RAHMATULLIL AALAMEEN (HINDI) PART-2

 

⚂⚂⚂.
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     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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         *■ रहमतुल लिल- आलमीन ■*
           *🌹صلى الله على محمدﷺ🌹*
  ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙                                     ★ *क़िस्त–2_* ★
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*❀_यहूदियों की शरारते, अहद शिकनी और हमले:-*
*"_ लफ़्ज़े यहूद से अगरचे सिर्फ वही एक क़बीला मुराद होना चाहिए जो "यहूद बिन याक़ूब" की नस्ल से था लेकिन इस्तलाहन बनी इसराईल के 12 क़बाइल ही का कौ़मी नाम यही पड़ गया, बनी इसराइल अपने इब्तिदाई ज़माने में अल्लाह की मक़बूल और बरगुज़ीदा कौ़म थी, लेकिन आख़िर में वह अल्लाह से इस क़दर दूर होते गए कि अल्लाह के गज़ब के मुस्तहिक ठहरे,* 

*★_ हजरत मसीह अलैहिस्सलाम जैसे रहम दिल ने उनकी हालतों को देखकर उन्हें सांप और सांप के बच्चे बतलाया था और यह भी खबर दी थी कि अल्लाह की बादशाहत इस क़ौम ले जाकर एक दूसरी क़ौम को दी जाएगी जो उसके अच्छे फल लाएगी _,"*

*★_ जब इस बशारत के ज़हूर का वक्त आ गया और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपनी बेहतरीन तालीम की तबलीग शुरू कर दी तो यहूद ने सख्त पेच व ताब खाया और आखिर यही फैसला किया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को भी वैसे ही जुल्मों सितम का निशाना बनाया जाए जैसा कि मसीह अलैहिस्सलाम को बना चुके थे _,"*
*"_यहुद अगरचे हिजरत के पहले ही साल मुआहिदा करके अमनो अमान का पैमान बांध चुके थे लेकिन फितरी शरारत ने ज़्यादा देर तक छुपा रहना पसंद ना किया, मुआहिदे से डेढ़ साल ही के बाद शरारतों का आगाज़ हो गया, जब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ बदर की जानिब गए हुए थे,*

*★_ उन्हीं दिनों का ज़िक्र है कि एक मोमिना औरत बनु क़ेनका़ के मोहल्ले में दूध बेचने गई और चंद् यहूदियों ने शरारत की और उसे सरे बाजार बरहना कर दिया, औरत की चीख-पुकार सुनकर एक सहाबी मौक़े पर जा पहुंचे, उन्होंने तेश में आकर फसाद अंगेज़ यहूदी को क़त्ल कर दिया, इस पर सब यहूदी जमा हो गए, उन सहाबी को भी मार डाला और बलवा भी किया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने बदर से वापस आकर यहूदियों को इस बलवे के मुताल्लिक़ दरयाफ्त करने के लिए बुलाया, उन्होंने मुआहिदे का कागज भेज दिया और खुद जंग पर आमादा हो गए, यह हरकत अब बगावत तक पहुंच गई थी, इसलिए उनको यह सज़ा दी गई मदीना छोड़ दें और खैबर में जा आबाद हों _,"*     

[12/29/2021, 5:21 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ यहूद की नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल की साज़िश_,*
*"_ कुरेश की पहली साज़िश के उनवान में लिखा जा चुका है कि कुरेश ने मदीना के बुत परस्तों को नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के खिलाफ जंग करने की बाबत खत लिखा था, मगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की दानाई से उनकी यह तदबीर कारगर ना हुई, अब बदर में शिकस्त खाने के बाद क़ुरेश ने यहूद को फिर लिखा- तुम जायदादों और क़िलो के मालिक हो, तुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से लड़ो, वरना हम तुम्हारे साथ ऐसा और वैसा करेंगे, तुम्हारी औरतों की पाजेबें तक उतार लेंगे _,"*

*★_ इस खत के मिलने पर बनु नज़ीर ने अहद शिकनी का और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से फरेब का इरादा कर लिया, चार हिजरी का ज़िक्र है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम एक कौ़मी चंदा फराहम करने के लिए बनू नज़ीर के मोहल्ले में तशरीफ ले गए, उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को एक दीवार के नीचे बिठाया और तदबीर यह कि इब्ने हिजाश मल'ऊन दीवार के ऊपर जाकर एक भारी पत्थर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर गिरा दे और हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की ज़िंदगी का खात्मा कर दे,* 

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को वहां जाकर बैठने के बाद बा इलाम रब्बानी इस शरारत का इल्म हो गया और हिफाज़त ए इलाही से बच कर चले आएं, बिल आखिर बनू नज़ीर को यह सज़ा दी गई कि खैबर जाकर आबाद हो जाएं, उन्होंने 600 ऊंटों पर सामान लादा, अपने घरों को अपने हाथों से गिराया, बाजे बजाते हुए निकले और खैबर जा बसे _,"*
[12/30/2021, 4:43 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ यहूद की तीसरी साज़िश और जंगे अहज़ाब या गज़वा ए खंदक़ :-*
*"_5 हिजरी का मशहूर वाक़िया जंग ए खंदक है, बनू नज़ीर खैबर पहुंचकर भी सुकून से नहीं बैठे, उन्होंने यह अज़्म किया कि मुसलमानों का क़िला फतह करने के लिए एक मुत्तफका़ कोशिश की जाए, जिसमें अरब के तमाम क़बाइल और जुमला मजा़हिब के जंगजू शामिल हों, उन्होंने 20 सरदार मामूर किए कि अरब के तमाम क़बीलों को हमले के लिए आमादा करें, इस कोशिश का नतीजा यह हुआ कि 5 हिजरी को 10 हज़ार का खूंखार लश्कर जिसमें बुत परस्त यहूदी वगैरह सभी शामिल थे, मदीना पर हमलावर हुआ, क़ुरान मजीद में इस लड़ाई का नाम "जंगे अहज़ाब" है _,*

*★_ कुरेश बनू कनाना अहले तमामा ज़ेरे कमान सुफियान बिन हर्ब थे, बनी फुज़ारा ज़ेरे कमान उक़बा बिन हुसैन, बनी मुर्रह ज़ेरे कमान हारिस बिन औफ, बनू शुजा व अहले नजद ज़ेरे कमान मसूद बिन ज़ुहेला थे, मुसलमानों ने जब इन लश्करों से मुकाबले की ताक़त ना देखी तो शहर के गिर्द खंदक़ खोद ली, 10- 10 आदमियों ने 40- 40 गज़ खंदक़ तैयार की थी_," ( तिबरी-2/213)* 

*★_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम खंदक खोदते होते हुए यह शेर पढ़ते थे:- (तर्जुमा) हम वह हैं जिन्होंने हमेशा के लिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के हाथ पर बैत ए इस्लाम की है_,"*
*"_ खंदक खोदने पत्थर तोड़ने मिट्टी हटाने में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खुद भी सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को मदद देते थे, सीना मुबारक के बाल मिट्टी से छुप गए थे और इब्ने रवाहा के अश'आर जे़ल को बा आवाज़ बुलंद पढ़ते थे :-*
*"_(तर्जुमा) ऐ अल्लाह तेरे सिवा हम को हिदायत थी कहां, कैसे पढ़ते हम नमाज़े कैसे देते हम जकात,*
*"_ऐ अल्लाह हम पर सकीना का तू फरमा दे नुज़ूल, दुश्मन आ जाए तो हमको कर अता यारब सबात_,"*
*"_बे सबब हम पर यह दुश्मन ज़ुल्म पर चढ़ आएं हैं, फितनागर है वह, नहीं भाती हमें फितने की बात _," (बुखारी -4104, 4106)*
[12/31/2021, 7:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सहाबा सिर्फ तीन हजार थे, इस्लामी लश्कर मदीना ही के अंदर इस तरह उतरा कि सामने खंदक थी और पशे पुश्त कोहे सला, बनू कु़रेजा़ यहूद (जो मदीना में आबाद थे और जिनको मुआहिदे के मुताबिक मुसलमानों का साथ देना ज़रूरी था) उनसे शब की तारीकी में हयी बिन अखतब यहूदी सरदार बनु नजी़र जाकर मिला और उन्हें अहद शिकनी पर आमादा करके अपनी तरफ मिला लिया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपने कई नक़ीब भी उनके पास बार-बार समझाने को भेजे मगर उन्होंने साफ-साफ कह दिया, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कौन हैं कि हम उसकी बात माने उसका हमसे कोई अहद व पैमान नहीं _,"*
*( इब्ने हिशाम-2/141, ज़ादुल मा'द -3/272)*

*★_ इसके बाद बनू कु़रेजा़ ने शहर के अमन में भी खलल डालना शुरू कर दिया और सहाबा की औरतों और बच्चों को खतरे में डाल दिया, मजबूरन तीन हज़ार मुसलमानों से भी एक हिस्से को शहर के अमन आमा की हिफाजत के लिए अलहदा करना पड़ा, बनू कु़रेजा़ यह समझे हुए थे कि जब बाहर से दस हज़ार दुश्मन का बड़ा लश्कर हमलावर होगा और शहर के अंदर गदर फैलाकर हम मुसलमानों की आफियत तंग कर देंगे तो दुनिया पर मुसलमानों का नामोनिशान भी बाक़ी ना रहेगा _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को चूंकी जंग से नफरत थी इसलिए आपने यह भी सहाबा से मशवरा किया कि हमलावर सरदाराने गतफान से एक तिहाई पैदावार सिमर (मेवा) पर सुलह कर ली जाए लेकिन अंसार ने जंग को तरजीह दी, साद बिन माज़ और साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस तजवीज़ के मुताल्लिक़ तक़रीर करते हुए कहा कि जिन दिनों यह हमला आवर क़बाइल शिर्क की नजासत से आलूद और बुत परस्ती में मुब्तिला थे उन दिनों भी हमने उनको एक छुआरा तक नहीं दिया, अब जबकि अल्लाह ने हमें इस्लाम से मुशर्रफ फरमा दिया है तो हम उन्हें क्यों कर पैदावार का तिहाई हिस्सा दें सकते हैं, उनके लिए हमारे पास तो तलवार के सिवा और कुछ नहीं है _,"*
*( तिबरी व इब्ने हिशाम -2/ 141, ज़ादुल मा'द-3/273)*

*★_ हमलावर फौज का मुहासरा 20 दिन तक रहा, कभी-कभी इक्के दुक्के का मुका़बला भी हुआ, अमरु बिन अब्दूद जो अपने आपको हज़ार जवानों के बराबर समझा करता था हजरत अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ से मारा गया और नोफल बिन अब्दुल्लाह बिन मुगीरा भी मुक़ाबले में हलाक हुआ, अहले मक्का ने नोफल की लाश लेने के लिए दस हज़ार दिरहम पेश किए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- लाश दे दो, क़ीमत दरकार नहीं _,"*

*★_ जब दुश्मन इस अरसे में महसूर मुसलमानों से कोई मोर्चा ना ले सके तो उनके हौसले टूट गए और फिर एक रात तमाम लश्कर अपने अपने डेरे डंडे उठाकर रफूचक्कर हो गए_,"*
[1/1, 7:20 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बनू कुरेजा़ का अंजाम:-*
*"_ इस मुसीबत से रिहाई के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने बनु कु़रेजा़ को बुला भेजा कि वह सामने आकर अपने तर्ज़े अमल की वजह बयान करें, अब बनु कु़रेजा़ क़िला बंद हो बैठे और लड़ाई की पूरी तैयारी कर ली, उस वक्त सहाबा को यह मालूम हुआ कि बनु नज़ीर का सरदार ह'ई बिन अखतब जो बनु क़ुरेजा़ को सहाबा का मुखालिफ बनाने आया था, अब तक उनके क़िले के अंदर मौजूद है _,"*

*★_ बनु कु़रेजा का यह गदर उनकी पहली हरकत ही ना थी बल्कि जंग-ए-बदर में उन्होंने क़ुरेश को (जो सहाबा पर हमलावर हुए थे) हथियारों से मदद दी थी, मगर उस वक़्त रहमतुल आलमीन नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनका यह क़ुसूर माफ कर दिया था, अब उनके क़िला बंद हो जाने से सहाबा को मजबूरन लड़ना पड़ा, माह ज़िलहिज्जा मुहासरा किया गया जो 25 दिन तक रहा, मुहासरे की सख्ती से बनु कु़रेजा़ तंग आ गए, उन्होंने क़बीला औस के मुसलमानों को जिनसे उनका पहले से रब्त व ज़ब्त था, बीच में डाला और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मनवा लिया कि मामले में सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को (जो क़बीला औस के सरदार थे) हकम (मुंसिफ) तस्लीम किया जाए, जो फैसला सा'द बिन मा'ज़ कर दें अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उसी को मंजूर कर लें _,"* 

*★_ बनू कु़रेजा़ क़िला से निकल आए और मुकदमा सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द किया गया, अल्लाह जाने बनु कु़रेजा़ के यहूदियों और औस के मुसलमानों ने सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को हकम बनाते हुए क्या-क्या उम्मीदें उन पर लगाईं होंगी, मगर ज़रूरी तहकी़का़त के बाद उस जंगी मर्द ने यह फैसला दिया कि बनु कु़रेजा़ के जंग आवर मर्द क़त्ल किए जाएं, औरतें और बच्चे ममलूक बनाए जाएं, माल तक़सीम किया जाए _,"*

*★_ इस फैसले की तकमील के मुताल्लिक सही बुखारी में जो रिवायत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से है उससे यह तो मालूम होता है कि जंग आवर मर्द क़त्ल किए गए थे लेकिन इस हदीस के मुताल्लिक़ क़ार'ईन यह भी याद रखें कि यहूदियों को उनके अपने मुंतखब करदा मुंसिफ ने क़रीबन वहीं सज़ा दी थी जो यहूदी अपने दुश्मनों को दिया करते थे और जो उनकी शरीयत में है, अगर बनू कुरेजा़ अपना मामला नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सुपुर्द कर देते हैं तो उनको ज़्यादा से ज़्यादा जो सज़ा दी जाती वह यह होती कि जाओ खैबर में आबाद हो जाओ, बनु क़ैनका़ और बनु नजी़र का मामला इसकी नजी़र है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन बनु कु़रेजा़ से भी बाज़ को रहम शाहाना से इस फैसले की तामील से मुस्तसना फरमा दिया था, मसलन जु़बेर यहूदी के लिए मय अहलो अयाल, फरज़ंद व माल रिहाई का हुक्म दे दिया था और 1्फा बिन शमूईल यहूदी की भी जान बख्शी फरमा दी थी _,"*
*( तारीख तिबरी- 2/ 230)*
[1/2, 6:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ईसाइयों से जंग -जंगे मौता (बा माह जमादिल अव्वल 8 हिजरी )*
*"_ईसाई अक़वाम का नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से बर्ताव अच्छा रहा, एक दो हाकिमाने मुल्क ने शख्सी तौर पर आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से इनाद (दुश्मनी) किया लेकिन जम्हूर का इस से ताल्लुक़ ना था, तफसील से इसकी तोज़ी होती है कि सिर्फ एक ईसाई सरदार के साथ एक जंग हुई और एक सफरान के हमलावर होने की खबर उड़ जाने पर किया गया है और बस,* 

*★_मौता शाम के एक कस्बे का नाम है, यहां के सरदार शर्जील बिन अमरू गस्सानी ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सफीर हारिस बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु को जो दावते इस्लाम का खत लेकर रवाना हुआ था, क़त्ल करा दिया था, मज़लूम हारिस के क़त्ल से सफीरों की जाने खतरे में पड़ गई थी, इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने क़रीबन तीन हज़ार की एक फौज रवाना की, हाकिम गस्सान ने अपनी कार्यवाही पर नदामत का इज़हार नहीं किया, वह तो मुक़ाबले पर तैयार हो गया,*

*★_ इत्तेफ़ाक से हिरक्क़ल बादशाह उस इलाक़े में आया हुआ था और मुआब में एक लाख लश्कर की जमिअत से ठहरा हुआ था, अरब के सेहरा नशीन ईसाई क़बाइल लखम, बहरा, बली, क़ैस वगैरा के भी क़रीबन एक लाख आदमी शहंशाह हिरक्कल की आमद पर वहां जमा थे, इसलिए हाकिम गस्सान ने कुछ शाही फौज भी मंगवा ली और क़बाइल को भी जमा कर लिया, ग़र्ज दुश्मनों की तादाद एक लाख तक पहुंच गई,*

*★_ मुसलमान मजबूरन लड़े, ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु जो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के परवरदाह [परवरिश किए हुए] निहायत अज़ीज़ और उस फौज के कमांडर थे, मारे गए, जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु जो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के चचेरे भाई और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हकी़की़ बड़े भाई थे (उम्र 33 साल) 90 ज़ख्म सामने की तरफ खाकर और अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ियल्लाहु अन्हु जिन्होंने जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद फौज की कमान संभाली थी, शहीद हो गए, फिर खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौज को संभाला और डेढ़ दिन की सख्त जंग के बाद अपने से 40 गुना ज़्यादा फौज को भाग जाने पर मजबूर कर दिया, इस जंग में नो तलवारे हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ से टूटी थीं_,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मदीने में बैठे हुए इन बुजुर्गों के मारे जाने और जंग के आखरी अंजाम का हाल सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से उसी रोज़ बयान फरमा दिया था, इसी जंग के बाद खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु को "सैफुल्लाह" का खिताब अता हुआ था_,"*
[1/3, 6:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जैशे इशरत या सफर ए तबूक (रज्जब 9 हिजरी):-*
*"_चूंकी कोई जंग नहीं हुई इसलिए मैंने इसका नाम सफरे तबूक रखा है, मौरखीन इसे गज़वा ए तबूक इसलिए लिखते हैं कि यह सफर बाग़र्ज मुदाफ'अत फौजी था_,"* 

*★_ एक काफ़िला शाम से आया और उन्होंने ज़ाहिर किया कि कै़सर की फौज मदीना पर हमलावर होने के लिए तैयार और फराहम हो रही है, अरब के ईसाई क़बाइल जुजा़म, अमला, गस्सान वगैरा उनके साथ शामिल हैं, गोया वह इस शिकस्त का बदला लेना चाहते थे जो बा मु़का़म ए मौता कै़सर के हाकिम और कै़सर की फौज को हुई थी, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया कि हमलावर फौज की मुदाफ'अत अरब की सरज़मीन में दाखिल होने से पहले पहले मुनासिब है ताकि अंदरूनी मुल्क के अमन में खलल पैदा ना हो _,*

*★_ यह मुक़ाबला ऐसी सल्तनत से था जो आधी दुनिया पर हुक्मरान थी और जिसकी फौज अभी हाल ही में सल्तनत ईरान को नीचा दिखा चुकी थी, मुसलमान बेसरो सामान थे, सफर दूरदराज का था और अरब की मशहूर गर्मी खूब जो़रों पर थी, मदीना के मेवे पक चुके थे, मेवे खाने और साए में बैठने के दिन थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सामान की तैयारी के लिए आम चंदे की फेहरिस्त खोली ‌_,"*

*★_ उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु अन्हु ने नौ सौ ऊंट सौ घोड़े और एक हज़ार दीनार चंदे में दिए, अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने 40 हज़ार दिरहम, उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने तमाम सामान नक़द व जिंस का आधा जो कई हज़ार रुपया था पेश किया, अबू बक़र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु जो कुछ लाए अगरचे वह क़ीमत में कम था मगर मालूम हुआ कि घर में अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की मोहब्बत के सिवा और कुछ भी बाक़ी ना छोड़कर आए थे _,"*

*★_ अबू अकी़ल अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु ने दो सैर छुआरे लाकर पेश किए और यह भी अर्ज़ किया कि रात भर पानी निकाल निकाल कर एक खेत को सैराब करके चार सैर छुआरे मजदूरी लाया था, दो सैर बीवी बच्चे के लिए छोड़कर बाक़ी दो सैर ले आया हूं, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि इन छुआरों को जुमला की़मती माल व मता के ऊपर बिखेर दो_,"*
[1/4, 6:28 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ग़र्ज हर एक सहाबी ने इस मौक़े पर ऐसे ही खुलूस व फराख दिली से काम लिया, क़रीबन 82 शख्स जो दिखावे के मुसलमान थे बहाना करके अपने घरों में रह गए, अब्दुल्लाह बिन अबी सलूल मशहूर मुनाफिक़ ने उन लोगों को इत्मीनान दिला दिया था कि अब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और उनके साथी मदीने वापस नहीं आ सकेंगे, कै़सर उन्हें क़ैद करके मुख्तलिफ मुमालिक में भेज देगा _,"*

*★_ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम 30 हज़ार की जमिअत से तबूक् को रवाना हो गए, मदीना पर मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु को ख़लीफा बनाया और अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीने में अहले बैत की ज़रूरियात के लिए मामूर फरमाया, लश्कर में सवारियों की बड़ी किल्लत थी, 18 शख्सों के लिए एक ऊंट मुक़र्रर था, रसद के ना होने से अक्सर जगह दरख़्तों के पत्ते खाने पड़े, जिससे होंठ सूज गए, पानी बाज़ जगह मिला ही नहीं, ऊंटों को (अगरचे सवारी के लिए पहले ही कम थे) ज़िबाह कर के उनके अमा का पानी पिया करते थे, अलगर्ज़ सब्र व इस्तक़लाल से तमाम तका़लीफ को बर्दाश्त करते हुए तबूक पहुंच गए _,"*

*★_ अभी तबूक के रास्ते ही मे थे कि अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु भी पहुंच गए, मालूम हुआ कि मुनाफिकी़न बाद में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को चिढ़ाने और खुजाने लगे थे, कोई कहता कि निकम्मा कह कर छोड़ दिया, कोई कहता तरस खाकर छोड़ दिया, इन बातों से अल्लाह के शेर अली रज़ियल्लाहु अन्हु को गैरत आई, दो मंजिला तीन मंजिला तय करते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में पहुंच गए, लंबे लंबे सफर और सख्त गर्मी की तकलीफ से पांव मतुरम थे और छाले पड़ गए थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- "अली! तुम इस पर खुश नहीं होते कि तुम मेरे लिए वैसे हो जैसा कि मूसा अलैहिस्सलाम के लिए हारून अलैहिस्सलाम थे, गो मेरे बाद कोई नबी नहीं _,"*
*"_यह सुनकर अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु खुश व खुर्रम मदीने को वापस तशरीफ ले गए_,"* 

*★_ तबूक पहुंचकर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक माह क़याम फरमाया, अहले शाम पर इस दिलेराना हरकत का असर यह हुआ कि उन्होंने अरब पर हमलावर होने का खयाल उस वक़्त छोड़ दिया और उस हमला आवरी का बेहतरीन मौका़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की वफात के बाद का ज़माना क़रार दिया _,"*
[1/5, 7:06 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का खुतबा:-*
*"_ तबूक में एक नमाज़ के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक मुख्तसर और निहायत जामा वाज़ फरमाया था, जिसका मफहूम तर्जुमे के साथ पेश किया जाता है :-*
*"_ अल्लाह ताला की बेहतरीन हम्द व सना के बाद:- हर एक कलाम से बढ़कर सच्चाई में अल्लाह की किताब है, सबसे बढ़कर भरोसे की बात तक़वे का कलमा है, सब मिल्लतों से बेहतर मिल्लत मिल्लते इब्राहिम अलैहिस्सलाम की है, सब तरीकों से बेहतर तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का है, सब बातों पर अल्लाह के जिक्र को फजी़लत है, सब बयानात से पाक़ीज़ा तरीन क़ुरान है, बेहतरीन काम बुलंद हौसलों के काम है, उमूर में बदततरीन उमूर वह है जो नया निकाला गया हो, अंबिया की रविश ( तरीक़ा) सब रविशों से खूबतर है, शहीदों की मौत मौत की सब किस्मों से बुजुर्गतर है,*

*★_ सबसे बढ़कर अंधापन गुमराही है जो हिदायत के बाद हो जाए, अमलों में वह अमल अच्छा है जो नफादह हो, बेहतरीन तरीक़ा वह है जिस पर लोग चलें, बदतरीन अंधापन दिल का अंधापन है, बुलंद हाथ पस्त हाथ से बेहतर है, थोड़ा और काफी माल उस निहायत से अच्छा है जो गफलत में डाल दे, बदतरीन माज़रत (तौबा) वह है जो जान निकलने के वक़्त की जाए, बदतरीन नदामत वह है जो क़यामत को होगी, बाज़ लोग जुमे को आते हैं मगर दिल पीछे लगे होते हैं, उनमें से बाज़ वह हैं जो अल्लाह का जिक्र कभी कभी किया करते हैं, सब गुनाहों से अज़ीमतर झूठी ज़ुबान है, सबसे बड़ी तवंगरी दिल की तवंगरी है, सबसे उम्दा तोशा तक़वा है, दानाई का सिरया है अल्लाह का खौफ दिल में हो, दिलनशीन होने के लिए बेहतरीन चीज़ यक़ीन है, शक पैदा करना एक कुफ्र (की शाख) है, बीन से रोना ( मातम) जाहिलियत का काम है,* 

*★_ चोरी करना अजा़बे जहन्नम का सामान है, बदमस्त होना आग में पढ़ना है, शेर इब्लीस का हिस्सा है, शराब तमाम गुनाहों का मजमुआ है, बदतरीन रोज़ी यतीम का माल खाना है, स'आतमंद वह हैं जो दूसरे से नसीहत पकड़ता है, असल बदबख्त वह है जो मां के पेट में ही बदबख्त हो, अमल का सरमाया उसके बेहतरीन अंजाम पर है, बदतरीन ख्वाब वह है जो झूठा है, जो बात होने वाली है वह क़रीब है, मोमिन को गाली देना फिस्क़ है, मोमिन को क़त्ल करना कुफ्र है, मोमिन का गोश्त खाना (उसकी गीबत करना) अल्लाह की नाफरमानी है _,*

*★_ मोमिन का माल दूसरे पर ऐसे ही हराम है जैसे उसका खून, जो अल्लाह से इस्तगना (बेपरवाही) करता है अल्लाह उसे झुटलाता है, जो किसी का ऐब छुपाता है अल्लाह उसके ऐबों को छुपाता है, जो माफी देता है उसे माफी दी जाती है, जो गुस्से को पी जाता है अल्लाह उसे अजर देता है, जो नुकसान पर सब्र करता है अल्लाह उसे अजर देता है, जो चुगली को फैलाता है अल्लाह उसकी रुसवाई आम कर देता है, जो सब्र करता है अल्लाह उसे बढ़ाता है, जो अल्लाह की नाफरमानी करता है अल्लाह उसे अज़ाब देता है, फिर तीन दफा इस्तगफार पढ़कर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इस खुतबे को खत्म फरमाया_,"*
*( बहीकी़ फिल दलाइल - 5/242)*
[1/6, 5:18 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ज़ुलबुजादीन रज़ियल्लाहु अन्हु की वफात :-*
*"_तबूक के क़याम के दौरान में ज़ुलबुजादीन रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतकाल हुआ, इस मुखलिस के जिक्र से वाजे़ होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मुफलिस व मुखलिस सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम पर किस क़दर लुत्फ व इनायत फरमाया करते थे, इनका नाम अब्दुल्लाह था, अभी बच्चे ही थे कि बाप मर गया, चाचा ने परवरिश की थी, जब जवान हो गए तो चाचा ने ऊंट बकरियां गुलाम देकर इनकी हैसियत दुरुस्त कर दी, अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम के मुताल्लिक कुछ सुना तो दिल में तोहीद का ज़ौक पैदा हुआ लेकिन चाचा से इस क़दर डर था कि इज़हार ए इस्लाम ना कर सके ।*

*★_ जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फतेह मक्का से वापस आ गए, तो अब्दुल्लाह ने चाचा से जाकर कहा:- प्यारे चाचा ! मुझे बरसो इंतज़ार करते गुज़र गए कि कब आप के दिल में इस्लाम की तहरीक पैदा होती है और आप कब मुसलमान होते हैं लेकिन आपका हाल वही पहले का सा चला आता है, मैं अपनी उम्र पर ज़्यादा ऐतमाद नहीं कर सकता, मुझे इजाज़त फरमाएं कि मैं मुसलमान हो जाऊं_,"* 
*"_चाचा ने जवाब दिया - देखो अगर तू मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का दीन क़ुबूल करना चाहता है तो मैं सब कुछ तुझसे छीन लूंगा, तेरे बदन पर चादर और तहेबंद तक बाक़ी ना रहने दूंगा _,"*

*★_ अब्दुल्लाह ने जवाब दिया- चाचा साहब ! मैं मुसलमान ज़रूर बनूंगा और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इत्तेबा ही क़ुबूल करूंगा, शिर्क और बुत परस्ती से मैं बेजार हो चुका हूं, अब जो आपकी मंशा है कीजिए और जो कुछ मेरे क़ब्जे में ज़र व माल वगेरा है सब कुछ संभाल लीजिए, मैं जानता हूं कि इन सब चीज़ों को आखिर एक रोज़ यहीं दुनिया में छोड़ जाना है, इसलिए मैं इनके लिए सच्चे दीन को तर्क नहीं कर सकता _,"*

*★_ अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह कहकर बदन के कपड़े तक उतार दिए और मादरजाद बरहना होकर मां के सामने गए, मां देख कर हैरान हो गई कि क्या हुआ? अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि मैं मोमिन और मोहिद हो गया हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में जाना चाहता हूं, सतर पोशी के लिए कपड़े की ज़रूरत है, मेहरबानी फरमा दीजिए, मां ने एक कंबल दे दिया, अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कंबल फाड़ा, आधे का तहेबंद बना लिया और आधा ऊपर ले ले लिया और मदीना को रवाना हो गए _,"*
[1/7, 8:19 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में पहुंच गए और मस्जिद से टेक लगा कर मुंतज़िराना बैठ गए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जब मस्जिद मुबारक में आए तो इन्हें देखकर पूछा कि कौन हो ? कहा कि मेरा नाम अब्दुल उज़्ज़ा है, फ़कीर व मुसाफिर हूं, आशिक़ ए जमाल और तालिबे हिदायत होकर यहां आ पहुंचा हूं _,*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम्हारा नाम अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु है और ज़ुलबुजादीन लक़ब है तुम हमारे क़रीब ही ठहरो और मस्जिद में रहा करो_,* 

*★_ अब्दुल्ला रज़ियल्लाहु अन्हु असहाबे सुफ्फा में शामिल हो गए, सुफ्फा चबूतरे को कहते हैं, मस्जिद-ए-नबवी के सहन में एक चबूतरा था, जो लोग घर बार छोड़कर के दुनिया का ज़र व माल आशाइश व आराम छोड़ कर तालीमे दीन व इस्लाम के ले आया करते थे, वह इस चबूतरे पर ठहरा करते थे इसलिए अहले सुफ्फा के नाम से मशहूर थे, यह आशिकाने सदाक़त भूख प्यास की मुसीबत, हर गर्मी सर्दी की तकालीफ बर्दाश्त करते मगर दुनिया की कोई तकलीफ इस्लाम की तालीम और कु़रान मजीद का दर्श लेने से इनकी रोक ना बन सकती थी, इन्हीं में से वो लोग तैयार हुए थे जो मुख्तलिफ मुल्कों में जा कर इशा'ते इस्लाम करते थे, इनमें हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु है जो 5374 अहादीस के रावी और इस्लाम के मुबल्लिग है_,"* 

*★_ अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से क़ुरान सीखते और दिन भर अजब ज़ौक व शौक और जोश व निशात से पढ़ा करते थे, एक दफा हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि लोग नमाज़ पढ़ रहे हैं और यह आराबी इस क़दर बुलंद आवाज़ से पढ़ रहा है कि दूसरों की क़िरात में मजा़हमत होती है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- उमर ! इसे कुछ ना कहो यह तो अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के लिए सब कुछ छोड़ कर आया है_,"*
[1/8, 6:17 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने गज़वा तबूक की तैयारी होने लगी तो यह भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आए, अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम दुआ फरमाएं कि मैं भी राहे हक़ में शहीद हो जाऊं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- जाओ किसी दरख़्त का छिलका उतार लाओ, जब अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु छिलका उतार लाए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने छिलका उनके बाजू़ पर बांध दिया और ज़ुबान मुबारक से फरमाया- इलाही मैं कुफ्फार पर इसका खून हराम करता हूं, अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मैं तो शहादत का तालिब हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- जब गज़वे की नियत से तुम निकलो और फिर तप आ जाए और मर जाओ तब भी तुम शहीद ही हो गए_,"* 
*"_तबूक पहुंचकर यही हुआ कि तप चढ़ी और आलमे बका़ को सिधार गए, हिलाल बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि मैंने अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु के दफन की कैफियत देखी है_,"* 

*★_ रात का वक़्त था, बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में चिराग था, अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु और उमर रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी लाश को लहद में रख रहे थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी उस क़ब्र में उतरे थे और अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु और उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमा रहे थे- अपने भाई का अदब मलहूज़ रखो _,"*
*"_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ब्र पर ईंटें भी अपने हाथ से रखी और फिर दुआ में फरमाया- इलाही आज की शाम तक में इससे खुशनूद रहा हूं, तू भी इससे राज़ी हो जा _,"*

*★_ इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि काश उस क़ब्र मे मै दबाया जाता _,"*
[1/9, 6:26 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मय अलखैर मदीना पहुंच गए, जो मुनाफिकीन यह समझ रहे थे कि अब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और उनके दोस्त क़ैद होकर दूर दस्त जज़ीरा में भेजे जाएंगे और सही व सालिम मदीना ना पहुंचेंगे, वह अब पशेमान हुए और उन्होंने साथ ना चलने के झूठ मूठ उज़र बनाए, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सबको माफी दे दी, लेकिन तीन मुखलिस सहाबी भी थे जो अपने मामूली सुस्ती व काहिली की वजह से हम रकाब जाने से रह गए थे, उनको अपनी सदाक़त की वजह से एक इम्तिहान भी देना पड़ा _,"*

*★_ उनमें से एक बुजुर्ग सहाबी ने अपने मुताल्लिक जो कुछ अपनी ज़ुबान से बयान किया है मैं उसको इसी जगह लिख देना ज़रूरी समझता हूं, यह बुजुर्गवार का'ब बिन मालिक अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु हैं और उन 73 साबिक़ीन में से हैं जो उक़बा की बैत ए सानिया में हाज़िर हुए थे और शूरा खास में से थे,*

*★_ का'ब रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि सफर में मेरा घर पर रह जाना इब्तला महज़ था, ऐसा करने का ना मेरा इरादा था और ना ही कोई उज़र था, सफर का जुमला सामान मुरत्तब था, उम्दा ऊंटनियां मेरे पास मौजूद थीं, मेरी माली हालत भी अच्छी थी कि पहले कभी ना हुई थी, इस सफर के लिए मैंने दो मजबूत ऊंट भी खरीद किए थे हालांकि इससे पहले मेरे पास दो ऊंट कभी ना हुए थे, लोग सफर की तैयारी करते थे और मुझे ज़रा तरद्दुद ना था ।*

*★_ मैंने सोच रखा था कि जिस रोज़ कूच होगा मैं चल पड़ूंगा, लश्कर ए इस्लाम जिस रोज़ रवाना हुआ मुझे कुछ थोड़ा सा काम था, मैंने कहा है मैं कल जा मिलूंगा, वह तीन रोज़ इसी तरह सुस्ती और तज़बज़ुब में गुज़र गए और लश्कर इतनी दूर निकल गया था कि उससे मिलना मुश्किल हो गया था, मुझे निहायत सदमा था कि यह क्या हुआ ?*
[1/10, 8:49 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_मैं घर से निकला, मुझे उन मुनाफिकीन के सिवा जो झूठ मूठ उज़र करने के आदी थे, और कोई भी रास्ते में ना मिला, यह देखकर मेरे तन बदन को रंज व गम की आग लग गई, यह दिन मेरे इस तरह गुज़र गए कि नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम भी तशरीफ ले आए, अब मैं हैरान था कि क्या करूं और क्या कहूं और क्यों कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के इताब से बचाव करूं, लोगों ने मुझे बाज़ हीले बहाने बतलाए मगर मैंने यही फैसला किया कि निजात सच ही से मिल सकती है _,*

*★_ आखिर में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा और तबस्सुम फरमाया, तबस्सुम खश्म आमेज़ ( नाराज़गी वाला) था, मेरे तो होश उसी वक़्त जाते रहे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- का'ब ! तुम क्यों रह गए थे, क्या तुम्हारे पास कोई सामान मुहैया ना था_," मैंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास तो सब कुछ था, मेरे नफ्स ने मुझे गाफिल बनाया, काहिली ने मुझ पर गलबा किया, शैतान ने मुझ पर हमला किया और मुझे हिरमान व खुज़लान की गर्द आब में डाल दिया _,*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- तुम अपने घर ठहरो और हुक्म ए इलाही का इंतज़ार करो _,"*

*★_ बाज़ लोगों ने कहा- देखो अगर तुम भी कोई हीला बना लेते तो ऐसा ना होता, मैंने कहा- वही इलाही से मेरा झूठ खुल जाता और फिर मैं कहीं का भी ना रहता, मामला किसी दुनियादार से नहीं बल्कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ है _,"*
*"_लोगों ने कहा- हां हिलाल बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु और मुराराह बिन रबी रज़ियल्लाहु अन्हु की भी यही हालत है, यह सुनकर मुझे ज़रा तसल्ली हो गई कि दो मर्दे सालेह और भी मेरी हालत में है _,"*

*★_ फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हुक्म दिया कि कोई मुसलमान हमारे साथ बातचीत ना करें और ना हमारे पास आकर बैठे, अब ज़िंदगी और दुनिया हमारे लिए वबाल मालूम होने लगी, इन दिनों मे हिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु और मुराराह रज़ियल्लाहु अन्हु घर से बाहर ना निकलते क्योंकि वह बुढ़े भी थे लेकिन मैं जवान और दिलेर था, घर से निकलता, मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जाता, नमाज़ पढ़कर मस्जिद मुबारक के एक गोशा में बैठ जाता, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मोहब्बत भरी निगाह और गोशा चश्म से मुझे देखा करते, मेरी शिकस्तगी को मुलाहिजा फरमाया करते और जब मैं हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की जानिब आंख उठाता तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐराज़ फरमाते _,"*
[1/10, 10:08 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुसलमानों का यह हाल था कि ना कोई मुझसे बात करता और ना कोई मेरे सलाम का जवाब देता, एक रोज़ में निहायत रंजो अलम में मदीना से बाहर निकला, अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु मेरा चचेरा भाई था और हम दोनों में निहायत मोहब्बत थी, सामने उसका बाग था, वह बाग में कुछ इमारत बनवा रहा था, मैं उसके पास चला गया, उसे सलाम किया तो उसने जवाब तक नहीं दिया और मुंह फेर कर खड़ा हो गया _,*

*★_ मैंने कहा- अबु क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु तुम खूब जानते हो कि मैं अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत रखता हूं और निफाक़ व शिर्क का मेरे दिल पर असर नहीं, फिर तुम क्यों मुझसे बात नहीं करते _," अबु क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अब भी जवाब नहीं दिया, जब मैंने तीन बार इसी बात को दोहराया तो चचेरे भाई ने सिर्फ इस क़दर जवाब दिया कि "वह अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही को खूब मालूम है _," मुझे बहुत ही रिक़्क़त हुई और मैं खूब ही रोया _,"*

*★_ मैं शहर से लौटकर आया तो मुझे एक ईसाई मिला, यह मदीना में मुझे तलाश कर रहा था, लोगों ने बतला दिया कि वह यही शख्स है, उसके पास बादशाह गस्सान का एक ख़त मेरे नाम था, ख़त में लिखा था :-*
*"_हमने सुना है कि तुम्हारा आक़ा तुमसे नाराज़ हो गया है, तुमको अपने सामने से निकाल दिया है और बाक़ी सब लोग भी तुम पर जोरो जफा कर रहे हैं, हमको तुम्हारे दर्जा व मंज़िलत का हाल बाखूबी मालूम है और तुम ऐसे नहीं हो कि कोई तुमसे ज़रा भी बे-इल्तफाती करे या तुम्हारी इज्ज़त के खिलाफ तुमसे सुलूक किया जाए, अब तुम यह ख़त पढ़ते ही मेरे पास चले आओ और आकर देखो कि मैं तुम्हारा एजाज़ व इकराम क्या कुछ कर सकता हूं _,"*

*★_ ख़त पढ़ते ही मैंने कहा कि यह एक और मुसीबत मुझ पर पड़ी, इससे बढ़कर मुसीबत और क्या हो सकती है कि आज एक ईसाईं मुझ पर और मेरे दीन पर का़बू पाने की आरज़ू करने लगा है और मुझे कुफ्र की दावत देता है, इस खयाल से मेरा रंजो गम और बढ़ गया, खत को क़ासिद के सामने ही मैंने आग में डाल दिया और कह दिया- जाओ कह देना कि आपकी इनायात व इल्तिफ़ात से मुझे अपने आक़ा की बे- इल्तिफ़ाती लाख दर्जा बेहतर व खुशतर है _,"*
[1/11, 8:05 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मैं घर पहुंचा तो देखा कि नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की तरफ से एक शख्स आया हुआ मौजूद है, उसने कहा- नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हुक्म दिया है कि तुम अपनी बीवी से अलहदा रहो, मैंने पूछा क्या तलाक़ का हुक्म दिया है? कहा नहीं सिर्फ अलहदा रहने का फरमाया है, यह सुनकर मैंने अपनी बीवी को उसके मायके भेज दिया, मुझे मालूम हुआ कि हिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु और मुरारा रज़ियल्लाहु अन्हु के पास भी यही हुक्म पहुंचा था,* 

*★_ हिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ् की बीवी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुई और अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! हिलाल कमज़ोर व ज़'ईफ है और उनकी खिदमत के लिए कोई खादिम भी नहीं, अगर इजाज़त हो तो मैं उनकी खिदमत करती रहूं, फरमाया उसके बिस्तर से दूर रहो, औरत ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु का गम व रंज से ऐसा हाल है कि उन्हें तो और कोई ख्याल नहीं रहा _,"* 

*★_ अब मुझे लोगों ने कहा कि तुम भी इतनी इजाज़त ले लो कि तुम्हारी बीवी तुम्हारा काम काज कर दिया करें, मैंने कहा मैं तो ऐसी जुर्रत नहीं करूंगा, क्या खबर हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम इजाज़त दें या ना दें और मैं तो जवान हूं अपना काम खुद कर सकता हूं, मुझे खिदमत की ज़रूरत नहीं, अलगर्ज़ इसी तरह मुसीबत के 50 दिन गुज़र गए _,*

*★_ एक रात मैं अपनी छत पर लेटा हुआ था और अपनी मुसीबत पर सख्त नालां था कि कोहे सला पर चढ़कर जो मेरे घर के क़रीब था अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने आवाज़ दी, का'ब रज़ियल्लाहु अन्हु को मुबारक हो कि उसकी तौबा क़ुबूल हो गई_,"*
*"_ यह आवाज़ सुनते ही मेरे दोस्त अहबाब दौड़ पड़े और कहने लगे कि मुखलिस की तौबा क़ुबूल हो गई, मैंने यह सुनते ही पेशानी को खाक पर रख दिया और सजदा शुकराना अदा किया और फिर दौड़ा-दौड़ा नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुहाजिरीन व अंसार में तशरीफ़ फरमा थे, मुझे देख कर मुहाजिरीन ने मुबारकबाद दी और अंसार खामोश रहे, मैंने आगे बढ़ कर सलाम अर्ज़ किया, उस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का चेहरा मुबारक खुशी व मसर्रत से चौधवी के चांद की तरह ताबां व दरखसां हो रहा था और आदत मुबारक थी कि खुशी में चेहरा मुबारक और भी ज़्यादा रोशन हो जाता था _,*

*★_ मुझे फरमाया- का'ब मुबारक ! इस बेहतरीन दिन के लिए, जबसे तू मां के पेट से पैदा हुआ कोई दिन ऐसा मुबारक तुझ पर आज तक नहीं गुज़रा और तुम्हारी तौबा को रब्बुल आलमीन ने क़ुबूल फरमा लिया है _,"*
*"_ मैंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! इस क़ुबूलियत के शुकराने में मै अपना कुल माल राहे हक़ में सदका़ देता हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- नहीं, मैंने अर्ज़ किया- निस्फ ( आधा), फरमाया- नहीं, मैंने अर्ज़ किया- सल्स ( एक तिहाई), फरमाया- हां सल्स खूब है और सल्स सभी बहुत है_,"*
[1/12, 1:43 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ लासानी फैयाज़ी व रहमदिली _,"*
*"_ अल्हम्दुलिल्लाह ! कि उस फितना व शर जो दुश्मनों ने बरसों से उठा रखा था और जिसने अरब के तमाम क़बीलों को बगावत की ज़हर आलूद हवा से आलूदा कर रखा था, खात्मा हो गया, इन सब लड़कियों के दौरान में रहमतुल आलमीन की बेनजी़र फैयाजी़ और लासानी रहमदिली का ज़हूर इस कसरत से हुआ कि दुनिया ने जंग के शुजा़आना और मजहबी उसूल यहीं से मालूम किए,*

*★_ यह वह नागुज़ेर लड़ाईयां थी जिनमें अल्लाह के बरगुज़ीदा नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और मुसलमान इज़रारन तकरीबन 7 साल के दरमियानी अरसे में शरीक होते रहे, का़रईन किसी जंग में नहीं देखेंगे कि मुसलमानों ने इब्तिदा की हो, यह तमाम जंगे सिर्फ हमलावरों के हमलों को रोकने और उनके शर से बचने के लिए की गई थीं, नबूवत के तमाम ज़माने में एक शख्स भी इसलिए क़त्ल ना हुआ कि वह बुत परस्त या पारसी या ईसाई या यहूदी था,*

*★_ क़ुरान मजीद में इस मतलब को अल्लाह ताला ने बखूबी वाज़े फरमा दिया था कि दुनिया में मज़हब व एतक़ाद का इख्तिलाफ हमेशा से रहा है और हमेशा रहेगा, इसलिए मज़हब के लिए किसी शख्स पर जबरदस्ती करना जायज़ नहीं, मिन्दर्जा जे़ल आयात इस मतलब के लिए साफ हैं :-*

*(१)_दीन के बारे में किसी पर जबर नहीं, हिदायत और गुमराही अच्छी तरह ज़ाहिर हो गई है_," (अल बक़रा- 256)*
*(२)_अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो ज़मीन पर सबके सब बाशिंदे ईमान ले आते तू उन लोगों पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वह मोमिन हो जाएं_," (यूनुस 99)*
*(३)_अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो सब लोगों को एक ही उम्मत बना देता और वह तो हमेशा इख्तिलाफ करते रहेंगे (बजुज़ उनके जिन पर तेरे रब ने रहम किया है) और उनको इसीलिए पैदा किया है_," (हूद 118)*
*(४)_तू उसे हिदायत नहीं दे सकता जिससे मोहब्बत करता है मगर अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है_," (क़सस -56)*
*(५)_जो कुछ बातें यह लोग करते हैं हम जानते हैं और तू उन पर जबरदस्ती नहीं कर सकता, हां कुरान का वाज़ कर फिर जो कोई अज़ाबे इलाही से डरता है वह डरे_," (क़ाफ 45)*
*(६)_ तुम तो नसीहत करते रहो क्योंकि तुम तो नसीहत करने वाले ही हो और उन पर दारोगा नहीं हो ( यानी ज़बरदस्ती करने वाले नहीं हो)_," (अल-गासिया 21- 22)*
[1/13, 8:05 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जंग का ज़िक्र खत्म करने से पहले मुनासिब है कि उस बर्ताव का ज़िक्र कर दिया जाए जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंग के कै़दियों के साथ किया करते थे, इस्लाम से पहले दुनिया में जितनी कौ़में और सल्तनतें थी वह जंग के कैदियों के साथ ऐसा वहशाना सुलूक किया करते थे जिसे सुनकर बदन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा ए अमल कै़दियों के साथ सिर्फ दो ही तरह पर था- (१)_ फिदिया लेकर आज़ाद करना (२)_ या बिला किसी फिदिए के आज़ाद कर देना,* 

*★_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को सबसे पहले जंगे बदर में कै़दी हाथ लगे, यह अहले मक्का थे, उन से बढ़कर सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम का दुश्मन कोई नहीं था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले इस मामले को सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की शूरा में पेश किया, सहाबा में से एक जानिब अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जिनकी राय थी कि कै़दियों से जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाए, इस राय की ताईद में उन्होंने दो दलीलें पेश की - (१)_ ज़र जुर्माने से हम अपने साजो सामान की दुरुस्तगी कर लेंगे, (२)_ आज़ादी पाने के बाद मुमकिन है कि उन कै़दियों से अल्लाह किसी को इस्लाम की हिदायत फरमा दे,* 

*★_ दूसरी जानिब हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उनकी राय थी कि क़ैदियों को क़त्ल किया जाए, वह अपनी राय की ताईद में कहते थे कि यह लोग कुफ्र के इमाम और शिर्क के पेशवा हैं, अल्लाह ने हमको इन पर गलबा दिया है इसलिए क़सास लेना चाहिए,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु की राय को पसंद फरमाया, जो क़ैदी ज़र जुर्माना अदा ना कर सकते थे उनके लिए तजवीज़ फरमाई कि वह अंसार की औलादों को लिखना पढ़ना सिखा दें (या कोई और हुनर सिखा दें)*
[1/16, 7:15 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बाज़ लोग अब तक यह समझते हैं की उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु की राय ज़्यादा सही थी, वह हदीस के अगले हिस्से से दलील पकड़ते हैं, हदीस यह है कि अगले रोज़ उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को गिरिया करते हुए देखा लेकिन उलमा का एक गिरोह इस इस्तदलाल के बाद भी अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की राय को तरजीह देता है _,*

*★_ कुरान मजीद में भी अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु की राय की बाबत पहले से हुक्म मौजूद था, इसी राय में रहमत मलहूज़ है जो सब चीज़ों से वसीतर है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसी हदीस में अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को इब्राहीम व ईसा अलैहिस्सलाम से और उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को नूह अलैहिस्सलाम से तसबीह दी है, अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु की राय से नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की राय मुवाफिक़ थी, बिल आखिर रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी इसी राय को बरक़रार रखा, अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हु का ख्याल सही हुआ कि जंग के कैदियों में से बहुत से लोग बाद में खुद बा खुद ईमान भी ले आए और जुर्माना की रक़म से से मुसलमानों ने अपनी हालत को भी दुरुस्त कर लिया,* 

*★_ अलगर्ज़ जंग-ए-बदर के 72 कै़दियों में से 70 को आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुर्माना लेकर आज़ाद फरमा दिया था, उन कै़दियों को मेहमानों की तरह रखा गया था, बहुत से कै़दियों के बयानात मौजूद हैं जिन्होंने इक़रार किया है कि अहले मदीना बच्चों से बढ़कर उनकी आसाइश का अहतमाम करते थे,* 
*"_जंग-ए-बदर के बाद गज़वा बनु मुस्तलक़ में 100 से ज्यादा ज़न व मर्द क़ैद हुए थे, वह सब बिला किसी मुआवजा के आज़ाद कर दिए गए थे और उनमें से एक औरत जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा को आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन होंने का दर्ज़ा अता फरमाया था _,"*
[1/17, 7:10 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुदेबिया के मैदान में कोहे तनईम के 80 हमलावर क़ैद हुए थे, उनको भी आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिना किसी शर्त और जुर्माना के आज़ाद फरमा दिया था, जंगे हुनैन में छः हज़ार ज़न व मर्द को बिना किसी शर्त और जुर्माने के आज़ाद फरमा दिया था, बाज़ क़ैदियों की आज़ादी का मुआवजा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपनी तरफ से अदा किया था और फिर अक्सर कै़दियों को लिबास और इनाम देकर रुखसत फरमाया था_,"* 

*★_ इन जुमला नज़ीरों से साबित है कि रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपने हमलावर दुश्मनों पर क़ाबू और गलबा पा लेने के बाद किस क़दर अल्ताफ फरमाया करते थे _,"*

*★_ कुतुब अहादीस में एक वाक़िया कै़दियों से कै़दियों के तबादले का भी मिलता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस पाक तालीम ही का असर था कि खुलफा ए राशिदीन के ज़माने में अगरचे ही इराक़ व शाम, मिश्र व अरब, ईरान व खुरासान के सैकड़ों शहर फतेह किए गए मगर किसी जगह भी हमलावरों, जंग आज़माओं या रियाया में से किसी को लौंडी गुलाम बनाने का ज़िक्र नहीं मिलता, मगलूब दुश्मनों से तावाने जंग लेने का भी कहीं इंद्राज नज़र नहीं आता, अगरचे सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के लिए यह जंग सख्त आज़माइश थी लेकिन रब्बुल आलमीन कि इसमें भी शायद यह हिकमत हो कि इस्लाम दुनिया के लिए जंग का भी नमूना पेश कर दे जो इंसानी हमदर्दी और रहम व अल्ताफ से लबरेज़ हो _,"*
[1/19, 8:20 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ दावत ए आममा की नज़ीर मौजूद न थी :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने तबलीगे इस्लाम की बाबत ऐसी कार्यवाही फरमाई है जिसकी नज़ीर दुनिया के किसी पिछले मज़हब की तारीख में नहीं पाई जाती कि उनके मज़हब के बानियों ने भी ऐसा ही किया हो चूंकि हम हर एक सच्चे मज़हब के हादी की दिल से इज्ज़त व अज़मत करते हैं इसलिए उनकी खामोशी से यह नतीजा निकालते हैं कि वह मुकद्दस बुजुर्गवार अपने मज़हब को खुद भी उसी क़ौम से मखसूस समझते थे जिसके लिए वह भेजे गए थे_,* 

*★_ अब अगर उनके मानने वाले उनके मसलक से तजावुज़ करते हैं तो यह उनका अपना अमल है जो मज़हबी हैसियत से सनद नहीं बन सकता, 7 हिजरी के मुक़द्दस माहे मोहर्रम की 1 तारीख थी कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सभी बादशाहों के नाम दावते इस्लाम के खुतूत मुबारक अपने सफीरों के हाथ रवाना फरमाएं, जो सफीर जिस क़ौम के पास भेजा गया वह वहां की ज़ुबान जानता था ताकि तबलीग बखूबी कर सके _,"*

*★_ अब तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई मुहर ना बनाई थी, जब बादशाहों को खुतूत लिखे गए तो उन पर मुहर करने के लिए खातिम तैयार की गई, यह चांदी की थी, 3 सतरों में उस पर इस तरह इबारत कुंद थी - अल्लाह, रसूल, मोहम्मद _,"*

*★_ इन खुतूत के देखने से मालूम होता है कि जो खत ईसाई बादशाहों के नाम थे उनमें खुसूसियत से यह आयतें मुबारका भी थी :-*
*"_(तर्जुमा)_ ऐ अहले किताब ! आओ ऐसी बात पर इत्तेफ़ाक़ करें जो हमारे और तुम्हारे (दीन) में मुसावी है यानी अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत ना करें और किसी चीज़ को भी उसका शरीक ना ठहराएं और अल्लाह के सिवा उलूहियत का दर्जा हम अपने जैसे इंसानों के लिए तजवीज़ ना करें _,( सूरह आले इमरान-64)*
[1/20, 7:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब हम मुख्तसर तौर पर उन खुतूत की सिफारतों का हाल दर्ज करते हैं-(१)_ बादशाह हबशा के नाम :-*
*"_ मुल्क हबशा के बादशाह नजाशी के पास अमरू बिन उमैया रज़ियल्लाहु अन्हु आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ख़त मुबारक लेकर गए थे, यह बादशाह ईसाई था, तारीख ए तिबरी से उस ख़त की नक़ल दर्ज की जाती है _,"*

*★_ शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ी रहमत और दायमी रहम वाला है, यह खत अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ से नजाशी इस्म बादशाह के नाम है, तुझे सलामती हो, मैं पहले अल्लाह की हम्द व सना करता हूं, अल्लाह वो ज़ात है कि कोई उसके सिवा इबादत के लायक़ नहीं, वह मुल्क, क़ुद्दुस, सलाम, मोमिन और मुहैमिन है और ज़ाहिर करता हूं कि ईसा बिन मरियम अल्लाह की मखलूक़ और उसका हुक्म है जो मरियम बतूल तैय्यबा अफीफा की जानिब भेजा गया और उन्हें ईसा अलैहिस्सलाम का इससे हमल ठहर गया _,"*

*★_ अल्लाह ने ईसा को अपनी रूह और नफख (फूंक) से उसी तरह पैदा किया था जैसा कि आदम अलैहिस्सलाम को अपने हाथ और नफख़ से पैदा किया था, अब मेरी दावत यह है कि तू अल्लाह पर जो अकेला और ला शरीक है ईमान ले आ और हमेशा उसी की फरमाबरदारी में रहा कर और मेरा इत्तेबा कर और मेरी तालीम का सच्चे दिल से इक़रार कर क्योंकि मैं अल्लाह का रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हूं_,"*

*★_ मैं इससे पहले इस मुल्क में अपने चचेरे भाई जाफर को मुसलमानों की एक जमात के साथ भेज चुका हूं, तुम उसे बा आराम ठहरा लेना, नजाशी तुम तकब्बुर छोड़ दो क्योंकि मैं तुमको और तुम्हारे दरबार को अल्लाह की तरफ बुलाता हूं, देखो मैंने अल्लाह का हुक्म पहुंचा दिया है और तुम्हें बाखूबी समझा दिया है, अब मुनासिब है कि मेरी नसीहत मान लो, सलाम उस पर जो सीधी राह पर चलता है _,"*
[1/21, 7:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नजाशी इस फरमान पर मुसलमान हो गया और जवाब में यह अरीज़ा तहरीर किया:-*
*"_ शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ी रहमत और दायमी रहम वाला है, मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में नजाशी इस्म बिन अबजज़ की तरफ से ए नबी अल्लाह कि आप पर अल्लाह की सलामती, रहमत और बरकतें हों, उसी अल्लाह की किस के सिवा कोई माबूद नहीं और जिसने मुझे इस्लाम की हिदायत फरमाई है_,"*

*★_ अब अर्ज़ यह है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान मेरे पास पहुंचा, ईसा अलैहिस्सलाम के मुताल्लिक़ जो कुछ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तहरीर फरमाया है बाखुदा ए ज़मीन व आसमान वे इससे ज़र्रा बराबर भी बढ़कर नहीं, उनकी हैसियत उतनी ही है जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तहरीर फरमाई है, हमने आपकी तालीम सीख ली है और आपका चचेरा भाई और मुसलमान मेरे पास आराम से हैं, मैं इक़रार करता हूं कि आप अल्लाह के रसूल हैं, सच्चे हैं और रास्तबाज़ों की सच्चाई ज़ाहिर करने वाले हैं _,"* 

*★_ मैं आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से बैत करता हूं, मैंने आपके चचेरे भाई के हाथ पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बैत और अल्लाह ताला की फरमाबरदारी का इक़रार कर लिया है और मैं हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत मे अपने फरज़ंद "अरहा" को रवाना करता हूं, मैं तो अपने ही नफ्स का मालिक हूं, अगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मंशा यह होगा कि मैं हाज़िरे खिदमत हो जाऊं तो ज़रूर हाज़िर हो जाऊंगा क्योंकि मैं यकी़न करता हूं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो फरमाते हैं वही हक़ है, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम आप पर सलाम हो _,"*
[1/22, 8:40 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शाहे बेहरेन का इस्लाम:-*
*"_ मंज़र बिन सावी शाहे बेहरेन था, शहंशाहे फारस का खराज़ गुज़ार था, अला बिन हजर रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास नामा मुबारक लेकर गए थे, यह मुसलमान हो गया और उसकी रियाया का अक्सर हिस्सा भी मुसलमान हुआ, उसने जवाब में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में लिखा था कि बाज़ लोगों ने इस्लाम को बेहद पसंद किया है, बाज़ ने कराहत का इज़हार किया है, बाज़ ने मुखालिफत की है, मेरे इलाक़े में यहूदी और मजूसी बहुत हैं, उनके लिए जो इरशाद हो किया जाए_,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब में तहरीर फरमाया था, जो नसीहत पकड़ता है वह अपने लिए करता है, जो यहूदियत या मजूसियत पर क़ायम रहे वह खराज़ दिया करें _,"*
*( ज़ादुल मा'द-3/692-693)* 

*★_ सफीरे इस्लाम की दरबारे ओमान में गुफ्तगू:-*
*"_अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का कौ़ल है कि जब मैं ओमान पहुंचा तो पहले अब्द को मिला, यह सरदार था और अपने भाई की निसबत ज़्यादा नरम व खुश खल्क़ था, मैंने उसे बताया कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का सफीर हूं और तुम्हारे पास और तुम्हारे भाई के पास आया हूं, अब्द बोला- मेरा भाई उम्र में मुझसे बड़ा है और मुल्क का मालिक है, मैं तुम्हें उसकी खिदमत में पहुंचा दूंगा, मगर यह तो बताओ कि तुम किस चीज़ की दावत देते हो ?*
*★_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अकेले अल्लाह की तरफ जिसका कोई शरीक़ नहीं और इस शहादत की तरफ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह अज़ व जल के बंदे और रसूल हैं _,"*

*★_ अब्द ने कहा- अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु तू सरदार क़ौम का बेटा है, बतलाओ कि तेरे बाप ने क्या किया, क्योंकि हम उसे नमूना बना सकते हैं _,"*
*"_अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया- वह मर गया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान ना लाया था, काश ! वह ईमान लाता और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रास्त बाज़ी का इक़रार करता, मैं भी अपने बाप की राय ही पर था हत्ताकि अल्लाह ने मुझे इस्लाम की हिदायत फरमाई _,"*
[1/23, 7:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_अब्द ने कहा -तुम कबसे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पेरू हो गए हो ? अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अभी थोड़ा अर्सा हुआ है_,"*
*"_अब्द- कहां ? अमरू बिन आस - नजाशी के दरबार में और नजाशी भी मुसलमान हो गया_," अब्द- वहां की रियाया ने नजाशी के साथ क्या सलूक किया ? अमरू बिन आस- उसे बदस्तूर बादशाह रहने दिया और उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया_,"*
*"_अब्द (ताज्जुब से)- क्या बिशप पादरियों ने भी ? अमरु बिन आस - हां _,"*

*★_ अब्द- देखो! अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु क्या कह रहे हो ? इंसान के लिए कोई चीज़ भी झूठ से बढ़कर ज़िल्लत बख्श नहीं_,"*
*"_अमरु बिन आस- मैंने झूठ नहीं कहा और इस्लाम में झूठ बोलना जायज़ भी नहीं_," अब्द- हिरक़्कल ने क्या किया ? क्या उसे नजाशी के इस्लाम लाने का हाल मालूम है ?*
*"_ अमरु बिन आस- हां _," अब्द- तुम क्यों कर ऐसा कह सकते हो ?*

*★_ अमरु बिन आस- नजाशी हिरक़कल को खराज दिया करता था, जब से मुसलमान हुआ, कह दिया कि अब अगर वह एक दिरहम भी मांगेगा तो ना दूंगा, हिरक़्क़ल तक यह बात पहुंच गई, हिरक़्कल के भाई नबाकी़ ने कहा- यह नजाशी हुजूर का अदना गुलाम अब खराज देने से इन्कार करता है और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन को भी उसने छोड़ दिया है, हिरक़्कल ने कहा फिर क्या हुआ ? उसने अपने लिए एक मज़हब पसंद कर लिया और क़ुबूल कर लिया, मैं क्या करूं? बाखुदा अगर इस शहंशाही का मुझे ख्याल ना होता तो मैं भी वही करता जो नजाशी ने किया है _,"* 

*★_अब्द- देखो अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु क्या कह रहे हो ? अमरु बिन आस- क़सम है अल्लाह की सच कह रहा हूं, अब्द- अच्छा बतलाओ, वह किन चीज़ों के करने का हुक्म देता है और किन चीज़ों से मना करता है ?*
*"_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु- वह अल्लाह अज़ व जल की इता'त का हुक्म देते हैं और मासियते इलाही से रोकते हैं, वह ज़िना और शराब के इस्तेमाल से और पत्थरों बुतों और सलीब की परिस्तिश से मना फरमाते हैं _,"*
*"_ अब्द- कैसे अच्छे अहकाम है जिनकी वह दावत देते हैं, काश मेरा भाई मेरी राय क़ुबूल करें, हम दोनों मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में जाकर ईमान लाएं, मैं समझता हूं कि अगर मेरे भाई ने इस पैगाम को रद्द किया और दुनिया ही का रागिब रहा तो वह अपने मुल्क के लिए भी सरापा नुक़सान साबित होगा_,"*
[1/24, 6:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु :- अगर वह इस्लाम क़ुबूल करेगा तो नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम उसी को इस मुल्क का बादशाह तस्लीम फरमा लेंगे, वो सिर्फ इतना करेंगे कि यहां के अमीरों से सदका़ वसूल करके यहां के गरीबों में तक़सीम करा दिया करेंगे_," अब्द:- यह तो अच्छी बात है मगर सदका़ से क्या मतलब है ?*
*"_अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने ज़कात के मसाईल बतलाए, जब यह बतलाया कि ऊंट में भी ज़कात है तो अब्द बोला- क्या वो हमारे मवेशी में से भी सदका़ देने को कहेंगे, वह तो खुद ही दरख़्तों के पत्तों से पेट भर लेता है और खुद ही पानी जा पीता है _,"*
*"_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- हां, ऊंटों में से भी सदका़ लिया जाता है, अब्द:- मैं नहीं जानता कि मेरी कौ़म के लोग जो तादाद में ज़्यादा है और दूर-दूर तक बिखरे पड़े हैं वो इस हुक्म को मान लेंगे _,"* 

*★_ अलगर्ज़ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु चंद रोज़ ठहरे, अब्द रोज़-रोज़ की बातें अपने भाई को पहुंचा दिया करता, एक रोज़ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को बादशाह ने तलब किया, चौबदादारों ने दोनों जानिब से बाजू़ थाम कर उन्हें बादशाह के हुजूर में पेश किया, बादशाह ने फरमाया :- इसे छोड़ दो, चौबदारों ने छोड़ दिया, यह बैठने लगे, चौबदारों ने फिर टोका, उन्होंने बादशाह की तरफ देखा, बादशाह ने कहा:- बोलो तुम्हारा क्या काम है ?*

*★_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने खत दिया, जिस पर मोहर लगी थी, उसने मोहर तोड़कर ख़त खोला, पढ़ा, फिर भाई को दिया, उसने भी पढ़ा और अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने देखा कि भाई ज़्यादा नरम दिल है, बादशाह ने पूछा कि कु़रेश का क्या हाल है ? अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- सबने अपनी मर्ज़ी से उनकी इता'त अख्त्यार कर ली है, बादशाह ने पूछा कि उसके साथ रहने वाले कौन लोग हैं ?*
*"_ अमरु बिन आस:- यह वह लोग हैं जिन्होंने इस्लाम को रज़ा व रगबत से क़ुबूल किया, सब कुछ छोड़कर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ही को अख्तियार कर लिया है और पूरी गौर व फिक्र और अक़ल व तजुर्बा से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जांच कर ली है, बादशाह ने कहा- अच्छा तुम कल फिर मिलना_,"* 

*★_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु दूसरे रोज़ बादशाह से मिले, बादशाह ने कहा- मैंने इस मामले में गौर किया है, देखो अगर मैं ऐसे शख्स की इता'त अख्त्यार करता हूं जिसकी फौज हमारे मुल्क तक नहीं पहुंची, तो मैं सारे अरब में कमज़ोर समझा जाऊंगा हालांकि अगर उसकी फौज इस मुल्क में आए तो मैं ऐसी सख्त लड़ाई लड़ूं कि तुम्हें कभी साबका़ ना हुआ हो_,"*
*"_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- बेहतर मैं कल वापस चला जाऊंगा, बादशाह ने कहा- नहीं कल तक ठहरो_,"*
*"_ दूसरे दिन बादशाह ने उन्हें आदमी भेज कर बुलाया और दोनों भाई मुसलमान हो गए और रियाया का अक्सर हिस्सा भी इस्लाम ले आया _,"*  

[1/25, 5:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गवर्नरान दमिश्क व यमामा का इन्कार_,"* 
*"_ मंज़र बिन हारिस बिन अबू शिमर दमिश्क का हाकिम और शाम का गवर्नर था, सुजा बिन वहब अल असदी रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास बतौर सिफारत भेजे गए थे, यह पहले तो खत मुबारक पढ़कर बहुत बिगड़ा, कहा मैं खुद मदीना पर हमला करूंगा, बिल आखिर सफीर को बा एज़ाज़ रुखसत किया, मगर ईमान ना लाया_,* 

*★_ बोज़द बिन अली हाकीम यमामा ईसाई मजहब था, सुलेत बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु नामा मुबारक उसके पास लेकर गए थे, उसने कहा अगर इस्लाम पर मेरी आधी हुकूमत तस्लीम कर ली जाए तो मुसलमान हो जाऊंगा, बोज़द इस जवाब के थोड़े दिनों बाद हलाक हो गया_,* 

*★_ जरीह बिन मती अल मुलक़ब बा मकूक़स शाहे इस्कंदरिया मिश्र ईसाई मज़हब था, हातिब बिन अबी बलता रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास सफीर होकर गए थे, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने ख़त के आखिर में तहरीर फरमाया था कि अगर तुमने इस्लाम से इन्कार किया तो तमाम मिशरियो' (अहले क़िब्त) के मुसलमान ना होने का गुनाह तुम्हारी गर्दन पर होगा_,* 
*"_सफीर ने खत पहुंचाने के अलावा बादशाह को इन अल्फाज़ में खुद भी समझाया था:- साहब ! आपसे पहले इस मुल्क में एक शख्स हो चुका है, "मैं तुम लोगों का बड़ा रब हूं" कहां करता था और अल्लाह ने उसे दुनिया और आखिरत की रुसवाई दी, जब अल्लाह का गजब भड़का तो वह मुल्क वगैरह कुछ भी ना रहा, इसलिए लाज़िम है कि तुम दूसरों को देखो और इबरत पकड़ो, यह ना हो कि दूसरे तुमसे इबरत लिया करें _,"*

*★_ बादशाह ने कहा- हम खुद एक मज़हब रखते हैं, उसे तर्क नहीं करेंगे जब तक कि इससे बेहतर कोई दीन ना मिले_,"*
*"_ हातिब रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:- मैं आपको दीन ए इस्लाम की जानिब बुलाता हूं जो जुमला दीगर मजा़हिब से किफायत कुनंदह है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सब ही को दावत ए इस्लाम फरमाई, क़ुरेश ने मुखालिफत की है और यहूद ने अदावत लेकिन सब में से मुहब्बत के साथ क़रीबतर अंसारी रहे हैं, वल्लाह ! जिस तरह मूसा अलैहिस्सलाम ने ईसा अलैहिस्सलाम के लिए बशारत दी उसी तरह ईसा अलैहिस्सलाम ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बशारत दी है, कुरान मजीद की दावत हम आपको उसी तरह देते हैं जैसे आप अहले तौरात को इंजील की दावत दिया करते हैं, जिस नबी को जिस क़ौम का ज़माना मिला वही क़ौम उसकी उम्मत समझी जाती है, इसलिए आप पर लाज़िम है कि उस नबी की इता'त करें जिसका ज़माना आपको मिल गया है और यह समझ लें कि हम आपको हजरत मसीह अलैहिस्सलाम के मज़हब की तरफ तावत देते हैं _,"*
[1/26, 6:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मक़ूक़स ने कहा- मैंने उस नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के बारे में गौर किया, मुझे कोई रगबत मालूम नहीं हुई, अगरचे वह किसी मरगूब चीज़ से नहीं रोकते हैं, मैं जानता हूं कि ना वह साहिर ज़रर रसाल हैं ना काहिन काजिब और उनमें तो नबूवत ही की अलामत पाई जाती है, बहरहाल मैं इस मामले में मज़ीद गौर करूंगा_,"* 
*★_ फिर आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खत को हाथी दांत के डिब्बे में रखवा कर मोहर लगवा कर खजा़ने में रखवा दिया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए तोहफे भेजे और जवाबी खत में यह भी लिखा कि यह तो मुझे मालूम है कि एक नबी का ज़हूर बाक़ी है, मगर मैं यह समझता रहा कि वह रसूल मुल्के शाम में होंगे, दुलदुल मशहूर खच्चर इसी ने तोहफे में भेजा था ।*

*★_ हिरक़्क़ल शाहे कुस्तुनतुनिया यारोमा की मशरिकी़ शाख सल्तनत का नामूर शहंशाह ईसाई मजहब था, दहिया बिल खलीफा रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास नामा मुबारक लेकर गए थे, यह बादशाह से बेतुल मुकद्दस के मुका़म पर मिले, हिरक़्क़ल ने सफीर के एजाज़ में बड़ा शानदार दरबार किया और सफीर से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताल्लिक़ बहुत सी बातें दरयाफ्त करता रहा ।*

*★_ इसके बाद हिरक़्क़ल ने मजी़द तहकी़का़त करना भी ज़रूरी समझा, हुक्म दिया कि अगर मुल्क में कोई शख्स मक्का का आया हुआ मौजूद हो तो पेश किया जाए, इत्तेफाक से उन दिनों अबु सुफियान दूसरे मक्का के ताजिरों से के साथ शाम आए हुए थे।*
*"_उन्हें बेतुल मुकद्दस पहुंचाया और दरबार में पेश किया गया, क़ैसर ने साथी ताजिरों से कहा कि मैं अबू सुफियान से सवाल करूंगा, अगर कोई भी जवाब गलत दे तो मुझे बतला देना, अबू सुफियान उन दिनों नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जानी दुश्मन थे, उनका अपना बयान है कि अगर मुझे डर ना होता कि मेरे साथ वाले मेरा झूठ ज़ाहिर कर देंगे तो मैं बहुत बातें बनाता, मगर उस वक्त क़ैसर के सामने मुझे सच सच ही कहना पड़ा _,"*
[1/27, 7:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सवाल व जवाब यह है :-* 
*"_क़ैसर -मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का खानदान और नसब कैसा है ?अबू सुफियान- शरीफ व अज़ीम, यह जवाब सुनकर हिरक़्क़ल ने कहा- सच है कि नबी शरीफ घराने के होते हैं ताकि उनकी इता'त में किसी को आर ना हो, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से पहले भी किसी ने अरब में या कुरेश में नबी होने का दावा किया है? अबू सुफियान- नहीं, यह जवाब सुनकर हिरक़्क़ल ने कहा- अगर ऐसा होता तो मैं समझ लेता कि अपने से पहले की तक़लीद करता है _,"*

*★_क़ैसर नबी होने के दावे से पहले क्या यह शख्स झूठ बोला करता था या उसको झूठ बोलने की कभी तोहमत दी गई थी ? अबू सुफियान- नहीं,*
*"_ हिरक़्क़ल ने इस जवाब पर कहा- यह नहीं हो सकता कि जिस शख्स ने लोगों पर झूठ ना बोला हो वह अल्लाह पर झूठ बांधे _,"* 

*★"_कैसर- उसके बाप दादा में कोई शख्स बादशाह भी हुआ है ? अबु सुफियान- नहीं,*
*"_ हिरक़्क़ल ने इस जवाब पर कहा- अगर ऐसा होता तो मैं समझ लेता कि नबुवत के बहाने से बाप दादा की सल्तनत हासिल करना चाहता है,*
*"_ कै़सर -मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के मानने वाले मिस्कीन गरीब लोग ज़्यादा है या सरदार क़वी लोग ? अबू सुफियान- मिस्कीन हकी़र लोग,*
*"_ हिरक़्क़ल ने इस जवाब पर कहा- हर एक नबी के पहले मानने वाले मिसकीन गरीब लोग ही होते रहे हैं _,"*

*★_ क़ैसर- उन लोगों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ रही है या कम होती है ? अबू सुफियान- बढ़ रही है, हिरक़्क़ल ने कहा- ईमान का यह खाससा है कि आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता है और हद कमाल तक पहुंच जाता है _,"*
*"_क़ैसर - कोई शख्स उसके दीन से बेज़ार होकर फिर भी जाता है ? अबू सुफियान- नहीं,*
*"_ हिरक़्क़ल ने कहा - लज़्ज़ते ईमान की यही तासीर होती है कि जब दिल में बैठ जाती है और रूह पर अपना असर क़ायम कर लेती है तब जुदा नहीं होती_,"*
*"_ यह शख्स कभी अहदो पैमान को तोड़ भी देता है ? अबू सुफियान- नहीं लेकिन अमसाल हमारा मुआहिदा उससे हुआ है, देखें क्या अंजाम हो (उस वक़्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और मुशरिक़ीन मक्का के दरमियान सुलह हुदैबिया हुई थी, अबू सुफियान का इशारा उसी मुआहिदे की तरफ है )*
[1/28, 7:58 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अबू सुफियान कहते हैं कि मैं सिर्फ इस जवाब में इतना ही फिक़रा ज़्यादा कर सका था, मगर क़ैसर ने उस पर कुछ तवज्जो ना दी और यूं कहा - बेशक नबी अहद शिकन नहीं होते, अहद शिकनी दुनियादार किया करता है, नबी दुनिया के तालिब नहीं होते _,* 

*★_ कैसर: कभी उस शख्स के साथ तुम्हारी लड़ाई भी हुई ? अबू सुफियान- हां, कभी वह ग़ालिब रह (बदर में) और कभी हम (उहद में)_,"*
*"_ हिरक़्क़ल ने कहा- अल्लाह के नबियों का यही हाल होता है लेकिन आखिरकार अल्लाह की मदद और फतेह उन्हीं को हासिल होती है_,*
*"_ क़ैसर:- उसकी तालीम क्या है ? अबू सुफियान:- एक रब की इबादत करो, बाप दादा का तरीक़ा (बुत परस्ती) को छोड़ दो, नमाज़, रोज़ा, सच्चाई, पाकदामनी, सिलह रहमी की पाबंदी अख्तियार करो_,* 

*★_ हिरक़्क़ल ने कहा - नबी मोऊद की यही अलामते हमको बतलाई गई हैं, मैं समझता था कि नबी का ज़हूर होने वाला है लेकिन यह ना समझता था कि वह अरब में से होगा, अबू सुफियान ! अगर तुमने सच सच जवाब दिए हैं तो वह एक रोज़ इस जगह पर जहां मैं बैठा हुआ हूं (शाम व बैतूल मुकद्दस) ज़रूर काबिज़ हो जाएगा, काश मैं उनकी खिदमत में पहुंच सकता और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पांव धोया करता _,"* 

*★_ उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़त मुबारक पढ़ा गया, अराकीने दरबार उसे सुनकर बहुत चीखे और चिल्लाए और हमको दरबार से निकाल दिया गया, मेरे दिल में उसी रोज़ से अपनी ज़िल्लत का नक्श और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कि आइंदा अज़मत का यक़ीन हो गया _,"*
[1/29, 8:24 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_किसरा (शाहे फारस) को तबलीग:-*
*"_ खुसरो परवेज़- किसरा ईरान- निस्फ मशरिकी दुनिया का शहंशाह था, ज़रतस्ती मज़हब रखता था, अब्दुल्लाह बिन खदामा रज़ियल्लाहु अन्हु उसके पास ख़त मुबारक लेकर गए थे, ख़त मुबारक की नक़ल यह है:-*

*"_शुरू अल्लाह रहमान रहीम के नाम से मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ से किसरा बुजुर्ग फारस के नाम, सलाम उस पर जो सीधे राह पर चलता, अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाता और यह शहादत अदा करता है कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायकू नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके बंदे और रसूल हैं, मैं तुझे अल्लाह के पैगान की दावत देता हूं और मैं अल्लाह का रसूल हूं, मुझे जुमला नस्ले आदम की तरफ भेजा गया है ताकि जो कोई ज़िंदा है उसे अज़ाबे इलाही का डर सुना दिया जाए और जो कोई मुंकिर है उन पर अल्लाह का क़ौल पूरा हो, तू मुसलमान हो जा सलामत रहेगा वरना क़ौमे मजूस का गुनाह तेरे ज़िम्मे होगा _,"*

*★_ खुसरो ने नामा मुबारक देखते ही गुस्से से चाक कर डाला और ज़ुबान से कहा -मेरी रियाया का अदना शख्स मुझे खत लिखता है और अपना नाम मेरे नाम से पहले तहरीर करता है,* 
*(सही बुखारी- 2941, तारीख तिबरी- 2/264)*

*"_उसके बाद खुसरो ने बाज़ान को जो यमन में उसका वॉइसराय (नायब) था और अरब का तमाम मुल्क उसके ज़ेरे इक़तेदार या ज़ेरे असर समझा जाता था, यह हुक्म भेजा कि उस शख्स (नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को गिरफ्तार करके मेरे पास रवाना कर दो _,"*

*★_ बाज़ान ने एक फौजी दस्ता मामूर किया, फौजी अफसर का नाम खरखुसरो था, एक मुल्की अफसर भी साथ रवाना किया जिसका नाम बानूया था, बानूया को यह हिदायत दी थी कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हालात पर गहरी नज़र डालें और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को किसरा के पास पहुंचा दें लेकिन अगर आप साथ जाने से इंकार करें तो वापस आकर रिपोर्ट करें_,*

*★_ जब यह फौजी दस्ता ताईफ पहुंचा तो अहले ताईफ ने बड़ी खुशियां मनाई कि अब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़रूर तबाह हो जाएंगे क्योंकि शहंशाह किसरा ने उन्हें गुस्ताखी की सज़ा देने का हुक्म दे दिया है _,"*
[1/30, 7:08 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ खुसरो के क़त्ल की खबर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बा- इलाम ए इलाही मिलना:-* 
*"_ जब यह अफसर मदीना में नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह कल को फिर हाज़िर हों, दूसरे रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- आज रात तुम्हारे बादशाह को अल्लाह ने हलाक कर डाला, जाओ और तहक़ीक़ करो, अफसर यह खबर सुनकर यमन को लौट गए, वहां नायब के पास सरकारी इत्तेला आ चुकी थी कि खुसरो को उसके बेटे ने क़त्ल कर दिया और तख्त का मालिक शेरविया है जो बाप का क़ातिल था_,"* 

*★_ अब बाजा़न ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदात व अखलाक़ और तालीम व हिदायात के मुताल्लिक़ कामिल तहकीका़त की और तहकीका़त के बाद ईमान ले आया, दरबार और मुल्क का अक्सर हिस्सा भी ईमान ले आया, जो सफीर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भेजा था उसने वापस आकर अर्ज़ किया था कि शाहे ईरान ने ख़त मुबारक हो चाक कर डाला था, उस वक्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया था- उसने अपनी (क़ौम के) फरमाने सल्तनत को चाक कर दिया है _,"*

*★_ नाज़रीन ! इस मुख्तसर और पुर हैबत जुमले को देखें और सवा तेरह सौ बरस की तारीखे आलम में तलाश करें कि किसी जगह उस कौ़म की सल्तनत का निशान भी मिलता है जो इस वाक़िए से पहले चार पांच हज़ार बरस से आधी दुनिया पर शहंशाही करती थी और जिसकी फुतुहात बारहा यूनान व रोम को नीचा दिखा चुकी थी,*
[1/30, 9:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के अहद में इस्लाम की इशाअत:-*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के अहद में इस्लाम की इशाअत जिस हुस्न व खूबी के साथ हुई थी उसकी मुख्तसर कैफियत उन वुफूद से अंदाजा की जा सकती है जो वक्तन फ वक्तन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में दूरदराज से आया करते थे, वुफूद का आना, वापस जाना, हर मंज़िल और राह पर मुख्तलिफ क़ौमो और क़बीलों से मिलना और इस्लाम की आवाज़ का सब लोगों के कान तक पहुंचाना कैसी खूबी से अंजाम पाता था,* 

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुदाफाना जंग तो जिनमें मजबूरन शामिल होना पड़ा, मुल्क के एक महदूद दायरे ही में थी लेकिन उन वुफूद को देखकर मुल्क के हर गोशे और हर हिस्से से चले आते थे, हिदायत और इस्लाम ही वह चश्मे हैं जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चटियल मैदान में बहा दिए थे जिसकी तरफ तमाम प्यासे चले आते थे, दावते आम की दूसरी जबरदस्त दलील इन वुफूद का हाज़िर होना है, जिन क़बाइल के वुफूद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए उनके नाम यह है, मैंने उन क़बाइल के नाम इस फेहरिस्त में शामिल नहीं किए जिनका नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आना मुल्की अगराज़ या जा़ती फायदे के लिए था,* 

*★"_ (१) दौस (२) सदा (३) सक़ीफ (४) अब्दुल क़ैस (५) बनी हनीफा (६) तै (७) अश'अरीन (८) अज़्द (९) फरदा जुज़ामी (१०) हमदान (११) तारिक बिन अब्दुल्लाह (१२) तजीब (१३) बनी साथ हुज़ैम (१४) बनु असद (१५) बहरा (१६) अज़रा (१७) खौलाल (१८) मुहारिब (१९) गस्सान (२०) बनी अल हारिस (२१) बनी ऐस (२२) गामिद (२३) बनी फराजा़ (२४) सलामान (२५) नज़रान (२६) नखा _,"*
[2/1, 7:27 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ यहां पर उन वफूद के मुख्तसर हाल दर्ज किए जाते हैं:-*
*"_(१)_वफद दौस:- तुफेल बिन अमरु दौसी रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने का ज़िक्र हम पहले लिख चुके हैं, इस्लाम के बाद जब यह बुजुर्गवार वतन को जाने लगे तो इन्होंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुआ फरमाइए कि मेरी क़ौम भी मेरी दावत पर ईमान ले आए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फरमाई- या अल्लाह तुफेल ही को तू एक निशान (आयत) बना दे_,"*

*★_ तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु घर पहुंचे तो बूढ़ा बाप मिलने के लिए आया, तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- अब्बा जान अब ना मैं तुम्हारा हूं और ना आप मेरे हैं_," बूढ़े ने कहा- यह क्यों?*
*"_तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- मैं तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीन क़ुबूल करके मुसलमान होकर आया हूं_,", बूढ़े ने कहा- बेटा! जो तेरा दीन है वही मेरा भी है_,"*
*"_ तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- खूब ! आप उठिए, गुस्ल फरमाइए, पाक कपड़े पहन कर तशरीफ़ लाएं ताकि मैं इस्लाम की तालीम दूं _,"*

*★_ फिर तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी आई, उससे भी उसी तरह बातचीत हुई और वह भी ईमान ले आई, अब तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम की मुनादी शुरू कर दी लेकिन लोग कुछ ईमान ना लाएं _,"* 

*★_ तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में और अर्ज़ किया कि मेरी क़ौम में ज़िना की कसरत है (चूंकि इस्लाम ज़िना को सख्त से हराम ठहराता है) इसलिए लोग ईमान नहीं लाते, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके लिए दुआ फरमाइए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ुबान मुबारक से फरमाया- ऐ अल्लाह दौस को सीधा रास्ता दिखला _,"*
*( बुखारी-2937, मुस्लिम -197 ,252)* 

*★_ फिर तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया- जाओ लोगों को दीने हक़ की तरफ बुलाओ, उनसे नर्मी और मोहब्बत का बरताव करो, इस दफा तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु को अच्छी कामयाबी हुई, वो 5 हिजरी में दौस के 70- 80 घरानों को जो ईमान ला चुके थे साथ लेकर मदीना पहुंचे, मालूम हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खैबर गए हुए हैं इसलिए खैबर पहुंचकर शर्फ ए हुज़ूरी हासिल किया और यह सब लोग भी खैबर ही में नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के दीदार से मुशर्रफ हुए _,"*
[2/2, 5:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_( वफद सदा):- यह वफद 8 हिजरी में हाजिरे खिदमते नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुआ था, सबसे पहले इस कौ़म का एक शख्स जियाद बिन‌ हारिस रज़ियल्लाहु अन्हु सदाई हाजिर हुए, फिर दोबारा वही ज़ियाद क़ौम के 15 लोगों को लेकर आए, उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी तवाज़ो के लिए मामूर हुए, उनके वापस जाने के बाद उनके क़बीले में इस्लाम फैल गया,*

*★_ ज़ियाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया कि हमारे यहां सिर्फ एक कुआं है, सर्दियों में उसका पानी काफी होता है लेकिन गर्मियों में वह खुश्क हो जाता है, इसलिए तमाम क़ौम मुतफर्रिक होकर यह मौसम पूरा करती है, हमारा क़बीला अभी जदीदुल इस्लाम है, तालीम व ताल्लुम की बहुत सख्त ज़रूरत है, दुआ फरमाइए की कुएं का पानी खत्म ना हुआ करे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - तुम सात कंकरिया उठा लाओ, ज़ियादा रज़ियल्लाहु अन्हु ले आए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको अपने हाथ में रख कर फिर वापस दे दिया, फरमाया- एक एक कंकरी उस कुएं में गिरा देना, हर एक कंकरी पर अल्लाह अल्लाह पढ़ते जाना, ज़ियादा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि फिर उस कुएं में इतना पानी बढ़ गया कि उसकी गहराई का पता ही ना लगा करता,* 

*★_ (3) वफद सक़ीफ का हाल:- सक़ीफ में से सबसे पहला शख्स जो तालीमे इस्लाम हासिल करने के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आया था वह उरवाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु थे, यह अपनी क़ौम के सरदार थे और सुलह हुदेबिया में क़ुरेशे मक्का के वकील बन के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में आए थे, जंग ए हवाजिन व सक़ीफ के बाद ज़्बा ए तोफीके़ इलाही से मदीना मुनव्वरा में हाजिर हुए और इस्लाम कुबूल किया,* 

*★_ जब वो इस्लाम सीख चुके तो उन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया कि आप मुझे अपनी क़ौम में जाने, इस्लाम की मुनादी करने की इजाज़त फरमा दीजिए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम्हारी क़ौम तुम्हें क़त्ल कर देगी, उरवाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी क़ौम को मुझसे इतनी मोहब्बत है जितनी किसी आशिक को अपने माशूक़ से होती है, यह बुजुर्गवार अपनी क़ौम में आए और वाज़ ए इस्लाम शुरू कर दिया, एक रोज़ अपने बालाखाने में नमाज़ पढ़ रहे थे कि किसी शकी़ ने तीर चलाया जिससे वह शहीद हो गए,*
[2/3, 7:20 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अगरचे उरवाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ज़िंदा सलामत ना रहे लेकिन जो आवाज़ उन्होंने क़ौम के कानों तक पहुंचाई थी वह दिलों पर असर किए बगैर ना रही, थोड़ा ही अरसा गुज़रा था कि क़ौम ने अपने चंद लोगों को मुंतखब किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में इसलिए भेजा कि इस्लाम की निसबत पूरी वाक़फियत हासिल कर ले, यह वफद 9 हिजरी में खिदमते नबवी में हाज़िर हुआ था, वफद का सरदार अब्दियालेल था जिसके समझाने को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कोहे ताइफ पर 10 नबुवत में गए थे और उन्होंने वाज़ के सुनने से इनकार करके आबादी के लड़कों और बदमाशों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तज़हीक ( हंसी उड़ाने) और तहक़ीर के लिए मुकर्रर कर दिया था और जिसके इशारे से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पत्थर बरसाए गए, कीचड़ फेंका गया था _,*

*★_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां आते हुए यह फरमा दिया था कि मैं इनकी बर्बादी के लिए बददुआ नहीं करूंगा क्योंकि अगर यह खुद इस्लाम ना लाएंगे तो इनकी आइंदा नस्लों को अल्लाह ईमान अता करेगा, अब वही दुश्मन ए इस्लाम खुद-ब-खुद इस्लाम के लिए अपने दिल में जगह पाते और दिली शौक व रूही तलब से आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होते हैं,*
*"_ मूगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया कि यह (अहले सकी़फ) मेरी कौम के लोग हैं, क्या मैं इन्हें अपने पास उतार लूं और इनकी तवाज़ो करुं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- मैं मना नहीं करता कि तुम अपनी क़ौम की इज्ज़त करो लेकिन उनको ऐसी जगह उतारो जहां क़ुरान की आवाज़ उनके कान में पड़े _,"*

*★_ अलगर्ज़ इनके खैमें मस्जिद के सहन में लगाए गए जहां से यह क़ुरान भी सुनते थे और लोगों को नमाज़ पढ़ते भी देखते, इस तदबीर से इनके दिलों पर इस्लाम की सदाक़त का असर पड़ा और इन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते मुबारक पर बैते इस्लाम कर ली _,*

*★_ अब्दियालेल ने मुख्तलिफ औका़त में नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मिनदर्जा ज़ेल मसाइल पर भी गुफ्तगू की:-*
*_(१)_ ज़िना हराम है:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ज़िना के बारे में आप क्या फरमाते हैं ? हमारी कौ़म के लोग अक्सर वतन से दूर रहते हैं इसलिए ज़िना के बगैर कुछ चारा ही नहीं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- ज़िना तो हराम है और अल्लाह पाक का इसके लिए हुक्म है, "तुम ज़िना के क़रीब भी ना जाओ यह तो सख्त बेहयाई और बहुत बुरा तरीक़ा है _," ( सूरह बनी इसराइल 32)*
[2/3, 9:42 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (2)_ सूद का रुपया लेना हराम है:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सूद के बारे में हुज़ूर क्या फरमाते हैं ? यह तो बिल्कुल हमारा ही माल होता है ,*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम अपना असल रुपया ले सकते हो, देखो अल्लाह ताला ने फरमाया है, (सूरह बक़रा आयत नंबर 278):-*
*"( तर्जुमा)_ ऐ ईमान वालो ! अल्लाह ताला से डरो और सूद में से जो लेना रह गया है वह भी छोड़ दो _,"*

*★_(3)_ शराब का इस्तेमाल हराम है:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम शराब के बारे में आप क्या फरमाते हैं ? यह तो हमारे ही मुल्क का अर्क है और इसके बगैर तो हम नहीं रह सकते _,*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- शराब को अल्लाह ने हराम कर दिया है, देखो अल्लाह ताला फरमाता है, (सूरह माइदा- आयत 90):-*
*"_(तर्जुमा) ऐ ईमान वालो ! शराब, जुआ, बुत और पासे यह सब नापाक व गंदे शैतानी काम है, इनसे बचा करो ताकि तुम फलाह पाओ _,"*
[2/5, 5:40 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ वफद अब्द अल क़ैस का हाल :- क़बीला अब्द अल क़ैस का वफद खिदमते नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में हाज़िर हुआ, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा:- तुम किस क़ौम से हो ? अर्ज़ किया- क़ौमें रबिआ से, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें खुशामदीद फरमाया, उन्होंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! हमारे और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरमियान क़बीला मुज़र के (नाफरमान ) लोग आबाद है, हम शहर हराम ही मे हाज़िर हो सकते हैं, इसलिए साफ और वाज़े तौर पर समझा दिया जाए, जिस पर हम अमल करते रहें और कौ़म के बाक़ी शख्स भी _,"*

*★_ फरमाया- मैं चार चीज़ों पर अमल करने का और चार चीज़ों से बचते रहने का हुक्म देता हूं, जिन चीज़ों के करने का हुक्म है, वह यह हैं:- (१)_ अकेले अल्लाह पर ईमान लाना इससे मुराद यह है कि "ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह" की शहादत अदा करना, (२)_ नमाज़ (३)_ ज़कात (४)_ रमज़ान के रोज़े और माले गनीमत से पांचवा हिस्सा निकालना ।*

*★_ चार चीजें जिनसे बचने का हुक्म है, यह है:- (१)_ दबा (तुंबा, कद्दू को दरमियान से खुरच कर अंदर से खाली करके एक तरह का बर्तन बनाया जाता था), (२)_ खनतुम (लाखी बर्तन, ऐसा मटका जिसकी बेरूनी सतह पर रोगन कर लिया जाता है), (३)_नकी़र- (शराब के लिए लकड़ी का एक बर्तन, खजूर की जड़ की लकड़ी जिसे दरमियान से कुरेद कर बतौर बर्तन इस्तेमाल किया जाता था), (४)_ मुज़फ्फत (मिट्टी का ऐसा बर्तन जिसके बाहर तारकोल फैर दिया जाए)*
*"_ इन बातों को याद रखो और पिछले को भी बता दो_,* 

*★_ उन लोगों ने पूछा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम कैसे बर्तन में पानी पिया करें ? फरमाया- मशकों में जिनका मुंह बांध दिया जाता है, उन्होंने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमारे यहां चूहे बा कसरत होते हैं इसलिए वहां चमड़े की मशकें सालिम नहीं रह सकती है, फरमाया- ख्वाह सालिम ना रहे _,"*
*( मुस्लिम - 7, ज़ादुल मा'द-3/606)*
[2/6, 8:56 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (5)_ वफद बनी हनीफा :- बनू हनीफा का वफद नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ, शुमामा बिन असाल रज़ियल्लाहु अन्हु की कोशिश से इस इलाक़े में इस्लाम की इशाअत हुई थी, यह वफद मदीना आ कर मुसलमान हुआ था, इसी वफद के साथ मुसेलमा कज़ज़ाब भी था, वह मदीना में आकर लोगों से कहने लगा कि अगर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम यह इक़रार करें कि मुझे उनका जानशीन बनाया जाएगा तो मैं बैत करूंगा _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुना, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ में खजूर की एक छड़ी थी, फरमाया- मैं तो इस छड़ी के देने की शर्त पर भी बैत लेना नहीं चाहता, अगर वह बैत ना करेगा तो अल्लाह उसे तबाह फरमाएगा, उसका अंजाम अल्लाह ताला ने मुझे दिखला दिया है यानी मैंने ख्वाब में देखा है कि मेरे हाथों में सोने के कंगन है मुझे वह नागवार मालूम हुए, ख्वाब ही मे वही से मालूम हुआ कि उन्हें फूंक से उड़ा दो, मैंने फूंक मारी तो वह उड़ गए, मैं ख्याल करता हूं कि उनसे मुराद मुसेलमा कज़जा़ब और अनसी साहिबे सन'आ है _,"*

*★_मुसेलमा कज़जा़ब ने अगरचे रिसलत का दावा किया था मगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी रसूल तस्लीम करता था, इससे मुद्द'आ उसका गालिबन यह था कि उस इलाक़े के मुसलमान मुखालिफ ना हों, 10 हिजरी में मुसेलमा कज़ज़ाब ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह खत लिखा:- "अल्लाह के रसूल मुसेलमा की तरफ से अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम, वाज़े हो कि निस्फ (आधी) ज़मीन हमारी है और निस्फ क़ुरेश की है, मगर कुरेश इंसाफ नहीं करते, आप पर सलाम हो _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया:- (कुतुब अबी इब्ने का'ब):-*
*"_ शुरू अल्लाह के नाम से जो कमाले रहमत और दाइमी रहम वाला है, अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ से मुसेलमा कज़ज़ाब के नाम, वाज़े हो ज़मीन अल्लाह की है वह अपने बंदों में से जिसे चाहता है वारिस बनाता है और आक़बत तो तक़वा श'आर लोगों के लिए हैं, सलाम हो उस पर जो सीधी राह पर चलता है _,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़त हबीब बिन ज़ैद बिन आसिम रज़ियल्लाहु अन्हु लेकर गए थे, कज़ज़ाब ने उनके दोनों हाथ दोनों पांव कटवा दिए थे,* 

*★_ इस जगह क़ार'ईन की इत्तेला के लिए इस क़दर दर्ज़ कर देना ज़रूरी है कि मुसेलमा पर अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत में खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौज कशी की थी, मुसेलमा हजरत वहशी रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ से क़त्ल हुआ था, वहशी वही हैं जो हजरत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु के कातिल हैं, यह कहा करते थे कि अगर कुफ्र में मैंने एक अजी़म इंसान को मारा था तो इस्लाम में आकर एक बड़े भारी कज़ज़ाब को भी मारा है, अल्लाह ने मेरे गुनाह की तलाफी कर दी _,"*
[2/7, 8:28 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (6)_वफद तै का बयान:- क़बीला तै का वफद जिसका सरदार ज़ैद अलखैल था नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- अरब के जिस शख्स की तारीफ मेरे सामने हुई वह देखने के वक्त उससे कम ही निकला, एक ज़ैद अलखैल इससे मुस्तशना है, फिर उसका नाम ज़ैद अलखैर रख दिया, यह सब लोग ज़रूरी गुफ्तगू के बाद ईमान ले आए _,*

*★_(7)_ क़बीला अश'अरीन का हाल :- क़बीला अश'अर (यह जो अहले यमन थे) का वफद हाज़िर हुआ, उनके आने पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया था:- अहले यमन आए, जिनके दिल निहायत नरम और ज़'ईफ है_," (मुस्लिम 52)*
*"_ ईमान यमनियों का है और हिकमत यमनियों की, मसकनत बकरियों वालों में, फख्र और गुरुर ऊंट वालों में है जो मशरिक़ की तरफ रहते हैं, जब यह लोग मदीना में दाखिल हुए तो यह शेर पढ़ रहे थे, (तर्जुमा)- कल हम अपने दोस्तों यानी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथियों से मिलेंगे _,"*

*★_ (8) वफद अज्द का हाल:- यह वफद 7 शख्सों का था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी वज़ा क़ता को पसंदगी की निगाह से देखा, पूछा- तुम कौन हो ? उन्होंने कहा- हम मोमिन हैं,* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- हर क़ौल की एक हक़ीक़त होती है, बतलाओ कि तुम्हारे क़ौल और ईमान की हक़ीक़त क्या है ? उन्होंने अर्ज़ किया कि हम 15 खसलतें रखते हैं, पांच वो है जिन पर एतक़ाद रखते हैं और 5 वो हैं जिन पर अमल करने का हुक्म आपके भेजे हुए लोगों ने दिया, पांच वो है जिन पर हम पहले से पाबंद है _,"*
[2/7, 8:37 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ईमान की हक़ीक़त:-* 
*"_ (वफद ने अर्ज़ किया) पांच बातें जिन पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबल्लिगीन ने ईमान लाने का हुक्म दिया, यह है- (१) ईमाने बारी ताला पर, (२) फरिश्तों पर (३) अल्लाह की किताबों पर (४) अल्लाह के रसूलों पर (५) मरने के बाद जी उठने पर _,"*
*"_पांच बातें अमल करने की हमको यह बतलाई गई हैं:- (१) ला इलाहा इलल्लाह कहना (२) पांच वक़्त की नमाज़ का क़ायम करना (३) ज़कात देना (४) रमज़ान के रोज़े रखना (५) बेतूल हराम का हज करना, जिसे राह की इस्तेतात हो _,"*

*★_ 5 बातें जो पहले से मालूम है, यह है - (१) आसूदगी के वक्त शुक्र करना (२) मुसीबत के वक्त सब्र करना (३) कज़ा ए इलाही पर रजा़मंद होना (४) इम्तिहान के मक़ामात में रास्त बाज़ी (सच्चाई ईमानदारी) पर क़ायम रहना (५) दुश्मन को भी नुक़सान पहुंचा हो तो खुश नहीं होना _,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- जिन्होंने इन बातों की तालीम दी वह हकीम व आलिम थे और उनकी दानिशमंदी से मालूम होता है गोया वह अंबिया थे, अच्छा इन 5 चीजों को और बता दूं ताकि पूरी 20 खसलतें हो जाएं _,"* 

*"_(१)_ वह चीज़ जमा ना करो जिसे खाना ना हो, (२)_ वह मकान ना बनाओ जिसमें बसना ना हो (३)_ ऐसी बातों में मुक़ाबला ना करो जिन्हें कल को छोड़ देना हो (४)_ अल्लाह का तक़वा रखो जिसकी तरफ लौट जाना है और जिसके हुजूर में पेश होना है (५)_ उन चीज़ों की रगबत रखो जो आखिरत में तुम्हारे काम आएंगी, जहां तुम हमेशा रहोगे _,"*
*_ उन लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वसीयत पर पूरा पूरा अमल किया_,"* 
*( जा़दुल मा'द- 3/672)*
[2/8, 7:13 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(9)_ फरवाह बिन अमरु अलजुज़ामी रज़ियल्लाहु अन्हु की सिफारत आने का ज़िक्र:-*
*"_ अरब का जितना शुमाली हिस्सा सल्तनत कुस्तुनतुनिया के क़ब्जे में था, उस सारे इलाक़े का गवर्नर फरवाह बिन अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उनका दारुल हुकूमत मान था, फिलिस्तीन का मुतसला इलाक़ा भी उनकी हुक़ूमत में था,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें नामा मुबारक (दावते इस्लाम का) भेजा था, फरवाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम क़ुबूल किया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए एक सफेद रंग का कीमती खच्चर हदिए में भेजा था, जब बादशाह कुस्तुनतुनिया को उनके मुसलमान हो जाने की इत्तेला मिली तो उन्हें हुकूमत से वापस बुला लिया,* 

*★_ पहले इस्लाम से फिर जाने की तरगीब देता रहा, जब फरवाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने इनकार किया तो उन्हें क़ैद कर दिया गया, आखिर में यह राय हुई कि उन्हें फांसी पर लटका दिया जाए, शहर कुस्तुनतुनिया में "आफरा" नामी तालाब पर उन्हें फांसी दी गई,*

*★_(10)_ वफद हमदान:- यह क़बीला यमन में आबाद था, उनमें इशा'ते इस्लाम के लिए खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा गया था, वो वहां 6 माह तक रहे इस्लाम ना फैला, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु को उस क़बीले में इशा'ते इस्लाम के लिए मामूर फरमाया, उनके फैज़ान से तमाम क़बीला एक दिन में ईमान ले आया_,"* 

*★_ सैयदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु का ख़त जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुना तो सजदा शुक्र अदा किया और ज़ुबान मुबारक से फरमाया- हमदान को सलामती मिले, यह वफद उन्हीं लोगों का था जो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर ईमान जा चुके थे और दीदार ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मुशर्रफ होने आए थे _,"*
[2/8, 7:39 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(11)_ वफद तारिक़ बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु:- तारिक़ बिन अब्दुल्लाह का बयान है कि मैं मक्का के "शोक़ अलहिजाज़" में खड़ा था, इतने में एक शख्स वहां आया जो पुकार पुकार कर कहता था- लोगों ला इलाहा इल्लल्लाह कहो फलाह पाओ, एक दूसरा शख्स उसके पीछे आया जो कंकरिया उसे मारता और कहता था- इसे सच्चा ना समझो यह झूठा शख्स है, मैंने दरयाफ्त किया कि यह कौन है? लोगों ने कहा- यह तो बनी हाशिम में से एक है जो अपने आप को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम समझता है और दूसरा उसका चाचा अब्दुल उज़्ज़ा है, (अबू लहब का नाम अब्दुल उज़्ज़ा था )*

*★_ तारिक़ कहता है कि उसके बाद बरसो गुजर गए और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना जा रहे, उस वक्त हमारी कौ़म के चंद लोग जिनमें मै भी था मदीना गए ताकि वहां की खजूरे मोल लाएं, जब मदीने की आबादी में पहुंच गए तो हम इसलिए ठहर गए कि सफर के कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े बदल कर शहर में दाखिल होंगे, इतने में एक शख्स आया जिस पर दो पुरानी चादरें थी, उसने सलाम के बाद पूछा कि किधर से आए, किधर जाओगे ? हमने कहा कि रबज़ह से आए हैं और यही तक का क़स्द है, पूछा मुद्द'आ क्या है ? हमने कहा कि खजूरे खरीद करनी है हमारे पास एक सुर्ख ऊंट था जिसके मुहार डाली हुई थी,* 

*★_ उस शख्स ने कहा- यह ऊंट बेचते हो ? हमने कहा- हां इस क़दर खजूरों के बदले देंगे, उस शख्स ने यह सुनकर क़ीमत घटाने की बाबत कुछ भी नहीं कहा और ऊंट की मुहार संभाल कर शहर को चला गया, जब शहर के अंदर जा पहुंचा तो अब आपस में लोग कहने लगे कि यह हमने क्या किया ? ऊंट ऐसे शख्स को दे दिया जिससे हम वाक़िफ तक नहीं और क़ीमत के वसूल करने का कोई इंतज़ाम ना किया_,*
*"_हमारे साथ एक होदज नशीन (सरदार ए क़ौम की) औरत भी थी, वह बोली कि मैंने उस शख्स का चेहरा देखा था की चौहदवी रात के चांद के रोशन हिस्से जैसा था, अगर ऐसा आदमी की़मत ना दे तो मैं अदा करूंगी _,"*

*★_ हम यही बातें कर रहे थे इतने में एक शख्स आया- कहा मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने भेजा है (और ऊंट की क़ीमत की) खजूरे भेजी है, (तुम्हारी ज़ियाफत की खजूरें अलग है) खाओ पियो और क़ीमत की खजूरों को नाप कर पूरा कर लो, जब हम खा पीकर सैर हुए तो शहर में दाखिल हुए, देखा कि वही शख्स मस्जिद के मिंबर पर खड़ा हुआ वाज़ कर रहा है, हमने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अल्फाज़ सुनें, (तर्जुमा) लोगों! खैरात दिया करो, खैरात का देना तुम्हारे लिए बेहतर है, ऊपर का हाथ नीचे के हाथ से बेहतर है, मां को, बाप को, बहन को, भाई को, फिर क़रीबी को और दूसरे क़रीबी को दो _,"*
[2/10, 10:28 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(12) वफद नजीब:- क़बीला नजीब के 13 शख्स हाजिर हुए थे, अपनी कौ़म के माल व मवेशी की ज़कात लेकर आए थे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इसे वापस ले जाओ और अपने क़बीले के फुक़रा पर तक़सीम कर दो, उन्होंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फुक़रा को देकर जो बच रहा है हम वही लेकर आए हैं _,"*
*"_अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इनसे बेहतर कोई वफद अब तक नहीं आया _,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- हिदायत अल्लाह अज़ व जल के हाथ में है, अल्लाह जिसकी बेहबूदी ( भलाई) चाहता है उसके सीने को ईमान के लिए खोल देता है_,"* 
*(मुसन्निफ इब्ने अबी शैबा- 3 /222 )*

*★_ इन लोगों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से चंद बातों का सवाल किया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको जवाबात लिखवा दिए थे, जो लोग समझते हैं कि हदीस ए रसूल आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में क़लम बंद नहीं की गई, वह इस वाक़िए पर ज़्यादा गौर करें _,*
*"_यह लोग वापसी की इजाज़त के लिए बहुत ही इज़्तराब ज़ाहिर करते थे, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पूछा कि तुम यहां से जाने के लिए क्यों घबराते हो ? कहा- दिल में यह जोश है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार से जो अनवार हमने हासिल किए हैं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुफ्तार से जो फैज़ हमने पाएं, जो बरकात और फवाइद हमको यहां आकर हासिल हुए हैं उन सब की इत्तेला अपनी क़ौम को जल्द पहुंचाएं, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको अतियात से सरफराज़ किया और रुखसत फरमाया_,*

*★"_पूछा- कोई शख्स तुममें से बाक़ी नहीं रहा है ? उन्होंने कहा- हां ! एक नौजवान लड़का है जिसे सामान के पास हमने छोड़ दिया था, फरमाया - उसे भी भेज देना, वह हाज़िर हुआ तो उसने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हुजूर ने मेरी क़ौम के लोगों पर लुत्फ व रहमत की है, मुझे भी कुछ मरहमत फरमाएं, फरमाया -तुम क्या चाहते हो ? कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा मुद्द'आ अपनी क़ौम के मुद्द'आ से अलग है, अगरचे मैं जानता हूं कि वो यहां इस्लाम की मुहब्बत से आए हैं और सदक़ात का माल भी लाए थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- तुम क्या चाहते हो ? कहा- मैं अपने घर से सिर्फ इसलिए आया था कि हुजूर मेरे लिए दुआ फरमाएं कि अल्लाह मुझे बख्श दे, मुझ पर रहम करे और मेरे दिल को ग़नी बना दे _,"*

*★_ इसके लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसके लिए यही दुआ फरमा दी, 10 हिजरी को जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हज किया तो इस क़बीले के लोग फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिले, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- उस नौजवान की क्या खबर है ? लोगों ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! उस जैसा शख्स कभी देखने में नहीं आया, उस जैसा क़ा'ने कोई सुना ही नहीं गया, अगर दुनिया भर की दौलत उसके सामने तक़सीम हो रही हो तो वह नज़र उठाकर भी नहीं देखता _,"*
*( ज़ादुल मा'द-650-651)*
[2/12, 12:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(13)_ वफद बनी सा'द हुज़ैम:- यह क़बीला क़ुज़ा की एक साख थी, जिस वक्त यह मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में पहुंचे तो देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक जनाजे़ की नमाज़ पढ़ा रहे थे, उन्होंने आपस में यह तय किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होने से पहले हमको कोई काम भी नहीं करना चाहिए, इसलिए एक तरफ होकर अलग बैठे रहे, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उधर से फारिग हुए, उनको बुलाया पूछा- क्या तुम मुसलमान हो? उन्होंने कहा- हां, फरमाया तुम अपने भाई के लिए दुआ में शामिल ना हुए,*

*★_ अर्ज़ किया- हम समझते थे कि बैते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले हम कोई काम भी नहीं करने के मिजाज़ नहीं, फरमाया- जिस वक़्त तुमने इस्लाम क़ुबूल किया उसी वक़्त से तुम मुसलमान हो गए हो _,"*

*★_ इतने में वो मुसलमान भी आप पहुंचा, जिसे ये अपनी सवारियों के पास बिठा आए थे, वफद ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह हम से छोटा है और इसलिए हमारा खादिम है, फरमाया- हां (छोटा) अपने बुजुर्गों का खादिम होता है, अल्लाह इसे बरकत दे, इस दुआ की बरकत हुई कि यह वही क़ौम का इमाम और क़ुरान मजीद का कौ़म में सबसे अच्छा जानने वाला हो गया, जब वफद वतन को गया तो तमाम क़बीले में इस्लाम फैल गया_,*
[2/12, 6:06 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(14) वफद बनू असद :- यह दस शख्स थे, जिनमें वाबिसा बिन मा'बद और तन्हा बिन खुवैल्द भी थे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम असहाब के साथ मस्जिद में तशरीफ़ फरमा थे इनमें से एक ने कहा:- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! हम शहादत देते हैं कि अल्लाह अकेला है ला शरीक़ है और आप उसके बंदे और रसूल हैं, देखिए या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम अज खुद हाज़िर हो गए हैं और आपने हमारे यहां कोई आदमी भी ना भेजा _,"*

*★_ इस पर इस आयत का नुज़ूल हुआ- (सूरह अल हुजरात -17) :-*
*"(तर्जुमा) यह लोग आप पर एहसान जतलाते हैं कि इस्लाम ले आए हैं, कह दो कि अपने इस्लाम का मुझ पर एहसान ना जतलाओ बल्कि अल्लाह तुम पर इस बात का एहसान जताता है कि उसने तुमको इस्लाम की हिदायत की, अगर तुम इस दावे में सच्चे भी हो _,"* 

*★_ फिर उन लोगों ने सवाल किया कि जानवरों की बोलियों और शगूनो वगैरा से फाल लेना कैसा है ? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन सबसे उन्हें मना फ़रमाया, उन्होंने अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! एक बात बाक़ी रह गई है यानी खत कशी (रमल) इसकी बाबत क्या इरशाद है ? नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- इसे एक नबी अलैहिस्सलाम ने लोगों को सिखलाया था जिस किसी को सेहत से वह इल्म मिल गया है बेशक वह तो इल्म है _,"*
*( मुस्लिम -537, अहमद- 5/ 447, अबू दाऊद- 930, ज़ादुल मा'द-3/655 )*
[2/13, 9:24 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(15)_ वफद बहरा:- यह लोग मदीना में आए, मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु के घर के सामने आकर ऊंट बैठाए, मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने घरवालों से कहा कि इनके लिए कुछ तैयार करो और खुद उनके पास गए और खुशामदीद कह कर अपने घर पर ले आए, उनके सामने "हैश" रखा गया, हैश एक खाना है जो खजूर और सत्तू मिलाकर घी में तैयार किया जाता है, घी के साथ चर्बी भी डाल दिया करते हैं,* 

*★_ इस खाने में से कुछ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए भी मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने भेजा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुछ खाकर वह बरतन वापस फरमा दिया, अब मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों वक़्त वही प्याला उन मेहमानों के सामने रख देते हैं, वह मजे ले ले कर खा खाया करते, मगर खाना कम ना हुआ करता था _,*

*★_ इन लोगों को देखकर यह हैरत हुई, आखिर एक रोज़ अपने मेज़बान से पूछा- मिक़दाद हमने तो सुना था कि मदीने वालों की खुराक सत्तू, जौ वगैरह है, तुम तो हमें हर वक्त वह खाना खिलाते हो जो हमारे यहां बहुत उम्दा समझा जाता है, जो हर रोज़ हमको मयस्सर भी नहीं आ सकता और फिर ऐसा लज़ीज़ कि हमने कभी ऐसा खाया भी नहीं_,* 
*"_ मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- साहबों ! यह सब कुछ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बरकत है क्योंकि आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अंगुश्त मुबारक लग चुकी हैं _,"* 

*★_ यह सुनते ही सबने बा इत्तेफ़ाक कहा और अपना ईमान ताज़ा किया कि बेशक वह अल्लाह के रसूल है_,"*
*"_ यह लोग मदीना मुनव्वरा में कुछ अरसा ठहरे, कुरान और अहकाम सीखे और वापस चले गए_,* 

*(16)_ वफद अज़राह का बयान:- माहे सफर 9 हिजरी यह वफद हाजिर हुआ था, 12 शख्स इसमें थे, उनमें हमज़ा बिन नौमान भी थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- तुम कौन हो ? उन्होंने कहा- हम बनी अज़रहा है और कु़सई के (मां की तरफ से) भाई हैं, हमने कु़सई को तरक्की़ दिलाई और खज़ा और बनी बकर को मक्का से बाहर निकाला था, इसलिए हमको क़राबत हासिल है और नसब भी,* 

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरहबा खुश आमदीद फरमाया और यह भी बशारत सुनाई कि अनक़रीब शाम फतेह हो जाएगा, हिरक्कल उनके इलाक़े से भाग जाएगा, फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया कि काहिनों से जाकर सवाल ना किया करें और जो कुर्बानियां वह किया करते हैं आइंदा ना करें, अब सिर्फ ईदुल अज़हा की कु़र्बानी बाक़ी रह गई है, यह लोग कुछ दिनों मदीना तैयबा में रहे और फिर इनाम व जायज़ा से मुशर्रफ होकर रुखसत हुए _,*

*(17)_ वफद खौलान :- यह 10 शख्स थे जो माहे शाबान 10 हिजरी को खिदमत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाजिर हुए थे, इन्होंने अर्ज़ किया कि हम अपनी कौ़म के पसमान्दों की जानिब से वकील होकर आए हैं, अल्लाह और रसूल पर हमारा ईमान है, हम हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में लंबा सफर तय करके आए हैं और हम इकरार करते हैं कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हम पर एहसान है, हम यहां महज़ ज़ियारत के लिए हाज़िर हुए हैं_,"*

*★_ रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने मदीना आकर मेरी ज़ियारत की वह क़यामत के दिन मेरा हमसाया होगा_,"*
*"_ फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने दरयाफ्त फरमाया- उम्मे उंस का क्या हुआ ? (यह एक बुत का नाम है जो उस कौ़म का मा'बूद था) वफद ने अर्ज़ किया- हज़ार शुक्र है कि अल्लाह ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम को हमारे लिए उसका बदल बना दिया है, बाज़ बूढ़े और बूढ़ी औरतें रह गई है जो इसकी इबादत किए जाती हैं, अब इंशा अल्लाह हम उसे जाकर गिरा देंगे,*

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें फराइज़े दीन सिखलाए और खुसूसियत से इन बातों की नसीहत फरमाई, अहद पूरा करना, अमानत का अदा करना, हमसाया लोगों से अच्छा बर्ताव करना, किसी एक शख्स पर भी ज़ुल्म ना करना, यह भी फरमाया कि ज़ुल्म क़यामत के दिन तारीकी होगा _," (ज़ादल मा'द- 3/662 )*

*★_( 18)_ वफद मुहारिब :- यह 10 शख्स थे जो कौ़म थे वकील हो कर 10 हिजरी में आए थे, बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इनकी मेहमानी के लिए मामूर थे, सुबह व शाम का खाना वही लाया करते थे, एक रोज़ ज़ोहर से असर तक का पूरा वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इन्हीं को दिया, इनमें से एक शख्स को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गौर से देखना शुरू किया, फिर फरमाया- मैंने तुम्हें पहले भी देखा है, यह शख्स बोला- अल्लाह की क़सम, हां ! हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा भी था और मुझसे बात भी की थी और मैंने बदतरीन कलाम से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जवाब दिया और बहुत बुरी तरह से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कलाम को रद्द किया था, यह बाज़ार उक़ाज़ का ज़िक्र है जहां हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को समझाते फिरते थे _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- हां ठीक है, उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उस रोज़ मेरे दोस्तों में मुझसे बढ़कर कोई भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत करने वाला और इस्लाम से दूर दूर रहने वाला ना था, वह सब तो अपने आबाई मज़हब पर ही मर गए, मगर अल्लाह का शुक्र है कि उसने मुझे आज तक बाक़ी रखा और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ई शमान लाना मुझे नसीब हुआ_,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- सबके दिल अल्लाह अज़ व जल के हाथ में हैं_,"* 

*★_ उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी पहली हालत के लिए माफ़ी की दुआ फरमाएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- इस्लाम उन सब बातों को मिटा देता है जो कुफ्र में हुई हों _," (ज़ादुल मा'द-3/363-364)*
[2/13, 9:33 AM] Haqq Ka Daayi Official: *(16)_ वफद अज़राह का बयान:- माहे सफर 9 हिजरी यह वफद हाजिर हुआ था, 12 शख्स इसमें थे, उनमें हमज़ा बिन नौमान भी थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- तुम कौन हो ? उन्होंने कहा- हम बनी अज़रहा है और कु़सई के (मां की तरफ से) भाई हैं, हमने कु़सई को तरक्की़ दिलाई और खज़ा और बनी बकर को मक्का से बाहर निकाला था, इसलिए हमको क़राबत हासिल है और नसब भी,* 

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरहबा खुश आमदीद फरमाया और यह भी बशारत सुनाई कि अनक़रीब शाम फतेह हो जाएगा, हिरक्कल उनके इलाक़े से भाग जाएगा, फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया कि काहिनों से जाकर सवाल ना किया करें और जो कुर्बानियां वह किया करते हैं आइंदा ना करें, अब सिर्फ ईदुल अज़हा की कु़र्बानी बाक़ी रह गई है, यह लोग कुछ दिनों मदीना तैयबा में रहे और फिर इनाम व जायज़ा से मुशर्रफ होकर रुखसत हुए _,*

*(17)_ वफद खौलान :- यह 10 शख्स थे जो माहे शाबान 10 हिजरी को खिदमत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाजिर हुए थे, इन्होंने अर्ज़ किया कि हम अपनी कौ़म के पसमान्दों की जानिब से वकील होकर आए हैं, अल्लाह और रसूल पर हमारा ईमान है, हम हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में लंबा सफर तय करके आए हैं और हम इकरार करते हैं कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हम पर एहसान है, हम यहां महज़ ज़ियारत के लिए हाज़िर हुए हैं_,"*

*★_ रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- जिसने मदीना आकर मेरी ज़ियारत की वह क़यामत के दिन मेरा हमसाया होगा_,"*
*"_ फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने दरयाफ्त फरमाया- उम्मे उंस का क्या हुआ ? (यह एक बुत का नाम है जो उस कौ़म का मा'बूद था) वफद ने अर्ज़ किया- हज़ार शुक्र है कि अल्लाह ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम को हमारे लिए उसका बदल बना दिया है, बाज़ बूढ़े और बूढ़ी औरतें रह गई है जो इसकी इबादत किए जाती हैं, अब इंशा अल्लाह हम उसे जाकर गिरा देंगे,*

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उन्हें फराइज़े दीन सिखलाए और खुसूसियत से इन बातों की नसीहत फरमाई, अहद पूरा करना, अमानत का अदा करना, हमसाया लोगों से अच्छा बर्ताव करना, किसी एक शख्स पर भी ज़ुल्म ना करना, यह भी फरमाया कि ज़ुल्म क़यामत के दिन तारीकी होगा _," (ज़ादल मा'द- 3/662 )*

*★_( 18)_ वफद मुहारिब :- यह 10 शख्स थे जो कौ़म थे वकील हो कर 10 हिजरी में आए थे, बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इनकी मेहमानी के लिए मामूर थे, सुबह व शाम का खाना वही लाया करते थे, एक रोज़ ज़ोहर से असर तक का पूरा वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इन्हीं को दिया, इनमें से एक शख्स को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गौर से देखना शुरू किया, फिर फरमाया- मैंने तुम्हें पहले भी देखा है, यह शख्स बोला- अल्लाह की क़सम, हां ! हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा भी था और मुझसे बात भी की थी और मैंने बदतरीन कलाम से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जवाब दिया और बहुत बुरी तरह से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कलाम को रद्द किया था, यह बाज़ार उक़ाज़ का ज़िक्र है जहां हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को समझाते फिरते थे _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- हां ठीक है, उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उस रोज़ मेरे दोस्तों में मुझसे बढ़कर कोई भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत करने वाला और इस्लाम से दूर दूर रहने वाला ना था, वह सब तो अपने आबाई मज़हब पर ही मर गए, मगर अल्लाह का शुक्र है कि उसने मुझे आज तक बाक़ी रखा और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ई शमान लाना मुझे नसीब हुआ_,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- सबके दिल अल्लाह अज़ व जल के हाथ में हैं_,"* 

*★_ उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी पहली हालत के लिए माफ़ी की दुआ फरमाएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- इस्लाम उन सब बातों को मिटा देता है जो कुफ्र में हुई हों _," (ज़ादुल मा'द-3/363-364)*
[2/13, 12:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_( 18)_ वफद मुहारिब :- यह 10 शख्स थे जो कौ़म थे वकील हो कर 10 हिजरी में आए थे, बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इनकी मेहमानी के लिए मामूर थे, सुबह व शाम का खाना वही लाया करते थे, एक रोज़ ज़ोहर से असर तक का पूरा वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इन्हीं को दिया, इनमें से एक शख्स को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गौर से देखना शुरू किया, फिर फरमाया- मैंने तुम्हें पहले भी देखा है, यह शख्स बोला- अल्लाह की क़सम, हां ! हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा भी था और मुझसे बात भी की थी और मैंने बदतरीन कलाम से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जवाब दिया और बहुत बुरी तरह से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कलाम को रद्द किया था, यह बाज़ार उक़ाज़ का ज़िक्र है जहां हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को समझाते फिरते थे _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- हां ठीक है, उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उस रोज़ मेरे दोस्तों में मुझसे बढ़कर कोई भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत करने वाला और इस्लाम से दूर दूर रहने वाला ना था, वह सब तो अपने आबाई मज़हब पर ही मर गए, मगर अल्लाह का शुक्र है कि उसने मुझे आज तक बाक़ी रखा और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाना मुझे नसीब हुआ_,"*
*"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- सबके दिल अल्लाह अज़ व जल के हाथ में हैं_,"* 

*★_ उस शख्स ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी पहली हालत के लिए माफ़ी की दुआ फरमाएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- इस्लाम उन सब बातों को मिटा देता है जो कुफ्र में हुई हों _," (ज़ादुल मा'द-3/363-364)*
[2/14, 9:44 PM] Haqq Ka Daayi Official: *"_(19)_ वफद गस्सान का हाल :- रमज़ान 10 हिजरी में क़बीला गस्सान के तीन शख्स नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आए थे, इस्लाम क़ुबूल करने के बाद अपनी कौ़म की हिदायत का इरादा करके वापस गए थे, मालूम होता है कि उनको इशा'अते इस्लाम में कामयाबी ना हुई, उनमें से दो पहले वफात पा चुके थे और एक उस वक़्त तक जिंदा था जबकि हजरत अबु उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु ने शाम को फतह किया था _,"* 

*"_(20)_ वफद बनी हारिस:- यह वफद शव्वाल 10 हिजरी में नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास हाजिर हुआ था, इनके इलाक़े में खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को इशा'अते इस्लाम के लिए भेजा गया था, उनकी तालीम से लोग ईमान ले आए थे, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में इत्तेला भेज दी थी और खुद उनकी तालीम के लिए वहां ठहर गए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लिख भेजा कि तुम वापस आ जाओ और कौ़म के चंद सरकरदह लोगों को भी साथ लाओ, इसी वफद में क़ैस बिन अल हुसैन व अब्दुल्लाह बिन क़ुराद वगैरह थे,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे दरयाफ्त फरमाया- क्या वजह है कि जाहिलियत में जिस किसी ने तुमसे जंग की, वह मगलूब ही हुआ, उन्होंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम खुद किसी पर चढ़कर नहीं जाते, जब लड़ाई के लिए जमा होते हैं तो फिर मुतफर्रिक नहीं होते, अपनी तरफ से ज़ुल्म की इब्तिदा नहीं करते _,"*
*"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- सच है, यही वजह है _,"*
[2/18, 7:29 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(21)_ वफद बनी ऐश का हाल:- यह वफद इंतकाल मुबारक से 4 माह पहले आया था, यह इलाका़ नजरान के बाशिंदे थे, यह लोग मुसलमान होकर आए थे, इन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने मुनादाने इस्लाम से सुना है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह इरशाद फरमाते हैं:- उसका कोई इस्लाम नहीं जिसने हिजररत नही की, हमारे पास ज़र व माल भी है और मवेशी भी जिन पर हमारी गुजर बसर है, अब अगर हिजरत के बगैर हमारा इस्लाम ही ठीक नहीं तो माल व मता हमारे क्या काम आएंगे और मवेशी हमें क्या फायदा देंगे ? बेहतर है कि हम सब कुछ फरोख्त करके सबके सब खिदमते आली में हाज़िर हो जाएं_,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- जहां आबाद हो, वहीं रहकर खुदा तरसी को अपना शेवाह बनाए रखो, तुम्हारे आमाल में ज़र्रा भी कमी नहीं आएगी_,"* 
*"_इस जवाब में नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने यह बतला दिया है कि सब मुसलमानों को मर्कज़ ए इस्लाम में जमा होकर इस्लामी रक़बा को महदूद व तंग कर लेना मुनासिब नहीं, मुसलमानों को मुख्तलिफ व दूर दस्त मुल्कों में पहुंचना और इस्लाम की दावत को पहुंचाना चाहिए, जो लोग अब तक वतन छोड़ करके इस्लामी मुल्कों में जा बसने को बेहतर समझते हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि ऐसा करना आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम के बर खिलाफ है,*

*★_(22) वफद गामिद का बयान:- यह वफद 10 हिजरी में आया था, इसमें 10 आदमी थे, यह मदीना से बाहर आकर उतरा, एक लड़के को बिठला कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा कि तुम सामान के पास किसे छोड़ कर आए हो, उन्होंने कहा एक लड़के को, फरमाया तुम्हारे बाद वह सो गया, एक शख्स आया खोरजी (कपड़ों वाला संदूक) चुरा कर ले गया,*
*"_ एक शख्स बोला - या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! खोरजी तो मेरी थी, फरमाया घबराओ नहीं, वह लड़का उठा, चोर के पीछे पीछे भागा, उसे जा पकड़ा, सब सामान सही साली मिल गया,* 

*★_ यह लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत से जब वापस पहुंचे तो लड़के से मालूम हुआ कि ठीक उसी तरह उसके साथ माजरा हुआ था, यह लोग इस अमर् पर ईमान ले आए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इब्ने काब रज़ियल्लाहु अन्हु का मुकर्रर फरमा दिया कि इन्हें क़ुरान याद कराएं और शरा ए इस्लाम सिखला दें, जब वह वापस जाने लगे तो इन्हें शरा ए इस्लाम एक कागज़ में लिखवा कर दिए गए_,"*

[2/19, 6:59 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (23)_ वफद बनी फुज़ारा:- जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक से वापस आए तो बनी फुजा़रा का वफद जिसमें 10-15 आदमी शामिल थे खिदमत मुबारक में हाज़िर हुआ, उनको इस्लाम का इक़रार था, उनकी सवारी मे लागर कमज़ोर ऊंट थे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा कि तुम्हारी बस्तियों का क्या हाल है ? एक ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बस्तियों में क़हत है, मवेशी मर गए बाग खुश्क़ हो गए, बाल बच्चे भूखे मर रहे हैं, आप अल्लाह से दुआ करें कि हमारी फरियाद सुने, आप हमारी सिफारिश अल्लाह से करें अल्लाह हमारी सिफारिश आपसे करें_,"* 

*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- अल्लाह इन बातों से पाक है, खराबी हो तेरे लिए भला मैं तो अल्लाह से शफात करूंगा लेकिन अल्लाह किसके पास शफात करें, वो मा'बूद है उसके सिवा कोई मा'बूद नहीं, वो सबसे बुजुर्गतर है, आसमानों और ज़मीन पर उसी का हुक्म है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी क़ौम में बारिश के लिए दुआ फरमाई _,"*

*★_(24)_ वफद सलमान:- सवाल 10 हिजरी में आए इस वफद में 7 शख्स थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर इस्लाम लाए थे, इन्हीं में हबीब बिन अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उन्होंने सवाल किया- सब आमाल से अफ़ज़ल क्या चीज़ है ? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- वक्त पर नमाज़ पढ़ना _,"*

*★_ उन लोगों ने अर्ज़ किया कि हमारे यहां बारिश नहीं हुई, दुआ फरमाएं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ुबान मुबारक से फरमाया- ऐ अल्लाह इनके घर में बारिश बरसा दे, हबीब रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! इन मुबारक हाथों को उठा कर दुआ फरमाएं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुस्कुराए और हाथ उठा कर दुआ कर दी, जब वफद अपने वतन लौट कर गया तो मालूम हुआ कि ठीक उसी रोज़ बारिश हुई थी जिस दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फरमाए थी_,"*
[2/20, 7:04 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★ _ (25) _ वफ़द नज़रान: उन जुमला रिवायात पर जो वफ़द नज़रान के उनवान के तहत हदीसों में पाई जाती है, गौर करने से यह मालूम होता है कि नज़रान के ईसाई दो बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए थे। इसलिए इस तरतीब से उनका ज़िक्र किया जाता है।*

 *★_ अबू अब्दुल्ला हाकिम की रिवायत अन यूनुस बिन बकीर में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नज़रान के लोगों को इस्लाम की दावत का खत लिखा था। जब अशक़फ ने उस ख़त को पढ़ा, तो उसका बदन लरज़ पड़ा और वह कांपने लगा, उसने फौरन शरहबील बिन वदा को बुलाया । वह हमदान का शख्स था। कोई बड़ा हाकिम या मुशीर या पादरी उसकी राय के बिना कोई बड़ा काम नहीं किया करते थे, अशक़फ ने उसे खत दिया और जब उसने इसे पढ़ा, तो अशक़फ ने कहा: "अबू मरियम! फरमाइए ! आपकी क्या राय है ? "*

*"★_ शरहबील ने कहा: "साहब, यह तो आपको मालूम ही है कि अल्लाह ने इब्राहिम अलैहिस्सलाम से यह वादा किया हुआ है कि इस्माइल अलैहिस्सलाम की नस्ल में नबूवत भी होगी। मुमकिन है कि वह वही शख्स हो लेकिन नबूवत के मुताल्लिक मेरी क्या राय हो सकती है? कोई दुनियावी बात होती तो मैं उस पर पूरा गौर कर सकता और अपनी राय अर्ज़ कर सकता था।*
*"_ असक़फ़ ने कहा: अच्छा बैठ जाएं, असक़फ़ ने फिर एक दूसरे शख्स को बुलाया जिसका नाम अब्दुल्ला बिन शरहबील था और वह क़ौम हमीर से था। नामा मुबारक दिखाया और उसकी राय दरयाफ़्त की, उसने शरहबील जैसा जवाब दिया। असक़फ़ ने फिर एक तीसरे शख्स हिबार बिन कैस को बुलाया, जो बनु हारिस बिन काब से था। उसे नामा मुबारक दिखाया और उसकी राय दरयाफ़्त की। उसने भी उन दोनों का सा जवाब दिया।*

 *★_ जब असक़फ़ ने देखा कि इनमें से कोई भी जवाब नहीं देता तो उसने हुक्म दिया कि घंटे बजाए जाएं और टाट के पर्दे गिरजा पर लटकाएं जाएं, उनका रिवाज़ था कि अगर कोई बड़ी मुहिम दरपेश होती तो दिन में लोगों को बुलाने का तरीक़ा चर्च पर घंटियाँ बजाना और टाट के पर्दे टांगना और रात के लिए घंटियाँ बजाना और पहाड़ी पर आग जलाना था। । उस गिरजा से मुताल्लिक तहत्तर (73) गाँव थे जिनमें एक लाख (100,000) से ज्यादा जंगजू मर्दों की आबादी थी। जब कुल इलाक़े के ये लोग (ये सभी ईसाई थे) जमा हुए, तो असक़फ़ ने सभी को वह नामा मुबारक सुनाया और उनकी राय दरयाफ़्त की। मशवरे के बाद यह तैय हुआ कि शरहबील और अब्दुल्लाह और हिबार को नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में रवाना किया जाए और वहां के सब हालात मालूम कर के मुफस्सल बतलाएं ।*
[2/21, 6:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_यह लोग मदीना मुनव्वरा पहुंचे और चंद रोज़ नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर रहे और ईसा अलैहिस्सलाम की शख्सियत के मुताल्लिक गुफ्तगू की, इस गुफ्तगू पर इन (सूरह आले इमरान, 59-61) आयात का नुज़ूल हुआ:-* 
*"_(तर्जुमा) ईसा (अलैहिस्सलाम) की मिसाल अल्लाह के नजदीक आदम (अलैहिस्सलाम) की सी है, अल्लाह ने उन्हें मिट्टी से बनाया फिर फरमाया कि (इंसान जिंदा) बन जा, वह जिंदा हो गए, सच्ची बात तेरे परवरदिगार की जानिब से यही है, अब तुम इस रस्सी को लंबा खींचने वालों में ना रहो और जो कोई तुमसे इस इल्म के बाद झगड़ा करें उसे कह दो कि हम अपनी औलाद को बुलाते हैं तुम अपनी औलाद को बुलाओ, इसी तरह हमारी औरतें और तुम्हारी औरतें, हम खुद भी और तुम खुद भी जमा हों, फिर अल्लाह की तरफ मुतवज्जह हों और अल्लाह की लानत झूठे पर डालें _,"*

*★_ इन आयात के नुज़ूल पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम को भी बुलाया और फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा (सैयदुन्निसा अल आलमीन) भी बात की पसे पुश्त कर खड़ी हो गईं, उन ईसाइयों ने अलहदा होकर बातचीत की, शरहबील ने अपने साथियों से कहा कि उस शख्स के मुताल्लिक कोई राय का़यम करना आसान नहीं है, देखो तमाम वादी के लोग इकट्ठे हुए तब उन्होंने हमको भेजा था, मैं समझता हूं कि अगर बादशाह है तब भी उससे मुक़ाबला करना ठीक ना होगा क्योंकि तमाम अरब में से हम ही उसकी निगाह में खटकते रहेंगे और अगर यह नबी मुर्सल है तब तो उसकी लानत के बाद हमारा तिनका भी ज़मीन पर बाक़ी ना रहेगा, इसलिए मेरे नज़दीक बेहतर यह है कि हम उसकी मातहती क़ुबूल करें और तुम जिज़या का फैसला भी उसकी राय पर छोड़ दें क्योंकि जहां तक मैंने समझा है वह सख्त मिजाज़ नहीं है _,"*

*★_ दोनों साथियों ने इत्तेफ़ाक किया और उन्होंने जाकर अर्ज़ कर दिया कि मुबाहला से बेहतर हमारे लिए यह है कि जो कुछ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख्याल में कल सुबह तक हमारे लिए बेहतर मालूम हो वह हम पर मुक़र्रर कर दिया जाए, अगले रोज़ उन पर जिज़या मुक़र्रर कर दिया और एक मुआहिदा जिसे मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी ने लिखा था और अबु सुफियान बिन हर्ब, गीलान बिन अमरू, मालिक, औफ, इक़रा बिन हाबिस रज़ियल्लाहु अन्हुम की शहादत उस पर सब्त थी, उन्हें मरहमत फरमाया _,"*

*★_ मुआहिदे का एक फिक़रा खासतौर पर क़ार'ईन के लिए मुलाहिजा तलब है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईसाइयों को कैसी फैयाजी़ से मुरा'त व हुक़ूक़ मरहमत फरमाते थे :-*
*"_नजरान वालों को अल्लाह और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त हासिल होगी, जान और मज़हब और ज़मीन और जायदाद के मुताल्लिक़ उन सबको जो हाज़िर या गायब है, साहिबे क़िब्ला है या इत्तेबा करने वाले हैं, उनकी हालत में और हुक़ूक़ में कोई तब्दीली नहीं की जाएगी और जो कुछ कम या ज़्यादा उनके क़ब्जे में है उसे ना बदला जाए, पिछले ज़माने की शहादत या क़त्ल के तनाज़ात की वजह से उन पर मुकदमात ना चलाए जाएंगे, वह बेकार में ना पकड़े जाएंगे, उनसे उशर् ना ली जाएगी, उनके इलाक़े को फ़ौज अबूर ना करेंगी _,"*
[2/22, 5:53 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फरमान हासिल करके यह लोग नजरान को वापस चले गए, जब यह लोग नजरान पहुंच गए तो नजरान के गिरजा में रहने वाले एक राहिब ने जो गिरजा के बुर्ज के बालाई हिस्से पर (सालहा साल से) रहा करता था, चीखना शुरू कर दिया कि मुझे उतारो वरना मैं ऊपर से कूद पड़ुंगा, चाहे मेरी जान भी जाती रहे, यह राहिब भी चंद तहाइफ लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में रवाना हो गया, एक प्याला, एक असा, एक चादर उसने बतौर तोहफा पेश की थी, वह चादर खुलफा ए अब्बासिया के ज़माने तक बराबर महफूज़ रही थी, राहिब ने कुछ अरसे तक मदीना में ठहर कर इस्लामी तालीम से वाकफियत हासिल की और फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इजाज़त लेकर वापस आने का अहद करके नजरान चला गया था, मगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयाते तैयबा तक वापस ना गया था ।*

*★_ कुछ अर्से के बाद असक़फ़ अबुल हारिस जो गिरजा का इमाम था और कुस्तुनतुनिया के रोमी बादशाह उसका निहायत अदब और अहतराम किया करते थे और आम लोग अक्सर करामात वगैरह उसकी जा़त से मनसूब किया करते थे और यह शख्स अपने मजहब का मुज्तहिद शुमार होता था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पहुंचा, बाक़ी 24 मशहूर सरदार और थे, कुल काफिला 60 सरदारों का था, यह असर के वक्त मस्जिद-ए-नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में पहुंचे थे, वह इनकी नमाज़ का वक्त था (गालिबन इतवार का दिन होगा) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनको अपनी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त फरमा दी थी और उन्होंने मस्जिद से मशरिक की जानिब रुग करके नमाज़ अदा की थी कि बाज़ मुसलमानों ने उन्हें मस्जिद-ए-नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में ईसाई तरीक़े पर नमाज पढ़ने से रोकना चाहा था, मगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को मना फरमा दिया था,*

*★_ यहूदी भी इन्हें देखने के लिए आते थे और कभी-कभी किसी मसले में गुफ्तगू भी हो जाया करती थी, एक दफा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने यहूदियों ने बयान किया कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम यहूदी थे और इन ईसाइयों ने कहा कि वह ईसाई थे, इस बहस पर क़ुरान ए मजीद की आयात (आले इमरान 65- 68) का नजूल हुआ:-*
*"_(तर्जुमा)_ इनसे कहो कि ऐ किताब वालों! इब्राहिम अलैहिस्सलाम के बारे में क्यों झगड़ा करते हो, तोरात और इंजील तो उसके बाद उतरी है, जिन बातों में तुम्हारे पास कुछ इल्म नहीं उस बारे में अल्लाह जानता है और तुम इल्म नहीं रखते उसमें तो झगड़ते ही थे मगर जिस बारे में कुछ भी इल्म नहीं उसमें झगड़ा क्यों करते हो, इब्राहिम अलैहिस्सलाम यहूदी था ना ईसाई था, वह पक्का मोहिद था और मुसलमान था और वह मुशरिक ना था, सब खलक़त में इब्राहिम अलैहिस्सलाम से क़रीब तर वह हैं जिन्होंने उसका इस्तेबा किया और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम नबी का और उन पर ईमान रखने वाले लोग, हां अल्लाह मोमिनीन का दोस्तदार है _,"*
[2/23, 7:24 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_एक दफा यहूदियों ने (मुसलमानों और ईसाइयों दोनों पर एतराज करने की गर्ज़ से) कहा- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम क्या आप यह चाहते हैं कि हम आपकी भी इबादत करने लगें जैसा कि ईसाई ईसा अलैहिस्सलाम की इबादत किया करते हैं, नजरान का एक ईसाई बोला- हां मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! बता दीजिए क्या आपका यही इरादा है और इसी अक़ीदे की दावत आप देते हैं , नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया - अल्लाह की पनाह कि मैं अल्लाह के सिवा और किसी की इबादत करूं या किसी दूसरे को गैरुल्लाह की इबादत का हुक्म दूं, अल्लाह ने मुझे इस काम के लिए नहीं भेजा और मुझे ऐसा हुक्म भी नहीं दिया गया _,"*

*★_ इस वाक़िए पर कुरान ए मजीद में आले इमरान 79- 80 आयात का नुज़ूल हुआ:-*
*"_(तर्जुमा)_ जिस बशर को अल्लाह किताब और हुक्म और नबुवत इनायत करें यह उसकी शायान नहीं की फिर वह लोगों से कहने लगे कि अल्लाह के सिवा मेरे बंदे बन जाओ, वह तो यही कहा करता है कि किताब ए इलाही को सीखकर और शरीयत का दर्स पाकर अल्लाह वाले बन जाओ, यह भी तो नहीं कहता कि फरिश्तों को या नबियों को रब बना लो, भला वह कुफ्र के लिए कह सकता है तुम लोगों को जो इस्लाम ला चुके हो _,"* 

*★_ मुहम्मद बिन सुहेल रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत में है कि आले इमरान की शुरू से 80 आयात तक का नुज़ूल भी इसी वफद की मौजूदगी में हुआ था, जब वह वापस जाने लगे तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फिर एक सनद उन्होंने हासिल की, जिसमें गिरजाओं और पादरियों के बाबत ज्यादा सराहत थी, इस फरमान की पूरी नक़ल जे़ल में दर्ज की जाती है:-*

*"_ शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहम वाला है, यह तहरीर मुहम्मद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब से है, असक़फ़ अबुल हारिस के लिए नजरान के दीगर असक़फों, काहिनो, राहिबों उनके मुअतक़दों, गुलामों इस मज़हब वालो, पुलिस वालों के मुताल्लिक और उन कम या ज़्यादा चीजों के मुताल्लिक जो उनके हाथ में है, सबको अल्लाह और रसूल की हिफाज़त हासिल होगी, गिरजा के छोटे बड़े ओहदेदारों में किसी को बदला ना जाएगा, किसी के हक़ मे या अख्त्यारात में मुदाखलत ना की जाएगी, उनकी मौजूदा हालत में तब्दीली ना होगी बशर्ते कि रिआया कि खैरख्वाह खैर अंदेश रहें, ना ज़ुल्म का साथ दें और ना खुद ज़ुल्म करें_," (तहरीर मुगीरा बिन शोबा)* 

*★_ चलते वक्त उन्होंने दरख्वास्त की कि एक अमानतदार शख्स हमारे साथ भेज दीजिएगा जिसे जिज़िया अदा कर दिया करें, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु को उनके साथ भेज दिया और फरमाया कि यह शख्स मेरी उम्मत का अमीन है _,"*
*"_ अबु उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु के फैजा़ने ए सोहबत से इलाका़ मे इस्लाम फैल गया था _,"*
[2/24, 7:15 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(26)_ वफद नखा का बयान:- यह वफद निफ्स माह मोहर्रम 11 हिजरी को खिदमत ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हाज़िर हुआ था, इसके बाद कोई वफद हाज़िर नहीं हुआ, यह 200 शख्स थे और मा'ज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर ईमान लेकर आए थे, इनको दारुल ज़ियाफा (मेहमान खाना) में उतारा गया था, एक शख्स इनमें ज़रारा बिन अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उन्होंने अर्ज किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मैंने रास्ते में ख्वाब देखें जो अजीब थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- बयान करो ।*

*★_ एक ख्वाब और उसकी ताबीर :- कहा मैंने देखा कि एक बकरी ने बच्चा दिया है जो सफेद और सियाह रंग का अबलक़ ( दो रंग का) है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- क्या तुम्हारी औरत के बच्चा होने वाला था, उसने कहा- हां, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उसके फरज़ंद पैदा हुआ है, जो तेरा बेटा है, ज़रारा ने कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबलक़ होने के क्या मायने हैं ? नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- क़रीब आओ, फिर आहिस्ता से पूछा क्या तुम्हारे जिस्म पर बर्स के दाग हैं जिसे तुम लोगों से छुपाते रहे हो, ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा क़सम है उस अल्लाह की जिसने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रसूल बना कर भेजा है कि आज तक मेरे इस राज़ की किसी को इत्तेला ना थी, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- बच्चे पर यह इसी का असर है _,"*

*★_ दूसरा ख्वाब और उसकी ताबीर :- ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने दूसरा ख्वाब सुनाया कि मैंने नोमान बिन मंज़र को देखा कि गौशवारे ( कान का बाला) बाजूबंद, खलखाल ( पाज़ेब) पहने हुए हैं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- इसकी तावील मुल्के अरब है जो अब आसाइश या आराइश हासिल कर रहा है_,"*

*★_ तीसरा ख्वाब और उसकी ताबीर:- ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि मैंने देखा कि एक बुढ़िया है जिसके कुछ बाल सफेद और कुछ सियाह है और ज़मीन से बाहर निकली है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- यह दुनिया है जिस क़दर बाकी रह गई है_,"* 

*★_ चौथा ख्वाब और उसकी ताबीर:- ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- मैंने देखा कि एक आग ज़मीन से नमूदार हुई मेरे और मेरे बेटे उमर के दरमियान आ गई और वह कह रही है झुलसो झुलसो, बीना हो या नाबीना हो, लोगों अपनी गिजा़ अपना कुनबा अपना माल मुझे खाने के लिए दो, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- यह एक फसाद है जो आखिर ज़माने में ज़ाहिर होगा, ज़रारा ने अर्ज़ किया कि यह कैसा फितना है ? नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- लोग अपने इमाम को क़त्ल कर देंगे, आपस में फूट पड़ जाएगी, एक दूसरे से गुथ जाएंगे जैसे हाथों की उंगलियां पंजा डालने में गुथ जाती हैं, बदकार उन दिनों अपने आप को नेकुकार समझने समझेगा, मोमिन का खून पानी से बढ़कर खुशगवार समझा जाएगा_,"*
*"_अगर तेरा बेटा मर गया तब तू इस फितने को देख लेगा, तू मर गया तो तेरा बेटा देख लेगा, ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! दुआ कीजिए कि मैं इस फितने को ना देखूं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फरमाई इलाही यह इस फितने को ना पाए, ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतकाल हो गया और उनका बेटा बचा रहा, उसने सैयदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की बैत को तोड़ दिया था _,"*
*( ज़ादुल मा'द-3/686-687 इब्ने सा'द - 1/246)*
[2/25, 4:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_मदीना मुनव्वरा में 10 साला क़याम नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के अहम वाक़ियात:-*
*"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जब मक्का से निकल कर मदीना मुनव्वरा पहुंचे तो अभी इत्मीनान से क़याम भी नहीं किया था कि दुश्मनाने मक्का ने लगातार साजिशों, हमलो, लड़ाइयों से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ पर बैत करने वालों को परेशान करना शुरू कर दिया, इस बाब में उन अहम वाक़ियात का मुख्तसर ज़िक्र किया जाता है जो क़याम के दौरान मदीना मुनव्वरा में हुए, मैंने इख्तसार ( खुलासा) के लिए क़रीबन हर साल के मुताबिक़ एक वाक़िया ज़रूर क़लमबंद किया है, इस बाब पर गौर करने से का़रईन को सीरते पाक आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताल्लिक बहुत सी बातें मालूम होंगी, जिनके मुताबिक़ ज़रूरत है कि उम्मत अपना रवैया दुरुस्त करें_,*

*★_ तामीरे मस्जिद नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम:- मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जिस जगह बनाई गई है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊंटनी खुद-ब-खुद उस जगह आकर बैठ गई थी, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का से मदीना तशरीफ लाए थे, यह जगह दो यतीम लड़कों की थी जो असद बिन ज़रारा रज़ियल्लाहु अन्हु (नकी़ब ए मोहम्मदी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम) की तरबियत व निगरानी में थे, असद रज़ियल्लाहु अन्हु ने पहले से यहां नमाज़ की मुख्तसर सी जगह बना रखी थी,*

*★_ जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मस्जिद के लिए इस जगह को पसंद फरमाया तो उन यतीम लड़कों ने क़ीमत लेने से इन्कार किया और क़बीला बनु तिजार ने चाहा कि उसकी क़ीमत अदा करने की इजाज़त उन्हें मिल जाए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दोनों बातें मंजूर ना फरमाई, ज़मीन की कीमत 10 दीनार तय हुई और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से यह क़ीमत दिला दी और फिर ज़मीन को हमवार व दुरुस्त करके मस्जिद बनाई गई जिसका पौल सौ (100) गज़ था,* 

*★_ मस्जिद की तामीर में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईट पत्थर खुद भी उठाकर लाते थे और ज़ुबान मुबारक से फरमाते थे, "इलाही ! जिंदगी तो आखिरत ही की ज़िंदगी है तू अंसार और मुहाजिरीन को बख्श दे _,"*
*"_सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम भी ईंट गारा लाते थे और यह शेर रजिज़ में पढ़ते थे, "_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काम करें और हम बैठे रहें यह बड़ी गुमराही कर काम है_,"* 

*★_ मस्जिद की दीवारें जो कच्ची ईंटों की थी, 3 गज़ बुलंद थी, खजूर के तने सुतून की जगह और खजूर के पत्ते कड़ी शहतीर की जगह डाले गए थे, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने कहा छत डाल लें तो अच्छा है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- नहीं मूसा अलैहिस्सलाम जैसा "अरीश" ( घांस फूंस) ही खूब है, यह छत ऐसी थी कि अगर बारिश हो जाती तो पानी टपकता, मिट्टी गिरती, फर्श कीचड़ सा हो जाता, मोमिनीन उस पर सजदा किया करते थे,*
[2/26, 7:54 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना (एक हिजरी):-* 
*"_हजरत अब्दुल्लाह यहूद के बड़े फाज़िल लोगों में से हैं, युसूफ सिद्दीक अलैहिस्सलाम से इनका नसब मिलता है, इन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वाज़ करते हुए सुन लिया, जिसके अल्फाज़ याद कर लिए थे, "_लोगो ! अपने बेगाने सबको सलाम किया करो, खाना खिलाया करो, क़राबत दारों से अच्छा बर्ताव रखो, रात को जब लोग सो रहे हो तुम अल्लाह की इबादत किया करो _,"* 

*★_ यह दिलनशीन कलमात सुनकर उनका क़ल्ब नूरे ईमान से रोशन हो गया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हालात पर गौर किया तो पहले नबियों की किताबों की पेशगोइयों को जा़ते मुबारक पर मुंतबक़ ( माफिक़) पाया, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत मुबारक में आए और चंद मुश्किल मुश्किल मसाईल जिनकी बाबत इनका ख्याल था कि नबी अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही इनका जवाब दे सकते हैं दरयाफ्त किए, जवाब बा सवाब सुन कर कहा- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ! मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान ले आया हूं लेकिन इज़हार ए इस्लाम के लिए चाहता हूं कि अव्वल मेरी क़ौम के लोगों को बुलाकर दरयाफ्त फरमाया जाए कि उनकी राय मेरे लिए क्या है _,"*

*"★_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अकाबिरे यहूद को तलब फरमाया, अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु छुप गए थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे पूछा- अब्दुल्ला बिन सलाम तुम्हारी क़ौम में कैसे हैं, सबने कहा- वह आलिम बिन आलिम, सैयद बिन सैयद और हम सबसे बेहतर हैं, यहूदी यह कह ही रहे थे कि हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ओट से कलमा तैयबा पढ़ते हुए सामने आ गए, जब यहूदियों ने देखा कि मुसलमान हो गए हैं तो उस वक्त कहने लगे कि तू जाहिल बिन जाहिल, ज़लील बिन ज़लील शख्स है और हमने सबसे बदतर है _,"*

*★_ रब ए करीम ने उस बुजुर्ग सहाबी रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम से जुमला यहूदू पर अपनी हुज्जत क़ायम फरमा दी_,*
*"_हजरत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद अबु क़ैस सुरमा बिन अबी अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी इस्लाम क़ुबूल किया, यह ईसाई मज़हब राहिब निहायत फसीह शायर व वाइज़ और इलाहियात के फाज़िल थे, इस बुजुर्ग के इस्लाम से रब ए रहीम ने जुमला नसारा पर हुज्जत क़ायम फरमा दी _,"*
[2/27, 7:28 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नमाज:- अव्वल हिजरत में फ़र्ज़ नमाज में 2 रकात का इज़ाफा हुआ, दो रकाते सफर के लिए मुक़र्रर की गई और हज़र में नमाज़ ज़ुहर व असर व इशा के लिए चार रकाते तय कर दी गई, अय्यामें क़यामें मक्का मे दो ही रकात का हुक्म रहा था, जब यह ख्याल किया जाता है कि मक्का में क्यों कर हर एक मुसलमान इस्लाम लाते ही गरीबुल वतन बन जाता था क्योंकि क़रीबी रिश्तेदार दोस्त अहबाब उससे बेगाने और गैर बन जाते थे और क्यों कर हर एक मुसलमान हर वक्त मक्का के छोड़ देने पर आमादा और तैयार रहता था, तो हम कह सकते हैं कि मक्का में सब मुसलमान मुसाफिराना ही रहते थे और यही वजह है कि रब ए करीम ने भी उनको मदीना में पहुंच जाने के बाद ही मुकी़म तस्लीम फरमाया_,* 

*★_नमाज इस्लाम का वो रूक्न है जो मुसलमान पर सबसे पहले फ़र्ज़ होता है, 7 बरस के बच्चे का नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है और 10 बरस के बच्चे का पढ़ना फर्ज है और सबसे आखिर तक फ़र्ज़ रहता है (यानी पूरी उम्र) नमाज़ की फर्ज़ियत सहत व बीमारी, खुशी व गम, सफर व हजर, खौफ व खतर गर्ज़ किसी हालत में भी मुसलमान से साकित नहीं होती, चाहे हम गर्म तर मुल्क में हों या सर्द से सर्दतर मुल्क में, किसी जगह भी कोई मौसम कोई दुख तकलीफ ऐसा नहीं जो मुसलमान को नमाज़ की माफी देता हो _,"*

*★_ मुद्दतें उमर तक इबादते इलाही की मुदावमत रखना कमाले इस्तक़लाल का मज़हर है, हर रोज़ पंजगाना नमाज़ के औका़त की हिफाज़त रखना, पाबंदी ए औका़त की ज़बरदस्त तालीम है, जिस्म और लिबास और मकान को नजासत व गंदगी से पाक साफ रखने का अहतमाम, सहते जिस्मानी के क़याम की बेहतरीन तदबीर है, दिल और ज़ुबान, आजा़ व दिमाग को अज़मते इलाही और जलाले किबरियाई के सामने मो'दब व मुहज्ज़ब रखना, नूरानियत रूहानी के लिए अजीब रोशनी हैं,*

*★_ नमाज़ में जिस क़दर पाबंदी है वो जल्द सो जाने और जल्द जाग उठने की जिस तरह तालीम देती है, वो जिस तरह एक टाइम टेबल को अपने मातहत कर लेती है इससे भी यह मालूम होता है कि इस्लाम में शहवानी व नफ्सानी खयालात को नमाज़ के जरिए कैसे मलियामेट किया गया है, नमाज़ के लिए मस्जिद की हाज़री और जमात की पाबंदी तमद्दुन और तरक्की़ की जान है, इत्तेहाद व यगानगत और तबादला ख्यालात का पाक तरीन ज़रिया है, एक जाहिल भी बहुत सी बातें नज़ीर व नमूने से सीख सकता है और एक आलिम बा आसानी तबलीग कर सकता है, एक अमीर गरीब के दोश बादोश खड़ा होकर मुसावात व बराबरी का सबक़ लेता है और गरीब अमीर के बराबर बैठ कर सच्चे दीन के इंसाफ से अपनी रूह को खुश कर सकता है _,*

*★_ जो लोग नमाज़ छोड़ देते हैं या मस्जिद की हाजरी और जमात की पाबंदी में सुस्ती करते हैं, वो इन अखलाकी़ फज़ाइल से महरुम रहते हैं और यह ज़ाहिर है कि जिस क़ौम के फर्द ऐसे आला अखलाक़ से खाली होंगे वह क्या होंगे, अल्लाह ताला ने फरमाया (सूरह अंकबूत- 45) :-*
*"_नमाज़ ! नमाज़ पढ़ने वालों को नापाक कामों और लायक़े इनकार कामों से रोक देती है, अल्लाह के ज़िक्र में फवाइद व फुयूज़ अनवार व इसरार इससे भी बहुत ज़्यादा और बढ़कर हैं _,"*
[2/28, 5:12 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुवाखात (भाईचारा):-*
*"_ अल्लाह जल जलालुहू ने एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान का भाई बतलाया है और यूं इरशाद फरमाया है (सूरह आले इमरान 103):-* 
*"_(तर्जुमा) और तुम सब अल्लाह के फज़ल से भाई भाई बन गए, तुम लोग तो आग के गढ़े के किनारे पर थे, जिससे अल्लाह ने तुम्हें निजात व खलासी इनायत की _,"*

*"_(१)_ इस उखूवत का असर यह था कि एक मुसलमान किसी मुखालिफ कौ़म से मुआहिदा कर लेता था और कुल क़ौम उस मुआहिदे की कामिल पाबंदी करती थी, एक मुसलमान अगर किसी दूरदराज मुल्क में चला जाता था तो तमाम कौ़म उसकी खैरो आफियत के लिए बेताब रहती थी और अगर वह किसी ज़ुल्म का शिकार हो जाता तो तमाम कौ़म उसके इंतज़ाम और खून बहा लेने को अपना आला फ़र्ज़ जानती थी, कौ़म के हर एक यतीम हर एक बेवा, हर एक तालिबे इल्म की ज़रूरियात का पूरा करना हर मुसलमान अपने लिए ऐसा ही फ़र्ज़ समझता था जैसा भी औलाद और मां जाय भाई की औलाद व बीवी के लिए समझता था _,"*

*★_(२)_ इस उखूवत से बढ़कर एक और उखूवत जिसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक एक शख्स के साथ क़ायम फरमाया करते थे, ऐसी उखूवत मक्का में अहले मक्का के दरमियान और मदीना में मुहाजिरीन व अंसार के दरमियान भी क़ायम फरमाए गई थी, जो मुवाखात मुहाजिरीन व अंसार के दरमियान क़ायम हुई वह ज़्यादातर मशहूर है _,"*
[3/1, 7:23 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस मुवाखात के बाद बाहमी ताल्लुक़ात का असर यहां तक हुआ कि एक भाई दूसरे भाई की विरासत में हिस्सा लेता था और भाई बनने से पहले घंटा बाद अमीर भाई गरीब भाई को अपनी तमाम मनकु़ला व गैर मनकु़ला जायदाद का निस्फ तक़सीम कर देता, मो'रखीन ने इन बुजुर्गों के नाम भी दर्ज किए हैं जिनमें यह सिलसिला मुवाखात मुस्तहक़म (क़ायम) किया गया था, हम तबर्रुकन चंद असमा मुबारक दर्ज करते हैं:-* 

*★_ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम - अली रज़ियल्लाहु अन्हु,*
*"_अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु- खारजा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_ उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु - उतबान बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु बद्री,*
*"_ उस्मान जु़लनूरेन रज़ियल्लाहु अन्हु - औस बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,* 
*"_जाफर बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु हाशमी- माज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_ अबु उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु - सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_ अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु - सा'द बिन रबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_ जु़बेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु- सलमा बिन सलामा रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी,* 
*"_ तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु - का'ब बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी,*
*"_सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु - अबु अययूब रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_ मुस'अब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु - उबई बिन का'ब रज़ियल्लाहु अन्हु उक़बी बद्री,*
*"_अबू हुजै़फा रज़ियल्लाहु अन्हु बिन उतबा - इबाद बिन बशर रज़ियल्लाहु अन्हु,*
*"_ अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु - हुजै़फा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु,*
*_ सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु - अबु दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु हकीमुल उम्मत,*
*"_मंज़र बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु - अबुजर गिफारी रज़ियल्लाहु अन्हु _,"*

*★_ दुनिया में उखूवत (भाईचारे) का ऐसा नमूना इस्लाम के सिवा किसी और जगह नज़र नहीं आता _,"*
[3/1, 7:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अज़ान:- 2 हिजरी में अज़ान का तरीक़ा जारी हुआ, अज़ान की ज़रूरत अव्वल इसलिए महसूस हुई कि सब लोग मिलकर एक वक़्त पर नमाज़ अदा कर सकें, मशवरा तलब अमर् यह था कि लोगों को जमा करने के वास्ते कौन सा तरीका़ अख्तियार किया जाए, किसी ने मशवरा दिया कि बुलंद मुका़म पर आग रोशन कर दी जाया करें (जैसा मजूस में दस्तूर था) किसी ने मशवरा दिया कि सींग (बिगुल) बजाया जाए (जैसा कि यहूद का मामूल था) किसी ने मशवरा दिया कि घंटे बजाए जाया करें (जैसा कि नसारा करते थे )_,*

*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी मशवरे को पसंद ना फरमाया, दूसरे दिन अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु अंसारी और हजरत उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक के बाद दीगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आकर अर्ज़ किया कि उन्होंने ख्वाब में इन अल्फाज़ को सुना है (जो अब अज़न में कहे जाते हैं), नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हीं अल्फाज़ को बा आवाज़ बुलंद पुकारने को मशरू कर दिया, यह अल्फाज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उस मंशा ए आली को पूरा करते हैं जो तशरीहे अहकाम में हमेशा मंजूरे नज़र अक़दस रहा है _,"* 

*★_ अज़ान इत्तेला देने का वह सादा और आसान तरीक़ा है कि आलमगीर मज़हब के लिए ऐसा ही होना ज़रूरी था, अज़ान दर हक़ीक़त उसूल ए इस्लाम की इशाअत और ऐलान है, मुसलमान इसके ज़रिए से हर आबादी के क़रीब जुमला बाशिंदों के कानों तक अपने उसूल पहुंचा देते और राहे निजात से आगाह कर देते हैं, अज़ान साबित करती है कि इस्लाम ने घोंघो और धातुओं को इंसानी आवाज़ पर तरजीह नहीं दी और यह भी एक तरीक़ा बुत परस्ती के इंसदाद (रोकने) और तोहीद की ताईद का है _,"*
[3/3, 6:53 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम:-*
*"_2 हिजरी में सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए, यह असफहान के बाशिंदे थे, इनके पुराने मज़हब में "अबलक़" घोड़े की परिश्तिश की जाती थी, दीने हक़ की तलाश में घर से निकले और अरब तक आए, किसी ने इनको पकड़कर गुलाम बनाकर बेच दिया था, 10 से ज्यादा मज़हबों के बाद यह यहूदी मज़हब में दाखिल हो गए थे,*

*★_ जिस यहूदी के पास रहा करते थे वह अकसर एक पैदा होने वाले नबी के औसाफ बयान किया करता था, जब हजरत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने मदीना में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा तो उन अलामात व आसार व अखबार से जो अपने आक़ा से सुने थे आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहचान लिया और मुसलमान हो गए और मुल्क फारस का पहला फल कहलाए _,"*
[3/4, 4:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ताहवील ए क़िब्ला _,*
*"_ नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की आदत मुबारक यह थी कि जिस बारे में कोई हुक्म ए इलाही मौजूद ना होता उसमें अहले किताब से मुवाफक़त फरमाया करते, नमाज़ आगाज़े नबूवत ही में फ़र्ज़ हो चुकी थी मगर क़िब्ला के मुताल्लिक कोई हुक्म नाज़िल ना हुआ था, इसलिए मक्का की 13 साला अका़मत के अरसे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बेतुल मुकद्दस ही को क़िब्ला बनाए रखा, मदीना में पहुंचकर भी यही अमल रहा ।*

*★_ मगर हिजरत के दूसरे साल (या 17 माह बाद ) अल्लाह ने इस बारे में हुक्म नाजिल फरमाया, यह हुक्म नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दिली मंशा के माफिक़ था क्योंकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दिल से चाहते थे कि मुसलमानों का क़िब्ला वह मस्जिद बनाई जाए जिसके बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम थे, जिसे मुक'ब शक्ल की इमारत होने की वजह से काबा और सिर्फ इबादत ए इलाही के लिए बनाई जाने की वजह से बैतुल्लाह और अजमत व हुरमत की वजह से मस्जिदुल हराम कहा जाता था।* 

*★_ इस हुक्म में जो अल्लाह पाक ने कुरान ए मजीद में नाजिल फरमाया है यह भी बताया गया है कि अल्लाह पाक को जुमला जिहात ( दिशाओं) से एक सी निस्बत है:-*
*"_और मशरिक व मगरिब सब अल्लाह ही का है, तो जिधर तुम रुख करो उधर अल्लाह की जा़त है_," ( सूरह बक़रा- 115)*
*"_और यह भी बताया गया है कि इबादत के लिए किसी ना किसी तरफ का मुक़र्रर कर लेना इंसानी तबका़त में जारी रहा है :-*
*"_और हर एक (फिरक़े) के लिए एक सिम्त मुकर्रर है जिधर वो (इबादत के वक्त) मुंह किया करते हैं, तो तुम नेकियों में सबक़त हासिल करो तुम जहां होंगे अल्लाह तुम सब को जमा करेगा, बेशक अल्लाह हर चीज़ पर का़दिर है _," ( सूरह बक़रा - 148)*

*★_ और यह भी बताया गया है कि किसी तरफ मुंह करना असल इबादत से कुछ ताल्लुक़ नहीं रखता_,**
*"_ नेकी यह नहीं है कि तुम मशरिक व मगरिब (को क़िब्ला समझ कर उन ) की तरफ मुंह कर लो _," ( सूरह बक़रा-172)*
*"_और यह भी बताया गया है कि ताईने क़िब्ला का बड़ा मक़सद यह भी है की मुत्तबाईन ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए एक मुमेज़ अलामत क़रार दी जाए _,"*
*"_ कि हम मालूम करेंगे कौन (हमारे) पैगंबर का ताबे रहता हैं और कौन उल्टे पांव फिर जाता है, ( सूरह बक़रा - 143) _,"*
[3/5, 7:54 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ यही वजह थी कि जब तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का में रहे उस वक्त तक बेतुल मुक़द्दस मुसलमानों का क़िब्ला रहा, क्योंकि मुशरीकीने मक्का बेतुल मुकद्दस के अहतराम के का़यल ना थे और काबा को तो उन्होंने खुद ही अपना बड़ा माबद बना रखा था इसलिए शिर्क छोड़ देने और इस्लाम कुबूल करने की हीन अलामत मक्का में यही रही कि मुसलमान होने वाला बेतुल मुकद्दस की तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ा करें,* 

*★_जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना में पहुंचे, वहां ज़्यादातर यहूदी या ईसाई ही आबाद थे, वो मक्का की मस्जिद अल हराम की अज़मत के क़ायल ना थे और बेतुल मुकद्दस को तो वह बैत ए ईल या हीकल तस्लीम करते ही थे, इसलिए मदीना मुनव्वरा में इस्लाम क़ुबूल करने और आबाई मज़हब छोड़ देने की अलामत यह ठहराई गई कि मक्का की मस्जिद अल हराम की तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ी जाया करे, हुक्म ए इलाही के मुताबिक यही मस्जिद हमेशा के लिए मुसलमानों का क़िब्ला क़रार दी गई, इस मस्जिद को क़िब्ला क़रार देने की वजह अल्लाह ताला ने खुद ही बयान फरमा दी है:-*
*"_ यह मस्जिद दुनिया की सबसे पहली इमारत है जो इबादते इलाही की गर्ज़ से बनाई गई _," (आले इमरान- 96)* 

*★_ चूंकि इसे पहले ज़माने से तारीखी अज़मत हासिल है इसलिए इसको क़िब्ला बनाया जाना मुनासिब है, मस्जिद अल हराम के बानी हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम है और हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम यहूदियों ईसाइयों और मुसलमानों के जद्दे आला है इसलिए इन शानदार कौमों के बुजुर्गवार की मस्जिद की क़िब्ला क़रार देना गोया तीन कौमों का इत्तेहाद ए नसबी व जिस्मानी की याद दिला कर इत्तेहाद ए रूहानी के लिए दावत देना और मुत्ताहिद बन जाने का पैगाम ( पूरे पूरे दीन में दाखिल हो जाओ) सुना दिया गया था _,"*
*"_हमें यक़ीन है कि काबा के पहले ज़माने से मुकद्दम होने और तारीखी अजमत का इनकार कोई मज़हब भी नहीं कर सकता, यहूदी और ईसाई भी मुत्तफिक़ है _,"*
[3/6, 5:57 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ज़कात और मद्दुन ए इंसानी ( मा'शरत)*
*"_इकोनॉमिक्स और पॉलीटिकल इकोनामी का सबसे मुश्किल मसला यह है की क़ौम में अमीर और गरीब में कैसे तनासुब ( बराबरी) क़ायम किया जाए, हकीम सोलोन के ज़माने से लेकर आज तक कोई इंसानी दिमाग इस अक़ीदे का हल नहीं ढूंढ सका, कुरान मजीद ने इस बारे में पहले से फैसला कर दिया:-* 
*"_(तर्जुमा) रिज़्क में अल्लाह ने एक को दूसरे पर बरतरी दी है और जिनको यह बरतरी मिली है वह अपना हिस्सा उन लोगों को जिनके वह मालिक हो चुके हैं (इसलिए) वापस न करेंगे कि सब आपस में बराबर हो जाएं_," ( सूरह नहल 71)*

*★_इस्लाम ने जो मुसलमानों को दुनिया की बेहतरीन मज़हबी क़ौम बनाना चाहता है इस मसले पर तवज्जो की और इसे हमेशा के लिए तय कर दिया और इसी का नाम फर्ज़ियत ए ज़कात है, ज़कात 2 हिजरी में मुसलमानों पर फ़र्ज़ हुई, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नेक और रहीम दिल पहले ही मिस्कीनों का हमदर्द, गरीबों पर रहम करने वाला, दर्दमंदो का गमगुसार था और इस्लाम में शुरू से ही मसाकीन और गुरबा की दस्तगीरि पर मुसलमानों को खुसूसियत से तवज्जो दिलाई जाती थी, उनकी हमदर्दी को गुरबा का रफीक़ बनाया जाता था और मुसलमान इस पाक तालीम की बदौलत गुरबा व मसाकीन के लिए बहुत कुछ किया भी करते थे _,"*

*★_फिर भी ऐसा कोई क़ायदा मुकर्रर ना था जिस पर बतौर आईने जाबते के अमल किया जाता हो, इसलिए दौलतमंद जो कुछ भी करते थे अपनी फैयाजी व नेक दिली से करते थे, अल्लाह ताला ने जकात को फ़र्ज़ और इस्लाम का तीसरा रुक्न (कलमा शहादत और नमाज़ के बाद) क़रार दिया, ज़कात दर हक़ीक़त उस सिफ्ते हमदर्दी व रहम के बका़यदा इस्तेमाल का नाम है जो इंसान के दिल में अपने अबनाए जिंस ( इंसान) के साथ क़ुदरतन व फितरतन मौजूद हैं _,"*
[3/7, 7:07 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ज़कात अदा करने से अदा करने वाले को यह फायदा भी होता है कि माल की मोहब्बत अखलाके़ इंसानी को मगलूब नहीं कर सकती और बुख्ल व कंजूसी के ऐब से इंसान पाक रहता है और यह फायदा भी है कि गुरबा में मसाकीन को वह अपनी क़ौम का जुज़्व समझता रहता है और इसलिए बेहद दौलत का जमा हो जाना भी उसमें तकब्बुर और गुरूर पैदा नहीं होने देता और यह फायदा भी है कि गुरबा के गिरोह कसीर को उसके साथ एक उन्स व मोहब्बत और उसकी दौलत व सरवत के साथ हमदर्दी व खैरख्वाही पैदा हो जाती है क्योंकि वह उसके माल में अपना एक हिस्सा मौजूद क़ायम समझते हैं, गोया दौलतमंद मुसलमान की दौलत एक ऐसी कंपनी की दौलत की मिसाल पैदा कर लेती है जिसमें अदना व आला हिस्से के हिस्सेदार शामिल होते हैं ।*

*★_ कौ़म को यह फायदा है कि भीख मांगने की रस्म क़ौम से बिल्कुल गायब हो जाती है, इस्लाम में मसाकीन का हक़ उमरा की दौलत में बनाम ज़कात अमवाले नामिया यानी तरक्की करने वाले मालों में मुकर्रर किया है जिनमें से अदा करना भी नागवार नहीं गुज़रता, अमवाले नामियां में तिजारत ज़रात (खेती) और मवेशी (भेड़, बकरी, ऊंट, गाय) नक़दियत मुआविन (जमा पूंजी) और का दफाइन ( खज़ाना) शुमार होते हैं,*

*★_ अब यह दिखलाना ज़रूरी है कि जो नक़द व जिंस जकात से हासिल हो इसके मुसतहिक़ कौन लोग हैं _,"*

*★_(तर्जुमा सूरह तौबा आयत -8):- जकात व सदकात का माल फकी़रों और मसाकीनों के लिए है (फ़कीर व मिस्कीन का फ़र्क फुक़हा कि किताबों में देखें) और उन लोगों के लिए जो सदकात की वसूली पर मुकर्रर हो (जिनकी तन्ख्वाहें अदा होंगी) और उन लोगों के लिए जिनकी दिल अफजा़ई इस्लाम में मंज़ूर हो यानी नव मुस्लिम लोग और गुलामों को आज़ादी दिलाने के लिए और ऐसे क़र्ज़दारों का क़र्ज़ चुकाने के लिए जो क़र्ज़ ना उतार सकते हों और अल्लाह के रास्ते में (यानी दीगर नेक कामों के लिए) और मुसाफिरों के लिए _,"*

*★_ जिन 8 मदों पर जकात की तक़सीम की गई है इससे ज़ाहिर है कि जकात की फर्जियत से मुल्क और कौम और अफराद की शख्सी ज़रूरियात को किस खूबी से पूरा कर दिया गया है _,"* 

*★_ तक़सीमें जकात के नंबर 6 पर भी गौर करना चाहिए, हाल के ज़माने में क़र्ज़दारों की सहूलियत के लिए बैंक क़ायम है लेकिन बैंकों के क़याम का नतीजा यह है कि सैकड़ों अमलाक गरीब लोगों के कब्जे़ से निकल निकल बैंक के पास चली गई है और खास खास लोगों के सिवा आवाम से मुफलिसी व तंगदस्ती की तरक्की़ हो गई है, कर्ज का बिला सूद के मिलना मुहाल हो गया है और इन्हीं मुश्किलात की वजह से बहुत से लोगों ने सूद के जायज़ की सूरतें निकालने की हरकतें की है,* 

*★_ लेकिन देखो इस्लाम का एहसान कि उसने क़र्ज़ से बर्बाद होने वालों के बचाव का कैसा अजीब इंतज़ाम किया है, बेशक सूद की हुरमत का हुक्म सुनाना भी इस्लाम ही का हक़ है जिसने क़र्ज़दारों की गुलु खलासी के लिए ऐसे अजीब इंतजामात किये है_,"*

*★_ अब जकात के मुताल्लिक़ यह हदीस याद रखनी चाहिए:-*
*"_ यह सदके का माल लोगों की मेल कुचल होता है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के कुंबे वालों के लिए यह हलाल नहीं है _,"( मुस्लिम 754, कंज़ुल उम्माल- 7/1650 अहमद-4/166 )*

[3/8, 6:54 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रमज़ान 2 हिजरी मुक़द्दस (फर्ज़ियत ए रमजानुल मुबारक और फवाइद):-*
*"_रमजान के रोज़े भी हिजरत के दूसरे ही साल फ़र्ज़ हुए और साल में एक महीने के रोज़े रखना इस्लाम का चौथा रूक्न क़रार पाया, रोज़े सेहत को बढ़ाते हैं, उमरा को गुरबा की हालत से अमली तरीक़े पर बाखबर करते हैं, शिकमसेरों और फाका़मस्तों को एक सतह पर खड़ा कर देने से क़ौम में मुसावात के उसूल को तक़वियत देते हैं, क़ुव्वते मुल्किया को कवी और कुव्वते हैवानिया को कमज़ोर बनाते हैं,* 

*★_ कुरान मजीद ने खास तौर पर यह बयान फरमाया है कि रोज़े खुदा तुरसी की ताक़त इंसान के अंदर मुहकम कर देते हैं (ला अल्लकुम तततक़ून - ताकि तुम तक़वे वाले बन जाओ- सूरह बक़रा- 183)* 

*★_ तक़वा की मिसालों पर गौर करो कि गर्मी का मौसम है और रोज़ेदार को सख्त प्यास लगी हुई है तमाम मकान में ठंडा पानी उसके सामने मौजूद है मगर वो पानी नहीं पीता, रोजे़दार को सख्त भूख लगी हुई है भूख की वजह से जिस्म में ज़ौफ भी महसूस करता है खाना मयस्सर है कोई शख्स उसे देख भी नहीं रहा मगर वह खाना नहीं खाता, प्यारी दिलपसंद बीवी पास मौजूद है मोहब्बत के जज़्बात उसकी खूबसूरती से तमतमा लेने की तहरीक करती हैं, उल्फत ने दोनों को एक दूसरे का शैदा बना रखा है लेकिन रोजे़दार उससे पहलूतही (दूरी) अख्तियार करता है _,"*

*★_ वजह यह है कि अल्लाह के हुक्म की इज्ज़त और अज़मत उसके दिल में इस क़दर पैदा हो गई है कि कोई जज़्बा भी उस पर गालिब नहीं आ सकता और रोज़ा ही अज़मत और जलाल ए इलाही के दिल में का़यम होने का बाइस हुआ है, ज़ाहिर है कि जब एक ईमानदार अल्लाह के हुक्म की वजह से जायज़, हलाल, पाक़ीज़ा ख्वाहिशात के छोड़ देने की आदत कर लेता है तो वह ज़रूर अल्लाह के हुक्म की वजह से हराम, नाजायज़ और गंदी आदतें व ख्वाहिशात को छोड़ देगा और इनके इर्तकाब की भी जुर्रत नहीं करेगा, यही वह अखलाकी़ बरतरी है जिसका रोजे़दार के अंदर पैदा कर देना और मुतहकम कर देना शरा का मक़सूद है, इसलिए हदीसे सही में है:-*
*"_ जो रोज़ेदार झूठ कहना बेहूदा बकना और बेहूदा फ़िज़ूल कामों का करना छोड़ नहीं देता तो अल्लाह को कुछ परवाह नहीं है अगर वह अपना खाना पीना छोड़ देता है _," (बुखारी- 1903 )*

*★_दूसरी हदीस में है जब कोई शख्स किसी दिन का रोज़ा रखे तो ना कोई बेहूदा लफ्ज़ जुबान से निकाले ना बकवास और शोर करे और अगर और कोई शख्स उसे गाली दे या उससे झगड़ा करें तब कह दे कि मैं रोजे़दार हूं (गाली का जवाब देना झगड़ना मुझे शायान नहीं )*
[3/10, 6:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रोज़ा और चांद की तारीखें:-*
*"_रमजा़न का महीना कमरी (चांद) हिसाब पर रखा गया है क्योंकि जब निस्फ ( आधी) दुनिया पर सर्दी का मौसम होता है तो दूसरे निस्फ हिस्से पर गर्मी का मौसम होता है, कमरी महीना बदल बदल कर आने से कुल दुनिया के मुसलमानों के लिए मुसावात ( बराबरी) क़ायम कर देता है लेकिन अगर कोई शम्सी ( सूरज) महीना मुक़र्रर कर दिया जाता तो निस्फ दुनिया के मुसलमान हमेशा सर्दी की सहूलियत में और निस्फ दुनिया के मुसलमान हमेशा गर्मी की सख्ती में और तकलीफ में रहा करते और यह अम्र आलमगीर मज़हब के उसूल के खिलाफ होता _,"* 

*★_ रोज़ा रखना दुश्वार नहीं है मगर जिस शख्स के शहवानी खयालात हों या जो जिस्मानी नाज़ो नियामत ही को ज़िंदगी का शीरी मक़सद समझता हो उसके लिए रोज़ा रखना बेशक सख्त गिरां है, रमज़ान का इस्लाम में फ़र्ज़ होना बल्कि रुक्ने इस्लाम होना ही साबित करता है कि इस्लाम को किस क़दर ईमानी और मलकूती ताक़तों को बढ़ाने वाला और किस क़दर जिस्मानी व शहवानी ख्यालात को मिटा मिटा देने वाला है,* 

*“_ 3 हिजरी के माह रमजा़न में सैयदना हसन मुजतबा रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए जो हजरत अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु व फातिमा ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा के फरज़ंद हैं _,"*
[3/11, 6:50 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उम्मुल खबाइस शराब को इस्लाम में हराम किया_,"*
*"_4 हिजरी की बरकात में बड़ी बरकत यह है कि शराब की हुरमत का ऐलान किया गया, हजरत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि कुछ लोग अबु तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु के घर में बैठे थे मैं उन्हें शराब पिला रहा था, इतने में मुनादी होने लगे कि शराब हराम हो गई, अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुनते ही कह दिया कि जितनी शराब बाक़ी है उसे बाहर फेंक दो, उस रोज़ मदीना की गली कूचे में शराब बह निकली थी _,"*

*★_ आज दुनिया के मुख्तलिफ मुल्कों में मुख्तलिफ कौमे समाज में शराबबंदी आंदोलन के जरिए इंसदाद ए शराब (शराब को बंद करने) की कोशिश में मसरूफ है, यह जुमला क़ौमे इस्लाम की इस तालीम के अहसान तले दबी हुई हैं क्योंकि इस्लाम ही वह मज़हब है जिसने शराब की कलील व कसीर ( कम-ज़्यादा) मिकदार को हराम मुतलक़ क़रार दिया है,*

*★_ इस्लाम में शराब का नाम "उम्मुल खबाइस" (बुराइयों और पलीदों की मां) रखा है, इंसान के जिस्म पर, रवैए पर, अखलाक़ पर, मुल्क के अमन व इंतज़ाम पर, क़बाइल के आदात पर, फ़ौज की ताक़त और कु़व्वत पर जो बुरा असर शराब का तजुर्बा और मुशाहिदा में आ रहा है इससे वाज़े है कि शराब के लिए "उम्मुल खवाइश" कैसा मौजू और ज़ेबा नाम है,* 

*★_बाज़ लोग इस्लाम की सदाक़त पर पर्दा डालने के लिए कहा करते हैं कि इस्लाम ने शहवानी खयालात को तहरीक देकर लोगों को इस्लाम में दाखिल होने की तहरीस ( लालच) दिलाई है, उनको ज़रा गौर करना चाहिए कि शराब को हराम ठहराने वाला मज़हब किस क़दर शहवानी ख्यालात का दुश्मन होगा और जिस मज़हब में शराब ही हराम हो उस में दाखिल होने से अय्याश तबीयतों को कितनी झिझक होगी,*
[3/12, 7:13 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_शुमामा उसाल रज़ियल्लाहु अन्हु सरदारे नजद का मुसलमान होना (5 हिजरी)_,"*
*"_नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कुछ सवार नजद की जानिब रवाना फरमाए थे, वह वापस होते हुए शुमामा बिन उसाल को गिरफ्तार कर लाए थे, फौज वालों ने उन्हें मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के सुतूनों के साथ ला बांध दिया था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां तशरीफ लाकर दरियाफ्त किया कि शुमामा क्या हाल है ? शुमामा ने कहा- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम! मेरा हाल अच्छा है अगर आप मेरे क़त्ल किए जाने का हुक्म देंगे तो यह हुक्म एक खूनी के हक़ में होगा और अगर आप इनाम फरमाएंगे तो एक शुक्रगुजा़र पर रहमत करेंगे और अगर माल की ज़रूरत है तो जिस क़दर चाहे बतला दीजिए _,"*

*★_ दूसरे रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शुमामा से फिर वही सवाल किया, शुमामा ने कहा- मैं कह चुका हूं कि अगर आप एहसान फरमाएंगे तो एक शुक्रगुजा़र शख्स पर फरमाएंगे, तीसरे रोज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फिर शुमामा से वही सवाल किया, उसने कहा- मैं अपना जवाब दे चुका हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया कि शुमामा को छोड़ दो _,"*

*★_ शुमामा रिहाई पाकर एक खजूर के बाद में गए जो मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़रीब ही था, वहां जाकर गुस्ल किया और फिर मस्जिद ए नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में लौटकर आ गए और आते ही कलमा पढ़ लिया _,"*
*"_शुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम क़सम है अल्लाह की कि सारे आलम में आपसे ज़्यादा किसी शख्स से नफरत ना थी लेकिन अब तो आप ही मुझे दुनिया में सबसे बढ़कर प्यारे मालूम होते हैं, अल्लाह की क़सम आपके शहर से मुझे निहायत ही नफरत थी मगर आज तो मुझे वह सब मुक़ामात से पसंदीदातर नज़र आता है, वल्लाह आपके दीन से बढ़कर मुझे और किसी दीन से बुग्ज़ ना था लेकिन आज तो आपका दीन ही मुझे महबूबतर हो गया है _,"*

*★_ शुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह भी अर्ज़ किया कि मैं अपने वतन से मुल्क से मक्का को उमरा के लिए जा रहा था, रास्ते में गिरफ्तार कर लिया गया था, अब उमरा के बारे में क्या इरशाद है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इस्लाम क़ुबूल करने की बशारत दी और उमरा के अदा करने की इजाज़त फरमाई _,"*
[3/13, 7:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जानी दुश्मनों से हुस्न ए सुलूक _,"*
*"_सुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का पहूंचे तो वहां एक शख्स ने पूछा कि तुम सहाबी बन गए, सुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- नहीं, मैं मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम पर ईमान लाया हूं और इस्लाम क़ुबूल किया है और अब याद रखना कि मुल्क यमामा से तुम्हारे पास एक दाना गंदुम भी नहीं आएगा जब तक कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की इजाज़त ना होगी _,"* 

*★_सुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने मुल्क में पहुंचते ही मक्का की तरफ आने वाला अनाज बंद कर दिया, गल्ले की आमद के रुक जाने से अहले मक्का बिलबिला उठे और आखिर नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ही से उन्हें इल्तज़ा करनी पड़ी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुमामा रज़ियल्लाहु अन्हु को लिख दिया की गंदुम बदस्तूर जाने दें (उन दिनों अहले मक्का नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जानी दुश्मन थे )_,"* 

*★_इस क़िस्से से ना सिर्फ यह साबित हुआ कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क्यों कर उस शख्स की जान बख्शी फरमाई जो खुद अपने आप को वाजिबुल क़त्ल समझता था और न सिर्फ यह साबित हुआ कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पाक़ीज़ा हालात और अखलाक़ का कैसा गहरा असर लोगों पर पड़ता था कि सुमामा जैसा शख्स जो इस्लाम और मदीना और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सख्त नफ़रत व अदावत रखता था तीन रोज़ के बाद बाखुशी खुद ईमान ले आया था _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नेकी और तबियत की पाकी व रहमदिली का सबूत इस तरह मिलता है की मक्का के जिन मुशरिकों ने आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का से निकाला था और बदर, उहद, खंदक में अब तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को तबाह व बर्बाद करने के लिए सारी ताकत खर्च कर चुके थे उनके लिए रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम यह पसंद नहीं फरमाते कि उनका गल्ला रोक दिया जाए और उनको तंग व ज़लील करके अपना फरमाबरदार बनाया जाए _,"*
[3/13, 6:23 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सुलह हुदैबिया 6 हिजरी मुकद्दस:-*
*"_इसी साल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना एक ख्वाब सहाबा को सुनाया, फरमाया मैंने देखा गोया मैं और सहाबा मक्का पहुंच गए हैं और बैतुल्लाह का तवाफ कर रहे हैं, इस ख्वाब को सुनने से गरीबुल वतन सहाबा को उस शोक ने जो बैतुल्लाह के तवाफ का उनके दिल में था बेचैन कर दिया और उन्होंने इस साल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का के सफर के लिए आमादा कर लिया, मदीना से सहाबा ने सामाने जंग साथ नहीं लिया बल्कि कुर्बानी के ऊंट साथ लिए, सफर भी ज़ीका़दा के महीने में किया जिसमें अरब क़दीम रिवाज़ की पाबंदी से जंग हरगिज़ ना किया करते थे और जिसमें हर एक दुश्मन को भी बिना रोक-टोक मक्का में आने की इजाज़त हुआ करती थी _,"*

*★_ जब मक्का 19 मील रह गया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुका़मे हुदैबिया से कुरेश के पास अपने आने की इत्तेला भेज दी और आगे बढ़ने की इजाज़त उनसे चाही, उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु जिनका इस्लामी तारीख में ज़ुल नूरेन लक़ब है सफीर बनाकर भेजे गए, उनके जाने के बाद लश्करे इस्लामी में यह खबर फैल गई कि क़ुरेश ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल या कैद कर दिया है, इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस बे सरो सामान जमीयत से जान निसारी की बैत ली कि अगर लड़ना भी पढ़ा तो साबित क़दम रहेंगे _,"*

*★_ बैत करने वालों की तादाद 14 सौ थी, इस बैत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने बाएं हाथ को उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का दाहिना हाथ क़रार दिया और उनकी जानिब से अपने दाहिने हाथ पर बैत की, इस बैत का हाल सुनकर कुरेश डर गए और उनके सरदार एक के बाद एक हुदैबिया हाज़िर हुए _,"*
[3/13, 10:20 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_अमरु बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु जो कुरेश की जानिब से आए थे, उन्होंने कुरेश को वापस जाकर कहा- ऐ क़ौम ! मुझे बारहा नजाशी (बादशाह हब्शा) केसर (बादशाह कुस्तुनतुनिया) किसरा (बादशाह ईरान) के बारे दरबार में जाने का इत्तेफ़ाक हुआ है मगर मुझे कोई भी ऐसा बादशाह नज़र ना आया जिसकी अज़मत उसके दरबार वालों के दिल में ऐसी हो जैसे असहाबे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के दिल में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की है, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम थूकते हैं तो उनका आबे दहन ज़मीन पर गिरने नहीं पाता, किसी ना किसी के हाथ पर ही गिरता है और वह शख्स उस आबे दहन को अपने चेहरे पर मल लेता है _,"*

*★_जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कोई हुक्म देते हैं तो तामील के लिए सब मुबादरत करते हैं, जब वह वजू़ करते हैं तो आबे मुस्तमिल वजू के लिए ऐसे गिरे पड़ते हैं गोया लड़ाई हो पड़ेगी, जब वह कलाम करते हैं तो सब के सब चुपचाप हो जाते हैं, उनके दिल में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इतना अदब है कि वह उनके सामने नज़र उठा कर नहीं देखते, मेरी राय है कि उनसे सुलह कर लो जिस तरह भी बने _,"*
*( बुहारी 4080- 4181 )*

*★_ सोच समझकर क़ुरेश सुलह करने पर आमादा हुए, सुलह के लिए मिंदरजा जे़ल शराइत तैय हुई:-*
*(१)_ 10 साल तक बाहमी सुलह रहेगी, आमदो रफ्त में किसी को रोक-टोक ना होगी,*
*(२)_ जो कबाइल चाहें कुरेश से मिल जाए और जो चाहें वह मुसलमानों की जानिब शामिल हो जाएं, दोस्तदार क़बाइल के हुक़ूक़ भी यही होंगे,*
*(३)_ अगले साल मुसलमानों को तवाफे काबा की इजाज़त होगी, उस वक्त हथियार उनके जिस्म पर ना होंगे, गो सफर में साथ हो,* 
*(४)_अगर कुरेश में से कोई शख्स नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास मुसलमान होकर चला जाए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस शख्स को क़ुरेश के तलब करने पर वापस कर देंगे लेकिन अगर कोई शख्स इस्लाम छोड़कर कुरेश से जा मिले तो उसे वापस ना करेंगे _,"*

*★_ आखिरी शर्त सुनकर तमाम मुसलमान बजुज़ अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु घबरा उठे, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु इस बारे में ज़्यादा पुर जोश थे लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हंसकर इस शर्त को भी मंजूर फरमाया _,"*
[3/14, 7:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_मुआहिदा हजरत अली मुर्तुजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु में लिखा था, उन्होंने शुरू में लिखा "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" सुहेल जो कुरेश की तरफ से कमिश्नर ए मुआहिदा था बोला बाखुदा हम नहीं जानते कि रहमान किसे कहते हैं, "बिस्मीका अल्लाहुम्मा" लिखो, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वही लिख देने का हुक्म दिया _,"*

*★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फिर लिखा- यह मुआहिदा मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और क़ुरेश के दरमियान मुन'अक़्द हुआ है, सुहेल ने इस पर भी ऐतराज़ किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी दरख्वास्त पर मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह लिखने का हुक्म दिया _,"*

*"_मुआहिदे की आखिरी शर्त की निस्बत क़ुरेश को ख्याल था कि इस शर्त से डरकर कोई शख्स आइंदा मुसलमान ना होगा लेकिन यह शर्त अभी तैय ही हुई थी और अहदनामा लिखा ही जा रहा था दोनों तरफ से मुआहिदे पर दस्तखत भी ना हुए थे कि सुहेल बिन अमरू (जो अहले मक्का की तरफ से मुआहिदे पर दस्तखत करने का अख्तियार रखता था) का बेटा अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु उस जलसे में पहुंच गए,* 

*★_ अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु जो मक्का में मुसलमान हो गए थे कुरैश ने उन्हें क़ैद कर रखा था और अब वह मौक़ा पाकर जंजीरों समेत ही भागकर लश्कर ए इस्लामी में पहुंचे थे, सुहेल ने कहा कि इसे हमारे हवाले किया जाए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अहदनामे के मुकम्मल हो जाने पर उसके खिलाफ ना होगा यानी जब तक अहदनामा मुकम्मल ना हो जाए उसकी शराइत पर अमल नहीं हो सकता_,"* 
*"_सुहेल में बिगड़ कर कहा कि तब हम सुलह ही नहीं करते, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया और अबु जुंदल रज़ियल्लाहु अन्हु को कु़रेश के सुपुर्द कर दिया गया ‌_,**

*★_ क़ुरेश ने मुसलमानों के कैंप में उनकी मशके बांधी, पांव में जंजी़र डाली और घसीट कर के ले गए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जाते वक्त इस क़दर फरमा दिया था कि अबु जुंदुल अल्लाह तेरी कुशाइश के लिए कोई सबील निकाल देगा, अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़िल्लत और कु़रेश का ज़ुल्म देखकर मुसलमानों के अंदर जोश और तैश तो पैदा हुआ मगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म समझकर ज़ब्त व सब्र किए रहे _,"*
[3/14, 7:23 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हमला करने वाले 80 आदमियों को माफ़ी_,"*
*"_नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हुदैबिया में ठहरे हुए थे कि 80 आदमी कोहे तन'ईम से सुबह के वक़्त जबकि मुसलमान नमाज़ में मसरुफ़ थे इस इरादे से उतरे कि मुसलमानों को नमाज़ के अंदर कत्ल कर दें, यह सब लोग गिरफ्तार कर लिए गए और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अज़ राहे रहमदिली व अफू छोड़ दिया, इस वाक़िए पर क़ुरान ए मजीद में इस आयत का नुज़ूल हुआ:- (तर्जुमा)- "अल्लाह वह है जिसने वादी ए मक्का में तुम्हारे दुश्मनों के हाथ तुमसे रोक दिए और तुम्हारे हाथ भी (उन पर का़बू पा लेने के बाद) उनसे रोक दिए_," (सूरह फतह- 24)* 

*★_ बरकात ए मुआहिदा :- अलगर्ज़ यह सफर बहुत खैरो बरकात का मौजिब हुआ, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआहिदीन के साथ मुआहिदा करने में फैयाजी़ जज़्म, दूरबीनी और हमलावर दुश्मनों की माफी में अफू व रहमतुल आलमीन के अनवार का ज़हूर दिखलाया _,"*

*★_ मुसलमान हुदैबिया से मदीना मुनव्वरा को वापस तशरीफ ले गए, इस मुआहिदे के बाद सूरह फतह का नुज़ूल हुदैबिया में हुआ था, उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा -या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या यह मुआहिदा हमारे लिए फतह है ? फरमाया- हां _,"*

*★_ अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु ने जिंदाने मक्का में पहुंचकर दीने हक़ की तबलीग शुरू कर दी, जो कोई उसकी निगरानी पर मामूर होता वह उसे तोहीद की खूबियां सुनाते, अल्लाह की अज़मत व जलाल बयान करके ईमान की हिदायत करते, अल्लाह की कुदरत कि अबू जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु अपने सच्चे इरादे और कोशिश में कामयाब हो जाते और वह शख्स ईमान ले आता, क़ुरेश इस दूसरे ईमान लाने वाले को भी क़ैद कर देते, अब यह दोनों मिलकर तबलीग का काम उसी क़ैदखाने में करते, अलगर्ज़ इसी तरह एक अबु जुंदुल रज़ियल्लाहु अन्हु के क़ैद होकर मक्का पहुंच जाने का नतीजा यह हुआ कि एक साल के अंदर क़रीबन 300 शख्स ईमान ले आए_,"*

*★_ अब क़ुरेश पछताए कि हमने क्यों अहदनामे में ईमान वालों को वापस लेने की शर्त दर्ज कराई, फिर उन्होंने मक्का के चंद मुंतखब शख्सों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में भेजा कि हम अहदनामा की इस शर्त से दस्त बरदार होते हैं अब नव मुसलमानों को अपने पास वापस बुला लीजिए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआहिदे के खिलाफ करना पसंद नहीं फरमाया, उस वक़्त आम मुसलमान भी समझ गए कि मुआहिदे की शर्त जो ज़ाहिरन हमको ना गवार थी उसका मंजू़र कर लेना किस क़दर मुफीद साबित हुआ _,"*
[3/18, 9:45 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुसलमानों का तवाफे काबा के लिए जाना और उसके नताइज (7 हिजरी मुकद्दस):-*
*"_ मुआहिदा हुदेबिया की शर्त दो के मुताबिक मुसलमान इस साल मक्का पहुंचकर उमरा करने का हक़ रखते थे इसलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम दो हज़ार सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को साथ लेकर मक्का पहुंचे, मक्का वालों ने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को मक्का में आने से तो ना रोका लेकिन खुद घरों को ताला लगाकर अबू क़ुबेस की चोटी पर जिसके नीचे मक्का आबाद है चले गए, पहाड़ पर से मुसलमानों के काम देखते रहे_,"* 

*★_ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम 3 दिन तक उमरा के लिए मक्का में रहे और फिर सारी जमीयत के साथ मदीना को वापस चले गए, उन मुंकिरो पर मुसलमानों के सच्चे जोश, सादा और मो'स्सिर तरीक़े इबादत का और उनकी आला दयानत व अमानत का (कि खाली शुदा शहर में किसी का एक पाई का भी नुक़सान ना हुआ था) अजीब असर हुआ, जिसने सैकड़ों को इस्लाम की तरफ माइल कर दिया _,*

*★_ यहूद की चौथी साजिश मदीना मुनव्वरा पर हमले की तैयारी, जंगे खेबर (मोहर्रम 7 हिजरी):-*
*"_खैबर मदीना मुनव्वरा से शाम की जानिब तीन मंज़िल पर एक मुका़म का नाम है, यह यहूदियों की खालिस आबादी का कस्बा था, आबादी के इर्द-गिर्द बहुत से किले बनाए हुए थे _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सफरे हुदैबिया से पहुंचे हुए अभी थोड़े दिन (एक माह से कम) ही हुए थे कि यह सुनने में आया की खैबर के यहूदी फिर मदीना पर हमला करने वाले हैं और जंग ए एहज़ाब की नाकामी का बदला लेने और अपनी खोई हुई जंगी इज्ज़त व क़ुव्वत को मुल्क भर में बहाल करने के लिए एक खूंखार जंग की तैयारी कर चुके हैं _,"*
*"_उन्होंने क़बीला बनू गतफान के 4000 जंगजू बहादुरों को भी अपने साथ मिला लिया था और मुआहिदा यह था कि अगर मदीना फतेह हो गया तो पैदावार ए खैबर का निस्फ हिस्सा हमेशा बनू गतफान को देते रहेंगे _,"*
[3/20, 7:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ महमूद बिन मुस्लिमा 5 रोज़ तक बराबर हमला करते रहे लेकिन क़िला फतह ना हुआ, पांचवे या छटे रोज़ का ज़िक्र है कि महमूद रज़ियल्लाहु अन्हु मैदान-ए-जंग की गर्मी से ज़रा सुस्ताने के लिए क़िले के साए में लेट गए, कनाना बिन अक़ीक़ यहूदी ने उन्हें गाफिल देखकर एक पत्थर उनके सर पर दे मारा जिससे वह शहीद हो गए, शाम को मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने भाई की मज़लूमाना शहादत का क़िस्सा खुद ही नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में आकर अर्ज़ किया _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया कल फौज का निशान उस शख्स को दिया जाएगा (या वह शख्स निशान हाथ में लेगा) जिससे अल्लाह ताला और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मुहब्बत करते हैं और अल्लाह ताला फतेह इनायत फरमाएगा, यह ऐसी तारीफ थी जिसे सुनकर फौज के बड़े-बड़े बहादुर अगले दिन की कमान मिलने के आरज़ूमंद हो गए थे_,"* 
*"_उस रात पासबानी लश्कर की खिदमत हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द थी, उन्होंने गिरदावरी करते हुए एक यहूदी को गिरफ्तार किया और उसी वक़्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में लाए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े तहज्जुद में थे, जब फारिग हुए तो यहूदी से गुफ्तगू फरमाई _,"* 

*★"_यहूदी ने कहा कि अगर उसे और उसके ज़न व बच्चों को जो क़िले के अंदर हैं अमान अता हो तो वह बहुत से जंगी राज़ बतला सकता है, यह वादा उससे कर लिया गया, यहूदी ने बताया कि नताक़ के यहूदी आजकी रात अपने ज़न व बच्चों को क़िला शन में भेज रहे हैं और नक़द व जिंस को क़िला नताक़ के अंदर दफन कर रहे हैं, मुझे वह मुका़म मालूम है जब आप क़िला फतह कर लेंगे तो मैं वह जगह भी बता दूंगा, बतलाया कि क़िला शन में तहखानों में बहुत से आलात मिंजिनीक़ वगैरा मौजूद है, जब आप क़िला फतह कर लेंगे तो मैं वह तहखाने भी बतला दूंगा _,"*

*★"_सुबह हुई तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हजरत अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु को याद फरमाया, लोगों ने अर्ज़ कि उन्हें आशूबे चश्म है और आंखों में दर्द भी होता रहा है, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु आ गए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लुआबे दहन मुबारक अली रज़ियल्लाहु अन्हु की आंखों पर लगा दिया, उस वक्त आंखें खुल गई, ना आशुब की सुर्खी बाक़ी थी और ना दर्द की तकलीफ, फिर फरमाया अली रज़ियल्लाहु अन्हु जाओ अल्लाह की राह में कोशिश करो, अगर तुम्हारे हाथ पर एक शख्स भी ईमान ले आए तो यह काम भारी गनीमतों के हासिल हो जाने से बेहतर होगा _,"*
[3/21, 6:41 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_हज़रत अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु के आम हमले से क़िला ना'म फतेह हो गया, उसी रोज़ क़िला सो'ब को हजरत हिबाब बिन मंज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुहासरा से तीसरे दिन बाद फतेह कर लिया, क़िला सो'ब से मुसलमानों को जो खजूर छुआरे मक्खन रोगन जैतून चर्बी और पारचात (कपड़े) की मिक़दार कसीर मिली, फौज में रसद की किल्लत से जो तकलीफ हो रही थी वह दूर हो गई _,"*

*★_ इससे अगले रोज़ क़िला नताक़ फतेह हो गया, अब क़िला अलज़ुबेर पर जो एक पहाड़ी टीले पर वाक़े था और अपने बानी नज़ीर के नाम से मौसूम था हमला किया गया, दो रोज़ के बाद एक यहूदी लश्कर ए इस्लाम में आया उसने कहा यह किला तो महीने भर तक भी तुम फतेह नहीं कर सकोगे, मैं एक राज़ बतलाता हूं, उस क़िले के अंदर पानी एक ज़ेरे ज़मीन नाला के रास्ते से जाता है अगर पानी का रास्ता बंद कर दिया जाए तो फतेह मुमकिन है,* 

*★_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पानी पर कब्ज़ा कर लिया, अब अहले क़िला क़िले से निकलकर खुले मैदान में आकर लड़े और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उन्हें शिकस्त देकर क़िले को फतेह कर लिया_,*
*"_पुर हसन अबी पर हमला शुरू हुआ, उस क़िले वालों ने सख्त मुदाफ'त की, आखिर ये क़िला भी फतेह हो गया, अहले किला भाग गए, उस क़िले से बकरियां और पारचात और बहुत सा असबाब मिला, अब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने हसन अलबर पर हमला कर दिया, यहां के किला नशीनों ने सहाबा किराम पर तीर और पत्थर गिराए कि उनके भी मुक़ाबले में मिंजिनीक़ का इस्तेमाल करना पड़ा, मिंजिनीक़ वही थे जो हसन सो'ब से गनीमत में मिले थे, मिंजिनीक़ से किले की दीवारें गिराई गई और क़िला फतेह हो गया _,"*
[3/21, 6:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान लाना (8 हिजरी):-* 
*"_उन्हीं ईमान लाने वालों में हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु थे जो जंग ए उहद में क़ुरेश के लश्कर के अफसर थे और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को उन्होंने सख्त नुक़सान पहुंचाया था _,"*

*★_यह वही खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु है जिन्होंने इस्लामी जनरल होने की हैसियत में मुसेलमा कज़ज़ाब को शिकस्त दी, तमाम इराक़ और निस्फ शाम का मुल्क फतेह किया था, मुसलमानों के ऐसे जानी दुश्मन और ऐसे जांबाज आला सिपाही का खुद बा खुद मुसलमान हो जाना इस्लाम की सच्चाई का मौजज़ा है _,"*

*★_ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना (8 हिजरी):-*
*"_उन्ही ईमान लाने वालों में अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु थे, क़ुरेश ने इन्हीं को सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से अदावत और बैरूनी मामलात में आला काबिलियत रखने की वजह से वफद का सरदार बनाया था, जो शाहे हबशा के पास गया था ताकि वह हबशा में गए हुए मुसलमानों को क़ुरेश के हवाले कर दें_,* 

*★"_इन्हीं अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़माना ए ख़िलाफत में मुल्क मिस्र को फतेह किया था, ऐसे मुदब्बिर व सियासतदान और फातेह मुमालिक का मुसलमान हो जाना भी इस्लाम का एजाज़ है _,"*
[3/23, 7:03 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ हजरत उस्मान बिन तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु का इस्लाम लाना:-*
*"_ उन्हीं इस्लाम लाने वालों में उस्मान बिन तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे काबा के आला मुहतमिम व कलीद बरदार थे, जब यह नामी सरदार जिनकी शराफत हसब व नसब सारे अरब में मुस्लमा थीं) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में मदीना मुनव्वरा जा पहुंचे तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि आज मक्का ने अपने जिगर के टुकड़े हमको दे डाले _,"*

*★_ अदी बिन हातिम ताई रज़ियल्लाहु अन्हु का ईमान लाना (9 हिजरी मुकद्दस):-*
*"_ इस मशहूर सरदार के ईमान लाने की तक़रीब यह हुई कि 9 हिजरी में यमन के क़बीले बनी ते ने बगावत की थी उस वक्त उस इलाके़ के हाकिम आला अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उन्होंने फसादियों को पकड़कर मदीना मुनव्वरा भेज दिया था इनमें हातिमताई मशहूर सखी की बेटी भी थी _,"* 

*"_उसने नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में यूं अर्ज़ किया -मैं सरदार ए क़ौम की बेटी हूं मेरा बाप रहम व करम में मशहूर था भूखों को खाना खिलाया करता गरीबों पर रहम किया करता, वह मर गया भाई शिकस्त खा कर भाग गया, अब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझ पर रहम करें _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुनकर फरमाया- तेरे बाप में मोमिनो जैसी सिफात थीं, उसके बाद उसे मय उसके मुताल्लिक़ीन छोड़ दिया और जा़दे राह ( रास्ते का खर्च) और लिबास भी इनायत फरमाया_,*
[3/25, 8:04 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह का क़िस्सा:-*
*"_अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु का अपना बयान है मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के नाम से सख़्त नफ़रत थी क्योंकि मैं ईसाई मज़हब था, अपनी क़ौम का सरदार था, मेरी क़ौम गनीमत का एक चौथाई हिस्सा मुझे अदा किया करती थी, मैं अपने दिल में कहा करता था कि मैं सच्चे दीन पर भी हूं और अपने इलाक़े का बादशाह भी हूं इसलिए मुसलमान होने की मुझे कोई ज़रूरत नहीं, मैंने अपने शुतरखाने के दारोगा को कह रखा था कि दो उम्दा ऊंट जो तेज़ रफ्तार हों हर वक्त मेरे मकान पर मौजूद रखा करें और जब उसे इस इलाक़े में मुसलमानों के आने की खबर मिले मुझे फौरन बताएं_,"* 

*★_एक रोज़ दरोगा आया, कहा - साहब ! मोहम्मदी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फौज के आ जाने पर कुछ करने का इरादा हो, वह कर गुजरें क्योंकि मुझे दूर से कुछ झंडे नज़र आते हैं, यह सुनकर मैंने ऊंट मंगाए, बीवी बच्चे और ज़र व माल को लादा और शाम को चल दिया, मेरी बहन आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिहाई हासिल करने के बाद मेरे पास शाम ही में पहुंची, उसने अपनी रिहाई की तमाम कैफियत सुनाई, मेरी बहन निहायत दाना और अक़लमंद थी, मैंने पूछा कि उस शख्स ( रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की निसबत तुम्हारी क्या राय है, उसने कहा- मेरी राय यह है कि तू जल्द उसके पास चला जा क्योंकि अगर वह नबी है तब तो साबिक़ीन की फजी़लत को क्यों जा़या किया जाए और अगर वह बादशाह है तब भी उसके पास जाने से तू ज़लील ना होगा क्योंकि तू तो ही है (यानी तू खुद ही अपनी काबिलियतों मे बेनजीर है)_,"*

*★_ बहन के मशवरे पर मैं मदीने में आया, उस वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में थे, मैंने जाकर सलाम किया, फरमाया कौन ? मैंने कहा अदी बिन हातिम, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे साथ लेकर अपने घर चले, रास्ते में एक खूसट बुढ़िया मिली, उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ठहरा लिया, आप देर तक उसके पास खड़े रहे और वह अपनी ही दास्तान सुनाती रही, मैंने अपने दिल में कहा यह शख्स बादशाह तो हरगिज़ नहीं _,"*

*★"_ फिर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर पहुंचे, एक चमड़े का गद्दा जिसमें खजूर के पट्ठे भरे हुए थे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे सामने रख दिया, फरमाया- इस पर बैठो, मैंने कहा नहीं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बैठें, फरमाया- नहीं तुम ही बैठ जाओ, मैं गद्दे पर बैठ गया और आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़मीन पर बैठ गए, अब फिर मेरे दिल ने यही गवाही दी कि यह बादशाह हरगिज़ नहीं _,"*
[3/27, 8:01 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_अब नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया- तुम तो "रकुसी" हो ( रकूसी ईसाइयों के एक क़दीम फिरके़ का नाम है) मैंने कहा- हां, फरमाया- तुम तो अपनी क़ौम से गनीमत और पैदावार से चहारम ( चौथाई हिस्सा) लिया करते हो, मैंने कहा -हां, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ऐसा करना तो तुम्हारे दीन में जायज़ नही, मैंने कहा- सच है, और मैंने दिल ने कहा कि यह ज़रूर नबी है सब कुछ जानते है, इनसे कुछ पोशीदा नहीं_,"* 

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- अदी शायद इस दीन में दाखिल होने से तुमको यह अम्र माने है कि सब लोग गरीब हैं, वल्लाह ! इनमें इस क़दर माल होने वाला है कि कोई शख्स माल लेने वाला बाक़ी ना रहेगा_,"*
*"_अदी इस दीन में दाखिल होने से तुमको शायद यह अम्र भी माने हैं कि हम लोग तादाद में थोड़े हैं और हमारे दुश्मन बहुत हैं, अल्लाह की क़सम वो वक़्त क़रीब आ रहा है जब तुम सुनोगे की अकेली औरत का़दसिया से चलेगी और मक्का का हज करेगी और उसे किसी का डर व खौफ ना होगा _,"*

*★_ अदी इस दीन में दाखिल होने से शायद तुमको यह अम्र भी माने हैं कि हुकूमत और सल्तनत आज कल दूसरी क़ौमों में है, वल्लाह ! वह वक़्त बहुत क़रीब आ रहा है जब तुम सुन लोगे कि अरज़े हाबिल का सफेद महल (नौशेरवान का दरबार दीवान खाना) मुसलमानों के हाथ पर फतेह होगा _,"*

*★_ अदी ! बताओ कि "ला इलाहा इलल्लाह" के कहने में तुम्हें क्या ताम्मुल है ? क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद हो सकता है ? अदी !बतलाओ कि अल्लाहु अकबर के कहने में तुम्हें क्या उज्र है, क्या अल्लाह से भी कोई बड़ा है ?*
*"_अदी रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि इस तक़रीर के बाद मै मुसलमान हो गया, मेरे इस्लाम लाने से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर बशाशत और फरहत नुमाया थी ।*

*★_ अदी रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि इस इरशादे नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के बाद 2 साल पूरे हो चुके थे और तीसरा साल चल रहा था कि मैंने अरज़े हाबिल के महल्लात को भी फतेह शुदा देख लिया और एक बुढ़िया को क़ासियासी से मक्का तक हज के लिए अकेली आते भी देख लिया और मुझे उम्मीद है कि तीसरी बात भी हो कर रहेगी _,* 
*"_अदी बिन हातिम ताई रज़ियल्लाहु अन्हु ने 67 हिजरी में बा उमर 120 साल कूफा में वफात पाई _,"*
*(बुखारी 1413- 3595, तारीख तिबरी)*
[3/28, 7:13 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हज इस्लाम का पांचवा रुक्न :-* 
*"_इस्लाम में हज 9 हिजरी को फ़र्ज़ हुआ, इसी साल नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु को अमीरुल हज बनाया और 300 सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को उनके साथ किया ताकि सबको हज कराएं,*
*"_ इस्लाम का पांचवा रुक्न हज है, याद रखना चाहिए कि इस्लाम वह पैगाम ए मोहब्बत है जो बिछड़े हुओ को मिलाता, बेगानों को यगाना और आशनाओं को सिद्दीक बना देता है, अहकामे इस्लाम का मनशा भी यही है कि मुख्तलिफ अफराद को एक मिल्लत बनाकर एक कलमे पर जमा कर दिया जाए _,*

*★_ अहले मोहल्ले में मोहब्बत इत्तेहाद पैदा करना, क़ायम रखने के लिए पंजगाना नमाज़ों के वक्त अहले मोहल्ले पर मोहल्ले की मस्जिद में जमा होना वाजिब किया गया है, अहले शहर में मोहब्बत व ताल्लुक़ात बढ़ाने के लिए हफ्ते में एक बार उनका मस्जिदे जामा में इकट्ठे होना मिलकर नमाजे़ जुमा अदा करना ज़रूरी ठहराया गया है_,*

*★_ अहले शहर, देहात, क़ुर्ब व जवार के रहने वालों में तार्रुफ ताल्लुक़ मोहब्बत व शनासाई क़ायम करने और मुतहकम रखने के लिए साल में दो बार ईदेन की नमाज़ को वाजिब क़रार दिया गया है, हर दो मौकों पर देहात वाले शहर की जानिब आते हैं और शहर वाले शहर से बाहर निकलकर उनसे मुलाका़त करते हैं और मिलजुल कर इबादत ए इलाही अदा करते हैं_,* 

*★_ आलम ए इस्लाम मे राब्ता ए दीन के मज़बूत करने, मुख्तलिफ क़ौमो मुख्तलिफ नस्लो मुख्तलिफ जुबानों मुख्तलिफ रंगों और मुख्तलिफ मुल्कों के शख्सों को दीने वाहिद कि वहदत में शामिल होने के लिए हज उम्र भर में एक दफा उन सब शख्सों पर जो वहां जाने की इस्तेदाद रखते हैं फ़र्ज़ किया गया है, हज में सबके लिए वह सादा बिन सिला लिबास जो नस्ले इंसानी के पदरे आज़म आदम अलैहिस्सलाम का था, तजवीज़ किया गया है ताकि एक ही रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक ही क़ुरान एक ही काबा पर ईमान रखने वाले एक ही सूरत, एक ही लिबास में एक ही सतर पर नज़र आएं और चश्मे ज़हिर से देखने वालों को भी इन इत्तेहाद मानवी रखने वालों के अंदर कोई इख्तिलाफ जा़हिरी महसूस ना हो सके _,"* 

*★_ हज के लिए वह मुका़म क़रार दिया गया है जहां साबी, यहूदी, ईसाई और मुसलमानों के जद्दे आज़म हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दुनिया की सबसे पहली इबादतगाह बनाई थी, चूंकी अक़वामे बाला का मजमुआ दुनिया की दीगर अक़वाम से ज़्यादा है इसलिए इस मुकाम के इख्त्यार करने की ताईद कसरते राय और क़दामते ज़माना दोनों तरफ से होती है _,"*
[3/30, 7:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का हज (10 हिजरी):-*
*"_इस साल नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हज का इरादा किया और जुमला अतराफ में इत्तेला भेज दी गई कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज के लिए तशरीफ ले जाने वाले हैं, इस इत्तेला के बाद दूरदराज से लोग मदीना में जमा हो गए जिनमें हर दर्जे व हर तबके़ के शख्स थे,* 

*★_ जुल हुलैफा में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अहराम बांधा और यहीं से "लब्बेक अल्लाहुम्मा लब्बेक ला शरीका लका लब्बेक इन्नल हमदा वन नियामता लका वल मुलका ला शरीका लका" का तराना बुलंद किया और मक्का मुअज्ज़मा को अहराम के साथ रवाना हो गए, इस मुक़द्दस कारवां के साथ रास्ते में हर हर जगह से फौजदर फौज लोग शामिल होते जाते थे, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का राह में जब किसी टीले या करीवह से गुज़र होता था तीन तीन बार तकबीर बा आवाज़ बुलंद फरमाते थे _,*

*★_जब मक्का के क़रीब पहुंचे तो जी़तवा में थोड़ी देर के लिए ठहरे और फिर बालाए मक्का से उन सब कौमों और अनवाह को लेकर मक्का में दाखिल हुए और रोज़े रोशन में काबातुल्लाह का तवाफ करके अल्लाह ताला के जलाल को आशकारा फरमाया, ज़ियाराते काबातुल्लाह से फारिग होकर सफा और मरवा के पहाड़ों पर तशरीफ ले गए, उनकी चोटियों पर चढ़कर और काबा की जानिब रुख करके कलमाते तोहीद व तकबीर पढ़ें_,"*

*★_ आठवी ज़िलहिज्जा को क़यामगाह से मक्का रवाना होकर मीना ठहरे, जौ़हर असर् मगरिब इशा सुबह की नमाज़े मीना में अदा फरमाई, नवी ज़िल हज को आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुलु आफताब के बाद वादी नमरा आ कर ठहरे, इस वादी के एक जानिब अराफात और दूसरी जानिब मुज़दलफा है, दिन ढलने के बाद यहां से रवाना होकर अराफात तशरीफ लाए, तमाम मैदान सर ता सर लोगों से भरा हुआ था और हर एक शख्स तकबीर व तहलील, तमहीद व तक़दीस में मसरूफ था, उस वक्त एक लाख चवालीस हज़ार (या एक लाख चौबीस हजार) का मजमा अहकाम ए इलाही की तामील के लिए हम्मा तन हाज़िर था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहाड़ी पर चढ़कर और कसवा पर सवार होकर खुतबा इरशाद फरमाया _,"*
[4/1, 9:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का खुत्बा हज्जतुल विदा :-*
*"_लोगों ! मैं ख्याल करता हूं कि मैं और तुम फिर कभी इस मजलिस में इकट्ठे नहीं होंगे,* 

*★_लोगों तुम्हारे खून तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्ज़त एक दूसरे पर ऐसी ही हराम है जैसा कि तुम आज के दिन की इस शहर की इस महीने की हुरमत करते हो, लोगों ! तुम्हें अनक़रीब अल्लाह के सामने हाज़िर होना है और वह तुमसे तुम्हारे आमल की बाबत सवाल फरमाएगा, खबरदार मेरे बाद गुमराह ना बन जाना कि एक दूसरे की गर्दनें काटने लगो _,"* 

*★_लोगों ! जहिलियत की हर एक बात को मैं अपने क़दमों के नीचे पामाल करता हूं, जहिलियत के क़त्लों के तमाम झगड़े मलियामेट करता हूं, पहला खून जो मेरे खानदान का है यानी इब्ने रबिया बिन अल हारिस का खून जो बनी साद में दूध पीता था और हुज़ेन ने उसे मार डाला था मैं छोड़ता हूं, जाहिलियत के ज़माने का सूद मलियामेट कर दिया गया, पहला सूद अपने खानदान का जो मैं मिटाता हूं वह अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद है, वह सब का सब छोड़ दिया गया है_,"*

*★"_लोगों ! अपनी बीवियों के मुताल्लिक़ अल्लाह से डरते रहो, अल्लाह के नाम की ज़िम्मेदारी से तुमने उनको बीवी बनाया और अल्लाह के कलाम से तुमने उनका जिस्म अपने लिए हलाल बनाया है, तुम्हारा हक़ औरतों पर इतना है कि वह तुम्हारे बिस्तर पर किसी गैर को (कि उसका आना तुमको नागवार है) ना आने दें, लेकिन अगर वह ऐसा करें तो उनको ऐसी मार मारो जो नमूदार ( ज़ाहिर) ना हो, औरतों का हक़ तुम पर यह है कि उनको अच्छी तरह खिलाओ, अच्छी तरह पहनाओ _,"*
[4/2, 8:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खुतबा हज्जतुल विदा-( पिछले पार्ट से जारी):-*
*"_ लोगों ! मैं तुममें वह चीज़ छोड़ चला हूं कि अगर उसे मज़बूत पकड़ लोगे तो कभी गुमराह ना होंगे वह क़ुरान अल्लाह की किताब है _,* 

*★"_ लोगों ! ना तो मेरे बाद कोई और पैगंबर है और ना कोई जदीद उम्मत पैदा होने वाली है, खूब सुन लो कि अपने परवरदिगार की इबादत करो और पंजगाना नमाज़ अदा करो, साल भर में एक महीना रमज़ान के रोज़े रखो, अपने मालो की ज़कात निहायत खुश दिली के साथ दिया करो, खाना खुदा का हज बजा लाओ और अपने अवलिया ए उमूर व अहकाम की इता'त करो जिसकी जज़ा यह है कि तुम परवरदिगार के फिरदौसे बरी में दाखिल होंगे _,"*

*★_ लोगों ! क़यामत के दिन तुमसे मिली बाबत भी दरयाफ्त किया जाएगा, मुझे ज़रा बतला दो कि तुम क्या जवाब दोगे ? सब ने कहा- हम इस की शहादत देते हैं कि आपने अल्लाह के अहकाम हमको पहुंचा दिये, आपने रिसालत व नबूवत का हक़ अदा कर दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमको खोटे खरे की बाबत अच्छी तरह बता दिया, (उस वक्त) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी अंगुश्त शहादत को उठाया, आसमान की तरफ उंगली उठाते फिर लोगों की तरफ झुकाते, (फरमाया) ऐ अल्लाह ! सुन ले (तेरे बंदे क्या कह रहे हैं) ऐ अल्लाह! गवाह रहना (कि यह लोग क्या गवाही दे रहे हैं) ऐ अल्लाह शाहिद रह (कि यह सब कैसा साफ इक़रार कर रहे हैं )*

*★_ देखो! जो लोग मौजूद है, वह उन लोगों को जो मोजूद नहीं है इसकी तबलीग करते रहें, मुमकिन है बाज़ सामईन से वह लोग ज़्यादातर इस कलाम को याद रखने और हिफाज़त करने वाले हों जिन पर तबलीग की जाए _,*

*★"_का़र'ईन इस खुतबा ए नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को पढ़ें, गौर से पढ़ें, ज़रा तफक्कुर से पढ़ें कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क्यों कर अलविदाई खुतबा में क़ुरान मजीद पर अमल करने की ताकीद फरमाई है और क्यों कर क़ुरान मजीद पर अमल करने वालों के लिए वादा किया है कि वह कभी गुमराह ना होंगा _,*
*_क्यों कर मुसलमानों के बाहमी हुक़ूक़ जान व माल व इज्ज़त को महफूज़ फरमाया है, क्यों कर बीवी के हुक़ूक़ पर निहायत मुस्तहकम अल्फाज़ में तवज्जो दिलाई है, क्यों कर अपनी ज़ात मुबारक के मुताल्लिक़ अपने उम्र भर के कारनामों के मुताल्लिक़ हमारे बाप दादाओं से गोया मुहरे लगवाई है, क्यों कर हर एक मुसलमान हो तबलीग और इशा'ते इस्लाम का ज़िम्मेदार जवाबदेह क़रार दिया है _,"*
*"_यही हैं वह उसूल व अहकाम जिन पर अमल करना मुसलमानों को दुनिया और दीन में सर बुलंद कर सकता है और जिनका तर्क ए अमल दुनिया व आखिरत का खसारा है _,"*
[4/3, 1:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जब खुतबे से फारिग हुए तो इसी जगह इस आयत का नुज़ूल हुआ (सूरह माइदा-३):- "आज मैंने तुम्हारे दीन को तुम्हारे लिए कामिल कर दिया और तुम पर अपने नियामत को पूरा कर दिया और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम का दीन होना पसंद फरमाया है _,"*

*★_ यौमे नहर को नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने 63 ऊंट अपने हाथ से और 37 ऊंट हजरत अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तरफ से ज़िबह किए, यह क़ुर्बानी मीना पर की गई थी जो इब्राहिम अलैहिस्सलाम के वक्त से कुर्बानगाह चली आती है_,*
*"_कुर्बानी से फारिग होकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बैतुल्लाह में आए और तवाफ का इज़ाफा किया, क़ुर्बानी और तवाफ में सबने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इक्तदा की, हज़ारों ऊंट, मेंढें, भेड़ें कुर्बानी की गई _,"*

*★_ हज से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मक़सूद श'आर अल्लाह की ताज़ीम, हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम के सुनन ए बदी का अहया, मुशरिकीन के मुशरिकाना रस्मों का इबताल, तौहीद का खालिस ऐलान, तालीमे इस्लाम की इशा'त ए आम्मा था, चूंकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मत को इस हज में आखरी तबलीग फरमाई थी इसीलिए इस हज का नाम हज्जतुल बलाग भी है और चूंकि इस हज में आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मत से कलमाते अलविदा फरमाए थे इसलिए इस हज का नाम हज्जतुल विदा भी है,* 

*★_अलगर्ज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस अज़ीमुश शान कामयाबी के साथ एक लाख चवालीस हज़ार बरगुज़ीदा बंदों के सामने तोहीद की तालीम व अमल और बलाग व अलविदा के बाद मदीना तैयबा को रवाना हुए, राह में हजरत बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु के निसबत कुछ शिकायत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुंचाई, शिकायत का ताल्लुक हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के चंद अफ'आल से था जो हुकूमते यमन में जनाब मुर्तुजा रज़ियल्लाहु अन्हु से तक़सीमे गनीमत वगैरह के मुताल्लिक़ सादिर हुए थे ,*

*★_ दर हक़ीक़त शिकायत की बुनियाद बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ुसूरे फहम था, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने खम गुदेर पर एक फसीह खुतबा पढ़ा और इस खुतबे में अहले बैत रज़ियल्लाहु अन्हुम की शान व मंज़िलत का इज़हार फरमाया और अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़ कर फरमाया- " जिसका मै मौला अली भी उसका मौला है _," ( तिर्मिज़ी-३७१३, कंज़ुल उम्माल-३२९९४)* 

*★_ इस खुतबा के बाद उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अली मुर्तजा रज़ियल्लाहु अन्हु को इस शर्फ की मुबारकबाद दी और बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने बाक़ी उम्र अली रज़ियल्लाहु अन्हु की मुहब्बत व मुताब'अत को पूरा किया, बिल आखिर यह बुज़ुर्गवार जंगे जमल में शहीद हुए थे,*
[4/4, 6:20 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 11 हिजरी :-*
*"_ यह वह साल है जिसमें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हक़ ए रिसालत अदा करने के बाद अपने भेजने वाले की जानिब मुआवदत ( वापसी) फरमाई, रहलत से 6 माह पहले इस सूरह का नुज़ूल हुआ था:- (अल नसर् - १-३)*
*"_ जब अल्लाह की मदद और फतेह पहुंच गई और तुमने लोगों को फौज दर फौज दीन ए इलाही में दाखिल होते देख लिया, तो अब अल्लाह की तमहीद व तस्बीह कीजिए, वही है जो रूजू वाला है _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम समझ गए कि इस साल में कूच कि इत्तेला दी गई है, आखरी रमजान 10 हिजरी में नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में 20 यौम का ऐतकाफ फरमाया हालांकि हर साल 10 यौम का ऐतकाफ फरमाया करते थे, अपनी प्यारी बेटी फातमा बतूल रज़ियल्लाहु अन्हु को इसकी वजह यही बता दी थी कि मुझे अपनी मौत क़रीब मालूम होती है _,"*
*"₹ हज्जतुल विदा के मशहूर खुतबे में में भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मत से फरमा दिया था कि मैं अंक़रीब दुनिया छोड़ देने वाला हूं _,"*

*★_शुरू माह सफर 11 हिजरी में सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने सफर ए आखिरत की तैयारी भी शुरू कर दी, एक रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उहद तशरीफ ले गए और शोहदा ए उहद के गंज शहीदां पर नमाज़ पढ़ी, वहां से वापस होकर सर ए मिंबर फरमाया:- लोगों में तुम से आगे जाने वाला हूं और तुम्हारी शहादत देने वाला हूं, वल्लाह! मैं अपनी हौज को यहां से देख रहा हूं, मुझे मुमालिक के खज़ानों की कुंजियां दी गई हैं, मुझे यह डर नहीं रहा कि तुम मेरे बाद मुशरिक हो जाओगे मगर डर है कि मुनाफसत (मुक़ाबला बाज़ी) ना करने लगो _,"*

*★"_ फिर गोरिस्तान बक़ी में आधी रात को क़दम रंजा फरमाया और आसूदगाने बक़ी के लिए दुआ फरमाई, फिर एक रोज़ मुसलमानों को जमा फरमाया और इरशाद किया:- मरहबा मुसलमानों ! अल्लाह तुमको अपनी रहमत में रखें, तुम्हारी शिकस्ता दिली को दूर फरमाए, तुमको रिज़्क दे, तुम्हारी मदद करें, तुमको रफ'अत दे, तुम्हें बा अम्नो अमान रखे, मैं तुमको अल्लाह के तक़वे की वसीयत करता हूं और अल्लाह को तुम्हारा खलीफा बनाता हूं और तुमको उससे डराता हूं क्योंकि मैं "नज़ीर मुबीन" हूं, देखना अल्लाह की बस्तियों में और उसके बंदों में तकब्बुर और बरतरी को अख्त्यार ना करना, अल्लाह ताला ने मुझे और तुम्हें फरमाया है- यह आखिरत का घर है, हम उन लोगों को देते हैं जो ज़मीन में बरतरी और फसाद का इरादा नहीं करते और बेहतरीन अंजाम तो परहेज़गारों के लिए है _," (अल क़सस-83)* 

*★"_ फिर यह आयत तिलावत फरमाई- क्या तकब्बुर करने वालों का ठिकाना जहन्नम नहीं है _,"*
*"_ आखिर में फरमाया- सलाम तुम सब पर और उन सब पर जो बा ज़रिए इस्लाम मेरी बैत में दाखिल होंगे _,"*
[4/5, 6:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_आगाज़ ए मर्ज़:- 29 सफर रोज़ दोशंबा (सोमवार) था, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम एक जनाजे़ से वापस आ रहे थे, राह ही में दर्दे सर शुरू हो गया, फिर तप (बुखार) शदीद लाहक़ हुआ, अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि जो रुमाल हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सर मुबारक पर बांध रखा था मैंने उसे हाथ लगाया सेंक आता था, बदन ऐसा गर्म था कि मेरे हाथ को बर्दाश्त ना हुई, मैंने ताज्जुब किया, फरमाया- अंबिया अलैहिस्सलाम से बढ़कर किसी को तकलीफ़ नहीं होती इसलिए उनका अजर् सबसे बड़ा हुआ होता है _,"* 

*★"_ बीमारी में 11 यौम तक मस्जिद में आकर खुद नमाज़ पढ़ाते रहे, बीमारी के सब दिन 13 या 14 थे, आखिरी हफ्ता नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तैयबा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में पूरा फरमाया था, उम्मूल मोमिनीन आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि जब भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुआ करते तो यह दुआ पढ़ा करते और अपने हाथ जिस्म पर फैर लिया करते थे :- (तर्जुमा) _ ए नस्ले इंसानी के पालने वाले खतर को दूर फरमा दे और सेहत अता कर, शिफा देने वाला तू ही है और उसी शिफा का नाम शिफा है जो तू इनायत करता है, ऐसी सेहत दे कि कोई तकलीफ़ बाक़ी ना छोड़े _,"*

*★_ इन दिनों में मैंने यह दुआ पढ़ी थी और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथों पर दम करके चाहा कि जिस्मे अतहर पर मुबारक हाथों को फैर दूं, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ हटा लिए और फरमाया :- ( तर्जुमा) ऐ अल्लाह मुझे माफ़ कर दे और मुझे आलातरीन साथी में शामिल कर ले _, (बुखारी-४४४०)*

*★_ चहार शंबा (बुध) था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मगज़ब ( तगार या टब) में बैठकर सात कुओं की सात मशकों का पानी सर पर डलवाया, इस तदबीर से कुछ सुकून होगा, तबीयत हलकी मालूम हुई तो नूर अफरोज़ मस्जिद हुए, (फरमाया)- तुमसे पहले एक क़ौम हुई है जो अंबिया व सुलहा की क़ब्रों को सजदा गाह बनाते थे, तुम ऐसा ना करना _,"*
[4/8, 4:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_(फरमाया) उन यहूदियों, उन नसरानियों पर अल्लाह ताला लानत करते हैं जिन्होंने अंबियां की क़बरों को सजदा गाह बनाया_," (बुखारी- 4442, 4443)*
*"_फरमाया- मेरी क़ब्र को मेरे बाद ऐसा ना बना दीजो कि उसकी परिस्तिश हुआ करें_," (बुखारी- 133)*
*"_फरमाया- उस क़ौम पर अल्लाह का सख्त गजब है जिन्होंने क़ुबूरे अंबिया को मसाजिद बनाया, देखो मैं तुम्हें इससे मना करता रहा हूं, देखो मैं तबलीग कर चुका, इलाही तू इसका गवाह रहना, इलाही तू इस पर गवाह रहना _," (बुखारी- 139, 4441, मुस्लिम -1183)* 

*★"_ नमाज़ पढ़ाई, नमाज़ के बाद मिंबर पर इजलास फरमाया, मिंबर पर यह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आखिरी नशिस्त थी, फिर हम्दो सना के बाद फरमाया- मैं तुमको अंसार के हक़ में वसीयत करता हूं, यह लोग मेरे जिस्म के पैरहन और मेरे राज़दार रहे हैं, इन्होंने अपने वाजिबात को पूरा कर दिया है और अब इनके हुक़ूक़ बाक़ी रह गए हैं, इनमें से अच्छा काम करने वालों की क़दर करना और लगजिश करने वालों से दरगुज़र करना _,"*

*★"_फरमाया एक बंदे के सामने दुनिया व माफीहा को पेश किया गया, मगर उसने आखिरत ही को अख्त्यार किया_," इस अम्र को अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ही समझे, उन्होंने कहा कि हमारे मां-बाप, हमारी जानें, हमारे ज़र व माल हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर निसार हो _," (बुखारी-435, 4441, व मुस्लिम-617)*

*★_ पंज शंबा (जुमेरात) का ज़िक्र है की शिद्दते मर्ज बड़ गई, इसी हालत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हाजिरीन से फरमाया- लाओ तुम्हें कुछ लिख दूं कि तुम मेरे बाद गुमराह ना हों, बाज़ ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर शिद्दते दर्द गालिब है, क़ुरान हमारे पास मौजूद है और यह हमको काफी है, इस पर आपस में इख्तिलाफ हुआ, कोई कहता था सामाने किताबत ले आओ कि ऐसा नोश्ता लिखा जाए, कोई कुछ और कहता था, यह शोर व शगफ बढ़ा तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि सब उठ जाओ, इसके बाद उसी रोज़ (पंज शंबा को) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन वसीयतें फरमाई- १_यहूद को अरब से बाहर कर दिया जाए, २_ वफद की इज्ज़त व मेहमानी हमेशा उसी तरह की जाए जैसा कि मामूल ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था, ३_तीसरी वसीयत सुलेमान अल अहवाल की रिवायत में बयान नहीं हुई, मगर सही बुखारी की किताबुल वसाया में अब्दुल्लाह बिन अबी औफी रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ुरान मजीद के मुताल्लिक वसीयत फरमाई थी _," ( बुखारी -4460, 2740, 5022)*
[4/9, 6:20 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उसी रोज़ (जुमेरात) मगरिब तक की सब नमाज़ें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद पढ़ाईं थीं, नमाजे़ मगरिब में सूरह वल मुरसलात की तिलावत फरमाई, इस सूरत की आखिरी आयत भी कुराने पाक की जलालते शाम को आशकार करती है, इशा के लिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद में जाने का तीन बार इरादा फरमाया, हर दफा जब वज़ू के लिए बैठे बेहोशी तारी होती रही, आखिर फरमाया कि अबू बकर नमाज़ पढ़ाएं _,"*

*★"_इस हुक्म से अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हयात ए पाक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में 17 नमाजो़ में इमामत फरमाईं _," (बुखारी 4448- 4442)*

*★_ हफ्ता या इतवार का ज़िक्र है कि अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की इमामत में नमाज़ ए ज़ोहर क़ायम हो चुकी थी कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु व हजरत अली मुर्तजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु के कंधों पर सहारा दिए हुए शर्फे अफज़ा ए जमात हुए, सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु पीछे हटने लगे तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इशारा फरमाया कि पीछे मत हटो, फिर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के बराबर बैठ कर नमाज़ में दाखिल हो गए, अब अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इक्तदा करते थे और बाक़ी सब लोग सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की तकबीरात पर नमाज़ अदा कर रहे थे _," (बुखारी -4442)*

*★_ इतवार के दिन सब गुलामों को आजा़द फरमा दिया, उनकी तादाद बाज़ रिवायात में 40 बयान हुई है, घर में नकद 7 दिनार मौजूद थे वह गुरबा में तक़सीम कर दिए, इस दिन की शाम को ( आखरी शब) आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने चराग का तेल एक पड़ोसन से आर्यतन मंगवाया था, सिलाहात (जंगी हथियार) सहाबा किराम को हिबा फरमाए, ज़िरा नबवी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम एक यहूदी के पास 30 सा जौ में रहन थी _," ( बुखारी -2068, 4468)"*
[4/10, 4:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_आखरी दिन:- दो शंबा के दिन नमाज़ ए सुबह के वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वह पर्दा उठाया जो आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा और मस्जिद तैयबा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरमियान पड़ा हुआ था, उस वक़्त नमाज़ हो रही थी, थोड़ी देर तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस पाक नज़ारे को जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाक तालीम का नतीजा था, (सही मुस्लिम में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ) मुलाहिजा फरमाते हैं- इस नज़ारे से रुखे अनवर पर बशाशत और होठों पर मुस्कुराहट थी, उस वक़्त वजह ( चेहरा) मुबारक वर्क़ ए कुरान मालूम होता था _,"*

*★"_चेहरा अक़दस को वर्क़ क़ुरान से तसबीह रिवायत हजरत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु में है, यह एक अजीब और पाक तसबीह है, वर्क़ ए कुरान पाक तिलाई का काम ( सोने का काम) होता है, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा ए ताबां पर ज़र्दी मर्ज़ ही छाई हुई थी, लिहाज़ा ताबानी और रंग ए मर्ज़ में तिला से और तकद्दुस में कुरान से तसबीह दी गई है_," (बुखारी 680 -681, मुस्लिम 94)* ‌

*★"_सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम का शौक़ और इज़्तराब से यह हाल हो गया था कि रुखे पुरनूर ही की तरह मुतवज्जह हो गए थे, सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु यह समझे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरादा नमाज़ में आने का है, वह पीछे हटने लगे तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ के इशारे से फरमाया कि नमाज़ पढ़ाते रहो, यही इशारा सबकी तस्कीन का मौजिब हुआ, फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पर्दा छोड़ दिया, यह नमाज़ अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुकम्मल फरमाई,* 

*★_ इसके बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर किसी दूसरी नमाज़ का वक़्त नहीं आया, दिन चढ़ा तो प्यारी बेटी फातिमा बतूल रज़ियल्लाहु अन्हा को बुलाया, कान में कुछ बात कही, वह रो पड़ी, फिर कुछ और बात कही तो वह हंस पड़ीं, बतूल पाक रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि पहली बात हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाई थी कि अब मैं दुनिया को छोड़ रहा हूं और दूसरी बात यह फरमाई थी कि अहले बैत में से तुम ही मेरे पास सबसे पहले पहुंचोगी (यानी इंतकाल होगा)_,"* *(बुखारी -13628,6275 मुस्लिम 6313 इब्ने माजा 1621)*
[4/11, 4:13 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ उसी रोज हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फातिमा ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा "सैयदुन्निसा उल आलमीन" होने की बशारत कसरत से फरमाई, सैयदुन्निसा ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हालत को देखकर कहा- आह ! मेरे अब्बा जान को कितनी तकलीफ़ है, फरमाया कि तेरे बाप को आज के बाद कोई कुर्ब ( तकलीफ़) ना होगा _," (बुखारी-४४६२)*

*★_ फिर हसन व हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम को बुलाया, दोनों को चूमा और उनके अहतराम की वसीयत फरमाई, फिर अजवाज़ मुताहरात रज़ियल्लाहु अन्हुमा को बुलाया और उनको नसीहतें फरमाई, फिर अली मुर्तुजा रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया, उन्होंने सर मुबारक अपनी गोद में रख लिया उनको भी नसीहत फरमाई, इस वक्त तफ मुबारक सैयदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु के चेहरे पर पड़ रहा था _,"*

*★"_ इसी मौके पर नमाज़ और मातहतों से हुस्ने सुलूक की वसीयत फरमाई, अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आखिरी वसीयत यही की, आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमात हैं कि इसी इरशाद को हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कई बार दोहराते रहे _," (बुखारी -१९८)*

*★"_ हालाते नज़ा :- अब नज़ा की हालत तारी हुई, इस वक्त सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा सहारा दिए हुए पसे पुश्त बैठी थी, पानी का प्याला हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिरहाने रखा हुआ था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्याले में हाथ डालते और चेहरा अनवर पर फेर लेते थे, चेहरा मुबारक भी सुर्ख होता कभी ज़र्द पड़ जाता था, ज़बान मुबारक से फरमाते थे- "अल्लाह के सिवा और कोई माबूद नहीं, मौत की तल्खी हुआ ही करती है_,"*
[4/13, 6:15 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इतने में अब्दुर्रहमान बिन अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु आ गए, उनके हाथ में ताज़ा मिसवाक थी, हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मिसवाक पर नज़र डाली तो सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने मिसवाक को अपने दांतो से नरम बना दिया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिसवाक की, फिर हाथ को बुलंद फरमाया और ज़ुबाने कुदसी से फरमाया- या अल्लाह मेरे आला साथी_," उस वक्त हाथ लटक गया, पुतली ऊपर उठ गई _," (बुखारी -४४४९)*

*★"_ 13 रबीउल अव्वल 11 हिजरी योम दो शंबा (सोमवार) वक्त चाश्त था, बाज़ रिवायात में है वही वक्त जब नबूवत मिली थी, बाज़ में है वही वक्त जब मदीना (क़ुबा) पहुंचे थे, जिस्मे अतहर से रूह ने परवाज़ किया, उस वक्त उम्र मुबारक 63 साल क़मरी पर 4 दिन थी_,"*
*_इन्ना लिलाही वा इन्ना इलैही राजीऊन _," ( सूरह बक़रा-१५४) "_हम अल्लाह का माल हैं और उसकी तरफ लौट कर जाने वाले हैं _,"*
*"_ए नबी ! भला अगर तुम मर जाओ तो क्या यह लोग हमेशा रहेंगे ? ( सूरह अंबिया- ३४)"*

*★_ सैयदा ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस हादसे पर कहा:- प्यारे बाप ने दावते हक़ को क़ुबूल किया और फिरदोस में नुज़ूल फरमाया, आह जिब्रील को खबर इंतकाल कौन पहुंचा सकता है _," ( फिर फरमाया) इलाही रूहे फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को रूहे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास पहुंचा दे, इलाही ! मुझे दीदार ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मसरूर बना दे, इलाही ! मुझे इस मुसीबत के सवाब से तू बे नसीब ना रख और बरोज़ मेहशर शफा'अत ए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मेहरूम ना फरमा _,"*

*★"_ आयशा तैयबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस होलनाक हादसे पर कहा:- आह ! वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिसने फक्र को गिना पर और मिसकीनी को तवंगिरी पर अख्तियार फरमाया, (अफसोस) वह दीन ए परवर, जो उम्मते आसी के फ़िक्र में कभी पूरी रात आराम से ना सोया, जिसने हमेशा बड़ी इस्तेक़ात व इस्तक़लाल से नफ्स के साथ मुहारबा किया, जिसने मुनहयात को ज़रा भर भी निगाहें इल्तफात से ना देखा, जिसने बर व एहसान के दरवाज़े अरबाबे फक़र व अहतयाज पर कभी भी बंद ना किये, जिसके ज़मीर मुनीर के दामन पर दुश्मनों की ईज़ा व इज़रार का ज़रा भी गुबार ना बैठा, ( अफसोस) जिसके मोती जैसे दांत पत्थर से तोड़े गए, (अफसोस) वह जिसकी पेशानी नूरानी को ज़ख्मी किया गया, आज दुनिया से रुखसत हुआ _," ( मदारिज अन नबूवत शाह अब्दुल हक़ देहलवी)*
[4/14, 6:31 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ खबर ए वफ़ात से सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम सरासेमा (परेशान) व हैरान, दीवाना व सरगदान थे, कोई जंगल को निकल भागा, कोई शशदर (हक्का बक्का) हो कर जहां था वहीं रह गया, उमर फारूख रजियल्लाहु अन्हु को यक़ीन ही ना आया था कि अल्लाह के रसूल ने इरतेहाल फरमाया _,"*

 *★"_ अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु घर में गए, जिस्म ए अतहर देखा, मुंह से मुंह लगाया, पेशानी को चूमा, आंसु बहाये, फ़िर जुबान से कहा: मेरे मां बाप हुज़ूर ﷺ पर निसार ! वल्लाह अल्लाह तआला आप पर दो मौतें वारिद ना करेगा, यही एक मौत थी जो आप पर लिखी हुई थी _," (बुखारी -4453)*

 *★"_ फ़िर मस्जिद में आए, वफ़ात पर आयात के ऐलान का ख़ुतबा पढ़ा :- (तर्जुमा) - वाज़े हो कि जो कोई शख्स तुममे से मुहम्मद (ﷺ) की इबादत करता था, तो वो तो रहलत फ़र्मा गए हैं और जो कोई अल्लाह तआला की इबादत करता था तो बेशक अल्लाह तआला तो ज़िंदा है, उसे मौत नहीं, अल्लाह ने खुद फरमाया है:- मुहम्मद (ﷺ) तो एक रसूल है, उनसे पहले भी रसूल हो चुके हैं' , क्या अगर वो मर गया या शहीद हुआ तो तुम उलटे पांव फिर जाओगे, हां जो कोई ऐसा करेगा तो अल्लाह ताला का कुछ न बिगाड़ सकेगा और अल्लाह तआला तो शुक्र गुजा़रो को अच्छा बदला देने वाला है _," (बुखारी - 4454)*
[4/16, 6:15 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गुस्ल व तकफीन :-*
 *"_ नबी ﷺ को गुस्ल देते हुए अली मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ये कह रहे थे; - मेरे मां बाप आप पर क़ुर्बान, आपकी मौत से दो चीज़ जाती रहीं जो किसी दूसरे की मौत से ना गई थी, यानी नबुवत और गैब की खबरों और वही आसमान का इंक़ता हो गया, आपकी मौत खास सदमा अज़ीम है कि अब सब मुसिबतों से दिल सर्द हो गया और ऐसा आम हादसा है कि सब लोग इसमे यकसां हैं, अगर आपने सब्र का हुक्म ना दिया होता और आहो ज़ारी से मना ना फरमाया होता तो हम आंसुओं को आप पर बहा देते, फिर भी ये दर्दिला इलाज और ज़ख्म ला ज़वाल ही होता और हमारी ये हालत भी इस मुसीबत के मुक़ाबले में कम होती, इस मुसिबत का तो इलाज ही नहीं और यह गम तो जाने वाला ही नहीं, मेरे वालदेन हुज़ूर पर निसार, परवरदिगार के यहां हमारा ज़िक़्र फरमाना और हमको अपने दिल से भूल ना जाना _,"*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तीन कपड़ो में कफनाया गया _," (बुखारी-1271)*

 *★_ नमाज़ ए जनाजा़ :-*
 *"_लाश मुबारक उस जगह रखी रही, जहां इंतकाल हुआ था, नमाज़ जनाज़ा पहले कुनबा वालो ने, फिर मुहाजिरीन फिर अंसार ने, मर्दों ने और औरतो ने फिर बच्चो ने अदा की, इस नमाज़ में कोई इमाम ना था, हुजरा मुबारक तंग था, इसलिए दस दस (10 -10) शख्स अंदर जाते थे, जब वो नमाज़ से फारिग हो कर बाहर आते, तब और दस अंदर जाते, ये सिलसिला लगातार शब व रोज़ ज़ारी रहा, इसलिए तदफीन मुबारक चहार शंबा (बुध) को यानि रहलत से क़रीब 32 घंटे बाद अमल में आई, इन्ना लिल्लाहि वा इन्ना इलैही राजीऊन _,"*

 *★_ तिर्मिज़ी की रिवायत से ज़ाहिर है कि नमाज़ जनाज़ा की अदायगी की ये तजवीज़ अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने बतलायी थी और अली मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने इससे इत्तेफ़ाक़ फरमाया था _,"*

 *★"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जनाज़े पर यह दुआ पढ़ी जाती थी :- (तर्जुमा) - बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते दरूद भेजते हैं नबी पर, ए ईमान वालो! तुम भी इस (नबी) पर दरूद और सलाम भेजो, ऐ हमारे रब! हम हाज़िर हैं, अल्लाह बरतर और रहीम के, मलाइका और नेकोकारो की, अंबिया व सिद्दीक़ीन और सालेहीन नीज़ हर तस्बीह करने वाली चीज़ की तरह से, ए रब्बुल आलमीन! मुहम्मद ﷺ पर दरुद हो जो अब्दुल्लाह के लख्ते ज़िगर, खातिमुन नबिय्यीन, तमाम अंबिया के सरदार, मुत्तक़ियो के इमाम और रसूल ए रब्बुल आलमीन हैं, जो तेरी तरफ से शाहिद और डराने वाले और मानिंद चमकते हुए सूरज के हैं _," (ज़रकानी -8/293)*

*📓रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ ( क़ाज़ी मुहम्मद सुलेमान सलमान मंसूरपुरी रह.) -145,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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