☜█❈ *हक़ - का - दाई* ❈ █☞
☞❦ *नूर - ए - हिदायत* ❦☜
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*☞_ हक़ भारी होता है*
*↬• हक़ लेकर, सच्ची बात लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम आए और अबू बकर सिद्दीक़ रज़िअल्लाहु अन्हु ने इसकी तस्दीक़ की, ये पाबंद हैं, परहेज़गार हैं, मोतबर हैं तो सच बात मान लो,_,*
*★ • इस नेअमत का यही तक़ाज़ा है, इसके सामने अपने आपको बिछा दो, अपने आपको क़ुर्बान कर दो, तब होगा ये, फिर कोई डर नहीं, सिवाय इसके की अल्लाह का काम है और अल्लाह का काम हो जाये बस अल्लाह के काम को पूरा करना है, अल्लाह के काम का हक़ अदा करना है ,*
*★ • सारी दुनिया के कामों से इसकी नोइय्यत बिलकुल अलग है, इसलिए ये काम ( अगर इसको काम के तरीके से करो तो ) नफ़्स पर बहुत भारी है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम पर इस काम का बहुत बोझ था,*
*★_हक़ भारी होता है, और कड़वा होता है, इससे तरबियत होती है, क्योंकि कड़वी दवा ही बीमारी दूर करती है ,*
*★ • और बोझ लिए बगैर आदमी बनता नही, इसलिए बोझ लेना पड़ेगा, इस काम का, ये बोझ वाला अमल है,*
*★ • अल्लाह को, अल्लाह की मख्लूक़ को, अपने नफ़्स को बहुत सी चीज़े देखनी पड़ेंगी, ये साफ़ सुथरा काम है, इसमें नफ़्स की कोई आमजिश (मिलावट) नही, इसको दिलों की सफाई के साथ किया जाएगा,*
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*☞_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम दिलों के साफ थे,,*
*★_ इब्ने मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि यह असहाबे मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम दिलों के बहुत पाक साफ थे। यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि अल्लाह दिलों को देखते हैं, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के दिलों में कोई गरज़ नहीं दुनिया की मोहब्बत नहीं अपनी बड़ाई का ख्याल भी नहीं यह सिर्फ अल्लाह के फज़ल के भिखारी थे,*
*★_ इसी का असर था कि अंसार ( रज़ियल्लाहु अन्हुम) भाई हो गए वरना बहुत बड़ी दुश्मनी थी, तारीखी दुश्मनी मामूली नहीं, लेकिन दिल ऐसे साफ हो गए कि अल्लाह ने इनके भाई होने की गवाही दी ।*
*★_ यह लोग (सहाबा किराम) एक दूसरे पर रहम करने वाले थे, लोगों की खिदमत करने वाले थे । सहाबा किराम लोगों से कहते थे कि हमारे अज़ाइम आखिरत बनाने के हैं हम किसी गरज़ के लिए नहीं आए, जितना दिलों का रूख आखिरत की तरफ होगा वह अपने आप को हर शर, हर फितनों से बचा लेगा।*
*★_ ये दीन की समझ होने की अलामत है कि अपनी आखिरत बनावे, जिस अमल से, जिस मता से, जिस हरकत से आखिरत ना बने वो खाली है, धोखा है, इसलिए अपने आपकी हिफाज़त करनी पड़ेगी, महफूज़ रहोगे तो अपने आपको भी महफूज़ रख सकोगे वरना अपनी चीज़ भी खो दोगे ।*
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*☞__सहाबा किराम का इल्म गहरा था*
*↬• असहाबे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का इल्म भी बहुत गहरा था, क्योंकि इल्म के बगैर अल्लाह के हुदूद व क़ूयूद की हिफाज़त नही हो सकती,*
*★ • हज़रत मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे मुझे अपने काम के बारे में ये खतरा है कि आखिर में ये काम नावाकिफो के हाथ में चला जाएगा और वो हुदूद व क़ूयूद की कोई हिफाज़त नही करेंगे,*
*★ • सहाबा किराम तहक़ीक़ के साथ, एहतियात के साथ अपने दीन पर चलते थे, देखा देखी नही, सुनी सुनाई नही, नक़ल भी नही, तहक़ीक़ के साथ चलते थे ,*
*★ • नक़ल तो उतारनी है, सिर्फ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की, उनकी नक़ल का हुक्म है, एहकाम में भी, आदाब में भी तमाम चीज़ों में, और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को हुक्म दिया गया था की तमाम नबीयों की नक़ल आपके अंदर आ जाये, आप नबियों की नक़ल उतारे, उम्मत आपकी नक़ल उतारेगी (ताकि नबियों वाली खैर आ जावे) इसलिये जो माया हमें मिलेगी वो नबियों वाली मिलेगी,*
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*☞__सारी उम्र इल्म की तलाश में रहे*
*↬• सहाबा किराम रज़िअल्लाहु अन्हुम के ज़माने में किताबें नही थी, उस ज़माने में छापने के औजार नही थे,*
*★ • उलमा ने लिखा है लेकिन उनकी याद इतनी पक्की थी की लंबी लंबी हदीसें उनको याद हो गई, उनकी याददाश्त की एक और वजह तहम्मुल था कि जो बात (हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के तरफ से आई) उस पर अमल कर लिया, अब भूलने का सवाल ही नही, इल्म महफूज़ होने की ये वजह थी ,*
*★ • फिर (इल्म को) पहुँचाने की फ़िक्र, मरते मरते भी हदीस बताते थे की ये हदीस रह गई थी, सारी उम्र इल्म की तलाश में रहे, छोटों से भी इल्म लेते थे, बड़ों से भी इल्म लेते थे ,*
*★ • तकल्लुफ और बनावट इनमे (सहाबा किराम में) नही होता था, अपना मैय्यार बताने की बात नही होती थी, गलती हो तो मान लेते, वो अंदर थे वो बाहर भी थे ,_*
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*☞___सहाबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की हयात की तफ़्सीर हैं*
*↬• आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ज़िंदगी के जितने पहलु हैं वो सहाबा किराम रज़िअल्लाहु अन्हुम ने रोशन किया, आने वाली उम्मत के लिए ,*
*★ • इब्ने मसउद रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते थे, उनके (सहाबा किराम के) अखलाक़ और आदाब की पैरवी करो, मैं काबे की कसम खा कर कहता हूँ ये लोग सीधे रास्ते पर थे ,*
*★ • क्योंकि सहाबा किराम की जो हिदायात है वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की हिदायात की तफ़्सीर है, और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की जो हिदायात है वो क़ुरान की तफ़्सीर है, इस तरह क़ुरान तक पहुँचना होगा, हयातुस्सहाबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को समझने के लिए और क़ुरान को समझने के लिए है ,*
*★ • और उनको ताकीद की जाती थी की देखो तुमको खुदा ने आगे किया है तुम्हारे पीछे वाले तुम्हारे पीछे चलेंगे इसलिए तुम सीधे रहना ,ये बात हम पर भी आती है कि अल्लाह ने हमे काम में आगे किया है, लोग पैरवी करेंगे, हमारी नक़ल उतरेंगे, इसलिए सीधे (रस्ते पर) रहो ,*
*★ • हमारी मेहनत में यही आसार चलते है (नक़्शे कदम, आमाल, अफ़आल) सहाबा किराम के अफ़आल, बातें हयातुस्सहाबा में सारे आसार हैं ,_*
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*☞_ माहौल बनाना पड़ता है*
*↬• दीन के लिए माहौल बनाना पड़ता है, दीन का माहौल होगा तो दीन परवान चढ़ेगा,*
*★ • हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु अपने दौरे खिलाफत के ज़माने में माहौल की पूरी एहतियात रखते थे की माहौल ना बदले, ऊंचा मकान कोई ना बना ले ताकि लोग ये ना देखें, मुसलमान को देखें उसकी दुनिया को ना देखें ,*
*★ • मआसरत से दीन क़ायम होता है, हुक़ूमत से दीन क़ायम नही होता, कितनी हुकुमतें है इस्लामी और कितना दीन है ?*
*★ • इक़्तेदार से काम नही चलता, इत्तेबा से काम चलता है, इससे माहौल बनता है, फिर जब दुसरे आएँगे वो भी ऐसे ही हो जाएंगे इत्तेबा करने वाले,*
*★ • इसलिए इस काम के ज़रिये अपनी ज़िन्दगी बदलनी पड़ेगी, ऊपर से नीचे आना है नीचे आने में तरक़्क़ी है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को मेराज पर भी बुलाया और गरीबों में भी बिठाया, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को उरूज भी दिया और सादगी भी दी,*
*★_ हमारा काम बहुत ऊंचा है लेकिन सादा है, अपनी ज़िंदगी को सादा बनाया तो ये अमल में आया, नीचे आने में तरक़्क़ी है, ऊपर जाने में नही, उमूमी गश्त में तरक़्क़ी है, खुसुशी में नही (ज़रूरत पर करना पड़ता है) उमूमियत असल होती है, ज़ारी पानी की तरह,*
*★ • हमारा हर आदमी हर काम करे, क्योंकि जमात है टीम नही है, इससे सादगी आती है, खला नही पड़ेगा, मिम्बर पर भी बैठना है और किचन में भी बैठना है ,_*
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*☞_भाई चारा*
*↬• सहाबा किराम रज़िअल्लाहु अन्हुम ने अपनी मेहनत से मुआशरा बनाया, इस मुआशरे से उनका दीन का भाई चारा नज़र आता है,*
*★ • एक आदमी हिजाज़ से मदीना आया (मदीने वालो को) कैसा पाया ? फरमाया :- खुदा की क़सम मैंने ऐसा पाया जैसे एक माँ की औलाद हैं, मुझे भी उन्होंने अजनबी नही समझा , फरमाया :- जानते हो ये क्यों पैदा हुआ ? क्योंकि ईमान ही उनको ऐसा मिला, अल्लाह तआला की नेअमतें दीन से भाई हो गए,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब दावत देते थे तो जोड़ियां बनाते थे की तुम इसके भाई, तुम इसके भाई, पहले ही दिन से भाई बना दिया, ऐसा भाई चारा बनाया ,*
*★ • कोई मसला पेश आ जाये तो मिल जुल कर उस पर गौर करो, ये हुक्म था, या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम आपके बाद भी मसाइल पेश आएँगे, क़ुरान हदीस में भी जवाब ना मिले तो क्या करें ? आपने फरमाया :- ऐ अली, इबादत गुज़ार बन्दों को जमा करना और उनसे मशवरा लेना _",*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़्यादातर अबू बक्र और उमर रज़िअल्लाहु अन्हुम की राय पर रहते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे दोनों की राय एक हो गई तो मैं उसके खिलाफ नही करूँगा, फ़रमाते थे, हर नबी के वज़ीर होते हैं, हर नबी के मुशीर होते हैं, मेरे दो मुशीर आसमान में हैं, दो मुशीर ज़मीन पर हैं, जिब्रील और मिकाइल आसमान में, अबू बक्र और उमर ज़मीन पर ,_*
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*☞_ मशवरा कर के राय लेना*
*↬• मशवरा करो और राय लो, क्योंकि मुआशरा हमारा है, हमे लोगों की सलाहियतों की ज़रूरत है ,*
*★ • इस काम के लिए लोगों के मालों की ज़रूरत नही है, लोगों की सलाहियतों की ज़रूरत है, लोगों की सलाहियतें हक़ पर आयें, हक़ की खिदमत करें, इसके लिए भाई चारे का माहौल बनाना पड़ेगा ताकि हर कोई अपना काम समझ कर इसको करे ,*
*★ • राय लो, पूछो, राय ही एक सहारा है इस्तेक़ामत के लिए, माहौल के लिए, इससे दिल भी जुड़ते हैं, जब सलाहियतों को काम पर लगाया तो दिल जुड़ेंगे ,*
*★ • इसलिए नबी सलाहियतों को देखते थे चाहे वो मुखालिफ ही क्यों ना हो, खालिद इब्ने वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु मुखालिफ थे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इंतज़ार था कि ये सब सलाहियतें दीन पर लगें, आपने फरमाया कि अगर ये दीन पर अपनी सलाहियतें लगाये तो हम इसको आगे आगे रखे, ये नही की इसने नुकसान पहुँचाया तो इसको मारो पीटो, ये सियासत है,*
*★ • वो खुद फ़रमाते थे, मैंने बहुत घोड़े दौड़ाये आपकी मुखालफत में, लेकिन इस काम में सलाहियतों को पहचान कर उनसे काम लेना, ये मशवरे से होगा,*
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*☞__मशवरे में ख़ैर है*
*↬• एक मर्तबा औरतों की इद्दत का मसला आया, वो हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने रखा गया, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया क़ुरैश की बूढी औरतों की जमा करो, उनको मसला दिया कि तुम गौर करो, उन्होंने बताया कि ये मसला है, तो हल हो गया,*
*★ • मसले जब आएंगे तो सलाहियतें ठीक करेंगी, अगर मशवरा करेंगे तो खैर है, मशवरा नही करेंगे तो नदामत से नही बच सकेंगे, ये ज़रूर पछतायेंगे,*
*★• ये मुआशरा माहौल है, इसको क़ायम रखो ताकि जो भी आवे इस काम को समझे, ज़िम्मेदारी को समझे, ये अमानत है, इसलिए हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को बहुत फ़िक्र थी की मेरे बाद क्या होगा ?*
*★ • एक दिन खुत्बा देने के लिए खड़े हुए, कहने लगे कि मैंने ख्वाब देखा है-- एक मुर्गे ने मुझे तीन ठोंगे मारी, अस्मा बिन्ते उमैर रज़िअल्लाहु अन्हा ने इसकी ताबीर बताई की कोई गैर अरबी आदमी आपको शहीद करेगा,*
*★_फरमाया मै शूरा से ज़िम्मेदार तय करता हूं की वो मेरे बाद ज़िम्मेदार बनाये, ये वो लोग हैं जिनसे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम राज़ी रहे उनको मैंने छांटा है, मशवरे की ज़िम्मेदारी अमानत दार, तक़वे वालों को दी ,_*
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*☞_ उम्मत का काम उम्मतपने से होगा*
*↬• 3 दिन तक अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़िअल्लाहु अन्हु जागे, हर एक से राय ली, फिर तय किया कि हज़रत उस्मान गनी रज़िअल्लाहु अन्हु अमीर (खलीफा) होंगे ,*
*★ • ये हमारा मुआशरा है, हम ये काम मिल कर करेंगे, उम्मत का काम है, उम्मतपने से होगा, इस मुआशरे पर दीन क़ायम होता है, फ़ित्नों के दरवाजे बंद होते हैं,*
*★ • नही तो मुआशरा बिगड़ेगा, तो हज़रत इलियास साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे की जो सालो में फ़ित्ने आने वाले थे वो महीनों में आएँगे, तेज़ी के साथ, दिलों की पाकीज़गी सबसे पहले खत्म ही जाएगी,*
*★ • सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पूछा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से – क्या इस शर के बाद कोई खैर आएगी, फ़रमाया - हां खैर तो आएगी मगर दिल ऐसे नही रहेंगे, दिल बिगड़ जाएंगे,*
*★ • दिलों की पाकीज़गी पर अल्लाह तआला की मदद आती है, अल्लाह दिलों को देखते है कि इसकी क्या तलब है, इसलिए अल्लाह को ही दिखाना है ,*
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*☞_ नफरतें पैदा ना करें*
*↬• हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम मुबल्लिगीन को भेजते थे तो फ़रमाते, लोगो को बशारतें सुनाना अल्लाह के इनामात की, आख़िरत की निआमतों की, खबरदार कोई नफरत का सबब पैदा ना करना,*
*★ • मुआज़ इब्ने जबल रज़िअल्लाहु अन्हु ने एक बार इशा की नमाज़ पढ़ाई, बहुत लंबी नमाज़ पढ़ाई, (आलिम आदमी थे बहुत ऊँचे दर्ज़े के) एक अंसारी सहाबी नें नमाज़ तोड़कर अलग नमाज़ पढ़ी,*
*“__ पूछा क्यों अलग नमाज़ पढ़ी, क्या तुम मुनाफ़िक़ तो नही ? कहने लगे:- अल्हम्दुलिल्लाह मैं मुनाफ़िक़ नही हूँ मुसलमान हूँ, मुखलिस हूँ, (लेकिन) मैं ये मसला हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के पास ले जाऊंगा ,*
*★ • आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के सामने मसला रखा, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ! दिनभर तो मैं अपने बाग़ में काम करता हूँ (मज़दूर आदमी हूँ) शाम को यहाँ आता हूँ तो मैं थका हुआ रहता हूँ ,*
*★ • तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम हज़रत मुआज़ रज़िअल्लाहु अन्हु पर नाराज़ हुए, बोले मुआज़ क्या फ़ित्ना खड़ा करोगे (यहाँ फ़ित्ने से मुराद नफरत है) खबरदार मुख़्तसर नमाज़ पढ़ाओ, ताकि इज्तिमाइयत खत्म ना हो ,*
*★ • हलाकि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने एक मर्तबा फरमाया था कि ऐ मुआज़ याद रखो मुझे तुमसे मोहब्बत है,*
*“__पहली उम्मतों के दीन इस वजह से बर्बाद हो गए कि उनके दिल फट गए, तो उनका दीन भी फट गया ,_*
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*☞_ ऊँचे अख़लाक़*
*↬• हर नबी ऊँचे अख़लाक़ के साथ भेजे गए हैं, मख्लूक़ के साथ अख़लाक़ से पेश आते थे, खिदमत करते थे,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तो अख़लाक़ का सबसे ऊँचा मैय्यार दिया क्योंकि आपके सामने सबसे ऊंची जहालत थी,*
*★ • ईसा अलैहिस्सलाम के बाद 600 बरस हुए कोई समझाने वाला इनको नही आया, उस जहालत को खत्म करना है, उस जहालत को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने अख़लाक़ से खत्म किया,*
*★ • 40 बरस तो लोगो ने आप सलल्ललाहु अलैहिवसल्लम को बगैर दीन की दावत के अख़लाक़ वाला देखा है, अभी नबूवत नही आई थी, आपको हर मामले में अख़लाक़ वाला देखा, अमानतदार देखा,*
*★ • फिर नबूवत आई, लोग मुखालिफ हो गए, आपने इन्साफ, एहसान, ईसार भी दिखाया लोगों को, इससे जहालत दबी, जब आप कमज़ोर थे तब भी आप ने अख़लाक़ दिखाया, जब चारो तरफ से लोग आपके मुखालिफ हो गए तब भी आपने अख़लाक़ दिखाया ,_*
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*☞_ सच्चाई और अमानतदारी*
*↬• फतह मक्का के मौक़े पर भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अख़लाक़ दिखाया कि मैं हाकिम नही हूँ, ये अल्लाह का दीन है इसमें तुम्हारा भी हिस्सा है, हिस्सा तुम्हे देना है,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके साथ एहसानात किये, उनको झुकता दिया, मालदार बना दिया, जो सलाहियत वाले थे उनको माल नही दिया, उनको काम पर लगाया, खालिद बिन वलीद, अम्र बिन आस को माल नही दिया, काम पर लगाया, इनको आगे रखा, अहल वालो से काम लिया, नाअहल के पास काम जाये तो ये क़यामत की अलामत है ,*
*★ • इसलिए इस काम में अपने आपको अमानतदार बनाना है, सच्चाई और अमानतदारी, ये हमारे मज़हब की रूह है, हमारा मज़हब सच्चा है, इसलिए अल्लाह तआला इस काम में सच्चों को लेते हैं, क़यामत में भी सच्चाई ही नफा देगी ,*
*★ • अल्लाह तआला से मांगे इसको कि अल्लाह तआला हमें ज़िम्मेदारियों पर क़ायम रखे और अमानतदारी के साथ, अपनी कोताहियों की नदामतदारी के साथ, कि हमसे पूरा नही हो रहा है, तन्हाइयों में अल्लाह से माफ़ी मांगे ,*
*★ • तन्हाई सही होगी तो बाहर भी सही होगा, खिलवतें सही नही तो जलवतें भी सही नही ,*
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*☞_ मकसदे ज़िन्दगी*
*↬• मुसलमान का मक़सदे ज़िन्दगी उसका दीन है, अल्लाह में मुसलमान को दीन के लिए पैदा किया है और दीन को मुसलमान के लिए उतारा है आसमानों से और पूरा दीन उतार कर अल्लाह ने हमें दिया है ,*
*★ • हज़ के मौके पर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़ किया तो ये आयात उतरी थी की मैंने आज तुम्हारा दीन पूरा पूरा कर दिया, और तुम्हारे लिए जिंदगी गुजरने का ये तरीका पसंद किया है जो मैं दे रहा हूँ ,*
*★ • पसंद कर के अल्लाह ने दीन दिया, सोचो अल्लाह जिस चीज़ को पसंद करें, वो चीज़ कैसी होगी, उस दीन की क्या हैसियत होगी, जिसको अल्लाह पसन्द कर के दे रहा है,*
*★ • इसलिए इस दीन की अहमियत को समझना है कि अल्लाह ने कैसा नूर हमको दिया है ,*
*★ • जब ये आयतें उतरी तो यहूद ने ये कहा कि अगर ये आयतें हमारे ऊपर उतरी तो इस तारिख को ईद मनाते, हर साल जश्न करते, त्यौहार मानते इस दिन को, फरमाया की हमारी तो ईद हो चुकी ,_*
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*☞_ दुनिया का सामान धोखा है*
*↬• और अल्लाह तआला ने ये भी बता दिया की दीन के बगैर आपको कामयाबी नही मिलेगी, जो कामयाबी होगी वो दीन से होगी, बगैर दीन के अगर कोई चीज़ मिलती है तो वो धोखा है,*
*★ • धोखे का शुरू हिस्सा नफा वाला होता है, जब नतीजा आता है तो पछतावा, हमेशा धोखे के आखिर पछतावा है, इसलिए अल्लाह तआला ने कहा कि ये सारा सामाने दुनिया धोखा होगा, इसके पीछे तुम्हे पछताना पड़ेगा, कि अल्लाह ने जो पसन्द कर के चीज़ दी थी उसको तो ली नही, हमने उसको छोड़ कर दूसरी चीज़ ले ली, तो धोखा खाया,*
*★ • इसलिए अल्लाह तआला ने आगाह कर दिया की सही चीज़ और सच्ची चीज़ लेना और सही और सच्ची चीज़ वो जो अल्लाह और उसका रसूल दे, हमको अल्लाह ने दीन दिया, ये एक बात है,*
*★ • दूसरी बात ये है कि हमारे जो हालात सही होंगे या बिगड़ेंगे क्योंकि हम कलमे वाले हैं, हमारे हालात के बनने बिगड़ने का जो ताल्लुक़ है वो दुनिया की चीज़ों से नही है, हमारी लाइन अलग है, इसलिए दुनिया की चीज़ कम आई या ज्यादा आई इससे हमारी कामयाबी का कोई ताल्लुक़ नही होगा,*
*★ • हमारी कामयाबी का ताल्लुक दीन से होगा, क्योंकि ये हमारी लाइन है, अल्लाह ने हमें हुक्मों वाली लाइन दी है, अगर हम हुक्मों पर रहेंगे तो कामयाब हो जाएंगे, हुक्मों को छोड़ देंगे तो नाक़ाम हो जाएंगे,*
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*☞_मेहनत से नफा नुकसान खुलता है*
*↬• जो चीज़ जितनी कीमती होती है उसकी मेहनत भी उतनी क़ीमती होती है ,*
*★ • हक़ से फायदा उठाने के लिए हक़ की मेहनत करनी पड़ेगी , दीन हक़ है, दीने हक़ के लिए मेहनत करो तो अल्लाह तआला इसके नफे खोलेंगे, इसके फायदे ज़ाहिर होंगे, इसके ना होने के नुकसान भी खुलेंगे ,*
*★ • मेहनत का ये असर होता है कि नफा नुकसान खुलता है, जिस चीज़ की मेहनत से आदमी बेखबर होता है उस चीज़ के नफे नुकसान से भी आदमी बेखबर होता है, और जिस चीज़ की मेहनत से बाखबर होता है उस चीज़ के नफे नुकसान से भी बाखबर होता है ,*
*★ • हम दीन की मेहनत में आएंगे तो दीन होने का क्या नफा है खुलेगा, और दीन ना होने का क्या नुकसान है ये भी खुलेगा ,*
*★ • अगर ये नही है (दीन की मेहनत) तो हम कुछ नही जानेंगे, दीन होगा तो क्या, दीन ना होगा तो क्या ,_*
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*☞_इंसानी जिंदगी का पहला सबक़*
*↬• दीन ऐसी चीज़ है कि दीन पर रहना, दीन पर चलना ये तो इंसानी जिंदगी का पहला सबक़ है,*
*★ • जबसे अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को वजूद दिया था पहला सबक़ यही दिया था कि मैंने तुम्हे ज़मीन पर जो बसाया है तो ज़मीन की चीज़ों की तरक़्क़ी के लिए नही बसाया, तुम्हे तो मैंने एक खास काम के लिए बसाया है और तुम्हारी तमाम ज़रूरियात का मैंने इंतज़ाम कर दिया है,*
*★ • कहते है आदम अलैहिस्सलाम के पैदा करने से 6 दिन पहले आसमान, ज़मीन, ज़मीन के अंदर की तमाम चीज़े, जो क़यामत तक होती रहेंगी वो सब बना दी, सातवां दिन जुमा का उस दिन आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया अस्र के वक़्त,*
*★ • फिर जब ज़मीन पर उतारा कि ज़मीन को आबाद करना सिर्फ इसलिए है कि ज़मीन पर तुम अल्लाह तआला के हुक्मों को पूरा करोगे, अल्लाह तआला के हुक्मो पर चलोगे, अल्लाह तआला के हुक्मों की राह बनाओगे,*
*★ • और ये भी फ़रमा दिया कि और जो इस रास्ते पर रहेगा वो कामयाब रहेगा, और जो इस रास्ते से हटेगा वो कभी कामयाब नही होगा,*
*“__इंसानी तारीख़ का ये सबक़ हमारा पहला सबक़ है आज का नही है ,_*
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*☞_भूला सबक़ नबीयों के जरिये याद दिलाया*
*↬• फिर ये सबक़ हम भूले, अल्लाह ने याद कराया, नबी भेज़ा, फिर भूले फिर याद कराया, ऐसे अल्लाह तआला रसूल भेजते रहे,*
*★ • क्योकि आदमी दुनिया में आकर दुनिया के असबाब को दुनिया की चीज़ों को, ज़रूरतों को देख कर मक़सद भूल जाता है, ये इसकी आदत है कि जिस काम के लिए गया था उसको भूल गया, दूसरी चीज़ों में रह गया,*
*★ • तो अल्लाह तआला अपनी रहमत से उसकी याददहानी करते हैं, देखो तुम एक काम के लिए भेजे गए हो उस काम पर रहना है, उस काम को करके मेरे पास आना है, इसके लिए रसूलों का सिलसिला चलाया अल्लाह तआला ने, वो सिलसिला हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम पर पूरा हो गया और जो बात कहनी थी पूरी पूरी आपको वो दे दी की अब आने वाली तमाम इंसानियत के लिए एक ही जाबता होगा, और वो कामयाब होना चाहे तो इसी रास्ते से होगा ,*
*★ • ये हमारा पहला सबक़ है तब्लीग, दीन पर रहना, दीन के लिए जमीन में रास्ता बनाना, कि दीन के लिए रास्ता बनाओ ताकि दुनिया के लोग इस दीन पर चले, दुनिया में जाओ और तुम्हारी मेहनत से दुनिया में ऐसा रास्ता बन जावे की लोग आसानी से सुन्नत शरीयत पर चले,*
*★ • यही इस उम्मत का मक़सद है ये उम्मत दुनिया में ऐसी ज़िन्दगी गुज़ारे, ऐसी मेहनत करे की लोगो के लिए हक़ रास्ता खुल जावे कि ये रास्ता हक़ है, अँधेरा उजाला खुल जावे, दूध और पानी अलग हो जावे, ये हमारा काम है ,_*
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*☞_इस मेहनत को सीख कर करें*
*↬• अल्लाह तआला अपने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कहलवाते है कि कह दो ये मेरा रास्ता है, ये मेरी लाइन है, मैं अल्लाह की तरफ दावत देता हूँ, पूरे यक़ीन के साथ और ये दावत मैं भी दूंगा और मेरी उम्मत भी देगी ,*
*★ • इस मेहनत को सीख करके अमल करके अच्छी तरह समझ लें, फिर दुनिया में जावें, अपने काम के लिए जावें तो भी ये काम करें ,*
*★ • काम सामने नही होता तो उसका नफा सामने नही होता, फिर लोग करने वाले को बेवकूफ कहते है ,*
*★ • नबियों को, सहाबा को लोग बेवकूफ कहते, ये पागल है, हर नबी को पागल कहा गया, जब नबी का काम बन जाता था तो कहते जादूगर है, हालांकि कुदरत से उनके काम बन जाते थे, ये रुकावट डालते थे खुदा उनके काम बना देते ,*
*★ • इसमें कोई शक नही कि काम में बड़ा असर है, ज़िन्दगियों को बदलने में, ज़िंदगियां बदल जाएगी, हक़ समझ में आ जाएगा, हक़ दिल में उतर जाएगा, क्योंकि हक़ तो दिल में जगह लेता है, जिसके दिल में बैठा, नही निकलेगा कुछ भी करो ,_"*
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*☞_मेहनत का असर - आदमी की ज़िंदगी बदल जाती है*
*↬• इस काम में बड़ा असर है, ज़िन्दगियों को बदलने में, ज़िंदगियां बदल जाती है, और जो जितना जहालत में होगा उस पर इस काम का उतना ही ज्यादा असर होगा ,*
*★ • इसलिए हमने दुनिया में देखा है कितने ही चोर पक्के पाबन्द वली बन गए, हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते थे की इस्लाम की क़दर वो पहचानेगा जिसने जाहिलियत में अपने दिन काटे होंगे,*
*★ • हज़रत ज़ाफ़र रज़िअल्लाहु अन्हु ने नजासी बादशाह के सामने कहा था कि हम तो जाहिल थे, मुर्दार जानवर खाते थे, एक दुसरे को तंग करते थे, यतीमों का माल खाते थे, फिर अल्लाह तआला ने हमें दीन दिया,*
*★ • इसमें कोई शक नही, इस मेहनत में असर है बहुत, इसलिए कहते है जादू है, जादू कुछ नही है, बारिश के पानी से ज़मीन ज़िंदा हो जाती है, ऐसा ही मेहनत का असर है, आदमी की ज़िंदगी बदल जाती है,*
*★ • पाबन्द, परहेज़गार, मुत्तक़ी हो जावे, इस काम के जरिये से अल्लाह पाक अपना डर डाल देते हैं, दिलों में डर पड़ा बस बैटरी चार्ज हो गई, और जब दिल डर से खाली हो तो फिर ज़िन्दगी हुक्मों पर नही जाती ,_*
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*☞_समझना बहुत ज़रूरी है*
*↬• शुरू में कस्मपुर्सी होती है, रुकावटें आती है, कोई सुनता नही है ,*
*★ • अल्लाह तआला रुकावटे पहले डालते है मदद बाद में देते है, ये अल्लाह की शान है, जैसे पहले बच्चा भूखा होगा फिर माँ का दूध बाद में, कि परवरिश का निज़ाम है, भूख पहले देंगे फिर ग़िज़ा देंगे,*
*★ • भूख के बाद जो ग़िज़ा जाएगी वो बदन का हिस्सा बनेगी, ऐसे ही इस काम में रुकावटे आएंगी, आदमी मेहनत करेगा तो उसके अंदर तलब पैदा होती है काम की, दीन की, फिर अल्लाह तआला उसको दीन देते हैं, फिर वो (दीन) निकलता नही ,*
*★ • याद रखो समझना जरूरी है, हज़रत जी मौलाना युसूफ साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे की हम समझने में कमी ना करें, एक चीज़ तो है बयान कर देना, ये भी ठीक है, लेकिन असल तो समझाना है, क्योंकि अल्लाह तआला ने हर एक की समझ अलग अलग रखी है, पाँच उंगलिया एक जैसी नही बनाई,*
*★ • बहुत से लोग बहुत समझदार होते है, इशारे में समझ जाते है और फैसला कर लेते है कि यही करना है, लोगों में अल्लाह ने समझ रखी है,*
*“__हदीस में है – लोग अपनी जगह इतने क़ीमती हैं जैसे सोने और चांदी की खानें होती है ज़मीन में ,_*
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*☞_ खुश नसीब बन्दे*
*↬• अल्लाह तक पहुचने के लिए अल्लाह तआला को खुश करने के लिए लोगो के दरमियान रास्ता बनाना, इससे अल्लाह की ख़ुसूसी मददें उतरती हैं, दोनों तरफ उतरती हैं, काम करने वालो पर भी उतरती है और जिनमे काम करोगे उनमे भी उतरती है,*
*★ • काम करने वालो में जो मददें उतरती हैं वो ये होतीं है कि मेहनत करने की वजह से अल्लाह तआला उनके दिलों में काम की अहमियत बढ़ा देते हैं, फिर अल्लाह उनसे काम लेंगे और ये काम करेंगे दुनिया में, अल्लाह तआला की ताकत से ये चलेंगे,*
*★ • जितना आदमी इस काम में चलेगा अल्लाह तआला इस काम की अहमियत उसके दिल में बढ़ाते चले जाएंगे, हज़रत अबू बकर रज़िअल्लाहु अन्हु के दिल में जो अहमियत थी वो किसी के दिल में नही थी, वो इतना भी नुक़सान दीन का बर्दाश्त नही कर सकते थे की दीन में नुक़सान आवे और मैं ज़िंदा रहूँ,*
*★ • खुश नसीब है वो बन्दे जिनके हाथों से खैर और भलाई फ़ैल जावे और शर और बुराई मिट जावे, क़ाबिले मुबारकबाद है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे, खुश नसीब है वो बन्दे जिनको अल्लाह तआला खैर के फैलने ज़रिया बनाये ,_*
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*☞_इस (दीन) नेअमत का शुक्र करें*
*↬• अल्लाह तआला ने वो मुबारक नेअमत हमें अता फ़रमाई है, इसलिए इस नेअमत का शुक्र ही यही है कि अपने आपको इस नेअमत के लिये खपा देवें, अपने आपको थका देवें और अपनी नफ़ी अपना माल और अपनी जान इस पर लगा देवे, ये इसका शुक्रिया है ,*
*★ • जब इसका शुक्र अदा करेंगे तो ये नेअमत और बढ़ाएंगे अल्लाह तआला और इतना बढ़ाएंगे की दुश्मनों को दोस्त बना देंगे, दीन के दुश्मन दीन के दोस्त हो जाएंगे, मारने वाले मरने वाले हो जाएंगे अपने दीन के लिए, ऐसा बना देंगे अल्लाह ,*
*★ • अल्लाह दिलो की दुश्मनी निकाल कर दिलो में तौबा डाल देते है, फिर वो तौबा कर के आते है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास तौबा कर के आते थे, फिर इतना काम किया कि कोई नही कर सकता,*
*★ • हज़रत जी मौलाना युसूफ साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे की जब लोग मेहनत करेंगे अल्लाह के दीन की, तो अल्लाह तआला दिलो पर यही असर डालेंगे, इनको पता नही चलेगा,*
*”__जब मेहनत हद तक पहुँच जाती है तब अल्लाह तआला दिलों के पलटने का फैसला करते है ,*_
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*☞__हज़रत खालिद इब्ने वलीद रज़िअल्लाहु अन्हु की तौबा*
*↬• रिवायतों में है कि हज़रत खालिद इब्ने वलीद रज़िअल्लाहु अन्हु सहाबा किराम की जमात में बहुत बहादुर आदमी थे, उनको आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत दुश्मनी थी, वो आपका चेहरा भी देखना नही चाहते थे, इतनी इनके दिलो में तंगी थी आपकी तरफ से,*
*★ • जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उमरा को गए तो खालिद इब्ने वलीद मक्का में ही थे, जब मुसलमान नही हुए थे तो मक्का से इसलिये चले गए कि मैं इनको देखना नही चाहता, इतनी दुश्मनी थी इनके अंदर ,*
*★ • लेकिन अल्लाह की शान, अल्लाह जो चाहते हैं वो हुआ, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उमरे में उनके भाई से पूछा की तुम्हारा भाई कहा है,? उनको मालूम था कि वो आपकी वजह से चला गया लेकिन अदब की वजह से उन्होंने ये नही कहा बल्कि ये जवाब दिया की या रसूलुल्लाह ! अल्लाह उसको लाएगा ,*
*★ • आपने फरमाया- इतना समझदार आदमी है, अगर वो अपनी समझ को हमारे काम पर लगावे तो हम उसकी क़दर करें और हम तो उसको आगे रखें, उनके भाई ने ये बात उनको लिख दी की तू तो ये सोच रहा है लेकिन तेरी यहाँ क़दर हो रही है, तो खालिद इब्ने वलीद बहुत मुतास्सिर हुए और फैसला कर लिया कि कुछ भी हो मदीना ही जाना है,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आये और माफ़ी की गुज़ारिश की कि मैंने आपकी मुखालिफत में बड़े घोड़े दौड़ाये,*
*“__फ़रमाते थे कि मैं आपकी मुखालिफत में बहुत कोशिश करता था लेकिन मैं देखता था कि मदद तो इन्ही की होती है, इसलिए इनका कुफ्र कमज़ोर पड़ गया,*
*★__ये होगा कि दीन की लोग मुख़ालिफ़त करेंगे और मदद अल्लाह दीन वालों की करेंगे ,*_
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*☞__ ये दावत का तरीक़ा होता है*
*↬• दावत उन लोगो के लिए ही नही है जो हमारी हां में हां मिलाएं बल्कि दावत उनके लिए भी है जो हमारी हां में हां मिलाएं और उनके लिए भी है जो हमारी हां को काटें ,*
*★ • दावत में इख्लास भी चाहिए दावत में अख़लाक़ भी चाहिए, वो (दाई) बुराई के जवाब में भलाई करे तो दावत तरक़्क़ी करती है,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यही करते थे कि इसने हमारे साथ दुश्मनी की है, हमारे साथ बुराई की है, हम तो इसकी मदद करेंगे,*
*★ • इसलिए अल्लाह के रास्ते में फिरना ज़रूरी है, अल्लाह के रास्ते में फिरने में अख़लाक़ की मश्क़ होती है,*
*★ • खिदमत करता है आदमी उससे अख़लाक़ वाला बनता है, आदमी इख्लास वाला बनता है, फिर अपने अख़लाक़ और इख्लास से वो लोगों के दिलों के फिरने का ज़रिया बनता है,*
*★_ हम तो इस मेहनत को मखलूक़ की हिदायत के लिए कर रहे हैं कि इस मेहनत के ज़रिये से मखलूक़ को हिदायत हो जावे, जिस काम के लिए अल्लाह तआला ने इंसान को बनाया उस काम पर आ जावे ,_*
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*☞__मेहनत को समझ कर करना है*
*↬• ये असली चीज़ है मेहनत को मेहनत से समझना है, सोहबत से मेहनत को समझना है,*
*★ • जब ये दोनों बातें होंगी कि काम करने वालों की सोहबत में रह कर मेहनत को समझा जाएगा और काम करने वाले इसको समझाएंगे, कुर्बानियों पर ज़िन्दगी पड़ेगी तो फिर अल्लाह का हिदायत का जो वायदा है वो पूरा करेंगे और फिर हालात बनना शुरू जो जाएंगे, रुकावटे दूर हो जाएंगी और लोग अपनी सलाहियतों को अपनी सोच समझ को अल्लाह तआला के दीन पर लगा देंगे ,*
*★ • अब तो अल्ल्लाह ने काम को आसान बना दिया है, आसान बनने के बाद भी आदमी काम में ना लगे तो ये महरूमी है, अल्लाह इससे हिफाज़त फ़रमाये,*
*★ • इसलिए इस काम को अपना ओढ़ना बिछौना बनाना है, जहां भी जाए फूल की तरह अपनी खुशबु छोड़े,*
*★ • ईमान वाला कहीं भी जावे अपने ईमान की बात चलावे, ईमान की दावत चलावे, जब इसकी मश्क़ होगी तो जहां जाएंगे अपनी बात रखेंगे, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जहां भी जाते अपनी बात रखते थे ,_*
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*☞__उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा करो*
*↬• हिकमत के साथ बात रखी जाती है, फिर दिल पलटते है चाहे कितनी ही बुरी ज़िन्दगी हो,*
*★ • मैंने सुना था मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह अलैहि के बारे में जब उन्होंने काम शुरू किया, दिल्ली शहर भी इतना बड़ा नही था, जब कभी सफर के लिए रेलवे स्टेशन जाते थे तो रास्ते में एक पुराना किला था, वही कुछ लोग बैठे हुए होते थे,*
*★ • देखा की अपने ही भाई हैं तो उनको सलाम करते थे, अच्छे हैं,? खैरियत से हैं,? इतना पूछ कर आगे चले गए, और कुछ नही कहा,*
*“__फिर वापसी हुई कुछ दिन बाद फिर सलाम किया, खैर खबर पूछी, आगे कुछ नही कहा, चन्द बार ऐसा हुआ, वो लोग सोचने लगे बड़े मिया आते है सलाम करते हैं खैर खैरियत पूछते है, आगे तो कुछ पूछते नही, असल में ये डाकुओं का गिरोह था ,*
*★ • एक दफा फिर ऐसा ही हुआ और फिर कहा मैं आपका भाई हूँ, वो सामने मस्जिद है मैं वहां रहता हूँ, कभी कभी हमारे पास भी आ जाया करो ,*
*★ • ताल्लुक़ पैदा कर के काम कराया जाता है, इसलिए हम ये कहते है कि उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा करो, जब उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा हो जाएगा तो फिर ये उम्मत को दीन की तरफ खीचेगा, चाहे चोर हो डाकू हो, लुच्चा हो, दावत का मतलब ये है कि उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा करो ,_*
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*☞__उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा करो-2*
*↬• जैसे तिजारती ताल्लुक़ है, कारोबारी ताल्लुक़ है लोगो के एक दूसर्व से, ऐसे ही इस मेहनत में यही कहा जाता है की उम्मत के साथ दीनी ताल्लुक़ पैदा करो कि कौन हैं, क्या हैं, खैरियत है ?सलाम करें, हदीस है सलाम करने से मोहब्बत पैदा होती है,*
*★ • उन डाकुओं के ग्रुप का जो बड़ा था (सरदार) वो आया फज़र में चादर ओढ़ कर, फज़र के बाद बात होती है, उस ज़माने में लोग बड़े मुजाहिदे से और बड़ी कुर्बानियों से चलते थे, तो उनकी बात भी बहुत असर करती थी ,*
*★ • उसने बात सुनी, बात सुन कर वो तो हक्का बक्का रह गया, हम क्या सोचे थे और ये क्या हैं, ये तो ज़मीन आसमान का फर्क है ,*
*★ • जैसे हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि इस्लाम की क़दर वो जानेगा जिसने जाहिलियत में अपने दिन काटे होंगे, इनके तो जाहिलियत में, गुनाहों में दिन कट रहे थे, तो ये तो पिघल गए और फैसला कर लिया की अब चाहे कुछ भी हो अब जान माल ज़िन्दगी इस काम पर लगनी है,*
*★ • अल्लाह तआला इस मेहनत के जरिये से, जब ये मेहनत एक ताकतवर मेहनत बनती है तो इसके असरात दिलो पर पड़ते है और दिल अल्लाह की तरफ पलटा खा जाते है और यही हमारा मक़सद है, कि हम उम्मत में चल फिर कर ऐसी मेहनत करें अपनी कुर्बानियों के साथ कि लोगो के दिलों का अल्लाह की तरफ पलटना हो जावे,*
*“__इसलिए ये नबूवत वाला काम है, नबूवत का काम इसलिए है कि नबी अल्लाह और बन्दों के दरमियान होता है, अल्लाह से लेता है और बन्दों को देता है, अल्लाह से हिदायत लेना और बंदों को देना, हिदायत पर अपनी ज़िंदगी को ढालना और लोगो में इसको चलाने की मेहनत करना ,_*
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*☞__पहली ज़िम्मेदारी - अपने को दीनदार बनाना*
*↬• मैं कहा करता हूँ कि हमारी तीन ज़िम्मेदारियाँ हैं, एक ज़िम्मेदारी हर मुसलमान की ये है कि वो अपने आपको दीनदार बनावे ,*
*★ • जिस तरह अपने आपको खुशहाल बनाते हैं, मालदार बनाते हैं, तंदुरुस्त बनाते हैं, ये हर आदमी चाहता है, ऐसे ही अपने आपको दीनदार बनाना, ये पहली ज़िम्मेदारी है,*
*★ • अल्लाह तआला ने फ़रमाया ऐ ईमान वालो अपने आपको भी और अपने अहलो अयाल को भी दोज़ख की आग से बचाओ, दोज़ख से हम कैसे बचाएंगे, हज़रत अली रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते थे इस आयत का मतलब ये है कि अपने आपको दीनदार बनाओ ताकि दोज़ख से बच जाओ, क्योंकि दोज़ख हक़ है और ज़न्नत हक़ है, वो सामने आने वाली है ,*
*★ • दीन के बगैर कामयाबी नही होगी धोखा होगा, जब ज़िन्दगी पूरी होगी और वो धोखा लंबा होगा उससे निकल नही सकेगा आदमी ,*
*★ • हर आदमी से क़ब्र में उसके दीन का सवाल होगा, ज़िन्दगी तो पूरी हो गई क्या कर के आये, तुम्हे किस काम के लिए भेज़ा था ,*
*“__इतना दीन सीखें, इतनी मेहनत करे कि ईमान क़वी बने, इतना ईमान क़वी बने, इतना ताक़तवर बने कि वो अल्लाह के फर्ज़ों पर खड़ा रहे, अल्लाह के हराम काम से बचा रहे और अल्लाह के दीन के तक़ाज़ों पर चलता रहे, इतना ईमान क़वी बनाना ज़रूरी है ,_*
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*☞__आख़िरत को समझना है*
*↬• मसला असल आख़िरत है, यहां चाहे खोट नज़र ना आवे लेकिन जब नतीजा आवेगा तो खरा खोटा अलग हो जावेगा, इसलिए आख़िरत बने, दुनिया गुज़रने के लिए है और आख़िरत बाक़ी रहने के लिए है ,*
*★ • हज़रत मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे ज़िन्दगी का जो ज़माना हम ज़मीन पर गुज़ारते हैं वो बहुत थोड़ा है और उसके बाद का ज़माना बहुत लंबा है ,*
*★ • क़ब्र का ज़माना बहुत लंबा, जब तक क़यामत का सूर ना फुंके तब तक क़ब्र में रहेगा फिर सूर फूंकने के बाद जब तक दूसरा सूर ना फुंके उसी हाल में रहेगा, फिर क़यामत का मैदान वो भी बहुत लंबा, एक एक मरहला बड़ा लंबा है ,*
*★ • फ़रमाते थे _थोड़ी देर के लिए तो हम बड़ी मेहनत करते है, इतने बड़े मुकाम और इतने बड़े बड़े मरहलो के लिए कितनी मेहनत करनी चाहिए सोचो ,*
*★ • आख़िरत समझा कर दावत देते थे, आख़िरत को समझना है, दिलों से आख़िरत का रुख निकल गया है, इस मेहनत की बरक़त से रुख हुआ है आख़िरत की तरफ (वरना भूले बैठे थे आख़िरत को)*
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*☞__ दूसरी ज़िम्मेदारी - हमारा माहौल दीनी हो _*
*↬• दूसरी ज़िम्मेदारी अपने माहौल को दीनदार बनाना कि हमारा माहौल दीनी बने, जिस माहौल में हम ज़िन्दगी गुज़ारते हैं वो हमारा माहौल दीनी हो ,*
*★ • क्योकि माहौल में दीन होगा तो हम दीन पर बाक़ी रह सकते हैं और माहौल में दीन ना हुआ तो दीन पर बाक़ी रहना मुश्किल, माहौल की वजह से आदमी दीन पर बाकी रहता है, जैसे सर्दी होती है तो सबको सर्दी लगेगी, गर्मी का मौसम है तो सबको गर्मी लगेगी,*
*“__ऐसे ही दीनदारी का माहौल है तो सब दीन पर चलेंगे, और दीनदारी का माहौल नही है तो दीन पर चलना मुश्किल ,*
*★ • इसलिए अल्लाह तआला नबी भेजते थे, नबी माहौल बनाते थे, इसलिए माहौल पर मेहनत करो, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने मेहनत से माहौल बनाया था, लोग जंगलों में भी दीन पर रहते थे, मुनाफ़िक़ थे वो भी दीनी काम छोड़ते नही थे, हालांकि अंदर से मानते नही थे लेकिन माहौल बना हुआ था तो ज़ाहिरी तौर पर पाबन्द रहते थे,*
*★ • माहौल बनाना हमारा काम है, ये जो मुलाक़ातें होती हैं, गश्तें होती हैं, नक़ल हरकत होती है इससे माहौल बनता है, लोगों में दीन आता है हरकत से ,*
*★ • माहौल घर से शुरू होता है कि घर दीनी बने, मोहल्ला दीनी बने, शहर दीनी बने, इलाक़ा दीनी बने, इसलिए वक़्त की मिक़्दार बताई कि रोज़ाना काम (ढाई घंटे, 8 घंटे), हफ्ते में काम (दो गश्त) करो, महीने में (3 दिन,10 दिन), साल में काम करो (40 दिन, चार माह), ताकि माहौल बने फिर जीना आसान हो जाएगा, वरना दीन पे जीना मुश्किल है ,_*
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*☞__ अपने घरों में दीन लाओ*
*↬• मेहनत से माहौल बनता है और अपने अंदर अमल की क़ूवत पैदा होती है, जिन लोगों में अमल की क़ूवत नही होती वो हज़ में भी नमाज़ नही पढ़ते, क्यों ? क्योंकि उनमें नमाज़ की ताकत नही थी ,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़ कराया सहाबा को, तो पहले मेहनत कराई फिर आखिर में हज़ कराया, मेहनत वाला हज़ ,*
*★ • आज भी देख लो मेहनत (दीन की) कर के हज़ पर जाओ तो फ़र्क़ पड़ जाएगा, चार माह चिल्ला लगा कर जाने वाले का हज़ अलग और जो घर से, दूकान से, पैसे से हज़ को जावे उसका हज़ अलग, नबूवत का तरीका है कि पहले मेहनत करो ,*
*★ • अपने घर से माहौल बनता है, अपने घरों में दीन लाओ, वरना घरों में खाने पीने की बातें रह जाएंगी, क्या कमाया ? क्या खाया ?*
*“__इसलिए हमारे बड़े कहते है अपने घरों में तालीम करो रोज़ाना, रोज़ाना बच्चों के कानों में वो बात पड़ेगी तो वो पाबन्द हो जाएंगे, बड़ी खैर है, घरों में दीन आ गया, ज़िन्दगियों में दीन आ गया ,_*
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*☞_ तीसरी ज़िम्मेदारी – सारे आलम में दीन आवे इसकी फ़िक्र*
*↬• सारे आलम में दीन आ जावे इसके लिए सोच फ़िक्र, उसके लिए कोशिश, ये तीसरी ज़िम्मेदारी है ,*
*★ • अपने को दीनदार बनाना माहौल बनाना और सारे आलम में दीन आवे इसकी फिक्र करना, यह हमारा काम है, इसको नुसरत कहते है ,*
*★ • इस्तेक़ामत और नुसरत ये दोनों चीज़े ज़रूरी हैं, इस्तेक़ामत यानि अपने आपको पाबन्द बनाना और अपने आपको पाबन्द बना कर उम्मत के लिए दीन की मेहनत करना, ये नुसरत है ,*
*★ • अगर ये उम्मत अपने दीन पर इस्तेक़ामत के साथ रहे, हर हाल पर दीन पर रहे, हालात की वजह से हुक्म ना छोड़े, जैसे रोज़ा सर्दी में भी रखते है, गर्मी में भी रखते है, छोटे दिनों में भी रखते है, बड़े दिनों में भी रखते है ,*
*★ • अल्लाह ने इबादत का निज़ाम हमारा ऐसा बनाया है कि इबादत में हालात से गुज़रता है बन्दा, हज़रत जी मौलाना युसूफ साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे हमारी इबादतें हालात के साथ नही हैं हुक्म के साथ हैं, गर्मी का रोज़ा है रखेंगे, हम हालात वाले नही हम हुक्म वाले हैं ,_*
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*☞_ मेहनत से हर लाइन का दीन जिंदगी में आएगी*
*↬• हर हाल में दीन पर चलने के लिए मेहनत मददगार बनती है, ये मेहनत होगी तो मुसलमान हर हाल में दीन पर रहेगा,*
*★• जो मेहनत मुजाहिदा करेंगे हम उन्हें हर हाल में हिदायत देंगे,, मेहनत करने से ये ताक़त पैदा होती है कि हर हाल का दीन आदमी कमा लेगा,*
*★ • फिर करोबार का दीन भी आदमी पा लेगा, हमारा कारोबार दीनी कारोबार, सच्चाई वाला, सच्चा और इमानदार ताजिर क़यामत के दिन अल्लाह के अर्श के नीचे होगा, क्योंकि उनकी तिजारत मे भी दीन है,*
*★. हर चीज का दीन दाख़िल करना है, खाने का दीन, पीने का दीन, कमाने का दीन, वो इस मेहनत से आएगा, चुनांचे लोगों की तिजारतें बदल गई, पहले तिजारत केसी करते थे कि अब तिजारत शरीयत के मुताबिक़ करते हैं, अब शादी शरीयत के मुताबिक़, लेन देन शरीयत के मुताबिक़,*
*★• हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पूरा दीन लेकर आए, हर लाइन का दीन, मेहनत से ये फ़ायदा होगा कि हर लाइन का दीन ज़िंदगी में आएगा, दूसरे का क्या हक़ है वो अदा करने वाले बनेंगे, अभी तो हक़ मांगने वाले हैं तो लड़ाइयाँ होती हैं, और जब दीन आएगा तो हक़ देने वाले बनेंगे, तो मुहब्बत पैदा होगी,*
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*☞_दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माने का एक किस्सा*
*↬• हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी कभी किस्सा सुनाया करते थे, एक दफा एक किस्सा सुनाया की सुनो दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक आदमी की ज़मीन दूसरे ने ख़रीदी, खरीदने के बाद उसने काम शुरू किया, खुदाई की तो उसमें से एक घड़ा निकला, उसमें सोना भरा हुआ था, (पहले ज़माने में लोग अपनी दौलत को ज़मीन में दबाते थे हिफाज़त के लिए) ,*
*★ • वो आदमी जिससे ज़मीन ख़रीदी थी उसके पास गया कि मैंने जो आपसे ज़मीन ख़रीदी थी उसमें से ये निकला है, ये आपका है मेरा नही है, आप ले लो, वो कहने लगा मैंने तो आपको ज़मीन बेच दी ज़मीन में जो कुछ है वो भी बेच दिया, इसलिए ये आपका है, मैं नही लेता, दोनों लेने को तैयार नही ,*
*★ • फिर दाऊद अलैहिस्सलाम के पास फैसला गया, उन्होंने दोनों के बयान सुनकर फरमाया कि तुम्हारे कोई औलाद है ? एक ने कहा मेरे लड़का है, दूसरे ने कहा मेरे लड़की है, फरमाया उनकी शादी करा दो और ये माल उनको दे दो,*
*★ • ईमान से खानदान बन गए, वरना अभी तो गले कट जाते, ईमान बनता है तो हुक़ूक़ अदा होते हैं, फिर मुहब्बतें पैदा होतीं है, इसी को कहते है दुनिया और आख़िरत की भलाई, वो मिलती है दीन की वजह से ,_*
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*☞_ दुआ मोमिन का हथियार है*
*↬• दुआएं मोमिन का हथियार है, हालात पैदा होतें है कभी कभी तो उसके लिए अल्लाह ने दुआओं का रास्ता दिया है, कि दुआएं मांगों,• तुम्हारी दुआओं से मसले हल होंगे, ख़ुसूसन दीन के काम के साथ जो दुआएं होतीं है उसमें कबूलियत होती है, ये इनाम है अल्लाह का ,*
*★ • इसलिए अल्लाह ने हमें ये दीन की नेअमत दी है और एहसान किया है हम पर, तुम्हारा उरूज़ तुम्हारी कामयाबी, तुम्हारी तरक्की सब इसी के साथ है, इसलिए इसको इख्लास से कुर्बानियों से इसको चलाना है और अल्लाह ही चलाएगा ये तय है,*
*★ •अल्लाह अपने दीन का मददगार है, जब लोग अल्लाह के दीन की मदद पर आएँगे तो अपनी मददें शामिले हाल कर देंगे,*
*★ • दुनिया के मुल्कों में पहुँच गई ये बातें, एक ही बात सुनोगे आप पूरी दुनिया में, ये कौन चला रहा ? कि अल्लाह चला रहा है, अपनी कुदरत से, हम इस मेहनत में चलेंगे तो अल्लाह अपनी कुदरत हमारे साथ करेंगे, ये क़ायदा है, जो इस काम को करेगा अल्लाह अपनी कुदरतें उसके साथ करतें हैं ये बशारत है ,_*
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*☞_दीन का काम करो और अच्छा गुमान रखो*
*↬• हमारा काम करना बहाने के दर्जे में है, हक़ अदा तो होगा नही, ऐसा दो वजहों से नही होता, एक वजह तो हमारी कमज़ोरी है क्योंकि अल्लाह तआला ने इंसान को ज़ईफ़ (कमज़ोर) पैदा किया, दूसरी वजह हक़ अदा ना हो सकने की ये है कि हम खताकार है, हदीस में है कि अल्लाह कहते है कि तुम सब खताकार हो ,*
*★ • इसलिए अल्लाह ने हमें कुछ चीजें दी है बतौर बहाने के कि इसको कर लो तो फिर अपने दहाने खोल देते है अताओं के दरवाज़े खोल देते हैं ,*
*★ • मैं बन्दे के साथ वो मामला करूँगा जो वो मेरे साथ गुमान करेगा, इसलिए हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे सहाबा से कि अल्लाह के साथ अच्छा गुमान किया करो ,*
*★ • जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि हुज़ूर सल्लाल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मुझे फरमाया कि जाबिर तुम्हारी मौत इस हाल में आवे की तुम्हारा गुमान तुम्हारे परवरदिगार के साथ अच्छा हो,*
*★__ये भी अल्लाह से लेने का एक रास्ता है कि हम अपना काम करें और अल्लाह से अच्छा गुमान करें फिर जैसा हमारा गुमान होगा वैसा अल्लाह कर देंगे ,_*
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*☞_. शैतान बन्दों में बद्गुमानियां पैदा करता है*
*↬• हमें ये सिखाया गया है कि (दावत का) काम करो और अच्छा गुमान रखो, कि अल्लाह इसे क़बूल करेंगे, अल्लाह रास्ते खोलेंगे, हमारे लिए आसानियां पैदा करेंगे, हमारी दुआएं हमारी इबादतें, हमारी कोशिशें अल्लाह तआला क़बूल करेंगे इस गुमान के साथ काम करे,*
*★ • क्यों ? क्योंकि शैतान आदमी को मायूसी की तरफ चलाता है, ना उम्मीदी के साथ चलाता है और आदमी का नफ़्स घबरा जाता है ,*
*★ • उलमा ने लिखा है की आदमी का नफ़्स छोटे बच्चे की तरह है, वो हर ज़िम्मेदारी से भागता है, अच्छे काम से घबराता है, ख़ुसूसन दीन से और अच्छे काम से घबराता है, दुनिया के कामों से नही घबराता,*
*★ • अल्लाह से ना उम्मीद बनाना, उसके बन्दों से बदगुमान बनाना ये शैतान का खास काम है, उलमा ने लिखा है की शैतान बदगुमानी का सौदा दीनदारों में बेचता है, क्योंकि दीनदार लोग किसी बदी व बुराई की तरफ तो जाएंगे नही, गुनाह वो करेंगे नही तो इनके तोड़ का रास्ता बदगुमानी है, इनको एक दुसरे से बदगुमान करो, ये काम शैतान करता है ,*
*★ • जब ये बदगुमान बन जाएंगे तो इनका तआवुन करने से कट जाएगी, बदगुमान बनने का सबसे बड़ा असर ये होता है और हक़ के लिए तआवुन इतना ज़रूरी है जितना ज़मीन के लिए पानी ज़रूरी है, बदगुमानी से इनकी ताकतें, इनकी सलाहियतें महदूद होकर रह जाएंगी, आगे नही बढ़ेंगी ,_*
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*☞_. लोगों की खूबियां देखो*
*↬• मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते थे की हमारी दावत तो खूबियों का लेन देन है, लोगों की खूबियां देखो, जब उनकी खूबियां देखी जाएंगी तो उनसे काम भी लिया जाएगा, काम भी दिया जाएगा ,*
*★ • मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाहि अलैहि ने जब काम शुरू किया, मेवात वालों से फ़रमाते थे कि तुम्हारे अंदर दो खूबियां हैं, एक तुम्हारी सादगी दूसरी तुम्हारी ज़फ़ाक़शी (मेहनत मशक्कत बर्दाश्त करना), इन खूबियों पर उठाया और चलाया,*
*★ • इस तरह हर कौम में, हर तबके़ में कुछ ना कुछ खूबियां होती है, उनको देखा जाता है दावत में, क्योंकि हमें लोगों की सलाहियतों की ज़रूरत होती है मालों की नही,*
*“__हर नबी ने कहा– तुमसे माल का कोई सवाल नही लेकिन हमें लोगों की सलाहियतों की ज़रूरत है ,*
*★• उम्मत की सलाहियतें दीन पर लगे ये अमानतदारी है, इसलिए सलाहियतों को देखना और सलाहियतें अच्छे गुमान से नज़र आतीं है, बदगुमानी से ऐब नज़र आते हैं, नज़र बदल जाती है फिर उयूब ज़बान पर आते हैं, माहौल में उसके चर्चे होते हैं, फिर माहौल बदल जाता है ,*
*★ • मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते थे अगर मुसलमानों में अच्छे गुमान का माहौल बन जावे तो अल्लाह तआला की अताया के दरवाज़े खुल जावें ,_*
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*☞_.दीन का रास्ता दुआ का रास्ता है*
*↬• अल्लाह तआला से अच्छा गुमान रखना, इताअत करना, अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करना फिर अल्लाह तआला से मांगना, मांगने का ज़ोर ज्यादा होना चाहिए क्योंकि हमारी कोशिश का एतबार नही है, उसमें खामियां रह जाती है, लेकिन अल्लाह के वादे पर एतमाद है, और वादा ये है कि तुम दुआ मांगों मैं क़बूल करूँगा ,*
*★ • दुआ से अल्लाह तआला ने बड़े बड़े काम कर दिए जिसका ज़िक्र है क़ुरान व हदीस में, मूसा अलैहिस्सल्लम ने दुआ मांगी फिरौन की पूरी हुकूमत डूब गई ,*
*★ • दीन का रास्ता दुआ का रास्ता है, दीन की मेहनत से, दीन की कुर्बानियों से, दीन को ज़िंदा करने से दुआ ताकतवर बनती है ,*
*★ • इसलिए अपनी दुआ से फायदा उठाना, अल्लाह तआला से मांगना की अल्लाह दुनिया में दीन जिंदा कर दे, क्योंकि अल्लाह तआला के यहाँ सबसे ख़ुशी का सामान वो दीन ही है, अल्लाह तआला को बद्दीनी पसंद नही है, अल्लाह तआला से हमारा रिश्ता दीन का ही है, जब दीन नही होगा तो दुनिया ख़त्म हो जाएगी ,_*
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*☞_.हम नतीजे के ज़िम्मेदार नहीं*
*↬ • कोशिश कर लो बस, आदमी नतीजे का ज़िम्मेदार नहीं है, लोग माने या ना माने, नबियों को, सहाबा को अल्लाह ने कोशिशों का ज़िम्मेदार बनाया था, फिर जो नही हुआ, अल्लाह को मंज़ूर नही था और जो हुआ अल्लाह का फज़ल है, इसलिये अल्लाह तआला से उम्मीद रखें,*
*★ • इस्तेक़ामत इस नेअमतें दीन का शुक्र है, जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की वफात हुई तो लोगों पर एक सकता तारी हो गया, क्योंकि उम्मत के सामने इससे बड़ा कोई हादसा नही, तबियतें बैठ गईं, अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु खड़े हुए और खुत्बा दिया कि जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की इबादत करता हो वो समझ ले कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम तो पर्दा फ़रमा गए और जो खुदा की इबादत करता है वो जान ले कि अल्लाह ज़िंदा है, फिर क़ुरान शरीफ़ की आयतें पढ़ीं जो उहद के मैदान में उतरी थीं ,*
*★ • याद रखो जो पलट जाएगा वो अपना नुकसान करेगा और जो जमेगा अल्लाह उसको बदला देंगे, शुक्र करने वालों को अल्लाह बदला देते हैं, और अल्लाह तआला का जाब्ता ये है कि जब नेअमत का शुक्र होगा तो वो बढ़ेगी ,_*
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*☞_.. हुस्ने नियत*
*↬• अच्छी अच्छी नियतें करो, ऊँची ऊँची नियतें करो, क्योंकि आदमी को अल्लाह तआला वो देंगे जो उसकी नियतों में होगा, इसलिए ऊँची ऊँची नियतों के साथ काम करो,*
*★ • ये काम ऐसा है जैसे आसमान से बरसने वाला पानी, जिससे हर चीज़ ज़िंदा हो जाएगी, दीन की उमूमी मेहनत से दीन के जितने काम है सबको पानी मिलेगा,*
*★ •इसलिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी नबूवत को पानी से तस्बीह दी है कि जो इल्म और हिदायत देकर अल्लाह ने मुझे भेज़ा है वो बारिश के पानी की तरह है,*
*★ • दीन की दूसरी मेहनतें जो इस दुनिया में लोग कर रहे हैं उनके बारे में हमारा ज़ेहन तआवुन का हो, जो काम हम नही कर रहे वो कर रहे हैं, ये हमारा मददगार है और हम उनके मददगार हैं,*
*★_ अल्लाह तआला का हुक्म है कि नेकी और तक़वे के कामों में एक दुसरे के मददगार रहो, इनको मुक़ाबिल ना समझा जाये, फरीक़ ना समझा जाये, तो दोनों तरफ से तआवुन होगा, बदन का हर हिस्सा अपनी ताकत से अलग अलग काम करता है, ऐसे ही जितने तबक़ात हैं उम्मत में उनकी अपनी अपनी ताक़तें हैं, उनकी ताक़तें इस काम पर लगें ये हम चाहें, हमें उन सब की क़दर करनी चाहिए और काम को मक़सद बना कर करो तो हालात खुशगवार रहेंगे _,*
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*☞_.. हुस्ने मआशरत*
*↬• जिस तरह कुर्बानियों से काम को नफा होता है, काम बढ़ता है, तरक्की करता है, इसी तरह इस काम को हुस्ने मआशरत से भी नफा पहुचता है यानि हमारा लोगों के साथ बर्ताव अच्छा हो, इन्साफ का बर्ताव, अख़लाक़ का, अहसान का बर्ताव, ये हुस्ने मआशरत कहलाता है,*
*★ •जो अपने लिए पसंद करेंगे वो दुसरे के भी लिए पसंद करेंगे, फिर कोई शिकायत नही होगी, ये इन्साफ की बात है, फिर एहसान कि उसका हक़ भी दिया और ज्यादा भी दिया, अल्लाह ने दोनों बातों का हुक्म दिया, आपस के रहन सहन में ये ज़रूरी है ,*
*★ • अपनी तरफ से नफा पहुंचाओ अहसान करके, ताल्लुक़ को पानी पहुंचाओ, दूसरो के साथ अच्छा बर्ताव, इसलिए फरमाया कि लोगों ! सलाम को फैलाओ, खूब सलाम करो, और खाने खिलाओ, रिश्तेदारी जोड़ो, सिलाह रहमी करो, अपना नसब नामा पहचानो ताकि रिश्तेदारों का हक़ अदा करो ,_*
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*☞_. .नरम बन कर काम करना*
*↬• हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब दावत के लिए साथियों को भेजते तो उनकी नरमी के लिए हिदायत देते थे, नरम बन कर काम करना, बशारातें सुनाना, नफरतें मत दिलाना ,*
*★ • हुस्ने मुआशरत से काम के लिए रास्ता खुलते हैं, मौलाना इलियास साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते थे मुआशरत जितनी अच्छी होगी काम उतना अच्छा होगा,*
*★ • इसके मुज़ाकरे करो ताकि बात ताज़ा हो जावे, अपने अंदर इस्तेक़ामत पैदा करो, अपने आपको पाबन्द करें, यक़सूई के साथ काम करें,*
*★ • जो ज़िम्मेदारी दी है उसे यक़सूई के साथ पूरा करें, जितनी ज़िम्मेदारी पूरी की जाएगी अल्लाह तआला की उतनी मददें होंगी, पहले ज़िम्मेदारी फिर मदद, हज़रत फ़रमाते थे- मदद ग़ैब में होती है सामने नही होती और अपने वक़्त पर आती है, अल्लाह के मदद के तरीके अलग अलग हैं, हर नबी की मददें अलग अलग हुईं, वो ही जानता है किसकी मदद कैसे करनी है ,*
*★ • हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे मेरी मदद रौब से हुई, सामने वाले पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रौब पड़ता था, हालांकि आप बहुत नर्म होते थे, मुख्लिस सहाबा भी बोलने की हिम्मत नही करते थे ,_*
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*☞_ ये काम बगैर देखे का है*
*↬• नियत रखो कि मुझे अल्लाह तआला का काम करना है मौत तक और नियत के साथ अज्र शामिल हो जाएगा, फिर ज़िम्मेदारी लेना आसान हो जाएगा ,*
*★ • ये हमारा काम है ज़ाहिर के खिलाफ, रिवाज़ के खिलाफ, दुनिया का काम अलग है कि असबाब जमा करो, माल जमा करो, हमारे यहां ये नही है बल्कि अल्लाह तआला का हुक्म समझ कर काम करना है,*
*★ • हज़रत फ़रमाते थे कितने सौदे दुनिया के होते हैं जो देख कर होते हैं, दीन का काम कुछ दिखाई नही देगा, कि कर लो फिर देख लेना, जो वादा अल्लाह तआला का है वो पूरा हो जाएगा, यह काम बगैर देखे का है बस हुक्म देखना है, हुक्म समझ कर करना है,*
*★ • अच्छे अख़लाक़ से, उसलूक से काम करें, हुस्ने सुलूक काम का ढंग अच्छा, अच्छे तरीके से काम को पेश करे, अच्छे सुलूक से दिल उसको क़बूल करतें हैं, बेढंगेपन से बात नही नही ली जाएगी,*
*“__हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक आदमी ज़िना की इजाज़त मांगने आया तो उसको हुस्ने सुलूक से समझाया तो ज़िना की नफरत पैदा हो गई ,_*
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*☞_ अच्छे ढंग से बात चलाओ*
*↬ • अच्छे ढंग से अपनी बात चलाओ, अच्छे ढंग से अपनी बात समझाओ चाहे देर लगे, देर लगेगी तो बात पुख्ता होगी और हक़ जो है वो देर से ही फैलता है, धुंआ जल्दी ऊपर निकल जाता है, इस तरह बातिल जल्दी फ़ैल जाता है धुंआ की तरह से, लेकिन हक़ को फैलने में इस तरह देर लगेगी जिस तरह किसी चीज़ को ज़मीन से उगने में देर लगेगी,*
*★ • हक़ कि जड़े दिलों में जमती है और इसके नतीजे देर से आते हैं, इसलिए इस पर काबू रखो, इस पर अपने आपको पाबन्द रखो, अल्लाह से उम्मीद रख कर तक़ाज़े पूरे करो,*
*★ • नूह अलैहिस्सलाम से अल्लाह ने कितने साल काम लिया फिर नतीजा आया, इसलिए नबियों की ज़िन्दगी बताई कि हक़ की स्पीड बहुत धीमी होती है लेकिन वो दिलों में उगता है, इसलिए इसकी जड़़ कटती नही है हालात से,*
*★ • दीन हक़ है इसके लिए सब्र करना पड़ेगा, हम अल्लाह तआला का काम करेंगे और अल्लाह तआला अपने काम का हामी है, अपने काम की हिमायत करने वाला है, अपने काम की मदद करने वाला है, जो अल्लाह तआला का काम करेगा अल्लाह उसकी मदद करेगा, इसलिए अल्लाह तआला के काम को अल्लाह वाला बन कर करना है,*
*★ • बाज़ मर्तबा अल्लाह तआला ऐसे लोगों से काम लेता है जिनको कुछ देना नही चाहता बस अपना काम लिया और मरदूद करके निकाल दिया, इसलिए अल्लाह तआला से कुबूलियत की दुआ मांगनी है, इस्तग़फ़ार भी करें, ताकि कोई कसर है तो अल्लाह पर्दा डाल दें, अल्लाह तआला मुझे भी तौफ़ीक़ दें और आप हज़रात को भी तौफ़ीक़ दें , आमीन,*
*®_ हज़रत मौलाना इब्राहीम देवला साहब दा ब.
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