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*●•घरेलू झगड़ों से निजात•●*
*◐ सुसराल के झगड़े ◐*
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*⊙⇨, सुसराल लड़की का असली घर,*
*★_ "सुसराल के झगड़े"। यह इतना पेचीदा उन्वान है कि रस्सी की डोर का सिरा पकड़ना भी मुश्किल नज़र आता है। कई पहलू इसमें शामिल होते हैं, मगर नतीजा यह निकलता है कि सुसराल में एक खींचा तानी का माहौल होता है। सास से पूछो तो वह अपनी जगह सच्ची, बहू से पूछो वह अपनी जगह सच्ची, नंदों से पूछो तो वह अपनी जगह सच्ची, सच्ची भी सब होती हैं और परेशान भी सब होती हैं। तो आखिर कोई न कोई तो बात होती है कि यह घर के अंदर Tension (तनाव) की कैफियत है। एक दूसरे की ग़ीबतें हो रही होती हैं, इख़्तियारात की जंग हो रही होती है। घर पर सुकून होने की बजाए, दंगा और फसाद का माहौल नज़र आता है।*
*★_ हर लड़की को ज़हन में यह बात सोचनी चाहिये कि मेरा असली घर सुसराल है। बेटी हमेशा पराए घर की अमानत होती है, मां बाप गो उसे पालते हैं लेकिन बिलआखिर उसे दूसरे का घर जाकर बसाना होता है।इसलिये बच्ची के ज़हन में शुरू से यह बात डालनी होती है कि अपना घौंसला अपना...... कच्चा हो या पक्का"।*
*★_ जब बच्ची शुरू से ही घर बसाने की नियत लेकर जाएगी तो वह घर में मौजूद जो पहली ख़्वातीन हैं, उनके साथ अच्छा ताल्लुक़ बनाकर रखेगी और मुहब्बत प्यार के साथ रहेगी। घर में पहले से मौजूद ख़्वातीन को चाहिये कि वह इस नई आने वाली बच्ची को अपने घर का एक फर्द समझें। इतनी कुर्बानी करके आई, मां बाप को छोड़ा, बहन भाई को छोड़ा, मैके में जहां रहती थी वहां अपनी सहेलियों को छोड़ा, सब कुछ छोड़ छाड़ कर अगर उसने कुर्बानी की और अपनी खाविंद की खातिर यहां आ गई तो इस कुर्बानी की भी तो आखिर कोई Value (कद्र) होती है।*
*★_ अगर सब लोग अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास करें तो इन झगड़ों को खत्म किया जा सकता है। आम तौर पर जब किसी बच्चे की शादी होती है तो वह अपने मां बाप के घर रहता है और बच्ची को एक आबाद घर के अंदर आना पड़ता है, यह उसकी ज़रूरत भी है, लेकिन यहां आकर उसको एडजस्मेंट का मसला होता है।*
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*⊙⇨ सास की तरफ से झगड़ों के असबाब-*
*★_ हमें पहले यह सोचना है कि यह झगड़ों की बुनियादी वुजूहात क्या होती हैं ताकि इन वुजूहात को ख़त्म किया जा सके। तो सबसे पहले सास की तरफ से झगड़ों के असबाब क्या है,*
*★_(1) बदगुमानीः- सास की तरफ से झगड़ों के अस्बाब में से पहला सबब "बदगुमानी" होता है कि सास के दिल मे एक अंजाना खौफ होता है कि यह आने वाली लड़की, कहीं मेरे बेटे के दिल पर कब्ज़ा न कर ले और उसको लेकर कहीं दूर न चली जाए, लिहाज़ा जब वह देखती है कि मियां बीवी आपस में मुहब्बत के साथ रह रहे हैं तो ऐसे हर्बे इस्तेमाल करना शुरू करती है कि मियां बीवी की मुहब्बत ज़्यादा पक्की न हो। चुनांचे वह अपने बेटे को उसकी बीवी के बारे में शिकायतें लगाना शुरू कर देती है, ताकि उस बढ़ती मुहब्बत को कम कर सके।*
*★_ ज़हन में उसके यह डर होता है कि अगर इस लड़की ने मेरे बेटे के दिल पर कब्ज़ा कर लिया तो यह मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फैंक देगी। लिहाज़ा महाज़ आराई शुरू हो जाती है।*
*★_(2) हुक्मरानीः- दूसरी वजह यह होती है कि बहू के आने से पहले सास अपने घर में सब कुछ होती है उसका हुक्म चलता है वह घर की मालिक है, बड़ी है। जब बहू आती है तो सास अपनी इस हुकूमत के अंदर किसी की दखल अंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करती, लिहाज़ा उसकी कोशिश होती है कि आने वाली लड़की मेरी बांदी बन कर रहे। खाविंद की बजाए मेरे इशारों पर चले, जो मैं चाहूं इस घर में वही हो।*
*★_ बअज़ घरों मे 'हमने यह भी सुना कि सास की हुकूमत इतनी मज़बूत होती है कि अगर बहू को कोई चीज़ खानी और पीनी है तो फ्रीज का दरवाज़ा खोलने से पहले सास से इजाज़त लेनी पड़ती है। अब अगर आने वाली किसी बच्ची को इस तरह महकूम बना दिया जाए कि फ्रिज में खाने पीने की चीज़ों में भी उसका इख़्तियार नहीं तो फिर झगड़े नहीं होंगे तो और क्या होगा ?*
*★_अब बीवी अपने खाविंद के लिये तो हर कुर्बानी बर्दाश्त कर लेती है, लेकिन बेजा दूसरे बंदे का उसकी Personal life (ज़ाती ज़िंदगी) के अंदर इतना दखल अंदाज़ होना उसको भी बुरा लगता है। चुनांचे यह आपस में झगड़े की दूसरी वजह बन जाती है।*
*★_(3) बेटे की कमाई पर इस्तिहकाकः- तीसरी वजह यह होती है कि मां यह समझती है कि बेटा जो कमाई कर रहा है वह सारी की सारी मेरी है, बहू यह समझती है, मेरे मियां की कमाई है, इसमें मेरा भी हक है। चुनांचे यह आपस में एक दूसरे के साथ झगड़ा पैदा होने की तीसरी वजह होती है।*
*★_(4) बद एतिमादीः- फिर चौथी वजह सास के दिल में यह डर और ख़तरा भी रहता है कि यह बहू हमारे घर की चीजें और पैसे अपने मैके न भेजे, अपनी बहन को, अपने भाइयों को न भेजे। चुनांचे इस पर भी शक की नज़र से उसको देखती है और कई दफा इस पर तल्खी भी हो जाती है।*
*★_(5) सास की तल्ख मिज़ाजीः- आपस की रंजिश की बुनियादी वजह सास की तल्ख मिज़ाजी और बुढ़ापा होता है। वह अपनी जवानी की ज़िंदगी गुज़ार चुकी होती है और भूल जाती है कि आने वाली बच्ची, नौजवान है, उसने अपने मियां के साथ इब्तिदाई तौर पर ज़्यादा वक़्त गुज़ारना होता है। तो शादी के दिनों में जब मियां बीवी एक दूसरे के साथ ज़्यादा वक़्त गुज़ारते हैं तो मां समझती है कि मुझे तो Ignore (नज़र अंदाज़) ही किया जा रहा है, हालांकि इसमें नज़र अंदाज़ करने वाली कोई बात नहीं होती।*
*★_चुनांचे यह जो मियां बीवी की ज़िंदगी में दखल अंदाज़ी हो रही होती है यह भी आपस की टेन्शन का सबब बन जाती है। यह वह वुजूहात हैं जो आम तौर पर सास की तरफ से होती है।*
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*⊙⇨ ननदों की तरफ से झगड़े के असबाब:-*
*★_ बअज़ औकात नंदों की तरफ से भी इस लड़ाई झगड़े के असबाब होते हैं। इसकी बुनियादी वजह यह होती है कि भाभी के आने से पहले नंदें अपने घर के अंदर बेटियां होती हैं, बेपरवाही की जिंदगी गुज़ारती हैं, कोई ऊंच नीच कर भी लें तो मां है, बाप है और भाई है, सब उसकी ग़लतियों को छिपाते हैं। उसकी कोताहियों से दरगुज़र करते हैं और उसके ऐबों पर सब के सब पर्दा डालते हैं।*
*★_ अब जब घर में एक जीता जागता इंसान और आ जाता है तो नंदें यह महसूस करती हैं कि हमारी हर बात को नोट किया जा रहा है, हम किससे फोन पर बात कर रही हैं? किसका फोन हमें आ रहा है? हम किस वक़्त कैसे कपड़े पहन रही हैं? कहां जा रही हैं? उन्हें यूं महसूस होता है कि हमारे ऊपर एक निगरान आंख आ गई है। एक वीडियों कैमरा हमारे ऊपर फिक्स हो चुका है लिहाज़ा वह अपनी आज़ादी के अंदर उसको एक पाबंदी समझती हैं।*
*★_ चुनांचे वह कोशिश करती हैं कि किसी न किसी हीले बहाने से अपनी भाभी को अपने दबाव में रखें, ताकि यह भाभी हमारी कोई बात देखे भी सही तो अपनी ज़बान को बंद रखे। यह बाहर हमारी कोताहियों को कहीं बता न दे। लिहाज़ा नंदें, तीन काम करती है। (१)सास को भड़काती है,(२).भाई को बीवी के खिलाफ उकसाती है, (३) और अपनी भाभी को दबाती है।*
*★_ लिहाज़ा वह एक वक़्त में तीन काम कर रही होती है। और मियां बीवी के दर्मियान गलत फहमियां पैदा करने के लिये Catalyst (अमल अंगेज़) का काम करती है। ऐसी बात कर देती है कि खाविंद ख़्वाह मख्वाह बीवी से नाराज़ होता है। । ऐसी बात कर देती है कि उस आने वाली लड़की को भरी महफिल के अंदर शर्मिंदा होना पड़ता है। उसकी छोटी बातों को बड़ा बना कर पेश कर देती है,*
*★_ तो गोया मां बेटी का यह तआवुन उस बहू के खिलाफ एक महाज़ बन जाता है। और बहू को यूं नज़र आता है कि अब मेरी नजात इस घर से बाहर जाने में है। चुनांचे वह अपने खाविंद से कहना शुरू कर देती है कि या तो मुझे अलग घर लेकर दो या फिर मुझे मैके छोड़कर आओ! अब खाविंद दर्मियान में सेंडविच बन जाता है। एक तरफ मां और बहन और दूसरी तरफ बीवी। जब बीवी की तरफ देखता है कि यह मुहब्बत करने वाली है, नेक नमाज़ी है, खूबसूरत भी है, घर बसाना भी चाहती है, मैं इसके पास आता हूं तो मुझे मुहब्बतें भी देती है, तो खाविंद का जी चाहता है कि मैं अपनी बीवी को जितना खुश रख सकता हूं उसे खुश रखूंगा,*
*★_ मगर दूसरी तरफ उसकी मां और बहन मिलकर उसकी बीवी की तरफ से अजीब व ग़रीब रिपोर्ट देती हैं। न उसको पकाना आता है, न घर की सफाई करनी आती है, पता नहीं मां बाप ने कैसे उसको पाल कर बड़ा किया, कहां से यह गंवार उठकर आ गई? न उसे इसे बात का पता न उस बात का पता। तो यह एक अजीब सी Situation (सूरते हाल) घर के अंदर पैदा हो जाती है।*
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*⊙⇨ बहू की तरफ से झगड़े के असबाबः-*
*★_ अब बहू की तरफ से झगड़े के असबाब क्या होते हैं? आम तौर पर जिस नौजवान लड़की की शादी होती है, देखा यह गया है कि वह नातजुर्बाकार लड़की होती है, उसको अज़्दवाजी ज़िंदगी के लड़ाई झगड़ों का ज़रा पता नहीं होता। वह मां की मुहब्बतों में पली, बाप की शफकतें समेंटी, भाई की मुहब्बतें पाईं, इन मुहब्बतों के माहौल से निकल कर एक नए घर के अंदर आती है तो तवक्कुआत यही रखती है कि जो मां मुहब्बतें देती थी, वही सास देगी, जो अब्बू मुहब्बत देते थे वह मुझे ससुर देंगे। और खाविंद के बारे में तसव्वुर रखती है कि यह तो है ही मेरी जिंदगी का साथी। तो इसकी तवक्कुआत ज़्यादा होती हैं।*
*★_ मगर इसको वहां आकर जो सूरते हाल नज़र आती है वह कई मर्तबा तवक्कुआत के मुताबिक होती है और कई मर्तबा तवक्कुआत के खिलाफ होती है। लिहाज़ा यह नातजुर्बाकार और भोली भाली लड़की नए घर में आकर बहुत सारी ग़लतियां करती है। खाने पकाने में इतनी महारत नहीं होती, मेहमान नवाज़ियों का इतना पता नहीं होता। मां बाप के घर में पढ़ने में लगी रहती है, अपने कामों में लगी रहती है, घर के कामों में इतना तआवुन नहीं किया होता, चुनांचे यहां आकर उसके लिये सूरते हाल सख़्त हो जाती है। और फिर उम्र भी छोटी होती है, उसको इतना पता नहीं होता कि मैंने यहां आकर किस तरह अपने आपको बच बचा कर रखना है?*
*★_ यह भी नहीं समझती कि खामोशी के कितने फाएदे होते हैं? कोई न कोई बात कर देती है, फिर उसके एक एक लफ़्ज़ को पकड़ लिया जाता है और एक लफ़्ज़ को पकड़ कर उसके ऊपर पूरी दास्तान बना दी जाती है। फिर उस बहू के ज़हन में यह बात भी होती है कि मेरी शादी हुई, निकाह हुआ, मैं बेटी की हैसियत से इस घर में आई हूं, मैं इस घर में लौंडी बन कर तो नहीं आई, मैं कहीं भाग कर तो नहीं आई, तो वह तवक़्कोअ करती है कि इस घर में मुझे एक इज़्ज़त मिलनी चाहिये।*
*★_ और खाविंद के बारे में उसके ज़हन में भी होता है कि खाविंद तो बस ऐसा हो कि मेरी हर बात पर आमीन कहने वाला हो। उसके दिल के अंदर यह ख़्वाहिश होती है कि इधर मेरी ज़बान से बात निकले और खाविंद उस पर हां कर दे। और बअज़ औकात उस बहू के ज़हन में यह भी ख़तरा होता है या सहेलियों ने उसको ग़लत गाईड किया होता है कि अगर तुम सुसराल जाकर एक दफा दब गई, तो सारी उम्र तुम्हें दबाकर ही रखेंगे। लिहाज़ा वह भी अपने हुकूक की जंग लड़ना शुरू कर देती है और छोटी छोटी बातों का अपने मैके में आकर तज़किरा करती है। कभी बहन के साथ, कभी मां के साथ। अब इधर बहन और मां उसको मशवरे देती हैं और वह फिर सुसराल में रीमोट कंट्रोल खिलौने की तरह खेल खेल रही होती है। यह सब नापसंदीदा सूरते हाल है।*
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*⊙⇨असबाब का निचोड़ ...खुद गर्जी की जंगः*
*★_ यूं लगता है कि इन तमाम वुजूहात को सामने रखें तो लुब्बे लुबाब यही नज़र आता है कि हर इंसान, घर का हर फर्द, अपनी खुदग़ज़ी की जंग लड़ रहा है। सास को अपने मफादात चाहियें, ननद को अपने चाहियें, बहू को अपने चाहियें और इस वजह से अब घर के अंदर लड़ाई की एक फिज़ा बन जाती है। एक दूसरे के साथ हुस्ने अखलाक से रहने की तअलीम देने में कमी रह जाती है। अब यह ज़िम्मादारी तो सुसर की भी होती है कि वह घर का बड़ा होता है। वह अपनी बीवी को भी समझता है, बेटी को भी समझता है।*
*★_ लिहाज़ा इस आने वाली लड़की को वहां एडजस्ट होने में उसको मोरल सपोर्ट दे। उसको सहारा दे, ताकि वह बच्ची महसूस करे कि मेरे सर के ऊपर कोई साया है, वह अपने आपको हवा में लटकता महसूस न करे कि मालूम नहीं किस वक्त सास मुझे अपने घर वापस भेज दें,*
*★_ अब कई मर्तबा सुसर साहब अपनी बीवी के सामने बात नहीं कर सकते और कई मर्तबा अपने बिज़नेस में इतने मसरूफ होते हैं कि वक़्त ही नहीं होता। मर्द के पास वक़्त न हो और औरतें घर में एक दूसरे के साथ को आप्रेट ना करें तो घर के अंदर लड़ाईयां नहीं होंगी तो और क्या होगा? हमें चाहिये कि हम एक दूसरे के साथ मुहब्बत और प्यार से रहने की तअलीम को आम करें।*
*★_ हज़रत मुहम्मद सल्ल० ने फरमाया कि मेरी उम्मी के लोग नमाज़ और रोज़े की वजह से जन्नत में नहीं जाएंगे बल्कि एक दूसरे पर रहम करने की वजह से जन्नत में ज़्यादा जाएंगे। तो एक दूसरे के साथ ईसार, रहम, मुहब्बत इन अक़्दार को घर के अंदर बढ़ाने की ज़रूरत होती है।*
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*⊙⇨झगड़े कैसे खत्म हों- सास की ज़िम्मेदारियां:-*
*★_ तो आईये ! इन तमाम असबाब के इलाज क्या हैं, इन तमाम असबाब के हल क्या हैं? इस पर थोड़ी सी बात करते हैं। झगड़े तभी खत्म हो सकते हैं जब हर बंदा अपनी कुछ मख़्सूस ज़िम्मादारियों को ज़िम्मादारी से अदा करने की कोशिश करे।*
*(१) सास अपने बड़े पन का सबूत दे:- सबसे पहले सास घर की मां है, बड़ी है, उसकी इज़्ज़त और एहतिराम है, बड़ों को बड़ा ही बन कर रहना चाहिये,अपनी ज़िम्मादारियों को पूरा करना चाहिये। तो सास को सबसे पहले यह समझना चाहिये कि आने वाली लड़की प्लास्टिक का खिलौना नहीं जीता जागता इंसान है। मैंने खद इसे पसंद किया, अपने बेटे के लिये लेकर आई, खुद चल कर गई थी। अब अगर यह आ गई है तो यह भी इंसान है, इसमें यक़ीनन खूबियां भी होंगी और खामियां भी होंगी। तो मुझे जैसे इसकी खूबियों को कबूल करना है इसकी खामियों को भी कबूल करना है और प्यार मुहब्बत से इसकी इस्लाह करनी है।*
*★(२)_ बहू और बेटी को बराबर समझें:- जैसे अपनी बेटी के अंदर खामियां होती हैं तो मां सब्र के साथ इन खामियों की इस्लाह में लगी रहती है तो फिर बहू के लिये क्यों यह समझती है कि एक दिन में यह ठीक हो जाए? बहू भी उसकी बेटी ही की हम उम्र है, उसकी बेटी ही की तरह है। जो रवय्या सास अपनी बेटी के साथ रखती है वही रवय्या अगर अपनी बहू के साथ रखे तो घर के झगड़े बिल्कुल ही खत्म हो जाएं। मुसीबत यहां यह होती है कि बेटी वही गलती करती है तो मां उस गलती को छुपाती फिरती है और अगर वही ग़लती बहू कर लेती है तो सास उस गलती को बताती फिरती है। तो इब्तिदाई दिनों मे उस आने वाली बच्ची को गलतियों से कुछ दरगुज़र करना चाहिये।*
*★(३) सास की बुनियादी ग़लतीः- और इसमें एक ग़लती सास की यह भी होती है कि आम तौर पर उसने बहू का जो इंतिखाब किया होता है तो फक़त उसकी शक्ल की खूबसूरती को देख कर किया होता है। यह ज़हन में रखें कि सिर्फ वलीमा के दिन लड़की की शक्ल को देखा जाता है, बाक़ी पूरी जिंदगी उसकी अक़्ल हो देखा जाता है। तो जो चीज़ पूरी जिंदगी देखी जानी थी उस पर तवज्जोह नहीं देती और शक्ल की हूर परी ढूंढ कर अपने घर ले आती है। न तालीम देखी न उसके अख़्लाक देखे, तो इस वजह से फिर मुसीबत पड़ जाती है।*
*★(४)_ बहू की गलतियों पर दरगुज़र करेः- सास की यह ज़िम्मादारी है कि वह इब्तिदाई चंद दिनों में बहू को घर के अंदर, अपने आपको एडजस्ट होने का मौका दे। उसकी ग़लतियों से दरगुज़ार करे, नई जगह पर इंसान बअज़ चीज़ों को नज़रअंदाज़ कर जाता है, बअज़ कामों को भूल जाता है तो बहू से इस किस्म की ग़लतियां होना, कोई अनोखी बात नहीं। लिहाज़ा उसे चाहिये कि इब्तिदा में अगर लड़की ग़लतियां भी करे तो उससे दरगुज़र से काम ले। और यही समझे कि हां चंद दिनों के बाद जब यह घर में सेट हो जाएगी तो मैं इस लड़की को समझा लूंगी।*
*★(५)_बहू को खुशी से घर की जिम्मेदारी देः- घर के कामकाज में बहू को हंसी खुशी ज़िम्मेदारी दे। मिसाल के तौर परः खाना पकाना है तो यह ज़रूरी तो नहीं कि हर रोज़ सास से ही सारा कुछ पूछ के पकाया जाएगा। कभी सास यूं भी कह दे कि बेटा अपनी मर्जी का खाना पका लो! तो लड़की को थोड़ा सा इख़्तियार मिलेगा तो उसका दिल खुश होगा। तो यह ज़िम्मेदारी सास की बनती है कि वह आने वाली लड़की को हंसी खुशी ज़िम्मेदारी सौंपे। और साथ यह भी सोचे कि जब मैं बहू बन कर आई थी तो उस वक़्त मेरे जज़्बात क्या थे? और मैं भी तो अपनी सास के बारे में यह सोचा करती थी कि ज़रा ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर डाल कर तो देखिये, मुझे काम देकर देखें, मैं कैसे नहीं काम करती ? मैं भी हर बात पर तन्कीद को नापसंद करती थी, ज़रा ज़रा सी बात पर नुक्ता चीनी से मेरा दम घुटता था। आज जब मैं अपनी बहू की सास बन गई हों तो मैं अपनी बहू के साथ वही सुलूक क्यों रखूं?*
*★(६)_हर वक्त की तन्कीद से गुरेज़ करेः नियत हमेशा अच्छी रखे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त नियत की वजह से घर का माहौल अच्छा कर देते हैं। हर बात पर बहू को काटने न दौड़े। अगर इसके बुरे काम पर तन्कीद करती है तो उसके अच्छे काम पर तारीफ भी किया करे। यह तो कोई बात न हुई कि ग़लती पर उसकी मिट्टी पलीद कर दी और अच्छे काम को ऐसे नज़र अंदाज़ किया जैसे उसने किया ही नहीं। यही वजह कि कभी बहन की बेटी को बहू बना कर लाई, कभी भाई की बेटी को बहू बना कर लाई, इतनी क़रीबी रिशतेदारियां होती हैं लेकिन जैसे ही वह लड़की घर आती है, उसके साथ झगड़े वाला मसला शुरू हो जाता है। अपनी भतीजी को, अपनी भांजी को, अपनी करीबी सहेली की बेटी को लेकर आती है और जैसे ही वह बच्ची घर में कदम रखती है बस उसकी ग़लतियां देखना शुरू कर देती है। तो सास को चाहिये कि वह इस मौका पर अपने बड़े पन का सुबूत दे और उस बच्ची का एडजस्ट होने के लिये हर मुमकिन तआवुन करें, अगर आपकी अपनी बेटी भी उसकी शिकायत करे तो बेटी को समझा बुझा ले, मगर घर के अंदर ख़्वाह मख्वाह माहौल को खराब न होने दे।*
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*⊙⇨झगड़े कैसे खत्म हों-- बहू की ज़िम्मेदारियां--*
*★_बहू की भी ज़िम्मेदारी होती है। उसने भी बहुत सारी बातों का ख्याल रखना होता है। वह एक नए घर में आई है और उस नए घर में उसे अपनी हैसियत मनवाने के लिये यक़ीनन बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।*
*(१)_सास को अपनी दुशमन न समझे:- बहू हमेशा एक मोटी सी बात यह सोचे कि सास अगर मेरी दुशमन होती, तो मुझे अपने घर में लाती ही क्यों? जब उसने मुझे अपने बेटे के लिये पसंद किया और बहू बनाकर लाई यह इस बात की दलील है कि वह मेरी दुशमन नहीं बल्कि मेरी मोहसिना है। इसका मेरे ऊपर एहसान है कि इतना अच्छा बेटा, ज़िम्मेदार और समझदार, इसके लिये उसने मुझे बीवी के तौर पर मुंतखब किया। अगर वह न करती तो यह रिश्ता न हो सकता, अगर यह रिश्ता हुआ है तो इसमें सास का मेरे ऊपर एहसान है। जब बहू यह ज़हन लेकर आएगी कि सास मेरी मोहसिना है तो यक़ीनन वह घर में आकर उस सास को सास नहीं समझेगी बल्कि अपनी मां समझेगी। और मां के समझने से ही सारे झगड़े ख़त्म हो जाएंगे।*
*★(२)_ मां बेटे की मुहब्बत में कमी न आने देः-फिर बहू को यह भी ज़हन में रखना चाहिये कि मेरे आने से पहले यह हंसता बसता घर था, मां थी, बेटी थी, बेटा था, खाविंद था, आपस में मुहब्बत प्यार से रह रह थे इस बेटे को मां ने मुहब्बतों से पाला, यह मां के साथ इतना ज़्यादा Attach (मानूस) था, अब मैं इस घर में नई आई हूं तो इस बेटे को अपनी मां से अलग नहीं करना, मुझे इस बेटे को अपनी मां से दूर नहीं करना, मेरे खाविंद के लिये यह जन्नत है। इसके कदमों में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मेरे खाविंद के लिये जन्नत बनाई है। लिहाज़ा मैंने हमेशा इनको Respect (इज़्ज़त) देनी है और इनकी खिदमत को मुझे अपने लिये सआदत समझनी है। जब बहू यह समझेगी तो यक़ीनन वह मां बेटे की मुहब्बत में कील नहीं ठोंकेगी। वह बूढ़ी सास को सताएगी नहीं।*
*★_बल्कि अगर खाविंद उसके साथ बहुत ज़्यादा वक़्त गुज़ारे और अपनी मां और बहन को बहुत ही छोड़े रहे तो बहू को यह चाहिये कि अपने खाविंद को समझाए कि अपने मां बाप को नज़र अंदाज़ करना अच्छा नहीं होता। अगर उसका सगा भाई अपने मां बाप से लापरवाही बरतता तो उसको कितना बुरा लगता, अब उसका खाविंद अगर मां बाप को नज़रअंदाज़ कर रहा है तो फिर उसको क्यों अच्छा लगता है? तो बीवी को चाहिये कि वह भी यह बात समझाए, ताकि उसका खाविंद अपने मां बाप के साथ वही मुहब्बतें रखे जो शादी से पहले थीं।*
*★(३)_ सास से लापरवाही न बरतेः- कई जगहों पर देखा? सास बूढ़ी है, ननद घर में नहीं, तो फिर बहू घर में आते ही शेरनी बन जाती है और सास को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर देती है। कई जगहों पर हमें यह खबर मिली कि सास को अपने वक़्त पर खाना भी नहीं दिया जाता। बस खाविंद को काबू कर लेती हैं और इसके बाद सास को एक बुढ़िया समझकर कमरे के एक कोने में पड़ी रहने देती हैं। यह चीज़ इंतिहाई बुरी है, शरीअत ने सास और सुसर को मां और बाप का दर्जा दिया है। आने वाली बहू यह सोचे कि अगर इस बूढ़ी औरत की मैं खिदमत करूंगी तो मैं अपने खाविंद को भी राज़ी करूंगी अपने खुदा को भी राज़ी करूंगी। अब इसके लिये अपनी सास की खिदमत कोई मुश्किल काम नहीं होगा।*
*★_(4)_ सास का दिल खुश करने की कोशिश करेः बहू को चाहिये कि ऐसे मवाक़अ तलाश करे कि वह अपनी सास का दिल खुश कर सके। बअज़ काम बहुत छोटे होते हैं लेकिन अगर तवज्जोह दी जाए तो दूसरे बंदे के दिल में जगह बन जाती है।मिसाल के तौर परः अगर सास कोई मेडीसिन इस्तेमाल करती है तो वक़्त के ऊपर उसको मेडीसिन दे देना, एहतियाती खाना खाती है तो वह बनाकर दे देना, वजू का पानी गर्म करके दे देना, मुसल्ला बिछा कर दे देना,*
*★_यह उनके छोटे छोटे काम होंगे लेकिन जब बहू इन कामों को करेगी तो वह समझेगी कि यह बहू नहीं, मेरे घर की बेटी है तो यकीनन सास का रवय्या बहू के साथ मां जैसे हो जाएगा। यह बहू की ज़िम्मादारी होती है कि नए घर में जाकर सास के दिल में अपनी जगह बनाए। बअज़ औकात छोटे छोटे कामों से इंसान दूसरे का दिल मोह लेता है। चुनांचे ऐसे मवाके़अ को तलाश करना चाहिये कि जिससे उन्हें यह महसूस हो कि यह बेटी बन कर उनकी ज़ाती खिदमत को भी अपनी सआदत समझती है।*
*★_(5) _ सास के तजुर्बात से फारदा उठाएः- बहू को चाहिये कि कोई भी काम करना हो तो सास के तजुर्बा से फायदा उठाए बल्कि उससे मशवरा कर लिया करे। यह सोचे कि अगर मैं अपनी इस अम्मी से पूछ कर, मशवरा करके काम करूंगी तो यकीनन मैं गलतियां कम करूंगी। जब बगैर मशवरा के काम करूंगी तो कोताहियां ज़्यादा करूंगी। लिहाज़ा सास के मशवरा से काम करना चाहिये, उसके तजुर्बा से फाएदा उठाना चाहिये बल्कि उसके तब्सिरा से सबक सीखना चाहिये,*
*★_(6)_ सास को हराना मां को हराने के बराबर समझेः- और एक बड़ी अहम बात यह कि अगर खींचा तानी का माहौल बन गया और यह बहू जीत भी गई तो यह यही समझे कि मैं अपनी मां को हरा चुकी हूं। जब बहू ने यह ज़हन में रखा कि इस खींचा तानी में सास को हराने का मतलब यह है कि मैंने अपनी मां को हरा दिया तो फिर उसकी अक़ल ठिकाने रहेगी और इस खींचा तानी के माहौल को नहीं बनने देगी।*
*★_(7) खाविंद से सास ननद की बुराईयां हरगिज़ न करेः- चुग़ल खोरी से बचे। चुगलियां करना, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के यहां इंतिहाई नापसंदीदा काम है। अगर वह घर के अंदर कोई कमी, कोताही देखे भी सही तो खाविंद के सामने सास और ननद की बुराईयां न करे। भाई के ज़हन में बहन के बारे में किसी किस्म की बात बिठाना और इसका तअस्सुर खराब करना कि भाई के दिल से बहन की मुहब्बत ही निकल जाए, शरअन यह भी जाइज़ नहीं। अगर यह उस घर में कोई कोताहियां देखती है तो बहू को चाहिये कि यह भी दिल बड़ा करे, न मैके में बताए न अपने खाविंद को बताए।*
*★_ थोड़े ही दिनों में जब यह अपने घर में एडजस्ट (सेट) हो जाएगी तो फिर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसे मौका देंगे, यह माहौल को भी अच्छा बना लेगी और यह घर के लोगों के दिलों में अपना मकाम भी पैदा कर लेगी। चुनांचे उसको चाहिये कि इब्तिदाई दिनों में खामोश रहे, बस जो देखे अपनी ज़बान को बंद रखे। यह बात सौ फीसद सच्ची है कि गूंगी और बहरी बहू से कोई भी लड़ाई नहीं करता, हर कोई अपने आपको अमन में समझता है। तो इसको भी चाहिये कि इब्तिदाई चंद दिनों में गूंगा और बहरा बन कर गुज़ार ले ताकि दूसरे बंदे उसके करीब हो सकें।*
*★_(8) खाविंद से अलग मकान का मुतालबा न करेः- खाविंद को हरगिज़ यह न कहे कि मुझे अलग मकान चाहिये या यह कि मुझे मैके छोड़कर आओ! अपनी तरफ से कोशिश यही करे कि मैंने इस आबाद घर को आबाद रखना है.....हां वक़्त के साथ साथ अल्लाह का बनाया हुआ एक निज़ाम है, एक बच्चे की शादी होती है, फिर दूसरे बच्चे की होती है.... एक बच्चे का अलग घर बनता है, फिर दूसरे का अलग घर बनता है। तो आने वाले वक़्त में अलग घर तो हर एक का बनना ही होता है। और नहीं तो सास बूढ़ी होती है जब वह कब्र का कोना जाकर आबाद करती है तो बहू का वैसे ही अलग घर बन जाता है। तो इस बारे में बहू को इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं। यही समझे कि जितना खिदमत का मौका अल्लाह ने मुझे दिया मैं इस सआदत से अपने आपको क्यों महरूम होने दूं? तो इस तरह घर के लड़ाई झगड़े ख़त्म हो जाएंगे।*
*★_(9) खाविंद से झगड़ा न करेः- कई दफा ऐसा होता है कि सास की वजह से या ननद की वजह से बहू तंग होती है तो वह अपने खाविंद को शिकायत लगाती है और अपने खाविंद के साथ भी उलझना शुरू हो जाती है। खाविंद के साथ झगड़ा करना, बीवी की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ग़लती होती है। इससे बड़ी ग़लती बीवी अपनी जिंदगी में नहीं कर सकती कि जो उसके सर का साया है, उसकी तक़वियत का सबब है, उसकी इज़्ज़त का निगरान है, उसी बंदे के साथ झगड़ा शुरू कर दे।*
*★_ तो बहू की कोताहियों में से यह एक बड़ी कोताही होती है कि मुआमलात तो सास और ननद खराब कर रहे हैं और यह अपने खाविंद के साथ मुंह बसोर के और रूठ के बैठ जाती है। अब खाविंद इब्तिदाई शादी के दिनों में मुहब्बत प्यार के मूड में होता है और बीवी साहिबा ने शकल बनाई होती है। तो उल्टा खाविंद के दिल में भी यह अपने लिये जगह कम कर बैठती है। यह ग़लती भी हरगिज़ नहीं करनी चाहिये।*
*★_(10) तनक़ीद को सब्र से बर्दाश्त करेः - बहू को यह भी सोचना चाहिये कि मैं इस घर में नई आई हूं और हर नई चीज़ को आज़माया और परखा जाता है। यही बहू अपने लिये सोने का ज़ेवर खरीदती है तो कितना परखती है। तो घर में एक नया इंसान आया है तो हर बंदा उसको देखेगा, जांचेगा कि यह कैसे बैठता उठता है? कैसे बोलता है? कैसे उसकी ज़िंदगी के शब व रोज़ हैं। तो वह इस बात को समझे कि शादी के इब्तिदाई दिनों में मुझे किस नज़र से देखा जाएगा? और अगर कोई बात घर के लोग मेरे बारे में कर देते हैं तो यह ग़लतफहमी होती है।*
*★_ फिर यह भी समझे कि सास उम्र में ज़्यादा है और जितनी उम्र ज़्यादा होती है उतना ही बंदे के अंदर तनक़ीद का माद्दा भी ज़्यादा हो जाता है और चिड़चिड़ापन भी ज़्यादा हो जाता है, लिहाज़ा इस चिड़चिड़े पन को उम्र का तकाज़ा समझे। यह भी सोचे कि घर में जब मैं गलती करती थी तो कई मर्तबा मेरी अम्मी मुझे थप्पड़ भी लगा देती थी तो मैं बर्दाश्त करती थी? तो अगर सगी मां का थप्पड़ भी बर्दाश्त कर लेती थी तो क्या सास का समझाना बर्दाश्त नहीं कर सकती। सास के समझाने पर भी उसको गुस्सा आ जाता है तो यह भी एक कोताही होती है।*
*★_(11) शौहर के माल पर फक़त हक न जताएः- कई मर्तबा बहू यह समझती है कि खाविंद जो कमा रहा है वह तो बहैसियत बीवी मेरा हक है। अब यह मां, बाप और बहनें सब का उसके कंधों पर क्यों बोझ पड़ गया? तो इस मियां के कंधों पे यह बोझ पहले से था, अब तो नहीं पड़ा। यह आने वाली लड़की की गलत बात होती है कि वह अपने खाविंद के मां बाप को उसके सर का बोझ समझे। यह वह रिशते नाते हैं जिनको निभाना होता है। शादी के बाद यह तो नहीं हो जाता कि बंदा मां को भूल जाए, बहन को भूल जाए, बाप को भूल जाए, तो लड़की यह गलती कभी भी न करे कि अपने घर के उन अफराद को अपने खाविंद के सर का बोझ समझे।*
*★_(12) सुसराल में मैके के फ़ज़ाइल न बयान करती रहेः- यह भी झगड़े की बुनियाद होती है कि सुसराल के घर में कोई बात देखी, फौरन कह उठेगी मेरे अम्मी अब्बू के घर में तो ऐसे नहीं होता था, हमारे घर में तो ऐसा होता था। वह तो होता था, अब आप सुसराल में आ चुकी हैं। सुसराल में आकर बहू यह सोचे कि अब तो मेरा घर यह है। तो बहू की ग़लतियों में से एक बड़ी ग़लती यह भी है कि वह सुसराल में बैठ कर दिन रात अपने मैके के फज़ाइल बयान करती है। जो फिर झगड़े का सबब बन जाते हैं। जो उसका नसीब था वह उसे मिल गया। अमीर घर की बेटी थी, अब जहां आ गई है वहां अपने आपको एडजस्ट करने की कोशिश करे।*
*★_(13) सुसराल की खुशी गमी में बराबर की शरीक होः- फिर एक ग़लती यह भी करती है कि सुसराल के घर में जो खुशी और गमी होती है उसमें बराबर की शरीक नहीं होती, पीछे पीछे रहती है। तो जब उनकी खुशी और ग़मी में बराबर की शरीक नहीं होगी तो साफ ज़ाहिर है कि फिर उनको आप पर एतिराज़ का मौका मिलेगा।*
*★_(14) दूसरों की टोह में न रहेः- नए घर में आकर लोगों के हालात की टोह में लगे रहना, तजस्सुस में रहना कि मेरी ननद कहां से आती है? कहां जाती है? किसके फोन आते हैं? मेरी सास क्या करती है? मेरा सुसर क्या करता है? सास और सुसर के दर्मियान झगड़े तो नहीं? इस किस्म की टोह में आते ही लग जाना, इंतिहाई बुरा काम होता है। यह शरअन हराम है। शरीअत ने फरमायाः तजस्सुस में न पड़ो।दूसरों के मुआमलात में टांग अड़ाना यह अक़लमंदी नहीं होती अपने काम से काम रखे। दूसरों के हालात की टोह में रहना और दूसरों के सामने उनके ऐबों को खोलना, शरीअत ने इस चीज़ से मना कर दिया है।*
*★_(15) दूसरों पर रोअब चलाने की बजाए दिल जीतने की कोशिश करेः- कई दफा यह भी देखा कि बहू जब घर में आती है तो यह समझती है कि मैं तो बड़े भाई की बीवी हूं लिहाज़ा अब यह मेरी ननद जो है यह तो मेरी खादिमा है, इस पर रोअब चलाती है। नंद पर रोअब चलाने से पहले उसके दिल को जीतना इंतिहाई ज़रूरी होता है। बस यह हर एक के साथ मुहब्बत प्यार का तअल्लुक रखे और अपने खाविंद को पुरसुकून ज़िंदगी दे। बहू को यह बात सोचनी चाहिये कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान पाक में शादी करने का बुन्यादी मक्सद फरमाया- "ताकि तुम्हें अपनी बीवियों से सुकून मिले"।*
*★_ तो जो बीवी अपने खाविंद को सुकून दे ही नहीं सकती वह अपनी ज़िम्मादारी पूरी नहीं कर रही। तो अपने मियां को झगड़ों में उलझा लेना, हर वक़्त उसके सामने यही बातें छेड़ कर बैठ जाना, इंतिहाई नालाइकी होती है। बीवी को चाहिये कि अपने खाविंद को ऐसा पुरसुकून माहौल दे कि दफ़्तर और दुकान पर बैठे हुए भी उसका जी चाहे कि मैं अभी अपने घर चला जाऊं। तो घर के माहौल को ऐसा भी नहीं बनाना चाहिये कि खाविंद घर में आकर उल्टा परेशान हो जाए।*
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*⊙⇨ रोज़े महशर लोग अपने गुनाहों के मुताबिक उठेंगेः-*
*★_ क़यामत के दिन लोग अपने अपने गुनाहों की शक्ल में उठाए जाएंगे। हदीस पाक में आता है कि जो बंदा नाइंसाफी करने वाला होगा, अल्लाह ताला उसको फालिज ज़दा शख्स की सूरत में क़यामत के दिन खड़ा करेंगे। जो मख़लूक़ से सवाल करता होगा अल्लाह तआला उसको ऐसा बनाएंगे कि उसके चेहरे के ऊपर हड्डियां होंगी गोश्त होगा ही नहीं। दूर से पता चलेगा कि यह अल्लाह के दर को छोड़ कर मख़्लूक से मांगने वाला है। अल्लाह तआला ने उसके चेहरे की इस रअनाई को खत्म कर दिया है।*
*★_ जो दुनिया में तकब्बुर के बोल बोलने वाला होगा अल्लाह तआला उसको क़यामत के दिन च्यूंटी जैसा सर अता करेंगे, दूसरे लोग उसके ऊपर अपने पांव रख कर जाएंगे। अल्लाह तआला उनको मख़लूक़ के पांव में मसल कर उनको बताएंगे कि तुम्हारे तकब्बुर का हमने तुम्हें यह बदला दिया। जो लोग दुनिया में झूट बोलते होंगे क़यामत के दिन उनकी ज़बान ऊंट की तरह लम्बी होगी और लटकी हुई होगी। जो गुनाहों भरी ज़िंदगी गुज़ारेंगे उनके चेहरे सियाह होंगे। जो नेकूकार होंगे उनके चेहरे चमकते हुए होंगे।*
*★_ जो शख़्स दूसरों की ग़ीबत करता होगा, उसके लम्बे नाखुन होंगे और क़यामत के दिन अपने चेहरे की खारिश कर रहा होगा, इतना खारिश करेगा कि उसका गोश्त कट जाएगा और हड्डियां नजर आने लगेंगी और जो शख्स दूसरों के साथ चुगलखोरी का मुआमला करता होगा तो क़यामत के दिन अल्लाह तआला ऐसा खड़ा करेंगे कि उसके एक की जगह दो चेहरे होंगे।*
*★_ तो जैसा हम दुनिया में करेंगे वैसा क़यामत के दिन पाएंगे। तो इसलिये हमें चाहिये कि हम शरीअत और सुन्नत के अहकाम को सामने रखें और घर के अंदर मुहब्बत सुकून की ज़िंदगी गुज़ारने की कोशिश करें।*
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*⊙⇨लड़की की जिंदगी की असाइन्मेंटः-*
*★_ अच्छी बहू वह होती है कि मैके वाले भी उसकी तअरीफ करें, सुसराल वाले भी उसकी तअरीफ करें। बच्ची को यह समझना चाहिये कि यह मेरे लिये Assignment (मशक) है। मैं मेके में ऐसी ज़िंदगी गुज़ारूं कि जब मेरी शादी हो तो मैके वालों में, मेरी मां बहन की ज़बान से मेरी तअरीफों के पुल बंध रहे हों और जब मैं सुसराल में जाऊं तो मैं ऐसे बन कर रहूं कि मेरी सास और ननद की ज़बान से मेरी तअरीफें हो रही हों।*
*★_ यह बच्ची की जिंदगी की असाइन्मेंट होती है। जब वह यह ज़िम्मेदारी लेकर जाएगी और चाहेगी कि मेरी तअरीफें उनकी ज़बान से हों तो यक़ीनन वह उनके साथ मुहब्बत प्यार से रहेगी। झगड़े और फसाद की बजाए घरों के अंदर मुहब्बतें होंगी, उलफ्तें होंगी। दुनिया की ज़िंदगी भी अच्छी गुज़रेगी। यह छोटा सा घर इंसान की छोटी सी जन्नत बन जाएगा और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त भी खुश होंगे।*
*★_ तो इंसान ने दुनिया में भी पुरसुकून जिंदगी गुज़ारी, मुहब्बतों और चाहतों की ज़िंदगी गुज़ारी और इसके बदले में अल्लाह तआला ने उसकी आखिरत को भी बना दिया। लिहाज़ा सुसराल के झगड़ों में सास, मां बन कर रहे और बहू यह सोचे कि अब जो मुहब्बत मुझे सास से मिल सकती है वह मुहब्बत मुझे किसी और से नहीं मिल सकती। जब इस तरह दोनों एक दूसरे के करीब आएंगी तो घर के झगड़े बिल्कुल ही ख़त्म हो जाएंगे।*
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*⊙⇨सबक आमोज़ वाकिआ- :-*
*★_ इब्ने कृय्यिम रह० ने एक अजीब वाकिआ लिखा है, फरमाते हैं कि मैं एक दफा एक गली से गुज़र रहा था। मैंने एक घर का दरवाज़ा खुला देखा, एक मां अपने बेटे से नाराज़ हो रही थी, उसे डांट रही थी। कह रही थी कि तू निखट्टू है, ज़िद्दी है, कोई काम नहीं करता, बिल्कुल बात नहीं मानता,काम चोर बन गया है, अगर तूने मेरी बात नहीं मानी तू इस घर से दफन हो जा। यह कहकर मां ने जो उसको धक्का दिया तो वह बच्चा दरवाज़े से बाहर गिरा। मां ने गुस्से से अपने दरवाज़े को बंद कर लिया।*
*★_ फरमाते हैं: मैं भी उस बच्चे को देखने लगा! वह रो रहा था, उसे मार पड़ी थी, झिड़कियां पड़ी थीं, फिर थोड़ी देर में उसने गली के एक तरफ को जाना शुरू किया। आहिस्ता आहिस्ता कदमों से चल रहा था, कुछ सोच भी रहा था। जब वह गली के मोड़ तक पहुंचा तो मैंने देखा कि वह कुछ सोचता रहा और फिर उसने वापस आना शुरू किया। हत्ताकि अपने ही घर के दरवाज़े पर आकर वह बैठ गया। थोड़ी देर के लिये उसे नींद आ गई।*
*★_ कुछ देर के बाद वालिदा ने किसी काम के लिये दरवाज़ा खोला तो देखा, अभी दरवाज़े ही पर मौजूद था। मां का गुस्सा कम नहीं हुआ था, उसने फिर डांटना शुरू कर दिया। जाते क्यों नहीं? तुमने मेरा दिल जलाया है, काम बिल्कुल नहीं करते। जब मां ने फिर डांट डपट शुरू कर दी, बच्चे की आंखों में आंसू आ गए कहने लगाः अम्मी ! जब आपने मुझे घर से धक्का दे दिया था, मैंने सोचा था कि मैं यहां से चला जाता हूं, मैं किसी का नौकर बनकर रह जाऊंगा, कोई मुझे खाना दे देगा, लिहाफ दे देगा, रहने की जगह दे देगा। मैंने सोचा था कि मैं बाज़ार में जाकर भीग मांग लेता हूं, मुझे यह सब चीजें मिल जाएंगी और मैं गली के मोड़ पर भी चला गया था लेकिन वहां जाकर मेरे दिल में ख़्याल आया कि मुझे खाना भी मिलेगा, कपड़े भी मिलेंगे, रहने की जगह भी मिल जाएगी लेकिन अम्मी जो प्यार मुझे आप देती हैं मैंने सोचा यह प्यार मुझे दुनिया में कोई नहीं देगा। यह सोचकर मैं वापस आ गया हूं। अम्मी तू मुझे मारे भी तो मैं तेरा ही बेटा, घर में रखे तो भी तेरा ही बेटा।*
*★_ जब बच्चे ने यह बात की मां की ममता जोश में आ गई, उसने बच्चे को अपने सीने से लगा लिया, माथे का बोसा दिया कि बेटा तुम अगर यह समझते हो कि जो मुहब्बत तुम्हें मैं दे सकती हूं वह तुम्हें और कोई नहीं दे सकता तो आओ मेरे घर में ज़िंदगी गुज़ारो।*
*★_ इमाम इब्ने क़य्यिम रह० फरमाते हैं कि जब इसी तरह इंसान यह सोचे कि क्या मुझे दूसरे मुहब्बतें देंगे ? तो फिर उनके दिल में इंसान की कद्र होती है। इस वाक़िए को ज़हन में रखकर बहू यह सोचे कि इस घर के अंदर (जहां मैं अपने खाविंद के घर में आई हूं) जो मुहब्बतें मुझे सास दे सकती है वह मुहब्बतें मुझे कोई नहीं दे सकता। जब इस तरह वह घर में आकर रहेगी तो यकीनन उसको माँ समझेगी, उसकी खिदमत करेगी और फिर सास भी उसको अपनी बेटी समझेगी।*
*★_ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त घरों के इन झगड़ों से हमें महफूज़ फरमा ले और इस फसाद के अज़ाब से अल्लाह हमें महफूज़ फरमाकर पुरसुकून ज़िंदगी नसीब फरमाएं ताकि दुनिया में भी हम अल्लाह के नेक बंदे बन कर ज़िंदगी गुज़ार सकें और आखिरत में भी अल्लाह के पास जाकर हम सुर्खुरू हो सकें।*
*★_ दुआ है कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस बयान के अंदर जो बातें कही गईं उसके मुताबिक हमें अपनी जिंदगियां ढालने की तौफीक अता फरमाए। अब यह नहीं होना चाहिये कि सास बहू की ज़िम्मेदारियां याद कर ले और सोचे कि उसे यूं करना चाहिये, यूं करना चाहिये था। और बहू सास की ज़िम्मेदारियां याद कर ले और घरों में जाकर फिर झगड़ा शुरू कर दें, आप यह नहीं करतीं आप यह नहीं करतीं। बल्कि हक़ बनता है कि सास अपनी ज़िम्मादारियों को याद कर ले कि मुझे यह करना है, ननद अपनी ज़िम्मेदारियां और बहू अपनी ज़िम्मेदारियां याद करे कि मुझे यह करना है। तमाम ख़्वातीन अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने की कोशिश करें।*
*★_ जब आप वह करेंगी जो आप कर सकती हैं देख लेना अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फिर वह कर देंगे जो अल्लाह के इख़्तियार में है। अल्लाह दूसरों के दिलों में आपकी मुहब्बतें डाल देंगे। घर के झगड़ों से अल्लाह नजात अता फरमाएंगे। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें इन झगड़ों के अज़ाब से महफूज़ फरमा कर हमें उल्फत व मुहब्बत की ज़िंदगी गुज़ारने की तौफीक अता फरमाए।*
*®_ हज़रत मौलाना पीर ज़ुल्फ़िकार नक्शबंदी दा.ब__,*
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