Gharelu Jhagdo Se Nijaat- Miya'n Bivi Ke Jhagde (Hindi)

🎍﷽ 🎍
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*●• घरेलू झगड़ों से निजात •●*
*●• (मियां बीवी के झगडे़) •●*
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*⊙⇨ मियां बीवी का ताल्लुक़ घर की बुनियाद है:-*

*★_ हमारे घरों से, माहौल और मुआशरे से यह लड़ाई झगड़े कैसे खत्म हों, इन लड़ाई झगड़ों में एक बड़ा रोल मियां बीवी के लड़ाई झगड़ों का होता है। मियां बीवी दोनों मिल कर एक घर बनते हैं, अगर उनके आपस के दर्मियान भी लड़ाई झगड़े शुरू हो जाएं तो गोया यह घर के बे आबाद होने की निशानी होती है। मियां बीवी का ताल्लुक़ कोई कच्चा धागा नहीं है एक गहरा रिश्ता है, अल्लाह तआला फरमाते हैं: (और उन्होंने तुमसे पक्का अहद लिया है) इसलिये कुरआन मजीद ने बीवी को करवट की साथी कहा है। यह जिंदगी भर का साथ होता है।*

*★_ मियां और बीवी दोनों को समझदारी से काम लेना चाहिये और मुहब्बत व प्यार की ज़िंदगी गुज़ार कर शैतान को इसमें दखल अंदाज़ी का मौका ही नहीं देना चाहिये। ईंटें जुड़ती हैं तो मकान बन जाते हैं, दिल जुड़ते हैं तो घर आबाद हो जाते हैं। यह ज़िम्मेदारी खाविंद की भी होती है और बीवी की भी होती है कि दोनों एक दूसरे के साथ मुहब्बत और प्यार से काम लें।*

*★_ यह उसूल याद रखें! जहां मुहब्बत मोटी होती है वहां ऐब पतले होते हैं और जहां मुहब्बत पतली होती है वहां ऐब मोटे होते हैं। इसलिये शरीअत ने निकाह के बाद मुहब्बत को अज्र और सवाब का ज़रीआ बताया है। चुनांचे मियां बीवी आपस में जितनी मुहब्बत करेंगे, जितना प्यार करेंगे उतना ही अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उनसे राज़ी होंगे। एक हदीसे मुबारका में आया है कि "जब बीवी अपने खाविंद को देखकर मुस्कुराती है और खाविंद अपनी बीवी को देखकर मुस्कुराता है तो अल्लाह रब्बल इज्जत इन दोनों को देखकर मुस्कराते हैं_,"*
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*⊙⇨शादी का मक़सद:-*

*★_इरशादे बारी तआला है:- अल्लाह तआला की निशानियों में से यह है कि उसने तुम में से तुम्हारे लिये जोड़ा बनाया, ताकि तुम उनसे सुकून हासिल कर सको। और तुम्हारे दर्मियान मुवद्दत व रहमत रख दी। बेशक इसमें निशानियां हैं अक़्ल वालों के लिये। (सूरह रूमः 21)*

*★_ तो मालूम हुआ कि शादी का मक़सद यह है कि सुकून हासिल हो। और जहां आप देखें कि मियां बीवी की जिंदगी में सुकून नहीं हर वक़्त का झगड़ा और चीख चीख है, हर वक़्त जली कटी बातें एक दूसरे को करते रहते हैं। बहस मुबाहिसा में उलझे रहते हैं, समझ लें कि कहीं न कहीं दाल में काला है। बीवी की तरफ से कोताही है या मियां की तरफ से कोताही है और आम तौर पर हमारा तजुर्बा यही है कि दोनों तरफ से कोताही होती है।*

*★_ एक उसूली बात याद रखें! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मजीद में शादी का मक़सद बताया لتسكنوا اليها "ताकि तुम अपनी बीवी से सुकून पाओ"। जो भी अपने खाविंद के लिये सुकून का सबब बनेगी वह अपने घर में हंसी खुशी जिंदगी गुज़ारेगी। और जो खाविंद की परेशानी का सबब बनेगी वह खुद भी परेशानी उठाएगी।इसलिये कि घर बसाना औरत के इख़्तियार में होता है।*

*★_ हमारे बड़े कहा करते थेः कि मर्द अगर कस्सी लेकर घर को गिराना चाहे तो वह नहीं गिरा सकता औरत सूई लेकर घर को गिराने लगे तो मर्द से पहले गिरा लिया करती है। इसलिये औरत को घर वाली कहा जाता है घर का बसाना औरत के ऊपर मुंहसिर है।* 
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*⊙⇨खाविंद से मुहब्बत का रिशता मज़बूत करें:-*

*★_ याद रखिये! खूबसूरत, तालीम याफ्ता और मालदार बीवी को भी खाविंद के दिल की मलिका बनने के लिये समझदारी से काम करना पड़ता है। लिहाज़ा ज़िंदगी के इस सफर में एक दूसरे के साथ मुहब्बत का रिश्ता मज़बूत करें ! बीवी को चाहिये कि वह खाविंद को यक़ीन दिहानी करवाए, सिर्फ मुहब्बत का इज़हार ज़रूरी नहीं, उसको महसूस भी करवाएं कि वाक़ई बीवी मुझसे मुहब्बत करती है। खाविंद के सामने सर्दमहरी दिखाना झगड़े की बुनियाद होता है। शैतान भी कितना मक्कार है कि जब बीवी खाविंद के पास होती है तो उस पर अजीब शर्म व हया तारी कर देता है और जब महफिल में बैठी होती है तो फिर उनके सामने खिलखिला कर हंस रही होती है।*

*★_ तो यह ज़हन में रखें कि शरीअत ने जहां मुहब्बत के इज़हार करने के लिये कहा वहां मुहब्बत का इज़हार करना भी सवाब होता है। कई जगहों पर हमने झगड़ों की बुनियाद ही यह देखी। खाविंद प्यार भी करता है और मुहब्बत का इज़हार भी करता है और बीवी अपने अंदर दिल दिल में खुश भी है लेकिन इज़हार ऐसे करती है कि जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, इज़हार ऐसे करती है कि जैसे मुझे उसकी कोई ज़रूरत ही नहीं। यह इतना बड़ा ब्लंडर है कि इससे बड़ा ब्लंडर औरत अपनी जिंदगी में नहीं कर सकती।*

*★_ मुहब्बत का जवाब हमेशा मुहब्बत से देना चाहिये। जब खाविंद चाहता है कि बीवी मुहब्बत का इज़हार करे तो बीवी के लिये तो यह सुनहरी मौका है। ऐसी बात कहे, ऐसे अलफाज़ से कहे कि खाविंद का दिल बाग़ बाग़ हो जाए।*

*★_आप ज़रा सोचिये ! कि उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आइशा रज़ि० नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपनी मुहब्बत का बरमला इज़हार फरमाती थीं। चुनांचे बातचीत के दौरान एक मर्तबा नबी अलैहिस्सलाम ने फरमायाः "आइशा ! आप मुझे मक्खन और खजूर को मिलाकर खाने से भी ज़्यादा मरगूब हो"।आइशा सिद्दीका (रज़ि०) मुस्कुराई और फौरन जवाब में कहाः "ऐ अल्लाह के प्यारे हबीब सल्ल० ! आप मुझे मक्खन और शहद को मिलाकर खाने से भी ज़्यादा मरगूब हैं"। नबी अलैहिस्सलाम मुस्कुरा पड़े और 'फरमायाः "आइशा तेरा जवाब बहुत बेहतर है"।*

*★_ अब देखिये ! खाविंद ने जो बात कही, बीवी ने एक क़दम आगे बढ़कर बात की। खाविंद से मुहब्बत का इज़हार नहीं करेंगी तो किसके साथ करेंगी? इंसान की फितरत है कि जब वह किसी से मुहब्बत करता है तो मुहब्बत इज़हार चाहती है। याद रखिये ! इश्क और मुश्क छुपे नहीं रह सकते हमेशा, इज़हार मांगते हैं। जहां भी होंगे यह अपने आपको ज़ाहिर किये बगैर नहीं रहेंगे। इसी तरह बीवी जब खाविंद से मुहब्बत करती है तो यह सोचना कि अगर मैं मुहब्बत का इज़हार कर दूंगी तो खाविंद की नज़र में गिर जाऊंगी यह बात बहुत बड़ी गलती है।*

*★_ कैसे मुमकिन है कि एक बंदा अपने कौ़ल से और फेअल से मुहब्बत का इज़हार कर रहा हो और दूसरे बंदे की नज़र में उसकी कद्र कम हो रही हो? हां! जब खाविंद चाहता है कि बीवी मुहब्बत का इज़हार करे और बीवी ऐसे बन कर रहे कि जैसे वह तो बिल्कुल ठंडे बर्फ वाले दिल की मानिंद है, यह औरत अपना घर बरबाद करने की खुद कोशिश कर रही है।*
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*⊙⇨सय्यदा आयशा रजि० का इज़हारे मुहब्बतः-*

*★_ सय्यदना आयशा रजि० ने नबी अलैहिस्सलाम की मुहब्बत में अशआर बनाए और यह उनके शेअर बड़े मशहूर हैं कि जब नबी अलैहिस्सलाम इशा के बाद सहाबा की मजलिस से फारिग होकर घर तशरीफ लाते थे तो आयशा सिद्दीका रज़ि० फरमाती हैं कि नबी अलैहिस्सलाम मुस्कुराते चेहरे के साथ आते थे, सलाम करते थे उस वक़्त आयशा सिद्दीका रजि० नबी अलैहिस्सलाम को यह शेअर सुनातीं थी क्या शेअर सुनातीं थीं। फरमाती थीं-(तर्जुमा)*
*"_ ऐ आसमान एक तेरा भी सूरज है और एक हमारा भी सूरज है। और मेरा सूरज आसमान के सूरज से बहुत बेहतर है, इसलिये कि आसमान का सूरज तो फज्र के बाद तुलूअ होता है और मेरा सूरज तो मेरे घर में इशा के बाद तुलूअ होता है।*

*★_ अब सोचिये कि बीवी अगर इन अलफाज़ से खाविंद का इस्तक़बाल करे तो खाविंद के दिल में किस कद्र बीवी की मुहब्बत आएगी! कोई है आप में से ऐसी बीवी कि जिसने कभी खाविंद की मुहब्बत में ऐसे अशआर कहे हों या कोई फिकरा ही ऐसा बोल दिया हो। औरत यह समझ लेती है कि बस खाविंद की ही जिम्मेदारी है कि वह इजहार करे और अपने आपको समझती है कि मैं जितना इज़हार नहीं करूंगी इतनी बड़ी महबूबा बनूंगी यह बहुत बड़ी ग़लतफहमी है। ताली दो हाथ से बजती है चाहिये कि मुहब्बत का अच्छे अंदाज़ से इज़हार किया जाए, अमल से भी, कौल से भी, फेअल से भी।*

*★_ चुनांचे जब खाविंद मुहब्बत का इज़हार करे तो बीवी भी जवाब में मुहब्बत का इज़हार ज़रूर करे, ऐसे अलफाज़ से कि खाविंद का दिल मुतमइन हो जाए कि मेरी बीवी मुझे ही चाहती है। बीवी को ऐसे ज़िंदगी गुज़ारनी चाहिये कि खाविंद को यकी़न दिहानी कराए कि आप ही से मुहब्बत करती हूं।* 
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*⊙⇨ अपनी खुशी पर खाविंद की खुशी को तर्जीह देः-*
*★_दूसरी आम तौर पर ग़लती यह कि अपनी खुशी पर खाविंद की खुशी को तर्जीह देना। इसको यह फिक्र लगी रहे कि खाविंद का दिल उससे खुश रहे। यह नहीं कि बस हर वक़्त मुझे ही खुश रहना है। खाविंद की खुशी का ख़्याल रखे। उसका दिल खुश होगा तो घर की ज़िम्मेदारियों को भी कबूल करेगा, उसकी तवज्जोह का इतलाक़ बाहर की बजाए अपना घर बन जाएगा।क्यों? इसलिये कि यह समझता होगा कि घर जाकर मुझे सुकून मिलेगा।*

*★_ खाविंद की मर्जी के खिलाफ कोई काम न करे, कई दफा देखा कि खाविंद एक बात से मना करता है, बीवी सुनी अनसुनी कर देती है और फिर वही काम करती है। जब मना करने के बावजूद फिर वही काम किया जाए तो यह चीज़ झगड़े का सबब बनती है। और झगड़ा न भी हो तो दिल में मैल आने का सबब ज़रूर बन जाती है।*

*★_खाविंद कोई काम कहते तो जिम्मादारी से करो ! एक तीसरी बात कि अगर खाविंद कोई काम ज़िम्मे लगाए उसे इस तरह करो कि खाविंद बेफिक्र हो जाए। यह नहीं जो काम उसने ज़िम्मे लगाया उसको तो किया नहीं और दूसरे कामों में लगी रही। मिसाल के तौर पर खाविंद ने सुबह दफ़्तर जाना होता है, उस वक़्त खाविंद के कपड़े तैयार हों, उसका खाना तैयार हो, यह बीवी की ज़िम्मेदारी है। अब खाविंद के दफ्तर का वक़्त हो गया और बीवी ने अभी कपड़े ही नहीं निकाले। क्यों नहीं निकाले ? जी मैं सोकर ही देर से उठी हूं, तो यह चीज़ उलझन का सबब बनेगी। अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करें कि मझे इस मौक़ा पर क्या करना है। सोने का, जागने का कुछ उसूल होना चाहिये।*

*★_ कुछ औकात ऐसे होते हैं कि औरत को अपने हाथ से काम करना पड़ता है। खाविंद के लिये यह समझ लेना कि खुद ही कपड़े निकाल लेगा और तैयार होकर दफ़्तर में चला जाएगा और उस वक़्त मेरी नींद में खलल नहीं आना चाहिये, यह इंतिहाई बेवकूफों वाली बात है। यह ज़िंदगी की साथी है। इसे अपनी ख़िदमत के ज़रीए खाविंद का दिल जीतना चाहिये। चुनांचे अगर खाविंद कोई भी काम ज़िम्मे लगाए तो उसे अपना फर्ज़े मंसबी समझें,,
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*⊙⇨ फरमाइश करते हुए मर्द की गुंजाइश को देखना चाहियेः-*

*★_ यह भी देखा गया है कि बसा औकात औरत मर्द की गुंजाइश से बड़ी फरमाइश कर देती है। तो फरमाइश करते हुए खाविंद की गुंजाइश को भी देखा करो! अब अगर खाविंद खरीद ही सकता और आपने ज़िद्द करके अगर कपड़े खरीद भी लिये तो पहन कर खाविंद को आप खुश कैसे कर सकती हैं? उसका दिल अगर दुखी होगा तो आप नए कपड़े लेकर उसकी मुहब्बत में कोई इज़ाफा नहीं करेंगी। तो यह उसूल की बात याद रखें कि फरमाइश हमेशा गुंजाइश के मुताबिक होनी चाहिये।*

*★_खाविंद की अता पर शुक्रिया अदा करें, आपकी फरमाइश को अगर खाविंद पूरा कर दे तो आप उसका शुक्रिया भी अदा करें। यह भी देखा गया कि खाविंद बीवी की हर जाइज़ ज़रूरत को पूरा करते हैं और जवाब में बीवी की ज़बान से शुक्रिया का लफ़्ज़ ही नहीं निकलता। क्यों नहीं निकलता? अल्लाह जाने। यह वह बड़ी बड़ी गलतियां हैं जो ज़ाहिर में छोटी नज़र आती हैं मगर दिलों में फर्क डाल देती हैं।*

*★_ खाविंद तोहफा लाया फल खरीद कर लाया, खास तौर पर कोई चीज़ अपनी बीवी के लिये लाया और बीवी उसकी तरफ कोई तवज्जोह ही न दे, ऐसे समझे कि हां ठीक है आ गई है कोई बात नहीं। तो इस तरह अगर बेपरवाही का इज़हार करेंगी तो खाविंद के दिल पर इसकी चोट लगेगी। जब खाविंद तोहफा लाए तो आप उसको इसकी अहमियत का एहसास दिलाएं और खुशी का इज़हार करें ताकि अगली दफा इससे बेहतर तोहफा की मुस्तहिक बन सकें।* 
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*⊙⇨ खाविंद के आते ही घर का रोना धोना न लेकर बैठ जाएं:-*

*★_ यह भी ज़हन में रखें कि खाविंद जैसे ही घर में आए फौरन उसके सामने रोना धोना न लेकर बैठ जाए। पहले उससे बात चीत करके यह पूछे कि बाहर उसका वक़्त कैसे गुज़रा। वह खुश घर आया है या किसी बात की वजह से परेशान घर आया है। यह बात तो मालूम नहीं करतीं बस खाविंद को देखती हैं तो अपना रोना रोने बैठ जाती हैं।*

*★_ पहले आप उससे बात चीत करें, उससे पूछें, इसका अंदाज़ा लगाएं कि खाविंद बाहर से किस कैफियत के साथ आया है? कोई कारोबारी परेशानी, किसी आदमी ने किसी मुआमले में ज़हनी तौर पर परेशान तो नहीं कर दिया, उसको गुस्सा तो नहीं दिला दिया। खाविंद अगर बाहर ही से किसी परेशानी के आलम में आया है तो अब बीवी को चाहिये कि पहले उसके दिल को खुश करे, उससे मीठी मीठी प्यार वाली बातें करे, हंसी खुशी बातें करके, उसके मूड को नार्मल करे, फिर इसके बाद जो कहना है कहे।*

*★_ लेकिन खाविंद पर नज़र पड़ते ही शिकवे शिकायतें करने बैठ जाना, तुम्हारी अम्मी ने यह कह दिया, तुम्हारी बहन ने यह कर दिया, मैं तो इस घर में आकर परेशान हो गई, तुम मुझे किन मुसीबतों के पल्ले डाल कर चले गए? इस किस्म की बातें तो उसे और ज़्यादा परेशान करने वाली बात है। यह ज़हन में रखें मौका की बात सोने की डलियों की मानिंद होती है और बे मौका बात' झगड़े का सबब बन जाती है। अगर किसी वक़्त आप का खाविंद गुस्सा में है तो फिर उसके सामने बिल्कुल नर्म हो जाएं। इतनी नफ्सियात हर बीवी को समझनी चाहियें।* 
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*⊙⇨ जब खाविंद गुस्से में हो तो बीवी नर्म हो जाएः-*

*★_ रस्सी का एक सिरा अगर कोई ढीला छोड़ दे और दूसरा खींचे तो रस्सी भी कभी नहीं टूटती। रस्सी जभी टूटती है जब एक सिरा एक बंदा खींचता है और दूसरा सिरा दूसरा बंदा खींचना शुरू कर देता है। अब खाविंद किसी वक़्त गुस्सा में है और जवाब में बीवी साहिबा ने भी मूड बना लिया, यह तो मुहाज़े जंग खोलने वाली बात होगी ना!*

*★_ इसलिये अगर खाविंद गुस्सा में है तो आप नर्म हो जाएं और अगर खाविंद नाराज़ है तो आप उसको राज़ी करने की कोशिश करें। मुहब्बत के एक बोल से खाविंद राज़ी हो जाता है। रूठा हुआ खाविंद मुस्कुरा पड़ता है।*
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*⊙⇨समझदारी से काम लें:-*

*★_ फक़त यह बात कि मैं खूबसूरत हूं, काफी नहीं होती। खाविंद को खुश करने के लिये छलकते हुए, दमकते हुए हुस्न की जरूरत नहीं होती,समझदारी की ज़रूरत होती है। इसलिये कितनी ऐसी औरतें हैं जो शक्ल की नार्मल सी होती हैं मगर अपने खाविंद के दिल पर राज करती हैं। इसलिये बुजुर्गों ने मकूला बनाया-"वही सुहागन जिसे पिया चाहे", वही सुहागन होती है जिसे खाविंद पसंद करे।*

*★_ क्या अजीब बात है कि लड़की की शक़ल सिर्फ एक वलीमा के दिन लोग देखते हैं और बाक़ी सारी उम्र उसकी अक़्ल देखी जाती है। और लड़की को पसंद करते हुए बअज़ दफा सास साहिबा उसकी अक़्ल देखती ही नहीं, फक़त शक्ल पर ही लट्टू हो जाती हैं और कई दफा खाविंद साहब ही शक़ल पर लट्टू हो जाते हैं। मां बाप भी समझाते हैं कि नहीं तेरी शादी इसके साथ ठीक नहीं,*

*★_ नौजवान ज़िद्द कर लेते हैं कि नहीं मुझे तो इसके साथ ही शादी करनी है। इसलिये कि कहीं एक नज़र देखी और ज़ाहिर की शक़ल देखकर वह अच्छी लग गई। अब मां बाप को बहुत मजबूर करके वहां शादी करवाते हैं और जब वह घर आती है तो फिर इंसान को उस वक़्त उसकी हक़ीक़त का पता चलता है कि इतनी खूबसूरत शक्ल के अंदर अक़्ल की तो रत्ती भी नहीं थी।*

*★_ तो जब सारी ज़िंदगी अक़ल ने काम आना है फिर इसको क्यों नहीं देखते। इसलिये समझदारी, अक़लमंदी घर आबाद करने की बुनियादी वजह है।*
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*⊙⇨हुस्ने इंतिज़ाम और सलीका शआरी से काम लेंः-*

*★_ औरतं को चाहिये कि वह हुस्ने इंतिज़ाम के ज़रीए अपने घर को पुर वका़र बना दे।जितनी औरत अक़लमंद होगी उतनी ही वह अपने घर के अंदर हर चीज़ तरतीब से रखेगी। बेतरतीब चीजें फैला देना, घर को गंदा रखना, बच्चों को गंदा रखना, खुद भी गंदी बने रहना, इस चीज़ का घर बर्बाद करने में एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है।*

*★_ घर की सफाई के लिये कोई क़ीमत भी खर्च नहीं करनी पड़ती, हां वक़्त निकाल लें घर को भी साफ रखें, अपने आपको भी साफ रखें, अपने बच्चों को भी साफ सुथरा रखें। सफाई आधा ईमान है। जब शरीअत कह रही है कि "सफाई आधा ईमान है" तो हमें भी सफाई से मुहब्बत होनी चाहिये,*

*★_ दुनिया का कोई इंसान ऐसा नहीं जो कहे कि मुझे साफ सुथरा घर अच्छा नहीं लगता, मुझे साफ सुथरा बच्चा अच्छा नहीं लगता। यह कैसे मुमकिन है! अल्लाह तआला ने इंसान की फितरत ही ऐसी बनाई है कि साफ सुथरा माहौल, साफ सुथरे बच्चे, साफ सुथरी बीवी हमेशा उसके दिल को अपनी तरफ मुतवज्जेह करती है। और साफ सुथरा रहने के लिये कोई बहुत कीमती लिबास की भी ज़रूरत नहीं, एक आम क़ीमत का लिबास भी अगर औरत पहने लेकिन साफ सुथरा हो और उसकी बनावट अगर पुरकशिश हो तो वह खाविंद के दिल को अपनी तरफ मुतवज्जेह कर सकता है। इसको हुस्ने इंतेज़ाम कहते हैं।*

*★_ तो अपने हुस्ने इंतेज़ाम से अपने घर के माहौल को पुर वका़र बनाएं और किफायत शआरी दिखाएं।अगर हुस्ने इंतेज़ाम नहीं होगा तो बदनज़्मी से बेबरकती होती है, काम उलझते हैं, वक़्त ज़ाए होता है, चीजें खराब हो जाती हैं, नुक़सान भी ज़्यादा होता है। हर चीज़ को अपनी जगह पर रखना, वक़्त पर साफ कर देना यह अच्छी आदत होती है। तो औरत इसको अपनी ज़िम्मादारी समझे।*
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*⊙⇨खाविंद के साथ जिद्द बाजी न करेंः-*

*★_ यह भी ज़हन में रखिये कि ताबेअ फरमान औरतें बिल आखिर अपने खाविंद को अपना ताबेअ बना लेती हैं। वह औरतें जो खाविंद की मर्ज़ी को पूरा करने की कोशिश में लगी रहती हैं, एक वक्त ऐसा आता है कि खाविंद के दिल में उनके लिये इतनी मुहब्बत होती है कि फिर खाविंद उनकी हर मर्ज़ी को पूरा कर दिखाता है।*

*★_ फरमांबरदारी, खिदमत गुज़ारी, वह अच्छी सिफात हैं जिनकी वजह से औरत अपने खाविंद के दिल की मलिका बन सकती है। इसमें जो रुकावट बनती है वह अनानियत है, ज़िद्दबाज़ी है। सारी दुनिया से ज़िद्द कर लो ! इतना नुक़सान नहीं पहुंचेगा जितना खाविंद के साथ ज़िद्दबाज़ी का नुक़सान होता है।*

*★_ तो खाविंद के साथ ज़िद्द करके दंगल का एलान मत करें! अंजाम हमेशा उसका बुरा ही होता है। आजिज़ी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को भी पसंद है और आजिज़ी इंसान के मसाइल का हल भी है। कोई काम वक़्त पर न कर सकी, कोताही रह गई, कमी रह गई Sorry कर लेने में क्या रुकावट है? मुआफी मांग लेने में क्या रुकावट है? ग़लती को मान लेने में क्या रुकावट है? आगे से ज़िद्द कर लेना, अना का मसला बना लेना, झगड़ा कर बैठना, बहस कर बैठना यह चीज़ फिर इंसान के लिये परेशानियों का सबब बनती है।*
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*⊙⇨ गुस्से में आए खाविंद को दलील मत देंः -*

*★_ कभी भी गुस्से में आए हुए खाविंद के सामने दलील मत दें, कभी भी गुस्से में आए हुए खाविंद को तअना मत दें। यह तो आग के ऊपर तेल डालने वाली बात है बल्कि पेट्रोल डालने वाली बात है। शैतान मंर्दूद यही तो चाहता है कि खाविंद गुस्सा में पहले ही है, यह उसको और गुस्सा दिलाए और खाविंद ज़बान से तलाक का लफ्ज़ निकाले।*

*★_ तो यह ज़हन में रखें कि जब बिलफ़र्ज़ बिला वजह ही खाविंद नाराज़ हो गया तो गुस्सा की हालत में कभी उसके सामने दलील नहीं देनी, खामोशी इख़्तियार करनी है, अगर बोलना है तो नर्म बोल बोलना है, देखना है तो मुहब्बत से देखना है, ऐसा कि दूसरे बंदे का गुस्सा ही बिल्कुल खत्म हो जाए।*
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*⊙⇨पुरकशिश लिबास पहनेंः-*

*★_ लिबास पहनो तो पुरकशिश पहनो ! पुरकशिश का यह मतलब नही कि आधा जिस्म नंगा हो और आधा जिस्म ढांपा हो, शरीअत के दाइरे में रहते हुए औरत ऐसा लिबास पहने कि उसके जिस्म के ऊपर पुरकशिश लगे। बेढंगा लिबास पहनना, ऐसा लिबास कि जिसको देख कर बंदा ज़रा भी मुतवज्जेह न हो, यह भी अच्छी आदत नहीं।*

*★_ बअज़ नेक बीबियां सादगी के नाम पर अपने कपड़ों की तरफ से बिल्कुल ही बेध्यान बन जाती हैं, ऐसा नहीं करना चाहिये। खाविंद जब भी बीवी की तरफ देखता है, वह उसे पुरकशिश देखना चाहता है। और जब उसकी बीवी पुरकशिश नहीं होती तो साफ ज़ाहिर है कि उसे बाहर बहुत ज़्यादा पुरकशिश चीजें नज़र आ जाती हैं। जो गंदगी उसे बाहर मुतवज्जेह कर सकती है क्या वह अच्छाई बन कर उसे घर में मुतवज्जेह नहीं कर सकती ?*

*★_तो लिबास ऐसा बनाएं कि हमेश पुरकशिश हो। रस्म व रिवाज को सामने न रखें बल्कि उसको सामने रखें कि यह लिबास मेरे जिस्म को पुरकशिश दिखाए। मेरे जिस्म पर पहना हुआ खाविंद को पसंद आ जाए।* 
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*⊙⇨खाविंद से मुख्लिस और नेक नियत बनेंः-*

*★_ यह और बात है कि कुछ औरतें ऐसी होती हैं कि कपड़े पहनने से उनके हुस्न में इज़ाफ़ा नहीं होता बल्कि वह जो कपड़े पहन लेती हैं उनके कपड़ों के हुस्न में इज़ाफा हो जाता है, उनके चेहरों पर मअसूमियत होती है, उनके चेहरों पे तक़्वा का नूर होता है फिर उनका लिबास, जब वह पहन लेती हैं तो वह खुद ही खूबसूरत नज़र आने लग जाता है।*

*★_ तो औरत को चाहिये कि दिल की मअसूमिय्यत से अपने खाविंद का दिल जीत ले। यह दिल की मअसूमिय्यत हर खाविंद को अच्छी लगती है और जब खाविंद का दिल यह समझता है कि मेरी बीवी दिल से बहुत मअसूम है, इंतिहा दर्जे की मुख्लिस है तो इस बीवी को वो हमेशा अपनी आंख की पुतली बना के रखता है। झूटी औरत, कीना परवर औरत, धोका देने वाली, खाविंद को Miss guide (गुमराह) करने वाली औरत हमेशा अपना घर बर्बाद करवा बैठती है।*

*★_ खाविंद के साथ कभी झूट का मुआमला न बरतें। जिस बंदे के साथ कभी एक दो घंटे के लिये मुलाकात है उसके सामने तो झूट चल जाता है। और जिसके साथ चौबीस घंटे का वास्ता हो उसके साथ झूट नहीं चलता। एक नहीं तो दो, दो नहीं तो तीन दिन बाद कभी न कभी झूट खुल ही जाता है।*

*★_ और जब खाविंद को यह एहसास हो जाए कि बीवी मेरे सामने झूट बोलती है तो फिर बीवी का मक़ाम खाविंद की नज़र में गिर जाता है। इसलिये झूट बोलना, खाविंद के बारे में दिल में नफरत और कीना रखना, यह औरत की ग़लतियों में से एक बड़ी ग़लती होती है। बल्कि जितनी नेक नियत आप होंगी इसका असर आप के खाविंद के दिल पर पड़ेगा।* 
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*⊙⇨ बाहर घूमने फिरने की आदत न डालेंः-*

*★_ एक और बात जो झगड़े का बाइस बनती है वह बाहर घूमने की आदत है। आम तौर पर मर्द औरतों को घूमने की आदत डालते हैं। और कई मर्तबा यह आदत औरतों को मां बाप के घर से ही पड़ी होती है, बाहर घूमने की। यह बाहर घूमना अज़्दवाजी जिंदगी के लिये बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह है। इसकी क्या वजह?*

*★_ इसकी वजह यह है कि औरत जब बाहर निकलती है तो शैतान तांक झांक करने वालों को भी साथ लगा देता है। अब दो किस्म की मुसीबतें सामने आईं, बाहर के मर्द होंगे जो उस औरत की तांक झांक में लगेंगे और किसी को उसकी शक्ल अच्छी लग गई तो वह उसका अता पता करेगा उसको मैसेज करने की कोशिश करेगा और ख़्वाहमख्वाह उसका घर बर्बाद करेगा। और खाविंद की नज़र किसी गैर पर पड़ गई तो खाविंद अपनी बीवी की बजाए उसके साथ अटैच ज़्यादा हो जाएगा।*

*★_ तो मियां बीवी का यह सोचना कि आओ! घूमते फिरते हैं, यह फिरंगियों का तरीका है, हमने तो इसका अंजाम हमेशा बुरा ही देखा है। औरतें अगर अपने खाविंद के साथ बाहर जाना चाहती हैं तो किसी पार्क में जाना या किसी ऐसी जगह पर जाना जहां पर आम मज्मा न हो बिल्कुल ठीक है। मगर घर की बजाए......चलो ! पिज्ज़ा हट पर जाके खाना खा के आते है, अच्छा भई! आज हम जाकर फलां होटल पर खाना खाते हैं, यह जो मुसीबत है और ज़िंदगी की तरतीब है यह बहुत ही ज़्यादा इंसान के लिये नुकसानदेह है।*

*★_ या तो शैतान बीवी को किसी गुनाह में फंसाने में कामयाब हो जाता है, या खाविंद का किसी गुनाह में फंसाने में कामयाब हो जाता है। तो इसलिये पब्लिक मुक़ामात पर घूमने की आदत डालना यह आम तौर पर झगड़ों का सबब बनता है।*

*★_ याद रखें! अच्छी ज़िंदगी गुज़ारने के लिये अगर खाविंद को घर में ही चूल्हा गर्म मिल जाए और गर्म दिल मिल जाए, तो इसके सिवा उसको कोइ तीसरी चीज़ नहीं चाहिये होती। आप घर में ही उसको अच्छे खाने बना कर दे दें और घर में ही उसको अपने दिल की गर्मी का एहसास दिला दें कि आप कितनी मुहब्बत करती हैं। तो फिर खाविंद को बाहर घूमने की क्या ज़रूरत है।*
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*⊙⇨ खाविंद से मुलाक़ात में उज्र न करें:-*

*★_ यह भी देखा कि कई मर्तबा खाविंद चाहता है कि बीवी से मुलाकात करूं, मिलूं, और बीवी साहिबा के उज्र बहाने ही ख़त्म नहीं होते। यह चीज़ झगड़े का सबब बनती है। खाविंद गुस्से में हो तो उसको भी अक्लमंदी से डील करना चाहिये और खाविंद पर जब शहवत का भूत सवार हो तो उसके साथ भी अक्लमंदी का मुआमला करना चाहिये। जैसे भी हो, उसके इस नशे को उतारो !*

*★_ शरीअत ने तो यहां तक भी कहा कि और अगर ऊंट के ऊपर सवार है और खाविंद इशारा करे कि नीचे आओ! मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, तो वह ऊंट से नीचे उतरे, खाविंद की ज़रूरत को पूरा करे और फिर ऊंट पर दोबारा चढ़कर बैठे। शरीअत ने कितने खूबसूरत उसूल हमें बता दिये। और यहां तो मियां एक ही बिस्तर पर हैं और बीवी के बहाने नहीं ख़त्म होते।*
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*⊙⇨ खाविंद पर शक न करें:-*

*★_ एक और चीज़ जो झगड़े का सबब बनती है वह यह कि खाविंद कभी कभी काम की वजह से, दफ़्तर की वजह से, दीन के काम की वजह से या दोस्तों की वजह से घर देर से आता है, तो खाविंद के देर से आने पर यह शक दिल में रख लेना कि बाहर उसका किसी के साथ कोई ताल्लुक़ है, यह इंतिहाई नुक़सानदेह बात है। जब बीवी खाविंद को किसी ऐसे गुनाह का तअना दे जो उसने नहीं किया, तो इस पर खाविंद का तैश में आना एक मर्द होने के नाते हमेशा बहुत ज़्यादा होता है।*

*★_ क्या बीवी इलज़ाम बर्दाश्त कर सकती है कि खाविंद उसको कहे कि तुम्हारा किसी गैर के साथ ताल्लुक है, अगर बीवी इस बात को सुन कर फौरन भड़क जाती है कि तुमने यह बात कर कैसे दी? तो खाविंद का भी तो यही मुआमला है......अगर वह देर से आया तो देर से आने की तो सौ वुजूहात होती हैं। वह दोस्तों के साथ बैठ कर गप्पें मारता रहा, खाता पीता रहा, या दफ़्तर में देर लग गई, या किसी दीन के काम में मस्जिद में बैठा रहा, तो देर से आने की तो बहुत सी वुजूहात हो सकती हैं। हमेशा इससे एक ही नतीजा निकालना कि जी खाविंद देर से घर आता है, मुझे तो लगता है कि दाल में काला काला है।*

*★_ यह बदगुमानी मियां और बीवी के दर्मियान नफरतें पैदा करने का सबब बन जाती है। लिहाज़ा बगैर किसी ठोस शवाहिद के खाविंद के ऊपर बदगुमानी न करें। बस ज़्यादा मुहब्बत दें, ताकि उसको बाहर के बजाए अपने घर के अंदर मुहब्बत मिले। अगर घर में आप झगड़ा करने की आदी बन गईं, ज़िद्द करने की आदी बन गईं और सुब्ह अपने खाविंद का न नाश्ता तैयार किया, न कपड़े दिये, और खुद ही उठ कर उसने अपने कपड़े लिये और पहने और इसी तरह घर से भूका चला गया, तो ऐसा परेशान हाल खाविंद जब दफ्तर में जाएगा और वहां दफ़्तर में काम करने वाली कोई बेपर्दा लड़की उसको यह लफ़्ज़ कह दे कि "सर आज आप बड़े परेशान नज़र आते हैं" तो बस यह एक फ़िक़रा खाविंद को उसकी तरफ मुतवज्जेह करके रख देगा।*

*★_ आप उसको घर से परेशान मत भेजें। अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में फरमायाः ताकि खाविंद तुमसे सुकून पाए। जब आप ने बगैर सुकून के उसको घर से भेज दिया तो बुनियादी ग़लती तो आपने की।*
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*⊙⇨रुठे शौहर को मनाने की कोशिश करेंः-*

*★_ और अगर आप महसूस करें कि शौहर रूठा हुआ है तो उसको मनाने की कोशिश करें। कभी भी ऐसी सूरत नहीं होनी चाहिये कि इंसान एक दूसरे के साथ नाराज़गी की हालत में सो जाए। नहीं, जब तक एक दूसरे से मुआफी तलाफी न कर लें Sorry न कर लें, एक दूसरे से प्यार मुहब्बत न कर लें, कभी उस वक़्त तक मत सोएं।*

*★_ गुस्से की हालत में जब एक का चेहरा एक तरफ और दूसरे का दूसरी तरफ हो, तो समझ लें कि हमने ज़िंदगी के फासले तय करने के लिये मुख़्तलिफ सिम्तों को कुबूल कर लिया। ऐसी औरत जो नाराज़ शौहर की परवाह ही नहीं करती, वह शौहर की मौजूदगी के बावजूद बेवगी की ज़िंदगी गुज़ारने वाली औरत होती है। कई ऐसी भी तो औरतें होती हैं ना कि जो शौहर के होते हुए भी बेवा होती हैं।*

*★_ यह ऐसी ही औरतें होती हैं जिद्दी, ख़्वाह मख्वाह खाविंद के साथ झगड़ा कर लेना, यह चीज़ ज़िंदगी को मुश्किल में डाल देती है।*
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*⊙⇨खाविंद का दूसरों की नज़र में वकार बढ़ाएं:-*

*★_ और कभी कभी झगड़े का सबब यह बनता है कि खाविंद बुरा होता है मगर बीवी उसकी बुराई का ढिंढोरा पीटना शुरू कर देती है। मैयके भी फोन करके अपनी अम्मी को बता रही है कि किस मुसीबत में आपने मुझे डाल दिया। सहेलियों को भी फोन करके बता रही है कि मैं तो मुसीबत में पड़ गई। बच्चों के सामने भी बाप की बुराई कर रही है। उसके मुंह के सामने भी उसको बुरा कहती है। जब आप ने उसकी बुराई का इतना ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया तो आप उसकी नज़र में कहां से अच्छी रहीं? आपने भी तो साबित कर दिया कि बुराई में उसने कोई कमी नहीं छोड़ी।*

*★_ याद रखें! हमेशा अपने खाविंद की दूसरों के सामने इज़्ज़त बनाएं। खाविंद आपका दिल दुखाए, आपको परेशान कर दे, मगर फिर भी आपकी आदत ये हो, आप का ख़ल्क़ यह होना चाहिये कि दूसरों के सामने उसका अच्छा तज़किरा करें, इस तरह बात करें कि दूसरों की नज़र में खाविंद की इज़्ज़त और मकाम बढ़ जाए, यह घर आबाद करने के लिये इंतिहाई ज़रूरी होता है।* 
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*⊙⇨ खाविंद को फैसला कुन पोजीशन पर न ले जाएंः-*
*★_ एक और गलती जो आम तौर पर झगड़े का सबब बनती है कि बीवी अपने खाविंद को कभी कभी ऐसी पोज़ीशन पे लाकर खड़ा कर देती है कि जहां उसे एक को छोड़ना पड़ता है और दूसरे को रखना पड़ता है। कभी भी अपने खाविंद को ऐसी पोजीशन पे लाकर खड़ा मत करें, कि या वह आपको रखे या अपनी मां को रखे, या आपको रखे या अपनी बहन को रखे, क्यों इस पोज़ीशन पर आपने उसको लाकर खड़ा किया अब वह जिस तरफ भी वो कदम बढ़ाएगा फसाद ही फसाद है।*

*★_ तो ऐसी सूरते हाल पर बात को न लाएं। हमेशा खाविंद की ज़िम्मादारियों का ख़्याल करें अगर वह एक ही बेटा है तो अपनी मां को कहां भेजेगा? आपको उसकी मां के साथ ज़िंदगी गुज़ारने के लिये मुजाहिदा करना है। हां जब आप और आपके मियां बाहम मिल जाएंगे तो फिर बूढ़ी सास आप लोगों को परेशान नहीं कर सकेगी।* 
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*⊙⇨ गैर मर्द से तन्हाई में बात न करें:-*

*★_ एक और चीज़ जो झगड़े का सबब बनती हैः वह है किसी गैर मर्द के साथ तन्हाई में बात करना, या फोन पर बात करना। यह औरत की इतनी बड़ी ग़लती होती है कि इसका नतीजा हमेशा बर्बादी होती है।*

*★_ याद रखें! मर्द औरत की हर कोताही को बर्दाश्त कर सकता है, उसके किरदार की बुराई को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। तो गैर मर्द के साथ गुफ़्तगू करने से ऐसे घबराएं जैसे बच्चा किसी शेर को देखकर या बिल्ली को देखकर घबराया करता है। इस मुआमले में अपने किरदार को बेदाग़ रखें।*

*★_ जब मर्द के दिल में यह बात होती है कि मेरी बीवी पाकदामन है तो वह फिर उसकी कड़वी कसैली भी आराम से बर्दाश्त कर जाता है। आपने देखा नहीं है कि कितनी खूबसूरत लड़कियों को तलाकें हो जाती हैं, इनका सबब यही मुसीबत बनती है। किसी का फोन आ रहा है, किसी के मैसेज आ रहे हैं, किसी से बात हो रही है। खाविंद को ज़रा इसका पता चला तो बस यह चीज़ मियां बीवी के दरमियान फासले पैदा होने का सबब बन जाती है।*
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*⊙⇨ खाविंद की इजाज़त के बगैर घर से न निकलेंः-*

*★_ खाविंद की इजाज़त के बगैर कोई काम भी न किया करें और खाविंद की इजाज़त के बगैर घर से भी न निकला करें।हदीसे पाक में आता हैः -"जो बीवी अपने खाविंद की इजाज़त के बगैर घर से बाहर निकलती है जब तक लौट कर नहीं आती अल्लाह के फरिश्ते उस औरत के ऊपर लअनत बरसाते रहते हैं"।*

*★_ और एक हदीसे मुबारका में हैः "औरत का खाविंद अगर किसी जाइज़ बात पर नाराज़ हुआ और औरत उसकी परवाह नहीं करती, उसका ख़्याल ही नहीं करती, जब तक मर्द नाराज़ है, अल्लाह तआला उस औरत की नमाज़ों को भी कबूल नहीं फरमाते"। हदीसे पाक में गुलाम के बारे में भी यही आया है कि "अगर कोई गुलाम अपने घर से भाग जाए तो जब तक अपने मालिक के पास वापस न लौटे अल्लाह उसकी नमाज़ों को कबूल नहीं फरमाते।"*

*★_ हकीकते हाल को समझकर दीनी जिंदगी गुज़ारेंगी तो इंशा अल्लाह यह झगड़े ही ख़त्म हो जाएंगे। यह बातें तो वह थी कि आम तौर पर औरतों से जो कोताहियां हो जाती हैं, जिन पर मियां बीवी के दर्मियान झगड़े होते हैं। बिला इजाज़त काम करना या बगैर इजाज़त घर से बाहर निकलना बड़ी गलतियों में से एक ग़लती है _,*
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*⊙⇨ एक सहाबिया की बेमिसाल फरमांबरदारीः-*

*★_ अब एक हदीसे मुबारका पढ़ लीजिये! नबी सल्ल० के मुबारक ज़माने में एक मियां बीवी ऊपर की मंज़िल पर रहते थे और नीचे की मंज़िल पर बीवी के मां बाप रहते थे। खाविंद कहीं सफर पर गया और उसने बीवी को कह दिया कि तुम्हारे पास ज़रूरत की हर चीज़ है, तुमने नीचे नहीं उतरना। चुनांचे यह कहकर खाविंद चला गया।*

*★_ अल्लाह की शान देखें कि वालिद साहब बीमार हो गए। वह सहाबिया औरत समझती थी कि खाविंद की इजाज़त की शरीअत में कितनी अहमियत है। अब यह नहीं कि उसने सुना वालिद बीमार हैं तो वह नीचे आ गई, नहीं। उसने अपने खविंद की बात की कद्र की और नबी सल्ल० की खिदमत में पैग़ाम भिजवाया कि मेरे खाविंद ने मुझे घर से निकलते हुए मना कर दिया था (उससे राबता भी मुमकिन नहीं था उस ज़माने में कोई सेल फोन भी नहीं होते थे कि दोबारा पूछ लिया जाता) तो ऐ अल्लाह के नबी सल्ल० ! क्या अब मुझे नीचे जाना चाहिये? नबी सल्ल० ने फरमाया कि नहीं, आपके खाविंद ने चूंकि आप को मना कर दिया तो आप नीचे न आएं।*.

*★_ अब ज़रा गौर कीजिये, नबी सल्ल० खुद ही यह बात फरमा रहे हैं कि आप खाविंद की इजाज़त के बगैर नीचे मत आएं। चुनांचे वह नीचे नहीं आई। अल्लाह की शान कि उसके वालिद की तबीयत ज़्यादा खराब हो गई हत्ताकि वालिद की वफात हो गई। जब वालिद की वफात हो गई तो उस सहाबिया ने फिर पैग़ाम भिजवाया, ऐ अल्लाह के नबी सल्ल०! क्या मैं अपने बाप का चेहरा आखिरी मर्तबा देख सकती हूं, मेरे वालिद दुनिया से चले गए, मेरे लिये कितना बड़ा सदमा है। नबी सल्ल० ने फिर फरमायाः चूंकि तुम्हारे खाविंद ने तुम्हें रोक दिया था इसलिये तुम ऊपर ही रहो और अपने वालिद का चेहरा देखने के लिये नीचे आना ज़रूरी नहीं। वह सहाबिया ऊपर ही रही।*

*★_ सोचिए उसके दिल पर क्या गुज़री होगी, कितना सदमा उसके दिल पे हुआ होगा! उसके वालिद का जनाज़ा पढ़ाया गया, उसको दफन कर दिया गया। नबी सल्ल० ने उस बेटी की तरफ पैग़ाम पहुंचाया, कि "अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तुम्हारा अपने खाविंद का लिहाज़ करने की वजह से तुम्हारे बाप के सब गुनाहों को मुआफ फरमा दिया"।* 
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*⊙⇨ खुलासा कलामः-*

*★_ अब इआदा सबक के तौर पर हम अब तक की गई सारी बातों का निचोड़ फिर बयान कर देते हैं, ताकि बीवी को अपनी ज़िम्मादारियां अच्छी तरह याद हो जाएं। औरत को चाहिये कि वह घर में ज़िंदा दिल बन कर रहे। जब शौहर आए तो खंदा पेशानी से उसका इस्तिकबाल करे, उसका दिल बाग़ बाग़ हो जाए। खाने के वक़्त दस्तरख़्वान पर अपने शौहर से दिलचस्प बातें करें। जब ज़हन में बेफिक्री होती है तो दाल में भी कोरमा का मज़ा आता है, तो बीवी अपनी शीरीं ज़बानी से अपने खाविंद के ग़म को खत्म कर दे। उसके जितने भी काम हों उनको अपने हाथों से करे और उसको अपने लिये सआदत समझे। खाविंद की खुशी को अपनी खुशी, खाविंद के ग़म को अपना ग़म समझे। ख़र्च अखराजात के मआमले में किफायत शिआरी से काम ले।*

*★_ बुरे वक़्त के लिये हमेशा कुछ न कुछ रकम अलग रखने की कोशिश करे। अगर कभी खाविंद को कोई ज़रूरत हो तो उस वक़्त वह रकम उसको पेश कर सकती है और उसके दिल में अपने लिये जगह बना सकती है। वैसे भी इस जमा शुदा रकम में से कभी खाविंद के कपड़े सी कर दे दिये, सिलवा कर दे दिये, कभी घड़ी तोहफा लेकर दे दी। हदीस पाक में आया है हदिया दो मुहब्बत बढ़ेगी। यह हमेशा खाविंद की ही ज़िम्मादारी नहीं होती कि वो हदिया दे, खाविंद की इस जमा शुदा रकम में से कभी बीवी भी उसे कोई पर्सनल चीज़ लेकर दे दे तो खाविंद की खुशी में इज़ाफा होगा।*

*★_ यह उसूल याद रखें कि पहले खाविंद को खिलाएं फिर खुद खाएं, पहले खाविंद को पिलाएं फिर खुद पियें। जिस काम में खाविंद की दिलचस्पी न हो उसे बिल्कुल ही छोड़ दें। ऐसी कभी भी नौबत न आने दें कि तुम मुंह उधर कर लो हम इधर मुंह कर लेंगे। मुहब्बत के मैदान में बाज़ी को हार कर ही इंसान जीतता है। कभी भी शौहर के साथ बद एतिमादी और बेइत्मीनानी का इज़हार न करें। जो औरत अपना दिल भी संवारती है, अपना जिस्म भी संवारती है वह हमेशा अपने खाविंद की पसंदीदा बनती है। उसके लिये छलकते हुए हुस्न की ज़रूरत नहीं होती समझदारी की ज़रूरत होती है।*

*★_ मर्द कभी भी ज़िद्दी औरत को पसंद नहीं करता। जब भी कोई ऐसी बात हो तो ज़िद्द खत्म करके हमेशा मर्द की बात को मान लिया करें। पाकदामनी वह सिफत है कि जिसकी वजह से औरत अपने खाविंद के दिल पर राज करती है। खाविंद के आराम का ख़्याल रखें उसको अपना दोस्त बनाएं और दूसरों की नज़र में उसकी इज़्ज़त बढ़ाएं। यह वह बातें थीं कि औरत अगर इन बातों का ख़्याल रखे तो घर का माहौल पुरसुकून रहता है। मियां बीवी के दर्मियान मुहब्बत बढ़ती रहती है। मियां बीवी दो इंसान हैं जिन्होंने मिल कर जिंदगी गुज़ारनी होती है तो कभी बीवी की गलती से झगड़ा तो कभी खाविंद की गलती से झगड़ा। उम्मीद है कि औरतें इन गलतियों से अपने आपको बचाएंगी और खुशी के माहौल में जिंदगी गुज़ारेंगी। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तमाम ख़्वातीन को अज़्दवाजी ज़िंदगी में खुशियां नसीब फरमाए।*
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*⊙⇨ बेहतरीन शख़्स कौन?*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः- तुम में से सबसे बेहतर वह है जो तुम में से अहले खाना (घर वालों) के लिये बेहतर है।*
*"_ चुनांचे मर्द की अच्छाई का मेअयार उसका बिज़नेस नहीं, उसका दफ़्तर नहीं, उसके दोस्तों की महफिल नहीं। मर्द की अच्छाई को परखने के लिये मेअयार उसका अपनी बीवी से ताल्लुक़ है। अगर उसने उनको खुश रखा, और उनके ग़म ख़त्म कर दिये, और उनको पुर सुकून ज़िंदगी देने की कोशिश की तो यक़ीनन यह अच्छा इंसान है।*

*★_ नबी अलैहिस्सलाम इसकी तसदीक़ फरमा रहे हैं। और नबी अलैहिस्सलाम ने यह भी फरमाया- मैं तुम सब में से अपने अहले खाना के लिये ज़्यादा बेहतर हूं। गोया प्रेक्टिकल (अमली) मिसाल भी नबी अलैहिस्सलाम ने दी।*
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*⊙⇨खाविंद के अंदर तहम्मुल और बर्दाश्त होनी चाहियेः-*

*★_ औरत को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द की पसली में से बनाया। इसका मतलब यह कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने न तो सर में से बनाया कि उसको सर पर बिठा के रखो, न उसको पांव से बनाया कि उसको पांव के नीचे रखो। अल्लाह रब्बुल इज्जत इज़्ज़त ने उसे पसली से बनाया कि यह तुम्हारे दिल के करीब है तुम इसको हमेशा अपने दिल के क़रीब रखो।*

*★_ इसलिये खाविंद को मुतहम्मल मिज़ाज होना चाहिये क्योंकि वह घर का ज़िम्मेदार है। ज़रा सी बात पर गुस्से में आ जाना, हर वक़्त गुस्से की ज़बान बोलना, हर वक़्त लहजा बदल कर बीवी से बात कहना, यह बेवकूफ मर्दों का काम होता है। यह कोई मर्दानगी नहीं होती। घर के अंदर सौ छोटी मोटी बातें हो जाती हैं, ऐसी बातों को नज़र अंदाज़ कर जाना चाहिये, दरगुज़र से काम लेना चाहिए।*

*★_ छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना लेना यह कभी भी अक़लमंदी की बात नहीं होती, मर्द कितना बुरा लगता है कि छोटी सी बात से नाराज होकर बैठ जाए, इसलिए कहने वाले ने कहा है कि ज़्यादा बड़ा शो दिखाने के लिये दिल भी बड़ा करना पड़ता है। शादी के बाद तो खाविंद को अपना दिल बहुत बड़ा कर लेना चाहिये।*

*★_ अंग्रेज़ी का एक मकूला है कि "High winds blow on high mountains" (ऊंचे पहाड़ों के ऊपर आंधियां भी ज़्यादा तेज़ चला करती हैं) ज़िंदगी में ऊंच नीच तो होती हैः कभी मां की तरफ से शिकवे, कभी बहन की तरफ से शिकवे, कभी बीवी की तरफ से शिकवे, अब यह ज़िम्मादारी आदमी की बनती है कि उन्हें अच्छे तरीक़े से निभाए।* 
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*⊙⇨ बीवी को मां के रहम व करम पर न छोड़ेंः-*

*★_ कई खाविंदों को देखा कि वह अपनी बीवी को मां के रहम व करम पर छोड़ कर खुद एक तरफ हो जाते हैं, इंतिहाई गैर ज़िम्मादाराना बात है। हमेशा अपनी पोज़ीशन का ख्याल रखना चाहिये। अगर महसूस कर रहे हों कि बीवी की गलती है तो उसको प्यार से समझाओ, अगर समझ रहे हों कि अम्मी ज़रूरत से ज़्यादा इस वक़्त उस पर सख़्ती कर रही हैं तो बड़े अदब के साथ अम्मी की खिदमत में गुज़ारिश करो, अपनी बीवी की वकालत करते हुए ज़रा भी न शर्माओ, इसलिये कि छोटी छोटी चीजें ही बाद में बड़ी बना करती हैं।*

*★_ तो बीवी की हिफाज़त करना खाविंद की ज़िम्मेदारी होती है। अब इसको यूं कहना कि भई मुझे नहीं पता बस तुम उन्हें खुश करो। तो बीवी कोशिश तो करेगी कि मेरे खाविंद की वालिदा है मैं खुश करूं, मगर हमने कई मर्तबा देखा कि सास बड़ी घाग और तजुर्बाकार होती है। ऊंच नीच जानती है, वह ऐसे अपनी इनिंग्ज़ खेलती है कि उस लड़की को नॉक आउट करके रख देती है।*

*★_ तो इसमें खाविंद की ज़िम्मेदारी है कि वह अपनी पोज़ीशन का ख़्याल रखे और अगर देखता है कि अम्मी ज़रूरत से ज़्यादा सख़्ती कर रही है या अम्मी ने उसको मुश्किल में डाल दिया है तो उनकी बातों को फिर खुद ब्लाक करे।*
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*⊙⇨ बीवी के लिये मकान का बंदोबस्त करेंः-*

*★_ जब मर्द यह देखे कि मुशतर्का तौर रहने से बीवी के हुकूक का तहफ्फुज़ नहीं हो रहा। तो फिर अलग मकान हासिल करने की कोशिश करे। इसलिये कि शरीअत ने कहा है कि मर्द की ज़िम्मेदारी है कि अपनी बीवी को अलग मकान या कोई कमरा लेकर दे जिस में वह कोई सुख का सांस ले सके। बीवी को सर छुपाने के लिये जगह लेकर देना शरअन खाविंद की ज़िम्मेदारी है।*

*★_ हमारे हज़रत रह० फरमाया करते थे कि अल्लाह तआला खाविंद को ज़रा भी गुंजाइश दे तो उसको अपनी जिंदगी में सबसे पहले मकान खरीदना चाहिये। बल्कि यहां तक फरमाते थे कि जिसका मकान नहीं उसका ईमान ही नहीं।*
*"_ तो एक दिन इस आजिज़ ने अर्ज किया कि हज़रत ! यह इतनी बड़ी बात जो आप फरमाते हैं इसका बेक ग्राऊंड क्या है?हज़रत ने फरमाया, देखो! अगर किसी खाविंद ने अपना घर नहीं खरीदा और उसकी बीवी किराए के मकान में रह रही है। अल्लाह न करे कि खाविंद की वफात हो जाए, कोई एक्सीडेंट हो जाए, तो किराए वाले तो उस औरत को वहां नहीं रहने देंगे, वह कहां से किराया देगी? तो जब वह उसका सामान उसके घर से निकालेंगे तो यह औरत परेशनी के आलम में कुफ्रिया बोल बोलेगी। उसका ईमान ही खतरे में हो जाएगा।*

*★_ तो इसलिये फरमाते थे कि खाविंद की ज़िम्मेदारी है कि औरत को सबसे पहले सर छुपाने की कोई जगह दे ताकि उसमें वह अपनी जिंदगी गुज़ार सके।*
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*⊙⇨बीवी का दिल जीतने की कोशिश करेंः-*

*★_ याद रखें! जितना मुहब्बत व प्यार से मियां बीवी रहते हैं उतना ही अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उनसे खुश होते हैं। किसी ने कहाः ईंटें जुड़ती हैं तो मकान बन जाते हैं, जब दिल जुड़ते हैं तो घर आबाद हो जाते हैं,*

*★_ लिहाज़ा बीवी के साथ खुश अख़्लाकी से रहना, खाविंद की ज़िम्मेदारी होती है। और खुश अख़्लाकी इसको नहीं कहते कि छोटी छोटी बातों पर इंसान डांट डपट करता फिरे, गुस्से होता फिरे, तेवरियां चढ़ाता फिरे, बोलना छोड़ दे, यह चीजें मियां बीवी के दर्मियान होना इंतिहाई बुरा होता है।*

*★_ याद रखें! जो खाविंद प्यार के ज़रीए अपनी बीवी का दिल न जीत सका वह तलावार के ज़रीए भी बीवी का दिल नहीं जीत सकता। यह समझना कि मैं डांट डपट से सब सीधा कर दूंगा, यह हरगिज़ नहीं होता। हमने देखा है कि डांट डपट से उल्टा काम बिगड़ जाता है। बीवी सहम जाएगी, चुप हो जाएगी, लेकिन जब बीवी भी अपने खाविंद के खिलाफ गोरिल्ला जंग लड़ना शुरू कर देगी तो क्या फाएदा? इसालिये मुहब्बत व प्यार ही अज़्दवाजी ज़िंदगी के लिये बेहतरीन अमल है।*
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*⊙⇨मुस्कुराने की सुन्नत को अपनाएंः-*

*★_ नबी अलैहिस्सलाम की आदते मुबारका थी कि जब भी घर कोई चीज़ लाते थे, मुस्कुराते हुए आते थे और अपने अहले खाना को सलाम किया करते थे। मुस्कुराते हुए आना और घर वालों को सलाम करना, यह अच्छे माहौल की इब्तिदा है। जब खाविंद मुस्कुराता हुआ आएगा तो यक़ीनन बीवी भी मुस्कुराएगी, अब दोनों मुहब्बत व प्यार से रहेंगे। मुस्कुराहट ने मुस्कुराहटें फैला दीं,*

*★_एक मर्तबा मेरे पास एक मियां बीवी का मुआमला आया। शादी को तीन साल हो चुके थे, दोनों लिखे पढ़े अच्छी फैमली के बच्चे थे, दोनों बैअत थे और दोनों नेक भी थे। वह कहने लगे कि जी हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमारा गुज़ारा नहीं हो सकता। क्यों नहीं हो सकता? कहने लगे इसलिये कि बस हमारी तबीअतें नहीं मिलतीं। हम आपस में हर वक़्त बहस करते रहते हैं। कोई दिन ज़िंदगी का ऐसा नहीं कि हमारी आपस में बहस न हुई हो। हम तंग आ चुके हैं और हमने बड़े ठंडे दिल व दिमाग़ से सोचा है कि अभी तो उम्र दोनों की ऐसी हैं कि कोई न कोई दूसरी सूरत भी बन जाएगी तो क्यों हम अपनी जिंदगियां बर्बाद करें? हम अपने मां बाप को बताना चाहते थे इससे पहले हमने आपको बताना मुनासिब समझा, चूंकि आप हमारी तरबियत के ज़िम्मेदार हैं। मैंने उनसे चंद मिनट बात की और कुरैदा कि मसला क्या है?*

*★_दरअसल उन दिनों उनके काम और कारोबार की पोज़ीशन अच्छी नहीं थी। खाविंद के एक दो मुआमलात फंस गए थे, कुछ अदाईगियां रुक गई थीं और वह बहुत टेन्शन में था। इसलिये जब दफ़्तर से घर आता था तो बहुत संजीदा होता था। बीवी खाना पका के घंटे दो घंटे से भूखी बैठी है कि खाविंद आएगा, मैं मिल के खाना खाऊंगी। जब वह खाविंद का चेहरा देखती कि इतना सीरियस ! तो नतीजा यह निकालती कि शायद मैं अपने खाविंद को पसंद ही नहीं हूं और जब वह यह सोचती कि मैं अपने मियां को पसंद ही नहीं तो उसे गुस्सा आता। चूंकि वह खूबसूरत भी थी, नेक भी थी, तालीम याफ्ता भी थी, अच्छे घराने की थी। वह सोचती थी कि मेरे अंदर क्या कमी है कि यह खाविंद मेरी तरफ प्यार से नहीं देखता ? चुनांचे बीवी पीछे हट जाती, खाविंद वैसे सीरियस होता और दोनों के दर्मियान एक दूसरे के साथ फिर खूब बहस मुबाहिसा होने लगता।*

*★_ मैंने उनसे कहा कि देखें! आप लोग अपना यह फैसला छः महीने के लिये रोक लें और मैं आप लोगों को एक काम ज़िम्मा लगाता हूं, आपने वह काम करने हैं। फिर छः महीने के बाद आप सोचना कि हम आपस में इकट्ठे रह सकते हैं या नहीं रह सकते। उन्होंने कहाः ठीक है। चुनांचे मैंने खाविंद को कहाः जब आपने घर आना है तो नबी अलैहिस्सलाम की सुन्नत पर भी अमल करना है कि मुस्कुराते चेहरे के साथ आओ और सलाम करो ! तुमने इस सुन्नत को छोड़ा तो इसकी बेबरकती से तुम्हारे घर से खुशियां रूठ गई। बिज़नेस नहीं चल रहा। जब आओ तो (वह बेचारी घंटे दो घंटे से इंतेज़ार में है) चेहरे के ऊपर खुशी हो, खिला हुआ चेहरा हो। इंसान के मुहब्बत से अअसाब छलक रहे हों तो। वैसे तो बड़ी सुन्नतों का ख़्याल करते हो तो इस सुन्नत का ख्याल क्यों नहीं करते?*

*★_ जब उस नौजवान को यह बात समझाई तो वह कहने लगाः जी मैं इस सुन्नत पर ज़रूर अमल करूंगा। फिर मैंने बीवी को कहाः अब आप ने भी एक अमल करना है कि जब खाविंद आए तो आपने हमेशा दरवाज़े पर खाविंद का इस्तक़बाल करना है और खाविंद को मुस्कुरा कर देखना है, उसने कहाः ठीक है।*

*★_ मैंने कहा कि यह बात तो थी जो मैंने आपको सुन्नत के मुताबिक बताई। अब इस सूरते हाल में (जब आप लोगों की तबीअतें इतनी एक दूसरे से दूर हो चुकी हैं)। खाविंद को एक अमल और बताता हूं, आप जब भी घर आएं तो मियां बीवी ही तो घर में रहते हैं और तो कोई नहीं तो मुस्कुराते चेहरे के साथ आएंगे और जब घर में आएंगे तो आप अपनी बीवी को मुस्कुरा के देखकर उसका बोसा लेंगे। अब यह लफ़्ज़ सुनकर खाविंद बड़ा हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगा। मैंने कहाः तुम्हारी अपनी ही बीवी है, हैरान क्यों हो रहे हो? तुम्हें नफिलों का इतना सवाब नहीं मिलना जितना इस बोसे पर मिलना है। वह कहने लगाः जी मैं इंशा अल्लाह इस पर अमल करूंगा।*

*★_ तीन महीने के बाद दोनों ने हंसते मुस्कुराते फोन किया। कहने लगेः हमें तो यूं लगा है कि हमने यह तीन महीने हनीमून की तरह गुज़ारे हैं। इसलिये कि जब खाविंद घर मुस्कुराता हुआ आता था और बीवी को Kiss करता (बोसा लेता) था और बीवी भी मुस्कुराती थी तो फिर सारे घर में मुस्कुराहटें ही आ जाती थी बहस व तकरार ख़त्म ही हो जाते थे। तो कई दफा एक छोटा सा अमल उजड़ते हुए घर के आबाद करने का सबब बन जाता है।*
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*⊙⇨शौहर की नर्मी से बीवी की इस्लाहः-*

*★_ मेरे पास एक नौजवान आया। इंतिहाई नेक, तहज्जुद गुज़ार, मुत्तकी, परहेज़गार उसको बैअत हुए एक साल हुआ था मगर अल्लाह ने उसकी तबीअत में नेकी रख दी और वह खूब तक्वा की ज़िंदगी गुज़ार रहा था। आया तो बड़े गुस्सा में था। पूछा खैर तो है? कहने लगाः बस क्या करूं बीवी ऐसी है कि दीन की तरफ आने को बिल्कुल तैयार ही नहीं। न टीवी छोड़ती है, न यह छोड़ती है, न वह छोड़ती है, पर्दे का ख़्याल नहीं करती, सलाम नहीं करती, उल्टा मैं दीन की बात करूं तो आगे से उल्टी बात कर देती है। मैं तंग आ चुका हूं, बस हज़रत आप मुझे बताएं कि मैं क्या करूं?*

*★_ असल में अब वह मुझसे इजाज़त लेना चाहता था कि या तो मैं बीवी की पिटाई करूं या फिर बीवी को मैके भेज दूं। मैंने उससे बात की और उससे कहाः अच्छा बताओ तुम्हारी शादी कैसे हुई? पता चला कि यह साहब भी एक साल पहले वैसे ही थे। और दोनों की आपस में "लव मैरिज" थी और दोनों का एक साल तक अफेयर (मुआशिका) चलता रहा। पसंद की शादी थी, तो मैंने उसे समझाया कि देखो! दोनों का बेक ग्राऊंड (पसमंज़र) एक ही जैसा था। फर्क यह कि आपको नेक महफिल मिली तो आप यक दम बदल गए। बीवी को न यह बयानात मिले, न यह सोहबतें मिलीं, न यह खैर की बात सुनने का मौका मिला, तो बीवी कैसे इतना जल्दी बदल जाएगी! वह तो टाइम लेगी तो क्यों इतना परेशान होते हो?*

*★_ कहने लगाः बस मैं क्या करूं बहुत ही बे दीन है, वह बहुत ही ज़्यादा फासिका है। वह बार बार यही बात कहे। मैंने कहाः अच्छा मैं आपके ज़िम्मे एक काम लगाता हूं। मैंने कहाः अच्छा यह बताएं कि कभी खाना खाते हुए आपने अपनी बीवी के मुंह में लुकमा डाला? कहने लगा नहीं। मैंने कहाः क्यों! क्या यह सुन्नत नहीं है? कहने लगाः अच्छा सुन्नत है? मैंने कहाः हां बिल्कुल जाओ और खाना खाते हुए मिठाई का डब्बा अगर दस्तरख़्वान पर पड़ा हो तो उसमें से एक गुलाब जामुन उठाकर उसके मुंह में डाल देना। अब उसकी सांस जैसे रुकी हुई है और मेरी तरफ देख रहा है, क्योंकि उसकी तबीअत में तो सख़्ती थी, वह तो पिटाई के मूड में आया था, जाओ जाकर इस पर अमल करो ! जी हज़रत।*.

*★_ फिर मैंने उसकी खूब अच्छी तरह खबर ली और उसको समझाया कि दीनदार लोगों की बेजा तबीअत की सख़्ती अपनी बीवियों के बेदीन बनाने का बड़ा सबब होती है। यह कहां के अख़्लाक हैं! जो तुम समझते हो। बड़े तुम इकामते दीन की कोशिशें करते फिरते हो, जाओ! प्यारे से रहो, और कल मुझे आकर बताना कि मुंह में लुकमा डाला। कहने लगाः ठीक है।*

*★_ अगले दिन आया, अब चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कुराहट थी। पूछा कि क्या हुआ कहने लगा कि हज़रत ! दस्तरख़्वान लगा, पहले तो मैं खाना ही अलग खा लेता था, मैं पास बैठा, खाना खाने लगा। खाने के दौरान मैंने गुलाब जामुन उठाया और बीवी के मुंह की तरफ जो किया तो बीवी हैरान। मैंने उससे कहा कि मैं आपके मुंह में गुलाब जामुन रखना चाहता हूं। कहने लगा खैर उसने ले लिया, लेकिन यक्दम उसकी हालत बदल गई। वह मुझे कहने लगीः यह तुमने कहां से सीखा? तो मैंने कहा कि मुझे आज पता चला कि यह सुन्नत है वह कहने लगीः अच्छा ! सुन्नत इतनी अच्छी होती है? चुनांचे उसने दीन की बातें खुद पूछनी शुरू कर दीं और दस्तरख़्वान से उठकर उसने उस वक़्त की जो नमाज़ थी, उसको खुद पढ़ा।*

*★_ जब खाविंद की इतनी सी मुहब्बत देने पर वह बच्ची दीन के क़रीब आ गई और चंद महीनों में वह शरई पर्दा करने वाली, तहज्जुद गुज़ार लड़की बन गई, तो खाविंद अगर मुहब्बत प्यार से रहे तो बीवी क्यों नहीं उसकी वजह से अपनी जिंदगी को बदलेगी? उमूमन दर्मियान में कोई न कोई मसला होता ह जो रुकावट बना होता है।*

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*⊙⇨ शरियत दिलों को जोड़ती है:-*

*★_ यह भी अकसर देखा है कि नेक और दीनदार लोगों के घरों में आपस में मुहब्बत व प्यार होता है। यह दीन दिलों को जोड़ता है अल्लाह तआला फरमाते हैं:-*
*"_ إِنَّ الَّذِينَ آمَنُو وَعَمِلُو الصَّلِحَتِ سَيَجْعَلُ لَهُمُ الرَّحْمَنُ وُدًّا_,*
*"कि जो लोग ईमान लाकर नेक आमाल करें अल्लाह उनके दिलों में मुहब्बतें भर देंगे।"*

*★_ इसलिये मैं नौजवान बच्चों को समझाता हूं कि अगर तुम पुरसुकून ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हो तो घरों में दीन का माहौल पैदा कर लो। दीनी माहौल की वजह से दिलों में मुहब्बतें पैदा हो जाएंगी। कई नौजवान आए, कहने लगेः जी क्या करें? हम मियां बीवी की बनती नहीं है। क्यों? बस जी हमारे दिल एक दूसरे से बहुत खट्टे हो गए। मैंने कहाः कि तुम दिलों की एलफी इस्तेमाल करो। एलफी चीज़ों को आपस में जोड़ देती है। इसी तरह एक एलफी दिलों को भी जोड़ देती हे और वह एलफी "शरीअत" है।*

*★_ तुम जाओ दीन वाली ज़िंदगी गुज़ारनी शुरू करो!अल्लाह तआला मियां बीवी के दिलों को इसी तरह जोड़ देंगे जैसे एलफी दो चीज़ों को एक दूसरे से जोड़ देती है। और वाक़ई जो मुहब्बतें, जो प्यार दीनदार जोड़े आपस में करते हैं, फिस्क व फुजूर में ज़िंदगी गुज़ारने वालों को इसका पता ही नहीं है। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि बअज़ दीनदार नौजवानों में तबीअत की सख्ती आ जाती है।ऐसा अजीब हाल होता है कि बस हर वक़्त रोअब चला रहे होते हैं। उनको लहजा बदल कर बात करने की आदत हो जाती है, यह नार्मल मूड में बात ही नहीं करते,*

*★_ भई! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द को घर में बड़ा बनाया मका़म दिया, मगर इसका यह मतलब तो नहीं कि बस तुम अब डंडा ही चलाना सीखो। तुम अपनी पोज़ीशन का ख़्याल रखो और यह देखो कि नबी अलैहिस्सलाम ने क्या फ्रमाया नबी अलैहिस्सलाम ने इर्शाद फरमायाः तुम में से सबसे बेहतर वह है जो अपने अहले खाना के लिये बेहतर है।*

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*⊙⇨एक खातून का अनोखा अंदाजे शिकायतः-*

*★_ सय्यदना उमर रज़ि० के पास उबई बिन कअब रज़ि० तशरीफ फरमा थे। एक खातून आई और आकर कहने लगीः अमीरुल मोमिनीन! मेरा खाविंद बहुत नेक है, सारी रात तहज्जुद पढ़ता रहता है, और सारा दिन रोज़ा रखता है, और यह कहकर खामोश हो गई। उमर रज़ि० बड़े हैरान कि खातून क्या कहने आई है? उसने फिर यही बात दोहराई कि मेरा खाविंद बहुत नेक है सारी रात तहज्जुद में गुज़ार देता है और सारा दिन रोज़ा रखता है। इस पर उबई बिन कअब रजि० बोलेः ऐ अमीरुल मोमिनीन! इसने अपनी खाविंद की बड़े अच्छे अंदाज़ में शिकायत की है। कैसे शिकायत की ? अमीरुल मोमिनीन! जब वह सारी रात तहज्जुद पढ़ता रहेगा और सारा दिन रोज़ा रखेगा तो फिर बीवी को वक़्त कब देगा? तो यह कहने आई है कि मेरा खाविंद नेक तो है मगर मुझे वक़्त नहीं देता।*

*★_ चुनांचे उमर रज़ि० ने उसके खाविंद को बुलाया तो उसने कहाः हां मैं मुजाहिदा करता हूं, यह करता हूं, वह करता हूं।हज़रत उमर रज़ि० ने हज़रत उबई बिन कअब रजि० से कहा कि आप इनका फैसला करें।हज़रत उबई बिन कअब रजि० ने उन साहब से कहा कि देखो! शरअन तुम्हारे लिये ज़रूरी है कि तुम अपनी बीवी के साथ वक़्त गुज़ारो, हंसी खुशी उसके साथ रहो, और कम अज़ कम हर तीन दिन के बाद अपनी बीवी के साथ हमबिस्तरी करो।*

*★_ खैर वह मियां बीवी तो चले गए। तो उमर रज़ि० ने उबई बिन कअब रज़ि० से पूछाः आपने यह शर्त क्यों लगाई कि हर तीन दिन के बाद बीवी से मिलाप करो?उन्होंने कहाः देखें! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द को ज़्यादा से ज़्यादा चार शादियों की इजाज़त दी। चुनांचे अगर चार शादियां भी किसी की हों तो तीन दिन के बाद फिर बीवी का दिन आता है। तो मैंने उसे कहा कि तुम ज़्यादा से ज़्यादा तीन दिन इबादत कर सकते हो तीन दिन के बाद एक दिन रात तुम्हारी बीवी का हक़ है, तुम्हें गुज़ारना पड़ेगा। तो देखो शरीअत इंसान को क्या खूबसूरत बातें बताती है।*

*®_ हज़रत मौलाना पीर ज़ुल्फ़िकार नक्शबंदी दा.ब__,*
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