SHAB E BARA'AT KI HAQEEQAT -(HINDI)

🎍﷽ 🎍*              
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       *●•शबे बरा'त की हक़ीक़त•●*            
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                *❂ पेश ए लफ्ज़ ❂*
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*★_अल्लाह ताला ने अपने बे इंतेहा फजल व रहमत और बंदों पर शफकत की वजह से कुछ खास मौके ऐसे इनायत फरमाए है जिनमे बंदों की मगफिरत व रहमत और सवाब हासिल करने का सुनहरा मौका मिलता है । इन मोको में जिस तरह रमज़ान मुबारक और शबे कद्र है, एक मौका 15 वी शाबान की रात भी है जिसमें अल्लाह ताला की तरफ से बेशुमार लोगों की मगफिरत का ज़िक्र रिवायतों में वारिद हुआ है, इसलिए इस रात को "_लयलतुल बरात " कहते है यानी जहन्नम और आजाब से छुटकारे और खलासी के फ़ैसले की रात ।*

*★_ शबे बरात की फजीलत में जो रिवायात किताबों में मजकूर है उनमें अक्सर का ज़ौफ मालूम है मगर चूंकि वो मुतद्दीद है और बाज़ का जौफ हल्का है, इसलिए इनके मजमुए से इस रात की फजिलत साबित होती है, यही बात उल्मा ए मुताहक़ीक़ीन ने बयान फरमाई है,* 

*★_लेकिन बहुत ग़लत बाते भी शबे बरात के मुताल्लिक़ किताबों में लिखी गई है और लोगों में मशहूर हैं, उल्मा ए मुहकिकीन ने उनकी तरदीद की है , इस मजमूंन का मकसद सही और गलत में तमीज़ पैदा करना है ।*

*★_असल चीज़ शरीयत में किताबों सुन्नत और सहाबा किराम रजि़याल्लाहु अनहुम की ज़िन्दगी है , जो चीज वहां से मिलती हो उसे मजबूती से पकड़ लेना चाहिए और जो बातें बे असल है उनको छोड़ देना चाहिए । तफसीर व हदीस दोनों फुनून से मुहकिकीन की तहकीक मौजूद है, उनसे फ़ायदा उठाना चाहिए और लोगों को भी फ़ायदा पहुंचाना चाहिए ।*

*★_अल्लाह ताला इस मजमून से तमाम मुसलमानों कों फ़ायदा पहुंचाए और मेरे लिए भी निजात का जरिया बनाए । आमीन ।*
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                  *❂ फज़ीलत ❂*
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*✿_हजरत मा'ज़ बिन जबल रजि अल्लाहू अन्हु से रिवायत है हुजूरे अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ अल्लाह ताला 15 वी शाबान की रात में यानी 14 वी और 15 वी शाबान की दरमियानी रात में अपनी तमाम मखलुकात की तरफ तवज्जो़ फरमाते हैं । मोहारिक और दुश्मनी रखने वालों के सिवा मखलूक की मगफिरत फरमाते हैं ।"*
*✿_तबरानी ने औसात में और इब्ने हिबान ने अपनी सहीह में और बहीक़ी ने इसको रिवायत किया है ।*
 *( अत- यरगीब व तरहीब,2/118,3/459)*

*✿_हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजी अल्लाहू अनहू से मर्वी है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ अल्लाह ताला 15वीं शाबान की रात में अपनी मख्लूक़ की तरफ तवज्जो फरमाते हैं और अपने बंदों की मगफिरत फरमाते हैं । सिवाय 2 के ,( एक )दुश्मनी रखने वाला (दूसरा) किसी (नफ्से मोहतरम )को कत्ल करने वाला ।*
*"__इसको इमाम अहमद ने नर्म सनद के साथ रिवायत किया है ।*
*(अत- तरगीब व तरहीब, 3/460)*

*❂_अल'आ बिन हरिस से रिवायत है की हजरत आयशा रजि अल्लाहू अन्हा ने फरमाया :- "_एक रात हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उठे नमाज पढ़ी और इतना लंबा सजदा किया कि मैंने समझा कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इंतकाल हो गया, यह देख कर मैं उठी और आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के अंगूठे को हरकत दी तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हिले और मैं वापस हो गई । जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सजदे से उठे और नमाज से फारिग हुए तो फरमाया -ए आयशा या फरमाया ए हुमैरा ! क्या तुमने यह समझा कि नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तुम्हारे साथ बेवफाई की गद्दारी की ? मैंने कहा - नहीं या रसूल अल्लाह ! खुदा की कसम ,लेकिन मैंने यह समझा कि आपका इंतकाल हो गया इसलिए कि आपने सजदा तवील किया ।*

*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया -जानती हो यह कौनसी रात है ? मैंने कहा- अल्लाह और उसके रसूल ज्यादा जानते हैं । फरमाया यह 15वीं शाबान की रात है । अल्लाह ताला इस रात में अपने बंदों की तरफ तवज्जो फरमाते हैं और मगफिरत तलब करने वालों की मगफिरत फरमाते हैं और रहम तलब करने वालों पर रहम फरमाते हैं और दुश्मनी रखने वालों को मोअख्ख़र कर देते हैं उनकी हालत पर ।*
*"_इसको भी बैहकी़ ने रिवायत किया है । (अत्तरगीब व तरहीब -3/462)*

*❂_इसी रिवायत में यह भी है कि आप सल्लल्लाहू अलैेही वसल्लम यह दुआ पढ़ रहे थे :- ए अल्लाह ! मै तेरी सज़ा से तेरी अफू की पनाह मैं आता हूं और तेरी नाराजगी से तेरी रज़ा की पनाह में आता हूं तेरे (अज़ाब) से तेरी पनाह में आता हूं ,मैं तेरी पूरी तारीफ नहीं कर सकता तु वैसा ही है जैसा तूने खुद अपनी तारीफ की _," ( अत- तरगीब व तरहीब,2/119)*

*★_हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा फरमाती है कि मैंने एक रात हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को सो कर उठने के बाद नहीं पाया मैं बाहर निकली तो हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम बक़ी (मदीना के कब्रिस्तान ) में थे । आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया - क्या तुम डर रही थी कि अल्लाह ताला और उसके रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तुम पर ज़ुल्म करेंगे ? (यानी तुम्हारी बारी के दिन दूसरी बीवी के पास चले जाएंगे )*

*"_ मैंने कहा- या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ! मैंने समझा कि आप दूसरी बीवी के यहां तशरीफ ले गए । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया - अल्लाह ताला निस्फ शाबान की रात में करीबी आसमान की तरफ नूजू़ल फरमाते हैं (यह उतरना अल्लाह ताला की शान के मुताबिक़ होता है ) और बनु कल्ब के क़बीला की बकरियों के बालों की तादाद से भी ज़्यादा मगफिरत फरमाते हैं !*
*🗂️( तिर्मिजी 1/156 ,इब्ने माजा- 99 )*

*★_इमाम तिर्मीजी रहमतुल्लाह अलैहि ने फरमाया कि इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैहि ने इस हदीस को ज़ईफ बताया।*

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                *❂ फायदा ❂*
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*★_शबे बरात की फजी़लत में जितनी रिवायात वारिद हुई हैं उनमें कोई भी ऐसी नहीं जो कलाम से खाली हो, चूंकि ज़ईफ रिवायत कई एक हैं और मुता'द्दिद सहाबा किराम रजि़यल्लाहु अन्हूम से मरवी हैं । बाज़ की सनद में ज्यादा कलाम नहीं ।बाज़ को इब्ने हिबान ने अपनी सहीह में जगह दी ।*

*★_मुहद्दिसीन के उसूल के मुताबिक मजमुआ ए अहादीस से शबे बरात की फजी़लत साबित मानी जाएगी । यही बात आम तौर पर मुहद्दिसीन और फुक़हा में मशहूर है और यही हक़ है । अल्लामा इब्ने तैयमिया रहमतुल्लाह अलैह जो आम तौर पर ऐसी चीजों का इनकार कर देते हैं वह भी शबे बरात की फजी़लत को तस्लीम करते हैं ,फरमाते हैं -निस्फ शाबान की रात की फजीलत में इतनी अहादीस और आसार मरवी है जिन से मालूम होता है कि इसको फजी़लत हासिल है । और बाज़ सल्फ ने इस रात को नमाज के लिए खास किया है । (फैजुल कदीर-2/ 317)*

*✿_इन अहादीस से मालूम होता है की जो फजीलत इस रात की है वह यह है कि शुरु रात से ही अल्लाह ताला बंदों की तरफ तवज्जो फरमाते हैं और तौबा इस्तगफार करने वालों की मगफिरत फरमाते हैं ।*

*✿_इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि इस म दागनीमत समझे , अल्लाह ताला की तरफ मुतवज्जह हो कर अपने गुनाहों पर नदामत के आंसू बहाए । गुनाहों से बाजध रहने का अल्लाह ताला की बारगाह में अहद करें । अल्लाह ताला से अपने गुनाहों की मगफिरत के तालिब बने ,अपने लिए भी और तमाम मुसलमानों के लिए भी मुर्दों और जिन्दो सबके लिए दुआ ए मगफिरत करें ।और इस उम्मीद के साथ कि अल्लाह ताला जरूर मदद फरमाएंगे और रहम फरमाएंगे ।*

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             *❂ _बदनसीब लोग ❂*
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*"❂_ हदीसों से मालूम हुआ कि इस मुबारक रात में भी कुछ अल्लाह के बंदे अल्लाह ताला की मगफिरत से महरुम रहते है । वो है:- मुशरिक, दुश्मनी रखने वाले, शराब पीने वाले ,लूंगी या पायजामा (या पेंट )टखनों से नीचे लटकाने वाले, जि़ना करने वाले, मोहतरमें नफ्स को क़त्ल करने वाले, रिश्तेदारों से क़ता ताल्लुक करने वाले ।*

*"_ इसलिए हर मुसलमान खयाल करें कि इन गुनाहों में से कोई भी गुनाह उसके अंदर हो तो खुसुसियत से इससे तोबा इस्तगफार करें और मगफिरत की दुआ करें , वरना यह मुबारक रात जिसमें अल्लाह ताला की तरफ से रहमत और मगफिरत की बारिश होती है आकर चली जाएगी और वह इससे महरूम रहेगा ।*

*"❂_अगर किसी का हक़ दबाया है और सताया है ,तकलीफ दी है तो माफी भी मांगे और उसका हक़ भी अदा करें ,इसलिए कि हुक़ूकुल इबाद का जा़ब्ता यह है कि बंदों के माफ किए बगैर अल्लाह ताला भी माफ नहीं फरमाते ।*

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       *❂ _शबे बरात की खुसुसियत _ ❂*
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*"❂_शबे बरात की खुसुसियत यह है कि अव्वले शब ही से मगफिरत व रहमत की बारिश होने लगती है और सुबह तक रहती है और बेशुमार लोगों के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं ।*
*"_ वरना अल्लाह ताला का क़रीबी आसमान की तरफ नुजूल हर रात होता है लेकिन अखीर तिहाई हिस्से में, मगर हर रात कसरत से इस तरह मगफिरत का ऐलान नहीं होता । (फैजुल कदीर,2/ 317)*

*"❂_ हां मगर याद रहे , शबे बरात की रिवायत ज़ईफ है और हर रात आखिर तिहाई हिस्से में नजूल की रिवायत बिल्कुल सही है । इसलिए यूं समझना चाहिए कि अल्लाह ताला ने कद्र दानों के लिए हर रात मगफिरत व रहमत हासिल करने का मौक़ा इनायत फरमाया है और अल्लाह ताला की बेपाया रहमत का तकाज़ा भी यही था कि हर रोज़ यह मौक़ा गुनहगारों को मिला करें ।*

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        *❂ हर रात इबादत की रात ❂*
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*✿_हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हर रात उठ कर इबादत फरमाते थे और लंबी लंबी रकाअत और रुकू और सजदे वाली नमाज पढ़ते थे । उम्मत को आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की इस सुन्नत को हरगिज़ नहीं छोड़ना चाहिए ।*

*✿_हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहू अन्हु फरमाते हैं कि हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- हमारा रब तबारक व तआला हर रात क़रीबी आसमान की तरफ नुज़ूल फरमाता है जबकि रात का आखरी तिहाई हिस्सा बाक़ी रह जाता है ।फरमाता है - कौन है जो मुझसे दुआ करता है कि मैं उसकी दुआ कुबूल करूं और कौन है जो मुझसे मांगता है कि मैं उसको दूं और कौन है जो मुझसे मगफिरत का तालिब है कि मैं उसकी मगफिरत करूं ।* 
*( बुखारी-1/ 153 ,मुस्लिम-1/ 258)*

*✿_"_ मुस्लिम की एक रिवायत में है कि फिर दोनों हाथ फैलाता है और फरमाता है कि कौन है जो क़र्ज़ दे ऐसी जात को जो ना मोहताज़ है ना ज़ालिम । सुबह तक यह सिलसिला जारी रहता है । ( मिश्कात-105 )*

*✿_ हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा फरमाती हैं कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अव्वल शब में सो जाते और आखिरी शब को जिंदा रखते (यानी इबादत करते) ।* *(मिश्कात -109)*

*✿"_ हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा फरमाती हैं हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसी नमाज़ पढ़ते कि आपके दोनों क़दम फूल जाते । कभी फरमाती कि फट जाते । कहा जाता कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इतनी क्यों मेहनत करते हैं ? आपके अगले पिछले सब गुनाह माफ हैं । तो फरमाते क्या मैं शुक्रगुजार बंदा ना बनुं ।* *(बुखारी शरीफ -1/ 152 -716 )*

*✿_अल्लाह ताला का इरशाद है :-"_और अपने घर वालों को नमाज की ताकीद कीजिए और खुद भी उसके पाबंद रहो ।"*
*"_खलीफा ए सानी हजरत उमर रजियल्लाहू अन्हु रात में खुदा की हुजूर में खड़े इबादत करते रहते फिर जब सहर का वक्त आता तो अपनी रफीका़ ए हयात (बीवी )को जगाते और कहते - "उठो नमाज़ पढ़ो "और फिर यही आयत तिलावत फरमाते ।*

*✿_शबे बरात की ज़ईफ अहादीस की वजह से अगर हम इबादत का अहतमाम करते हैं और करना भी चाहिए इसलिए कि हर रात आखिरी हिस्से में अल्लाह ताला का नुज़ूल होता है और दुआ के लिए बुलाया जाता है ।*
*_हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हु इसका अहतमाम करते थे, कुरान व हदीस में इसकी तरगीब मौजूद है । लेकिन याद रहे कोई इबादत महज़ रिवाजी़ तौर पर नहीं करना चाहिए ।*
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    *❂ शब ए बारात में कब्रिस्तान जाना ❂*
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*"✿_ मजकुरा रिवायात में से एक दो रिवायात में रात को उठकर हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का कब्रिस्तान जाना भी मज़कूर है । यह बात भी शबे बरात की खुसुसियत में से नहीं है बल्कि दूसरी सहीह रिवायत से भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का रात के आखिरी हिस्से में कब्रिस्तान जाना साबित है ।*

*✿_ हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा फरमाती हैं कि जब भी हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेरे यहां रात को रहने की बारी होती आखरी रात में बकी़ (मदीना के कब्रिस्तान) जाते और यह फरमाते:- ए मोमिनीन के कब्रिस्तान वालों ! तुम पर सलामती हो तुम्हारी मौत आ गई जिसका तुमसे वादा किया जा रहा था कल क़यामत की तरफ तुम जा रहे हो हम भी तुम्हारे साथ इंशाल्लाह मिल जाएंगे। या अल्लाह बकी़ वालों की मगफिरत फरमा _," ( सहीह मुस्लिम- 1/313)*

*✿_ इस रिवायत या इस जैसी सहीह रिवायात में शबे बरात या किसी खास रात को कब्रिस्तान जाने का जिक्र नहीं है बल्कि जब भी हजरत आयशा रजि अल्लाहू अन्हा के यहां हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रहने की बारी होती आप कब्रिस्तान तशरीफ़ ले जाते थे ।*

*✿_ हजरत बुरेदा असलमी रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- मैं तुमको जियारते कुबूर से मना किया करता था (लेकिन अब कहता हूं कि) क़बरों की जियारत किया करो, एक हदीस में है कि इससे मौत की याद आती है_," (सहीह मुस्लिम-1/ 314)*

*✿_ इस हदीस में दिन और रात की कोई क़ैद नहीं जब किसी को मौका मिले कब्रिस्तान जाना चाहिए और अपनी मौत को याद करना चाहिए और मरहूमीन के लिए दुआ ए मगफिरत व रहमत करनी चाहिए, लेकिन सिर्फ शबे बरात में इस अमल को करके साल भर की फुर्सत नहीं समझ लेना चाहिए और ज़ियारते क़ुबूर के लिए ना ही किसी खास दिन की तखसीस (मसलन सिर्फ जुमेरात) की किसी हदीस से साबित नहीं । इसलिए ऐसी तखसीस का एतक़ाद नहीं रखना चाहिए ।*

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*❂_ शबे बरात में कोई खास नमाज साबित नहींं _❂* ▦══────────────══▦
*❂_हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से एक रिवायत ज़िक्र की जाती है जिसमें 100 रकात की एक नमाज़ बताई गई है । इब्ने जोजी़ रहमतुल्लाह वगैरह ने इसको मौज़ु (मनगढ़ंत ) होने की तसरीह की है । इमाम जा़हबी रहमतुल्लाह ,इमाम सेवती रहमतुल्लाह ,मुल्ला अली का़री रहमतुल्लाह वगैरह मुहद्दिसीन ने अपनी किताबों में ऐसी नमाजों की तरदीद की है ।*
*"_गनयीतुल तालीबीन अगरचे शेख अब्दुल का़दिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की तसनीफ है लेकिन इसमें बहुत सी बातें बाद में दाखिल कर दी गई है । यह बात इमाम ज़ाहबी रहमतुल्लाह अलेह ने कही है, इसलिए यह किताब भी अब मौतबर नहीं रही ।*

*❂_ अहादीस के बाब में मुहद्दिसीन का कॉल मौतबर होता है, सुफिया किराम और वाइज़ीन का नहीं । इसकी तसरीह उलेमा ए हदीस में की है । मुल्ला अली का़री रहमतुल्लाहि अलैह ने शबे बरात की नमाज़ के बारे में एक फस्ल क़ायम किया है और उनको जिक्र करके उनका बे असल होना बयान किया है और लिखा है कि यह नमाजे़ चौथी सदी के बाद ईजाद हुई है और बैतूल मुकद्दस से इसकी इब्तिदा हुई है, फिर इन के लिए हदीसे गढ़ ली गई ।*
*(मौजू'आते कबीर -330 तज़किरतुल मोज़ुआत 45)*

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           *❂ मुनकिरात और बिद'अत- ❂*
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*★_इस मौके पर उम्मत में बहुत से बेबुनियाद एतकादाद और अफवाल राइज़ हैं जो नाजायज और बिदअत हैं, उनमें से चंद ये है:-*

*★1_ ज्यादा रोशनी करना और आतिशबाजी करना :-* _ *"_शाह अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह ने लिखा है कि -"_एक बुरी बिदअत जो हिंदुस्तान के अक्सर शहरों में राइज है वह यह है कि लोग चिराग रोशन करते हैं और घरों की दीवारों पर रखते हैं ( डेकोरेशन करते हैं) और इस पर फख्र करते हैं। और जमा हो कर आग से खैलते है ( आतिशबाजी करते हैं) पटाखे फोड़ते हैं।* 

*"_यह ऐसी बात है जिसका जिक्र किसी भी मौतबर किताब में नहीं है ,इसके मुताबिक कोई हदीस ज़ईफ या मौजू किसी भी तरह की नहीं है और हिंदुस्तान के सिवा कहीं और इसका रिवाज नहीं है ।*
*"_गालिबन यह बिदअत हिंदुओं के त्योहार दिवाली से मुसलमानों ने ली है इसलिए कि हिंदुस्तान के मुसलमानों में हिंदुओं के साथ रहने की वजह से बहुत ही बिदअते आ गई है _,** 
*®_(मा सब्त बिल सुन्नाह- 215 )*

*★_ हदीस में आया है कि जो किसी क़ौम से मुशाबहत अख्तियार करे वह उन्हीं में से है _,"(अबू दाऊद 559)*
*"_ इसलिए मुसलमानों को इससे बिल्कुल ऐतराज़ करना चाहिए इसमें एक पैसा भी खर्च करना बिल्कुल हराम है, बच्चों के हाथ में इसके लिए जो पैसा दिया जाएगा उसका सख्त गुनाह होगा _,"*

*★_बाज़ उलमा ने कहा है कि खास रातों में (शबे बरात और शबे कद्र) ज्यादा रोशनी करना ( मस्जिद हो या घर) बहुत बुरी बिदअत है ,शरीयत में इसके मुस्तहब होने की कोई दलील नहीं। गौर करने की बात है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर में तो शबे बरात में भी चिराग नहीं था और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उम्मती और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत का दम भरने वाले चिरागा करने, रोशनी ज्यादा ( डेकोरेशन) करने में सवाब समझते हैं । किस क़दर अफसोस की बात है ।*

*★2_ हलवे की रस्म :- बाज़ लोग हलवा पकाने को जरूरी समझते हैं इसके बगैर उनकी शबे बरात ही नहीं होती यह बिल्कुल बेअसल और गलत रस्म है । बाज़ यह कहते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का जब (उहद) में दंदाने मुबारक शहीद हुआ तो हलवा नोश फरमाया था । कोई कहता है कि हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु इस दिन शहीद हुए थे उनकी फातिहा है ।*
*"_यह बिल्कुल मनगढ़ंत और गलत किस्सा है इसका एतक़ाद रखना बिल्कुल जायज़ नहीं बल्कि अक़लन भी मुमकिन नहीं क्योंकि उहद का वाकि़या शव्वाल में पैश आया था शाबान में नहीं ।*

*★_3_ मुर्दों का घरों में आने का अक़ीदा :- बाज़ लोग कहते हैं कि शबे बरात में मुर्दों की रूह घरों में आती है और देखती है कि हमारे लिए कुछ खाना पका है या नहीं । यह भी बिल्कुल गलत और बे असल बात है। शरीयत में इसका कोई सबूत नहीं । बाज़ लोग यह समझते हैं कि अगर शबे बरात से पहले कोई मर जाता है तो जब तक उसका फातिहा (जिसे अरफा में मिलाना कहते हैं ) ना हो वह मुर्दों में शामिल नहीं होता (यानी उसकी रूह भटकती रहती है ) । यह बात भी बेकार मनगढ़ंत और अहादीसे सहीह के बिल्कुल खिलाफ है।*

*★ 4_ बाज़ लोग इस मौके पर बर्तनों का बदलना घरों का रंग रोगन करना कारे सवाब समझते हैं।*

*(बाज़ जगह पर खास इबादात का इंतजाम किया जाता है ,खाने पकाए जाते हैं दावते उड़ाई जाती हैं ,मस्जिदों में भी रात भर खाने पकाने का दौर चलता है शोर शराबा किया जाता है और जो लोग इबादत करने आते हैं उनको इससे परेशानी होती है और ना ही मस्जिद के आदाब का लिहाज़ किया जाता है । यह भी एक आम रिवाज़ बनता जा रहा है। इस रात में इन आमाल का कोई जिक्र ही नहीं बल्कि इबादत तो बगैर किसी इंतजाम के भी की जा सकती है ।)*

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 *❂ 15 वी शाबान का रोज़ा साबित नहीं ❂*
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*★_बाज़ हजरात 15 वी शाबान के रोज़े को रोते को सुन्नत बताते हैं, उनको इब्ने माजा की हजरत अली रजियल्लाहू अन्हु की रिवायत से धोखा हुआ है । यह रिवायत मौतबर नहीं और रोजे का जिक्र इसी रिवायत में है। इसके हाशिये में बताया गया है कि इसमें एक रावी इब्ने अबी सबराह बहुत ही ज़ईफ है ,उस पर हदीस वज़ा ( गढ़ने) का इल्जाम है । ( मीजा़नुल एतदाल अल ज़हबी- 2/5०3 )*

*★_दुर्रे मुख्तार में है कि ज़ईफ हदीस पर अमल करने की शर्त यह है कि उसका जौ़फ शदीद ना हो और वह असल आम के तहत हो और यह कि उसकी सुन्नियत पर एतक़ाद ना रखा जाए । ( दुर्रे मुख्तार- 1/87)*
*"_और यह हदीस तवाशिद ज़ईफ है और इसका कोई तरीक़ भी मालूम नहीं है ।*

*★_इसलिए यह रोज़ा नफिल की नियत से रख सकते हैं सुन्नत या साबित समझकर नहीं वरना हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ ऐसे अमल की सुन्नत होगी जो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से साबित नहीं और यह बहुत खतरनाक बात है। हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :-जब तक तुमको मालूम ना हो मेरी तरफ से हदीस बयान न करो , जिसने मुझ पर क़सदन (जानबूझकर ) झूठ बांधा वह अपना ठिकाना जहन्नम में बनाए। *( मिश्कात -35)*

*★_बहीकी़ ने शॉबुल ईमान में एक रिवायत जिक्र की है जिसमें 14 रकात की एक नमाज का जिक्र है उसके बाद 14-14 मर्तबा सूरह फातिहा - इखलास -माउजतीन- आयतल कुर्सी वगैरा का पढ़ना और फिर सुबह को रोजा रखना और उस रोजे का सवाब 2 साल के रोज़े के बराबर होता है । बहीक़ी ने इसको ज़िक्र करके इमाम अहमद का क़ौल जिक्र किया है :- यह हदीस मौज़ु ( मनगढ़ंत) मालूम होती है और यह मुनकिर है । इसमें उस्मान बिन सईद जैसे लोग मजहूल हैं । (जिनका कुछ पता नहीं )* 
*(शोबुल ईमान अल बहीक़ी -3/ 387)*

*★_अल्लामा आलूसी ने भी बहीकी़ का यह कलाम जिक्र किया है । (रूह- 25/ 111)*। *"_शाह अब्दुल हक़ दहलवी रहमतुल्लाहि अलैह ने भी इस हदीस को नकल करके मज़कुरा कलाम नक़ल किया है और लिखा है कि :- जो़कानी ने इसको अबातील में नकल किया है और इबने जौज़ी ने मौजु़आत में और कहा है कि यह मौजू़ है और इसकी सनद तरीक़ है । ( मां सब्त बिस्सुन्नाह- 213 )*

*★_मसला :- एक मसला शबे बरात के बाद वाले दिन यानी 15 वी शाबान के रोज़े का है, इसको भी समझ लेना चाहिए । वो यह है कि सारे ज़खीरा ए हदीस में इस रोज़े के बारे में सिर्फ एक रिवायत में है कि शबे बरात के बाद वाले दिन यानी 15 वी शाबान को रोजा रखो । लेकिन यह रिवायत ज़ईफ है ।लिहाजा इस रिवायत की वजह से खास इस 15 वी शाबान के रोज़े को सुन्नत या मुस्तहब क़रार देना बाज़ उलमा के नज़दीक दुरुस्त नहीं । अलबत्ता पूरे शाबान के महीने में रोज़े रखने की फजी़लत साबित है। यानी यकम शाबान से 27 शाबान तक रोजा रखने की फजी़लत साबित है । *(अल बलाग जमादी उस्सानी/ रज्जब 1417 हिजरी)*

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 *❂ शाबान के रोज़े साबित और सुन्नत हैं ❂*
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*★_हां माहे शाबान में रोज़े रखना किसी दिन की तखसीस के बगैर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से साबित है आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम शाबान में कसरत से रोज़े रखते थे ।हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा फरमाती हैं :- कि मैंने नहीं देखा कि हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमजान के सिवा किसी महीने में पूरे महीने का रोजा रखा और शाबान से ज्यादा किसी महीने में आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को रोज़ा रखते नहीं देखा ।* *( बुखारी -1/264)*

*★_ इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ने भी फरमाया कि :-हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने रमजान के सिवा किसी महीने के पूरे रोजे नहीं रखें, इसलिए शाबान में कसरत से रोज़े रखना बेशक आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इत्तेबा होगा । अलबत्ता अगर जॉफ ( कमजोरी) का खतरा हो तो आधे शाबान के बाद रोजे ना रखे जाएं,*

*★_हजरत अबु हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि :- हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-जब आधा शाबान रह जाए तो रोजा मत रखो ।* *(तिर्मीजी _155)*

*★_ इसी तरह रमजान के ख्याल से 1-2 रोजे पहले भी रोजा ना रखें। हजरत सल्लल्लाहो सल्लम ने इस से भी मना फ़रमाया । हां अगर किसी महीने के आखिर में रोजा रखने की आदत हो या हफ्ते के खास दिनों में और वह शाबान के आखिर में आ गए तो शाबान के आखिर में रख सकते हैं इसलिए कि ये रोज़े रमजान की ताजी़म की वजह से नहीं ।* *(बुखारी -1/ 256)*

*★_ इसी तरह शक के दिन में भी (तीसवी शाबान को ) आम लोगों को रोजा नहीं रखना चाहिए बल्कि दोपहर के करीब तक इंतजार करना चाहिए ।*
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                *❂ खुलासा ❂*
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*★_हजरत अबूजर गफारी रजियल्लाहू अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे फरमाया कि :_ऐ अबूजर । जब तुम महीने के 3 रोजे रखो तो 13वी 14 वी15वी (13 -14 -15 )के रोज़े रखा करो । (जामिया तिरमिज़ी)*

*★_ 15वीं शाबान के रोज़े की हदीस बहुत ज़ईफ है लेकिन उलमा सुलहा का क़दीम अय्याम से और हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि बाहर भी यही मामूल है कि 15वीं शाबान की शब में इबादत करते हैं और दिन को रोजा़ रखते हैं ।इस रात की इबादत के मुताबिक तो मुताद्दिद रिवायात हैं लेकिन रोज़े के मुताल्लिक सिर्फ एक हदीस है। इसलिए 15वीं के साथ अगर तेहरवी और चौहधवी का रोजा भी रख लिया जाए तो यह अय्यामे बीज के रोजे हो जाएंगे । ( फिक़हुल इबादात -349)*

*★_ सनद के ऐतबार से 15 शाबान का रोज़े की रिवायत जईफ है फजाईले आमाल में जईफ हदीस से स्तदलाल दुरुस्त है ,पस इस रोजे को बिदअत कहना दुरुस्त नहीं । जबकि इसके मुताल्लिक हदीस शरीफ मौजूद है । (फतावा मेहमूदिया 10/ 204)*

*★_ 15 वी शाबान का रोज़ा मुस्तहब है अगर कोई रखें तो सवाब है और ना रखे तो कुछ हर्ज नहीं । (फतावा दारुल उलूम देवबंद 6 /309)*

*★_ खुलासा यह है कि मुहद्दिसीन का मशहूर का़दा है कि ज़ईफ हदीस से सुन्नत नहीं तो इसतहबाब साबित होने के लिए काफी है । लिहाजा जो लोग शाबान में कसरत से रोजे ना रख सकते हो वह मुसतहब समझ कर सिर्फ 15 वी शाबान का रोज़ा भी रख सकते हैं ।* 
*वल्लाहु आलम* ।
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       *❂ _शबे बरात ओर कु़राने करीम ❂*
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*★_ क्या क़ुरआने करीम में शबे बरात का जिक्र है ? सही कॉल के मुताबिक इसका जवाब नफी ( इंकार) में है यानी क़ुरआने करीम में शबे बरात का जिक्र नहीं है । सुरह अल दुख्खान में अल्लाह ताला का इरशाद है :-* *"_हमने इस किताब को मुबारक रात में नाजिल किया बेशक हम डराने वाले हैं इस रात में हर हिकमत वाला मामला हमारी तरफ से फैसला करके सादिर किया जाता है ।"*
*"_ इस मुबारक रात से मुराद शबे कद्र है जो रमजान के अखीर अशरे में होती है , क़ुरआने करीम का शबे कद्र मे नाजि़ल होना सुरह क़दर् में साफ-साफ बयान किया गया है ।*

*★_इसी तरह (सूरह बकरा- 185) कु़राने करीम में साफ-साफ मज़कूर है कि रमजान के महीने में कु़रान ( लोहे महफूज से क़रीबी आसमान पर ) नाजि़ल हुआ । इसलिए आयाते दुख्खान का मतलब यह है कि साल भर की मौत व रिज़्क की तफसील लोहे मेहफूज से नकल कर के फरिश्तों को दे दी जाती है । (इब्ने कसीर )*
*"_ यही बात जम्हूर मुफस्सिरीन से मरवी है जिनमें इब्ने अब्बास, क़तादा ,मुजाहिद ,हसन बसरी वगैरह शामिल हैं ।इब्ने कसीर रहमतुल्लाह फरमाते हैं जिसने इस रात से मुराद शबे बरात को लिया है जैसा कि इकरिमा से मरवी है ,वह मकसूद से दूर चला गया । क़ुरानन तो यह कहता है कि रमजान में नाजिल हुआ । (इब्ने कसीर , मारफुल सुनन- 5/420)*

*★_ क़ाज़ी अबु बकर कहते हैं कि शाबान की रात के बारे में कोई काबिले ऐतमाद रिवायत नहीं जिससे साबित हो कि रिज़्क और मौत व हयात के फैसले इस रात होते हैं । (मारफुल कु़रान-7/758)*

*★_इब्ने अब्बास रजियल्लाहू अन्हु से एक रिवायत जिक्र की जाती है की रिज़्क और मौत व हयात वगैरह के फैसले शबे बरात में लिखे जाते हैं और शबे कद्र में फरिश्तों के हवाले किए जाते हैं । ( रूहुल माअनी 25/ 113)*
*"_ लेकिन इस रिवायत की सनद मालूम नहीं इसलिए इसका कोई ऐतबार नहीं । वल्लाहु आलम*

*★_ मिश्कत में एक रिवायत हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा से बहकी़ की अल दावतुल कबीर के हवाले से मज़कूर है ।इसमें शबे बरात में पैदा होने वाले और मरने वालों के लिखे जाने और आमाल पेश होने और रिज़्क नाजिल होने का मजमून मज़कूर है , मगर इस हदीस का हाल मालूम नहीं। मुहद्दिसीन में मुफस्सिरीन के यहां इसका एतबार नहीं । वल्लाहु आलम*

*★_शबे बरात की फजी़लत चुंकि मुताद्दिद ज़ईफ रिवायात आई है और इसके मुआरिज कोई आयत या कोई हदीस नहीं ,इसलिए इस की फजीलत तो तस्लीम की जाएगी लेकिन शबे बरात में रिज़्क और मौत के फैसले की बात कुरान का मुआरिज़ है इसलिए यह मनकू़ल नहीं होगी । इसलिए मुहक़्क़िकीन बराबर इसकी तरदीद करते रहे हैं ,इस मसले में वाइज़ीन की बात का ऐतबार नहीं होगा बल्कि मुफस्सिरीन और मुहद्दिसीन का ऐतबार होगा ।*

*★_एक तमबीह_, _ बाज़ लोग बयानात में यह हदीस भी नक़ल करते हैं कि हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया :-रज्जब अल्लाह का महीना है और शाबान मेरा और रमजान मेरी उम्मत का _।", मालूम होना चाहिए कि यह हदीस मौजू़ है । (अखबार मौजू़ मुल्ला अली कारी -329)*

*_ 📝शबे बरात की हक़ीक़त - हजरत मौलाना फज़लुर्रहमान आज़मी _,*
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