*■ रहमतुल लिल- आलमीन ﷺ - पार्ट-1- ■*

 

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     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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      *■ रहमतुल लिल- आलमीन ﷺ ■*
           *🌹صلى الله على محمدﷺ🌹*
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*❀__ सैयदना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्द मुनाफ बिन क़ुस'ई हमारे नबी हैं, दादा ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का नाम "मुहम्मद" सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और मां ने ख्वाब में एक फरिश्ते से बशारत पाकर "अहमद" रखा था ( सैयदना आमना बीबी को नाम रखने की बशारत फरिश्ते की मार्फत ऐसे ही मिली थी जैसे कि फरिश्ते की बशारत से हाजरा बीबी ने इस्माईल अलैहिस्सलाम का नाम और मरियम ने ईसा अलैहिस्सलाम का नाम रखा था )_,*

*★_ वाज़े हो कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को "हम्द" से खास मुनासबत है, हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का नाम "मुहम्मद" व "अहमद" है और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मक़ामे शफा'अत का नाम "महमूद" है, उम्मते मुहम्मदिया का नाम "हम्मादून" और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के लिवा ( झंड़े) का नाम "लिवा हम्द" है,*

*★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम (खलीलुर रहमान व अबुल अंबिया) की औलाद से हैं जो हाजरा बीवी के बतन से हुईं, हाजरा बादशाह ए मिश्र क़ुयून की बेटी थी, अल्लाह के यहां उनका ऐसा दर्जा था कि अल्लाह के फरिश्ते उनके सामने आया करते और अल्लाह के पैगाम पहुंचाया करते थे _,*

*★_ हाजरा बीबी के फरजंद का नाम इस्माईल अलैहिस्सलाम है जो हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे हैं, बाप ने इनको वादी में उस जगह आबाद किया था जहां अब मक्का मुअज़्ज़मा है, अल्लाह ने इस्माईल अलैहिस्सलाम के लिए ज़मज़म का चश्मा ज़ाहिर किया था_,"*      

[10/1, 6:31 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने 12 बेटे दिए थे, उनमें से क़ैदार बहुत मशहूर हुए हैं, तौरात में उनका ज़िक्र बा-कसरत आया है, क़ैदार की औलाद में अदनान और अदनान की औलाद में कुस'ई बहुत मशहूर हैं जो चार वास्ते से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दादा हैं ।* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मां का नाम आमना है, जो वहब की बेटी हैं, वहब क़बीला बनु जो़हरा का सरदार था, उनका सिलसिला नसब फहर अल मुलक़ब पे क़ुरेश के साथ जा मिलता है, इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ददिहाल और ननिहाल में अरब के बेहतरीन क़बीला, बेहतरीन क़ौम और शाख में से हैं।* 

*★_ हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मौसमे बहार में दो शंबा (पीर) के दिन 9 रबीउल अव्वल आमुल फील, बा मुताबिक़ 22 अप्रैल 571, मुताबिक़ यकम जेठ 628 सम्मत बिक्रमी को मक्का मुअज़्ज़मा में बाद अज़ सुबह सादिक़ व क़ब्ल तुलू आफताब पैदा हुए, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने वालदैन के इकलौते बच्चे थे, वालिद बुजु़र्गवार का आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पैदाइश से पहले इंतका़ल हो गया था ।*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मुबारक ज़िंदगी में दो शंबा का दिन खुसूसियत रखता है, विलादत नबूवत हिजरत वफात सब इसी दिन हुई है, इससे मुख्तलिफ तारीखों की ताईन में बड़ी मदद मिलती है, तारीख़ ए विलादत में मोरखीन ने इख्तिलाफ किया है, तिबरी व इब्ने खुलदून ने 12 तारीख लिखी है, मगर सबका इत्तेफाक़ है कि दो शंबा का दिन था चूंकि दो शंबा का दिन 9 रबीउल अव्वल के सिवा किसी और तारीख से मुताबक़त नहीं खाता है, इसलिए नो रबीउल अव्वल ही सही है, तारीख़े अरबुल इस्लाम में भी 9 तारीख़ को सही क़रार दिया है, वाक़िआ आमुलफील के 55 यौम बाद ।*
[10/2, 6:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब्दुल मुत्तलिब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दादा ने खुद भी यतीमी का ज़माना देखा हुआ था, आप 24 साला नौज़वान फरजंद अब्दुल्लाह की इस यादगार के पैदा होने की खबर सुनते ही घर में आए और बच्चे को खाना काबा ले ले गए और दुआ मांग कर वापस लाए, सातवें दिन कुर्बानी की और तमाम कु़रेश को दावत दी, दावत खाकर लोगों ने पूछा कि आपने अपने बच्चे का नाम क्या रखा? अब्दुल मुत्तलिब ने कहा- मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)*

*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम नाम रखा गया, क़ौम ने इस नाम पर ताज्जुब किया, लोगों ने ताज्जुब से पूछा कि आपने खानदान के सब मरूजा नामों को छोड़कर यह नाम क्यों रखा, कहा- मैं चाहता हूं कि मेरा बच्चा दुनिया भर की सताईश (तारीफ) और तारीफ़ का शायां (लायक़) क़रार पाए।*

*★_ अय्यामें रज़ा'त :- शुरफा ए मक्का का दस्तूर था कि अपने बच्चों को जबकि वह 8 दिन के हो जाते थे दूध पिलाने वालियों के सुपुर्द कर के किसी अच्छी आबो हवा के मुका़म पर बाहर भेज दिया करते थे, इस दस्तूर के मुताबिक़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को भी हलीमा सादिया के सुपुर्द कर दिया गया, वह हर छठे महीने लाकर उनकी वाल्दा और दीगर अक़रबा को दिखला जाती थीं, 2 बरस के बाद आपका दूध छुड़ाया गया, माई हलीमा आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को लेकर हजरत आमना के पास आईं, हजरत आमना ने इस ख्याल से कि (वहां की आबो हवा हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के खूब मुवाफिक़ थी और) शायद मक्का की आबो हवा मुवाफिक़ ना हो, फिर माई हलिमा ही के सुपुर्द कर दिया ।*

*★_ वालदा मुकर्रमा का इंतकाल:- जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उम्र 4 बरस की हुई तो वालदा मुकर्रमा ने आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को अपने पास रख लिया, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की उम्र 6 बरस की हुई तो वालदा का इंतकाल हो गया और दादा ने आपकी परवरिश और निगरानी अपने ज़िम्मे ली, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की उम्र 8 बरस 10 दिन की हुई तो आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब ने 82 साल की उम्र में वफात पाई ।*

*★_ अबु तालिब की तर्बियत:- अबू तालिब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ताया थे और आपके वालिद अब्दुल्लाह के हक़ीकी़ भाई, अब वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की निगरानी और तर्बियत के ज़िम्मेदार बने ।*
[10/3, 11:23 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_बहीरा राहिब से मुलाक़ात:- अक्सर किताबों में बयान किया गया है की आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जब 12 साल के हुए तो अपने ताया अबू तालिब के साथ जबकि वह तिजारते शाम को जाते थे, सफर में गए, बसरा में बहिरा राहिब ने आज हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को पहचान लिया कि नबी मोऊद यही नौजवान हैं, उसने अबू तालिब से कहा कि इसे यहूदियों के मुल्क में ना ले जाओ, वह इसे पहचान कर कहीं नुक़सान ना पहुंचाएं, शफ़ीक़ ताया ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बसरा ही से वापस कर दिया।* 

*★_ इस बारे में जो हदीस तिर्मीजी़ वगैरह में है उसमें यह भी है कि ताया ने वापस करते वक़्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा था, इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाह कहते हैं कि यह सरीह गलती है, अव्वल तो उस वक्त बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ना अबु तालिब के पास थे, ना अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के पास, दूसरे यह भी मुमकिन है कि वह उन दिनों मौजूद ही ना हों ।*

*★_ क़ुरान मजीद की आयत (सूरह बकराह 89) :- यह लोग नबी के आने से पहले काफिरों पर फतह उसके ज़रिए पाने की आरज़ू में रहा करते थे, जब नबी ज़ाहिर हुआ और उन्होंने पहचान भी लिया तब उससे मुंकिर हो बैठे _," से साबित है कि यहूदी रसूले मोऊद के इंतज़ार में रहा करते थे और समझते थे उसके आने पर यहूदियों को काफिरों पर फतह व नुसरत होगी, यह एतका़द उनका उस वक़्त तक रहा जब तक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस की बैसत ना हुई, इस आयत से यह भी साबित हो गया कि बहीरा राहिब का क़ौल गलत था क्योंकि अगर यहूदी उस लड़कपन में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को पहचान लेते तो अपने एतक़ाद के मुताबिक़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी फतेह व नुसरत का देवता समझकर निहायत खिदमत गुज़ारी करते, नतीजा यह है कि राहिब की दास्तान नाका़बिले ऐतबार है।*
[10/3, 9:03 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तिजारत का ख्याल :-जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जवान हुए तो आपका ख्याल पहले तिजारत की तरफ हुआ, मगर रूपया पास न था, मक्का में निहायत शरीफ खानदान की एक बेवा औरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा थीं, वह बहुत मालदार थीं, अपना रुपया तिजारत में लगाए रखती थीं, उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खूबियां और उनके औसाफ सुनकर और आपकी सच्चाई, दयानतदारी, सलीका़ श'आरी का हाल मालूम करके खुद दरख्वास्त कर दी कि उनके रूपए से तिजारत करें, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उनका माल लेकर तिजारत को गए, इस तिजारत में बड़ा नफा हुआ ।*

*★_ इस सफर में खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का गुलाम मैसराहा भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ था, उसने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की उन तमाम खूबियों और बुजुर्गियों का ज़िक्र खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को सुनाया जो सफर में खुद देखी थी, इन औसाफ को सुनकर खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दरख्वास्त करके आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ निकाह कर लिया, हालांकि खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा इससे पहले बड़े-बड़े सरदारों की दरख्वास्त निकाह रद्द कर चुकी थीं।*

*★_निकाह :- जब यह निकाह हुआ तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की उम्र 25 साल और खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र 40 साल की थी, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के निकाह में 25 साल तक ज़िंदा रहीं, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उनकी वफात के बाद भी अक्सर उनका मोहब्बत से ज़िक्र किया करते थे और उनकी सहेलियों से भी इज़्ज़त और शफ़क़त का बर्ताव किया करते थे, इस शादी के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का तमाम वक़्त अल्लाह की इबादत और बनी आदम की बेहबूद व खैर अंदेशी में पूरा हुआ करता था।*
[10/5, 6:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ क़यामे अमन व निगरानी हुक़ूक़ की अंजुमन का इन'क़ाद :- उन्हीं दिनों में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने क़बीलों के सरदारों और समझदार लोगों को मुल्क की बे-अमनी, रास्तों का खतरनाक होना, मुसाफिरों का लुटना, गरीबों पर ज़बरदस्तों का ज़ुल्म बयान करके इन सब बातों की इसलाह पर तवज्जो दिलाई, आखिर एक अंजुमन क़ायम हो गई, इसमें बनु हाशिम, बनु मुत्तलिब, बनु असद, बनु ज़ोहरा, बनु तमीम शामिल थे।* 

*★_ इस अंजुमन के मेंबर मंदरजा जे़ल अहदो क़रार किया करते थे:- (१) हम मुल्क से बे-अमनी दूर करेंगे (२) हम मुसाफिरों की हिफाज़त किया करेंगे (३) हम गरीबों की इमदाद करते रहेंगे (४) हम ज़बरदस्त को जे़रदस्त पर ज़ुल्म करने से रोका करेंगे_,"*
*"_ इस तदबीर से बनी आदम के जान व माल की बहुत कुछ हिफाज़त हो गई थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने नबूवत के ज़माने में भी फरमाया करते थे कि अगर आज भी कोई उस अंजुमन के नाम से किसी को मदद के लिए बुलाए तो मैं सबसे पहले उसकी मदद को तैयार पाया जाऊंगा _,"*

*★_ मुल्क की तरफ से "सादिक़" व "अमीन" का नाम आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मिलना:- ऐसे ही नेक कामों की वजह से उन दिनों लोगों के दिलों में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की नेकी और बुजुर्गी का इतना असर था कि वो आश हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को नाम लेकर नहीं बुलाते थे बल्कि "अल सादिक़" या "अल अमीन" कहकर पुकारा करते थे ।*
*"_आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उम्र 35 साल की थी जब क़ुरेश ने काबा की इमारत को (जिसकी दीवारें सैलाब के सदमे से फट गई थीं) अजसरे नो तैयार किया, इमारत के बनाने में तो सभी शामिल थे मगर जब हजरे अस्वद के क़ायम करने का मौक़ा आया तो सख्त इख्तिलाफ हुआ क्योंकि हर एक यही चाहता था यह काम उसी के हाथों से सर अंजाम पाए, 4 दिन तक बराबर यही झगड़ा होता रहा आखिर अबु उमैया बिन मुगीरा ने जो क़ुरेश में सबसे बड़ी उम्र का था, यह राय दी कि किसी को हकम बनाकर उसके फैसले पर अमल करें।* 

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का तमाम क़बाइल की तरफ से हकम मुकर्रर होना:- इस राय को माना गया और क़रार पाया गया कि जो कोई अब सबसे पहले हरम में आएगा वही सबका हकम समझा जाएगा, इत्तेफाकन आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तशरीफ ले आए, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को देखना था कि "हाज़ा अल अमीन" के नारे लग गए (अमीन आ गया हम उसके फैसले पर रजा़मंद है )*
[10/6, 5:54 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ काबे की अव्वल तामीर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम के साथ की थी, फिर बनी जरहम, बनु अमालक़ा, क़ुस'ई और सुरेश ने इसकी तजदीद की थी, तजदीद ए इमारत की जरूरत ज़माने के असर या सदमा सैलाब वगैरह की वजह से पैदा हो जाती थी, किसी गैर क़ौम के कब्ज़ा करके गिरा देने, मुन्हदिम करने का वाक़िया इस इमारत ए काबा के साथ 5 हज़ार साल से नहीं हुआ था, जैसा कि बेकल यरूशलम के साथ बार-बार ऐसे वाक़िआत पे दर पे होते रहे और यह ऐसा शर्फ है कि दुनिया की इबादतगाह को हासिल नहीं ।*

*★_ हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद का दस्तूर था कि मैदान में जिस जगह को इबादत गाह मुकर्रर करते वहां एक लंबा बिन घड़ा पत्थर सुतून की तरह खड़ा कर देते थे जैसे अभी मुसलमान खुली जगह में नमाज़ पढ़ते हुए अपनी छड़ी वगैरह गाड़ लिया करते हैं, इसे सुतरा कहते हैं, हजरे अस्वद भी इसी क़िस्म का पत्थर है और यह भी एक शहादत इस अम्र की है कि काबा बिनाए इब्राहीमी से अब कोने में लगा देने के बाद यह इतना काम देता है कि तवाफ का शुरू और खत्म इसी जगह से शुरू किया जाता है, मुसलमानों में जो दर्जा इसका है वह इसके नाम हजरे अस्वद (काला पत्थर) से ज़ाहिर है, एक दफा फारूक़ ए आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगों को सुनाने के लिए हजरे अस्वद को मुखातिब करके कहा था:- "तू एक पत्थर है ना किसी को नफा ना ज़रर दे सकता है _," (बुखारी 1597)*

*★_ हम लिख चुके हैं कि नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को अरब के लोग नबूवत से पहले सादिक़ व अमीन कहकर बुलाया करते थे, चुनांचे इस मौक़े पर भी उन्होंने "अल- अमीन" ही हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को कहा है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी अक़लमंदी और मामला फहमी से ऐसी तदबीर की कि सब खुश हो गए, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक चादर बिछाई, उस पर पत्थर अपने हाथ से रख दिया, फिर हर एक क़बीले के सरदार को कहा कि चादर को पकड़कर उठाएं, इसी तरह इस पत्थर को वहां तक लाएं जहां क़ायम करना था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फिर उसे उठाकर कोने पर और तवाफ के सिरे पर लगा दिया ।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इस मुख्तसर तदबीर से एक खूंखार जंग का खात्मा कर दिया, वरना उस वक़्त के अहले अरब में रेवण के पानी पिलाने, घोड़ों के दौड़ाने, अश'आर में एक क़ौम से दूसरी कौ़म को अच्छा बताने जैसी ज़रा ज़रा सी बातों पर ऐसी जंग होती थी के बीसों बरस तक खत्म होने में ना आती थी।*
[10/7, 6:32 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_कु़र्बे ज़माना बैसत :- बैसत से 7 बरस पहले एक रोशनी और चमक सी नज़र आने लगी थी और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस रोशनी के मालूम करने से खुश हुआ करते थे, उस चमक में कोई आवाज़ या सूरत ना होती थी, बैसत का ज़माना जिस तरह क़रीब होता गया आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के मिज़ाज में खिलवत गुजै़नी की आदत बढ़ती जाती थी,* 

*★_ गारे हीरा में इबादत करना :- आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अक्सर पानी और सत्तू लेकर शहर से कई कोस सुनसान जगह कोहे हिरा की एक गार में जिसका तोल 4 गज़ और अर्ज़ पोने दो गज़ था, जा बैठतें इबादत किया करते थे, इस इबादत में तमहीद व तक़द्दुस ए इलाही का ज़िक्र भी शामिल था और कु़दरत ए इलाही पर तदब्बुर व तफक्कुर भी, जब तक पानी और सत्तू खत्म ना हो जाते, शहर में ना आया करते,*
*"_ अब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को ख्वाब नज़र आने लगे, ख्वाब ऐसे सच्चे होते थे कि जो कुछ रात को ख्वाब में देख लिया करते दिन में वैसा ही ज़हून में आ जाता ।*

*★_ बैसत व नबूवत:- जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उम्र के 40 साल, क़मरी पर 1 दिन ऊपर हुआ तो 9 रबीउल अव्वल 41 मिलादी (मुताबिक़ 12 फरवरी 610 ईसवी) को बा रोज़ दो शंबा (सोमवार) रूहुल अमीन अलैहिस्सलाम अल्लाह का हुक्म लेकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास आए, उस वक़्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम गारे हिरा में थे,*
*"_ रूहुल अमीन ने कहा:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम बशारत क़ुबूल फरमाइए, आप अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम है और मैं जिब्राइल (अलैहिस्सलाम) हूं _,"* 
*"_ इस वाक़िए के बाद नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फौरन घर में आए और लेट गए, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा कि मुझ पर कपड़ा डाल दो, जब तबीयत में जरा सुकून हुआ तो हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया कि मैं ऐसे वाक़्यात देखता हूं कि मुझे अपनी जान का डर हो गया है _,"*
[10/8, 8:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ खदीजातुल कु़बरा रज़ियल्लाहु अन्हा की शहादत:- खदीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा - नहीं आपको डर काहे का ? मैं देखती हूं कि आप अक़रबा पर शफ़क़त फरमाते हैं, सच बोलते हैं, रांडो यतीमों बेकसों की दस्तगिरी करते हैं, मेहमान नवाजी़ फरमाते हैं, मुसीबतज़दों से हमदर्दी करते हैं, अल्लाह आपको कभी रंज़ीदा ना फरमाएगा_,"*

*★_ अब हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को खुद भी अपने इत्मीनान क़ल्बी की ज़रूरत हुई, इसलिए वह नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को साथ लेकर अपने रिश्ते के चचेरे भाई वरक़ा बिन नोफल के पास गईं,*
*नजाशी और क़ैसर की कोशिश से ईसाइयत अरब में आ चुकी थी इसलिए बैसते मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़रीब अरब में ऐसे लोग भी मौजूद थे जो उलमा ए यहूदो नसारा से बहुत सी मालूमात का इस्तेफादा कर चुके थे और दीने जाहिलियत को छोड़कर यह खबरें दिया करते थे कि अंक़रीब एक रसूल ज़ाहिर होने वाला है, जो इबलीस और उसके लश्कर पर ग़ालिब होगा, उन अशखास में उस्मान बिन हरीस, ज़ैद बिन अमरु और वरका़ बिन नोफल के नाम खुसूसियत से मशहूर है,* 

*★_ ज़ैद बिन अमरू उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के चाचा थे, वह बुजुर्ग वार है जिन्होंने रसूले मोऊद की तलाश में दूर-दूर सफर किए थे और आखिर यह मालूम करके कि वह मक्का में पैदा होंगे, इस मुबारक इंतज़ार में रहकर इंतकाल कर चुके थे,* 

*★_ ईसाई आलिम वरका़ बिन नोफल की शहादत आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की नबूवत पर:- अलगर्ज़ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की दरख्वास्त पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने वरक़ा बिन नोफल के सामने जिब्रील अलैहिस्सलाम के आने, बात करने का वाक़या बयान फरमाया, वरका़ झट बोल उठा, यही है वह नामूस (फरिश्ता) जो मूसा अलैहिस्सलाम पर उतरा था, काश मैं जवान होता, काश मैं उस वक़्त ज़िंदा रहता जब क़ौम आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को निकाल देगी _,"*

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा:- क्या कौ़म मुझे निकाल देगी ? वरका़ बोला :- हां इस दुनिया में जिस किसी ने ऐसी तालीम पेश की उससे (शुरू में) अदावत ही होती रही, काश मैं हिजरत तक ज़िंदा रहूं और हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत करूं _,"*
[10/9, 7:17 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इब्तदा ए नुज़ूले क़ुरान :- "कुछ दिनों के बाद फिर फरिश्ता आया और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को जिन्होंने अब तक लिखना पढ़ना ना सीखा था, अल्लाह का वह पाक नाम और पाक कलाम पढ़ाया जो सारे उलूमों की कुंजी और सारी हक़ीक़तों का खज़ाना है, रूहुल अमीन ने इन आयात को पढ़ा था:-( सूरह अल अलक़ - आयत 1-5 )*
*"_أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ. بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ _,*
*"_ اِقۡرَاۡ بِاسۡمِ رَبِّكَ الَّذِىۡ خَلَقَ‌ۚ ۞خَلَقَ الۡاِنۡسَانَ مِنۡ عَلَقٍ‌ۚ‏ ۞اِقۡرَاۡ وَرَبُّكَ الۡاَكۡرَمُۙ ۞الَّذِىۡ عَلَّمَ بِالۡقَلَمِۙ ۞ عَلَّمَ الۡاِنۡسَانَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡؕ ۞*

*"_ ( तर्जुमा) शुरू है अल्लाह के नाम से जो कमाले रहमत और निहायत रहम वाला है, पढ़ अपने परवरदिगार के नाम से जिसने (सबकुछ) पैदा किया, जिसने इंसानों को पानी के कीड़े से बनाया (हां ) पढ़ता चला जा तेरा परवरदिगार तो बहुत करम वाला है, जिसने क़लम के ज़रिए तालीम दी (जिसने इंसान को वह सब कुछ सिखाया जो वह ना जानता था )_,"*

*★_ नमाज़ का आगाज़:- इसके बाद रूहुल अमीन नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को दामन ए कोह में लाए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने वज़ु किया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने भी वज़ु किया, फिर दोनों ने मिलकर नमाज़ पढ़ी, रूहुल अमीन अलैहिस्सलाम ने पढ़ाई ।*

*★_ तबलीग का आगाज़:- नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने घर पहुंच कर तबलीग शुरू कर दी, खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा (बीवी ) अली रज़ियल्लाहु अन्हु (भाई उम्र 8 साल) अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु (दोस्त) ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु (गुलाम) पहले ही दिन मुसलमान हो गए,*
*"_ इन शख्शों का ईमान लाना जो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की 40 साला ज़रा ज़रा सी हरकात व सकनात तक से वाक़िफ थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की आला सदाक़त और रास्तबाज़ी की क़वी दलील है ।*
[10/10, 7:27 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु बड़े मालदार थे, तिजारत करते थे, मक्का में उनकी दुकान बजा़जी़ (कपड़े की) थी, लोगों में उनका बहुत मेल मिलाप था, उनकी तबलीग से उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु, जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु, अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु, तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु, साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए, फिर अबू उबैदा आमिर बिन अब्दुल्लाह बिन अल जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु (जिनका लक़ब बाद में "अमीनुल उम्मत" हुआ ) अब्दुल असद बिन हिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु, उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु, अबू हुजै़फा बिन उतबा रज़ियल्लाहु अन्हु, साइब बिन उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु और अरक़म रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए ।*
*"_औरतों में उम्मूल मोमिनीन खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बाद नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ताया अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी उम्मूल फज़ल रज़ियल्लाहु अन्हा, असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा, असमा बिन्ते अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हा और फातमा बहन उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस्लाम कुबूल किया ।*

*★_ पहाड़ की घाटियों में नमाज़:- उन दिनों मुसलमान पहाड़ की घाटी में जाकर नमाज़ पढ़ा करते थे, नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम नबुवत के इब्तदाई 3 साल तक लोगों को चुपके-चुपके समझाया करते थे और पत्थरों, दरख्तों, चांद और सूरज की इबादत से हटाकर अल्लाह की बंदगी सिखलाया करते थे, अब अल्लाह का हुक्म पहुंचा:- (सूरह अल मुदस्सिर -,1-7)*
*"_ ऐ कपड़े में लेटने वाले (ए आलम के दुरुस्त करने वाले) उठो, (गंदे आमाल वालों को) डराओ और अपने परवरदिगार की बुजुर्गी फैलाओ और पाक दामनी अख्तियार करो, (मखलूक़ परस्ती की) नजासत से अलहेदगी अख्तियार करो, एहसान इस नियत से ना करो कि लोगों से इसका फायदा हासिल किया जाए, अपने परवरदिगार के लिए (रिसालत करते हुए हर एक इम्तहान और तकलीफ़ में) इस्तक़लाल (मज़बूती) रखो _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की नबुवत के मका़सिद :- इन आयात से ज़ाहिर है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की रिसालत और नबुवत के मक़ासिद मिंदर्जा ज़ेल थे:-*
*(१)_ नाफरमानों को उनकी ख़तरनाक हालत से आगाह करना और अंजाम से डराना,*
*(२)_ अल्लाह की रुबूबियत और की किब्रियाई और अज़मत व जलाल का आशकार करना (खोलना),*
*(३)_ लोगों को एतक़ाद, आमाल और अखलाक़ की जा़हिरी व बातिनी नजासतों से पाक रहने की तालीम देना,*
*(४)_ पाक़ीज़गी, सफाई और पाकदामनी सिखलाना,*
*(५)_ इलाही तालीम मुफ्त देना, ना उन पर एहसान जतलाना, ना उनसे अपने किसी फायदे की तवक़क़ो रखना,*
*(६)_ इस काम में जिस क़दर भी मसाइब और सदाइद झेलनी पड़े सबको बर्दाश्त करना,*
*"_जो शख्स नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पाक ज़िन्दगी के हालात पर गौर करेगा उसे मालूम हो जाएगा कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने कैसी खूबी से इन सब मक़ासिद को पूरा किया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तबलीग का काम आहिस्ता आहिस्ता वुसअत पकड़ता रहा।*
[10/11, 6:29 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तबलीग के पंजगाना मरातिब:-*
*१_ क़रीब के रिश्तेदार और खास खास अहबाब,*
*२_ क़ौम और शहर के सब लोग,*
*३_ मक्का के अतराफ और आसपास के क़बीले,*
*४_ अरब के जुमला हिस्से और क़बीले,*
*५_ दुनिया की जुमला मज़हबी कौमें और जुमला मशहूर मजा़हिब,*

*★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस तबलीग के लिए निहायत इस्तहकाम, कमाले इस्तक़लाल और कुशादा पेशानी व नुज़हत खातिर से हर क़िस्म के मसाइल बर्दाश्त करने में साबित क़दमी फरमाई थी और अपनी तालीम को पक्की दलीलों और अपने पक्के इरादे से साबित कर दिया था ।*

*★_ बै'सत के वक़्त आलम की हालत:-*
*"_ याद रखना चाहिए कि जिस वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तबलीग ए आलम के लिए मब'ऊस हुए, यह वह ज़माना था कि तमाम आलम पर जहालत की तारीकी छा रही थी, वहशत, दरिंदगी का दुनिया पर तसल्लुत था, इंसानियत, तहज़ीब अखलाक के नाम शायदाना किताबों में नज़र आ सकते थे मगर दिलों पर कोई असर न था,* 

*★_ बनी इस्राईल तो मसीही अलैहिस्सलाम से भी पहले सांप और सांप के बच्चे कहलाने के मुस्तहिक़ ठहर चुके थे, अब मसीह अलैहिस्सलाम की लानत से ज़ाहिरी शक्ल व सूरत के सिवा उनमें आदमियत का ज़रा भी निशान बाक़ी ना रहा था और पड़ोस की कौमों के असर से उनमें बुत परस्ती क़ायम हो चुकी थी ।*

*★_अरब ऐसा मुल्क था जहां ना किसी बादशाह का तसल्लुत हुआ था ना कोई असर क़ानून ने डाला, ना कोई हादी उनकी हिदायत के लिए पहुंचा था, इस हैवानी आज़ादी पर बे इल्मी, जहालत और अक़वामी मज़हबों से अल्हेदगी और अजनबियत ने उनकी हालत को और भी ज़्यादा तबाह कर दिया था, इस बदतरीन हालत ही ने उनको ज़्यादातर वाजिबुल रहम ठहराया और रब्बुल आलमीन ने इस्लाह ए आलम का आगाज़ इसी जगह से होना पसंद फरमाया ।*
[10/12, 7:22 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अपने कुनबा में तबलीग:-*
*"_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हुक्में रब्बानी के मुवाफिक़ तबलीग ए आम का काम शुरू फरमा दिया, क़रीबी रिश्तेदारों को समझाने का हुक्म कुरान मजीद में खुसूसियत से है:- (सूरह अश-शु'अरा- आयत 214)*
*"_ ( तर्जुमा - मुफ्ती तक़ी उस्मानी मद्दज़िल्लहु)*
*"_ और (ए पैगंबर ) तुम अपने क़रीब तरीन खानदान को खबरदार करो _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक रोज सबको खाने पर जमा किया, यह सब बनी हाशिम ही थे, इनकी तादाद 40 या 1 कम या ज्या़दा थी, उस रोज़ अबुल लहब की बकवास की वजह से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को कलाम करने का मौक़ा ही ना मिला इसलिए दूसरी शब फिर उन्हीं की दावत की गई, जब सब लोग खाना खा कर दूध पीकर फारिग हो गए तब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:-*
*"_ऐ हाज़रीन ! मैं तुम सब के लिए दुनिया और आखिरत की बहबूदी लेकर आया हूं और मैं नहीं जानता कि अरब भर में कोई शख्स भी अपनी क़ौम के लिए इससे बेहतर और अफज़ल कोई चीज़ लाया हो, मुझे अल्लाह ने हुक्म दिया है कि मैं आप लोगों को इस की दावत दूं, बतलाओ तुममें से कौन मेरा साथ देगा ?*

*★_ यह सुनकर सबके सब चुप रह गए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उठकर कहा:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मैं हाज़िर हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अबू तालिब से कहा:- तुम इसकी बात माना करो और जो कहा करे सुना करो, यह फिक़रा सुनकर मजमा खूब खिल खिलाकर हंसा और अबू तालिब से मज़ाक करने लगा:- देखो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तुम्हें कह रहा है कि आजसे तुम अपने फरज़ंद का हुक्म माना करो_,"*
[10/13, 11:44 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ पहाड़ी का वाज़ और अहले मक्का को आम तबलीग :-*
*"_ एक रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने कोहे सफा पर चढ़कर लोगों को पुकारना शुरू किया, जब सब लोग जमा हो गए तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- तुम मुझे सच्चा समझते हो या झूठा जानते हो? सबने एक आवाज़ से कहा:- हमने कोई बात गलत या बेहूदा आपके मुंह से नहीं सुनी, हम यक़ीन करते हैं कि आप सादिक़ और अमीन हैं _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- देखो मैं पहाड़ की चोटी पर खड़ा हूं और तुम उसके नीचे हो, मै पहाड़ के इधर उधर भी नज़र कर रहा हूं, अच्छा अगर मैं यह कहूं कि रहज़नों का एक मुसलह गिरोह दूर से नज़र आ रहा है जो मक्का पर हमलावर होगा, क्या तुम इसका यकी़न कर लोगे ?*
*"_ लोगों ने कहा:- बेशक क्योंकि हमारे पास आप जैसे रास्तबाज़ ( सच्चे अमानतदार) आदमी के झुठलाने की की कोई वजह नहीं, खुसूसन जबकि वह बुलंद मुका़म पर खड़ा है कि दोनों तरफ देख रहा है _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- यह सब कुछ समझाने के लिए एक मिसाल थी, अब यक़ीन कर लो कि मौत तुम्हारे सर पर आ रही है और तुमने अल्लाह के सामने हाज़िर होना है और मैं आलमे आखिरत को भी ऐसा ही देख रहा हूं जैसा कि‌ दुनिया पर तुम्हारी नज़र है, इस दिलनशीन वाज़ से मतलब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का यह था कि नबूवत के लिए एक मिसाल पेश करें कि किस तरह एक शख्स आलमे आखिरत को देख सकता है जबकि हजारों शख्स नहीं देख सकते ।*
[10/14, 4:50 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तबलीग में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की कोशिशें:-*
*"_अब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सब को आलमी तौर पर समझाना शुरू किया, हर एक मेलें, हर एक गली कूचे में जा जाकर लोगों को तोहीद की खूबी बतलाते, बुतों पत्थरों दरख़्तों की इबादत से रोकते, बेटियों को मार डालने से हटाते, ज़िना से मना करते, जुआ खेलने से लोगों को रोकते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाया करते थे कि लोग अपने जिस्म को नजासत से, कपड़ों को मेल कुचेल से, ज़ुबान को गंदी बातों से, दिल को झूठे एतक़ाद से पाक साफ रखें, वादा और क़रार की पाबंदी करें, लेन-देन में किसी से दगा ना करें, अल्लाह की जा़त को नुक्स से, ऐब से, आलूदगी से पाक समझें, इस बात का पुख्ता एतक़ाद रखें कि ज़मीन आसमान चांद सूरज छोटे बड़े सब के सब अल्लाह के पैदा किए हुए हैं, सब उसी के मोहताज हैं, दुआ क़ुबूल करना, बीमार को सेहत और तंदुरुस्ती देना, मुरादे पूरी करना अल्लाह के अख्त्यार में है, अल्लाह की मर्जी और हुक्म के बगैर कोई भी कुछ नहीं कर सकता, फ़रिश्ते और नबी भी उसके हुक्म के खिलाफ कुछ नहीं करते ।*

*★_ अरब में उका़ज़, एनिया और जिलहिजाज़ के मेले बहुत मशहूर थे, दूर-दूर से लोग वहां आया करते थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उन मका़मों पर जाते और मेले में आए हुए लोगों को इस्लाम और तोहीद की दावत फरमाया करते थे ।*

*★_ क़ुरेश की मुखालफत:-*
*"_ मगरूर कुरेश को जो अरब में अपने आप को सबसे बड़ा समझते थे, जैसे समंदर में व्हेल मछली, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का वाज़ पसंद ना आया, वह नबूवत का मफहूम समझने से कासिर थे और ब'ईद समझते थे कि अल्लाह के हुक्म से कोई इंसान इंसानों के समझाने के लिए आए, वह जज़ा और सजा़ ए आमाल के का़यल न थे इसलिए यह तालीम कि मौत के बाद आमाल की जवाबदेही होगी उनके नज़दीक बिल्कुल का़बिल ए मज़ाक थी ।*

*★_ वह खानदान और शराफत, बुजुर्गी पर निहायत मगरूर थे और उन्हें इस्लामी मुसावात और इस्लामी उखवत का कुबूल करना एक क़िस्म की हिका़रत और जि़ल्लत महसूस होती थी, उनमें अक्सर क़बाइल बनी हाशिम से मुखालफत रखते थे और दुश्मन क़बीले के एक शख्स की तालीम पर चलना उन्हें आर मालूम होता था, वह बुत परस्ती पर बिल्कुल काने थे और इससे बढरतर किसी मज़हब में किसी खूबी का इमकान भी उनके तसव्वुर में ना आता था, वह ज़िना, जुवा, रहज़नी, क़त्ल, अहदशिक़नी, आवारगी हर एक क़ानून व का़यदे के बंदिश में कैद से आज़ाद रहने, बेशुमार औरतों को घर में डाले रखने के आदी थे और इस्लाम का क़ानून उनको अपनी आदतों का दुश्मन मालूम होता था, इसलिए उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मुखालफत पर कमर बांधी और इस्लाम का नामोनिशान मिटा देने का फैसला किया_,*
[10/15, 11:10 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस्लाम के खिलाफ तदबीरें:-*
*"_ अव्वल तदबीर यह अख्तियार की गई कि इस्लाम लाने वालों को सख्त अज़ियत दी जाए ताकि जो मुसलमान हो चुके हैं वापस आ जाएं और नए लोग उसे अख्त्यार ना करें, क़ुरेश ने इस्लाम लाने वालों पर जो मज़ालिम किए, उन्हें जो तकलीफें और अज़ियतें दी, उनका मुफस्सल बयान दुश्वार है मुख्तसर तौर पर उनके अज़ाबदही के तरीकों और चंद बुजुर्गवारों का हाल मज़कूर होता है ‌:-*

*★_(१)_हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु हबशी थे, उमैया बिन खल्फ के गुलाम थे, जब उमैया ने सुना कि बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए हैं तो नए-नए अज़ाब उनके लिए ईजाद किए गए, गर्दन में रस्सी डालकर लड़कों के हाथ में दी जाती और वह मक्का की पहाड़ियों में उन्हें लेकर फिरते, रस्सी के निशान उनकी गर्दन पर नुमाया हो जाते, वादी ए मक्का की गरम रेत पर उन्हें लिटा दिया जाता और गरम-गरम पत्थर उनकी छाती पर रख दिया जाता, मस्कें बांधकर लकड़ियों से पीटा जाता, धूप में बिठाया जाता, भूखा रखा जाता, हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इन सब हालत में भी अहद अहद के नारे लगाते रहते थे, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को खरीदा और अल्लाह के लिए आज़ाद कर दिया।*

*★_(२)_हजरत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु, उनके वालिद यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु और उनकी वाल्दा सुमैया रज़ियल्लाहु अन्हा मुसलमान हो गए थे, अबू जहल ने उन्हें सख्त अज़ाब पहुंचाए, एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें मार खाते हैं, अज़ाब सहते देखा, फरमाया :-यासिर के घराने वालों ! सब्र करो तुम्हारा मुका़म जन्नत है, कमबखत अबू जहल ने बीबी सुमैया रज़ियल्लाहु अन्हा की शर्मगाह में नेजा़ मारा और उन्हें जान से मार डाला।*
[10/15, 11:20 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (३)_ अबू फकिया जिनका नाम अफलाह रज़ियल्लाहु अन्हु था, के पांव में रस्सी डालकर उन्हें पथरीली ज़मीन पर घसीटा जाता।* 

*★_(४)_ हजरत खब्बाब बिन अर्त रज़ियल्लाहु अन्हु के सर के बाल खींचे जाते, गर्दन मरोड़ी जाती, गर्म पत्थरों पर और बारहा आग के अंगारों पर लिटाया गया।*

*★_(५)_कुरेश का यह सुलूक गुलामों और ज़'ईफों के साथ ही ना था, अपने फरज़ंदों और अज़ीज़ो के साथ भी वह ऐसी ही संगदिली का बर्ताव किया करते थे, उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने की खबर उनके चाचा को हुई तो वह कमबख्त हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को खजूर की सफ में लपेटकर बांध देता और नीचे से धुआं दिया करता, मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को उनकी मां ने घर से निकाल दिया था, इसी जुर्म में कि वह इस्लाम ले आए थे, बाज़ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को कुरेश गाय ऊंट के कच्चे चमड़े में लपेटकर धूप में फेंक देते थे, बाज़ को लोहे की ज़िरा पहनाकर जलते पत्थरों पर गिरा दिया करते थे।*

*★_ गर्ज़ ऐसी वहशियाना सजा़एं देते थे कि सिर्फ इस्लाम की सदाक़त ही उनका मुका़बला कर सकती थी, पहली उम्मतों ने तो खोटे सिक्के लेकर अंबिया अलैहिस्सलाम अलैहिस्सलाम को गिरफ्तार और क़त्ल तक करा दिया था।*
[10/16, 5:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ कु़रेश की बदसलूकी_,"*
*"_बसा औका़त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के रास्ते में कांटे बिछाए जाते ताकि रात के अंधेरे में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पांव ज़ख़्मी हों, घर के दरवाज़े पर गंदगी फेंकी जाती,*

*★_ इब्ने अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का चश्मदीद बयान है कि एक रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खाना काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे, उक़बा बिन मुईत आया, उसने अपनी चादर को लपेट देकर रस्सी जेसा बनाया और जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सजदे में गए तो चादर को हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गर्दन में डाल दिया और पेच दर पेच देने शुरू किए, गर्दन मुबारक बहुत भींच गई थी, फिर भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उसी इत्मीनान ए क़ल्बी से सजदे में पड़े हुए थे, इतने में अबुबकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु आए, उन्होंने धक्का देकर उक़बा को हटाया और ज़बान से यह आयत पढ़कर सुनाईं:-*
*"_( तर्जुमा)_ क्या तुम एक बुजुर्ग आदमी को मारते हो और सिर्फ इस जुर्म में कि वह अल्लाह को अपना परवरदिगार कहता है और तुम्हारे पास रोशन दलाईल भी लेकर आया है_," ( सूरह मोमिन-२८)*

*"_चंद शरीर अबुबकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से लिपट गए और उनके साथ बहुत मारपीट की।*

*★_ एक दूसरी दफा का ज़िक्र है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खाना काबा में नमाज़ पढ़ने लगे, कुरैश भी सहन ए काबा में जा बैठे, अबू जहल बोला कि आज शहर में फलां जगह ऊंट जिबह हुआ है, औजड़ी पड़ी हुई है, कोई जाए उठा लाए और उस ( नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के ऊपर धडर दे_,"*
*"_शक़ी उक़बा उठा, नजासत भरी औजड़ी उठा लाया, जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सजदे में गए तो कुछ तो पुश्त मुबारक पर रख दी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की जानिब मुतवज्जह थे, कुछ ख़बर ना हुई, मुशरिकीन हंसी के मारे लौटे जाते थे और एक दूसरे पर गिरे जाते थे ।*

*★_ इब्ने मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी भी मौजूद थे, मुशरिकीन का हुजूम देखकर उनको तो होसला ना हुआ, मगर मासूमा सैयदा फातिमा ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा आ गईं, उन्होंने बाप की पुश्त से औझड़ी को परे फेंक दिया और उन संग दिलों को सख्त भी कहा_,*
[10/17, 8:04 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरेश ए मक्का ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और मुसलमानों पर जो सितम हो रहे थे, उसे नाकाफी समझा इसलिए बजाय मुतफर्रिक़ कोशिशों के अब बाका़यदा कमेटियां बनाई गईं, एक कमेटी क़ायम हुई जिसका अमीर अबु लहब था और मक्का के 25 सरदार उसके मेंबर थे, इस कमेटी में हल तलब सवाल एक यह भी था कि जो लोग दूर-दराज़ से मक्का में आते हैं उन्हें मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की निसबत क्या कहा जाए ताकि लोग उनकी बातों में ना फंसे और उनकी अज़मत के का़यल ना हों _,"*

*★_ एक ने कहा हम बतलाया करेंगे कि वह काहिन है _,"*
*"_वलीद बिन मुगीरा (जो एक खुर्राट बुड्ढा था) बोला:- मैंने बहुत से काहिन देखें लेकिन कहां तो काहिनों की तुकबंदियां और कहां मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का कलाम, हमको ऐसी बात ना करनी चाहिए जिससे क़बाइले अरब यह समझे कि हम झूठ बोलते हैं _,"*

*★_ एक ने कहा हम उसे दीवाना बताया करेंगे_,"*
*"_ वलीद बोला:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को दीवानगी से क्या निस्बत है ?*
*"_ एक बोला:- अच्छा हम कहेंगे वह शायर है_,"*
*"_ वलीद ने कहा:- हम जानते हैं कि शेर क्या होता है, असनाफे सुखन हमको बाखूबी मालूम हैं, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के कलाम को शेर से ज़रा भी मुशाबहत नहीं _,"*

*★_ एक बोला:- हम बताया करेंगे कि वह जादूगर है _,"*.
*"_वलीद ने कहा:- जिस तहारत व नज़ाफत व नफासत से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम रहते हैं, वह जादूगरों में कहां होती है जादूगरों की मनहूस सूरतें और नजिस आदतें अलग ही होती हैं _,"*
[10/19, 9:58 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब सबने आजिज़ होकर कहा:- चाचा तुम ही बताओ कि फिर क्या कहा जाए? वलीद बिन मुगीरा ने कहा:- सच तो यह है कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के कलाम में अजब मिठास है, उनकी गुफ्तगू में नूर सी हलावत है, कहने को तो बस यही कह सकते हैं कि उनका कलाम ऐसा है जिससे बाप बेटे, भाई भाई, शोहर बीवी में जुदाई हो जाती है, इसलिए इससे परहेज़ करना चाहिए _,"*

*★_ आखिर इस कमेटी ने मिंदर्जा जे़ल क़रार पर इत्तेफाक़ किया:- मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हर तरह से सताया जाए, बात बात में उनकी हंसी उड़ाई जाए, मज़ाक उड़ाया जाए और सख्त से सख्त तक़लीफ दी जाएं, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को सच्चा समझने वालों को इंतेहा दर्जे की तक़लीफ का शिकार किया जाए_,"* 

*★_ हिजरते हबशा :- जब कुफ्फार ने मुसलमानों को बेहद सताना शुरू किया तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को इजाज़त दे दी कि जो कोई चाहे वह अपनी जान व ईमान के बचाव के लिए हबशा को चला जाए, इस इजाज़त के बाद एक छोटा सा का़फिला 12 मर्द और 4 औरतों का रात की तारीक़ी में निकला और बंदरगाह से जहाज़ पर सवार होकर हबशा को रवाना हो गया_,"*

*★_ इस मुख्तसर का़फिले के सरदार हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु थे, सैयदा रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा ( बिन्ते आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) उनके साथ थीं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- लूत और इब्राहिम अलैहिस्सलाम के बाद यह पहला जोड़ा है जिन्होंने राहे हक़ में हिजरत की है _," ( रवाह हाकिम फि मुस्तदरक- 6849)*
[10/20, 7:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उनके पीछे और भी मुसलमान (83 मर्द 18 औरतें) मक्का से निकले और हबशा को रवाना हुए, उनमें नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के तायाज़ाद भाई जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे, कुरैश ने समंदर तक उनका पीछा किया मगर यह कश्तियों में बैठकर रवाना हो चुके थे ।*

*★_ हबशा का बादशाह ईसाई था, मक्का के मुशरिक भी उसके पास तोहफे तहाइफ लेकर गए और जाकर कहा कि उन लोगों को जो हमारे मुल्क से भाग कर आए हैं हमारे सुपुर्द कर दिया जाए, मुसलमान दरबार में बुलाए गए, तब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के तायाज़ाद भाई जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु ने दरबार में यह तक़रीर की :-*

*★_ हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु की इस्लाम पर तक़रीर :-*
*"_ऐ बादशाह ! हम जहालत में मुब्तिला थे, बुतों की इबादत करते थे, नजासत में आलूदा थे, मुर्दार खाते थे, बेहुदा बका करते थे, हममे इंसानियत और सच्ची मेहमानदारी का निशान ना था, हमसाया की रियायत ना थी, कोई क़ायदा क़ानून ना था, ऐसी हालत में अल्लाह ने हममे से बुजुर्ग को मब'ऊस किया, जिसके हसब नसब, सच्चाई, दयानतदारी, तक़वा, पाक़ीज़गी से हम खूब वाक़िफ थे, उसने हमको तोहीद की दावत दी और समझाया कि उस अकेले अल्लाह के साथ किसी का शरीक़ ना जाने, उसने हमको पत्थरों की इबादत से रोका, उसने फरमाया कि हम सच बोला करें, वादा पूरा करें, रहम करें, गुनाहों से दूर रहें, बुराइयों से बचें, उसने हुक्म दिया कि हम नमाज़ पढ़ा करें, सदका़ दिया करें, रोज़ा रखा करें, हमारी कौ़म हमसे इन बातों पर बिगड़ बेठी, क़ौम ने जहां तक हो सके हमको सताया ताकि वहदहु ला शरीक़ की इबादत करना छोड़ दें और लकड़ी और पत्थरों के बुतों की इबादत करने लग जाएं, हमने उनके हाथों बहुत ज़ुल्म और तकलीफें उठाई है और जब मजबूर हो गए तब आपके मुल्क में पनाह लेने के लिए आए हैं _," ( सीरत इब्ने हिशाम, जिल्द अव्वल, सफा 116)*
[10/21, 6:30 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बादशाह ने यह तक़रीर सुन कर कहा:- मुझे क़ुरान सुनाओ । जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु ने सूरह मरियम सुनाई, बादशाह पर ऐसी तसीर हुई कि वह रोने लग गया और उसने कहा कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तो वही रसूल हैं जिनकी खबर यीसू बिन मरियम अलैहिस्सलाम ने दी थी, अल्लाह का शुक्र है कि मुझे उस रसूल का ज़माना मिला, फिर बादशाह ने मक्का के मुशरिक़ों को दरबार से निकलवा दिया।*

*★_ जब मक्का के मुशरिक़ों ने देखा कि हब्शा जाने का भी कुछ फायदा ना निकला तो उन्होंने कहा- आओ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को पहले तो लालच दें, फिर धमकी दें, किसी तरह तो मान ही जाएंगे, यह मशवरा करके मक्का का मशहूर मालदार सरदार जिसका नाम उतबा था, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास आया और उसने यह तक़रीर की :-* 

*★_ मेरे भतीजे मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! अगर तुम इस कार्यवाही से माल व दौलत जमा करना चाहते हो तो हम खुद ही तुम्हारे पास इतनी दौलत जमा कर देते हैं कि तुम मालामाल हो जाओ, अगर तुम इज़्ज़त के भूखे हो तो अच्छा हम सब तुमको अपना रईस मान लेते हैं, अगर हुक़ूमत की ख्वाहिश है तो हम तुमको बादशाहे अरब बना देते हैं, जो चाहो सो करने को हाजिर हैं मगर तुम अपना यह तरीक़ा छोड़ दो और अगर तुम्हारे दिमाग में कुछ खलल आ गया है तो बता दो कि हम तुम्हारा इलाज कराएं _,"*
[10/22, 7:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया :-जो कुछ तुमने मेरी बाबत कहा वह ज़रा भी सही नहीं, मुझे माल, इज़्ज़त, दौलत, हुकूमत कुछ दरकार नहीं और मेरे दिमाग में खलल भी नहीं, मेरी हक़ीक़त तुमको कुरान के इस कलाम से मालूम होगी:-* 

*"_ (तर्जुमा)_ यह फरमान अल्लाह के हुजूर से आया, वह बड़ी रहमत वाला और निहायत रहम वाला है, यह बड़ी पढ़ी जाने वाली किताब है, अरबी जुबान में समझदार लोगों के लिए इसमें सब बातें खुली खुली दर्ज हैं, जो लोग अल्लाह का हुक्म मानते हैं उनके वास्ते इस फरमान में बशारत है और जो इन्कार करते हैं उनको अल्लाह के आजा़ब से डराना है, ताहम बहुत से लोगों ने इस फरमान से मुंह मोड़ लिया है वह उसे सुनते ही नहीं और कहते हैं कि इसका हमारे दिल पर कोई असर नहीं और हमारे कान इसके शुनवा नहीं और हममें और तुममें एक तरह का पर्दा पड़ा है, तुम अपनी (तदबीर) करो हम अपनी (तदबीर) कर रहे हैं, ए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम इन लोगों से कह दीजिए कि मैं भी तुम्हीं जैसा बशर हूं, मगर मुझ पर वही आती है, अल्लाह के फरिश्ते ने यह बतला दिया कि सब लोगों का मा'बूद सिर्फ एक है, उसी की तरफ़ मुतवज्जह होना और उसी से गुनाहों की माफी मांगना लाज़िम है, उन लोगों पर अफसोस है जो शिर्क करते करते हैं और सदका़ नहीं देते और आखिरत का इन्कार करते हैं लेकिन जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए, उनके लिए आखिरत में बड़ा अजर है _," ( सूरह हामीम सजदा -१-८)*

*★_ कलाम ए पाक के सुनने से उतबा पर एक महवियत का आलम तारी हो गया, वह हाथों पर सहारा दिए गर्दन पुश्त पर डाले हुए सुनता रहा और बिल आखिर चुपचाप उठकर चला गया, कुरेश जो नतीजा ए मुलाक़ात मालूम करने के मुश्ताक़ बैठे थे, सरदार उतबा के पास जमा हो गए, पूछा- क्या देखा? क्या कहा? क्या सुना ? उतबा बोला- मा'शर ए क़ुरेश ! मैं ऐसा कलाम सुनकर आया हूं जो ना कहानत है ना शेर है ना जादू ना मंतर है, तुम मेरा कहा मानो, मेरी राय पर चलो तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अपने हाल पर छोड़ दो _,"*
*"_ लोगों ने यह सुनकर कहा :- लो! उतबा पर भी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की ज़ुबान का जादू चल गया_,"*

*★_ जब लालच की तदबीर ना चली, तब सारे कबीलों के सरदार इकट्ठे हुए और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ताया अबु तालिब के पास आकर यूं तकरीर की:- हमने आपका बहुत अदब किया, आपका भतीजा हमारे ठाकुरों और बुतों को जिन्हें हमारे बाप दादा पूजते आए, इतना सख्त सत कहने लगा है कि हम सब्र नहीं कर सकते, आप उसे समझा कर चुप रहने की हिदायत करें, वरना हम उसे जान से मार डालेंगे और तुम अकेले हम सबका कुछ नहीं कर सकोगे_,"*
*"_सारे मुल्क की अदावत देख कर ताया का दिल दर्द और मुहब्बत से भर गया, उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बुलाया और समझाया कि बुत परस्ती का रद्द ना किया करो वरना मैं भी तुम्हारी कुछ हिमायत नहीं कर सकूंगा_,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- ताया ! अगर यह लोग सूरज को मेरे दाहिने हाथ पर लाकर रखें और चांद को बाएं हाथ पर, तब भी मैं अपने काम से ना हटुंगा और अल्लाह के हुक्म में से एक हर्फ भी कमो बेस ना करूंगा, इस काम में ख्वाह मेरी जान भी जाती रहे _,"*
[10/23, 6:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस नाकामी के बाद कुरेशे मक्का ने मशवरा किया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को क़ौम के सामने बुलाकर समझाना चाहिए, इस मशवरे के बाद उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास कहला भेजा कि सरदाराने क़ौम आपसे कुछ बातचीत करना चाहते हैं और काबा के अंदर जमा है।*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खुश खुश वहां गए क्योंकि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को उनके ईमान ले आने की बड़ी ही आरज़ू थी, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम वहां जा बैठे तो उन्होंने गुफ्तगू का आगाज़ इस तरह किया:-*
*"_ए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम! हमने तुम्हें यहां बात करने के लिए बुलाया है, बा-खुदा हम नहीं जानते कि कोई शख्स अपनी क़ौम पर इतनी मुश्किलात लाया हो जिस क़दर तुमने क़ौम पर डाल रखी है, कोई खराबी ऐसी नहीं जो तुम्हारी वजह से हम पर ना आ चुकी हो, अब तुम यह बताओ कि अगर तुम अपने इस नए दीन से माल जमा करना चाहते हो तो हम तुम्हारे लिए माल जमा कर दें, इतना कि हममें से किसी के पास इतना रुपया ना निकले और अगर सर्फ व इज़्ज़त के ख्वाहिशमंद हो तो हम तुम्हें अपना सरदार बना लें और अगर सल्तनत के तालिब हो तो तुम्हें अपना बादशाह मुक़र्रर कर दें और अगर तुम समझते हो कि जो चीज़ तुम्हें दिखाई देती है वह कोई जिन है जो ग़ालिब आ गया है तो हम टोने-टोटके के लिए माल खर्च कर दें ताकि तुम तंदुरुस्त हो जाओ या कौ़म के नज़दीक माज़ूर समझे जाओ_,"*

*★"_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- तुमने जो कुछ कहा मेरी हालत के ज़रा भी मुताबिक नहीं, जो तालीम में लेकर आया हूं वह ना तलबे अमवाल के लिए हैं ना जलबे सर्फ या 16 हुसूले सल्तनत के वास्ते हैं, बात यह है कि अल्लाह ने मुझे तुम्हारी तरफ अपना रसूल बनाकर भेजा है, मुझ पर किताब उतारी है, मुझे अपना बशीर व नज़ीर बनाया है, मैंने अपने अरब के पैगाम तुमको पहुंचा दिए हैं और तुम्हें बा-खूबी समझा दिया है, अगर तुम मेरी तालीमात को क़ुबूल कर लोगे तो यह तुम्हारे लिए दुनिया व आखिरत का सरमाया है और अगर रद्द कर दोगे तब मैं अल्लाह के हुक्म का इंतजार करूंगा कि वह मेरे लिए और तुम्हारे लिए क्या हुक्म भेजता है _,"*
[10/24, 5:43 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_कुरैश ने कहा:- अच्छा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! अगर तुम हमारी इन बातों को नहीं मानते तो एक और बात सुनो, तुम्हें मालूम है कि हम किस क़दर सख्ती और तंगी से दिन काट रहे हैं, पानी हमारे पास सबसे कम है और गुज़रान हमारी सबसे ज्यादा तंग है, अब तुम अल्लाह से यह सवाल करो इन पहाड़ों को हमारे सामने से हटा दें ताकि हमारे शहर का मैदान खुल जाए, नीज़ हमारे लिए ऐसी नहरें जारी कर दें जैसी शाम व इराक में जारी हैं, हमारे बाप दादा को जिंदा कर दें, उन जिंदा होने वालों में क़ुसई बिन किलाब जरूर हो क्योंकि वह हमारा सरदार था और सच बोला करता था, हम उससे तुम्हारी बाबत पूछ लेंगे, अगर उसने तुम्हारी बातों को सच मान लिया और तुमने हमारे दूसरे सवालों को भी पूरा कर दिया तब हम भी तुम्हें सच्चा जान लेंगे और मान लेंगे कि हां अल्लाह के यहां तुम्हारा भी कोई दर्जा है और उसने फिल हक़ीक़त तुम्हें रसूल बनाकर भेजा है, जैसा कि तुम कह रहे हो ।*

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- मैं इन कामों के लिए रसूल बनाकर नहीं भेजा गया हूं, मैं तो इस तालीम के लिए रसूल बनाकर भेजा गया हूं और मैंने अल्लाह के पैगामात तुम्हें सुना दिए हैं, अगर तुम इस तालीम को क़ुबूल कर लोगे तो यह तुम्हारी दुनिया व आखिरत के लिए सरमाया है और अगर रद करोगे तो मैं अल्लाह के हुक्म का इंतज़ार करूंगा, जो कुछ उसने मेरा तुम्हारा फैसला करना होगा फरमाएगा _,"*

*★_ क़ुरेश ने कहा :- अच्छा ! अगर तुम हमारे लिए कुछ नहीं करते तो तुम खुद अपने लिए अल्लाह से सवाल करो कि वह एक फरिश्ते को तुम्हारे साथ मुक़र्रर कर दे जो यह कहता रहा करें कि यह शख्स सच्चा है और हमको तुम्हारी मुखालफत से मना भी कर दे,*
*"_ हां तुम अपने लिए यह भी सवाल करो कि बाग लग जाएं, बड़े-बड़े महल बन जाएं, ख़ज़ाने में सोना चांदी जमा हो जाए, जिस की तुम्हें जरूरत भी है, अब तक तुम खुद ही बाज़ार में जाते और अपनी माश तलाश किया करते हो, ऐसा हो जाने के बाद हम तुम्हारी फजी़लत और सर्फ की पहचान हासिल कर सकेंगे और तुम्हें अल्लाह का रसूल समझ सकेंगे _,"*

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- मैं ऐसा ना करूंगा और अल्लाह से भी ऐसा सवाल ना करूंगा और इन बातों के लिए मब'ऊस भी नहीं हुआ, मुझे तो अल्लाह ने बशीर व नज़ीर बनाया है, तुम मान लो तो तुम्हारे लिए ज़खीरा दारैन है, वरना मैं सब्र करूंगा और अल्लाह के फैसले का मुंतज़िर रहूंगा _,"*

[10/25, 5:40 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरैश ने कहा :- अच्छा तुम आसमान ही का टुकड़ा तोड़कर हम पर गिरा दो क्योंकि तुम्हारा अज़म यह है कि अगर अल्लाह चाहे तो ऐसा कर सकता है, पस जब तक तुम ऐसा ना करोगे हम ईमान नहीं लाएंगे_,"*
*"_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- यह अल्लाह के अख्तियार में हैं, वह अगर चाहे तो ऐसा करें_,"*

*★_ क़ुरेश ने कहा :- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! यह तो बताओ कि तुम्हारे रब ने तुम्हें पहले से यह ना बता दिया कि हम तुम्हें बुलाएंगे और ऐसे ऐसे सवाल करेंगे, यह यह चीज़ें तलब करेंगे, हमारी बातों का यह जवाब है और अल्लाह का मंशा ऐसा ऐसा करने का है ? चूंकि तुम्हारे रब ने ऐसा नहीं किया इसलिए हम समझते हैं कि जो कुछ हमने सुना है वह सही है कि यमामा में एक शख्स रहता है उसका नाम रहमान है, वही तुझे ऐसी बातें सिखलाता है, हम तो रहमान पर कभी ईमान नहीं लाएंगे ( अल्लाह अज़ व जल के असमा ए हसना जो इस्लाम में बताए हैं, उनमें रहमान ऐसा नाम है जिससे अरब हरगिज़ वाक़िफ ना थे, इसलिए वे अल्लाह के नाम रहमान से बहुत चिढ़ा करते थे और कहा करते थे यह किसी गुमनाम शख्स का नाम होगा हालांकि रहमान रहमत से मुबालगा का शीगा है यानी कमाले रहमत वाला )*

*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम देखो! आज हमने अपने सब उज़रात सुना दिए हैं, अब हम तुमसे क़स्मिया यह भी कह देते हैं कि हम तुम्हें इस तालीम की इशात कभी ना करने देंगे हत्ताकि हम मर जाएं या तुम मर जाओ _,"* 
*"_यहां तक बातचीत हुई थी कि एक उनमें से बोला:- हम मलाइका की इबादत करते हैं जो अल्लाह की बेटियां हैं _,"*
*"_दूसरा बोला:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! हम तुम्हारी बात का यक़ीन नहीं करेंगे जब तक कि अल्लाह और उसके फरिश्ते हमारे सामने ना आ जाएं _,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम आखरी बात सुनकर उठ खड़े हुए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ अब्दुल्लाह बिन अबु उमैया बिन मुगीरा भी उठ खड़ा हुआ, यह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फूफीजा़द भाई ( आतिका बिनते अब्दुल मुत्तलिब का बेटा) था, उसने कहा:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम देखो ! तुम्हारी क़ौम ने अपने लिए कुछ चीज़ों का तुमसे सवाल किया वह भी तुमने ना माना फिर उन्होंने यह चाहा कि तुम खुद अपने ही लिए ऐसी अलामत का इज़हार करो जिससे तुम्हारी क़दर व मंज़िलत का सबूत हो सकता हो, उसे भी तुमने क़ुबूल ना किया फिर उन्होंने अपने लिए थोड़ा सा आज़ाब भी चाहा जिसका खौफ तुम दिलाया करते हो, तुमने उसका भी इकरार ना किया, बस अब मैं तुम पर कभी ईमान नहीं लाऊंगा, हां अगर तुम मेरे सामने आसमान को जी़ना लगाकर ऊपर चढ़ जाओ और मेरे सामने उस जी़ने से उतरो और तुम्हारे साथ चार फरिश्ते भी आएं और वह तुम्हारी शहादत भी दें, मैं तो तब भी तुम पर ईमान नहीं लाऊंगा _,"*

*★_ आपने देखा कि इस्लाम की अदावत में अब्दुल्लाह कितना सख्त है लेकिन चंद साल ना गुजरने पाए थे कि फतेह मक्का से पहले यही अब्दुल्लाह अल्लाह ताला की तौफीक से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ और इस्लाम लाया, अहले दानिश जान सकते हैं कि ऐसे शख्स का इस्लाम लाना नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का ऐसा मौजजा़ है जो आसमान पर जी़ना लगाकर चड़ जाने, फरिश्तों की शहादत देने से भी बढ़कर है, क्योंकि यह तो वह बातें हैं जिनके देख लेने के बाद भी अब्दुल्लाह ईमान नहीं लाना चाहता था_,"*
[10/26, 7:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम इस रद व इंकार पर भी बराबर क़ुरेश को इस्लाम की हिदायत किया करते और फरमाया करते कि मेरी तालीम ही में सब कुछ तुम्हारे लिए मौजूद है, जिन दानिशमंदों ने ईमान को कुबूल किया और तालीमाते नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर कारबंद हुए उन्हें इससे भी ज़्यादा मारूफ फवाइद हासिल हो गए, जिनका सवाल मुशरिकीन ने किया था ।*

*★_ हमको इस मौक़े पर इंजील का वो मुका़म याद आता है जिसमें मसीह अलैहिस्सलाम से आज़माइश के लिए शैतान ने कई सवाल किए और मसीह अलैहिस्सलाम ने उन सब का जवाब इन्कार में दिया, हक़ीक़त यह है कि अल्लाह के बरगुज़ीदा रसूल अलैहिस्सलाम अपनी सदाक़त के सबूत में अपनी तालीम को पेश किया करते हैं, मौजजा़ या खरके़ आदत को पेश नहीं किया करते क्योंकि फिर सिफ्ते ईमान बिल गैब की खूबी बाक़ी नहीं रहती, अगरचे किसी दीगर औका़त में किसी ज़रूरत के लिए उनसे मौजजा़त का सुदूर भी बा कसरत होता रहता है ।*

*★_ अमीर हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना :-*
*"_ नबूवत के छठे बरस का ज़िक्र है कि एक रोज़ हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कोहे सफा पर बैठे हुए थे, अबू जहल वहां पहुंच गया, उसने नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को पहले तो गालियां दी और जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम गालियां सुनकर चुप रहे तो उसने एक पत्थर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सर पर फेंक मारा जिससे खून बहने लगा, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ताया हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु को खबर हुई, वह अभी मुसलमान ना हुए थे, क़राबत के जोश में अबू जहल के पास पहुंचे और उसके सर पर जोर से कमान खींच मारी कि वह ज़ख्मी हो गया, हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु फिर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास गए और कहा:- भतीजे तुम यह सुनकर खुश होंगे कि मैंने अबू जहल से तुम्हारा बदला ले लिया _,"*

*"_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- ताया मैं ऐसी बातों से खुश नहीं हुआ करता, हां तुम मुसलमान हो जाओ तो मुझे बड़ी खुशी होगी_,"*
*"_ अमीर हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु उसी वक़्त मुसलमान हो गए ।*
[10/27, 5:12 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना:-*
*"_ अमीर हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु से 3 दिन पीछे उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए, यह बड़े दिलेर और बहादुर थे, कु़रेश की तरफ से बेरूनी मुमालिक की सिफारत का काम इनसे मुताल्लिक था, एक दिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी बहादुरी के भरोसे पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल का इरादा करके घर से निकले, बदन पर सब हथियार सजा रखे थे, रास्ते में उनको पता लगा कि बहन और बहनोई दोनों मुसलमान हो गए हैं, यह सुनकर बहन के घर गए और उन दोनों को खूब मारा, उनकी बहन फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:- उमर तुम पहले वह किताब सुन लो जिसे सुनकर हम ईमान ले आए हैं, अगर वह तुमको अच्छी ना लगे तो हमको मार डालना_, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:- अच्छा_,"*

*"_ उस वक्त उनके घर में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के एक सहाबी भी थे, जो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के आ जाने से छुप गए थे, उन्होंने क़ुरान मजीद (ताहा का पहला रुकू) सुनाया, उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु क़ुरान सुन रहे थे और बे अख़्तियार रहे थे, गर्ज़ उमर रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और क़ुरान पर ईमान ले आए, जो घर से क़ातिल बन कर निकला था वह जांनिसार बन गया । आगे चलकर इनका लक़ब "फारूक़" हुआ ।*

*★_ उस वक्त तक मुसलमान नमाज़ अपने घरों में छुप छुप कर पढ़ा करते थे, अब काबा में जाकर पढ़ने लगे, मुशरिकीन यह देखकर और भी ज़्यादा जले और मुसलमानों को बेहद तकलीफ देने लगे और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ भी गुस्ताखी से पेश आते थे।*
[10/28, 5:49 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने क़बीले समेत 3 साल तक पहाड़ की घाटी के अंदर महसूर रहे :-*
*"_ जब क़ुरेश ने देखा कि ऐसी अज़ियतों और तकलीफों पर भी नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपनी तालीम पर क़ायम है और बेनज़ीर जुर्रात और अनथक मेहनत से अपना काम किए जा रहे हैं, तो बा माहे मोहर्रम सात नबूवत उन्होंने कहा:- बनू हासिम जो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का कबी़ला है अगरचे मुसलमान नहीं हुआ फिर भी नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का साथ नहीं छोड़ता है, आओ उनसे नाता रिश्ता करना छोड़ दें, उन्हें गली बाजार में फिरने ना दो, उनको कोई चीज मोल भी ना दो_," इस बात का मुआहिदा लिखा गया और काबे पर लटकाया गया _,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और उनका क़बीला मजबूर हो गए, घर बार छोड़कर पहाड़ की घाटी में महबूस व महसूर होकर रहने लगे, कुरैशी ने अजनास खोरूनी का ( गल्ला और दूसरी ज़रूरत की चीजों के लिए) जाना भी बंद कर दिया, बनी हाशिम के बच्चे भूख के मारे इस क़दर रोया करते थे कि उनकी आवाज़ें घाटी के बाहर तक सुनाई देती _,*

*★_ 3 बरस तक नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और उनके खानदान ने इसी तरह काटे और जो मुसलमान थे वह भी अपने घरों में कै़दी बनकर रहने लगे, हज के दिनों में जब मुशरिकीन भी दुश्मन से लड़ना हराम जानते थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस घाटी से बाहर निकला करते थे और लोगों को अल्लाह पर ईमान लाने का वाज़ सुनाया करते थे, कमबखत अबुलहब सुबह से शाम तक नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पीछे पीछे फिरा करता और कहां करता - लोगों यह दीवाना है इसकी बात ना सुनो, जो कोई इस की बात सुनेगा और मानेगा वह तबाह हो जाएगा_,"*

*★_ 3 बरस तक नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इस सख्ती को निहायत सब्र व इस्तक़लाल से बर्दाश्त किया, जब उन मुशरिकों ने घाटी पर से पहरे उठा लिए और दीमक ने उनके मुआहिदे के कागज को खा लिया जो काबा पर लटकाया गया था, तब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम बाहर निकले और फिर वाज़ का सिलसिला शुरू कर दिया _,"*
[10/29, 7:25 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मस्जिद ए हराम में दाखिल हुए, वहां मुशरिक सरदार बैठे हुए थे, अबू जहल ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को देखा और तमसखुर ( मज़ाक) से कहा:- अब्दे मुनाफ वालों ! देखो तुम्हारा नबी ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आ गया_,"*
*"_ उक़बा बिन रबिया बोला:- हमें क्या इंकार है हम में से कोई नबी बन बैठे, कोई फरिश्ता कहलाए _,"*
*"_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम यह बातें सुनकर लौटे और उनके पास आए, पहले उक़बा से फरमाया:- उक़बा ! तूने अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हिमायत कभी भी ना की, तू अपनी ही बात के पेच पर अड़ा रहा_," फिर अबु जहल से फरमाया:- "तेरे लिए वह वक़्त बहुत क़रीब आ रहा है, दूर नहीं रहा है कि तू थोड़ा हंसेगा और बहुत रोएगा _,"*
*"_फिर कुरेश से फरमाया:- तुम्हारे लिए वह सा'अत ( घड़ी) नज़दीक आ रही है कि जिस दीन का तुम इंकार करते हो आखिर कार उसी में दाखिल हो जाओगे_,"*

*★_ अबू तालिब का इंतकाल:- दस नबूवत में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ताया अबु तालिब जो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद थे, इंतकाल हो गया, अबु तालिब ने लड़कपन से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरबियत की थी और जबसे आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने नबूवत की दावत और मुनादी शुरू की थी वह बराबर मददगार रहे थे, इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को उनकी वफात का बड़ा सदमा हुआ ।*

*★_ खदीजा तुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल :-*
*"_ इनसे 3 दिन पीछे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की प्यारी बीवी ताहिरा खदीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इंतकाल फरमाया, जिन्होंने अपना सारा माल व ज़र नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खुशी पर कुर्बान और अल्लाह की राह में सर्फ कर दिया था, सबसे पहले इस्लाम लाईं थी, जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने उनको अल्लाह का सलाम पहुंचाया था, उनके गुज़र जाने का रंज नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बहुत हुआ ।*
[10/30, 12:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब कुरेश ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को ज़्यादा से ज़्यादा सताना शुरू कर दिया, एक दफा एक शरीर में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सर पर कीचड़ फेंक दी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उसी तरह घर में दाखिल हुए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बेटी उठीं, वह सर धुलाती जाती थीं और रोती जाती थीं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया :-प्यारी बेटी ! तुम क्यों रोती हो, तेरे बाप की हिफाज़त अल्लाह खुद फरमाए गा _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का तबलीग के लिए मुख्तलिफ क़बाइल की जानिब सफर करना:-*
*"_ अगरचे अबू तालिब का सहारा जाता रहा, अगरचे खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा जैसी बीवी जो मुसीबतों तकलीफों में निहायत गम गुसार थीं, जुदा हो गई, मगर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अब ज़्यादा जोश से वाज़ का काम शुरू कर दिया, थोड़े ही दिनों बाद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का से निकले और बेरूनी क़बाइल को वाज़ के लिए तशरीफ ले गए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ इस सफर में ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु थे, मक्का और ताइफ के दरमियान जितने क़बीले थे सबको वाज़ सुनाते, तोहीद की मुनादी करते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम प्यादा पा ( पैदल) ताइफ पहुंचे,*

*★_ ताइफ में बनु सक़ीफ आबाद थे, सर सब्ज़ मुल्क और सर्द पहाड़ पर रहने की वजह से उनके गुरुर की कोई हद ना थी, अब्दियाल, मसूद, हबीब तीनो भाई वहां के सरदार थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही पहले इन्हीं से मिले और उन्हें इस्लाम की दावत फरमाई,*

*★_ उनमें से एक बोला- मैं काबे के सामने ढ़ाडी मुंडवा दूं अगर तुझे अल्लाह ने रसूल बनाया हो_", दूसरा बोला- क्या अल्लाह को तेरे सिवा और कोई भी रसूल बनाने को ना मिला, जिसे चढ़ने की सवारी भी मयस्सर नहीं, उसने रसूल बनाना था तो किसी हाकिम या सरदार को बनाया होता_,"*
*"_तीसरा बोला कि मैं तुझसे कभी बात नहीं करूंगा क्योंकि अगर तू अल्लाह का रसूल है जैसा कि तू कहता है तब तो यह बहुत ख़तरनाक बात है कि मैं तेरे कलाम को रद करूं और अगर तू अल्लाह पर झूठ बोलता है तो मुझे शायान नहीं कि तुझसे बात करूं _,"*
[10/31, 6:56 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- अब मैं तुमसे सिर्फ यह चाहता हूं कि अपने ख्यालात अपने ही पास रखो, ऐसा ना हो कि यह है ख्यालात दूसरे लोगों के ठोकर खाने का सबब बन जाएं _,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने वाज़ कहना शुरु फरमाया तो उन सरदारों ने अपने गुलामों और शहर के लड़कों को सिखला दिया, वह लोग वाज़ के वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर इतने पत्थर फेंकते कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम लहू में तरबतर हो जाते, खून बह बह कर जूते में जम जाता और वज़ु के लिए पांव से जूता निकालना मुश्किल हो जाता_,"*

*★_ एक दफा बदमाशों ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को इस क़दर गालियां दी, तालियां बजाई, चीखें लगाई कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम एक मकान के अहाते में जाने पर मजबूर हो गए, यह जगह उतबा व शैबा फरज़ंदाने रबिया की थी, उन्होंने दूर से इस हालत को देखा और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर तरस खा कर अपने ग़ुलाम अद्दास को कहा कि एक प्लेट में अंगूर रखकर उस शख्स को दे आओ, गुलाम ने अंगूर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सामने रख दिये, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अंगूरों की तरफ हाथ बढ़ाया और ज़बान से फरमाया- "बिस्मिल्लाह" और फिर अंगूर खाना शुरू किया_,"*

*★_ अद्दास ने हैरत से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ देखा और फिर कहा- यह ऐसा कलाम है कि यहां के बाशिंदे नहीं बोला करते _," नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम कहां के हो और तुम्हारा मज़हब क्या है ? अद्दास ने जवाब दिया- मैं ईसाई हूं और नैनवा का बाशिंदा हूं _,"*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- क्या तुम मर्दे सालेह यूनुस बिन मति अलैहिस्सलाम के शहर के बाशिंदे हो _,"*
*"_अद्दास से कहा- आपको क्या खबर है कि यूनुस बिन मति अलैहिस्सलाम कौन थे और कैसे थे ? नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- वह मेरे भाई हैं वह भी नबी थे और मैं भी मैं भी नबी हूं _,"*
*"_अद्दास यह सुनते ही झुक पड़ा और उसने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का सर, हाथ, क़दम चूम लिये _,"* 

*★_ उतबा व शैबा ने दूर से गुलाम को ऐसा करते देखा और आपस में कहने लगे- लो गुलाम तो हाथों से निकल गया, जब अद्दास अपने आका़ के पास लौट कर गया तो उन्होंने कहा- कमबख्त तुझे क्या हो गया था कि उस शख्स के हाथ पाव सर चूमने लग गया था, अद्दास ने कहा- हुजूर ए आली ! आज उस शख्स से बेहतर रूऐ ज़मीन पर कोई भी नहीं, उसने मुझे ऐसी बात बतलाई जो सिर्फ नबी ही बतला सकता है _,"उन्होंने अद्दास को डांट दिया कि खबरदार कहीं अपना दीन ना छोड़ बैठना, तेरा दीन तो उसके दिन से बेहतर है _,"* *( तिबरी-1/75)*
[11/1, 6:59 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इसी मक़ाम पर एक दफा वाज़ करते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के इतनी चोटें लगीं कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम बेहोश होकर गिर पड़े, ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपको अपनी पीठ पर उठाया, आबादी से बाहर ले गए, पानी के छींटे दिए तो होश आया_,"*

*★_ इस सफर में इतनी तकलीफ़ें और अज़ीयतों के बाद एक शख्स तक के मुसलमान ना होने के रंज और सदमे के वक़्त भी नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का दिल अल्लाह की अज़मत और मुहब्बत से भरपूर था, उस वक़्त जो दुआ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मांगी उसके अल्फाज़ यह हैं:-*

*"_ (तर्जुमा) इलाही अपनी कमज़ोरी व बे सरोसामानी और लोगों की तहकी़र की बाबत तेरे सामने फरियाद करता हूं तू सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है, दर्दमांद आजिज़ों का मालिक तू ही है और मेरा मालिक भी तू ही है, मुझे किस के सुपुर्द किया जाता है, क्या बेगाना तुर्शरू के या उस दुश्मन के जो काम पर का़बू रखता है लेकिन जब मुझ पर तेरा गज़ब नहीं तो मुझे इसकी कोई परवाह नहीं क्योंकि तेरी आफियत मेरे लिए ज़्यादा वसी है मैं तेरी जात़ के नूर से पनाह चाहता हूं जिससे सब तरीक़ियां रोशन हो जाती हैं और दुनिया व दीन के काम उससे ठीक हो जाते हैं कि तेरा गज़ब मुझ पर उतरे या तेरी रजा़मंदी मुझ पर वारिद हो, मुझे तेरी ही रजा़मंदी और खुशनूदी दरकार है और नेकी करने या बदी से बचने की ताक़त मुझे तेरी ही तरफ से मिलती है_,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने ताइफ से वापस होते हुए यह भी फरमाया:- मैं इन लोगों की तबाही के लिए क्यों दुआ करूं अगर यह लोग अल्लाह पर ईमान नहीं लाते तो क्या हुआ उम्मीद है कि इनकी आइंदा नस्ले जरूर एक अल्लाह पर ईमान लाने वाली होंगी _," ( बुखारी-3231-7389, मुस्लिम -4653)*
[11/2, 7:42 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुख्तलिफ मका़मात पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का तबलीग के लिए जाना:-* 
*"_मक्का में वापस आकर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अब ऐसा करना शुरू किया कि मुख्तलिफ क़बीलो कि सकुनत गाहों में तशरीफ ले जाते या मक्का से बाहर चले जाते और जब कोई मुसाफिर आता जाता मिल जाता उसे ईमान और अल्लाह परस्ती का वाज़ फरमाते, इन्हीं अय्याम मे क़बीला बनु कुंदा में तशरीफ ले गए, सरदार ए क़बीला का नाम मलीही था, नीज़ क़बीला अब्दुल्लाह के यहां भी पहुंचे उन्हें फरमाया कि तुम्हारे बाप का नाम अब्दुल्लाह था, क़बीला बनु हनीफा के घरों में तशरीफ ले गए, उन्होंने सारे अरब भर में सबसे बदतर तरीक़े पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंकार किया ।*

*★_ क़बीला बनु आमिर बिन सा'असा के पास गए, सरदार ए क़बीला का नाम बहीरा बिन फरास था, उसने दावते इस्लाम सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से पूछा:- भला अगर हम तेरी बात मान ले और तू मुखालिफीन पर ग़ालिब आ जाए तो क्या तू यह वादा करता है कि तेरे बाद यह अम्र (नबूवत) मुझसे मुताल्लिक होगा, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया- यह तो अल्लाह के अख्त्यार में है वह जिसे चाहेगा मेरे बाद उसे मुकर्रर करेगा, बहीरा बोला- खूब ! इस वक़्त तो अरब के सामने सीना सिपर हम बने और जब तुम्हारा काम बन जाए तो मज़े कोई उड़ाए, जाओ हमको तेरे काम से कुछ सरोकार नहीं, क़बाइल के सफर में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम के रफीक़ अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु थे।* 

*★_ सुवैद बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान लाना:-*
*"_ इन्हीं अय्याम में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को सुवैद बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु मिले, उनका लक़ब अपनी क़ौम में कामिल था, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें दावते इस्लाम फरमाई, वह बोले- शायद आपके पास वही कुछ है जो मेरे पास भी है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पूछा- तुम्हारे पास क्या है ? वह बोले- हिकमते लुकमान ।* 
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- बयान करो, उन्होंने अपने कुछ उम्दा अश'आर सुनाएं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया - यह अच्छा कलाम है लेकिन मेरे पास क़ुरान जो इससे अफज़लतर है और हिदायत और नूर है और वह कुरान सुनकर इस्लाम ले आए, जब यसरब लौट कर गए तो क़ौम खजरज ने उन्हें क़त्ल कर डाला_," (तिबरी- 232)*
[11/3, 5:48 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_सिफारत ए यसरब में तबलीग फरमाना, अयास बिन मा'ज़ का राहयाब होना:-*
*"_ उन्हीं अय्याम मे अबुल हसीर अनस बिन आस मक्का आया, उसके साथ बनी अबदाल अस-सहल के भी चंद नौजवान थे, जिनमें अयास बिन मा'ज़ भी थे, यह लोग कुरेश के साथ अपनी कौ़म खज़रज की तरफ से मुआहिदा करने आए थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम इनके पास गए और जाकर फरमाया:- मेरे पास ऐसी चीज़ हैं जिसमे तुम सब की बेहबूद है, क्या तुम्हें कुछ रगबत है? वह बोले:- ऐसी क्या चीज़ है? फरमाया- मैं अल्लाह का रसूल हूं, मखलूक़ की तरफ मबऊस हूं, बंदगाने इलाही की दावत देता हूं कि अल्लाह की इबादत करें और शिर्क ना करें, मुझ पर अल्लाह ने किताब नाजिल की है_,"*

*★_ फिर उनके सामने इस्लाम के उसूल बयान फरमाए और क़ुरान मजीद भी पढ़ कर सुनाया, अयास बिन मा'ज़ जो अभी नौजवान थे, सुनते ही बोले:- ए मेरी क़ौम ! बाखुदा यह तुम्हारे लिए उस मक़सद से बेहतर है जिसके लिए तुम यहां आए हो _,"*

*★_ अनस बिन राफे ने कंकरियों की मुट्ठी भर कर उठाई और अयास के मुंह पर फेंक मारी और कहा:- बस चुप रह, हम इस काम के लिए तो नहीं आए _,"*
*"_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उठ कर चले गए, यह वाक़िया जंग ए बास से, जो औस और खज़रज में हुई, पहले का है, अयास वापस जाकर चंद रोज़ के बाद मर गए, मरते वक़्त उनकी ज़ुबान पर तस्बीह व तमहीद व तहलील व तकबीर जारी थी, मरहूम के दिल में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के उसी वाज़ से इस्लाम के बीज बोया गया था, जो मरते वक़्त फल फूल आया था_,"*
[11/4, 8:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जु़मादाज़दी रज़ियल्लाहु अन्हु का वाक़िआय क़ुबूले इस्लाम:-*
*"_ इन्हीं अय्याम में ज़ुमादाज़दी रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में आए, ये यमन के बाशिंदे थे और अरब के मशहूर जादूगर थे, जब उन्होंने सुना कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर जिन्नात का असर है, तो उन्होंने कु़रेश से कहा कि मैं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इलाज अपने मंतर से कर सकता हूं, ये नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और कहा:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम आओ तुम्हें मंतर सुनाऊं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया कि पहले मुझसे सुन लो, फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें सुनाया:-* 

*"_(तर्जुमा) सब तारीफ अल्लाह के वास्ते हैं, हम उसकी नियामतों का शुक्र अदा करते हैं और हर काम में उसी की इआनत चाहते हैं, जिसे अल्लाह रिह दिखाता है उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसे अल्लाह ही रस्ता ना दिखलाए उसकी कोई रहबरी नहीं कर सकता, मेरी शहादत यह है कि अल्लाह के सिवा इबादत के लायक़ कोई भी नहीं, वह अकेला है उसका कोई शरीक़ नहीं, मैं यह भी ज़ाहिर करता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह का बंदा और रसूल है _,"*

*★_ ज़ुमाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस क़दर सुना था, बोल उठे कि इन्हीं कलमात को फिर सुना दीजिए, दो तीन दफा उन्होंने इन्हीं कलमात को सुना और फिर बे अख़्तियार बोल उठे:-*
*"_ मैंने बहुत से काहिन देखें और साहिर देखें, शायर सुने लेकिन ऐसा कलाम तो मैंने किसी से भी ना सुना, यह कलमात तो एक अथाह समंदर जैसे हैं, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! अपना हाथ बढ़ाओ कि मैं इस्लाम की बैत कर लूं _,"*
*( मुस्लिम 2008, नसाई 3278, इब्ने माजा 1893)*
[11/5, 8:08 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मैराज :- 27 रज्जब 10 नबूवत का मैराज हुई और अल्लाह ताला ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को "मलाकुतुस समावाती वल अर्द" की सैर कराई, अव्वल मस्जिदुल हराम से बेतुल मुक़द्दस तक तशरीफ ले गए, वहां इमाम बनकर अंबिया अलैहिस्सलाम को नमाज़ पढ़ाई, फिर आसमानों की सैर करते और अंबिया अलैहिस्सलाम से उनके मका़मात पर मिलते हुए "सिदरतुल मुंतहा" और "बैत ए मामूर" तक पहुंचे और वहां से और क़ुर्बे हुजूरी खास हासिल हुआ और तरह-तरह की वही से मुशर्रफ हुए ।*

*★_ अल्लामा इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाहि करेंसी लिखते हैं कि हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा, मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु व इमाम हसन बसरी रहमतुल्लाहि करेंसी से मरवी है कि सैर रूह मुबारक को हुई थी और जिस्म मुबारक अपनी जगह मौजूद था, उलमाए जम्हूर का क़ौल है कि मैराज का सफर बदन मुबारक के साथ हुआ था_," ( जा़दुल माद 3/40 )*

*★_ शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं:- नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मस्जिदे अक़्सा तक फिर सिदरतुल मुंतहा तक और जहां तक कि अल्लाह ने चाहा सैर कराई गई, यह सब कुछ जिस्म मुबारक के साथ बेदारी में था लेकिन यह एक मुका़म है जो मिसाल और शहादत के दरमियान बरजख है और हर दो मज़कूरा के अहकाम का जामा होता है और रूह और मा'नी में जिस्म को कुबूल करके तमसील अख्तियार किया इसलिए इन वाक़ियात में से हर वाक़िए की एक हकीकत है _",*

*★_ शबे मैराज नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सामने एक बरतन दूध का, एक बरतन शराब का पेश किया गया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने दूध को पसंद फरमाया, जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बतला दिया कि आपने फितरते असलिया को पसंद फरमाया, अगर शराब का बरतन आप ले लेते तो आपकी उम्मत भटक जाती, देखो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपनी उम्मत को फितरत पर जमा करने वाले थे और दूध से मुराद यही है कि उम्मत फितरत को पसंद करें दुनियावी लज़्ज़तों को पसंद ना करें _,"*
[11/6, 11:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बुराक़ पर सवार होना, मस्जिदे अक़्सा तक सैर, अंबिया अलैहिस्सलाम की इमामत, अंबिया अलैहिस्सलाम के साथ मुलाक़ात और मुफाखरत, आसमान पर एक के बाद एक दूसरे आसमान पर चढ़ना, दर्जा बा दर्जा ताल्लुका़त ए तब'ई से निकलकर मुस्तवी रहमान की तरफ जाना, सिदरतुल मुंतहा, रहें वह अनवार, वह तज़ल्लियात ए रहमानी और तदबीराते इलाहिया, बैते मामूर, हर एक अमर् की अपनी हक़ीक़त है_,"* 

*★_ पांच नमाज़ों का तक़र्रूर भी जु़बाने तजवीजी़ से हुआ, यह पांच नमाज़ें सवाब में 50 के बराबर है, गोया रब्बे करीम ने आहिस्ता आहिस्ता यह समझाया कि सवाब तो (50 के बराबर) कामिल है और हर्ज और मर्ज़ उठा दिया गया, यह मतलब हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की सनद से लिया गया है क्योंकि जनाबे ममदूह ( मूसा अलैहिस्सलाम) उम्मत की इस्लाह व दुरुस्ती और उसूले सियासत, उम्मत की शिनाख्त में अक्सर अंबिया अलैहिस्सलाम से बड़े हुए हैं ।*

*★_ अक्सर मुफस्सिरीन ने मैराज का ज़िक्र ताइफ की वापसी के बाद किया है, मगर इमाम तिबरी ने अपनी किताब में इब्तदा ए नबूवत से दूसरे दिन ही मैराज का होना तहरीर किया है, उनकी ताईद इस दलील से बखूबी होती है कि जब फरज़ियते नमाज़ का हुक्म शबे मैराज में हुआ और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और दीगर मुसलमान उस वक्त से ही बराबर नमाज़ पढ़ते थे, तो नमाज़ की फरज़ियत का हुक्म 11 साल तक क्योंकर मुताखिर (टला) रह सकता है, लेकिन हस्बे बयान शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी (मिंदरजा शरह सफरे स'आदत, सफा 36) कि पहले सिर्फ दो नमाज़े फजर व असर् फ़र्ज़ हुई थी, अब शबे मैराज को 5 नमाज़े फर्ज हुईं, कोई इश्काल नहीं रह जाता ।*
[11/7, 5:28 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तुफैल बिन अमरु दौसी रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान लाना_,"*
*★_ उन्हीं दिनों तुफैल बिन अमरु दौसी रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में आए, ये क़बीला दौस के सरदार थे और यमन में इनके खानदान में रईसाना हुकूमत थी, तुफैल रज़ियल्लाहु अन्हु खुद शायर व दानिशमंद शख्स थे, अहले मक्का ने आबादी से बाहर जाकर उनका इस्तक़बाल किया और आला पैमाने पर उनकी खिदमत और तवाज़ो की, तुफैल रज़ियल्लाहु अन्हु का अपना बयान है कि मुझे अहले मक्का ने यह भी बताया कि यह शख्स जो हममे से निकला है उससे ज़रा बचना, इसे जादू आता है, जादू से बाप बेटे ज़न व शौहर, भाई भाई मे जुदाई डाल देता है, हमारी जमिअत को परेशान और हमारे काम बिगाड़ दिए हैं, हम नहीं चाहते कि तुम्हारी क़ौम पर भी ऐसी ही कोई मुसीबत पड़े, इसलिए हमारी इस ज़ोर से यह नसीहत है कि ना उसके पास जाना ना उसकी बात सुनना और ना खुद बातचीत करना _,"*

*★_ यह बातें उन्होंने ऐसी उम्दगी से मेरे ज़हन नशीन कर दी कि जब मैं काबा में जाना चाहता तो कानों को रूइ से बंद कर लेता ताकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की आवाज़ की भनक भी मेरे कान में ना पड़ पाए, एक रोज़ मै सुबह ही खाना काबा में गया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे चूंकि अल्लाह की मसियत यह थी कि उनकी आवाज मेरे कान तक ज़रूर पहुंचे इसलिए मैंने सुना कि एक निहायत अजीब कलाम वे पढ़ रहे हैं,*

*★_ उस वक्त मै अपने आप को मलामत करने लगा कि मैं खुद शायर हूं, बा इल्म हूं, अच्छे बुरे की तमीज़ रखता हूं फिर क्या वजह है ? और कौनसी रोक है कि मैं उनकी बात ना सुनूं, अच्छी बात होगी तो मान लूंगा वरना नहीं मानूंगा, मैं यह इरादा करके ठहर गया, जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम वापस घर को चले गए तो मैं भी पीछे पीछे हो लिया और जब मकान पर हाज़िर हुआ, तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अपना वाक़िआ मक्का में आने, लोगों के बहकाने, कानों में रुई लगाने और आज हजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ुबान से कुछ सुन पाने, का कह सुनाया और अर्ज़ किया कि मुझे अपनी बात सुनाएं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने क़ुरान पढ़ा, बा खुदा ! मैंने ऐसा पाकीज़ा कलाम कभी सुना ही ना था, जो इस क़दर नेकी और इंसाफ की हिदायत करता हो_,"* 

*★_ अलगर्ज़ तुफैल रज़ियल्लाहु अन्हु उसी वक़्त मुसलमान हो गए, जिसे कु़रेश बात बात में मखदूम व मुता कहते थे, वह बात की बात में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का दिलो जान से खादिम और मुत्तबा बन गया, कु़रेश को ऐसे शख्स का मुसलमान होना निहायत शाक़ व नागवार गुज़रा _,"*
*( इब्ने सा'द फि अल-तबका़त 14/176)*
[11/8, 7:59 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान लाना _,"*
*"_ अबूज़र गिफारी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने शहर यसरब ही में थे कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के मुताल्लिक कुछ उड़ती सी खबर सुनी, उन्होंने अपने भाई से कहा कि तुम मक्का जाओ, मक्का में उस शख्स से मिल कर आओ और फिर मुझे बताओ _,"*
*"_अनीस बिरादर अबूज़र एक मशहूर फसीह शायर, ज़ुबान आवर थे, वह मक्का में आए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मिले, फिर भाई को बताया कि मैंने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को एक ऐसा शख्स पाया जो नेकियों के करने का और शर से बचने का हुक्म देते हैं _,"*

*★_ अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- इतनी बात से तो कुछ तसल्ली नहीं होती, आखिर खुद पैदल चलकर मक्का पहुंचे, हजरत अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की शिनाख्त ना थी और किसी से दरियाफ्त करना भी पसंद ना करते थे, ज़मज़म का पानी पीकर काबा में लेट रहे थे कि अली मुर्तुजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु आए, उन्होंने पास खड़े होकर कहा- यह तो कोई मुसाफिर मालूम होता है, अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- हां, अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अच्छा मेरे यहां चलो, यह रात को वहीं रहे, ना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ पूछा, ना अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ कहा _,"*

*★_ सुबह हुई तो अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु फिर काबा में आ गए, दिल में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तलाश थी, मगर किसी से दरियाफ्त नहीं करते थे, अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु फिर आ पहुंचे, उन्होंने फरमाया- शायद तुम्हें अपना ठिकाना ना मिला, अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- हां, अली रज़ियल्लाहु अन्हु फिर साथ ले गए, अब उन्होंने पूछा- तुम कौन हो और क्यों यहां आए हो ? अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- राज़ रखो तो मैं बतला देता हूं, अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने वादा किया _,"*

*★_ अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- मैंने सुना है कि शहर में एक शख्स है जो अपने आपको नबी अल्लाह बतलाता है, मैंने अपने भाई को भेजा था, वह यहां से कुछ तसल्ली बख्श बात लेकर नहीं गया इसलिए मैं खुद आया हूं, अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - तुम खूब आए और खूब हुआ कि मुझसे मिले, देखो मैं उन्हीं की खिदमत में जा रहा हूं, मेरे साथ चलो, मैं पहले अंदर जाकर देख लूंगा, अगर उस वक्त मिलना मुनासिब ना होगा तो मैं दीवार के साथ लगकर खड़ा हो जाऊंगा गोया जूता दुरुस्त कर रहा हूं।*
[11/9, 7:32 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अलगर्ज़ अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु अली मुर्तुजा रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ खिदमत ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में पहुंचे और अर्ज़ किया कि मुझे बतलाया जाए कि इस्लाम क्या है ? नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इस्लाम की बाबत बयान फरमाया और अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु उसी वक़्त मुसलमान हो गए ।*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- अबूज़र तुम अभी इस बात को छुपाए रखो और अपने वतन को चले जाओ, जब तुम्हें हमारे ज़हूर की खबर मिल जाए तब आ जाना, अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- बा- खुदा ! मैं तो उन दुश्मनों में ऐलान करने जाऊंगा, अब अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु काबा की तरफ आए, कुरेश जमा थे, इन्होंने सबको सुना कर बा-आवाज़ बुलंद कलमा शहादत पढ़ा, क़ुरेश ने कहा- इस बेदीन को मारो, लोगों ने इन्हें मारना शुरू कर दिया, अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु आ गए उन्होंने इन्हें झांक कर देखा और कहा- कम्बख्तों ! यह तो क़बीला बनु गिफार का आदमी है, जहां तुम तिजारत को जाते और खजूरें लाते हो, लोग हट गए, अगले दिन इन्होंने फिर सबको सुनाकर कलमा पढ़ा, फिर लोगों ने मारा और अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने इनको छुड़ाया और यह अपने वतन को चले आए_,"*.
*( बुखारी - 3522 )*
[11/10, 7:09 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ असबाब ए हिजरत:- 11 नबूवत के मौसम ए हज का ज़िक्र है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने रात की तारीकी़ में शहरे मक्का से चंद मील परे मुका़म ए उक़बा पर लोगों को बातें करते हुए सुना, उस आवाज़ पर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उनके पास पहुंचे, यह 6 आदमी थे उमामा असद बिन ज़रारा, औफ बिन हारिसा, राफेअ बिन मालिक, कुतबा बिन आमिर बिन हदीद, उक़बा बिन अमीर और सा'द बिन रबिआ, ये यसरब से आए थे ।*

*★_ उनके सामने नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अल्लाह की अज़मत व ज़लाल का बयान शुरू किया, उनकी मुहब्बत को अल्लाह के साथ गरमाया, बुतों से उनको नफरत दिलाई, नेकी व पाकीज़गी की तालीम देकर गुनाहों और बुराइयों से मना फ़रमाया, क़ुरान मजीद की तिलावत फरमा कर उनके दिलों को रोशन फरमाया, यह लोग अगरचे बुत परस्त थे लेकिन उन्होंने अपने शहर के यहूदियों को बार-बार यह जिक्र करते हुए सुना था कि एक नबी अनक़रीब जाहिर होने वाला है, इस तालीम से वह उसी वक़्त ईमान ले आए और जब अपने वतन को लौट कर गए तो दीन ए हक़ के सच्चे मुनाद बन गए_,"*

*★_ वे हर एक को यह खुशखबरी सुनाते थे कि वह नबी हैं, जिसका तमाम आलम को इंतज़ार था, आ गया, हमारे कानों ने उनका कलाम सुना, हमारी आंखों ने उनका दीदार किया, उन्होंने हमको ज़िंदा रहने वाले इलाहा से मिला दिया कि दुनिया की जिंदगी और मौत अब हमारे सामने हैं ।*

*★_उन लोगों की बशारत ले जाने का नतीज़ा यह हुआ कि यसरब के घर घर में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का ज़िक्र होने लगा और अगले साल 12 नबूवत को यसरब के 12 बाशिंदे मक्का में हाजिर हुए और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के फैजान से दौलते ईमान हासिल की, इन लोगों ने जिन बातों पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से बैत की थी वह यह है:-*
*"_ (१)_हम रब ए वाहिद की इबादत करेंगे और किसी को उसका शरीक़ नहीं बनाएंगे,*
*(२)_ हम चोरी और ज़िनाकारी नहीं करेंगे,*
*(३)_ हम अपनी औलाद (लड़कियों) को क़त्ल नहीं करेंगे,*
*(४)_ हम किसी पर झूठी तोहमत नहीं लगाएंगे और ना किसी की चुगली किया करेंगे,*
*(५)_ हम नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इता'त हर एक अच्छी बात मे किया करेंगे।*
[11/11, 7:32 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु :-*
*"_ जब यह लोग वापस जाने लगे तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनकी तालीम के लिए मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ कर दिया, मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु अमीर घराने के लाड़ले बेटे थे, जब घोड़े पर सवार होकर निकलते तो आगे पीछे गुलाम चला करते थे, बदन पर 200 दिरहम से कम की पोशाक कभी नहीं पहनते, मगर जब इनको इस्लाम के तुफेल रूहानी ऐश हासिल हुआ तब उन जिस्मानी आराइश और नुमाइश को उन्होंने बिलकुल छोड़ दिया था, जिन दिनों यह मदीना में दीने हक़ की मुनादी करते और तबलीग किया करते थे, उन दिनों इनके कंधे पर सिर्फ कंबल का एक छोटा सा टुकड़ा होता था जिसे अगली तरफ से कीकर के कांटो से अटका लिया करते थे _,"*

*★_ बैत ए उक़बा सानिया:-*
*"_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा में असद बिन जरारा रज़ियल्लाहु अन्हु के घर जाकर उतरे थे और उनको मदीने वाले "अलमुक़री" (पढ़ाने वाला उस्ताद) कहा करते थे, एक दिन मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु व असद बिन जरारा रज़ियल्लाहु अन्हु और चंद मुसलमान बेरे मर्क़ पर जमा हुए, यह गौर करने के लिए कि बनी अब्द अल अशहल और बनी ज़फर में क्यों कर इस्लाम की मुनादी की जाए _,"*

*★_ सा'द बिन मा'ज़ और उसैद बिन हुज़ैर इन क़बाइल के सरदार थे और अभी मुसलमान ना हुए थे, उन्हें भी खबर हुई, सा'द बिन मा'ज़ ने उसैद बिन हुज़ैर से कहा- तुम किस गफलत में पड़े हो, देखो यह दोनों हमारे घरों में आकर हमारे बेवकूफों को बहकाने लगे, तुम जाओ उन्हें झिड़क दो और कह दो कि हमारे मोहल्ले में फिर कभी ना आएं, मैं खुद ऐसा करता मगर इसलिए खामोश हूं कि असद मेरी खाला का बेटा है _,"*

*★_ उसेद बिन हुज़ैर अपना हथियार लेकर रवाना हुए, असद बिन जरारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को कहा - देखो यह क़बीले का सरदार आ रहा है, अल्लाह करे कि वह तुम्हारी बात मान जाए, मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि अगर वह आकर बैठ गया, तो मैं उससे जरूर कलाम करूंगा, इतने में उसैद बिन हुज़ैर आ पहुंचे और खड़े-खड़े गालियां देते रहे और यह भी कहा कि तुम हमारे अहमक़ नादान लोगों को फंसाने आए हो _,"*
[11/12, 7:29 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- काश आप बैठकर कुछ सुन लें, अगर पसंद आए, क़ुबूल फरमाएं, नापसंद हो तो उसे छोड़ जाएं, उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- खैर क्या मुजा़एका़ है, मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने समझाया कि इस्लाम क्या है और फिर उन्हे कुरान मजीद भी पढ़ कर सुनाया, उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने सब कुछ चुपचाप सुना, बिल आखिर कहा - हां यह बताओ कि जब कोई तुम्हारे दीन में दाखिल होना चाहता है तो तुम क्या करते हो ?*

*★_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- नहला कर, पाक कपड़े पहना कर कलमा शहादत पढ़ा देते हैं और 2 रकात निफ्ल पढ़वा देते हैं _,"*
*"_ उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु उठे, गुस्ल किया, कपड़े धोए, कलमा शहादत पढ़ा और निफ्ल अदा किए, फिर कहां - मेरे पीछे एक और शख्स है, अगर तुम्हारा पेरु हो गया तो फिर कोई तुम्हारा मुखालिफ ना रहेगा और मैं जाकर अभी तुम्हारे पास भेज देता हूं _,"*

*★_ उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु चले गए, इधर सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु उनके इंतजार में थे, दूर से चेहरा देखते ही बोले- देखो उसैद का वह चेहरा नहीं है जो जाते वक़्त था, जब उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु आ बैठे तो सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा - क्या हुआ ? उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - मैंने उन्हें समझा दिया है और वह कहते हैं कि हम तुम्हारी मंशा के खिलाफ कुछ ना करेंगे, मगर वहां तो एक और हादसा पेश आया, बनू हारीसा वहां आ गए और असद बिन ज़रारा को इसलिए क़त्ल करने पर आमादा हैं कि वह तुम्हारा भाई है _,"*

*★_ यह सुनकर सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु गुस्से में भर गए और अपना हरबा संभाल कर खड़े हो गए, उन्हें डर था कि बनु हारी ्सा उनके भाई को ना मार डाले, उन्होंने चलते वक़्त यह भी कहा कि उसैद तुम तो कुछ भी काम ना बना कर आए_,"*
[11/13, 7:34 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु के वाज़ पर सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान क़ुबूल करना _,"*
*"_ सा'द वहां पहुंचे, देखा कि मुस'अब रज़ियल्लाहु अन्हु व असद रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों इत्मीनान से बैठे हुए हैं, सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु समझ गए कि उसैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुझे उनकी बातें सुनने के लिए भेजा है, यह ख्याल आते ही उन्हें गालियां देने लगे और असद रज़ियल्लाहु अन्हु को यह कहा कि अगर मेरे तुम्हारे दरमियान क़राबत ना होती तो तुम्हारी क्या मजाल थी कि हमारे मोहल्ले में चले जाते _,"*

*★_ असद रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुस'अब रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा- देखो यह बड़े सरदार हैं और अगर इनको समझा दो तो फिर कोई दो आदमी भी तुम्हारे मुखालिफ ना रह जाएंगे_,"* *"_मुस'अब रज़ियल्लाहु अन्हु ने सा'द से कहा- आइए, बैठ जाइए, कोई बात करें, हमारी बात पसंद आए तो क़ुबूल फरमाइए, वरना इंकार कर दीजिए _,"*

*★_ सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु हरबा रखकर बैठ गए, मुस'अब रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनके सामने इस्लाम की हक़ीक़त बयान की और कुरान मजीद भी सुनाया, आखिर सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी वही सवाल किया जो उसैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने किया था, अलगर्ज़ सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु उठे, गुस्ल किया, कपड़े धोए, कलमा पढ़ा, निफ्ल अदा किए और हथियार लेकर वापस अपनी मजलिस में आए _,*

*★_ आते ही अपने कबीले के लोगों को पुकार कर कहा:- ऐ बनी अब्द अल अशहल! तुम लोगों की मेरे बारे में क्या राय है, सब ने कहा कि तुम हमारे सरदार हो, तुम्हारी राय, तुम्हारी तलाश बेहतर और आला होती है, सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - सुनो ख्वाह कोई मर्द है या औरत, मैं उससे बात करना हराम समझता हूं जब तक कि वह अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर ईमान ना लाए _,"*
[11/14, 7:29 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उनके कहने का यह असर हुआ कि बनी अब्द अल-अशहल में शाम तक कोई मर्द इस्लाम से खाली ना रहा और तमाम क़बीला एक दिन में मुसलमान हो गया, मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु की तालीम से इस्लाम का चर्चा इसी तरह अंसार के तमाम क़बीलों में फैल गया और इसका नतीजा यह हुआ कि अगले साल 13 नबूवत को 73 मर्द 2 औरतें यसरब के काफिले में मिलकर मक्का आए, उनको यसरब के अहले ईमान ने इसलिए भी भेजा था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अपने शहर में आने की दावत दें और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मंजूरी हासिल करें _,"* 

*★_ यह रास्तबाज़ों (ईमान वालों) का गिरोह उसी मुतहरिक मुका़म पर जहां 2 साल से इस शहर यसरब के मुश्ताक़ हाज़िर हुआ करते थे, रात की तारीकी में पहुंच गया और अल्लाह के बरगुज़ीदा रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने ताया अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ लिए हुए वहां जा पहुंचे _,"*
*( तिबरी -244 )*

*★_ हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने (जो अभी मुसलमान ना हुए थे) उस वक्त एक बात काम की कही, उन्होंने कहा- लोगों तुम्हें मालूम है कि कुरैश ए मक्का मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के जानी दुश्मन है अगर तुम उनसे कोई अहद व क़रार करने लगो तो पहले समझ लेना कि यह एक नाज़ुक और मुश्किल काम है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से अहद व पैमान सुर्ख व सियाह लड़ाइयों को दावत देना है, (सुर्ख व सियाह लड़ाइयों से मुराद सख्त खूंरेज़ लड़ाई है ओर सियाह लड़ाई से मुराद तारीक अंजाम वाली लड़ाई मुराद होती है) जो कुछ करो सोच समझ कर करो वरना बेहतर है कि कुछ भी ना करो _,"*

*★_ उना रास्तबाज़ों ( ईमान वालों) ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को कुछ भी जवाब ना दिया, हां रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से अर्ज़ किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुछ इरशाद फरमाएं _,*
[11/15, 7:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनको अल्लाह का कलाम जो अल्लाह का पैगाम इंसान के तरफ है पढ़कर सुनाया, जिसके सुनने से वे ईमान व यक़ीन के नूर से भरपूर हो गए, अब सब लोगों ने अर्ज़ किया कि अल्लाह के नबी हमारे शहर में चलकर बसें ताकि हमें पूरा पूरा फ़ैज़ हासिल हो सके_,* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया - क्या तुम दीन ए हक़ की इशा'त में मेरी पूरी पूरी मदद करोगे और जब मैं तुम्हारे शहर में जा बसूं और मेरे साथियों की हिमायत अपने अहलो अयाल की मानिंद करोगे ? ईमान वालों ने पूछा- ऐसा करने का हमको मुआवज़ा क्या मिलेगा ? नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- बहशत (जन्नत जो निजात और अल्लाह की खुशनूदी का महल है)*
*"_ ईमान वालों ने अर्ज़ किया- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह तो हमारी तसल्ली फरमा दीजिए कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हमको कभी छोड़ तो ना देंगे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया- मेरा जीना, मेरा मरना तुम्हारे साथ होगा _,"*

*★_ इस आखिरी फिकरे का सुनना था कि आशिकाने सदाक़त अजब सरवर व निशात के साथ जांनिसारी की बैत ए इस्लाम करने लगे, बरा बिन मा'रूर रज़ियल्लाहु अन्हु पहले बुजुर्ग हैं जिन्होंने उस शब सबसे पहले बैत की _,"*

*★_ एक शैतान ने पहाड़ की चोटी से यह नज़ारा देखा और चीख कर अहले मक्का को पुकार कर कहा - लोगों ! आओ देखो कि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम और उसके फिरके के लोग तुमसे लड़ाई के मशवरे कर रहे हैं _,"*
*_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम उस आवाज़ की परवाह ना करो, अब्बास बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - अगर हुजूर की इजाज़त हो तो हम कल ही मक्का वालों को अपनी तलवार के जोहर दिखा दें, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- नहीं मुझे जंग की इजाज़त नहीं _,"*
*(ज़ादुल मा'द- 3/48)*
[11/16, 8:39 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के 12 नकी़ब :-*
*"_ उसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनमें से 12 शख्सों का इंतखाब किया और उनका नाम नकी़ब रखा और यह भी फरमाया कि जिस तरह ईसा बिन मरियम अलैहिस्सलाम ने अपने लिए 12 शख्सों को चुन लिया था इसी तरह मैं तुम्हें इंतखाब करता हूं ताकि अहले यसरब में जाकर दीन की इशा'त करो, मक्का वालों में मैं खुद यह काम करूंगा _,"*

*★_ उनके नाम यह हैं:- क़बीला बनु खज़रज के 9 :- असद बिन ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु, रा'फे बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु, उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु (यह तीनों उक़बा औला में भी थे) सा'द बिन रबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु, मंज़र बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु, अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ियल्लाहु अन्हु, बराह बिन मा'रूर रज़ियल्लाहु अन्हु, अब्दुल्लाह बिन अमरू बिन हराम रज़ियल्लाहु अन्हु, सा'द बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु,*
*"_ कबीला औस के तीन:- उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु, सा'द बिन खैसमा रज़ियल्लाहु अन्हु, अबुल हशीम बिन तैयहान रज़ियल्लाहु अन्हु,*

*★_ उक़बा सानिया की बैत के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मुसलमानों को जो मक्का से बाहर ना गए थे लेकिन जिन पर अब इतने जुल्मों सितम होने लगे थे कि प्यारा वतन उनके लिए आग का पहाड़ बन गया, यसरब चले जाने की इजाज़त फरमा दी, उन ईमान वालों को घर बार, क़रीबी रिश्तेदारों, व अक़ारिब, बाप भाई, ज़र व फरज़ंद के छोड़ने का ज़रा भी गम ना था बल्कि खुशी यह थी यसरब जाकर अल्लाह वहदहू ला शरीक़ की इबादत पूरी आसानी से कर सकेंगे ।*

*★_ हिजरत करने वालों और घर बार छोड़कर जाने वालों को क़ुरेश की सख्त मुजा़हमत का मुक़ाबला करना पड़ता था, सुहेब रूमी रज़ियल्लाहु अन्हु जब हिजरत करके जाने लगे तो क़ुरेश ने उन्हें आ घैरा, कहा - सुहेब जब तू मक्का आया था तो मुफलिस व क़ल्लाश था, यहां ठहर कर तूने हज़ारों कमाए, आज यहां से जाता है और चाहता है कि सब माल व ज़र लेकर चला जाएगा, यह तो कभी नहीं होने होने वाला, सुहेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अच्छा अगर मैं अपना सारा माल व मता तुम्हें दे दूं तब तुम मुझे जाने दोगे ? कहा -हां, हजरत सुहेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने सारा माल उन्हें दे दिया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में यह क़िस्सा सुनकर फरमाया कि इस सौदे में सुहेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने नफा कमाया _,"*
*( सीरत इब्ने हिशाम- 168)*
[11/17, 8:01 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मेरे शौहर अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हिजरत का इरादा किया, मुझे ऊंट पर चढ़ाया, मेरी गोद में मेरा बच्चा सलमा था, जब हम चल पड़े तो बनू मुगीरा ने आकर अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को घेर लिया, कहा- तू जा सकता है, मगर हमारी लड़की को नहीं ले जा सकता, अब्दुल असद भी आ गए, उन्होंने भी अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा- तू जा सकता है मगर बच्चे को जो हमारे क़बीले का बच्चा है, तू नहीं ले जा सकता _,"*

*★_ गर्ज़ उन्होंने अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से ऊंट की मुहार लेकर ऊंट बिठा दिया, बनु अब्दुल असद तो गोद के बच्चे को मां से छीन के ले गए और बनू मुगीरा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को ले आए, अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु जो दीन के लिए हिजरत करना फ़र्ज़ समझते थे अपने बीवी बच्चे के बगैर रवाना हो गए _,"*

*★_ उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा हर रोज़ शाम को उसी जगह जहां बच्चा और शौहर से अलग हो गई थीं, पहुंच जाती, घंटों रो धो कर वापस आ जातीं, एक साल इसी तरह रोते चिल्लाते गुज़र गया, आखिर उनके एक चचेरे भाई को रहम आया और दोनों क़बीलों से कह सुनकर उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को इजाज़त दिला दी कि अपने शौहर के पास चली जाएं, बच्चा भी उनको वापस दे दिया गया, उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा एक ऊंट पर सवार होकर मदीना को तन्हा चल दीं_," ( सीरत इब्ने हिशाम- 108)*

*★_ऐसी ही मुश्किलों का सामना तक़रीबन हर एक सहाबी को करना पड़ा था_,*
[11/18, 2:56 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु और हिशाम रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी भी उनके साथ मदीने चलने को तैयार हुए थे, अयाश बिन अबी रबिया रज़ियल्लाहु अन्हु तो रवानगी के वक्त मुकर्रर जगह पर पहुंच गए मगर ही हिशाम बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु की बाबत क़ुरेश को खबर लग गई, उनको कु़रेश ने क़ैद कर दिया, अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु मदीना जा पहुंचे थे कि अबु जहल अपने भाई हर्स के साथ मदीना पहुंच गया, अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु उनके चचेरे भाई थे और तीनों की एक मां थी ।*

*★_ अबू जहल व हर्स ने कहा कि तुम्हारे बाद वालदा की बुरी हालत हो रही है, उसने क़सम खाई है कि अयाश का मुंह देखने तक ना सर में कंघी करूंगी और ना साया में बैठूंगी, इसलिए भाई तुम चलो और मां को तस्कीन देकर आ जाना _,"*

*★_ उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु मुझे तो यह फरेब मालूम होता है, तुम्हारी मां के सर में कोई जूं पड़ गई तो वह खुद ही कंघी कर लेगी और मक्का की धूप ने ज़रा खबर ली तो वह खुद ही साए में जा बैठेगी, मेरी राय तो यह है कि तुम को जाना नहीं चाहिए, अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- नहीं, मैं वालदा की क़सम पूरी कर के वापस आ जाऊंगा, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अच्छा अगर यही राय है तो सवारी के लिए मेरी ऊंटनी ले जाओ, यह बहुत तेज़ रफ्तार है, अगर रास्ते में तुम्हें ज़रा भी उनसे शुबहा गुज़रे तो तुम इस ऊंटनी पर बा आसानी उनकी गिरफ्त से बचकर आ सकोगे _,"*

*★_ अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऊंटनी ले ली, यह तीनों चल पड़े, एक रोज़ राह में (मक्का के क़रीब) अबू जहल ने कहा- भाई हमारा ऊंट तो तुम्हारी ऊंटनी के साथ चलता चलता थक गया है, बेहतर है कि तुम मुझे अपने साथ सवार कर लो, अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु बोले- बेहतर है, जब अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऊंटनी बैठाई तो दोनों भाइयों ने उन्हें पकड़ लिया, मशकें कस ली और मक्का में इसी तरह लेकर दाखिल हुए, यह दोनों बड़े फख्र से कहते थे कि देखो बेवकूफों, अहमकों को यूं सज़ा दिया करते हैं, अब अयाश को हिशाम बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ क़ैद कर दिया गया ।*

*★_ जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मदीना मुनव्वरा पहुंच गए, तब हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तमन्ना पूरी करने के लिए वलीद बिन मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में आए, क़ैदखाने से दोनों को रातों-रात निकाल कर ले गए_," (सीरत इब्ने हिशाम- 1/167 )*

*★_ इन‌ हिकायात से का़र'ईन यह मालूम कर सकते हैं कि हिजरत के वक्त भी मुसलमानों को कैसी सख्त मुसीबतों का सामना करना पड़ता था, घर छोड़ना भी बिला खास जद्दोजहद और इब्तिला व इंतिहान के आसान न था _,*
[11/19, 12:52 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को क़त्ल की तदबीरें:-*
*"_जब मुसलमान मक्का में गिनती के रह गए और मशहूर सहाबा में से सिर्फ अबू बकर व अली रज़ियल्लाहु अन्हु ही बाक़ी रहे तो कुरेशे मक्का ने कहा कि अब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल कर देने का अच्छा मौक़ा है, क़त्ल की तदबीर पर गौर करने के लिए दारूल नदवा में खुफिया इजलास हुआ, दारुल नदवा को क़ुसई बिन किलाब ने क़ायम किया था, यह गोया क़ुरेश का पार्लियामेंट था, इस इजलास में नजदी का एक तजुर्बे कार बूढ़ा शैतान भी आकर शामिल हुआ था और क़ुरेश के मशहूर क़बाइल में से मशहूर सरदार मौजूद थे।*

*"_एक बोला- उसे पकड़कर गले में तोक़ व ज़ंजीर डाल कर एक मकान में क़ैद कर दो और मकान का दरवाज़ा बंद कर दो ताकि यह भी ज़ुहेर व नाबा शायरों की मौत का मज़ा चखता हुआ मर जाए,*
*बूढ़ा नजदी बोला- नहीं यह ठीक नहीं, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के क़ैद होने की खबर बाहर निकले बगैर ना रहेगी, मुसलमानों से छुड़ा ले जाएंगे और ताक़त पाकर तुम्हें भी फना कर देंगे _,"*

*★_ दूसरा बोला- एक सरकश ऊंट पर बिठाकर हम उसे यहां से निकाल दें, हमारी तरफ से कहीं जाए, कहीं रहे, जिए चाहे मरे, बूढ़ा नजदी बोला- नहीं यह राय भी ठीक नहीं, क्या तुम मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की दलाईल भरी बातों को भूल गए हो, क्या तुम नहीं देखते कि वह जिससे बात करता है उसी को अपना बना लेता है, वह दिलों पर कैसी आसानी से का़बू पा लेता है, जहां जाएगा वहीं के बाशिंदे उसके साथ लग जाएंगे और वह बिल आखिर तुमसे अपने नबी का बदला ले कर छोड़ेंगे _,"*

*★_ आखिर अबु जहल ने ऐसी तदबीर बताई जिसे तमाम जलसे ने बिला इत्तेफाक़ मंजूर कर लिया, तजवीज़ और तदबीर यह थी कि अरब के हर एक मशहूर क़बीले से एक एक जवां मर्द का इंतखाब किया जाए, यह सब बहादुर रात की तारीकी में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के घर को घैर लें और जब मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सुबह की नमाज़ के लिए बाहर निकलें उस वक़्त ये सब बहादुर अपनी अपनी तलवार से उस पर वार करें और उसकी बोटी बोटी कर दें, इस तदबीर का यह फायदा बतलाया गया कि जिस क़त्ल में तमाम क़बीले शामिल होंगे उसका बदला ना तो मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) का क़बीला ले सकेगा और न मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) को सच्चा मानने वाले कुछ शर व फसाद उठा सकेंगे_,"*

[11/20, 8:32 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इंसानी तदबीर के मुक़ाबले में इलाही तदबीर:-*
*"_ इंसानी तदबीर के मुक़ाबले में अब इलाही ताक़त और रब्बानी हिमायत को देखिए, जब रात को इन लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का घर आ घेरा, उस वक्त अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने प्यारे भाई अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया- तुम मेरे बिस्तर पर मेरी चादर लेकर सोए रहो, ज़रा फ़िक्र ना करना, कोई शख्स तुम्हारा बाल भी बांका ना कर सकेगा, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तो उन तलवारों के साए में निहायत बेफिक्री से मज़े की नींद सोए रहे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह की हिफाज़त में बाहर निकले और उन दिल के अंधों की आंखों में खाक डालते हुए सूरह यासीन पढ़ते हुए साफ निकल गए, किसी ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को जाते ना देखा, यह वाक़िआ 27 सफर 13 नबुवत बरोज़ जुमेरात (12 सितंबर 621) का है _,"*

*★_ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने प्यारे दोस्त अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के घर पहुंचे और उन्होंने जल्दी से सफर कर ज़रूरी सामान दुरुस्त किया, अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपना कमरबंद काटकर सत्तू के थेले का मुंह बांध दिया, उसी शब की तारीकी में दोनों बुजुर्गवार चल पड़े, मक्का से चार मील फासले पर कोहे सोर है, उसकी चढ़ाई सर तोड़ है, रास्ता (संगलाख) दुश्वार था, नुकीले पत्थर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के नाज़ुक पांवों को ज़ख्मी कर रहे थे और ठोकर लगने से भी तकलीफ होती थी, अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अपने कंधे पर उठा लिया और एक गार पर पहुंचे, अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बाहर ठहराया, खुद अंदर जाकर गार को साफ किया, तन के कपड़े फाड़कर गार के सुराख बंद किये और फिर अर्ज़ किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम भी तशरीफ ले आएं_,"* 

*★_ सुबह हुई हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हस्बे मामूल ख्वाब से बेदार हुए, क़ुरेश ने क़रीब जाकर उन्हें पहचाना, पूछा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कहां है ? उन्होंने जवाब दिया मुझे क्या खबर, क्या मेरा पहरा था, तुम लोगों ने उन्हें निकल जाने दिया और वह निकल गए, कुरेश गुस्से और नदामत से अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर पिल पड़े, उनको मारा और खाना काबा तक पकड़ लाए और थोड़ी देर के लिए रखा, आखिर छोड़ दिया _,"*

*★_ अब कु़रेश अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के घर आए, दरवाज़ा खटखटाया, असमा बिन्ते अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हा बाहर निकलीं, अबू जहल ने पूछा -लड़की तेरा बाप किधर है ? वह बोलीं - बाखुदा मुझे मालूम नहीं, बदजुबान अबु जहल ने ऐसा तमाचा खींच मारा कि असमा रज़ियल्लाहु अन्हा के कान की बाली नीचे गिर गईं_,"*
*( तिबरी- 247 )*
[11/21, 11:37 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक लड़की की कु़वते ईमानी:-*
*"_हिजरत के मुताल्लिक़ एक छोटी सी बात का़बिले ज़िक्र है कि असमा बिन्ते अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मेरे वालिद जाते हुए घर से नक़द रुपया सब उठा कर ले गए थे, यह 5 या 6 हज़ार रुपए थे, वालिद के चले जाने के बाद मेरे दादा अबु क़हाफा ने कहा- बेटी मैं समझता हूं कि अबू बकर ने तुमको दोहरी मुसीबत में डाल दिया है, वह खुद भी चला गया और नक़द व माल भी साथ ले गया_,"*

*★_ अबू क़हाफा उस वक़्त तक मुसलमान ना हुए थे, फतह मक्का के दिन यह मुसलमान हुए थे, अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के खानदान को जुमला सहाबा में यह खुसूसियत हासिल है कि उनके खानदान की चार नस्ले सहाबी हैं _,"*

*★_ असमा रज़ियल्लाहु अन्हा बोलीं- नहीं दादा जान वह हमारे लिए काफी रुपया छोड़ गए हैं, असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक पत्थर लिया, उस पर कपड़ा लपेटा, और जिस घड़े में रुपया हुआ करता था वहां रख दिया और फिर दादा का हाथ पकड़ कर ले गईं, अबू क़हाफा की आंखें जाती रही थी ( यानी नाबीना थे) कहां- दादा जान हाथ लगा कर देखो कि माल मौजूद है _,"*

*★_ बूढ़े ने उसे टटोला और फिर कहा- खैर जब तुम्हारे पास सरमाया काफी है अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के जाने का इस क़दर गम नहीं, यह अबू बकर ने अच्छा किया और मैं समझता हूं कि तुम्हारे लिए काफी इंतज़ाम कर गया है _,"*

*★_ असमा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि यह तदबीर तो मैंने बूढ़े दादा के इत्मीनान ए क़ल्बी के लिए की थी वरना वालिद बुजुर्गवार तो सब कुछ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत के लिए साथ ले गए थे _,"* 
*( सीरत इब्ने हिशाम -173)*
[11/22, 5:42 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गार का क़याम:- यह चांद और सूरज दोनों 3 रोज उस गार में रहे, रात की तारीकी में असमा बिन्ते अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हा घर से रोटी दे जाती, अब्दुल्लाह बिन अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हु अहले मक्का की बातें सुना जाते, आमिर बिन फहीरा जो हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हु के भाई के गुलाम थे और जिनके पास अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु का रेवण था, वहां बकरियां ले आते, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम दूध बक़दरे ज़रूरत ले लेते और वह फिर रेवण से आने वालों के नक्शे क़दम को तमाम रास्ते से मिटा देते_," ( बुखारी 5039)*

*★_ अल्लाह अज़ व जल ने अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के इस सिद्क़ व खुलूस का यह अजर दिया कि "अल्लाह हमारे साथ है" फरमा कर जिस म'इय्यते इलाही में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम वासिल थे, उसी में अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को भी शामिल कर दिया _,"*

*★_ चौथी शब अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के घर से दो ऊंटनिया आ गईं, जिन को इसी सफर के लिए खूब फरबा और तैयार किया गया था, एक पर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरी पर आमिर बिन फहीरा और अब्दुल्लाह बिन अरीक़त (जिसे रास्ता बताने पर नौकर रखा गया था) सवार हो गए और मदीना की जानिब यकम रबीउल अव्वल बरोज़ दोशंबा (सोमवार) (16 सितंबर 622) को रवाना हुए _,"*

*★_ हिजरत से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अंबिया, साबक़ीन की सुन्नत को पूरा किया, हजरत इब्राहिम खलीलुर्रहमान और हजरत मूसा और हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम की हिजरत के वाक़यात बाइबिल में मौजूद हैं, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ हिजरत के बाद नुसरते इलाही की म'इय्यत का ज़हूर हुआ, जैसा कि पहले नबियों के साथ भी होता रहा था_,"*
[11/23, 8:22 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रास्ता दिखाने वाले ने दरमियानी रास्ता छोड़कर समुंदर के किनारे किनारे चलना शुरू किया था, जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम राबिग के मोजूदा क़िले और साहिल समंदर के दरमियानी मैदान से गुज़र रहे थे तब सुराका़ बिन जा'शम ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का पीछा किया, अब्दुलरहमान बिन मालिक जो सुराक़ा के भाई हैं बयान करते हैं :-*

*"_ सुराका़ खोद सर पर लगाए, नेजा ताने, बदन पर हथियार सजाए, अपनी घोड़ी पर सवार हवा से बातें करता जा रहा था कि उसकी नज़र हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर पड़ गई, उसने समझा कि वह कामयाब हो गया, इतने में घोड़ी घुटनों के बल गिर गई, सुराका़ नीचे आया, घोड़ी को उठाया, सवार हुआ फिर चला, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कुरान ए मजीद की तिलावत करते हुए और मालिक से लौ लगाए हुए बड़े चले जा रहे थे कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को दुश्मन के क़रीबतर पहुंचने की इत्तेला अर्ज़ की गई, फरमाया- इलाही हमें उसके शर से बचा_,"*

*★_ इधर जब अल्फाज़ मुबारका ज़ुबान से निकले, उधर घोड़ी के क़दम जमीन में धंस गए, सुराका़ गिर पड़ा और समझ गया की हिफाज़त ए इलाही पर गालिब आना मुहाल है, उसने आजिजा़ना अल्फाज़ में अपनी जान की अमान मांगी, अमान दी गई, सुराका़ आगे बढ़ा और अर्ज़ किया कि अब मैं हर एक हमलावर को पीछे ही रोकता रहूंगा, फिर उस की दरखास्त और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के इरशाद पर आमिर बिन फहीरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे खत अमान भी लिखकर अता फरमा दिया _,"*

*★_ सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु अपने दादा जा'शम की निस्बत से सुराका़ बिल जा'शम मशहूर हुए, सुराक़ा बिन मालिक बिन जा'शम रज़ियल्लाहु अन्हु कनानी हैं, इलाका़ राबिग पर उनका क़बीला क़ाबिज़ था, किताबों में लिखा है कि जब सुराक़ा वापस होने लगे तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- सुराका़ उस वक़्त तेरी क्या शान होगी जब तेरे हाथों में किसरा के शाही कंगन पहनाए जाएंगे_,"* 
*"_सुराका़ रज़ियल्लाहु अन्हु वाक़िआ उहद के बाद मुसलमान हुए, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में जब मदाइन फतेह हुआ और किसरा का ताज और जे़वरात उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने पेश हुए तो अमीरुल मोमिनीन रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुराक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उनके हाथों में किसरा के कंगन पहनाए और ज़ुबान से फरमाया- अल्लाहु अकबर ! अल्लाह की बड़ी शान है कि किसरा के कंगन सुराक़ा आ'राबी के हाथों में पहनाए_,"*
*( बुखारी- 3906, मुस्लिम- 2009)*
[11/24, 8:07 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ खैमा उम्मे मा'बद पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का आराम व क़ियाम_,"*
*"_ गार से निकलकर पहले ही दिन इस मुबारक क़ाफिले का गुज़र खैमा उम्मे मा'बद पर हुआ, यह औरत कौ़म खज़ा से थी, मुसाफिरों की खबरगीरी और उनकी तवाज़ो के लिए मशहूर थी, सरेराह पानी पिलाया करती थी और मुसाफिर वहां ठहर कर सुस्ता लिया करते थे, यहां पहुंचकर बुढ़िया से पूछा कि उसके पास खाने को कोई चीज़ है ? वह बोली- नहीं, अगर कोई चीज़ मौजूद होती तो दरियाफ्त करने से पहले ही मैं खुद हाज़िर कर देती _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने खैमे के गोशे में एक बकरी देखी, पूछा यह बकरी क्यों खड़ी है ? उम्मे मा'बद ने कहा- कमज़ोर है, रेवड़ के साथ नहीं चल सकती, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- इजाज़त है कि हम इसे दोह लें, उम्मे मा'बद ने कहा- अगर हुजूर को दूध मालूम होता है तो दोह लीजिए_,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने बिस्मिल्लाह कहकर बकरी के थनों को हाथ लगाया, बर्तन मांगा, वो ऐसा भर गया कि दूध उछल कर ज़मीन पर गिर गया, यह दूध आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और हमराहियों ने पी लिया, दूसरी दफा फिर बकरी को दोहा गया, बर्तन भर गया और उम्मे मा'बद के लिए छोड़ दिया और आगे को रवाना हो गए _,"*
[11/25, 7:18 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शाम के वक्त उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा के शौहर अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हु लौटे ,वह अपनी बकरियों को चराने के लिए गए हुए थे , खेमे पर पहुंचे तो वहां बहुत सा दूध नज़र आया ,दूध देखकर हैरान हो गए, बीवी से बोले :- ऐ उम्मे मा'बद ! यहां दूध कैसा रखा है घर में तो कोई दूध देने वाली बकरी नहीं है _",*
*"_मतलब यह था कि यहां जो बकरी थी वह तो दूध दे ही नहीं सकती थी फिर यह दूध कहां से आया। हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा बोली :- आज यहां एक बहुत मुबारक शख्स का गुज़र हुआ था । यह सुनकर हजरत अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हू और हैरान हो गए , फिर बोले उनका हुलिया तो बताओ ।*

*"_जवाब में उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :-*
*"_ उनका चेहरा नूरानी था उनकी आंखें उनकी लंबी पलकों के नीचे चमकती थी वह गहरी सियाह थी उनकी आवाज में नरमी थी वह दरमियानी क़द के थे (यानी छोटे कद के नहीं थे ) ना बहुत ज्यादा लंबे थे उनका कलाम ऐसा था जैसे किसी लड़ी में मोती पिरो दिए गए हों बात करने के बाद जब खामोश होते थे तो उन पर बा वका़र संजीदगी होती थी अपने साथियों को किसी बात का हुक्म देते थे तो वह जल्द से जल्द उसको पूरा करते थे वह उन्हें किसी बात से रोकते थे तो फौरन रुक जाते थे वह इंतेहाई खुश अखलाक़ थे उनकी गर्दन से नूर की किरणें फूटती थी उनके दोनों अब्रो मिले हुए थे बाल निहायत सियाह थे वह दूर से देखने पर निहायत शानदार और क़रीब से देखने पर निहायत हसीन व जमील लगते थे उनकी तरफ नज़र पड़ती तो फिर दूसरी तरफ हट नहीं सकती थी अपने साथियों में वह सबसे ज्यादा हसीन व जमील और बा रौब थे सबसे ज्यादा बुलंद मर्तबा थे _,"*

*★_ हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान करदा हुलिया सुनकर उनके शौहर बोले :- अल्लाह की क़सम ! यह हुलिया और सिफात तो उन्हीं कुरेशी बुजुर्ग की है अगर मैं उस वक्त यहां होता तो जरूर उनकी पैरवी अख्तियार कर लेता और मैं अब इसकी कोशिश करूंगा _,"*
*"_चुनांचे रिवायत में आता है कि हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत अबू मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हु हिजरत करके मदीना मुनव्वरा आए थे और उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था। हजरत उम्मे मा'बद रज़ियल्लाहु अन्हा की जिस बकरी का दूध आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दोहा था वह बकरी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के जमाने तक जिंदा रही ।*
[11/26, 6:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ असना ए राह ( रास्ते के दरमियान) में बुरेदा रज़ियल्लाहु अन्हु और 70 शख्सों का ईमान लाना_,*
*★_ नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम यसरब जा रहे थे कि रास्ते के दरमियान में बुरेदा असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु मिले, यह अपनी कौ़म के सरदार थे, क़ुरेश ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की गिरफ्तारी पर एक सौ ऊंट का इनाम मुतहर किया था और बुरेदा इसी इनाम के लालच से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तलाश में निकले थे,* 

*★_ जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का सामना हुआ और हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से हम कलाम होने का मौक़ा मिला तो बुरेदा रज़ियल्लाहु अन्हु 70 आदमियों समेत मुसलमान हो गए, अपनी पगड़ी उतारकर नेज़े पर बांध ली, जिसका सफेद फुरेरा हवा में लहराता और बशारत सुनाता था कि अमन का बादशाह सुलह का हामी दुनिया को अद्ल और इंसाफ से भरपूर करने वाला तशरीफ ला रहा है _,"*

*★_ रास्ते में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को जु़बेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु मिले, यह शाम से आ रहे थे और मुसलमानों का तिजारत पेशा गिरोह भी उनके साथ था, उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु के लिए सफेद पार चार पेश किए_,"*
*( बुखारी- 3906)*
[11/27, 4:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_कु़बा में पहुंचना:- 8 रबीउल अव्वल 13 नबुवत बरोज़ सोमवार (23 सितंबर 622) मुताबिक़ 10 तीसरी 4383 यहूद थी कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम क़ुबा में पहुंच गए, अहले यसरब ने जब से सुना था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मक्का छोड़ दिया है, तो रोज़ सुबह से (रास्ते में आंखें गड़ाए इंतजार में) हम्मा चश्म बनकर बैठ जाते और जब तक ठीक दोपहर ना हो जाती बैठे रहते,* 

*★_ यह बुजुर्गवार अभी वापस ही गए थे कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पहुंच गए और एक शख्स के पुकारने से सब जमा हो गए और खैर मुक़द्दम, अल्लाहु अकबर के तराने गाते हुए आफताब ए रिसालत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के इर्द-गिर्द नूर खेज़ शुवाओं की तरह जमा हो गए ,*

*★_ अक्सर मुसलमान ऐसे थे जिन्होंने पहले कभी भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दीदार पुर अनवार से चश्मे ज़ाहिर बीन को रोशन ना किया था, उन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के रफीक़ अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की शिनाख्त से शुबहा हो जाता था, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु इस ज़रूरत को ताड़ गए और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सर मुबारक पर साया करके खड़े हो गए,*

*★_ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जुमेरात तक यहां ठहरे और इस सह रोज़ा ( तीन दिन) क़याम ही में सबसे पहला काम यहां यह किया कि अल्लाह वाहदहू ला शरीक़ की इबादत के लिए एक मस्जिद की बुनियाद रखी, इसी जगह शेरे खुदा अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु भी मक्का से पैदल सफर करते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में पहुंच गए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु चंद रोज़ तक मक्का में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के इरशाद के मुताबिक़ इसलिए ठहर गए थे कि जिन लोगों की अमानतें आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के घर में मौजूद थीं, वह मालिकों को वापस कर दी जाए,* 

*★_ 12 रबीउल अव्वल 1 हिजरत को जुमा का दिन था, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम क़ुबा से सवार होकर बनी सालिम के घरों तक पहुंचे थे कि जुमा का वक़्त हो गया, यहां 100 आदमियों के साथ जुमा पढ़ा, यह इस्लाम में पहला जुमा था_,"*
[11/28, 11:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का सबसे पहले जुमा का खुत्बा, जो मदीना पहुंचकर बनी सालिम बिन औफ में हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पढ़ा था:-* 
*"_ हम्द व सताइश अल्लाह के लिए है, मैं उसकी हम्द करता हूं, मदद बख्शीश और हिदायत उसी से चाहता हूं, मेरा ईमान इसी पर हैं, मैं उसके नाफरमानी नहीं करता और ना फरमानी करने वालों से अदावत रखता हूं, मेरी शहादत यह है कि अल्लाह के सिवा इबादत के लायक़ कोई भी नहीं, वह यकता है उसका कोई शरीक़ नहीं, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उसका बंदा और रसूल है, उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को हिदायत, नूर और नसीहत के साथ ऐसे ज़माने में भेजा है जबकि मुद्दतों से कोई रसूल दुनिया में ना आया था, इल्म घट गया और गुमराही बड़ गई थी, उसे आखिरी ज़माने में क़यामत के क़रीब और मौत के नज़दीकी के वक़्त भेजा गया है_,"*

*★_ जो कोई अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इता'त करता है, वही राहयाब है और जिसने उनका हुक्म ना माना वह भटक गया, दर्जे से गिर गया और सख्त गुमराही में फंस गया है, मुसलमानों ! मै तुम्हे अल्लाह से तक़वे की वसीयत करता हूं, बेहतरीन वसीयत जो मुसलमान मुसलमान को कर सकता है यह है कि उसे आखिरत के लिए आमादा करें और अल्लाह से तक़वे के लिए कहे, लोगों ! जिन बातों से अल्लाह ने तुम्हें परहेज करने को कहा है उनसे बचते रहो, इससे बढ़कर ना कोई नसीहत है और ना इससे बढ़कर कोई ज़िक्र है, याद रखो कि उमूरे आखिरत के बारे में उस शख्स के लिए जो अल्लाह से डर कर काम कर रहा है तक़वा बेहतरीन मदद साबित होगा और जब कोई शख्स अपने और अल्लाह के दरमियान का मामला खुफिया व ज़ाहिर में दुरुस्त कर लेगा और ऐसा करने में उसकी नियत खालिस होगी तो ऐसा करना ही उसके लिए दुनिया में ज़िक्र और मौत के बाद (जबकि इंसान को आमाल की ज़रूरत व क़दर मालूम होगी) ज़ख़ीरा बन जाएगा _,"*

*★_ लेकिन अगर कोई ऐसा नहीं करता (तो उसका ज़िक्र इस आयत में है) इंसान पसंद करेगा कि उसके आमाल उससे दूर ही रखे जाएं, अल्लाह तुमको अपनी जा़त से डराता है और अल्लाह तो अपने बंदों पर निहायत मेहरबान हैं और जिस शख्स ने अल्लाह के हुक्म को सच जाना और उसके वादों को पूरा किया तो उसकी बाबत यह इरशाद ए इलाही मौजूद है हमारे यहां बात नहीं बदलती और हम अपने नाचीज़ बंदों पर ज़ुल्म नहीं करते _,"*

*★_ मुसलमानों ! अपने मौजूदा और आइंदा, जा़हिर और खुफिया कामों में अल्लाह से तक़वे को पेशे नज़र रखो क्योंकि तक़वे वालों की बदिया छोड़ दी जाती हैं और अजर बड़ा दिया जाता है, तक़वा वाले वह हैं जो बहुत बड़ी मुराद को पहुंच जाएंगे, यह तक़वा ही है जो अल्लाह की बेज़ारी, अज़ाब और गुस्से को दूर कर देता है, यह तक़वा ही है जो चेहरे को दरखशां, परवरदिगार को खुश और दर्जे को बुलंद करता है _,"*

*★_ मुसलमानों ! हज़ उठाओ मगर हुक़ूक़ ए इलाही में फर्द गुज़ाश्त (कोताही) ना करो, अल्लाह ने इसीलिए तुमको अपनी किताब सिखलाई और अपना रस्ता दिखलाया है कि रास्तबाज़ों ( ईमान वालों) और काज़िबों ( झूठों) को अलग अलग कर दिया जाए, लोगों! अल्लाह ने तुम्हारे साथ उमदा बर्ताव किया है, तुम भी लोगों के साथ ऐसा ही करो और जो अल्लाह के दुश्मन हैं उन्हें दुश्मन समझो और अल्लाह के रास्ते में पूरी हिम्मत और तवज्जो से कोशिश करो, उसी ने तुमको बरगुज़ीदा बनाया और तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है, ताकि हलाख होने वाला भी रोशन दलाइल पर हलाक हो और ज़िंदगी पाने वाले भी रोशन दलाइल पर ज़िंदगी पाए और सब नेकियां अल्लाह की मदद से हैं, लोगों ! अल्लाह का ज़िक्र करो और आइंदा जिंदगी के लिए अमल करो, क्योंकि जो शख्स अपने और अल्लाह के दरमियान मामला दुरुस्त कर देता है अल्लाह ताला उसके और लोगों के दरमियान के मामले को दुरुस्त कर देता है, हां ! अल्लाह बंदों पर हुक्म चलाता है और उस पर किसी का हुक्म नहीं चलता, अल्लाह बंदों का मालिक है और बंदों को उस पर कोई अख्तियार नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है और हमको (नेकी करने की) ताक़त उसी अज़मत वाले से मिलती है_,"*
[11/29, 7:33 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मदीना मुनव्वरा में दाखिला:-*
*"_ नमाज़े जुमा से फारिग होकर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम यसरब की जुनूबी जानिब से शहर में दाखिल हुए और उस दिन से शहर का नाम "मदीना अन-नबी" हो गया, जिसे मुख्तसर मदीना मुनव्वरा भी कहा जाता है,*

*★_ दाखिला अजब शानदार था, गली कूचे तमहीद व तक़दीस के कलमात से गूंज रहे थे, मर्द और औरत बच्चे बूढ़े नूर ए इलाही का जलवा देखने के लिए सरापा चश्म बन गए थे, तशरीफ़ आवरी के इस शिकवा व अहतशाम ( शान व शौकत) को देखकर अहले किताब के आलिम समझ गए कि "हबक़ूक़ नबी" की किताब बाब 3 दर्स 3 का मतलब आज खुला,* 

*★_अंसार की मासूम लड़कियां प्यारे लहजे और पाक जुबानों से उस वक़्त अशआर गा रही थीं, ये अंसार जिनकी लड़कियों ने यह तराना साजी की है जिन्होंने 11-12-13 नबूवत में मक्का मुअज़ज्मा पहुंचकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ पर बैत की या वह हैं जो मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु या इब्ने मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु की हिदायत से और तालीम से मदीना मुनव्वरा ही में मुसलमान हो गए थे,*

*★_ बुजुर्ग अंसार कुछ बड़े मालदार या साहिबे सर्वत या किसी बड़ी जागीर व अमलाक के मालिक ना थे मगर दिल के ऐसे गनी, इस्लाम के ऐसे फिदाई, मुसलमान भाइयों पर इतने कुर्बान थे कि जब कोई मुहाजिर नंगी तलवारों, खींची हुई कमानो से जान बचाकर भूखा प्यासा मदीना में पहुंचता था तो हर एक अंसारी यह चाहता था कि वह मुहाजिर उसी के पास ठहरे,* 

*★_ आखिर कुर'आ अंदाज़ी होती थी और जिसके नाम पर क़ुर'आ निकल आता, वह मुहाजिर भाई को अपने घर ले जाता, मकान, असबाब, रुपया, ज़मीन, मवेशी, गरज़ जो कुछ उसकी मिल्क में होता उसका आधा हिस्सा उसे उसी दिन तक़सीम करके दे देता और फिर रात दिन उनकी खिदमत के लिए मुस्त'इद रहता, अपनी खुश किस्मती पर शुक्र करता कि अल्लाह ने दीन के एक भाई को उसका हिस्सेदार बनाया_,"*
[11/29, 8:57 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मक्का और मदीना के हालात का मुक़ाबला:- मक्का में सिर्फ एक क़ौम क़ुरेश का ज़ोर और हुकूमत थी और सबका मज़हब भी (ज़्यादातर) बुत परस्ती था, मदीना मुख्तलिफ अक़वाम और मजा़हिब का मजमुआ था, वहां बुत परस्त भी थे और यहूदी भी और कम तादाद में ईसाई भी, यहूदियों के कई ज़बरदस्त की क़बीले बनु नज़ीर, बनु क़ेनका़, बनु क़ुरेज़ा थे जो अपने जुदागाना किलों में रहा करते थे, तिजारत और सूदखोरी की वजह से बहुत मालदार थे,*

*★_ जब अल्लाह के बरगुज़ीदा नबी मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने वाज़ में यहूद को यह बशारत सुनाई थी कि अल्लाह अज़ व जल मूसा अलैहिस्सलाम के भाइयों में से मूसा अलैहिस्सलाम जैसा नबी पैदा करेगा, उस वक़्त से यहूदी उम्मीद किए हुए और इसी उम्मीद पर मदीना में ठहरे हुए थे कि बनी इसराइल में पैदा होने वाला नबी यहूद क़ौम के इदबार ( ज़िल्लत, बदनसीबी) को दूर करने वाला, उनकी गुजिश्ता शानो शौकत, हुकूमत व सल्तनत को दोबारा ज़िंदा करने वाला होगा और जबसे यहूद को मुल्क ए शाम से निकाल दिया गया और ज़िल्लत व गुलामी के गड्ढे में डाल दिया गया था उस वक़्त से नबी मोऊद के ज़हूर पर उनकी आंखें और भी ज़्यादा लगी हुई थी,*

*★_ अब इस्माईली नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का मदीना में तशरीफ लाना सुनकर यहूदी बिलखुसूस बहुत खुश हो रहे थे लेकिन जब उन्होंने देखा कि यह तो मसीह अलैहिस्सलाम को रास्तबाज़ ( सच्चा) ठहराता, उसकी तालीम को सच्चा बतलाता और मसीह अलैहिस्सलाम पर ईमान लाने को इस्लाम का जरूरी जुज़्व क़रार देता है और उसकी बुज़ुर्गी करके यहूदियों को इंसाफ से मुलज़िम ठहराता है, तो उस वक़्त सब यहूदी हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दुश्मन हो गए,* 

*★_ ईसाईयान ए मदीना भी नबी मोऊद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के मुंतजिर थे, जबसे अल्लाह के बरगुज़ीदा बंदे ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने सबसे आखरी वाज़ में दूसरे तसल्ली देने वाले के आने की खबर दी थी जो दुनिया के साथ हमेशा रहे और जो दुनिया को सब चीज़ें सिखलाएगा और ईसाइयों को उसके हुक्म पर चलने की ताकीद की थी, तो ईसाई भी नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतज़ार कर रहे थे, जो यहूद से उनके ज़ुल्म का बदला लेने वाला, ईसाइयों को जलाल बख्शने वाला, मसीह अलैहिस्सलाम की सदाक़त ज़ाहिर करने वाला हो_," लेकिन जब उन्होंने देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईसाइयों के खुद साख्ता मसाईल अहनियत, तसलीस, कफ्फारा, रहबानियत और पोप के इलाही इकतेदारात का रद्द किया, तब वह भी हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दुश्मन हो गए,*
[11/30, 7:52 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मदीना के हालात का अंदाज़ा करने के लिए नाज़रीन को अब्दुल्लाह बिन अबी बिन सलूल के हाल पर भी एक मुख्तसर नज़र डालना ज़रूरी है, यहूदियों के अलावा मदीना का मुमताज़ और असरदार शख्स यह भी था, औस व खज़रज के क़बीलों पर इसका पूरा रौब था और इसको तवकको़ थी कि इन ताक़तवर क़बीलो की मदद से मदीना की सबसे आला ताक़त मैं ही बन जाऊंगा_,"* 

*★_ जब उसने देखा कि औस व खज़रज जो मुसलमान हो रहे हैं तो खुद भी (जंग-ए-बदर के बाद) बज़ाहिरे हाल मुसलमानों से मिल गया लेकिन जब उसने देखा कि यहूद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के खिलाफ हो गए हैं तो उसने चाहा कि यहूदियों पर भी उसका पहला असर क़ायम रहे और मुसलमान हो जाने वाले क़बाइल भी बदस्तूर ज़ेरे इक़्तदार रहें, इसलिए उसने यह रवैया अख्तियार किया कि मुसलमानों में बैठकर उनसे अपनी रफाक़त का इक़रार करता और दीगर अक़वाम के सामने उनके साथ अपने इत्तेहाद व सदाक़त का दावा किया करता_,"* 

*★_ और चूंकि वह फिल हक़ीक़त इस्लाम को अपनी आरज़ुओं का पामाल करदा समझता था, इसलिए जब मौक़ा मिलता तो मुसलमानों को तकलीफ़ें पहुंचाने में भी दरेग ना करता, इस गिरोह का नाम मुसलमानों ने "मुनाफिक़" रखा _,"*

*★_ मदीना की यह हालत थी और इससे ज़ाहिर है कि इस्लाम की दावत और मुनादी के लिए इस जगह भी बहुत सी दुश्वारियों का सामना था, एक मुंसिफ और गौर करने वाली तबीयत फैसला कर सकती है के इन सब पर ग़ालिब आना इस्लाम की सदाक़त की उम्दा दलील है, इशा'अते इस्लाम में जो कामयाबी नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मदीना मुनव्वरा में बा-मुका़बला मक्का मुअज़्ज़मा हुई इसका ज़िक्र कुरान में पहले से बतौर पेश गोई फरमा दिया था:- "_ पिछला तेरे लिए पहले से बेहतर होगा _,"*
[12/2, 2:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मदीना पहुंचकर हिजरत के पहले साल ही यह मुनासिब ख्याल फरमाया कि जुमला अक़वाम से एक मुआहिदा बेनुल अक़वामी उसूल पर कर लिया जाए ताकि नस्ल और मज़हब के इख्तिलाफ में भी क़ौमियत की वहदत क़ायम रहे और सब को तमद्दुन व तहज़ीब में एक दूसरे से मदद व इयानत मिलती रहे, मुआहिदा दर्जें जे़ल है:-* 

*★_ यह तहरीर है मुहम्मद अन-नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की जानिब से मुसलमानों के दरमियान जो कुरेश या यसरब के बाशिंदे हैं और उन लोगों के साथ जो मुसलमानों के साथ मिले हुए और कारोबार में उनके साथ शामिल हैं कि यह सब लोग एक ही क़ौम समझे जाएंगे, बनी औफ के यहूदी मुसलमानों के साथ एक क़ौम हैं और जो कोई इस मुआहिदे करने वाली क़ौमों के साथ जंग करेगा तो उसके बर खिलाफ सबके सब मिलकर काम करेंगे, मुसलमान उनकी नुसरत करेंगे_,"*

*★_ मुआहिदा अक़वाम के बाहमी ताल्लुका़त, बाहमी खैरख्वाही, खैर अनदेशी और फायदा रसानी के होंगे, ज़रर और गुनाह के ना होंगे, जंग के दिनों में यहूद मुसलमानों के साथ मुसारिफ में शामिल रहेंगे, यहूदियों की दोस्त दार कौमों के हुक़ूक़ यहूदियों के बराबर समझे जाएंगे, कोई शख्स अपने मुआहिद के साथ मुखालिफाना कार्यवाही ना करेगा, मज़लूम की मदद व नुसरत की जाएगी, मदीना के अंदर कुश्त व खून करना इस मुआहिदे करने वाली सब क़ौमों पर हराम है, ज़ंहारी भी मुआहिद कौमों जैसे समझे जाएंगे, इस मुआहिदे की क़ौमो के अंदर अगर कोई ऐसी नई बात या झगड़ा पैदा हो जाए जिसमें फसाद का खौफ हो तो इसका फैसला अल्लाह और मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताल्लिक़ समझा जाएगा _,"*

*★_ इस मुआहिदे पर मदीने की तमाम आबाद क़ौमो के दस्तखत हो गए, इसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने चाहा आस पास के क़बीलों को भी इसी मुआहिदे में शामिल कर दिया जाए, इससे दो फायदे होंगे:-*
*(१)_ जो खाना जंगी क़बाइलों के दरमियान हमेशा जारी रहती है और ख़ल्के़ इलाही के खून से अल्लाह की ज़मीन रंगीन रहती है उसका इंसदाद ( रुकावट) हो जाएगा,*
*(२)_ कुरेशे मक्का उन लोगों को जिनसे मुआहिदा हो जाएगा मुसलमानों के खिलाफ बहकाने व उकसाने का काम ना कर सकेंगे,* 

*★_ इस मुबारक और अमन बख्श इरादे से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हिजरत के पहले साल ही मक्का और मदीना के दरमियानी क़बाइल का सफर फरमाया और क़बीना बनी हमज़ा बिन बकर बिन अब्द मुनाफ को इस मुआहिदे में शरीक कर लिया, कोहे बवात के लोगों को शरीक़े मुआहिदा किया, फिर बनु मुद्लज से मुआहिदा तय करके मदीना तशरीफ लाए, इस मुबारक इरादे की तकमील के लिए अगर काफी वक़्त मिल जाता तो दुनिया पर आशकार ( जाहिर) हो जाता कि रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम दुनिया में तलवार चलाने को नहीं बल्कि सुलह फैलाने और अमन क़ायम करने के लिए आए हैं_,"*
[12/3, 8:12 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरेश ने मदीना पहुंचकर मुसलमानों पर हमला करने का इरादा किया:- कुरेश ए मक्का को ईमान वालों और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ ऐसी दुश्मनी थी कि उनके वतन को छोड़कर 300 मील दूर जाने के बाद भी उनको चैन ना आया, पहले भी जब मुसलमान हबशा जा रहे थे, उस वक़्त कुरेश ने हबशा पहुंचकर उनके गिरफ्तार कर लाने की कोशिश की थी मगर वह मुल्क एक बादशाह के मातहत था और समंदर के दरमियान में हाइल था इसलिए वहां कुछ और ज़्यादा कार्यवाही ना कर सके, अब जो मुसलमान मदीना जा रहे तो सबने मदीना पर हमला आवर होने का इरादा कर लिया, कुरेशे मक्का ने पहले तो अब्दुल्लाह बिन उबई और उसके रफ़क़ा ( दोस्तों) को जो औस व खज़रज में से बुत परस्त थे खत लिख भेजा_,"* 

*★_ लिखा:- तुमने हमारे शख्स को अपने यहां ठहरा लिया है, अब लाज़िम है कि तुम उससे लड़ो या वहां से निकाल दो वरना हमने क़सम खाई है कि हम सब एकबारगी तुम पर हमला कर देंगे, तुम्हारे जवानों को मार देंगे और तुम्हारी औरतों पर कब्ज़ा कर लेंगे_," इस खत के आने पर इब्ने उबई और उसके रफ़क़ा ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से जंग करने का इरादा किया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को भी इसकी इत्तेला मिल गई, आपने इस हमला करने वाले मजमे में खुद जाकर गुफ्तगू फरमाई_,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- क़ुरेश ने तुमसे ऐसी चाल खेली है कि अगर तुम उनकी धमकी में आ गए तो तुम्हारा नुक़सान बहुत ज़्यादा होगा बनिस्बत इसके कि तुम उनकी बात से इंकार कर दोगे क्योंकि अगर तुम मुसलमानों से लड़ोगे तो अपने ही भाइयों और फरज़ंदों को (जो मुसलमान हो चुके हैं) क़त्ल करोगे, अगर तुम्हें कुरेश से लड़ना पड़ा तो वह गैरों का मुक़ाबला होगा_,"_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की यह तक़रीर उनके ऐसी दिलनशीन हुई कि तमाम मजमा मुंतशिर हो गया _,"*
*( सुनन अबी दाऊद- 3004)*

*★_ इसके बाद कुरेशे मक्का ने अंदर ही अंदर मदीना के यहूदियों से साजिश करनी शुरू कर दी और जब खुफिया तौर पर उनको अपने साथ मिला चुके तब अपनी कामयाबी का पूरा भरोसा करके मुसलमानों को कहला भेजा- तुम मगरूर ना हो जाना कि मक्का से साफ बचकर निकल आए, हम यसरब पहुंच कर तुम्हारा सत्यानाश कर देते हैं_," इस पैगाम के बाद उन्होंने छेड़छाड़ भी शुरू कर दी,*
[12/4, 8:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रबीउल अव्वल 2 हिजरी का ज़िक्र है कि सरदाराने कुरेश में से एक शख्स कुर्ज बिन जाबिर यसरब पहुंचा और मदीने वालों के मवेशी जो बाहर मैदान में चर रहे थे, लूटकर ले गया और साफ निकल गया, गोया मदीना वालों को अपनी ताक़त दिखला गया कि हम 300 मील का धावा करके तुम्हारे मवेशी तुम्हारे घरों से ले जा सकते हैं _,*

*★_ फिर माहे रमजान 2 हिजरी का ज़िक्र है कि अबुजहल ने मक्का में मशहूर कर दिया कि हमारा का़फिला जो ज़र व माल से मालामाल है और शाम से आ रहा है, मुसलमान उसे लूटेंगे, इस शोहरत से उसका मक़सद यह था कि वह सब लोग जिनका माल तिजारत में लगा हुआ है और वह सब लोग जिनके अक़रबा काफ़िले में हैं और वह सब लोग जो मुसलमानों में नफरत रखते हैं बिला इत्तेफाक मुसलमानों के खिलाफ जंग के लिए आमादा हो जाएं, चुनांचे ऐसा ही हुआ _,"*

*★_ एक हज़ार जांबाज बहादुरों की खूंखार फौज को लेकर (जिनकी सवारी में 700 ऊंट और 300 घोड़े थे) अबू जहल मक्का से निकला, जिस का़फिले की हिफाज़त का बहाना करके यह फौजी मजमा रवाना हुआ था वह मक्का में बा खैरियत पहुंच गया मगर अबुजहल इस फौज को लिए हुए बराबर मदीना की जानिब बढ़ता गया, अब मुसलमानों को कुछ भी शक ना रहा कि यह कुरेश की चढ़ाई गरीब मुसलमानों पर है ।*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इस मामले में सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से मशवरा फरमाया, मुहाजिरीन ने क़ाबिले इत्मीनान जवाब दिया, फिर मशवरा फरमाया, मुहाजिरीन ने क़ाबिले इत्मीनान जवाब दिया, फिर मशवरा फरमाया, अब अंसार समझे कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हमारे जवाब के मुंतजिर हैं,*
[12/5, 10:23 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत सा'द बिन माज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:- शायद हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने यह समझा कि अंसार अपने शहर से बाहर निकलकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इआनत करना अपना फ़र्ज़ नहीं समझते हैं, अंसार की तरफ से मैं यह अर्ज़ करता हूं कि हम तो हर हालत में हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ हैं, किसी से मुआहिदा फरमाएं, किसी के मुआहिदे को नामंजूर कीजिए, हमारे ज़र व माल से जिस क़दर मंशा मुबारक हो लीजिए, हमको जो मर्ज़ी मुबारक हो अता कीजिए, माल का जो हिस्सा हमसे हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ले लेंगे हमें वह ज़्यादा पसंद होगा उस माल से जो हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हमारे पास छोड़ देंगे, हमको जो हुक्म हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम देंगे हम उसकी तामील करेंगे, अगर हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम इमरान के चश्मे तक चलेंगे तो हम साथ होंगे, अगर हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हमको समंदर में घुस जाने का हुक्म देंगे तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ वहां भी चलेंगे_,"* 

*★_ हजरत मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! हम वह नहीं कि क़ौमे मूसा अलैहिस्सलाम की तरह "जा, तू और तेरा रब दोनों लड़ो, हम तो यहां ठहरे हुए हैं_,"( सूरह माईदा- 24) कह दें, हम तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दाएं बाएं, आगे पीछे क़िताल के लिए हाज़िर हैं_," ( बुखारी- 3952, ज़ादुल मा'द-3/173)*

*★_ मुसलमान पहले कुछ तैयार ना थे, अंसार व मुहाजिरीन मिलाकर 313 ऐसे निकले जो मैदान में जा सकें, अब तक मुसलमानों को जंग की इजाज़त ना थी बल्कि इस्लाम को जंग से कोई वास्ता ही नहीं, लफ़्ज़े इस्लाम का माद्दा सलमा है, जिसके माने सुलह और आजिज़ी तवाजो़ के हैं, जो मजहब दुनिया के लिए सुलह का पैगाम लेकर आया हो, जिस मज़हब के मानने वाले ईमान वालों को मुतावाज़े रहने का हुक्म हो, वह क्यों ज़ंग करते ?*

*★_ यही वजह थी कि उन्होंने चुपचाप घरों को, अपने मालों को मक्का में छोड़ दिया और हबशा या मदीना चले गए थे लेकिन अब ऐसी सूरत आ पड़ी कि जंग के सिवा चारा ही ना रह गया, अगर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते तो नतीजा यह होता के बकरियों की तरह ज़िबह हो जाते और सबसे बड़ा नुक़सान यह था कि तौहीद की मुनादी करने वाला दुनिया पर कोई ना रह जाता, इसी ज़रूरत की वजह से खुदा ए बुजुर्ग व बरतर ने मुसलमानों की हालत पर रहम फरमा कर उनको भी 14 साल तक सब्र करने और जु़ल्मों सितम बर्दाश्त करते रहने के बाद हमलावर दुश्मनों की मुदाफ'त का हुक्म दे दिया_,"*
[12/6, 6:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रमज़ान 2 हिजरी को अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने साथ अपने साथ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को लेकर मदीना से चले, इस लश्कर के साजो़ सामान का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तमाम लश्कर में सिर्फ 2 घोड़े और 60 ऊंट थे, यह अजीब इत्तेफाक देखो कि अहले बदर की तादाद भी लश्कर ए तालूत के बराबर थी जबकि वो जालूत के मुक़ाबले को निकला था,* 

*★_ जब बदर पहुंचे तो देखा कि दुश्मन का लश्कर जो तादाद में उनसे तीन गुना और सामान में हज़ार गुना ज़्यादा है, उतरा हुआ है, जंग से एक रोज़ पहले नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मुलाहिजा़ किया और बतलाया कि कल इंशा अल्लाह फलां दुश्मन इस जगह और फलां फलां इस जगह क़त्ल होंगे_,"*

*★_ 17 रमज़ान को बरोज़ जुमा जंग हुई, जंग से पहले नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने निहायत गिड़गिड़ा कर अल्लाह के हुजूर दुआ की और यह भी अर्ज की कि अगर यह सहाबा किराम मारे गए तो दुनिया पर तोहीद की मुनादी करने वाला कोई भी ना रह जाएगा, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने भी दुआएं की, नुसरत ए इलाही से मक्का वालों को शिकस्त हुई, उनके 70 मशहूर आदमी असीर और 70 बहादुर मारे गए, अबु जहल भी उसी जगह मारा गया, यही सबको चढ़ा कर लाया था, वह 14 सरदार जो दारुल नदवा में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल के मशवरे में शरीक़ हुए थे, उनमें से भी 11 मारे गए, तीन जो बचे रहे थे, वह बिल आखिर ईमान ले आए,* 

*★_ उस ज़माने का कानून ए जंग, मजलूम सहाबा का जोश ए इंतक़ाम, दीगर क़बाइल पर जंगी रौब क़ायम करने की ज़रूरत इस अम्र की मुक़तजा़ थी कि कैदियों का क़त्ल कर दिया जाता, मगर रब रहीम के नबी रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने तावान ले कर सबको छोड़ दिया, पढ़े-लिखे असीरों का तावान आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने यह मुकर्रर फरमाया था कि वह अंसार के बच्चों को लिखना पढ़ना सिखा दें,*
[12/7, 8:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरेश की तीसरी साज़िश और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल की तैयारी:-*
*"_ जंग-ए-बदर से चंद रोज बाद का ज़िक्र है कि सफ़वान बिन उमैया (जिसका बाप बदर में क़त्ल हुआ था) और उमैर बिन वहब (जिसका बेटा मुसलमानों के हाथ में असीर था) मक्का से बाहर सुनसान जगह में जमा हुए और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के खिलाफ बातें करने लगे,*

*★_ उमैर बोला :- अगर मुझ पर क़र्ज़ ना होता जिसे मैं अदा नहीं कर सकता और मुझे अपने कुनबे के बेकस रह जाने का ख्याल ना होता तो मैं खुद मदीना जाता और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को क़त्ल ही करके आता,*
*"_सफवान बोला - तेरा क़र्ज़ मै चुका दूंगा और तेरे कुनबे का खर्च जब तक मैं जिंदा रहूंगा मेरे जिम्मे होगा, उमैर बोला -बेहतर है,, यह राज़ किसी पर ना खुले, फिर उमैर ने अपनी तलवार की धार को तेज कराया और ज़हर में उसे बुझवाया और मक्का से रवाना हो गया,*

*★_ उमैर मदीना पहुंचकर मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने अपना उठा रहा था फुटबॉल पड़ा हजरत उमर फारूक रजि अल्लाह वालों ने उसे देखा और पहचाना और दिल में समझ गए कि यह जरूर किसी फसाद के इरादे से आया है इसलिए आगे बढ़कर नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से अर्ज़ की कि उमैर बिन वहब मुसलह चला आ रहा है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- उसे मेरे पास आने दो, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसकी तलवार पर कब्ज़ा कर लिया और उसकी गर्दन पकड़कर नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के सामने ले गए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने यह देखा तो फरमाया- उमर इसे छोड़ दो, उमैर तूम मेरे पास आ जाओ, उमैर ने आगे बढ़कर सलाम किया,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पूछा- कहो किस तरह आए हो ? कहा-अपने बेटे की खबर लेने आया हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पूछा- यह तलवार कैसी है? उमैर बोला- यह क्या तलवार है और हमारी तलवारों ने आपका पहले भी क्या कर लिया है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम सच सच बतलाओ, उमैर ने उसी जवाब को दोहराया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- देख तू और सफवान सुनसान पहाड़ में गए थे, सफवान ने तेरा क़र्ज़ और तेरे कुनबे का खर्च अपने ऊपर ले लिया है और तूने मेरे क़त्ल का वादा किया और इसी इरादे से तू यहां आया है, उमैर तू यह ना समझा कि मेरा मुहाफिज़ अल्लाह है_,"*
[12/8, 7:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_उमैर यह सुनकर हैरान हो गया, बोला- अब मेरा दिल मान गया कि आप ज़रूर अल्लाह के नबी और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हैं, यह बिल्कुल आसान था कि आप की खबरों और वही की बाबत हम आपको झुठलाते रहे लेकिन अब मैं उस राज़ की बाबत क्या कह सकता हूं जिसकी खबर मेरे और सफवान के सिवा तीसरे को नहीं, अल्लाह का शुक्र है जिसने मेरे इस्लाम का यह बहाना बना दिया _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सहाबा से फरमाया- अपने भाई को दीन से खिलाओ, क़ुरान याद कराओ और इसके फरज़ंद को आज़ाद कर दो, उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:- ऐ रसूले रहमत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मुझे इजाज़त दीजिए कि मैं मक्का ही वापस जाऊं और उन लोगों को इस्लाम की दावत दूं_,"*

*★_ उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु के मदीना जाने के बाद सफवान का यह हाल था कि सरदाराने कु़रेश से कहा करता था कि देखो चंद रोज़ में क्या गुल खिलने वाला है, तुम बदर का सदमा भूल जाओगे, जब सफवान को खबर लगी कि उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए तो उसे सख्त सदमा हुआ और उसने क़सम खाई कि जब तक ज़िंदा रहूंगा उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु से बात ना करूंगा, ना उसे कोई फायदा पहुंचने दूंगा_,*

*★_ 8 हिजरी के बाद यह सफवान खुद भी जो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का सख्त दुश्मन था और मक्का का मशहूर सरदार था मुसलमान हो गया था, (तिबरी- 2/310 )*
*"_उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में आए, वह इस्लाम की मुनादी करते थे और अक्सर लोग उनके हाथ पर ईमान ले आए थे_,*
[12/9, 8:09 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बदर में शिकस्त पाने के बाद अबू सुफियान ने नहाने धोने से क़सम खा ली थी, जब तक बदर की शिकस्त का बदला ना लिया जाए, चुनांचे 200 सवारों को लेकर मक्का से निकला, जब मदीना के क़रीब पहुंचा तो सवारों के दस्ते को बाहर छोड़कर खुद तरीकी शब में मदीने के अंदर आया, सलाम बिन मुश्किम यहूदी से मिला, रात भर शराब नोशी होती रही, गालिबन दोनों के मशवरे से यह तय हुआ कि मुक़ाबले का वक़्त नहीं इसलिए अबु सुफियान आखिर शब वहां से निकला, सहाबा के फलदार दरख़्तों, खजूरों को आग लगाकर, एक सहाबी और उनके साथी को क़त्ल करके वापस चला आया,*

*★_ खबर मिलने के बाद "कु़रकु़रातुल क़दर" तक पीछा हुआ, इसलिए इसका नाम "गज़वा क़ुरकुरतुल क़दर" कहा जाता है, अबु सुफियान का फौजी दस्ता सत्तू की थैलियां गिराता गया था जिसे सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उठा लिया था, इसलिए इसका नाम "गज़वातुल सुवेक़" भी हुआ _,"*

*★_ कुरेश का चौथा हमला या जंगे उहद (6 शववाल यौमुल सब्त यानी जुम्मे का दिन, 3 हिजरी):-* 
*"_कुरेशे मक्का अगले ही साल फिर मदीना पर हमलावर हुए, इस दफा उन्होंने मुल्क में से आम चंदा जमा किया था, अबु उज्जा़ शायर ने तमामा में गश्त लगाकर बनु कनाना को कुरेश की मदद पर आमादा कर लिया था, तिजारते शाम का 50 हज़ार मिशक़ाल सोना, 1 हज़ार ऊंट जो अभी तक़सीम ना हुए थे, चंदे में शामिल कर दिए गए थे, अलगर्ज़ 5 हज़ार बहादुरों का लश्कर जिसमें 3 हज़ार ऊंट सवार, 200 घुड़सवार और 700 ज़िरापोश प्यादा थे, मदीना तक बड़ा चला आया _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की राय थी कि मदीना के अंदर रहकर मुक़ाबला किया जाए, मगर कसरते राय पर फैसला हुआ और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उहद के सुर्ख पहाड़ तक जो मदीना से 3 कोस पर होगा बाहर निकलकर मुक़ाबला किया,*
[12/10, 7:13 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_इस्लामी लश्कर में एक हजा़र मर्द थे, ऐन वक्त पर उबई बिन सलूल ने दगा दिया और अपने तीन सौ साथियों को रास्ते ही में फैर कर ले गया इसलिए सात सौ मुसलमानों पर पांच हज़ार हमलावर की मुदाफ'त का ( जो इंतक़ाम और गुस्से के जोश में भरे हुए थे) बार था, मुसलमानों ने इब्तदा में दुश्मन को शिकस्त दे दी थी और उनके 12 मशहूर और अलमबरदार (जिनमें 8 अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथों से मक़तूल हुए थे) मारे जा चुके थे लेकिन तीरंदाजों ने उस दर्रे को छोड़ दिया जहां उन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनको क़ायम फरमा दिया था, चालाक दुश्मन ने मौका ताड़ लिया और चक्कर काटकर उक़ब से होकर मुसलमानों को दो तरफ से बीच में ले लिया, मुसलमानों का उस वक़्त सख्त नुक़सान हुआ और लश्कर का बड़ा हिस्सा तितर-बितर हो गया,* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास सिर्फ 12 सहाबी अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु, अली रज़ियल्लाहु अन्हु, अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु, सा'द बिन वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु, तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु, जुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु, अबु उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु वगैरा थे, दुश्मन ने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर पत्थर फेंके, इब्ने की़मिया के पत्थर से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की पेशानी, इब्ने शुहाब के पत्थर से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का बाजू़ ज़ख्मी हुआ, उतबा के पत्थर से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के चार दांत टूट गए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फिर एक गार में गिर गए, खबर उड़ गई कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम शहीद हो गए,* 

*★_ मदीना से मोहतरम खवातीन दौड़ी दौड़ी आईं, यहां आकर फातिमा बतूल रज़ियल्लाहु अन्हा ने बाप के ज़ख्मों को धोया, पेशानी का खून न थमता था उसमें चटाई जलाकर भरी, अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त ढाल में पानी भरकर लाते रहे, आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा और उम्मे सुलेम रज़ियल्लाहु अन्हा ने मशकीज़े उठाए और ज़ख्मियों को पानी ला ला कर पिलाती थीं, मैदान-ए-जंग में सत्तर सहाबा शहीद हुए थे, जंग के नुक़सानात में से बड़ा भारी नुक़सान यह था कि मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु जो मदीना में बतौर मुअल्लिम ए इस्लाम आए थे और जिनके वाज़ से औस व खज़रज के क़बीले ईमान लाए थे शहीद हुए,*

*★_ इसी जंग में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के चाचा हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु (असदुल्लाह व रसूलुहु) भी शहीद हुए, दुश्मन में उनके आ'ज़ा काटकर उनकी लाश को भी बेहुरमत किया था, जंग के बाद सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा मादर ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु अपने भाई हमज़ा की लाश देखने आई, जु़बैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने मां को दूर ही से रोका, सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा- मुझे मालूम है कि मेरे भाई की लाश बिगाड़ दी गई और बेहुरमत की गई है लेकिन यह तो हमारे लिए फख्र का मुका़म है, बेटा ! मैं ना रोऊंगी ना चिल्लाउंगी, सिर्फ दुआ पढ़कर वापस लौट जाउंगी _,"*
[12/11, 7:16 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इसी जंग में अनस बिन नज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने जामे शहादत पिया था, इस बहादुर ने चंद बहादुर सहाबा को देखा कि हथियार फैंक दिए हैं और मगमूम बैठे हैं, पूछा क्या हाल है? उन्होंने जवाब दिया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतकाल हो गया, अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने निहायत जोश से कहा- आओ जहां रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जान दी है हम भी उसी काम में अपनी ज़िंदगी का खात्मा कर दें, अब जिंदा रह कर क्या करेंगे, यह जान निसार उसी जोश में सत्तर ज़ख्म जिस्म पर खाने के बाद शहीद हो गए_," (बुखारी 2805, 4048, 4783)*

*★_ इसी जंग में सा'द बिन रबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हुए थे, जंग खत्म हो जाने के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनकी तलाश में आदमी भेजें, एक ने देखा कि ज़ख्मियों में पड़े सांस तोड़ रहे हैं, पूछा क्या हाल है? सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- तुम मुझे अभी मुर्दा ही समझो, लेकिन मेहरबानी से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में मेरा सलाम अर्ज़ कर देना और मेरी तरफ से यह भी गुज़ारिश करना कि अल्लाह ताला आपको वह बेहतरीन जज़ा अता फरमाए जो किसी नबी को किसी उम्मत की हिदायत पर ना दी गई हो _,"*

*"_कौ़म को मेरी तरफ से यह कह देना कि जब तक एक झपकी वाली आंख भी तुममे से बाक़ी रहे उस वक़्त तक अगर दुश्मन नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तक पहुंच गया तो अल्लाह के हुजूर में तुम कोई उज्र पेश ना कर सकोगे_," (हाकिम-2/624, तबका़त इब्ने सा'द -3/78)*

*★_ एक सहाबी का बयान है कि मैं अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु से मिलने गया, उनकी छाती पर एक छोटी सी लड़की बैठी थी, जिसे वह बार-बार चूमते और प्यार करते थे, मैंने पूछा यह कौन है? फ़रमाया- यह सा'द बिन रबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु की लड़की है, वह मुझ से भी बरतर था और क़यामत के दिन वह नक़ीबान ए मुहम्मदी (सवारी के आगे आगे चलने वालों) में शुमार किया जाएगा_," (ज़ादुल मा'द-)*
[12/11, 7:27 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इसी जंग में अम्मार बिन ज़ियाद रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हुए थे, जिन्होंने जान देते हुए अपने रुखसार नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के तलवों से लगा दिए थे_," (कंजुल उम्माल-1359)* 

*★_ अबू दुजाना रज़ियल्लाहु अन्हु, हंजला (गुस्ल ए मलाइका) रज़ियल्लाहु अन्हु, तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु, अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु की बेनज़ीर शुज़ा'अत कमाले इस्तका़मत और जान निसारी के भी निहायत शानदार वाक़िआत इसी जंग में पेश आए, तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने हाथ से ढाल का काम लिया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की जानिब आने वाले तीर हाथ पर रोके, यह हाथ हमेशा के लिए सुन (बेजान) हो गया था_," (तारीख तिबरी- 2/187)*

*★_ बनू दीनार की एक औरत थी, जिसका बाप भाई और शौहर इसी जंग में शहीद हुए थे, वह कहती थी कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बाबत बतलाओ, लोगों ने कहा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह ताला के फज़ल से सही व सालिम हैं, कहा- मुझे दिखलाओ, जब दूर से चेहरा मुबारक देख लिया तो बे अख्त्यार कह उठी- अब हर एक मुसीबत की बर्दाश्त हो सकती है _,"*

*★_ इसी जंग में बाज़ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से (जबकि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को भी कई ज़ख़्म आए थे) अर्ज़ किया- काश आप उन मुशरिकीन पर बद्दुआ फरमाएं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया- मै लानत करने के लिए नहीं बनाया गया हूं, मुझे तो अल्लाह की तरफ बुलाने वाला और सरापा रहमत बनाया गया है, ऐ अल्लाह मेरी कौ़म को हिदायत फरमा क्योंकि वह मुझे नहीं जानते _,"*
[12/12, 8:56 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरेश की चौथी साजिश:- जंगे उहद के बाद दुश्मनों ने सहाबा को नुक़सान पहुंचाने और पामाल करने की मुख्तलिफ तदबीरों पर अमल किया, चुनांचे 4 हिजरी में कुरेश ने क़ौमे अज़ल और क़ारह के सात शख्सों को गांठकर मदीना में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास भेजा कि हमारे क़बीले इस्लाम लाने को तैयार हैं, हमारे साथ मुअल्लिम कर दीजिए_,* 

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने दस बुज़ुर्ग सहाबा को जिनके सरदार आसिम बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु थे (यह हजरत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के नाना थे) उनके साथ कर दिया, जब यह सहाबा उनकी जद में पहुंच गए तो उनके दौ सौ जवान आए कि इन्हें ज़िंदा गिरफ्तार कर लें, आठ सहाबा मुक़ाबला करते हुए शहीद हो गए और दो बुजुर्गवार हजरात खुबेब बिन अदी और ज़ैद बिन दसना रज़ियल्लाहु अन्हुम गिरफ्तार कर लिए गए,* 

*★"_सुफियान हज़ली इन्हें मक्का ले गया और कुरेश के पास फरोख्त कर दिया, क़ुरेश ने इन्हें हारिस बिन आमिर के घर में चंद रोज़ भूखा प्यासा रखा, एक दिन हारिस का बच्चा तेज छुरी से खेलता हुआ खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पहुंच गया, उन्होंने बच्चे को जा़नू पर बिठाया और छुरी लेकर रख दी, जब बच्चे की मां ने यकायक देखा कि उसका बच्चा छुरी लेकर कै़दी के पास है जिसे चंद रोज़ से उन्होंने बे आब व बेदाना रखा था, तो उसने बे अख़्तियार चीख मारी,*

*★_ खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा है कि यह समझती है कि मैं बच्चे को क़त्ल कर दूंगा, यह नहीं जानती कि मुसलमान का काम ग़दर करना नहीं, ज़ालिम कुरेश वालों ने चंद रोज़ के बाद खुबैब रज़ियल्लाहु अन्हु को सलीब के नीचे ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा अगर इस्लाम छोड़ दो तो तुम्हारी जान बख्शी हो सकती है, दोनों बुजुर्गवारों ने जवाब दिया कि जब इस्लाम बाक़ी ना रहा तो जान को रख कर क्या करेंगे _,"*
[12/12, 10:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब कुरैश ने पूछा कि कोई तमन्ना हो तो बयान करो, खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- 2 रकात नमाज़ पढ़ लेने की मोहलत दी जाए, मोहलत दी गई, उन्होंने नमाज़ अदा की, हजरत खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- मैं नमाज़ में ज़्यादा वक़्त सर्फ करता लेकिन सोचा कि दुश्मन यह ना कहे की मौत से डर गया है, बेरहमों ने दोनों को सलीब पर लटका दिया और नेज़े की अनी से उनके जिस्म की एक एक हिस्से पर चीरे लगाए_,"*
*"_अल्लाहु अकबर ! उनका दिल इस्लाम पर कितना क़ायम था, उनको दीने हक़ पर कितनी इस्तक़ामत थी, उनको हमेशा की निजा़त और अल्लाह की खुशनूदी का कितना यक़ीन था कि उन तमाम तकलीफों और अज़ियतों को बर्दाश्त करते हुए ज़रा उफ तक नहीं की _,* 

*★_ एक सख्त दिल ने हजरत खुबेब के जिगर को छेदा और पूछा- कहो अब तो तुम भी पसंद करते होंगे कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फंस जाएं और मैं छूट जाऊं ? खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु ने निहायत जोश से जवाब दिया- अल्लाह जानता है कि मैं तो यह भी पसंद नहीं करता कि मेरी जान बच जाने के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पांव में कांटा भी लगे _," ( तिबरी व इब्ने हिशाम- 2/123)*

*★_ अल्लाह के उस बरगुज़ीदा बंदे ने उन का़तिलों और तमाशाइयों के हुजूम में सलीब के नीचे खड़े होकर जो अश'आर कहे हैं, उनसे इस मंज़र की पूरी कैफियत और उस बुजुर्गवार की सदाक़त व मुहब्बते इस्लाम की पाकीज़ा सूरत बखूबी नज़र आती है _,"*

*★_ सबसे आखिर में यह दुआ की, ऐ अल्लाह हमने तेरे रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के अहकाम इन लोगों को पहुंचा दिए, अब तू अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को हमारे हाल की और इनकी करतूतों की खबर फरमा दे_,"* 
*"_ सा'द बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ( जो हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के उम्माल में से थे) उनका यह हाल था कि कभी कभी यकबारगी बेहोश हो जाया करते थे, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे वजह पूछी, वह बोले- मुझे ना कोई मर्ज़ है ना कोई शिकायत है, जब खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु को सलीब पर चढ़ाया गया तो मैं उस मजमें में मौजूद था, मुझे जिस वक़्त खुबेब रज़ियल्लाहु अन्हु की बातें याद आ जाती हैं, मैं कांप कर बेहोश हो जाता हूं _,"*

[12/13, 5:24 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक और साजिश और 70 मुबल्लिगीने इस्लाम की शहादत:- अबू बरा आमिर ने भी ऐसा ही फरेब किया, वह नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में आया और अर्ज़ किया कि मुल्क नजदी की तालीम व हिदायत के लिए कुछ मुनादी मेरे साथ भेज दीजिए, उसका भतीजा नजद का रईस था, आमिर ने यक़ीन दिलाया की मुनादी करने वालों की हिफाज़त की जाएगी,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मंज़र बिन अमरू अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु को 70 सहाबा के साथ जो क़ुरा व फुज़ला व मुंतखब बुजुर्गवार थे, उसके साथ कर दिया, जब वो बेरे म'ऊना पर जा पहुंचे जो बनी आमिर का इलाका़ था, वहां से हराम बिन मलहान को नामा नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम देकर तुफैल हाकिम के पास भेजा गया, उसने इस सफीर को क़त्ल कर दिया, जब्बार बिन सुलमा एक शख्स था, जिसने हाकिम के इशारे से उनकी पुश्त में नेजा़ मारा था जो छाती से साफ निकल गया, उन्होंने गिरते हुए कहा- क़सम है काबा के रब की, मैं अपनी मुराद को पहुंच गया_," ( बुखारी- 4042, 4091)* 

*★_ क़ातिल पर इस फिक़रे ने ऐसा असर किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर ईमान ले आया, हाकिम ने बाक़ी सब को भी क़त्ल करा दिया, का'ब इब्ने ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो छुपकर बच रहे थे, इस वाक़िए की खबर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को पहुंचाई_,"*
[12/16, 11:54 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुरेशी मक्का का पांचवा हमला, अहद शिकनी और फतेह मक्का_,* 
*"_इसी साल (8 हिजरी) मुसलमानों को इज़्तराबन माहे रमज़ान में मक्का पर फ़ौजकशी करनी पड़ी, वजह यह हुई कि 6 हिजरी में जो वायदा कुरेश ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से हुदेबिया के मुक़ाम पर किया था ( जिसे सुलह हुदेबिया के नाम से जाना जाता है) उसकी एक शर्त में यह भी था कि 10 साल तक जंग ना होगी,, इस शर्त में जो क़ौमें नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की जानिब मिलना चाहें वह उधर मिल जाएं और जो क़ौमे कु़रेश की तरफ मिलना चाहें वह उधर मिल जाएं_,"* 

*★_ इसके मुआफिक़ बनी खुजा़ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ और बनू बकर कुरेश की तरफ मिल गए थे, मुआहिदे को अभी दो बरस भी पूरे ना हुए थे कि बनू बकर ने बनू खुज़ा पर हमला किया और क़ुरेश ने भी बनू बकर को असलहा से इमदाद दी, इकरमा बिन अबु जहल, सुहेल बिन अमरू (मुआहिदे पर इसी के ने दस्तखत किए थे) सफवान बिन उमैया (मशहूर सरदाराने कुरैश) ने खुद भी नका़बपोश होकर मय अपने हवाली व मवाली के बनू खुज़ा पर हमलावर हुए _," ( तारीख तिबरी- 2/ 296 )*

*★_ उन बेचारों ने अमान भी मांगी, भागकर खाना काबा में पनाह भी ली, मगर उनको हर जगह पर बे-दरेग ता तेग किया गया, मज़लूम जब "अपने रब के वास्ते, अपने रब के वास्ते" कहकर रहम की दरखास्त करते थे तो यह जालिम उनके जवाब में कहते थे "आज रब कोई चीज़ नहीं_," (सीरत इब्ने हिशाम 3/395)* 

*★_ मजलूम के बचे खुचे 40 आदमी जिन्होंने भागकर अपनी जान बचाई थी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पहुंचे और अपनी मज़लूमी व बर्बादी की दास्तान सुनाई,* 
*"_मुआहिदे की पाबंदी, फरीक़ मजलूम की दावरी (इंसाफ), दोस्तदार क़बाइल की आइंदा हिफाज़त की गरज़ से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का की जानिब सवार हो गए, 10 हज़ार की जमीयत हम रकाब थी _," (सही बुखारी 1744/ 4276)*
[12/17, 7:17 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अभी दो मंज़िल चले थे कि राह में अबू सुफियान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब और अब्दुल्लाह बिन अबु उमैया आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मुलाक़ात को आए, यह वह लोग थे जिन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को सख्त से सख्त ईजा़एं दी थी और इस्लाम को मिटाने में बड़ी-बड़ी कोशिशें की थीं_,"* 

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें देखा और अपना रुख फैर लिया, उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अबू सुफियान आपके हकी़की़ चाचा का बेटा है और अब्दुल्लाह हक़ीक़ी फूफी (आतीका) का लड़का है, इतने क़रीबी तो रहमत से मेहरूम ना रहने चाहिए_,"* 

*★_ इसके बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन दोनों को यह तरकीब बतलाई कि जिन अल्फ़ाज़ में ब्रादराने यूसुफ अलैहिस्सलाम (के भाइयों) ने माफी की दरख्वास्त की थी तुम भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में जाकर उन्हीं अल्फाज़ का इस्तेमाल करो, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के अफु व रहम से उम्मीद है कि ज़रूर कामयाब हो जाओगे, उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के हुज़ूर में हाज़िर होकर (सूरह यूसुफ- 91) यह आयत पढ़ी:-* 
*"_(तर्जुमा) खुदा की क़सम! खुदा ने तुमको हम पर फजी़लत बख्सी है और बेशक हम खताकार थे _,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:-* *"_(तर्जुमा) आज तुम पर नाराज़ ना होगा अल्लाह तुम्हें माफ कर देगा और वह मेहरबान बड़ा रहम करने वाला है _",*

*★_ उस वक्त अबू सुफियान ने अजब जोश व निशात से यह अश'आर पढ़ें :- क़सम है कि जिन दिनों मैं निशाने जंग इसलिए उठाया करता था की लात (बुत का नाम) का लश्कर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के लश्कर पर गालिब आ जाए, उस वक्त मैं उस खार पुश्त जैसा था जो अंधेरी रात में टक्करें खाता हो, अब वह वक्त आ गया कि मै हिदायत पाऊं और सीधे रास्ते पर हो जाऊं, मुझे हादी ने (ना कि मेरे नफ्स ने) हिदायत दी है और अल्लाह का रास्ता मुझे उस शख्स ने बताया है जिसको मैंने धुतकार दिया और छोड़ दिया था_,"*
*"_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- हां तुम तो मुझे छोड़ते ही रहे थे_,"*
*( ज़ादुल मा'द - 3/400 मुस्तदरक हाकिम- 3/43-44)*
[12/18, 7:39 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की ख्वाहिश थी कि अहले मक्का को इस आमद की खबर ना होने पाए, चुनांचे ऐसा ही हुआ कि जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का तक पहुंचकर बाहर खेमाज़न हो गए और अहले मक्का को बा-खबर करने के लिए लश्कर में अलाव रोशन करने का हुक्म दिया तब उनको खबर हुई, दूसरी सुबह नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हुक्म दिया कि फौज मुख्तलिफ रास्तों से शहर में दाखिल हो और इन अहकाम की पाबंदी करें :-*

*★_ जो शख्स हथियार फेंक दे उसे अमान दिया जाए, जो कोई शख्स खाना काबा के अंदर पहुंच जाए उसे अमान दिया जाए, जो कोई शख्स अपने घर के अंदर बैठा रहे उसे अमान दिया जाए, जो कोई शख्स अबू सुफियान के घर जा रहे उसे अमान दिया जाए, जो कोई शख्स हाकिम बिन हुजा़म के घर जा रहे उसे अमान दिया जाए, भाग जाने वाले का पीछा ना किया जाए, जख्मी को अमान दिया जाए, असीर को अमान दिया जाए _,"*

*★_ शहर में दाखिल होने वाले दस्तों में सिर्फ उस दस्ते का जो खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के मातहत था कुछ मुक़ाबला हुआ जिसमें अहले मक्का को भागना पड़ा, बाक़ी सब दस्ते बिना मजा़हमत शहर में दाखिल हो गए, मुकाबले में 2 सहाबा और 28 मुक़ाबिल काम आए_,"*

*★_ अल्लाह के बरगुज़ीदा रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जिस वक़्त (20 रमज़ान) शहर में दाखिल हुए उस वक़्त सर झुकाए कुरान ए मजीद (सूरह फतह) की तिलावत फरमा रहे थे और ऊंट की सवारी पर बैतुल्लाह को जा रहे थे और ऊंट पर अपने साथ अपने आज़ाद करदा गुलाम ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु के फर्जंद उसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को सवार किया हुआ था, वहां पहुंचकर पहले अल्लाह के घर को बुतों से पाक किया, उस वक्त बैतुल्लाह के इर्द-गिर्द 360 बुत रखे हुए थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कमान के गोशे (या छड़ी की नोक) से हर एक बुत को गिराते जाते थे और ज़ुबान मुबारक से यह पढ़ते जाते थे:-*
*{सूरह बनी इसराइल, आयत 81 तर्जुमा } हक़ आ पहुंचा और बातिल मिट गया और यक़ीनन बातिल ऐसी ही चीज़ है जो मिटने वाली है _,"*
*{सूरह सबा आयत- 49, तर्जुमा} हक़ आ चुका है और बातिल मे ना कुछ शुरू करने का दम है ना दोबारा करने का _,"*
[12/19, 11:12 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस काम से फारिग होकर उस्मान बिन अबी तलहा को तलब फरमाया, उनके खानदान में मुद्दत से काबे की कलीद बरदारी (चाबी की ज़िम्मेदारी) चली आती थी, इब्तदा ए अय्यामे नबूवत में एक दफा नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इसी उस्मान से फरमाया था कि बैतुल्लाह खोल दो, उसने इनकार किया था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया था- अच्छा तुम देख लेना कि एक दिन यह कलीद मेरे हाथ में होगी और मैं जिसे चाहूंगा उसे अता करूंगा_," उस्मान ने जवाब दिया था कि क्या उस रोज़ कुरेश के सभी मर्द ज़लील व तबाह हो जाएंगे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया था कि वह और भी ज़्यादा इज़्ज़त व इक़बाल से होंगे _,"*

*★_ अब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कलीद लेकर बैतुल्लाह का दरवाज़ा खोला, अंदर जाकर हर गोशे में अल्लाहु अकबर के तराने गाये और फिर नमाज़ ए शुकराने पढ़ते हुए निहायत आजिज़ी व निवाज़ से रब्बुल इज़्ज़त के सामने पेशानी को खाक पर रखकर सजदा किया, इस अरसे में मक्का के वो सब सरदार और सब बड़े बड़े लोग जमा हो गए थे जिन्होंने बीसीयों सहाबा का क़त्ल किया था या कराया था, सैकड़ों मुसलमानों को अज़ियत दे देकर घर बार से निकाला था, दीने इस्लाम को तबाह करने और मुसलमानों को बर्बाद करने के लिए हबशा, शाम, नजद, यमन तक के सफर किए थे, जिन्होंने बारहा मदीने पर हमला करके सहाबा को 300 मील पर चले जाने के बाद भी चैन से नहीं रहने दिया था यानी वह सब लोग जो मुसलमानों को फनां करने में ज़र से, माल से, ज़ोर से, तदबीर से हथियार से अपना सारा ज़ोर लगा चुके थे और इन्हीं नापाक कोशिशों में 21 साल तक बराबर मुनहमिक रहे थे,* 

*★_ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जिनको अल्लाह ने तमाम मखलूक़ के वास्ते रहमत बनाया जब इबादत से फारिग होकर बाहर रोनक़ अफरोज़ हुए तो हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ उस किया कि कलीदे बैतुल्लाह बनी हाशिम को अता फरमाई जाए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- आज का दिन तो सुलूक करने, पूरे अतियात देने का है _," फिर उस्मान को बुलाया, उसी को कलीद मरहमत फरमाई और इरशाद फरमाया कि जो कोई तुमसे यह कलीद छीनेगा वह जा़लिम होगा _,"*
[12/20, 7:54 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फतेह मक्का के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तकरीर मफतूहीन और दुश्मनों के सामने:-*
*"_ अब रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस गर्दन ज़दनी व कुश्तनी जमात की जानिब मुतवज्जह हुए और ज़बान मुबारक से फरमाया:- ऐ जमाते कुरेश ! अल्लाह ने तुम्हारी जाहिलाना नखूत (घमंड) और आबा व अजदाद पर इतराने का गुरूर आज तोड़ दिया है, (सच तो यह है) सब लोग आदम के फरज़ंद हैं और आदम अलैहिस्सलाम मिट्टी से बनाए गए थे, अल्लाह फरमाता है- लोगों हमने तुमको एक मर्द और औरत से पैदा किया है और गोत वे क़बीले सब पहचान के लिए बना दिए हैं और अल्लाह के यहां तो उसकी ज़्यादा इज़्ज़त है जिसमें तक़वा ज़्यादा है_," फिर फरमाया- "_जाओ तुम आज़ाद हो और तुम पर आज कोई मुवाखज़ा नहीं _,"*

*★_ इस्लाम लाने वालों से बैत और उसकी शरायत:-*
*"_ फिर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने कोहे सफा पर बैठकर मुसलमान होने वालों की बैत क़ुबूल फरमाई, इस मौक़े पर उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु एक एक शख्स को पेश करते थे, बैत करने वालों को मिंदरजा जे़ल बातों का इक़रार करना पड़ता था:-*
*(१)_ मैं अल्लाह के साथ किसी को भी उसकी ज़ात में, सिफात में और इस्तेहक़ाक़े इबादत व इस्तेहक़ाके़ इस्तेआनत में शरीक़ ना करूंगा,*
*(२)_ मैं चोरी ना करूंगा, ज़िना ना करूंगा, खूने नाहक़ ना करूंगा, लड़कियों को जान से ना मारूंगा, किसी पर बोहतान ना लगाउंगा,*
*(३)_ मैं उमूरे हक़ में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इता'त बाक़दरे इस्तेता'त करूंगा_,"*
*"_ तिबरी - 2/309 ,*

*★_ औरतों से मज़ीद इक़रार यह भी लिए जाते थे:- किसी के सोग में मुंह ना नोचेंगी, तमाचों से चेहरा ना पीटेंगी, ना सर के बाल खसोटेंगी, ना गिरेबान चाक करेंगी, ना सियाह कपड़े पहनेंगी और ना क़ब्र पर सोगवार बैठेंगी_,"* 

*★_ औरतों से बैत लेने का तरीक़ा यह था कि पानी के बासन में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपना हाथ डाल कर निकाल लेते, फिर बैत करने वाली इस बासन में अपना हाथ डालती, दूसरे मौक़े पर सिर्फ इक़रारे जु़बानी लेकर ही तकमीले बैत फरमाया करते,*
[12/21, 5:21 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फतेह से दूसरे दिन का ज़िक्र है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम काबा का तवाफ कर रहे थे, फुजा़ला बिन उमैर ने मौक़ा देखकर इरादा किया कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को क़त्ल कर डालें, जब वह इस इरादे से क़रीब पहुंचा तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- क्या फुज़ाला आता है ? वह बोला- हां, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - तुम अपने दिल में अभी क्या इरादा कर रहे थे ? फुजा़ला बोला- कुछ नहीं मैं तो अल्लाह अल्लाह कर रहा था_,"*
*"_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम यह सुनकर हंस पड़े और फरमाया - अच्छा तुम अपने रब से अपने लिए माफी की दरख्वास्त करो_," यह फरमाकर अपना हाथ भी उसके सीने पर रख दिया,* 

*★_ फुजा़ला रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हाथ रख देने से मुझे बहुत इत्मिनाने क़ल्ब हासिल हुआ और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मुहब्बत इस क़दर मेरे दिल में पैदा हो गई कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से बढ़कर कोई भी महबूब ना रहा, मैं यहां से घर को चला, रास्ते में मेरी माशूका़ मिली जिसके पास में बैठा करता था, उसने कहा- फुज़ाला एक बात सुनते जाओ, मैंने जवाब दिया- नहीं अल्लाह और इस्लाम ऐसी बातों से मना करते हैं _,"*
*(जा़दुल मा'द- 3/413, इब्ने हिशाम -2/417, सुनन अबी दाऊद- 2683 ,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की पाक सीरत का बयान ना मुकम्मल रह जाएगा अगर अफु तक़सीरात का जो मक्का में फरमाई गई ज़िक्र ना किया जाए, वाज़े हो कि मक्का में दाखिल होने से पहले तमाम फौज को हिदायत कर दी गई थी कि किसी शख्स पर हमला ना करें लेकिन चार मर्द, दो औरतें जो अपने साबका़ ज़राइम की वजह से वाजिबुल कसास थे एलान कर दिया गया कि उनको क़त्ल कर दिया जाए, इन 4 मर्दों में से सिर्फ अब्दुल्लाह इब्ने खुतल को क़त्ल किया गया, यह पहले मुसलमान हो चुका था, एक रोज़ उसने अपने गुलाम को इसलिए क़त्ल कर दिया कि वक़्त पर खाना तैयार नहीं किया था, क़त्ल के बाद मक्का भाग आया था, बाक़ी तीन इकरमा बिन अबी जहल, हिबार बिन असवद और अब्दुल्लाह बिन सा'द बिन अबी सराह को माफी दी गई,*
[12/22, 6:09 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इकरमा अबू जहल का बेटा था और बारहा मुसलमानों से जंग कर चुका था, अब हाल में भी बनु खुजां को जो मुसलमानों के हलीफ थे तबाह करने का बाइस यही था, हिबार बिन असवद ने सैयदना ज़ैनब बिन्ते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के जबकि वह मक्का से मदीना को हौदज में बैठी जा रही थी नेजा़ मारा और कजावा गिराया था, इस सदमे से उनका हमल साक़ित हो गया था और बिल आखिर इसी सदमे से उन्होंने वफात पाई थी,*
*"_अब्दुल्लाह बिन सा'द बिन अबी सराह कहने लगा कि वही तो मेरे पास आती है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तो मुझसे सुनकर लिखवा देते हैं,*
*"_ ऐसे मुजरिमीन पर रहम फरमाना नबी रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का ही काम है_,* 

*★_ दो औरतों में से एक औरत को जो क़त्ले उम्द का इर्तकाब कर चुकी थी सज़ा व कसास दी गई, माफी पाने वालों में हिंद ज़ौजा अबु सुफियान भी है, इस औरत ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के चाचा हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु का कलेजा सीने से निकाल कर दांतों से चबाया, उनकी नाक को काटकर धागे में पिरो कर गले का हार बनाया था_,* 

*★_ वहशी को भी माफी दी गई जिसने अमीर हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु (असदुल्लाह वा रसूलुहु) को धोखे से मारा था और फिर लाश को बेहुरमत किया था,* 
*"_गौर करने से मालूम होता है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के लश्कर ने मक्का फतह नहीं किया था बल्कि खल्के़ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और अफु व रहमे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अहले मक्का के दिलों को फतह कर लिया था _,"*

*★_ फतेह मक्का के बाद गनीमत के तौर पर क़ुरेश के माल व जिंस पर कब्ज़ा करने का तो क्या ज़िक्र है, मुहाजिरीन सहाबा जो मक्का ही से उजड़ कर गए थे उनके घरों पर क़ुरेश ने कब्ज़ा कर लिया था, आप उन मुसलमानों ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से अपनी जायदादों के वापस दिलाए जाने की दरख्वास्त की लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनकी इस दरख्वास्त को भी नामंजूर फरमा दिया _,"* *( ज़ादुल मा'द- 320 )*

*★_ गोया हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का मुद्द'आ यह था कि जिन चीज़ों को तुम अल्लाह के लिए छोड़ चुके हो अब उनकी वापसी का क्यों सवाल करते हो _,"*
[12/23, 2:08 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फतेह मक्का के नताइज, इस्लाम में बा कसरत दाखिल होने की वुजुहात :-*
*"_ फतेह मक्का के बाद (जो सुलह और माफी से हजार दर्जा बढ़कर है) इस्लाम लाने वालों की तादाद कसीर दर कसीर हो गई थी, इसके चंद असबाब है, बहुत से क़बाइल इस्लाम से इसलिए रूके हुए थे कि वह कुरेश के हम अहद थे और इस्लाम लाना बा-म़ज़िला अहद शिकनी के था, बहुत से क़बाइल इस्लाम से इसलिए रूके हुए थे कि वह क़ुरेश के मुक़ाबले में बहुत कमज़ोर थे, मगर उनके ताल्लुका़त और रिश्तेदारी कु़रेश के साथ वाबस्ता थी और उनका ख्याल था कि इस्लाम लाने से ताल्लुका़त भी मुंक़ता हो जाएंगे और यह लोग कु़रेश के गैज़ व गज़ब के शिकार बन जाएंगे _,"*

*★_ बहुत से क़बाइल की राय थी कि मुसलमानों का मक्का पर काबिज़ हो जाना ही उनकी सदाक़त का सही निशान और मक़बूल इला होने का हो सकता है क्योंकि सैकड़ों साल से क़ौमी रिवायात उनमें चली आती थी कि मक्का पर ऐसा कोई शख्स फतेह नहीं पा सकता जिसके साथ रब्बुल आलमीन की नुसरत व ताईद ना हो,*

*★_ मुख्तलिफ क़बाइल में बीसियों बूढ़े ऐसे मौजूद थे जिन्होंने फातेह यमन अबरहा हब्शी के 40 हज़ार लश्कर जरार को मक्का पर हमलावर होते हुए देखा था, उस लश्कर में हाथी भी थे और अबरहा की खास सवारी का हाथी महमूद नस्ल का था, उन बूढ़ों ने अपनी आंख से 60 बरस पहले उन हब्शियों को मक्का पर हमला करते हुए देखा और यह भी देखा कि अहले मक्का उनके डर से घर बार छोड़कर पहाड़ों की चोटियों पर जा रहे थे और शहर में एक भी शख्स हमलावर फौज का मुक़ाबला करने वाला ना रह गया था और उन्होंने यह भी देखा था कि अबरहा की फौज खसता व बर्बाद हुई और फौज का सरदार अबरहा बा-हाल तबाह व ख्वाब ऐसी हालत में भागा कि ना फौज साथ थी ना हाथी बल्कि सबकी लाशें मक्का से चार कोस पर पड़ी सड़ रही थी,*
[12/24, 11:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन बूढ़ों को अब तक अब्दे मुनाफ और अबरहा की गुफ्तगू व कलाम भी याद थी कि जब अबरहा का लश्कर मक्का की सरहद पर उतरा तो उन्होंने मक्का के मवेशी जो जंगल में चल रहे थे पकड़ लिए, उनमें अब्दे मुनाफ के सौ ऊंट थे, अब्दे मुनाफ हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के परदादा थे और उस वक्त मक्का के सरदार यही थे, खूब लंबे चौड़े सुर्ग व सफेद, शक्ल से अमारत व रौब बरसता था, यह खुद हब्शियों के लश्कर में गए और अबरहा को मिले, उस ने ताज़ीम दी और बराबर बिठाया और पूछा कि किस तरह तशरीफ लाए _,"*

*★_ अब्दे मुनाफ ने कहा:- हमारे मवेशी आप की फौज ने पकड़ लिए हैं, बराय मेहरबानी उनके छोड़ देने का हुक्म दीजिए_,"*
*"_ अबरहा बोला:- जब आप आए थे तो मेरे दिल में आपकी बड़ी वक़'अत पैदा हुई थी लेकिन आपकी बातें सुनकर अब वह वक़'अत क़ायम रही ना इज़्ज़त _,"* 
*"_अब्दे मुनाफ ने पूछा- यह क्यों ? अबरहा बोला:- देखो मैं इसलिए आया हूं कि तुम्हारे इस इबादत खाने को गिरा दूं जिसे तुम सबसे ज़्यादा मुक़द्दस समझते हो और जिसके सामने मेरे तामीर करदा कलीसा की वक़'अत व इज़्ज़त अरब की निगाह में अब तक कुछ नहीं हुई, तुम अपने इस मुक़द्दस मक़ाम के बचाव का ज़रा भी ज़िक्र नहीं करते और अपने मवेशियों को इससे ज़्यादा कीमती समझते हो _,"*

*★_ अब्दे मुनाफ ने कहा :- नहीं, मैं मवेशियों को इससे बढ़कर नहीं समझता, बात यह है कि मैं मवेशियों का मालिक हूं और मुझे उनकी फिक्र है और इस घर का मालिक एक और है और उसे अपने घर का खुद ही ख्याल होगा, मुझे इस फ़िक्र की जरूरत नहीं _,"*

*★_ अलगर्ज़ जब मक्का पर मुसलमानों को ऐसी कामयाबी और आसानी के साथ कब्ज़ा हुआ तो इस्लाम लाने वालों के सामने मुआहिदात की रोक उठ गई, कुरेश का दबाव और रौब भी जाता रहा और मुसलमानों का मक़बूल ए इला होना भी उन्होंने अपने मुकर्रर मैयार के मुवाफिक़ देख लिया और इन वुजुहात से इस्लाम लाने वालों की कसरत हो गई, सबसे आखरी और चौथी वजह यह है कि इस्लाम की हक़ीक़त को समझाने और इस्लाम की तबलीग करने में वाइज़ीन ए इस्लाम के सामने कोई रोक-टोक और दिक्कत बाक़ी ना रही थी, वाइज़ीन आज़ादी से मुनादी कर रहे थे, साम'ईन आज़ादी व इत्मीनान से वाज़ सुनते थे और इस्लाम की कशिश कामिल लोगों को अपनी जानिब खींच रही थी,*
[12/25, 5:36 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हवाज़िन व सक़ीफ के हमले की मुदा'फत या जंगे हुनैन (शववाल 8 हिजरी):-*
*"_ फतेह मक्का हो जाने से हवाजि़न व सक़ीफ के कबीलों ने जिनकी हद मक्का से मिलती थी सोचा कि अगर हम मुसलमानों को शिकस्त दे दें तो अहले मक्का के जिस क़दर बागा़त व जागीरात ताइफ में है वह बिला खौफ हमारे हो जाएंगे और मुसलमानों से बुत शिकनी के जुर्म का इंतक़ाम भी लिया जा सकेगा_,* 

*★_ उन्होंने बनी मुज़िर और बनी हिलाल के क़बीलो को भी अपने साथ मिला लिया और चार हज़ार बहादुर लेकर मक्का रवाना हो गए और वादी हुनैन में उतरे, उन्होंने अपने सरदार मालिक बिन औफ के मशवरे से अपने ज़न व बच्चे, माल मवेशी को भी साथ ले लिया था, मालिक ने इस तदबीर का यह फायदा बतलाया था कि ज़न व बच्चा, माल मवेशी को छोड़कर कोई शख्स भी मैदाने जंग से फरारी अख्तियार नहीं करेगा_,* 

*★_ यह खबर सुनकर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम भी (जो काबा के क़रीब और हरम की सर ज़मीन पर जंग करना मुनासिब नहीं समझते थे) मक्का से आगे बढ़े, इस्लामी लश्कर में मक्का के दो हजार शख्स और भी शामिल हो गए थे, इस तादाद में नव मुस्लिम भी शामिल थे और बुत परस्त मुआहिद भी, फौज की मजमुई तादाद 12 हज़ार हो गई थी, फौज को अपनी कसरत पर गुरुर भी हो गया था और इसीलिए वह मराहिले जंग की अहतयात से दूर भी थे,*

*★_ दुश्मन ने एक तंग और दुश्वार गुजा़र दर्रे में घात लगाई और अपने तीरंदाजों को वहां बिठलाया, जब लश्कर ए इस्लाम का अगला हिस्सा (जिसमें ज़्यादातर तलका़ ए मक्का या ऐसे ला उबाली नौजवान थे कि किसी के पास हथियार भी ना थे या लड़ाई की ज़रूरत के माफिक़ ना थे ) दुश्मन की ज़द में बेखबर जा पहुंचा, तो उन्होंने इतने तीर बरसाए कि उनको सर बचाकर भागने ही की सूझी, तक़रीबन 100 सहाबी मैदान में खड़े रह गए थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जब चारों तरफ से हमलावरों को बढ़ते और अपने लश्कर को भागते देखा तो बेनज़ीर शुजा'त व इस्तका़मत का नमूना दिखलाया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने खच्चर से उतरे और यह फरमाना शुरू किया:- मैं नबी हूं, इसमें ज़रा भी शुबहा नहीं, मैं अब्दुल मुत्तलिब का फरज़द हूं _,"*
*"_मतलब यह था कि मेरी सच्चाई का मैयार किसी फौज की शिकस्त या फतेह नहीं है बल्कि मेरी सदाक़त खुद मेरी जा़त से होती है _,"*
[12/26, 8:56 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को मुहाजिरीन व अन्सार के पते से बुलाना शुरू किया, वह सब आवाज़ सुनते ही कबूतरों की टुकड़ी की तरह एक आवाज़ पर ही पलटे, अब फौज की तरतीब नए सिरे से की गई, अंसार और मुहाजिरीन को आगे बढ़ाया गया, दुश्मन इस हमले से भाग निकला और दो हिस्सों में मुंतशिर हो गया,* 

*★_ उनका सरदार मालिक बिन औफ जंगी मर्दो को लेकर क़िला ताइफ में जा ठहरा, दूसरा गिरोह जिनमें उनके अहलो अयाल थे और ज़र व माल थे, ओताश की घाटी में जा बैठा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ताइफ के मुहासरे का हुक्म दिया और उसकी तरफ अबू आमिर अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु को मामूर फरमाया, अबु आमिर अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने वहां पहुंचकर दुश्मन के अहलो अयाल और ज़र व माल पर कब्ज़ा कर लिया, जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को ओतास का नतीज़ा मालूम हुआ तो क़िले का मुहासरा उठा देने का हुक्म दिया क्योंकि उन लोगों पर अहलो अयाल के जाते रहने की भारी मुसीबत पढ़ चुकी थी,* 

*★_ ओतास में 24 हज़ार ऊंट, 40 हज़ार बकरियां, 4 हज़ार ओक़िया चांदी और 6 हज़ार ज़र व बच्चे सहाबा के हाथ लगे थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अभी मैदान-ए-जंग के क़रीब ही ठहरे हुए थे कि क़बीला हवाज़िन के छः सरदार आए और उन्होंने रहम की दरख्वास्त पेश कर दी, उनमें वह लोग थे जिन्होंने ताइफ में नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पत्थर बरसाए थे और आखिरी मर्तबा वहां से ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बेहोशी की हालत में उठाकर लाए थे,*

*★_ नबी सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाया- हां मैं खुद तुम्हारा इंतजार कर रहा था (और इसी इंतजार में तकरीबन 2 हफ्ते हो गए कि माले गनीमत को भी तक़सीम ना किया था) मैं अपने हिस्से के और अपने खानदान के हिस्से के कैदियों को बा आसानी छोड़ सकता हूं और अगर मेरे साथ सिर्फ अंसार व मुहाजिरीन ही होते तो सबका छोड़ देना भी मुश्किल ना था, मगर तुम देखते हो कि इस लश्कर ने मेरे साथ वह लोग भी हैं जो अभी मुसलमान नहीं हुए, इसलिए एक तदबीर की ज़रूरत है, तुम कल सुबह की नमाज़ के बाद आना और आम मजमे में अपनी दरख्वास्त पेश करना, उस वक्त कोई सूरत निकल आएगी,*

*"_ फरमाया तुम चाहो तो माल का वापस लेना पसंद कर लो या अहलो अयाल का क्योंकि हमलावर लश्कर को खाली रखना दुश्वार है,*
[12/27, 8:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बेनज़ीर फैयाजी़ और रहम:-*
*"_दूसरे दिन वही सरदार आए और उन्होंने आम मजमे में अपने कैदियों की रिहाई की दरख्वास्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में पेश की,*
*"_नबी रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- मैं अपने और बनु अब्दुल मुत्तलिब के कैदियों को बिना किसी मुआवजे़ के रिहा करता हूं, अंसार व मुहाजिरीन ने कहा- हम भी अपने अपने कैदियों को बिना किसी मुआवजे़ के आज़ाद करते हैं,* 

*★_अब बनी सुलेम व बनी फुजारा रह गए, उनके नज़दीक यह अजीब बात थी कि हमलावर दुश्मन पर (जो खुशकिस्मती से ज़ेर हो गया हो) ऐसा रहम व लुत्फ किया जाए, इसलिए उन्होंने अपने हिस्से के कैदियों को आज़ाद ना किया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें बुलाया, हर एक कैदी की कीमत छः ऊंट क़रार पाई, यह क़ीमत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अदा कर दी और इस तरह बाक़ी कैदियों को भी आज़ादी दिलाई, फिर सब कैदियों को अपने हुजूर से लिबास पहना कर रुखसत फरमा दिया_,"*

*★_ उन कैदियों में दाई हलीमा की बेटी शीमा बिन्ते हारिस भी थी, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उस दूध की बहन को पहचाना और उसकी नशिस्त के लिए अपनी चादर ज़मीन पर बिछा दी, फरमाया अगर तुम मेरे पास ठहरो तो बेहतर है और अगर क़ौम में वापस जाना है तो अख्तियार है, उन्होंने वापस जाना चाहा, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के हुक्म से उन्हें इज्जत व इकराम के साथ उनकी क़ौम में भेज दिया गया _,"*

*★_ माले गनीमत नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उसी जगह तक़सीम फरमा दिया, अतिये के बड़े बड़े हिस्से उन लोगों को इनायत फरमाए थे जो थोड़े दिन से इस्लाम लाए थे, अंसार को जो निहायत मुखलिसीन थे उसमें से कुछ भी ना दिया था, फरमाया अंसार के साथ में खुद हूं, लोग माल लेकर अपने-अपने घर जाएंगे और अंसार नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को साथ लेकर अपने घरों में दाखिल होंगे, अंसार इस फरमान पर इतने खुश थे कि माल वालों को यह मसर्रत हासिल न थी _,"*

*📓रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ ( क़ाज़ी मुहम्मद सुलेमान सलमान मंसूरपुरी रह.) -* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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