BANAAT E ARBAAH-(HINDI)

 

⚂⚂⚂.
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     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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             *■ बनात ए अरबाह ■*
           *⚂ हज़रत ज़ैनब रजि. ⚂* 
  ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙                   *❀_नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के यहां चार बेटियां हुई, चारों बेटियां हजरत खदीजातुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा से हुईं, उनमें सबसे बड़ी बेटी हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा है ।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से ने निकाह फरमाया तो उसके 5 साल बाद सैयदा ज़ैनब पैदा हुईं, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की उमर मुबारक 30 साल के करीब थी, गोया जब इस्लाम का आगाज़ हुआ उस वक्त सैयदा ज़ैनब की उम्र 10 साल थी, एलाने नबूवत के बाद सबसे पहले सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस्लाम कुबूल किया था, आपके साथ ही आप की औलाद भी इस्लाम में दाखिल हुईं।* 

*★_ मक्का मुअज़्ज़मा में अबुल आस बिन रबी का शुमार शरीफ लोगों में होता था, यह दौलतमंद ताजिर थे, हजरत खदीजातुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से गुज़ारिश की कि हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह अबुल आस से कर देना चाहिए, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की राय का बहुत-बहुत अहतराम फरमाते थे, आपने सैयदा का यह मशवरा फौरन मान लिया और हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह अबुल आस से कर दिया गया।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब दीन की तबलीग शुरू की तो कुरेशे मक्का ने जुल्मों सितम ढ़ाना शुरू कर दिया, एक रोज़ मुशरिक आपके गिर्द जमा हो गए और आपको लगे झूठलाने और बुरा कहने, यहां तक कि आपको हाथों से भी तकलीफ पहुंचाते रहे, यह सिलसिला सुबह से दोपहर तक जारी रहा, आखिर यह लोग आपके पास से हट गए, उस वक्त एक नवउम्र लड़की आई, परेशानी के हालत में उन्होंने दुपट्टा पीछे डाला हुआ था, वह पानी का एक प्याला और रूमाल उठाए हुए थीं, उन्होंने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पानी पिलाया, आपने पानी नोश फरमा लिया तो रुमाल से आपके हाथ मुंह साफ करने लगीं, ऐसे में रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने नज़र उठा कर आपको देखा और इशाद फरमाया :- "बेटी दुपट्टे को अपने सीने पर डाल लो, अपने वालिद पर हलाकत का कोई खौफ ना करो _,"*
*"_लोगों ने पूछा:- यह कौन हैं? उन्हें बताया गया:- यह आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की साहबजा़दी सैयदा जै़नब रज़ियल्लाहु अन्हा है _," ( मजमुआ अज़्ज़वाइद )*      

[8/25, 3:48 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस वाक़िए से जाहिर है कि आप अपने वालिद की मुश्किलात में मुकम्मल तौर पर साथ दे रही थीं और वह दौर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए मुश्किल तरीन दौर था।*

*★_ जब मुशरिकीन मक्का के जुल्मों सितम की बुनियाद पर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और आपके क़रीबी लोग अबी तालिब की घाटी में रहने पर मजबूर हो गए तो हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के शौहर अबुल आस बिन रबी ने उन दिनों इन हजरात की खूब मदद की, यह शदीद तंगी के 3 साल थे, इनमे अबुल आस गल्ला वहां पहुंचाते रहे, वह यह गल्ला घाटी के दहाने पर रख देते और आवाज़ लगाकर वापस मुड़ जाते, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाया करते थे :- अबुल आस ने हमारी दामादी की बेहतरीन रियायत की और उसका हक़ अदा किया _,"*

*★_ मक्का के लोगों की दुश्मनी जब हद से बढ़ गई तो उन्होंने एक क़दम और भी उठाया, यह लोग अबुल आस के पास गए और उनसे कहा:- तुम ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) को तलाक दे दो, तुम कुरेश की जिस औरत के साथ निकाह करना चाहोगे हम तुम्हारा निकाह उस औरत से करा देंगे _,"*
*"_ इस पर अबुल आस ने कहा:- मैं अपनी बीवी ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) को तलाक नहीं दे सकता और उनके बदले में कुरेश की किसी औरत को पसंद नहीं करता _," और यह बात है उस दौर की जबकि अबुल आस मुसलमान नहीं हुए थे, मक्का के मुशरिकों के अक़ीदे पर थे।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को यह बात मालूम हुई तो अबुल आस की तारीफ फरमाई, मुशरिकीन मक्का की दुश्मनी जब हद से बढ़ गई तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मुसलमानों को हिजरत का हुक्म फरमाया, इस तरह मुसलमानों की मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत शुरू हुई, मुसलमान मदीना मुनव्वरा पहुंच गए तो उन्हें मुशरिकों से जंग की इजाजत हो गई ।*
[8/26, 6:03 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुसलमानों और मुशरिकों में जंगे शुरू हो गई, इस सिलसिले की सबसे अहम जंग गजवा बदर थी, उसमें कुरेशे मक्का पूरी तैयारी से मैदान में पहुंचे, दूसरी तरफ 313 सहाबा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की क़यादत में मुशरिको़ं के मुक़ाबले के लिए मैदान ए बदर में आ गए, इस जंग में मुसलमानों को फतेह हुई, कुछ मुशरिक मुसलमानों के हाथों गिरफ्तार हुए, कै़दियों को मदीना मुनव्वरा लाया गया ताकि उनसे माक़ूल मुआवजा़ लेकर उन्हें आज़ाद कर दिया जाए ।*

*★_ कै़दियों में अबुल आस भी थे, हजरत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हु भी क़ैद होकर मदीना मुनव्वरा पहुंचे थे, यह हजरात ज़बरदस्ती साथ लाए गए थे, मुसलमानों से जंग की गरज़ से अपनी मर्ज़ी से नहीं आए थे, ना जंग के दौरान इन्होंने तलवार चलाई, लेकिन चूंकी मुशरिक़ों के लश्कर में शामिल थे और इसी हालत में गिरफ्तार किए गए थे इसलिए क़ैदी की हैसियत में थे ।*

*★_ अब मुशरिकीन मक्का ने अपने अपने कैदियों के लिए रक़मे भेजना शुरू की, हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के पास अपने शौहर की रिहाई के लिए नक़द रक़म नहीं थी, उन्होंने अपना हार भेज दिया, यह हार उन्हें उनकी वाल्दा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दिया था ।*

*★_ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में यह फिदिए जात पेश किए जा रहे थे कि यह हार आपके सामने पेश किया गया, हार को देखते ही आप पर रक़त तारी हो गई, सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा याद आ गईं, उस दौर की यादें ताज़ा हो गईं, तमाम सहाबा भी मुतास्सिर हुए बगैर ना रह सके, उनकी आंखों में भी आंसू आ गए, उस वक्त नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- "तुम पसंद करो तो अबुल आस को रिहा कर दो और यह हार जो मुआवज़े के तौर पर आया है, वापस कर दो _,"*

*★_ उस वक्त सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने फरमाया:- "आप दुरुस्त फरमाते हैं, हम बिला मुआवजा़ अबुल आस को रिहा करते हैं और ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के हार को वापस करते हैं _,"*
*"_इस मौक़े पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबुल आस से फरमाया :- "तुम वादा करो कि मक्का पहुंचकर जै़नब को हमारे पास आने की इजाज़त दे दोगे _," उन्होंने कहा:- "जी मै वादा करता हूं _," इस तरह अबुल आस को बिला मुआवजा़ रिहा कर दिया गया, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा वाला हार वापस कब दिया गया _,*
[8/27, 4:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ चंद दिन बाद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हजरत ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु और एक अंसारी साहाबी रज़ियल्लाहु अन्हु को मक्का की तरफ रवाना फरमाया ताकि वह हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को मदीना मुनव्वरा ले आएं ।*

*★_ उधर अबुल आस रिहा होकर मक्का पहुंचे, तमाम हालात हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को सुनाए, साथ ही उन्होंने कहा:- मेरी तरफ से तुम्हें इज़ाजत है, तुम अपने वालिद के पास जा सकती हो _," हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा हिजरत की तैयारी में लग गईं, तैयारी मुकम्मल हो गई और वादा पूरा करने का दिन आ गया तो अबुल आस ने अपने भाई कनाना बिन रबी के साथ उन्हें रुखसत किया, हजरत ज़ैनब ऊंट पर सवार हुईं और कनाना ने अपने तीर कमान भी साथ ले लिए, उन्होंने ऊंट की मुहार पकड़ी और रवाना हो गए।*

*★_ कनाना अभी उन्हें इस तरह लिए चले जा रहे थे कि कुरैश मक्का को इस बात का पता चल गया, वह वक्त भी दिन का था, जब हजरत ज़ैनब का ऊंट वादी जी़ तवा के पास पहुंच गया तो मक्का वाले रास्ते में आ गए, पहला शख्स जो तकलीफ पहुंचाने के लिए से आगे आया वह हिबार बिन असवद था, उसने नेज़े का वार किया, हजरत ज़ैनब उस वक्त उम्मीद से थीं, आप नीचे गिर पड़ी और ज़ख्मी हो गई, यह देखकर कमाना ने तीर कमान संभाल लिए, उन्होंने रास्ते में आने वालों पर तीर बरसाना शुरू कर दिया और पुकारे:- "जो भी क़रीब आएगा उसे तीरों से छलनी कर दिया जाएगा_,"*

*★_ इस पर वह लोग रुक गए, पीछे भी हट गए, लेकिन रास्ता उन्होंने फिर भी ना दिया, इस पर हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा अपने देवर के साथ वापस लौट गईं, चंद दिन बाद रात की तारीकी में फिर कनाना के साथ निकलीं और उस मुका़म तक पहुंचने में कामयाब हो गई जहां हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु अपने साथी के साथ उनका इंतजार कर रहे थे, इस तरह हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा मदीना मुनव्वरा पहुंची, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबुल आस की तारीफ फरमाई कि उन्होंने वादा पूरा किया।*

*★_ हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से रास्ते में पेश आने वाली मुश्किलात और तक़ालीफ का ज़िक्र किया, उस वक्त हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- "मेरी बेटियों में ज़ैनब सबसे अफज़ल है, जो मेरी वजह से मुसीबत ज़दा हुईं _,"*
[8/28, 6:32 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अबुल आस मक्का में थे और हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा मदीना मुनव्वरा में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास थीं, अबुल आस जब तक ईमान नहीं जाए मक्का में रहे _,*

*★_ मक्का वाले तिजारत की गरज़ से शाम की तरफ सफर किया करते थे, एक तिजारती का़फिला शाम की तरफ रवाना हुआ, इसमें अबुल आस भी शामिल थे, कु़रेश के माल उनके पास थे जिनसे उन्हें शाम में तिजारत करना थी, जब यह का़फिला शाम से वापस लौटा तो मुसलमानों को इसका इल्म हो गया, मुसलमानों ने उन लोगों को घेर लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन इससे पहले ही अबुल आस का़फिले से अलग होकर मदीना पहुंचने में कामयाब हो गए और हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां पहुंच गए _,"*

*★_ हजरत जेनब रज़ियल्लाहु ने उन्हें पनाह दे दी, बाक़ी काफिले वाले बाद में मदीना लाए गए, आम मुसलमानों को इस बात की इत्तेला नहीं थी, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को सुबह की नमाज़ पढ़ाई, ऐसे में औरतों की सफ में से हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा ने औरतों को आवाज़ दी :- "मुसलमानों ! मैंने अबुल आस बिन रबी को पनाह दे दी है _,"*

*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह सुना तो लोगों की तरफ मुतवज्जह हुए और इरशाद फरमाया:- "जो कुछ मैंने सुना तुमने भी सुन लिया, सबने अर्ज़ किया:- जी हां ! ए अल्लाह के रसूल _," इसके बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "मुझे भी इस बात का पहले इल्म नहीं था और जब मुसलमानों का एक अदना शख्स भी किसी को पनाह दे‌‌ तो उसकी पनाह इस्लाम में मंजूर की जाती है और उसका पनाह देना दुरुस्त होता है, तो इस तरह ज़ैनब का अबुल आस को पनाह देना सही क़रार दिया जाता है, इस पनाह का खास ख्याल रखें _,"*

*★_ इसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ़ लाए और फरमाया:- "प्यारी बेटी ! इनकी अच्छी तरह खातिरदारी करना _," अब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को बुलावा भेजा जिन्होंने अबुल आस के माल रखे थे, आपने उन्हें हुक्म दिया:- "अबुल आस के तमाम अमवाल उन्हें वापस कर दो, उनमें से कोई चीज़ ना रखी जाए _,"*
[8/29, 5:22 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस तरह अबुल आस को तमाम अमवाल वापस मिल गए, अब यह मक्का वापस पहुंचे, जिन जिन लोगों के माल इनके पास थे उन्हें बुलाया, उनके माल उन्हें लौटाए फिर उन्होंने उन लोगों से कहा :- क्या मैंने सब का माल लौटा दिया, किसी का मेरे जिम्मे रह तो नहीं गया _," सब ने कहा :- हम सबको हमारे माल वापस मिल गए, तुम बहुत शरीफ इंसान हो, अल्लाह तुम्हें जज़ा ए खैर अता फरमाए _,"*

*★_ इस पर हजरत अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऐलान किया:- "मैं गवाही देता हूं कि बेशक अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह के बंदे और रसूल हैं और अल्लाह की क़सम मदीना मुनव्वरा में मैंने इसलिए इस्लाम क़ुबूल नहीं किया कि कहीं तुम यह गुमान ना करने लगो कि मैंने तुम्हारे अमवाल खाने का इरादा कर लिया है, जब अल्लाह ताला की मेहरबानी से मैंने तुम्हारे अमवाल वापस कर दिए और मैं इस जिम्मेदारी से फारिग हो गया तो अब मैं इस्लाम कुबूल कर रहा हूं _,*

*★_ इसके साथ ही अबुल आस मक्का से निकल पड़े और नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और इस्लाम लाए, इस तरह उनका इस्लाम बहुत उम्दा और पुख्ता साबित हुआ, नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पहले निकाह ही को बरक़रार रखा यानी नए सिरे से निकाह नहीं पढ़ा।* 

*★_ सैयदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां अबुल आस से बहुत औलाद हुईं, उनमें से एक बेटे का नाम अली था, एक बेटी का नाम उमामा था, एक बच्चा थोड़ी सी उम्र में फौत हुआ, एक बच्चा मरने के क़रीब हो गया तो हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैगाम भेजा:- "बच्चे की तबीयत बहुत खराब है आप ज़रा तशरीफ ले आएं _," उनके पैगाम के जवाब में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कहला भेजा:- "आप सब्र करें, जो अल्लाह ताला ले लेते हैं वह भी अल्लाह ताला के लिए हैं और जो देते हैं वह भी उसी के लिए है और हर शख्स के इंतकाल के लिए अल्लाह ताला के यहां वक्त मुक़र्रर है, तुम्हें हर हालत में सब्र करना चाहिए _,"*
[8/30, 5:30 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा उस वक्त बच्चे की वजह से बहुत परेशान थीं, उन्होंने क़सम देकर कहला भेजा कि आप ज़रूर आएं, इस पर आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उठ खड़े हुए, हजरत सा'द बिन उबादा, हजरत मा'ज़ जबल, हजरत उबई बिन का'ब और हज़रत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हुम वगैरा सहाबा की जमात साथ चल पड़ी, आप हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के घर पहुंचे, बच्चे का वक़्त क़रीब था, उन्हें आपकी गोद में दिया गया, उस वक्त वह आखरी सांस ले रहे थे, उसकी हालत देखकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की आंखों से आंसू जारी हो गए, यह देखकर हजरत सा'द बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:- "अल्लाह के रसूल ! यह क्या ! आप आंसू बहा रहे हैं_,"*
*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "यह तो रहमत है जो अल्लाह ताला ने अपने बंदों के दिलों में रख दी है _,"*
*"_आपने यह भी इरशाद फरमाया:- "अपने रहम दिल बंदों पर ही अल्लाह ताला रहमत फरमाते हैं_,"*

*★_ हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के बेटे अली बिन अबुल आस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगरानी में परवरिश पाते रहे, मक्का फतह हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अपनी सवारी पर अपने पीछे बिठाया हुआ था_,*

*★_ सैयदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी उमामा से भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बहुत मोहब्बत करते थे, एक रोज़ यह मंज़र देखने में आया कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उमामा को अपने कंधे पर बिठाया हुआ था और आप इस हालत में नमाज़ अदा फरमा रहे थे, जब आप रुकू फरमाते तो उन्हें ज़मीन पर बिठा देते और जब खड़े होते तो उन्हें फिर उठा लेते, यानी आपको उनसे इस क़दर मोहब्बत थी।*

*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में एक हार बतौर हदिया आया, उस वक़्त आपके पास कुछ अज़वाज मुताहरात जमा की, उमामा उस वक़्त छोटी थी, घर के एक तरफ खेल रही थीं, नबी अक़दस सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा:- "यह हार कैसा है_," हमने अर्ज़ किया:- "बहुत बेहतरीन है, हमने कभी इतना बेहतरीन हार नहीं देखा_,"* 
*"_हमारी बात सुनकर आपने उस हार को हाथ में उठाया और फरमाया:- "मैं यह हार अपनी औलाद में से उसकी गर्दन में डालूंगा जो मुझे ज़्यादा पसंद है_," अब तमाम अज़वाज मुताहरात इंतज़ार करने लगीं कि देखें हार किसके हिस्से में आता है, फिर आपने वह हार अपनी नवासी उमामा के गले में डाल दिया_,",*

*★"_ इस वाक़ए से भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की अपनी बेटी जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा और उनकी औलाद से बेतहाशा मोहब्बत का सबूत मिलता है _,*
[8/31, 6:52 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा ने 8 हिजरी में मदीना तैय्यबा में वफात पाई, सीरत लिखने वालों ने मौत का सबब वह ज़ख्म लिखा है जो मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत करते वक्त आया था, यानी जब आप पर तीर से वार किया गया था और आप ऊंट से गिर पड़ी थीं _,*

*★_ आपकी रूह परवाज़ कर गई तो घर में मौजूद आपकी बेटियां और दूसरी औरतें रोने चिल्लाने लगीं, उनके चीखने चिल्लाने की आवाज़ बुलंद हुई तो हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें उन्हें सख्ती से रोका, इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया:- ए उमर ! सख्ती ना करो _,*
*"_इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने औरतों से फरमाया:- तुम शैतानी आवाज़ निकालने से परहेज़ करो, जो आंसू आंख से बहते हैं और दिल गमगीन होता है यह तो अल्लाह की तरफ से है और यह उसकी रहमत है और जो कुछ हाथ से यह जुबान से किया जाए वह शैतान की तरफ से है _,"*

*★_ हाथ और जुबान से करने से मतलब छाती माथा पीटना वावेला करना है, मतलब यह कि आपने अपनी साहबज़ादी की वफात पर उम्मत को यह तालीम फरमाई कि किसी की मौत पर हाथ और जुबान से बेसब्री की हरकत ना करो, मुसलमान के लिए यह किसी तरह भी जायज़ नहीं, यह जाहिलियत की रस्में थीं जो लोग अपने अजी़जो़ रिश्तेदार की मौत पर करते थे, इस्लाम ने सब्र और बर्दाश्त की तालीम दी है, जैसा कि इस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया _,"*

*★_ सैयदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के गुस्ल का इंतज़ाम आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खास निगरानी में हुआ, गुस्ल में उम्मुल मोमिनीन हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा, उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा और उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा ने हिस्सा लिया, पानी में बेरी के पत्ते डालकर उबाला गया, उस पानी से तीन बार गुस्ल दिया गया, फिर काफूर की खुशबू लगाई गई ,*
*"_आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया था:- "जब तुम गुस्ल दे चुको तो मुझे इत्तेला देना, चुनांचे आपको इत्तेला दी गई, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपना तहबंद उतार कर दिया और फरमाया मेरे तहबंद को कफन के अंदर दाखिल कर दो _,*

*★_ इस मुका़म पर उलमा ने यह नुक्ता बयान किया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले ही अपना तहबंद उतारकर गुस्ल देने वाली ख़्वातीन के हवाले नहीं कर दिया था बल्कि फरमाया था कि जब गुस्ल दे चुको तो बताना, जब आपको बताया गया तब आपने तहबंद उतार कर दिया ताकि वह तहबंद ज़्यादा देर तक आपके बदन मुबारक से लगा रहे और बिल्कुल क़रीबतर वक्त में जिस्म मुबारक से अलग होकर हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के जिस्म मुबारक से लगे ।*
[9/1, 5:14 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कफन दिया जा चुका तो उस वक्त हजरत असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:- "हमने मुल्क हबशा में देखा है कि औरतों की पर्देदारी के लिए उनकी चारपाई पर एक क़िस्म की डोली सी बना दी जाती है ताकि मैयत का जिस्म पूरी तरह छुपा रहे_,"*
*"_ असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा के मशवरे पर पर्दे का यही इंतज़ाम किया गया, ये असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा मोहतरमा थीं ।*

*★_ हजरत जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा पहली मुसलमान ख़्वातीन थीं जिनका जनाज़ा इस अहतमाम से उठाया गया, नमाजे़ जनाजा़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़ाई, फिर जनाजे़ को क़ब्र के पास लाया गया, क़ब्र की तैयारी में अभी कुछ देर बाक़ी थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम क़ब्र के नज़दीक तशरीफ़ फरमा थे, सहाबा किराम भी आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ बैठे थे, आखिर आपको बताया गया कि क़ब्र तैयार है, अब आप खुद कब्र में उतरे, उस वक्त आपके चेहरे पर गम के आसार कम हो चले थे, चेहरे पर बशासत आ गई थीं, सहाबा किराम हैरान थे ।*

*★_ आखिर आपसे पूछा गया:- "अल्लाह के रसूल! पहले आप बहुत गमज़दा थे, हम कुछ पूछने की हिम्मत ना कर सके, अब आपके चेहरे पर बशासत आ गई है, तो इसकी क्या वजह है ?*
*"_आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- कब्र की तंगी और उसकी खौफनाकी मेरे सामने थी और ज़ैनब का कमज़ोर होना मुझे मालूम था, बस यही बात मुझे नागवार गुजर रही थी, मैंने अल्लाह ताला से दुआ की कि ज़ैनब के लिए इस हालत को आसान फरमा दिया जाए, अल्लाह ताला ने यह बात मंजूर फरमा ली और ज़ैनब से इस मुश्किल को दूर कर दिया, ( यानी इसलिए तुम अब मेरे चेहरे पर बशासत देख रहे हो )*

*★_ हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को हिजरत के वक्त जो ज़ख्म आए थे, वफात से पहले वहीं ज़ख्म दोबारा ताज़ा हो गए थे और आप की वफात का सबब भी वही ज़ख्म बने थे, इस बिना पर पहले इस्लाम ने आपको शहीद क़रार दिया है, अल्लाह की उन पर करोड़ों रेहमतें हों _,*   

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 *★_ सैयदा रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा _,*

*★_ सैयदा रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा से छोटी थीं, उनकी वालिदा उम्मूल मोमिनीन हजरत खदीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा है, आप हजरत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के 3 साल बाद पैदा हुईं, उस वक्त नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्र मुबारक तक़रीबन 33 साल थी, आपने अपनी बहनों के साथ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की निगरानी में तर्बीयत पाई और बालिग हुईं, ख़्वातीन में सबसे पहले ईमान लाने वाली खातून सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा हैं, आपके साथ आपकी साहब जा़दियां ईमान लाने में पेश पेश हैं, जिस वक़्त इनकी वालिदा ईमान लाईं तो उनके साथ ही यह साहबजा़दियां भी मुसलमान हुईं, (तबका़त इब्ने सा'द)* 

*★_ इस्लाम के ऐलान से पहले आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी दो साहबज़ादियों रुकै़या और उम्मे कुलसुम का निकाह अपने चाचा अबू लहब के दोनों लड़कों उतबा और उतैबा के साथ कर दिया था, यह सिर्फ निकाह हुआ था, रुखसती नहीं हुई थी ।*

*★_ फिर इस्लाम का आगाज़ हुआ, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वही नाजिल होने लगी, तौहीद की आयात उतरीं, शिर्क और कुफ्र की बुराइयां बयान की गई, यहां तक की सूरह तब्बत यदा अबी लहब वतब अबू लहब के नाम के साथ नाजिल हुईं, इस पर मुशरिकीने मक्का की दुश्मनी उरूज पर पहुंच गई, अबू लहब ने अपने दोनों बेटों को हुक्म दिया:- "अगर तुम मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह की बेटियों को तलाक नहीं दोगे तो मैं तुम्हें मुंह नहीं लगाऊंगा और तुम्हारा चेहरा तक नहीं देखूंगा_,"*
*"_बाप के कहने पर दोनों बेटों ने तलाक दे दी और दरअसल यह इन साहब जा़दियों की गैबी मदद थी, अल्लाह ताला ने चाहा कि यह पाक साहब ज़ादियां उतबा और उतैबा के यहां ना जा सकें।* 

*★_ इस सारे मामले में दोनों साहब जा़दियों का कोई कुसूर नहीं था, सिर्फ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की साहब ज़ादियां होने की बुनियाद पर ऐसा किया गया था, जब अबू लहब के दोनों लड़कों ने दोनों साहब जा़दियों को तलाक दे दी तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपनी साहबज़ादी रुकै़या का निकाह मक्का में हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ कर दिया ।*
[9/3, 2:50 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सिलसिले में हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- अल्लाह ताला ने मेरी तरफ वही भेजी है कि मैं अपनी बेटी रुकै़या का निकाह उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से कर दूं_,"*
*"_ चुनांचे नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत रुक़ैया का निकाह हजरत उस्मान से कर दिया और साथ ही रुखसती कर दी _," ( कंजुल उम्माल- 6/ 375)*

*★_ इस सिलसिले में एक रिवायत यह है:- हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से अपनी साहबज़ादी रुकै़या का निकाह किया, फिर उनके इंतकाल के बाद दूसरी साहबज़ादी उम्मे कुलसुम को उनके निकाह में दे दिया_," ( कंजुल उम्माल- 6 /379 )*

*★_ नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का एक के बाद दीगर अपनी दो साहबज़ादियों को हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के निकाह में देना उनकी बहुत बड़ी फजीलत जाहिर करता है, यह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की बहुत अजी़म स'आदत और खुशबख्ती है कि नबी आखिरुज़ ज़मा की दो बेटियां उनके निकाह में आईं, दुनिया में यह फजी़लत किसी और को हासिल नहीं हुई, इससे यह भी साबित है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को किस क़दर पसंद फरमाते थे, उनसे कितनी मोहब्बत फरमाते थे।* 

*★"_अल्लाह ताला ने हजरत रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा को हुस्न व जमाल भी बहुत अता फरमाया था, जब आपकी शादी हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई तो उस दौर की औरतें इस शादी पर रश्क करती थीं क्योंकि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु भी बहुत हसीन व जमील थे, वह औरतें कहा करती थी :- इंसानों ने जो हसीनतरीन जोड़ा देखा है वह रुक़ैया और उनके खाविंद उस्मान हैं _,*
[9/4, 6:13 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ और वह इस्लाम का इब्तदाई दौर था, मुशरिकीन तरह-तरह के ज़ुल्म ढा रहे थे, इन हालात में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुसलमानों को मशवरा दिया कि वह लोग अगर हब्शा की तरफ हिजरत कर जाएं तो यह उनके लिए बहुत बेहतर रहेगा इसलिए कि हब्शा का बादशाह बहुत नेक इंसान हैं, किसी पर जुल्म नहीं करता है, वहां तुम आराम और सुकून से रह सकते हो, फिर अल्लाह ताला तुम्हारे लिए आसानी की कोई सूरत फरमा देंगे _,"*

*★_ इस पर चंद अफराद हब्शा की तरफ निकल पड़े, यह इस्लाम में सबसे पहली हिजरत थी, क़ुरआने करीम में इस हिजरत की बहुत फजी़लत बयान हुई है, चुनांचे अल्लाह ताला ने फरमाया:-*
*"_(तर्जुमा)_ जिन लोगों ने सितम रसीदा होने के बाद अल्लाह के रास्ते में हिजरत की और अपना वतन छोड़ा उन लोगों को हम दुनिया में अच्छा ठिकाना देंगे और आखिरत का अजर बहुत बड़ा है_," (सूरत अल- नहल आयत 51)*

*★_ अब जो हजरात इस हिजरत के लिए मक्का से निकले, उनमें हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हु भी शामिल थे, हिजरत का यह वाक़िया नबूवत के पांचवे साल पेश आया ।*

*★_ हिजरत करने वाले इन हजरात ने हबशा में कुछ मुद्दत गुजारी, फिर मक्का वापस आ गए, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु भी अपनी अहलिया मोहतरमा हजरत रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ वापस आ गए लेकिन इस दौरान आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हिजरत करके मदीना मुनव्वरा तशरीफ ले जा चुके थे, लिहाज़ा हजरत उस्मान और हजरत रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत फरमाई, यह इनकी दूसरी हिजरत थी, इस तरह इन्हें दो मर्तबा हिजरत का सर्फ हासिल हुआ।*
[9/5, 10:17 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हबशा की रिहाइश के दौरान हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां एक बेटा पैदा हुआ, उनका नाम अब्दुल्लाह रखा गया, उस बच्चे के नाम की निस्बत से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की कुन्नियत अबू अब्दुल्ला थी, अपने वालदेन के साथ नवासा ए रसूल अब्दुल्लाह भी मदीना मुनव्वरा पहुंचे, उनकी उम्र 6 माह की थी कि एक मुर्ग में ठोन्ग मारकर उन्हें जख्मी कर दिया, इस जख्म से उनके चेहरे पर वरम आ गया था और यह जख्म ठीक ना हो सका, इसी हालत में अब्दुल्लाह इंतकाल कर गए, उनके बाद हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां कोई और औलाद नहीं हुई ।*

*★_ अब्दुल्लाह के इंतकाल पर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बहुत गमज़दा हुए थे, आपने उन्हें गोद में उठाया, आप की आंखों से आंसू बह रहे थे, इस हालत में आपने फरमाया:- बेशक अल्लाह ताला अपने रहीम और शफीक़ बंदों पर रहम फरमाता है _,"*
*"_ फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनकी नमाजे़ जनाजा़ पढ़ी, उन्हें दफन करने के लिए हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु कब्र में उतरे।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक खादीमा थीं, उनका नाम उम्मे अयाश था, यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत किया करती थी लेकिन फिर आपने उन्हें हजरत रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा को सौंप दिया और वह उनकी खिदमत करने लगी ।*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक कम उम्र खादिम हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु थे जो हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे थे, वह कहते हैं कि एक रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे गोश्त का एक प्याला दिया और इरशाद फरमाया कि यह रुक़ैया को दे आओ, मैंने वह प्याला हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर पहुंचा दिया, उस वक्त घर में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु भी मौजूद थे, खुदा की क़सम मैंने ऐसा उम्दा जोड़ा पहले कभी नहीं देखा, मियां बीवी दोनों हुस्नो जमाल में बेमिसाल थे_," (उस वक्त हजरत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु की उम्र 10 साल से कम थी)*
[9/6, 6:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज़ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक उम्दा खाना तैयार करके आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को भेजा, उस दिन आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर रहना था, मगर जब हदिया पहुंचा तो आप उस वक्त घर में मौजूद नहीं थे, जब तशरीफ लाए तो उम्मुल मोमिनीन हजरत सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने वह खाना आपके साथ पेश किया, आपने दरयाफ्त फरमाया:- यह किसने भेजा? हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बताया :- यह हजरत उस्मान के घर से आया है । यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने दोनों हाथ दुआ के लिए उठा दिए और दुआ फरमाई :- "ए अल्लाह ! उस्मान तुझे राज़ी करना चाहते हैं तू भी उससे राज़ी हो जा _,"*

*★_ यह वाक़्यात बता रहे हैं कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा से किस क़दर मुहब्बत थी, एक रोज़ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ ले गए, आपने देखा हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का सर धो रही हैं, यह देखकर आपने फरमाया:- बेटी अपने खाविंद के साथ अच्छा सुलूक करती रहो, मेरे सहाबा में उस्मान के अखलाक मुझसे ज़्यादा मिलते जुलते हैं _,"*

*★_ 2 हिजरी में गज़वा बदर पेश आया, इस गज़्वे में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खुद तशरीफ ले गए, उन्हीं दिनों हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा बीमार हो गईं, बीमारी शदीद थी और आप और आपके सहाबा गज़वा के लिए बिल्कुल तैयार थे, लिहाजा इन हालात में आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- रुक़ैया बीमार हैं, आप उनकी तीमारदारी के लिए मदीना में ही ठहर जाएं _,"*
*"_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपने खादिम हजरत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को भी मदीना मुनव्वरा में ठहरने का हुक्म दिया _,"* 

*★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु गज़वा में शिरकत की स'आदत हासिल करना चाहते थे, उनकी ख्वाहिश पर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- आपके लिए बदर में हाजिर होने वालों के बराबर अजर है और माले गनीमत में भी आप का हिस्सा है _,"*
*"_आपके इस इरशाद का मतलब यह है कि आपने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को गज़वा बदर में शरीक होने के बराबर सवाब का हक़दार क़रार दिया था और इसी तरह गज़वा बदर में शिरकत करने वालों के बराबर माले गनीमत का हक़दार क़रार दिया था, इसका एक मतलब यह भी बनता है कि हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा की तीमारदारी को गज़वा बदर में शिरकत के मुताबिक़ क़रार दिया था _,*
[9/7, 7:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सिलसिले में एक रिवायत यह है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा था :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मेरे अजर और सवाब के बारे में क्या हुक्म है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया था:- तुम्हारा अजर और सवाब भी अहले बदर के बराबर है _," ( इब्ने असीर, अलबिदाया अलनिहाया )*

*★_ इस क़दर वजाहत के बाद भी लोग एतराज करते हैं कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु गज़वा बदर में शरीक नहीं हुए थे, ऐसे लोग गुमराह नहीं तो और क्या है।*

*★_ 2 हिजरी को गज़वा बदर पेश आया, दूसरी तरफ हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा की बीमारी शदीद हो गई और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गैर हाजिरी में आप का इंतकाल हो गया, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनकी तीमारदारी भी फरमाई और उनके बाद कफन और दफन का इंतजाम भी किया ।*

*★_ उधर मैदान ए बदर में मुशरिकीन मक्का को शिकस्त हो गई, हज़रत ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ियल्लाहु अन्हु फतेह की खबर लेकर मदीना मुनव्वरा पहुंचे, उस वक्त लोग हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा को दफन कर चुके थे और अपने हाथों से मिट्टी झाड़ रहे थे, हिजरते मदीना के 17 माह बाद हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल हुआ था ।*

*★_ चंद दिन बाद नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तशरीफ ले आए, जन्नतुल बकी़ में हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा की क़ब्र पर पहुंचे, उस मौक़े पर कुछ खवातीन भी जमा हो गईं और रोने लगीं, जब औरतों की आवाज़ें बुलंद हुई तो हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें ज़रा सख्त अंदाज में मना किया, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें सख्ती न करने की हिदायत फरमाई और ख़्वातीन से फरमाया:- जब तक आंख और दिल से रोना हो तब तक यह अलामत रहमत और शफ़क़त की है, लेकिन जब जुबान से वावेला और हाथ से इशारे हों तो यह शैतान की तरफ से हैं _,"*
*"_इस मौक़े पर सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी वहां आ गईं और रोने लगीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके चेहरे से आंसू पोंछे और उन्हें तसल्ली दी ।*

*★_ हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात पर आप बहुत रंजीदा थे, एक गम आपको यह था कि उनकी वफात आपकी गैर हाजिरी में हुई थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आखिरी लम्हात में भी उनके पास नहीं थे, यहां तक कि कफन दफन में भी हिस्सा नहीं ले सके थे, अल्लाह ताला की उन पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों _,*

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 *★_ सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा _,*

*★_ सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तीसरी साहबज़ादी हैं, इनकी वाल्दा मोहतरमा सैयदा खदीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा हैं, आपका नाम उम्मे कुलसुम है, यह दरअसल आपकी कुन्नियत है, आप इसी नाम से मशहूर हैं ।*

*★_ नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने नबूवत का ऐलान फरमाया तो आपने भी अपनी वाल्दा और बहनों के साथ इस्लाम कबूल किया, हिजरत से पहले तक आप मक्का मुअज्जमा में रहीं, आप और आपकी बहन रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हुमा का निकाह इस्लाम से पहले अबू लहब के बेटों से हुआ था, अभी रुखसती नहीं हुई थी, "तब्बत यदा अबी लहब" सूरत नाजिल हुई तो अबू लहब के कहने पर उसके लड़कों ने दोनों को तलाक दे दी, अल्लाह को यही मंजूर था कि यह पाक़ीज़ा बीबियां नापाक मुशरिकीन के घरों में ना जाए।* 

*★_ यह तलाक सिर्फ इस्लामी दुश्मनी में दी गई थी, सैयदा रुक़ैया और उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हुमा का कोई कसूर नहीं था, वह तो सिर्फ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को दुख देना चाहते थे, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की दोनों बेटियों को भी यह सदमा दीन की खातिर दिया गया ।*

*★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म से मक्का से मदीना हिजरत फरमाई, हिजरत के चंद माह बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अबू राफे और ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हुम को मक्का रवाना फरमाया ताकि यह घर के अफरादों को मदीना ले आएं, आपने सवारी के लिए 2 ऊंट और नक़द रक़म भी उन्हें दी थी, यह सफर खर्च के लिए थीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में उन दोनों हजरात से फरमाया था:- मक्का से हमारे अहल अयाल को ले आएं _,* 

*★_ यह हजरात मक्का पहुंचे और वहां से आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के घर वालों को मदीना मुनव्वरा ले आए, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद-ए-नबवी की तामीर में मशरूफ थे और मस्जिद के आसपास हुजरे बनवा रहे थे, इसलिए आपने अपने अहले खाना को हजरत हारिस बिन नौमान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर ठहराया, इस तरह उम्मे कुलसुम, हजरत फातिमा और उममुल मोमिनीन सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हुमा मदीना मुनव्वरा पहुंची, सैयदा रूक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने शौहर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ और हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने शौहर अबुल आस रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हिजरत की थी, यह ज़िक्र पहले आ चुका है ।*
[9/9, 5:08 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गज़वा बदर के मौक़े पर 2 हिजरी में सैयदा रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा इंतकाल कर गई, हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा के इंतकाल के बाद हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत गमगीन रहते थे और चाहते थे कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ रिश्ता दामादी बरकरार रहे, चुनांचे आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक रोज़ उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया:- "ऐ उस्मान ! यह जिब्राइल अलैहिस्सलाम हैं, यह खबर देते हैं कि अल्लाह ताला ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा को आपके निकाह में दे दूं, जो मेहर रुक़ैया के लिए मुक़र्रर हुआ था वही मेहर उम्मे कुलसुम का हो _,"*

*★_ 3 हिजरी में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से कर दिया, इस तरह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को दोहरे दामाद होने का सर्फ हासिल हुआ, रुखसती चंद माह बाद हुई, इस निकाह के मौक़े पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "मैं अपनी बेटियों को अपनी मर्ज़ी से किसी के निकाह में नहीं देता बल्कि अल्लाह ताला की तरफ से उनके निकाहों के फैसले होते हैं _," ( मुस्तदरक हाकिम 4/ 49)*

*★_ इस हदीस से यह बात रोज़े रोशन की तरह ज़ाहिर है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का निकाह अल्लाह ताला के हुक्म से हुआ था, यही नहीं बाक़ी साहबज़ादियों के, हजरत ज़ैनब, हजरत रुक़ैया और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के निकाह भी अल्लाह ताला के हुक्म से हुए थे, यानी यह इन साहबज़ादियों की खुसूसियत है कि उनके निकाह अल्लाह के हुक्म से हुए, उनके निकाह के साथ किसी दूसरी औरत को निकाह में नहीं दिया गया _,"*

*★_ उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की कोई औलाद नहीं हुई, उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा जब तक जिंदा रहीं हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने किसी और औरत से निकाह नहीं किया, इन दोनों साहबज़ादियों के बाद अलबत्ता हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने निकाह किये और उनसे आपके यहां औलाद भी हुईं ।*
[9/10, 6:27 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल 8 हिजरी में आपकी ज़िंदगी मुबारक में हुआ, अल्लाह को यही मंजूर था कि आप की तीसरी साहबज़ादी का इंतका़ल भी आपकी जिंदगी में ही हो, शाबान 9 हिजरी में आप इस दुनिया से रुखसत हुईं ।*

*★_ यह सब अल्लाह ताला के काम हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साहबज़ादगान भी आपकी जिंदगी ही मे इस दुनिया से रुखसत हुए, एक हदीस में है कि अंबिया अलैहिस्सलाम लोगों के एतबार से ज़्यादा आज़माइश में होते हैं, उनके बाद जो उनसे ज्यादा मुशाबा हुए हैं वह आज़माइश में मुब्तिला होते हैं, सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा के इंतकाल पर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का हद दर्जा गमज़दा होना कु़दरती बात थी, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आप को दिलासा देते हुए फरमाया:- "अगर मेरी 10 बेटियां होती तो मैं एक के बाद एक दीगर उस्मान के निकाह में दे देता _,"*

*★_ सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा के कफन दफन के इंतजामात नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने खुद फरमाए, सफिया बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हा, हजरत असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा, हजरत लैला बिन्ते का़निफ रज़ियल्लाहु अन्हा और उम्मे अतिया अंसारिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको गुस्ल दिया, गुस्ल के लिए बेरी के पत्तों वाला पानी इस्तेमाल किया गया, गुस्ल के बाद काफूर की खुशबू लगाई ।*

*★_ गुस्ल और कफन के बाद जनाज़े के लिए आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाए, आपने नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने नमाजे़ जनाजा़ में शिरकत की, नमाजे़ जनाजा़ हो चुकी तो जन्नतुल बकी़ में आप को दफन किया गया।*

*★_ हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- "आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी के दफन के मौक़े पर हम हाजिर थे और सरदारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम क़ब्र पर तशरीफ़ फरमा थे, मैंने देखा आप की आंखों से आंसू बह रहे थे_," अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों।*

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*★_ हजरत फातिमातुज़ ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा _,*

*★_ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की सबसे छोटी बेटी हैं, आपका नाम फातिमा और लक़ब जो़हरा और बतूल है, आपकी वाल्दा सैयदा खदीजतुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा है, आप नबूवत के ऐलान से तक़रीबन 5 साल पहले पैदा हुई, यानी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उमर उस वक्त 35 साल थी ।*

*★_ एक रिवायत के मुताबिक़ आप नबुवत के ऐलान के बाद पैदा हुई, जबकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उमर 41 साल थी, आपके चलने का अंदाज़ नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के जैसा था, उठने बैठने के अंदाज़ भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जैसे थे ।*

*★_ नबूवत के ऐलान के बाद मक्का के मुशरिकीन आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सताना शुरू किया, एक रोज़ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खाना काबा के पास हरम में नमाज़ पढ़ रहे थे, कुरेश के चंद शरीरों ने एक ऊंट की ओझड़ी आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की कमर मुबारक पर रख दी, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस वक्त सजदे की हालत में थे, किसी ने जा कर यह बात हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को बता दी, वह दौड़ी हुई आईं और इस बोझ को आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की कमर से उतारा, नमाज़ से फारिग होकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुशरिकीन के लिए बद्दुआ फरमाई ।*

*★_ अल्लाह ताला ने आपकी दुआ कबूल फरमाई और इनमें से ज़्यादातर गज़वा ए बदर में मारे गए _," ( बुखारी 1/74 )*
[9/12, 6:49 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जब मक्का मुअज्ज़मा से मदीना मुनव्वरा हिजरत फरमाई तो अपनी बेटियों हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा को मक्का ही में छोड़ गए थे, इसी तरह अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु अपने घर वालों को भी वहीं पर छोड़ गए थे ।*

*★_ मदीना मुनव्वरा में पहुंच जाने पर और रिहाइश के इंतजा़मात करने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हजरत ज़ैद बिन हारिसा और हजरत अबु राफे रज़ियल्लाहु अन्हुम को इन्हें लाने के लिए भेजा, इन्हें सफर के लिए 2 ऊंट और 500 दिरहम भी दिए, हजरत अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ से अब्दुल्लाह बिन अरीक़त इन हजरात के साथ रवाना हुए, इन हजरात में क़दीद के मुक़ाम से सवारियां खरीदी और फिर मक्का में दाखिल हुए ।*

*★_ यहां इनकी हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात हुई, ये भी हिजरत के लिए तैयार थे, इस तरह यह तमाम हजरात आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बेटियों और हजरत अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के घर वालों को साथ लेकर मदीना मुनव्वरा पहुंचे, मदीना मुनव्वरा में क़याम पजीर होने के बाद 2 हिजरी में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के निकाह की तरफ तवज्जो फरमाई, बाज़ रिवायात से पता चलता है कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह की दरख्वास्त की थी ।*

*★_ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनसे पूछा:- आपके पास मेहर के लिए कोई चीज़ है ? हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- और तो कोई चीज़ नहीं है, बस एक सवारी और एक ज़िरा है_," यह दोनों चीज़ें हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने 400 दिरहम में फरोख्त कर दी, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- इनमें से फातिमा के लिए खुशबू खरीदो क्योंकि फातिमा भी ख़्वातीन में से हैं और उनके लिए खुशबू दरकार होती है ।*
[9/13, 4:52 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इसके बाद आप हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया:- "फातिमा की रुखसती के लिए मकान की तैयारी की जाए_,"*
*"_हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- "हमने इस काम की तैयारी शुरू की, वादी ए बतहा से अच्छी क़िस्म की मिट्टी मंगवाई, इससे मकान को लीपा पोता और साफ किया, फिर हमने अपने हाथों से खजूर की छाल दुरुस्त की, इनसे दो गद्दे तैयार किए, खुरमा और मुनक्का से खुराक तैयार की, पीने के लिए मीठा पानी मुहैया किया, फिर इस मकान के कोने में एक लकड़ी गाड़ दी ताकि इस पर मश्कीजा़ और कपड़े लटकाए जा सकें_,"*

*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- "फातिमा की शादी से बेहतर हमने कोई शादी नहीं देखी_," (इब्ने माजा)*

*★_ आप हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जहेज़ में हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को एक बड़ी चादर और चमड़े का एक तकिया दिया जो खजूर की छाल या अज़खर से भरा था, अज़खर खुशबूदार घांस को कहते हैं, आटा पीसने के लिए एक चक्की, एक मश्कीजा़ और दो घड़े दिए_,"*

*★_ आप हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी प्यारी बेटी को बस यह सामान दिया, यह भी इसलिए कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत गरीब थे, उनके पास घरदारी का कोई सामान था ही नहीं, लिहाज़ा इससे मरूजा जहेज़ का जवाज़ सुन्नत होना साबित नहीं होता, उम्मत के लिए यह सादा और मुख्तसर सामान हमारे लिए एक नमूना है और हमें यह सबक दे रहा है कि असल चीज़ फिकरे आखिरत हैं और यह ज़िंदगी आरज़ी है।*
[9/13, 5:09 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जब यह तैयारियां मुकम्मल हो चुकी तो आप हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से कर दिया, मैहर 400 मिशकाल मुक़र्रर फरमाया, निकाह में हजरत अबु बकर सिद्दीक, हजरत उमर, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हुम और बड़े सहाबा ने शिरकत की, यह हजरात इस निकाह के गवाह थे, निकाह की तक़रीब बिल्कुल सादा थी, किसी क़िस्म के तकल्लुफात नहीं बरते गए, कोई रुसुमात नहीं की गई ।*

*★_ निकाह के बाद हुजूर करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपनी दुख्तर को बीबी उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के घर रवाना फरमाया, हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ पैदल चलकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के घर तक गईं, किसी डोली या सवारी का इंतज़ाम नहीं किया गया ।*

*★_ बाज़ रिवायात में यह भी है कि निकाह रमज़ान 2 हिजरी में हुआ और रुखसती माहे ज़िलहिज्जा 2 हिजरी में हुई, उस वक्त हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र 15 साल 5 माह थी, जबकि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की उम्र 21 वर्ष थी, (कु़रतुबी)*

*★_ आप हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने ज़िंदगी गुजा़रने का जा़ब्ता इन अल्फ़ाज़ में बयान फरमाया था:- "फातिमा घर के अंदर के काम सर अंजाम देंगी और अली अल मुर्तुजा घर के बाहर के काम करेंगे _,"*
[9/15, 6:27 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ वह इस्लाम का इब्तदाई दौर था, मुसलमानों को मुश्रिकों के मुका़बले में फुतूहात होने लगी थी, लौंडिया और गुलाम इन फुतूहात में आते थे, यह मुसलमानों में तक़्सीम किए जाते थे, एक मर्तबा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में कुछ गुलाम आए, इस मौक़े पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया:- आप नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में जाकर एक गुलाम का मुतालबा करें, जो घरेलू कामकाज में आपकी मदद कर सके, इस तरह आप ज़हमत से बच जाएंगी _,"*

*★_इस पर आप हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में आई, उस वक्त वहां कुछ लोग बैठे थे आप उनसे गुफ्तगू में मशरूफ थे, यह देखकर सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा वापस लौट गईं, इसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खुद हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ लाए, उस वक्त हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी घर में मौजूद थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- फातिमा ! आप मेरे पास आई थी, उस वक्त क्या कहना चाहती थीं ?_,"* 

*★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को शर्म महसूस हुई और आप कुछ ना कह सकीं, इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:- "अल्लाह के रसूल ! मै अर्ज़ करता हूं, फातिमा घर का काम खुद करती हैं, चक्की पीसती हैं तो उनके हाथों में गड्ढे पड़ जाते हैं, पानी लाने के लिए मश्कीजा़ खुद उठाती हैं, इसकी वजह से जिस्म पर निशान पड़ गए हैं, आपकी खिदमत में कुछ गुलाम आए तो मैंने ही उनसे कहा था कि आपसे एक गुलाम मांग ले ताकि आप मशक्कत से बच जाएं_,"*

*★_ यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- ऐ बेटी ! तुम्हें अपने काम खुद करने चाहिए, मैं तुमको वजी़फा बताता हूं जब रात को सोने लगे तो यह पढ़ लिया करो- 33 बार सुब्हानल्लाह 33 बार अल्हम्दुलिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर _,"*

*★_ यह सुनकर सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया:- "मै अल्लाह और उसके रसूल से राज़ी हूं_,"*
*"_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों के हालात बेहतर होने पर आपको बाद में एक खादिम इनायत कर दिया था _,*
[9/16, 6:43 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 3 हिजरी में गज़वा उहद पेश आया, गज़वा ए बदर में बदतरीन शिकस्त के बाद मुशरिकीन ने इस मर्तबा ज़बरदस्त तैयारियां की थी, इस जंग में शुरू में मुसलमानों को फतेह नसीब हुई लेकिन चंद मुसलमानों की गलती से जंग का पासा पलट गया, मुसलमान मुश्किल हालात में घिर गए, खुद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मुशरिकों ने अपने घेरे में ले लिया, आपके दंदाने मुबारक को नुक़सान पहुंचा, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पानी लाए और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ज़ख्मों को साफ करने लगीं, खून ना रुका तो हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक चटाई जलाकर उसकी राख जख्म पर रखी, तब खून रुका _, ( बुखारी )* 

*★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने सहाबा के साथ एक मैयत को दफन करने के लिए गए, जब दफन से फारिग हो गए तो आप हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम वापस हुए तो सहाबा किराम भी साथ थे, जब आप घर के क़रीब पहुंचे तो सामने से एक खातून आती नज़र आई, यह सैयदा फातिमातुज़ ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा थीं, आपने उनसे पूछा- बेटी घर से बाहर किस लिए गई थीं?* 
*"_सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया- फलां घर में एक मौत हो गई है ताजियत के लिए गई थी, उनके हक़ में दुआ करके आई हूं _,"*

*★_ कुर्बानी के दिन थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपनी प्यारी बेटी सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया: तुम अपनी कुर्बानी के ज़िबह के वक्त उसके पास खड़ी रहो और उसे देखो_,"*
*"_ साथ ही आप ने फरमाया:- कुर्बानी के खून के हर क़तरे के बदले में तुम्हारे गुनाह माफ होते हैं_,"* 
*"_उस वक्त हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या यह मसला सिर्फ हमारे लिए खास है या हमारे और तमाम मुसलमानों के लिए है _,"*
*"_ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-यह हमारे लिए और तमाम मुसलमानों के लिए है_," ( अल फताह अल रब्बानी- १३/५९)*
[9/17, 8:05 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जिस रोज़ मक्का फतह हुआ (यानी 8 हिजरी में) तो उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुईं, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस वक्त गुस्ल फरमा रहे थे, चाश्त का वक्त था और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आपके लिए कपड़े से पर्दा किए हुए थे, उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा ने सलाम किया, तो आपने पूछा कौन आईं हैं ? हजरत उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया:- अल्लाह के रसूल यह मैं हूं उम्मे हानी _,"*
*"_ गुस्ल से फारिग होने के बाद आप हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने चाश्त की 8 रकात अदा फरमाई_," ( सुनन दारमी 177 )*

*★_ हजरत आयशा सिद्दीका़ रज़ियल्लाहु अन्हा से किसी ने कुर्बानी के गोश्त का मसला पूछा, हजरत आयशा सिद्दीका़ रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पहले कुर्बानी का गोश्त बचा कर रखने से मना फरमाया था, मगर बाद में आपने उसे बचाकर रखने की इजाज़त दे दी और वाक़िआ इस तरह पेश आया कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु किसी सफर से घर तशरीफ लाए तो हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कुर्बानी का पका हुआ गोश्त पेश किया, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा:- क्या इसके खाने से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मना नहीं फरमाया था ?*

*"_ फिर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अल्लाह ने यह मसला खुद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से दरियाफ्त किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- "कुर्बानी का गोश्त साल भर खाया जा सकता है _," ( मुसनद अहमद 6/282)*
[9/18, 12:47 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ लाते तो वह अहराम से खड़ी हो जातीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ मुबारक को चूम लेतीं और अपनी जगह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बिठातीं, इसी तरह जब हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर होतीं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में खड़े हो जाते और बोसा देने के लिए उनके हाथ पकड़ लेते, फिर अपनी जगह आपको बिठाते ।*

*★_ इससे मालूम हुआ, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपनी साहबजा़दियों पर निहायत मेहरबान थे, उनसे बेतहाशा मुहब्बत करते थे, उनका बहुत ख्याल रखते थे।*

*★_ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम दुनिया की ज़ैबो ज़ीनत पसंद नहीं फरमाते थे और सिर्फ अपने लिए ही नहीं अपनी औलाद के लिए भी पसंद नहीं फरमाते थे,* 

*★_ एक रोज़ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को खाने पर बुलाया, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तशरीफ लाए, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने घर में नक्शो निगार वाला एक पर्दा लटका रखा था, उसे देखकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दरवाज़े पर ही ठहर गए, अंदर तशरीफ ना लाए और वापस लौट गए, यह देखकर सैयदा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे चल पड़ी और आपके नज़दीक पहुंचकर अर्ज़ किया:- "अल्लाह के रसूल! आप वापस किस लिए जा रहे हैं_,"*
*"_ जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- "पैगंबर के लिए यह मुनासिब नहीं कि ऐसे मकान में दाखिल हो जो नक्शों निगार से सजाया गया हो _,"*
[9/19, 10:32 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज़ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया:- ऐ मेरी बेटी ! जो मुझे महबूब है क्या वह तुम्हें महबूब नहीं _," सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया:- क्यों नहीं ! जो आपको महबूब है वह मुझे भी महबूब है _,"* 
*"_अब आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- "तब फिर सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ मोहब्बत रखना, उनसे उम्दा सुलूक़ क़ायम रखना _,"*

*★_ फतेह मक्का के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबू जहल की लड़की से निकाह का इरादा किया, इस बात की खबर हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को भी हो गई, उन्हें शदीद रंज हुआ, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुईं और यह बात आपको बताई, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सहाबा किराम के सामने खुतबा दिया और उसमें इरशाद फरमाया:-*
*"_ फातिमा मेरे जिस्म का टुकड़ा है, जिसने उन्हें तकलीफ पहुंचाई उसने मुझे भी तकलीफ पहुंचाई, जो चीज़ फातिमा को बुरी लगे वह मुझे भी ना पसंद है, मैं अपनी तरफ से हलाल को हराम नहीं करता और ना किसी हराम को हलाल करता हूं लेकिन अल्लाह की क़सम ! अल्लाह के रसूल की बेटी और अल्लाह के दुश्मन की बेटी एक शख्स के निकाह में जमा नहीं होंगी _,"*
*"_इस ख़ुत्बे के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौरन अबू जहल की बेटी से निकाह का इरादा तर्क कर दिया _," (बुखारी 1/438)*

*★_ एक रोज़ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा में कुछ रंजीदगी हो गई, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने सख्त लहजे में सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को कुछ कह दिया, इसको सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुईं और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की शिकायत की, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "ए मेरी बेटी ! तुम्हें अपने खाविंद की इता'त और फरमाबरदारी करनी चाहिए, खाविंद को तंबीह वगैरा का हक़ होता है _," (तबका़त इब्ने सा'द 8/16)*

*★_ अपने मर्जुल वफात में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मे बहुत सी वसीयतें फरमाईं, बहुत से फरमान जारी किये, उन पर अमल करने की पूरी उम्मत को बहुत ताकीद फरमाई, इस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और अपनी फूफी हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा को यह वसीयत फरमाई:-*
*"_ ऐ फातिमा और ऐ सफिया ! अल्लाह ताला के यहां जो हिसाब किताब लिया जाएगा उसकी तैयारी करो, मैं अल्लाह के यहां हिसाब किताब में तुम्हारे काम नहीं आऊंगा_,"*
*"_ इस वसीयत से आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मुराद यह थी कि हसब नसब पर भरोसा करके आमाल में कोताही करना दुरुस्त नहीं , बाक़ी रहा शफा'त का मसला, वह अपने मुका़म पर बिल्कुल दुरुस्त है, वो अल्लाह के हुक्म से होगी।*
[9/19, 7:48 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के आखिरी दिन थे, आप घर में तशरीफ़ फरमा थे, अज़वाजे मुताहरात जमा थीं, ऐसे में हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा तशरीफ ले आईं, उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलाद में से सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ही जिंदा थीं, उनके चलने का अंदाज़ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के मुवाफिक़ था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें आते हुए देखा तो मरहबा फरमाया और अपने पास बिठा लिया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सैयदा फातिमा के कान में कुछ कहा, वह इस बात को सुन कर बेसाख्ता रोने लगीं, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी गमगीनगी देखी तो फिर उनके कान में कुछ फरमाया, वह यह सुनकर हंसने लगीं_,"* 

*★_ जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उस मजलिस से तशरीफ ले गए तो सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा- अल्लाह के रसूल ने आपके कान में क्या कहा था ?*
*"_ जवाब में हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया- मैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के राज़ की बात को जाहिर नहीं करना चाहती _,"*

*★_ उसके बाद जब आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतकाल हो गया तो हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा- मैं आपको उस हक़ का वास्ता देकर कहती हूं जो मेरा आप पर है, मुझे वह बात ज़रूर बता दें जो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने आपके कान में कही थी_,"* 
*"_जवाब में हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया- पहली मर्तबा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मेरे कान में फरमाया था कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम हर साल एक मर्तबा आकर क़ुरान ए मजीद का विर्द करते थे यानी कि मुझे क़ुरान सुनाते थे और मुझसे सुनते थे, इस मर्तबा उन्होंने दो बार मुझे कुरान ए मजीद सुनाया और सुना, इससे मैं यही ख्याल करता हूं कि मेरी वफात क़रीब आ गई है, ए फातिमा ! अल्लाह से खौफ खाना और सब्र करना, मैं तुम्हारे लिए बेहतरीन पेश रू होउंगा _,"*

*"_ यह सुनकर मै रोने लगी, जब नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मुझे रोते देखा, मेरी घबराहट और परेशानी को देखा तो दोबारा सरगोशी की और फरमाया- ए फातिमा! तुम्हें यह बात पसंद नहीं कि तुम अहले जन्नत की औरतों की सरदार हों या मोमिनों की औरतों की सरदार हों ?_,"* 

*★_ एक दूसरी रिवायत के मुताबिक़ नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया था- ए फातिमा ! तुम मेरी अहले बैत में से पहली शख्सियत हो जो मेरे पीछे आएगी (यानी सबसे पहले तुम्हारी वफात होगी और तुम मुझसे मिलोगी) यह सुनकर मैं हंसने लगी _,"*
[9/21, 5:07 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फिर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतकाल हो गया, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा रंजो गम की कैफियत में कहने लगीं:- अब्बा जान ! आपने रब की दावत क़ुबूल की, ए अब्बा जान ! जन्नतुल फिरदोस आप का ठिकाना होगा _,"*

*★_ इसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कफन दफन के मराहिल गुज़रे और हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे मुबारक में दफन हुए, उस वक्त सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के खादिम हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछने लगी:- ऐ अनस ! आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के जिस्म मुबारक पर मिट्टी डालना तुम लोगों को किस तरह गवारा हुआ ?_," (मिशकात, दारमी)*

*★_ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपने आखरी औका़त में सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को बहुत सी वसीयतें फरमाई, इसमें से खासतौर पर एक यह है:- ए फातिमा ! जब मेरा इंतकाल हो जाए तो मेरी वजह से (मेरे गम में) अपने चेहरे को ना छीलना, अपने बालों को ना परेशान करना और वावेला ना करना और मुझ पर नोहा और बैन ना करना और ना ही बैन करने वालियों को बुलाना _,"*  

*★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के विसाल के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु खलीफा मुकर्रर हुए, तमाम सहाबा ने आपकी खिलाफत को तस्लीम कर लिया और हजरत अबू बकर सिद्दीक खिलाफत के फराइज़ सर अंजाम देने लगे, आप ही मुसलमानों को पांच वक्त की नमाज़ पढ़ाया करते थे और मदीना मुनव्वरा के तमाम सहाबा किराम उनके पीछे नमाज़ अदा करते थे।*
[9/22, 6:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन दिनों में सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा अपना एक मुतालबा लेकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में आईं, आपने सिद्दीके़ अकबर से कहा :- हमें बागे फदक, खैबर की जायदाद और अमवाले मदीना में से हमारा हक़ विरासत दिया जाए यानी इन जायदादों का हमें वारिस बना दिया जाए _,*

*★_ यह हिस्सा ‌चूंकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का था इसलिए सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह मुतालबा किया, इस मुतालबे के जवाब में हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फरमाया:- रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का फरमान है कि हम अंबिया की माली विरासत नहीं चलती और जो कुछ हम छोड़ जाएं अल्लाह के रास्ते में वक्फ और सदका़ होता है बाक़ी आप हजरात को जो हक़ इन अमवाल में से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दौर में मिलता था वह बदस्तूर दिया जाएगा और इसमें हम किसी क़िस्म का तग़य्युर व तबद्दुल नहीं करेंगे और उसी तरीके से अदायगी करेंगे जिस तरह नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम जारी किए हुए थे _,"*

*★_ इस मौक़े पर हजरत अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फरमाया :- अल्लाह की क़सम ! जिसके क़ब्जे में मेरी जान है, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की क़राबतदारी मुझे अपनी क़राबतदारी से ज़्यादा अज़ीज़ है और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के रिश्तेदारों का लिहाज़ मुझे अपने रिश्तेदारों के लिहाज़ से ज्यादा है _,"* 

*★_ आप का मतलब यह था कि माली हक़ आपका अदा किया जाता रहेगा जैसे आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ज़माने में अदा किया जाता था, माल का वारिस आपको नहीं बनाया जाएगा क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का फरमान यही है _," (बुखारी शरीफ)* 

*★_ चुनांचे तीनों खुलफा़ के दौर में यह हक़ इन हजरात को उसी तरह मिलता रहा जिस तरह यह हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ज़माने में मिला करता था, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी अपने दौर में यह मसला इसी तरह रखा_,*
[9/23, 6:34 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सिलसिले में जो लोग यह कहते हैं कि सैयदा को हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु का यह फैसला नागवार गुज़रा था और सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फिर तमाम जिंदगी हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु से बात नहीं की, यह दुरुस्त नहीं है । इन हजरात ने इस फैसले को खुशी से क़ुबूल किया था क्योंकि हक़ बात थी भी यही।*
*"_हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु और सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के दरमियान कोई नाखुशगवारी नहीं थी, जैसा कि दर्जे ज़ेल वाक़िए से साबित है ।*

*★_ एक रोज़ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के यहां तशरीफ ले गईं, वहां दोनों के दरमियान गुफ्तगू हुई, इस गुफ्तगू के दौरान सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत अबू बकर सिद्दीक से कहा:-*
*"_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मेरे हक़ में बशारत फरमाई थी कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद आपके अहले बैत में पहली शख्सियत में हुंगी जो आपके साथ जा मिलुंगी (यानी अहले बैत में से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद सबसे पहले मैं इस दुनिया से रुखसत हुंगी )_," ( मुहनद अहमद )* 

*★_ उमामा बिन्ते अबुल आस, सैयदा ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी और सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की सभी भांजी थीं, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को उमामा रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में वसीयत फरमाई :- "मेरे बाद अगर आप शादी करना चाहें तो मेरी भांजी उमामा को निकाह में ले लें _,"*

*★_ चुनांचे सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात के बाद जब उमामा रज़ियल्लाहु अन्हा बड़ी हो गईं तो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे शादी की _,*
[9/24, 6:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की वफात के बाद सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हद दर्जे गमगीन रहने लगी थीं, आपकी उम्र उस वक्त 28, 29 बरस की थी, आप की औलाद बेटे बेटियां अभी कम उम्र थे, आपकी तीमारदारी के लिए हजरत असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा तशरीफ लाती, यह हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा मोहतरमा थीं,* 

*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पांचों नमाज़े बा जमात मस्जिद-ए-नबवी में अदा फरमाते थे, एक रोज़ जब यह हजरात नमाज़ से फारिग हो चुके तो हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा:- नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की साहबजा़दी हजरत फातिमातुज़ ज़ोहरा का क्या हाल है, उनका मिज़ाज कैसा है ? ( किताब सुलेम बिन कै़श )*
*"_ इस रिवायत से भी यही साबित है कि इन हजरात के आपस में बहुत खुशगवार ताल्लुका़त थे _,*

*★_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के विसाल के 6 माह बाद सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा बीमार हो गईं और चंद रोज़ बाद रमज़ानुल मुबारक 11 हिजरी में मंगल की शब आपका इंतकाल हुआ, उस वक्त आपकी उम्र 28 या 29 साल थी, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बराहे रास्त आखरी औलाद थीं जिनका इंतकाल हुआ, सैयदा के बाद बिला वास्ता कोई औलाद दुनिया में ना रहीं, यह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आखिरी निशानी थीं, यह भी अल्लाह के यहां पहुंच गई, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजीऊन _,*

*★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के इंतकाल पर मदीना मुनव्वरा के लोगों के गम की इंतेहा ना रही, सहाबा किराम इसलिए भी हद दर्जा गमगीन थे कि उनके महबूब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बिला वास्ता औलाद का सिलसिला भी सैयदा की वफात पर खत्म हो गया था, अब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की निशानी अज़वाजे मुताहरात रह गई थीं _,*
[9/25, 7:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतका़ल मगरिब और इशा के दरमियानी वक़्त में हुआ, आपने वफात से पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा मोहतरमा असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा को वसीयत की थी कि आपको वह गुस्ल दें, चुनांचे हजरत असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको गुस्ल दिया, उनके साथ गुस्ल में चंद और बीबियों ने भी शिरकत की, हजरत अली अल मुर्तुजा रज़ियल्लाहु अन्हु इन सारे काम की निगरानी करते रहे।* 

*★_ गुस्ल और कफ़न के बाद सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की नमाज़े जनाजे़ का मरहला पेश आया, नमाजे़ जनाजा़ के लिए ख़लीफा ए अव्वल हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत उमर और दीगर हजरात जो उस वक़्त मौजूद थे सब तशरीफ ले आए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:- आगे तशरीफ ला कर जनाज़ा पढ़ाएं_," जवाब में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:- "आप खलीफा ए रसूल हैं, आपकी मौजूदगी में मैं नमाजे़ जनाजा़ नहीं पढ़ा सकता, नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाना आप ही का हक़ है, आप तशरीफ लाएं और नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाएं _,"* 

*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु आगे तशरीफ ले आए, आपने चार तकबीर के साथ नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई, बाक़ी तमाम हजरात ने इनकी इक़्तदा में नमाज़ अदा की _," ( तबक़ात इब्ने सा'द- 8/19)*

*★_ नमाजे़ जनाजा़ के बाद सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को रात के वक़्त ही जन्नतुल बकी़ में दफन किया गया, दफन करने के लिए हजरत अली, हजरत अब्बास और फज़ल बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुम क़ब्र में उतरे _," (अल असाबा )*
[9/27, 6:40 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां जो औलाद हुई उनके नाम यह हैं:- सैयदना हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु, सैयदना हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु, सैयदना हजरत मोहसिन रज़ियल्लाहु अन्हु (यह तीसरे साहबजा़दे बचपन में ही फौत हो चुके थे )*

*★_ हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु 15 रमज़ान 3 हिजरी में, हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु शाबान 5 हिजरी में पैदा हुए ,*

*★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां दो साहबज़ादियां हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा पैदा हुईं, बाज़ उलमा ने एक तीसरी साहबजा़दी रुक़ैया का भी ज़िक्र किया है _,*

*★_ इनमें से सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से 17 हिजरी में और हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत अब्दुल्लाह की जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु से हुआ था _," ( नसब कुरेश- सफा नंबर 25 )*

*★_ सैयदा फातिमा का हुलिया नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मिलता-जुलता था, सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- "फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का लबो लहजा, उठना बैठना बिल्कुल हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरह था, आप बातचीत भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह किया करती थीं, आप की चाल भी रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की चाल जैसी थी _,"*

*★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मेहबूब तरीन औलाद थीं, आपने उनके बारे में इरशाद फरमाया:- "फातिमा मेरे जिस्म का एक हिस्सा है जो उसे नाराज़ करेगा वह मुझे नाराज़ करेगा _,"*
[9/28, 6:54 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक मर्तबा हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को सोने का हार दिया, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मालूम हुआ तो फरमाया:- "क्यों फातिमा ! क्या लोगों से कहलवाना चाहती हो कि रसूलल्लाह की लड़की आग का ज़ेवर पहनती है_,"*
*"_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फौरन उस हार को बेचकर उस रक़म से एक गुलाम खरीद लिया ।*

*★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा हद दर्जे हयादार थीं, एक मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें बुलवाया तो वह शर्म की वजह से लड़खड़ाती हुई आईं, अपने जनाजे़ पर पर्दा करने की वसीयत भी इसी बिना पर की थी, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है:- "मैंने फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से ज़्यादा किसी को साफ गो नहीं देखा, अलबत्ता उनके वालिद उनसे साफ गो थे _,"*

*★_ सैयदा को आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से बेतहाशा मोहब्बत थी, जब छोटी थीं तब कुरैश ने एक मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कमर मुबारक पर ऊंट की ओझड़ी रख दी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक़्त नमाज़ में थे, यह गंदी हरकत करने के साथ ही क़ुरेश हंसने लगे, हंसते जाते और एक दूसरे पर गिरते जाते थे, ऐसी हालत में सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को किसी ने खबर दी, इनकी उम्र उस वक़्त 5- 6 साल थी, लेकिन मोहब्बत के जोश में दौड़ी चली आईं और उस बोझ को हटाकर क़ुरेश को बद दुआएं देने लगीं _,"* 

*★_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से बेतहाशा मोहब्बत करते थे, सफर में जाते तो सबसे आखिर में सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से मिलने के लिए तशरीफ लाते, वापस आते तो सबसे पहले इन्हीं से मिलते, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलने आतीं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठ कर खड़े हो जाते थे, उन्हें अपनी जगह बिठाते, सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा में और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु में कभी नाराज़ी हो जाती तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाते और दोनों में सुलह करवा देते और सुलह करवा कर बहुत खुश होते, अल्लाह ताला की सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा पर करोड़ों रहमतें हों, आमीन।*

*★_ अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई, लिखने में और पोस्ट करने में जो कमी कोताहियां हमसे हुई अल्लाह ताला उसे माफ फरमाए, आमीन।*

*📓 उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 162* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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