Ashra E Zilhijja -(Hindi)

🎍﷽ 🎍*
 *●•अशरा-ए-ज़िलहज्ज•●*
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 *☞_ अशरा ज़िल हिज्जा की अहमियत:-*
*"⚀_इस दुनिया में हमारी तखलीक़ का मकसद सिर्फ यही है कि हम इखलास के साथ, शिर्क की गंदगियों से अपने आपको दूर रख कर अल्लाह वाहिद की इबादत करें और अपनी पूरी जिंदगी उसी की मंशा के मुताबिक गुज़ारें, उसके अहमाम व फरामीन पर पूरी यकसुई व दिलजोई के साथ अमल पेरा हों,*

*"⚀ _ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त का फ़ज़ल व अहसान है कि उसने हमें एक बार फिर खैर व भलाई और नेकियों का ये मौसम इनायत किया ताकि हम इस महीने से ज़्यादा से ज़्यादा अजरो सवाब हासिल कर सकें,*

*"⚀ _ नबी करीम ﷺ ने फरमाया - पूरी जिंदगी खैर व भलाई के तलब करने वाले रहो, और रहमते इलाही की अतायात व बरकात के (हुसूल के) लिए अपने आपको पेश करो, बेशक अल्लाह ताला के लिए उसकी रहमतों के ख़ज़ाने हैं, अपने बंदो में से जिसे चाहता है इनायत करता है, और अल्लाह ताला से सवाल करो कि तुम्हारे शर्मगाहों की सतर पोशी फरमाये और खौफ व हीरास (मायूसी) से अमन व सुकून नसीब फरमाए _,"*
 *®__(अल सहीह: 1890)*

*"⚀ __चुंकी हमारी जिंदगी बड़ी मुख्तसर है, इसका हर लम्हा और गुज़रने वाला वक्त बड़ा ही क़ीमती है, इसे यूं ही ज़ाया और बरबाद कर देना गैर दानिशमंदी है, इस हयात मुस्त'आर का एक अज़ीम मक़सद है और उस मक़सद में कामयाबी के लिए हमें सख़्त ज़रुरत है कि हुक़ूक़ व फ़राइज़ की अदायगी के साथ ऐसे बा बरकत लम्हात की क़दर व मंज़िलत को पहचानें, यक़ीनन ज़िल हिज्जा के इब्तिदाई दस अय्याम बड़े ही बा बरकत हैं, जो अंक़रीब हमारे सरो पर साया फगुन होने वाले हैं _,"*
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 *☞_ अशरा ज़िल हिज्जा की फ़ज़ीलत व अहमियत_,*

*⚀ _ जिस तरह अल्लाह ताला ने हफ़्ते के सात दिनों में से "जुमा" को और साल के बारह महीनों में से रमज़ान मुबारक को और फिर रमज़ान के तीन अशरो में से अख़ीर अशरे को ख़ास फ़ज़ीलत बख्शी है,*

*⚀ _उसी तरह ज़िल्हिज्जा के पहले अशरे को भी फ़ज़ल व रहमत का खास अशरा क़रार दिया है और इसीलिये हज भी इनही अय्याम में रखा गया है,*

*⚀ _ बहरहाल ये रहमते खुदावंदी का खास अशरा है, इन दिनों मे बंदे का हर नेक अमल अल्लाह ताला को बहुत महबूब है और इसकी बड़ी क़ीमत है,*

*⚀ _हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया:-*
*"_ अल्लाह ताला को आमाले सालेह जितना इन दस दिनों में महबूब है उतना किसी दूसरे दिन में नहीं।"*
 *ReF-┐सहीह बुखारी,*
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     *☞__अशरा ज़िल्हिज्जा की हुरमत :-*

*"⚀_ ज़िल्हिज्जा का महीना हुरमत वाले महीनों में से एक है, इरशादे बारी ता'ला है, _"महीनों की गिनती अल्लाह ता'ला के नज़दीक किताबुल्लाह में बारह (12) की है, उसी दिन से जबसे आसमान व ज़मीन को पैदा किया है उनमें से चार हुरमत व अदब के हैं यही दुरुस्त है _," ( तौबा- 36)*

*"⚀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- दुनिया के तमाम दिनों में सबसे अफ़ज़ल ज़िल्हिज्जा के दस अय्याम हैं_," (जामिआ सगीर)*
*"⚀_ इसीलिये सलफे सालेहीन इस अशरे में मुख्तलिफ क़िस्म के इबादत का ख़ुसुसी अहतमाम किया करते थे, हज़रत सईद बिन ज़ुबेर रह. जब ज़िलहिज्जा का ये अशरा आता तो अपनी ताक़त भर खूब मेहनत व मुज़ाहिदा करते_," (सहीह तरगीब व तरहीब )*

*"⚀_ अशरा ज़िल्हिज्जा के आमाल अल्लाह ता'ला को सबसे ज़्यादा महबूब और पसंदीदा हैं, सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु बयान फ़रमाते है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया: अल्लाह ता'ला के नज़दीक तमाम दिनों मे किए गए सालेह आमाल में सबसे ज़्यादा पसंदीदा अमल ज़िल्हिज्जा के इब्तिदाई दस दिनों का अमल है _," (सहीह बुखारी-929, अबू दाऊद- 2438)*

*"⚀_ एसे ही कुर्बानी के दिन की फजी़लत को नबी करीम ﷺ ने फरमाया: अल्लाह तआला के नज़दीक सबसे अज़ीम तरीन दिन कुर्बानी का दिन है फिर कुर्बानी के बाद ग्यारहवीं ज़िल्हिज्जा का दिन है _," (सुनन अबी दाऊद-)*
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 *☞__ अशरा ज़िल्हिज्जा के मुस्तहब और पसंदीदा आमाल_,*
*"⚀_(1)_ चांद देखने के बाद नाखुन और बाल का हुक्म:-*

*"⚀_ ज़िल्हिज्जा का चाँद देखने के बाद क़ुर्बानी करने तक नाखुन, बाल, चमड़ी वगेरा ना काटे जायें, नबी करीम ﷺ ने फरमाया: जब तुममे से कोई ज़िल्हिज्जा का चाँद देख ले और क़ुर्बानी का इरादा हो तो अपने बाल और नाखून ना काटे_," (सहीह मुस्लिम- 1977)*

*"⚀_ और अगर कोई शख्स कुर्बानी का इरादा रखने के बावजूद भूल कर या ला इल्मी में चांद देखने के बाद अपने बाल या नाखुन काट ले तो उस पर कोई कफ्फारा नहीं है, बल्की ऐसा शख्स माजूर है, अलबत्ता जिसने अमदन (जान बूझ कर) ये काम किया उसे अल्लाह से तौबा व इस्तगफार करनी चाहिए और उसकी कुर्बानी सही होगी, अलबत्ता ऐसा शख्स आसी व नाफ़रमान होगा क्योंकि उसने एक ताकीदी सुन्नत की मुखाफत की है _,"*

*"⚀_ क़ुर्बानी करने वाले के अहलो अयाल के लिए अशरा ज़िल्हिज्जा में रुखसत है कि वो बाल और नाखून वगेरा काट सकते हैं, मज़कूरा हदीस में तहरीम का हुक्म खास है उस शख़्स के लिए जो अपने माल से जानवर ख़रीद कर क़ुर्बानी का इरादा रखता है _, (फतावा उस्मानिया- 2/316)*

*"⚀_ अलबत्ता जिस रिवायत में नबी करीम ﷺ ने क़ुर्बानी ना करने वाले के लिए भी नाखुन और बाल वगैरा ना काटने की हिदायत दी है, उस रिवायत को बाज़ उलमा ने ज़ईफ़ क़रार दिया है_, (ज़ईफ अबु दाउद -482) )* 

*⚀ _उम्मूल मोमिनीन हजरत उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- जब ज़िलहिज्जा का पहला अशरा शुरू हो जाए यानी ज़िलहिज्जा का चांद देख लिया जाए और तुम में से किसी का इरादा कुर्बानी का हो तो उसको चाहिए कि अब कुर्बानी करने तक अपने बाल या नाखून बिल्कुल ना तराशे _,” *( सही मुस्लिम )*

*⚀ _दरअसल यह अशरा हज का है और इन अय्याम में खासुल खास अमल हज है लेकिन हज मक्का मुअज़्ज़मा जाकर ही हो सकता है, इसलिए उम्र में सिर्फ एक दफा और वह भी अहले इस्तेता’त पर फर्ज किया गया है, इसकी खास बरकात वही बंदे हासिल कर सकते हैं जो वहां हाजिर होकर हज करें ।*

*⚀ _लेकिन अल्लाह ताला ने अपनी रहमत से सारे अहले ईमान को इसका मौका़ दिया है कि जब हज के अय्याम आएं तो वो जो अपनी अपनी जगह रहते हैं, हज और हुज्जाज से एक निसबत पैदा करते हुए उनके कुछ आमाल में शरीक हो जाएं, ईद उल अज़हा की कुर्बानी का खास राज़ यही है ।*

*⚀ _हुज्जाज 10 वी ज़िलहिज्जा को मीना में अल्लाह के हुजूर अपनी कुर्बानी पेश करते हैं, दुनियाभर के मुसलमान जो हज में शरीक नहीं हो सके, उनको हुक्म है कि वह अपनी अपनी जगह ठीक उसी दिन अल्लाह के हुजूर में अपनी कुर्बानी पेश करें और जिस तरह हाजी अहराम बांधने के बाद बाल या नाखून नहीं तराशवातें उसी तरह वो मुसलमान जो कुर्बानी करने का इरादा रखते हैं ज़िलहिज्जा का चांद नजर आने के बाद बाल या नाखून ना तराशें और इस तरीक़े से भी हुज्जाज से एक मुनासबत और मुशाबहत पैदा करें ।*

*⚀ _किस क़दर मुबारक हिदायत है जिस पर अमल करके तमाम मुसलमान हज के अनवारात और बरकात में हिस्सा ले सकते हैं,*

 *"⚀_(2)_ हज व उमरा की अदायगी:-*

*"⚀_ अफ़ज़ल तरीन अमल अशरा जिलहिज्जा में अंजाम दिए जाने वाले आमाल में सबसे अफ़ज़ल तरीन अमल मनासिके हज व उमरा की अदायगी है, ये वो अज़ीम तरीन इबादत है जिसका बदला जन्नत है, जैसा कि सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया - एक उमरा दूसरे उमरा के दरमियान गुनाहों का कफ्फारा है और हज मबरूर का बदला जन्नत है _, ( सही बुखारी -1773)*

*"⚀_(3)_ नमाज़ो का अहतमाम:-*

*"⚀_नमाज़ एक अहम तरीन फ़रीज़ा है जिसकी अदायगी हर शख़्स पर हमेशा और हर जगह रहते हुए वाजिब है, मगर जब ख़ैर व बरकत के अय्याम हों तो फ़राइज़ के साथ सुनन व नवाफिल का खास अहतमाम किया जाना चाहिए, ये अल्लाह ताला की क़ुर्बत व नज़दीकी के हुसूल का बेहतरीन ज़रिया है,*

*"⚀_हदीस क़ुदसी में अल्लाह ताला फरमाता है:- मेरा बंदा जिस अमल के ज़रिये मेरा क़ुर्ब हासिल करता है उसमें सबसे पसंदीदा चीज़ वो है जो मैंने उस पर फ़र्ज़ किया है और मेरा बंदा बराबर नवाफ़िल के ज़रिये मेरा क़ुर्ब हासिल करता है यहां तक कि मैं उससे मुहब्बत करने लगता हूं _, ( सही बुखारी -6502)*

*"⚀_इसी तरह हज़रत सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि मैने रसूलुल्लाह ﷺ को फ़रमाते हुए सुना - तुम कसरते सुजूद को लाज़िम पकड़ो तुम अल्लाह के लिए जो भी सजदा करते हो अल्लाह ताला उसके ज़रिये तुम्हारा एक दर्जा बुलंद फरमा देता है और तुम्हारा एक गुनाह मिटा देता है _, ( सही मुस्लिम - 488)*

*"⚀_(4)_रोज़ा रखना:-*

*"⚀_ सय्यदा बिन्ते ख़ालिद रसूलुल्लाह ﷺ की बाज़ अज़वाज़ मुताहरात से रिवायत करती हैं कि नबी करीम ﷺ ज़िलहिज्जा के इब्तिदाई 9 दिन का रोज़ा रखते और यौमे आशूरा (दसवी मुहर्रम) और आशूरा ( दसवीं मुहर्रम) और हर महीने के तीन दिन के रोज़े रखते थे _," (सुनन अबी दाऊद -2437)*

*"⚀_इमाम नववी रह. फरमाते हैं:-"_ इस अशरे में रोज़ा रखना इन्तेहाई पसंदीदा और मुस्तहब तरीन अमल है, खास तौर पर 9 ज़िलहिज्जा का रोज़ा और यही अरफा का दिन है_," (शरह नववी - 8/71)*

*"⚀_9 ज़िलहिज्जा जिस दिन हुज्जाज किराम मैदाने अरफ़ा में वक़ूफ़ करते हैं, हाजी और ग़ैर हाजी सबके लिए बड़े फ़ज़ीलत वाला दिन है, नबी करीम ﷺ ने फरमाया - बेहतरीन दुआ अरफ़ा के दिन की जाने वाली दुआ है, सबसे बेहतर दुआ जो मै और मुझसे पहले अम्बिया किराम ने की है, "ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीका लहू लहुल मुलकु वलहुल हम्दु व हुवा अला कुल्लि शयइन क़दीर_, (सुनन तिर्मिज़ी- 3585)*

 *"⚀_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया कि यौमे अरफ़ा के दिन अल्लाह अपने जितने ज़्यादा बंदो को जहन्नम से आज़ाद करता है, उतना कोई और दिन नहीं करता और इस दिन अल्लाह अपने बंदो से करीब होता है और फरिश्तो पर फख्र करता है और कहता है मेरे इन बंदो का क्या इरादा है _, (मुस्लिम - 1348)*

*⚀ _(5)_अरफ़ा के दिन का रोज़ा:-*

*⚀ __ अरफा के दिन का रोज़ा गैर हाजी के लिए अपने घरों और बस्तियों में बड़ी फजी़लत और अजरो सवाब वाला अमल है, नबी करीम ﷺ से यौमे अरफा के रोज़े के बारे में पूछा गया तो आप ﷺ ने फरमाया: एक साल पहले और एक साल बाद के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बन जाता है _, (सही मुस्लिम-1162)*

*⚀ __ लिहाज़ा हर मुसलमान मर्द और औरत को इस फजी़लत को हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए और ये भी ख्याल रहे कि इस मसले में कि हमारे अपने मुल्क के तुलू आफताब का ऐतबार किया जाएगा, जिस दिन हमारे यहां 9 ज़िलहिज्जा की तारीख होगी हमारा यौमे अरफा उसी दिन होगा, सऊदी के हिसाब के ऐतबार से वहां की तारीख के हिसाब से यौमे अरफा का रोज़ा रखना सही दलील की रोशनी में मुनासिब मालूम नहीं होता, वल्लाहु आलम _,"*

*⚀ __ अलबत्ता हुज्जाज किराम के लिए अरफा के दिन का रोज़ा रखना साबित नहीं, सय्यदा मैमुना रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं: अरफा के दिन लोगों को नबी करीम ﷺ के रोज़े से मुताल्लिक़ शक हुआ, इसलिए उन्होंने आप ﷺ की खिदमत में दूध भेजा, आप उस वक़्त अरफ़ात में वक़ूफ़ फरमा थे, आपने वो दूध पी लिया और सब लोग देख रहे थे _," ( सही बुखारी -1989)*
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             *☞__ज़िक्र व अज़कार:-*

*"⚀_ पूरा अशरा ज़िलहिज्जा मय अय्यामे तशरीक़ कसरत के साथ अल्लाह ताला का ज़िक्र, उसकी तस्बीह व तहमीद, तहलील व तकबीर बयान करनी चाहिए, अल्लाह ताला का इरशाद है:-*
 *"_ (तर्जुमा)_गिन्ती के चंद दिनों में अल्लाह का जिक्र करो_," (अल बक़राह - 203)*
*"_जिसकी तफ़सीर में उलमा ने फरमाया है कि इससे मुराद अय्यामे अशरा ज़िलहिज्जा है,*

*"⚀_ इमाम सेवती रह. इस आयत की तफ़सीर करते हुए लिखते हैं (तफ़सीर जलालैन: सूरह अल-हज 28):-*
*"_इससे अशरा ज़िलहिज्जा या यौमे अरफ़ा या कुर्बानी का दिन और अय्यामे तशरीक़ मुराद है _,"*
*"⚀_ इस आयत के बारे में इमाम बुखारी रह. लिखते हैं - इससे मुराद ज़िल हिज्जा के दस (इब्तिदायी) अय्याम है और दूसरी आयत में अल म'अदुदात, से मुराद अय्यामे तशरीक़, कुर्बानी का दिन और इसके बाद के तीन दिन मुराद है'*

*"⚀_ और सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर, सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुम ज़िल हिज्जा के दस दिनों में बाज़ार निकल जाते, ये दोनों तकबीर बुलंद करते और उनके साथ दूसरे लोग भी तकबीर कहते _," (सहीह बुखारी, बाब फ़ज़लुल अमल फ़ी अय्यामुल तशरीक़ )*

*"⚀_ इसलिए उलमा ने इन दिनों में कसरत से ज़िक्र करने को मुस्तहब बताया है, इसे किसी वक़्त या किसी शख़्स या किसी हैयत और कैफियत के साथ खास करना दुरुस्त नहीं है, और सुन्नत यहीं है कि हर आदमी तन्हा तकबीर कहे, समरा बिन जुन्दुब रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया - अल्लाह ताला के नज़दीक मेहबूब तरीन कलमात चार हैं: सुब्हानल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अकबर और तस्बीहात के कहने में तुम किसी भी कलमे से शुरू कर सकते हो_," (सहीह मुस्लिम- 2173)*

*"⚀_ दर असल एक मुसलमान मर्द व औरत के लिए अल्लाह ताला की अज़मत व बड़ाई का एतराफ़ और उसकी हैयत व अजलाल का हक़ीक़ी तसव्वुर अल्लाह ताला की नाफ़रमानी, उसके महारम से इज्तिनाब करने और इबादत व बंदगी, इता'अत व फ़रमाबरदारी की राह में नुक्ता ए ऐतदाल पर क़ायम रखने का बेहतरीन ज़रिया है, अल्लाह ताला हम सबको फ़रा'इज़ व इबादत पर इस्तेक़ामत नसीब फरमाये, आमीन,* ╥────────────────────❥
 *☞_ तकबीर ए तशरीक़ _*

*⚀ _ हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- ना कोई दिन अल्लाह ताला के नज़दीक इस अशरा ए ज़िलहिज्जा से अफज़ल है ना किसी दिन में अमल करना इनमें अमल करने से अफज़ल है, पस इन दिनों में खुसूसियत से ला इलाहा इल्लल्लाहु अल्लाहु अकबर की कसरत रखो क्योंकि यह दिन तकबीर और तहलील के है_,”*

*⚀ _ फायदा:- यूं तो इस तमाम अशरे में यानी ज़िलहिज्जा के पहले अशरे में तकबीर और तहलील की ज्यादती पसंदीदा है जैसा कि इस रिवायत से मालूम हुआ लेकिन नवी तारीख की फजर से तेरहवीं की असर तक हर नमाज़ के बाद बुलंद आवाज़ से एक मर्तबा तकबीर कहना ज़रूरी है, जेसा कि आसारुस सुनन में इब्ने अबी शैबा के हवाले से हजरत अली करमुल्लाहु वज्हु का मामूल मर्वी है ।*

*⚀ _बहकी़ ने हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अरफा के दिन 9 वी ज़िलहिज्जा की फजर की नमाज़ से आखिर अय्याम तशरीक़ यानी 13 ज़िलहिज्जा की असर तक तकबीर पढ़ा करते थे,*

*⚀ _9 वीं तारीख की सुबह से 13 तारीख की असर तक हर नमाज़ के बाद बा आवाज़ बुलंद एक मर्तबा मज़कूरा तकबीर कहना वाजिब है, फतवा इस पर है कि बा जमात और तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले इसमें बराबर है, इसी तरह मर्द और औरत दोनों पर वाजिब है, अलबत्ता औरत बा आवाज़ बुलंद तकबीर ना कहे आहिस्ता से कहे, ( शामी )*

*⚀ _ तकबीर ए तशरीक़ -:-*
*”_ अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द _,*

*”⚀ __अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई,*

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