SHAB - E- QADR (HINDI)

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         ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ.  
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                 *शब - ए - क़दर् * 
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            *◐☞_शबे कद्र क्या है ? ◐*
*❖_रमजान मुबारक की रातों में से एक रात शबे कदर कहलाती है जो बहुत ही कदर व मनाजिलात और खैरो बरकत की हामिल रात है । इसी रात को अल्लाह ताला ने हजार महीनों से अफज़ल क़रार दिया है । हजार महीने के 83 साल 4 महीने बनते हैं। यानी जिस शख्स की यह एक रात इबादत में गुजरी उसने 83 साल 4 महीने का जमाना इबादत में गुज़ार दिया और 83 साल का जमाना कम से कम है।*

*★_ क्योंकि "_ खैरुम मिन अलफि शहर " कहकर इस अमर् की तरफ इशारा फरमाया गया है कि अल्लाह करीम जितना ज्यादा अजर् अता फरमाना चाहेगा अता फरमा देगा, इस अजर् का अंदाजा इंसान के बस से बाहर है।*

     *◐☞ शबे कद्र का मफहूम ◐*
*❖_इमाम ज़हरी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं कि " कद्र "का मायनी मर्तबा से है क्योंकि ये रात बाकी रातों के मुकाबले में शर्फ व मर्तबा के लिहाज से बुलंद है इसलिए इसे लैलतुल कद्र कहा जाता है ।*

*❖_हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है जो कि इस रात में अल्लाह ताला की तरफ से 1 साल की तकदीर व फैसले का कलमदान फरिश्तों को सौंपा जाता है इस वजह से यह लैलतुल कद्र कहलाती है।*

*❖_ इस रात को कद्र के नाम से ताबीर करने की वजह यह भी बयान की जाती है :- इस रात में अल्लाह ताला ने अपनी का़बिले कदर किताब का़बिले कदर उम्मत के लिए साहिबे कद्र रसूल की मार्फत नाजिल फरमाई, यही वजह है कि इस सूरह में लफ्ज़े कद्र तीन दफा आया है।*
*"®_ तफसीरे कबीर-28:32,*

*❖_ लफ्ज़े कद्र के मानी में इस्तेमाल होता है इस लिहाज से इस रात को कदर् वाली कहने की वजह यह है कि इस रात आसमान से फर्से जमीन पर इतनी कसरत के साथ फरिश्तों का नुजूल होता है कि जमीन तंग हो जाती है।*
*"®_ तफसीरे खाजिन -4:395,*

*❖_इमाम अबू बकर अल वराक़ " कद्र "की वजह बयान करते हुए कहते हैं कि यह रात इबादत करने वाले को साहिबे कद्र बना देती है अगरचे वह पहले इस लायक़ नहीं था ।*
*"®_कुरतुबी _,*

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    *◐☞ यह रात क्यूं अता हुई ◐*
*❖_ इस रात के अता किए जाने की सबसे अहम वजह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की इस उम्मत पर शफक़त और आपकी गमख्वारी है।*

*❖_ बाब माजा फी लैलतुल कद्र- मौता इमाम मालिक रहमतुल्लाह में है :-जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को पिछले लोगों की उमरों पर आगाह फरमाया गया तो आपने उनके मुक़ाबले में अपनी उम्मत के लोगों की उम्र को कम देखते हुए यह खयाल फरमाया कि मेरी उम्मत के लोग इतनी कम उम्र में पिछली उम्मतों के बराबर अमल कैसे करेंगे ? जब अल्लाह ताला ने आपके मुकद्दस दिल को इस मामले में गमज़दा व परेशान देखा तो पस आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को लैलतुल कद्र अता फरमा दी जो हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है।*

*❖_ इसकी ताईद हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से मंक़ूल रिवायत से भी होती है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाहे अक़्दस में बनी इसराइल के एक ऐसे शख्स का ज़िक्र किया गया जिसने 1000 माह तक अल्लाह ताला की राह में जिहाद किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस पर ताज्जुब फरमाया और अपनी उम्मत के लिए आरज़ू करते हुए जब यह दुआ की ए मेरे रब मेरी उम्मत के लोगों की उम्र कम होने की वजह से नेक आमाल भी कम होंगे तो इस पर अल्लाह ताला ने शबे कद्र इनायत फरमाई ।*
*®"_तफसीरे खाज़िन-4/397*

*❖_ एक और रिवायत में यह भी है की एक मर्तबा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हुम के सामने बनी इसराइल के चार मुख्तलिफ शख्सियत हजरत अयूब अलैहिस्सलाम हजरत ज़करिया अलैहिस्सलाम हज़रत हिज़कील अलेहिस्सलाम हजरत यूसा अलैहिस्सलाम का तज़्किरा करते हुए फरमाया इन हजरात ने 80-80 साल अल्लाह ताला की इबादत में मशगूल रहे और पलक झपकने के बराबर भी अल्लाह ताला की नाफरमानी नहीं की ।*
*"_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को इन बुजुर्ग हस्तियों पर रश्क आया। इमाम कुर्तुबी लिखते हैं कि उसी वक्त जिब्रील अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की बारगाह अक़्दस में हाजिर हुए और अर्ज किया :- ऐ मुहम्मद ! (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ) आपकी उम्मत के लोग इन साबक़ा लोगों की 80-80 साला इबादत पर रश्क कर रहे हैं, तो आपके रब ने आपको इससे बेहतर अता फ़रमाया है और फिर कि़रात की "_ इन्ना अन्ज़लनाहू फि लैलतिल क़दरी..." इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुबारक चेहरा खुशी व मसर्रत से चमक उठा। *®(_ कुर्तुबी _,)*

*★_चुनांचे हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तुफेल यह करम फरमाया इस उम्मत को लैलतुल कद्र इनायत फरमा दी और इसकी इबादत को 80 नहीं 83 साल 4 माह से बढ़कर क़रार दिया।*
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*◐☞ लैलतुल कद्र इस उम्मत की खुसुसियत ◐*
*❖_ लैलतुल कद्र सिर्फ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्मत की खुसूसियत है ।हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- यह मुकद्दस रात फक़त मेरी उम्मत को अता फरमाई है साबका़ उम्मतों में यह शर्फ किसी को भी नहीं मिला । *(दुर्रे मंसूर 6 /371 )*

*❖__मुफस्सिरीन किराम लिखते हैं की पहली उम्मतो में आबिद उसे क़रार दिया जाता था जो हज़ार महीनों तक इबादत करता लेकिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सदके में इस उम्मत को यह फजी़लत हासिल हुई । वह एक रात की इबादत से इससे बेहतर मुकाम हासिल कर लेती है। अल्लाह ताला ने इस उम्मत के अफराद को यह शबे कदर अता कर दी जिसकी इबादत इस हजार माह से बेहतर क़रार दी गई। ( फताहुल क़दीर -5 /472)*

*❖__ गोयाकि यह अज़ीम नियामत भी सरकारे दो जहां सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की गुलामी के सदके में इस उम्मत को नसीब हुई है।*

    *◐☞ फजीलते शबे कद्र ◐*
*❖_ हजरत बू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि जनाब ए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- जिस शख्स ने शबे क़दर् में अजरो सवाब की उम्मीद से इबादत की उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं । (सही बुखारी -1/ 270)*

*❖__हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि :- रमजान उल मुबारक की आमद पर एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- यह जो माह तुम पर आ रहा है इसमें एक ऐसी रात है जो हजार माह से अफ़ज़ल है जो शख्स इस रात से महरूम रह गया गोया वह सारी खैर से महरूम रहा और इस रात की भलाई से वही शख्स महरुम रह सकता है जो वक़ातन महरुम हो। ( सुनन इब्ने माजा-20)*

*❖__ऐसे शख्स की मेहरूमी मे वक़ातन क्या शक हो सकता है जो इतनी बड़ी नियामत को गफलत की वजह से गवा दे , जब इंसान मामूली मामूली बातों के लिए कितनी राते जाग कर गुज़ार देता है तो 80 साल की इबादतों से अफज़ल इबादत के लिए चंद राते क्यों ना जागे जिस रात में जिबरीले अमीन फरिश्तों के साथ उतरते हों और इबादत करने वालों के लिए दुआएं मगफिरत करते हों ।*

  *❥═┄ ʀεғεʀεηcε ↴*
*📕 शबे कद्र और उसकी फज़ीलत,*
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*◐☞ शबे कद्र को मखफी क्यों रखा गया ◐*
*❖_ इतनी अहम और बा बरकत रात के मख्फी होने की बहुत सी हिकमते बयान की गई है इनमें से चंद यह है :-*
*१_दिगर अहम मख्फी उमूर मसलन इस्मे -आजम, जुमे के रोज़ कुबूलियते दुआ की घड़ी की तरह इस रात को भी मख्फी रखा गया ।*
*२_अगर इसे मख्फी ना रखा जाता तो सिर्फ इसी रात के अमल पर इक्तफा कर लिया जाता जौके़ इबादत की खातिर इसको जाहिर नहीं किया गया ।*
*३_अगर किसी मजबूरी की वजह से किसी शख्स की वो रात रह जाती तो शायद इस सदमे का इजाला मुमकिन ना होता ।*
*४_अल्लाह ताला को चूंकी बंदों का रात के औकात में जागना और बेदार रहना महबूब है इसलिए रात की ताईन ना फरमाई ताकि इसकी तलाश में मुताद्दिद रातें इबादत में गुजारे ।*
*५_इस रात के मख्फी रखने की एक वजह गुनहगारों पर शफक़त है क्योंकि अगर इल्म के बावजूद इस रात में गुनाह सरजद होते तो इससे लैलतुल कद्र की अजमत मजरूह करने का जुर्म भी लिखा जाता ।*

*◐☞_ एक झगड़ा शबे कदर के इफका़ का सबब बना ◐*
*❖_एक निहायत अहम वजह इसके मख्फी कर देने की एक झगड़ा भी है, हजरत उबादा बिन सामित रजियल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि :- एक मर्तबा जनाबे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम शबे कद्र की ताईन के बारे में आगाह फरमाने के लिए घर से बाहर तशरीफ़ लाए लेकिन रास्ते में दो आदमी आपस में झगड़ रहे थे, हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया :- मैं तुम्हें शबे कदर के बारे में इत्तेला देने आया था मगर फलां की लड़ाई की वजह से इसकी ताईन उठा ली गई।*

*❖__ इस रिवायत ने यह भी वाज़े कर दिया की लड़ाई झगड़े की वजह से इंसान अल्लाह ताला की बहुत सी नियामतों से महरूम हो जाता है । यही वजह है कि आज उम्मत बरकतों और सआदतों से महरूम होती जा रही है ।* *(बुखारी 1/ 172)*

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    *◐☞_शबे कद्र कब तलाश करें? ◐*
*❖_ शबे कद्र के वक्त के बारे में उलमा के बहुत से अक़वाल हैं लेकिन अक्सर उलमा इस पर मुत्तफिक़ है कि वह रमजान उल मुबारक की आखिरी 10 रातों में से कोई रात होती है और उन 10 रातों में भी ताक़ रातों (21,23, 25 ,27 ,29 ) में शबे कद्र की उम्मीद ज्यादा है और 27 वी शब में सबसे ज्यादा उम्मीद है हत्ताकि की बाज़ उलमा ने इसी तारीख को गोया मुतय्यन कर दिया है । *( कुर्तुबी- 10 /121)*

*❖__ इसलिए रमजान के आखिरी अशरे में बिल खुसूस घुटने टेककर शबे कद्र की तलाश में लग जाना चाहिए इतनी अज़ीम फजीलत के हासिल करने के लिए 10 रात इबादत में गुजार देना कोई मुश्किल नहीं बशर्ते कि दिल में जज्बा और तड़प हो।*

*◐☞ शबे कद्र किन आमाल में गुजा़रें ◐*
*❖_ हदीस में आता है कि शबे कद्र की फजीलत तो उसे भी हासिल होती है जो मगरिब और ईशा की नमाज बा जमात अदा करें *(रुहुल माअनी -16 /354)*  
*"_लेकिन यह सब से अदना दर्जा है बेहतर यह है कि इस रात में मुख्तलिफ इबादतों को जमा करें और खूब जी लगाकर और निहायत जोक शोक और बशासत से इबादत में मशगूल रहे, तिलावते कुरान ए करीम इस तरह तवज्जो के साथ करें कि जब आयतें रहमत से गुजरे तो अल्लाह ताला से रहमत का उम्मीदवार हो और जब आयाते अजाब से गुजरे तो जहन्नम से पनाह मांगे। इसी तरह नवाफिल की कसरत करें, मौका मिले तो कम अज कम सलातुत तस्बीह पड़े । नीज हम्दो सना , इस्तगफार, दरूद शरीफ और आहो जारी के साथ दुआ और मुनाजात में मशगूल रहे ।यह पूरी रात कुबूलियत की रात है, इस रात में मलाइका आसमान से उतरते हैं और इबादत करने वालों को अपने झुरमुट में ले लेते हैं मलाइका की सोहबत की वजह से दिल नरम हो जाते हैं खुशु खुज़ू की कैफियत पैदा होती है, इसलिए दुनिया और आखिरत की हर तरह की भलाईयां मांगनी चाहिए और हर तरह की बुराइयों और सर से पनाह मांगना चाहिए।*

*❖__उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फर्माती है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से अर्ज किया :- मुझे शबे कद्र नसीब हो जाए तो मैं क्या कलिमात कहुं ? तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :-यह दुआ करो:-*
*"_ अल्लाहुम्मा इन्नका अफुववु तुहिब्बुल अफवा फाअफु अन्नी_,"*
*(ऐ अल्लाह आप बहुत माफ फरमाने वाले हैं इसलिए मुझे बख्श दीजिए) (रूहुल माअनी 16 /354)*

*❖__ वजाहत :-_यहां यह वजाहत जरूरी है की शबे कद्र के लिए कोई मुस्तकिल इबादत शरीयत और सुन्नत से साबित नहीं बल्कि इस बारे में उम्मत के अफराद को आज़ादी दी गई है कि वह अपनी बशासय के एतबार से जिस इबादत में ज्यादा जी लगे उसमें अपना वक्त को सर्फ करें।*
*"_जैसा कि देखा जाता है शबे कद्र के मौके पर बहुत से पंपलेट और इश्तेहार लगाए जाते हैं जिनमें बाज़ आमाल और नवाफिल के खास फजा़इल लिखे होते हैं वह सब बेअसल हैं उनको हरगिज़ लाज़िम ना समझा जाए और खासतौर पर नमाज ए कजाए उमरी के नाम से बताया जाता है कि जो शख्स शबे कद्र में जिक्र करदा खास दुआओं के साथ 2 रकात निफ्ल पड़ेगा उसकी गुजिशता 60 साल की फर्ज नमाज ए माफ हो जाएंगी । तो यह बिल्कुल झूठ और फ्रॉड है निफ्ल पढ़ने से फर्ज नमाज हरगिज़ माफ नहीं हो सकती उनकी कजा़ जरूरी है। इसलिए मुसलमान ऐसी बेअसल और पुर फरेब बातों पर बिल्कुल यकीन न करें बल्कि शबे कदर में हर तरह की बिदअत और रूसूमात से दूर रहते हुए इखलास और खुशु खुजू के साथ इबादत में मशगूल रहे ताकि अल्लाह ताला की रहमत से फायदा उठाया जा सके।*

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    *◐☞ शबे कद्र को वसूल करने का यकीनी जरिया ◐*
*❖_ शबे कद्र की इबादत का सवाब हासिल करने की तमन्ना हर मुसलमान के दिल में रहनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए शबे कद्र का कोई लम्हा भी इबादत से गफलत में ना गुज़रे, इसलिए अल्लाह ताला ने हमें एतिकाफ की इबादत अता फरमाई है कि जो आदमी रमजान उल मुबारक के आखिरी अशरे में एतिकाफ की सआदत हासिल करें वह यकीनी तौर पर शबे कद्र से महरूम नहीं रहेगा।*

*❖__ शबे कद्र को हासिल करने के लिए एतिकाफ से ज्यादा यकीनी जरिया कोई नहीं ,अगर आप मौतकिफ नहीं है तो कितनी ही कोशिश कर लें पूरी रात का मुकम्मल तौर पर इबादत में गुजारना निहायत मुश्किल काम है, लेकिन मौतकिफ शख्स अपने एतिकाफ की बिना पर अगर सोता भी रहेगा तो वह इंदल्लाह इबादत गुजा़रों में शुमार होगा और उसकी रात का कोई भी लम्हा जा़या नहीं होगा । इसलिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम शबे कद्र के हुसूल के लिए एतिकाफ का अहतमाम फरमाते थे ।*

*❖__हजरत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमजान के पहले अशरे का एतिकाफ फरमाया फिर दरमियानी अशरे में आप एक तुर्की खेमे में ( मस्जिद के अंदर) मौतकिफ रहे, जिसकी छत पर चटाई डाली गई थी । चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से चटाई हटा कर एक तरफ फरमाई और लोगों से खिताब करना शुरू किया, लोग करीब हो गए तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- मैंने शबे कद्र की तलाश में पहले अशरे का एतिकाफ किया फिर दूसरे का एतिकाफ किया फिर मुझे बताया गया कि वह मुबारक रात आखिरी अशरे में है लिहाज़ा जो तुममें से एतिकाफ करना चाहे वो एतिकाफ करे _,"*
*पस लोगों ने आपके साथ एतिकाफ किया । आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- मुझे वह शब इस हाल में दिखाई गई है कि उसकी सुबह को मैं पानी और मिट्टी में सजदा कर रहा हूं चुनांचे 21 तारीख की सुबह की नमाज़ में बारिश हुई, मस्जिद (कच्ची थी) जल थल हो गई, तो जब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नमाज़ से फारिग हुए तो आप की पेशानी मुबारक और नाक मिट्टी और पानी से आलूद थी यह 21वी शब का किस्सा है ।*
*( मुस्लिम शरीफ 1/ 370, बुखारी शरीफ 1/ 271)*

*➡ इसलिए जो हजरात शबे कद्र को हासिल करना चाहते है उन्हें एतिकाफ का एहतमाम जरूर करना चाहिए अल्लाह ताला हम सबको इस मुबारक रात की इबादत की तौफीक अता फरमाए (आमीन )। इस हकीर गुनहगार बंदे को भी अपनी खास दुआओं में याद रखिए।*

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*📕 शबे कद्र और उसकी फज़ीलत,*
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*◐☞_मुबारक रातों में पाई जाने वाली चंद उमूमी गलतियों की इस्लाह,*
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*❀_ 1-इस रात में इबादत का कोई खास तरीका साबित नही, जैसा अमूमन समझा जाता है,चुनांचे बाज़ लोग इस रात की खास नमाज़ें बयान करते हैं कि इतनी रक्कत पढ़ी जाए, फलां रक़ात में फलां सूरत इतनी मर्तबा पढ़ी जाए,*
*❀_खूब समझ लेना चाहिए कि ऐसी कोई नामाज़ या इबादत इस रात में साबित नही,बल्कि नफ्ली इबादत जिस क़दर हो सके इस रात में अंजाम देनी चाहिए ,नफ्ली नमाज़ें पढ़ें , क़ुरआन करीम की तिलावत करें, ज़िक्र करें,तस्बीह पढ़ें, दुआएं करें,ये सारी इबादते इस रात में की जा सकती है, लेकिन कोई खास तारिका साबित नही,*

*❀_2:-बा बरकत रातों में जागने का मतलब पूरी रात जागना नही होता बल्कि आसानी के साथ जिस क़दर जाग कर इबादत करना मुमकिन हो इबादत करना चाहिए और जब नींद का ग़लबा हो तो सो जाना चाहिए,*
*❀"_ बाज़ लोग पूरी रात जागने को ज़रूरी समझते हैं,और इसको हासिल करने के लिए पूरी रात जागने की बेतकल्लुफ कोशिश करते हैं ,और जब नींद का ग़लबा होता है तो आपस मे गपशप, हंसी मजाक ,पान गुटखा और खाने पीने चाय वगैरह के अंदर मशगूल हो जाते हैं और मस्जिद के आदाब व तक़ददूस को भी पामाल किया जाता है,*
*"_याद रखिए! इस तरह फ़िज़ूलियात या किसी गैर शरई काम मे लग कर नेकी बर्बाद और गुनाह लाज़िम का मिस्दाक़ नही बनना चाहिए,*

*❀_3:-गुरूबे आफताब ही से इस रात की इब्तिदा हो जाती है लिहाज़ा मग़रिब ही से मुबारक रातों की बरकत को समेटने में लग जाना चाहिए ,ईशा के बाद का इंतज़ार नही करना चाहिए,*
*❀"_जैसा कि अमूमन देखने में आता है कि लोग रात को जागने का मतलब ये समझते है कि 11-12 बजे जब बिस्तर पर जाने का वक़्त होता है,उस वक़्त बिस्तर पर जाने के बजाए मस्जिद में जा कर इबादत की जाए,इस गलत फहमी की वजह से रात का एक बड़ा हिस्सा जाय हो जाता है,*

*❀_4:-मुबारक रातों में जागने का मतलब सिर्फ जागना नही बल्कि इबादत करना है,चुनांचे सिर्फ हंसी मजाक ,गपशप बातचीत ,खाने पीने पिलाने का दौर में जागते हुए सुबह कर देना कोई इबादत नही,*
*❀"_बल्कि बाज़ अवकात इन अज़ीम और बा बर्क़त रातो में भी झूठ ,चुगल खोरी,ग़ीबत करने सुनने जैसे बड़े गुनाहों में शामिल हो कर इंसान और भी बड़े अज़ाब का मुस्तहिक़ बन जाता है, इसीलिए इन्फिरादी तौर पर यकसुई के साथ जिस क़दर आसानी से मुमकिन हो इबादत करनी चाहिए और हर किस्म के हल्ले गुल्ले से बिल्कुल बचना चाहिए,*

*❀_5:-मुबारक रातों में इज्तिमाई इबादत के बजाए इन्फिरादी इबादत का एहतेमाम करना चाहिए इसीलिए की इन रातों में इज्तिमाई इबादत का नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई सबूत नही,इसीलिए खुलूस, यकसुई और अल्लाह ताला के साथ राज़ो नियाज़ इन्फिरादी इबादत में नसीब हो सकता है वो इज्तिमाई इबादत में कहां ।*
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       *◐☞_मुबारक रातों को कैसे गुज़ारें,*
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           *☞-1:-तौबा व इस्तग़फ़ार,*
*❉_ दो रक्कत सलातुत तौबा पढ़ कर सच्ची तौबा करें,अपने गुनाहोंपर शर्मिंदगी व नदामत के साथ अल्लाह ताला से सच्चे दिल से माफी मांगे,_ चुनांचे शबे क़द्र के बारे में हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया कि या रसूलुल्लाह! अगर मैं शबे क़द्र पा लूं तो उसमें क्या पढूं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको कोई बड़ा ज़िक्र या कोई बड़ी नमाज़ और तस्बीह पढ़ने के लिए नही कहा बल्कि एक मुख्तसर और आसान सी दुआ तलक़ीन फरमाई जिसमे अफु दरगुज़र की दरख्वास्त की गई है:-*
*"_ अल्लाहम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिबबुल अफवा फा'फु अन्नी _,*
*"_ऐ अल्लाह तू बहुत ही माफ करने वाला है,माफ करने को पसंद फरमाता है,पस तू मुझे माफ़ फर्मा दे,"*
*®_( तिरमिज़ी -३५१३ )*

*❉__ इससे मालूम हुआ कि बा बरकत रातों में सबसे बड़ा करने का करने का काम उमूमन लोग नही करते वो ये है कि अपने गुज़िश्ता ज़िंदगी पर सच्चे दिल से शर्मसार हो कर आइंदा ज़िंदगी मे अमलन तब्दीली लाने का सच्चा इरादा कर ले कि तौबा इस्तिग़फ़ार किया जाए,ये अमल मुबारक रातों की बरकतों को समेटने का सबसे अहम और सही तरीका है,*

 *☞ 2_ नमाज़े बा जमात की अदायगी _,*
*❉ __ इस रात में 3 नमाज़े आती है , मगरिब इशा और फजर , इन तीनों को जमात के साथ सफे अव्वल में खुशू व खुजू़ के साथ अदा कीजिए ।*
*"_ कम से कम इन नमाजों को जमात के साथ अदा करने वाला रात की इबादत से मेहरूम नहीं रहेगा ।" चुनांचे हदीस शरीफ़ में आता है ,हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह इरशाद मंकूल है - जिसने इशा की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने ग़या आधी रात इबादत की और जिसने सुबह की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने गोया उसने पूरी रात नमाज पढ़ी ।*
*®( मुस्लिम शरीफ - ६५६ )*

*☞ _ क़ज़ा नमाज़ो की अदायगी _,*         
*❉__जिंदगी में जो नमाज अदा करने से रह गई हो उनको क़जा़ करना लाजिम होता है उनकी कजा़ ना की जाए तो कल बा रोज़े क़यामत उनका हिसाब देना होगा, जैसा पहले तोबा की शराइत में गुज़रा उन शरई वाजिबात का अदा करना और उनसे सुबुक दोष होना जरूरी है ।*
*"_लिहाजा़ अपनी तोबा की तकमील की नियत से जिंदगी भर की नमाज़ों का हिसाब करके उनकी कज़ा करने की फिक्र की जानी चाहिए और मुबारक रातों में निफ्ली इबादत में मशगूल होने के बा दर्जहा बेहतर उन नमाजो की कज़ा को अदा किया जाए, इंशाल्लाह इसमें नवाफिल में मशगूल होने से ज्यादा सवाब हासिल होगा क्योंकि नवाफिल ना पढ़ने का हिसाब नहीं जबकि फर्ज नमाज़ की अगर क़जा ना की जाए तो उसका हिसाब है ।*

*☞_ क़ज़ा नमाज़े पढ़ने का तरीका :-*
*❉__ इसका तरीक़ा यह है कि बालिग होने के बाद से लेकर अब तक जितनी नमाजे छुटी है उनका हिसाब करें और मुमकिन ना हो तो गालिब गुमान के मुताबिक एक अंदाजा और तखमीना लगाएं और उसको कहीं लिख ले उसके बाद उसकी कजा़ करना शुरू कर दें। और इसमें आसानी के लिए यूं किया जा सकता है कि हर वक्ती नमाज़ के साथ वही (उसी वक्त की जो जिम्मे है ) क़ज़ा भी -पढ़ते जाएं और जितनी नमाजे क़ज़ा अदा होती जाए उनको लिखे हुए रिकॉर्ड ( जो हिसाब लगाकर लिखा गया था ) मे से काटते जाएं, इससे इंशाल्लाह महीने में 1 महीने की और साल में 1 साल की नमाज़े बड़ी आसानी के साथ कजा़ अदा हो जाएगी ।*

*☞__ क़ज़ा की नियत :-*
*❉__ क़ज़ा नमाज़ों में नियत करने का एक तरीका यह है कि हर नमाज़ में यूं नियत करें कि मैं अपनी तमाम कजा़ शुदा नमाजो़ में जो पहली नमाज है उसकी कज़ा करता हूं । क्योंकि हर पहली नमाज कजा कर लेने के बाद उससे अगली खुद-ब-खुद पहली बन जाएगी।*
                 ❖══✰═══❖
   *☞ _ कुछ फ़ज़ीलत वाले आमाल:-,,*
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*❉__ जैसा कि पहले अर्ज़ किया जा चुका है कि मुबारक रातों में कोई मख़सूस अमल तक साबित नही, अलबत्ता फ़ज़ीलत वाले आमाल जिनमे कम वक्त के अंदर ज़्यादा नेकियों का ज़ख़ीरा जमा किया जा सकता है, उनको उनको बगैर किसी तख्सीस के तैयन के इख्तियार कीजिए ताकि ज़्यादा नेकियाँ जमा की जा सके,*

*❉_1:-अव्वाबीन की नमाज़:-_ मग़रिब के बाद अव्वाबीन कि नमाज़ जिसकी कम से कम 6 रका'त है और ज़्यादा से ज़्यादा 20 हैं,*
*"_आप कोशिश कीजिए कि मुबारक रात की बरकतों को समेटने के लिए 20 रक्कत अदा कीजिए, हदीस के मुताबिक 12 साल की इबादत का सवाब हासिल होता है,*
*❉__हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:-जिसने मग़रिब की नमाज़ के बाद 6 रका'त इस तरह अदा की कि उनके दरमियान कोई बुरी बात न की हो तो उनका सवाब बाराह (12) साल की इबादत के बराबर होता है _,"*
*( तिरमिज़ी-४३५)*
*❉__याद रहे कि अव्वाबीन की नमाज़ की ये फ़ज़ीलत सिर्फ मुबारक रातों में नही बल्कि पूरे साल भर इस फ़ज़ीलत को सिर्फ चंद मिनटों में आसानी से हासिल किए जा सकता हैं, मुबारक रातों में ऐसे आमाल का तो और भी ज़्यादा एहतेमाम और तवज्जोह से इख़्तेयार करना चाहिए,*

*☞ _सलातुत तस्बीह की नमाज़ _,*          
*❉__सलातुत तस्बीह की 4 रकातें हैं जिनको एक सलाम से पढ़ा जाता है, इस नमाज़ कि अहादीस में बड़ी फज़ीलतें मंक़ूल हैं,इंसान इसके जरिए कम से कम वक़्त के अंदर ज़्यादा से ज़्यादा नफा हासिल कर सकता है,*
*❉"_इसीलिए साल भर में वक़्तन फ वक़्तन इसके पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए और मुबारक रातों में तो इसको और भी ज़्यादा एहतेमाम से पढ़ना चाहिए और ये कोई मुश्किल नही, बस दिल मे नेकी के हुसूल का जज़्बा शौक़ होना चाहिए, अल्लाह ताला अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाए,(आमीन)*

*☞__सलातुत तस्बीह के फजा़इल:-*
*❉1-ये वो नामाज़ है जिसके पढ़ने की बरकत से 10 किस्म के गुनाह माफ हो जाते हैं,-*
*_सलातुत तस्बीह पढ़ने से 1-अगले,2-पिछले,3-पुराने,4-नए,5-गलती से किए हुए,6-जान बूझ कर किये हुए, 7-छोटे, 8-बड़े, 9 छुप कर किए हुए, 10-और खुल्लम खुल्ला किये हुए सब गुनाह माफ होते हैं,*
*❉2:-ये वो नमाज़ हैं जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अगर रोज़ाना हफ्ता महीना या कम से कम साल में भी अगर पढ़ सकते हो तो अपनी पूरी ज़िंदगी मे कम से कम एक मर्तबा पढ़ लो, इससे इस नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है,*
*❉3:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अगर तुम सारी दुनिया के लोगों से भी ज़्यादा गुनाहगार होंगे तो तुम्हारे गुनाह माफ कर दिए जाएंगे,*
*❉4:-ये वो नमाज़ है जिसे आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने चाचा हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को बताते हुए इस नमाज़ को तोहफा, बख्शीश और खुश खबरी क़रार दिया,*
*❉5:-ये वो नमाज़ है जिसको पढ़ते हुए बंदे को 300 मर्तबा तीसरा कलमा की सूरत में अल्लाह ताला की हम्दो सना करने की सआदत हासिल होती है,*
*"_हालांकि एक मर्तबा तीसरा कलमा पढ़ने पर जन्नत में एक दरख़्त लग जाता है,*
*"_तीसरा कलमा अल्लाह ताला को सबसे मेहबूब कलमा है,*
*"_जन्नत एक चटियल मैंदान हैऔर तीसरा कलमा जन्नत के पौधे हैं,*
*"_तीसरा कलमा के हर एक कलमें का सवाब उहद पहाड़ से ज़्यादा है,*
*"_तीसरे कलमें का हर कलमा आमाल नामे में तुलने के ऐतेबार से सबसे ज़्यादा वज़नी है,*
*❉6:-ये वो नमाज़ है जिसका हर ज़माने में उल्माए उम्मत, मुहद्दिसीन, फुकहा और सूफियों ने एहतेमाम किया है,*
*❉7:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अब्दुल अजीज बिन रववाद रह फरमाते हैं कि जिसका जन्नत में जाने का इरादा हो उसके लिए ज़रूरी है कि सलातुत तस्बीह को मजबूती से पकड़ ले,*
*❉8:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अबु उस्मान हैरी रह. फरमाते है कि मैंने मुसीबतों और गमों के इज़ाले के लिए सलातुत तस्बीह जैसी चीज नही देखी,*
*❉9:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में अल्लामा तकि उद्दीन सबकी रह फरमाते हैं कि जो शख्स इस नमाज़ कि फज़ीलत व अहमियत को सुन कर भी गफलत इख्तियार करे वो दीन के बारे में सुस्ती करने वाला है,सुलहा के कामो से दूर है,उसको पक्का आदमी न समझा जाए,*
*®_( फज़ाइले ज़िक्र )*

*☞_ क़यामुल लैल (तहज्जुद की नामाज़) का एहतेमाम,*
*❉ __ तहज्जुद फ़राइज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ है,साल भर बल्कि ज़िंदगी भर इसका एहतेमाम करना चाहिए ,और फ़ज़ीलत व बरकत वाली रातों में इसका और भी ज़्यादा शौक़ व ज़ौक़ और तवज्जोह से एहतेमाम करना चाहिए,*

*☞ तहज्जुद की फ़ज़ीलत*
*❉ __ इरशादे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है:-"फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ वो है जो रात के दर्मियान पढ़ी जाए" (मुसनद अहमद-८५०७)*
*❉ __ हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं':- "_रात के क़याम यानी तहज्जुद को अपने ऊपर लाज़िम कर लो क्योंकि ये तुमसे पहले नेक लोगों का तरीका है,तुम्हारे रब के क़ुर्ब का जरिया है,गुमाहों को मिटाने वाली,और गुनाहों को रोकने वाली है,*
*एक रिवायात में इसके साथ जिस्म की बीमारियों को दूर करने वाली है मंक़ूल है,( तिरमिज़ी-३५४९)*
*❉ _ हज़रत अमरू बिन अबसा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:- "_बंदा अपने रब का सबसे ज़्यादा करीब उस वक़्त होता है जब वो रात के आखरी पहर अपने रब के सामने हाज़िर होता है,पस अगर तुम उन लोगों में से होने की ताकत रखते हो तो जो उस घड़ी में अल्लाह ताला को याद करते हैं तो ज़रूर हो जाओ," ( तिरमिज़ी-३५७९)*
*❉ _ हज़रत अबु सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद मंक़ूल है कि,"_तीन आदमी ऐसे हैं जिन्हें देख कर अल्लाह ताला खुश होते हैं,एक वो शख्स जब वो रात को नमाज़ में खड़ा होता है,दूसरे वो लोग जब वो नमाज़ में सफ बांधते हैं,तीसरे वो लोग जब वो जिहाद में दुश्मन से कि़ताल करते हुए सफ बांधते हैं, ( मिशकातुल मसाबेह-१२२८)*
*❉ _हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया गया कि कोनसी दुआ सबसे ज़्यादा सुनी जाती है (यानी क़ुबूल होती है) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ,रात के आखरी पहर और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद मांगी जाने वाली दुआ । ( तिरमिज़ी-३४९९)*
*❉ _ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, बेशक जन्नत में ऐसे बाला खाने हैं जिनका ज़ाहिरी हिस्सा अंदर से और अंदरूनी हिस्सा बाहर से नज़र आता है,*
*"_एक अरबी खड़े हुए और सवाल किया,-या रसूलुल्लाह वो किसके लिए है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,-उसके लिए जो कलाम में नरमी रखे ,खाना खिलाए,पै दर पै रोज़े रखे और रात को नमाज़ पढ़े जबकि लोग सो रहे हो" (तिरमिज़ी-१९८४)*
*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, मेरी उम्मत के सबसे मुअज़्ज़िज़ लोग क़ुरआन के हाफ़िज़ और तहज्जुद गुज़ार हैं," ( शौबुल ईमान-२४४७)*
*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु जो यहूदियों के एक बड़े आलिम थे (इस्लाम से पहले)उन्होंने सबसे पहली मर्तबा जब आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार किया तो फरमाते हैं कि मैं समझ गया की ये चेहरा किसी झूठे का हरगिज़ नही हो सकता और सबसे पहली बात जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाई वो ये थी:-*
*"_ऐ लोगों !आपस मे सलाम को फैलाओ,खाना खिलाओ,सिलह रहमी करो, रात को नामाज़ पढ़ो जबकि लोग सो रहे हों,तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे," ( तिरमिज़ी-२४८५)*
*❉ __ हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरफुआ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल है कि जो शख्स रात को कसरत से नमाज़ पढ़ता है दिन को उसका चेहरा हसीन होता है, ( शौबुल ईमान-२४४८)*

*❉ __ इन तमाम फजा़यल को हर शख्स हासिल कर सकता है, जिसका तरीक़ा ये है कि अपने आप को तहज्जुद का पाबंद बनाया जाए और ये मामूल ज़िंदगी भर अपनाने का है, बिलखुसूस मुबारक रातों में इस अमल को और भी ज़्यादा एहतेमाम से करना चाहिए और इसका तरीका ये है कि 2-2 रक्कत कर के 8 रकत पढ़ी जाए और उसमें जो भी सूरतें याद हों उनकी ज़्यादा तिलावत की कोशिश की जाए,*
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    *◐☞ सलातुत तस्बीह का तरीका _,*
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*❉_ इसके दो तरीके मंक़ूल है, किसी भी तरीक़े के मुताबिक यह नमाज़ पढ़ी जा सकती है ,*

*☞ पहला तरीका _,:- इस नमाज़ को पढ़ने का तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक से तिर्मिज़ी शरीफ में मज़कूर है यह है कि तकबीरे तहरीमा के बाद सना यानी " सुब्हाना कल्लाहुमा ..." पढ़ें, फिर तस्बीह यानी सुब्हानल्लाहि वल हमदुलिल्लाहि वा लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर _" 15 मर्तबा पढ़ें, आ'उज़ुबिल्लाहि मिनश शैयतानिर रजीम, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, पढ़ें फिर अल्हम्दु शरीफ और सूरत पढ़े, फिर क़याम में ही रुकू में जाने से पहले ही तस्बीह 10 मर्तबा पढ़ें, फिर रुकू करें और रुकू की तस्बीह के बाद वही कलमात 10 मर्तबा कहे, फिर रुकू से उठकर को़मा में, समी'अल्लाह.., के बाद 10 बार और दोनों सजदों में सजदे की तस्बीह के बाद 10 -10 बार और दोनों सज्दों के दरमियान बैठने की हालत में यानी जलसे में 10 बार वही कलामाते तस्बीह पड़े , इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा और 4 रक़ात में तीन सौ मर्तबा यह तस्बीह हो जाएंगी ।*

*✪_और अगर इन कलमात के बाद "_ वला हौवला वला कु़व्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिययिल अज़ीम _," भी मिला लें तो बेहतर है । क्योंकि इससे बहुत सवाब मिलता है और एक रिवात में इन अल्फाज़ की ज्यादती मनक़ूल है।*

*☞ दूसरा तरीका़ :- दूसरा तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से तिर्मीजी़ शरीफ में मंकूल है वह यह है कि सना के बाद और अल्हम्दु शरीफ से पहले किसी रकात में इन कलमाते तस्बीह को ना पड़े बल्कि हर रकात में अल्हम्दु और सूरत पढ़ने के बाद 15 मर्तबा पड़े और रुकू और कौमा और दोनों सजदों और जलसे में बा तरतीब 10-10 मर्तबा पड़े और दूसरे सजदे के बाद बैठकर यानी जलसा इस्तराहत में 10 मर्तबा पड़े इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा पढ़ें और दोनों क़ायदों में अत्तहियात से पहले पढ़ ले।*

*✪_ यह दोनों तरीके़ सही हैं लेकिन बाज़ फुक़हा ने दूसरे तरीक़े को तरजीह दी है क्योंकि यह हदीस मरफू से साबित है बेहतर यह है कि कभी एक रिवायत पर अमल करें और कभी दूसरी पर ताकि दोनों पर अमल हो जाए,* 
*❉__ सलातुत तस्बीह में कोई भी सूरत पढ़ी जा सकती है अलबत्ता अलल तरतीब " तकासुर , असर् , काफिरून और इखलास और कभी " इजा़जु़ल, आदियात, इजा़जा़ और इखलास_," का पढ़ना बेहतर है।*

*✪_अगर तसबीह के कलमात भूलकर किसी जगह 10 से कम पढ़े जाएं या बिल्कुल ना पड़े जाएं तो इसको दूसरी जगह यानी तसबीह पढ़ने के आगे वाले मौक़े में पढ़ ले ताकि तादाद पूरी हो जाए लेकिन रुकू में भूले हुए कलमाते तसबीह को़मा में ना पड़ें बल्कि दूसरे सजदे में पड़े क्योंकि को़मा और जलसा का रुकू व सजदे से तवील करना मकरूह है, कलमाते तसबीह को उंगलियों पर शुमार ना करना चाहिए बल्कि अगर दिल के साथ शुमार कर सकता हो इस तरह की नमाज़ की हुजूरी में फ़र्क ना आए तो यही बेहतर है वरना उंगलियां दबा कर शुमार करें,*
*"_ सलातुल तसबीह में तसबिहात को हाथों से शुमार करना दुरुस्त नहीं और अगर याद ना रहता हो तो उंगलियों को हरकत दिए बगैर महज़ दबाकर याद रखा जा सकता है_,"*
*( दुर्रे मुख्तार- 2/28)*
*📚_ फज़ाइले ज़िक्र _,*
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*◐☞ _मगफिरत में रुकावट वाले उमूर से तौबा*
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*❉ __ शबे कद्र बहुत ही बा बरकत और अज़ीम रात है जैसा कि फज़ीलते तफसील से गुज़र चुकी है,लेकिन कुछ ऐसे भी बद किस्मत लोग होते हैं जो इस रात की बरकत और बिल ख़ुसूस सबसे अहम चीज़ मगफिरते खुदावन्दी से महरूम रह जाते हैं, वह कौन लोग हैं ? कई हदीसों में उनकी निशानदेही की गई है, जिनसे उन मेहरूम होने वालो के मग्फिरत से मेहरूम रह जाने के असबाब भी मालूम होते हैं, ऐसे असबाब और उमूर को मा'ने मग्फिरत उमूर कहा जाता है, जिनमे शामिल होने से हर सूरत में बचा जाए और अगर खुदा न ख़्वास्ता कोई मुब्तिला हो तो फौरन तौबा कर के अल्लाह ताला की तरफ रुजू करना चाहिए, वरना इस अज़ीम और बा बरकत रात में मगफिरत हासिल न हो सकेगी,*

*❉ __(१)_ मुशरिक ( शिर्क करने वाला)*
*(२)_कीना रखने वाला,*
*(३)_वाल्दैन की नाफरमानी करने वाला ,*
*(४)_कता रहमी करने वाला (रिश्ते तोड़नेवाला)*
*(५)_ इज़ार टखनों से नीचे लटकाने वाला (यानी लुंगी पाजामा पेंट को टखनों से नीचे लटका कर रखने वाला)*
*(६)_शराब का आदी ,*
*(७)_क़ातिल _,*
*( ८)_ और ज़ानी,*.
*"_ अल्लाह ताला तमाम मुसलमानों की इन गुनाहों से हिफाज़त फरमाए, आमीन,*

*❉ __ दुआ कीजिए अल्लाह ताला मुझ गुनहगार को भी, आप को भी और हर मोमिन को इन मग्फिरत वाले आमाल की पाबंदी नसीब फरमाए और मुबारक रात की बरकात व मग्फिरत नसीब फरमाए, आमीन (एडमिन हक़ का दाई)* 

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