⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत खदीजा रजि. ⚂*
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*❥ _ एक रोज़ हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने चाचा की खिदमत में हाज़िर हुए तो उन्होंने कहा:- भतीजे! मैं एक गरीब आदमी हूं मेरे हालात बहुत सख्त हैं बहुत तंगी में दिन गुज़र रहे हैं, यहां एक मालदार खातून हैं वह अपना तिजारत का सामान शाम वगैरा की तरफ भेजती हैं, यह काम वह तुम्हारी क़ौम के यानी कु़रेश के लोगों से लेती हैं, इस तरह वह लोग उसके माल से तिजारत करते हैं खुद भी नफा हासिल करते हैं और उस खातून को भी नफा हासिल हो जाता है, मेरा मशवरा यह है कि तुम उनके पास जाओ, इस बात का इमकान है कि वह तुम्हें अपना माले तिजारत दे दें, वह तुम्हें जानती हैं, तुम्हारी सदाक़त और पाकीज़गी के बारे में उन्हें इल्म है_,"*
*❥_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने चाचा के मशवरे पर अमल किया, उस खातून की तरफ चल पड़े, अबू तालिब ने अपनी बांदी नबी'आ को उनके पीछे भेज दिया, वह यह जानने के लिए बेचैन थे कि वहां क्या होता है, वह खातून आपसे कैसे पेश आती हैं _,"*
*❀__यह खातून हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा थीं, वह आपसे खंदा पेशानी से मिलीं, आपको इज़्ज़त से बिठाया, दरअसल आपके बारे में बहुत कुछ जानती थीं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बारे में जो बातें वहां के मा'शरे में फैल चुकी थीं वह भी उन तक पहुंची थीं, इसलिए इस मुलाक़ात से पहले ही आपसे बहुत मुतास्सिर हो चुकी थीं _,*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपनी आमद का मकसद बयान फरमाया, इस पर हजरत खदीजा ने फरमाया :- मैं आपकी सच्चाई अमानतदारी और हुस्ने अखलाक से वाकिफ हूं मैं आपको दूसरों की निस्बत दोगुना माल दूंगी _,"*
*★_ यह सुनकर आपने इत्मीनान महसूस किया, उनका शुक्रिया अदा किया और वहां से अबू तालिब के पास आए, उन्हें बताया :- उन्होंने अपना माले तिजारत मुझे देने पर रज़ामंदी ज़ाहिर कर दी है_,"*
*"_ अबू तालिब यह सुनकर खुश हुए और बोले :- यह रिज़्क़ हैं जो अल्लाह ताला ने आपकी तरफ भेजा है _,"*
*★_ बाज़ रिवायात में है कि अबू तालिब की बहन आतीका बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब यानी आपकी फूफी ने भी इस सिलसिले में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मुलाक़ात की थी, हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इरादे के बारे में जब उन्होंने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से ज़िक्र किया तो आपने जवाब में फरमाया :- मुझे मालूम नहीं था कि वे इस पेशे का इरादा रखते हैं _,"*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा इससे पहले ही आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को आपकी फूफी हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हुमा के यहां देख चुकी थी, इस तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पाकीज़ा आदात से ला इल्म नहीं थीं _,"*
[5/4, 6:11 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ आप रज़ियल्लाहु अन्हा का ताल्लुक़ खानदाने कुरैश से था, आपके वालिद का नाम खुवेल्द बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा था, यह अब्दे मुनाफ के भाई थे और अब्दे मुनाफ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दादाओं में से थे, अब्दुल उज़्ज़ा और अब्दे मुनाफ के वालिद क़ुस'ई बिन किलाब थे, इस तरह हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा का सिलसिला नसब चौथी पुश्त में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से जा मिलता है _,"*
*★_ आपके वालिद खुवेल्द जमाना जहिलियत में अरबों के सिपहसालारों में से थे, फुजार की लड़ाई में अपने क़बीले की क़यादत की थी, जब तब'अ हजरे अस्वद को उखेड़कर यमन ले गया तो उसके वापस लाने में भी खुवेल्द की कोशिश का दखल था _,"*
*★_ खुवेल्द की औलाद बहुत थी, उनमें हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा सबसे ज़्यादा मशहूर हैं, आपकी वाल्दा का नाम फ़ातिमा बिंते जा़यदा बिन अल असम बिन आसिम बिन लुवई है और नानी का नाम हाला बिन्ते अब्दे मुनाफ है_,"*
*★_आपके वालिद खुवेल्द बहुत बा इज्ज़त आदमी थे कुरेश में उन्हें अहतराम की निगाह से देखा जाता था, मक्का में रहते थे, फातमा बिन्त जा़यदा से शादी हुई और उनसे हाथियों वाले साल (अबरहा के हमले का साल) से 15 साल पहले हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा पैदा हुईं, जिनके मुक़द्दर में पहली उम्मूल मोमिनीन होना लिखा जा चुका था _,"*
[5/15, 9:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपने खाते पीते घराने में परवरिश पाई, तारीख की किताबों में आपके बचपन के हालात नहीं मिलते इतना ज़रूर मिलता है कि आप बहुत खुदा तुर्स थीं, गरीबों को खाना खिलाती थीं ज़रूरतमंदों की मदद करती थीं, अल्लाह ताला ने उन्हें एक खास मुका़म के लिए चुन लिया था।*
*★_ आपके एक चचाजा़द भाई वरका़ बिन नोफल थे, यह तौरात और इंजील के बहुत बड़े आलिम थे, मज़हब के एतबार से ईसाई थे, हजरत खदीजा के वालिद उनसे अपनी बेटी की शादी करना चाहते थे लेकिन किसी वजह से यह निकाह ना हो सका और आपकी शादी अतीक़ बिन आबिद बिन अब्दुल्लाह बिन मखज़ूम से हो गई, बाज़ रिवायात की रु से पहली शादी अबु हाला बिन बनाश से हुई।*
*★_ अतीक़ बिन आबिद से आपके यहां एक बच्चा अब्दुल्लाह पैदा हुआ, उसके बाद अतीक़ बिन आबिद का इंतका़ल हो गया ,आपकी बेवगी को ज़्यादा अर्सा नहीं गुज़रा था कि अबु हाला बिन बनास ने निकाह का पैगाम दिया, इस तरह आपकी दूसरी शादी अबु हाला से हो गई, अबू हाला से आपके यहां दो बेटे हिंद और हारिस और एक लड़की ज़ैनब पैदा हुई।*
*★_ फिर फुजार की लड़ाई में आपके वालिद वफात पा गए, उनके बाद आपके दूसरे शौहर ने वफात पाई, बाप और शौहर की वफात की वजह से आपको मुश्किलात का सामना करना पड़ा, बच्चों की देखभाल अब उन्हीं के ज़िम्मे थी, क़ुरेश के कई नौजवानों ने आपको शादी का पैगाम भेजा लेकिन आपने बच्चों की वजह से इंकार कर दिया, आपने सोच लिया था कि बच्चों की तर्बीयत करेंगी और शादी नहीं करेंगी ।*
[5/15, 5:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपके खानदान का पेशा चूंकि तिजारत था इसलिए आपने भी वही पेशा अख्तियार किया लेकिन चूंकि औरत थी इसलिए अपना माल दूसरे लोगों को दे देती थी, वह दूसरे मुल्कों में माल ले जाते, इस तरह नफे में से उन्हें अपना हिस्सा मिल जाता था ।*
*★_ बहुत जल्दी आप मक्का की मशहूर ताजिर बन गईं, एक खास बात यह है कि दूसरों की तरह आप बुतों को नहीं पूजती थीं, बाज़ क़रीबी लोगों ने उनसे कहा भी कि आप घर में एक बुत रख लें, यह सुनकर आप हमेशा मुस्कुरा दिया करती, आप अच्छी तरह जानती थी कि इन बुतों की क्या हैसियत है, उन्हें इल्म था कि यह पत्थर के बुत तो किसी को नफा पहुंचाने की ताक़त रखते हैं ना नुक़सान पहुंचाने की ।*
*★_ उन्होंने कई मर्तबा अपने भतीजे हकीम बिन हिजाम को भी बुतों के क़रीब जाने से रोका, वो उनसे फरमाया करती थीं :- अपने माल को गरीबों और मिस्कीनों पर खर्च किया करो, इससे अल्लाह खुश होता है_,"*
*★_ आप अपने चचाज़ाद भाई वरका़ बिन नोफल से आसमानी किताबें तौरात और इंजील सुना करती थीं, उन किताबों का सुनना आपको बहुत अच्छा लगता था, वरका़ बिन नोफल उन्हें बताया करते थे कि अल्लाह के एक रसूल आने वाले हैं और उन्हीं में आने वाले हैं, अल्लाह ताला उन्हें लोगों की हिदायत के लिए भेजेंगे उनकी कौ़म उनकी मुखा़लफत पर डट जाएगी लेकिन आखिर उन्हें गलबा हासिल होगा _,"*
[5/16, 10:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत खदीजा यह बातें सुनती तो ख्वाहिश करती, काश वह अल्लाह के रसूल का दीदार कर सकें, उनके दिल में यह ख्वाहिश भी सर उभारती थी कि उन्हें उस रसूले अरबी की पैरवी नसीब हो जाए और यह उनकी हर मुमकिन मदद करें।*
*★_ आखिर तिजारती काफिले की रवानगी के दिन आ गए, हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हुमा ने अपना तिजारती माल आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हवाले कर दिया, साथ ही आपने अपने गुलाम मैसरह को आपके साथ रवाना किया और उन्हें हिदायत दी :- खबरदार ! उनकी नाफरमानी ना करना और उनकी किसी राय से इख्तिलाफ ना करना _,"*
*★_ इससे मालूम हुआ, आपने मैसरह को आप की निगरानी करने के लिए नहीं भेजा था बल्कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का हर तरह से ख्याल रखने और खिदमत गुजारी के लिए भेजा था ।*
*★_ वो तिजारती का़फिला 16 ज़िलहिज्जा को रवाना हुआ, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चचा आप को अलविदा कहने के लिए आए, और फिर वह काफ़िला रवाना हुआ जिसमें वह हस्ती थी जो अल्लाह ताला की सारी मखलूक से अफज़ल और आला थी, अल्लाह ताला उस हस्ती की निगहबानी फरमा रहे थे, उस क़ाफिले की एक खास बात ये थी कि हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के माल बरदारों की तादाद बाक़ी तमाम लोगों के ऊंटों की मजमुई तादाद से ज़्यादा थी, आखिर यह का़फिला शाम के शहर बसरा पहुंच गया, का़फिले ने एक गिरजे के क़रीब पढ़ाव डाला ।*
[5/17, 9:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने बचपन में अपने चचा अबू तालिब के साथ ही एक तिजारती सफर किया था, उस सफर में भी आप इसी गिरजे के क़रीब उतरे थे, उस वक्त यहां आपकी मुलाक़ात एक पादरी से हुई थी उसका नाम बहीरह था लेकिन अब जब आप यहां उतरे थे तो इस गिरजे का पादरी नस्तूरा था और दोनों सफरों के दरमियानी मुद्दत 13 साल थी, पहले सफर में आपकी उम्र 12 साल थी और अब आप 25 साल के हो चुके थे ,*
*★_ नस्तूरा की नज़र आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पड़ी तो वह तेज़ी से आपकी तरफ बढ़ा, काफिले के लोगों ने उसे तेज़ी से आपकी तरह बढ़ते देखा तो उन्हें खयाल हुआ यह किसी बुरी नियत से आ रहा है लिहाज़ा उनमें से एक ने फौरन तलवार सौंत ली और चिल्ला उठा :- ए कुरेश ! ए कुरेश !*
*★_ चारों तरफ से लोग दौड़ पड़े, यह देखकर वह डर गया और डर कर गिरजे में दाखिल हो गया, गिरजे का दरवाजा बंद करके उसने एक खिड़की खोली और पुकारा :- ए लोगों तुम किस बात से डर गए यह देखो मेरे पास एक तहरीर है, क़सम है उस ज़ात की जिसने आसमानों को बगैर सुतून के उठा दिया, मैं इस तहरीर में लिखा हुआ पाता हूं कि इस दरख़्त के नीचे उतरने वाला शख्स रब्बुल आलमीन का पैगंबर यानी अल्लाह का रसूल होगा, जिसे अल्लाह ताला नंगी तलवार और ज़बरदस्त इमदाद के साथ ज़ाहिर फरमाएंगे, वह खातिमुन नबिय्यीन है, उनके बाद कोई नबी आने वाला नहीं, अब जो शख्स उनकी इता'त और फरमाबरदारी करेगा वह निजात आएगा और जो उनकी नाफरमानी करेगा वह ज़लील व ख्वार होगा _,"*
*★_ दूसरी रिवायात में यह वाकि़या इस तरह लिखा है कि वह गिरजा से बाहर आया और बोला :- यह कौन साहब हैं जो इस दरख़्त को नीचे तशरीफ़ फरमा हैं ? जवाब में मैसरह ने कहा:- यह मक्का के एक कुरेशी जवान है_,"*
*"_अब राहिब ने आपको और करीब जाकर देखा, फिर आपके सर और क़दमों को बौसा देने के बाद बोला :- मैं आप पर ईमान ले आया हूं और मैं गवाही देता हूं कि आप वही हैं जिनका जिक्र अल्लाह ताला ने तौरात में किया है_,"*
*"_फिर उसने मोहरे नबूवत को देखा और चूमा, फिर बोला:- मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल है, नबी उम्मी हैं, जिन की आमद की बशारत हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने दी है _," ( सीरत हलबिया )*
*★_ आप उस वक्त जिस दरख्त के नीचे आराम फरमा थे उसके बारे में नस्तूरा ने यह कहा :- इस दरख़्त के नीचे नबी के सिवा कोई नहीं उतरा _,"*
[5/17, 11:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गर्ज़ इस वाक़िये के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम काफ़िले के लोगों के साथ बाजा़रे बसरा तशरीफ लाए और सामाने तिजारत फरोख्त किया, कुछ माल खरीदा, ऐसे में एक शख्स आप से झगड़ पड़ा, उसने कहा:- लात व उज़्ज़ा की क़सम खाओ _," उसकी बात के जवाब में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- मैंने इन तीनों के नाम पर कभी हलफ नहीं उठाया _," वह शख्स भी गालिबन कोई आलिम था, उसने आपकी तरफ गौर से देखा और पहचान कर बोला :- आप ठीक कहते हैं _,"*
*"_ उसके बाद यह शख्स मैसरह से मिला उसे क़दर फासले पर ले गया और कहने लगा :- क़सम है उस जा़त की यह वहीं हैं जिनका जिक्र हमारे राहिब अपनी किताबों में पाते हैं _,"*
*★_ मैसरह ने उसकी बात को गौर से सुनी और उसे अपने दिमाग में महफूज़ कर लिया, बसरा पहुंचने से पहले एक वाक्य़ा और पेश आया था, क़ाफिले के दो ऊंट बहुत ज़्यादा थक गए थे और चलने के काबिल नहीं रहे गए थे, उन ऊंटों की वजह से मैसरह भी काफिले से पीछे रह गया, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम काफ़िले के अगले हिस्से में थे, मैसरह ने ऊंटों के बारे में परेशानी महसूस की, साथ ही उसे यह फिक्र हुई कि वह खुद भी काफिले से पीछे रह गया है, चुनांचे वह दौड़ता हुआ क़ाफिले तक पहुंचा और अगले हिस्से में मौजूद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आया, अपनी परेशानी के बारे में आपको बताया, आप उसके साथ उन दोनों ऊंटों के पास तशरीफ लाए, उनकी कमरों पर अपना हाथ फेरा, कुछ पढ़ कर उन पर दम किया, इसका फौरी तौर पर असर हुआ, ऊंट फौरन खड़े हो गए और फिर इस क़दर तेज़ चले कि काफिले के अगले हिस्से में पहुंच गए और अपनी चुस्ती और तेज़ चलने का इज़हार मुंह से आवाज़ निकालकर करने लगे,*
*★_ फिर तिजारत का काम शुरू हुआ, काफिले का माल फरोख्त किया गया और कुछ माल खरीदा भी गया, इस खरीद-फरोख्त में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इतना नफा कमाया कि पहले कभी इतना नफा नहीं कमा सके थे, चुनांचे मैसरह ने आपसे कहा :- ए मोहम्मद! हम बरसों से खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के लिए तिजारत कर रहे हैं लेकिन इतना ज़बरदस्त नफा हमें कभी हासिल नहीं हुआ _,*
*★_ आखिर तिजारत से फारिग होकर काफिला वापस रवाना हुआ, रास्ते में मैसरा ने एक बात यह नोट की कि जब दोपहर का वक्त होता था और गर्मी जो़रों पर होती थी और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने ऊंट पर सवार होते थे, तब आप पर एक बदली साया किए रहती थी,*
[5/18, 6:36 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस तरह अल्लाह ताला ने मैसरह के दिल में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए बहुत मोहब्बत पैदा कर दी, इस सफर में उसने क़दम बा क़दम पर आपकी नेकी शराफत सच्चाई और दयानतदारी का मुज़ाहिरा किया और फिर तो यूं महसूस होने लगा जैसे मैसरह खुद आपका गुलाम हो ।*
*★_ आखिर काफ़िला मरज़ोहरान के मुकाम पर पहुंचा, यह मक्का और असफान के दरमियान एक वादी है, अब इस वादी का नाम वादी ए फातिमा है, यहां पहुंचकर मैसरह ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज़ किया :- क्या आप पसंद फरमाएंगे कि आप खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास हम से पहले पहुंच जाएं और उन्हें तमाम हालात बताएं कि इस मर्तबा तिजारत में किस क़दर ज्यादा नफा हुआ है, मुमकिन है वह यह बात सुनकर आपके मुआवज़े में इज़ाफ़ा कर दें और 2 जवान ऊंटों के बजाय आपको 3 ऊंटनियां दें _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मैसराह के इस मशवरे को क़ुबूल कर लिया, अपनी ऊंटनी पर सवार होकर मर ज़ोहरान से आगे रवाना हो गए, आप दोपहर के वक्त मक्का मुअज़्ज़मा में दाखिल हुए, उस वक्त हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने मकान के ऊपर वाले हिस्से में बैठी थीं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा में दाखिल हुए तो हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको दूर से देख लिया, आप ऊंट पर सवार थे और एक बदली आप पर साया किए हुए थी, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने खुद तो यह मंजर देखा ही अपने पास बैठी दूसरी औरतों को भी दिखाया, वह सब भी यह मंजर देख कर बहुत हैरान हुईं ।*
*★_ आखिर आप खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास पहुंचे, उन्हें तिजारत में मुनाफे वगैरा के बारे में बताया, यह नफा उस नफे से दोगुना था जो पहले आपको हासिल हो रहा था, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा इस मुनाफे का हाल जानकर बहुत खुश हुईं, फिर उन्होंने पूछा :- और मैसरह कहां है ? आपने बताया :- मैंने उन्हें जंगल में पीछे छोड़ा है, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- उसके पास जाएं ताकि वह जल्द से जल्द यहां पहुंच जाए_,"*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको वापस इसलिए भेजा कि वह देखना चाहती थी, थोड़ी देर पहले जो बदली आप पर साया किए हुए थी क्या अब भी वह बदली आप पर साया करती है या वह सिर्फ एक इत्तेफाक था, आप वापस रवाना हुए तो हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा छत पर चढ़ गईं और आपको देखने लगीं, उन्होंने देखा कि वह बदली अब भी आप पर साया किए हुए थी और उसी शान से चले जा रहे थे जिस शान से तशरीफ लाए थे ।*
[5/18, 7:01 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुछ देर बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मैसरह के साथ वापस तशरीफ लाए, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मैसरह से वह कैफियत बयान की जो आपने देखी थी, मैसरह फोरन बोल पड़ा :- मैं यह मंज़र उस वक्त से देखता रहा हूं जब हम शाम से रवाना हुए थे, इसके बाद मैसरह ने नस्तूरा राहिब से मुलाक़ात के बारे में बताया और जिससे खरीद फरोख्त के वक्त झगड़ा हुआ था उसने जो बताया था वह सारी बात भी बताई, दो ऊंट जो पीछे रह गए थे उनका वाक्य़ा भी सुनाया, यह तमाम वाक्य़ात सुनने के बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने तयशुदा उजरत से दोगुना उजरत आपको दी, जबकि पहली उजरत भी दूसरे लोगों की निसबत 2 गुना थी, फिर वापसी पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वहां से कपड़ा खरीद कर लाए थे उसने भी बहुत नफा हुआ ।*
*★_ इन तमाम वाक़िआत ने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को हद दर्जा मुतास्सिर किया, आपको आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बहुत लगाव पैदा हो गया, चुनांचे आपने अपनी एक अज़ीज़ नफी़सा बिन्ते मुनैया को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में खुफिया तौर पर भेजा, उसने आपके पास आकर कहा :- ऐ मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) आप शादी क्यों नहीं कर लेते? जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- भला मेरे पास क्या है कि शादी कर सकूं _," उसने कहा :- और अगर आपको इसकी जरूरत ही ना पड़े बल्कि आपको माल व दौलत, इज्ज़त, हुस्न व जमाल, इज्ज़त सब कुछ मिल जाए तो क्या आप क़ुबूल कर लेंगे ?*
*★_ नफी़सा की बात का मतलब यह था कि अगर ऐसी कोई खातून जिसमें शराफ़त पाक बाज़ी वगैरा तमाम खूबियां मौजूद हों और माल व दौलत भी जिसके पास हो और वह खुद ही आपको निकाह की दावत दे तो क्या आप मान लेंगे _,"*
*"_ आपने यह सुनकर पूछा :- और वह कौन खातून हैं ? उसने कहा :- वह खदीजा बिन्त खुवेल्द हैं _," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पूछा :-उन तक मेरी रसाई कैसे होगी _," यह कहने से आप का मतलब यह था कि मैं एक गरीब आदमी हूं और वह बहुत मालदार हैं, इस पर नफीसा ने कहा :- इसका ज़िम्मा में लेती हूं।*
*★_ आपने रजा़मंदी ज़ाहिर कर दी, इस तरह शादी की तारीख तय हो गई, मुक़र्रह तारीख पर क़बीले के र'ईस, मक्का मुअज़्ज़मा के शुरफा और उमरा जमा हुए, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की तरफ से उनके चाचा अमरु बिन असद वकील थे, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ से आपके चाचा अबू तालिब वकील थे, इस तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी अंजाम पाई, यह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पहली शादी मुबारक थी, उस वक्त आपकी उम्र मुबारक 25 साल और सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की उमर 40 साल थी ।*
*★_ निकाह के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वलीमे की दावत दी, आपने 2 ऊंट ज़िबह फरमाए, उस रोज़ अबु तालिब भी बहुत खुश थे, उन्होंने इस मौक़े पर कहा :- अल्लाह ताला का शुक्र है कि उसने मुसीबतों और गमों को हम से दूर कर दिया _,"*
[5/19, 4:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पहले कुरेश के बहुत से लोग हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को शादी का पैगाम दे चुके थे लेकिन आप हर मर्तबा इंकार करती रहीं थीं, इसलिए कि अल्लाह ताला ने आपका रिश्ता आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से लिख दिया था, शादी के बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपनी सारी दौलत आपके क़दमों में ढेर कर दी, आपको उसका मालिक बना दिया और खुद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में दिन रात लगी रहने लगीं ।*
*★_ अब जों जों आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्र 40 साल के क़रीब पहुंच रही थी एलाने नबूवत का वक़्त क़रीब आ रहा था, आपका वक्त ज्यादातर तन्हाई में बसर होने लगा था, फिर आप गारे हिरा में जाने लगे, तनहाई में आपको एक आवाज़ सुनाई देती ::- ए मोहम्मद ! ए मोहम्मद ! और कभी एक नूर नज़र आता, यह नूर आपको जागने की हालत में नज़र आता, आप खौफ सा भी महसूस करते और फरमाते :- मुझे डर है कि इस सूरते हाल के पेशे नज़र कोई बात ना पेश आ जाए _,"*
*★_ आपकी इस बात के जवाब में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आप से फरमाती:- हरगिज़ नहीं ! अल्लाह ताला आपके साथ ऐसा कुछ नहीं करेगा क्योंकि खुदा की क़सम ! आप अमानत अदा करने वाले हैं रिश्तेदारों की खबर गिरी करने वाले हैं और हमेशा सच कहने वाले हैं _,"*
*★_ इन दिनों आपको तनहाई बहुत महबूब हो गई थी, तन्हाई के लिए ही आप गारे हिरा में चले जाते थे, जब खाने की चीज़ खत्म हो जाती तो आप वापस हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आ जाते, खाना ले लेते और फिर गारे हिरा तशरीफ ले जाते थे, गारे हिरा से वापस आते तो खाना काबा में भी तशरीफ ले जाते, तवाफ करते फिर घर तशरीफ ले जाते ।*
[5/19, 4:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आखिर में वो रात आ गई जब आपको नबूवत और रिसालत मिलने वाली थी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते हैं (जिसका मफहूम है) :- मैं सो रहा था मेरे पास जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक रेशमी कपड़ा लिए हुए आए, उसमें एक किताब थी यानी एक तहरीर थी, उन्होंने मुझसे कहा :- इक़रा यानी पढ़िए , मैंने कहा:- मैं नहीं पढ़ सकता यानी मैं अनपढ़ हूं पढ़ लिख नहीं सकता _,"*
*★_ इस पर उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर उस रेशमी कपड़े समेत इस तरह भींचा कि वह कपड़ा मेरे नाक और मुंह से छू रहा था, उन्होंने मुझे इस ज़ोर से भींचा कि मुझे ख्याल आया कि कहीं मेरी मौत ना वाक़े हो जाए, इसके बाद उन्होंने मुझे छोड़ दिया और फिर कहां :- पढ़िए यानी उस लिखे हुए के बजाय वैसे ही पढ़ो यानी जो मैं कहूं वह कहिए, इस पर मैंने कहा :- मैं क्या पढ़ूं और क्या कहूं __,*
*★_ अब उन्होंने कहा :-*
*"_ اِقۡرَاۡ بِاسۡمِ رَبِّكَ الَّذِىۡ خَلَقَۚ ۞ خَلَقَ الۡاِنۡسَانَ مِنۡ عَلَقٍۚ ۞ اِقۡرَاۡ وَرَبُّكَ الۡاَكۡرَمُۙ ۞ الَّذِىۡ عَلَّمَ بِالۡقَلَمِۙ ۞ عَلَّمَ الۡاِنۡسَانَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡؕ ۞*
*"_ (तर्जुमा)_ ए पैगंबर ! आप पर जो क़ुरान ( नाजिल हुआ करेगा) अपने उस रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए (यानी जब पढ़ें, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहकर पढ़ा कीजिए) जिसने मख़लुक़ात को पैदा किया जिसने इंसान को खून के लोथड़े से पैदा किया, आप क़ुरान पढ़ा कीजिए, आपका रब बड़ा करीम हैं (जो चाहता है अता फरमाता है और ऐसा है) जिसने (पढ़े लिखे को) क़लम से तालीम दी (और) इंसान को (उमूमन दूसरे ज़राए से ) उन चीज़ों की तालीम दी जिनको वह नहीं जानता था_," (सूरत अल -अलक़)*
[5/21, 8:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाते हैं ( जिसका मफहूम है):- मैंने इन आयात को उसी तरह पढ़ दिया, इसके बाद जिब्राइल अलैहिस्सलाम मेरे पास से चले गए, इसके बाद लगता था गोया मेरे दिल में एक तहरीर लिख दी गई है, मैं गार से निकल कर एक तरफ चला, जब मैं पहाड़ के एक जानिब पहुंचा तो मैंने आसमान से आने वाली एक आवाज़ सुनी, वह आवाज़ कह रही थी :- ए मोहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्राइल हूं _,"*
*"_ मैं वहीं रुक कर आवाज़ की तरफ देखने लगा, अचानक मैंने जिब्राइल अलैहिस्सलाम को इंसानी शकल में देखा, वह खड़े हुए थे, वह कह रहे थे :- ए मोहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्राइल हूं _,"*
*★_ मैं वहीं रुक कर आवाज़ की तरफ देखने लगा, मैंने उन पर से नज़र हटा कर आसमान की तरफ देखा मगर सामने जिब्राइल ही नज़र आए, मैं इसी हालत में देर तक खड़ा रहा, उधर खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मेरे लिए खाना तैयार किया था और खाना गार में भिजवाया लेकिन मैं गार में नहीं था, जब यह खबर खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को मिली तो उन्होंने मेरी तलाश में चाचाओं और मामूओं के घर आदमी भेजें मगर मैं किसी के यहां भी नहीं मिला, इस पर वह परेशान हो गईं, अभी इसी परेशानी में थीं कि मैं अचानक उनके पास पहुंच गया, मैंने उन्हें सारा वाक़िया सुनाया, उन्हें जिब्राइल अलैहिस्सलाम के बारे में बताया, जो आवाज़ सुनी थी उसके बारे में भी बताया ।*
*★_ सारी बात सुनकर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- आपको खुशखबरी हो, आप यक़ीन कीजिए, क़सम है उस जा़त की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है, मुझे उम्मीद है आप इस उम्मत के नबी हैं _,"*
*★_ इसके बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने चचाज़ाद भाई वरका़ बिन नोफल के पास गईं, वह ईसाई आलिम थे, उन्हें सारा वाक़िया सुनाया, वरक़ा बिन नोफल यह सारा वाक़िया सुन कर पुकार उठे :- अगर तुम सच कह रही हो तो इसमें कोई शक नहीं कि उनके पास वही नामूसे अकबर यानी जिब्राइल अलैहिस्सलाम आए हैं जो मूसा अलैहिस्सलाम के पास आया करते थे इसलिए मैं यह बात यक़ीन से कह सकता हूं कि वे इस उम्मत के नबी हैं _,"*
*★_ वरका़ बिन नोफल को जिब्राइल अलैहिस्सलाम का नाम सुनकर इसलिए ताज्जुब हुआ कि मक्का और अरब के दूसरे शहरों में लोगों ने यह नाम सुना भी नहीं था, गर्ज़ इसके बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास वापस आई और वरक़ा बिन नोफल ने जो कुछ कहा था, वह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बताया ।*
[5/21, 8:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन्हीं दिनों आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बैतुल्लाह का तवाफ करने के लिए आए, तवाफ के दौरान आपकी मुलाक़ात वरक़ा बिन नोफल से हो गई, वह भी उस वक्त तवाफ कर रहे थे, उन्होंने खुद आपके मुंह से वह वाक़िया सुनने की ख्वाहिश की, आपने उन्हें भी बताया कि किस तरह जिब्राइल अलैहिस्सलाम उनके पास आए, सारा वाक़िया सुनकर वरक़ा बिन नोफल ने अपना मुंह झुकाया और आपके सर के दरमियान बोसा दिया, उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने घर लौट आए।*
*★_ पहली वही के बारे में यह तफसील भी उलमा ने लिखी है कि आप पर उस वक्त घबराहट तारी होती थी, आप हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ लाए तो फरमाया :- मुझे कंबल उड़ा दो, मुझे कंबल उड़ा दो _,"*
*"_ चुनांचे उन्होंने फौरन आप पर कंबल डाल दिया, यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की घबराहट दूर हो गई, फिर आपने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया :- मुझे अपनी जान का खौफ पैदा हो गया है _,"*
*★_ इस पर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- हरगिज़ नहीं ! आपको खुशखबरी हो, अल्लाह ताला आपको हरगिज़ हरगिज़ रुसवा नहीं करेगा क्योंकि आप रिश्तेदारों की खबर गिरी करते हैं, सच्ची बात कहते हैं, दूसरों के लिए मुसीबत और परेशानियां उठाते हैं, बेकस मुफलिसों की इमदाद करते हैं, मेहमानों की मेहमान नवाज़ियां करते हैं और नेक कामों में लोगों की मदद करते हैं, इस मामले में आपके लिए खैर ही खैर है ।*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को नबूवत मिलने के बाद सबसे पहले ईमान लाने वाली हस्ती हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ही हैं _",*
[5/23, 9:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अफीफ कुंदी एक ताजिर थे, वह मक्का में तिजारत की गरज़ से आते रहते थे, एक मर्तबा उनकी मुलाक़ात तिजारत के सिलसिले में इब्ने अब्दुल मुत्तलिब से हुई, वह यमन से अतर लाकर फरोख्त किया करते थे और हज के मौसम में मक्का में फरोख्त करते थे, अफीफ कुंदी बैतुल्लाह में हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु के पास बैठे थे कि अचानक एक नौजवान क़रीब के खे़मे से निकला, उसने सूरज की तरफ देखा, जब उसने देख लिया कि सूरज मगरिब में झुक गया है यानी गुरूब हो गया है, तो उसने बहुत अच्छी तरह वज़ू किया और फिर नमाज़ पढ़ने लगा, फिर एक लड़का खेमे में से निकला, वह बालिग होने के क़रीब था, उसने भी वज़ू किया और नौजवान के बराबर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगा, फिर उस खेमे में से एक औरत निकली वह भी उन दोनों के पीछे नमाज़ की नियत बांधकर खड़ी हो गई, उसके बाद उस नौजवान ने रुकू किया तो वह लड़का और वह औरत भी रुकू में चले गए, फिर नौजवान ने सजदा किया तो वह लड़का और औरत भी सजदे में चले गए ।*
*★_ अफीफ कुंदी हैरत से यह मंज़र देख रहे थे, उन्होंने हजरत अब्बास से पूछा:- यह क्या हो रहा है ? उन्होंने बताया :- यह मेरे भाई अब्दुल्लाह के बेटे मोहम्मद हैं, यह उनका दीन है, उनका दावा है कि अल्लाह ताला ने उन्हें पैगंबर बनाकर भेजा है, यह लड़का मेरा भतीजा अली इब्ने अबी तालिब है और यह मोहम्मद की बीबी खदीजा है,*
*अफीफ कुंदी कहते हैं:- काश उस वक्त चोथा मुसलमान मैं होता _,"*
*★_ ये अफीफ कुंदी बाद में मुसलमान हो गए थे, इस मौक़े पर शायद ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु मौजूद नहीं थे, यह आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के गुलाम थे और आप उस ज़माने में आपके साथ यह भी नमाज़ पढ़ा करते थे, या फिर हजरत ज़ैद उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे।*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा औरतों में सबसे पहले मुसलमान हुई, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बाद जो खवातीन सबसे पहले मुसलमान हुई उनके नाम यह हैं :- हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी उम्मे फज़ल रज़ियल्लाहु अन्हा, हजरत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की साहबजादी हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बहन उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा, इनका नाम फातिमा बिन्त खत्ताब था, यह भी रिवायत मिलती है कि उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा उम्मे फज़ल से भी पहले मुसलमान हुई थी ।*
*★_ बहरहाल तमाम मुसलमानों का इस बात पर इत्तेफाक है कि हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे पहले मुसलमान हुईं थीं, इनसे पहले ना कोई मर्द मुसलमान हुआ ना कोई औरत, मतलब यह है कि जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को पैगंबरी मिली तो सबसे पहले आपने खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को इस्लाम की दावत दी और अल्लाह ताला की इबादत की तरफ उनकी रहनुमाई फरमाई, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बगैर किसी झिझक के इस्लाम को क़ुबूल कर लिया और सबक़त ले गईं, तमाम पहल करने वालों में पहल कर गईं,*
[5/23, 11:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सिलसिले में एक आलिम लिखते हैं:- आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को साथ लिया और उस चश्मे पर ले गए जो हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम के पांव मुबारक की बरकत से गारे हीरा के पास नमुदार हो गया था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस चश्मे पर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को वज़ू का तरीक़ा बताया, यह तरीक़ा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया था, फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें नमाज पढ़ना सिखाया _,"*
*★_ उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे यह भी फरमाया था :- ए खदीजा ! यह जिब्राइल हैं अल्लाह ताला की तरफ से तुम्हें सलाम देने के लिए आए हैं _,"*
*"_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह सुनकर सलाम का जवाब दिया, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ईमान ले आईं तो उसी रोज़ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर आए, उस वक्त हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तर्बीयत आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जिम्मे थी, वह आपके घर में दाखिल हुए तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को नमाज़ पढ़ते देखा, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हैरान हो गए और बोले :-यह आप क्या कर रहे हैं ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- यह अल्लाह का दीन है, मैं तुम्हें भी इसकी दावत देता हूं कि अल्लाह ताला के एक होने की गवाही दो, वह तन्हा है, उसका कोई शरीक़ नहीं, मैं तुम्हें लात और उज़्ज़ा (बुतों) को छोड़ देने की दावत देता हूं _,"*
*★_ इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:- मैंने इस दीन के बारे में किसी से नहीं सुना, मैं अपने वालिद के मशवरे के बगैर कोई काम नहीं करता, अगर इजाज़त हो तो उनसे मशवरा कर लूं _,"*
*"_ इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- अगर तुम्हारा ईमान लाने का इरादा ना बने तो किसी दूसरे को इसके बारे में ना बताना_,"*
*"_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया:- जी अच्छा _,"*
*★_ फिर उसी रात अल्लाह ताला ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर दिल खोल दिया, सुबह हुई तो आप रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए और इस्लाम क़ुबूल किया ।*
[5/25, 9:24 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में उलमा ने लिखा है कि आप नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को नबुवत मिलने से भी पहले आप पर ईमान ला चुके थे क्योंकि यमन में एक बूढ़े आलिम से उनकी जो बातचीत हुई थी उससे वह जान चुके थे कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल है, वही रसूल जिनका दुनिया को इंतज़ार है, हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु जब यमन में उस बूढ़े आलिम के पास रुके थे तो उसने कहा था :- मेरा ख्याल है तुम हरम के रहने वाले हो ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया था:- हां मैं हरम का रहने वाला हूं, इस पर उसने कहा था :- और मेरा ख्याल है तुम कुरेशी हो? आपने जवाब दिया :- हां मैं कुरेशी हूं, फिर उसने कहा था :- मेरा ख्याल है तुम खानदाने तैयमी के हो? आपने जवाब दिया:- हां मैं खानदान तैयमी से हूं, फिर उसने कहा था :- अब आपसे एक सवाल और पूछना चाहता हूं, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा :- और वह सवाल क्या है? उसने कहा था :- अपना पेट खोल कर दिखा दो, इस पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया था:- यह मै उस वक्त तक नहीं करूंगा जब तक कि तुम इसकी वजह नहीं बता दोगे _,"*
*★_ उस वक्त उसने कहा था:- मैं अपने सच्चे और मजबूत इल्म की बुनियाद पर खबर पाता हूं कि हरम के इलाक़े में एक नबी का ज़हूर होने वाला है, उसकी मदद करने वाला एक नौजवान और पुख्ता उम्र का आदमी होगा, वह मुश्किलात में कूद जाने वाला और परेशानियों को रोकने वाला होगा, उसका रंग सफेद और जिस्म कमजोर होगा, उसके पेट पर एक बालदार निशान होगा और उसकी बांई रान पर भी एक अलामत होगी _,"*
*"_यह कहने के बाद उसने कहा:- अब यह भी ज़रूरी नहीं कि तुम मुझे अपना पेट खोलकर दिखाओ क्योंकि तुममे बाकी तमाम अलामात मौजूद है _,"*
*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब मैं यमन में अपनी खरीद-फरोख्त का काम पूरा कर चुका तो उससे रुखसत होने के लिए उसके पास आया, तब उसने कहा:- मेरी तरफ से चंद शेर सुन लो, यह शेर मैंने उसी नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में कहें है _," मैंने कहा - सुनाओ , उसने वे शेर सुनाएं _,"*
[5/25, 9:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फिर मैं मक्का मुकर्रमा वापस पहुंचा तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नबूवत का ऐलान कर चुके थे, फौरन ही मेरे पास कुरेश के बड़े सरदार उक़बा बिन अबू मुईत, शैबा, रबिया, अबू जहल और अबुल बख्तरी वगैरह आए और कहने लगे :- ऐ अबू बकर ! अबू तालिब के यतीम भतीजे ने यह दावा किया है कि वह नबी है, अगर आपका इंतजार नहीं होता तो हम इस मामले में सब्र ना करते, अब आप आ गए हैं इसलिए उससे निबटना आप ही का काम है_,"*
*★_ यह बात उन्होंने इसलिए कही थी कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु करीबी दोस्त थे, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- मैंने उन्हें अच्छे अंदाज में टाल दिया और खुद आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घर पहुंच गया, दरवाज़े पर दस्तक दी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बाहर तशरीफ लाए, आपने मुझे देखकर फरमाया:- ऐ अबू बकर मैं तुम्हारी और तमाम इंसानों की तरफ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूं, इसलिए तुम अल्लाह ताला पर और उसके रसूल पर ईमान ले आओ _,"*
*★_ मैंने अर्ज़ किया :- क्या आपके पास इसका सबूत है ? आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- उस बूढ़े आलिम के शेर जो उसने तुम्हें सुनाए थे_," मैंने हैरान होकर अर्ज़ किया :- मेरे दोस्त ! आपको उन अश'आर के बारे में कैसे पता चला ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- मुझे उस अज़ीम फरिश्ते के ज़रिए पता चला जो मुझसे पहले भी तमाम नबियों के पास आता रहा है _,"*
*"_ अब मैंने अर्ज़ किया :- अपना हाथ लाएं, मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई मा'बूद नहीं और आप अल्लाह के रसूल है _,"*
*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- मेरे इस्लाम को क़ुबूल करने से आपको बेतहाशा खुशी हुई, सब लोगों के सामने अपने ईमान लाने का ऐलान सबसे पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ही ने किया था, सबसे पहले ईमान लाने वालों की तरतीब इस तरह है, मर्दों में सबसे पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हुम ईमान लाए, औरतों में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे पहले ईमान लाईं और गुलामों में सबसे पहले हज़रत ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए, वह उस वक्त तक बालिग नहीं हुए थे ।*
[5/25, 11:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने आसपास के लोगों को इस्लाम की दावत शुरू की, इस सिलसिले में जो मुश्किलात थी उनके सामने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा डट गईं, अपना तन मन और धन सब कुछ कुर्बान करने पर तुल गई।*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की साहबजा़दी हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के शौहर अबुल आस गज़वा बदर में गिरफ्तार हुए, यह उस वक्त की बात है जब मुशरिकों से निकाह ना करने का हुक्म नाजिल नहीं हुआ था और हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी अबुल आस से हो चुकी थी, दूसरे कैदियों की तरह इनसे भी कहा गया :- आप भी फिदिए की रक़म अदा करें ताकि आप को रिहा किया जा सके_," उन्होंने हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को पैगाम भेजा कि उनकी आजादी के लिए फिदये की रक़म भेज दें, हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को यह पैगाम मिला तो आप परेशान हो गई, क्योंकि उस वक्त आपके पास कोई रक़म नहीं थी, अलबत्ता शादी के मौक़े पर उन्हें जो जहेज़ मिला था उसमें एक हार भी था, उन्होंने वही हार भेज दिया, वह हार दर असल हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का था ।*
*★_ जब यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में पेश किया गया तो आपने उस हार को पहचान लिया, आपको हजरत खदीजा याद आ गईं, आपकी मुबारक आंखों से आंसू जारी हो गए, आप को रोते देखकर सहाबा किराम भी रोने लगे, उन्होंने अर्ज किया:- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप यह हार बेटी को वापस कर दें, फिदिए की रकम हम अदा कर देते हैं _,"*
*"_ इस वाक़िए से साबित है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से किस क़दर मोहब्बत थी ।*
*★_ इसी तरह हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- एक मर्तबा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की बहन हाला हमारे यहां आईं, उन्होंने इजाज़त तलब करने के लिए आवाज़ दी, उनकी आवाज़ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से बहुत मिलती थी, फिर क्या था यह आवाज़ सुनकर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा याद आ गईं, आप हैरत और मसर्रत के आलम में पुकार उठे :- या अल्लाह ! यह तो हाला लगती है _,"*
*"_उस वक्त मैंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा :-आप क़ुरेश की एक बूढ़ी औरत को क्या हर वक्त याद करते रहते हैं, उन्हें तो फौत हुए भी अरसा हो गया, अल्लाह पाक ने आपको उससे बेहतर बीवी अता फरमा दी है_," यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जलाल में आ गए, यहां तक कि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने नादिम होकर अर्ज किया :- ए अल्लाह के रसूल ! मुझसे गलती हो गई, आइंदा मै उनका जिक्र अच्छे अल्फाज़ ही में करूंगी _,"*
[5/29, 8:33 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जब बिल्कुल नज़दीक के लोग आप पर ईमान ला चुके तो अल्लाह ताला ने हुक्म नाज़िल फरमाया :- अपने क़रीबी लोगों को डराइये _," यह हुक्म नाज़िल होने पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम कोहे सफा पर तशरीफ ले गए और पुकार कर फरमाया:- ए बनी अब्दुल मुत्तलिब ! ए बनी फहरा और ए बनी का'ब ! अगर मैं तुमसे कहूं कि इस पहाड़ के पीछे दुश्मन जमा हो गए हैं और तुम पर हमला करने वाले हैं तो बताओ क्या तुम मेरी इत्तेला को दुरुस्त समझोगे ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बात के जवाब में सब ने कहा :- हां ! हम आपकी बात को दुरुस्त समझेंगे इसलिए कि आपने कभी झूठ नहीं बोला _,*
*"_इस पर आप ने फरमाया:- तो फिर जान लो ! मेरे पास तुम्हारे लिए सख्त अज़ाब की इत्तेला है _,"*
*★_ अबू लहब यह सुनकर सख्त नाराज़ हुआ, उसने भिन्ना कर कहा :- तू हमेशा बर्बाद रहे.. क्या तूने बस यही सुनाने के लिए बुलाया था (नाऊज़ु बिल्लाह)_," फिर लोग बढ़ बढ़ाते हुए वापस लौट गए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तबलीग का काम जारी रखा, इस पर क़ुरेश शदीद मुखालफत पर उतर आए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को जब भी कुरेशे मक्का की तरफ से सदमा पहुंचता तो आप सीधा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ लाते, सैयदा खदीजा आपकी बातों की तस्दीक़ करतीं तो आपका सदमा दूर हो जाता, गर्ज़ हर मुश्किल वक्त में सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप की खिदमत में कोई कसर उठा ना रखी _,*
*★_ जब इस्लाम आहिस्ता आहिस्ता फैलने लगा तो कुरेश बहुत फ़िक्र मंद हुए, उन्होंने अबू तालिब को बुलाकर कहा:- ए अबू तालिब ! अगर आपके भाई के बेटे हमारे दीन को और जिन बुतों की हम पूजा करते हैं उनको इसी तरह बुरा कहते रहे और आप इसी तरह उनकी मदद करते रहे तो हम समझेंगे कि आपने भी हमारे मुक़ाबले में सिर्फ उनकी मदद की ठान रखी है, इस सूरत में हम जो कुछ भी करें फिर शिकायत ना करें _,"*
*"_अबू तालिब ने उन्हें समझा-बुझाकर वापस भेज दिया, इधर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बराबर तबलीग करते रहे, इस पर कुरेश फिर जमा हुए, अबू तालिब के पास आए, उन्होंने कहा:- अगर आपने अब भी अपने भतीजे को ना रोका तो हमारे और आपके दरमियान कोई वास्ता नहीं रह जाएगा और यह भी हो सकता है कि हममे से कोई मारा जाए _,"*
*★_ अबू तालिब ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बात की और कहा:- भतीजे ! अपने दीन के एतबार से तुम मुझ पर इतना बोझ ना डालो कि मैं उठा ना सकूं _," उनकी बात के जवाब में आपने फरमाया :- चाचा जान ! अगर यह लोग मेरे एक हाथ पर सूरज और दूसरे पर चांद रख दें और मुझसे कहें कि जो कुछ में कह रहा हूं उससे बाज़ आ जाओ तो भी मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगा, चाहे मेरी जान क्यों ना चली जाए _,"*
*"_यह सुनकर अबू तालिब ने कहा :- भतीजे ! तुम जो चाहो करो, मैं आइंदा तुम्हें नहीं टोकूंगा_,"*
[5/29, 8:52 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ क़ुरेश ने भी जान लिया कि अबू तालिब इस सिलसिले में कुछ भी करने को तैयार नहीं है तो वह एक बार फिर जमा हो गए और अबू तालिब से बोले:- ऐ अबू तालिब ! आपके भतीजे का एक ही इलाज है और वह यह है कि उसे हमारे हवाले कर दें ताकि हम उसे क़त्ल कर दें, उस एक के ना होने से आखिर क्या फर्क पड़ जाएगा_,"*
*"_ यह सुनकर अबू तालिब बोले :- बड़े अफसोस की बात है, अगर मैं तुम में से किसी के बैटे को सिर्फ अपनी मुखालफत की बुनियाद पर तुम से मांगू ताकि उसे क़त्ल कर सकूं तो क्या तुम ऐसा करोगे, नहीं करोगे, तो मैं क्यों अपने भतीजे को तुम्हारे हवाले करूं, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकता _,"*
*"_इस पर सब ने कहा:- ऐ अबू तालिब ! तुम अपनी क़ौम के सिर्फ एक शख्स के लिए क़ौम में तफरीक़ डाल रहे हो, तुमने अपनी सारी क़ौम को अपने भतीजे के खातिर ज़लील करके रख दिया है _,"*
*★_ यह कहकर क़ुरेश लौट गए, अब अबू जहल वगैरह ने एक जगह जमा होकर सोच विचार की और आखिर इस नतीजे पर पहुंचे कि जब तक बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिमायत तर्क नहीं करते और उन्हें हमारे हवाले नहीं करते उस वक्त तक उन लोगों से कोई कारोबार न किया जाए ना उनके हाथ कोई चीज़ फरोख्त की जाए, ना उनसे खरीदी जाए, ना उनके यहां बेटी बेटे का रिश्ता किया जाए, ना उनके साथ बैठा जाए ना किसी क़िस्म का मेलजोल रखा जाए, कोई शख्स अगर किसी मुसलमान का मक़रूज है तो क़र्ज़ अदा ना करें और उन्हें श'अब अबी तालिब में रहने पर मजबूर कर दिया जाए, श'अब अबी तालिब एक घाटी का नाम था, आज के दौर में इस क़िस्म के मुआहिदे को सोशल बॉयकॉट कहा जाता है यानी माशरती तालुका़त खत्म कर देना, इन सब हजरात को वहां रहने पर मजबूर कर दिया गया _,"*
*★_ यह बायकाट नबूवत के सातवे साल यकम मोहर्रम को शुरू हुआ और नबूवत के दसवें साल मोहर्रम में खत्म हुआ, इन 3 सालों में रसूले करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम, आपके घर वालों, गरीब और नादार मुसलमानों, अबू तालिब, बनी हाशिम, बनी अब्दुल मुत्तलिब और उनके साथियों ने मुसीबतों और मुश्किलात का बड़ी जुर्रात से मुक़ाबला किया, क़ुरेश के मज़ालिम के मुक़ाबले में कोई कमज़ोरी ना दिखाई, सब के सब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हिमायत में डटे रहे ।*
*★_ हालत यह थी कि ना यह हजरात किसी से कोई लेन देन कर सकते थे ना मक्का के बाजा़रों में खरीद-फरोख्त कर सकते थे, श'अब अबी तालिब कोहे अबू कु़बेस की घाटियों में से एक घांटी थी, यह हरम से एक किलोमीटर के फासले पर थी, बनी अब्दुल मुत्तलिब और बनी हाशिम के अक्सर घराने इसी मोहल्ले में रहते थे या फिर इसके इर्द-गिर्द रहते थे, जब कुफ्फार ने बायकाट का मुआहिदा लिखकर हरम में लटका दिया तो अबू तालिब ने दूसरे मोहल्लों में रहने वाले बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब के घर वालों को भी इस घांटी में आ जाने के लिए कहा _,*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का आबाई मकान दूसरे मोहल्ले में था लेकिन आप अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ रहती थीं, उन्होंने भी अपना ज़रूरी सामान लिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इस घांटी में आ गईं, बाज़ दूसरे हामी कबीले और गरीब मुसलमान भी यहीं आ गए, उनका ताल्लुक कुरेश के खानदान से नहीं था, इन सब हजरात के एक जगह जमा होकर रहने का फैसला अबू तालिब का था, यह फैसला इस लिहाज़ से बहुत अच्छा था कि मुसलमान अपने अपने मोहल्लों में बिखरे रहते तो उनके लिए यह 3 साल गुजा़रना और ज़्यादा मुश्किल होता, सब ने मिलजुल कर एक दूसरे का दुख दर्द बांट कर यह साल गुजार लिए, यह और बात है कि यह 3 साल इंतेहाई मुश्किल साल थे, बाहर से आकर कोई मदद नहीं करता था, अलबत्ता आपस में यह सब एक दूसरे के गम गुसार थे ।*
[5/30, 9:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शा'अब अबी तालिब में रहने वाले ना तो तिजारत कर सकते थे ना मक्का मुअज़्ज़मा के बाजा़रों में खरीद-फरोख्त कर सकते थे, बाहर से कोई का़फिला आता तो कुरेश उसका सारा माल महंगे दामों में खरीद लेते थे, अबू लहब उन ताजिरों से कहता :- कोई मुसलमान या बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब का कोई शख्स तुमसे कुछ खरीदना चाहे तो क़ीमत इतनी ज़्यादा बताना कि खरीद ना सकें, अगर तुम्हारा माल ना बिक सका तो मैं खुद सारा माल खरीद लूंगा _,"*
*★_ साल में 4 महीने रज्जब, जी़का़'दा, जु़लहज और मोहर्रम हुरमत के महीने थे, इन चार महीनों में इन हजरात को कुछ खरीद फरोख्त का मौक़ा मिलता था लेकिन आमदनी का कोई ज़रिया नहीं था, रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास जो कुछ था उससे आप दोनों गरीब मुसलमानों की मदद करते रहे और इस तरह इस बायकाट के खत्म होते इनकी अपनी माली हालत बहुत कमज़ोर हो गई, हजरत उमर भी मुख्तलिफ तरीकों से मुसलमानों की मदद करते रहते थे लेकिन सैकड़ों लोगों की ज़रूरत पूरी करना आसान काम नहीं था ।*
*★_जब इन लोगों की पूंजी बिल्कुल खत्म हो गई तो घरेलू चीज़ें बिकने लगीं, आखिरी दिनों में जब हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में एक हांडी और मिट्टी का प्याला रह गया, घांटी में रहने वाले दरख्तों के पत्ते खाने पर मजबूर हो गए, वह पहाड़ी इलाका था वहां दरख़्त भी बहुत कम थे, उन दिनों की हालत बयान करते हुए हजरत सा'द बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक रात उन्हें ऊंट के चमड़े का सूखा हुआ टुकड़ा मिल गया, उन्होंने उसे धोया और उबालकर 3 दिन तक उसी से गुजारा किया _,"*
*"_यह दुनिया की तारीख का जा़लिमाना तरीन बायकाट था, क़ुरेशे मक्का बाका़यदा निगरानी करते थे कि मक्का का कोई फर्द चोरी-छिपे इन हजरात को खाने पीने की कोई चीज़ ना पहुंचा दें ।*
*★_ असल में कुरेशे मक्का चाहते थे कि इन हजरात की कोई हिमायत ना करें, उसके बाद उनके लिए कुरेश के दीगर खानदानों से अपने अपने मुसलमान हो जाने वाले अफराद की हिमायत छुड़ा देना आसान हो जाता और जब तमाम क़बीले मुसलमानों की हिमायत से हाथ उठा लेते तो क़ुरेश के लिए मुसलमानों से निपटना आसान हो जाता लेकिन हुआ यह कि इन दोनों खानदानों ने हर किस्म की तकालीफ तो बर्दाश्त कर ली लेकिन क़ुरेश के मुकाबले में हार ना मानी, नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके गरीब साथियों के मुसीबतों से डटे रहने में कोई फ़र्क ना आया ।*
[5/30, 9:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के भतीजे हजरत हकीम बिन हिजाम रज़ियल्लाहु अन्हु चोरी-छिपे सामान ले आते थे, एक रोज़ गुलाम के साथ गल्ला ला रहे थे कि ऊंट पर सवार अबू जहल उधर से आ निकला, उसने पुकार कर कहा:- क्या तू यह राशन बनु हाशिम के लिए ले जा रहा है, खुदा की क़सम तेरा यह गुलाम वहां गल्ला नहीं ले जा सकता, मैं तुम्हें सारे मक्का में रुसवा कर दूंगा कि तुमने मूआहिदे की खिलाफ वर्जी की है_,"*
*★_ अबू जहल अभी उन से झगड़ रहा था कि बनु असद का सरदार अबुल बख्तरी उन्हें देख कर रुक गया, उसने अबू जहल से पूछा :- क्या है, तुम इससे क्यों झगड़ रहे हो ? जवाब में अबू जहल ने कहा :- यह बनु हाशिम के लिए गल्ला ले जा रहा है_," अबुल बख्तरी ने फौरन कहा :- यह इसकी फूफी का गल्ला है जो उसके पास रखा था, अब उसने मंगवाया है तो तू उसे कैसे रोक सकता है, जाने दो इसे _," "_ नहीं मैं नहीं जाने दूंगा _," अबू जहल उससे भी झगड़ा पड़ा ।*
*★ दोनों में तेज़ लहजे में बात होने लगी, अबुल बख्तरी ने अबू जहल के ऊंट की गर्दन पकड़कर झटका दिया तो ऊंट बैठ गया, उसने अबू जहल को गुद्दी से पकड़ कर नीचे खींच लिया, फिर लातों और घूंसों से उसकी मरम्मत की, यहां तक कि करीब पड़ी एक हड्डी उठाकर उसके सर पर दे मारी, उसके सर से खून बहने लगा, ऐसे में हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु उधर से गुज़रे, आप उन्हें लड़ते देख कर रुक गए, उन्हें रुकते देखकर दोनों अपनी लड़ाई से बाज़ आ गए ताकि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तक उनकी आपस की लड़ाई की खबर ना पहुंचे ।*
*★_ तारीख की किताबों में मुसीबतों भरे इन 3 सालों की बहुत तफसील बयान हुई है, इब्ने क़य्यिम कहते हैं :- बनी हाशिम के बच्चे भूख के मारे इस कदर जोर-जोर से रोते थे उनके रोने की आवाजें घाटी के बाहर तक सुनाई देती थी _,"*
*"₹इमाम क़ुस्तलानी ने लिखा है :- बनी हाशिम के बच्चों के रोने की आवाजें रात के सन्नाटे में तमाम शहर में सुनाई देती थी, संगदिल और बेरहम कुरेशी सुनते थे और हंसा करते थे और तंज़ किया करते थे _,"*.
*"_शिब्ली नोमानी लिखते हैं:- उन दिनों में दरख़्तों के पत्ते खा खा कर गुजर-बसर की गई _,"*
[5/31, 6:49 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन तमाम सख्तियों और तकालीफ के बावजूद मुसलमान साबित क़दम रहें, उनके क़दम ज़रा भी ना डगमगाए, एक रात हाशिम बिन अमरू बिन हारिस तीन ऊंटों पर खाना लेकर घाटी में दाखिल हो गए, यह मुसलमानों के हमदर्द थे और अभी मुसलमान नहीं हुए थे, कुरेश को इसका पता चल गया, उन्होंने दूसरी सुबह हाशिम से बाज़ पुर्स की, इस पर उन्होंने कहा :- ठीक है, आइंदा में ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जो आप के खिलाफ हो _,"*
*"_इसके बाद एक रात फिर दो ऊंटों पर खाने का सामान लेकर घाटी में पहुंच गए, क़ुरेश को इसका भी पता चल गया, इस मर्तबा क़ुरेश सख्त गज़ब नाक हुए और हाशिम पर हमला कर दिया लेकिन उस वक्त अबू सुफियान ने कहा :- इसे छोड़ दो, इसने सिलह रहमी की है, रिश्तेदारों का हक़ पूरा करने के लिए ऐसा किया है _,"*
*★_ और फिर अल्लाह ताला ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला दी कि दीमक ने कु़रेश के लिखे हुए मुआहिदे को चाट लिया है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह बात अपने चाचा अबू तालिब को बताई, उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा:- सितारों की क़सम! तुमने कभी झूठ नहीं बोला, (मुशरिक लोग इस क़िस्म की कसमें खाते थे), अब सब ने घाटी से निकलने का फैसला किया, सब वहां से निकलकर मस्जिद ए हराम में आ गए, क़ुरेश ने इन लोगों को देखा तो समझे कि यह लोग मुसीबतों से घबराकर निकल आए हैं ताकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मुशरिकों के हवाले कर दें, अबू तालिब ने उनसे कहा :- हमारे और तुम्हारे दरमियान मामलात बहुत तूल पकड़ गए हैं इसलिए अब तुम लोग अपना वह हलफनामा ले आओ, मुमकिन है हमारे और तुम्हारे दरमियां सुलह की कोई शक्ल निकल आए _,"*
*★_ अबू तालिब में असल बात बताने की बजाय यह बात इसलिए कही कि कहीं क़ुरेश हलफनामा सामने लाने से पहले उसे देख ना ले क्योंकि इस सूरत में वह उसको लेकर ही ना आते, गर्ज़ वे हलफनामा ले आए, उन्हें इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि यह लोग अब रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को उनके हवाले करना चाहते हैं क्योंकि यह तमाम हलफनामा और मुआहिदा आन हज़रत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वजह से हुए थे, आखिर वह हलफनामा ले आए, साथ ही कहने लगे :-आखिर तुम लोग पीछे हट गए ना !*
*"_ इस पर अबू तालिब ने कहा :- मैं तुम्हारे पास एक इंसाफ की बात लेकर आया हूं इसमें तुम्हारी कोई बेइज्जती है ना हमारी और वह बात यह है कि मेरे भतीजे की यानी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बताया है कि तुम्हारे इस हलफनामे पर जो तुम्हारे हाथ में है अल्लाह ताला ने एक कीड़ा मुसल्लत कर दिया है, उस कीड़े ने इसमें से अल्फाज़ चाट लिए हैं, अगर बात इसी तरह है जैसे मेरे भतीजे ने बताया है तो मामला खत्म हो जाता है लिहाज़ा तुम अपनी गलत बात से बाज़ आ जाओ, अगर बाज़ नहीं आए तो भी खुदा की क़सम जब तक हममे से आखिरी आदमी भी जिंदा है हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तुम्हारे हवाले नहीं करेंगे और अगर मेरे भतीजे की बात गलत निकली तो हम उन्हें तुम्हारे हवाले कर देंगे, फिर तुम चाहे उन्हें क़त्ल करो चाहे जिंदा रखो _,"*
*★_ इस पर क़ुरेश ने कहा :- हमें तुम्हारी बात मंजूर है _,", अब उन्होंने अहदनामा खोल कर देखा, अहद नामा को वाकई दिमाग चाट चुकी थी, यह देख कर वह पुकार उठे :- यह तुम्हारे भतीजे का जादू है _,"*
*"_इस वाक़ए के बाद उन लोगों का ज़ुल्म और बढ़ गया, अलबत्ता उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो दीमक वाले वाक़िए पर शर्मिंदा हुए, उन्होंने कहा :- अब हमारी तरफ से ऐसी सख्ती अपने भाइयों पर ज़ुल्म है _," फिर ये लोग घाटी में पहुंचे और इन हजरात से यूं बोले :- आप सब लोग अपने अपने घरों में आ जाएं, चुनांचे सब लोग उसी वक्त घाटी से निकलकर अपने घरों में आ गए, इस तरह 3 साल बाद यह बायकाट खत्म हुआ ।*
[5/31, 8:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शा'अब अबी तालिब की घाटी से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके साथियों की रिहाई नबुवत के दसवें साल में हुई, उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तबलीग का काम पहले से भी ज़्यादा सरगर्मी से शुरू कर दिया था, इन हालात में उस ज़ालिमाना बायकाट को खत्म हुए अभी एक महीना भी नहीं गुजरा था कि आपके मेहरबान चाचा अबू तालिब इस दुनिया से रुखसत हो गए, उनकी वफात पर आपको बहुत सदमा हुआ और इस सदमे को अभी एक हफ्ता नहीं हुआ था कि उम्मुल मोमिनीन सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी इस दारे फानी से कूच किया, ऊपर तले दो सदमें आपके लिए बहुत सख्त थे, आपने इस साल को "गम का साल" क़रार दिया ।*
*★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा पहली हस्ती थीं जिन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की क़दर और अज़मत को पहचाना और अपना तन मन और धन आपकी खिदमत के लिए वक्फ कर दिया, हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से शादी के बाद 25 साल की जिंदगी में बेपनाह मुश्किलात आईं, मगर इन तमाम मुश्किलात में आपने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का पूरी तरह साथ दिया, क़ुरेशे मक्का क़दम क़दम पर आपको तकलीफ पहुंचाते थे और सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपको आराम व सुकून पहुंचाती थीं, आपने अपनी हर खुशी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर न्योछावर कर दी, आप की मौजूदगी में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को घर और बच्चों की देखभाल की कोई फिक्र नहीं होती थी, सब काम आपने संभाले हुए थे ।*
*★_ सबसे पहले ईमान भी आप ही लाईं, आपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का बेमिसाल साथ दिया, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एक मर्तबा सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में फरमाया:- खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जो मुझसे वफादारी की उसके सबब मुझे उनकी याद बहुत मरगूब है, जब लोगों ने मेरी नबूवत का इनकार किया तो वह मुझ पर ईमान लाईं, जब लोग मेरी मदद करने से डरते थे तो वह चट्टान की मानिंद मजबूती से मेरे साथ खड़ी रहीं, वह बेहतरीन साथी थीं और मेरे बच्चों की मां _,"*
*★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बतन से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के यहां 6 बच्चे पैदा हुए, दो साहबजादे और चार साहब जादियां, साहबजादे बचपन ही में फौत हो गए, जब सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात हुई तो उस वक्त तक आपकी दो बेटियों की शादी हो चुकी थीं, दो बेटियां हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा घर में थीं, हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र उस वक्त 8 - 9 साल की थी, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी आपके घर में ही परवरिश पाई थी, वह भी अभी छोटे थे ।*
[6/3, 5:18 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बुखारी शरीफ में सैयदा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की शान में यह हदीस मौजूद है :- "_ हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक रोज़ जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप की खिदमत में हाजिर हुए और यूं अर्ज़ करने लगे :- ऐ अल्लाह के रसूल ! खदीजा एक बर्तन लेकर अभी आने वाली हैं उस बर्तन में सालन है, जब वह आएं तो उन्हें उनके रब की तरफ से और मेरी तरफ से सलाम कह दीजिएगा और उन्हें यह खुशखबरी सुनाइएगा कि अल्लाह ताला ने मोतियों से बना हुआ एक महल जन्नत में उन्हें अता फरमाया है, उसमें ना किसी किस्म का शोर होगा ना परेशानी _,"*
*★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की ज़िंदगी में दूसरी शादी का कभी ख्याल तक नहीं फरमाया, आप की वफात के बाद भी आप उनका ज़िक्र बहुत मोहब्बत से फरमाते थे, आपकी सहेलियों से भी बहुत शफ़क़त का बर्ताव करते, हर मौक़े पर उनका ख्याल रखते थे, अक्सर उनकी तारीफ फरमाते यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अजवाज़ मुताहरात को रश्क़ आने लगता, आप कोई बकरी ज़िबह फरमाते तो उसका गोश्त हजरत सैयदा की सहेलियों को भी भिजवाते ।*
*✿●•·आप की वफात की खबर सुनकर मक्का मुअज़्ज़मा के लोग रंज व गम के समंदर में डूब गए, हर शख्स की ज़ुबान पर उन्हीं का ज़िक्र था, उन्होंने कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाई थी, कभी ज़ुबान से ऐसा लफ्ज़ नहीं निकाला जो किसी की दिल शिकनी का सबब बनता, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तकालीफ को देखकर वह कभी मायूस ना होतीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हौसला अफजा़ई करतीं और तबलीग के काम में हर मुमकिन मदद करतीं, दूसरे लोगों को तकलीफ पहुंचाई जाती तो आप उन्हें भी हौसला दिलाती, उन्हें यकीन दिलाती कि अल्लाह हमारे साथ है, मक्का में किसी की ज़ुबान पर भी उनकी बुराई नहीं थी, हर शख्स उनकी तारीफ करता था ।*
*✿●•·सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को हुजूम के कब्रिस्तान में दफन किया गया, दफन के वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खुद क़बर में उतरे, इंतकाल के वक्त उनकी उम्र 63 साल थी, इस वक्त तक नमाजे़ जनाजा़ का हुक्म नहीं आया था ।*
[6/4, 6:41 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से शादी के बाद 25 साल तक ज़िंदा रहीं यानी इतनी तवील मुद्दत तक आपने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथ दिया, जब आप बीमार थी तो एक दिन आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आपके पास तशरीफ लाएं और फरमाया :- जो कुछ मैंने तुम्हारे लिए देखा है क्या तुम उससे खुश नहीं, अल्लाह ताला नापसंदीदगी में ही खैर फरमाने वाला है यानी हमारी जुदाई के इस गम में भी खैर है, तुम्हें मालूम नहीं अल्लाह ताला ने मुझे खबर दी है कि उसने जन्नत में तुम्हारे साथ साथ मरियम बिन्ते इमरान यानी मसीह अलैहिस्सलाम की वालिदा, मूसा अलैहिस्सलाम की बहन कुलसुम और फिरौन की बीवी आसिया से मेरी शादी कर दी है (यानी ये जन्नत में तुम्हारी साथी हो गई),*
*★_ यह सुनकर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! क्या अल्लाह ताला ने आपको इस बात की खबर भी दी है_," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- हां ! इस पर हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- अल्लाह ताला मोहब्बत व बरकत अता फरमाए _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आपसे यह भी फरमाया :- जन्नत तुम्हारे दीदार की मुस्ताक़ है, तमाम उम्महातुल मोमिनीन से बेहतर हो, तुम तमाम औरतों से अफज़ल हो तो मरियम बिन्ते इमरान और फिरौन की बीवी आसिया से ज्यादा बुज़ुर्ग हो _,"*
*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तमाम औलाद सिवाय इब्राहिम रज़ियल्लाहु अन्हु के सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से हुई, सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां सबसे पहले क़ासिम रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए, फिर ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा, फिर उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा और फिर हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, यह तमाम नबुवत से पहले पैदा हुए, उनके बाद अब्दुल्लाह पैदा हुए, तैयब और ताहिर इन्हीं के लक़ब थे, बहरहाल इस पर सबका इत्तेफाक है कि बेटे बचपन ही में फौत हो गए थे, बेटियां जवान हुईं उनकी शादियां हुई और उनसे औलाद हुईं _,*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तमाम औलाद का सिलसिला नसब हजरत खदीजातुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा पर खत्म होता है, आप अपनी ज़िंदगी में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए दुआ करते रहे, उनकी मौजूदगी में आपने दूसरी शादी नहीं की, आपने उन्हें तमाम औरतों से अफज़ल क़रार दिया (बाज़ रिवायात की रू से हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को अफ़ज़ल क़रार दिया) जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह ताला का सलाम आपके ज़रिए सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को पहुंचाया, सैयदा ने अपना सारा माल अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दिया, आपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतिहाई तकलीफ दह हालात में साथ दिया, अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमते हों ।*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम,,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत आयशा रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी थीं, आपकी वालिदा का नाम उम्मे रोमान था, उम्मे रोमान का पहला निकाह अब्दुल्लाह अज़दी नाम के शख्स से हुआ, अब्दुल्लाह की वफात के बाद उम्मे रोमान का निकाह हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु से हुआ, उनसे हजरत अबू बकर के यहां अब्दुर्रहमान और आयशा सिद्दीका़ पैदा हुएं, आप नबूवत के पांचवे साल में पैदा हुई यानी जब आप पैदा हुईं तो नबुवत का ऐलान हुए 4 साल गुज़र चुके थे और पांचवा साल गुज़र रहा था, गोया आपने जबसे दुनिया में आंख खोली तो आपका घराना मुसलमान हो चुका था ।*
*★_ आम बच्चों की तरह आप भी बचपन में खेलकूद की बहुत शॉकीन थीं, मोहल्ले की बच्चियां आपके पास जमा हो जाती, आप उनके साथ खेला करती थीं, नबूवत के 10 वे साल हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की पहली बीवी सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने वफात पाई, उस वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्र 50 साल थी, उनकी वफात के बाद आप बहुत गमगीन रहने लगे थे, आपकी यह हालत सहाबा किराम से छुपी हुई नहीं थी, चुंनाचे मशहूर सहाबी हजरत उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी हजरत खौला बिन्ते हकीम रज़ियल्लाहु अन्हा आपके पास आई ।*
*★_ उन्होंने आपसे अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! आप दूसरा निकाह फरमा लें _," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दरयाफ्त फरमाया :- किससे निकाह करूं ? हजरत खौला ने अर्ज़ किया :- बेवा और कुंवारी, दोनों तरह की लड़कियां हैं जिससे आप पसंद फरमाएं उसके बारे में बात की जा सकती है _," इस पर आपने फरमाया:- वह कौन हैं ? हजरत खौला ने अर्ज़ किया :- बेवा तो सौदा बिन्ते ज़म'आ रज़ियल्लाहु अन्हा है और कुंवारी अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी आयशा हैं _," आपने इरशाद फरमाया:- ठीक है, तुम उनके बारे में बात करो _,"*
*★_ हजरत खौला आपकी मर्जी पाकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के घर आईं और हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने यह बात रखी, जाहिलियत के दौर में दस्तूर यह था कि जिस तरह सगे भाइयों की औलाद से निकाह जायज़ नहीं, उसी तरह अपने मुंह बोले भाइयों की औलाद से भी शादी नहीं करते थे, इस बुनियाद पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे कहा :- खौला ! आयशा तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की भतीजी हैं, आपसे उसका निकाह कैसे हो सकता है _," हजरत खौला यह जवाब सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास गईं और यह बात आपको बताई, इस पर आपने फरमाया :- अबू बकर मेरे दीनी भाई हैं और इस क़िस्म के भाइयों से निकाह जायज़ है _,"*
*★_ हजरत खौला ने यह बात हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु को बताई तो आपने फौरन मंजूर कर ली, अब एक और मसला भी था, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की बात हजरत जुबेर बिन मुत'अम रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे से तय हो चुकी थी इसलिए उनसे भी पूछना जरूरी था, चुनांचे हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत जुबेर बिन मुत'अम के पास गए और उनसे फरमाया :- तुमने आयशा की निसबत अपने बेटे से तय की थी, इस सिलसिले में तुम क्या कहते हो ? उस वक्त तक जुबेर बिन मुत'अम का खानदान मुसलमान नहीं हुआ था इसलिए उनकी बीवी ने कहा :- अगर यह लड़की हमारे घर आ गई तो हमारा बेटा बेदीन हो जाएगा, लिहाजा अब हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं_," इस तरह यह निस्बत खुन उनकी तरफ से खत्म हो गई,*
[6/5, 8:40 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा निकाह से पहले आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ख्वाब देखा था कि एक फरिश्ता रेशम के कपड़े में लपेटकर कोई चीज़ आपको पेश कर रहा है, आपने उससे पूछा :- यह क्या है ? उसने कहा :- आपकी बीवी है_," आपने रेशम का कपड़ा हटाकर देखा तो (तस्वीर में) आयशा सिद्दीका थीं_," ( बुखारी)*
*★_ गोया रिश्ता अल्लाह ताला तय फरमा चुके थे, निकाह बहुत सादगी से हुआ, आप अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थीं कि आपकी वालदा आईं और आपको जल्दी से तैयार करके घर ले गईं जहां तक़रीबे निकाह हो रही थी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने निकाह पढ़ा दिया, खुद हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- जब मेरा निकाह हुआ मुझे पता तक ना चला, मेरी वाल्दा ने बाहर निकलने से रोका तब मुझे अंदाजा हुआ कि मेरा निकाह हो गया है, उसके बाद मेरी वाल्दा ने मुझे समझा भी दिया _,"*
*★_ निकाह के वक्त आपकी उम्र 6 साल थी, मतलब यह कि उस वक्त सिर्फ निकाह हुआ था, रुखसती बाद में हुई, कुछ मुद्दत गुज़रने पर मुसलमानों के मदीना की तरफ हिजरत का सिलसिला शुरू हो गया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से इजाज़त मांगी लेकिन आप उनसे यही फरमाते रहे :- अबू बकर ! जल्दी ना करो, उम्मीद है अल्लाह ताला किसी को तुम्हारा सफर का साथी बना दे _," यह सुनकर हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को उम्मीद हो गई कि वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ हिजरत करेंगे, चुनांचे अल्लाह ताला ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिजरत की इजाज़त दे दी, तो आप हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु को लेकर मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हुए, रवाना होते वक्त आप दोनों ने अपने अहलो अयाल को मक्का ही में छोड़ दिया था ।*
*★_ मदीना मुनव्वरा पहुंचने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अबू राफेअ रज़ियल्लाहु अन्हु को 2 ऊंट और 500 दिरहम देकर मक्का भेजा ताकि दोनों घरानों के लोगों को ले आएं, यह दोनों हजरात मक्का पहुंचे तो इनकी मुलाक़ात हजरत तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई, वह भी हिजरत के लिए तैयार थे, चुनांचे यह हजरात उन दोनों घरानों को साथ लेकर मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुएं, इन हजरात में हजरत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु का बेटा ओसामा, उनकी बीवी उम्मे ऐमन, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दो बेटियां हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, आपकी बीवी हजरत आयशा सिद्दीका और हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हुमा (हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा से आपका निकाह हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के बाद हुआ था लेकिन रुखसती पहले हो गई थी, जबकि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की रुखसती हिजरत के बाद हुई ) और हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के भाई अब्दुल्लाह बिन अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी उम्मे रोमान शामिल थे ।*
[6/7, 7:06 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सफर में हजरत आयशा सिद्दीका और उनकी वालदा ऊंट के कजावे में सवार थीं, रास्ते में एक मौके पर उनका ऊंट बिदक गया, इस पर उम्मे रोमान घबरा गई और पुकार उठीं :- हाय मेरी बच्ची ! उस वक्त अल्लाह ताला की मदद पहुंची, गैब से आवाज़ आई, "_ ऊंट की नकेल छोड़ दो_," रस्सी उस वक्त हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के हाथ में थी, आप फरमाती हैं, मैंने नकेल छोड़ दी, ऐसा करते ही ऊंट आराम से ठहर गया, किसी को कोई नुकसान ना पहुंचा _,"*
*★_ आखिर यह काफिला मदीना पहुंच गया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद-ए-नबवी के आसपास अपने अहलो अयाल के लिए हुजरे बनवा रहे थे, हजरत सौदा, हजरत फातिमा और उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हुमा को इन्ही हुजरों में ठहराया गया, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा अपने मां-बाप के यहां चली गईं, इसके चंद माह बाद शव्वाल में आप की रुखसती हुई, अरब के लोग शव्वाल में शादी करने को बुरा समझते थे, बाद में हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाया करती थीं :- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शव्वाल में निकाह किया और शव्वाल में मेरी रुखसती हुई, तो अब इसके खिलाफ मुसलमानों को करने का क्या हक़ है _," मतलब यह कि शव्वाल में शादी ब्याह करना बिलकुल दुरुस्त है, इसी तरह आजकल मोहर्रम के महीने में शादी नहीं की जाती यह भी गलत है ।*
*★_ रुखसती से पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए थे और अर्ज किया था :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप अपनी बीवी को घर क्यों नहीं लाते _," आपने इरशाद फरमाया :- "_इस वक्त मेरे पास मेहर अदा करने के लिए रक़म नहीं है _," यह सुनकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया :- "_आप मुझ से कर्ज ले लें _," आपने उनकी यह बात मंजूर फरमा ली, उनसे क़र्ज़ लेकर मेहर अदा किया, मेहर 500 दिरहम था, रूखसती की कैफियत हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा यूं बयान करती हैं :-*
*"_ मैं अपनी सहेलियों के साथ झूला झूल रही थी कि वाल्दा ने आकर मुझे आवाज़ दी, मुझे मालूम ही नहीं था कि क्यों बुला रही है, मैं उनके पास पहुंची तो मेरा हाथ पकड़ कर ले चलीं, मेरा सर और हाथ मुंह धोए, घर के अंदर अंसार की औरतें बैठी थीं, उन्होंने मेरा बनाव सिंगार किया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ ले आए, यह चाश्त का वक्त था ।*
*★_ उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास दावत के लिए दूध के एक प्याले के सिवा कुछ नहीं था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसमें से थोड़ा सा दूध नोश फरमाया, फिर सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा को दिया ।*
[6/8, 7:07 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ चंद दूसरी औरतों के साथ उस वक्त वहां असमा बिन्ते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा भी थी, वह फरमाती हैं :- अल्लाह की क़सम ! कोई दावत नहीं हुई, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सैयदा को दूध दिया तो आप शर्माने लगीं, इस पर मैंने कहा :- हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अतिया वापस ना करना_," चुंनाचे सैयदा ने दूध ले लिया और पिया, फिर आपने फरमाया:- अपनी सहेलियों को भी दो_," मैंने अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! हमें भूख नहीं है_," इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- "भूख और झूठ को जमा ना करो _," ( मुसनद अहमद 6/438)*
*★_ मतलब यह था कि अगर भूख हो तो यूं ना कहो कि हमें भूख नहीं है यह झूठ हो जाएगा, गर्ज़ इस क़दर सादगी से रुखसती हुई, हजरत आयशा सिद्दीका फरमाती हैं :- अल्लाह की क़सम! मेरी रुखसती में ना कोई ऊंट ज़िबह किया गया ना कोई बकरी, हां खाने का एक प्याला था वह भी हजरत साद बिन उबादा रजियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में भेजा था _," ( मुसनद अहमद -6/210)*
*★_ सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा चूंकी कम उम्र में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर में आ गई थी इसलिए आपकी तर्बीयत आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की निगरानी में हुई, उसी ज़माने में आपने लिखना पढ़ना सीखा, आप का हुजरा चूंकि मस्जिद के साथ ही था इसलिए नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तमाम बातें सुनती रहती थी, कोई बात समझ में ना आती तो बिला झिझक पूछ लेती थी _," (बुखारी-1/21)*
*★_ इसकी मिसाल यूं है कि अहादीस के कुतुब में बेशुमार मसाईल ऐसे हैं जो सैयदा के पूछने से उम्मत को मालूम हुए, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ 9 साल गुजा़रे और इन 9 साल में खूब इल्म हासिल किया, सैयदा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सवालात पूछ पूछ कर अपने इल्म में इज़ाफ़ा करती रहीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद भी यह बात पसंद फरमाते थे कि वह सवालात पूछें ताकि वह दूसरी औरतों को मसाईल बता सकें _,"*
[6/8, 7:18 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इमाम ज़हरी फरमाते हैं :- आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तमाम बीवियों और उनके अलावा बाक़ी तमाम औरतों का इल्म जमा किया जाए तो हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा का इल्म सबसे बड़ा हुआ रहेगा _,"*
*"_हजरत मसरूक़ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के खास शागिर्द थे, वह फरमाते हैं :- उम्र में बूढ़े लोग हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से फराइज़ (मीरास) के बारे में मालूम कर लिया करते थे _,"*
*★_ हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- हम असहाब ए रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को जब भी इल्मी उलझन पेश आती तो हम इसके बारे में हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा करते थे, जब भी हमने उनसे कुछ पूछा उन्हें उस मसले के बारे में ज़रूर मालूम होता था_," इस तरह बहुत से सहाबा और ताबईन सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के शागिर्द हैं _,*
*★_ एक रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अल्लाह से दुआ की :- या अल्लाह ! मुझसे आसान हिसाब लेना_," हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा:- ऐ अल्लाह के रसूल ! आसान हिसाब की क्या सूरत होगी ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- आमाल नामा देखकर दर गुज़र कर दिया जाएगा_," ( यानी यह है आसान हिसाब ),*
*"_फिर फरमाया :-यकीन जानो जिसके हिसाब में छानबीन की गई, ऐ आयशा यह हलाक हो गया, क्योंकि जिसके हिसाब किताब की छानबीन होगी वह हिसाब देकर कामयाब नहीं हो सकेगा _,"*
*★_ एक रोज़ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- ऐ आयशा ! क़यामत के दिन लोग नंगे पांव और नंगे बदन बगैर खतना के उठाए जाएंगे _," (यानी जैसे मां के पेट से पैदा हुए हैं), यह सुनकर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! यह तो बड़े शर्म का मुका़म होगा, क्या मर्द औरत सब नंगे होंगे, एक दूसरे को देखते होंगे _," सैयदा के जवाब में आपने फरमाया :- ऐ आयशा ! क़यामत की सख्ती इस क़दर होगी और लोग इस क़दर बेहाल होंगे कि किसी को किसी की तरफ देखने का होश नहीं होगा, मुसीबत इतनी होगी कि किसी को इसका ख्याल तक नहीं आएगा _,"*
[6/9, 9:01 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक बार आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह दुआ मांगी :- ऐ अल्लाह ! मुझे मिस्कीन ज़दा रख और मिस्कीनी की हालत में मुझे इस दुनिया से उठा ले और क़यामत में मेरा हस्र मिस्कीनों में करना _,"*
*"_हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा :- आपने ऐसी दुआ क्यों की ? जवाब में आपने इरशाद फरमाया :- इसलिए कि बिला शुबा मिस्कीन लोग माल दारों से 40 साल पहले जन्नत में दाखिल होंगे_,"*
*"_ इसके बाद आप ने फरमाया :- अगर मिस्कीन साइल की हैसियत से आए तो उसे कुछ दिए बगैर वापस ना लौटाओ और कुछ नहीं तो खजूर का एक टुकड़ा ही दे दो _,"*
*★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि मैंने पूछा :- ऐ अल्लाह के रसूल ! यह जो अल्लाह ताला ने फरमाया है,... और वह लोग जो अल्लाह की राह में देते हैं और उनके दिल खौफ ज़दा होते हैं कि वह अपने रब के पास जाने वाले हैं,... तो उन खौफ ज़दा लोगों से कौन लोग मुराद हैं, क्या वह लोग मुराद हैं जो शराब पीते हैं और चोरियां करते हैं _,"*
*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जवाब में इरशाद फरमाया:- ए सिद्दीक की बेटी नहीं, अल्लाह के इस फरमान से ऐसे लोग मुराद नहीं बल्कि इस आयत में अल्लाह ताला ने ऐसे लोगों की तारीफ फरमाई है जो रोज़ा रखते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और सदका़ देते हैं और इसके बावजूद इस बात से डरते हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि उनके आमाल क़ुबूल ही ना किये जाएं, ऐसे ही लोगों के बारे में अल्लाह ताला ने फरमाया है:- यह लोग नेक कामों में तेज़ी से बढ़ते हैं _,"*
*★_ एक मर्तबा हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- जो शख्स अल्लाह की मुलाक़ात को महबूब रखता है अल्लाह ताला उसकी मुलाक़ात को महबूब रखते हैं और जो शख्स अल्लाह ताला की मुलाक़ात को नापसंद करता है तो अल्लाह ताला उसकी मुलाकात को नापसंद फरमाते हैं _,"*
*"_ यह सुनकर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- यह तो आपने बहुत घबरा देने वाली बात सुना दी, मौत हम सबको तब'अन बुरी लगती है, लिहाज़ा इसका मतलब तो यह हुआ कि हम में से कोई शख्स अल्लाह ताला की मुलाक़ात को पसंद नहीं करता, लिहाज़ा अल्लाह ताला भी हममे से किसी की मुलाक़ात को पसंद नहीं करते _,"*
*"_इसके जवाब में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- इसका यह मतलब नहीं बल्कि इसका मतलब यह है कि जब मोमिन की मौत का वक्त आ जाता है तो उसे अल्लाह ताला की तरफ से इनामात की खुशखबरी सुनाई जाती है लिहाज़ा उसके नजदीक इससे ज़्यादा कोई चीज़ महबूब नहीं रह जाती जो मरने के बाद उसे पेश आने वाली है, इस वजह से वह अल्लाह ताला की मुलाक़ात को चाहने लगता है, लिहाज़ा अल्लाह ताला भी उसकी मुलाकात को चाहते हैं और बिला शुबा जब काफिर की मौत का वक्त आता है तो उसे अल्लाह ताला के अजा़ब और अल्लाह ताला की तरफ से सज़ा मिलने की खबर दी जाती है लिहाज़ा उसके नज़दीक कोई चीज़ इससे ज्यादा ना पसंदीदा नहीं होती जो मरने के बाद उसे पेश आने वाली है, इसी वजह से अल्लाह ताला की मुलाक़ात को पसंद नहीं करता _,"*
[6/14, 4:37 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक मर्तबा हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा :- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! क्या औरतों पर जिहाद फर्ज है ? आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- हां औरतों पर ऐसा जिहाद फर्ज है जिसमें जंग नहीं यानी हज और उमरा _,"*
*★_ एक रोज़ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा :- कोई शख्स अल्लाह की रहमत के बगैर जन्नत में दाखिल नहीं होगा यही बात है ना _," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- हां ! यही बात है, कोई शख्स अल्लाह की रहमत के बगैर जन्नत में दाखिल नहीं हो सकता _," आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने 3 मर्तबा यूं ही फरमाया, अब हजरत आयशा ने पूछा:- क्या आप भी अल्लाह की रहमत के बगैर जन्नत में दाखिल नहीं होंगे _," आपने पेशानी मुबारक पर हाथ मार कर फरमाया :- हां ! मैं भी जन्नत में दाखिल नहीं हुंगा जब तक कि अल्लाह मुझे अपनी रहमत में ना ढांपले _," आपने 3 मर्तबा यही फरमाया ।*
*★_ एक मर्तबा सैयदा आयशा ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से पूछा :- ऐ अल्लाह के रसूल ! अगर मुझे मालूम हो जाए कि लैलतुल कद्र की रात कौन सी है या यह मालूम हो जाए कि आज लैलतुल कद्र है तो मैं क्या मांगू _," आपने इरशाद फरमाया :- यह दुआ मांगो ..… ऐ अल्लाह ! बिला शुबा तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसंद करता है, लिहाज़ा तू मुझे माफ फरमा दे _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा सब बीवियों से ज़्यादा मोहब्बत थी, हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक रोज़ आपसे पूछा :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको सबसे ज़्यादा महबूब कौन है _," आपने फरमाया :- आयशा _,"*
*"_अब उन्होंने पूछा :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं यह पूछना चाहता था कि मर्दों में सबसे ज्यादा मोहब्बत किससे है _," आपने फरमाया :- "_उनके वालिद अबु बकर से _," (बुखारी)*
[6/15, 6:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक गज़वा के लिए तशरीफ ले गए, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने दीवार पर एक अच्छा सा पर्दा लटका दिया, जब आप वापस तशरीफ लाए तो उस पर्दे को इस ज़ोर से खींचा कि वह फट गया, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया :- "बेशक अल्लाह ताला ने हमें हुक्म नहीं दिया कि हम पत्थरों और मिट्टी को लिबास पहनाएं _,"*
*★_ एक मर्तबा चंद यहूदी आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के पास आए, उन्होंने दबी आवाज में अस्सलामु अलैकुम की बजाय अस्सामु अलैकुम कहा, साम मौत को कहते हैं, मतलब यह है कि उन्होंने मौत की बद्दुआ दी यानी तुम पर मौत हो,... आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जवाब में सिर्फ इतना फरमाया :- वा अलैकुम (यानी और तुम पर मौत हो), आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तो बस इतना ही फरमाया लेकिन हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा गुस्से में आ गईं और फरमाने लगीं :- तुम पर मौत हो, अल्लाह की लानत हो और अल्लाह का गज़ब नाज़िल हो _,"*
*"_यह सुनकर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- ऐ आयशा ! ठहरो नरमी अख्तियार करो और बद कलामी से बचो _," आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- "_आपने सुना नहीं, उन्होंने क्या कहा है _," हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया :- "_और तुमने सुना मैंने क्या जवाब दिया, मैंने उनकी बात उन पर लौटा दी, अब अल्लाह ताला मेरी बद्दुआ उनके हक़ में कुबूल फरमाएंगे... और उनकी बद्दुआ मेरे हक़ में कुबूल नहीं होगी _,"*
*★_ एक मर्तबा हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में कह दिया कि उनका क़द छोटा है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आपको फौरन टोका और फरमाया :- "यक़ीन जान लो, तुमने ऐसा कलमा कह दिया है कि अगर उसे समंदर में मिला दिया जाए तो उसे भी बिगाड़ दे _,"*
*"_एक रोज़ आपने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया:- ऐ आयशा ! छोटे गुनाहों से भी बचो क्योंकि अल्लाह की तरफ से उनके बारे में भी पकड़ होने वाली है _,"*
*★_ एक मर्तबा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम ने आपको यह नसीहत फरमाई :- आयशा ! अगर तू आखिरत में मुझसे मिलना चाहती है तो तुझे दुनिया में बस इतना सामान काफी है जितना मुसाफिर अपने साथ लेकर चलता है और मालदारों के पास बैठने से परहेज़ कर और किसी कपड़े को पुराना समझकर पहनना मत छोड़ो जब तक कि उसको पैबंद लगाकर ना पहन लो_,"*
*"_ हजरत अमरू बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- " खाला जान इस नसीहत पर अमल करते हुए नया कपड़ा उस वक्त तक नहीं बनाती थी जब तक की पहले बनाए हुए कपड़े को पैबंध लगाकर नहीं पहन लेती थी और जब तक कि वह खूब बोसीदा नहीं हो जाता था _,"*
[6/15, 6:13 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दुनिया से तशरीफ ले जाने के बाद सबसे पहली मुसीबत उम्मत में यह पैदा हुई कि पेट भर कर खाने लगे,.. जब पेट भरते हैं तो बदन मोटे हो जाते हैं और दिल कमज़ोर हो जाते हैं और नफसानी ख्वाहिश ज़ोर पकड़ लेती है _,"*
*★_ एक मर्तबा आपने फरमाया :- "_ गुनाहों की कमी से बेहतर कोई पूंजी ऐसी नहीं जिसे तुम लेकर अल्लाह ताला से मुलाक़ात करो, जिसे यह खुशी हो की इबादत में मेहनत करने वाले से बाज़ी ले जाए, उसे चाहिए कि खुद को गुनाहों से बचाए _,"*
*★_ हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को एक खत लिखा, खत में अपने लिए नसीहत करने की फरमाइश की, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने जवाब में फरमाया, :- " तुम पर सलाम हो, बाद सलाम के वाज़े हो कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से सुना है कि जो शख्स लोगों की नाराज़गी का ख्याल न करते हुए अल्लाह ताला की रज़ा का तालिब हो, अल्लाह ताला उसे लोगों की शरारतों से भी महफूज़ फरमाते हैं और जो शख्स अल्लाह ताला को नाराज़ करके लोगों को राज़ी रखना चाहता हो तो अल्लाह ताला उसकी मदद नहीं करते, उसे लोगों के हवाले कर देते हैं,.... वस्सलामु अलैका _," ( मिशकात )*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के बाद हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने दीन का इल्म दूसरों तक पहुंचाने का फरीज़ा अंजाम दिया, उनके शागिर्दों की तादाद 200 के करीब है, उनमें सहाबा किराम भी हैं और ताब'ईन भी, आपने आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के बाद 48 साल इस दुनिया में गुजारे... गोया 48 साल तक दीन फैलाया, आप तक़रीबन 22 सौ अहादीस की रावियां हैं, आपसे दीन सीखने के लिए आने वाले लोगों में औरतें तो आपके सामने बैठ जाती थीं, मर्द हजरात पर्दे की दूसरी तरफ बैठते थे,.. यह लोग आप से दीनी सवालात करते थे और आप उन्हें जवाब बताती थीं_,"*
*★_ आप हर साल हज बैतुल्लाह के लिए जाती थीं, उस मौक़े पर भी लोग दूर-दूर से आकर आपके पास जमा हो जाते थे, आप अपने खेमे में बैठ जातीं, सवालात पूछने वाले खेमे से बाहर रह कर पूछते, फतवे पूछने वालों की भीड़ लगी रहती थी,*
*"_ हजरत उमर और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हुम जैसे बड़े सहाबा भी आपसे मसाइल मालूम करने वाले थे, हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु शाम में होते थे, वहां से क़ासिद के जरिए मसाईल मालूम कराते थे और उन पर अमल करते थे, बहुत से लोग खुतूत के जरिए आपसे सवालात पूछते थे_,"*
[6/16, 7:59 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बहुत से लोग हैं खुतूत के जरिए आप से सवालात पूछते थे, आयशा बिन्ते तलहा आप की खास शागिर्द थीं, वह खुतूत पढ़कर सुनाती और पूंछती :- ऐ खाला जान ! मैं इस खत के जवाब में क्या लिखूं_," आप फरमाती :- "ऐ बेटा ! इसके जवाब में यह लिख दो.... और हदिए का बदला दे दो _,"*
*★_ हजरत असवद रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, मैंने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से पूछा:- आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने घर में क्या करते थे? आपने बताया :- "अपने घर में कामकाज में मशगूल रहते थे और नमाज़ का वक्त आता तो नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते, आप अपनी जूती की मरम्मत खुद कर लेते थे, अपना कपड़ा खुद सी लेते थे, अपने घरेलू काम इस तरह कर लेते हैं जिस तरह आम लोग कर लेते हैं,.... आप इंसानो में से एक इंसान थे, अपने काम खुद कर लेते थे _,"*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा से आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हंसी के बारे में पूछा गया, आपने फरमाया :- "मैंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को कभी पूरे दातों और ढ़ाडों के साथ हंसते नहीं देखा जिससे आपके हलक़ मुबारक को देखा जा सकता, आप तो बस मुस्कुराते थे_,"*
*★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "आपने अपने हाथ मुबारक से कभी किसी को नहीं मारा, ना किसी बीवी को न किसी खादिम को, हां अल्लाह की राह में जिहाद करते हुए अल्लाह के दुश्मन को मारा हो तो और बात है, अगर आपको किसी से कोई तकलीफ पहुंचती तो आप उसका बदला नहीं लेते थे, हां अल्लाह के हुक्म के खिलाफ किसी से कोई काम हो जाता तो आप अल्लाह के लिए उसे सज़ा देते थे _,"*
*★_ आप फरमाती हैं :- "सैयदे दो आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नमाज़े तहज्जुद से फारिग होकर जब फजर की दो सुन्नत पढ़ लेते और मैं जाग रही होती तो आप मस्जिद में जाने तक मुझसे बातें कर लेते थे या दाहिनी करवट में लेट जाते_," ( मुस्लिम )*
*★_ आप फरमाती हैं :- "सैयदे दो आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जब रात को नमाज़ (निफ्ल) पढ़ने के लिए खड़े होते थे तो पहले मुख्तसर दो रकात पढ़ते थे, उसके बाद लंबी सूरतों से नमाज़ अदा फरमाते और गैर फ़र्ज़ नमाज़ों में जिस क़दर फजर की दो रकातो का खास अहतमाम फरमाते थे और किसी गैर फ़र्ज़ नमाज़ का अहतमाम नहीं फरमाते थे, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया, फजर की दो सुन्नतें सारी दुनिया और जो कुछ दुनिया में है सबसे बेहतर है_," (मुस्लिम)*
*★_ आप फरमाती हैं :- "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मेरी गोद में सर रखकर लेट कर क़ुरान की तिलावत कर लेते थे हालांकि मैं उन दिनों अय्याम से होती थी _,"*
[6/16, 8:18 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पेट भरने और मज़ेदार चीज़ें हासिल करने और सामान जमा करने को नापसंद फरमाते थे, एक मर्तबा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- "ऐ आयशा ! अगर मैं चाहूं तो मेरे साथ सोने के पहाड़ चलें मगर मक़सद यह है कि मेरे पास एक फरिश्ता आया, उसके क़द का हाल यह था कि उसकी कमर काबे तक पहुंच रही थी, उसने मुझसे कहा कि आपके रब ने आप को सलाम फरमाया है कि अगर आप चाहें तो आम बंदों में बंदा और नबी बन कर रहें और आप चाहें तो नबी और बादशाह बन कर रहे,... मैंने इस बारे में जिब्राइल अलैहिस्सलाम से मशवरा लेने के लिए उनकी तरफ देखा तो उन्होंने इशारा किया कि तवाजो़ अख्तियार करें, सो मैंने जवाब दिया कि मैं नबी होते हुए आम बंदों की तरह रहना चाहता हूं, यह फरमाने के बाद आपने मुझसे फरमाया :- "मैं इस तरह खाना खाता हूं जैसे गुलाम खाता है और इस तरह बैठता हूं जैसे गुलाम बैठता है _,"*
*★_ हजरत मसरूक़ रहमतुल्लाह फरमाते हैं:- "मैं एक मर्तबा हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में हाजिर हुआ, उन्होंने मेरे लिए खाना मंगवाया, फिर फरमाया :- "अगर मैं पेट भर कर खा लूं तो रोना आ जाता है_," मैंने यह बात सुनकर कहा:- यह क्यों ? हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- मैं उस हाल को याद करती हूं जिस हाल में रहमते आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम दुनिया को छोड़कर तशरीफ ले गए हैं, अल्लाह की क़सम किसी रोज़ भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गोश्त और रोटी से पेट नहीं भरा_," ( तिर्मीजी़ )*
*"_ फिर आपने यह भी फरमाया:- "हम अगर चाहते तो पेट भर कर खा लेते लेकिन वाकि़या यह है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने नफ्स पर दूसरों को तरजीह देते थे _,"*
*★_ एक रोज़ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत अमरु बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया:- "ए मेरी बहन के बेटे, सच जानो ! हम तीन चांद देख लेते थे और घर में आग नहीं जलती थी _," हजरत अमरु बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा :- "खाला जान ! फिर आप हजरात जिंदा कैसे रहते थे ? आपने फरमाया:- "खजूरों और पानी पर गुज़र कर लेते थे और इसके सिवा यह भी होता था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पड़ोस में रहने वाले अन्सार अपने दूध और जानवरों का हदिया भेज दिया करते थे, आप उनका दूध हमें भी पिलाते थे _," (बुखारी)*
*★_ हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू फरमाते हैं :- "आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर वालों पर चिराग रोशन किए और बगैर चूल्हा जलाए कई कई माह गुज़र जाते थे, अगर जैतून का तेल मिल जाता तो थोड़ा सा होने की वजह से चिराग में डालने के बजाय उसे बदन पर मल लेते थे, चर्बी मिल जाती तो उसे खाने में इस्तेमाल कर लेते थे _," ( बुखारी )*
[6/16, 7:12 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- मैं आल हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने (तहज्जुद की नमाज के वक्त) सो जाती थी और मेरे पास आपके सामने सजदे की जगह फैले होते थे, जब आप सजदे में जाते तो मेरे पांवों को हाथ लगा देते ताकि मैं पाव हटा लूं और सजदे की जगह बन जाए, लिहाजा में पांव सिकोड़ लेती, जब आप सजदे से फारिग हो जाते तो मैं पांव फैला देती, उस जमाने में घर में चराग नहीं थे _,"*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :-" सैयद ए आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जिस बिस्तर पर सोते थे वह चमड़े का था, उसने खजूर की छाल भरी थी, जिस तकिए पर आप सहारा लगा कर बैठा करते थे उसमें भी खजूर की छाल होती थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुबारक घर में कपड़े भी ज़्यादा नहीं थे, बाज़ मर्तबा ऐसा हुआ कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कपड़ा हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने पाक किया तो आप उसी को पहन कर मस्जिद में नमाज़ के लिए तशरीफ ले गए, यानी अभी वह कपड़ा गीला होता था _,"*
*★_ हजरत ना'फे रहमतुल्लाह फरमाते हैं:- मैं शाम और मिस्र का माल दूसरे इलाकों में तिजारत के लिए ले जाता था, एक मर्तबा इराक़ में गया, वापस आया तो हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में हाजिर हुआ और उन्हें बताया:- "मैं पहले तिजारत का सामान लेकर शाम जाता था इस मर्तबा इराक़ ले गया,.... यानी इस बारे में आपकी राय क्या है_," हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- "तुमने ऐसा क्यों किया, तिजारत के लिए अपना साबका़ इलाका़ क्यों छोड़ते हो, मैंने सैयद ए आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सुना है कि जब अल्लाह जल्लशानहू तुम्हारे लिए किसी जरिए रिज़्क के असबाब पैदा फरमाते हैं तो जब तक वह सबब खुद ही बदल ना जाए या दूसरा रुख अख्यारर ना कर ले तो उसे ना छोड़ो _,"*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मुझे इन चीज़ों की फजी़लत हासिल है:- निकाह से पहले जिब्राइल अलैहिस्सलाम मेरे मेरी तस्वीर लेकर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आए, मेरे अलावा और ऐसी औरत आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के निकाह में नहीं आई जिसके मां बाप दोनों ने हिजरत की हो, अल्लाह ताला ने आसमान से मेरी बरा'अत नाज़िल फरमाई (यानी मुझे पर लगने वाले इल्जाम को झूठा क़रार दिया), रहमते आलम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम पर इस हालत में वही आती थी कि मैं आपके साथ लिहाफ में लेटी होती थी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इस हालत में वफात पाई कि आप मेरी गर्दन और गोद के दरमियान में थे और दिन मेरी बारी का था और मेरे ही घर में दफन हुए, मैंने जिब्रील अलैहिस्सलाम को देखा, मैं आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सबसे प्यारी बीवी थी, जिस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हुई उस वक्त मेरे और फरिश्तों के अलावा वहां कोई मौजूद नहीं था_," ( अल असाबा)*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते हैं:- आयशा की फजी़लत औरतों में ऐसी है जैसे सरीद की फजी़लत तमाम खानों पर है_," सरीद को अरब में तमाम खानों में फजी़लत हासिल थी, रोटी को शौरवेदार गोश्त में पकाया जाता था, उसे सरीद कहते हैं _,"*
[6/16, 7:56 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज जिब्राइल अलैहिस्सलाम आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जरिए हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा को सलाम किया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- ऐ आयशा ! यह जिब्राइल है, तुम्हें सलाम कह रहे हैं _," आपने जवाब में फरमाया:- वा अलैकुम अस्सलाम वा रहमतुल्लाहि वा बरकातुहु _,"*
*★_ आप अक्सर रोज़े रखती थी, निफ्ल नमाजे़ भी बहुत पढ़ती थी, चाश्त की नमाज़ का खास ख्याल रखती थी, आप चाश्त की आठ रका'ते पढ़ती थी और फरमाया करती थी:- "मेरे मां-बाप भी अगर कब्र से उठ कर आ जाएं तब भी मैं इस नमाज़ को नहीं छोडूंगी _,"*
*★_ हजरत कासिम बिन मोहम्मद बिन अबी बकर रहमतुल्लाह सुबह के वक्त घर से निकलते तो सबसे पहले हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के घर जाते और उन्हें सलाम करते, यह उनके भाई के बेटे थे, एक मर्तबा वहां गए तो देखा कि आप खड़ी निफ्ल पढ़ रही है, मैं उनके सलाम फेरने के इंतजार में खड़ा रहा,... यहां तक कि थक गया और आपको उसी हालत में छोड़कर चला आया, मैंने देखा वह उस वक्त रो रही थीं _," ( सफतुल सफवाह )*
*★_ आप हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ भी तहजूद पढ़ती थीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद भी इसका अहतमाम करती रहीं _," ( मुसनद अहमद )*
*"_आप कसरत से रोज़ा रखती थी, एक मर्तबा नो जि़लहिज्जा को रोज़े से थी, सख्त गर्मी की वजह से सर पर पानी के छींटे दे रही थीं, आपके भाई हजरत अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह हाल देखकर अर्ज़ किया :- "इस शदीद गर्मी में निफ्ली रोज़ा कोई जरूरी नहीं... अफतार कर लें ( यानी रोज़ा तोड़ दें) इसके जवाब में आपने फरमाया:- "हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया है, अरफा के दिन रोज़ा रखने से साल भर के गुनाह माफ हो जाते हैं_," ( मिशकात )*
*★_ शरीयत ने जिन चीज़ों से मना किया है आप उनमें छोटी छोटी चीज़ों से भी बचती थीं, रास्ते में घंटी की आवाज़ आ जाती तो रुक जाती ताकि आवाज़ कानों में ना आए, नेकियों को फैलाने के साथ-साथ बुराइयों से रोकती भी थीं, आपने एक मकान किराए पर दिया, किराएदार के बारे में आपको मालूम हुआ कि वह शतरंज खेलता है, आपने कहलाया भेजा :- "इस हरकत से बाज़ आ जाओ.... वरना मकान से निकलवा दूंगी _,"*
[6/20, 9:28 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज आपकी मशहूर शागिर्द हजरत मा'ज़ा अदविया रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपसे पूछा :- "यह क्या बात है कि औरतों की नमाजें खास अय्याम में छूट जाती हैं वह नहीं पढ़ी जाती और जो रोज़े छूट जाते हैं वह रमज़ान के बाद रखे जाते हैं_," इस सवाल के जवाब में हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- "_ ऐ मा'जा़ ! क्या तू आज़ाद ख्याल हो गई है _," ( इस्लाम को अपनी समझ का ताबे करना चाहती हैं और इस्लाम के अहकामात को समझे बगैर मानना पसंद नहीं करतीं)*
*"_ आप का मतलब यह था कि दीन को अक़ल के ताबे नहीं करना चाहिए... जो लोग ऐसा करते हैं वह गुमराह है ।*
*★_ शरीयत में बाज़ औका़त वजू या गुस्ल की जगह तयम्मुम किया जाता है, उम्मत के लिए इसमें बहुत आसानी है... यह तयम्मुम का हुक्म भी हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की वजह से नाजिल हुआ, वाक़िए की तफसील यह है, आप फरमाती हैं :-*
*"_ हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ सफर में गए, बहुत से मुसलमान साथ थे, रात के वक्त मक़ामें बेदा में क़याम किया गया, वहां मेरे हार की लड़ी टूट गई, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसे ढूंढने का हुक्म फरमाया, इस तरह नमाज़ में देर हो गई और वहां पानी नहीं था, यानी हर गुम ना होता तो सब लोग आगे रवाना हो जाते और पानी मिल जाता, इस पर कुछ लोग हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए और कहने लगे :- "आप देख रहे हैं आपकी बेटी ने क्या किया, उनके हार की वजह से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सब को रोक लिया है और यहां क़रीब कहीं पानी नहीं है _,"*
*★_ उनकी बात सुनकर हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आए और आपको डांटने लगे, अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें डांटने के साथ कमर में कचोके भी मारे, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की रान पर सर रख के सो रहे थे, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने इस खयाल से हरकत तक ना की कि आपकी आंख खुल जाएगी और आप बे आराम होंगे, आप सोते रहे यहां तक कि सुबह हो गई और पानी मौजूद नहीं था, लिहाज़ा अल्लाह ताला ने तयम्मुम की आयत नाजिल फरमा दी, सब ने तयम्मुम किया और नमाज़ अदा की, यह सब देखकर हजरत उसैद बिन हुजैर रज़ियल्लाहु अन्हु खुशी से पुकारे :- "ए अबु बकर के घरवालों ! तुम वाक़ई बहुत बरकत वाले हो, यह तुम्हारी पहली ही बरकत नहीं है_," यानी पहले भी तुम लोगों की वजह से बरकते नाजिल हो चुकी हैं _,"*
*★_ फिर जब हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा वाले ऊंट को उठाया गया तो आपका हार उसके नीचे से मिल गया, इस तरह उम्मत को तयम्मुम की सहूलियत मिली _,*
[6/20, 9:50 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपके भांजे हजरत उरवाह बिन जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- मैंने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से बढ़कर कुरान का इल्म रखने वाला कोई नहीं देखा, ना इस्लाम के फराइज़, हलाल व हराम का जानने वाला और अरब के वाक़्यात का जानने वाला आप से बढ़कर कोई देखा, आप अहले अरब के नसब की भी सबसे ज्यादा वाकिफ थीं, इसके अलावा आप हिकमत भी जानती थीं, लोगों को अमराज़ की दवाएं बता देती थीं _,"*
*★_ इसीलिए एक मर्तबा हजरत उरवाह बिन जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से पूछा :- अम्मा जान ! मुझे आपके फक़ीहा होने पर हैरत नहीं क्योंकि आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की ज़ौजा मोहतरम हैं और हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की साहबज़ादी है और ना मुझे आपकी शेरदानी पर और अरब के वाकियात से वाकफियत पर हैरत है क्योंकि हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की सोहबत में आपने यह सब सीख लिया, लेकिन मुझे हैरत इस बात पर है कि आपको तिब से क्यों कर वाकफियत हो गई _,"*
*"_ इस सवाल के जवाब में आपने हजरत उरवाह के कंधे पर हाथ मार कर फरमाया :- " उरवाह बेटा ! तिब मैंने इस तरह सीखी कि आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम आखिरी उम्र में बीमार हो जाते थे और लोग दूर-दूर से आया करते थे, वह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को इलाज के तरीक़े और दवाएं बताते थे और मैं उनके ज़रिए आपका इलाज करती थी _,"*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा निहायत सखी थीं, उनकी बहन असमा बिन्ते अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हा का भी सखावत में बहुत बड़ा दर्जा था, हजरत अब्दुल्लाह बिन जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- "मैंने हजरत आयशा और हजरत असमा से बढ़कर कोई सखी औरत नहीं देखी लेकिन दोनों की सखावत में एक फ़र्क यह था कि हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा थोड़ा थोड़ा जमा करती रहती थी यहां तक कि जब काफी मिक़दार जमा हो जाती तो ज़रूरतमंदों में तकसीम फरमा देती थी और हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा का हाल यह था कि कल के लिए कुछ बचा के नहीं रखती थीं _,"*
*★_ हजरत उरवाह रज़ियल्लाहु अन्हु अपना आंखों देखा वाक़िआ बयान करते हैं :- "_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक रोज 70 हज़ार की मालियत जरूरतमंदों में तक़सीम फरमा दी और अपना हाल यह था कि तक़सीम करते वक्त आपके कुर्ते में पैबंद लगे हुए थे _,"*
[6/22, 9:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक थाली में सच्चे मोती भरकर हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में बतौर हदिया भेजे, उनकी कीमत एक लाख रुपए थी, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने यह हदिया क़ुबूल कर के अपने अलावा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तमाम बीवियों में तक़सीम फरमा दिया _,"*
*★_ एक रोज़ आपका रोज़ा था, उसी रोज़ आपके भांजे हजरत उरवाह बिन जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने दो बोरे भरकर हदिए के तौर पर भेज दिये, उस माल की मालियत दो लाख के करीब थी, आप उसी वक्त तक़सीम करने बैठ गई, जब शाम हुई तो उसमे से एक दिरहम भी बाक़ी नहीं बचा, रोज़ा इफ्तार करने का वक्त आया तो खादिमा से फरमाया :- अफ्तार के लिए कुछ लाओ_," वह जैतून का तेल और रोटी ले आई, उस वक्त आपके पास एक खातून उम्मे ज़रा बेठी थीं, उनका भी रोज़ा था, वह बोल उठी :- "आपने आज इतना माल तक्सीम किया, उसमें से एक दिरहम अपने लिए भी रख लिया होता, उसका गोश्त मंगा लेते, उससे हम इफ्तार कर लेते _,"*
*"_ इस पर हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- "अब कहने से क्या होता है, उस वक्त याद दिलाया होता तो मैं रख लेती _,"*
*★_ एक वाक्य़ा आप खुद बयान फरमाती हैं :- एक दिन मेरे पास एक औरत आई उसके साथ दो लड़कियां थी, उसने सवाल किया, उस वक्त मेरे पास एक खजूर के सिवा कुछ नहीं था, मैंने वही उसे दे दी, उसने उस खजूर के दो टुकड़े किए और एक-एक टुकड़ा दोनों बच्चियों को दे दिया, खुद ना लिया, उसके बाद चली गई, थोड़ी देर बाद रहमते आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ज़नान खाने में तशरीफ लाए, मैंने आपसे यह वाकि़या बयान किया, आपने फरमाया :- "जो शख्स उन बच्चियों की परवरिश में थोड़ा बहुत भी मुब्तिला किया गया और उसने उनके साथ अच्छा बर्ताव किया, तो यह लड़कियां उसके लिए दोज़ख से आड़ बन जाएंगी _,"*
*★_ एक रोज़ आपके घर में बकरी ज़िबह की गई, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त किसी जरूरत के तहत घर से बाहर तशरीफ ले गए, कुछ देर बाद तशरीफ लाए तो दरयाफ्त फरमाया :- बकरी का क्या हुआ ? हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- वह तो सदका़ कर दी गई बस एक दस्ती बची है _," इस पर आप ने फरमाया :- "वाकि़या यह है कि इस दस्ती के अलावा सब कुछ बचा हुआ है _," मतलब था कि जो अल्लाह के रास्ते में दे दिया, बाक़ी तो वही है और जो हमारे पास है उसे तो बाक़ी कहना दुरुस्त नहीं _,*
[6/26, 6:19 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अल्लाह ताला से बहुत ज्यादा डरने वाली, आखिरत की बहुत फिक्र करने वाली थी, एक मर्तबा दोज़ख आ गया तो रोने लगीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने रोने का सबक पूछा तो बोलीं :- दोजख का ख्याल आ गया इसलिए रो रही हूं _,*
*★_ एक रोज़ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कहने लगीं :- "_ए अल्लाह के रसूल जब से आपने मुनकर नकीर की हैबत नाक आवाज़ का और कब्र के भींचे जाने का जिक्र फरमाया है उस वक्त से मुझे किसी चीज़ से तसल्ली नहीं होती, दिल की परेशानी दूर नहीं होती _,"*
*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- ए आयशा ! मुनकर नकीर की आवाज़ का मोमिन के कानों को दबाना ऐसा होता है जैसे किसी के सर में दर्द हो और उसकी शफीक़ मां उसके सर को आहिस्ता आहिस्ता दबाएं और वह उससे राहत पाएं_,*
*★_ फिर आपने फरमाया :- ऐ आयशा ! अल्लाह के बारे में शक करने वालों के बारे में बड़ी खराबी है और वह क़ब्र में इस तरह भींचे जाएंगे जैसे अंडे पर पत्थर रखकर दबा दिया जाए _,"*
*★_ आप फरमाती हैं कि एक रोज़ आपके घर में एक यहूदी औरत आई, उसने क़ब्र के आजा़ब का जिक्र किया, साथ ही उसने कहा :- अल्लाह ताला तुझे कब्र के आजा़ब से पनाह में रखें _,"*
*"_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम घर में तशरीफ लाए तो मैंने आपसे पूछा:- ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या कब्र में अज़ाब होता है ? आपने ऐसा फरमाया :- कब्र का अजा़ब हक़ है_," इसके बाद मैंने देखा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर नमाज़ के बाद क़ब्र के आजा़ब से पनाह मांगने लगे _,"*
*★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी खाला की बेपनाह सखावत को देखकर एक दिन किसी से यह कह दिया :- "या तो वह इस तरह खर्च करने से रुक जाएं वरना मैं उनका हाथ रोक दूंगा_,"*
*"_ यह बात हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा तक भी पहुंच गई, आपने फरमाया :- "अच्छा ? अब्दुल्लाह ने ऐसा कहा है _," हाजिरीन में से किसी ने कहा :- जी हां ! उन्होंने ऐसा ही कहा है _," यह सुनकर आप ने फरमाया:- "_मैंने नज़र मान ली, जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे से कभी नहीं बोलूंगी _,"*
*"_उसके बाद एक मुद्दत से बोलचाल बंद रखी, फिर कुछ हजरात दरमियान में पड़े, तब कहीं जाकर बोलना शुरू किया, आप चूंकी नज़र मान चुकी थी और नज़र के टूटने पर एक गुलाम आज़ाद करना पड़ता है, इसलिए एक गुलाम आज़ाद कर दिया, लेकिन खौफे खुदा का आलम यह था कि एक गुलाम आज़ाद करने के बाद भी बार-बार इस सिलसिले में गुलाम आज़ाद करती रहीं कि शायद अब खता माफ हो जाए_,"*
[6/26, 6:42 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आपसे उम्र में चंद साल बड़ी थीं, लेकिन उनकी शादी हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से बाद में हुई थी, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घर में पहले आ गईं थीं, हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी की तैयारियों में हजरत आयशा सिद्दीका़ ने भरपूर हिस्सा लिया, उनका मकान लीपा, बिस्तर लगाया, अपने हाथ से खजूर की छाल धुन कर तकिए बनाए, लकड़ी की अलगनी तैयार की ताकि उस पर पानी की मशक और कपड़े लटकाए जाएं, आप खुद बयान करती हैं :- फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के ब्याह से अच्छा मैंने कोई ब्याह नहीं देखा _,"*
*★_ शादी के बाद हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा जिस घर में गईं, उसमें और हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा के हुजरे में सिर्फ एक दीवार का फासला था, दरमियान में एक दरीचा था, उस दरीचे से आपस में बातचीत हो जाती,*
*"_हदीस की किताबों में कोई सही वाक्य़ा ऐसा नहीं जिससे साबित हो कि हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के दिल आपस में साफ नहीं थे, अहादीस से यही साबित है कि दोनों में बेहद मोहब्बत और मेल मिलाप था _,"*
*★_ एक ताबई ने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से पूछा :- आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को सबसे ज्यादा महबूब कौन था _," हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- "फातिमा",*
*"_ फिर फरमाया:- मैंने फातिमा से ज्यादा उठने बैठने के तरीकों आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से मिलता जुलता किसी और को नहीं देखा, जब फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में आतीं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े हो जाते, उनकी पेशानी चूम लेते और अपनी जगह पर बैठाते _," ( मुस्लिम )*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीका़ रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "एक दिन हम सब बीवियां आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास बैठी थीं कि फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा आ गईं, उनकी चाल बिल्कुल आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चाल थी, ज़रा भी फर्क नहीं था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निहायत इज़्ज़त से उनको पास बिठाया, फिर दबी आवाज में उनके कान में कुछ फरमाया, वह सुनकर रोने लगीं, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी बेक़रारी देखकर फिर कान में कुछ फरमाया तो वह हंसने लगीं _,"*
*"_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं, मैंने उनसे कहा :- फातिमा ! आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिर्फ तुमसे राज़ की बातें कहते हैं और तुम रोती हो _,"*
*"_फिर जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम वहां से चले गए तो मैंने उनसे पूछा :- फातिमा ! आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम क्या फरमा रहे थे ? इस पर हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा बोलीं :- मैं बाप का राज़ नहीं खोलूंगी_,"*
*"_फिर जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतकाल हो गया तो मैंने दोबारा कहा :- फातिमा ! मेरा तुम पर जो हक़ है मैं तुम्हें उसका वास्ता देती हूं, उस दिन की बात मुझसे कह दो _,"*
*"_ उन्होंने जवाब दिया :- हां ! अब यह मुमकिन है, मैंने रोने का सबब यह था कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपनी जल्द वफात की इत्तेला दी थी, इस पर मैं रोने लगी, फिर आपने फरमाया, फातिमा क्या तुम्हें यह पसंद नहीं कि तुम तमाम दुनिया की औरतों की सरदार बनो _," ( बुखारी )*
*★_ इस हदीस से हजरत आयशा और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहू अन्हुमा की आपस के मोहब्बत भरे तालुका़त साबित होते हैं और यह वाक्या हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र के आखिरी हिस्से का वाक़या है, अब जो लोग यह कहते हैं कि उनमें तो आपस में नाराज़गी थी वो बिल्कुल गलत कहते हैं, इसी तरह विरासत वगैरा के मामलात ने उन पाक नुफूस को कोई रंज़ वगैरह नहीं पहुंचाया था, यह मुक़द्दस हस्तियां क्या ज़मीन जायदाद के लिए झगड़ती, हरगिज़ नहीं _,"*
[6/28, 10:18 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब हम हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा की जिंदगी के सबसे ज्यादा दर्दनाक वाक़िए की तबसील बयान करते हैं, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जब किसी सफर पर जाते तो अज़वावाज मुताहारात में क़ुर्रा अंदाज़ी फरमाते, कु़र्रा अंदाज़ी में जिनका नाम निकल आता, आप सफर में उन्हें साथ ले जाते, शाबान 5 हिजरी में नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गज़वा बनी मुस्तलक़ के लिए रवाना हुए, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की एक बड़ी तादाद आपके साथ थी, मुनाफिकों को अंदाजा था कि इस गज़वे में कोई खूंरेज जंग नहीं होगी चुनांचे उनकी अच्छी खासी तादाद इस्लामी लश्कर में शामिल हो गई, इससे पहले मुनाफिक लोग इतनी बड़ी तादाद में इस्लामी लश्कर में कभी शामिल नहीं हुए थे _,*
*★_ इस सफर में हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के नाम क़ुर्रा निकला था, लिहाज़ा आप साथ थीं, रवाना होते वक्त आपने अपनी बड़ी बहन असमा रज़ियल्लाहु अन्हा का हार पहनने के लिए ले लिया था, वह आपके गले में था, हार की लड़ियां कमज़ोर थी बार-बार टूट जाती थीं, उस ज़माने में पर्दे का हुक्म नाज़िल हो चुका था, इस पर सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा अपने मुहमिल में सवार होती थीं, डोली की शक्ल की चीज़ को मोहमिल कहते हैं, आप उस में बैठ जातीं और मोहमिल को उठा कर ऊंट पर रख दिया जाता, उतरने की ज़रूरत पेश आती तो खादिम मुहमिल को उठा कर ज़मीन पर रख देते, इस तरह आप मुहमिल से बाहर निकलकर अपनी ज़रूरत से फारिग हो लेतीं _,"*
*★_ गज़वा बनी मुस्तलक़ से वापसी पर एक जगह लश्कर ने पड़ाव किया, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने रात के पिछले पहर लश्कर को रवानगी का हुक्म फरमा दिया, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को इस बात का इल्म नहीं था, काफ़िले के रवाना होने से कुछ देर पहले आप क़जा़ ए हाजत के लिए क़ाफिले से कुछ दूर चली गईं, फारिग होकर लौटीं तो गले पर हाथ रखकर टटोला, मालूम हुआ हार गले में नहीं था, आप घबराहट में उस जगह से वापस गईं और हार तलाश करने लगीं,*
*"_बाज़ रिवायात में है कि हार वहां टूट कर गिर गया था और उसके दाने बिखर गए थे, उन दानों को जमा करने में आपको देर हो गई, जब आप हार की तलाश में वापस लौटी थीं तो आपको अंदाज़ा था कि जल्दी लौट आएंगी इसलिए किसी को ना बताया कि वह हार की तलाश में जा रही हैं, ना मुहमिल उठाने वालों को बताया _,"*
*★_ इधर लश्कर रवानगी के लिए तैयार था, लिहाज़ा सारबानों ने मुहमिल ् उठाकर ऊंट पर रख दिया, उस ज़माने में आप दुबली पतली थीं आपका वजन बहुत कम था, इसलिए मुहमिल उठाने वालों को पता ना चला कि आप उसमें नहीं है, उनका ख्याल यही था कि आप मुहमिल में है, इस तरह का क़ाफिला वहां से आपके बगैर रवाना हो गया, आपको हार के दाने मिल गएं तो आप वापस लौटी और यह देख कर परेशान हो गईं कि का़फिला वहां से जा चुका था, वहां बिल्कुल सन्नाटा था, आपने सोचा जब रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मालूम होगा कि मैं मुहमिल मे नहीं हूं तो आप मेरी तलाश में कुछ साथियों को इसी तरफ भेज देंगे, यह सोचकर आपने चादर तानी और एक दरख्त के नीचे लेट गईं, लेटते ही आपको नींद ने आ लिया _,"*
[6/28, 6:24 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_हजरत सफवान बिन मुअत्तल सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु एक सहाबी थे, उनकी जिम्मेदारी यह थी कि वह लश्कर के पीछे रहा करते थे ताकि किसी का कोई सामान रह जाए या गिर जाए तो उठा लिया करें , उस रोज़ भी लश्कर से पीछे थे , चुनांचे जब यह उस जगह पहुंचे जहां काफिला था तो उन्होंने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को दूर से देखा और ख्याल किया कि कोई आदमी सोया हुआ है ,नजदीक आए तो उन्होंने आपको पहचान लिया, उन्होंने नज़र पड़ते ही "इन्ना लिल्लाहि वा इन्ना इलैहि राजिऊन" पढ़ा,*
*★_ उनकी आवाज़ सुनकर सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा जाग गईं, उन्हें देखते ही आपने अपनी चादर अपने चेहरे पर डाल ली ,*
*★_ हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- सफवान सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु हैरतजदा थे कि यह क्या हुआ ? लेकिन मुंह से उन्होंने एक लफ्ज़ ना कहा, ना मैंने उनसे कोई बात की ,उन्होंने अपने ऊंट को मेरे क़रीब बिठा दिया और सिर्फ इतना कहा - मां सवार हो जाएं !*
*"_मैंने ऊंट पर सवार होते वक्त कहा- हस्बियल्लाहु व नि'आमल वकील , ( अल्लाह ताला की जात ही मुझे काफी है और वही मेरा बेहतरीन सहारा है )*
*"_फिर मेरे सवार होने के बाद उन्होंने ऊंट को उठाया उसकी मुहार पकड़कर आगे रवाना हो गए यहां तक कि लश्कर में पहुंच गए , लश्कर उस वक्त नखले ज़हीरा के मुका़म पर पड़ाव डाले हुए था और वह दोपहर का वक्त था ।_,*
*★_ इस अहम तरीन वाक़िए में और भी बहुत सी हिकमतें मौजूद हैं, उनमें से एक यह है कि क़ुराने करीम आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बनाई हुई किताब नहीं है, वरना एक माह तक अपनी ज़ौजा मोहतरमा को और उनके मां-बाप को रुलाने की क्या ज़रूरत थी, आप फौरन ही फरमा देते कि यह बहुत बड़ा बुहतान है, बल्कि यह ऐलान अल्लाह ताला की तरफ से तक़रीबन एक माह बाद हुआ_,"*
*★_ और यह भी मालूम है कि अल्लाह ताला की तरफ से जो वही नाजिल होती थी उसे छुपाने का अख्त्यार आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को नहीं था, जो कुछ नाज़िल होता था वह आप दूसरों को सुनाते थे, लिहाज़ा यह पूरा वाक़या मुसलमानों के लिए खैर ही खैर है ,*
*★_ यह भी साबित हुआ कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को तमाम छुपी और गायब बातों का हर हर चीज़ का इल्म नहीं था, यह जाहिलों का अकी़दा है कि पैगंबर और वली सब कुछ जानते हैं, सही अक़ीदा जो क़ुरान व सुन्नत से साबित है यह है कि आलिमुल गैब हर शै का इल्म रखने वाला सिर्फ अल्लाह ताला है, हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अल्लाह ताला ने सारी मखलूक से ज्यादा इल्म अता किया था मगर आलिमुल गैब नहीं बनाया था, अगर आलिमुल गैब होते तो इतने दिनों तक वहीं का इंतज़ार क्यों फरमाते _,*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का मामूल था कि असर की नमाज़ के बाद थोड़ी थोड़ी देर के लिए तमाम अज़वाज मुताहरात के पास बैठते थे, इस मामूल में क़दरे फर्क इस तरह आया कि आप हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां कुछ ज़्यादा वक्त के लिए बैठने लगे, सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने इसकी वजह मालूम करने की कोशिश की तो पता चला, सैयदा जै़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां कहीं से शहद आ गया, आपको चूंकी शहद बहुत पसंद था, इसलिए हजरत जै़नब रज़ियल्लाहु अन्हा आपको शहद पेश करती थीं, सो इस वजह से क़दरे ज्यादा वक्त लग जाता था _,"*
[7/4, 8:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयद आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने सैयदा हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा और सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा से इस बात का ज़िक्र किया और मशवरा किया कि इस सिलसिले में कोई तदबीर करनी चाहिए, आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम बहुत नफासत पसंद थे, ज़रा सी बू भी आपको नागवार गुजरती थी और शहद की मक्खियां जिस किस्म के फूलों से रस चूसती हैं, शहद की मिठास में उस क़िस्म के फूलों की लज़्ज़त और बू होती है, अरब में एक फूल का नाम मुगाफीर है, यह क़दरे तेज़ बू वाला फूल है, शहद की मक्खियां आमतौर पर वहां उस फूल पर बैठती हैं, सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने दोनों को समझा दिया कि जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ लाएं तो पूछना चाहिए कि आपके मुंह से यह बू कैसी आ रही है, जब आपको बताएं कि शहद खाया है तो कहना चाहिए कि इसमें मुगाफीर कि बू है, ऐसा ही किया गया, जब आपको मालूम हुआ कि मुंह से मुगाफीर की बू आती है तो आपने इरशाद फरमाया :- ठीक है ! अब मैं शहद नहीं खाऊंगा _,"*
*★_ इस पर अल्लाह ताला ने फौरन यह आयत नाज़िल फरमाई :- "_ ऐ पैगंबर ! अल्लाह ने आपके लिए जो हलाल किया है उसे अपनी बीवियों की खुशी के लिए अपने ऊपर क्यों हराम करते हो, अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है और उसने आपकी क़सम का कफ़्फ़ारा मुक़र्रर कर दिया है, अल्लाह ताला आपका मौला और इल्म व हिकमत वाला है _," (सूरह तहरीम आयत 10)*
*★_ हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र अभी सिर्फ 18 साल की थी कि आज हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इस दुनिया से रुखसत होने का वक्त आ गया, 11 हिजरी में माह सफर की आखिरी तारीखों में एक रोज़ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा के हुजरे में तशरीफ लाए तो आप के सर में दर्द था, वहां से आप सैयदा मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां तशरीफ ले गए और तबीयत खराब होने की वजह से बिस्तर पर लेट गए, तमाम बीवियों को आपकी तबीयत की खराबी की खबर हो गईं, सब आपके गिर्द जमा हो गईं, उन्होंने महसूस किया कि आप सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां क़याम करना चाहते हैं, चुनांचे सब ने खुशी से इजाज़त दे दी, आप वहां से सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा के यहां तशरीफ ले आए और इस दुनिया में आखिरी वक्त तक फिर वहीं रहे और यही वजह है कि आप के इंतकाल के वक्त की जिस क़दर भी रिवायात हैं, सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ही से रिवायत की गई हैं _,"*
[7/4, 11:06 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सर दर्द के साथ आपको बुखार भी हो गया था और मर्ज़ में रोज़ ब रोज़ शिद्दत आ रही थी, आपकी अज़वाज मुताहरात तीमारदारी में लगीं थीं और अल्लाह ताला से आपकी सेहत के लिए दुआएं कर रही थीं लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल का वक्त आ चुका था, वफात के वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सर मुबारक सैयदा आयशा की गोद में था, आप फरमाती हैं :- "अचानक मुझे आपके बदन का बोझ महसूस हुआ, आपकी आंखें देखी वह खुली थीं, मैंने आपका सर मुबारक तकिए पर रख दिया और रोने लगी _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे में दफन किया गया और यह जन्नत के टुकड़ों में से एक टुकड़ा है, एक मर्तबा सैयदा ने ख्वाब में देखा था कि तीन चांद टूट कर आपके हुजरे में आ गिरे हैं, आप ने इस ख्वाब का जिक्र अपने वालिद मोहतरम हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु से किया था, जब सरकारे आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इस हुजरे मे दफन हुए तो सैयदना सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- तीन चांदों में से एक यह है और उनमें सबसे बेहतर है _,"*
*"_ बाद के वाक़िआत ने साबित कर दिया कि दूसरे दो चांद अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम थे, जिन्हें आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ दफन होने की सआदत नसीब हुई _,*
*★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के बाद अब आप बेवा थीं, इसी आलम में आपने अपनी जिंदगी के 50 साल बसर किये, आप आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की कब्र मुबारक के पास ही सोती रहीं लेकिन फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को ख्वाब में देखा तो वहां सोना छोड़ दिया, ताहम हुजरे में आना जाना ना छोड़ा, फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की वफात हो गई और आपको भी रोज़ा मुबारक में दफन किया गया, इस पर भी आप आती जाती रहीं और अंदर चेहरा ढक कर नहीं रखती थीं लेकिन जब हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत हुई और आपको वहां दफन किया गया तो फिर आप पर्दा करके वहां आने लगीं, इस बारे में आप फरमाती हैं :- "अब यहां बेपर्दा आते हया आती है _,"*
*★_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के बाद आपके वालिद बुजुर्गवार को खलीफा चुना गया, अज़वाज मुताहरात रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने एक रोज़ चाहा की विरासत हासिल करने के लिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के पास हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना नुमाइंदा बनाकर भेजें लेकिन सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने उन्हें याद दिलाया :- आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी मुबारक में फरमाया था, हम अंबिया का कोई वारिस नहीं होता, हम जो छोड़ते हैं वह सदका़ होगा _," यह सुनकर सब खामोश हो गईं ।*
[7/5, 8:12 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदना अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु 2 साल तक ख़लीफा रहे, 13 हिजरी में आप का इंतकाल हो गया, नज़ा के वक्त सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर थीं, आपने उनसे पूछा :- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के कफन में कितने कपड़े थे ? सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने बताया :- तीन सफेद कपड़े _," उन्होंने पूछा ;- आपने किस रोज़ वफात पाई थी ? सैयदा ने जवाब दिया :- पीर के रोज़ _," आपने पूछा :- आज कौन सा दिन है ? उन्होंने बताया :- आज पीर है _," इस पर अबू बकर सिद्दीक ने फरमाया :- आज रात तक मेरा भी चल चलाओ है, फिर फरमाया :- मुझे इन्हीं कपड़ों में दफन किया जाए _," उनसे कहा गया :- यह पुराने कपड़े हैं _," आपने फरमाया :- नए कपड़ों की ज़रूरत मुर्दों की निस्बत जिंदो को ज्यादा है _," (बुखारी)*
*★_ आप उसी रोज़ इंतकाल कर गए, आपको भी हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा के हुजरे में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पहलू में दफन किया गया, यह दूसरा चांद था जो आपके हुजरे में उतर आया था _,*
*★_ सैयदना फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में तमाम अज़वाज मुताहरात को 12 हज़ार दिरहम सालाना दिया जाता था, किसी ने हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा :- आपने उनके लिए यह रक़म क्यों मुक़र्रर की ? हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया :- यह सब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की महबूब और मंजूरे नज़र थीं_,"*
*"_ इराक़ फतह हुआ तो माले गनीमत में मोतियों की एक डिबिया भी थी, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगों से कहा :- अगर आप लोग इजाज़त दें तो मैं यह मोती सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा को दे दूं, क्योंकि सैयदा आयशा हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बहुत महबूब थीं_,"*
*"_ सबने खुशी से इजाज़त दे दी, चुनांचे डिबिया सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा को भेज दी गई ,*
*★_ सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की ख्वाहिश थी कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ दफन हों लेकिन आपने इस ख्वाहिश का कभी इज़हार नहीं किया था, जब आपका आखिरी वक्त आ पहुंचा तब यह ख्वाहिश ज़ाहिर की और अपने बेटे हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु को सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में भेजा और उनसे फरमाया :- उम्मूल मोमिनीन को मेरी तरफ से सलाम कहना और अर्ज़ करना, उमर की ख्वाइश है कि वह अपने रफीक़ों के पहलू में दफन हो_," हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की ख्वाहिश सुनकर हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- वह जगह मैंने अपने लिए रखी थी लेकिन उमर की खुशी के लिए उनके लिए इजाज़त देती हूं _,"*
*"_चुनांचे सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के पहलू में दफन किया गया, इस तरह उस हुजरे में तीसरा चांद उतर आया _,"*
[7/7, 8:43 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप तमाम मुसलमानों की मां थी, मुसलमानों को उनसे बहुत मोहब्बत थी, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में आपने एक मां होने के नाते बहुत अहम किरदार अदा किया, सैयदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में अब्दुल्लाह इब्ने सबा ने इस्लामी सल्तनत के खिलाफ एक बहुत बड़ी साजिश शुरू की, यह शख्स यहूदी था बस ज़ाहिर में मुसलमान था, उसने साजिश का एक जाल चारों तरफ बिछा दिया, आज तक मुसलमान उस साजिश के नुक़सानात भुगत रहे हैं _,*
*★_ उसकी साजिश का असल नुक्ता यह था कि लोगों में कहता फिरता था :- लोगों ! आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बाद उनके असल जांनशीन हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु है और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनके बारे में वसीयत कर दी थी कि मेरे बाद उन्हें खलीफा बनाया जाए _,"*
*★_ यह बात लेकर उसने सारे इस्लामी रियासत का दौरा किया, हर तरफ यह बात खूब फैलाई, उस ज़माने में कूफा बसरा और मिस्र में इस्लामी फौज की बड़ी बड़ी छावनियां थी, वहां उसने ज़्यादा कोशिश की और उसने बहुत से लोगों को अपना हम ख्याल बना लिया, हज का ज़माना आया तो यह सब लोग हिजाज़ पहुंच गए और वहां भी इन बातों को फैलाए में लगे _,*
*★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे बड़े-बड़े सहाबा ने उन्हें समझाया और वापस जाने पर आमादा कर लिया, यह लोग चले तो गए लेकिन कुछ दूर जाकर फिर लौट आए, सहाबा किराम को उनके दोबारा आने की इत्तेला मिली तो फौरन उनके पास पहुंचे, उनमें हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे, आपने उनसे पूछा :- क्या बात है, तुम फिर आ गए ?*
*"_इस पर उनमें से एक ने कहा :- हमारे पास एक खत है, यह खत मिश्र के गवर्नर के नाम लिखा गया है, इस खत में उन्होंने लिखा है कि जब यह लोग मिश्र पहुंचे तो उनके सरगना को फौरन क़त्ल कर दो, बाकि़यों को क़ैद में डाल दो और यह खत मरवान बिन हकम के हाथ का लिखा हुआ है _,"*
*★_ उनका मतलब यह था कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने मरवान बिन हकम के हाथ से लिखवाया है, मरवान हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के क़रीबी रिश्तेदार थे, उस खत पर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की मुहर भी लगी हुई थी _,"*
*★_ और उसके बाद उन लोगों ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर को घेरे में ले लिया, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे सहाबा मजबूरन अपने घरों को लौट गए, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऐलान फरमाया कि यह खत्म उन्होंने नहीं लिखवया, इसका साफ मतलब यह था कि खत जाली था और बागियों ने खुद लिखा था, साजिशी लोग इस क़िस्म के काम ना करें तो उन पर यक़ीन कौन करेगा, बहरहाल यह उनकी चाल थी, वह हर हाल में उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद करना चाहते थे ताकि उम्मते मुस्लिमा में खाना जंगियों का आगाज़ हो जाए और आखिरकार उन्होंने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को 40 रोज़ के मुहासरे के बाद शहीद कर दिया _,*
[7/7, 10:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उस वक्त हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा हज के इरादे से मक्का मुअज्ज़मा गई हुई थीं, मदीना मुनव्वरा में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को खलीफा मुक़र्रर कर दिया गया, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल कोई मामूली वाक़िआ नहीं था, हर तरफ बेचैनी फैल गई थी, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा हज से फारिग होकर मक्का से निकल चुकी थीं कि मदीना मुनव्वरा की तरफ से हजरत तलहा और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुम आ गए, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु कुरेशी हैं, सबसे पहले इस्लाम लाने वालों में शामिल हैं, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के दामाद है और इस लिहाज से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हमज़ुल्फ हैं और फिर अशरा मुबश्शरा में शामिल है, इसी तरह हजरत जु़बैर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु भी अशरा मुबश्शरा में शामिल हैं, सबसे पहले ईमान लाने वालों में शामिल है, आप भी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सल्लम के हम जुल्फ थे यानी हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के दामाद थे, सहाबी ए रसूल थे ।*
*★_ उन्होंने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को बताया :- हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को फितना परवाज़ों ने शहीद कर दिया है और शदीद अबतरी पैदा हो गई है, लोगों ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर बैत कर ली है, इस पर हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- हमें सोचना होगा कि अब क्या किया जाए ?*
*"_ अब यह हजरात वापस मक्का मुअज्ज़मा आ गए, लोगों को हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत की इत्तेला मिली तो उनके इर्द-गिर्द जमा होने लगे,*
*★_ इस मौके पर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने कुरान ए करीम की आयत तिलावत की, उसका तर्जुमा यह है :-*
*"_ अगर मुसलमानों की दो जमातें आपस में लड़ पड़े तो दोनों के दरमियान सुलहा करा दो पस अगर एक जमात दूसरी पर जुल्म करे तो जुल्म करने वाली जमात से लड़ो यहां तक कि वह अल्लाह के हुक्म की तरह रुजू कर ले तो दोनों में सुलह करा दो_," ( सूरह अल हुजरात -1)*
*★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने उन लोगों को अल्लाह का यह हुक्म सुनाया, आप बहुत बहादुर थीं, आन हजरत सल्लल्लाहु सल्लम के ज़माने में बाज़ गज़वात में शरीक रहे् चुकी थीं, आपका गज़वा बदर में भी गई थीं, गज़वा उहद में जब मुसलमान दुश्मनों में घिर गए थे और बहादुरों के पांव उखड़ रहे थे, तो हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा मशक कांधे पर डालकर जख्मियों को दौड़ दौड़ कर पानी पिला रही थीं, गजवा खंदक में जब मुसलमान घेरे में थे तो हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ज़नाना किले से निकलकर जंग के हालात देखा करती थीं _," ( मुसनद इमाम अहमद )*
*★_ मतलब यह कि बहुत ही दिलेर थीं, मुसलमानों की इस्लाह करने की ख्वाहिशमंद थीं, इस मौक़े पर इसलिए आपने यह आयत तिलावत की, आपने उन सब से यह भी फरमाया :-*
*"_ अल्लाह की क़सम ! उस्मान मज़लूम मारे गए, मैं उनके खून का बदला लूंगी, अफसोस इधर-उधर के आए हुए बलवाइयों ने मदीना के गुलामों के साथ मिलकर बलवा किया, उन्होंने नाहक़ उस्मान की मुखालफत की, जिस खून को अल्लाह ताला ने हराम किया था उन्होंने उसको बहाया, जिस घर को अल्लाह ताला ने अपने रसूल का दारुल हिजरत बनाया था उन्होंने वहां खूंरेजी़ की और जिस महीने में खूंरेजी़ मना थी उस महीने में खूंरेजी़ की, जिसका माल लेना जायज़ नहीं था उसे लूटा, अल्लाह की क़सम उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की एक उंगली बलवाइयों जैसे तमाम लोगों से अफज़ल है, जिस वजह से यह लोग उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के दुश्मन हुए थे उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु उससे पाक साफ है_,"*
[7/9, 9:17 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अरब के रईसों ने कई लाख दिरहम और सवारियों के ऊंट मुहैया किए, फिर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की क़यामगाह पर जलसा हुआ, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की राय थी :- इस वक्त चूंकी सबाई लोग और बागी मदीना मुनव्वरा में है, इसलिए उधर का रुख किया जाए_," इस पर कुछ लोगों ने मशवरे दिए और आखिर तैय यह पाया कि पहले बसरा चला जाए, आखिर हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा इस का़फिले के साथ बसरा रवाना हुईं, उम्माहतुल मोमिनीन और आम मुसलमानों ने दूर तक आकर इस काफिले को रुखसत किया, उस वक्त वह लोग रो रहे थे और कह रहे थे :- आह ! मुसलमानों पर कितना नाज़ुक वक्त आया है _,"*
*★_ इस मौक़े पर कुछ फितना परवर लोग भी इस जमात में शामिल हो गए, इस्लाम को अंदर ही अंदर कमज़ोर करने वाले लोग शुरू से चले आ रहे थे लेकिन पहले उन्हें खुलकर काम करने का मौका नहीं मिल सका था, उनकी पहली कोशिश हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद करने की सूरत में कामयाब हुई थी और दूसरी कोशिश थी हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद करने की, उसके बाद यह अनासिर और ज़्यादा सरगर्म हो गए, अब जब उन्होंने देखा कि आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फौज लेकर मक्के से निकली है तो इनके लिए फौज में शामिल होना आसान काम था।*
*★_ आप मक्का से रवाना हुई तो एक बस्ती के कुत्ते लश्कर पर भोंकने लगे, इस मुकाम पर एक रिवायत बयान की जाती है, पहले वह रिवायत नक़ल की जाती है :-*
*"_ एक मर्तबा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी अज़वाज को मुखातिब करते हुए फरमाया था कि तुममें से ना जाने कौन होगी जिस पर हवाब के कुत्ते भोकेंगे _,*
*"_ हवाब किसी बस्ती का नाम था, इन अल्फाज़ का मतलब यह था कि उस वक्त वह बीवी गलती पर होंगी, यह रिवायत तिबरी जिल्द 3 के सफहा 475 पर है, इसके बारे में 3 तरह की बातें लिखी गई है, एक यह कि वह बस्ती हवाब की भी थी मगर लोगों ने आपको यह मालूम नहीं होने दिया, दूसरी बात यह है कि वह बस्ती हवाब की नहीं थी, तीसरी यह है कि यह रिवायत है ही घड़ी हुई_,*
*"_ तीनों सूरतों में हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा बेकसूर ठहरती हैं, इस तरह निकलना दरअसल आपका इज्तिहाद था और ऐसा आपने सूरह अल हुजरात की आयत के तहत किया था ।*
*★₹ बाज़ रिवायात में है कि कुत्तों का भौंकना सुनकर जब आपने पूछा कि यह कौन सी बस्ती है और आपको बताया गया कि यह हवाब की बस्ती है, तो आपने फरमाया :- तब तो मैं यहां से वापस जाती हूं _," यह सुनकर हजरत जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :आप वापस जाना चाहती हैं ...क्या खबर ..अल्लाह ताला आप के ज़रिए लोगों ने सुलह करा दें _,"*
*"_कुछ और लोगों ने भी कहा:- बल्कि आप आगे बड़े, मुसलमान आप को देखेंगे तो सुलह कर लेंगे_,"*
*"_बाज़ रिवायात में हैं कि उस वक्त कई लोगों ने यक़ीन के साथ कहा कि यह बस्ती कोई और है हवाब नहीं, इन रिवायत से यह बात साबित होती है कि हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा का इस तरह निकलने से मक़सद सिर्फ मुसलमानों के दरमियान सुलह कराना था, आप जंग के इरादे से नहीं निकली थी _,*
[7/10, 8:49 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उधर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को जब मालूम हुआ कि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा अपने साथ एक जमात को लेकर निकली हैं, तो आप भी मदीना मुनव्वरा से निकल खड़े हुए, उस वक्त कूफा के अमीर हजरत मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु थे, उन्होंने लोगों को खुतबा दिया और पुर सुकून रहने की हिदायत की _,"*
*★_ उधर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को कूफा की तरफ रवाना फरमाया, इन दोनों ने कूफा की जामा मस्जिद में तक़रीर की और हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की फजी़लत बयान की... उसके बाद उन्होंने कहा :- यह सब ठीक है लेकिन इस वक्त अल्लाह ताला मुसलमानों का इंतिहान ले रहा है _,"*
*★_ मुसलमान परेशान थे, एक तरफ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बीवी थीं और दूसरी तरफ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दामाद थे, लोगों की उलझन यह थी कि इन हालात में वह किस का साथ दें, ऐसे में हजरत आयशा सिद्दीका़ बसरा के क़रीब पहुंच गई, बसरा के हाकिम उस्मान बिन हनीफ थे, उन्होंने सूरते हाल मालूम करने के लिए दो आदमियों को भेजा, यह दोनों हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में हाजिर हुए, उन्होंने कहा :- हमें बसरा के वाली उस्मान बिन हनीफ ने आपकी खिदमत में भेजा है, वह जानना चाहते हैं कि आप किस लिए तशरीफ लाईं हैं _,"*
*★_ उनकी बात के जवाब में आप ने फरमाया :- अल्लाह की क़सम ! मुझ जैसे लोग किसी बात को छुपा कर घर से नहीं निकलते और ना कोई मां असल बात बेटों से छुपा सकती है, वाक़िया यह है कि क़बाइल के आवारा लोगों ने मदीना मुनव्वरा पर हमला किया,.. मदीना हरमे मोहतरम है, उन लोगों ने वहां फितना बरपा किया और फितना परवाज़ों को पनाह दी, इस बुनियाद पर वह अल्लाह की लानत के मुस्तहिक़ ठहरे, इन बातों के अलावा उन लोगों ने खलीफा सोम हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद किया, मासूम खून को हलाल जानकर बहाया, जिस माल का उन्हें लेना जायज़ नहीं था उसे लूटा, हरमें मोहतरम की बेइज्ज़ती की, मुकद्दस महीने की तोहीन की (यानी ज़िलहिज्जा में हजरत उस्मान को शहीद किया) लोगों की आबरू रेज़ी की,.. मुसलमानों को बेगुनाह मारा पीटा, उनके घरों में ज़बरदस्ती दाखिल हुए, मैं मुसलमानों को लेकर इसलिए निकली हूं कि लोगों को बताऊं... इन हालात में मुसलमानों को क्या-क्या नुकसान पहुंच रहे हैं, हम इस्लाह की दावत लेकर निकले हैं और इसका अल्लाह के रसूल ने हर छोटे-बड़े को हुक्म दिया है, यह है हमारा मक़सद _,"*
[7/11, 5:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन दोनों हजरत ने हजरत तलहा और हजरत जु़बेर रज़ियल्लाहु अन्हुम से भी मुलाक़ात की, फिर वापस बसरा के वाली उस्मान बिन हनीफ के पास आए और उन्हें बताया कि हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा क्या चाहती हैं, उस्मान बिन हनीफ ने इन बातों का कोई असर नहीं लिया और अपनी फौज लेकर मैदान में आ गए _,*
*"_इस मौके़ पर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक बड़ी पूर असर तक़रीर की, आप की तक़रीर सुनकर उस्मान बिन हनीफ की फौज से बहुत से आदमी निकलकर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की तरफ आ गए और पुकार उठे :- "अल्लाह की क़सम ! आप ठीक कहती हैं _,"*
*★_ दूसरे रोज़ दोनों जमाते आमने-सामने आ गई, बसरा वालों का सालार हकीम नामी एक शख्स था, उसने जंग शुरू करने की कोशिश की, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के साथी नेज़े ताने खामोश खड़े थे, आप हकीम और उसकी फौज को बराबर रोक रही थी कि जंग शुरु ना करो, हमारा मक़सद जंग नहीं है, हम इस्लाह के लिए आए हैं, पहले हमारी बात सुन लो, आपकी इन बातों के बावजूद हकीम बाज़ ना आया, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के साथी अब भी हाथ रोके खड़े थे, उधर हकीम ने अपने साथियों को ललकारा, यह हालात देखकर हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने साथियों को पीछे हटने का हुक्म फरमाया और दूसरे मैदान में ला खड़ा किया, इससे साफ जाहिर है कि आपका इरादा हरगिज़ हरगिज़ जंग का नहीं था, आप तो मुसलमानों में सुलह कराने की नियत से निकली थी,*
*★_ दूसरी तरफ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा से अपने साथ 100 आदमी लेकर चले थे, आप कूफा पहुंचे तो 7 हज़ार आदमी आपके साथ हो लिए, बसरा पहुंचते-पहुंचते उनकी तादाद 20 हज़ार हो गई, इधर हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ 30 हज़ार आदमी थे, दोनों जमाते मैदान में आमने -सामने खैमाज़न हो गईं, हर मुसलमान का दिल डर रहा था कि कल तक इनकी तलवारें दुश्मनों के सर उड़ाती रही थीं कहीं अब खुद अपनों के सीनों को ना छलनी करने लगें_,*
*★_ अब दोनों तरफ से सुलह की कोशिशें शुरू हुई, सबाई गिरोह के लोग दोनों तरफ की फौजों में शामिल हो चुके थे और उनकी कोशिश यह थी कि किसी तरह भी सुलह ना हो ताकि मुसलमान आपस में लड़कर कमज़ोर हो जाए और उनकी साजिशों को फलने फूलने का खूब मौक़ा मिले, जबकि नेक लोगों की पूरी पूरी कोशिश यह थी कि किसी तरह दोनों गिरोह में सुलह हो जाए _,*
*★_ आखिर सुलह की बातचीत शुरू हुई, दोनों जमाते ही यह चाहती थीं की जंग ना हो, मामलात बातचीत के ज़रिए तय हो जाएं, सुलह की बात अभी जारी थी, इस बात की ज्यादा उम्मीद हो चली थी कि सुलह हो जाएगी, बातचीत होते होते रात हो गई, चुनांचे दोनों फरीक़ अपने-अपने पड़ाव में चले गए_,*
*★_ अब क्या हुआ, सबाइयों ने हालात का रुख देख लिया, अंदाज़ा लगा लिया की उनमे सुलह के इम्कानात रोशन हो चुके हैं, यह बात उनकी उम्मीदों के बिलकुल खिलाफ थी, वह तो मुसलमानों में जंग की आग भड़का देने पर तुले बैठे थे, उन्होंने ही हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद किया था, अगर मुसलमानों में सुलह हो जाती है तो फिर तो शामत उन्हीं की आती थी, लिहाजा उन्होंने फैसला किया कि ऐसा वक्त आने से पहले मुसलमानों ही को क्यों ना आपस में लड़ा दिया जाए, यह फसादी लोग पहले ही अपने प्रोग्राम के मुताबिक दोनों तरफ के लश्कर में शरीक़ हो चुके थे और मौक़े की ताक में थे, अब जो बातचीत रोकी गई और दोनों लश्कर अपने- अपने पड़ाव में चले गए तो उनके सीनों पर सांप लोटने लगे, बस ऐसे सबाई लोगों के एक गिरोह ने अचानक हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की फौज पर हमला कर दिया, हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा और उनके साथी यह समझे कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की फौज ने हमला कर दिया है, इसी तरह कुछ सबाइयों ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की फौज पर हमला कर दिया, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथी यह समझे की हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की फौज ने हमला कर दिया है, बस इस तरह दोनों फरीको़ में जंग शुरू हो गई_,*
[7/12, 7:10 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा अपने ऊंट पर सवार हुई ताकि फौज को रोक सके और खून खराबा ना हो, इधर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी फौज को रोकने की कोशिश की लेकिन जंग तो छिड़ चुकी थी रुक ना सकी, खुद हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के साथियों ने आपको ऊंट पर सवार देखकर ख्याल किया कि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा जंग के लिए तैयार हैं हालांकि आप तो उन सब को रोकने के लिए ऊंट पर सवार हुई थीं, आप की फौज में मुहम्मद बिन तल्हा सवारों पर अफसर थे, अब्दुल्लाह जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु पैदल फौज के अफसर थे, मजमूई तौर पर पूरी फौज की क़यादत हजरत तल्हा और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुम कर रहे थे,*
*★_ जंग के दौरान हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाकर फरमाया :- ए ज़ुबैर ! तुम्हें वह दिन याद है जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तुमसे पूछा था, क्या तुम अली को दोस्त रखते हो, तो तुमने अर्ज़ किया था, ए अल्लाह के रसूल ! हां मैं अली को दोस्त रखता हूं, याद करो उस वक्त तुमसे हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया था, एक दिन तुम इससे नाहक़ लड़ोगे _," ( मुस्तदरक हाकिम)*
*★_ हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौरन कहा - हां मुझे याद आ गया_," यह कहकर हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु लड़ाई से अलग हो गए, उन्होंने अपने बेटे अब्दुल्ला से फरमाया :- ए प्यारे बेटे ! अली ने मुझे ऐसी बात याद दिला दी कि जंग का तमाम जोश खत्म हो गया है, बेशक हम हक़ पर नहीं हैं, लिहाज़ा तुम भी जंग से बाज़ आ जाओ और मेरे साथ चलो_,"*
*"_ इस पर हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :- मैं तो मैदान-ए-जंग से नहीं हटूंगा_,"*
*"_ इस पर वह अकेले ही मैदान-ए-जंग से निकल आए और बसरा की तरफ चल पड़े, एक सबाई उनके ता'क़ुब में लग गया और जब वह एक जगह रुक कर नमाज़ अदा करने लगे, तो उन्हें शहीद कर दिया_,*
*★_ हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु के जाने के बाद हजरत तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु का इरादा भी बदल गया, वह भी मैदान-ए-जंग से निकल आए, इस हालत में एक तीर उनके पांव में आकर लगा, जख्मी हालत में यह वहां से निकल आए, उस जख्म से आपने शहादत पाई _,"*
[7/13, 6:09 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ मैदान-ए-जंग में अब्दुल्ला बिन सबा के साथियों ने कई बार हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा पर हमला करने की कोशिश की लेकिन आपके इर्द-गिर्द जो जांनिसार साथी थे वह उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे, सबाई लोग दरअसल आप को गिरफ्तार करना चाहते थे लेकिन कामयाब ना हो सके, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के साथी शहीद तो हो रहे थे लेकिन उन्होंने आप की हिफाज़त से एक क़दम भी पीछे ना हटाया, उनकी बहादुरी ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को भी हैरत में डाल दिया, दूसरी तरफ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बहुत परेशान भी थे, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के साथियों की बहादुरी की वजह से जंग तूल पकड़ती जा रही थी और इस तरह दोनों तरफ से मुसलमानों का नुकसान हो रहा था, गोया सबाई गिरोह की साजिश कामयाब हो रही थी,*
*★_ ऐसे में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने सोचा कि अगर यही हालत रही तो ना जाने नुकसान कहां तक पहुंच जाए क्योंकि इस वक्त हालत यह थी कि हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा का एक साथी गिरता तो दूसरा उसकी जगह ले लेता, हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऊंट की नकेल पकड़ रखी थी, वह जख्मी हुए तो फौरन एक और ने पकड़ ली, इस तरह एक के बाद एक 70 आदमियों ने अपने आप को कुर्बान कर दिया, यह हालत देखकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने सोचा, जब तक ऊंट को नहीं बैठा दिया जाता उस वक्त तक खूंरेजी़ नहीं रुक सकेगी, इसलिए आप के इशारे पर एक शख्स ने पीछे से जाकर ऊंट पर वार किया, ऊंट जख्मी होकर बैठ गया, जूंही ऊंट बैठा, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की फौज हिम्मत हार गई, जंग का फैसला हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हक़ में हो गया ,*
*★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को इज़्ज़त और अहतराम के साथ मदीना मुनव्वरा रवाना किया, आपके दोनों साहबजादे उन्हें रुखसत करने एक मंजिल तक साथ आए, रुखसत के वक्त हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- मेरे बच्चों हमारी यह आपस की कशमकश सिर्फ आपस की गलतफहमी का नतीजा थी वरना मुझ में और अली में पहले कोई झगड़ा नहीं था_,"*
*"_हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी इस बात की ताईद की और फरमाया :- यह आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हरमें मोहतरम और हमारी मां है, उनकी ताज़ीम और तौकी़र ज़रूरी है _,"*
*★_ इस तरह रज्जब की पहली तारीख 36 हिजरी को सैयदा मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हो गईं, चूंकि आप इस जंग में ऊंट पर सवार थीं इसीलिए मो'रखों ने इस जंग को जंगे जमल ( ऊंट) का नाम दिया है ,*
*★_ मदीना पहुंचकर सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा अपने हुजरे में आ गईं, इसके बाद लोगों को दीन की बातें सिखाती रहीं, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत तकरीबन 6 साल रही, इसके बाद हसन रज़ियल्लाहु अन्हु 6 माह तक ख़लीफा रहे, फिर उन्होंने ख़िलाफत हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द कर दी, वह तकरीबन 20 साल तक इस्लामी मुमलिकत के तनहा खलीफा रहे, उनकी खिलाफत की मुद्दत के अखताम से 2 साल पहले आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने इंतकाल फरमाया, उस वक्त आपकी उम्र 70 साल से कुछ ज्यादा थी, आपने 17 रमजान मुबारक 85 हिजरी में चंद रोज़ बीमार रहकर इस दारे फानी से इंतकाल फरमाया_,*
[7/14, 8:59 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात की खबर सुनकर मुसलमान अपने घरों से निकल आए, आपके जनाजे में इस क़दर हुजूम था कि रात के वक्त इससे पहले कभी इतना हुजूम नहीं देखा गया, सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जनाजा़ देखकर फरमाया :- आयशा सिद्दीका़ के लिए जन्नत वाजिब है क्योंकि यह हुजूर अलैहिस्सलाम की सबसे प्यारी बीवी थी, अल्लाह उन पर रहमत नाजिल फरमाए _,"*
*★_ हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु इन दिनों मदीना तैयबा के क़ायम मुक़ाम गवर्नर थे क्योंकि मरवान उन दिनों उमरे के लिए मक्का मुकर्रमा गया हुआ था इसलिए हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई, क़ासिम बिन मुहम्मद बिन अबी बकर, अब्दुल्लाह बिन अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर, अब्दुल्लाह बिन अतीक़ और अब्दुल्लाह बिन जु़बेर यानी आपके भतीजों और भांजों ने कब्र में उतारा, आप को आप की वसीयत के मुताबिक़ जन्नतुल बकी़ में दफन किया गया ,*
*★_ मदीना मुनव्वरा में उस रोज़ क़यामत बरपा थी, हर आंख रो रही थी, लोगों ने मदीना मुनव्वरा के किसी शख्स से पूछा :- मदीना के लोगों ने हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात का गम कितना महसूस किया ? उसने जवाब दिया:- वह मुसलमानों की मां थीं, मां के मरने पर जितना गम होता है उतना ही मदीना के मुसलमानों को गम हुआ था_,"*
*★_ आपके यहां कोई औलाद नहीं हुई लेकिन आपको इस बात का क़तन कोई मलाल नहीं था, आप इस क़दर क़ना'त पसंद थीं कि सिर्फ एक जोड़ा अपने पास रखती थीं, उसको धोकर पहनती थीं, आपके दिल में अल्लाह का खौफ कूट कूट कर भरा था, बहुत जल्द रोने लग जाती थीं, एक बार दज्जाल का ख्याल करके रोने लगीं_,*
[7/15, 6:49 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज़ हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से कुछ कहा, आपने इरशाद फरमाया :- ए उम्मे सलमा ! मुझे आयशा के बारे में अज़ियत ना दो, अल्लाह की क़सम ! तुम में से किसी के बिस्तर में मुझ पर वही नाज़िल नहीं होती सिवाय आयशा के_," ( मुसनद अहमद 6 /293)*
*★_ एक रोज हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु आपके हुजरे मुबारक के दरवाज़े पर पहुंचे और अभी अंदर दाखिल होने की इजाज़त तलब करने वाले थे कि आपने हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को ऊंची आवाज में बात करते सुनी, पस जब आप अंदर आए तो हजरत आयशा सिद्दीका को पकड़कर बोले :- ए उम्मे रोमान की बेटी ! तू सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सामने ऊंची आवाज़ से बात करती है_," यह कहकर आपने उन्हें मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उनके और आपके दरमियान में आ गए, जब सैयदना अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु वापस चले गए, तो आपने फरमाया :- "देखो मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बाप के दरमियान में आकर तुम्हें कैसे बचाया _," (नसाई, अबू दाऊद, मुसनद अहमद)*
*★_ एक सफर में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया :- आओ आयशा ! दौड़ लगाएं _,"*
*"_ सैयद आपके साथ दौड़ पड़ी और आप से आगे निकल गई, कुछ मुद्दत बाद एक मौक़े पर आपने उन्हें दौड़ने की दावत दी, सैयदा आपके साथ दौड़ पड़ीं लेकिन इस मर्तबा आप आगे निकल गए, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :- "आयशा यह उस रोज़ की दौड़ का जवाब है_," (अबू दाऊद- हदीस नंबर 2578)*
*★_ एक सफर में सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा का ऊंट बिदक गया और वह उन्हें लेकर एक तरफ को भाग निकला, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस क़दर बेक़रार हुए कि आपके मुंह से निकल गया :- अरुसाह _," यानी हाय मेरी दुल्हन _,*
*★_ एक मर्तबा कुछ हबशी लोग खेल तमाशा दिखा रहे थे, बहुत से मर्द और बच्चे उनका खेल देख रहे थे, आपने सैयदा से फरमाया :- ए आयशा ! क्या तुम भी यह खेल देखना चाहती हो ? सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- जी हां! चुनांचे आपने उन्हें अपने कंधे की ओट से खेल दिखाया, उस वक्त हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपना चेहरा आपके कंधे पर टिका दिया था, कुछ देर बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा :- आयशा ! तुमने देख लिया_," इस पर सैयदा बोलीं :- ए अल्लाह के रसूल ! जल्दी ना करें, मैं अभी और देखना चाहती हूं _," जब तक कि हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा सैर नहीं हो गईं, उस वक्त तक आप उन्हें खेल दिखाते रहे ।*
*★_ सैयद आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा की एक खुसूसियत यह है कि आपने हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम को देखा और उन्होंने सैयदा को सलाम किया और सबसे बड़ी खुसूसियत यह है कि अल्लाह ताला ने आपकी बेगुनाही के सबूत में कुरान ए करीम की आयत नाजिल फरमाई, अल्लाह ताला की उन पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों _,*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 6,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत सौदा रजि. ⚂*
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★_ सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा _,*
*★_ आपका नाम सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा था, आप क़बीला आमिर बिन मूसा से थीं, यह क़ुरेश का एक मशहूर क़बीला था, वालिद का नाम ज़मा बिन क़ैस था, आपकी वाल्दा का नाम समूस बिन्ते क़ैस था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से पहले आपका निकाह सकरान बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हु से हुआ, सकरान आपके बाप के चचाजा़द भाई थे ।*
*★_ आप इस्लाम के इब्तदाई दिनों ही में मुसलमान हो गई थीं, आपके शौहर ने भी इस्लाम क़ुबूल कर लिया था, हब्शा की तरह पहली हिजरत के वक्त भी दोनों मियां बीवी मक्का मुकर्रमा ही में रहे और कुफ्फार की शख्तियां बर्दाश्त करते रहें, जब मुशरिकीन का जुल्म इंतेहा को पहुंच गया तो मुहाजिरीन की एक बहुत बड़ी तादाद हब्शा की तरफ हिजरत के लिए तैयार हो गई, उनके साथ सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा और उनके खाविंद सकरान रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी हिजरत की, कई बरस बाद जब यह वापस लौटे तो सकरान रज़ियल्लाहु अन्हु का मक्का मुकर्रमा में इंतकाल हो गया, उनके इंतकाल के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह कर लिया ।*
*★_ एक रिवायत के मुताबिक सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के इंतकाल के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बहुत गमगीन रहते थे क्योंकि सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपकी बहुत गम ख्वार थीं, आप को इस क़दर गमज़दा देखकर हजरत उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा हजरत खौला बिंते हकीम रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपसे अर्ज किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको एक हमदर्द साथी की ज़रूरत है, जवाब में आपने फरमाया:- हां ! आपकी मर्जी मालूम करके खौला बिन्ते हकीम रज़ियल्लाहु अन्हा सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास गईं, उन्होंने वहां जाकर उनसे कहा :- अल्लाह ताला ने आप पर खैरो बरकत के दरवाज़े खोल दिए हैं_,"*
*"_ उन्होंने पूछा :- वह कैसे ? खौला रज़ियल्लाहु अन्हा बोलीं :- मुझे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आपकी तरफ भेजा है ताकि मैं आपकी तरफ से शादी का पैगाम दूं, यह सुनते ही हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- मुझे मंजूर है लेकिन आप मेरे वालिद से पूछ लें _,"*
*★_ अब खौला रज़ियल्लाहु अन्हा उनके वालिद के पास गईं, वह बहुत बूढ़े हो चुके थे, उन्होंने सलाम किया तो वही बोले कौन है ? उन्होंने अपना नाम बताया तो वह बोले :- खुशामदीद ! कहो कैसे आई हो ? हजरत खौला रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आपकी बेटी के लिए शादी का प्रोग्राम दिया है _," यह सुनकर बूढ़े बाप ने कहा :- हां ! मुहम्मद बहुत करीम हैं, तुम्हारी सहेली क्या कहती है _," खौला बोलीं :- उन्हें यह रिश्ता मंजूर है _," बाप ने कहा :- तब फिर मुझे भी मंजूर है _,"*
*"_ उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम खुद वहां तशरीफ ले गए, सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा के वालिद ने निकाह पढ़ाया, 400 दिरहम मेहर मुकर्रर हुआ ।*
*★_ दस हिजरी में सरकारी दो आलम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हज फरमाया, इस मौक़े पर सैयद सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा भी आपके साथ थीं, आप भारी जिस्म की थीं, तेज़ नहीं चल सकती थी इसलिए आपसे इजाज़त ली कि मुज़दल्फा पहले रवाना हो जाएं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इज़ाजत दे दी, इस तरह आप रज़ियल्लाहु अन्हा लोगों से पहले मुज़दल्फा की तरफ रवाना हो गईं_,*
*★_ एक रोज़ अज़वाज मुताहरात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में बैठी थीं, आपसे पूछा गया :- अल्लाह के रसूल ! हममे से पहले कौन फौत होगी ? आपने जवाब में फरमाया:- "_ जिसके हाथ सबसे लंबे होंगे _,"*
*"_ उन्होंने इन अल्फाज़ का जाहिरी मतलब समझा और आपस में बाजू़ मांपने लगीं, सबसे बड़ा और लंबा हाथ हजरत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा का था, लेकिन जब सबसे पहले हजरत जे़नब बिन्ते खुज़ैमा रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल हुआ, तो उस वक्त मालूम हुआ कि हाथ की लंबाई से आपका यह मतलब था कि जो सबसे ज्यादा सखी है, उसका इंतकाल सबसे पहले होगा _,*
*★_ सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने 22 हिजरी में हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में वफात पाई, सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा का हजरत सकरान रज़ियल्लाहु अन्हु से एक बेटा पैदा हुआ था, उनका नाम अब्दुर्रहमान रज़ियल्लाहु अन्हु था, उन्होंने जंगे जलूला शहादत पाई, नबी अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से आपके यहां कोई औलाद नहीं हुई,*
*★_ अहादीस की किताबों में आपसे सिर्फ पांच हदीस रिवायत की गई हैं, आप बुलंद अखलाक थीं, इता'त और फरमाबरदारी उनमें कूट-कूट कर भरी थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी अज़वाज मुताहरात को वसीयत फरमाई थी कि मेरे बाद घर में बैठना, सैयदा सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस फरमान पर इस क़दर सख्ती से अमल किया कि फिर कभी हज के लिए भी नहीं गईं, फरमाया करती थी :- मैं हज और उमरा दोनों कर चुकी हूं, अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के हुक्म के मुताबिक घर में बैठूंगी _,"*
: *★_ आप बहुत सखी थीं, सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा के बाद आप बाक़ी अज़वाज से ज्यादा सखी थीं, माल और दौलत से उन्हें बिल्कुल मोहब्बत नहीं थी, जो आता अल्लाह के रास्ते में खर्च कर देती थीं,*.
*★_ एक मर्तबा हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपकी खिदमत में दिरहमो से भरी एक थैली भेजी, आपने थेली लाने वाले से पूछा :- इसमें क्या है ? उसने बताया कि दिरहम है, आपने वह तमाम दिरहम उसी वक़्त तक़सीम कर दिये,*
*★_ आपकी तबीयत में मज़ाह भी था, कभी-कभी आपकी बातों से हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मुस्कुरा पड़ते, एक रोज़ कहने लगीं :- कल रात मैंने आपके साथ नमाज़ पढ़ी थी, आपने इस क़दर देर तक रुकू किया कि मुझे नकसीर फूटने का शुबहा हो गया, मैं देर तक नाक पकड़े रही _," यह सुनकर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मुस्कुराने लगे,*
*★_ आप ज़रा उम्र रसीदा हो गईं तो आपको खौफ महसूस हुआ, कहीं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन्हें तलाक ना दे दें, इस खौफ की बिना पर आपने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप मुझे तलाक ना दें, मैं अपनी बारी आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को देती हूं _," चुनांचे आपने अपनी बारी सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को दे दी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी यह बात मंजूर कर ली _,*
*★_ आप बहुत इबादत गुजार थीं, आप के हालात किताबों में ज़्यादा नहीं मिलते, अल्लाह की आप पर करोड़ों रहमतें हों _,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, * ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत हफ़सा रजि. ⚂*
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*❀_ उम्मुल मोमिनीन सैयदा हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हु नबूवत के एलान के 5 साल पहले पैदा हुई, आप हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी हैं, आपकी वालिदा का नाम ज़ेनब बिन्ते मज़'ऊन था, यह मशहूर सहाबी हजरत उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु की बहन थी, खुद भी सहाबिया थीं, सैयदा हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बड़ी बहन हैं,*
*★_ आप जवान हुई तो आपका पहला निकाह खुनेस बिन हुज़ाफा रज़ियल्लाहु अन्हु से हुआ, दोनों ने अच्छे मियां बीवी की तरह जिंदगी बसर की, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे पहले ईमान लाने वालों में शामिल हैं, इस तरह सैयदा हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा भी मां-बाप के साथ ही मुसलमान हो गई थीं, आपके शौहर खुनेस बिन हुज़ाफा रज़ियल्लाहु अन्हु भी मुसलमान थे, मतलब यह है कि जब हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने होश संभाला, उस वक्त इस्लाम का नूर फैलने लगा था,*
*★_ फिर अल्लाह ताला ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिजरत का हुक्म फरमाया, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने हुक्म मिलने पर हिजरत शुरू की, सैयदा हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हा और आपके शौहर ने भी मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत फरमाई,*
*★_ मदीना मुनव्वरा में उनकी जिंदगी खुशगवार गुजर रही थी कि 2 हिजरी मैं गज़वा बदर पेश आया, हजरत खुनेस रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी गज़वा बदर में शिरकत की, मैदान-ए-जंग में बहादुरी के जौहर दिखाए, इस जंग में उन्हें गहरे जख्म आए, इन्हीं जख्मों से उन्होंने शहादत पाई,*
*★_ बाज़ रिवायात में है कि उन्होंने गज़वा उहद में भी शिरकत की थी और गज़वा उहद में जो ज़ख्म आए थे, शहादत उनसे हुई थी,*
*★_ सैयदा हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा बेवा हो गईं तो हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु उनके लिए फिक्रमंद हो गए, वह चाहते थे बेटी का निकाह कर दें, उन्हीं दिनों आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बेटी सैयदा रुकै़या रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल हो गया, यें सैयदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की जो़जा थीं, सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने सैयदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को एक दिन बहुत गमगीन देखकर पूछा, भाई उस्मान ! क्यों गमगीन हो ? उन्होंने फरमाया :- मेरे गमगीन होने की वजह यह है कि मेरे और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के दरमियां ससुराली रिश्ता था, वह खत्म हो गया है _,"*
*★_ इस पर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले :- अगर आप पसंद करें तो मैं अपनी बेटी हफसा की शादी आपसे करने के लिए तैयार हूं _," उन्होंने जवाब में कहा:- मैं इस मामले पर गौर करूंगा _," यह सुनकर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:- अच्छी बात है आप गौर करके मुझे बता दें _,"*
*"_ चंद रोज़ बाद हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात हुई, तो मालूम हुआ कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु इस रिश्ते पर तैयार नहीं, अब सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु से मिले, आपने उनसे भी यही कहा :- अगर आप पसंद करें तो मैं अपनी बेटी का रिश्ता आपसे करने के लिए तैयार हूं_,"*
*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी बात सुनकर खामोश हो गए और उन्होंने कोई जवाब ना दिया, इस पर उन्हें रंज महसूस हुआ, उसके बाद खुद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खुद सैयदा हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह की ख्वाहिश जाहिर की और इस तरह उनका निकाह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से हो गया _,"*
*★_ एक रोज़ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की मुलाक़ात हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई तो अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- ऐ उमर ! चंद दिन पहले तुमने मुझे अपनी बेटी हफसा से निकाह की पेशकश की थी और मैं तुम्हारी बात सुनकर खामोश रहा था और तुम्हें मेरी खामोशी नागवार गुज़री थी, अब मैं आपको बताता हूं कि मैं क्यों खामोश रहा था, चंद दिन पहले आन हज़रत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा का जिक्र किया था और मैं आपके राज़ को जाहिर नहीं करना चाहता था, अगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह ना करते तो फिर मैं इसके लिए तैयार था _," ( बुखारी)*
*★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो इंकार किया था, वह इस वजह से था कि उन दिनों उनकी ख्वाहिश आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दूसरी बेटी सैयदा उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह करने की थी, वरना वह इंकार ना करते, इस तरह हजरत हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से हो गया, यह निकाह 2 हिजरी में हुआ, एक रिवायत 3 हिजरी की भी है,*
[7/22, 8:24 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ निकाह के बाद हजरत हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर में रहने लगीं, आपकी अज़्दवाजी जिंदगी बहुत खुशगवार थी, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी थीं इसलिए मिज़ाज में क़दरे तेज़ी थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार उन्हें रज़'ई तलाक़ दे दी लेकिन दूसरे ही दिन जिब्राइल अलैहिस्सलाम आ गए, उन्होंने अल्लाह का यह पैगाम आपको पहुंचाया :-*
*"_ ऐ अल्लाह के रसूल ! उमर पर शफ़क़त फरमाते हुए हफसा को अपने निकाह ही में रखें, यें बहुत ज़्यादा रोज़े रखने वाली है, रातों को बहुत नमाज़ पढ़ने वाली है और यें जन्नत में भी आपकी बीवी होंगी _,"*
*★_चुनांचे अल्लाह के हुक्म के मुताबिक आपने तलाक़ वापस ले ली, मतलब यह कि अल्लाह ताला के नज़दीक उनका इतना मर्तबा था ।*
*★_ आपने शाबान 45 हिजरी में वफात पाई, बाज़ रिवायत में 41 हिजरी में भी आई है, वफात के वक्त आपकी उम्र 63 साल के क़रीब थी, वह ज़माना हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत का था, गवर्नर ए मदीना मरवान बिन हकम ने नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई, आपके भाई अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके साहबजादों आसिम रहमतुल्लाह, सालिम रहमतुल्लाह, अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह और हम्ज़ा रहमतुल्लाह ने आपको क़ब्र में उतारा ।*
*★_ वफात के वक्त आपने अपने भाई अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाकर वसीयत फरमाई, उस वसीयत में आपने अपनी ज़मीन सदका़ कर दी, यह ज़मीन सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनकी निगरानी में दी थी ।*
*★_ आप निहायत आलिम, फाज़िल और इल्म व कमाल की मालिक थीं, आपने तक़रीबन 60 हदीस रिवायत की हैं, आपके यहां कोई औलाद नहीं हुई, आप बहुत रोज़ेदार और रातों को जागने वाली थीं, यहां तक कि इंतकाल के वक्त भी रोज़े से थीं, अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमते हों _,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत ज़ेनब बिन्ते खुजे़मा रजि. ⚂*
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*❀_ सैयदा ज़ेनब बिन्ते खुजेमा रज़ियल्लाहु अन्हा _,*
*★_ आपका नाम ज़ेनब था, वालिद का नाम खुज़ेमा बिन हारिस था, आप बहुत रहम दिल थीं, ज़माना जाहिलियत में भी आपको उम्मूल मसाकीन कहा जाता था, यानी मिस्कीनों की मां ।*
*★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के निकाह में आने से पहले सैयदना अब्दुल्लाह बिन जहश रज़ियल्लाहु अन्हु के निकाह में थीं, सैयदना अब्दुल्लाह बिन जहश तीन हिजरी में गज्वा़ उहद में शहीद हो गए, उसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आपसे निकाह फरमाया, आप बहुत रहम दिल और सखीं थीं, गरीबों और मिस्कीनों को खुले दिल से खाना खिलाती थीं, इस्लाम लाने से पहले भी आपका यही मामूल था, आपका इंतकाल नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की जिंदगी ही में 30 साल की उम्र में हुआ ।*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ आप सिर्फ चंद माह ही गुज़ार सकीं, आप की वफात रबीउल आखिर के महीने की आखिरी तारीखों में हिजरत से 3 साल 3 माह बाद हुई, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खुद नमाजे जनाजा़ पढ़ाई, आप सबसे कम मुद्दत नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ रहीं ।*
*★_ तारीख की किताबों में आपके ज़्यादा हालात नहीं मिलते, अल्लाह की आप पर करोड़ो रहते हों।*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 122* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत उम्मे सलमा रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ ★_ आपका नाम हिन्द था, उम्मे सलमा आपकी कुन्नियत है, आपका ताल्लुक कुरेश के खानदान बनू मखज़ूम से था, आपके वालिद अबु उमैया मक्का मुकर्रमा के बहुत बड़े सखी आदमी थे, ताजिर थे और बहुत दौलतमंद थे, इस लिहाज़ से सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बहुत खुशहाल घराने में परवरिश पाई थी,*
*★_ आपका पहला निकाह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद से हुआ, वह अबू सलमा के नाम से मशहूर थे, यह आपके चाचाज़ाद भाई थे, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के रजा़ई भाई भी थे, उनकी वालिदा का नाम बराह बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब था, इस लिहाज से वह रिश्ते में आपके फूफी जा़द भाई भी थे, अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से आपके यहां 4 बच्चे पैदा हुए,*
*★_ आप इस्लाम की इब्तिदा ही में अपने शोहर के साथ इस्लाम ले आई थीं, गोया दोनों मियां बीवी सबसे पहले इस्लाम लाने वालों में शामिल है, दोनों ने हबशा कि दोनों हिजरतें की बल्कि इन दोनों ने सबसे पहले हबशा की तरफ हिजरत की थी, कुछ अर्सा हबशा में गुजार कर दोनों मियां बीवी वापस मक्का आ गए, वहां से नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की इजाज़त से मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत की ।*
*★_ अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु जब हबशा से मक्का पहुंचे तो कुरेशे मक्का ने आप पर ज़ुल्म शुरू कर दिया, उनके जुल्म से तंग आकर आपने मदीना मुनव्वरा की तरह हिजरत की, आप मदीना पहुंचे तो वह मोहर्रम की 10 तारीख थी, अमरू बिन औफ के खानदान ने इन्हें अपना मेहमान बनाया और उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने शौहर के साथ ही हिजरत नहीं कर सकीं थीं, उन्होंने बाद में हिजरत की _,"*
[7/25, 5:06 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी बीवी उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को लेकर मक्का मुअज़्ज़मा से निकले ताकि मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत कर सकें, लेकिन उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर वाले उनके रास्ते में आ गए और बोले :- तुम अकेले मदीना मुनव्वरा जा सकते हो, हमारी बेटी को साथ नहीं ले जा सकते _,"*
*★_ यह लोग उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को ज़बरदस्ती वापस ले गए, इस तरह अबु सलमा रज़ियल्लाहू अन्हू ने अकेले हिजरत की, उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा की गोद में उस वक्त उनका दूध पीता बच्चा सलमा था, अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु के घर वाले अपने बच्चे को उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से छीनकर ले गए, अब एक तरफ वह शौहर से जुदा कर दी गईं तो दूसरी तरफ अपने बच्चे से मेहरूम कर दी गईं, उन पर तो गोया मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़े, घर से बाहर सेहरा में निकल जाती और रोया करती, कई दिन रोती रहीं, फिर एक शख्स को उन पर तरस आया, उसने लोगों को जमा किया और उनसे कहा:- तुम इस गरीब पर क्यों जुल्म करते हो, इसका बच्चा इसे दे दो और इसे मदीना अपने शौहर के पास जाने दो _,"*
*★_ आखिर सब लोगों ने यह बात मान ली, अब यें अपने बच्चे को लेकर ऊंट पर सवार हुईं और मदीना की तरफ चल पड़ीं, साथ कोई मर्द नहीं था बिल्कुल तन्हा थीं, तन'ईम के मुका़म पर पहुंची तो उन्हें हजरत उस्मान बिन तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु मिले, यह उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे, खाना काबा की चाबी बरदार थे, उन्होंने उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को पहचान लिया क्योंकि उनके खाविंद अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ उनके दोस्ताना ताल्लुका़त थे, उन्होंने पूछा :- कहां का इरादा है ? उम्मे सलमा बोली:- मदीना मुनव्वरा का, उन्होंने पूछा- कोई साथ है ? उन्होंने जवाब दिया :- अल्लाह साथ है या यह बच्चा _,"*
*★_ इस पर हजरत उस्मान बिन तल्हा रज़ियल्लाहु ऊ ने कहा:- यह नहीं हो सकता, तुम तन्हा नहीं जा सकतीं, यह कहकर ऊंट की मुहार पकड़ी और मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हो गए, उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि रास्ते में कहीं रफा हाजत वगैरा के लिए ठहरना पड़ता तो उस्मान ऊंट को बिठाकर दूर किसी दरख़्त की ओट में चले जाते, तब मैं नीचे उतरती, रवानगी का वक्त होता तो ऊंट पर कजावा रखकर फिर दूर चले जाते और मुझसे कहते- सवार हो जाओ, आप फरमाती हैं :- मैंने पूरी जिंदगी में इतना शरीफ इंसान नहीं देखा_," मुख्तसर यह कि मुख्तलिफ मंजिलों पर क़याम करते हम मदीना पहुंचे, जब क़ूबा की आबादी पर नज़र पड़ी तो बोले:- अब तुम अपने शौहर के पास चली जाओ, वह यही ठहरे हुए हैं _,"*
*★_ सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा उधर रवाना हो गईं और यह वापस मक्का की तरफ रवाना हो गए, कु़बा के लोगों ने जब हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को देखा तो उनसे पूछा:- आप कौन हैं और कहां से आई हैं ? इस पर उन्होंने बताया:- मैं उम्मे सलमा हूं अबी उमैया की बेटी_," अबी उमैया चुंकी बहुत मशहूर आदमी थे, बहुत दौलतमंद थे, बहुत सखी थे, इसलिए लोगों को यक़ीन ना आया कि इतने बड़े बाप की बेटी होकर यूं अकेले सफर करके मक्का से मदीना आई हैं, उस ज़माने में शुरफा की ख़्वातीन इस तरह बाहर नहीं निकला करती थीं, बड़े लोग सफर में किसी को साथ ज़रूर भेजा करते थे और उसका तमाम खर्च भी अदा करते थे, जबकि सैयदा उम्मे सलमा तन्हा आई थीं, इसलिए लोग हैरान थे, काफी दिन बाद उन्हें यक़ीन आया और जब सबको मालूम हो गया कि ये किसकी बेटी है तो लोग उन्हें क़दर की निगाह से देखने लगे _,"*
[7/26, 6:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब दोनों मियां बीवी अपने बच्चे के साथ खुश व खुर्रम जिंदगी बसर करने लगे, दो हिजरी में गज्वा़ बदर पेश आया, अबु सलमा रज़ियल्लाहू अन्हू ने इस गज़्वे में भरपूर हिस्सा लिया, फिर तीन हिजरी में गज्वा उहद पेश आया, इस गज़्वे में अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु के बाजू में एक तीर लगा, उससे आप एक माह जे़रे इलाज रहे, एक माह बाद जख्म भर गया लेकिन उसका ज़हर अंदर फैलता चला गया ।*
*★_ उन्हीं दिनों उम्हें एक मुहिम पर भेजा गया, मुसलमानों के खिलाफ कुछ लोग क़ुतन पहाड़ के आसपास जमा हो रहे थे, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह इत्तेला पाकर हजरत अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को डेढ़ सौ आदमी देकर रवाना फरमाया, आपने उन्हें हुक्म दिया :- रवाना हो जाओ ! यहां तक की बनू असद की सर ज़मीन में पहुंचकर उनका शीराजा बिखेर दो, इससे पहले कि वह वहां जमा होकर एक ताक़त बन जाएं _,"*
*★_ सैयदना अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु इस मुहिम से कामयाब लौटे, आपने ना सिर्फ दुश्मन को मुंतशिर कर दिया बल्कि उनके ऊंट और भेड़ बकरियां बड़ी तादाद में उनसे छीन लाएं, इस मुहिम के सिलसिले में आप 39 दिन मदीना तैयबा से बाहर रहे, जब आप वापस आए तो पुराना ज़ख्म फिर से हरा हो गया और आखिर एक माह बीमार रह कर आप इंतकाल कर गए, जब आप पर नज़ा की हालत तारी थी तो उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तशरीफ ले आए, इधर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अंदर दाखिल हुए, उधर अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु की रूह परवाज़ कर गई, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से उनकी दोनों आंखों आंखें बंद कर दी और फरमाया :- इंसान की रूह जिस वक्त उठाई जाती है तो उसकी दोनों आंखें उसे देखने के लिए खुली रह जाती हैं _,"*
*★_ उस वक्त सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह अल्फाज कहे :- हाय ! परदेश में कैसी मौत आई _," रहमते आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- सब्र करो, इनकी मग्फिरत की दुआ मांगो और कहो, ए अल्लाह इनसे बेहतर अता कर _," इसके बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु की लाश के पास आए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनकी नमाज़े जनाजा़ पढ़ाई ।*
[7/26, 6:50 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु की वफात के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को निकाह का पैगाम दिया, आपने इनकार कर दिया, इसके बाद सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का पैगाम लेकर आए, आपने कुबूल फरमाया ।*
*★_ उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा कहां करती थी:- "मैं सोचा करती थी कि भला अबु सलमा से बेहतर कौन शौहर हो सकता है, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से निकाह का पैगाम मिला तो उस वक्त मैंने जान लिया कि अल्लाह ताला ने मुझे उनसे बेहतर शौहर अता फरमाया है _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह शव्वाल 4 हिजरी की आखिरी तारीखों में हुआ, सैयदा उम्मे सलमा सरकारे दो आलम के आराम का बहुत ख्याल रखती थीं, आपके एक गुलाम सफ़ीना रज़ियल्लाहु अन्हु थे, आपने उन्हें इस शर्त पर आज़ाद कर दिया था कि जब तक आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़िंदा है आपकी खिदमत करना तुम्हारे लिए लाज़िम है _,"*
*★_ निकाह के बाद से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात तक आप साथ रहीं, सफर में भी आप अक्सर साथ होतीं, 5 हिजरी में पर्दे की आयत नाजिल हुई, इससे पहले अज़वाज मुताहरात बाज़ दूर के रिश्तेदारों के सामने आ जाया करती थीं, अब खास खास रिश्तेदारों के अलावा हर एक से पर्दे का हुक्म दिया गया _,*
*★_ इस बारे में एक रिवायत वह है कि हजरत अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम रज़ियल्लाहु अन्हु एक नाबीना सहाबी थे, नाबीना होने की वजह से अज़वाज मुताहरात के हुजरे में आ जाते थे, इस आयत के नजूल के बाद जब वह आए तो उस वक्त हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा वहां मौजूद थीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- इनसे पर्दा करो_," उन्होंने कहा :- अल्लाह के रसूल! यह तो नाबीना हैं_," आपने इरशाद फरमाया :- "यह तो नाबीना है लेकिन तुम तो नाबीना नहीं हो, तुम तो उन्हें देख रही हो _,"*
[7/29, 6:26 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ 6 हिजरी को आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उमरा के लिए रवाना हुए, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ तकरीबन 14 सौ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम थे, आपने हुदेबिया के मुका़म पर पड़ाव डाला, वहीं मक्का के मुशरिक पर आ गए, यहां उनसे मुआहिदा हुआ, इस मामले को सुलह हुदेबिया कहा गया, इस मुआहिदे की शराइत ज़ाहिर में मुसलमानों के लिए बहुत सख्त थी, इस वजह से मुसलमान बहुत गमगीन थे, मुआहिदे की रू से अब सब लोगों को उमरा किए बगैर वापस लौटना था, इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुर्बानी करने और सर मुंडवाने का हुक्म फरमाया ।*
*★_ मुसलमान इस क़दर गमज़दा थे कि किसी ने भी ऐसा ना किया, इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बहुत रंज महसूस हुआ और आप अपने खैमे में तशरीफ लाए, वहां उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा मौजूद थीं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने यह बात उनसे फरमाई, इस पर हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया:- "_मुसलमानों को यह सुलह बहुत नागवार गुजरी है इसलिए वह बहुत रंजीदा है और यही वजह है कि उन्होंने आपके हुक्म की तामील नहीं की, आप किसी से कुछ ना कहें और बाहर निकल पर कुर्बानी करके सर मुंडवा लें, ये सब खुद-ब-खुद आपकी पेरवी करेंगे _,"*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उनके मशवरे पर अमल किया, जोंही आपने कुर्बानी की, सब ने कुर्बानी शुरू कर दी और सर मुंडवा कर अहराम उतार दिए, उस वक्त हुजूम का यह आलम था कि एक दूसरे पर टूटा पड़ता था, एक दूसरे की हजामत बनाने की खिदमत सर अंजाम दे रहे थे_," ( बुखारी )*
*★_ इस वाक़िए से मालूम होता है कि हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत बेहतरीन मशवरा देने वाली थीं, साथ ही यह अंदाजा होता है कि लोगों की फितरत का अंदाज़ा लगाने में भी उन्हें कमाल हासिल था ।*
*★_ आप गज़वा खैबर में भी शरीक़ थी, खैबर के किले के सरदार मुरहब के दांतों पर जब तलवार लगी तो आप रज़ियल्लाहु अन्हा ने उसकी आवाज सुनी थी_,*
[7/30, 5:45 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के आखिरी अय्याम में सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा बराबर आपसे मिलने के लिए आती रहीं, एक दिन हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तबीयत ज़्यादा नासाज़ हो गई तो सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा सदमे से चीख पड़ीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया:- यह मुसलमानों का तरीक़ा नहीं _,"*
*★_ एक रोज़ मर्ज़ में ज़्यादा शिद्दत पैदा हो गई, अज़वाज मुताहरात ने दवा पिलाने की कोशिश की, आप उस वक्त दवा पीना नहीं चाहते थे लिहाज़ा पीने से इंकार कर दिया, थोड़ी देर बाद आप पर जब गशी की हालत तारी हो गई, उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा और सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने गशी की हालत में दवा आपके मुंह में डाली _,*
*★_ बीमारी के इन्हीं दिनों में एक दिन सैयदा उम्मे सलमा और सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने हबशा के गिरजों में तसावीर का ज़िक्र किया कि उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा हबशा से होकर आईं थीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह ज़िक्र सुनकर फरमाया :-*
*"_ अल्लाह यहूद और नसारा पर लानत करे, उन लोगों में जब कोई मर जाता तो वह उसकी क़बर को इबादत गाह बना लिया करते और उसका बुत बनाकर उसमें खड़ा कर देते थे, क़यामत के दिन वह लोग अल्लाह ताला के नज़दीक बदतरीन मखलूक़ होंगे _," (बुखारी )*
*★_ सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल 59 हिजरी में हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में हुआ, एक रिवायत के मुताबिक़ 60 हिजरी में यजी़द के ज़माने में हुआ, वफात के वक्त सैयदा की उम्र 84 साल थीं, सैयदना अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हू ने नमाजे जनाजा़ पढ़ाई, आपको जन्नतुल बक़ीअ में दफन किया गया _,*
*"_आपके यहां पहले शोहर से जो औलाद हुईं उनके नाम सलमा, उमर, दुराह और ज़ेनब है, सलमा सबसे बड़े थे, इन सबकी परवरिश आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाई _,*
[7/31, 5:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत आलीमा फाज़िला थीं, आपसे बहुत सी हदीस रिवायत हैं, सहाबा किराम उनसे मसाईल पूछा करते थे, बहुत से ताबईन ने भी आपसे इल्म हासिल किया, आप क़ुरान बहुत अच्छा पढ़ती थीं और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लहजे में पढ़ा करती थीं, एक मर्तबा किसी ने पूछा :- हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम किस तरह क़िरात किया करते थे ? सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया:- एक एक आयत अलग अलग करके पढ़ते थे_," फिर खुद इसी तरह पढ़ कर सुनाया ।*
*★_ हदीस में भी आपका खास मुका़म था, आप से 387 अहादीस रिवायत की गई हैं, आपको हदीस सुनने का बहुत शौक था, एक रोज़ बाल गुंधवा रही थीं कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खुतबा देने के लिए मिंबर पर तशरीफ ले आए, आपकी ज़ुबान मुबारक से अभी सिर्फ इतना निकला था:- ए लोगों ! उस वक्त आप रज़ियल्लाहु अन्हा ने बाल गूंधने वाली से फरमाया:- बाल बांध दो ," उसने कहा :-इतनी क्या जल्दी है ? आपने फरमाया :- "_ क्या हम लोगों में शामिल नहीं_,"*
*"_इसके बाद खुद बाल बांध कर खड़ी हो गईं और खड़े होकर पूरा खुतबा सुना ।*
*★_ आप रज़ियल्लाहु अन्हा हर वक्त अजरो सवाब की तलाश में रहती थीं, एक रोज़ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पूछा:- अल्लाह के रसूल ! अबू सलमा से मेरे दो बच्चे हैं, मैं उन पर खर्च करती हूं और उनकी अच्छी तरीके़ से परवरिश करती हूं, क्या मुझे उनकी परवरिश पर सवाब मिलेगा _," आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- हां ! जो कुछ तू उन पर खर्च करेगी तुझे उस पर अजर मिलेगा _,"*
*★_ एक रोज़ हजरत नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर पर थे, आपने हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को एक टांग पर और हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को दूसरी टांग पर और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को दरमियान में बिठाया हुआ था, ऐसे में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- ए घर वालों! तुम पर अल्लाह की रहमत और बरकत रहती हैं, बेशक अल्लाह तारीफ के लायक़ और बड़ी शान वाला है_,"*
*★_उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा यह सुनकर रो पड़ीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा:- क्या बात है, तुम क्यों रो पड़ी ? हजरत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- अल्लाह के रसूल ! आपने इनके लिए यह अल्फाज़ फरमाए, मुझे और मेरी बेटी को छोड़ दिया _,"*
*"_ इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- तुम और तुम्हारी बेटी दोनों अहलेबैत में से हो _," ( अल मुअजम अल कबीर -24/281)*
[8/1, 5:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रोज़ उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा के भतीजे ने 2 रकात नमाज पढ़ी, सजदे की जगह गुबार आलूद थी, वह अपनी पेशानी से गर्द झाड़ने लगे, उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- ऐसा ना करो, यह फैल हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के अमल के खिलाफ है _," मतलब यह था कि हाथों को हरकत ना दो, नमाज़ में सुकून अख्तियार करो ।*
*★_ आप रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत फैयाज़ थीं, एक रोज़ चंद हाजत मंद आपके घर आए, उनमें औरतें भी थीं, उन्होंने गिड़गिड़ा कर सवाल किया, उस वक्त वहां सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी भी मौजूद थीं, आपने उन फुक़रा के डांटा, इस पर सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- हमें इसका हुक्म नहीं_,", फिर खादिमा से फरमाया :- इन्हें कुछ दे कर रुखसत करो, घर में कुछ ना हो तो एक दो छुहारे ही दे कर रुखसत करो _,"*
*★_ आपको नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बहुत मोहब्बत थी, आप की वफात के बाद आपके बाल तबर्रुक के तौर पर रख लिए थे, लोगों को उनकी ज़ियारत कराती थीं _," ( मुसनाद अहमद- 6/301)*
*★_ एक रोज़ आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ फरमा थे, हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक सहाबी दहिया कलबी रज़ियल्लाहु अन्हु की सूरत में आए, वह आपसे बातें करते रहे, जब वह चले गए तो आपने सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा:- जानती हो यह कौन थे? उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया:- यह दहिया थे, यानी उन सहाबी का नाम लिया, लेकिन जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने लोगों से इस वाक़ए का ज़िक्र किया तब उन्हें पता चला कि वह हजरत जिब्राइल थे, मतलब यह कि आपके घर भी जिब्रील अमीन आए थे,*
*★"_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को आपसे बहुत मोहब्बत थी, अल्लाह की आप पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों _,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 123* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत ज़ेनब बिन्ते जहश रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀__ आपका नाम ज़ेनब था, वालिद का नाम जहश बिन रा'ब था और वालिदा का नाम उमैमा था, यह उमैमा अब्दुल मुत्तलिब की साहबज़ादी थीं, इस लिहाज़ से हजरत ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की फूफी जा़द बहन थीं, आपका पहला नाम बर्राह था, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने तब्दील करके ज़ेनब रखा था ।*
*★_ सैयदा जै़नब रज़ियल्लाहु अन्हा का पहला निकाह हजरत ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु से हुआ था, जो नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम थे, इनका आपस में इत्तेफाक ना हो सका इसलिए हजरत जैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने इनको तलाक दे दी थी, इद्दत पूरी होने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा को निकाह का पैगाम भेजा, इस पैगाम के जवाब में हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- मैं इस बारे में उस वक्त तक कुछ नहीं कह सकती जब तक कि मैं अपने परवरदिगार से मशवरा ना कर लूं _,"*
*★_ इस जुमले का मतलब यह था कि जब तक मै इस्तखारा ना कर लूं कुछ नहीं कह सकती, इस तरह अल्लाह ताला ने आपका निकाह हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से आसमान पर कर दिया, आसमान पर कर दिए जाने की इत्तिला वही के जरिए की गई और आयत नाज़िल हुई ।*
*★_ इसका जिक्र हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा फख्र से फरमाया करती थीं, आयत का नाज़िल होना था कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हजरत ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ ले गए, वहां तशरीफ ले जाने से पहले आपने उन्हें यह खबर पहुंचा दी थी, जब सैयदा जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को यह खबर पहुंची तो आप उसी वक्त सजदे में गिर गईं, इधर आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तशरीफ ले आए, आपने सैयदा से दरयाफ्त फरमाया:- आपका नाम क्या है ? सैयदा ने जवाब दिया:- बर्राह ," आपने इरशाद फरमाया:- नहीं बल्कि आज से आपका नाम ज़ैनब है_,"*
[8/3, 11:16 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ ज़मीन पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत जे़नब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह 5 हिजरी को फरमाया, आपका मेहर 400 दिरहम में मुक़र्रर हुआ, आपने दावत ए वलीमा का खास अहतमाम फरमाया, सैयदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने किसी निकाह में वलीमे में इतना अहतमाम नहीं फरमाया जितना की सैयदा जै़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ निकाह में फरमाया, सैयदा आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने आपको मुबारकबाद दी, फ़िर आप तमाम अज़वाज मुताहरात के हुजरे में तशरीफ ले गए और सबको सलाम किया, सभी ने आपको मुबारकबाद दी ।*
*★_ सैयदना अनस रजियल्लाहु अन्हु की वालिदा ने मलीदा तैयार किया और एक थाल में रखकर उनसे फरमाया:- "अनस ! यह सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में ले जाओ, आपसे अर्ज़ करना कि यह मेरी वाल्दा ने भेजा है और वह आप को सलाम कहती हैं और अर्ज़ करती हैं कि ए अल्लाह के रसूल ! यह हमारी तरफ से एक क़लील सा हदिया है _,"*
*★_ हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु की वाल्दा रिश्ते में आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खाला थीं, सैयदना अनस रज़ियल्लाहु अन्हु वह मलीदा लेकर आप की खिदमत में हाज़िर हुए, अपनी वाल्दा का सलाम अर्ज़ किया और उनके अल्फ़ाज़ दोहराए, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया:- जाओ! फलां फलां को बुला लाओ और जो आदमी भी रास्ते में मिले उसे भी बुला लाओ _,"*
*★_ आपने कुछ लोगों के नाम भी लिए, चुनांचे मैंने वही किया जैसा कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने हुक्म फरमाया था, इस तरह सब लोग आ गए, हजरत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि वह तकरीबन 300 आदमी थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया :- अनस ! वह तश्त ले आओ_," जब हजरत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु थाल ले आए तो आपने फरमाया 10 - 10 आदमियों का हल्का़ बना लो और सब अपने आगे से खाओ _,"*
[8/4, 4:58 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ (हजरत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि ) उन हजरत ने हिदायत के मुताबिक खाना शुरू किया, सबने सैर होकर खाया, जब सब खा चुके तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुझसे फरमाया:- "_अनस! अब यह तश्त को उठा लो _,"*
*"_जब मैंने तश्त को उठाया, तो मैं अंदाजा ना लगा सका कि जब मैंने तश्त को सबके सामने रखा था, उस वक्त उस में खाना ज़्यादा था या जिस वक्त उठाया उस वक्त ज़्यादा था _,"*
*★_ इसी दावत ए वलीमा में आयते हिजाब यानी पर्दे की आयत नाज़िल हुई, इस आयत के नुजूल के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दरवाज़े पर पर्दा लटका लिया और लोगों को घर के अंदर जाने की मुमा'नत हो गई, यह वाक़िया ज़िक़ा'अदा 5 हिजरी का है, उस वक्त सैयदा ज़ेनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र 35 साल थी।*
*★_ इस निकाह की चंद खुसूसियात ऐसी हैं जो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के किसी और निकाह की नहीं हैं,*
*"_एक यह कि अरब में मुंह बोला बेटा असल बैटे के बराबर समझा जाता था, यह बात खत्म हो गई, क्योंकि जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सैयदा जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा से निकाह किया तो मुशरिकीन ने बातें बनाना शुरू किया कि लो जी, मुसलमानों के रसूल ने तो अपने बेटे ज़ैद की तलाक़ याफ़्ता बीवी से निकाह कर लिया, इस पर अल्लाह ताला का हुक्म नाजिल हुआ _,"*
*"_मोहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं है बल्कि अल्लाह के पैगंबर और नबियों की मुहर (यानी नबूवत के सिलसिले को खत्म कर देने वाले) हैं और अल्लाह हर चीज़ से वाक़िफ हैं _", (सूरह अल अहजा़ब: 40)*
*★_ इस हुक्म से अल्लाह ताला ने वाज़े फरमा दिया कि मुंह बोला बेटा हक़ीकी़ बेटे की तरह नहीं, ना इस हुक्म में शामिल हैं कि बेटों की बीवियों से निकाह हराम है _,"*
[8/5, 6:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस निकाह कि दूसरी खुसूसियत यह है कि आका़ और गुलाम के दरमियान सदियों से हाइल माशरती फासले कम हो गए क्योंकि इससे पहले लोग अपने गुलाम की मुतलक़ा बीवी से निकाह को बुरा समझते थे।*
*★_ तीसरी खुसूसियत यह है कि इस निकाह के मौक़े पर पर्दे का हुक्म नाज़िल हुआ, चौथी खुसूसियत यह है कि इस निकाह के बारे में वही नाज़िल हुई और पांचवी बड़ी खुसूसियत यह है कि निकाह आसमानों पर हुआ ।*
*★_ हजरत जे़नब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा दूसरी अज़वाज से इसी बुनियाद पर फख्र किया करती थीं, हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा उनके बारे में फरमाती हैं :- "_जे़नब बिन्ते जहश मर्तबे में मेरा मुका़बला करती हैं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के नज़दीक वह मेरी हम पल्ला थीं, मैंने उनसे ज्यादा किसी औरत को दीनदार, अल्लाह से डरने वाली, सबसे ज्यादा सच बोलने वाली, सबसे ज्यादा सिलहरहमी करने वाली, सबसे ज्यादा सदका़ व खैरात करने वाली नहीं देखी और उनसे ज्यादा मेहनत करके सदका़ करने वाली और अल्लाह जलशानहू का क़ुर्ब हासिल करने वाली औरत नहीं देखी _," ( मुस्लिम, असद अलक़बाह )*
*★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम भी सैयदा ज़ेनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा का इन सिफात की वजह से बहुत लिहाज़ करते थे, आप की खातिरदारी फरमाते थे ।*
*★_ अपना कफन भी अपनी जिंदगी ही में तैयार कर लिया था, चुनांचे जब आपका इंतका़ल का वक्त आया तो फरमाया :-मैंने अपना कफन तैयार कर रखा है, गालिबन हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु भी मेरे लिए कफन भेजेंगे, एक कफन काम में ले आना, दूसरा सदका़ कर देना _,"*
*"_और यही हुआ, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपके लिए खुशबूदार कफन भिजवाया, आपको वही कफन दिया गया और जो कफ़न उन्होंने खुद तैयारी करवा रखा था उसे सदका़ कर दिया गया _," (तबका़त- 8/115)*
[8/5, 5:31 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपका इंतकाल 20 हिजरी में हुआ, इंतकाल के वक्त आपकी उम्र 53 साल थी, वो ज़माना हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत का था, इसलिए नमाज़े जनाजा़ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई, हजरत उसामा बिन ज़ैद, हजरत मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन जहश और अब्दुल्लाह बिन अबी मुहम्मद बिन जहश रज़ियल्लाहु अन्हुम ने आपको क़ब्र में उतारा, आपको जन्नतुल बक़ीअ में दफन किया गया _," ( बुखारी )*
*★_ आपकी वफात पर सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- "अफसोस आज ऐसी औरत गुज़र गई जो बहुत पसंदीदा औसाफ वाली इबादत गुजार और यतीमो और बेवाओं की गमख्वार थीं _,"*
*★_ इंतकाल के वक्त आपने एक मकान छोड़ा था, खलीफा यज़ीद बिन अब्दुल मलिक ने अपने ज़माने में 50 हज़ार दिरहम में खरीद कर उसे मस्जिदे नबवी में शामिल कर दिया _," ( तिबरी )*
*★_ आपसे 111 अहादीस रिवायत की गई है, आप बहुत इबादत गुजार थीं, तहज्जुद गुज़ार और बहुत रोज़े रखने वाली थीं, एक मर्तबा हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपकी खिदमत में बहुत सा माल भेजा, आपने उस माल को घर के सहन में ढ़ेर करने का हुक्म दिया और खादिमा से फरमाया :- इस माल पर एक कपड़ा डाल दो और उसके नीचे हाथ ले जाकर जितना माल हाथ मे आता है, वह फलां फलां और फलां फलां को दे आओ, फलां यतीम को दे आओ और फलां बेवा को दे आओ _,"*
*★"_ इस तरह वह माल बराबर तक़सीम होता रहा, आखिर जब कपड़े के नीचे थोड़ा सा माल रह गया तो खादिमा ने कहा :- ऐ उम्मुल मोमिनीन ! इस माल मे आखिर हमारा भी कुछ हक़ है _," आपने उनसे फरमाया :- अच्छा जो बच रहा है वह तुम ले लो _,"*
*"_ जब कपड़ा उठा कर देखा गया तो सिर्फ 85 दिरहम बाक़ी थे, सारा माल तक़सीम होने के बाद हज़रत ज़ेनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा ने हाथ उठा कर कहा :- ऐ अल्लाह ! इस साल के बाद उमर का वज़ीफा मुझे ना पाए, यह माल बहुत बड़ा फितना है _," ( अल असाबा )*
*★_ चुनांचे साल गुजरने नहीं पाया था कि आप इंतकाल फरमा गई, अल्लाह ताला की उन पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों, आमीन ।*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 133* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत जुवेरिया रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *★_ आपका इब्तदाई नाम बराह था, वालिद का नाम हारिस बिन अबी फरार था, आपके वालिद क़बीला बिन मुस्तलक़ के सरदार थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नाम तब्दील फरमाया और जुबेरिया रखा, आपका पहला निकाह अपने क़बीले के एक शख्स मसाफा बिन सफवान से हुआ था, मसाफा बिन सफवान और आपका बाप हारिस दोनों इस्लाम के दुश्मन थे, मसाफा कुफ्र की हालत में क़त्ल हुआ ।*
*★_ आपके वालिद हारिस ने कु़रेश के इशारे पर मदीना मुनव्वरा पर हमले की तैयारियां शुरू कर दी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यह इत्तेला मिली कि बनी मुस्तलक़ के सरदार हारिस ने मदीना मुनव्वरा पर हमला करने के लिए बहुत सी फौज जमा कर ली है, इत्तेला मिलने पर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सूरते हाल मालूम करने के लिए हजरत बुरैदाह बिन हसीब असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा, उन्होंने वापस आकर बताया कि खबर सही है, इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सहाबा किराम को लेकर क़बीला बनी मुस्तलक़ की तरफ रवाना हुए, रास्ते में बहुत से मुनाफिक भी लश्कर में शामिल हो गए, यह लोग माले गनीमत के लालच में शामिल हुए थे ।*
*★_ इससे पहले इतनी तादाद में मुनाफिक कभी इस्लामी लश्कर में शामिल नहीं हुए थे, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में सैयदना ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना क़ायम मक़ाम मुक़र्रर फरमाया और अज़वाज में से सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा और सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को साथ लिया।*
[8/8, 12:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ यह लश्कर दो शाबान 5 हिजरी को रवाना हुआ, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बहुत तेज़ रफ्तार से सफर करते हुए अचानक दुश्मन पर हमला आवर हुए, उस वक्त वह लोग अपने मवेशियों को पानी पिला रहे थे, हमले की ताब ना ला सके, उनके 10 मर्द क़त्ल हुए बाक़ी मर्द, औरतें और बच्चे गिरफ्तार कर लिए गए, माले गनीमत में दो हजार ऊंट और पांच हज़ार बकरियां मुसलमानों के हाथ लगी, दो सो घराने क़ैद हुए, उन्हीं कै़दियों में सरदार हारिस की बेटी भी थी, यानी हजरत जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हु।*
*★_ जब माले गनीमत तक़सीम किया गया तो सैयदा जुवेरिया हजरत साबित बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु के हिस्से में आई, आपने हजरत साबित बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया:- आप मुझसे मुकातबत कर लें _," मतलब यह कि कोई रक़म तय कर लें, मैं वह अदा कर दूं तो मुझे आजाद कर दें, हजरत साबित बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु ने चार औक़िया सोने पर मुकातबत कर ली, आपके पास इतना सोना नहीं था, आप हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुईं, आपने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको मालूम है मैं सरदार बनी मुस्तलक़ की बेटी हूं, आपको यह भी मालूम है कि मैं क़ैदी हूं, तक़सीम के मुताबिक मै साबित बिन क़ैस के हिस्से में आई हूं, मैंने उनसे मुकातबत कर ली है, इस सिलसिले में मैं आपके पास हाजिर हुई हूं, लोगों से कहें कि मेरे लिए चंदा जमा कर दें _,"*
*★₹ यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- तुम पसंद करो तो मैं तुम्हें इससे बेहतर बात बता दूं और वह यह है कि तुम्हारी तरफ से मुकातबत मै अदा कर दूं और तुम्हें आजाद कर के तुम से निकाह कर लूं _," यह सुनकर सैयदा जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे यह बात मंजूर है _,"*
*★_ इस बात के तय होने के बाद सैयदा का बाप हारिस भी उनके सिलसिले में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ, उसने कहा :- मैं क़बीला वनी मुस्तलक़ का सरदार हूं, इसलिए मेरी बेटी कनीज़ बनकर नहीं रह सकती, आप उसे आज़ाद फरमा दें _,"*
*"_आपने जवाब में फरमाया:- क्या यह बेहतर नहीं होगा कि मैं इसका फैसला तुम्हारी बेटी पर छोड़ दूं, तुम जाकर उससे खुद पूछो _,"*
*"_हारिस सैयदा जुवेरिया के पास आए और यह बात आपको बताई, इस पर आप ने फरमाया :- मै अल्लाह और उसके रसूल को अख्तियार करती हूं _,"*
[8/9, 5:50 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हारिस सैयदा जुबेरिया को छुड़ाने के लिए बहुत से ऊंट साथ लाए थे लेकिन मदीना मुनव्वरा में दाखिल होने से पहले उन्होंने उनमें से दो खूबसूरत और उम्दा ऊंट एक घाटी में छुपा दिए थे ताकि वापसी पर वह साथ ले जाएं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में ऊंटों के लाने का ज़िक्र हुआ तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पूछा:- उनमें से दो ऊंट फलां घाटी में छुपा आए हो _,"*
*"_ यह सुनते ही हारिस पुकार उठा :- मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल है, मेरे वह दो ऊंट छुपाने का किसी को इल्म नहीं था, अल्लाह ने आपको इत्तेला दी है _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने चार औक़िया सोना हजरत साबित रज़ियल्लाहु अन्हु को देकर सैयदा जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा को आज़ाद कराया और आप से निकाह कर लिया, जब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने बनी मुस्तलक़ के तमाम कैदियों को आज़ाद कर दिया क्योंकि अब यह लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ससुराली रिश्तेदार बन चुके थे, इस तरह उम्मुल मोमिनीन सैयदा जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा की वजह से बनी मुस्तलक़ के घराने आज़ाद हुए ।।*
*★_ उम्मुल मोमिनीन सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाया करती थी:- मैंने जुवेरिया से ज़्यादा किसी औरत को अपने खानदान के हक़ में बा बरकत नहीं देखा, जिनकी वजह से एक दिन में इतने घराने आज़ाद हुए हों _,"*
*★_ सैयदा जुवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हमलावर होने से तीन रात पहले मैंने ख्वाब में देखा था कि चांद यसरिब से से चला आ रहा है और आकर मेरी गोद में गिर गया है, मैंने यह बात लोगों को बताना पसंद नहीं की थी, यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ ले आए, जब हम कैदी बन गए, तो उस वक्त मुझे इस ख्वाब के पूरा होने की उम्मीद हो चुकी थी, चुनांचे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुझे आज़ाद कर के अपनी अज़वाज मुताहरात में शामिल कर लिया _,"*
[8/10, 7:16 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप का इंतकाल रबीउल अव्वल 50 हिजरी में हुआ, एक रिवायत 56 हिजरी की भी है, मदीना मुनव्वरा के गवर्नर मरवान बिन हकम ने आपकी नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई, आप को जन्नतुल बक़ीअ में दफन किया गया, इंतकाल के वक्त आपकी उम्र 65 साल थी, एक और रिवायत के मुताबिक़ आपकी उम्र 70 साल थी, जिस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़ौजियत में आईं उस वक्त उम्र 20 साल थी।*
*★_ आपसे सिर्फ चंद अहादीस रिवायत की गई हैं, आपने बहुत जाहिदाना जिंदगी गुजारी, बहुत इबादत गुजार थीं, एक सुबह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आपको मुसल्ले पर छोड़ कर गए, दोपहर के क़रीब वापस तशरीफ लाए तो आप उसी तरह बैठी नज़र आईं, यानी उस वक्त से इस वक्त तक जिक्र में मशगूल रही थीं, एक जुमा को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके घर तशरीफ लाए तो आप रोज़े से थीं ।*
*★_ सैयदा जवेरिया रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- एक रोज़ रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मेरे पास तशरीफ लाए, सुबह का वक्त था मै तसबीह में मशगूल थी, फिर आप दोपहर के वक्त तशरीफ लाए मै उस वक्त भी तसबीह में मशगूल थी, मुझे इसी हालत में बैठी पाकर आपने इरशाद फरमाया:- क्या तुम सुबह से इसी तरह बैठी हो ? मैंने जवाब दिया :- जी हां ! आपने फरमाया :- मै तुम्हें कुछ ऐसे कलमात ना सिखा दूं जो वज़न में उस तमाम तसबीह के बराबर होंगे जो तुम अभी पढ़ चुकी हो, वह कलमात यह है :-*
*"_ सुब्हानल्लाहि अददा ख़लक़िहि,*
*"_ सुब्हानल्लाहि ज़ीनता अर्शीहि _,"*
*"_ सुब्हानल्लाहि रिज़ा नफ़्सीहि _,"*
*"_सुब्हानल्लाहि मिदादा कलिमातिहि _,"*
*★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को आपसे बहुत मोहब्बत थी, एक मर्तबा आप उनके घर तशरीफ़ लाए और पूछा :- कुछ खाने को है_," आपने बताया:- मेरी कनीज को किसी ने सदके़ का गोश्त दिया था, वही रखा है _," आपने इरशाद फरमाया :- "वही ले आओ क्योंकि सदका़ जिसे दिया गया था उसे पहुंच गया है _,"*
*"_तारीख की किताबों में आपके बहुत कम हालात मिलते हैं, अल्लाह की आप पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों _,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 140* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत उम्मे हबीबा रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀__ सैयदा उम्मे हबीबा बिंते अबू सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हा _,*
*★_ आपका नाम हिंद था, आपके वालिद अबू सुफियान बिन हर्ब और वाल्दा का नाम सफिया बिन्ते अबी आस था, यह सुफिया हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की फूफी थी, बाज़ मौरखो ने आपका नाम रमला भी लिखा है, आप नबुवत से 17 साल पहले पैदा हुईं _,*
*★_ आपका पहला निकाह उबैदुल्लाह बिन जहश से हुआ, यह अब्दुल्लाह बिन जहश रज़ियल्लाहु अन्हु का भाई था, जो गज़वा उहद में शहीद हुए, सैयदा उम्मे हबीबा इस्लाम की इब्तिदा ही में मुसलमान हो गई थीं, इसी तरह आपका खाविंद उबेदुल्लाह बिन जहश मुसलमान हो गया था।*
*★_ हबशा की तरफ दूसरी हिजरत करने वालों में यह मियां बीवी भी शामिल थे, हबशा में उनके यहां एक लड़की पैदा हुई, उसका नाम हबीबा रखा गया, इस निस्बत से आप उम्मे हबीबा कहलाई यानी यह आपकी कुन्नियत थी, आपका खाविंद उबेदुल्ला कुछ दिनों बाद मुरतद हो गया, उसने ईसाई मज़हब अख्तियार कर लिया, उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा बराबर इस्लाम पर क़ायम रहीं,*
*★_सैयदा उम्मे हबीबा फरमाती हैं:- "उबैदुल्लाह के ईसाई होने से पहले मैंने ख्वाब में उसे निहायत बुरी भयानक शक्ल में देखा, मैं बहुत घबराई, सुबह हुई तो पता चला वो ईसाई हो चुका है, मैंने इस उम्मीद पर उससे यह ख्वाब सुनाया कि शायद वह तौबा कर लें, लेकिन उसने कोई तवज्जो ना दी, यहां तक कि इसी हालत में मर गया, चंद रोज़ बाद मैंने ख्वाब में देखा कि कोई मुझे "या उम्मूल मोमिनीन" कहकर आवाज़ दे रहा है, मै बहुत घबराई, फिर जब मेरी इद्दत खत्म हो गई तो यकायक मुझे नजाशी शाहे हब्शा के ज़रिए हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से निकाह का पैगाम मिला _," (तबका़ते इब्ने साद- 8 /97)*
[8/12, 5:32 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने शाहे हफ्ता नजाशी को पैगाम भेजा, यह पैगाम मिलने पर नजाशी ने अपनी बांदी अबरहा को सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास भेजा और आप का पैगाम दिया, आप यह पैगाम सुनकर बहुत खुश हुई और हाथ के कंगन, पैरों की पाजे़ब और अंगूठी वगैरह सब उतार कर अबरहा को दे दिए, शाम के वक्त में नजाशी ने हजरत जाफर तैयार रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे मुसलमानों को जमा किया फिर निकाह का खुतबा पढ़ा ।*
*★_ इस ख़ुत्बे के अल्फाज़ यह थे:- "तमाम तारीफें अल्लाह ताला के लिए हैं, मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के बरगुजी़दा बंदे और रसूल बरहक़ है और आप वही नबी हैं जिनकी ईसा बिन मरियम अलैहिस्सलाम ने बशारत दी थी, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुझे तहरीर फरमाया है कि मैं आपका निकाह उम्मे हबीबा बिन्ते अबू सुफियान से कर दूं, मैंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इरशाद के मुताबिक़ आपका निकाह उम्मे हबीबा से कर दिया और चार सौ दीनार मैहर मुक़र्रर किया _,"*
*★_ निकाह के बाद लोगों ने उठने का इरादा किया तो नजाशी ने कहा:- "अभी बैठे ! हजरात ए अंबिया अलैहिस्सलाम की सुन्नत यह है कि निकाह के बाद वलीमा भी होना चाहिए _,"*
*"_इस तरह दावत वलीमा हुई, खाने के बाद ये हजरात रुखसत हुए, नजाशी ने अपनी खादिमा के ज़रिए मेहर की रक़म उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा को भिजवाई, यह रक़म नजाशी की वहीं बांदी अबराहा लेकर गई, उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उसे 50 दीनार बतौर इनाम दिया, तो उसने वह दीनार और पहले जो ज़ेवर आपकी तरफ से उसे मिले थे, वह भी उन्हें वापस कर दिए और बोली:- नजाशी ने मुझे हिदायत की है कि आप से कुछ ना लूं और आप यक़ीन कर लें, मैं मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पैरोकार बन चुकी हूं और अल्लाह ताला के लिए दीन ए इस्लाम को कुबूल कर चुकी हूं और आज बादशाह ने अपनी बेगमात को हुक्म दिया है कि उनके पास जो खुशबू और अतर हों, उसमें से ज़रूर आपके लिए हदिया भेजें _,"*
*★_ दूसरे रोज़ अबरहा बहुत सा औद और अंबर वगैरह आपके पास लाई, सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- "मैंने वह औद और अंबर सब रख लिया और अपने साथ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में लाई _,*
[8/13, 6:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जब अबरहा यह खुशबुएं लाईं तो उसने उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा:- मेरी एक दरखास्त है कि आप नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत ए अक़दस में मेरा सलाम अर्ज़ कर दें और मेरे बारे में बता दें कि मैं दीन ए इस्लाम क़ुबूल कर चुकी हूं _,"*
*★_ उम्मुल मोमिनीन उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- जब तक मैं मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना ना हो गई, अबरहा बराबर मेरे पास आती रहीं और कहती रही- देखिए मेरी दरखास्त भूल ना जाना, चुंनाचे जब मैं मदीना मुनव्वरा पहुंची तो यह तमाम बातें आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बयान की, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुनकर मुस्कुराते रहे, आखिर में जब मैंने अबरहा का सलाम और पैगाम पहुंचाया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- अलैहिस्सलाम वा रहमतुल्लाहि वा बरकातुहु _,*
*★_ अल्लाह ताला ने सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा को सीरत के साथ हुस्ने सूरत से भी नवाजा़ था, आपको इस्लाम और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत मोहब्बत थी, यही वजह थी कि खाविंद के मुर्तद होने पर भी आप इस्लाम पर डटी रहीं, आपने खाविंद के ईसाई होने की कोई परवाह नहीं की _,"*
*★_ फतेह मक्का से पहले हजरत अबू सुफियान सुलह की मुद्दत में इजा़फे के लिए मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए, यानी अभी वह मुसलमान नहीं हुए थे, उधर यह रवाना हुए, इधर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को खबर दी कि अबु सुफियान मक्का से सुलह की मुद्दत में इजा़फे के लिए आ रहे हैं, यह सुलह हुदेबिया के मुक़ाम पर हुई थी _,*
[8/14, 5:21 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जब अबू सुफियान मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो सबसे पहले बेटी से मिलने के लिए उनके घर आए, अंदर दाखिल होने के बाद आप सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बिस्तर पर बैठने लगे तो उम्मुल मोमिनीन उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फौरन आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बिस्तर लपेट दिया ।*
*★_ हजरत अबू सुफियान धक से रह गए और नाराज़ होकर बोले :- यह क्या बेटी ! तुमने बिस्तर क्यों लपेट दिया ? तूने बिस्तर को मेरे का़बिल नहीं समझा या मुझे बिस्तर के का़बिल नहीं समझा _,"*
*"_उम्मूल मोमिनीन सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- "यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का बिस्तर है, इस पर एक मुशरिक नहीं बैठ सकता जो शिर्क की नजासत से आलूद हो _," यह सुनकर हजरत अबू सुफियान को गुस्सा आ गया, बोले:- "अल्लाह की क़सम! तू मेरे बाद शर में मुब्तिला हो गई _,"*
*"_सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया:- "मैं शर में नहीं बल्कि कुफ्र के अंधेरे से निकलकर इस्लाम के नूर और हिदायत की रोशनी में दाखिल हो गई हूं और हैरत है कि आप क़ुरेश के सरदार होकर पत्थरों को पूजते हैं जो ना सुनते हैं ना देखते हैं _,"*
*★_ एक और हदीस से उनकी दीन से मोहब्बत का अंदाजा होता है, वह फरमाती हैं:- "मैंने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से सुना है कि जो शख्स दिन और रात में 12 रकात नमाज़ नवाफिल अदा करे उसके लिए जन्नत में घर बनाया जाएगा और जबसे मैंने यह सुना उस वक्त से मैं हमेशा नवाफिल पढ़ती हूं, कभी उनको तर्क नहीं किया _,"*
*★_ सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने 44 हिजरी में मदीना मुनव्वरा में वफात पाई, वह उनके भाई हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत का दौर था, लेकिन एक रिवायत यह भी है कि आप का इंतकाल सैयदना मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की वफात के 1 साल बाद यानी 59 हिजरी में हुआ, ज़्यादा दुरुस्त बात 44 हिजरी वाली है, वफात के वक्त आपकी उम्र 73 साल थी ।*
*★_ वफात के वक्त सैयदा उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ने सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को बुलाकर कहा :- मुझमे और तुममे वह ताल्लुकात थे जो आपस में सोकनों के होते हैं, अल्लाह उन सब बातों को माफ फरमाए और तुमसे दर गुज़र फरमाए _,"*
*"_सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनसे फरमाया :- तुमने मुझे खुश कर दिया, अल्लाह तुम्हें खुश रखे _," आपने इसी तरह सैयदा उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा को बुलाकर फरमाया ।*
*"_आपके यहां अब्दुल्लाह बिन जहश से 2 बच्चे हुए, एक अब्दुल्लाह दूसरी हबीबा, हबीबा ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में परवरिश पाई थी, अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमते नाज़िल हो_,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 145* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत सफिया बिन्ते हयी रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀_ उम्मुल मोमिनीन सैयदा सफिया बिन्ते हयी रज़ियल्लाहु अन्हा _,"*
*★_ आपका नाम जे़नब था, गज़वा खैबर के मौक़े पर आप हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हिस्से में आई थी, अरब मैं माले गनीमत के तौर पर जो हिस्सा हुक्मरान या बादशाह को मिलता था, उसे सफिया कहते थे, इसलिए आप भी सफिया के नाम से मशहूर हुईं ।*
*★_ आपके वालिद का नाम हयी बिन अख़तब था, यह बनी नजी़र का सरदार था, मां का नाम फरह था, सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा का पहला निकाह सलाम बिन मुश्किम से हुआ था, सलाम ने आपको तलाक दे दी तो दूसरा निकाह कनाना बिन हकी़क़ से हुआ, यह कनाना खैबर के सरदार का भतीजा था, कनाना खैबर की लड़ाई में मारा गया, सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा के बाप और भाई भी इस जंग में मारे गए, खुद भी गिरफ्तार हुई ।*
*★_ पहले दो खाविंदो से आपके यहां कोई औलाद नहीं हुई थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आप को आज़ाद करके निकाह कर लिया, 3 दिन तक वलीमा किया और यही आपका मेहर क़रार पाया ।*
*★_ वलीमा अजब शान से हुआ, चमड़े का एक दस्तरखान बिछा दिया गया, आपने सैयदना अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया:- ऐलान कर दो कि जिसके पास जो कुछ है ले आएं_,", चुनांचे कोई खजूर ले आया, कोई पनीर और कोई सत्तू और घी लाया, इस तरह बहुत सी चीज़ें दस्तरखान पर जमा हो गईं, सबने मिलकर यह वलीमा नोश किया, इस वलीमें में गोश्त और रोटी कुछ नहीं था, यह वलीमा सहबा के मक़ाम पर हुआ।*
*★_ जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहबा के मक़ाम से रवाना हुए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा को ऊंट पर सवार कराया, अपनी अबा से उन पर पर्दा किया, यह इस बात का ऐलान था कि सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा उम्मुल मोमिनीन है ।*
[8/16, 6:26 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा आपकी जो़जियत में आईं तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आपके चेहरे पर एक निशान देखा, आपने पूछा :- सफिया ! यह निशान कैसा है ? सैयदा ने बताया:- एक दिन मैंने ख्वाब देखा कि चांद मेरी गोद में आकर गिरा है, यह ख्वाब मैंने अपने शौहर को सुनाया तो उसने ज़ोर से मेरे मुंह पर एक थप्पड़ मारा और कहा:- तू यसरिब के बादशाह की तमन्ना करती है _,"*
*★_ यह इशारा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तरफ था, सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :- "खैबर की लड़ाई के बाद जब मैं गिरफ्तार हो गई और मुझे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने पेश किया गया तो उस वक्त आपसे ज़्यादा ना पसंदीदा इंसान मेरे नज़दीक कोई नहीं था, क्योंकि मेरा बाप खाविंद और दूसरे रिश्तेदार क़त्ल हो चुके थे, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मुझसे फरमाया:- तुम्हारी क़ौम ने हमारे साथ यह यह किया है _,"*
*"_आप फरमाती है:- "जब मैं आपके पास से उठी तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से ज़्यादा महबूब मुझे कोई नहीं था _,"*
*★_ आप फरमाती हैं:- मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से ज़्यादा हुस्ने अखलाक़ का मुजस्समा कोई और नहीं देखा, आप रात के वक्त खैबर से एक ऊंट नहीं पर सवार हुए, उस वक्त मुझे ऊंघ आ रही थी, आप मुझे बार-बार जगाते कि कहीं मैं ऊंट से गिर ना जाऊं । आप फरमाते:- ए बिन्ते हयी ! थोड़ी देर इंतजार करो, यहां तक कि हम सहबा पहुंच जाएं_,"*
*★_ आप जब खैबर से मदीना मुनव्वरा आईं तो हारिस बिन नौमान के मकान पर उतारी गईं, आपके हुस्नो जमाल की शोहरत सुनकर अंसार की औरतें आपको देखने के लिए आईं ।*
[8/17, 6:32 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप चंद अहादीस की रावी भी हैं, दूसरी अज़वाज की तरह आपका घर भी इल्म का मरकज़ था, औरतें आपके पास मसाइल मालूम करने के लिए आया करती थीं, दूसरे शहरों से भी मसाइल पूछने के लिए आती थीं, आप निहायत अक़लमंद थीं, आलीमा और फाज़ीला थीं, बुर्दबारी तो आप में कूट-कूट कर भरी हुई थी, आपमें बर्दाश्त का भी बहुत माद्दा था ।*
*★_ खैबर की लड़ाई के बाद जब आप अपनी बहन के साथ गिरफ्तार होकर आ रही थीं तो आपकी बहन यहूदियों की लाशों को देखकर चीख उठती थीं, लेकिन आप उनकी तरह बिल्कुल नहीं चीखीं, यहां तक कि अपने शोहर की लाश को देखकर भी सब्र से काम लिया।*
*★_ आपकी एक खादिमा हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास गई, उसने आपसे कहा:- "सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा में अभी तक यहूदियत का असर बाक़ी है, वह यौमें सब्त को अच्छा समझती हैं और यहूदियों के साथ सिलह रहमी करती हैं _,"*
*"_ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तहकी़क़ के लिए एक शख्स को भेजा, सैयदा सफिया ने उन्हें बताया:- "जब से अल्लाह ताला ने हमें जुमे का दिन अता फरमाया है, मैं यौमें सब्त को बिल्कुल अच्छा नहीं समझती, अलबत्ता मैं यहूदियों के साथ सिलह रहमी करती हूं क्योंकि वह मेरे रिश्तेदार हैं _,"*
*★_ इसके बाद आपने उस खादिमा को बुलाकर पूछा:- "तूने उमर से मेरी शिकायत किस के उकसाने पर की _," उसने जवाब दिया:- "शैतान के उकसाने पर _,*
*"_आप यह सुनकर पहले तो खामोश रहीं, फिर फरमाया :- "जाओ ! तुम आज़ाद हो _,"*
[8/18, 6:29 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बहुत मोहब्बत करती थीं, जब नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तबीयत आखिरी वक्त में नासाज़ हुई तो आपने निहायत हसरत से कहा:- "काश आप की बीमारी मुझे लग जाती_,"*
*"_इस पर तमाम अज़वाज ने आपकी तरफ देखा तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- "सफिया सच कह रही है _,"*
*★_ सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को भी आपसे बहुत मोहब्बत थी, आप हर मौके़ पर आपकी दिलजोई फरमाते थे, एक सफर में हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा का ऊंट बीमार हो गया, उस सफर में दूसरी अज़वाज मुताहरात भी साथ थीं, एक सहाबिया के पास दो ऊंट थे इसलिए आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे फरमाया:- "तुम सफिया को एक ऊंट दे दो_," उन्होंने ना दिया तो आप दो माह तक उन सहाबिया से नाराज़ रहे_,"*
*★_ हज के सफर में अज़वाज मुताहरात आपके साथ थीं, रास्ते में एक जगह सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा का ऊंट बैठ गया, इस तरह आप सबसे पीछे रह गई और रोने लगीं, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को पता चला तो आपके पास तशरीफ लाए, अपनी चादर मुबारक से आप के आंसू पोछें, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम आंसू पोछते जाते थे और आप और ज़्यादा रोए जाती थीं,*
*"_फरमाती थीं:- "नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मुझे रोने से मना फरमाते रहे लेकिन जब मेरा रोना बंद ना हुआ तब आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने ज़रा सख्ती से मना फ़रमाया _,"*
*★_ आप चूंकि यहूदियों के सरदार की बेटी थी इसलिए शुरू ही से अपने चारों तरफ दौलत के अंबार देखे हैं, अल्लाह ताला ने आपकी तबीयत में फैयाज़ी अता फरमाए थी, जब आप उम्मुल मोमिनीन बनकर मदीना मुनव्वरा में आईं तो आपके पास सोने के जे़वरात थे, आपने उनमें से कुछ सैयदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को और कुछ दूसरी औरतों को दे दिए _,*
[8/19, 4:56 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ एक रमजा़नुल मुबारक में जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम एतकाफ में थे कि सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा आपसे मिलने के लिए मस्जिद में आईं, सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने कुछ देर तक आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बात की फिर उठ कर वापस जाने लगीं तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उन्हें रुखसत करने दरवाज़े तक तशरीफ लाए, यहां तक कि आप मस्जिद के दरवाज़े तक आ गए, ऐसे में अंसार के दो आदमी पास से गुज़रे, उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को सलाम किया, आपने उनसे फरमाया:- "ज़रा ठहरो और जान लो, यह मेरी बीवी सफिया बिन्ते हयी है_" (मतलब यह था कि कहीं और ना समझ लेना कि पैगंबर आज की तारीक़ी में मालूम नहीं किस औरत के साथ ठहरे हैं)*
*★_ उन दोनों ने अर्ज़ किया:- "ए अल्लाह के रसूल ! हम और भला आपके बारे में ऐसा ख्याल करेंगे ? आपने इरशाद फरमाया:- "शैतान इंसान के अंदर खून की तरह दौड़ता है, मुझे डर हुआ कहीं वह तुम दोनों के दिलों में कोई ऐसी बात ना डाल दे, इसलिए मैंने वजाहत कर दी_,"*
*★_ जब हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को बलवाइयों ने घेर लिया तो उस ज़माने में सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपकी बहुत मदद की थी, उन जालिमों ने खाना और पानी बंद कर दिया था यानी बाहर से कोई चीज़ अंदर नहीं जाने देते थे, उस हालत में सैयदा सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा खच्चर पर सवार होकर आप की तरफ रवाना हो गईं, आपके गुलाम कनाना आपके साथ थे, बलवाइयों में से मालिक अस्तर आपके रास्ते में आ गया और आपके खच्चर के मुंह पर मारने लगा, इस तरह आप मजबूरन वापस लौट गईं, फिर आपने हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़रिए हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को खाना और पानी पहुंचाया।*
*★_ आप बहुत सलीका़मंद थीं, खाना बहुत उम्दा पकाती थीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जब दूसरी अज़वाज मुताहरात के यहां बारी होती थी तो खाना पका कर उस घर में भी भेजा करती थीं।*
*★_ आपने रमज़ानुल मुबारक 50 हिजरी में वफात पाई, जन्नतुल बक़ीअ में दफन हुईं, उस वक्त आपकी उम्र 60 साल थी, अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमतें नाज़िल हों, आमीन ।*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 150* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत मैमूना बिन्ते हारिस रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀_उम्मूल मोमिनीन सैयदा मैमूना बिन्ते हारिस रज़ियल्लाहु अन्हा _,*
*★_'आपका बचपन का नाम बराह था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बराह से मैमूना तजवीज़ फरमाया, आपके वालिद का नाम हुज्न बिन हुजैर और वाल्दा का नाम हिंद बिन्ते औफ था ।*
*★_ सैयदा मैमूना हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की हकी़की़ खाला थीं, क्योंकि आपकी बड़ी बहन लुबाबा कुबरा हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा मोहतरमा थीं, छोटी बहन लुबाबा सुगरा वलीद बिन मुगीरा की बीवी थी और हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की वालदा थीं, तो इस लिहाज़ से हजरत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा इन दोनों सहाबियों की खाला थीं।*
*★_ आपका पहला निकाह जाहिलियत के दौर में मसूद बिन अमरु से हुआ था लेकिन किसी वजह से दोनों में अलहेदगी हो गई थी, उसके बाद आपका निकाह अबु रहम से हुआ, अबु रहम का इंतकाल हो गया तो आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आपसे निकाह फरमाया, यह निकाह 7 हिजरी में हुआ, उस वक्त आप उमरे के सफर से वापस तशरीफ ला रहे थे, वापसी के सफर में सर्फ के मुकाम पर यह निकाह फरमाया ।*
*★_ आन हजथत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की यह वह जौजा़ हैं जिनका इंतकाल सबसे आखिर में हुआ, आपका निकाह मुका़मे सर्फ में हुआ था, आप की वफात भी इसी मुका़म पर हुई, आप की नमाजे़ जनाजा़ आपके भांजे सैयदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई ।*
*★_ आप दीनी मसाईल की बहुत बड़ी आलीमा थीं, एक औरत बीमार हो गई, उसने मन्नत मानी कि अगर वह शिफायाब हो गई तो बेतुल मुक़द्दस जाकर नमाज़ अदा करेगी, कुछ दिनों बाद वह सेहतमंद हो गई और अपनी मन्नत के मुताबिक़ बेतुल मुक़द्दस जाने की तैयारी करने लगी, वहां के लिए रुखसत होने से पहले सैयदा मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आई, आप को यह बात मालूम हुई तो उससे फरमाया:- "तुम यहीं मस्जिद-ए-नबवी में जाकर नमाज़ पढ़ लो क्योंकि इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का सवाब दूसरी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के सवाब से हज़ार गुना ज़्यादा है _,"*
*★_ आप नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के अहकामात की तामील के लिए खुद को हर वक्त तैयार रखा करती थीं, सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- "मैमूना सबसे ज़्यादा अल्लाह से डरने वालीं और सिलह रहमी करने वाली हैं _,"*
*★_ आपको गुलाम आज़ाद करने का बहुत शौक़ था, एक रोज़ एक बांदी को आज़ाद किया तो आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने आपको बड़े सवाब की खुशखबरी सुनाई, आप कभी-कभी क़र्ज़ भी ले लेती थी _,"*
*"_चुनांचे एक मर्तबा क़र्ज़ लिया, रक़म कुछ ज़्यादा थी, किसी ने आपसे पूछा:- "आप यह क़र्ज़ कैसे अदा करेंगी _," आपने फरमाया:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया है:- जो शख्स क़र्ज़ अदा करने की नियत रखता है, अल्लाह ताला खुद उसका क़र्ज़ अदा फरमा देते हैं _,"*
*★_ आप पर करोड़ों रहमते नाज़िल हों, आमीन _,"*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 156* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
⚂⚂⚂.
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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत मारिया क़िब्तिया रजि. ⚂*
⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙ *❀_ सैयदा मारिया क़िब्तिया रज़ियल्लाहु अन्हा _,"*
*★_ आपका नाम मारिया था और आपके वालिद का नाम शम'ऊन था, मिस्र के बादशाह मक़ूक़स ने हजरत मारिया रज़ियल्लाहु अन्हु को आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की खिदमत में बतौर हदिया भेजा... और यह ऐसे हुआ था कि आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अरब के गर्दनवाह के हुक्मरानों को इस्लाम की दावत के खुतूत लिखे थे, मिस्र के हुक्मरान मक़ूक़स को भी आपने इसी तरह खत लिखा, यह खत आपके सहाबी हातिम इब्ने अबी बलता के हाथ भेजा गया, शाहे मक़ूक़स हजरत हातिब रज़ियल्लाहु अन्हु से बहुत इज्जत से पेश आया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खत के जवाब में उसने एक खत लिखा, उसके अल्फाज़ यह थे :-*
*"_ मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह के नाम मिस्र के बादशाह मक़ूक़स की तरफ से, सलाम के बाद वाज़े हो कि मैंने आपका खत पढ़ा, जो कुछ इसका मजनून है वह मैंने समझ लिया है, मुझे यह तो मालूम था की एक नबी आने वाले हैं लेकिन मेरा गुमान था कि वह मुल्के़ शाम में ज़ाहिर होंगे, मैंने आप के सफीर की बहुत इज्जत और तकरीम की है, दो लड़कियां भेज रहा हूं, उनकी क़िब्तियों में बहुत इज्जत है और मैं आपके लिए कपड़ा और सवारी का खच्चर भी भेज रहा हूं, वस्सलाम _,"*
*★_ यह दोनों लड़कियां हजरत मारिया और उनकी बहन सीरीन थीं, मिस्र के बादशाह ने इन दोनों के साथ साथ हजार मशकाल सोना, 20 सफेद कपड़े के थान और आप की सवारी के लिए दुलदुल नाम का खच्चर इरसाल किया था _,"*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत मारिया रज़ियल्लाहु अन्हा को बाला खाने में ठहराया, इस बाला खाने में आपके यहां हजरत इब्राहीम रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आखिरी औलाद इब्राहिम रज़ियल्लाहु अन्हु हैं, उनकी पैदाइश 8 ज़िलहिज्जा को हुई, सातवें रोज़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका अक़ीक़ा किया, अकी़के़ मे आपने दो मेंढ़े ज़िबह किए, सर मुंडवाया और बालों के वज़न के बराबर चांदी तोलकर सदका़ की गई, बाल ज़मीन में दफन किए गए _,"*
*★_ इब्राहिम बहुत तंदुरुस्त और खूबसूरत थे, हजरत अबू रा'फे रज़ियल्लाहु अन्हु ने जब आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को बेटे की पैदाइश की खुशखबरी सुनाई तो आप इतने खुश हुए कि आपने अबु रा'फे रज़ियल्लाहु अन्हु को एक गुलाम इनाम में दे दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इब्राहिम को गोद में लेकर प्यार किया करते थे ।*
*★_ अरब के का़यदे के मुताबिक़ हजरत इब्राहिम को दूध पिलाने के लिए एक दाया के हवाले किया गया, उनका नाम उम्मे बरदा रज़ियल्लाहु अन्हा था, यें एक लोहार की बीवी थीं, उनके छोटे से घर में आमतौर पर भट्टी का धुंआ रहता था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बच्चे को देखने के लिए लोहार के घर जाते, वहां धुंआ आपकी आंख और नाक में चला जाता, आप इंतेहाई नाज़ुक तबियत होने के बावजूद बच्चे की खातिर उसको बर्दाश्त करते।*
*★_ इब्राहीम अभी 16 या 18 माह के हुए थे कि उनका इंतकाल हो गया, उन्होंने आपके हाथों में जान दी, आपकी आंखों से आंसू जारी हो गए, आपकी ज़ुबान मुबारक से यह अल्फाज़ अदा हुए :- "अल्लाह की क़सम इब्राहिम ! हम तुम्हारी मौत से बहुत गमगीन है, आंख रो रही है, दिल गमज़दा है, मगर हम ऐसी बात जु़बान से नहीं कहेंगे जिससे हमारा रब राज़ी ना हो _,"*
*★_ जिस रोज़ इब्राहीम फौत हुए उस रोज़ सूरज ग्रहण हो गया, पुराने जमाने के लोगों का यह एतक़ाद था कि सूरज ग्रहण और चांद ग्रहण किसी बड़े आदमी की मौत से हुआ करते हैं, इसे एतका़द की बुनियाद पर मदीना मुनव्वरा के लोग भी यह बात कहने लगे, आपको यह बात बहुत नागवार हुई, आपने लोगों को जमा फरमाया और उनके सामने एक तक़रीर की, उसमें आपने फरमाया:-*
*"_ सूरज और चांद को किसी इंसान की मौत से ग्रहण नहीं लगता बल्कि ये अल्लाह की निशानियों में से दो निशानियां हैं, जब तुम ऐसा देखो तो नमाज़ पढ़ो और अल्लाह ताला के हुजूर झुक जाओ _,"*
*★_ सैयदा मारिया क़िब्तिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने सैयदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में 16 हिजरी में इंतकाल फरमाया, आप को जन्नतुल बक़ीअ में दफन किया गया, अल्लाह ताला की आप पर करोड़ों रहमतें हों _,*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम, 158* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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