*✦ उमर ए सानी - अब्दुल्लाह बिन अज़ीज़ ✦*
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*✺ हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. ✺*
*★_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ख्वाब देख रहे थे, ख्वाब से बेदार हुए तो आंखे मलते हुए उठ खड़े हुए, आपसे ख्वाब के बारे में पूछा गया तो फरमाया:- मेरी औलाद में से एक शख़्स होगा, उसकी पेशानी पर ज़ख्म का निशान होगा, वो ज़मीन को अद्ल व इन्साफ से भर देगा _,*
*★_ उस ख्वाब के बाद आप अक्सर फरमाया करते थे :- मेरी औलाद में से वो कौन है जो ज़ख्मी पेशानी वाला होगा_,*
*"_ दर असल उस वक़्त आपकी औलाद में से किसी की पेशानी पर भी ज़ख्म का निशान नहीं था, लिहाज़ा उस ख़्वाब की ताबीर समझ में नहीं आ रही थी, लेकिन ये ख्वाब था हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का, किसी आम आदमी का ख्वाब तो था नहीं, ये तो हो नहीं सकता था कि उसकी कोई ताबीर न हो _,*
*★_दूसरी तरफ आपने हिदायत फरमा दी थी कि आपकी औलाद में से कोई ख़लीफा नहीं बनेगा, यानि आपने अपनी औलाद को ख़िलाफत से महरूम कर दिया था, आपने जब ये ख्वाब अपने घर वालों को सुनाया था तो खुशी तो उन्हें भी हुई थी लेकिन ताबीर समझ में नहीं आई थी, अलबत्ता अब सब लोग ख्वाब की ताबीर का इंतज़ार कर रहे थे, आपके फरज़ंद हजरत अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु तो अक्सर अपने वालिद मोहतरम का क़ौल दोहराया करते थे, काश ! मुझे मालूम होता कि हजरत उमर की औलाद में से वो कौन है जिसके चेहरे पर ज़ख्म का निशान होगा, वो मेरी सीरत को अपनाएगा और ज़मीन को अद्ल व इंसाफ से भर देगा _,*
*★_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु एक रात गश्त कर रहे थे, आपने किसी औरत को कहते सुना - बेटी दूध में पानी मिला दे, सुबह होने वाली है_,*
*"_ जवाब में लड़की की आवाज़ सुनाई दी- माँ दूध में पानी कैसे मिलाऊं, अमीरुल मोमिनीन ने तो दूध में पानी मिलाने से मना कर रखा है _,"*
*"_ इस पर माँ की आवाज़ सुनाई दी- अमीरुल मोमिनीन कौनसा देख रहे हैं _,*
*"_बेटी का जवाब सुनाई दिया - माँ अमीरुल मोमिनीन नहीं देख रहे लेकिन अल्लाह तो देख रहा है _,"*
*★_लड़की की बातें सुन कर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत खुश हुए, सुबह हुई तो आपने अपने बेटे हज़रत आसिम को बुला कर रात का वाक़िया सुनाया और फरमाया: जाओ पूछो! वो लड़की कौन है, हज़रत आसिम गए, मालूम हुआ उस लड़की का ताल्लुक़ बनी हिलाल से है, उन्होंने आ कर वालिद मोहतरम को बताया, तब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - बेटा जाओ! उस लड़की से निकाह कर लो...वो यक़ीनन इस क़ाबिल है कि उससे एक ऐसा शख़्स पैदा हो जो सारे अरब की क़यादत करे _,"*
*★_ वालिद मोहतरम का हुक्म सुन कर हज़रत आसिम ने उस लड़की से निकाह कर लिया, उससे एक लड़की पैदा हुई, उस बच्ची का निकाह अब्दुल अज़ीज़ बिन मरवान बिन हकम से हुआ, उनसे उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह पैदा हुए, आप मदीना तय्यबा में पैदा हुए,*
*★_बचपन में आप हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में अक्सर हाज़िर होते थे, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी वाल्दा के चाचा थे, उनके पास से वापस अपनी माँ के पास आते तो उनसे कहते- माँ मैं अपने मामू ( यानि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु) जैसा बनना चाहता हूँ _,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह कुछ बड़े हुए तो उनके वालिद अब्दुल अज़ीज़ बिन मरवान मिस्र के गवर्नर बना दिए गए, उनके बड़े भाई अब्दुल मलिक बिन मरवान उस वक्त अमीरुल मोमिनीन थे, आपके वालिद तो मिस्र चले गए, बाद में उन्होंने अपनी बीवी को भी मिस्र बुला लिया, वो बच्चे को ले कर मिस्र जाने लगीं तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे कहा- इस बच्चे को मेरे पास छोड़ दो _,"*
*★_चुनांचे आपको मामू के यहां छोड़ दिया गया, वालिदा मिस्र चली गई, अब्दुल अज़ीज़ ने बच्चे के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- बच्चे को मामू ने अपने पास रख लिया है, ये सुन कर अब्दुल अज़ीज़ ने भी ख़ुशी का इज़हार किया और ये बात उन्होंने अपने भाई अमीरुल मोमिनीन अब्दुल मलिक बिन मरवान को लिख भेजी, अब्दुल मलिक ने उनका एक हज़ार दीनार माहाना वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया,*
*★_ कुछ अरसा बाद आप अपने वालिद से मिलने मिस्र आए, अपने भाई असबग बिन अब्दुल अज़ीज़ के साथ घोड़े देखने के लिए अस्तबल में चले गए और एक घोड़े पर सवार हो गए, घोड़ा शौक था, उसने अपने सवार को नीचे गिरा दिया, आपकी पेशानी पर चोट लगी और खून तेज़ी से बहने लगा, आपके भाई असबग ने जो ये देखा तो बजाए घबराने और परेशान होने के ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे,*
*★_ अब्दुल अज़ीज़ बिन मरवान को मालूम हुआ तो दौड़ कर आए, देखा कि उनका छोटा बेटा भाई के बुरी तरह जख्मी होने पर कहकहा लगा रहा है, उन्होंने गुस्से में आ कर कहा - तुम्हारे भाई की पेशानी पर ज़ख्म आ गया, ज़ख्म से खून बह रहा है और तुम हंस रहे हो, इस पर असबग ने कहा - बाबा जान ! ये बात नहीं है कि मैं इनके गिरने पर परेशान हूं, ना चोट लगने पर, असल बात ये है कि हमारे घराने में ये बात मशहूर है कि एक पेशानी पर ज़ख्म के निशान वाला अद्ल व इंसाफ से ज़मीन को भर देगा और आज तक हमें ये मालूम ही नहीं हो सका था कि वो कौन है, सो आज मालूम हो गया, वो यहीं मेरे भाई हैं, तो आज उस ख्वाब की तमाम अलमते पूरी हो गई हैं, अल्लाह की कसम! यही बनी उमैय्या के ज़ख़्मी पेशानी वाले हैं _,*
*★_अब्दुल अज़ीज़ बिन मरवान ये सुन कर ख़ुश हुए और बोले - जिस शख़्स से ये उम्मीदें हों उसकी तालीम व तरबियत मदीना मुनव्वरा ही में होनी चाहिए,*
*★_ इस ज़ख्म की वजह से अब्दुल मलिक के बेटे आपसे हसद करने लगे, लेकिन अब्दुल मलिक आपसे बहुत मुहब्बत करते थे, उन्हें अपने पास बिठाते थे, आपके सर पर मुहब्बत से हाथ फैरते थे और उन्हें ऊँची जगह बिठाते थे, कोई ऐतराज़ करता कि आख़िर आप इस बच्चे को इतनी इज़्ज़त क्यों देते हैं, कहते- तुम्हें क्या पता! इस बच्चे का क्या मुकाम है, ये खलीफा होंगे, क्योंकि ये बनी मरवान के ज़ख्मी पेशानी वाले हैं और सैय्यदना फारूक़ ए आज़म रजियल्लाहु अन्हु के ख्वाब की ताबीर हैं, जब ज़मीन जुल्म व सितम से भर जाएगी तो ये अद्ल व इंसाफ से भर देंगे, फिर मैं क्यों ना इन्हे ऊंची जगह बिठाऊं _,*
*★_ मदीना उस वक्त इल्म का मरकज़ था, इल्म के इस मरकज़ में आपने इल्म हासिल किया, कुरान ए करीम हिफ्ज़ किया, उनके उस्ताद सालेह बिन कैसान थे, खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान ने हजरत उमर को आपकी शागिर्दी में दे दिया, सालेह बिन कैसान उस वक़्त के मशहूर मुहद्दिस थे, ये कैसे उस्ताद थे इस वाक़िए से अंदाज़ा हो जाता है _,*
*★_ एक रोज़ हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ देर से मस्जिद में आए, जमात हो चुकी थी, सालेह बिन कैसान ने उनसे पूछा- देर से क्यूं आए, उन्होंने जवाब दिया- बाल संवारने में देर हो गई, शागिर्द का जवाब सुन कर सालेह बिन कैसान बहुत हैरान हुए, उन्होंने सोचा, इनके दिल में नमाज़ से ज़्यादा बालों की अहमियत है, उन्होंने फौरन ये बात आपके वालिद अब्दुल अज़ीज़ को लिख भेजी, उन्होंने मिस्र से एक आदमी को रवाना किया, मदीना मुनव्वरा में दाख़िल होने के बाद सबसे पहले उसने हज़रत उमर रहमतुल्लाह के बाल मुंडवा डाले, फिर किसी से कोई बात नहीं की,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के एक और उस्ताद अब्दुल्लाह बिन अब्दुल्लाह थे, हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ उनसे बहुत मुहब्बत करते थे, अक्सर उनकी खिदमत में हाज़िर रहते थे, इसलिए कि आप इल्म का समंदर थे, उस्ताद का आपकी जिंदगी पर बहुत असर रहा, एक मरतबा अपनी अहलिया फातिमा से कहने लगे- फातिमा ! जब मुझे गुस्सा आता है तो अपने सामने अपने उस्ताद अब्दुल्लाह को खड़ा पाता हूं और महसूस करता हूं, आप मुझे गुस्से से मना फरमा रहे हैं _,*
*★_ मदीना मुनव्वरा में आपने हदीस और फ़िक़ह की तालीम हासिल की, उन्हीं दिनों आपके वालिद अब्दुल अज़ीज़ इंतिक़ाल कर गए तो खलीफा अब्दुल मलिक ने आपको अपने बच्चों में शामिल कर लिया और अपनी बेटी फातिमा से आपका निकाह कर दिया, फ़िर अब्दुल मलिक बिन मरवान इंतिक़ाल कर गए, उनकी जगह उनका बेटा वलीद बिन अब्दुल मलिक खलीफा बन गया, उस वक्त हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज की उमर 25 साल थी, तब वलीद ने आपको मदीना मुनव्वरा का हाकिम मुकर्रर कर दिया,*
*★_ आप रबीउल अव्वल 87 हिजरी में मदीना मुनव्वरा के हाकिम मुकर्रर हुए और इस शान व शोकत से मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए कि ऊंटों का जुलूस आपके साथ था, मदीना मुनव्वरा के लोग आपकी आमद पर खुश हुए, आप अपने दादा मरवान के घर ठहरे, ये बहुत वसी और शानदार घर था, लोग आपको मुबारक बाद देने के लिए आने लगे,*
*★_ आपके जिस्म से खुशबुएं उठ रही थीं, आप सोने का चमचा मुंह में ले कर पैदा हुए थे, नाज़ और नियामत में पले थे, खिदमत गुज़ार आपके आस-पास रहते थे, दौलत की कमी नहीं थी, इन सब बातों ने आपके मिज़ाज में शान और शौकत पैदा कर दी थी, आपने बाल बढ़ाए हुए थे, तेहबंद जूतो पर गिरा हुआ था, इठला इठला कर चलते थे, ग़रज़ बचपन की कोई अदा आपने अब तक छोड़ी नहीं थी,*
*★_ आपने खलीफा वलीद से एक बात पहले कह दी थी और वो ये थी- मुझसे ज़ालिम के कामों पर बाज़ पुर्स न की जाए, मतलब ये था कि मैं ज़ालिम को नहीं छोड़ूंगा, आपने मदीना मुनव्वरा की गवर्नरी की इब्तिदा इस तरह की कि चोटी के पांच छः आलिमों को मशवरे के लिए मुकर्रर कर लिया, आप उनसे मशवरा करते रहते थे, कभी कभी आप उनके मशवरो से इख्तिलाफ भी करते थे, उस वक्त तक आपको अशआर वगैरह सुनने की आदत भी थी, अशआर सुनाने वालों को इनाम भी दे दिया करते थे, जवानी में आपकी ये हालत थी कपड़े भी बहुत की़मती पहनते थे, बड़े-बड़े बाल रखते थे,*
*★_ एक रोज़ आप मस्जिद में गए और नमाज पढ़ने लगे, बुलंद आवाज से कुरान पढ़ने लगे, आपके नज़दीक ही हजरत सईद बिन मुसय्यब थे, उन्हानें बुलंद आवाज़ में क़िरात सुनी तो अपने गुलाम से बोले- अरे! इस नमाज़ी को हमारे पास से हटा दे, क्योंकि इसकी क़िरात से हमें तकलीफ़ हो रही है _,,*
*★_गुलाम ने ये कोशिश की लेकिन हजरत उमर रहमतुल्लाह बराबर क़िरात करते रहे, सईद बिन मुसय्यब ने अपने गुलाम से दोबारा फरमाया- क्या मैंने तुमसे कहा नहीं कि इस नमाज़ी को हमारे पास से हटा दे _,*
*"_ गुलाम बेचारा गवर्नर साहब को पहचानता था, वो उन्हें वहां से हटने के लिए कहने से घबरा रहा था, चुनांचे उसने क़दरे बुलंद आवाज़ में कहा - मस्जिद हमारी जागीर नहीं है_"*
*"_हज़रत उमर ने ये अल्फ़ाज़ सुन लिये, वो समझ गए कि क्या मामला है, चुनांचे वहां से हट कर दूर गोशे में जा कर नमाज़ अदा करने लगे,*
*★_ आप कुरान ए करीम की तिलावत बहुत बन संवर कर किया करते थे, एक रोज़ मुस्लिम बिन जुंदुब से कुरान सुना, ये मस्जिद के वाइज़ और का़री थे, कुरान ए पाक बेहतरीन तरतील के साथ पढ़ते थे, आपको उनकी क़िरात बहुत अच्छी लगी, आपने उस मोके पर फरमाया - अगर कोई कुरान को तरो ताज़ा सुनना चाहे तो मुस्लिम बिन जुन्दुब की क़िरात सुने,*
*★_ उस ज़माने में आपको मज़ाक करने की भी आदत थी, ताहम हद से नहीं बढ़ते थे, मदीना मुनव्वरा के लोग आपको उस ज़माने में या अमीर या अमीर कहने लगे थे, गवर्नर होने की हैसियत से अब उन्हें कोई उमर नहीं कहता था,*
*★_ एक रोज़ आप मदीना मुनव्वरा के बाज़ार से गुज़र रहे थे और हालत ये थी कि आपका कपड़ा ज़मीन से लग रहा था और घिसट रहा था, मुहम्मद बिन काब क़ुरतुबी ने देख लिया, उन्होन आवाज़ दे कर कहा - ए उमर! रहमते आलम ﷺ ने फरमाया - जो कपड़ा टखनों से आगे बढ़ जाए वो आग में है,*
*★_हज़रत उमर रहमतुल्लाह को ये सुनकर गुस्सा आ गया, उन्होन हज़रत काब क़ुरतुबी को सख़्त लेहजे में जवाब दिया, हज़रत काब तो उनके ख़ैरख्वाह थे, उनका भला चाहते थे, बाद में हज़रत उमर रहमतुल्लाह को भी महसूस हो गया कि काब क़ुरतुबी की नियत नेक है,*
*★_ फ़िर एक वाक़िया ऐसा हुआ कि जिसने हज़रत उमर रहमतुल्लाह को बदल कर रख दिया, एक शख़्स ने कोई जुर्म किया, हज़रत उमर ने उसे क़ैद कर दिया और जितनी सज़ा उसकी बनती थी उससे ज़्यादा उसे क़ैद में रखा, हजरत मुजा़हम ने आपसे मुलाक़ात की, हजरत मुजा़हम बहुत बड़े बुजुर्ग थे, उन्होंने मुलाक़ात के दौरन उनसे कहा- आप उस शख्स को रिहा कर दें, उसकी सजा की मुद्दत पूरी हो चुकी है, आप ये बात सुन कर गुस्से में आ गए और बोले: मैं उसे नहीं छोड़ूंगा यहां तक कि कुछ और मुद्दत गुज़र जाए,*
*★_हजरत मुजा़हम ने फ़ोरन फ़रमाया - उमर ! मै तुम्हें उस सुबह से डराता हू्ं कि जिस सूबह क़यामत आएगी, उमर मैं तो तुम्हारा नाम ही भूल गया हूं, क्योंकि लोग तुम्हें कसरत से अमीर, अमीर कहते हैं, अमीर ने ये कहा अमीर ने वो कहा,*
*★_हजरत मुजा़हम की ये बात सुन कर उन्हें जिंदगी में पहली बार झटका लगा, खुद फरमाते हैं- मुझे मुजा़हम ही ने बेदार किया, जोंही उन्होंने ये बात कही मुझे ऐसा मालूम हुआ गोया मेरे सामने से पर्दा हटा दिया गया हो_," (इब्ने जोजी़)*
*★_ खलीफा वलीद ने हजरत उमर को हुक्म भेजा- मस्जिदे नबवी को वसी कराया जाए और उम्माहातुल मोमिनीन के हुजरे मस्जिद में मिला दिये जाए, इसके पहले वलीद के वालिद अब्दुल मलिक ने मस्जिद वसी करने का इरादा किया था लेकिन मदीना मुनव्वरा के लोग चीख पड़े थे और रोने लग गए थे, इसलिए वो अपने इस इरादे से रुक गए थे, अब वलीद ने महसूस किया कि ये काम उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के लिए ज़रिए लिया जा सकता है,*
*★_ आपने पहले उलमा किराम को जमा किया, उनके सामने खलीफा का हुक्म रखा, उन सबने यही कहा कि मस्जिद को वसी करना बहुत ज़रूरी है, फिर सब उलमा मस्जिदे नबवी में आए ताकि निशानदही कर सकें कि मस्जिद कहां तक वसी की जा सकती है, इस तरह हज़रत उमर ने उम्माहातुल मोमिनीन के हुजरे मस्जिद में शामिल कर दिये, मस्जिद के चारों तरफ जो ज़मीन थी, उसे भी खरीद कर मस्जिद में शामिल कर दिया_,*
*★_इस तरह महराब को भी आगे बढ़ाया गया, मस्जिद को बहुत खूबसूरत बनवाया, मीनार बुलंद कर दिया, हज़रत उमर सबसे पहले शख़्स हैं, जिन्होने महराबो के नीचे इमाम के खड़े होने की जगह बनवाई,*
*★_जब अज़ान देने के लिए मिनारा बनाया गया तो बहुत से मुसलमान मुल्को में भी अज़ान के लिए मीनारें बनाये जाने लगे,*
*★_ इसके बाद हजरत उमर को वलीद का एक और हुक्म मिला, वो हुक्म ये था- घाटियां आसान बनाई जाएं, जगह जगह कुंवे खुदवाए जाए', हाजियों के रास्ते में होटल और सरायें खुरासान के रास्ते में कसरत से बनवाएं जाएं, ताकी गुज़रने वालो को मुश्किलें न पेश आयें, उन सरायों में ज़रुरत की चीज़ें रखी जायें, मदीना मुनव्वरा में फ़ौरन फ़व्वारा बनवाया जाये,*
*★_हज़रत उमर ने हिदायत के मुताबिक़ ये तमाम चीज़ें बनवाई, हज़रत उमर के इन तमाम कामों से ख़ुश हो कर वलीद ने आपको मदीना मुनव्वरा के साथ मक्का मुअज्ज़मा और ता'इफ का भी हाकिम बना दिया, 90 हिजरी में आपको सारे सूबा हिजाज़ पर वली मुकर्रर कर दिया गया,*
*★_91 हिजरी में वलीद हज के लिए आया, उसके लिए मस्जिदे नबवी खाली कराई गई, अलबत्ता सईद बिन मुसय्यब रह. अपनी जगह से ना उठे, उनसे कहा गया कि खलीफा मस्जिद में होने वाली तबदीली को देखने के लिए आ रहे हैं, आप यहां से हट जाएं, मस्जिद से बाहर निकल जाएं, लेकिन हजरत मुसय्यब ने उठने से इनकार कर दिया, आपने पचास साल से कभी तकबीरे तहरीमा नहीं छोड़ी थी, वलीद के हुक्म पर कैसे उठ जाते,*
*★_दूसरी तरफ सईद बिन मुसय्यब ने वलीद की बैत करने से भी इनकार कर दिया था, इसलिए वलीद उनसे सख्त नाराज़ था, अब दूसरी बात ये हो गई कि वो उसके आने पर मस्जिद से बाहर नहीं गए,*
*★_वलीद मस्जिद में दाखिल हुआ, उसने देखा मस्जिद बिल्कुल खाली है, लेकिन सिर्फ एक शख़्स मोजूद है, चुनांचे उसने पूछा- ये शख़्स कौन है, क्या ये सईद है? हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने जवाब में कहा - जी हाँ! ये वही हैं, अगर इन्हें आपके बारे में मालूम होता तो ये अपनी जगह से उठ जाते, आपको सलाम करते, मगर इनकी नज़र कमज़ोर है_,*
*★_ इस पर वलीद ने कहा - हमें इनका हाल मालूम है, हम उनके पास चले जाते हैं, अब वलीद खुद उनके पास गया और बोला - शेख आपका क्या हाल है? हज़रत सईद बिन मुसय्यब अपनी जगह से ज़रा भी न हिले, अलबत्ता उन्होंने कहा- अल्हम्दुलिल्लाह मैं खैरियत से हूं, अमीरुल मोमिनीन का क्या हाल है?_,"*
*"_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह उनके किरदार की मज़बूती से बहुत मुतास्सिर हुए,*
*★_इसी तरह मदीना मुनव्वरा के बाक़ी लोग भी वलीद से खुश नहीं थे, क्योंकि उसने उम्महातुल मोमिनीन के हुजरों को गिरा दिया था, लोगों में उसके ख़िलाफ़ ग़म और गुस्सा था, फ़िर वलीद का इंतेक़ाल हो गया और उसके भाई सुलेमान ख़लीफ़ा बने, आपको सुलेमान बिन अब्दुल मलिक वलीद की निस्बत पसंद थे, वो नर्म मिजाज़ थे, इधर सुलेमान भी उमर को बहुत पसंद करते थे,*
*★_ फिर जब सुलेमान की मौत क़रीब आ गई तो उन्होंने कहा- मेरे बच्चे मेरे सामने लाए जाएं, शायद किसी बच्चे में मुझे मर्दानगी के ज़ौहर नज़र आ जाएं, मगर उसे अपने बच्चों में खलीफा बनने के क़ाबिल कोई नज़र ना आए, आखिर उसकी नज़र हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ पर पड़ी, इस सिलसिले में उसने रजा बिन हैवाह से मशवरा किया,*
*★_ राजा बिन हैवाह उर्दुन के उलमा में से थे, तमाम शामियों में अपने जमाने में बड़े इबादत गुज़ार थे, बहुत संजीदा और पुर वका़र इंसान थे, हुक्मरान उनको उनकी फ़ज़ीलत की वजह से अज़ीज़ रखते थे, उन्हें अपना मुशीर मुकर्रर करते थे, अपनी औलाद पर उन्हें निगरां मुकर्रर कर देते थे, उन्होंने अब्दुल मलिक के ज़माने से ले कर सुलेमान तक हुक्मरानों की सख्तियां देखीं थी, ये उन पर तनक़ीद भी करते थे, सुलेमान के ज़माने में तो रजा उसके खास आदमियों में शामिल थे, सुलेमान के नज़दीक उन्हें वो मुका़म हासिल था जो किसी को नहीं था, सुलेमान कसरत से उनसे मशवरा करता था, अब ख़िलाफत के सिलसिले में सुलेमान ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने मशवरा दिया, मेरे नज़दीक उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ हुकुमत के ज़्यादा लायक़ हैं _,*
*★_ इस पर सुलेमान ने कहा- लेकिन मै औलाद अब्दुल मलिक का क्या करूं, अगर उमर को खलीफा बनाता हूं और उनमें से किसी को नहीं बनाता तो फितना उठ खड़ा होगा और वो उसे नहीं छोड़ेंगे जो उन पर हाकिम होगा, हां एक तदबीर ये कि मैं उमर बिन अब्दुल अजीज के बाद किसी को नामज़द कर जाऊं.. तो सुन लो मेरे बाद उमर खलीफा होंगे और उनके बाद यज़ीद बिन अब्दुल मलिक खलीफा होंगे,*
*★_ इस पर रजा बिन हैवाह ने कहा- आप ये वसियत लिख दें और उस पर मुहर लगा दें, मै लोगों से इसके लिए बैत ले लूंगा, जिसका नाम उस बंद खत में होगा, इससे अल्लाह तआला राज़ी होंगे और आप भी,*
*★_ सुलेमान ने रजा का ये मशवारा भी मान लिया, उसने वसीयत लिखी और उस पर मुहर लगवाई, फिर उसे लपेट कर अपने घर वालों को बुलाया और उनसे बोला- इस मुहर शुदा और लिपटे हुए पर्चे में जिस शख्स को खलीफा के लिए नामज़द किया गया है, उसके लिए बैत ले ली जाए,*
*★_ हाज़िरीन ने उसकी वक़्त बैत कर ली, सुलेमान ने वो वसीयत नामा रजा को दे दिया, जब लोग चले गए तो हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह रजा के पास आए और बोले- मेरे दिल में सुलेमान का अहतराम है, मुझे उनसे मुहब्बत है, वो भी मुझ पर मेहरबान हैं, उनके मुझ पर अहसानात भी हैं, मैं डरता हूं उन्होंने खिलाफत के सिलसिले में मेरे बारे में कोई वसीयत ना कर दी हो, मैं तुम्हें अल्लाह का वास्ता दे कर कहता हूं कि मुझे बता दो उसमें किसका नाम है, अगर तुम इस वक्त मुझे बता दोगे तो मै इस क़ाबिल तो हुंगा कि इनकार कर दूं, बाद में मैं इनकार करने के क़ाबिल नहीं रह जाऊंगा,*
*★_ इस पर रजा ने कहा- मैं आपको वसीयत नामे के बारे में एक लफ्ज भी नहीं बताऊंगा, ये सुन कर वो नाराज़ हुए और चले गए, थोड़ी देर बाद फिर आए और बोले- रजा ! अल्लाह के लिए अमीरुल मोमिनीन को मेरे बारे में बता दो कि मैं खिलाफत के क़ाबिल नहीं,*
*"_ रजा ने ये सुन कर कहा- आप वसियत के बारे में जानना चाहते हैं लेकिन मैं आपको कुछ नहीं बता सकता,*
*★_एक दिन सुलेमान ने रजा से कहा - रजा ! तुम जरा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ का इम्तिहान लो ये जानने की कोशिश करो कि उनका जाहिर और बातिन कैसा है, बा जाहिर तो ये बहुत नेक हैं, अच्छे मुशीर हैं लेकिन उनका बातिन कैसा हैं जरूरत तो ये जानने की है,*
*★_ रजा उनका इम्तिहान लेने के लिए उनके घर मेहमान ठहरे, वो वहां रह कर उनका बा गौर जायज़ा लेते रहे, आख़िर वापस आ कर उन्होंने खलीफा सुलेमान को बताया - उमर का क़ौल व फ़ेल एक है जो कहते हैं वो करते भी हैं,*
*"_इस तरह रजा और सुलेमान लोगों के लिए खैर का सबाब बने कि उन्होंने हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह को खलीफा बना दिया,*
*★_ एक रोज़ सुलेमान तफ़रीह के लिए अच्छे कपड़े पहन कर घर से निकला, रास्ते में एक टीले पर एक क़ब्र नज़र आई, घर वापस आया तो उसी रात बीमार हो गया, फिर बीमारी ज़ोर पकड़ती चली गई, इस तरह दूसरे या तीसरे दिन को वो फ़ौत हो गया, उस वक़्त सुलेमान के पास सिर्फ रजा मौजूद थे, उन्होन उस पर सब्ज़ चादर डाल दी और लोगों के दरमियान पहुंचे, ऐलान करवाया कि सब लोग जमा हो जाएं, खलीफा की वसीयत सुनाना चाहता हूं,*
*★_इस तरह जब सब लोग जमा हो गए तो रजा ने वो कागज़ निकाल कर लहराया और बोले- ये है वो वसीयत जिसमें नए खलीफा का नाम मौजूद है, तुम सब लोग उस शख़्स के लिए बैत करो जिसका नाम इस ख़त में दर्ज है और इख़्तिलाफ़ न करो, वर्ना दूसरे इस इख़्तिलाफ़ से फ़ायदा उठाएँगे, चुनांचे एक एक शख़्स ने बैत की, जब रजा ने देखा कि सब लोग बैत कर चुके हैं तो बोले- अल्लाह तुम सबको अजर् अता फरमाये, अमीरुल मोमिनीन फौत हो गए हैं _,"*
*★_ इसके बाद रजा ने उस वसीयत नामे की मुहर को तोड़ दिया ताकि लोगों को पढ़ कर सुनाएं, उस वक्त लोगों के दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे थे कि ना जाने खलीफा सुलेमान ने किसे खलीफा बनाया है, फिर रजा ने वसीयत पढ़ कर सुनाई, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह का नाम ख़लीफा के तौर पर सुन कर हिशाम बिन अब्दुल मलिक पर बिजली गिरी, उसने चिल्ला कर कहा- नहीं! अल्लाह की कसम ये नहीं हो सकता_,*
*★_उसके ये कहने पर एक शामी ने तलवार सौंत ली और बोला- खलीफा सुलेमान ने जिस बात का हुक्म दिया है तुम उसके मानने से इंकार करते हो, इस पर हिशाम ने कहा- अगर खलीफा अब्दुल मलिक के खानदान का होगा तो हम मानेंगे और इता'त करेंगे,*
*"_इस पर रजा बोल पड़े - अगर तुम इनकार करोगे तो तुम्हारी गर्दन उड़ा देंगे,*
*"_साथ ही लोगों ने हिशाम को पकड़ कर घसीटा तब उसने कहा - हमने सुना और इता'त की _,*
*★_ इसके बाद रजा ने वसीयत नामे का अगला हिस्सा पढ़ा:- और उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के बाद यज़ीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा होंगे _,*
*"_ अब सब लोगों ने और हिशाम ने भी यही कहा- हमने सुना और इता'त की_,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह उस वक़्त सब लोगों के पीछे बैठे थे और ख़लीफ़ा बनने पर इन्ना लिल्लाह पढ़ रहे थे और कह रहे थे - अल्लाह जानता है, मैंने जाहिर और बातिन में कभी भी ख़िलाफत की ख्वाहिश नहीं की_,*
*★_ ऐसे में रजा आपकी तरफ बढ़े, ताकि ख़िलाफत आपको सौंप दें, नज़दीक पहुंच कर उन्होंने कहा- ए उमर! मिंबर पर आ जाएं और लोगो से कुछ फरमाएं_,"*
*"_ हजरत उमर ने फरमाया - मुझे इससे अलग ही रखिये_," रजा ने फोरन कहा- अल्लाह के लिए ऐसी बातें मुंह से ना निकालें, वर्ना लोगों में फितना खड़ा हो जाएगा और फूट पड़ जाएगी_,*
*★_फिर रजा आपको बाजु से पकड़ कर मिम्बर तक ले आये, आपमें उस वक्त इतनी ताक़त नहीं रही थी कि मिम्बर पर चढ़ सकते, रजा ने आपको बाज़ू से पकड़ कर मदद दी, आख़िर आपने फरमाया- लोगों! इस सिलसिले में मुसलमानों से मशवरा नहीं लिया गया, मुझे खिलाफत की कोई ख्वाहिश नहीं, मैं अपनी बैत से तुम लोगों को आज़ाद करता हूं, तुम खुद अपने लिए खलीफा चुन लो_,"*
*★_लोग घबरा गए, उनको हज़रत उमर रहमतुल्लाह के अल्फ़ाज़ सुन कर हैरत हुई थी, इससे पहले कि मुसलमानों में फुट पड़ जाती, एक अंसारी उठ खड़े हुए और बोले - अल्लाह की क़सम ए उमर! इस तरह तो हालात खराब हो जाएंगे, आप अपना हाथ आगे बढ़ाएं, ताकि हम बैत कर लें, फिर सब लोग बैत के लिए उमड़ पड़े,*
*★_जब लोग बैत कर चुके तो आपने लोगों से फरमाया - मैं तुम्हें तक़वा का हुक्म देता हूं, क्योंकि तक़वा हर चीज़ का बदल है और तक़वा का बदल कोई चीज़ नहीं, इसलिए अपनी आखिरत के लिए अमल करो, क्योंकि जो आखिरत के लिए अमल करता है, अल्लाह ताला उसके दुनिया के तमाम काम बना देता है, अपने बातिन संवार लो, अल्लाह तआला तुम्हारा ज़ाहिर भी संवार देगा और मौत को याद करो और मौत आने से पहले उसके लिए अच्छी तरह तैयार रहो, देखो! उम्मते मुहम्मदिया का अल्लाह एक है, रसूल एक है और किताब एक है, अगर इनका इख्तिलाफ है तो रुपिये पैसे में है, मैं किसी को बातिल तरीक़े से देने वाला नहीं और ना किसी का हक़ रखने वाला हूं _,"*
*★_फिर आपने क़दरे बुलंद आवाज़ में फरमाया- लोगो! जो अल्लाह का इताअत गुज़ार है, उस पर मेरी इताअत भी वाजिब है और जो अल्लाह का नाफरमान है, उस पर मेरी इताअत नहीं, जब तक मैं अल्लाह की इताअत करूं, तुम भी मेरी इताअत करो और अगर मैं अल्लाह की नाफ़रमानी करुं तुम मेरी इताअत ना करना_,"*
*"_ये कह कर आप मिम्बर से उतर आये, ये 10 सफ़र 99 हिजरी की तारीख थी,*
*★_ आप मिंबर से उतर कर थोड़ी देर तक मिंबर के पास ही अपना सर घुटनो में दे कर बैठे रहे और रोते रहे, लोग खुसर पुसर करने लगे कि उमर खिलाफत मिलने पर खुश हो कर रो रहे हैं, आखिर लोग उठ खड़े हुए और अपनी अपनी सवारियों पर सवार हो कर वापस हुवे मगर हज़रत उमर पैदल ही घर पहुंचे,*
*★_ इसके बाद सुलेमान को दफ़न किया गया, हज़रत उमर रहमतुल्लाह और सुलेमान के तीन बेटे क़ब्र में उतरे, जब सुलेमान की मय्यत उठाई गई तो ऐसा मेहसूस हुआ जैसे सुलेमान हाथ हिला रहे हों, ये देख कर उनका एक बेटा बोल उठा:- अल्लाह की कसम! मेरे वालिद ज़िंदा हो गये _,"*
*"_ इस पर हज़रत उमर रहमतुल्लाह ने फरमाया - ऐसी बात नहीं_,"*
*★_ सुलेमान के दफ़न के बाद लोगो ने ये अफ़वाह उड़ा दी कि उसे ज़िंदा दफ़न कर दिया गया है, इस बात का इमकान है कि वो सिर्फ बेहोश हों और फ़ौत ना हुए हों... लोगों ने ये भी कहा कि इक़्तिदार की मुहब्बत में सुलेमान को दफ़न करने में जल्दी की गई, लोग बनी मरवान और बनी अब्दुल मलिक के पास गए, उनसे भी उन्होंने यहीं कहा- सुलेमान को दफ़न करने में जल्दी की गई, अगर उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ख़िलाफ़त से ख़ुश ना होते तो दफ़न में जल्दी ना करते_,"*
*★_अब्दुल रहमान बिन हकम बिन आसिम को इन बातों के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने हिशाम बिन अब्दुल मलिक को सख्त ख़त लिखा कि तुम लोग क्या बातें कर रहे हो, बहरहाल हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ खलीफा बन गए, सब लोगों ने आपके हाथ पर बैत कर ली, लेकिन आप एसे हुक्मरान नहीं बनना चाहते थे जो मनमानी करते हों, आप खिलाफत को शूरा की बुनियाद पर चलाना चाहते थे _,"*
*★_चारो खुल्फा ए राशीदीन ने खिलाफत को शूरा की बुनियाद पर चलाया था लेकिन ये शुराई निज़ाम ख़त्म हुआ जा रहा था, हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ इसे फिर से जारी करना चाहते थे, ख़िलाफ़त के कामो में काफ़ी खराबियां पैदा हो चुकी थी, ख़िलाफ़त की असल शक्ल जो हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में थी, अब माज़ी की बातें हो गईं थी, इन सब बातों के बावज़ूद बनु उमय्या के ख़ुल्फ़ा में बहुत ख़ूबियां भी थी, उन्होंने बेशुमार इलाक़े फ़तेह किए, नई मसाजिद बनाई, शहर आबाद कराए, उनमे इस्लाहात कराऐ, ये आलिम फ़ाज़िल हुक्मरान थे,*
*★_ बहर हाल हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह मुकम्मल तोर पर खुल्फ़ा ए राशिदा वाला निज़ाम राइज़ करना चाहते थे, वो निज़ाम जिसमें एक बुढ़िया भी वक़्त के ख़लीफ़ा का दामन पकड़ कर उसे टोक सकती थी, वो निज़ाम जिसमें रिआया को अपनी जान और माल का पूरा इत्मिनान था, उसकी बात सुनी जाती थी लेकिन ये काम आसान नहीं था, इंतेहाई मुश्किल और ख़तरनाक तरीन था, मगर आपने अपना काम शुरू कर दिया,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने खलीफा बनने के बाद सबसे पहले लोगों के गसब शुदा माल और जायदादें उन्हें वापस दिलवाई, बाज़ गवर्नरों और मालदारों ने गरीबों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर रखा था, वो उन्हें वापस ले कर उन गरीबों को दी, कहने को ये काम आसान नहीं था बहुत मुश्किल काम था, सारे खानदान, मालदार और हुकुमत के बड़े बड़े लोगों को अपना मुखालिफ बना लिया था, लेकिन आप डट गए, किसी की परवाह नहीं की और गरीबों को उनके हक़ दिलवाने का काम शुरू कर दिया, इस काम को आपने पहले नंबर पर रखा,*
*★_ खुद आपके अपने पास विरासत में मिली हुई एक बड़ी जागीर थी, उसके बारे में आपका ख्याल था कि उसको अपने पास रखना जायज़ नहीं, चुनांचे आपने उसे वापस करने का इरादा ज़ाहिर किया, उस वक्त आपके खैर ख्वाहों और दोस्तों ने कहा - अगर आप अपनी जगह वापस कर देंगे तो अपनी औलाद के लिए क्या इंतजाम करेंगे_,'' इस सवाल के जवाब में आपने फरमाया - मै उन्हें अल्लाह के सुपुर्द करता हूं _,"*
*★_इसके बाद आपने अपने खानदान के लोगों को जमा किया और उनसे फरमाया- बनी मरवान ! तुम्हारे पास बेतहाशा दौलत है बल्कि मेरे ख्याल में उम्मत का दो तिहाई माल तुम्हारे क़ब्जे में है, आपने दर असल उन्हें इशारों में समझाया था कि इस माल को वापस कर दो, वो आपके इशारे को समझ गए, उन्होंने सख्त लहजे में कहा - जब तक हमारे सर हमारे जिस्म से अलग ना हो जाएं, हम ये माल वापस नहीं करेंगे, हम क्यों अपनी औलाद को मुफलिस बनाएं,*
*★_इस पर उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने भी सख़्त लहज़े में फरमाया- अल्लाह की क़सम! अगर इस मामले में तुम लोगो ने इंकार किया तो तुम्हे ज़लील और रुसवा कर दूंगा, मेरे पास से चले जाओ _,"*
*★_ इसके बाद आपने आम मुसलमानों को मस्जिद में जमा किया और उनसे फरमाया- हमारे हुक्मरानों ने हमें ऐसी जागीरें अता की जो अता करने का उन्हें कोई हक नहीं पहुंचता था, न हमें लेने का हक़ था, अब मैं उन सबको उनके हकीकी और असल हकदारों को वापस करता हूं और ये काम अपनी जा़त से शुरू करता हूं _,"*
*★_ये फरमाने के बाद आपने शाही जायदादों के रजिस्टर मंगवाए, मुजा़हम आपके पास रजिस्टर खोलते गए, पढ़-पढ़ कर सुनाते गए और आप उनको क़ैंची से काटते गए, सुबह की नमाज़ के बाद शुरू होने वाला ये काम ज़ुहर की नमाज़ तक जारी रहा, आपने अपनी और अपने खानदान की एक एक जागीर वापस कर दी, यहाँ तक कि आपने अपने पास एक नगीना भी न रहने दिया, (तबका़त इब्ने साद)*
*★_ आपकी अहलिया फातिमा को उनके वालिद अब्दुल मलिक ने बहुत की़मती नगीना दिया था, उसके बारे में आपने उनसे फरमाया- इस नगीने को भी बैतुल माल में दाखिल कर दो या फिर मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो जाओ_,"आपकी अहलिया फातिमा खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान की बेटी थी, बहुत वफ़ा शआर थी, उन्होन वो हिरा फ़ौरन बैतुल माल में जमा करा दिया,*
*★_ आपने पुख्ता इरादा कर लिया था कि इस क़िस्म की तमाम जायदादें और जमा शुदा ना-जायज़ माल लोगों में तक़सीम कर के रहेंगे, ज़मीन के एसे टुकड़े भी आम लोगों को दे देंगे, ताकि अवाम के दिलो में हक़ का रौब जम जाए, जिस रौब को पहले हुक्मरान बरबाद कर गए थे, आपने पुख्ता इरादा कर लिया कि इस्लामी तहज़ीब को फिर से जिंदा करूंगा, वो तहज़ीब जो लोगों के दिलों से मिटती जा रही थी,*
*★_ आपने सबसे पहले अपने कपड़े उतार कर फैंक दिए और सिर्फ आठ दिरहम की चादर अपने ऊपर ले ली, फिर हुक्म फरमाया- मेरे पास जो बर्तन हैं उन सबको, सवारियों और कपड़ों को और अतर वगैरा को फरोख्त कर दिया जाए_,"*
*★_चूनांचे ये सब चीजें 23-24 हजार अशर्फियों में फरोख्त हुई, ये सारा रुपया आपने बैतुल माल में जमा करा दिया, गोया इस्लाह का अमल अपने घर से शुरू किया, इसके बाद सरकारी सवारियों को लाया गया, घोड़े ज़ीन कसे हुए क़तारों में आपके सामने खड़े कर दिए गए, उन पर सवार तलवारें सोंते हुए बेठे थे, उन सबसे आगे मुहाफिज़ दस्ते का अफसर था, आपने उससे फरमाया- मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं, मैंने तुम सबको सुबुक दोश कर दिया,*
*★_ फिर आपने क़तारों में अपने खच्चर को तलाश किया, उस पर बैठने के बाद आपने तमाम पहरेदारों को फारिग कर दिया, उनकी तादाद 600 थी, गोया पिछले हुक्मरानों ने अपनी हिफाज़त के लिए ये हिफाज़ती दस्ता रखा हुआ था, जैसा कि आज के ज़माने में हुक्मरान अपनी हिफ़ाज़त के लिए रखते हैं, फ़िर आपने अपने खादिम मज़ाहम से फरमाया- इन क़नातों और दूसरे आराइशी साज़ो सामान सबको बैतुल माल में जमा करा दो _,*
*★_अब हालत ये हो गई कि खुद हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के घर में गुरबत ने डेरे जमा लिए, उनकी अहलिया फातिमा बिन्त अब्दुल मलिक ने दरख्वास्त की - मेरा और मेरे बच्चों का माहाना मुकर्रर कर दिया जाए_, आपने जवाब में फरमाया - बैतुल माल में गूंजाइश नहीं_,"*
*"_ इस पर फातिमा ने कहा- खिलाफत से पहले आप दूसरों से लेते रहे हैं _," आपने जवाब दिया - उस वक्त वो माल मेरे लिए हलाल था, उसका वबाल और गुनाह उन पर था जिन्होंने ना-जायज़ तरीके से माल हासिल किया और खर्च किया लेकिन खलीफा बन जाने के बाद मैं ऐसा नहीं कर सकता _,"*
*★_इस तरह हज़रत उमर रहमतुल्लाह अपनी अहलिया को बराबर समझाते रहे और आख़िर कार वो भी परहेज़गारी के साँचे में ढल गई_,"*
*★_ खलीफा बनने के फौरन बाद आप तीन दिन तक गायब रहे, उन तीन दिनों में आप अपने गुलाम मज़ाहम के साथ दस्तावेज़ जमा करते रहे, उन दस्तवेज़ों में उनकी अपनी जायदाद वगैरा के कागज़ात भी थे और अमीरों की जायदादों और अतियात के कागज़ात भी थे, जब तमाम दस्तावेज़ और इक़रार नामे जमा कर लिए तो एलान करा के सब लोगों को जमा किया, जब लोग जमा हो गए तो आप मिंबर पर तशरीफ लाए, मजा़हम आपके पीछे थे, आपने उस वक्त बिल्कुल मामूली कपड़े पहने हुए थे, उनकी कीमत 12 दिरहम थी,*
*★_ अब आपने तमाम लोगों से फरमाया - लोगों ने हमें अतिआत दिए, उनको कुबूल करना हमारे लिए जायज़ नहीं था और ना उन्हें देना जायज़ था, मेरे ख्याल में उन आतियात में हमसे अल्लाह ताला के सिवा कोई हिसाब लेने वाला नहीं, मैंने ये काम अपने और अपने घर वालों की जा़ती जायदाद से शुरू किया है, मज़ाहम तुम उन्हें पढ़ कर सुनाओ _,"*
*★_ मज़ाहम ने लोगों को वो सब पढ़ कर सुनाया, यानि जायदाद वगेरा की जो तफसीलात थी, फिर आपने क़ैंची से उन तमाम कागज़ात को काटना शुरू किया, काटते चले गए यहाँ तक कि ज़ुहर का वक़्त हो गया और आप यही काम करते रहे, कुछ जायदादें बैगर तहरीर की थीं, यानि ऐसे ही क़ब्ज़ा कर ली गई थी, उनके बारे में आपने एलान फरमाया- कोई शख्स गसब शुदा ज़मीन से फ़ायदा ना उठाए _,*
*★_ फिर जिन ज़मीनों और ख़ैतों के बारे में लोगों का मुतालबा था कि दर असल उनके हैं, वो हक़दारो को दिलवा दिए, खुद आपके क़ब्ज़े में जितने खेत और गुलाम और लोन्डिया थे, सब आपने बैतुल माल में जमा करा दिए,*
*★_ आले बिलाल में से किसी ने आप पर मुक़दमा क़ायम किया, मुक़दमे में कहा गया - हमने आपको खैत फ़रोख़्त किया था, खानें फरोख्त नहीं की थीं, लिहाज़ा हमारी खानें हमें दे दें _,"*
*"_ आले बिलाल ने आपको आन हज़रत ﷺ की एक तहरीर दिखाई, हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने लपक कर उस तहरीर को चूम लिया, उसे अपनी आंखों से लगाया, फिर अपने मुंतज़िम से फरमाया- इसकी आमदनी और खर्च का हिसाब लगा लो और खर्च निकाल कर बाक़ी रक़म इन्हें दे दो_,*
*★_ आपके पास एक ज़मीन यमामा में थी, आपने अपनी वो ज़मीन भी बैतुल माल में जमा करा दी, जिस ज़मीन के आपके पास काग़ज़ात थे, उसका मुनाफ़ा बैतुल माल को दे दिया और आपने ऐलान फरमाया- मैं कभी भी बैतुल माल से एक पैसा नहीं लूंगा_,"*
*★_ उनके जा़ती अख़राजात के लिए बिल्कुल थोड़ी सी ज़मीन थी, उसकी आमदनी सिर्फ दो सो दीनार के क़रीब थी, इस पर आपसे कहा गया- आप भी हज़रत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की तरह बैतुल माल से वज़ीफ़ा ले लिया करें, जवाब में आपने फरमाया - मेरे पास ज़मीन का ये छोटा सा टुकड़ा है, ये मेरे लिए काफ़ी है, फ़ारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु के पास इतना माल भी नहीं था, इसलिए उन्होंने बैतुल माल से लेना कुबूल किया था,*
*★_ इसके बाद आपने फिदक का मसला हल फरमाया, फिदक के बारे में आज भी बातें की जाती है, हजरत अबू बकर सिद्दीक़ रजियल्लाहु अन्हु को बुरा कहा जाता है, लिहाज़ा इस मोके़ पर इस मसले को भी समझ लिया जाए, फिदक मदीना तय्यबा से दो या तीन दिन के फासले पर एक बाग था, उसमें खजूर के दरख्त और पानी के चश्मे थे, आप ﷺ ने लड़ाई के बैगर उसे फतेह किया था,*
*★_ माले गनीमत और माले फे में फर्क है, जो माल जंग के बाद हासिल हो वो माले गनीमत है और जो जंग के बगेर हासिल हो उसको माले फे कहते हैं, आप का माले फे के बारे में फरमान ये था कि माले फे आपकी सुपुर्दगी में रहेगा, आप उसे चाहें जहां खर्च कर सकते हैं _,"*
*★_ लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि ये आपकी मिल्कियत हो गया, इसका मतलब ये था कि ये माल तो अल्लाह का है, रसूलुल्लाह ﷺ उसके अमीन हैं, यानी फ़िदक आपकी ज़ाती मिलकियत नहीं है,*
*★_माले फ़े के बारे में अल्लाह ताला ने वाज़े तौर पर फरमाया है:- सो वो अल्लाह के लिए और रसूल के लिए और क़राबतदारो के लिए यतीमो के लिए और मोहताजों के लिए है _," (सूरह हश्र- 6-7)*
*★_ अब चुंकी फ़िदक भी माले फ़े था, इसलिए इसको आपने अपनी सुपुर्दगी में ले लिया लेकिन ये आपकी ज़ाती मिलकियत नहीं थी, ये आप की विरासत नहीं थी जो अज़ीज़ रिश्तेदारों में तक़सीम होती है, आप इस जायदाद को अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ वहां खर्च कर सकते थे जहां अल्लाह तआला हुक्म फरमाते_,*
*★_ इसी तरह आप ﷺ के बाद जो आप ﷺ का जानशीन बनता, उस पर भी लाज़िम था कि वो माले फ़े को वहीं ख़र्च करे जहां अल्लाह के रसूल ख़र्च करते थे,*
*★_दूसरी तरफ सवाल ये था कि अगर आप ﷺ की कोई ज़ाती मिलकियत हो भी तो क्या उसमें विरासत जारी हो सकती है, इस बारे मे खुद आन हज़रत ﷺ का इरशाद है- हम अंबिया का कोई वारिस नहीं होता, हम जो कुछ छोड़ जाते हैं वो सदका़ यानि आम मुसलमानों का हक़ है _," (बुख़ारी-1/526)*
*★_ इस सारी बहस का ख़ुलासा ये है कि फ़िदक नबी करीम ﷺ की मिलकियत नहीं था बल्कि आप ﷺ उसके मुतवल्ली थे_,*
*★_ आन हज़रत ﷺ की वफ़ात के बाद हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में तशरीफ लायीं और फरमाया- फ़िदक मुझे दिया जाए _,"*
*★_इस पर हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया- मैंने खुद रसूलुल्लाह ﷺ से ये सुना है कि हम गिरोह अंबिया ना किसी के माल के वारिस होते हैं, ना हमारा कोई वारिस होता है, हम जो कुछ छोड़ कर जाएं वो सदका़ होता है, फिर आपने फरमाया, मै इसकी आमदनी उसी तरह ख़र्च करूंगा जिस तरह रसूलुल्लाह ﷺ किया करते थे और आले रसूल उस माल से उसी तरह खायेंगी जिस तरह रसूलुल्लाह ﷺ के ज़माने में खाती थीं और खुदा की क़सम आप ﷺ के क़राबतदारों के साथ सुलूक और अहसान में मुझे अपने क़राबतदारों के साथ सुलूक और अहसान से कहीं ज़्यादा मेहबूब हैं _," (बुखारी)*
*★_ ये निहयात माकूल जवाब था, सैय्यदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा खामोश हो गई, इसके बाद आपने कभी मीरास का मुतालबा नहीं किया, बल्कि अपने मुतालबे पर अफ़सोस किया करती थीं कि क्यूं उन्होंने ये मुतालबा किया,*
*★_फे के ज़रिये हासिल होने वाले तमाम माल का इंतेज़ाम हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में था, उनमें बाग फ़िदक भी था, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद ये इंतेज़ाम हज़रत हसन, फ़िर हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और हसन बिन हसन और फ़िर ज़ैद बिन हसन रह. के हाथों में रहा _," ( बुखारी)*
*★_ इस हुस्ने सुलूक की वजह से सैय्यदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी ख़ुश रही और उनकी औलाद भी ख़ुश व ख़ुराम रहीं,*
*★ _एक मर्तबा किसी ने सय्यदना मुहम्मद बाक़र बिन अली बिन हुसैन रह. से पूछा - क्या आप समझते हैं कि अबू बकर और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम ने आपके हक में किसी क़िस्म की कोई ज़्यादती की है, आपने जवाब में फरमाया - बिल्कुल नहीं! क़सम है उस ज़ात की जिसने उस बंदे से क़ुरान को नाज़िल किया, हमारे हक़ में उन दोनों ने राई के दाने के बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया _,"*
*"_ पूछने वाले ने फिर पूछा - क्या मैं उनसे मुहब्बत करुं, उन्हें दोस्त समझूं, जवाब में उन्होंने फरमाया - हां तू उन दोनों के साथ दुनिया और आखिरत में मुहब्बत रख और अगर कोई वबाल पेश आए तो मेरी गर्दन पर होगा _," (इब्ने अबी अल-हदीद- 4/113)*
*★_हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में कुछ लोगों ने उनसे कहा- आप बाग़ फ़िदक औलादे फातिमा को दे दें, इस पर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - मुझे अल्लाह तआला से हया आती है कि मैं उस चीज को लौटा दूं जिसे देने से अबू बकर ने इंकार किया और उमर ने उनके फरमान को जारी रखा _,"*
*★_सैयदना मुहम्मद बाक़र के भाई सैय्यदना ज़ैद बिन अली बिन हसन रह. फरमाया करते थे- अगर अबू बकर की जगह मैं होता तो मैं भी फ़िदक के मामले में वही कुछ करता जो अबू बकर ने किया था _,"( अल बिदाया व अन निहाया -5/290)*
*★_ मुख्तसर ये है कि सैय्यदना अबू बकर सिद्दीक और सैय्यदना उमर फारूक़ रजियल्लाहु अन्हुम वगैरा ने बाग फिदक के बारे में अहले बैत से कोई ज़्यादती या ज़ुल्म नहीं किया था जिसका आज के दौर में भी चर्चा किया जाता है, बल्कि उन दोनों हज़रात ने रसूलुल्लाह ﷺ की तरह उसकी तक़सीम का इंतेज़ाम सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु को सौंप दिया था, सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु उन दोनों की खिलाफत के दौरान निहायत ख़ुश उसलूबी से ये खिदमत सर अंजाम देते रहे, चुनांचे खुद फरमाते हैं - मुझे रसूलुल्लाह ﷺ ने इस माल का अपने ज़माने में मुतवल्ली बनाया था और मैंने जहां जहां मुनासिब था वहां वहां तक़सीम किया, फिर अबू बकर और उमर रजियल्लाहु अन्हुम की खिलाफत के दौर में भी मै ही इसका मुतवल्ली रहा, (मुसनद इमाम अहमद)*
*★_ ये थी मुख्तसर तफ़सील उस मसले की, अब ये माल हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के क़ब्ज़े में था और इस पर उनकी और उनके घर वालों की गुज़र बसर थी, क्योंकि आपसे पहले खुल्फ़ा ने इसे अपनी जागीर बना लिया था और इसी तरह ये आपकी जागीर बना लेकिन जब आपने अपनी और दूसरो की जायदादें बैतुल माल में जमा करा दीं तो इस माल के बारे में भी आपने फरमाया- इस माल पर मेरा कोई हक़ नहीं, इसकी जो सूरत आप ﷺ के ज़माने में थी, मैं इसे उसी हालत पर लौटाता हूं _," (तबका़त इब्ने साद - 5/128)*
*★_इसी तरह आपने तमाम गसब शुदा जायदादें लोगों से वापस लीं और उनके हकदारों को दिलवाई, आपने ये इस्लाहात सिर्फ शाम ही में नहीं की बल्कि इस्लामी सल्तनत के तमाम गवर्नरों को लिखा-तुम्हारे इलाक़ों में जिन जिन लोगो ने दूसरो के माल गसब कर रखे हैं उनसे वापस ले कर असल हक़दारो को दिये जाएं और इस बारे में क़तई कोई रियायत ना की जाए_,*
*★_ और जब ऐसा किया गया तो सूबो में मुश्किलात पेश आईं तो आपने दारुल हुकुमत से रुपया भिजवा कर निज़ाम को दुरुस्त फरमाया, ये तमाम माल चुंकि मुद्दतो से क़ब्ज़ा शुदा चले आ रहे थे इसलिए उनकी वापसी के सिलसिले में बहुत मुश्किलें पेश आईं,*
*★_ जो लोग इस दुनिया से इंतेक़ाल कर चुके थे, उनके माल उनकी औलादों को दिए गए, ये सिलसिला हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह की वफ़ात तक जारी रहा_,"*
*★_ और ये काम आसान नहीं था मुश्किल तरीन था, जिन बड़े बड़े लोगों से जागीरें छीनी गई थी अब वो आम लोग बन कर रह गए थे, उनकी शान व शौकत और गुरुर खाक में मिल गया था, लिहाज़ा ऐसे लोगों में हजरत उमर रहमतुल्लाह के खिलाफ नफ़रत मौजूद थी वो सब आपसे शहीद नाराज़ थे, लिहाज़ा वो आपके ख़िलाफ साज़िशों में लग गए, उन्होंने आपके बारे में तरह तरह की अफ़वाहें फ़ैलाना शुरू कर दी हैं, तरह तरह के एतराजा़त शुरू कर दिए, लेकिन आपने उन लोगों की कोई परवाह नहीं की और अपना काम करते रहे,*
*★_सबसे पहली साजिश ये की कि उनकी फूफी फातिमा को उनके खिलाफ वरगलाने की कोशिश शुरू की, फातिमा बिन्त मरवान एक बुलंद पाया और खुद्दार खातून थीं, जब इन सब साजिशियों ने उनके कान भरे तो उन्होंने हजरत उमर रहमतुल्लाह को एक पैगाम भेजा कि मै एक अहम काम के सिलसिले में तुमसे मिलना चाहती हूं, ये पैगाम भेज कर फातिमा घोड़े पर सवार हुईं और हजरत उमर के पास पहुंच गईं, हजरत उमर उनके इस्तकबाल के लिए खुद उठे और उन्हें घोड़े से उतरने में मदद दी, निहायत अहतराम के साथ बिठाया, फातिमा बिन्त मरवान ने अपनी आमद का सबब बताया,*
*★_ आपने जवाब में अर्ज़ किया - फूफी जान ! जब आन हज़रत ﷺ इस दुनिया से रुखसत हुए तो लोगों को एक आबाद घाट पर छोड़ कर रुखसत हुए, फिर उस वक्त का खलीफा एक ऐसा शख़्स बना जिसने उसमें कोई कमी बेशी नहीं की, फिर एक के बाद दीगर मुख्तलिफ़ हज़रात के हाथों में इंतेज़ाम आया, बाद में आने वाले कुछ लोगो ने इसमें कमी बेशी की, अल्लाह की क़सम! अगर अल्लाह ने मुझे जिंदगी अता फ़रमाई तो मैं इस इंतेजाम को साबका़ हालत पर लाऊंगा,*
*★_ इस पर फूफी साहिबा ने कहा- आपके अज़ीज़ रिश्तेदार आपका शिकवा करते हैं और कहते हैं कि आपने उनसे वो चीज़ें छीन ली जो पहले खुल्फ़ा ने उन्हें दी थी या उनसे नहीं छीनी थी, मैंने उन्हें आपके ख़िलाफ़ बात करते सुना है और मुझे इस बात का डर है कि वो आपके लिए कोई सख्त दिन ना ले आए, इसके जवाब में हजरत उमर ने फरमाया - मैंने उनका हक नहीं लिया, मुझे दुनिया के हर सख्त दिन का डर हो और क़यामत के दिन का डर ना हो, ऐसा मुमकिन नहीं, मैं तो ये दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला मुझे क़यामत के दिन की सख़्ती से महफूज़ फरमाये,*
*★_ आपकी बातें सुन कर फूफी साहिबा उठने लगी तो आपने उन्हें बिठा लिया और हुक्म दिया कि आग का एक अंगारा और अशर्फी लायी जाये, फिर आपने अशर्फी को अंगारे पर रखा, वो अशर्फी सुर्ख हो कर पिघल गयी, उस पर जो लिखा हुआ था वो सब खत्म हो गया, फिर आपने फरमाया- फूफी जान ! क्या आपको अपने भतीजे पर इस जैसी अशर्फी से रहम नहीं आता _,"*
*★_ये सुन कर फूफी साहिबा खामोश खड़ी हो गईं, हजरत उमर रहमतुल्लाह की ये बात उनके दिल की गहराईयों में उतर गई, उनके चेहरे पर खौफ़ तारी हो गया, फूफी को खामोश देख कर हजरत उमर बोले- फूफी साहिबा बात करें, आप तो खामोश हो गईं, इस पर फूफी बोली-उमर ! मैं तुमसे तबादुल ख़्याल करने आई थी लेकिन तुम्हारे गुफ्तगु के अंदाज़ ने मुझमें बात करने की हिम्मत नहीं छोड़ी _,"*
*★_ये कह कर फूफी चली गईं, आपने दर असल उन्हें ये बताया था कि जहन्नम में ये अजा़ब भुगतना होगा, अब फूफी उन लोगों के पास आईं जिन्होनें उनको वरगलाया था, आ कर उनसे बोली- तुम लोगों ने खुद ही अब्दुल अज़ीज़ का निकाह आले उमर फारूक़ रजियल्लाहु अन्हु में किया, अब अगर उमर हजरत उमर फारूक़ वाले काम करें तो ऐतराज़ क्यों करते हो, अब सब्र करो _,"*
*★_ ख़लीफा सुलेमान बिन अब्दुल मलिक का एक लड़का आया, उसकी ज़मीन दस्तावेज़ न होने की वजह से आपने ज़ब्त कर ली थी, उसने एक दस्तावेज़ अपनी आस्तीन से निकाल कर आपको दी, आपने उसको देखा और पूछा - इस दस्तावेज़ की ज़मीन किसकी है, उसने बताया कि फ़ासिक़ और फ़ाजिर इब्ने हिजाज की, ये सुन कर आपने फरमाया - तब तो मुसलमान इस ज़मीन के ज़्यादा हक़दार है''*
*★_ अब वो कुछ ना कह सका, बस ये कहा- अच्छा मेरी दस्तावेज़ मुझे वापस कर दें _,"*
*"_ जवाब में आपने फरमाया- मैंने ये दस्तवेज़ तुमसे नहीं मांगी थी तुमने खुद मुझे दी है, लिहाज़ा अब मैं तुम्हें वापस नहीं दूंगा, ताकि तुम कभी भी ये गलत मुतालबा ना कर सको, इस तरह हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने सुलेमान के बेटे को वापस लौटा दिया और उसे कुछ भी ना दिया, उसने गिड़गिड़ा कर दरख्वास्त की लेकिन आपने उसका भी कोई असर ना लिया,*
*★_आपके गुलाम मज़ाहम ये सब देख रहे थे, उनको सुलेमान के बेटे पर तरस आ गया, चुनांचे उसने कहा- अमीरुल मोमिनीन! आप सुलेमान के बेटे के साथ ये सुलूक कर रहे हैं, आपको उसके रोने पर भी तरस नहीं आया_,"*
*"_ जवाब में आपने फरमाया- मैं सुलेमान के इस बेटे के लिए इस क़दर मुहब्बत के जज़्बात रखता हूं, जिस क़दर अपनी औलाद के लिए रखता हूं, लेकिन क्या करूं, मामला दीन का है, कल अल्लाह को हिसाब देना है_,"*
*★_ एक शख़्स उमर बिन नबाता से वलीद बिन अब्दुल मलिक को बहुत मुहब्बत थी, उसने उसे एक फ़ोजी दस्ते का अमीर मुक़र्रर कर रखा था, उस फ़ोजी दस्ते पर उसका हुक्म चलता था, जब हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ज़ुल्म व जबर से हासिल की हुई जायदादें हक़दारो को दिलवा रहे थे तो ये शख़्स बहुत ग़ज़ब नाक हुआ, उसने सख्त गुस्से में एक ख़त आपको लिखा, उसके अल्फ़ाज़ ये थे:-*
*★_ आपने साबका़ खुल्फ़ा को दागदार बना दिया है, उनके तरीक़े को छोड़ कर एक नया तरीक़ा अख्तियार कर लिया है और उनकी औलाद के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया है और आपने उस रिश्ते को काट दिया है जिसको मिलाने का अल्लाह ने हुक्म दिया है, क्योंकि आपने कुरैश के माल और उनकी जायदादें बैतुल माल में जमा करा दी है, आपका ये अमल नाका़बिले माफ़ी है _,"*
*★_ इस खत के जवाब में आपने लिखा- तेरा खत मिला, मैं तुझे इससे बेहतर जवाब दे रहा हूं, ऐ इब्ने वलीद! तेरा इब्तिदाई हाल वो है जिससे तू बा-खूबी वाक़िफ है, क्योंकि तेरी मां नबाता क़बीले की एक लौंडी थी, वो गाना बजाना और रक्स करती थी, हिम्स के बाजा़रो में वो दुकान दर दुकान फिरा करती थी, उसे दयान के मुसलमानों ने खरीद लिया और बतौर हदिया तेरे बाप के पास भेज दिया, उस लौंडी से तू बदतरीन बच्चा पैदा हुआ, फिर तेरी परवरिश एक ज़ालिम और सरकश के तोर पर हुई, तू मुझे इस वजह से ज़ालिम और जाबिर कहता है कि मैंने तुझे और तेरे घोड़े को अल्लाह के उस माल से महरूम कर दिया है जो दर असल तेरा नहीं, बल्कि गरीबों मिस्कीनों और बेवाओं का माल है, सुन ! सबसे बड़ा ज़ालिम वो है जिसने तुझ जैसे नादान बच्चे को इस्लामी फौज के एक दस्ते का हाकिम बना दिया और तू उस पर अपनी मर्जी से हुक्म चलाता था, लिहाज़ा तुझ पर भी अफ़सोस और तेरे बाप पर भी अफ़सोस, क़यामत के दिन कितने लोग तुम बाप बेटे से झगड़ने वाले होंगे, तू और तेरा बाप झगड़ने वालो से छुटकारा ना पायेंगे,*
*★_और सुन ! वो शख़्स इन्तेहाई ज़ालिम है, अल्लाह के अहद को तोड़ने वाला है जिसने हिजाज बिन यूसुफ़ जैसे ज़ालिम को हाकिम बनाया, वो हराम ख़ून रेजी़ करता था और हराम माल हासिल करता था, उसने क़ुराह बिन शरीक को मिस्र जैसे सूबे का हाकिम बना दिया और ये शख़्स बिल्कुल ग़ंवार था, हिजाज ने उसे हर क़िस्म के खेल कूद और शराब व कबाब की छूट दे दी_,"*
*★_ इब्ने नबाता ! इंतज़ार कर जब मैं तेरे और तेरे घर वालों के लिए फारिग हो जाऊं और उनको एक रोशन रास्ते पर छोड़ दूं, क्योंकि तुम एक तवील जमाने से हक़ को छोड़ें हुए हो, शराब व कबाब और लहू व लइब में मशगूल हो, इब्ने नबाता अन करीब मैं अपनी आंख से देख लूंगा कि मैं तुझे फरोख्त कर के तेरी क़ीमत मिस्कीनो और बेवाओं पर खर्च कर दूंगा कि उनका हक़ तू आज तक खाता रहा है, मैंने इरादा कर लिया है, मैं अन क़रीब एक ऐसा शख्स तेरी तरफ भेजने वाला हूं जो तेरी पेशानी के बद्तरीन बाल काट देगा_,"*
*★_ अनबासा बिन सईद बिन आस बनु उमैया के बड़े लोगों ने मुझसे कहा था, खुल्फ़ा के पास उसका कसरत से आना जाना था, वो इस क़दर मालदार था कि उसे माल की कोई ज़रूरत नहीं थी लेकिन लालची होने की वजह से खुल्फ़ा से मांगता ही रहता था, उसका पेट फिर भी नहीं भरता था, सुलेमान ने मरने से पहले उसे 20 हजार दीनार अतिया के तोर पर दिए थे, वो इस तरह दिए थे कि उसे एक तहरीर लिख कर दे दी कि वो रक़म बैतुल माल से ले ले_,"*
*★_ अनबासा ये तहरीर पा कर बहुत ख़ुश हुआ, अभी उसने ये रक़म बैतुल माल से ली नहीं थी कि सुलेमान का इंतेक़ाल हो गया और बैतुल माल को ताला लगा दिया गया, लिहाज़ा ये तहरीर नए खुल्फ़ा का हुक्म होने के लिए रोक ली गई, अब खुल्फ़ा हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ बन गए, एक रोज़ वो आपके पास आया, उसने हज़रत उमर से कहा - अमीरुल मोमिनीन! हमारी आपसे रिश्तेदारी है और आपकी क़ौम आपके दरवाज़े पर खड़ी है, ये लोग इसलिए आए हैं कि आपसे पहले खुल्फ़ा उन्हें जो दिया करते थे, आप भी उन्हें दें _,"*
*★_ उसकी बात सुन कर हजरत उमर ने फरमाया - अनबासा मेरे माल में तुम्हारे लिए कोई गुंजाईश नहीं, बाक़ी रहा बैतुल माल, तो उसमें तुम्हारा और दूसरे लोगों का बराबर का हक़ है, तुम अगर मेरे रिश्तेदार हो तो मैं तुम्हें दूसरों का हक़ नहीं दे सकता_,"*
*★_ आपका जवाब सुन कर अनबसा ने कहा -इस सूरत में आपकी क़ौम किसी और जगह जाने की इज़ाजत मांगती है, आपने फरमाया - वो जहां चाहे जा सकते हैं,*
*"_ अब अनबसा ने बात तबदील की और बोला :- अमीरुल मोमिनीन! सुलेमान बिन अब्दुल मलिक ने मुझे एक अतिया दिया था, अभी मैंने वो अतिया बैतुल माल से लिया नहीं था कि उनका इंतेकाल हो गया, मेहरबानी कर के आप मुझे ये अतिया दे दें, मेरे आपसे जिस क़दर गेहरे तल्लुकात है, उस क़दर तो सुलेमान से भी नहीं थे_,"*
*★_ आपने उससे पूछा- वो अतिया कितनी रकम का है ? उसने जवाब दिया - बीस हज़ार दीनार का (दीनार सोने के सिक्के का नाम है) इतनी बड़ी रक़म का सुन कर हज़रत उमर रहमतुल्लाह के मुंह से चीख निकल गई, आपने फरमाया - बीस हजार दीनार तो मुसलमानो के चार हज़ार घरों के काम आ सकते हैं, इतनी बड़ी रकम मैं एक शख्स को दे दूं, अल्लाह की क़सम ये नहीं हो सकता _,"*
*"_ ये सुन अनबसा ने कहा - फिर तो आप मुझे भी इजाज़त दे दें कि मैं अपनी क़ौम के साथ किसी दूसरी जगह चला जाऊं, आपने फरमाया- मैंने तुम्हें इजाज़त दी_,"*
*★_अनबसा कमरे से निकलने लगा तो आपने आवाज़ दी, वो वापस पलटा, इस ख्याल से कि शायद आपने अपनी राय बदल दी है, उसने सुना, आप फरमा रहे थे, अनबसा मौत को कसरत से याद किया करो, अगर तुम पर तंगी है तो मौत की याद तुम्हारी तंगी दूर कर देगी और अगर फराखी़ है तो इससे दुनिया बीच नज़र आएगी_,"*
*★_ अनबसा को महसूस हुआ जैसे आप उससे मज़ाक़ कर रहे हैं, वो बाहर जाने लगा तो आपने उसे फिर आवाज़ दी और फरमाया - अनबसा मेरे ख्याल में तो तुम्हें कहीं नहीं जाना चाहिए, यहीं रहो, मैं सुलेमान की छोड़ी हुई चीजें फ़रोख़्त करने लगा हूँ, तुम उनको ख़रीद लो, इस तरह कुछ तुम्हारा काम चल जाएगा,*
*"_ आपके इस इरशाद के मुताबिक़ अनबसा ने वो चीज़ें ख़रीद ली, फ़िर उनको इराक़ जा कर फ़रोख़्त किया तो काफ़ी नफ़ा हुआ_,*
*★_इन हालात में तमाम बड़े बड़े लोग एक जगह जमा हुए, उन्होंने आपस में मशवरा किया और सबने एक बात तय कर ली, वो बात ये थी कि हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह अपने मातहत माल में अपनी राय और अपना फैसला नाफिज़ करें, लेकिन आपसे पहले खुल्फा ने जो कुछ अमीरों वगेरा को दिया है उसमें दखल ना दें क्योंकि जो हो चुका वो गलत था या सही, अब उसे ना छेड़ा जाए, अगर ये काम गलत था यानि बगैर हक़ के उन लोगों को माल दिए गए तो इसका गुनाह साबका़ खुल्फ़ा पर होगा, हज़रत उमर पर नहीं होगा,*
*★_ये बात जब तै कर ली गई तो हिशाम बिन अब्दुल मलिक के ज़रिये हज़रत उमर रहमतुल्लाह तक पहुंचाई, आपने पूरी बात सुन कर फरमाया- मैं अल्लाह की किताब के मुताबिक़ अमल दरामद करूंगा, माल चाहे मेरे मातहत हो या साबका़ खुल्फा का दिया हुआ हो,*
*★_इस पर उन लोगो ने बहुत हंगामा किया लेकिन आप अपनी बात पर अड़े रहे, आख़िरकार लोगों ने जान लिया कि आपने जो फैसला कर लिया है, उस पर अमल किये बिना नहीं रहेंगे तो हंगामों से बाज़ आ गए,*
*★_इसी तरह एक वाक़िया खलीफा वलीद के बेटे का है, उसका नाम रूह था, ये बहुत ज़ालिम था, लोगों के साथ बहुत ज़्यादतियां करता था, लोग उससे खोफज़दा रहते थे, उसके बाप वलीद ने हिम्स में कुछ जगह उसके नाम कर दी थी और उसकी दस्तावेज़ भी लिख दी थी, हिम्स वाले इस बात की शिकायत ले कर हज़रत उमर रहमतुल्लाह के पास आए, उनकी बात सुन कर आपने रूह को बुला लिया और उससे फरमाया- उनकी जगहें छोड़ दो _,"*
*★_ जवाब में रूह ने कहा- खलीफा वलीद की दी हुई दस्तावेज़ की रु से ये ज़मीनें मेरी हैं, आपने फरमाया- उनकी जगहें उन्हें दे दो_,"*
*★_ ये लोग बाहर निकल आए तो रास्ते में रूह हिम्स के लोगों को डराने लगा, इन हालात की खबर आपको भी हो गई, आपने काब बिन हामिद को बुलाया, ये जल्लाद था, आपने उससे फरमाया- रूह बिन वलीद के पास जाओ, अगर वो अहले हिम्स की ज़मीनें वापस कर दे तो ठीक वर्ना उसका सर काट कर ले आओ_, का'ब बिन हामिद नंगी तलवार ले कर रवाना हुए, रूह ने जब जल्लाद को नंगी तलवार ले आते देखा तो डर गया और उसने आज़िज हो कर वो तमाम जगहें अहले हिम्स को दे दी_,"*
*★_आप पर उमरा ने जो ऐतराज़ात किये थे, आपने उन सबके जवाब दिए, लेकिन बनु उमय्या के जिन लोगों से जायदादें और माल छीन कर असल हकदारों को दिए गए, वो कब आराम से बैठने वाले थे, एक दिन वो सब जमा हो कर आपके दरवाज़े पर आ गए, उन्होंने आपके फरज़ंद अब्दुल मलिक से कहा- या तो हम लोगों को अंदर जाने की इजाज़त दिलवाओ या फिर अपने अब्बा जान से कहो, उनसे पहले जो खुल्फ़ा थे, वो हमें माल देते रहते थे, हमारे मरतबों का लिहाज़ रखते थे, लेकिन तुम्हारे अब्बा ने हमें हर क़िस्म के माल व दौलत से मेहरूम कर दिया है _,"*
*★_अब्दुल मलिक ने उनका पैगाम अंदर पहुंचाया, आपने अब्दुल मलिक से फरमाया- उन लोगों से जा कर कह दो कि अगर मैं अल्लाह तआला की नाफरमानी करुंगा तो क़यामत के अज़ाब से मुझे खौफ आता है, मैं आप लोगों को नाजायज़ रियायते नहीं दे सकता _,"*
*★_ ये शिक़ायत सिर्फ़ उमरा ही को आपसे नहीं थी, बल्कि आपके क़रीबी लोगो को भी थी, आपने जब अपने क़रीबी लोगो के गुज़ारा भत्ता बंद कर दिये तो उन्होंने भी इस क़िस्म की शिक़ायत की, जवाब में आपने फरमाया- बैतुल माल में तुम लोगो का हक़ इससे ज़्यादा नहीं बनता जितना मुल्क की आखिरी हुदूद में रहने वाले किसी शख़्स का बनता है _,"*
*★_ आख़िरकार हज़रत उमर रहमतुल्लाह की तमाम कोशिशों का नतीजा ये निकला कि लोगों से छीनी गई तमाम ज़मीनें उन लोगों को वापस मिल गईं जिनसे वो छीनी गई थीं, जो ज़मीने अरब के देहातियों से छीनी गई थी वो भी लोटा दी गई थी, यहां तक हुआ कि ख़लीफा अब्दुल मलिक ने एक शख्स इब्राहिम बिन तल्हा के घर पर क़ब्ज़ा कर लिया था, अब्दुल मलिक के बाद ये घर सुलेमान के क़ब्ज़े में रहा, यहाँ तक कि हज़रत उमर ने इब्राहिम को वापस दिलवाया,*
*★_ ग़र्ज़ जिस जिस ज़मीन पर किसी ने ना-जायज़ क़ब्ज़ा कर रखा था वो सब आपने हक़दारो को वापस दिलवाएं और इस काम में इस क़दर पुख़्तगी दिखाई कि आपके बाद इसकी मिसाल मिलना मुश्किल है, आपने इस बात की भी ज़रा भी परवाह ना की कि इस तरह रिश्तेदार उनसे मुंह मोड़ लेंगे, ताल्लुकात तोड़ लेंगे, आपने ना तो किसी की धमकी की परवाह की ना किसी की सिफ़ारिश मानी, जो करना था बस वो कर गुज़रे,*
*★_ इस बहुत बड़े काम से फ़ारिग़ हो कर आपने ज़ालिम क़िस्म के गवर्नरों और अफ़सरों की तरफ तवज्जो दी, हिजाज बिन युसूफ बनू उमय्या का सबसे ज़ालिम हुक्मरान था, उसके खानदान वाले उसी जैसे ज़ालिम और जाबिर बन गए थे, आपने ख़लीफा बनने के बाद हिजाज बिन यूसुफ के पूरे खानदान को यमन की तरफ जला वतन कर दिया और वहां के गवर्नर को लिखा कि मैं उन लोगों को तुम्हारी तरफ भेज रहा हूं, जो अरब में बद्तरीन खानदान है, उन लोगों को इधर उधर मुंतशिर कर दो ताकि ये एक जगह जमा होकर सल्तनत के ख़िलाफ़ साजिशें न कर सकें,*
*★_ आपने उस अफसर और हुक्मरान को माज़ूल कर दिया जिसने मुसलमानों का खून बहाया था, अगरचे वो आपका अज़ीज़ ही क्यों ना था, इन इस्लाहात का नतीजा ये निकला कि अवाम उन ज़ालिम और जाबिर लोगों के ज़ुल्मों से महफ़ूज़ हो गए और उन्होंने इत्मिनान का सांस लिया, अपने इस काम के बारे में आपने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के पोते हज़रत सालिम रहमतुल्लाह से भी मशवरा किया,*
*★_ मिस्र का ख़राज वसूल करने पर ओसामा बिन ज़ैद तनुखी मुकर्रर था, ये शख़्स निहायत ज़ालिम और जाबिर था, अल्लाह तआला की मुकर्रर करदा सज़ाओं से भी ज़्यादा सज़ाएं इंसानों को देता था, लोगों के हाथ कटवा देता था, आपने इसके बारे में हुक्म फरमाया- इसे हर इलाक़े की जेल में एक साल रखा जाए और इसके हाथ पांव बांध कर रखे जाएं, सिर्फ नमाज़ के वक़्त में हाथ पांव खोले जाएं,*
*★_ये एक साल तक मिस्र में क़ैद रहा, फिर फिलिस्तीन की जेल में भेज दिया गया, वहां भी ये एक साल तक जेल में रहा, इसी तरह आपने यज़ीद बिन अबी मुस्लिम को अफ़्रीका से बर्खास्त किया, ये बहुत गलत क़िस्म का आदमी था, ज़ाहिर में इबादत गुज़ार बनता था मगर ज़ालिमाना हुक्म जारी करता रहता था, जब इसके सामने लोगों को सज़ाएं दी जाती तो ये उस वक़्त तस्बीह और ज़िक्र में मसरूफ रहता, साथ साथ सज़ाएं भी सुनाता रहता था, आपने इसे भी माज़ूल कर दिया,*
*★_ इस क़िस्म का काम आपने खलीफा बनने के बाद किया और ये काम अंजाम देने में जरा भी देर न लगाई, आप सुलेमान के कफ़न दफ़न से फ़ारिग हुए और क़ब्रिस्तान से वापस आने लगे तो आपके लिए शाही सांवरिया लाई गई, आपने पूछा कि ये क्या है? आपको बताया गया कि ये शाही सांवरिया है, इन पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, नया खलीफा ही पहली बार इन पर सवार होता है, आपने अपने खादिम मजाहम से फरमाया- ये तमाम सवारियां बैतुल माल में जमा करा दो,*
*★_ उस वक्त का एक दस्तूर ये था कि जब कोई नया खलीफा खिलाफत संभालता तो उसके लिए शामियाने लगाए जाते थे, आपने उनको भी बैतुल माल में जमा करने का हुक्म दिया, उसके बाद आप अपने खच्चर पर सवार हुए और उस जगह पहुंचे जो आपके बैठने के लिए बनाई गई थी, उस जगह पर ना जाने क्या कुछ बिछाया गया था, आपने उन सब चीजों को अपने पैरों से हटा दिया और चटाई पर बैठ गए और फरमाया- इन सब चीज़ों को भी बैतुल माल में दाखिल कर दो_,"*
*★_उस दौर का एक दस्तूर ये था कि जब किसी खलीफा का इंतकाल हो जाता तो उसके लिबास, इस्तेमाल की हुई दूसरी चीजें, उसके बाल बच्चों का हक़ समझी जाती थी, जो अतर और लिबास वगेरा अभी इस्तेमाल नहीं किए गए थे, वो नए खलीफा को मिल जाते थे, सुलेमान के घर वालों की सारी रात इस काम में गुज़री कि तेल और ख़ुशबुओं को एक शीशी से दूसरी में उलटते रहे और जो कपड़े सुलेमान ने अब तक नहीं पहने थे उनको पहन-पहन कर ऐसे बनाते रहे गोया वो इस्तेमाल शुदा हैं _,"*
*★_ सुबह हुई तो सुलेमान के घर वालों ने वो तमाम चीज़े ला कर आपके क़दमों में ढ़ेर कर दी और फिर उनको ये कहते हुए अलग अलग करने लगे- ये आपकी हैं, ये हमारी_," आपने पूछा- ये और वो का क्या मतलब है?*
*"_ उन्होंने बताया- जो कपड़े और अतर पिछले खलीफा इस्तेमाल कर चुके हैं, वो उसकी औलाद का हक़ है, जिनको अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया वो नये खलीफा का हक़ है _,"*
*"_ आपने फरमाया- ये सारी चीजें ना मेरी है ना तुम्हारी, मज़ाहम इन सबको बैतुल माल में जमा कर दो ये सब मुसलमानों का माल है_,"*
*★_ ये हाल देख कर अमीरों और वज़ीरों ने आपस में कहा- ये सब चीज़ें तो हाथ से गई, इनमें से तो अब हमें कुछ मिलेगा नहीं, अब सिर्फ एक चीज़ रह गई है, वो है लौंडियां, उन्हें भी पेश कर के देखते हैं, शायद उनमें से कुछ मिल जाए, वर्ना इन साहब से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए,*
*★_चुनांचे हसीन और जमील लौंडियां आपके सामने ला खड़ी की गई, आपने उनमें से एक से पूछा- तुम कौन हो और तुम्हें यहां किसने भेजा है? लौंडी ने बताया - दर असल मैं फलां की लौंडी थी, मुझे पकड़ कर यहां ले आया गया, अब मैं फलां की लौंडी हूं, आपने बाक़ी लौंडियों से भी सवाल किया, फिर उनके बारे में फरमाया- सबको इनके असल मालिक के हवाले कर दिया जाए, मुझे इनकी कोई ज़रूरत नहीं है_,"*
*"_उन लौंडियों को सवारियां दी गईं और उनको शहर की तरफ भेज दिया गया,*
*★_ ये हालात देख कर अमीर और वज़ीर समझ गए कि हज़रत उमर से इन्साफ़ के अलावा और किसी क़िस्म की उम्मीद नहीं रखी जा सकती, ख़िलाफ़त मिलने के बाद तीन दिन तक आपने लोगों से मुलाक़ात नहीं की, लोग इंतज़ार करते रहें कि उनके बारे में क्या अहकामात सादिर होते हैं, आख़िर तीन दिन बाद आपने आम इजलास बुलाया, आपने एलान फरमाया- तमाम काम शरीयत के मुताबिक़ होंगे, किताब व सुन्नत के मुताबिक़ फ़ैसले होंगे, आदिलाना निज़ाम चलेगा_,"*
*★_ आपने दुनिया को खैर बाद कह दिया और जिंदगी के आखिरी लम्हात तक इस तरीक़े पर क़ायम रहे, आपने लोगों से फरमाया - लोगों तुम सबको एक दिन अल्लाह के सामने खड़े होना है, मैं भी खड़ा होऊंगा, अल्लाह ताला ने कुछ फराइज़ मुकर्रर किए हैं और कुछ सुन्नते जारी की हैं, जो शख्स इन पर अमल करेगा, वो रसूलुल्लाह ﷺ से जा मिलेगा और जो इनको छोड़ देगा, उसे मिटा दिया जाएगा, जो शख्स मेरे साथ रहना चाहता है, उसे पांच चीज़ों का ख्याल रखना होगा:-*
*★_ (1) जिन लोगो की जरुरतें मुझ तक नहीं पहुंच पाती, उनकी ज़रुरतें मुझ तक पहुँचाए,*
*(2) अद्ल और इन्साफ की जो सूरतें मेरे इल्म में नहीं, उनके बारे में रहनुमाई करे,*
*(3) हक़ व इन्साफ के क़याम के सिलसिले में मेरी मदद करे, अमानत का हक़ अदा करे,*
*(4) मेरे सामने किसी की बुराई ना बयान करे,*
*(5) मेरी और तमाम लोगों की अमानत का हक़ अदा करे,*
*"_ जो शख्स इन पांच बातों पर अमल नहीं कर सकता उसे मेरे साथ रहने का कोई हक़ नहीं,*
*★_ आपने पहरेदारों से फरमाया - जब मै बाहर आने लगूं तो खड़े होने की ज़रूरत नहीं, ना मुझे सलाम करने में तुम पहल करो, मैं बाहर आ कर तुम्हें अस्सलामु अलैकुम कहूँगा_,"*
*★_ आपने लोगों से फरमाया - रसूलुल्लाह ﷺ और खुल्फा ए राशीदीन की बहुत सी सुन्नते हैं, उन पर अमल करना, अल्लाह की किताब को मज़बूत पकड़ना, उनसे अल्लाह के दीन में कुव्वत हासिल है, उनमें तबदीली का किसी को हक नहीं न सुन्नत के खिलाफ कोई काम करना अच्छा है, जो शख्स इन सुन्नतो से हिदायत हासिल करे, वो हिदायत पर होगा और जो इनसे मदद ले उसकी मदद होगी और जो शख्स इन सुन्नतों को छोड़ दे, वो राहे हिदायत से हट जाता है, फिर वो जिधर जाएगा अल्लाह तआला उसी तरफ फैर देंगे और उसे जहन्नम में झोंक देंगे और वो लोटने की बहुत बुरी जगह है,*
*★_इमाम मालिक रहमतुल्लाह आपके इस इरशाद के बारे में फरमाते हैं - मुझे हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की ये बात बहुत पसंद है, इससे सुन्नते ज़िंदा होती हैं _,"*
*★_ आपने लोगों को खुतबा दिया तो उसमें फरमाया - लोगों ! तुम्हारे नबी के बाद कोई नबी नहीं। (ख़त्मे नबूवत ज़िंदाबाद) जो किताब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उतारी गई, ना उस किताब के बाद कोई किताब है, अब जो चीज़ें अल्लाह ताला ने अपने नबी की ज़ुबान से हलाल ठहरा दीं वो क़यामत तक हलाल ही रहेंगी और जिन चीजों को आपकी ज़ुबान से हराम ठहरा दिया, वो मुकम्मल हराम ही रहेंगी, खूब समझ लो, मैं फैसला करने वाला नहीं, मैं तो बस अल्लाह और उसके रसूल के फैसलों को अल्लाह की खातिर नाफिज़ करने वाला हूं, मैं कोई नया रास्ता नहीं निकालूंगा, बल्कि पहलों के रास्ते पर चलूंगा,*
*★_ सुन लो ! अल्लाह की नाफरमानी की सूरत में किसी की फरमाबरदारी जायज़ नहीं, मैं तुमसे बेहतर नहीं हूं तुम ही मे से एक फर्द हूं, अलबत्ता मेरी ज़िम्मेदारियां तुम सबसे ज़्यादा है, लोगो! सबसे अफ़ज़ल इबादत फ़राइज़ का अदा करना और हराम से बचना है, बस मुझे यहीं कहना था, मैं अपने लिए और तुम्हारे लिए अल्लाह के हुज़ूर इसतग़फ़ार करता हूं _,"*
*★_ खलीफा बनते ही आपने ऐश व इशरत पर लात मार दी, तरह-तरह के खाने बंद कर दिए, जब आपका खाना तय्यार हो जाता तो किसी बर्तन में रख कर उसको ढाँप दिया जाता, जब आप तशरीफ लाते तो खुद ही उठा कर तनावुल फरमा लेते_,"*
*★_कूफ़ा की एक औरत आपकी खिदमत में हाज़िर हुई, उसने आ कर कहा - आपकी तरफ़ से वज़ीफ़े तक़सीम होते हैं लेकिन मुझे उनमें से कुछ भी नहीं मिला, ना मेरी बेटियों को कुछ मिला_", आपने उससे पूछा- तेरा गवाह कौन है? वहां के लोग गवाही देंगे, आपने फरमाया- अच्छा तुम शाम को आना, मैं तहरीर लिख दूंगा, फिर बोले- शाम का क्या पता कौन जिये कौन मरे, लाओ अभी लिख देता हूं _,"*
*★_ ऐसे में आपकी नज़र अपने बेटे पर पड़ी, उसका कुर्ता फटा नज़र आया, गालिबन किसी चीज़ में उलझ कर उसी वक्त फटा था, आपने उससे फरमाया- बेटा! अपने कुर्ते का गिरेबान दुरुस्त कर लो क्योंकि तुम्हें इसकी इतनी ज़रूरत पहले कभी नहीं थी जितनी आज है _,"*
*★_इसी हालत में खालिद बिन रयान आपके सामने हाज़िर हुआ, ये किसी बड़े ओहदे पर था, वलीद के दौर में उसने एक शख़्स को क़त्ल कर दिया था लेकिन हुकूमत में होने की वजह से उसे किसी ने कोई सज़ा नहीं दी थी, अब भी ये आपके पास इसलिए आया था कि नए खलीफ़ा से नए अहकामात हासिल करे, आपने उसे देख कर नफ़रत से मुंह फैर लिया, उसे हुक्म दिया- ये तलवार यहां रख दे_," उसने तलवार रख दी, अब आपने उससे फरमाया- जाओ मैं तुम्हें माज़ूल करता हूं _,"*
*★_इसके बाद आपने ये अल्फ़ाज़ कहे- ए अल्लाह! मैंने तेरी रज़ा के लिए खालिद बिन रयान को गिरा दिया है, अब उसे कभी न उठाना_," अल्लाह ताला ने आपकी ये दुआ कुबूल फरमायी, खालिद बिन रयान जब तक जिंदा रहा, कभी किसी की जुबान पर उसका ज़िक्र तक न आया, यानि किसी ने उसे मुंह न लगाया,*
*★_आप हज़रत उमर रहमतुल्लाह ने पहरेदारों की तरफ़ देखा, उनको अमरू बिन मुहाजिर नज़र आए, ये बहुत परहेज़गार थे, आपने उनसे फरमाया-अमरू! मैंने तुम्हें कसरत से कुरान ए करीम की तिलावत करते हुए पाया है और ये भी देखा है कि तुम नवाफिल ऐसी जगह पढ़ते हो जहां तुम्हें कोई न देख सके और नमाज़ भी तुम खूब सँवार कर पढ़ते हो, ये तलवार उठा लो, मैं तुम्हें पहरेदार मुकर्रर करता हूं _,"*
*★_ आपकी बीवी फातिमा, खलीफा अब्दुल मलिक की बेटी थी, एक खलीफा की पोती थी और कई खुल्फा की बहन थी, खलीफा बनते ही आपने उनके तमाम जवाहिरात और ज़ेवरात और दूसरी क़ीमती चीज़ें बैतुल माल में जमा कर दीं, आपने महसूस किया की फातिमा उनके इस क़दम से खुश नहीं थी, चुनांचे आपने उन्हें साफ साफ कह दिया- तुम्हें अख्तियार है, मेरे पास रहो या अपने मायके चली जाओ_,"*
*"_कहने का मतलब था कि मेरे साथ रहना है तो उन ज़ेवरात और जवाहिरत का ख़याल दिल से निकालना होगा, ज़ेवरात और जवाहिरत चाहें तो फ़िर मेरे साथ नहीं रह सकती, ये सुन कर फातिमा राज़ी हो गई और बोल उठी, मैं आपके साथ रहूंगी _,"*
*★_ उन्होंने अपने घर के अखराजात के लिए भी उतना ही मुकर्रर किया जितना आम मुसलमानों को मिलता था, आपने जो सुलुक फातिमा के साथ किया था, वही सुलुक अपनी तमाम औलाद यानी बेटों और बेटियों के साथ किया, उनके भी तमाम ज़ेवरात और क़ीमती चीज़ें बैतुल माल में दाखिल करा दी _,"*
*★_ आपकी एक बच्ची को कहीं से एक मोती मिल गया, उसने आपसे कहा- अगर आप मुझे इस जेसा एक मोती दे दें तो मैं ये दो मोती अपने कानों में पहन लूंगी, आपने बच्ची के सामने दो अंगारे रख दिए और फरमाया - अगर तुम ये दोनों अंगारे कानों में पहन सकती हो तो मैं तुम्हारे लिए मोती का इंतज़ाम कर देता हूं_,'' बच्ची ये सुन कर खामोश हो गई _,*
*★_ किसी ने आपको बताया - आपके एक बेटे ने अंगुठी के लिए एक नग एक हज़ार दिरहम में खरीदा है_,"आपने फौरन अपने बेटे को खत लिखा, उसके अल्फ़ाज़ ये थे:- मैंने सुना है तुमने अंगुठी के लिए एक नग एक हज़ार दिरहम में खरीदा है, उस नग को फौरन बेच दो और उसकी क़ीमत अल्लाह के रास्ते में दे दो, एक दिरहम की दूसरी अंगुठी ख़रीद लो, उस पर ये अल्फ़ाज़ लिखवा लो- अल्लाह उस पर रहम फरमाये जो अपना मर्तबा पहचाने_,"*
*★_ आपके एक गुलाम का नाम दरहम था, वो आपके लिए लकड़ियां लाया करता था, खलीफा बनने के चंद दिन के बाद आपने उससे पूछा- दरहम लोग क्या कहते हैं? उसने कहा- लोग क्या कहेंगे, वो सब मज़े में हैं, बस मैं और आप तकलीफ में हैं_" हजरत उमर ने पूछा - ये क्यूं? उसने कहा- खिलाफत मिलने से पहले मैंने आपको खुशबुओं में बसे लिबास पहनते देखा है, उम्दा उम्दा घोड़ों पर सवारी करते देखा है, लज़ीज़ लज़ीज़ खाने खाते देखा है, अब जब आपको खिलाफत मिली तो मेरा ख्याल था, मुझे आराम मिलेगा, काम का बोझ मुझसे हल्का हो जाएगा, लेकिन मुझ पर तो अब काम का बोझ और बढ़ गया है और आप भी तकलीफ में फंस गए हैं _,"*
*"_हजरत उमर ने उसकी बात सुनी तो फरमाया- अच्छा तुम आज़ाद हो, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, जहाँ जाना चाहते हो चले जाओ _,"*
*★_ आपकी बीवी फातिमा के एक भाई मुस्लिमा थे, ये बड़े बहादुर मुजाहिद कमांडर थे, उन्हें हज़रत उमर से बहुत मुहब्बत थी, हज़रत उमर भी उनसे उसी तरह बहुत मुहब्बत करते थे, मुस्लिमा में एक बुरी आदत थी, वो तरह तरह के खानों के शौक़ीन थे और पूरी तरह फ़िज़ूल खर्ची करते थे, हज़रत उमर रहमतुल्लाह को उनकी इस आदत का पता था, आप दुआ किया करते थे: काश! मुस्लिमा ये फ़िज़ूल खर्ची छोड़ दें, कहीं ऐसा न हो कि ये शोक उन्हें हराम में उलझा दे_,"*
*★_ एक दिन हज़रत उमर ने उन्हें हुक्म दिया: आप सुबह सुबह मेरे पास पहुंंच जाएं, उन्हें ये पैगाम भेज कर अपना खाना तय्यार करने का हुक्म दिया, आपके लिए मसूर की दाल पकाई गई, मुस्लिमा के लिए तरह-तरह के खाने तय्यार किए गए, मुस्लिमा आया तो आपने उसे अपने पास बिठा लिया और उससे बातें करने लगे यहां तक कि काफी वक़्त गुज़र गया और मारे भूख के मुस्लिमा का बुरा हाल हो गया, जब वो भूख से बुरी तरह बेचैन हो गए तो आपने खादिम को अपना खाना लाने का हुक्म दिया, आपके लिए मसूर की दाल आ गई, आपने मुस्लिमा से फरमाया- ये मेरा खाना है, आपका खाना थोड़ी देर बाद आएगा _,"*
*★_ ये कह कर आप खाने लगे, मुस्लिमा से भूख बर्दाश्त नहीं हो रही थी, वो भी ताबाना अंदाज में आपके साथ खाने में शरीक हो गए और दाल रोटी खूब पेट भर कर खा गए, कुछ देर बाद उनके सामने तरह तरह के खाने सजाए गए, हजरत उमर ने उन्हें फरमाया- ये है आपका खाना जो खास तोर पर आपके लिए तैयार किया गया है _,"*
*★_ मुस्लिमा ने परेशान हो कर कहा- मैं तो पेट भर कर खा चूका हूं, अब तो बिल्कुल गुंजाइश नहीं, आपने फरमाया- नहीं भाई खाओ, मुस्लिमा ने कहा- अमीरुल मोमिनीन! बिल्कुल कोई जगह नहीं है, अब आपने उससे फरमाया- अगर मसूर की दाल से खूब सैर हो कर खाना खाया जा सकता है तो फिर खाने के सिलसिले में इस क़दर फ़िज़ूल खर्ची की क्या ज़रूरत है, क्यों आग में घुसते हो... ये दाल ही काफ़ी है _,"उस दिन के बाद मुस्लिमा ने तरह तरह के खाने से तौबा कर ली _,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह माज़ी में ख़ूब ख़ुशबू लगाया करते थे, फिजूल खर्ची की हद भी फलांग जाते थे, इस तरह ख़ुशबू दार तेल भी बहुत ज़्यादा लगाते थे, ख़लीफ़ा बनने पर आपने सब चीज़ें छोड़ दी, किसी जगह ख़ुशबू महसूस होती तो वहां से नाक बंद कर के गुज़र जाते, आपने अपने खाने पीने में भी इस हद तक कमी कर दी थी कि खून जल कर आपका रंग सियाह हो गया था, ख़ाल हड्डियों से चिमत गई थी और जिस्म पर गोश्त बराए नाम रह गया था,*
*★_ आपने फरमाया करते थे- जो खाने पीने में अपने नफ्स की बागडोर संभाल कर नहीं रखता, वो गैरों की रहनुमाई भी नहीं कर सकता और जिस पर उसका पेट हाकिम हो, वो हाकिम होने की हैसियत से किसी को मुतमइन नहीं कर सकता, भरा पेट उसे रुसवा कर के रहता है_,"*
*★_हजरत उमर रहमतुल्लाह ने अपने बातिन की भी सफाई की तरफ खास तवज्जो दी, लेकिन इस पर भी आपका यही ख्याल रहता था कि आपने कुछ नहीं किया, रोटी कपड़ा और घर जायज़ चीज़ें हैं, लेकिन जायज़ चीजों से भी खुद को बचाना सहाबा किराम के रग व रेशे में सरायत कर गया था, हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह की भी यही हालत हो गई थी। आपने खुद को जायज़ चीज़ों से भी दूर कर लिया था,*
*★_कोई आपसे पूछता - आपने कैसे सुबह की? आप जवाब देते- मैंने इताअत में देर की, गुनाहों में फंस कर खाली पेट की हालत में सुबह की और अल्लाह से अच्छी उम्मीद मैं रखता हूं _, (इब्ने जोज़ी)*
*★_बचपन में आप फख्र के अंदाज में चलते थे, जब आपको मदीना मुनव्वरा का हाकिम मुक़र्रर किया गया तो उस वक्त अकड़ कर चलने लगे, जब आप खलीफा बने तो आपने इसको छोड़ने का इरादा कर लिया लेकिन चुंकी आदत पुख्ता हो चुकी थी इसलिए छूट ना सकी, ये बात महसूस कर के आपने अपने खादिम मज़ाहम को हिदायत की - मज़ाहम! जब भी मेरी चाल में अकड़ देखो तो फौरन मुझे खबरदार कर दो _, "मजाहम इस ताक में रहने लगे, जोंही महसूस करते कि आपकी चाल में अकड़ आ रही है आपको खबरदार कर देते, फिर हुआ ये कि इस कोशिश में आपकी चाल ही अजीब हो गई,*
*★_ खिलाफत मिलने के बाद आप हर वक़्त खौफ ज़दा रहने लगें, आपने हंसी मज़ाक़ बिल्कुल तर्क़ कर दिया था, पीर और जुमेरात का रोज़ा रखते थे, मुहर्रमुल हराम के पहले अशरे के रोज़े भी रखते थे, कुरान ए करीम की तिलावत बा का़यदगी से करते थे, एक रोज अपनी बीवी फातिमा से कहने लगे: आज की निस्बत हम माज़ी में ज़्यादा आराम से थे ना, फातिमा बोलीं- हां! अमीरुल मोमिनीन! आप उस ज़माने में ज़्यादा ऐश में थे_,"*
*"_ आपने उनकी तरफ से पीठ फैरते हुए फरमाया - फातिमा ! मुझे एक बड़े अज़ाब का डर है, अगर मैं अपने रब की नाफरमानी करूँ तो उसके अज़ाब से कैसे बच सकता हूँ _," (इब्ने अब्दुल हकीम)*
*★_ आपने उरवाह बिन मुहम्मद को यमन का हाकिम मुकर्रर फरमाया, उन्होंने वहां के हालात लिखे और बताया कि यहां के लोगो पर जिज़्या की तरह खिराज की भी एक रकम मुक़र्रर की गई, ये रक़म इन लोगों को हर हाल में अदा करनी पड़ती है, चाहे ये जिएं या मरें, आपने उन्हें खत लिखा, उसमें फरमाया- जब तुम्हें मेरा ये खत मिले तो जिस चीज़ में तुम्हें ना इन्साफी और ज़ुल्म नज़र आए, उसे छोड़ दो, हक़ और इन्साफ को अख्तियार करो, नए सिरे से खिराज की रक़म मुक़र्रर करो चाहे इसकी मिक़दार कितनी ही कम क्यों ना हो, इसके लिए चाहे हमें अपनी जानों की कुर्बानी ही क्यों ना देनी पड़े (मतलब ये था कि कम से कम खिराज मुक़र्रर करो, लोगों को आसानी दो) अगर तुम मुझे यमन से एक मुठ्ठी भर खिराज भी भेजोगे तो भी मैं तुमसे नाराज़ नहीं होऊंगा, बस तुम हक़ और इन्साफ से काम लो,... वस्सलाम,*
*★_ आपने याहया बिन सईद को अफ़्रीका के सदक़ात वसूलने के लिए भेजा, आपने हिदायत फरमाई कि सदका़त वसूल कर के वहां के गरीबों में तक़सीम करायें, याह्या बिन सईद ने सदका़त वसूल कर के गरीबों की तलाश शुरू कर दी, उन्हें कोशिश के बावजूद एक भी ऐसा शख्स न मिला जो सदका़त ले लेता, हजरत उमर रहमतुल्लाह की इस्लाहात ने सब लोगों को मालदार बना दिया था, आख़िर मजबूर हो कर याह्या बिन सईद ने उस रक़म से गुलाम ख़रीद कर आज़ाद किये,*
*★_ खलीफा बनने के बाद आपने तमाम मुसलमानों के नाम ये पैगाम भेजा: मै तुम्हें अल्लाह का ख़ौफ़ अख़्तियार करने, उसकी किताब को लाज़िम पकड़ने और उसके नबी ﷺ की सुन्नत की पेरवी करने की वसीयत करता हूं, अल्लाह तआला ने वो तमाम उमूर बयान फरमा दिए हैं जो तुम्हें करने हैं और जो नहीं करने_,"*
*"_इसके बाद आपने उन तमाम अहकामात की तफ़सील अपने इस पैग़ाम में बयान फरमाई _,*
*★_ आपने अपने गवर्नरों और लश्करो के अमीरों को ये हुक्म जारी फरमाया- दीन का मज़बूत हलका और इस्लाम का दारोमदार अल्लाह ताला पर ईमान लाना, ठीक वक़्त पर नमाज़ पढ़ना, ज़कात अदा करना है, नमाजो़ं की पाबंदी करो, नमाजो़ं को उनके वक्त पर ही पढ़ो और खूब जान लो कि जो शख्स नमाज़ को ज़ाया करता है वो शरीयत के बाक़ी अहकाम को ज़्यादा ज़ाया करने वाला होगा,*
*★_हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने शाहे रोम के पास एक क़ासिद भेजा, ये क़ासिद एक दिन बादशाह के पास से उठा तो घूमते फिरते एक ऐसी जगह पहुंचा जहां एक शख़्स के कुरान पढ़ने और चक्की पीसने की आवाज़ आ रही थी, ये उसके पास गया और उसे सलाम किया, मगर उसने जवाब नहीं दिया, उसने दो तीन मर्तबा सलाम किया, बिल आखिर उसने ये कहा कि इस शहर में सलाम कैसा ? क़ासिद ने बताया कि वो शाहे रोम के नाम अमीरुल मोमिनीन का एक पैगाम ले कर आया है और उससे दरियाफ़्त किया कि तुम्हारी सरगुज़श्त क्या है? उसने बताया कि मुझे फलां जगह से क़ैद किया गया था, मुझे शाहे रोम के सामने पेश किया गया, बादशाह ने मुझे दावत दी कि मैं नसरानी हो जाऊं वरना मुझे अंधा कर दिया जाएगा, मगर मैंने आंखो के बजाये दीन को तर्जीह दी, चुनांचे गरम सलाइयों से मेरी आंखें ज़ाया कर दी गईं और मुझे यहां पहुंचा दिया गया, रोज़ाना इतनी गंदुम पीसने को मिलती है और एक रोटी खाने को,*
*★_का़सिद हजरत उमर के पास गया तो उस शख्स का क़िस्सा भी पेश किया, क़ासिद का बयान है कि मैं अभी पूरा क़िस्सा बयान नहीं कर पाया था कि हज़रत उमर की आंखों से आंसुओं का चश्मा उबल गया जिससे उनके आगे की जगह तर हो गई, फिर शाहे रोम के नाम खत लिखा:- अम्मा बाद! मुझे फलां शख्स की खबर पहुंची है (यहां उस क़ैदी के अहवाल ज़िक्र किए गए) और मैं अल्लाह की क़सम खाता हूं कि अगर तूने उसको रिहा कर के मेरे पास नहीं भेजा तो मैं तेरे मुकाबले में ऐसा लश्कर भेजूंगा जिसका पहला दस्ता तेरे पास होगा और पिछला मेरे पास _,"*
*★_का़सिद फिर शाहे रोम के यहाँ गया, उसने कहा- बड़ी जल्दी दोबारा आये? क़ासिद ने हजरत उमर का ख़त पेश किया, उसने पढ़ कर कहा, हम नेक आदमी को लश्कर कशी की ज़हमत नहीं देंगे बल्कि क़ैदी वापस कर देंगे _,"*
*★_ एक रात ज़ियान बिन अब्दुल अज़ीज़ हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह के पास आए, बहुत देर तक बातें करते रहे, आख़िर हज़रत उमर रहमतुल्लाह ने फरमाया - ये रात मेरे लिए बहुत लंबी हो गई नींद नहीं आ रही और मेरा ख्याल है, इसका सबब वो खाना है जो मैंने रात खाया है_," ज़ियान ने पुछा - आपने रात क्या खाया था? आपने फरमाया - मसूर की दाल और प्याज_,"*
*★_इस पर ज़ियान ने कहा- आपको अल्लाह तआला ने बहुत कुशादगी दे रखी है, आप खुद ही अपने आपको तंगी में रखते हैं _,"उसकी बात सुन कर आपने फरमाया- मैंने तुझे अपनी हालत बता कर अपना भेद खोल दिया, तू मेरा खैर ख्वाह नहीं, बद ख्वाह है, अल्लाह की क़सम! जब तक ज़िंदा रहूंगा, अपना भेद किसी पर ज़ाहिर नहीं करूंगा _,"*
*★_ एक रात कुछ लोग अपने किसी काम से आपके पास आए, चिराग जल रहा था, बातों के दौरन चिराग की लो कम हुई, आप चिराग के पास गए और उसकी लो की ठीक कर दिया, हाज़िरीन में से किसी ने कहा- अमीरुल मोमिनीन! आप इस काम के लिए हमसे कह देते_,"*
*"_ आपने जवाब में फरमाया- कोई बात नहीं, जब मैं उठा उस वक़्त भी मैं उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ था, इस वक़्त भी मैं उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ही हूं _,"*
*★_ एक रोज़ आपके पास बहुत सा अंबर माले गनीमत में लाया गया, आपने उसको हाथ में ले कर देखा और हुक्म फरमाया- इसे फारोख़्त कर दिया जाए _,"*
*"_ ऐसे में आपका हाथ नाक को जा लगा, आपको खुशबू महसूस हुई, फोरन पानी मंगवाया, उससे हाथ धोए, मुंह धोया, वहां मोजूद लोगों में से किसी ने पूछा - क्या अंबर में कोई खास बात थी? नहीं मेरे हाथ को लग गया था और मैं उसका हक़दार नहीं था _,"*
*★_ इसी तरह एक दिन कस्तूरी लाई गई, उसकी खुशबू महसूस हुई तो हाथ से नाक बंद कर लिया और फरमाया- इसे इतनी दूर रखो कि खुशबू ना आए _,"*
*★_ आपका गुलाम गरम पानी का लोटा ले कर आता और आप उससे वजू कर लिया करते हैं, एक दिन उस गुलाम से फरमाया - क्या तुम ये लोटा मुसलमानों के खाने पकाने की जगह पर ले जाते हो और वहां आग के पास रख देते हो? गुलाम ने अर्ज़ किया - जी हाँ! यही करता हूं _,"*
*"_ये सुन कर आप नाराज़ हुए और फरमाया - कम्बख़्त! तूने सत्या नास कर दिया, ये लोटा भर कर गरम करो और देखो कि इस पर कितना ईंधन लगता है, फिर उन तमाम दिनों का हिसाब कर के उतना ईंधन जमा कराओ _,"*
*★_ शदीद सर्दी के मौसम में आपको एक रात गुस्ल की हाजत हुई, खादिम ने पानी गरम कर के पेश कर दिया, आपने पूछा- कैसे गरम किया? उसने कहा- आम मतबख से (यानी जहां मुसलमानों का खाना पकता है) आपने फरमाया- फिर इसे उठा लो _,"*
*★_ फिर आपने ठंडे पानी से गुस्ल का इरादा किया, एक शख़्स ने आपसे कहा- अमीरुल मोमिनीन! सर्दी बहुत है, अपनी जा़त पर रहम करें, अगर मतबख का पानी अपने लिए जायज़ नहीं समझे तो इतने ईंधन की क़ीमत बैतुल माल में जमा करा दें, चुनांचे आपने ऐसा ही किया,*
*★_ आपके घर के तीन अफ़राद आपके भाई सुहैल, आपके बेटे अब्दुल मलिक और आपके गुलाम मज़ाहम आपके मददगार थे, हक़ के नाफ़िज़ करने में आपकी मदद करते थे, आपको उनका बहुत सहारा था, एक बार बनी उमैया के चंद लोग जमा हो कर आपके बेटे अब्दुल मलिक के पास आए और उनसे कहा- आपके बाप ने हमसे कता रहमी की है, हमारे पास जो कुछ था वो सब हमसे छीन लिया है और हमारे बड़ों की ऐब जोई की है, अल्लाह की क़सम! हम इस पर सब्र नहीं करेंगे, उनसे कहिए ये सब हमारे लिए नापसंदीदा है, इससे बाज़ आ जाएं _,"*
*★_अब्दुल मलिक ने उनका ये पैग़ाम हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह तक पहुंचाने की हामी भर ली, वो आपकी खिदमत में हाज़िर हुए और उन लोगों की बातें आपको बतायी, ये बाते सुन कर हज़रत उमर रहमतुल्लाह को बहुत सदमा हुआ, आपको सदमे की हालत में देख कर अब्दुल मलिक ने कहा- अमीरुल मोमिनीन! आप जो करना चाहते हैं वही कीजिए, उन लोगों की धमकियों की परवाह न कीजिए, अल्लाह की खातिर अगर हम उन लोगों का निशाना बन जाते हैं तो ये हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी_,"*
*"_हजरत उमर रहमतुल्लाह बेटे की बात सुन कर बहुत खुश हुए और फरमाया- अल्लाह तआला का बेहद शुक्र है, उसने सुहैल, अब्दुल मलिक और मजा़हम के ज़रीए मेरी कमर मज़बूत कर दी _,"*
*★_एक शख़्स ने आपको ये कह कर पुकारा- ए ज़मीन में अल्लाह के ख़लीफ़ा_,"*
*"_ आपने उससे फरमाया- देखो जब मैं पैदा हुआ था तो वाल्देन ने मेरे लिए एक नाम तजवीज़ किया था, चुनांचे मेरा नाम उमर रखा, अगर तुम मुझे या उमर कह कर पुकारते तो मैं जवाब देता, फिर मैं बड़ा हो गया तो मैंने अपने लिए एक कुन्नियत पसंद की, मैंने अपनी कुन्नियत अबू हफ़्स रखी, अगर तुम मुझे अबू हफ़्स कह कर बुलाते तो मैं तुम्हें जवाब देता, फिर जब तुम लोगों ने ख़िलाफ़त मेरे सुपुर्द कर दी तो तुमने मेरा नाम अमीरुल मोमिनीन रखा, अगर तुम अमीरुल मोमिनीन के लक़ब से मुझे ख़िताब करते तो तब भी कोई मुज़ायक़ा नहीं था, बाक़ी रहा तुम्हारा ये कहना, ए ज़मीन में अल्लाह के ख़लीफ़ा, तो मैं खुद को ऐसा नहीं समझता, ज़मीन में अल्लाह के ख़लीफ़ा तो हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम और उन जैसे हज़रात थे, जैसा कि अल्लाह तआला फरमाते हैं - ऐ दाऊद ! हमने आपको ज़मीन में खलीफा बनाया_,*
*★_मुहम्मद बिन काब क़ुर्ज़ी हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह से मुलाक़ात के लिए गए, हज़रत उमर रहमतुल्लाह का बदन उस वक़्त हद दर्जे कमज़ोर हो चुका था, सर के बाल झड़ गए थे, चेहरे का रंग बदल गया था, मुहम्मद काब क़ुर्ज़ी ने उन्हें उस वक़्त भी देखा था जब आप मदीना मुनव्वरा के गवर्नर थे, उस वक़्त आप बहुत ख़ूबसूरत थे, आपका बदन सुडोल था, वो आपको टकटकी बांध कर देखने लगे, उनको इस तरह देख कर हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह ने पूछा - इब्ने का'ब! क्या बात है ? खैर तो है, तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो, गोया पहले कभी देखा ही नहीं _,"*
*★_मुहम्मद बिन काब ने जवाब दिया- ताज्जुब की नजरों से देख रहा हूं, हजरत उमर ने पूछा- और तुम्हें किस बात पर ताज्जुब है? मुहम्मद बिन काब ने कहा- ताज्जुब इस बात पर है कि आपका जिस्म लागर हो चुका है, सर के बाल झड़ गए हैं, चेहरे का रंग कुछ का कुछ हो गया है _,"*
*★_जवाब में आपने फरमाया - इब्ने का'ब ! अगर तुम मेरे दफन के तीन दिन बाद मेरी कब्र में मुझे देखो तो तुम्हें किस क़दर ताज्जुब होगा, मेरी आंखे रुखसारों पर आ गिरी होंगी, मुंह और नथनों से कीड़े निकल रहे होंगे, पीप बह रही होगी, यक़ीनन आज की निस्बत उस दिन मैं नहीं पहचाना जाऊंगा _,"*
*★_ आप अपनी बेटियों के पास इशा की नमाज़ से फारिग़ हो कर जाते थे, एक रात गए तो बेटियों ने आपको देखते ही मुंह पर हाथ रख लिया और अंदर की तरफ लपकीं, आपने खादिमा से पूछा- इन्हें क्या हुआ? खादिमा ने बताया- आज शाम उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, मजबूरन उन्होंने मसूर की दाल और प्याज़ से पेट भरा है, ये सोच कर अंदर चली गईं कि आपको प्याज़ की बू महसूस न हो _,"*
*★_ये सुन कर हज़रत उमर रहमतुल्लाह रो पड़े, फिर अपनी साहबजादियों से फरमाया - बेटी ! तुम रंगा रंग के खाने खा सकती हो, लेकिन फिर होगा ये कि तुम्हारे बाप को पकड़ कर दोज़ख में ले जाया जाएगा _," ये सुन कर साहबज़ादियों की चीखें निकल गई,*
*★_जब फितनों की आंधियां चल रही थी उस वक़्त आपके फरज़ंद अब्दुल मलिक ने आपको अजीब सहारा दिया, वो तारीख का एक अनोखा नोजवान साबित हुआ, नोजावान थे, 20 साल के भी नहीं हुए थे लेकिन आपका ईमान बचपन ही से बहुत मज़बूत था, हर मामले में आपकी मदद करते रहे, आपके हाथ मज़बूत करते रहे, ग़र्ज़ अब्दुल मलिक ने क़दम क़दम पर आपको उभारा और आपने कोई नर्मी ना आने दी,*
*★_ एक रोज़ आप काम करते बहुत ज़्यादा थक गए और चाहा कि कुछ देर आराम कर लें, चुनांचे आप लेट गए, अब्दुल मलिक ने फ़ोरन कहा- अमीरुल मोमिनीन आप क्या करना चाहते हैं? आपने फरमाया- प्यारे बेटे ! अब मैं ज़रा सोना चाहता हूं, अब्दुल मलिक ने फोरन कहा- क्या आप काम मुकम्मल किए बगैर सोएंगे? इस पर आपने फरमाया- प्यारे बेटे! कल रात मैं तुम्हारे चाचा जान के काम के सिलसिले में रात भर जागता रहा हूं, अब थोड़ी देर सोने के बाद बाक़ी काम अंजाम दुंगा_,"*
*★_इस पर अब्दुल मलिक ने कहा- अमीरुल मोमिनीन ! क्या आपको पता है, आप सो कर उठेंगे भी या नहीं, मुस्तक़बिल में एक सेकंड के लिए भी ज़िंदगी का भरोसा नहीं, ये सुनते ही आपने बेटे से कहा- मेरी आंखों की ठंडक! ज़रा मेरे क़रीब तो आओ, अब्दुल मलिक बाप के क़रीब हो गए, आपने उन्हें गले से लगा लिया और उनकी पेशानी चूम ली, फिर अल्लाह ताला का शुक्र अदा किया कि उसने ऐसा सालेह बेटा अता फरमाया जो दीन पर इतनी मदद करता है, इसके बाद आप सोए बगैर ही बाहर आ गए और काम में लग गए, एलान भी कराया कि जिस पर ज़ुल्म हुआ है, वो आ कर बताएं, अमीरुल मोमिनीन जाग रहे हैं,*
*★_ एक दिन आपके फरज़ंद ने देखा कि उनके वालिद कोई फैसला करने के सिलसिले में परेशान हैं, उन्होंने कहा- अब्बा जान! आपको इन्साफ करने से कौन सी चीज़ रोक रही है, अल्लाह की क़सम अगर मुझे और आपको उबलती देग में डाल दिया जाए तो भी मुझे इसकी परवाह नहीं, हम हक़ की खातिर हर तरह की कुर्बानी के लिए तैयार हैं,*
*★_ बेटे की बात सुन कर हजरत उमर ने फरमाया - प्यारे बेटे ! मैं सरकश ऊंट जेसी इस दुनिया को काबू में कर रहा हूं, मैं इंसाफ के तमाम तरीक़े ज़िंदा करना चाहता हूं, लेकिन ये काम आहिस्ता आहिस्ता कर रहा हूं, ताकि मैं भी दुनिया के लालच से निकल जाऊं और मुझे देख कर लोगों को भी दुनिया से नफ़रत हो जाए_,"*
*★_ एक दिन अब्दुल मलिक हजरत उमर के पास आए, उस वक्त आपके पास उनके चाचा मुस्लिमा भी मोजूद थे, अब्दुल मलिक ने कहा- आप जरा तन्हाई में मेरी बात सुन लें, हजरत उमर ने पूछा- क्या कोई राज़ की बात है, जिसे अपने चाचा से छुपाना चाहते हो ? अब्दुल मलिक ने फ़ोरन कहा- हां! ऐसी ही बात है_,"*
*★_ इस पर मुस्लिमा उठ खड़े हुए, अब अब्दुल मलिक अपने वालिद के पास बैठ गए और बोले- अमीरुल मोमिनीन! कल आप अपने रब को क्या जवाब देंगे जब वो आपसे पूछेगा, ए उमर तूने बिदअत देखी थी लेकिन उसे मिटाने की कोशिश नहीं की थी, ए उमर तूने सुन्नतों को मुर्दा होते देखा था, क्या उनको ज़िंदा करने की कोशिश की थी?*
*★_ये सुन कर हज़रत उमर ने फरमाया - लख्ते जिगर ! क्या इस नसीहत पर तुम्हें किसी बात ने मजबूर किया है या अपने दिल से कह रहे हो? अब्दुल मलिक बोले- नहीं अमीरुल मोमिनीन! ये बात मैंने अपने दिल से कहीं है, मुझे मालूम है आपसे ये पूछा जाएगा, आपके पास इसका क्या जवाब होगा? हज़रत उमर रहमतुल्लाह ने जवाब में फरमाया - नूरे नज़र ! अल्लाह तुम्हें बेहतरीन जजा़ दे, तुम पर रहम फरमाये, मुझे तुमसे बड़ी उम्मीद है, तुम खैर के कामों में मेरे सर गर्म मु'आविन साबित होंगे, मेरे बच्चे, मेरी क़ौम ने खिलाफत में बेशुमार मुश्किलें पैदा कर दी है, ज़ुल्म की बुनियादों को बहुत मजबूत कर दिया है, जब मैं उनसे उनकी जायदादें वापस लेने के लिए झगड़ता हूं तो मुझे ऐसी फूट पड़ जाने का डर रहता है जिससे खून खराबे की नौबत ना आ जाए, अल्लाह की क़सम! मेरे नज़दीक दुनिया का फ़ना हो जाना आसान है मगर मैं ये नहीं चाहता कि मेरी वजह से किसी का ज़रा सा भी खून निकले, क्या तुम इससे राज़ी नहीं कि कभी ना कभी वो मुबारक दिन आ जाए जिस दिन मैं बिदअत की जड़े उखाड़ फेंकूं और दुनिया को सुन्नतों के नूर से जगमगा दूं, यहां तक कि अल्लाह फैसला फरमा दें और अल्लाह बेहतरीन फैसला करने वाले हैं _,"*
*★_ एक दिन किसी बात पर हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को शदीद गुस्सा आ गया, जब आपका गुस्सा दूर हो गया तो अब्दुल मलिक ने कहा- अमीरुल मोमिनीन! अल्लाह तआला ने आपको ये बुलंद मुका़म अता फरमाया है, आपको अपने बंदों पर अमीर बनाया है, तो क्या अल्लाह तआला की नियामतों की यही क़दर है कि आपको इतना शदीद गुस्सा आ जाए जो इस वक्त मैंने देखा है ?*
*"_हजरत उमर ने सुन कर फरमाया- बेटा! तुमने क्या कहा, ज़रा फिर कहना, अब्दुल मलिक ने अपने अल्फ़ाज़ दोहरा दिये, अब हज़रत उमर बोले - अब्दुल मलिक! क्या तुम्हें गुस्सा नहीं आता?*
*★_जवाब में अब्दुल मलिक बोले- अमीरुल मोमिनीन ! मेरा पेट किस दिन काम आएगा, अगर मैं गुस्से को उसमें ना लोटा दूं यहां तक कि ज़रा सा गुस्सा भी ज़ाहिर ना होने दूं _," मतलब ये था कि मैं तो गुस्सा इस तरह पी जाता हूं कि कोई महसूस तक नहीं कर सकता कि मुझे गुस्सा आया है, आप भी ऐसा ही करें,*
*★_हज़रत उमर रहमतुल्लाह का ये अज़ीम फ़रज़ंद आख़िरत की फ़िक्र में दुबला होता चला गया, यहाँ तक कि मरज़ुल मौत में गिरफ़्तार हो गया, हज़रत उमर उनकी अयादत के लिए जाते और पूछते- अब्दुल मलिक! क्या हाल हैं ? अब्दुल मलिक अपने वालिद से अपना हाल छुपा लेते थे कि उन्हें रंज न हो और कहते- अल्हम्दुलिल्लाह! मैं अच्छा हूं _,"*
*★_मरीज़ की हालत हज़रत उमर से छुपी नहीं थी, इसलिए आपने उनसे कहा- बेटा! मुझसे अपनी हालत ठीक ठीक बयान करो_," इस पर अब्दुल मलिक ने कहा- मैं अपनी मौत को क़रीब महसूस करता हूं, लिहाज़ा आप अजर् की ग़र्ज़ से सब्र करें, क्योंकि आपके लिए अल्लाह का सवाब मुझसे बेहतर है _,"*
*"_ये सुन कर हजरत उमर का दिल डूबने लगा, उन्हें अब्दुल मलिक से बहुत ज़्यादा मुहब्बत थी, हजरत उमर उनके पास से चले आये और नमाज़ पढ़ने लगे, इतने में मुजा़हम ने आ कर बताया- अमीरुल मोमिनीन! अब्दुल मलिक वफ़ात पा गए, हज़रत उमर बेहोश हो कर गिर पड़े,*
*★_ यूं तो हज़रत उमर रहमतुल्लाह की औलाद बहुत थी, आपके 12 बेटे थे, 3 बेटियां थीं, लेकिन उनमें सबसे ज़्यादा आलिम और फकी़ह अब्दुल मलिक ही थे, बाप को हिदायत करने में बहुत दिलेर थे, जब उन्हें दफ़न कर दिया गया तो आप क़िब्ला और क़ब्र के दरमियान खड़े हो गए, बाक़ी लोग आपके चारो तरफ़ खड़े थे, उस वक़्त आपने कहा-*
*"_बेटा! तुम पर अल्लाह रहम फरमाये, तुम्हारी पैदाइश से खुशी हुई थी, तुम्हारा उठान नेकियों से भरपूर रहा, मुझे तो ये भी गवारा नहीं था कि मैं तुम्हें आवाज़ दूं और तुम मेरी आवाज़ पर लब्बेक कहो, मुझे तुम्हारी ज़रा सी तकलीफ भी गवारा नहीं थी, आज तुम्हें इस जगह रख कर मैं बहुत खुश हूं, तुम्हारे बारे में अल्लाह से जो हिस्सा मुझे मिलने वाला है, उसकी बहुत ज़्यादा उम्मीद है, अल्लाह तुम्हारे गुनाहों से दर गुज़र फरमाये और तुम्हारे नेक आमालों को बेहतरीन बदला अता फरमाये और तुम्हारी बुराइयां मिटा दे और तुम्हारे लिए दुआ करने वाले हर शख्स पर अल्लाह अपना रहम फरमाये ख्वाह वो आज़ाद हो या गुलाम, हाजिर हो या गायब और मर्द हो या औरत, जिसने खुलूस से तुम्हारे लिए दुआ की अल्लाह उसे अजर अता फरमाये, हम अल्लाह के फैसले पर राज़ी हैं और उसके हुक्म के आगे झुके हुए हैं और अल्लाह रब्बुल आलमीन का बहुत बहुत शुक्र है _,"*
*★_फिर हज़रत उमर अब्दुल मलिक की क़ब्र से वापस लोटे, सब लोगों को उनकी मौत का बहुत सदमा था, सब लोग रहती दुनिया तक उन पर अफ़सोस करते रहेंगे, उनके लिए रहमत की दुआ करते रहेंगे,*
*★_हज़रत उमर की मजलिस में बैठने वालों में अब्दुल्लाह बिन उत्बा बहुत ही मुखलिस थे, आप उनके बारे में कहते थे- अगर मुझे अब्दुल्लाह की एक मजलिस नसीब हो जाए तो वो मुझे दुनिया व माफ़ीहा से प्यारी है, अल्लाह की क़सम मै अब्दुल्लाह की एक रात उन्हें सरकारी ख़ज़ाने से एक हज़ार दिनार दे कर ख़रीद लुंगा _,*
*★_ लोगों ने इस बात पर ऐतराज़ करते हुए कहा- अमीरुल मोमिनीन! ये आप क्या कह रहे हैं, जबकी आप सरकारी खज़ाने के मामले में बहुत ज़्यादा अहतियात करते हैं और उसकी ज़रूरत से ज़्यादा हिफाज़त करते हैं _,"*
*"_ आपने जवाब में फरमाया- तुम लोगों की अक़लें कहां चली गईं, अल्लाह की क़सम मैं उनकी राय, खैर ख्वाही और हिदायत से सरकारी खज़ाने में करोड़ों रुपया जमा कर दूंगा_,"*
*"_ये अब्दुल्लाह बिन उतबा भी हजरत उमर की जिंदगी ही में फौत हो गए,*
*★_ आपके दौर में ये हालत हो गई थी कि कोई शख्स माल ले कर आता और जरूरतमंदों में तक़सीम करने के लिए उनको तलाश करता तो ज़रूरतमंद मिलते ही नहीं थे, उसे अपना माल वापस ले जाना पड़ता था,*
*★_ आपकी तड़प ये थी कि इस्लाम ज़मीन के कोने कोने तक फैल जाए और लोग सीधे रास्ते पर चलने लग जाएं, आप आलीमों को ताकीदी खुतूत लिखते, वो ज़िम्मियो को इस्लाम की दावत देते, आम तोर पर ज़िम्मी मुसलमान हो जाते थे, उसके बाद उनसे ज़जिया ना लिया जाता, इस तरह खज़ाने में माल जमा न होता, बैतुल माल के निगरां ख़ज़ाना ख़ाली होने की शिक़ायत करते तो आप फरमाते - लोगों का राहे हिदायत पा जाना खज़ाना भरने से कहीं ज़्यादा बेहतर है _,*
*★_ जों जों आपकी उम्र बढ़ रही थी, मौत का ख़ौफ ज़्यादा हो रहा था, शायद इसकी वजह ये थी कि खलीफा अब्दुल मलिक, वलीद और सुलेमान आपके सामने फ़ौत हुए थे, आपने वलीद को अपने हाथों से क़ब्र में उतारा था, उनके नाज़ो नियामत में पले जिस्मो को क़ब्र में दफ़न होते देखा था, इसलिए आप तन्हाई में घुट घुट कर रोया करते थे, आपकी आहों की आवाज़ सुनाई देती थी, आप फरमाया करते थे- तीनो ख़ुल्फ़ा के बाद अब मेरी बारी है _,"*
*★_ आपके भाई सुहेल आपके सामने फौत हुए थे, आपके गुलाम मज़ाहम आपके सामने फौत हुए, आपके फरजंद अब्दुल मलिक आपके सामने फौत हुए, इन तमाम मौतों ने आपमें मौत की याद भर दी थी, मौत के बारे में आपके ईमान में इज़ाफ़ा कर दिया था, आपको मौत से एक क़िस्म का उन्स पैदा हो गया था और आप हर वक़्त मौत का इंतज़ार करने लगे थे, मौत के बाद हिसाब किताब का खौफ आप पर सवार रहने लगा था, इस तरह मौत उनके अंदर कूच का नक्कारा बजाती रहती थी,*
*★_ आपके ज़मामे में आपकी तरह मौत से डरने वाले हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह भी थे, यज़ीद बिन होशब फ़रमाते हैं- मैने उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह और हसन बसरी रहमतुल्लाह से ज़्यादा मौत से डरने वाला किसी को नहीं देखा, यूँ लगता था गोया आग उन दोनों के लिए पैदा की गई है _,"आपने दुनिया की मुहब्बत दिल से निकाल फेंकी थी, इसलिए आपका नफ़्स आपका फ़रमाबरदार बन गया था,*
*★_ एक रोज़ आप मेमून बिन मेहरान के साथ क़ब्रिस्तान गए और क़ब्रों को देख कर रोने लगे, फिर मेमून से फरमाया- अबू अय्यूब! ये मेरे खानदान के बुज़ुर्गो की कब्रें हैं, गोया उन्होंने दुनिया में ऐश और आराम किया ही नहीं था, उन पर बोसीदगी ने अपने पंजे गाड़ दिए हैं, सोते सोते उनके जिस्मों में कीड़े तैर गए हैं _,' फिर आप देर तक रोते रहे, आख़िर उनसे बोले-आओ चले! मेरे ख्याल में उनसे बढ़ कर किसी को आराम व राहत नसीब नहीं जो कब्रों में उतर कर अल्लाह के अज़ाब से महफ़ूज़ हो गए _,*
*★_ एक दिन रक़्क़ाशी आपसे मुलाक़ात के लिए आये, आपने उनसे फरमाया- रक़्क़ाशी! कोई नसीहत करो, उन्होंने कहा- अमीरुल मोमिनीन! जन्नत और जहन्नम के दरमियान कोई घर नहीं है _,"*
*★_ आपकी जो़जा फातिमा से आपके बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया- अल्लाह की कसम! आप बहुत ज़्यादा इबादत करने वाले नहीं थे, लेकिन मौत को कसरत से याद करते थे, मैंने उनसे ज़्यादा अल्लाह से डरने वाला किसी को नहीं देखा, जब आपको बिस्तर पर अल्लाह ताला पर ख्याल आ जाता तो खौफ के मारे तड़पने लगते, यहां तक कि हमें महसूस होने लगता कि आप सुबह तक फौत हो जायेंगे_,"*
*★_ एक रोज़ अपने बारे में फरमाया- मैं बहुत शौक़ीन मिज़ाज था, जब कभी किसी चीज़ को देख लेता तो उससे बेहतर के लिए ख्वाहिश करता, जब मैं मदीना मुनव्वरा में बच्चों के साथ एक बच्चा था तो मुझे अरबी इल्म व अदब का शौक़ हुआ और मैंने अपनी ज़रूरत के लिए इल्म व अदब सीख लिया, फिर मुझे फातिमा बिन्त अब्दुल मलिक से निकाह का शौक़ हुआ, अल्लाह ने मेरा उनसे निकाह करा दिया, फिर मुझे अमारत का शौक हुआ और मैं मदीना मुनव्वरा का अमीर बना दिया, फिर मेरी तबियत ने खिलाफत चाही और मैंने खिलाफत पा ली, फिर जब खिलाफत से ऊपर दुनिया में कोई इज़्ज़त की चीज़ ना रही तो मुझे आख़िरत में अल्लाह की नियामतों का शौक़ हो गया _, (इब्ने जोज़ी-66)*
*★_ और आख़िर आपकी इस्लाहात आपके मुखालिफीन से बर्दाश्त ना हो सकीं, उन्होंने आपको ज़हर दे कर हलाक करने का फैसला कर लिया, ये काम अब्दुल मलिक के बेटे यज़ीद ने आपके खादिम के ज़रिए लिया, ज़हर का असर महसूस करने पर आपने खादिम को बुलाया और उससे पूछा- क्या तुमने मुझे जहर दिया है? उसने कहा- हाँ! मैं अंगुठे के पोरे पर ज़हर लगा कर लाया था और उसे पानी में मिला दिया था, फिर मैंने वो पानी आपको पिला दिया,*
*★_ आपने उसे छोड़ दिया, आपसे कहा गया कि आप ज़हर का इलाज करवाएं, इस पर आपने फरमाया-अगर मुझे मालूम होता कि सिर्फ कान को छूने से ज़हर का असर दूर हो जाएगा तो भी मैं कान को ना छूता, मेरा रब क्या ही अच्छा है जिसके पास मैं जा रहा हूं _,*
*★_ आपने अब्दुल्लाह बिन ज़कारिया को बुलाया, ये शाम के वलियों में से थे, आपने उनसे फरमाया- जानते हो मैंने आपको क्यों बुलवाया है? उन्होंने कहा- जी नहीं, आपने फरमाया- मैंने आपको एक काम के लिए बुलवाया है, लेकिन बताऊंगा बाद में, पहले आप क़सम खायें कि इंकार नहीं करेंगे_,"*
*★_ उन्होंने क़सम खाई, अब आपने उनसे कहा- अल्लाह से दुआ करें, अल्लाह मुझे अपने पास बुला ले _,"*
*"_ ये सुन कर अब्दुल्लाह घबराए और बोले- जब तो मैं मुसलमानों के लिए आपके पास बदतरीन आने वाला हूं और उम्मते मुहम्मदिया का दुश्मन हूं, इस पर हजरत उमर बोले- आपने क़सम खाई है_,"*
*★_ आख़िर अब्दुल्लाह बिन ज़कारिया को दुआ माँगना पड़ी लेकिन दुआ माँगते हुए हिचकिचाते और रोते हुए यह दुआ माँंगी - ए अल्लाह आपके बाद मुझे भी ज़िंदा ना रख,*
*"_इस तरह आपकी वफ़ात के बाद अब्दुल्लाह भी फ़ौत हो गए,*
*★_हजरत उमर रहमतुल्लाह को जब अपनी मौत का यक़ीन हो गया तो आपने बालों का एक कुर्ता पहन लिया, वो घुटनों तक पहुंचता था, उसकी आस्तीन कोहनी तक थी, वो इस क़दर गर्म था कि आपके जिस्म से पसीना बहने लगा, लोगों ने कहा- आप क्यूं तकलीफ उठा रहे हैं, इसे उतार दें, आपने उसे ना उतारा, पसीना बहता रहा, उस कुर्ते में जज़्ब होता रहा लेकिन आपने उस कुर्ते को ना उतारा _,*
*★_ फिर आपकी बीमारी ज़ोर पकड़ गई, आप उस वक़्त देरे समआन में थे, देरे समआन के जिस हिस्से में आप ठहरे हुए थे उसका नाम बक़राह था, वहां के गिरजे का एक पादरी आपके लिए गिरजा के दरख्तों के नए फल लाया, आपने वो फल खुशी से कुबूल कर लिया और उनकी क़ीमत पादरी को देने का हुक्म फरमाया, पादरी ने क़ीमत लेने से इन्कार कर दिया, आप बराबर उसे समझाते रहे, आखिर उसने क़ीमत ले ली,*
*★_ फिर आपने उस पादरी से कहा- मैं इस बीमारी से बचुंगा नहीं, ये सुन कर पादरी रोने लगा, आपने उससे फरमाया- तुम इस गिरजे की ज़मीन के मालिक हो, तुम एक साल के लिए क़ब्र के लिए जगह बेच दो, जब एक साल गुज़र जाए तो तुम हल चला सकते हो और उससे फ़ायदा उठा सकते हो, ग़र्ज़ एक क़ब्र की जगह का सौदा हो गया,*
*★_जब लोगों को आपकी शदीद बीमारी का पता चला तो आपकी इयादत के लिए आने लगे, इयादत करने वालों में आपके साले मुस्लिमा बिन अब्दुल मलिक भी आए, वो बड़े मुजाहिद सिपह सालार थे, उस वक़्त आप बेहोश थे, देखने वालो का अंदाज़ा भी था कि बचेंगे नहीं, उस वक़्त आप खजूर के पत्तों से बने गद्दे पर लेटे हुए थे, आपके नीचे चमड़े का तकिया था और आपके ऊपर एक चादर थी, होंठ खुश्क थे, रंग बदला हुआ था,*
*★_ ऐसे में आपको होश आ गया, आपकी नज़र मुस्लिमा पर पड़ीं तो फ़रमाया- मेरी मौत के वक़्त मोजूद रहना और तुम ही मुझे गुस्ल देना और मेरे जनाज़े के साथ क़ब्र तक जाना, अपने हाथों से मुझे क़ब्र में उतारना _,"*
*"_उस वक़्त मुस्लिमा ने मौक़ा गनीमत जान कर कहा- अमीरुल मोमिनीन! आप दुनिया से रुखसत हो रहे हैं लेकिन आपने अपनी औलाद के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा, उनके पास कुछ भी नहीं है, आप उनके लिए हुक्म फरमा दें, ताकि उन्हें बैतुल माल से वो माल अदा कर दिया जाए _,"*
*★_ये सुन कर आप खामोश रहे, मुस्लिमा ने फिर कहा- क्या आप वसीयत नहीं फरमाएंगे? आपने फरमाया- किस चीज़ की वसीयत करुं, अल्लाह की क़सम! मेरे पास माल नहीं है_,"*
*"_ इस पर मुस्लिमा ने कहा- ये लीजिए! एक लाख दीनार, आप इनको जिस तरह चाहें खर्च कर सकते हैं _,"*
*★_अब हज़रत उमर रहमतुल्लाह ने फरमाया- मुस्लिमा ! मेरी बात मानोगे, मुस्लिमा बोले- जी हां! फरमायें, आपने फरमाया-ये उन्हें वापस कर दो, जिनसे ये लिए गए हैं, ये कहते ही आप बेहोश हो गए, मुस्लिमा रो कर कहने लगे: अमीरुल मोमिनीन! वाक़ई आपने हम संगदिलों को नर्म बना दिया,*
*★_हजरत उमर ने अपनी औलाद को माल का वारिस ना बनाया, आपका ख्याल था कि नेक औलाद को विरासत में मिलने वाले माल की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि विरासत तो नेक औलाद को बिगाड़ देती है,*
*★_ आपको होश आया तो फरमाया- मुझे टेक लगा कर बिठा दो, जब आपको होश आया तो आपने फरमाया- क्या तुम मुझे फ़क़ीरी से डराते हो, तुम कहते हो कि अपने बच्चों को महरूम कर दिया है, मैंने उन्हें उनके वाजिबी हक़ से महरूम नहीं रखा, रहा तुम्हारा ये मुतलबा के मै उन्हें बैतुल माल से देने की वसियत कर जाऊं तो देखो, मेरा कार साज़ अल्लाह है, उसने आसमान से किताब उतारी, वही नेक लोगों का दोस्त है, देखो! मेरी औलाद दो हाल से खाली नहीं या तो वो परहेज़गार है,इस सूरत में अल्लाह गैब से उसे रिज़्क अता फरमाएगा या वो गुनाहगार है तो मेरी जुर्रत नहीं कि गुनाह पर उसकी मदद करुं _,"*
*★_ आपके यहां 14 बच्चे पैदा हुए थे, उनमें से 11 बाक़ी रह गए थे और वो सबके सब इस वक्त आपके पास मौजूद थे, आपने उन सबको नज़दीक बुलाया, उनको देखा, फिर फरमाने लगे- नोजवानों पर मेरी जान कुर्बान हो, मै इन्हें बिला माल के छोड़ें जा रहा हूँ, मेरे बच्चों! तुम्हारा बाप दो हाल से खाली नहीं या तो तुम मालदार बन जाओ और तुम्हारा बाप जहन्नम में जाए या मोहताज बन जाओ और तुम्हारा बाप जन्नत में जाए, तुम्हारा फ़कीर होना और तुम्हारे बाप का जन्नत में जाना बहुत अच्छी बात है, जाओ तुम्हें अल्लाह तआला रोज़ी पहुंचाएगा_,"*
*★_रजा बिन हैवाह आपके पास आये और बोले - अमीरुल मोमिनीन ! यजीद बिन अब्दुल मलिक को वसीयत लिख दीजिए और उन्हें अल्लाह का खौफ याद दिलाइए _,*
*"_ आपने यजी़द बिन अब्दुल मलिक के लिए ये वसीयत लिखी- यजीद! जो लोग तुम्हें पसंद ना करें, उनका भी ख्याल रखना_,*
*★_ जिस वक्त हजरत उमर रहमतुल्लाह ये वसीयत लिखवा रहे थे, तमाम वादी से रोने और सिसकियां लेने की आवाज़ें आ रही थी, फिर आप पर बेहोसी तारी हो गई, हालत और बिगड़ गई और आपके पास सिर्फ आपकी जोजा़ फातिमा, उनके भाई मुस्लिमा और आपके खादिम मुर्शिद ही रह गए, होश में आए तो फिर आप रात भर बेदार रहे, फातिमा, मुस्लिमा और मुर्शिद भी साथ जागते रहे, फिर सुबह हो गई तो फातिमा ने मुर्शिद से कहा- मुर्शिद तुम अमीरुल मोमिनीन के पास रहना_,*
*★_य कह कर वो अपने भाई मुस्लिमा के साथ चली गई, ये लोग रात भर के जागे हुए थे, नींद ने आ लिया, दिन चढ़े इनकी आंख खुली, अमीरुल मोमिनीन के कमरे की तरफ आए तो मुर्शिद को दरवाज़े पर सोया हुआ पाया, उन्होंने उसे जगाया, फातिमा ने उससे कहा- मुर्शिद तुम बाहर क्यों आ गए? मुर्शिद बोला- अमीरुल मोमिनीन ने ही बाहर भेज दिया था, आपने फरमाया था कि मुर्शिद मेरे पास से हट जा, अल्लाह की क़सम मुझे एक मखलूक नज़र आ रही है, उसकी तादाद बढ़ती जा रही है, वो इंसान है न जिन्न,*
*★_ ये सुन कर मैं बाहर निकल आया, निकलते वक्त मैंने सुना, आप फरमा रहे थे, ये आख़िरत का घर है, हम उसे उन्हें देंगे जो दुनिया में बुलंदी और फ़साद नहीं चाहते और अच्छा अंजाम पारसाओं का है_,*
*"_ ये सुन कर हज़रत फातिमा अंदर की तरफ दौड़ पड़ी, आपने देखा, हजरत उमर रहमतुल्लाह की आंखें बंद थीं और आप दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, इन्ना लिल्लाही वा इन्ना इलैहि राजिऊन _,*
*★_ आपने जुमा के रोज़ 40 साल की उमर में 24 या 25 रज्जब 101 हिजरी में वफ़ात पाई, आप अपनी उम्र के बारे में अक्सर फरमाया करते थे - अल्लाह की मुहब्बत 40 साला शख़्स के लिए मुकम्मल हो जाती है, उसके बाद गुनाह करने के लिए इंसान के पास कोई का़बिले कुबूल उज्र नहीं रह जाता_,*
*★_ आपकी नमाज़ जनाज़ा आपके बाद बनने वाले खलीफा यजी़द बिन अब्दुल मलिक ने पढ़ाई, आपने दो साल और चंद माह खिलाफत की, इस मुख्तसर सी मुद्दत को भी लोग बहुत बड़ी मुद्दत कहते हैं, क्योंकि इस मुबारक ज़माने में खैर व बरकत इस क़दर रही कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर की यादें ताज़ा हो गईं, लोगों को इन्साफ मिला, उनसे छीने गए माल उन्हें वापस मिले, हर तरफ़ बरकात ही बरकात नज़र आने लगी,*
*★_आपको गिरजे में उस जगह दफ़न किया गया जो जगह आपने ख़रीदी थी, मुस्लिमा बिन अब्दुल मलिक ने आपकी क़ब्र पर खड़े हो कर फरमाया- अल्लाह की क़सम! आपकी तबीयत में नर्मी रही हत्ताकि आपने क़ब्र देख ली_,"*
*"_ फिर आपको दफ़न हुए एक साल गुज़र गया, उस पादरी को ये हक़ हासिल हो गया कि आपकी क़ब्र बराबर कर दे, उस ज़मीन से फ़ायदा उठाये, लेकिन उसने आपकी क़ब्र को नहीं उखाड़ा, उस ज़मीन से फ़ायदा नहीं उठाया बल्कि उसे यूंही रहने दिया, उसकी हिफ़ाज़त करता रहा ताकि लोग आपकी क़ब्र पर आ कर आपकी मगफिरत की दुआ करते रहें,*
*★_हज़रत उमर रहमतुल्लाह की क़ब्र गिरजा की ज़मीन में एक तवील मुद्दत तक बाक़ी रही, यहां तक कि जब बनू उमय्या का दौर ख़त्म हुआ और अब्बासी दौर शुरू हुआ तो अब्बासी ख़ुल्फा ने बनु उमैया की कब्रों को उखाड़ा, उनसे लाशों को निकाल कर उनकी बेहुरमती की लेकिन हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह की क़ब्र को किसी ने हाथ तक न लगाया, आपकी क़ब्र जों की तों बरक़रार रही, लोग उसका उसी तरह अहतराम करते रहे, पास से गुज़रने वाले क़ब्र की ज़ियारत करते रहे, आपके लिए दुआ करते रहे,*
*★_ फिर मशरिक़ पर तबाही आई, उस तबाही में ये गिरजा भी मिट गया, क़ब्र का निशान भी मिट गया, निशान ज़रूर मिट गया मगर आपकी हड्डियां वहीं महफ़ूज़ रहीं, उनको किसी ने न उखाड़ा और जिस तरह आपकी हड्डियां महफ़ूज़ रहीं उसी तरह आज तक आपका नाम ज़िंदा है और ज़िंदा रहेगा,*
*★_खलीफ़ा बनने के बाद से वफ़ात तक न आपने कोई नई सवारी ख़रीदी, न किसी औरत से निकाह किया, न बांदी रखी, ख़िलाफ़त से वफ़ात तक आपको खुल कर हंसते नहीं देखा गया, अल्लाह की आप पर करोड़ों रहमते नाज़िल हों, आमीन_,*
*"____ अलहम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुआ _,*
*📗 उमर ए सानी - क़दम बा क़दम (मुसन्निफ़ - अब्दुल्लाह फारानी)*
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