NOOR E HIDAYAT-HINDI-(HAZRAT JI KA EK AHAM KHAT)

❈❦ अहम मक़तूब❦❈*       
        ☜█❈ *हक़ - का - दाई* ❈ █☞
         ☞❦ *नूर - ए - हिदायत* ❦☜           
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            *☞_उसूलों की पाबंदी_,*

*★_ हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैहि दावत के काम के लिए उसूल की पाबंदी बेहद ज़रूरी समझते थे , वह छह (सिफात) उसूल जिन पर इस काम का पूरा पूरा अखसार हैं उनकी पाबंदी को लाज़मी क़रार देते ,*

*★_ एक वक्त तहरीर फरमाया :- उसूल की पाबंदी का बहुत ही ज़्यादा लिहाज़ रखा जाए, इल्म व जिक्र, खिदमत इकराम ए मुस्लिम ,तबलीग, दुआ वगैरह में सबको मशगूल रखते हुए लायानी से परहेज़ का अहतमाम किया जाए, रातों को रोने को बहुत बढ़ाया जाए बिल खुसूस इकरामे मुस्लिम के नंबर की खूब वज़ाहत करते हुए अमल किया जाए और कराया जाए ,*

*★_ हाजी फज़ल अज़ीम साहब को तहरीर फरमाते हुए लिखा :- काम का फायदा हमेशा उसके उसूलों के साथ करने से होता है उसूलो की बे उनवानी का फसाद इसके इसलाह को दबा लेता है और इसके खैर से मुंतफा नहीं होने देता, जमातों के निकलने की खबरें तो जगह-जगह से आती है मगर उसे उसके उसूल के इस्तेमाल की जो काम के लिए रूह और मगज़ की हैसियत रखते हैं उनका तज़किरा तक नहीं होता ।*

*★_ सबसे अहम जुज़्व इल्म व ज़िक्र का अहतमाम है जो महज़ अल्लाह ताला की मर्ज़ियात पर चलने और आमाले मरज़िया के ज़रिए अल्लाह ताला का क़ुर्ब हासिल करने और अपने नफ्स और खुदी को मिटाने के लिए है, इल्म व ज़िक्र की तरफ निसबत रखने वाले बुजुर्गों की अज़मत को दिल में महसूस करना,*

*★_ जो काम किया जाए उसकी इत्तेला के ज़रिए और मुशावरत के ज़रिए उनकी बढ़ाई को पहचानने और उनके हुकूक को अदा करना और इसी तरह दुनियावी लाइन में माद्दी बड़ों के हुकूक को अदा करना और अपने माद्दी कामों में उनकी मुसावरत को भी शामिल करना ।*

*★_ दूसरा अहम जुज़्व यह है कि अपने से छोटे दीन की लाइन, इल्म की लाइन, माल की लाइन, रिश्ते की लाइन के , चारों लाइन के छोटों के साथ रहम व शफकत व हमदर्दी और इखवत के ज़रिए उन्हें इस काम के अंदर ज्यादा से ज्यादा लगाने की कोशिश करना और उनकी जिम्मेदाराना निगरानी करना,*

*❀_ इस लाइन से हुकूक अदा करने से वह मशक्कत उठाने वाला तबका़ जिसके अंदर हमसे कई ज्यादा खुलूस है, कसरत से इसमें शरीक होगा, जिनके इस काम में लगे बगैर काम गैर मुस्तक़िल, सतही और ज़ुज्वी है और अरबाबे अहले इल्म व ज़िक्र के हुकूक की अदायगी के ज़रिए काम में वज़न और नूर पैदा होगा, जिसके बगैर काम सतही और ना पाएदार है,,*    
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            *☞_औरतों में काम _,*

*❀_ हजरत जी रहमतुल्लाह जिस तरह मर्दों में दीनी दावत का काम जरूरी समझते थे उसी तरह औरतों में भी इस काम की ज़रूरत को महसूस करते थे इसलिए कि औरतों ही की दुरुस्तगी से मर्दो और बच्चों में दीनी इंकलाब पैदा हो सकता है।*

*❀_हजरत जी रहमतुल्लाह की जिंदगी में बहुत पहले से औरतों में काम शुरू हो चुका था ,हजरत औरतों में काम करने के सिलसिले में नजाकत को बयान करते हुए मुख्तलिफ हिदायत दिया करते थे।*

*❀_ एक मकतूब में मौलाना उबेदुल्लाह साहब बलियावी को औरतों में काम के तरीकों की वज़ाहत फरमाते हुए लिखते हैं :-* *"_औरतों की तबलीग में सिर्फ यह किया जाए कि औरतें दीनी किताबें पढ़ें, पढ़ाएं, सुनाएं, इस्लामी रिवाज़ की पूरी पाबंदी करें और अपने मुताल्लिकीन को भी इसका पाबंद करें , अपने मर्दों को दीन सीखने के लिए तबलीग के अंदर बाहर भेजें ताकि जो कुछ सीख कर आएं वह उनको सिखाएं औरतो को गश्त की क़त'अन इजाज़त न दी जाए _,",*  
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      *☞_ हर हाल में दावत का काम,*

*❀_ हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैहि हर हाल में दावत ए दीन के काम से ताल्लुक जरूरी समझते थे चाहे बीमारी हो या तंदूरुस्ती, खुशी हो या गम, तंगदस्ती हो या फराखी उनके नजदीक इन तमाम शर्तों में दावत में लगने से सवाब बढ़ता है और इंसान की दीनी तरक्की के रास्ते खुलते हैं खुसूसन काम से ताल्लुक रखने वालों को किसी वक्त भी गफलत और कोताही को बहुत बड़ा नुकसान समझते थे।*

*❀_एक शख्स जो अपनी अलालत की बिना पर काम से बे ताल्लुक हो गए थे उनको तहरीर फरमाया :- "_ मेरे दोस्त ! यह काम हक़ ता'ला की एक नियामत है जो अता की गई है, नियामत की क़दरदानी और हक़ की अदायगी नियामत को बढ़ाती है और इसमें कोताही बहुत खतरे की चीज़ है ,काम धंधा और दुख बीमारी तो हरदम आदमी के साथ हैं और इस इम्तिहान के लिए हैं कि हमारा बंदा हमारे ताल्लुक की वजह से हमारे हुक्म की क़दरदानी करके दीन को मुक़द्दम करता है या गफलत के साथ ज़रूरत और अपने दुख सुख को अपनी राय से देखता है ।*

*❀_ बहरहाल समझदार वही है जो इस वक्त इस चीज़ की क़दर करें और यह भी ज़ाहिर है कि काम करते रहने और मिलते-जुलते रहने ही से आदमी आगे बढ़ता है ।*
  
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  *☞_ एक मां की खिदमत में गुजारिश_,*

*❀_ एक पुराने करीबी रफीक़ जो मरकज ने मुकीम थे और उनकी वजह से तबलीगी काम को बहुत फायदा पहुंच रहा था उनकी वालिदा ने उनको बुला लिया, तो हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैहि ने उन मोहतरमा की खिदमत में इन अल्फाज़ में उनके मरकज में रुके रहने की इजाज़त मांगी ,आदाब व सलाम के बाद फरमाया:-*
*"_ आलम में जब दीन के लिए दौड़-धूप करने वाले कसरत से थे हर शख्स उसके लिए कुर्बानी देता था, बच्चे मचल-मचल कर जान कुर्बान करने के लिए आगे बढ़ते हैं, मांऐं बच्चों की कुर्बानी पर सजदा ए शुक्र अदा करती थी,*

*❀_परवरिश इसलिए होती थी कि अल्लाह के दीन के काम आएगा और काम आ जाने पर इसको स'आदते अज़ीमी समझा जाता था , ऐसे वक्त में मुसलमानों के लिए हक़ ता'ला की तरफ से बेशुमार नुसरतें साथ हुई, बावजूद किल्लत के दुनिया पर गालिब हुए, दुनिया को जब ठुकराया तो दुनिया कदमों में आई ,ऊंटों की नकेले पकड़ कर निकले तो अल्लाह ने हुकूमत की बाग डोर हाथ में दे दी _,"*

*❀_ खुलासा यह है कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के मुबारक काम के लिए अपनी जरूरतों को पीछे डालकर हर वक्त कमर कसे हुए थे , जब अंसारे मदीना ने बेशुमार जद्दोजहद की और घरों को छोड़ने और आलम में फिरने की वजह से तिजारतो और बागात का पडा होना लगा तो अंसारे मदीना ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सिर्फ चंद हफ्ते के लिए मोहलत मांगी तो हक़ ताला ने क़ुरान में तंबीह फरमाई _,"*

*❀_ मोहतरमा असल बात ये है कि जब तक इस जज्बे से काम करने वाले मौजूद रहे अपनी जरूरत रहे ना रहे अल्लाह के दीन की कोशिश होती रहे , तब तक अल्लाह ताला की बेशुमार रहमते शामिल रही और मुसलमान आलम में सरदार बने रहे ,*

*❀"_और जब से मुसलमानों ने अपनी जरूरतों को मुकद्दम करने का रिवाज डाल दिया और आलम में दीन की जरूरत के मुकाबले में अपनी जरूरतों को कुर्बान करने वाले नहीं रहे तो अल्लाह की नुसरतों से मेहरुमी शुरू हो गई, नोबत यहां तक आ गई कि आज आलम में चारों तरफ मुसलमानों पर बलाओं के पहाड़ टूट रहे हैं मसाईब खुलकर सामने आ गए हैं ऐसे वक्त में कुछ-कुछ जद्दोजहद (दावत तबलीग ) दीन की तरक्की के लिए शुरू हुई, मरकज़ में आदमियों की शिद्दते किल्लत है ऐसे वक्त में आप ने अपने बेटे को बुलाया है , काम की जरूरत के पेशे नज़र तो मैं यही दरखास्त करूंगा कि दीन की अहम जरूरत के पेशे नज़र आप रुखसत मरहमत फरमा दें, आपसे यही गुजारिश है अगर आपका फिर भी बुलाने का इसरार हो तो मुझे फोरन तार दीजिए मैं भेज दूंगा _,",* 

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       *☞_ एक अहमतरीन मकतूब,*

*❀_ हजरत जी रहमतुल्लाहि अलैहि का एक अहमतरीन मकतूब दर्ज किया जा रहा है जो हकीकत में तबलीग के मक़ासिद, उसूल,तरीक़ा ए कार , मुनाफे, नताईज व समरात और खुरूज फी सबीलिल्लाह की जरूरी हिदायात पर बहुत जामे हैं ।*

*❀_ यह मकतूब उन सारी जमातो के लिए हैं जो तबलीग के सफर पर रवाना होती रहती है और उन तमाम हजरात के लिए जो इस रास्ते में अपने औका़त फारिग करते रहते हैं निहायत ही मुफीद है और इसका पढ़ना बहुत जरूरी है ।*
*"_चुनांचे यह मकतूब बहुत तवील है इसलिए हमने सहुलियत के ऐतबार से और पढ़ने में आसानी और मुफीद हो इसलिए मौके मौके पर बगली सुर्खियां लगा दी है ।*

*❀_ बाद खुतबा व सलाम और खैरों आफियत के हजरत ने तरक्की की दुआएं दी :-*
*"_ अल्लाह जलशानुहू आप हजरात को तरक्कीयात अता फरमाए, सही नहीज़ पर आप हजरात की हिफाज़त फरमाए और पूरी तरकीब व तरतीब की समझ अता फरमाए ( आमीन )         
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 *☞_ एक अहम खत -1, कामयाबी और नाकामी का दारोमदार ,*

*❀_ अल्लाह रब्बुल इज्जत जल जलालहू व अम्मनवालुहू ने इंसानों की तमाम कामयाबिओं का दारोमदार इंसान के अंदरूनी माया पर रखा है कामयाबी और नाकामी इंसान के अंदर के हाल का नाम है, बाहर की चीजों के नक्शे का नाम कामयाबी व नाकामी नहीं है,*

*❀_ इज्ज़त और जि़ल्लत, आराम व तकलीफ ,सुकून व परेशानी, सहत व बीमारी इंसान के अंदर के हालात का नाम है, इन हालात के बनने या बिगड़ने का बाहर के नक्शे से ताल्लुक ही नहीं अल्लाह जल्शानहू मुल्कों माल के साथ इंसान को ज़लील करके दिखा दें और फक़्र के नक्शे में इज्ज़त देकर दिखा दें।*

*❀_ इंसान के अंदर की माया उसका यक़ीन और उसके आमाल है इंसान के अंदर का यक़ीन और अंदर से निकलने वाले आमाल अगर ठीक होंगे तो अल्लाह जल्लशानहू अंदर कामयाबी की हालत पैदा फरमा देंगे चाहे चीज़ों का नक्शा कितना ही पस्त हो ।*        
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              *☞_ ईमान बिल्लाह,*

*❀_ अल्लाह जल्ला शाहनुहू तमाम कायनात के हर ज़र्रे के और हर फर्द के मालिक मालिक हैं ,हर चीज़ को अपनी कुदरत से बनाया है सब कुछ उनके बनाने से बना है वह बनाने वाले हैं खुद बने नहीं ।*

*❀_ और जो खुद बना हुआ है उससे कुछ बनता नहीं, जो कुछ कुदरत से बना है वह कुदरत के मातहत है ,हर चीज़ पर उनका क़ब्जा़ है वहीं हर चीज़ को इस्तेमाल फरमाते हैं वह अपनी कु़दरत से उन चीज़ों की शक्लों को भी बदल सकते हैं और शक्लों को क़ायम रखकर सिफात को बदल सकते हैं ।*

*❀_लकड़ी को अज़दहा बना सकते हैं और अज़दहा को लकड़ी बना सकते हैं, इसी तरह हर शक्ल पर चाहे मुल्क हो या माल की, बर्क़ की हो या भाप की उनका ही क़ब्जा़ है और वही तसर्रुफ फरमाते हैं ।*

*❀_जहां से इंसान को तामीर नज़र आती है वहां से तख़रीब ला कर दिखा दें और जहां से तख़रीब नज़र आती है वहां से तामीर ला कर दिखा दें, तरबियत का निजाम वही चलाते हैं ,सारी चीजों के बगैर रेत पर डालकर पाल दें और सारे साज़ो सामान में परवरिश बिगाड़ दें ।
  
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  *☞_ ईमान व यक़ीन का नतीजा और उसकी दावत,*

*❀_ अल्लाह जलशानुहू की जाते आली से ताल्लुक पैदा हो जाए और उसकी कुदरत से बराहे रास्ता फायदा उठाने के लिए हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ से तरीके लेकर आए हैं जब उनके तरीक़े जिंदगी में आएंगे तो अल्लाह जल्लशानहू हर नक्शे में कामयाबी दे कर दिखाएंगे ।*

*❀_ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह मैं अपने यक़ीन और अपने ज़ज्बे और अपने तरीक़े को बदलने का मुतालबा है। सिर्फ यक़ीन की तब्दीली पर ही अल्लाह ताला इस ज़मीन व आसमान से कई गुना ज्यादा बड़ी जन्नत अता फरमाएंगे । जिन चीज़ों में से यक़ीन निकल कर अल्लाह की जा़त में आएगा उन सारी चीज़ों को अल्लाह पाक मुसख्खर फरमा देंगे ।*

*❀_ इस यक़ीन को अपने अंदर पैदा करने के लिए एक तो इस यक़ीन की दावत देनी है ,अल्लाह की बढ़ाई समझानी है ,उनकी रूबूबियत समझानी है ,उनकी कुदरत समझानी है, अंबिया अलैहिस्सलाम और सहाबा किराम के वाक्यात सुनाने हैं , खुद तंहाइयों में बैठकर सोचना ही दिल में इस यकीन को उतारता है जिसकी मजमे में दावत दी है, यही हक़ है और फिर रो रो कर दुआ मांगनी हैं कि अल्लाह इस यक़ीन की हक़ीक़त से नवाज़ दे।*      
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  *☞_ नमाज़ का अहतमाम और उसकी दावत,*

*❀_ अल्लाह जल्लशानहू की कुदरत से बराहे रास्त फायदा हासिल करने के लिए नमाज़ का अमल दिया गया है ।*

*❀_सर से लेकर पैर तक अल्लाह की रज़ा वाले मखसूस तरीक़े पर पाबंदियों के साथ अपने को इस्तेमाल करो ,आंखों का, कानों का, हाथों का ,जुबान का और पैरों का इस्तेमाल ठीक हो, दिल में अल्लाह का ध्यान हो अल्लाह का खौफ हो, यक़ीन हो कि नमाज़ में अल्लाह के हुक्म के मुताबिक मेरा हर इस्तेमाल तकबीर व तस्बीह रुकू व सजदा सारी कायनात से ज्यादा इनामात दिलाने वाला है,*

*❀_ इस यक़ीन के साथ नमाज़ पढ़कर हाथ फैला कर मांगा जाए तो अल्लाह पाक अपनी कुदरत से हर जरूरत को पूरा करेंगे, ऐसी नमाज पर अल्लाह पाक गुनाहों को माफ फरमा देंगे और रिज़्क़ में बरकत भी देंगे, इता'त की तौफीक भी मिलेगी,*

*❀_ ऐसी नमाज सीखने के लिए दूसरों को खुशू व खुज़ू वाली नमाज़ की तरगीब व दावत दी जाए ,इस पर आखिरत और दुनिया के नफे समझाये जाएं । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हजरत ए सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम वाली नमाज़ को सुनना ,खुद अपनी नमाज़ को अच्छी करने की मश्क करना, एहतमाम से वजू करना, ध्यान जमाना क़ियाम में क़ायदे में रूकू में सजदे में भी ध्यान कम से कम 3 मर्तबा जमाया जाए कि अल्लाह मुझे देख रहे हैं ।*

*❀_ नमाज़ के बाद सोचा जाए कि अल्लाह की शान के मुताबिक नमाज़ ना हुई, इस पर रोना और कहना कि ए अल्लाह हमारी नमाज में हक़ीक़त पैदा फरमा ,*          
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              *☞_ इल्म व ज़िक्र,*

*❀_ इल्म से मुराद यह है कि हममें तहकी़क का जज़्बा पैदा हो जाए, मेरा अल्लाह मुझसे इस हाल में क्या चाहता है ? और फिर अल्लाह के ध्यान के साथ अपने आप को उस अमल में लगा देना यह ज़िक्र है ।*

*❀_ जो आदमी दीन सीखने के लिए सफर करता है उसका यह सफर इबादत में लिखा जाता है, इस मक़सद के लिए चलने वालों के पैरों के नीचे 70 हज़ार फरिश्ते अपने परों को बिछाते हैं ज़मीन व आसमान की सारी मखलूक़ उनके लिए दुआए मगफिरत करती है।*

*❀_ शैतान पर एक आलिम हजार आबिदों से ज़्यादा भारी है, दूसरों में इल्म का शौक पैदा करने की कोशिश की जाए, फज़ाइल सुनाए जाएं, खुद तालीम के हलकों में बैठा जाए, उलमा की खिदमत में हाज़िरी दी जाए इसको भी इबादत यक़ीन किया जाए और रो रो कर मांगा जाए कि अल्लाह जल्लशानहू इल्म की हक़ीक़त अता फरमा दे,*

*❀_ हर अमल में अल्लाह जल्लशानहू का ध्यान पैदा करने के लिए अल्लाह का ज़िक्र है, जो आदमी अल्लाह को याद करता है अल्लाह ता'ला उसको याद फरमाते हैं, जब तक आदमी के होंठ अल्लाह के ज़िक्र में हिलते रहते हैं अल्लाह जल्लशानहू उसके साथ होते हैं ।अल्लाह पाक अपनी मोहब्बत व मगफिरत अता फरमाते हैं, अल्लाह का ज़िक्र शैतान से हिफाज़त का क़िला है।*

*❀_ खुद अल्लाह का ध्यान पैदा करने के लिए दूसरों को अल्लाह के ज़िक्र पर आमादा करना, तरगीब देना, खुद ध्यान जमा कर कि मेरे अल्लाह मुझे देख रहे हैं, जिक्र करना और रो-रोकर दुआएं मांगना कि अल्लाह मुझे जिक्र की हक़ीक़त अता फरमा ।*       
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              *☞_ इकरामे मुस्लिम*

*❀_ और मुसलमान का बा हैसियत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का उम्मती होने के इकराम भी करना है हर उम्मती के आगे बिछ जाना हर शख्स के हुकुक़ को अदा करना और अपने हुकूक का मुतालबा ना करना।*
 
*❀_,जो आदमी मुसलमान की पर्दा पोशी करेगा अल्लाह जल्लशानहू उसकी पर्दा पोशी फरमाएंगे, जब तक आदमी अपने मुसलमान भाई के काम में लगा रहता है अल्लाह जल्लशानहू उसके काम में लगे रहते हैं ।*

*❀_ जो अपने हक़ को माफ कर देगा अल्लाह जल्लशानहू उसको जन्नत के बीच में महल अता फरमाएंगे, जो अल्लाह के लिए दूसरे के आगे तज़ल्लुल अख्तियार करेगा अल्लाह जल्लशानहू उसको रफ'अत व बुलंदी अता फरमाएंगे ।*

*❀_इसके लिए दूसरों में तरगीब के ज़रिए इकरामें मुस्लिम का शौक पैदा करना है, मुसलमान की क़ीमत बतानी है, हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के अखलाक़, हमदर्दी, ईसार के वाक्य़ात सुनाने हैं। खुद इसकी मश्क करनी है और रो-रोकर अल्लाह जल्लशानहू से हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वाले अख़लाक़ की तोफीक़ मांगनी है ।*        
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              *☞_ हुस्ने नियत__,*

*❀__ हर अमल में अल्लाह जल्लशानहू की रज़ा का जज़्बा हो , किसी अमल से दुनिया की तलब या अपनी हैसियत बनाना मकसूद ना हो,*

*❀_ अल्लाह की रज़ा के जज्बे़ से थोड़ा सा अमल भी बहुत इनामात दिलाएगा और इसके बगैर बहुत बड़े-बड़े अमल भी गिरफ्त का सबब बनेंगे,*

*❀_अपनी नियत को दुरुस्त करने के लिए दूसरों में दावत के जरिए नियत को सही करने की फिक्र व शौक पैदा किया जाए,*

*❀_ अपने आप पर अमल से पहले और हर अमल के दौरान नियत को दुरुस्त करने की मश्क़ की जाए, मैं अल्लाह को राज़ी करने के लिए यह अमल कर रहा हूं और अमल की तक़मील पर अपनी नियत को नाक़िस क़रार देकर तौबा व इस्तगफार किया जाए और रो-रोकर अल्लाह जल्लशानहू से इखलास मांगा जाए ।*
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*☞_ एक अहम खत -अल्लाह के रास्ते की मेहनत और दुआ,*

*❀_ आज उम्मत में किसी हद तक इंफरादी आमाल का रिवाज है लेकिन उनकी हकीकत निकली हुई है।हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खत्में नबूवत के तुफैल पूरी उम्मत को दावत वाली मेहनत मिली थी इसके लिए बंदों का ताल्लुक अल्लाह जल्ल शानहू से कायम हो जाए इसके लिए अंबिया अलैहिस्सलाम वाले तर्ज पर अपने जान व माल को झौंक देना और जिन में मेहनत कर रहे हैं उनसे किसी चीज का तालिब ना बनना, इसके लिए हिजरत भी करना है और नुसरत भी करना है।*

*❀_ जो ज़मीन वालों पर रहम करता है आसमान वाला उस पर रहम करता है, जो दूसरों का ताल्लुक अल्लाह जल्लशानहू से जोड़ने के लिए ईमान व आमाले सालेहा की मेहनत करेंगे जल्लशानहू उनको सबसे पहले ईमान व आमाले सालेहा की हकीकत से नवाज़ कर अपना ताल्लुक़ अता फरमाएंगे।*

*❀_इस रास्ते में एक सुबह या एक शाम का निकलना पूरी दुनिया और जो कुछ इसमें है ( बा बा एतबार माल के भी और बा एतबार चीजों के भी ) इस सबसे बेहतर है ।*

*❀_इसमें हर माल के खर्च और अल्लाह के हर जिक्र तस्बीह और हर नमाज का सवाब 7लाख गुना हो जाता है इस रास्ते में मेहनत करने वाले की दुआएं अंबिया अलैहिस्सलाम की दुआओं की तरह क़ुबूल होती है यानी जिस तरह उनकी दुवाओं पर अल्लाह जल्लशानहू ने ज़ाहिर के खिलाफ अपनी कुदरत को इस्तेमाल फरमा कर उनको कामयाब फरमाया और बातिल खाको को तोड़ दिया, इसी तरह से इस मेहनत को करने वालों की दुआ अल्लाह जल्लशानहू जाहिर के खिलाफ अपनी कुदरत के मुजाहिरे फरमाएंगे और अगर आलमी बुनियाद पर मेहनत की गई तो तमाम आलम के क़ुलूब में उनकी मेहनत के असर से तब्दीलियां लाएंगे ।*

*❀_ दीन के दूसरे आमाल की तरह हमें यह मेहनत भी करनी नहीं आती, दूसरों को इस मेहनत के लिए आमादा करना है, अहमियत और कीमत बतानी है अंबिया अलैहिस्सलाम और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के वाक़यात सुनाने हैं, खुद अपने आप को कुर्बानी की शक्लों और हिजरत व नुसरत वाले आमाल में लगाना है,*

*❀"_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम हर हाल में अल्लाह की राह में निकले हैं , निकाह के वक्त, रूखसती के वक्त ,घर में विलादत के मौके पर और वफात के मौके पर ,सर्दी में गर्मी में, भूख में फाकें में ,सेहत में बीमारी में , क़ुवत में जौफ में, जवानी और बुढ़ापे में भी निकले और रो रो कर अल्लाह से मांगना है कि हमें इस आली मेहनत के लिए कुबूल फरमा ले ।*      
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      *☞_ मस्जिदों में करने के काम,*

*❀__इन ( छह सिफात से ) से मुनासबत पैदा करने के लिए हर शख्स से चाहे वह किसी भी शौबे से ताल्लुक रखता हो, चार माह का मुतालबा किया जाता है,*

*❀_अपने मशागिल, साजो सामान से और घर बार से निकलकर इन सिफात की दावत देते हुए और खुद मश्क़ करते हुए मुल्क बा मुल्क अकलीम बा अकलीम, क़ौम बा क़ौम फिरेंगे।*

*❀__ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर उम्मती को मस्जिद वाला बनाया था मस्जिद के कुछ मखसूस आमाल दिए थे , उन आमाल से मुसलमानों का जिंदगी में इम्तियाज़ था ।*
*"_ मस्जिद में अल्लाह की बड़ाई की बातें होती थी आमाल से जिंदगी बनने की बातें होती थी आमालों को ठीक करने के लिए तालीम होती थी , ईमान व आमाले सालेह की दावत के लिए मुल्कों और इलाकों में जाने की तशकीलें भी मस्जिद से ही होती थी , अल्लाह के जिक्र की मजलिस मस्जिद में होती थी।*

*❀__मस्जिद में ताउन,इसरार और हमदर्दियों के आमाल होते थे, हर शख्स हाकिम, महकूम मालदार गरीब ताजिर ज़रा'अ मजदूर मस्जिद में आकर ज़िन्दगी सीखता था और बाहर जाकर अपने अपने शोबों में मस्जिद वाले तास्सुर से चलता था।*

*❀__ आज हम धोखे में पड़ गए कि हमारे पैसे से मस्जिद चलती है , मस्जिदें आमाल से खाली हो गई और चीजों से भर गई । हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मस्जिद को बाजार वालों के ताबे नहीं किया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद में ना बिजली थी ना पानी था ना गुसलखाने थे, खर्च की कोई शक्ल नहीं थी ।*

*❀__मस्जिद में आ कर दाई बनता था मुअल्लिम बनता था और मुताल्लिम बनता था, ज़ाकिर बनता था नमाज़ी बनता था मुती बनता था मुक्तकी जाहिद बनता था , बाहर जाकर ठीक जिंदगी गुजारता था । मस्जिदें बाजार वालों को चलाती थी ।*
*"_ इन 4 माह में हर जगह जाकर मस्जिदों में हर उम्मति को लाने की मश्क़ करें , मस्जिद वाले आमाल सीखते हुए दूसरों को यह मेहनत सीखने के लिए तीन चिल्लों के वास्ते आमादा करें ।*        
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      *☞_ मक़ामी गश्त व इज्तिमा ,*

*❀_ वापस (वक्त लगाने के बाद) अपने मका़म पर आकर अपनी बस्ती की मस्जिद में इन आमाल को ज़िंदा करना है, हफ्ते में दो मर्तबा गस्त के जरिए बस्ती वालों को जमा करके उन्हें इन्हीं आमाल की तरफ मुतवज्जह करना और मस्क के लिए हर घर से एक फर्द को 3 चिल्लों के लिए बाहर ( राहे खुदा ) में निकालना है ।*

*❀_ एक गश्त अपनी मस्जिद के माहौल में और दूसरा गश्त दूसरी मस्जिद के माहौल में करें , हर मस्जिद में मका़मी जमात भी बनाएं, हर मस्जिद के अहबाब रोजाना फज़ाइल की तालीम करें ।*

*❈…. हर महीने 3 दिन की जमात_*

*❀_ अपने शहर या बस्ती के करीब देहात में काम की फिज़ा बने इसके लिए हर मस्जिद से 3 दिन के लिए जमाते बने और 5 कोस के इलाक़े में जाएं ।*

*❀_हर साथी महीने में 3 दिन पाबंदी से लगाए ,3 दिन पर हुक्मन 30 दिन का सवाब मिलेगा, पूरे साल हर महीने 3 दिन लगाएं तो पूरा साल अल्लाह की राह में शुमार होगा ।*

*❀_अंदरून मुल्क़ के तक़ाज़े पुरे होते रहें और अपनी मश्क़ क़ायम रहे और जारी रहे ।*         
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*☞_ चिल्ला और 3 चिल्ले लगाना और उनकी दावत देना,*

*❀_ हर साल एहतमाम से चिल्ला लगाया जाए ,उम्र में कम से कम तीन चिल्ले, साल में चिल्ला, महीने में 3 दिन, हफ्ते में दो गश्त, रोज़ाना तालीम तसबीहात तिलावत यह कम से कम निसाब है कि हमारी ज़िंदगी दीन वाली बनती रहे ।*

*❀_ अगर हम यह चाहें कि हम सबब व ज़रिया बने इस इज्तिमाई तौर पर पूरी इंसानियत की जिंदगी के सही रूख पर आने और बातिल के टूटने का , तो इसके लिए इस निसाब से भी आगे बढ़ना होगा ।*

*❀_ हमारे वक्त और हमारी आमदनी का निस्फ अल्लाह की राह में लगे और निस्फ कारोबार और घर के मसाईल में , कम से कम यह हो कि एक तिहाई वक्त और आमदनी अल्लाह की राह में और दो तिहाई अपने मशागिल में, यानी हर साल 4 माह की तरतीब बिठाई जाए ।*

*❀_ आप हजरात उम्र में कम से कम 3 चिल्लों की दावत खूब जम कर दें इसमें बिल्कुल ना घबराए इसके बगैर जिंदगी के रुख नहीं बदलेंगे,*

*❀_जिन अहबाब ने खुद अभी 3 चिल्ले ना दिए हैं वह भी इस नियत से खूब जम कर दावत दें कि अल्लाह जल्लशानहू इसके लिए हमें कुबूल फरमाए ।*
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        *☞_ गश्त और इसकी अहमियत,*

*❀_ गश्त का अमल इस काम में रीड की हड्डी की सी अहमियत रखता है अगर यह अमल सही होगा तो क़ुबूल होगा , दावत क़ुबूल होगी, हिदायत आएगी और अगर गश्त क़ुबूल ना हुआ तो दावत क़ुबूल ना होगी दावत क़ुबूल ना हुई दुआ कबूल ना होगी, दुआ कबूल ना हुई हिदायत नहीं आएंगी ।*

*❈_गश्त का मौज़ू और दावत :- गश्त का मौजू़ यह है कि अल्लाह जल्लशानहू ने हमारी दुनिया और आखिरत के मसाईल का हल हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के तरीके पर जिंदगी गुजारने में रखा है, उनके तरीके हमारी जिंदगी में आ जाए इसके लिए मेहनत की ज़रूरत है, इस मेहनत पर बस्ती वालों को आमादा करने के लिए गश्त के लिए मस्जिद में जमा करना है ।*

*❀_ नमाज के बाद ऐलान करके लोगों को रोका जाए, एलान बस्ती का कोई भी बाअसर आदमी या इमाम साहब करें तो ज्यादा मुनासिब होगा, अगर वह हमको (मेहमान जमात ) को कहे तो हमारे साथी कर दें ।*    
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    *☞__गश्त के आदाब का बयान ,*

*❀_ फिर गश्त की अहमियत, ज़रूरत और कीमत बताई जाए इसके लिए आमादा किया जाए जो तैयार हो उनको अच्छी तरह याद आदाब समझाएं ।*

*❀_ अल्लाह का जिक्र करते हुए चलना है निगाहें नीची हो, हमारे तमाम मसाइल का ताल्लुक अल्लाह जल्लशानहू की जा़ते आली से हैं, इन बाजारों में फैली हुई चीजों से किसी मसले का ताल्लुक नहीं, चीजों पर निगाह ना पड़े ध्यान ना जाए, अगर निगाह पड़ जाए तो मिट्टी के ढेले मालूम हों ।*

*❀_ हमारा दिल अगर इन चीजों की तरफ फिर गया तो फिर हम जिनके पास जा रहे हैं उनका दिल इन चीजों से अल्लाह की तरफ कैसे फिरेगा । कब्र का दाखिला सामने हो इस ज़मीन के नीचे जाना है, मिलजुल कर चले ।*

*❀_एक आदमी बात करें । कामयाब है वह बात करने वाला जो मुख्तसर बात करके आदमी को मस्जिद भेज दे :-*
*"_ भाई हम मुसलमान हैं हमने कलमा ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदूर रसूलुल्लाह पड़ा है हमारा यकीन है कि अल्लाह पालने वाले हैं नफा नुकसान इज्ज़त और जिल्लत अल्लाह के हाथ में है अगर हम अल्लाह के हुक्म पर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के तरीके पर जिंदगी गुजारेंगे तो अल्लाह राज़ी हो कर हमारी जिंदगी बना देंगे, हम सबकी जिंदगी अल्लाह जल्लशानहू के हुक्म के मुताबिक हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के तरीके पर आ जाए इसके लिए भाई मस्जिद में कुछ फिक्र की बात हो रही है _," नमाज पढ़ चुके हों तो भी उठा कर मस्जिद में भेज दें ।*

*❀_ (ज़रूरत हो तो आगे नमाज को भी उनवान बना लें )_ अल्लाह का सबसे बड़ा हुक्म नमाज है, नमाज़ पढ़ेंगे तो अल्लाह रोज़ी में बरकतें देगा, गुनाहों को खत्म फरमा देगा, दुआएं कुबूल फरमाएगा ( बशारतें सुनाई जाएं व'ईदे नहीं ) नमाज का वक्त जा रहा है मस्जिद में चलें ।*
*★_ अमीर की इता'त करनी है, वापसी में इस्तग्फार करते हुए आना है ।*      
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          *☞__. गश्त का तरीका ,*

*❀ _ गश्त के आदाब का मुजाकरा करने के बाद दुआ मांग कर चल दें, गस्त में 10 आदमी जाएं मस्जिद के करीब मकानात पर गश्त करें, मकानात ना हो तो बाजार में गश्त कर लें । जमात में ज्यादा आदमी ऐसे हों जो गश्त में उसूलों की पाबंदी कर ले ।*

*❀_ मस्जिदे में दो तीन आदमी छोड़ दें, नए आदमी ज्यादा हो जाए तो उनको भी समझा कर मस्जिद में मशगूल कर दें।*

*❀_मस्जिद में एक साथी अल्लाह जल्लशानहू की तरफ मुतवज्जह होकर जिक्र व दुआ में मशगूल रहे, एक आने वाले का इस्तकबाल करें, जरूरत हो तो वजू करवा कर नमाज पढ़वा दे और एक साथी आने वालों को नमाज तक मशगूल रखें अपनी जिंदगी का मकसद समझाएं।*

*❀_पोन घंटे गस्त हो नमाज से 7- 8 मिनट पहले गश्त खत्म कर दें, सब तकबीर अवला के साथ नमाज में शरीक हों।* 
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         *☞_ मुतालबा और तशकील ,*

 *❀_ मुतालबा और तशकील के वक्त मेहनत सारी दावत का मगज़ बनती है, अगर मुतालबा पर जमकर मेहनत ना होगी तो फिर काम की बातें रह जाएंगी और क़ुरबानी वजूद में ना आएगी, तो काम की जान निकल जाएगी,*

 *❀_ दावत देने वाला ही मुतालबा करे, एक साथी खड़े होकर नाम लिखे , नाम लिखने वाला मुस्तकिल तकरीर शुरू ना करें (यह अक्सर देखने में आता है कि नाम लिखने वाला साथी भी अपनी बात शुरू कर देता है और 5-10 मिनट ले लेता है जिससे मजमे में बैठे हुए लोगों पर एक बौझ सा लगने लगता है बहुत से लोग उठ कर जाने भी लग जाते हैं) एक-दो जुमले तरगीबी कह सकते हैं लेकिन बात शुरू ना करें।*

 *❀_ फिर आपस में एक दूसरे को आमादा करने को कहा जाए, फ़िक्र के साथ अपने करीब बैठने वालों को तैयार करें, उज्र का दिल जोई और तरगीब के साथ हल बताएं, नबियों और सहाबा किराम की कुर्बानियों के क़िस्सो की तरफ इशारा करें और फिर आमादा करें।*

 *❀_ आखिर में मक़ामी जमात बनाकर उनके हफ्ते के दो गस्त, रोजाना तालीम तस्बीहात महीने की तीन दिन वगैरह नजम तैय कराएं ।*      
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         *☞__ दावत का अंदाज ,*

 *❀_ दावत में अंबिया अलेहिस्सलाम और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम के साथ अल्लाह जल्लशानहू ने जो मददे फरमाई हैं वह तो बयान की जाए और जो हमारे साथ मददे फरमाई उनको बयान ना किया जाए , दावत में फिज़ा ए हाज़रा ( जो आज आम हो रहा है या मौजूदा पस्ती ) की बातें ना की जाए,*

 *❀★_ उम्मत में जो ईमानी अमल, अखलाक़ी कमजोरियां आ चुकी है उनके तज़्किरे करने से बेहतर है कि असली खूबियों की तरफ यानी जो बात ( एक मुसलमान के अंदर ) पैदा होनी चाहिए उसकी तरफ तरफ मुतवज्जह करें ।*       
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         *☞__तालीम का अमल,*

 *❀_ तालीम में ध्यान अजमत मोहब्बत अदब और तवज्जो के साथ बैठने की मश्क़ की जाए, सहारा ना लगाया जाए यानी टेक लगाकर ना बैठे ।*

 *❀_ बा -वज़ु बैठने की कोशिश हो, तबीयत के बहाने की वजह से तालीम के दौरान ना उठा जाए, बातें ना की जाएं ।*

 *❀_ अगर इस तरह बैठेंगे तो फरिश्ते मजलिस को ढांक लेंगे, अहले मजलिस में इता'त का माद्दा पैदा होगा, अजमत की मश्क़ से हदीसे पाक का वह नूर दिल में आएगा जिस पर अमल की हिदायत मिलती है ।*

 *❀__ तालीम में बैठते ही आदाब व मक़सद की तरह की तरफ मुतवज्जह किया जाए, मक़सद यह है कि हमारे अंदर दीन की तलब पैदा हो जाए ।*

 *❀_ फजाईले कुरान मजीद पढ़कर थोड़ी देर कलाम पाक के उन सूरतों की तजवीद की मश्क़ की जाए जो अमूमन नमाज़ में पढ़ी जाती है, अत्ताहियात, दुआ ए कुनूत वगैरा का मुजाकरा व तसीह इज्तिमाई तालीम में ना हो इन्फिरादि सीखने सिखाने में तसीह करें ।*

 *❀__ अल्लाह पाक तौफीक दे तो हर किताब में से तीन चार सफे पढ़े जाए, तालीम में अपनी तरफ से तकरीर ना हो, हदीस शरीफ पढ़ने के बाद दो-तीन जुमले ऐसे कह दिये जाए कि उस अमल का जज्बा व शौक उभर आए ।*

 *❀__ हजरत शेखुल हदीस मौलाना मोहम्मद जकरिया रहमतुल्लाह की तालीफ फरमूदा फजाईले कुरान मजीद, फजाईले नमाज़, फजाईले तबलीग, फजाईले जिक्र, फजाईले सदक़ात, हिस्सा अव्वल, दोम , फज़ाईले रमजान फजाईले हज ( अय्यामें रमजान व हज में ) और मौलाना अहताहमुल हसन साहब कांधलवी रहमतुल्लाह की "मुसलमानों की मौजूदा पस्ती का वाहिद इलाज ," सिर्फ ये किताबें हैं जिनको इज्तिमाई तालीम में पढ़ना और सुनना है और तन्हाई में बैठ कर भी इसको पढ़ना है।*

 *❀__ किताब के बाद 6 नंबरों का मुज़ाकरा हो, साथियों से नंबर बयान कराएं जाएं ।*

 *❀__जब तालीम शुरू की जाए तो अपने में से दो साथियों को तालीम के गश्त के लिए भेज दिया जाए, 15-20 मिनट बाद वह साथी आ जाएं तो दूसरे दो साथी चले जाएं, इस तरह बस्ती वालों को तालीम में शरीक करने की कोशिश होती रहे ।*

 *❀__ बाहर निकलने के जमाने में रोजाना सुबह और बाद ज़ुहर दोनों वक्त तालीम दो-तीन घंटे की जाए और अपने मुकाम पर रोजाना उसी तरफ से 1 घंटे तालीम हो या इब्तदा में जितनी देर अहबाब जुड़ सकें ।*      
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                    *☞__मशवरा _,*

 *❀_ काम के तक़ाज़ों को सोचने, उसकी तरतीब क़ायम करने, उन तक़ाज़ों को पूरा करने की शक्ले बनाने में और जो अहबाब औका़त फारिग करें उनकी मुनासिब तस्कील में और जो मुनासिब मसाइल हो उनके लिए अहबाब को मशवरे में जोड़ा जाए,*

*❀_अल्लाह जलशानुहू के ध्यान और फिक्र के साथ दुआएं मांग कर मशवरे में बैठा जाए ।*

*❀_ मशवरे में अपनी राय पर इसरार और अमल करवाने का जज़्बा ना हो इससे अल्लाह की मदद हट जाती है, जब राय तलब की जाए अमानत समझ कर जो बात अपने दिल में हो कह दी जाए ,*

 *❀_ राय रखने में नरमी हो, किसी साथी की राय से तक़ाबुल का तर्ज़ ना हो, मेरी राय में नफ्स के शुरूर शामिल है यह दिल के अंदर ख्याल हो, अगर फैसला किसी दूसरी राय पर हो जाए तो इसकी खुशी हो कि मेरे शूरूर से हिफाज़त हो गई और अगर अपनी राय पर फैसला हो जाए तो खौफ और ज़्यादा दुआएं मांगी जाए,*

*❀_ हमारे यहां फैसले की बुनियाद कसरते राय पर नहीं है और मामले में हर एक से राय लेना भी ज़रूरी नहीं है, दिल जोई सब की ज़रूरी है ।*

*❀_ अमीर को इस बात का यक़ीन हो कि इन अहबाब की फिक्र और मिल बैठकर बैठने की बरकत से अल्लाह जलशानुहू सही बात खोल देंगे, अमीर अपने आप को मशवरे का मोहताज समझे, राय लेने के बाद गौरो फिक्र से जो मुनासिब समझ में आता है वह कह दे, बात इस तरह रखे कि किसी की राय का इसतखफाफ ना हो अगर तबीयत मुखालिफ हो तो इस बात पर शौक़ और रगबत के साथ आमादा कर ले और साथी अमीर की बात पर ऐसे शौक़ से चलें कि उन्हीं की राय तैय पाई है, इसी में तरबियत है ।*

*❀_ अगर इसके बाद अमलन ऐसी शक्ल नज़र आए कि हमारी राय ही ज़्यादा मुनासिब थी फिर भी हरगिज़ ताना ना दिया जाए यह इशारा भी ना किया जाए, इसी में खैर है (जो फैसला हो चुका उस पर जमने में ही खैर है )जो अमीर को ताना दे उसके लिए सख्त व'ईद आई है ,      
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             *☞__हफ्तेवारी इज्तिमा ,*

 *❀_ जब मोहल्लों की मस्जिदों में हफ्तों के दो गश्त के जरिए हर घर के आदमी तीन चिल्लों के लिए निकलने की आवाज़ लग रही होगी, तालीम और तस्बिहात पर अहबाब जुड़ रहे होंगे, हर मस्जिद से 3 दिन की जमात निकलने की कोशिशें हो रही होंगी तो शबे जुमा का इज्तिमा सही नहज़ पर होगा और काम के बढ़ने की सूरते बनेगी ।*

 *❀_ जुमेरात को असर के वक्त से मोहल्लों की मस्जिदों के अहबू अपनी अपनी जमातों की सूरतों में बिस्तर और खाना साथ लेकर इज्तिमा की जगह (मरकज़) पहुंचे ।*

 *❀_ मशवरे से ऐसे अहबाब से दावत (उमूमी बात) दिलवाई जाए जो मेहनत के मैदान में हो और जिनकी तबीयत पर काम के तक़ाज़े गालिब हों,*

 *❀_ बहुत ही फिक्र के साथ तशकील की जाए, अगर औकात वसूल ना हो तो रात को भी मेहनत की जाए, रो-रोकर मांगा जाए, सुबह को जमातो की तशकील कर के हिदायत देकर रवाना किया जाए ,*

 *❀_ तीन दिन की मोहल्लों से तैयार होकर आई हुई जमातो को अमूमन सात आठ मील तक भेजी गए , हर शबे ज़ुमा से 3 चिल्लो की जमातों को निकालने का रूख पढ़ना चाहिए,*

 *❀_ अगर शबे जुमा में खुदा ना खास्ता सब तक़ाज़े पूरे ना हो सके तू सारे हफते अपने मोहल्लों में फिर इसके लिए कोशिश की जाएं और आइंदा शबे जुमा में मोहल्लों से तक़ाज़ों के लिए लोगों को तैयार करके लाया जाए।*    
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*☞_काम की नजाकत और उसका इलाज _,*

 *❀_ भाई दोस्तों ! यह काम बहुत नाजुक है, हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने एक मेहनत फरमाई, उस मेहनत से सारे इंसानों की सारी जिंदगी के कमाने खाने ब्याह शादी मेल मुलाकात और इबादात मामलात वगैरह के तरीकों में तब्दीलियां आएं, तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने खुद इस मेहनत के कितने तरीके बताएं होंगे ?*

 *❀_ हमे अभी काम करना नहीं आता और ना अभी हक़ीक़ी काम शुरू हुआ है, काम उस दिन शुरू होगा जब ईमान व यक़ीन, अल्लाह की मुहब्बत ,अल्लाह का ध्यान, आखिरत का खौफ व खशियत , जुहद व तक़वा से भरे हुए लोग हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के आली अखलाक़ से मुज़य्यन हो कर अल्लाह की रज़ा के जज़्बे से मख़मूर हो कर अल्लाह की राह में जान देने के शौक से खिंचे खिंचे फिरेंगे,*

 *❀_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- अल्लाह रहम करें खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु पर , उनके दिल की तमन्ना सिर्फ यह थी कि हक़ और हक वाले चमक जाएं और बातिल और बातिल वाले मिट जाएं और कोई तमन्ना ही नहीं थी _,"*

 *❀_ अभी जो हमे काम की बरकतें करते नजर आ रही है वो काम शुरू होने से पहले की बरकतें है, जैसे हुजूर सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की विलादत के वक्त से ही बरकतों का ज़हूर शुरू हुआ था लेकिन असल काम और असल बरकतें ४० साल बाद शुरू हुई,*

 *❀_ अभी तो इसके लिए मेहनत हो रही है कि काम करने वाले तैयार हो जाएं, अल्लाह जल्लशानहू काम उनसे लेंगे और हिदायत फैलने का ज़रिया उनको बनाएंगे, जिनकी जिंदगी अपनी दावत के मुताबिक बदलेगी,*
*"_ जिनकी जिंदगियों में तब्दीली ना आएंगी अल्लाह जलशानुहू उनसे अपने दीन का काम नहीं लेंगे यह अंबिया अलैहिस्सलाम वाला काम है,*
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         *☞__उसूल और सोहबत _,*

 *❀_ इस काम में अगर अपने आपको उसूल सीखने का मोहताज ना समझा गया और उसूलों के मुताबिक काम ना हुआ तो सख्त फितनों का खतरा है,*

 *❀_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जब बाहर मुल्को में काम शुरू करने का इरादा फरमाया तो पहले तमाम सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को 3 दिन तक तरगीब दी और फिर फरमाया, जिस तर्ज़ पर यहां काम हुआ है बिल्कुल उसी तर्ज पर बाहर जा कर करना है , इस काम की नोइयत यही है,*

 *❀_ मुक़ाम , ज़ुबान, माशरत, मौसम वगैरा के इस काम के उसूल नहीं बदलते, इस काम की नहज और उसूलों को सीखने और उन पर क़ायम रहने के लिए इस फिज़ा में आना और बार-बार आते रहना इंतेहाई जरूरी है।_ जहां हजरत रहमतुल्लाहि अलैहि ने जान खपाई थी ,*

 *❀_और उनके साथ इख्तलात भी बहुत जरूरी है, जो इस जद्दो जहद में हजरत रहमतुल्लाहि अलैहि के साथ थे और जब से अब तक इस फिज़ा ( दावत) में और काम में मुसलसल लगे हुए हैं, उसके बगैर काम का अपने नहज़ पर और उसूलों पर क़ायम रहना बाज़ाहिर मुमकिन नहीं है।*

 *❀_ इसलिए दावत का काम करने वाले अहबाब को ऐसी फिज़ा में अहतमाम से नोबत बा नोबत भेजते रहें ।*    
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         *☞_ नक्शों के बजाय मुजाहिदा _,*

 *❀_ तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम अपने अपने ज़माने में किसी ना किसी नक्शे के मुकाबले पर आए और बताया कि कामयाबी का इस नक्शे से बिल्कुल ताल्लुक नहीं है, कामयाबी का ताल्लुक बराहे रास्त अल्लाह जल्लशानहू की जा़ते आली से है ।*

 *❀_ अगर अमल ठीक होंगे, अल्लाह जल्लशानहू छोटे नक्शे में भी कामयाब कर देंगे और अमल खराब होंगे अल्लाह जल्लशानहू बड़े से बड़े नक्शें को तोड़कर नाकाम करके दिखाएंगे,*

 *❀_ कामयाब होने के लिए उस नक्शे में अमल ठीक करो, हर नबी ने अपने राइजुल वक्त नक्शे के मुकाबले मेहनत की और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तमाम अक्सरियत हुकूमत माल ज़रा'अत और सना'अत के नक्शों के मुकाबले पर तशरीफ लाए,*

 *❀__ आपकी मेहनत उन नक्शों से नहीं चली, आपकी मेहनत मुजाहिदों और कुर्बानियों से चली है, बातिल ऐश के नक्शों से फैलता है और हक़ तकलीफे उठाने से फैलता है, बातिल मुल्को माल से चमकता है तो हक़ फक़्र व गुरबत की मशक्कतों में चमकता है,*

 *❀_ हमें इस काम के जरिए उम्मत में मुजाहिदा और कुर्बानी की इस्तेदाद पैदा करनी है, इस काम के लिए बहुत बड़ा खतरा यह है कि उसको नक्शों के ताबे कर दिया जाए, इससे काम की जान निकल जाएगी, इस काम की हिफाज़त इसमे है कि काम करने वाले इस काम के लिए तमाम मयस्सर नक़्शो को भी कुर्बान करते हुए मुजाहिदे वाली शक़्लों को क़ायम रखें और किसी सूरत में मुजाहिदे वाली शक़्लों को खत्म ना होने दें,*

 *❀__ गरीबों में अपनी मेहनत को बढ़ाया जाए पैदल जमाते चलाई जाएं, लोग आएंगे कि हमारा पैसा दीन के काम में खर्च कर लीजिए, फिर नक़्शो की कुर्बानी देनी होगी कह दीजिए कि जनाब इस काम में खर्च करने का सही तरीका व जज़बा सिखाया जाता है फिर खर्च का महल तलाश करके खुद ही खर्च कर दीजिएगा यहां तो तरीका सीख लीजिए,*

 *❀_"_ इस काम की तालीम के लिए रिवाज़ी तरीक़ो अखबार इश्तेहार प्रेस वगैरा और रिवाज़ी अल्फाज़ से भी पूरा परहेज़ की जरूरत है, यह काम सारा गैर रिवाज़ी है, रिवाजी़ तरीकों से रिवाज़ को तक़वियत पहुंचेगी इस काम को नहीं, इस काम की शक्लें दावत गश्त तालीम तशकील वगैरह है, मशवरे की जरूरत हो तो मुनासिब साथियों को अलग करके मशवरा कर लिया जाए ऐसा ना हो कि मशवरा करने वालों का किसी मौके पर उमूमी आमाल से जोड़ ना रहे ।*        
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*☞_ कॉलेज के तलबा ( स्टूडेंट) में दावत का काम_,*

 *❀_कॉलेज के तलबा में इस काम को उठाया जाए,_ हॉस्टलों में मक़ामी काम के लिए जमाते बनाई जाएं, एक गश्त हॉस्टल वाले अपने हॉस्टल में करें और हफ्ते का दूसरा गश्त बाहर किसी मोहल्ले में या दूसरे हॉस्टल में करें ,*

 *❀_ क़रीब के मोहल्ले की जमाते भी हॉस्टलों में जाकर गश्त करें,*

 *❀_ हॉस्टल वाले अहबाब अपनी रोज़ाना तालीम और महीने के 3 दिन की तरतीब भी उठाएं,*     
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      *☞_ मस्तूरात में काम की नोइयत _,*

 *❀_ मस्तूरात में काम की नज़ाकते और भी ज्यादा है, जबकि बेपर्दगी का अहतमाल हो ,*

 *❀_ आम इज्तिमात में मस्तूरात को बिल्कुल ना लाया जाए, अपने अपने मोहल्ले में किसी पर्देदार मकान में करीब करीब के मकानात से औरतें किसी रोज़ जमा होकर तालीम कर लिया करें ।*

 *❀"_ इसकी इब्तदा इस तरह करें कि जो मर्द इज्तिमात, दावत, तालीम वगैरह में सुन कर जाएं, अपने घरवालों को सुनाएं , इससे इंशाल्लाह थोड़े अरसे में ज़हन बनना शुरू हो जाएगा ।*

 *❀_फिर मोहल्ले में तालीम शुरू होने के बाद ऐसा हो सकता है कि सारे शहर की मस्तुरात का हफ्ते में एक ऐसी जगह इज्तिमा हो जहां पर्दे का अहतमाम हो, वहां तालीम के बाद फिर कोई आदमी पर्दे के साथ बयान करें, कभी-कभी एक यौम तीन यौम के लिए कुर्बो जवार के लिए जमाते बनाई जाएं ।*

 *❀_ मस्तूरात की जमात के साथ उनके खाविंद हो, वरना हर औरत के साथ उसका शरई महरम साथ हो, पर्दे के साथ जाए, पर्देदार मकान में ठहरे, मर्द मस्जिद में ठहर कर काम करें ।*       
         ❦━━━━━━❀━━━━━❦ 
                  *☞_ आखिरी बात_,*

*❀_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम है जिन मका़मात से मेहनत उठाई थी उन्हीं मक़ामात के लोगों को इस मेहनत पर उठाने और उन्हें इन्हीं रास्तों से अल्लाह की राह की मुल्कों वाली नक़ल हरकत के जिंदा होने का जरिया यह उमरे का सफर बन सकता है ,*

 *❀_ हर जगह के पुराने काम करने वालों के इख्तिलात और इस काम में यकजहती पैदा होने और उसूलों के तफ्सील से सामने आने का यह बेहतरीन मौका है,*

 *❀_ यह खत कुछ उसूल लिखने की वजह से तवील हो गया, आप हजरात इसके हर जुज़ और हर लफ्ज़ को गौर से पढ़ने की कोशिश फरमाइएगा तो इंशाल्लाह बहुत ज्यादा नफे की तवक़को है ।*

 *❀_ आप हजरात अपने यहां के हालात से हर पंद्रहवें रोज़ इत्तेला फरमा दिया करें तो हमें तक़वियत होती रहे,*

 *❀_ तमाम अहबाब को सलाम मसनून ,फक़त वस्सलाम- बंदा मोहम्मद यूसुफ ।*

*💤 एक अहम मकतूब- हज़रत जी मौलाना मुहम्मद यूसुफ कांधलवी रहमतुल्लाह (तालीफ) मौलाना सैयद मुहम्मद सानी हसनी रहमतुल्लाह)* 
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💕 *ʀєαd,ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd*💕 
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