Dil Ki Baat - दिल की बात ( Hindi )

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     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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   *💕 शायद कि तेरे दिल में उतर जाए 💕*
                     *◐ मेरी बात ◐*
                  *_((क़िस्त नं:- 01))_* 
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*◐☞ मेरे दोस्तों ! ईमान बिल गैब असल है ◐*

*❖_ अल्लाहु अकबर ! ईमान बिल गैब का हाल यह है कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि तुम मेरी नज़रों से आसमान के परदे हटा कर जन्नत और जहन्नम को दिखा दो तो मेरे ईमान और यक़ीन में ज़र्रा बराबर भी इजा़फा नहीं होगा ।*

*❖_अल्लाहु अकबर ! बगैर देखे ईमान इतना बन चुका है तो हमारा ईमान इतना भी नहीं बन सकता, लेकिन इतना तो ईमान बन सकता है कि हम अल्लाह ताला के वादों पर यक़ीन करके हराम छोड़ दें, ज़िना छोड़ दें, सूद छोड़ दें, खयानत छोड़ दें, शराब छोड़ दें, बद दयानती छोड़ दें, इतना यकी़न हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज़ है ...,*

*❖_अल्लाह के हुक्मों पर चलना सीखो, हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के नूरानी और पाक़ीज़ा तरीक़े सीखो ।*
*अफसोस है ! हमें ईमान सीखने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती। हक़ीक़त में ईमान की कमज़ोरी का एहसास ही नहीं है ।*

*❖_लोग तो अभी कहेंगे अरे यह भी कोई सीखने की चीज़ है !* 
*हां भाई हां ! यही तो सीखने की चीज़ है, इसी को बक़ा है बाक़ी हर चीज़ फना है ।*

*❖_ अल्लाह हमें ईमान की फ़िक्र अता करें और इसको सीखने के लिए हर लाइन की कुर्बानी देने वाला बनाए । आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 02))_* 
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*◐☞ हमारे ईमान की हक़ीक़त ◐*

❖_ मेरे दोस्तों ! हमारे पास ईमान है कितना और कैसा है? 
एक मिसाल है, एक बनिया रास्ते में जा रहा था उसे एक चोर मिल गया उस वक्त चोर के पास कोई हथियार नहीं था तो उसने रास्ते से गन्ने का छिलका उठाया और बनिए से कहने लगा जो कुछ तेरे पास है निकाल दे, बनिए ने जेब से कुछ पैसे निकाल कर चोर को दे दिए, उस चोर ने कहा मैं कह रहा हूं सारा निकाल दे और तू यह पैसे दे रहा है, 
बनिए ने कहा पहले अपना हथियार तो संभाल ले, इस हथियार पर सारा मांग रहा है ।

❖_ मेरे दोस्तों ! हम जो कहते हैं अल्लाह हमारी मदद नहीं कर रहा, हमारी दुआएं कुबूल नहीं कर रहा, हमारे मसले हल नहीं हो रहे,
अब हम पहले अपने आप को तो देख लें, हमारा अल्लाह के साथ कैसा मामला है ?

❖_ हम तो मेरे भाइयों इस ज़मीन पर रहने के का़बिल भी नहीं है, सारा मुल्क़ अंदर धंस जाए, बर्बाद हो जाए, मुल्क की क्या बात करें पूरी दुनिया इस वक्त धंस जाए, हमारी नाफरमानियां तो इस दर्जे पर पहुंच चुकी है !
अल्लाह को हमने दिया क्या है आज तक ? जैसा देंगे वैसा आएगा ।

❖_हमने अल्लाह के लिए लगाना छोड़ दिया, माल को अपनी मिल्कि़यत समझा ,  
जान के हम खुद मालिक बन बैठे,
मस्जिदें काटने लगी ,दीन से बेगाने हो गए,
सुन्नते बोझ बन गई,
दीनी मजलिसें खाली खाली है,
दीनदारों की सोहबत हमें पागलपन नज़र आती है, 
क्या क्या कहूं भाइयों ! हम तो किसी का़बिल भी ना रहे ।

❖_ प्लीज़ ! लौट आओ उस दीन की तरफ जिसमें तमाम मसाईल का हल है, जिसमें दुनिया आखिरत की भलाई है ।
अल्लाह हमे दीन की सही समझ अता करें । आमीन या रब्बुल आलमीन ।

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                  *_((क़िस्त नं:- 03))_* 
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*◐☞ दावा ईमान का अमल से खाली ◐*

*❖_ हर मुसलमान कुरान पर ईमान रखता है उसके बगैर वह मोमिन हो नहीं सकता, मगर सवाल यह है कि हमारा कुरान पर ईमान है कितना ?* 
*क़ुरान को जानते कितना है ?*
*सिर्फ यह कह देना कि यह अल्लाह की किताब है, यह हुजूरे पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर नाजि़ल हुई ।*

*❖_तो मेरे दोस्तों ! इतना यकी़न तो मक्का के मुशरिकों काफिरों को भी था, वह भी मानते थे कि यह अल्लाह की किताब है, उन्हें तो इश्काल इस बात पर था कि यह हुजूरे पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर क्यों नाजि़ल हुई ? किसी बड़े रईस, चौधरी, बादशाह पर क्यों नाजि़ल नहीं हुई ?*

*❖_ मेरे दोस्तों ! कुरान पर वैसा ईमान लाना जो इसका हक़ है !*
*हुजूरे पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने किसी ने गीबत कर दी, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि तू कुरान पर ईमान नहीं लाया ।*
*उन सहाबी ने फरमाया कि मैं तो कुरान पर ईमान गया हूं ।* 
*आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया, वह शख्स कुरान पर ईमान नहीं लाया जो कुरान के हराम को हराम और कुरान के हलाल को हलाल ना समझे _,"*

*❖_मेरे भाइयों जरा सोचें ! क्या इसी को कुरान पर ईमान लाना कहते हैं,*  
*कुरान कहे मोमिन झूठा नहीं होता और हम झूठ पर झूठ बोले जा रहे !*
*कुरान कहे हलाल कमाओ और हम हराम की दौड़ लगा रहे !*
*कुरान कहे सूद अल्लाह के साथ एलान-ए-जंग है और हम कहें इसके बिना हमारा धंधा नहीं चलता !*
*कुरान कहे जि़ना के क़रीब भी ना जाओ और हम रोजाना जि़ना को आम कर रहे!* 
*कुरान कहे मां-बाप तुम्हारे लिए जन्नत है और हम उनके दिलों को दुखाएं !*
*कुरान कहे नमाज पढ़ो, रोज़ा रखो, जकात दो और हमारे कानों में जूं तक ना रेंगे !*

*❖_ और क्या-क्या मैं लिखूं दोस्तों ! हम कैसे नाफरमान हैं ? यह कैसा ईमान है ?* 
*सोचो मेरे भाइयों ! प्लीज प्लीज सोचो !*

*❖_अल्लाह समझ अता करें और कुरान पर पूरा पूरा अमल की तौफीक अता करें, आमीन या रब्बुल आलमीन ।*

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                  *_((क़िस्त नं:- 04))_* 
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*◐☞ ईमान सीखो मौत से पहले ◐*

*❖_ कल एक भाई ने कमेंट किया यह कि हम तो इस्लाम वाले हैं हमें कलमे को सीखने की क्या जरूरत है ?*

*❖_ बेशक हम इस्लाम वाले हैं मगर शायद हमने सीरत ए नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को पढ़ा नहीं , आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पूरी हयात ए तैयबा कलमे की दावत और कलमे की मेहनत से भरी हुई है । सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की पूरी जिंदगी इस कलमे को सीखने में गुज़री ।जुबान से तो एक तोते को भी रटा दो, बोल लेगा । इसकी क्या गारंटी है कि जब मौत आएगी तो कलमा निकलेगा या टैं टैं ?*

*❖_ एक वाक्य़ा है हजरत शराहबील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हु एक दुबले-पतले सहाबी थे, वही के कातिब (लिखने वाले) थे, मिस्र में एक कि़ला फतह नहीं हो रहा कई दिन गुज़र गए, 1 दिन इन सहाबी को जोश आया घोड़े को ऐड लगा कर आगे बढ़े और फसील के करीब जाके फरमाया :- ए क़ुबतियों ! सुनो हम एक ऐसे अल्लाह की तरफ बुला रहे हैं जिसका तुम्हारे इस क़िले को तोड़ने का इरादा हो जाए तो आन की आन में तोड़ सकता है _,"*

*"_ला इलाहा इलल्लाहु अल्लाहु अकबर " कहकर जो शहादत की उंगली उठाई, सारा क़िला जमीन पर आ गिरा । अल्लाहु अकबर !*

*❖_ उन्होंने यह कलमा सीखा था, सालों मेहनत की थी कलमे को सीखने पर । हम तो वह गधे हैं जिसने शेर की खाल पहन ली और अपने आप को शेर समझ बैठे और कहते हैं हम इस्लाम वाले हैं, अभी तो हमने अल्फ़ाज़ सीखे हैं कलमा नहीं , जब कलमा अंदर उतरेगा तो बातिल ऐसे टूटेगा जैसे अंडे का छिलका !* 

*❖_ अल्लाह हमें मौत से पहले पहले समझा दे । आमीन या रब्बुल आलमीन ।*

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                  *_((क़िस्त नं:- 05))_* 
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             *◐☞ मुहम्मदी बनो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! दीन मुफ्त में नहीं मिला करता, जान माल लगाना पड़ता है , हां ! यूं ना कहो कि जलसे के लिए चंदा दे दिया और हमने जन्नत का ठेका ले लिया, अल्लाह ताला की क़सम! यह धोखा दिल से निकाल दो, मदरसे में चंदा देकर या मस्जिद में चंदा देकर हम यह समझ लें कि हमने जन्नत का ठेका ले लिया तो यह धोखा आज दिल से निकाल दो ,*

*❖_ जब तक हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाली जिंदगी और आप वाला तरीका़ जिंदगियों में नहीं आता अल्लाह ताला को ना हमारे माल की परवाह है ना हमारी जान की परवाह है ना हमारी ज़ात की ना हमारी हलाकत और बर्बादी की परवाह है ,*

*❖_ अल्लाह ताला की किसी से रिश्तेदारी नहीं है, अल्लाह ताला ने एक ही ज़ात को नमूना बना कर भेजा है कि इसके पीछे चल कराओ, इसके नमूने मे ढ़ल कर आओ, इसकी शक्ल बना कर आओ, इसका लिबास पहन कर आओ, उसकी सीरत अपना कर आओ, उसके मुताबिक जिंदगी लेकर आओ तो मेरे तक आ सकते हो वरना हमारा तुम्हारा कोई जोड़ नहीं,*

*❖_ हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी जिंदगी को नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के तरीकों पर ढ़ाला, अल्लाह ने वो रुतबा दिया कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया कि बिलाल ( रजि.) कयामत के दिन मेरे आगे अज़ान देता चलेगा और जब मैं जन्नत में दाखिल होउंगा तो बिलाल जन्नत में मेरी ऊंटनी की नकेल को पकड़कर चलेगा । सुब्हानल्लाह !* 

*❖_ अल्लाह ताला हमें अपने हबीब के तरीकों में ढ़ाल दें और आपके पाकीज़ा तरीकों से हमारी जिंदगियों को नूरानी बना दे, आमीन या रब्बुल आलमीन ।*

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                  *_((क़िस्त नं:- 06))_* 
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*◐☞ दावत का काम खत्मे नबूवत की पहचान है ◐*

*❖_ मेरे भाइयों ! हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बगैर यह सारा नक्शा वजूद में नहीं आ सकता , उनका हक़ हमारे हर हक़ से बढ़कर है । खत्मे नबूवत की लाइन के अहकाम सारे अहकाम पर छाए हुए हैं _,"*

*❖_आप नमाज पढ़ रहे हैं और सांप निकल आए तो नमाज छोड़कर सांप को मारना पड़ेगा,*
*_ दावत का काम खत्मे नबूवत की पहचान है, हमारी नमाज़ों से इस्लाम नहीं फैलेगा, हमारी मस्जिदों में तो मुसलमान ही नहीं आते !*
*रातों को तहज्जुद पढ़ लो इससे खत्मे नबूवत का हक़ अदा नहीं होगा, हलाल कमाने, जकात, खैरात से खत्मे नबूवत का पता नहीं चलेगा _,"*

*❖_अल्लाह के कलमे को लेकर सारी दुनिया में फिरने से और कलमे वाली जिंदगी लेकर चलने से पता चलेगा कि यह आखरी नबी के उम्मती हैं, यह अपने नबी का कलमा दुनिया को पहुंचाने निकले हैं _,"* 

*❖_अल्लाह हमें अपने नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सच्ची पैरवी नसीब करें और नबी वाली जिंदगी नसीब करें और इस जिंदगी को लेकर पूरी दुनिया में फिरने वाला बनाए ! आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 07))_* 
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*◐☞ तमाम मसाइल का हल अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की फरमाबरदारी में है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! आज हम सबके पास कोई ना कोई मसला है, हम सब मसलों से घिरे हुए हैं । मुल्क कंट्री का मसला भी है कि मुल्क कर्ज़ों में डूबता जा रहा है, हमारी अक्ल कहती है कि कर्ज़ उतारो मुल्क सवांरो ,.. कभी कर्जे़ उतरने से भी मुल्क संवरते हैं ?*
*"_मुल्क, देश, कंट्री संवरते है इंसान के संवरने से, अल्लाह की फरमाबरदारी से, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाली जिंदगी से ।*

*❖_ यह हो जाए तो कर्ज़े भी उतर जाएंगे खुशहाली भी होगी, अमन चैन सुकून भी होगा, मोहब्बतें भी होंगी, हर हाल में अल्लाह ताला खुश कर देगा ।*

*❖_ यह दौलत आने से नहीं होगा, दौलत तो आदमी को अय्याश, नाफरमान बना देती है । अल्लाह ने तमाम मसलों का हल अपने दीन और अपने हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जिंदगी में रखा है। अल्लाह ने साफ कर दिया कि रिज़्क़, इज्ज़त, रौब, मालदारी, वजाहत, ताक़त, इल्म सब कुछ अल्लाह दे देगा, बस एक काम कर लो ... अल्लाह की नाफरमानी छोड़ दो !,*

*❖_ अल्लाह हमें अपने दीन पर इस्तका़मत दे और हमारे तमाम मसलों को हल फरमाएं ! आमीन या रब्बुल आलमीन ।*


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                  *_((क़िस्त नं:- 08))_* 
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          *◐☞ जिंदगी का मक़सद ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हमारी पैदाइश का मक़सद और हमारा वजूद सिर्फ और सिर्फ अल्लाह ताला की बंदगी इता'त और फरमाबरदारी है लेकिन अफसोस कि हमने अपने इसी वजूद को अल्लाह ताला की मर्जी के खिलाफ इस्तेमाल किया,*

*❖_ बेशुमार एहसानात हैं हम पर अल्लाह ताला के कि हम गिनना भी चाहें तो नहीं गिन सकते लेकिन जो एहसान करें क्या उसके साथ ऐसा ही मामला किया जाता है ?*

*❖_ अपने घर के कुत्ते से हर इंसान को सबक सीखना चाहिए, हम उसको मारते हैं वह फिर भी अपना सर झुकाता है, घर का कोई बच्चा भी उसको मारे वह सर नहीं उठाएगा, बाहर से अगर कोई सात फिट का आदमी भी आ जाए तो उस पर झपट पड़ेगा चाहे उसकी जान ही चली जाए और अपने घर का बच्चा उसे मार रहा है उसके ऊपर बैठा हुआ है कुछ नहीं कहता, रोटी खाते हुए कुत्ते को बुलाओ रोटी छोड़ कर आ जाता है। थिंक ! सोचो !!*

*❖_ अज़ान होती है सारे बैठे हुए हैं, अल्लाह ताला बुला रहा है, आ जाओ, सर झुका लो, नमाज पढ़ लो, मैं तुम्हें बुला रहा हूं, पांच वक्त के लिए फारिग हो जाओ, मैं तुम्हें कामयाब करना चाहता हूं । कितने हैं जिनको नमाज़ की तौफीक हासिल है, कितने हैं जिनको सर झुकाने की तौफीक हासिल है ।*

*❖_ मेरे दोस्तों ! एक कुत्ता तो एक रोटी खाकर सारी जिंदगी वफ़ा करता है और हम अशरफुल मखलूक़ होकर इंसान हो कर नाफरमान क्यों हो गए ?*

*❖_ अल्लाह हमें अपनी इता'त वाली जिंदगी नसीब करें और वक्त पर नमाज़ अदा करने की तौफीक दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 09))_* 
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*◐☞ रिज़्क़ के असबाब - ईमान और तक़वा ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! आज इंसान सबसे ज्यादा परेशान रिज़्क, रोज़ी, रोटी के लिए हैं, सबसे बड़ा मसला मैंने और आपने यही समझा है, दिन रात कोलू के बैल की तरह चक्कर लगा रहे, ना जायज़ देखा, ना नाजायज़ देखा, ना हराम की परवाह की, ना हलाल की फिक्र, बस कैसे भी आए रोटी मिल जाए ।*

*❖_मगर अल्लाह क्या कहता है और अल्लाह का हबीब क्या कहता है, ज़रा गौर कर लें ! अल्लाह ताला का इरशाद है- ए शहर वालों, ऐ मुल्क वालों ! ईमान ले आओ और तक़वा अख्तियार कर लो, मैं आसमान के दरवाजों से रिज़्क खोल दूंगा, ज़मीन की रग रग से रिज़्क़ के दरवाज़े खोल दूंगा, तुम यह दो काम कर लो - ईमान ले आओ और तक़वा अख्तियार कर लो, ऐसी जगह से रिज़्क़ जाएगा किसी को वहमो गुमान भी नहीं ।*

*❖_ यह अल्लाह कह रहा है, अल्लाह के हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक मज़ेदार बात बताई, एक सहाबी ने पूछा - या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! मैं चाहता हूं मेरा रिज़्क़ बढ़ जाए । फरमाया तू बा वजू रहा कर अल्लाह तेरा रिज़्क़ बढ़ा देगा, कितना मुश्किल है कितना ज़ोर लगता है बा- वज़ु रहने में ? यह खबर है हबीब ए मुस्तफा की किसी लीडर या किसी कॉमर्स या इकोनॉमिक्स पड़ेगी नहीं ।*

*❖_ अल्लाह हमें अमल की तौफीक अता करें और ईमान तक़वा अता करें और हमेशा बा वज़ू रहने की तौफीक अता करें, आमीन या रब्बुल आलमीन !*

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                  *_((क़िस्त नं:- 10))_* 
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             *◐☞ इल्म की इंतेहा ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! आज सारी दुनिया अपने इल्म पर अमल कर रही है कि पैसा कमाओ बड़े मालदार बन जाओ, बड़े ताजिर बन जाओ, पॉलिटिक्स में आ जाओ, सरदार बन जाओ, कहीं के चेयरमैन बन जाओ,*

*❖_ सारी दुनिया का चक्कर लगा कर देख लें, एक एक इंसान से पूछ लें, सब अपनी अपनी ख्वाहिशात लेकर चल रहे, उसी के मुताबिक अमल कर रहे,*

*❖_ यह हमारे इल्म की इंतेहा है जबकि हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु क्या फरमा रहे ?हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु का इल्म हजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इल्म है और हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इल्म अल्लाह ताला का इल्म है,*
*"_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु का इरशाद है जिसका मफहूम है :- जो कहता है मुझे इज्ज़त चाहिए चाहे कोई खानदानी ना हो, मैं मालदार बनना चाहता हूं लेकिन पैसा मेरे पास कोई नहीं, मैं चाहता हूं बादशाहों पर भी मेरा रौब क़ायम हो जाए और मैं अपने माहौल क़बीले, शहर में अपनी वज़ाहत चाहता हूं,*

*"_ वह सिर्फ एक काम करें कि अल्लाह की नाफरमानी छोड़ दे, अल्लाह का फरमा बरदार बंदा बन जाए, तो यह सारी चीजें उसके क़दमों में आ गिरेंगी_,"* 

*❖_अल्लाह ताला हमें अपना फरमाबरदार बंदा बनाए और ख्वाहिशात की इत्तेबा से बचाए, आमीन या रब्बुल आलमीन ।*

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                  *_((क़िस्त नं:- 11))_* 
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*◐☞ अपने रब की तारीफ करो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! कितने अफसोस की बात है कि हम 5 मिनट अल्लाह की बढ़ाई बयान नहीं कर सकते, किसी मर्द औरत से पूछो तेरा घर कैसा है तेरी गाड़ी कैसी है तेरे कपड़े कैसे हैं तेरा कारोबार कैसा है तेरे मां-बाप कैसे हैं तेरी औलाद कैसी हैं ?*

*❖_ हर एक घंटों बयान करेगा, ऐसे हैं वैसे हैं ऐसा है वैसा है लेकिन जब पूछा जाए अल्लाह कैसा है ? तो पता नहीं कैसा है ? बस अल्लाह एक है और क्या ?*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हम तो आए ही हैं अल्लाह की तारीफ करने और उसकी इबादत करने, मुसलमान मर्द औरत का तो काम ही पूरी दुनिया को अल्लाह का तार्रुफ करवाना है, अल्लाह की मानने पर दुनिया को तैयार करना है, और अफसोस हमें ही पता नहीं हमारा रब कैसा है ?*
*"_ जमीन आसमान में एक ही तो ज़ात है जो काबिले-तारीफ है, अल्लाह ने कुरान ए करीम को "अल्हम्दुलिल्लाह" से शुरू किया, सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं । समझाया यह गया कि ऐ मुसलमान मर्द और औरतों ! यह है तुम्हारा काम कि सारी जिंदगी तुम अल्लाह ताला की तारीफ करो कि हमारा अल्लाह ऐसा है ऐसा है ऐसा है ! अल्लाह हू अकबर !*

*❖_ अल्लाह हमें अपनी पहचान करा दे और इस पहचान को लेकर पूरी दुनिया में फिरने वाला बना दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 12))_* 
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            *◐☞ तबलीग फर्ज़ है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! कल एक भाई ने एक कमेंट किया कि सोशियल मीडिया मनोरंजन के लिए होता है दीन की बातों के लिए नहीं, यहां दीन की बात मत करो _,"*

*❖_मेरे दोस्तों ! मुसलमान तो जहां जिस शोबे में भी जाएगा अपने दीन को साथ लेकर जाएगा, दीन के बगैर तो खालिस गुमराही है जहालत है।*

*❖_ एक बात और बताता हूं । यहां लोग क्या फैलाना चाहते हैं, सबको पता होना चाहिए । लोगों ने सोशल साइट्स को ख्वाहिशों के अड्डे बना लिए, झूठ यहां फैल रहा धोखा यहां फैल रहा, बेहयाई यहां फैल रही, ईमान के सौदे यहां हो रहे, शैतान की इत्तेबा यहां की जा रही, अल्लाह के गैर को यहां खुदा तस्लीम किया जा रहा, हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पैरवी से मुंह मोड़ा जा रहा । क्या क्या नहीं हो रहा है यहां ?*

*❖_ मेरे दोस्तों ! जब अल्लाह की नाफरमानियां खुल्लम-खुल्ला होने लग जाए और हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की सुन्नतों का खुल्लम-खुल्ला मजाक उड़ाया जाए तो तबलीग फर्ज हो जाती है, अगर यह ना हो पूरी उम्मत गुनहगार होगी । फिर वो होगा जो हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इरशाद है - "_फिर सुर्ख आंधियों ज़मीन के धंस जाने ज़लजलों का इंतजार करो _,"*

*❖_क्या हम इसके लिए तैयार हैं ? अल्लाह शैतान के शर से और नफ्स के धोखे से और मक्कार दुनिया के फितने से बचाकर अपने दीन की हिफाजत के लिए हमें कुबूल फरमाए। आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 13))_* 
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         *◐☞ दुनिया का खुलासा ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! अल्लाह ने दुनिया का खुलासा पास चीजों में बयान किया, दुनिया खैल है तमाशा है फैशन है फखरो गुरूर का नारा है और माल औलाद की कसरत के किस्से हैं, जिसने अपनी पूरी जिंदगी इन्हीं पांच चीज़ों को मक़सद बनाया होगा, खेलो कूदो, माल और जमीन इकट्ठा कर लो, अपनी मनमानी कर लो, जैसा मन में आया कमा लो, नक़दी जमा कर लो, जैसा मन में आया खर्च करो, जैसा मन में आया पहन लो और फख्र कर लो नारे लगा लो, अपनी सारी जिंदगी इन्हीं चीज़ों पर खर्च कर दी, हाय पैसा.. हाय जमीन.. हाय माल,*

*❖_ अब सकरात (मौत के वक्त) पर जिस वक्त मलकुल मौत हाथ लगाएगा कोई नज़र नहीं आएगा, अब खुदा की तरफ चल रहा है यहां से आखिरत की मंजिलें शुरू होती हैं,*

*❖_ सकरात पर आसानी है या सख्ती, कब्र जन्नत का बाग है या जहन्नम का गड़ा, पुलसिरात पर बिजली की तरह पार होना है या कट कट कर जहन्नम में गिरना, सीधे हाथ में आमाल नामा या उल्टे हाथ में, जन्नत का फैसला या जहन्नम का फैसला, हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हाथों से जामे कौसर या धक्के सोकन सोकन, दूर हटो .. दूर हटो ।* 

*❖_जितने मसाईल हैं मौत पर शुरू होंगे इसलिए हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का इरशाद है, जैसे जियोगे वैसे मरोगे जैसे मरोगे वैसे ही कल आखिरत में उठाए जावोगे, अगर जिंदगी की बुनियादें सिद्दीकी है फारूकी है तोहीद रिसालत वाली है खौफे खुदा वाली है तो मौत ऐसी आएगी जैसी सालेहीन को आई जिस पर खुदा के वादे हैं।*

*❖_अल्लाह हमें अपने हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाली जिंदगी और सालेहीन वाली मौत अता करें, आमीन या रब्बुल आलमीन !*

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                  *_((क़िस्त नं:- 14))_* 
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*◐☞ अल्लाह और उसके हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रंग में रंगों ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हम में से हर आदमी मुनफा'ल है असर लेने वाला है, किसी से असर लेकर ही जिंदगी गुज़रेगी ! इंसान की तबीयत असर पजी़र है, इंसान बहुत जल्दी दूसरे की जिंदगी से मुतासिर होता है !*

*❖_अल्लाह ताला फरमाता है किसी का असर ना लो, मेरे रंग में रंगों, मेरे हबीब से असर लो, मेरे हबीब के रंग में रंगों, मुहम्मदी बन के रहो, अपनी जिंदगी में नज़र आओ कि यह मुहम्मदी है, अपनी पहचान कराओ कि यह मोहम्मदी है _,*

*❖_ पहचान होती है आमाल से, अखलाक़ से, ज़ाहिर से, बातिन से, किरदार से, हर तौर तरीके़ से कि देखो यह मुहम्मदी है !*

*❖_ अल्लाह ताला ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पूरी जिंदगी को महफूज़ कर दिया, आपकी एक एक अदा को महफूज़ कर दिया वरना अगर आपकी जिंदगी महफूज़ ना होती तो हम इत्तेबा कैसे करते ??*

*❖_अल्लाह हमें अपने और अपने हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रंग में रंगने और पूरी पूरी इत्तेबा करने की तौफीक अता करें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 15))_* 
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*◐☞ नियामतों पर शुक्र करो ◐*

*❖_ मैरे दोस्तों !अल्लाह ताला की बेशुमार नियामतें हम पर दिन रात बरसती रहती हैं जिनमें अमीर गरीब सब शरीक हैं जिनको शुमार करना चाहो तो नहीं कर सकते लेकिन आज अमल है हिसाब नहीं, एक दिन आएगा जब हिसाब होगा अमल नहीं ।*

*❖_हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का फरमान है जिसका मफहूम है कि तुमसे तुम्हारे रब के सामने ठंडा पानी, मकानों का साया, पेट भर खाना, जिस्म की सेहत, मीठी नींद, वह कपड़े का टुकड़ा जिससे बदन छुपाया ।*
*"_ एक हदीस का मफहूम है कि सहाबा रजियल्लाहु अन्हु ने दरयाफ्त किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! कौन सी नियामत में हम हैं? जौ की रोटी है वह भी आधी भूख मिलती है पेट भर नहीं मिलती,*
 *"_अल्लाह ताला ने वही भेजी कि आप इनसे फरमाएं कि क्या तुम जूता नहीं पहनते, ठंडा पानी नहीं पीते, यह भी तो अल्लाह की नियामतों में से हैं।*
*"_कयामत के दिन सबसे पहले जिन नियामतों का सवाल होगा वह बदन की सेहत और ठंडा पानी है ।*

*❖_मेरे दोस्तों ! सबसे बड़ी नियामत अल्लाह ताला की ईमान है और हमे इसकी कोई परवाह ही नहीं, जैसे दूसरी नियामतो की ना शुक्री कर रहे वैसे ही ईमान के भी हम ना शुक्रे हैं, ना इस ईमान को बनाने की फिक्र ना बचाने की फिक्र, हम ऐसे ईमान पर मुतमइन बैठे हैं जो अमल पर खड़ा नहीं कर सकता, जब मेहनत होगी ईमान पर तो ईमान बढ़ेगा और अल्लाह के हुक्मों को पूरा करवाएगा वरना और कमज़ोर होता चला जाएगा मेहनत ना होने की वजह से कि गुनाह करेंगे और कोई गम नहीं होगा ।*

*❖_अल्लाह हमें नियामतों की शुक्रगुजारी की तौफीक दे और अपने ईमान को मजबूत बनाने की मेहनत में लगाए रखें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*

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                  *_((क़िस्त नं:- 16))_* 
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*◐☞ आजमाइश और उसका बदल ◐*

*❖_ अल्लाह ताला की तरतीब है, मुक़र्रबीन को ठोकरे लगती है और जो उसके दुश्मन होते हैं उनको खूब चढ़ाता है और खूब खिलाता है, यह अजीब बात है ! अल्लाह ताला की आजमाईश रोजाना कहती है :- या अल्लाह आज मैं कहां जाऊं ? तो अल्लाह ताला फरमाता है - मेरे दोस्तों के घर चली जा, मुझसे मोहब्बत करने वालों के घर चली जा, मैं उनको परखुंगा उनके सब्र को आजमाउंगा , उनको गुनाहों से पाक करूंगा, उनके दरजात को ऊंचा करूंगा _,"*

*❖_ जब यह इस उम्मत के लिए हुई ! जरूरते कुर्बान हुई, तकलीफें भी सही, चटाइयों पर बैठे-बैठे जिंदगी गुजर गई इसी में मर गए दफन हो गए और यह बेचारे भी दिल में कहते रहे हमें मिला क्या ?*
*"_ जब यह कयामत के दिन उठेंगे तो अल्लाह ताला उस वक्त कहेगा, यह तुम्हारी आजमाइशों का बदला, उस वक्त में जिन लोगों ने दुनिया में अमन की जिंदगी गुजारी होगी वह कहेंगे - हाय ! हमारे जिस्म के टुकड़े टुकड़े हो जाते और हमें भी यह मिल जाता जो इनको आज दिया जा रहा है, जन्नत और उसकी नियामतें ...,"*

*❖_ अल्लाह ताला हर ईमान वाले के दिल में जन्नत का शौक पैदा कर दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*

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                  *_((क़िस्त नं:- 17))_* 
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          *◐☞ अल्लाह को राज़ी करो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! इस कायनात का एक ही बादशाह है यहां किसी की सल्तनत नहीं अल्लाह के सिवा । आज मुसलमानों पर जो मुसीबतें आ रही हैं उसे कोई नहीं ला रहा अल्लाह ला रहा है, आज बातिल ने साइंस पर तरक्की नहीं की अल्लाह ने तरक्की करवाई है, अल्लाह तोड़ना चाहता तो तोड़ सकता गिराना चाहता तो गिरा देता मगर अल्लाह ने ढील दी हुई है, हालात पर भी कब्जा़ है चाहे तो लोगों में मोहब्बतें पैदा करें या नफरतें _,*

*❖_नूह अलैहिस्सलाम से अल्लाह ने फरमाया - कश्ती में जोड़ा जोड़ा डाल लो , अर्ज़ किया - या अल्लाह एक तरफ शेर होगा दूसरी तरफ बकरी भेड़ एक तरफ बिल्ली और दूसरी तरफ कबूतर, आप ही बता दें कि इन्हें कैसे इकट्ठे बैठा दूं, अल्लाह ताला ने फरमाया - ऐ नूह ! इनमें नफरते किसने डाली है ? आपने कहा, बेशक आपने । तो फिर मैं ही इनमें मोहब्बतें डाल दूंगा _,"*

*❖_नबी पाक सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ज़माने में सांप और बच्चे इकट्ठे खेलते थे, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के ज़माने में भेड़िया और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे कोई किसी को नहीं मारता था _,"*

*❖_अल्लाह ताला मोहब्बत डाल देता है तो जानवर भी ताबे हो जाते हैं यूं अल्लाह ताला आज भी मोहब्बतें डालने पर का़दिर है ।*

*❖_मेरे दोस्तों ! सारे हालात अल्लाह के हाथ में हैं अगर अल्लाह हालात बना दे तो कोई बिगाड़ नहीं सकता, बिगाड़ दे तो कोई बना नहीं सकता, उस अल्लाह को राज़ी करने की ज़रूरत है उस अल्लाह को अपना बनाने की जरूरत है उस अल्लाह को पुकारने की जरूरत है उसकी तरफ दौड़ने की जरूरत है, जो सारे काम बनाने वाला है ।*

*❖_अल्लाह मुझे भी आपको भी और तमाम मोमिनों को अमल की तौफीक अता करें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 18))_* 
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         *◐☞_हमारी अक्ल़ नाक़िस है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! आज जब दीन की बात कही जाती है अल्लाह के हुक्मों, वादों की, हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खबरों की, जन्नत जहन्नम की, कब्र व हश्र की बात की जाती है तो हम अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाने लगते हैं कि यह अक़ल में आने वाली बातें नहीं है, अस्तगफिरुल्लाह !!*

*❖_मेरे दोस्तों जरा हम सोचे कि अल्लाह ने हमें अक्ल दी ही कितनी है ? अल्लाह ने अक्ल को बनाया तो उसके 100 हिस्से किए और 99 हिस्से तने तन्हा अपने हबीब सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को दिए और सिर्फ एक हिस्सा पूरी दुनिया को तक्सीम किया, इस एक हिस्से में बड़े बड़े उलमा साइंटिस्ट फिलोसोफर और हम आप भी शामिल है ।*

*❖_मेरे दोस्तों ! जहां हमारी अक़्ल की हद खत्म होती है ईमान की हद वहां से शुरू होती है, इसी को आज़माया जाता है, सफरे मेराज सहाबा के ईमान की आज़माइश इस था, जिसने हजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बात को हक़ तस्लीम किया वह कामयाब हो गए और जिसने इनकार किया वह इस्लाम छोड़कर नाकाम हो गए।*

*❖_खंदक के मौके पर एक बड़ी चट्टान को तोड़ते वक्त हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खबर दी थी कि रोम, ईरान -इराक, मिस्र फतेह होगा, तो उस वक्त मुनाफिक हंसते थे कि पेट पर तो पत्थर बंधे हैं और इरान रोम जो उस वक्त की सबसे बड़ी ताकत थी को फतह करने की बात करते हैं लेकिन दुनिया ने देखा कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खबर सच हुई ।*

*❖_जिसको हजरत का़री तैय्यब साहब न खूब बयान किया :- तुम नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की अक़ल की बात करते हो ? और नबी की सोहबत की बरकत से सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम को वह अक़ल मिली थी कि अगर उनकी अक़ल की जकात निकाल कर तकसीम की जाए तो कयामत तक कोई पागल पैदा नहीं होगा _,"*

*❖_अल्लाह हमें अपने हबीब की खबरों का सच्चा यक़ीन नसीब फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                    *_((Part No 19))_* 
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*◐☞ हालात का दारोमदार चीजों पर नहीं ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हालात का चीजों से कोई ताल्लुक नहीं है, ना ऐसा कभी हुआ है और ना कभी होगा। अल्लाह ताला ने बड़े-बड़े नक्शे वालों के नक्शे तोड़े हैं, जितने नक्शे दुनिया में आज नज़र आ रहे यह सारे नक्शे पिछली कौमों में मौजूद थे, कुरान उन सारी क़ौमो की हलाकत के वाक़िआत से भरा है_,*

*❖_ अल्लाह के फैसले इंसान के जिस्म से निकलने वाले आमालों पर होते हैं, अगर अल्लाह ताला से अपनी रज़ा के फैसले नाज़िल करवाना चाहें तो हमें अल्लाह ताला की रज़ा वाले आमालों को अख्त्यार करना पड़ेगा लेकिन आज इंसान अपनी आंखों पर माल दौलत असबाब की पट्टी बांधकर चल रहा है अपनी मेहनत असबाब पर लगाता चला जा रहा जाता है, जो हाल को हाल से बदलना चाहता है वह आगे बढ़ता हुआ वहां पहुंच जाता है कि फिर लौटने का वक़्त नहीं होता । जिसको अल्लाह ने कुरान ए करीम में बयान किया कि जो अपने आमालों को बर्बाद कर लेते हैं अल्लाह की जा़ते आली को ना पहचाने की वजह से, उनकी मेहनत और मशक्कत सारी बेकार जाती है_,*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हर मेहनत करने वाला कामयाब नहीं है वह कामयाब है जिसकी मेहनत अंबिया अलैहिस्सलाम की मेहनत से मेल खाती हो, आज गलत मेहनत होने की वजह से एक दूसरे को मारने नीचा दिखाने कमज़ोर करने पर मेहनत हो रही है और नारा लगाते हैं कि हम कामयाब है ! इंसान अगर खुद को बना ले तो उसे हथियार की जरूरत पेश आ जाए तो अल्लाह दरख्त की टहनी को तलवार बना दें, जैसे जंगे उहद में अब्दुल्लाह बिन जहश रज़ियल्लाहु अन्हु की टहनी को तलवार बनाया_,*

*❖_ मेरे दोस्तों ! जब अपने आप को बनाया जाता है तो अल्लाह निज़ामे आलम को मुसख्खर कर देता है। अल्लाह ताला हमें अपने आप को बनाने की मेहनत में लगाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*      

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                  *_((क़िस्त नं:- 20))_* 
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*◐☞ मुहब्बत पैदा करने का रास्ता ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! आज दीन से अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मोहब्बत कम हो गई है, मोहब्बत का वह मैयार नहीं रहा जो बेक़रार होकर अमल पर खड़ा कर दे, यह हिजरत के बगैर, धक्के खाए बगैर मशक्कत उठाएं बगैर पैदा नहीं होता, मोहब्बत ऐसे नहीं आती_,*

*❖_ मेरे दोस्तों ! मोहब्बत करना है तो अल्लाह से करो, उसके हबीब सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से करो बाक़ी रहने वालों से मोहब्बत करो मगर ऐसे ना करो कि अल्लाह और उसके रसूल से आगे निकल जाओ, मां बाप बीवी औलाद रिश्तेदार माल तिजारत जमीन इन चीजों ने हमें जकड़ा हुआ है, मोहब्बत फितरी चीज़ है और औलाद की मोहब्बत बुजदिल बना देती हैं और बखील बना देती हैं _,*

*❖_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम से कितनी मोहब्बत करते थे और आयशा रजियल्लाहु अन्हा से कितनी मोहब्बत करते थे लेकिन फरमाती है कि जब मुअज़्जिन अजान देते थे तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हमें ऐसे छोड़ देते थे जैसे हमें पहचानते ही नहीं हो _,*

*❖_ मेरे दोस्तों हमारी सारी मोहब्बत फना होने वाली चीजों पर लग रही है और उनकी मोहब्बत हमारी दीन पर गालिब आ चुकी है, इसका एक ही हल है, वक्त बा वक्त इन को छोड़कर हिजरत की जाए, अपने घर कारोबार को छोड़कर अल्लाह के रास्ते में जाया जाए, यह कनेक्शन कटा हुआ है जो मरगूबात को छोड़े बगैर नहीं जुड़ेगा, यह मोहब्बत का रास्ता है, इसके लिए यह कुर्बानी जरूरी है _,*

*❖_ अल्लाह तमाम झूठी मोहब्बत से हमारी हिफाज़त फरमाए और अपनी और अपने हबीब की मोहब्बत से हमारे दिलों को रोशन फरमा दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*    


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                  *_((क़िस्त नं:- 21))_* 
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*◐☞ हकी़क़त के साथ कल में को दिल में उतारो ◐*

*❖_ एक गधे को शेर की खाल मिल गई उसने पहन ली और सोचने लगा मैं भी शेर बन गया, जब वह बस्ती में चला तो लोगों ने इतना बड़ा शेर देखा तो सब डर कर भाग गए, अब गधा बहुत खुश हुआ कि मेरे से सब डर गए अब मैं थोड़ी गरज़दार आवाज़ निकालूंगा तो यह और डरेंगे _,*

*❖_ अपनी हकीकत को भूल गया, जब उसने जो़र जो़र से आवाज़ निकाली तो बजाए दहाड़ मारने के ढ़ेंचू ढ़ेंचू करने लगा, बस्ती वाले सारे निकल आए कि यह तो गधा है, सब ने डंडे उठाकर उसकी पिटाई शुरू कर दी ।*

*❖_ एक वक्त था जब मुसलमान उठता था तो सारी कायनात के बातिल लरज़ जाते थे और अपने घरों में थरथर कांपते थे, यह वो वक्त था जब मुसलमान ने कलमा सीखा हुआ था। आज मुसलमान ने कलमा नहीं सीखा इसलिए दुनिया की कोई ताकत उसे अल्लाह के यहां सुर्खरू नहीं कर सकी ।*

*❖_ हम इस्लाम वाले ज़रूर हैं मगर यह कलमा अभी हमने सीखा नहीं है जब यह हक़ीक़त के साथ दिल में उतर जाएगा अल्लाह ताला वो दौर फिर से ले आएगा _,*

*❖_ दुआ करो दोस्तों ! अल्लाह ताला हमें इस कलमे की हक़ीक़त अता कर दे और इसको सीखने की मेहनत में लगा दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*

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                  *_((क़िस्त नं:- 22))_* 
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               *◐☞ एक ही रास्ता ◐*

*❖_ तिर्मीजी शरीफ में हजरत अली रजियल्लाहु अन्हू से रिवायत है जिसका मफहूम यह है :- कि लोग हुकूमत के माल को नाजायज़ तरीके से खाना शुरु कर दें, अमानत हड़प कर जाएंगे, जकात का इंकार कर जाएंगे जकात को टैक्स समझेंगे, दीन दुनिया के लिए हासिल करेंगे, लोग बीवियों के फरमाबरदार बन जाएंगे और मांओं के नाफरमान हो जाएंगे, दोस्त के साथ अच्छा सलूक करेंगे और बाप के साथ बुरा सलूक करेंगे_,*

*❖_ कबीले का सरदार फासिक़ और नाफरमान होगा, हुकूमत ना अहल इंसानों के हाथ में होगी, एक दूसरे को मतलब के लिए सलाम करेंगे मोहब्बत के लिए नहीं ।*
*"_मस्जिदों में आवाज़ें बुलंद करेंगे शोरगुल होगा, नाच गाने वालियां मुअज़्ज़िज मोहतरम हो जाएंगी और नाच गाना आम होगा, उम्मत का बदतरीन तबका़ है उसका एजाज़ इकराम किया जाएगा, शराबें पी जाएंगी और मर्द रेशमी लिबास पहनने लगेंगे, सोना पहनेंगे, इस उम्मत के आखरी लोग पहले लोगों को बुरा भला कहेंगे..,* 

*❖_यह नाफरमानियां जब उम्मत में पैदा होगी तो अब क्या होगा ? उस वक्त उम्मत इंतजार करें सुर्ख आंधियों का, सुर्ख हवाओं का, ज़लज़लों का, जमीन में धंस जाने का और सूरतों के बदल जाने का, आसमान से पत्थर के बरस जाने का और ऊपर नीचे आज़ाबों के टूटने का, गिरने का, जैसे तस्बीह के धागे टूटने से दाने गिरते हैं _,*

*❖_मेरे दोस्तों ! सोचो क्या आज यह सब नहीं हो रहा ... फिर किस चीज का इंतजार है ?*
*"_ एक ही रास्ता है कि हम खुद भी तौबा कर लें और पूरी उम्मत से तौबा करवाएं, इसके बगैर कोई ताक़त अल्लाह ताला के अज़ाब से नहीं बचा सकती _,"*

*❖_अल्लाह हमारी हिफाज़त फरमाए और हमें तौबा करने और तौबा करवाने की मेहनत में लगने की तौफीक दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 23))_* 
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*◐☞ मज़बूत कलमा, मज़बूत ईमान, मज़बूत इस्लाम _◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! अल्लाह ताला ने जब भी बातिल को तोड़ा, जब भी बातिल को मिटाया, वो इस कलमे की मेहनत से मिटाया और कलमे वालों की ईमानी ताक़त से मिटाया, जब यह कलमा अपने इखलास के साथ, अपनी हक़ीक़त के साथ वजूद में आता है तो इसके मुकाबले में कितना भी बड़ा बातिल होता था अल्लाह ताला उसे तोड़ता चला जाता था,*

*❖_ अल्लाह ताला इरशाद फरमाते हैं - हम हक़ को बातिल पर फेंकते हैं तो बातिल का नामोनिशान तक मिट जाता है _,"*
*"_ लेकिन यह उस वक्त होता है जब यह ईमान वाले यह कलमे वाले इस कलमे को सीख लेते हैं और कलमे का नमूना बन जाते हैं और कलमे के मुताबिक उनकी जिंदगी ढल जाती है,*

*❖_ हजरत ईसा अलैहिस्सलाम का एक बस्ती पर गुज़र हुआ, देखा सब बर्बाद हुए पड़े हैं, हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि इन पर अल्लाह के अजा़ब का कोड़ा बरसा है _,"*
*"_ आज के बातिल पर अल्लाह के अजा़ब का कोड़ा क्यों नहीं बरस रहा ? इसलिए कि आज मजबूत इसै वाले, खरे कलमे वाले दुनिया में नहीं है,*

*❖_ जब जिस वक्त में, माज़ी में, मुस्तकबिल में, हाल में, जब भी यह कलमे वाले कलमे की हक़ीक़त को सीख लें तो अल्लाह के अजा़ब का कोड़ा बड़ी से बड़ी ताकत पर बरसेगा, चाहे वह एटमी ताकत हो या तलवार की ताकत हो, चाहे हुकूमत की ताक़त हो_,*

*❖_ अल्लाह ताला हमें इस कलमे की हकीकत नसीब फरमाए, अपने कमज़ोर ईमान को क़वी बनाने की मेहनत में लगाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 24))_* 
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            *◐☞ अल्लाह की लानत ◐*

*❖_ अल्लाह ताला ने कुराने पाक में नबियों के क़िस्से सुना कर और नबियों के वाक़यात बताकर पूरी उम्मत को पूरी इंसानियत को यह बताया है कि मैं जब किसी को पकड़ता हूं तो मेरी पकड़ने की बुनियाद उनके असबाब की कमी नहीं होती बल्कि पकड़ने की बुनियाद उन सिफात की कमी होती है जो मेरी रहमत को खींचती है,* 

*❖_जब तुम मेरे बंदे बनते हो तो मैं राज़ी होता हूं और जब मैं राज़ी होता हूं तब बरकते उतारता हूं फिर मेरी बरकतों की कोई इंतहा नहीं रहती और जब तुम मेरे नाफरमान बनते हो तब मेरा गुस्सा वजूद में आता है और जब गुस्से में आता हूं तब मेरी लानत बरसती हैं और मेरी लानत तुम्हारी 7 पुश्तों तक भी चली जाती है,*

*❖_अब कौन सी ताकत है जो उस कौ़म को बचा सकती हैं जिस पर अल्लाह की लानत पड़ रही है ? और यह लानत इसलिए पड़ रही है कि अल्लाह के हुक्मों के बागी हो गए और अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के नूरानी और पाक़ीज़ा तरीकों के बागी हो गए, अल्लाह ने जिसको भी हलाक किया, बर्बाद किया यह उनकी बद अमली की बुनियाद पर किया _,* 

*❖_दुआ करो दोस्तों !अल्लाह पलक झपकने के बराबर भी शैतान और नफ्स के हवाले ना करें, हमें मौत तक अपने हुक्मों पर और प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वाले तरीकों पर चलाए रखें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 25))_* 
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         *◐☞ _ हालात पर सब्र करो ◐*

*❖__ हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि अपने घर में तशरीफ लाए तो बेटियां कपड़ा मुंह पर रख कर बात करती हैं, जब पूछा तो खादिमा रोने लगी, ऐ अमीरुल मोमिनीन ! कुछ खबर भी है, तेरी बेटियों ने आज कच्चे प्याज से रोटी खाई है, आपको बदबू से नफरत है इसलिए मुंह को कपड़े से ढंके हुए हैं _,"* 

*❖_"_ हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रोने लगे , कौन चाहता है उसकी औलाद मुसीबत में रहे, 3 बर्रे आज़म का वाली और हुक्मरान और उसकी बेटियां कच्चे प्याज से रोटी खाए ? हमारे यहां तो मजदूर के बच्चे भी प्याज से रोटी नहीं खाते !* 

*"_फरमाया - मेरी बेटियों ! मैं तुम्हें बड़े लज़ीज़ खाने खिला सकता था लेकिन मैं जहन्नम की आग को बर्दाश्त नहीं कर सकता, सब्र करो एक दिन अल्लाह अच्छा खिलाएगा, फांकों पर अल्लाह का वादा है कि अल्लाह पालते हैं, नेकी पर अल्लाह का वादा है कि अल्लाह पालते हैं _,*
*"_हराम पर अल्लाह का वादा नहीं, उस पर तो वादा यह है कि ज़ज़ील व ख्वार करूंगा, उनकी नस्लें रोती हैं जो हराम कमाई औलाद के लिए छोड़कर मरते हैं, वो क़ब्रों में औलाद को रोते हैं, औलादे दुनिया में रोती हैं _,"*

*❖_"_अल्लाह हमें हराम और हलाल की पहचान अता करें, हराम से हिफाज़त करें और हलाल रिज़्क़ अता करे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*

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                  *_((क़िस्त नं:- 26))_* 
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       *◐☞ दीन हक़ रास्ते से सीखो ◐*

*❖_ दीन को सीखने के जो हक़ रास्ते हैं, उन रास्तों को छोड़कर बातिल रास्तों से आज उम्मत दीन सीखना चाहती है, मसलन - लोग व्हाट्सएप, फेसबुक से दीन सीखना चाहते हैं, फेसबुक व्हाट्सएप या और कोई दीनी साइट्स कैसे बताएंगी कि कुर्बानी किसे कहते हैं ? माशरा किसे कहते हैं ? यह चीजें तब मददगार होती हैं जब माशरा क़ायम होता है ।*

*❖_ आज जानने वाले बेशुमार हैं अमल वाले कितने हैं ? सब जानते हैं नमाज़ फ़र्ज़ है, कितने लोग पाबंद हैं जरा सोचो ? मालूमात का नाम इल्म नहीं है, इल्म वह है जो अल्लाह की पहचान करा दे, अमल पर खड़ा कर दे,*

*❖_मेरे दोस्तों ! इस तरह मालूमात तो बड़ सकती हैं जिंदगी में दीन नहीं आएगा, उसके लिए तो वह रास्ता, तरीक़ा अख्तियार करना पड़ेगा जो सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अजम'ईन ने अख्तियार किया था, वह तरीक़ा ए मेहनत उम्मत में जिंदा करने की ज़रूरत है, तबलीग इसी की मेहनत है कि इल्म सीखो हक़ रास्ते से_,"*

*❖_ सहाबा किराम ने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सोहबत से दीन सीखा, आज अल्लाह वालों की, अंबिया के वारिस उलमा किराम की, बुजुर्गाने दीन की सोहबत से उम्मत मेहरूम हो गई और फेसबुक व्हाट्सएप से चिपक गई, जहां एक अनपढ़ जाहिल भी अपने आपको मुफ्ती समझकर फतवा देने लगा हुआ है _,*

*❖_अल्लाह वालों की सोहबत से दीन सीखने की ज़रूरत है, सहाबा किराम ने मस्जिदों में दीन की मजलिसें का़यम की कि आओ बैठो थोड़ी देर दीन सीखो ! आज मस्जिदों को आबाद करने की ज़रूरत है, एक माशियत चल रही है, एक जिंदगी चल रही है, पूरी धरती पर कोई एक बस्ती ऐसी बता दो जिसमें हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वाली पूरी जिंदगी और पूरा दीन जिंदा हो ? सारे जहान में फिर लो और बता दो कि फलां इलाक़े में हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का 100 फीसद तरीका़ जिंदा है, हुजूर की हर सुन्नत ज़िंदा है ?_,*

*❖_ अल्लाह दीन को दीन के रास्ते से सीखने की तौफीक अता फरमाए और हक़ और बातिल की समझ अता फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 27))_* 
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*◐☞ खत्मे नबूवत का मफहूम समझो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हम ऐसे नबी की उम्मत हैं जिस नबी के बाद कोई नबी नहीं आएगा और हमारे जि़म्में यह नबी वाला काम लगा है, इस पैगाम को दुनिया में आम करना हमारा काम है, अल्लाह की तरफ बुलाना, उसकी अज़मत बुजुर्गी की तरफ बुलाना, रिसालत की तरफ बुलाना यह काम बताएगा कि यह लोग आखिरी नबी की उम्मती हैं , यह खत्मे नबूवत का अमली इकरार है,*

*❖_ हमें नबियों के इंतज़ार का हुक्म नहीं मिला, हमें यह हुक्म मिला है कि इस कलमे को लेकर फिरते चले जाओ । अगर उम्मत यह काम छोड़ देती है तो यह खत्मे नबूवत का अमली इंकार है, अमली इंकार से आदमी फासिक हो जाता है, ऐतक़ादी इंकार से काफिर हो जाता है,*

*❖_ हम खुद सोचें और गौर कर लें, इधर तो हम कहें कि अब नबी कोई नहीं आएगा और उधर हम कहें कि यह काम हमारे जि़म्मे नहीं । बस नमाज़ पढ़ो, हलाल रोटी खाओ, मां-बाप बीवी बच्चों के हुकूक का ख्याल रखो, बस इतना करो काफी है ।*
*"_अगर इतना ही इस्लाम है तो फिर क्या नाउज़ुबिल्लाह अल्लाह ने इंसानियत पर ज़ुल्म किया जो नबूवत का दरवाजा बंद किया,*

*❖_ अल्लाह हमें सही समझ अता करें और इस काम की क़दर दानी नसीब करें ! आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 28))_* 
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    *◐☞ यस , वी आर मुहम्मदी ◐*

*❖_यस वी आर मुहम्मदी ! हां हम मुहम्मदी हैं! हमने मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम की रिसालत का इकरार किया है, हमारी पहचान यह है कि हम अल्लाह को राज़ी करने के लिए नमाज़ को क़ायम करते हैं, ज़कात अदा करते हैं चाहे हमारी आमदनी घटे या बड़े, खर्चा पूरा हो या ना हो उशर निकालते हैं,*

*❖_हम रिश्वत नहीं लेते चाहे हमारे बच्चों के कपड़े अच्छे ना हो, चाहे हमारे बच्चे बड़े स्कूलों में ना पढ़े, हमारे बीवी बच्चे हमारी क़ब्रों में नहीं जाएंगे । हम इंटरेस्ट पर सूद पर कारोबार नहीं करते, सूद लेना आग का खाना है । हम मिलावट नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, हम भूख बर्दाश्त कर सकते हैं मगर हराम लुक़मा ना हम खा सकते हैं ना अपने घर वालों को खिला सकते हैं,*

*❖_किसी बहन बेटी पर गलत नज़र नहीं डालते ये इबलीस ( शैतान ) के तीर हैं, हम बुराई से रोकने वाले हैं भलाई फैलाने वाले हैं,* 

*❖_जी हां! हम मुहम्मदी हैं ! हम अपने नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के नायब हैं, हम हिदायत के लिए आए हैं, हममे हमारे नबी वाले अखलाक़ हैं नबी वाला माशरा है, क़ुरआने करीम हमारा रहबर है, अल्लाह हमारा मुहाफिज़ है, दीन हमारा मुकम्मल है, हम इस दीन पर राज़ी हैं, हम इस दीन ए हक़ के दाई हैं।*

*❖_ अल्हम्दुलिल्लाह ! वी प्राउड ! से विद मी .. अल हमदुलिल्लाह !*

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                  *_((क़िस्त नं:- 29))_* 
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               *◐☞ ईमान का नूर ◐*

*❖_ मेरे अज़ीज़ दोस्तों ! इस कलमे पर हम जो थोड़ा बहुत अमल कर रहे हैं यह तोहीद की शक्ल है, इसमें हक़ीक़त ज़िंदा करना मक़सूद है, अगर हक़ीक़त ज़िंदा हो जाए तो यह अल्लाह के दीन को ज़िंदा कर देगा _,*

*❖_ हक़ीक़त किसे कहते हैं ? सही यक़ीन हो, अमल में नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वाला तरीका़ सही हो, अल्लाह वाला ध्यान सही हो, नियत, इखलास सही हो, यह चीज़ें जिस अमल में होंगी कहा जाएगा कि यह अमल जिंदा है, इसको दिल में उतारने के लिए दिल की रोशनी की जरूरत है, जब यह रोशनी दिल में उतरती है तो अंदर सीना खुल जाता है _,*

*❖_ पूछा गया इसकी निशानी क्या है ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - दुनिया से बेरगबती, जन्नत का शौक और मौत से पहले मौत की फिकर_,*
*"_ अगर यह तीन चीज़ें नहीं है तो ईमान होगा मगर नूर से खाली होगा, जैसे लाइन है बल्ब भी है मगर जलाने वाला कोई नहीं ,*

*❖_ ऐसे ही ईमान है, मगर इसे चमकाने की जरूरत है, चमकाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी, नफ्स का मुजाहिदा है, अपनी तबीयत से लड़ना पड़ता है, फिर यह ईमान का नूर बताएगा अल्लाह और उसके नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के हुक्म, आमाल में कामयाबी है और अल्लाह के हाथ में आसमानों और ज़मीनों के नक्शे हैं _,*

*❖_ अल्लाह हमें वह नूर अता करें और इस नूर को हासिल करने के लिए मेहनत में लगाए रखें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 30))_* 
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              *◐☞ अज़मत पैदा करो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! अल्लाह की अज़मत को इस दिल में बैठाना है, अल्लाह की अज़मत जब आती है तो फिर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की अज़मत भी दिल में पैदा हो जाती है और जब तक अल्लाह और उसके रसूल की अज़मत दिल में नहीं उतरती उस वक्त तक अल्लाह और उसके रसूल की बात को मानना नामुमकिन है_,*

*❖_ सुन लेंगे, बड़ी - बड़ी किताबों में पढ़ लेंगे, जब तक हमारे दिल अल्लाह और उसके रसूल की मोहब्बत से भर नहीं जाते उस वक्त तक अमल पर नहीं आ सकते और एक क़दम भी नहीं उठा सकते_,*

*❖_ क़दम उठाने के लिए ईमान की ताक़त होती है दिल की ताक़त होती है जो इंसान को अल्लाह और उसके रसूल की बात पर उभारती है और दिल को इस का़बिल बनाने के लिए मेहनत तो करना ही पड़ेगा_,*

*❖_ नतीजा अल्लाह के हाथ है ! हमें अल्लाह ने मेहनत का मुकल्लिफ बनाया है, बस मेहनत करते चले जाओ बाक़ी अल्लाह पर छोड़ दो, जब मेहनत सही और इखलास के साथ होगी तो अल्लाह उसके नताईज़ भी बेहतर ज़ाहिर करेंगे, अल्लाह हमें ईमान और आमाल की मेहनत में मौत तक लगाए रखें । आमीन या रब्बुल आलमीन !*

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                  *_((क़िस्त नं:- 31))_* 
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*◐☞ अल्लाह के गैर का यक़ीन दिल से निकालो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! कलमे की हक़ीक़त को दिल में उतारने के लिए मेहनत और मशक्कत करनी पड़ेगी, हमने तो मां की गोद में सीखा कि बेटा कमाएगा तो खाएगा, नहीं कमाएगा तो कहां से खाएगा,*

*❖_ जब स्कूल गए तो टीचर ने पढ़ाया अलिफ से अनार बा से बकरी, पहले दिन ही अल्लाह के बजाय रोटी कपड़े का तार्रूफ कराया गया, बेटा तेरा काम रोटी कमाना और खाना है, जब बड़े हुए तो ज़मीन सूरज चांद हवा से यह होता है गेहूं ऐसे उगता है चावल ऐसे उगता है, सब अल्लाह का गैर पढ़ाया गया । जब और बड़े हुए तो इतना कमाया, इतना हो गया, फलां के पास इतना पैसा, इतनी गाड़ियां इतने मकान, इतने प्लॉट इतनी ज़मीन _,*

 *❖_ अल्लाह का गैर दिलों के अंदर जम रहा है और अल्लाह से ताल्लुक टूटा हुआ है, माद्दे का रौब, पैसे का यक़ीन दिल और दिमाग पर ऐसा छाया हुआ है कि अल्लाह की रुबूबियत का निज़ाम ही ज़हन से निकल गया, अल्लाह की कुदरत वहदानियत सिफाते रहमत सिफाते अता ज़हनों से मिट गई,*

*❖_ अल्लाह हमें समझा दे और कलमे की हक़ीक़त हमारे दिलों में उतार दे । आमीन या रब्बुल आलमीन _,"*

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                  *_((क़िस्त नं:- 32))_* 
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    *◐☞ अपने हाल की फ़िक्र करो ◐*

*❖_ सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम अजम'ईन के दौडर में सहाबा की पूरी सफ़ ज़मीन पर गिरी पड़ी थी, नमाज़ के बाद जब आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सलाम फैरा तो असहाबे सुफ्फा ज़मीन पर गिरे हुए थे, भूख और कमज़ोरी की वजह से खड़े ही नहीं हो सकते थे,*

*❖_ हालांकि इतने ताकतवर थे कि 5-6 सैर का लोहा उठाकर सारा दिन लड़ते थे 8 सैर का लोहा पहने हुए होते थे 6 सैर की तलवार होती थी लेकिन कलमे को बुलंद करने में जो मसाईब आए उन पर सब्र किया, हर लाइन की कुर्बानियां सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने दी, यहां तक कि अपनी जान का नज़राना भी पेश कर दिया,*

*❖_ इन पर इतनी भूख आई कि सब के सब नमाज़ में गिर गए, आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने देखा कि सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम गिरे पड़े हैं तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया, अगर तुमको पता होता कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए जन्नत में क्या तैयार किया हुआ है तब तुम कहते कि हम पर और ज़्यादा मुसीबत आनी चाहिए थी, यह अल्लाह का निज़ाम है _,*

*❖_ मेरे दोस्तों! आज हम अपने हालात पर गौर कर लें, अल्लाह ताला का दिया सब कुछ होने के बावजूद अपने दीनों ईमान की कोई परवाह नहीं, हुक्म टूट रहे, फराइज़ छूट रहे, सुन्नतों का मज़ाक बनाया जा रहा, अखलाक़ से हम पस्त हो गए, मामलात हमारे बिगड़ गए, माशरत सारी टूटी पड़ी है, अल्लाह हिफाज़त करें, फिक्र करो दोस्तों ! अपने ईमान व आमाल की,*

*❖_ अल्लाह हमें समझ अता फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन । _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 33))_* 
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    *◐☞ हिजरत आला अमल है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और आपके जांनिसार सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अजम'ईन ने इस कलमे को बुलंद करने के लिए और इस दीन की हिफाज़त के लिए किस तरह अपने प्यारे वतनों को छोड़ा, हालांकि वतन का छोडना इंसान के लिए बड़ा मुश्किल काम है और उन्होंने वतन भी इस तरह छोड़ा कि फिर मौत तक अपने वतन को वापस न गए ,*

*❖_ और यह वतन छोड़ना किस तरह उनको दुनिया और दुनिया की तमाम दौलत से ज़्यादा महबूब था और दीन को किस तरह दुनिया पर मुकद्दम किया और ना दुनिया के जा़या होने की परवाह की और ना उसके फना होने पर तवज्जो दी,*

*❖_ और वो किस तरह अपने दीन को फितनों से बचाने के लिए एक इलाक़े से दूसरे इलाक़े की तरफ भागे फिरते थे, इसकी नज़ीर मिलना नामुमकिन है, उनकी हालत ऐसी थी गोया कि वह आखिरत के लिए ही पैदा किए गए थे और वह सिर्फ और सिर्फ आखिरत ही की फिक्र करने वाले थे, चुनांचे इसके नतीजे में ऐसा नजर आता था कि दुनिया सिर्फ उन्हीं के लिए पैदा की गई थी,*

*🗂️ हयातुस सहाबा - १/५४७,*

*❖_ अल्लाह हमें तमाम फितनों से महफूज़ रखे और दीन की मेहनत में लगाए रखें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 34))_* 
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*◐☞ आखिरत की इज़्ज़त की फिक्र करो दुनिया की नहीं ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! दुनिया की इज़्ज़त और दुनिया की राहत व आराम की क्या हैसियत है ज़रा हम आप इस हदीस ( हयातुस सहाबा- जिल्द 1-0510 ) पर गौर करके देखें, हज़रत इब्ने ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सहाबा में से थे, वह फरमाते हैं कि एक दिन हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को सख्त भूख लगी, हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक पत्थर उठाकर अपने पेट पर बांध लिया,*

*❖_ फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - गौर से सुनो! बहुत से लोग दुनिया में खूब खाना खा रहे हैं और अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं लेकिन यह लोग क़यामत के दिन भूखे और नंगे होंगे,*
*"_गौर से सुनो! बहुत से लोग (दुनिया में अपनी ख्वाहिशों पर चलकर ज़ाहिर में) अपना इकराम कर रहे हैं लेकिन हक़ीक़त में वह अपनी तोहीन कर रहे हैं ( कि क़यामत के दिन वो रुसवा और ज़लील होंगे),*
*"_गौर से सुनो! बहुत से लोग (दुनिया में अल्लाह के हुक्मों पर चलकर ज़ाहिर में) अपनी तोहीन कर रहे हैं लेकिन हक़ीक़त में वह अपना इकराम कर रहे हैं ( कि क़यामत के दिन उनको राहत और इज्जत मिलेगी ) _,*

*❖_ ज़रा अब हम अपने हाल पर भी गौर कर लें कि हम किस कैटेगरी में आते हैं, अल्लाह हम सबको क़यामत की रुसवाई से बचाकर उस दिन की इज़्ज़त नसीब फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 35))_* 
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*◐☞ हर हाल में दीन की मेहनत करो ◐*

*❖_ हयातुस सहाबा ( 1/534) से एक हदीस नकल करता हूं, हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - अल्लाह के ( दीन की ) खातिर जो तकलीफ मुझे पहुंचाई गई और जितना मुझे अल्लाह ( के दीन की मेहनत ) की वजह से डराया गया उतना किसी को नहीं डराया गया,*
*"_और मुझ पर 30 दिन और 30 रातें बराबर ऐसी गुज़री हैं कि मेरे और बिलाल ( रज़ियल्लाहु अन्हु) के पास किसी जानदार के खाने के क़ाबिल सिर्फ इतनी चीज़ होती जो बिलाल की बगल के नीचे आ जाए (यानी बहुत थोड़ी मिकदार में होती थी ),*

*❖_ दोस्तों ! आज हम तीन तीन वक्त भरपेट खाते हैं फिर भी हमें ना तो अल्लाह के हुक्म की परवाह है और ना ही दीन की मेहनत की कोई फिक्र है, सुन्नतों का तो हम रोज़ाना मज़ाक उड़ा रहे हैं, अल्लाह हमारी हिफाज़त फरमाए, दीन की मेहनत को जिम्मेदारी समझकर दीन का काम खुलूस से करने की तौफीक अता फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 36))_* 
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          *◐☞ कलमे की रट लगाना ◐*

*❖_मेरे दोस्तों ! कुराने पाक में एक ही बात को बार-बार बयान किया, एक बात कई कई सिपारों में चलती है यह समझाने के लिए कि हमारे मिज़ाज में भूल जाना शामिल है, हम भूल जाते हैं हमें पैदा क्यों किया गया, हमारा दुनिया में आने का मक़सद क्या है ?*

*❖_ इसी तरह तबलीग में 6 नंबर की रट लगाओ, कलमे की रट लगाओ, नमाज़ की रट लगाओ,.. क्यों ? क्योंकि यह उसूल है जो चीज़ अपने अंदर पैदा करनी हो उसको बार-बार कहते रहो, बार बार बोलो इतना बोलो कि दिल में उतर जाए,*

*❖_ यही तो फर्क है एक दाई में और खतीब में, खतीब एक मज़मून को दूसरी बार दोहराना अपनी कम इल्मी समझता है, लेकिन दाई एक मज़मून को लाखों दफा दोहराता है तो भी नहीं थकता, उससे पूछो तो सीधा सा जवाब मिलेगा कि यह बात मुझे अपने अंदर पैदा करनी है,*

 *❖_एक जगह सफर में गया, फजर के बाद तालीम में एक नई किताब पढ़ी गई, जब तालीम खत्म हुई तो मैंने इमाम साहब से कहा - क्या फजा़ईले आमाल नहीं है आपके यहां ? उनके जवाब देने से पहले एक बुजुर्ग बोल पड़े - 40 साल हो गए सुनते सुनते कहां तक सुने, कोई नई बात होनी चाहिए _,"*
*"_मैंने कहा - कुराने पाक कितने साल से पढ़ रहे हो ? क्या यह कहा जाएगा कि अब कोई नई किताब होनी चाहिए नाउज़ुबिल्लाह ? 40 साल में एक हदीस पर भी अमल नहीं हुआ तो क्या पढ़ा गया और क्या सुना गया,*

*❖_जब दाईयाना मिज़ाज बनता है अल्लाह खुद की फिक्र भी पैदा करता है कि मुझे अपने अंदर उतारना है, मुझे अपने अंदर पैदा करना है, अल्लाह अपनी फिक्रों के साथ अमल की नियत से दीन की मेहनत में लगाए रखें, आमीन या रब्बुल आलमीन,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 37))_* 
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        *◐☞ खत्मे नबूवत के हामिल ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अल्लाह के आखिरी रसूल हैं इस बुनियाद पर हमारे ज़िम्मे क्या लगता है ? आखिर हमारे पास खत्मे नबूवत की पहचान क्या है ? इक़रार ए रिसालत की पहचान तो नमाज़ रोज़ा जकात हज वालदैन के हुकूक और सारे आवामिर हैं लेकिन अक़ीदा खत्मे नबूवत की पहचान क्या है ? खत्मे नबूवत के हामिल लोगों की अलामत क्या है ? जिसे देखते ही पता चल जाए कि यह खत्मे नबूवत के अक़ीदे वाले लोग हैं ! काश हम इसको समझ ले,*

*❖_मेरे दोस्तों ! दावत तबलीग अल्लाह की तरफ बुलाना, उसकी बुजुर्गी को बयान करना, रिसालत की तरफ बुलाना और अपने दिल से अपना जान माल इस पर लगाना, मख़लूक़ से कुछ ना चाहना, यह काम है जो बताएगा कि यह लोग आखरी नबी के उम्मती हैं, तबलीग का काम खत्मे नबूवत की पहचान है ! अगर हम इस काम को छोड़ते हैं तो यह खत्मे नबूवत का अमली इंकार है,  हम खुद सोचें !*

*❖_अल्लाह सही समझ के साथ अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने की तौफीक दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 38))_* 
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       *◐☞ दावत उम्मुल आमाल है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! तरतीब यह है कि आला पर अदना को कुर्बान किया जाता है, आला को अदना पर कुर्बान नहीं किया जाता। हैवानात इंसान पर कुर्बान होते हैं तो यह इंसान भी तो किसी पर कुर्बान हो ?*

*❖_ नमाज़ का वक्त है क़ुरान की तिलावत नमाज़ पर कुर्बान होगी, क़ुरान पढ़ोगे तो जमात छूट जाएगी, अब कोई कहे भाई नमाज़ पढ़ लो, कहता है हमें इल्म से रोकते हो, ज़िक्र से रोकते हो, तो भाई नमाज़ खड़ी हो गई तो नमाज़ आला अमल है, अदना को आला पर कुर्बान करो,*

*❖_ अल्लाह की तरफ बुलाना  यह सबसे आला अमल है, इतना आला कि यह काम सिर्फ नबियों को दिया, अल्लाह ने करम, फज़ल फरमाया जो यह काम हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वास्ते से पूरी उम्मत को दिया गया, अगर यह अम्र ना हो तो नमाज़ क़ायम नहीं होगी, रोज़ा वजूद में नहीं आएगा, जकात हज वजूद में नहीं आएंगे, दावत सबसे पहली बुनियाद है जिस पर सारा दीन खड़ा है,*

*❖_ दावत के सफर में रोज़ा अफ्तार किया गया, नमाज़ 4 रकात की 2 रकात हुई, 2 रकात सलातुल खौफ उतरी, फुक़हा कहते हैं सीना फिर जाए तो नमाज़ टूट जाती हैं, सलातुल खौफ सीना ही नहीं पूरे आदमी फिरे जा रहे हैं आना-जाना भी हो रहा है नमाज़ भी हो रही है, अल्लाहु अकबर ! नमाज़ की शक्ल बदल गई दावत के सफर में,*


*❖_ दावत को सबसे ऊंचा रखा है, यह मां है, इससे आमाल ज़िंदा होते हैं, अगर दावत की मेहनत नहीं होगी तो दीन जिंदा नहीं हो सकता । अल्लाह हमें दावत की क़दरदानी नसीब करें, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 39))_* 
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      *◐☞ तबलीग रिसालत का हक़ है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! खत्मे नबूवत का हम पर हक क्या है ? रिसालत का हम पर हक क्या है ? ज़रा सोचिए !!*

*❖_ अल्लाह के दीन को फैलाना हमारे ऊपर रिसालत का हक है, खत्मे नबूवत का हक है, जब हम मान चुके हैं कि अब कोई नबी नहीं आएगा तो इस दीन को आगे पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है,  तबलीग हमारी ज़िम्मेदारी है, अगर हम दुनिया के इंसानो तक कलमा पहुंचाने को अपना काम नहीं समझते अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते तो आप ही बताइए कौन पहुंचाएगा ?*

*❖_हमने बीवी बच्चों का हक़ अदा किया, मां-बाप का हक़ अदा किया लेकिन रिसालत का हक़, खत्मे नबूवत का हक़ अदा नहीं किया, बीवी बच्चों का मां-बाप का हक बेशक बहुत है लेकिन हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के हक़ से बढ़कर नहीं, अल्लाह फरमा रहा है कि मेरे नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का हक़ तेरी जान से ज़्यादा है,*

*❖_अल्लाह हमें अपने हक़ के साथ साथ अपने हबीब का हक़ अदा करने की तौफीक अता करें,  आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 40))_* 
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   *◐☞ तबलीग वक्त का तकाज़ा है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! यह उम्मत शुरू से ही कुर्बानियां देती चली आई है और इसलिए यह उम्मत अल्लाह को महबूब है, इस उम्मत के उलमा को अल्लाह ने नबियों वाला मुक़ाम दिया, इस उम्मत के आम मुसलमान को भी अल्लाह ने नबियों वाला काम दिया और नबियों वाला नूर दिया है, इसलिए हम कहते हैं कि कलमे को लेकर सारी दुनिया में फिरना यह खत्मे नबूवत का हक़ है,*

*❖_ इमानियात को देखो तो अल्लाह पाक की वहदानियत कैसी मिटी पड़ी है, रिसालत को देखो तो हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के तरीकों का कैसा मज़ाक उड़ाया जाता है, इबादात को ले लो तो मस्जिदें खाली खाली वीरान सी, मामलात का यह हाल है कि मुसलमान से कोई खरीद-फरोख्त करने से डरता है, झूठ धोखा और हराम पर कारोबार चल रहे हैं,  मां-बाप सिसक सिसक कर जिंदगी गुज़ार रहे, औलादों की गलत तरबियत हो रही है, गर्ज़ यह कि पूरा दीन मिटाया जा रहा है,*

*❖_इस वक्त का तकाज़ा यह है कि सब कुछ इस पर लगाया जाए, लेकिन हिम्मत नहीं, इस्तेदाद नहीं हमारे अंदर, इसलिए कहा जाता है 4 महीने लगाकर अपने अंदर इस्तेदाद पैदा किया जाए, फिर रोया जाए इस उम्मत के हालात पर, अल्लाह इसकी तौफीक दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 41))_* 
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       *◐☞ दीन की मेहनत का इनाम ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! जो अम्र बिल मा'रूफ नही अनिल मुंकर (भलाई का हुक्म और बुराई से रोकना) को अपना काम बनाता है जन्नत की हूरों से उसकी शादी होगी, एक कहेगी तुझे पता है अल्लाह ने तेरे साथ मेरी शादी क्यों की, कहेगा मुझे कुछ पता नहीं, वह कहेगी तूने फला आदमी को अच्छी बात कही थी उसके बदले में अल्लाह ने तेरे साथ मेरा निकाह किया,*

*❖_जो मेहनत करते हैं अल्लाह उनको आला दर्जा अता फरमाते हैं, कल वो नबियों के साथ होंगे, न'ईम की जिंदगी होगी हमेशा की ज़िंदगी होगी, ऐसी जन्नत होगी जिसमें खुद्दाम सवारियां लाएंगे, ऐसी हूरें जो रेशम पहने हुए सर पर ताज़ सजाए हुए ऐसे नाजों अंदाज से चलती होंगी कि उनको देखता चला जाए तो जिंदगी गुजर जाए, वो उनके साथ बैठेंगी और ऊपर परिंदे चहचहा रहे होंगे और अल्लाह की रहमत मुतवज्जह हो रही होगी,*

 *❖_अल्लाह ऐसी जन्नत और उसकी नियामतों का शौक अता फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*


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                  *_((क़िस्त नं:- 42))_* 
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*◐☞ हिसाब से पहले हिसाब करना सीखो ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! बर्फ का काम पिघलना होता है, इसी तरह उम्र का काम ढ़लना है, बर्फ पानी बनकर खत्म हो गई जिंदगी भी मिट्टी का ढेर हो जाएगी, मिट्टी का ढेर हर आदमी है, पैदाइश से मौत के बीच का वक्त अल्लाह ताला ने मोहलत के तौर पर दिया और इसी मोहलत को हमने जिंदगी का नाम दिया,*

*❖_ अगर इस मोहलत को गनीमत जाना होता तो इंसान ना तो गुज़रे वक्त का जश्न मनाता और ना ही आने वाले वक्त की खुशियां, अक़लमंद अपने गुज़रे वक्त का मुहासबा करता है और अपनी गलतियों को तलाश करके आने वाले कल में उसको सुधारने की फिक्र करता है,*
*"_ बड़े अफसोस के साथ यह बात लिखनी पड़ रही है कि मुसलमान भी गैरों की चाल चलने लगा और इस मोहलत को गनीमत जानने के बजाय इससे इतना गाफिल हो गया कि अपने किए पर शर्मिंदा होने के बजाय अपने गुनाह के खुद चर्चे भी कर रहा और उसको आम करने की कोशिश भी कर रहा और अपने साथ दूसरों को मुलव्विस करने के मौक़े भी तलाश रहा,*

*❖_ चलिए मान लेते हैं आपके लिए नया साल आया है और आप इसका इस्तक़बाल कर रहे हैं और खुशामदीद कह रहे हैं और सबको इसके आने की मुबारकबाद भी दे रहे हैं और अपने इस फेल को आप खैर का काम भी कह रहे हैं,*
*"_ लेकिन मेरे दोस्तों क्या कभी सोचा कि आपका यह अमल किसकी पैरवी में किया गया ? उस कौ़म की पैरवी जिसको पेशाब पाखाना करना भी नहीं आता, हम तो ऐसे ही शफीक़ और मेहरबान नबी की उम्मत हैं जिसने सुबह से शाम तक का मुबारक तरीका़, पैदाइश से मौत तक का एक एक लम्हे का अमल बता दिया और अल्लाह ने उस तरीके़ को, उस अमल को इबादत क़रार दिया, अब क्या ज़रूरत है मोमिन बंदे को किसी गैर क़ौम की इत्तेबा की, आखिरत के हिसाब से पहले अपना हिसाब कर लो दोस्तों ! हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमा दिया कि जो जिस क़ौम की इत्तेबा करेगा कल क़यामत में उन्हीं में शुमार किया जाएगा _,"*

*❖_ अल्लाह हमें सही समझ अता करें, गैरों की इत्तेबा से बचाए और अपने हबीब के तरीकों की मोहब्बत दिलों में उतार दें और अपने वक्त का मुहासबा करने की तौफीक़ दे, आमीन या रब्बुल आलमीन ।*

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                  *_((क़िस्त नं:- 43))_* 
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      *◐☞ बातिल दावत से टूटता है ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! एक बात अपने ज़हन में रख लो, अल्लाह ता'ला उस वक्त तक ढील देते हैं जब तक दावत देने वाला कोई पैदा नहीं होता, जब दावत देने वाला पैदा हो जाता है तो ढील का ज़माना मुख्तसर हो जाता है, यहां तक कि ढील का ज़माना खत्म हो जाता है, फिर या तो अल्लाह ता'ला हिदायत देते हैं या हलाक फरमा देते हैं,*

*❖_  क़ौमे नूह, क़ौमे हूद, क़ौमे लूत, क़ौमे समूद, सबको अपने अपने नक़्शो में हलाक किया, नमरुद को लंगड़े मच्छर के ज़रिए हलाक किया, फिरौन को पानी में डूबा दिया, हर ज़माने में जब दावत देने वाला पैदा हुआ, हर नबी के ज़माने में अल्लाह ताला ने कलमे वालों से बातिल को तोड़ा है _,*

*❖_  अल्लाह दावत की क़दर दानी नसीब फरमाए और हक़ बातिल की समझ अता करे, दावत के काम को लेकर चलने वाला बनाऐ, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 44))_* 
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                *◐☞ आलमी नबूवत ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! दीन ए इस्लाम कामिल नबी का कामिल दीन है, अब कोई दूसरा दीन अल्लाह के यहां क़ाबिले क़ुबूल नहीं, जो इस्लाम के अलावा किसी और दीन को अख्तयार करेगा अल्लाह के यहां उसका दीन कबूल नहीं किया जाएगा,*

*❖_ इस दीने इस्लाम को किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं है, यह अपनी जा़त के साथ वजूद में आता है, जब कलमे वाले कलमे पर क़ुर्बानी देते हैं और कलमा दिल में उतरता है, दिल में कलमा उसके अंदर उतरता है जो जान माल वक्त को कु़र्बान करता है, इतना कामिल दीन, इतनी कामिल नबुवत _,* 

*❖_ जब सारे आलम पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नबूवत वजूद में आई, सारे ज़माने के बुत गिर गए, सारे आलम के बादशाह गूंगे हो गए, 360 बुत बैतुल्लाह के टूटते चले गए लेकिन आज हर मुसलमान अपने दिल में बुत बनाए बैठे हैं, आज हमारे दिलों दिमाग में दुकान का बुत बैठा है, मेरे यह बोल कि मेरी दुकान के बगैर मेरा कोई काम नहीं चलता, यह भी बुत है जो दिल के अंदर बैठा है, नौकरी का बुत कि नौकरी के बगैर मेरा गुज़ारा नहीं होता, तिजारत का बुत, हुकूमत का बुत, ज़रा'अत का बुत, पैसे का बुत ।*

*❖_मेरे दोस्तों! अगर यह कलमा दिल में उतर गया तो अल्लाह इन सब के बगैर काम करके दिखा देगा। अल्लाह ताला दिलों की गहराई में इस कलमे को अपनी हक़ीक़त के साथ उतार दे, आमीन या रब्बुल आलमीन_,*

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                  *_((क़िस्त नं:- 45))_* 
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     *◐☞ क़ुरान का नमूना बन जाओ ◐*

*❖_ मेरे दोस्तों ! क़ुरान की एक एक आयत सारी दुनिया की तमाम ताक़तों पर भारी है लेकिन कोई इसको अपने अंदर में तो लेता,  सिर्फ ज़ुबानी बोल नहीं दिल की गहराई में लेकर देखो,  इसकी ताक़त का अंदाज़ा हो जाएगा,*

*❖_ ईमान यक़ीन की आयात दिल में हो, गौर व फिकर की आयात दिमाग में हो, हया पाक दामिनी की आयात आंखों में हो, कानों की आयत कानों में हो, शर्म हया की आयात औरत के अंदर हो, हाथों के आयात अमली तौर पर हाथों में हो, आज़िजी तवाजो़ कि आयात अमली तौर पर पांव में हो, मामलात और तिजारत की आयात बाजा़रों में हों, हमारे घरों से दुनियावी फहशी बेहूदा गानों की जगह क़ुरान की तिलावत की आवाज़े निकले,*

*❖_उठो हमारी कौम के नौजवानों और हमारी कौम के बुजुर्गों, तुम सब चलते फिरते क़ुरान बन जाओ, क़ुरान का नमूना बन जाओ । अल्लाह तौफीक दे, आमीन या रब्बुल आलमीन _,*

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