन में ऐब निकाले हैं हमें बेअक़ल ठहराया है उसने हमारे बाप दादा तक को गुमराह कहा है । इसलिए या तो हमारी तरफ से आप निबटें या हमारे और उसके दरमियान  से हट जाए क्योंकि खुद आप भी उसी दीन पर चलते हैं जो हमारा है और उसके दीन के आप भी खिलाफ हैं _,"

अबू तालिब ने उन्हें नरम अल्फ़ाज़ में यह जवाब देकर वापस भेज दिया- अच्छा मैं उन्हें समझाऊंगा।


★_ इधरअल्लाह ताला ने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को आप की खिदमत में भेजा । हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम निहायत हसीन शक्ल सूरत में बेहतरीन खुशबू लगाए जाहिर हुए और बोले :-  ए मोहम्मद ! अल्लाह ताला आपको सलाम फरमाते हैं और फरमाते हैं कि आप तमाम जिन्नों और इंसानों की तरफ से अल्लाह ताला के रसूल हैं इसलिए उन्हें कलमा ला इलाहा इल्लल्लाह की तरफ बुलाए । यह हुक्म मिलते ही आपने कुरेश को बरा हे रास्ता तबलीग शुरू कर दी और हालत उस वक्त यह थी कि काफिरों के पास पूरी ताकत थी और वह आपकी पैरवी करने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं थे ,कुफ्र और शिर्क उनके दिलों में बसा हुआ था, बुतों की मोहब्बत उनके अंदर सरायत कर चुकी थी ,उनके दिल इस शिर्क और गुमराही के सिवा कोई चीज़ भी क़ुबूल करने पर आमादा नहीं थे ,शिर्क की यह बीमारी लोगों में पूरी तरह समा चुकी थी।


★_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तबलीग का यह सिलसिला जब बहुत बढ़ गया तो कुरेश के दरमियान हर वक्त आप ही का जिक्र होने लगा। वह लोग एक दूसरे से बढ़ चढ़कर आप से दुश्मनी पर उतर आए ,आप के क़त्ल के मंसूबे बनाने लगे, यहां तक सोचने लगे कि आपका माशरती बायकाट कर दिया जाए। लेकिन यह लोग पहले एक बार फिर अबू तालिब के पास गए और उनसे बोले :- अबू तालिब !  हमारे दरमियान आप बड़े काबिल, इज्जतदार और बुलंद मर्तबा आदमी है हमने आपसे दरख्वास्त की थी कि आप अपने भतीजे को रोके , मगर आपने कुछ नहीं किया । हम लोग यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकते कि हमारे माबूदों को और बाप दादाओं को बुरा कहा जाए ,हमें बेअक़ल कहा जाए । आप उन्हें समझा ले वरना हम आपसे और उनसे उस वक्त तक मुकाबला करेंगे जब तक की दोनों फरीक़ों में से एक खत्म ना हो जाए ।

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★_ कड़ी आज़माइश _*,


★__ कुरेश तो यह कह कर चले गए, अबू तालिब परेशान हो गए, वह अपनी कौम के गुस्से से अच्छी तरह वाकिफ थे ।दूसरी तरफ इस बात को पसंद नहीं कर सकते थे कि कोई भी शख्स हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को रुसवा करने की कोशिश करें, इसलिए उन्होंने रसूल नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कहा :- भतीजे ! तुम्हारे क़ौम के लोग मेरे पास आए थे उन्होंने मुझसे यह यह... कहा है इसलिए अपने ऊपर और मुझ पर रहम करो और मुझ पर ऐसा बोझ ना डालो जिसको मैं उठा ना सकूं _,"


अबू तालिब की इस गुफ्तगू से नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ख्याल किया कि अब चचा उनका साथ छोड़ रहे  हैं ,वह भी अब आपकी मदद नहीं करना चाहते आप की हिफाजत से हाथ उठा रहे हैं ,इसलिए आप ने फरमाया :-

"_  चाचा जान! अल्लाह की कसम ! अगर यह लोग मेरे दाएं हाथ पर सूरज और बाएं हाथ पर चांद रख दें और यह कहे कि मैं इस काम को छोड़ दूं तो भी मैं हरगिज इसे नहीं छोडूंगा यहां तक कि खुद अल्लाह ताला इसको ज़ाहिर फरमा दे।

यह कहते हुए आपकी आवाज भर्रा गई , आपकी आंखों में आंसू आ गए, फिर आप उठकर जाने लगे लेकिन उसी वक्त अबू तालिब में आपको पुकारा :-  भतीजे इधर आओ । 

आप उनकी तरफ मुड़े तो उन्होंने कहा :-  जाओ भतीजे , जो दिल में चाहे कहो ,अल्लाह की कसम मैं तुम्हें किसी हाल में नहीं छोडूंगा।


★_जब कुरेश को अंदाजा हो गया कि अबू तालिब आपका साथ छोड़ने पर तैयार नहीं है तो वो अम्मारा बिन वलीद को साथ लेकर अबू तालिब के पास आए और बोले :- अबू तालिब यह अम्मारा बिन वलीद है कुरेश का सबसे ज्यादा बहादुर ताकतवर और सबसे ज्यादा हंसी नौजवान हैं ,तुम इसे लेकर अपना बेटा बना लो और इसके बदले में अपने भतीजे को हमारे हवाले कर दो इसलिए कि वह तुम्हारे और तुम्हारे बाप दादा के दीन के खिलाफ जा रहा है, उसने तुम्हारी क़ौम में फूट डाल दी है और उनकी अक़्लें खराब कर दी हैं ,तुम उसे हमारे हवाले कर दो ताकि हम उसे कत्ल कर दें.... इंसान के बदले में हम तुम्हें इंसान दे रहे ।

कुरेश कि यह बेहूदा तजवीज़ सुनकर अबू तालिब ने कहा :- अल्लाह की क़सम ! यह हरगिज नहीं हो सकता क्या तुम यह समझते हो कि कोई ऊंटनी अपने बच्चे को छोड़कर किसी दूसरे बच्चे की आरजूमंद हो सकती है_," 

उनका जवाब सुनकर मुत'अम बिन अदी ने कहा :- अबू तालिब तुम्हारी क़ौम ने तुम्हारे साथ इंसाफ का मामला किया है और जो बात तुम्हें नापसंद है उससे छुटकारे के लिए कोशिश की है अब मैं नहीं समझता कि इसके बाद तुम उनकी कोई और पेशकश कबूल करोगे ।


जवाब में अबू तालिब बोले :- "_ अल्लाह की कसम ! उन्होंने मेरे साथ इंसाफ नहीं किया बल्कि तुम सब ने मिलकर मुझे रुसवा करने और मेरे खिलाफ गठजोड़ करने के लिए यह सब कुछ किया है , इसलिए अब जो तुम्हारे दिल में आए कर लो _,"

बाद में यह शख्स यानी अम्मारा बिन वलीद हबशा मे कुफ्र की हालत में मरा , इस पर जादू कर दिया गया था, उसके बाद यह वहशतज़दा हो कर जंगलों और घाटियों में मारा मारा फिरा करता था, इस तरह दूसरा शख्स मुत'आम बिन अदी भी कुफ्र की हालत में मरा ।

 ★__ गर्ज़ जब अबू तालिब ने कुरेश की यह पेशकश भी ठुकरा दी तो मामला हद दर्जे संगीन हो गया । दूसरी तरफ अबू तालिब ने कुरेश के खतरनाक इरादों को भांप लिया ,उन्होंने बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब को बुलाया, उनसे दरख्वास्त की कि सब मिलकर आप की हिफाजत करें ,आपका बचाव करें । उनकी बात सुनकर सिवाय अबू लहब के सब तैयार हो गए , अबू लहब ने उनका साथ ना दिया , यह बद बख्त सख्ती करने और आप के खिलाफ आवाज़ उठाने से बाज़ ना आया । इसी तरह जो लोग आप पर ईमान ले आए थे उनकी मुखालफत में भी अबू लहब ही सबसे पैश पैश था । आपको और आपके साथियों को तकलीफ पहुंचाने में भी यह कुरेश से बढ़ चढ़कर था।


★__ आपको तकलीफ पहुंचाने के सिलसिले में हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु एक वाक्या बयान करते हैं, फरमाते हैं :- 

एक रोज़ मैं मस्जिद ए हराम में था कि अबू जहल वहां आया और बोला -मैं खुदा की क़सम खाकर कहता हूं अगर मैं मोहम्मद को सजदा करते हुए देख लूं तो मैं उनकी गर्दन मार दूं ।

हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, यह सुनकर मैं फौरन नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ गया और आपको बताया कि अबू जहल क्या कह रहा है। नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम यह सुनकर गुस्से की हालत में बाहर निकले और तेज तेज चलते मस्जिद ए हराम में दाखिल हो गए यहां तक कि गुज़रते वक्त आपको दीवार की रगड़ लग गई। उस वक्त आप सूरह अल अलक़ की आयत 1-2 पढ़ रहे थे ।

*"_तर्जुमा_,*_ ए पैगंबर आप अपने रब का नाम लेकर (क़ुरान) पढ़ा कीजिए ! वह जिसने मखलुक़ात को पैदा किया जिसने उन्हें खून के लोथड़े से पैदा किया _,"


★__ तिलावत करते हुए आप इस सूरत की आयत 6 तक पहुंच गए , 

*( तर्जुमा )*_सचमुच बेशक काफिर आदमी हद से निकल जाता है_,"

आपने सूरत का आखरी हिस्सा पड़ा जहां सजदे की आयत है और इसके साथ ही आप सजदे में गिर गए , उसी वक्त किसी ने अबू जहल से कहा -अबुल हसम यह मुहम्मद सजदे में पड़े हैं। 

यह सुनते ही अबू जहल फौरन आपकी तरह बढ़ा ,आपके नजदीक पहुंचा लेकिन फिर अचानक वापस आ गया ।लोगों ने हैरान होकर पूछा -अबुल हकम क्या हुआ ?


★__ जवाब में उसने और ज्यादा हैरान होकर कहा -जो मैं देख रहा हूं क्या तुम्हें वह नज़र नहीं आ रहा ?

उसकी बात सुनकर लोग और ज्यादा हैरान हो गए और बोले- तुम्हें क्या नजर आ रहा है अबुल हकम ?

इस पर अबू जहल ने कहा -मुझे अपने और उनके दरमियां आग की एक खंदक नज़र आ रही है।

 ★__ इसी तरह एक दिन अबू जहल ने कहा :- ए गिरोह कुरेश जैसा कि तुम देख रहे हो मुहम्मद तुम्हारे दीन में ऐब डाल रहा है तुम्हारे मा'बूदों को बुरा कह रहा है तुम्हारी अक़लों को खराब बता रहा है और तुम्हारे बाप दादाओं को गालियां दे रहा है, इसलिए मैं खुदा के सामने अहद करता हूं कि कल मैं मुहम्मद के लिए इतना बड़ा पत्थर लेकर बैठूंगा जिसका बोझ वह बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे जोंही वह सजदे में जाएंगे मैं वह पत्थर उनके सर पर  दे मारूंगा , इसके बाद तुम लोगों को अख्तियार है चाहो तो इस मामले में मेरी मदद करना और मुझे पनाह देना ,चाहो तो मुझे दुश्मनों के हवाले कर देना फिर बनी अब्दे मुनाफ मेरा जो भी हश्र करें ।

यह सुनकर कुरेश ने कहा :-अल्लाह की कसम हम तुम्हें किसी कीमत पर दगा नहीं देंगे इसलिए जो तुम करना चाहते हो इतमिनान से करो ।


★__ दूसरे दिन अबू जहल अपने प्रोग्राम के मुताबिक एक बहुत भारी पत्थर उठा लाया और लगा नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इंतजार करने। इधर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम आदत के मुताबिक सुबह की नमाज के बाद वहां शरीफ ले आए। उस वक्त आपका क़िब्ला बेतुल मुकद्दस की तरफ था आप नमाज के लिए रुकने यमानी और हजरे अस्वद के दरमियान खड़े हुआ करते थे, काबे को अपने और बेतुल मुकद्दस के दरमियान कर लिया करते थे ।


"_आपने आते ही नमाज़ की नियत बांधी, इधर कुरेश के लोग अपने-अपने घरों में बैठे इंतजार कर रहे थे कि देखें आज क्या होता है ?अबू जहल अपने प्रोग्राम में कामयाब होता है या नहीं ? फिर जोंही आप सज्दे में गए अबू जहल ने पत्थर उठाया और आपकी तरफ बढ़ा, जैसे ही वह आपके नजदीक हुआ एकदम उस पर लर्ज़ा तारी हो गया, चेहरे का रंग उड़ गया घबराहट के आलम में वहां से पीछे हटा। इधर पत्थर पर उसके हाथ इस तरह जम गए उसने चाहा हाथ उस पर से हटा ले लेकिन हटा ना सका।


★__ क़ुरेश के लोग फौरन उसके गिर्द जमा हो गए और बोले :-अबुल हकम क्या हुआ?

 उसने जवाब दिया:- मैंने रात को तुमसे जो कहा था उसका पूरा करने के लिए मैं मुहम्मद की तरह बड़ा मगर जैसे ही उनके करीब पहुंचा एक जवान ऊंट मेरे रास्ते में आ गया मैंने उस जैसा जबरदस्त ऊंट आज तक नहीं देखा, वह एकदम मेरी तरफ बड़ा जैसे मुझे खा लेगा।


★__ इस वाक्य़े का जिक्र नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से किया गया तो आप ने फरमाया :- वह जिब्राइल अलैहिस्सलाम थे अगर वो मेरे नज़दीक आता तो वो ज़रूर उसे पकड़ लेते।

 ★__ एक रोज़ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खाना काबा में नमाज पढ़ रहे थे कि अबू जहल आपके पास आया और बोला:- क्या मैंने आपको इससे मना नहीं किया था आप जानते नहीं मैं सबसे बड़े गिरोह वाला हूं ।

इस पर सूरह अल-अलक़ की आयत 17-18 नाजिल हुई।

*"_( तर्जुमा)* _ सो यह अपने गिरोहों के लोगों को बुला ले, अगर उसने ऐसा किया तो हम भी दोजख के प्यादों को बुला लेंगे।


"_ हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं- अगर अबू जहल अपने गिरोहों को बुलाता तो अल्लाह ताला के अजा़ब के फरिश्ते उसे पकड़कर तहस-नहस कर देते _।"


★__ एक रोज़ अबू जहल हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने आया और आपसे मुखातिब हुआ :- आपको मालूम है मैं बतहा वालों का मुहाफिज हूं और मैं यहां एक शरीफ तरीन शख्स हूं ।

उस वक्त अल्लाह ताला ने सूरह दुखान की आयत 49 नाजिल फरमाई :-

*"( तर्जुमा )* _चख तू बड़ा मो'जिज़ मुकर्रम है। 

आयत का यह जुमला दोजख के फरिश्ते अबू जहल को डांटते वक्त फटकारते हुए कहेंगे।


★__ अबू लहब भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की ईज़ा रसानी में आगे-आगे था ,नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तबलीग में रुकावट डालता था। आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बुरा भला कहता था । उसकी बीवी उम्में जमील भी उसके साथ शामिल थी ,वह जंगल से कांटेदार लकड़ियां काट कर लाती और नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के रास्ते में बिछाती, इस पर अल्लाह ताला ने सूरह अल मसद नाजि़ल फरमाई , इसमें अबू लहब के साथ उसकी बीवी को भी अजा़ब की खबर दी गई। वह गुस्से में आग बबूला हो गई पत्थर हाथ में लिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ बड़ी । उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु थे।


★_ उन्होंने अबू लहब की बीवी को आते देखा तो फरमाया:- अल्लाह के रसूल यह औरत बहुत ज़ुबान दराज़ है अगर आप यहां ठहरे तो इसकी बद ज़ुबानी से आपको तकलीफ पहुंचेगी ।

उनकी यह बात सुनकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :-अबू बकर फिक्र ना करो वह मुझे ना देख सकेगी ।

इतने में उम्मे जमील नजदीक पहुंच गई ,उसे वहां सिर्फ अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु नज़र आए, वह आते ही बोली:- अबू बकर तुम्हारे दोस्त ने मुझे ज़लील किया है ,कहां है तुम्हारा दोस्त जो शेर पड़ता है?

 अबू बकर बोले :-क्या तुम्हें मेरे साथ कोई नजर आ रहा है?

क्यों क्या बात है ,मुझे तो तुम्हारे साथ कोई नजर नहीं आ रहा ।

उन्होंने पूछा:- तुम उनके साथ क्या करना चाहती हो ?

जवाब में उसने कहा:- मैं यह पत्थर उसके मुंह पर मारना चाहती हूं उसने मेरी शान में ना जे़बा शेर कहे हैं।


★_  वह सूरह अल मसद की आयात को शेर समझ रही थी ,इस पर उन्होंने कहा :- नहीं अल्लाह की कसम ! वह शायर नहीं है ,वह तो शेर कहना जानते ही नहीं, ना उन्होंने तुम्हें ज़लील किया है ।

यह सुनकर वह वापस लौट गई, बाद में अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पूछा:- ऐ अल्लाह के रसूल ! वह आपको देख क्यों नहीं सकी ?

आपने इरशाद फरमाया :- एक फरिश्ते ने मुझे अपने परों में छिपा लिया था ।

एक रिवायत के मुताबिक आपने यह जवाब इरशाद फरमाया था:- मेरे और उसके दरमियान एक आड़ पैदा कर दी गई थी।

: ★__ अबू लहब के एक बेटे का नाम उतबा था और दूसरे का नाम उतैबा था। ऐलाने नबुवत से पहले रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपनी दो बेटियों हजरत रुकैया और हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हुमा का निकाह इन दोनों बेटों से कर दिया था, यह सिर्फ निकाह हुआ था अभी रुखसती नहीं हुई थी , इस्लाम का आगाज़ हुआ और सूरह लहब नाज़िल हुई तो अबू लहब ने गुस्से में आकर अपने बेटों से कहा :-अगर तुम मुहम्मद की बेटियों को तलाक नहीं दोगे तो मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूंगा।


★_ चुनांचे उन दोनों ने इन्हें तलाक़ दे दी (देखा जाए तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बेटियों के लिए इसमें हिकमत थी गोया अल्लाह ताला ने चाहा कि ये पाक साहबजादियां उतबा और उतैबा के यहां ना जा सके)  यह रिश्ता इस्लाम से दुश्मनी की बुनियाद पर खत्म किया गया यानी आप दोनों चूंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबजादियां थी इसलिए यह क़दम उठाया गया।


"_ इस मौके पर उतैबा नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ और उसमें आप की शान में गुस्ताखी की। आप साहबजादियों की वजह से पहले ही गमगीन थे, इन हालात में आपने उसके हक़ में बद्दुआ फरमाई :- ए अल्लाह इस पर अपने कुत्तों में से एक कुत्ता मुसल्लत फरमा दे ।


★_ उतैबा यह बद्दुआ सुनकर वहां से लौट आया, उसने अपने बाप को सारा हाल सुनाया । इसके बाद दोनों बाप-बेटा एक काफिले के साथ मुलके शाम की तरफ रवाना हो गए ।रास्ते में यह लोग एक जगह ठहरे वहां करीब ही एक राहिब की इबादतगाह थी , राहिब इनके पास आया, उसने इन्हें बताया -इस इलाके में जंगली दरिंदे रहते हैं ।

अबु लहब यह सुनकर खौफज़दा हो गया ,नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बद्दुआ याद आ गई । उसने काफिले वालों से कहा:- तुम लोग मेरी हैसियत से बा-खबर हो और यह भी जानते हो कि मेरा तुम पर क्या हक़ है ,"

उन्होंने एक ज़ुबान होकर कहा:- बेशक हमें मालूम है ।

अबु लहब यह सुनकर बोला :-तब फिर तुम हमारी मदद करो ,मैं मुहम्मद की बद्दुआ की वजह से खौफज़दा हो गया हूं इसलिए तुम लोग अपना सामान इस इबादतगाह की तरफ रखकर उस पर मेरे बेटे का बिस्तर लगा दो और उसके चारों तरफ तुम लोग अपने बिस्तर लगा लो_,"


★_उन लोगों ने ऐसा ही किया यही नहीं उन्होंने उसके चारों तरफ अपने ऊंटों को भी बिठा दिया । इस तरह उतैबा उन सब के ऐन दरमियान में आ गया ।अब वह सब उसकी पासबानी करने लगे।

 ★__ इन तमाम अहत्याती तदाबीर के बावजूद भी हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पेशगोई पूरी हो गई। निस्फ रात के करीब एक शेर वहां आया और सोते हुए लोगों को सूंघने लगा , एक एक को सूंघते हुए वह आगे बढ़ता रहा यहां तक कि वह लंबी छलांग लगाकर उतैबा तक पहुंच गया । बस फिर क्या था उसने उसे चीरफाड कर हलाक कर डाला।


★_ तकालीफ पहुंचाने का एक और वाकि़या इस तरह पेश आया कि एक रोज आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मस्जिद ए हराम में नमाज पढ़ रहे थे । क़रीब ही कुछ जानवर ज़िबह किए गए थे, वह लोग अपने बुतों के नाम पर कुर्बानी करते थे उन जानवरों की एक औझड़ी अभी तक वही पड़ी थी । ऐसे में अबू जहल ने कहा- क्या कोई शख्स ऐसा है जो इस औझड़ी को मोहम्मद के ऊपर डाल दें ?


★_एक रिवायत के मुताबिक किसी ने कहा-  क्या तुम यह मंजर नहीं देख रहे हो ,तुम में से कौन है जो वहां जाए जहां फलां क़बीले के जानवर ज़िबह किए हैं, उनका गोबर लीद खून और औझड़ी वहां पड़े हैं कोई शख्स वहां जाकर गंदगी उठा लाए और मुहम्मद के सजदे में जाने का इंतजार करें फिर जोंही वह सजदे में जाए वह शख्स गंदगी उनके कंधों के दरमियान रख दे _,"


★_ तब मुशरिको में से एक शख्स उठा उसका नाम उक़बा बिन अबी मुईत था , यह अपनी क़ौम में सबसे ज्यादा बदबख्त था यह गया और वो औझड़ी उठा लाया । जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सजदे में गए तो औझड़ी आप पर रख दी।

इस पर क़ुरेश जोर-जोर से हंसने लगे यहां तक कि वह हंसी से बेहाल हो गए और एक दूसरे पर गिरने लगे। ऐसे में किसी ने हजरत फातमा अज़ ज़ौहरा रज़ियल्लाहु अन्हा को यह बात बता दी ,वह रोती हुई हरम में आई।  नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उसी तरह सजदे में थे और वो औझड़ी आपके कंधों पर थी । सैयदा फातिमा रजियल्लाहु अन्हा ने औझड़ी को आप पर से हटाया ।इसके बाद आप सजदे से उठे और नमाज की हालत में खड़े हो गए ।नमाज से फारिग होकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन लोगों के हक़ में बद-दुआ फरमाई :- 

"_ऐ अल्लाह तू क़ुरेश को जरूर सजा दे, ऐ अल्लाह तू क़ुरेश को जरूर सजा दे, ऐ अल्लाह तू क़ुरेश को जरूर सजा दे,_,"


★_ क़ुरेश जो मारे हंसी के लोटपोट हो रहे थे यह बद्दुआ सुनते ही उनकी हंसी काफूर हो गई ,इस बद्दुआ की वजह से वह दहशत ज़दा हो गए। इसके बाद आपने नाम ले लेकर भी बद दुआ फरमाई :- 

"_ ऐ अल्लाह तू अमरु बिन हिशाम को सजा दे (यानी अबू जहल को ) उक़बा बिन अबी मुईत और उमैया बिन खल्फ को सजा दे ।


★_हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- अल्लाह की कसम ! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिन जिन क़ुरेशियों का नाम लिया था मैंने उन्हें गजवा ए बदर में खाक़ व खून में लिथड़ा हुआ देखा और फिर उनकी लाशों को एक गड्ढे में फेंक दिया गया ।

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★_ क़ुर्बानियां ही क़ुर्बानियां _,*


★__ इसी तरह का एक वाक्या हजरत उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु इस तरह बयान फ़रमाते है :- 

"_ एक रोज नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तवाफ फरमा रहे थे उस वक्त आपका हाथ हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के हाथ में था। हजरे अस्वाद के पास तीन आदमी बैठे थे ,जब आप हजरे अस्वद के पास से गुजरे और उनके करीब पहुंचे तो उन तीनों ने आप की जा़त बा बरकत पर चंद जुमले कसे ।इन जुमलो को सुनकर आपको तकलीफ पहुंची तकलीफ के आसार आपके चेहरे से ज़ाहिर हुए ।

 दूसरे फेरे में अबू जहल ने कहा:- तुम हमें इन माबूदों की इबादत करने से रोकते हो जिन्हें हमारे बाप दादा पूजते आए हैं, लेकिन हम तुमसे सुलह नहीं कर सकते।

 जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- मेरा भी यही हाल है ।

फिर आप आगे बढ़ गए तीसरे फेरे में भी उन्होंने ऐस ही कहा, फिर चौथे फेरे में यह तीनों एकदम आपकी तरफ झपटे ।


★_हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :-अबू जहल ने एकदम आगे बढ़कर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के कपड़े पकड़ने की कोशिश की, मैंने आगे बढ़कर एक घूंसा उसके सीने पर मारा इससे वह जमीन पर गिर पड़ा। दूसरी तरफ से अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उमैया बिन खल्फ को धकेला, तीसरी तरफ खुद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उतबा बिन मुईत को धकेला ।आखिर यह लोग आपके पास से हट गए उस वक्त आपने इरशाद फरमाया :- अल्लाह की क़सम ! तुम लोग उस वक्त तक नहीं मारोगे जब तक अल्लाह की तरफ से इसकी सजा नहीं भुगतोगे।


★_हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- यह अल्फाज़ सुन कर उन तीनों में से एक भी ऐसा नहीं था जो खौफ की वजह से कांपने ना लगा हो । 

फिर आपने इरशाद फरमाया ;-तुम लोग अपने नबी के लिए बहुत  बुरे साबित हुए ।

यह फरमाने के बाद आप अपने घर की तरफ लौट गए ,हम आपके पीछे-पीछे चले, जब आप अपने दरवाजे पर पहुंचे तो अचानक हमारी तरफ मुड़े और फरमाया :- तुम लोग गम ना करो अल्लाह ताला खुद अपने दीन को फैलाने वाला ,अपने कलमें को पूरा करने वाला और अपने नबी की मदद करने वाला है, इन लोगों को अल्लाह बहुत जल्द तुम्हारे हाथों जि़बह करवाएगा _,"


★_ इसके बाद हम भी अपने अपने घर को चले गए और फिर अल्लाह की क़सम गजवा ए बदर के दिन अल्लाह ताला ने इन लोगों को हमारे हाथों ज़िबह करवाया।

: ★__ एक रोज़ ऐसा हुआ कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खाना काबा का तवाफ कर रहे थे। ऐसे में उक़बा बिन अबी मुईत  वहां आ गया । उसने अपनी चादर उतार कर आपकी गर्दन में डाली और उसको बल देने लगा। इस तरह आपका गला घुटने लगा। अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु दौड़कर आए और उसे कंधों से पकड़कर धकेला ।साथ ही उन्होंने फरमाया :-  क्या तुम उस शख्स को क़त्ल करना चाहते हो जो यह कहता है कि मेरा रब अल्लाह है... और जो तुम्हारे रब की तरफ से खुली निशानियां लेकर आया है।


★_बुखारी की एक हदीस के मुताबिक हजरत अमरु बिन जुबेर रज़ियल्लाहु  अन्हू से रिवायत है कि मैंने एक मर्तबा हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हू से पूछा :- मुझे बताइए मुशरिकीन की तरफ से हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ सबसे ज्यादा बदतरीन और सख्त तरीन सुलूक किसने किया था ?

 जवाब में हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया :- 

"_ एक मर्तबा हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम काबे में नमाज अदा फरमा रहे थे उक़बा बिन अबी मुईत आया, उसने आपकी गर्दन में कपड़ा डालकर उससे पूरी कु़वत से आपका गला घोंटा, उसी वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उसे धकेल कर हटाया ।


"_यह क़ौल हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का है, उन्होंने यही सबसे सख्त बर्ताव देखा होगा वरना आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ इससे कहीं ज़्यादा सख़्त बर्ताव किया गया।


★_फिर जब मुसलमानों की तादाद 38 हो गई तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आपसे अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल मस्जिद ए हराम में तशरीफ ले चलिए ताकि हम वहां नमाज अदा कर सके ।

इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-अबू बकर अभी हमारी तादाद थोड़ी है।

 अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फिर से ख्वाहिश का इज़हार किया ।आखिर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने तमाम सहाबा के साथ मस्जिदे हराम में पहुंच गए। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने खड़े होकर खुतबा दिया , लोगों को कलमा पढ़ने की दावत दी ।

इस तरह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु सबसे पहले शख्स हैं जिन्होंने मजमे में खड़े होकर इस तरह तबलीग फरमाई।

 ★_उस खुतबे के जवाब में मूशरिकीने मक्का हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु और दूसरे मुसलमानों पर टूट पड़े और उन्हें मारने लगे । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को तो उन्होंने सबसे ज्यादा मारा पीटा मारपीट की इंतेहा कर दी गई। उक़बा तो उन्हें अपने जूतों से मार रहा था उसमें दौहरा तला लगा हुआ था ,उसने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के चेहरे पर उन जूतों से इतनी जरबे लगाई कि चेहरा लहूलुहान हो गया।


★_ऐसे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के क़बीले बनू तमीम के लोग वहां पहुंच गए उन्हें देखते ही मुशरिकीन ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को छोड़ दिया । उन लोगों ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को एक कपड़े पर लिटा दिया और बेहोशी की हालत में घर ले आए । उन सब को यक़ीन हो चुका था कि अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु आज जिंदा नहीं बचेंगे ।इसके बाद बनू तमीम के लोग वापस हरम आए ,उन्होंने कहा :- अल्लाह की क़सम! अगर अबू बकर मर गए तो हम उक़बा को क़त्ल कर देंगे ।

यह लोग फिर हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के पास आए उन्होंने और हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के वालिद ने उनसे बार-बार बात करने की कोशिश की लेकिन आप बिल्कुल बेहोश थे ।आखिर शाम के वक्त कहीं जाकर आपको होश आया और बोलने के का़बिल हुए ।उन्होंने सबसे पहले यह पूछा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का क्या हाल है ?


★_घर में मौजूद अफराद ने उनकी इस बात का कोई जवाब ना दिया, इधर अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बार-बार अपना सवाल दोहरा रहे थे ।आखिर उनकी वाल्दा ने कहा :-अल्लाह की क़सम ! हमें तुम्हारे दोस्त के बारे में कुछ मालूम नहीं ।

यह सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया :-अच्छा तो फिर उम्मे जमील बिंते खत्ताब के पास जाइए ,उनसे आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का हाल दरयाफ्त करके मुझे बताइए। 


"_उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की बहन थी । इस्लाम क़ुबूल कर चुकी थी लेकिन अभी तक अपने इस्लाम को छुपाए हुए थी । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वाल्दा उनके पास पहुंची। उन्होंने उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा :- अबू बकर मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह की खैरियत पूछते हैं।

उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा चूंकि अपने भाई हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से डरती थी, वह अभी तक ईमान नहीं लाए थे इसलिए उन्होंने कहा :-मैं नहीं जानती। 

साथ ही वह बोली :-क्या आप मुझे अपने साथ ले जाना चाहती हैं ?

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वाल्दा ने फौरन कहा:- हां ।


★_आप दोनों वहां से हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पास आई, उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा ने अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को ज़ख्मों से चूर देखा तो चीख पड़ी :-  जिन लोगों ने तुम्हारे साथ यह सलूक किया है वह यक़ीनन फासिक़ और बदतरीन लोग हैं, मुझे यकीन है अल्लाह ताला उनसे आपका बदला लेगा।

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का क्या हाल है ?

उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा ऐसे लोगों के सामने बात करते हुए डरती थी जो अभी ईमान नहीं लाए थे , चुनांचे बोली :-यहां आपकी वाल्दा मौजूद हैं।

हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु फौरन बोले :-उनकी तरफ से बेफिक्र रहें, यह आपका राज़ जाहिर नहीं करेंगी ।

अब उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खैरियत से हैं ।

अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने पूछा :-  हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इस वक्त कहां है? 

उम्मे जमील ने फरमाया :- दारे अरक़म में ।

यह सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले :- अल्लाह की क़सम ! मैं उस वक्त तक ना कुछ खाऊंगा ,ना पिउंगा जब तक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मिल ना लूं ।

 ★__ इन दोनों ने कुछ देर इंतजार किया ताकि बाहर सुकून हो जाए आखिर यह दोनों उन्हें सहारा देकर ले चली और दारे अरकम पहुंच गई । ज्योंही नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु की यह हालत देखी तो आपको बेहद सदमा हुआ, आपने आगे बढ़कर अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु को गले से लगा लिया ,उन्हें बोसा दिया ‌। बाक़ी मुसलमानों ने भी उन्हें गले से लगाया और बोसा दिया । फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से अर्ज किया :- आप पर मेरे मां-बाप कुर्बान हो , अल्लाह के रसूल मुझे कुछ तो नहीं हुआ सिवाय इसके कि मेरे चेहरे पर चोटें आई हैं। यह मेरी वाल्दा मेरे साथ आई हैं, मुमकिन है अल्लाह ताला आपके तुफैल इन्हें जहन्नम की आग से बचा ले _,"

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके लिए दुआ फरमाई, फिर उन्हें इस्लाम की दावत दे , वह उसी वक्त ईमान ले आईं, जिससे अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और तमाम सहाबा को बेहद खुशी हुई।


★_एक रोज़ सहाबा किराम नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के गिर्द जमा थे। ऐसे में किसी ने कहा :- अल्लाह की क़सम! कुरेश ने आज तक नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के अलावा किसी और की ज़ुबान से बुलंद आवाज़ में क़ुरान नहीं सुना ,इसलिए तुम में से कौन है जो उनके सामने बुलंद आवाज़ में क़ुरान पढ़े ।

यह सुनकर हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- मैं उनके सामने बुलंद आवाज़ से क़ुरान पढ़ुंगा।

अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु की बात सुनकर सहाबा ने कहा :-हमें कुरेश की तरफ से आपके बारे में खतरा है। हम तो ऐसा आदमी चाहते हैं जिसका खानदान कुरेश से उसकी हिफाजत़ करता रहे ।

इसके जवाब में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :-तुम मेरी परवाह ना करो अल्लाह ताला खुद मेरी हिफाज़त फरमा एंगे।


★_दोपहर के बाद हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु बैतुल्लाह में पहुंच गए। आप मक़ामे इब्राहिम के पास खड़े हो गए। उस वक्त कुरेश अपने-अपने घरों में थे ।अब उन्होंने बुलंद आवाज से क़ुरान पढ़ना शुरू किया । क़ुरेश ने यह आवाज़ सुनी तो कहने लगे :- इस गुलाम ज़ाद को क्या हुआ ?

कोई और बोला:- मोहम्मद जो कलाम लेकर आएं हैं यह वही पढ़ रहा है ।

यह सुनते ही मुशरिकीन उनकी तरफ दौड़े और लगे उन्हें मारने पीटने । अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु चोटे खाते जाते थे और कुरान पढ़ते जाते थे ,यहां तक कि उन्होंने सूरत का ज्यादातर हिस्सा तिलावत कर डाला।


★_इसके बाद वहां से अपने साथियों के पास आ गए ।उनका चेहरा उस वक्त तक लहूलुहान हो चुका था। उनकी यह हालत देख कर मुसलमान बोल उठे :- हमें तुम्हारी तरफ से इसी बात का खतरा था ।

हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- अल्लाह की क़सम ! अल्लाह के दुश्मनों को मैंने अपने लिए आज से ज्यादा हल्का और कमज़ोर कभी नहीं पाया ,अगर तुम लोग कहो तो कल फिर उनके सामने जाकर क़ुरान पढ़ सकता हूं। 

इस पर मुसलमान बोले:- नहीं ,वह लोग जिस चीज को नापसंद करते हैं आप उन्हें वह काफी सुना आए हैं।

★__ कुफ्फार का यह जुल्मों सितम जारी रहा ,ऐसे में एक दिन हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सफा की पहाड़ी के पास मौजूद थे । अबू जहल आपके पास से गुज़रा उसने आपको देख लिया और लगा गालियां देने । उसने आपके सर पर मिट्टी भी फेंकी।  अब्दुल्लाह बिन जद'आन की बांदी ने यह मंजर देखा । फिर अबू जहल आपके पास से चलकर हरम में दाखिल हुआ वहां मुशरिकीन जमा थे । वह उनके सामने अपना कारनामा बयान करने लगा । उसी वक्त आपके चाचा हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु हरम में दाखिल हुए ।यह उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे । तलवार उनकी कमर से लटक रही थी,  वह उस वक्त शिकार से वापस आए थे । उनकी आदत थी कि जब शिकार से लौटते तो पहले हरम जाकर तवाफ करते थे, फिर घर जाते थे।


★_ हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु हरम में दाखिल होने से पहले अब्दुल्लाह बिन जद'आन की बांदी के पास से गुज़रे । उसने सारा मंजर खामोशी से देखा और सुना था। उसने हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा :- ऐ हमज़ा ! कुछ खबर भी है ? अभी-अभी यहां  हकम बिन हिशाम (अबु जहल )  ने तुम्हारे भतीजे के साथ क्या सलूक किया है ? वो यहां बैठे थे अबू जहल ने उन्हें देख लिया उन्हें ,तकलीफ पहुंचाई , गालियां दी और बहुत बुरी तरह पेश आया। आपके भतीजे ने जवाब में उसे कुछ भी ना कहा ।

सारी बात सुनकर हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- तुम जो कुछ बयान कर रही हो क्या यह तुमने अपनी आंखों से देखा है? 

उसने फौरन कहा:-  हां , मैंने खुद देखा है_,"


★__ यह सुनते ही हज़रत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु जोश में आ गए। चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। फौरन हरम में दाखिल हो गए। वहां अबू जहल मौजूद था , वह क़ुरेशियों के दरमियान में बैठा था। यह सीधे उस तक जा पहुंचे हाथ में कमान थी , बस वही खींचकर उसके सिर पर दे मारी। अबू जहल का सिर फट गया। हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उससे कहा:- 

"_ तू मोहम्मद को गालियां देता है, सुन लें !  मैं भी उसका दीन अख्त्यार करता हूं , जो कुछ वह कहता है वही मैं भी कहता हूं । अब अगर तुझ में हिम्मत है तो मुझे जवाब दे_," 

अबू जहल उनकी मिन्नत समाजत करते हुए बोला :- वह हमें बे अक़ल बताता है, हमारे मा'बूदों का बुरा कहता है, हमारे बाप दादा के रास्ते के खिलाफ चलता है ।

यह सुनकर हज़रत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :-  और खुद तुमसे ज्यादा बे अक़ल और बेवकूफ कौन होगा जो अल्लाह  को छोड़कर पत्थर के टुकड़ों को पूजते हो । मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई मा'बूद नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल है_,"


★_ उनके यह अल्फाज़ सुनकर अबू जहल के खानदान के कुछ लोग एकदम हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ बड़े और उन्होंने कहा :- अब तुम्हारे बारे में भी हमें यक़ीन हो गया है कि तुम भी बेदीन हो गए हो।

जवाब में हजरत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- 

आओ.. कौन है मुझे इससे रोकने वाला , मुझ पर हक़ीक़तत रोशन हो गई है। मैं गवाही देता हूं कि वह अल्लाह के रसूल है जो कुछ वह कहते हैं वह हक़ और सच्चाई है । अल्लाह की क़सम ! मैं उन्हें नहीं छोडूंगा , अगर तुम सच्चे हो तो मुझे रोक कर दिखाओ_," 

यह सुनकर अबू जहल ने अपने लोगों से कहा :-  अबू अम्मारा (यानी हज़रत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ) को छोड़ दो , मैंने वाक़ई इनके भतीजे के साथ अभी कुछ बुरा सुलूक किया था_,"


★_ वो लोग हट गए । हज़रत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु घर पहुंचे । घर आकर उन्होंने उलझन महसूस की कि मैं यह क़ुरेस के सामने क्या कहन आया हूं .. मैं तो कुरेश का सरदार हूं_," 

लेकिन फिर उनका ज़मीर उन्हें मलामत करने लगा , आखिर शदीद उलझन के आलम में उन्होंने दुआ की :- 

"_ ऐ अल्लाह ! अगर यह सच्चा रास्ता है तो मेरे दिल में यह बात डाल दें और अगर ऐसा नहीं है तो फिर मुझे इस मुश्किल से निकाल दें जिसमें मैं  घिर गया हूं _,"

★__ वह रात इन्होंने इसी उलझन में गुजारी ।आखिर सुबह हुई तो हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के पास पहुंचे ,आपसे अर्ज किया :- 

"_ भतीजे ! मैं ऐसे मामले में उलझ गया हूं कि मुझे इससे निकलने का कोई रास्ते समझाई ही नहीं देता और एक ऐसी सूरते हाल में रहना जिसके बारे में मैं नहीं जानता यह सच्चाई है या नहीं , बहुत सख्त मामला है _,"


★_इस पर आन'हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ मुतवज्ज़ह हुए, आपने उन्हें अल्लाह के अज़ाब से डराया, सवाब की खुशखबरी सुनाई । आपके वाज़ व नसीहत का यह असर हुआ कि अल्लाह ताला ने इन्हें ईमान का नूर अता फरमा दिया। वह बोल उठे :-  भतीजे ! मैं गवाही देता हूं कि तुम अल्लाह के रसूल हो ,बस अब तुम अपने दीन को खोल कर पेश करो।


"_हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- इस वाक्य़ पर कुराने पाक की यह आयत नाजिल हुई :- 

*(तर्जुमा)*_  ऐसा शख्स जो कि पहले मुर्दा था फिर हमने उसे जिंदा कर दिया और हमने उसे एक ऐसा नूर दे दिया कि वह इसे लिए हुए चलता फिरता है । (सूरह अल अन'आम)


★_ हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु के ईमान लाने पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बहुत ज्यादा खुशी हुई, इसकी एक वजह तो यह थी कि हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु आपके सगे चाचा थे । दूसरी वजह यह थी कि वह पूरे क़ुरेश में सबसे ज्यादा मौअज्ज़ज़ फर्द थे , इसके साथ ही वह क़ूरेश के सबसे ज्यादा बहादुर, ताकतवर और खुद्दार इंसान थे। और इसी बुनियाद पर जब क़ुरेश ने देखा कि अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मजीद क़ुव्वत हासिल हो गई है तो उन्होंने आपको तकलीफ पहुंचाने का सिलसिला बंद कर दिया लेकिन अपने तमाम जु़ल्मो सितम अब वह कमजोर मुसलमानों ढ़ाने लगे।


★_ किसी क़बीले का भी कोई शख्स मुसलमान हो जाता वह उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते । ऐसे लोगों को कैद कर देते, भूखा प्यासा रखते, तपती रेत पर लिटाते , यहां तक कि उसका यह हाल हो जाता कि सीधे बैठने के काबिल भी ना रहता । इस ज़ुल्म और ज्यादती पर सबसे ज्यादा अबु जहल लोगों को उकसाता था। 


★_ऐसे ही लोगों में से एक हजरत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे । आपका पूरा नाम बिलाल बिन रबाह था। यह उमैया बिन खल्फ के गुलाम थे।


★_हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में पैदा हुए थे । पहले अब्दुल्लाह बिन जद'आन तैयमी के गुलाम थे । अब्दुल्लाह बिन जद'आन के १०० गुलाम थे यह उनमें से एक थे । जब इस्लाम का आगाज़ हुआ और उसका नूर फैला तो अब्दुल्लाह बिन जद'आन ने अपने 99 गुलामों को इस खौफ से मक्का के बाहर भिजवा दिया कि कहीं वह मुसलमान ना हो जाएं। बस उसने हजरत बिलाल बिन रबाह रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने पास रख लिया। यह उसकी बकरियां चराया करते थे । इस्लाम की रोशनी हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु तक भी पहुंची। यह ईमान ले आए  मगर इन्होंने अपने इस्लाम को छुपाए रखा।

एक रोज़ इन्होंने काबा के चारों तरफ रखें बुतों पर गंदगी डाल दी, साथ ही वह उन पर थूकते जाते थे और कहते जाते थे :- जिसने तुम्हारी इबादत की वह तबाह हो गया ।


★_यह बात क़ुरेश को मालूम हो गई। वह फौरन अब्दुल्लाह बिन जद'आन के पास आए और उससे बोले:-  तुम बेदीन हो गए हो ,

उसने हैरान होकर कहा :- क्या मेरे बारे में भी यह बात कही जा सकती है ?

इस पर वह बोले :- तुम्हारे गुलाम  बिलाल ने आज ऐसा किया है _,"

"_ क्या _," वह हैरतजदा रह गया ।

 ★__ अब्दुल्लाह बिन जद'आन ने फौरन क़ुरेश को एक सौ  दिरहम दिए ताकि बुतों की जो तोहीन हुई है उसके बदले उनके नाम पर कुछ जानवर ज़िबह कर दिए जाएं । फिर वह हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ बढ़ा, उसने उन्हें रस्सी से बांध दिया, तमाम दिन भूखा और प्यासा रखा। फिर तो यह उसका रोज़ का मामूल बन गया। जब दोपहर के वक्त सूरज आग बरसाने लगता तो उन्हें घर से निकाल कर तपती हुई रेत पर चित्त लिटा देता । उस वक्त रेत इस क़दर गर्म होती थी कि अगर उस पर गोश्त का टुकड़ा रख दिया जाता तो वह भी भुन जाता था। वह इसी पर बस नहीं करता था । एक वज़नी पत्थर मंगाता और उनके सीने पर रख देता ताकि वह अपनी जगह पर से हिल भी ना सके । फिर वह बदबख्त उनसे कहता :- 

"_ अब या तो मोहम्मद की रिसालत और पेगम्बरी से इंकार कर और लात व उज्जा़ की इबादत कर वरना मैं तुझे यहां इस तरह लिटाए रखूंगा यहां तक कि तेरा दम निकल जाएगा_,"


★_ हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु उसकी बात के जवाब में फरमाते :- अहद....अहद..।

यानी अल्लाह ताला एक है उसका कोई शरीक नहीं ।

जब हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु किसी तरह इस्लाम से ना हटे तो तंग आकर अब्दुल्लाह बिन जद'आन ने इन्हें उमैया बिन खल्फ के हवाले कर दिया । अब यह शख्स इन पर उससे भी ज़्यादा जु़ल्मों सितम ढाने लगा।


★_एक रोज़ इन्हें इसी कि़स्म की खौफनाक सज़ा दी जा रही थी, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उस तरफ से गुज़रे। हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु शिद्दते तकलीफ की की हालत में अहद अहद  पुकार रहे थे ।

आपने उन्हें इस हालत में देखकर फरमाया :- बिलाल तुम्हें यह अहद अहद ही निजात दिलाएगा।


★_ फिर एक रोज़ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस तरफ से गुज़रे। उमैया बिन खल्फ ने उन्हें गर्म रेत पर लिटा रखा था ,सीने पर एक भारी पत्थर रखा हुआ था । उन्होंने यह दर्दनाक मंजर देखकर उमैया बिन खल्फ से कहा :- क्या इस मिस्कीन के बारे में तुम्हें अल्लाह का खौफ नहीं आता ,आखिर कब तक तुम इसे अजा़ब दिए जाओगे। 

उमैया बिन खल्फ ने जलकर कहा :- तुम्हीं ने इसे खराब किया है इसलिए तुम ही से निजात क्यों नहीं दिला देते ।

उसकी बात सुनकर हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु बोले  :- मेरे पास भी एक हब्शी गुलाम है वह इनसे ज्यादा ताकतवर है और तुम्हारे ही दीन पर है , मैं इनके बदले में तुम्हें वह दे सकता हूं ।

यह सुनकर उमैया बोला :- मुझे यह सौदा मंजूर है।


★_यह सुनते ही अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अपना हब्शी गुलाम उसके हवाले कर दिया ,उसके बदले में हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को ले लिया और आज़ाद कर दिया।


★_ सुब्हानल्लाह ! क्या खूब सौदा हुआ । यहां यह बात जान लेनी चाहिए कि हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु का हब्शी गुलाम दुनिया के लिहाज़ से बहुत की़मती था । यह भी कहा जाता है कि वह उमैया बिन खल्फ ने गुलाम के साथ 10 ओक़िया सोना भी तलब किया था और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उसका यह मुतालबा भी मान लिया था ।आपने उसे एक यमनी चादर और कुछ सोना दिया था । साथ ही आपने उमैया बिन खल्फ से फरमाया था :-  अगर तुम मुझसे सौ ओकि़या सोना भी तलब करते तो भी मैं तुम्हें दे देता _,"

 ★_ हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के अलावा हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने और भी बहुत से गुलाम मुसलमानों को खरीद कर आज़ाद करवाया था। यह वह मुसलमान गुलाम थे ,जिन्हें अल्लाह का नाम लेने की वजह से जु़ल्म का निशाना बनाया जा रहा था । इनमें एक हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की वाल्दि हमामा रज़ियल्लाहु अन्हा थी, एक आमिर बिन फहीरा रज़ियल्लाहु अन्हु थे ,इन्हें अल्लाह का नाम लेने पर बड़े बड़े अज़ाब दिए जाते , ये क़बीला बनी तमीम के एक शख्स के गुलाम थे । वह हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु का रिश्तेदार था। आपने अपने रिश्तेदार से खरीद कर इन्हें भी आज़ाद फरमाया, एक साहब अबू फकिया रज़ियल्लाहु अन्हु थे ,  यह सफवान बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु के गुलाम थे, यह हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ मुसलमान हुए थे ।

सफवान बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु भी इब्तेदा में मुसलमानों के सख्त मुखालिफ थे , वह फतह मक्का के बाद इस्लाम लाए थे।


★_ एक रोज़ इन्होंने हजरत अबू फकिया रजियल्लाहु अन्हु को गर्म रेत पर लिटा रखा था ,ऐसे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस तरफ से गुज़रे,  उस वक्त सफवान बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु यह अल्फाज कह रहे थे :- 

"_इसे अभी और अज़ाब दो यहां तक कि मुहम्मद यहां आकर अपने जादू से इसे निजात दिलाएं _,"

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उसी वक्त सफवान बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु से इन्हें खरीद कर आजाद कर दिया।


★_ इसी तरह जुनेरा रज़ियल्लाहु अन्हा नामी एक औरत को मुसलमान होने की बुनियाद पर इस क़दर खौफनाक सजा दी गई कि वह बेचारी अंधी हो गई । एक रोज अबू जहल में उनसे कहा :- 

"_जो कुछ तुम पर बीत रही है यह सब लात व उज्जा़ कर रहे हैं _," 

यह सुनते ही जुनेरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:-  हरगिज़ नहीं, अल्लाह की कसम ! लात व उज्जा़ ना कोई नफा पहुंचा सकते हैं ना कोई नुकसान ,यह जो कुछ हो रहा है आसमान वाले की मर्जी से हो रहा है ,मेरे परवरदिगार को यह भी कुदरत है कि वह मुझे मेरी आंखों की रोशनी लौटा दे _,"


★_दूसरे दिन वह सुबह उठी तो उनकी आंखों की रोशनी अल्लाह ताला ने लौटा दी थी। इस बात का जब काफिरों को पता चला तो वह बोल उठे :- 

"_यह मोहम्मद की जादूगरी है_,"

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने इन्हें भी खरीद कर आज़ाद कर दिया।

आपने जुनेरा रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी को भी खरीद कर आज़ाद किया । इसी तरह नहदिया नाम की एक बांदी थी उनकी एक बेटी भी थी दोनों वलीद बिन मूगीरा की बांदियां थी, इन्हें भी हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने आज़ाद कर दिया।


★_आमिर बिन फहीरा की बहन और उनकी वाल्दा भी ईमान ले आई थी , यह हजरत उमर के मुसलमान होने से पहले उनकी बांदियां थी । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने इन्हें भी खरीद कर आज़ाद कर दिया।

 ईमान लाने वाले जिन लोगों पर जुल्म ढाए गए उनमें से एक हजरत खब्बाब बिन अर्त रज़ियल्लाहु अन्हु भी है । काफिरों ने इन्हें इस्लाम से फैरने की कोशिशें की मगर यह साबित क़दम रहे , इन्हें जाहिलियत के जमाने में गिरफ्तार किया गया था, फिर इन्हें एक औरत उम्मे अनमार ने खरीद लिया। यह एक लोहार थे, नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उनकी दिलजोई फरमाते थे, इनके पास तशरीफ ले जाया करते थे। जब यह मुसलमान हो गए और उम्मे अनमार को यह बात मालूम हुई तो उसने उन्हें बहुत खौफनाक सज़ा दी । वह लोहे का कड़ा लेकर आग में गर्म करती,  खूब सुर्ख करती फिर उसको हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु के सर पर रख देती । आखिर हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से अपनी मुसीबत का जिक्र किया तो आपने इनके लिए दुआ फरमाई। 

नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की दुआ के फौरन बाद उस औरत के सर में शदीद दर्द शुरू हो गया ,इससे वह कुत्तों की तरह भौंकती थी । आखिर किसी ने उसे इलाज बताया कि वह लोहा तपा कर सर पर रखवाये,  उसने यह काम हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु  के जि़म्मे लगाया। अब आप वह हल्का़ खूब गर्म करके उसके सर पर रखते।

 ★_ हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक रोज़ मैं हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में गया और यह वह ज़माना था जब हम पर खूब जु़ल्म किया जाता था । मैंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज़ किया :- ए अल्लाह के रसूल, क्या आप हमारे लिए दुआ नहीं फरमाते ।

मेरे अल्फाज सुनते ही आप सीधे होकर बैठ गए, आपका चेहरा मुबारक सुर्ख हो गया, फिर आपने फरमाया :- 

"_ तुमसे पहली उम्मत के लोगों को अपने दीन के लिए कहीं ज़्यादा अज़ाब बर्दाश्त करने पड़े। उनके जिस्मों के ऊपर लोहे की कंघियां की जाती थी जिससे उनकी खाल और हड्डियां अलग हो जाती थी, मगर यह तकलीफ भी उन्हें उनके दीन से ना हटा सकी , उनके सरों पर आरे चला चला के उनके जिस्म दो कर दिए गए ,मगर वह अपना दीन छोड़ने को तैयार फिर भी ना हुए। 

इस दीन ए इस्लाम को अल्लाह ताला इस तरह फैला देगा कि सन'आ के मका़म से हज़रमौत जाने वाले सवार को सिवाय अल्लाह ताला के किसी का खौफ नहीं होगा यहां तक कि चरवाहे को अपनी बकरियों के मुताल्लिक भेड़ियों का डर नहीं होगा ।


★_ हज़रत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- एक दिन मेरे लिए आग दहकाई गई ,फिर वह आग मेरी कमर पर रख दी गई और फिर उसको उस वक्त तक नहीं हटाया गया जब तक कि वह आग मेरी कमर की चर्बी से बुझ ना गई।


★_ ऐसे ही लोगों में हजरत अम्मार बिन यासिर रजियल्लाहु अन्हु भी थे । हज़रत अम्मार बिन यासिर रजियल्लाहु अन्हु को उनके दीन से फिरने के लिए मुशरिक़ो ने तरह-तरह के ज़ुल्म किये , आग से जला जला कर अज़ाब दिए , मगर वह दीन पर क़ायम रहे।


★_ अल्लमा इब्ने जौज़ी रहमतुल्लाह लिखते हैं :-  एक मर्तबा आन'हज़रत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस तरफ तशरीफ ले जा रहे थे ,उस वक्त हजरत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु को आग से जला जला कर तकलीफ पहुंचाई जा रही थी, उनकी कमर पर जलने की वजह से कोढ़ जैसे सफेद दाग पड़ गए थे । आन'हज़रत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनके सर पर हाथ फेरा और फरमाया :- 

"_ए आग ठंडी और सलामती वाली बन जा ,जैसा कि तू इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए हो गई थी _," 

इसके बाद उन्हें आग की तकलीफ महसूस नहीं होती थी।

 ★_ हजरत उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि हजरत अम्मार बिन यासिर ,इनके वालिद यासिर, इनके भाई अब्दुल्लाह और इनकी वाल्दा सुमैया रजियल्लाहु अन्हुम, इन सभी को अल्लाह का नाम लेने की वजह से सख्त तरीन अज़ाब दिए गए । एक रोज़ जब इन्हें तकालीफ पहुंचाई जा रही थी तो नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस तरफ से गुज़रे,  आपने इनकी तकालीफ को देखकर फरमाया :- अल्लाह आले यासिर की मग्फिरत फरमा _,"


★_ इनकी वाल्दा सुमैया रज़ियल्लाहु अन्हा को अबू जहल के चाचा हुजै़फा बिन इब्ने मूगीरा ने अबू जहल के हवाले कर दिया। यह उसकी बांधी थी । अबू जहल ने इन्हें नेज़ा मारा ,इससे वह शहीद हो गई । इस तरह इस्लाम में इन्हें सबसे पहली शहीद होने का एज़ाज़ हासिल हुआ । आखिर इन्हीं मज़ालिम की वजह से हजरत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद यासिर रजियल्लाहु अन्हु भी शहीद हो गए।

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★: चांद दो टुकड़े हो गया _,*

★__ अपने इन मज़ालिम और बदतरीन हरकात के साथ साथ यह लोग हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मौज़जा़त का मुतालबा भी करते रहते थे । एक रोज़ अबू जहल दूसरे सरदारों के साथ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास आया और बोला :- मोहम्मद ! अगर तुम सच्चे हो तो हमें चांद के दो टुकड़े करके दिखाओ वह भी इस तरह की एक टुकड़ा अबू क़ुबैस पहाड़ पर नजर आए और दूसरा कै़यक़'आन पहाड़ पर नजर आए। 

मतलब यह था कि दोनों टुकड़े काफी फासले पर हो ताकि उसके दो टुकड़े होने में कोई शक ना रह जाए।


★_उस रोज महीने की 14वी तारीख थी चांद पूरा था। आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी यह अजीब फरमाइश सुनकर फरमाया :- अगर मैं ऐसा कर दिखाऊं तो क्या तुम ही ईमान ले आओगे ?

उन्होंने एक ज़ुबान होकर कहा :- हां , बिल्कुल हम ईमान ले आएंगे। 

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह ताला से दुआ फरमाई कि आपके हाथ से ऐसा हो जाए। चुनांचे चांद फौरन दो टुकड़े हो गया, उसका एक हिस्सा अबू क़ुबैस पहाड़ के ऊपर नजर आया दूसरा कैयक़'आन पहाड़ पर।


★_उस वक्त नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- लो , अब गवाही दो ।

उनके दिलों पर तो कि़फ्ल पड़े थे, कहने लगे :- मोहम्मद ने हम लोगों की आंखों पर जादू कर दिया है।

कुछ ने कहा :- मोहम्मद ने चांद पर जादू कर दिया है मगर उनके जादू का असर सारी दुनिया के लोगों पर नहीं हो सकता ।


"_मतलब यह था कि हर जगह के लोग चांद को दो टुकड़े नहीं देख रहे होंगे ,अब उन्होंने कहा:- हम दूसरे शहरों से आने वालों से यह बात पूछेंगे।

★__ चुनांचे जब मक्का में दूसरे शहरों के लोग दाखिल हुए तो उन्होंने चांद के बारे में उनसे पूछा, आने वाले सब लोगों ने यही कहा:-  हां हां ! हमने भी चांद को दो टुकड़े होते देखा है ।

यह सुनते ही मुशरिक बोल उठे :- बस फिर तो यह आम जादू है इसका असर सब पर हुआ है।

 कुछ ने कहा :-यह ऐसा जादू है जिससे जादूगर भी मुतास्सिर हुए हैं। यानी जादूगरों को भी चांद दो टुकड़े नजर आया है।


★_इस पर अल्लाह ताला ने सूरह क़मर की आयत नाजिल फरमाई :- 

*"_( तर्जुमा )* _कयामत नज़दीक आ पहुंची और चांद शक हो गया और यह लोग कोई मौज्ज़ा देखते हैं तो टाल देते हैं और कहते हैं यह जादू है जो अभी खत्म हो जाएगा।


★_मुख्तलिफ क़ौमों की तारीख से यह बात साबित होती है कि चांद का दो टुकड़े होना सिर्फ मक्का में नजर नहीं आया था बल्कि दूसरे मुल्कों में भी इसका मुशाहिद किया गया था ।

इसी तरह एक दिन मुशरिकीन ने कहा :-अगर आप वाक़ई नबी हैं तो इन पहाड़ों को हटा दीजिए जिनकी वजह से हमारा शहर तंग हो रहा है ताकि हमारी आबादी फैलकर बस जाए और अपने रब से कहकर ऐसी नहरें जारी करा दें जैसी शाम और इराक में है और हमारे बाप दादा को दोबारा जिंदा करा के दिखाओ ,उन दोबारा जिंदा होने वालों में क़ुसई बिन किलाब जरूर हो इसलिए कि वह निहायत दाना और अक़लमंद बुजुर्ग था , हम उससे पूछेंगे आप जो कुछ कहते हैं सच है या झूठ।


अगर हमारे इन बुजुर्गों ने आप की तस्दीक कर दी और आपने हमारा यह मुतालबे भी पूरे कर दिए तो हम आपके नबूवत का इक़रार कर देंगे और जान लेंगे कि आप वाक़ई अल्लाह की तरफ से भेजे हुए हैं अल्लाह ताला ने आपको हमारी तरफ रसूल बनाकर भेजा है जैसा कि आप दावा करते हैं।


★_उनकी ये बातें सुनकर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- मुझे इन बातों के लिए तुम्हारी तरह रसूल बनाकर नहीं भेजा गया बल्कि मैं तो इस मक़सद के लिए भेजा गया हूं कि एक अल्लाह की इबादत करो।

★__ एक मुशरिक कहने लगा :- आप इस तरह खाना खाते हैं जिस तरह हम खाते हैं इस तरह बाजारों में चलते हैं जिस तरह हम चलते हैं हमारी तरह जिंदगी की जरूरियात पूरी करते हैं लिहाज़ा आपको क्या हक है कि नबी कहकर खुद को नुमाया करें और यह कि आपके साथ कोई फरिश्ता क्यों नहीं होता जो आप की तस्दीक करता।


★_इस पर अल्लाह ताला ने सूरह फुरकान की आयत 7  नाजिल  फरमाई :-

*"_( तर्जुमा )*_ और यह काफिर लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की निस्बत यू कहते हैं कि इस रसूल को क्या हो गया है कि वह हमारी तरह खाना खाता है और बाजारों में चलता फिरता है इसके साथ कोई फरिश्ता क्यों नहीं भेजा गया कि वह इसके साथ रह कर डराया करता , इसके पास गैब से कोई खजाना आ पड़ता या इसके पास कोई ( गैबी ) बाग होता जिससे यह खाया करता और ईमान लाने वालों से यह ज़ालिम लोग यह भी कहते हैं कि तुम तो एक बे अक़ल आदमी की राह पर चल रहे हो ।


★_फिर जब उन्होंने यह कहा कि अल्लाह ताला की जा़त इससे बहुत बुलंद है कि वह हम ही में से एक बंदे को रसूल बनाकर भेजें तो इस पर अल्लाह ताला ने सूरह यूनुस की आयत नाजिल फरमाई :- 

*"_( तर्जुमा )*_ क्या इन मक्का के लोगों को इस बात से ताज्जुब हुआ कि हमने इनमें से एक शख्स के पास वही भेज दी कि सब आदमियों को अल्लाह के अहकामात के खिलाफ चलने पर डराए और जो ईमान ले आए उन्हें खुशखबरी सुना दे की उन्हें अपने रब के पास पहुंचकर पूरा रुतबा मिलेगा।


★_इसके बाद उन लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा :- हम पर आसमान के टुकड़े टुकड़े कर के गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है कि तुम्हारा रब जो चाहे कर सकता है, हमें मालूम हुआ है कि तुम जिस रहमान का ज़िक्र करते हो वह रहमान यमामा का एक शख्स है, वह तुम्हें यह बातें सिखाता है । हम लोग अल्लाह की क़सम कभी रहमान पर ईमान नही लाएंगे।


★_यहां रहमान से इन लोगों की मुराद यमामा के एक यहूदी काहिन से था, इस बात के जवाब में अल्लाह ताला ने सूरह रा'द की आयत नाजिल फरमाई :- 

*"_( तर्जुमा)*_  आप फरमा दीजिए कि वही मेरा मुरब्बी और निगहबान है उसके सिवा कोई इबादत के काबिल नहीं ,मैंने उसी पर भरोसा कर लिया और उसी के पास मुझे जाना है।


"_उस वक्त आप पर रंज और गम की कैफियत तारी थी ।आपकी ख्वाइश थी यह लोग ईमान कबूल कर ले लेकिन ना हो सका इसलिए गमगीन थे इसी हालत में आप वहां से उठ गए।

★__मुशरिकीन ने इस किस्म की और भी फरमाइशें की । कभी वह कहते सफा पहाड़ को सोने का बना कर दिखाओ, कभी कहते सीढ़ी के जरिए आसमान पर चढ़कर दिखाओ और फरिश्तों के साथ वापस आओ । उनकी तमाम बातों के जवाब में अल्लाह ताला ने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को आपकी खिदमत में भेजा । उन्होंने आ कर के कहा :- ए मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह ताला आपको सलाम फरमाते हैं और फरमाते हैं कि अगर आप चाहें तो सफा पहाड़ को सोने का बना दिया जाए , इस तरह उनके जो मुतालबात हैं उनको भी पूरा कर दिया जाए लेकिन इसके बाद भी अगर यह लोग ईमान ना लाए तो फिर साबका़ क़ौमो की तरह उन पर होलनाक़ अज़ाब नाज़िल होगा ,ऐसा अज़ाब कि आज तक किसी क़ौम पर नाज़िल नहीं हुआ होगा और अगर आप ऐसा नहीं चाहते हैं तो मैं उन पर रहमत और तौबा का दरवाजा खुला रखूंगा।


यह सुनकर आपने अर्ज़ किया :- बारी ता'ला !  आप अपनी रहमत और तौबा का दरवाजा खुला रखें।


★__ दरअसल आप जानते थे कि कुरेश के यह मुतालबात जहालत की बुनियाद पर है क्योंकि यह लोग रसूलों को भेजने की हिकमत को नहीं जानते थे.. रसूलों का भेजा जाना तो दरअसल मखलूक़ का इंतिहान होता है ताकि वह रसूलों की तस्दीक़ करें और रब ता'ला की इबादत करें। अगर अल्लाह ता'ला दरमियां से सारे परदे हटा दे और सब लोग आंखों से सब कुछ देख ले तो फिर तो अंबिया और रसूलों को भेजने की ज़रूरत ही बाक़ी नहीं रहती और गैब पर ईमान लाने का कोई मा'नी ही नहीं रहता।


★__मक्का के मुशरीकीन ने 2 यहूदी आलिमों के पास अपने आदमी भेजें । यहूदी आलिम मदीना में रहते थे । दोनों कासिदों ने यहूदी आलिमों से मुलाकात की और उनसे कहा हम आपके पास अपना एक मामला लेकर आए हैं, हम लोगों में एक यतीम लड़का है उसका दावा है कि वह अल्लाह का रसूल है। 

यह सुनकर यहूदी आलिम बोले :- हमें उसका हुलिया बताओ ।

क़ासिदों ने नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का हुलिया बता दिया ,तब उन्होंने पूछा :-तुम लोगों में से किन लोगों ने उनकी पैरवी की है। 

उन्होंने जवाब दिया :-कम दर्जे के लोगों ने ।

अब उन्होंने कहा:- तुम जाकर उनसे तीन सवाल करो अगर उन्होंने इन तीन सवालों के जवाब दे दिए तो वह अल्लाह के नबी है और अगर जवाब ना दे सके तो फिर समझ लेना वह कोई झूठा शख्स है ।

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*★__ तीन सवालात _,"*


★__पहले उनसे उन नौजवानों के बारे में सवाल करो जो पीछे जमाने में कहीं निकल गए थे यानी असहाबे कहफ के बारे में पूछो कि उनका क्या वाक्य था। इसलिए कि उनका वाक्य निहायत अजीब और गरीब है। हमारी पुरानी किताबों के अलावा इस वाक्य का जिक्र कहीं नहीं मिलेगा ....अगर वो नबी है तो अल्लाह ताला की तरफ से खबर पाकर उनके बारे में बता देंगे वरना नहीं बता सकेंगे। फिर उनसे पूछना कि सिकंदर ज़ुलक़रनैन कौन था ? उसका क्या किस्सा है। फिर उनसे रूह के बारे में पूछना कि वो क्या चीज है ?

अगर उन्होंने पहले दोनों सवालों का जवाब दे दिया और उनका वाक्य बता दिया और तीसरे सवाल यानी रूह के बारे में बता दिया ,तो तुम लोग समझ लेना कि वह सच्चे नबी है इस सूरत में तुम उनकी पैरवी करना।


★_यह लोग यह तीन सवालात लेकर वापस मक्का आए और क़ुरेश से कहा -हम ऐसी चीज लेकर आए हैं कि इससे हमारे और मुहम्मद के दरमियान फैसला हो जाएगा । इसके बाद उन्होंने सबको तफ्सील सुनाई। अब यह मुशरिकीन हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आए ,उन्होंने आपसे कहा- मुहम्मद ! अगर आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं तो हमारे तीन सवालात के जवाबात बता दे,  हमारा पहला सवाल यह है कि असहाबे कहफ कौन थे ? दूसरा सवाल यह है कि जु़लक़रनैन कौन थे ? तीसरा सवाल यह है कि रूह क्या चीज है ? 

आपने उनके सवालात सुनकर फरमाया :- मैं इन सवालात के जवाबात तुम्हें कल दूंगा ।


★_नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इस जुमले में इंशाल्लाह ना फरमाया । यानी यह ना फरमाया- इंशा अल्लाह मैं तुम्हें कल जवाब दूंगा ।

कुरेश आपका जवाब सुनकर वापस चले गए । आन'हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वही का इंतजार करने लगे लेकिन वही ना आई । दूसरे दिन वो लोग आ गए आप उन्हें कोई जवाब ना दे सके। वह लोग लगे बातें करने उन्होंने यह तक कह दिया- मुहम्मद के रब ने उन्हें छोड़ दिया । 

उन लोगों में अबू लहब की बीवी उम्मे जमील भी थी उसने भी यह अल्फाज़ कहे :- मैं देखती हूं कि तुम्हारे मालिक ने तुम्हें छोड़ दिया है और तुमसे नाराज़ हो गया है।


★_नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को कुरेश की यह बातें बहुत शाक़ गुज़री । आप बहुत परेशान और गमगीन हो गए। आखिर जिब्राइल अलैहिस्सलाम सुरह कहफ लेकर नाज़िल हुए । अल्लाह की तरफ से आपको हिदायत की गई :- 

"_  और आप किसी काम की निस्बत यूं ना कहा कीजिए कि इसको कल कर दूंगा मगर अल्लाह के चाहने को मिला लिया कीजिए ( यानी इंशाल्लाह कहा कीजिए ) आप भूल जाएं तो अपने रब का जिक्र किया कीजिए और कह दीजिए कि मुझे उम्मीद है मेरा रब मुझे ( नबुवत की दलील बनने के एतबार से ) इससे भी नज़दीक तर बात बता देगा ।

*( सूरह कहफ )*


"_ मतलब यह था कि जब आप यह कहे कि आइंदा फलां वक्त पर मैं यह काम करूंगा तो उसके साथ इंशाल्लाह जरूर कहां करें अगर आप उस वक्त अपनी बात के साथ इंशाल्लाह मिलाना भूल जाए और बाद में याद आ जाए तो उस वक्त इंशाल्लाह कह दिया करें इसलिए कि भूल जाने के बाद याद आने पर वह इंशाल्लाह कह देना भी ऐसा है जैसे गुफ्तगू के साथ कह देना होता है।

 ★__ इस मौके पर वही में देर इसी बिना पर हुई थी कि आपने इंशाल्लाह नहीं कहा था । जब जिब्राइल अलैहिस्सलाम सुरह कहफ लेकर आए तो आपने उनसे पूछा था :- जिब्राइल ! तुम इतनी मुद्दत मेरे पास आने से रुके रहे इससे तशवीश पैदा होने लगी थी ।

जवाब में हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया:-  हम आपके रब के हुक्म के बगैर ना एक जमाने से दूसरे जमाने में दाखिल हो सकते है ना एक जगह से दूसरी जगह जा सकते हैं , हम तो सिर्फ उसके हुक्म पर अमल करते हैं और यह जो कुफ्फार कह रहे हैं कि आपके रब ने आपको छोड़ दिया है तो आपके रब ने आप को हरगिज़ नहीं छोड़ा बल्कि यह सब उसकी हिकमत के मुताबिक हुआ है ।


★__ फिर हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आपको असहाबे कहफ के बारे में बताया जु़लकरनैन के बारे में बताया और फिर रूह के बारे में वजाहत की। असहाबे कहफ की तफसील इब्ने कसीर के मुताबिक यूं है  :- 


"_वह चंद नौजवान थे दीने हक़ की तरफ माइल हो गए थे और राहे हिदायत पर आ गए थे यह नौजवान परहेज़गार थे अपने रब को माबूद मानते थे यानी तोहिद के कायल थे। ईमान में रोज़ ब रोज़ बढ़ रहे थे और यह लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के दीन पर थे लेकिन बाज़ रिवायात से यह भी मालूम होता है कि यह वाक्या हजरत ईसा अलैहिस्सलाम से पहले का है इसलिए कि यह सवाल यहूदियों ने पूछे थे और इसका मतलब यह है कि यहूदियों की किताबों में यह वाक्या मौजूद था इससे यही साबित होता है कि यह वाक्या हजरत ईसा अलैहिस्सलाम से पहले का है ।


★_ क़ौम ने इनकी मुखालफत की , इन लोगों ने सब्र किया । उस जमाने के बादशाह का नाम दक़ियानूस था वह मुशरिक था उसने सबको शिर्क पर लगा रखा था। था भी बहुत ज़ालिम । बुतपरस्ती कराता था । वहां सालाना मेला लगता था,यह नौजवान अपने मां बाप के साथ उस मेले में गए वहां उन्होंने बुतपरस्ती होते देखी ,यह वहां से बेजार होकर निकल आए और सब एक दरख्त के नीचे जमा हो गए । इससे पहले यह लोग अलग अलग थे , एक दूसरे को जानते नहीं थे। आपस में बातचीत शुरू हुई तो मालूम हुआ यह सब बुत परस्ती से बेजार हो कर मेले से चले आए हैं। अब यह आपस में घुल मिल गए इन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए एक जगह मुक़र्रर कर ली । रफ्ता रफ्ता मुशरिक क़ौम को इनके बारे में पता चल गया। वह इन्हें पकड़कर बादशाह के पास ले गए। बादशाह ने सवालात किये तो इन्होंने निहायत दिलेरी से शिर्क से बरी होने का ऐलान किया । बादशाह और दरबारियों को तौहीद की दावत दी ।

★_ इन्होंने साफ कह दिया कि हमारा रब वही है जो आसमान और ज़मीन का मालिक है और यह नामुमकिन है कि हम उसके सिवा किसी और की इबादत करें।

 उनकी साफगोई पर बादशाह बिगड़ा,  उसने उन्हें डराया धमकाया और कहा कि अगर ये बाज़ ना आएं तो इन्हें सख्त सजा दूंगा ।

बादशाह का हक्म सुन का इनमें कोई कमजोरी पैदा ना हुई इनके दिल और मजबूत हो गए लेकिन साथ ही उन्होंने महसूस कर लिया कि यहां रह कर अपनी दीनदारी पर क़ायम नहीं रह सकेंगे इसलिए इन्होंने सब को छोड़कर वहां से  निकलने का इरादा कर लिया, जब यह लोग अपने दीन को बचाने के लिए कुर्बानी देने को तैयार हो गए तो अल्लाह ताला की रहमत नाज़िल हुई, इनसे फरमा दिया गया :-  जाओ किसी गार में पनाह हासिल करो तुम पर तुम्हारे रब की रहमत होगी और वह तुम्हारे काम में आसानी और राहत मुहैया फरमाएगा।

 *★__ बस यह लोग मौका पाकर वहां से बाहर निकले अरे पहाड़ के गार में छुपे क़ौम ने इन्हें हर तरफ तलाश किया लेकिन वह ना मिले अल्लाह ताला ने इन्हें इनके देखने से आजिज़ कर दिया। बिल्कुल इसी कि़स्म का वाकि़या हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ पेश आया था जब आपने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के साथ गारे सौर ने पनाह ली थी लेकिन मुशरिकीन गार के मुंह तक आने के बावजूद आपको नहीं देख सके थे ।इस वाक्य में भी चंद रिवायात में तफसील इस तरह है कि बादशाह के आदमियों में इनका पीछा किया था और गार तक पहुंच गए थे लेकिन गार में वह इन लोगों को नज़र नहीं आए थे ।

क़ुरआने करीम का ऐलान है कि उस गार में सुबह व शाम धूप आती जाती है ।

यह गार किस शहर के किस पहाड़ में है यकीनी तौर पर किसी को मालूम नहीं ।

फिर अल्लाह ताला ने इन पर नींद तारी कर दी , अल्लाह ताला इन्हें करवटें बदलवाते रहे ,इनका कुत्ता भी गार में इनके साथ था।


★_अल्लाह ताला ने जिस तरह अपनी कुदरत ए कामिला से इन्हें सुला दिया था उसी तरह इन्हें जगा दिया । यह 309 साल तक सोते रहे थे अब 309 साल बाद जागे तो बिल्कुल ऐसे थे जैसे अभी कल ही सोए थे।


★_इनके बदन खाल बाल गर्ज़ हर चीज़ बिल्कुल सही सलामत थी यानी जैसे सोते वक्त थे बिल्कुल वैसे ही थे किसी किस्म की कोई तब्दीली वाक़े नहीं हुई थी यह आपस में कहने लगे :- क्यों भई भला हम कितनी देर तक सोते रहे हैं।

एक ने जवाब दिया:- एक दिन या इससे भी कम ।

यह बात उसने इसलिए कही थी कि वह सुबह के वक्त सोए थे और जब जागे तो शाम का वक्त था। इसलिए उन्होंने यह खयाल किया कि वह एक दिन या इससे कम सोये हैं , फिर एक ने यह कहकर बात खत्म कर दी:- इसका दुरुस्त इल्म तो अल्लाह को है ।


★_ अब इन्हें शदीद भूख प्यास का एहसास हुआ इन्होंने सोचा बाज़ार से खाना मंगवाना चाहिए, पैसे इनके पास थे उनमें से कुछ यह अल्लाह के रास्ते में खर्च कर चुके थे कुछ इनके पास बाकी थे। एक ने कहा:-  हममे से कोई पैसे लेकर बाज़ार चला जाए और खाने की कोई पाक़ीज़ा उम्दा चीज़ ले आए और जाते हुए और आते हुए इस बात का ख्याल रखें कि कहीं लोगों की नज़र उस पर ना पड़ जाए , सौदा खरीदते वक्त भी होशियारी से काम ले ,किसी की नजरों में ना आए ,अगर उन्हें हमारे हमारे बारे में मालूम हो गया तो हमारी खैर नहीं , दक़ियानूस के आदमी अभी तक हमें तलाश करते फिर रहे होंगे।


★_चुंनाचे इनमें से एक गार से बाहर निकला। उसे सारा नक्शा ही बदला नज़र आया, अब उसे क्या मालूम था कि वह 309 साल तक सोते रहे हैं उसने देखा कोई चीज़ अपने पहले हाल पर नहीं थी , शहर में कोई भी उसे जाना पहचाना नज़र ना आया , यह हैरान था परेशान था और डरे डरे अंदाज़ में आगे बढ़ रहा था, उसका दिमाग चकरा रहा था ।सोच रहा था कल शाम तो हम इस शहर को छोड़कर गए हैं फिर यह अचानक क्या हो गया । जब ज्यादा परेशान हुआ तो उसने अपने दिल में फैसला किया मुझे जल्द से जल्द सौदा लेकर अपने साथियों के पास पहुंच जाना चाहिए। आखिर वह एक दुकान पर पहुंचा। दुकानदार को पैसे दिए और खाने-पीने का सामान तलब किया। दुकानदार सिक्के को देखकर हैरतज़दा हो गया, उसने वो सिक्का साथ वाले दुकानदार को दिखाया और बोला भाई जरा देखना सिक्का किस जमाने का है ।

उसने दूसरे को दिया ,इस तरह सिक्का कई हाथों में घूम गया कई आदमी वहां जमा हो गए।

★: ★__ आखिर उन्होंने उससे पूछा- तुम यह सिक्का कहां से लाए हो?  तुम किस मुल्क के रहने वाले हो ?

जवाब में उसने कहा -मैं तो इसी शहर का रहने वाला हूं कल शाम ही तो यहां से गया हूं, यहां का बादशाह दकियानूस है ।

वह सब उसकी बात सुनकर हंस पड़े और बोले -यह तो पागल है। इसे पकड़ कर बादशाह के पास ले चलो ।

आखिर उसे बादशाह के सामने पेश किया गया, वहां उससे सवालात हुए , उसने तमाम हाल कह सुनाया। बादशाह और सब लोग उसकी कहानी सुनकर हैरतजदा रह गये,  आखिर उन्होंने कहा :- अच्छा ठीक है, तुम हमें अपने साथियों के पास ले चलो...वो गार हमें भी दिखाओ _,"


★_चुंनाचे सब लोग उसके साथ गार की तरफ रवाना हुए, उन नौजवानों से मिले और उन्हें बताया कि दक़ियानूस की बादशाही खत्म हुए सदियां बीत चुकी है और अब यहां अल्लाह के नेक बंदे की हुकूमत है ।बहरहाल उन नौजवानों ने अपने बक़िया जिंदगी उसी गार में गुज़ारी और वही वफात पाई, बाद में लोगों ने उनके एजाज़ के तौर पर पहाड़ की बुलंदी पर एक मस्जिद की तामीर की थी ।


एक रिवायत यह भी है कि जब शहर जाने वाला पहला नौजवान लोगों को लेकर गार के करीब पहुंचा तो उसने कहा तुम लोग यहीं ठहरो मैं जाकर उन्हें खबर कर दूं, अब यह उनसे अलग होकर गार में दाखिल हो गया, साथ ही अल्लाह ताला ने उन पर भी नींद तारी कर दी, बादशाह और उसके साथी उसे तलाश करते रह गए ..ना वह मिला और ना ही वो गार उन्हें नज़र आया, अल्लाह ताला ने उनकी नज़रों से गार को और उन सब को छुपा दिया।


★_ उनके बारे में लोग ख्याल जाहिर करते रहे कि वह सात थे आठवां उनका कुत्ता था या वह नो थे दसवां उनका कुत्ता था । बहर हाल उनकी गिनती का सही इल्म अल्लाह ही को है। अल्लाह ताला ने अपने नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सें इरशाद फरमाया :-  उनके बारे में ज्यादा बहस ना करें और ना उनके बारे में किसी से दरयाफ्त करें (क्योंकि उनके बारे में लोग अपनी तरफ से बातें करते हैं कोई सही दलील उनके पास नहीं)।

★__ मुशरिकीन का दूसरा सवाल था जु़लक़रनैन कौन था ?जु़लक़रनैन के बारे में तफसीलात यूं मिलती है :- 

"_ जु़लक़रनैन एक नेक खचदा रशीदा और जबरदस्त बादशाह था ,उन्होंने तीन बड़ी मुहिमात सर की । पहली मुहिऊ में वह उस मुकाम पर पहुंचे जहां सूरज गुरुब होता है, यहां उन्हें एक ऐसी क़ौम मिली जिसके बारे में अल्लाह ने उन्हें अख्त्यार दिया चाहे तो उस क़ौम को सजा दे , चाहे तो उनके साथ नेक सुलूक करें। 

जु़लक़रनैन ने कहा कि जो शख्स जालिम है हम उसे सजा देंगे और मरने के बाद अल्लाह ताला भी उसे सजा देंगे अलबत्ता मोमिन बंदों को नेक बदला मिलेगा।


★_दूसरी मुहिम में वह उस मुकाम तक पहुंचे जहां से सूरज तुलू होता है , वहां उन्हें ऐसे लोग हैं जिनके मकानात की कोई छत वगैरह नहीं थी ।

तीसरी मुहिम में वह दो घाटियों के दरमियान पहुंचे , यहां के लोग उनकी बात नहीं समझते थे,  उन्होंने इशारों में या तर्जुमान के जरिए याजूज माजूज की तबाह कारियों का शिकवा करते हुए उनसे दरख्वास्त की कि वो उनके और याजूज माजूज के दरमियान बंध बना दें ।

जु़लक़रनैन ने लोहे की चादर मंगाई फिर उनसे एक दीवार बना दी उसमें तांबा पिघला कर डाला गया , इस काम के होने पर जु़लक़रनैन ने कहा :-यह अल्लाह का फज़ल है कि मुझसे इतना बड़ा काम हो गया _,"

कयामत के क़रीब याजूज माजूज उस दीवार को तोड़ने में कामयाब हो जाएंगे।


★_जु़लक़रनैन के बारे में मुख्तलिफ वजाहहतें किताबों में मिलती हैं , क़रनेम के मा'नी दो सिम्तों के है , जु़लक़रनैन दुनिया के दो किनारों तक पहुंचे थे इसलिए उन्हें जु़लक़रनैन कहा गया । बाज़ ने क़रनेन  के मा'नी सींग के लिए है यानी दो सींग वाले, उनका नाम सिकंदर था लेकिन यह यूनान के सिकंदर नहीं है जिसे सिकंदर-ए-आजम कहा जाता है , यूनानी सिकन्दर काफिर था जबकि यह मुस्लिम और वली अल्लाह थे, यह साम बिन नूह अलैहिस्सलाम की औलाद में से थे । खिज़र् अलैहिस्सलाम इनकी फौज का झंडा उठाने वाले थे।


★_तीसरा सवाल यानी रूह के बारे में अल्लाह ताला ने इरशाद फरमाया :- 

"_ यह लोग आपसे रूह के बारे में पूछते हैं आप फरमा दीजिए कि रूह मेरे रब के हुक्म से क़ायम है यानी रुह की हक़ीक़त उसी के इल्म में है उसके सिवा इस बारे में कोई नहीं जानता ।

रूह के बारे में यहूदियों की किताबों में भी बिल्कुल यही बात दर्ज थी कि रूह अल्लाह के हुक्म से क़ायम है उसका इल्म अल्लाह ही के पास है और उसने अपने सिवा किसी को नहीं दिया । 


यहूदियों ने मुशरिकों से पहले ही कह दिया था कि अगर उन्होंने रूह के मुतालिक कुछ बताया तो समझ लेना वो नबी नहीं है । अगर सिर्फ यह कहा कि रूह अल्लाह के हुक्म से क़ायम है तो समझ लेना कि वह सच्चे नबी है। आपने बिल्कुल यही जवाब इरशाद फरमाया।

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★__ मुशरिकीन की गुस्ताखियां _,*


★__ एक रोज हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने चंद सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के साथ मस्जिद ए हराम में तशरीफ़ फरमा थे ऐसे में क़बीला ज़ैद का एक शख्स आया उस वक्त नज़दीक ही कुरेशे मक्का भी मजमा लगाए वहां बैठे थे। कबीला ज़ैद का यह शख्स उनके नज़दीक आया और इर्द गिर्द घूमने लगा फिर उसने कहा :-  ऐ क़ुरेश ! कोई शख्स कैसे तुम्हारे इलाके में दाखिल हो सकता है और कोई ताजिर कैसे तुम्हारी सर ज़मीन पर आ सकता है जबकि तुम हर आने वाले पर ज़ुल्म करते हो।


★_यह कहते हुए लोग वह उस जगह पहुंचा जहां आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तशरीफ़ फरमा थे तो आपने उससे फरमाया :- तुम पर किसने ज़ुल्म किया ?

उसने बताया मैं अपने ऊंटों में से तीन बेहतरीन ऊंट बेचने के लिए लेकर आया था मगर अबु जहल ने यहां उन तीनों ऊंटों की असल कीमत से सिर्फ एक तिहाई कीमत लगाई और ऐसा उसने जानबूझकर किया क्योंकि वह जानता है वह अपने क़ौम का सरदार है इसकी लगाई हुई कीमत से ज्यादा रक़म कोई नहीं लगाएगा । मतलब यह है कि आज मुझे वो ऊंट इस कदर कम कीमत पर फरोख्त करने पड़ेंगे,  यह ज़ुल्म नहीं तो और क्या है,  मेरा तिजारत का यह सफर बेकार जाएगा।


★_नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उसकी पूरी बात सुनकर फरमाया:- तुम्हारे ऊंट कहां है ?

उसने बताया यहीं खज़ूरा के मका़म पर है ।

आप उस वक्त उठे, अपने सहाबा को साथ लिया, ऊंटों के पास पहुंचे आपने देखा ऊंट वाक़ई बहुत उम्दा थे आपने उससे उनका भाव किया और आखिर खुश दिली से सोदा तैय हो गया, आपने वह ऊंट उससे खरीद लिए फिर आपने उनमें से दो ज्यादा उम्दा फरोख्त कर दिए और उनकी कीमत बेवा औरतो में तक़सीम फरमा दी,  वहीं बाजार में अबू जहल बैठा था,  उसने यह सौदा होते देखा लेकिन एक लफ्ज़ बोल ना सका। आप उसके पास आए और फरमाया :- खबरदार अमरू ( अबू जहल का नाम ) अगर तुमने आइंदा हरकत की तो बहुत सख्ती से पेश आऊंगा। 

यह सुनते ही वह खौफज़दा अंदाज़ में बोला :- मुहम्मद मैं आइंदा ऐसा नहीं करूंगा ...मैं आइंदा ऐसा नहीं करूंगा।

★__ इसके बाद हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वहां से लौट आए । इधर रास्ते में उमैया बिन खल्फ अबूजहल से मिला उसके साथ दूसरे साथी भी थे । उन लोगों ने अबू जहल से पूछा -तुम तो मुहम्मद के हाथों बहुत रूसवा होकर आ रहे हो ,ऐसा मालूम होता है कि या तो तुम उनकी पैरवी करना चाहते हो या तुम उनसे खौफज़दा हो गए हो। 

इस पर अबूजहल ने कहा :- मैं हरगिज़ मुहम्मद की पैरवी नहीं कर सकता मेरी जो कमजोरी तुमने देखी है इसकी वजह यह है कि जब मैंने मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ) को देखा तो उनके दाएं बाएं बहुत सारे आदमी नजर आए उनके हाथों में नेजे और भांले थे और वह उनको मेरी तरफ लहरा रहे थे, अगर मैं उस वक्त उनकी बात न मानता तो वह सब लोग मुझ पर टूट पड़ते।


★__अबू जहल एक यतीम का सरपरस्त  बना , फिर उसका सारा माल गज़्ब  करके उसे निकाल बाहर किया । वह यतीम हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास अबू जहल के खिलाफ फरियाद लेकर आया। हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस यतीम को लिए अबू जहल के पास पहुंचे । आपने उससे फरमाया :- इस यतीम का माल वापस करो ।

अबू जहल ने फौरन माल लड़के के हवाले कर दिया।


★_मुशरिकीन को यह बात मालूम हुई तो बहुत हैरान हुए उन्होंने अबूजहल से कहा :-क्या बात है, तुम इस क़दर बुजदिल कब से हो गए कि फौरन माल उस लड़के के हवाले कर दिया।

इस पर उसने कहा :- तुम्हें नहीं मालूम मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) के दाएं बाएं मुझे बहुत खौफनाक हथियार नज़र आए थे मैं उनसे डर गया अगर मैं उस यतीम का माल ना लौटाता तो वह उन हथियारों से मुझे मार डालते।


★_कबीला खुश'अम की एक शाख आराशा थी उसके एक शख्स से अबू जहल ने कुछ ऊंट खरीदें लेकिन कीमत अदा ना की, उसने कुरेश के लोगों से फरियाद की । उन लोगों ने हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का मजाक उड़ाने का प्रोग्राम बना लिया, उन्होंने उस आराशी से कहा -तुम मुहम्मद के पास जाकर फरियाद करो ।

ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था कि उनका ख्याल था कि हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अबू जहल का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।


★_ आराशी हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास गया, आपने फौरन उसे साथ लिया और अबुजहल के मकान पर पहुंच गए। उसके दरवाजे पर दस्तक दी ।अबू जहल ने अंदर से पूछा कौन है ,आपने फरमाया- मुहम्मद ।

अबू जहल फौरन बाहर निकल आया आपका नाम सुनते ही उसका चेहरा ज़र्द पढ़ चुका था, आपने उससे फरमाया :- इस शख्स का हक फौरन अदा कर दो। 

उसने कहा -बहुत अच्छा ,अभी लाया ।

उसने उसी वक्त उसका हक़ अदा कर दिया। 

अब वह शख्स वापस उसी कुरेशी मजलिस में आया और उनसे बोला :- अल्लाह ताला उन ( यानी मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ) को जज़ाऐ खैर दे, अल्लाह की कसम उन्होंने मेरा हक़ मुझे दिलवा दिया।

 ★__ मुशरिक लोगों ने भी अपना एक आदमी उनके पीछे भेजा था और उससे कहा था कि वह देखता रहे , हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम क्या करते हैं । चुनांचे  जब वह वापस आया तो उन्होंने उससे पूछा -वहां तुमने क्या देखा ?

जवाब में उसने कहा- मैंने एक बहुत ही अजीब और हैरत नाक बात देखी है अल्लाह की क़सम मुहम्मद ने जैसे ही उसके दरवाजे पर दस्तक दी तो वह फौरन उसी हालत में बाहर निकल आया, उसका चेहरा बिल्कुल बेजान और ज़र्द हो रहा था ।मुहम्मद ने उससे कहा कि इसका हक अदा कर दो, वह बोला बहुत अच्छा ,यह कहकर वे अंदर गया और उसी वक्त उसका हक़ ला कर दे दिया।


★_कुरेशी सरदार यह सारा वाक्या सुनकर बहुत हैरान हो गए और उन्होंने अबू जहल से कहा:-  तुम्हें शर्म नहीं आती जो हरकत तुमने की ऐसी तो हमने कभी नहीं देखी ।

जवाब में उसने कहा- तुम्हें क्या पता जोंही मुहम्मद ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी और मैंने उनकी आवाज सुनी तो मेरा दिल खौफ और दहशत से भर गया, फिर मैं बाहर आया तो मैंने देखा कि एक बहुत कद्दावर उंट मेरे सर पर खड़ा है मैंने आज तक इतना बड़ा ऊंट कभी नहीं देखा था अगर मैं उनकी बात मानने से इनकार कर देता तो वह मुझे खा लेता।


★_कुछ मुशरिक ऐसे भी थे जो मुस्तकिल तौर पर आप का मजाक उड़ाया करते थे अल्लाह ताला ने उनके बारे में इरशाद फरमाया :-

*(तर्जुमा )*_ यह लोग जो आप पर हंसते  हैं और अल्लाह ताला के सिवा दूसरों को मा'बूत क़रार देते हैं उनसे आपके लिए हम काफी है। *( सूरह अल हजर् आयत ९५)*


★_उन मजाक उड़ाने वालों में अबुजहल, अबुलहब, उक़बा बिन अबी मुईत, हक़म बिन आस बिन उमैया (जो हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु का चाचा था) और आस बिन वाइल शामिल थे।


★_अबुलहब की हरकतों में से एक हरकत यह भी थी कि वह आन'हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरवाज़े पर गंदगी फेंक जाया करता था । एक रोज़ वह यही हरकत करके जा रहा था कि उसे उसके भाई हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने देख लिया। हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने वह गंदगी उठाकर फौरन अबुलहब के सर पर डाल दी।


★_इसी तरह उक़बा बिन अबी मुईत नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दरवाजे पर गंदगी डाल जाया करता था । उक़बा ने एक रोज़ आपके चेहरे मुबारक की तरफ थूका । वो थूक  लौट कर उसी के चेहरे पर आ पड़ा।जिस हिस्से पर वो थूक गिरा वहां कोड जैसा निशान बन गया।

★__ एक मर्तबा उक़बा बिन मुईत सफर से वापस आया तो उसने एक बड़ी दावत दी,  तमाम कुरेशी सरदारों को खाने पर बुलाया । इस मौके पर उसने आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को भी बुलाया मगर जब खाना मेहमानों के सामने चुना गया तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने खाने से इंकार कर दिया और फरमाया :-  मैं उस वक्त तक तुम्हारा खाना नहीं खाऊंगा जब तक कि तुम यह ना कहो, अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं ।


★_चूंकी मेहमान नवाजी़ अरब के लोगों की खास अलामत थी और वो मेहमान को किसी कीमत पर नाराज़ नहीं होने देते थे इसलिए उक़बा ने कह दिया :- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। 

यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने खाना खा लिया । खाने के बाद सब लोग अपने घर चले गए। उक़बा बिन अबी मुईत,उबई बिन खल्फ का दोस्त था । लोगों ने उसे बताया कि उक़बा ने कलमा पढ़ लिया है, उबई बिन खल्फ उसके पास आया और बोला:-  क्या तुम बे दीन हो गए हो ?

जवाब में उसने कहा :- खुदा की क़सम! मैं बेदीन नहीं हुआ (यानी मुसलमान नहीं हुआ ) हूं, बात सिर्फ इतनी सी है कि एक मोज़्ज़िज़ आदमी मेरे घर आया और उसने यह कह दिया कि मैं जब तक उसके कहने के मुताबिक तोहीद की गवाही नहीं दूंगा वह मेरे यहां खाना नहीं खाएगा , मुझे इस बात से शर्म आई कि एक शख्स मेरे घर आए और खाना खाए बगैर चला जाए। इसलिए मैंने वो अल्फ़ाज़ कह दिए और उसने खाना खा लिया लेकिन सच यही है कि मैंने वह कलमा दिल से नहीं कहा था।


★_यह बात सुनकर उबई बिन खल्फ को इत्मिनान ना हुआ, उसने कहा :- मैं उस वक्त तक ना अपनी शक्ल तुम्हें दिखाऊंगा ना तुम्हारी शक्ल देखुंगा जब तक कि तुम मुहम्मद का मुंह ना चिढ़ाओ, उनके मुंह पर ना थूको और उनके मुंह पर ना मारो ।

यह सुनकर उक़बा ने कहा :- यह मेरा तुमसे वादा है ।

इसके बाद जब हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस बदबख्त के सामने आए , उसने आपका मुंह चिढ़ाया ,आपके चेहरे मुबारक थूका लेकिन उसका थूक आपके चेहरे मुबारक तक ना पहुंचा बल्कि खुद उसके मुंह पर आकर गिरा। उसने महसूस किया गोया कोई अंगारा उसके चेहरे पर आ गया है ,उसके चेहरे पर जलने का निशान बाक़ी रह गया और मरते दम तक रहा।


★_ इसी उक़बा बिन अबी मुईत के बारे में सूरह फुरका़न की आयत से 37 नाजि़ल हुई :- 

*"_(तर्जुमा)*_ जिसे रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट कर खाएगा और कहेगा, क्या ही अच्छा होता मैं रसूल के साथ दीन की राह पर लग जाता_",


इस आयत की तफसीर में लिखा है:- "_ जिस रोज़ ज़ालिम आदमी जहन्नम में कोहनी तक अपना एक हाथ दांतों से काटेगा फिर  दूसरे हाथ को काट कर खाएगा, जब दूसरा खा चुका होगा तो पहला फिर उग आएगा और वह उसको काटने लगेगा गर्ज़ इस तरह करता रहेगा_,"


★_इसी तरह हकम बिन आस आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ मसखरापन करता था । एक रोज़ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम चले जा रहे थे, यह आपके पीछे चलना पड़ा , आप का मजाक उड़ाने के लिए मुंह और नाक से तरह-तरह की आवाजें निकालने लगा । आप चलते चलते उसकी तरफ मुड़े और फरमाया:-

"_तू ऐसा ही हो जा _,"

 उसके बाद वह ऐसा ही हो गया था कि उसके मुंह और नाक से ऐसी ही आवाज़ें निकलती रहती थी, एक माह तक यह बेहोशी की हालत में रहा उसके बाद मरने तक उसके मुंह और नाक से ऐसी ही आवाज़ें निकलती रही ।


★_ इसी तरह आस बिन वाइल भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का मजाक उड़ाया करता था । वह कहा करता था :- 

"_ मुहम्मद ,अपने आपको और अपने साथियों को ( नाऊज़ु बिल्लाह ) यह कहकर धोखा दे रहे हैं कि वह मरने के बाद दोबारा जिंदा किए जाएंगे , खुदा की क़सम हमारी मौत सिर्फ ज़माने की गर्दिश और वक्त के गुज़रने की वजह से आती है।

★_इसी आस बिन वाइल का एक वाक्य और है :- हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में लोहार का काम करते थे , तलवारे बनाते थे, उन्होंने आस बिन वाइल को कुछ तलवारे फरोख्त की थी उनकी इसने अभी कीमत अदा नहीं की थी। खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु उससे कीमत का तकाज़ा करने के लिए गए तो उसने कहा :-  खब्बाब ! तुम मुहम्मद के दीन पर चलते हो , क्या वह यह दावा नहीं करते कि जन्नत वालों को सोना चांदी कीमती कपड़े खिदमतगार और औलाद मर्जी के मुताबिक मिलेगी ?

हज़रत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- हां , यही बात है ।

अब आस ने इनसे कहा:-  मैं उस वक्त तक तुम्हारा कर्ज नहीं दूंगा जब तक कि तुम मुहम्मद के दीन का इनकार नहीं करोगे ।

जवाब में हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- अल्लाह की क़सम, मैं मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का दीन नहीं छोड़ सकता ।


★_इसी तरह इन मजाक उड़ाने वालों में से एक असवद बिन यागोश भी था , यह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का मामूज़ाद था, जब भी मुसलमानों को देखता तो अपने साथियों से कहता:-  देखो तुम्हारे सामने रूऐ ज़मीन के वह बादशाह आ रहे हैं जो किसरा और केसर के वारिस बनने वाले हैं। 

यह बात वो इसलिए भी कहता था क्योंकि सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम में से अक्सर के लिबास फटे पुराने होते थे ,वो मुफलिस और नादार थे और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम यह पेशगोई फ़रमा चुके थे कि मुझे ईरान और रौम की सल्तनतों की कुंजियां दी गई है _,"

असवद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से यह भी कहा करता था :-  मुहम्मद , आज तुमने आसमान की बातें नहीं सुनाई,  आज आसमान की क्या खबरें हैं।

यह और इसके साथी जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और  आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को देखते तो सीटी बजाते थे ,आंखें मटकाते थे ।


★_ इसी किस्म का एक आदमी  नज़र बिन हारिश था। यह भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का मजाक उड़ाने वालों में शामिल था । उनमें से अक्सर लोग हिजरत से पहले ही मुख्तलिफ आफतों और बलाओं में गिरफ्तार होकर हलाक हुए।


इन मजाक उड़ाने वालों में से एक हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के बाप वलीद बिन मुगीरा भी था । यह अबू जहल का चाचा था ।क़ुरेश के दौलतमंद लोगों ने इसका शुमार होता था। हज के जमाने में तमाम हाजियों को खाना खिलाता था, किसी को चुल्हा नहीं जलाने देता था ,लोग उसकी बहुत तारीफ करते थे उसके कसीदे पढ़ते थे । उसके बहुत से बागात थे एक बाग तो ऐसा था जिसमें तमाम साल फल लगता था लेकिन उसने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को इस क़दर तकलीफ पहुंचाई कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इसके लिए बद्दुआ फरमा दी। उसके बाद इसका तमाम माल खत्म हो गया बागात तबाह हो गए। फिर हज के दिनों में कोई उसका नाम लेने वाला भी ना रहा।

 ★__ एक रोज जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास तशरीफ लाए । उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बैतुल्लाह का तवाफ कर रहे थे। जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आकर अर्ज़ किया :- मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मज़ाक उड़ाने वालों से निजात दिलाऊं। 

ऐसे में वलीद बिन मुगीरा उधर से गुजरा , जिब्राइल अलैहिस्सलाम में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पूछा :- आप इसे कैसा समझते हैं? 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- अल्लाह ता'ला का बुरा बंदा है ।

यह सुनकर जिब्राइल अलैहिस्सलाम में वलीद की पिंडली की तरफ इशारा किया और बोले:- मैंने उसे अंजाम तक पहुंचा दिया।


★_फिर आस बिन वाईल सामने से गुजरा तो जिब्राइल अलैहिस्सलाम में पूछा :- इसे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम कैसा आदमी पाते हैं? 

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- यह भी एक बुरा बंदा है ।

हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने उसके पैर की तरफ इशारा किया और बोले :- मैंने उसे अंजाम तक पहुंचा दिया है ।

इसके बाद अस्वद वहां से गुजरा, उसके बारे में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यही फरमाया कि बुरा आदमी है हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने उसकी आंख की तरफ इशारा किया और बोले :- मैंने उसे अंजाम तक पहुंचा दिया।


★_ फिर हारिस बिन ऐयतला गुज़रा । हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने उसके पेट की तरफ इशारा करके कहा :- मैंने उसे अंजाम तक पहुंचा दिया है।


"_ इस वाक्य के बाद अस्वद बिन यागोस अपने घर से निकला तो उसको लू के थपेड़ों ने झुलसा दिया। उसका चेहरा जलकर बिल्कुल सियाह हो गया । जब यह वापस अपने घर में दाखिल हुआ तो घर के लोग उसे पहचान ना सके । उन्होंने उसे घर से निकाल दिया और दरवाजा बंद कर दिया,  इसके साथ ही यह ज़बश्रदस्त प्यास में मुब्तिला हो गया। मुसलसल पानी पीता रहता था ,यहां तक कि उसका पेट फट गया।


★_हारिस बिन ऐयतला के साथ यह हुआ कि उसने एक नमकीन मछली खा ली, उसके बाद उसे शदीद प्यास ने आ लिया, यह पानी पीता रहा यहां तक कि उसका भी पेट फट गया। वलीद बिन मुगीरा एक रोज़ एक शख्स के पास से गुज़रा, वह शख्स तीर बना रहा था, इत्तेफाक से एक तीर उसके कपड़ों में उलझ गया वलीद ने तकब्बुर की वजह से झुककर उसका तीर निकालने की कोशिश ना की और आगे बढ़ने लगा तो वो तीर उसकी पिंडली में चुभ गया । इसकी वजह से ज़हर फैल गया और वह मर गया।

आस बिन वाइल के तलवे में एक कांटा चुभा इसकी वजह से उसके पैर पर इतना वरम आ गया कि वह चक्की के पाट की तरह हो गया , इस हालत में उसकी मौत वाक़े हो गई। हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत के मुताबिक ये लोग एक ही रात में हलाक हुए।

 ★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने महसूस फरमाया कि कुरैशे मक्का मुसलमानों को बेतहाशा तकलीफ पहुंचा रहे हैं और मुसलमानों में अभी इतनी ताकत नहीं है वह इस बारे में कुछ कह सके , चुनांचे आप सल्लल्लाहू वसल्लम ने मुसलमानों से फरमाया :- तुम लोग हुए ज़मीन पर इधर-उधर फैल जाओ अल्लाह ता'ला फिर तुम्हें एक जगह जमा फरमा देगा_," 

"_हम कहां जाएं ? सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने पूछा ।

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मुल्क हबशा की तरफ इशारा करते हुए फरमाया :- तुम लोग मुल्क हबशा चले जाओ क्योंकि वहां का बादशाह नेक है ,वह किसी पर जु़ल्म नहीं होने देता वह सच्चाई की सरज़मीन है , यहां तक अल्लाह तुम्हारी इन मुसीबतों को खत्म करके तुम्हारे लिए आसानियां पैदा कर दे_,"


हदीस में आता है कि जो शख्स अपने दीन को बचाने के लिए इधर से उधर कहीं गया चाहे वह एक बालिश्त ही चला उसके लिए जन्नत वाजिब कर दी जाती है।


★__ चुनांचे इस हुक्म के बाद बहुत से मुसलमान अपने दीन को बचाने के लिए अपने वतन से हिजरत कर गए इनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपने बीवी बच्चों समेत हिजरत की, इनमें हजरत उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु भी थे, उनके साथ उनकी बीवी यानी आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की साहबजा़दी हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा भी हिजरत कर गई । हजरत उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु सबसे पहले हिजरत करने वाले शख्स हैं।


★_इसी तरह हजरत अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी बीवी हजरत उम्में सलमा रजियल्लाहु अन्हा के साथ हिजरत की । हजरत आमिर इब्ने उबई बिन रबिया रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी बीवी के साथ हिजरत की ।

जिन सहाबा ने तनहा हिजरत की उनके नाम है :- अब्दुर्रहमान बिन औफ, हजरत उस्मान बिन मा'ज़ून, हजरत सुहैल इब्ने बैयज़ा, हजरत जु़बेर बिन आवाम और हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हुम ।


★_ कुफ्फार को जब इनकी हिजरत का पता चला तो वह ता'क़ुब में दौड़े लेकिन उस वक्त तक यह हज़रात बहरी जहाज पर सवार हो चुके थे वह जहाज ताजिरों के थे, इस तरह यह हजरात हबशा पहुंचने में कामयाब हो गए । 

कुछ अरसे बाद इन लोगों ने एक गलत खबर सुनी कि तमाम कुरेशे मक्का मुसलमान हो गए हैं , इस इत्तेला के बाद हबशा के बहुत से मुहाजिरीन मक्का रवाना हुए,  नजदीक पहुंचकर पता चला कि इत्तेला गलत थी । अब इन्होंने हबशा जाना मुनासिब ना समझा और किसी ना किसी की पनाह हासिल करके मक्का में दाखिल हो गए।


★_ पनाह हासिल करने वाले इन मुहाजिरीन ने जब अपने मुसलमान भाइयों पर उसी तरह बल्कि पहले से भी ज्यादा जुल्मों सितम देखा , तो उन्होंने यह हमारा ना हुआ कि हम पनाह की वजह से इस ज़ुल्म से महफूज रहें लिहाजा उन्होंने अपनी-अपनी पनाह लौटा दी और कहा कि अपने भाइयों के साथ ज़ुल्म व सितम का सामना करेंगे।

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★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम लाते हैं _,*


★__ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु उस वक्त तक इस्लाम से दुश्मनी पर कमर बांधे हुए थे। एक रोज़ वो मक्का की एक गली से गुज़र रहे थे उनकी मुलाकात एक कुरेशी शख्स से हुई उनका नाम हजरत न'ईम बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु था, यह उस वक्त तक अपनी क़ौम के खौफ से अपने इस्लाम को छुपाए हुए थे । हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु के हाथ में तलवार थी, यह परेशान हो गए उनसे पूछा कि क्या इरादा है ।वह बोले- मुहम्मद को क़त्ल करने जा रहा हूं।

यह सुनकर हजरत न'ईम रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- पहले अपने घर की खबर लो तुम्हारी बहन और बहनोई मुसलमान हो चुके हैं।


★_यह सुनकर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु जलाल में आ गए , बहन के घर का रुख किया हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की बहन का नाम फातिमा था उनके शौहर हजरत सईद बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु थे ,यह अशरा मुबश्शरा में शामिल है। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के चचा जाद भाई भी थे, इधर खुद हजरत स'ईद की बहन हजरत आतिका रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की बीवी थी।


★_बहन के दरवाजे पर पहुंच कर उन्होंने दस्तक दी, अंदर से पूछा गया कौन है , उन्होंने अपना नाम बताया तो अंदर एकदम खामोशी छा गई , अंदर उस वक्त हजरत खब्बाब बिन अर्त रज़ियल्लाहु अन्हु कुरान पढ़ा रहे थे उन्होंने फौरन कुरान के औराक़ छुपा दिए। हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा उठ कर दरवाज़ा खोला।


★ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फोरन बोले :- अपनी जान की दुश्मन मैंने सुना है तू बेदीन हो गई है , साथ ही उन्होंने उन्हें मारा, उनके जिस्म से खून बहने लगा खून को देखकर बाली :- उमर तुम कुछ भी कर लो मैं मुसलमान हो चुकी हूं ।

अब हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने पूछा -यह कौन सी किताब तुम पढ़ रहे थे ,मुझे दिखाओ ।

हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा बोली:- यह किताब तुम्हारे हाथ में हरगिज़ नहीं दी जा सकती इसलिए कि तुम नापाक हो, पहले गुस्ल कर लो फिर दिखाई जा सकती है।


★ आखिर उन्होंने गुस्ल किया फिर कुरान मजीद के औराक़ देखे जैसे ही उनकी नज़र बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पर पड़ी , उन पर हैबत तारी हो गई आगे सूरह ताहा थी उसकी इब्तेदाई आयात पढ़कर तो उनकी हालत गयूर हो गई बोले :-मुझे रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम) के पास ले चलो।


★_हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत सईद बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हू इधर उधर छुपे हुए थे, उनके अल्फाज़ सुनकर सामने आ गए। वाज़ रिवायात में यह आता है कि हजरत स'ईद रज़ियल्लाहु अन्हु को भी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने मारा पीटा था, इसका मतलब है सिर्फ हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु छुपे हुए थे, बहरहाल उस मौके पर वह सामने आ गए और बोले :- ए उमर ! तुम्हें बशारत हो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह दुआ मांगी थी कि ए अल्लाह दो आदमी में से एक के ज़रिए इस्लाम को इज्ज़त अता फरमा , या तो अमरु बिन हिशाम (अबू जहल ) या फिर उमर बिन खत्ताब के जरिए।

★__ एक रिवायत के मुताबिक आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था :- इन दोनों में से जो तुझे महबूब हो उसके ज़रिए इस्लाम को इज्जत अता फरमा।

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह दुआ बुध के रोज मांगी थी जुम्मेरात के रोज़ यह वाक़्या पेश आया । हजरत खब्बाब बिन अर्त  और हजरत सईद बिन जु़बेर रजियल्लाहु अन्हुम उन्हें दारे अरक़म ले गए। दरवाजे पर दस्तक दी गई ।अंदर से पूछा गया कौन है ? उन्होंने कहा:- उमर इब्ने खत्ताब। 

यह बात हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को बताई गई कि दरवाजे पर उमर बिन खत्ताब है ।आपने इरशाद फरमाया :- दरवाजा खोल दो अगर अल्लाह ताला ने उसके साथ खैर का इरादा फरमाया है तो हिदायत पा लेगा ।


★__ दरवाजा खोला गया। हजरत हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें अंदर आने की इजाज़त दी, फिर दो सहाबा ने उन्हें दाएं बाएं से पकड़कर आप की खिदमत में पहुंचाया ।आपने फरमाया :- इन्हें छोड़ दो ।

उन्होंने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को छोड़ दिया , वह नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने बैठ गए ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके कुर्ते का दामन पकड़ कर उन्हें अपनी तरफ खींचा और फरमाया :- अल्लाह के लिए हिदायत का रास्ता अख़्तियार करो ।

उन्होंने फौरन कहा :- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई मा'बूद नहीं और यह कि आप अल्लाह के रसूल हैं_,"


★__ उनके यह अल्फाज़ सुनते ही नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और मुसलमानों ने खुशी से बेताब होकर इस क़दर ज़ोर से तकबीर कहीं कि मक्का के गोशे गोशे तक यह आवाज़ पहुंच गई । आपने तीन बार उनके सीने पर हाथ मारकर फरमाया :- ऐ  अल्लाह ! उमर के दिल में जो मैल है उसको निकाल दे और उसकी जगह ईमान भर दे _,"


★_इसके बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु क़ुरेश के पास पहुंचे उन्हें कहा कि वह इस्लाम ले आए हैं , कुरेश उनके गिर्द जमा हो गए और कहने लगे :- लो उमर भी बेदीन हो गया है, 

उतबा बिन रबिया आप पर छपटा लेकिन आपने उसे उठा कर ज़मीन पर पटक दिया, फिर किसी को उनकी तरफ आने की ज़ुर्रत ना हुई । इसके बाद आपने एलान फरमाया :- अल्लाह की क़सम, आज के बाद मुसलमान अल्लाह ताला की इबादत छुपकर नहीं करेंगे ।

नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम मुसलमानों के साथ दारे अरक़म से निकले । हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु तलवार हाथ में ले आगे आगे चल रहे थे वह कहते जा रहे थे :-  ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह _," 

यहां तक की सब हरम में दाखिल हो गए । हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने क़ुरेश से फरमाया:- तुम में से जिसने भी अपनी जगह से हरकत की , मेरी तलवार उसका फैसला करेगी।

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★☝🏻★: *★__ बाॅयकाट _,*


★__ इसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और तमाम मुसलमानों ने काबा का तवाफ शुरू किया । हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु आगे आगे रहे। मुसलमानों ने काबे के गिर्द नमाज  अदा की , सब ने बुलंद आवाज़ से क़ुरान की तिलावत भी की जबकि इससे पहले मुसलमान ऐसा नहीं कर सकते थे ।

अब तमाम कुरेश ने मिलकर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को क़त्ल करने का फैसला किया ।उन्होंने आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के खानदान वालों से कहा:- तुम हमसे दो गुना खून बहा ले लो और इसकी इजाजत दे दो कि कुरेश का कोई शख्स आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को क़त्ल कर दें ताकि हमें सुकून मिल जाए और तुम्हें फायदा पहुंच जाए_,"


★_आन'हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के खानदान वालों ने इस तजवीज़ को मानने से इंकार कर दिया । इस पर क़ुरेश ने गुस्से में आकर यह तैय किया कि तमाम बनू हाशिम और बनू अब्दुल मुत्तलिब का माशरती बायकाट किया जाए और साथ ही उन्होंने तैय किया कि बनू हाशिम को बाजारों में ना आने दिया जाए ताकि वह कोई चीज़ ना खरीद सके ,उनसे शादी बियाह ना किया जाए और ना उनके लिए कोई सुलह कु़बूल की जाए ,उनके मामले में कोई नरम दिली ना अख्त्यार की जाए यानी उन पर कुछ भी गुज़रे उनके दिल में रहम का जज्बा पैदा ना होने दिया जाए और यह बायकॉट उस वक्त तक जारी रहना चाहिए जब तक कि बनी हाशिम के लोग आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को क़त्ल करने के लिए क़ुरेश के हवाले ना कर दें।


★_कुरैश ने इस मुहाइदे की बाका़यदा तहरीरें लिखी, उस पर पूरी तरह अमल कराने और उसका अहतमाम कराने के लिए इसको काबे में लटका दिया। इस मुआहिदे के बाद अबुलहब को छोड़कर तमाम बनी हाशिम और बनी मुत्तलिब शोएब अबी तालिब में चले गए , यह मक्का से बाहर एक घाटी थी ।

अबुलहब चूंकी कुरेश का पक्का तरफ्दार और आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का बदतरीन दुश्मन भी था इसलिए इस घाटी में जाने पर मजबूर ना किया गया। यूं भी उसने नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के कत्ल के मंसूबे में क़ुरेश का साथ दिया था उनकी मुखालफत नहीं की थी।


★_नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम शोएब अबी तालिब में महसूर हो गए ,उस वक्त आपकी उमर मुबारक 46 साल थी । बुखारी में है कि उस घांटी में मुसलमानों ने बहुत मुश्किल और सख्त वक्त गुजा़रा,  क़ुरेश के बायकाट की वजह से उन्हें खाने-पीने की कोई चीज़ नहीं मिलती थी ,सब लोग भूख से बेहाल रहते थे यहां तक कि उन्होंने घांस फूस और दरख्तों के पत्ते खाकर यह दिन गुजा़रे।

[22/11, 8:03 am] ★☝🏻★: ★__ जब भी मक्का में बाहर से कोई काफिला आता तो यह मजबूर और बेकस हजरात वहां पहुंच जाते ताकि उनसे खाने-पीने की चीजें खरीद ले लेकिन साथ ही अबू लहब वहां पहुंच जाता और कहता :- लोगों मोहम्मद के साथी अगर तुम से कुछ खरीदना चाहे तो उस चीज़ के दाम इस क़दर बढ़ा दो कि वे तुमसे कुछ खरीद ना सकें, तुम लोग मेरी हैसियत और जिम्मेदारी को अच्छी तरह जानते हो_,"


★_चुनांचे वो ताजिर अपने माल की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर बताते और ये हजरात नाकाम होकर घाटी में लौट आते, वहां अपने बच्चों को भूख और प्यास से बिलकता तड़पता देखते तो आंखों में आंसू आ जाते। उधर बच्चे उन्हें खाली हाथ देखकर और ज्यादा रोने लगते, अबुलहब उन ताजिरो से सारा माल खुद खरीद लेता।


"_यहां यह बात जहनसीन कर लें कि आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और उनके खानदान के लोग कुरेश के इस मुहाइदे के बाद हालात का रुख देखते हुए खुद उस घाटी में चले आए थे । यह बात नहीं कि कुरैशे मक्का  ने उन्हें गिरफ्तार करके वहां पर क़ैद कर दिया था।


★_इस बायकाट के दौरान बहुत से मुसलमान हिजरत करके हबशा चले गए । यह हबशा की तरफ दूसरी हिजरत थी, इस हिजरत में 38 मर्द और 12 औरतों ने हिस्सा लिया। इन लोगों में हजरत जाफर बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु और उनकी बीवी अस्मा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा भी थी ,इनमें मिक़दाद बिन अस्वद रज़ियल्लाहु अन्हु, अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु ,अब्दुल्लाह बिन जहश और उसकी बीवी उम्मे हबीबा बिन्ते अबू सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हा भी थी। यह अब्दुल्लाह बिन जहश हबशा जाकर इस्लाम से फिर गया था और उसने ईसाई मज़हब अख्त्यार कर लिया था ,इसी हालत में उसकी मौत वाक़े हुई, उसकी बीवी उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा इस्लाम पर रहीं उनसे बाद में आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने निकाह फरमाया।

╨────────────────────★☝🏻★: *★_ नजाशी के दरबार में _,*


★__ इन मुसलमानों को हबशा में बेहतरीन पनाह मिल गई इस बात से कुरेश को और ज्यादा तकलीफ हुई उन्होंने इनके पीछे हजरत अमरू बिन आस रजियल्लाहु अन्हु और अमाराह बिन वलीद को भेजा ताकि ये वहां जाकर हबशा के बादशाह को मुसलमानों के खिलाफ भड़काऐं, ( हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु बाद में मुसलमान हुए ),

ये दोनों हबशा के बादशाह नजाशी के लिए बहुत से तोहफे लेकर गए ,बादशाह को तोहफे पेश किए,  तोहफों में कीमती घोड़े और रेशमी जुब्बे शामिल थे। बादशाह के अलावा उन्होंने पादरियों और दूसरे बड़े लोगों को भी तोहफे दिए ताकि वह सब इनका साथ दें । बादशाह के सामने दोनों ने उसे सजदा किया बादशाह ने उन्हें अपने दाएं बाएं बिठा लिया था ।


★_अब उन्होंने बादशाह से कहा:-  हमारे खानदान के कुछ लोग आपकी सरज़मीन पर आएं हैं यह लोग हमसे और हमारे मा'बूदों से बेजा़र हो गए हैं उन्होंने आपका दीन भी अख्त्यार नहीं किया , ये एक ऐसे दीन में दाखिल हो गए हैं जिसको ना हम जानते हैं ना आप । अब हमें क़ुरेश के बड़े सरदारों ने आपके पास भेजा है ताकि आप उन लोगों को हमारे हवाले कर दें ।


★_ यह सुनकर नजाशी ने कहा :-  वह लोग कहां है? 

उन्होंने कहा :- आप ही के यहां हैं। 

नजाशी ने उन्हें बुलाने के लिए फौरन आदमी भेजें , ऐसे में उन पादरियों और दूसरे सरदारों ने कहा :- आप उन लोगों को इन दोनों के हवाले कर दें इसलिए कि उनके बारे में ये ज्यादा जानते हैं।


★_ नजाशी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया ,उसने कहा :- पहले मैं उनसे बात करूंगा कि वह किस दीन पर है ।

अब मुसलमान दरबार में हाजिर हुए, हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने साथियों से कहा- नजाशी से मैं बात करूंगा। 

इधर नजाशी ने तमाम ईसाई आलिमों को दरबार में तलब कर लिया था ताकि मुसलमानों की बात सुन सके ,वो अपने किताबें भी उठा लाए थे।


★_ मुसलमानों ने दरबार में दाखिल होते वक्त इस्लामी तरीके के मुताबिक सलाम किया, बादशाह को सजदा ना किया । इस पर नजाशी बोला:- क्या बात है ? तुमने मुझे सजदा क्यों नहीं किया। 

हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- हम अल्लाह के सिवा किसी को सजदा नहीं करते, अल्लाह ताला ने हमारे दरमियान एक रसूल भेजे हैं.. और हमें हुक्म दिया कि अल्लाह के सिवा किसी को सजदा ना करो, अल्लाह के रसूल की तालीम के मुताबिक हमने आपको वही सलाम किया जो जन्नत वालों का सलाम है। 

नजाशी इस बात को जानता था इसलिए कि यह बात इंजील में थी।

[23/11, 8:12 am] ★☝🏻★: ★__ इसके बाद हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- अल्लाह के रसूल ने हमें नमाज़ का हुक्म दिया है , और ज़कात अदा करने का हुक्म दिया है ,

उस वक्त हजरत अमरु बिन आस (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने नजाशी को भड़काने के लिए उससे कहा :- यह लोग इब्ने मरियम यानी ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में आपसे मुख्तलिफ अकी़दा रखते हैं , ये उन्हें अल्लाह का बेटा नहीं मानते।

इस पर नजाशी ने पूछा :- तुम ईसा इब्ने मरियम और मरियम अलैहिमुस्सलाम के बारे में क्या अक़ीदा रखते हो ?

हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- उनके बारे में हम वही कहते हैं जो अल्लाह ता'ला फरमाता है यानी कि वो रूहुल्लाह और कलामतुल्लाह है और कुंवारी मरियम के बतन से पैदा हुए हैं।


★_ फिर हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने बादशाह के दरबार में यह तक़रीर की :- 

"_ ऐ बादशाह ! हम एक गुमराह कौ़म थे , पत्थरों को पूजते थे मुरदार जानवरों का गोश्त खाते थे बे-हयाई के काम करते थे रिश्तेदारों के हुक़ूक़ गसब करते थे पड़ोसियों के साथ बुरा सलूक करते थे हमारा हर ताकतवर आदमी कमजोर को दबा लेता था, यह थी हमारी हालत । 

फिर अल्लाह ताला ने हममे से उसी तरह एक रसूल भेजा जैसा कि हम से पहले लोगों में और रसूल भेजे जाते रहे हैं ,यह रसूल हम ही में से हैं हम उनका हसब नसब उनकी सच्चाई और पाक दामनी अच्छी तरह जानते हैं। उन्होंने हमें अल्लाह ता'ला की तरह बुलाया कि हम उसे एक जाने, उसकी इबादत करें और यह कि अल्लाह के सिवा जिन पत्थरों और बुतों को हमारे बाप दादा पूजते चले आए हैं हम उन्हें छोड़ दें_,"


★_ उन्होंने हमें हुक्म दिया कि हम सिर्फ अल्लाह ता'ला की इबादत करें, नमाज पढ़े जकात दें, रोज़े रखें ,उन्होंने हमें सच बोलने ,अमानत पूरी करने, रिश्तेदारों की खबर गिरि करने, पड़ोसियों से अच्छा सुलूक करने बुराइयों और खून बहाने से बचने और बदकारी से दूर रहने का हुक्म दिया । इसी तरह गंदी बातें करने , यतीमों का माल खाने और घरों में बैठने वाली औरतों पर तोहमत लगाने से मना फ़रमाया। हमने उनकी तस्दीक़ की, उन पर ईमान लाए और जो तालिमात वो लेकर आएं उनकी पेरवी की , बस इस बात पर हमारी कौ़म हमारी दुश्मन बन गई ताकि हमें फिर पत्थरों की पूजा पर मजबूर कर सके ,उन लोगों ने हम पर बड़े-बड़े जुल्म किए, नए से नए जुल्म ढाए, हमें हर तरह तंग किया_,"


"_ आखिरकार जब उनका जु़ल्म हद से बढ़ गया और यह हमारे दीन के रास्ते में रुकावट बन गए तो हम आपकी सरजमीन की तरफ निकल पड़े ,हमने दूसरों के मुकाबले में आपको पसंद किया, हम तो यहां यह उम्मीद लेकर आए हैं कि आपके मुल्क में हम पर जुल्म नहीं होगा।

[23/11, 8:31 am] ★☝🏻★: ★_ हजरत जाफर रजियल्लाहु अन्हु की तक़रीर सुनकर नजाशी ने कहा :- क्या आपके पास अपने नबी पर आने वाली वही का कुछ हिस्सा मौजूद है ? 

हां मौजूद है। जवाब में हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले ।

वह मुझे पढ़ पढ़कर सुनाइए। नजाशी बोला ।

इस पर उन्होंने क़ुरान ए करीम से सूरह मरियम की चंद आयात पढ़ी, आयात सुनकर नजाशी और उसके दरबारियों की आंखों में आंसू आ गए ।नजाशी बोला :- हमें कुछ और आयात सुनाओ ।

इस पर हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ और आयात सुनाई । तब नजाशी ने कहा :- अल्लाह की क़सम, यह तो वही कलाम है जो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम लेकर आए थे। खुदा की क़सम, मैं इन लोगों को तुम्हारे हवाले नहीं करूंगा।


★_इस तरह कुरेशी वफद नाकाम लौटा । दूसरी तरफ मक्का के मुसलमान उसी तरह घाटी शोएब अबी तालिब में मुक़ीम थे, वह उसमें 3 साल तक रहे ।यह 3 साल बहुत मुसीबतों के साल थे , उसी घाटी में हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु पैदा हुए । यह हालात देखकर कुछ नरम दिल लोग भी गमगीन होते थे , ऐसे लोग कुछ खाना पीना इन हजरात तक किसी ने किसी तरह पहुंचा दिया करते थे।


"_ऐसे में अल्लाह ताला ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला दी कि क़ुरेश के लिखे हुए मु'आहिदे को दीमक ने चाट लिया है, मु'आहिदे के अल्फ़ाज़ में सिवाय अल्लाह के नाम के और कुछ बाकी़ नहीं बचा। आन'हज़रत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह बात अबु तालिब को बताई।


★_अबू तालिब फौरन गए और क़ुरेश के लोगों से कहा:-  तुम्हारे अहद नामे को दीमक ने चाट लिया है यह खबर मुझे मेरे भतीजे ने दी है, उस मु'आहिदे पर सिर्फ अल्लाह का नाम बाक़ी रह गया है। अगर बात इसी तरह है जैसा कि मेरे भतीजे ने बताया है तो मामला खत्म हो जाता है लेकिन अगर तुम अब भी बाज़ ना आए तो फिर सुनो अल्लाह की क़सम जब तक हममे आखिरी आदमी भी बाक़ी है उस वक्त तक हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तुम्हारे हवाले नहीं करेंगे _,"

हमें तुम्हारी बात मंजूर है.. हम मु'आहिदे को देख लेते हैं _,"


★_ उन्होंने मु'आहिदा मंगवाया, उसको वाक़ई दीमक चाट चुकी थी सिर्फ अल्लाह का नाम बाक़ी था । इस तरह मुशरिक उस मु'आहिदे से बाज़ आ गए । 

मु'आहिदा जिस शख्स ने लिखा था उसका हाथ शुल हो गया था। मु'आहिदे का यह हाल देखने के बाद कुरेशी लोग शोएब अबी तालिब पहुंचे, उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम और आपके साथियों से कहा :-आप अपने घरों में आ जाएं वह मु'आहिदे खत्म हो गया है।

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 *★_ गम का साल _,*


★__ इस तरह 3 साल बाद नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और आपके साथी अपने घरों को लौट आए और जु़ल्म का यह बाब बंद हुआ। 

इस वाक्य के बाद नजरान का एक वफद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ । यह लोग ईसाई थे, नजरान उनकी बस्ती का नाम था, यह बस्ती यमन और मक्का के दरमियान वाक़े थी और मक्का से क़रीबन 7 मंजिल दूर थी । उस वफद में 20 आदमी थे । नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बारे में उन्हें उन मुहाजिरीन से मालूम हुआ था जो मक्का से हिजरत करके हबशा चले गए थे।


★_आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त हरम में थे।  यह लोग आपके सामने बैठ गए ।उधर कुरेशे मक्का भी आसपास बैठे थे उन्होंने अपने कान आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम और उस वफद की बातचीत की तरफ लगा दिए। जब नजरान के यह लोग आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बात कर चुके तो आपने उन्हें इस्लाम की दावत दी , क़ुरआने करीम की कुछ आयात पढ़कर सुनाई। आयात सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए, उनके दिलों ने इस्लाम की सच्चाई की गवाही दे दी।


★_चुनांचे फोरन ही आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर ईमान ले आएं, उन्होंने अपनी मज़हबी किताबों में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सिफात और खबरें पढ़ रखी थी इसलिए आपको देखकर पहचान गए कि आप ही नबी आखिरुज़ ज़मा हैं।


★_इसके बाद यह लोग उठकर जाने लगे तो अबू जहल और चंद  दूसरे कुरेशी सरदारों ने इन्हें रोका और कहा :- खुदा तुम्हें रुसवा करे, तुम्हें भेजा तो इसलिए गया था कि तुम यहां उस शख्स के बारे में मालूमात हासिल करके उन्हें बताओ, मगर तुम उसके पास बैठ कर अपना दीन ही छोड़ बैठे ,तुमसे ज्यादा अहमक और बे अक़ल काफिला हमने आज तक नहीं देखा ।

इस पर नजरान के लोगों ने कहा:- तुम लोगों को हमारा सलाम है,  हमसे तुम्हें क्या वास्ता , तुम अपने काम से काम रखो हमें अपनी मर्जी से काम करने दो।


"_ अल्लाह ताला ने सूरह हैं माइदा में उनकी तारीफ बयान फरमाई।

[24/11, 9:35 am] ★☝🏻★: ★__ इसी तरह क़बीला अज़्द के एक शख्स जिनका नाम ज़माद था , मक्का आए । यह साहब झाड़-फूंक से जिन्नात का असर जा़यल किया करते थे ।मक्का के लोगों को उन्होंने यह कहते हुए सुना कि मुहम्मद पर जिन्न का असर है। यह सुनकर उन्होंने कहा:- अगर मैं उस शख्स को देख लूं तो शायद अल्लाह ताला उसे मेरे हाथ से शिफा अता फरमा दे। 

उसके बाद वह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए। उनका बयान है कि मैंने आपसे कहा :- ए मुहम्मद !  मैं झाड़-फूंक से इलाज करता हूं, लोग कहते हैं कि आप पर जिन्नात का असर है ,अगर बात यही है तो मैं आप का इलाज कर सकता हूं।


★_उनकी बात सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:-  तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए हैं हम उसी की हम्द व सना बयान करते हैं और उसी से मदद मांगते हैं, जिसे अल्लाह ता'ला हिदायत फरमाता है उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसे अल्लाह ताला गुमराही नसीब करता है उसे कोई हिदायत नहीं दे सकता , मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई मा'बूद नहीं उसका कोई शरीक़ नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल है _," 

उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा:-  यह कलमात मेरे सामने दोबारा पढ़ें ।

आपने कलमा शहादत 3 मर्तबा दोहराया। तब उन्होंने कहा :- मैंने काहिनों के कलमात सुने हैं, जादूगरों और शायरों के कलमात भी सुने हैं मगर आपके कलमात जैसे कलमात कभी नहीं सुने, अपना हाथ लाइए , मैं इस्लाम कुबूल करता हूं _,"


★_चुनांचे ज़माद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसी वक्त आपके हाथ पर बैत की ।आपने फरमाया :- अपनी क़ौम के लिए भी बैत करते हो ?

जवाब में उन्होंने कहा :- हां , मैं अपनी कौम की तरफ से भी बैत करता हूं ।

इस तरह यह साहब जो आप पर से जिन्नात का असर हटाने की नियत से आए थे ,खुद मुसलमान हो गए। ऐसे और भी बहुत से वाक़यात पेश आएं ।

[24/11, 10:13 am] ★☝🏻★: ★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को नबूवत के 10 साल का अरसा गुज़र चुका तो आपकी जो़जा मोहतरमा हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा इंतकाल कर गई , उससे चंद दिन पहले अबू तालिब फौत हो गए थे।

हजरत खदीजतुल क़ुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा को हुजून के कब्रिस्तान में दफन किया गया। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खुद उनकी कब्र में उतरे। इंतकाल के वक्त हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा की उम्र 65 साल थी ।उस वक्त तक नमाजे जनाजा़ का हुक्म नहीं हुआ था। उस साल को सीरत निगारों ने आमुल हुज़्न यानी गम का साल क़रार दिया क्योंकि हर मौके़ पर साथ देने वाली दो हस्तियां इस दुनिया से रुखसत हो गई थी।


★_ आप हर वक्त गमगीन रहने लगे ,घर से भी कम निकलते ,हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा शादी के बाद 25 साल तक आपके साथ रहीं, इतनी तवील मुद्दत तक आपका और उनका साथ रहा था।


★_ अबू तालिब जब बीमार हुए थे तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनसे मिलने के लिए आए ,उस वक्त क़ुरेश के सरदार भी वहां मौजूद थे , आपने चाचा से फरमाया :- चाचा ! ला इलाहा इलल्लाह पढ़ लीजिए ताकि में कयामत के दिन आपकी शफा'अत कर सकूं _,"

इस पर अबू तालिब ने कहा:-  खुदा की क़सम भतीजे ! अगर मुझे यह खौफ ना होता कि मेरे बाद लोग तुम्हें और तुम्हारे खानदान वालों को शर्म और आर दिलाएंगे और कुरेश यह कहेंगे कि मैंने मौत के डर से यह कलमा कह दिया तो मैं यह कलमा पढ़कर जरूर तुम्हारा दिल ठंडा करता , मैं जानता हूं तुम्हारी यह कितनी ख्वाहिश है कि मैं यह कलमा पढ़ लूं.. मगर मैं अपने बुजुर्गों के दीन मरता हूं _,"


★_इसपर यह आयत नाजिल हुई :- 

"_ आप जिसे चाहें हिदायत नहीं दे सकते बल्कि जिसे अल्लाह चाहे हिदायत देता है और हिदायत पाने वालों का इल्म भी उसी को है _," *( सूरह क़सस आयत 56 )*


★_इस तरह अबू तालिब मरते दम तक काफिर ही रहे , कुफ्र पर ही मरे, हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :-मैंने एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से पूछा :- अल्लाह के रसूल ! अबू तालिब हमेशा आपकी मदद और हिमायत करते रहे क्या इससे उन्हें आखिरत में फायदा पहुंचेगा ?

 जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- हां ! मुझे उनकी क़यामत के दिन की हालत दिखाई गई, मैंने उन्हें जहन्नम के ऊपर वाले हिस्से में पाया वरना वो जहन्नम के निचले हिस्से में होते   *( बुखारी, मुस्लिम )*

 ★☝🏻★: ★__ अबू तालिब के मरने पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "_खुदा की कसम मैं उस वक्त तक आपके लिए मग्फिरत की दुआ करता रहूंगा जब तक कि मुझे अल्लाह ताला ही इससे ना रोक दें _,"

इस पर अल्लाह ताला ने यह आयत नाजिल फरमाई :- 

"_  पैगंबर को और दूसरे मुसलमानों को जायज़ नहीं कि मुशरिकों के लिए मग्फिरत की दुआ मांगे ,अगरचे वह रिश्तेदार ही क्यों ना हो, इस उम्र के ज़ाहिर हो जाने के बाद यह लोग दोज़खी है_," *( सूरह अत-तौबा ,आयत 113 )*

इससे भी साबित हुआ कि अबू तालिब ईमान पर नहीं मरे।


★_हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा का इंतकाल रमजान के महीने में हुआ था उन की वफात के चंद माह बाद आपने हजरत सौदा बिन्ते ज़मा रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी फरमाई, आपसे पहले उनकी शादी उनके चाचा के बेटे सुकरान रजियल्लाहु अन्हु से हुई थी। हज़रत सुकरान रजियल्लाहु अन्हु दूसरी हिजरत के हुक्म के वक्त उनके साथ हबशा हिजरत कर गए थे फिर मक्का वापस आ गए थे ।उसके कुछ अर्से बाद ही उनका इंतकाल हो गया था ।जब हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा की इद्दत का जमाना पूरा हो गया तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनसे निकाह फरमाया।


★_इस निकाह से पहले हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक अजीब ख्वाब देखा था ,उन्होंने अपने शौहर सुकरान रजियल्लाहु अन्हु से यह ख्वाब बयान किया। ख्वाब सुन कर उन्होंने कहा अगर तुमने वाक़ई यह ख्वाब देखा है तो मैं जल्द ही मर जाऊंगा और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तुमसे निकाह फरमाएंगे_," 

दूसरी रात उन्होंने फिर ख्वाब देखा कि वह लैटी हुई है अचानक चांद आसमान से टूटकर उनके पास आ गया । उन्होंने यह ख्वाब भी अपने शौहर को सुनाया ,वह यह ख्वाब सुन कर बोले :- अब शायद मैं बहुत जल्द फौत हो जाऊंगा _,"


★_और उसी दिन हजरत सुकरान रजियल्लाहु अन्हु इंतकाल कर गए, ।

शव्वाल के महीने में आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया।

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[ *★_ ताइफ का सफर _,"*


★_ अबू तालिब के इंतकाल के बाद क़ुरेश खुल कर सामने आ गए, एक रोज़ उन्होंने आपको पकड़ लिया,हर शख्स आपको अपनी तरफ खींचने लगा.. और कहने लगा :- यह तो वही है जिसने हमारे इतने सारे मा'बूदों को एक मा'बूद बना दिया_,"


ऐसे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु तड़पकर एकदम आ गए । उस भीड़ में घुस गये , किसी को उन्होंने मारकर हटाया, किसी को धक्का दिया , वह उन लोगों को आप से हटाते जाते और कहते जाते थे :-  क्या तुम ऐसे शख्स को क़त्ल करना चाहते हो जो यह कहता है मेरा रब अल्लाह है_,"

इस पर वह लोग हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु पर टूट पड़े और उन्हें इतना मारा कि वह मरने के क़रीब हो गए, होश आया तो हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की  खैरियत मालूम की, पता चला कि खैरियत से हैं तो अपनी तकलीफ को भूल गए।


★_ शव्वाल 10 नबवी में हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ताइफ तशरीफ ले गए , उस सफर में सिर्फ आपके गुलाम हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु साथ थे , ताइफ में सक़ीफ का क़बीला आबाद था। आप यह अंदाजा करने के लिए ताइफ तशरीफ ले गए कि  क़बीला सकी़फ के दिलों में भी इस्लाम के लिए कुछ गुंजाइश है या नहीं । आप यह उम्मीद भी लेकर गए थे कि मुमकिन है यह लोग मुसलमान हो जाएं और आप की हिमायत में उठ खड़े हो।


ताइफ पहुंचकर आपने सबसे पहले कबीले के सरदारों के पास जाने का इरादा किया। यह तीन भाई थे एक का नाम अब्द यालैल था, दूसरे का नाम मसूद था, तीसरे का नाम हबीब था। उन तीनों के बारे में पूरी तरह वजाहत नहीं मिलती कि यह बाद में मुसलमान हो गए थे या नहीं। बहरहाल आपने उन तीनों से मुलाक़ात की, अपने आने का मकसद बताया, इस्लाम के बारे में बताया ,उन्हें इस्लाम की दावत देने के साथ मुखालिफों के मुक़ाबले में साथ देने की दावत दी ।


★_उनमें से एक ने कहा :- क्या वह तुम ही हो जिसे खुदा ने भेजा है ? 

साथ ही दूसरे ने कहा:- तुम्हारे अलावा खुदा को रसूल बनाने के लिए कोई और नहीं मिला था ?

इसके साथ ही तीसरा बोल उठा :-  खुदा की क़सम! मैं तुमसे कोई बातचीत नहीं करूंगा क्योंकि अगर तुम वाक़ई अल्लाह के रसूल हो तो तुम्हारे साथ बातचीत करना बहुत खतरनाक है ( यह उसने इसलिए कहा था कि वह लोग जानते थे किसी नबी के साथ बहस करना बहुत खतरनाक है )  और अगर तुम नबी नहीं हो तो तुम जैसे आदमी से बात करना ज़ेब नहीं देता।

[: ★_ आप उनसे मायूस होकर उठ खड़े हुए ।उन तीनों ने अपने यहां के बदमाश लोगों को और अपने गुलामों को आपके पीछे लगा दिया , वह आपके गिर्द जमा हो गए ,रास्ते में भी दोनों तरफ लोगों का हुजूम हो गया। जब आप उनके दरमियान से गुज़रे तो वह बदबख्त तरीन लोग आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पत्थर बरसाने लगे ,यहां तक कि आप जो कदम उठाते वह उस पर पत्थर मारते, आपके दोनों पांव लहूलुहान हो गए आपके जूते खून से भर गए । जब चारों तरफ पत्थर मारे गए तो तकलीफ की शिद्दत से आप बैठ गए । उन बदबख्त बदमाशों ने आपकी बगलों में बाजू डालकर आपको खड़े होने पर मजबूर कर दिया.. जोंही आपने चलने के लिए कदम उठाए , वह फिर पत्थर बरसाने लगे, साथ में वह हंस रहे थे और कहकहे लगा रहे थे।


★_ ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु का यह हाल था कि वह आपको पत्थरों से बचाने के लिए खुद को उनके सामने कर रहे थे, इस तरह वह भी लहूलुहान हो गए लेकिन इस हालत में भी उन्हें आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की फिक्र थी अपनी कोई परवाह नहीं थी ,उनके इतने जख्म आए कि सर फट गया।


★_ आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस बस्ती से निकलकर एक बाग में दाखिल हो गए। इस तरह उन बदबख्त तरीन  लोगों से छुटकारा मिला। आप और जैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त तक जख्मों से बिल्कुल चूर हो चुके थे और बदन लहूलुहान थे । आप एक दरख्त के साए में बैठ गए , आपने अल्लाह से दुआ की :- 

"_ ऐ अल्लाह !  मैं अपनी कमजोरी, लाचारी और बेबसी की तुझसे फरियाद करता हूं , या अर हमर राहेमीन !  तू कमजोरों का साथी है और तू ही मेरा रब है और मैं तुझ ही पर भरोसा करता हूं.. अगर मुझ पर तेरा ग़ज़ब और गुस्सा नहीं है तो मुझे किसी की परवाह नहीं _,"


★_उसी वक्त अचानक आपने देखा कि वहां बाग के मालिक उतबा और शैबा भी मौजूद है, वह भी देख चुके थे कि ताइफ के बदमाशों ने आपके साथ क्या सुलूक किया है ।

उन्हें देखते ही आप उठ खड़े हुए  क्योंकि आपका मालूम था कि वह दोनों अल्लाह के दीन के दुश्मन हैं। उन दोनों को आपकी हालत पर रहम आ गया। उन्होंने फौरन अपने नसरानी गुलाम को पुकारा उसका नाम अद्दास था। अद्दास हाजिर हुआ तो उन्होंने उसे हुक्म दिया -उस बेल से अंगूर का गोशा तोड़ो और उनके सामने रख दो ।

: ★_ अद्दास ने हुक्म की तामील की ,अंगूर आपको पेश किए आपने जब अंगूर खाने के लिए हाथ बढ़ाया तो फरमाया- बिस्मिल्लाह ।

अद्दास ने आपके मुंह से बिस्मिल्लाह सुना तो उसने अपने आप से कहा -इस इलाक़े के लोग तो ऐसा नहीं कहते ।

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उससे पूछा :-तुम किस इलाके के रहने वाले हो ?तुम्हारा दीन क्या है ?

अद्दास ने बताया कि वह नसरानी है और नैनवा का रहने वाला है।

उसके मुंह से नैनवा का नाम सुनकर आप ने फरमाया :- तुम तो यूनुस अलैहिस्सलाम के हमवतन हो जो मती के बेटे थे।


★_अद्दास  बहुत हैरान हुआ बोला :- आपको यूनुस बिन मती के बारे में कैसे मालूम हुआ ?

खुदा की क़सम जब मैं नैनवा से निकला था तो वहां 10 आदमी भी ऐसे नहीं थे जो यह जानते हो कि यूनुस बिन मति कौन थे, इसलिए आपको यूनुस बिन मती के बारे में कैसे मालूम हो गया ?

इस पर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- वह मेरे भाई थे ,अल्लाह के नबी थे और मैं भी अल्लाह का रसूल हूं । अल्लाह ताला ही ने मुझे उनके बारे में बताया है और यह भी बताया है कि उनकी क़ौम ने उनके साथ क्या सलूक किया था । 

आपकी जबान मुबारक से यह अल्फाज़ सुनते ही अद्दास फौरन आपके नज़दीक आ गया और आपके हाथों और पैरों को बोसा देने लगा ।

बाग के मालिक उतबा और शैबा दूर खड़े यह सब देख रहे थे। उन्होंने अद्दास को आपके कदम चूमते देखा तो उनमें से एक ने दूसरे से कहा :- तुम्हारे गुलाम को तो उस शख्स ने गुमराह कर दिया।


★_ फिर अद्दास उनकी तरफ आया तो एक ने उससे कहा :- तेरा नाश हो तुझे क्या हो गया था कि तू उसके हाथ और पैर छूने लगा था।

 इस पर अद्दास बोला :- मेरे आका़ ! उस उस शख्स से बेहतर इंसान पूरी ज़मीन पर नहीं हो सकता ,उसने मुझे ऐसी बात बताई है जो कोई नबी बता सकता है ।

यह सुनकर उतबा ने फौरन कहा:- तेरा बुरा हो अपने दील से हरगिज़ मत फिरना _,

इन अद।दास के बारे में आता है कि यह मुसलमान हो गए थे।


★_ उतबा और शैबा के बाग से निकलकर आप क़रने सालिब के मका़म पर पहुंचे ।यहां पहुंचकर आपने सर उठाया तो एक बदली आप पर साया किये नज़र आई। उस बदली में आपको जिब्रील अलैहिस्सलाम नजर आए। उन्होंने आपसे कहा :- 

"_ आपने अपनी क़ौम  बनी सक़ीफ को जो कहा और उन्होंने जो जवाब दिया उसको अल्लाह ताला ने सुन लिया है और मुझे पहाड़ों के निगरां के साथ भेजा है। इसलिए बनी सकीफ के बारे में जो चाहे इस फरिश्ते को हुक्म दें_",

इसके बाद पहाड़ों के फरिश्ते ने आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को पुकारा और अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! अगर आप चाहे तो मैं इन पहाड़ों के दरमियान उस कौ़म को कुचल दूं या उन्हें जमीन में धंसा कर उनके ऊपर पहाड़ गिरा दूं।


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*★_ जिन्नात से मुलाकात _,"*


★_ पहाड़ों के फरिश्ते की बात के जवाब में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ नहीं , मुझे तवक्को़ है कि अल्लाह ताला उनकी औलाद में ज़रूर ऐसे लोग पैदा फरमाएगा जो अल्लाह ताला की इबादत करेंगे और उसके साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगे_,"

इस पर पहाड़ों के फरिश्ते ने जवाब दिया :- 

"_अल्लाह ताला ने जैसा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को नाम दिया है आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हक़ीक़त में रऊफ व रहीम है यानी बहुत माफ करने वाले और बहुत रहम करने वाले हैं_,"


★__ ताइफ के सफ़र से वापसी पर 9 जिन्नों का आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास से गुजर हुआ , वह नसीबीन के रहने वाले थे , यह शाम के एक शहर का नाम है ।आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम उस वक्त नमाज़ पढ़ रहे थे जिन्नात ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की क़िरात की आवाज सुनी तो उसी वक्त मुसलमान हो गए, पहले वह यहूदी थे ।


"_ताइफ से वापसी पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मक्का में दाखिल हुए तो हरम में आए और बैतुल्लाह का तवाफ फरमाया ,उसके बाद घर तशरीफ़ ले गए । 

इधर 9 जिन्न जब अपनी क़ौम में गए तो उन्होंने बाकी जिन्नों को आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बारे में बताया । चुनांचे वे सब के सब मक्का पहुंचे उन्होंने हुजूम के मकान पर क़याम किया और एक जिन्न को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में भेजा ,उसने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज किया :- 

"_ मेरी क़ौम हुजून के मुका़म पर ठहरी हुई है आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वहां तशरीफ ले चलें_,"


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उससे वादा फरमाया कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम रात में किसी वक्त हुजून आएंगे । हुजून मक्का के एक कब्रिस्तान का नाम था । रात के वक्त आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम वहां पहुंचे , हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ थे । हुजून पहुंचकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु के गिर्द एक खत खींच दिया और फरमाया :-

"_ इससे बाहर मत निकलना, अगर तुमने दायरे से बाहर क़दम रख दिया तो क़यामत के दिन तक तुम मुझे नहीं देख पाओगे और ना मैं तुम्हें देख सकूंगा _,"

एक रिवायत के मुताबिक़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे यह फरमाया :- 

"_मेरे आने तक तुम इस जगह रहो ,तुम्हें किसी चीज से डर नहीं लगेगा ,ना किसी चीज को देखकर डर महसूस होगा।


★_ इसके बाद आप कुछ फासले पर जाकर बैठ गए ।अचानक आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास बिल्कुल सियाह फाम लोग आए , वे काफी तादाद में थे और आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर हुजूम करके टूटे पढ़ रहे थे यानी कुराने पाक सुनने की ख्वाहिश में एक-दूसरे पर गिर रहे थे ।

"_ इस मौके पर हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु ने चाहा कि आगे बढ़कर उन लोगों को हटा दें लेकिन फिर उन्हें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इरशाद याद आ गया और वह अपनी जगह से नहीं हिले _,"


★_ इधर जिन्नात ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा :- 

"_ ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ! हम जिस जगह के रहने वाले हैं यानी जहां हमें जाना है वह जगह दूर है इसलिए हमारे और हमारी सवारियों के लिए सामाने सफर का इंतजाम फरमा दीजिए _,"

जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ हर वो हड्डी जिस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो जब तुम्हारे हाथों में पहुंचेगी पहले से ज्यादा पुर गोश्त हो जाएगी और यह लीद और गोबर तुम्हारे जानवरों का चारा है _,"

इस तरह जिन्नात आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर ईमान लाऐ _,"

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 *★ _ तुफैल बिन अमरु दौसी रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ुबूले इस्लाम_,"*

★__ तुफेल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु एक ऊंचे दर्जे के शायर थे यह एक मर्तबा मक्का आए ,इनकी आमद की खबर सुनकर कुरेशी इनके गिर्द जमा हो गए उन्होंने तुफेल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा :- आप हमारे दरमियान ऐसे वक्त में आए हैं जबकि हमारे दरमियां उस शख्स ने अपना मामला बहुत पेचीदा बना दिया है उसने हमारा शीराजा़ बिखेर कर रख दिया है हममें फूट डाल दी है उसकी बातों में जादू जैसा असर है उसने दो सगे भाइयों में फूट डाल दी है , अब हमें आपकी और आपकी कौ़म की तरफ से भी परेशानी लाहिक़ हो गई है इसलिए अब आप ना तो उससे कोई बात करें और ना उसकी कोई बात सुने _," 

उन्होंने इन पर इतना दबाव डाला कि वह यह कहने पर मजबूर हो गए :- "_ ना मैं मोहम्मद की कोई बात सुनुंगा और ना उनसे कोई बात करूंगा _,"


★_दूसरे दिन तुफेल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु  काबा का तवाफ करने के लिए गए तो उन्होंने अपने कानों में कपड़ा ठूंस लिया कि कहीं उनकी कोई बात इनके कानों में ना पहुंच जाए । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ,यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के क़रीब खड़े हो गए। अल्लाह को मंजूर था कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का कुछ कलाम इनके कानों में पड़ जाए । चुनांचे इन्होंने एक निहायत पाकीज़ा और खूबसूरत कलाम सुना ,  यह अपने दिल में कहने लगे :- मैं अच्छे और बुरे में तमीज़ महसूस कर सकता हूं इसलिए इन साहब की बात सुन लेने में हर्ज ही क्या है अगर यह अच्छी बात कहते हैं तो मैं कुबूल कर दूंगा और बुरी बात हुई तो छोड़ दूंगा _,"


★_कुछ देर बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम नमाज़ से फारिग होकर अपने घर की तरफ चले तो इन्होंने कहा :- "_ ए मोहम्मद ! आपकी क़ौम ने मुझसे ऐसा ऐसा कहा है इसलिए मैंने आपकी बातों से बचने के लिए कानों में कपड़ा ठूंस लिया था मगर आप अपनी बात मेरे सामने पेश करें _,"

यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इन पर इस्लाम पेश किया और इनके सामने क़ुरआने करीम की तिलावत फरमाई। क़ुरान सुनकर तुफेल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- "_ अल्लाह की क़सम, मैंने इससे अच्छा कलाम कभी नहीं सुना _,"

इसके बाद इन्होंने कलमा पढ़ा और मुसलमान हो गए। फिर इन्होंने अर्ज़ किया :- "_  ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! मैं अपनी क़ौम में ऊंची हैसियत का मालिक हूं वह सब मेरी बात सुनते हैं.. मानते हैं , मैं वापस जाकर अपनी क़ौम को इस्लाम की दावत दूंगा, इसलिए आप मेरे लिए दुआ फरमाएं _,"

 इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इनके लिए दुआ फरमाई ।


★_ फिर यह वापस रवाना हो गए अपनी बस्ती के क़रीब पहुंचे तो वहां इन्हें पानी के पास काफ़िले खड़े नजर आए । उस वक्त इनकी दोनों आंखों के दरमियां चिराग के मानिंद एक नूर पैदा हो गया और ऐसा आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की दुआ की वजह से हुआ था । रात भी अंधेरी थी उस वक्त इन्होंने दुआ की :- 

"_ ऐ अल्लाह ! इस नूर को मेरे चेहरे के अलावा किसी और चीज़ में पैदा फरमा दे, मुझे डर है मेरी कौ़म के लोग यह कहने लगे कि दीन बदलने की वजह से इसकी शक्ल बिगड़ गई _,"

चुनांचे उसी वक्त वह नूर इनके चेहरे से इनके कौड़े में आ गया , अब इनका कौड़ा कंदील की तरह रोशन हो गया ।

इसी बुनियाद पर हजरत तुफेल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु को जि़ननूर कहा जाने लगा यानी नूर वाले ।

[: ★__ यह घर पहुंचे तो इनके वालिद इनके पास आए इन्होंने उनसे कहा आप :- मेरे पास ना आएं अब मेरा आपसे कोई ताल्लुक़ नहीं और ना आपका मुझसे कोई ताल्लुक़ रह गया है।

यह सुनकर इनके वालिद ने पूछा :-  क्यों बेटे ! यह क्या बात हुई ?

इन्होंने जवाब दिया:-  मैं मुसलमान हो गया हूं मैंने मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का दीन क़ुबूल कर लिया है ।

यह सुनते ही इनके वालिद बोल उठे :- बैटे, जो तुम्हारा दीन है वही मेरा दीन है ।

तब तुफैल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें गुस्ल करने और पाक कपड़े पहनने के लिए कहा, जब वो ऐसा कर चुके तो उन पर इस्लाम पेश किया , वह उसी वक्त कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गए। फिर इनकी बीवी इनके पास आई उन्होंने भी इस्लाम कुबूल कर लिया ।

अब इन्होंने अपनी क़ौम के लोगों  पर इस्लाम पेश किया... वह लोग बिगड़ गये।


★__ उनका यह हाल देखकर हजरत तुफैल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु फिर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम के पास गए और आपसे अर्ज किया :-  ए अल्लाह के रसूल ! क़ौमे दौस मुझ पर गालिब आ गई इसलिए आप उनके लिए दुआ फरमाएं। 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई :- ऐ अल्लाह क़ौमे दौस को हिदायत अता फरमा उन्हें दीन की तरफ ले आ ।


★_ हजरत तुफैल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु फिर अपने लोगों में गए इन्होंने फिर दीन इस्लाम की तब्लीग शुरू की... यह मुसलसल उन्हें तबलीग करते रहे यहां तक कि हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का से हिजरत करके मदीना तशरीफ ले गए । आखिर वह लोग ईमान ले आए । हज़रत तुफैल बिन अमरु दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें साथ लेकर मदीना आए । उस वक्त तक गज़वा बदर, गज़वा उहद , और गज़वा खंदक हो चुके थे और नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खैबर के मुकाम पर मौजूद थे ।

हजरत तुफैल बिन अमरु दोसी के साथ 70- 80 घरानों के लोग थे, उनमें हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु भी थे, चूंकि यह लोग वहां गजवा ए खैबर के वक्त पहुंचे थे इसलिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम मुसलमानों के साथ इनका भी हिस्सा निकाला है , अगरचे वह जंग में शरीक नहीं हुए थे ।


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★_ मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा तक _,*


★__ ताइफ के सफर के बाद मेराज का वाक़्या पेश आया जो हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर अल्लाह ताला का खास इनाम और नबूवत का बहुत बड़ा मोजजा़ है ।यह वाक्या़ इस तरह हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मक्का में हजरत उम्मे हानि रज़ियल्लाहु अन्हा के घर रात को आराम फरमा रहे थे कि अल्लाह ताला ने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम और हजरत मिकाईल अलैहिस्सलाम को आपके पास भेजा। वह आपको मस्जिद ए हराम  ले गए ,फिर वहां से बुराक़ पर सवार करके मस्जिदे अक्सा़ ले गए जहां तमाम अंबिया अलेहिस्सलाम ने आपकी इक़्तदा ने नमाज अदा की ।इसके बाद आपको सातों आसमान की सैर कराई गई और आप अल्लाह ताला से हम कलाम हुए ।इस सफर की कुछ अहम तफसीलात यह है ;- 


★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम बेतुल मुकद्दस पहुंचने से पहले हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम के साथ चले जा रहे थे कि रास्ते में एक सरसब्ज़ इलाके से गुजर हुआ ।हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आपसे कहा -यहां उतरकर 2 रकात नमाज पढ़ लीजिए । आपने बुराक़ से उतर कर दो रकाते अदा की। जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने पूछा- आपको मालूम है यह कौन सा मुका़म है ? आपने फरमाया- नहीं, तब जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा -यह आपने तैयबा यानी मदीना मुनव्वरा में नमाज पढ़ी है और यही आपकी हिजरतगाह है यानी मक्का से हिजरत करके आपको यहीं आना है।


★_ इसके बाद बुराक़ फिर रवाना हुआ उसका हर कदम जहां तक नज़र जाती थी वहां पढ़ता था। एक और मुकाम पर हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा- आप यहां उतर कर दो रकात नमाज पढ़िए ।आपने वहां भी दो रकात अदा की, उन्होंने बताया आपने मदयन में नमाज पढ़ी है। इस बस्ती का नाम मदयन हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे मदयन के नाम पर रखा गया था उन्होंने इस मुकाम पर कि़याम किया था उसके बाद यहां आबादी हो गई थी। हजरत शोएब अलैहिस्सलाम इसी बस्ती में मबूस हुए थे।


★_इसके बाद फिर आप उसी बुराक़ पर सवार हुए। एक मुकाम पर हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आपसे कहा- आप यहां ऊपर का नमाज पढ़िए। आपने दो रकात नमाज अदा की । जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया- यह बेतूल लहम है बेतुल लहम बेतुल मुकद्दस के पास एक बस्ती है जहां हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई थी । इसी सफर में आपने अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वालों का हाल देखा यानी आपको आखिरत की मिसाली शक्ल के जरिए मुजाहिदीन के हालात दिखाए गए,हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया- यह अल्लाह की राह में जिहाद करने वाले लोग हैं अल्लाह ने इनकी हर नेकी का सवाब 700 गुना कर दिए हैं।

 ★__ इसी तरह आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने दुनिया लाई गई, दुनिया एक हसीन व जमील औरत की सूरत में दिखाई गई ,उस औरत ने आप से कहा :- ए मोहम्मद ! मेरी तरफ देखिए मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं ।

आपने उसकी तरफ कोई तवज्जो नहीं दी और जिब्राइल अलैहिस्सलाम से पूछा :- यह कौन है? 

उन्होंने बताया यह दुनिया है अगर आप उस तरफ तवज्जो देते तो आपकी उम्मत आखिरत के मुकाबले में दुनिया को अख्तियार कर लेती ।

इसके बाद आपने रास्ते में एक बुढ़िया को देखा आपने पूछा :-यह कौन है ?

जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया:-  यह दुनिया ही है दुनिया की उम्र का इतना हिस्सा ही बाकी रह गया है जितना कि इस बुढ़िया का हो सकता है ।


★_इसके बाद अमानत में खयानत करने वाले, फर्ज नमाज के छोड़ने वाले , जकात अदा ना करने वाले,  बदकारी करने वाले, राहजनी करने वाले ( डाका डालने वाले ) दिखाए गए । उनके भयानक अंजाम आपको दिखाए गए ।

अमानत में खयानत करने वाले अपने बोझ में इजाफा किए जा रहे थे और बौझ को उठाने के काबिल नहीं थे , 

फर्ज नमाजों को छोड़ने वालों के सर को कुचला जा रहा था उनके सर रेजा रेजा हो रहे थे और फिर असल हालत में आ जाते थे , कुचलने का अमल फिर शुरू हो जाता था गर्ज़ उन्हें ज़र्रा भर मोहलत नहीं दी जा रही थी।


★_अपने माल में जकात अदा ना करने वालों का अंजाम आपने देखा कि उनके सतर पर आगे और पीछे फटे हुए चिथडे लटके हुए थे वह ऊंटों और बकरियों की तरह चर रहे थे और जक़ूम दरख़्त के कड़वे पत्ते और कांटे खा रहे थे। जक़ूम दरख़्त के बारे में आता है इस कदर कड़वा और जहरीला है कि उसकी कड़वाहट का मुकाबला दुनिया का कोई दरख्त नहीं कर सकता । इसका एक ज़र्रा दुनिया के मीठे दरिया में डाल दिया जाए तो तमाम दरिया कडवे हो जाए ।नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का दुनिया में मजाक उड़ाने वालों को भी यह दरख्त खिलाया जाएगा , उस दरख्त के पत्तों और कांटों के अलावा वह लोग जहन्नम के पत्थर चबाते नज़र आए।


★_बदकारों का अंजाम आपने देखा उनके सामने दस्तरख्वान लगे हुए थे  दस्तरखान में से कुछ निहायत बेहतरीन भुना हुआ गोश्त था कुछ में बिलकुल सड़ा हुआ गोश्त था , वह उस बेहतरीन गोश्त को छोड़कर सड़ा हुआ बदबूदार गोश्त खा रहे थे और बेहतरीन गोश्त नहीं खा रहे थे, 

इनके बारे में जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आपको बताया यह आपकी उम्मत के वह लोग हैं जिनके पास पाक और हलाल औरतें थी लेकिन वह उनको छोड़कर बदकार औरतों के पास जाते थे या यह वह औरतें थी जिनके खाविंद थे लेकिन वह उनको छोड़कर बदकार मर्दो के पास जाती थी_,"


★_सूद खाने वालों का अंजाम आपको यह दिखाया गया कि वह खून के दरिया में तैर रहे थे और पत्थर निगल रहे थे ।

आपको ऐसे आलिमों का अंजाम दिखाया गया जो लोगों को वाज़ किया करते थे और खुद बे-अमल थे उनकी ज़ुबांनें और होंठ लोहे की कैंचियों से काटे जा रहे थे और जैसे ही कट जाते थे फौरन पैदा हो जाते थे और फिर उसी तरह काटे जाने का अमल शुरू हो जाता था यानी उन्हें एक लम्हे की भी मोहलत नहीं मिल रही थी।

चुगलखोंरों के नाखून तांबे के थे और वह उनसे अपने चेहरे और सीने नोच रहे थे । ★_मस्जिदे अक्सा में अंबिया अलैहिस्सलाम की नमाज में इमामत फरमाने के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को सातों आसमानों की सैर कराई गई । जलीलुल क़द्र अंबिया अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात करवाई गई फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जन्नत का हाल दिखाया गया । आपका गुज़र जन्नत की एक वादी से हुआ , उससे निहायत भीनी भीनी खुशबू आ रही थी और मुश्क से ज्यादा खुशबूदार ठंडी हवा आ रही थी और एक बेहतरीन आवाज सुनाई दे रही थी,वह आवाज़ कह रही थी :- 

"_मेरे इशरत कदे में रेशम, मोती सोना, चांदी ,मूंगे, शहद ,दूध और शराब के जाम व कटोरे बहुत ज्यादा हो गए हैं _,"

इस पर अल्लाह ताला फरमा रहे हैं :- 

"_ हर वह मोमिन मर्द और औरत तुझ में दाखिल होगा जो मुझ पर और मेरे मेरे रसूलों पर ईमान रखता हो मेरे साथ किसी को शरीक़ ना ठहराता होगा... ना मुझसे बढ़कर या मेरे बराबर किसी को मानता होगा ,सुन ले , जिसके दिल में मेरा डर है उसका दिल मेरे खौफ की वजह से महफूज रहता है, जो मुझसे मांगता है मैं उसे महरूम नहीं रखुंगा , जो मुझे कर्ज देता है यानी नेक अमल करता है और मेरी राह में खर्च करता है मैं उसे बदला दूंगा , जो मुझ पर तवक्कुल और भरोसा करता है उसकी जमा पूंजी को उसकी जरूरत को पूरा करता रहूंगा , मैं ही सच्चा माबूद हूं, मेरे अलावा कोई इबादत के लायक़ नहीं, मेरा वादा सच्चा है गलत नहीं होता , मोमिन की निजात यक़ीनी है और अल्लाह ताला ही बरकत देने वाला है और सबसे बेहतरीन खालिक़ यानी पैदा करने वाला है ।

यह सुनकर मैंने कहा :- 

"_ बस ऐ परवरदिगार मैं खुश और मुत्मइन हूं _,"


★_ दोजख का हाल यह दिखाया गया कि आप वादी में पहुंचे ,वहां आपने बहुत बदनुमा आवाजें सुनी,  आपने बदबू भी महसूस की, आपने पूछा :- जिब्राइल ! यह क्या है ?

उन्होंने बताया :- यह जहन्नम की आवाज है, यह कह रही है :- ऐ मेरे परवरदिगार !  मुझे वह गिज़ा दे जिसका तूने मुझसे वादा किया है , मेरी जंजीरें और बेड़ियां, मेरी आग, मेरे शोले ,गर्मी , गर्म हवा ,पीप और अज़ाब के दूसरे हैबतनाक सामान बहुत बड़ गए हैं मेरी गहराई और उस गहराई में आग की तपिश यानी मेरा पेट और उसकी भूख बहुत ज्यादा है इसलिए मुझे मेरी वह खुराक दें जिसका तूने मुझसे वादा किया है_," 

जहन्नम की इस पुकार के जवाब में अल्लाह ताला ने फरमाया :- हर काफिर और मुशरिक, बद तबियत, बदमाश और खबीस मर्द और औरत तेरी खुराक हैं _," 

यह सुनकर जहन्नम ने जवाब दिया :- बस ! मैं खुश हो गई _,"


★_ इसी सफर में आपको दज्जाल की सूरत दिखाई गई, उसकी शक्ल अब्दुल उज़्जा़ इब्ने क़तन जेसी थी, यह अब्दुल उज़्जा़ जाहिलियत के जमाने में नबी अकरम सल्लल्लाहो वसल्लम के ज़हूर से पहले ही मर गया था।


★_आपको वहां कुछ लोग दिखाए गए उनके होंठ ऊंटों के होंटो जैसे थे और उनके हाथों में पत्थरों की तरह के बड़े-बड़े अंगारे थे यानी इतने बड़े-बड़े थे कि एक एक अंगारे में उनका हाथ भर गया था वह लोग अंगारों को अपने मुंह में डालते थे, आपने यह मंजर देख जिब्राइल अलैहिस्सलाम से पूछा :- जिब्राइल ! यह कौन लोग हैं ?

जवाब में उन्होंने बताया :- यह वह लोग हैं जो जबरदस्ती और जुल्म से यतीमों का माल खाते थे_,"


★_आपने वहां ऐसे लोग देखे जो अपने जिस्म से पहलुओं का गोश्त नोच नोच कर खा रहे थे, उनसे कहा जा रहा था :- यह भी उसी तरह खाओ जिस तरह तुम अपने भाई का गोश्त खाया करते थे _,"

आपने दरयाफ्त फरमाया :- यह कौन लोग है ?

जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा:- यह वह लोग हैं जो एक दूसरे पर आवाजें कसा करते थे।

 ★__ जहन्नम दिखाने के बाद आप को जन्नत दिखाई गई आपने वहां मोतियों के बने हुए गुंबद देखें वहां की मिट्टी मुश्क की थी ,आपने जन्नत में अनार देखें वह बड़े-बड़े डोलो जितने थे और जन्नत के परिंदे ऊंटों जितने बड़े थे , सातों आसमानों की सैर की, सैर के बाद आपको सिद्रतुल मुंतहा तक ले जाया गया, यह बेरी का एक दरख्त है । हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सिद्रतुल मुंतहा की जड़ में एक चश्मा देखा । उससे दो लहरें फूट रही थी एक का नाम कौसर और दूसरी का नाम रहमत , आप फरमाते हैं मैंने इस चश्मे में गुस्ल किया।


"_ एक रिवायत के मुताबिक सिद्रतुल मुंतहा की जड़ से जन्नत की चार नहरें निकल रही है उनमें से एक नहर पानी की, दूसरी दूध की ,तीसरी शहद की और चौथी नहर शराब की है।

उसी वक्त सिद्रतुल मुंतहा के पास आपने जिब्राइल को उनकी असली शक्ल में देखा यानी जिस शक्ल में अल्लाह ताला ने बनाया था ,उनके 600 पर हैं और हर पर इतना बड़ा है कि उससे आसमान का किनारा छुप जाए, उन परो से रंगारंग मोती और याकूत इतनी तादाद में गिर रहे थे कि उनका शुमार अल्लाह ही को मालूम है।


★_ फिर एक बदली ने आपको आकर घेर लिया आपको उसी बदली के जरिए ऊपर उठा लिया गया । जिब्राइल वहीं रह गए।( बदली की जगह बाज़ रिवायात में एक सीडी के जरिए उठाने का जिक्र भी आया है ) यहां आपने सरीरुल कलाम (यानी लोहे महफूज पर लिखने वाले क़लमों की सरसराहट ) की आवाजें सुनी,  ये तकरीर के क़लम थे और फरिश्ते उनसे मखलूक़ की तकदीरे लिख रहे थे ।

इस तफ्सील से मालूम है जिब्राइल अलैहिस्सलाम सिद्रतुल मुंतहा से आगे नहीं गए और यह भी मालूम हुआ कि सिद्रतुल मुंतहा सातो आसमान से ऊपर है। बाज़ उल्मा ने लिखा है कि यह अरशे आज़म के दाएं तरफ है ।


"_एक रिवायत में है कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को लेकर सातवें आसमान के ऊपर गए वहां एक नहर पर पहुंचे उसमें याकूत मोतियों और जबर्जद के खैमे लगे थे ।उस नहर में एक सब्ज़ रंग का परिंदा था वह इस क़दर हसीन था कि उस जैसा परिंदा कभी नहीं देखा था । जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया यह नहरे कौसर है जो अल्लाह ताला ने आपको अता फरमाई है।


★_ आप फरमाते हैं, मैंने देखा उसमें याक़ूत और ज़मर्द के थालों में रखे हुए सोने और चांदी के जाम तैर रहे थे ,उस नहर का पानी दूध से ज्यादा सफेद था ।मैंने एक जाम उठाया ,उस नहर से भरकर पिया तो वह शहद से ज्यादा मीठा और मुश्क से ज्यादा खुशबूदार था ।

"_आप फरमाते हैं, जिब्राइल अलैहिस्सलाम मुझे लिए हुए सिद्रतुल मुंतहा तक पहुंचे उसके पास हिजाबे अकबर है। हिजाबे अकबर के पास पहुंच कर उन्होंने कहा- मेरी पहुंच का मुकाम यहां खत्म हो गया अब आप आगे तशरीफ ले जाइये।


★_ आप फरमाते हैं मैं आगे बढ़ा यहां तक कि मैं सोने के एक तख्त तक तक पहुंच गया उस पर जन्नत का रेशमी कालीन बिछा था। उसी वक्त मैंने जिब्राइल अलैहिस्सलाम की आवाज सुनी वह कह रहे थे :- ए मोहम्मद अल्लाह ताला आपकी तारीफ फरमा रहा है आप सुनिए और इता'त कीजिए आप कलामे इलाही से दहशत ज़दा ना हों _,"

चुनांचे उस वक्त मैंने हक़ ता'ला की तारीफ बयान की , उसके बाद मुझे अल्लाह का दीदार हुआ । मैं फौरन सजदे में गिर गया फिर अल्लाह ने मुझ पर वही उतारी। वह यह थी :- 

"_ ए मोहम्मद ! जब तक आप जन्नत में दाखिल नहीं हो जाएंगे उस वक्त तक तमाम नबियों के लिए जन्नत हराम रहेगी इसी तरह जब तक आपकी उम्मत जन्नत में दाखिल नहीं होगी तमाम उम्मतों के लिए जन्नत हराम रहेगी _,"

इसके अलावा अल्लाह ताला ने फरमाया:- ए मोहम्मद ! हमने कौसर आपको अता फरमा दी है, इस तरह आपको यह खुसूसियत हासिल हो गई है कि तमाम जन्नती आपके मेहमान होंगे_,"

[: ★__ उसके बाद 50 नमाजे फर्ज हुई, 50 नमाजे हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के मशवरे से कम कराई गई यहां तक कि उनकी तादाद 5 कर दी गई फिर भी अल्लाह ताला ने फरमाया :-  ए मोहम्मद ! हर रोज 5 नमाजे हैं इनमें से हर एक का सवाब 10 के बराबर होगा और इस तरह इन पांच नमाजो का सवाब 50 नमाजों के बराबर मिलेगा । 

आप की उम्मत में से जो शख्स भी नेकी का इरादा करेगा और फिर ना कर सके तो मैं उसके हक में सिर्फ इरादा करने पर एक नेकी लिखूंगा और अगर उसने वह नेक अमल कर भी लिया तो उसे 10 नेकियों के बराबर दूंगा और जो शख्स किसी बदी का इरादा करें और फिर उसको ना करें तो भी उसके लिए एक नेकी लिख दूंगा और उसने वह बदी कर ली तो उसके नतीजे में एक ही लिखूंगा।


★_आप फरमाते हैं ,मैंने जन्नत के दरवाजे पर लिखा देखा :- 

"_ सदके़ का सिला दस गुना और क़र्ज का सिला 18 गुना है_,"

मैंने जिब्राइल से पूछा:- यह क्या बात है कि कर्ज़ देना सदके से अफजल है ?

इसकी वजह यह है कि साइल जिसे सदका़ दिया जाता है वह मांगता है तो उस वक्त उसके पास कुछ ना कुछ होता है जबकि कर्ज़ मांगने वाला उसी वक्त कर्ज़ मांगता है जब उसके पास कुछ ना हो ।


★_हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मेराज के दौरान जहन्नम के दरोगा मालिक को देखा ,वह इंतेहाइ सख्त तबीयत का फरिश्ता है उसके चेहरे पर गुस्सा और गज़ब रहता है । आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उसे सलाम किया, दारोगा ने सलाम का जवाब दिया, खुशामदीद भी कहा लेकिन मुस्कुराया नहीं । इस पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने जिब्राइल अलैहिस्सलाम से फरमाया :- यह क्या बात है कि मैं आसमान वालों में से जिस से भी मिला उसने मुस्कुराकर मेरा इस्तक़बाल किया मगर दारोगा जहन्नम ने मुस्कुरा कर बात नहीं की। 

इस पर जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा :-यह जहन्नम का दरोगा है जब से पैदा हुआ है आज तक कभी नहीं हंसा ,अगर यह हंस सकता तो सिर्फ आप ही के लिए हंसता _,"


★_यह बात अच्छी तरह जान लें कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को मेराज जागने की हालत में जिस्म और रूह दोनों के साथ हुई.. बाज़ लोग मेराज को सिर्फ एक ख्वाब कहते हैं और बाज़ कहते हैं सिर्फ रूह गई थी जिस्म साथ नहीं गया था । अगर यह दोनों बाते होती तो फिर मेराज के वाक्य की भला क्या खुसूसियत थी , ख्वाब में तो आम आदमी भी बहुत कुछ देख लेता है... मेराज की असल खुसूसियत  ही यह है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जिस्म समेत आसमानों पर तशरीफ ले गए। लिहाज़ा गुमराह लोगों के बहकावे में मत आएं और फिर यह बात भी है अगर यह सिर्फ ख्वाब होता या मेराज सिर्फ रूह को होती तो मुशरिकीने मक्का मजाक ना उड़ाते जबकि उन्होंने मानने से इनकार किया और मजाक भी उड़ाया । ख्वाब में देखे किसी वाक्य पर भला कोई क्यों मजाक उड़ाता।


★_मेराज के बारे में इस मसले में भी इख्तिलाफ पाया जाता है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह ताला को देखा या नहीं । इस बारे में दोनों तरह की अहादीस मौजूद है। इस मामले में बेहतर यह है कि हम खामोशी अख्तियार करें क्योंकि यह हमारे एतक़ाद का मसला नहीं है ,ना हम से क़यामत के दिन यह सवाल पूछा जाएगा ।

हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह ताला से हम कलामी के बाद आसमानों से वापस जमीन पर तशरीफ ले आए ,जब अपने बिस्तर पर पहुंचे तो वह उसी तरह गर्म था जिस तरह छोड़ कर गए थे ।

मेराज का यह वाकि़या और इतना तवील सफ़र सिर्फ एक लम्हे में पूरा हो गया , यूं समझे कि अल्लाह ताला ने इस दौरान कायनात के वक्त की रफ्तार को रोक दिया जिसकी वजह से यह मोज़्ज़ा निहायत थोड़े वक्त में मुकम्मल हो गया।

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[ *★_ नमाज की इब्तिदा _,*


★__ मेराज की रात के बाद जब सुबह हुई और सूरज ढल गया तो जिब्राइल अलैहिस्सलाम  तशरीफ लाएं उन्होंने इमामत करके आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को नमाज पढ़ाई ताकि आपको नमाजो़ के औका़त और नमाज़ों की कैफियत मालूम हो जाए ।

मेराज से पहले आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सुबह-शाम दोनों वक्त नमाज अदा करते थे और रात में क़याम करते थे लिहाज़ा आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पांच फर्ज नमाजो की कैफियत उस वक्त तक मालूम नहीं थी।जिब्राइल अलैहिस्सलाम की आमद पर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एलान फरमाया कि सब लोग जमा हो जाए...चुंनाचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जिब्राइल अलैहिस्सलाम की इमामत में नमाज अदा की और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने आपकी इमामत में नमाज अदा की।


★__यह जोहर की नमाज थी.. उसी रोज़ इसका नाम ज़ुहर रखा गया इसलिए की यह पहली नमाज थी जिसकी कैफियत जाहिर की गई थी । चुंकी दोपहर को अरबी में ज़हीरा कहते हैं इसलिए यह भी हो सकता है यह नाम इस बुनियाद पर रखा गया हो क्योंकि यह नमाज दोपहर को पढ़ी जाती है । इस नमाज में आपने चार रक़ात पढ़ाई और कुरान ए करीम आवाज से नहीं पढ़ा।

इसी तरह असर का वक्त हुआ तो असर की नमाज अदा की गई, सूरज गुरुब हुआ तो मगरिब की नमाज पढ़ी गई ,यह 3 रकात की नमाज थी इसमें पहली दो रक़ातो मैं आवाज़ से क़िरात की गई आखिरी रक़ात में कि़रात बुलंद आवाज से नहीं की गई ।इस नमाज में भी जोहर और असर की तरह हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम आगे थे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी इमामत में नमाज अदा कर रहे थे और सहाबा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की इमामत में ।इसका मतलब है हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उस वक्त मुक़तदी भी थे और इमाम भी।


रहा यह सवाल कि यह नमाज़ कहां पड़ी गई तो इसका जवाब यह है कि खाना काबा में पढ़ी गई और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का रूख बैतूल मुकद्दस की तरफ था क्योंकि उस वक्त कि़बला बैतुल मुक़द्दस था। हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जब तक मक्का मुअज्जमा में रहे उसी सिम्त मुंह करके नमाज़ अदा करते रहे।


★_ जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने पहले दिन नमाज़ो के अव्वल वक्त में यह नमाज पढ़ाई और दूसरे दिन आखिरी वक्त में ताकि मालूम हो जाए नमाजो के औकात कहां से कहां तक है।

इसी तरह यह पांच नमाज़े फर्ज हुई और उनके पढ़ने का तरीका भी आसमान से नाजिल हुआ। आज कुछ लोग कहते नज़र आते हैं नमाज का कोई तरीका क़ुरान से साबित नहीं लिहाज़ा नमाज़ किसी भी तरीके से पढ़ी जा सकती है हम तो बस कुरान को मानते हैं ऐसे लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला है ।नमाज का तरीका भी आसमान से ही नाजिल हुआ और हमें नमाज उसी तरह पढ़ना होगी जिस तरह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और आपके सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम पढ़ते रहे।


यह भी साबित हो गया की फर्ज नमाज़े पांच है । हदीस के मुंकिर पांच नमाज़ो का इनकार करते हैं वह सिर्फ तीन फर्ज नमाज़ के क़ायल हैं लोगों को धोखा देने के लिए वह कहते हैं कि क़ुरान मजीद में सिर्फ तीन नमाज़ो का जिक्र आया है हालांकि अव्वल तो उनकी यह बात है ही झूठ दूसरे ये कि जब अहादीस से पांच नमाज़ें साबित है तो किसी मुसलमान के लिए उन से इनकार करने की कोई गुंजाइश नहीं रहती।


★_पांच नमाज़ों की हिकमत के बारे में उलमा ने लिखा है कि इंसान के अंदर अल्लाह ताला ने पांच हवास यानी पांच हसें रखी है, इंसान गुनाह भी इन हिस्सों के जरिए से करता है (यानी आंख कान नाक मुंह आज़ा जवारा यानी हाथ पांव ) लिहाज़ा नमाज़ें भी पांच मुकर्रर की गई ताकि इन पांचों हवासों के जरिए दिन और रात में जो गुनाह इंसान से हो जाएं वह इन पांचों नमाज़ों के जरिए धुल जाए। इसके अलावा भी बेशुमार हिकमते हैं।

यह भी याद रखें कि मैराज के वाक्य़ में हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का आसमानों पर जाना साबित करता है कि आसमान हक़ीक़त में मौजूद है।


★_मौजूदा तरक्की याफ्ता साइंस का यह नजरिया है कि आसमान का कोई वजूद नहीं बल्कि कायनात एक अज़ीम खला है, इंसानी निगाह जहां तक जाकर रुक जाती है वहां उस कला कि मुख्तलिफ रोशनियों के पीछे एक नील गो हद नजर आती है उसी नील गो हद को इंसान आसमान कहता है ,लेकिन इस्लामी तालीम ने हमें बताया है कि आसमान मौजूद है और आसमान उसी तरफ से मौजूद है जो कुरान और हदीस ने बताई है। कुरान मजीद की बहुत सी आयात में आसमानों का जिक्र है बाज़ आयात में सातों आसमान का जिक्र है जिन से मालूम होता है कि आसमान एक अटल हकीकत है ना की नजर का धोखा ।

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[ हज के दिनों में मक्का में दूर-दूर से लोग हज करने आते थे, यह हज इस्लामी तरीके से नहीं होता था बल्कि उसमें कुफ्रिया और शिर्किया बातें शामिल कर ली गई थी। उन दिनों यहां मेले भी लगते थे ।नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इस्लाम की दावत देने के लिए उन मेंलो में भी जाते थे ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वहां पहुंचकर लोगों से फरमाते थे :-क्या कोई शख्स अपनी कौम की हिमायत मुझे पेश कर सकता है क्योंकि कुरेश के लोग मुझे अपने रब का पैगाम पहुंचाने से रोक रहे हैं।


★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मीना के मैदान में तशरीफ ले जाते ।लोगों के ठिकाने पर जाते हैं और उनसे फरमाते:- लोगों अल्लाह ताला तुम्हें हुक्म देता है कि तुम सिर्फ उसी की इबादत करो और किसी को उसका शरीक ना ठहरावों।

नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का पीछा करते हुए अबु लहब भी वहां तक पहुंच जाता और उन लोगों से बुलंद आवाज में कहता- लोगों ,यह शख्स चाहता है कि तुम अपने बाप दादा का दीन छोड़ दो।


★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ज़ुलहिजाज़ के मेले में तशरीफ ले जाते और लोगों से फरमाते:- लोगों ला इलाहा इल्लल्लाह कहकर भलाई को हासिल करो ।

अबु लहब यहां भी आ जाता और आप को पत्थर मारते हुए कहता- लोगों इस शख्स की बात हरगिज़ ना सुनो यह झूंटा है।


★__ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम कबीला कुंदा और कबीला कल्ब के कुछ खानदानों के पास गए उन लोगों को बनु अब्दुल्लाह कहा जाता था। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया- लोगों ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ लो.. फलाह  पा जाओगे ।

उन्होंने भी इस्लाम की दावत को क़ुबूल करने से इंकार कर दिया। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बनु हनीफा और बनु आमिर के लोगों के पास भी गए । उनमें से एक ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का पैगाम सुनकर कहा :-  अगर हम आपकी बात मान ले, आपकी हिमायत करें और आपकी पैरवी क़ुबूल कर लें, फिर अल्लाह ताला आपको आपके मुखालिफो पर फतेह अता फरमा दे ,तो क्या आपके बाद यह सरदारी और हुकूमत हमारे हाथों में आ जाएगी। 

यानी उन्होंने यह शर्त रखी कि आप के बाद हुक्मरानी उनकी होगी ।

जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- सरदारी और हुकूमत अल्लाह के हाथ में है वह जिसे चाहता है सौंप देता है।


उसके बाद उस शख्स ने कहा :-तो क्या हम आपकी हिमायत में अरबों से लड़े, अरबो के नैज़ों से अपने सीने छलनी करालें और फिर जब आप कामयाब हो जाए सरदारी और हुकुमत दूसरों को मिले ।नहीं , हमें आपकी ऐसी हुकूमत और सरदारी की कोई जरूरत नहीं ।

इस तरह उन लोगों ने भी साफ इनकार कर दिया।

[02__ बनु आमिर के यह लोग फिर अपने वतन लौट गए ।वहां इनका एक बहुत बूढ़ा शख्स था बूढ़ा होने की वजह से वह इस क़दर कमजोर हो चुका था कि उनके साथ हज के लिए नहीं जा सका था। जब उसने इन लोगों से हज और मेले के हालात पूछे तो इन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की दावत का भी जिक्र किया और अपना जवाब भी उसे बताया।

बूढ़ा शख्स यह सुनते ही सर पकड़ कर बैठ गया और अफसोस भरे लेहजे में बोला -ए बनी आमिर , तुमसे बहुत बड़ी गलती हुई ,क्या तुम्हारी इस गलती का कोई इलाज हो सकता है ? क़सम है उस जात की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है इस्माइल अलैहिस्सलाम की क़ौम में से जो शख्स नबूवत का दावा कर रहा है झूठा नहीं हो सकता वह बिल्कुल सच्चा है, यह और बात है कि उसकी सच्चाई तुम्हारी अक़ल में ना आ सके।


★__ इसी तरह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने बनु अबस बनो सुलेम बनू गस्सान बनु मुहारिब बनु फज़ारा बनु नज़र बनू मुर्राह और बनु उज़रा समेत कई कबीलों से भी मिले, उन सब ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को और भी बुरे जवाबात दिए । वह कहते :-  आपका घराना और आपका खानदान आपको ज्यादा चाहता है इसलिए उन्होंने आपकी पैरवी नहीं की ।


★__ अरब क़बीलों में सबसे ज्यादा तकलीफ यमामा के बनु हनीफा से पहुंची ,मस्लेमा कज्जा़ब भी इसी बदबख्त क़ौम का था जिसने नबूवत का दावा किया था ।इसी तरह बनु सकी़फ के क़बीले ने भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बहुत बुरा जवाब दिया। 

तमाम तर नाकामियों के बाद आखिरकार अल्लाह ताला ने अपने दीन को फैलाने, अपने नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इकराम करने और अपना वादा पूरा करने का इरादा फरमाया।


★_आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हज के दिनों में घर से निकले, वह रजब का महीना था अरब हज से पहले मुख्तलिफ रस्मो और मैलों में शरीक़ होने के लिए मक्का पहुंचा करते थे। चुनांचे इस साल भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मुख्तलिफ क़बीलो से मिलने के लिए निकले थे । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उक़बा के मुकाम पर पहुंचे । उक़बा एक घाटी का नाम है जिस जगह शैतानों को कंकरिया मारी जाती है यह घाटी अदी मुकाम पर है। मक्का से मीना की तरफ जाएं तो यह मुकाम बाएं हाथ पर आता है ।अब इस जगह एक मस्जिद है।


★_ वहां आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मुलाक़ात मदीना के क़बीले खज़रज की एक जमात से हुई, औस और खज़रज मदीना मुनव्वरा के मशहूर क़बीले थे ,ये इस्लाम से पहले एक-दूसरे के जानी दुश्मन थे । यह भी दूसरे अरबों की तरह हज किया करते थे। यह हजरात तादाद में कुल ६ थे , एक रिवायत के मुताबिक इनकी तादाद आठ थी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इन्हें देखा तो इनके पास तशरीफ ले गए, इनसे फरमाया :- मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं ,

वह बोले ज़रूर कहिए , 

फरमाया बेहतर होगा कि हम लोग बैठ जाएं। 

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनके पास बैठ गये , उन लोगों ने जब आपके चेहरे की तरफ देखा तो वहां सच्चाई ही सच्चाई और भलाई ही भलाई नज़र आई। 

ऐसे में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- मैं आप लोगों को अल्लाह की तरफ दावत देता हूं ,..मैं अल्लाह का रसूल हूं। 

यह सुनते ही उन्होंने कहा:- अल्लाह की क़सम, आपके बारे में हमें मालूम है। यहूदी एक नबी की खबर हमें देते रहे हैं और हमें इससे डराते रहे हैं (यानी वह कहते रहे हैं कि एक नबी ज़ाहिर होने वाले हैं ) आप जरूर वहीं हैं, कहीं ऐसा ना हो कि हमसे पहले वह आपकी पैरवी अख्तियार कर लें।

: ★__ असल में बात यह थी कि जब यहूदियों और मदीने के लोगों में कोई लड़ाई झगड़ा होता तो यहूदी उनसे कहा करते थे :- बहुत ज़ल्द एक नबी का ज़हूर होने वाला है उनका जमाना नज़दीक आ चुका है , हम उस नबी की पैरवी करेंगे और उनके झंडे तले इस तरह तुम्हारा कत्लेआम करेंगे जैसे क़ौमे आद और क़ौमे अरम का हुआ था ।

उनका मतलब यह था कि हम तुम्हें नेस्तनाबूद कर देंगे, इसी बुनियाद पर मदीने के लोगों को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ज़हूर के बारे में मालूम था ..और इसी बुनियाद पर उन्होंने फौरन आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तस्दीक की और मुसलमान हो गए।


★__ पे दर पे नाकामियों के बाद यह बहुत ज़बरदस्त कामयाबी थी और फिर यह कामयाबी तारीखी एतबार से भी बहुत बड़ी साबित हुई, इस बैत ने तारीख के धारे को मोड़कर रख दिया। गोया अल्लाह ताला ने उनके ज़रिए एक जबरदस्त खैर का इरादा फरमाया था , इस्लाम कुबूल करते ही उन्होंने अर्ज़ किया :-

"_ हम अपनी क़ौम औस और खज़रज को इस हालत में छोड़कर आए हैं कि उनके दरमियान ज़बरदस्त जंग जारी है, इसलिए अगर अल्लाह ताला आप के जरिए उन सब को एक कर दे तो यह बहुत ही अच्छी बात होगी_,"


★__ औस और खज़रज  दो सगे भाइयों की औलाद थे, फिर इनमें दुश्मनी हो गई , लड़ाइयों ने इस क़दर तोल खींछा कि 120 साल तक वो नस्ल  दर नस्ल लड़ते रहे, कत्ल पर कत्ल हुए ..इस वक्त उन्होंने अपनी दुश्मनी की तरफ इशारा किया था, लिहाजा उन्होंने कहा :- 

"_हम औस और खज़रज के दूसरे लोगों को भी इस्लाम की दावत देंगे , हो सकता है कि अल्लाह ताला आपके नाम पर उन्हें एक कर दे ,अगर आपकी वजह से वह एक हो गए, उनका कलमा एक हो गया तो फिर आप से ज़्यादा क़ाबिले इज्ज़त और अज़ीज़ कौन होगा।


★_हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनकी बात को पसंद फरमाया, फिर यह हजरात हज के बाद मदीना मुनव्वरा पहुंचे,

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*┱ ✿-हिजरत का आगाज़ _,*


★__ अगले साल कबीला खज़रज के 10 और कबीला औस के दो आदमी मक्का आए उनमें से पांच वो थे जो पहले साल उक़बा में आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मिल कर गए थे ।उन लोगों से भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने बैत ली ।आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके सामने सूरह अन -निसा की आयात तिलावत फरमाई। 

बैत के बाद यह लोग वापस मदीना मुनव्वरा जाने लगे तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके साथ हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को भी उनके साथ भेजा ताकि वह नए मुसलमानों को दीन सिखाएं ,कुरान की तालीम दें ।उन्हें का़री कहा जाता था ।यह मुसलमानों में सबसे पहले आदमी हैं जिन्हें क़ारी कहा गया।


★_हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने वहां के मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाना शुरू की, सबसे पहला जुमा भी इन्होंने ही पढ़ाया । जुमा की नमाज़ अगरचे मक्का में फर्ज़ हो चुकी थी लेकिन वहां मुशरिकीन की वजह से मुसलमान जुमा की नमाज़ अदा नहीं कर सके । सबसे पहला जुमा पढ़ने वालों की तादाद 40 थी ।


★_ हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने मदीना मुनव्वरा में दीन की तब्लीग शुरू की तो हजरत सा'द बिन माज़ और उनके चाचा जाद भाई हजरत उसैद बिन हुज़ैर रजियल्लाहु अन्हु इनके हाथ पर मुसलमान हो गए। इनके इस्लाम लाने के बाद मदीना में इस्लाम और तेज़ी से फैलने लगा ।

इसके बाद हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु हज के दिनों में वापस मक्का पहुंचे। मदीना मुनव्वरा में इस्लाम की कामयाबियों की खबर सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम बहुत खुश हुए । मदीना मुनव्वरा में जो लोग इस्लाम ला चुके थे उनमें से जो हज के लिए आए थे उन्होंने फारिग होने के बाद मीना में रात के वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मुलाक़ात की। जगह और वक्त पहले ही तैय कर लिया गया था ।इन लोगों के साथ चुंकी मदीना से मुशरिक लोग भी आए हुए थे और उनसे इस मुलाक़ात को पोशीदा रखना था इसलिए यह मुलाक़ात रात के वक्त हुई।


★_यह आज रात कुल 73 मर्द और दो औरतें थी । मुलाक़ात की जगह उक़बा की घाटी थी, वहां एक एक दो दो करके जमा हो गए। इस मजमें में 11 आदमी क़बीला औस के थे, फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाए ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चाचा हजरत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हु भी साथ थे , उनके अलावा आपके साथ कोई नहीं था। हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु भी उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे । उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गोया अपने चाचा के साथ आए थे ताकि इस मामले को खुद देखें।


एक रिवायत के मुताबिक उस मौके पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी साथ आए थे।


★__ सबसे पहले हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने उनके सामने तकरीर की, उन्होंने कहा :- तुम लोग जो अहदों पैमान इनसे (रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से ) करो उसको हर हाल में पूरा करना ,अगर पूरा ना कर सको तो बेहतर है कि कोई अहदो पैमान ना करो ।

इस पर उन हजरात ने वफादारी निभाने के वादे किए।


★_तब नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- तुम एक अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक़ ना ठहरावो,... अपनी जा़त की हद तक यह कहता हूं कि मेरी हिमायत करो और मेरी हिफाज़त करो_,"

उस मौके पर एक अंसारी बोले :- हम हमेशा करें तो हमें क्या मिलेगा? 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- इसके बदले तुम्हें जन्नत मिलेगी ।

अब वह सब बोल उठे:- यह नफे का सौदा है हम इसे खत्म नहीं करेंगे।


★_ अब उन सबने नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बैत की । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिफाज़त का वादा किया। हजरत बरा बिन मारूर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- हम हर हाल में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथ देंगे ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिफाज़त करेंगे_,"

हजरत बरा बिन मारूर रजियल्लाहु अन्हु यह अल्फाज़ कह रहे थे कि अबुल हैसम बिन तैहान रजियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- चाहे हम पैसे पैसे को मोहताज हो जाएं और चाहे हम क़त्ल कर दिया जाए, हम हर क़ीमत पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथ देंगे_,"


★_ उस वक्त हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु बोले :-  ज़रा आहिस्ता आवाज़ में बात करो.. कहीं मुशरीक आवाज़ ना सुन ले _," 

उस मौके पर अबुल हैसम रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ! हमारे और यहूदियों के दरमियान कुछ मुआहिदें हैं अब हम उनको तोड़ रहे हैं ,ऐसा तो नहीं होगा कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हमें छोड़कर मक्का आ जाएं।

यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मुस्कुराए और फरमाया :-  नहीं , बल्कि मेरा खून और तुम्हारा खून एक है ,जिससे तुम जंग करोगे उससे मैं जंग करूंगा, जिसे तुम पनाह दोगे उसे मैं पनाह दूंगा _,"

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे 12 आदमी अलग किए । यह 9 खज़रज में से और तीन औस में से थे ,आपने इनसे फरमाया :-तुम मेरे जांनिसार हो ..मेरे नक़ीब हो _,"


इन 12 हजरात में यह शामिल थे :-  सा'द बिन उबादा,असद बिन रवाहा,  बरा बिन मारूर, अबुल हैसम बिन तैयहान, उसैद बिन हुज़ैर, अब्दुल्लाह बिन अमरु बिन हिज़ाम, उबादा बिन सामित और राफे बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हुम।

इनमें से हर एक अपने अपने क़बीले का नुमाइंदा था । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इन जांनिसारों से फरमाया :- तुम लोग अपनी अपनी क़ौम की तरफ से मेरे कफील हो जैसे ईसा अलैहिस्सलाम 12 हवारी उनके कफील थे और मैं अपनी क़ौम यानी मुहाजिरो की तरफ से कफील और जिम्मेदार हूं ।


 ★__ इस बैत को बैते उक़बा सानिया कहा जाता है । यह बहुत अहम थी ,इस बैत को के होने पर शैतान ने बहुत वावेला किया चीखा और चिल्लाया क्योंकि यह इस्लाम की तरक्की़ की बुनियाद थी।


★_ जब यह मुसलमान मदीना पहुंचे तो इन्होंने खुलकर अपने इस्लाम क़ुबूल करने का ऐलान कर दिया। एलानिया नमाज़े पढ़ने लगे । मदीना मुनव्वरा में हालात साज़गार देखकर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुसलमानों को मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत करने का हुक्म दिया। कुरेश को जब यह पता चला कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक जंगजू क़ौम साथ नाता जोड़ लिया है और उनके यहां ठिकाना बना लिया है तो उन्होंने मुसलमानों का मक्का में जीना और मुश्किल कर दिया। तकालीफ देने का ऐसा सिलसिला शुरू किया कि अब तक ऐसा नहीं किया था। रोज़ बा रोज़ सहाबा की परेशानियां और मुसीबतें बढ़ती चली गई। कुछ सहाबा को दीन से फेरने के लिए तरह-तरह के तरीक़े आजमाए गए, तरह-तरह के आजा़ब दिए गए । आखिर सहाबा ने अपनी मुसीबतों की फरियाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से की और मक्का से हिजरत कर जाने की इजाज़त मांगी। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम चंद दिन खामोश रहे, आखिर एक दिन फरमाया :- 

"_ मुझे तुम्हारी हिजरत गाह की खबर दी गई है ...वह यसरब है (यानी मदीना)_,"


★_और इसके बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें हिजरत करने की इजाज़त दे दी । इस इजाज़त के बाद सहाबा किराम एक एक दो दो करके छुप छिपा कर जाने लगे , मदीना की तरफ रवाना होने से पहले नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा के दरमियान भाईचारा फरमाया उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया।


"_मसलन हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दरमियान भाईचारा फरमाया, इसी तरह हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु को हजरत ज़ैद बिन हारीसा रजियल्लाहु अन्हु का भाई बनाया,  हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु का भाई बनाया, हजरत उबादा बिन सामित रजियल्लाहु अन्हु और हजरत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु  के दरमियान, हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत साद इब्ने अबी वक़ास  के दरमियान , हजरत अबु उबैदा बिन जराह रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अबु हुजै़फा रजियल्लाहू अन्हू के गुलाम हजरत सालिम रजियल्लाहु अन्हु के दरमियान,  हजरत सईद बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु और हजरत तलहा बिन उबैदुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु के दरमियान और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को खुद अपना भाई बनाया।


★_ मुसलमानों में से जिन सहाबा ने सबसे पहले मदीना की तरह हिजरत की ,वह रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के फूफी जाद भाई हजरत अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्दुल्लाह मखज़ूमी रज़ियल्लाहु अन्हु है, इन्होंने सबसे पहले तन्हा जाने का इरादा फरमाया, जब यह हफ्सां से  वापस मक्का आए थे तो इन्हें सख्त तकालीफ पहुंचाई गई थी। आखिर इन्होंने वापस हफ्सा जाने का इरादा कर लिया था मगर फिर इन्हें मदीना के लोगों के मुसलमान होने का पता चला तो यह रुक गए और हिजरत की इजाजत मिलने पर मदीना रवाना हो गए। मक्का से रवाना होते वक्त यह अपने ऊंट पर सवार हुए और अपनी बीवी उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा और अपने दूध पीते बच्चे को भी साथ सवार कर लिया । जब उनके ससुराल वालों को पता चला तो वह इन्हें रोकने के लिए दौड़े और रास्ते में जा पकड़ा, उनका रास्ता रोक कर खड़े हो गए ।

 

★__ उन्होंने इनके ऊंट की मुहार पकड़ी और बोले :-  ऐ अबू सलमा ! तुम अपने बारे में अपने मर्जी के मुख्तार हो मगर उम्मे सलमा हमारी बेटी है, हम यह गवारा नहीं कर सकते कि तुम इसे साथ ले जाओ _,"

यह कहकर उन्होंने उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा के ऊंट की लगाम खींच ली , उसी वक्त अबू सलमा के खानदान के लोग वहां पहुंच गए और बोले :- अबू सलमा का बेटा हमारे खानदान का बच्चा है जब तुमने अपनी बेटी को उसके क़ब्जे से छुड़ा लिया तो हम भी अपने बच्चे को इसके साथ नहीं जाने देंगे _,"


★__ यह कह कर उन्होंने बच्चे को छीन लिया । इस तरह उन जालिमों ने हजरत अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु को उनकी बीवी और बच्चे से जुदा कर दिया । अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु तन्हा मदीना मुनव्वरा पहुंचे ।

उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा शोहर और बच्चे की जुदाई के गम में रोजाना सुबह सवेरे मक्का से बाहर मदीना मुनव्वरा की तरफ जाने वाले रास्ते में जाकर बैठ जाती और रोती रहती । एक दिन उनका एक रिश्तेदार उधर से गुज़रा उसने उन्हें रोते देखा तो तरस आ गया। वह अपनी क़ौम के लोगों में गया और उनसे बोला :-  तुम्हें उस गरीब पर रहम नहीं आता... उसे उसके शौहर और बच्चे से जुदा कर दिया कुछ तो ख्याल करो ।

आखिर उनके दिल पसीज गए, उन्होंने उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा को जाने की इजाजत दे दी। यह खबर सुनकर अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु के रिश्तेदारों ने बच्चा उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा को दे दिया और उन्हें इजाज़त दे दी कि बच्चे को लेकर मदीना चली जाएं।


★__ उन्होंने मदीना की तरफ तन्हा सफर शुरू किया। रास्ते में हजरत उस्मान बिन तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु मिले, यह उस वक्त मुसलमान नहीं हुए थे। काबा के चाबी बरदार थे । यह सुलह हुदेबिया के मौक़े पर मुसलमान हुए थे। उनकी हिफाज़त की गर्ज़ से उनके ऊंट के साथ साथ चलते रहे यहां तक कि इन्हें कुबा में पहुंचा दिया।  फिर हजरत उस्मान बिन तल्हा रजियल्लाहु अन्हु यह कहते हुए रुखसत हो गए :- तुम्हारे शौहर यहां मौजूद हैं ।

इस तरह उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा मदीना पहुंची । आप पहली मुहाजिर खातून हैं जो शौहर के बगैर मदीना आईं, हजरत उस्मान बिन तल्हा रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें मदीना पहुंचाकर जो अज़ीम एहसान किया था इसकी बुनियाद पर कहा करती थी -मैंने उस्मान बिन तल्हा से ज्यादा नेक और शरीफ किसी को नहीं पाया।


★__ इसके बाद मक्का से मुसलमानों की मदीना आमद शुरू हुई , सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु एक के बाद एक आते रहे ,अंसारी मुसलमान उन्हें अपने घरों में ठहराते, उनकी जरूरियात का ख्याल रखते , हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु और अयाश बिन अबू रबिया रज़ियल्लाहु अन्हु 20 आदमियों के एक काफ़िले के साथ मदीना पहुंचे। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की हिजरत की खास बात यह है कि मक्का से छुपकर नहीं निकले बल्कि बाका़यदा ऐलान करके निकले । उन्होंने पहले खाना काबा का तवाफ किया फिर मका़में इब्राहिम पर 2 रकात नमाज अदा की , उसके बाद मुशरिकीन से बोले :- "_ जो शख्स अपने बच्चों को यतीम करना चाहता है अपनी बीवी को बेवा करना चाहता है या अपनी मां की गोद वीरान करना चाहता है वह मुझे जाने से रोक कर दिखाएं _,"


★_उनका यह ऐलान सुनकर सारे कुरेश को सांप सूंघ गया किसी ने उनका पीछा करने की जुर्रत ना की, वह बड़े वका़र से उन सबके सामने रवाना हुए ।


★__ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु भी हिजरत की तैयारी कर रहे थे , हिजरत से पहले वह आरज़ू किया करते थे कि नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ हिजरत करें । वह रवानगी की तैयारी कर चुके थे, एक दिन हुजूर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- अबू बकर ! जल्दी ना करो ,उम्मीद है मुझे भी इजाज़त मिलने वाली है_,"


★_ चुनांचे हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु रुक गए, उन्होंने हिजरत के लिए दो ऊंटनियां तैयार कर रखी थी उन्होंने उन दोनों को 800 दिरहम में खरीदा था और उन्हें 4 माह से खिला पिला रहे थे।

इधर मुशरिकीन ने जब यह देखा कि मुसलमान मदीना हिजरत करते जा रहे हैं और मदीना के रहने वाले बड़े जंगजू हैं वहां मुसलमान रोज़ ब रोज़ ताकत पकड़ते चले जाएंगे तो उन्हें खौफ महसूस हुआ कि अल्लाह के रसूल भी कहीं मदीने ना चले जाएं और वहां अंसार के साथ मिलकर हमारे खिलाफ जंग की तैयारी ना करने लगे तो वह सब जमा हुए और सोचने लगे कि क्या क़दम उठाएं ।


★_ यह कुरेश दारुल नदवा में जमा हुए थे, दारुल नदवा इनके मशवरा करने की जगह थी यह पहला पुख्ता मकान था जो मक्का में तामीर हुआ । कुरेश के इस मशवरे में शैतान भी शरीक हुआ वह इंसानी शक्ल में आया था और एक बूढ़े के रूप में था। सब्ज रंग की चादर ओढ़े हुए था वह दरवाजे पर आकर ठहर गया, उसे देखकर लोगों ने पूछा- आप कौन बुजुर्ग हैं ? उसने कहा मैं नजद का सरदार हूं आप लोग जिस गरज़ से यहां जमा हुए हैं मैं भी उसी के बारे में सुन कर आया हूं ताकि लोगों की बातें सुनूं और हो सके तो कोई मुफीद मशवरा भी दूं । 

इस पर कुरैश ने उसे अंदर बुला लिया ,अब उन्होंने मशवरा शुरू किया उनमें से कोई बोला :-

"_ उस शख्स ( यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ) का मामला तुम देख ही चुके हो, अल्लाह की कसम, अब हर वक्त इस बात का खतरा है कि यह अपने नए और अजनबी मददगारों के साथ मिलकर हम पर हमला ना कर दे, लिहाजा मशवरा करके उसके बारे में कोई एक बात तय कर लो ।


★_ वहां मौजूद एक शख्स अबुल बख्तरी बिन हिशाम ने कहा :- उसे बेड़ियां पहनाकर एक कोठरी में बंद कर दो और उसके बाद कुछ अर्से तक इंतजार करो ताकि उसकी भी वही हालत हो जाए जो उस जैसे शायरों की हो चुकी है और यह भी उन्हीं की तरह मौत का शिकार हो जाए।

इस पर शैतान ने कहा :- हरगिज़ नहीं यह वह बिल्कुल गलत है यह खबर उसके साथियों तक पहुंच जाएगी वह तुम पर हमला करेंगे और अपने साथी को निकाल कर ले जाएंगे ,उस वक्त तुम्हें पछताना पड़ेगा लिहाज़ा कोई और तरकीब सोचो।


★__ अब उनमें बहस शुरू हो गई , असवद बिना रबिया ने कहा :-  हम उसे यहां से निकाल कर जला वतन कर देते हैं फिर यह हमारी तरफ से कहीं भी चला जाए । 

इस पर नजदी यानी शैतान ने कहा :- यह राय भी गलत है तुम देखते नहीं उसकी बातें किस कदर खूबसूरत हैं कितनी मीठी है वह अपना कलाम सुना कर लोगों के दिलों को मोह लेता है ।अल्लाह की कसम अगर तुमने उसे जला वतन कर दिया तो तुम्हें अमन नहीं मिलेगा यह कहीं भी जाकर लोगों के दिलों को मोह लेगा फिर तुम पर हमलावर होगा और तुम्हारी यह सारी सरदारी छीन लेगा लिहाजा कोई और बात सोचो।


★_इस पर अबू जहल ने कहा :-  मेरी एक ही राय है और इससे बेहतर और कोई नहीं हो सकती। सब ने कहा :- और वह क्या है?

सबने कहा :- आप लोग हर खानदान और हर क़बीले का एक-एक बहादुर और ताक़तवर नौजवान लें, हर एक को एक एक तलवार दें, उन सबको मोहम्मद पर हमला करने के लिए सुबह सवेरे भेजें, वह सब एक साथ उस पर अपनी अपनी तलवारों का एक भरपूर वार करें ..इस तरह उसे क़त्ल कर दें , इससे होगा यह कि उसके क़त्ल में सारे क़बीले शामिल हो जाएंगे लिहाजा मोहम्मद के खानदान वालों में इतनी ताकत नहीं होगी कि वह उन सब से जंग करें लिहाजा वह खून बहा (यानी फिदये की रक़म) लेने पर आमादा हो जाएंगे ,वह हम उन्हें दे देंगे। 

इस पर शैतान खुश होकर बोला:- हां , यह है आला राय ... मेरे ख्याल में इससे अच्छी राय कोई और नहीं हो सकती _,"

चुनांचे इस राय को सब ने मंजूर कर लिया।


★__ अल्लाह ताला ने फौरन जिब्राइल अलैहिस्सलाम को हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के पास भेज दिया उन्होंने अर्ज़ किया :- आप रोज़ाना जिस बिस्तर पर सोते हैं आज उस पर ना सोएं _,"

इसके बाद उन्होंने मुशरिकीन की साजिश की खबर दी । चुनांचे सुरह अल अन्फाल की आयत तीस में आता है :- 

(तर्जुमा )- और इस वाक्य़ का भी जिक्र कीजिए जब काफिर लोग आपकी निस्बत बुरी बुरी तदबीरे सोच रहे थे कि आया आपको क़ैद कर लें या क़त्ल कर डालें या जला वतन कर दें और वो अपनी तदबीरें कर रहे थे और अल्लाह अपनी तदबीर कर रहा था और सबसे मज़बूत तदबीर वाला अल्लाह है_,"


★_ गर्ज़ जब रात एक तिहाई गुज़र गई तो मुशरिकीन का टोला हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर तक पहुंच कर छुप गया ..वह इंतजार करने लगा कि कब वह सोएं और वह सब एकदम उन पर हमला कर दें । उनकी तादाद 100 थी। 


★_इधर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- तुम मेरे बिस्तर पर सो जाओ और मेरी यमनी चादर ओढ़ लो _,"

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को तसल्ली देते हुए फरमाया:- तुम्हारे साथ कोई ना खुशगवार वाक़िया पेश नहीं आएगा _,"


★_मुशरिकों के जिस गिरोह ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घर को घेर रखा था उनमें हकीम बिन अबुल आस, उक़बा बिन अबी मुईत, नसर् बिन हारिस, उसेद बिन खल्फ, ज़मा इब्ने असवद और अबू जहल भी शामिल थे । अबू जहल दबी आवाज़ में अपने साथियों से कह रहा था :- 

"_ मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) कहता है , अगर तुम उसके दीन को कुबूल कर लोगे तो तुम्हें अरब और अजम की बादशाहत मिल जाएगी और मरने के बाद तुम्हें दोबारा जिंदगी अता की जाएगी और वहां तुम्हारे लिए ऐसी जन्नतें होंगी ऐसे बागात होंगे जैसे उरदुन के बागात हैं , लेकिन अगर तुम मेरी पेरवी नहीं करोगे तो तुम सब तबाह हो जाओगे मरने के बाद दोबारा जिंदा किए जाओगे तो तुम्हारे लिए वहां जहन्नम की आग तैयार होगी उसमें तुम्हें जलाया जाएगा _,"


★_ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसके यह अल्फाज़ सुन लिए , आप यह कहते हुए घर से निकले :-  हां ! मैं यक़ीनन यह बात कहता हूं ।

इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने मुट्ठी में कुछ मिट्टी उठाई और यह आयात तिलावत फरमाई :- 

"_ यासीन !  क़सम है हिकमत वाले कुरा़न की , बेशक आप पैगंबरों के गिरोहों में से हैं ,सीधे रास्ते पर हैं , यह क़ुरान ज़बरदस्त अल्लाह मेहरबान की तरफ से नाजि़ल किया गया है ताकि आप (पहले तो ) ऐसे लोगों को डराऐं जिनके बाप दादा नहीं डराऐ गये सो उसी से यह बेखबर हैं उनमें से अक्सर लोगों पर बात साबित हो चुकी है सो यह लोग ईमान नहीं लाएंगे , हमने उनकी गरदनों में तौक डाल दिए हैं,  फिर वह ठोडियों तक अड गए हैं जिससे उनके सर ऊपर को उठ गए हैं और हमने एक आड़ उनके सामने कर दी है और एक आड़ उनके पीछे कर दी हैं जिससे हमने उन्हें हर तरफ से घेर लिया है सो वो देख नहीं सकते _,"


★__ यह सूरह यासीन की आयत 1 से 9 तक का तर्जुमा है , इन आयात की बरकत से अल्लाह ताला ने कुफ्फार को वक्ती तौर पर अंधा कर दिया , वह आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को अपने सामने से जाते हुए ना देख सके।  हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जो मिट्टी फैकी थी वह उन सब के सरों पर गिरी, कोई एक भी ऐसा ना बचा जिस पर मिट्टी ना गिरी हो।  

जब कु़रेश को पता चला कि हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनके सरों पर ख़ाक डालकर जा चुके हैं तो वह सब घर के अंदर दाखिल हुए ,आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम के बिस्तर पर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु चादर ओढ़ कर सो रहे थे ,यह देखकर वह बोले :- खुदा की क़सम! यह तो अपनी चादर ओढ़े सो रहे हैं ।

लेकिन जब चादर उल्टी गई तो बिस्तर पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु नज़र आए, मुशरिकीन हैरतज़दा रह गए, उन्होंने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा :-तुम्हारे साहब कहां हैं ?

मगर उन्होंने कुछ ना बताया । तो वह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को मारते हुए बाहर ले आए और मस्जिदे हराम तक लाए कुछ देर तक उन्होंने उन्हें रोके रखा फिर छोड़ दिया ।


*📕_ सीरतुन नबी ﷺ _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी)- जिल्द-२ सफा- ,*

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*┱✿_ मक्का से गारे सौर तक _,*


★__ अब हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को हिजरत के सफर पर रवाना होना था, उन्होंने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम से पूछा :- मेरे साथ दूसरा हिजरत करने वाला कौन होगा ? 

जवाब में हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा- अबू बकर सिद्दीक होंगे ।


★_ हुजूर सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम उस वक्त तक चादर ओढ़े हुए थे इसी हालत में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु  के घर पहुंचे ,दरवाजे पर दस्तक दी तो हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दरवाज़ा खोला और हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को देखकर अपने वालिद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को बताया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आए हैं वो चादर ओढ़े हुए हैं। यह सुनते ही अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- अल्लाह की क़सम ! इस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम यक़ीनन किसी खास काम से तशरीफ लाए हैं _,"

फिर उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को अपनी चारपाई पर बिठाया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम  ने इरशाद फरमाया :- दूसरे लोगों को यहां से उठा दो _,"

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हैरान हो कर अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! यह तो सब मेरे घरवाले हैं । 

इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- मुझे हिजरत की इजाज़त मिल गई है। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु फौरन बोल उठे :- मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान ! क्या मैं आपके साथ जाऊंगा? 

जवाब में हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- हां , तुम मेरे साथ जाओगे _,"


★_ यह सुनते ही मारे खुशी के हजरत अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु रोने लगे । हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं -मैंने अपने वालिद को रोते देखा तो हैरान हुई ... इसलिए कि मैं उस वक्त तक नहीं जानती थी कि इंसान खुशी की वजह से भी रो सकता है ।

फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप पर मेरे मां-बाप कुर्बान ! आप इन दोनों ऊंटनियों में से एक ले लें , मैंने इन्हें इसी सफर के लिए तैयार किया है_," 

इस पर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फ़रमाया :- मैं यह क़ीमत देकर ले सकता हूं ।

यह सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु रोने लगे और अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप पर मेरे मां-बाप क़ुर्बान ! मैं और मेरा सब माल तो आप ही का है _,"

हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने एक ऊंटनी ले ली ।


★_ बाज़ रिवायात में आता है कि और हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ऊंटनी की क़ीमत दी थी । उस ऊंटनी का नाम क़सवा था । यह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात तक आपके पास हीं रही , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत मे उसकी मौत वाक़े हुई ।


★_  सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि हमने उन दोनों ऊंटनियों को जल्दी-जल्दी सफर के लिए तैयार किया ,चमड़े की एक थैली में खाने-पीने का सामान रख दिया। हजरत समा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपनी चादर फाड़कर उसके एक हिस्से से नाश्ते की थैली बांध दी दूसरे हिस्से से उन्होंने पानी के बर्तन का मुंह बंद कर दिया । इस पर आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अल्लाह ताला तुम्हारी इस ओढ़नी के बदले जन्नत में दो ओढनियां देगा ।


★_ओढ़नी को फाड़ कर दो करने के अमल की बुनियाद पर हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा को जातुल नताक़ीन का लक़ब मिला, यानी दो ओढ़नी वाली। याद रखें कि नताक़ उस दुपट्टे को कहा जाता है जिसे अरब की औरतें काम के दौरान कमर के गिर्द बांध लेती है।


★__ फिर रात के वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के साथ रवाना हुए और पहाड़ सौर के पास पहुंचे, सफर के दौरान कभी हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम के आगे चलने लगते तो कभी पीछे। आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दरयाफ्त फरमाया :- अबू बकर ऐसा क्यों कर रहे हो ? जवाब में उन्होंने अर्ज़ किया :-  अल्लाह के रसूल ! मैं इस ख्याल से परेशान हूं कि कहीं रास्ते में कोई आपकी घात में ना बैठा हो _,"


★_उस पहाड़ में एक गार था, दोनों गार के दहाने तक पहुंचे तो हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- क़सम है उस जा़त की जिसने आपको हक़ देकर भेजा ,आप जरा ठहरे पहले गार में मै दाखिल होउंगा अगर गार में कोई मूजी कीड़ा हुआ तो कहीं वह आपको नुकसान ना पहुंचा दे।


★_ चुनांचे हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाह हू अन्हु गार में दाखिल हुए । उन्होंने गार को हाथों से टटोल कर देखना शुरु, किया जहां कोई सुराख मिलता अपनी चादर से एक टुकड़ा फाड़कर उसको बंद कर देते।


: ★__ इस तरह उन्होंने तमाम सुराख बंद कर दिए मगर एक सुराख रह गया और उसी में सांप था । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उस सुराख पर अपनी ऐडी रख दी इसके बाद आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गार में दाखिल हुए । उधर सांप ने अपने सुराख पर ऐड़ी देखी तो उस पर डंक मारा। तकलीफ की शिद्दत से हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की आंखों से आंसू निकल पड़े लेकिन उन्होंने अपने मुंह से आवाज़ ना निकलने दी इसलिए कि उस वक्त आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनके जा़नू पर सर रखकर सो रहे थे , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने सांप के डसने के बावजूद अपने जिस्म को ज़रा सी भी हरकत ना दी...ना आवाज निकाली कि कहीं हुजूर सल्लल्लाहो वसल्लम की आंख ना खुल जाए,  ताहम आंख से आंसू निकलने को वह किसी तरह ना रोक सके... वो हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर गिरे, उनके गिरने से हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की आंख खुल गई।


★_आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की आंखों में आंसू देखे तो पूछा :- अबू बकर क्या हुआ ? 

उन्होंने जवाब दिया:-  आप पर मेरे मां-बाप क़ुर्बान , मुझे सांप ने डस लिया है । 

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपना लुआबे दहन सांप के काटे की जगह पर लगा दिया,  इससे तकलीफ और ज़हर का असर फौरन दूर हो गया। 


★_सुबह हुई आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के जिस्म पर चादर नज़र ना आई तो दरयाफ्त फरमाया :- अबू बकर ! चादर कहां है ?

उन्होंने बता दिया :- अल्लाह के रसूल! मैंने चादर फाड़ फाड़ कर इस गार के सुराख बंद किए हैं। आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने दुआ के लिए हाथ उठा दिए और फरमाया:- ऐ अल्लाह ! अबू बकर को जन्नत में मेरा साथी बनाना । 

उसी वक्त अल्लाह ताला ने वही के जरिए यह खबर दी कि आपकी दुआ कबूल कर ली गई है।


★_ उधर क़ुरेश के लोग नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तलाश में उस गार के क़रीब आ पहुंचे, उनमें से चंद एक जल्दी से आगे बढ़कर गार में झांकने लगे, गार के दहाने पर उन्हें मकड़ी का जाला नजर आया साथ ही दो जंगली कबूतर नज़र आए । उस पर उनमें से एक ने कहा- इस गार में कोई नहीं है ।

एक रिवायत में यूं आया है, उनमें उमैया बिन खल्फ भी था उसने कहा :- इस गार के अंदर जाकर देखो। किसी ने जवाब दिया- गार के अंदर जाकर देखने की क्या ज़रूरत है गार के मुंह पर बहुत जाले लगे हुए हैं.. अगर वह अंदर जाते तो यह जाले बाक़ी ना रहते, ना यहां कबूतर के अंडे होते_,


★_हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जब इन लोगों को गार के दहाने पर देखा तो आप रो पड़े और दबी आवाज़ में बोले :- अल्लाह की क़सम ! मैं अपनी जान पर भी नहीं रोता , मैं तो इसलिए रोता हूं कि कहीं यह लोग आपको तकलीफ ना पहुंचाएं ।

इस पर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  अबू बकर ! गम ना करो , अल्लाह हमारे साथ है ।

उसी वक्त अल्लाह ताला ने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के दिल को सुकून बख्श दिया। इन हालात में अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को प्यास महसूस हुई उन्होंने आन'हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम से इसका जिक्र किया.. तो आपने इरशाद फरमाया :- गार के दरमियान में जाओ और पानी पी लो _,"

सिद्दीके अकबर रजियल्लाहु अन्हु उठकर गार के दरमियान में पहुंचे वहां उन्हें इतना बेहतरीन पानी मिला कि शहद से ज़्यादा मीठा, दूध से ज़्यादा सफेद ,और मुश्क से ज़्यादा खुशबू वाला था। उन्होंने उस में से पानी पिया ।


: ★__ जब वह वापस आए तो आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया अल्लाह ताला ने जन्नत की नहरों के निगरां फरिश्ते को हुकुम फरमाया कि इस गार के दरमियान में जन्नतुल फिरदोस से एक चश्मा जारी कर दें ताकि तुम उसमें से पानी पी सको । 

यह सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु हैरान हुए और अर्ज़ किया :- क्या अल्लाह के नज़दीक मेरा इतना मुकाम है ?

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- हां ! बल्कि इससे भी ज़्यादा है । क़सम है उस ज़ात की जिसने मुझे हक़ के पैगाम के साथ नबी बनाकर भेजा है वह शक्स जो तुमसे बुग्ज़ रखें जन्नत में दाखिल नहीं होगा।


★_गर्ज़ क़ुरेश मायूस होकर गारे सोर से हट आए और साहली इलाक़े की तरफ चले गए साथ ही उन्होंने ऐलान कर दिया जो शख्स मोहम्मद या अबू बकर को गिरफ्तार करे या क़त्ल करे उसे सौ ऊंट इनाम में दिए जाएंगे।


★_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस गार में तीन दिन तक रहे इस दौरान उनके पास हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के बेटे अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु भी आते जाते रहे। यह उस वक्त कम उमर थे मगर हालात को समझते थे ।अंधेरा फैलने के बाद यह गार में आ जाते और अंधेरे फजर के वक्त वहां से वापस आ जाते ,इससे कुरेश यह ख्याल करते कि इन्होंने रात अपने घर में गुजारी है , इस तरह कुरेश के दरमियान दिन भर जो बातें होती उनको सुनते और शाम को आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास पहुंच कर बता देते।


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के एक गुलाम हजरत आमिर बिन फहीरा रजियल्लाहु अन्हु थे । यह पहले तुफैल नामी एक शख्स के गुलाम थे जब यह इस्लाम ले आए तो तुफैल ने इन पर ज़ुल्म ढाना शुरू किया , जिस पर हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने उससे इन्हें खरीदकर आज़ाद कर दिया।  यह हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु की बकरियां चराया करते थे । 

यह भी उन दिनों गार तक आते जाते रहे , शाम के वक्त अपनी बकरियां लेकर वहां पहुंच जाते और रात को वहीं रहते हैं सुबह अंधेरे हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु के जाने के बाद यह भी वहां से अपनी बकरियां उसी रास्ते से वापस लाते ताकि उनके क़दमों के निशान मिट जाए। इन तीन रातों तक इनका बराबर यही मामूल रहा ,यह ऐसा हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की हिदायत पर करते थे,  हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु को भी हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने यह हुक्म दिया था कि वह दिन भर क़ुरेश की बातें सुना करें और शाम को उन्हें बताया करें। आमिर बिन फहीरा रज़ियल्लाहु अन्हु को भी हिदायत थी कि दिनभर बकरियां चराया करें और शाम को गार में उनका दूध पहुंचाया करें।


★__ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की बेटी असमा रज़ियल्लाहु अन्हा शाम के वक्त उनके लिए खाना पहुंचाती थी, इन तीन के अलावा उस गार का पता किसी को नहीं था,  3 दिन और 3 रात गुज़रने पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम में हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया :-  अब तुम अली के पास जाओ उन्हें गार के बारे में बताओ और उनसे कहो, वह किसी राहबर का इंतजाम कर दें, आज रात का कुछ पहर गुज़रने के बाद वह रहबर यहां आ जाए _,"


★_ चुनांचे हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा सीधी हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आई, उन्हें आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का पैगाम दिया, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने फौरन उजरत का एक राहबर का इंतजाम किया , उसका नाम अरिक़त बिन अब्दुल्लाह लैयसी था, यह राहबर रात के वक्त वहां पहुंचा। नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने जूंही ऊंट के बिलबिलाने की आवाज सुनी फौरन अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के साथ गार से निकल आए और राहबर को पहचान लिया , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ऊंटों पर सवार हो गए।


★_ इस सफर में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु के जरिए अपने घर से वह रकम भी मंगवा ली थी जो वहां मौजूद थी.. यह रकम 4 -5 हज़ार दिरहम थी , जब सिद्दीके अकबर रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए थे तो उनके पास 40 -50 हज़ार दिरहम मौजूद थे गोया के तमाम दौलत उन्होंने अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दी थी, जाते वक्त भी घर में जो कुछ था मंगवा लिया ...उनके वालिद अबू कहाफा रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे उनकी बिनाई खत्म हो गई थी, वह घर आए तो अपनी पौती हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहने लगे :- 

"_ मेरा ख्याल है ,अबू बकर अपनी और अपने माल की वजह से तुम्हें मुसीबत में डाल गए हैं ,( मतलब यह था कि जाते हुए सारे पैसे ले गए है )_," 

यह सुन हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा -नहीं बाबा वह हमारे लिए बड़ी खैरो बरकत छोड़ गए हैं_,"


★_ हजरत असमा कहती हैं :- उसके बाद मैंने कुछ कंकर एक थैली में डालें और उनको ताक में रख दिया , उसमें मेरे वालिद पैसे रखते थे फिर उस थेली पर कपड़ा डाल दिया और अपने दादा का हाथ उन पर रखते हुए मैंने कहा :- यह देखिए रुपए यहां रखे हैं ,

अबु कहाफा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपना हाथ रखकर महसूस किया और बोले :- अगर वह ये माल तुम्हारे लिए छोड़ गए हैं तो फिक् कीर कोई बात नहीं यह तुम्हारे लिए काफी है _,"

हालांकि हक़ीक़त यह थी कि वालिद साहब हमारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ गए थे ।,*


 *📕_ सीरतुन नबी ﷺ _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी)- जिल्द-२ सफा-

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,★_ १०० ऊंटों का इनाम _,"*


★_ गार से निकल हजरते अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ऊंटों पर सवार हुए और राहबर के साथ सफर शुरू किया , हजरत आमिर बिन फहीरा रज़ियल्लाहु अन्हु भी हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के साथ उसी ऊंट पर सवार थे।

गर्ज़ यह मुख्तसर सा काफिला रवाना हुआ, रहबर उन्हें साहिल समंदर के रास्ते से ले जा रहा था रास्ते में कोई मिलता और अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से पूछता कि तुम्हारे साथ कौन है,  तो आप उसके जवाब में फरमाते मेरे साथ मेरे रहबर हैं यानी मेरे साथ मुझे रास्ता दिखाने वाले हैं।  उनका मतलब था कि यह दीन का रास्ता दिखाने वाले हैं मगर पूछने वाले इस गोलमोल जवाब से यूं समझते कि यह कोई राहबर (गाइड) है जो साथ जा रहे हैं।


★_अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के इस तरह जवाब देने की वजह यह थी कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही ने हिदायत दी थी कि लोगों को मेरे पास से टालते रहना यानी अगर कोई मेरे बारे में पूछे तो तुम यही गोलमोल जवाब देना क्योंकि नबी के लिए किसी सूरत में भी झूठ बोलना मुनासिब नहीं ..चाहे किसी भी लिहाज़ से हो, चुंनाचे जो शख्स भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बारे में सवाल करता रहा हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु यही जवाब देते रहे .. अब रह गए अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु, वो इन रास्तों से अक्सर तिजारत के लिए जाते रहते थे उन्हें अक्सर लोग जानते थे उनसे किसी ने यह नहीं पूछा कि आप कौन हैं।


★_ इधर क़ुरेश ने १०० ऊंटों का ऐलान किया था, यह ऐलान सुराका बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी सुना जो उस वक्त तक ईमान नहीं लाए थे , सुराका बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु, वो खुद अपनी कहानी इन अल्फाज़ में सुनाते हैं।

 मैंने यह ऐलान सुना ही था कि मेरे पास साहिल बस्ती का एक आदमी आया, उसने कहा कि ऐ सुराका ! मैंने कुछ लोगों को साहिल के करीब जाते देखा है और मेरा ख्याल है कि वह मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) और उनके साथी हैं। मुझे भी यकीन हो गया कि वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और उनके साथी ही हो सकते हैं ।चुंनाचे में घर गया और अपनी बांदी को हुक्म दिया कि मेरी घोड़ी निकालकर चुपके से वादी में पहुंचा दें और वहीं ठहर कर मेरा इंतजार करें । इसके बाद मैंने अपना नेजा निकाला ,घर के पिछली तरफ निकल कर वादी में पहुंचा । इस राजदारी में मक़सद यह था कि मैं अकेला ही काम कर डालूं और सौ ऊंटों का इनाम हासिल कर लूं , मैंने अपनी ज़िरा भी पहन ली थी फिर मैं अपनी घोड़ी पर सवार हो कर उस तरफ रवाना हुआ । मैंने अपनी घोड़ी को बहुत तेज़ दौड़ाया यहां तक कि आखिरकार मैं आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के कुछ फासले पर पहुंच गया।


★_लेकिन उसी वक्त मेरी घोड़ी को ठोकर लगी वह मुंह के बल नीचे गिरी, मैं भी नीचे गिरा। फिर घोड़ी उठकर हिन हिनाने लगी ,मैं उठा मेरे तरकस में फाल के तीर थे, यह वो तीर भे जिनसे अरब के लोग फाल निकालते थे , उनमें से किसी तीर पर लिखा होता था करो और किसी पर लिखा होता था ना करो।  मैंने उनमें से एक तीर लिया और फाल निकाली यानी मैं जानना चाहता था यह काम करूं या ना करूं । फाल में इंकार निकला यानी यह काम ना करो लेकिन यह बात मेरी मर्ज़ी के खिलाफ थी मैं सौ ऊंटों का इनाम हासिल करना चाहता था , ना वाला तीर निकलने के बावजूद मैं घोड़ी पर सवार होकर आगे बढ़ा यहां तक कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बहुत क़रीब पहुंच गया जो कि उस वक्त क़ुरआने करीम की तिलावत कर रहे थे और पीछे मुड़कर नहीं देख रहे थे अलबत्ता हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु मुड़कर बार-बार देख रहे थे।


★_उसी वक्त मेरी घोड़ी की अगली दोनों टांगे घुटनों तक जमीन में धंस गई हालांकि वहां जमीन सख्त और पथरीली थी , मैं घोड़ी से उतरा उसे डांटा वह खड़ी हो गई लेकिन उसकी टांगे अभी तक जमीन में धंसी हुई थी वह जमीन से ना निकली, मैंने फिर फाल निकाली, इंकार वाला तीर ही निकला । फिर मैं पुकार उठा -

"_ मेरी तरफ देखिए मैं आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाउंगा और ना मेरी तरफ से आपको कोई ना गवार बात पेश आएगी ..मैं सुराका बिन मालिक हूं ,आपका हमदर्द हूं, आप को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं हूं ,मुझे मालूम नहीं कि मेरी बस्ती के लोग भी आपकी तरफ रवाना हो चुके हैं या नहीं _,"

 

★_यह कहने से मेरा मतलब यह था ,अगर कुछ और लोग इस तरफ आ रहे होंगे तो मैं उन्हें रोक दूंगा । इस पर आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- इससे पूछो यह क्या चाहता है ।

अब मैंने उन्हें अपने बारे में बताया ...अपने इरादे के बारे में बता दिया और बोला बस आप दुआ कर दीजिए कि मेरी घोड़ी की टांगे जमीन से निकल आए ...मैं वादा करता हूं अब आपका पीछा नहीं करूंगा।

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई, आपके दुआ फरमाते ही हजरत सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की घोड़ी के पांव ज़मीन से निकल आए।


★_घोड़ी के पांव जोंही बाहर आए सुराका़ रजियल्लाहु अन्हु फिर उस पर सवार हुए और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ बढ़े। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई :-  ऐ अल्लाह ! हमें इससे बाज़ रख । इस दुआ के साथ ही घोड़ी पेट तक जमीन में धंस गई। अब उन्होंने कहा :- ऐ मोहम्मद ! मैं क़सम खाकर कहता हूं ..मुझे इस मुसीबत से निजात दिला दें.. मैं आपका हमदर्द साबित होउंगा_," 

नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- ऐ ज़मीन इसे छोड़ दे । 

यह फरमाना था कि उनकी घोड़ी जमीन से निकल आई ।


बाज़ तफासीर में लिखा है कि सुराका़ रजियल्लाहु अन्हु ने सात मर्तबा वादाखिलाफी की , हर बार ऐसा ही हुआ । बाज़ रिवायात में है ऐसा 3 बार हुआ ... आखिर हजरत सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु समझ गए थे, वो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तक नहीं पहुंच सकते । चुंनाचे उन्होंने कहा :- मैं आपका पीछा नहीं करूंगा ..आप मेरे सामान में से कुछ लेना चाहे तो ले लें.. सफर में आपके काम आएगा। 

हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे कुछ लेने से इनकार कर दिया और फरमाया :- तुम बस अपने आप को रोके रखो और किसी को हम तक ना आने दो_,"

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से यह भी फरमाया :- ऐ सुराक़ा ! उस वक्त तुम्हारा क्या हाल होगा जब तुम्हें किसरा के कंगन पहनाए जाएंगे_," 

सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु यह सुनकर हैरान हुए और बोले :- आप ने क्या फरमाया ..किसरा बादशाह के कंगन मुझे पहनाए जाएंगे _,"

इरशाद फरमाया :- हां , ऐसा ही होगा।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की यह हैरतअंगेज पैशनगोई थी क्योंकि उस वक्त ऐसा होने का क़त'न कोई इमकान दूर तक नहीं था लेकिन फिर एक वक्त आया कि हजरत सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए , हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जब मुसलमानों को फुतुहात पर फुतुहात हुई और ईरान के बादशाह किसरा को शिकस्त पाश हुई तो उस माले गनीमत में किसरा के कंगन भी थे , यह कंगन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु को पहनाए , और उस वक्त सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु को याद आया कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हिजरत के वक्त इरशाद फरमाया था :- ऐ सुराका़ ! उस वक्त तुम्हारा क्या हाल होगा जब तुम्हें किसरा के कंगन पहनाए जाएंगे ।


★__ अपने ईमान लाने की तफसील सुराका रज़ियल्लाहु अन्हु यूं बयान करते हैं :- जब रसूल करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हुनैन और ताइफ के मो'रको से फारिग हो चुके तो मैं उनसे मिलने के लिए रवाना हुआ उनसे मेरी मुलाकात जोराना के मुकाम पर हुई । मैं अंसारी सवारों के दरमियान से लश्कर के उस हिस्से की तरह रवाना हुआ जहां आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपनी ऊंटनी पर तशरीफ फरमा थे, मैंने नजदीक पहुंचकर अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल मैं सुराक़ा  हूं।

इरशाद फरमाया -क़रीब आ जाओ ।

मैं नजदीक चला आया और फिर ईमान ले आया।


★_हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने किसरा के कंगन मुझे पहनाते हुए फरमाया था- तमाम तारीफें उस जाते बारी ताला के लिए हैं जिसने यह चीजें शाहे ईरान किसरा बिन हुरमुज़ से छीन ली जो यह कहा करता था मैं इंसानों का परवरदिगार हुं ।


★_ यह सुराक़ा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से माफी मिलने के बाद वापस पलटे और रास्ते में जो भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की तलाश में आता हुआ इन्हें मिला उसे यह कहकर लौटाते रहे ,मैं उस तरफ से ही होकर आ रहा हूं.. उधर मुझे कोई नहीं मिला.. और लोग जानते ही हैं मुझे रास्तों की कितनी पहचान है_,"


★_गर्ज़ उस रोज़ यह काफिला तमाम रात चलता रहा यहां तक कि चलते-चलते अगले दिन दोपहर का वक्त हो गया अब दूर दूर तक कोई आता-जाता नजर नहीं आ रहा था ऐसे में सामने एक चट्टान उभरी हुई नजर आई उसका साया काफी दूर तक फैला हुआ था। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस जगह पर पड़ाव डालने का इरादा फरमाया । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु सवारी से उतरे और अपने हाथों से जगह को साफ करने लगे ताकि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम चट्टान के साए में सो सके । जगह साफ करने के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अपनी पोस्तीन ( चमड़े की खाल )वहां बिछा दी और अर्ज किया :-अल्लाह के रसूल ,यहां सो जाएं मैं पहरा दूंगा ।

हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सो गए, ऐसे में हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने एक चरवाहे को चट्टान की तरफ आते देखा ,शायद वह भी साए में आराम करना चाहता था।


★_अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु फौरन उस तरफ मुड़े और उससे बोले- तुम कौन है ? उसने बताया- मैं मक्का का रहने वाला एक चरवाहा हूं। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले -क्या तुम्हारी बकरियों में कोई दूध वाली बकरी है ,जवाब में उसने कहा- हां है , फिर वह एक बकरी सामने लाया अपने एक बर्तन में दूध दोहा और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को दिया , वह दूध का वह बर्तन उठाए आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आए जो कि उस वक्त सो रहे थे उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को जगाना मुनासिब न समझा दूध का बर्तन लिए उस वक्त तक खड़े रहे जब तक कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम जाग नहीं गए। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने दूध में पानी की धार डाली ताकि वह ठंडा हो जाए फिर खिदमत में पेश किया और अर्ज किया- यह दूध पी लीजिए ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम में दूध नौश फरमाया और पूछा क्या रवानगी का वक्त हो गया। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- जी हां हो गया है।

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★_ हज़रत उम्मे मा'बद के खेमे पर _,*

★__ अब यह काफिला फिर रवाना हुआ अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि एक खेमा नजर आया, खेमे के बाहर एक औरत बैठी थी यह उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा थी जो उस वक्त तक इस्लाम की दावत से महरूम थी। उनका नाम आतीका था ,यह एक बहादुर और शरीफ खातून थी,

उन्होंने भी आने वालों को देख लिया,  उस वक्त उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  को यह मालूम नहीं था कि यह छोटा सा काफिला किन हस्तियों का है, नजदीक आने पर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  के पास एक बकरी खड़ी नजर आई वह बहुत ही कमजोर और दुबली पतली सी बकरी थी। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा से दरियाफ्त किया -क्या इसके थनों में दूध है? 

उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  बोली -इस कमजोर और मरियल बकरी के थन में दूध कहां से आएगा। 

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया -क्या तुम मुझे इसको दोहने की इजाजत दोगी । इस पर उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  बोली -लेकिन यह तो अभी वैसे भी दूध देने वाली नहीं हुई.. आप खुद सोचिए दूध किस तरह दे सकती है ,मेरी तरफ से इजाजत है अगर इससे आप दूध निकाल सकते हैं तो निकाल लीजिए।


★_हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस बकरी को सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास ले आए। हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उस बकरी की कमर और थनों पर हाथ फेरा और दुआ की :- ऐ अल्लाह ! इस बकरी में हमारे लिए बरकत अता फरमा । 

ज्यूंही आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह दुआ मांगी ,बकरी के थन दूध से भर गए और उनसे दूध टपकने लगा , यह नज़ारा देख कर उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा हैरत ज़दा रह गई।


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - एक बर्तन लाओ । 

हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  एक बर्तन उठा लाई, वह इतना बड़ा था कि उससे 8-10 आदमी सैराब हो सकते थे । गर्ज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बकरी का दूध निकाला ,  उसके थनों में दूध बहुत भर गया था,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वह दूध पहले उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा को दिया,  उन्होंने खूब सैर हो कर पिया,  उसके बाद उनके घर वालों ने पिया , आखिर में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दूध नोश फरमाया और फिर इरशाद फरमाया :- क़ौम को पिलाने वाला खुद सबसे बाद में पीता है _,"

सबके दूध पी लेने के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फिर बकरी का दूध निकाल कर उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा को दे दिया और वहां से आगे रवाना हुए।


★_ शाम के वक्त उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा के शौहर अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हु लौटे ,वह अपनी बकरियों को चराने के लिए गए हुए थे , खेमे पर पहुंचे तो वहां बहुत सा दूध नज़र आया ,दूध देखकर हैरान हो गए , बीवी से बोले :-  ऐ उम्मे मा'बद ! यहां दूध कैसा रखा है घर में तो कोई दूध देने वाली बकरी नहीं है _",

मतलब यह था कि यहां जो बकरी थी वह तो दूध दे ही नहीं सकती थी फिर यह दूध कहां से आया। हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा बोली :- आज यहां एक बहुत मुबारक शख्स का गुज़र हुआ था । 

यह सुनकर हजरत अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हू और हैरान हो गए , फिर बोले उनका हुलिया तो बताओ ।

जवाब में उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा  ने कहा :- 

"_ उनका चेहरा नूरानी था उनकी आंखें उनकी लंबी पलकों के नीचे चमकती थी वह गहरी सियाह थी उनकी आवाज में नरमी थी वह दरमियानी क़द के थे (यानी छोटे कद के नहीं थे ) ना बहुत ज्यादा लंबे थे उनका कलाम ऐसा था जैसे किसी लड़ी में मोती पिरो दिए गए हों बात करने के बाद जब खामोश होते थे तो उन पर बा वका़र संजीदगी होती थी अपने साथियों को किसी बात का हुक्म देते थे तो वह जल्द से जल्द उसको पूरा करते थे वह उन्हें किसी बात से रोकते थे तो फौरन रुक जाते थे वह इंतेहाई खुश अखलाक़ थे उनकी गर्दन से नूर की किरणें फूटती थी उनके दोनों अब्रो मिले हुए थे बाल निहायत सियाह थे वह दूर से देखने पर निहायत शानदार और क़रीब से देखने पर निहायत हसीन व जमील लगते थे उनकी तरफ नज़र पड़ती तो फिर दूसरी तरफ हट नहीं सकती थी अपने साथियों में वह सबसे ज्यादा हसीन व जमील और बा रौब थे सबसे ज्यादा बुलंद मर्तबा थे _,"


★_ हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान करदा हुलिया सुनकर उनके शौहर बोले :- अल्लाह की क़सम ! यह हुलिया और सिफात तो उन्हीं कुरेशी बुजुर्ग की है अगर मैं उस वक्त यहां होता तो जरूर उनकी पैरवी अख्तियार कर लेता और मैं अब इसकी कोशिश करूंगा _,"

चुनांचे रिवायत में आता है कि हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हु हिजरत करके मदीना मुनव्वरा आए थे और उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था।

 हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा की जिस बकरी का दूध आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दोहा था वह बकरी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के जमाने तक जिंदा रही ।

 सफा 290

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*★_ मदीना मुनव्वरा में आमद _,"*


★__ उधर मक्का में जब कुरेश को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कुछ पता ना चला तो वह लोग हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहू अन्हू के दरवाजे पर आए उनमें अबू जहल भी था । दरवाजे पर दस्तक दी गई तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की बड़ी बेटी हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा बाहर निकली ।अबू जहल ने पूछा तुम्हारे वालिद कहां है ?  वह बोली -मुझे नहीं मालूम । यह सुनकर अबू जहल ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ मारा । थप्पड़ से उनके कान की बाली टूट कर गिर गई इस पर भी हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उन्हें कुछ ना बताया , अबू जहल और उसके साथी बडबड़ाते हुए नाकाम लौट गए।


★_इधर मदीना मुनव्वरा के मुसलमानों को यह खबर मिली कि अल्लाह के रसूल मक्का मुअज्जमा से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा की तरफ चल पड़े हैं । अब तो वे बेचैन हो गए इंतजार करना उनके लिए मुश्किल हो गया रोजाना सुबह सवेरे अपने घरों से निकल पड़ते और हीरा के मुका़म तक आ जाते जो मदीना मुनव्वरा के बाहर एक पथरीली ज़मीन है।  जब दोपहर हो जाती और धूप में तेजी आ जाती तो मायूस होकर वापस लौट आते , फिर एक दिन ऐसा हुआ.. मदीना मुनव्वरा के लोग घरों से मका़में हीरा तक आए, जब काफी देर हो गई और धूप में तेज़ी ना आ गई तो वे फिर वापस लौटने लगे , ऐसे में एक यहूदी हीरा के एक ऊंचे टीले पर चढ़ा उसे मक्का की तरफ से कुछ सफेद लिबास वाले आते दिखाई दिए, उस काफ़िले से उठने वाली गर्द से निकलकर जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाज़े तौर पर नज़र आए तो वो यहूदी पुकार उठा :- ऐ गिरोह अरब ! जिनका तुम्हें इंतजार था वो लोग आ गए _,"


★_यह अल्फाज़ सुनते ही मुसलमान वापस दौड़े और हीरा के मुका़म पर पहुंच गए । उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और उनके साथियों को एक दरख्त के साए में आराम करते पाया। एक रिवायत में है कि 500 से कुछ ज्यादा अंसारियों ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का इस्तक़बाल किया । वहां से चलकर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क़ूबा शरीफ लाए , उस रोज़ पीर का दिन था । आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने क़बीला बनी अमरु बिन औफ के एक शख्स कुलसुम बिन मु'आदम रजियल्लाहु अन्हु के घर क़याम फरमाया , बनी अमरु का यह घराना क़बीला औस से था। उनके बारे में रिवायत मिलती है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाने से पहले ही मुसलमान हो गए थे।


★_ क़ूबा में हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने एक मस्जिद की बुनियाद रखी उसका नाम मस्जिदे क़ूबा रखा । इस मस्जिद के बारे में एक हदीस में है कि- जिस शख्स ने मुकम्मल तौर पर वज़ू किया फिर मस्जिद ए कुबा में नमाज पढ़ी तो उसे एक हज और उमरा का सवाब मिलेगा_,"

हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अक्सर इस मस्जिद में तशरीफ लाते रहे इस मस्जिद की फजी़लत में अल्लाह ताला ने सूरह तौबा में एक आयत भी नाजि़ल फरमाई।

: ★__ क़ूबा से आप सल्लल्लाहु सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा पहुंचे । जूंही आप की आमद की खबर मुसलमानों को पहुंची उनकी खुशी की इंतेहा ना रही ,हजरत बरा रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं , मैंने मदीना वालों को आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की आमद पर जितना खुश देखा उतना किसी और मौक़े पर नहीं देखा । सब लोग आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रास्ते में दोनों तरफ इकट्ठे हुए और औरते छतों पर चढ़ गई ताकि आप की आमद का मंज़र देख सकें।


★_औरतें और बच्चे खुशी में यह अश'आर पढ़ने लगे :- 

*(तर्जुमा)* _ चौदहवीं रात का चांद हम पर तुलु हुआ है जब तक अल्लाह ताला को पुकारने वाला इस सर ज़मीन पर बाक़ी है हम पर इस नियामत का शुक्र अदा करना वाजिब है , ऐ आने वाले शख्स जो हममें पैगंबर बनाकर भेजे गए हैं आप ऐसे ही अहकामात लेकर आए हैं जिनकी पैरवी और इता'त वाजिब है।


★_ रास्ते में एक जगह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बैठ गए, हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास खड़े हो गए। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु पर बुढ़ापे के आसार ज़ाहिर होना शुरू हो चुके थे जबकि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जवान नज़र आते थे, हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बाल सियाह थे अगरचे आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उम्र में हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु से 2 साल बड़े थे।

अब हुआ यह कि जिन लोगों ने पहले आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को नहीं देखा था उन्होंने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के बारे में खयाल किया कि अल्लाह के रसूल यह हैं और गर्म जोशी से उनसे मिलने लगे । यह बात हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने फौरन महसूस कर ली । उस वक्त तक धूप भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर पड़ने लगी थी। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अपनी चादर से हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर साया कर दिया , तब लोगों ने जाना अल्लाह के रसूल यह है।


★_ फिर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस जगह से रवाना हो गए । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ऊंटनी पर सवार थे और साथ-साथ बहुत से लोग चल रहे थे उनमें से कुछ सवार थे तो कुछ पैदल । उस वक्त मदीना मुनव्वरा के लोगों की ज़ुबान पर यह अल्फाज़ थे :- अल्लाहु अकबर ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ ले आए_,"

रास्ते में आपकी खुशी में हबशियों ने नेज़ा बाज़ी के कमालात और करतब दिखाए । ऐसे में एक शख्स ने पूछा अल्लाह के रसूल आप जो यहां से आगे तशरीफ ले जा रहे हैं तो क्या हमारे घरों से बेहतर कोई घर चाहते हैं ? 

उसके जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- मुझे एक ऐसी बस्ती में रहने का हुक्म दिया गया है जो दूसरी बस्तियों को फतह कर लेगी_,"


★_ यह जवाब सुनकर लोगों ने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की ऊंटनी का रास्ता छोड़ दिया । उस बस्ती के बारे में सबको बाद में मालूम हो गया कि वह मदीना मुनव्वरा है । मदीना मुनव्वरा का पहले नाम यसरिब था , यसरिब एक शख्स का नाम था वह हजरत नूह अलैहिस्सलाम की औलाद में से था । मदीना मुनव्वरा में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की आमद जुमा के रोज़ हुई। चुनांचे उस रोज़ पहला जुमा पढ़ा गया ।

: ★_ जुमा की यह पहली नमाज मदीना मुनव्वरा के मोहल्ले बनी सालिम की जिस मस्जिद में आपने जुमा अदा किया उस मस्जिद को " मस्जिदे जुमा" कहा जाता है , यह क़ुबा की तरफ जाने वाले रास्ते के बाएं तरफ है । इस तरह यह पहली नमाजे जुमा थी, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस नमाज से पहले खुतबा भी दिया था ,इस पहले खुतबे में जो कुछ इरशाद फरमाया उसका कुछ हिस्सा यह था :-  

*"_ पस जो शख्स अपने आप को जहन्नम की आग से बचाना चाहता है तो जरूर बचा ले चाहे वह आधे छुआरे के बराबर ही क्यों ना हो , जिसे कुछ भी ना आता हो वह कलमा तैयबा को लाज़िम कर ले क्योंकि नेकी का सवाब 2 गुना से लेकर 700 गुना तक मिलता है और सलाम हो अल्लाह के रसूल पर और अल्लाह की रहमत और बरकत हो_",


★_नमाज़े जुमा अदा करने के बाद आन'हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा जाने के लिए अपनी ऊंटनी पर सवार हुए और उसकी लगाम ढ़ीली छोड़ दी यानी उसे अपनी मर्जी से चलने की इजाजत दी,  ऊंटनी ने पहले दाएं और बाएं देखा जैसे चलने से पहले फैसला कर रही हो कि किस सिम्त में जाना है,  ऐसे में बनी सालिम के लोगों ,(यानी जिनके मोहल्ले में जुमा की नमाज अदा की गई थी,) ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप हमारे यहां क़याम फरमाइए यहां लोगों की तादाद ज्यादा है यहां आपकी पूरी हिफाजत होगी ..यहां दौलत भी है हमारे पास हथियार भी है.. हमारे पास बागात भी है और जिंदगी की जरूरत की सब चीजें भी मौजूद है _,"

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उनकी बात सुनकर मुस्कुराए, उनका शुक्रिया अदा किया और फ़रमाया -मेरी ऊंटनी का रास्ता छोड़ दो यह जहां जाना चाहे इसे जाने दो क्योंकि यह मामूर है_,"

मतलब यह था कि अल्लाह ताला के हुक्म से ऊंटनी खुद चलेगी और उसे अपनी मंजिल मालूम है। आप सल्लल्लाहो सल्लम ने उन हजरात को दुआ दी :- अल्लाह ताला तुम्हें बरकत अता फरमाए _,"


★_इसके बाद ऊंटनी रवाना हुई, यहां तक की बनी बयासा के मोहल्ले में पहुंची , यहां के लोगों ने भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से दरख्वास्त की कि उनके यहां ठहरे । आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने उन्हें भी वही जवाब दिया जो बनी सालिम को दिया था । इसी तरह बनी सादाह के इलाके से गुजरे इन हजरात ने भी दरख्वास्त की ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यही जवाब फरमाया। ऊंटनी आगे बढ़ी ,अब यह बनी अदि के मोहल्ले में दाखिल हुई , यहां आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब की ननिहाल थी उन लोगों ने अर्ज़ किया - हम आपके ननिहाल वाले हैं इसलिए यहां क़याम फरमाइए यहां आपकी रिश्तेदारी भी है हम तादाद में भी बहुत हैं आपकी हिफाज़त भी बढ़-चढ़कर करेंगे फिर यह कि हम आपके रिश्तेदार भी हैं , सो हमें छोड़कर ना जाएं _,"


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें भी वही जवाब दिया कि यह ऊंटनी मामूर है इसे अपनी मंज़िल मालूम है, ऊंटनी और आगे बढ़ी और उसी मोहल्ले में एक जगह बैठ गई यह जगह बनी मालिक बिन नजार के मोहल्ले के पास थी और हजरत अबू अय्यूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु के दरवाज़े के क़रीब थी ।

 ★__ हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु का नाम खालिद बिन ज़ैद नजार अंसारी था, यह क़बीला खज़रज के थे, बैते उक़बा के मौके पर मौजूद थे हर मौके पर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ रहे। हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में वह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बहुत क़रीबी मु'आवीन में से रहे, उन की वफात यजी़द के दौर में कुस्तुनतुनिया कि जिहाद के दौरान हुई ।


★_ ऊंटनी बैठ गई अभी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उससे उतरे नहीं थे कि वह अचानक फिर खड़ी हो गई, चंद कदम चली और ठहर गई ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसकी लगाम बदस्तूर छोड़े रखी थी , ऊंटनी उसके बाद वापस उसी जगह जहां पहले बैठी थी, वह दोबारा उसी जगह बैठ गई अपनी गर्दन जमीन पर रख दी और मुंह खोले बगैर एक आवाज निकाली। अब नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उससे उतरे ,साथ ही फरमाया:-  ए मेरे परवरदिगार मुझे मुबारक जगह पर उतारना और तू ही बेहतरीन जगह ठहराने वाला है_,"

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने यह जुमला चार मरतबा इरशाद फरमाया ,फिर फरमाया :- इंशाल्लाह यही क़याम गाह होगी_,"


★_अब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सामान उतारने का हुक्म दिया, हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया -क्या मैं आपका सामान अपने घर ले जाऊं? 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें इजाजत दे दी , वह सामान उतार कर ले गए ।उसी वक्त हजरत अस'अद बिन जरारा रज़ियल्लाहु अन्हु आ गये , उन्होंने ऊंटनी की मुहार थाम ली और ऊंटनी को ले गए। चुनांचे ऊंटनी उनकी मेहमान बनी, बनी नजार के यहां उतरने पर उनके बच्चों ने दफ हाथों में ले लिए और खुशी से सरशार होकर उनको बजाने लगे और यह गीत गाने लगे :- 

*(तर्जुमा )*_ हम बनी नजार के पड़ोसियों में से हैं ,किस कदर खुशकिस्मती की बात है कि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हमारे पड़ोसी हैं _,"


★_उनकी आवाज सुनकर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बाहर निकल आए, उनके नज़दीक आए और फरमाया :- क्या तुम मुझसे मोहब्बत करते हो ?

वह बोले -हां, ऐ अल्लाह के रसूल। 

इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- अल्लाह जानता है मेरे दिल में भी तुम्हारे लिए मोहब्बत ही मोहब्बत है_,"


★_आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु के घर उस वक्त तक ठहरे जब तक कि मस्जिद-ए-नबवी और उसके साथ आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम का हुजरा तैयार नहीं हो गया । आप तक़रीबन 11 माह तक वहां ठहरे रहे।।


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★_ मस्जिदे नबवी की तामीर _,"*

★__ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जब क़ूबा से मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए तो साथ अक्सर मुहाजिरीन भी मदीना मुनव्वरा गए थे उस वक्त अंसारी मुसलमानों का जज़्बा काबिले दीद था,  उन सब की ख्वाहिश थी कि मुहाजिरीन उनके यहां ठहरे। इस तरह उनके दरमियान बहस हुई आखिर अंसारी हजरात ने मुहाजिरीन के लिए कु़रा अंदाजी की, इस तरह जो मुहाजिर जिस अंसारी के हिस्से में आए वह उन्हीं के यहां ठहरे । अंसारी मुसलमानों ने उन्हें ना सिर्फ अपने घरों में ठहराया बल्कि उन पर अपना माल और दौलत भी खर्च किया।


★_ मुहाजिरीन की आमद से पहले अंसारी मुसलमान एक जगह बा जमात नमाज़ अदा करते थे , हजरत अस'द बिन ज़रारा रजियल्लाहु अन्हु उन्हें नमाज़ पढ़ाते थे , जब आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तशरीफ लाए तो सबसे पहले मस्जिद बनाने की फ़िक्र हुई। 

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपनी ऊंटनी पर सवार हुए और उसकी लगाम ढ़ीली छोड़ दी, ऊंटनी चल पड़ी ,वह उस जगह जाकर बैठ गई जहां आज मस्जिद-ए-नबवी है। जिस जगह मुसलमान नमाज़ अदा करते रहे थे वह जगह भी उसके आसपास ही थी उस वक्त वहां सिर्फ दीवारें खड़ी की गई थी उन पर छत नहीं थी । ऊंटनी के बैठने पर आप सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-बस ! मस्जिद इस जगह बनेगी _,"


★_इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अस'द बिन जरारा रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- तुम यह जगह मस्जिद के लिए फरोख्त कर दो _," 

वह जगह दरअसल दो यतीम बच्चों सहल और सोहेल की थी और अस'द बिन ज़रारा रजियल्लाहु अन्हु उनके सरपरस्त थे । 

यह रिवायत भी आई है कि उनके सरपरस्त मा'ज़ बिन उफरा रज़ियल्लाहु अन्हु थे। आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की बात सुनकर हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- आप यह जमीन ले लें, मैं इसकी कीमत उन दोनों को अदा कर देता हूं ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इससे इनकार फरमाया और 10 दीनार में ज़मीन का टुकड़ा खरीद लिया । यह क़ीमत हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के माल से अदा की गई ।

( वाह ! क्या क़िस्मत पाई अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने क़यामत तक मस्जिद-ए-नबवी के नमाजि़यों का सवाब उनके नामा आमाल में लिखा जा रहा है )


★_यह रिवायत भी है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन दोनों यतीम लड़कों को बुलवाया , जमीन के सिलसिले में उनसे बात की ,उन दोनों ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! हम यह जमीन हदिया करते हैं ।

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन यतीमों का हदिया क़ुबूल करने से इनकार फरमा दिया और 10 दीनार में जमीन का टुकड़ा उनसे खरीद लिया । हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि वह उन्हें 10 दिनार अदा कर दें ,चुनांचे  उन्होंने वह रकम अदा कर दी।


★_जमीन की खरीद के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मस्जिद की तामीर शुरू करने का इरादा फरमाया , ईंटें बनाने का हुक्म दिया। फिर गारा तैयार किया गया ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से पहली ईंट रखी, फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजिल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि दूसरी ईट वो रखें उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की लगाई हुई ईंट के बराबर दूसरी मीटर हजरत उमर रजि अल्लाह वालों को बुलाया गया उन्होंने सिद्धि के अकबर अल्लाहु अन्हु की ईंट के बराबर 30 लीटर रखी अब आपने हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों को बुलाया उन्होंने हजरत उमर रजि अल्लाहु अन्हु की ईंट के बराबर चौथी रखी साथ ही आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने इरशाद फरमाया मेरे बाद यही अलीशा होंगे मुस्तकीम ने इस हदीस को सही कहा है


★_फिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आम मुसलमानों को हुक्म फरमाया -अब पत्थर लगाना शुरू कर दो।

: ★_ मुसलमान पत्थरों से बुनियादी भरने लगे ,बुनियादें तकरीबन 3 हाथ (साढ़े 4 फुट) गहरी थी ,इसके लिए ईटों की तामीर उठाई गई दोनों जानिब पत्थरों की दीवारें बनाकर खजूर की टहनियों की छत बनाई गई और खजूर के तनो के सुतून बनाए गए, दीवारों की ऊंचाई इंसानी पद के बराबर थी।


★_इन हालात में कुछ अंसारी मुसलमानों ने कुछ माल जमा किया वह माल आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास लाए और अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! इस माल से मस्जिद बनाएं और उसको आरास्ता कीजिए हम कब तक छप्पर के नीचे नमाज़ पढ़ेंगे _" ,

इस पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  मुझे मस्जिदों को सजाने का हुक्म नहीं दिया गया _,"

इस सिलसिले में एक और हदीस के अल्फ़ाज़ यह है :- कयामत क़ायम होने की एक निशानी यह है कि लोग मस्जिदों में आराइश और ज़ेबाइश करने लगेंगे जैसे यहूद और नसारा अपने कलीसाओं और गिरजों में जे़ब व ज़ीनत करते हैं।


★_मस्जिद-ए-नबवी की छत खजूर की छाल और पत्थरों की थी और उस पर थोड़ी सी मिट्टी थी जब बारिश होती तो पानी अंदर टपकता यह पानी मिट्टी मिला होता , इससे मस्जिद के अंदर कीचड़ हो जाता । यह बात महसूस करके सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया:- या रसूलल्लाह ! अगर आप हुक्म दे तो छत पर ज्यादा मिट्टी बिछा दी जाए ताकि उस में से पानी ना रिसे ,मस्जिद में ना लटके _,"

आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- नहीं ! यूं ही रहने दो_,"


★_मस्जिद की तामीर के काम में तमाम मुहाजिरीन और अन्सार सहाबा ने हिस्सा लिया यहां तक कि खुद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने भी अपने हाथों से काम किया ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपनी चादर में ईंटें भर भर कर लाते यहां तक कि सीना मुबारक गुबार आलूद हो जाता ।सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को ईंटे उठाते देखा तो वो और ज्यादा जां नफसानी से ईंटे ढोने लगे (यहां ईंटों से मुराद पत्थर हैं ) , एक मौके पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने देखा कि बाकी सहाबा तो एक-एक पत्थर उठा कर ला रहे हैं और हजरत अम्मार बिन यासिर रजियल्लाहु अन्हु दो पत्थर उठाकर  ला रहे थे तो उनसे पूछा :- अम्मार , तुम भी अपने साथियों की तरह एक एक पत्थर क्यों नहीं लाते? उन्होंने अर्ज़ किया :- इसलिए कि मैं अल्लाह ताला से ज्यादा अजरो जवाब चाहता हूं_,"


★_हजरत उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत नफीस और सफाई पसंद थे वह भी मस्जिद की तामीर के लिए पत्थर ढो रहे थे, पत्थर उठाकर चलते तो उसको अपने कपड़ों से दूर रखते ताकि कपड़े खराब ना हो अगर मिट्टी लग जाती तो फौरन चुटकी से उसको झाड़ने लग जाते दूसरे सहाबा देख कर मुस्कुरा जाते।

[: ★__ मस्जिद की तामीर के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम उसमें 5 माह तक बैतूल मुकद्दस की तरफ मुंह करके नमाज़ें पढ़ते रहे इसके बाद अल्लाह ताला के हुक्म से क़िब्ले का रुख बैतुल्लाह की तरफ हो गया । मस्जिद का पहले फर्श कच्चा था फिर उस पर कंकरिया बिछा दी गई यह इसलिए बिछाई गई कि एक रोज़ बारिश हुई फर्श गीला हो गया । अब जो भी आता अपनी झोली में कंकरिया भरकर लाता और अपनी जगह पर उनको बिछा का नमाज़ पढ़ता। तब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हुक्म दिया कि सारा फर्श ही कंकरिया का बिछा दो।


★_फिर जब मुसलमान ज्यादा हो गए तो नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मस्जिद को बड़ा करने का इरादा फरमाया। मस्जिद के साथ जमीन का एक टुकड़ा हजरत उस्मान ग़नी रजियल्लाहु अन्हु का था ,यह टुकड़ा उन्होंने एक यहूदी से खरीदा था । जब हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को मालूम हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मस्जिद को बड़ा करना चाहते हैं तो उन्होंने अर्ज किया :-  अल्लाह के रसूल ! आप मुझसे जमीन का यह टुकड़ा जन्नत के एक मकान के बदले में खरीद लें_,"

चुनांचे नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ज़मीन का टुकड़ा उनसे ले लिया। मस्जिद ए नबवी के बारे में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  अगर मेरी यह मस्जिद सना के मका़म तक भी बन जाए (यानि इतनी बड़ी हो जाए ) तो भी यह मेरी मस्जिद ही रहेगी, यानी मस्जिद-ए-नबवी ही रहेगी।


★_ इससे ज़ाहिर हो रहा है कि आप ने मस्जिद-ए-नबवी के वसी होने की इत्तेला पहले ही दे दी थी और हुआ भी यही । बाद के दौर में इसकी तोसी होती रही है और इस का सिलसिला जारी है और आगे भी जारी रहेगा।


★_मस्जिद-ए-नबवी के साथ ही सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा और सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए दो हुजरे बनाए गए , ये हुजरे मस्जिद-ए-नबवी से बिल्कुल मिले हुए थे , इन हुजरों की छत भी मस्जिद की तरह खजूरों की छाल से बनाई गई थी । 

मस्जिद-ए-नबवी की तामीर तक आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु के घर में क़याम पजी़र रहे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके मकान में निचली मंजिल में क़याम फरमाया था । हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु और उनकी बीवी ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से दरख्वास्त की थी :- हुजूर ! आप ऊपर वाली मंजिल में क़याम फरमाइए _,"

इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जवाब में फरमाया :-  मुझे नीचे ही रहने दो ..क्योंकि लोग मुझसे मिलने के लिए आएंगे इसमें सहूलियत रहेगी_,"


★_ हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :-  एक रात हमारी पानी की घड़िया टूट गई हम घबरा गए कि पानी नीचे ना टपकने लगे और आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को परेशानी ना हो ..तो हमने फौरन उस पानी को अपने लिहाफ में जज़्ब करना शुरू कर दिया और हमारे पास एक ही लिहाफ था वह दिन सर्दी के थे _," 

इसके बाद हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु ने फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से ऊपर वाली मंजिल पर क़याम करने की दरख्वास्त कि आखिर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनकी बात मान ली।


★_ उनके घर के क़याम के दौरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए खाना हजरत असद बिन ज़रारा और हजरत साद बिन उबादा रजियल्लाहु अन्हु के यहां से भी आता था ।

[ ★_ इस तामीर से फारिग होने के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हज़रत ज़ैद बिन हारिसा और हज़रत ज़ैद बिन राफे रजियल्लाहु अन्हुम को मक्का भेजा ताकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घर वालों को ले आए। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें सफर में खर्च करने के लिए 500 दिरहम और दो ऊंट दिए , रहबर के तौर पर उनके साथ अब्दुल्लाह बिन अरीक़त को भेजा। सैयदना अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने यह अखराजात बर्दाश्त किए , उनके घर वालों को लाने की जिम्मेदारी भी इन्हें सौंपी गई ,इस तरह यह हजरात मक्का मुअज्ज़मा से आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की साहब जादियो हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा को, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की एहलिया मोहतरमा हजरत सौदा बिन्त ज़मा रज़ियल्लाहु अन्हा और दाया उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा ( जो हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु की अहलिया थी ) और उनके बेटे हजरत उसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को ले कर मदीना मुनव्वरा आ गए । हजरत उसामा बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दाया के बेटे थे और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हद दर्जे अज़ीज़ थे।


★__ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बेटी हजरत जेनब रजियल्लाहु अन्हा चुंकी शादीशुदा थी और उनके शौहर उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे इसलिए उन्हें हिजरत करने से रोक दिया गया । हजरत जे़नब रजियल्लाहु अन्हा ने बाद में हिजरत की थी और अपने शौहर को कुफ्र की हालत में मक्का छोड़ आई थी , उनके शहर अबुल आस बिन रबी'आ रज़ियल्लाहु अन्हू थे , यह गज़वा बदर के मौक़े पर काफिरों के लश्कर में शामिल हुए , गिरफ्तार हुए लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया,  फिर यह मुसलमान हो गए।

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की चोथी बेटी हजरत रुकैया रज़ियल्लाहु अन्हा अपने शौहर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के साथ पहले ही हबशा हिजरत कर गई थी यह बाद में हबशा से मदीना पहुंचे थे।


★_ हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के घर वाले भी साथ ही मदीना मुनव्वरा आ गए, उनमें उनकी जोज़ा मोहतरमा हजरत उम्मे रोमान, हजरत आयशा सिद्दीका़ और उनकी बहन हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हुमा शामिल थी , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बेटे हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु भी साथ आए। हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की जौज़ा हजरत उम्मे रोमान रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया था :- जिस शख्स को जन्नत की हूरों में से कोई हूर देखने की ख्वाहिश हो, वह उम्मे रोमान को देखें _,"


★_ हिजरत के इस सफर में हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा को मदीना मुनव्वरा पहुंचने से पहले क़ुबा में ठहरना पड़ा ,उनके यहां हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु पैदा हुए,  बच्चे की पैदाइश के बाद मदीना पहुंची और अपना बच्चा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की गोद में बरकत हासिल करने के लिए पेश किया । यह हिजरत के बाद मुहाजिरीन के यहां पहला बच्चा था जिनकी पैदाइश पर मुसलमानों को बेहद खुशी हुई क्योंकि कुफ्फार ने यह मशहूर कर दिया था कि जब से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुहाजिरीन मदीना आए हैं इनके यहां कोई नरीना नहीं हुई क्योंकि हमने उन पर जादू कर दिया है। अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हू की पैदाइश पर उन लोगों की बात गलत साबित हो गई इसलिए मुसलमानों को बहुत खुशी हुई।


★_ मस्जिद-ए-नबवी की तामीर मुकम्मल हो गई तो रात के वक्त उसमें रोशनी का मसला सामने आया । इस गर्ज़ के लिए पहले पहल खजूर की शाखें जलाई गई । फिर हजरत तमीम दारी रजियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा आए तो वह अपने साथ कंदीलें, रस्सियां और जैतून का तेल लाए।

[🖊: ★__ हजरत तमीम दारी रजियल्लाहु अन्हु ने ये क़ंदीलें मस्जिद में लटका दिए फिर रात के वक्त उनको जला दिया , यह देखकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :-  हमारी मस्जिद रोशन हो गई अल्लाह ताला तुम्हारे लिए भी रोशनी का सामान फरमाए,  अल्लाह की क़सम ! मेरे कोई और बेटी होती तो मैं उसकी शादी तुमसे कर देता _," 

बाज़ रिवायात में है कि सबसे पहले हजरत उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु ने मस्जिद में क़ंदील जलाई थी ।


★_ मस्जिद-ए-नबवी की तामीर के साथ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दो हुजरे अपनी बीवियों के लिए बनवाए थे( बाक़ी हुजरे जरूरत के मुताबिक बाद में बनाए गए)  उन दो में से एक सैयद आयशा सिद्दीका़ रज़ियल्लाहु अन्हा का था और दूसरा सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा का ।

मदीना मुनव्वरा में वह ज़मीने जो किसी की मिल्कियत नहीं थी उन पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुहाजिरीन के लिए निशानात लगा दिए यानी यह ज़मीनें उनमें तक़सीम कर दी,  कुछ जमीनें आपको अंसारी हजरात ने हदिया की थी , आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने उनको भी तक़सीम फरमा दिया और उन जगहों पर उन मुसलमानों को बसाया जो पहले क़बा में ठहर गए थे लेकिन बाद में जब उन्होंने देखा कि क़ुबा में जगह नहीं है तो वह भी मदीना चले आए थे।


★_आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अपने बीवियों के लिए जो हुजरे बनवाएं वह कच्चे थे, खजूर की शाखों ,पत्तों और छाल से बनाए गए थे । उन पर मिट्टी लीपी गई थी।

हजरत हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैह मशहूर ताबइ है और यह तो आपको पता ही होगा कि ताबई उसे कहते हैं जिसने किसी सहाबी को देखा हो । वह कहते हैं कि जब मैं छोटा था तो हजरत उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफ के दौर में उम्माहातुल मोमिनीन के हुजरों में जाता था । उनकी छतें इस क़दर नीची थी कि उस वक्त अगरचे मेरा क़द छोटा था लेकिन मैं हाथ से छतों को छू लिया करता था।

हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैह उस वक्त पैदा हुए थे जब हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के खिलाफत को अभी 2 साल बाक़ी थे । वह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की ज़ौजा हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु की बांदी खैयरा के बेटे थे , हजरत उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा इन्हें सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के पास किसी काम से भेजा करती थी , सहाबा किराम इन्हें बरकत की दुआएं दिया करते थे। हजरत उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा इन्हें हजरत उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु के पास भी ले गई थी। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इन्हें इन अल्फाज़ में दुआ दी थी :-  ऐ अल्लाह ! इन्हें दीन की समझ अता फरमा और लोगों के लिए यह पसंदीदा हों _,"


★_ मस्जिद-ए-नबवी के चारों तरफ हज़रत हारिसा बिन नौमान के मकानात थे , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी हयात मुबारक में मुताद्दिद  निकाह फरमाए थे जिनमें दिनी हिकमते और मसलिहते थी । जब भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम निकाह फरमाते तो हज़रत हारिसा बिन नौमान रज़ियल्लाहु अन्हु अपना एक मकान यानि हुजरा आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को हदिया कर देते,  इसमें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़ौजा मोहतरमा का क़याम हो जाता । यहां तक कि रफ्ता रफ्ता हजरत हारिसा बिन नौमान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने सारे मकान इसी तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हदिया कर दिए ।

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[ *★_ इस्लामी भाईचारा _,*


★_ उसी जमाने में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुहाजिरीन और अन्सार मुसलमानों के सामने यहूदियों से सुलह का मुआहिदा किया इस मुआहिदे की एक तहरीर भी लिखवाई । मुआहिदा में तैय पाया कि यहूदी मुसलमानों से कभी जंग नहीं करेंगे कभी उन्हें तकलीफ नहीं पहुंचाएंगे और यह की आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुक़ाबले में वह किसी की मदद नहीं करेंगे और अगर कोई अचानक मुसलमानों पर हमला करें तो यहूदी मुसलमानों का साथ देंगे।

इन शराइत के मुक़ाबले में मुसलमानों की तरफ से यहूदियों की जान व माल और उनके मज़हबी मामलात में आज़ादी की जमानत दी गई । यह मुआहिदा जिन यहूदी क़बाइल से किया गया उनके नाम बनी क़ीनका , बनी क़ुरेजा और बनी नज़ीर है।


★_ इसके साथ ही आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुहाजिरीन और अन्सार के दरमियान भाईचारा कराया इस भाईचारे से मुसलमानों के दरमियान मोहब्बत और खुलूस का बेमिसाल रिश्ता कायम हुआ । इस भाईचारे को मुवाखात कहते हैं । भाईचारे का यह क़याम हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु के मकान पर हुआ, यह भाईचारा मस्जिद-ए-नबवी की तामीर के बाद हुआ। इस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था :-  अल्लाह के नाम पर तुम सब आपस में दो दो भाई बन जाओ _,"

इस भाईचारे के बाद अंसारी मुसलमानों ने मुहाजिरीन के साथ जो सलूक किया वह रहती दुनिया तक याद रखा जाएगा , खुद मुहाजिरीन पर इस सुलूक का इस क़दर असर हुआ कि वह पुकार उठे :- ऐ अल्लाह के रसूल ! हमने इन जैसे लोग कभी नहीं देखे इन्होंने हमारे साथ इस क़दर हमदर्दी और गम गुसारी की है ,इस क़दर फैयाजी़ का मामला किया है कि इसकी कोई मिसाल नहीं मिल सकती ..यहां तक कि मेहनत और मशक्कत के वक्त वह हमें अलग रखते हैं और सिला मिलने का वक्त आता है तो हमें उसमें बराबर का शरीक कर लेते हैं.. हमें तो डर है.. बस आखिरत का सारा सवाब यह तनहा ना समेट ले जाए _,"

उनकी यह बात सुनकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- नहीं ! ऐसा उस वक्त तक नहीं हो सकता जब तक तुम उनकी तारीफ करते रहोगे और उन्हें दुआएं देते रहोगे _,"


★_ बाज़ उल्मा ने लिखा है कि भाईचारा कराना हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खुसूसियत में से हैं । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से पहले किसी भी नबी ने अपने उम्मतियों में इस तरह भाईचारा नहीं कराया ।


★_इस सिलसिले में रिवायत मिलती है कि अन्सारी मुसलमानों ने अपने मुहाजिर भाइयों को अपनी हर चीज में से निस्फ हिस्सा दे दिया , किसी के पास दो मकान थे तो एक अपने भाई को दे दिया,  इसी तरह हर चीज़ का निस्फ अपने भाई को दे दिया,  यहां तक कि एक अंसारी की दो बीवियां थी उन्होंने अपने मुहाजिर भाई से कहा कि मेरी दो बीवियां है मैं उनमें से एक को तलाक दे देता हूं इद्दत पूरी होने के बाद तुम उससे शादी कर लेना लेकिन मुहाजिर मुसलमान ने इस बात को पसंद नहीं फरमाया।

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 ★_ अज़ान पढ़ने का तरीका _,*


★_ इन कामों से फारिग होने के बाद यह मसला सामने आया कि नमाज के लिए लोगों को कैसे बुलाया करें ।आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से मशवरा किया , इस सिलसिले में एक मशवरा यह दिया गया कि नमाज का वक्त होने पर एक झंडा लहरा दिया जाए लोग उसको देखेंगे तो समझ जाएंगे कि नमाज का वक्त हो गया है और एक दूसरे को बता दिया करेंगे । लेकिन हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इस तजवीज़ को पसंद ना फरमाया । फिर किसी ने कहा कि बिगुल बजा दिया करें,  हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इसको भी नापसंद फरमाया क्योंकि यह तरीक़ा यहूदियों का था। किसी ने कहा नाकूस बजा कर ऐलान कर दिया करें ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इसको भी पसंद ना फरमाया इसलिए कि यह ईसाईयों का तरीक़ा है।


★_ कुछ लोगों ने मशवरा दिया कि आग जला दी जाए जाया करें आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस तजवीज़ को भी पसंद ना फरमाया इसलिए यह तरीक़ा मजूसियों का था । एक मशवरा यह दिया गया कि एक शख्स मुक़र्रर कर दिया जाए कि वह नमाज का वक्त होने पर गश्त लगाया करें , इस राय को कुबूल कर लिया गया। चुनांचे हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को ऐलान करने वाला मुकर्रर कर दिया गया ।


★_ उन्हीं दिनों हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु ने ख्वाब देखा , उन्होंने एक शख्स को देखा उसके जिस्म पर दो सब्ज़ कपड़े थे और उसके हाथ में एक नाकूस था, हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं मैंने उससे पूछा- क्या तुम यह नाकूस फरोख्त करते हो , उसने पूछा -तुम इसका क्या करोगे , मैंने कहा हम इसको बजाकर नमाजियों को जमा करेंगे। इस पर वह बोला क्या मैं तुम्हें इसके लिए इससे बेहतर तरीक़ा ना बता दूं ,मैंने कहा ज़रूर बताइए ।अब उसने कहा तुम यह अल्फाज़ पुकार कर लोगों को जमा किया करो और उसने अज़ान के अल्फाज़ दोहरा दिए  यानी पूरी अज़ान पढ़कर उन्हें सुना दी, फिर तकबीर कहने का तरीक़ा भी बता दिया_,


★_ सुबह हुई तो हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और अपना यह ख्वाब सुनाया, ख्वाब सुनकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - बेशक ! यह सच्चा ख्वाब है , इंशाल्लाह ! तुम जाकर यह कलमात बिलाल को सिखा दो ताकि वह इसके जरिए अज़ान दे, उनकी आवाज तुमसे बुलंद है और ज्यादा दिलकश भी है_,"

हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत बिलाल के पास आए, उन्होंने कलमात सीखने पर सुबह की अज़ान दी ..इस तरह सबसे पहले अजा़न फजर की नमाज़ के लिए दी गई।

: ★_ अज़ान पढ़ने का तरीका _,*


★_ ज्योंही हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की अज़ान गूंजी और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के कानों में ये अल्फाज़ पड़े तो बहुत जल्दी से चादर संभालते हुए उठे और तेज़ तेज़ चलते हुए मस्जिद-ए-नबवी में पहुंचे , मस्जिद में पहुंचकर उन्हें अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु के ख्वाब के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! उस जात की कसम जिसने आपको हक़ देकर भेजा है मैंने भी बिल्कुल यही ख्वाब देखा है _,"

हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की ज़ुबानी ख्वाब की तस्दीक़ सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  अल्लाह का शुक्र है_,"


★_ अब पांचों वक्त की नमाज़ों के लिए हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु अज़ान देते ,इन पांच नमाजो के अलावा किसी मौके़ पर लोगों को जमा करना होता मसलन- सूरज ग्रहण और चांद ग्रहण हो जाता या बारिश तलब करने के लिए नमाज पढ़ना होती तो वह "अस्सलातू जामि'आ " कहकर एलान करते थे ।

इस तरह नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जमाने तक हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु मोअज्ज़िन रहे ,उनकी गैरमौजूदगी में हजरत अब्दुल्लाह बिन मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु अज़ान देते थे।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ज़हूर से पहले मदीना मुनव्वरा के यहूदी क़बीला ओस और खज़रज के लोगों से यह कहा करते थे:-  बहुत जल्द एक नबी जाहिर होंगे उनकी ऐसी ऐसी सिफात होंगी (यानी हुजूर अकरम सल्लल्लाहो सल्लम की निशानियां बताया करते थे) हम उनके साथ मिलकर तुम लोगों को साबका़ क़ौमों की तरह तहस-नहस कर देंगे जिस तरह क़ौमे आद , और क़ौमे समूद को तबाह किया गया हम भी तुम लोगों को इस तरह तबाह कर देंगे _,"

जब नबी पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ज़हूर मुबारक हो गया तो यही यहूद हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के खिलाफ हो गए और साजिशें करने लगे । जब औस और खज़रज के लोग इस्लाम के दामन में आ गए तो बाज़ सहाबा ने यहूदियों से कहा :- ऐ यहूदियों ! तुम हमसे कहा करते थे कि एक नबी जाहिर होने वाले है उनकी ऐसी ऐसी सिफात होंगी हम उन पर ईमान ला कर तुम लोगों को तबाह व बर्बाद कर देंगे लेकिन अब जबकि उनका जहूर हो गया है तो तुम उन पर ईमान क्यों नहीं लाते तुम तो हमें नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का हुलिया तक बताया करते थे_,"


★_ सहाबा किराम रिज़वानुल्लाहि अलैहिम अज़म'ईन ने जब यह बात कही तो यहूदियों में सलाम बिन मशकम भी था , यह क़बीला बनी नज़ीर के बड़े आदमीयों में से था,  इसने उनकी यह बात सुनकर कहा -इनमें वह निशानियां नहीं है जो हम तुमसे बताया करते थे _," इस पर अल्लाह ताला ने सूरह बक़रा की आयत नंबर 89 नाजिल फरमाई :- 


" (तर्जुमा ) _ और जब उन्हें किताब पहुंची (यानी कुरान) जो अल्लाह ताला की तरफ से है और उसकी भी तस्दीक़ करने वाली है जो पहले से ही इनके पास है यानी तौरात, हालांकि इससे पहले वह खुद (इस नबी के वसीले से ) कुफ्फार के खिलाफ अल्लाह से मदद तलब करते थे, फिर वह चीज़ आ पहुंची जिसको वह खुद जानते पहचानते थे (यानी हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की नबूवत ) तो उसका साफ इंकार कर बैठे बस अल्लाह की मार हो ऐसे काफिरों पर _,"

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: ★__ इस बारे में एक रिवायत में है एक रात हजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों के बड़े सरदार मालिक बिन सैफ से फरमाया -मैं तुम्हें उस जात की कसम देकर पूछता हूं कि जिसने मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात नाज़िल फरमाई, क्या तौरात में यह बात मौजूद है कि अल्लाह ताला मोटे ताज़े हबर यानी यहूदी राहिब से नफरत करता है क्योंकि तुम भी ऐसे ही मोटे ताजे हो , तुम वह माल खा खा कर मोटे हुए जो तुम्हें यहूदी ला ला कर देते हैं_,"

 यह बात सुनकर मालिक बिन सैफ बिगड़ गया और बोल उठा- अल्लाह ताला ने किसी भी इंसान पर कोई चीज नहीं उतारी _,"


★_गोया इस तरह है उसने खुद हजरत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाजिल होने वाली किताब तौरात का भी इंकार कर दिया और ऐसा सिर्फ झुंझलाहट की वजह से कहा, दूसरे यहूदी उस पर बिगड़े उन्होंने उससे कहा - यह हमने तुम्हारे बारे में क्या सुना है ? जवाब में उसने कहा- मुहम्मद ने मुझे गुस्सा दिला दिया था बस मैंने गुस्से में यह बात कही थी ।

यहूदियों ने उसकी इस बात को माफ ना किया और उसे सरदारी से हटा दिया उसकी जगह काब बिन अशरफ को सरदार मुकर्रर किया। 


★_अब यहूदियों ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को तंग करना शुरू कर दिया ऐसे सवालात पूछने की कोशिश करने लगे जिनके जवाबात उनके ख्याल में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ना दे सकेंगे । मसलन एक रोज उन्होंने पूछा :- ए मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ) आप हमें बताएं रूह क्या चीज है? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस सवाल के बारे में वही का इंतजार फरमाया, जब वही नाजिल हुई तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है_,"


यानी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कुरान ए करीम की यह आयत पढ़ी -

(तर्जुमा )..और यह लोग आपसे रूह के मुताल्लिक पूछते हैं ,आप फरमा कि रूह मेरे रब के हुक्म  से बनी है _," *(सूरह बनी इसराईल -८५)*


★फिर उन्होंने कयामत के बारे में पूछा कि कब आएगी ,आप सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ने जवाब में इरशाद फरमाया :- इसका इल्म मेरे रब के पास है.. उसके वक्त को अल्लाह के सिवा कोई और जाहिर नहीं करेगा _," *(सूरह अल आराफ )*


इस तरह 2 यहूदी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आए और पूछा आप बताएं अल्लाह ताला ने मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम को किन बातों की ताकीद फरमाई थी , जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- यह कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना ठहरावो, बदकारी ना करो और हक के सिवा (यानी शरई कानून के सिवा ) किसी ऐसे शख्स की जान ना लो जिसको अल्लाह ताला ने तुम पर हराम किया है, चोरी मत करो , सहर और जादू टोना करके किसी को नुकसान ना पहुंचाओ, किसी बादशाह और हाकिम के पास किसी की चुगलखोरी ना करो, सूद का माल ना खाओ,  घरों में बैठने वाली( पाक दामन) औरतों पर बोहतान ना बांधों और ऐ यहूदियों तुम पर खास तौर पर यह बात लाज़िम है कि हफ्ते के दिन किसी पर ज्यादती ना करो इसलिए कि यहूदियों का मुतबर्रक दिन है।


यह हिदायत सुनकर दोनों यहूदी बोले हम गवाही देते है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नबी हैं ।

इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया तब फिर तुम मुसलमान क्यों नहीं हो जाते? 

उन्होंने जवाब दिया- हमें डर है हम अगर मुसलमान हो गए तो यहूदी हमें क़त्ल कर डालेंगे।

: ★_ दो यहूदी आलिम मुल्के शाम में रहते थे उन्हें अभी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ज़हूर की खबर नहीं हुई थी । दोनों एक मर्तबा मदीना मुनव्वरा आए मदीना मुनव्वरा को देखकर एक दूसरे से कहने लगे- यह शहर उस नबी के शहर से कितना मिलता-जुलता है जो आखरी ज़माने में ज़ाहिर होने वाले हैं_," इसके कुछ देर के बाद उन्हें पता चला कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ज़हूर हो चुका है और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत करके इस शहरे मदीना में आ चुके हैं । यह खबर मिलने पर दोनों आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो गए। उन्होंने कहा -हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं अगर आपने जवाब दे दिया तो हम आप पर  ईमान ले आएंगे ।

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- पूछो क्या पूछना चाहते हो!


★_उन्होंने कहा हमें अल्लाह की किताब में से सबसे बड़ी गवाही और शहादत के मुताल्लिक बताएं, उनके सवाल पर सूरह आले इमरान की आयत 19 नाजि़ल हुई ,वो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनके सामने तिलावत फरमाई :- 

( तर्जुमा)_  अल्लाह ने इसकी गवाही दी है कि सिवाय उसकी जात के कोई माबूद होने के लायक़ नहीं और फरिश्तों ने भी और अहले इल्म ने भी गवाही दी है और वह इस शान के मालिक हैं की एतदाल के साथ इंतजाम को क़ायम रखने वाले हैं ,उनके सिवा कोई माबूद होने के लायक़ नहीं, वह जबरदस्त हैं, हिकमत वाले हैं, बिना शुबा दीने हक़ और मक़बूल अल्लाह ताला के नज़दीक सिर्फ इस्लाम है ।


★_यह आयत सुनकर दोनों यहूदी इस्लाम ले आए। इसी तरह यहूदियों के एक और बहुत बड़े आलिम थे उनका नाम हुसैन बिन सलाम था, यह हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम की औलाद में से थे ,इनका ताल्लुक क़बीला बनी क़ीनका से था । जिस रोज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हिजरत करके हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु के घर में रिहाइश पज़ीर हुए, यह उसी रोज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो गए । जोंही इन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का चेहरा मुबारक देखा फौरन समझ गए कि यह चेहरा किसी झूठे का नहीं हो सकता। फिर जब इन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कलाम सुना तो फौरन पुकार उठे :- मैं गवाही देता हूं कि आप सच्चे हैं और सच्चाई लेकर आए हैं_,"


★_ फिर इनका इस्लामी नाम आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन सलाम रखा। इस्लाम कुबूल करने के बाद यह अपने घर गए अपने इस्लाम लाने की तफसील घरवालों को सुनाई तो वो भी इस्लाम ले आए।

: ★_ चंद यहूदियों ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सवाल पूछा -,आप यह बताएं ,उस वक्त लोग कहां होंगे जब क़यामत के दिन ज़मीन और आसमान की शक्लें तब्दील हो जाएंगी _,"

इस पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जवाब दिया :- "_उस वक्त लोग पुल सिरात के करीब अंधेरे में होंगे_,"


★_इसी तरह एक मर्तबा यहूदियों ने हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से बादलों की गरज और कड़क के बारे में पूछा । जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ यह फरिश्ते की आवाज़ है जो बादल का निगरां है उसके हाथ में आग का एक कोड़ा है इससे वह बादलों को हांकता हुआ उस तरफ ले जाता है जहां पहुंचाने के लिए अल्लाह ताला का हुक्म होता है_,"


★_ उन यहूदियों ही में से एक गिरोह मुनाफिकीन का था ।यह बात ज़रा वजाहत से समझ लें,  मदीना मुनव्वरा में जब इस्लाम को उरूज हासिल हुआ तो यहूदियों का इक्तीदार खत्म हो गया , बहुत से यहूदी इस ख्याल से मुसलमान हो गए कि अब उनकी जान खतरे में है सिवाय अपनी जान बचाने के लिए वह झूठ मुठ के मुसलमान हो गए। अब अगरचे  कहने का वह मुसलमान थे लेकिन उनकी हमदर्दियां और मोहब्बतें अब भी यहूदियों के साथ थी। ज़ाहिर में मुसलमान थे अंदर से वही यहूदी थे । इन लोगों को अल्लाह और उसके रसूल ने मुनाफिक क़रार दिया है , इनकी तादाद 300 के क़रीब थी ।

इन्ही मुनाफ़िक़ों में अब्दुल्लाह इब्ने उब'ई था,  यह मुनाफ़िक़ों का सरदार था , यह मुनाफिक़ीन हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब और किस तरह मुसलमानों को नुक़सान पहुंचा सके, मुसलमानों को परेशान करने और नुक़सान पहुंचाने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देते थे।

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 *★_ क़िब्ला की तब्दीली का हुक्म _,*


★_ इसी साल 2 हिजरी के दौरान कि़ब्ले का रुख खुद तब्दील हुआ और उस वक्त तक मुसलमान बेतुल मुकद्दस की तरफ मुंह करके नमाज अदा करते रहे थे। कि़ब्ले की तब्दीली का हुक्म ज़ुहर की नमाज के वक्त आया । एक रिवायत में यह है कि असर की नमाज में हुक्म आया था । कि़ब्ला की तब्दीली इसलिए हुई की हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह आरजू की थी कि क़िब्ला बेतुल्लाह हो।


★_खास तौर पर यह आरजू इसलिए की थी कि यहूदी कहते थे ,"_मोहम्मद हमारी मुखालिफत भी करते हैं और हमारे क़िब्ला की तरफ रूख करके  नमाज भी पढ़ते हैं अगर हम सीधे रास्ते पर ना होते तो तुम हमारे क़िब्ला की तरफ रुख करके नमाज़ें ना पढ़ा करते _,"

उनकी बात पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ की कि हमारा क़िब्ला बेतुल्लाह हो जाए और अल्लाह ताला ने यह दुआ मंजूर फरमाई ।


★_ क़िब्ला की तब्दीली का हुक्म नमाज की हालत में आया चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नमाज़ के दौरान ही अपना रुख बैतुल्लाह की तरफ कर लिया,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ ही तमाम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने भी रुख तब्दील कर लिया, नमाज मस्जिदे क़िब्लातैन में हो रही थी।


★_ हजरत इबाद बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी यह नमाज़ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ पड़ी थी, यह मस्जिद से निकलकर रास्ते में दो अंसारियों के पास से गुज़रे ,वह नमाज पढ़ रहे थे और उस वक्त रूकू में थे.. इन्हें देख कर इबाद बिन बसीर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- मैं अल्लाह की क़सम खाकर कहता हूं कि मैंने अभी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ काबा की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ी है।

कू़बा वालों को यह खबर अगले दिन सुबह की नमाज़ के वक्त पहुंची , वह लोग उस वक्त दूसरी रकात में थे कि मुनादी ने ऐलान किया :- लोगों खबरदार हो जाओ कि़ब्ले का रुख काबा की तरफ तब्दील हो गया है _," 

नमाज पढ़ते हुए लोग क़िब्ला की तरफ घूम गए । इस तरह मुसलमानों का क़िब्ला बैतुल्लाह बना।

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 *★_ रमजान के रोजे और सदक़ा फित्र का हुक्म _,*


★__ इसी साल यानी 3 हिजरी में रमज़ान के रोज़े और सदका़ ए फितर का हुक्म नाजिल हुआ , फिर मस्जिद-ए-नबवी में मिंबर नसब किया गया। जब तक मिंबर नहीं था आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खजूर के एक तने से टेक लगाकर खड़े होते थे और खुतबा देते थे । जब मिंबर बन गया और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खजूर के इस तने की बजाय मिंबर पर खुतबा फरमाया तो वह तना रोने लगा । उसके रोने की आवाज़ ऐसी बुलंद हुई कि तमाम लोगों ने उस आवाज़ को सुना, वो आवाज़ इस क़दर दर्दनाक थी कि सारी मस्जिदें हिल गई । वह इस तरह रो रहा था जैसे कोई ऊंटनी अपने बच्चे के खोने पर रोती है।


★_उसके रोने की आवाज सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मिंबर पर से उतर कर उसके पास पहुंचे और उसे अपने सीने से लगाया । उसके बाद उसमें से एक बच्चे के सिसकने की आवाज़ आने लगी। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस पर प्यार से हाथ फैरा और फरमाया :- पुर सुकून और खामोश हो जा _,"

तब कहीं जाकर उसका रोना बंद हुआ। उसके बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उस तने को मिंबर के नीचे दफन करने का हुक्म दिया।


★_आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने एक बार इरशाद फरमाया :- मेरे घर और मेरे मिंबर के दरमियान की जगह जन्नत के बागों में से एक बाग है , यानी ये मुकाम जन्नत ही का एक मुका़म है। अल्लाह ताला ने इस मुका़म को जन्नत में शामिल कर दिया है।

 ╨─*★_ क़ुरेश का तिजारती क़ाफिला _,*


★_ कुरेश के एक तिजारती काफ़िले पर हमले की गरज़ से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम रवाना हुए थे लेकिन जब आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अशीरा के मुकाम पर पहुंचे तो काफ़िला उस मुकाम से गुज़रकर शाम की तरफ रवाना हो चुका था,  चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वापस तशरीफ ले आए थे । फिर जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला मिली कि वह काफ़िला शाम से वापस आ रहा है और उस सामाने तिजारत का मुनाफा मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल होगा इसलिए आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हुक्म दिया:-  क़ुरेश का तिजारती काफिला आ रहा है इसमें उनका माल व दौलत है तुम उस पर हमला करने के लिए बड़ों , मुमकिन है अल्लाह तुम्हें इससे फायदा दे _,"


★_उधर इस काफ़िले के सरदार अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु थे, यह कुरेश के भी सरदार थे, (उस वक्त तक ईमान नहीं लाए थे फतह मक्का के मौक़े पर ईमान लाए )  उनकी आदत थी कि जब उनका काफिला हिजाज़ की सरज़मीन पर पहुंचता तो जासूसों को भेजकर रास्ते की खबरें मालूम कर लेते थे उन्हें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का खौफ भी था, चुनांच  उनके जासूस ने बताया कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस तिजारती काफिले को घेरने के लिए रवाना हो चुके हैं । यह सुनकर अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु खौफज़दा हो गए उन्होंने फौरन एक शख्स को मक्का की तरफ रवाना किया और साथ ही उसे यह हिदायत दी तुम अपने ऊंट के कान काट दो कजावा उलट दो अपनी कमीज़ का अगला और पिछला दामन फाड़ दो इसी हालत में मक्का में दाखिल होना उन्हें बताना कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ) अपने असहाब के साथ उनके काफिले पर हमला करने वाले हैं ऐसा इसलिए किया ताकि मुशरिकीन जल्द मदद को आ जाएं ।


★_वह शख्स बहुत तेज़ी से रवाना हुआ , अब अभी यह मक्का पहुंचा नहीं था कि वहां आतिका बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब ने एक ख्वाब देखा । (यह हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की फूफी थी , यह मालूम नहीं हो सका कि बाद में यह इस्लाम ले आई थी या नहीं रिवायत में इख्तिलाफ पाया जाता है कुछ रिवायत कहती हैं ईमान ले आई थी कुछ में है कि उन्होंने इस्लाम क़ुबूल नहीं किया था ) ख्वाब बहुत खौफनाक था यह डर गई इन्होंने हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु को अपना ख्वाब सुनाया लेकिन इस शर्त इस शर्त पर सुनाया कि वे किसी और को नहीं सुनाएंगे ..उन्होंने पूछा अच्छा ठीक है तुम ख्वाब सुनाओ तुमने क्या देखा है ?


★_ आतिका बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब ने कहा :- मैंने ख्वाब देखा कि एक शख्स ऊंट पर सवार चला आ रहा है यहां तक कि वह अबतख के पास आकर रुका (अबतख मक्का मुअज्ज़मा से कुछ फासले पर है ) वहां खड़े होकर उसने पूरी आवाज से पुकार पुकार कर कहा - लोगों 3 दिन के अंदर अंदर अपनी क़त्लगाहों में चलने के लिए तैयार हो जाओ ,"  फिर मैंने देखा कि लोग उसके गिर्द जमा हो गए हैं फिर वह वहां से चलकर बैतुल्लाह में दाखिल हुआ लोग उसके पीछे पीछे चले आ रहे थे फिर वह शख्स ऊंट समेत काबा की छत पर नजर आया वहां भी उसने पुकार कर यह अल्फाज़ कहे, उसके बाद वह अबू कु़बेस के पहाड़ पर चढ़ गया वहां भी उसने पुकार कर यह अल्फाज़ कहे, फिर उसने एक पत्थर उठा कर लुढ़का दिया पत्थर वहां से लुढ़कता पहाड़ के दामन में पहुंचा तो अचानक टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गया फिर मक्का के घरों में से कोई घर ना बचा जहां उसके टुकड़े ना पहुंचे हो _,


★_यह ख्वाब सुनकर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने कहा- अल्लाह की कसम आतिका तुमने बहुत अजीब ख्वाब देखा है तुम खुद भी इसका तज़किरा किसी से ना करना।


★__ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु वहां से निकले तो रास्ते में उन्हें वलीद बिन उत्बा मिला, यह उनका दोस्त था ,अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने ख्ववाब उससे बयान कर दिया और वादा लिया कि किसी को बताएगा नहीं,  वलीद ने जा कर यह ख्वाब अपने बेटे हो उतबा को सुना दिया इस तरह यह ख्वाब आगे ही आगे चलता रहा यहां तक कि हर तरफ आम हो गया। मक्का में इस बात पर जोर शोर से तब्सिरा होने लगा, आखिर 3 दिन बाद वह शख्स ऊंट पर सवार मक्का में दाखिल हुआ जिसे हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु ने भेजा था वह मक्का की वादी के दरमियान में पहुंचकर ऊंट पर खड़ा हो गया और पुकारा :- ऐ क़ुरेशियों ! अपने तिजारती काफ़िले की खबर लो, तुम्हारा जो माल व दौलत अबू सुफियान लेकर आ रहे हैं उस पर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) हमला करने वाले हैं जल्दी मदद को पहुंचो_,"


★_ उस तिजारती काफ़िले में सारे कुरेशिया का माल लगा हुआ था चुनांचे सब के सब जंग की तैयारी करने लगे ,जो मालदार थे उन्होंने गरीबों की मदद की ताकि ज्यादा से ज्यादा अफराद जंग के लिए जाएं , जो बड़े सरदार थे वह लोगों को जंग पर उभारने लगे, एक सरदार सोहेल बिन अमरू ने अपनी तक़रीर में कहा :- ऐ  क़ुरेशियों ! क्या यह बात तुम बर्दाश्त कर लोगे कि मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम) और उनके बेदीन साथी तुम्हारे माल और दौलत पर कब्ज़ा कर ले,  लिहाज़ा जंग के लिए निकलो.. जिसके पास माल कम हो उसके लिए मेरा माल हाजिर है_,"


★_इस तरह सब सरदार तैयार हुए लेकिन अबु लहब ने कोई तैयारी ना कि वह आतिका के ख्वाब की वजह से खौफजदा हो गया था ,वह कहता था - आतिका का ख्वाब बिल्कुल सच्चा है और उसी तरह जाहिर होगा _,"

अबु लहब खुद नहीं गया लेकिन उसने अपनी जगह आस बिन हिशाम को 4000 दिरहम देकर जंग लिए तैयार किया यानी वह उसकी तरफ से चला जाए।


★_ उधर खूब तैयारियां हो रही थी इधर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए , मदीना से बाहर बारे उतबा नामी कुएं के पास लश्कर को पढ़ाव का हुक्म फरमाया, आप सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को कुएं से पानी पीने का हुक्म दिया और खुद भी पिया, यहीं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया - मुसलमानों को गिन लिया जाए _," 

सबको गिना गया , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सबका मुआयना भी फरमाया ,जो कम उम्र थे उन्हें वापस फरमा दिया , वापस किए जाने वालों में हजरत ओसामा बिन ज़ैद और राफ़े बिन खदीजा ,बरा बिन आज़िब, उसैद बिन ज़हीर, ज़ैद बिन अरक़म और ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हुम शामिल थे ।

जब इन्हें वापस चले जाने का हुक्म हुआ तो उमैर बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु रोने लगे,  आखिर आप सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम ने उन्हें इजाज़त दे दी चुनांचे वह जंग में शरीक़ हुए, उस वक्त उनकी उम्र 16 साल थी ,


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: *★_  बदर की तरफ रवानगी _,*


★__ रोहा के मुका़म पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लश्कर को गिनने का हुक्म दिया गिनने पर मालूम हुआ मुजाहिदीन की तादाद 313 है, आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम यह सुनकर खुश हुए और फरमाया :- यह वही तादाद है जो तालूत के साथियों की थी जो उनके साथ नहर तक पहुंचे थे _," ( तालूत बनी इसराइल के एक नेक मुजाहिद बादशाह थे उनकी क़यादत में 313 मुसलमानों ने जालूद नामी बेदीन बादशाह की फौज को शिकस्त दी थी)


★_ लश्कर में घोड़ों की तादाद सिर्फ पांच थी ऊंट 70 के करीब थे इसलिए एक एक ऊंट  तीन तीन या चार चार आदमियों के हिस्से में दिया गया , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हिस्से में जो ऊंट आया उसमें दो और साथी भी शरीक़ थे , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी उस ऊंट पर अपनी बारी के हिसाब से सवार होते और साथियों की बारी पर उन्हें सवार होने का हुक्म फरमाते अगरचे वह अपनी बारी भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को देने की ख्वाहिश ज़ाहिर करते ,वह कहते -अल्लाह के रसूल आप सवार रहें, हम पैदल चल लेंगे _," जवाब में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाते :- तुम दोनों पैदल चलने में मुझसे ज्यादा मजबूत नहीं हो और ना मैं तुम्हारे मुक़ाबले में उसकी रहमत से बेनियाज़ हूं _," (यानी में भी तुम दोनों की तरह अजर् व सवाब का ख्वाहिश मंद हूं )


★_ रोहा के मुकाम पर एक ऊंट थक कर बैठ गया आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पास से गुज़रे तो पता चला ऊंट थक कर बैठ गया है और उठ नहीं रहा है , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कुछ पानी लिया उससे कुल्ली की , कुल्ली वाला पानी ऊंट वाले के बर्तन में डाला और ऊंट के मुंह में डाल दिया,  ऊंट फौरन उठ खड़ा हुआ और फिर इस क़दर तेज़ चला कि लश्कर के साथ जा मिला ,उस पर थकावट के कोई आसार बाक़ी ना रहे।

इस गज़वे के मौक़े पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा ही में ठहरने का हुक्म फरमाया , वजह इसकी यह थी कि उनकी जोज़ा मोहतरमा और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बेटी सैयदा रुक़ैया रजियल्लाहु अन्हु बीमार थी ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया - तुम्हें यहां ठहरने का भी अजर् मिलेगा और जिहाद करने का अजर् भी मिलेगा _,"

इस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में हजरत अबू लुबाबा रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना क़ाइम मुकाम बनाया, तलहा बिन उबैद और स'ईद बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु को जासूसी की जिम्मेदारी सौंपी ताकि यह दोनों लश्कर से आगे जाकर कुरेश के तिजारती काफ़िले की खबर लाएं , नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें मदीना मुनव्वरा से ही रवाना फरमा दिया था।


★_ रोहा के मुका़म से इस्लामी लश्कर आगे रवाना हुआ , अरक़े ज़बिया के मुकाम पर एक देहाती मिला उससे दुश्मन के बारे में कुछ मालूम ना हो सका अब लश्कर फिर आगे बढ़ा इस तरह इस्लामी लश्कर जफरान की वादी तक पहुंच गया इस जगह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला मिली कि कुरैशे मक्का एक लश्कर लेकर अपने काफ़िले को बचाने के लिए मक्का से कूच कर चुके हैं ।

२/४८

_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम यह इत्तेला मिलने पर तमाम लश्कर को एक जगह जमा फरमाया और उनसे मशवरा किया क्योंकि मदीना मुनव्वरा से मुसलमान सिर्फ एक तिजारती काफिले को रोकने के लिए रवाना हुए थे किसी बाका़यदा लश्कर के मुक़ाबले के लिए नहीं निकले थे। इसपर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने बारी-बारी अपनी राय दी । हजरत मिक़दाद जी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- 

"_ ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको अल्लाह ताला ने हुक्म फरमाया है, उसके मुताबिक़ अमल फरमाएं, हम आपके साथ हैं, अल्लाह की क़सम ! हम उस तरह नहीं कहेंगे जिस तरह मूसा अलैहिस्सलाम को बनी इसराइल ने कहा था कि आप और आपका रब जाकर लड़ लीजिए हम तो यहीं बैठे हैं , बल्कि हम तो यह कहते हैं हम आपके साथ हैं हम आपके आगे पीछे और दाएं बाएं लड़ेंगे आखिरी दम तक लड़ेंगे _,"


★_ हजरत मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हू की तक़रीर सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का चेहरा खुशी से चमकने लगा । आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम मुस्कुराने लगे । हजरत मिक़दाद रजियल्लाहु अन्हु को दुआ दी ,अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने भी तक़रीर की .. उनकी तक़रीर के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसारी हजरात की तरफ देखा ,अभी तक उनमें से कोई खड़ा नहीं हुआ था। अब अंसारी भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इशारा समझ गए । चुनांचे हजरत सा'द बिन माज़ रज़ियल्लाहु अन्हु उठे और अर्ज़ किया :- 

"_ ऐ अल्लाह के रसूल ! शायद आपका इशारा हमारी तरफ है , तो अर्ज़ है कि हम ईमान ला चुके हैं आप की तस्दीक कर चुके हैं और गवाही दे चुके हैं हम हर हाल में आपका हुक्म मानेंगे , फरमा बरदारी करेंगे _,"


★_ उनकी तक़रीर सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के चेहरे पर खुशी के आसार ज़ाहिर हुए, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ अब उठो कूच करो तुम्हारे लिए खुशखबरी है अल्लाह ताला ने मुझे वादा फ़रमाया है कि वह हमें फतेह देगा _,"


★_ ज़फरान की वादी से रवाना होकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बदर के मुक़ाम पर पहुंचे उस वक्त तक कुरेशी लश्कर भी बदर के क़रीब पहुंच चुका था। आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को कुरेशी लश्कर की खबर मालूम करने के लिए भेजा , उन्हें दो मस्की ( पानी भरने वाले ) मिले ,वो कुरैशी लश्कर के मस्की थे , उन दोनों से लश्कर के बारे में काफी मालूमात हासिल हुई उन्होंने लश्कर में शामिल बड़े-बड़े सरदारों के नाम भी बता दिए । इस पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया :- 

"_  मक्का ने अपना दिल और जि़गर निकाल कर तुम्हारे मुक़ाबले के लिए भेजे हैं _," यानी अपने तमाम मो'अज़्ज़िज़ और बड़े-बड़े लोग भेज दिए हैं।

[

 ★_ इस दौरान अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु काफ़िले का रास्ता बदल चुके थे और इस तरह उनका का़फिला बच गया जबकि इस काफिले को बचाने के लिए जो लश्कर आया था उससे इस्लामी लश्कर का आमना-सामना हो गया । इधर अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु ने जब देखा कि का़फिला तो अब बच गया इसलिए उन्होंने अबू जहल को पैगाम भेजा कि वापस मक्का की तरफ लौट चलो क्योंकि हम इस्लामी लश्कर से बचकर निकल आए हैं लेकिन अबू जहल ने वापस जाने से इंकार कर दिया । कुरेशी लश्कर ने बदर के मुका़म पर उस जगह पड़ाव डाला जिस जगह पानी नज़दीक था दूसरी तरफ इस्लामी लश्कर ने जिस जगह पड़ाव डाला पानी वहां से फासले पर था इससे मुसलमानों को परेशानी हुई, तब अल्लाह ताला ने वहां बारिश बरसा दी और उनकी पानी की तकलीफ दूर हो गई जबकि इसी बारिश की वजह से काफिर परेशान हुए वह अपने पड़ावों से निकलने के का़बिल ना रहे। मतलब यह कि बारिश मुसलमानों के लिए रहमत और काफिरों के लिए ज़हमत साबित हुई।


★_ सुबह हुई तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - लोगों ! नमाज़ के लिए तैयार हो जाओ _," चुनांचे सुबह की नमाज अदा की गई फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हू को खुतबा दिया । आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ मैं तुम्हें ऐसी बात के लिए उभारता हूं जिसके लिए तुम्हें अल्लाह ताला ने उभारा है तंगी और सख्ती के मौकों पर सब्र करने से अल्लाह ताला तमाम तकलीफ से बचा लेता है और तमाम गमों से निजात अता फरमाता है_,"


★_ अब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम लश्कर को लेकर आगे बढ़े और कुरेश से पहले पानी के क़रीब पहुंच गए । मुकामें बदर पर पानी का चश्मा था । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को वहां रुकते देखकर हजरत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! क़याम के लिए यह जगह मुनासिब नहीं है, मैं इस इलाके से अच्छी तरह वाक़िफ हूं आप वहां पड़ाव डाले जो दुश्मन के पानी से क़रीब तरीन हो। हम वहां एक हौज बनाकर पानी उसमें जमा कर लेंगे। इस तरह हमारे पास पीने का पानी होगा ,हम पानी के दूसरे गड़े और चश्मे बांट देंगे इस तरह दुश्मन को पानी नहीं मिलेगा _,"


★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस राय को बहुत पसंद फरमाया । एक रिवायत के मुताबिक उसी वक्त हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम अल्लाह ताला का पैगाम लाए और बताया कि हजरत खब्बाब रजियल्लाहु अन्हु की राय बहुत उम्दा है ।इस राय के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम लश्कर को लेकर आगे बढ़े और उस चश्मे पर आ गए जो उस जगह से क़रीब तरीन था जहां कुरेश ने पड़ाव डाला था। मुसलमानों ने यहां क़याम किया और आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन्हें दूसरे गड़े भरने का हुक्म दिया ।


★_ फिर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उस कच्चे कुएं पर एक हौज बनवाया जहां इस्लामी लश्कर ने पड़ाव डाला था ,आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसमें पानी भरवा दिया और ढोल डलवा दिया ।इस तरह हजरत खब्बाब रजियल्लाहु अन्हु के मशवरे पर अमल हुआ। उसके बाद से हजरत खब्बाब रजियल्लाहु अन्हु को जी़ राय कहा जाने लगा ।


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 *★_ मैदाने बदर में _,*


★_ इस मौके पर हजरत साद बिन माज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज़ किया- ऐ अल्लाह के रसूल ! क्यों ना हम आपके लिए एक अरीश बना दे ( अरीश खजूर की शाखों और पत्तों का एक साएबान होता है ) आप उसमे तशरीफ़ रखें उसके पास आप की सवारियां तैयार रहें और हम दुश्मन से जाकर मुक़ाबला करें। नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके मशवरे को क़ुबूल फरमाया , चुनांचे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए साएबान बनाया गया। यह एक ऊंचे टीले पर बनाया गया था उस जगह से आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पूरे मैदान-ए-जंग का मुआयना फरमा सकते थे। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वही क़याम फरमाया। सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने पूछा -आपके साथ यहां कौन रहेगा ,ताकि मुशरिकों में से कोई आपके क़रीब ना आ सके ?  यह सुनकर अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु आगे बढ़े और अपनी तलवार का साया आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सर पर करते हुए बोले :-  जो शख्स भी आपकी तरफ बढ़ने की ज़ुर्रत करेगा उसे पहले इस तलवार से निपटना पड़ेगा_,"


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के जो ज़ुर्रत मंदाना अल्फाज़ की बुनियाद पर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें सबसे बहादुर शख्स क़रार दिया ।

यह बात जंग शुरू होने से पहले की है ,जब जंग शुरू हुई तो हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु भी इस साएबान के दरवाजे पर खड़े थे और हजरत साद बिन माज़ रज़ियल्लाहु अन्हु भी अंसारी सहाबा के दस्ते के साथ वहां मौजूद थे और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु अंदर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हिफाज़त पर मामूर थे ।


★_ इस तरह सुबह हुई फिर कुरेशी लश्कर रेत के टीले के पीछे से नमूदार हुआ । इससे पहले हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने कुछ मुशरिकों के नाम ले लेकर फरमाया कि फलां इस जगह क़त्ल होगा फलां इस जगह क़त्ल होगा। हजरत अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जिन लोगों के नाम लेकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था कि इस जगह कत्ल होगा वह बिल्कुल वहीं क़त्ल हुएं, एक इंच भी इधर-उधर पड़े नहीं पाए गए।


★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब देखा कि क़ुरेश का लश्कर लोहे का लिबास पहने हुए और हाथियों से खूब लैस बड़ा चला आ रहा है तो अल्लाह रब्बुल इससे यूं दुआ फरमाई :-  ऐ अल्लाह ! ये क़रेश के लोग तेरे दुश्मन अपने तमाम बहादुरों के साथ बड़े गुरूर के आलम में तुझ से जंग करने ( यानी तेरे अहकामात के खिलाफ वर्जी ) और तेरे रसूल को झुठलाने के लिए आए हैं ।

ऐ अल्लाह ! आपने मुझसे अपनी मदद और नुसरत का वादा फरमा फरमाया है , लिहाज़ा वह मदद भेज दे ,

ऐ अल्लाह ! तूने मुझ पर किताब नाजिल फरमाई हैं और मुझे साबित क़दम रहने का हुक्म फरमाया है, मुशरिकों के इस लश्कर पर हमें गलबा अता फरमा, 

ऐ अल्लाह ! उन्हें आज हलाक फरमा दे_,"


★_ एक ओर रिवायत में आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की दुआ मे यह अल्फाज़ भी आए हैं :- 

"_  ऐ अल्लाह ! इस उम्मत के फिरौन अबू जहल को कहीं पनाह ना दे , ठिकाना ना दे _,"

गर्ज़ जब कुरेशी लश्कर ठहर गया तो उन्होंने उमेर बिन वहब जहमी रज़ियल्लाहु अन्हु को जासूसी के लिए भेजा । यह उमैर बिन वहब रज़ियल्लाहु अन्हु बाद में मुसलमान हो गए थे और बहुत अच्छे मुसलमान साबित हुए थे। आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ गज़वा उहद में शरीक़ हुए,  कुरैश ने उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा:-  जाकर मोहम्मद के लश्कर की तादाद मालूम करो और हमें खबर दो ।

 ★_ उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु अपने घोड़े पर सवार होकर निकले उन्होंने इस्लामी लश्कर के गिर्द  एक चक्कर लगाया फिर वापस कुरेश के पास आए और यह खबर दी :-  उनकी तादाद तकरीबन 300 है मुमकिन है कुछ ज्यादा हो मगर ऐ क़ुरेश ! मैंने देखा है उन लोगों को लौट कर अपने घरों में जाने की कोई तमन्ना नहीं और मैं समझता हूं उनमें से कोई आदमी उस वक्त तक नहीं मारा जाएगा जब तक कि किसी को क़त्ल ना कर दे गोया तुम्हारे भी उतने ही आदमी मारे जाएंगे जितने कि उनके , इसके बाद फिर जिंदगी का क्या मज़ा रह जाएगा, इसलिए जंग शुरू करने से पहले इस बारे में गौर कर लो _,"


★_ उनकी बात सुनकर कुछ लोगों ने अबू जहल से कहा - जंग के इरादे से बाज़ आ जाओ और वापस चलो भलाई इसी में है_,"

वापस चलने का मशवरा देने वालों में हकीम बिन हिज़ाम रजियल्लाहु अन्हु भी थे , अबू जहल ने उनकी बात नहीं मानी और जंग पर तुल गया और जो लोग वापस चलने की कह रहे थे उन्हें बुजदिली का ताना दिया। इस तरह जंग टल ना सकी। 

अभी जंग शुरू नहीं हुई थी कि असवद मखज़ूमि ने कुरेश के सामने ऐलान किया - मैं अल्लाह के सामने अहद करता हूं कि या तो मुसलमानों के बनाए हुए हौज़ से पानी पी लूंगा या उसको तोड़ दूंगा या फिर इस कोशिश में जान दे दूंगा_,"


★_ फिर यह असवद मैदान में निकला , हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु  उसके मुकाबले में आए । हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु ने उस पर तलवार का वार किया ,उसकी पिंडली कट गई उस वक्त यह हौज़ के क़रीब था,  टांग कट जाने के बाद यह ज़मीन पर गिरा, खून तेज़ी से बह रहा था इस हालत में यह हौज़ की तरफ सरका और हौज़ से पानी पीने लगा। हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु फोरन उसकी तरफ लपके और दूसरा वार करके उसका काम तमाम कर दिया ।


★_उसके बाद क़ुरेश के कुछ और लोग हौज की तरफ बड़े उनमें हजरत हकीम बिन हिज़ाम रजियल्लाहु अन्हु भी थे, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें आते देखकर फरमाया - इन्हें आने दो ,आज के दिन इनमें से जो भी होज से पानी पी लेगा, वो यहीं कुफ्र की हालत में क़त्ल होगा _,"

हजरत हकीम बिन हिजा़म रज़ियल्लाहु अन्हु ने पानी नहीं पिया , यह क़त्ल होने से बच गए और बाद में इस्लाम लाए , बहुत अच्छे मुसलमान साबित हुए।

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 ★_ अब सबसे पहले उतबा, उसका भाई शैबा और बेटा वलीद मैदान में आगे निकले और ललकारे - हमसे मुक़ाबले के लिए कौन आता है ? इस ललकार पर मुसलमानों में से तीन अंसारी नौजवान निकले यह तीनों भाई थे उनके नाम म'ऊज़, माज़ और औफ रजियल्लाहु अन्हुम थे , इनके वालिद का नाम उफरा था,  इन तीनों नौजवानों को देखकर उतबा ने पूछा- तुम कौन हो? उन्होंने जवाब दिया हम अंसारी हैं । इस पर उन्होंने कहा - तुम हमारे बराबर के नहीं हमारे मुक़ाबले में मुहाजिरीन में से किसी को भेजो हम अपनी क़ौम के आदमियों से मुकाबला करेंगे ।

इस पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें वापस आने का हुक्म फरमाया ,यह तीनों अपनी सफों में वापस आ गए , आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनकी तारीफ फरमाई और उन्हें शाबाशी दी। अब आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हुक्म फरमाया -  ए उबेदा बिन हारिस उठो , ए हमज़ा उठो, ऐ अली उठो _,"


★_ यह तीनों फौरन अपनी सफों में से निकल कर उन तीनों के सामने पहुंच गए , इनमें उबैदा बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु ज़्यादा उम्र के थे ,बूढ़े थे , उनका मुकाबला उतबा बिन रबिआ से हुआ , हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु का मुक़ाबला शैबा से और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का मुक़ाबला वलीद से हुआ।

हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु ने शैबा को वार करने का मौका ना दिया और एक ही वार में उसका काम तमाम कर दिया , इसी तरह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक ही वार में वलीद का काम तमाम कर दिया ,अलबत्ता उबैदा बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु और उतबा के दरमियान तलवारों के वार शुरू हो गए।


★_ दोनों के दरमियान कुछ देर तक तलवारों के वार होते रहे यहां तक कि दोनों जख्मी हो गए , हजरत हमजा़ और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हुम इनकी तरफ बड़े और उतबा को खत्म कर दिया, फिर जख्मी उबैदा बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु को उठाकर लश्कर में ले आए ,उन्हें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास लेटा दिया गया । उन्होंने पूछा - ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या मैं शहीद नहीं हूं ? आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - मैं गवाही देता हूं कि तुम शहीद हो । उसके बाद सफरा के मुकाम पर हजरत उबैदा बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतकाल हो गया ,उन्हें वहीं दफन किया गया जबकि हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गज़वा बदर से फारिग होने के बाद मदीना मुनव्वरा की तरफ लौट रहे थे ।


★_ जंग से पहले हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की सफों को एक नेज़े के ज़रिए सीधा किया था ।  सफों को सीधा करते हुए हजरत सवाद रजियल्लाहु अन्हु के पास से गुज़रे, यह सफ से क़दरे आगे बढ़े हुए थे , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक तीर से इनके पेट को छुआ और फरमाया -  सवाद ! सफ से आगे ना निकलो, सीधे खड़े हो जाओ । इस पर हजरत सवाद रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया -  अल्लाह के रसूल ! आपने मुझे इस तीर से तकलीफ पहुंचाई ,आपको अल्लाह ताला ने हक़ और इंसाफ देकर भेजा है लिहाज़ा मुझे बदला दें । आपने फौरन अपना पेट खोला और उनसे फरमाया - लो तुम ! अब अपना बदला ले लो _,"

हजरत सवाद आगे बढ़े और आपके सीने से लग गए और आपके सिकम मुबारक को बौसा दिया । इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दरयाफ्त किया - तुमने ऐसा क्यों किया ?

उन्होंने अर्ज़ किया - अल्लाह के रसूल ! आप देख रहे हैं जंग सर पर है इसलिए मैंने सोचा आपके साथ जिंदगी के जो आखरी लम्हात बसर है वह इस तरह बसर हो कि मेरा जिस्म आपके जिस्म मुबारक से मस कर रहा हो.. ( यानी अगर मैं इस जंग में शहीद हो गया तो यह मेरी जिंदगी के आखिरी लम्हात हैं ) यह सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके लिए दुआ फरमाई ।


★_ एक रिवायत में आता है,  जिस मुसलमान ने भी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जिस्म को छू लिया , आग उस जिस्म को नहीं छुएगी _,",  

एक रिवायत में यूं है कि , जो चीज़ भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के जिस्म को लग गई ,आग उसे नहीं जलाएगी _,",


★_ फिर जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सफों को सीधा कर दिया तो फरमाया - जब दुश्मन क़रीब आ जाए तो उन्हें तीरों से पीछे हटाना और अपने तीर उस वक्त तक ना चलाओ जब तक कि वह नज़दीक ना आ जाए (क्योंकि ज्यादा फासले से तीरंदाजी अक्सर बेकार साबित होती है और तीर जा़या होते हैं ) इसी तरह तलवारे भी उस वक्त तक ना सोंतना जब तक कि दुश्मन बिल्कुल क़रीब ना आ जाए। इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु को खुतबा दिया :- मुसीबत के वक्त सब्र करने से अल्लाह ताला परेशानियां दूर फरमाते हैं और गमों से निजात अता फरमाते हैं _,"


★_ फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सायबान में तशरीफ ले गए उस वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु आपके साथ थे, सायबान के दरवाज़े पर हजरत सा'द बिन माज़ रजियल्लाहु अन्हु कुछ अंसारी मुसलमानों के साथ नंगी तलवारें लिए खड़े थे ताकि दुश्मनों को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ बढ़ने से रोक सके । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए वहां सवारियां भी मौजूद थी ताकि ज़रूरत के वक्त आप सवार हो सकें।


★_ मुसलमानों में सबसे पहले महज'आ रजियल्लाहू अन्हू आगे बढ़े यह हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु के गुलाम थे , आमिर बिन हज़रमी ने इन्हें तीर मारकर शहीद कर दिया ।

इधर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सायबान में अल्लाह ताला के हुज़ूर में सजदे में गिरकर यूं दुआ की :- ऐ अल्लाह ! अगर आज मोमिनो की जमात हलाक हो गई तो फिर तेरी इबादत करने वाला कोई नहीं रहेगा _,"

फिर हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने सायबान से निकलकर सहाबा के दरमियान तशरीफ लाए और उन्हें जंग पर उभारने के लिए फरमाया :- क़सम है उसे जात की जिसके कब्जे में मोहम्मद की जान है , जो शख्स भी आज इन मुशरिकों के मुकाबले में सब्र और हिम्मत के साथ लड़ेगा उनके सामने सीना ताने जमा रहेगा और पीट नहीं फैरेगा , अल्लाह ताला उसे जन्नत में दाखिल करेगा _,"


★_ हजरत उमैर बि हमाम रजियल्लाहु अन्हु उस वक्त खजूर खा रहे थे यह अल्फाज सुन कर खजूरे हाथ से गिरा दी और बोले - वाह-वाह ! तो मेरे और जन्नत के दरमियान सिर्फ इतना फासला है कि मुशरिकों में से कोई मुझे कत्ल कर दें _," यह कहते ही तलवार सौंत पर दुश्मनों से भिड़ गए और लड़ते लड़ते शहीद हो गए ।

हजरत औफ बिन उफरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पूछा- अल्लाह के रसूल ! बंदे के किस अमल पर अल्लाह को हंसी आती है ( यानी उसके कौन से अमल से अल्लाह ताला खुश होते हैं ), जवाब में आप ने फरमाया जब कोई मुजाहिद जि़रा बख्तर पहने बगैर दुश्मन पर हमला आवर हो _," यह सुनते ही उन्होंने अपने जिस्म पर से जि़रा बख्तर उतार कर फेंक दी और तलवार सोंतकर दुश्मन पर टूट पड़े यहां तक कि लड़ते लड़ते शहीद हो गए।


★_ जंग के दौरान हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एक मुट्ठी कंकरियों की उठाई और मुशरिकों पर फैंक दी, ऐसा करने के लिए हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा था , कंकरियों को मुट्ठी में फेंकते वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- ये चेहरे खराब हो जाएं _," 

एक रिवायत के मुताबिक यह अल्फाज आए हैं ,"_ उनके दिलों को खौफ से भर दे ,उनके पांव उखाड़ दे _," अल्लाह के हुक्म और हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दुआ से कोई मुशरिक ऐसा ना बचा जिस पर वह कंकरिया ना पड़ी हो ,उन कंकरियों ने उनको बदहवास कर दिया। आखिर नतीजा ये निकला कि वह शिकस्त खाकर भागे , मुसलमान उनका पीछा करने लगे उन्हें क़त्ल और गिरफ्तार करने लगे ।


★_ कंकरियों की मुट्ठी के बारे में अल्लाह ताला ने क़ुरान ए करीम में इरशाद फरमाया :- 

"_ और ए नबी ! कंकरियों की मुट्ठी आपने नहीं बल्कि हमने फेंकी थी _," ( सूरह अल अन्फाल-१७)


: ★_ बदर की जंग में अल्लाह ताला फरिश्तों के जरिए भी मदद फरमाई थी। उस रोज़ हजरत जुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने निहायत सरफरोशी से जंग की, उनके जिस्म पर बहुत बड़े बड़े ज़ख्म थे।


★_ उस जंग में हजरत अकाशा बिन महासिन रजियल्लाहु अन्हु की तलवार लड़ते-लड़ते टूट गई तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें खजूर की एक छड़ी इनायत फरमाई, वो छड़ी उनके हाथ में आते ही मौजजा़ती तौर पर एक चमकदार तलवार बन गई , हजरत अकाशा रज़ियल्लाहु अन्हु उस तलवार से लड़ते रहे यहां तक कि अल्लाह ताला ने मुसलमानों को फतह अता फरमा दी , उस तलवार का नाम औन रखा गया ,यह तलवार तमाम गजवात में हजरत अकाशा रज़ियल्लाहु अन्हु के पास रही और उसी तलवार से वो जंग किया करते थे , उनके इंतकाल के बाद यह तलवार उनकी औलाद को विरासत में मिलती रही, एक से दूसरे के पास पहुंचती रही।


★_ इसी तरह हजरत सलमा बिन असलम रजियल्लाहु अन्हु की तलवार भी टूट गई थी हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन्हें खजूर की जड़ अता फरमाई और फरमाया - इस से लड़ो _,"  उन्होंने जोंहि उस जड़ को हाथ में लिया वह  निहायत बेहतरीन तलवार बन गई और उस गज़वे के बाद उनके पास रही ।


★_ हज़रत खबीब बिन अब्दुर रहमान रजियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक मुशरिक ने मेरे दादा पर तलवार का वार किया उस वार में उनकी एक पसली अलग हो गई , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लुआबे दहन लगाकर टूटी पसली उसकी जगह रख दी , वह पसली अपनी जगह पर इस तरह जम गई जैसे टूटी ही नहीं थी ।


★_ हजरत रफ'आ बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक तीर मेरी आंख में आकर लगा मेरी आंख फूट गई मैं इसी हालत में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ , आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरी आंख में अपना लुआबे दहन डाल दिया ,आंख उसी वक्त ठीक हो गई और जिंदगी भर उस आंख मे कभी तकलीफ नहीं हुई।


★_ अब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुशरिकों की लाशों को उन जगहों से उठा लाया जाए जहां उनके क़त्ल होने की निशानदेही की थी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंग से एक दिन पहले ही बता दिया था कि इंशा अल्लाह कल यह उतबा बिन रबिआ के कत्ल की जगह होगी, यह शैबा बिन रबिआ के क़त्ल की जगह होगी , यह उमैया बिन खल्फ के क़त्ल की जगह होगी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से उन जगहों की निशानदेही फरमाई थी.. अब जब लाशें जमा करने का हुक्म मिला और सहाबा किराम लाशों की तलाश में निकले तो मुशरिकों की लाशें बिल्कुल उन्हीं जगहों पर पड़ी मिली ,हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन तमाम लाशों को एक गड्ढे में डालने का हुक्म फरमाया।

: ★_ जब तमाम मुशरिकों को गड्ढे में डाल दिया गया तो हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस गड्डे के एक किनारे पर आ खड़े हुए वह वक्त रात का था । बुखारी और मुस्लिम की रिवायत में है कि जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गज़वा में फतह हासिल होती तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस मुका़म पर तीन रात क़याम फरमाया करते थे , तीसरे दिन आपने लश्कर को तैयारी का हुक्म दिया , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फतह खबर मदीना मुनव्वरा भेज दी , मदीना मुनव्वरा में फतह की खबर हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु लाए थे , उन्होंने खुश शबरी बुलंद आवाज में यूं सुनाई :- ए गिरोहों अंसार ! तुम्हें खुशखबरी , हो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सलामती और मुशरिकों के क़त्ल और गिरफ्तारी की , कुरेशी सरदारों में से फलां फलां क़त्ल और फलां फलां गिरफ्तार हो गये हैं ।


★_ फतेह कि यह खबर वहां उस वक्त पहुंची जब मदीना मुनव्वरा में हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की साहबजा़दी वफात पा चुकी थी और उनके शौहर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु उनको दफन करके कब्र की मिट्टी बराबर कर रहे थे । आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को जब रुक़ैया रजियल्लाहु अन्हा की वफात की इत्तला दी गई तो इरशाद फरमाया :- अल्हम्दुलिल्लाह ! अल्लाह अल्लाह ताला का शुक्र है, शरीफ बेटियों का दफन होना भी इज्जत की बात है _,"


★_ फतह की खबर सुनकर एक मुनाफिक बोला - असल बात यह है कि तुम्हारे साथी शिकस्त खाकर तितर-बितर हो गए हैं और अब वह कभी एक जगह जमा नहीं हो सकेंगे , अगर मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम)  जिंदा होते तो अपनी ऊंटनी पर खुद सवार होते मगर यह ज़ैद ऐसे बदहवास हो रहे हैं कि उन्हें खुद भी पता नहीं कि क्या कह रहे हैं _,"


इस पर हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस से कहा :- ओ अल्लाह के दुश्मन ! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आने दे फिर तुझे मालूम हो जाएगा ..किसे फतह हुई और किसे शिकस्त हुई है ?"


★_ फिर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हो गए , रास्ते में सफरा की घाटी में पहुंचे तो उस जगह आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने माले गनीमत तक्सीम फरमाया । इस माल में 150 ऊंट और 10 घोड़े थे इसके अलावा हर कि़स्म का सामान, हथियार, कपड़े और बेशुमार खाले और ऊन वगैरह भी इस माले गनीमत में शामिल था । यह चीजें मुशरिक तिजारत के लिए साथ ले आए थे,  आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उस माले गनीमत में से उन लोगों के भी हिस्से निकालें जो गज़वा बदर में हाजिर नहीं हो सके थे यह वो लोग थे जिन्हें खुदा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी वजह से जंग में हिस्सा लेने से रोक दिया था,  क्योंकि हजरत रुक़ैया रजियल्लाहु अन्हा बीमार थी और खुद हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को चेचक निकली हुई थी,  इसलिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को असहाबे बदर में शुमार फरमाया।


★_ इसी तरह हजरत अबू लुबाबा रज़ियल्लाहु अन्हु थे उन्हें खुद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मदीना वालों के पास बतौर मुहाफिज़ छोड़ा था और हजरत आसिम बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु को आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कू़बा और आलिया वालों के पास छोड़ा था । 

इसी तरह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन लोगों का भी हिस्सा निकाला जिन्हें जासूसी की गर्ज़ से भेजा गया था ताकि वह दुश्मन की खबर लाएं , यह लोग उस वक्त वापस लौटे थे जब जंग खत्म हो चुकी थी।

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 *★_  बदर में फतह के बाद _,*


★_ फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो शहर की बच्चियों ने दफ बजा कर इस्तक़बाल किया ,वो उस वक्त यह गीत गा रही थी हमारे सामने चौधरी का चांद तनु हुआ है स्नेहा मत के बदले में हम पर हमेशा अल्लाह ताला का शुक्र अदा करना वाजिब है_,"


★_ दूसरी तरफ मक्का मुअज्ज़मा मे कुरैश की शिकस्त की खबर पहुंची , खबर लाने वाले ने पुकार कर कहा :-  लोगों उतबा और शैबा क़त्ल हो गए, अबू जहल और उमैया भी क़त्ल हो गए और कुरेश के सरदारों में से फला फला भी क़त्ल हो गए ,..फला फला गिरफ्तार कर लिए गए _,"

यह खबर वहशतनाक थी, खबर सुनकर अबू लहब उन्हें घिसटता हुआ बाहर आया , उसी वक्त अबू सुफियान बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु वहां पहुंचे,  वह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चचाजाद भाई थे, उस वक्त मुसलमान नहीं हुए थे  ,यह बदर में मुशरिकीन की तरफ से शरीक़ हुए थे , अबू लहब ने उन्हें देखते ही पूछा :- मेरे नज़दीक आओ और सुनाओ ...क्या ख़बर है ?


★_ अबू सुफियान बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब में मैदान-ए-जंग की जो कैफियत सुनाई वह यह थी :- 

"_  खुदा की क़सम ! बस यह समझ लो कि जैसे ही हमारा दुश्मन से टकराव हुआ हमने गोया अपने गरदने उनके सामने पेश कर दी और उन्होंने जैसे चाहा हमें क़त्ल करना शुरू कर दिया जैसे चाहा गिरफ्तार किया फिर भी मैं कुरेश को कोई इल्जाम नहीं दूंगा क्योंकि हमारा वास्ता जिन लोगों से पड़ा है वह सफेद रंग के थे और स्याह और सफेद रंग के घोड़ों पर सवार थे वह जमीन और आसमान के दरमियान फिर रहे थे , अल्लाह की क़सम उनके सामने कोई चीज ठहरती नहीं थी _,"


★_ अबू राफे रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं, यह सुनते ही मैंने कहा- तब तो खुदा की क़सम वह फरिश्ते थे _,"

मेरी बात सुनते ही अबु लहब गुस्से में आ गया उसने पूरी ताकत से थप्पड़ मेरे मुंह पर दे मारा ,फिर मुझे उठा कर पटक दिया और मेरे सीने पर चढ़कर मुझे बेतहाशा मारने लगा । वहां मेरी मालकिन यानी उम्में फ़ज़ल भी मौजूद थी उन्होंने एक लकड़ी का पाया उठाकर इतने ज़ोर से अबू लहब को मारा कि उसका सर फट गया , साथ ही उम्मे फ़ज़ल ने सख्त लहजे में कहा :- तू इसे इसलिए कमज़ोर समझ कर मार रहा है कि इसका आका़ यहां मौजूद नहीं _,"


★_ इस तरह अबु लहब ज़लील होकर वहां से रुखसत हुआ । जंग-ए-बदर में इस क़दर ज़िल्लत आमेज़ शिकस्त के बाद अबू लहब सात रोज़ से ज्यादा जिंदा नहीं रहा, ताऊन में मुब्तला होकर मर गया , उसे दफन करने की ज़ुर्रत भी कोई नहीं कर रहा था,  आखिर ऐसी हालत में उसकी लाश सड़ने लगी , शदीद बदबू फैल गई तब उसके बेटों ने एक गड्ढा खोदा और लकड़ी के जरिए उसकी लाश को गड्ढे में धकेल दिया फिर दूर ही से पत्थर फेंक करके उस गड्ढे को पत्थरों से पाट दिया।


: ★_ इस शिकस्त पर मक्का की औरतों ने कई माह तक अपने क़त्ल होने वालों का शौग मनाया, इस जंग में असवद बिन ज़मा नामी मुशरिक की तीन औलादे हलाक हुई, यह वह शख्स था कि मक्का में जब हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को देखता था तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का मज़ाक़ उड़ाया करता था और कहता था - "_ लोगों देखो तो , तुम्हारे सामने रूए ज़मीन के बादशाह फिर रहे हैं जो क़ैसर व किसरा के मुल्कों को फतह करेंगे _",

उसकी तकलीफ देह बातों पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसे अंधा होने की बद्दुआ दी थी इस बद्दुआ से वह अंधा हो गया था।


★_ बाज़ रिवायात में आता है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसके अंधा होने और उसकी औलाद के खत्म हो जाने की बद्दुआ फरमाई थी अल्लाह ताला ने आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की दुआ क़ुबूल फरमाई, चुनांचे पहले वह अंधा हुआ फिर उसकी औलाद जंग-ए-बदर में मारी गई ।


★_ जंग के बाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने क़ैदियों के बारे में मशवरा फरमाया , हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु का मशवरा यह था कि उनको फिदया देकर रिहा कर दिया जाए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की राय यह थी कि उन्हें क़त्ल कर दिया जाए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बाज़ मसलिहतों के तहत हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु का मशवरा पसंद फरमाया और उन लोगों की जान बख्सी कर दी, उनसे फिदया लेकर उन्हें रिहा कर दिया । ताहम इस सिलसिले में अल्लाह ताला ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की राय को पसंद करते हुए सूरह अल अनफाल की आयत 67 से 70 तक नाजि़ल फरमाई,इन आयात में अल्लाह ताला ने वाज़े किया कि उन कैदियों को क़त्ल किया जाना चाहिए था।


★_ बदर के कैदियों में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की बेटी हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के खाविंद अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे जो उस वक्त मुसलमान नहीं हुए थे,  उस वक्त हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा मक्का में थी, जब जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को मालूम हुआ कि फिदिया लेकर रिहा करने का फैसला हुआ है तो उन्होंने शौहर के फिदये में अपना हार भेज दिया ,यह हार हजरत जेनब रजियल्लाहु अन्हा को उनकी वालिदा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनकी शादी के मौके़ पर दिया था,  फिदिए में यह हार अबुल आस रजियल्लाहु अन्हु का भाई लेकर आया था। उसने हार हुजूर सल्लल्लाहू वसल्लम की खिदमत में पेश किया, हार को देख कर आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की आंखों में आंसू आ गए हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा याद आ गई , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया :- 

"_ तुम मुनासिब समझो तो ज़ेनब के शौहर को रिहा कर दो और उसका यह हार भी वापस कर दो_," 

सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने फौरन कहा :-  ज़रूर या रसूलल्लाह !


★_ चुनांचे अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु को रिहा कर दिया गया और ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा का हार लौटा दिया गया । अलबत्ता आपने अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु से वादा लिया था कि मक्का जाते ही वो ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा को मदीना भेज देंगे , उन्होंने वादा कर लिया।


: ★_ यहां यह बात भी वाज़े रहे कि हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु से उस वक्त हुई थी जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इस्लाम की दावत शुरू नहीं की थी ,जब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस्लाम की दावत शुरू की तो मुशरिकीन ने अबुल आस रजियल्लाहु अन्हु पर ज़ोर दिया था कि वह जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को तलाक दे दे लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था, अलबत्ता अबू लहब के दोनों बेटों ने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बेटियों हजरत रुक़ैया रजियल्लाहु अन्हा और हजरत कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा को तलाक दे दी, अभी सिर्फ उनका निकाह हुआ था रुखसती नहीं हुई थी । जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मालूम हुआ था कि अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुशरिकीन का मुतालबा मानने से इंकार कर दिया तो हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके हक़ में दुआ फरमाई थी, अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु गज़वा बदर के कुछ अरसा बाद मुसलमान हो गए थे।


★_ हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को लाने के लिए मदीना मुनव्वरा से हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हू को भेजा गया , अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने वादे के मुताबिक इन्हें उनके साथ भेज दिया ( उस वक्त तक हिजाब का हुक्म नाजिल नहीं हुआ था ) इस तरह वह मदीना आ गई ,रास्ते में दुश्मन ने रुकावट बनने की कोशिश की थी लेकिन अबुल आस रजियल्लाहु अन्हु के भाई उनके रास्ते में आ गए और मुशरिक नाकाम रहे।


★_ कैदियों में हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई वलीद बिन वलीद (रज़ियल्लाहु अन्हु) भी थे , इन्हें इनके भाई हिशाम और खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने रिहा कराया , इनका फिदिया अदा किया गया, जब वह इन्हें लेकर मक्का पहुंचे तो वहां उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया इस पर इनके भाई बहुत बिगड़े , उन्होंने कहा :- अगर तुमने मुसलमान होने का इरादा कर लिया था तो वहीं मदीना में क्यों नहीं हो गए ?


★_ भाइयों की बात के जवाब में हजरत वलीद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- मैंने सोचा अगर मैं मदीना मुनव्वरा में मुसलमान हो गया तो लोग कहेंगे मैं क़ैद से घबराकर मुसलमान हो गया हूं _,"

अब इन्होंने मदीना मुनव्वरा हिजरत का इरादा किया तो इनके भाइयों ने इनको कैद कर दिया। हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को यह बात मालूम हुई तो उनके लिए क़ुनूते नाजि़ला में रिहाई की दुआ फरमाने लगे,  आखिर एक दिन वलीद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का से निकल भागने में कामयाब हो गए और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास मदीना मुनव्वरा पहुंच गए।


 ★_ ऐसे ही एक कैदी हजरत वहब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ( जो बाद में इस्लाम लाए) ने भी गजवा बदर में मुसलमानों से जंग की थी और शिकस्त के बाद कैदी बना लिए गए थे,  वहब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद का नाम उमैर था ..इनके एक दोस्त थे सफवान रजियल्लाहु अन्हु। इन दोनों का ताल्लुक मक्का के कुरेश से था , दोनों उस वक्त तक इस्लाम नहीं लाए थे और मुसलमानों के बदतरीन दुश्मन थे। एक रोज़ यह दोनों हजरे अस्वद के पास बैठे थे दोनों बदर में कुरेश की शिकस्त के बारे में बातें करने लगे.. क़त्ल होने वाले बड़े-बड़े सरदारों का जिक्र करने लगे।


★_ सफवान रजियल्लाहु अन्हु ने कहा-  अल्लाह की क़सम! सरदारों के कत्ल हो जाने के बाद जिंदगी का मज़ा ही खत्म हो गया है _," 

यह सुनकर उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा -तुम सच कहते हो, खुदा की क़सम ! अगर मुझे अपने पीछे बीवी बच्चों का ख्याल ना होता तो मैं मुहम्मद( सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) के पास पहुंचकर उन्हें क़त्ल कर देता ( मा'ज़ल्लाह ) , मेरे पास वहां पहुंचने की वजह भी मौजूद है, मेरा अपना बेटा वहब उनके कैद में है ,वह बदर की लड़ाई में शरीक था _"

यह सुनना था कि सफवान रजियल्लाहु अन्हु ने वादा करते हुए कहा - तुम्हारा कर्ज़ मेरे जिम्मे हैं वह मैं अदा करूंगा और तुम्हारे बीवी बच्चों की जिम्मेदारी भी मेरे जिम्मे हैं जब तक वह जिंदा रहेंगे मैं उनकी किफालत करूंगा _,

उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़त्ल का पुख्ता अज़्म कर लिया और कहा -  बस तो फिर ठीक है, यह मामला मेरे और तुम्हारे दरमियान राज़ रहेगा, ना तुम किसी से इस सारी बात का ज़िक्र करोगे ,ना मैं _,"


★_  सफवान रजियल्लाहु अन्हु ने वादा कर लिया, उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने घर जाकर अपनी तलवार निकाली उसकी धार को तेज़ किया और फिर उसको ज़हर में बुझाया , फिर मक्का से मदीना का रुख किया,  मस्जिद-ए-नबवी में पहुंचकर उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने देखा हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु दूसरे मुसलमानों के साथ बैठे गज़वा बदर की बातें कर रहे थे,  हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की नज़र उन पर पड़ी तो फौरन उठ खड़े हुए क्योंकि उन्होंने उनके हाथ में नंगी तलवार देख ली थी, उन्होंने कहा :- यह खुदा का दुश्मन ज़रूर किसी बुरे इरादे से आया है _,"

फिर वह फौरन वहां से नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हुजरे मुबारक मे गए और अर्ज़ किया:-  अल्लाह के रसूल ! खुदा का दुश्मन उमैर नंगी तलवार लिए आया है _,"

हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- उमर उसे मेरे पास अंदर ले आओ _,"


★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फौरन बाहर निकले , तलवार का फटका पकड़कर उन्हें अंदर खींच लाए, उस वक्त वहां कुछ अंसारी मौजूद थे ,हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उनसे फरमाया - तुम लोग भी मेरे साथ अंदर आ जाओ क्योंकि मुझे इसकी नियत पर शक है _,"

चुनांचे वो अंदर आ गए , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जब देखा कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को इस तरह पकड़ कर ला रहे है तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फौरन फरमाया - उमर ,इसे छोड़ दो..उमैर , आ जाओ _," 

चुनांचे उमैर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के करीब आ गए और जाहिलियत के आदाब की तरह " सुबह बा खैर " कहा , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - उमैर हमें इस्लाम ने तुम्हारे इस सलाम से बेहतर सलाम इनायत फरमाया है जो जन्नत वालो का सलाम है .अब तुम बताओ तुम किस लिए आए ?

उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- मैं अपने बेटे के सिलसिले में बात करने आया हूं , इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - फिर इस तलवार का क्या मतलब.. सच बताओ किस लिए आए हो ?

उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- मैं वाक़ई अपने बेटे की रिहाई के सिलसिले में आया हूं _,"

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 ★__ चुकी हजरत उमेर रज़ियल्लाहु अन्हु के इरादे से मुताल्लिक़ अल्लाह ताला ने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बा ज़रिए वही पहले से बता दिया था इसलिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- नहीं उमैर , यह बात नहीं बल्कि बात यह है कि कुछ दिन पहले तुम और सफवान हजरे अस्वद के पास बैठे थे और तुम दोनों अपने मक़तूलों के बारे में बातें कर रहे थे उन मक़तूलों की जो बदर की लड़ाई में मारे गए और जिन्हें एक गड्ढे में डाल दिया गया था , उस वक्त तुमने सफवान से कहा था कि अगर तुम्हें किसी का कर्ज़ ना अदा करना होता और पीछे तुम्हें अपने बीवी बच्चों की फिक्र ना होती तो मैं जाकर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ) को क़त्ल कर देता ,इस पर सफवान ने कहा था अगर तुम यह काम कर डालो तो कर्ज़ की अदायगी वह कर देगा और तुम्हारे बीवी बच्चों का भी ख्याल वही रखेगा ,उनकी किफालत करेगा, मगर अल्लाह ताला तुम्हारा इरादा पूरा होने नहीं देंगे_,"


★_ उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु यह सुनकर हक्का-बक्का रह गए क्योंकि उस गुफ्तगू के बारे में सिर्फ उन्हें पता था या सफवान रजियल्लाहु अन्हु को , चुनांचे अब उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन बोल उठे :- 

"_ मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल हैं और ए अल्लाह के रसूल ! आप पर जो आसमान से खबर आया करती हैं और जो वही नाजि़ल होती है हम उसको झूठलाया करते थे जहां तक इस मामले का ताल्लुक है तो उस वक्त हजरे अस्वद के पास मेरे और सफवान के सिवा कोई तीसरा शख्स मौजूद नहीं था और ना ही हमारी गुफ्तगू की किसी को खबर है क्योंकि हमने राज़दारी का अहद किया था इसलिए अल्लाह की क़सम, आपको अल्लाह ताला सिवा और कोई इस बात की खबर नहीं दे सकता,  पस हम्दो सना है उस जा़ते बारी ताला के लिए जिसने इस्लाम की तरफ मेरी रहनुमाई की और हिदायत फरमाई और मुझे इस रास्ते पर चलने की तौफीक फरमाई _,"


★_ इसके बाद उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कलमा पढ़ा और मुसलमान हो गए । तब हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया- "_ अपने भाई को दीन की तालीम दो और इन्हें कुराने पाक पढ़ाओ और इनके कैदी को रिहा करो_,"

सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने फौरन हुक्म की तामिल की।


★_ अब हजरत उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु  ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं हर वक्त इस कोशिश में लगा रहता था कि अल्लाह के इस नूर को बुझा दूं और जो लोग अल्लाह के दीन को कुबूल कर चुके हैं उन्हें खूब तकलीफ पहुंचाया करता था अब मेरी आपसे दरख्वास्त है कि आप मुझे मक्का जाने की इजाजत दें ताकि वहां के लोगों को अल्लाह की तरह बुलाऊं और इस्लाम की दावत दूं, मुमकिन है अल्लाह ताला उन्हें हिदायत अता फरमा दे _,"

हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें मक्का जाने की इजाजत दे दी चुनांचे यह वापस आ गए , इनकी तबलीग से इनके बेटे वहब रजियल्लाहु अन्हु भी मुसलमान हो गए।


 ★_ जब हजरत सफवान रजियल्लाहु अन्हु को इत्तला मिली कि उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए हैं तो वह भौचक्का रह गए और क़सम खा ली अब कभी उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु से नहीं बोलेंगे , अपने घरवालों को दीन की दावत देने के बाद उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु सफवान रजियल्लाहु अन्हु के पास आए और पुकार कर कहा :- 

"_ ऐ सफवान ! तुम हमारे सरदारों में से एक सरदार हो , तुम्हें मालूम है कि हम पत्थरों को पूजते रहे हैं और उनके नाम पर कुर्बानियां देते रहे हैं भला यह भी कोई दीन हुआ.. मैं गवाही देता हूं मैं अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल है _,"

उनकी बात सुनकर सफवान रजियल्लाहु अन्हु ने कोई जवाब ना दिया,  बाद में फतह मक्का के मौक़े पर उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने  इनके लिए अमान तलब की थी और फिर यह भी ईमान ले आए थे ।


★_ इसी तरह उन कैदियों में नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चाचा हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु भी थे,  सहाबा किराम ने इन्हें बहुत सख्ती से बांध रखा था ,रस्सी की सख्ती इन्हें बहुत तकलीफ दे रही थी और वह कराह रहे थे इनकी इस तकलीफ की वजह से हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी तमाम रात बेचैन रहे। जब सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को मालूम हुआ कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इस वजह से बेचैन है तो फौरन हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु की रस्सियां ढीली कर दी, यही नहीं बाक़ी तमाम क़ैदियों की रस्सियां भी ढीली कर दी , फिर इन्होंने अपना फिदिया अदा किया और रिहा हुए, इसी मौक़े पर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए थे मगर इन्होंने मक्का वालों से अपना मुसलमान होना पोशीदा रखा ।


★_ कैदियों में एक कै़दी अबु उज़्जा़ जम्ही भी था,  इसने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से इल्तजा की :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं बाल बच्चों वाला आदमी हूं और खुद बहुत जरूरतमंद हूं ..मैं फिदया नहीं अदा कर सकता ..मुझ पर रहम फरमाइए _," 

यह शायर था मुसलमानों के खिलाफ शेर लिख लिख कर आपको तकलीफ पहुंचाया करता था , इसके बावजूद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इसकी दरखास्त मंजूर फरमाई और बगैर फिदिये इसे रिहा कर दिया... अलबत्ता इससे वादा लिया कि आइंदा वह मुसलमानों के खिलाफ अश'आर नहीं लिखेगा , इसने वादा कर लिया लेकिन रिहा होने के बाद जब यह मक्का पहुंचा तो इसने फिर अपना काम शुरू कर दिया, मुसलमानों के खिलाफ अश'आर लिखने लगा , यह मक्का के मुशरिकों से कहा करता था - मैंने मोहम्मद पर जादू कर दिया था इसलिए उन्होंने मुझे बगैर फिदिये के रिहा कर दिया ।


★_ अगले साल यह शख्स गज़वा उहद के मौके पर मुशरिकों के लश्कर में शामिल हुआ और अपने अश'आर से मुशरिकों को जोश दिलाता रहा, इसी लड़ाई में यह क़त्ल हुआ।


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: *★_ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की रुखसती _,*


★__ बदर के फतह की खबर शाहे हब्शा तक पहुंची तो वह बहुत खुश हुए हजरत ज़ाफर रजियल्लाहू अन्हू और कुछ दूसरे मुसलमान उस वक्त तक हब्शा ही में थे , शाहे हब्शा ने उन्हें अपने दरबार में बुलाकर यह खुशखबरी सुनाइई, बदर की लड़ाई में शरीक होने वाले सहाबा बदरी कहलाए,  उन्हें बहुत फजी़लत हासिल है ।


★_ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अल्लाह ताला ने असहाबे बदर पर अपना खास फजल व करम फरमाया है और उनसे कह दिया है कि जो चाहो करो मैं तुम्हारे गुनाह माफ कर चुका ... या यह फरमाया तुम्हारे लिए जन्नत वाजिब हो चुकी है _,"

मतलब यह है कि उनके पिछले गुनाह तो माफ हो ही चुके हैं आइंदा अगर उनसे कोई गुनाह हुए तो वह भी माफ हैं। 


★_ गज़वा बदर के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी छोटी बेटी हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से कर दी ।, शादी से पहले आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत फातिमा से पूछा कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ से रिश्ता आया है तुम इस बारे में क्या कहती हो ? हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा खामोश रहीं गोया उन्होंने कोई एतराज़ ना किया, तब हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उनसे पूछा- तुम्हारे पास क्या कुछ है ? (यानी शादी के लिए क्या इंतजाम है ?)

उन्होंने जवाब दिया- मेरे पास सिर्फ एक घोड़ा और एक जि़रा है_," 

यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - घोड़ा तो तुम्हारे लिए ज़रूरी है अलबत्ता तुम ज़िरा को फरोख्त कर दो,  


★_हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने ज़िरा 480 दिरहम में फरोख्त कर दी और रक़म लाकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में पेश कर दी ।

इस सिलसिले में एक रिवायत यह भी है कि जब हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को पता चला कि शादी के सिलसिले में हजरत अली अपनी ज़िरा बेच रहे हैं तो उन्होंने फरमाया :- यह ज़िरा इस्लाम के शह सवार अली की है यह हरगिज़ फरोख्त नहीं होनी चाहिए , फिर उन्होंने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के गुलाम को बुलाया और उन्हें 400 दिरहम देते हुए कहा :- यह दिरहम उस ज़िरा के बदले में अली को दे दें_,"

 साथ ही उन्होंने ज़िरा भी वापस कर दी। ..बहरहाल इस तरह शादी का खर्च पूरा हुआ ।


★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के निकाह का खुतबा पढ़ा , फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दोनों के लिए दुआ फरमाई।

 *★_ हजरत ज़ेनब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह _,*


★_ गजवा बदर के बाद चंद छोटे-छोटे गज़वात और हुए ,कुछ दिनों बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत जे़नब बिन्त खुजे़मा रज़ियल्लाहु अन्हा और फिर हजरत जे़नब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया। हजरत जे़नब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा का पहला निकाह ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु से हुआ था , यह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुंह बोले बेटे थे ,उन दोनों में निभ नहीं सकी लिहाजा तलाक हो गई और उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे निकाह फरमाया ।

*★_ हजरत ज़ेनब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह _,*


★_ गजवा बदर के बाद चंद छोटे-छोटे गज़वात और हुए ,कुछ दिनों बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत जे़नब बिन्त खुजे़मा रज़ियल्लाहु अन्हा और फिर हजरत जे़नब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया। हजरत जे़नब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा का पहला निकाह ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु से हुआ था , यह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुंह बोले बेटे थे ,उन दोनों में निभ नहीं सकी लिहाजा तलाक हो गई और उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे निकाह फरमाया ।


★_ यह निकाह अल्लाह ताला ने आसमान पर फरमाया था और इस बारे में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर वही नाज़िल हुई थी , जब वही नाजि़ल हुई तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा से फरमाया  :- जे़नब को जाकर खुशखबरी सुना दो अल्लाह ताला ने आसमान पर उनसे मेरा निकाह कर दिया है _,"

इस बारे में अल्लाह ताला ने सुरह अहज़ाब में आयत भी नाजि़ल फरमाई ... ताकि लोग शक व शुबा ना करें कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अपने मुंह बोले बेटे की तलाकशुदा बीवी से निकाह किया है।


★_ दरअसल अरब के जहालत ज़दा माशरे में मुंह बोले बेटे को हकी़की़ बेटे की तरह महरम समझा जाता था और उसकी तलाकशुदा बीवी से शादी ना-जायज़ समझी जाती थी , साथ-साथ उसे विरासत में भी हिस्सा मिलता था । इस्लाम ने इस फरसूदा रस्म को बिल्कुल खत्म कर दिया, इसकी इब्तिदा हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने की , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा रजियल्लाहु अन्हु को दावत ए वलीमा भी खिलाई । उसी रोज पर्दे की आयत नाजि़ल हुई। 


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☝🏻: *★_ गज़वा उहद की तैयारी _,*


★__ 3 हिजरी में गज़वा उहद पेश आया , उहद पहाड़ मदीना मुनव्वरा से 2 मील के फासले पर हैं, इस पहाड़ के बारे में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इरशाद है :- 

"_ यह उहद हमसे मोहब्बत करता है और हम इससे मोहब्बत करते हैं , जब तुम इसके पास से गुज़रो तो इसके दरख़्तों का फल तबर्रुक के तौर पर खा लिया करो चाहे थोड़ा सा ही क्यों ना हो _,"


★_ गज़वा उहद  क्यों हुआ ? इसका जवाब यह है कि गज़वा बदर में मुशरिकों को बदतरीन शिकस्त हुई थी , सब जमा होकर अपने सरदार हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु के पास आए और उनसे कहा :- 

"_ बदर की लड़ाई में हमारे बेशुमार आदमी क़त्ल हुए हैं हम उनके खून का बदला लेंगे आप तिजारत से जो माल कमा कर लाते हैं उस माल के नफे से जंग की तैयारी की जाए _,"

हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु ने उनकी बात मंजूर कर ली, और जंग की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गई । कहा जाता है कि सामाने तिजारत से जो नफा हुआ था वह पचास हजार दीनार था।


★_ आखिर कुरेशी लश्कर मक्का मुअज़्ज़मा से निकला और मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुआ, स

क़ुरेश के लश्कर में औरतें भी थी, औरते बदर में मारे जाने वालों का नोहा करती जाती थी इस तरह यह अपने मर्दों में जोश पैदा कर रही थी उन्हें शिकस्त खाने या मैदान-ए-जंग से भाग जाने पर शर्म दिला रही थी।


★_ कुरेश की जंगी की तैयारियों की इत्तेला हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चाचा हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने भेजी , उन्होंने यह इत्तेला एक खत के जरिए भेजी , खत ले जाने वाले ने 3 दिन रात मुसलसल सफर किया और यह खत आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तक पहुंचाया । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उस वक्त क़ुबा में थे, हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क़ुबा से मदीना मुनव्वरा पहुंचे और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से कुरेशी लश्कर से मुकाबले के सिलसिले में मशवरा किया , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की राय यह थी कि क़ुरेश पर शहर से बाहर हमला करने के बजाय शहर में रहकर अपना दिफा किया जाए, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ अगर तुम्हारी राय हो तो तुम मदीना मुनव्वरा में रहकर ही मुक़ाबला करो , उन लोगों को वहीं रहने दो जहां वह हैं , अगर वह वहां पड़े रहते हैं तो वह जगह उनके लिए बदतरीन साबित होगी और अगर उन लोगों ने शहर में आकर हम पर हमला किया तो हम शहर में उनसे जंग करेंगे और शहर के पेच व खम को हम उनसे ज्यादा जानते हैं_,"

☝🏻: ★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जो राय दी थी, तमाम बड़े सहाब किराम की भी वही राय थी, मुनाफ़िक़ों के सरदार अब्दुल्ला इब्ने उब'ई ने भी यही मशवरा दिया , यह शख्स जाहिर में मुसलमान था और अपने लोगों का सरदार था।


★_ दूसरी तरफ कुछ पुर जोश नौजवान सहाबा और पुख्ता उम्र के सहाबा यह चाहते थे कि शहर से निकलकर दुश्मन का मुकाबला किया जाए यह मशवरा देने वालों में ज्यादा वह लोग थे जो गज़वा बदर में शरीक नहीं हो सके थे और उन्हें इस बात का अफसोस था वह अपने दिलों के अरमान निकालना चाहते थे, चुनांचे इन लोगों ने कहा:- 

"_ हमें साथ लेकर दुश्मनों के मुकाबले के लिए बाहर चलें ताकि वह हमें कमजोर और बुजदिल ना समझे, वरना उनके हौसले बहुत बढ़ जाएंगे और हम तो यह सोच भी नहीं सकते कि वह हमें धकेलते हुए हमारे घरों में घुस आएं और अल्लाह के रसूल जो शख्स भी हमारे इलाके में आया हमसे शिकस्त खाकर गया है ,अब तो आप हमारे दरमियान मौजूद हैं अब दुश्मन कैसे हम पर गालिब आ सकता है ?"

हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु ने भी इनकी ताइद की, आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी बात मान ली, फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जुमा की नमाज पढ़ाई और लोगों के सामने वाज़ फरमाया उन्हें हुक्म दिया :- 

"_ मुसलमानों पूरी तन देही और हिम्मत के साथ जंग करना, अगर तुम लोगों ने सब्र से काम लिया तो अल्लाह ताला तुम्हें फतेह और कामरानी अता फरमाएंगे ,अब दुश्मन के सामने जाकर लड़ने की तैयारी करो _,"


★_ लोग यह हुक्म सुनकर खुश हो गए, इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सबके साथ असर की नमाज पढ़ी उस वक्त तक इर्द-गिर्द से भी लोग आ गए थे फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के साथ घर में तशरीफ ले गए , उन दोनों ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सर पर अमामा बांधा और जंगी लिबास पहनाया । बाहर लोग आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतजार कर रहे थे और सफे बांधे खड़े थे।


★_ उस वक्त हजरत साद बिन माज़ और हजरत उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हुम ने मुसलमानों से कहा :- 

"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही  वसल्लम की मर्जी शहर में रहकर लड़ने की थी तुम लोगों ने उन्हें बाहर निकल कर लड़ने पर मजबूर किया,.. बेहतर होगा, तुम अब भी इस मामले को उन पर छोड़ दो , हुजूर सल्लल्लाहु सल्लम जो भी हुक्म देंगे उनकी जो भी राय होगी भलाई उसी में होगी इसलिए हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की फरमा बरदारी करो।

: ★_ बाहर यह  बात हो रही थी, इतने में हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बाहर तशरीफ ले आए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जंगी लिबास पहन रखा था दोहरी ज़िरा पहन रखी थी, उन ज़िराहों के नाम जा़तुल फज़ूल और फज़ा था ,यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बनी क़िनक़ा से माले गनीमत में मिली थी । इनमें से जा़तुल फज़ूल वह ज़िरा है कि जब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इंतकाल हुआ तो एक यहूदी के पास रहन रखी हुई थी , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने यहूदी को रक़म अदा करके उसे वापस लिया था । जि़रहें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लिबास के ऊपर पहन रखी थी।


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इस मौक़े पर तीन परचम बनवाएं । एक परचम क़बीला औस का था ,यह हजरत उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में था । दूसरा परचम मुहाजिरीन का था, यह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु या हजरत मुस'ब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में था । तीसरा परचम कबीला खज़रज का था , यह हिबाब बिन मंज़र रजियल्लाहु अन्हु के हाथ में था । इस तरह आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 1000 का लश्कर लेकर रवाना हुए , लश्कर में आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के आगे सा'द बिन माज़ और सा'द बिन उबादा रजियल्लाहु अन्हुम चल रहे थे , यह दोनों क़बीला औस और खज़रज के सरदार थे ।


★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में एक नाबीना सहाबी हजरत अब्दुल्लाह बिन मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना कायम मुकाम मुकर्रर फरमाया। मदीना मुनव्वरा से कूच करके आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सानिया के मुकाम पर पहुंचे, फिर यहां से रवाना होकर शेखैन के मुकाम पर पहुंचे , शेखैन दो पहाड़ों का नाम था ।यहां आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लश्कर का मुआयना फरमाया और कम उम्र नौजवानों को वापस भेज दिया ।यह ऐसे नौजवान थे जो अभी 15 साल के नहीं हुए थे , इनमें राफे बिन खदीज और समरा बिन ज़ुंदुब रज़ियल्लाहु अन्हुम भी थे , लेकिन फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत राफे रजियल्लाहु अन्हु को इजाजत दे दी।


★_ यह देखकर हजरत समरा बिन ज़ुंदुब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - आपने राफे को इजाज़त दे दी जबकि मुझे वापस जाने का हुक्म फरमाया है, हालांकि मै राफे से ज्यादा ताकतवर हूं,_,"

इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया - अच्छा तो फिर तुम दोनों में कुश्ती हो जाए _," 

दोनों में कुश्ती का मुक़ाबला हुआ, समरा बिन ज़ुंदुब रज़ियल्लाहु अन्हु ने राफे रजियल्लाहु अन्हु को पछाड़ दिया , इस तरह उन्हें भी जंग में हिस्सा लेने की इजाजत हो गई।

[☝🏻: ★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फौज के मुआयने से फारिग हुए तो सूरज गुरूब हो गया , हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आज़ान दी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नमाज़ पढ़ाई , ईशा की नमाज़ अदा की गई , नमाज के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आराम फरमाने के लिए लेट गए । रात के वक्त पहरा देने के लिए आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने 50 मुजाहिदीन को मुकर्रर किया उनका सालार हजरत मोहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु को  मुकर्रर फरमाया , यह तमाम रात इस्लामी लश्कर के गिर्द पहरा देते रहे। रात के आखिरी हिस्से में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने शैखैन से कूच फरमाया और सुबह की नमाज के वक्त उहद पहाड़ के करीब पहुंच गए।


★_ इस्लामी लश्कर ने जहां पड़ाव डाला उस मुकाम का नाम शौत था । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यहां फजर की नमाज अदा फरमाई, उस वक्त लश्कर में अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सलोल भी था यह मुनाफिक था ,इसके साथ 300 जवान थे यह सब के सब मुनाफिक थे । इस मुकाम पर पहुंचकर अब्दुल्लाह बिन उबई ने कहा :-

"_ आपने मेरी बात नहीं मानी और उन नौजवान लड़कों का मशवरा माना हालांकि उनका मशवरा कोई मशवरा ही नहीं है अब खुद ही हमारी राय के बारे में अंदाजा हो जाएगा हम बिला वजह क्यों जानें दें, इसलिए साथियों ! वापस चलो _,"

इस तरह यह लोग वापस लौट गए। अब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ सिर्फ 700 सहाबा रह गए ।


★_उस रोज़ मुसलमानों के पास सिर्फ दो घोड़े थे उनमें से एक आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का था और दूसरा अबु बुरदा रज़ियल्लाहु अन्हु का था, शौत के मुका़म से चलकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उहद की घाटी में पड़ाव डाला । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पड़ाव डालते वक्त इस बात का ख्याल रखा कि पहाड़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पुश्त की तरफ रहे ।

उस जगह रात बसर की गई फिर हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुबह की अज़ान दी ,सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने सफें क़ायम की और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें नमाज़ पढ़ाई, नमाज के बाद हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुसलमानों को खुतबा दिया, उसमें जिहाद के बारे में इरशाद फरमाया , जिहाद के अलावा हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हलाल रोज़ी कमाने के बारे में भी नसीहत फरमाइई और फरमाया:- 

"_ जिब्राइल (अलैहिस्सलाम ) ने मेरे दिल में यह वही डाली है कि कोई शख्स उस वक्त तक नहीं मरेगा जब तक कि वह अपने हिस्से के रिज़्क़ का एक-एक दाना हासिल नहीं कर लेता ( चाहे कुछ देर में हासिल हो मगर उसमें कोई कमी वाक़े नहीं हो सकती) इसलिए अपने परवरदिगार से डरते रहो और रिज़्क़ की तलब में नेक रास्ते अख्तियार करो (ऐसा हरगिज़ नहीं होना चाहिए कि रिज़्क़ में देर लगे लगने की वजह से तुम अल्लाह की नाफरमानी हासिल करने लगो ),


★_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह भी इरशाद फरमाया :- 

"_ एक मोमिन का दूसरे मोमिन से ऐसा ही रिश्ता है जैसे सर और बदन का रिश्ता होता है अगर सर में तकलीफ हो तो सारा बदन दर्द से कांप उठता है।

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[: *★_ मो'रका ए उहद का आगाज़ _,*


★_ इसके बाद दोनों लश्कर आमने-सामने आ खड़े हुए, मुशरिकों के लश्कर के दाएं बाएं खालिद बिन वलीद और इकरमा  थे , यह दोनों हज़रात उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे । आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु को एक दस्ता देकर फरमाया - तुम खालिद बिन वलीद के मुकाबले पर रहना और उस वक्त तक हरकत ना करना जब तक कि मैं इजाज़त ना दूं _," 

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने 50 तीरंदाजों के एक दस्ते पर हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु को अमीर मुकर्रर फरमाया और उन्हें उस दर्रे पर मुतय्यन फरमाया जो मुसलमानों की पुश्त पर था ।


★_ उस दर्रे पर 50 तीरंदाज मुकर्रर करने की वजह यह थी कि पुश्त की तरफ से दुश्मन हमला न कर सके । हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन 50 तीरंदाजों से फरमाया :-  तुम मुशरिकों के घुड़सवार दस्तों को तीरंदाजी करके हमसे दूर ही रखना कहीं ऐसा ना हो कि उस तरफ से आकर हमला कर दें , हमें चाहे फतह हो या शिकस्त तुम अपनी जगह से ना हिलना _,"


★_ इसके बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एक तलवार निकाली और फरमाया :- कौन मुझसे यह तलवार लेकर इसका हक़ अदा कर सकता है ?

इस पर कई सहाबा किराम उठकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ लपके लेकिन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने वह तलवार उन्हें नहीं दी , उन हजरात में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन सहाबा से फरमाया :- बैठ जाओ ।

हजरत ज़ुबैर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी वह तलवार लेने की तीन बार कोशिश की मगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर मर्तबा इनकार कर दिया , आखिर सहाबा के मजमें में से हजरत अबू दुजाना रजियल्लाहु अन्हु उठे और अर्ज किया :-  मैं इस तलवार का हक़ अदा करूंगा  _," 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वह तलवार उन्हें अता फरमा दी ,


★_ अबू दुजाना रजियल्लाहु अन्हु बेहद बहादुर थे जंग के दौरान गुरुर के अंदाज़ में अकड़ कर कर चला करते थे। जब आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन्हें दोनों लश्करों के दरमियां अकड़ कर चलते देखा तो फरमाया :- यह चाल ऐसी है जिससे अल्लाह ताला नफरत फरमाता है सिवाय इस क़िस्म के मौको के ( यानी दुश्मनों का सामना करते वक्त यह चाल जायज़ है ताकि यह ज़ाहिर हो कि ऐसा शख्स दुश्मन से ज़रा भी खौफज़दा नहीं है और ना उसे दुश्मन के जंगी साजो़ सामान की परवाह है )


★_ फिर दोनों लश्कर एक दूसरे के बिल्कुल नजदीक आ गए, उस वक्त मुशरीको के लश्कर से एक ऊंट सवार आगे निकला और मुकाबले के लिए ललकारा ,उसने 3 मर्तबा पुकारा तब हजरत जुबेर  बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लामी सफों से निकलकर उसकी तरफ बढ़े ,हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त पैदल थे जबकि दुश्मन ऊंट पर सवार था, उसके नजदीक पहुंचते ही हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु एकदम जोर से उछले और उसकी ऊंचाई के बराबर पहुंच गए ,साथ ही उन्होंने उसकी गरदन पकड़ ली, दोनों में ऊंट पर ही जोर आजमाईश होने लगी ,उनकी ज़ोर आज़माई देख कर आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ इनमें से जो पहले नीचे गिरेगा वही मारा जाएगा _,"अचानक वह मुशरिक नीचे गिरा , फिर हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु उस पर गिरे, गिरते ही उन्होंने फौरन ही उस पर तलवार का वार किया और वह जहन्नम रसीद हो गया ।

☝🏻: ★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु की तारीफ इन अल्फाज़ में बयान फरमाई :-  "_हर नबी का एक हवारी( यानी खास साथी ) होता है और मेरे हवारी जुबेर हैं _,", फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया-  अगर उस मुशरिक के मुकाबले के लिए जुबेर ना निकलते तो मैं खुद निकलता _," उसके बाद मुशरिकों की सफों में से एक और शख्स निकला उसका नाम तलहा बिन अबु तलहा था, यह क़बीला अब्दे दार से था उसके हाथ में परचम था, अब उसने भी कई बार मुसलमानों को ललकारा ,तब हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु मुसलमानों की सफ में से निकल कर उसके सामने पहुंच गए ।अब उन दोनों में मुकाबला शुरू हुआ दोनों ने एक दूसरे पर तलवार के वार किए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का एक वार उसकी टांग पर लगा, टांग कट गई, वह बुरी तरह गिरा और उसके कपड़े उलट गए इस तरह वह बरहना हो गया, वह पुकार उठा - मेरे भाई मैं खुदा का वास्ता देकर तुम से रहम की भीख मांगता हूं _,"


★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तन्हा बिन अबु तलहा को छोड़कर लौट आऐ, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे पूछा- तुमने उसे क्यों छोड़ दिया ?, उन्होंने अर्ज़ किया- अल्लाह के रसूल ! उसने मुझे खुदा का वास्ता देकर रहम की दरख्वास्त की थी ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- उसे क़त्ल कर आओ , चुनांचे हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु गए और उसे क़त्ल कर डाला ,उसके कत्ल के बाद मुशरिकों का परचम उसके भाई उस्मान बिन अबू तलहा ने ले लिया उसके मुकाबले पर हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु आए उन्होंने उसके नज़दीक पहुंचते ही तलवार का वार किया ,उस वार से उसका कंधा कट गया वह गिर पड़ा और दूसरे वार से उन्होंने उसका खात्मा कर दिया ।


★_ अब तलहा का बेटा मसाफा आगे बढ़ा , हजरत आसिम बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस पर तीर चलाया वह भी हलाक हो गया उसके बाद उसका भाई हारिस मैदान में निकला ,हजरत आसिम रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे भी ताक कर तीर मारा वह भी मारा गया , उन दोनों की मां भी लश्कर में मौजूद थी उसका नाम सलाफा था उसके दोनों बेटों ने मां की गोद में दम तोड़ा ,मरने से पहले सलाफा ने पूछा - बेटे तुम्हें किसने जख्मी किया है ? एक बेटे ने जवाब दिया - मैंने उसकी आवाज सुनी है तीर चलाने से पहले उसने कहा था ले इसको संभाल में अबुल फला का बेटा हूं , इस जुमले से सलाफा जान गई कि वह तीरंदाज हजरत आसिम बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु हैं चुनांचे उसने क़सम खाई अगर आसिम का सर मेरे हाथ लगा तो मैं उसकी खोपड़ी में शराब पियूंगी ।साथ ही उसने ऐलान किया कि जो शख्स भी आसिम बिन साबित का सर काट कर लाएगा मैं उसे सौ ऊंट इनाम में दूंगी _,"


★_ जब आम जंग शुरू हुई दोनों लश्कर एक दूसरे पर पूरी ताकत से हमलावर हो गए, इस जंग के शुरू ही में मुशरिकों के घुड़सवार दस्ते ने 3 मर्तबा इस्लामी लश्कर पर हमला किया मगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पहाड़ी के ऊपर तीरंदाजों का जो दस्ता मुकर्रर फरमाया था वह हर मर्तबा तीरों की बाढ़ मारकर इस दस्ते को पीछे हटने पर मजबूर कर देता था, मुशरिकीन तीनों मर्तबा बदहवासी के आलम में पीछे हटने पर मजबूर हो गए ,इसके बाद मुसलमानों ने मुशरिकों पर भरपूर हमला किया यह हमला इस क़दर शदीद था कि मुशरिकों की ताकत को जबरदस्त नुक़सान पहुंचा, उस वक्त लड़ाई पूरी जोरों पर थी ।

☝🏻: ★_ मुशरिकों की औरतों में हिंदा भी थी या यह अबु सुफियान की बीवी थी उस वक्त तक यह इस्लाम नहीं लाई थी और मुसलमानों की सख्त तरीन दुश्मन और बहुत तुंद मिज़ाज थी, उन्होंने अपने हाथों में दफ ले लिया और उनके साथ दूसरी औरतें भी थी उन्होंने भी दफ ले लिये, अब सब मिलकर दफ बजाने लगी और गीत गाने लगी, यह क़दम उन्होंने अपने मर्दो को जोश दिलाने के लिए उठाया ।


★_ इधर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अब दुजाना रजियल्लाहु अन्हु को जो तलवार अता फरमाई थी उन्होंने उसका हक़ अदा कर दिया, हजरत ज़ुबैर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ऐलान फरमाया था कि इस तलवार का हक़ अदा कौन करेगा, तो मेरे 3 मर्तबा तलवार मांगने के बावजूद आपने वह तलवार मुझे मरहमत ना फरमाई हालांकि मैं आपका फूफीज़ाद था, फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तलवार अबू दुजाना को दे दी तो मैंने दिल में कहां ,देखता हूं कि यह इस तलवार का हक़ किस तरह अदा करते हैं ? उसके बाद मैंने उनका पीछा किया और साए की तरह उनके साथ लगा रहा , मैंने देखा उन्होंने अपने मोजे में से एक सुर्ख रंग की पट्टी निकाली उस पत्ती पर एक तरफ लिखा था अल्लाह की मदद और फतह क़रीब है दूसरी तरफ लिखा था जग में बुजदिल शर्म की बात है जो मैदान से भागा वह जहन्नम की आग से नहीं बच सकता ।


★_ यह पट्टी निकालकर उन्होंने अपने सर पर बांध ली ,अंसारी मुसलमानों ने जब यह देखा तो वह बोल उठे- अबू दुजाना ने मौत की पट्टी बांध ली है । अंसारियों में यह बात मशहूर थी कि हजरत अबू दुजाना रजियल्लाहु अन्हु जब यह पट्टी सर पर बांध लेते तो फिर दुश्मनों पर इस तरह टूटते हैं कि कोई उनके मुकाबले पर टिक नहीं सकता । चुंनाचे उस पट्टी के बांधने के बाद उन्होंने इंतेहाई खौफनाक अंदाज में जंग शुरू कर दी वह दुश्मनों पर मौत बनकर गिरे उन्हें गाजर मूली की तरह काट कर रख दिया दुश्मनों को इस हद तक क़त्ल किया कि आखिर यह तलवार मुड़ गई और मुड़कर दराती जैसी हो गई ।उस वक्त मुसलमान पुकार उठे -अबू दुजाना ने वाकई तलवार का हक अदा कर दिया ।


★_ हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु भी इनकी तरह इंतिहाई सरफरोशी से जंग कर रहे थे ,उस रोज़ हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु एक साथ दो तलवारों से लड़ रहे थे यानी उनके दोनों हाथों में तलवारें थी, हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु उस रोज़ इस कदर दिलेरी से लड़े कि उनके हाथ से इकतीस मुशरिक मारे गए,  सबाह को क़त्ल करने के बाद वह उसकी जि़रा उतारने के लिए झुके, उस वक्त हजरत वहशी की नज़र उन पर पड़ी जो उस वक्त मुशरिकों के लश्कर में शामिल थे , झुकने की वजह से हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़िरा पेट पर से सरक गई थी।

[☝🏻: ★_ हजरत वहशी यह वाक्या सुनाते हुए फरमाते थे -मैंने फौरन नेजा ताक कर मारा वह उनके पेट में लगा , मैं उनकी तरफ बड़ा उन्होंने मुझे देखा और शदीद जख्मी हालत के बावजूद उन्होंने उठकर मुझ पर हमला करने की कोशिश की लेकिन फिर कमज़ोरी की वजह से गिर गए , कुछ देर तक मैं एक तरफ दुबका रहा ।जब मुझे इत्मीनान हो गया कि उनकी रूह निकल चुकी है तब उनके क़रीब गया वह वाक़ई शहीद हो चुके थे ।मैं वहां से हटा आया और अपनी जगह पर जाकर बैठ गया क्योंकि मुझे सिर्फ उनके क़त्ल से दिलचस्पी थी और उस जंग में किसी को कत्ल करने की ख्वाहिश नहीं थी और इसकी वजह यह थी कि मुझसे वादा किया गया था कि अगर मैंने हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु को क़त्ल कर दिया तो मुझे आज़ाद कर दिया जाएगा ।


★_ हजरत वहशी रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत जुबेर बिन मुत'अम रज़ियल्लाहु अन्हू के गुलाम थे और वह उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे। उधर मुशरिकों के परचम बरदार जब एक-एक करके खत्म हो गए और कोई परचम उठाने वाला ना रहा तो उनमें बुजदिली फैल गई , वह पसपा होने लगे पीठ फेर कर भागने लगे , ऐसे में वह चीख और चिल्ला रहे थे ,उनकी औरतें जो देर पहले जोश दिलाने के लिए अश'आर पढ़ रही थी अपने दफ फैंक कर पहाड़ की तरफ भागी, उन पर बदहवासी इस क़दर सवार हुई कि अपने कपड़े नोचने लगी । मुसलमानों ने जब दुश्मन को भागते देखा तो उनका पीछा करने लगे उनके हथियारों और माले गनीमत पर कब्ज़ा करने लगे ।


★_ अब यहां इस मौके पर एक अजीब वाक्या रूनुमा हो गया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहाड़ी के दर्रे पर 50 तीरंदाज मुकर्रर फरमाए थे और उन्हें वाज़े तौर पर हिदायत फरमाई थी कि वह अपनी जगह न छोड़ें ,उनके अमीर हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु थे ,उस दस्ते ने जब मुशरिकों को भागते देखा और मुसलमानों को माले गनीमत जमा करते देखा तो यह भी अपनी जगह छोड़ने लगे। यह देखकर हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले -कहां जा रहे हो ? हमें यहां से हटना नहीं चाहिए अल्लाह के रसूल ने हमें हिदायत फरमाई थी कि अपनी जगह जमें रहें और यहां से ना हटें _ ," इस पर उनके साथी बोले- अब मुशरिकों को शिकस्त हो गई है अब हम यहां ठहर कर क्या करेंगे_,"


★_हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु उन्हें रोकते रह गए लेकिन वह ना माने और मैदान में चले गए लेकिन हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु  अन्हु और चंद साथी अलबत्ता वहीं रुके रहें, उनकी तादाद 10 से भी कम थी ।उन्होंने नीचे का रुख करने वालों से कहा- हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुक्म की खिलाफ वर्जी हरगिज़ नहीं करेंगे _,"


: ★_ उस वक्त हजरत खालिद बिन वलीद की नज़र दर्रे पर पड़ी, यह मुशरिकों के एक दस्ते के सालार थे और लश्कर के दाएं बाजू पर मुकर्रर थे शिकस्त के बाद यह उस तरफ से पसपा हो रहे थे कि दर्रे पर नजर पड़ी.. जंग के दौरान भी यह उस तरफ से बार-बार हमला करने की कोशिश करते रहे थे लेकिन 50 तीरंदाजों के तीरों की बौछार ने उनकी पेश क़दमी रोक दी थी.. अब उन्होंने देखा कि वहां 50 के बजाय चंद मुसलमान रह गए हैं तो यह अपने दस्ते के साथ उन पर हमलावर हुए उनके दस्ते के साथ ही इक़रमा बिन अबुजहल भी अपने दस्ते के साथ उस तरफ पलट पड़े, इस तरह पूरे दो दस्तों ने उन चंद मुसलमानों पर हमला कर दिया। उनका यह हमला इस क़दर ज़बरदस्त था कि पहले ही हमले में हजरत अब्दुल्लाह इब्ने जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके साथी शहीद हो गए ।


★_ अब उन दोनों दस्तों ने उस दर्रे की तरफ से मुसलमानों की पुश्त पर अचानक बहुत जोर का हमला किया । मुसलमान उस वक्त माले गनीमत लूटने में मसरूफ थे ,उनमें से अक्सर ने अपनी तलवारें म्यान में डाल ली थी ,उस ताबड़तोड़ हमले ने उन्हें बदहवास कर दिया। मुसलमान उस हमले से इस क़दर बदहवास हुए कि इधर-उधर भागने लगे ,उस वक्त तक उन्होंने जितने मुशरिकों को कैदी बनाया था या जितना माले गनीमत लूट चुके थे वह सब छोड़ कर भाग खड़े हुए थे । मुशरिको का परचम उस वक्त ज़मीन पर पड़ा था एक मुशरिक औरत बिन्ते अलक़मा की नज़र उस पर पड़ी तो उसने लपक कर उसको उठा लिया और बुलंद कर दिया । अब तक जो मुशरिक भाग रहे थे वह भी अपने परचम को बुलंद होते देखकर पलट पड़े ,वह जान गए कि जंग का पासा पलट चुका है। अब सब दौड़ दौड़ कर अपने परचम के गिर्द जमा होने लगे और बदहवास मुसलमानों पर हमलावर होने लगे।


★_ऐसे में एक मुशरिक इब्ने क़मा ने पुकार कर कहा -मोहम्मद क़त्ल कर दिए गए (माज़'अल्लाह) ।इस खबर ने मुसलमानों को और ज़्यादा बदहवास कर दिया ,ऐसे में किसी सहाबी ने कहा- अब जबकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम क़त्ल हो चुके हैं तो हम लड़ कर क्या करेंगे ? इस पर कुछ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने कहा- अगर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शहीद हो गए हैं तो क्या तुम अपने नबी के दीन के लिए लड़ोगे ताकि तुम शहीद की हैसियत से अपने खुदा के सामने हाज़िर हों _," 

हजरत साबित बिन वाहदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने पुकार कर कहा -  अगर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शहीद हो गए हैं तो अल्लाह ताला तो जिंदा है उसे तो मौत नहीं आ सकती , अपने दीन के लिए लड़ो अल्लाह ताला फतह और कामरानी अता फरमाएंगे _,"


★_ यह सुनते ही अंसार के एक गिरोह ने मुशरिकों के उस दस्ते पर हमला कर दिया जिसमें खालिद बिन वलीद, इकरमा बिन अबुजहल,अमरु बिन आस और ज़रार बिन खत्ताब मौजूद थे और यह चारों जबरदस्त जंगजू थे। अंसार के हमले के जवाब में हजरत खालिद बिन वलीद ने उन पर जवाबी हमला किया, उस जवाबी हमले में इब्ने वाहदा रजियल्लाहु अन्हु और उनके साथी शहीद हो गए।

☝🏻: ★_ दूसरी तरफ मुसलमानों के तितर-बितर हो जाने की वजह से मुशरिकों के एक गिरोह ने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर हमला कर दिया, आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उस सख्त वक्त में भी साबित क़दम रहे और अपनी जगह पर जमे रहे , इस आलम में आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने सहाबा रजियल्लाहु अन्हु से फरमा रहे थे - ऐ फलां ! मेरी तरफ आओ , ऐ फलां ! मेरी तरफ आओ , मैं अल्लाह का रसूल हूं _,"  हर तरफ से आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर तीरों की बौछार हो रही थी इस हालत में उन तीरों से अल्लाह ताला ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिफाज़त फरमाई ।


★_ उस नाजुक वक्त में सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम की एक जमात आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के गिर्द जमा रही.. यह जमात मुशरिकों के मुसलसल हमलों को रोक रही थी, खुद को परवानों की तरह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर कुर्बान कर रही थी, उनमें हजरत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे , वह दुश्मन के वार अपनी ढाल पर रोक रहे थे वह बहुत अच्छे तीरंदाज थे निशाना बहुत पुख्ता था , चुनांचे दुश्मनों पर मुसलसल तीर भी चला रहे थे और कहते जाते थे:- मेरी जान आप पर फिदा हो जाए , मेरा चेहरा आपके लिए ढाल बन जाए _,"


★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को किसी मुसलमान के तरकश में तीर नज़र आते तो उससे फरमाते -अपना तरकस अबू तलहा के सामने उलट दो , हजरत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस रोज़ इस क़दर तीरंदाजी की कि उनके हाथ से 3 कमाने टूट गई । हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को दुश्मन को देखने के लिए सर ऊपर करते देखते तो हजरत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु पुकार उठते :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप अपना सर ऊपर ना करें कहीं कोई तीर आपको ना लग जाए _," फिर खुद पंजों के बल हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बिल्कुल सामने आ जाते ताकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम महफूज रहें ..कोई तीर लगे तो मुझको लगे ।


★_ उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम  के आसपास जो सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम मौजूद थे , उन्होंने दुश्मनों से जबरदस्त जंग की उनमें हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे , यह भी  जबरदस्त तीरंदाज थे , यह कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तीर उठा उठा कर मुझे दे रहे थे और फरमाते जाते थे - ऐ साद ! तीरंदाजी करते जाओ ,तुम पर मेरे मां-बाप कुर्बान हो _,"

वह फरमाते हैं ,:- हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हाथ से मुझे एक तीर ऐसा भी मिला जिसके सिर पर फल ( तेज़ धार नोक वाला हिस्सा ) नहीं था आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी देख लिया कि तीर का फल नहीं है ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - यही तीर चलाओ, इस पर हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने दुआ करते हुए कहा :-  ऐ अल्लाह ! यह तेरा तीर है तू इसको दुश्मन के सीने में पेवस्त कर दे _," साथ ही आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमा रहे थे - ऐ अल्लाह ! साद की दुआ कुबूल फरमा , ऐ अल्लाह ! इसकी तीरंदाजी दुरुस्त फरमा _,"


★_ फिर हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु का तरकस खाली हो गया, तीर खत्म हो गए तब नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपना तरकस उनके सामने उलट दिया , हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु  फिर तीर चलाने लगे..।कहा जाता है कि हजरत साद बिन अबी वककास रज़ियल्लाहु अन्हु मुस्तजाबुद दावात थे यानी उनकी दुआ कबूल होती थी ,एक बार हजरत साद बिन अबी वककास रज़ियल्लाहु अन्हु से किसी ने पूछा -आपकी दुआएं क्यों फौरन को भूल होती है ? उन्होंने जवाब दिया- मै जिंदगी भर कोई लुक़मा यह जाने बगैर मुंह तक नहीं ले गया कि यह कहां से आया (मतलब यह है कि हमेशा हलाल खाया है),"


★_ इस बारे में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का फरमान है:- क़सम है उस जा़त की जिसके कब्जे में मेरी जान है जब भी कोई बंदा हराम लुक़मा अपने पेट में डालता है तो 40 दिन तक उसकी कोई दुआ कुबूल नहीं होती _,"

इस सिलसिले में एक हदीस के अल्फाज़ यह हैं-  जिसका कमाना हराम हो जिसका खाना-पीना हराम हो और जिसका लिबास हराम हो उसकी दुआएं कैसे कुबूल हो सकती है ?,"


★_ उस रोज़ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक हजार तीर चलाए हर तीर पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया-  तीरंदाजी करो तुम पर मेरे मां-बाप कुर्बान हो _," हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं -मैंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से यह जुमला हजरत साद के अलावा किसी और के लिए कहते हुए नहीं सुना कि मेरे मां-बाप तुम पर कुर्बान हो _,"


★_ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु रिश्ते में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मामू लगते थे इसलिए उनके बारे में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम यह भी फरमाया करते थे-  यह साद मेरे मामू है कोई मुझे ऐसा मामू तो दिखाए ! उस रोज़ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु के अलावा हजरत सोहेल बिल हनीफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी तीर चलाए, जो उस नाजुक वक्त में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़रीब रहने वालों में शामिल थे।

☝🏻: ★_ हजरत जैद बिन आसिम रजियल्लाहु अन्हु की बीवी हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा उस रोज मुजाहिदों को पानी पिला रही थी, जब जंग का पासा पलटा मुसलमानों की फतेह शिकस्त में बदली तो यह उस वक्त भी जख्मियों को पानी पिला रही थी , हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा का असल नाम नौसीबा था उन्होंने मुसलमानों को भागते देखा और मुशरिकों को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के गिर्द जमा होते देखा तो बेचैन हो गई जल्दी से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़रीब पहुची और तलवार के जरिए दुश्मनों से लड़ने लगी, तलवार चलाते चलाते जब ज़ख्मी  हो गई तो तीर कमान संभाल लिया और मुशरिकों पर तीर चलाने लगी।


★_ ऐसे में उन्होंने इब्ने क़मिया को आते देखा, वह यह कहता हुआ चला आ रहा था -मुझे बताओ मोहम्मद कहां है अगर आज वह बच गए तो समझो मैं नहीं बचा _, यह कहने से उसका मकसद यह था कि आज या वह रहेंगे या मैं रहूंगा । जब वह करीब आया तो हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा और मुस'ब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसका रास्ता रोका , इसी वक्त उसने हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा पर हमला किया उनके कंधे पर जख्म आया,  हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी उस पर तलवार के कई वार कीए , मगर वह ज़िरे पहने हुए था ,उनके वार से महफूज रहा , उनकी कोशिशों को देखकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अल्लाह तुम्हारे घराने में बरकत अता फरमाए _,"

इस पर हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया -  अल्लाह के रसूल ! हमारे लिए दुआ फरमाइए कि हम जन्नत में आपके साथ  हों _," 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- ऐ अल्लाह ! इन्हे जन्नत में मेरा रफीक़ और साथी बना _,"


★_ उस वक्त हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:-  अब मुझे इसकी परवाह नहीं की दुनिया में मुझ पर क्या गुजरती है _,"

नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम फरमाते हैं :- उहद के दिन मै दाएं बाएं जिधर भी देखता था उम्मे अम्मारा को देखता था कि मेरे बचाव और मेरी हिफाजत के लिए जान की बाजी लगाकर दुश्मनों से लड़ रही है_,"

गजवा उहद में हजरत उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा को 12 जख्म आए ,उनमें नेजे़ के जख्म भी थे और तलवारों के भी ।


★_ उस रोज़ हजरत अबू दुजाना रजियल्लाहु अन्हु ने भी अपने जिस्म को नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए ढाल बना लिया था , जो तीर आता वह उसको अपनी कमर पर रोकते यानी उन्होंने अपना मुंह हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ कर रखा था , इस तरह वह तमाम तीर अपनी कमर पर ले रहे थे ताकि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम महफूज रहे ,इस तरह उनकी कमर में बहुत से तीर पेवस्त हो गए ।


★_इसी तरह हजरत ज़ियाद बिन अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हु भी आपकी हिफाज़त में मर्दानावार जख्म खा रहे थे यहां तक कि ज़ख्मों से चूर होकर गिर पड़े ।आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया -इन्हें मेरे क़रीब लाओ । उनकी खुशकिस्मती देखिए कि उन्हें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़रीब लाया गया ,जब उन्हें ज़मीन पर लिटाया गया तो उन्होंने अपना मुंह और रुखसार हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़दमों पर रख दिये और इसी हालत में जान दे दी ..किस क़दर मुबारक मौत थी उनकी ।

☝🏻: ★_ इसी तरह हजरत मुस'अब बिन उमैर रजियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बचाते हुए इब्ने क़मिया के हाथों शहीद हुए , दर असल इब्ने क़मिया हजरत मूस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम समझ रहा था इसलिए कि उनकी शक्ल हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मिलती-जुलती थी। चुंनाचे जब उसने शहीद किया तो क़ुरेश के सरदारों को जाकर इत्तेला दी कि उसने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को शहीद कर दिया है हालांकि उसने हजरत मुस'अब रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद किया था।


★_ उसी दौरान उब'ई बिन खल्फ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की तरफ बढ़ा ,इस पर कई सहाबा उसके रास्ते में आ गए लेकिन हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- इसे मेरी तरफ आने दो , फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम यह कहते हुए उसकी तरफ बढ़े - ऐ झूठे कहां भागता है _," फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने एक सहाबी के हाथ से एक नेज़ा लिया और नेज़े की नोक उब'ई बिन खल्फ की गर्दन में बहुत ही आहिस्ता चुभो दी , मतलब यह कि नेजा़ इस क़दर आहिस्ता चुभाया कि उसे खून भी नहीं निकला मगर इस हल्की सी खराश से वह बुरी तरह चीखता हुआ वहां से भागा ..वह कह रहा था ,खुदा की क़सम! मुहम्मद ने मुझे मार डाला । 

मुशरिकों ने उसे रोकने की कोशिश की और कहा - तू तो बहुत छोटे दिल का निकला तेरी अक्ल जाती रही अपने पहलू में तीर लिए फिरता है तीरंदाजी करता है और तुझे कोई जख्म भी नहीं आया लेकिन चीख कितना रहा है एक मामूली सी खराश है ऐसी खराश पर तो हम उफ भी नहीं करते _," इस पर उब'ई बिन खल्फ ने दर्द से कराहते हुए कहा -  लात व उज्ज़ा की क़सम ! इस वक्त मुझे जिस क़दर शदीद तकलीफ हो रही है अगर वह ज़िल मिज़ाज के मेले में सारे आदमियों पर भी तक़सीम कर दी जाए तो सबके सब मर जाए _,"


★_ बात दर असल यह थी कि मक्का में उब'ई बिन खल्फ नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कहा करता था-  "_ ऐ मोहम्मद ! मेरे पास एक बेहतरीन घोड़ा है मैं उसे रोजाना 12 मर्तबा चारा खिलाकर मोटा कर रहा हूं इस पर सवार होकर मैं तुम्हें क़त्ल करूंगा _," उसकी बकवास सुनकर हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम फरमाते थे- " _ इंशाल्लाह मैं खुद तुझे कत्ल करूंगा _,"

अब जब उसे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथों खराश पहुंची तो उसकी ना काबिले बर्दाश्त तकलीफ ने उसे चीखने पर मजबूर कर दिया , वह बार-बार लोटपोट हो रहा था और किसी ज़बीह किए हुए बेल की तरह जिकरा रहा था , उसकी तकलीफ को देखते हुए उसके कुछ साथी उसे साथ लेकर मक्का की तरफ रवाना हुए लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।


★_ एक हदीस में आता है , - वह शख्स जिसे नबी ने कत्ल किया हो या जिसे नबी के हुक्म से कत्ल किया गया हो उसे उसके क़त्ल के वक्त से क़यामत के दिन तक अज़ाब दिया जाता रहेगा _,"

एक और हदीस के अल्फाज़ ये हैं-  सबसे ज्यादा सख्त अज़ाब उसे होता है जिसे नबी ने खुद क़त्ल किया हो ।

: ★_ उहद की लड़ाई शुरू होने से पहले एक फितना बाज मुशरिक अबू आमिर ने जगह-जगह गड्ढे खोद दिए थे ताकि मुसलमान बेखब्री में उन में गिर जाए और नुकसान उठाते रहे , यह शख्स हजरत हंजला रज़ियल्लाहु अन्हु का बाप था और हजरत हंजला रज़ियल्लाहु अन्हु वह हैं जिन्हें फरिश्तों ने गुस्ल दिया था। लड़ाई जारी थी कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम एक गड्ढे में गिर गए , अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को गिरते देखा , उन्होंने आगे बढ़कर फोरन आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को दोनों हाथों पर ले लिया।  हजरत तलहा बिन अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को ऊपर उठा कर बाहर निकाला ।


★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जब गड्ढे में गिरे तो इब्ने क़मिया ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर पत्थर बरसाए उनमें से एक पत्थर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पहलू में लगा , उतबा बिन अबी वक़ास ने भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को पत्थर मारा,  उसका फेंका हुआ पत्थर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के चेहरे अनवर पर लगा । नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का चेहरा अनवर लहूलुहान हो गया और निचला होंठ फट गया। हजरत हातिब रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने जब उतबा को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर पत्थर फेंकते देखा तो उसकी तरफ लपका, उसका पीछा किया और फिर उसे जा लिया, मैंने फौरन उस पर तलवार का वार किया , उस वार से उसकी गर्दन कट कर दूर जा गिरी, मैंने फौरन उसकी तलवार और घोड़े पर कब्ज़ा किया और हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो गया , आपको उतबा के क़त्ल की खबर सुनाई, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - अल्लाह तुमसे राज़ी हो गया ,अल्लाह तुमसे राज़ी हो गया ।


★_ इस हमले में हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का खोद ( लोहे की टोपी) भी टूटा, चेहरा मुबारक भी जख्मी हुआ,  इब्ने क़मिया के हमले से दोनों रुखसार भी जख्मी हुए थे, खोद की दो कड़ियां आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रुखसार मुबारक में गढ़ गई थी आप सल्लल्लाहो वसल्लम ने इब्ने क़मिया को बद्दुआ दी - अल्लाह तुझे ज़लील कर दे और बर्बाद कर दे _,"


★_ अल्लाह ताला ने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दुआ कुबूल फरमाई, उस जंग के बाद जब इब्ने क़मिया अपनी बकरियों के गल्ले में पहुंचा तो उन्हें लेकर पहाड़ पर चढ़ा , वह बकरियों और मैंढों को घेर घेर कर ले जा रहा था कि अचानक एक मैंढे ने उस पर हमला कर दिया, उसने उसे इस जोर से सींग मारा कि वह पहाड़ से नीचे गिर गया और उसका जिस्म टुकड़े-टुकड़े हो गया ।


★_ जब नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का चेहरा मुबारक ज़ख्मी हुआ और खून बहने लगा तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खून पोंछते जाते  थे और फरमाते जाते थे :- 

"_  वह क़ौम कैसे फला पाएगी जिसने अपने नबी के चेहरे को इसलिए खून से रंगीन कर दिया कि वह उन्हें उनके परवरदिगार की तरफ बुलाता है _,"


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चेहरे मुबारक में खोद की कड़ियां घुस गई थी हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दांतों से उन कड़ियों को खींच खींच कर निकाला, इस कोशिश के दौरान उनका एक सामने का दांत टूट गया , बहरहाल कड़ी निकल गई , फिर उन्होंने दूसरी कड़ी को दांतों से पकड़कर खींचा तो एक दांत और टूट गया.. ताहम कड़ी निकल गई ।

अब होना तो यह चाहिए था कि हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने के दो दांत टूट जाने के बाद उनका चेहरा बदनुमा हो जाता लेकिन हुआ यूं कि वह पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गया _,"

 ★_ जब यह खबर मशहूर हुई कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को शहीद कर दिया गया है तो हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु पहले शख्स हैं जिन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को जिंदा सलामत देखा और पुकारे :- ए मुसलमानों ! तुम्हें खुशखबरी हो , रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तो यह मौजूद है_,"  जब मुसलमानों ने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को जिंदा सलामत देखा तो परवानों की तरह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इर्द-गिर्द जमा हो गए । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन सबके साथ एक घाटी की तरफ रवाना हो गए, उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ अबु बकर, हजरत अली, हजरत जुबेर और हजरत हारिस बिन समा रज़ियल्लाहु अन्हु थे।


★_ फिर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसे चट्टान के ऊपर जाने का इरादा फरमाया जो घांटी के अंदर उभरी हुई थी लेकिन ज़ख्मों से खून निकल जाने और जिरहों के बोझ की वजह से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम चढ़ ना सके , यह देखकर हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने बैठ गए और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को कंधों पर बिठाकर चट्टान के ऊपर ले गए , उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:-  "_तलहा के इस अमल की वजह से उन पर जन्नत वाजिब हो गई _,"


★_ उनकी एक टांग में लंगड़ाहट थी, जब यह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को कंधों पर उठाकर चले तो चाल में लंगड़ाहट थी, अब उनकी कोशिश थी कि लंगड़ाहट ना हो ताकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तकलीफ ना पहुंचे, आप सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम को कंधों पर उठाकर चलने की बरकत से उनकी लंगड़ाहट दूर हो गई।


★_ उस वक्त तक जंग की खबरें मदीना मुनव्वरा में पहुंच चुकी थी लिहाजा वहां से औरतें मैदाने उहद की तरफ चल पड़ी उनमे हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी थी उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को जख्मी देखा तो बे अख्त्यार आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से लिपट गई फिर उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के जख्मों को धोया, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु पानी डालने लगे लेकिन जख्मों से खून और ज्यादा बहने लगा , तब हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपनी चादर का एक टुकड़ा फाड़ कर जलाया वह जलकर राख हो गया तो वह राख उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ज़ख्मों में भर दी, इस तरह से खून बहने का सिलसिला रुका।


★_ इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़ोहर की नमाज़ अदा की , कमज़ोरी की वजह से यह नमाज बैठकर अदा फरमाई,  उस लड़ाई में हजरत तल्हा रजियल्लाहु अन्हु के जिस्म पर तक़रीबन 70 जख्म आए , यह नेज़ो, बरछों और तलवारों के थे ,तलवार के एक बार से उनकी उंगलियां भी कट गई दूसरे हाथ में उनको एक तीर आ कर लगा था उससे मुसलसल खून बहने लगा, यहां तक कि कमजोरी की वजह से उन पर बेहोशी तारी हो गई ,इस पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे इससे उन्हें होश आया तो फौरन पूछा :-  रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का क्या हाल है ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया :- खैरियत से हैं । यह सुनकर हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - अल्लाह का शुक्र है ,हर मुसीबत के बाद आसानी होती है ।

[ *★_ क़ुज़मान का वाक़या _,"*


★__ हजरत अब्दुर्रहमान बिन ऑफ रज़ियल्लाहु अन्हु के मुंह पर ज़र्ब लगी उस जर्ब से उनके दांत टूट गए इसके अलावा उनके जिस्म पर 20 जख्म थे एक जख्म एक पैर पर भी आया था इससे वह लंगड़े हो गए थे । हजरत काब बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु के जिस्म पर भी 20 के क़रीब जख्म आए थे, गर्ज़ अक्सर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम शदीद जख्मी हुए थे ।


★_ उहद की लड़ाई शुरू होने से पहले एक शख्स क़ुज़मान नामी भी मुसलमानों की तरफ से जंग में शरीक हुआ था उसे देखते ही हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था कि यह शख्स जहन्नामी है । वह उहद की लड़ाई में बहुत बहादुरी से लड़ा, लड़ाई शुरू होने पर सबसे पहला तीर भी इसी ने चलाया था ,लड़ते-लड़ते वह मुशरिकों के ऊंट सवार दस्ते पर टूट पड़ा और 8-10 मुशरिको को उनकी आन में क़त्ल कर डाला । सहाबा ने उसकी बहादुरी का तज़किरा आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से किया , इस तज़किरे से उनका मकसद यह था कि आपने तो उसे जहन्नामी फरमाया है और वह इस कद्र दिलेरी से लड़ रहा है । इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- यह शख्स जहन्नामी है_,"

सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम इस पर बहुत हैरान हुए।


★_ जब क़ुज़मान लड़ते-लड़ते बहुत जख्मी हो गया तो उसे उठाकर बनी ज़फ़र के महल्ले में पहुंचाया गया यहां लोग उसकी तारीफ करने लगे इस पर वह बोला - मुझे केसी खुशखबरी सुना रहे हो ? खुदा की क़सम! मैं तो सिर्फ अपनी क़ौम की इज्ज़त और फख्र के लिए लड़ा हूं ,अगर क़ौम का यह मामला ना होता तो मैं हरगिज़ ना लड़ता _,"

उसके इन अल्फाज़ का मतलब यह था कि वह अल्लाह और उसके रसूल का कलमा बुलंद करने के लिए नहीं लड़ा था । फिर जख्मों की तकलीफ ना का़बिले बर्दाश्त हो गई , उसने अपनी तलवार निकाली उसकी नोक अपने सीने पर रख कर सारा बोझ उस पर डाल दिया, इस तरह तलवार उसके सीने के आर पार हो गई । इस तरह वह हराम मौत मरा।


★_ उसे इस तरह मरते देख कर एक शख्स दौड़कर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ और बोला :- मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल हैं _," , आपने दरयाफ्त फरमाया - क्या हुआ ? जवाब में उसने कहा - आपने जिस शख्स के बारे में फरमाया था कि वे जहन्नमी है उसने खुदकुशी कर ली है । 

इस तरह क़ुज़मान के बारे में आपकी पेशीन गोई दुरुस्त साबित हुई ।


★_ इसके बिल्कुल उलट एक वाकि़या यूं पेश आया कि बनी अब्द अल अशहल का एक शख्स असीरम अपनी क़ौम को इस्लाम लाने से रोकता था जिस रोज़ नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गज़वा उहद के लिए मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए यह शख्स मदीना आया और अपनी कौम के लोगों के बारे में मालूम किया कि वह कहां है ?  बनी अब्द अल अशहल नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ गज़वा उहद के लिए रवाना हो चुके थे , जब उसे यह बात मालूम हुई तो अचानक उसने इस्लाम के लिए रगबत महसूस की , उसने ज़िरा पहनी अपने हथियार साथ लिए और मैदान-ए-जंग में पहुंच गया फिर मुसलमानों की एक सफ में शामिल होकर मुशरिकों से जंग करने लगा यहां तक कि लड़ते लड़ते शदीद जख्मी हो गया,  जंग के बाद  बनी अब्द अल अशहल के लोग अपनी मक़तूलों को तलाश कर रहे थे कि असीरम पर नज़र पड़ी उन्होंने उसे पहचान लिया उसे मैदान-ए-जंग में ज़ख्मों से चूर देखकर उसके कबीले के लोगों को बहुत हैरत हुई उन्होंने पूछा -  तुम यहां कैसे आ गए ? कौमी जज़्बा ले आया या इस्लाम से रगबत हो गई है ।

असीरम ने जवाब दिया - मैं इस्लाम से रगबत की बुनियाद पर शरीक हुआ हूं , पहले अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाया फिर मैदान में आकर जंग की ,यहां तक कि इस हालत में पहुंच गया ।

☝🏻: *★_ हजरत हंजला और अमरु बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हुम की शहादत _,*


★__ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु उनके बारे में कहा करते थे कि मुझे ऐसे शख्स का नाम बताओ जिसने कभी नमाज नहीं पढ़ी मगर वह जन्नत में चला गया , उनका इशारा हजरत असीरम रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ होता था।


★_ उसी लड़ाई में हजरत हंजला रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हुए , उहद की लड़ाई से एक दिन पहले उनकी शादी हुई थी, दूसरी सुबह ही गज़वा उहद का ऐलान हो गया.... यह गुस्ल के बगैर लश्कर में शामिल हो गए और उसी हालत में लड़ते लड़ते शहीद हो गए। नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनके बारे में इरशाद फरमाया :- तुम्हारे साथी हंजला को फरिश्ते गुस्ल दे रहे हैं _," 

इसी बुनियाद पर हजरत हंजला रज़ियल्लाहु अन्हु को गुसैल अल मलायका " कहां गया यानी वह शख्स जिन्हें फरिश्तों ने गुस्ल दिया ।


★_ उसी गज़वे में हजरत अमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हु भी शहीद हुए, यह लंगड़े थे इनके चार बेटे थे जब यह जंग के इरादे से चलने लगे तो चारों बेटों ने उनसे कहा था - हम जा रहे हैं.. आप ना जाएं _," इस पर अमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हु हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो गए और बोले - अल्लाह के रसूल ! मेरे बेटे मुझे जंग में जाने से रोक रहे हैं मगर अल्लाह की क़सम मेरी तमन्ना है कि मैं अपने लंगड़े पन के साथ जन्नत में पहुंच जाऊं _," 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - तुम माजूर हो लिहाज़ा तुम पर जिहाद फर्ज़ नहीं है _," दूसरी तरफ आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने उनके बेटों से फरमाया-  तुम्हें अपने बाप को जिहाद से रोकना नहीं चाहिए मुमकिन है अल्लाह उन्हें शहादत नसीब फरमा दे _,"


★_ यह सुनते ही हजरत अमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हु ने हथियार संभाले और निकल खड़े हुए, उन्होंने अल्लाह से दुआ की :- ऐ अल्लाह ! मुझे शहादत की नियामत अता फरमा और घर वालों के पास जिंदा आने की रुसवाई से बचा _," 

चुनांचे यह उसी जंग में शहीद हुए । नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनके बारे में इरशाद फरमाया :- उस जा़त की क़सम जिसके कब्जे में मेरी जान है ! तुममे ऐसे लोग भी हैं कि अगर वह किसी बात पर क़सम खा ले तो अल्लाह ताला उनकी क़सम को पूरी कर देते हैं.. उन्हीं लोगों में से अमरू बिन जमूह भी हैं ,मैंने उन्हें जन्नत में उनके उसी लंगड़ेपन के साथ चलते फिरते देखा है_,"


[☝🏻: *★_ मुशरिकीन की वापसी _,"*


★__ हजरत अमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हू की बीवी का नाम हिंदा बिंत हराम था , जंग के बाद ये अपने शौहर ,अपने बेटे और अपने भाई की लाशें एक ऊंट पर डालकर मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना होने लगी ताकि उन्हें मदीना मुनव्वरा में दफन किया जा सके लेकिन ऊंट ने आगे जाने से इंकार कर दिया और बैठ गया । उसका रूख मैदाने उहद की तरफ किया जाता तो चलने लगता मदीना मुनव्वरा की तरफ करते तो बैठ जाता,  आखिर हजरत हिंदा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुई और यह सूरते हाल बयान की । यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:-  ऊंट मामूर है ( यानी अल्लाह ताला की तरफ से उसे हुक्म दिया गया है कि मदीना ना जाए ) इसलिए इन तीनों को यहीं दफन कर दो ।


★_ इस सिलसिले में यह रिवायत भी है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा था कि क्या अमरू बिन जमूह ने चलते वक्त कुछ कहा था , तब आपको बताया गया कि उन्होंने दुआ की थी :- ऐ अल्लाह ! मुझे जिंदा वापस आने की रुसवाई से बचाना _," यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था कि यह ऊंट मदीना मुनव्वरा नहीं जाएगा, चुनांचे तीनों को वहीं मैदाने उहद में दफन किया गया ।


★_ मुशरिकों के साथ आने वाली औरतों ने शहीद होने वाले मुसलमानों का मुसला किया था यानी उनके नाक कान और होंठ वगैरह काट डाले थे , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चाचा हजरत हमजा रजियल्लाहु अन्हु के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया यहां तक कि हिंदा ( हजरत अबू सुफियान की बीवी जो उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुई थी)  ने उनका कलेजा निकाल कर चबाया मगर उसको निगल ना सकी।

लाशों को मुसला करने के बाद मुशरिक वापस लौटे ,मुसलमानों ने भी उन्हें रोकने की कोशिश ना की क्योंकि सब की हालत खस्ता थी। अलबत्ता ऐसे में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया- दुश्मन के पीछे पीछे जाओ और देखो वह क्या करते हैं और क्या चाहते हैं? अगर वह लोग ऊंटों पर सवार हैं और घोड़ों को हांकते  हुए जा रहे हैं तो समझो वह मक्का जा रहे हैं लेकिन अगर घोड़ों पर सवार हैं और ऊंटों को हांक रहे हैं तो समझो वह मदीना जा रहे हैं और क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है अगर उन्होंने मदीना का रुख किया तो मैं हर कीमत पर मदीना पहुंचकर उनका मुकाबला करूंगा _,"


★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु उनके पीछे रवाना हुए, आखिर मालूम हुआ कि मुशरिकीन ने मक्का जाने का इरादा कर लिया है , उस तरफ से इतमिनान हो जाने के बाद मुसलमानों को अपने मक़तूलों की फिक्र हुई, हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- कोई साद बिन रबी'अ का हाल मालूम करके आए मैंने उनके ऊपर तलवार चमकती देखी थी _, ",इस पर कुछ सहाबा किराम उनका हाल मालूम करने के लिए जाने लगे ,उस वक्त हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - " _ अगर तुम साद बिन रबी'अ को जिंदा पाओ तो उशसे मेरा सलाम कहना और उनसे कहना कि रसूलुल्लाह तुमसे तुम्हारा हाल पूछते हैं _,"


★_ एक अंसारी मुसलमान ने आखिर हजरत साद बिन रबी'अ को तलाश कर लिया, वह ज़ख्मों से चूर चूर थे फिर भी अभी जान बाक़ी थी ।


[☝🏻: *★_ हजरत साद बिन रबी'अ रज़ियल्लाहु अन्हु को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का सलाम अर्ज़ करना _,*


★_ उन सहाबी ने फौरन हजरत साद बिन रबी'अ रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारा हाल पूछते हैं , जिंदो में हो या मुर्दों में हो ?

हजरत साद बिन रबी'अ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मैं अब मुर्दों में हूं मेरे जिस्म पर नेज़ों के 12 जख्म लगे हैं मैं उस वक्त तक लड़ता रहा जब तक कि मुझ में सक्त बाक़ी थी अब तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मेरा सलाम अर्ज़ करना और कहना कि इब्ने रबी'अ आपके लिए अर्ज़ करता था कि अल्लाह ताला आपको हमारी तरफ से वही बेहतरीन जजा़ अता फरमाए जो एक उम्मत की तरफ से उसके नबी को मिल सकती है, और मेरी क़ौम को भी मेरा सलाम पहुंचा देना और उनसे कहना कि साद बिन रबी'अ तुमसे कहता है कि अगर ऐसी सूरत में तुमने दुश्मन को अल्लाह के नबी तक पहुंचने दिया कि तुम में से एक शख्स भी जिंदा है तो इस जुर्म के लिए अल्लाह के यहां तुम्हारा कोई उज्र कु़बूल नहीं होगा _,"


★_ यह कहने के चंद लम्हे बाद ही उनकी रूह निकल गई । वह अंसारी सहाबी उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हाज़िर हुए और साद बिन रबी'अ रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में बताया , तब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके बारे में इरशाद फरमाया :-  "_ अल्लाह ताला साद पर रहमत फरमाए , उसने सिर्फ अल्लाह और रसूल के लिए जिंदगी में भी और मरते वक्त भी ( दोनों हालातों में) खैरख्वाही की है _,"


★_ हजरत साद बिन रबी'अ रज़ियल्लाहु अन्हु की दो साहबजादियां थी, उनकी एक साहबजादी हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के जमाने में एक मर्तबा उनसे मिलने के लिए आईं, आपने उनके लिए चादर बिछा दी, ऐसे में हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु तशरीफ ले आए उन्होंने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से पूछा -यह खातून कौन है ? 

अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहू अन्हू ने फरमाया - यह उस शख्स की बेटी है जो मुझसे और तुमसे बेहतर था_,"

हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने पूछा:- ऐ खलीफा ए रसूल ! वह कौन शख्स था ?

आपने फरमाया:-  वह शख्स वह था जो सबकत करके जन्नत में पहुंच गया मैं और तुम रह गए ,यह साद बिन रबी'अ की साहबजादी है _,"


★_ उसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने चाचा हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु की तलाश में निकले, इस वक्त एक शख्स ने अर्ज़ किया - मैंने उन्हें चट्टानों के क़रीब देखा है , वह उस वक्त कह रहे थे मैं अल्लाह का शेर हूं और उसके रसूल का शेर हूं ।

उसके बताने पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन चट्टानों की तरफ चले जहां उस शख्स ने हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु  को देखा था , आखिरी वादी के दरमियान में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को अपने चाचा की लाश नजर आई, हालत यह थी कि उनका पेट चाक था और नाक कान काट डाले गए थे । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए यह मंजर बहुत दर्दनाक था , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया - इस जैसा तकलीफ दह मंज़र मैंने कभी नहीं देखा _,"


★_ फिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खूब रोए , हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हमने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इतना रोते हुए कभी नहीं देखा था जितना आप हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु की लाश पर रोये _,"


: *★_ हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु और उहद के शोहदा का जनाज़ा _,*


★__ उसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया -अपनी वालदा को इस तरफ ने ना आने देना वह प्यारे चाचा की लाश देखने ना पाए _," हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हू की वालिदा का नाम हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा था, वह हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु की बहन थी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की फूफी थी , हुक्म सुनते ही हजरत जुबेर रजियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा के रास्ते पर पहुंच गए उस तरफ से हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा चली आ रही थी वह उन्हें देखते ही बोले -  मां , आप वापस चली जाएं ।  इस पर हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने बेटे के सीने पर हाथ मारा और फ़रमाया - क्यों चली जाऊं ? मुझे मालूम है कि मेरे भाई की लाश का मुसला किया गया है मगर यह सब खुदा की राह में हुआ है मैं इंशा अल्लाह सब्र का दामन नहीं छोडूंगी _,"


★_ उनका जवाब सुनकर हजरत जुबेर रजियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आए और उनका जवाब आपको बताया तब आपने फरमाया - अच्छा उन्हें आने दो । चुनांचे उन्होंने आकर भाई की लाश को देखा इन्ना लिलाही वा इन्ना इलैही वा राजिऊन पड़ा और उनकी मगफिरत की दुआ की ।

उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया-  हमज़ा के लिए कफन का इंतजाम करो । एक अंसारी सहाबी आगे बढ़े उन्होंने अपनी चादर उन पर डाल दी, फिर एक सहाबी आगे बढ़े उन्होंने भी अपनी चादर उन पर डाल दी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया-  जाबिर ! इनमें से एक चादर तुम्हारे वालिद के लिए और दूसरी चादर मेरे चाचा के लिए होगी _,"


★_ हजरत मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु  को भी कफ़न के लिए सिर्फ एक चादर मिली, वह चादर इतनी छोटी थी कि सर ढांका जाता तो पांव खुल जाते और पांव ढ़ांकते तो सर खुल जाता था । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया -  सर को चादर से ढंक दो और पैरों पर घांस डाल दो । 

यह मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु  वह थे जो इस्लाम लाने से पहले कीमती लिबास पहनते थे उनका लिबास खुशबू से महका करता था, आज उनकी मय्यत के लिए पूरा कफन भी मयस्सर नहीं था । बाक़ी शोहदा को उसी तरह कफन दिया गया एक एक चादर में दो दो तीन तीन लाशों को लपेटकर एक ही कब्र में दफन किया गया ।


★_ फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शोहदा पर नमाजे़ जनाजा अदा फरमाई, गज़वा उहद के शोहदा में हजरत अब्दुल्लाह बिन हजश रजियल्लाहु अन्हु भी थे उन्होंने एक दिन पहले दुआ की थी-  या अल्लाह! कल किसी ताकतवर आदमी से मेरा मुकाबला हो जो मुझे कत्ल करें फिर मेरी लाश का मुसला करें फिर मैं कयामत मैं तेरे सामने हाजिर हूं तो तू मुझसे पूछे ऐ अब्दुल्लाह तेरे नाक और कान किस वजह से काटे गए तो मैं कहूंगा कि तेरी और तेरे रसूल की इता'अत की वजह से और उस वक्त अल्लाह ताला फरमाए तूने सच कहा।

चुनांचे यह उस लड़ाई में शहीद हुए और उनकी लाश का मुसला किया गया, लड़ाई के दौरान उनकी तलवार टूट गई थी तब हजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें खजूर की एक शाखा अता फरमाई वह उनके हाथ में जाते ही तलवार बन ग'ई और यह उससे लड़े।


★_ उस जंग में हजरत जाबिर के वालिद अब्दुल्लाह बिन अमरू

 रजियल्लाह हू अन्हो भी शहीद हुए थे उनके चेहरे पर जख्म आया था उस जख्म की वजह से जब उनका आखिरी वक्त आया तो उनका हाथ उस जख्म पर था जब उनकी लाश उठाई गई और हाथ को जख्म पर से उठाया गया तो जख्म से खून जारी हो गया इस पर उनके हाथ को फिर जख्म पर रख दिया गया ज्योंही हाथ रखा गया खून बंद हो गया । हजरत अब्दुल्लाह बिन अमरू और हजरत अमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु अन्हुम को एक ही कब्र में दफन किया गया था,, काफी मुद्दत बाद उहद के मैदान में सैलाब आ गया उससे वह कब्र खुल गई लोगों ने देखा कि उन दोनों लाशों में जरा भी फर्क नहीं आया था बिल्कुल तरो-ताजा थी वह लगता था जैसे अभी कल ही दफ़न की गई हों, अब्दुल्लाह बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु का हाथ उसी तरह उस जख्म पर था किसी ने उनका हाथ उठा दिया हाथ हटाते ही खून जारी हो गया चुनांचे फिर जख्म पर रख दिया गया ।

[: *★_ शोहदा का मरतबा -१ _,*


★__ हजरत अमीरे माविया रज़ियल्लाहु अन्हु  ने अपने दौर में मैदाने उहद से एक नेहर खुदवाई यह नहर शौहदा की क़ब्रों के दरमियान से निकाली गई इसलिए उन्होंने लोगों को हुक्म दिया कि अपने-अपने मुर्दों को उन क़ब्रों से निकाल कर दूसरी जगह दफन कर दें ..लोग रोते हुए वहां पहुंचे उन्होंने कब्रों में से लाशों को निकाला तो तमाम शौहदा की लाशें बिल्कुल तरोताजा थी नर्म मुलायम थी, उनके तमाम जोड़ नरम थे और यह वाक्या गज़वा  उहद के 40 साल बाद का है , हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु की लाश निकालने के लिए उनकी क़ब्र खोदी जा रही थी तो उनके पांव में कुदाल लग गई।


★_ कुदाल का लगना था कि हजरत हमजा रजियल्लाहु अन्हु के पांव से खून जारी हो गया, गोया उनका जिस्म इस तरह तरो ताज़ा  था जैसे किसी जिंदा इंसान का होता है यहां तक कि खून भी खुश्क नहीं हुआ था और खून शुरयानों में इस तरह जारी था कि जरा सी कुदाल लगते ही पैर से जारी हो गया । दूसरी यह बात सामने आई कि उन लाशों से मुश्क जैसी महक आ रही थी, यह वाकि़या गजवा उहद के तकरीबन 50 साल बाद का है जबकि मदीना मुनव्वरा की मिट्टी इस क़दर नमकीन है कि पहली ही रात लाश में तब्दीली का अमल शुरू हो जाता है। मालूम हुआ जिस तरह जमीन अंबिया के जिस्म में कोई तब्दीली नहीं कर सकती उसी तरह शौहदा के जिस्म भी सलामत रहते हैं।


★_ इसी तरह हज़रत खारजा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत साद बिन रबि'आ रज़ियल्लाहु अन्हु को एक कब्र में दफन किया गया ,यह उनके चाचाज़ाद भाई थे, बाज़ लोग अपने शौहदा को उहद से मदीना मुनव्वरा ले गए थे लेकिन हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया कि उन्हें वापस लाया जाए और मैदाने उहद में दफन किया जाए , फिर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने गज़वा उहद के शौहदा के बारे में फरमाया :- मैं उन सब का गवाह हूं ..जो ज़ख्म भी किसी को अल्लाह ता'ला के रास्ते में लगा है अल्लाह ताला कयामत के दिन उस ज़ख्म को दोबारा उसी हालत में पैदा फरमाएंगे कि उसका रंग खून के रंग जेसा होगा और उसकी खुशबू मुश्क जैसी होगी _,"


★_ गजवा उहद में शहीद होने वाले सहाबा में हजरत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु  के वालिद अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे , हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- ऐ जाबिर ! क्या मैं तुम्हें एक बात ना बताऊं और वह यह कि जब भी अल्लाह ताला किसी शहीद से कलाम फरमाता है तो पर्दों में से कलाम फरमाता है लेकिन उस जा़ते हक़ ने तुम्हारे बाप से रुबरु कलाम फरमाया और फरमाया मुझ से मांगो मैं अता करूंगा । उन्होंने कहा ऐ बारी ताला मुझे फिर दुनिया में लौटा दिया जाए ताकि वहां पहुंचकर में एक बार फिर तेरी राह में क़त्ल हो सकूं । उस पर अल्लाह ताला ने फरमाया-  यह मेरी आदत के खिलाफ है कि मुर्दों को दोबारा दुनिया में लौटाऊं,  उन्होंने अर्ज़ किया - परवरदिगार ! जो लोग मेरे पीछे दुनिया में बाकी़ हैं उन तक यह बात पहुंचा दें की यहां शोहदा को कैसे-कैसे इनामात से नवाजा जाता है । इस पर अल्लाह ताला ने यह आयत नाजिल फरमाई :- 

"_ ( तर्जुमा)_ और ऐ मुखातिब ! जो लोग अल्लाह की राह में कत्ल किए गए उन्हें मुर्दा मत खयाल करो बल्कि वह लोग जिंदा है और अपने परवरदिगार के मुक़र्रब है उन्हें रिज़्क भी मिलता है।

[ *★_ शौहदा का मर्तबा _२_,*


★__ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बनी दिनार की एक औरत के पास पहुंचे उस औरत का शौहर बाप और भाई उस गज़वे में शहीद हुए थे । एक रिवायत के मुताबिक उनका बेटा भी शहीद हुआ था,  जब लोगों ने उन्हें खबर सुनाई तो उन्होंने फौरन पूछा - रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का क्या हाल है ? लोगों ने बताया- अल्लाह का शुक्र है ,आप बा खैरो आफियत हैं । इस पर औरत ने कहा-  मैं आपको अपनी आंखों से देख लूं । फिर जब उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आते देख लिया तो बोली - आप खैरियत से हैं तो हर मुसीबत बीच है यानी आप अब किसी गम की कोई अहमियत नहीं ।


★_ गजवा उहद में हजरत क़तादा बिन नोमान रजियल्लाहु अन्हु की आंख में जख्म आ गया था यहां तक की आंख ढेले से बाहर निकलकर लटक गई थी लोगों ने उसे काट डालना चाहा और इस बारे में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पूछा ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया- काटो नहीं । फिर उन्हें अपने पास बुलाया और उनकी आंख अपने हाथ मुबारक में लेकर हथेली से उसकी जगह पर रख दी फिर यह दुआ पढ़ी -  ऐ अल्लाह ! इनकी आंख को इनके हुस्न और खूबसूरती का ज़रिया बना दे _," चुनांचे यह दूसरी आंख से भी ज़्यादा खूबसूरत और तेज़ हो गई, हजरत क़तादा रजियल्लाहु अन्हु को कभी आंख की तकलीफ होती तो दूसरी में होती उस आंख पर उस तकलीफ का कोई असर ना होता ।


★_ एक और सहाबी के गर्दन में एक  तीर आकर पेवस्त हो गया ..वह फौरन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए ,आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके जख्मों पर अपना लुआबे दहन लगा दिया, जख्म फौरन ठीक हो गया । 

गज़वा उहद में इस्लामी लश्कर का झंडा हजरत मूस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु  के हाथ में था जंग के दौरान उनका दायां हाथ कट गया तो उन्होंने झंडा बाएं हाथ में पकड़ लिया जब वह भी कट गया तो दोनों कटे हुए बाजुओं से झंडे को थाम लिया, उस वक्त वह यह आयत तिलावत कर रहे थे :- (तर्जुमा). और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल ही तो है इससे पहले और भी बहुत रसूल गुज़र चुके _," (सूरह आले इमरान आयत 144 )

जब उन्होंने जंग के दौरान किसी को यह कहते सुना कि मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क़त्ल कर दिए तो खुद ब खुद उनकी जुबान से यह अल्फाज़ ज़ारी हो गए , उसके बाद हजरत मूस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हो गए ।


★_ गर्ज़ जंग खत्म हो गई और शौहदा को दफन कर देने के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम मदीना की तरफ रवाना हो गए, आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उस वक्त घोड़े पर सवार थे, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस वक्त शौहदा और उनके अज़ीज़ों के लिए यह दुआ फरमाई :- ऐ अल्लाह ! इनके दिलों से रंज़ और गम को मिटा दे इनकी मुसीबतों को दूर फरमा दे और शहीदों के जानंसीनों को उनका बेहतरीन जानंसीन बना दे।


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: *★_ मदीना मुनव्वरा में आमद _,*


★__ गज़वा उहद में 70 के करीब मुसलमान शहीद हुए, मरने वाले मुशरिकों की तादाद मुख्तलिफ बताई जाती है, जब अल्लाह के रसूल मदीना मुनव्वरा पहुंचे तो मुसलमानों की शिकस्त पर मुनाफिकीन और यहूदियों के ज़बाने खुल गई वह खुलेआम मुसलमानों को बुरा कहने लगे, खुशी से बगले बजाने लगे , उन लोगों ने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में गुस्ताखाना कलामात भी कहे। मसलन वह कहते फिरते थे-  मोहम्मद सिर्फ हुकूमत करने के शौकीन हैं आज तक किसी नबी ने इस तरह नुकसान नहीं उठाया जिस तरह उन्होंने उठाया है खुद भी जख्मी हो गए और अपने इतने साथियों को भी मरवाया है _," (माज़'ल्लाह )

कभी कहते तुम्हारे जो साथी मारे गए अगर वह हमारे साथ रहते तो इस तरह अपनी जाने ना गंवाते ।


★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु तक उनकी यह बातें पहुंची तो उन्हें बहुत गुस्सा आया उन्होंने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज़ किया - ऐ अल्लाह के रसूल ! आप हमें उन लोगों को क़त्ल करने की इजाज़त दे _," यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - क्या यह लोग यानी मुनाफिक़ीन ज़ाहिर में मुसलमान नहीं है क्या यह कलमा नहीं पड़ते की अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि मैं उसका रसूल हूं _,"

हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया - बेशक करते हैं लेकिन यह लोग ऐसा तलवार के खौफ से करते हैं ,अब उनकी हकीकत ज़ाहिर हो चुकी है , उनके दिलों में जो कीना और फसाद है वह सामने आ गया है _,"

यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया :- जो शख्स इस्लाम का ऐलान करे चाहे जा़हिरी तौर पर ही करें मुझे उसके क़त्ल की मुमानत कर दी गई_,"


★_ गजवा उहद के दूसरे ही रोज सुबह सवेरे नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का क़ासिद मदीना मुनव्वरा मे यह ऐलान कर रहा था - मुसलमानों ! कुरेश का ता'क़ुफ करने के लिए तैयार हो जाओ _," 

यह ऐलान कुरेश को डराने के लिए किया गया था ताकि उन्हें मालूम हो जाए कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनके ता'कुफ में तशरीफ ला रहे हैं और साथ में उन्हें यह भी मालूम हो जाए कि मुसलमानों में अभी भी ताकत मौजूद है उहद की शिकस्त की वजह से कमजोर नहीं हो गए ।


★_ इस तरह तमाम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रवाना हुए सब लोग जख्मी थे लेकिन किसी ने भी अपने जख्मों की परवाह ना की जबकी हालत यह थी कि बनु सलमा के 40 आदमी जख्मी हुए थे खुद अल्लाह के रसूल भी जख्मी थे और इसी हालत में सहाबा को लेकर रवाना हो गए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के जख्मों की सूरत यह थी कि चेहरा मुबारक जि़रा के गड़ जाने की वजह से जख्मी था,  चेहरा मुबारक पर पत्थर का एक जख्म भी था निचला होंठ अंदर की तरफ से जख्मी था एक रिवायत में ऊपर का होंठ जख्मी होने का जिक्र भी मौजूद है, इन जख्मों के अलावा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बाये कंधे पर कीमिया ने उस वक्त वार किया था जब आप गढ़े में गिरे थे गढ़े में गिर जाने की वजह से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के दोनों घुटने भी जख्मी थे। [: *★_ गज़वा हमरा अल- असद _,"*


★__ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लश्कर आगे बढ़ता चला गया यहां तक कि यह हमरा अल -असद के मुकाम पर ठहरा यह जगह मदीना मुनव्वरा से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर है। उस मुकाम पर मुसलमानों ने 3 दिन तक क़याम किया ,हर रात में सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम अपने पड़ाव में जगह-जगह आग रोशन करते रहे ताकि दुश्मन को दूर से रोशनियां नजर आती रहे । इस तदबीर से दुश्मन ने ख्याल किया कि मुसलमान बड़ी तादाद के साथ आए हैं ।चुनांचे उन पर रौब पड़ गया, 

उस मुहिम को गज़वा हमरा अल- असद कहां जाता है ।

हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि उस गज़वे में मुसलमानों के पास खाने के लिए सिर्फ खजूरे थी या सिर्फ ऊंट ज़िबह किए जाते थे।


★_ मुशरिकीन ने जब यह खबर सुनी कि मुसलमान तो एक बार फिर तैयारी के साथ मैदान में मौजूद हैं तो वह मक्का की तरफ लौट गए , जब हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यह इत्तला मिली तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी मदीना कूच फरमाया ।


★_ उसी साल यानी 3 हिजरी में शराब हराम हुई, 4 हिजरी में गज़वा बनू नज़ीर पेश आया। उसकी वजह यह बनी कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बनु नज़ीर के मोहल्ले में तशरीफ ले गए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को एक ज़रूरी मामले में बनु नज़ीर से बात तैय करना थी । यह यहूदियों का कबीला था । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुहाइदा कर रखा था कि मुसलमानों को किसी का खून बहा देना पड़ा तो बनु नज़ीर भी इस सिलसिले में मदद करेंगे , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जब उनके मोहल्ले में तशरीफ ले गए तो सहाबा किराम की एक मुख्तसर जमात भी साथ थी उनकी तादाद 10 से भी कम थी उनमें हजरत अबू बकर सिद्दीक हजरत उमर और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हुम भी थे,  हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वहां पहुंच कर उनसे बात शुरू की तो वह बोले :- 

"_ हां हां क्यों नहीं .. हम अभी रक़म अदा कर देते हैं आप पहले खाना खा लें _,"  इस तरह वह बा ज़ाहिर बहुत खुश होकर मिले लेकिन दरअसल वह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़त्ल की साजिश पहले से तैयार कर चुके थे।


★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को उन्होंने एक दीवार के साथ बिठाया फिर उनमें से एक यहूदी उस मकान की छत पर चड़ गया, वह छत से हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर गिराना चाहता था ।अभी वह ऐसा करने ही वाला था कि अल्लाह ताला ने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को भेज दिया उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को उस साजिश से बा खबर कर दिया । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तेज़ी से वहां से उठे ..अंदाज़ ऐसा था जैसे कोई बात याद आ गई हो । आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम अपने साथियों को वहीं बैठा छोड़कर मदीना मुनव्वरा लौट आए।


★_ जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वापसी में देर हुई तो सहाबा किराम हैरान हो गए और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तलाश में निकल पड़े ..उन्हें मदीना मुनव्वरा से आता हुआ एक शख्स दिखाई दिया , सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने उससे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में पूछा। उसने बताया कि वह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मदीना मुनव्वरा में देखकर आ रहा है। अब सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम फौरन मदीना मुनव्वरा पहुंचे , तब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें साजिश के बारे में बताया।

: *★_ गज़वा बनू नज़ीर.और गज़वा बनी मुस्तलक़.-१,*


★__ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मोहम्मद बिन मुसलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को बनू नज़ीर के पास भेजा और उन्हें यह पैगाम दिया:-  मेरे शहर( यानी मदीना )से निकल जाओ तुम लोग अब इस शहर में नहीं रह सकते इसलिए कि तुमने जो मंसूबा बनाया था वह गद्दारी थी _," तमाम यहूदियों को यह भी बताया गया कि आप सल्लल्लाहो सल्लम के खिलाफ उन्होंने क्या साजिश की थी इसलिए कि सब को इस बारे में मालूम नहीं था, साजिश की तहसील सुनकर यहूदी खामोश रह गए कोई मुंह से एक लफ्ज़ भी ना निकल सका । फिर हजरत मोहम्मद बिन मसलमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे कहा - आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का हुक्म है कि तुम 10 दिन के अंदर-अंदर यहां से निकल जाओ इस मुद्दत के बाद जो शख्स भी यहां पाया गया उसकी गर्दन मार दी जाएगी _,"


★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का हुक्म सुन कर यहूदियों ने वहां से कूच की तैयारियां शुरू कर दी.. ऊंटो वगैरा का इंतजाम करने लगे लेकिन ऐसे में मुनाफ़िक़ों की तरफ से उन्हें पैगाम मिला कि अपना घर बार और वतन छोड़कर हरगिज़ कहीं ना जाओ हम लोग तुम्हारे साथ हैं अगर जंग की नौबत आई तो हम तुम्हारी मदद को आएंगे और अगर तुम लोगों को यहां से निकलना ही पड़ा तो हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे _,"

यहूदियों को रोकने में सबसे ज्यादा कोशिश मुनाफ़िक़ों के सरदार अब्दुल्ला बिन उबई ने की।


★_ बनू नज़ीर को यह पैगाम मिला तो उन्होंने जला वतन होने का ख्याल तर्क कर दिया ..चुंनाचे उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैगाम भेजा-  हम अपना वतन छोड़कर हरगिज़ नहीं जाएंगे आपका जो दिल चाहे कर लें _," 

यह पैगाम सुनकर आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने कलमा तकबीर बुलंद किया आपके साथ मुसलमानों ने भी अल्लाह हू अकबर कहा, फिर आपने फरमाया - यहूदी जंग पर आमादा है लिहाजा ...तैयारी करो_," 

उस वक्त यहूदियों को जंग पर  उभारने वाला शख्स ह'ई इब्ने अखतब था , इस शख्स की बेटी हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा थी, जो बाद में हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के निकाह में आईं और उम्मुल मोमिनीन का एज़ाज़ पाया । ह'ई इब्ने अखतब बनू नज़ीर का सरदार था।


★_ आखिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा के साथ बनू नज़ीर की तरफ रवाना हो गए , उस मौके पर आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने मदीना मुनव्वरा में हजरत अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना का़इम मुकाम मुकर्रर फरमाया । जंगी परचम हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उठाया,  शाम के वक्त मुसलमान बनू नज़ीर की बस्ती में पहुंच गए और वहां पर पड़ाव डाल दिया , यहूदी अपनी हवेलियों में बंद हो गए और छतो पर से तीर बरसाने लगे, पत्थर गिराने लगे ।

*


★__ दूसरे दिन हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम लकड़ी के एक कुब्बे (गुंबद नुमा साएबान) में क़याम पजी़र हुए जो हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने बनाया था , यहूदियों में से एक शख्स का नाम गज़ूल था वह जबरदस्त तीरंदाज था उसका फेंका हुआ तीर दूर तक जाता था उसने एक तीर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के कुब्बे की तरफ फेंका तीर वहां तक पहुंच गया। यह देखकर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हुक्म से कुब्बे को ज़रा दूर मुंतकिल कर दिया ।


★_ रात के वक्त हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु गायब हो गए यह देखकर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को हैरत हुई उन्होंने आपसे अर्ज किया-  ऐ अल्लाह के रसूल! अली नज़र नहीं आ रहे ? आपने फ़रमाया - फिक्र ना करो वह एक काम से गए हैं _,", कुछ ही देर गुज़री होगी कि हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु गज़ूल का सर उठाए हुए आ गए ,अब सारी सूरते हाल का पता चला , जब गज़ूल ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साएबान की तरफ तीर फेका था हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु उसी वक्त से उसके पीछे लग गए थे और आखिर उसका सर काट लाए उसके साथ दस आदमी और थे वे गज़ूल को कत्ल होते देख कर भाग लिए थे , नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ दस आदमी और भी रवाना फरमाए थे ।


★_ बनू नज़ीर का मुहासरा ज़ारी रहा यहां तक कि 6 रातें गुज़र गई, उस दौरान मुनाफिक अब्दुल्लाह बिन उबई बराबर यहूदियों को पैगामात भेजता रहा कि तुम अपनी हवेलियों में डटे रहो हम तुम्हारी मदद को आ रहे हैं लेकिन यहूदियों को उससे कोई मदद नहीं पहुंची, अब तो यहूदियों का सरदार हई बिन अखतब बहुत परेशान हुआ ,कुछ अकल मंद यहूदियों ने उसे अब्दुल्लाह बिन उबई के मशवरे पर अमल न करने के लिए कहा था लेकिन ह'ई बिन अखतब ने उनकी बात नहीं मानी थी ।अब उन्होंने ताने के तौर पर कहा - अब्दुल्लाह बिन उबई की वह मदद कहां गई जिसका उसने वादा किया था और जिसकी तुम आस लगाए बैठे थे ? वह कोई जवाब ना दे सका ।


★_ यहूदी अब बहुत परेशान हो चुके थे । इधर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सख्ती से उनका मुहासरा किए हुए थे आखिर अल्लाह ताला ने यहूदियों के दिलों पर मुसलमानों का रौब तारी कर दिया उन्होंने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से दरख्वास्त की कि उन्हें यहां से निकल जाने दिया जाए वह हथियार साथ नहीं ले जाएंगे अलबत्ता अपना घरेलू सामान ले जायेंगे । नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी दरख्वास्त मंजूर कर ली,  चुनांचे यहूदियों ने अपने ऊंटों पर अपनी औरतों और बच्चों को सवार कर लिया और अपना सारा सामान भी उस पर लाद लिया । यह कुल 600 ऊंट थे , उन ऊंटों पर बहुत सा सोना चांदी और कीमती सामान था । 

इस तरह बनी नज़ीर के यहूदी जला वतन होकर खैबर में जा बसे ।

 *★_ गज़वा बनू नज़ीर और गज़वा बनी मुस्तलक़-३_,*


★_ गजवा बनो नजीर के बाद गज़वा ज़ातुर रका़, गज़वा बदर सानी और गज़वा दोमतुल जुंदुल पेश आएं.. यह छोटे-छोटे गज़वात थे जो एक के बाद एक पेश आएं फिर गज़वा बनी मुस्तलक़ पेश आया। क़बीला बनू मुस्तलक का सरदार हारिस बिन अबी ज़रार था , उसने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से जंग के लिए एक लश्कर तैयार किया , उस लश्कर में उसकी कौ़म के अलावा दूसरे और अरब भी शामिल थे। इस इत्तला पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी जंग की तैयारी की , इस्लामी लश्कर 2 शाबान 5 हिजरी को रवाना हुआ।


★_ उधर जब हारिस बिन अबी ज़रार और उसके साथियों को मुसलमानों की आमद की खबर मिली तो बहुत से लोग बदहवास होकर हारिस का साथ छोड़ गए और इधर-उधर भागने लगे यहां तक कि आप सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम सहाबा किराम के साथ उस क़बीले पर हमलावर हुए । मुसलमानों ने एक साथ मिलकर मुशरिकों पर हमला कर दिया, यह हमला इतना शदीद था कि उनमे से दस फौरन मारे गए बाक़ी गिरफ्तार हो गए ,उनकी औरतों और बच्चों को भी गिरफ्तार कर लिया गया ।


★_ उन कै़दियों में बनी मुस्तलक़ के सरदार हारिस बिन ज़रार की बेटी बर्राह बिन्त हारिस भी थी, माले गनीमत तक़सीम हुआ तो बर्राह साबित बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु की ताहवील में आ गई, अब साबित बिन कैस रज़ियल्लाहु अन्हु ने बर्राह से तय किया कि अगर वह नो औकिया सोना दे दे तो वह उन्हें आज़ाद कर देंगे । यह सुनकर बर्राह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आई और कहने लगी :- अल्लाह के रसूल ! मैं मुसलमान हो चुकी हूं मैं गवाही देती हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं.. हमारे साथ जो हुआ उसको आप जानते हैं मैं कौम के सरदार की बेटी हूं एक सरदार की बेटी अचानक बांदी बना ली गई ..साबित बिन कैस ने आज़ाद होने के लिए मेरे जिम्मे जो सोना मुकर्रर किया है वह मेरी ताकत से कहीं ज्यादा है मेरी आपसे दरख्वास्त है कि इस सिलसिले में मेरी मदद फरमाएं _,"


★_ इस पर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - क्या मैं तुम्हें इससे बेहतर रास्ता ना बताऊं ?

बर्राह बोलीं - वह क्या ऐ अल्लाह के रसूल !? 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:-  तुम्हारी तरफ से सोना मैं दे देता हूं और मैं तुमसे निकाह कर लूं _," 

इस पर बर्राह बोली- ए अल्लाह के रसूल ! में तैयार हूं ।

चुनांचे आपने हजरत साबित बिन क़ैस रजियल्लाहु अन्हु को बुलाया, बर्राह को उनसे मांगा ,वह बोले:-  ऐ अल्लाह के रसूल ! मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान ,बर्राह आपकी हो गई _,"


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें उतना सोना अदा कर दिया और बर्राह से शादी कर ली । उस वक्त उनकी उम्र 20 साल थी उनका नाम बर्राह से जुवेरिया रखा गया । इस तरह वह उम्मूल मोमिनीन हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा हो गई । हजरत आएशा सिद्दीका रजियल्लाहु

   ज़ियल्लाहु अन्हा निहायत खूबसूरत खातून थी ।

 

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   *★_ हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा का ख्वाब _,*


★__ बाद में हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा का बाप हारिस उनका फिदिया लेकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ , उस फिदिये में बहुत से ऊंट थे, हारिस अभी रास्ते में था कि उसकी नजर उनमें से दो खूबसूरत ऊंटों पर पड़ी उसने उन दोनों को वहीं अकी़क़ की घाटी में छुपा दिया और बाकी फिदिया हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में पेश करके कहा :- यह फिदिया ले लें और मेरी बेटी को रिहा कर दें _,"

उसकी बात सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - और वह दो ऊंट क्या हुए जिन्हें तुम अक़ीक़ की घाटी में छुपा आए हो ?

हारिस बिन अबी ज़रार यह सुनते ही पुकार उठा - मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल है... इस बात का इल्म मेरे और अल्लाह के सिवा किसी को नहीं.. इससे साबित हुआ आप वाक़ई अल्लाह के रसूल हैं_,"


★_ इस तरह वे मुसलमान हो गए, हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा के भाई अब्दुल्लाह बिन हारिस भी मुसलमान हो गए, उसके बाद बनी मुस्तलक़ के तमाम कैदियों को रिहा कर दिया गया, कुछ से फिदिया लिया गया कुछ बगैर फिदिया के छोड़ दिये गये । 

हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं - बनी मुस्तलक़ पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चढ़ाई से 3 दिन पहले मैंने ख्वाब देखा कि यसरिब ( मदीना मुनव्वरा) से चांद तुलु हुआ और चलते-चलते मेरी गोद में आ रहा फिर जब हम क़ैदी बना लिए गए तो मैंने ख्वाब के पूरा होने की आरजू की.. जब आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मुझ से निकाह फरमा लिया तो मुझे उस ख्वाब की ताबीर मालूम हो गई _,"

उस गज़वे से फारिग होकर जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वापस मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हो गए तो एक बहुत दर्दनाक वाक्या पेश आ गया ।


★_ सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमा फरमाती हैं कि कूच का ऐलान होते ही मैं कज़ा ए हाजत के लिए उठ खड़ी हुई और लश्कर से दूर जंगल की तरफ चली गई जब मैं फारिग हो गई तो वापस लश्कर गाह की तरफ रवाना हुई, मेरे गले में एक हार था वह हार कहीं टूट कर गिर गया मुझे उसके गिरने का पता ना चला जब उसका ख्याल आया तो हार की तलाश में वापस जंगल की तरफ गई इस तरह उस हार की तलाश में मुझे देर हो गई, लश्कर में जो लोग मेरा बोदज उठाकर ऊंट पर रखा करते थे उन्होंने खयाल किया कि मैं बोदज में मौजूद हूं उन्होंने बोदज को उठाकर ऊंट पर रख दिया और उन्हें एहसास ना हुआ कि मैं उस में नहीं हूं क्योंकि मैं दुबली पतली और कम वजन की थी ..मैं खाती भी बहुत कम थी जिस्म पर मोटापे के आसार नहीं थे । इस तरह लश्कर रवाना हो गया (बोदज एक डोली नुमा चीज़ होती है जो ऊंट पर नशिस्त के तौर पर बुलंद की जाती है ताकि औरत पर्दे में रहे )


★_ उधर काफी तलाश के बाद मेरा हार मिल गया और मैं लश्कर की तरफ रवाना हुई, वहां पहुंची तो लश्कर जा चुका था दूर-दूर तक सन्नाटा था मैं जिस जगह ठहरी हुई थी वहीं बैठ गई, मैंने सोचा जब उन्हें मेरे गुमशुदगी का पता चलेगा तो सीधे यही आएंगे । बैठे-बैठे मुझे नींद में आ लिया, सफवान सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु की जिम्मेदारी यह थी कि वह लश्कर के पीछे रहा करते थे ताकि किसी का कोई सामान रह जाए या गिर जाए तो उठा लिया करें , उस रोज़ भी लश्कर से पीछे थे , चुनांचे जब यह उस जगह पहुंचे जहां काफिला था तो उन्होंने मुझे दूर से देखा और ख्याल किया कि कोई आदमी सोया हुआ है ,नजदीक आए तो उन्होंने मुझे पहचान लिया मुझे देखते ही उन्होंने इन्ना लिल्लाहि वा इन्ना इलैहि राजिऊन पढ़ा, उनकी आवाज सुनकर में जाग गई उन्हें देखते ही मैंने अपनी चादर अपने चेहरे पर डाल ली ।


★_ हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाते फरमाती हैं सफवान सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु हैरतजदा थे कि यह क्या हुआ ? लेकिन मुंह से उन्होंने एक लफ्ज़ ना कहा, ना मैंने उनसे कोई बात की ,उन्होंने अपने ऊंट को मेरे क़रीब बिठा दिया और 

 इतना कहा - मां सवार हो जाएं !

मैंने ऊंट पर सवार होते वक्त कहा-  हस्बियल्लाहु व नि'आमल  वकील , ( अल्लाह ताला की जात ही मुझे काफी है और वही मेरा बेहतरीन सहारा है ) 

फिर मेरे सवार होने के बाद उन्होंने ऊंट को उठाया उसकी मुहार पकड़कर आगे रवाना हो गए यहां तक कि लश्कर में पहुंच गए , लश्कर उस वक्त नखले ज़हीरा के मुका़म पर पड़ाव डाले हुए था और वह दोपहर का वक्त था ।


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 *★_मुनाफिकीन की साज़िश _,*


★__ हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं - जब हम लश्कर में पहुंचे तो मुनाफिकों के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबई को बोहतान लगाने का मौका मिल गया, उसने कहा -यह औरत कौन है जिसे सफवान साथ लाया है ? उसके साथी मुनाफिक बोल उठे- यह आयशा है ..सफवान के साथ आई है । अब यह लोग लगे बातें करने ..फिर जब लश्कर मदीना मुनव्वरा पहुंच गया तो मुनाफिक  अब्दुल्लाह बिन उबई दुश्मनी की बिना पर और इस्लाम से अपनी नफरत की बुनियाद पर इस बात को शोहरत देने लगा ।


★_ इमाम बुखारी लिखते हैं -जब मुनाफिक उस वाक़ये का जिक्र करते तो अब्दुल्लाह बिन उबई बढ़-चढ़कर उनकी ताईद करता ताकि उस वाक्य़ को ज्यादा से ज्यादा शोहरत मिले । सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं,  मदीना मुनव्वरा आकर मैं बीमार हो गई मैं एक माह तक बीमार रही दूसरी तरफ मुनाफिक इस बात को फैलाते रहे बढ़ा चढ़ाकर बयान करते रहे इस तरह यह बातें नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तक और मेरे मां-बाप तक पहुंची जबकि मुझे कुछ भी नहीं मालूम है सका था.. अलबत्ता मैं महसूस करती थी कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझसे पहले की तरह मोहब्बत से पेश नहीं आते थे जैसा कि पहले बीमारी की दिनों में मेरा ख्याल रखते थे ( दरअसल हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने घराने पर मुनाफिक़ीन की इल्जाम तराशी से सख्त गमज़दा थे ,उस फिक्र रंज की वजह से घरवालों से अच्छी तरह घुलमिल बात करने का मौका भी ना मिलता था) 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के इस तर्जे अमल से मैं परेशान रहने लगी, मेरी बीमारी कम हुई तो उम्मे मिसतह रज़ियल्लाहु अन्हा ने मुझे वह बातें बताईं जो लोगों में फैल रही थी, उम्मे मिसतह रज़ियल्लाहु अन्हा ने खुद अपने बेटे मिसतह को भी बुरा भला कहा कि वह भी इस बारे में यही कुछ कहता फिरता है ।


★_ यह सुनते ही मेरा मर्ज लौट आया , मुझ पर गशी तारी होने लगी बुखार फिर हो गया ..घर आई तो बुरी तरह बेचैनी थी तमाम रात रोते गुजरी आंसू रुकते नहीं थे नींद आंखों से दूर थी, सुबह नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मेरे पास तशरीफ लाए ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने -पूछा क्या हाल है? तब मैंने अर्ज़ किया- क्या आप मुझे इजाज़त देंगे कि मैं अपने मां-बाप के घर हो आऊं ? 

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुझे इजाज़त दे दी,.. दरअसल में चाहती थी उस खबर के बारे में वालदैन से पूछूं, जब मैं अपने मां-बाप के घर पहुंची तो मेरी वाल्दा (उम्मे रोमान रज़ियल्लाहु अन्हा)  मकान के निचले हिस्से में थी जबकि वालिद ऊपर वाले हिस्से में क़ुरआने करीम की तिलावत कर रहे थे ,वाल्दा ने मुझे देखा तो पूछा -तुम कैसे आई ? मैंने उनसे पूरा किस्सा बयान कर दिया और अपनी वाल्दा से कहा - अल्लाह आपको माफ फरमाएं ! लोग मेरे बारे में क्या क्या कह रहे हैं लेकिन आपने मुझे कुछ बताया ही नहीं _,"


★_ इस पर मेरी वाल्दा ने कहा -  बेटी तुम फिक्र ना करो अपने आप को संभालो दुनिया का दस्तूर यही है कि जब कोई खूबसूरत औरत अपने खाविंद के दिल में घर कर लेती है तो उस से जलने वाले उसकी ऐबजोई शुरू कर देते हैं _,"

यह सुनकर मैंने कहा - अल्लाह की पनाह ! लोग ऐसी बातें कर रहे हैं क्या मेरे अब्बा जान को भी इन बातों का इल्म है ?

उन्होंने जवाब दिया - हां उन्हें भी मालूम है _,"

अब तो मारे रंज के मेरा बुरा हाल हो गया मैं रोने लगी मेरे रोने की आवाज वालिद के कानों तक पहुंची तो वह फौरन नीचे उतर आएं उन्होंने मेरी वाल्दा से पूछा- इसे क्या हुआ ? तो उन्होंने कहा- इसके बारे में लोग जो अफवाह फैला रहे हैं वह उसके कानों तक पहुंच चुकी है _,"


★अब तो वाल्दा भी रोने लगी, वालिद भी होने लगे ,उस रात भी मै रोती रही पूरी रात सो ना सकी मेरी वाल्दा भी रो रही थी वालिद भी रो रहे थे.. हमारे साथ घर के दूसरे लोग भी रो रहे थे , ऐसे में एक अंसारी औरत मिलने के लिए आ गई.. मैंने उसे अंदर बुलाया, हमें रोते देखकर वह भी रोने लगी यहां तक कि हमारे घर में जो बिल्ली थी वह भी हो रही थी ।

[

*★_ हजरत आएशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा पर बोहतान और आसमानी गवाही _,"*


★__ ऐसे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ ले आए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सलाम किया और बैठ गए जब से यह बातें शुरू हुई  हुई थी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मेरे पास बैठना छोड़ दिया था लेकिन उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मेरे पास बैठ गए ..उन बातों को एक माह हो चुका था इस दौरान आप पर वही भी नाजिल नहीं हुई थी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बैठने के बाद कलमा शहादत पड़ा और फरमाया :- आयशा ! मुझ तक तुम्हारे बारे में ऐसी बातें पहुंची है अगर तुम उन तोहमतों से बरी हो और पाक हो तो अल्लाह ताला खुद तुम्हारी बरा'अत फरमा देंगे और अगर तुम इस गुनाह में मुब्तिला हुई हो तो अल्लाह ताला से इस्तगफार करो और तोबा करो क्योंकि बंदा जब अपने गुनाहों का इकरार कर लेता है और अल्लाह से तोबा करता है तो बताना उसकी तोबा कुबूल करते हैं _,"


★_ उस पर मैंने अपने वालिद और वालदेन से अर्ज़ किया - "_जो कुछ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया है उसका जवाब दीजिए _,"

जवाब में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - "_मैं नहीं जानता अल्लाह के रसूल से क्या कहूं _,"

तब मैंने अर्ज किया- "_ आप सब ने यह बातें सुनी है अब अगर मैं यह कहती हूं मैं इन इल्जामात से बरी हूं और मेरा अल्लाह जानता है कि मैं बरी हूं तो क्या उस पर यकीन कर लेंगे ..लिहाजा में सब्र करूंगी मैं अपने रंज और गम की शिकायत अपने अल्लाह से करती हूं _,"

उसके बाद मै उठी और बिस्तर पर लेट गई ,उस वक्त में सोच भी नहीं सकती थी कि अल्लाह ताला मेरे मामले में आयात नाजिल फरमाएंगे जिनकी तिलावत की जाया करेगी जिनको मस्जिदों में पड़ा जाया करेगा अलबत्ता मेरा ख्याल था कि अल्लाह ताला मेरे बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब दिखा देंगे और मुझे इल्जाम से बरी फरमा देंगे ..अभी हम लोग उसी हालत में थे कि अचानक आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर वही के आसार महसूस हुए ,


★__ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जब वही नाजिल होती थी तो चेहरा मुबारक पर तकलीफ के आसार जाहिर होते थे यह बात महसूस करते ही हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को कपड़ा उड़ा दिया और आपके सर के नीचे एक तकिया रख दिया,  सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं - मैंने जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वही के आसार देखे तो मैंने कोई घबराहट महसूस नहीं की क्योंकि  मैं बेगुनाह थी अलबत्ता मेरे वालदेन पर बेतहाशा खौफ तारी था , आखिर आप सल्लल्लाहू अलेही से वही के आसार खत्म हो गए , उस वक्त आप हम हंस रहे थे और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पेशानी पर पसीने के कतरे चमक रहे थे वह कतरे मोतियों की तरह नजर आ रहे थे उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जो पहला जुमला फरमाया था वह यह था :-  आयशा ! अल्लाह ताला ने तुम्हें बरी कर दिया है _,"


★_ अल्लाह ताला ने उस मौके पर सूरह नूर की आयत नाजिल फरमाई थी -

"_ (तर्जुमा )_ जिन लोगों ने यह तूफान बरपा किया है( यानी तोहमत लगाई है ) ऐ मुसलमानों ! वह तुम में से एक छोटा सा गिरोह है तुम उस (तूफान ) को बुरा ना समझो बल्कि यह अंजाम के ऐतबार से तुम्हारे हक़ में बेहतर ही बेहतर हैं , उनमें से हर शख्स ने जितना कुछ कहा था उसे उसी के मुताबिक गुनाह हुआ और उनमें से जिसने इस तूफान में सबसे ज्यादा हिस्सा लिया (अब्दुल्लाह बिन उब'ई) उसे (ज्यादा) सख्त सजा मिलेगी , जब तुम लोगों ने यह बात सुनी थी तो मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों ने अपने आपस वालों के साथ नेक गुमान क्यों ना किया और जुबान से यह क्यों ना कहा कि यह सरीह झूठ है ,यह इल्जा़म लगाने वाले अपने क़ौल पर चार गवाह क्यों ना लाए, सो का़यदे के मुताबिक लोग चार गवाह नहीं लाए तो बस अल्लाह के नजदीक यह झूटे हैं और अगर तुम पर दुनिया और आखिरत में अल्लाह का फजल में होता तो जिस काम में तुम पड़े थे उसमें तुमको सख्त अजा़ब वाक़े होता जबकि तुम उस झूठ को अपनी जुबानों से नकल दर नकल कर रहे थे और अपने मुंह से ऐसी बातें कर रहे थे जिसकी तुम्हें किसी दलील से कत़'न खबर नहीं थी और तुम उसकी हल्की बात (यानी गुनाह वाजिब नहीं करने वाली ) समझ रहे थे हालांकि वह अल्लाह के नजदीक बहुत भारी बात है और तुमने जब (पहली बार) उस बात को सुना तो यूं क्यों ना कहा कि हमें ज़ेबा नहीं की ऐसी बात मुंह से निकाले , मा'ज़ल्लाह ! यह तो बहुत बड़ा बोहतान है , अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि फिर ऐसी हरकत मत करना अगर तुम ईमान वाले हो ,अल्लाह तुमसे साफ अहकाम बयान करता है और अल्लाह जानने वाला बड़ा हिकमत वाला है_,"


"_ जो लोग ( इन आयात के नुज़ूल के बाद भी ) चाहते हैं कि बेहयाई की बात का मुसलमानों में चर्चा हो उनके लिए दुनिया व आखिरत में सजा दर्दनाक मुकर्रर है और ( इस बात पर सजा का ताज्जुब मत करो ) क्योंकि अल्लाह ताला जानता है और तुम नहीं जानते , और ऐ तौबा करने वालों ! अगर यह बात ना होती कि तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल व करम है( जिसने तुम्हें तौबा की तौफीक दी ) और यह कि अल्लाह ताला बड़ा शफीक, बड़ा रहीम है (तो तुम भी व'ईद से ना बचते )

*(सूरह नूर आयात- 11 से 20)*


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[ *★_ सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा की दुआ _,*


★_ सैयदा आयशा रजि अल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि इन आयात के नुज़ूल से पहले मैंने ख्वाब देखा था ख्वाब में एक नौजवान ने मुझसे पूछा- क्या बात है आप क्यों गमगीन रहती हैं ? मैंने उसे बताया कि लोग जो कुछ कर रहे हैं मैं उसकी वजह से गमगीन हूं , तब उस नौजवान ने कहा कि आप इन अल्फ़ाज़ में दुआ करें :- 

( तर्जुमा) ऐ नियामतों की तकमील करने वाले और ए गमों को दूर करने वाले परेशानियों को दूर करने वाले मुसीबतों के अंधेरे से निकालने वाले फैसलों में सबसे ज्यादा इंसाफ करने वाले और ज़ालिम से बदला लेने वाले और ऐ अव्वल और ऐ आखिर ! मेरी इस परेशानी को दूर फरमा दे और मेरे लिए गुलु खलासी की कोई राह निकाल दे _,"


★_ दुआ सुनकर मैंने कहा बहुत अच्छा , उसके बाद मेरी आंख खुल गई, मैंने उन अल्फाज़ में दुआ की उसके बाद मेरे लिए बरा'त के दरवाज़े खोल दिए गए ।


★_ इल्जाम लगाने वालों में मिसतह रजियल्लाहु अन्हु भी थे हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु इनकी खबर गिरी करते थे उन्होंने ही इनकी परवरिश की थी ..लेकिन यह भी इल्जाम लगाने वालों में शामिल हो गए । जब अल्लाह ताला ने सैयद आयशा रजियल्लाहु अन्हा को बरी फरमा दिया तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने मिसतह रजियल्लाहु अन्हु को अपने घर से निकाल दिया और उनसे कहा -अल्लाह की क़सम! आइंदा में कभी भी तुम पर अपना माल खर्च नहीं करूंगा ना तुम्हारे साथ कभी मोहब्बत और शफकत का बर्ताव करुंगा _,"


★_ इस पर अल्लाह ताला ने सूरह नूर की आयत नाजिल फरमाई :- 

( तर्जुमा )_ और जो लोग तुम में (दीनी) बुज़ुर्गी और( दुनियावी) वुस'अत वाले हैं वह क़राबत दारों को और मिसकीनों को और अल्लाह ताला की राह में हिजरत करने वालों को ना देने की क़सम ना खा बैठे बल्कि चाहिए कि माफ कर दें और दर गुजर करें क्या तुम यह बात नहीं चाहते कि अल्लाह ताला तुम्हारे कुसूर माफ कर दे , बेशक अल्लाह ताला गफूरूर्रहीम है।


★_इस आयत के नुज़ूल पर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया- क्या तुम इस बात को पसंद नहीं करते कि अल्लाह तुम्हारी मग्फिरत कर दे ?"

हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया - "_ अल्लाह की क़सम, मैं यक़ीनन चाहता हूं कि मेरी मग़फिरत हो जाए _,"

फिर वह मिसतह रजियल्लाहु अन्हु के पास गए उनका जो वजीफा बंद कर दिया था उसको फिर से जा़री कर दिया ..ना सिर्फ ज़ारी कर दिया बल्कि दोगुना कर दिया और कहा आइंदा मैं कभी मिसतह का खर्च बंद नहीं करूंगा । उन्होंने अपनी क़सम का कफ्फारा भी अदा किया।


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   : *★_ तयम्मुम का हुक्म _,*


★__ उसी गज़वे में सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा का हार दो मर्तबा गुम हुआ था ,पहली बार जब हार गुम हुआ तो उसकी तलाश के सिलसिले में सब लोग रुके रहे उसी दौरान सुबह की नमाज का वक्त हो गया उस वक्त मुसलमान किसी चश्मे के क़रीब नहीं थे इसलिए पानी की तंगी थी, जब लोगों को तकलीफ हुई तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को डांटा । उस वक्त अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा की गोद में सर रखकर सो रहे थे , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने सैयद आयशा रजियल्लाहु अन्हा से कहा:-"_ तुमने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और सब लोगों की मंज़िल खोटी कर दी , ना यहां लोगों के पास पानी है, ना क़रीब में कोई चश्मा है _,"


★_ यह कहने के साथ ही हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने बेटी की कमर पर टोके भी मारे, साथ ही वह कहते जाते थे -"_लड़की ! तू सफर में तकलीफ का सबब बन जाती है, लोगों के पास ज़रा सा भी पानी नहीं है _,"

हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि उस मौके पर मैं अपने जिस्म को हरकत से रोके रही क्योंकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मेरी रान पर सर रखकर सो रहे थे ,जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सोए होते थे तो कोई शख्स आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को बेदार नहीं करता था आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम खुद ही बेदार होते थे क्योंकि कोई नहीं जानता था कि उस नींद में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ क्या हो रहा है । आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नमाज़ के वक्त बेदार हो गए ,आप सल्लल्लाहो सल्लम ने वज़ु के लिए पानी तलब फरमाया तो बताया गया  कि पानी नहीं है , उस वक्त अल्लाह ताला ने तयम्मुम की आयत नाजि़ल फरमाई _,


★_उस पर सैयदना अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया :- बेटी ! जैसा कि तुम खुद भी जानती हो ,तुम वाक़ई मुबारक हो _," 

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने भी इरशाद फरमाया :- "_आयशा तुम्हारा हार किस क़दर मुबारक है _,"

हजरत उसैद बिन हुज़ैर रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :- "_ऐ आले अबी बकर ! यह तुम्हारी पहली बरकत नहीं ,अल्लाह आपको जज़ा ए खैर अता फरमाए ,आपके साथ अगर कोई ना खुशगवार वाकि़या पेश आता है तो उसमें भी अल्लाह ताला मुसलमानों के लिए खैर पैदा फरमा देते हैं _,"


★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं - हार की तलाश के सिलसिले में हमने उस ऊंट को उठाया जिस पर मै सवार थी , तो हमें उसके नीचे से हार मिल गया _",

मतलब यह कि उस वाक्य़े की वजह से मुसलमानों को तयम्मुम की सहूलत अता हुई उससे पहले मुसलमानों को तयम्मुम के बारे में मालूम नहीं था, 

उस वाक़्ये के बाद जब आगे सफर हुआ तो मुनाफिकीन की साजिश का वह वाक्या पेश आया जो आपने पीछे पढ़ा ।


★_ उसी साल चांद को ग्रहण लगा ,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नमाज़े खुसूफ पढ़ाई, यानी चांद ग्रहण की नमाज़ पढ़ाई , जबकि यहूदी उस वक्त जोर-जोर से ढोल बजा रहे थे और कह रहे थे चांद पर जादू कर दिया गया है।

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   : *_ गज़वा खंदक़ _,*


★__ बनी नज़ीर के यहूदियों को मदीना मुनव्वरा में उनके इलाके से निकाल दिया गया था उसी वजह से उनके बड़े-बड़े सरदार मक्का मुअज़्ज़मा गए ..क़ुरेश को सारी तफसील बताई और कु़रेश को दावत दी कि वह मुसलमानों से जंग के लिए मैदान में आए, उन्होंने कुरेश को खूब भड़काया और कहां :- जंग की सूरत में हम तुम्हारे साथ होंगे यहां तक कि मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम )और उनके साथियों को नेस्तनाबूद कर देंगे ,मुसलमानों से दुश्मनी में हम तुम्हारे साथ हैं_,"

यह सुनकर मुशरिकीन के सरदार अबू सुफियान ने कहा :- हमारे नज़दीक सबसे ज्यादा महबूब और पसंदीदा शख्स वह है जो मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ) की दुश्मन में हमारा मददगार हो ,लेकिन हम उस वक्त तक तुम पर भरोसा नहीं करेंगे जब तक कि तुम हमारे मा'बूदों को सजदा ना कर लो.. ताकि हमारे दिल मुत्मइन हो जाएं _,"

 यह सुनते ही यहूदियों ने बुतों को सजदा कर डाला ।


★_अब कुरैश ने कहा :- ऐ यहूदियों ,तुम अहले किताब हो और तुम्हारी किताब सबसे पहली किताब है इसलिए तुम्हारा इल्म भी सबसे ज्यादा है लिहाजा तुम बताओ .. हमारा दीन बेहतर है या मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) का_,"

 यहूदियों ने जवाब में कहा- तुम्हारा दीन मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) के दीन से बेहतर है और हक़ व सदाक़त में तुम लोग उनसे कहीं ज्यादा बड़े हुए हो_," 

यहूदियों का जवाब सुनकर क़ुरेश खुश हो गए ,नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से जो उन्होंने जंग का मशवरा दिया था वह भी उन्होंने कुबूल कर लिया.. चुनांचे उसी वक्त कुरेश के 50 नौजवान निकले, उन्होंने खाना काबा का पर्दा पकड़कर उसको अपने सीने से लगाकर यह हलफ दिया कि वक्त पर एक दूसरे को दगा नहीं देंगे जब तक उनमें से एक शख्स भी बाक़ी है, मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) के खिलाफ मुत्ताहिद रहेंगे_,"

अब क़ुरेश ने जंग की तैयारी शुरू कर दी, यहूदियों ने और कबाइल को साथ मिलाने की कोशिश ज़ारी रखें , इस तरह एक बड़ा लश्कर मुसलमानों के खिलाफ तैयार हो गया ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उनकी तैयारियों की इत्तेला मोसूल हुई तो सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को मशवरे के लिए तलब कर लिया ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें दुश्मन की जंगी तैयारियों के बारे में बताया फिर उनसे मशवरा तलब फरमाया कि हम मदीना मुनव्वरा में रहकर दुश्मन का मुक़ाबला करें या बाहर निकल कर करें , 

इस पर हजरत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने मशवरा दिया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! अपने मुल्क फारस में जब हमें दुश्मन का खौफ होता तो शहर के गिर्द खंदक़ खोद लिया करते थे _," 

हजरत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु का यह मशवरा सभी को पसंद आया ,चुनांचे मदीना मुनव्वरा के गिर्द खंदक़ खोदने का काम शुरू कर दिया ।


★_सभी सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने खंदक़ की खुदाई में हिस्सा लिया ..खुद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी खंदक़ खोदी , खंदक़ की खुदाई के दौरान सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को भूख ने सताया ,वह ज़माना आम तंगदस्ती का था।

खुदाई के दौरान एक जगह सख्त पथरीली ज़मीन आ गई, सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम उस जगह खुदाई ना कर सके , आखिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को खबर की गई, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कुदाल अपने हाथ में ली और उस जगह मारी, एक ही ज़रब में वह पथरीली जमीन रेत की तरह भरभरा गई , ज़रब लगाने के दौरान रोशनी के झमाके से नज़र आएं ।


★_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने उनके बारे में पूछा कि रोशनी के झमाके कैसे थे ,तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ पहले झमाके में अल्लाह ताला ने मुझे यमन की फतेह की खबर दी है, दूसरे झमाके के ज़रिए अल्लाह ताला ने मुझे शाम और मगरिब पर गलबा अता फरमाने की इत्तला दी और तीसरे झमाके के ज़रिए अल्लाह ताला ने मशरीक की फतेह मुझे दिखाई है _," ।

☝🏻: ★_ गर्ज़ जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम खंदक़ की खुदाई से फारिग हो गए तो उस वक्त कुरेश और उसके हामियों का लश्कर मदीना मुनव्वरा के बाहर पहुंच गया ,उस जंग में मुशरिकों की 10 हजार तादाद के मुकाबले में मुसलमान सिर्फ तीन हजार थे, मुशरिकों का लश्कर मदीना मुनव्वरा के गिर्द खंदक़ देखकर हैरतजदा रह गया ,वह पुकार उठे :- खुदा की क़सम , यह तो बड़ी जबरदस्त जंगी चाल है और अरब तो इस जंगी तदबीर से वाक़िफ नहीं थे _,"

मुशरिकों के दस्ते बार-बार खंदक़ तक आते रहे और वापस जाते रहे मुसलमान भी अचानक तक आते और उनकी तरफ तीर बरसाते फिर वापस लौट जाते ,


★_ मुशरिको में से नौफिल बिन अब्दुल्लाह ने अपने घोड़े पर सवार होकर खंदक को पार करने की कोशिश की लेकिन उसका घोड़ा खंदक के आर पार ना पहुंच सका और सवार समेत खंदक में गिरा ,नौफिल की गर्दन की हड्डी टूट गई, मुशरिकों और मुसलमानों के दरमियान बस इस किस्म की छेड़छाड़ होती रही ..मुशरिक दरअसल खंदक की वजह से मुसलमानों पर हमलावर होने के काबिल नहीं रहे थे ।


★_ उधर मुशरिको मे से चंद लोग आगे बढ़े, उन्होंने खंदक पार करने के लिए अपने घोड़ों को दूर ले जाकर खूब दौड़ाया और जिस जगह खंदक की चौड़ाई कम थी उस जगह से लंबी छलांग लगाकर आखिर खंदक पार करने में कामयाब हो गए ,उन लोगों में अमरू बिन अब्दे वद भी था वह अरब का मशहूर पहलवान था उसके बारे में मशहूर था कि वह बहुत बहादुर है और अकेला 1 हज़ार आदमियों के लिए काफी है, खंदक पार करते ही वह ललकारा- कौन है जो मेरे मुकाबले में आता है ? उस की ललकार सुनकर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु आ गए, उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज किया - अल्लाह के रसूल ! उसके मुकाबले में मैं जाऊं , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- बैठ जाओ यह अमरू बिन अब्दे वद है ।

उधर अमरू बिन अब्दे वद ने फिर आवाज़ दी ,हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फिर उठ खड़े हुए , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें फिर बिठा दिया,  उसने तीसरी बार फिर मुकाबले के लिए आवाज लगाई , आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को इजाजत दे दी , हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु यह शेर पढ़ते हुए मैदान में आए :- जल्दी ना कर तेरी ललकार को कुबूल करने वाला तेरे सामने आ गया है जो तुझ से किसी तरह आजिज़ और कमज़ोर नहीं है _,"


★_ एक रिवायत में आप कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपनी तलवार जुल्फिकार अता फरमाई, अपना अमामा उनके सर पर रखा और अल्लाह से उनकी कामयाबी के लिए दुआ की ।

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुकाबले से पहले उसे इस्लाम की दावत दी उसने इनकार किया, दोनों में जबरदस्त लड़ाई हुई , आखिर फिर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अमरू को मार गिराया, उसके गिरते ही जो लोग उसके साथ आए हुए थे वापस भागे।

☝🏻: ★_ तमाम दिन जंग होती रही खंदक के हर हिस्से पर लड़ाई जारी रही इस वजह से आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और कोई मुसलमान भी ज़ोहर से इशा तक कोई नमाज़ ना पढ़ सका , इस सूरते हाल की वजह से मुसलमान बार-बार कहते रहे- हम नमाज़ नहीं पढ़ सके_,", यह सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते :- ना ही में पढ़ सका _," 

आखिर जंग रुकने पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को आज़ान देने का हुक्म दिया , उन्होंने ज़ोहर की तकबीर कहीं और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नमाज़ पढ़ाई, उसके फौरन बाद हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने असर् की तकबीर पड़ी और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने असर। की नमाज़ पढ़ाई.... इसी तरह मगरिब और इशा की नमाज़े बा- जमात क़जा़ पढ़ी गई।


★_ खंदक़ की लड़ाई मुसलसल ज़ारी रही, सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु परेशान हो गए, आखिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अल्लाह ताला से दुआ फरमाई, उसके जवाब में हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम आए और खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ताला दुश्मन पर हवा का तूफान नाजि़ल फरमाएगा ,तूफान के साथ अल्लाह आपने लश्कर (फरिश्ते )भी उन पर नाजि़ल करेगा _,"

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु को यह खबर दे दी,  सब ने अल्लाह का शुक्र अदा किया ।


★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की यह दुआ बुध के दिन ज़ोहर और असर् के दरमियान क़ुबूल हुई , आखिर सुर्ख आंधी के तूफान ने मुशरिकों को आ लिया, उन दिनों मौसम यूं ही सर्द था ऊपर से उन्हें उस सर्द तूफान ने घेर लिया, मुशरिकों के खैमें उलट गए, बर्तन उलट गए, हवा के शदीद थपेड़ों ने हर चीज़ इधर से उधर कर दी , लोग सामान के ऊपर और सामान लोगों पर ऊपर आ गिरा, फिर तेज़ हवा से इस क़दर रेत उड़ी कि उनमें से ना जाने कितने रेत में दफन हो गए , रेत की वजह से आग बुझ गई चूल्हे ठंडे हो गए, आग बुझने से अंधेरे ने उन्हें निगल लिया , यह अल्लाह का अज़ाब था जो फरिश्तों ने उन पर नाजि़ल किया , वह दरहम बरहम हो गए।


★_ अल्लाह ताला इरशाद फरमाते हैं :- फिर हमने उन पर एक आंधी और ऐसी फौज भेजी जो तुम्हें दिखाई नहीं देती थी और अल्लाह ताला तुम्हारे आमाल को देखते हैं _," ( सूरह अल अहज़ाब )

☝🏻: ★_ जहां तक फरिश्तों का ताल्लुक है तो इस सिलसिले में असल बात यह है कि उन्होंने खुद जंग में शिरकत नहीं की बल्कि अपनी मौजूदगी से मुशरिको के दिलों में खौफ और रौब पैदा कर दिया और उस रात जो हवा चली,  उसका नाम बादे सबा है यानी वह हवा जो सख्त सर्द रात में चले, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ बादे सबा से मेरी मदद की गई और हवा ए ज़र्द के जरिए उस क़ौम को तबाह किया गया _,"

हवा ए ज़र्द ने मुशरिकों की आंखों में गर्दो गुबार भर दिया और उनकी आंखें बंद हो गई , यह तूफान बहुत देर तक और मुसलसल ज़ारी रहा था साथ ही नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मुशरिको मे फूट पड़ने के बारे में पता चला ।


★_ वो ऐसे कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ऐलान फरमाया था कि कौन है जो हमें दुश्मनों की खबर ला दे ,इस पर सैयदना ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु उठे और अर्ज़ किया :- अल्लाह के रसूल ! मैं जाउंगा _,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह सवाल 3 मर्तबा फरमाया, तीनों मर्तबा ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ही बोले ,आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- हर नबी के हवारी यानी मददगार होते हैं मेरे हमारी ज़ुबैर है _," 

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत हुजैफा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु को इस काम के लिए रवाना फरमाया... थकान की वजह से उनमे इतनी ताकत नहीं थी कि जा सकते, लेकिन हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके लिए दुआ फरमाई-  जाओ ,अल्लाह ताला तुम्हारे सामने से और पीछे से ,दाएं और बाएं से तुम्हारी हिफाज़त फरमाए और तुम खैरियत से लौटकर हमारे पास आओ _,",


★_ यह वहां से चलकर दुश्मन के पड़ाव में पहुंच गए वहां उन्होंने अबू सुफियान को कहते सुना :- ऐ गिरोह कुरेश ! हर शख्स अपने हम नशीनों से होशियार रहें और जासूसों से पूरी तरह खबरदार रहे _," 

फिर उसने कहा-  ऐ क़ुरेश ! हम निहायत बुरे हालात का शिकार हो गए हैं हमारे जानवर हलाक हो गए हैं ..बनू क़ुरेज़ा के यहूदियों ने हमें दगा दिया है और उनकी तरफ से नाखुश गवार बातें सुनने में आई है ,... ऊपर से इस तूफानी हवा ने जो तबाहकारी की है वह तुम लोग देख ही रहे हो इसलिए वापस चले जाओ मैं भी वापस जा रहा हूं_,"


★_ हुजैफा रजियल्लाहु अन्हु यह खबरें लेकर आए तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नमाज पढ़ रहे थी , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नमाज़ से फारिग हुए तो उन्होंने दुश्मन का हाल सुनाया , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हंस पड़े यहां तक कि रात की तारीकी में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के दांत मुबारक नज़र आने लगे..जब मुशरिकों का लश्कर मदीना मुनव्वरा से बदहवास होकर भागा , तब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फ़रमाया :- अब यह आइंदा हम पर हमलावर नहीं होंगे, बल्कि हम उन पर हमला करेंगे_,"

☝🏻: ★_ खंदक की जंग के मौके पर कुछ खास वाकियात पेश आए,  जब खंदक़ खोदी जा रही थी तो उस दौरान एक सहाबी बशीर बिन साद रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी एक प्याले में कुछ खजूरे लाई, यह खजूरे वह अपने बाप और मामू के लिए लाई थी, ... हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नज़र उनका खजूरों पर पड़ी तो फरमाया:-  खजूरें इधर लाओ _,"

उस लड़की ने खजूरों का बर्तन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हाथों में उलट दिया ।


★_ खजूरें उतनी नहीं थी कि दोनों हाथ भर जाते, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह देखकर एक कपड़ा मंगवाया, उसको फैलाकर बिछाया फिर पास खड़े सहाबी से फरमाया :- लोगों को आवाज़ दो.. दौड़ कर आएं _," 

चुनांचे सब जल्द ही आ गए ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने हाथों से खजुरें उस कपड़ों पर गिराने लगे ,सब लोग उस पर से उठा उठा कर के खाते रहे , खजूरें शुरू करने से पहले सब लोग भूखे थे ,भूख की हालत में उन सब ने यह खजूरें खाईं, सबके पेट भर गए और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथों से खजूरे अभी तक गिर रही थी ।


★_ऐसा ही एक वाक्या सैयदना जाबिर रजियल्लाहु अन्हु का पेश आया , उन्हें जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की शदीद भूख का इल्म हुआ तो घर गए , उनके घर में बकरी का एक छोटा सा बच्चा था और कुछ गंदुम भी थे,  उन्होंने कहा कि, "_ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को भूख लगी है .. लिहाजा यह बकरी  ज़िबह कर के सालन तैयार कर दो , गंदुम को पीसकर रोटियों पका लो, मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को लेकर आता हूं _,"

हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु कुछ देर बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और आहिस्ता आवाज़ में कहा कि आपके लिए घर में खाना तैयार कराया है , यह सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने किसी से कहा- एलान कर दो... जाबिर के यहां सब की दावत है _,"


*★_ चुनांचे पुकार का ऐलान किया गया कि सब लोग जाबिर के घर पहुंच जाएं , जाबिर रजियल्लाहु अन्हु परेशान हो गए कि वह थोड़ा सा खाना इतने लोगों को कैसे पूरा होगा , उन्होंने परेशानी के आलम में "इन्ना लिल्लाही वा इन्ना इलैही राजिऊन" पड़ा और फिर घर आ गए..  वह खाना हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने रख दिया गया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- अल्लाह बरकत दे _,"

फिर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने बिस्मिल्लाह  पड़ी,  सब ने खाना शुरू किया, बारी बारी लोग आते और खाकर उठते रहे ,उनकी जगह दूसरे लेते रहे यहां तक कि सब लोगों ने खूब पेट भर कर खाना खाया, उस वक्त उन मुसलमानों की तादाद एक हज़ार थी ।


★_ हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- अल्लाह की क़सम ! जब सब खाना खाकर चले गए तो हमने देखा घर में अब भी उतना ही खाना मौजूद था जितना हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने रखा गया था _,"

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*★_ गज़वा बनी क़ुरेज़ा _,"*


★__ जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गज़वा ए खंदक से फारिग होकर घर आए तो यह दोपहर का वक्त था , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़ोहर की नमाज़ अदा की और सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के हुजरे में दाखिल हो गए , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अभी गुस्ल फरमा रहे थे कि अचानक हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम सियाह रंग का रेशमी अमामा बांधे वहां आ गए ,हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक खच्चर पर सवार थे उन्होंने आते ही आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा :-ए अल्लाह के रसूल ! क्या आपने हथियार उतार दिए हैं ? आपने फरमाया:- हां उतार दिए हैं _," यह सुनकर हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा :- लेकिन अल्लाह ताला के फरिश्तों ने तो अभी हथियार नहीं उतारे _,"

उसके बाद हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने कहा -अल्लाह ताला ने आपको हुक्म दिया है कि आप इसी वक्त बनू कुरेजा़ के मुक़ाबले के लिए कूच करें ,मैं भी वहीं जा रहा हूं _,"


★_ इस पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ऐलान कराया :- हर इता'अत गुज़ार शख्स असर की नमाज बनू कुरेजा़ के मोहल्ले में पहुंचकर पड़े _," इस ऐलान से मुराद यह थी कि रवाना होने में देर ना की जाए । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खुद भी फोरन घोड़े पर सवार हुए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के गिर्द सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम भी हथियार लगाए हुए घोड़ों पर मौजूद थे, सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम की तादाद 3 हज़ार थी, उनमें छत्तीस घुड़सवार थे, उनमें भी तीन घोड़े आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के थे । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आगे आगे हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु परचम लिए हुए बनू कुरेजा़ की तरफ रवाना हुए,  हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु चूंकी आगे रवाना हो गए थे इसलिए पहले वहां पहुंच गए , उन्होंने मुहाजिरीन और अन्सार के एक दस्ते के साथ बनू कुरेजा़ के किले के सामने दीवार के नीचे परचम को नसब किया,  ऐसे में यहूदियों ने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बुरा भला कहना शुरू किया , इस पर हजरत अली और दूसरे सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को गुस्सा आ गया ।


★_ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वहां पहुंचे तो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें यहूदियों की बदज़ुबानी के बारे में बताया ,आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने उनकी पूरी आबादी को घेरे में लेने का हुक्म दे दिया , यह मुहासरा 25 दिन तक ज़ारी रहा ,यहूदी उस मुहासरे से तंग आ गए और आखिरकार आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने हाजिर हो गए , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें बांधने का हुक्म फरमाया, उनकी मशक़ीन कस दी गई, उनकी तादाद 600 या साढ़े 700  थी , उन्हें एक तरफ जमा कर दिया गया यह सब वह थे जो लड़ने वाले थे, उनके बाद यहूदी औरतों और बच्चों को हवेलियों से निकाल कर एक तरफ जमा किया गया , बच्चों और औरतों की तादाद 1000 थी , उन पर हजरत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु को निगरां बनाया गया ।


★_ अब यह लोग बार-बार आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आकर माफी मांगने लगे ,इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने फ़रमाया - क्या तुम इस बात पर रजामंद हो कि तुम्हारे मामले का फैसला तुम्हारा ही (मुंतखब किया हुआ ) कोई आदमी कर दे _," उन्होंने जवाब दिया - साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु जो फैसला भी कर दें हमें मंजूर है _,"

साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान होने से पहले यहूदियों के दोस्त और उनके नज़दीक काबिले अहतराम शख्सियत थे,  हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी बात मान ली, साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु  गज़वा ए खंदक में शदीद जख्मी हो गए थे, वह उस वक्त मस्जिद-ए-नबवी के करीब एक खेमे में थे,  अब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुक्म पर उन्हें बनी क़ुरेज़ा की आबादी में लाया गया, उनकी हालत बहुत खराब थी , आखिर वो नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास पहुंच गए , उन्हें सारी बात बताई गई , इस पर साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- फैसले का हक़ तो अल्लाह ताला ही का है या फिर अल्लाह के रसूल को है _," हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- अल्लाह ही ने तुम्हें हुक्म दिया है कि यहूद के बारे में फैसला करो _," 

अब उन्होंने अपना फैसला सुनाया :- मैं यह फैसला करता हूं कि उनके मर्दो को कत्ल कर दिया जाए और उनका माल और  दौलत माले गनीमत के तौर पर ले लिया जाए और उनके बच्चों और औरतों को गुलाम और लौंडिया बना लिया जाए _," (साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने यहूदियों से अपनी साबका़ दोस्ती की परवाह न करते हुए इतना सख्त फैसला इसलिए सुनाया था कि उन यहूदियों का जुल्मो सितम और उनकी फितना अंगेजी हद से बढ़ गई थी अगर उन्हें यूं ही छोड़ दिया जाता तो यकीनी तौर पर यह लोग मुसलमानों के खिलाफ साजिशें करते रहते उनका मिज़ाज बिच्छू और सांप की मानिंद तो हो चुका था जो कभी डंसने से बाज़ नहीं आ सकता इसलिए उनका सर कुचलना जरूरी था)


★_ उनका फैसला सुनकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- तुमने अल्लाह ताला के फैसले के मुताबिक फैसला सुनाया है ,इस फैसले की शान बहुत ऊंची है ,आज सुबह सहर के वक्त फरिश्ते ने आकर मुझे इस फैसले की इत्तेला दे दी थी _,"


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☝🏻: *★_ गज़वा बनी लहियान _,*


★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हुक्म दिया कि बनी क़ुरेज़ा की हवेलियों में जो कुछ माल और हथियार वगैरह है सब एक जगह जमा कर दिए जाएं, चुनांचे सब कुछ निकाल कर एक जगह ढेर कर दिया गया, उस सारे सामान में 15 सो तलवारे और 3 सो ज़िरहे थी, 2 हजार नेज़े थे, उसके अलावा बेशुमार दौलत थी, मवेशी भी बेतहाशा थे , सब चीजों के 5 हिस्से किए गए उनमें से चार हिस्से सब मुजाहिदीन में तक्सीम किए गए ..वहां शराब के बहुत से मस्के भी मिले उनको तोड़कर शराब को बहा दिया गया इसके बाद यहूदी कैदियों को कत्ल कर दिया गया , बच्चों और औरतों को गुलाम और लौंडी बना लिया गया । इस वाक्ये के बाद हजरत साद बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु खंदक़ में लगने वाले जख्मों के बाइस शहीद हो गए , उनके जनाजे में फरिश्तों ने भी शिरकत की ,उन्हें दफन किया गया तो कब्र से खुशबू आने लगी ।


★_ उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने क़बीला बनु हुज़ैल से उनकी नापाक हरकत का इंतकाम लेने का इरादा फरमाया, बनु हुज़ैल ने रज़ी'अ के मुकाम पर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को शहीद किया था, ये लोग खुद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और दरखास्त की थी कि उनके इलाके में इस्लाम की तालीम के लिए कुछ हजरात को भेज दिया जाए,  चुनांचे हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने दस सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को उनके साथ रवाना फरमाया , उन लोगों ने इन्हें धोखे से शहीद कर दिया , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इन सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की मज़लूमाना शहादत का बेहद रंज़ था ,चुनांचे उन लोगों को सजा देने का फैसला फरमाया और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को तैयारी का हुक्म फरमाया ।


★_ फिर लश्कर को लेकर रवाना हुए , बा-ज़ाहिर तो शाम की तरफ कूच किया था , मगर असल मक़सद बनु हुज़ैल के खिलाफ कार्यवाही थी , मंजिल को इसलिए खुफिया रखा गया ताकि दुश्मनों को जासूसों के ज़रिए पहले से मालूम ना हो और मुसलमान उन ज़ालिमों पर बे खबरी में जा पड़े , पहले हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस मुका़म पर पहुंचे जहां सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को शहीद किया गया था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वहां उनके लिए मग्फिरत और रहमत की दुआ की ।


★_ उधर किसी तरह बनु हुज़ैल को पता चल गया कि मुसलमान उन पर हमला करने के लिए आ रहे हैं वह डर के मारे पहाड़ों में जा छुपे , जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को उनके फरार होने का पता चला तो सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को मुख्तलिफ सिम्तों में रवाना फरमाया ..लेकिन उनका कोई आदमी ना मिल सका । आखिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वापस रवाना हुए, इस गज़वे को गज़वा बनी लहियान कहा जाता है । 


★_ रास्ते में हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अबवा के मका़म से गुज़रे, यहां हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वालिदा को दफन किया गया था,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इधर उधर नजरें दौड़ाई तो अपनी वालिदा की क़ब्र नज़र आ गई , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वज़ु किया और 2 रकात नमाज़ अदा की फिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही सल्लम रोए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को रोते देखकर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम भी रो पड़े ।



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╨*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का ख्वाब _,*


★_ कुछ दिन बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ख्वाब देखा , यह कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने सहाबा किराम के साथ अमन की हालत में मक्का में दाखिल हो रहे हैं फिर उमरा के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और सहाबा  ने बाल मुंडवाए हैं और कुछ ने बाल कतरवाएं और यह कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बैतुल्लाह में दाखिल हुए हैं फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बैतुल्लाह की चाबी ली और अरफात में क़याम करने वालों के साथ क़याम फरमाया,  नीज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने और सहाबा ने बैतुल्लाह का तवाफ किया ।


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपना यह ख्वाब सहाबा किराम को सुनाया, सब इस बशारत से बहुत खुश हुए,  फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से इरशाद फरमाया :- मेरा इरादा उमरे का है_," 

यह सुनने के बाद सबने सफर की तैयारियां शुरू कर दी , आखिर एक रोज़ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उमरे के लिए मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए_,


★_ उमरे का ऐलान आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले ही करा दिया था ताकि लोग इस काफ़िले को हाजियों का काफ़िला ही ख्याल करें और मक्का के लोग और आसपास के लोग जंग के लिए ना उठ खड़े हों, मुशरिकों और दूसरे दुश्मनों को पहले मालूम हो जाए कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उमरे की नियत से आ रहे हैं ...और कोई नियत नहीं है _,

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़ुलहुलैफा के म़काम पर अहराम बांधा , पहले मस्जिद में 2 रकात नमाज़ अदा की.. फिर मस्जिद से ही ऊंटनी पर सवार हुए.. अक्सर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने यहीं से अहराम बांधा , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इस सफर पर जी़का़दा के महीने में रवाना हुए थे।


★_ काफ़िले के साथ कुर्बानी के जानवर भी थे, ज़ुलहुलैफा। के मुका़म पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम  ने ज़ोहर की नमाज़ अदा फरमाई, जानवरों पर झोलें डाली ताकि जान लिया जाए कि यह कुर्बानी के हैं उनके कोहानों का निशान लगाया गया,  यह निशान जख्म लगाकर डाला जाता है,  इस सफर में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ 1400 सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम थे ..चूंकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उमरे की नियत से रवाना हुए थे इसलिए आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम और सहाबा के पास सिवाय तलवार के और कोई हथियार नहीं था।


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   *★_ रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चंद मोजज़ात _,*


★_ सफर के दौरान एक मुकाम पर पानी खत्म हो गया सहाबा रजियल्लाहु अन्हु हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आए उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने पानी का एक बर्तन था आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उससे वज़ू फरमा रहे थे ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे पूछा_ क्या बात है ?

सहाबा ने बताया - आपके पास इस बर्तन में जो पानी है उस पानी के अलावा पूरे लश्कर में किसी के पास और पानी नहीं है _,"


★_ यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पानी के बर्तन में अपना हाथ मुबारक रख दिया, जोंहीं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हाथ मुबारक पानी में रखा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उंगलियों से पानी इस तरह निकलने लगा जैसे बर्तन में चश्मे फूट रहे हो,

एक सहाबी का बयान है कि मैंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उंगलियों से पानी के फव्वारे निकलते देखें , हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए एक पत्थर से पानी का चश्मा फूट निकला था लेकिन यहां नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उंगलियों से पानी ज़ारी हो गया था, उलमा किराम फरमाते हैं कि यह वाक्या मूसा अलैहिस्सलाम वाले वाक्य से कहीं ज्यादा हैरतनाक है ..क्योंकि चश्मे पहाड़ों चट्टानों ही से निकलते हैं लिहाज़ा पत्थर से पानी का ज़ारी होना इतनी अजीब बात नहीं जितनी कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मुबारक उंगलियों से पानी ज़ारी होना अजीब है _,"


★_ हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- "_ जोंही यह पानी का चश्मा फूटा हम सब पीने लगे ...हम ने पिया भी और उस पानी से वज़ु भी किया और अपने बर्तन भी भरें ..अगर हम उस वक्त एक लाख भी होते तो भी पानी हमारे लिए काफी हो जाता, जबकि उस वक्त हमारी तादाद 1400 थी _,"

─*★_ सलाते खौफ ( खौफ की नमाज़) की आयत का नाज़िल होना _,*


★__ मुसलमानों का काफिला आ

असफान के मुका़म पर पहुंचा तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास बशर बिन सुफियान अतकी रज़ियल्लाहु अन्हु आए ,आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले ही इन्हें जासूस बनाकर मक्का की तरफ रवाना कर दिया था क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की नियत अगरचे सिर्फ उमरा की थी लेकिन कुरेश के बारे में इत्तेलात रखना ज़रूरी था, बशर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आकर बताया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! क़ुरेश को इत्तेला मिल चुकी है कि आप मदीना मुनव्वरा से रवाना हो चुके हैं देहातों में जो उनके इता'त गुज़ार लोग हैं कुरेश ने उनसे भी मदद तलब की है, बनी सक़ीफ भी उनकी मदद करने पर आमादा है ..और उनके साथ औरतें और बच्चे भी हैं ,वह लोग मक्के से निकलकर ज़ी'तवी के मुका़म तक आ गए हैं उन्होंने एक दूसरे से अहद किया है कि वह आपको मक्का में दाखिल होने नहीं देंगे.. दूसरे यह कि खालिद बिन वालिद (जो उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे) घुड़सवार दस्ता लेकर गमीम के मुक़ाम तक आ गए हैं, उनके दस्ते में 200 सवार हैं और वह आपके खिलाफ सफबंदी कर चुके हैं _,"


★_ यह इत्तेला मिलने पर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत इबाद बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म फरमाया कि वह मुसलमान घुड़सवारों के साथ आगे बढ़े ,यह आगे बढ़े और हजरत खालिद बिन वलीद के दस्ते के सामने पहुंच गए , इन्होंने भी सफबंदी कर ली, 

नमाज का वक्त हुआ तो हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नमाज़ शुरू की ,जब मुसलमान नमाज़ से फारिग हुए तो कुछ मुशरिकों ने कहा - हमने एक अच्छा मौक़ा गंवा दिया हम उस वक्त उन पर हमला कर सकते थे जबकि यह नमाज पढ़ रहे थे हम उस वक्त उन्हें आसानी से खत्म कर सकते थे_," एक और मुशरिक ने कहा- कोई बात नहीं एक और नमाज़ का वक्त आ रहा है और नमाज़ उन लोगों को अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ है ज़ाहिर है यह नमाज़ पढ़े बगैर तो रहेंगे नहीं ..सो हम उस वक्त उन पर हमला करेंगे_,"


★_ नमाज़े असर का वक्त हुआ तो अल्लाह ताला ने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को भेज दिया वह सलाते खौफ की आयत लेकर आए थे जिसमें अल्लाह ताला ने फरमाया :- 

"_ (तर्जुमा )_और जब आप उनके दरमियान हों और आप उन्हें नमाज़ पढ़ाना चाहें तो यूं करना चाहिए कि लश्कर का एक गिरोह तो आपके साथ खड़ा हो जाए और वह लोग हथियार ले ले फिर जब यह लोग सजदा कर चुके तो यह आपके पीछे आ जाएं और दूसरा गिरोह जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है आ जाए और नमाज़ पढ़ ले और यह अपने बचाव का सामान हथियार वगैरह ले लें_," ( सूरह निसा)


★_ चुनांचे इस तरह नमाज़ अदा की गई .. यह सलाते खौफ थी यानी जब दुश्मन से मुकाबला हो तो आधा लश्कर पीछे हट कर 2 रकात अदा कर ले और वापस अपनी जगह पर आ जाए बाक़ी जो लोग रह गए हैं अब वह जाकर 2 रकात अदा करें, इस नमाज की अदायगी का तफसीली तरीका फुक़हा की कुतुब में देखा जा सकता है। 

मुसलमानों ने जब असर की नमाज़ इस तरह अदा की तो मुशरिक बोल उठे -अफसोस हमने उनके खिलाफ जो सोचा था उस पर अमल ना कर सके_,"

*★_ तीर से मीठे पानी का चश्मा जारी हो गया _,*


★__ इधर हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को यह इत्तेला मिली कि कुरेशे मक्का आपको बैतुल्लाह की ज़ियारत से रोकने का फैसला कर चुके हैं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम से इस बारे में मशवरा किया और उनसे फरमाया:- "_ लोगों मुझे मशवरा दो क्या तुम चाहते हो कि हम बैतुल्लाह की जियारत का फैसला कर लें और जो भी हमें इससे रोके उससे जंग करें ?

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की यह बात सुनकर अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप सिर्फ बैतुल्लाह की जियारत का इरादा फरमाकर निकले हैं आपका मक़सद जंग और खूंरेजी हरगिज़ नहीं इसलिए आप इस इरादे के साथ आगे बढ़ते रहें अगर कोई हमें इस जियारत से रोकेगा तो उससे जंग करेंगे _,"


★_ हजरत मिक़दाद रजियल्लाहु अन्हु ने कहा:- ऐ अल्लाह के रसूल ! हम आपसे वह नहीं कहेंगे जो बनी इसराइल ने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा था कि तुम और तुम्हारा रब जाकर जंग करो हम तो यहां बैठे हैं.. हम तो आपसे कहते हैं आप और आपका रब जंग करें हम भी आपके साथ जंग करेंगे ,और ऐ अल्लाह के रसूल ! अल्लाह की क़सम अगर आप हमें लेकर बरके गमाद भी जाना चाहे तो हम आपके साथ होंगे ,हमने से एक शख्स भी पशोपेश नहीं करेगा ( बरके गमाद मदीना मुनव्वरा से बहुत दूर दराज के एक मुकाम का नाम है)


★_ उन दोनों हजरात की राय लेने के बाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया :- बस तो फिर अल्लाह का नाम लेकर आगे बढ़ो _," , चुंनाचे मुसलमान आगे रवाना हो गए यहां तक कि हुदेबिया के मुकाम पर पहुंचे , उस जगह हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ऊंटनी खुद-ब-खुद बैठ गई लोगों ने उठाना चाहा लेकिन वह ना उठी, लोगों ने कहा - कस्वा अड़ गई है _," हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह सुनकर इरशाद फरमाया :- यह अड़ी नहीं और ना अड़ने की इसकी आदत है बल्कि इसे उस जा़त ने रोक लिया है जिसने अब्राहा के लश्कर को मक्का में दाखिल होने से रोक दिया था _," , 

मतलब यह था कि कस्वा खुद नहीं रूकी, अल्लाह के हुक्म से रूकी है , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस मुकाम पर क़याम का हुक्म फरमाया ,इस पर सहाबा ने अर्ज़ किया :- अल्लाह के रसूल ! यहां पानी नहीं है ?


★_ यह सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने तरकश से एक तीर निकाल कर नाजिया बिन जुंदुब रजियल्लाहु अन्हु को दिया जो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के कुर्बानी के जानवरों के निगरां थे, हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हुक्म फरमाया कि यह तीर किसी गढ़े में गाड़ो, तीर एक ऐसे गढ़े में गाड़ दिया गया जिसमें थोड़ा सा पानी मौजूद था ,फौरन ही उसमें से मीठे पानी का चश्मा उबलने लगा यहां तक कि तमाम लोगों ने पानी पी लिया जानवरों को भी पानी पिलाया फिर सब जानवर उसी गढ़े के गिर्द बैठ गए। 

जब तक तीर उस गढ़े में लगा रहा उस में से पानी उबलता रहा, गढ़े से पानी उबलने की खबरें कुरेश तक भी पहुंच गई ..अबू सुफियान ने लोगों से कहा- हमने सुना है हुदेबिया के मुक़ाम पर कोई गढ़ा ज़ाहिर हुआ है उसमें से पानी का चश्मा फूट रहा है जरा हमें भी तो दिखाओ , मोहम्मद ने यह क्या करिश्मा दिखाया है ?


★_ चुनांचे उन्होंने वहां जाकर उस गढ़े को देखा गढ़े में लगे तीर की जड़ से पानी निकल रहा था यह देखकर अबू सुफियान और उसके साथी कहने लगे:- इस जैसा वाकि़या तो हमने कभी नहीं देखा यह मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ) का छोटा सा जादू है_,"


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 : *★_ सुलह हुदैबिया _,*


★__ हुदैबिया पहुंचकर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरेश की तरफ काशिद भेजने का इरादा फरमाया ताकि बातचीत हो सके और वाज़े हो जाए कि मुसलमान लड़ाई के इरादे से नहीं आए है बल्कि उमरा करने की नियत से आए हैं ..इस गर्ज़ के लिए दो या तीन क़ासिद भेजे गए लेकिन बात ना बन सकी.. आखिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने सैयदना उस्मान बिन अफ्फान रजियल्लाहु अन्हु को भेजा और उन्हें यह हुक्म दिया कि वह मक्का में उन मुसलमान मर्दों और औरतों के पास जाएं जो वहां फंसे हुए हैं उन्हें फतेह की खुशखबरी सुनाएं और यह खबर दें कि बहुत जल्द अल्लाह ताला मक्का में अपने दीन को सर बुलंद फरमाएंगे यहां तक कि वहां किसी को अपना ईमान छुपाने की जरूरत नहीं रहेगी _,


★_ गर्ज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म पर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु मक्का की तरफ रवाना हुए मक्का में दाखिल होने से पहले सैयदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबान बिन स'ईद की पनाह ली जो कि उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे बाद में मुसलमान हुए,  अबान बिन स'ईद ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की पनाह मंजूर कर ली, उन्होंने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को आगे कर दिया खुद उनके पीछे चले ताकि लोग जान लें यह उनकी पनाह में है.. इस तरह उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु कुरेशे मक्का तक पहुंचे ,उन्हें रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैगाम पहुंचाया, जवाब में कुरैश ने कहा :- मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) हमारी मर्जी के खिलाफ कभी मक्का में दाखिल नहीं हो सकते, हां तुम चाहो तो बैतुल्लाह का तवाफफ कर लो _," इसपर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया :- यह कैसे हो सकता है कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के बगैर तवाफ कर लूं _,"


★_ क़ुरेश ने बातचीत के सिलसिले में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को 3 दिन तक रोके रखा ऐसे में किसी ने यह खबर उड़ा दी कि क़ुरेश में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया है, इस पर नबी करीम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने गमजदा होकर इरशाद फरमाया - अब हम उस वक्त तक नहीं जाएंगे जब तक दुश्मन से जंग नहीं कर लेंगे _," उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया- अल्लाह ताला ने मुझे मुसलमानों से बैत लेने का हुक्म फरमाया है _,"

हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बात पर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने पुकार पुकार कर बैत का ऐलान किया , उस ऐलान पर सब लोग बैत के लिए जमा हो गए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त एक दरख्त के नीचे तशरीफ़ फरमा थे, सहाबा किराम ने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से इन बातों पर बैत की :- "_किसी हालत में आपका साथ छोड़ कर नहीं भागेंगे फतेह हासिल करेंगे या शहीद हो जाएंगे_,"


★_ मतलब यह कि यह बैत मौत थी, उस बैत की खास बात यह थी कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की तरफ से खुद बैत की.. और अपना दायां हाथ अपने बाएं हाथ पर रखकर फरमाया- ऐ अल्लाह यह बैत उस्मान की तरफ से है क्योंकि वह तेरे और तेरे रसूल के काम से गए हुए हैं इसलिए उनकी तरफ से मैं खुद बैत करता हूं _," 

फिर 1400 सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बारी-बारी बैत की _,

: *★_ बाद में हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम को अल्लाह ताला की तरफ से यह इत्तेला मिल गई कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को शहीद नहीं किया गया वह जिंदा सलामत हैं , आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस मौक़े पर ऐलान फरमाया :- "_अल्लाह ताला ने उन लोगों की मग्फिरत कर दी जो गज़वा बदर और हदैबिया में शरीक थे _,",

इस बात का जिक्र अल्लाह ताला ने कुरान ए करीम ने इन अल्फाज़ में किया :- 

"_( तर्जुमा) ऐ पैगंबर ! जब मोमिन आपसे दरख्त के नीचे बैत कर रहे थे तो अल्लाह ताला उनसे राज़ी हुआ और जो सच्चाई और खुलूस उनके दिलों में था उसने वह मालूम कर लिया तो उन पर तसल्ली नाजिल फरमाई और उन्हें जल्द फतह इनायत की_,"


★_ उधर कुरेश को जब इस बैत का पता चला तो वह खौफ ज़दा हो गए उनके अक़लमंद लोगों ने मशवरा दिया कि सुलह कर लेना मुनासिब होगा और सुलह इस शर्त पर कर ली जाए कि मुसलमान इस साल तो वापस लौट जाएं आइंदा साल आ जाएं और 3 दिन तक मक्का में ठहर कर उमरा कर लें, 

जब यह मशवरा तै पा गया तो उन्होंने बातचीत के लिए सुहेल बिन अमरू को भेजा ,उसके साथ दो आदमी और थे, सुहैल आपके सामने पहुंचकर घुटनों के बल बैठ गया बातचीत शुरू हुई सुहेल ने बहुत लंबी बात की आखिर सुलह की बातचीत तय हो गई दोनों फरीक़ इस बात पर राजी़ थे कि खूंरेजी़ नहीं होनी चाहिए बल्कि सुलह कर ली जाए सुलह की बाज़ शराइत बा ज़ाहिर बहुत सख्त थी।


★_ उस मु'आहिदे में यह शराइत लिखी गई :- 

(एक)_ 10 साल तक आपस में कोई जंग नहीं की जाएगी ।

(दो)_ जो मुसलमान अपने वली और सरपरस्त की इजाज़त के बगैर मक्का से भागकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आएगा अल्लाह के रसूल उसे वापस भेजने के पाबंद होंगे चाहे वह मर्द हो या औरत । ( यह शर्त जाहिर में मुसलमानों के लिए बहुत सख्त थी लेकिन बाद में साबित हुआ कि यह शर्त भी दरअसल मुसलमानों के हक में थी क्योंकि इसी तरह बैतुल्लाह मुसलमानों से आबाद रहा और दीन का काम जारी रहा )

(तीन)_ कोई शख्स जो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथी रहा हो और वह भागकर कुरेश के पास आ जाए तो उसे वापस नहीं करेंगे।


(चार)_ कोई शख्स या कोई खानदान या कोई कबीला अगर मुसलमानों का हलीफ ( मुआहिदा बरदार) बनना चाहे तो बन सकता है और जो शख्स या खानदान या कबीला कुरेश का हलीफ बनना चाहे तो वह उनका हलीफ बन सकता है ।

(पांच ) _ मुसलमानों को इस साल उमरा के बगैर वापस जाना होगा अलबत्ता आइंदा साल 3 दिन के लिए कुरेश मक्का को खाली कर देंगे लिहाजा मुसलमान यहां पर मसलह हालत में आ कर ठहर सकते हैं और उमरा कर सकते हैं।

: *★_ यह शराइत बा ज़ाहिर कुरेश के हक़ में और मुसलमानों के खिलाफ थी, इसलिए सहाबा किराम को नागवार गुज़री यहां तक कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने भी नागवारी महसूस की और सीधे हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के पास आए और बोले - अबू बकर ! क्या हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल नहीं है ? हजरत सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया -बेशक हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल है । उस पर फारूक ए आजम बोले - क्या हम मुसलमान नहीं हैं ? अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - बिल्कुल हम मुसलमान हैं । हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने कहा -क्या वह लोग मुशरिक नहीं है ? अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले- हां ,बेशक वह मुशरिक है । अब हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - तब फिर हम ऐसी शराइत क्यों कुबूल करें जिनसे मुसलमान नीचे होते हैं ?


★_ उस वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने बहुत खूब जवाब दिया, फरमाया - ऐ उमर ! वो अल्लाह के रसूल हैं.. उनके अहकामात और फैसलों पर सर झुकाओ अल्लाह ताला उनकी मदद करता है _,"

यह सुनते ही हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फौरन बोले :- मैं गवाही देता हूं कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं _,"

उसके बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और इसी कि़स्म के सवालात किए , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी बातों के जवाब में जो अल्फाज़ फरमाएं वह बिल्कुल वही थे जो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु फरमा के थे , हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया :- "_मैं अल्लाह का बंदा और रसूल हूं मैं किसी हालत में भी अल्लाह के हुक्म की खिलाफ वरजी नहीं कर सकता वही मेरा मददगार है _,"


★_उसी वक्त हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- "_ऐ उमर ! जो कुछ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमा रहे हैं क्या तुम उसको सुन नहीं रहे हो ? हम शैतान मरदूद  से अल्लाह की पनाह मांगते हैं _,"

तब हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु भी बोले :- "_मैं शैतान मरदूद से अल्लाह की पनाह मांगता हूं _,"

नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह भी इरशाद फरमाया :- ऐ उमर ! मैं तो इन शराइत पर राज़ी हूं और तुम इंकार कर रहे हो _,"


★_ चुनांचे हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाया करते थे, मैंने उस वक्त जो बातें की थी अगरचे वह इस तमन्ना मे थी कि उस मामले में खैर और बेहतरी ज़ाहिर हो, मगर अपनी उस वक्त की गुफ्तगू के खौफ से में उसके बाद हमेशा रोज़े रखता रहा, सदक़ात करता रहा, नमाज़े पढ़ता रहा और गुलाम आज़ाद करता रहा।

[23/04, 8:02 pm] Ansar Ahmad Khan🖋🖊: ★_ फिर उस सुलह की तहरीर लिखी गई , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत औस बिन खौला रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि यह मुआहिदा लिखें , इस सुहेल बिन अमरू ने कहा :- यह मुआहिदा अली लिखेंगे या फिर उस्मान । हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को मुआहिदा लिखने का हुक्म फरमाया और फरमाया- लिखो "_बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम _,", इस पर सुहेल बिन अमरू ने फिर एतराज़ किया :- मैं रहमान और रहीम को नहीं मानता ..आप यूं लिखवाएं " बिस्मिका अल्लाहुम्मा "( यानी शुरू करता हूं, ए अल्लाह तेरे नाम से ) ,हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया -इसी तरह लिख दो , उन्होंने लिख दिया तो हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया:-  लिखो ! मोहम्मद रसूलुल्लाह ने इन शराइत पर सुहेल बिन अमरू से सुलह की _,"


★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु लिखने लगे लेकिन सुहेल बिन अमरू ने फिर एतराज़ किया- "_ अगर मैं यह शहादत दे चुका होता कि आप अल्लाह के रसूल हैं तो फिर ना तो आपको बैतुल्लाह से रोका जाता ना आप से जंग होती , इसलिए यूं लिखिए मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह _,"

उस वक्त तक हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के इरशाद के मुताबिक वह इबारत लिख चुके थे इसलिए आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया-  उसको मिटा दो (यानी लफ्ज़ रसूलुल्लाह को मिटा दो ) , हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- मैं तो कभी नहीं मिटा सकता ।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू वसल्लम ने फरमाया - मुझे दिखाओ  यह लफ्ज़ किस जगह लिखा है ? हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने लफ्ज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को दिखाया, हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने खुद अपने दस्ते मुबारक से उसे मिटाया ,उसके बाद हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को लिखने का हुक्म फरमाया :- लिखो ! यह वह समझौता है जिस पर मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह ने सुहेल बिन अमरू  के साथ सुलह की _,"


★_ इसके बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया - अल्लाह की क़सम! मैं अल्लाह का रसूल हूं चाहे तुम मुझे झुठलाते रहो और मैं ही मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह हूं _,"

यह मुआहिदा अभी लिखा जा रहा था कि अचानक एक मुसलमान हजरत अबू जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी बेड़ियों को खींचते वहां तक आ पहुंचे, मुशरिकों ने उन्हें कैद में डाल रखा था ,उनका जुर्म यह था कि इस्लाम क्यों कुबूल किया ...इस्लाम छोड़ दो या फिर कैद में रहो.. यह अबू जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु इसी सुहेल बिन अमरू के बैटे थे जो मुआहिदा तैय कर रहा था ,यह किसी तरह से क़ैद से निकलकर वहां तक आ गए थे ताकि उस ज़ुल्म से निजात मिल जाए ,


★_ उन्हें देखकर सब मुसलमान खुश हो गए और जान बचाकर निकल आने पर उन्हें मुबारकबाद देने लगे,  इधर जोंही सुहेल ने अपने बेटे को देखा तो एकदम खड़ा हुआ और एक ज़न्नाटेदार थप्पड़ उनके मुंह पर दे मारा, यह भी रिवायत आई है कि उसने उन्हें छड़ी से मारा-पीटा , मुसलमान उनकी यह हालत देख कर रो पड़े । अब सोहेल ने उन्हें गिरेबान से पकड़ लिया और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बोला-  ए मोहम्मद ! यह पहला मुसलमान है जो हम लोगों के पास से यहां आ गया है इस मुआहिदे के तहत आप इसे वापस करें क्योंकि यह मुआहिदा लिखा जा चुका है _,"


[ *★_ फतह मुबीन __,*


★_ उसकी बात सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया- ठीक है ले जाओ ,इस पर अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु बेकरार होकर बोले :- क्या आप मुझे फिर मुशरिकों के साथ वापस भेज देंगे ? 

इस्लाम लाने की वजह से हजरत अबू ज़ुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु पर बहुत जुल्म ढाए गए थे लिहाज़ा इस सूरते हाल पर सब लोग बुरी तरह बेचैन हो गए, इस मौके पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- अबु ज़ुंदुल ! सब्र से काम लो, अल्लाह ताला तुम्हारे लिए और तुम्हारे जैसे और मुसलमानों के लिए कुशादगी और सहुलियत पैदा फरमाने वाला है हम कुरेश से एक मुआहिदा कर चुके हैं उस मुआहिदे की वजह से हम तुम्हें वापस भेजने के पाबंद हैं हमने उन्हें अल्लाह के नाम अहद दिया है लिहाजा उसकी खिलाफ वर्जी हम नहीं करेंगे _,"


★_ सहाबा किराम की आंखों में आंसू आ गए.. वह बेताब हो गए.. हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु जैसे शख्स भी रो पड़े.. लेकिन मुआहिदा की वजह से सब मजबूर थे, इस तरह अबू जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु को वापस भेज दिया गया, 

अबू जुंदल रज़ियल्लाहु अन्हु का असल नाम आस था , अबू ज़ुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु के एक भाई अब्दुल्लाह बिन सुहेल थे जो कि उनसे भी पहले मुसलमान हो चुके थे ,अब्दुल्लाह बिन सुहेल रज़ियल्लाहु अन्हु इस तरह मुसलमान हुए थे कि मुशरिकों के साथ बदर के मैदान में मुसलमानों से लड़ने के लिए आए थे लेकिन बदर के मैदान में आते ही वो मुशरिकों का साथ छोड़कर मुसलमानों की सफ में शामिल हो गए थे _,


★_ उस मुआमाहिदे के बाद बनू खुजा़ं के लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ दोस्त क़बीले की हैसियत से शामिल हो गए, यानी मुसलमानों के हलीफ बन गए , 

मुआहिदा लिखा जा चुका तो दोनों की तरफ से अहम लोगों ने उस पर बतौर गवाह दस्तखत किए ,  मुआहिदे से फारिग होकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सर मुंडवाने और कुर्बानी का हुक्म फरमाया, बल्कि पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर मुंडवाया और कुर्बानी की , फिर तमाम सहाबा किराम ने भी ऐसा किया,


★_ फिर जब मुसलमान उस मुकाम से वापस रवाना हुए तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम पर सूरह फतह नाजि़ल हुई , अल्लाह ताला ने इस सूरत में यह खुशखबरी सुनाई कि बेशक आपको एक खुली फतेह दे दी गई और अल्लाह की नियामत आप पर तमाम होने वाली है।

[: *★_ सफर के दौरान एक मुकाम पर खुराक़ खत्म हो गई ,सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने यह बात आप सल्लल्लाहू अलैही सलाम के बताई, हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक चादर बिछाने का हुक्म फरमाया, फिर हुक्म फरमाया कि जिसके पास जो कुछ बचा कुचा खाना हो इस चादर पर डाल दे, सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने ऐसा ही किया ,आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने दुआ फरमाई, फिर सब को हुक्म दिया इस चादर से अपने-अपने बरतन भर लें, चुंनाचे सबने बरतन भर लिए, खूब सैर हो कर खाया लेकिन खाना जूं का त्यों बचा रहा।


★_ इस मौक़े पर हुजूर सल्लल्लाहू वसल्लम हंस पड़े और इरशाद फरमाया :- 

"_ अशहदु अल्लाइलाहा इल्लल्लाहु व इन्नी रसूलुल्लाह , अल्लाह की क़सम,इन दो गवाहियों के साथ जो शख्स भी अल्लाह ताला के सामने हाज़िर होगा दोजख से महफूज़ रहेगा _,"


★_जब हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर सूरह फतह नाजि़ल हुई तो जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया- ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको यह फतेह मुबारक हो _,"

इस पर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मुबारकबाद दी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं-  इस्लाम में सुलह हुदैबिया से बड़ी मुसलमानों को कोई फतेह नहीं हुई _,"  यानी इस क़दर बड़ी फतह थी ..जबकि लोग इसकी हक़ीक़त को उस वक्त बिलकुल नहीं समझ सके थे जब मुआहिदा लिखा जा रहा था ।


★_ सुहेल बिन अमरू जिन्होंने यह मुआहिदा लिखा था बाद में मुसलमान हो गए थे, हज्जतुल विदा के मौक़े पर उन्हें उस जगह पर खड़े देखा गया था जहां कुर्बानियां की जाती है , वह हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को कुर्बानी के जानवर पेश कर रहे थे और हुजूर अकरम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम अपने दस्ते मुबारक से उन्हें ज़िबह कर रहे थे , इसके बाद सुहेल बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का सर मुंडवाने के लिए हज्जाम बुलवाया, इस वक्त यह मंजर देखा गया कि हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का जो बाल भी गिरता था सुहेल बिन अमरु उसे अपनी आंखों से लगाते थे।


★_ अंदाज़ा लगाएं उनमें किस क़दर ज़बरदस्त तब्दीली आ चुकी थी.. सुलह हुदैबिया के मौक़े पर वह रसूलुल्लाह का लफ्ज़ लिखे जाने पर तैश में आ गए थे और अब हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बालों को आंखों से लगा रहे थे ।


★_इसी साल 6 हिजरी को शराब हराम हुई, हुक्म आने पर लोगों ने शराब के मटके तोड़ दिए और शराब बारिश के पानी की तरह नालियों में बहती नजर आई ।

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[: *★_ खैबर की फतह _,*


★_ खैबर एक बड़ा कस्बा था उसमें यहूदियों की बड़ी-बड़ी हवेलियां खेत और बागात थे यहूदी मुसलमानों को बहुत सताते थे और इस्लाम के खिलाफ साजिशें करते रहते थे,  मदीना मुनव्वरा से खैबर का फासला 150 किलोमीटर का है, हुदैबिया से तशरीफ लाने के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम एक माह तक या उससे कुछ कम मुद्दत तक यानी जि़ल हिज्जा 6 हिजरी के आखिर तक मदीना ही में रहे और उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू वसल्लम खैबर की तरफ रवाना हुए, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा में से सिर्फ उन लोगों को चलने का हुक्म फरमाया जो हदैबिया में भी साथ थे।


★_ मदीना मुनव्वरा से रवाना होते वक्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हजरत सबा बिन उरफत रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा में अपना का़यम मुकाम मुकर्रर फरमाया, इस गज़वे में आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अज़वाज में से हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी साथ थी,  अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम जब खैबर के सामने पहुंचे तो यह सुबह का वक्त था,  अब्दुल्ला बिन क़ैस रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सवारी के पीछे पीछे था ऐसे में मैंने "ला हवला वला कु़व्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिययिल अज़ीम " पढ़ा , 


★_ मेरे मुंह से यह कलमा सुनकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - ए अब्दुल्लाह ! क्या में तुम्हें एसा कलमा ना बता दूं जो जन्नत के खज़ानों में से है ? मैंने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! जरूर बताइए । आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- वो वही कलमा है जो तुमने पढ़ा है , यह जन्नत के खज़ानों में से एक खज़ाना है और यह कलमा अल्लाह ताला को बहुत पसंद है _,"


★_ खैबर के लोगों ने जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और आपके लश्कर को देखा तो चीखते चिल्लाते मैदानों और खुली जगहों में निकल आए और पुकार उठे - मोहम्मद एक जबरदस्त लश्कर लेकर आ गए हैं _," 

यहूदियों की तादाद वहां तक़रीबन 10 हजार थी और वह यह सोच भी नहीं सकते थे कि मुसलमान उनसे मुकाबला करने के लिए निकल खड़े होंगे, जब मुसलमान जंग की तैयारी कर रहे थे उस वक्त भी हैरान होकर कह रहे थे-  हैरत है.. कमाल है..,

नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यहूदियों के क़िलों में से सबसे पहले एक क़िला नतात की तरफ तवज्जो फरमाई और उसका मुहासरा कर लिया, उस मुकाम पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक मस्जिद भी बनवाई , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जितने दिन खैबर में रहे इसी मस्जिद में नमाज़ अदा फरमाते रहे, इस जंग के मौके पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दो जिरहें पहन रखी थी और घोड़े पर सवार थे,  रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घोड़े का नाम ज़र्ब था , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथों में नेज़े और ढ़ाल भी थी , आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अपने एक सहाबी को परचम दिया वह परचम उठाए आगे बढ़े उन्होंने जबरदस्त जंग की लेकिन नाकाम लौट आए , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने परचम एक दूसरे सहाबी को दिया वह भी नाकाम लोट आए , मोहम्मद बिन मसलमा रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई मेहमूद बिन मसलमा रज़ियल्लाहु अन्हु किले की दीवार के नीचे तक पहुंच गए लेकिन ऊपर से मुरहब नामी यहूदी ने उनके सर पर एक पत्थर दे मारा और वह शहीद हो गए ।

: ★_ क़िला नतात के लोग सात दिन तक बराबर जंग करते रहे हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम रोजाना मोहम्मद बिन मुस्लिम रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ लेकर जंग के लिए निकलते रहे , पड़ाव में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को निगरां बनाते, शाम के वक्त हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसी जगह वापस आ जाते , ज़ख्मी मुसलमान भी वहीं पहुंचा दिये जाते, रात के वक्त एक दस्ता लश्कर की निगरानी करता बाक़ी लश्कर सो जाता,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी निगरानी करने वाले दस्ते के साथ गश्त के लिए निकलते ,कई रोज तक जब क़िला फतह ना हुआ तो हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मोहम्मद मुस्लिम रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- आज मैं परचम उस शख्स को दूंगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करता है और अल्लाह और रसूल भी उससे मोहब्बत करते हैं और वह पीठ दिखाने वाला नहीं अल्लाह ताला उसके हाथ पर फतेह अता फरमाएंगे और इस तरह अल्लाह ताला तुम्हारे भाई के कातिल पर काबू अता फरमाएंगे_,"


★_ सहाबा किराम ने जब यह ऐलान सुना तो हर एक ने चाहा कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम परचम उसे दे, मगर फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को तलब फरमाया, उन दिनों हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की आंखों में तकलीफ थी, चूंनाचे लोगों ने बताया कि उनकी तो आंखें दुखने आई हुई है ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह सुनकर फरमाया कि कोई उन्हें मेरे पास ले आए,  तब हजरत सलमा बिन उकवा रजियल्लाहु अन्हु गए और उन्हें ले आए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनका सर अपनी गोद में रखा और फिर उनकी आंखों में अपना लुआबे दहन डाला,लुआब का आंखों में लगना था कि वह उसी वक्त ठीक हो गई यह महसूस होता था जैसे उन्हें कोई तकलीफ थी ही नहीं,  हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं -उसके बाद जिंदगी भर मेरी आंखों में कभी कोई तकलीफ नहीं हुई ।


★_ फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने परचम हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को मरहमत फरमाया और इरशाद फरमाया- जाओ और पीछे मुड़कर नहीं देखना _,"

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु परचम को लहराते हुए किले की तरफ रवाना हुए फिर किले के नीचे पहुंच कर उन्होंने झंडे को नस्ब कर दिया, किले के ऊपर बैठे हुए एक यहूदी ने उन्हें देखकर पूछा- तुम कौन हो ?जवाब में उन्होंने फरमाया- मैं अली इब्ने अबी तालिब हूं । यहूदी ने कहा-  तुम लोगों ने बहुत सर उठाया है हालांकि हक़ वही है जो मूसा अलैहिस्सलाम पर नाजिल हुआ था_,"


★_ फिर यहूदी किले से निकलकर उनकी तरफ बढ़े, उनमें सबसे आगे हर्ष था, वह एक मुर्हब का भाई था यह शख्स अपनी बहादुरी के सिलसिले में बहुत मशहूर था , उसने नज़दीक आते ही हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर हमला किया ,हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसका वार रोका और जवाबी हमला किया, इस तरह दोनों के दरमियान तलवारें चलती रही आखिर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे खून में नहला दिया , .. उसके गिरते ही मुरहब आगे आया , यह अपने भाई से ज्यादा बहादुर और जंगजू था , हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे भी क़त्ल कर दिया।


★_ मुरहब के बाद उसका भाई यासिर आगे आया, वो आगे आ कर ललकारा- कौन है जो मेरे मुकाबले में आएगा ? हजरत जुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमानों की सफ से आगे आए और उसे ठिकाने लगा दिया ।

: ★__ खैबर की जंग हो रही थी एक शख्स आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ इसका नाम असवद राई था और वह यहूदी था एक शख्स का गुलाम था उसकी बकरियां चराता हुआ उस तरफ आ गया था , उसने कहा - ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे इस्लाम के बारे में बताइए _," रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुख्तसर तौर पर इस्लाम की खूबियां बयान फरमाई और उसे इस्लाम कुबूल करने की दावत दी, उसने फोरन कलमा पढ़ लिया, उसके बाद यह असवद राई रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमानों के साथ क़िले की तरफ बढ़े और जंग करते हुए शहीद हो गए , जब उनकी लाश आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने लाई गई तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया-  अल्लाह ताला ने इस गुलाम को बुलंद मर्तबा अता फरमाया है _,"

असवद रज़ियल्लाहु अन्हु किस क़दर खुशकिस्मत थे ,ना कोई नमाज़ पढ़ी ना रोज़ा रखा.. ना हज किया, लेकिन फिर भी जन्नत हासिल करने में कामयाब हो गए_,


★_ आखिर वह क़िला फतह हो गया उस क़िले के मुहासरे के दौरान मुसलमानों को खाने की तंगी हो गई वह भूख से बेहाल होने लगे लोगों ने इस तंगी के बारे में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से जिक्र किया, इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई - ऐ अल्लाह इन किलों में से अक्सर कि़लों को फतेह करा कि इनमें रिज़्क़ और घी की बहुतात हो _,"


★_ उसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हिबाब बिन मंजर रज़ियल्लाहु अन्हु को परचम इनायत फरमाया और लोगों को जंग के लिए जोश दिलाया, नाअम नामी किले में से जो लोग यहूदियों में से जान बचाकर निकलने में कामयाब हो गए थे वह वहां से सौअब नामी क़िले में पहुंच गए , यह नतात के किलो में से एक है, इस क़िले का मुहासरा 2 दिन तक ज़ारी रहा, किले में यहूदियों के 500 जानवर थे। आखिर किला फतह हो गया इस किले में मुसलमानों को बड़े पैमाने पर गेहूं खजूरें घी शहद शक्कर जैतून का तेल और चर्बी हाथ आई , यहां से मुसलमानों को बहुत सा जंगी सामान भी हाथ लगा ,उसने मिंजनीक़ ज़िरहे तलवारें वगैरह शामिल थी।


★_ इस किले से जो यहूदी जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब हो गए उन्होंने क़ला नामी कि़ले में पनाह ली,यह क़िला एक पहाड़ की चोटी पर था मुसलमानों ने उसका भी मुहासरा कर लिया अभी मुहासरे के 3 दिन गुजरे थे एक यहूदी हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आया और बोला :- 

"_ ऐ अबुल क़ासिम ! मेरी जान बख्सी कर दें तो मैं आपको ऐसी खबरें दूंगा कि आप इतमिनान से क़िला फतह कर लेंगे वरना आप अगर इस किले का 1 महीने तक मुहासरा करते रहें तो भी उसको फतेह नहीं कर सकेंगे, क्योंकि उस क़िले में ज़मीन दोज़ नहरें हैं वह लोग रात को निकल कर नहरों में से जरूरत का पानी ले लेते हैं अगर आप उनका पानी बंद कर दें तो यह लोग आसानी से शिकस्त मान लेंगे _,"

नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसे अमान दे दी, उसके बाद उसके साथ उन नहरों पर तशरीफ ले गए और यहूदियों का पानी बंद कर दिया , अब यहूदी क़िले से बाहर निकलने पर मजबूर हो गए , खूंरेज जंग हुई और आखिरकार यहूदी शिकस्त खा गए, इस तरह मुसलमानों ने नतात के तीनों हिस्से फतेह कर लिए ।


 इस तरह नतात और शक़ के 5 किलो पर मुसलमानों का कब्ज़ा हो गया, इन जगहों से भागने वाले यहूदियों ने कतीबा के  क़िलो में पनाह ली ,कतीबा के भी 3 क़िले थे ,उनमें सबसे पहले क़िले का नाम गौस था दूसरे का वती'अ और तीसरे का नाम सलालम था, उन तमाम तर किलों में गौस का क़िला सबसे बड़ा और मजबूत था, मुसलमान 20 दिन तक इसका मुहासरा किए रहे आखिर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर अल्लाह ताला ने उस क़िले को भी फतेह कराया ।


★_ उसी क़िले से हजरत सफिया बिन्त ह'ई बिन अखतब गिरफ्तार हुई ,बाद में अल्लाह ताला ने यह एज़ाज़ अता फ़रमाया कि मुसलमान हुई और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की अज़वाज मुस्तहारात में शामिल हुई ,


★_क़िला गौस की फतह के बाद मुसलमानों ने क़िला वती और क़िला सलालम का मुहासरा कर लिया , यह दोनों क़िले बगैर खूंरेजी़ के फतह हुए, मुसलमानों के हाथ एक बड़ा खज़ाना भी लगा , 

खैबर ही में आप की खिदमत में अश'अरी और दोसी कबीले के लोग हाजिर हुए ,अश'अरी लोगों में हजरत अबू मूसा अश'अरी भी थे और दोसियों में हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू थे ,इन हजरात को भी माले गनीमत दिया गया।


★_ खैबर की फतेह के मौके पर हबशा से हजरत जाफर बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु वहां पहुंचे , उन्होंने मक्का से हबशा की तरह हिजरत की थी , यह उस मौके पर वहां लौटे थे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन्हें देखकर बहुत खुश हुए, खड़े होकर उनका इस्तकबाल किया, उनकी पेशानी पर बोसा लिया ,उस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - "_अल्लाह की क़सम! मैं नहीं जानता मुझे खैबर की फतेह की ज्यादा खुशी है या जाफर के आने पर ज्यादा खुशी है _," उस वक्त हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हबशा के रहने वाले बहुत से लोग थे,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें सूरह यासीन पढ़कर सुनाई, उसको सुनकर यह लोग रो पड़े और ईमान ले आए _,


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी ज़बरदस्त खातिर तवाज़ो फरमाई और फरमाया - इन लोगों ने मेरे सहाबा की बहुत इज्जत अफजा़ई की थी _," मतलब यह था कि जब मक्का के मुशरिकों ने मुसलमानों पर जुल्म ढाए थे तो बहुत से मुसलमान हबशा की तरफ हिजरत कर गए थे उस वक्त वहां उनकी बहुत इज्जत अफजा़ई हुई थी ।

[ ★__ हबशा से जो लोग आए थे उन्हें हजरत उम्मे हबीबा बिन्ते अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हा भी थी , उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की अज़वाज मुहतरात में शामिल थी, हबशा में रहते हुए उनका निकाह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से हुआ था । मक्का से दूसरी हिजरत के मौके पर इन्होंने हबशा की तरफ हिजरत की थी ,उस वक्त उनका पहला खाविंद अब्दुल्लाह बिन हजश साथ था लेकिन हबशा पहुंच कर वह मुरतद हो गया था उसने ईसाई मजहब कुबूल कर लिया था और उसी हालत में मर गया था जबकि उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा इस्लाम पर क़ायम रही थी।


★_ सात हिजरी मोहर्रम के महीने में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अमरु बिन उमैया खमरी रज़ियल्लाहु अन्हु को नजाशी के पास भेजा था ताकि वह उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह आप से कर दे, चुनांचे यह निकाह नजाशी ने पढ़ाया था , उस निकाह से पहले हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक ख्वाब देखा था उसमें उन्हें कोई पुकारने वाला उम्मुल मोमिनीन कह कर पुकार रहा था इससे उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा घबरा सी गई , जब उन्हें हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ से निकाह का पैगाम मिला तो तब उन्हें इसकी ताबीर मालूम हुई.. उनका महर भी नजाशी की तरफ से अदा किया गया ,शादी का खाना भी उन्हीं की तरफ से खिलाया गया_,"


★_ नजाशी की जिस क़नीज़ के जरिए यह सारे मामलात तैय हुए  वह क़नीज़ भी अल्लाह के रसूल पर ईमान ले आई थी और उन्होंने अपने ईमान लाने का पैगाम हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा के ज़रिए रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को भेजा था , आपको जब उसका पैगाम मिला तो आप मुस्कुराए और फरमाया - "_उस पर सलामती  हो _,"

────────────────────❥

  : *★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए दो दरख़्तों का एक जगह जमा होना _,*


★__ जिस जमाने में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खैबर पहुंचे थे उस वक्त खजूरें अभी पकी नहीं थी , चुनांचे कच्ची खजूरों को खाने से अक्सर सहाबा बुखार में मुब्तिला हो गए उन्होंने अपनी परेशानी हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बयान की ,आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - घड़ों में पानी भर लो और ठंडा कर लो , फजर के वक्त अल्लाह का नाम पढ़ कर उस पानी को अपने ऊपर डालो _,", सहाबा ने इस हिदायत पर अमल किया तो उनका बुखार जाता रहा।


★_ खैबर की जंग में सलमा बिन उकवा रजियल्लाहु अन्हू जख्मी हो गए थे हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन मर्तबा उनके जख्मों पर दम किया ,उन्हें उसी वक्त आराम आ गया ।


★_ उस गज़वे में एक वाक्या यह पेश आया कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को कज़ा ए हाजत के लिए जाना था आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया कि  देखो कोई ओट की जगह नजर आ रही है या नहीं ? अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु ने चारों तरफ देखा ,कोई ओट की जगह नजर ना आई अलबत्ता उन्हें एक अकेला दरख़्त नजर आया, उन्होंने बतलाया कि सिर्फ दरख्त नजर आ रहा है ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया -इधर उधर देखो कोई और ओट की चीज़ नज़र आती है ?


★_ अब उन्होंने फिर इधर उधर देखा एक और दरख़्त काफी दूर नज़र आया, उन्होंने उस दूसरे दरख़्त के बारे में आपको बताया तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया-  उन दोनों दरख़्तों से कहो अल्लाह के रसूल तुम्हें हुक्म देते हैं कि दोनों एक जगह जमा हो जाओ.. यानी आपस में मिल जाओ_," हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद  रजियल्लाहु अन्हु ने उन दोनों दरख़्तों को मुखातिब करके यह बात कह दी, फौरन दोनों दरख़्त हरकत में आए और एक दूसरे से मिल गए , आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनका परदा बना लिया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के फारिग होने के बाद दोनों दरख्त अपनी जगह पर लौट गए ।

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 ╨─────────────────────❥ *★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का विरासत का मुतालबा _,*


★_ खैबर की फतह के बाद वहां की एक बस्ती फदक के लोग हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, जो लोग हाजिर हुए उनके सरदार का नाम नून बिन यूसा था, उसने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज किया - "_हम इस बात पर सुलह करने के लिए तैयार हैं कि हमारी जान बख्सी कर दी जाए और हम लोग अपना माल और सामान लेकर फदक से जला वतन हो जाएं _," आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी यह बात मंजूर फरमा ली , इस सिलसिले में एक रिवायत यह है कि यहूदियों ने फदक का निस्फ देने की बात की थी और आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसको मंजूर फरमाया था _,


★_ यहां एक बात की वजाहत करना बेहतर होगा, फदक की यह बस्ती क्योंकि जंग के बगैर हासिल हुई थी इसलिए यह माल फै था यानी दुश्मन से जंग के बगैर हासिल किया जाने वाला माल जिसके खर्च का मुसलमानों के हुक्मरान को अख्त्यार होता है, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसकी आमदनी में से अपने घर वालों पर भी खर्च किया करते थे बनी हाशिम के छोटे बच्चों की परवरिश भी उसकी आमदनी से फरमाते थे बनी हाशिम की बेवाओं की शादियां करते थे _,


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु खलीफा बने तो हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने समझा कि फदक का इलाका़ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मिल्कियत था लिहाजा मुझे विरासत में मिलना चाहिए, चुनांचे उन्होंने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से दरख्वास्त की कि फदक का इलाका उन्हें दिया जाए , अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें मसला समझाया और फरमाया :- "_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया है कि हम नबियों की मीरास तक़सीम नहीं होती हम जो कुछ छोड़ जाते हैं वह मुसलमानों के लिए सदका़ होता है _," हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा मुत्मइन हो गई और फिर दोबारा यह मुतालबा ना किया ।


 : *★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का विरासत का मुतालबा _,*


★_ खैबर की फतह के बाद वहां की एक बस्ती फदक के लोग हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, जो लोग हाजिर हुए उनके सरदार का नाम नून बिन यूसा था, उसने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज किया - "_हम इस बात पर सुलह करने के लिए तैयार हैं कि हमारी जान बख्सी कर दी जाए और हम लोग अपना माल और सामान लेकर फदक से जला वतन हो जाएं _," आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी यह बात मंजूर फरमा ली , इस सिलसिले में एक रिवायत यह है कि यहूदियों ने फदक का निस्फ देने की बात की थी और आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसको मंजूर फरमाया था _,


★_ यहां एक बात की वजाहत करना बेहतर होगा, फदक की यह बस्ती क्योंकि जंग के बगैर हासिल हुई थी इसलिए यह माल फै था यानी दुश्मन से जंग के बगैर हासिल किया जाने वाला माल जिसके खर्च का मुसलमानों के हुक्मरान को अख्त्यार होता है, चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसकी आमदनी में से अपने घर वालों पर भी खर्च किया करते थे बनी हाशिम के छोटे बच्चों की परवरिश भी उसकी आमदनी से फरमाते थे बनी हाशिम की बेवाओं की शादियां करते थे _,


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु खलीफा बने तो हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने समझा कि फदक का इलाका़ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मिल्कियत था लिहाजा मुझे विरासत में मिलना चाहिए, चुनांचे उन्होंने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से दरख्वास्त की कि फदक का इलाका उन्हें दिया जाए , अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें मसला समझाया और फरमाया :- "_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया है कि हम नबियों की मीरास तक़सीम नहीं होती हम जो कुछ छोड़ जाते हैं वह मुसलमानों के लिए सदका़ होता है _," हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा मुत्मइन हो गई और फिर दोबारा यह मुतालबा ना किया ।


: *★_ यहूदी औरत का गोश्त मे ज़हर मिलाना _,*


★__ जब खैबर फतेह हो गया तो एक औरत मुसलमानों की तरफ आती नज़र आई वह लोगों से पूछ रही थी कि अल्लाह के रसूल को बकरी के दोस्त का कौन सा हिस्सा ज्यादा पसंद है ? लोगों ने उसे बताया हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दस्ती का गोश्त पसंद है ,उस औरत का नाम जेनब था ,वह मुरहब की भतीजी और सलाम बिन मशकम यहूदी की बीवी थी, यह बात मालूम करने के बाद वह वापस लौट गई उसने एक बकरी को ज़िबह किया फिर उसको भूना और उसकी दस्ती वाले हिस्से में ज़हर मिला दिया।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मगरिब की नमाज पढ़ाकर वापस तशरीफ लाए तो उस औरत को मुंतज़िर पाया , आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उससे आने का सबब पूछा तो बोली :- ऐ अबुल कासिम ! मैं आपके लिए एक हदिया लाई हूं _,"

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुक्म पर उसका हदिया ले लिया गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने रख दिया गया, उस वक्त वहां बशर बिन बरा रज़ियल्लाहु अन्हु भी मौजूद थे ,आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फरमाया :- क़रीब आ जाओ _," फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दस्ती से खाना शुरु फरमाया - आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ही बशर बिन बरा ने भी  दस्ती से गोश्त का लुकमा मुंह में डाल लिया और उसे निगल गए जबकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमने अभी लुक़मा मुंह में डाला था ,दूसरे लोगों ने दूसरी जगह से लुक़मा लिया ।


जोंहि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लुक़मा मुंह में डाला, फौरन उगल दिया और फरमाया-  हाथ रोक लो यह गोश्त मुझे बता रहा है कि इसमें जहर है _," 

उस वक्त बशीर बिन बरा रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया :- "_ऐ अल्लाह के रसूल ! क़सम है उस जा़त की जिसके कब्जे में मेरी जान है , जो लुक़मा मैने खाया था उसमें मुझे कुछ महसूस हुआ था लेकिन मैंने उसको सिर्फ इसलिए नहीं उगला कि आपका खाना खराब होगा फिर जब आपने अपना लुक़मा उगल दिया तो मुझे अपने से ज्यादा आपका ख्याल आया और मुझे खुशी हुई कि आपने उसको उगल दिया _," उसके बाद उनका रंग नीला हो गया , वह एक साल तक उस ज़हर के असर में रहे और उसके बाद फौत हो गए।


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस यहूदी औरत को बुलवाया और उससे पूछा - क्या तूने बकरी के गोश्त मे ज़हर मिलाया था ? 

उसने पूछा -आपको यह बात किसने बताई ? जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया - मुझे गोश्त के उसी टुकड़े ने यह बात बताई जो मैंने मुंह में रखा था_," 

उसने इकरार किया- हां ! मैंने ज़हर मिलाया था _," तब आपने उससे पूछा तुमने ऐसा क्यों किया ? जवाब में उसने कहा-

"_ आप लोगों ने (खैबर की जंग में ) मेरे बाप भाई और मेरे शौहर को क़त्ल किया और मेरी कौम को तबाह किया इसलिए सोचा अगर आप सिर्फ एक बादशाह है तो उस जहर के जरिए हमें आप से निजात मिल जाएगी और अगर आप नबी हैं तो आपको उस ज़हर की पहले ही खबर हो जाएगी _,"


★_ उसका जवाब सुनकर आपने उसे माफ फरमा दिया.. क्योंकि आप अपनी जात के लिए किसी से बदला नहीं लेते थे अलबत्ता मुसलमानों को कोई नुकसान पहुंचाता तो उससे बदला लेते थे, जहां तक बशर बिन बरा रज़ियल्लाहु अन्हु का ताल्लुक है..  तो वह उस वक्त फौत नहीं हुए थे लेकिन जब बाद में ज़हर से उनकी मौत वाक़े हो गई तो उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत ज़ेनब को बदले में क़त्ल करा दिया था ,

कहा जाता है कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफात के वक्त उस ज़हर का असर महसूस किया था और फरमाया था -उस ज़हर के असर से मेरी रगें कट रही हैं _,"

: *★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ुबूले इस्लाम _,*


★__ खैबर की जंग के बाद हजरत खालिद बिन वलीद, हजरत अमरू बिन आस और हजरत उस्मान बिन तलहा रज़ियल्लाहु अन्हुम के ईमान लाने का वाक़या पेश आया ,


★_ इस बारे में खुद हजरत खालिद बिन वलीद फरमाते हैं :- 

"_ जब अल्लाह ताला ने मुझे इज्जत और खैर अता करने का इरादा फरमाया तो अचानक मेरे दिल में इस्लाम की तड़प पैदा फरमा दी और मुझे हिदायत का रास्ता नज़र आने लगा, उस वक्त मैंने अपने दिल में सोचा कि मैं हर मौक़े पर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुक़ाबले और मुखालफत में सामने आया और हर बार मुझे नाकामी का मुंह देखना पड़ा, हमेशा ही मुझे यह एहसास हुआ कि मैं गलती पर हूं मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बोलबाला हो रहा है, फिर जब मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उमरे के लिए मक्का में तशरीफ लाएं तो मैं मक्का से गायब हो गया ताकि आपके मक्का में दाखिले का मंजर ना देख सकूं ,मेरा भाई वलीद बिन वलीद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ था वह मुझसे बहुत पहले मुसलमान हो चुका था उसने मक्का पहुंचकर मुझे तलाश कराया मगर मैं वहां था ही नहीं _,"


★_ "_आखिर उसने मेरे नाम खत लिखा , उस खत के अल्फाज़ यह थे :- "_ मेरे लिए सबसे ज्यादा हैरत की बात यही है कि तुम जैसा आदमी आज तक इस्लाम से दूर भागता फिर रहा है ,तुम्हारी कम अक़ली पर ताज्जुब है, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तुम्हारे बारे में मुझसे पूछा था कि खालिद कहां है ? मैंने अर्ज किया - अल्लाह बहुत जल्द उसे आप तक लाएगा , उस पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - उस जैसा शख्स इस्लाम से बे खबर नहीं रह सकता अगर वह अपनी सलाहियत और तवानाईयां  मुसलमानों के साथ मिलकर मुशरिकों के खिलाफ इस्तेमाल करें तो उनके लिए खैर ही खैर है और हम दूसरों के मुक़ाबले में उन्हें हाथों-हाथ लेंगे , इसलिए मेरे भाई अब भी मौक़ा है कि जो कुछ तुम खो चुके हो उसे पालो , तुम बड़े अच्छे अच्छे मौके खो चुके हो_,"


★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब मुझे अपने भाई का यह खत मिला तो मुझमें जाने की उमंग पैदा हो गई , दिल इस्लाम की मोहब्बत में घर कर गया, साथ ही आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मेरे बारे में जो कुछ फरमाया था उससे मुझे बहुत ज्यादा खुशी महसूस हुई, रात को मैंने एक अजीब ख्वाब देखा, मैंने ख्वाब में देखा कि एक इंतिहाई तंग और खुश्क इलाके में हूं.. लेकिन फिर अचानक वहां से निकलकर एक निहायत सर सब्ज़ शादाब और बहुत बड़े इलाक़े में पहुंच गया हूं _,"

: *★_ उसके बाद जब मैंने मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना होने का फैसला किया तो मुझे सफवान मिले, मैं उनसे कहा- सफवान ! तुम देख रहे हो कि मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अरब व अजम पर छाते जा रहे हैं इसलिए क्यों ना हम भी उनके पास पहुंचकर उनकी इता'त कबूल कर ले क्योंकि हकीकत में उनकी सर बुलंदी खुद हमारी ही सर बुलंदी होगी _," 

इस पर सफवान ने कहा- मेरे अलावा अगर सारी दुनिया भी उनकी इता'त क़ुबूल ल कर ले ,मैं फिर भी नहीं करूंगा _,"


★_ उसका जवाब सुनकर मैंने सोचा इसका बाप और भाई जंग-ए-बदर में मारे गए लिहाजा इससे उम्मीद रखना फिज़ूल है चुनांचे उससे मायूस होकर मै अबू जहल पर बैटे इक्रमा के पास गया और उसके से भी वही बात कही जो सफवान से कही थी मगर उसने भी वही जवाब दिया... मैंने कहा- अच्छा खैर है ...लेकिन तुम मेरी बात को राज़ में रखना _," 

जवाब में इकरमा ने कहा - ठीक है मैं किसी से जिक्र नहीं करूंगा_," उसके बाद मैं उस्मान बिन तलहा से मिला , वह मेरा दोस्त था उसके बाप और भाई वगैरह गजवा ए बदर में मारे जा चुके थे लेकिन मैंने उससे दिल की बात कह दी , उसने फौरन मेरी बात मान ली । हमने मदीना जाने का वक्त दिन और जगह तय कर ली।


★_हम दोनों मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुए, एक मुक़ाम पर अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु मिले हमें देखकर उन्होंने खुशी का इजहार किया हमने भी उन्हें मरहबा किया ,इसके बाद उन्होंने पूछा -आप लोग कहां जा रहे हैं ? हमने साफ कह दिया-  इस्लाम कबूल करने जा रहे हैं ।

अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन बोले-  मैं भी तो इसीलिए जा रहा हूं । इस पर तीनों खुश हुए और मदीना मुनव्वरा की तरफ चले ,आखिर हीरा के मुकाम पर पहुंचकर हम अपनी सवारियों से उतरे ।उधर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हमारी आमद की इत्तेला हो गई ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा से इरशाद फरमाया-  मक्का ने अपने जिगर पारे तुम्हारे सामने ला डाले है _,"


†_उसके बाद हम अपने बेहतरीन लिबास में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर होने के लिए चले , उस वक्त मेरे भाई वलीद हम तक पहुंच गए और बोले- जल्दी करो अल्लाह के रसूल तुम्हारी आमद पर बहुत खुश हैं और तुम लोगों का इंतजार फरमा रहे हैं । चुनांचे अब हम तेज़ी से आगे रवाना हुए यहां तक कि हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने पहुंच गए, हमने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को सलाम किया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने गर्मजोशी से सलाम का जवाब दिया, उसके बाद मैंने कहा - मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और यह  कि आप अल्लाह के रसूल है _,"

: ★_ इस पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - तमाम तारीफें उसी अल्लाह के लिए हैं जिसने तुम्हें हिदायत अता फरमाई, मैं जानता था कि तुम अकल मंद हो इसलिए मेरी आरजू थी और मुझे उम्मीद थी कि तुम खैर की तरफ जरूर झुकोगे _,"

उसके बाद मैंने अर्ज़ किया- "_ अल्लाह के रसूल ! अल्लाह ताला से दुआ फरमाएं कि वह मेरी उन गलतियों को माफ फरमा दे जो मैंने आप के मुकाबले पर आकर की है _," 

हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया-  इस्लाम कुबूल करना साबका़ तमाम गलतियों और गुनाहों को मिटा देता है _,"

इसी तरह अमरु बिन आस और उस्मान बिन तलहा रज़ियल्लाहु अन्हुम आगे आए और उन्होंने भी इस्लाम कबूल किया ।


★_ यहां यह बात ज़हन में रहे कि  अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने दरअसल इससे पहले शाहे हब्शा नजाशी के हाथ पर इस्लाम कुबूल कर लिया था इस तरह एक ताबई के हाथ पर एक सहाबी ने इस्लाम कुबूल किया क्योंकि नजाशी सहाबी नहीं है.. उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को नहीं देखा था लेकिन ताब'ई वह इसलिए हैं कि उन्होंने सहाबा किराम को देखा था ।


★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के मुसलमान होने के बाद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें हमेशा घुड़सवार दस्ते का अमीर बनाए रखा , यह थी तफसील उन तीन हजरात के ईमान लाने की । हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु भी बेहतरीन जंगी सलाहियतों के मालिक थे वह खुद फरमाते हैं कि अल्लाह की क़सम ! हमारे मुसलमान होने के बाद अल्लाह के रसूल ने जंगी मामलात में मेरे और खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के बराबर किसी को नहीं समझा फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के दौरान भी हमारा यही दर्जा रहा _,"


★_ सुलह हुदेबिया में तैय पाया था कि मुसलमान इस साल तो उमरा लिए बगैर लौट जाएंगे अलबत्ता उन्हें आइंदा साल उमरा करने की इजाज़त होगी , इस मुआहिदे की रू से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उमरा कज़ा की नियत करके मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए, उस मौक़े पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ 2000 सहाबा थे, रवाना होते वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ऐलान फरमाया था कि जो लोग सुलह हुदेबिया के मौक़े पर मौजूद थे उन सबका साथ चलना जरूरी है , चुनांचे वह सभी सहाबा साथ रवाना हुए , उनके अलावा कुछ वह थे जो हुदेबिया में शरीक नहीं थे हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ कुर्बानी के जानवर भी थे , इस सफर में हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एहतियात के तौर पर हथियार भी साथ लिए थे.. मुसलमानों में से एक सौ आदमी घुड़सवार थे उनके अमीर मोहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु थे ।

╨─────────────────────❥ ✭﷽✭


                  *✿_سیرت النبی ﷺ_✿*

         *✭ SEERATUN NABI ﷺ.✭* 

             *✿_सीरतुन नबी ﷺ. _✿*

           *🌹صلى الله على محمدﷺ🌹*

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*★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का पहला उमरा _,*


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मस्जिदे नबवी के दरवाजे पर अहराम बांध लिया था , कुरेश के कुछ लोगों ने जब सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के साथ हथियार देखें तो वह बौखला कर मक्का मुअज्जामा पहुंचे और कुरेश को बताया कि मुसलमान हथियार ले आए हैं और उनके साथ तो घुड़सवार दस्ते भी हैं। कुरेश यह सुनकर बदहवास हुए और कहने लगे - हमने तो कोई ऐसी हरकत नहीं की जो उस मुआहिदे के खिलाफ हो बल्कि हम मुआहिदे के पाबंद हैं जब तक सुलह नामे की मुद्दत बाकी है हम उसकी पाबंदी करेंगे फिर आखिर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ) किस बुनियाद पर हम से जंग करने आए हैं _,"


★_ आखिर कुरेश ने मकरज़ बिन हफ्स को कुरेश की एक जमात के साथ रवाना किया, उन्होंने आपसे मुलाकात की और कहा - आप हथियारबंद होकर हरम में दाखिल होना चाहते हैं जबकि मुआहिदा यह नहीं हुआ था ," उस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया-  "_ हम हथियार लेकर हरम में दाखिल नहीं होंगे , मुआहिदे के तहत सिर्फ मियानों में रखी हुई तलवारे हमारे साथ होगी बाकी हथियार हम बाहर छोड़कर जाएंगे _," 

मकरज़ ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बात सुनकर इत्मिनान का इजहार किया और कुरेश को जाकर इत्मिनान दिलाया ।


★_ जब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मक्का मुअज्जमा में दाखिल होने का वक्त आया तो कुरेश के बड़े बड़े सरदार मक्का मुअज्जमा से निकलकर कहीं चले गए , उन लोगों को हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से बुग्ज़ था दुश्मनी थी वह मक्का में मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे इसलिए निकल गए । आखिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम मक्का मुअज्जमा में दाखिल हुए, हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त अपनी ऊंटनी क़सवा पर सवार थे, सहाबा किराम आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दाएं बाएं तलवारे लिए चल रहे थे और सब "लब्बेक अल्लाहुम्मा लब्बेक" पढ़ रहे थे, रवाना होने से पहले बाकी हथियार आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक जगह महफूज करा दिए थे वह जगह हरम से करीब थी मुसलमानों की एक जमात को उन हथियारों की निगरानी के लिए मुकर्रर किया गया था ।


★_ मक्का के मुशरिकों ने मुसलमानों को बहुत मुद्दत बाद देखा था वह उन्हें कमजोर कमजोर से लगे तो आपस में कहने लगे - यसरिब के बुखार ने मुहाजिरीन को कमजोर कर दिया है _," यह बात आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तक पहुंची तो हुक्म फरमाया - अल्लाह ताला उस शख्स पर रहमत फरमाएगा जो मुशरिकों को अपनी जिस्मानी ताक़त दिखाएगा _,"

इसी बुनियाद पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को हुक्म दिया कि तवाफ के पहले 3 चक्करों में रमल करें यानी अकड़ अकड़ का और सीना तान कर चले और मुशरिक को दिखा दे कि हम पूरी तरह ताकतवर है । 

उसके बाद जब मुसलमानों ने रमल शुरू किया तो मक्का के दूसरे मुशरिकों ने उन मुशरिको से जिन्होंने मुसलमानों को कमजोर बताया था कहा - तुम तो कह रहे थे उन्हें यसरिब के बुखार ने कमजोर कर दिया है हालांकि यह तो पूरी तरह ताकतवर नजर आ रहे हैं _,"


★_ उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी चादर इस तरह अपने ऊपर डाल रखी थी कि दाया कंधा खुला था और उसका पल्लू बाएं कंधे पर था , चुनांचे तमाम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने ऐसे ही कर लिया , इस तरह चादर लेने को इज़तिबा कहते हैं और अकड़ कर चलने को रमल कहते हैं , यह इस्लाम में पहला इज़्तिबा और पहला रमल था , अब हज करने वाले हो या उमरा करने वाले उन्हें दोनों काम करने होते हैं ।


★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम मुआहिदे के मुताबिक तीन दिन तक मक्का मुअज्जमा में रहे , तीन दिन पूरे होने पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मक्का मुअज्जमा से बाहर निकल आए,  इस दौरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया, उनका पहला नाम बराह था , हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नाम तब्दील करके मैमुना रखा ।

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*★_ मौता की जंग _,*


★_उमरे से फारिग होकर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा पहुंचे तो एक संगीन वाकि़या पेश आ गया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खत रोम के बादशाह हिरक्कल के नाम भेजा था यह खत हजरत हारिस बिन उमैर अज़दी रज़ियल्लाहु अन्हु लेकर रवाना हुए । मौता के मुकाम पर पहुंचे तो शरजील गसानी ने उन्हें रोक लिया ,यह शरजील कैसरे रोम की तरफ से शाम के उस इलाके का बादशाह था, शरजील ने हजरत हारिस बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा - तुम कहां जा रहे हो ,क्या तुम मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कासिद में से हो?,

 जवाब में उन्होंने कहा- हां मैं मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कासिद हूं , यह सुनते ही शरजील ने उन्हें रस्सियों से बंधवा दिया और फिर उन्हें कत्ल कर दिया ।आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्ल्म के कासिदों में से यह पहले काशिद हैं जिन्हें शहीद किया गया।


★_ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस वाक़िए से बहुत रंज हुआ, आपने फौरन सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम का एक लश्कर तैयार किया ,इसकी तादाद 3000 थी, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन लोगों को शाहे रोम से जंग करने का हुक्म फरमाया और उस लश्कर का सिपहसालार हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर फरमाया ।जब यह लश्कर कूच करने के लिए तैयार हो गया तो हुजूर सल्लल्लाहु वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ अगर ज़ैद बिन हारिसा शहीद हो जाए तो उनकी जगह जाफर बिन अबी तालिब लश्कर के अमीर होंगे अगर जाफर बिन अबी तालिब भी शहीद हो जाएं तो अब्दुल्लाह बिन रवाहा उनकी जगह लेंगे और अगर अब्दुल्लाह भी रवाहा भी शहीद हो जाएं तो मुसलमान जिस पर राज़ी हो उसे अपना अमीर बना लें _,"


★_ जब आप सल्लल्लाहो सल्लम ने यह हिदायत फरमाई उस वक्त एक यहूदी शख्स भी वहां मौजूद था और यह सब सुन रहा था उसने कहा -अगर यह वाक़ई नबी है तो मैं कसम खाकर कहता हूं कि जिन लोगों के नाम इन्होंने लिए हैं वह सब शहीद हो जाएंगे _,"

यह बात हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुन ली तो बोले :- मैं गवाही देता हूं कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सच्चे नबी हैं _,"


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक सफेद रंग का परचम तैयार किया और ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को दे दिया फिर आपने मुजाहिदीन को नसीहत फरमाई :- "_जहां हारिस बिन उमैर को कत्ल किया गया है जब तुम वहां पहुंचो तो पहले उन लोगों को इस्लाम की दावत देना वह दावत कुबूल करलें तो ठीक, वरना अल्लाह ताला से उनके मुकाबले में मदद मांगना और उनसे जंग करना _,"

लश्कर को रवाना करते वक्त मुसलमानों ने कहा -अल्लाह ताला तुम्हारा साथी हो तुम्हारी मदद फरमाए और तुम लोगों को खैर और खुशी के साथ हमारे दरमियान वापस लाएं _,"


★_ जब यह लश्कर रवाना हुआ तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सनयतुल विदा के मुकाम तक उन्हें रुखसत करने के लिए साथ चले , वहां पहुंचकर उन्हें नसीहत की :-"_ मैं तुम्हें अल्लाह से डरते रहने की नसीहत करता हूं तुम्हारे साथ जो मुसलमान है उन सब के लिए आफियत मांगता हूं ,अल्लाह का नाम लेकर आगे बढ़ो ,अल्लाह के और अपने दुश्मनों से शाम की सर ज़मीन में जाकर जंग करो.. वहां तुम्हें इबादतगाहों और खानकाहों में रहने वाले ऐसे लोग मिलेंगे जो दुनिया से कट गए हैं उनसे ना उलझना ,किसी औरत पर किसी बच्चे पर तलवार मत उठाना, ना दरख्तों को काटना और ना ही इमारतों को मिसमार करना _,"

आम मुसलमानों ने भी उन्हें रुखसत होते हुए कहा -अल्लाह तुम्हारी हिफाज़त फरमाए और तुम्हें माले गनीमत के साथ वापस लाएं_,"


★_ इन दुआओं के साथ लश्कर रवाना हुआ और शाम की सर ज़मीन में पहुंचकर पड़ाव डाला, इस वक्त सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को मालूम हुआ कि रोम का बादशाह शहंशाह ए हिरक्कल 2 लाख फौज के साथ उनके मुकाबले के लिए तैयार हैं उसके अलावा अरब के नसरानी क़बाइल चारों तरफ से आकर हिरक्कल की फौज में शामिल हो गए हैं और उनकी तादाद भी एक लाख के करीब है, इस तरह लश्कर की तादाद 3 लाख तक जा पहुंची थी , उनके पास बेशुमार घोड़े हथियार और साजो सामान भी था,  इसके मुकाबले में मुसलमानों की कुल तादाद सिर्फ तीन हजार थी और उनके पास साजो सामान भी बराये नाम था।


★_ यह तपसीलात मालूम होने पर इस्लामी लश्कर वहीं रुक गया 2 रात तक उन्होंने वहां क़याम किया और आपस में मशवरा किया क्योंकि उनकी इतनी बड़ी तादाद वाले दुश्मन से सिर्फ 3 हज़ार आदमियों के मुकाबला करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था ,कुदरती बात है कि सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम यह सुनकर परेशान हुए थे । किसी ने मशवरा दिया :- हमें चाहिए यहां रुक कर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को इत्तेला दें ताकि  हमें कहला भेजें या वापसी का हुक्म फरमाएं _,"

उस पर हजरत अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने पुरजोश लहजे में कहा :- लोगों तुम उसी मक़सद से जान बचा रहे हैं जिसके लिए वतन से निकले हो हम शहादत की तलाश में निकले थे , हम दुश्मनों से ना तो तादाद के बल पर लड़ते हैं और ना ताकत के बल पर ,हम तो सिर्फ दीन के लिए लड़ते हैं दीन के ज़रिए ही अल्लाह ताला ने हमें सरफराज़ फरमाया है अब या हमें फतेह होगी या शहादत नसीब होगी_,"


★_ यह पुरजोश अल्फाज़ सुनकर सहाबा किराम बोल उठे- अल्लाह की क़सम ! इब्ने रवाहा ने बिल्कुल ठीक कहा _," चुनांचे उसके बाद लश्कर आगे रवाना हुआ और यहां तक कि मौता के मकाम पर पहुंच गए उसी मुकाम पर रोमी लश्कर भी मुसलमानों के सामने आ गया, हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का परचम हाथ में लिया और दुश्मन की तरफ बढ़े ,सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम उनकी क़यादत में रोमी लश्कर पर हमलावर हुए, मुसलमानों में जबरदस्त हमला किया था, उधर रोमी भी तीन लाख थे उन्होंने भी भरपूर हमला किया ,तलवारों से तलवारें टकराने लगी, नेज़े और तीर चलने लगे जख्मियों की आवाजें बुलंद होने लगी घोड़ो के हिनहिनाने ऊंटों के बिलबिलाने की आवाजें गूंजने लगी.. इस हालत में ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु परचम उठाएं जंग कर रहे थे और मुसलसल आगे बढ़ रहे थे उन पर जोश की एक ना काबिले बयान कैफियत तारी थी.. उनके हाथों कितने ही रोमी जहन्नम रसीद हुए.. आखिर वह लड़ते लड़ते शहीद हो गये ।


★_ उसी वक्त हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु ने परचम ले लिया, यह अपने सुर्ख रंग के घोड़े पर सवार थे अब मुसलमान उनकी क़यादत में जंग करने लगे, उन्होंने इस क़दर शदीद जंग की के बयान से बाहर है ,लड़ते-लड़ते उनका एक बाजू कट गया उन्होंने परचम बाएं हाथ में पकड़ लिया कुछ ही देर बाद किसी ने उनके बाएं बाजू पर वार किया और वह भी कट गया उन्होंने परचम को अपनी गौद के सहारे संभाले रखा और इसी हालत में शहादत का जाम नौश फरमाया ।


★_ उस वक्त हजरत अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ियल्लाहु अन्हु आगे आए और परचम उठाया उन्होंने घोड़े के बजाय पैदल जंग करना मुनासिब जाना और दुश्मनों से मुकाबला शुरू कर दिया उन्होंने बहुत दिलेरी से जंग की यहां तक कि शहीद हो गए ,अब मुसलमान और ईसाई एक दूसरे की सफों में घुस चुके थे और जंग घमासान की हो रही थी, दुश्मनों की तादाद चूंकि बहुत ज्यादा थी और मुसलमान सिर्फ तीन हजार थे ..लिहाजा उनकी तादाद को इस तादाद से कोई निसबत ही नहीं थी इसलिए इन हालात में बाज़ मुसलमानों ने पसपाई अख्त्यार करने का इरादा किया लेकिन उस वक्त हजरत उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु पुकारे - लोगों अगर इंसान सीने पर जख्म खा कर शहीद हो तो इससे बेहतर है की पीठ पर जख्म खाकर मरे _,"


★_ ऐसे में हजरत साबित बिन अरकम रज़ियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़कर गिरा हुआ परचम उठा लिया और बुलंद आवाज से बोले - मुसलमानों अपने में से किसी को अमीर बना लो ताकि परचम उसे दिया जा सके _," बहुत से सहाबा पुकार उठे- आप ही ठीक हैं _," यह सुनकर वह बोले- लेकिन मैं खुद को इस काबिल नहीं समझता _,"

इन हालात में सबकी नजरें खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु पर पड़ी.. सबने उन्हें अमीर बनाने पर इत्तेफाक कर लिया ।


★_ यह भी कहा जाता है कि खुद हजरत साबित बिन अरकम रज़ियल्लाहु अन्हु ने ही परचम उनके हवाले किया था और कहा था-  जंग के उसूल और फन आप मुझसे ज्यादा जानते हैं _," इस पर हजरत खालिद बिन वालीद रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - नहीं मेरे मुकाबले में आप इस परचम के ज्यादा हकदार हैं क्योंकि आप उन लोगों में से हैं जो गज़वा बदर में शरीक हो चुके हैं _,"


★_ आखिर सबका इत्तेफाक हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु पर हो गया, अब हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की क़यादत में जंग शुरू हुई ।


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*★_अल्लाह की तलवार _,*


★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने परचम संभालते ही दुश्मन पर जबरदस्त हमला किया इस तरह जंग का पासा सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के हक़ में पलट गया ,इस तरह मुसलमानों का रौब छा गया और दुश्मन मज़ीद लड़ाई से कतराने लगे ,सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने बाहमी मशवरे से इस हद तक कामयाबी हासिल करने के बाद वापसी अख्तियार की, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़ौज का अमीर बनते ही लश्कर का अगला हिस्सा पीछे कर दिया और पिछले हिस्से को आगे ले आए, इसी तरह दाएं हिस्से को बाएं जानिब और बाएं को दाएं जानिब ले आए, इस तरह उन्होंने पूरे लश्कर की तरतीब बदलकर रख दी। 

जब रोमियो से आमना सामना हुआ तो उन्हें हर तरफ नए लोग नजर आए इस तरह उन्होंने ख्याल किया कि मुसलमानों को कुमक ( मदद को फौज) पहुंच गई है ।


★_ यह जंग मुसलसल 7 दिन तक जारी रही थी, इमाम बुखारी रहमतुल्लाहि अलैहि ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि जंगे मौता के मौक़े पर उनके हाथों से नौ तलवारें टूटी सिर्फ एक यमनी तलवार बाक़ी रह गई थी जो आखिर तक आपके हाथ में रही _,


★_इधर मौता के मुकाम पर जंग हो रही थी और उधर मदीना मुनव्वरा में क्या हो रहा था ? वहां का मंजर यह था कि अल्लाह ताला ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को सारा हाल बता दिया ,आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम को जंग की खबरें सुनाने के लिए मस्जिद-ए-नबवी में बुलाया और खुद मिंबर पर तशरीफ फरमा हुए, उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की आंखों में आंसू थे ..आपने बताना शुरू किया :- 

"_ लोगों खैर का दरवाज़ा... खैर का दरवाज़ा.. खैर का दरवाज़ा खुल गया है, मैं तुम्हें तुम्हारे लश्कर के बारे में बताता हूं उन गाज़ियों के बारे में बताता हूं , वह लोग वहां से रुखसत हो कर चले  गए यहां तक कि दुश्मन से उनकी मुठभेड़ हो गई और ज़ैद बिन हारीसा शहीद हो गए, उनके लिए मग्फिरत की दुआ मांगो , फिर जाफर ने परचम लिया और बड़ी साबित कदमी से लड़े यहां तक कि वह भी शहीद हो गए उनके लिए भी मगफिरत की दुआ करो, फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने परचम उठाया और वह भी शहीद हो गए,  फिर खालिद बिन वलीद ने परचम उठाया, वह लश्कर के अमीर नहीं थे वह खुद अपनी जा़त के अमीर थे.. मगर वह अल्लाह की तलवारों में से एक तलवार हैं इसलिए अल्लाह की मदद तैयार है अल्लाह ताला ने उस तलवार को काफिरों पर सौंत दिया है अल्लाह ताला ने दुश्मन पर फतह नसीब फरमाई _,"


★_ इसके बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में दुआ फरमाई :- ऐ अल्लाह ! वो तेरी तलवारों में से एक तलवार है तू उसकी मदद फरमा _,"

उसी दिन से हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को सैफुल्लाह कहा जाने लगा ।


★_ हसरत असमा बिन्त उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत जाफर रजियल्लाहु अन्हु की बीवी थी । जिस रोज उस ( मोता की ) लड़ाई में हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके साथी शहीद हुए नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उनके घर तशरीफ लाए और फरमाया :-  जाफर के बच्चों को मेरे पास लाओ _,"

हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा बच्चों को आपके पास ले आई, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन्हें प्यार करने लगे और साथ में रोते भी रहे यहां तक की आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ढाड़ी मुबारक आंसुओं से तर हो गई ।


हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा को हैरत हुई पूछने लगी :- अल्लाह के रसूल ! आप पर मेरे मां-बाप कुर्बान , आप क्यों रो रहे हैं क्या जाफर और उनके साथियों के बारे में कोई खबर आई है ? जवाब में हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - हां ! वह और उनके साथी आज ही शहीद हुए हैं _,"

वो एकदम खड़ी हो गई और रोने लगीं ।


★_ यहां यह बात काबिले गौर है कि उस वक्त हजरत जाफर और उनके साथी मदीना मुनव्वरा से बहुत फासले पर मुल्के शाम में लड़ रहे थे और वहां से किसी तरह भी खबर आने का कोई ज़रिया नहीं था, अब ज़ाहिर है अल्लाह ताला ने बा ज़रिया वही खबर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को दी थी। 

आपने हजरत असमा को बुलंद आवाज से रोते देखा तो फरमाया :- ऐ असमा ,ना बीन ( नौहा ) करना चाहिए और ना रोना पीटना चाहिए _," 

जल्द ही वहां औरतें जमा हो गई.. वह भी यह खबर सुनकर रोने लगीं, नोहा और मातम करने लगी , किसी ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को आ कर बताया :- औरतें बहुत मातम और नौहा कर रही है _,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे इरशाद फरमाया - जाकर उन्हें खामोश करो _,"

वह गएं और जल्दी वापस आकर बोले :- अल्लाह के रसूल ! वह खामोश नहीं हो रही हैं _,"

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  जाओ उन्हें खामोश करने की कोशिश करो और अगर ना माने तो उनके मुंह में मिट्टी फैंको _,"


★_ उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु के बच्चों के बारे में दुआ फरमाई :- ऐ अल्लाह ! जाफर बेहतरीन सवाब के हकदार हो गए हैं तू उनकी औलाद को उनका बेहतरीन जांनशीन बना _,"

उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वहां से वापस तशरीफ लाएं और अपने घर वालों से फरमाया :- जाफर के बीवी बच्चों से गाफिल ना हो जाना आज वह बहुत गमगीन हैं, उनके लिए खाना तैयार करके भेजो _,"


★_ जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अल्लाह ताला ने जाफर के दोनों बाजुओं की जगह पर दो पर लगा दिए हैं वह उनके ज़रिए जन्नत में उड़ते फिरते हैं _,"


★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन‌ उमर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु की लाश पर उनके सीने और मोढों के दरमियानी हिस्से में 90 जख्म आए थे यह तलवार और नेज़े के थे ।

हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु उस रोज थे भी रोज़े से , हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैं हजरत जाफर के पास शाम के वक्त पहुंचा वह मैदान-ए-जंग में ज़ख्मों से चूर पड़े थे मैंने उन्हें पानी पेश किया तो उन्होंने फरमाया मैं रोज़े से हूं तुम यह पानी मेरे मुंह के पास रख दो, अगर मैं सूरज गुरूब होने तक जिंदा रहा तो इस पानी से रोज़ा इफ्तार कर लूंगा _," हजरत इब्ने उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि सूरज गुरूब होने से पहले ही वह शहीद हो गए _,"


★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक मर्तबा हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ थे, अचानक आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आसमान की तरफ मुंह उठाया और वा अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह फरमाया , लोगों ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! यह आपने क्यों फरमाया ? 

जवाब में इरशाद फरमाया - "_अभी मेरे पास से जाफर इब्ने अबी तालिब फरिश्तों के जमघट में गुज़रे हैं उन्होंने मुझे सलाम किया था _,"


★_ गज़वा मौता से वापस आने वाला लश्कर जब मदीना मुनव्वरा के करीब पहुंचा तो वहीं आकर अल्लाह के रसूल और मुसलमानों ने उनसे मुलाकात की । शहर में बच्चों ने अश'आर गाकर उन्हें खुशामदीद कहा , उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपनी सवारी पर तशरीफ ला रहे थे उन बच्चों को देखकर फरमाया -  इन्हें उठाकर सवारियों पर बिठा लो और जाफर के बच्चों को मेरे पीछे बिठा दो_," चुनांचे ऐसा ही किया गया और इस तरह वह लश्कर मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुआ। तीन लाख दुश्मनों के मुकाबले में सिर्फ तीन हजार सहाबा का मुकाबला करना और उनके बेशुमार लोगों को क़त्ल करके सही सलामत वापस लौट आना एक बहुत बड़ी कामयाबी थी ..इस बहुत बड़ी कामयाबी पर जिस क़दर खुशी महसूस की जाती थी कम थी _,

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*★_ क़ुरेश की बद अहदी _,"*


★__ इस जंग ( मौता की जंग ) के बाद मक्का फतह हुआ ,यह गज़वा रमज़ान आठ हिजरी में पेश आया , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और कुरेश के दरमियान हुदेबिया के मुकाम पर जो मुआहिदा हुआ था उसमें यह भी तय पाया था कि दूसरे अरब क़बीलों में से कोई क़बीला भी दोनों फरीक़ो में से किसी भी तरफ से इस सुलह नामे में शामिल हो सकता है यानी अगर कोई क़बीला रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ से इस मुआहिदे में शामिल होना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है इस सूरत में वह उन शराइत का पाबंद होगा जिन के पाबंद कुरेश थे, इस शर्त की रू से बनी बकर का क़बीला कुरेश की तरफ से और बनी खज़ा का कबीला रसूलुल्लाह की तरफ से इस सुलह में शामिल हुआ , जबकि इन दोनों कबीलों में बहुत पुरानी दुश्मनी थी दोनों के दरमियान काफी क़त्लों गारत गिरी हो चुकी थी, खूंन के बदले बाकी थे... लेकिन इस्लाम की आमद ने उन दुश्मनियों को दबा दिया था।


★_ अब हुआ यह कि बनी बकर के एक शख्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में तोहीन आमेज़ शेर लिखें और उनको गाने लगा, बनी खजा के एक नौजवान ने उन अश'आर को सुन लिया, उसने बनी बकर के शख्स को पकड़कर मारा इससे वह जख्मी हो गया, इस पर दोनों क़बीले एक दूसरे के खिलाफ उठ खड़े हुए क्योंकि पुरानी दुश्मनी तो उनमें पहले से चलती आ रही थी ,


★_ बनी बकर ने साथ में कुरैश से भी मदद मांगी, कुरेशी सरदारों ने उनकी दरखास्त कुबूल कर ली उनकी मदद के लिए आदमी भी दिए और हथियार थी ,फिर यह सब मिलकर एक रात अचानक बनी खजा पर टूट पड़े, वह लोग उस वक्त बेफिक्री से सोए हुए थे उन लोगों ने बनी खज़ा को बेदर्दी से कत्ल करना शुरू किया ,बनी खज़ा के बाज़ अफराद जाने बचाने के लिए वहां से भागे और एक मकान में घुस गए.. क़ुरेश ने उन्हें वहां की जा घेरा और फिर उस मकान में घुसकर उन्हें कत्ल किया ।


★_ इस तरह क़ुरेश में बनी बकर की मदद के सिलसिले में उस सुलह नामे की धज्जियां उड़ा दी, जब यह सब कर बैठे तो एहसास हुआ कि यह हमने क्या किया, अब वह जमा होकर अपने सरदार अबू सुफियान के पास आए, सारा वाक़या सुनकर उन्होंने कहा :- 

"_ यह ऐसा वाकि़या है कि मैं अगरचे इसमें शरीक नहीं हूं लेकिन बे ताल्लुक भी नहीं रहा और यह बहुत बुरा हुआ ,अल्लाह की क़सम मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) अब हमसे जंग जरूर करेंगे और मैं तुम्हें बता देता हूं.. मेरी बीवी हिन्दा ने एक बहुत भयानक ख्वाब देखा है उसने देखा है कि हुजून की तरफ से खून का एक दरिया बहता हुआ आया और खंदमा तक पहुंच गया लोग उस दरिया को देखकर सख्त परेशान और बदहवास हो रहे हैं _,"


★_इस पर क़ुरेश ने उनसे कहा :- "_ जो होना था , वह तो हो चुका, अब आप मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) के पास जाएं और उनसे नए सिरे से मुआहिदा करें ..आपके सिवा यह काम कोई नहीं कर सकता _,"


★_ उस पर सुफियान अपने एक गुलाम के साथ मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुए, उधर उनसे पहले बनी खजा़ का एक वफद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में पहुंच गया और जो कुछ हुआ था तफसील से उसे बयान कर दिया ।

हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त मस्जिद-ए-नबवी में अपने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के साथ तशरीफ़ फरमा थे बनी खज़ा की दर्द भरी रूदाद सुन कर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की आंखों में आंसू आ गए और इरशाद फरमाया :- अगर मैं बनी खज़ा की मदद उन्हीं चीजों से ना करूं जिनसे मैं अपनी मदद करता हूं ,अल्लाह ताला मेरी मदद ना फरमाए _,"

उसी वक्त आसमान पर एक बदली आकर तैरने लगी , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसको देख कर इरशाद फरमाया-  यह बदली बनी खज़ा की मदद के लिए बुलंद हुई है _,"


★_ उम्मुल मोमिनीन हजरत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि एक रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास थे, रात में उठ कर उन्होंने नमाज पढ़ने के लिए वज़ु किया ,ऐसी हालत में मैंने उन्हें लब्बेक लब्बेक लब्बेक फरमाते सुना यानी मैं हाजिर हूं मैं हाजिर हूं मैं हाजिर हूं ..साथ में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह भी फरमाया - मैं मदद करूंगा मैं मदद करूंगा मैं मदद करूंगा_,"

अब वहां कोई और तो था नहीं, चुनांचे  मैंने अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मैंने आपको तीन बार लब्बेक और मैं मदद करूंगा फरमाते हुए सुना है यह क्या मामला है ?

जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  बनि खज़ा के साथ कोई वाकि़या हो गया है _,"


★_ उसके 3 दिन बाद बनी  खजा़ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास पहुंचे थे गोया अल्लाह ताला ने पहले ही आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को खबर दे दी थी जबकि अबू सुफियान इस कोशिश में थे कि इस सिलसिले में सबसे पहले वह हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से जाकर मिले यानी उनके वहां पहुंचने से पहले मुसलमानों को इस वाक्ये को खबर ना हो , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को पहले ही इन अल्फाज़ में खबर दे दी थी :- 

"_ बस यूं समझो ,नए सिरे से मुआहिदा करने और उसकी मुद्दत बढ़ाने के लिए अबू सुफियान आया ही चाहता है _,"


★_ फिर अबू सुफियान से पहले ही बनी खज़ा का वफद मदीना मुनव्वरा पहुंच गया ,यह लोग हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मिलकर वापस रवाना हुए तो रास्ते में अबू सुफियान से उनका सामना हुआ, अबू सुफियान ने उनसे कुछ पूछने की कोशिश की लेकिन वह बताएं बगैर आगे बढ़ गए ..ताहम अबू सुफियान ने भांप लिया कि यह लोग उसी सिलसिले में मदीना मुनव्वरा गए थे ।


★_ मदीना मुनव्वरा पहुंचते ही अबू सुफियान सीधे अपनी बेटी नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की ज़ौजा मोहतरमा हजरत उम्मुल मोमिनीन उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास गए, घर में दाखिल होने के बाद जब अबू सुफियान ने बिस्तर पर बैठना चाहा तो उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बिस्तर लपेट दिया ,यह देखकर अबू सुफियान हैरतज़दा रह गए , उन्होंने कहा :-  बेटी यह क्या ! मेहमान के आने पर बिस्तर बिछाते हैं कि उठाते हैं _," 

हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया - यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का बिस्तर है और आप अभी मुशरिक है _,"


★_ यह सुनकर अबू सुफियान बोले:- अल्लाह की क़सम! मेरे पास से आने के बाद तुझ में खराबियां पैदा हो गई है _," 

इस पर हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया :-  यह बात नहीं , बल्कि बात यह है कि मुझे इस्लाम की हिदायत अता हो गई है जबकि आप पत्थरों को पूजते हैं उन बुतों को जो ना सुन सकते हैं और ना देख सकते हैं.. आप पर ताज्जुब हैं आप क़बीला कुरेश  के सरदार है और बुज़ुर्ग है , समझदार आदमी है और अब तक शिर्क में डूबे हुए हैं _," 

उनके जवाब में अबु सुफियान बोले :- तो क्या मैं अपने बाप दादा का दीन छोड़कर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) के दीन को अख्तियार कर लूं _,"


★_ फिर अबु सुफियान वहां से निकल कर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए लेकिन आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम नए सिरे से मुआहिदा करने से इंकार फरमा दिया,अब वह अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास गए उन्होंने भी कोई बात ना सुनी.. वह बार-बार सभी बड़े लोगों के पास गए लेकिन किसी ने उनसे बात ना की , आखिर अबू सुफियान मायूस हो गए और वापस मक्का लोट आए उन्होंने कुरेश पर वाज़े कर दिया कि वह बिल्कुल नाकाम लौटे हैं ,


★_ अबु सुफियान के रवाना होने के बाद ही नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मुसलमानों को कूच का हुक्म फरमाया, मुसलमानों के साथ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने घर वालों को भी तैयारी का हुक्म फरमाया लेकिन यह वजाहत नहीं फरमाई थी कि कहां जाना है , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आस-पास के देहातों में यह पैगाम भेज दिया उन लोगों को हुक्म हुआ कि रमजान का महीना मदीना मुनव्वरा में गुजारे, इस ऐलान के फौरन बाद चारों तरफ से लोगों की आमद शुरू हो गई इस मौके पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई :-  ऐ अल्लाह !कुरेश के जासूसों और गिन सुनने वालो को रोक दें ताकि हम उनके इलाके में अचानक जा पड़े _,"

*★_ क़ुरेश को हजरत हातिब बिन अबी बलता रज़ियल्लाहु अन्हु का खत _,*


★_ इधर तो हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम यह अतियात फरमाते रहे थे कि किसी तरह कुरेश को उनकी तैयारियों का इल्म ना हो, उधर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के एक सहाबी हजरत हातिम बिन अबी बलता रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुरेश के तीन बड़े सरदारों के नाम खत लिखा, उस खत में उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तैयारियों की इत्तेला दी थी, यह खत उन्होंने एक औरत को दिया और उससे कहा- अगर तुम यह खत कुरेश को पहुंचा दो तो तुम्हें जबरदस्त इनाम दिया जाएगा ,उसने खत पहुंचाना मंजूर कर लिया ,इसपर हजरत रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे 10 दीनार और एक कीमती चादर दी और उससे कहा -जहां तक मुमकिन हो इस खत को पोशीदा रखना और आम रास्तों से सफर ना करना क्योंकि जगह-जगह निगरानी करने वाले बैठे हैं_,"


★_ वह औरत आम रास्ता छोड़कर एक और रास्ते से मक्का मुअज़्ज़मा की तरफ रवाना हुई, उसका नाम साराह था वह मक्का की एक गुलकार थी, मदीना मुनव्वरा में आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आकर मुसलमान हो गई थी उसने अपनी खस्ता हाली की शिकायत की तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसकी मदद भी की थी फिर यह मक्का चली गई लेकिन वहां जाकर इस्लाम से फिर गई फिर यह वहां नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में तौहीन आमेज़ अशआर पढ़ने लगी , इन दिनों साराह दोबारा मदीना आई हुई थी, हजरत हातिब रजियल्लाहु अन्हु ने उसे खत दिया तो वह यह काम करने पर रजामंद हो गई ।


★_ उसने वह खत अपने सर के बालों में छुपा लिया और मदीना मुनव्वरा से रवाना हो गई.. उधर वह रवाना हुई, उधर अल्लाह ताला ने अपने रसूल को इस बारे में खबर भेज दी, आसमान से इत्तेला मिलते ही आपने अपने चंद सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम उसके ता'क्कुब में रवाना फरमाऐ, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया- वह औरत तुम्हें फलां मुकाम पर मिलेगी.. उसके पास एक खत है, खत में कुरेश के खिलाफ हमारी तैयारियों की इत्तेला है ,तुम लोग उस औरत से वह खत छीन लो.. अगर वह देने से इनकार करें तो उसे कत्ल कर देना_,"


★_ यह सहाबा हजरत अली, हजरत जुबेर, हजरत तलहा और हजरत मिक़दाद रजियल्लाहु अन्हुम थे, हुक्म मिलते ही वे उस मुकाम की तरफ रवाना हो गए नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के फरमान के मुताबिक वह औरत ठीक उसी मुकाम पर जाते हुए मिली, उन्होंने उसे घेर लिया ,उन्होंने उस औरत से पूछा- वह खत कहां है? उसने क़सम खाकर कहा -मेरे पास कोई खत नहीं है , आखिर उसे ऊंट से नीचे उतारा गया तलाशी ली गई मगर खत ना मिला, इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - मैं कसम खाकर कहता हूं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम कभी गलत बात नहीं कहते..,"


★_जब उस औरत ने देखा है कि ये लोग किसी तरह नहीं मानेंगे तो उसने अपने सर के बाल खोल डाले और उनके नीचे छुपा हुआ खत निकालकर उन्हें दे दिया, बहरहाल इन हजरात ने खत ला कर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में पेश किया, खत हजरत हातिब बिन अबी बलता रज़ियल्लाहु अन्हु ने लिखा था और उसमें दर्ज था कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जंग की तैयारी शुरू कर दी है और यह तैयारी ज़रूर तुम लोगों के खिलाफ है मैंने मुनासिब जाना कि तुम्हें इत्तेला देकर तुम्हारे साथ भलाई करूं _,"


★_ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत हातिब रजियल्लाहु अन्हु को तलब फरमाया, उन्हें खत दिखाया और फिर पूछा - हातिब इस खत को पहचानते हो  ?

जवाब में उन्होंने अर्ज़ किया - ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं पहचानता हूं ..मेरे बारे में जल्दी न कीजिए, मेरा कुरेश से कोई ताल्लुक नहीं जबकि आपके साथ जो मुहाजिरीन मुसलमान है उन सब की कुरेश के साथ रिश्तेदारियां हैं.. इस वजह से मुशरिक होने के बावजूद वहां मौजूद उनके रिश्तेदार महफूज हैं.. वह उन्हें कुछ नहीं कहते.. लेकिन चूंकि मेरी उनसे रिश्तेदारी नहीं इसलिए मुझे अपने घर वालों के बारे में तशवीश रहती है.. मेरी बीवी और बेटा वहां फंसे हुए हैं सो मैंने सोचा इस मौके पर कुरेश पर यह एहसान कर दूं ताकि वह मेरे घर वालों के साथ जुल्म ना करें और बस.. इस खत से मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता कुरेश पर अल्लाह का क़हर नाज़िल होने वाला है _,"


★_ उनकी बात सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया :- "_ तुमने हातिब की बात सुनी इन्होंने सब कुछ सच-सच बता दिया है ..अब तुम लोग क्या कहते हो ?

इसपर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- "_ ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे इजाज़त दीजिए इस शख्स का सर कलम कर दूं क्योंकि यह मुनाफिक हो गया है _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "_ ऐ उमर ! यह शख्स इन लोगों में से हैं जो गज़वा बदर में शरीक हुए थे और उमर तुम्हें क्या पता मुमकिन है अल्लाह ताला ने अहले बदर से यह फरमा दिया हो कि तुम जो चाहे करो मैंने तुम्हारी मग्फिरत कर दी है_,"


★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का यह इरशाद मुबारक सुनकर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की आंखों में आंसू आ गए , इधर अल्लाह ताला ने सूरह अल मुमताहाना की यह आयत नाजिल फरमाई :- 

"_ (तर्जुमा )_ ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि उनसे दोस्ती का इजहार करने लगो हालांकि तुम्हारे पास जो दीन आ चुका है वह उसके मुनकिर हैं वह रसूल को और तुम्हें इस बिना पर शहर बदर कर चुके हैं कि तुम अल्लाह ताला पर ईमान ले आए हो _,"

*★_ मक्का की तरफ कूच _,*


★__ उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा से कूच फरमा दिया , मदीना में अपना क़ायम मक़ाम अबु हजरत रहम कुलसूम बिन हसन अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु को बनाया । आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 10 रमज़ान को मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए इस गज़वे में मुसलमानों के साथ 10 हज़ार सहाबा थे, यह तादाद इंजील में भी आई है वहां यह कहा गया है कि -वह रसूल 10 हज़ार क़ुदसियों के साथ फारान की चोटियों से उतरेगा _,"

इस मौके पर मुहाजिरीन और अन्सार में से कोई पीछे नहीं रहा था ,उनके साथ 300 घोड़े और 900 ऊंट थे , इन मुकद्दस सहाबा के अलावा रास्ते में कुछ क़बाइल भी शामिल हो गए थे।


★_ इस सफर में रोजों की रुखसत की इजाज़त भी हुई यानी जिसका जी चाहे सफर में रोज़ा रख ले ,जो रखना ना चाहे वह बाद में रखें ..इस तरह सफर और जंग के मौकों पर यह इजाज़त हो गई । 

सफर करते करते आखिर लश्कर मरज़ोहरान के मुका़म पर पहुंच गया उस मुका़म का नाम अब बतने मर्द है । लश्कर की रवानगी से पहले चूंकि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह दुआ फरमाई थी कि क़ुरेश को इस्लामी लश्कर की आमद की खबर ना हो... इसलिए उन्हें खबर ना हो सकी ।


★_ मरज़ोहरान के मुका़म पर पहुंच कर रात के वक्त मुसलमानों ने आग जलाई चूंकि 12 हजार के करीब तादाद थी इसलिए बहुत दूर-दूर तक आग के अलाव रोशन हो गए, 

जिस वक्त यह लश्कर मदीना मुनव्वरा से रवाना हुआ था उसी वक्त हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चाचा हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु मक्का से हिजरत करके मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुए थे ताकि नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास पहुंचकर इस्लाम कुबूल करने का ऐलान कर दें.. लेकिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से रास्ते ही में मुलाक़ात हो गई, यह मुलाक़ात मुक़ामे हजीफा पर हुई.. हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु यहीं से आपके साथ चल पड़े , उन्होंने अपने घर के अफराद को मदीना मुनव्वरा भेज दिया।


★_ इस मौके पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-  ऐ चचा ! आपकी यह हिजरत उसी तरह आखरी हिजरत है जिस तरह मेरी नबुवत आखरी नबुवत है _,"

यह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसलिए फरमाया कि आमतौर पर मुसलमान कुरेश के जुल्मों से तंग आकर मदीना मुनव्वरा हिजरत करते थे लेकिन अब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का फतह करने के लिए तशरीफ ले जा रहे थे उसके बाद तो मक्का से हिजरत की ज़रूरत ही खत्म हो जाती, इसलिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया कि यह आपकी उसी तरह आखरी हिजरत है जिस तरह मेरी नबूवत आखरी है ।

आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इस फरमान से आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के बाद नबूवत का दावा करने वालों का मुकम्मल तौर पर रद हो गया । ( खत्मे नबूवत जिंदाबाद )


★_ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु इस खयाल से मक्का की तरफ चले कि कुरेश को बताएं अल्लाह के रसूल कहां तक आ चुके हैं  और कुरेश के हक़ में बेहतर यह है कि मक्का मुअज़्ज़मा से निकलकर पहले ही आप की खिदमत में हाजिर हो जाएं। 

इधर यह इस इरादे से निकले उधर अबू सुफियान, बदील बिन वरका और हकीम बिन हुज़ाम आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुताल्लिक खबरें हासिल करने के लिए निकले क्योंकि इतना उन लोगों को उस वक्त मालूम हो गया था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लश्कर के साथ मदीना मुनव्वरा से कूच फरमाया है लेकिन यह मालूम ना हो सका था कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम किस तरफ गए हैं ।


★_ अब जो यह बाहर निकले तो हजारों जगहों पर आग रोशन देखी तो बुरी तरह घबरा गए। अबु सुफियान के मुंह से निकला :- "_ मैंने आज की रात जैसी आग कभी नहीं देखी और ना इतना बड़ा लश्कर कभी देखा.. यह तो इतनी आग है जितनी अरफा के दिन हाजी जलाते हैं _,"

जिस वक्त अबू सुफियान ने यह अल्फाज़ कहे, उसी वक्त हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु वहां से गुजरे, उन्होंने यह अल्फाज सुन लिए चुंनाचे उन्होंने इन हजरात को देख लिया और उनकी तरफ आ गए , हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु भी हजरत अबू सुफियान के दोस्त थे । 

*"_अबु हंज़ला.. यह तुम हो !  हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु बोले । अबु हंजला अबू सुफियान की कुन्नियत थी। 

"_हां , यह मैं हूं और मेरे साथ बदील बिन वरक़ा और हकीम बिन हुज़ाम हैं ...तुम कहां ?"

जवाब में हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने कहा - अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तुम्हारे मुकाबले में इतना बड़ा लश्कर ले आए हैं.. अब तुम्हारे लिए फरार का कोई रास्ता बाकी नहीं रहा _,"


★_ अबू सुफियान यह सुनकर घबरा गए और कहने लगे - "_ आह ! अब क़ुरेश का क्या होगा .. कोई तदबीर बताओ _,"

यह सुनकर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :- अल्लाह की क़सम ! अगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तुम पर का़बू पा लिया तो तुम्हारा सर कलम करा देंगे.. इसलिए बेहतर यही है कि मेरे खच्चर पर सवार हो जाओ ताकि मैं तुम्हें आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की खिदमत में ले जाऊं और तुम्हारी जान बख्सी करा लूं _,"

हजरत अबू सुफियान फौरन ही हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु के पीछे खच्चर पर सवार हो गए।


★_ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु और अबू सुफियान उस जगह से गुजरे जहां हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने आग जला रखी थी , हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें देख लिया और उठकर उनकी तरफ आए और पुकार उठे - "_कौन अल्लाह का दुश्मन अबू सुफियान_," 

यह कहते ही हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम की तरफ दौड़ पड़े, यह देखकर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने भी खच्चर को ऐड लगा दी और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से पहले नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के खेमे तक पहुंचने में कामयाब हो गए फिर जल्दी से खच्चर से उतरकर खेमे में दाखिल हो गए । उनके फौरन बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु भी खैमे में दाखिल हो गये और बोल उठे :- 

"_या रसूलल्लाह ! यह दुश्मने खुदा अबु सुफियान है अल्लाह ताला ने इस पर बगैर किसी मुआहिदे के हमें क़ाबू अता फरमाया है लिहाजा मुझे इजाजत दीजिए कि मैं इसकी गरदन मार दूं _," 

मगर इसके साथ ही हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं इन्हें पनाह दे चुका हूं _,"


★_ अब मंजर यह था कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु नंगी तलवार सोंते खड़े थे की उधर हुक्म हो इधर वह अबू सुफियान का सर क़लम कर दें ..दूसरी तरफ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु कह रहे थे :- "_अल्लाह की क़सम! आज रात मेरे अलावा कोई शख्स की जान बचाने की कोशिश करने वाला नहीं है _,"

*★_ यह बादशाहत नहीं नबुवत है _,*


★_ आखिर नबी रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया -"_ अब्बास ! अबू सुफियान को अपने खेमे ले ले जाओ और सुबह उन्हें मेरे पास ले आना _",

सुबह को आज़ान हुई तो लोग तेजी से नमाज के लिए लपकने लगे, अबू सुफियान लश्कर में हलचल देखकर घबरा गए उन्होंने हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से पूछा :- अबुल फ़ज़ल ! यह क्या हो रहा है ? हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने बताया :- लोग नमाज के लिए जा रहे हैं _,"

हजरत अबू सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हु दर असल इस ख्याल से घबरा गए थे कि कहीं उनके बारे में कोई हुक्म ना दिया गया हो,  फिर उन्होंने देखा लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के वज़ु का पानी जमा कर रहे हैं ,फिर उन्होंने देखा , अल्लाह के रसूल रुकू करते हैं तो सब लोग भी आपके साथ रुकू करते हैं और आप सजदा करते हैं तो लोग भी सजदा करते हैं ,


नमाज के बाद उन्होंने हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से कहा :- "_ ऐ अब्बास ! मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) जो भी हुक्म देते हैं लोग फौरन उसकी तामील करते हैं _,"

जवाब में हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु बोले :- हां ,अगर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम लोगों को खाने पीने से रोक दें यह  उस पर भी अमल करेंगे _,"

इस पर अबू सुफियान बोले :- मैंने ज़िन्दगी में इन जैसा बादशाह नहीं देखा, ना किसरा ऐसा है ना कैसर.. और ना बनी अज़फर का बादशाह _," 

यह सुनकर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - यह बादशाहत नहीं ,नबूवत है _,"


★_ फिर हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु उन्हें ले कर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में आए, आप सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम ने अबू सुफियान को देखकर फरमाया :- अबू सुफियान ! अफसोस है ,क्या अभी वो वक्त नहीं आया कि तुम ला इलाहा इलल्लाह की गवाही दो_," 

अबू सुफियान फौरन बोले :- "_ मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और आप अल्लाह के रसूल है _,"

उनके साथ बदील बिन वरका और हकीम बिन हुज़ाम भी ईमान ले आए , यह लोग वापस नहीं गए थे वहीं रुक कर हालात का इंतजार करने लगे थे ।


★_ इसके बाद अबु सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! लोगों में अमान और जान बख्शी का ऐलान करा दीजिए _,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फ़रमाया :-  हां , जिसने हाथ रोक लिया ( यानी हथियार ना उठाया) उसे अमान है और जिसने अपने घर का दरवाजा बंद कर लिया उसे अमान है और जो शख्स तुम्हारे घर में आ जाएगा उसे भी अमान है ... और जो शख्स हकीम बिन हुज़ाम के घर में दाखिल हो जाएगा उसे भी अमान है _,"

साथ ही आपने अबु रूदेहा रज़ियल्लाहु अन्हु को एक परचम देकर फरमाया :- जो शख्स अबु रूदेहा के परचम के नीचे आ जाएगा उसे भी अमान हैं _,"

फिर आपने अबू सुफियान ,हकीम  बिन हुज़ाम और बदील बिन वरक़ा के बारे में हिदायत फरमाई :-  इन तीनों को वादी के तंग हिस्से के पास रोक लो ताकि जब अल्लाह का लश्कर वहां से गुज़रे तो वो इसको अच्छी तरह देख सकें _,"


★_ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने ऐसा ही किया इस तरह तमाम क़बाईल हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु के सामने से गुज़रे , जो क़बीला भी उनके सामने से गुजरता 3 मर्तबा नारा तकबीर बुलंद करता ,इस अज़ीम लश्कर को देखकर अबू सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे :- "_ अल्लाह की क़सम ! अबुल फ़ज़ल ! आज हमारे भतीजे की मुमलिकत बहुत जबरदस्त हो चुकी है _,"

जवाब में हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- "_ यह सल्तनत और हुकूमत नहीं बल्कि नबूवत और रिसालत है_,"


★_ फिर जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों के क़रीब पहुंचे तो अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु ने बुलंद आवाज में कहा :- "_ ऐ गिरोह क़ुरेश ! यह मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपना अज़ीमुश्शान लश्कर ले कर तुम्हारे सरो पर पहुंच गए हैं.. इसलिए जो मेरे घर में दाखिल हो जाएगा उसे अमान होगी_,"

यह सुनकर कुरेश कहने लगे :- "_क्या तुम्हारा घर हम सबके लिए काफी हो जाएगा ?_,"

अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया :- "_जो शख्स अपने घर का दरवाजा बंद कर लेगा उसे भी अमान है जो मस्जिद ए हरम में दाखिल हो जाएगा उसे भी अमान है और जो हकीम बिन हुज़ाम के घर में पनाह लेगा उसे भी अमान है और जो हथियार डाल देगा उसे भी अमान है_,"


★_ यह सुनते ही लोग दौड़ पड़े और जिसे पनाह की जो जगह भी मिल सकी वहां जा घुसे , इस तरह मक्का मुअज़्ज़मा जंग के बगैर फतह हुआ , यह तारीख इंसानियत का मुंफर्द वाक़िया है एक मगलूब क़ौम बगैर कश्त व खून के अपने जानी दुश्मनों पर गालिब आ गई और उसने कोई इंतकाम ना लिया हो ,

इस आम माफी के ऐलान के बावजूद 11 आदमी ऐसे थे जिनके बारे में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था कि इन्हें क़त्ल कर दिया जाए यहां तक कि अगर इनमें से कोई खाना काबा का पर्दा भी पकड़कर खड़ा हो जाए उसे भी क़त्ल किया जाए, इनमें अब्दुल्लाह बिन अबी सराह भी थे,यह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के रजा़ई भाई थे यह बाद में मुसलमान हो गए थे इसलिए कत्ल नहीं किए गए ,दूसरे इकरमा बिन अबी जहल थे यह भी बाद में मुसलमान हो गए थे , गर्ज़ इन 11 में से ज्यादातर मुसलमान हो गए थे इसलिए क़त्ल होने से बच गए।


★_उस रोज कुछ मुशरिकों ने मुकाबला करने की भी ठानी, उनमें सफवान बिन उमैया, इकरमा बिन अबी जहल और सुहेल बिन अमरू शामिल थे , यह लोग अपने साथियों के साथ खंदमा के मुकाम पर जमा हुए खंदमा मक्का मुअज्ज़मा का एक पहाड़ है, इन लोगों के मुकाबले के लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा, इस मुकाबले में 28 के करीब मुशरिक मारे गए बाकी भाग निकले ।

*★_ जब बुत मुंह के बल गिरने लगे _,*


★_आखिर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मक्का मुआवजा में दाखिल हुए , आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उस वक्त अपनी ऊंटनी कसवा पर सवार थे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पीछे हजरत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु बैठे थे, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यमनी चादर का एक पल्ला सर पर लपेट रखा था और आजिज़ी और इंकसारी से सर को कजावे पर रखा हुआ था , उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम फरमा रहे थे :- ऐ अल्लाह ! जिंदगी और ऐश सिर्फ आखिरतत का है _,"


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम कदा के मुकाम से मक्का में दाखिल हुए यह मुकाम मक्का की बालाई सिम्त में है.. मक्का में दाखिल होने से पहले आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने गुस्ल भी फरमाया था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने शोएब अबी तालिब के मुकाम पर क़याम फरमाया यह वही घाटी थी जिसमें कुरेश ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को 3 साल तक रहने पर मजबूर कर दिया था और वह तीन साल मुसलमानों के लिए इंतेहाई दुख और दर्द के साल थे ,जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शहर में दाखिल हुए और मक्का के मकानात पर नज़र पड़ी तो अल्लाह की हम्दो सना बयान की, मक्का में हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पीर के दिन दाखिल हुए जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मक्का से हिजरत की थी वह भी पीर ही का दिन था।


★_ आखिर हुजूर सल्लल्लाहू वसल्लम हरम में दाखिल हुए अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बराबर चल रहे थे और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बातें कर रहे थे फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बैतुल्लाह में दाखिल हुए.. ऊंटनी पर बैठे-बैठे ही काबे के सात तवाफ किए, मोहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की ऊंटनी की मुहार पकड़े हुए थे, इन चक्करों के दौरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हाथ मुबारक से हजरे अस्वद का इस्तेलाम किया यानी बौसा देने का इशारा किया ।


★_ उस वक्त काबा में 360 बुत थे अरब के हर कबीले का बुत अलग अलग था ,हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथ में उस वक्त एक लकड़ी थी जिससे हर बुत को हिलाते चले गए बुत मुंह के बल गिरते चले गए उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सूरह बनी इसराइल की आयत नंबर 81 तिलावत फरमा रहे थे उसका तर्जुमा यह है :- 

"_हक़ आया और बातिल गुज़र गया और वाकई बातिल चीज़ तो आनी जानी है _,"


★_  के दौरान हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हुब्ल बुत के पास पहुंचे , क़ुरेश को इस बुत पर बहुत फख्र था वह उसकी इबादत बहुत फख्र से किया करते थे यह क़ुरेश के सबसे बड़े बुतों में से एक था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वह लकड़ी उसकी आंखों पर मारी फिर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के हुक्म से बुत को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया । उस वक्त हजरत जुबेर बिन अवाम रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु से कहा - ऐ अबु सुफियान ! हुब्ल तोड़ दिया गया तुम उस पर फख्र किया करते थे _,"

वह सुनकर हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु बोले :- अब उन बातों का क्या फायदा _,"

फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुका़मे इब्राहीम पर पहुंचे उस वक्त वह मुका़म खाना काबा से मिला हुआ था उसके बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :-  मेरे कंधों पर खड़े होकर काबा की छत पर चढ़ जाओ छत पर बनी खज़ा का जो बुत है इसको चौट मारो_,"

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हुक्म की तामील की और छत पर चढ़कर बुत को ज़र्ब लगाई..यह अपनी सलाखों से नसब किया गया था आखिर उखड़ गया.. हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसको उठाकर नीचे फेंक दिया ।


★_ अब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- बिलाल ! उस्मान बिन तलहा से काबे की चाबियां ले आओ _,"

*★_ इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तस्वीर को भी मिटा दिया गया _,*


★_ चाबियां आ गई तो दरवाजा खोला गया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा में दाखिल हुए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इससे पहले हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया था कि काबे में पहुंचकर वहां बनी हुई तस्वीरें मिटा दें ,आप सल्ला वसल्लम के अंदर दाखिल होने से पहले ही तस्वीरें मिटाई जा चुकी थी लेकिन तस्वीरों में एक तस्वीर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की भी थी ,हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उसको नहीं मिटाया था ,उस पर नज़र पड़ी तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया-  "_उमर क्या मैंने तुम्हें हुक्म नहीं दिया था कि काबे में कोई तस्वीर बाकी ना छोड़ना _,"


★_ इस मौके पर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_अल्लाह ताला उन लोगों को हलाक करें  जो ऐसी चीजों की तस्वीर बनाते हैं जिन्हें वह पैदा नहीं कर सकते... अल्लाह ताला उन्हें हलाक करे ,वह अच्छी तरह जानते हैं कि इब्राहिम अलैहिस्सलाम ना यहूदी थे ना नसरानी बल्कि वह पक्के सच्चे मुसलमान थे _,"

इसके बाद उस तस्वीर को भी मिटा दिया गया, फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां दो सुतूनों के दरमियान में 2 रका'त नमाज अदा फरमाई ।


★_ जब आप और आपके चंद साथी काबा के अंदर दाखिल हुए थे उस वक्त हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु पहरा देने के लिए दरवाजे पर खड़े हो गए वह मजीद लोगों को अंदर दाखिल होने से रोकते रहे ।

फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर तशरीफ लाए और मुक़ामे इब्राहिम पर पहुंचे, मक़ामें इब्राहिम उस वक्त खाना काबा से मिला हुआ था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वहां दो रकाते अदा की, उसके बाद आबे जमजम मंगा कर पिया और वज़ु फरमाया, सहाबा किराम उस वक्त लपक लपक कर हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के वजू का पानी लेकर अपने चेहरों पर मलने लगे ,मतलब यह कि वो आपके वज़ु के पानी को नीचे नहीं गिरने दे रहे थे। मुशरिकीने मक्का ने जब यह हालत देखी तो पुकार रूठे :- हमने आज तक ऐसा मंजर देखा ना सुना.. ना यह सुना है कि कोई बादशाह इस दर्जे को पहुंचा हो_,"


★_ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम जब हरम में आकर बैठ गए तो लोग आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के इर्द-गिर्द जमा हो गए ,ऐसे में हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु उठ कर गए और अपने वालिद अबू क़हाफा का हाथ पकड़कर उन्हें ले आए अबु क़हाफा की बीनाई जाती रही थी, इधर जोंही आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाह हजरत अबू क़हाफा पर पड़ी तो फरमाया ‌:- "_अबू बकर ! तुमने वालिद मोहतरम को घर पर ही क्यों ना रहने दिया ,मैं खुद उनके पास चला जाता _,"

इस पर अबू बकर ने अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! यह इस बात के ज्यादा हकदार हैं कि खुद चलकर आपके पास आएं _,"


★_ फिर हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबु क़हाफा को आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने बैठा दिया , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक उनके सीने पर फैरा और फरमाया :- "_ मुसलमान हो कर इज़्ज़त और सलामती का रास्ता अख्तियार करो_,"

वह उसी वक्त मुसलमान हो गए , आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- "_अबू बकर तुम्हें मुबारक हो _,"

हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु बोले:- "_ क़सम है उस जात की जिसने आपको हक़ और सदाक़त के साथ ज़ाहिर फरमाया मेरे वालिद अबु क़हाफा के इस्लाम के मुकाबले में आपके चाचा अबू तालिब ईमान ले आते तो यह मेरे लिए ज्यादा खुशी की बात होती _,"


*★_ हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बालों की सफेदी _,"*


★_ उस वक्त हजरत अबू क़हाफा रज़ियल्लाहु अन्हु के बाल बुढ़ापे की वजह से बिल्कुल सफेद हो चुके थे हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया:- "_ इन बालों को मेहंदी से रंग लो ...लेकिन सियाह खिज़ाब ना लगाओ_,"


★_ मो'अरखीन ने लिखा है कि सबसे पहले हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अपने बालों की सफेदी का एहसास हुआ था जब ज्यादा उम्र होने पर बाल सफेद होने लगे तो उन्होंने अल्लाह ताला से अर्ज़ किया कि ऐ बारी ता'ला ! यह कैसी बदसूरती है जिससे मेरा रूप बदनुमा हो गया है। इस पर अल्लाह ता'ला ने इरशाद फरमाया :- "_ यह चेहरे का वकार है इस्लाम का नूर है मेरी इज्ज़त की क़सम मेरे जलाल की क़सम ! जिसने यह गवाही दी कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि मेरी खुदाई में कोई शरीक नहीं और उसके बाल बुढ़ापे की वजह से सफेद हो गए तो क़यामत के दिन मुझे इस बात से हया आएगी कि उसके लिए मीज़ाने अद्ल क़ायम करूं या उसका नामा आमाल सामने लाऊं या उसे अज़ाब दूं _,"

इस पर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने दुआ की :- "_ ऐ परवरदिगार ! फिर तो इस सफेदी को मेरे लिए और ज़्यादा कर दें _," 

चुनांचे इसके बाद उनका सर बर्फ की तरह सफेद हो गया। इससे मालूम हुआ कि बुढ़ापे की सफेदी और खुद बुढ़ापा अल्लाह ताला की बहुत बड़ी नियामत है और मोमिन के लिए उम्र की यह मंजिल भी शुक्र का मुका़म है।


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के घराने को यह फजी़लत भी हासिल है कि उनका सारा का सारा घराना ही मुसलमान हुआ कोई एक फर्द भी ना रहा जो मुसलमान ना हुआ हो ।

*★_ हजरत इकरमा बिन अबी जहल का इस्लाम लाना _,*


★_ इकरमा बिन अबी जहल उन 11 अफराद में से एक थे जिनके क़त्ल का हुक्म आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दिया था , इस हुक्म की वजह यह थी कि उन्होंने और उनके बाप अबू जहल ने मुसलमानों के साथ बहुत ज्यादतियां की थी यह हुक्म सुनते ही इकरमा यमन की तरफ भाग निकले , उस वक्त तक उनकी बीवी उम्मे हकीम बिन्ते हारिस मुसलमान हो चुकी थी उन्होंने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से हजरत इकरमा के लिए अमान तलब कर ली और उनके ताकुब में गई, हजरत इकरमा बाहरी जहाज में सवार हो चुके थे ताकि किसी दूसरे मुल्क में चले जाएं ,यह बाहरी जहां से उन्हें वापस ले आईं और उनसे कहा :- मैं तुम्हारी तरफ से उस शख्सियत के पास से आई हूं जो सबसे ज्यादा रिश्तेदारियों का ख्याल करने वाले और सबसे बेहतरीन इंसान है तुम  अपनी जान हलाकत में मत डालो क्योंकि मैं तुम्हारे लिए मान हासिल कर चुकी हूं_,"


★_ इस तरह हजरत इकरमा रजियल्लाहु अन्हु अपनी बीवी के साथ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और इस्लाम ले आए । हजरत इकरमा रजियल्लाहु अन्हु बहुत बेहतरीन मुसलमान साबित हुए, वह बहुत ज़बरदस्त जंगजू भी थे खूब जिहाद किया बड़े सहाबा में आपका शुमार हुआ जंगे यरमूक में रोमियो के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए।


★_ इसी तरह बाकी लोगों को भी अमान मिल गई इनमें हिंदा बीन्ते हारिस भी थी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके क़त्ल का भी हुकुम दिया था यह हजरत अबु सुफियान रजियल्लाहु अन्हु की बीवी थी उनके क़त्ल का हुक्म आपने इस बिना पर दिया था कि गज़वा उहद में उन्होंने हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु का मुसला किया था यानी उनके नाक कान वगैरह काटे थे लेकिन इन्हें भी माफी मिल गई और यह भी मुसलमान हो गई।


★_ सफवान बिन उमैया के भी कत्ल का हुक्म हुआ था इन्हें भी माफी मिल गई और यह भी मुसलमान हो गए, काब बिन जुबेर को की माफी मिल गई यह अपने अशआर में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बुरा भला कहते थे यह भी मुसलमान हो गए।


★_ इसी तरह वहशी ने गज़वा उहद में हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु को शहीद किया था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही  वसल्लम ने उनके भी क़त्ल का हुक्म फरमाया था लेकिन यह भी मुसलमान हो गए ।

*★_ हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ुबूले इस्लाम_,*


★_ उस रोज़ यानी फतह मक्का के दिन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफा पहाड़ी पर जा बैठे और लोग गिरोह दर गिरोहो आप की खिदमत में हाजिर होकर इस्लाम कुबूल करते रहे ,तमाम छोटे-बड़े मर्द हाजिर हुए, औरतें भी आईं, सब अपने इस्लाम का एलान करते रहे ।


★_एक और सहाबी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के रौब से कांपने लगे और दहशत ज़दा हो गए , हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनकी हालत देखकर फरमाया :- "_ डरो नहीं मैं कोई बादशाह नहीं हूं बल्कि मैं तो क़ुरेश की एक ऐसी औरत का बेटा हूं जो मामूली खाना खाया करती थी _,"


★_उस वक्त जिन लोगों ने इस्लाम कुबूल किया उनमें हजरत अमीरे मुआविया बिन अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु भी है, हजरत अमीरे मुआविया रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि सुलह हुदेबिया के मौके पर ही इस्लाम की मोहब्बत मेरे दिल में घर कर चुकी थी मैंने इस बात का जिक्र अपनी वाल्दा से किया तो उन्होंने कहा :- "_खबरदार अपने वालिद की खिलाफ वर्जी़ ना करना _," इसके बावजूद मैंने इस्लाम कुबूल कर लिया मगर उसको छुपाए रखा, फिर किसी तरह मेरे वालिद अबू सुफियान को पता चल गया उन्होंने नाराज़गी के अंदाज ने मुझसे कहा :-"_तुम्हारा भाई तुम से कहीं ज्यादा बेहतर है.. क्योंकि वह मेरे दीन पर क़ायम है _,"


★_ फिर फतेह मक्का के मौके पर मैंने अपने दीन को ज़ाहिर कर दिया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात की ,आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मुझे खुशामदीद कहां, फिर मैं कातिबे वही बन गया यानी कुरान की नाजि़ल होने वाली आयात हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मुझसे लिखवाया करते थे _,"

उसी रोज हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु की बीवी यानी हजरत अमीरे मुआविया रजियल्लाहु अन्हु की वालिदा हिंदा रज़ियल्लाहु अन्हा भी मुसलमान हुई, इनके अलावा बेशुमार औरतें उस रोज़ इस्लाम लाईं और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से  बैत हुई ...लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में औरतों से मुसाफा नहीं फरमाया ।


★_ हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हि फरमाती हैं "_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कभी भी किसी औरत से मुसाफा नहीं फरमाया _," मतलब यह है कि औरतों से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जुबानी बैत लिया करते थे ।


★_फतह मक्का के मौके पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "_ मेरे परवरदिगार ने मुझसे इसी फतेह और नुसरत का वादा फरमाया था_,"

*★_ खाना काबा की चाबियां _,*

★_ खाना काबा की चाबी उस्मान बिन तलहा के पास थी उनसे मंगवा कर खाना काबा को खोला गया था फिर दरवाजे पर ताला लगा दिया गया और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने चाबी फिर उस्मान बिन तलहा को दे दी, उस वक्त तक वो इस्लाम नहीं लाए थे मगर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह सुलूक देख कर वह भी मुसलमान हो गए।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- "_ए बनी तलहा ! यह चाबी हमेशा के लिए तुम्हारे खानदान को दी गई और नस्ल दर नस्ल यह तुम्हारे ही खानदान में रहेगी_,"

इस मौके पर यह बात याद रखने के काबिल है की हिजरत से पहले एक रोज़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने चंद सहाबा के साथ खाना काबा में दाखिल होना चाहते थे लेकिन उस्मान बिन तलहा बहुत बिगड़ गए थे और चाबी देने से साफ इनकार कर दिया था , हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बुरा भला भी कहा था। उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था :- "_उस्मान ! अनक़रीब एक दिन देखोगे यह कुंजी मेरे हाथ में होगी और मैं जिसे चाहूंगा उसे दूंगा _,"


★_ इस पर उस्मान बिन तलहा ने कहा था:-  उस दिन कुरेश हलाक और बर्बाद हो चुके होंगे ?"

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जवाब में इरशाद फरमाया था :- "_ नहीं ,बल्कि उस दिन आबाद और सर बुलंद हो जाएंगे _,"

हजरत उस्मान बिन तलहा को ये तमाम बातें याद आ गई जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वह चाबी उनके हवाले की । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- उस्मान! मैंने तुमसे कहा था ना एक दिन तुम देखोगे यह चाबी मेरे हाथ में होगी और मैं जिसे चाहूंगा यह चाबी दूंगा _" 

यह सुनकर हजरत उस्मान बिन तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- "_मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के र सूल है _,"

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*★_ अगर फातिमा बिन्त मोहम्मद भी चोरी करतीं तो मैं उनका भी हाथ काट देता _,*


★_ फिर उस रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि काबे की छत पर चढ़कर अज़ान दें, चुंनाचे हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने अज़ान दी, उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- जो शख्स अल्लाह पर और क़यामत के दिन पर ईमान रखता है वह अपने घर में कोई बुत ना छोड़ें ,उसको तोड़ दे_,"


★_ लोग बुतों को तोड़ने लगे, हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु की बीवी हिंदा रज़ियल्लाहु अन्हा जब मुसलमान हो गई तो अपने घर में रखे बुत की तरफ बड़ी और लगी उसको ठोकरें मारने, साथ में कहती भी जाती थी :- हम लोग तेरी वजह से बहुत धोखे और गुरुर में थे_,"


★_ फिर रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने गरदोनवाह में भी सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को भेजा ताकि उन इलाकों में रखें बुतों को भी तोड़ दिया जाए , बाज़ इलाकों में लोगों ने बाका़यदा इबादत खाने बना रखे थे उनमें बुत रखे गए थे मुशरिकीन उन बुतों का और इबादत खानो का उतना ही अहतराम करते थे जितना कि काबा का , 2 दिन में जानवर भी कुर्बान करते थे जिस तरह की काबा में किए जाते थे, हद यह कि उन इबादत खानों का तवाफ भी किया जाता था , गर्ज़ हर खानदान का अलग बुत था।


★_ फतह मक्का के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने 19 दिन तक वहां क़याम फरमाया ,इस दौरान आप कसर् नमाजे़ पढ़ते रहे ।

इस दौरान एक औरत ने चोरी कर ली, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसका हाथ काटने का हुक्म फरमाया ,उसकी कौ़म के लोग जमा हो कर हजरत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए कि वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सिफारिश कर दें,  उसामा रज़ियल्लाहु अन्हु जब उस औरत की सिफारिश की तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चेहरे का रंग बदल गया, फरमाया-  क्या तुम अल्लाह के मुकर्रर करदा सज़ाओं में सिफारिश करते हो ?

हजरत उसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौरन अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मेरे लिए इस्तगफार फरमाएं _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसी वक्त खड़े हुए, पहले अल्लाह की हम्दो सना बयान की फिर यह खुतबा दिया :- "_ लोगो तुमसे पहली क़ौमों को सिर्फ इसी बात ने हलाक किया कि अगर उनमें कोई बाइज्जत आदमी चोरी कर लेता तो उसने सजा नहीं देते थे लेकिन अगर कोई कमजोर आदमी चोरी करता तो उसे सज़ा देते थे , क़सम है उस जा़त की जिसके कब्जे में मेरी जान है अगर फातिमा बिन्ते मोहम्मद भी चोरी करतीं तो मैं उनका भी हाथ काट देता _," उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुक्म से उस औरत का हाथ काट दिया गया ।


★_ फिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उताब बिन उसैद रज़ियल्लाहु अन्हु को मक्का मुअज्ज़मा का वाली मुकर्रर फरमाया, उन्हें हुक्म फरमाया कि लोगों को नमाज़ पढ़ाया करें , यह पहले अमीर हैं जिन्होंने फतेह मक्का के बाद मक्का में जमात के साथ नमाज़ पढ़ाई । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को उताब बिन उसैद रज़ियल्लाहु अन्हु के पास छोड़ा ताकि वह लोगों को हदीस और फिक़हा की तालीम दें ।


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*★__ गज़वा हुनैन _,*


★_ फतेह मक्का के बाद गज़वा हुनैन पेश आया , हुनैन ताइफ के करीब एक गांव है , इस गज़वे को गज़वा हवाजि़न और गज़वा अवतास भी कहते हैं। 

जब अल्लाह ताला ने अपने नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हाथों पर मक्का फतह फरमा दिया तो सभी क़बीलों ने इता'त क़ुबूल कर ली मगर क़बीला बनी हवाजि़न और बनी सकी़फ ने इता'त कुबूल करने से इंकार कर दिया । यह दोनों कबीले बहुत सरकश और मगरूर थे ,अपने गुरुर में वह कहने लगे :- खुदा की क़सम! मोहम्मद को अब तक ऐसे लोगों से साबका़ पड़ा है जो जंगों से अच्छी तरह वाक़िफ भी नहीं थे_,"


★_ अब उन्होंने जंग की तैयारी शुरू कर दी उन्होंने मालिक बिन ऑफ नज़ीरी को अपना सरदार बना लिया( यह बाद में मुसलमान हो गए थे ) जब मालिक बिन ऑफ को सबने मुत्तफिक तौर पर तमाम क़बीलों का सरदार बना लिया तो हर तरफ से मुख्तलिफ क़बीले बड़ी तादाद में आकर लश्कर में शामिल होने लगे, आखिर मालिक बिन ऑफ ने अपना यह लश्कर लेकर अवतास के मुकाम पर जाकर पड़ाव डाला ।


★_ इधर जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को खबरें मिली कि बनी हवाज़िन ने एक बड़ा लश्कर जमा कर लिया है तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने एक सहाबी हजरत अब्दुल्लाह बिन अबी हदूद असलमी को उनकी जासूसी के लिए रवाना किया और रुखसत करते हुए उनसे फरमाया :- उनके लश्कर में शामिल हो जाना और सुनना कि वह क्या फैसले कर रहे हैं _,"  

चुंनाचे वह बनी हवाजि़न के लश्कर में शामिल हो गए उनकी बातें सुनते रहे फिर वापस आकर आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को सारी तफसीलात सुनाई, क़बीला बनी हवाजिन वाले अपने साथ अपनी औरतें बच्चे और माल और दौलत भी ले आए थे , जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यह इत्तेला मिली तो मुस्कुराए और इरशाद फरमाया :- इंशा अल्लाह कल यह सब कुछ मुसलमानों के लिए माले गनीमत बनेगा_,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बनी हवाज़िन से मुकाबले के लिए 12 हजार का लश्कर लेकर रवाना हुए इनमें 2 हजार नौजवान मक्का मौज़्ज़मा और गर्दोनवा के थे , बाक़ी 10 हजार वो सहाबा थे जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आए थे और जिनके हाथ पर अल्लाह ताला ने मक्का फतह कराया था ,जब इस्लामी लश्कर दुश्मन के पड़ाव के करीब पहुंच गया तो आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने लश्कर की सफबंदी फरमाई, मुहाजिरीन और अंसार में झंडे तक्सीम फरमाएं, मुहाजिरीन का परचम आपने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द फरमाया ,एक परचम हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु को और एक हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को भी इनायत फरमाया,  अंसार में से आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने परचम हिबाब बिन मंजर रज़ियल्लाहु अन्हु को अता फ़रमाया, एक परचम हजरत उसैद रज़ियल्लाहु अन्हु को इनायत फरमाया ।


★_ जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने खच्चर पर सवार हुए तो 2 जि़रहें पहने हुए थे खोद( लोहे का हेलमेट ) भी पहन रखा था, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने लश्कर को लेकर आगे बढ़े , मुशरिकों के लश्कर की तादाद 20 हजार थी और उन्होंने अपने लश्कर को पहाड़ों और दर्रों में छुपा रखा था, जोंही इस्लामी लश्कर वादी में दाखिल हुआ मुशरिकीन ने अचानक उन जगहों से मुसलमानों पर हमला कर दिया और ज़बरदस्त तीरंदाजी शुरू कर दी, यह लोग थे भी बहुत माहिर तीरंदाज उनका निशाना बहुत पुख्ता था, इस अचानक और ज़बरदस्त हमले से मुसलमान घबरा गए उनके पांव उखड़ गए, मुशरिकीन के हजारों तीर एक साथ आ रहे थे बहुत से मुसलमान मुंह फेर कर भागे लेकिन अल्लाह के रसूल अपनी जगह जमे रहे एक इंच भी पीछे ना हटे ।


★_मुसलमानों के लश्कर में उस रोज़ दरअसल मक्का के कुछ मुशरीक भी चले आए.. यह माले गनीमत के लालच में आए थे... जब ज़बरदस्त तीरंदाजी हुई तो यह एक दूसरे को कहने लगे -भई मौक़ा है मैदान से भाग निकलने का ...इस तरह मुसलमानों के हौसले पस्त हो जाएंगे _,"

इसके साथ वह एकदम भाग खड़े हुए उन्हें भागते देखकर बाज़ ऐसे मुसलमान जिन्होंने फतेह मक्का के वक्त इस्लाम कुबूल किया था यह समझे कि उनके साथी मुसलमान भाग रहे हैं उन पर घबराहट तारी हो गई वह भी भागने लगे इस तरह एक-दूसरे को भागता देख सब परेशान हो गए लिहाजा बाकि़यों के भी पांव उखड़ गए।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आसपास सिर्फ चंद साहब रह गए उनमें हजरत अबू बकर हजरत उमर हजरत अली हजरत अब्बास, उनके बेटे हजरत फ़ज़ल रबिया बिन हारिस और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चचाजाद भाई अबू सुफियान बिन हारिस रजियल्लाहु अन्हु शामिल थे , इनके अलावा 90 के करीब और सहाबा किराम थे गोया आपके आसपास सिर्फ सौ के क़रीब सहाबा रह गए । 

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त फरमा रहे थे :- "_ मैं अल्लाह का रसूल हूं ! मैं मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह हूं ! मैं अल्लाह का बंदा और उसका रसूल हूं !"


★_ इसके साथ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- "_अब्बास लोगों को पुकारो और कहो एक गिरोह अन्सार ! ए बैते रिज़वान वालों ! ए मुहाजिरीन _," 

हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु बुलंद आवाज में पुकारे... मुसलमानों को बुलाया.. जो मुसलमान हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के गिर्द जमा थे उन्होंने मुशरिकों पर ज़बरदस्त हमला कर दिया ,इधर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कंकरियों की एक मुट्ठी उठाई और दुश्मनों की तरफ फेंक दी साथ में फरमाया :- "_यह चेहरे बिगड़ जाएं _,"

★_ उस वक्त तक हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु और चंद दूसरे सहाबा की आवाज़ सुनकर भागते हुए मुसलमान भी वापस पलट चुके थे और उन्होंने जंग करना शुरू कर दिया... इस तरह जंग एक बार फिर हो चुकी थी .. कंकरियों की उस मुट्ठी को अल्लाह ताला ने अपनी कुदरत से दुश्मनों की आंखों तक पहुंचा दिया यह उनकी आंखों में क्या गिरी कि वह बुरी तरह बदहवास हो गए ..वह बुरी तरह भाग निकले ।


★_ उस जंग के शुरू होने से पहले लश्कर की तादाद देखकर एक सहाबी ने यह कहा था :- "_ ऐ अल्लाह के रसूल ! आज हमारी तादाद इस क़दर है कि दुश्मन से शिकस्त नहीं खा सकते_,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यह बात बहुत नागवार गुज़री थी, यह अल्फाज़ बहुत गिरां महसूस हुए थे क्योंकि इनमें फख्र और गुरुर की बू थी.. अल्लाह ताला के नजदीक भी यह जुमला नापसंदीदा था शायद इसीलिए शुरू में मुसलमानों को शिकस्त हुई थी.. लेकिन फिर अल्लाह ने करम फरमाया और मुसलमानों के कदम जम गए और फिर मुशरिकों को शिकस्त हुई । हुनैन में मुशरिकों की शिकस्त के बाद बहुत से लोग मुसलमान हो गए ,वह जान गए थे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अल्लाह ताला की मदद हासिल है ।


★_ फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "_तमाम कैदी और माले गनीमत एक जगह जमा कर दिया जाए _," जब यह माल और कैदी जमा हो गए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सब कुछ जौराना के मुकाम पर भिजवा दिया,  गज़वा ताइफ से वापसी तक यह सारा सामान वहीं रहा यानी उसके बाद मुसलमानों में तक़सीम हुआ ।

फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मालूम हुआ कि बनी हवाज़िन और उसका सरदार मालिक बिन ऑफ शिकस्त खाने के बाद ताइफ पहुंच गए हैं, ताइफ उस वक्त भी एक बड़ा शहर था, उन लोगों ने वहां एक किले में पनाह ले रखी थी ।


★_ यह इत्तेला मिलने पर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ताइफ की तरफ रवाना हुए ..आपने हर अव्वल दस्ता पहले रवाना फरमाया इस दस्ते का सालार हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर फरमाया,  आखिर यह लश्कर ताइफ पहुंच गया और उस किले के पास जा ठहरा जिसमें मालिक बिन ऑफ और उसका बचा खुचा लश्कर पनाह ले चुका था ।

 *★_ ताइफ का मुहासरा _,*


★_ मुशरिकों ने ज्योंहि इस्लामी लश्कर को देखा उन्होंने किले पर से जबरदस्त तीरंदाजी की उन तीरों से बहुत से मुसलमान जख्मी हो गए, एक तीर हजरत अबू सुफियान बिन हर्ब रजियल्लाहू अन्हू की आंख में लगा उनकी आंख बाहर निकल आई, यह अपनी आंख हथेली पर रखें आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में आए और और अर्ज़ किया :- अल्लाह के रसूल मेरी यह आंख अल्लाह के रास्ते में जाती रही _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ अगर तुम चाहो तो मैं दुआ करूंगा और तुम्हारी आंख वापस अपनी जगह पर ठीक हो जाएगी.. अगर आंख ना चाहो तो फिर बदले में जन्नत मिलेगी_," 

इस पर उन्होंने फरमाया :- मुझे तो जन्नत ही अज़ीज़ है _," यह कहा और आंख फेंक दी....,


★_ गज़वा ताइफ में जो लोग तीरों से जख्मी हुए थे उनमें से 12 आदमी शहादत पा गए , आखिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम क़िले के पास से हटकर उस जगह आ गए जहां अब मस्जिद ए ताइफ है , किले का मुहासरा ज़ारी था कि हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु लश्कर से आगे निकलकर आगे बढ़े और पुकारे :- "_कोई है जो मेरे मुकाबले में आए _,"

उनकी ललकार के जवाब में कोई मुकाबले के लिए ना आया, किले के ऊपर से अबदियालैल ने कहा :- "_ हममे से कोई शख्स भी किले से उतर कर तुम्हारे पास नहीं आएगा हम किला बंद रहेंगे हमारे पास खाने-पीने का इतना सामान है कि हमें बरसों काफी हो सकता है जब तक हमारा गल्ला खत्म नहीं हो जाता हम बाहर नहीं आएंगे तुम उस वक्त तक ठहर सकते हो तो ठहरे रहो _,"


★_ मुहासरे को जब कई दिन गुज़र गए तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से पूछा :- "_आप ताइफ वालों पर फैसला कुना हमला क्यों नहीं फरमा रहे _,"

इसके जवाब में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- "_ अभी मुझे ताइफ वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का हुक्म नहीं मिला... मेरा ख्याल है कि हम इस वक्त इस शहर को फतेह नहीं करेंगे_," 

आखिर अल्लाह ताला की तरफ से हुक्म ना मिला तो हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वापसी का हुक्म फरमा दिया ।


★_ लोगों को फतेह के बगैर वापस जाना अच्छा ना लगा..आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी नागवारी भांप ली चुनांचे फरमाया:- "_ अच्छा तो फिर हमले की तैयारी करो_,"

लोगों ने फौरन तैयारी की और किले पर धावा बोल दिया, इस तरह बहुत से मुसलमान जख्मी हो गए ,इसके बाद आपने फिर एलान फरमाया :- "_अब हम इंशा अल्लाह रवाना हो रहे हैं _,"

इस मर्तबा यह ऐलान सुनकर लोग खुश हो गए और फरमाबरदारी के साथ उसकी तैयारी करने लगे, यह देखकर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हंस पढ़ें ,आपको हंसी इस बात पर आई कि पहले तो लड़ने पर तैयार थे और वापस जाना बुरा महसूस कर रहे थे अब किस क़दर जल्द और खुशी से वापस जाने के लिए तैयार हो गए ,


★_ दरअसल सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने जान लिया कि अल्लाह के रसूल की राय ही बिलकुल दुरुस्त थी,  वापस रवानगी के वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं उसका वादा सच्चा है उसने अपने बंदे की मदद फरमाई..उस अकेले ने "अहज़ाब"  को शिकस्त दी ( अहज़ाब का मतलब है वह फौज जिसमें बहुत से गिरोह जमा हों )_," 

कुछ आगे बढ़ने पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "_ हम लोटने वाले हैं तोबा करने वाले हैं और इबादत करने वाले हैं अपने परवरदिगार की और उसकी तारीफें है बयान करते हैं _,"


★_ ताइफ वह शहर था जहां के लोगों ने हिजरत से पहले भी हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को बहुत सताया था लहूलुहान कर दिया था मगर इसके बावजूद पहले भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बद्दुआ नहीं की थी और अब भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ताइफ के लोगों के लिए यह दुआ फरमाई :- "_ ऐ अल्लाह ! बनी सक़ीफ को हिदायत अता फरमा और उन्हें मुसलमान होने की हैसियत से हमारे पास भेज दें_,"


★_ इस लड़ाई में हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु के बेटे हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु भी जख्मी हुए थे उस जख्म के असर से वह चंद साल बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के खिलाफत के दौर में इंतकाल कर गए ।


★_ वापसी के सफर में जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जौराना के मुकाम पर पहुंचने के लिए नशीब में उतरे तो वहां सुराका बिन मालिक मिले,  सुराक़ा वो शख्स है कि जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ मक्का से मदीना की तरफ हिजरत की तो उन्होंने इनाम के लालच में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ता'क़ुफ ( पीछा ) किया था, नजदीक पहुंचने पर उनके घोड़े के पांव जमीन में धंस गए थे उन्होंने माफी मांगी तो घोड़े के पांव निकल आएं, फिर क़त्ल के इरादे से आगे बढ़े तो फिर घोड़े के पांव धंस गए ,तीन बार ऐसा हुआ आखिर उन्हें अक़ल आ गई और सच्चे दिल से माफी मांगी , फिर वापस लौट गए थे । उस वक्त यह मुसलमान नहीं हुए थे लेकिन उन्होंने आपसे कहा था :- ए मोहम्मद! मैं जानता हूं एक दिन सारी दुनिया में आपका बोलबाला होने वाला है आप लोगों की जानों के मालिक होंगे .. इसलिए मुझे अपनी तरफ से एक तहरीर लिख दीजिए ताकि जब आप की हुकूमत के दौर में आपके पास आऊं तो आप मेरे साथ इज्जत से पेश आएं _,"


★_ उनकी दरखास्त पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु या उनके गुलाम आमिर बिन अबी फ़हीरा रजियल्लाहु अन्हु से तहरीर लिखवा कर उन्हें दी थी , 

सुराका बिन मालिक अब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मुलाकात के लिए ही आए थे और जौराना के मुकाम पर यह मुलाकात हो गई,  उस मुकाम पर मुसलमान गज़वा हुनैन का माले गनीमत मुंतकिल कर चुके थे,  सुराक़ा बिश मालिक उस वक्त यह पुकार रहे थे - मैं सुराका़ बिन मालिक हूं और मेरे पास अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तहरीर मौजूद है _,"

उनके अल्फाज सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-  आज वफा मोहब्बत और वादे का दिन है उसे मेरे क़रीब लाओ_स


★_ सहाबा किराम ने सुराक़ा बिन मालिक को आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के करीब ला खड़ा किया, आप उनसे बहुत मेहरबानी से पेश आए ।

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुनैन के माले गनीमत का हिसाब लगवाया और उसको मुसलमानों में तक़सीम फरमाया।

★_ हुनैन में जो कैदी हाथ लगे उनमें आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की रजा़ई बहन शीमा बिन्ते हलीमा सादिया भी थी यानी आप की दाया हजरत हलीमा सादिया की बेटी थी और बचपन में आपकी दूध शरीक बहन थी, जब यह गिरफ्तार हुईं थी तो सहाबा से कहने लगी कि मैं तुम्हारे नबी की बहन हूं लेकिन उन्होंने शीमा की बात पर यकीन नहीं किया था।


★_ आखिर अंसार  की एक जमात उन्हें आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में ले आई शीमा जब आपके सामने आईं तो बोलीं- ए मोहम्मद! मैं आपकी बहन हूं _," आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे पूछा - "_इस बात का क्या सबूत है ?"

जवाब में शीमा बोली :-  मेरे अंगूठे पर आपके काटने का निशान है जब मैंने आपको गोद में उठा रखा था _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस निशान को पहचान लिया ।


★_ पहचानते ही आप खड़े हो गए उनके लिए अपनी चादर बिछाई और उन्हें इज्जत से बिठाया, उस वक्त आपकी आंखों में आंसू आ गए और फ़रमाया :- "_ तुम जो कुछ मांगोगी दिया जाएगा ..जिस बात की सिफारिश करोगी कुबूल की जाएगी _,"


★_इस पर शीमा ने अपनी कौ़म के कैदियों को रिहा करने का मुतालबा किया कैदियों की तादाद 6000 थी ,आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सब क़ैदी शीमा के हवाले कर दिया और उन्होंने सबको छोड़ दिया । यह हद दर्जा शरीफाना सुलूक था इस तरह सीमा अपनी कौ़म के लिए बेहद बा बरकत साबित हुई ,उसके बाद बनी हवाज़िन के दूसरे कैदियों को भी रिहाई मिल गई ।


★_मालिक बिन ऑफ जंग के मैदान से फरार होकर ताइफ चले गए थे जबकि उनके घरवाले क़ैदी बना लिए गए थे , आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उन्हें भी रिहा कर दिया था, जब मालिक बिन ऑफ  को अपने घराने के साथ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुस्ने सुलूक़ का पता चला तो वह भी ताइफ से निकलकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो गए , आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक्त जौराना के मुक़ाम पर थे उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया ।आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें बनी हवाजि़न के उन लोगों का अमीर बना दिया जो मुसलमान हो गए थे।


जौराना से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा रवाना होने लगे तो उमरे का अहराम बांध लिया वहां से रवाना होकर रात के वक्त मक्का में दाखिल हुए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लब्बेक( यानी तलबिया) पढ़ते रहे, उमरे से फारिग होकर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 27 ज़िलका़दा को वापस मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए, फतह मक्का के बाद अरब के तमाम क़बाइल पर इस्लाम की धाक बैठ गई और वह जोक़ दर जो़क़ इस्लाम कुबूल करने लगे।


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 *★_ गज़वा तबूक _,*


★_ रज्जब नो हिजरी में गज़वा तबूक पेश आया ,आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने जासूसों के जरिए इत्तेला मिली कि रोमियो ने शाम में बहुत जबरदस्त लश्कर जमा कर लिया है और यह कि उन्होंने अपने पर अव्वल दस्तों को बलक़ा के मुकाम तक फैला दिया है ,बलका़ एक मशहूर मुकाम था ,इन इत्तेलात की बुनियाद पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तैयारी का हुक्म फरमाया ..आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को जंग की तैयारी का हुक्म फर्माते थे तो यह नहीं बताते थे कि जाना कहां है मतलब यह कि इस बात को खुफिया रखते थे लेकिन गज़वा तबूक के बारे में आपने मामला राज़ में ना रखा इसलिए कि रोमियो का लश्कर बहुत ज्यादा फासले पर था ...रास्ते की तकालीफ का अंदाजा किए बगैर चल पड़ना मुनासिब नहीं था, इसके अलावा दुश्मन की तादाद भी बहुत ज्यादा थी इसलिए उसके मुताबिक तैयारी करने की ज़रूरत थी ।


★_गज़वा तबूक आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आखरी गज़वा है इसके बाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम किसी गज़वे में तशरीफ ना ले जा सके अलबत्ता मुहिमात के लिए सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को रवाना फरमाते रहे ।


★_सामाने जंग और ज़रूरत की दूसरी चीजों के लिए आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इमदाद का ऐलान फरमाया ,इस ऐलान का सुनना था कि सहाबा किराम ने अपना माल और दौलत पानी की तरह खर्च किया ,हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने तो इस क़दर दौलत लुटाई कि कोई दूसरा शख्स मिक़दार के लिहाज़ से उनकी बराबरी ना कर सका, उन्होंने 9 सौ ऊंट 1 सौ घोडे, 10 हज़ार दिनार और उनके अलावा बेशुमार ज़ादे राह दिया , हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की फैयाजी़ का हाल देखकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-ऐ अल्लाह ! मैं उस्मान से राज़ी हूं तू भी उससे राज़ी हो जा_,"


★_ एक रिवायत के मुताबिक आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम काफी रात गए तक उनके लिए दुआएं फरमाते रहे ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके लिए यह अल्फाज़ भी इरशाद फरमाए :- "_आज के बाद उस्मान का कोई अमल उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता _,"

यह अल्फाज कहते वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन दिनारों को उलट-पुलट रहे थे, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के अलावा जो दूसरे मालदार सहाबा थे उन्होंने भी लश्कर की तैयारी में जबरदस्त इमदाद दी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु तो कुर्बानी में सबसे बढ़ गए वह अपने घर का सारा सामान ले आए , उसकी तादाद 4 हज़ार दिरहम के बराबर थी।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे पूछा:- "_ अबू बकर ! अपने घर वालों के लिए भी कुछ छोड़ा है या नहीं ?

जवाब में उन्होंने अर्ज किया :- मैंने उनके लिए अल्लाह और अल्लाह का रसूल छोड़ा है_,"

हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु अपना निस्फ माल लाए, हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु भी बहुत सा माल लाए ,हजरत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब भी बहुत माल लाए, औरतों ने अपने जेवरात उतार कर भेजें , हजरतआसिम बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु ने 70 वसक़ खजूरों के दिए ,एक वसक़ इतने वज़न को कहते हैं जितना वज़न 1 ऊंट पर लादा जा सके , यह वज़न तक़रीबन पोने चार टन बनता है ।


★_ आखिरकार जंग की तैयारी मुकम्मल हो गई, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम 30 हज़ार के लश्कर के साथ रवाना हुए ,इस लश्कर में 10 हज़ार घोड़े थे , आपने मोहम्मद बिन मसलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा में अपना क़ायम मुका़म बनाया ।


★_ इस लश्कर में कुछ मुनाफिकी़न भी शामिल हुए उनमें मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबई सलून भी था ,यह मुहिम चूंकि बहुत दुश्वार थी तवील फासले वाली थी इसलिए अक्सर मुनाफिकी़न तो शुरू ही से साथ नहीं देते थे फिर जाने वालों में से भी बहुत सो की हिम्मत जवाब दे गई और वह कुछ ही दूर चलने के बाद वापस लौट गए ,इस तरह मुनाफिक़ीन का पोल खुल गया ।


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस जंग के लिए कई परचम तैयार करवाए थे, सबसे बड़ा परचम हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के हाथ में दिया ।


★_ इस सफर के दौरान तबूक की तरफ जाते हुए आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम उन खंडहरात के पास से गुज़रे जो क़ौमें समूद का वतन था और जिन्हें अल्लाह ताला ने आज़ाब से तबाह व बर्बाद कर दिया था, उस मुकाम से गुज़रते वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सर मुबारक पर कपड़ा डाल लिया था और सवारी की रफ्तार तेज़ कर दी थी ताकि जल्द से जल्द वहां से गुज़र जाएं और आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया था इन खंडहरात के पास से रोते हुए गुज़रो कहीं तुम भी उस बला में गिरफ्तार ना हो जाओ जिसमें यह कौ़म हुई थी _,"


★_ आपने यह ऐलान भी फरमाया :- आज रात उन पर आंधी का ज़बरदस्त तूफान आएगा जिसके पास ऊंट या घोड़ा है वह उसको बांध कर रखें _,", साथ ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म फरमाया :- " _ आज रात कोई शख्स तन्हा अपने पड़ाव से बाहर ना जाए बल्कि किसी ना किसी को अपने साथ ज़रूर रखें _,"


★_ फिर इत्तेफाक़ ऐसा हुआ कि एक शख्स किसी ज़रूरत से तंहा बाहर निकल गया नतीजा यह हुआ कि उसका दम घुट गया । एक दूसरा शख्स अपने ऊंट की तलाश में निकल गया उसका अंजाम यह हुआ कि हवा उसे उड़ा ले गई और पहाड़ों पर जा फैंका। आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को जब उन दोनों वाक़िआत का इल्म हुआ तो फरमाया :- "_ क्या मैंने कहा नहीं था कि कोई तन्हा ना जाएं ? बाहर जाना पड़ जाए तो किसी के साथ लेकर निकले_,"


★_ इस सफर के दौरान एक रोज़ पानी बिल्कुल खत्म हो गया , प्यास ने लोगों को परेशान कर दिया ,आखिर लोगों ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जिक्र किया ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ के लिए हाथ उठा दिये, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त तक हाथ उठाएं रहे जब तक कि बारिश ना हो गई और इतनी बारिश हुई कि सब सैराब हो गए, लश्कर ने अपने बर्तन भर लिए ।


★_ इन हालात में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ऊंटनी गुम हो गई ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ऊंटनी को तलाश करने का हुक्म फरमाया । लश्कर में कुछ मुनाफिक रह गए थे ..वह वापस नहीं गए थे.. इस मौके पर वो कहने लगे :- मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का दावा तो यह है कि वह नबी हैं और यह मुसलमानों को आसमान की खबरें सुनाते हैं लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं कि उनकी ऊंटनी कहां है ?

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक मुनाफिकीन की यह बातें फौरन ही पहुंच गई ।


★_ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने लोगों के सामने इरशाद फरमाया :- मुझ तक कुछ लोगों की यह बात पहुंची है, अल्लाह की क़सम ! मैं उन्हीं बातों को जानता हूं जो अल्लाह ताला मुझे बता देते है ...और ऊंटनी के बारे में मुझे अभी अल्लाह ताला ने बताया है कि वह फलां वादी में है उसकी मुहार एक दरख्त की टहनी में उलझ गई है ,तुम लोग वहां जाओ और ऊंटनी को मेरे पास ले आओ _," 

लोग वहां गए तो ऊंटनी को उसी हालत में पाया जैसा कि आज हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था ।


सफर जारी था कि हज़रत अबूज़र गफारी रज़ियल्लाहु अन्हु का ऊंट थक गया जब किसी तरह चलने के लिए तैयार ना हुआ तो तंग आकर हजरत अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने सामान उस पर से उतार कर अपने सर पर रख लिया और पैदल चल पड़े, यहां तक कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तक पहुंच गए ।

लोग आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को पहले ही खबर दे चुके थे कि अबूज़र पीछे रह गए हैं क्योंकि उनका ऊंट थक गया है , यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया :- उसे उसके हाल पर छोड़ दो.. अगर अबूज़र में कोई खैर है अल्लाह ताला उसे तुम तक पहुंचा देगा और अगर खैर के बजाय बुराई है तो समझ लो अल्लाह ने तुम्हें उससे अमन दे दिया _,"


★_ फिर लोगों ने दूर से किसी को आते देखा तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला दी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-  अबूज़र होंगे , अल्लाह उन पर रहमत फरमाए अकेले ही पैदल चले आ रहे हैं अकेले ही मरेंगे ( यानी उनकी मौत वीराने में होगी) और अकेले ही दोबारा ज़िंदा होकर क़यामत में उठेंगे _,"


★_ हजरत अबूज़र गफारी रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से पेशगोई लफ्ज़ बा लफ्ज़ पूरी हुई , हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में वह रबज़ह के वीरान मुकाम पर चले गए थे ..वहीं उनकी मौत वाक़े हुई थी, 

आखिर इस्लामी लश्कर ने तबूक के मुका़म पर पहुंचकर पड़ाव डाला , वहां पहुंचकर मालूम हुआ कि तबूक के चश्मे में पानी बहुत कम है लश्कर की जरूरत उससे पूरी नहीं हो सकती, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसमें से अपने दस्ते मुबारक में पानी लिया और उसको मुंह में लेकर वापस चश्मे के दहाने पर कुल्ली कर दी , चश्मा उसी वक्त उबलने लगा और पूरा भर गया, इस तरह सब ने पानी से सैराबी हासिल की।


★_ यह इलाका़ उस वक्त बिलकुल बंजर था उस मौक़े पर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से इरशाद फरमाया :- ऐ मुआज़ ! अगर तुम्हारी उम्र ने वफा की तो तुम देखोगे यह इलाका बागो बहार बन जाएगा _,"

यानी गर्दो पेश की यह सरज़मीन बागात वाली नज़र आएगी, मोरखा अल्लमा इब्ने अब्द अलबर उंदलुस लिखते हैं कि मैंने वह इलाका देखा था ..तमाम का तमाम बागात से भरा हुआ था ।


★_तबूक के मुकाम तक पहुंचने से एक रात पहले आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रात सोए तो सुबह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की आंख देर से खुली, बेदार हुए तो सूरज सवा नेजे़ के क़रीब बुलंद हो चुका था , इससे पहले रात को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को जाग कर निगरानी करने और फजर के वक्त उठाने का हुक्म दिया था। 

हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु टेक लगाकर बैठे थे इत्तेफाक से उनकी भी आंख लग गई थी, वह भी सोते रहे थे ,इस तरह नमाज का वक्त निकल गया ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि हमें फजर के वक्त जगा देना _,"

जवाब में हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- "_ अल्लाह के रसूल! जिस चीज़ में आपको गाफिल कर दिया उसी ने मुझे गाफिल कर दिया _," यानी मुझे भी नींद आ गई । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वहां से पड़ाव उठाने का हुक्म फरमाया और उसके बाद फजर की नमाज़ अदा की गई, यानी ये कजा़ नमाज़ थी ।


★_तबूक के सफर के दौरान एक जगह फिर पानी खत्म हो गया , आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को यह बात बताई गई तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली और हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया -कहीं पानी तलाश करके लाओ_," 

यह दोनों हजरात वहां से चलकर रास्ते पर आ बैठे, जल्द ही उन्होंने दूर से एक बूढ़ी औरत को आते देखा ,वो ऊंट पर सवार थी, उसने पांव दोनों तरफ लटका रखे थे और मशकीज़ों में पानी भर रखा था ,उन्होंने उससे पानी मांगा, इस पर वह बोली :- मैं और मेरे घरवाले तुमसे ज्यादा पानी के जरूरतमंद हैं ..मेरे बच्चे यतीम हैं _," 

इस पर उन्होंने कहा- तुम पानी समेत हमारे साथ रसूलुल्लाह के पास चलो _,"

यह सुनकर वह बोली-"_ कौन रसूलुल्लाह ? वह जादूगर ..जिनको बेदीन कहा जाता है.. फिर तो यही बेहतर है कि मैं उनके पास ना जाऊं _,"


★_ उसका जवाब सुनकर हजरत अली और हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हुम उसे जबरदस्ती आन हजरत  सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास ले आए .. हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जब उन्हें बुढ़िया को इस तरह लाते देखा तो उनसे फरमाया :- "_ उसे छोड़ दो_," 

फिर उससे इरशाद फरमाया :- क्या तुम हमें अपने पानी को इस्तेमाल करने की इजाजत दोगी, तुम्हारा पानी ज्यों का त्यों जितना तुम लेकर आई हो उतना ही महफूज़ रहेगा _,"

बुढ़िया बोली:-  ठीक है ।

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- एक बर्तन ले आओ _,"

वह बर्तन ले आए ,आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस औरत का मशकीज़ा खोला और उस बर्तन में थोड़ा सा पानी लिया .. फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक उसमें डाला और लोगों से फरमाया :- "_ मेरे क़रीब आ जाओ और पानी लेना शुरू कर दो_,"


★_सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने देखा पानी से बर्तन में चश्मे की तरह उबल रहा था .. यूं लगता था जैसे आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उंगलियों से निकल रहा हो, सब उस बर्तन से पानी लेने लगे.. पीने लगे ..अपने जानवरों को भी पिलाने लगे ..फिर उन्होंने अपने खाली बर्तन भर लिए.. यहां तक कि तमाम जानवर सैराब हो गए, तमाम बर्तन भर गए और पानी उस बर्तन में उसी तरह जोश मार रहा था.. अब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वह पानी वापस उस औरत के मशकीज़े में डाल दिया और उसका मुंह बंद करने के बाद फरमाया:- तुम लोगों के पास जो कुछ हो ले आओ_,"

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक कपड़ा बिछा दिया सहाबा किराम उसके लिए गोश्त खजूर वगैरा ले आए आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम ने वह सब उसे देकर फरमाया :- हमने तुम्हारे पानी में से कुछ नहीं लिया.. यह सब चीजें ले जाओ अपने यतीम बच्चों को खिला देना _,"


★_औरत हैरत ज़दा थी उसने यह सारा मंजर अपनी आंखों से देखा था ऐसा मंजर उसने जिंदगी में कभी नहीं देखा था ,जब यह अपने घर पहुंची तो घर वालों ने कहा कि तुमने बहुत देर लगा दी इस पर उसने सारा वाक़या सुनाया, उस बस्ती के लोगों को भी इस वाक्य का इल्म हो गया आखिर यह बुढ़िया बस्ती के लोगों के साथ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुई उसने और उसके कबीले वालों ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथ पर कलमा पढ़ा ।


★_ गज़वा तबूक में एक मौके पर खाने का सामान खत्म हो गया हालत यहां तक पहुंची की एक खजूर मिल जाती तो एक पूरी जमात लेकर बैठ जाती है फिर सब बारी-बारी उसे चूसते और दूसरों की तरह बढ़ा देते , आखिर लोगों ने अर्ज़ किया :-अगर आप इजाजत दें तो हम अपने ऊंट ज़िबह करके खा लें _,"

इस पर हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- ऐ अल्लाह के रसूल अगर आपने यह इजाज़त दे दी तो सवारी के जानवर खत्म हो जाएंगे ,आप इनसे फरमाइए की जिसके पास भी कोई बची हुई चीज़ हो वह ले आए फिर आप उसे खुराक में बरकत की दुआ करें _"


★_ चुनांचे ऐसा ही किया गया एक कपड़ा बिछाया गया जिसके पास कोई चीज़ थी वह ले आया जब सब चीज़ें कपड़े पर जमा हो गई तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनमें बरकत की दुआ की और फरमाया :- अब तुम लोग अपने अपने बर्तन इस खुराक़ से भर लो _,"

सब अपने बर्तन भरने लगे, सबने खूब सैर हो कर खाया भी और बर्तन भी भरें पूरे लश्कर में कोई बर्तन ऐसा ना रहा जो भर ना लिया गया हो ,


★_ तबूक के मुका़म पर पहुंचकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 10-15 दिन ठहरे, रोमी लश्कर इस्लामी लश्कर से खौफ ज़दा हो गए थे इसलिए मुक़ाबले पर ना आए और इस तरह तबूक के मुकाम पर जंग ना हो सकी ,

इस दौरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम कसर नमाज़ पढ़ते रहे यानी मुसाफिर की नमाज़ जिसमें ज़ुहर असर और ईशा की फर्ज नमाज़ों में 4-4 रकात की 2 रकात अदा की जाती है _,

 *★_ तबूक से वापसी _,*


★_ आखिर तबूक से वापसी का सफर शुरू हुआ , रास्ते में चंद मुनाफिक़ों न हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को खाई में धक्का देकर क़त्ल करने की साज़िश की,  लेकिन उनकी साजिश की अल्लाह ताला ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को वही के जरिए खबर दे दी ..इस तरह उनकी साज़िश नाकाम हुई ।


★_ मदीना मुनव्वरा का सफर अभी एक दिन का बाक़ी था और इस्लामी लश्कर जी़वान के मुकाम पर पड़ाव डाले हुए था कि अल्लाह ताला की तरफ से हुक्म नाजि़ल हुआ कि मस्जिदे ज़रार को गिरा दें यह मस्जिद मुनाफ़िक़ों ने बनाई थी वह इस मस्जिद को अपनी साजिशों का मरकज़ बनाना चाहते थे । जिस वक्त हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तबूक के लिए रवाना हुए थे और इस मस्जिद के पास से गुजरे थे तब मुनाफिकों ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से इस मस्जिद में 2 रकात अदा करने की दरख्वास्त की थी.. उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था कि वापसी पर पढ़ुंगा ..लेकिन वापसी पर अल्लाह ताला ने उनकी साजिशों से बा खबर कर दिया था ।


★_ चुनांचे हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम को हुक्म दिया :- "_उस मस्जिद में जाओ और जिन लोगों ने वह मस्जिद बनाई है उनकी आंखों के सामने उसको आग लगाकर गिरा दो ..उस मस्जिद को बनाने वाले बड़े जालिम लोग हैं _,"

चुनांचे सहाबा ने हुक्म की तामील की , मगरिब और इशा के दरमियानी वक्त ने ऐसा किया गया,  मस्जिद को बिल्कुल ज़मीन के बराबर कर दिया गया ।


★_ जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम लश्कर के साथ मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो फरमाया :-"_ यह शहर पाकीज़ा और पुरसुकून है, मेरे परवरदिगार ने इसको आबाद किया है यह शहर अपने बाशिंदों के मेल कुचेल को इस तरह निकाल देता है जिस तरह लोहार की भट्टी लोहे के मेल कुचेल को दूर करके साफ कर देती है _,"

उहद पहाड़ के लिए फरमाया:- "_ यह उहद का पहाड़ है यह पहाड़ हमसे मोहब्बत करता है और हम भी इससे मोहब्बत करते हैं_,"


★_ इस सफर में जाने से कुछ लोगों ने जी चुराया था, मदीना मुनव्वरा में दाखिल होते ही हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "_जब तक में हुक्म ना दूं तुम उस वक्त तक उन लोगों से ना बोलना ना उनके साथ उठना बैठना _,"


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 *★_ 3 सहाबा का 50 दिन का बायकॉट _,*


★_ यह हुक्म पाते ही सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने उन लोगों से अलहदगी अखत्यार कर ली , खुद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी बातचीत बंद कर दी , सहाबा किराम ने तो यहां तक किया कि अगर उन लोगों में किसी का बाप और भाई भी था तो उसने उससे भी बातचीत तर्क कर दी ।


★_ जब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तबूक के लिए रवाना हुए थे उस वक्त मुनाफ़िक़ों की एक जमात मदीना मुनव्वरा ही में रह गई थी इनकी तादाद 80 के क़रीब थी,  उन्होंने तबूक पर ना जाने के लिए मुख्तलिफ हीले बहाने किए थे.. लेकिन उनके अलावा 3 मुसलमान ऐसे थे जो सिर्फ सुस्ती की वजह से नहीं गए थे ,यह हजरात काब बिन मालिक, मुरारा बिन रबी'अ और हिलाल बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हूम थे, इन हजरात से मुसलमानों ने बातचीत तर्क कर दी, जब उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो कर अपना अपना उज्र पेश किया तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इनसे फरमाया :-  तुम लोग जाओ ,अल्लाह तो तुम्हारे हक़ में फैसला फरमाएंगे _,"


★_ चंद दिन बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें अपनी बीवियो से भी अलग रहने का हुक्म फरमा दिया, उन्होंने बीवियों को अपने मां बाप के घर भेज दिया, अलबत्ता हजरत हिलाल बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हू बूढ़े थे उनके बुढ़ापे की वजह से उन्हें इतनी इजाजत दी गई थी कि बीवी घर में रहकर खिदमत कर सकती हैं लेकिन रहेंगे अलग-अलग..,


★_ इस तरह 50 दिन गुज़र गए , सब लोग इन तीन हजरात से बातचीत छोड़ चुके थे, 50 दिन बाद अल्लाह ताला ने इनकी तौबा कुबूल फरमाई,  लोगों ने उन्हें मुबारकबाद दी .. तीनों आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए.. आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी इन्हें मुबारकबाद दी.. इन हजरात ने इस खुशी में अपना बहुत सा माल सदका़ किया ।


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*★_वाक़िआ रजी'अ और वाक़िआ बर्रे म'ऊना _,*


★_ गज़वा तबूक के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने किसी जंग में खुद हिस्सा नहीं लिया अलबत्ता सहाबा किराम को मुख्तलिफ मुहिमात पर आप रवाना फरमाते रहें , जिन मुहिमात में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बिज़्ज़ात खुद हिस्सा नहीं लिया , उन मुहिमात को सिराया कहा जाता है ,सिराया सिरया कि जमा है ..ऐसे सिराया गज़वा तबूक से पहले भी हुए और बाद में भी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी जिंदगी मुबारक में 47 मर्तबा के क़रीब सहाबा किराम को सिराया के लिए रवाना फरमाया,  इनमें से _वाक़िआ रजी'अ और वाक़िआ बर्रे म'ऊना बहुत दर्दनाक और मशहूर हैं , पहले वाक़िआ रजी'अ की तफसीलात पढ़ते हैं ।


★_ कबीला अज़ल और क़बीला क़ारेह का एक गिरोह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ, इन लोगों ने कहा- ए अल्लाह के रसूल ! हमारे इलाके में दीन सिखाने के लिए अपने कुछ सहाबा भेज दीजिए _,"

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने छह सहाबा को उनके साथ भेज दिया, उनके नाम यह है मुर्शीद बिन अबू मुर्शीद  गनवी , खालिद बिन बकीर लैयसी, आसिम बिन साबित बिन अबुल फलह , खबीब बिन अदी, जैद बिन दसना और अब्दुल्लाह बिन तारिक़ रज़ियल्लाहु अन्हुम ,

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुर्शिद बिन अबू मुर्शिद को उन पर अमीर मुकर्रर फरमाया , वह उन लोगों के साथ रवाना हो गए ,आखिर यह लोग रजी'अ के मुकाम पर पहुंचे ,  रजी'अ हिजाज के एक ज़िले में वाक़े था।


★_ यहां पहुंचकर क़बीला अज़ल और क़ारेह के लोगों ने क़बीला हुज़ेल को आवाज दी क़बीला हुज़ैल के लोग फोरन आ गए.. गोया साजिश पहले ही तैयार कर ली गई थी यह लोग उन्हें साजिशों के तहत लाए थे ..कबीला हुज़ैल के लोगों की तादाद 100 के क़रीब थी , उन लोगों ने इन सहाबा को घेर लिया इन्होंने भी तलवारें सौंत ली.. इस तरह जंग शुरू हो गई , इस जंग के नतीजे में हजरत मुर्शीद ,खालिद बिन बकीर, हजरत आसिम और अब्दुल्लाह बिन तारिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हो गए,  ज़ैद बिन दसना और खबीब बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु गिरफ्तार हो गए,  हजरत ज़ैद बिन दसना रज़ियल्लाहु अन्हु ने गज़वा बदर में उमैया बिन खल्फ को क़त्ल किया था उसके बेटे सफवान ने अपने बाप के कत्ल का बदला लेने के लिए इन्हें उन लोगों से खरीद लिया और कत्ल करवा दिया । 

रह गए खबीब बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु , इन्हें मक्का से बाहर ता'नीम के मुकाम पर लाया गया ताकि इन्हें फांसी पर लटका दें .. उस खबीब बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- "_ मुनासिब समझो तो क़त्ल करने से पहले मुझे 2 रकात नमाज़ अदा कर लेने दो _,"

उन्होंने इजाज़त दे दी ,हजरत खबीब बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु ने 2 रकात बहुत अच्छी तरह इत्मिनान और सुकून से पढ़ी फिर उन लोगों से फरमाया:-  मेरा जी चाहता था यह 2 रकात ज्यादा लंबी पढ़ू लेकिन तुम ख्याल करते कि मैं मौत के खौफ से नमाज़ लंबी कर रहा हूं _,"


★_ तारीखे इस्लाम में क़त्ल से पहले 2 रकात नमाज सबसे पहले हजरत खबीब बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अदा की, उसके बाद फांसी के तख्ते पर खड़ा किया गया और अच्छी तरह बांधा गया , उस वक्त उन्होंने फरमाया:-  ए अल्लाह ! मैंने तेरे रसूल का पैगाम पहुंचा दिया ,पस तू भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को इस बात की खबर पहुंचा दें कि इन लोगों ने मेरे साथ क्या किया है _,"

इसके बाद इन्हें शहीद कर दिया गया ।


★_ कुरैशे मक्का की एक औरत सलाफा के दो बेटे हैं हजरत आसिम रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथों कत्ल हुए थे , उसने मन्नत मांगी थी कि कोई मुझे आसिम (रज़ियल्लाहु अन्हु) का सर लाकर देगा तो मैं उसकी खोपड़ी में शराब डाल कर पिउंगी , हजरत आसिम रज़ियल्लाहु अन्हु को उस मन्नत का पता था , चुनांचे  शहीद होने से पहले उन्होंने दुआ की थी कि अल्लाह मेरी लाश उनके हाथ ना लगे _,"

चुनांचे जब इन्हें शहीद कर दिया गया तो और वह लोग लाश को उठाने के लिए बड़े तो उन पर शहद की मक्खियों ने हमला कर दिया वह भाग खड़े हुए फिर उन्होंने फैसला किया कि रात के वक्त लाश उठा लेंगे रात को तो शहद की मक्खियों नहीं होंगी.. लेकिन रात को अल्लाह ताला ने पानी का एक रेला भेजा जो लाश को बहा ले गया ।


★_ इस तरह अल्लाह ताला ने उनकी लाश की हिफाज़त फरमाई , हजरत खबीब रज़ियल्लाहु अन्हु की दुआ भी पूरी हो गई.. आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम को वही के जरिए बताया गया कि उनके साथ क्या सुलूक किया गया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम को भी यह खबर सुनाई ।


★_ वाक़िआ रजी'अ के दिनों में बर्रे म'ऊना का वाक़या पेश आया इसकी तफसील कुछ यूं है :- 

हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास क़बीला बनी आमिर का सरदार आया आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसे इस्लाम की दावत दी , इस्लाम कबूल करने के बजाय उसने कहा :- मैं समझता हूं कि आपका पैगाम निहायत शरीफाना और अच्छा है बेहतर यह है कि आप अपने कुछ सहाबा को नजद वालों की तरफ भेज दे वहां क़बीला बनी आमिर और बनी सलेम आबाद है वह वहां दीन की दावत दें मुझे उम्मीद है कि नजद के लोग आप की दावत कुबूल करेंगे _,"

इस पर आज हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- मुझे नजद वालों की तरफ से अंदेशा है कहीं वह मेरे सहाबा को नुकसान ना पहुंचाएं _,"


★_ यह बात आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इसलिए फरमाई कि अबू आमिर का चचा आमिर बिन तुफेल इस्लाम का बदतरीन दुश्मन था और वहां के लोग भी सख्त मुखालिफ थे,  आपकी बात सुनकर अबू आमिर ने कहा :- आपके सहाबा मेरी पनाह में होंगे मेरी जिम्मेदारी में होंगे_,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उससे वादा कर लिया , वादा लेकर अबू आमिर चला गया,  आपने हजरत मंजर बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु को 40 या 70 आदमियों के साथ रवाना फरमाया , यह सब के सब निहायत आबिद और जाहिद सहाबा थे , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें एक खत भी लिख कर दिया,  यह लोग मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए और बर्रे म'ऊना पर जा ठहरे, बर्रे म'ऊना बनी आमिर और बनी सुलेम की सरज़मीन के दरमियान था , बर कुवे को कहते हैं यानी म'ऊना का कुआं, उस इलाक़े को हीराह कहा जाता है यहां सियाह पत्थर कसरत से थे ।


★_यहां पहुंच कर इन हजरात ने हजरत हराम बिन मल्हान रज़ियल्लाहु अन्हु को आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत देकर आमिर बिन तुफेल की तरफ भेजा, हजरत हराम रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास पहुंचे और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का खत उसे दिया, उसने खत पढ़ना भी गवारा ना किया, इधर हजरत हराम रज़ियल्लाहु अन्हु ने खत देते वक्त उनसे कहा :- ऐ लोगों ! मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के कासिद की हैसियत से तुम्हारे पास आया हूं इसलिए अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान ले आओ _,"


★_ अभी वह यह अल्फाज कह रहे थे कि आमिर बिन तुफेल ने एक शख्स को इशारा किया ..वह उनके पीछे आया और पहलू में नेजा़ दे मारा , नेजा़ उनके जिस्म के आर पार हो गया, फौरन ही उनके मुंह से निकला :- अल्लाहु अकबर ! रब्बे काबा की कसम मै कामयाब हो गया _,"

उन्हें शहीद कराने के बाद आमिर बिन तुफेल ने अपने लोगों से कहा :-  अब इसके बाक़ी साथियों को भी क़त्ल कर दो _,"

उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया क्योंकि उन्हें यह बात मालूम थी यह आने वाले हजरात अबू आमिर की पनाह में है ।


★_ उनकी तरफ से इंकार सुनकर आमिर बिन तुफेल ने बनी सुलेम को पुकारा, उसकी पुकार पर क़बीला अस्ब ,र'अल और ज़कवान के लोग फौरन आ गए, यह सब मुसलमानों की तरफ बढ़े और उन्हें घेर लिया, मुसलमानों ने  जब यह सूरते हाल देखी तो फौरन तलवारें सौत ली..जंग शुरू हो गई..  आखिर लड़ते-लड़ते यह सहाबा किराम शहीद हो गए, उनमें सिर्फ का'ब बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु जिंदा बच गये ,  यह शहीद जख्मी थे उन्होंने इन्हें मुर्दा ख्याल किया.. बाद में इन्हें मैदान-ए-जंग से उठाया गया था और यह उन जख्मों से तंदुरुस्त हो गए थे ।


★_ इनके अलावा हजरत अमरू बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हू और उनके साथ एक और साहाबी ने भी इस लड़ाई में जिंदा बच गए , जब मूशरिको ने मुसलमानों को घेरे में लिया था तो यह दोनों उस वक्त ऊंट चराने गए हुए थे । 

जब इधर इन सहाबा को शहीद किया जा रहा था उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मदीना में खुतबा इरशाद फरमा रहे थे , 

घैरे में आने के बाद मुसलमानों ने यह दुआ मांगी :- ऐ अल्लाह हमारे पास तेरे सिवा ऐसा कोई जरिया नहीं जो हमारी तरफ से तेरे रसूल को यह खबर पहुंचा दे _,"


★_ अल्लाह ताला ने उनकी दुआ कुबूल फरमाई , हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने फौरन आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इस वाक़ए की खबर दी , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खुतबे के दौरान ही यह खबर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को सुनाई, "_ तुम्हारे भाई मुशरिक़ों से दो चार हो गए , मुशरिक़ों ने उन्हें शहीद कर दिया है _,"


★_ उधर अमरू बिन उमैया ज़मरी रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके साथी ऊंट चराने गए हुए थे उन दोनों ने पड़ाव की तरफ मुर्दार खोर परिंदों को मंडलाते देखा तो परेशान हो गए , समझ गए कि कोई खास वाकि़या पेश आ गया है चुनांचे यह फौरन अपने साथियों की तरफ रवाना हुए उस वक्त तक सहाबा किराम के क़ातिल वहीं मौजूद थे ।

यह होलनाक मंजर देखकर हजरत अमरू बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हू के साथी ने पूछा:- अब क्या राय है _,"

अमरू बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - मेरी राय है कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास चले जाएं और इस सानहे की खबर दें _,"

जिस पर उनके साथी ने फरमाया-  मगर जिस जगह मंजर बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु जैसा आदमी शहीद हो चुका है मैं वहां से अपनी जान बचाकर नहीं जाऊंगा _,"

"_अच्छी बात है मैं भी तैयार हूं_,"


★_ अब दोनों ने तलवारे सौंत ली,  दुश्मन को ललकारा और उनसे जंग शुरू कर दी । आखिरकार हजरत अमरू बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हू गिरफ्तार हो गए जबकि उनके साथी सहाबी शहीद हो गए , 

आमिर बिन तुफेल की मां ने एक गुलाम आजाद करने की मन्नत मान रखी थी, उसने अपने मां की मन्नत पूरी करने की खातिर अमरू बिन उमैया रजियल्लाहू अन्हू को आजाद कर दिया , यह आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और सारा वाक़या सुनाया । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बहुत रंज हुआ, सारे सहाबा गमगीन हो गए,

इसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आमिर बिन तुफेल के लिए बद्दुआ की, बद्दुआ के नतीजे में वह ताऊन के मर्ज़ में मुब्तिला होकर हलाक हो गया ।


★_ बर्रे म'ऊना की लड़ाई की खास बात यह है कि उन शहीद होने वाले सहाबा मे हजरत आमिर बिन फहीरा रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे , जब यह शहीद हुए तो अल्लाह ताला ने इनकी लाश को ऊपर उठा लिया ..इनकी लाश फिर जमीन पर उतार दी गई,  इन्हें कत्ल होने वालों में तलाश किया गया लेकिन उनकी लाश ना मिली .. यह बात सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- आमिर बिन फहीरा की लाश को फरिश्तों ने दफन किया है _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस वाक़िए से इतना सदमा हुआ था कि मुसलसल 1 माह तक सुबह की नमाज में दुआ ए कुनूते नाजि़ला पढ़ते रहे और बर्रे म'ऊना पर शहीद किए जाने वाले सहाबा के कातिलों के हक में बद्दुआ करते रहे , इसी तरह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाक़िआ रजी'अ के का़तिलों के हक़ में भी बद्दुआ फरमाते रहे 


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*★_ दो झूठे नबी कज़्ज़ाब तलीहा और मुसेलमा_,*


★_ गजवा तबूक के बाद सिराया भेजे जाने का सिलसिला जारी रहा , उस दौरान आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हर तरफ से वफद आने लगे यानी लोग वफदों की शक्ल में आकर इस्लाम कुबूल करने लगे , एक रोज़ बनी हनीफा का वफद आया , उसमें मुसेलमा कज़्ज़ाब भी था उन लोगों ने उस शख्स को कपड़ों में ढ़ांप रखा था,  उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के दरमियान तशरीफ़ फरमा थे और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथ में खजूर की टहनी थी, टहनी के सिरे पर कुछ पत्ते भी थे । मुसेलमा ने आपके नज़दीक आकर कहा :-  आप मुझे अपनी नबूवत में शरीक़ कर लीजिए _," आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसकी बेहूदा बात के जवाब में इरशाद फरमाया :-  " अगर तू मुझसे यह टहनी भी मांगे तो मैं तो तुझे यह भी नहीं दे सकता _,"


★_ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसकी आमद से पहले यह सहाबा किराम से फरमा चुके थे कि मैंने देखा है कि मेरे हाथ में सोने के दो कंगन हैं अल्लाह ताला ने ही मुझे वही की कि इन पर फूंक मारें, मैंने फूंक मारी तो दोनों कंगन उड़ गए , इससे मैंने यह ताबीर ली कि दो कज़्ज़ाब यानी झूठे नबी ज़ाहिर होने वाले हैं ।

यह दो झूठे तलीहा और मुसेलमा थे , तलीहा तो यमन के शहर सन'आ का रहने वाला था और मुसेलमा अमामा का , दोनों ने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जिंदगी मुबारक ही में नबूवत का झूठा दावा कर दिया था ।


★_ उस वक्त यही मुसेलमा आया था, वापस अपने लोगों में जाकर उसने यह बात उड़ा दी कि मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुझे नबूवत में हिस्सेदार बना लिया है , फिर वह क़ुरआने करीम की आयत की नक्काली में उटपटांग किस्म के अरबी जुमले बोलने लगा और लोगों से कहने लगा कि मुझ पर यह वही आई है ..अपनी उल्टी-सीधी करामात दिखाने लगा , फर्जी मौजजात दिखाने लगा .. इस तरह लोग उसके गिर्द जमा होने लगे , उस रूसियाह ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को एक खत भी लिखा था , उसमें लिखा :- मुझे आपकी नबुवत में शरीक कर लिया गया है हम दोनों आधे आधे के मालिक हैं मगर कुरेश के लोग इंसाफ पसंद नहीं है _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसके जवाब में यह खत लिखवाया :-

"_ बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम , यह खत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से मुसेलमा कज़्ज़ाब के नाम है । सलामती हो उस पर जिसने हिदायत और सीधे रास्ते की पैरवी की , अम्मा बाद ! यह रूए ज़मीन अल्लाह की मिल्क है ,वह अपने बंदों में जिसे चाहे उसका वारिस बना दे, दर हक़ीक़त बेहतर अंजाम तो अल्लाह से डरने वालों का ही होता है _,"


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह खत दो क़ासिदों के ज़रिए भेजा । उसने खत पढ़कर उन दोनों से कहा :- क्या तुम भी वही बात कहते हो जो उन्होंने लिखा है ?

जवाब में दोनों कासिदों ने फरमाया:-  हां हम भी यही कहते हैं ।

इस पर उसने कहा :- अगर कासिदों को कत्ल करना दस्तूर के खिलाफ ना होता तो मैं तुम्हारी गर्दने मार देता _,"


*★_ रोम के बादशाह हिरक्कल और ईरान के बादशाह किसरा परवेज़ के नाम ख़त _,*


★_उस झूठे के खिलाफ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जंग लड़ी गई , उस जंग को जंगे यमामा कहते हैं, उसमें मुसेलमा कज़्जाब हजरत वहशी बिन हर्ब रजियल्लाहू अन्हू के हाथों मारा गया था, हजरत वहशी रज़ियल्लाहु अन्हु वह हैं जिनके हाथों गज़वा उहद में हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु शहीद हुए थे,.. बाद में मुसलमान हो गए थे ।


★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दुनिया के बादशाहों के नाम खुतूत लिखवाएं और उन खुतूत में उन बादशाहों को इस्लाम की दावत दी , रोम के बादशाह हिरक्कल को भी खत लिख गया , यह खत हजरत दहिया कलबी रज़ियल्लाहु अन्हु ले कर गए, रोम के बादशाह खुद को कैसर कहलाते थे कैसर ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम  के ख़त का एहेतराम किया लेकिन ईमान लाना उसके मुकद्दर में नहीं था ।


★_ इसी तरह हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने ईरान के बादशाह किसरा परवेज़ के नाम खत लिखवाया, यह खत अब्दुल्लाह साहमि रज़ियल्लाहु अन्हु लेकर गए , उसने खत सुनने से पहले ही उसे चाक करने का हुक्म दिया उसके हुकम पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ख़त को फ़ाड़ दिया गया , उसने अपने दरबार से क़ासिद को भी निकाल दिया , हजरत अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफा साहमी शाह रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी सवारी पर बैठे और वापस रवाना हो गए, मदीना मुनव्वरा पहुंचकर उन्होंने सारी तफसील सुना दी ,

यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- किसरा की हुकूमत टुकड़े टुकड़े हो गई _,"


★_ उधर किसरा परवेज़ ने अपने यमन के हाकिम को लिखा :-  मुझे मालूम हुआ है कि कुरैश के एक शख्स ने नबूवत का दावा किया है,  तुम फौरन उसे गिरफ्तार करके मेरे पास भेज दो_,"

 यमन के गवर्नर बाज़ान ने दो आदमी भेज दिए, दोनों मदीना पहुंचकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए , उनकी डाढ़ियां मुंडी हुई और मूछे बड़ी हुई थी , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- तुम्हारा बुरा हो ! यह तुमने अपने चेहरे कैसे बना रखे हैं ? तुम्हें ऐसा हुलिया अख्त्यार करने का हुक्म किसने दिया ?"

जवाब में वह बोले :- हमारे परवरदिगार किसरा ने _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_अब जाओ और कल मेरे पास आना _,"

दोनों चले गए ।

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   _ *★_ शाहे हब्शा नजाशी के नाम ख़त _,*


★_ इस दौरान अल्लाह ताला ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को वही के जरिए खबर दी कि अल्लाह ताला ने किसरा पर उसके बेटे को मुसल्लत कर दिया है वह फलां महीने और दिन उसे क़त्ल कर देगा , 

इस वही के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों को बुलाया और यह इत्तेला उन्हें दी ,  साथ ही आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने बाजा़न के नाम खत लिखवाया कि अल्लाह ताला ने मुझसे वादा फरमाया है कि वह किसरा को फलां महीने और फलां दिन क़त्ल कर देगा ,

बाज़ान को यह ख़त मिला तो उसने सोचा अगर वह नबी हैं तो जैसा उन्होंने लिखा है वैसा ही होगा ।


★_ चुनांचे इसी तरह हुआ.. उसके बेटे शेरविया ने उसी दिन उसे क़त्ल कर दिया जिसकी पैशनगोई हो चुकी थी , बाज़ान को जब यह इत्तेला मिली तो उसने फौरन आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम की खिदमत में क़ासिद भेजा और अपने और अपने साथियों के इस्लाम कुबूल करने की इत्तेला दी ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने शाहे हब्शा नजाशी के नाम भी ख़त लिखवाया , नजाशी के पास जब यह ख़त पहुंचा तो उन्होंने उस मकतूब मुबारक को आंखों से लगाया,  तख्त से उतर कर जमीन पर आ बैठे और इस्लाम कुबूल किया,  फिर हाथी दांत की संदूकची मंगवा कर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ख़त मुबारक उसमे अदब से रखा , उस ख़त के साथ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके नाम एक दूसरा ख़त भी लिखवाया , उसमें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लिखवाया कि नजाशी हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का निकाह कर दें । 

नजाशी ने उस ख़त को भी चूमा.. आंखों से लगाया और हुक्म की तामील की और हजरत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का निकाह पढ़ाया , यह दोनों ख़त हजरत अमरू बिन उमैया जमरी रज़ियल्लाहु अन्हु लेकर गए थे ।

 


*★_ हज्जतुल विैदा के लिए रवानगी _,*


★_ 10 हिजरी में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज का इरादा फरमाया, इस हज को हज्जतुल विदा कहा जाता है । 

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम 24 ज़िका़'दा 10 हिजरी जुमेरात के दिन मदीना मुनव्वरा से हज्जतुल विदा के लिए रवाना हुए ।


★_ रवानगी दिन के वक्त हुई, रवाना होने से पहले बालों में कंघा किया सर मुबारक में तेल लगाया ,  मदीना मुनव्वरा में ज़ोहर की नमाज़ अदा फरमाई और असर की नमाज ज़ुलहुलैफा में अदा फरमाई,  इस सफर में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तमाम अज़वाज मुताहरात भी साथ थी, उनकी तादाद उस वक्त 9 थी । उन्होंने ऊंटों पर बोदजो में सफर किया ।

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी ऊंटनी क़सवा पर सवार थे , ऊंटनी जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को लेकर उठी तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त अहराम में थे,  क़सवा पर उस वक्त एक पुराना कजावा था जो 4 दिरहम क़ीमत का रहा होगा और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊपर चादर भी मामूली सी थी ।


★_ उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम यह दुआ पढ़ रहे थे :- 

"_(तर्जुमा) ऐ अल्लाह ! इस हज को मक़बूल बना दें और ऐसा बना दें जिसमें ना तो रियाकारी और धोखा हो और ना दिखावा और जा़हिरदारी हो _,"

सफर के दौरान हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए , उन्होंने अर्ज़ किया :- आप अपने सहाबा को हुक्म दें कि तलबिया में अपनी आवाज बुलंद करें यह हज का श'आसर है _,"

चुनांचे हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा को ऐसा करने का हुक्म फरमाया, उन्होंने बुलंद आवाज़ में तलबिया शुरू कर दिया ।


★_ रास्ते में आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो़तवी के मुकाम पर पढ़ाव डाला, रात वहीं क़याम फरमाया, सुबह की नमाज पढ़कर वहां से रवाना हुए यहां तक कि मक्का के सामने पहुंच गए और वहीं क़याम फरमाया , फिर दिन में चाश्त के वक्त मक्का मुअज़्ज़मा में दाखिल हुए, बाबे अब्दे मुनाफ से खाना काबा में दाखिल हुए , यह दरवाज़ा बाबे सलाम के नाम से मशहूर है । बैतुल्लाह पर नज़र पड़ते ही आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इन अल्फाज़ में दुआ फरमाई :-

"_ (तर्जुमा ) ऐ अल्लाह ! तू खुद सलामती वाला है और तेरी ही तरफ से सलामती आती है , पस ऐ हमारे परवरदिगार तू हमें सलामती के साथ जिंदा रख और इस घर की इज्ज़त और दबदबे में इज़ाफ़ा ही इज़ाफ़ा फरमा _,"


★_ फिर बैतुल्लाह के गिर्द तवाफ किया, सात चक्कर लगाए । तवाफ की इब्तदा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरे अस्वद से की, पहले उसके पास गए और उसको छुआ , उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की आंखों में आंसू आ गए, तवाफ के पहले 3 चक्करों में रमल फरमाया यानी सीना तान कर तेज़ रफ्तार से चक्कर लगाए , बाक़ी चार चक्कर मामूली रफ्तार से लगाए , तवाफ से फारिग होने के बाद हजरे अस्वद को बोसा दिया , अपने दोनों हाथ उस पर रखें और उनको चेहरा मुबारक पर फैरा, तवाफ से फारिग होने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मका़मे इब्राहीम पर 2 रकात नमाज़ पढ़ी फिर आबे जमजम नोश फरमाया _,,


★_ अब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सफा पहाड़ी की तरफ चलें, उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम यह आयत पढ़ रहे थे :- 

"_ (तर्जुमा)- बेशक सफा और मरवा अल्लाह के श'आर में से है _," ( सूरह बकरा)

हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सफा और मरवा के दरमियान सात चक्कर लगाए, यह दो पहाड़ियां है इनके दरमियान चक्कर लगाने को स'ई  करना कहते हैं, पहले 3 फैरों में आप तेज़ तेज़ और बाक़ी चार में आम रफ्तार से चले , जब सफा पर चढ़ते और काबा की तरफ मुंह कर लेते तो उस वक्त अल्लाह की तोहीद यूं बयान फरमाते :-

"_( तर्जुमा )- अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं अल्लाह सबसे बड़ा है अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं वह तन्हे तन्हा है उसने अपना वादा पूरा कर दिया अपने बंदों की मदद की और उसने तने तन्हा मुतहिदा लश्करों को शिकस्त दी _,"


★_ मरवा पर पहुंच कर भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह की हम्दो सना बयान फरमाई, सफा और मरवा के दरमियान स'ई के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को अहराम खोलने का हुक्म फरमाया जिनके साथ कुर्बानी के जानवर नहीं थे,  जिनके साथ कुर्बानी के जानवर थे उन्हें फरमाया कि वह अहराम को बरक़रार रखें ,


★_ 8 जि़लहिज्जा को हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मीना के लिए रवाना हुए , मीना की तरफ रवानगी से पहले उन तमाम लोगों ने अहराम बांध लिए जो पहले अहराम खोल चुके थे, मीना में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़ोहर असर मगरिब और ईशा की नमाज से अदा फरमाई, रात वहीं गुजारी , वह जुम्मे की रात थी , सुबह की नमाज भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मीना में पड़ी,  सूरज तुलू होने के बाद वहां से अराफात की तरफ रवाना हुए,  आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हुक्म फरमाया कि मेरे लिए ऊंट के बालों का एक कुब्बा बना दिया जाए _," मैदाने आफत में हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम उसमें ठहरे यहां तक कि ज़वाल का वक्त हो गया, उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अपनी ऊंटनी क़सवा को लाने का हुक्म फरमाया , क़सवा पर सवार होकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम वादी के अंदर पहुंचे और ऊंटनी पर बैठे-बैठे ही मुसलमानों के सामने खुतबा दिया,


★_ इस खुतबे में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ लोगों ! मेरी बात सुनो , देखो मैं जानता नहीं कि इस साल के बाद इस जगह मैं तुमसे कभी मिलूंगा या नहीं , लोगों ! सुन लो तुम्हारे खून ( यानी तुम्हारी जानें ) और तुम्हारे अमवाल एक दूसरे पर अपने रब से मिलने तक (यानी जिंदगी भर ) इस तरह का़बिले एहतराम है जिस तरह तुम्हारे लिए यह दिन और यह महीना का़बिले एहतराम है, देखो तुम (मरने के बाद) अनक़रीब अपने रब से मिलोगे, वह तुमसे तुम्हारे आमाल के मुताल्लिक सवाल करेगा और मैं (हर अमल के मुताल्लिक़) तमाम अहकाम तुम्हें पहुंचा चुका हूं , पस जिसके पास किसी की अमानत हो उसे चाहिए कि वह उस अमानत को मांगने पर उस शख्स के हवाले कर दे जिसने अमानत दार समझकर अमानत रखवाई थी _,"


★_ देखो हर कि़स्म का सूद ( जो किसी का किसी के ज़िम्मे था ) साकि़त कर दिया गया, अलबत्ता तुम्हारा असल तुम्हारे लिए हलाल है , ना तुम ज़्यादती करोगे और ना तुम्हारे साथ ज्यादती की जाएगी , अल्लाह ताला ने फैसला कर दिया है कि अब कोई सूद जायज़ नहीं और अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सारा सूदा साक़ित कर दिया गया, इस्लाम लाने से पहले जमाना जहिलियत में जो भी क़त्ल का मुकदमा था वह भी खत्म कर दिया गया (अब उसका इंतकाम नहीं लिया जाएगा) और सबसे पहले जो क़त्ल का बदला मै खत्म करता हूं वह इब्ने रबिया बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब का क़त्ल है और इब्ने रबिया ने बनू लैस में दूध पिया था, बज़ील ने उसे क़त्ल कर दिया था , यह पहला क़त्ल है जिससे मैं माफी की इब्तदा कर रहा हूं _,"


★_ लोगो गौर से सुनो ! शैतान इस बात से मायूस हो चुका है कि अब इस सरज़मीन में कभी उसकी इबादत की जाएगी लेकिन अगर उसकी इता'अत करोगे तो वह तुम्हारे उन गुनाहों से जिन्हें तुम मामूली समझते हो, राज़ी हो जाएगा , इसलिए तुम लोग दीन के मामले में शैतान से बचते और डरते रहो _,"


★_ लोगों ! गौर से सुनो ! तुम्हारी औरतों पर तुम्हारा हक़ है और तुम पर उन औरतों का हक़ है,  औरतों के साथ हुस्ने सुलूक और भलाई करते रहो क्योंकि वह तुम्हारे पास कैदियों की तरह है,  तुमने उन्हें अल्लाह की अमानत के तौर पर हासिल किया है ,

लोगों ! मेरी बात समझने की कोशिश करो मैंने तो ( हर हुक्म ) पहुंचा दिया और तुम्हारे अंदर वह चीज़ छोड़ी  है कि अगर उसे मज़बूती से पकड़े रखा तो कभी गुमराह ना होंगे और वह खुली हुई चीज़ है किताबुल्लाह और सुन्नते रसूलुल्लाह _,"


★_ लोगों ! मेरी बात सुनकर गौर करो , खूब समझ लो कि हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और तमाम मुसलमान भाई भाई हैं लिहाज़ा किसी भी आदमी के लिए अपने भाई की कोई चीज़ ( बिना इजाजत)  हलाल नहीं, हां मगर उस वक्त जब वह दिल की खुशी से कोई चीज़ खुद दे दे , पस तुम लोग अपने आप पर किसी भी हालत में जुल्म मत करना , 

लोगों ! बताओ मैंने तबलीग का हक़ अदा कर दिया ?

लोगों ने जवाब में कहा :- यकीनन यकीनन " 

इस पर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आसमान की तरफ रुख किया और शहादत की उंगली उठाकर फरमाया :- "_ अल्लाहुम्मा अशहद अल्लाहुम्मा अशहद अल्लाहुम्मा अशहद _,"( ऐ अल्लाह आप गवाह रहिएगा ऐ अल्लाह आप गवाह रहिएगा ऐ अल्लाह आप गवाह रहिएगा ) _,"


★_ खुतबे से फारिग होकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को अज़ान का हुक्म दिया , अज़ान के बाद ज़ुहर की तकबीर कहीं गई और नमाज अदा की गई , फिर असर की नमाज के लिए तकबीर कही गई और नमाज अदा की गई , यानी दोनों नमाज़े एक साथ अदा की गई , दोनों नमाजो़ के लिए अज़ान एक कही गई और तकबीर अलग-अलग हुई ।


★_ अराफात में एक जमात खिदमते अक़दस में हाजिर हुई,  उन्होंने पूछा - हज किस तरह किया जाता है ?

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_हज दरअसल वकू़फे अराफात का नाम है _," यानी अराफात में ठहरना हज करना है, अराफात का पूरा मैदान वक़ूफ की जगह है ।


★_ अब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मश'अरूल हराम यानी मुज़दलफा के लिए रवाना हुए,  उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने पीछे बिठाया, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम लोगों को इतमिनान से चलने का हुक्म फरमाते रहे, इस तरह मुज़दलफा पहुंचे, यहां मगरिब और इशा की नमाज़े एक साथ अदा फरमाई, यह दोनों नमाजे ईशा के वक्त पढ़ी गई , औरतों और बच्चों के लिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हुक्म फरमाया कि आधी रात के एक घंटे बाद ही मुज़दलफा से मीना रवाना हो जाएं ताकि वहां हुजूम होने से पहले शैतान को कंकरिया मार सकें ।


★_ फजर का वक्त हुआ तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम ने मुज़दलफा में मुंह अंधेरे ही नमाज पढ़ाई फिर सूरज निकलने से पहले मुज़दलफा से मीना की तरफ रवाना हुए, जमराह उक़बा (बड़े शैतान) पर पहुंचकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सात कंकरिया मारी,  शैतानों को कंकरिया मारने के अमल को रमी कहते हैं , यह कंकरिया मुज़दलफा से चुन ली जाती हैं, हर कंकरी मारते वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाहु अकबर फरमाते रहे, उस वक्त भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ऊंटनी पर सवार थे,  हजरत बिलाल और हजरत उसामा रज़ियल्लाहु अन्हुम आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास थे, हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की ऊंटनी की लगाम पकड़ रखी थी और हजरत उसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के ऊपर कपड़े से साया किए हुए थे ,


★_ इस मौक़े पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ने मुसलमानों को खुतबा दिया, उसमें एक दूसरे के माल और इज्ज़त को हराम क़रार दिया 

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़िलहिज्जा की दसवी तारीख को हुरमत का दिन क़रार दिया और फरमाया :- 

"_ ए लोगों ! तुम्हारा खून तुम्हारा माल और तुम्हारी इज्जत और नामूस तुम्हारे दरमियान एक दूसरे पर उसी तरह हराम है जिस तरह यह दिन तुम्हारे लिए हुरमत का दिन है जिस तरह इस शहर की हुरमत है और जिस तरह इस महीने की हुरमत है _,"

यह अल्फाज कई बार फरमाए...  आखिर में दरयाफ्त फरमाया:- "_ ए लोगो ! क्या मैंने तबलीग का हक़ अदा कर दिया ?

लोगों ने इक़रार किया ।

फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ अब तुममे से जो मौजूद है वह गायब तक यह तबलीग पहुंचा दे..  मेरे बाद तुम क़ुफ्र की तारीकियों  में लौट ना जाना कि आपस में एक दूसरे की गर्दने मारने लगो _,"


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लोगों से यह भी फरमाया कि वह मुझसे हज के मनासिक (अरकान ) सीख लें क्योंकि मुमकिन है इस साल के बाद मुझे हज का मौका ना मिले _," 

( और ऐसा ही हुआ क्योंकि इस हज के सिर्फ तीन माह बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हो गई थी )


★_ इसके बाद आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मीना में कुर्बानी की जगह तशरीफ लाए और ६३ ऊंट कुर्बान फरमाए, यह सब जानवर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मदीना मुनावारा ही से लाए थे और अपने दस्ते मुबारक से ज़िबह फरमाए , गोया अपनी उम्र के हर साल के बदले एक जानवर कुर्बान फरमाया ।


★_ कुर्बानी के गोश्त में से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए कुछ गोश्त पकाया गया और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम में तनावुल फरमाया , बाक़ी ऊंटों को ज़िबह करने के लिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म फरमाया, कुल १०० ऊंट थे, इस तरह 37 रूट हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने ज़िबह फरमाएं ,


★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जानवरों का गोश्त और दूसरी चीजें लोगों में तक़सीम करने का हुक्म फरमाया,  मीना का तमाम मुकाम कुर्बानी करने की जगह है इस के किसी भी हिस्से में जानवर कुर्बान किया जा सकता है।


★_ कुर्बानी से फारिग होने के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सर मुंडवाया, सर मुबारक के बाल सहाबा किराम में तक़सीम किए गए, उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दुआ फरमाई :-

*"_ (तर्जुमा)_ ऐ अल्लाह सर मुंडवाने वालों की मगफिरत फरमा _,"

सर मुंडवाने के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा ने खुशबू लगाई ।


★_अब हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मक्का जाने के लिए सवारी पर तशरीफ़ फरमा हुए, मक्का पहुंचकर ज़ोहर से पहले तवाफ किया, यह तवाफे इफाज़ा था जो हज में फर्ज है इसके बगैर हज नहीं होता , फिर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़मज़म के कुएं से ज़मज़म नौश फरमाया, कुछ पानी अपने सर मुबारक पर भी छिड़का,  फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मीना वापस तशरीफ ले गए, वहीं ज़ोहर की नमाज़ अदा की ।


★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मीना मे 3 दिन ठहरे, तीन दिन तक रमी जमरात की यानी शैतानों को कंकरिया मारी,  हर शैतान को सात-सात कंकरिया मारी, मीना के बयान के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मक्का तशरीफ लाए और सहाबा किराम को हुक्म फरमाया :- "_ लोगों ! अपने वतन लौटने से पहले बैतुल्लाह का तवाफ कर लो _," 

इसे तवाफे विदा कहते हैं यानी रूखसत होते वक्त का तवाफ और यह हर हाजी पर वाजिब है ।

  


*★_ हज से वापसी _,*


★_ तवाफे विदा के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुए,  वापसी के सफर में गदीरे खम नामी तालाब के मुकाम पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा को जमा फरमाया, उनके सामने खुतबा दिया जिसमें फरमाया :- 

"_ लोगों दर हकीकत मै भी तुम्हारी तरह एक बशर हूं और बंदा हूं , मुमकिन है अब जल्द ही मेरे रब का क़ासिद मेरे पास आ जाए ( यानी मेरा बुलावा आ जाए)  और मैं के आगे सरे तस्लीम खम कर दूं , मैं भी अल्लाह के सामने जवाबदेह हूं और तुम भी जवाबदेह हो, अब तुम क्या कहते हो ?"


★_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने जवाब दिया :- 

"_ हम गवाही देते हैं कि बेशक आपने तबलीग का हक़ अदा कर दिया इसमें पूरी मेहनत फरमाई और नसीहत तमाम कर दी_,"

तब आन सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :-

 "_क्या तुम इसकी गवाही नहीं देते कि अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि मोहम्मद उसके बंदे और रसूल है और यह की जन्नत दोजख और मौत बरहक़ चीज़ें हैं और यह कि मरने के बाद दोबारा जिंदा होना बरहक़ है और यह कि क़यामत आने वाली चीज़ है, इसमें किसी शक व शुब्हा की कोई गुंजाइश नहीं और यह कि अल्लाह ताला उन लोगों को दोबारा जिंदा कर के उठाएगा जो कब्रों में पहुंच चुके हैं ?"

सहाबा किराम ने अर्ज़ किया :-  "_बेशक हम इन सब बातों की गवाही देते हैं _,"


★_ इस पर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- 

"_ अल्लाह आप गवाह रहिएगा_,"

फिर फरमाया :- "_ लोगो ! कुरान पर जमे रहना, मैं तुम्हारे दरमियान दो भारी चीजें छोड़े जा रहा हूं एक अल्लाह की किताब दूसरे अपने घर वाले ( जिसमें अज़वाज मुताहरात और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की साहबजादियां सब आ गईं ) ... तुम मुंतसिर होकर फूट मत डाल लेना, यहां तक कि तुम हौजे कौसर पर मेरे पास जमा हो जाओ _,"

इस मौके पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह अल्फाज़ फरमाएं :- 

"_ मैं जिसका मौली और आक़ा हूं अली भी उसके मोली और आक़ा है,  ऐ अल्लाह ! जो अली का मददगार हो तू भी उसका मददगार होजा और जो उससे दुश्मनी रखे तू भी उससे दुश्मनी रख जो उससे मोहब्बत रखें तू भी उससे मोहब्बत रख जो उससे बुग्ज़ रखे तू भी उससे बुग्ज़ रख..  जो उसकी मदद करें तू भी उसकी मदद कर और जो उसकी इआनतत करें तू भी उसकी इआनत फरमा जो भी उसे रुसवा करें तू उसे रुसवा फरमा, यह जहां भी हों तू हक़ और सदाक़त को उसका साथी बना _,"


"_ लफ्ज़ मौला के बहुत से मानी है यहां आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मुराद यह थी कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तमाम अहले इमान के लिए बुजुर्ग सरदार और काबिले एहतराम है , मौला का एक मतलब मददगार भी है, गर्ज़ मौला के 20 के क़रीब मानी हैं ,


★_ मशहूर मुहद्दिस इमाम नववी रहमतुल्लाहि अलेही से पूछा गया :- 

"_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह जो इरशाद है कि जिसका मैं मौला हूं उसके मौली अली भी हैं , क्या इस इरशाद का यह मतलब यह है कि हजरत अबू बकर और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हुम के मुकाबले में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु इमामत के ज्यादा हक़दार हैं ?

इस सवाल के जवाब में इमाम नववी रहमतुल्लाहि अलैहि ने फरमाया :- 

"_ इस हदीस से यह मतलब नहीं निकलता बल्कि उन उलमा के नजदीक जो उस मैदान में नुमाया है और जिनकी तहकी़क पर एतमाद किया जा सकता है , इस हदीस का मतलब यह है कि जिसका मददगार आक़ा और महबूब में हूं,  तो अली भी उसके मददगार आक़ा और महबूब है _,"

*★_ हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को अमीर बनाना _,*


★_ इस सफ़र से वापसी पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने रास्ते में इस ज़ुलहुलैफा के मुकाम पर रात बसर फरमाई और रात के वक्त मदीना मुनव्वरा में दाखिल होने को पसंद नहीं फरमाया, फिर जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नज़र मदीना मुनव्वरा पर पड़ी तो 3 मर्तबा तकबीर कही और यह कलमात पड़े :-

"_ अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं वह तन्हा है उसका कोई शरीक़ नहीं, हुकूमत और तारीफ उसी के लिए है और वह हर चीज़ पर पूरी कुदरत रखता है, हम तौबा करते हुए और अपने परवरदिगार को सजदा करते हुए और उसकी तारीफ करते हुए लौटने वाले हैं, अल्लाह का वादा सच्चा हो गया उसने अपने बंदे की मदद फरमाई और सब गिरोहों को उस तन्हा ने शिकस्त दी _,"


★_ फिर सुबह के वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए,  11 हिजरी में पीर के दिन जब कि माहे सफर की आखिरी तारीखें थी आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने रोमियों की अजीम सल्तनत के खिलाफ तैयारी का हुक्म फरमाया, उसके अगले रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाकर फरमाया:-

"_ उस मका़म की तरफ बढ़ो जहां तुम्हारे वालिद शहीद हुए थे और उस इलाक़े को इस्लामी शह सवारों से पालन करो, मैं तुम्हें उस लश्कर का अमीर बनाता हूं , निहायत तेज़ी से सफर कर के अपनी मंजिल की तरफ बढ़ो ताकि जासूसों की इत्तेलात से पहले दुश्मन के सर पर पहुंच जाओ, अगर अल्लाह ताला तुम्हें उन पर फतह अता फरमाए तो उन लोगों के दरमियान ज्यादा देर मत ठहरना और अपने साथ जासूस और मुखबिर ले जाना _,"


★_ अगले रोज़ बुध के दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सर मुबारक में दर्द शुरू हो गया उसके बाद बुखार भी हो गया जुमेरात के दिन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तकलीफ के बावजूद अपने दस्ते मुबारक से हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को परचम बना कर दिया ।


★_  हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु अपना परचम लेकर इस्लामी लश्कर के साथ रवाना हुए, वह उस वक्त बिलकुल नौजवान थे ऐसी नौजवानी की हालत में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें लश्कर का सालार मुकर्रर फरमाया था, जबकि सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम में बड़े-बड़े मुमताज़ और तजुर्बेकार लोग मौजूद थे , इस बुनियाद पर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम में से कुछ हजरात ने इस बात को मेहसूस किया कि जब इतने बड़े तजुर्बेकार हजरात मौजूद हैं तो 1 नव उम्र को सिपहसालार क्यों मुकर्रर फरमाया गया ।


_*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नाराज़गी _,"*


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इन बातों की खबर हुई तो सख्त नाराज़ हुए यहां तक कि उसी वक्त अपने हुजरे मुबारक से बाहर तशरीफ लाए , उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सर मुबारक पर पट्टी बंधी हुई थी और बदन मुबारक पर एक चादर थी ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मस्जिद में दाखिल हुए और मेंबर पर तशरीफ लाए, अल्लाह की हम्द ओ सना बयान फरमाई, फिर सहाबा किराम को खिताब फरमाया :- 

"_ लोगों यह कैसी बातें हैं जो ओसामा को अमीर बनाने पर तुम लोगों की तरफ से मुझ तक पहुंची हैं इससे पहले जब मैंने ओसामा के वालिद को अमीर बनाया था तो उस वक्त भी इस किस्म की कुछ बातें सुनने में आई थी , क़सम है अल्लाह अज व जल की कि वह यानी ज़ैद बिन हारिसा अमीर बनने के लिए मौज़िज तरीन आदमी थे और अब उनके बाद उनका बेटा अमीर बनने के लिए मौज़िज तरीन है यह दोनों बाप बेटे ऐसे हैं इनसे खैर ही का गुमान किया जा सकता है , लिहाजा ओसामा के बारे में खैर ही का गुमान रखो क्योंकि वह तुम में से बेहतरीन लोगों में से एक हैं _,"


★_ अब जो साहबा हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर में जाने वाले थे वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से मुलाक़ात के लिए आने लगे , उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तबीयत काफी नाराज़ थी इसके बावजूद फरमा रहे थे , "_ओसामा के लश्कर को रवाना कर दो...,*


★_ अपनी तबीयत की खबर के के पेशे नज़र आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को लश्कर के साथ जाने से रोक दिया था और उन्हें हुक्म फरमाया था कि वह लोगों को नमाज पढ़ाएं ,

इतवार के रोज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तकलीफ में इज़ाफ़ा हो गया, हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु अपने लश्कर के साथ मदीना मुनव्वरा से बाहर ठहर गए थे वहां से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मुलाक़ात के लिए आए, जब वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुजरे मुबारक में दाखिल हुए तो आप सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम आंखें बंद किए निढाल सी हालत में लेटे हुए थे ,


हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने आहिस्ता से आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का सर मुबारक दबाया और पेशानी को बसा दिया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कोई बात ना कि दोनों हाथ ऊपर की तरफ उठाए और उनको ओसामा पर रख दिया , हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु समझ गए कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उशके लिए दुआ फरमा रहे हैं.. इसके बाद ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु फिर अपने लश्कर में लौट आए ।


★_ लश्कर उस वक्त जर्फ के मुकाम पर था,  इस्लामी लश्कर रवाना होने की तैयारी कर रहा था कि मदीना मुनव्वरा से पैगाम मिला :- "_ आन हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की तबीयत नासाज़ हो गई है ..आप ना जाएं _,"

इस तरह यह लश्कर रवाना ना हो सका ।

*★_ आखरी अय्याम _,*


★_ तबीयत खराब होने से पहले एक रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आधी रात के वक्त कब्रिस्तान बकी़ में तशरीफ ले गए और वहां पर मोमिन के लिए मग्फिरत की दुआ फरमाई , कब्रिस्तान से वापस लौटे तो सर मुबारक में शदीद दर्द शुरू हो गया, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को सर दर्द के बारे में बताया उन्होंने सर दबाना शुरू किया .. सर दर्द के साथ बुखार भी शुरू हो गया ,


★_ मर्ज़ शुरू होने के बाद भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी तमाम अज़वाज के यहां बारी के मुताबिक तशरीफ ले जाते थे, जिस दिन आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हजरत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां तशरीफ ले गए उस दिन मर्ज़ में शिद्दत पैदा हो गई तब आप सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम ने अपनी तमाम अज़वाज को बुलाया और उनसे इजाज़त ली कि आपकी तीमारदारी हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे में हो, सब ने खुशी से इसकी इजाज़त दे दी ।


फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर गशी तारी रहने लगी बुखार की शिद्दत ज्यादा हुई तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुख्तलिफ कुंओ से 7 मशके पानी मंगाई और अपने ऊपर डालने का हुकुम फरमाया,  आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर उन 7 मशकों का पानी डालना शुरू किया गया यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने खुद ही फरमाया- बस काफी है ।


★_ जिंदगी के आखरी अय्याम में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाया करते थे :-

"_ ऐ आएशा ! मुझे खैबर में जो ज़हर दिया गया था उसकी तकलीफ मै अब महसूस करता हूं _," 

इसका मतलब है कि आखरी दिनों मेउस ज़हर का असर दोबारा ज़ाहिर हो गया था और इस तरह हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की रिहलत ( इंतकाल) दर्जा शहादत को पहुंची ।



★_ पानी अपने ऊपर डलवाने के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हुजरे मुबारक से बाहर निकले, उस वक्त भी आप सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम के सर मुबारक पर पट्टी बंधी हुई थी, सबसे पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शोहदा ए उहद के लिए दुआ मांगी, बहुत देर तक उनके लिए दुआ फरमाते रहे, फिर इरशाद फरमाया :-

"_ अल्लाह ताला ने अपने बंदों में से एक बंदे के सामने एक तरफ दुनिया रखी और दूसरी तरफ वह सब कुछ रखा जो अल्लाह ताला के पास है फिर उस बंदे को अख्तियार दिया कि वह उन दोनों चीजों में से कोई एक चुन ले उस बंदे ने अपने लिए वह पसंद किया है जो अल्लाह ताला के पास है _,"


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु इन बातों का मतलब फौरन समझ गए ,कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उनसे मुराद अपनी जा़त है, चुनांचे रोने लगे और अर्ज किया :-  ऐ अल्लाह के रसूल हम अपनी जाने और अपनी औलादें आप पर कुर्बान कर देंगे _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें रोते हुए देख कर फरमाया :- अबू बकर खुद को संभालो _,"

फिर लोगों से मुखातिब होकर इरशाद फरमाया :- "_ लोगों साथ देने के ऐतबार से और अपनी दौलत खर्च करने के ऐतबार से जिस शख्स का मुझ पर सबसे ज्यादा एहसान है वह अबू बकर है _,"

यह हदीस सही है इसको १० से ज्यादा सहाबा ने नक़ल किया है ।


★_ फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ मस्जिद से मिले हुए तमाम दरवाजे बंद कर दिए जाएं बस अबू बकर का दरवाज़ा रहने दिया जाए क्योंकि मैं उस दरवाजे में नूर देखता हूं , सोहबत और रफाक़त के एक बार से मैं किसी को अबू बकर से अफज़ल नहीं समझता _,"


★_ एक रिवायत में है :- "_ अबू बकर मेरे साथी हैं और मेरे गम गुसार हैं, इसलिए मस्जिद में खुलने वाली हर खिड़की बंद कर दो सिवाय अबू बकर की खिड़की के _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बारे में यह भी इरशाद फरमाया :-  मेरे साथी अबू बकर के बारे में मुझे तकलीफ़ ना पहुंचाओ _,"


हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बारे में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह भी इरशाद मुबारक है :-

"_ जब लोगों ने मुझे झूठा कहा था अबू बकर ने मुझे सच्चा कहा था जब लोगों ने अपना माल रोक लिया था तो अबू बकर ने मेरे लिए अपने माल तो फैयाजी़ से खर्च किया जब लोगों ने मुझे छोड़ दिया था तो अबू बकर ने मेरी गमख्वारी की थी _,"


★_ हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या बात है कि आपने अबू बकर का दरवाजा तो खुला रहने दिया और बाकी लोगों के दरवाजे बंद करवा दिए _,"

उनकी बात के जवाब में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- 

"_ ऐ अब्बास ! ना मैंने अपने हुक्म से खुलवाए और ना बंद करवाएं _,"

मतलब यह था कि ऐसा करने का हुक्म अल्लाह ताला ने दिया है ।


★_ अपने ऊपर सात मशकों का पानी डलवाने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इफाक़ा महसूस फरमाया तो मुहाजिरीन से इरशाद फरमाया:- 

"_ ऐ मुहाजिरीन अन्सार के साथ नेक सुलूक करना, खेर का सुलूक करना क्योंकि यह लोग मेरी पनाहगाह थे, इनके पास मुझे ठिकाना मिला, इसलिए इनकी भलाईयों के बदले में इनके साथ भलाई करना और इनकी बुराइयों से दर गुज़र करना _,"  

इतना फरमाने के बाद आन‌ हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मिंबर से उतर आए ,


★_ अपने मर्ज वफात में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि वह नमाज पढ़ाएं,  वह नमाज ईशा की थी....  जब हजरत बिलाल ने आज़ान दी तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया - मेरे लिए बर्तन में पानी लाओ _,"

आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वज़ु किया , फिर मस्जिद जाने का इरादा फरमाया मगर गशी तारी हो गई , कुछ देर बाद इफाक़ा हुआ तो दरयाफ्त फरमाया -क्या लोगों ने नमाज पढ़ ली ? सहाबा किराम ने अर्ज़ किया-  लोग आपका इंतजार कर रहे हैं,


उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फिर पानी लाने का हुक्म दिया, वज़ु किया, फिर मस्जिद में जाने का इरादा फरमाया लेकिन फिर गशी तारी हो गई , उसके बाद फिर इफाक़ा हुआ तो पूछा -क्या लोगों ने नमाज पढ़ ली ?

सहाबा किराम ने फिर अर्ज किया :- नहीं , लोग आपका इंतजार कर रहे हैं _,"

अब फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वज़ु किया, नमाज़ का इरादा फरमाया लेकिन गशी तारी हो गई , इफाका़ होने पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फिर यही पूछा और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यही बताया गया , तब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा कि वह मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाऐं _,


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को जब यह हुक्म मिला तो उन्होंने हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाया - ऐ उमर तुम नमाज पढ़ा दो _,"

इस पर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- आप इसके ज्यादा हकदार है _,"

आखिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने नमाज पढ़ाई, उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात तक हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ही नमाज़ पढ़ाते रहे ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जिंदगी मुबारक में इस तरह अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने 17 नमाज़े पढ़ाई,  इस दौरान सुबह की एक नमाज में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनकी इमामत में दूसरी रकात में शरीक हुए और अपनी पहली रकात बाद में अदा फरमाई,

उस नमाज के लिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम दो आदमियों का सहारा लेकर मस्जिद तक आए थे, उन दो में से एक हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु थे।


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस वक्त नमाज पढ़ा रहे थे उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तशरीफ लाते देखा तो फौरन पीछे हटने लगे ताकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इमामत फरमाएं, मगर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें इशारे से फरमाया कि पीछे न हटें, फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने दोनों साथियों को हुक्म दिया तो उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बांऐं जानिब बिठा दिया,

इस तरह हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने खड़े होकर नमाज अदा की , उनके पीछे बाक़ी तमाम सहाबा ने भी खड़े होकर नमाज़ अदा की और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बैठकर नमाज पूरी फरमाई ।


इमाम तिरमिज़ी ने लिखा है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पीछे 3 मर्तबा नमाज पढ़ी, 

इस बारे में यह रिवायत भी है कि पहली मर्तबा हजरत उमर रजियल्लाहु इमामत करने लगे थे आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जब उनकी आवाज़ सुनी तो इरशाद फरमाया :-  नहीं.. नहीं.. नहीं.. अबू बकर ही नमाज पढ़ाएं _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यह इरशाद सुन कर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु पीछे हट आए थे और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़कर नमाज पढ़ाई थी ।


★_ फिर आखरी रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सर मुबारक परदे के बाहर से निकालकर मस्जिद में देखा , लोग अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पीछे नमाज़ अदा कर रहे थे यह देखकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मुस्कुरा दिए, यह दिन पीर का दिन था वही दिन जिसमें आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वफात पाई, मुस्कुराकर सहाबा इकराम को देखने के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पर्दा गिरा दिया,


★_ उस वक्त लोगों ने महसूस किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तबीयत पहले से बेहतर है और यह कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तकलीफ में कमी हो गई है, सो आपके आसपास मौजूद सहाबा अपने घरों को चले गए, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा के क़रीब "मस्ख " नामी देहात चले गए जहां उनकी दूसरी ज़ौजा मोहतरमा का घर था, यह जगह मदीना मुनव्वरा से एक या डेढ़ मील के फासले पर थी, जाने से पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से इज़ाजत ली थी और और उसकी वजह थी कि उस रोज सुबह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रुखे अनवर पर बहुत बशाशत थी, चेहरा अनवर चमक रहा था लिहाज़ा लोगों ने ख्याल किया था कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हालत संभल गई थी,


★_ लेकिन दोपहर के क़रीब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बुखार तेज़ हो गया, यह खबर सुनते ही तमाम अज़वाज मुताहरात फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आ गई,  आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर उस वक्त बार-बार गशी तारी हो रही थी, होश में आते ही फरमाते :-  मैं अपने रफीक़े आला की बारगाह में हाजिर होता हूं _,"


★_ जब आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अपना हाथ मुबारक पानी में डालकर अपने चेहरे अनवर पर फेरने लगे, उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमा रहे थे - "_ ऐ अल्लाह ! मौत की सख्तियों पर मेरी मदद फरमा _,"

सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि जब मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर बैचेनी के आसार देखें तो मैं पुकार उठी :- हाय मेरे वालिद की बेचैनी !"

यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- आज के बाद फिर कोई बैचेनी तुम्हारे बाप को नहीं होगी _,"  _

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*"_ सफर ए आखिरत _,*


★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर वफात के वक्त जो इस क़दर तकलीफ और बेचैनी के आसार जाहिर हुए उसमें भी अल्लाह ताला की हिकमत है क्योंकि अगर किसी मुसलमान को मौत के वक्त इस तरह तकलीफ और बेचैनी हो तो हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तकलीफ को याद करके खुद को तसल्ली दे सकता है ।


★_ यानी दिल में कह सकता है कि जब अल्लाह के रसूल पर मौत के वक्त इतनी तकलीफ हो गुजरी तब मेरी क्या हैसियत है ? यूं भी मौत की सख्ती मोमिन के दर्जात बुलंद होने का सबब बनती है, हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर मौत की तकलीफ के बाद अब मैं किसी पर भी मौत के वक्त सख्ती को  नागवार महसूस नहीं करती_,"

जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तकलीफ होती थी तो फरमाया करते थे :-

"_ ए तमाम लोगों के परवरदिगार !  यह तकलीफ दूर फरमा दे और शिफा अता फरमा दे कि तू ही शिफा देने वाला है तेरी दी हुई शिफा ही असल शिफा है जिसमें बीमारी का नामोनिशान नहीं होता _,"


★_ हजरत आएशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बेचैनी बढ़ी तो मैंने आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम का दायां हाथ अपने हाथ में ले लिया और दुआ के यही कलमात पढ़कर दम करने लगी,  फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपना हाथ मुबारक खींच लिया और यह दुआ पढ़ी :-

"_ ए अल्लाह ! मेरी मग्फिरत फरमा और मुझे रफीक़े आला में जगह अता फरमा _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को जब भी कोई तकलीफ होती आफियत और शिफा की दुआ किया करते थे लेकिन जब मर्जे वफात हुआ तो उसमें शिफा की दुआ नहीं मांगी, हजरत आएशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि इस हालत में मेरे भाई अब्दुर्रहमान रज़ियल्लाहु अन्हु आए, उनके हाथ में मिसवाक थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस‌ मिसवाक को देखने लगे, मैं समझ गई कि मिसवाक की ख्वाइश महसूस कर रहे हैं क्योंकि मिसवाक करना आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को बहुत पसंद था चुंनाचे मैंने पूछा-  आपको मिसवाक दूं _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सर मुबारक से हां का इशारा फरमाया , मैंने मिसवाक दांतों से नरम करके दी, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मुझसे सहारा लिए हुए थे, 

उम्मुल मोमिनीन आएशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :-

"_मेरे ऊपर अल्लाह के खास इनामात में से एक इनाम यह भी है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इंतकाल मेरे घर में हुआ, आपका जिस्म मुबारक उस वक्त मेरे जिस्म से सहारा लिए हुआ था, वफात के वक्त अल्लाह ताला ने मेरा लुआबे दहन आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लुआबे दहन से मिला दिया क्योंकि उस मिसवाक को मैंने नरम करने के लिए चबाया था और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसे अपने दांतो पर फैरा था ।


★_ हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर बेहोशी तारी हुई तो अज़वाज मुताहरात आसपास जमा हो गई,

मर्ज़ के दौरान आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने 40 गुलाम आज़ाद फरमाए, घर में उस वक्त 6 या 7 दीनार थे, हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को हुक्म फरमाया कि इन दीनारों को सदका़ कर दें, साथ ही इरशाद फरमाया :- मुहम्मद अपने रब के पास क्या गुमान ले कर जाएगा कि अल्लाह ताला से मुलाकात हो और ये माल उसके पास हो _,"


★_ सैयदा हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा ने उसी वक्त उन दीनारों को सदका़ कर दिया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बीमारी से चंद रोज़ पहले हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने ख्वाब देखा था कि चांद जमीन से उठ कर आसमान की तरफ चला गया, उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को ख्वाब सुनाया था.. ख्वाब सुनकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया था :- ऐ अब्बास ! वह तुम्हारा भतीजा है _,"  यानी यह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात की तरफ इशारा था । 


★_ अपनी साहबज़ादी सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को बेपनाह मोहब्बत थी, अलालत के दौरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें बुला भेजा , वह तशरीफ लाईं तो उनके कान में कुछ बातें मौसम खराब होने के कान में कुछ बातें की , वह सुन कर रोने लगी, फिर उनके कान में कुछ फरमाया तो वह हंस पड़ी, बाद में उन्होंने आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को बताया कि पहले आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया कि मैं इसी मर्ज़ में वफात पा जाऊंगा, यह सुनकर मैं रो पड़ी, दूसरी बार फरमाया कि खानदान में सबसे पहले तुम मुझसे मिलोगी, यह सुनकर मैं हंस पड़ी ।

चुनांचे आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के इंतकाल के बाद सबसे पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घराने में हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल हुआ ।


★_ वफात से एक दिन पहले आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने लोगों से इरशाद फरमाया:- यहूदो नसारा पर खुदा की लानत है उन्होंने अपने पैगंबरों की क़ब्रों को इबादतगाह बना लिया _,"

यह भी फरमाया कि यहूदियों को ज़जी़रतुल अरब से निकाल दो और फरमाया :-  लोगों नमाज़...  नमाज़ ... नमाज़ के बारे में अल्लाह से डरो और अपने गुलामों का ख्याल रखो _,"


★_ वफात से पहले हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम मलकुल मौत के साथ आए उन्होंने अर्ज किया :- ऐ मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ! अल्लाह ताला आपके मुश्ताक हैं _,"

यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- तो हुक्म के मुताबिक मेरी रूह कब्ज़  कर लो _,"


★_ एक रिवायत के मुताबिक हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम मलकुल मौत के साथ आए थे, उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया था-

"_ ए अल्लाह के रसूल यह मलकुल मौत हैं और आपसे इजाज़त मानते हैं आपसे पहले उन्होंने किसी से इजाजत नहीं मांगी और ना आप के बाद किसी से इजाजत मांगेगे, क्या आप उन्हें इजाजत देते हैं ?"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इजाज़त दे दी, तब इजराइल अलैहिस्सलाम अंदर आए, उन्होंने आप को सलाम किया और अर्ज़ किया :-

"_ ऐ अल्लाह के रसूल अल्लाह ताला ने मुझे आपके पास भेजा है अगर आप मुझे हुक्म दें कि मैं आपकी रूह कब्ज़ करूं तो मैं ऐसा ही करूंगा और अगर आप हुक्म फरमाएं कि छोड़ दो, तो मैं ऐसा ही करूंगा _,"

आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे पूछा- क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि रूह कब्ज़ किए बगैर चले जाओ ?"

उन्होंने अर्ज किया- "_हां मुझे यही हुक्म दिया गया है _,"


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जिब्राइल अलैहिस्सलाम की तरफ देखा तो उन्होंने अर्ज़ किया:- "_ ए अल्लाह के रसूल अल्लाह ताला आपकी मुलाकात के मुस्ताक़ है _," 

आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- "_ मुझे अपने परवरदिगार से मुलाकात अज़ीज़ है _,"

फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत इजराइल अलैहिस्सलाम से फरमाया :- "_तुम्हें जिस बात का हुक्म दिया गया है उसको पूरा करो _,"

चुनांचे मलकुल मौत में आखिरुज़ ज़मां सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की रूह कब्ज़ कर ली, इन्ना लिलाही वा इन्ना इलैही राजिऊन ,


★_ उस रोज़ पीर का दिन था और दोपहर का वक्त था, तारीख वफात में इख्तिलाफ पाया जाता है, मौतबर कॉल के मुताबिक रबी उल अव्वल की 9 तारीख थी, वफात के फौरन बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को इत्तेला भेजी गई ... वह फौरन आएं, आंखों से आंसू बह रहे थे, उन्होंने आते ही रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे मुबारक को बोसा दिया और यह अल्फाज़ कहे :-

"_ आप पर मेरे मां-बाप फिदा हों आप जिंदगी में भी पाक और मुबारक थे और मौत की हालत में भी पाक और मुबारक है, जो मौत आपको आना थी आ चुकी, अब अल्लाह ताला आपको मौत नहीं देंगे _,"


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  *★_ उसके पास सबको जाना है _,*


★_ बाहर सहाबा होशो हवास खो बैठे थे हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की हालत इतनी परेशानकुन थी कि मस्जिद-ए-नबवी के एक कोने में खड़े हो गए और लोगों को मुखातिब हो कर कहने लगे :-

"_ अल्लाह की क़सम! रसूलुल्लाह का इंतकाल नहीं हुआ... रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात उस वक्त तक नहीं होगी जब तक वह मुनाफ़िक़ों के हाथ पैर नहीं तोड़ देंगे और अगर किसी ने भी कहा कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात हो गई तो मैं उसकी गर्दन उड़ा दूंगा...  बाज़ मुनाफिक़ यह कह रहे हैं कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वफात पा गये है  हालांकि वह फौत नहीं हुएं बल्कि वह उसी तरह अपने रब के पास तशरीफ ले गए हैं जिस तरह मूसा अलैहिस्सलाम गए थे और फिर 40 रातों के बाद अपनी क़ौम में वापस आ गए थे जबकि लोग उनके बारे में कहने लगे थे कि उनकी वफात हो गई है, अल्लाह की क़सम ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम भी उसी तरह वापस तशरीफ लाएंगे जैसे मूसा अलैहिस्सलाम लौट आए थे...  फिर उन लोगों के हाथ पैर कटवाएंगे _,"


★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु गम की ज़्यादती की वजह से अभी यह बातें कह रहे थे कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु तशरीफ लाए और मिंबर पर चढ़े , उन्होंने बुलंद आवाज में लोगों को मुखातिब करते हुए फरमाया :- 

"_ लोगों! जो शख्स मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की इबादत करता था वह जान ले कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इंतकाल हो गया _,"


★_ यह कह कर उन्होंने सूरह  आले इमरान की आयत 44 तिलावत फरमाई, उसका मफहूम यह है :-

"_ और मोहम्मद रसूल ही तो है उनसे पहले और भी बहुत रसूल गुज़र चुके हैं सो अगर उनका इंतकाल हो जाए या वह शहीद हो जाए तो क्या तुम लोग उल्टे फिर जाओगे..  और जो शख्स उल्टे पैरों फिर भी जाएगा तो अल्लाह ताला का कोई नुक़सान नहीं करेगा और अल्लाह ताला जल्द ही हक़ शनास लोगों को बदला देगा _,"


★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- वह आयत सुनकर मुझे लगा जैसे मैंने आज से पहले यह आयत सुनी ही नहीं थी _,"

इसके बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने कहा :-

"_ इन्ना लिल्लाहि वा इन्ना इलैही राजिऊन, सलाति वस्सलामु अला रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम _,"

(बेशक हम सब अल्लाह के लिए हैं और उसी की तरफ लौट कर जाना है , उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद व सलाम हो )


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने कुरान ए करीम की इस आयत से सबके लिए मौत का बरहक़ होना साबित फरमाया और फरमाया :- अल्लाह ताला ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से कुरान ए मजीद ने इरशाद फरमाया है,

 "_ आपको भी मरना है और उन्हें (आम मखलूक को ) भी मरना है_," *( सूरह अल ज़ुमर आयत-३०)* 


★_ फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के हाथ पर तमाम मुसलमानों में बैत कर ली,  उसके बाद लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तजहीज़ व तकफीन की तरफ मुतवज्जह हुए,


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम को गुस्ल दिया गया,  गुस्ल हजरत अली हजरत अब्बास और उनके बेटों फज़ल और क़ुसम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने दिया, हजरत फ़ज़ल और हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हुम गुस्ल देने वालों को पानी दे रहे थे, गुस्ल के वक्त आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की कमीज़ नहीं उतारीं गई , गुस्ल के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तीन सफेद कपड़ों में कफन दिया गया, औद वगैरह की धूनी दी गई, उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्ल्म को चारपाई पर लिटा कर ढ़ांप दिया गया ,


★_ नमाजे जनाजा़ की किसी ने इमामत नहीं की, सबने अलहदा अलहदा नमाज़ पढ़ी, यानी जितने लोग हुजरे मुबारक में आ सकते थे बस उतनी तादाद में दाखिल होकर नमाज़ अदा करते और बाहर आ जाते हैं, फिर दूसरे सहाबा अंदर जाकर नमाज़ अदा करते ।


★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हुम  चंद दूसरे सहाबा किराम के साथ हुजरे में दाखिल हुए तो इन अल्फाज़ में  सलाम किया:-

अस्सलामु अलैका अययुहन नबिय्यू वा रहमतुल्लाहि वा बराकातुहु _,"

फिर तमाम मुहाजिरीन और अंसार ने भी इसी तरह सलाम किया, नमाजे जनाजा़ में चार तकबीरात कही ,


★_ अंसारी हजरात सक़ीफा बिन सादाह ( एक जगह का नाम ) में जमा हो रहे थे ताकि खिलाफत का फैसला किया जाए, किसी ने इस बात की खबर हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हुम को दी,  यह दोनों हजरात फौरन वहां पहुंचे और खिलाफत के बारे में इरशाद ए नबवी सुनाया ,


★_ खिलाफत का मसला तैय हो गया तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दफन करने का मसला पैदा हुआ, सवाल किया गया कि आपको कहां दफन किया जाए ? इस मौके पर भी हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु आगे आए और फरमाया :- 

"_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को वहीं दफन किया जाएगा जहां वफात हुई है.. मेरे पास एक हदीस है मैंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को फरमाते हुए सुना है कि नबी की रूह ऐसी जगह कब्ज़  की जाती है जो उसके नज़दीक सबसे ज्यादा मेहबूब जगह होती है _,"


चुनांचे यह बात तय हो गई कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इसी जगह दफन किया जाए, अब यह सवाल उठा  कि क़ब्र कैसी बनाई जाए ? बगली बनाई जाए या शक़ की ..  उस वक्त मदीना मुनव्वरा में  मुझे हजरत अबु तलहा बिन ज़ैद बिन सहल रज़ियल्लाहु अन्हू बगली क़ब्र खोदा करते थे और हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह शक़ की क़ब्र खोदते थे,

हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- उन दोनों को बुलाओ उनमें से जो पहले पहुंचेगा इससे क़ब्र बनवा ली जाएगी -,"

उनकी तरफ आदमी भेजे गए, भेजने के साथ ही हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने दुआ की :- ऐ अल्लाह ! अपने रसूल के लिए खैर ज़ाहिर फरमा _,"


★_ हजरत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु पहले पहुंचे, चुनांचे बगली क़ब्र तैयार हुई, एक हदीस के मुताबिक आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी बगली क़ब्र ही का हुक्म फरमाया था , 

हजरत अब्बास, हजरत अली, हजरत फ़ज़ल , हजरत क़ुसम और हजरत शक़रान रज़ियल्लाहु अन्हुम ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को क़ब्र में उतारा ,

हजरत शकरान रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़ब्र में एक सुर्ख रंग का कपड़ा बिछाया, यह वही सुर्ख कपड़ा था जो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सफर पर जाते वक्त ऊंट के पालान पर बिछाते थे,  यह कपड़ा इसलिए बिछाया गया कि वहां नमी थी, उस वक्त हजरत शकरान रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह अल्फाज कहे :- खुदा की क़सम ! आप के बाद इस कपड़े को कोई नहीं पहन सकेगा ।


★_आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तदफीन मंगल और बुध की दरमियानी रात में हुई, हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि उस रोज़ हम सब अज़वाज एक जगह जमा होकर रो रही थी हमने से कोई सो ना सका,  हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने फजर की अजान दी अज़ान में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का नाम मुबारक आया तो सारा मदीना रोने लगा, लोग इस क़दर रोए कि हिचकियां बन गईं,  इससे बड़ा सदमा उन पर कभी नहीं गुज़रा था और ना आइंदा कभी किसी पर गुजरेगा,


★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- तुम्हारे दिलों ने कैसे बर्दाश्त कर दिया कि तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर मिट्टी डालो _,"

इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- हां , लेकिन अल्लाह ताला के हुक्मों को फैरने वाला कोई नहीं _,"


★_ एक हदीस में आता है कि आदमी उसी मिट्टी में दफ़न होता है जहां से उसका खमीर उठाया जाता है,  इससे यह भी साबित हुआ कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, हजरत ईसा अलैहिस्सलाम और हजरत अबू बकर सिद्दीक, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हुम एक ही जगह की मिटटी से तख़लीक़ किए गए थे ।


★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की ऊंटनी ने खाना पीना छोड़ दिया और भूखी प्यासी मर गई,


★_उलमा ए इस्लाम का इस बात पर इजमा है कि जिस जगह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम दफन है वह जगह रूए ज़मीन पर तमाम मका़मात से अफज़ल है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाक़िआ फील वाले साल में पैदा हुए यानी जिस साल अबराहा बादशाह ने काबा पर चढ़ाई की थी, उस वाक़िए के 40 या 50 दिन बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की विलादत बा सआदत सुबह तुलु फजर के वक्त हुई वो पीर का दिन था और रबी उल अव्वल का महीना था, तारीख ए विलादत में इख्तिलाफ पाया जाता है ताहम उस रोज़ मौतबर क़ौल के मुताबिक 9 तारीख थी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात भी रबी उल अव्वल के महीने में हुई और उस रोज़ भी रबी उल अव्वल की 9 या 12 तारीख थी।


*★_ ऐ अल्लाह ! दरूद व सलाम हो उस ज़ात पर कि जिसने कुफ्र व शिर्क के अंधेरों में शम्मा हिदायत रोशन की और जिन के बाद किसी के नबूवत नहीं मिलेगी, वह तेरे बंदे और रसूल और हमारे सरदार मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की जा़ते कामिल है,  मैदाने हश्र में हमें उनके गिरोह में शामिल फरमा और हमें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की सुन्नत व हदीस के खादिमों में दाखिल फरमा, आमीन _,* 

सिवाय अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की जा़ते अज़ीम के किसी को दवाम हासिल नहीं ,

वा सल्लल्लाहु अला नबिय्यिल उम्मी वा अला आलिहि वा असहाबिहि अजम'ईन,


*★_अल हमदुलिल्ला इस क़िस्त के साथ सीरतुन नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क़दम बा क़दम का यह सिलसिला अपने अख्ताम को पहुंचा, इसे जिस क़दर पसंद किया गया उस पर अल्लाह का जितना शुक्र किया जाए कम है, इसमें तकरीबन 1 साल लगा,.. आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़िंदगी मुबारक के अनगिनत पहलू फिर भी इसमें शामिल ना हो सके और ऐसा हो भी नहीं सकता,.. दुनिया के तमाम इंसान तमाम उम्र भर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़िंदगी मुबारक पर लिखते रहें तब भी हक़ अदा नहीं हो सकता,.. अल्लाह ताला से हम भी दुआ करते हैं और आप सब भी हमारे हक़ में दुआ करें कि अल्लाह ताला इस कोशिश को कुबूल फरमा कर हमारे ( पूरी हक़ का दाई टीम) के लिए निजात का ज़रिया बनाए, इसमें जो गलती कोताही हुई उसको माफ फरमाए ,*


★_ मौजूदा हालात का तकाज़ा है कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सीरत को आम किया जाए, क़ौल से , अमल से जिस तरह भी बन पड़े यह काम जरूर किया जाए , इस वक्त इंसानियत को किसी आइडियल की तलाश है और वह हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ही जात़ मुबारक हो सकती है , बा कौ़ल ज़की़ कैफी...

*तंग जाएगी खुद अपने चलन से दुनिया ,*

*तुझसे सीखेगा ज़माना तेरे अंदाज कभी _,*

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   _ *✍🏻 Haqq Ka Daayi_*

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