*🕋 उमराह अदा करने का तरीक़ा 🕋*
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*☞ _ उमराह का हुक्म व फज़ीलत_,*
*❉__ साहिबे इस्तेतात के लिए जिंदगी में एक मर्तबा उमराह अदा करना सुन्नत है एक से ज़्यादा उमराह करना मुस्तहब है ।अगरचे बाज़ उल्मा के नज़दीक साहिबे इस्तेतात के लिए ज़िंदगी में एक बार उमराह करना वाजिब है।*
*❉__ हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- एक उमराह दूसरे उमरे तक उन गुनाहों का कफ्फारा हैं जो दोनों उमरों के दरमियान सरज़द हों और हज मबरूरर का बदला तो जन्नत है। ( बुखारी व मुस्लिम )*
*❉__ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-"_पे दर पे हज उमराह किया करो बेशक यह दोनों (यानि हज व उमराह) गरीबी और गुनाहों को इस तरह दूर कर देते हैं जिस तरह भट्टी लोहे और सोना व चांदी के मेल कुचैल को दूर कर देती है । ( तिर्मीजी, इब्ने माजा )*
*❉_ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-"_ हज उमराह करने वाले अल्लाह ताला के मेहमान है, अगर वह अल्लाह ताला से दुआ करें तो वह कुबूल फरमाएं, अगर वह उससे मग्फिरत तलब करें तो वह उसकी मग्फिरत फरमाए ।( इब्ने माजा)*
*❉_ हुजूर अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया:-"रमजान में उमराह का सवाब हज के बराबर हे, (बुखारी, मुस्लिम),* *"_ दूसरी रिवायत में है कि हुजूर अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया - रमज़ान में उमराह करना मेरे साथ हज करने के बराबर है_, (मुस्लिम)*
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*☞ _ सफर का आगाज़ और सफर में नमाज़ को कसर् करना_,*
*❉ _ घर से रवानगी के वक्त 2 रकात निफ्ल अदा करके अल्लाह ताला से सफर कि आसानी के लिए और उमराह के क़ुबूल होने की दुआएं करें। अपनी जरूरियात के सामान के साथ अपना पासपोर्ट टिकट और खर्च के लिए रकम भी साथ ले लें । मर्द हजरत हस्बे ज़रूरत अहराम की चादरें भी ले ले।*
*❉_ सफर में नमाज़ को कसर् करना:- अगर आपका सफर 48 मील यानी तकरीबन 77 किलोमीटर से ज्यादा हो तो आप अपने शहर की हुदूद से बाहर निकलते ही शरई मुसाफिर हो जाएंगे, लिहाज़ा ज़ोहर असर और ईशा की 4 रका़त फर्ज के बजाय 2 रकात अदा करें। मगरिब और फजर पूरी अदा करें।*
*❉__ अलबत्ता अगर किसी मुकीम इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े तो इमाम के साथ पूरी नमाज अदा करें ।*
*❉_ सुन्नतों और नवाफिल का हुक्म यह हैं कि अगर इत्मीनान का वक्त है तो पूरी पढ़ें और अगर जल्दी है या थकान है या कोई और दुश्मनी है तो ना पड़े हैं ,कोई गुनाह नहीं। अलबत्ता वित्र और फजर की २ रक़ात सुन्नतों को ना छोड़े।*
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*☞ _ उमराह के अरकान_,*
*❉__ उमराह में चार काम करने होते हैं :-*
*★_१_मिक़ात से उमराह का अहराम बांधना ।*
*★_२_मस्जिदए हराम पहुंचकर बैतुल्लाह का तवाफ करना ।*
*★_३_सफा मरवा की सई करना ।*
*★_४_सर के बाल मुंड़वाना या कटवाना।*
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*☞ _ मिक़ात_,*
*❉_ मीका़त वो मुका़म है जहां से मक्का मुकर्रमा जाने वाले के लिए अहराम बांधना वाजिब है ।*
*"_मिक़ात असल में वक्त मुअय्यन और मकान मुअय्यन का नाम है,*
*❉__ मिक़ाते ज़मानी_, पूरे साल रात दिन में जब चाहे और जिस वक्त चाहे उमराह का अहराम बांध सकते हैं लेकिन बहकी़ में हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा की हदीस के पेशे नज़र इमाम बू हनीफा रहमतुल्लाह ने 5 दिन( नो जि़ल हिज्जा से तेरह ज़िल हिज्जा तक) उमराह की अदायगी को मकरूह तेहरीमी क़रार दिया है। चाहे हज अदा कर रहा हो या नहीं,*
*❉_ मिक़ाते मकानी _, वह मकामात जहां से हज या उमराह करने वाले हजरात अहराम बांधते हैं मिक़ात कहलाते हैं। मिक़ात के एतबार से पूरी दुनिया की सर ज़मीन को शरीयत में तीन हिस्सों में तक्सीम किया है।*
*❉_ आफाक़:- हरम और हिल के बाहर पूरी दुनिया की सरज़मीं आफाक़ कहलाती है ,आफाकी़ हज़रात जब भी उमराह की नियत से मक्का मुकर्रमा जाना चाहे तो उनके लिए जरूरी है कि इन पांच मिकातों में से किसी भी एक मिक़ात पर या उससे पहले अहराम बांध लें ।*
*"_ जो मिक़ात की हुदूद से बाहर रहता है उसे आफाकी़ कहते हैं जैसे इंडियन पाकिस्तानी मिश्री शामी इराकी ईरानी वगैरा ।*
*❉__यलमलम :- मक्का मुकर्रमा से जुनूब की तरफ दो मंजिल पर एक पहाड़ है इसको आजकल सादिया भी कहते हैं यह यमन और इंडिया पाकिस्तान से आने वालों की मिक़ात है।*
*❉__ज़ुल हुलैफा _ अहले मदीना और उसके रास्ते में आने वालों के लिए ज़ुल हुलैफा मिका़त है, जिसको आजकल बार-अली कहा जाता है, मदीना मुनव्वरा के करीब ही यह मिक़ात है ,यह मदीना मुनव्वरा की तरफ से आने वालों की मिक़ात है।*
*❉__जहफाह_ अहले शाम और उसके रास्ते से आने वालों के लिए (मसलन मिस्र लीबिया अल जजीरा मराकस वगैरा ) जहफाह मिक़ात है । यह मक्का मुकर्रमा से तकरीबन 186 किलोमीटर है।*
*❉__ज़ाते अर्क़ _ यह इराक़ से मक्का मुकर्रमा आने वालों की मिक़ात है। मक्का मुकर्रमा तकरीबन 100 किलोमीटर मशरिक में वाक़े है।*
*❉__क़िरानुल मनाज़िल _ अहले नज्द और उसके रास्ते से आने वालों के लिए (मसलन बहरेन क़तर रियाद वगैरा) मिक़ात है। इसको आजकल अलसीलुल कबीर कहा जाता है ।यह मक्का मुकर्रमा से तकरीबन 78 किलोमीटर है।*
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*☞ _ हरम और हिल_,*
*❉_ मक्का मुकर्रमा और उसके चारों तरफ कुछ दूर तक की जमीन हरम कहलाती है । इस मका़म पर हर शख्स के लिए चाहे मुक़ीम हो या हज व उमराह के लिए आया हो चंद चीजें करना हराम है इसलिए इसको हरम कहा जाता है ।*
*१_यहां के खुद उगे दरख्त या पौधे को काटना ।*
*२_यहां के किसी जानवर का शिकार करना या उसको छेड़ना।*
*३_ गिरी पड़ी चीज़ का उठाना।*
*★_हुदूदे हरम के अंदर मुस्तक़िल या आरजी़ तौर पर क़याम पज़ीर यानी अहले हरम को उमराह का अहराम बांधने के लिए हरम से बाहर जाना होगा।*
*❉__हिल :- मिक़ात और हरम के दरमियान की सरज़मीन हिल कहलाती है ,जिसमें वह चीज़ें हलाल हैं जो हरम में हराम थी।*
*★_ अहले हिल जिनकी रिहाईश मिक़ात और हुदूदे हरम के दरमियान है मसलन जद्दा के रहने वाले उमराह का अहराम अपने घर से बांधेंगे।*
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*☞ __अहराम :-*
*"❉__ अहराम बांधने से पहले तहारत और पाकीज़गी का खास ख़याल रखें, नाख़ून काट लें', ज़ेरे नाफ़ व बगल के बाल साफ़ कर लें, सुन्नत के मुताबिक गुस्ल कर लें, अगरचे सिर्फ वजू करना भी काफी है और अहराम यानी एक सफेद तहबंद बांध लें और एक सफेद चादर ओढ़ लें,*
*"❉__ तहबंद नाफ के ऊपर इस तरह बांधे कि टखने खुले रहें और इन्ही दो कपड़ों में दो रकअत निफ़्ल अदा करें और उमराह करने की नियत करें - ए अल्लाह! मै आपकी रज़ा के वास्ते उमराह की नियत करता हूं, इसको मेरे लिए आसान फरमा और अपने फ़ज़ल व करम से कुबूल फरमा,*
*"❉__ इसके बाद किसी क़दर बुलंद आवाज़ से तीन दफा तलबिया पढ़ें :- लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरिका लका लब्बैक इन्नल हमदा वन निआमता लका वल मुल्क, ला शरिका लक_,*
*"_ मै हाजिर हूं ए अल्लाह मै हाजिर हूं, मै हाजिर हूं, तेरा कोई शरीक नहीं मै हाजिर हूं, बेशक तमाम तारीफें और सब निआमते तेरी ही है, मुल्क और बादशाहत तेरी ही है, तेरा कोई शरीक नहीं_,*
*"❉__ तलबिया पढने के साथ ही आपका अहराम बंध गया, अब से ले कर मस्जिदे हराम पहुंचने तक यही तलबिया सबसे बेहतर जिक्र है, लिहाज़ा थोड़ी बुलंद आवाज़ के साथ बार-बार तलबिया पढ़ते रहें,*
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*☞_ अहराम के मुताल्लिक़ अहम मसाइल -,*
*❉ _ गुस्ल से फ़ारिग़ होकर अहराम बांधने से पहले ख़ुशबू लगाना सुन्नत हे, चुंकी अहराम की पाबंदियां तलबिया पढ़ने के बाद ही शुरू होती हैं, लिहाज़ा तलबिया पढने से पहले गुस्ल के दौरन साबुन और तोलिया का इस्तेमाल कर सकते हैं और बालों में कंघा भी कर सकते हैं*
*❉_औरतों के लिए अहराम का कोई खास लिबास नहीं है आम लिबास पहन लें, और चेहरे से कपड़ा हटा लें, फिर नियत करके आहिस्ता से तलबिया पढ़ें, औरतें तलबिया हमेशा आहिस्ता आवाज़ से पढ़ें,*
*❉_ औरतें बालो की हिफ़ाज़त के लिए अगर सर पर रूमाल बांध लें तो कोई हरज नहीं लेकिन पेशानी के ऊपर सर पर बांधे और उसको अहराम का हिस्सा ना समझे, और वज़ू के वक्त इसको खोल कर सर पर मसाह करना जरूरी है,*
*❉__अगर कोई औरत ऐसे वक्त में मक्का मुकर्रमा पहुंची कि माहवारी आ रही हो तो वो पाक होने तक इंतज़ार करे, पाक होने के बाद ही उमराह करने के लिए मस्जिदे हराम में जाए, उमराह की अदायगी तक उसको अहराम की हालत में ही रहना होगा,*
*❉__ अगर आप पहले मदीना मुनव्वरा जा रहे हैं तो मदीना मुनव्वरा जाने के लिए किसी एहराम की ज़रूरत नहीं है लेकिन जब आप मदीना मुनव्वरा से मक्का मुकर्रमा जाएंगे तो फिर मदीना मुनव्वरा की मीका़त पर अहराम बांधे,*
*❉__ अहराम की हालत में अगर एहतलाम हो जाए तो इससे अहराम में कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता, कपड़ा और जिस्म धोकर गुस्ल कर लें, अगर अहराम की चादर बदलने की ज़रूरत हो तो दूसरी चादर इस्तेमाल कर लें, लेकिन मियां बीवी वाले खास ताल्लुक़ात से बिल्कुल दूर रहें,*
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*☞ _ एक अहम हिदायत_,*
*❉__ मिक़ात पहुंचकर या इससे पहले अहराम बांधना जरूरी है ।*
*"_लेकिन अगर आप हवाई जहाज से जा रहे हैं और आपको जद्दा में उतरना है तो हवाई जहाज में सवार होने से पहले ही अहराम बांध लें या हवाई जहाज में मिक़ात से पहले पहले बांध ले और अगर मौका हो तो 2 रकात भी अदा कर लें फिर नियत करके तलबिया पढ़ ले।*
*❉__अहराम बांधने के बाद नियत करने और तलबिया पढ़ने में ताखीर की जा सकती है यानी आप एहराम हवाई जहाज में सवार होने से पहले बांध ले और नियत मिका़त आने से पहले करके तलबिया पढ़ ले। याद रहे कि नियत और तलबिया के बाद ही अहराम की पाबंदी शुरू होती है।*
*❉__ तम्बीह :- अगर मिक़ात से बाहर रहने वाला ( जिसको आफाकी़ कहते हैं) बगैर अहराम मिक़ात से गुजर गया तो आगे जाकर किसी भी जगह अहराम बांध ले लेकिन उस पर एक दम लाज़िम हो गया।*
*"_मसलन रियाद का रहने वाला बगैर अहराम के जद्दा पहुंच गया तो जद्दा या मक्का मुकर्रमा से अहराम बांधने पर एक दम देना होगा।*
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*☞ _ ममनूआते अहराम _#*
*❉_ अहराम बांधकर तलबिया पढ़ने के बाद यह चीजें हराम है:-*
*★_ खुशबू लगाना ,नाखून काटना, जिस्म से बाल दूर करना, चेहरे का ढांकना, मियां बीवी वाले खास ताल्लुकात जिंसी सोहबत के काम करना, खुश्की के जानवरों का शिकार करना।*
*❉_#_सिर्फ मर्दों के लिए ममनू :--*
*★_ सिले हुए कपड़े पहनना, सर को टोपी या कपड़े से ढंकना, ऐसा जूता पहनना जिससे पांव की दरमियानी हड्डी छुप जाए।*
*❉_#_मकरुहाते अहराम :--*
*★ _ बदन से मेल दूर करना , साबुन का इस्तेमाल करना , कंघा करना ।*
*❉_#_अहराम की हालत में जायज़ उमूर:-*
*★_ गुस्ल करना लेकिन खुशबूदार साबुन का इस्तेमाल ना करें। अहराम को धोना या बदलना । अंगूठी घड़ी चश्मा बेल्ट छतरी वगैरह का इस्तेमाल करना ।अहराम के ऊपर मजीद चादर डालकर सोना लेकिन मर्द अपने सर और चेहरे को और औरतें अपने चेहरे को खुला रखें।
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*☞ _ मस्जिदे हराम की हाजरी_,*
*❉_ मक्का मुकर्रमा पहुंचकर सामान वगैरा अपनी क़यामगाह में रखकर आराम की जरूरत हो तो थोड़ा आराम कर लें वर्ना गुस्ल या वजू करके उमराह करने मस्जिदे हराम की तरह सुकून इत्मीनान के साथ तलबिया पढ़ते हुए जाएं।*
*❉__दरबार ए इलाही की अज़मत व जलाल का लिहाज़ रखते हुए दांया क़दम अंदर रखकर मस्जिद में दाखिल होने की दुआ पढ़ते हुए दाखिल हो जाएं।*
*❉__काबा शरीफ पर पहली नज़र:- जिस वक्त खाना काबा पर पहली नज़र पड़े तो अल्लाह ताला की बढ़ाई बयान करके जो चाहे अपनी ज़ुबान में अल्लाह ताला से मांगे क्योंकि यह दुआ कुबूल होने का खास वक्त है।*
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*☞ _ तवाफ _,*
*❉_ मस्जिद ए हराम में दाखिल होकर काबा शरीफ के उस हिस्से में आ जाएं जहां हजरे अस्वद लगा हुआ है और तवाफ की नियत कर लें।*
*❉ _ उमराह की स'ई भी करनी है इसलिए मर्द हजरात इज़तबा कर लें यानी अहराम की चादर को दाएं बगल के नीचे से निकालकर मोंढे के ऊपर डाल लें ।*
*❉ _फिर हजरे अस्वद के सामने खड़े होकर बिस्मिल्लाह अल्लाहू अकबर कहते हुए हजरे अस्वद को बौसा ले या दोनों हाथों की हथेलियों को हजरे अस्वद की तरफ करके हाथों का बौसा लें फिर काबा को बाएं तरफ रखकर तवाफ शुरू करें।*
*❉ _मर्द हजरात पहले तीन चक्कर में (अगर मुमकिन हो तो) रमल करें यानी जरा मोंढा हिला कर अकड़ते हुए छोटे छोटे क़दम के साथ तेज़ चले।*
*❉ _ तवाफ के वक्त निगाह सामने रखें यानी का़बा शरीफ आपके बांई जानिब रहे।*
*❉ _ तवाफ के दौरान बगैर हाथ उठाए याद हो तो दुआएं करते रहें या जिक्र करते रहें।*
*❉ __आगे एक निस्फ दायरे की शक्ल की 4-5 फुट ऊंची दीवार आपके बांई जानिब आएगी इसको हतीम कहते हैं ,हतीम दरअसल बैतुल्लाह का ही हिस्सा है इसमें नमाज पढ़ना, अगर तवाफ के बाद मौक़ा मिल जाए तो जरूर निफ्ल अदा करें।*
*❉ _ इसके बाद जब खाना काबा का तीसरा कोना आ जाए जिसको रुकने यमानी कहते हैं, अगर मुमकिन हो तो दोनों हाथ या सिर्फ दाहिना हाथ उस पर फेरे या उसकी तरफ इशारा किए बगैर यूं ही गुजर जाएं ।*
*❉ _ रुक्ने यमानी और हजरे अस्वद के दरमियान चलते हुए यह दुआ बार-बार पढ़ें :-*
*"_ रब्बना आतिना फिद्दुनया हसनतंव वा फिल आखिरति हसनतंव वा क़िना अज़ाबन नार _,"*
*❉ _फिर हजरे अस्वद के सामने पहुंचकर उसकी तरफ हथेलियों का रुख करें बिस्मिल्लाह अल्लाहू अकबर कहें और हथेलियों का बौसा ले।*
*❉ _इस तरह आप का एक चक्कर पूरा हो गया ,इसके बाद बाकी 6 चक्कर बिल्कुल इसी तरह पूरे करें। कुल 7 चक्कर करने हैं ,आखिरी चक्कर के बाद हजरे अस्वद का इस्तलाम करें और सफा चले जाएं।
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*☞ _तवाफ के बाज़ अहम मसाइल _,*
*❉__ मस्जिद ए हराम में दाखिल होने के बाद तलबिया बंद कर दें।*
*❉_ तवाफ के दौरान कोई मखसूस दुआ जरूरी नहीं बल्कि जो चाहे और जिस जुबान में चाहे दुआ मांगते रहे अगर कुछ भी ना पड़े खामोश रहे तब भी तवाफ सही होगा।*
*❉_ तवाफ के दौरान जमात की नमाज शुरू होने लगे या थकान हो जाए तो तवाफ रोक दें फिर जिस जगह से तवाफ बंद किया था, उसी जगह से तवाफ शुरू कर दें।*
*❉_निफ्ली तवाफ में रमल यानी अकड कर चलना और इज्तिबा नहीं होता।*
*❉_नमाज की हालत में बाजुओं को ढंकना चाहिए क्योंकि इज्तिबा सिर्फ तवाफ की हालत में सुन्नत है ।*
*❉_अगर तवाफ के दौरान वजू टूट जाए तो तवाफ रोक कर वज़ू करके फिर तवाफ उसी जगह से शुरू कर दें जहां से तवाफ बंद किया था क्योंकि बगैर वज़ू तवाफ करना जायज नहीं ।*
*❉_ तवाफ निफ़्ली हो या फर्ज़ उसमें सात ही चक्कर होते हैं और इसकी इब्तदा हजरे अस्वद के इस्तलाम से ही होती है और इसके बाद 2 रकात नमाज पढ़ी जाती है ।*
*❉_अगर तवाफ के चक्कर की तादाद में शक हो जाए तो कम तादाद शुमार करके बाक़ी चक्करों से तवाफ मुकम्मल करें।*
*❉_ मस्जिद ए हराम के अंदर ऊपर या नीचे या मुताफ में किसी भी जगह तवाफ कर सकते हैं,*
*❉_ तवाफ हतीम के बाहर से ही करें अगर हातिम के अंदर दाखिल हो कर तवाफ करेंगे तो वह मौतबर नहीं ।*
*❉_किसी औरत को तवाफ के दौरान हैज आ जाए तो फौरन तवाफ बंद कर दें और मस्जिद से बाहर चली जाएं ।*
*❉_ खवातीन तवाफ में रमल यानी अकड कर चलना ना करें यह सिर्फ मर्दों के लिए खास है।*
*❉_ हुजूम होने की सूरत में खवातीन हजरे अस्वद का बौसा लेने की कोशिश ना करें बस दूर से इशारा कर लें, इसी तरह हुजूम होने पर रुकने यमानी को भी ना छुए ।*
*❉_अगर हजरे अस्वद के सामने से इशारा किए बगैर गुजर गए और अगर हुजूम ज्यादा है तो वापस आने की कोशिश ना करें क्योंकि तवाफ के दौरान हजरे अस्वद का बोसा लेना उसकी तरफ इशारा करना सुन्नत है वाजिब नहीं।*
*👉🏻 अहम मसला :-_ माजूर शख्स जिसका वज़ू नहीं ठहरता (मसलन पेशाब के कतरे मुसलसल गिरते हो या मुसलसल रिया खारिज होती रहती हो या औरत को बीमारी का खून आ रहा हो) तो उसके लिए हुक्म यह है कि वह नमाज के एक वक्त में वज़ू करें फिर उस वज़ू से उस वक्त में चाहे जितने तवाफ करें, नमाज से पढ़े ,तिलावत करें ,दूसरी नमाज का वक्त दाखिल होते ही वज़ू टूट जाएगा। अगर तवाफ मुकम्मल होने से पहले ही दूसरी नमाज का वक्त दाखिल हो जाए तो वज़ू करके तवाफ मुकम्मल करें।
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*☞_ दो रक़अत नमाज़_ मक़ामे इब्राहीम,*
*❉__ तवाफ से फारिग होकर मक़ामें इब्राहिम को आएं, सहूलियत से मक़ामें इब्राहिम के पीछे जगह मिल जाए तो वहां, वरना मस्जिद ए हराम में किसी भी जगह तवाफ की 2 रकात अदा करें ।*
*❉__तवाफ की इन दो रका़त के मुताल्लिक नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सुन्नत यह है कि पहली रक़ात में सूरह काफिरून और दूसरी रका़त में सूरह इख़लास पड़ी जाए ।*
*❉__ हुजूम के दौरान मका़में इब्राहिम के पास तवाफ की 2 रका़त नमाज़ पढ़ने की कोशिश ना करें क्योंकि इससे तवाफ करने वालों को तकलीफ होती है बल्कि मस्जिदे हराम में किसी भी जगह अदा कर लें।*
*☞ मक़ामे इब्राहीम _,
*❉___ यह एक पत्थर है जिस पर खड़े होकर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबा को तामीर किया था ,उस पत्थर पर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशानात हैं ।*
*❉__ यह काबा शरीफ के सामने एक जालीदार शीशे के छोटे से कुब्बा में महफूज़ है जिसके अंदर पीतल की खुशनुमा जाली नसब है । हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-हजरे अस्वद और मुक़ामे इब्राहीम की़मती पत्थरों में से दो पत्थर हैं, अल्लाह ताला ने दोनों पत्थरों की रोशनी खत्म कर दी है अगर अल्लाह ताला ऐसा ना करते तो यह दोनों पत्थर मशरिक और मग़रिब के दरमियान हर चीज़ को रोशन कर देते । ( इब्ने ख़ुज़ैमा )*
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*☞ मुल्तज़िम_,*
*❉__ तवाफ और नमाज़ से फारिग होकर अगर मौक़ा मिल जाए तो मुल्तज़िम पर आएं, हजरे अस्वद और काबा शरीफ के दरवाजे के दरमियान 2 मीटर के क़रीब काबे की दीवार का जो हिस्सा है वह मुल्तजि़म कहलाता है ,इससे चिमट कर खूब दुआएं मांगें, यह दुआ कबूल होने की खास जगह है ।*
*❉___हुज्जाज किराम को तकलीफ देकर मुल्ताजि़म पर पहुंचना जायज़ नहीं है लिहाज़ा तवाफ करने वालों की तादाद अगर ज्यादा हो तो वहां पहुंचने की कोशिश ना करें क्योंकि वहां दुआएं करना सिर्फ सुन्नत है वाजिब नहीं।*
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*☞ आबे जमजम _,*
*❉__ तवाफ से फारिग होकर क़िब्ला रुख होकर बिस्मिल्लाह पढ़कर 3 सांस में खूब शैर हो कर जमजम का पानी पिएं और अल्हम्दुलिल्लाह कह कर यह दुआ (अगर याद हो तो )पढ़ें :-*
*"_ अल्लाहुम्मा इन्नी अस'अलुका इल्मन नाफि'अंव वा रिज़क़ंव वासि'अंव वा शिफा़'अन मिन कुल्ला दा'ई _,"*
*( तर्जुमा )_,ऐ अल्लाह मैं आपसे नफा देने वाले इल्म का और कुशादा रिज़्क़ का और हर मर्ज़ से शिफायाबी का सवाल करता हूं।*
*❉__ मस्जिद ए हराम में हर जगह जमजम का पानी आसानी से मिल जाता है । जमजम का पानी खड़े होकर पीना मुस्तहब है।हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को जमजम पिलाया तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खड़े होकर पिया । ( बुखारी )*
*❉___जमजम का पानी पीकर उसका कुछ हिस्सा सर और बदन पर डालना भी मुस्तहब है।हजरत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना :-"_ जमजम का पानी जिस नियत से पिया जाए वही फायदा इससे हासिल होता है । ( इब्ने माजा )*
*❉__हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-"_ रूए ज़मीन पर सबसे बेहतर पानी जमजम है जो भूखे के लिए खाना और बीमार के लिए शिफा हैं । ( तबरानी )*
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*☞ सफा मरवा के दरमियान सई _,*
*❉_ सफा पर पहुंचकर बेहतर यह है कि ज़ुबान से (याद हो तो ) कहें :- अब्दऊ बिमा ब-द- अल्लाहु बिही बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम इन्नस्सफा़ वल मरवता मिन श'आइरिल्लाहि , फ़मन हज्जल बैता आवि'अ त-म-रा फला जुनाहा अलैहि अंय्यतव्व-फ़ बिहिमा, व मन त-तव्व'आ खैरन फ़इन्नल्लाहा शाकिरुन अलीम _,"*
*❉_फिर काबा की तरफ रुख करके दुआ की तरह हाथ उठाया ले और तीन मरताबा "_अल्लाहु अकबर " कहे, और अगर याद हो तो 3 बार यह दुआ पढ़ें :-*
*"_ ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीका लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु युहयी व युमीतु व हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर , लाइलाहा इल्लल्लाहु वहदहू अनजज़ा वहदहू व न-स-र अब्दहू व ह-ज़-मल अहज़ाबा वहदहू _,"*
*❉_इसके बाद खड़े होकर खूब दुआएं मांगे, यह दुआएं क़ुबूल होने का खास मुका़म और खास वक्त है। दुआओं से फारिग हो कर नीचे उतर कर मरवाह की तरफ आम चाल से चलें, दुआएं मांगते रहे या अल्लाह का ज़िक्र करते रहें, सई के दौरन भी कोई खास दुआ लाज़िम नहीं, अलबत्ता इस दुआ को भी पढ़ते रहें:-*
*"_ रब्बिगफिर वरहम वा तजावज़ अम्मा ता'लम इन्नका अनतल आज्जु़ल अकरम _,*
*❉ _जब सब्ज़ सुतून (जहां हरी ट्यूब लाइटें लगी हुई है) के करीब पहुंचे तो मर्द हजरात ज़रा तेज़ रफ्तार से चले, इसके बाद फिर ऐसे ही हरे सुतून और नजर आएंगे वहां पहुंच कर तेज़ चलना बंद कर दें और आम चाल से चले _,*
*❉ _मरवाह पर पहुंच कर क़िब्ला की तरफ रुख कर दुआएं मांगे, ये सई का एक चक्कर हो गया, इसी तरह मरवाह से सफा की तरफ चले, ये दूसरा चक्कर हो जाएगा, इस तरह आखिरी सातवां चक्कर मरवाह पर खत्म होगा, हर मरतबा सफा और मरवाह पर पहूंच कर खाना काबा की तरफ रुख कर के दुआएं करनी चाहिए _,*
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*☞__ स'ई से मुतालिक बाज़ अहम मसाईल_,*
*❉__स'ई के लिए वज़ु करना जरूरी नहीं अलबत्ता अफज़ल व बेहतर है ।*
*❉__ हैज़ की हालत में भी स'ई की जा सकती है अलबत्ता तवाफ हैज की हालत में हरगिज़ ना करें बल्कि मस्जिदे हराम में भी दाखिला ना हो।*
*❉__तवाफ से फारिग हो कर अगर स'ई करने में ताखीर हो जाए तो कोई हर्ज नहीं। स'ई को तवाफ के बाद करना शर्त है, तवाफ के बगैर स'ई मौतबर नहीं।*
*❉_सफा मरवा पर पहुंचकर बैतुल्लाह की तरफ हाथ से इशारा ना करें बल्कि दुआ की तरह दोनों हाथ उठाकर दुआ करें ।*
*❉__ _स'ई के दौरान नमाज शुरू होने लगे या थक जाए तो स'ई को रोक दें फिर जहां से बंद किया था उसी जगह से शुरू कर दें।*
*❉__ तवाफ की तरह स'ई भी पैदल चलकर करना चाहिए अलबत्ता अगर कोई उज़्र हो तो व्हीलचेयर पर भी स'ई कर सकते हैं।*
*❉__अगर स'ई के चक्करों की तादाद में शक हो तो कम तादाद शुमार कर के बाक़ी चक्करों से स'ई मुकम्मल करें।*
*❉__ खवातीन स'ई में सब्ज़ सुतूनों (जहां हरी ट्यूब लाइट लगी हुई है) के दरमियान मर्दों की तरह दौड़ कर ना चले।*
*❉__अगर चाहें तो स'ई के बाद भी 2 रकात नमाज़ अदा कर लें क्योंकि बाज़ रिवायाय में इसका जिक्र मिलता है।*
*❉__निफ्ली स'ई का कोई सबूत नहीं है अलबत्ता निफ्ली तवाफ ज्यादा से ज्यादा करने चाहिए।*
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*☞ _ बाल मुंडवाना या कटवाना_,*
*❉__ तवाफ और स'ई से फारिग होकर सर के बाल मुंडवा दें या कतरवा दें, मर्दों के लिए मुंडवाना अफज़ल है क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बाल मुंडवाने वालों के लिए रहमत व मग्फिरत की दुआएं 3 मर्तबा फरमाई और बाल कटवाने वाले के लिए सिर्फ एक मर्तबा।*
*❉__ अल्लाह ताला ने अपने पाक कलाम कलाम में हलक़ कराने वालों का जिक्र पहले और बाल कटवाने वालों का जिक्र बाद में किया है ।*
*❉__ खवातीन चोटी के आखिर में से एक पौरे के बराबर बाल खुद काट लें या किसी महरम से कटवा लें।*
*☞__ तंबीह _,*
*❉__ बाज़ मर्द हजरात चंद बाल सर के एक तरफ से और चंद बाल दूसरी तरफ से कैंची से काटकर अहराम खोल देते हैं यह सही नहीं है, ऐसी सूरत में जमहूरे उल्मा के नजदीक दम वाजिब होगा, लिहाजा या तो सर के बाल मुंडवाएं या इस तरह बालों को कटवाएं कि पूरे सर के बाल कट जाए ।*
*❉__अगर बाल ज्यादा ही छोटे हो तो मुंडवाना ही लाजिम है।*
*❉__सर के बाल मुंडवाने या कटवाने से पहले ना अहराम खोलें और ना ही नाखून वगैरा कांटे वरना दम लाज़िम होगा।*
*❉__ बाल का हुदूदे हरम में कटवाना जरूरी है लिहाजा जद्दा में बाल मुंडवाने की सूरत में दम लाज़िम होगा ।*
*❉__जब बाल कटवाने का वक्त हो जाए यानी तवाफ से फारिग हो गए तो एक दूसरे के बाल काट सकते हैं।*
*❉_ अल्हमदुलिल्लाह अब आपका उमराह पूरा हो गया है, अहराम उतार दें, सिले हुए कपड़े पहन ले ।अब आपके लिए वह सब चीज़े जायज़ हो गई जो अहराम की हालत में नाजायज़ हो गई थी,**
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*☞ _ मुताद्दिद (एक से ज्यादा ) उमरें करना _,*
*❉_उमरे की अदायगी के बाद अपनी तरफ से या अपने मुताल्लिकीन की तरफ से निफ्ली उमरे करना चाहिए।*
*❉__ हिल में किसी जगह मसलन- तन'ईम जाकर गुस्ल करके अहराम बांध ले, 2 रकात नमाज पढ़कर नियत करें, तलबिया पढ़े, फिर उमरे का जो तरीक़ा बयान किया गया है उसके मुताबिक उमराह करें ।*
*❉__किसी मरहूम या इंतेहाई बूढ़े या ऐसे बीमार शख्स जिसकी सहत कि बा जाहिर तवक़्क़ो नहीं है ,की जानिब से बिला शुबा उमराह बदल किया जा सकता है।*
*❉__ लेकिन सेहतमंद जिंदा शख्स की जानिब से उमराह बदल की अदायगी में फुक़हा का इख्तिलाफ है, एहतियात सेहतमंद शख्स की तरफ से उमराह बदल ना करने में है।*
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*☞ तवाफे विदा _,*
*❉__ वापसी के वक्त तवाफे विदा करना चाहें तो कर लें लेकिन सिर्फ उमराह के सफर में तवाफे विदा ज़रूरी नहीं।*
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*☞ उमरा से मुतालिक बात जरूरी मसाईल_,*
❉_ औरत बगैर मेहरम या शौहर के उमराह का सफर या कोई दूसरा सफर नहीं कर सकती है, अगर कोई औरत बगैर मेंहरम या शौहर के उमरा करें तो उसका उमराह तो अदा हो जाएगा लेकिन ऐसा करने में बड़ा गुनाह है ।
★_ औरतें मर्द की तरफ से और मर्द औरतों की तरफ से निफ्ली उमरा बदल कर सकते हैं ।
★_अहराम की हालत में अहराम के कपड़े उतार कर गुस्ल भी कर सकते हैं और अहराम तब्दील भी कर सकते हैं।
★_ बाज़ लोगों ने यह मशहूर कर रखा है कि किसी ने उमराह किया तो उस पर हज फर्ज हो जाता है, यह गलत है ,अगर वो साहिबे इस्तेतात नहीं है यानी अगर उसके पास इतना माल नहीं है कि वह हज अदा कर सके तो उस पर उमराह की अदायगी की वजह से हज फर्क नहीं होता , अगरचे उमराह हज के महीने में अदा किया जाए फिर भी इसकी वजह से हज फर्ज नहीं होगा ।
*"__अल्हम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुए _,"*
*📗 उमराह का तरीका़ ( मुफ्ती नजीब क़ासमी संभली दा. ब.)*
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