NAMAZ SUNNAT KE MUTABIQ PADHIYE (HINDI)

*⚀﷽⚀*  
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       *◆ नमाज़ सुन्नत के मुताबिक हो ◆*                   
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            *◆- नमाज़ का तरीक़ा ◆*

*◆★_ नमाज़ दीन का सुतून है, इसको ठीक ठीक सुन्नत के मुताबिक़ अदा करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है, हम लोग बेफिकरी के साथ नमाज़ के अरकान जिस तरह में आता है अदा करते रहते है और इस बात की फ़िकर नहीं करते कि वो अरकान मसनून तरीक़े से अदा हों, इसकी वजह से हमारी नमाज़ें सुन्नत के अनवार व बरकात से महरूम रहती है हालांकि इन अरकान को ठीक ठीक अदा करने से ना वक़्त ज़्यादा खर्च होता है ना मेहनत ज़्यादा होती है, बस ज़रा सी तवज्जो की बात है,* 

*◆★ अगर हम ठोडी सी तवज्जो दे कर सही तरीक़ा सीख लें और इसकी आदत डाल लें तो जितने वक़्त में हम आज नमाज़ पढते है, उतने ही वक़्त में वो नमाज़ सुन्नत के मुताबिक अदा हो जायेगी और इसका अजरो सवाब भी और अनवार व बरकात भी आज से कहीं ज़्यादा होंगे,* 

*◆★_ हज़रात ए सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को नमाज़ का एक एक अमल ख़ुब तवज्जो के साथ सुन्नत के मुताबिक अंजाम देने का बड़ा अहतमाम था और वो एक दूसरें से सुन्नतें सीखते भी रहते थे, इसी ज़रूरत के पेशे नज़र नमाज़ का मसनून तरीक़ा और इज़ सिलसिले में जो गलतियां रिवाज पा गई है, उनकी तफ़सील बयान की जा रही है', इंशा अल्लाह तआला इसको हम सबके लिये मुफ़ीद बनाएं और इस पर अमल करने की तोफीक़ अता फरमाये, आमीन,* 

*◆★_यहां नमाज़ के तमाम मसाइल बयान करना मक़सूद नहीं है बल्कि सिर्फ नमाज़ के अरकान की हैय्यत सुन्नत के मुताबिक़ बनाने के लिये चंद ज़रूरी बातें  बयान करनी है, और उन गलतियों और कोताहियों पर तम्बीह करनी है जो आज कल बहूत ज़्यादा रिवाज पा गई है, इन चंद मुख्तसर बातों पर अमल करने से इंशा अल्लाह नमाज़ की कम से कम जा़हिरी सूरत सुन्नत के मुताबिक़ हो जाएगी,*

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     *◆_नमाज शुरू करने से पहले -◆*

*◆- (1) आपका रुख क़िब्ले की तरफ होना जरूरी है,*
*(2) आपको सीधे खड़े होना चाहिए और आपकी नज़र सजदे की जगह पर होनी चाहिए, गर्दन को झुका कर ठोड़ी को सीने से लगा लेना भी मकरूह है और बिला वजह सीने को झुका कर खड़ा होना भी दुरुस्त नहीं है, इस तरह सीधा खड़ा हों कि नज़र सजदे की जगह पर रहे,*

*◆-(3) आपके पांव की उंगलियों का रुख भी क़िब्ले की जानिब रहें और दोनों पांव सीधे किब्ला रुख रहे, पांव को दाएं बाएं तिरछा रखना खिलाफे सुन्नत है, दोनों पांवों क़िब्ला रुख होना चाहिए,*

*◆_(4)- दोनों पांव के दरमियान कम से कम चार उंगल का फासला होना चाहिए,*
*◆-(5)अगर जमात से नमाज़ पढ़ रहे हैं तो आप की सफ सीधी रहे सफ सीधी करने का बेहतरीन तरीका यह है कि हर शख्स अपनी दोनों एड़ियों के आखिरी सिरे सफ या उसके निशान के आखिरी किनारे पर रखें ।*
   
*◆- *◆- (6) जमात की सूरत में इस बात का भी इतमिनान कर लें कि दाएं बाएं खड़े होने वालों के बाजू के साथ आपके बाजू मिले हुए हैं और बीच में कोई खला नहीं है लेकिन खला को पुर करने के लिए इतनी तंगी भी ना की जाए कि इत्मीनान से खड़ा होना मुश्किल हो जाए,*

*◆- (7) अगर अगली सफ भर चुकी हो तो नई सफ बीच में से शुरू की जाए दाएं या बाएं किनारे से नहीं, फिर जो लोग आएं वह इस बात का ख्याल रखें कि सफ दोनों तरफ से बराबर हो ,*

*◆-(8) पाजामा या पेंट को टखने से नीचे लटकाना हर हाल में नाजायज़ है, जाहिर है कि नमाज़ में इसकी सुन्नत और बढ़ जाती है लिहाज़ा इस बात का इत्मीनान कर लें कि पजामा या पेंट टखने से ऊंचा रहे ,*

*◆- (9) हाथ की आस्तीने पूरी तरह ढंकी होनी चाहिए सिर्फ हाथ खुले रहें बाज़ लोग आस्तीने चढ़ाकर नमाज़ पढ़ते हैं यह तरीका दुरुस्त नहीं है ,*

*◆- (10) ऐसे कपड़े पहन कर नमाज में खड़े होना मकरूह हैं जिन्हें पहनकर इंसान लोगों के सामने ना जाता हो ,*

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           *◆- नमाज शुरू करते वक्त -◆*

*◆-१_दिल में नियत कर लें कि मैं फलां नमाज़ पढ़ रहा हूं ज़बान से नियत करना ज़रूरी नहीं ।*

*◆_२_ हाथ कानों तक इस तरह उठाएं की हथेलियों का रुख क़िब्ले की तरफ हो और अंगूठे के सिरे कान की लौ से या तो बिल्कुल मिल जाएं या उसके बराबर आ जाएं और बाक़ी उंगलियां ऊपर की तरफ सीधी हों,*

*◆_बाज़ लोग हथेलियों का रुख क़िब्ले की तरफ करने के बजाय कानों की तरफ कर लेते हैं, बाज़ लोग कानों को हाथों से बिल्कुल ढक लेते हैं, बाज़ लोग हाथों को पूरी तरह कानों तक उठाए बगैर हल्का इशारा कर लेते हैं, बाज़ लोग कान की लो को हाथों से पकड़ लेते हैं । यह सब तरीके गलत और खिलाफे सुन्नत हैं, इनको छोड़ना चाहिए ।*

*◆_ ३_मज़कूरा बाला ( ऊपर बताए हुए ) तरीके़ पर हाथ उठाते वक्त अल्लाहु अकबर कहें फिर दाएं हाथ के अंगूठे और छोटी उंगली से बांये पोछे (कलाई) के गिर्द हल्का बनाकर उसे पकड़ लें और बाक़ी तीन उंगलियों को बाएं हाथ की पुस्त पर इस तरह फैला दें कि तीनों उंगलियों का रुख कोहनी की तरफ रहे,*

*◆_४_ दोनों हाथों को नाफ से ज़रा सा नीचे रखकर ऊपर बताए  हुए तरीके़ से बांध लें,*

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            *◆- खड़े होने की हालत में -◆*

*◆-(1)_ अगर अकेले नमाज़ पढ़ रहे हो या इमामत कर रहे हो तो पहले सना ( सुब्हान कल्लाहुम्मा )  फिर सुरह फातिहा (अल्हम्दु शरीफ ) फिर कोई और सूरत पढ़ें और अगर किसी इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं तो सिर्फ सना ( सुब्हना कल्लाहुम्मा) पढ़कर खामोश हो जाएं और इमाम की क़िरात को ध्यान लगाकर सुनें, अगर इमाम ज़ोर से ना पड़ रहा हो तो ज़ुबान हिलाए बगैर दिल ही दिल में सूरह फातिहा का ध्यान रखें ।*

*◆-(2)_ नमाज़ में क़िरात के लिए यह ज़रूरी है कि ज़ुबान और होठों को हरकत देकर क़िरात की जाए बल्कि इस तरह क़िरात की जाए कि खुद पढ़ने वाला उसको सुन सके, बाज़ लोग इस तरह क़िरात करते हैं कि जुबान और होंठ हरकत नहीं करते यह तरीक़ा दुरुस्त नहीं है, बाज़ लोग क़िरात के बजाए दिल ही दिल में अल्फाज़ का तसव्वुर कर लेते हैं, इस तरह भी नमाज़ नहीं होती ।*

*◆-(3)_जब खुद क़िरात कर रहे हो तो सूरह फातिहा पढ़ते वक्त बेहतर यह है कि हर आयत पर रूक कर सांस तोड़ दें फिर दूसरी आयत पढ़े, कई कई आयातो को एक सांस में ना पड़े ,”_  मसलन – “अल हमदुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन” और सांस तोड़ दे,  फिर “अर रहमान निर रहीम” और सांस तोड़ दे, फिर “मालिकी यव मिददीन” पर,  इस तरह पूरी सूरह फातिहा पढ़ें लेकिन इसके बाद की कि़रात में एक सांस में एक से ज्यादा आयतें भी पढ़ ले तो कोई हर्ज़ नहीं ।*

*◆-(4)_ बगैर किसी जरूरत के जिस्म के किसी हिस्से को हरकत ना दें, जितने सुकून के साथ खड़े हों उतना ही बेहतर है, अगर खुजली वगैरा की जरूरत है तो सिर्फ एक हाथ इस्तेमाल करें और वह भी  सिर्फ सख्त ज़रूरत के वक्त और कम से कम ।*

*◆-(5)_ जिस्म का सारा ज़ोर एक पैर पर देकर दूसरे पैर को इस तरह ढीला छोड़ देना की उसमें खम आ जाए नमाज़ के आदाब के खिलाफ है, इससे परहेज़ करें । या तो दोनों पैरों पर बराबर ज़ोर दें या एक पैर पर ज़ोर दें तो इस तरह कि दूसरे पैर में खम पैदा ना हो ,*

*◆-(6)_ जमहाई आने लगे तो उसको रोकने की पूरी कोशिश करें,*
*(7)_ डकार आए तो हवा को पहले मुंह में जमा कर लिया जाए फिर आहिस्ता से बगैर आवाज़ के उसे ख़ारिज किया जाए, ज़ोर से डकार लेना नमाज़ के आदाब के खिलाफ है ,*

*◆-(8)_ खड़े होने की हालत में नज़रें सजदे की जगह पर रखें इधर-उधर या सामने देखने से परहेज़ करें ,*
  
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                  *◆- रुकू में -◆*

*❖_रुकू में जाते वक्त इन बातों का ध्यान रखें_,*
*◆-(1) अपने ऊपर के धड़ को इस हद तक झुकाएं कि गर्दन और पुश्त तकरीबन एक सतह पर आ जाएं, ना इससे ज्यादा झुके ना इससे कम,* 
*◆-(2) रुकू की हालत में गर्दन को इतना ना झुकाएं कि ठोड़ी सीने से मिलने लगे और ना इतना ऊपर रखें कि गर्दन कमर से बुलंद हो जाये बल्कि गर्दन और कमर सतह पर हो जानी चाहिए,* 

*◆-(3) रुकू मैं दोनों पैर सीधे रखें उनमे खम ना हो,*
 *◆-(4) दोनों हाथ घुटनों पर इस तरह रखें कि दोनों हाथों की उंगलियां खुली हुई हो यानि हर दो उंगलियों के दरमियान फासला हो और इस तरह दाएं हाथ से दाएं घुटने को और बाएं हाथ से बाएं घुटने को पकड़ लें,* 

*◆-(5) रुकू की हालत में कलाइयां और बाजू सीधे तने हुए रहना चाहिए उनमें खम नहीं आना चाहिए ,*
 *◆-(6) कम से कम इतनी देर रुकू में रुकें कि इतमिनान से 3 मर्तबा ( सुब्हाना रब्बियल अज़ीम ) कहां जा सके,*

 *◆-(7) रुकू की हालत में नज़रें पांव की तरफ होना चाहिए,*
*◆-(8) दोनों पांव पर ज़ोर बराबर रहना चाहिए और दोनों पांव के टखने एक दूसरे के बिल मुक़ाबिल रहना चाहिए,*
  
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           *◆- रुकू से खड़े होते वक्त -◆*

*◆-(1) रुकू से खड़े होते वक्त इतने सीधे हो जाएं कि जिस्म में कोई खम बाक़ी ना रहे ,*

*◆-(2) इस हालत में भी नज़र सजदे की जगह रहनी चाहिए,* 

*◆-(3) बाज़ लोग खड़े होते वक्त खड़े होने के बजाय खड़े होने का सिर्फ इशारा करते हैं और जिस्म के झुकाव की हालत ही में सजदे के लिए चले जाते हैं उनके जिम्मे नमाज़ का लौटाना वाजिब हो जाता है, लिहाज़ा इससे सख्ती के साथ परहेज़ करें , जब तक सीधे होने का इत्मिनान ना हो जाए सजदे में ना जाएं ,*

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            *◆- सजदे में जाते वक्त -◆*

*◆- सजदे में जाते वक्त इस तरीके का ख्याल रखें :-*
*◆-(1)_ सबसे पहले घुटनों को खम देकर उन्हें ज़मीन की तरफ इस तरह ले जाएं कि सीना आगे को ना झुके, जब घुटने ज़मीन पर टिक जाएं तो उसके बाद सीने को झुकाएं,*

*◆-(2)_जब तक घुटनें ज़मीन पर ना टिकें उस वक्त तक ऊपर के धड़ को झुकाने से परहेज़ करें ,*

*◆- आजकल सजदे में जाने के इस मखसूस आदाब से बेपरवाही आम हो गई है, अक्सर लोग शुरू ही से सीना आगे को झुका कर सजदे में जाते हैं लेकिन सही तरीक़ा वही है जो नंबर एक और नंबर दो मे बयान किया गया, बगैर किसी उज्र के उसको ना छोड़ना चाहिए,*

*◆-(3) घुटनों के बाद पहले हाथ ज़मीन पर रखें, फिर नाक, फिर पेशानी ,*

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                *◆- सजदे में -◆*

*◆-(१)_ सजदे में सर को दोनों हाथों के दरमियान इस तरह रखें कि दोनों अंगूठे के सिरे कानों की लो के सामने हो जाएं,*
*◆-(२)_ सजदे में दोनों हाथों की उंगलियां बंद होनी चाहिए यानी उंगलियां बिल्कुल मिली मिली हो और उनके दरमियान फासला ना हो,*
*◆-(३)_ उंगलियों का रुख क़िबले की तरफ होना चाहिए,*

*◆-(४)_ कोहनियां ज़मीन से उठी होनी चाहिए कोहनियों को ज़मीन पर टेकना दुरुस्त नहीं,*
*◆-(५)_ दोनों बाज़ू पहलुओं से अलग हटे हुए होने चाहिए, उन्हें पहलुओं से बिल्कुल मिलाकर ना रखें,*
*◆-(६)_ कोहनियों को दाएं बाएं इतनी दूर तक भी ना फैलाएं जिससे बराबर के नमाज़ पढ़ने वालों को तकलीफ हो,*

*◆-(७)_ रानें पेट से मिली हुई नहीं होनी चाहिए, पेट और रानें अलग-अलग रखी जाए,*
*◆-(८)_ पूरे सजदे के दौरान नाक ज़मीन पर टिकी रहे ज़मीन से ना उठे,*
*◆-(९)_दोनों पांव को इस तरह खड़े रखे जाएं की एड़ियां ऊपर हो और तमाम उंगलियां अच्छी तरह मुड़कर क़िब्ला रुख हो गई हों, जो लोग अपने पांव की बनावट की वजह से तमाम उंगलियां मोड़ने पर का़दिर ना हों वो जितनी मोड़ सके उतनी मोड़ने का अहतमाम करें, बिला वजह उंगलियों को सीधा जमीन पर टेकना दुरुस्त नहीं,*

*◆-(१०)_इस बात का ध्यान रखें कि सजदे के दौरान पांव ज़मीन से उठने ना पाएं, बाज़ लोग इस तरह सजदा करते हैं कि पांव की कोई उंगली एक लम्हे के लिए भी ज़मीन पर नहीं टिकती, इस तरह से सजदा अदा नहीं होता और नतीजतन नमाज़ भी नहीं होती, इससे अहतमाम के साथ परहेज करें,*
*◆-(११)_सजदे की हालत में कम से कम इतनी देर गुजारे कि 3 मर्तबा सुबहानाना रब्बियल आ’ला इतमिनान के साथ कह सकें, पेशानी टेकते ही फोरन उठा लेना मना है,*

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      *◆- दोनों सजदों के दरमियान -◆*

*◆-(१)_ एक सजदे से उठकर इत्मीनान से दो जानू सीधे बैठ जाएं फिर दूसरा सजदा करें, जरा सा सर उठा कर सीधे हुए बगैर दूसरा सजदा कर लेना गुनाह है और इस तरह करने से नमाज़ का लौटाना वाजिब हो जाता है,*

*◆-(२)_बांया पांव बिछाकर उस पर बैठे और दाया पांव इस तरह खड़ा कर लें कि उसकी उंगलियां मुड़कर क़िब्ला रुख हो जाएं, बाज़ लोग दोनों पांव खड़े करके उनकी एड़ियों पर बैठ जाते हैं, यह तरीक़ा सही नहीं है ,*

*◆-(३)_बैठने के वक्त दोनों हाथ रानों पर रखें होने चाहिए मगर उंगलियां घुटनों की तरफ लटकी हुई ना हो बल्कि उंगलियों के आखिरी सिरे घुटने के इब्तदाई किनारे तक पहुंच जाएं,*

*◆-(४)_बैठने के वक्त नज़रें अपनी गोद की तरह होनी चाहिए,*

*◆-(५)_इतनी देर बैठे कि उसमें कम से कम 1 मर्तबा “सुब्हानल्लाह” कहां जा सके और अगर इतनी देर बैठे कि उसमें “अल्लाहुम्मगफिरली वरहमनी वाआफीनी वाहदिनी वरज़ुक़नी ” पढ़ा जा सके तो बेहतर है लेकिन फर्ज़ नमाज़ में यह पढ़ने की ज़रूरत नहीं, निफ्लों में पढ़ लेना बेहतर है ,*

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    *◆- दूसरा सजदा और उससे उठना -◆*

*◆-(१)_ दूसरे सजदे में भी इस तरह जाए कि पहले दोनों हाथ ज़मीन पर रखें फिर नाक फिर पेशानी ,*

*◆-(२)_सजदे की हैयत वही होनी चाहिए जो पहले सजदे में बयान की गई ,*

*◆-(३)_ सजदे से उठते वक्त पहले पेशानी ज़मीन से उठाएं फिर नाक फिर हाथ फिर घुटने ,*

*◆-(४)_उठते वक्त ज़मीन का सहारा ना लेना बेहतर है लेकिन अगर जिस्म भारी हो या बीमारी या बुढ़ापे की वजह से मुश्किल हो तो सहारा लेना भी जायज़ है ,*

*◆-(५)_उठने के बाद हर रका’त के शुरू में सूरह फातिहा के पहले “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम _” पढ़े ,*

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                    *◆- क़ा’दे में -◆*

*◆- (१)_का़’दे में बैठने का तरीक़ा वही होगा जो सजदों के बीच में बैठने का जिक्र किया गया,* 

*◆- (२)_अत्ताहियात पढ़ते वक्त जब अशहदू अल्लाह पर पहुंचे तो शहादत की उंगली उठाकर इशारा करें और इल्लल्लाह पर गिरा दें,* 

*◆-(३)_इशारे का तरीक़ा यह है कि बीच की उंगली और अंगूठे को मिलाकर हलका़ बनाएं छुंगली और उसके बराबर वाली उंगली बंद कर ले और शहादत की उंगली को इस तरह उठाएं की उंगली क़िब्ला की तरफ से झुकी हुई हो बिल्कुल सीधी आसमान की तरफ ना उठाना चाहिए,* 

*◆-(४)_इल्लल्लाह कहते वक्त शहादत की उंगली को नीचे कर लें लेकिन बाकी़ उंगलियों की जो हैयत इशारे के वक्त बनाई थी उसको आखिर तक बरक़रार रखें,*

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              *◆- सलाम फैरते वक्त -◆*

*◆- (१)_ दोनों तरफ सलाम करते वक्त गर्दन को इतना मोड़ें कि पीछे बैठे आदमी को आपके रूखसार नज़र आ जाएं,*

*◆-(२)_ सलाम फैरते वक्त नज़रें कांधें की तरफ होनी चाहिए ,*

*◆-(३)_ जब दाएं तरफ गर्दन फैर कर सलाम “अस्सलामु  अलैकुम वा रहमतुल्लाह” कहें तो यह नियत करें कि दाएं तरफ जो इंसान और फरिश्ते हैं उनको सलाम कर रहा हूं और बाएं तरफ सलाम करते वक्त बाएं तरफ मौजूद इंसानों और फरिश्तों को सलाम करने की नियत करें _,*

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               *◆- दुआ का तरीक़ा -◆*

*◆-(१)_ दुआ का तरीक़ा यह है कि दोनों हाथ इतने उठाएं जाएं कि वह सीने के सामने आ जाएं, दोनों हाथों के दरमियान मामूली सा फासला हो, ना हाथों को बिल्कुल मिलाएं और ना दोनों के दरमियान ज्या़दा फासला रखें,*

*◆-(२)_ दुआ करते वक्त हाथों के अंदरूनी हिस्से को चेहरे के सामने रखें _,*

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         *◆- खवातीन की नमाज़  -◆*

*◆- पिछले पार्टों में नमाज़ का जो तरीक़ा बयान किया गया वह मर्दों के लिए हैं औरतों की नमाज़ कुछ तरीकों में मर्दों से मुख्तलिफ है लिहाज़ा खवातीन को इन मसाईल का ख्याल रखना चाहिए :-*

*◆-१_ ख्वातीन को नमाज़ शुरू करने से पहले इस बात का इत्मीनान कर लेना चाहिए कि उनके चेहरे हाथों और पैरों के सिवा तमाम जिस्म कपड़े से ढंका हुआ है ,*

*◆- बाज़ खवातीन की कलाइयां खुली रहती है, बाज़ खवातीन के कान खुले रहते हैं, बाज़ खवातीन इतना छोटा दुपट्टा इस्तेमाल करती हैं कि उसके नीचे बाल लटके नज़र आते हैं _,*

*◆- यह सब तरीक़े नाजायज़ हैं और अगर नमाज़ के दौरान चेहरा, हाथ और पांव के सिवा जिस्म का कोई हिस्सा भी चौथाई के बराबर इतनी देर खुला रह गया जिसमें 3 मर्तबा “सुबहाना रब्बियल अज़ीम” कहा जा सके तो नमाज़ नहीं होगी और उससे कम खुला रह गया तो नमाज़ हो जाएगी मगर गुनाह होगा_,*

*२_ खवातीन के लिए कमरे में नमाज़ पढ़ना बरामदे से अफ़ज़ल है और बरामदे में पढ़ना सहन से अफ़ज़ल है ,*

*◆-3_औरतों को नमाज़ शुरु करते वक्त हाथ कानों तक नहीं बल्कि कंधों तक उठाना चाहिए और वह भी दुपट्टे के अंदर ही से उठाने चाहिए दुपट्टे से बाहर ना निकलने पाएं,*

*◆-४_ औरतें हाथ सीने पर इस तरह बांधे कि सीधे हाथ की हथेली उल्टे हाथ की पुस्त पर रख दें, औरतों को मर्दों की तरह नाफ पर हाथ ना बांधना चाहिए ,*

*◆-५_ रुकू में औरतों के लिए मर्दों की तरह कमर को बिल्कुल सीधा करना ज़रूरी नहीं, औरतों को मर्दों के मुक़ाबले में कम झुकना चाहिए ,*

*◆-(६)_ रुकू की हालत में मर्दों को उंगलियां घुटनों पर खोलकर रखनी चाहिए लेकिन औरतों के लिए हुक्म यह है कि वह उंगलियां मिलाकर रखें यानी उंगलियों के दरमियान फासला ना हो_,” (दुर्रे मुख्तार)*

*◆-(७)_औरतों के रुकू में अपने पांव बिल्कुल सीधे ना रखना चाहिए बल्कि घुटनों को आगे की तरफ जरा सा झुका कर खड़ा होना चाहिए _,” (दुर्रे मुख्तार )*

*◆-(८)_मर्दों को हुक्म यह है कि रूकू में उनके बाजू पहलुओं से जुदा और तने हुए हों लेकिन औरतों को इस तरह खड़ा होना चाहिए कि उनके बाजू पहलुओं से मिले हुए हो _,” ( ईज़ा)*

*◆-(९)_ औरतों को दोनों पांव मिला कर खड़ा होना चाहिए खासतौर पर दोनों टखने तक़रीबन मिल जानी चाहिए, पांव के दरमियान फासला ना होना चाहिए _,” (बहिष्ती ज़ेवर )*

*◆-(१०)_ सजदे में जाते वक्त मर्दों के लिए यह तरीक़ा बयान किया गया है कि जब तक घुटने ज़मीन पर ना टिकें उस वक्त तक वह सीना ना झुकाएं लेकिन औरतों के लिए यह तरीक़ा नहीं है वह शुरू से ही सीना झुका कर सजदे में जा सकती है_,”*

*◆-(११)_ औरतों को सजदा इस तरह करना चाहिए कि उनका पेट रानों से बिल्कुल मिल जाए और बाजू भी पहलुओं से मिले हुए हों और औरतें पांव को खड़ा करने के बजाय उन्हें दाईं तरफ निकालकर बिछा दें _,”*

*◆-(१२)_मर्दों के लिए सजदे में कोहनियां जमीन पर रखना मना है लेकिन औरतों को कोहनियों समेत पूरी बांहें ज़मीन पर रख देनी चाहिए,( दुर्रे मुख्तार )*

*◆-(१३)_ सजदों के दरमियान और अत्तहियात पढ़ने के लिए जब बैठना हों तो बाएं कूल्हे पर बैठे और दोनों पांव दाईं तरफ को निकाल ले और दाईं पिंड़ली पर रखें ( ताहतावी )*

*◆-(१४)_ मर्दों के लिए हुक्म यह है कि वह रुकू में उंगलियां खोलकर रखने का एहतमाम करें और सजदे में बंद रखने का और नमाज़ के बाक़ी अफ’आल में उन्हें अपनी हालत पर छोड़ दें, ना बंद करने का अहतमाम करें ना खोलने का, लेकिन औरतों के लिए हर हालत में हुक्म यह है कि वह उंगलियों को बंद रखें, यानी उनके दरमियान फासला ना छोड़े,  रुकू में भी, सजदे में भी, दोनो सजदों के दरमियान भी और का़अदे में भी ।*

*◆-(१५)_ औरतों का जमात करना मकरूह है उनके लिए अकेली नमाज़ पढ़ना ही बेहतर है, अलबत्ता अगर घर के महरम अफराद घर में जमात कर रहे हों तो उनके साथ जमात में शामिल हो जाने में कुछ हर्ज नहीं लेकिन ऐसे में मर्दों के बिल्कुल पीछे खड़ा होना ज़रूरी है बराबर में हरगिज़ खड़ी ना हों ।*

*◆- अलहम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई*

*◆-📔 नमाज़ सुन्नत के मुताबिक पढ़िए (मुफ्ती तक़ी उस्मानी साहब दा.ब.)*
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