RAHMATULLIL AALAMEEN (HINDI) PART-3

 

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     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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         *■ रहमतुल लिल- आलमीन ■*
           *🌹صلى الله على محمدﷺ🌹*
  ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙                                    ★ *क़िस्त–3_* ★
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*❀__खल्क़ ए मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम _,"*
 *"_ जो वक़ियात लिखे जा चुके हैं उनसे मुख्तसर तोर पर उन मुश्किलों का अंदाज़ बा ख़ूबी होता है जिनका सामना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी नबुवत के इज़हार, अपनी तालीम की ईशात और उस तालीम के क़ुबूल करने वालों की हिफाज़त में करना पड़ा, एक ऐसे मुल्क में जहां कोई हुकुमत और कानून न था, जहां खूंरेजी और कत्ल ममूली बात हो, जहां के बशिंदे देशशत और गैरतगिरी में दरिंदो के मुशाबा, जहालत और ला अक़ली में जानवरों से बद्तर हों, एक ऐसे दवे का पेश करना जो तमाम मुल्क के नज़दीक अजीब और जुमला क़बाइल में मुखालफत की फौरी आग लगा देने वाला हो, कुछ आसान ना था,*

 *★_ फिर उस दावे का ऐसी हलत में सरसब्ज़ होना करोड़ों शख्सो की इंतेहाई मुखालफत उसके मलयालेट करने पर दिल से जान से, ज़र से माल से, सालहा साल मुत्तफिक रही हो, बिलकुल ता'ईद रब्बानी का सबूत है _,"*

 *★_ गुज़िश्ता वक़ियात के ज़िम्न में नबी ﷺ के अख़लाक़ व महासिन सिफ़ात व महामिद (नेकी) की चमक ऐसी नुमाया है जैसी रेत में कुंदन और उन वक़ियात ही से पता लगता है कि मज़लूमी व बेचारगी और मुखालफ़त की हालतों में यकसां सादगी व गुरबत के साथ जिंदगी पूरी करने वाला सिर्फ वही हो सकता है जिसके दिल पर नमूस ए इलाही ने कब्ज़ा कर लिया हो और उसे दुनियावी बखेड़ों से पाक कर दिया हो _,"*

 *★_ नबी ﷺ की ज़िंदगी के मुबारक वक़ियात हर मुल्क और हर तबका के फ़र्द और जमातो के लिए बेहतरीन नमूना और मिसाल है, इस बाब के तहत मै मुख्तसर तोर पर आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़ का ज़िक्र कर रहा हूं, खल्क़ ए मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एसा लफ्ज़ है कि अब बेहतरीन बुजुर्गो के आदात व अखलाक, अतवाल व शमा'इल के इज़हार के लिए मिसाल बन गया है, मैं इस जगह कमालात नबुवत और खुशुसियात नबविया अलैहिस्सलाम का ज़िक्र नहीं करुंगा, सिर्फ वो सादा हालात लिखने मक़सूद है जिनको कोई स'आदतमंद अपने लिए नमूना बना सकता है, "तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह ﷺ बेहतरीन नमूना मोजूद है _," (अल अहज़ाब -21)*   

[4/20, 4:31 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैय्यदना मुहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ उम्मी थे, लिखना पढ़ना ना जानते थे और बैसत ए नबुवत के ज़माने तक किसी आलिम की सोहबत भी मयस्सर न हुई थी, तीर अफगानी, शहसवारी, नेज़ाबाज़ी, सुजागोई, क़सीदा ख्वानी, नसबदानी उस ज़माने के ऐसे फुनून थे जिन्हे शरीफ खानदान का हर एक नोजावान हुसूले शोहरत और इज्ज़त के लिए जरूर सीख लिया करता था और जिनके बगेर कोई शख्स मुल्क और क़ौम में इज्ज़त या कोई इम्तियाज़ हासिल ना कर सकता था _,"*

 *★_ नबी ने इन फुनून में से किसी को भी (इक्तसाबन) हासिल न किया था और न किसी पर अपनी दिलचस्पी का इज़हार किया था _,*

*★_ नबी ﷺ की निस्बत फ्रेंच प्रोफेसर सेडयु लिखता है: - आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खंदा रु, मिलनसार, अक्सर खामोश रहने वाले, बा कसरत ज़िक्रुल्लाह करने वाले, लगवियत से दूर, बेहुदापन से दूर, बेहतरीन राय और बेहतरीन अक़ल वाले थे _"*

 *★"_ इंसाफ के मामले में क़रीब व बईद आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नज़दीक बराबर होता था, मसाकीन से मुहब्बत फरमाया करते, गुरबा में रह कर खुश होते, किसी फ़कीर को उसकी तंगदस्ती की वजह से हकीर न समझा करते और किसी बादशाह को बादशाही की वजह से बड़ा न जानते, अपने पास बैठने वालों की तालीफे कु़लूब करते, जाहिलो की हरकत पर सब्र फरमाया करते, किसी शख्स से खुद अलहिदा न होते जब तक कि वह न चला जाए, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से कमाले मुहब्बत फरमाया करते, सफेद ज़मीन पर (बिला किसी मसनद व फ़र्श के) नशिस्त फरमाया करते, अपने जूते को खुद गांठ लेते, अपने कपड़ों को खुद पेबंद लगा लेते थे, दुश्मनो से भी बा कुशादा पेशानी मिला करते थे _,"*
[4/23, 4:29 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुज्जतुल इस्लाम इमाम ग़ज़ाली रह. ये लिखते हैं:- आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मवेशी को चारा खुद डाल देते, ऊंट को बांधते, घर में सफाई कर लेते, बकरी दोह लेते, खादिम के साथ बैठ कर खा लेते, खादिम को उसके काम काज में मदद करते, बाज़ार से चीज़ खुद जा कर खरीद लेते, खुद उसे उठा लाते, हर अदना व आला को सलाम पहले कर दिया करते, जो कोई साथ हो जाता उसके हाथ में हाथ दे कर चला करते, गुलाम व आक़ा, हब्शी व तुर्की में जरा फ़र्क़ ना करते, रात दिन का लिबास एक ही रखते, कैसा ही कोई हकी़र शख्स दावत के लिए कहता क़ुबूल फरमा लेते, जो कुछ खाना सामने रख दिया जाता उसे बा रगबत खाते, रात के खाने में से सुबह के लिए और सुबह के खाने में से शाम के लिए उठा ना रखते, नेक दिल करीम तबियत, कुशादा दिल थे मगर हंसते ना थे _,"*

 *★"_ फ़िक्र मंद रहते थे मगर तुर्शरु (चिड़चिड़ा पन) ना थे, मुतवाज़े, जिसमे दनायत न थी, सखी थे मगर इसराफ़ ना था, हर एक पर रहम फरमाया करते किसी से कुछ तमा ना रखते, सर मुबारक को झुकाए रखते थे,*

 *★_ हकीमुल उम्मत शाह वलीउल्लाह रह. लिखते हैं:- जो कोई शख्स आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने एक बार आ जाता वो हैबतज़दा हो जाता और जो कोई पास आ जाता वो फ़िदाई बन जाता, कुनबा वालो और खादिमो पर बहुत ज़्यादा मेहरबान थे, अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने दस साल तक खिदमत की, इस अर्से में उन्हें भी उफ्फ (होंट) तक ना कहा, जुबान मुबारक पर भी कोई गंदी बात या गाली नहीं आती थी, ना किसी पर लानत किया करते, दूसरे की अजी़यत व आजा़र पर निहायत सब्र करते, खल्के़ इलाही पर निहायत रहमत फरमाते, हाथ या जुबान मुबारक से भी किसी को शर न पहुंचा, कुनबा की इस्लाह और कौम की दुरुस्ती पर निहयात तवज्जो फरमाते, हर शख्स और हर चीज़ की कद्र व मंज़िलत से आगाह थे, आसमानी बादशाह की जानिब हमेश नज़र लगाए रखते थे _,"*

 *★_ सही बुखारी में है :- आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मती को बशारत पहुंचाते, आसी को डर सुनाते, बेखबरो को पनाह देते, अल्लाह के बंदे व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुमला करोबार को अल्लाह पर छोड देने वाले, ना दरश्त खो, ना सख्त गो, चीख कर ना बोलते, बदी का बदला वेसा ना लेते, माफ़ी माँगने वाले को माफ़ फरमाया करते, गुनहगार को बख्श देते, उनकी तालीम अंधों को आंखे, बहरो को कान देती है, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर खूबी से आरास्ता जुमला अख़लाक़ फ़ाज़िला से मुतसिफ, सकीना उनका लिबास, नेकी उनका श'आर, तक़वा उनका ज़मीर, हिकमत उनका कलाम, अदल उनकी सीरत है, उनकी शरीयत सरापा रास्ती, उनका मिल्लत इस्लाम, हिदायत उनकी रहनुमा है, वो ज़लालत को उठा देने वाले, गुमनामो को रफत बख्शने वाले, मजहूलो को नामूर कर देने वाले, किल्लत को कसरत और तंगदस्ती को गिना से बदल देने वाले हैं _,"*
[4/30, 3:44 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_सुकूत और कलाम :-*
 *"_ नबी ﷺ अक्सर खामोश रहा करते वे, बिला ज़रुरत कभी गुफ्तगु न फरमाया करते, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निहयात शीरी कलाम और कमाले फसीह थे, कलाम में सख्ती ज़रा भी ना थी, गुफ्तगु दला'इल आवेज़ होती कि सुनने वाले के दिल व रूह पर कब्ज़ा कर लेती थी, आन हज़रत ﷺ का ये वस्फ़ ऐसा मुसलमा था के मुख़ालिफ़ भी इसकी शहादत देते थे और जाहिल दुश्मन इसका नाम सहर व जादू रखा करते, सिलसिला सुखन ऐसा मुरत्तब होता था जिसमें लफ्ज़न मा'नन कोई खलल ना होता, अल्फाज़ ऐसी तरतीब से अदा फरमाया करते कि सुनने वाला चाहे तो अल्फाज़ को शुमार कर सकता था _,"*

 *★"_ हंसना रोना:-*
 *"_ नबी ﷺ कभी खिलखिला कर हंसना पसंद न करते थे तबस्सुम ही आपका हंसना था_,*
 *"_नमाज़े तहज्जुद में बसा अवक़ात आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रो पड़ा करते, कभी किसी मुखलिस के मरने पर आब दीदा हो जाते, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फ़र्ज़ंद इब्राहिम सलामुल्लाह अलैही दूध पीते में गुज़र गए थे, जब उन्हें क़ब्र में रखा गया तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखो में आंसू भर आए _,"*
 *"_ फरमाया - आंखों में नमी है, दिल में गम है, फिर भी हम वही बात कहते हैं जो हमारे परवरदिगार को पसंद है, इब्राहिम! हमको तेरी वजह से रंज हुआ _,"*

 *★_ एक दफा अपनी नवासी सांस तोड़ती (दुख्तार ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा) को गौद में उठाया, उस वक़्त हुज़ूर ﷺ की आँखों में पानी भर आया, सा'द रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ! ये क्या? फरमाया - ये वो रहमदिली है जो अल्लाह अपने बंदो के दिलो में भर देता है और अल्लाह भी अपने उन्ही बंदो पर रहम करेगा जो रहम दिल है _," (बुखारी - 1303)*

 *★_ एक दफा इब्ने मसूद रजियल्लाहु अन्हु आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरान मजीद सुना रहे थे, जब वो इस आयत (सूरह निसा - आयत 41) पर पहुंचे -*
 *(तर्जुमा) - तब कैसी होगी, जब हर एक उम्मत पर अल्लाह एक एक गवाह खड़ा करेगा और आपको हम सब उम्मतो पर शहादत के लिए खड़ा करेंगे _,"*
 *"_ फरमाया - बस ठहरो, इब्ने मसूद रजियल्लाहु अन्हु ने आंख उठा कर देखा तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों से पानी जारी था _,"(बुखारी - 4582)*
[5/1, 3:26 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गिज़ा के मुताल्लिक हिदायत:-*
 *"_ रात को भूखे सोने से मना फरमाते और ऐसा करने को बुढापे का सबब फरमाते, खाना खाते ही सो जाने से मना फरमाया करते, तक़लील गिज़ा ( कम खाने) की रगबत दिलाया करते, फरमाया करते कि मैदा का एक तिहाई हिस्सा खाने के लिए, एक तिहाई पानी के लिए, एक तिहाई हिस्सा खुद मैदा के लिए छोड़ देना चाहिए _,"*
 *"_ फलों, तरकारियो का इस्तेमाल उनकी मुसलह चीजों के साथ फरमाया करते _,"*

 *★_ मर्ज और मरीज़:-*
 *"_मुतादी अमराज़ से बचाव रखते और तंदूरस्तो को इससे मोहतात रहने का हुक्म दिया करते, बीमार को तबीब हाज़िक से इलाज कराने का इरशाद फरमाते और परहेज़ करने का हुक्म देते _,"*

 *★_ तबीब नादान :- नादान तबीब को इलाज करने से मना फरमाते और इसे मरीज़ के नुक़सान का ज़िम्मेदार ठहराते, हराम चीज़ों को बतोर दवा इस्तेमाल करने से मना फरमाते, इरशाद फरमाते - अल्लाह ने हराम चीज़ों में तुम्हारे ही शिफा नहीं रखी।*

 *★_ अयादत बीमारां :-*
 *"_ सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम में से कोई बीमार हो जाता तो उसकी अयादत फरमाया करते, अयादत के वक्त मरीज़ के क़रीब बैठ जाते, बीमार को तसल्ली देते, इंशा अल्लाह फरमाया करते, मरीज़ से पूछ लेते कि किस चीज़ को दिल चाहता है, अगर वो चीज़ उसके लिए नुक़्सानदह न होती तो उसका इंतज़ाम कर दिया करते _,"*
 *"_ एक यहूदी लडका आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत किया करता था, उसकी अयादत को भी तशरीफ ले गए _,"*
[5/2, 12:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_इलाज:- हालते मर्ज़ में दवा का इस्तमाल खुद फरमाया और लोगो को इलाज करने का इरशाद फरमाते:- ऐ बंदगाने इलाही दवा किया करो क्यूंकि अल्लाह ने हर मर्ज़ की शिफा मुक़र्रर की है, बजुज़ एक मर्ज़ के , लोगों ने पुछा वो क्या है? फरमाया - बुढ़ापा_," (इब्ने माजा - 3436, अबू दाऊद - 3855)*

 *★_ खुतबा ख्वानी: ज़मीन या मिंबर पर खड़े हो कर या ऊंटनी पर सवार हो कर खुतबा फरमाया करते, जिसका आगाज तशहुद से और अख्ताम इस्तगफार पर हुआ करता, कुरान मजीद इस खुतबे में ज़रूर होता और क़वाइद ए इस्लाम की तालीम इस खुतबा में दी जाया करती थी _,"*
 *"_ खुतबा में वो बातें ज़रूर बयान की जाती थी जिनकी सरे दस्त (उस वक्त) मुसलमानों को ज़रुरत होती और वक़्त व ज़रुरत के ऐतबार से खुतबे में सब कुछ बयान हुआ करता _,"*

 *★_ ऐसे खुतबे जुमा के दिन पर ही मोकूफ ना होते बल्की जब जरूरी और मोका होता तब लोगो को कलामे पाक से मुस्तफीद फरमा दिया करते थे, खुतबा के वक्त हाथ में असा होता, कभी कमान, उन पर तकरीर के दौरान टेक भी लगाया करते थे, खुतबा के वक्त तलवार कभी हाथ में ना होती थी, न उस पर टेक लगाया करते _,"(अबू दाऊद -1096, 1145)*

 *★_ अल्लामा इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाह ये कहते हैं:- जाहिलो का कौ़ल है कि नबी ﷺ मिंबर पर तलवार ले कर खड़े हुआ करते थे, गोया इशारा ये था के दीन बा ज़ोर शमशीर क़ाइम किया गया है, अल्लामा कहते है, जाहिलों का ये कौ़ल गलत है, तलवार पर खुतबा में टेक लगाना साबित नहीं, खुतबा ख्वानी का आगाज़ मदीना मुनव्वरा में हुआ था और मदीना मुनव्वरा बा ज़रिये क़ुरान फ़तेह हुआ था, ना बा ज़रिये तलवार, फ़िर अल्लामा मोसूफ यह बतलाते हैं कि दीन तो वही से क़ाइम हुआ है_,"*
[5/4, 5:22 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सदका़ व हदिया :-*
 *"_ सदका़ की कोई चीज़ हरगिज़ इस्तेमाल ना करते, अलबत्ता हदिया क़ुबूल फ़रमाते, मुखलिसीन सहाबा नीज़ ईसाई और यहूदी जो चीज़ें तोहफ़ा भेजते, उन्हे क़ुबूल फ़रमा लेते, उनके लिए खुद भी तोहफे इरसाल फरमाते, मगर मुशरिकीन के हदियों से इंकार फरमाते, मक़ूक़स मुति शाहे मिस्र के भेजे हुए खचचर पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सवारी फरमाई और जुंगे हुनैन के दिन वही खचचर आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सवारी में था, लेकिन आमिर बिन मालिक के भेजे हुए घोड़े को क़ुबूल करने से इंकार फरमा दिया और इरशाद किया कि हम मुशरिक से हदिया क़ुबूल नहीं करते _," (ज़ादुल मा'द- 2/161)*

 *★"_ जो क़ीमती तोहफ़े आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया करते अक्सर अवक़ात उन्हे आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में तक़सीम फ़रमा दिया करते _,"*

 *★"_ अपनी तारीफ:- अपनी ऐसी तारीफ जिससे किसी दूसरे नबी की कमी निकले, पसंद न फरमाया करते और इरशाद करते-नबियों के ज़िक्र में ऐसी तर्ज़ अख्त्यार न करो कि एक दूसरे के मुक़ाबले में कमी निकलती हो _," (बुखारी -2412, मुस्लिम - 6165)*

 *★_ एक ब्याह में तशरीफ ले गए, वहां छोटी छोटी लड़कियां अपने बुजुर्गो के तारीखी कारनामे गा रही थी, उन्होंने ये भी गाया कि हमारे दरमियान ऐसा नबी है जो कल (गैब) की बात आज बता देता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - ये न कहो जो पहले कहती थी वही कहे जाओ _," (बुखारी - 126)*

 *★"_ इज़हार ए हक़ीक़त या जोश ए अकी़दत की इस्लाह :-*
 *"_ सैय्यदना इब्राहिम फरज़ंद रसूलुल्लाह का इंतकाल हो गया, उस रोज़ सूरज ग्रहण हुआ, लोग कहने लगे कि इब्राहिम की मौत की वजह से सूरज भी गहना गया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगो के मजमे में खुतबा पढ़ा और फरमाया कि सूरज चांद किसी के मरने या जीने पर नहीं गहनाया करते _," ( बुखारी - 1043, 1060, मुस्लिम - 610, अबू दाऊद - 4668)*
[5/5, 8:02 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ मसलिहत आम्मा का लिहाज़: जब कुरेश ने इस्लाम से पहले काबा की इमारत बनायी तो उन्होंने कुछ तो इमारते इब्राहिमी में से अंदर की जगह (हतीम) बाहर छोड दी, फिर कुर्सी इतनी उंची रखी कि जी़ना लगाना पड़े और बैतुल्लाह में दरवाज़ा भी सिर्फ एक ही रखा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक रोज़ आयशा तैय्यबा रजियल्लाहु अन्हा से फरमाया - कुरेश को मुसलमान हुए थोड़े ही दिन हुए हैं वर्ना मैं इमारत को गिरा देता, काबा में दो दरवाज़े रखता, एक आने का और एक जाने का _", (बुखारी-126)*

 *★_ बशीरत व रिसालत:- नबी ﷺ उन अहकाम को जो शान ए रिसलात से जाहिर होते उन अफवाल व अक़वाल से बतौर बशीरत साबित होते हमेश नुमाया तोर पर अलहिदा अलहिदा रखने की सई फरमाते, एक दफा फरमाया - मैं बशर हूं, मेरे सामने झगड़े आते हैं, कोई शख्स दूसरे फरीक़ से अपने मुद्दे को बेहतर तरीके पर अदा करने वाला होता है, जिससे गुमान हो जाता है कि वो सच्चा है और मैं उसके हक में फैसला कर देता हूं' , पस अगर किसी शख्स को किसी मुसलमान के हिस्से में से उस फैसले में बा मोजिब कुछ मिलता हो तो वो समझ ले कि ये एक आग का टुकड़ा है, अब ख्वाह ले ख्वाह छोड दे_," (बुखारी - 2458, 2680, मुसनद अहमद -6/308)*

 *★_ बरिरह रजियल्लाहु अन्हा से आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुगीस रज़ियल्लाहु अन्हु उनके शोहर की सिफ़रिश की, जिनसे वो बोजा आज़ादी (हुर्रियत) अलहिदा हो चुकी थी, बरिरह रज़ियल्लाहु अन्हा ने पुछा - या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या आप हुक्म दे रहे हैं ? फरमाया - नहीं, मैं सिफरिश करता हूं, वो बोली - मुगीस रजियल्लाहु अन्हु की हाजत नहीं _," (बुखारी - 5282)*

 *★"_ अहले मदीना नर खजूर का बोर मादा खजूर पर डाला करते थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - इसकी क्या जरूरत है, अहले मदीना ने यह अमल छोड दिया, नतीजा ये हुआ कि फल दरख्तो पर कम लगा, लोगो ने इस बारे में आन हज़रत ﷺ से गुज़ारिश की, फरमाया - दुनिया के काम तुम मुझसे ज़्यादा जानते हो, जब मैं कोई काम दीन का बतलाया करुं तो उसकी पेरवी किया करो _,"*
[5/6, 6:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बच्चो पर शफ़क़त:- बच्चों के क़रीब से गुज़र फरमाते तो उनको खुद अस्सलामु अलैकुम कहा करते, उनके सर पर हाथ रखते, उन्हे गौद में उठाते _,"*

 *★_ बुढ़ों पर इनायत :- फतेह मक्का के बाद अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु अपने बुढ़े ज़'ईफ फाकिदुल बसर बाप को आन हज़रत ﷺ की ख़िदमत में बेत ए इस्लाम करने के लिए लाए, नबी ﷺ ने फरमाया:-तुमने बुढ़े को क्यों तक़लील दी, मैं खुद उनके पास चला जाता _,"*

 *★"_ अरबाब ए फज़ल की क़द्रो व मंज़िलत:- सा'द बिन मा'ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को जो ख़नदक़ में सख़्त ज़ख्मी हो गए थे, यहुदियान बनी क़ुरेज़ा ने अपना हकम और मुंसिफ तस्लीम कर के बुलाया था, वो मस्जिद तक पहुंचे तो आप नबी ﷺ ने अपने सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम से जो औस के थे, फरमाया - अपने सरदार की पेशवाई को जाओ, लोग गए, उन्को आगे बढ़ कर ले आए,*

 *★"_ हस्सान बिन साबित रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम की ताईद और मुखालफ़ीन के जवाब में अश'आर नज़्म कर के लाते तो उनके लिए मस्जिदे नबवी ﷺ में मिम्बर रख दिया जाता, जिस पर चढ कर अश'आर पढ़ा करते थे _, "*

 *★"_ खादिम के लिए दुआ :- अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु ने 10 साल तक मदीना में आन हजरत ﷺ की खिदमत की, इस अरसा में कभी उनसे ये ना कहा कि ये काम क्यू किया, ये क्यू ना किया, एक रोज़ उनके हक़ में दुआ फरमायी :- इलाही! इसे माल भी बहुत दे और औलाद भी बहुत दे और जो कुछ इसे अता किया जाए उसमे बरकत भी दे _,"*
[5/7, 6:49 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अदब व तवाज़ो :-*
 *"_ मजलिस में कभी पांव फेला कर न बैठते, जो कोई मिल जाता उसे सलाम पहले खुद कर देते, मुसाफा के लिए खुद पहले हाथ फेला देते _,"*

 *★"_ सहाबा को कुन्नियत के नाम से पुकारते (अरब में इज्ज़त से बुलाने का यही तरीक़ा है) किसी की बात भी क़ता न फरमाते, अगर नमाज़ निफ्ल में होते और कोई शख्स पास आ बैठता तो नमाज़ को मुख्तसर कर देते और उसकी ज़रूरत पूरी कर देने के बाद फिर नमाज़ में मशगूल होते, अक्सर मुतबस्सुम रहते _,"*

 *★_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक नाका़ (ऊंटनी) का नाम उज़्बा था, कोई जानवर उससे आगे नहीं बढ़ सका था, एक अरबी अपनी सवारी पर आया और उज़्बा से आगे निकल गया, मुसलमानों को ये बहुत ही शाक़ गुज़रा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - दुनिया में अल्लाह की सुन्नत यही है कि किसी को ऊंचा उठाता है तो उसे नीचा भी दिखाता है _," (बुखारी -2872)*

*★_ एक शख्स आया, उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को या खैरुल बरिया (बर तरीन खल्क़) कह कर बुलाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - ये शान तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम की है _," (मुस्लिम -6138, अबू दाऊद -3352, 4672)*
 *"_एक शख्स हाज़िर हुआ, नबी ﷺ की हैबत से लरज़ गया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - कुछ परवाह न करो, मैं बादशाह नहीं हूं, मैं कुरेश की एक गरीब औरत का फरजंद हूं जो सूखा गोश्त ख़ाया करती थी _," (इब्ने माजा -3312)*
[5/8, 8:41 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शफकत बनाम राफत :-*
 *"_ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियाशल्लाहु अन्हा कहती हैं:- कोई शख्स भी अच्छे खल्क़ में आन हज़रत ﷺ जेसा ना था, ख़्वाह कोई सहाबी बुलाता या घर का कोई शख्स नबी ﷺ उसके जवाब में लब्बेक (हाज़िर) फरमाया करते _"*

*★_ इबादत नफिला छुप कर अदा फरमाया करते ताकी उम्मत पर इस क़दर इबादत करना शाक़ ना हो, जब किसी मामले में दो सूरतें सामने आती तो आसन बा सूरत को अख्त्यार फरमाते _,"*

*★"_ अल्लाह पाक के साथ मुआहिदा किया कि जिस किसी शख्स को मैं गाली दूं या लानत करुं वो गाली उसके हक़ में गुनाहों का कफ्फारा, रहमत व बख्शीश और कुर्ब का ज़रिया बना दी जाए_," ( बुखारी -6361, मुस्लिम - 2007,2009 मुसनद अहमद-2/390)*

*★_ फरमाया-एक दूसरे की बातें मुझे ना सुनाया करो, मैं चाहता हूं कि दुनिया से जाउं तो सबकी तरफ से साफ सीना जाउं _,"*
 *"_ वाज़ व नसीहत कभी कभी फरमाया करते ताकी लोग उकता ना जाएं _,"*

 *★_ एक बार सूरज ग्रहण हुआ, नमाज़ कुसूफ में नबी ﷺ रोते थे और दुआएं फरमाते थे, ऐ परवरदिगार तूने वादा फरमाया है कि इन लोगों को आजा़ब ना दिया जाए (1) जब तक मैं इनके दर्मियान मोजूद हूं' (2) जब तक ये इस्तगफ़ार करते रहे, अब ए अल्लाह मैं मोजूद हुं और सब इस्तगफ़ार भी कर रहे हैं _,"*
 *"_हर एक नबी के लिए एक एक दुआ थी, वो मांगते रहे और दुआ क़ुबूल होती रही, मैंने अपनी दुआ को अपनी उम्मत की शफ़ाअत रोज़े क़यामत के लिए महफूज़ रखा है_," (बुखारी -6304)*
[5/9, 9:37 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अद्ल व रहम :- अगर दो शख्सो के दरमियान झगड़ा होता तो अद्ल फरमाते और अगर किसी शख्स का नफ्स मुबारक के साथ कोई मामला होता तो रहम फरमाते _,"*

 *★"_ फातिमा नामी एक औरत ने मक्का में चोरी की, लोगो ने ओसामा रजियल्लाहु अन्हु से जो आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत प्यारे थे, सिफ़रिश करायी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - क्या तुम हुदूद ए इलाही में सिफ़रिश करते हो ? अगर फातिमा बिन्ते मुहम्मद (ﷺ) भी एसा करती तो भी मैं हद जारी करता _," (बुखारी - 2648)*

 *★"_ सवाद बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि वो एक रोज़ आन हज़रत ﷺ के सामने रंगीन कपड़ा पहन कर गए, आन हज़रतﷺ ने हुत हुत फरमाया और छडी से उनके शिकम में ठोका भी दिया, मैने कहा - या रसूलल्लाह ﷺ ! मैं कसास लुंगा, आन हज़रत ﷺ ने झट अपना शिकम बरहना कर के मेरे सामने कर दिया _," (अल शिफ़ा फ़ी हुकूक़ अल मुस्तफ़ा काज़ी अयाज़ - 311)*

 *★"_ दुश्मनो पर मेहरबानी :- मक्का में सख्त क़हत पड़ा, यहां तक ​​कि लोगो ने मुर्दार और हड्डियां भी खाना शुरू कर दिए, अबू सुफियान बिन हर्ब (उन दिनो बहुत बड़ा दुश्मन था) नबी ﷺ की खिदमत में आया, अर्ज़ किया - मुहम्मद ﷺ ! आप तो लोगों पर सिलह रहम ( हुस्ने सुलूक बा क़राबत दारान) की तालीम दिया करते हैं, देखिए आपकी क़ौम हलाक हो रही है, अल्लाह से दुआ कीजिए, नबी ﷺ ने दुआ फरमाई और खूब बारिश हुई _," (बुखारी-1007, 1020)*

 *★_ सुमामा बिन उसाल रजियल्लाहु अन्हु ने नजद से मक्का को जाने वाला गल्ला बंद कर दिया इसलिए कि अहले मक्का आन हज़रत ﷺ के दुश्मन हैं, आन हज़रत ﷺ ने उन्हें ऐसा करने से मना फ़रमा दिया,*
 *"_ हुदेबिया के मैदान में आन हज़रत ﷺ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के साथ नमाज़े सुबेह पढ़ रहे थे, 70-80 आदमी चुपके से कोहे तन'ईम से उतरे ताकि सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम को नमाज़ पढते हुए क़त्ल कर दें, ये सब गिरफ्तार हो गए और नबी ﷺ ने उनको बिला किसी फिदिया या सज़ा के आज़ाद कर दिया _," (मुस्लिम -679)*
[5/10, 6:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★ _ जोदो करम:-*
 *"_ साइल को कभी गुस्सा ना फरमाते, ज़ुबान मुबारक पर हर्फे इंकार ना लाते, अगर कुछ पास ना होता तो साइल से उज्र करते, गोया कोई शख्स माफी चाहता है _,"*

 *★ " एक शख्स ने आकर सवाल किया, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया- मेरे पास तो इस वक्त कुछ नहीं है तुम मेरे नाम पर क़र्ज़ ले लो मैं फिर उसे उतार दूंगा, उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि अल्लाह ने आपको यह तकलीफ नहीं दी कि कु़दरत से बढ़कर काम करें, नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम चुप हो गए, एक अंसारी ने पास से कह दिया- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खूब दीजिए रब्बुल अर्श मालिक है, तंग दस्ती का क्या डर है, नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हंस पड़े, चेहरा मुबारक पर खुशी के आसार आशकार हो गए, फरमाया - हां मुझे यही हुक्म मिला है, "*

 *★ _ _ एक बार एक साइल को आधा वस्क़ गल्ला क़र्ज़ लेकर दिलाया, क़र्ज़ ख्वाह तक़ाज़ा के लिए आया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- इसे एक वस्क़ गल्ला दे दो, आधा तो क़र्ज़ का है और आधा हमारी तरफ से जोदो सखा का है _, "*
 *"_ फरमाया करते, अगर कोई शख्स मकरूज़ मर जाए और माल बाक़ी ना छोड़े तो हम उसे अदा करेंगे और अगर कोई माल छोड़ कर मरे तो वो हक़ वारिसो का है _," (बुखारी- 2298, 2398)**
[5/11, 7:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शर्म बनाम हया :-*
 *"_ अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि परदा नशीन लड़की से बढ़ कर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में हया थी_, _," (बुखारी-3562, 6102, इब्ने माजा-418)*

 *★_ जब कोई ऐसी बात हुज़ूर ﷺ के सामने की जाती जिससे हुज़ूर को कराहत होती तो चेहरा मुबारक से फ़ोरन मालूम हो जाता था _,"*
 *"_ आयशा तैय्यबा रजियल्लाहु अन्हा का बयान है कि अगर किसी शख्स की कोई हरकत नबी ﷺ को पसंद ना आती तो उसका नाम ले कर मना ना फरमाते बल्की आम अल्फाज़ में उस हरकत व फैल की नहीं फरमा देते _," (अबू दाउद 4788)*

 *★_ आदत व मामलात में अपनी जान पर तकलीफ उठा लेते मगर दूसरे शख्स को अज़ राह शर्म काम करने को ना फरमाते, जब कोई उज़र् ख्वाह सामने आ कर माफी का तालिब होता तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शर्म से गर्दन मुबारक झुका लेते _,"*
 *"_ आयशा तैयबा रजियल्लाहु अन्हा का कौ़ल है कि मैने आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बरहना कभी नहीं देखा _," (तिर्मिज़ी फ़ि अल शिमाइल -358)*
[5/13, 8:52 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सब्र बनाम हिल्म:-*
 *"_ ज़ैद बिन साना (रज़ियल्लाहु अन्हु) एक यहूदी था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसका क़र्ज़ देना था, वो एक रोज़ आया, आते ही चादर आपके शाना से उतार ली, जिस्म के कपड़े पकड़ लिए और डराने लगा कि अब्दुल मुत्तलिब वाले बड़े नादेहिंद (क़र्ज़ ले कर वापस न करने वाले) होते हैं, उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने सख्ती से झटका दिया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हंस पड़े, फरमाया - उमर तुम्हे लाज़िम था कि मेरे साथ और, उसके साथ और तरह बरताव करते, मुझे हुस्ने अदायगी के लिए कहते और उसे हुस्ने तक़ाज़ा सिखलाते _,"*

 *★"_ फ़िर ज़ैद की जानिब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुख़ातिब हुए, फरमाया - अभी वादे में तीन दिन बाक़ी है, फ़िर उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया - इसका क़र्ज़ अदा कर दो, इसे 20 सा ज़्यादा भी देना क्यूंकी तुमने इसे धमकाया और डराया भी था _,"*

 *★_ एक आराबी आया और उसने ज़ोर से आन हज़रत ﷺ की चादर को जो मोटे किनारे की थी झटका दिया, वो किनारा आन हज़रत की गर्दन में गढ़ गया और निशान पड़ गया, आराबी ने अब जुबान से ये कहा - मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अल्लाह का माल जो तुम्हारे पास है जो ना तुम्हारा है और ना तुम्हारे बाप का है, उसमे से एक बार शुतर मुझे भी दिलाओ,*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़रा खामोशी के बाद फरमाया- माल बेशक अल्लाह का है और मैं उसका गुलाम हूं, बिल आखिर हुक्म फरमाया कि एक बार शुतर जौ और एक बार शुतर खजूर इसे दी जाए _,"*

 *★_ ताइफ में आन हज़रत ﷺ वाज़ और तबलीग के लिए तशरीफ ले गए थे, वहां के बाशिंदों ने आन हज़रत ﷺ पर कीचड़ फ़ैका, आवाज़ें लगायी, इतने पत्थर मारे कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लहू से तर बतर और बेहोश हो गए, फिर भी यही फरमाया कि मैं इन लोगो की हलाकत नहीं चाहता, क्योंकि अगर ये ईमान नहीं लाते तो उम्मीद है कि इनकी औलाद मुसलमान हो जाएंगी _,"*
[5/14, 8:46 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अफू व रहम :-*
 *"_ आयशा तैय्यबा रजियल्लाहु अन्हा का बयान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी जा़त मुबारक की बाबत किसी से इंतक़ाम न लिया _," (बुखारी- 3530, मुस्लिम- 2367 अबू दाऊद- 4785)*

 *★_ जंगे उहद में मुशरिकीन में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दांत तोड़े, सर फोड़ा, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक गार में भी गिर गए थे, सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया कि इन पर बद दुआ फरमायें, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- मैं लानत करने के लिए नबी नहीं बनाया गया, अल्लाह ने मुझे लोगो को अपनी बारगाह में बुलाने के लिए भेजा है, रहमत बना कर भेजा है, इसके बाद ये दुआ फरमाई - ऐ अल्लाह! मेरी क़ौम को हिदायत फरमा, वो (मुझे) नहीं जानते _," (मुस्लिम - 4645, 4646)*

 *★_ एक दरख़्त के नीचे आन हज़रत ﷺ सो गए, तलवार शाख पर रख दी, गोर्स बिन अलहरास आया, तलवार निकाल कर नबी ﷺ को गुस्ताखाना जगाया, बोला - अब तुमको को बचायेगा ? फरमाया - अल्लाह, वो चक्कर खा कर गिर पड़ा, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तलवार उठा ली, फरमाया - अब तुझे कोन बचा सकता है? वो हैरान हो गया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - जाओ मैं बदला नहीं लिया करता_," (बुखारी-4135, मुस्लिम - 595, अहमद - 1/311)*

 *★_ हिबार ने आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बेटी ज़ैनब रजियल्लाहु अन्हा के नेज़ा मारा, वो होदज से नीचे गिर गईं और हमल साक़ित हो गया था और बिल आखिर यही सदमा उनकी मौत की वजह हुआ, हिबार ने अफू ( माफी) की इल्तज़ा की और उसे माफ़ फरमाया _," (फताहुल बारी- 8/88, कंजुल उम्माल-33660)*

 *★"_ फरमाया - ज़माना जाहिलियत से ले कर जिन बातो पर क़बाइल में आपस में जंग व जदल चला आता है, मैं सबको मिटाता हूं और सबसे पहले अपने खानदान के खून का दावा और अपने चाचा की कर्ज की रक़म को माफ़ करता हूं _," (खुत्बा नबवी ﷺ बा रोज़ फ़तेह अबू दाउद -1905, इब्ने माजा -3074, अहमद -5/73)*
[5/15, 6:22 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सिद्क़ व अमानत:-*
 *"_ जानी दुश्मन भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इन औसाफ के क़ाइल थे, सादिक़ व अमीन बचपन ही से आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का ख़िताब पड़ गया था, इन्हीं औसाफ़ की वजह से नबुवत से पहले भी लोग अपने मुक़द्दमात को फ़ैसलों के लिए आन हज़रत ﷺ के पास लाया करते थे _,"*

 *★_ एक रोज़ अबू जहल ने कहा:- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मै तुझे झूठा नहीं समझता लेकिन तेरी तालीम पर मेरा दिल ही नहीं ठहराता _," (तिर्मिज़ी -3064, हाकिम -2/315)*

 *★"_ शबे हिजरत को मुशरिकीन ने तो आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के क़त्ल का मशवरा और इत्तेफाक किया था और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्यारे भाई अली रजियल्लाहु अन्हु को इसलिय पीछे छोड़ा कि उनकी अमानतों को अदा कर के आना _,"*

 *★_ इफ्फत व अस्मत :-*
 *"_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फरमाते हैं, अय्यामे जाहिलियत की रस्मों में से मैंने कभी किसी में भी हिसा नहीं लिया, सिर्फ 2 दफा इरादा किया था कि अल्लाह ताला ने मुझे खुद ही बचा लिया"*

 *"_ 10 बरस से कम उमर थी, मैंने उस चारवाहे को जिसके साथ बकरीयां चराता था कहा अगर तुम मेरी बकरियां संभाले रखो तो मैं मक्का (अबादी के अंदर) जाऊं, जैसे और नोजवान कहानियां कहते सुनते हैं, मैं भी कहूं सुनूं, इस इरादे से मैं शहर को आया, पहले ही घर पहंचा था कि वहां दफ व मजा़मीर बज रहे थे, उस घर में ब्याह था, मैं उन्हे देखने लगा, नींद ने गलबा किया, मैं सो गया, जब सूरज निकला तब आंख खुली _,"*
 *"_ एक दफा फिर ऐसी ही नियत से आया था, उसी तरह नींद आ गई और वक़्त गुज़र गया, दो वाक़िआत के सिवा मैंने कभी मकरूहाते जाहिलियत का इरादा भी नहीं किया _," (अल शिफा -1/180)*
[5/16, 9:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अहद ए नबुवत से पहले का ज़िक्र है ज़ैद बिन अमरू बिन नुफैल ने नबी ﷺ की दावत की, दस्तर ख़्वान पर गोश्त भी आया, नबी ﷺ ने फ़रमाया - मैं वो गोश्त नहीं खाता जो बुतों या अस्थानो की क़ुर्बानी का हो , मैं तो सिर्फ वही गोश्त खाया करता हूं जिस पर जिबह के वक्त अल्लाह का नाम लिया हो _," (बुखारी-5499)*

 *★_ आन हज़रत ﷺ की दुआ ये थी :- इलाही ! एक दिन भूखा रहुं, एक दिन खाने को मिले, भूख में तेरे सामने गिडगिडाया करुं, तुझसे मांगा करुं और खा कर तेरी हमदो सना किया करुं_," (अल-शिफा 62)*

 *★_ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं एक महीना बराबर हमारे चूल्हे में आग रोशन न होती हुज़ूर ﷺ का कुनबा पानी और खजूर पर गुज़र करता_, (बुखारी - 6455)*
 *"_ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं नबी ﷺ ने मदीना आ कर तीन दिन तक बराबर गेन्हू की रोटी कभी नहीं खाई_," (बुखारी -6454)*
 *"_ नबी ﷺ ने इंतकाल फरमाया तो उस वक़्त आन हज़रत ﷺ की ज़िरह एक यहूदी के पास बा ऐवज़ गल्ला जौ रेहन थी_," (बुखारी -2916)*

 *★_ आन हज़रत ﷺ इस दुनिया की आखिरी शब में थे कि आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा ने पड़ोस से चिराग के लिए तेल मंगवाया था _," (बुखारी -2916)*
 *"_ आन हज़रत ﷺ दुआ फरमाया करते - इलाही ! आले मुहम्मद ﷺ को सिर्फ इतना दे जितना पेट में डाल लें_," (बुखारी - 6460)*

 *★_ ये याद रखना चाहिए कि जुहद की ये तमाम सूरतें अख्त्यारी थी, लाचारी कुछ न थी और इस जुहद से मक़सूद नबी ﷺ का ये ना था कि किसी हलाल चीज़ के इस्तेमल में कोई रोक पैदा करें, ऐसे ख्याल से सिर्फ एक बार नबी ﷺ ने शहद को छोड दिया था, इसकी वजह ये थी कि एक बीवी ने शहद की बू को अपनी तबियत के खिलाफ बताया था, अल्लाह अज़ व जल ने नबी ﷺ से फरमाया - (सूरह तहरीम -1):-*
 *"_ए नबी ! जो चीज़ अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है, तुम अपनी बिवियों की खुशनूदी हासिल करने के लिए उसे क्यों हराम करते हो ? और अल्लाह बहुत बख्शने वाला बहुत मेहरबान है _,"*
[5/17, 6:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सनफ ए ज़ैफ़ (औरतों) की इआनात और उनकी आशाइश का ख्याल :-*
 *"_ उम्मुल मोमिनीन सफिया रजियल्लाहु अन्हा एक सफ़र में साथ थीं, वो तमाम जिस्म को चादर से ढाँप कर ऊंट की पिछली नशीस्त पर नबी ﷺ के साथ सवार हुआ करती थीं, जब वो ऊंट पर सवार होने लगती तब आन हज़रत ﷺ अपना घुटना आगे बढ़ा देते थे, सफ़िया रज़ियल्लाहु अन्हा अपना पांव आन हज़रत ﷺ के घुटने पर रख कर ऊंट पर चड़ जाया करती थीं _, ( बुखारी - 3085, 3086)*

 *★_ एक दफा ऊंटनी का पांव फिसला, नबी ﷺ और उम्मुल मोमिनीन सफिया रजियल्लाहु अन्हा दोनो गिर गए, अबू तल्हा रजियल्लाहु अन्हु दौडे दौडे रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ मुतवज्जह हुए, नबी ﷺ ने फ़रमाया- तुम पहले औरत की खबर लो _," (फतहुल बारी- 528, तबका़त इब्ने साद - 8/88)*

*★_ एक सफर में ऊंटों के कजावो में औरतें थीं, सारबान जो ऊंटों की मुहार पकडे जाता था, हदी ख्वानी करने लगा, हदी ऐसी आवाज़ से शैर पढ़ने को कहते हैं जिससे ऊंट तेज चलने लगते है, नबी ﷺ ने फरमाया- देखो कांच के शीशों को तोड़ फोड़ ना देना_," ( बुखारी - 3085, 3086)*
 *"_ इस इरशाद में औरतों को कांच की चीज़ से नबी ﷺ ने तशबीह दी, नफासत व नज़ाकत के अलावा वजहे तशबीह औरतों की सनफ ए खलक़त है जिसकी वजह से वो हमेशा आराम और आशाइश की मुस्तहिक़ है _,"*
[5/18, 5:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ असीरान ए जंग (कैदियों) की खबरगिरी _,"*
 *"_ असीरान ए जंग की खबरगिरी मेहमानों की तरह की जाती थी, जंगे बदर में जो क़ैदी मदीना मुनव्वरा में चंद रोज़ तक मुसलमानों के पास क़ैद रहे, उनमे से एक का बयान है- अल्लाह मुसलमानो पर रहम करे, वो अपने अहलो अयाल से अच्छा हमको खिलाते थे और अपने कुनबे से पहले हमारे आराम की फ़िक्र करते थे, जब क़ैदी असीर (क़ैद) हो कर आते तो नबी ﷺ पहले उनके लिबास की फ़िक्र किया करते _," (बुखारी -6149, 6136 से 6211, मुस्लिम 6036 से 6211, मुस्लिम 6040)*

 *★_ मर्दाना वर्ज़ीशें:- मर्दाना वर्ज़ीशों का शोक दिलाया करते, रुकाना अरब का मशहूर पहलवान था, वो अपने पछाड़े जाने को इस्लाम लाने की शर्त ठहराता था, नबी ﷺ ने उसे तीन बार पछाड़ दिया था _, "(बुखारी - 3008)*

 *★_ तीर अफगनी (तीरंदाज़ी):-*
 *"_ निशाना बाज़ी का लोगो को शोक़ दिलाया करते, निशाना बाज़ी की मश्क के लिए लोगो को दो हिस्सों में बांट दिया करते थे, एक दफा फरमाया: - तीर चलाओ, मैं उस पार्टी की तरफ हूं, ये सुन कर दूसरी पार्टी ने तीर चलाने से हाथो को रोक लिया, सबब पुछा गया तो उन्होंने कहा - जब उस पार्टी में रसूलल्लाह ﷺ शामिल हैं तो हम उसके मुक़ाबले में क्यूंकर तीर अफगनी कर सकते हैं? नबी ﷺ ने फरमाया - तीर चलाओ, मैं तुम सबके साथ हूं _," ( बुखारी - 2899, 3373)*

 *★"_ घुड़ दौड़ :- घोड़ो की दौड़ आन हज़रत ﷺ के हुक्म से कराई जाती थी, लंबी दौड़ 6 मील की और हल्की दौड़ एक मील की होती थी _,"*
[5/19, 7:03 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मर्दुम शुमारी :-*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - तमाम कलमागो शख्सों के नाम मेरे मुलाहिज़ा के लिए क़लम बंद किए जाएं, इस हुक्म की तमील हुई, उस वक्त मुसलमानों का शुमार 1500 हुआ, इस तदाद पर सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने अल्लाह का शुक्र अदा किया, खुशी मनाई, सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम फरमाते थे, हम 1500 हो गए हैं, अब हमें क्या डर रहा है, हमने तो वो ज़माना देखा है जब हममे से कोई अकेला ही नमाज़ पढ़ा करता था और उसे हर तरफ से दुश्मनों का खौफ रहता था _," ( इब्ने माजा -4029, अहमद - 5/384)*

 *★_ अफसोस है कि इस रिवायत से ये पता नहीं लगता कि ये शुमार किस सनद में हुआ, सही बुखारी की दीगर रिवायत से तो ये मालूम होता है की ये तीसरी मर्दुम (मुस्लिम) शुमारी थी, पहली दफा के शुमार में मुसलमानो की 500 दूसरी दफा के शुमार में 600 और 700 के दरमियान तादाद थी,*

 *★_ तालीमात ए रिसालत :-*
 *"_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तालीम ए पाक, ऐतक़ादात, आदात, मामलात, इबादात, मुहलिक़ात, मिंजियात, एहसानियात, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अफज़लियत और इस्लाम की बरतरी का मदार इसी तालीम पर है _,"*

 *★_ अल्लाह का हक़ बंदो पर, बंदो का हक़ अल्लाह पर :-*
 *"_ अल्लाह का हक़ बंदो पर ये है कि बंदे उसकी इबादत करें और किसी चीज़ को भी उसका शरीक़ न बनाएं, बंदो का हक़ अल्लाह पर ये है कि जब वो अल्लाह के हक़ अदा करें तब वो उन्हें अज़ाब ना दे _," (बुखारी- 2856, 7373)*
[5/20, 12:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रहमत इलाही :-*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - अल्लाह ने उस किताब में जो उसके पास अर्श पर है लिखा रखा है:- मेरी रहमत मेरे गज़ब पर गालिब है _," (बुखारी -7553, 7554)*

 *★_ खिदमत ए वाल्देन:-*
 *"_ एक शख्स ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आ कर अर्ज़ किया कि मैं जिहाद करना चाहता हूं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुछा - तेरे मां बाप ज़िंदा हैं ? वो बोला - हां, फरमाया - उनकी ख़िदमत में जिहाद (हद दर्जा कोशिश) करो _," (बुखारी - 3004, 5972)*

 *★_ नुसरत ए बाहमी :-*
 *"_ एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए ऐसा है जैसे बुनियाद की ईंटें एक दूसरे को क़ुव्वत मिलती है, फिर अपने एक हाथ की उंगलियों को दूसरे हाथ में डाल कर दिखाया, यानी मोमिन इस तरह मिले जुले रहते हैं_ , "(बुखारी- 481, 2646)*
 *"_ मुसलमान कौन है ? मुसलमान वो है जिसकी ज़ुबान और हाथ से मुसलमान बचे रहे_" (बुखारी - 11)*

 *★_ ईमान का कमाल :-*
 *"_ तुम्हारे से कोई शख्स मोमिन नहीं बन जाता जब तक कि वो अपने मुसलमान भाई के लिए भी वही कुछ पसंद ना करे जो कुछ खुद अपने लिए पसंद करता है_," (बुखारी- 13)*
[5/21, 9:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शीरनी बयान :-*
 *"_ तीन बातें हैं, जिस शख्स में ये होंगी वो ईमान का हलावत चख लेगा :-*
 *(1)_अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत उसे सबसे बढ़ कर हो_,"*
 *(2)_ किसी भाई से अल्लाह के लिए मुहब्बत रखता हो, कोई गर्ज़ शमिल न हो _,"*
 *(3)_ कुफ्र में जा पड़ने को ऐसा बुरा जानता हो, जैसा आग में गिर जाने को समझता है _," (बुखारी-16)*

 *★_ पसंदीदा आमाल:-*
 *"_ लोगो ने आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से दरियाफ्त किया कि अल्लाह तआला को कोनसा अमल ज़्यादा पसंद है, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - जो अमल हमेशा किया जाए अगरचे मिक़दार में कम ही हो, फिर फरमाया - अमल (इबादत) उतना ही करो जिसे बा आसानी कर सको_," (बुखारी - 1970,6464 मुस्लिम -782, अबू दाऊद - 1368)*

 *★_ आमाल शाक्का़ (सख्त मुश्किल) से मुमानत :-*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक घर में रस्सी लटकी देखी, पुछा ये क्या है? लोगो ने कहा - फलां औरत ने लटका रखी है, रात को (इबादत करती हुई) जब ऊंघने लगती है तो इससे लटक पड़ती है, फरमाया- इसे खोल दो, इबादत (निफली) उस वक़्त तक करो कि तबियत में निशात क़ायम रहे _," (बुखारी -1150, मुस्लिम -784, अबू दाऊद -1312)*

 *★_ बनी असद की एक औरत की बाबत नबी ﷺ से अर्ज़ किया गया कि वो तमाम रात इबादत किया करती है, फरमाया- ऐसा न करो, आमाल बा क़दरे ताक़त अदा करो _", (अबू दाउद - 1368)*
 *"_ अब्दुल्लाह बिन अमरू बिन आस रजियल्लाहु अन्हु से आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पुछा, मैंने सुना है कि तुम रातो को बराबर जागते और दिन को बराबर रोज़ा रखा करते हो, अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - हां, फरमाया - अब ऐसा ना करो, रोज़ा भी रखो और कुछ वक़्त के लिए छोड़ भी दो, रात को इबादत के लिए जागो भी और सोओ भी, देख तेरे जिस्म का भी तुझ पर हक़ है, तेरी आंखों का भी तुझ पर हक़ है, तेरी बीवी का भी तुझ पर हक़ है _," (अबू दाऊद -1368)*
[5/22, 9:25 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मेहनत की तारीफ, मांगने की बुराई:-*
 *"_ नबी ﷺ ने फरमाया कि अगर कोई शख्स लकडियों का गट्ठा पीठ पर लाया करे तो उसके लिए बेहतर है इससे कि वो लोगो से मांगा करे और लोग उसे दे दिया करें_," ( बुखारी - 1470- 2074)*

 *★_ किन लोगों पर रश्क करना चाहिए:-*
 *"_ फरमाया - का़बिले रश्क दो शख्स हैं:- (1) जिसे अल्लाह ने माल दिया और उस माल को जाइज़ जगह खर्च करने की तोफीक भी उसे मिली हो, (2) जिसे अल्लाह ने हिकमत अता की हो, वो उस पर खुद अमल करता हो और दूसरों को भी उसकी तालीम देता हो _," (बुखारी -73, 1409)*

 *★_ बेहतरीन अख़लाक़ की तालीम:-*
 *"_ रास्त बाजी (सच्चाई) अख्त्यार करो, आपस में मुहब्बत को बढ़ाओ, लोगो को अल्लाह की तरफ से बशारत पहूँचाओ, अमल तो किसी को भी जन्नत में नहीं ले जा सकता _," ( बुखारी -6467)*
 *"_ खबरदार बदगुमानी को अपनी आदत न बनाना, बदगुमनी तो झूठ ही झूठ होता है, बेबुनियाद बातो पर कान न लगाओ, औरों के ऐब तलाश ना करो, आपस में बुग्ज़ ना रखो, किसी से रु-गरदानी ( मुंह फैरना) ना करो, ए अल्लाह के बंदो ! आपस में भाई बन कर रहो (जेसा कि तुम सब अल्लाह के बंदे ही हो) _," (बुखारी 5143, मुस्लिम -2563)*

 *★_ हमसाया (पड़ोसी) और मेहमान का हक़ :-*
 *"_ जो कोई शख्स अल्लाह पर और क़यामत पर ईमान रखता है, वो अपने हमसाया को तकलीफ़ ना दिया करे, जो कोई शख्स अल्लाह पर और क़यामत पर ईमान रखता है वो मेहमान की इज्ज़त किया करे _,"*
 *"_ जो कोई शख्स अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखता है उसे लाज़िम है कि बात कहे तो अच्छी बात कहे वर्ना खामोश ही रहे _," (बुखारी - 6018)*
[5/23, 9:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ निजात के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जमानत :-*
 *"_ अगर कोई शख्स मुझे जमानत दे उस चीज़ की जो उसके जबड़ों के दर्मियान है (यानी जुबान) और उस चीज़ की जो उसकी टांगो के दर्मियान है (यानी शर्मगाह) तो मैं उसके लिए जन्नत का ज़ामिन बनता हूं_," ( बुखारी - 6474)*

 *★_ सब्र व शुक्र की तालीम :-*
 *"_ अगर एसे शख्स पर तुम्हारी नज़र पडे जो माल और हुस्न में तुमसे बढ़ कर है तो ऐसे शख्स को भी देखो जो इन चीजों में तुमसे कमतर है_," (बुखारी - 6390, मुस्लिम -2963)*

 *★_ पहलवान कोन है ?*
 *"_ पहलवान वो नहीं है जो दूसरो को पछाड़ देता है, पहलवान तो वो है जो गुस्से के वक्त अपने आपको थाम लेता है _," (बुखारी -6114, मुस्लिम -2609, अहमद 2/236)*

 *★_ मुनादियान ए इस्लाम का फ़र्ज़:-*
 *"_ माज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु और अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुल्क यमन में तलीम ए इस्लाम की ईशात के लिए मामूर फरमाया था, रवानगी के वक़्त उन्हे इरशाद फरमाया- लोगो के लिए आसानी पसंद करना, उन्हे सख्ती में ना डालना, खुश खबरी और बशारत उन्हे सुनाना, दीन से नफरत न दिलाना और तुम आपस में मिल कर रहना _," (बुखारी -7172)*

 *★_ दरख्त लगाने का सवाब:-*
 *"_ अगर किसी मुसलमान ने दरख्त लगाया जिसका फल किसी इंसान या जानवार ने खाया तो लगाने वाले के लिए ये सदका़ होगा _," (बुखारी- 2320, 6012, मुस्लिम 3968 - 3974, तिर्मिज़ी -1382)*
[5/24, 8:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हैवानात से हमदर्दी का हुक्म :-*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - एक शख़्स राह चलता था, उसे सख़्त प्यास लगी, कुँवे के अंदर उतर कर उसने पानी पिया, जब बाहर निकला तो देखा कि एक कुत्ता जुबान बाहर निकाले प्यास के मारे नमनाक ज़मीन को चाट रहा है , उस शख्स ने कहा - कुत्ते को भी प्यास लगी है जैसे मुझे लगी थी, फिर वो कुंवे में उतरा, अपना मोज़ा पानी से भर कर लाया और कुत्ते को पानी पिलाया, अल्लाह ने इस अमल को क़ुबूल फ़रमा कर उस शख्स को बख्श दिया _,*
 *"_ सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने ये सुन कर दरयाफ्त किया - या रसूलल्लाह ﷺ क्या हैवानात के लिए भी हमको अजर् मिलेगा ? नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - हर एक जानदार जिसके कलेजे में नम है (जो ज़िंदा है) के मुताल्लिक़ तुमको अजर् मिलेगा "(बुखारी-173, 2466)*

 *★_ मुनाफिक़ कोन है ?*
 *"_ चार खसलते हैं जिस शख्स में हो वो मुनाफिक है अगर इन चार में से कोई एक खसलत उसमे है तो निफाक़ की एक अलामत उसके अंदर है :-*
 *(1)_ बोले तो झूठ बोले, (2)_ वादा करे तो खिलाफ़ करे, (3)_ अहद करे तो पूरा न करे, (4)_ झगड़ने लगे तो फहश बकने लगे _,"( बुखारी -34, 245 , 3178)*

 *★_ क़यामत के दिन साया रब्बानी किन लोगो पर होगा?*
 *"_ (1)_ आदिल बादशाह,*
 *"_(2)_ वो नोजवान जिसने जवानी में इबादत इलाही की हो,*
 *"_(3)_ वो शख्स जिसे तन्हाई में अल्लाह याद आता हो और उसकी आंखें डबडबा आती हो _,*
 *"_(4)_ वो शख्स जिसका दिल मस्जिद में लगा रहता हो,*
 *"_(5)_ वो दोनो शख्स जिनकी मुहब्बत लिल्लाहियत पर हो,*
 *"_(6)_ वो शख्स जिसे कोई हसीना और आला दरजा की औरत अपनी जानिब बुलाये और वो कह दे कि मैं अल्लाह से डरता हुं,*
 *"_(7)_ वो शख्स जो मखफी तौर पर खैरात देता हो, उसके बाएं हाथ को भी खबर नहीं कि दाये हाथ ने क्या दिया ?*
 *"_ ये है वो सात (7) शख्स जिन्हे अल्लाह क़यामत के दिन अपने साये में ले लेगा, जिस दिन कहीं साया न होगा_" (बुखारी-10, मुस्लिम- 40, अबू दाऊद -2481)*
[5/25, 9:17 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बादशाह की इता'त का हुक्म:-*
 *"_अगर किसी शख्स को अपने फरमान रवा की कोई बात नागवार गुज़रे तो लाज़िम है कि सब्र करे, क्यूंकी अगर कोई शख्स बालिश्त भर भी अपने बादशाह की इता'त से बाहर निकलेगा उसे वो मौत नसीब होगी जो ज़माना ए इस्लाम से पहले की मौत होती थी _," (बुखारी- 660- 6806)*

 *★_ तुम लोग मेरे बाद ना खुशगवार हालतें और ऐसी बातें देखोगे जिन्हे तुम नापसंद करोगे, सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने पुछा - ऐसी हालत के लिए हुजूर ﷺ का क्या हुक्म है?*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - उनके हुकूक़ अदा करते रहना और अपने हुकूक़ की बाबत अल्लाह से दुआ मांगना_," (बुखारी- 7053)*

 *★_ ज़ीस्त (ज़िंदगी) का दर्ज़ा क़द्र ए ज़िंदगानी:_*
 *"_ किसी शख्स (मुसलमान) को मौत की आरज़ू नहीं करनी चाहिए, अगर नेक है तो इसलिए कि शायद वो नेकियों में तरक्की कर सके और अगर बद है तो इसलिय कि शायद वो खुशनूदी हासिल कर सके _," ( बुखारी- 7235)*

 *★_ सहत और फराख दस्ती (मालदारी) का दर्ज़ा:-*
 *"_ दो नियामते हैं जिनकी क़द्र अक्सर लोग नहीं जानते वो नियामते:- (1) तंदूरस्ती (2) फराख दस्ती (मालदारी) हैं _," (बुखारी-6412, तिर्मिज़ी -2304, इब्ने माजा -4170, कंजुल उम्माल -6444)*
[5/26, 3:32 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अदा ए क़र्ज़ की फ़ज़ीलत:-*
 *"_ एक शख्स का नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऊंट देना था, वो तकाज़ा करने आया, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उसके ऊंट से बेहतर ऊंट ख़रीद कर उसे दे दिया, लोगो से फरमाया - नेक व बर्तर शख्स वो है जो क़र्ज़ को खुश उसलूबी से अदा करता है _," (बुखारी - 2392)*

 *★_ दौलतमंदी की तारीफ:-*
 *"_ दौलतमंदी ज़र व माल की क़सरत से हासिल नहीं होती है गनी (मालदार) वो है जिसका दिल गनी है _," (बुखारी - 6446, तिर्मिज़ी -2373, इब्ने माजा 4137)*

 *★_ मुसावात ए आम्मा (आम बराबारी) :-*
 *"_ अरब के किसी बाशिंदे को अजम के किसी बाशिंदे पर और अजम के किसी शख्स को अरब के किसी शख्स पर, गोरे रंग वाले को काले आदमी पर और काले को गोर पर कोई फ़ज़ीलत नहीं है, फ़ज़ीलत का ज़रिया तो सिर्फ़ "खुदातर्सी" (खुदा का डर) है _," ( ज़ादुल माद-2/185, दुर्रे मंसूर -6/98 मजमा अज़ ज़वायद- 8/84)*

 *★_ रहम आम्मा:-*
 *"_ जो कोई शख्स दूसरे पर रहम नहीं करता उस पर भी रहम नहीं किया जाएगा_," (बुखारी - 5997)*
[5/27, 6:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ वारिसो के लिए वरसा छोडने की फ़ज़ीलत:-*
 *"_ ये बेहतर है कि तू अपने वारिस को गनी छोड कर मरे, बनिस्बत इसके कि वो तही दस्त हो और लोगो के सामने सवाल के लिए हाथ फेलाता रहे _," (बुखारी - 2742)*

 *★_ औरत की मिसाल और उससे गुज़रान करने की हिदायत :-*
 *"_ औरत को ऐसा समझो जेसे पस्ली की हड्डी, इस हड्डी को अगर सीधा करना चाहोगे तो तोड़ बेठोगे और अगर उससे काम लेना चाहोगे तो टेडेपन में ही काम देगी _" (बुखारी- 5184, 3331, मुसनद/279)*

 *★_ औरत का दरजा घर में :-*
 *"_ औरत अपने शोहर के घर में और औलाद पर हुक्मरान है_" (बुखारी - 893, 5200, मुसनद अहमद-2/5)*

 *★_ माहिर ए कुरान का दर्जा :-*
 *"_ कुरान मजीद का जानने वाला बुज़ुर्ग नेकुकार सफ़ीरो (फ़रिश्तो) के साथ होगा _," (बुख़ारी -4937, मुस्लिम - 1862, अबू दाऊद -1454, तिर्मिज़ी -2904)*

 *★_ अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा काम :-*
 *"_ दो बोल हैं जो रहमान को प्यारे हैं, ज़ुबान पर हल्के हैं, मिज़ाने आमाल में भारी हैं, वो ये हैं:- सुब्हानल्लाहि वबिहम्दिही सुब्हनल्लाहिल अज़ीम _, "(बुखारी - 7563, मुस्लिम - 2694, तिर्मिज़ी -3467, इब्ने माजा 3806)*

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[5/29, 8:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुब्बल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम :-*
 *"_ गज़लियात दाबियात के सैय्यदुल लफ्ज़ "इश्क़" का इस्तेमाल अक्सर किया करते हैं, कुरान मजीद और हदीस पाक के माहिरीन से ये अमर् मखफी नहीं है कि हर दो कलाम पाक में लफ्ज़ इश्क का इस्तेमाल नहीं हुआ है,*

 *★_ क़ामूस में है - जूनून की बहुत सी किस्में हैं इश्क भी जूनून की एक क़िस्म है, इस मर्ज़ को इंसान अपने नफ़्स पर बाज सूरतों या ख़सलतो के अच्छा समझ लेने से खुद वारिद कर लिया करता हैं। पस जब इश्क़ के मानी जूनून की एक क़िस्म हुई तो ज़रूरी था कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कलाम पाक में इस लफ़्ज़ का इस्तेमाल न किया जाता और इसे फ़ज़ाइल महमूद या महासिन ए जमीला से शुमार न किया जाता, बेशक़ क़ुरान हकीम और अहदीस रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम में लफ़्ज़ मोहब्बत का इस्तेमाल हुआ है और इससे साबित हो गया कि मुहब्बत ही सिफ्ते कमाले इंसानी है _,"*

*★_ मुहब्बत और इश्क में ये भी फ़र्क़ है कि मुहब्बत रूह के मीलान का नाम है और इश्क़ में इस शर्त का पाया जाना ज़रूरी नहीं, महबूब वो है जो फ़िल वाक़े अपने आला कमालात की वज़ह से मुहब्बत किये जाने के शायान हो, माशूक वो है जिसे किसी ने अच्छा समझ लिया हो_,*
 *"_ महबूब महबूब ही है, ख़्वाह कोई मुहब पैदा हो या ना हो मगर माशूक़ माशूक़ नहीं जब तक कोई उसका आशिक़ मोजूद ना हो _,"*

 *★_ मुहब्बत रूह ए इंसानी की वो सिफते नूरानी है जो जिस्मे इंसानी में आने से पहले भी रूह के अंदर पाई जाती और कारफरमा थी,*
 *"_ मुहब्बत का दर्जा मेहबूब के दर्जे के मुनासिब होता है, महबूब जितना ज्यादा अरफा व आला होगा मोहब्बत का दर्जा भी उसी क़दर अरफा और दायमी होगा, मुहब्बत को जा़त व सिफात महबूब से जिस क़दर ज़्यादा इरफान होगा उसी क़दर ज्यादा मज़बूती से उसका उसकी जानिब मीलान होगा _,"*
[5/30, 8:50 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुब्बल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम-२ :-*
 *"_ मुशरिक लोग शुरका के साथ अल्लाह की मुहब्बत जेसी मुहब्बत किया करते हैं मगर जो ईमान वाले हैं उनकी मुहब्बत अल्लाह के साथ बहुत ज़्यादा बड़ी हुई है _," (सूरह अल बक़रह-165)*

 *★_ ये याद रखना चाहिए कि सीरतुन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिखने का मक़सद इस खाकसार का बल्की जुमला उल्मा का यही है और यही होना चाहिए कि नबी करीम ﷺ के वजूद बजूद के मुताल्लिक पढ़ने वाले के कुलूब को ईमान, रूह को राहत और सीने को खोल दे और मुहब्बत का वो पाक चश्मा जो खुश्क हो गया था फिर फव्वारा वार उसी बुलंदी तक मोजज़न हो जाए जिस बुलंदी से चला था _,"*

 *★_ये मुहब्बत ही है जिसकी सिफत में हबीबुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमा दिया है :- हर शख्स का हशर् उसके साथ होगा जिससे वो मुहब्बत करता है _," (सही बुखारी - 6168, 6169 मुस्लिम 165, 2640, तिर्मिज़ी अहमद-206)*

 *★_ हम लिख चुके हैं कि मोहब्बत की बुनियाद किसी कमाले असला पर होती है, सेंकडों शख्स हातिम ताई से मुहब्बत रखते हैं, इसलिये नहीं कि उन्हें उसकी जायदाद से कोई पैसा या पाई मिली है बल्की इसलिए कि एसे शख्स को सिफत जोदो सखा से मुहब्बत होती है _,"*
[5/31, 9:46 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुब्बल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम-3,*
 *"_ यहाँ जिस आला हस्ती की मुहब्बत का ज़िक्र है उसकी शाने बुलंद का ता'अक़ुल करने के लिए ख्याल करो :-*
 *"_ एक आदम अलैहिस्सलाम अनाबत इलाल्लाह का राज़ आशकार करने वाला, एक इदरीस अलैहिस्सलाम उलूमे अव्वलीन व आखिरीन का दर्स देने वाला, एक नूह अलैहिस्सलाम इसरार व ऐलान से तबलीग करने वाला, एक इब्राहिम अलैहिस्सलाम गुनहगारों के लिए रब्बुल इज्ज़त से दरगुज़र और रहमत का सवाल करने वाला, एक इस्माइल अलैहिस्सलाम बैतुल्लाह को मुअज्ज़म ठहराने वाला, एक याक़ूब अलैहिस्सलाम रब कादिर से अहद बांधने वाला, एक युसूफ अलैहिस्सलाम बद ख्वाह और बद अंदेश पर रहम करने वाला, एक मूसा अलैहिस्सलाम क़ौम को बरगुज़ीदा बनाने वाला , एक हारून अलैहिस्सलाम इमामे फसीह, एक याह्या अलैहिस्सलाम मुबल्लिग मुतावाज़े, एक दाऊद अलैहिस्सलाम क़ौम को इज्तिमाई क़ुव्वत देने वाला, एक सुलेमान अलैहिस्सलाम अल्लाह के लिए पाक घर बनाने वाला _,*

 *★_ सल्लल्लाहु अलैहि वा अला जमीई इखवानीही मिनन नबिय्यीना वल मुर्सलीन ...*
 *"_ हां! वो जिसके मुंह में अल्लाह का कलाम होने की खबर मूसा अलैहिस्सलाम ने दी,*
 *"_ हां! वो जिसे ईसा अलैहिस्सलाम ने रूहुल हक़ बताया _,*
 *"- हां! वो जिसकी हैबत व जलाल से दाऊद अलैहिस्सलाम ने दुश्मनो को मारूब बनाया,*
 *"_ हां! वो जिसके हुस्नो जमाल का नशीद सुलेमान अलैहिस्सलाम ने मुकद्दस में गाया,*
 *"_ वो जिसके खैर मुक़द्दम की तहनीत से मलाकी अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के घर को जलाल दिया,*
 *"_ वो जिसके लिबास और रान पर "शहंशाहो का शहंशाह, खुदावंदों का खुदावंद" लिखा हुआ युहन्ना ने पढ़ा _,*
 *"_ वो जिसके पीछे आसमानी फौजो का चलना साहिबे मुकाशफत ने मुशाहिदा किया_,"*

 *★"_ क्या कोई साहिब बसर, साहिबे दिल! ऐसे महबूब, ऐसे महमूद, ऐसे मुस्तफा ऐसे मुहम्मद ﷺ पर दिल व जान से फिदा ना होगा ? और इस फिदा होने वाले को अपने लिए गायते शर्फ और इंतेहाई कमाले इंसानियत नहीं समझेगा _,"*
[6/1, 8:29 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हुब्बुल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम -४,*
*"_याद रखो के आयत जे़ल में इस राज़ का इंकशाफ किया है (सूरह तौबा:24):-*
 *"_ (तर्जुमा) सब लोगो को सुना दें कि अगर तुमको मां बाप बेटे बेटीं, बीवी व शोहर, क़ौम व कबीला और माल जो तुमने जमा किया है और तिजारत जिसके खसारे का तुमको डर लगा रहता है और वो महल जिनमे बसना तुमको अच्छा मालूम होता है वो सब ज़्यादा प्यारे हैं अल्लाह और रसूल से और उसकी राह में फिरने से तब तुम मुंतजिर रहो कि अल्लाह तुम्हारे लिए अपना कोई हुक्म दे _,"*

 *★_ इस आयत में जिन जिन शख्सियतों या चीज़ों का ज़िक्र किया गया है, उनकी मुहब्बत से इंसान के दिल को आम मिलान होता है और इसलिए रब्बुल आलमीन ने इन सबके साथ इंसानी मुहब्बत की नफी नहीं फरमाई और ना उनकी जुदाई की तालीम दी है,*

 *★_ यही राज़ सहिहीन में इस हदीस पाक में खोला गया है, अनस रजियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद नक़ल फरमाते हैं - "कोई शख्स तुममे से मोमिन नहीं बन सकता है जब तक रसूलल्लाह के साथ मां और बाप औलाद और बाक़ी सब शख्सो से बढ़ कर मुहब्बत ना हो _," (बुखारी -13, 14, 15 मुस्लिम - 169 नसाई- 5031, इब्ने माजा -66)*

 *★_ सही मुस्लिम में है :- "कोई मोमिन नहीं बन सकता जब तक मैं उसके अहल व माल से ज्यादा महबूब नहीं होता _" (बुखारी-15, मुस्लिम -168, नासा'ई- 5028, 5029, इब्ने माजा 67)*
 *"_ हमारा ऐतका़द ये है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ना सिर्फ मेहबूब बल्कि हबीब हैं, यानी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वो सिफ़ाते आलिया और फज़ाइल मुतकासिरा और महासिन जमीला और ना'वत रफीआ, जिन्होन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हबीबुल्ला और मेहबूबे खल्क़ुल्लाह बना दिया है, सबात व इस्तक़रार रखते और दवाम व बका़ से मुतमक्किन हैं, मैं चाहता हूं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के महासिन अखलाक और शरफे अफाल के अव्वल चंद नमूने पेश करुं और दिखाऊं कि ऐसी सिफात आलिया के मालिक से कौन शख्श मुहब्बत करना नहीं चाहता _,"*
[6/2, 6:23 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जोदो सखा का बयान :-*
 *"_ जंगे हुनैन में 6 हजार कैदी, 24 हजार ऊंट, 4 हजार बकरीयां, 4 हजार ओकिया चांदी गनीमत में हासिल हुई थी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में उनमे से एक चीज़ को भी नहीं छूआ, घर से जिस खैरो बरकत के साथ तशरीफ लाए थे , उसी तरह वापस गए_,"*

 *★_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी वफ़ात के बाद कोई सिक्का चाँदी या सोने का बकरी या ऊंट दुनिया में नहीं छोड़ा और ना किसी चीज़ की बाबत कोई वसियत ही फरमाई _," (अबू दाऊद 2863, बहीकी़ 2695, तम्हीद 215, शमाइल तिर्मिज़ी 406)*

 *★_ मा'ली बिन ज़ियाद ने हसन से रिवायत की है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक सवाली आया, फरमाया- बैठो अल्लाह देगा, फिर दूसरा आया, फिर तीसरा आया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबको बिठा लिया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास देने को उस वक्त कुछ ना था, इतने में एक शख्स आया और उसने 4 ओकिया चांदी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पेश की, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक एक ओकिया तो उन तीनो को तक़सीम कर दिया और एक ओकिया की बाबत पुकार भी दिया, मगर कोई लेने वाला न उठा _,"*

 *★_ रात हुई तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वो चांदी अपने सरहाने रख ली, हज़रत आएशा रज़ियाल्लाहु अन्हा ने देखा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नींद नहीं आती, उठते हैं और नमाज़ पढ़ने लगते हैं, फिर ज़रा लेट कर उठते हैं और नमाज़ पढ़ने लग जाते हैं, उम्मुल मोमिनीन आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने पुछा - हुजूर को आज कुछ तकलीफ है? फरमाया - नहीं, उन्होंने पुछा - तब कोई खास हुक्म अल्लाह का आया है जिसकी वजह से ये बेक़रारी है? फरमाया - नहीं, उम्मुल मोमिनीन रजियल्लाहु अन्हा ने कहा - फ़िर हुज़ूर आराम क्यू नहीं फ़रमाते ?*
 *"_ उस वक्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वो चाँदी निकाल कर दिखाई, फरमाया ये है जिसने मुझे बेक़रार कर रखा है, मुझे डर लगा कि मुबादा ये मेरे पास ही हो और मेरी मौत आ जाए _,"*
[6/3, 7:06 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है नबी ﷺ ने फरमाया - जो मुसलमान क़र्ज़ छोड़ कर मरेगा, मैं अदा करुंगा और जो मुसलमान वर्सा छोड मरेगा उसे उसके वारिस संभाल लेंगे _," (तिर्मिजी़- 2090, अबू दाउद 3343, नसाई- 1962)*

 *★_ जाबिर बिन अब्दुल्लाह सहाबी अंसारी रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है :- नबी करीम ﷺ से कभी किसी चीज़ का भी सवाल नहीं किया गया जिसके जवाब में हुजूर ने "ला" (नहीं) फरमाया हो _," (बुखारी 6034, मुस्लिम 2311 )*
 *"_ इस हदीस का मफ़हूम किसी ने यूं अदा किया है:- इन रिवायतो को देखो और इनके मा'ने में पर गौर करो, साबित हो जाएगा कि नबी ﷺ नेकियों में सबसे ज़्यादा सखावत वाले थे_,"*

 *★_ अदल व इंसाफ का बयान:-*
 *"_ नबी ﷺ की इस सिफत का ऐतराफ दुश्मन भी करते थे , रबिआ बिन खैसम रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि बैसत से पहले भी लोग अपने मुक़द्दमात को नबी ﷺ के हुज़ूर में फ़ैसले के लिए लाया करते थे, हज़रे असवद के नसब करने में जो झगड़ा कुरेश में हो गया था, उसका ज़िक्र पहले गुज़र चूका है, काबिले ज़िक्र ये है कि क़रार ये हुआ था कि जो कोई शख्स अब से सबसे पहले काबा में आए वही हकम क़रार पाए, नबी ﷺ आ निकले तो लोगों की खुशी व मसर्रत की कोई हद न थी और खुश हो कर पुकारते थे - "लो मुहम्मद आ आ गए, उनके फैसले पर तो हम सब ही खुश हैं _," (सीरत इब्ने हिशाम -1291, मुस्तद्रक हाकिम 1/458)*

 *★_ इंसाफ का यक़ीन हो तो ऐसा हो कि फैसला सुनने से पहले ही हर मुखालिफ उस फैसल पर रजामंदी का इज़हार करता है _,"*
 *"_ फ़ातिमा नामी एक औरत चोरी में माखूज़ हुई, ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने जिनसे हुज़ूर ﷺ निहायत मुहब्बत किया करते थे भोलेपन से उसकी सिफारीश कर दी, नाखुश हो गए और फरमाया कि तुम हुदूदे इलाही में सिफ़रिश करते हो देखो अगर फातिमा बिन्ते मुहम्मद भी ऐसा करती तो मैं वही फैसला करता जो इसके लिए करुंगा _," (बुखारी -3475, मुस्लिम -1688, अबू दाऊद 4373, तिर्मिज़ी 1430, इब्ने माजा 2547, दारमी 2302, अहमद -2/2162)*
[6/4, 7:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नजदत व शुजात का बयान:-*
 *"_ नजदत उस सिफात को कहते हैं कि मौत के सामने नज़र आने पर भी ऐतमाद क़ायम रहे, शुजात क़ुव्वत के उस कमाल को कहते हैं जो अक़ल को काबू में रखने से हासिल होती है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इन सिफात के मुताल्लिक बीसियो रिवायात और रावियों के मुशाहिदात मोजूद हैं, हजरत अली मुर्तजा रजियल्लाहु अन्हु के नाम और उनकी शुजात के बुलंद करनामो से कौन नावाक़िफ होगा, वही फरमाते हैं:-*
 *"_ जब घमसान का रण पड़ता और लडने वालो की आंखों में खून उतरा आता, उस वक्त हम नबी ﷺ की ओट लिया करते थे और हममे से सबसे आगे दुश्मन की जानिब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही होते थे _," (मुस्लिम -4616) )*

 *★_ जंग हुनैन में दुश्मनो ने पहाड़ के दर्रे में बैठ कर ऐसे तीर बरसाए कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की 12 हजार फौज का मुंह मोड दिया, किसी ने इस वाक़िए के मुताल्लिक बरा बिन आजिब रजियल्लाहु अन्हु से पुछा कि क्या तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को छोड कर भाग गए थे, तो बरा बिन आजिब रजियल्लाहु अन्हु ने कहा - हां, मगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम तो फिर भी ना भागे, मैंने देखा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सफ़ेद खच्चर पर चढ़े हुए हैं, अबू सूफियान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब हाशमी रजियल्लाहु अन्हु ने लगाम पकड रखी है और आप फरमा रहे हैं "मैं नबी हुं मैं झूठ नहीं कहता _," (बुखारी 4317, मुस्लिम 4615, 4616)*

 *★_ इस वाक़िए के मुताल्लिक अब्बास रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत है, "_ मुसलमान पीठ फैर कर भाग गए उस वक्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खच्चर को ऐड लगाने और दुश्मन की जानिब बढ़ाने लगे, मैने लगाम और अबू सूफियान ने रकाब पकड़ ली , इस इरादे से कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आगे बढ़ने से रोक दें _," (बुखारी 4315, मुस्लिम 4612- 4616)*

 *★_ ये शुजात की गायतुल गायत है कि जिस शख़्स के सामने 12 हज़ार फ़ौज भाग रही है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके मुक़ाबले के लिए अपनी सवारी को ले जा रहे हैं और जब अहले बेत के दो शक्स उम्म और इब्नुल उम्म ने सवारी को रोक लिया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदल ही आगे बढ़ने को है_,"*
[6/5, 8:41 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सहीहीन में अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मदीना में एक रात शोरगुल सा हुआ, लोग समझे छापा आ पड़ा, सब लोग मिलकर आबादी से बाहर उस शोर की तरफ को चले, आगे चले तो उन्हे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वापस होते हुए मिले, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घोड़े पर सवार और तलवार हमाइल किए हुए थे, यानी आवाज़ सुन कर सबसे पहले और तने तन्हा तफ्तीश को तशरीफ ले गए थे और हमें फरमा रहे थे - डरो नहीं, डरो नहीं -" (बुखारी 2627, मुस्लिम - 2307, अबू दाऊद 4988, तिर्मिज़ी 1685)*

 *★_ क़ार'ईन को बैते उक़बा की बुनियादी मुलाक़ात का वक़िया तो याद ही होगा कि रात का अंधेरा और मंज़िल पर खतरों के खौफ़ से एक क़फ़िला पहाड़ की घांटी में पनाह लेने पर मजबूर हो जाता है और आबादी तक पहुंचने की जुर्रत नहीं करता और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिनकी जान का दुश्मन मक्का का एक एक शख्स था ऐसे वक्त और ऐसे मुक़ाम में इसलिये चक्कर लगा रहे हैं कि शायद किसी राह से भटके और ज़लालत को हिदायत फरमा सकें _,"*

 *★_ तमाम दुनिया के मुक़ाबिल सच्चे उसूल की इशा'त के लिए खड़े होना और एक ऐसे मुल्क में जहां खूंरेजी व सफा ( खून बहाने वालो) की ही हुकुमत थी, हर एक को मज़हबी ज़लालत का ऐलान करना, किसरा व कैसर व हब्शा के हुक्मरानो की परवाह न करना शुजा'त और क़ुव्वते क़ल्ब का बेहतरीन नमूना दिखाता है जिसकी नज़ीर तारीख में मिलनी मुश्किल है _,"*
[6/6, 6:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तवाज़ो का बयान:-*
 *"_ मसकनत व तवाज़ो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सिफ़त लाज़िम थी, तवाज़ो ही थी के खच्चर और हिमार (गधा) पर सवारी फरमाते, दूसरे को साथ सवार कर लेते, मिस्कीनो, गरीबों की इयादत फरमाते, फुक़रा के बराबर जा बैठते, सहाबा के दरमियान मिल जूल कर बेठ जाते, अपनी नाशिस्त के लिए ना जानिब सदर की जरूरत समझते न कोई इम्तियाजी निशान बनाते, गुलामों और खादिमो के साथ बेठ कर खाना खा लेते, बाज़ार से सौदा को खरीद कर और खुद उठा कर ले आते, अपने जानवर को चारा डालते, ऊंट की ज़ानु बंदी कर देते , घर के छोटे छोटे काम काज अपने हाथ ही से किया करते थे, जब हज़ारों जांनिसार ऐसी खिदमत सर अंजाम देने को अपनी स'आदत समझने वाले और आमादा भी होते है_,"*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज को तशरीफ ले गए, मैंने देखा कि जो चादर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊपर थी उसकी क़ीमत चार दिरहम से ज़्यादा ना होगी _,"*

*★_ यहूद बनु कु़रेजा की जानिब तशरीफ ले गए तो उस रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिमार (गधे) पर सवार थे जिसकी बाग खजूर के पट्टे की रस्सी से बनी हुई थी और उसकी पुश्त पर सिर्फ खजूर की सफ पड़ी हुई थी,*

*★_ अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक दुकान से पजामा ख़रीदा, उठने लगे तो दुकानदार ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ पर बोसा देना चाहा, हुज़ूर ﷺ ने हाथ को झट पीछे हटा लिया और ज़ुबान मुबारक से फरमाया - ये तो अज़मी लोग अपने बादशाहो के साथ करते हैं, मैं बादशाह नहीं हूं, मैं तुमही से एक हूं _,"*
[6/7, 5:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हया का बयान:-*
 *"_ अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परदा नशीन कुंवारी लड़की से भी ज्यादा शर्मिले थे, कोई मकरूह चीज़ देख लेते तो जुबान से कुछ ना फरमाते, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर कराहत के आसार नुमाया हो जाते _," (बुखारी - 3562, मुस्लिम - 2320, इब्ने माजा 4180)*

 *★_ इसी सिफ्ते हया का असर था कि किसी को रूबरू किसी ऐब के मुतालिक़ कुछ ना फरमाते, हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत है:- एक शख्स आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की ख़िदमत में ज़फ़रान का रंग मिले हुए आया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदत मुबारक थी कि किसी के सामने ऐसी बात ना कहा करते थे जिसे वो ना पसंद करता हो, जब वो चला गया तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगो से फरमाया काश तुम इसे कह देते कि वो इस रंग को छोड़ दे _," (शमाइल तिर्मिज़ी -184, 345, हामिश अल मवाहिब -173)*

 *★_ बाज़ औका़त लोगो के तूल कलामी से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थक जाते या ज़्यादा बेठे रहने की वजह से मजबूर हो जाते तब भी हया की वजह से खुद तकलीफ उठाते और उनसे कुछ न फरमाते _,"*
[6/8, 8:53 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शफक़क़त व राफत (रहमत) का बयान:-*

 *"_ एक गंवार आया, उसने सवाल किया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे दे दिया और पुछा कि ठीक है, वो बोला नहीं तुमने मेरे साथ कुछ भी सुलूक नहीं किया, सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ये सुन कर बेताबाना उसकी तरफ उठे, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इशारा किया कि रुक जाओ, फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर तशरीफ ले गए और घर से ला कर और भी कुछ दिया, वो शख्स खुश हो कर दुआ देने लगा _,"*

 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- तेरा पहला कलाम मेरे असहाब को नगवार गुज़रा था, क्या तुम पसंद करते हो कि उनके सामने भी उस तरह कह दो जिस तरह अब मेरे सामने कह रहे हो ताकि उनके दिल भी तेरी तरफ से साफ हो जाएं, वो बोला हां, मैं कह दूंगा, फिर अगले दिन या शाम ही वो गंवार गया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम से फरमाया कि अब ये मुझसे खुश है, क्यूं ठीक है ना, वो बोला हां, और फिर दुआ दी _,"*

 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया एक शख्स की ऊंटनी भाग गई, लोग उसके पीछे दौड़े, वो आगे ही आगे भागती रही, मालिक बोला तुम सब ठहर जाओ, मेरी ऊंटनी है और मैं ही उसे समझ सकता हूं', लोग हट गए, उंटनी घांस पाट खाने में लग गई, मालिक ने आगे जा कर उसे जा पकड़ा और काठी डाल दी, मेरी और उस गंवार की मिसाल ऐसी ही थी, अगर तुम उसे उस हालत पर क़त्ल का कर देते तो बेचारा जहन्नम में जाता_," (किताबुल शिफा- 55)*

 *★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ की थी कि ए अल्लाह मेरी इस अर्ज़ को मज़बूत अहद समझा जाये कि अगर मैं किसी शख़्स को अज़ राह बशीरत बद दुआ दे भी बेठूं तो मेरी उस बद दुआ को भी उसके हक में रहमत व बरकत और ज़कात व तकर्रूब बना देना _," (बुखारी- 11/205, मुस्लिम -2601)*

*★_ इमाम अहमद व तबरानी ने रिवायत की है कि एक शख्स को गिरफ्तार कर के नबी ﷺ के सामने पेश किया गया और अरज़ किया गया कि ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कत्ल का इरादा करता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे तसल्ली दे कर फरमाया कि तुम इस इलज़ाम से ना ड़रो (फ़िर उसे रिहा कर के ये भी फरमाया कि) अगर तेरा इरादा भी होगा तो तू क़ाबू ना पा सकेगा_," ( किताबुल शिफ़ा -40, नासा'ई- 10903, अहमद -3/471)*
[6/9, 8:23 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अफू व करम ;-*
 *"_ अफू की सूरत उस वक्त मुहक़िक़ होती है कि जुर्म साबित हो और मुजरिम को सज़ा देने की ताक़त हासिल हो फिर भी माफ़ी दी जाए, करम के माने में दाद व दबिश या इज्ज़त अफजा़ई की सूरत शामिल हैं, अफू के बगेर भी पाई जाती है और अफू के साथ भी उस वक्त इसकी शान और भी ज़्याद नुमाया हो जाती है, नबी ﷺ के अफू तक़सीर के साथ उमुमन करम भी पाया जाता था _,"*

 *★_ सहीहीन में हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक आरबी आया, हुज़ूर ﷺ की चादर को ज़ोर से खींचा, चादर का किनारा हुज़ूर की गर्दन में ग़ब गया और निशान पड़ गया, वो आराबी बोला मुहम्मद ﷺ मेरे दो ऊंट है उनकी लाद का कुछ सामान मुझे भी दो, क्योंकि जो माल तेरे पास है वो ना तेरा है, न तेरे बाप का, नबी ﷺ चुप हो गए, फिर फरमाया- माल तो अल्लाह का है और मैं उसका बंदा हुं _,"*
 *"_ फिर पुछा - जो बरताव तुमने मुझसे किया तुम उस पर डरते नहीं हो? आराबी बोला - नहीं, पुछा -क्यूं ? वो बोला- मुझे मालूम है कि आप बुराई के बदले बुराई नहीं किया करते, नबी ﷺ हंस दिए और हुक्म दिया कि एक ऊंट के बोझ के जौ एक की खजूरें दी जाये _," (बुखारी -3149, मुस्लिम -1057)*

 *★_ हुज़ूर ﷺ ने ज़ैद बिन साना यहूदी का क़र्ज़ देना था, वो तकाज़ा करने के लिए आया, हुज़ूर ﷺ के कांधे की चादर उतार ली और कुर्ता पकड़ कर सख्ती से बोला कि अब्दुल मुत्तलिब की औलाद बड़ी नादहिंदा है, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे झिड़का और सख्ती से जवाब दिया, नबी ﷺ तबस्सुम फरमाते रहे, उसके बाद उमर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया - उमर! तुमको मुझसे और उससे और तरह का बरताव करना था, तुम मुझे कहते कि अदायगी होनी चाहिए और उसे सिखाते कि तकाज़ा अच्छे लफ़्ज़ों में करना चाहिए _,"*

 *★_ फिर ज़ैद को मुखातिब करके फरमाया - अभी तो वादा में तीन दिन बाक़ी हैं, फिर उमर फारूक़ रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया, जाओ इसका क़र्ज़ अदा करो और बीस (20) सा ज्यादा भी देना, क्योंकि तुमने उसे झिड़का भी था _," (रवाह बह्यकी़ -45)*

*★_ वाज़े हो के वज़न सा हमारे 80 रूपया तोला सेर के हिसाब से दो सेर साढ़े तीन छटाक का होता है, यही वक़िया ज़ैद बिन साना के इस्लाम का मोजिब हुआ, उसने सुना था कि नबी मौऊद का इल्म हर जहालत पर साबिक़ होगा और शिद्दते जहल उसके इल्म की अफजा़ई का सबब होगी, इसी पेशन गोई की आज़माइश के लिए जैद बिन साना ने ये हरकत की थी _," (कंजुल उम्माल -15050, मुस्तद्रक हाकिम -2237, मजमा अज़ ज़वाइद--2398, बह़ीकी -6/52)*
[6/10, 6:34 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि कोहे तन'ईम से 80 शख्स ये इरादा कर के उतरे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल कर दें (हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दामने कोह में उतरे हुए थे उन्होने अपने काम के लिए नमाज़े सुबह का वक़्त इंतखाब किया था) जिसमे नबी करीम ﷺ लंबी क़िरत पढ़ा करते थे, वो आए और पकड़े गए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबको छोड दिया _," (मुस्लिम 1679, अबू दाऊद 2688, तिर्मिज़ी 3264, अहमद 1243)*

 *★_ अबू सुफियान बिन हर्ब वो शख्स था जिसने उहद, अहजा़ब वगेरह में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर फौज कशी की थी, वो इस्लाम लाने से पहले जंग के दिनो के दौरान गिरफ्तार हो गया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निहायत मेहरबानी से उससे कलाम फरमाया- अफसोस! अबू सूफियान अभी वक्त नहीं हुआ कि तुम इतनी बात समझ जाओ कि अल्लाह के सिवा और कोई भी इबादत के लायक़ नहीं _,"*
 *"_ अबू सुफियान बोला - मेरे मां बाप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुर्बान, आप कितने बुर्दबार, कितने क़राबत का हक़ अदा करने वाले और किस क़दर दुश्मनो पर अफु व करम करने वाले हैं _," (कंजुल उम्माल 1436, अल -शिफा 2291, मजमा अज़ ज़वायद- 6/166)*

 *★_ ज़ैनब बिन्ते अल हारिस बिन सलाम ख़ैबर की यहूदिया ने गोश्त में ज़हर डाल कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खिलाया, उसने इक़बाले जुर्म भी कर लिया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर भी उसे माफ़ फरमा दिया _," (बुखारी-2617, 5777)*
[6/11, 8:22 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ज़ुहद फ़ि- अल दुनिया:-*
 *"_ वक़ियात ज़ुहद के बयान में मैंने उस ज़माने के हालात को लिया है जब नबी ﷺ का हुक्म तमाम अरब में नाफ़िज़ था, जब बहरेन से हब्शा तक हुज़ूर ﷺ का कलमा पढ़ा जाता था, ताकी मालूम हो जाए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जुहद इज़्तरारी न था बल्की अख्त्यारी था, इसका सबब लाचारी न था बल्की फितरी था_,*

*★_ उम्मुल मोमिनीन आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती है: - नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी भी शिकम सेर हो कर नहीं खाया और कभी फाका़ का शिकवा किसी से नहीं फरमाया, नादारी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ग़िना से ज्यादा प्यारी थी, कभी ऐसा भी होता कि भूख की वजह से रात भर नींद नहीं आई मगर अगले दिन का रोज़ा फिर रख लेते थे, अगर हुजूर चाहते तो अल्लाह ताला खजा़इन अर्ध (जमीन के खज़ानों) की कुंजियां और समरात व तम'आत की जिंदगी की अफजा़इश सब ही अता फ़रमा देता _,"*

*"_ मैं हुजूर सल्लल्लाहु की फाका़ की हालत देख कर रो पड़ा करती, अपना हाथ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पेट पर मला करती (फाका़ केसा दब गया) और कहा करती, वारी जाऊं! दुनिया में से इतना ही क़ुबूल कर लीजिए जो जिस्मानी ताक़त को क़ायम रखने को काफ़ी हो, तो जवाब में फ़रमा देते, "आयशा! मुझे दुनिया से क्या काम, मेरे भाई उलुल अज़्म रसूल तो इससे भी ज़्यादा हालत पर सब्र किया करते थे, वो उस चाल पर चले और अल्लाह के सामने गए, अल्लाह ने उनको इकराम किया और उनको पूरा पूरा सवाब दिया, अब अगर मैं आसूदगी की जिंदगी को पसंद करता हूं तो मुझे ये भी शर्म आती है कि कल को उनसे कम रह जाउं, देखो मुझे तो जो चीज़ सबसे ज्यादा प्यारी है वो ये है कि अपने भाईयों और खलीलो से जा मिलुं _," (किताबुल शिफ़ा-1063, अख़लाक़ अल नबुवत -268)*

*★_ हज़रत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि इस गुफ्तगु के बाद हुजूर सिर्फ एक ही महीना तक रोनक़ अफ़रोज़ ए आलम रहे और फिर रफीक ए आला से जा मिले _,"*
[6/12, 7:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आम अख़लाक़:-*
 *"_ उम्मुल मोमिनीन खदीजतुल कुबरा रजियल्लाहु अन्हा की शहादत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नबुवत से पहले के अख़लाक़ की बाबत 15 साला तजुर्बा ये है :-*
 *"_ आप क़राबतो से सुलूक करने वाले हैं, दर मांदों को सवारी देने वाले, नादारो को सरमाया देने वाले, मेहमानों की ख़िदमत करने वाले, मुसीबत ज़दो की इआनात फरमाने वाले _," ( बुखारी - 4956, मुस्लिम - 253, 160, अहमद - 6/232, 233)*

 *★_ बेहिक़ी ने अबू क़तादा से रिवायत की है कि नजाशी का वफ़द आया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नफ़ीस नफ़ीस उनकी आसा'इश का अहतमाम फरमाते थे, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया कि ख़िदमत के लिए हम हाज़िर हैं, फरमाया - हा' ! मगर इन लोगो ने हब्शा में मेरे सहाबा की इज्ज़त की थी, इसलिये मैं चाहता हूं कि खुद ही उनकी ज़रुरत को पूरा करुं _," (दलाइल अल- नबुवत 27/307, अत्तहाफ अल सा'दत- 7/102)*

 *★_ अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैने दस साल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत की, इस अर्से के दौरान मुझे कभी हश्त तक नहीं की, मैंने कोई काम कर लिया तो यह ना फरमाया कि क्यूं किया ? कोई काम ना किया तो ये न पुछा कि क्यूं न किया_," (बुखारी-6038, मुस्लिम -2309, तिर्मिज़ी -2015)*

 *★_ हुजूर ﷺ ने मुझे एक काम के लिए फरमाया, मैंने कहा में नहीं जाता, मेरे दिल में ये था कि मैं जाउंगा, मैं वहां से निकला तो लड़कों के साथ खेल में लग गया , (आगाज़े खिदमत के वक्त हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु की उमर 8 साल थी) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी वहां आ गए, मेरी गर्दन पर हाथ रखा, मैंने लौट कर देखा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हॅस रहे थे और फरमाया - प्यारे अनस! अब तो उस काम को जाओ, मैंने अर्ज़ किया - हां मैं अब जाता हूं _," (मुस्लिम- 2309, 2310, तिर्मिज़ी- 2015)*
[6/13, 7:07 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबी ﷺ अक्सर खामोश रहा करते थे, बिला ज़रुरत नहीं बोला करते थे, जब बोलते थे तो बात का कोई ज़रुरी जुज़ बाक़ी ना रह जाता था और कोई फ़िज़ूल लफ़्ज़ इस्तेमाल ना होता था, हुज़ूर ﷺ की मजलिस हिल्म व हया व खैर व अमानत की मजलिस होती थी, तबस्सुम ही हुजूर ﷺ का हंसना था, असहाब भी हुजूर ﷺ के सामने तबस्सुम ही पर इक्तफा करते थे _," (शिफा -11)*

 *★_ हुज़ूर ﷺ की रास्त गोई (सच और साफ बोलना) ऐसी मुस्लमा (मानने के का़बिल) थी कि नज़र बिन हारिस जेसा जानी दुश्मन एक दिन कुरेश से कहने लगा कि मुहम्मद ﷺ बचपन ही से तुममें सबसे ज़्यादा पसंदीदा सबसे ज़्यादा सच्चे, सबसे बड़ कर अमानतदार माने जाते थे, अब जो उनकी ढाडी के बाल पक गए और उन्होंने अपनी तालीम तुम्हारे सामने पेश की तो तुमने कह दिया कि वो साहिर है, नहीं नहीं, अल्लाह की क़सम! वो साहिर तो नहीं है _," (अल शिफ़ा -60)*

*★_ खुलासा कलाम ये है कि क्या ऐसे अखलाक़ फाज़िला का हादी ऐसे महासिन जमीला का मालिक, ऐसे अशरफ अक़वाल का साहिब, ऐसे जमीलुल सुजाया का मुतहमिल ऐसा है कि उससे मुहब्बत की जाए? या ऐसा है कि उससे मुहब्बत ना की जाए? मैं तो यही कहुंगा कि जो कोई भी ऐसे मुहम्मद , ऐसे क़ाबिले तारीफ, ऐसे मेहमूद, ऐसे वजूद बा जूद ऐसे मुस्तफा, एसे बरगुजिदा से मुहब्बत नहीं करता, फिल हक़ीक़त उन जमीला अखलाक़ व सिफात से मुहब्बत नहीं रखता और इसलिए वह खुद भी अख़लाक़ व सिफात से मुत्तसिफ होने की सलाहियत नहीं रखता _," (अल्लाह ना करे)*

 *★_ आओ! हम सब मुहब्बत करें और मुहब्बत करना उनसे सीखें, जिनको अल्लाह ने खुद अपने प्यारे की मुहब्बत व सोहबत के लिए चुन लिया था, ये याद रखना चाहिए कि मुहब्बत ही अदब व तोकी़र सिखाती है और मुहब्बत ही इत्तेबा व इता'त पर आमादा करती है, ताज़ीम वही है जिसका मनशा मुहब्बत हो और इकराम वही इकराम है जिसका मुबदा (असल, बुनियाद) मुहब्बत हो _,"*
[6/15, 7:03 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ उरवाह बिन मसूद सक़फी को कुरेश ने हुदेबिया से पहले सफीर बना कर हुजूर आली सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में रवाना किया था, उसे समझाया गया था कि मुसलमानो के हालात को ज़रा गोर से देखे और क़ौम को आ कर बताए, उरवाह ने देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वज़ू करते हैं तो बक़िया वज़ू के पानी पर सहाबा यूं गिरे पड़ते हैं गोया अभी लड़ पड़ेंगे, हुज़ूर ﷺ के लुआब वगेरा को ज़मीन पर नहीं गिरने देते, वो किसी न किसी के हाथ पर ही रोक लिया जाता है , जिस वो मुंह पर मल लेते हैं, हुज़ूर ﷺ कोई हुक्म देते हैं तो तामील के लिए सब दौड़ पड़ते हैं, हुज़ूर ﷺ कुछ बोलते हैं तो सब चुप चाप हो जाते हैं _,"*

*★_ ताज़ीम का ये हाल देखा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब आंख उठा कर नहीं देखते, उरवाह ने ये सब कुछ देखा और क़ौम से आ कर बयान किया, लोगो मैंने किसरा का दरबार भी देखा और कैसर का दरबार भी, नजाशी का दरबार भी देखा, मगर असहाब ए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम जो ताज़ीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की करते है, वो किसी बादशाह को भी अपने दरबार और मुल्क में हासिल नहीं _," (बुखारी- 189, 4328)*

*★_ ज़ैद बिन वसना रज़ियल्लाहु अन्हु को क़ुरेश जब सूली देने के लिए ले चले तो अबू सूफ़ियान बिन हर्ब ने उनसे कहा - ज़ैद तुझे अल्लाह ही की क़सम तुम चाहते हो? कि मुहम्मद ﷺ को फाँसी दी जाती और तुम अपने घर में आराम से होते, ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - अल्लाह की क़सम मैं तो ये नहीं चाहता कि मेरी रिहाई के बदले नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पांव मुबारक में अपने घर के अंदर भी काँटा लगे _,"*
 *"_ अबू सूफियान हैरान रह गया और यूं कहा कि मैंने तो किसी को भी ना देखा जो दूसरे शख्स से ऐसी मुहब्बत रखता हो, जेसे असहाब ए मुहम्मद ﷺ को मुहम्मद ﷺ से है _,"*
[6/16, 5:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब्दुल्ला बिन यज़ीद सहाबी का ज़िक्र है, उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे अहल व माल से ज़्यादा प्यारे हैं, जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे याद आते हैं तो मैं घर में टिक नहीं सकता, आता हूं और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख कर तसल्ली पाता हूं, मगर मैं अपनी मौत और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मौत का तसव्वुर करके कहता हूं कि हुजूर ﷺ तो फिरदौस बरी में अंबिया के बुलंद दर्जे पर होंगे', मैं अगर बहिश्त में पहूँचा भी तो किसी अदना मुक़ाम में हुंगा और वहां हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार ना पा सकुंगा _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें ये आयत पढ़ कर सुनायी और उनके क़ल्ब को सकीना और फरमाया:-*
 *"_ (तर्जुमा) जो कोई अल्लाह और रसूल की इता'त करता है वो उन लोगो के साथ होगा जिन पर अल्लाह का इनाम हुआ _,"*

*★_ एक और सहाबी का ज़िक्र है, वो नबी ﷺ ख़िदमत में आते तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही की जानिब ताक लगाए देखते रहते, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुछा ये क्या बात है, वो बोले मैं समझता हुं कि दुनिया ही मे दीदार की बहार लूट लूं, आखिरत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुक़ामे रफ़ी'आ तक तो हमारी रसाई ना होगी, इस वाक़िए पर अल्लाह तआला ने आयते बाला_ (तर्जुमा) जो कोई अल्लाह और रसूल की इता'त करता है वो उन लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह का इन'आम हुआ) को नाज़िल फरमाया _," (तफ़सीर तिबरी - 8/235)*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हदीस अनस रजियल्लाहु अन्हु में साफ ही फरमा दिया, जो कोई मुझसे मुहब्बत रखता है, वो मेरे साथ होगा _,"*
*"_ इस हदीस की इब्तिदा में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे फरमाया अगर तू ऐसी सुबह व शाम में जिंदगी बसर करता है कि तेरे दिल में किसी का कीना न हो, तू जरूर ऐसा ही कर, फिर फरमाया - यही मेरी रविश (तरीक़ा) है, जिसने मेरी रविश को ज़िंदा किया उसने मुझसे मुहब्बत की _," (रवाह तिर्मिज़ी)*
[6/17, 5:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जंगे उहद का ज़िक्र है, एक औरत का बेटा, भाई, शोहर क़त्ल हो गए थे, वो मदीना से निकल कर मैदाने जंग में आई, उसने पूछा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम केसे हैं, लोगो ने कहा - अल्हम्दुलिल्लाह वो बा ख़ैरियत हैं, जैसा कि तू चाहती है, बोली- नहीं, मुझे दिखा दो कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख लूं, जब उसकी निगाह चेहरा मुबारक पर पड़ी तो वो जोशे दिल से बोल उठी, आप ज़िंदा है तो अब हर मुसिबत की बर्दाश्त आसान है _," (ज़रकानी -6/290, ये खातून हिंद जो़जा अमर् बिन अल जमू अंसारिया है)*

*★_ अमरु बिन आस रजियल्लाहु अन्हु ये कहते हैं कि रसूलल्लाह से बढ़ कर मुझे कोई भी प्यारा न था मगर मेरे दिल में हुज़ूर का जलाल इस क़दर था कि मैं आंख भर कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ना देख सकता था _,"*

*★"_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असहाब मुहाजिरीन व अंसार बेठे हुए होते, उनमे अबू बकर व उमर रजियल्लाहु अन्हुम भी होते, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर तशरीफ़ लाते तो कोई भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जानिब निगाह बुलंद ना करता, हां अबू बकर व उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम देखा करते, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनको देखा करते, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तबस्सुम फरमाते और वो भी तबस्सुम फरमाते होते थे _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुलेह हुदेबिया के मौके़ पर उस्मान गनी रजियल्लाहु अन्हु को मक्का में अपना सफीर बना कर भेजा, कुरेश ने कहा तुम बैतुल हराम में आ गए हो, तवाफ कर लो, जवाब दिया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले मैं भी तवाफ ना करुंगा _,"*

*★_ अली मुर्तज़ा करमुल्लाहु वजहु से किसी ने पुछा कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ तुम्हारी मुहब्बत केसी होती थी, फरमाया- बा खुदा! नबी ﷺ हम को माल व औलाद से, फरजंद व मादर से ज़्यादा महबूब और इससे ज्यादा प्यारे थे जैसा ठंडा पानी प्यासे को होता है _,"*
[6/18, 8:08 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जज़्बात ए मुहब्बत को देखना हो तो उस वक़्त देख जब कोई सहाबी नबी ﷺ का ज़िक्र करता हो, हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं - रसूलुल्लाह ﷺ ख़ुश ख़लकी़ में सब लोगो से बढ़े हुए थे, मैंने रेशम का दबीज़ या बारीक कपड़ा या कोई और चीज़ ऐसी नहीं छुई जो नबी ﷺ की हथेली से ज़्यादा नरम हो, मैंने कभी कोई कस्तूरी या कोई अतर ऐसा नहीं सूंघा जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पसीने से ज़्यादा खुशबू वाला हो_,"*

 *★"_ जाबिर बिन समरा रजियल्लाहु अन्हु से किसी शख्स ने पुछा कि क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा तलवार जैसा चमकता था तो बोल उठे :-*
 *"_ नहीं नहीं हुजूर ﷺ का चेहरा तो आफताब व महताब जैसा था _," (बुखारी -3552, दारमी - 64, दलाइल अल-नबुवत -1/269)*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं:- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रंग सफ़ेद रोशन था, पसीने की कोई बून्द हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर ऐसी नज़र आती थी जैसे मोती _," (बुख़ारी-3561, मज़्मा अज़ ज़वाइद-8/280)*

 *★_ जाबिर बिन समरा रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं नबी ﷺ मस्जिद से निकल कर घर को चले तो बच्चों ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को घेर लिया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर एक को प्यार देते, उनके मुंह पर हाथ फैरते थे, मेरे रुखसार पर भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ रखा, मुझे थंडक सी पड़ गई और ऐसी खुशबू आई गोया वो हाथ अभी जूए अतार से निकाला गया था_," ( बुखारी -3553, मुस्लिम 6052, मिशकात- 5789)*
[6/19, 8:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अली मुर्तजा़ रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं-जो कोई यकायक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आ जाता वो दहल जाता, जो पहचान कर पास आ बेठता वो शैदा हो जाता, देखने वाला कहा करता कि मैंने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जैसा कोई भी इससे पहले या पीछे नहीं देखा _," (तिर्मिज़ी - 3647, दलाइल अन-नबुवत - 2691)*

*★_ रबी'आ बिन्त माउज़ रज़ियल्लाहु अन्हा सहाबिया हैं, उनसे अम्मार बिन यासिर के पोते ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कुछ हुलिया बयान फरमाएं, उन्होंने फरमाया - अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख लेता तो समझता कि सूरज निकल आया _,"( दारमी -60, मजमा अज़ ज़वाइद- 8/280)*

*★_ जाबिर बिन समरा रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं - चांद रात थी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुर्ख रंग की चादर ओढे लेट रहे थे, मैं कभी चांद को देखता था कभी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर निगाह डालता था, बिल आखिर मैंने तो यही समझा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चाँद से ज़्यादा खुशनुमा हैं _," (शमाइल तिर्मिज़ी 10, दारमी 57, तिर्मिज़ी 2811)*

*★_ उम्मे सुलेम रजियल्लाहु अन्हा जो अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु की वाल्दा है, एक नेक माई है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी कभी दोपहर को उनके घर सोते, बिस्तर चमड़े का था, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पसीना आया करता था, उम्मे सुलेम रजियल्लाहु अन्हा पसीने की बूंदो को जमा कर लेती और शीशी में बा अहतयात रख लेती थी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको ऐसा करता देखा तो पुछा तो उन्होंने कहा - हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पसीना है, हम इसे अत्र में मिला लेंगी और यह सब अत्रो से बढ़ कर अत्र है _," (बुखारी - 6281, मुस्लिम - 6055)*
[6/20, 7:09 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सहाबा किरम रजियाशल्लाहु अन्हुम समझे हुए थे कि मुहब्बत सिर्फ इमा ए लफ्जी़ से साबित नहीं हो सकती, वदूदुल गफूर ने भी उन लोगो को जो अल्लाह से मुहब्बत का दावा रखते थे, साफ तोर पर फरमा दिया था कि अगर अल्लाह से मुहब्बत है तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इत्तेबा करो _,"*

*★_ इसलिये सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने इत्तेबा ए रसूल ﷺ में वो वो काम किए जो हज़ारो साल तक इस्लाम की सदाक़त और सहाबा किराम के खुलूस और मोहब्बते नबी ﷺ के सही मा'नी के मफ़हूम ज़ाहिर करते रहेंगे _,*

*★_ सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम के हालात से वाज़े होता है कि वो नबी ﷺ का अदब और तोकी़र व ताज़ीम क्यूं कर किया करते थे, मुगीरा की रिवायत में है कि अगर किसी सहाबी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दर ए दौलत पर दस्तक की भी ज़रूरत पड़ा करती तो वो अपने नाखूनो के साथ दरवाज़ा खटखटाया करते थे,*
 *"_ कोई सहाबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने के सामने ऐसी आवाज़ से न बोलता कि उसकी आवाज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आवाज़ से ऊंची होती, इस अदब की तालीम खुद रब ए बरतर ने दी थी :- "ऐ ईमान वालो! अपनी आवाज़ को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आवाज़ से बुलंद न करो _," (सूरह अल हुजरात -2)*

*★_ मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक अलामत ये है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र ए खैर जुबान पर अक्सर जारी रहे, हदीस पाक में है: जिस किसी को कोई चीज़ प्यारी होती है वो उसका ज़िक्र अक्सर किया करता है _,"*
[6/21, 9:17 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक अलामत ये है कि आल ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ सच्चे दिल और शफ्फाफ क़ल्ब से मुहब्बत हो,*

*★_ हजरत उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु के हालात में है कि जब वो सहाबा किराम के रोज़ीने मुकर्रर करने लगे थे तो अब्दुल्ला बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु (अपने फ़र्ज़ंद) का रोज़ीना तीन हज़ार मुकर्रर किया और ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु का तीन हज़ार पांच सौ सालाना, अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को कौनसी फ़ज़ीलत हासिल है, वो किसी गज़वे में मेरी तरह हाज़िर नहीं रहा, फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: - उसका बाप तेरे बाप (उमर रज़ियल्लाहु) से और। वो खुद मुझसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को ज्यादा प्यारे थे, इसलिये मैंने अपने प्यारे पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्यारे को तरजीह दी है_," (तिर्मिज़ी -3813, किताबुल खराज अबू यूसुफ -24-25)*

*★_ इमामैन शहीदैन हसनैन रजियल्लाहु अन्हुम और उनके अबवीन तैयबीन की मुहब्बत ऐन मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है, उनके फज़ाइल याद रखना, बयान करना, उनके असवा ए हसना पर अमल करना ऐन मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है।*

*★_ मुहाजिरीन व अंसार रजियल्लाहु अन्हुम से जिनके औसाफ कुरान मजीद व हदीस पाक में बा कसरत मोजूद हैं, मुहब्बत रखना मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है, इत्तिबा ए सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम और मुताब'त ए सुन्नत खुलफा ए राशिदीन रज़ियल्लाहु अन्हुम ऐन मुहब्बत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है _,"*
[6/22, 7:01 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ख़ुसुसियात नबविया अज़ अहादीस ए मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम :-*
*"_सहीहीन में जाबिर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया- मुझे पांच ऐसी चीजें दी गई हैं जो मुझसे पहले किसी को नहीं मिली,*
*"(1)_ अभी एक माह की मुसाफत हो कि दुश्मन पर मेरा रौब तारी हो जाता है,*
*"(2)_ सारी ज़मीन मेरे लिए मस्जिद और पाकीज़ा बना दी गई है जो जहां चाहे नमाज़ पढ़ सकता है,*
*"(3)_ गनीमत का माल मेरे लिए हलाल कर दिया गया है जो पहले किसी पर हलाल नहीं था,*
*"(4)_ मुझे शफ़ा'अत का हक़ दिया गया है,*
*"(5)_ पहले नबी अपनी कौम के लिए खास हुआ करते थे मगर मैं सारी दुनिया के लिए नबी हो कर आया हूं_," (बुखारी -335, मुस्लिम -1163, नसाई-430, 735 )*

*★_(1)_ नुसरत बिल रौब:- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के 23 साला अहदे नबुवत पर नज़र डालो, सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबलीग व दावत के लिए शहर मक्का के अंदर और आबादी मक्का से बाहर अकेले तने तन्हा रात हो या दिन तशरीफ ले जाया करते थे, मगर किसी शख्स को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमला करने का हौसला नहीं हुआ _,"*

*★"_ मंडीयों और मेलों में जहां हज़ारों लोग और पचासों मुख्तलिफ क़बीलो का इज्तिमा हुआ करता था, हुजूर ﷺ जाते और कलमा तोहीद का ऐलान फरमाते, मक्का से दूर दराज कबीलों में जो खुशूनत अखलाक (सख्त) खूंरेजी व बेबाकी में बहुत ज़्यादा मशहूर थे, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तबलीग के लिए कई चक्कर लगाये, इस सफर में अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के सिवा और कोई भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ न होता था, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर जगह दावत फरमाते, हर एक पर हुज्जत इलाहिया खत्म करते और कोई भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने बर सरे पैकार ना आता,*

*★_ आगाज़े सफ़रे हिजरत से तीन रोज़ पहले एक एक कबीले का बहादुर दुश्मनों ने जमा कर लिया था, उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर का मुहासरा कर लिया था लेकिन हर एक के दिल पर यक्ता रौब था कि अंदर दाखिल होने की किसी में जुर्रत न थी, सारी रात इसी इंतेज़ार में पूरी कर दी कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद ही बाहर तशरीफ़ लाएं तो हम कुछ करें, जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तने तन्हा बाहर भी निकले तो अल्लाह का कलाम पढते हुए निकले, मुठ्ठी भर खाक उठा कर उनके सिरों पर भी फैंक दी, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ कोई नज़र उठा कर भी ना देख सका _,"*
[6/25, 6:29 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (2)_ रूए ज़मीन में मस्जिद व तहूर होना :-*

 *★"_ यहूद अपने कनिसा और इसाई अपने कलिसा के बगेर नमाज़ न पढ़ा करते थे, मजूसी भी पाक आग के आतिश कदा के बगेर इबादत न किया करते थे, मुसलमानो की नमाज़ मेहराबे इबादत की मोहताज नहीं है, उनका गरमाया हुआ दिल, उनकी रोशन आंखें आग की हरारत और ज़िया से बेनियाज़ है, इसलिये रूए ज़मीन का हर एक बुका और एक कित्ता उनकी सजदा रेज़ी के लिए मोज़ू है, उन पर खड़े, बेठे और लेटे ज़िक्र की हालत तारी है, इसलिए अल्लाह ताला ने रूए ज़मीन को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मस्जिद बना दिया _,"*

 *★_ ये शर्फ उसी हक़ाइक़ शनाश को मिला जिसकी निगाह में कायनात का पत्ता पत्ता तोहीद के तरन्नुम में है, जिसके सामने रेगिस्तान का ज़र्रा ज़र्रा अनवारे कुदसी का आईना दार है, जिसे हर शैय मज़हरे जमाल लम यज़ली मुरात जलाले क़ुदसी नज़र आती है, जिसके कानो में पत्थरो की तस्बीह और सब्जा़ की तहमीद हर वक्त गूंज रही है, जिसे आसमान व ज़मीन की फिज़ा नारा ए तकबीर व ज़मज़मा तहलील से भरी हुई नज़र आती है, इसिलिए तमाम रूए ज़मीन मस्जिद बना दी गई _,*

*★_ तहूर से मुराद वज़ू है, बदन के हिस्से का शरई हिदायत के मुताबिक़ पानी से धोना वज़ू कहलाता है, वज़ू नमाज़ के लिए शर्त है, मगर नमाज़ का तर्क किसी हाल में रवा नहीं, आम तोर पर ये समझा जा सकता था कि शर्त के ना होने से मशरूत भी मफकू़द हो जाना चाहिए और जहां वजू के लिए पानी मयस्सर न हो वहां नमाज़ भी माफ हो जानी चाहिए, लेकिन क्या नमाज़ उन लोगो पर माफ हो जाती है जो घास के पत्ते पत्ते से वाहदहु ला शरीक ला वाले और दरख्त के पत्ते पत्ते को दफ्तरे मार्फत जानने वाले हैं _,"*

*★_ ज़रूरी था कि इंसान हुसूले तहारत के लिए कोई दूसरी तदबीर अख्त्यार करता, इंसान मिट्टी ही से बना है मिट्टी ही उसकी असल है और मिट्टी ही उसको बन जाना है, मिट्टी ही मखलूका़त का गहवारा है और मिट्टी ही से कायनात अर्धी अपनी खुराक हासिल करती है, इसलिये इस मिट्टी ही को तहूर भी बना दिया गया_,"*

*★_ मिट्टी कहाँ नहीं मिल सकती ? जहां पानी ना होगा वहां पर मिट्टी तो जरूर मिल जाएगी, खाक आलूद हाथो का चेहरे पर फैर लेना इस अज्ज़ व तक़र्रूर को ही ज़ाहिर करता है, जिसने तहूर तुराब पर ईमानदार को मजबूर किया, अलगर्ज यह खुसूसियत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही की है कि रूए ज़मीन को हमारे लिए तहूर बना दिया और हुज़ूरी बरगाह ए रब्बानी से किसी हालत में भी दूर व मजबूर ना होने दिया _,"*
[6/27, 4:27 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(3)_हिल्लत ए मगानम :-*
 *"_ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत यूसा बिन नून अलैहिस्सलाम की फ़ुतुहात में जिस क़दर मगानम हासिल होते थे उन्हें आग में डाल दिया जाता था, तौरात में जानवरो तक को जला देने का ज़िक्र मिलता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गज़वात मे सबसे पहले गज़वा बदर में गनीमत हासिल हुई, माले गनीमत जमा भी हुआ और तक़सीम भी किया गया, लेकिन फिर भी लश्कर में ऐसे लोग मोजूद थे जो शरीयत मूसावी की नज़ीर पर माले गनीमत का लेना खतरनाक चीज़ समझते थे, अल्लाह ताला उन्हीं के इत्मिनान के लिए यह आयत नाज़िल फरमायी, (तर्जुमा) अगर अल्लाह की तरफ से पहले किताब में ऐसा न होता तब जो कुछ तुमने वसूल किया है उसके लिए तुम पर बड़ा अज़ाब होता, अब तुम गनीमत को हलाल तय्यब समझो और खाओ _", ( अल अनफाल -68-69)*

*★_ दूसरी जगह है:- (अल फतह-20-21) अल्लाह ने तुमसे मगानम कसीर का वादा किया जिनको तुम हासिल करोगे लिहाज़ा ये तो तुमको जल्द ही दे दी (खैबर) और दुश्मनो के हाथों को तुमसे रोक दिया है ताकि मोमिनीन के लिए ये एक निशान हो और तुमको अल्लाह सिराते मुस्तकी़म पर चलायेगा और भी मगानम बहुत हैं तुमको उन पर क़ुदरत नहीं मगर अल्लाह ने उन पर अहाता कर रखा है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत वाला है _,"*

*★_ ये मगानम कसीर ही हैं जो सल्तनत ईरान और रोमा पर फुतुहात हासिल करने पर मुसलमानों को हासिल हुई, चुंकी ये वादा मोमिनीन को मुखातिब फरमा कर किया गया था इसलिये इस वादे का ईफा (पूरा होना) भी खिलाफते राशिदा के वक्त में हुआ, जबकी सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आलमे बका़ को सिधार गए थे,*

*★_ वाज़े हो के ये एक वादा न था बल्की मोमिनीन से तीन वादे किए गए थे, दूसरा वादा ये था कि दुश्मन के हाथ तुमसे कोता रहेंगे, इस वादे के मुताबिक खिलाफते राशीदा के वक्त में कोई दुश्मन इस्लामी फौजो पर गालिब ना आ सका था, तीसरा वादा सिराते मुस्तकी़म का था और वो भी अपनी जा़हीरी और बातिनी बरकात के साथ उसी तरह पूरा हुआ जिस तरह से दो वादे हुए _,"*
[7/4, 8:13 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(4)_ अता ए मनसब शफाअत:-*
 *"_ शफ़ाअत शफ़ी से है, शफ़ी के मानी है एक चीज़ को दूसरी चीज़ के बराबर जो उसकी जिन्स से हो, शामिल कर देना, अक्सर औक़ात किसी आला मुरतब शख्स को किसी अदना के साथ मिल कर कोई काम सर अंजाम देने के मा'नी में इसका इस्तमाल होता है _,*

*★_ मसला शफ़ा'अत इस्लाम से पहले भी अरब में मुसल्लिम था और यहूद व ईसाइयो में भी तस्लीम किया जाता था, वो समझते थे कि शफ़ी अपनी इज़्ज़त व वका़र और ज़ाती इक़्तिदार व अख्त्यार से जिसे चाहे अल्लाह के अज़ाब से छुड़ा सकता है, शफ़ी उन सबको जो उसी के हो कर रहे, नामा ए आखिरवी व दुनियावी अता फरमा सकता है, इन अकी़दे वालो को अल्लाह की हस्ती और उसकी क़ुदरत का इन्कार ना था, लेकिन वो ये समझते थे कि इलाही इक़्तिदार उन शख्सों को भी हासिल है जो उनके शफ़ी हैं, लिहाज़ा शफ़ी की इबादत से मुस्तगना कर देता है, शफ़ी की रजामंदी अल्लाह की रजामंदी से मुक़द्दम तर है क्यूंकी अल्लाह तआला किसी बंदे पर गज़बनाक भी हो और उसका शफ़ी राज़ी हो तो वो उसे अल्लाह ता'अला के गज़ब से बचा लेगा, लेकिन अगर शफी गज़बनाक हो जाए तो अल्लाह ताला उस शफी को बंदे पर मेहरबान ना कर सकेगा _,"*

*★_ अल्लाह तआला ने इन लोगो के मुताल्लिक फरमाया है- (सूरह यूनुस-18 तर्जुमा) - लोग अल्लाह के सिवा औरो की इबादत करते हैं जो ना उनका कुछ बिगाड़ सकते हैं ना फायदा कर सकते हैं, ये लोग कहा करते हैं कि ये तो हमारी शफा'अत करने वाले हैं अल्लाह के पास _,"*

*★_ इन्हीं लोगों के हक़ में दूसरी जगह फरमाया- (सूरह जु़मर-3 तर्जुमा) :- जिन लोगो ने अल्लाह के सिवा औरो को औलिया बना रखा है वो कहते हैं कि हम तो उनकी इबादत सिर्फ इसलिए करते हैं कि ये हमको अल्लाह के कु़र्ब में ले जाएंगे _,"*
[7/5, 7:31 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इसाई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अपना शफ़ी बनाते हैं और फिर उसी को अपना खुदावंद (मिस्ल) खुदा कहते हैं, उसी को दुआ और मुनाजातो में पुकारते, उसी से मुरादे मांगते हैं और कहा करते हैं कि वो अल्लाह ता'आला के तख्त पर उसके दाहिने हाथ बैठा है, जो कोई उसे पुकारता है उससे मदद मांगता है, अपना कारसाज जानता है, उसको मसीह खुद ही अपने बाप खुदा से बचा लेता है और बख्शवा लेता है_"*

*★_ कुरान मजीद ने अव्वल तो उनके इस अकी़दे को बातिल फरमाया है और इसके रद्द व बातलिन के लिए मुखतलिफ उस्लूब के साथ कलामे इलाही नाजिल हुआ, हमारा ईमान है और ये ईमान कुरान व हदीस की खबरों पर मुबनी है कि वो शफ़ी सैय्यदना व मौलाना हज़रत मुहम्मद ﷺ है_,"*

*★_" तेरा रब तुझे मुक़ाम ए मेहमूद पर ज़रूर खड़ा करेगा _," (सूरह बानी इसराइली-79)*
*"_ मुक़ामे मेहमूद वो मुक़ामे शफ़ा'अत है कि जब नबी करीम ﷺ उस मुक़ाम पर जलवा नुमा होंगे तो जुमला और अव्वलीन व आखिरीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरीफ़ करेंगे (तफ़सीर ख़ाज़िन) इस आयत की तफ़सीर मे वो हदीस सही मोजूद है जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी तफ़सीर में बा रिवायत अनस रजियल्लाहु अन्हु दर्ज फरमाया है:-*

*★"_ जब अल्लाह तआला लोगो को क़यामत के दिन जमा करेगा, तब उनके दिल में ये बात डाली जाएगी कि हम अगर अल्लाह ताआला की जनाब में किसी को शफा'अत के लिए पेश करेंगे (तो ख़ूब है) ताकी अल्लाह तआला हमको इस जगह से निजात दे, तब लोग आदम अलैहिस्सलाम के पास आएंगे और कहेंगे कि आदम अलैहिस्सलाम अबुल बशर हैं अल्लाह ताला ने आपको अपने हाथ से बनाया, फिर जन्नत में ठहराया और फरिश्तो ने आपको सजदा किया और अल्लाह ताआला ने जुमला अस्मा की तालीम आपको दी, लिहाज़ा आप हमारी शफा'अत करें कि अल्लाह ताआला हमको यहां से निजात (राहत) दे,*

 *"_वो कहेंगे नहीं, मैं नहीं कर सकता, फिर वो अपनी खता का ज़िक्र करेंगे और अल्लाह ताला से हया का ज़िक्र कर के कहेंगे तुम नूह अलैहिस्सलाम के पास जाओ, वो पहले रसूल है, तब लोग नूह अलैहिस्सलाम के पास जाएंगे, नूह अलैहिस्सलाम कहेंगे नहीं, मैं नहीं, वो भी अपना खता का ज़िक्र करेंगे और अल्लाह से हया करेंगे और फरमाएंगे तुम इब्राहिम अलैहिस्सलाम के पास जाओ जिनको अल्लाह तआला ने अपना खलील बनाया है, वो कहेंगे,नहीं, मैं नहीं, वो भी अपनी खता को याद करेंगे और अल्लाह ताला से हया करेंगे, कहेंगे मूसा अलैहिस्सलाम के पास जाओ, जिनसे अल्लाह ताला ने कलाम भी किया और उन्हें तोरात भी दी, वो कहेंगे नहीं, मैं नहीं, वो अपनी खता का ज़िक्र करेंगे और हया का, फ़िर कहेंगे तुम ईसा रूहुल्लाह अलैहिस्सलाम के पास जाओ, ईसा अलैहिस्सलाम कहेंगे मैं नहीं, तुम मुहम्मद ﷺ के पास जाओ, वो अल्लाह तआला के ऐसे बंदे हैं कि उनको अल्लाह ताला ने अगला पिछला सब कुछ माफ़ कर दिया है_,"*
[7/5, 7:44 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं कि तब लोग मेरे पास आएंगे और तब मैं अपने रब से अज़्न हासिल करुंगा, मुझे अज़्न दिया जाएगा, फिर जब मैं अपने रब को देखुंगा तो सजदे में गिर पडुंगा, फिर अल्लाह तआला मुझे दुआ सिखाएगा वो जो कुछ चाहेगा मेरी ज़ुबान से कहलाएगा _, तब अल्लाह तआला फरमायेगा - ए मुहम्मद ﷺ अपना सर उठाओ, बोलो तुम्हारी सुनी जाएगी, मांगो तुमको दिया जाएगा, शफा'अत करो तुम्हारी शफाअत क़ुबूल होगी _,"*

*★ _ रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं के मैं सर उठाउंगा और फिर अल्लाह ताला की हम्द करुंगा, वो तहमीद मुझे अल्लाह तआला ही सिखा देगा, फिर मैं शफा'अत करुंगा, फिर मेरे लिए एक हद मुक़र्रर कर दी जाएगी, मैं उतने लोगो को आग से निकलूंगा और जन्नत में दखिल करुंगा_," (बुखारी - 741, 4712, मुस्लिम - 193, अहमद -3/116)* 

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि तीसरी दफा या चोथी दफा में रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया कि फिर मैं कहुंगा -ऐ रब अब तो आग में वही रह गया जिसको कुरान ने रोक रखा है, यानी वो ही जिस पर खुलूद (हमेशा) वाजिब है, बुखारी की एक रिवायत में ये है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर ये आयत (बनी इसराईल-79) पढ़ी और फरमाया कि मुक़ामे मेहमूद जिसका वादा अल्लाह तआला ने तुम्हारे नबी से किया है, वो यही मुक़ाम है _," (बुखारी - 741, मुस्लिम -193, मुसनद अहमद - 3/116)*

*★_ हदीस ए बाला से साबित हुआ के मनसब शफा'अत बिल तखसीस नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही को अता हुआ, आदम व नूह व मूसा व ईसा अलैहिस्सलाम भी शफा'अत की जुर्रत ना करेंगे और बिल आखिर सबके नज़दीक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही शफ़ा'अत कुबरा के अहल साबित होंगे,*

*★_ लोगो का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले दिगर अंबिया अलैहिस्सलाम के पास जाने से ये नुक्ता हासिल होता है कि किसी शख्स को ये शुबहा बाक़ी ना रहे कि अगर हम सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा किसी दूसरे के पास जाते तो मुमकिन था कि वो भी शफा'अत कर ही देते, अब जब हर जगह साफ जवाब मिल जाएगा तो सबको यक़ीनन मालूम हो जाएगा कि मनसब शफा'अत में कोई नबी, कोई मुर्सिल, कोई उलूलुल अज़्म भी हुज़ूर ﷺ का शरीक नहीं और यही हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खुसूसियत खाससा का मजहर है _,"*
[7/8, 8:18 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (5)_बैसत ए आम्मा:- इस खुसियत के मुताल्लिक़ पहले लिखा जा चुका है, क़ारईन इस उनवान के पिछले पार्ट्स में इसे मुलाहिज़ा फरमायें _,"*

 *(6)_ जवामे अल -कलम का अतिया :- बाज़ अहले क़लम ने "जवामे अल- कलम" से मुराद कुरान मजीद को समझा है, कौन है जो कुरान मजीद के जामे होने से इनकार कर सके, मगर हक़ीक़त ये है कि इस जगह वो कलाम ए क़ुदसी निज़ाम मुराद है, जिसे हदीस ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहा जाता है, जब कोई शख्स इन पाक अल्फाज़ पर गौर करेगा, जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पुरनूर के दिल व ज़ुबान से गोशे आलमियान तक पहुंचे, उसे यक़ीन हो जाएगा कि बेशक ये कलाम कलामे नबुवत है, मुख्तसर, सादा, साफ, सच्चाई से भरपुर, मा'नी का खज़ाना, हिदायत का गुंजीना _,"*

*★_ इस किताब के मुताद्दिद मक़ामत पर हदीसे पाक का इंद्राज किया गया है, नाज़रीन को तदब्बूर और तफ़क्कुर के बाद कलामे नबवी ﷺ की जामीयत का हाल खुल जाएगा और बा-ख़ूबी समझ आ जाएगा कि यह कलामे सिद्क़ निज़ाम सिर्फ मतला ए नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही से जलवागर हो सकता है, तबर्रुकन एक हदीस दर्ज की जाती है :-*

*★_(1) खबरदार बद गुमानी को आदत न बनाना, बदगुमानी तो बिलकुल झूठी बात है, (2) लोगों की ऐब जोई ना करना, (3) और ना ऐसी बातों को अपने कान तक पहुंचने देना, (4) बढ़ने के लिए मत झगड़ना, (5) बाहमी हसद न करना (6) बाहमी बुग्ज़ न रखना, (7) किसी की पसे पुश्त बुराई न करना, (8) ऐ अल्लाह के बंदो! आपस में भाई भाई हो कर रहना जैसा कि तुमको अल्लाह का हुक्म है, (9) मुस्लिम मुस्लिम का भाई है, भाई पर ना कोई ज़ुल्म करे, (10) ना उसे रुस्वा करे ना हकी़र जाने, (11) इंसान के लिए यही बुराई बहुत ज़्यादा है कि अपने मुस्लिम भाई को वो हकी़र समझे, (12) मुस्लिम का खून, इज्ज़त दूसरे मुस्लिम पर बिलकुल हराम है, (13) अल्लाह ताला तुम्हारी सूरतों और जिस्मों को बिलकुल नहीं देखता, वो तो तुम्हारे दिलों और अमलों को देखता है, (14) दिल की तरफ इशारा करके फरमाया तक़वा यहां है, तक़वा यहां है, (15) खबरदार एक की खरीद पर दूसरा शख्स खारिदार न बने, (16) अल्लाह के बंदो! भाई भाई बनो, (17) मुस्लिम पर हलाल नहीं कि अपने भाई को तीन दिन से ज्यादा छोड़े (नसाई के सिवा सहाह में है)_,"*

 *🗂️_ (ये हदीस मुख्तालिफ अहादीस का मजमुआ है, हवाला दर्जे जे़ल है) बुखारी - 2442, 6066, 6077, 6951, मुस्लिम - 25, 28, 58, 2560, 2563, 2564, 2580, अबू दाऊद - 4882, 4893, 4914, 4917, तिर्मिज़ी - 1426, 1927, 1932, नसाई 7291, 9161, इब्ने माजा-4213,*
[7/10, 7:04 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (7)_ खुशुसियात ए मैराज:- मैराज ए नबवी ﷺ का ज़िक्र इस किताब में पहले भी आ चुका है, याद रखें कि मैराज ए नबी ﷺ उन खुशुसियात में से है जिसमें और कोई नबी व रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सहीम (शरीक) नहीं, लफ्ज़ मैराज के मा'नी उरूज है और जी़ना भी है, चुंकी उरूज मंजिल बा मंजिल हुआ था, लिहाज़ा वाक़िया बातिनी के लिए ये तशबिया जा़हिरी भी खूब है _,"*

*★_ मैराज की तादाद :- उल्मा में से बाज़ तादाद के क़ायल हुए हैं और लफ़्ज़ असरा व लफ़्ज़ मैराज के मा'नी का फ़र्क बतलाया है और इसीलिए उन्होंने उन औक़ात के लिए मुख्तलिफ़ सालो और महीनो का ज़िक्र किया है मगर हाफ़िज़ इब्ने कसीर रह. ने जो बड़े मुहक़ीक़ है अपनी तफ़सीर में लिख दिया है कि तादाद ए मैराज का कौ़ल मुतलक़न बे-सनद है और हदीस सही के मफ़हूम के भी मुखालिफ़ है _,"*

*★_ मैराज का ज़माना:- उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा की रिवायत सही बुखारी में है कि उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफ़ात तीन साल क़ब्ल अज़ हिजरत थी, दूसरी रिवायत है ताहिरा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात फ़रजियत नमाज़ पंजगाना से पेशतर थी, नतीजा ये हुआ कि वाक़िया मैराज के बाद अज़ वफ़ात सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा था और इस वाक़ीए को हिजरत से तीन साल ज़्यादा पीछे नहीं कह सकते,*

*★_ ज़िक्र ए हिजरत का आगाज़ उक़बा की उन अव्वलीन मुलाक़ात से है जिसमे अंसार के सिर्फ़ 6 शख्स हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिले थे, शुरू हो जाता है, लिहाज़ा वाक़िया मैराज को हिजरत से क़रीब तरीन ताल्लुक़ है, ज़रक़ानी रह. कहते हैं कि इमाम इब्ने अब्दुलबर व इमाम अबू मुहम्मद अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम और इमाम नववी ने मैराज के लिए माहे रज्जब का ताईन किया है,*

*★_ हाफिज अब्दुल गनी बिन अब्दुल वाहिद ने 27 रज्जब को जुमला अक़वाल पर तरजीह दी है और लिखा है कि हमेशा से अमलन इसी तारीख पर इत्तेफाक किया गया है _,"*
[7/11, 7:27 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सही मुस्लिम की हदीस में तरीक़ साबित अन अनस रजियल्लाहु अन्हु में है :- मैं सवारी पर सवार हुआ और बैतुल मुकद्दस पहुंचा, सवारी को उस हलका़ से बांध दिया जिससे अंबिया अलैहिस्सलाम अपनी सांवरिया बांधा करते थे, मस्जिद में जा कर मैंने दो रका'त नमाज़ अदा की और वहां से आसमान की तरफ उरूज हुआ _," (मुस्लिम -411)*

*★_ इब्ने अबी हातिम की एक रिवायत अन यज़ीद बिन अबी मालिक अन अनस में नमाज़ बैतुल मुक़द्दस के मुताल्लिक़ ये सराहत है कि - मेरे जाने के बाद वहां बहुत से लोग जमा हो गए, अज़ान दी गई और सफें दुरस्त हुई, मैं इंतजार में था कि नमाज़ कौन पढ़ाएगा, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे आगे खड़ा कर दिया, नमाज़ के बाद जिब्रील अलैहिस्सलम ने पुछा आपको मालूम है कि आपके पीछे किन लोगों ने नमाज़ पढ़ी ? मैंने कहा -नहीं, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा - ये सब अंबिया है, जो मिंजानिब अल्लाह मब'ऊस हो चुके _," (तफ़सीर इब्ने कसीर -3/189)*

*★_ इमाम अहमद की रिवायत अन उबैद बिन आदम में बैतुल मुकद्दस के मुताल्लिक ये सराहत है कि, जब अमीरुल मोमिनीन उमर रजियल्लाहु अन्हु बैतुल मुकद्दस पहुंचे, तब का'ब रजियल्लाहु अन्हु से पुछा कि मुझे नमाज़ कहां पढ़ना चाहिए' उन्होंने कहा- सखरा के पीछे, अमीरुल मोमिनीन ने कहा -नहीं, मैं वहां पढ़ुंगा जहां नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़ी थी _," (मुसनद अहमद -1/38, इब्ने कसीर)*
[7/12, 7:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब मालिक बिन सा'सा रजियाशल्लाहु अन्हु वाली हदीस ही का तर्जुमा पेश करता हुं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- मैं हतीम में लेटा हुआ था ( क़तादा ने लफ्ज हतीम की जगह कहीं लफ्ज़ 'हजर' भी इस्तेमाल किया है, दोनो नाम एक ही मुक़ाम के हैं, यानी खाना काबा के अंदर की वो ज़मीन जिसे कुरेश ने बाहर छोड़ दिया था) जब आने वाला (जिब्रील अलैहिस्सलम) मेरे पास आया, उसने अपने साथी (मिकाईल अलैहिस्सलाम) से कहा कि उन तीन में से दरमियान वाले नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है, फिर वो मेरे पास आया, सीना से ले कर जे़रे नाफ तक मेरा जिस्म शक़ किया गया, फिर सोने का तश्त लाया गया जो ईमान व हिकमत से पुर था, मेरे क़ल्ब को धोया और ईमान व हिकमत से भर दिया, फिर ज़ख्म दुरस्त कर दिया _,"*

*★_ फिर मेरे लिए सवारी लाई गई जिसका क़द खच्चर से कम और गधा से ऊंचा था, उसका क़दम उसकी हद बसर तक पड़ता था, मुझे सवार किया गया, जिब्रील अलैहिस्सलाम मेरे साथ चला, आसमाने दुनिया तक मुझे ले कर पहुंचाया गया, दरवाज़ा खुलवाया, अंदर से पुछा कौन है ? कहा जिब्रील अलैहिस्सलाम, कहा तुम्हारे साथ कौन है? कहा मुहम्मद ﷺ, उन्होन कहा क्या आपको बुलवाया गया है? जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा हां, फरिश्तो ने मरहबा कहा और कहा खूब तशरीफ लाएं _,"*

*★_ दरवाज़ा खुला, मैं अंदर गया तो वहां आदम अलैहिस्सलाम थे, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा ये तुम्हारे अब्बा आदम अलैहिस्सलाम हैं, सलाम किजिये, मैंने सलाम किया, उन्होंने जवाब दिया और इब्ने सालेह व नबी सालेह फरमा कर मरहबा भी कहा _,"*

*★_ फ़िर जिब्रील अलैहिस्सलाम दूसरे आसमान तक ​​पहुंचा, दरवाज़ा खुलवाया (वही गुफ्तगु पहले आसमान वाली हुई) मैं अंदर गया तो वहां याह्या व ईसा अलैहिस्सलाम थे, ये दोनो खालजाद है, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने बताया ये याह्या व ईसा अलैहिस्सलाम है, सलाम किजिये, मैने सलाम किया उन्होन जवाब दिया और अख सालेह व नबी सालेह कह कर मरहबा भी कहा, फिर तीसरे आसमान पर गए, वही गुफ्तगु हुई, दरवाज़ा खुला) वहां युसूफ अलैहिस्सलाम थे। सलाम व जवाब के बाद उन्होंने भी अख सालेह व नबी सालेह के अल्फाज़ में मरहबा कहा _,"*
[7/13, 4:25 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम चोथे आसमान तक बुलंद हुआ, दरवाज़ा खोलने को कहा, पुछा कौन? कहा जिब्रील अलैहिस्सलाम, पुछा तुम्हारे साथ कौन है? कहा मुहम्मद ﷺ , पुछा क्या बुलवाए गए हैं? कहा- हां, फरिश्तो ने मरहबा कहा और मेरे आने पर खुशी का इज़हार किया, अंदर गए तो वहां इदरीस अलैहिस्सलाम थे, मैने सलाम किया, उन्होंने जबाब दिया और अख सालेह व नबी सालेह कह कर मरहबा कहा _,"*

*★_ इसी तरह पांचवे आसमान वाले फरिश्तों की बात जिब्रील अलैहिस्सलाम से हुई, मैं अंदर गया, वहा हारून अलैहिस्सलाम मिले, सलाम का जवाब दे कर मुझे अख सालेह व नबी सालेह के साथ मरहबा कहा, इसी तरह छठे आसमान पर जिब्रील अलैहिस्सलाम और फरिश्तो की गुफ्तगु हुई, मैं अंदर गया तो वहां मूसा अलैहिस्सलाम मिले, मैंने सलाम किया, उन्होंने जबाब दिया और अख सालेह व नबी सालेह कह कर मरहबा कहा,*

*★_ मैं उनसे आगे को चला तो मूसा अलैहिस्सलाम रो पड़े, पुछा गया कि तुम क्यू रोये? कहा कि ये नोजवान मेरे बाद नबी हुआ और इसकी उम्मत के लोग मेरी उम्मत से बहुत ज़्यादा तादाद में जन्नत में दाखिल होंगे, फिर सातवें आसमान पर जिब्रील अलैहिस्सलाम पहुंचा, फरिश्तों से गुफ्तगु हुई और वहां मैंने देखा कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम मोजूद है, मैंने सलाम किया, उन्होंने जवाब दिया और इब्ने सालेह व नबी सालेह कह कर मरहबा कहा_,"*

*★_ फिर मुझे सिदरतुल मुंतहा तक उठाया गया, इसका फल बड़ी चाटियों जैसा और इसके पत्ते हाथी के कान जैसे बड़े हैं, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने बताया कि सिदरतुल मुंतहा यही है, वहां चार नेहरे देखीं, दो अंदर बहती थी दो खुल्लम खुल्ला, जिब्रील ने बताया कि अंदर चलने वाले दरिया या तो बहिश्त के दरिया है और खुले चलने वाले नील व फरात _,"*
[7/15, 8:48 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फिर सामने बैतुल मामूर नमुदार हुआ, (क़तादा जो रावी है हदीस है उन्होन कहा कि हसन रजियल्लाहु अन्हु ने हमको अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये बयान किया था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि बैतूल मामूर में 70 हज़ार फरिश्ते रोज़ाना दाखिल होते हैं और फिर लौट कर नहीं आते, इसके बाद क़तादा रजियल्लाहु अन्हु ने फिर हदीस अनस की तरफ रूजू किया) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - फिर मेरे सामने शराब और दूध और शहद के बर्तन पेश किए गए, मैंने दूध ले लिया, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा यही वो फितरत है जिस पर आप और आपकी उम्मत है _,"*

*★_ फ़िर 50 नमाज़े फ़र्ज़ की गई, रोज़ाना 50 नमाज़े, फ़िर मैं नीचे आया और मूसा अलैहिस्सलाम तक पहुंचा तो पुछा अल्लाह तआला ने आपकी उम्मत पर क्या फ़र्ज़ किया ? मैंने कहा - 50 नमाज़े रोज़ाना, मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा आपकी उम्मत में इसकी इस्तेता'त न होगी और मैं इसे पहले लोगो का इम्तिहान कर चुका हूं और बनी इसराइल की तदबीर करता रहा हूं, आप अपने रब की तरफ वापस जाएं और उम्मत के लिए तखफीफ का सवाल करें _,"*

*★_ मैं वापस गया, 10 नमाज़े कम कर दी गई, मैंने लोट कर यही मूसा अलैहिस्सलाम को बताया, वो बोले कि फिर वापस जाएं और तख़फ़ीफ़ का सवाल करें, मैं वापस गया और 10 नमाज़ो की तख़फ़ीफ़ कर दी गई, मैंने फ़िर मूसा अलैहिस्सलाम को यही आ कर बताया, उन्होन कहा कि फ़िर वापस जायें और तख़फ़ीफ़ का सवाल करें, मैं वापस गया, जब 10 नमाज़ो की और तख़फ़ीफ़ कर दी गई, मैंने फिर मूसा अलैहिस्सलाम को यही आ कर बताया, उन्होंने कहा कि फिर वापस जायें और तख़फ़ीफ़ का सवाल करें, मैं इसी तरह जाता रहा हत्ताकी 5 नमाज़ो का हुक्म हो गया और मैंने मूसा अलैहिस्सलाम को बताया, उन्होने कहा कि आपकी उम्मत में इस्तेता'त भी ना होगी, मुझे लोगों का ख़ूब तजुर्बा है और मैंने बनी इसराईल के लिए बड़ी बड़ी तड़बीरे की हैं, लिहाज़ा वापस जाएं और तख़फ़ीफ़ का सवाल करें _,"*

*★_ रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि मैं अल्लाह ताला से सवाल करता करता शर्मसार हो गया हुं, अब तो मैं इसे खुशी से मानूंगा और तस्लीम करुंगा, उस वक्त पुकारने वाले की एक आवाज़ आई कि मैंने अपने फ़रीज़े को जारी कर दिया और बंदो से तखफीफ भी कर दी _,"*
[7/16, 8:35 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शेखैन की हदीस अन अनस में मजी़द ये है कि अबुज़र रजियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यूं रिवायत करते हैं कि :- आदम अलैहिस्सलाम जब दायें जानिब देखते तब हंसते और जब बाएं जानिब देखते तब रोते, जिब्रील अलैहिस्सलाम ने नबी ﷺ के पूछने पर बतलाया कि दाएं जानिब अहले जन्नत है और बाएं जानिब अहले नार (दोजख), दाएं जानिब देखते हैं तो हंस पड़ते हैं और बाएं जानिब को देखते हैं तो रो पड़ते हैं _," (बुखारी- 3342, मुस्लिम-163/263)*

*★_ सातो आसमान पर आठों अंबिया अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात का राज़:-*
*"_ मुख्तलिफ़ आसमानो पर अलग अलग अंबिया अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात बहुत सी नसीहतों पर मुश्तमिल है:-*
 *(1)_ पहली बात तो ये है कि जिस तरह शाहान ए आलम मोअज्जि़ज़ मेहमान के इकराम के लिए अपनी सरहद खास से ले कर दरबार खास तक दर्जा बा दर्जा बुजुर्गवार (बड़ी हस्ती) को मुकर्रर किया करता है' इस तरह इन अंबिया अलैहिस्सलाम का ताईन भी अव्वल आसमान से सातवें आसमान तक किया गया_,"*

*(2)_ आदम अलैहिस्सलाम अबुल बशर हैं, अव्वल अंबिया हैं, इसलिये उनका ताल्लुक़ व्वल आसमान से एक ख़ूसियत रखता है, आदम अलैहिस्सलाम है जिनको तर्के जन्नत का अलम (दुख) उठाना पड़ा, मगर जब ज़मीन पर आए तो खिलाफतुल अर्द का ताज उनके सर पर रखा गया, और उनकी औलाद व रफ्का़ से ज़मीन आबाद हो गई, तब उनका वो गम खुशी में तब्दील हो गया _,"*

*★_ (3)_ याह्या व ईसा अलैहिस्सलाम में क़राबत भी है, मसीह ने इस्तबाग भी याह्या अलैहिस्सलाम से पाया था, अहवाले ज़ुहद व मेहनत में भी दोनों मुत्तहिद अहवाल है, इसलिये वो दोनो एक ही मुक़ाम पर जमा थे और दोनों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़ुहद व तवक्कुल और ऐराज़े दुनिया का दिखलाना भी मक़सूद था, याह्या अलैहिस्सलाम ने अपना काम ईसा मसीह अलैहिस्सलाम पर छोड़ा था और ईसा अलैहिस्सलाम ने अकमाले सदाक़त और अतमामे हक़्क़ानियत का हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथों से पूरा होना बतलाया था, लिहाज़ा ज़रूरी था कि दोनों बुज़ुर्गवार अपनी बेहतरीन तमन्नाओ को मुकम्मल शुदा हालत में देख लेते _,"*
[7/17, 8:35 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_(4)_ युसुफ अलैहिस्सलाम के अहवाल मुबारक को नबी ﷺ से कुल्ली मुशाब त है, दोनो साहिबुल जमाल व अल- कमाल है, दोनों को सख्त इम्तिहान देने पड़े, दोनो में अफू करम का वफूद है, दोनो ने अपने जफा पेशा खानदान की जान बख्शी फरमाई, दोनो साहिबुल अमर् व हुकुमत है और दुनिया से पूरी कामरानी व हुक्मरानी और जाह व जलाल के साथ रुखसत हुए हैं _,"*

*★_ (5)_ चोथे आसमान पर इदरीस अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात हुई, कसरते दर्स और और तोगुल तालीम और शगफ तदरीस में इदरीस अलैहिस्सलाम का खास दर्जा है और यही कैफियत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की थी,*

*★_ (6)_ पांचवें आसमान पर हारून अलैहिस्सलाम मिले, हारून अलैहिस्सलाम अपनी क़ौम व उम्मत में हरदिल अज़ीज़ और महबूब ए क़ुलूब थे, हारून अलैहिस्सलम मस्जिद के इमाम थे, हारून अलैहिस्सलाम तफ़ररुक़ा बाज़ी ( फूट डालने) को सबसे बुरा समझते थे और ये वो सिफात आलिया हैं जिनके अनवार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत में वाज़े व आशकार हैं _,"*

*★_ छठे आसमान पर मूसा अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात हुई, ये साहिबे शरीयत भी है और साहिब किताब भी हैं, गाज़ी व मुजाहिद हैं, मुहाजिर व मनाज़िर भी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इन महासिन में मुशबा तर है, इनका रुतबा इन मजमुई महासिन की वजह से पांचो आसमान वाले अंबिया से बढ़ कर खास इम्तियाज़ रखता है _,"*

 *★_(8)_ सातवे आसमान पर सैय्यदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम नज़र आए, यही बानी काबा मुकद्दस है और यही काबा आसमानी (बैते मामूर) के मुहतमिम हैं, यही इमाम ए खल्क़ हैं, खलीलुर्रहमान हैं, नबी ﷺ ने काबा को अरजास औसान से पाक किया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मर्जी के मुताबिक़ अल्लाह ताआला ने उम्मते मुहम्मदिया के लिए काबा को क़िब्ला नमाज़ बनाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही ने मिल्लते हनीफ़िया को ज़िंदा किया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही ने मनासिक हज को सुन्नते इब्राहिमी के मुताबिक मुहक्कम फरमाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही ने दरूद पाक में अपने नाम के साथ इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके आले पाक के नाम को शामिल फरमाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुलिया के लिहाज़ से भी सैयदना इब्राहिम अलैहिस्सलाम से निहायत मुमासिल थे _,"*

*★"_ रफ़'त, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक़ामे इब्राहिम (बैते मामूर) से ऊपर हासिल हुई, इससे ज़ाहिर हो गया कि हुज़ूर ﷺ ही मक़ामे मेहमूद वाले हैं_,"*

*★_ कुछ शक नहीं कि वाक़िया मैराज नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मक़ामात ए आला से एक बरतरीन मक़ाम है और इस वाक़िए के ज़िक्र में अल्लाह तआला ने सूरह बनी इस्राईल में भी और सूरह नज़्म में भी लफ़्ज़ अब्द ही का इस्तेमाल किया है, ताकी मखलूक ए इलाही ख़ूब समझ ले और अच्छी तरह से ज़हन नशीन कर ले कि इस मुक़द्दस हस्ती के लिए भी जिसकी शान "बाद अज़ खुदा बुज़ुर्ग तुई क़िस्सा मुख्तसर" से आशकार है, सबसे बुलंद तरीन मक़ाम मक़ामे अबुदियत ही का है और हम सबको इसी मक़ाम मक़ामे अबुदियत में इर्तक़ा (बा क़द्रे क़बिलियत व इस्तेदाद ) की हिदायत फ़रमायी गई है,*

*★_ अल्लाह ही की इबादत करो और उसी के लिए दीन को ख़ालिस करो_," (अल ज़ुमर -2) बेशक अस्सलात मैराजुल मोमिनीन (नमाज़ मोमिन की मैराज है) के मानी भी इसी नुक़्ते से हल होते हैं, क्योंकि इज़हारे अबुदियत के लिए नमाज़ से बढ़ कर और कोई सूरत मुहक़िक़ नहीं _,"*

 *★_मैराज-बैदारी मैं या ख्वाब मैं ?*
 *"_ और हम आपको जो ख्वाब दिखाया वो लोगों के लिए मा सिवाय फित्ना के कुछ नहीं_," (सूरह बनी इसराईल -60)*
 *"_बाज़ उल्मा को आयत से ये ख्याल हुआ है कि आयत का इशारा मैराज की तरफ है, इस इश्काल को इमाम लुगत इब्ने वजीहा रह. ने हल किया, तफ़सीर में लिखा है कि आयत का ताल्लुक़ बदर से है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर एक मुशरिक के गिरने का निशान व मुक़ाम भी बतला दिया था और मुशरिकीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद को इस्तेहज़ा ही बताते रहे ( हंसी उड़ाते रहे) _,*

*★_ इमाम बुखारी रह. ने बा रिवायत इकरमा अन इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु ये अल्फाज़ तहरीर किए हैं:- ये आंख का नज़ारा था जो नबी ﷺ को मैराज की रात दिखलाया गया_,"*

*★_ मेरा ईमान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मैराज बेदारी और जिस्म के साथ था, यही ऐतका़द अक्सर आ'इम्मा अहले सुन्नत मुहस्दीसीन व फुक़हा ए ताब'ईन व साहबा का है, जो लोग वाज़े सबूत के बाद भी मेराज को ख़्वाब समझा करें वो इस हदीस पर ज़रा गोर करें:-*

*"_ सही बुखारी व मुस्लिम में जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब मुशरिकीन ने मेरे बैतुल मुकद्दस तक जाने को झुठलाया (और निशानात पूछने लगे) तब मैं हतीम में खड़ा हो गया और अल्लाह तआला ने बैतुल मुकद्दस को मेरे सामने कर दिया, मैं इमारत को देखता था और जो निशान वो पुछते थे, मैं उनको बताता जाता था _," (बुखारी -4710, मुस्लिम -428, तिर्मिज़ी -3132)*

*★_ ये ज़ाहिर है कि अगर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वक़ियात मैराज को ख़्वाब के रंग में बयान किया होता तो मुशरिकीन बैतुल मुक़द्दस के निशान पते दरयाफ़्त करने का क्या हक़ रखते थे और अल्लाह तआला को भी क्या ज़रुरत थी कि बैतूल मुकद्दस को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने ज़ाहिर व जलवागर कर दे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसे देख कर सब निशानात के जवाब भी देते हैं, ख़्वाब के लिए तो इतना ही जवाब काफ़ी था कि मैं तो अपना ख़्वाब बयान कर रहा हूं, पाक है वो जा़त जिसने अपने बंदे को अपनी आयाते कुबरा दिखलाये और वरा उल वरा की सैर कराई _,"*

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[7/23, 8:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मोज्जा़त ए नबविया ﷺ _,*
*"_ अल्लाह तआला ने अपनी मख़लुक़ात (गैर माद्दी) में जिस क़दर ख़वास पैदा किये है, उन सबका अहाता न इंसान से हो सकता है और न कभी किसी इंसान ने ऐसा दावा किया है _,"*
*"_ अल्लाह तआला अपने बरगुज़िदा रसूल पर असरार ए कायनात का इंकशाफ कर देता है, वो कीमियावी तदबीर जो किल्लत को कसरत से बदल दे या हवा को पानी बना दे, उनके इल्म व तजुर्बा में होती है,*

*★_ हम ये सब बातें मोज्जा़त ए अंबिया अलैहिस्सलाम को क़रीब बा फहम के लिए कह रहे हैं, लेकिन ईमान की बात ये है कि "कुन फा यकुन" इरशाद करने वाले की ताक़त और कुदरत अंबिया ए अल्लाह की नुसरत में होती है, और जब अल्लाह तआला को ये मंज़ूर होता है कि किसी मुक़द्दस हस्ती का बरगुज़िदा बारगाहे रब्बानी का होना अवाम पर साबित कर दे तब इसी ताक़त व क़ुदरत को अंबिया ए अल्लाह के ज़रीये ज़ाहिर फरमाता रहता है, इसी को आयाते इलाही कहते हैं और इसी को मोजज़ात_,"*

*★_ सैय्यदना मौलाना मुहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ के जो मोज्ज़ात बा रिवायात साबित है' उनका शुमार बहुत ज़्यादा है और हर एक नबी के मोज्ज़ात से उनकी तादाद भी ज़्यादा है और उनकी शान भी आला है, यहां हम चंद मोज्ज़ात का ज़िक्र करेंगे इंशा अल्लाह कि अहले ईमान की तरक्की ए ईमान का मोजिब हो और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की अज़मत और अज़मत के साथ मुहब्बत भी ज़्यादा दिल नशीन हो जाए _,"*
[7/25, 7:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मुहर्रम 7 हिजरी:- हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से सही मुस्लिम में बा सराहत मज़कूर है कि हम गज़वा ज़ातुल रुका और वादी अफ़ीह में थे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वज़ू के लिए पानी तलब फरमाया, जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ढूंढ़ आए, लश्कर में एक क़तरा पानी न मिला, फ़िर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु उस अंसारी के पास पहुंचे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीने का पानी रखा करते थे,*

 *★_ वहां भी देखा तो एक पुरानी मशक के दहाने पर एक क़तरा आब नज़र आया और फिर हुक्म दिया कि वही ले आओ, फिर काठ का कटेहरा मंगवाया गया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसमे अपना हाथ उंगलियां फैला कर रख दिया, जाबिर रजियल्लाहु अन्हु ने हुक्म के मुताबिक "बिस्मिल्लाह" कह कर वो कतरा आब उस बहरे सखा के दस्ते मुबारक पर डाल दिया,*

*★_ जाबिर रजियल्लाहु अन्हु की ऐनी शहादत है कि सब उंगलियों में से पानी फव्वारा वार निकला, पानी ने लकड़ी के कटहरे को भी चक्कर दे दिया, सबको बुलाया गया और सबने सैराबी हासिल की, जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ उठा लिया तब भी वो कटहरा पानी से भरा हुआ था _,"*
 *(मुस्लिम -74/1203)*

 *★_ उस गज़वे में चार सो (400) सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे,*
[7/28, 7:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ज़ी क़ा'दा 6 हिजरी: - सही बुखारी में अब्दुल्ला शहीद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुदेबिया में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वज़ू किया, पानी एक कोज़े में था, मुसलमान उसे देख कर टूट पड़े, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुछा क्या है ? लोगों ने कहा कि पानी ना वज़ू के लिए है, ना पीने के लिए, बस यही कोज़ा आब है जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने रखा है,*

*★_ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस कोज़े में हाथ रख दिया, तब पानी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उंगलियों में से फूट पड़ा और तमाम लश्कर सैराब हो गया, सबने वज़ू भी कर लिए, जाबिर रज़ियाल्लाहु अन्हु ने सालिम इब्ने अबी जैद के सवाल पर बताया कि उस वक्त हम 1500 थे, ये भी कहा कि अगर एक लाख भी होते तब भी वो पानी सबको किफायत कर जाता _,"*
 *(बुखारी-169,3575)*

*★_ मुक़ामे हुदेबिया ही का दूसरा वाक़िया भी जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया है जो सही बुखारी में मोजूद है, चूंकी हुदेबिया में हुज़ूर ﷺ का क़याम एक हफ़्ते तक रहा था और पहला वाक़िया पहले रोज़ का है, इसके बाद पानी की फ़िर ज़रुरत पेश आई, तब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस चाह पर तशरीफ़ ले गए जिसका नाम हुदेबिया था और ये मुक़ाम् उसी चाह के नाम से मारूफ़ था, चाह का पानी खुश्क हो चुका था,*

*★_ बुखारी की रिवायत में है, _ "(यानी) नबी ﷺ चाह की मुंडेर पर आ बेठे, पानी मंगाया, कुल्ली की और चाह में डाल दी, फिर थोड़ी देर के बाद हम चाह से पानी लेने गए और सैराब हुए _,"*
 *(बुखारी - 3577,4150,4151)*

 *★_ 1500 के लश्कर के लिए मुस्तक़िल इंतज़ाम था, इमाम बुखारी ने इस वाक़िए को बर'आ रज़ियल्लाहु अन्हु से भी रिवायत किया है, इमाम अहमद रह. की रिवायत से ज़ाहिर है कि चाह का पानी उबल पड़ा, हम से आखिरी शख्स चादर ले कर भागा कि कहीं डूब न जाए और फिर ये पानी बह निकला _,"*
 *(मुसनद अहमद-18111, 18148, मजमुआ अज़ ज़वायद- 14105)*
[7/30, 7:08 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 9 हिजरी: - इमरान बिन हुसैन रजियाअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हम सफर (तबूक) में थे, सुबह की नमाज़ दिन चढ़े पढ़ी गई क्योंकि सब सोते रह गए, मुझे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आगे आगे चलने का हुक्म दिया, हमें सख्त प्यास लगी, राह चलते हुए हमें एक औरत मिली जिसके साथ पानी के दो मशकीजे़ थे, उससे मालूम हुआ कि पानी उस गांव से एक दिन एक रात की मुसाफत पर है _,"*

*★_ सहाबा उस औरत को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले गए, वहां औरत ने यह भी कहा कि वो यतीमो की मां है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसके मशकीजे़ को हाथ से छू दिया, पानी बह निकला, 40 सहाबा ने जो सख्त प्यासे थे सैर हो कर पानी पी लिया और मशक मशकीजे़ जितने साथ थे वो भी भर लिए,*

*★_ ऊंटों को वो पानी नहीं पिलाया, इमरान बिन हुसैन रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि उस वक्त वो मशकीजे़ पानी से ऐसे भरे देखे जाते थे गोया अब फूट पड़ेंगे,*

*★_ उस औरत ने घर जा कर लोगों से कहा कि मैं सबसे बड़े जादूगर से मिल कर आई हूं या उसे नबी कहना चाहिए, जेसा कि उसके साथियों का यक़ीन है, उस औरत की इत्तेला पर ये लोग भी मुसलमान हो गए और वो भी इस्लाम ले आए _,"*
 *(बुखारी - 344, 3571)*
[7/31, 8:17 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सही बुखारी में अनस बिन मालिक रजियाअल्लाहु अन्हु से रिवायत है के एक बार नमाज का वक्त आ गया, जिन लोगो के घर करीब वे वो घरो में जा कर वजू कर आए, जो बाकी रह गए नबी पत्थर के लिए प्यारे में पानी लाया गया, वो इतना छोटा था के उसमे नबी का पूरा हाथ न फेल सकता था, उसी पानी से 80 से ज्यादा लोगो ने वजू किया _," (बुखारी-200, मुस्लिम - 5941)*

 *★_ बहकी की रिवायत है के नबी ने हमें प्यारे में अपनी 4 उनगलिया'न डाली थी, अनस रजियाल्लाहु अन्हु कहते हैं के मैने हमें वक्त देखा और उन से पानी फुट कर निकल रहा है, ये वक्त मक़मे क़ुबा का है _," (तिर्मिज़ी - 3631, नासाई - 76)*

 *★_ सही बुखारी में एक रिवायत इब्ने मसूद रजियाअल्लाहु अन्हु की भी ऐसी ही है के हुजूर ने बार्टन में हाथ रख दिया और पानी हुजूर के हाथों से पैर निकला, इब्ने मसूद रजियाल्लाहु अन्हु के हम से पानी है' ने वज़ू कर लिया था_," (बुखारी-3579)*

 *★_ ऐसे ही वक्त और भी हैं और रिवायत की खुशियातो पर गोर करने से वाजे हो जाता है के अंगुष्ठान मुबारक से पानी फुट पैडने के वक्त बार बार हुए हैं, बा कसरत हुए हैं, नबी के इन मोज्जत और हम खुशुसियत लसानी की खबर पर भी अंबिया अलैहिस्सलाम के मुबारक कलामो में दे दी गई थी*
[8/1, 8:31 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ दूध की बरकत:-*
 *"_ पानी के बाद जिस चीज़ का दर्जा है वो दूध है, शबे मैराज की हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने दूध और शराब के प्याले आसमान पर पेश किए गए और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनमें से दूध को पसंद फरमाया और जिब्रील ए अमीन अलैहिस्सलाम ने ये नज़ारा देख कर कहा- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़ितरत को पसंद किया, इसीलिए इस्लाम को भी दूध के साथ तशबीह दी जाया करती है_," (बुखारी-3207, मुस्लिम- 162)*

*★_ इंसान का हर एक बच्चा दूध से पला है, मगर एक बच्चा भी दुनिया में ऐसा नहीं जिसकी रजा़'त शराब से हो, इससे साबित हो जाता है कि दूध फितरते इंसानी का राज़दार है, दाई ए ईमान व हादी ए इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत को पाक तालीम के दूध से भी परवरिश किया और उनके लबो काम को मोजज़ाना दूध से भी ज़ौक ए आशना बनाया, ऐसे वाक़ियात बहुत है _,"*

*★_ इमाम बुखारी रह. ने एक बाब बांधा है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असहाब रजियल्लाहु अन्हुम की गुज़रान का क्या हाल था ? इस बाब में हज़रत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु की हदीस बयान की है, जो मोज्जा़त ए नबवी ﷺ की भी मज़हर है और ये हक़ीक़त भी ज़ाहिर करती है कि सरवरे कायनात व फखरे मोजुदात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयाते तय्य्यबा इस दुनिया में कैसी ज़ाहिदाना थी_,"*
[8/3, 6:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि भूख के मारे कभी ऐसा होता कि जिगर को थाम कर ज़मीन पर गिर जाता, कभी ऐसा होता के पेट पर पत्थर बांध लेता, एक दिन ऐसा हुआ कि मैं सरे राह आ बेठा जहां से लोग आया जाया करते थे, हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु आए और मैंने उनसे क़ुरान पाक की एक आयत की बाबत दरयाफ़्त किया, मेरा मतलब ये था कि शायद वो मुझे कुछ खिला भी देंगे, वो यूंही चले गए _,"*

*★_ फ़िर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु आ निकले, उनसे भी एक आयत का मतलब पूछा, गर्ज़ वही थी कि कुछ खाने को देंगे, वो भी यूंही चले गए, इतने में अबुल कासिम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए, मुझे देख कर तबस्सुम फ़रमाया, मेरे जी की बात समझ गए, मेरे चेहरे को ताड़ लिया, इरशाद फरमाया- अबू हुरैरा साथ साथ चले आओ, मैं पीछे पीछे हो लिया _,"*

*★_ हुज़ूर ﷺ घर में गए, वहां हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्याले में दूध देखा, घर वालो ने हुज़ूर ﷺ को उस शख्स का नाम बताया जिसने दूध हदिया भेजा था, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे फरमाया - अबू हुरैरा जाओ अहले सुफ्फा को बुला लाओ, अहले सुफ्फ़ा वो लोग होते थे जिनका कोई घर बार न होता था, जिनको किसी शख्स का कोई सहारा ना होता, इस्लाम के मेहमान होते, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत पाक ये थी कि कोई सदका़ आता तो सबका सब उन्हें दे देते और हदिया आता तो अपने साथ शामिल फरमा लेते थे _,"*

*★_ अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने समझा अहले सुफ्फ़ा में इस दूध की हक़ीक़त क्या होगी, अगर मुझे ही मिल जाता मुझमें कुछ सक्त आ जाती, अब देखिए इसमे कुछ मिलता भी है या नहीं, यही हालात थे और इता'त इला और रसूल के बगेर कोई चारा कार न था, मैं सबको बुला लाया, आ कर बेठ गए, मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया - अबू हुरैरा ये प्याला लो और सबको पिलाओ,*

*★_ मैंने प्याला ले लिया, हर एक को देता जाता था, जब एक शख्स पी पी कर सैराब हो जाता तब दूसरे को वही प्याला देता था, इसी तरह सब सैर हो गए, तो मैंने आखिर में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने प्याला पेश कर दिया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ले कर उसे दस्ते मुबारक पर रख लिया, मुझे देखा और मुस्कुराये और फरमाया- अबू हुरैरा अब तो मैं रह गया या तू रह गया, मैंने कहा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सच है, फरमाया- अच्छा अब तू पी ले, मै बेठ गया और मैंने दूध पी लिया, फरमाया- और पियो, मैंने और पिया, फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यही फरमाते रहे- पियो, पियो, आखिर मैंने अर्ज़ किया - क़सम है उस ज़ात की जिसने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हक़ के साथ भेजा है कि अब तो गुंज़ाइश बिल्कुल नहीं रही, फरमाया - लाओ, प्याला मैंने पेश कर दिया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह का शुक्र किया, बिस्मिल्लाह पढी और प्याला खत्म कर दिया _,"*
 *(बुखारी - 6452)*
[8/5, 9:29 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सफर हिजरत में नबी ﷺ का गुज़र उम्मे मा'बद आतिका ​​बिन्ते खालिद बिन खुलैद खुज़ाया के खैमे पर हुआ, ये औरत उमर रशीदा थी और खैमा के सामने बेठी रहती, आने जाने वालों को पानी पिलाती, खजूर वगेरा फरोख्त कर लिया करती थी,*

*★_ उस वक्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे, जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ पिछली नशिस्त पर सवार थे, दूसरी सवारी पर आमिर बिन फ़ुहेरह रज़ियल्लाहु अन्हु थे या इब्ने अरीक़त रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जो उस राह के वाक़िफ थे और उजरत पर साथ ले लिए गए थे, ये मुबारक काफिला उस खैमे पर सुस्ताने आराम लेने के लिए ठहर गया,*

*★_ बुढ़िया से पुछा गया कि पास कुछ खाने पीने को भी है, वो बोली नहीं, अगर कुछ होता तो मैं खुद पेश कर देती, (इन अय्याम में क़हत भी सख्त पड़ा हुआ था)*

*★_ उम्मे मा'बद के भाई जैश बिन खालिद (क़तीलुल बतहा) का बयान है कि खैमे में एक दुबली कमज़ोर बकरी खड़ी थी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस बकरी की बाबत पुछा, उम्मे मा'बद ने जवाब दिया कि ये कमज़ोर बहुत है, रेवड़ के साथ नहीं चल सकती, इसलिये यहां रह गई, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि अगर इजाज़त हो तो हम उसे दोह ले, वो बोली अगर आपको दूध नज़र आता है तो दोह लीजिये,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया एक बड़ा बर्तन लाओ, फिर बिस्मिल्लाह कह कर बकरी से दूध निकलाना शूरू किया, बर्तन भर गया तो सबको पिलाया, दोबारा दूध निकाला, बर्तन भर गया तो दोबारा फिर सबको पिलाया गया, आखिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पिया, तीसरी बार फिर दूध निकाला और घर वालों के लिए छोड़ दिया गया _,"*
[8/7, 3:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ तकसीर ए ताम :- इस से मुराद वो मोजजा़ है कि थोड़ा सा खाने का सामान बहुत के लिए काफी हो जाए, इंजील के मुताला से जा़हिर हुआ कि मोजज़ा का जहूर मसीह अलैहिस्सलाम से भी हुआ, उन्होन 4 रोटीयों और 3 मछलियों से बहुत बड़ी जमात को सैर किया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आयाते नबुवत में भी ऐसे वक़ियात का ज़िक्र हदीस ए सहीह में बा कसरत है _,"*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि वाक़िया खंदक के अय्याम में मैंने देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पेट को बांध रखा है, मालूम हुआ कि नबी ﷺ ने भूख की वजह से ऐसा किया है, इसी हालत में हुजूर ﷺ अहले सुफफ़ा को सूरह निसा की तालीम दे रहे थे,*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु ने अपने बाप को बतलाया, उन्होन कुछ मजदूरी की और जो हासिल की, उनकी वालिदा ने अध सेर जो पीस लिए, रोटी पकाई कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अकेले तशरीफ ले आएं तो बा-खूबी सैर हो सकें । एक आध कोई साथ आ गया तब भी किफायत से काम चल जाएगा,*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु को मां बाप ने भेजा, अच्छी तरह समझा दिया कि लोगों के सामने कुछ न कहना, जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठ कर अंदर जाने लगें तब अर्ज़ कर देना कि हमारे यहां तशरीफ ले चलें_ , "*
[8/10, 7:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अनस रजियाल्लाहु अन्हु पहुंचे तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नबवा के अंदर बेठे वे, फरमाया तुझे अबू तल्हा रजियल्लाहु अन्हु ने भेजा है, अर्ज़ किया - हां, फरमाया- खाने के लिए, अर्ज़ किया - हां, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- लोगों ! चलो अबू तल्हा रजियल्लाहु अन्हु के घर, सब उठ खड़े हुए,*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु ने लपक कर बाप को इत्तेला दी, उन्होंने बीवी से कहा कि उम्मे सुलेम! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तो पूरी जमात के साथ आ रहे हैं, ये खातून बुलंद पाया समझ गई कि क्या होगा, बोली अल्लाह और उसका रसूल (बेहतर) जानता है,*

*★_ नबी ﷺ को अबू तल्हा ने आगे बड़ कर बतला भी दिया कि एक टिकिया मोजूद है, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां पहुंच कर फरमाया कि घी की कुप्पी ले आओ, कुप्पी से चंद कतरे घी के निकले, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अनगुष्त मुबारक से रोटी चुपड़ दी, रोटी फूलने लगी, बर्तन से ऊंची हो गई,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मर्दाना मकान खुलवाया, रोटी रख दी और जुबान से फरमाया - "बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा आ'ज़िम फ़ीहा बरकाता",*
 *"_ दस दस आदमी रोटी पर बेठते जाते और सैर हो कर उठते जाते थे, इसी तरह 80 शख्सों ने उस रोज़ खाना खाया _,"*
[8/12, 6:10 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि वालिद गज़वा उहद में शहीद हो गए थे और भारी क़र्ज़ छोड़ गए थे, जब खजूर की फ़सल आई, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से अर्ज़ किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चलें ताकि कर्ज ख्वाह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख कर मुझसे रिआयत करें,*

*★_ फरमाया-तुम चलो, हर क़िस्म की खजूरो की ढेरियां अलग अलग लगा दो, मैंने तामील कर दी, इतने में सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आ गए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़े ढ़ेर को तीन बार फिर कर देखा और इसके बाद वहीं बेठ गए,*

*★_ फरमाया- क़र्ज़ ख़्वाहो को बुलाओ, वो आ गए तो हर एक को नाप कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खजूर देनी शूरू की, हत्ताकी सब क़र्ज़दार निपट गए और ढेर मुझे जो का तो नज़र आता था, गोया एक दाना भी उसमे से कम नहीं हुआ_,"*
*"_ मैं तो इतने पर ही खुश था कि सारी पैदावार कर्ज ख्वाह ले ले और मुझे घर ले जाने को एक खजूर भी ना मिले _,"*
 *®_ बुखारी - 2127, 4053,*

*★_ सहीहीन में हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सब कर्ज़दारो को चुका देने के बाद फिर एक यहूदी भी आ गया, उसका क़र्ज़ 30 वस्क़ खजूर का था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो ढेरियां बाकी है उन्हें यहूदी ले ले, यहूदी ने इनकार कर दिया,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार उन ढेरियों में से गुज़र गए, फिर हुक्म दिया कि यहूदी को नाप कर दो, चुनांचे उसके 30 वस्क़ पूरे हो गए और 17 वस्क़ अभी और भी बाक़ी रह गए, उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ढ़ेरियों में से निकले थे मैं तब ही समझ गया कि अल्लाह ताआला इनमें बरकत डाल देगा _,"*
 *®_ बुखारी - 2127, 2396,*
[8/14, 6:31 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सही मुस्लिम में है कि उम्मे मालिक के घर एक कुप्पी घी की थी, वो उसमे से नबी के लिए घी निकाल निकाल कर भेजा करती था, उसके बच्चे जब सालन मांगते और सालन न होता तो उस कुप्पी में से घी निकाल कर उनको दिया करती, तो यही तरीक़ा जारी रहा, एक रोज़ उम्मे मालिक ने उस कुप्पी को निचोड़ लिया, उसके बाद उसमे से घी ना निकला, रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: अगर तुम निछोड़ न लेती तो उसमे से हमेशा घी पाया जाता_," (मुस्लिम - 5945)*

 *★_ इब्ने अबी शैयबा और अहमद और तबरानी और इब्ने सा'द ने खब्बाब रजियल्लाहु अन्हु की बेटी से रिवायत किया है कि उनके वालिद अल्लाह के रास्ते में चले गए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके घर आते और बकरी का दूध दोह जाते, घर का सबसे बड़ा बरतन दूध से भर जाता, जब खब्बाब रजियल्लाहु अन्हु वापस आ गए, उन्होंने दूध निकाला तो उतना ही निकला जितना पहले उस बकरी का हुआ करता था_," (इब्ने कसीर - 2/112, दलाइल अल-नबुवत व बह्यकी -6/136)*

*★_ सही बुखारी में अब्दुर्रहमान बिन अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत है कि एक सफर में 30 अफराद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हमराह थे, जब मंजिल पर उतरे तो हुजूर ﷺ ने पूछा कि किसी के पास कुछ खाने को भी है, एक सहाबी के पास क़रीबन दो सेर आटा था, वो गूंद लिया, फ़िर एक शख्स रेवड़ लिए हुए वहां पहुंचा, उससे एक बकरी खरीद ली गई,*

*★_ बकरी की कलेजी आग पर भूल ली गई और सब हाज़िरीन को तक़सीम कर दी गई, उसके बाद वही कलेजी दो बर्तनों में डाली गई, सबने सैर हो कर खाया, फिर भी वो खत्म न हुई तो उसे हमने ऊंट पर रख दिया _," (बुखारी - 2216, 5382)*
[8/15, 8:39 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ नबातात पर असर:- जब मदीना मुनव्वरा में मस्जिदे नबवी की तामीर की गई तो शूरू शूरू में कोई मिंबर ना था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुतबा के वक़्त खजूर के खुश्क तने के साथ टेक लगा कर खड़े हो जाते थे,*

*★_ कुछ अर्से बाद तमीम दारी रजियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त से एक मिंबर तैयार कारा लिया, वो तीन जी़ना का था, यानी दो जी़ने और तीसरी नशिश्त की जगह,*

*★_ सही बुखारी में है कि जब पहली दफा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिंबर पर खुतबा शुर फरमाया और खजूर का तना हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के टेक लगाने की इज्ज़त से मेहरूम रह गया, तब उससे आवाज़ गिरया आनी शुरू हुई,*

*★_ इब्ने उमर रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि वो बच्चों की तरह चिल्लाया, और जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत में है कि दस माहा हामला ऊंटनी की सी आवाज़ हमने उसकी सुनी, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिंबर से उतरे, उस पर दस्ते शफ़क़त रखा तो वो चुप कर गया,*
 *( बुखारी - 918, 2095, 3584, 3585)*

*★_ सही बुखारी की रिवायत में है कि फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे मिंबर के बराबर दफन करा दिया _,"*
[8/17, 6:46 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हैवानात पर असर:- मुस्लिम में जाबिर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैं एक गज़वा में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हम रकाब गया था, मेरा ऊंट पीछे रह गया था और चल ना सकता था,*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे राह में मिल गए, पुछा ऊंट को क्या है? मैंने कहा - बीमार है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऊंट को डांटा और दुआ भी फरमाई, वो सबसे आगे चलने लगा, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर मुझसे पूछा तो मैंने अर्ज़ किया कि अब वो अच्छा है और उसे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बरकत का हिस्सा मिल गया है _,"*
 *®_(बुखारी - 2097, मुस्लिम -1089, इब्ने हिबान -7143, नसाई - 7/299)*

*★_ हज़रत सफ़ीना रज़ियल्लाहु अन्हु से जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम थे रिवायत है कि उन्होन बहरी सफर किया, कश्ती टूट गई और एक तख्त पर बहते हुए एक साहिल पर पहूंच गए, जिसके साथ जंगल था, उसमे शेर थे, एक शेर मेरी तरफ आया, मैंने कहा- ओ शेर! मैं रसूलुल्लाह ﷺ का गुलाम हूं, शेर दुम हिलाने लगा और मेरे बराबर बराबर चलता हुआ मुझे रास्ते पर डाल गया, जब मैं उससे अलग हुआ तो वो दहाड़ता था गोया मुझे रूखसत कर रहा था _," (बहीक़ी -6/46, मुस्तद्रक हाकिम - 3/606)*
[8/19, 7:26 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अफलाक़ पर असर और शक़ ए कमर :-*
*"_ नबी ﷺ के अशहर मोज्जा़त में से शक़ ए कमर का मोज्ज़ा है, मुशरिकीन ने उल्मा ए यहूद से दरयाफ्त किया था कि हमको मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से उनकी सदाक़त का क्या निशान तलब करना चाहिए, उन्होन कहा कि सहर का असर सिर्फ ज़मीन तक महदूद है, तुम कहो कि चांद के दो टुकड़े कर के दिखा दो, उम्मीद है कि मुहम्मद ﷺ कुछ न दिखा सकेंगे, उन्ही की सिखलावट से मुशरिकीन ने शक़ ए कमर का सवाल किया था _," (मुस्लिम - 2802, अहमद- 3 /163, तिर्मिज़ी - 3286)*

*★_ सहीहीन में इब्ने मसूद रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत है:- रसूलल्लाह ﷺ के अहद मुबारक में चांद दो टुकड़े हो गया, एक टुकड़ा पहाड़ के इधर और दूसरा उससे नीचे था, रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया - देखो, गवाह रहना (कि मैंने मुशरिकीन को यह निशान दिखा दिया है) _," ( बुखारी - 3636, 3869 मुस्लिम - 7072)*

*★_ अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत से सहीहीन में है :- अहले मक्का (मुशरिकीन) ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरख्वास्त की थी कि उनको कोई बड़ा निशान दिखाया जाए, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें चांद का फटना दिखलाया, उसके दो टुकड़े थे, कोहे हिरा उन दोनो के दर्मियान था _," (बुखारी - 3637, 3868, मुस्लिम - 7076, 7077)*
[8/21, 6:58 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अहद ए मुस्तक़बिल का इल्म किसी इंसान को हासिल नहीं, "किसी शख्स को भी ये पता नहीं कि आने वाले कल को वो क्या क्या करेगा _," (सूरह लुकमान -34)*
 *"_इलम ए गैब का मालिक सिर्फ रब्बुल आलमीन है _,"(सूरह कहफ -26),*

*★_ रब्बुल आलमीन ही अपने गुज़िदह अंबिया और रसूल पर इल्म ए गैब का उस क़दर हिस्सा ज़ाहिर फरमाता रहा है जिसकी उनको ज़रुरत हुई या जिसकी ज़रुरत उनकी सदाक़त व रिसालत का यक़ीन दिलाने के लिए पाई गई,*
*"_ वो गैब किसी पर ज़ाहिर नहीं करता मगर जिस रसूल से वो खुश हो _,"( सूरह जिन्न - 26-27)*

*★_ सिद्दीक़ बिन्त सिद्दीक़ उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा से सहीहीन में मरवी है कि नुज़ूले वही से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर रुया ए सादिक़ा (सच्चे ख़्वाब) का बाब खोला गया था, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पुरनूर जो कुछ ख़्वाब में देख लेते, बेदारी मे वो वक़िया उसी तरह ज़हूर पज़ीर होता_," (बुखारी-3, 4953, मुस्लिम- 403, 405)*

*★_ हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के ख़्वाब का ज़िक्र क़ुरान मजीद में है, अल्लाह तआला ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के भी एक ख़्वाब का ज़िक्र सूरह फ़तेह आयत - 27 में फरमाया :- "अल्लाह ने अपने रसूल ﷺ के उस ख़्वाब को पूरी हक्का़नियत के साथ पूरा कर दिया कि तुम इंशा अल्लाह काबा में दाखिल होंगे, उस वक्त बाज़ मुसलमानो ने सर मुंडवाए हुए होंगे और बाज़ ने बाल कटवाए हुए _,"*
[8/23, 10:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हज़रत हुज़ेफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के एक रोज़ नबी ﷺ खड़े हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर एक बात जो क़यामत तक होने वाली थी बयान फ़रमा दी, जिसे याद है याद है, जो भूल गया वो भूल गया, मेरे सामने भी जब वो ऐसा वक़िया आ जाता है जो मैं भूल चुका था देखते ही समझ जाता हूं, जैसा हम किसी शख्स को भूल जाया करते हैं और फिर उसका मुंह देख कर उसे पहचान लिया करते हैं। "(बुखारी - 6604, मुस्लिम - 7262, अबू दाऊद- 4240)*

*★_ सही मुस्लिम में अबुजर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायते बाला के मुताल्लिक़ ये मजी़द सराहत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ ए फजर के बाद नमाज़ ए जु़हर तक खुतबा फरमाया, नमाज़ पढ़ कर फिर खुतबा शूरू कर दिया, गुरूब शम्श तक यही होता रहा, इस ख़ुत्बे मे वक़ियात ता क़यामत का ज़िक्र था, जिसे वो ख़ुत्बा ज़्यादा मेहफूज़ रह गया है वो हममे से ज़्यादा आलिम है" (मुस्लिम - 2892)*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक रोज नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा के घर आराम फरमाया, जब बेदार हुए तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हंस रहे थे, उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा ने वजह पुछी, फरमाया- मुझे मेरी उम्मत के वो गाज़ी दिखलाये गए जो समंदर में जिहाद के लिए सफर करेंगे, वो अपने जहाज़ो पर ऐसे बेठे होंगे जेसे मलूक अपने तख्त पर नशिस्त करते हैं,*

*★_ उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ की मेरे लिए भी दुआ फरमायें कि अल्लाह ताआला मुझे उनमे शामिल फरमाये, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फरमा दी और फिर लेट गए, फिर हंसते हुए बेदार हुए, फरमाया मुझे मेरी उम्मत के दूसरे गाज़ी जहाजों पर सवार हो कर जिहाद करने वाले दिखलाए गए, उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा ने कहा- दुआ फरमायें कि अल्लाह ताला मुझे भी उनमें शामिल फरमाये, फरमाया नहीं, तू पहले लोगो में है _,"*
*"_अमीरे मुआविया रजियल्लाहु अन्हु के ज़माने में जब उबादा बिन सामित रजियल्लाहु अन्हु बहरी जिहाद को गए तो ये उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा भी अपने शोहर के साथ गई, वापसी के वक्त उम्मे हराम रजियल्लाहु अन्हा के लिए सवारी लाई गई, वो सवार होने लगी तो जानवर ने लात मारी और उनका वहीं इंतका़ल हो गया_," (बुखारी - 2788, अहमद - 6/423)*
[8/25, 6:09 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ पेश गोई:-"_ सही बुखारी में अदी बिन हातिम ताई रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत है कि मै नबी ﷺ के हुजूर में बेठा था कि एक शख्स आया और उसने फाका़ की शिकायत की, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि - ए अदी (रजियल्लाहु अन्हु) ! अगर तुम्हारी उमर लंबी हुई तो तुम देख लोगे कि एक बुढ़िया हीरा से अकेली चलेगी और खाना काबा का तवाफ करेगी, वो अल्लाह के सिवा और किसी से ना डरती होगी _,"*

*★_ मैंने अपने दिल में कहा कि तैय के डकेट किधर चले जाएंगे, जिन्होंने तमाम बस्तियों को उजाड़ रखा है,*
*"_ फिर फरमाया- अगर तेरी उम्र लंबी हुई तो तुम किसरा के खज़ानो को जा खोलोगे_", मैने पुछा - क्या किसरा बिन हुरमुज़ ? हां किसरा बिन हुरमुज़_,"*

*★_ फिर फरमाया - अगर तेरी उम्र लंबी हुई तो तू देख लेगा कि एक शख्स ज़कात का सोना और चाँदी लिए हुए फिरेगा और कोई ना मिलेगा जो ज़कात का पैसा लेने वाला हो_,"*

*★_ अदी रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने ऐसी बुढ़िया को हज करते देख लिया जो कूफा से अकेले हज को आती थी और अल्लाह ताला के सिवा उसे किसी का खौफ ना था और खजा़इन ए किसरा की फतेह में तो मैं भी शामिल था, तीसरी बात भी तुम ऐ लोगो! देख लोगे _," (बुखारी- 3595, 1413)*

*★_ इमाम बहीकी़ कहते हैं कि उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. की सल्तनत में तीसरी बात भी पूरी हो गई कि ज़कात देने वाले को तलाश से भी कोई फ़कीर न मिलता था और वो अपना माल घर वापस ले जाया करता था _,"*
[8/26, 10:31 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बहीक़ी व अबु नीम ने बर'आ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि खंदक खोदते हुए एक बहुत बड़ा और बहुत तख्त पत्थर निकला आया, जिस पर कुदाल का असर न होता था, हमने नबी ﷺ से ये हाल अर्ज़ किया, हुजूर ﷺ ने पत्थर को देखा, कुदाल को हाथ में लिया और बिस्मिल्लाह कह कर ज़र्ब लगायी, एक तिहाई पत्थर टूट गया_,"*

*★_ उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - मुझे मुल्क फारस की कुंजियां अता की गई और मैं इस वक्त मदाइन के सफेद महल को देख रहा हूं,*

*★_ फिर दूसरी ज़र्ब लगायी और एक तिहाई पत्थर फिर टूट गया, फिर फरमाया - मुझे मुल्क शाम के खज़ानो की कुंजियां अता की गई, वल्लाह मैंने वहा के सुर्ख सुर्ख महल्लात को अभी देख लिया है_, "*

*★_ फिर तीसरी ज़र्ब लगायी और सारा पत्थर चकना चूर कर दिया और फरमाया- मुझे मुल्क यमन की कुंजियां अता की गई, वल्लाह ! मैं यहां से इस वक्त शहर सन'आ के दरवाज़ों को देख रहा हूं _,"*
 *®_ सुनन नासाई -3176, अबू दाऊद- 4302, दलाइल अल-नबुवत अल बह्यकी - 3/421, इब्ने हिशाम - 3/173,*

*★_ ये पेश गोई उस वक्त फरमायी थी जब मदीना पर मुशरिकीन हमला आवर हो रहे थे और उनसे बचाव के लिए शहर के इर्द गिर्द खंदक खोदी जा रही थी, ऐसे ज़ो़फ की हालत में इतने मुमालिक की फुतुहात की इत्तेला देना अल्लाह के नबी ही का काम है जिसे अल्लाह तआला ने हर्फ बा हर्फ पूरा फरमाया _,"*
[8/27, 6:15 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फतेह मिश्र की पेश गोई:-*
 *"_ नबी ने फरमाया - तुम अनगिनत हम मुल्क को फतेह कर लोगे जहां सिक्का किरात है, तुम वहां के लोगो से भला'इ करना क्यूंकि उनको जिम्मा और रहम के हुकूक हासिल है,*

 *★_ (फिर अबुजर रजियाअल्लाहु अन्हु से फरमाया) जब तुम देखोगे के वो शेख एक नहीं बराबर की जमीन पर झगड़ रहे हैं तब वहां से चले आना _,"*

 *★_ अबुजर रजियाअल्लाहु अन्हु ने फतेह मिसर को भी देखा और बोध बाश भी अख्तर की और ये भी देखा के (रबीआ और अब्दुर्रहमान बिन शरजील) और बराबर जमीन के लिए झगड़ रहे हैं तब नहीं से चले भी आए_,"*
 *®_ (मुस्लिम-6493, 6494, कांजुल उम्माल-31767, दलील अल-नबुवत -2/321, बह्यकी - 9/206)*
[8/27, 6:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फतेह मिस्र की पेशगोई:-*
 *"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - तुम अनक़रीब उस मुल्क को फतेह कर लोगे जहां सिक्का क़िरात है, तुम वहां के लोगो से भलाई करना क्यूंकि उनको ज़िम्मा और रहम के हुक़ूक़ हासिल है,*

*★_(फिर अबुजर रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया) जब तुम देखोगे कि दो शख्स एक ईंट बराबर की ज़मीन पर झगड़ रहे हैं तब वहां से चले आना _,"*

*★_ अबुजर रजियल्लाहु अन्हु ने फतेह मिस्र को भी देखा और बोदोबाश भी अख्त्यार की और ये भी देखा कि (रबीआ और अब्दुर्रहमान बिन शरहबील ) ईंट बराबर ज़मीन के लिए झगड़ रहे हैं तब यह वहां से चले भी आए_,"*
 *®_ (मुस्लिम-6493, 6494, कंजु़ल उम्माल-31767, दलाइल अल-नबुवत -2/321, बह्यकी - 9/206)*
[8/28, 8:01 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_पेश गोई कि ईरान के शहंशाह के कंगन सुराका़ आराबी को पहनाए जाएंगे :-*
*"_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुरका़ बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया - "तेरी क्या शान होगी जब तुझे किसरा के कंगन पहनाए जाएंगे _,"*

*★_ बेहीकी़ की दूसरी रिवायत में है कि जब उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु के पास फतेह ईरान के माले गनीमत में किसरा के कंगन पहूंचे तो सुराका़ बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उन्हें वो कंगन पहनाए जो सुराक़ा के बाजुओं के ऊपर तक पहुंचे_,"*

*★_ उमर फारूक़ रजियल्लाहु अन्हु ने कंगन पहना कर ज़ुबान से कहा - अल्लाह का शुक्र है जिसने किसरा बिन हुरमुज़ से जो अपने आपको रब्बुल नास कहलाता था ये कंगन छीन लिए और आज सुराका़ बिन मालिक आ'राबी को पहनाए_'"*

*★_ इमाम शफ़ाई रह. ने तहरीर किया है कि ये कंगन सुरका़ रजियल्लाहु अन्हु को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पेश गोई की तामील में पहनाए गए थे,*

*★_ हदीस बाला के मुख्तसर फ़िक़रे पर गौर करो जो तीन पेश गोइयों पर मुश्तमिल है :-*
*1- खिलाफते फारूकी की सदाक़त पर जिसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद को पूरा किया,*
*2_ फतेह ईरान को,*
*3_ फतेह ईरान तक सुराका़ रजियल्लाहु अन्हु के जिंदा रहने पर, सुराका़ फतेह ईरान से सिर्फ चंद साल बाद तक ही ज़िंदा रहे,*
[8/29, 7:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब ऐसी पेश गोइयों का ज़िक्र किया जाता है जिनका इंद्राज हदीस की किताबो में पहले से हो चुका था फिर उन पेश गोइयों का ज़हूर दुनिया के सामने बाद में हुआ, इससे साबित होगा कि ऐसी पेश गोइयों की नशिस्त तसना या साख्त का वहम भी नहीं किया जा सकता, नीज़ उनसे ये भी साबित होगा कि कुर्बे क़यामत की अलामात व शराइत जिन अहदीस में बयान फरमाई गईं और जिनका ज़हूर आज तक नहीं हुआ, उनका ज़हूर भी यक़ीनन अपने अपने औक़ात (जो इल्मे इलाही में मुक़र्रर है) अपने जा़हिरी अल्फाज़ व कमाल के साथ बसीरत अफजा़ ए मोमिनीन होगा_,"*

*★_ 654 साल पहले की पेश गोई:-*
*"_ क़यामत नहीं आएगी जब तक हिजाज में ऐसी आग नुमाया न हो जो बसरा के ऊंटों पर अपनी रोशनी ना डालेगी_" ( बुखारी- 118, मुस्लिम-2902, इब्ने हिबान-6839, मुसनद अहमद-5/144)*

*★_ नबी ﷺ के फ़र्मुदा अल्फाज़ का ज़हूर जमादी उस्सानी 654 हिजरी को हुआ, यानी सहीहीनुल हदीस की वफ़ात से भी चार सदियों के बाद, इस आग के मुताल्लिक़ जिसकी इब्तिदा पहाड़ की आतिश फ़शानी से हुई, जुदागाना किताबों में तहरीर की गई,*

*★_ शेख सफीउद्दीन मुदर्रिस मदरसा बसरा की शहादत मोजूद है कि जिस रोज़ उस आग का ज़हूर हिजाज में हुआ उसी शब बसरा के बद्दुओं ने आग की रोशनी में अपने ऊंटों को देखा और शिनाख्त किया,*

*★_ ये आग यकम जमादिउस सानी को पहाड़ से फूट पड़ी थी, दूसरी तारीख को ज़लज़ला की रफ्तार तेज़ महसूस होती थी, तीसरी को ज़लज़ला की शिद्दत और बड़ गई, चौथी को ज़लज़ला के साथ गरज की आवाज़े भी आने लगी गोया फलक ज़ोर ज़ोर से कड़क रहा हो, पांचवी को धुंवे ने ज़मीन व आसमान और उफ़क को छुपा लिया, आग के शोले बुलंद होने लगे, पत्थर पिघलने लगे, रोज़ बा रोज़ आग का रुख मदीना शहर की जानिब था, मदीना के बासिंदों ने जुमा की शब मस्जिदे नबवी मे हाज़िर रह कर तमाम रात दुआएं करते रहे, सुबह को देखा कि आग का रुख पलट गया, ताज्जुब की बात ये थी उस शिद्दते आग के वक्त भी मदीना में जो हवा आती थी, वो ठंडी नसीम होती थी,*
[8/30, 7:49 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 656 साल पहले की पेश गोई:-*
 *"_ क़यामत क़ायम ना होगी (कई बातों के बाद फरमाया) जब तक तुम उन तुर्को से जंग ना कर लोगे जो छोटी छोटी आंखो वाले सुर्ख चेहरे वाले, पस्त नाक वाले होंगे, उनके चेहरे ढाल जेसे चौड़े होंगे_," ( बुखारी- 2928, 3585, हमीदी- 1101, अबू दाऊद- 4304, कंजुल उम्माल- 38404)*

*★_ ये फ़ितना तातार की ख़बर है, हलाकू ख़ान के लश्करों ने खुरासान व इराक को तबाह किया, बिल आखिर उनको भी बड़ी शिक़ास्त हुई थी, ये वाक़िया 656 हिजरी का है, और सहीहीन में 5 सदी पहले से दर्ज चला आता था _,"*

*★_ 885 साल पहले की पेश गोई:-*
 *"_ मुसनद अहमद में और सही मुस्लिम में बा रिवायत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु और सुनन अबू दाऊद में बा रिवायत माज़ बिन जबल रजियल्लाहु अन्हु कुस्तुनतुनिया का ज़िक्र मोजूद है _,"*

*★_ मुहम्मद फतेह सुल्तान ने कुस्तुनतुनिया को 855 हिजरी (1353 वर्ष) में फतेह किया, यानी किताब मुसनद से 6 सदियों और साल हिजरत से साढ़े 8 सदियों के बाद दुनिया ने देख लिया जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया था _, "*
[8/31, 6:13 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 1444 साल की पेश गोई:-*
 *"_ फतेह मक्का के दिन (पंज शंबा 20 रमजान 8 हिजरी) नबी ए ने शीबा बिन उस्मान रजियाअल्लाहु अन्हु और उस्मान बिन तल्हा रजियाअल्लाहु अन्हु को बैतुल्लाह की चाबियां और फिरते हुए इरशाद फरमाया था:-*
 *"_ लो ये कुंजी संभल लो, हमशा हमेशा के लिए, तुमसे ये छाबी कोई न छिनेगा मगर वही जो ज़ालिम होगा _," (कुरतुबी- 5/256)*

 *★_ मुक्तसर अल्फाज़ में 3 पेश गोइयां मनरज है:-*
 *1_ खानदान अबू तल्हा का दुनिया में बाकी रहना, नसल क़ैम रहना _,*
 *2_ बैतुल्लाह की चाबियों की हिफ़ाज़त वी ख़िदमत का इन्ही के मुताल्लिक रहना _,"*
 *3_ उनके हाथो से छाबियां जाने वाले का नाम ज़ालिम होना _,"*

 *★_ नंबर 1 वी 2 की बात अब तक कुल दुनिया को मलूम है के ये छाबियां बनू शीबा में आज तक मुजूद है और ये नसल अब तक जारी है,*

 *★_ नंबर 3 की बाबत मोरखें का बयान है के यज़ीद पलीद ने उनसे ये छबियां छिन ली थी, उसके बाद फिर ये 1444 साल का जमाना शाहिद है के किसी और शाखों ने अल्लाह के रसूल की जुबान से ज़बान से की जुर्रत नहीं की _,"*
[8/31, 6:32 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 1444 साल की पेश गोई:-*
 *"_ फतेह मक्का के दिन (पंज शंबा 20 रमजान 8 हिजरी) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शीबा बिन उस्मान रजियल्लाहु अन्हु और उस्मान बिन तल्हा रजियल्लाहु अन्हु को बैतुल्लाह की चाबियां अता फरमाते हुए इरशाद फरमाया था:-*
 *"_ लो ये कुंजी संभाल लो, हमेशा हमेशा के लिए, तुमसे ये चाबी कोई न छीनेगा मगर वही जो ज़ालिम होगा _," (कुरतुबी- 5/256)*

*★_ इन मुख्तसर अल्फाज़ में 3 पेश गोइयां मिनदर्ज है:-*
*1_ खानदान अबू तल्हा का दुनिया में बराबर बाक़ी रहना, नस्ल क़ायम रहना _,*
*2_ बैतुल्लाह की चाबियों की हिफ़ाज़त व ख़िदमत का इन्हीं के मुताल्लिक़ रहना,*
*3_ उनके हाथो से चाबियां छीनने वाले का नाम ज़ालिम होना _,"*

*★_ नंबर 1 व 2 की बात अब तक कुल दुनिया को मालूम है कि ये चाबियां बनू शीबा में आज तक मोजूद हैं और ये नस्ल अब तक जारी है,*

*★_ नंबर 3 की बाबत मो'रखीन का बयान है कि यज़ीद पलीद ने उनसे ये चाबियां छीन ली थी, उसके बाद फिर ये 1444 साल का ज़माना शाहिद है कि किसी और शख्स ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जुबान से ज़ालिम कहलाने की जुर्रत नहीं की _,"*
[9/3, 6:46 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_पेश गोई जिसकी तस्दीक ज़माना हाल हमारे सामने कर रहा है :-*
*"_ सही मुस्लिम मैं अबू मस्तूर रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत मोजूद है कि उन्होन अमरू बिन आस रजियल्लाहु अन्हु फातेह मिस्र के सामने ये बयान किया कि आखिरी ज़माने में पूरे युरोपियन इसा'इयों का दुनिया में ज़ोर हो जाएगा, अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हे रोका और कहा कि देखो क्या कह रहे हो ?"*
*"_ उन्होंने कहा कि मैं तो वहीं कह रहा हूं जो मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है, अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु तब बोले तब तो दुरूस्त है _," ( मुस्लिम -7229)*

*★_ क़ारईन गोर करें कि ये रिवायत सहाबी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस वक़्त बयान की जब असाकरे इस्लाम जुमला अतराफे आलम में मुज़फ्फर व मंसूर थे, जब उनको इराक़ व शाम व मिस्र खुरासान व ईरान व सूडान की फुतुहात में कहीं एक जगह भी शिकस्त नहीं हुई थी,*

*★_ आज दुनिया देख ले कि अमेरिकन (जो अपनी असल के ऐतबार से युरोपियन में है) बरतानिया, इटालिया, पुर्तगाल, स्विडन, नॉर्वे, स्विटजरलैंड, स्पेन, जर्मनी वगेरा की हालत क्या है?*
[9/4, 7:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ पेश गोई (तेहत्तर फिरके़) जिसकी सदाक़त की शहादत मोजूदा ज़माना अदा कर रहा है :-*
 
*★"_ बहकी व हाकिम ने अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु व मुआविया रजियल्लाहु अन्हु और तबरानी ने औफ बिन मालिक अशजई से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ये अल्फाज़ (लंबी रिवायत में) बयान किए हैं:-*
*"_ मेरी उम्मत में तेहत्तर फिरके़ हो जाएंगे_,"*
 *(अबू दाउद -4496, तिर्मिज़ी - 2640, इब्ने माजा - 3991, इब्ने हिबान - 6247, मुसनद अहमद-2/332,)*

*★_ नुज़ूल ए क़ुरान ए पाक के वक़्त उम्मते मुहम्मदिया के जुमला अफराद का मुनफ़रदन व मुज्तमन एक ही नाम था यानी मुस्लिम, जैसा कि क़ुरान पाक में (सूरह हज -78) "तुम्हारे बाप इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है _,"*

*★_ अमीरुल मोमिनीन अली मुर्तजा़ रजियल्लाहु अन्हु की ख़िलाफत के आगाज़ तक यही वाहिद और जामे नाम सबका माईरफा रहा, लेकिन खुरुजे खवारिज के बाद नए फिरके़ और उन फिरको़ के नए नए नाम हो गए। हर एक फिरक़े को अपने मख़्सूस नाम पर नाज़ है _,"*

*★_ ये पेश गोई ऐसी हिदायत और सदाक़त के साथ पूरी हो रही है कि करोड़ों मुसलमानों के अलग अलग दावे इसकी तस्दीक़ में मोजूद है,*
[9/6, 6:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बंदो की दुआओं का क़ुबूल फरमाना रबुल आलमीन के सिफ़ाते इलिया में से है, वो रऊफ़ुर रहीम हर एक बंदे की दुआ को बा-शर्ते पूरे इफ्तक़ार व इस्तरार से की गई हो, क़ुबूल फरमाता है,*

 *★_ َ(सूरह अन-नमल, आयत 62: तर्जुमा):- कौन है (अल्लाह के सिवा) जो मुज़तर की पुकार को क़ुबूल फरमाता है _,"*

 *★_ वो रहमान व रहीम इता'त करने वालों की दुआओं को खुसूसियत से मंज़ूर फरमाता है,*
*"_(सूरह अल-बकरा, आयत- 186, तर्जुमा):- जब मुझसे माँगने वाले मुझसे माँगते हैं तो मैं उनकी पुकार को सुन लेता हूँ और दरख्वास्त को मंज़ूर कर लेता हूँ _,"*

*★_ वो अज़ीज़ुल हकीम अपने अहद और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इज्ज़त और बुज़ुर्गी को जहां व जहांनिया के दिलों में मुस्तहकम व इस्तवार करने के लिए उनकी दुआओं को बा सर'अत व बा कसरत मंज़ूर फरमाता है, हत्ताकी ये अलामत बजाये खुद एक मोजज़ा (दुनिया को इसकी नज़ीर पेश करने से आजिज़ करने वाली) एक निशान ( हिदायत के तलाबगारों को राहे हिदायत पर मिलाने वाली) एक आयत ( अल्लाह ताला के क़ुर्ब तक पहुंचाने वाली) बन जाती है, सैकड़ों ऐसे वाक़ियात मोजूद है कि नबी ﷺ की सच्ची ज़ुबान से जो अल्फ़ाज़ निकले वो पूरे तोर पर उसी तरह मिंजानिब अल्लाह पूरे किए गए जेसा कि उन अल्फाज़ के मा'नी लग्वी का इक़्तिज़ा था _,"*
[9/8, 7:42 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सही बुखारी व सही मुस्लिम में अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है अहदे नबवी में कहत पड़ा, इन्ही अय्याम में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुमा का खुतबा मिंबर पर बयान कर रहे थे कि एक आराबी उठा, उसने कहा - ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम माल तबाह हो गया और अयाल भूख से निढाल है, हमारे लिए दुआ फरमाएं _,"*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दोनो हाथ दुआ के लिए उठाए, उस वक़्त आसमान पर कोई बदली भी ना थी, अल्लाह की क़सम अभी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ नीचे भी नहीं किये थे कि पहाड़ो जैसे बादल जमा हो गए,*

 *★_ फ़िर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अभी मिम्बर से ना उतरे थे कि हुज़ूर की डाढ़ी मुबारक पर क़तरात बारिश नज़र आने लगे, उस रोज़ सारा दिन बरसता रहा, फ़िर अगले दिन भी और उसके अगले दिन भी, गर्ज़ दूसरे जुमा तक यही हाल रहा_,"*

*★_ और फिर वही आराबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने खड़ा हुआ, कहा - ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अब तो मकानात गिरने लगे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ उठा कर ये अल्फाज़ कहे - "_अल्लाहुम्मा हवालैना ला अलैना _," (इलाही गर्दो नवाह में बरसे, हम पर ना बरसे), फ़िर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिधर के बादलों की तरह इशारा फ़रमा देते थे, वही फट जाते थे हत्ताकी मदीना साफ निखर गया और शहर से बाहर जल थल का मंज़र हो गया और बाहर से भी जितने लोग आए सबने बारिश का होना बतलाया _,"*
 *®_(बुखारी -1021 मुस्लिम- 897, अबू दाउद- 1174, इब्ने हिबान - 2558, मुसनद अहमद- 3/194)*
[9/9, 7:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ दुआ ए इफ्फत (परहेजगरी):-*
 *"_ इमाम अहमद रह. ने और शोबुल ईमान में बेहिक़ी रह. ने रिवायत की है कि एक शख्स नबी ﷺ के हुजूर में आया, अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझे ज़िना की इजाज़त मिल जाए, लोग सुनते ही उसे देखने और झिड़कने लगे, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - क़रीब आओ और बैठ जाओ, वो जवान क़रीब हो कर बैठ गया _,"*

*★_ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया -क्या तू अपनी मां के लिए ये पसंद करता है? वो बोला - कुर्बान जाऊं नहीं, फरमाया - हां कोई शख्स भी अपनी मां के लिए ये पसंद नहीं करता _,"*
*"_ फ़िर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पुछा - तुम अपनी बेटी के लिए ये पसंद करते हो ? वो बोला - क़ुर्बान जाऊं नहीं, फरमाया - हां, कोई शख़्स भी अपनी बेटी के लिए ये पसंद नहीं करता _,"*

*★_ फिर हुज़ूर ने पुछा - तुम अपनी बहन के लिए ये चीज़ पसंद करते हो? वो बोला - कुर्बान जाऊं नहीं, फरमाया - हां कोई शख्स भी अपनी बहन के लिए ये पसंद नहीं करता _,"*
*"_ फ़िर हुज़ूर ने पुछा - तुम अपनी फूफ़ी के लिए ये बात पसंद करते हो ? वो बोला - क़ुर्बान जाऊं नहीं, फरमाया - कोई इंसान भी अपनी फुफ़ी के लिए पसंद नहीं करता _,"*

*★_ फिर पुछा - तुम अपनी खाला के लिए ये बात पसंद करते हो? वो बोला - कुर्बान जाऊं नहीं, फरमाया - हां कोई बशर भी अपनी खाला के लिए इसे पसंद नहीं करता _,"*
*"_ इस्के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दस्ते मुबारक उस पर रखा और ये अल्फाज़ जुबान से कहे :-*
 *"_ اللهُمَّ اغْفِرْ ذَنْبِي وَطَهِّرْ قَلْبِي، وَحَصِّنْ فَرْجِي _,"*
*(तर्जुमा) इलाही इसका गुनाह दूर कर दे, इसका दिल पाक कर दे और इसका सतर महफूज़ कर दे _,"*

*★_ इस दुआ के बाद ये जवान कभी ऐसी बात का ख्याल भी न किया करता था _,"*

 *®_ शोबुल ईमान बेहिकी -5415, अहमद-5/257, तफ़सीर इब्ने कसीर-5/70, कंजुल उम्मल-466*
[9/10, 6:37 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बेहिक़ी ने बा रिवायत अब्दुल्ला बिन अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु बयान किया है कि बहिरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो क़ौम तेय से था, वाक़िया दोमता अल- जुंदुल के मुताल्लिक अपना शेर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को सुनाया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया- तू नववे (90) बरस की उमर पहूंचे, उनकी डाढी और दांत सब सालिम थे_," (कंजुल उम्माल -30276, दलाइल अल-बह्यकी - 5/251, इब्ने कसीर -5/17, इब्ने हिशाम- 4/139)*

*★_ सा'इब बिन यज़ीद के लिए दुआ :-*
 *"_ सही बुखारी में जाद बिन अब्दुर्रहमान रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सा'इब बिन यज़ीद 94 साल के होकर फ़ौत हुए, उन्होंने कहा कि ये नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ का समरा है कि मेरी बिनाई वी शनवाई अब तक दुरस्त है _," ( बुखारी - 3540, 5670)*

*★_ अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियल्लाहु अन्हु अशरा मुबश्शरा के लिए दुआ:-*
*"_ सहीहीन में अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अब्दुर्रहमान रजियल्लाहु अन्हु को "बाराकल्लाहु लका" फरमाया था, अब्दुर्रहमान रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि इसकी बरकत से अब तक ये है कि अगर मैं पत्थर उठाता हूं तो तवक़्को होती है कि यहाँ से मुझे सोना चाँदी दस्त्याब होगी _," (बुखारी - 2049, 5167, मुस्लिम - 1667, 2540)*
[9/11, 7:36 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु के लिए दुआ :-*
 *"_ सहीहीन में अनस बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे इन अल्फाज़ में दुआ दी थी:- "अल्लाहुम्मा अक्सिर मालहू वा वलादहु वा बारिक लहू मा रज़क़तहू _,"*
*"_ इलाही इसके माल इसकी औलाद को बढ़ा और जो कुछ तू इसे अता फरमाये उसमे बरकत दे _,"*

*★_ अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं - बा खुदा ! मेरे पास माल कसीर है और मेरे बेटों और पोतों का शूमार एक सो (100) के क़रीब तक है _,"*
*®_(बुखारी -1982, मुस्लिम - 6372, तिर्मिज़ी -3829, मुसनद अहमद- 3/108, 188)*

*★_ तिर्मिज़ी और बहीकी़ में अबुल आलिया से रिवायत है कि अनस रजियल्लाहु अन्हु के पास एक बाग था जिसके दरख्त साल में दो दफा फल दिया करते थे, उस बाग का एक ऐसा फूल था जिसकी खुशबू कस्तूरी जेसी थी_,"*
*®_( तिरमिजी-3833, दलाइल अल-नबुवत व बहीकी़ -6/195)*
[9/14, 7:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मालिक बिन रबिआ सलोली रजियल्लाहु अन्हु के लिए दुआ :-*
*"_ इब्ने असकिर ने यज़ीद बिन अबू मरियम से रिवायत किया है कि मेरे वालिद मालिक बिन रबिआ रज़ियाल्लाहु अन्हु ने मुझे बताया था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे लिए क़सरते औलाद की दुआ फरमाई थी, अल्लाह तआला ने मुझे अस्सी (80) फरजंदां नरीना अता फरमाये _," (अल असाबा - 3/345)*

*★_ तकब्बूर की साजा :- सही मुस्लिम में सलमा बिन अकवा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख्स बाएं हाथ से खा रहा था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - दायें हाथ से खाओ, वो बोला - मैं नहीं खा सकता, ये जवाब उसने सिर्फ गुरूर मे आकर दिया था, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - "तू ना खा सके," इसके बाद उसका दाहिना हाथ मुंह तक न उठ सकता था _," (मुस्लिम - 5268)*

*★_ टूटी हुई हड्डियों के दुरुस्तगी का मोजज़ा:-*
*"_ सही बुखारी में बरा रजियाशल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब अब्दुल्लाह बिन अतीक रजियल्लाहु अन्हु क़त्ले अबू राफे के बाद ज़ीने से उतरे तो गिर पडे और उनकी पिंडली की हड्डियां टूट गई, उन्होन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया, फरमाया- पांव फैलाओ, उन्होन फैला दिया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस जगह दस्ते मुबारक रख दिया, फ़ोरन वो ऐसा तंदूरस्त हो गए गोया कभी कोई शिकायत ही ना थी _,"*
*(बुखारी - 4039, मुसन्निफ़ अब्दुर्रज़ाक़- 5383, मजमुआ अज़ ज़वाइद- 6/201, मुस्तद्रक- 6/434)*
[9/17, 6:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सुन्नत ए मुस्तफा व तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम _,"*
*"_ क़ाज़ी अयाज़ रह. ने किताब "अल शिफा फी बयान हुकूकुल मुस्तफा" में हदीस जै़ल बा रिवायत अमीरुल मोमिनीन अली मुर्तजा रजियल्लाहु अन्हु बयान की है, इससे नबी ﷺ के महासिन अखलाक और मकरिम आदात का वजुह बाखूबी होता है _,"*

*★_ मुसन्निफ का जो दर्जा हदीस में है वो उनकी किताब अकमाल शरह सही मुस्लिम और "मशारिकुल अनवार" से बा खूबी नमुदार है _,"*

*★_ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से सवाल किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा (सुन्नत) क्या है ?*
*"_ फरमाया- मारफत मेरा रासुल कमाल (पूंजी) है, अक़ल मेरे दीन की असल है, मुहब्बत मेरी बुनियाद है, शोक मेरी सवारी है, ज़िक्रे इलाही मेरा अनीस है, ऐतमाद मेरा ख़ज़ाना है, हुज़्न (गम) मेरा रफीक है, इल्म मेरा हाथियार है, सब्र मेरा लिबास है, रज़ा मेरी गनीमत है, अजिज़ मेरा फख्र है, जुहद मेरा हिरफा है, यक़ीन मेरी खुराक है, सिद्क़ मेरा साथी है, इता'त मेरा बचाव है, जिहाद मेरा खल्क़ है और मेरी आंखों की थंड़क नमाज़ में है _,"*
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 *★_ खसाइसुल कुरान-:-*

 *"_ कुरान करीम वो पाक किताब है जिसे नबी ﷺ ने कलामुल्लाह बता कर अपनी जुबान मुबारक से हरफन हरफन सुनाया, लिहाज़ा सीरत निगार नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फर्ज़ है कि क़ुरआन मजीद के मुताल्लिक भी ज़रूरी है मुबाहिस को सीरत नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ पेश करे,*

*★_ कुरान पाक के नाम भी असमाउल हुस्ना की तरह 99 तक पहुंच गए हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा खास इसका नाम मुबारक "कलामुल्लाह" है और सबसे बढ़ कर मशहूर इसका नाम "अल कुरान" है,*

*★_ ज़रुरत ए क़ुरान पाक :- क़ुरान मजीद की ज़रुरत मालूम करनी हो तो सब साहेबान को उस ज़माने की तारीख और सफा आलम की हालत पर ज़रूर गौर करना चाहिए, ईरान के मजूस का सरापा शिर्क की नजासत में गर्क़ होना और अहाता इंसानियत से निकल कर उनकी मां बेटी, बहन से अज़्दवाज को जायज़ ए मुबाह समझ लेना,*

*★_ रोमा चर्च के ईसाइयों का सरीह बुत परस्ती में मुब्तिला होकर उस मुशरिकाना अकी़दे की तरजीह में लाखों बंदगाने इलाही का खून पानी की तरह बहाना, यमन का क़ब्र परस्ती और भूत प्रेत की इबादत में महु हो जाना और फिर खुद को आसमानी फ़रज़ंद कहलाने का मुस्तहिक क़रार देना, उसका फ़िस्क व फ़िजूर में पड़ कर शराब को बेहतरीन अफ़आल ए इंसानी क़रार देना, मर्द औरत की बरहंगी के आज़ा की मिसालो को शोदवालों मे क़ाइम करना और दुख्तरकशी और जुवां को शराफ़त का निशान क़रार देना, अरब का बाज़ सिफ़ाते बाला में अक्सर मुमालिक से बढ़ जाना _,"*

*★"_अलगर्ज़ मामूरा आलम पर सख़्त तारीकी छाई हुई थी और इन ज़लालतो के दूर करने में वो किताबें जो दुनियां में पहले नाज़िल शुदा थीं, नाकाफ़ी साबित हो चुकी थी,*

*★_ इन तमाम आलम के बिगडे हुए माशरे पर तो क्या असर होता कि खुद उस क़ौम (जिसमे किताब नाज़िल हुई) में उसकी इता'त बाक़ी ना रही थी, इसलिये ज़रुरत थी एक ऐसी किताब की जिसमे तमाम आलम की इसलाह और तमाम किताबों को अपने अंदर जमा कर लेने की क़ाबिलियत और बा- लिहाज़ अपनी मजमुई शान के दीगर अवराक़ परेशान सी दुनिया को मुस्तगना कर देती _,"*

*★_ जिस तरह सख़्त गर्मी और जिसके बाद रहमत की बारिश का नुज़ूल होता है, जिस तरह रात की सख़्त तारीकी के बाद खुर्शीद ए आलम अफ़रोज़ तुलु फरमाता है, उसी तरह तमाम दुनिया पर फैली हुई ज़ुल्मते मुज़लिमा ही ने क़ुरान मजीद के नूरे मुबीन की ज़रुरत को अफराद ए आलम के दिलो दिमाग में साबित व महसूस कारा दिया था _,"*

*★_ लिहाज़ा रहमत ए रब्बानिया ने जो इंसान को अदम से वजूद में लाने और नुत्फा से इंसान ए कामिल बनाने मे कार फरमा है, हमारी रूहानी ज़रुरत के लिए इस नूर व हिदायत (कुरान पाक) को नाज़िल फरमाया _,"*

: *★_ बद बख्ती से ऐसा फिरका भी पैदा हो गया है जो रब करीम को अरहमर राहेमीन तो मानता है मगर फिर भी उसके कलामे इलाही के दुनिया में नाज़िल होने की ज़रुरत से इन्कार करता है _,"*

*★_ "उसने अगर आंखों को बीनाई दी है तो देखने के लिए अनगिनत रंगते भी बनायी हैं _," (सूरह अन-नूर -35)*

*★"_ अगर कान को सुनवाई मिली है तो सुनने के लिए तरह तरह ​​की आवाजें भी पैदा की है, पांव चल सकते हैं तो उसकी जोलानी के लिए फर्श ज़मीन में हमवार व नमुदार राहें भी निकाल दी हैं, मुंह खा सकता है तो ज़ायका़ के वास्ते मीठे सलोने खट्टे फ़ीके खाने भी मुहैय्या किए हैं, यानि जिस क़दर हवासे ज़ाहीरी और क़ुवा ए बातिनी जिस्मे इंसानी में पाए जाते हैं उसके मुताल्लिक एक एक जुदागाना आलम भी पैदा किया गया है _,"*

*★_ मगर इन्हें अब भी सख्त इन्कार है कि रूह ए इंसानी के लिए (जो फितरत ए इंसानी की ख़जीना दार और उसकी मिल्कियत की हुक्मरान है) कोई जुदागाना आलम मोजूद हो, अगर ये लोग रूह का इन्कार कर देते है तो इनकी हालत पर इतना अफ़सोस ना होता लेकिन रूह का इक़रार और रहमते इलाही की जानिब से उसके लिए आलमे खास का इन्कार क़त'न इसरार ए फ़ितरत से अदमे आगाही पर मुबनी ( अज्ञानता पर आधारित) है _,"*

 *"★_ कुरान ए करीम पढो, मोजूदा हालात व कैफियात के मुताल्लिक किस क़दर ऊंची दलीलों से काम लेना पड़ा, कुरान ए करीम की 6666 आयत शरीफ का अंदाज़ा करो और उन उलूम व मारिफ का तखमीना लगाओ का प्रयोग करें जो उन आयात में महफूज़ किए गए हैं _,"*

*★_ उन आयतों के पेश करने से कोई शख्स ये न समझ ले कि हम सिर्फ इतनी ही आयात को पेश कर सकते थे या यही चंद आयात नमूना बनाए जाने की सलाहियत रखती हैं, ला वल्लाह!*

*★_ इस वक्त हमारी मिसाल उस गुलदस्ते की सी है जो एक गुलिस्तां ताज़ा बहार की सेर को निकलता और वापसी के वक्त वहां से चंद गुल ए शादाब को जे़ब सरो सीना बना लेता है, कोई शख्स कह सकता है कि इस गुलचे के बाद फूल बाक़ी ही ना रहे, यक़ीनन इसका जवाब मनफ़ी होगा,*

*(1)_ उसुले इबादत :- (सूरह यासीन-आयत-22 तर्जुमा)- क्या वजह है कि मै जा़त की इबादत ना करूं जिसने मुझे पैदा किया और जिसकी तरफ हम तुम सबको लोट कर जाना है _,"*

*★_(2):- शराफत इंसानियत:-*
*"और बेशक हम फरज़ंदान ए आदम को इज़्ज़त बख्शी और बहरो बर (सेहराओं और समन्दरो और दरियाओं) में उनके लिए सवारियां और पाकीज़ा चीज़े उनको खिलाई और अपनी बहुत सी मखलुका़त पर ( जिन्हें हमने पैदा किया है) इनको बरतरीन फज़ीलत अता की _", (सूरह बनी इसराइल - 70)*

*★_(3)_ आवामीर यानि करने के काम :-*
*"_ अल्लाह ताला का हुक्म ये है कि अद्ल व एहसान करो और क़राबत दारो के साथ उम्दा सुलूक करो _," (सूरह नहल - 90)*

*★_(4)_ नवाही यानी ना करने के काम :-*
*"_ अल्लाह तआला बेहयाई के कामों से और बगावत से और ना- पसंदीदा उमूर से तुमको मना करता है _," (सूरह नहल -90)*

*★_(5)_ मुहर्रमात :-*
*"_ मेरे परवरदिगार ने मिन्दर्जा़ ज़ेल बातो को हराम ठहरा दिया है :-*
*_ (1) बेहयाई की सब सूरतें खुली हो या छुपी हो, (2) गुनाह (3) बगावत नाहक़ (4) अल्लाह के साथ शिर्क, जिसके जवाज़ की बाबत कोई अक़ली दलील मोजूद नहीं, ( 5) अल्लाह तआला के खिलाफ अपनी बे इल्मी से बातें बनाना _," (सूरह अल-आराफ -33)*

: *★"_(6)_ ता'वुन :-*
*"_ (तर्जुमा) - सूरह अल माईदा- 2):- नेकी और परहेज़गरी के कामो में एक दूसरे की मदद किया करो _,"*

*★"_(7)_ अदम ए ता'वुन:-*
*"_ (तर्जुमा सूरह अल-माईदा -2):- गुनाह और सरकशी (ज़ुल्म) की बातो (कामो) में किसी की कुछ मदद ना करो _,"*

*★"_(8)_ अपने अफ'आल की पूरी पूरी ज़िम्मेदारी:-*
*"_ (तर्जुमा सूरह अल- अन'आम- 164):- "कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे शख्स (के गुनाह) का बोझ नहीं उठायेगा _,"*

*★"_(9)_ बुराई को फैलाना भी बुरा है :-*
*"_ (तर्जुमा सूरह अन-निसा, 148):- बुराई का खुला ज़िक्र अल्लाह को पसंद नहीं, हां मज़लूम इस से मुस्तशना है _,"*

*★"_(10)_हिल्म व तवाज़ो की तालीम :-*
*"_(तर्जुमा सूरह अल- फुरकान ):- और रहमान के बंदे वो हैं जो ज़मीन पर आजिज़ी से चलते हैं और जब जाहिल लोग उनसे बात करते हैं तो वो सलामती की बात कहते हैं _,"*

 *★"_(11)_ ना पसंदीदा आदतें:-*
*"_ (तर्जुमा सूरह लुक़मान 18):- मक्कार और झूठे फखर करने वाले को अल्लाह पसंद नहीं करता _,*

*★_(12)_ चुगली से नफ़रत दिलाने वाली मिसाल :-*
*"_(तर्जुमा सूरह अल-हुजरात 12)_ तुममे से कोई भी दूसरे की चुगली ना करे, क्या तुम मुर्दा भाई की लाश का गोश्त खाना पसंद कर सकते हो (चुगली की याही मिसल है)_,"*

*★_(13)_ नफ़ा रसानी की ज़रुरत व फ़ज़ीलत:-*
*"_(तर्जुमा सूरह आले इमरान 92)_ तुम असल नेकी को उस वक़्त तक हासिल नहीं कर सकते, जब तक अल्लाह की राह में अपनी प्यारी चीज़ों को खर्च ना करोगे _,"*

*★_ (14)_ भाई चारे की तालीम :-*
*"_(तर्जुमा सूरह अल-हुजरात 10)_ सब ईमान वाले आपस में भाई भाई हैं, यही पक्की बात है, तुम अपने दो भाइयों में सुलह करा दिया करो _,"*

*★_(15)_ औरतों के हुकूक़ मर्दों के बराबर है:-*
*"_(तर्जुमा सूरह अल-बक़राह 228)_ दस्तूर के मुताबिक (जेसे) हुक़ूक़ औरतों के मर्दों पर है, वेसे ही औरतों के हुकूक मर्दों पर हैं _,"*

*★_(16)_ मियां बीवी का इत्तेहाद :-*
 *"_ (तर्जुमा सूरह अल-बकराह 187)_ औरतें मर्दों के लिए लिबास हैं और मर्द औरतों के लिए लिबास हैं _,"*

*★_(17)_ औरत को जुदा न करने की नसीहत:-*
*"_(तर्जुमा सूरह अल-अहज़ाब 37)_ अपनी बीवी को अपने पास रहने दे और अल्लाह से डर _,"*  

: *★_(18)_ शुक्र का हुक्म और फ़ायदा :-*
*"_ अगर तुम शुक्र करोगे तो तुमको बढ़ाता रहूँगा_," (सूरह इब्राहिम -7)*

*★_(19)_ इम्तिहान ए इलाही की चीज़ :-*
*"_ माल व दौलत और औलाद में बंदों का इम्तिहान है_," (सूरह तगाबुन - 15)*

*★_(20)_ कसरे नफ्सी की तालीम:-*
*"_ मैं नफ़्स को बरी नहीं ठहराता, नफ़्स तो बुराई की तरफ़ उकसाया करता है_," (सूरह यूसुफ - 53)*

*★_(21)_ दीन ए इलाही की तारीफ :-*
*"_ अल्लाह की बनाई हुई उस फितरत पर चलो जिस पर उसने तमाम लोगों को पैदा किया है, अल्लाह की तखलीक़ में कोई तब्दीली नहीं लाई जा सकती, यही बिलकुल सीधा रास्ता है _," (सूरह - रूम 30)*

*★_(22)_ जंग से बचने की तदबीर:-*
*"_ तुम दुश्मनो के लिए अपनी पूरी ताक़त से तैयार रहो और सरहदों पर पूरी फौजी तैयारी रखो, इस तदबीर से तुम अल्लाह के और अपने दुश्मनों को रोके रखोगे _," (सूरह अल- अनफाल- 60)*

*★_(23)_ दीन ए सहीहा का मक़सद :-*
*"_ वो अल्लाह का ये इरादा नहीं कि तुम पर कोई दुश्वारी डाले, उसका तो इरादा ये है कि तुमको पाक साफ बनाए और अपनी नियामत तुम पर तमाम कर दे ताकी तुम शुक्र गुज़ार बनो _," (सूरह माइदा- 26)*

: *★"(24)_ रब ए बरतर का ताल्लुक़ अहले ईमान के साथ रहमत व मुहब्बत का है :-*
*"_ (तर्जुमा) तुम्हारे परवरदिगार ने अपनी जात़ पर रहमत को लिख रखा है (जमा कर रखा है)_," (सूरह अन'आम -12)*

 *★_(तर्जुमा)_ वो बहुत बख्शने वाला मुहब्बत करने वाला है _," (सूरह बुरूज -14)*

 *★_ (तर्जुमा)_ अल्लाह तो ईमान वालों से मुहब्बत करने वाला है और उनका कारसाज़ है और उन सबको तारीकियों से निकालता है और नूर में लाता है _," (अल बक़राह- 257)*

 *★(25)_ एक अकेले इंसान की जान की क़ीमत :-*
 *"_(तर्जुमा)_ अगर किसी ने एक इंसान को मारा तो गोया उसे तमाम नो इंसानी को क़त्ल कर डाला और जिस किसी ने एक इंसान को भी हलाक़त से बचा लिया, गोया उसने तमाम इंसानों की ज़िंदगी को बचा लिया_," ( सूरह- माइदा -32)*

 *★(26)_ मुल्क में फसाद की मुमानत:-*
 *"_(तर्जुमा) _अल्लाह की नियामतों को याद रखो और मुल्क में फ़साद फ़ेलाने से बाज़ आ जाओ _," (सूरह आराफ़ -74)*

: *★"_ (27)_ खर्च करने के उसूल:-*
*"_ रहमान के बंदे वो हैं कि जब खर्च करते हैं, तब ना इसराफ (फिजूल खर्ची) करते हैं और ना बुख्ल (कंजूसी) करते हैं और इन हालतो की दरमियानी हालत पर चला करते हैं_," (अल-फुरका़न -67)*

*★"_(28)_ माल व जागीरे दुनिया से आराम व आसाइश भी उठाओ और आखिरत भी कमाओ :-*
*"_ जो कुछ खुदा ने तुझे दिया है उसमे आखिरत की भी तलब कर और अपना दुनियावी हिस्सा भी मत भूल जा और भलाई किया कर, जेसा कि अल्लाह ने तुझसे भला की है _," (अल क़सस - 77)*

*★_(29)_ गरीब मिसकीनों की मदद :-*
*"_ क़राबत वाले (रिश्तेदार) और मिस्कीन और मुसाफिर का हक़ अदा किया कर, ये बात उन लोगों के लिए बेहतर है जो अल्लाह की खुशनूदी चाहते हैं और यही लोग हैं जो फलाह (कामयाबी) पायेंगे _, "(रूम- 38)*

*★"_(30)_ क़सम खाने वाला इंसान बे -एतमाद बन जाता है :-*
*"_ जो कोई शख्स बहुत क़समे खाता है और ज़लील बनता है उसका ऐतमाद ना कर _," (अल क़लम- 10)*

: *★_(30)_ अल्लाह अज़ व जल से दुआ मांगा करो :-*
 *"_अल्लाह ही से दुआ मांगा करो, खालिस उसी के हो कर और उसी के फरमा बरदार बन कर रहो _," (सूरह- गा़फिर- 14)*

*★"_(32)_ हम्द ए खालिक़ व मदाह मखलूक़:-*
*"_ हम्द का मालिक अल्लाह है और अल्लाह के बंदो के लिए सलाम (सलामती) है _," (सूरह अल नमल -59)*

*★"_(33) _निजा़म ए आलम का बयान :-*
*"_ तू रहमान की पैदा करदा चीज़ो में कुछ फ़र्क़ ना देखेंगा, ज़रा आंख उठा कर देख क्या तुझे कोई नुक़्स भी नज़र आया _," (सूरह अल मुल्क -3)*

*★"_(34)_ कुरान मजीद में अंकबूत (मकड़ी) के घर की मिसाल:-*
*"_ सब घरों में कमज़ोर अंकबूत (मकड़ी) का घर बना होता है, अगर लोगों को इल्म हो _," (सूरह अंकबूत- 41)*

*★", इल्म को मकड़ी के घर के मुताल्लिक़ फरमाया, इसलिए कि मकड़ी के घर में अहले इल्म के लिए बड़े बड़े अजाइब है, जर्मन प्रोफेसरों का कौ़ल है कि मकड़ी के जाले का हर एक तार चार तारों से मिला हुआ होता है और उन चार तारों में हर एक तार एक हज़ार तार से बना हुआ होता है, यानी एक तार में चार हजार तागे होते हैं, अहले इल्म गौर करें कि उस जाले को बनाने वाली मकड़ी को अल्लाह तआला ने किस क़दर फ़हम व फरासत और बारीक नहज व ख़यातत (बुनने) की सिफ्त अता फरमाई है _,"*

: *★_(35)"_कुरान मजीद और शहद की मक्खी की मिसाल :-*
*"_ तेरे रब ने शहद की मक्खी को वही की_," (सूरह अंकबूत -41)*

*★"_ शहद के छत्ते के अंदर निज़ाम ए कौ़मी, फौज और अहले सनद की जुदागाना तक़सीम, जुदागाना खानदानों के अलहिदा अलहिदा मोहल्ले, बच्चा देने वाली रानी की हुकूमत, बच्चों की परवरिश और तरबियत की खिदमात को सर अंजाम देने वाला अमला, शहद के ज़खीरे, ज़खीरों की हिफ़ाज़त के तरीके, शहद बनाने के लिए हज़ारो तरह ​​की क़िस्म के फूलों में चाशनी का निकाल कर लाना, छत्ते के सब घरों का एक जेसा रक़बा होना, ये जुमला उमूर इस नतीजे का पता देता है कि जब वही ए रब्बानी किसी जी रूह की तकमील की जानिब मुतवज्जह होती है तो उसे क्या से क्या बना देती है और जब क़ुरान जैसी वही इंसान जेसे ज़ी अक़ल व फहम के बदनी व रूही की तरह इल्तफात फरमाये तो उसे किन किन मंज़िलों तक बुलंद फरमा देगी,"*

*★_(36)_ कुरान मजीद और नमल (चुंटी) की मिसाल:-*
*"_ चुंटियों की रानी ने कहा - चुंटियों तुम अपनी आराम गाहो में दाखिल हो जाओ कहीं तुमको सुलेमान और उसके लश्कर रेजा़ रेजा़ न कर दें और उनको इसकी खबर भी ना हो _," (सूरह अल नमल - 18)*

 *★"_ अल्लाह अल्लाह! चुंटियों के पास ऐसे घर मोजूद है कि जब वो उनमें दाखिल हो जाएं तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का लश्कर भी उनको ना बिगाड़ सके _,"*

*★_ ये आयत हर एक कमज़ोर क़ौम को ताक़तवर क़ौम के सामने ज़िंदा रहने और अपनी हस्ती क़ायम रखने के वसाईल की तालीम देती है, जिनमे पहला सबक - वो इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ है कि अपने सरदार की राय पर जुमला अफ़राद क़ायम व आमिल हों _,"*

*"★_ दूसरा सबक ज़ाती हिफ़ाज़त का सामान हर वक़्त मुकम्मल रखना, तीसरा सबक़ किसी बालातर ताक़त के साथ मुक़ाबला आरा'ई का इरादा ना करना, चोथा सबक़ - नुक़सान रसीदा हो जाने की हालत में भी उस शख्स को इल्ज़ाम ना देना है जिसकी नियत और इल्म में नुक़सान रसानी शामिल न थी,*

*★_ पांचवा सबक- जब मुसलमानों की इज्तिमाई हालत चुंटियों की सी हो जाए तो उनको क़ुरान पाक की हिफाज़त में दाखिल हो जाना चाहिए, छठा सबक- आने वाले खतरों से आगाह करना क़ौम के अमीर का फ़र्ज़ है, सातवां सबक़ -चुंटियों की तरह कमज़ोर तरीन जिन्स भी ज़िंदा रह सकती है अगर वो बका़ ए हयात का इरादा रखती है, इसलिये किसी कौ़म का ज़ौफ कमज़ोरी उसके फना की दलील नहीं _,"*

 *★_(37)_ कुरान मजीद और ज़मीन व आसमान की चीजों को नज़र ऐतबार से देखने का हुक्म :-*
*"_ आसमान और ज़मीन के अंदर की सब चीज़ों को देखो कि वो क्या हैं? (सूरह यूनुस - 101)*

*★_ यही आयत है जो जुमला इंक्षाफात की जड़ है, क़ुदरत की पैदा की हुई हर चीज़ को नज़र ऐतबार से देखना, उसके ख़वास और माहियत, हक़ीक़त का मालूम करना इंसान को बुलंद तरीन मर्तबे पर पहुंचाने वाला है, अफसोस हम लोग ऐसे अहकाम की तामील से किस क़दर लापरवाह, क़ासिर और गाफिल है _,"*

*★_ (38)_कुरान मजीद और समंदर के फायदे :-*
*"_और वही है जिसने समंदर को तुम्हारे लिए काम पर लगाया ताकी तुम उससे ताज़ा गोश्त खाओ और उससे वो ज़ेवरात निकालो जो पहनते हो, और तुम देखते हो कि उसमे कश्तियां पानी को चीरती हुई चलती हैं, ताकि तुम अल्लाह का फ़ज़ल तलाश करो, और ताकी तुम शुक्र गुज़ार बनो_," (सूरह अल नहल - 14)*

*★_ हम इस पोस्ट का सिलसिला यही खत्म कर रहे हैं, रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ को हमने मुख्तसर करके पेश करने की पूरी कोशिश की है, इसका हक़ तो हम अदा नहीं कर पाए, यकी़नन हमसे कुछ गलतियां भी हुई होंगी, गुज़ारिश है हमारे लिए दुआ करें, अल्लाह तआला दरगुज़र का मामला फरमाये_,"*
 
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*📓रहमतुल्लिल आलमीन ﷺ ( क़ाज़ी मुहम्मद सुलेमान सलमान मंसूरपुरी रह.) -* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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