▤━─━─━▓━﷽━▓━─━─━▤
*⊙_ रमज़ानुल मुबारक _⊙*
┗───┯⊙——⊙——⊙——⊙——⊙
✿●•· *रमज़ानुल मुबारक की आमद पर सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खुतबा इस्तक़बालिया*
*➠ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान फरमाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने शाबान की आखरी तारीख में हमको खिताब फरमाया कि-"__*
*"_ऐ लोगो ! एक बा अज़मत महीना आ पहुंचा है,जो माहे मुबारक है, इसमें एक रात है जो हज़ार महीने से बेहतर है, इस माह के रोज़े अल्लाह ताला ने फ़र्ज़ फरमाए हैं और इसकी रातों में क़याम करना गैर फ़र्ज़ क़रार दिया है,*
*➠इस माह में जो शख्स कोई नेक काम करेगा उसको ऐसा अजर व सवाब मिलेगा जैसे इसके अलावा दूसरे महीने में फ़र्ज़ अदा करता और फ़र्ज़ का सवाब मिलता ,और जो शख्स इस माह में एक फ़र्ज़ अदा करे तो उसको सत्तर फ़र्ज़ों के बराबर सवाब मिलेगा,*
*➠ ये सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है और आपस मे गमख्वारी का महीना है, इसमें मोमिन का रिज़्क़ बढ़ा दिया जाता है, इस माह में जो शख्स किसी रोज़ेदार का रोज़ा इफ्तार करा दे तो ये उसकी मग़फिरत का दोज़ख से उसकी गर्दन की आज़ादी का सामान बन जाएगा, और उसको इस क़दर सवाब मिलेगा जितना रोज़ेदार को मिलेगा, मगर रोज़ेदार के सवाब में से कुछ कमी न होगी,*
*➠ हज़रत सलमान रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हमने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हममे हर शख्स को इतना मुक़द्दर नही की जो रोज़ा इफ्तार करा दे, आप सल्लल्लाहु अलैहि ने फरमाया कि अल्लाह ताला ये सवाब उसको भी देगा जो पानी मिले हुए थोड़े से दूध या एक खजूर या एक घूंट पानी से अफ्तार करा दे, (मज़ीद फरमाया कि) जो शख्स (अफ्तार के बाद) किसी रोज़ेदार को पेट भर कर खाना खिला दे उसको अल्लाह ताला मेरे हौज़ से ऐसा सैराब करेंगे कि जन्नत में दाखिल होने तक प्यासा न होगा(और फिर जन्नत में तो भूख प्यास का नाम ही नही)*
*➠इस माह का अव्वल हिस्सा रहमत है, दूसरा हिस्सा मग़फिरत है, तीसरा हिस्सा दोज़ख से आज़ादी है, जिसने इस माह में गुलाम का काम हल्का कर दिया तो अल्लाह ताला उसकी मगफिरत फरमा देंगे ,*
*➠बाज़ रिवायतों में ये भी आया है कि आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मौक़े पर ये भी फरमाया की इस माह में चार कामों की कसरत करो, उनमें से दो काम ऐसे है कि उनके ज़रिए तुम अपने परवरदिगार को राज़ी करोगे, और दो काम ऐसे हैं जिनसे तुम बे नियाज़ नही हो, वो दो काम जिनके जरिये खुदा ए पाक की ख़ुशनूदी हासिल होती है,*
*(1)-"ला इलाहा इल्लल्लाह" का विर्द रखना और,*
*"_ (2)-खुदा ए पाक से मगफिरत तलब करते रहना,*
*"_और दो वो चीजें जिनसे तुम बेनियाज़ नही रह सकते ये हैं:-*
*(1)-जन्नत का सवाल और (2)-दोज़ख से पनाह मांगना,,*
*📕 मिशकातुल मसाबह -१७३ बा हवाला बहिक़ी फि शोबुल ईमान व तरगीब व तरहीब _,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़ा बदनी इबादत है_,*
*➠ इंसान की तख़लीक़ इबादत और महज़ इबादत के लिए है, जैसा कि सूरह ज़रियात (आयत-56) में फरमाया गया है:-*
*"_ ( तर्जुमा ) और मैंने इंसान और जिन्न को नही पैदा किया मगर इस वास्ते कि वो मेरी इबादत करे__"*
*➠ रोज़ा बदनी इबादत है जो पहली उम्मतों पर भी फ़र्ज़ था, जैसा कि सूरह बक़रह (आयत 183) में फरमाया है:-*
*"_ ( तर्जुमा ) ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए जैसा कि तुमसे पहले लोगो पर फ़र्ज़ किये गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बनो, ये रोज़े चंद दिनों के हैं_,"*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़े की हिकमत_*
*➠ क़ुरआन में रोज़े की हिकमत की तरफ इशारा फरमाया गया है,तक़वा,, सगिरा व कबीरा, ज़ाहिरी और बातिनी गुनाहों से बचने का नाम है,रोज़े की फ़र्ज़ीयत तकवा हासिल करने के लिए है,*
*➠पूरे माहे रमज़ान के रोज़े रखना हर आकिल बालिग मुसलमान पर फ़र्ज़ है,अगर कोई वाकई रमज़ान के अहकाम व आदाब की रोशनी में रोज़ा रखे जो क़ुरआन हदीस में वारिद हैं तो,एक महीना खाना पीना और जिंसी ताल्लुक़ात के मुक़तज़ा पर अमल करने से अगर रुके रहा तो बातिन के अंदर निखार और नफ़्स का ताज़किया और नफ़्स के अंदर सुधार पैदा हो जाता है,*
*➠रमज़ानुल मुबारक के रोज़े के अलावा नफ्ली रोज़े भी मशरू किये गए हैं उन रोज़ो का मुश्ताकिल सवाब है जो रिवायात में मज़कूर हैं और सवाब के अलावा नफ्ली रोज़ों का ये फायदा है कि रमज़ानुल मुबारक के रोज़े रखते वक़्त जो अमली कोताहियां हो जाये उनकी तलाफ़ी हो जाती है,*
*➠जो गुनाह इंसान से सर्ज़द हो जाते हैं उनमें सबसे ज़्यादा दो चीजें गुनाह का बाइस बनती है,एक मुंह और दूसरा शर्मगाह, चुनांचे इमाम तिर्मिज़ी ने हज़रत अबू हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु से नक़ल किया है कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया गया है की सबसे ज़्यादा कोनसी सी चीज दोज़ख में ले जाने का जरिया बनेगी,आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया -मूंह और शर्मगाह, इन दोनों का दोज़ख में दाखिल कराने में ज़्यादा दखल है,रोज़े से मुंह और शर्मगाह दोनों पर पाबंदी होती है और मज़कूरा दोनों चीजों से जो गुनाह हो सकता है रोज़ा उनसे बाज़ रखने का बहुत बड़ा जरिया है,इसीलिए तो एक बुखारी व मुस्लिम में फरमाया -रोज़ा ढाल है(गुनाह से और आतिशे दोज़ख से बचाता है) ( बुखारी व मुस्लिम )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़े की हिफाज़त_,*
*➠अगर रोज़े को पूरे एहतेमाम और अहकाम व अदाबकी मुकम्मल रिआयत के साथ पूरा किया जाए तो बिला शुभा गुनाह से महफूज़ रहना आसान है,खास रोज़े के वक़्त भी रोज़े के बाद भी, और अगर किसी ने रोज़े के आदाब का खयाल न किया और गुनाहों में मशगूल रहते हुए रोज़े की नीयत कर ली और खाने पीने, नफ़सानी ख्वाइश से तो बचा रहा मगर हराम कमाने और ग़ीबत करने में लगा रहा तो उससे फ़र्ज़ तो अदा हो जाएगा मगर रोज़े की बरकत व समरात से महरूमी रहेगी ,जैसा कि हदीस में इरशाद फरमाया :-*
*"_जो शख्स रोज़ा रखकर झूटी बात और गलत काम न छोड़े तो अल्लाह को कुछ हाजत नही की वो (गुनाहों को छोड़े बगैर)महज़ खाना पीना छोड़ दे,, ( बुखारी -१२)*
*➠मालूम हुआ कि खाना पीना और जिंसी ताल्लुक़ात छोड़ने से ही रोज़ा कामिल नही होता बल्कि रोज़ा को फवाहिश ,मुंकिरात और हर तरह के गुनाहों सर महफूज़ रखना लाज़िम है,सरवरे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- जब तुममे से किसी का रोज़ा हो तो गंदी बातें न करे,शोर न मचाए ,अगर कोई शख्स गाली गलौच या लड़ाई झगड़ा करने लगे (तो उसको जवाब न दे)बल्कि यू कह दे कि मैं रोज़ेदार हूँ(गाली गलौच,लड़ाई झगड़ा करना मेरा काम नही) ( बुखारी व मुस्लिम )*
*➠हज़रत अबु हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि फरमाया फखरे बनी आदम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने की बहुत से रोज़ेदार ऐसे हैं जिनके लिए (हराम खाने या हराम काम करने या ग़ीबत वगैरह करने की वजह से ) प्यास के अलावा कुछ भी नही और बहुत से तहज्जुद गुज़ार ऐसे हैं कि जिनके लिए रियाकारी की वजह से जागने के सिवा कुछ भी नही _," ( दारमी )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़ा और सेहत_,*
*➠ रोज़े में जहां ज़ाहिर व बातिन का तज़किया होता है वही सेहत और तंदरुस्ती भी हासिल होती है, चुनांचे हाफिज मंज़री रह. ने तरग़ीब व तरहीब में हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल किया है:- जिहाद करो गनीमत हासिल होगी,रोज़ा रखो तंदरुस्ती हासिल होगी,सफर करो मालदार हो जाओगे,,*
*( रवाह तबरानी )*
*➠ हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो कुछ फरमाया बिल्कुल हक़ है,आंखों के सामने है,डॉक्टर व तिब्ब भी ये बताते हैं कि रोज़े का जिस्मानी सेहत से खास ताल्लुक़ है और रमज़ान में जो माजरा सब अपनी आंखों से देखते हैं कि 12-14 घंटे खाली पेट रह कर अफ्तार के वक़्त नरम गरम डाल पकोड़ी, कच्चे पक्के चने और तरह तरह की चीजें चंद मिनट के अंदर मैदे में पहुंच जाती हैं और कुछ भी किसी को तकलीफ नही होती, ये सिर्फ रोज़े की बरकत है,अगर तिब्बी नुक़ताए नज़र से देखा जाए तो इस तरह खाली पेट अनाप शनाप भर्ती कर लेने की वजह से मैदा सख्त बीमार हो जाना चाहिए,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· रोज़े की फजी़लत _,*
*➠ एक रोजा रख लेने पर खुदा ए पाक की तरफ से क्या इनाम मिलता है इसके बारे में सैयदे आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- जो शख्स अल्लाह की खुशनूदी के लिए एक दिन रोज़ा रखे अल्लाह ताला उसको आतिश ए दोज़ख से इतनी दूर कर देंगे जितनी दूर कोई शख्स 70 साल तक चल कर पहुंचे_,"*
*( बुखारी व मुस्लिम )*
*➠ और खास रमज़ान के रोजे के बारे में इरशाद ए नबवी है कि शर'अन जिसे रोज़ा छोड़ने की इजाज़त ना हो और आजिज़ करने वाला मर्ज़ भी लाहक़ ना हो उसने अगर रमज़ान का एक रोज़ा छोड़ दिया तो उम्र भर रोज़े रखने से भी उस एक रोज़े की तलाफी ना होगी अगरचे (बतौर कज़ा ) उम्र भर रोज़े भी रख ले _,"*
*🗂️( रवाह अहमद व तिर्मीजी , अबु दाऊद व इब्ने माजा व दारमी व मिश्कात)*
*➠हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने रोज़े के बारे में यह भी इरशाद फरमाया कि इंसान के हर अमल का अजर (कम से कम )10 गुना बढ़ा दिया जाता है (लेकिन) रोज़े के बारे में अल्लाह ताला का इरशाद है कि रोज़ा इस कानून से मुस्तसना है क्योंकि वह खास मेरे लिए हैं और मैं ही इसकी जज़ा दूंगा बंदा मेरी वजह से अपनी ख्वाहिशों को और खाने-पीने को छोड़ देता है_,"*
*🗂️( बुखारी व मुस्लिम )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़ेदार के लिए जन्नत का एक खास दरवाज़ा*
*➠ हज़रत सहल बिन साद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया की जन्नत में 8 दरवाज़े हैं जिनमे से एक का नाम रय्यान है उससे सिर्फ रोज़ेदार ही दाखिल होंगे,, *( मिशकात -१७३ )*
*★_ रोज़ेदार को दो खुशियां*
*➠ हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि रोज़ेदार के लिए दो खुशियां हैं ,एक खुशी अफ्तार के वक़्त होती है ,एक खुशी उस वक़्त होगी जब वो अपने रब से मुलाक़ात करेगा, *( मिशकातुल मसाबह - १६)*
*➠दर असल रब की मुलाक़ात ही तो इबादत का असल मक़सद है, उस वक़्त की खुशी का क्या कहना जब आजिज़ बंदे अपने माबूद से मुलाक़ात करेंगे, अल्लाह ताला हमे भी ये मुलाक़ात नसीब फरमाए (आमीन)*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•·_*रमज़ान और क़ुरान*
*➠ कलामे इलाही को रमज़ानुल मुबारक से खास ताल्लुक़ है जैसा कि सूरह अल बकरा (आयात 185) में इरशाद है:-*
*"_माहे रमज़ान है जिसमे क़ुरान नाज़िल किया गया है_,"*
*➠ क़यामे रमज़ान यानी नमाज़ें तरावीह ,ये भी क़ुरआन शरीफ पढ़ने और सुनने के लिए है,दिन को रोज़े में मशगूलियत और रात को तरावीह में खड़े हो कर ज़ोक व शौक़ से क़ुरान पढ़ना या सुनना इससे मोमिन का क़ल्ब (दिल)मे एक अजीब कैफियत पैदा होती है और ये दोनों (रोज़ा और क़ुरआन) क़यामत के दिन मोमिन के काम आएंगे,*
*➠ हुज़ूर अक़दस सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम का इरशाद है:-*
*"_ रोज़ा और क़ुरआन बंदे के लिए बारगाहे इलाही में सिफारिश करेंगे, रोज़ा कहेगा कि ऐ रब मैंने इस बंदे को दिन में खाने पीने और दूसरी ख्वाहिशों से रोक दिया था, लिहाज़ा इसके बारे में मेरी सिफारिश क़ुबूल फर्मा लीजिए और क़ुरआन मजीद अर्ज़ करेगा कि मैंने उसे रात में सोने नही दिया,लिहाज़ा इसके बारे में मेरी सिफारिश क़ुबूल फर्मा लीजिए ,चुनांचे दोनों की सिफारिश क़ुबूल कर ली जाएगी_," ( मिशकात -१७३)*
*➠हर साल रमज़ानुल मुबारक में जिब्राइल अलैहिस्सलाम हुज़ूर अक़दस सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम से क़ुरआन मजीद का दौर किया करते थे,आप सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को सुनाते और वो अफ़ज़लुल अम्बिया सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम को सुनाते थे,जिस साल आप सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम की वफात हुई दो बार दौर किया, इससे पहले एक बार दौर किया करते थे, ( बुखारी )*
*➠ इससे मालूम हुआ कि रमज़ानुल मुबारक में हुफ़्फ़ाज़ किराम का एक दूसरे को सुनाने का जो मारूज तरीका है ये मसनून है, रमज़ान में हिम्मत कर के हिफ़्ज़ व नाजरा खूब क़ुरआन की तिलावत किया करे,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रमज़ान में सियाम व क़ियाम _,*
*➠ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की हजरत रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि :- जिस ने ईमान के साथ और सवाब का यकीन रखते हुए रमजान के रोजे रखे उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे और जिसने रमजान ( की रातों में) ईमान के साथ और सवाब का यकीन रखते हुए क़याम किया ( तरावीह और निफ्ल में मशगूल रहा) उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे और जिसने शबे क़दर में ईमान के साथ सवाब समझते हुए क़याम किया उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे _," ( मिश्कातुल मसाबेह-1/ 173, बुखारी व मुस्लिम )*
*➠ रमजानुल मुबारक मे रातों को नमाज पढ़ते रहना क़यामे रमज़ान कहलाता है ,तरावीह भी इसमें दाखिल है और तरावीह के अलावा जितने नवाफिल पढ़ सकें पढ़ते रहें , हजरत इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलेहि से मंकूल है कि वह रोजाना तरावीह बा जमात से फारिग होकर सुबह तक एक कुरान मजीद नमाज़ में खड़े होकर खत्म कर लेते थे और एक कुरान मजीद रोजाना दिन में खत्म करते थे, इस तरह से रमजान में उनके 61 खत्म हो जाते थे ।*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *_ तरावीह__*
*➠ नमाज़े तरावीह मर्दों और औरतों सबके लिए 20 रकअत सुन्नते मोअक्किदा है,और मर्दों के लिए ये भी मसनून है कि मस्जिद में बजमात तरावीह पढ़े,हाफिज हो तो क़ुरआन सुनाए वरना दूसरों का क़ुरआन सुनें,*
*➠रमज़ान में क़ुरआन पढ़ने और सुनने का ज़ौक़ व शौक़ बढ़ जाना मोमिन के ईमान का तकाजा है, जो लोग नमाज़े तरावीह में सुस्ती करते हैं या हाफ़िज़ रेल (तेज़ रफ़्तार) को तरावीह पढ़ाने के लिए तजवीज़ करते हैं ताकि जल्दी से फारिग हो जाएं (अगरचे तेज़ पढ़ने में क़ुरआन के हुरूफ़ कट जाए और मानी बदल जाए) ऐसे लोग सख्त गलती पर हैं,साल में एक माह के लिए तो ये मौका नसीब होता है इसमें भी मस्जिद और नमाज़, क़ुरआन से लगाव न हो और जल्दी से भागने की कोशिश करे जैसे जेल से भाग रहे हो, बहुत बड़ी महरूमी है,ऐसे लोग तरावीह के अलावा क्या निफ़ल पढ़ते जबकि तरावीह जो सुन्नते मोअक्किदा है उसको बद दिली से पढ़ते हैं बल्कि पढ़ने का नाम कर के जल्द से जल्द होटलों में जा कर गप्पे लड़ाने में मशगूल हो जाते हैं,*
*➠बहुत सी औरतें रोज़े तो रखती हैं और शबे क़द्र में भी खूब जाग लेती हैं लेकिन तरावीह पढ़ने में सुस्ती करती है,ऐ माओं बहनों !आख़िरत के कामों में गफलत न बरतो ,तरावीह पूरी 20 रक्कत पढ़ा करो,अगर बिल फ़र्ज़ किसी वजह से मसलन बच्चों के रोने चीखने या उनके मरीज़ होने की वजह से शुरू रात में पूरी तरावीह न पड़ सको तो जब सहरी के लिए उठो उस वक़्त पूरी कर लो, बल्कि अगर शुरू रात में पूरी ही नमाज़े तरावीह रह जाए तो पूरी 20 रक्कत सहर के वक़्त पढ़ लो,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रमजान आखिरत की कमाई का महीना है, इसमें खूब ज्यादा इबादत करें _,*
*➠ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की फरमाया हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कि जब (माहे) रमजान दाखिल होता है तो आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और बाज रिवायात में है कि जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और बाज़ रिवायत में है कि जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शयातीन (जंजीरों में) जकड़ दिए जाते हैं (और एक रिवायत में है कि) रहमत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं _,"*
*📕 मिशकात -१७३ , बुखारी व मुस्लिम_,*
*➠ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब माहे रमजान की पहली रात होती है तो शयातीन और शर्कस जिन्न जगड दिए जाते हैं और दोजख के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं फिर (रमजान के खत्म होने तक) उनमें से कोई एक दरवाज़ा भी नहीं खोला जाता और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं फिर( रमजान के खत्म होने तक) उनमें का एक दरवाज़ा भी बंद नहीं किया जाता और एक निदा देने वाला पुकारता है कि ऐ खैर के तलाश करने वाले आगे बढ़ और ऐ बुराई के तलाश करने वाले रुक जा _,"*
*📕 मिशकात -१७३, तिरमिज़ी _,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *रमज़ान नेकियों का महीना है:-*
*➠रमज़ानुल मुबारक बहुत ही खैरो बरकत का महीना है और आख़िरत की कमाई का बहुत बड़ा सीज़न है, जैसे सर्दी के ज़माने में गरम कपड़े बेचने वालों की खूब कमाई होती है, इसी तरह आख़िरत की कमाई के लिए खास खास मौके आते रहते हैं,*
*➠रमज़ानुल मुबारक नेकियों का महीना है, इसमें अजरो सवाब खूब ज़्यादा बढ़ा दिया जाता है, नफिल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और 1 फ़र्ज़ का सवाब सत्तर फ़र्ज़ों के बराबर मिलता है, जैसा कि खुतबा ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में गुज़र चुका है, इस माह में नेकियों की ऐसी हवा चलती है कि ख़ुद ब खुद तबियत नेकियों में आ जाती है, और अल्लाह का मुनादी भी नेकी करने वालों को थपकी दे दे कर आगे बढ़ाता है, ऐसी सूरत में मोमिन बंदे खूब ज़ोर शोर से नेकी करने में लग जाते हैं, जो शख्स दूसरे महीनों में दो रक़ात नमाज़ पढ़ने से जान चुराते थे वो रमज़ान में पांच वक़्त और तिलावत के पाबंद हो जाते हैं,और तरावीह भी खुशी खुशी अदा करते हैं, बहुत से शराबियों को देखा है कि इस महीने में शराब पीना छोड़ देते हैं और हराम कमाई वाले हराम कमाई से बाज़ आ जाते हैं,*
*➠फ़राइज़ का अहतमाम तो बहरहाल ज़रूरी है, निफ्ली नमाज़, ज़िक्र तिलावत ,और दीगर इबादत के तरफ भी खुसूसी तवज्जोह करना चाहिए, इस माह में कोशिश करे कि कोई मिनट भी ज़ाया न हो, ला इलाहा इल्लल्लाह और इस्तिग़फ़ार कि कसरत करें, जन्नत का सवाल और दोज़ख से महफूज़ रहने की दुआ भी कसरत से करे, शायद किसी के दिल मे ये ख़्याल गुज़रे की जब शयातीन क़ैद हो जाते हैं तो बहुत से लोग रमज़ानुल मुबारक में भी गुनाहों में मुब्तिला रहते हैं,? बात दरअसल ये है कि इंसान का नफ़्स गुनाह कराने में शैतान से कम नही है, जिन लोगो को गुनाहों की खूब आदत हो जाती है उनको गुनाहों का चस्का पड़ जाता है, शैतान के तरग़ीब के बगैर ही उनकी गाड़ी गुनाहों की पटरी पर चलती रहती है,*
*➠गुनाह तो इंसान से हो जाता है मगर गुनाह का आदि बनना और इस पर इसरार करना और रमज़ान जैसे महिने में गुनाह करना बहुत ही ज़्यादा खतरनाक है, जहां गुनाह कराने के लिए शैतान के बहकावे की ज़रूरत न पड़े वहां शरारते नफ़्स का क्या हाल होगा?*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*·┱✿ रमज़ान और तहज्जुद _*
*┱ _रमजान में तहज्जुद पढ़ना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि तहज्जुद के वक्त सहरी खाने के लिए उठते ही हैं, सहरी खाने से पहले या बाद में (जब तक सुबह सादिक न हो) जिस क़दर मुमकिन हो सके नवाफिल पढ़ लिया करें, इस तरह पूरे रमज़ान में तहज्जुद नसीब हो सकती है, फिर आदत पड़ जाए तो बाद में भी अमल जारी रह सकता है वर्ना कम अज़ कम रमज़ान में तो तहज्जुद का अहतमाम कर ही ले,*
*┱✿_ रोजा अफ्तार करना_,*
*┱_फ़रमाया ख़ातीमुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कि जिसने रोज़ा दार का रोज़ा खुलवाया या मुजाहिद को सामान दे दिया तो उसको रोज़ा दार और गाजी़ जैसा अजर् मिलेगा,*
*®_(बेहिकी फि शोबुल ईमान अन ज़ैद इब्ने खालिद रज़ि.)*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *रमज़ान और सखावत*
*➠रमज़ानुल मुबारक सखावत का महीना भी है, इसमें जिस क़दर फि सबिलिल्लाह किया जाए कम है, क्युंकी ये महीना आख़िरत की कमाई का महीना है, इसमें रोज़ा इफ्तार कराने और रोज़ा खोलने के बाद रोज़ेदार को पेट भर खाना खिलाने की भी खास फज़ीलत वारिद हुई है, और इस माह को गमख्वारी का महीना फरमाया है, जैसा कि खुतबे में गुज़र चुका, गरीबो की इमदाद व इनायत इस माह के कामो में एक अहम काम है, एक हदीस पाक में इरशाद फरमाया:-जब रमज़ान का महीना आ जाता था तो हज़रत रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हर क़ैदी को आज़ाद फर्मा देते थे,और हर साइल को अता फर्मा देते थे, *( मिशकात शरीफ)*
*➠एक हदीस पाक में इरशाद फरमाया:-हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम सब लोगों से ज़्यादा सखी थे और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सखावत रमज़ानुल मुबारक में तमाम अय्याम से ज़्यादा हो जाती थी, रमज़ान में हर रात को हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात करते थे,और आप सल्लल्लाहू उनको क़ुरआन शरीफ सुनाते थे, जब आप सल्लल्लाहू अलैहि से जिब्राइल अलैहिस्सलाम मुलाक़ात करते थे तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम उस हवा से भी ज़्यादा सखी हो जाते थे जो बारिश लाती है;-*
*( मुत्तफिक़ अलैहि )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *सेहरी खाना_*
*➠फरमाया नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कि सेहरी खाया करो,क्योंकि सेहरी में बरकत है.. ( बुखारी व मुस्लिम अन अनस रज़ियल्लाहु अन्हु)*
*➠और ये भी फरमाया की हमारे और अहले किताब के रोज़ो में सेहरी खाने का फर्क है..* *( मुस्लिम अन अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु)*
*➠और एक हदीस में हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की सेहरी खाने वालों पर ख़ुदा और उसके फरिश्ते रहमत भेजते हैं,,* *(तबरानी अन इब्ने उमर रजियल्लाहु अन्हु )*
*✿●•·_ रोज़े में भूल कर खा पी लेना_*
*➠फरमाया रहमतुल्लिल आलमीन सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कि जो शख्स रोज़े में भूल कर खा पी ले तो वो रोज़ा पूरा कर ले ,क्योंकि उसका कसूर नही उसे अल्लाह ने खिलाया और पिलाया,, ( बुखारी व मुस्लिम अन अबी हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु)*
*✿●•· __ अफ्तार में जल्दी करना_*
*➠फरमाया नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने की लोग हमेशा खैर पर रहेंगे जब तक अफ्तार में जल्दी करते रहेंगे यानी गुरूबे आफताब होते ही फौरन रोज़ा खोल लिया करे,,* *( बुखारी व मुस्लिम अन सहल रज़ियल्लाहु अन्हु)*
*➠और फरमाया रहमते कायनात सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने की अल्लाह ताला फरमाते हैं की बन्दों में मुझे सबसे ज़्यादा प्यारा वो है जो अफ्तार में सबसे ज़्यादा जल्दी करने वाला है, यानी गुरूबे आफताब होते ही फौरन अफ्तार करता है और इसमें जल्दी का खूब एहतेमाम रहता है,,,( तिरमिज़ी अन अबी हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु)*
*➠और फरमाया सय्यदुल कौनैन सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने की जब इधर से (यानी मशरिक से) रात आ गई और उधर से (यानी मग़रिब से) दिन चला गया तो रोज़ा अफ्तार करने का वक़्त हो गया (आगे इंतज़ार करना फ़िज़ूल है बल्कि मकरूह है)_," ( मुस्लिम अन अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु)*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *खजूर और पानी से अफ्तार*
*➠फरमाया रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने की जब तुम रोज़ा खोलने लगो तो खजूरों से अफ्तार करो, क्योंकि खजूर सरापा बरकत है, अगर खजूर न मिले तो पानी से रोज़ा खोल लो, क्योंकि वो (ज़ाहिर और बातिन) को पाक करने वाला है,,*
*( तिरमिज़ी अन सलमान बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु)*
*✿●•·रोज़ा जिस्म की ज़कात है*
*➠हज़रत अबू हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि फरमाया ख़ातिमुल अम्बिया सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने की हर चीज़ की ज़कात होती है और जिस्म की ज़कात रोज़ा है,,*
*( इब्ने माजा अन अबी हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु)*
*✿●•·सर्दी में रोज़ा*
*➠ हज़रत आमिर बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि फरमाया सरवरे आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने की मौसम सरमा में रोज़ा रखना मुफ्त का सवाब है, (तिर्मिज़ी) "_मुफ्त का सवाब इसीलिए फरमाया की इसमें प्यास नही लगती और दिन भी छोटा होता है,,*
*✿●•·जनाबत रोज़े के मनाफि नही_,*
*➠ फरमाया आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कि रमज़ानुल मुबारक में हुज़ूर अक़दस सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम को बा हालाते जनाबत सुबह हो जाती थी और ये जनाबत अहतलाम की नही (बल्कि बीवियों के साथ मुबाशरत करने की वजह से होती थी) फिर आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ग़ुस्ल फर्मा कर रोज़ा रखते थे,, *( बुखारी व मुस्लिम )*
*➠ मतलब ये है कि सुबह सादिक़ से पहले ग़ुस्ल नही फरमाया और रोज़े की नीयत कर ली, फिर तुलू आफताब से पहले ग़ुस्ल फर्मा कर नमाज़ पढ़ ली, इस तरह रोज़े का कुछ हिस्सा हालाते जनाबत में गुज़रा, इसीलिए कि रोज़ा बिल्कुल इब्तिदा ए सुबह सादिक़ से शुरू हो जाता है, इसी तरह अगर रोज़े में अहतलाम हो जाए तो भी रोज़ा फ़ासिद नही होता क्योंकि जनाबत रोज़ा के मनाफि नही है,*
*★_ रोज़े में मिस्वाक करना_,*
*➠फरमाया हज़रत आमिर बिन राबिया रज़ियल्लाहु अन्हु ने की मैंने रसूले खुदा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को बा हालाते रोज़ा इतनी बार मिस्वाक करते हुए देखा है कि जिसका मैं शुमार नही कर सकता,, *( तिरमिज़ी )*
*➠मिस्वाक तर हो या खुश्क रोज़े में हर वक़्त कर सकते हैं, अलबत्ता मंजन,टूथ पावडर या कोयला वगैरह से रोज़े में दांत साफ करना मकरूह है,,*
*★__रोज़े में सुरमा लगाना _*
*➠हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि एक शख्स ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ! मेरी आँख में तकलीफ है ,क्या मैं रोज़े में सुरमा लगा लू? फरमाया- लगा लो । *( तिरमिज़ी )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *रमज़ान के आखरी अशरे में इबादत का खास एहतमाम किया जाए*
*➠ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा रिवायात फरमाती हैं कि जब रमज़ान का आखरी अशरा आता था तो हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम अपने तहबन्द को मज़बूत बांध लेते थे,और रात भर इबादत करते थे और अपने घरवालों को भी इबादत के लिए जगाते थे,,*
*( मिशकात शरीफ-१८२ अज़ बुखारी व मुस्लिम )*
*➠ एक हदीस में है कि महबूब रब्बुल आलमीन सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम रमज़ान के आखरी 10 दिनों के अंदर जितनी मेहनत से इबादत करते थे इसके अलावा दूसरे अय्याम में इतनी इबादत नही करते थे,,( मुस्लिम अन आएशा रज़ि)*
*➠हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने ये जो फरमाया के रमज़ान के आखरी अशरे में अपनी तहबन्द कस लेते थे, उलमा ने इसके दो मतलब बताए हैं, एक ये कि खूब मेहनत और कोशिश से इबादत करते थे और रातों रात जागते थे, ये ऐसा ही है जैसे मुहावरे में मेहनत के काम के लिए बोला जाता है कि "खूब कमर कस लो" और दूसरा मतलब तहबन्द कस कर बांधने का ये बतलाया कि रात को बीवियों के पास लेटने से दूर रहते थे क्योंकि सारी रात इबादत में गुज़र जाती थी और एतिकाफ भी होता था, इसीलिए रमज़ान के आखरी अशरे में मियां बीवी वाले खास ताल्लुक़ का मौका नही लगता था,*
*➠ हदीस के आखरी में फरमाया की रमज़ान के आखिर अशरे में हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम खुद भी बहुत मेहनत और कोशिश से इबादत करते थे और घर वालों को भी इस मकसद के लिए जगाते थे ,बात ये है कि जिसे आख़िरत का खयाल हो, मौत के बाद के हालात का यकीन हो, अजरो सवाब के लेने का लालच हो वो क्यों न मेहनत और कोशिश से इबादत में लगेगा ,फिर जो अपने लिए पसंद करे वही अहलो अयाल के लिए भी पसंद करना चाहिए,*
*➠ हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम रातों को नमाज़ों के अंदर क़याम फरमाते थे कि क़दमो मुबारक पर वरम आ जाता था, फिर रमज़ान के अंदर ख़ुसूसन आखिर अशरे में तो और ज़्यादा इबादत बढ़ा देते थे क्योंकि ये महीना और खास कर आखिर अशरा आख़िरत की कमाई का खास मौका है, आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की कोशिश होती थी कि घर वाले भी इबादत में लगे रहे ,लिहाज़ा उनको भी जगाते थे,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· रमज़ान के आखरी अशरे में एतिकाफ_,*
*➠ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा रिवायत फरमाती हैं कि हुज़ूर अक़दस सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम रमज़ान के आखरी अशरे में एतिकाफ फरमाते थे, वफात होने तक आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का यही मामूल रहा,आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बाद आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बीवियां एतिकाफ फरमाती थी,,*
*( मिशकात शरीफ-१८३ अज़ बुखारी व मुस्लिम )*
*➠ रमज़ान उल मुबारक की हर घड़ी, हर मिनेट, हर सेकंड को गनीमत जानना चाहिए, जितना मुमकिन हो इस माह में नेक काम कर लो,और सवाब लूट लो, फिर रमज़ान में भी आखरी दस दिन की अहमियत बहुत ज़्यादा है,*
*➠रमज़ान के आखरी दस दिन (अशरा आखिरा कहलाते हैं) उनमें एतिकाफ भी किया जाता है, हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हर साल इनमें एतिकाफ फरमाते थे, और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बीवियां भी एतिकाफ करती थी, आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की बीवियों ने एतिकाफ का एहतेमाम किया ,*
*➠एतिकाफ में बहुत बड़ा फायदा है, इसमें इंसान यकसु हो कर अल्लाह से लॉ लगाए रहता है और चूंकि रमज़ान की आखरी दस रातों में कोई न कोई रात शबे क़दर भी होती है, इसीलिए एतिकाफ करने वाले को उमूमन वो भी नसीब हो जाती है, मर्द ऐसी मस्जिद में एतिकाफ करे जहां पांचों वक़्त की जमात से नमाज़ होती हो, और औरतें अपनी घर की मस्जिदों में एतिकाफ करे , अपने घर मे जो जगह नमाज़ के लिए मुक़र्रर कर रखी हो उनके लिए वही मस्जिद है, औरतें इसमें एतिकाफ करे,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·एतकाफ के चंद मसाइल _,*
*★_ रमजान की 20वीं तारीख का सूरज छुपने से पहले एतकाफ की जगह में दाखिल हो जाएं और ईद का चांद नजर आने तक एतकाफ की नियत से औरतें घर की मस्जिद में और मर्द पंज वक्ता नमाज बा जमात वाली मस्जिद में जम कर रहे इसी को इतिकाफ कहते हैं । जमकर रहने का मतलब यह है कि ईद का चांद नजर आने तक मस्जिद ही की हद में रहे , वहीं सोएं वहीं खाएं कुरान पढ़े निफले पढ़ें तस्बीहों में मशगूल रहे जहां तक मुमकिन हो रातों को जागे और इबादत करें, खासकर जिन रातों में शबे कद्र की उम्मीद हो उन रातों में शब्बेदारी का एहतमाम करें ।*
*★_मसला :- एतकाफ में मियां बीवी के खास तालुकात वाले काम जायज़ नहीं है, ना रात में ना दिन में और पैशाब पाखाने के लिए एतकाफ की जगह से निकलना दुरुस्त है।*
*★_ मसला :- यह जो मशहूर है कि जो एतकाफ में हो वह किसी से ना बोले चाले ,यह गलत है बल्कि एतकाफ में बोलना चालना अच्छी बातें करना किसी को नेक बात बता देना और बुराई से रोक देना, बाल बच्चों और नौकरों व नौकरानियों को घर का कामकाज बता देना सब दुरुस्त है और औरत के लिए इसमें आसानी भी है कि अपने घर की मस्जिद में एतकाफ की नियत से बैठे रहे और वहीं से बैठे-बैठे घर का कामकाज भी बताती रहे ।*
*★_ मसला :- अगर एतकाफ में औरत को माहवारी शुरू हो जाए तो उसका एतकाफ वहीं खत्म हो गया, रमजान के आखिरी अशरे के एतकाफ में अगर ऐसा हो जाए तो ( अपने इलाक़े के किसी आलिम से मसाइल मालूम करके ) कजा़ कर लें ।*
*★_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इरशाद है कि एतकाफ मोतकिफ को गुनाहों से रोकता है और उसके लिए उन सब नेकियों का सवाब( भी )जारी रहता है (जिन्हें एतकाफ की वजह से नहीं कर सकता )*
*®_( मिशकातुल मसाबह )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *अगर रोज़ेदार के पास कोई खाने लगे तो रोज़ेदार के लिए फरिश्ते दुआ करते हैं*
*➠हज़रत उम्मे अम्मारा बिन्त काब रज़ियल्लाहु अन्हा से बयान फरमाया की आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मेरे पास तशरीफ़ लाए, मैंने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के लिए खाना मंगाया ,आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की तुम भी खाओ,*
*मैंने अर्ज़ किया ,मैं रोज़े से हूं ये सुनकर आप सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया -बिला शुभा जब रोज़ेदार के पास खाया जाए तो उसके लिए फरिश्ते मगफिरत की दुआ करते हैं जब तक कि खाने वाले फारिग हो,*
*( मिशकातुल मसाबह- १८१)*
*➠ रोज़ा सब्र का नाम है,इंसान जब रोज़े की नीयत कर लेता है तो ये तय कर लेता है कि सूरज छिपने तक कोई चीज़ नही खाऊंगा ,फिर जब रोज़ेदार के सामने कोई शख्स खाने लगे तो रोज़ेदार को सब्र की मज़ीद फज़ीलत बढ़ जाती है क्योंकि दूसरे को खाता देख कर जो नफ़्स में खुसूसी तक़ाज़ा पैदा होता है उसको दबाता है और रोज़ा पूरा किये बगैर कुछ नही खाता पिता है,इसके इस खुसूसी सब्र की वजह से ये खुसूसी फज़ीलत दी गई है कि खाने वाला जब तक उसके पास खाता रहता है उसके लिए फरिश्ते बख्शीश की दुआ करते रहते हैं,,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· किन लोगों को रोज़ा रमज़ान छोड़ कर बाद में रखने की इजाज़त है*
*➠ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है की रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह ताला ने मुसाफिर के लिए नमाज़ का एक हिस्सा माफ फर्मा दिया है और रमज़ान के रोज़े न रखने की भी मुसाफिर को इजाज़त दी है, और इसी तरह दूध पिलाने वाली औरत और हमल वाली औरत को इजाज़त है कि रोज़ा न रखे (और बाद में क़ज़ा कर ले) _," ( मिशकात शरीफ -१/१७८)*
*✿●•·मरीज़ का हुक्म*
*➠ रमज़ान का एक रोज़ा छोड़ देना भी बहुत बड़ा गुनाह है, और जो फ़र्ज़ रोज़ा छोड़ने का मुरतकिब हो वो फ़ासिक़ है, अलबत्ता ऐसा शख्स जो मरीज़ हो कि रोज़ा रखने से उसकी जान पर बन आने का कवि अंदेशा हो या सख्त मर्ज में मुब्तिला हो और रोज़े की वजह से मर्ज के तूल पकड़ जाने का गालिब गुमान हो उसके लिए जाइज़ है कि रमज़ान के रोज़े रमज़ान में न रखे और जब अच्छा हो जाए क़ज़ा रख ले,*
*➠ ये कोई ऐसा मसला नही है जिसको आम तौर पर लोग नही जानते हो, लेकिन इसमें बहुत सी गलतियां होती हैं,*
*1_अव्वल ये कि मामूली मामूली मर्ज में रोज़ा छोड़ देते हैं,*
*2-दोम ये कि फ़ासिक़ और बेदीन डॉक्टरों को रोज़े की ना कीमत मालूम है न शरई मसले की सही सूरत का इल्म है, ऐसे लोगों के क़ौल का कोई ऐतबार नही है, इसीलिए मरीज़ को किसी ऐसे डॉक्टर से मशवरा लेना चाहिए जो मुसलमान हो और ख़ौफ़े खुदा रखता हो और जो शरीयत के मसले से वाकिफ हो,*
*3-सोम ये कोताही आम है कि बीमारी की वजह से रोज़ा छोड़ देते हैं और फिर रखते ही नही और बहुत बड़ी गुनहगारी का बोझ ले कर क़ब्र में चले जाते हैं, (अल्लाह हिफाज़त करे)*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· मुसाफिर का हुक्म*
*➠ मुसाफिर जो मुसाफते कसर के इरादे से अपने शहर या बस्ती से निकला जब तक सफर में रहेगा मर्द हो या औरत चार रक़ातों वाली नमाज़ों की जगह दो रक़ात फ़र्ज़ पढ़ेगा,हाँ अगर किसी इमाम के पीछे (जो मुसाफिर न हो) जमात में शरीक हो जाए तो पूरी नामाज़ पढ़नी होगी,मुसाफते कसर 48 मील (77.24 किलोमीटर्स) है, इतनी दूर का इरादा कर के निकलने वाला शरई मुसाफिर है,शरीयत ने नमाज़े कसर की बुनियाद मुसाफते कसर पर रखी है अगरचे तकलीफ न हो तब भी 48 मील का मुसाफिर 4 रक़ात वाले फ़र्ज़ की जगह 2 रक्कत पढ़ेगा,अगर 4 रक़ात पढ़ ली तो बुरा किया,*
*➠मसला -जिस मुसाफिर के लिए 4 रक़ात वाली फ़र्ज़ नामाज़ की जगह 2 रक़ात पढ़ना ज़रूरी है उसके लिए भी जाइज़ है कि रमज़ान मुबारक के मौके पर सफर में हो तो रोज़ा न रखे और बाद में घर मे आ के छोड़े हुए रोज़ो की क़ज़ा कर ले,चाहे हवाई जहाज़ या मोटर या पैदल सफर किया हो और चाहे कोई तकलीफ महसूस न होती हो,अगर किसी जगह 15 दिन ठहरने की नीयत कर लेगा तो मुसाफिर न होगा,*
*➠ये बात क़ाबिले ज़िक्र है की बहुत से लोग जिस तरह मर्ज की हालत में रोज़े छूट जाने पर बाद में क़ज़ा नही रखते उसी तरह लोग सफर में रोज़ा छोड़ कर बाद में घर आ कर क़ज़ा नही रखते और गुनाहगार मरते हैं,अगर ज़्यादा तकलीफ न हो तो मुसाफिर को रमज़ान ही में रोज़ा रख लेना ज़्यादा बेहतर और अफ़ज़ल है,वजह इसकी ये है कि अव्वल तो रमज़ान की बरकत और नूरानीयत से महरूमी न होगी, दूसरे सब मुसलमानों के साथ मिल कर रोज़ा रखने में आसानी भी होगी और बाद में तन्हा रोज़ा रखना मुश्किल होगा,*
*➠मसला -48 मील से कम सफर में रोज़ा छोड़ देना दुरुस्त नही,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· दूध पिलाने वाली औरत और हामला का हुक्म*
*➠ जिस तरह मरीज़ और मुसाफिर को रमज़ान में रोज़ा छोड़ने की इजाज़त है (जिसकी शर्तें पहले गुज़र चुकी) उसी तरह दूध पिलाने वाली पर भी जाइज़ है कि रमज़ान में रोज़ा न रखे और बाद में क़ज़ा कर ले ,बशर्ते कि रोज़ा रखने से बच्चे को दूध न मिलने की वजह से ग़िज़ा से महरूमी होती हो,*
*➠ अगर बच्चा मां के दूध के अलावा दूसरी चीज के ज़रिए गुज़ारा कर सकता हो तो मसलन ऊपर का दूध पीने से या दलिया चावल वगैरह खाने से बच्चे की ग़िज़ा का काम चल सकता है तो दूध पिलाने वाली औरत को रोज़ा छोड़ना हराम है,और ये मसला भी बच्चे की उम्र दो साल होने तक है, जब बच्चे की उम्र दो साल हो जाए तो उसको औरत का दूध पिलाना ही मना है,इसमें रोज़ा छोड़ने का सवाल ही पैदा नही होता,*
*➠मसला,, दूध पिलाने वाली को शर्ते मज़कूरा के साथ रमज़ान का रोज़ा न रखना इस सूरत में जाइज़ है जबकि बच्चे का बाप दूसरी औरत को मुआवजा दे कर दूध पिलाने से आजिज़ हो या वो बच्चा मां के अलावा किसी दूसरी औरत का दूध लेता ही न हो,,*
*➠हामला,, -जो औरत हमल से हो उसको भी रमज़ानुल मुबारक में रोज़ा छोड़ने की इजाज़त है,फारिग होने के बाद छोड़े हुए रोज़े रख ले ,मगर शर्त वही है कि रोज़ा रखने से बहुत ज़्यादा तकलीफ में पड़ने या अपने बच्चे की जान का अंदेशा हो,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *फिदिया देने का हुक्म*
*➠ वो औरत या मर्द जो मुस्तक़िल ऐसा मरीज़ हो कि रोज़ा रखने से जान पर बन आने का शदीद खतरा हो और ज़िंदगी मे अच्छे होने की उम्मीद ही न हो,,*
*➠ या वो मर्द या औरत जो बहुत ज़्यादा बूढ़े हो रोज़ा रख ही नही सकते और रोज़े पर क़ादिर होने की कोई उम्मीद नही ये लोग रोज़े के बजाए फिदिया दे लेकिन बाद में कभी रोज़ा रखने के काबिल हो गए तो गुज़िश्ता रोज़ो की क़ज़ा करनी होगी और आइंदा रोज़े रखने होंगे और जो फिदिया दिया है सदक़ा में शुमार होगा,*
*➠मसला:- हर रोज़े का फिदिया ये है कि एक सेर साढ़े बारह छटांक गेंहू या उसकी कीमत किसी मिस्कीन को दे दे या फि रोज़ा एक मिस्कीन को सुबह शाम पेट भर कर खाना खिला दें,,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•· हैज़ वाली औरत बाद में रोज़े की क़ज़ा करे*
*➠ हज़रत माज़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मैंने हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से सवाल किया कि ये क्या बात है कि (रमज़ान के महीने में) किसी औरत को हैज़ आ जाए तो उन दिनों के रोज़ो की क़ज़ा रखती हैं और उमूमन हर महीने हैज़ आता रहता है, रमज़ान हो या गैर रमज़ान उन दिनों की नमाज़ों की क़ज़ा नही पढ़ती (ये नमाज़ और रोज़े में फर्क क्यों है?)*
*ये सुन कर हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया- क्या तू नेचरी हो गई है? (जो अहकामे शरीयत में टांग अड़ाती है)*
*मैंने कहा- मैं नेचरी नही हूँ, सिर्फ मालूम कर रही हुं । इस पर हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया कि हम इतनी बात जानते हैं कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मौजूदगी में हमको हैज़ आता था तो नमाज़ों की क़ज़ा का हुक्म नही दिया जाता था पर रोज़ों की क़ज़ा का हुक्म होता था ।*
*( मुस्लिम शरीफ-१/१५३ )*
*➠ हज़रत माज़ा रज़ियल्लाहु अन्हा एक ताबाई औरत थी, बड़ी आलिमा फ़ाज़िला थी, हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा की खुसूसी शागिर्दी का शरफ़ हासिल था, उन्होंने हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से मज़कूरा बाला सवाल किया तो फरमाया की क्या तू दीन में अपनी अक्ल का दखल दे रही है? ये तो उन लोगों का तरीका है जो हरूरा बस्ती में रहते हैं(हरूरा एक गांव था ,ये लोग दीन और शरीयत को अपनी अक्ल के मैयार से जांचने की कोशिश करते थे और अपनी समझ के तराजू में तौलते थे)*
*➠बहुत से लोग दीन को अपनी अक्ल की कसौटी पर परखना चाहते हैं और समझ मे नही आता तो मुनकिर होते हैं या ऐतराज़ करते हैं,ऐसे लोग हमारे असलाफ़ के ज़बान में नेचरी कहलाते हैं क्योंकि अपने नेचर की नेचरिपन में लगने की नापाक कोशिश करते हैं, दर हक़ीक़त ये बहुत बड़ा रोग है जो दिल मे हक़ीक़ी ईमान रासिख नही होने देता,,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·नफ्ली रोज़ों का सवाब और शौहर के इजाज़त के बगैर नफ्ली रोज़े न रखें*
*➠ हज़रत अबू हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया की औरत के लिए ये हलाल नही है कि नफ्ली रोज़े रखे जबकि उसका शौहर घर पर हो, हाँ उसकी इजाज़त से रख सकती है और औरत के लिए जाइज़ नही है कि किसी को घर मे आने की इजाज़त दे, हाँ अगर शौहर किसी को इजाज़त दे तो औरत इजाज़त दे सकती है (क्योंकि मुसलमान शौहर जिसके आने की इजाज़त देगा वो औरत का महरम होगा)*
*( मिशकात शरीफ - १७८)*
*➠ दीने इस्लाम कामिल और मुकम्मल दीन है, उसमे दोनों तरह के हुक़ूक़ यानी हुक़ूक़ुल्लाह और हुकुकुल इबाद की रिआयत की गई है, जिस तरह हुक़ूक़ुल्लाह की अदायगी इबादत है उसी तरह हुकुकुल इबाद को अदा करना भी इबादत है,*
*➠ हदीस पाक में हुकुकुल इबाद की निगहदाश्त करने की हिदायत फरमाई है,शौहर और बीवी के एक दूसरे पर हुक़ूक़ हैं,और आपस मे एक ऐसा ताल्लुक़ है जो रोज़े में नही होता,अगर कोई औरत रोज़े पर रोज़े रखती चली जाए और शौहर के खास ताल्लुक़ का खयाल न रखे तो गुनाहगार होगी,शौहर को खुश रखना और उसके हुक़ूक़ का ध्यान रखना भी इबादत है,*
*➠ औरतों के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तंबीह फरमाई कि किसी औरत के लिए ये हलाल नही है कि शौहर घर पर मौजूद हो तो उसकी इजाज़त के बगैर नफ्ली रोज़े रखे, शौहर अगर इजाज़त दे तो नफ्ली रोज़े रखे अलबत्ता रोज़ाना रोज़ा रखना फिर भी मना है,*
*➠तंबीह- फ़र्ज़ नमाज़ और फ़र्ज़ रोज़े की अदायगी में शौहर की इजाज़त की हरगिज़ ज़रूरत नही है, वो इजाज़त न दे तो तब भी उनकी अदायगी फ़र्ज़ है अगर इससे रोकेगा तो सख्त गुनाहगार होगा, इसी तरह रमज़ान के जो रोज़े माहवारी की वजह से रह गए तो उनकी क़ज़ा रखना भी फ़र्ज़ है, अगर शौहर रोके तब भी क़ज़ा रख ले,अगर वो रोकेगा तो सख्त गुनाहगार होगा,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·रोज़ाना नफ्ली रोज़ा रखने की मुमानत*
*➠रहमतुल आलमीन सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की जिसने रोज़ाना (नफ्ली) रोज़ा रखा उसने न रोज़ा रखा न बे रोज़ा रहा, ( मुस्लिम शरीफ)*
*➠ मतलब ये है कि रोज़ाना रोज़ा रखने से नफ़्स को आदत हो जाती है,आदत हो जाने से मशक्कत नही होती,जब मशक्कत नही हुई तो रोज़ा का मक़सद खत्म हो गया,अब यूं कहा जाएगा कि खाने पीने के अवका़त बदल दिए,इस सूरत में इबादत की शान बाकी न रही, अगर किसी से हो सके तो एक दिन रोज़ा रखे और एक दिन बे रोज़ा रहे,ये बहुत फ़ज़ीलत की बात है लेकिन शर्त वही है कि शौहर की इजाज़त हो और इस क़दर बे ताक़त न हो जाए कि दूसरी इबादत और अदाएगी ए हुक़ूक़ में फर्क आ जाए,*
*➠हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर् बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु बड़े दर्जे के सहाबी थे,ये रोज़ाना रोज़ा रखते थे और रातों रात निफ़्ल पढ़ते थे, सरवरे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को मालूम हुआ तो आप सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की ऐसा न करो बल्कि रोज़ा भी रखो और बेरोज़ा भी रहो, रातों में नफ्ली नमाज़ में भी खड़े रहा करो और सोया भी करो क्योंकि तुम्हारे जिस्म का भी तुम पर हक़ है और तुम्हारी आंख का भी तुम पर हक़ है और तुम्हारी बीवी का भी तुम पर हक़ है और जो लोग तुमहारे पास आए उनका भी तुम पर हक़ है, ( बुखारी व मुस्लिम )*
*➠इससे मालूम हुआ कि इबादत का कमाल ये है कि अपने बदन और आजाए जिस्म और बीवी बच्चों और मेहमानों के हुक़ूक़ की निगाहदाश्त करते हुए निफ़्ल इबादत की जाए ,खुलासा ये है कि शरीअत की हुदूद में नफ़्स व शैतान के फरेब से बचते हुए निफ़्ल नमाज़ें पढ़ो और निफ़्ल रोज़े रखो ,तिलावत भी करो,ज़िक्र भी करो,और किसी मख़लूक़ का हक़ वाजिब भी ज़ाया न होने दो,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *निफ़ल रोज़े रख कर तोड़ देने से उसकी क़ज़ा लाज़िम होती है*
*➠हज़रत इब्ने शिहाब ज़हरी (ताबई) ने बयान फरमाया की एक मर्तबा हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की दो बीवियों यानी हज़रत आएशा और हज़रत हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने निफ़ल रोज़ा रख लिया और सुबह हो गई, उसके बाद उनकी खिदमत में बतौर हदिया खाना पेश कर दिया गया, जिसे उन्होंने खा लिया और रोज़ा तोड़ दिया, इसके बाद हुज़ूर सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए,*
*➠ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि हम दोनों ने हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से मसला मालूम करने का इरादा किया और हफ़सा बात करने में मुझसे आगे बढ़ गई और वो अपने बाप की बेटी थी (हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी थी) और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मैंने और आएशा ने नफ्ली रोज़ा रख लिया था और इस हाल में सुबह हुई कि हम दोनों रोज़ेदार थी, हमारे लिए खाने का हदिया पेशकिया गया, हमने वो खा लिया और रोज़ा तोड़ दिया (तो अब हम क्या करें) इसके जवाब में आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया की इस रोज़े की जगह एक रोज़ा रख लेना,,*
*( मौता इमाम मालिक रह.-९५)*
*➠नफ्ली नमाज़ हो या नफ्ली रोज़ा हो उसकी अदाएगी बंदे के जिम्मे लाज़िम नही हुई, अगर कोई शख़्स नफ्ली नमाज़ शुरू कर दे और तोड़ दे या नफ्ली रोज़ा रखकर आफताब गुरूब से पहले जान बूझ कर कुछ खा पी ले या ऐसा कोई अमल कर ले जिससे रोज़ा टूट जाता है तो फिर उस नमाज़ और उस रोज़े की क़ज़ा लाज़िम हो जाती है और वजह इसकी ये है कि जब तक नफ्ली नमाज़ या नफ्ली रोज़ा शुरू नही किया था उस वक़्त तक वो नफ्ली था और जब शुरू कर दिया तो इसका पूरा करना वाजिब हो गया,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *निफ्ली नमाज़ व नफ्ली रोज़ों की क़ज़ा के मसाइल*
*➠मसला -1 _नफ्ली नमाज़ की हर 2 रकअत अलाहिदा नमाज़ शुमार होती है, अगर चार रका'त की नीयत बांध कर नमाज़ शुरू की तो जब तक तीसरी रका'त शुरू न कर दे 2 ही रका'त का पूरा करना वाजिब होगा, लिहाज़ा अगर किसी ने चार रका'त निफ्ल की नीयत की फिर 2 रका'त पढ़ कर सलाम फेर दिया तो कोई गुनाह नही,*
*➠मसला-2_अगर किसी ने चार रका'त निफ्ल की नीयत बांधी और अभी 2 रकातें पूरी न हुई थी कि नमाज़ तोड़ दी तो सिर्फ 2 रका'त की क़ज़ा पढ़े,*
*➠मसला-3_अगर चार रका'त की नीयत बांधी और दो रकात पढ़ ली ,फिर तीसरी या चौथी रकात में नमाज़ तोड़ दी तो अगर दूसरी रकात पर बैठ कर अतहिय्यात वगैरह पढी है तो सिर्फ दो रक़ात की क़ज़ा पढ़े,*
*और अगर दूसरी रक़ात में नही बैठी और बगैर अतहिय्यात पढ़े भूले से खड़ी हो गई या जान बूझ कर खड़ी हो गई तो पूरी चार रक़ातों की क़ज़ा पढ़े,*
*➠मसला-4 _ज़ुहर की 4 रकात सुन्नत की नियत अगर टूट जाए तो पूरी चार रकात फिर से पढ़े चाहे दो रकात पर बैठ कर अतहिय्यात पढ़ी हो या न पढ़ी हो,*
*➠मसला-5 _अगर किसी औरत ने निफ़्ल नमाज़ शुरू की फिर उसको नमाज़ के अंदर माज़ूरी शुरू हो गई जो औरत को हर महीने पेश आती है तो नमाज़ छोड़ कर उस नमाज़ की क़ज़ा पढ़े, इसी तरह अगर किसी औरत ने निफ़्ल रोज़ा रख लिया और कुछ वक्त गुज़र जाने के बाद हर महीने वाली माज़ूरी पेश आ गई तो रोज़ा खत्म हो गया, पाक होने के बाद उसकी क़ज़ा करे,*
*➠मसला-6_निफ़्ल नमाज़ या रोज़ा शुरू कर के खुद तोड़ देना जाइज़ नही है, अगरचे इस नियत से हो कि बाद में क़ज़ा कर लेंगे, हाँ अगर किसी के यहां कोई मेहमान आ गया और वो अड़ जाए कि जब तक साहिबे खाना साथ नही खाएगा तो उसकी दिलदारी के लिए (निफ़्ल) रोज़ा तोड़ देना जाइज़ है लेकिन बाद में उसकी क़ज़ा रखना लाज़िम है,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·पीर और जुमेरात और चांद की 13-14-15 तारीख के रोज़े*
*➠रमज़ानुल मुबारक के रोज़ो के अलावा दूसरे महीनों में भी रोज़े रखना चाहिए ,रोज़ा बहुत बड़ी इबादत है,और इसका बहुत बड़ा सवाब है, ईद के महीने के 6 रोज़े, पीर जुमेरात को नफ्ली रोज़े रखने की भी बड़ी फ़ज़ीलत आई है,*
*➠ हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि पीर और जुमेरात को बारगाहे खुदावन्दी में आमाल पेश किए जाते हैं, लिहाज़ा मैं चाहता हूं कि मेरा अमल इस हाल में पेश किया जाए कि मैं रोज़े से हूँ,,* *( तिरमिज़ी शरीफ )*
*➠चांद की 13-14-15 तारीख को रोज़े रखने की भी बड़ी फ़ाज़िलत वारिद हुई है,आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इन दिनों में रोज़े रखने की तरग़ीब दी है,*
*✿●•·बकरा ईद की नवी तारीख का रोज़ा*
*➠हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैं अल्लाह से पुख्ता उम्मीद रखता हूं कि बकरा ईद की नोवी तारीख का रोज़ा रखने की वजह से अल्लाह ताला एक साल पहले और एक साल बाद के गुनाहों का कफ़्फ़ारा फरमा देंगे,,*
*✿●•·आशूरा का रोज़ा*
*➠और यौमे आशूरा (यानी मुहर्रम की 10 तारीख) के बारे में अल्लाह से पुख्ता उम्मीद रखता हूं कि इसके रखने की वजह से एक साल पहले के गुनाहों का कफ़्फ़ारा फरमा देंगे,* *( मिशकात )*
*➠इन रोज़ो के अलावा और जिस क़दर निफ़्ल रोज़े कोई शख्स मर्द हो या औरत रख लेगा उसके हक़ में अच्छा होगा, क़यामत के दिन नवाफिल के ज़रिए फ़राइज़ की कमी पूरी की जाएगी,इसीलिए इस इबादत से गाफिल न हों लेकिन दो बातें याद रखनी चाहिए अव्वल ये कि इस इबादत की वजह से किसी की हक़ तलफ़ी न हो मसलन बीवी बच्चों का ख्याल न रहे, कमज़ोरी की वजह से कमा न सके वगैरह,या दूसरे हुक़ूक़ में कोताही होने लगे मसलन कोई औरत रोज़े रखने की वजह से शौहर और बच्चों के हुक़ूक़ ज़ाया न करे,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *_शबे क़दर की फ़ज़ीलत*
*➠रमज़ानुल मुबारक का पूरा महीना आख़िरत की दौलत कमाने का है फिर इस माह में आखरी अशरा और भी ज़्यादा मेहनत और कोशिश से इबादत करने का है,इस अशरे में शबे क़दर होती है जो बड़ी बा बरकत रात है,*
*➠अल्लाह ताला का इरशाद है-शबे क़दर हज़ार महीनों से बेहतर है,,*
*➠हज़ार महीने के 83 साल और 4 महीने होते हैं,फिर शबे क़दर को हज़ार महीने के बराबर नही बताया बल्कि हज़ार महीने से बेहतर बताया,मोमिन बंदे के लिए शबे क़दर बहुत ही खैरो बरकत की चीज़ है,एक रात जाग कर इबादत कर ले और हज़ार महीनों से ज़्यादा इबादत का सवाब पा ले,इससे बढ़कर और क्या चाहिए? इसीलिए तो हदीस शरीफ में फरमाया-*
*"_जो शख्स शबे क़दर से महरूम हो गया(गोया)पूरी भलाई से महरूम हो गया,और शबे क़दर की भलाई से वही महरूम होता है जो कामिल महरूम हो,,* *( तिरमिज़ी )*
*➠ मतलब ये है कि चंद घंटे की रात होती है और इसमें इबादत कर लेने से हज़ार महीने से ज़ायद इबादत का सवाब मिलता है,चंद घंटे नफ़्स को समझा बुझा के इबादत कर लेना कोई ऐसी तकलीफ नही जो बर्दाश्त से बाहर हो,तकलीफ ज़रा सी और सवाब बहुत बड़ा,*
*➠पहली उम्मतों की उम्र ज़्यादा होती थी,इस उम्मत की उम्र बहुत से बहुत 70-80साल होती है,अल्लाह ताला ने ये एहसान फरमाया की हमे शबे क़दर अता फर्मा दी और एक शबे क़दर की इबादत का दर्जा हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा कर दिया,मेहनत कम हुई और वक़्त भी कम लगा,और बड़ी बड़ी उम्र वाली उम्मतों से आगे बढ़ गए,अल्लाह ताला का फ़ज़ल और इनाम है कि इस उम्मत को सबसे ज़्यादा नवाज़ा ,अब ये कैसी नादानी होगी कि अल्लाह की नवाजिश हो और हम गफलत में पड़े सोते रहे,रमज़ान का कोई लम्हा जाया न होने दो,ख़ुसूसन आखरी अशरे में इबादत का खास एहतेमाम करो,और उसमें भी शबे क़दर में जागने की बहुत ज़्यादा फ़िकर करो,बच्चों को भी तरग़ीब दो,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *शबे क़द्र और उसकी दुआ*
*➠हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि मैंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ! इरशाद फरमाइए की अगर मुझे पता चल जाए कि फला रात को शबे क़द्र है तो मैं क्या दुआ करूँ?*
*आप सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की ये दुआ करो--*
*अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वु तुहीब्बुल अफवा फ'अफु अन्नी*
*( मिशकात शरीफ -१८२, अज अहमद व तिर्मीजी )*
*(ऐ अल्लाह! आप बहुत माफ फरमाने वाले है इसीलिए मुझे बख्श दीजिए)*
*➠ देखिए कैसी दुआ इरशाद फरमाई ,न ज़र मांगने को बताया न ज़मीन ,न धन न दौलत,क्या मांगा जाए? माफी!बात असल ये है कि आख़िरत का मामला सबसे ज़्यादा मुश्किल है,वहां अल्लाह के माफ फरमाने से काम चलेगा, अगर माफी न हुई और खुदा ने ख़्वास्ता अज़ाब में गिरफ्तार हुए तो दुनिया की हर नियामत और लज़्ज़त और दौलत व सरवत बेकार होगी ,असल चीज़ मगफिरत है,*
*➠एक हदीस में इरशाद फरमाया- जो शख्स लयतुल क़दर में ईमान के साथ और सवाब की नीयत से (इबादत के लिए)खड़ा रहा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाएंगे,, ( बुखारी व मुस्लिम )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *शबे क़दर की तारीखें*
*➠ शबे क़दर के बारे में हदीसों में वारिद हुआ है कि रमज़ान के आखरी अशरे की ताक रातों में तलाश करो,लिहाज़ा रमज़ान की 21-23-25-27-29 वी रात को जागने और इबादत करने का खास एहतेमाम करें, ख़ुसूसन 27वी शब को तो ज़रूर जागे, क्योंकि इस दिन शबे क़द्र होनेकी ज़्यादा उम्मीद होती है,*
*➠हज़रत उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम एक दिन इसीलिए बाहर तशरीफ़ लाए की हमे शबे क़द्र की इत्तेला फर्मा दें, मगर दो मुसलमानों में झगड़ा हो रहा था,आप हज़रत सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया की मैं इसीलिए आया था कि तुम्हे शबे क़द्र की इत्तेला दूं, मगर फला फला शख्सों में झगड़ा हो रहा था जिसकी वजह से इसकी तैयन मेरे ज़हन से उठा ली गई, क्या बयद है कि ये उठा लेना अल्लाह के इल्म में बेहतर हो,, ( बुखारी )*
*➠इस मुबारक हदीस से मालूम हुआ कि आपस का झगड़ा इस क़दर बुरा अमल है की इसकी वजह से अल्लाह ताला ने नबी करीम सल्लअल्लाहू अलैहि वसल्लम के क़ल्बमुबारक से शबे क़दर की तैयन उठा ली ,यानी किस रात को शबे क़दर है मख़सूस कर के इसका इल्म जो दे दिया गया था,वो क़ल्ब से उठा लिया गया, अगरचे बाज़ वजहों से इसमेंभी उम्मत का फायदा हो गया, जैसा कि इन शाल्लाह हम भी ज़िक्र करेंगे लेकिन सबब आपस का झगड़ा बन गया जिससे आपस मे झगड़े की मज़म्मत का पता चला,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *ईद के महीने में 6 रोजे रखने की फज़ीलत*
*➠हजरत अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की जिसने रमज़ान के रोज़े रखे और उसके बाद 6 निफ्ली रोज़े शव्वाल (यानी ईद) के महीने में रख ले तो (पूरे साल के रोज़े रखने का सवाब होगा, अगर हमेशा ऐसा ही करेगा तो ) गोया उसने सारी उम्र रोज़े रखे, (मुस्लिम, मिशकात शरीफ- १७९)*
*➠इस मुबारक हदीस में रमज़ानुल मुबारक गुज़रने के बाद माहे शव्वाल में 6 निफ्ली रोज़े रखने की तरग़ीब दी गई और इसका अज़ीम सवाब बताया गया है, सवाब देने के बारे में अल्लाह ताला ने ये मेहरबानी फरमाई है की हर अमल का सवाब कम अज़ कम दस गुना मुक़र्रर फरमाया है, जब किसी ने रमज़ान के 30 रोज़े रखे और फिर 6 रोज़े (ईद के दिन के बाद) और रख ले तो ये 36 रोज़े हो गए, 36×10=360 हो जाते हैं, चांद के हिसाब से एक साल 360 दिन का होता है, लिहाज़ा 36 रोज़े रखने पर अल्लाह ताला के नज़दीक 360 रोज़े शुमार होंगे और इसी तरह पूरे साल भर रोज़े रखने का सवाब मिलेगा, अगर हर साल कोई ऐसा ही कर लिया करे तो सवाब के ऐतेबार से सारी उम्र रोज़े रखने वाला माना जाएगा,*
*➠अगर रमज़ान के रोज़े चांद की वजह से 29 ही रह जाए तब भी 30 ही शुमार होंगे क्योंकि हर मुसलमान की नीयत होती है कि चांद नज़र न आए तो 30वा रोज़ा भी रखेगा, हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने सिर्फ रमज़ान और 6 शव्वाल के रोज़े रखने पर इस सवाब की खुश खबरी सुनाई है,,*
*➠बाज़ औरतें समझती हैं कि ये सवाब उसी वक़्त मिलेगा जबकि ईद के बाद दुसरे दिन कम अज़ कम एक रोज़ा ज़रूर रख ले ये गलत है, अगर दूसरी तारीख से रोज़े शुरू न किये और पूरे माह शव्वाल में 6 रोज़े रख लिए तब भी ये सवाब मिल जाएगा,*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *माहे शाबान के रोज़े*
*➠ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायात है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मुसलसल (नफ्ली) रोज़े रखते चले जाते थे यहां तक कि हमे खयाल होने लगता था कि अब आप बे रोज़ा नही रहेंगे और जब रोज़ा रखना छोड़ते तो इतने दिन छोड़ते चले जाते थे की हमे खयाल गुज़रने लगता था कि अब आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम निफली रोज़े नही रखेंगे,*
*और फरमाती हैं कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने किसी महीने के पूरे रोज़े रखे हो सिवाए रमज़ान के महीने के ,और मैंने हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को नही देखा कि शाबान के महीने से ज़्यादा किसी दूसरे महीने में रोज़े रखे हो,*
*➠और एक रिवायात में है कि आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम चंद अय्याम के अलावा पूरे शाबान के रोज़े रखते थे,,*
*( मिशकातुल मसाबह-१७८)*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
✿●•· *आखरी रात में बख्शीश*
*➠जिस दिन सुबह को ईद या बकरा ईद हो उस रात को भी ज़िक्र इबादत और नफ्ली नमाज़ से जिंदा रखने की फज़ीलत आयी है, हदीस शरीफ में है कि जिसने दोनों ईदों की रातों को इबादत के ज़रिए ज़िंदा किया, उस दिन उसका दिल मुर्दा न होगा जिस दिन दिल मुर्दा होंगे (यानी क़यामत के दिन) ( तरगीब व तरहीब )*
*➠ हज़रत अबु हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि रमज़ान की आखरी रात में उम्मते मुहम्मदिया सल्लल्लाहू अलैहि की मगफिरत कर दी जाती है, अर्ज़ किया गया -या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम !क्या इससे शबे क़दर मुराद है?*
*फरमाया नही! (ये फज़ीलत आखरी रात की है,शबे क़दर की फज़ीलत इसके अलावा है) बात ये है कि अमल करने वाला का अजर उस वक़्त पूरा दे दिया जाता है, जब काम पूरा कर दिया जाता है, लिहाज़ा बख्शीश हो जाती है, ( मिशकात )*
⊙———⊙———⊙———⊙———⊙
*✿●•·ईद का दिन _,*
*➠हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि:-*
*जब शबे क़दर् होती है तो जिब्राइल अलैहिस्सलाम फरिश्तों की एक जमात के साथ नाज़िल होते हैं जो हर उस बंदे के लिए खुदा ताला से रहमत की दुआ करते हैं जो खड़े बैठे अल्लाह का ज़िक्र कर रहा हो, फिर जब ईद का दिन होता है तो अल्लाह ताला फरिश्तों के सामने फख्र से फरमाते हैं (कि देखो इन लोगों ने एक माह के रोज़े रखे और हुक्म माना )और फरमाते हैं कि -ऐ मेरे फरिश्तों! बताओ उस मज़दूर की क्या जज़ा है जिसने अमल पूरा कर दिया हो? वो अर्ज़ करते है कि ऐ हमारे रब उसकी जज़ा ये है कि उसका बदला पूरा पूरा दे दिया जाए,*
*अल्लाह ताला फरमाते हैं कि -ऐ मेरे फरिश्तों!मेरे बंदों और मेरे बंदियों ने मेरा फ़रीज़ा पूरा कर दिया जो उन पर लाज़िम था अब दुआ में गिड़गिड़ाने के लिए निकले हैं, क़सम है मेरे इज़्ज़त व जलाल और करम की मैं ज़रूर उनकी दुआ क़ुबूल करूंगा,*
*फिर बन्दों को इरशादे बारी ताला होता है कि मैंने तुमको बख्श दिया और तुम्हारी बुराइयों को नेकियों से बदल दिया, लिहाज़ा इसके बाद (ईदगाह से) बख्शे बख्शाए वापस होते हैं, ( बहीकी़ फि शोबुल ईमान )*
*➠ईद के दिन रोज़ा रखना हराम है, आज के दिन रोज़ा ना रखना इबादत है,*
*➠ सदकातुल फितर__ईद के दिन सदका़तुल फितर अदा करें जो साहिबे निसाब पर वाजिब है, हदीस पाक में है कि सदका़तुल फितर रोज़ो को लगव् व गंदी बातों से पाक करने के लिए है और मिस्कीनों की रोज़ी के लिए मुक़र्रर किया गया है । ( अबु दाऊद )*
•═══▦☆☆▦═══•
*Ref-📕 तोहफा ए ख़्वातीन_,*
┏─═┄┅┄┅┄┅┄┅┄┅┄┅┄┅┄┅┄┅┄✪
💕 *ʀєαd,ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd*💕
*❥✍ Haqq Ka Daayi ❥*
http://haqqkadaayi.blogspot.com
*👆🏻हमारी अगली पिछली सभी पोस्ट के लिए साइट पर जाएं ,*
https://whatsapp.com/channel/0029VaoQUpv7T8bXDLdKlj30
*👆🏻 Follow वाट्स एप चैनल फाॅलो कीजिए _,*
https://chat.whatsapp.com/E5mIxTIuH6ZCelS7wTwmAD
*👆🏻वाट्स एप पर सिर्फ हिंदी ग्रुप के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए _,*
https://t.me/haqqKaDaayi
*👆🏻 टेलीग्राम पर हमसे जुड़िए_,*
https://www.youtube.com/c/HaqqKaDaayi01
*👆🏻 यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए ,*
▉
0 Comments