☜█❈ *हक़ - का - दाई* ❈ █☞
☞❦ *नूर - ए - हिदायत* ❦☜
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*☞__तबलीग़ क्या है?*
*❀_ जो अपना मरतबा ना चाहत हो, कोई मक़ाम ना चाहता हो, कोई अवज ना चाहता हो, जो कोई बदल ना चाहता हो, वो तब्लीगी है,*
★↬ *जो सिर्फ़ मुसलमान होने कि बात करें किसी फ़िरक़े कि बात ना करें फिर तबलीग़ से बडकर कोई अमल नही ,*
★ *जो अल्लाह के दीन को पहुँचाने के लिए फिरता हो, अपनी जान_अपना माल अपना वक्त लगा रहा हो ,*
★ *सबसे हसीन काम अल्लाह के दीन को दूसरों तक पहुंचाना है,है कोई अल्लाह कि तरफ से इससे बढ़कर अमल पेश करने वाला ,*
★ *ये पैगाम ए हक़ दुनिया के आख़री इन्सान तक पहुंचाना इससे ज़्यादा नफा बख़्श काम कोई दूसरा नही , जिससे पूरी उम्मत नफा उठा रही है , हर मकतब का, हर देश का मुसलमान नफा उठा रहा है,*
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*☞_पहल करने वाले, आगे बढ़ने वाले अल्लाह के क़रीब होंगे ,*
❀↬ *सबसे बुनियादी चीज़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वादो का यक़ीन करना है ,ईमान को हासिल करना है, अल्लाह की कुदरत का यक़ीन करना है ,*
❀★ *सबसे पहले कलमे वाला यक़ीन हो और नमाज़ वाला अमल हो और इसके ज़रिए सारे आमाल ठीक हो रहे हो ,*
❀★ *कलमे वाला यक़ीन जितना अंदर होगा, दिल में उतरेगा, जितनी दावत की फिज़ा होगी उतना कलमे वाला यक़ीन दिल में उतरेगा,*
*❀★अल्लाह फ़रमा रहे है, मुसलमानो अपने आपको और अपने घर वालो को जहन्नम की आग से बचाओ,*
*अपनी फ़िक्र करो, ख़ानदान, बस्ती, अतराफ और पूरी इन्सानियत का ग़म खाओ, ये मेहनत हर मुसलमान करें, पूरी ज़िन्दगी करें!*
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*☞_आमाले दावत को मुकम्मल करना है,*
*❈↬ सहाबा किराम रज़ि. ने इसको मुकम्मल किया है, इस तरह कि वो इसी के होकर रहे, जिस वक्त का जो तकाज़ा था पूरा किया,*
*❈★_ मुस्तकिल तकाज़ो की दुनिया में रहते थे सहाबा, बल्कि यूँ कह लिया जाए कि 13 साला मक्की ज़िन्दगी की मेहनत में 10 साल तकाज़ा पूरा करने की मेहनत थी,*
*❈★13 साला मक्का की मेहनत में ऐसे सहाबा तैयार हुए जिन्होंने 10 साल में कोई तकाज़ा ज़ाया नही होने दिया ,ऐसे बनकर आए थे मदीना में कि अन्सार को भी पूरा पूरा इस काम के अंदर मशगुल कर लिया, जिस वक्त का जो तकाज़ा आए खड़ा हो जाना है इस बुनियाद पर आए थे,*
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*❈_इस काम को हम सवाब का काम काम समझते है,*
❈↬ *या इज़तिमात होने की वजह से, बीमार के ठीक होने की वजह से, याँ कोई मसाइल होने की वजह से कर रहे, सहाबा किराम की इन वुजूहात में से कोई वजह नही थी अल्लाह के रास्ते में निकलने की,*
❈★ *हर एक के दिल में ये बात बैठी हुयी थी के मैं सारी दुनिया के लिए हूँ और सारी दुनिया मेरे ज़िम्मे है, ये ज़िम्मेदारी हर एक पर थी, क्यूँ कि( फरमाने ख़ुदावन्दी है ) तुम लोगो के फ़ायदे के लिए निकाले गए हो,,*
❈★ *इबादत से लेकर मामलात तक , अख़लाक़ से लेकर माशरे तक, हर एक दीन पर पूरा पूरा आया हुआ था, हर एक पूरे दीन से वाकिफ़ था,*
❈★ *ऐसा माहौल क्यूँ था? क्यूँ कि हर एक अपनी ज़िम्मेदारी को निभा रहा था, हर एक ने अपना जान माल ख़ुदा के हवाले कर दिया था, जन्नत के एवज़ में , कि जन्नत लेनी है, सहाबा ख़ुद फ़रमाते है के हममें से कोई आदमी अपने जान माल में अपना कोई हिस्सा समझता ही नही था ,*
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*☞_ ये काम तो अल्लाह कि रज़ा और अपनी आखि़रत बनाने के लिए करना है ,*
*❈↬तमाम नबियों की दावत में यही है, इसके लिए मौक़ा दिया गया है आखि़रत बनाने क़ा, और दीन दिया , दीन होगा तो आखि़रत बनेंगी, वरना आखि़रत बिगड़ेगी,*
★❈ *दीन के लिए ही पैदा किया गया है इसी क़ा क़ब्र में सवाल होगा, दीन लेकर क़ब्र में गया तो क़ामयाब, वरना नाकाम , ये दीन सदा रहेगा, क़ब्र में, हश्रमें, आमाल चारो तरफ से घेर लेंगे , जो ख़ाली जगह पड़ेगी वहाँ सब्र आ जाएगा, इसलिए दीन पर दिलों क़ा जमाना ज़रूरी है,*
❈↬ *दीन की तरफ दिल से मूतवज्जह होना ज़रूरी है, दिल का लगाना ज़रूरी है ,तबीयत का लगाना काफ़ी नही, तबीयत बदलती रहती है दीन की मेहनत से दीन का नफा खुलेगा, दीन ना होने का नुकसान खुलेगा, ये भी दिल के जमने का सबब है के किसी काम में नफा नज़र आया ,*
★❈ *मेहनत में फ़ज़ाइल, बरकते है, उम्मीद दिलायी जाती है, आदमी का नफ़्स घबराता है, आगे बढ़ने के लिए तर्गीब दी है अल्लाह ने, अपना नफा_नुकसान समझ कर चलेगा तो चलेगा, गरज़ वाला अगराज़ से इस इस काम का कोई ताल्लुक़ नही, ये काम अल्लाह की रज़ा और आखि़रत बनाने के लिए है!*
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*☞__ शुक्रगुज़ारी के साथ काम करो,*
❈↬ *अच्छे हालात में शुक्र के साथ काम करें,दिलों का जमाना ज़रूरी है, बाज़ मर्तबा दिल पलट भी जाता है, अच्छे हालात आए तो मगरूर हो गया, बुरे हालात आए तो ना_उम्मीद हो गया, भुल गया मक़सद ए ज़िंदगी को,*
❈★ *तंदरुस्ती, मालदारी आयी तो भुल गया, या हालात टूट पड़े तंगी, बीमारी और दूसरी बातें आयी तो काम से बैठ गया, दोनो सही नही, अच्छे हालात में शुक्र के साथ और बुरे हालात में सब्र के साथ काम करे, ये नबियों का तरीक़ा है,*
❈★ *शुक्रगुज़ारी की कैफियत से अल्लाह का काम करें, हक़ शनास,,,,,ऐसे बन्दे थोड़े होते है, यही तरीक़ा है और यही मुतालबा है,*
★ *फ़रमाया – ऐ दाऊद (अलैहिस्सलाम) के ख़ानदान वालो अपनी कारगुज़ारी, शुक्रगुज़ारी वाली बनाओ, मेरे बन्दो में शुक्रगुज़ार थोड़े है..,*
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*☞__ काम पर जमे रहना शुक्रगुज़ारी है,*
❈↬ *_दीन पर, दीन के काम पर, इताअत पर जमे रहना,इस्तेकामत शुक्रगुज़ारी है, और पलट जाना, बैठ जाना ना क़द्री है ,*
★❈ *मुशरिकीने मक्का को अल्लाह ने इतनी बड़ी नियामत दी, लेकिन नियामत के जवाब में कुफ्र किया, अपनी क़ौम को भी हलाक़त में उतारा, ना ख़ुद करते ना करने देते,,ना क़द्री की तो अल्लाह अन्सार को ले आए, अन्सार ए मदीना_ ने क़द्र की तो दीन के हर काम में आगे रहे,*
★❈ *कमी कोताही, सुस्ती हो सकती है लेकिन ना_क़द्री ना करें,माफ़ी मांगे, ऐसे बन्दे अल्लाह को पसंद है ,नेकी हो जाए तो अच्छा समझे, गलती हो जाए तो माफ़ी मांगे तो अल्लाह जमा देंगे ,ये भी एक तकाज़ा, पाबंदी और शुक्रगुज़ारी हक़ का तकाज़ा है,*
❈★ *पसंद की चीज़ दी है तो वहाँ लगे जहाँ अल्लाह की नाराज़गी ना हो, नियामत मिले तो सोचों के कहाँ लगाऊ? अपनी नियामतों के लिए वो रास्ता इख्तियार करो के देने वाला राज़ी हो जाए,*
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*☞__मुश्किले अपने लिए, आसानी दूसरो के लिए,*
❈↬ *दीन की नुसरत का दरवाज़ा क़यामत तक खुला रहेगा और मुसलमानो से तकाज़ा रहेगा के तुम नुसरत करो, फ़रमान है, ”ऐ ईमान वालो! तुम दीन की मदद करो,*
❈★ *नुसरत,, ये अहम है,हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया हिजरत ना होती तो मैं भी अंसारी होता,,*
❈★ *दीन की नुसरत करने वालो के लिए, दीन का काम करने वालो के लिए दुआ करो, ये तरीक़ा बतया,*
❈★ *काम की भी क़द्र करो और काम करने वालो की भी क़द्र करो, हर एक को उनके अमल के मुताबिक दरजे मिलेंगे, जो अन्सार(दीन की नुसरत करने वाले) को मिलेगा वो तुम्हें भी मिलेगा,*
❈★ *काम करने वालो की क़द्र करो, तारीफ़ करो और उनके हक़ सनाश करो, के जो तुम्हें मुझसे नही होता ये कर लेते है,जलन ना हो, दुआ करो,,,के दुआ करने वाले ख़ैर ख़्वाह हो गए, तुम मददगार हो गए,*
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*☞_अपने आपको बड़ा ना जानो,_*
❈↬ *_हसद अंदर की बड़ाई से पैदा होता है, के अपने आपको बड़ा समझा, अपने आपको मुक़द्दस, पाकीज़ा ना जानो, ये शैतानी खस्लत है, शैतान को हलांकि इल्म भी था लेकिन हसद मिला, हमदर्दी नही मिली, अल्लाह जानता है कौन कैसा है?*
❈★ *हमदर्दी मुख्लीस को होती है, इस्लाम ने हमदर्दी सिखायी, भला चाहो, हमदर्द बनो,*
★❈ *दीन तो दूसरो का भला चाहने का नाम है, हमदर्दी से सब भाई हो गए,*
★❈ *राय मुख़्तलिफ़ होती है क्यूंकि सब अपने दीन को चाहने वाले थे दीन की समझ थी, जैसे दों वकीलों की राय मुख़्तलिफ़ होती है,राय का इख़्तिलाफ़ जायज़ है, ये समझदार होने की दलील है, मुखालिफत बातिल होने की निशानी है,*
❈★ *मुख्लीस नागवारी के बावजूद साथ देगा, के अल्लाह के यहाँ कबुलीयत की उम्मीद है,*
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*☞__हर हाल में अल्लाह से राज़ी रहो,_*
★↬ *दूसरो को माफ़ कर, अपने आपको माफ़ कर, हमेशा ख़ुश ख़ुश रहेगा, तुझे अल्लाह ने जिस हाल में रखा है, उसी हाल में अल्लाह से राज़ी रहे, नही तो सारी ज़िन्दगी अपने को कोसता रहेगा,*
★ *जितनी अज़मत हमने थानेदार, एस.पी.को दी हुयी है, कभी अल्लाह को दी?*
★ *अल्लाह तआला तेरे घर है, जो मोमिन अपने दिल को पाक कर लेगा, वो दिल अल्लाह का घर है* ,
*★ आँसुओ का हिसाब रब के पास है, जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, हम आँसुओ का हिसाब नही रखते, आँसू जो गिरे भी नही जहन्नम की आग को बुझाने के लिए काफ़ी है, जो लड़ियों पे लड़ियां बहाए हम उनका हिसाब कहाँ रखे,*
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*☞__इब्ने क़य्यिम रह.का कौल है, जो दावत का काम नही करता वो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मूत्तबे होन का दावा नही कर सकता ,*
★↬ *इस पर फख्र मत करो के तुम माल वाले हो,डिग्री वाले हो, फख्र इस पर करो के तुम अल्लाह के काम वाले हो, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के काम वाले हो,*
★ *किसी हाजी की बद तमीज़ी से हज नही छोड़ते, नमाज़ी की बदतमीज़ी से नमाज़ नही छोड़ते फिर किसी तबलीग़ वाले की बदतमीज़ी से तबलीग़ क्यूँ छोड़ते हो? देख लिए तबलीग़ वाले हमने! काम देखो भाई किसका है? हम तो डाकिया है, वास्ता है,*
★ *ये मत कहो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का काम करता हूँ, ये बोल तक़्ब्बूर पैदा करते है, किसी सहाबी ने नही कहा के मैं नबी का काम करता हूँ , ये हमारा काम है मगर तार्रूफ के लिए नही है, रुस्तम ने पूछा तो फ़रमाया, हम अल्लाह का पैगाम लेकर आए है,*
*★_हक़ है, हक्क़ानियत है, लेकिन करो मगर डरो, हर उस बोल से बचो जो तक़्ब्बूर पैदा करें, तक़्ब्बूर के अल्फाज़,, अपने आपको भुल जाएंगे लोगो को काम सिखाते फिरेंगे तो फिर गिरता चला जाएगा,*
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*☞ _तरबीयत के लिए वक्त चाहिए,*
*★_ इसलिए वक्त एक निज़ाम है, जो अल्लाह के लिए वक्त देगा, अल्लाह उसके दिल को हिकमत के नूर से भर देगा,*
↬ *तबलीग़ से मुराद तश्कील, जोड़, इज्तीमात, वग़ैरा नही, बल्कि उम्मत में सिफ़ात और यक़ीनों की तब्दीली है,*
★ *तीन विकेट है, तौहीद, रिसालत और आखि़रत;*
*बोलिंग शैतान कर रहा है, हमें ईमान के साथ तौहीद, रिसालत, और आखि़रत को बचाना है,*
★ *हिदायत अल्लाह के इख्तियार में है, क्या पता अल्लाह किसको दे दे, लिहाज़ा सब पर मेहनत करो, ख़ुदा ना ख्वास्ता हमारी औलाद के मुक़द्दर में नही, पड़ोसी के मुक़द्दर में हो, इसको नही तो उसको मिल जाए,*
★ *घर वालो की हिदायत का इन्तेज़ार करते तो फिर नूह अलैहिस्सलाम तबलीग़ कर ही नही सकते, उनका बीवी, बेटा मुसलमान नही हुए,*
★ *किसीको को ठीक करना हमारे ज़िम्मे नही, हा ठीक करने की मेहनत हमारे ज़िम्मे है,*
★ *जब फराइज़ मिट रहे हो तो तबलीग़ फ़र्ज़ हो जाती है, मुलतान में भरे शहर में खड़े होकर 1साथी ने 21 आदमियों से पूछा=भाई हमारे नबी का नाम क्या है ? 19 ने कहा हमे पता नही, सिर्फ़ 2 ने बताया,, जब हालात हो तो हमारा घरों में बैठे रहना ज़ुल्मे अज़ीम है, इसकी माफ़ी नही है,*
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*☞ _..अपनी इस्लाह की निय्यत से चलो,*
★↬ *मशवरे से चलो, ख़ुद राय, मनमानी, अपनी तबीयत से बचो, तानो से, ऐतराज़ से बचो, तानो से उम्मत टूटती है,*
★ *अपने दिलों को ज़िन्दा रखो, कुरआन में जी लगे, दीन के काम में जी लगे, तन्हाई ने जी लगे* ,
★ *इस्लाम में बायकाट नही है, मुहब्बत है, उसूल तोड़ने वाले से और मुहब्बत करो, किसी की कमी पर तर्गीब दो,*
★ *ये तबलीग़ को बदनाम करता है, इससे बात ना करो,,, ये गलत बयानी है,, उससे और अच्छा सुलूक करो ताकि उसका दिल जुड़ता जाए, मोहब्बत से जोड़ पैदा होता है, बच्चो की हौसला अफ़ज़ाई की जाती है, उल्टी सीधी लकीरों पर भी,, तबलीग़ में हम सब बच्चे है,*
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*☞ _.दावत आलमी है…,*
↬ *दावत में ताकत है, हक़ दावत में ख़ुदा की मदद साथ है, बातिल दावत में ख़ुदा की मदद साथ नही,*
★• *उम्मत को दो दो नियामत मिली है; _दावत और दुआ_जिसके पास दुआ होती है वो क़ामयाब होता है, जिसके पास दुआ नही होती वो नाकामयाब होता है , हमारी नाकामयाबी दुआ की कमज़ोरी की वजह से है •*
★• *दीन के मेहनत करोगे तवज्जोह पैदा होगी और तवाज़ो पैदा होगी तो अल्लाह मोहब्बत करेंगे.*
★• *इस दावत की मेहनत से ये यक़ीन बनाना है के उम्मत के सारे मसले हल होंगे और ये तब होगा जब इस मेहनत को हम यक्सुई के साथ करेंगे.*
★ • *अगर दावत की मेहनत से कामयाबी और उम्मत के मसलो का होगा ये यक़ीन ना बना तो सारी मेहनत से नफा नही होगा* .
★ *• ये काम मकामी नही आलमी है, उम्मत के ऊपर जो हालत हई वो हमारी मेहनत की कमी की वजह से है,*
★ *• ये काम बरकत का नही बल्कि मक़सद है,*
★• *उम्मत के इनफीरादी और इज्तेमाई मसलो का हल ये “दावत का काम” .*
★• *दावत का काम रहमत है, दुनिया में अमन लाने के लिए वाहिद रास्ता दावत का काम है* ,
★• *हमारा मकसद दीन की दावत की मेहनत है, दाई वो है जो दुआ करता हो…,*
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*☞_ उम्मत को सहाबा की नकल हरकत पर उठाना है,*
↬ *जब उम्मत दावत छोड़ेगी तो दीन छोड़ेगी. दावत दीन के सारे शोबो को पानी पहुंचाने का ज़रिया है,*
★ • *हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर उम्मति को दायी बनाया था. मौलन्स इलियास रहे.फ़रमाया करते अल्लाह तुमसे वो काम लेंगे जो नबियों से ना लिया हो. अल्लाह काम करने वालो से काम लेते है. अगर तुम काम नही करोगे तो अल्लाह किसी और से काम ले लेंगे, काम करते रहो अजर का मत सोचों .अल्लाह की मदद कमज़ोरो के साथ है ,*
★• *काम का मकसद ये नही के हम दीन सीखकर बैठ जाए. काम का मक़सद ये है के हम उम्मत को उस मकसद पर जमा करना है जिस पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सहाबा को छोड़ा था.*
★• *काम का मकसद ये नही के कलमा, नमाज़ सही हों बल्कि हर शोबे में सही दीन आए.उम्मत को सहाबा की नक़ल व हरकत पर उठाना है, हयातुससहाबा इतना पढ़ो कि दायीयाना मिजाज़ बने. दावत उम्मत की सलाहियतो को बातिल से हटाकर हक़ की तरफ लाती है.*
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*☞_मकामी काम वाला मु़तहर्रीक नही,*
★↬ *मु़तहर्रीक वो है जो सालाना 40 दिन और महीने के 3 दिन लगाता हो और मकामी 5 आमाल में जुड़ता हो.*
★• *उम्मत अल्लाह के रास्ते में ना जाए ये उम्मत की मशग़ूली की वजह नही है, कमज़ोरी तो हमारे काम करने में है.*
★• *हर शबगुज़ारी (मरकज़)के दिन आने वाले मस्जिद वालो पर अगले हफ्ते नगद जमात लाने का तकाज़ा डालो.*
★• *लोगो को मस्जिद के माहौल में लाकर तश्कील करना, घर की मुलाक़ात में मुख़्तसर बात हो और नगद मस्जिद की दावत देकर मस्जिद में तश्कील हो. क्यूँकि मस्जिद में माहौल होता है फरिश्तों का,*
⇨ *और तश्कील इज्तेमाईयत का माहौल चाहती है और इससे और लोगो लोगो का अल्लाह के रास्ते में निकलने की हौसला अफ़ज़ाई होगी.*
★ • *हल्को पर ज़िम्मेदारी डालने से मस्जिद का काम कमज़ोर होता है, हल्के में काम बड़ाना है तो हल्के की मस्जिदों पर तक़ाज़े डालो,*
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*☞___ कारगुजारी _,*
*★_ रोज़ाना घर में तालीम 6 सिफ़ात के साथ हो और 6 सिफ़ात के बाद तश्कील करो,*
★• *हर साथी हयातूससहाबा और मौलाना इलियास साब रहे. के मलफूज़ात पड़े.*
★ • *रोज़ाना की मुलाक़ात में मकतब (मदरसा) की दावत दे, हमारा कोई बच्चा बगैर कुरआन पड़े ज़िन्दगी ना गुज़ारे.*
★ • *मस्जिद के हर साथी पर 10 साथी की ज़िम्मेदारी डालो, उससे कहो के अपनी जमात ख़ुद बनानी है.*
★• *6 सिफ़ात का मुज़ाकरा हो हदीस की रोशनी में.सिर्फ़ 6 नंबर गिनवाना मकसद नही, बल्कि हर नंबर, हर सिफ़ात का हदीस की रोशनी में मुज़ाकरा हो.इस तरीक़े से 6 सिफ़ात का मुज़ाकरा करने से 6 सिफ़ात की अहेमीयत पैदा होगी.*
★• _*अल्लाह के गुस्से को ठण्डा करने वाले 2 आमाल है,*
→ *(1)पैदल जमात ,*
→ *(2) मस्जिद की आबादी*
★• *पैदल जमात की तश्कील करना है सहाबा की नक़ल व हरकत के वाकीयात पर, उसके फ़ज़ाइल पर,*
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*☞___हिदायात…,*
★↬ • *हमारे मुज़ाकरो में सहाबा के नक़ल व हरकत के मुज़ाकरे ज़्यादा हो. बेरून की जमात ऐसी जगह ठहेराना है जहाँ मस्जिद की आबादी की दावत_तालीम_ इस्तकबाल वाला अमल होता हो.* .
★• *तलबा को रोज़ाना की मेहनत में साथ रखो, हमें उलमा से भी सालाना 4 महीने चाहिए. हर जोड़ मशवरा में पैदल जमातों की तश्कील हो.*
★• *साथियों के वक्त को उसूल करना ये सहाबा की सिफत थी हमारा काम सिर्फ़ मस्जिद पर मौकूफ नही, 13 साल काम बगैर मस्जिद के हुआ, और 10 साल मस्जिदे नबवी में हुआ.*
★ *• जो बात तज़किरे में से निकल जाएगी वो अमल से निकलेगी. रोज़ाना हर मशवरे के बाद पूछा जाए घर में तालीम 6 सिफ़ात के साथ हो रही है या नही .*
★• *अगर 8 साथी दावत_तालीम_ इस्तक़बाल के लिए ना हो तो 8 साथी आने का इन्तेज़ार ना हो बल्कि 8 साथी तैय्यार करके कम से कम बाहर मुलाक़ात करके मस्जिद में लाकर अमल शुरू हो,*
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*☞_तबलीग़ का मकसद आप ﷺ वाली मेहनत ज़िन्दा करना है.*
*★↬मेहनत के 2 रुख है, एक बाहर की मेहनत और दूसरा मकामी मेहनत.*
★• *मकामी मेहनत अधूरी है जब मकामी मेहनत पूरे तरीक़े से होगी तो अल्लाह के सारे वादे पूरे होंगे.*
*Ξ जितना मकामी काम मज़बूत होगा उतनी बाहर की मेहनत ज़्यादा होगी, मकामी काम की कमज़ोरी की वजह से वक्त लगाए हुए साथी बैठ जाते है.*काम करने वाला अगर रोज़ाना दावत नही देगा तो उसका ईमान खतरे में पड़ जाएगा.*
★• *तक़ाज़े तो अल्लाह उनपर खोलते है जो मोहल्ले में, बस्ती में अपनी जान खपाते है, मुलाक़ात के अन्दर.*मस्जिदवार जमात के साथी मोहल्लो में बसने वाले लोगो पर निगाह रखे के कब इन का वक्त हम ले सकते है. *जो मोहल्लों, बस्ती में दीन के वास्ते जान खपाता है अल्लाह उसका यक़ीन बनाता है.*
★• *मज़बूत मशवरा वो है जिसमें हर तबके के लोग मौजूद हो* .
★• *असल मेहनत, रोज़ाना की मेहनत रोज़ाना का मशवरा है, जो मस्जिदवार जमात रोज़ाना जान खपाती है दीन के वास्ते, उनका गश्त वाला अमल फिक्रो वाला होगा रस्मी गश्त नही होगा.*दूसरा गश्त वहाँ होगा जहाँ मेहनत की कोई शक्ल नही है, दूसरा गश्त 5-6 हफ्ते करना है.*
★• *3 दिन की जमात जो जाएगी वो ही मकामी काम को करने वाली बनेंगी.3 दिन की जमात में भरपूर तर्गीब देना है, मकामी काम की, रोज़ाना की मेहनत बहुत ज़्यादा ज़रूरी है.*
★ *• जो जमात मस्जिद में आती है उन जमातों के सामने मशवरा करो, पूरी ताक़त के साथ आनेवाली जमातों का साथ दो, जमातों को तकसीम मत करो*
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*☞_ मस्तूरात का काम नाज़ुक है,*
★• *मस्तूरात के काम की अहमियत मर्दों के काम की तरह हो, मेहनत नाकिस है, अगर मस्तूरात के काम को फिक्रो के साथ ना किया गया. मस्तूरात का काम जितना अहम है, उतना ही नाज़ुक है.*
★ • *घरों की तालीम ये आमाले हिदायत है. *हर घर में अल्लाह का ज़िक्र का माहौल अमल का माहौल बहुत ज़रूरी है. घर की शुरवाती मेहनत तालीम को ज़िन्दा करना है.घरों की तालीम का जायज़ा मस्जिदवार जमात में लिया जाए.*
★• *जब मस्तूरात में तालीम हो तो तालीम के बाद वक्त लगायी हुयी बहन ख़ूब तर्गीब दे, इज्तेमाई दुआ ना करे* .
★ • *मस्तूरात में काम बड़ाने की सबसे आसान तरतीब ये है के मशवरे में बैठने वाले ख़ुद हर तीसरे महीने अपनी मस्तूरात के साथ वक्त लगाए और फिर नये साथी की तश्कील करो* .
★• *पर्दे का ख़ूब एहतिमाम हो, बच्चे साथ में ना हो, बेहतर ये है के वक्त लगायी हुई मस्तूरात साथ में रहे.*
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*☞_ उसूल ही काम है और काम ही उसूल है,_*
*★↬ जो उसूल के साथ काम करेगा, अल्लाह सारी दुनिया में उससे काम लेगा.*
*★ जन्नत में नही जा सकते ईमान के बगैर, ईमान नही ला सकते मुहब्बत के बगैर, मैं कोई ऐसा तरीक़ा बताऊ मुहब्बत के लिए “सलाम करो,,*
*★ मोहब्बत बढ़ाने के लिए 4 चीज़ों की पाबन्दी करो, सलाम करो, इकराम करो, हदीया दो, तारीफ़ करो, हौसला अफज़ाई करो,*
★ *इन सीफातो को अपने अन्दर पैदा करो - जो तोड़े उससे जोडो, हक़ सारे उसको दो,-जो ज़ुल्म करे उसे माफ़ करो, जो बुरा करे, उससे अच्छा करो, तवाज़ो इख्तियार करो, जितनी मेहनत बड़े आदमी उतना झुकता चला जाए, सादगी इख्तियार करो, हुस्ने अख़लाक हो, सखावत हो,*
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*☞_❈…… ..काम की कदर करो,*_
*↬ • .. ये काम वो कर सकता है जिनके दिल हसद से पाक हो,*
★ • *इस काम की क़द्रदानी ये है के दावत के तकाज़ो पर जान और माल को झोंक देना, ये इस काम की कद्रदानी है. और काम से जी चुराना ये काम की ना_कदरी है. और जो नियामत की ना_क़दरी करता है, अल्लाह उससे नियामत छीन लेते है, और जो नियामत का शुक्र अदा करता है अल्लाह उसकी नियामतों को बड़ा देते है.*
★ *•काम करने वाले के सामने जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की और सहाबा की ज़िन्दगी होगी तो काम आगे बड़ेगा.*
*★● हर काम करने वाले को आखि़रत की फिक्र हो, और काम करते वक्त आखि़रत की फिक्र हो, मशवरे में हर काम में.*
*★• लोगो को इस्तेमाल करो, उनकी सलाहियतो को इस्तेमाल करो.•और अगर कोई नया साथी आगे बड़े तो उसे आगे बढ़ाओ, ना के ये सोचों के हमसे ज़्यादा आगे बढ़ जाएगा, इसलिए उसको आगे ना बड़ाना गलत है.*
*★• और ये काम वो कर सकता है जिनके दिल साफ हो.*
*★ • बात करो तो पक्की ठक्कि बात हो, कुरआन और हदीस की रोशनी में बात हो.*
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*☞_ हर साथी अमली नमूना बने,*_
*↬….. मुफ़्ती का काम ना करो, फतवे मत दो. हज़रत जी रहे. ने 37 साल बुखारी पढ़ाई, लेकिन कभी कोई मसला अपनी तरफ से मंसूब करके नही बताया.*
★ *• काम में जब नफ्सानीयत पना आएगा तो काम की हकीक़त निकल जाएगी. काम को रस्मीयत से बचाना है, काम करो सिर्फ़ आखि़रत को बनाने के लिए,.*
★ *•जब दिल अंधे होते है तो कुछ समझ नही आता बेदीनी आती है. दिल बनता है ईमान से..*
*★ •दिन में इन्सानी समन्दर में तैरना है, यानी दिन भर मुलाकातें करो और रात में अल्लाह का ज़िक्र हो, सिर्फ़ तुम हो और तुम्हारा अल्लाह हो, और ये काम का बहुत बड़ा हिस्सा है.*
★ *• इस मेहनत में जो सीखने की जज़्बे से चलेगा अल्लाह उसे सिखाएंगे.*
*★ • हमेशा तबलीग़ तबलीग़ ना करो, घरवालो के साथ हंसना बोलना, हाल अहवाल लेना भी ज़रूरी है. सबसे पहला हक़ अल्लाह और रसूल का और कुरआन का है और फिर घर, पड़ोस वगैरह का.*
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*☞_ आमाले दावत आमाले नबुवत है ,*
*★_सबसे पहले जरूरी यह है की हमे पूरे दिल से यकीन हो की दावत की मेहनत में ही तरबियत है,*
*★_आमाले दावत आमाले नबुवत है, आमाले नबूवत यह हिदायत के लिए काफी नहीं बल्कि यह जमानत है _दावत हर अमल को आगे बढ़ाने के लिए है।*
*★_ मौलाना इलियास रहमतुल्लाह अलैह के मलफूज़ात रोजाना पढ़ो। अल्लाह की जात से ताल्लुक पैदा करने का रास्ता एक ही है वह दावत वाला रास्ता है।_गस्त इस जज्बे से करना है कि मेरा ताल्लुक अल्लाह की जात से जुड़ जाए ।असल ग़र्ज़ है अपनी जात की। गस्त के लिए दो नमाज़ो का वक्त फारिग करना है अगली नमाज में कमाल पैदा करने के लिए।*
*★_इनफिरादी आमाल के पहाड़ इस्तेमाई आमाल के ज़र्रे के बराबर हैं, आमाले दावत को तबलीग़ का काम समझकर नहीं बल्कि सबसे ज्यादा अल्लाह से क़ुर्ब हासिल करने का रास्ता समझ कर करना है ।*
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*☞_अपने तरीक़ो, अपने तजुरबों को बयान ना करो,,*_
↬ *• हम अपने मुज़ाकरो में सबसे ज़्यादा सहाबा के नक़ल व हरकत के वाकियात, हदीसों को बयान करे.•आज हर कोई अपने-अपने तजुर्बे, अपने तरीक़े से बात करता है, मौलाना इलियास साब रहे.के मलफूज़ात, मौलाना यूसुफ साब रहे.के बयानात, हयातुससहाबा इन्ही किताबो को अपने मुतआ्ले में लाओ.*
★ *• अल्लाह ने क़यामत तक आनेवाले इन्सान की हिदायत दावत में रखी है.हमारा सारा निज़ाम सहाबा के तरीक़े पर हो.*
★ *• हमारे मुज़ाकरे में सबसे ज़्यादा इमानियात को बोलना है.जितना अल्लाह की बड़ाई को बोलेंगे उतना ताल्लुक़ अल्लाह से बड़ेगा.• अल्लाह पर यक़ीन उनका होगा जो अल्लाह के तज़किरे इज्तेमाईयत में करे.*
★ *• इमानियात के हल्के मस्जिदों में लगाओ, मस्जिद के माहौल में लाकर बात करना ये असल मुलाक़ात है. •हमारी सारी मुलाकातों का मकसद हर ईमानवालो को मस्जिद में जमा करना है ढ़ाई घण्टा, गश्त की मेहनत, ईमानवालों को मस्जिदे आबाद कराने के लिए है.• मुलाकत हर घर, हर फ़र्द, से करो लेकिन मस्जिद में लाने की कोशिश करो.*
*★ • पहले उस शख़्स की मस्जिद में आने की तश्कील करो, अगर वो मस्जिद में आने का उज़्र करे तो उसे आइन्दा के लिए मस्जिद में आने का वक्त लो, फिर कोई साथी उससे बात करने के लिए मशवरे से तय करो.*
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*☞_ इमानियात को ईमान की अलामतो के साथ बयान करो..,*_
*↬ •इमानियात में ये बातें ज़्यादा हो: अल्लाह के बन्दे में अल्लाह का तारूफ, अल्लाह की कुदरत अल्लाह की अज़मत बताओ, अंबिया के वाकीयात बयान करो, सहाबा की गैबी नुसरतो को बयान करो..,इन्ही से अल्लाह के वादो का यक़ीन पैदा होगा.*
★ *• हमारे अन्दर आज बुज़ुर्गों के वाकीयात, करामत के वाकीयात का सुनना- बोलना ज़्यादा पसन्द किया जाता है, लेकिन इससे नुक्सान ये होगा के बुज़ुर्गों के करामात से शख़्सियत का यक़ीन आएगा और सहाबा के नुसरतो के वाकीयात से अल्लाह के वादो का यकीन पैदा होगा.*
★ *• करामते बयान करना हमारा मौज़ू नही है, गैबी नुसरतो को बयान करने से उम्मत अमल पर खड़ी होगी. मौलाना इलियास साब रह. मजमें को आमाल के यक़ीन के साथी उठाते थे.*
*★•अगर कोई मस्जिद में आए तो फौरन उसे मेहनत में शामिल करलो. मस्जिद की आबाद नही करने वाले यक़ीन वाले नही है. अगर 8 साथी दावत तालीम इस्तेक्बाल में ना हो और हम 8 पूरा होने का इन्तेज़ार करें ये काम को नही करने की निशानी है.*
★ *• मस्जिद को आबाद करने वाले को अल्लाह रहमत, राहत देंगे, अल्लाह राज़ी होंगे, पुल सिरात पार कराएंगे, जन्नत में दाखिल कराएंगे.*
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*☞_ _अपनी ज़ात से साबित करना है,*
*★↬ •हम अपनी नमाज़ो की मश्क करें. हमारा काम उम्मत को सिर्फ़ नमाज़ की और बुलाने का नही बल्कि मश्क कराने का है.इस बात को हम अपनी ज़ात से साबित करे के हम दावत से आमाल में तरक़्क़ी कर रहे है.*
★ *•तहज्जुद का बहुत अहेतेमाम हो, तहज्जूद पढ़ने से दिन भर के कामो में अल्लाह की मदद होगी.*
★ • *सुबह सादिक़ से पहले कुरआन देखकर तिलावत करो, अल्लाह वली बनाएंगे, लेकिन सुन्नतो के एहतिमाम होने पर.*
★• *अज़कारे हुस्ना करो, सुबह शाम के आमाल को पाबंदी के साथ करो.*
★• *तन्हाइयों में अल्लाह का ज़िक्र का एहतिमाम हो, अल्लाह का ज़िक्र ध्यान के साथ बावज़ू, तन्हाइयों में करो, अगर अल्लाह के ज़िक्र को बगैर ध्यान के साथ किया गया तो, ये बिदअत और हराम है, ऐसा मौलाना इलियास साब रहे.फ़रमाया करते थे* .
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*☞_ दावत में हुस्ने मआशरत है…,*
*★↬ दावत मेंं हुस्ने माशरत है और इसका जवाब नही. दावत में ये नबियों के तरीक़े कार होते है, हुस्ने माशरत कहते है लोगों के साथ अच्छे सूलूक को.*
★• *लोगो को अल्लाह की कुदरत समझाओ अपनी हैसियत नही. दाई वो होता है जो लोगो को जोड़ें, हुस्ने माशरत लोगों को काम समझाएगा, काम हज़म करवाएगा. असल तो ये है कि लोग काम से और काम करने वालों से मोहब्बत करने लगें,*
★ • *मौलाना इलियास साहब रह.ने कभी नही फरमाया कि आओ मैं तुम्हें उसूल और आदाब बताता हूँ,बल्कि ये कहा करते थे कि एक काम है जो लेके बैठा हूँ मैं, थोड़े उसूल और आदाब जानता हूँ, ये तो अल्लाह करा रहा है.*
★• *हज़रत उमर रज़ि. बहुत सख़्त थे, लेकिन वो अल्लाह के हुक्म के बारे में सख़्त थे, लोगों के साथ कभी सख़्त नही थे.*
★• *ऐसा कभी मत सोचना कि मुझसे ज़्यादा समझदार कोई नही है. सलाहियतों से काम लेना ज़रूरी है अपनियत से काम ना लो, जिसकी जैसी सलाहियत उससे वैसा काम लो, ख़ाली बात करना काफ़ी नही है, किसी के दिल में किसी की बुराई ना आए. नबी के काम से जो चीज़ पैदा होगी वो हुस्ने माशरत है.*
★ • *हर काम करने वाला हर मुसलमान से हुस्ने माशरत करे.*
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*☞_ हम उम्मत वाले है…,*
↬ • *कोई अपने आपको तबलीग़ वाला समझे वो ख़ताकार है, हम तों उम्मत वाले है.*
★• *नज़रिए को छोड़ो, मसलको को छोड़ो, ईमान की निस्बत रखो. दावत की खूबियों में से है हुस्ने मआशरत. दावत खूबियों वाली दो, ख़ाली उसूलों वाली दावत नही. हमारी निय्यत में भी खूबी हो.*
★ • *दाई के पास हुस्ने आमाल है, हुस्ने आमाल वो है जो सुन्नत के मुताबिक हो. हुस्ने निय्यत, हुस्ने अख़लाक़, हुस्ने आमाल सब ज़रूरी है.*
★• *अल्लाह ने कोई नबी ऐसा नही भेजा जो हुस्ने अख़लाक़ ना हो. नबियों की सीरत पढ़ो कि वो कैसे अख़लाक़ से पेश आते थे, हुस्ने अख़लाक़ दाई की सिफत है.*
★• *हुस्ने ज़न भी ज़रूरी है.अल्लाह से भी हुस्ने ज़न यानी अच्छा गुमान रखना. दीनी मआशरत में बदगुमानी नाजायज़ है.अगर लोगों के बारे में अच्छा गुमान हो तों तुम लोगो को अल्लाह की तरफ खींच पाओगे.ज़हन साफ होना बहुत ज़रूरी है.*
★• *हुस्ने ऊसलूब यानी बात करने का ढंग हो, अगर बात करने का ढँग होगा तों सामने वाला अपनी गलती भी मानेगा. बात समझाने का ढँग हो.*
★• *हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में किसी ने आपसे ज़िना की इजाज़त माँगी तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समझाने के ढँग से वो समझ गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे हक़ीर नही समझा, बल्कि उसके लिए दुआ की..!*
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*☞_ हर एक को अपना समझो..,*
*↬• *एक अहम बात लोगो को दरगाह वगैरह पर जाने से मत रोको, बल्कि उससे यूँ कहो के भाई ये नेक बुज़ुर्ग लोग है, उनके पास जा रहे हो तो नेक बनके जाओ.*
★ *वुज़ू करो, दुआ करो अल्लाह के सामने और यूँ कहो के क़ब्रों की ज़ियारत करना अच्छा है और फिर यूँ कहो के इस मस्जिद यानी हमारी मस्जिद में यही होता है’, आप भी आने की कोशिश करो.*
★ *इस काम का सबसे बड़ा नुक़सान दिलों की फटन से है• हर एक को अपना समझो जो भी मसलक का हो. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तो मुनाफिक को भी अपना समझते थे. हमें तो यूँ सोचना है कि ‘ मैं इसे जहन्नम से कैसे बचा लूँ.*
★• *अपने किए हुए काम को अल्लाह से क़बूल करवाओ.हर एक के लिए दुआ करना, जिसके दिल में हसद होगा वो दुआ नही मांगेगा.जिससे हसद हो उसका नाम लेकर उसके लिए ज़्यादा दुआ करो.*
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*☞_ ये अल्लाह का काम है..,*
*↬. • कोई अपनी क़ाबिलियत के मुताबिक काम नही कर सकता.*
★ *अल्लाह का ज़ाबता है काम लेने का ‘जो अल्लाह के अहकाम को पूरा करे उससे काम लेंगे.*
★• *काम करने वालों की 2 ज़िम्मेदारीयाँ, “इन्फिरादि और इज्तेमाई” इन्फिरादि अल्लाह के साथ और इज्तेमाई उम्मत के साथ.*
*★•इमाम सिर्फ़ 4 रकअत पढ़ा देनेवाला नही बल्कि इमाम पेशवा-ए-दीन है.*
*★•अल्लाह की मदद सुन्नतो के साथ है. सुन्नतए- ए- दावत….,आप की दावत का क्या मिजाज़ है..?_दावत का काम मिजाज़-ए-नबूवत पर चलेगा.*
*★• दावत की सुन्नत क्या है..? आप की दावत में उमुमीयत थी, नीचे के तबके से काम को बढ़ाना ये सुन्नत है.•सबसे पहले ये तबके मुर्तद होंगे :- गुरबत, जिहालत, फुरसत.*
*★•जितना नीचे के तबके में काम करोगे उतनी तरबीयत होगी.*
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*☞_ मिज़ाजे नबूवत*
*★”_हर फर्द को दावत देना, ये मिज़ाजे दावत है , दाई के मिजाज के अंदर नरमी और वुसअत हो, तंग नजरी से फिरका बनता है उम्मत नहीं ,*
*★”_सलाम जान पहचान वालो को करना यह कयामत की निशानी है, हमारे अंदर खूब वुसत हो , हम किसी तबके को नहीं जानते, हमें सारी उम्मत चाहिए ,*
*”★_दाई का सब्र उसकी क़ब्र से वसी’अ है, इस रास्ते में ना गवारी आएगी, जो नागवारी को बर्दाश्त ना करे वह नबियों वाले काम को करने के तैयारी में नहीं, यह ना गवारी नबूवत वाली ना गवारी है ,*
*”★_दाई के मिजाज़ में वुसत होती है जो नागवारीयों से गुजरेगा वह हक़ तक पहुंचेगा ,*
*”★_काम करने वालों के मिजाज में दर गुजर करना हो, जो आपके साथ गलती करें आप उसको माफ करो ,*
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*☞_ मिजाज़ ऐ नबुवत _,*
*★_ साथियों की कमज़ोरियों को छुपाया करो, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से किसी ने कहा हमारी लड़की से ज़िना हो गया और अब कुछ लोग लड़की का रिश्ता ले कर आए हैं, अब तो लड़की में एब है, अब हम क्या करें ? हज़रत उमर ने कहा अगर तुम ये बात बताओगे तो मै तुम्हे बहुत सख्त सजा दुंगा ।*
*★_ साथियों को ले कर चलना उनकी कमजोरियों के बावजूद ये बड़े दिल की बात है । अगर साथियों से गलती हो तो उनकी कुर्बानियों को याद करो । जिस साथी से बेउसूली हो उसके लिए हर साथी इस्तगफार करे।*
*★_अगर साथी आपको सताए तो आप उससे दरगुज़र करो । अपने साथियों को हर कीमत पर साथ ले कर चलो । साथी के ऊपर कोई हाल आए तो उसका हाल बांटो ।*
*★“_ जिनके दिलो में उम्मत की तरफ से या साथी की तरफ से इस्तिग्ना (फायदा उठाने की गर्ज) हो, तो अल्लाह उससे काम नहीं लेंगे ।*
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*☞___ उसूले दावत,*
*”★_पुराने वक़्त लगाए हुए काम से बैठ जाए और नया अमला काम में आने लगे ये काम की कमज़ोरी है,*
*”★_साथी को जोड़ने के उसूल :- नरमी से पेश आना, माफ करना, तरबियत अल्लाह से कराओ , तरबियत अल्लाह का काम है हम तो रेहबर है,*
*★_ मशवरा इस्तेमाईयत का बंधन है, जिस तरह इस्लाम में नमाज़ का दर्जा है उसी तरह मशवरे का दर्जा दावत में है, अल्लाह ने कुरान में मशवरा और नमाज़ दोनों चीजो को बताया है,*
*★_ मशवरे की अहमियत नमाज़ की तरह है, नमाज़ की तरह ये अमल इस्तेमाई है, जिस तरह नमाज़ हर एक के लिए हैं उसी तरह मशवरा सबके लिए हैं,*
*”★_मस्जिद में आने वाले मुसल्ली का मशवरा है, ये ऐसा काम है जो सारे तबकों को जोड़ेगा !*
*”★_हमारे मशवरे की बुनियाद तब्लीगी उमूर पूरा करना नहीं है बल्कि मशवरे का मकसद उम्मत के दिलो में ये अहसास हो कि अल्लाह का दीन मिट रहा है!*
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*☞__मशवरा दावत में नमाज की तरह है।*
*”_मशवरा इस्तिमाई है, जिस तरह नमाज का इमाम है उसी तरह मशवरे का अमीर है, अगर अमीर से फैसला गलत हुआ तो जिस तरह नमाज की जिम्मेदारी इमाम पर है उसी तरह मशवरे की जिम्मेदारी अमीर पर है ।*
*★_ जिस तरह नमाज में इमाम के हवाले सारे नमाज़ी होते हैं उसी तरह मशवरे में अमीर के हवाले होना है।*
*★_ हर साथी से राय लो यह जरूरी है ,राय लेना ऐसा है जैसा इमाम को लुक़मा देना है । सारा मशवरा नमाज की तरह है । जो नमाज में होता है वहीं इमाम को लुकमा देता है, जो नमाज के बाहर है वह इमाम को लुकमा नहीं दे सकता । उसी तरह किसी को कुछ राय देना है तो मशवरे मै आकर कहे ,*
*★_अगर कोई यह सोचे कि मुझसे राय नहीं ली गई तो उसके अंदर तक़्ब्बूर है, राय देना काम का हक़ है , लुकमा देना नमाज का हक है ! हर एक साथी को यह सोचकर राय देना है कि मेरी राय में कितना नफ्स का दखल है ,मैं अल्लाह की कसम खाकर कहता हूं -जिसकी राय में नफ़्स का दखल नहीं होगा अल्लाह का फैसला उसकी राय के साथ होगा ।*
*★_ जिसकी राय पर फैसला ना हो वह तो खुश हो जाए , जिसकी राय तैय हो जाए वह इस्तग्फार करें ।*
*★_ मशवरे का नुकसान यह है कि ज़ाती मसाइल का दखल मशवरे में हो, पर्सनल चीज़ों का कोई इज्तिमाई मशवरा नहीं, जितना मशवरों को काम के लिए खाली करोगे उतना काम आगे बढ़ेगा ,*
*”★_सिफारिश राय हो सकती है लेकिन यह मशवरा नहीं होगा,*
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*☞__ सुन्नते इबादत, सुन्नते आदत _,”*
*★_ अल्लाह के साथ तनहाई बढ़ाओ, जब आप दावत से फारिग हो जाएं तो इबादत में लग जाओ और जब इबादत से फारिग हो जाएं तो दुआ में लग जाओ, ये अल्लाह का हुक्म है ।*
*★__अल्लाह के यहां अपने आपको क़ुबूल करवाओ, दो रास्ते हैं- दावत और इबादत ।*
*★__ सुन्नत का अहतमाम ज़्यादा हो, अल्लाह की मदद सुन्नत के साथ है, जिसकी ज़िंदगी में सुन्नत ज़्यादा होगी अल्लाह उसका रौब लोगों पर डालेंगे । सुन्नत ए दावत , सुन्नत ए इबादत, सुन्नत ए आदत ,*
*★_’ अपने आपको क़ुबूल करवाओ अल्लाह के यहां कुर्बानियों से, दीन की मेहनत में कुर्बानी और अल्लाह के ताल्लुक से आगे बढ़ा जाता हैं ।*
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*☞__अपनी इसलाह की फिक्र जरुरी_,*
*★_ अपने आप को बड़ा समझना यह शैतानी गुनाह है और यह मर्ज यानी दूसरे को हकीर समझना अपने आप को बड़ा समझना, ये दिखाई नहीं देता ,*
*★”_ हजरत जी रहमतुल्लाह अलैह फरमाया करते थे कि शुरू में यह नया साथी खूब मेहनत, खूब इबादत तस्बीह रोना धोना करता है लेकिन बाद में इस बात की भी फिक्र करना है,*
*★_ दूसरों की इसलाह ये फर्ज नहीं है, ये तो जिम्मेदारी है , लेकिन अपनी इसलाह फर्ज है,*
*”★_अज़ाइम और हिम्मत इरादे इसलिए हैं कि हमारा जान माल सलाहियत का सही इस्तेमाल हो और उम्मत का जान माल सलाहियत का भी इस्तेमाल सही हो,*
*”★_ अल्लाह की मदद जिम्मेदारी ओड़ने पर आती है,*
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*☞__दावत में इख्लास जरूरी है,*
*★_ दावत नस्लों तक के दरवाज़े खुला देती है,*
*★_ हर चीज़ के दो रूख होते हैं, दावत के भी दो रुख हैं। जितना इस काम में इखलास की ज़रूरत है उतना ही इस्तखलास यानी यकसुई की जरूरत है,*
*★_ और फिर करके यूं कहना कि मैंने तो कुछ नहीं किया बल्कि मैंने जुल्म किया ।*
*★_ इस मेहनत को रस्म से बचाना है, हर एक को यह सोचना, फिक्र करना जरूरी है कि तबलीग़ से मुझे क्या नफ़ा हुआ मेरी जा़त में क्या बदलाव हुआ यानी ईमान में कितनी बढ़ोतरी हुई अमल में क्या इज़ाफ़ा हुआ यह सोचना है,*
*★_ इस मेहनत में चलने वाला अपनी फिक्र ज़्यादा करें,*
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*☞_ काम को मकसद बना कर करो ,*
*★_अभी तक हम दावत को खैर का काम समझ रहे हैं ,मगर मकसद नहीं बनाया,*
*★_ अल्लाह अपने दीन का खुद मददगार है हामी है रहमत है बारिश के पानी की तरह इसको तो फेलना ही चाहिए।*
*★_ हमारी सारे आलम के एतबार से जिम्मेदारी है ,इस उम्मत की मदद भी बा आलम एतबार होगी ,नबियों की आमद बंद हुई लेकिन नबियों वाली मदद जारी है ।*
*★_अल्लाह उम्मत को उम्मत की हिदायत का ज़रिया बनाएंगे, जितनी जिम्मेदारी उठाई जाएगी अपने ऊपर, उतनी अल्लाह की मदद मिलेगी ।*
*★_ अल्लाह ने हक को हमेशा सामानों की कमी में फैलाया, मसला तो कुर्बानी पर महफूज है।*
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*☞_____दावत से दीन आता है_,*
*★_ दावत वाला दीन चाहेगा, दावत वाला हिदात चाहेगा,।*
*★_ उम्मत में इज्तेमाईयत ज़रूरी है, अगर तुम्हारी नमाजे तुम्हारी तिलावते तुम्हारा ज़िक्र अर्श तक पहुंच जाएं मगर तुममें इज्तेमाईयत नहीं आयी तो अल्लाह की मदद नहीं आएगी !*
*★_ हालात से नहीं घबराना है, हालात तो अल्लाह ताला इनाम दिलाने के लिए अता फरमाते हैं, जैसे गर्मी का रोज़ा, मोमिन को हालात से तरक्की होती हैं ,अल्लाह के इनाम जो आयेंगे वो हालात पर सवार हो कर आयेंगे !*
*★__ मुहम्मद ﷺ वाला दीन लाने के लिए इस्तेक़ामत शर्त है !*
*★_ हालात के साथ अपनी ताकत लगाते रहो, हालात के हिसाब से काम नहीं करना, हुक्म के हिसाब से काम करना है, काम हुक्म के हिसाब से होगा तो इस्तेक़ामत होगी ,*
*★_ खेतो का पानी देखा जाता हैं, फसल देखी जाती हैं, मेहनत का मकसद रुख का पलटना है ,*
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*☞__हम हुक्म वाले हैं ।*
*★_ हमारी इबादतें हमें तालीम देती हैं क हम हुक्म वाले हैं, हुक्म के ताबे है, हाल के ताबे नहीं,*
*★__ जो काम से जुड़ते हैं वो फितनो से बचेंगे, इससे कुर्बानियां वजूद में आएंगी , फिर इतात पर आयेंगे, जब इतात आएगी तो हिदायत आएगी !*
*★__ उसूल पर चलने का तरीका यह है कि अपने आपको उसूल पर लाओ ।*
*★__ पाबंदियां अपने लिए हों और आसानियां दूसरों के लिए हो, आसानियां अपने लिए और परेशानियां दूसरो के लिए ये सियासत का तरीका है, ये ज़ालिम बनते है, हमें पूरी उम्मत को दीन पर लाना है इसलिए रि'आयत ज़रूरी है ।*
*★__ असल इस काम का मिज़ाज उमूमी है, जितना उमूम ताकतवर होगा उतना काम ताकतवर होगा ।आम मुसलमानों में ये दीन आ जाए इसके लिए खुसुसियत से बचना है ।*
*★__ जो लोग दीन से निकल जाते है उसके दो सबब है , एक तो इखलास की कमी, दूसरा ना वाक्फ़ियत, ज़हालत ।*
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*☞_ अल्लाह नेको से काम लेता है ।*
*★__ जो नेक होगा , सालेह होगा, अल्लाह उसी से ये काम लेता है ।*
*★__ हमारी दावत अज़ान वाली तरतीब पर है, हम दावत भी देंगे और इबादत भी करेंगे ।*
*★_ हम सिफातो की दावत देंगे और उन सिफ़ातो पर खुद भी चलेंगे ,*
*★__ मशवरा ये है कि शहद की मक्खियों से शहद निकाल लिया जाए, मक्खी कोई मरे नहीं और गंदी भी ना हो , किसी साथी का दिल ना टूटे ।*
*★__काम करने वाला तिलमिलायगा अल्लाह के सामने, बंदो के सामने नहीं गिड़गिड़ाता, काम बनेगा अल्लाह की तोफीक से ।*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞_ पहुंचना और है पहुंचाना और है :-*
*★__ तीन कुर्बानियां लगती हैं, बच्चें, औरत और मर्द की, तीनों की कुर्बानियां मिल जाती हैं तो खुदा को तरस आता है, इब्राहिम अलेहिस्सलाम की दुआ फिर अल्लाह को पसंद आई ।*
*★_पानी पिलाते ही अंगूर नहीं आते, एक निज़ाम है, एक तरतीब है, मेहनत पूरी की जाती हैं तब असर दिखता है ।*
*★__ कहने का इंतज़ार करने वाला कच्चा नमाज़ी है, नमाज़ अज़ान से नहीं वक़्त से शुरू होती हैं, हम क्यों इंतज़ार करें अज़ान का कि कोई आएगा हमसे कहेगा ।*
*★__ अल्लाह की तरफ से जो वादे हैं वो वादे हमें बेचैन कर दें ।*
*★__ हर एक की बैचेनी का यह जुमला होना चाहिए कि दीन मिट रहा हो और हम ज़िंदा रहें ? जो जुमला अबु बकर रजियाल्लाहु अन्हू का था ।*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞_ काम के हक़ होने की दलील _,*
*★__ इस काम के हक़ होने और नबियों वाला होने की दलील ये है कि काम में रुकावटें आएंगी , अगर रुकावट ना हो तो फिर वो नबियों वाली मेहनत नहीं है , कोई क़ोम एसी नहीं गुजरी जिसने नबी के काम में साथ दिया ।*
*★__ रुकावटें हमें आगे बढ़ाए पीछे ना हटाए , इसके लिए इसका यकीन भी हो तो इस्तीकामत होगी ,*
*★__ दावत, नबुवत की मेहनत इसकी इब्तिदा से इंतेहा तक मुखालफत है, अगर ये चीज पैदा ना हुई तो फिर तंजीम कहलाएगी ।*
*★__ हजरत जी रह. फरमाते थे अगर काम में तुम्हे नागवारी पेश आए तो ये सोचा करो कि सहाबा किराम को ये नागवारी कहां पेश अाई और इन हालात में उन्होंने क्या अमल किया, किस तरह सब्र किया ।*
*★_ अगर कुर्बानी का मैयार उस सतह तक पहुंचा तो अल्लाह की मदद होगी ।*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞___ _ दावत में हिकमत ,*
*★_ अगर दावत में जोफ आया तो मेहनत में भी जौफ आएगा,*
*★_ यह काम दाईयाना मिज़ाज से चलेगा , इस काम में काम करने वालों की तबीयत में सब्र हो, इस रास्ते में आने वाली तमाम नागवारीयों पर सब्र करें ,तहम्मुल हो, इसी को आजमाया जाता है ।*
*★_ तंग दिल्ली से फिरके बनते हैं, उम्मत नहीं ।*
*★_ दाई के मिज़ाज में वुसत होती है, दावत में उमूमियत है , बातों से पहले हिकमत है, इकराम से बढ़कर कोई हिकमत नहीं, हिकमत पहले अच्छी बात बाद में, क्योंकि हिकमत से बात को कुबूल करवाया जाता है ,हिकमत से बड़ा कोई रास्ता नहीं दावत पहुंचाने का, इसलिए नबियों से बकरियां तक चरवाई है अल्लाह ने ।*
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*☞___ कुबूलियत की शराइत,*
*★_ अपने आप को अल्लाह के यहां कुबूल करवाओ ,कुबूलियत की शराइत यह है कि हमारी पूरी जिंदगी इस काम को करते हुए नमूना बने ।*
*★_हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैेहि फरमाते थे कि इस काम को करने वालों की जिंदगी इज़्तिमाई है ,लोग तुम्हारे मामलात अखलाक़ सभी देखेंगे ।*
*★_यह अल्लाह का जा़बता है अल्लाह का कानून है ,अल्लाह यह काम उनसे लेंगे जो अल्लाह के जा़बते पर पूरे उतरेंगे ।*
*★_हमारे मामलात अखलाक में इतनी तरक्की हो कि हम दीन के रहबर बने ,सबसे पहले सवाल है अपनी ज़ाती जिंदगी के नमूना बनने का ,ताकि अल्लाह हमसे काम ले क्योंकि काम अल्लाह का है, अल्लाह अपने दीन का मुहाफिज है अल्लाह के दीन की हिफाजत जिनके हाथों होगी अल्लाह यह काम उनसे लेंगे ।*
*★__हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैेहि फरमाते थे जिसका अपना ज़ाती ताल्लुक अल्लाह के साथ कमज़ोर है वह अल्लाह से राब्ता नहीं कर सकता ,इसलिए अल्लाह से जा़ती ताल्लुक गहरा हो।*
*★_ अल्लाह तो खुद चुनते हैं , दुनिया के काम के लिए दुनिया वाले चुनते हैं दीन के काम के लिए अल्लाह खुद चुनता है।*
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*☞___ सुन्नतों का अहत्माम _,*
*★_ अल्लाह की मदद नाजिल करवाएगा सुन्नतों का अहत्माम , जो अमल अल्लाह की रजा वाले अमल हैं वो अल्लाह की मदद लाएंगे , अल्लाह ने सुन्नतों में जोहर रखा हैं, हमें तीन ऐतबार से सुन्नतों पर आना है :- 1- सुन्नत ए दावत , 2-सुन्नत ए इबादत , 3-सुन्नत ए आदत ।*
*★__ सुन्नत ए दावत ये है कि तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम के दरमियान ये मेहनत मुश्तरक रही हैं, इसमें नबुवत वाला, सहाबा वाला मिज़ाज आवे ।*
*★__ सुन्नत ए इबादत ये है हमारा अल्लाह के दरमियान ताल्लुक गहरा हो , अपनी इबादत में कमाल पैदा करो , जितना हमारा ताल्लुक अल्लाह से गहरा होगा उतनी मदद मिलेगी ।*
*★__ सुन्नत ए आदत ये है कि हमें सुन्नतों के बगैर चेन ना आवे , मुसलमान को गैरों से अलग ही सुन्नत करेगी । सुन्नतों से इम्तियाज़ हासिल होगा , हमें गैरों में छांटा ही सुन्नतों की वजह से जाएगा ।*
*★”__ हममें और सहाबा में यही फर्क है कि सहाबा सुन्नतों पर अमल करते थे सुन्नत होने की वजह से और हम सुन्नत छोड़ देते है सुन्नत होने की वजह से कि सुन्नत ही तो है ।*
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*☞___ दावत के उसूल _,*
*★_ इस काम के करने वालों का मिज़ाज कैसा हो ? हर आदमी अपने मिज़ाज स नहीं चले , इस काम में तो मिजाजे नबुवत चलेगा । नबुवत के मिज़ाज में सबसे बड़ी चीज़ वो नरमी है , इसलिए इस काम में सख्ती नहीं है , मु़जा़करा है , दाई के मिज़ाज में नरमी होना चाहिए ।*
*★__ जितने दावत के उसूल है, इताअत पर है , ये काम तरगीब से लिया जाएगा । बे उसूली को छोटा किया करो , बड़ा नहीं , बे उसूली पर साथियों को उसूल की तालीम दो । हमारे यहां तजकीर है, बस याद दिलाते रहो , इस काम को वो करेंगे जो भूलते चले आ रहे है , कोई फरिश्ते नहीं आयेंगे ।*
*★“_ किसी की बे उसूली तलाश ना करो , देख लो तो किसी को खबर ना करो, ये खबर करने वाले ने उससे भी ज्यादा बुरा काम किया, जिसने जि़ना की खबर की उसने ज़िना से बड़ा काम किया , गीबत ज़िना से बड़ा गुनाह है ।*
*★__ गलतियों की, बे उसूली की खबर देने से बातिल फैलता है ।*
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*☞___ कुर्बानियों पर नज़र हो ,”*
*★__ अपनी कोताहियो पर और साथियों की कुर्बानियों पर नज़र रखो, इससे इसार होगा, इजतिमाईयत होगी, बे उसूली को छिपाना तरगीब बनेगा, हमारे यहां जिस चीज को अमल में लाना है उसका तजकिरा है,*
*★__ इस रास्ते में दो बे उसूलिया होती हैं – काम के साथ और काम करने वालों के साथ ।*
*★_ अगर अपने साथ बे उसूली हो तो दरगुज़र करे, अगर काम के साथ बे उसूली हो तो इस्तगफार करें, ना नबी को शिकायत का हुक्म है, ना नबी चाहते है कि उनसे कोई किसी की शिकायत करे ।*
*★_ अपने साथियों के लिए इस्तगफार करे, हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम तो मुशरिकीन के लिए भी इस्तगफार कर रहे ।*
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*☞__ मशवरे की अहमियत,*
*★__ अल्लाह ने मशवरे को नमाज़ के साथ बयान किया, इससे मशवरा की अहमियत का अंदाज़ा लगाओ । उम्मत इबादत पर जमा होगी नमाज़ में , दावत पर जमा होगी मशवरे में ।*
*★_ काम का मशवरा है, हर ईमान वाले में चाहे किसी दर्जे का हो , उसको दिल में अल्लाह के दीन की फ़िक्र पैदा करना, ये मशवरा का मकसद है । मशवरा काम से जुड़ने का सबब है और मशवरा काम से कटने का सबब भी है , इंतिजाम का मशवरा अलग हो ।*
*★_ अपने तकाजो को कुर्बान कर के मशवरे में आओ , अल्लाह ने मशवरे को तुम्हारे लिए रहमत बनाया है । साथियों से राय लो, जब राय नहीं ली जावेगी तो तकाज़े बोझ बन जाएंगे ।*
*★_ इजतिमाई तौर पर पूछना, सोचना और करना ।*
*★__ हमारे यहां जान का मुतालबा है, माल का नहीं, ये काम को खत्म करने वाली चीज़ है ( माल ),*
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*☞__काम का यकीन हो _,*
*★__ अगर काम का यकीन नहीं तो आमाले दावत नाकिस रहेंगे ।*
*★__ घर के अंदर किए जाने वाले आमाल, अल्लाह रब्बुल इज्ज़त इन आमालों के ज़रिए तुम्हे पाक करना चाहते है ।*
*★_ तालीम, ज़िक्र इतना मोअस्सिर अमल हैं कि उमर रजि. क़त्ल के इरादे से चले लेकिन कैफियत बदल गई, ये घर की तालीम का असर था ।*
*★__ जिसकी तरगीब ना हो उसकी तरतीब कभी क़ायम नहीं हो सकती ।*
*★_ अल्लाह के रास्ते के फज़ाइल खूब बयान किया करो ताकि हमारी तबीयत बदले मिज़ाज बदले, नुसरत आज भी है इसका यक़ीन होना चाहिए ये इस्तेका़मत का सबब बनेगा,*
*★_ इस्तेका़मत का राज़ ये है कि इस मेहनत को अपने लिए करो, दावत अपनी ज़ात के लिए हैं, अल्लाह के अज़ाब से डराना खुद अपनी जा़त के लिए हैं ।*
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*☞__ अपनी इसलाह की फ़िक्र ,*
*★__ असल दावत दाई के खुद के लिए हैं , जिस तरह तिजारत ताजिर की अपने लिए है ।*
*★__ इस काम के जरिए ईमान ( दिल में ) उतरे ये सबसे पहले है , ये इस काम की बुनियादी चीज है , असल कड़ी है ।*
*★__ इमानियत का बोला जाना हमारे माहौल में कम हो गया है, ज़्यादा होना चाहिए, गश्तो में, बयानों में, मुलाकातों में ….।*
*★_ ईमान के बगैर इखलास नही होगा, अल्लाह के वादे भी ईमान के अमाल पर हैं , अजर भी ईमान के बा कद्र ।*
*★__ हम तो पूरे यकीन के साथ कहते है के 6 नंबर में पूरा दीन है , हम इसकी हकीकत को जानते नहीं हैं , क्या अक़ाइद , क्या इबादात , क्या मामलात , 6 नंबर एक समुंदर है , इसकी गहराई में जाओ तो पता चलेगा इसमें बहुत वुसत है ।*
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*☞__यक़ीन सीखने के लिए चार रास्ते-
*★_(1)- अल्लाह की तोहीद _, किसी भी अमल को, किसी भी इबादत को, दीन के किसी भी शोबे को हदीस के बगैर नहीं समझ सकते ।*
*★__ चार रास्तों से यकीन सीखा जाए, हमारे बयानात में, मुलाक़ात में, मुज़ाकरो में अल्लाह की तोहीद से ज़्यादा अल्लाह की कुदरत, अल्लाह की निशानियां, अल्लाह की अजमत से होना, अल्लाह की किब्रियाई को इतना बयान करो कि अंदर से तब्दीलियां हो ,*
*★__ ये यकीन के बदलने की मेहनत है , इससे अल्लाह का कुर्ब हासिल होगा , बगैर तौहीद के कोई नेकी नहीं , इतनी अजमत पैदा करो कि अपने तकाजों को दबाने वाले बने ।*
*★_ मजमे को सिर्फ इबादत, अमाल पर उठाया तो ये बैठ जाएगा, दावत के बगैर सारी उम्मत खसारे में है ,*
*★__ ना मुमकिन को बोलने से यकीन बनेगा, मुमकिनात को बोलने से यकीन बिगड़ेगा ।*
*☞_ (2) अंबिया अलैहिस्सलाम के वाकयात और (3) सहाबा किराम के वाक़यात,*
*★__ अंबिया अलैहिस्सलाम के साथ जितनी भी गैबी मददे हुई हैं उन्हें बयान करो ताकि इसके ज़रिए जमाव पैदा हो,*
*★_ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त इस काम को करने वालो की मदद 50 सहाबा के बराबर करेंगें, सहाबा की बरकतो को बयान करो करामातो को नहीं , करामातों के बयान से शख्सियत का यकीन आता है ,*
*★__ जिनकी तरह का ईमान लाने का हमें हुक्म दिया गया है हमें तो उनको बयान करना है , सहाबा वाले ईमान को लाने के लिए उनके गैबी किस्से बयान करना होगा, अल्लाह का यकीन पैदा करने के लिए इसके अलावा कोई रास्ता नहीं कि सहाबा के किस्से बयान करने में ही दीन का फ़ायदा है, वरना हमारे ओर अल्लाह के दरमियान असबाब सबब बन जाएंगे,*
*★__ अल्लाह यकीन वालो के लिए आज भी करता है जैसा ईमान होगा वैसा गुमान होगा, हमारे अल्लाह के दरमियान अमाल जरिया है, अमाल की दावत असबाब के इंकार के साथ है ।*
- (4) चोथा रास्ता – ईमान को अलामात से बयान करना,*
*★_ ईमान को उसकी अलामात से बयान करो, ताकि उम्मत मै ईमान के ज़ोफ का अहसास हो ,*
*★__ यकीन सिखने का माहौल बनाना है, मस्जिद की आबादी से तालीम और ईमान का हल्का कायम करना, मस्जिद की आबादी के फजायल बयान करो।*
*★_ लोगो के असबाब छुड़ाना हमारा काम नहीं है अगर ये अपने शोबे छोड़ कर तबलीग में आए तो दीन नहीं आएगा, जो दुनिया के नुकसान को दीन पर डालेगा वो दीन से बरकत कैसे लेगा ।*
*★_ अमाल को असबाब पर मुकद्दम करना, अल्लाह अपने गैर से मदद लेने वाले को गैर के हवाले कर देता है ।*
*★_ अपनी इबादत में कमाल पैदा करो, अल्लाह के साथ ताल्लुक गहरा होना चाहिए , दावत इबादत में कमाल पैदा करने के लिए हैं ,*
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*☞_ फज़ाइल वाला इल्म _,*
*★_ फज़ाइल का इल्म आमाल में एहतसाब पैदा करने के लिए हैं , अगर तन्हा बैठा करो तो आमाल का मुहासबा किया करो ,*
*★_नमाज से पहले नमाज़ को सोचो, फज़ाइल का मुजाकरा करो । तालीम का मकसद हर अमल के करने के वक्त उसके फज़ाइल सामने हो ।*
*★_ तालीम मस्जिद का अमल है, बाहर वाले इसके ताबे है ।*
*★_दीन को किसी शोबे का इंकार मत करो ,इसमें कोई शक नहीं कि यह काम बड़ा है । इसके जरिए से दीन के हर शोबे को पानी मिलेगा । दीन के सारे शौबो की अहमियत हमारे अंदर होनी चाहिए ।*
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*☞__ अल्लाह का ध्यान _,,*
*★ _ अल्लाह की इताअत अल्लाह के ध्यान से होगी ।*
*★__ बा वजु तन्हाइयो में ज़िक्र एहतमाम से किया करो , एहतमाम उसको कहते है जिसके लिए अहम काम छोड़ दिया जाए ।*
*”__ अल्लाह को याद करो (दुनिया से) कट कर , अल्लाह के ध्यान के बगैर ज़िक्र सस्ती पैदा करेगा ।*
*★_दिल जमा कर किया करो , ज़ुबान को दिल के ताबे किया करो ज़िक्र में । अल्लाह मोमिन का वो अमल क़ुबूल करते हैं जिसमें उसका दिल भी शरीक हो ।*
*★__ आदत असल नहीं , ध्यान असल है , सारे गुनाह गफलत की वजह से और सारी नेकियां ध्यान की वजह से होती हैं ।*
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*☞__ ज़िक्र _,*
*★_ ज़िक्र सिर्फ तस्बिहात का नाम नहीं है, पूरी ज़िन्दगी अल्लाह के हुक्म और हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के तरीके पर होना ज़िक्र है ।*
*★_ ज़िक्र अल्लाह को गैर से कट कर याद करना है । सबसे बड़ा ज़िक्र नमाज़ है, सारी इबादत में अल्लाह की पाकी बयान करना मकसूद है, नमाज़ से ले कर मस्नून दुआओ तक ज़िक्र है ।*
*★_ जिन आमाल को अपने अंदर पैदा करने की मेहनत है उन आमाल को छोड़ कर मेहनत हो रही हैं, अल्लाह की इताअत अल्लाह के ध्यान से है ।*
*★_ सारे आमाल पूरे पूरे करने है और पूरे वक़्त को ज़िक्र बनाना है ।*
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*☞__ इकराम ___,*
*★__ हर हक वाले को उसका हक दे दो , इसकी मश्क अल्लाह के रास्ते में होगी , हमें खिदमत के ज़रिए इकराम की मश्क करनी है । इकराम तवाजो के बगैर हासिल नहीं होगा, किब्र का इकराम से कोई ताल्लुक़ नहीं, सारा इकराम तावाजो से होगा ।*
*★_ हमारी हैसियत ही क्या है , आप सल्लल्लाहो अलैेही वसल्लम जंगल में लकड़ियां चुनने चले गए और लकड़ियां लाए, हमारे अंदर आप सल्लल्लाहु अलैेही वसल्लम वाले अखलाक आ जाएं ये इकराम का मुंतहा है ।*
*★_ हर मुसलमान की नोइयत का लिहाज़ करना ये इकरामे मुस्लिम है , सारी उम्मत को एक जगह जमा करना है , यही एक जगह है जहां मुख्तलिफ रंगों के, खयालात के लोग जमा है अल्लाह के रास्ते में ।*
*★__ इस रास्ते की तकलीफ़ को नियामत समझना अपनी हैसियत से हर खिदमत को बड़ा समझना ।*
*★_मस्जिद की सफ़ाई भी अपने ज़िम्मे है, हज़रत उमर रजी. कूफा की मस्जिद में झाड़ू लगाने जाते थे अपनी खिलाफत के ज़माने में ।*
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*☞___ इख्लास ___”*
*★_ अल्लाह को राज़ी करने के लिए अमल करो । एक है नियत को सही करके लगना और एक है नियत का सही होना । इख्लास का इम्तिहान इस्तकबाल में होता है ।*
*★_ अल्लाह के गैर से उम्मीद ना रखना, जो रखेगा अल्लाह उसे गैर के हवाले कर देता है ।*
*★_ रिया का खयाल भी ना आवे, पेशाब का एक कतरा भी दूध की बाल्टी में गिर जावे सारा दूध ख़राब हो गया ।*
*★_ तेरा अमल कितना ही अच्छा हो, एक दफा भी गैर का खयाल आ जाना सारे अमल को बिगाड़ेगा ।*
*★_ शिर्क पर अज़ाब है , ईमान पर अजर है, जिस तरह ईमान मांगा जाएगा उस तरह इखलास मांगा जाएगा, दोनों एक ही चीज़ है ।*
*★_ बड़े बड़े अमल करने वाले सखी, शहीद, आलिम जहन्नम में डाल दिए जाएंगे रिया की वजह से , अबु हुरैरा रजी. बार बार बेहोश होते थे इस हदीस को सुनाते हुए ।
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*☞__ कलमे की दावत _,”*
*★_ उम्मत की बेदीनी का सबसे बड़ा सबब ये है कि उम्मत के दरमियान में से कलमे की दावत निकल गई क्योंकि दावत को गैरो के लिए समझ लिया गया । जब कलमा दावत में से निकल गया तो यकीन में से भी निकल गया ।*
*★_ कलमे का इखलास ये है कि कहने वाले को हराम से रोक दे । हराम ईमान ? झूट भी है ईमान भी है, गीबत भी है ईमान भी है, सूद भी है ईमान भी है, सबसे ज़्यादा ईमान की जरूरत है और इससे ही गाफिल है ।*
*★_ सारे अमल अपने औकात से है ईमान हर वक़्त होना ज़रूरी है , ईमान को ईमान की अलामात में तलाश करो, अपने ईमान में तजदीद करो , जहां इसका ज़िक्र भी मकसूद है इसके तज़किरे भी मतलूब है, हदीस में आता है इतना ज़िक्र करो कि लोग तुम्हे पागल कहने लगे ।*
*★_ इस तरह ईमान की मजलिसो में ईमान को सीखने और ईमान के तजकिरे ये सहाबा इकराम की सुन्नत है ।*
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*☞__यकी़न का दारोमदार अक़ल पर नहीं,*
*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैेही वसल्लम की लाई हुई तमाम खबरों को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैेही वसल्लम के एतमाद पर यकी़नी मानने का नाम ईमान है ।*
*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैेही वसल्लम को सफरे मेराज हुआ, सुबह से पहले पहले आपकी वापसी हो गई , सुबह को आपने बस्ती वालों से कहा तो कमज़ोर यकीन वाले मुरतद हो गए ।*
*★_अबु बकर रज़ी. ने कहा – बेशक मै यकीन करता हूं । अल्लाह ज़ाहिर के खिलाफ करेंगे, नबी की खबर यकीन के खिलाफ थी । दीन का मदार अक्ल पर नहीं है, अक्ल का मदार तो बहुत नाकीस है,*
*★_ अल्लाह ने अक्ल के सौ हिस्से किए, एक हिस्सा सारी मखलूक को तकसीम किया, अक्ल के 99 हिस्से तने तन्हा मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैेही वसल्लम को दिए ।*
*★__ दीन को वो ही बदलेंगे जो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैेही वसल्लम की खबरों पर अपनी अक्ल लड़ाएंगे , आपकी नबुवत कामिल है आपका दीन कामिल है ।*
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*☞__कौल अमल से साबित होगा..,*
*↬• कौल से भी और अमल से भी साबित करो, ईमान के बगैर अक़ीदा ठीक नही हो सकता, अक़ीदा ठीक हुए बगैर अमल ठीक नही होते.*
*★• अल्लाह के ग़ैर का यक़ीन निकालना शर्त है अल्लाह की ज़ात से फ़ायदा उठाने के लिए, हम दिल की गहराई से अल्लाह के ग़ैर का इन्कार करे, तो ये देखा जाएगा के इसका क्या असर हुआ.*
*★• जितना अल्लाह के ग़ैर का इनकर करेंगे, उतना यक़ीन की माया पैदा होगी, अल्लाह की मोहब्बत होगी तो उतना अमल पर चलना आसान होगा.*
*★ • इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने सबका इनकार किया, सारी शक्लों को तोड़ा.*
*★. ईमान को अलामतो से बयान करो. सहाबा ने पूछा ईमान की अलामत क्या है ?आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:जब कोई नेकी तुझे ख़ुश करे और गुनाह ग़मगीन करे तो जान ले के तु मोमिन है.*
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*☞___तक़वे का कलमा _*
*★_ मोमिन इस कलमे का ज्यादा हकदार है क्योंकि यह तकवे का कलमा है और तक़वा मोमिन की शान है ।*
*★_जब तक अल्लाह का डर नहीं होगा तब तक गुनाह से बचेगा नहीं, तनहाई में भी खुदा से डरना इसका नाम तकवा है ।*
*★_ गुनाह करने में अल्लाह के गैर का खयाल उस गुनाह से बड़ा है (कि मुझे किसी ने देखा तो नहीं), तकवे के बिना कोई नेकी नहीं ।*
*★_ मुत्तकी़ को हराम हजम नहीं होगा । यह तकवे की अलामत है । झूठ बोलना निफाक़ की अलामत है । जब यकीन कमजोर हो जाते हैं तो अलामाते निफाक़ खूबियां बन जाती हैं ।*
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*☞___ तक़्वा मोमिन की शान है _,*
*★_ लुकमा समुंदर है खयालात इसके मोती हैं । जैसा पानी होगा वैसा मोती होगा । गंदे नाले में कहीं मोती नहीं बना करते ।*
*★_ एक जाहिरी गंदगी है जैसे खिंजीर नापाक है इसकी नजासत नजर आने वाली है, एक नजासत नजर आने वाली नहीं है । हजरत फरमाते थे यह दोनों नजिस हैं । अपने बच्चों को खिंजीर खिला देना और सूद से कमाकर खिलाने मै कोई फर्क नहीं ।*
*★_ अपने मामलात को हुक्म पर लाओ । यही वह खून है जो आपसे कु़रान की तिलावत करवाएगा । जो सारे जिस्म के आजा़ से अमल करवाएगा ।*
*★_जिस माल की आमद का रास्ता हराम है उसका खर्च हलाल नहीं हो सकता ।*
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*☞___ तकवे पर अल्लाह के पांच वादे है ,*
*★_ 1_ हराम से बचने का ऐसा रास्ता निकालेंगे कि उसे हराम से बचाकर निकालेंगे , चाहे कितना ही मुश्किल हो सातों ज़मीन सातों आसमान से बचाकर । जैसे यूसुफ अलैहिस्सलाम को बचाया बंद दरवाजों में ।*
*★_हम बहुत से गुनाहों में इसलिए पड़े हुए हैं कि इससे निकलना मुश्किल है । अल्लाह अपने बंदों को हराम से ऐसे ही बचाते हैं जेसे हम बीमार को पानी से बचाते हैं ।*
*★_ अल्लाह की तरफ से मदद सब्र पर आती है तकवे के साथ । जिसमें तक्वा नहीं वह मजलूम नहीं जालिम है ।*
*★_यूसुफ अलैहिस्सलाम पर सारे दरवाजे अपने आप खुलते चले गए । अल्लाह का वादा है जो तकवा अख्तयार करेगा हम उसे हराम से बचाकर निकालेंगे ।*
*↬• 2- अल्लाह तआला रोज़ी ऐसी जगह से देंगे जहाँ उसका गुमान भी नही होगा, कि एक सहाबी पेशाब कर रहे और चूहा अशरफी लाकर दे रहा.*
*★• कायनात अल्लाह कि तारीफ के लिए है, ज़मीन पर जितने नक्शे है, कुदरत के मज़ाहिर है, कायनात के नक्शे पर अल्लाह के कोई वादे नही.*
*★• असबाब के साथ अल्लाह के वादे भी नही, कुदरत भी नही, अल्लाह के वादे हूक्मो के साथ है. हम सब असबाब से जुड़कर चलते है, असबाब को सबब बनाकर चलते है, अल्लाह के सामने असबाब नही अमल पेश करो.*
*★. हज़रत जी रह. फरमाते थे सबब बनाकर दुआ करना, ये मामला अल्लाह का ग़ैर मुस्लिमों के साथ है कि तुम असबाब बनाओ हम तुम्हारे काम बनाएंगे, अल्लाह उन्हें उनके असबाब में मुतमईन किए हुए है.हमारे और अल्लाह के दरमियान असबाब सबब नही है, अल्लाह के वादे हूक्मो के साथ है.*
*★• असबाब इम्तिहान के लिए है, इत्मीनान के लिए नही, आज़माइश के लिए है कि मेरा बन्दा इन असबाब में अमल कैसे करता है.आमाल को असबाब पर मुकद्दम करोगे तो अल्लाह की मदद होगी,*
*↬• 3- अल्लाह काम में आसानी पैदा फ़रमा देते है. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के लिए लोहे को नरम किया, रोज़ाना एक ज़िरा बनाते जो 6 हज़ार दिरहम में बिकता.*
*★• आसानी इसलिए क्यूंकि तक़वा है. अल्लाह को बन्दे की वो कमाई सबसे ज़्यादा महेबुब है जो ख़ुद कमाता है.*
*★. 4- जो तक़वा इख्तियार करता है अल्लाह तआला उसकी पिछली सारी खताओ को माफ़ कर देंगे.*
*★• अल्लाह को अपनी तरफ आने वाला बहुत पसंद है कि वो दौड़ कर आते है.*
*★• 5- अल्लाह तआला उसके आमाल के अज्र को बड़ा देते है.*
*★• मुसलमान हुक़ूक़ की अदाएगी से बताए कि इस्लाम क्या है• और सुन्नतो की पाबन्दी के बगैर गैरो से छांटा नही जा सकता, सुन्नतो का ऐसा एहतमाम करो कि जिसको देखकर अल्लाह याद आवे, जो सुन्नत का पाबंद है वो अल्लाह का वली है.*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞___सुन्नत का एहतिमाम..,*
*↬•मुसलमान को सुन्नत के बगैर गैरो से छांटा नही जा सकता, बगैर तक़वे मुसलमान गैरो से मुमताज़ नही हो सकता.., जब तक मुसलमान सुन्नत पर आकर गैरो से मुमताज़ नही होगा उस वक्त तक अल्लाह कि तरफ से कोई फैसला नही होगा.*
*★• मौलाना इलियास साहब रह. फ़रमाते थे:लोग कहते है, क्या करे? हम पिस रहे है,कट रहे है. हज़रत फ़रमाते थे: लोहे की आरी से लकड़ी को काटा जा रहा था तो लकड़ी ने कहा आरी से कि तूने मुझे किस तरह दो टुकड़े कर दिया. तो आरी ने ये कहा, मैं तुझे तब तक नही काट सकती थी जब तक तेरा हिस्सा मुझसे आकर नही मिलता, लकड़ी का दस्ता होता है. गौर करने की बात है अगर लोहे की आरी में लकड़ी का दस्ता ना होता तो आरी को हाथ में लेकर लकड़ी को काटना मुश्किल था, कि पहले काटने वाले का हाथ कट जाता.*
*★. जब मुसलमान अपने तरीक़ो को छोड़कर गैरो के तरीकों पर जाएगा, और गैरो के तरीक़ो के साथ मख्लूत हो जाएगा तो इनकी हिफ़ाज़त, इनकी इज्तेमाईयत सब ख़त्म हो जाएगी, ग़ैर मुसलमान पर इसलिए गालिब हो जाएंगे कि इनका एक हिस्सा ग़ैर के साथ शामिल हो गया.*
*★• मुसलमान को इम्तियाज़ हासिल होगा जब ये अपने आपको गैरो के तरीक़ो से पूरी तरह बा-ऐतबार मामलात, माशरत, अख़लाक़ हर ऐतबार से निकाल ले.*
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*☞_ पूरा दीन दावत के जरिए ,*
*★_ हम पूरा दीन दावत के जरिए अपनी जिंदगी में लावें । इसके लिए वह आमाले दावत मतलूब है जो सहाबा किराम किया करते थे । जब तक उम्मत में दावत इलल्लाह का वजूद रहेगा उम्मत में दीन रहेगा ।*
*★_यह बात हक़ है जब दावत निकल जाएगी तो दीन भी निकल जाएगा ,यह बाद बिल्कुल हक हे नबी आए दावत आई दीन आया नबी गये दावत गई दीन दीन गया ।*
*★__इस ज़माने में अगर दावत इलल्लाह को छोड़ा जाएगा तो उम्मत जिस खसारे में पड़ी है उससे नहीं निकल सकती । क़ुरान क़सम खाकर कहता हे कि सिर्फ आमाल निजात के लिए काफी नहीं है जब तक तवासव बिल हक़ , तवासव बिस सब्र ना हो ।*
*★_ ईमान आमाले सालेहा की तरह सबबे निजात हे क्योंकि तवासव बिल हक़, तवासव बिस सब्र इसके बगैर वो आमाले सालेहा नहीं हो सकता जो निजात के लिए शर्त है । जिस दर्जे का अमल ईमान चाहिए वह दावत इलल्लाह से पैदा होता है । जितनी उम्मत में दावत आम होगी नकल हरकत आम होगी उम्मत में दीन आएगा ।*
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*☞_ दावत फ़र्ज़ ए ऐन है __,*
*↬• दावत से उम्मत में असबाब ए हिदायत बड़ जाएँगे, जिस तरह दावत के छूटने पर असबाब ए जहालत बढ़ते है, दावत का छूट जाना ये उम्मत की गुमराही का सबब है, दावत का वजूद उम्मत की हिदायत का सबब है, ये बात बिलकुल हक़ है,*
*★_ जो काम अपनी जात के लिए किया जाता है फर्जे ऐन होता है जो दूसरों के लिए किया जावे वह फर्जे किफाया है, अल्लाह के आजा़ब से डराना खुद डराने वाले की अपनी जा़त के लिए है, ना मानने वालों को कोई फायदा नहीं होगा। दावत देने वाले को फायदा ना हो यह मुमकिन नहीं, दावत दाई के लिए मुफीद है।*
*★_ ईमान फर्ज़े ऐन है नमाज़ फर्ज़े ऐन है अल्लाह को याद करना फर्ज़े ऐन है, इल्म हासिल करना फर्ज़े ऐन है, हुकुक़ की अदायगी फर्ज़े ऐन है, इखलास का सीखना फर्ज़े ऐन है । फिर जब इन चीज़ों का अपने अंदर पैदा करना फर्ज़े ऐन है तो फिर इन चीज़ों को अपने अंदर पैदा करने की मेहनत फर्ज़े ऐन हुई या फर्जे किफाया ?*
*★_असल में मुगालता यहां से हुआ कि भलाई का हुक्म करना और बुराई से रोकना दूसरों के लिए है । हजरत थानवी रहमतुल्लाह ने अपने मलफूज़ात में लिखा है – मै जिस मुन्कर ( बुराई ) को अपने अंदर से निकालना चाहता था उससे दूसरों को रोका करता था और जिस मारूफात (भलाई ) को अपने अंदर पैदा करना चाहता था उस पर दूसरों को आमादा करता था ।*
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*☞_ दावत फ़र्ज़ ए ऐन है __,*
*↬• दावत से उम्मत में असबाब ए हिदायत बड़ जाएँगे, जिस तरह दावत के छूटने पर असबाब ए जहालत बढ़ते है, दावत का छूट जाना ये उम्मत की गुमराही का सबब है, दावत का वजूद उम्मत की हिदायत का सबब है, ये बात बिलकुल हक़ है,*
*★_ जो काम अपनी जात के लिए किया जाता है फर्जे ऐन होता है जो दूसरों के लिए किया जावे वह फर्जे किफाया है, अल्लाह के आजा़ब से डराना खुद डराने वाले की अपनी जा़त के लिए है, ना मानने वालों को कोई फायदा नहीं होगा। दावत देने वाले को फायदा ना हो यह मुमकिन नहीं, दावत दाई के लिए मुफीद है।*
*★_ ईमान फर्ज़े ऐन है नमाज़ फर्ज़े ऐन है अल्लाह को याद करना फर्ज़े ऐन है, इल्म हासिल करना फर्ज़े ऐन है, हुकुक़ की अदायगी फर्ज़े ऐन है, इखलास का सीखना फर्ज़े ऐन है । फिर जब इन चीज़ों का अपने अंदर पैदा करना फर्ज़े ऐन है तो फिर इन चीज़ों को अपने अंदर पैदा करने की मेहनत फर्ज़े ऐन हुई या फर्जे किफाया ?*
*★_असल में मुगालता यहां से हुआ कि भलाई का हुक्म करना और बुराई से रोकना दूसरों के लिए है । हजरत थानवी रहमतुल्लाह ने अपने मलफूज़ात में लिखा है – मै जिस मुन्कर ( बुराई ) को अपने अंदर से निकालना चाहता था उससे दूसरों को रोका करता था और जिस मारूफात (भलाई ) को अपने अंदर पैदा करना चाहता था उस पर दूसरों को आमादा करता था ।
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*☞_ बतौर यकी़न दावत _,★*
*★_ जिंदगी में पूरा दीन लाओ । पूरा दीन पूरे दिन की दावत से आएगा ।*
*★_एक अमल की दावत बतौर अमल के ,एक अमल की तरफ बुलाना बतौर यक़ीन के । बतौर यक़ीन के दावत देने वाला अपने अमल में तरक्की करेगा चाहे दूसरे ना माने ।*
*★_ हमें तो अल्लाह ने ऐसी मेहनत दी है कि अगर इस मेहनत पर दूसरे राजी़ ना हो तो यूं कहें कि अल्लाह मेहनत करने वालों को मेहरूम नहीं फरमाएंगे । इतनी आसान मेहनत है ।*
*★_जब तक इस मेहनत को अपनी जा़त के लिए नहीं करोगे तब तक इस मेहनत पर इस्तेका़मत नहीं होगी । दावत दाई के लिए मुफीद है चाहे दूसरे ना माने क़यामत में वो अम्बिया अलैहिस्सलाम जिनकी बात को किसी ने भी नहीं माना वह भी उतने ही कामयाब होंगे जितने जिनके मानने वाले कई होंगे, यूं नहीं कहा जाएगा कि यह अपनी मेहनत में नाकाम हो गए ।*
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*☞_ दावत निजात का यकी़नी सबब है _,★*
*★_उम्मत में से भलाई का हुक्म करना और बुराई से रोकना इसलिए खत्म हो गया क्योंकि इस काम को दूसरों की इसलाह के लिए समझा ।*
*★_बुराई से रोकना पहले रोकने वाले की अपनी जात के लिए है भलाई का हुक्म करना अपने अंदर भलाई पर चलने की इसतेदाद पैदा करने के लिए है ।*
*★_ जब यह मेहनत दूसरों के लिए होगी तो या तो मायूसी होगी या गुस्सा पैदा होगा ना मानने वालों की वजह से ।*
*★_ हजरत थानवी रहमतुल्लाहि अलैह के मलफुजा़त में है – मैं जिस चीज को अपने अंदर पैदा करना चाहता था उसकी दावत दूसरों को दिया करता था और जिस चीज को अपने अंदर से निकालना चाहता था उससे दूसरों को रोका करता था ।*
*★_ मुनकिरात से रोकना दाई को मुनकिरात से नफरत पैदा करेगा और बचने की इसतेदाद पैदा करेगा, मारुफात का हुक्म देना दाई के अंदर मारुफात पैदा करेगा ।*
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*☞_ उम्मत जारी पानी है,*
*★_सिर्फ वक्त लगाना काम नहीं है इस काम का मकसद तो उन तमाम चीजों का उम्मत में जिंदा करना है जो कुछ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम लेकर आए ।*
*★_ये उम्मत जारी पानी की तरह है, अगर उम्मत इस जारी पानी की तरह हरकत में रहेगी तो इसके सारे औसाब पानी की तरह होंगे, उम्मत पाक रहेगी और दूसरों को भी पाक करेगी और अगर इसमें ठहराव आ गया दीन की निसबत पर नकल हरकत खत्म हो गई तो जो गंदगी असबाब के यकीन की, आखिरत से गफलत की, अल्लाह के हुक्मों को तोड़ने की, आमाल से ऐराज की, मामलात के खराबी की, जितनी गंदगी गिरेगी ,ये खुद भी खराब होगा और दूसरों के लिए भी नुकसान का सबब बनेगा।*
*★_यह उम्मत उम्मत है, यह उम्मत कानिक़ है , उम्मत कहते हैं जो दूसरों को दीन सिंह , का़निक कहते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी पूरी इताअत करें ,*
*★_शैतान ने रोक दिया कि पहले तुम अमल करो फिर दावत दो । यह जरूरी नहीं ।अमल और इल्म दावत के लिए जरूरी नहीं । दावत तो है ही अमल वाला बनने के लिए ।*
*★_जो आदमी अपना दीन बचाने के लिए दूसरों की बेदीनी की फ़िक्र ना करें उनकी बेदीनी उसे भी नहीं छोड़ेगी।पडौस की आग को नहीं बुझाया तो तेरा अपना घर भी जलेगा।,*
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*☞_ _दावत निजात का सबब,*
*★_ दावत दाई की निजात का यकी़नी सबब है चाहे ऐसे लोगों को दावत दी जावे जिनके लिए अजा़ब लिखा चुका ।*
*★_जब उनसे पूछा जाता कि तुम ऐसे लोगों को क्यों दावत देते हो, जो मानने वाले नहीं हैं ? तो फरमाते हम दावत दो बातों की वजह से दे रहे एक वजह यह है कि हम जिम्मेदारी को पूरा करने वाले समझे जावें और दूसरी वजह यह है कि हमें अल्लाह की जा़त से ऐसे लोगों के भी तक़वे पर आने की उम्मीद है ।*
*★_लिख कर दे देने से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती बात का कान में डालना है, पहुंचाने का नाम तबलीग नहीं है ।
*★_एक मस्जिद के बाहर एक बोर्ड पर लिखा था नमाज़ क़ायम करो और उसी बोर्ड के नीचे लोग सोए पड़े थे, इस लिखे हुए से सोने वालों को क्या फायदा हुआ ? इसका नाम तबलीग नहीं है । इस तरह मालूमात तो फैल सकती है दीन नहीं ,इस्लाम नहीं। इस्लाम तो इस्लाम को लेकर फिरने से फैलेगा । इस्लाम की मालूमात का फैलना इस्लाम का फैलना नहीं है।*
*★_उम्मत में दीन की दावत नहजे नबूवत पर ज़िन्दा हो, अपनी बात कहने के लिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम की जमाते बना कर भेजी ।
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*☞_ तोहीद को बोलते रहो _,”*
*★_ अल्लाह को सिफात के एतबार से तनहा बयान करो, अल्लाह की तोहीद को बोलते रहो यह तमाम अमल का मदार है, वरना अमल में रिया दाखिल होगा।*
*★_ कुदरत महज अल्लाह की जा़त में है, कुदरत से फायदा उठाने के रास्ते अहकामात हैं, कायनात नहीं ।*
*★_हमने अल्लाह से असबाब मांग कर अपने लिए मुश्किलें पैदा करली है ।*
*★_दीन में कामयाबी है ,यह बात अंबिया और सहाबा के गैबी मदद के वाक्यात के बिना समझ में नहीं आएगी। अल्लाह यह बताना चाहते हैं कि हम इस तरह मदद करेंगे जिस तरह हमने अंबिया अलैहिस्सलाम ,सहाबा किराम के साथ किया।*
*★_ अंबिया सहाबा ने भी असबाब अख्त्यार किए हैं ,अंबिया कुली बढ़ाई लोहार हुए ,सहाबा जिराअत, तिजारत करते थे लेकिन किसी सहाबी के साथ उसकी तिजारत का नाम नहीं है ,अगर है तो मुहाजिर है या अंसार है।,*
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*☞_ आमाल पेश करो अल्लाह के सामने,*
*★_हम अल्लाह के सामने असबाब पेश करते हैं ।यह मेरी दुकान है तू नफा दे ।अल्लाह के सामने तो आमाल पेश किए जाते हैं ।_वो तीन आदमी जो गार में फंसे थे ,सबने अपने अपने आमाल पेश किए ।*
*★_अल्लाह के वादे उसके हुक्मों के साथ है ।सब्र इताअत पर जो हालात आवे उसको सब्र नहीं कहते । अल्लाह जहन्नमियों को फरमाते हैं तुम सब्र करो या ना करो अजाब कम नहीं होगा।*
*★_ हालात के मुकाबले में हुक्म पर जमने को सब्र कहते हैं। कुरान में सब्र तक़वे के साथ मिलेगा ।रोजे को सब्र कहा गया है।*
*★_ शुक्र हर उज्व को हुक्म पर लाने को कहते हैं ,हर उज्व अल्लाह की नियामत से फायदा उठा रहा है।*
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*☞__नमाज से पहले तहारत है,*
*★_ जिस्म के खून के एक एक कतरे का पाक होना इस तरह जरूरी है जिस तरह जिस्म का नमाज के लिए जनाबत से पाक होना जरूरी है ।*
*★_वजू ,तहारत ,गुस्ल में जाहिर पाक होता है, बदन का बातिन पाक नहीं होता है। हराम से तो दुआएं रद्द कर दी जाती हैं। सबसे पहले अपनी कमाई के नक्शों को हुक्म पर लाना होगा ।यह ऐसा है जैसे नमाज से पहले तहारत ।*
*★_ इबादत से मामलात ठीक नहीं होते। मामलात से सारी इबादात सही होंगी तो सारा दिन सही होगा।*
*★_ अल्लाह ने किसी गुनाह करने वाले को अपने साथ जंग करना नहीं बताया सिवाय सूद खाने के । हालात , इल्म वाले भी कहेंगे हमें हालात ने मजबूर कर दिया ।*
*★_कोई मालदार सहाबी ऐसा नहीं है जो दुनिया से रोता नहीं गया हो ,डरते गए कहीं अल्लाह ने हमें दुनिया ही में दे करना निपटा दिया हो ।*
*★_ जो हुक्मों की लाइन से कमाते हैं उनका खर्च भी हुक्मों की लाइन पर होगा।*
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*☞__मामलात से तरबियत होगी,*
*★_इबादत बन गई तो अखलाक माशरा खुद-ब-खुद बन जाएगा। इसकी तालीम ,तरबीयत मामलात से खुद ब खुद हो जाएगी ।*
*★_मुसलमान का अपना तार्रूफ महज जिक्रो इबादात, अपने दरमियान के मामले से नहीं होगा। इसके अखलाक, मामलात, माशरे से समझेंगे गैर ।*
*★_ किसी शख्स ने ईसाई शख्स के पास अमानत रखवाई ।जब वह कुछ अर्से बाद वापस लौटा और तकाजा किया तो वह ईसाई मुकर गया ।वह शख्स उसके पादरी के पास गया ।उसने उसको एक पर्चा दिया कि यह जाकर उसको दे दो वह तुम्हारी रक़म लौटा देगा ।जब वह चिट्ठी उस ईसाई को दी ।उसने फौरन वह रकम लौटा दी ।वो शख्स बड़ा हैरान हुआ कि आखिर उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था जो इसने फौरन रक़म लौटा दी ।उस शख्स ने उस ईसाई से पूछा तो उसने वह चिट्ठी पढ़कर सुनाई उसमें लिखा था कि क्या तू भी मुसलमान बन गया । (यानी मुसलमान के मामलात अपने और गैरों के साथ इस कदर बिगड़ चुके कि अब गैर भी इस बात का ताना देने लगे कि क्या तू भी मुसलमान हो गया)*
*★_ गैरों के तरीके में जिल्लत है इज्जत नहीं ।हजरत उमर रजि अल्लाहु अन्हु को लिबास और तुर्की घोड़े पर सवार होते ही अपनी रगबत बदलते महसूस किया ।*
*★_कहां मुसलमान के मामलात ऐसे थे कि गैर इत्मीनान करते थे, कहां यह हाल हो गया एक ईसाई खयानत करें और उसे ताना दिया जाए कि तु मुसलमान हो गया ।तो वह फौरन अमानत लौटा दे कि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता कि लोग उसे मुसलमान कहें ।*
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*☞_इस्लाम की तालीम का तरीका,*
*★_ इस्लाम की तालीम का तरीका यह है कि तुम अपने इस्लाम को लेकर फिरो ताकि तुम्हारे अमल से लोगों को इस्लाम मुशाहिदे का पेश हो।*
*★_ किताबों का दीन मुताले का दीन है। अपने दीन को लेकर हरकत में आओ ।सूरज अपनी रोशनी के साथ हरकत में है तो कहीं ना कहीं हर आन उजाला है।*
*★_ अगर तुम इन आमाल के साथ हरकत में रहोगे तो हिदायत की दुआएं मकबूल होंगी ।अपनों की तरबियत हिदायत का ज़रिया बनेगी ।*
*★_दावत की नकल हरकत से इस्लाम में आमद का रास्ता खुला था ।एक तरफ इनको हिदायत मिल रही हो और दूसरों की हिदायत का ज़रिया ।*
*★_तुम दावत देते हुए फिरोगे तो आमाल मुजाहिदों की वजह से, तुम्हारी बातें दिलों से टकराएंगी ऐसी तासीर अल्लाह देंगे ।*
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*☞__दावत आलमी नुस्खा है,*
*★_दावत इलल्लाह पूरे आलम का नुस्खा है । दावत और इबादत को जमा करो, अंबिया अलेहिस्सलाम को इसी पर फतेह मिली है ।*
*★_अमल पर किसी के नुसरत के वाक़िये नहीं मिलेंगे। सारे वाक़ियात अमल की तरफ बुलाने पर हैं।*
*★_ मुसलमान का जहन्नम में जाने का सबसे बड़ा सबब नमाज का छोड़ना है ।जहन्नम में लोग पूछेंगे तुम तो मुसलमान थे? कहेंगे हम नमाज नहीं पढ़ा करते थे ।*
*★_नमाज में इत्मिनान वाजिब है। मसनून दुआओं ने कुबूलियत के रास्ते देखे हुए हैं । हम दुआ मांगते हैं असबाब को तैयार करके ।सबब पहले अख्तियार करना अल्लाह के गैर की तरफ चलना है ।पहले इबादत फिर दुआ फिर सबब, यह है रास्ता सहाबा किराम का ,अंबिया अलैहिस्सलाम का ।*
*★_जितना ताल्लुक अल्लाह से बढ़ाओगे उतना ही लोगों में दावत का असर होगा ।दुआ दाई की मेहनत का इखलास है ।*
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*☞___आलमी ग़लत फहमी,*
*★_ इस जमाने में दीन का वजूद लोग चाहते हैं ईमान के बगैर, ईमान वाले को यह खयाल पैदा हो गया कि हम सब ईमान वाले हैं हमें ईमान की क्या जरूरत?*
*★_यह खयाल आज आम हो गया । इसी ख्याल ने दावत की मेहनत और इसके मफहूम को महज़ गैरों की तरफ फैर दिया ।*
*★_मुसलमान इज्तिमाई तौर पर अपना वह फर्जे मनसबी छोड़ बेठा, जिसकी वजह से मुसलमान मुसलमान था।*
*★_ यह मुसलमानों की आलमी सतह पर बड़ी गलतफहमी है। दावत की मेहनत का असल मैदान खुद मुसलमान है ।अगर मुसलमान दावत से अपने दीन पर ना आया तो गैर इस्लाम को कभी नहीं समझ सकेंगे। आखिर वह क्या मेहनत थी कि गैर इस्लामी मामलात इस्लामी माशरत इस्लामिया अखलाक को देख कर अपने मजहब से तंग आकर इस्लाम की तरफ खिंचे चले आते थे।*
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*☞_ _दावत से ईमान की तकमील,*
*★_ दावत गैर मुस्लिम के लिए इस्लाम में हुज्जत के लिए है और मुसलमान के लिए ईमान की तकमील के लिए है।*
*★_ उम्मत की बेदीनी का असल बुनियादी सबब दावत को मुसलमान का असल मैदान ना बनाना है ।मुसलमान दावत का असल मैदान है और इसका सबसे ज्यादा हकदार है ।*
*★_दावत की मेहनत को अभी तक पढ़े लिखे लोग एक तहरीक समझते हैं ।हालांकि यह दावत वो मेहनत है जो सहाबा किराम सहाबा किराम पर किया करते थे।*
*★_ ईमान की दावत असल यकीन की तक़वियत का बुनियादी सबब है। अगर मुसलमान ने ये छोड़ दिया तो यकीन के बनने का कोई ओर रास्ता नहीं है ।*
*★_उम्मत इस मेहनत के एतबार से सहाबा को समझ कर चले। मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते थे फिर खैरुल क़ुरून का मजा़ क़यामत तक है ।*
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*☞____. ईमान ए सहाबा ___,*
*★_ हमारा काम यह है कि हम सबसे पहले यह गौर करें कि सहाबा किराम ईमान किस तरह सीखते थे। हमें सहाबा के ईमान सीखने का तरीका मालूम करना जरूरी है क्योंकि सहाबा इस उम्मत के अव्वल हैं ।*
*★_ ईमान लाओ सहाबा की तरह, वो ईमान कैसे लाते थे ? वो मस्जिदों में ईमान के हल्के़ का़यम करते और बाहर की मुलाकातों के ज़रिए ईमान सीखने के उनवान पर सहाबा सहाबा पर गस्त करते थे ।*
*★_हमारे गश्त सहाबा किराम के मामूल की नकल है ।हर ईमान वाले को ईमान सीखने के उनवान पर मस्जिद के बाहर से लाकर मस्जिद के हलकों में जोड़ो ।ईमान की मजलिस से ईमान को तक़वियत मिलती है ।*
*★_खुद इमाम बुखारी रहमतुल्लाहि अलैह ने बुखारी शरीफ में इसका एक बाब तैयार किया है, उसमें माअज़ बिन जबल रजियल्लाहू अन्हू के दावत के तरीके को नकल किया है।*
*★_ कहीं हमारी मस्जिदों का काम रिवाज़ के और किसी तंजी़म के ताबे हो कर ना रह जाए बल्कि मस्जिदों में आमाले दावत को कायम करके बाहर की मुलाका़तों के जरिए लोगों को मस्जिद में जोड़ना इसलिए है कि ईमान को सीखने में वो सुन्नते सहाबा जिंदा हो जिससे सहाबा का ईमान ऐसा बना था।*
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*☞__दावत सहाबा किराम की मेहनत है,*
*★_ ईमान के हल्के में अल्लाह ताला के अहकामात भी दाखिल है क्योंकि दावत इलल्लाह तो कहते ही अल्लाह के बंदों को अल्लाह के अहकामात की तरफ बुलाना ।*
*★_अगर हम सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की नकल पर नहीं हैं तो फिर दावत पर नहीं है। क्योंकि दावत तो कहते ही सहाबा किराम की मेहनत को है ।*
*★_उम्मत की तरबियत और अल्लाह का ताल्लुक पैदा होने की जो असल जगह है वह मस्जिद है। हदीस में आता है जो इल्म सीखने के लिए मस्जिद की तरफ क़दम उठाता है अल्लाह ताला उसको एक कामिल हज का सवाब अता फरमाते हैं ।*
*★_सहाबा वाला ईमान लाना, सहाबा वाला दीन, सहाबा वाली इबादत, सहाबा वाली मा'शरत, सहाबा वाले अखलाक इस सबकी असल वजह ईमान है।*
*★_ इसलिए हम सबको हुक्म है सहाबा किराम की तरह ईमान लाने का कि ईमान लाओ जिस तरह सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हुम लेकर आए ।*
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*☞___ईमान बिल गैब असल है,*
*★_ जिस चीज की तस्दीक देखकर की जाए उसे ईमान नहीं कहते ।*
*★_ अल्लाह रब्बुल इज्जत अंबिया अलैहिस्सलाम के साथ जाहिर के खिलाफ इसलिए करते हैं कि देखें कि कौन इनकी बात को मानता है कौन नहीं ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को सफरे मैराज हुआ ही इसी इम्तिहान के लिए । अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त लोगों को आजमाना चाहते हैं कि जो रसूल पर ईमान लाऐ वो रसूल की बात को मानते हैं या नहीं ।*
*★_ जिस तरह आपके सफर ए मेराज में शक करना कुफ्र है इसी तरह आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने जितनी खबरें दी हैं कयामत तक उनमें से किसी भी खबर में शक करना कुफ्र है।*
*★_ मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की लायी हुई खबरों को मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐतमाद पर यक़ीनी मानने का नाम ही ईमान है।*
*★_ दीन के किसी भी हुकुम के बारे में मुसलमान का यह कहना कि यह हुक्म क्यों है? इसकी क्या वजह है? यह सुन्नत है तो इसकी क्या जरूरत है ? यह ईमान के जॉफ की अलामत है।*
*★_ हुक्म की वजह तलाश करना और वजह तलाश करके फिर अमल करना, यह अमल का हक अदा करना नहीं है अमल को ज़ाया करना है,*
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*☞__हुक्म का मदार अक़्ल पर नहीं,*
*★_ जितनी दुनिया की माद्दी शक़्लें हैं उनका छोड़ना उनका अख्त्यार करना इसके पीछे तो वजह होगी क्योंकि यह मखलूक है । लेकिन मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की लाई हुई खबरों की वजह तलाश करना कि वजह मालूम होगी तो अमल करेंगे, यह अमल को जा़या करना है ।*
*★_ना खबर का मदार अक़ल पर है, ना हुक्म का मदार अक़़ल पर है । अल्लाह रब्बुल इज्जत ने अक़ल को पैदा फरमाया उसके 100 हिस्से किए ।उसमें से एक हिस्सा तमाम मखलूक को तक़सीम किया।*
*★_ जिन्हें हम अक़ल वाला समझकर दीन छोड़कर उनके पीछे चल रहे हैं अल्लाह ताला ने एक हिस्सा तक़सीम किया है तमाम मखलूक पर और तनहा 99 हिस्से मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को दिए ।*
*★_गौर करें जिसको अक़ल का एक हिस्से का भी ज़र्रा मिला हो, उसे क्या हक़ है यह कहने का कि दीन कि फलां बात मेरे समझ में नहीं आ रही है ।अगर समझ में आवेगी तो अमल करेंगे । ज़रा सोचो ये उस ज़ात का इनकार कर रहा है जिसको अक्ल के 99 हिस्से मिले हैं।*
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*☞__ _इंशा अल्लाह का मफहूम,*
*★_ हम कितने दावे करते हैं सुबह से शाम तक कि हम यह करेंगे ,हुकूमत यह करेगी, ताजिर यह करेंगे, किसी की जुबान पर आ जाता है इंशा अल्लाह। वह भी बतौर तकिया कलाम के आया, बतौर यक़ीन के ना आया ।*
*★_इंशा अल्लाह का मतलब यह नहीं है कि हां अल्लाह चाहेंगे तो करेंगे। इंशा अल्लाह का मतलब यह है कि अगर सारी दुनिया ना चाहे तो भी अल्लाह अपनी चाहत से करेंगे ।सारे अंबिया अलैहिस्सलाम मिलकर काम का ना होना चाहे तब भी अल्लाह करेंगे ।सारा अल्लाह का गैर ना चाहे तब भी अल्लाह ही करेंगे ।*
*★_ अंबिया अलैहिस्सलाम के वाक़ियात बयान किया करो जिससे अंदाजा हो कि नबी भी किस तरह मोहताज है उस काम में भी जिस काम के लिए भेजे गए हैं । अंबिया अलैहिस्सलाम हिदायत के लिए भेजे गए हैं लेकिन अंबिया अलैहिस्सलाम भी हिदायत के देने में अल्लाह के मोहताज हैं।*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞__हिदायत अल्ल्लाह के अख्त्यार में है,*
*★_ अंबिया अलैहिस्सलाम हिदायत के लिए भेजे गए लेकिन हिदायत में भी अल्लाह रब्बुल इज्जत के मोहताज हैं ।*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पूरा ज़ोर लगा लिया कि अबू तालिब कलमा पढ़ लें और आप की कोशिश यह थी कि कोई आपके चाचा हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु के कातिल वहशी को कत्ल कर दे ।*
*★_जहां आप चाह रहे हैं कि चाचा कलमा पढ़ ले ,वह कलमा पढ़ने को तैयार नहीं ।जहां आप चाह रहें कि वहशी को कत्ल कर दें ,वहां अल्लाह हिदायत दे रहे। हिदायत देकर रजियल्लाहु अन्हु बना रहे ।*
*★_यह वाक़ियात अल्ल्लाह रब्बूल इज्ज़त की ख बेनियाजी़ को समझने के लिए हैं ,उसकी अज़मत को समझने के लिए है , उसकी कुदरत को समझने के लिए हैं कि अख्त्यार सिर्फ अल्लाह का है।*
❦━━━━━━❀━━━━━❦
*☞__माशरे की बे-दीनी का सबब,*
*★_ हमारे दिलों में फौजौ का रौब, हुक्कामों का रौब ,सारे माशरे की बेदीनी का असल सबब, या गैरों से मोहब्बत या गैरों का रौब ।*
*★_ अल्ल्लाह ताअला ने कुरान में फरमाया है कि मैं मस्जिद को आबाद करने वालों के दिलों से गैरों का खौफ निकाल दूंगा और यह होंगे हिदायत याफ्ता।*
*★_ करने वाली जात अल्लाह की है ,यह तब तक समझ में नहीं आएगा जब तक ईमान पर 3 लाइनों से मेहनत ना होगी ।जब तक अंबिया अलैहिस्सलाम के वाक्यात, सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु के साथ गैबी नुसरते और जब तक ईमान को ईमान की अलामतों से बयांन नहीं किया जाएगा तब तक तबीयत नहीं होगी ।*
*★_ईमान की हकीकत के बगैर दिल का रूख सही नहीं होता। अगर दिल का रूख सही होगा तो सारे आज़ा का रूख सही होगा। दिल का रूख बिगड़ा हुआ है।*
*★_ सबसे पहली बात तो यह है कि करने वाली जात अल्लाह की है ।*
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*☞__इब्राहीम अलैहिस्सलाम का इम्तिहान,*
*★_इब्राहिम अलैहिस्सलाम से अल्लाह ने अपनी तोहीद की आवाज लगवाई ।*
*★_ इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने सारी शक्लों का इनकार किया। चांद का सूरज का सितारों का नमरूद का सब का इनकार किया।*
*★_ इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जलाने के लिए ऐसी आग तैयार की गई जिसके ऊपर से परिंदा भी गुजरे तो जल जाए ।यह इम्तिहान है ।*
*★_ अल्लाह रब्बुल इज्जत कयामत तक किसी मोमिन को इंतिहान लिए बगैर नहीं छोड़ेंगे। खुद अल्लाह ताला फरमाते हैं:- “जब तक यह माल औलाद असबाब के फितनो में नहीं पड़ेंगे उस वक्त इनका ईमान ईमान नहीं माना जाएगा । कि यह आमनना कहें और हम इसको क़ुबूलल कर ले । हम इनको आजमाएंगे, आजमाइश होगी ईमान की।*
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*☞_ _इब्राहिम अलैहिस्सलाम की बराहे रास्त मदद,*
*★_इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाले जाने के लिए तोप में बिठाया गया । हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम अपने साथ पहाड़ों के फरिश्ते और समुंदर के फरिश्ते को लेकर हाजिर हुए कि आप हुक्म फरमाइए ।*
*★_इंतिहान यह है कि करने वाली जात अल्लाह की है, फरमाया मुझे आपकी कोई हाजत नहीं। हालांकि जिब्राइल अलैहिस्सलाम अमानत दार फरिश्ते हैं ।अल्लाह की तरफ से आते हैं और नबी की तरफ ही आते हैं। साफ इंकार फरमाया कि मुझे आपकी कोई हाजत नहीं।*
*★_ क्योंकि अल्लाह ताला जब हालात लाते हैं तो यह देखते हैं कि मेरी तरफ कितना मुतवज्जह होते हैं ।*
*★_जब अल्लाह के गैर का इनकार किया तो अल्लाह ताला ने मदद बराहे रास्त की । इब्राहीम जब तुमने अपने और हमारे बीच किसी को ज़रिया नहीं बनाया तो हमने भी तुम्हारे और हमारे बीच किसी को ज़रिया नहीं बनाया। अल्लाह ताला ने अपने अम्र से आग को ठंडा किया ,कोई सबब इस्तेमाल नहीं फरमाया।*
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*☞__असबाब आज़माइश के लिए है,*
*★_ फरिश्तों पर ईमान लाने का मतलब यह है की फरिश्ते भी अल्लाह के ताबे हैं यह नहीं कि इनके हाथ में कुछ है।*
*★_इसलिए अंबिया अलैहिस्सलाम ने अपनी मदद के लिए फरिश्ते कहीं नहीं मांगे फरिश्तो का नुजूल तो अंबिया अलैहिस्सलाम के इकराम में होता था वरना नुसरत तो अल्लाह ताला खुद बराहे रास्त फरमाते थे।*
*★_आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मिट्टी फैंकी मुशरिकीन की तरफ , तो अल्लाह ताला ने फरमाया हमने फैंकी है आपने नहीं फेंकी ।*
*★_हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु फरमाते मैंने अपने रब को पहचाना है अपने इरादों में नाकाम होकर।*
*★_ अल्लाह ताला बाज मौकों पर अंबिया अलैहिस्सलाम को नाकाम इसलिए फरमाते हैं कि वो जान ले उनके पास जो कुछ है उससे ना होगा बल्कि अल्लाह ही के करने से होगा।*
*★_ अल्लाह रब्बुल इज्जत अंबिया अलैहिस्सलाम को असबाब आज़माइश के लिए देते हैं कि देखें असबाब में लग कर हमें भूल तो नहीं जाते।*
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*☞__सुलेमान अलैहिस्सलाम का वाक़या,*
*★_ सुलेमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने ऐसी बादशाहट दी कि किसी को ना दी। फिर एक खैर का इरादा किया कि मैं चाहता हूं अल्लाह के दीन की मेहनत के लिए सौ मुजाहिदीन तैयार करूं अपनी औलाद में से ।*
*★_रिवायत में है 100 बीवियों से सोहबत की, नबी है, असबाब भी पूरे हैं ,आला कि़स्म की बीवियां हैं, नेक इरादे हैं ,अल्लाह की शान 100 बीवियों में से सिर्फ एक को हमल ठहरा 99 को हमल ही नहीं ठहरा । उससे भी वक्त से पहले एक बगैर रूह का जिस्म पैदा हो गया ।*
*★_ जब सामने लाकर रखा गया तो फौरन समझ गए ,नेक इरादा था मगर अल्लाह को साथ नहीं लिया। इंशा अल्लाह कहना भूल गए ।*
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*☞__मोजूदा हालात और तक़वा,*
*★_ हमारे दरमियां अल्लाह के तज़्किरे नहीं है, इसलिए हम अल्लाह को भूले हुए हैं हम अल्लाह को जानते ही नहीं हैं।*
*★_ अंबिया अलैहिस्सलाम के वाक़्यात दिलों के जमाव का सबब हैं, वरना अहले बातिल इस जमाने में भी अका़इद की वो शक्लें पेश करेंगे कि मुसलमान यह कहेंगे कि यह वो हराम तो नहीं जिसको हराम कहा है, यह कोई दूसरी चीज है । बल्कि अब तो सबसे बड़ी बीमारी यह है कि रहना इन्हीं के साथ है ,तो कुछ हम इनकी मान लें और कुछ वो हमारी मान लें अगर इस तरह कोई दीन की नई शक्ल निकल आवे तो अम्नो अमान से रहें ।*
*★_ अल्लाह ताला ने मुनाफिकी़न का कुरान में यह हाल बयान किया है वो बिल्कुल अल्लाह मुझे माफ करें इस जमाने में अगर कोई सच्चे दिल से अपने आप पर गौर करें तो उसी रास्ते पर पाएगा । अल्लाह ताला ने फरमाया कि ऐसे भी लोग हैं जो दीन बेदीनी , कुफ्र और इस्लाम, इमान और निफाक़, हलाल और हराम, जायज़ और नाजायज़, सुन्नत और बिद्अत के किनारों पर चलते हैं। पूरे इस्लाम में क्यों नहीं आते ? पूरे इस्लामी माशरे पर क्यों नहीं आते ? अगर पूरे इस्लामी माशरे पर आ जाएं तो (ऐसे लोग कहते हैं) हमारा तो जोड़ खत्म हो जाएगा।*
*★_ कि अल्लाह तो जोड़ खत्म करना ही चाहते हैं क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने शर्त लगाकर फरमाया है अगर तुम्हारे अंदर तक़वा होगा तो तुम गैरों से छांटे जाओगे वर्ना तुममे और गैरों में कोई फ़र्क नहीं होगा ।*
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*☞___मोमिन की शान तक़वा है __,*
*★_ हमारे दरमियां अल्लाह के तज़्किरे नहीं है, इसलिए हम अल्लाह को भूले हुए हैं हम अल्लाह को जानते ही नहीं हैं।*
*★_ अंबिया अलैहिस्सलाम के वाक़्यात दिलों के जमाव का सबब हैं, वरना अहले बातिल इस जमाने में भी अका़इद की वो शक्लें पेश करेंगे कि मुसलमान यह कहेंगे कि यह वो हराम तो नहीं जिसको हराम कहा है, यह कोई दूसरी चीज है ।*
*★_ मुसलमान की इम्तियाजी शान तक़वा है । मैं क्या अर्ज करूं ? कहीं मीनारा ऊंचा हो जाएगा तो शान हो जाएगी इस्लाम की , कहीं झंडा ऊंचा हो जाएगा तो शान हो जाएगी इस्लाम की , हजरत फरमाते थे इस्लामी हुकूमत का नाम इस्लाम नहीं है, इस्लाम मुसलमान के सर से लेकर पैर तक जिसको देखकर अल्लाह याद आ जाए उसको मुसलमान कहते हैं।*
*★_अगर यह मोहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का तर्जुमान है तो इसको देखकर अल्लाह याद आएंगे और अगर यह मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का तर्जुमान नहीं है तो इसको देखकर अल्लाह याद नहीं आएंगे ।*
*★_कुरानों हदीस में जितनी अलामतें है ( निफाक़ की ) सब ईमान वालों के लिए है, मुनाफिकीन के लिए नहीं , उनसे तो कोई खिताब ही नहीं, निफाक़ की सारी अलामतों से मोमिन मुखातिब है ।अलामाते निफाक़ मोमिन के लिए हैं ताकि मोमिन इन अलामतों से डरे और बचे ।*
*★_ हम तो अपने आप को ईमान का दावेदार समझते हैं और जो ईमान वाले थे सहाबा वो अपने आपके निफाक़ से डरते थे। कि हंजला रजियल्लाहु अन्हु … कि मैं तो मुनाफिक हो गया .. क्यों ? ..कि ईमान की वो कैफियत जो आपकी मजलिस में होती है वह बाहर जाकर खत्म हो जाती है।*
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*☞__ईमान तो अपनी अलामतों के साथ है,*
*★_हम एक मॉडर्न इस्लाम चाहते हैं, यह मॉडर्न इस्लाम कोई इस्लाम नहीं है, इसे हालात का इस्लाम कहते हैं, यह हुक्म का इस्लाम नहीं है।*
*★_हम चाहते हैं ऐसी कोई शक्ल निकल आवे दरमियान की, कोई समझौता हो जावे , जबकि फरमाया नबी जी अगर आप इनको देखकर चलेंगे तो यह आपको सीधे रास्ते से हटा देंगे।*
*★_ गैर समझ गए कि मुसलमान सूद से तो बचेगा नहीं, मुसलमान की ये ये जरूरतें हैं, मालूम है उनको, उन्होंने कमाई के नक्शों में, खाने की चीजों में, पहनने के लिबासों में हर जरूरत में हराम को दाखिल कर दिया है, सिर्फ इसलिए कि मुसलमान किसी मौके पर भी हराम से बचकर ना निकले ।*
*★_उन्हें मालूम है अल्लाह की जो मददे इनके साथ हैं हम उनसे बचने वाले नहीं हैं उनकी दुआओं को मरदूद कराने के लिए अल्लाह के यहां इनके खानों में ,पहनने के लिबासों, में हर जरुरियात में हराम दाखिल कर दो ।*
*★_ बेदिनी के साथ समझौता, ईमान का इसके साथ कोई जोड़ नहीं है, ईमान तो अपनी अलामतों के साथ है। इसलिए हमें अपने ईमान को अलामतों के साथ सीखना है।*
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*☞__ईमान की हकीकत क्या है?,*
*★_ हयातुस सहाबा हजरत में बयान फ़रमाया है ईमान की हकीकत क्या है ? एक वाक़िया जिक्र किया है । एक जमात आपके पास आई आपने फरमाया तुम क्या हो? उन्होंने अर्ज़ किया हम सब ईमान वाले हैं ।*
*★_ फरमाया तुम्हारे ईमान की क्या दलील है ? अर्ज किया हमारे अंदर 15 खसलतें हैं । 5 पर हमारा ईमान है 5 पर हमारा अमल है और पांच हमारे अंदर जमाना ए जहिलियत से है । आप चाहे तो जमाना जाहिलियत की खसलतों को छोड़ दें आप चाहे तो बाक़ी रखें।*
*★_ आपने फरमाया वो 5 खसलतें क्या है जिन पर तुम्हारा ईमान है ? अर्ज किया हम ईमान लाए अल्लाह पर और उसके फरिश्तों पर उसकी किताबों पर उसके रसूलों पर आखिरत के दिन पर।*
*★_आप ने फरमाया वह पांच क्या है जिन पर तुम्हारा अमल है? उन्होंने अर्ज किया हम गवाही देते हैं कि इबादत के लायक अल्लाह के सिवा कोई नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, रमज़ान के रोज़े रखते हैं ,जकात अदा करते हैं और हज करते हैं।*
*★_ आप ने फरमाया वो पांच खसलतें क्या है जो जमाना है जाहिलियत से हैं ? अर्ज किया- हममें शुक्र है, हममे सब्र है, दुश्मन के मुकाबले में जमकर लड़ते हैं, अल्लाह के हर फैसले पर राज़ी रहते हैं, अगर मुसीबत दुश्मन पर भी आए तो खुश नहीं होते ।*
*★_आप ने फरमाया ये सब के सब दीन की समझ रखने वाले हैं। क़रीब था कि इन खसलतों की वजह से सब के सब नबी हो जाते । फिर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पांच बातों की वसीयत फरमाई ताकि अल्लाह तुम्हारे अंदर खैर की खसलतों को पूरा कर दे ।*
*★_फ़रमाया पांच बातें और महफूज़ कर लो- जरूरत से ज़्यादा खाना महफूज ना करो, ज़रूरत से ज़्यादा तामीर ना करो, जिस दुनिया को छोड़ कर जाना है उसमें रगबत ना करो, उस जा़त से डरते रहो जिसके पास तुम्हें सबको जमा होना है ,उस जन्नत में रग्बत करो जहां तुम्हें रहना है हमेशा के लिए ।*
*®_(मफहूम हयातुस सहाबा -जिल्द 1 सफा 203)*
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*☞__अल्लाह की किताब (कुरान) पर ईमान लाना,*
*★_ अल्लाह की किताब पर ईमान लाना किसको कहते हैं? क्या सिर्फ इतना कह देना कि कुरान अल्लाह की किताब है ? इसको कहते हैं कुरान पर ईमान लाना ?*
*★_ मेरे दोस्तों अजी़ज़ों मक्का के मुशरिकीन को भी यक़ीन था कि कुरान अल्लाह की किताब है । वो तो हसद करते थे कि इतनी अज़ीम किताब आखिरी किताब आसमानी किताब ये मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर क्यों नाजि़ल हुई, ताइफ के, मक्का के किसी बड़े चौधरी पर बड़े ओहदेदार पर क्यों ना नाजिल हुई।*
*★_ मुसलमान से तो सवाल है इस बात का कि तू कुरान पर ईमान लाया कि ना लाया ? कुरान पर ईमान लाना इसको कहते हैं कि इसके हराम को हराम समझना और इससे बचना और इसके हलाल को हलाल जानना और उस पर चलना।*
*★_ क्योंकि एक सहाबी से गीबत हो गई हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मजलिस में, तो आप ने फरमाया आप कुरान के साथ खेल रहे हो , वो शख्स कुरान पर ईमान नहीं लाया जो कुरान के हराम को हलाल समझे।*
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*☞__आमाल में सबसे पहली चीज़ नमाज है,*
*★_ सबसे पहली चीज आमाल में फरमा रहे हैं वह नमाज को कायम करते हैं । क्योंकि पढ़ने की दावत तो उनको दी जाती थी जब किसी को इस्लाम की तरफ दावत दी जाती थी ,यह फराइज़ बतलाए जाते थे गैर को जो इस्लाम में दाखिल होते थे।*
*★_ नमाज को क़ायम करने का हुक्म मोमिन को है जिसकी नमाज क़ायम नहीं उसका दीन क़ायम नहीं वरना यह मुमकिन ही नहीं जिसकी नमाज क़ायम हो उसका दीन क़ायम ना हो।*
*★_ जिस शख्स से कोई गुनाह हो जाए वह अपने गुनाह का सबब अपनी नमाज में तलाश करें कि मुझसे यह गुनाह क्यों हुआ है ? नमाज मुनकिरात से रोकने वाली है और जिक्रे अकबर उसी को कहते हैं जो मुनकर से रोक दे।*
*★_ यह नहीं कि तुम अल्लाह का जिक्र करो यह बड़ी बात है बल्कि बात यह है कि अल्लाह तुम्हारा जिक्र कर रहे हैं आसमानों पर, अल्लाह अपने जिक्र करने वालों का तज्किरा करें यह जिकरे् अकबर है ।हम अल्लाह का जिक्र करेंगे अल्लाह हमारा तज्किरा करेंगे हमसे बेहतर मखलूक में।*
*★_ नमाज क़ायम करो, मुसलमान से तो नमाज के छूट जाने का तसव्वुर ही नहीं है बल्कि शर्म आती है एक मुसलमान से यह कहते हुए कि नमाज पढ़ो । जिसका छूटना कुफ्र है वह मुसलमान से कैसे छूट सकती है। नमाज का छोड़ना कुफ्र है, इसको हल्का समझना कुफ्र है इसका इंकार कुफ्र है । नमाज ही आड़ है कुफ्र और इस्लाम के दरमियान।*
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*☞___जकात की अदायगी _,*
*★_हज़रत फरमाते थे अगर मुसलमान ज़कात को सही तरीक़े पर अदा करें तो यह ज़कात की बरकतों को बर्दाश्त नहीं कर सकता इतनी बरकात हैं जकात की। लेकिन ज़कात सही तरीक़े पर अदा नहीं होती ।*
*★_देने वाले को चाहिए कि मुस्तहिक़ को इस तरह तलाश करें जैसे कोई नमाजी जंगल में वजू के लिए पानी तलाश करता है ।*
*★_ अब ताजिरों को माल कमाने से फुर्सत नहीं है कि मुस्तहिक़ को तलाश करें। वह अपने माल को किसी के हवाले कर देते हैं कि भाई किसी खैर के काम में खर्च कर देना ।*
*★_ नहीं ! ज़कात देने वाले को खुद चाहिए कि वह मुस्तहिक़ को तलाश करें , तलाश करके ज़कात अदा करें।*
*★_ फिर एक सबसे बड़ी ग़लती यह है कि ज़कात इसका हक़ नहीं था वह तो गरीबों का हक है। उसको खैर की राह मे खर्च करके समझता है कि मुझे सवाब मिलेगा ,हालांकि वह माल उसका नहीं था।*
*★ मैं तो हैरान हूं कि माल के मेल को दीन के काम पर खर्च करके इसको क्या मिलेगा ? हक़ तो यह था कि जो माल पाक किया हो ज़कात अदा करके उस माल को बजाए ख्वाहिशात पर फिजुलियात पर खर्च करने के, इसको खर्च करता खैर की राह में।*
*★_ये खुश हो रहा है कि मैंने ज़कात दे दी अब माल को जिस तरह चाहूं खर्च करूं। नहीं ..बल्कि जो माल पाक किया है ज़कात अदा करके उसको खैर की राह में खर्च करो, मदारिस में मसाजिद में दीन के तमाम शोबों में,*
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*☞__माहौल और बेदीनी,*
*★_ माहौल को तो खामोखाह बदनाम किया हुआ है ।माहौल तो बहाना है मुसलमान की बेदीनी का, यह बहाना है सबब नहीं है। माहौल से तो वह मुतास्सिर होगा जो अपने अंदर में गंदगी लिए हुए होगा ।*
*★_आप देख लीजिए कोई खिंजीर किसी गंदी जगह पर जाए तो उसको वहां से उन्स होगा, जो मुसलमान अपने अंदर गंदगी लिए हो वह माहौल से मुतास्सिर होगा, वरना हो नहीं सकता कि मुसलमान माहौल से मुतास्सिर हो जाए,*
*★_ माहौल से मुसलमान नहीं है बल्कि मुसलमान से माहौल है। माहौल कहते हैं मुसलमान के जिस्म से निकलने वाले आमाल को, अगर मुसलमान के आमाल अच्छे होंगे तो माहौल अच्छा होगा और मुसलमान के आमाल बिगड़े हुए होंगे तो माहौल बिगड़ा हुआ होगा ,*
*★_दो चीजें बदनाम है एक माहौल और एक शैतान। अल्लाह ता'ला ने फरमाया है शैतान का तो ईमान वालों पर बस ही नहीं चलता है बिल्कुल भी । शैतान का तसल्लुत तो उस पर चलता है जिसको इन्होंने दोस्त बनाया हुआ है । शैतान का मकर् तो बहुत कमजोर है। यह सबब नहीं है बहाना है बेदिनी का ।*
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*☞__सब्र और शुक्र,*
*★_एक हदीस में आता है कि सब्र और शुक्र यह दोनों के दोनों कामिल ईमान है । आधा ईमान सब्र है आधा ईमान शुक्र है। जिसके अंदर यह खसलतें पैदा हो गई वह कामिल ईमान वाला है।*
*★_ यह दोनों लफ्ज़ हमारी जहालत का शिकार हो गए, (आजकल लोग) सब्र इसे कहते हैं की पिटाई खाते रहो बर्दाश्त करो और शुक्र इसे कहते हैं कि अल्लाह तेरा शुक्र । हालांकि ना शुक्र इसको कहते हैं ना सब्र यह है।*
*★_ जो हालात गुनाहों की वजह से आते हैं उनके सब्र की मुद्दत जहन्नम तक भी पूरी नहीं होगी, अल्लाह ताला जहन्नामियों से कहेंगे कि सब्र करो ना करो तुम्हें तुम्हारा किए का बदल मिल रहा है ।*
*★_ सब्र किसको कहते हैं? सब्र कहते हैं हालात के मुकाबले में अल्लाह ताला के हुकुम पर जमना । लोग मुंतजिर है कि जमाना बदलेगा तो हालात बदलेंगे, बिल्कुल नहीं, जमाने और हालात का कोई जोड़ ही नहीं ,हालात का जोड़ तो आमाल से है।*
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*☞___सब्र तक़वा के साथ है,*
*★_ हालात का जोड़ अमल से है बल्कि बाज़ ऐसे अहमक है जो यह कहते हैं कि हुकूमत बदल जाएगी तो हालात भी बदल जाएंगे ।जो अपने हालात को अमल से नहीं जोड़ेगा उसे अपने हालात किसी के साथ तो जोड़ने पड़ेंगे कि हालात क्यों है ?*
*★_हालात से सबक लेना और हुक्म की तरफ पलट जाना यह मोमिन की अलामत है ।मोमिन तो वह है जिसको अपने कारोबार में अपने हालात में कोई झटका लगे तो फौरन हुक्म की तरफ आ जावे ।तो यह कामयाब है ।*
*★_और अगर यह कहे कि सब्र करो तो फरमाया के सब्र तो ना कब्र तक खत्म होगा ना हश्र तक खत्म होगा ना जहन्नम तक खत्म होगा । जो हालात गुनाहों की वजह से आते हैं वह कभी ठीक नहीं होंगे क्योंकि सब्र के साथ तक़वा शर्त है ।*
*★_बगैर तक़वे के सब्र नहीं होगा जिसमें तक़वा नहीं वह सब्र करने में झूटा है ।कुरान में सब्र और तक़वा साथ साथ मिलेंगे। मुसलमान सब्र तों करता है मगर तक़वा अख्तियार नहीं कर रहा।*
*★_ आजकल यही शोर हो रहा है कि मुसलमान बेगुनाह है मुसलमान मारे जा रहे हैं । ऐसा हो नहीं सकता कि मुसलमान बेगुनाह हो और अल्लाह ताला उस पर हालात लावें ।*
*★_अगर मुसलमान पर तक़वे के साथ हालात आवे तो यह नबियों की सफ में है लेकिन हालात गुनाहों की वजह से है तो फिर यह चोरों की सफ में है।*
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*☞__अजा़ब अल्लाह ने रोका हुआ है,*
*★_ अगर मुसलमान पर तक़वे के साथ हालात आवे तो यह नबियों की सफ में है लेकिन हालात अगर गुनाहों की वजह से आवें तो फिर हम चोरों की सफ में है ।*
*★_ चोरों को मारा जाता है थानों में पीटा जाता है । अगर सारे चोर मिलकर बद्दुआ करें तो अजा़ब नहीं आएगा, अजा़ब तो अल्लाह ने रोका हुआ है, अल्लाह ताला उस वक्त तक हालात नहीं बदलेंगे जब तक मुसलमान इम्तियाज़ी शान अख्त्यार ना करें तक़वे के साथ । ये अल्लाह का फज़ल है हिकमत है कि अज़ाब को रोका हुआ है।*
*★_ सारी दुनिया में शोर मचा हुआ है मुसलमान मज़लूम है मुसलमान मज़लूम है, मज़लूम की बद्दुआ और अल्लाह के दरमियान तो कोई पर्दा ही नहीं है। मज़लूम तो तक़वे के साथ होता है । बगैर तक़वे के तो ज़ालिम होता है ।*
*★_ ज़रा अक़ल समझ से काम लो कि तक़वा किसको कहते हैं ? तक़वा कहते हैं अल्लाह से तन्हाई में डरने को ,जहां कोई देखने वाला ना हो ।*
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*☞_ मोमिन का इम्तिहान ईमान की हर सिफ्त में होगा,*
*★_ तक़वे पर अल्लाह का वादा है की हराम से बचाकर निकालेंगे । हम हराम में इसलिए पढ़े हुए हैं कि इसके बगैर कोई वास्ता नहीं है कि मैं तो मजबूर हूं । जो मुसलमान गुनाह में मजबूर समझे अपने आप को उसके लिए हराम से बचने का कोई रास्ता नहीं बनेगा।*
*★_ मोमिन का इंतिहान होगा ईमान की हर सिफ्त में, तक़वा ईमान की सिफ्त है ,इसका भी इंतिहान लेंगे। युसूफ अलैहिस्सलाम निकल कर भागे तो सारे रास्ते खुलते चले गए,, युसूफ अलैहिस्सलाम को जु़लेखा से बचने के बाद भी फिर जेल हो गई।*
*★_ हमारा हाल यह है कि अगर हम किसी गुनाह से बच भी जाएं तो उसके बाद जो हालात आते हैं वह हालात गुनाह की तरह वापस ले जाते हैं । आपके अज़ीज़ दोस्त मिलेंगे आपको जो हराम का मशवरा देंगे कि आपने जल्दी की बगैर सोचे समझे कदम उठा लिया ( कि हराम कारोबार छोड़ दिया)*
*★_ अल्लाह का मिज़ाज यह है कि जो हराम से बचकर निकलेगा उसका इंतिहान लेंगे कि यह हालात से घबरा कर वापस हराम की तरफ तो नहीं जाता है।*
*★_ जिसका अल्लाह से ताल्लुक नहीं होगा उसको तो मखलूक से ताल्लुक क़ायम करने पड़ेंगे। इस वक्त मुसलमान का हाल यह है कि जिसकी तरफ से हाल आता है उसकी ही तरफ दौड़ते हैं।*
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*☞_ _शुक्र किसे कहते हैं ?,*
*★_ शुक्र कहते हैं अल्लाह रब्बुल इज्जत की इताअत में बंदे का फना हो जाना ,इसको कहते हैं शुक्र ।*
*★_ वो इंतेहाई कमीना है जो किसी से हदिया लेकर भी शुक्रिया अदा ना करें । किसी के एहसान का बदला ना दे।*
*★_ इबादत नियामत का बदल नहीं है, इबादत तो हुकुम का तकाजा है । लोग यह कहते हैं अल्लाह ने आपको यह दिया यह दिया ( आपको इबादत करनी चाहिए ) कितनी घटिया बात है कि यह अल्लाह की नियामत के बदल में इबादत करें ? इबादत तो उसका हक़ है ।*
*★_अगर कोई शख्स पैदाइश से लेकर मौत तक अल्लाह की इबादत में ही मशगूल रहे और अल्लाह ताला उसको पहनने को कपड़ा ना दे खाने को टुकड़ा ना दे रहने को झोपड़ा ना दे अल्लाह उसको कुछ भी ना दे और उस शख्स को यह ख्याल आवे कि मैंने अल्लाह की इतनी इबादत की अल्लाह ने मुझे कुछ भी ना दिया तो यह नाशुक्रा है शाकिर नहीं है।*
*★_ यहां तक मिज़ाज बिगड़ चुका है कि अगर कोई दीनदार शख्स तंगी में हो और हालात में हो तो लोग उसके दीन के बारे में शक में पड़ जाते हैं कि जब तुम अल्लाह के अहकाम पूरे करते हो तो यह हालत क्यों है ? हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को इसी शक से निकाला था ।हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया – यह कैसरो किसरा महल्लात में ( नरम नरम ) बिस्तरों में और आप अल्लाह के नबी आपके घर में एक तरफ जौ पड़े हुए हैं एक खाल लटकी हुई है और आपके जिस्म पर (टाट पर सोने की वजह से) निशान पड़े हुए हैं । यह क्या बात है ? अल्लाह क्यों नहीं वुसअत फरमाते आपके लिए ?*
*★_ आप उठ कर बैठे गए। फरमाया ऐ खत्ताब के बेटे ! तुम अभी तक धोखे में पड़े हुए हो अभी तक शक में हो। यह तो वह है जिनको अल्लाह दुनिया में ही देकर निपटाना चाहते हैं ।*
*★_इसलिए जितने भी मालदार सहाबा हैं कोई भी दुनिया से खुश नहीं गया सब रोते हुए गए , कहीं अल्लाह ने हमें दुनिया में ही देकर निपटा तो नहीं दिया ( आखिरत में कुछ ना मिले )*
*★_इसलिए इबादत अल्लाह का हक़ है चाहे वह कुछ ना दे।*
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*☞__जन्नत अमल से नहीं मिलेगी,*
*★__ अल्लाह ताला सारे आबिदों को जहन्नम में डाल दे अल्लाह को इसका हक है ।*
*★_जन्नत अमल से नहीं मिलेगी जन्नत तो अल्लाह के फ़ज़ल से मिलेगी जन्नत के मरातिब अमल से हैं जन्नत का दाखिला अमन से नहीं दाखिला तो अल्लाह के फ़ज़ल से है ।*
*★_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से कि ऐ आयशा कोई अपने अमल से जन्नत में नहीं जाएगा । आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया- और आप ? आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया- में भी अपने अमल से नहीं जाऊंगा जन्नत में, अल्लाह ही अपने फज़ल से जन्नत में दाखिल फरमा दें और अपनी रहमत की चादर में ढांप ले ।*
*★_यहां तो यह सोचे बैठे हैं कि मैं इतने इतने अमल करता हूं उन अमलों में मेरे साथ क्या हुआ । ऐसे लोग दीन के बारे में शक में पड़ जाते हैं और शक ही उन्हें अमल से रोक देता है।*
*★_ बंदे का अल्लाह की इबादत और इताअत में फना हो जाना यह शुक्र है । हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा गया आपके अगले पिछले तमाम गुनाह माफ फिर आप क्यों इबादत में इतना थकाते हैं आप इतनी मेहनत क्यों करते हैं ? फरमाया -क्या मैं अल्लाह का शुक्र गुजार बंदा ना बनुं ।*
*★_ इससे ज्यादा मेहरुमी क्या होगी कि अल्लाह की इतनी नियामतें और उन नियामतों में अल्लाह का हुक्म तोड़ना जबकि तक़ाज़ा तो यह था कि बगैर किसी नियामत के उसका हक़ समझ कर इबादत करते ।*
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*☞___नियामतों का हिसाब होगा,*
*★_ अल्लाह ने जो नियामतें दी है यह अल्लाह की अमानतें है , इन सब का हिसाब होगा पूरा पूरा ।*
*★_ रास्ता बताने वाले के पीछे चलो तो जन्नत में पहुंच जाओगे । हमें हराम खानों से हराम माशरों से गैरों के तरीकों से हमें क्या उम्मीद है कि हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से जा मिलेंगे ?*
*★_सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम के यहां तो यह सवाल ही नहीं था कि जिसके पास जितना माल है वह अपने हिसाब से खर्च करें। क्योंकि सहाबा का मिज़ाज और मामूल यह था कि वह अपनी जरूरत से जा़यद माल को अपना हक़ नहीं समझते थे ।*
*★_अबूजर गफारी रजियल्लाहु अन्हु का ऐलान ही यह था कि जिस शख्स के पास अपनी ज़रूरत से ज़्यादा एक दिरहम भी है और वह उसको खर्च ना करें दूसरों पर तो उस दिरहम को तपा कर उसके जिस्म पर दागा जाएगा कयामत के दिन, जहन्नम का अज़ाब होगा ।*
*★_यहां तो जरूरत और ख्वाहिश में कोई फर्क ही नहीं रहा तो फिर कौन तैय करें कि जा़यद माल कौन सा है ?ख्वाहिश का मैदान कभी पूरा नहीं होता ।*
*★_किसी गलत चीज को छोड़ने वाला शख्स वह नहीं हो सकता जो यह कहे कि आज तो कर लूं आइंदा नहीं करूंगा । तौबा के लिए शर्त है कि अपने गलत अमल को अधूरा छोड़ दो।*
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*☞__गैरों की हिदायत की तमन्ना करो,*
*★__ देखो यह बात याद रखना जो शख्स गैरों पर आने वाली मुसीबतों से खुश होगा वो उनकी हिदायत और जन्नत में जाने का ज़रिया नहीं बनेगा । सहाबा किराम का मिज़ाज यह नहीं था , ईमान सल्ब हो गया था इस बात पर कि इस जहाज़ में डूबने वाले सब गैर है ।*
*★_ सहाबा के दिलों में इसरार था हमदर्दी थी गैरों के लिए, आज तो यहां इसरार हमदर्दी नहीं है अपनों के लिए भी । यह जानवरों वाली जिंदगी है कि दूसरों से बचाकर खाना ।*
*★__खुद मुशरिक का कौल है कि मैं कैद होकर आया ,खबर नहीं कि कत्ल करेंगे कि छोड़ देंगे मुझे । कहते हैं कि सहाबा दस्तरख्वान मेरे क़रीब ले आए और जो रोटी का टुकड़ा हाथ में था वह सबसे पहले मेरी तरफ बढ़ा दिया कि हमारा मेहमान है ।*
*★_मुसलमान ने वो माशरा ही खत्म कर दिया जिससे गैर इस्लाम की वुसत को समझते थे । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया मैं इनको मस्जिद में इसलिए रखता हूं कि आमाले मस्जिद इनके दिलों को नरम कर दे। कि जब गैर का दिल मस्जिद के माहौल से 3 दिन में इस्लाम के लिए तैयार हो सकता है तो क्या एक मुसलमान 3 दिन में मस्जिद के माहौल से उसका दिल नरम नहीं हो सकता ?*
*★_ हमारे दिलों में गैरो की हिदायत का जज़्बा हो इसके अलावा कोई जज़्बा ना हो, अल्लाह के यहां तो दाई के लिए शर्त है कि दाई के दिल में इंतक़ाम का जज़्बा ना हो क्योंकि अल्लाह के यहां से जिसके लिए हिदायत मुकद्दर है या हलाकत मुकद्दर है इसका फैसला दाई की उनकी हिदायत की तमन्ना पर होगा ।*
*★_हमने तो काम को तंजीम बना दिया वरना दाई की नियत तो नबी की तरह वसी होती है इतनी वसी कि सारे आलम सारी इंसानियत को अपनी औलाद की तरह चाहते हैं ।*
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*☞___सुन्नत ही तहज़ीब है__,*
*★_ यहूदो नसारा के तरीकों को तहज़ीब कहना सुन्नत को मिटाना है बल्कि सुन्नतों पर ऐब लगाना है।*
*★_ अगर आज कोई शख्स किसी कीमती गाड़ी में बैठे तो फखर् करेगा और कोई गधे पर बैठा हो तो उस पर ऐब लगाया जाएगा जबकि गधे पर बैठना सुन्नत है । (हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने गधे की सवारी इस्तेमाल की है ) अल्लाह के यहां गधे की कीमत कीमती गाड़ियों से ज्यादा है ।(सुन्नत होने की वजह से),*
*★_ उमर रजियल्लाहू अन्हु को जब तुर्की घोड़े पर बैठाया गया तो फौरन उतर गए फरमाया मैंने सुना था शैतान पर शैतान सवार होता है, आज देख भी लिया , इस पर बैठते ही मुझे अपना दिल बदला हुआ लगा ।*
*★_सुन्नत पर ख़िलाफ़े माहौल अमल करना सुन्नत को जिंदा करना है ,जो शख्स माहौल देखकर सुन्नत पर अमल करें वो सुन्नत को मिटाने वाला है । सुन्नत यह नहीं है कि आप मौका देखकर अमल करें।*
*★_ यह सवाल करना कि सिर्फ सुन्नत ही तो है फर्ज तो नहीं है, इसका मतलब यह हुआ आप सुन्नत को छोड़ दो यह फर्ज नहीं है ,यह सवाल आज आम हो गया कि सिर्फ सुन्नत ही तो है फर्ज तो नहीं है ।*
*★_हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सुन्नतों को यह कह कर छोड़ना कि सिर्फ सुन्नत ही तो है फर्ज नहीं है,इससे बड़ा गुनाह और कोई नहीं होगा क्योंकि सन्नत को हल्का समझकर छोड़ने का गुनाह अलग और माशरा जो बिगड़ेगा इससे उसका अजा़ब अलग होगा ।*
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*☞_दावत के काम का मक़सद सुन्नतों को जिंदा करना है,*
*★_हममें और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हु में फर्क यह है कि सहाबा सुन्नत पर अमल करते थे सुन्नत होने की वजह से और हम सुन्नत को छोड़ते हैं सुन्नत होने की वजह से । हजरत मौलाना इलियास रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते थे मेरे काम का मकसद ही अहया ए सुन्नत है,*
*★_एक मेवाती को हजरत ने बाएं हाथ से पानी पीते देखा हजरत बहुत बीमार आप बेचैन हो गए कि कोई इसको रोके तभी एक आदमी ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया , हजरत को बहुत खुशी हुई फरमाया कि अब मेरी जमातो में सुन्नतों के खिलाफ अमल होने पर नागवारी पैदा होने लगी है।*
*★_ इमाम यूसुफ रहमतुल्लाहि अलैह ने अपने दोस्त वज़ीर की दावत की खाने में लौकी बनाई गई कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बहुत पसंद थी, उस वज़ीर की ज़बान से सिर्फ इतना निकल गया कि लौकी मुझे तो पसंद नहीं ।फोरन हुक्म लगा दिया कि इस वज़ीर को बांध दो यह कुफ्र के नज़दीक चला गया। बादशाह को पता चला तो फरमाया यह वज़ीर विज़ारत के काबिल नहीं ।*
*★_ एक जमाना था कि सुन्नतो से ऐसी मोहब्बत थी बच्चे बच्चे के दिल में कि मुसलमान गैरों से छांटा हुआ था। अब तो मुसलमान को छांटना मुश्किल है, पहचानना मुश्किल है, सलाम से पहले भी नाम पूछना पड़ता है ।*
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*☞_फराइज़ बुनियाद और सुन्नत इमारत है इस्लाम की,*
*★__ हालांकि नमाज भी पढ़ रहे रोजा भी रख रहे जकात भी अदा हो रही हज भी कर रहे ,सारे फराइज अदा कर रहे लेकिन सिर्फ सुन्नते ऐसी चीज है जिसके बगैर मुसलमान पहचाना नहीं जा सकता । अपने लिबास से ,शक्ल से ,वजा कता से मालूम होगा कि मुसलमान है ।*
*★_सिर्फ फराइज़ का नाम इस्लाम नहीं है फराइज़ तो बुनियादें हैं इस्लाम की, सुन्नते इस्लाम की इमारते हैं ।*
*★_( बुनियादें नजर नहीं आया करती इमारते ही नजर आती है ) मामलात अखलाक माशरत से मुसलमान पहचाना जाएगा। तुम अपना तार्रूफ फराइज़ से कराओगे तो नहीं पहचानेंगे लोग, मुसलमान का तार्रूफ माशरे से है, मामलात से है । फराइज़ तो इसके और रब के दरमियान हैं मामलात, अखलाक ,माशरत इसके और मखलूक के दरमियान में है ।*
*★_मोमिन किसी कौम का नाम नहीं है ,मुसलमान की इज्तिमाई जिंदगी का नाम है । दावत की मेहनत के जरिए उम्मत को इस मिज़ाज पर लाना है । यह नकल हरकत सहाबा किराम की नकल है,*
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*☞__दावत अल्लाह के क़ुर्ब का ज़रिया है,*
*★_ हर (दावत का ) काम करने वाले को सबसे पहले दिल की गहराई से इसका यक़ीन हो कि अल्लाह रब्बुल इज्जत के कुर्ब का और अपने दीन के अंदर हुस्न पैदा करने का दावत इलल्लाह से बढ़कर कोई जरिया नहीं ।*
*★अगर इन्हें (काम करने वालों को) अल्लाह के कु़र्ब का दावत इलल्लाह से बढ़कर कोई जरिया नजर आता है तो ये काम के बारे में इनके दिलों का शक है और काम से नावाक़फियत है ।*
*★_अगर अल्लाह के क़ुर्ब का दावत इलल्लाह से बढ़कर कोई और जरिया होता तो अल्लाह रब्बुल इज्जत वो ज़रिया सबसे पहले अंबिया अलेहिस्सलाम को अता फरमाते । नबियों को वो काम देते जो अल्लाह की खुशनूदी का,अल्लाह के क़ुर्ब का, अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद होता लेकिन अल्लाह ने अंबिया अलेहिस्सलाम को दावत इलल्लाह से बढ़कर कोई जरिया अता नहीं फरमाया ।*
*★_ वजह इसकी यह है कि अल्लाह ताला को इस रास्ते की अज़ियतें इतनी पसंद है कि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने इस उम्मत को सिर्फ मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की नियाबत और आप वाली ज़िम्मेदारी को लेकर चलने की वजह से खैरे उम्मत क़रार दिया है ।*
*★_हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु खुद फरमाते हैं कि हमें अल्लाह ने इसलिए बेहतर नहीं कहा है कि हम आपकी सोहबत में हैं बल्कि हमसे तो यह कहा गया कि अगर तुमने इज्तिमाई तोर पर दावत इलल्लाह को अपना मकसदे जिंदगी नहीं बनाया तो फिर अल्लाह ने साफ फरमा लिया कुरान में कि तुम अगर यह काम नहीं करोगे तो हम तुम्हारी जगह दूसरों को लाएंगे और वह तुम्हारे जैसे नहीं होंगे, हम उन से काम लेंगे ।*
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*☞__दावत इलल्लाह में नबुवत की लाइन के तक़ाज़े है,*
*★_अगर अल्लाह रब्बुल इज्जत सहाबा किराम को हटा कर दूसरों से काम ले सकते हैं तो इस जमाने में हम जैसे लोग इस मेहनत के बारे में यह सोचे कि करने वाले हम ही हैं हम करें या ना करें ।*
*★_ मेरे ख्याल से इस खयाल की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहती कि कोई दिल में यह ख्याल करें कि काम करने वाले हमी हैं हम चाहेंगे तो करेंगे हम ना चाहेंगे तो नहीं करेंगे। अल्लाह की जा़त बहुत मुश्तगनी है ।*
*★_ दावत इलल्लाह में नबुवत की लाइन के तक़ाज़े हैं ,इंफ्रादी इबादात में वो तकालीफे भी नहीं है और दीन कि वो नुसरत भी नहीं है । मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह के मलफूजा़त में हैं कि इन्फ्रादी इबादात दीन की नुसरत नहीं है बल्कि दीन की नुसरत सिर्फ दावत ही है।*
*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और आपके सहाबा के जज़्बे और उनके तरीक़े का पाबंद होकर दीन को लेकर पूरे आलम ने फिरना सिर्फ और सिर्फ इसको दावत कहते हैं।*
*★_ इस ज़माने में बड़ी गलतफहमी यह हो गई कि जो (दीन का) काम जिस तरीक़े से भी किया जाए वह दावत है, इसका नुक़सान यह होगा कि उम्मत दीन की नक़ल हरकत से हटकर दीन की इशाअत और दीन का फैलाना माद्दी शक्लों पर और माद्दी चीजों पर आ जाएगा ।*
*★_ मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह बड़े अहतमाम से और बड़े गम से फरमाते थे कि अगर दीन का फैलाना रिवाज़ पर आ गया तो रिवाज तरक्की़ करेगा दीन तरक्की़ नहीं करेगा। दीन की तरक्की तो उसी मेहनत में, उसी तरीका ए जज़्बात में है जो तरीका ए मेहनत व जज्बा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके सहाबा किराम का था।*
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*☞__पुराना (दावत के काम में) अमले को कहते हैं,*
*★_ पुराना अमले को कहते हैं और अमला वो होता है जो एक फिक्र और एक कलमें पर मुज़तमा हो, जिनकी फिकरे मुख्तलिफ होती है वह अफराद हैं अमला नहीं है । वो अवाम हैं।*
*★_ किसी भी शोबे में हर एक जानता है कि मुझे क्या काम करने को दिया गया है, मुझे क्या काम करना है।*
*★_ हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते थे किसी भारी चीज़ को गहराई से निकाल कर बाहर लाना है और यह बात हर अक़ल मंद जानता है कि किसी भारी चीज़ को उठाने के लिए दो बातों का होना जरूरी है एक सबका मिलकर उसको उठाने पर इत्तेफाक होना दूसरी बात यह है कि वह सब के सब इस वजन को उठाने में एक साथ कु़व्वत लगाऐं, यह काम ज़र्रे सगीर की तरह है।*
*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा किराम को दावत इबादत मामलात अखलाक माशरत के ऐतबार से जिस सतह पर छोड़ कर गए थे उम्मत उस सतह पर वापस आए, यह बोझ है जिसको उठाना है,*
*★_उम्मत एक बड़ी पस्ती में पड़ी है, इसके लिए एक साथ ज़ोर लगाना और मुत्तफिक़ होना है इस भोज के उठाने पर। और यह हकीकत है अगर उठाने वाले की राय बदल जावे तो वह चीज वापस गड्ढे में ही नहीं जाती बल्कि अपने साथ उठाने वाले को भी लेकर जाती है।*
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*☞_ अपने काम को सुन्नत की तरफ लाओ,*
*★__रिवाजी़ तरीके आसान बहुत हैं ,सहूलते बहुत हैं । इस ज़माने में यह ख्याल आम है ।अल्लाह गवाह है ! मैं उस शख्स को काम करने वाला नहीं समझता जो काम को सहुलतों की तरफ लाने का मशवरा देता हो क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के तरीकों में हिदायत रखी है।*
*★_ तसव्वुफ का खुलासा कसरते जिक्र नहीं है, जबकि तसव्वुफ का खुलासा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की सुन्नतों की ऐसी पाबंदी का नाम है कि एक सुन्नत के छूट जाने पर इस तरह अपने आपको मलामत करें जिस तरह फराइज़ के पाबंद आदमी का फरीज़ा छूट जाए और वो अपने आप को मलामत करें।*
*★_ मेरी बात की तरफ बहुत तवज्जो की जरूरत है ! दावत की सुन्नते तो बहुत ऊंची चीज़ है एक इस्तंजे की लाइन की सुन्नत भी छूट जाए तो काम करने वाला अपने आपको ऐसी मलामत करें जो किसी फरीज़े के छूट जाने पर मलामत की जाती है।*
*★_ क्यों ? हर एक के ज़ेहन में ये ख्याल होगा कि सुन्नतों का तो यह हुक्म नहीं है ? सारी बात खराब ही यहीं से हुई है, सारा दीन मेला यहीं से हुआ है । सारी यहूदियत, नसरानियत मुसलमानों में दाखिल ही यहीं से हुई है कि यह सुन्नत है इस पर अमल का यह हुक्म नहीं है जो हुक्म फरीज़े का है ।*
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*☞_ _सुन्नत मुसलमान की शान है,*
*★__ मुसलमान को जाहिर के ऐतबार से गैर मुस्लिम सिर्फ सुन्नतों के छोड़ने ने बनाया है, नमाज रोजा छोड़ने से नहीं गैर हुआ, मुसलमान को सिर्फ और सिर्फ सुन्नत के छोड़ने ने गैर बनाया। सिर्फ फराइज़ पर अमल कर लेना यह मुसलमान के इम्तियाज़ और मुसलमान की अलामत के लिए काफी नहीं है।*
*★_क्योंकि फराइज तो मुसलमान और कुफ्र के दरमियान उस रुकावट को कहते हैं जिस रुकावट के बगैर इस्लाम और कुफ्र की हद खत्म हो जाती है। जिन फराइज को मुसलमान दीन समझे हुए हैं यह तो कुफ्र और इस्लाम की आड़ है,अगर यह नहीं है तो कुफ्र ही कुफ्र है।*
*★_ मुसलमान की शान, इम्तियाज़ को बाक़ी रखने वाली चीज वो सिर्फ सुन्नत का अहतमाम है इसलिए की वाजिबात की तकमील सुन्नत से होती है, और फराइज़ की तकमील वाजिबात से होती है। जिसने सुन्नत को छोड़ दिया उसने वाजिब को तर्क कर दिया और जिसने वाजिब को खत्म कर दिया उसने फर्ज को नाकिस कर दिया और फर्ज का नाकिस हो जाना ये उम्मत के दीन के नाकिस होने का असल सबब है ।*
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*☞__हर काम सुन्नत के मुताबिक हो,*
*★__ सबसे पहली सुन्नत सुन्नते दावत है । हर काम करने वाला अपने आपकी जा़ती ज़रूरियात को सुन्नत के मुताबिक़ पूरा करें।*
*★_ मैं कसम खाकर कहता हूं सुन्नत की पाबंदी के बगैर मुसलमान मुसलमान को दीन पेश करने के काबिल नहीं है। किताबों से दीन पेश करना यह नबियों का तरीका नहीं है किताबों से दीन पेश करना सहाबा का भी तरीका नहीं है ।कहीं नहीं मिलता ऊपर तक कहीं नहीं मिलता कि किताबों से दीन पेश किया जाए।*
*★_ बल्कि अल्लाह ताला की तरफ से जो तरीक़ा नबियों को दिया गया है वह खुद अपनी जा़त से अमल पेश करना, इसको दीन पेश करना कहा गया है ।*
*★_"नबी जी अपने आपको अमल का मुकल्लिफ बनाइए और उम्मत को अमल पेश कीजिए,” हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु इराक़ तशरीफ ले गए तो वजू का तरीका पेश करने के लिए वजू का पानी मंगवाया और एक ऊंची दीवार पर बैठे, इराक के बड़े छोटे बच्चे मर्द औरत सब जमा हो गए, जिस तरह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को वजू करते हुए देखा था उस तरह वजू करके दिखाया। फ़रमाया हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का वजू इस तरह था । सबको सुन्नत के मुताबिक वजू करना आ गया था।*
*★_ कहां हो वह जमाना था कि अमल से दीन पेश किया जा रहा था कहां यह जमाना है कि दीन का पेश करना माद्दी चीजों पर महज़ असबाब पर आ गया है।*
*★__हजरत फरमाते थे राहतों से कुफ्र फैला करता है दीन कभी नहीं फैला करता । इसलिए अपने काम को सुन्नत की तरफ लाओ ।*
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*☞___सुन्नत के खिलाफ अमल अल्लाह के यहां कुबूल नहीं,*
*★_यह बात अपने दिलों की गहराई में उतार लो कि जो काम जो मेहनत जो इबादत खिलाफे सुन्नत है ना वो अल्लाह के यहां कु़बूल होगा ना उसके साथ अल्लाह की मदद होगी ना ही उससे कोई तरबियत होगी।*
*★_ कुबूलियत तरबीयत और अल्लाह की मदद सिर्फ और सिर्फ सुन्नतों की पाबंदी के साथ हैं।*
*★_ सबसे पहले यह गौर करो कि सुन्नते दावत क्या है ? अपनी मेहनत को हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के तरीकों पर लाना है इसमें सबसे जरूरी और अहम इंफिरादी दावत है ।*
*★_दाई तालिब है और दावत मतलूब है। हजरत फरमाते थे जब काम करने वाले अपने आप को मतलूब समझेंगे तो इनकी तरक्की यहीं रुक जाएगी ।*
*★_इसलिए हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम किसी नये आने वाले की तरफ खुद चल कर जाते थे ।यह मिजाज नहीं था कि इनको हमारे पास लाओ उनको हमसे मिलवाओ, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद तशरीफ ले जाते।*
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*☞___अवाम को तवज्जो दीजिए,*
*★_हमारे दिलों में माल वालों का ओहदे दारों का ऐसा तसव्वुर बैठा हुआ है कि अभी हम यह समझते हैं कि अगर यह साथ देंगे तो काम हो जाएगा ।*
*★_हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जब ताइफ से वापस हुए खून से जूता भरा हुआ था अंगूरों के बाग में आपने नमाज पढ़ी वहां उतबा शैबा दोनों मौजूद थे आपने उन्हें दावत नहीं दी कि यह कौन के बड़े हैं सरदार हैं इनको मना लो तो नीचे वाले भी मान जाएंगे । उनका गुलाम था अद्दास आपने उसको दावत दी अद्दास ने इस्लाम कुबूल किया।*
*★_ हमें दौरे रिसालत में कहीं यह बात नहीं मिलती कि खवास को जोड़ो ताकि अवाम इनके रौब से दीन में दाखिल हो जाए । यह तो मिलता है कि जहां अवाम को छोड़कर खवास की तरफ तवज्जो की गई तो अल्लाह ताला की तरफ से तमबीह हुई है ।*
*★_नूह अलैहिस्सलाम से कौम ने मुतालबा किया कि आपके साथ जो गुरबा गरीब लोग शामिल हैं इन्हें हटा दो तो हम आपकी बात सुनेंगे। नूह अलैहिस्सलाम ने फरमाया बड़ा आसान मफहूम है- “मेरे पास अल्लाह की मदद चाहने के लिए इनके सिवा कुछ नहीं _,”*
*★_नबी की मदद नबी होने की वजह से नहीं हो रही, कौम को जवाब ने फरमाया कि मेरे पास मेरी मदद का सामान मेरे गुरबा है।*
*★_ 1 महीने 1 दिन के लिए थोड़ी देर के लिए भी मैं नहीं चाहता कि तुम एक तरफ हो जाओ गरीबों से, मैं खवास से बात कर लूं।*
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*☞____इंफिरादी दावत,*
*★__ इंफिरादी दावत इतनी क़वि है कि इंफिरादी दावत में दाई को अपने इस्तेदाद से नीचे उतरना पड़ता है और इज्तिमाई दावत में दाई को अपनी सतह से ऊपर जाना पड़ता है जिसमें किबर् का खुद पसंदी का इन सब चीजों का खतरा है ।*
*★_ इंफिरादी दावत में ऐसा कोई खतरा नहीं है इंफिरादी दावत में बड़ी तरक्कीयात हैं । हम अपनी बात को पहुंचाने के लिए खुद जाएं ।आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम छोटे से छोटे को भी दावत देने में आर महसूस नहीं फरमाते थे ।*
*★_दावत के अंदर उमूमियत लाओ क्योंकि इस काम से कोई जमात कोई गिरोह बनाना मक़सद नहीं है । इस मेहनत से उम्मत बनाना मकसद है।*
*★_ गिरोह तो बने हुए हैं उम्मत का तबकात में बंट जाना यह उम्मत की खूंरेजी का असल सबब है। हजरत फरमाते थे – “_ अगर उम्मत तबकात में बंट गई तो बावजूद जिकरो अज़कार के, बावजूद तालीम और तरबीयत के, बावजूद उम्मत के इबादतों पर जमा हो जाने के अल्लाह की गैबी नुसरत अल्लाह की मदद कभी नहीं आएगी।”*
*★_ इस काम का मक़सद सिर्फ उम्मत को कलमा नमाज सिखा देना नहीं है इस काम का बुनियादी मक़सद उम्मत के इखतिलाफ से उम्मत के तबकात के फर्क को खत्म कर देना है।*
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*☞__ज़रुरत नहीं खवास की हिदायत मतलूब हो,*
*★__ एम. पी. का कोई ओहदेदार हमसे मिलने आया हमने इत्तेला देने वाले साथियों से कहा कि भाई पहले साथियों को जमा कर लो । साथी सोचने लगे पता नहीं वो क्या सोचेंगे । हमने उनसे कहा अगर तुम सिर्फ उनसे मुलाकात ही चाहते हो तो इसका मतलब यह है कि तुम उन की हिदायत नहीं चाहते बल्कि अपना मोहसीन समझ कर दो अल्फ़ाज़ शुक्रिया के कहना चाहते हो।*
*★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अबू सुफियान के इस्लाम लाने से पहले हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया अबू सुफियान को ऐसी जगह बैठाना कि जितने सहाबा की जमातें आएं सब की सब अबू सुफियान के आगे से गुजरे ।*
*★_यहां तो मिनिस्टर भी आते हैं तो ऐसे रास्ते से लेकर आते हैं कि एक भी आदमी नज़र ना आवे कहीं क्योंकि हमें उनसे जरूरत मतलूब है उनकी हिदायत मतलूब नहीं रही ।*
*★_अगर हिदायत मतलूब होती तो हम कहते उन्हें पूरे मजमें के दरमियान से गुजार कर लाओ। क्योंकि इस मजमे के दरमियान से उनका गुज़र कर आना उनके दिलों को इस्लाम के लिए नरम कर देगा और आमाले दावत की वजह से इस्लाम की हैबत दिलों के अंदर पैदा होगी ।*
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*☞_अल्लाह की मदद के रुक जाने का खतरा है,*
*★__ काम करने वालों के दिमाग में एक तरकीब यह बैठी हुई है कि तबकात को जोड़ लो ताकि इन तबकों में भी काम हो जाए ।यह उम्मत को बांटने वाले हैं जोड़ने वाले नहीं हैं और अल्लाह के यहां सबसे बड़ा मुजरिम वो है जो उम्मत को बांटने में लगा हो।*
*★_ मेरी बात याद रखो ! अगर तुम खवास की तरबियत चाहते हो तो उन्हें आवाम के साथ ही जोड़ो, इसकी बिल्कुल परवाह ना करो कि अगर इनको अलग ना जोड़ा तो बात नहीं सुनेंगे ।*
*★_इनके बात सुनने का मसला नहीं है अल्लाह की मदद के रुक जाने का खतरा है । और इनकी तबियत का ना होना यक़ीनी है।*
*★_ बल्कि दावत के मैदान में खवास के इज्तिमात उनके अंदर घमंड और खुसूसियत पैदा करेंगे क्योंकि बात यह है कि जो अल्लाह के दीन की निसबत पर जमा होने वालों से अपना दर्जा ऊंचा रखेंगे उनके अंदर तवाज़ो कैसे पैदा होगी ? उनकी तरबियत कैसे होगी ?*
*★_अपनी बड़ाई का तसव्वुर मौत तक भी खत्म नहीं होता ।*
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*☞__मुशरिकीन की शर्त,*
*★__ मुशरिकीन ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मुतालबा किया कि हम आपकी बात सुनना चाहते हैं मगर शर्त यह है सुहेब सलमान बिलाल (गुरबा मसाकीन) यह आपके साथ नहीं होंगे । तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया ठीक है आपने अपने सहाबा से कह दिया कि 1 जोड इनका ( मक्का के मुशरिकीन खवास सरदारों का) हुआ करेगा।*
*★_ जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में इनका जोड़ शुरू किया इधर बात शुरू हुई, सहाबा सारे दूर कोई करीब नहीं, एक नाबीना सहाबी अब्दुल्लाह इब्ने मखतूम रजियल्लाहु अन्हु वहीं से दरवाजे से चीखे -ऐ अल्लाह के नबी ! जो अल्लाह ने आपको सिखलाया मुझे भी सिखा दीजिए ।*
*★_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गुस्सा आ गया फरमाया -क्यों आ गए इस वक्त? जब मना कर दिया था, खवास का जोड़ चल रहा है । अल्लाह की तरफ से सख्त तंबीह हुई मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कि -नबी जी आपकी पेशानी पर बल आ गए ,एक नाबीना बड़ी तलब से सुनने के लिए आया है और जो बात सुनना नहीं चाहते उनके लिए आप कोशिशें कर रहे हैं ।*
*★_ इसलिए यह बात अच्छी तरह समझ लो, ना इज्तिमा से पहले ना इज्तिमा के बाद हमारे यहां तबका़ती जोड़ का कोई तसुव्वुर नहीं है । हमें तो उम्मत के तबका़त को खत्म करना है।*
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*☞__काम करने वालों की नजर सीरत पर हो,*
*★__काम करने वालों की नजरें सीरत से हटी हुई है हमने सारा काम पांच काम को समझ लिया है इससे लोगों को गुजार देना इसी को काम समझते हैं हयातुस सहाबा पढ़ते नहीं कि जिससे यह चीजें सामने आए ।*
*★_अपनी अपनी राय ,अपने अपने ख्याल ,अपने अपने तजुर्बे हैं। पुराने अवाम को बर्दाश्त ही नहीं कर रहे -तुम्हें खबर है मैं कौन हूं ? अल्लाह मुझे माफ फरमावे पुराने नए लोगों से खिदमत लेते हैं कि मैं तुम्हारा अमीर हूं मैं तुम्हारा पुराना हूं तुम मुझे राहत पहुंचाओ, मैं तुम्हें उसूल सिखलाऊंगा ।*
*★_मेरी बात याद रखना ,हदीस में है -अल्लाह का ताल्लुक बंदे से और बंदे का ताल्लुक अल्लाह से सिर्फ उस वक्त तक बाकी रहता है जब तक यह दूसरों से खिदमत नहीं लेता । जब यह खिदमत लेगा दूसरों से तो अल्लाह का ताल्लुक खत्म हो जाएगा ।*
*★_अबु दरदा रजियल्लाहु अन्हु ने खत लिखा हजरत सलमान फारसी रजियल्लाहु अन्हु को — ऐ सलमान ! मैंने सुना है कि तुमने अपनी जरूरत के लिए कोई खादिम खरीद लिया है हालांकि मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना है कि बंदे का ताल्लुक अल्लाह से और अल्लाह का ताल्लुक बंदे से उस वक्त तक बाक़ी रहता है जब तक ये दूसरों से खिदमत नहीं लेता ।*
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*☞_पुरानों की तरक्की के असबाब ,*
*★_ जब पुराने लोग नए लोगों की बर्दाश्त करेंगे तो अल्लाह पुरानों को तो तरक्की देंगे और नए लोगों की तरबियत कर देंगे।*
*★_ पुरानों की तरक्की नए लोगों को साथ लेकर चलने में है हमें हुक्म है -“अल्लाह के रास्ते में अपनी कौम के अलावा के साथ निकला करो “*
*★_खुसूसी मुलाकाते अलग है उसके लिए तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने सहाबा को चुन चुन कर भेजा कि कौन मुनासिब है ? इसका मशवरा होता था यह तो जरूरी है,*
*★_ इंफिरादी दावत के लिए मशवरा करो कि फलां ओहदेदार को दावत कौन दे कौन मुनासिब है ? साथियों को तकाजों पर मुनासबत देखकर भेजना यह तो सुन्नत है ।*
*★_कुछ ऐसी तबीयत बन गई है कि काम करने वाले अपनी तरक्की और अपनी सआदत अब खवास से मुलाकात में समझने लगे हैं। अब अल्लाह को तलाश करने के असबाब कम हो रहे हैं अल्लाह कहां मिलेंगे ? अल्लाह खुद फरमा रहे हैं कि मुझे कमजोर लोगों में तलाश करो। हदीस में है कि मेरे पास कमजोरों को लेकर आओ ।*
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*☞__इस्तेमाइयत,*
*★__ अल्लाह के रास्ते में इस्तेमाइयत पैदा करो इस्तेमाइयत यह नहीं है कि पब्लिक जमा हो पब्लिक का जमा होना इस्तेमाइयत नहीं है उम्मत के दरमियान के तबका़ती फर्क खत्म होना यह इस्तेमाइयत है, दिलों का ऐसा जमा हो जाना कि उम्मत का तबका़ती फर्क खत्म हो जाए ।*
*★_बड़ी सुन्नत सुन्नते दावत है और इसकी असल बुनियाद वो उम्मत की इस्तेमाइयत है, अल्लाह की मदद इस्तेमाइयत के साथ है ।*
*★_ इस रास्ते में जो तकलीफ पेश आया करें उस तकलीफ पर शिकायत करना ऐसी हिमाकत की बात है कि एक आदमी अपने लिए खुद एक रास्ता अख्तियार करें फिर उस रास्ते में तकलीफ आए तो शिकायत करें। क्योंकि जब कोई अपने लिए रास्ता चुन लेता है तो वह चुनता तब है जब वह इस लाइन की सारी तकलीफ के लिए तैयार हो।*
*★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पेश किया गया कि बादशाहत वाली नबुवत चाहते हो या फाके वाली नबूवत चाहते हो । हालांकि अगर आप चाहते तो आपको सुलेमान अलैहिस्सलाम से बड़ी बादशाहत वाली नबुवत मिलती लेकिन आपने फाके वाली नबूवत अख्तियार की ।*
*★__आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की नबूवत इख्तियारी है फक्र और फाकों वाली। आप पर तो पेश किया गया कि मक्का के पहाड़ आपके लिए सोना बना दिए जाएं और यह आपके साथ साथ चलें जहां भी आप जावे।*
*★_ इस रास्ते में चलने वालों की या साथियों की या पब्लिक की या ना मानने वालों की शिकायत करना इसकी कोई गुंजाइश नहीं । यहां तो साथियों की शिकायतें जिम्मेदारों से हो रही है अल्लाह तो नवाजना चाहता है तकलीफों से और तू डूबना चाहता है शिकायतों से ।*
*★_आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया बस कि वह कौम कैसे कामयाब होगी जो अपने नबी का खून बहा दे? आपके दंदाने मुबारक शहीद हुए, आपको चोट आई बहुत ,चेहरे मुबारक पर लोहे की कड़ियां घुंसी… तो अल्लाह ताला ने फरमाया नबी जी आपको शिकायत का कोई हक नहीं है हम इनको हिदायत देकर माफ करें या जहन्नम में डालकर अज़ाब दें, हमारा काम है ।इसलिए मेरे दोस्तों ! साथियों की शिकायत वो करेंगे जो इस काम में अपनी तरक्की नहीं चाहते।*
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*☞__दर गुजर करते रहना,*
*★__ वहां तो काफिरों की शिकायत पर भी हक़ नहीं शिकायत का और यहां अपने साथियों की शिकायत करने को हक समझते हैं । हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने अपने सहाबा को इसका आदी बना लिया था कि तुम्हें तकलीफें मौत तक बर्दाश्त करना है ।*
*★_ अबुजर रजियल्लाहु अन्हु मस्जिद में सोए हुए थे आपने उठाया मस्जिद में क्यों सो रहे हो ? मेरा कोई घर नहीं है। अबुजर यह बताओ जब तुम्हें जिम्मेदार तंग करेंगे तो तुम क्या करोगे ? मैं मदीना छोड़कर मुल्के शाम चला जाऊंगा । आप ने फरमाया ए अबुजर मुल्के शाम वाले तंग करेंगे फिर तुम क्या करोगे ? मैं फिर वापस मदीना आ जाउंगा । फरमाया – ए अबुजर मदीना वाले दोबारा तंग करेंगे तो फिर क्या करोगे ?*
*★_सवाल पर सवाल कि मेरे साथियों को तकलीफ बर्दाश्त करने का इरादा कब तक का है।तो अबुजर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि मैं मदीना वालों का मुकाबला करूंगा। आपने फरमाया- ए अबुजर जहां जिम्मेदार तुम्हें तक़ाज़े पर भेजें वहां जाते रहना जहां साथ ले जाएं जाते रहना और दरगुज़र करते रहना, माफ करते रहना, यहां तक कि क़यामत में आकर मुझसे मिल लेना । आसान रास्ता बता दिया ।*
*★__हजरत फरमाते थे जब नागवारियां पेश आया करें तो इन नागवारियों में अंबिया सहाबा की नागवारियां तलाश किया करो और तलाश करने के बाद शुक्र किया करो।ऐ अल्लाह ! तेरा शुक्र है तूने मुझे इस का़बिल समझा कि जो तकलीफ नबी पर आई वह मुझ पर आई ।*
*★_एक अहम बात यह हैं इस्तेमाइयत की कि साथियों से दर गुजर करो ,माफ करो ,जब कोई गलती हो जाए साथियों से तो गलतियों की अच्छी तावील किया करो क्योंकि अल्लाह ताला को किसी मोमिन के ऐब छुपाने में झूठ बोलना ज्यादा पसंद है सच बोलने से ।तू अपनी आंख से देख कर भी झूठ बोल रहा है एक मुसलमान के ऐब छुपाने के लिए, अल्लाह को तेरा झूठ बोलना तेरे सच बोलने से ज्यादा पसंद है। इसलिए मुसलमान के फैल ( काम) की तारीफ करो।*
*★_एक सहाबी ने आकर कहा या रसूलल्लाह। मैंने जिना किया है । नहीं औरत को तुम्हारा हाथ लग गया होगा इसे तुम जिना समझ रहे होंगे । नहीं जी मैंने जिना ही किया है, आपने फरमाया तुमने इशारा किया होगा आंखों से देखा होगा, नहीं मैंने जिना किया है । आप तावील पर तावील दे रहे ताकि किसी तरह इसका ऐब छुपा रहे ,यह चला जावे , बात खत्म हो जावे।*
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*☞_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और एक चोर का वाक़िया,*
*★__एक चोर को लाया गया हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के पास, चोर खुद इकरार कर रहा है कि मैंने चोरी की है फरमाया -नहीं तूने चोरी नहीं की होगी, ऊंट सारे एक जैसे होते हैं तुम अपना समझकर खोल रहे होंगे, लोगों ने चोर कह दिया तुमको।*
*★_हम तो चोर को चोर बनाते हैं चोरो को चोर बनाने की कोशिश है, वहां चोर को बचाने की कोशिश हो रही है। खुद चोर कह रहा है कि मैंने चोरी की है, मैंने दूसरे का समझकर ही खोला था ।*
*★_फैसला हो गया ,जल्लाद आ गया कि हाथ काटे जाएं, तेल गर्म करने का हुक्म दिया गया। हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु उठ कर चले गए यह कह कर कि अभी कुछ नहीं करना ।*
*★_थोड़ी देर बाद वापस आए और आकर चोर से ऐसे मुलाकात की जैसे इससे पहले देखा ही नहीं था, फरमाया भाई क्या बात है? कहां से आए हो? लोग हैरान कि जल्लाद तैयार है, तेल गर्म हो चुका है, चोर से पूछा -क्या तुमने चोरी की है ? उसने कहा -नहीं मैंने चोरी नहीं की है। फरमाया -फिर जाओ यहां क्यों खड़े हो ।*
*★_लोगों ने पूछा अमीरूल मोमिनीन यह आपने क्या किया? फरमाया- देखो मैंने उसे पकड़ा था उसके इकरार पर और मैंने छोड़ा है उसके इंकार पर ।*
*★_ इस तरह ऐब छुपाया जा रहा था, वो भी इकरारी मुजरिम का ,*
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*☞_ _उम्मत के फज़ाइल बयान करो,*
*★__ साथियों की खूबियों के तज़किरें, उम्मत के फज़ाइल ज्यादा बयान करो, इस काम के चलने की असल वजह, इस काम के फैलने का सिर्फ एक सबब है कि उम्मत की कमजोरियों को भुलाकर उम्मत के फज़ाइल को बयान किया गया। कोई फतवा उम्मत के किसी भी फिरके या फर्द पर नहीं लगाया (जैसे दूसरे लोगों ने लगा दिया) कि यें काफिर है यें फासिक है ।*
*★_क्योंकि किसी के हराम को हलाल कहना तो जुर्म है ( गीबत हराम है ) उसको तो हराम से निकालना है और उसको निकालने का रास्ता ही यही है कि उसकी फज़ीलत को बयान करो ।*
*★_ उम्मत की हिदायत से मायूस होने और उम्मत के आ६वाम के सुलहा ( नेक लोगों ) से दूर होने की असल वजह जो है वो उम्मत की कमजोरियों को बयान करना है कि तुम इस काबिल नहीं हो….,*
*★_ हालांकि एक मुसलमान का मुकाम बैतुल्लाह से ऊंचा है अल्लाह के नबी ने फरमाया कि ए बैतुल्लाह! तू बड़ी बरकतों वाला है अज़मतों वाला है लेकिन एक मुसलमान का मुका़म तुझसे ज़्यादा है ।*
*★_ फिर क्या वजह रह गई मुसलमान को हल्का समझने की ( कि तुम काबिल नहीं हो, तुम ऐसे हो, तुम वैसे हो ) इसलिए मेरे दोस्तों अजी़ज़ों ! साथियों के फज़ाइल बयान किया करो (कमजोरियों को छिपा कर )।*
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*☞_ _हमें हक़ नहीं कि लोगों के आमाल का सवाल करें,*
*★__ एक जनाजा लाया गया हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास नमाज पढ़ाने के लिए। आप आगे बढ़े नमाज पढ़ाने के लिए तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने रोक दिया कि या रसूलल्लाह ! यह आदमी इतना बदनाम है इतना बुरा है आप तशरीफ ले जाइए, हममे से कोई इसकी नमाज़ पढ़ा देगा।*
*★_ वो आदमी कितना बुरा होगा जिसके जनाजे पर सहाबा को आपका आना पसंद ना था , लेकिन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाए और ऐलान किया कि तुम में से किसी शख्स ने इस मरने वाले को कोई अमल करते देखा है ? एक सहाबी ने पीछे से कहा कि हां या रसूलल्लाह इस मरने वाले ने अल्लाह के रास्ते में फलां मौके पर एक रात पहरा दिया है ।*
*★_आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया सहाबा से सुनो जो आंख अल्लाह के रास्ते में पहरा देने में जागी है वो आंख जहन्नम की आग नहीं देखेगी। उमर पीछे हट जाओ ,तुम्हें कोई हक़ नहीं लोगों के आमाल के बारे में सवाल करने का ।*
*★_साथियों से गलतियां होंगी । यें फरिश्ते नहीं है, इनकी गलतियों से दरगुज़र करो और अच्छी तावील करो । साथियों की क़ुर्बानियां याद रखो,
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*☞_ _हमें हक़ नहीं कि लोगों के आमाल का सवाल करें,*
*★__ एक जनाजा लाया गया हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास नमाज पढ़ाने के लिए। आप आगे बढ़े नमाज पढ़ाने के लिए तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने रोक दिया कि या रसूलल्लाह ! यह आदमी इतना बदनाम है इतना बुरा है आप तशरीफ ले जाइए, हममे से कोई इसकी नमाज़ पढ़ा देगा।*
*★_ वो आदमी कितना बुरा होगा जिसके जनाजे पर सहाबा को आपका आना पसंद ना था , लेकिन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाए और ऐलान किया कि तुम में से किसी शख्स ने इस मरने वाले को कोई अमल करते देखा है ? एक सहाबी ने पीछे से कहा कि हां या रसूलल्लाह इस मरने वाले ने अल्लाह के रास्ते में फलां मौके पर एक रात पहरा दिया है ।*
*★_आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया सहाबा से सुनो जो आंख अल्लाह के रास्ते में पहरा देने में जागी है वो आंख जहन्नम की आग नहीं देखेगी। उमर पीछे हट जाओ ,तुम्हें कोई हक़ नहीं लोगों के आमाल के बारे में सवाल करने का ।*
*★_साथियों से गलतियां होंगी । यें फरिश्ते नहीं है, इनकी गलतियों से दरगुज़र करो और अच्छी तावील करो । साथियों की क़ुर्बानियां याद रखो, साथियों की गलतियों को छुपाओ और जब गलती हो जावे उनकी कुर्बानियां याद दिलाओ ” आपकी तो यह कुर्बानियां है.”*
*★_ इससे साथी जा़या होने से बच जाएगा और उसके अंदर अपनी कोताही का एहसास ज्यादा पैदा होगा क्योंकि कमी कोताही का एहसास तब पैदा होता है जब किसी को उसकी खूबियां कुर्बानियां याद दिलाई जावें और जो उनकी शिकायत करें तो शिकायत करने वाले को भी उनकी कुर्बानियां बताओ।*
*★_ हजरत मौलाना इलियास रहमतुल्लाहि अलैह के पास जब कोई शिकायत लेकर आता साथी की बुराई बताता तो यह फरमाते -क्या करूं ,मैं हीं बुरा हूं, मैं अच्छा होता तो मेरे साथी भी अच्छे होते । इससे वो शिकायत करने वाला भी कान पकड़ लेता कि अब हजरत के पास किसी की शिकायत लेकर नहीं आऊंगा।*
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*☞__अपनी इबादत में कमाल पैदा करो,*
*★_ इस काम के ज़रिए असर् की नमाज अगर जोहर से बेहतर नहीं है तो समझ लेना नीचे गिर रहे हैं ऊपर नहीं जा रहे ।*
*★_ साथियों के अंदर अगर अल्लाह ना करे यह बात पैदा हो गई कि यह तो इंफिरादी अमल है छोड़ो इसको और दावत में लगो, तो यह गुमराही की तरफ इस तरह जाएंगे कि उसको हक़ समझ रहे होंगे ।*
*★_दावत इबादत का जमा करना असल है ।क्योंकि अल्लाह ने फरमाया उससे अच्छा दीन हो किसका सकता है जो दावत देता हुआ अमल करें।*
*★_ रात के क़याम को लाज़िम पकड़ लो ,दिन भर दावत की मेहनत में जो मदद मिलेगी वो रात के क़याम से मिलेगी । रात का क़याम दिन भर की बात को सबसे ज्यादा वाज़े करने वाला है।*
*★_ एक साल तक सहाबा किराम पर तहज्जुद फर्ज रही, क्यों ? उसके बाद जब आदी हो गए तो फिर उसको निफ्ल क़रार दिया कि जिस काम का तुम अहतमाम करोगे हम उसको तुम्हारे लिए आसान कर देंगे ।*
*★_अल्लाह के बंदों का अल्लाह के क़रीब करने में अल्लाह की ज्यादा मदद की जरूरत है । अगर काम करने वालों का रात का क़याम कमज़ोर है तो अल्लाह का ताल्लुक कमज़ोर है । जिनका ताल्लुक़ अल्लाह से खुद कमज़ोर है वो दूसरों को मुताल्लिक कैसे करेंगे ।*
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*☞__आमाले मस्जिद को नबुवत के तरीकों पर लाओ,*
*★__ अपनी बसरी हाजतों को सुन्नत कर लाओ इसके लिए मशक्कत बर्दाश्त करो कि यह सुन्नत है इस पर अमल करना है।*
*★_ अपने काम को सुन्नत की तरफ लाओ, काम रिवाज़ की तरफ दौड़ा जा रहा है और साथी कहते हैं इसमें सहूलियत है ,इसका नफा नज़र आ रहा है । नफे का नज़र आना बुनियाद नहीं है, बुनियाद तो सुन्नत पर अमल करना है ।*
*★_ बात पहुंचा दी फारिग हो गए, यह रिवाज़ी तरीका है बल्कि मस्जिद के माहौल में लाकर जोड़ो । सहाबा का अमल यही है कि हमारे साथ आओ मस्जिद में,*
*★_ मस्जिद के अंदर अमल ज़ारी होता था बाहर उस अमल के दौरान मेहनत होती थी । मैं इस बात को ताकीद से कहता हूं कि इसके तज़्किरे ना होने की वजह से साथी दो हिस्सों में तक़सीम हो गए ।*
*★_ जिस काम को करते करते तबीयत बन जाती है उसके खिलाफ सुनना बर्दाश्त नहीं होता । सवाल इसका नहीं कि ये कर रहे हैं ,हमने यह सुना है , या हमने यह देखा है , यह बुनियाद हमारी नहीं है, हमारी बुनियाद यह है कि सहाबा ने क्या किया है, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने क्या हुक्म दिया है, हम सब के लिए वो नमूना है।*
*★_ इसलिए आमाले मस्जिद को नबूवत के तरीक़े पर लाना है ।*
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*☞_ तालीम का मौज़ू यक़ीन की तब्दीली है,*
*★__ तालीम का मतलब है उम्मत को अल्लाह के वादों के यक़ीन पर लाना, गैर यकीनी असबाब से निकाल कर। शोक का पैदा करना इब्तेदाई दर्जे की बात है नए से नए आदमी सुनेंगे तो अमल का शौक पैदा हो जाएगा यह आवाम के लिए हैं ।*
*★_ तालीम के हलकों का मकसद है अल्लाह के वादों के यक़ीन को ताजा करना ,नए से नए सहाबी भी तालीम के हल्के में यक़ीन से बैठते थे । हजरत फरमाते थे कि सबब का और अमल का मुकाबला होगा ,शोक वाले भी अमल को छोड़ देंगे क्योंकि शौक है यक़ीन नहीं है ।*
*★_ सिर्फ इतना फर्क है कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ज़ुबानी सुनाते थे और हम किताब सुनते हैं वरना अल्लाह वही है अल्लाह के वादे वही हैं । तालीम के दरमियान में वाज़ तकरीर बिल्कुल ना हो, बाज़ का मामूल बन गया कि तालीम शुरू हुई ,किताब को बगल में दबाई और शुरू हो गये, यह हदीस की तोहीन है कि अपनी बात को मुहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की बात पर तरजीह देना है। इसलिए तालीम के दरमियान बयान बिल्कुल नहीं होगा, बराहे रास्त मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़ुबाने मुबारक से निकले हुए अल्फ़ाज़ से तास्सुर का पैदा करना मतलूब है ।*
*★_ आजकल लोगों को मलफ़ुज़ात में जो मज़ा आता है वो हदीसों में नहीं आता। किसी बुजुर्ग का मलफूज़ होगा तो बड़े गौर से सुनेंगे कोई हदीस होगी तो बिल्कुल तवज्जो नहीं देंगे। क्योंकि बात यह है कि उनकी (बुजुर्ग की ) बात को तो अकी़दत से सुनते हैं कि जो शेख फरमाएंगे वह सुनेंगे । हालांकि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हदीस में आज भी वह नूर है जो सहाबा किराम के दौर में था । इसलिए जो आलिम है वो एक मर्तबा हदीस की इबारत (अरबी में ) पढ़ दिया करें।*
*★_ मुंतखब अहादीस का अहतमाम फजा़इल के साथ साथ ज्यादा करो क्योंकि 6 नंबर तबलीग की बुनियाद हैं इसके मुताबिक सही हदीसों का याद होना इंतेहाई जरूरी है ताकि हर सिफात को हदीस से बयान किया जा सके इसके फजाइल के साथ।*
*★_ एक हदीस को तीन-तीन बार पढ़ना यह सुन्नत तरीका है।हर हलके में जमकर तस्कील हो तस्कील इसको नहीं कहते कि बोलो बोलो कौन तैयार है। हल्का लगाकर उसमें तस्कील करो, कम से कम 20 मिनट आधा घंटा जमकर तस्कील हो । मौलाना साहब फरमाते थे जिस मजलिस के बाद तस्कील ना हो वह हमारा मौजू नहीं, हमारा काम ही नहीं है। क्योंकि खुरूज असल है अल्लाह के रास्ते में जाना असल है।*
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*☞__जिस्म को थकाना नबियों की आला सुन्नत है,*
*★_ हरमेन शरीफैन की इबादत जहां एक नमाज़ एक लाख के बराबर है अगर सहाबा किराम को इबादत के फज़ाइल पर ही रखना था तो एक लाख नमाज़े छुड़वा कर क्यों हिजरत करवाई ? आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को मक्का की मोहब्बत के बावजूद क्यों निकाला गया मक्का से ?*
*★_ अगर अंदर की रूहानियत और तन्हाई की इबादत और खुसूसी तवज्जो, खुदा की कसम अगर इस्लाम के फैलने के असबाब होते और उम्मत के तजकिए के असबाब यह होते तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सारे नबियों के इमाम है लेकिन आपको अल्लाह ने बैठने नहीं दिया । कहीं नहीं फरमाया कि आप तन्हा रह कर इबादत कीजिए ।*
*★_अगर किसी की तरफ तवज्जो डालकर हिदायत हुवा करती तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सारे नबियों के इमाम हैं रूहानियत के इमाम है, लेकिन जिस्म को थकाना ये नबियों की आला सुन्नत है ।*
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*☞_ इंफिरादी आमाल के पहाड़ इज़्तिमाई ज़र्रात से भी छोटे हैं,*
*★_ मुफ्ती जैनुल आबेदीन साहब से हजरत मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाहि अलेही ने फरमाया कि एक जमात तीन दिन के बाद आने वाली है उसे आप को लेकर जाना है ।मुफ्ती साहब ने अर्ज़ किया- हज़रत अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं तीन दिन हजरत रायपुरी की खिदमत में हो कर आ जाऊं । हज़रत ने फरमाया कि चले जाओ मगर 3 दिन से पहले पहले आ जाना ताख़ीर ना करना ।*
*★_मुफ्ती साहब फरमाते हैं रायपुर गया तो वहां की तन्हाई की इबादत, इंफिरादी आमाल , ज़िक्र उसमें मुझे कुछ ऐसी कैफियत महसूस हुई कि मैंने 3 दिन के बजाय 5 दिन कर दिए। इधर मौलाना इल्यास साहब रह. ने खत लिखा हजरत शेख को कि जैनुल आबेदीन 3 दिन का कह कर गए थे रायपुर आज 5 दिन हो गए ,यहां इज़्तिमाई तकाजा है।*
*★_ हज़रत शैख खुद तशरीफ ले गए और जा कर मुफ्ती साहब से फरमाया- आप अब तक यहां ठहरे हैं वहां इज्तिमाई तक़ाज़ा है। मुफ्ती साहब ने अर्ज़ किया कि मैं तो इजाजत लेकर आया था 3 दिन के लिए लेकिन यहां आकर कुछ ऐसा महसूस हुआ, फायदा नजर आया तो 5 दिन कर दिये।*
*★_ हजरत शेख के अल्फ़ाज़ यह है याद रखना - हज़रत शेख ने फरमाया मुफ्ती साहब इंफिरादी आमाल के पहाड़ इज़्तिमाई ज़र्रात से भी छोटे हैं,*
*🎙️ हज़रत मौलाना साद साहब दा.ब,*
*💤 एडमिन की डायरी - हक़ का दाई _,*
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