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*☪ फज़ाइल- ए -शाबान ☪*
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*☞ _ शाबानुल मुअज़्ज़म _,"*.
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*❉_ शाबानुल मुअज़्ज़म साल का आठवां महीना है और ये बा बरकत महीनों में से है ,अल्लाह ताला ने इस महीने में अपने बंदों को नवाज़ने और अता करने के लिए बहुत सी खैर और भलाइयां रखी है, यही वजह है कि हर दौर में असलाफ़ इस महीने की कदरदानी करते चले आये हैं,*
*❉__चुनांचे हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से मनकूल है कि सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम शाबान का चांद देखने के बाद क़ुरान करीम की तिलावत में लग जाते हैं ,अपने मालों की ज़कात निकालते हैं ताकि कमज़ोर और मिस्कीन लोग रमज़ानुल मुबारक में रोज़ा रखने पर क़ादिर हो सके,*
*❉ _ हुक्मरान कैदियों को बुलाकर अगर हद के निफ़ाज़ का मसला होता तो हद नाफ़िज़ कर देते वरना उनको आज़ाद कर देते, ताजिर हज़रात अपने हिसाब व किताब और लेन देन की अदायगी से फारिग होने की कोशिश में लग जाते ताकि रमज़ान का चांद देख कर अपने आपको इबादत के लिए वक़्फ़ कर सके,*
*®_ गनीयतुल तालिबीन- 1/341,*
*☞_ शाबान नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का महीना है,*
*❉__एक रिवायत में नबी करीम ﷺ ने इस महीने को अपना महीना क़रार दिया है, चुनांचे फरमाया_ "_शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह ताला का महीना है _,"*
*© ( कंजुल उम्माल-३५१७२)*
*☞ _शाबान बा बरकत महीना है*
*❉_ इसके बा बरक़त होने के लिए नबी करीम ﷺ की वो दुआ ही काफी है जिसमे आप ﷺ ने अल्लाह तबारक व ता'ला से उसमे बरकत की दुआएं मांगी हैं, चुनांचे हदीस में है:-*
*❉_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि जब रज्जब का महीना दाखिल होता तो नबी करीम ﷺ ये दुआ पढ़ा करते थे-*
*"_अल्लाहुम्मा बारिक लना फि रज्जब, व शाबाना ,व बललिग्ना रमज़ान _"*
*"_(तर्जुमा) :- ऐ अल्लाह ! रज्जब और शाबान के महीने में हमे बरकत अता फरमा और हमे (बा खैरो आफ़ियत) रमज़ानुल मुबारक तक पहुंचा दीजिए_,"*
*® ( शौबुल ईमान- ३५३४)*
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*☞_ शाबान गुनाहों से पाक होने का महीना है,*
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*❀_ इरशादे नबवी ﷺ है:- रमज़ान का महीना अल्लाह ताला का और शाबान का महीना मेरा महीना है, शाबान का महीना पाक करने वाला और रमज़ान का महीना गुनाहों को मिटाने वाला है_,"*
*®_(अखरजा इब्ने असा कमा फिल तारीख-72/155)*
*☞_शाबान के महीने में रोज़ेदार के लिए खैर कसीर है,*
*❀_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:-"_शाबान को "शाबान" इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें रोज़ा रखने वाले के लिए बहुत सी खैर और भलाइयां (शाखों की तरह) फूटती हैं, यहां तक कि वो जन्नत में जा पहुंचता है _,"*
*®_( कंजुल उम्माल-३५१७३ )*
*☞शाबान के महीने में आमाल की पेशी,*
*❉_ इस महीने में आमाल की पेशी होती है, चुनांचे हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ इरशाद फरमाते हैं,__ रज्जब और रमज़ान के दरमियान जो शाबान का महीना है (आम तौर पर) लोग उससे गफलत का शिकार होते हैं, हालांकि इस महीने में बंदों के आमाल अल्लाह ता'ला के हुज़ूर पेश किए जाते हैं,"*
*®_( शोबुल ईमान-३५४०)*
*☞ _ माहे शाबान के आमाल_,*
*❉_ इस महीने से मुताल्लिक़ 2 तरह के काम है:-*
*❉_1-क़ाबिले अमल यानी वो काम जिनको करने की तालीम दी गई हैं और सुन्नत से साबित है,वो काम दर्जे ज़ैल हैं:-*
*☞ _माहे शाबान का चांद देखने का एहतेमाम,*
*❉__ इस्लामी महीनों की हिफाज़त और उनकी सही तारीखों का याद रखना फर्ज़े किफाया है, क्योंकि उन पर बहुत से शरई अहकाम मोक़ूफ़ हैं, चुनांचे हज का सही तारीखों में अदा करना, रमज़ानुल मुबारक के रोज़ो और ज़कात की अदायगी, और इसके अलावा शरई उमूर क़मरी (चांद की)तारीखों पर मोक़ूफ़ है,*
*❉_ लिहाज़ा मुसलमानों को क़मरी महीनों को याद रखना चाहिए और चांद देखने का एहतेमाम करना चाहिए ,और चूंकि शाबान के बाद रमज़ानुल मुबारक का अज़ीम महीना आ रहा होता है इसीलिए शाबान के चांद को और भी ज़्यादा एहतेमाम और शौक़ से देखने का एहतेमाम करना चाहिए,*
*❉_ यही वजह है कि नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम भी शाबान का चांद बड़े एहतेमाम से देखा करते थे,चुनांचे रिवायात में आया है, हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिलाले (चांद )शाबान की जितनी हिफाज़त करते थे उतनी किसी और महीने की न करते थे,*
*®_ ( दारे क़ुतनी - २१४९ )*
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*☞__ शाबान में रोज़ों की कसरत*,*
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*❉_ हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रोज़ा रखने में शाबान का महीना सबसे ज़्यादा मेहबूब था ,आप ये चाहते थे कि रोज़ा रखते रखते उसे रमज़ान के साथ मिला दें,*
*®_( अबु दाऊद -२४३१)*
*"__ हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शाबान से ज़्यादा किसी महीने में रोज़े रखते नही देखा,*
*®_( बुखारी- १९६९ मुस्लिम - ११५६)*
*❉_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया गया कि रमज़ानुल मुबारक के बाद कौनसा रोज़ा अफ़ज़ल है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया, वो रोज़ा जो रमज़ान की ताज़ीम में शाबान के महीने में रखा जाए,*
*®_( तिरमिज़ी -६६३)*
*"_ रमज़ान की ताज़ीम का मतलब ये है कि रमज़ान के आने से पहले ही रोज़ा रख कर नफ़्स को भूख व प्यास बर्दाश्त करने का आदी बनाया जाए ताकि अचानक से माहे रमज़ान शुरू हो जाने से तबियत पर बोझ न हो और कोई बात ख़िलाफ़े अदब सर्ज़द न हो,*
*❉_ शाबान के महीने में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कसरत से रोज़ा रखने की वजह ये थी, जैसा कि पहले हदीस में गुज़र चुका है कि इस महीने में अल्लाह ताला के सामने आमाल की पेशी होती है और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये चाहते थे कि रोज़े की हालत में आमाल की पेशी हो,*
*®_ ( शौबुल ईमान-३५४०)*
*☞_ रमज़ानुल मुबारक की तैयारी,*
*❉_ हर चीज़ की तैयारी उसके आने से पहले होती है,मसलन मेहमान की आमद हो तो उसके बाद नही उसके आने से पहले तैयारी होती है,इसी तरह रमज़ान भी मोमिन के लिए बहुत ही अहम और मुअज़्ज़िज़ मेहमान है,उसकी क़दर के लिए भी पहले से ज़हनी और अमली तौर पर तैयार हो जाना चाहिए,*
*"_रमज़ान की तैयारी में 2 चीजें हैं :-*
*1-दुनयावी ऐतेबार से:- दुनियावी मशगूली व मसरूफियात से अपने आपको जितना फारिग कर सकते हो कर ले ताकि रमज़ानुल मुबारक का महीना मुकम्मल यकसुई के साथ इबादत और रुजू इल्लल्लाह में गुजारा जा सके,*
*❉"_2-दीनी ऐतेबार से:- रमज़ानुल मुबारक की तैयारी का मतलब ये है कि शाबान उल मुअज़्ज़म के महिने में ही अपने दिन और रात के मामलात को कुछ उस तरह तरतीब दीजिए कि फ़राइज़ व वाजिबात के साथ साथ नफ्ली इबादात का भी खूब एहतेमाम होना शुरू हो जाए, पांचों फ़र्ज़ नमाज़ें बा जमात सफे अव्वल में अदा कीजिए, क़ुरान पाक की रोज़ाना तिलावत करे, नफ्ली नमाज़ें इशराक, चाष्त, अव्वाबीन, तहज्जुद का एहतेमाम शुरू करें और खूब दुआएं मांगने की कोशिश करे,*
*❉_याद रखिए! दीनी व दुनियावी ऐतेबार से रमज़ान की तैयारी का मतलब शाबान ही में तैयारी करना है,क्योंकि रमज़ान के चांद निकलने के बाद तैयारी करते करते तो काफी वक्त निकल जाता है, फिर मामलात की आदत बनते बनते भी देर लगती है और इसी में रमज़ानुल मुबारक का एक बड़ा हिस्सा जा़य हो जाता है,इसीलिए जो भी तैयारी करनी है वो आमादे रमज़ान से पहले ही फारिग हो जाए,*
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*☞ ____ शबे बारात की इबादत,*
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*❉_ शाबान उल मुअज़्ज़म के महीने में अल्लाह ताला ने एक मुअज़्ज़म और बा बरकत रात रखी है और उसमें इबादत करने वालों के लिए बे शुमार अजरो सवाब मुक़र्रर किया गया है, इस रात को लैलतुल मुबारकह (बा बरकत रात) लैलतुल रहमह (रहमतों वाली रात) लैलतुल साक़ (अल्लाह के जानिब से जन्नत का परवाना मिलने वाली रात) और लैलतुल बारात (जहन्नम से बरी होने वाली रात )कहा जाता है,*
*®_(__ रूहुल मा'नी )*
*❉ पहली फ़ज़ीलत:-बा कसरत लोगों की मगफिरत :- इस रात में अल्लाह ताला बे शुमार लोगों की मगफिरत कर देते हैं,चुनांचे हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाती हैं कि बेशक अल्लाह ताला शाबान की पंद्रहवीं शब में आसमाने दुनिया पर(अपनी शान के मुताबिक) नुज़ूल फरमाते हैं और क़बीला "कल्ब"की बकरियों के बालों की तादाद से भी ज़्यादा लोगो की मगफिरत फर्मा देते हैं,*
*®_( तिरमिज़ी -७३९)*
*❉__ क़बीला "बनू कल्ब" अरब के एक क़बीला जो बकरियां कसरत से रखने में मशहूर था,और बकरियों के बालों की तादाद से ज़्यादा मगफिरत करने के 2 मतलब ज़िक्र किये गए हैं,*
*❉_1-पहला ये की इस क़दर कसीर गुनाहगारों की मगफिरत की जाती है जिनकी तादाद इन बकरियों के बालों की तादाद से भी ज़्यादा होती है,यानी बेशुमार लोगो की मगफिरत होती है,*
*❉_2-दूसरा ये की गुनाहगार नही बल्कि गुनाह मुराद है,यानी अगर किसी के गुनाह बनू क़ल्ब की बकरियों के बालों से भी ज़्यादा हो तो अल्लाह ताला अपने फ़ज़ल से माफ फरमा देते हैं,*
*❉ _दूसरी फ़ज़ीलत:-दुआओं की कुबूलियत:- ये रात दुआओं के कुबूलियत वाली रात है, इसमें अल्लाह ताला से मांगने वाला महरूम नही होता बल्कि खुद अल्लाह ताला की जानिब से सदा लगाई जाती है कि है कोई मुझसे मांगने वाला ,मैं उसकी मांग पूरी करूँ,*
*"__हज़रत अली करमुल्लाहि वजहू नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद नक़ल फरमाते हैं कि :-"_जब शाबान की पंद्रहवीं शब हो तो उसकी रात में क़याम (इबादत) करो और उसके दिन में रोज़ा रखो, बेशक अल्लाह ताला इस रात में गुरूबे शम्स से ही आसमाने दुनिया मे (अपनी शान के मुताबिक) नुज़ूल फरमाते हैं और कहते हैं ,क्या कोई मुझसे मगफिरत चाहने वाला नही की मैं उसकी मगफिरत करूं?क्या कोई रिज़्क़ तलब करने वाला नही की मैं उसे रिज़्क़ अता करूँ ?क्या कोई मुसीबत व परेशानी में मुब्तिला शख्स नही की मैं उसे आफ़ियत अता करूं ?क्या फलां और फलां शख्स नही,,,यहां तक कि (इसी तरह सदा लगते लगते) सुबह सादिक़ तुलू हो जाती है,*
*®_( इब्ने माजा - १३८८)*
*❉_अल्लाह ताला की जानिब से ये अता और सदा रोज़ रात को लगती है और बाज़ रिवायतो में रात के एक तिहाई हिस्से के गुज़र जाने के बाद सुबह तक लगती है और बाज़ रिवायतों में रात के आखरी पहर यानी आखरी तिहाई हिस्से में लगाई जाती है, लेकिन इस शबे बारात की अज़मत का क्या कहना! कि इस रात में शुरू हिस्से से यानी आफताब के गुरूब होने से लेकर सुबह सादिक़ तक ये सदा लगाई जाती है, लिहाज़ा इन कुबूलियत की घड़ियों में गफलत इख़्तेयार करना बड़ी नादानी है और हिमाकत की बात है,इसीलिए इस रात में फ़िज़ूलियात और लायानी कामों में लगने या ख़्वाबे गफलत में सोए पड़े रहने से बचना चाहिए और अल्लाह ताला की जानिब रुजू करते हुए शौक़ व ज़ौक़ का इज़हार करना चाहिए,*
*"__ तंबीह :- याद रखे कि दुआओं की कुबूलियत वाली इस रात में दुआओं की कुबूलियत को करने के लिए ज़रूरी है कि दुआ की कुबूलियत की शरायत का अच्छी तरह लिहाज़ रखे वरना दुआ क़ुबूल नही होगी,*
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*☞_ दुआ की कुबूलियत की शराइत,*
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*❉_ दुआ की कुबूलियत की चंद शराइत हैं,दुआ मांगने में इनका लिहाज़ रखना ज़रूरी है :-*
*❉_1-पहली शर्त:- हराम से इज्तिनाब:- हदीस के मुताबिक जिसका खाना पीना और लिबास वगैरह हराम का हो उसकी दुआ क़ुबूल नही होती ,चुनांचे हज़रत अबू हुरैरः रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक शख्स का तज़किरा किया जो तवील सफर करता है और उसकी वजह से वो परागन्दा और गुबार आलूद हो जाता है और इस परागन्दगी कि हालात में अपने हाथ अल्लाह ताला के सामने फैला कर कहता है:- ऐ मेरे परवरदिगार ! ऐ मेरे परवरदिगार ! हालांकि उसका खाना ,उसका पीना उसका लिबास सब हराम हो और उसकी परवरिश हराम माल से की गई हो तो उसकी दुआ कैसे क़ुबूल की जा सकती है,*
*®_( तिरमिज़ी- २९८९)*
*❉_2- दूसरी शर्त:-तवज्जोह से दुआ करना:- यानी दिल की तवज्जोह से अल्लाह ताला से दुआ करना, ऐसा न हो कि गफलत में सिर्फ रटे रटाए दुआओं के कलमात ज़ुबान से अदा किए जाएं और दिल हाज़िर न हो, क्योंकि हदीस के मुताबिक ऐसी गफलत के साथ मांगी जाने वाली दुआ क़ाबिले क़ुबूल नही होती, चुनांचे हज़रत अबू हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:- अल्लाह ताला से कुबूलियत की यकीन के साथ दुआ मांगा करो और जान लो कि अल्लाह ताला गफलत और लापरवाही में पड़े हुए दिल के साथ दुआ क़ुबूल नही फरमाते,*
*❉_3- तीसरी शर्त:- एक दूसरे को भलाई का हुक्म करना और बुरे कामों से रोकना:- नेकी का हुक्म करना और गुनाहों से रोकना इस्लाम का अहम फ़राइज़ और ज़िम्मेदारियों में से है,जब लोग इससे गफलत बरतने लगते हैं तो दुआएं भी क़ुबूल नहीं होती और अल्लाह ताला का अज़ाब मुख्तलिफ शक्लों में नाज़िल होता है, जिसकी लपेट में सिर्फ बुरे लोग ही नही बल्कि उनको न रोकने वाले भी आ जाते हैं,हज़रत हुजैफा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:- क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है तुम लोग ज़रूर नेकी का हुक्म देते और बुराईयों से मना करते रहो,वरना क़रीब है कि अल्लाह ताला तुम पर अपनी जानिब से एक ऐसा अज़ाब भेजेंगे के तुम उससे दुआ करोगे लेकिन तुम्हारी दुआ को कुबूल नही किया जाएगा, ®_(तिरमिज़ी-२१६९)*
*☞_ तीसरी फ़ज़ीलत :-जहन्नम से आज़ादी_*
*❉_ इस रात की एक बड़ी फ़ज़ीलत ये है कि अल्लाह ताला बड़ी कसरत से जहन्नम से लोगो को आज़ाद करते हैं, चुनांचे हदीस शरीफ में आया है:- एक दफा शाबान की पंद्रहवीं शब में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा से फरमाया:- ये शाबान की पंद्रहवीं शब है और इस रात में अल्लाह ताला की जानिब से क़बीला बनू क़ल्ब की बकरियों के बालों की तादाद के बराबर जहन्नम से लोगो को आज़ाद किया जाता है, ®_ ( शौबुल ईमान - ३५५६ )*
*☞ चौथी फ़ज़ीलत:- साल भर के फैसलों की रात*
*❉_ इस रात की अहम फ़ज़ीलत ये है कि इसमें साल भर के फैसले किये जाते हैं कि किसने पैदा होना और किसने मरना है, किसको कितना रिज़्क़ दिया जाएगा और किसके साथ क्या कुछ पेश आएगा,सब कुछ लिख दिया जाता है, चुनांचे हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा फरमाती है की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:- ऐ आएशा! क्या तुम जानती हो कि इस पंद्रहवीं शब में क्या होता है?मैंने अर्ज़ किया, या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या होता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,बनी आदम में से हर वो शख्स जो इस साल पैदा होने वाला होता है,इस रात में लिख दिया जाता है,और बनी आदम में से हर वो शख्स जो इस साल मरने वाला होता है इस रात में लिख दिया जाता है और इस रात में बन्दों के आमाल उठा लिए जाते हैंऔर इसी रात में बन्दों के रिज़्क़ उतरते हैं,*
*®_( मिशकातुल मसाबेह -१३०५ )*
*❉__ एक रिवायात में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद मंक़ूल है:-"_एक शाबान से दूसरे शाबान तक उम्रें लिखी जाती हैं,यहां तक कि कोई शख्स निकाह करता है और उसकी औलाद भी होती है लेकिन (उसे मालूम तक नही होता कि) उसका नाम मुर्दों में निकल चुका होता है,*
*®_ (शौबुल ईमान-३५५८)*
*❉_ लिहाज़ा फैसले की इस रात में गफलत में पड़े रहना कोई दानिशमंदी नही, अक्लमंदी का तकाज़ा ये है कि अल्लाह ताला की तरफ रुजू किया जाए और अपने लिए अपने घर वालों के लिए बल्कि सारी उम्मत के लिए अच्छे फैसलों की खूब दुआएं की जाए,*
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*☞ _ क़ाबिले तर्क काम,*
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*❉__ यानी वो काम जिनको इस महीने में इबादत और रस्म के तौर पर बड़े एहतेमाम से किया जाता है जिसकी वजह से लोग उन कामों को इस महीने में बड़े ज़ोक व शौक़ से करते हैं, अजरो सवाब की उम्मीद रखते हुए फ़िज़ूल खर्ची करते हैं, हालांकि उनका मज़हब व शरीयत से कोई ताल्लुक नही,उनका करना बिद्दत है लिहाजा उनसे दूर रहना जरूरी है,*
*☞_1:-आतिश बाज़ी:-*
*❉_शाबान के महीने में एक रस्म जो मुसलमानों में तफरीह और दिल्लगी के नाम से राइज हो गई वो आतिश बाज़ी की रस्मे बद है,जिसको बच्चे तो बच्चे बड़े भी करते नज़र आते हैंऔर हर साल इस पर लाखों रुपया पानी की तरह बेकार जा़या किया जाता है,ये दरअसल हिंदुओं के मशहूर त्योहार (दिवाली) की नक़ल है,इसका दीन व शरई तौर पर हराम होना तो दर किनार ख़ुद अक्ल में आने वाली बात नही है, भला खुद अपने हाथों से अपने खून पसीने की कमाई को पटाखे जलाकर बर्बाद करना कौनसी अक्लमंदी है?फिर इसकी वजह से कितने लोगों का आराम व सुकून गारत होता है,कितने ही लोगो की नींद में खलल पड़ता है,बसा अवका़त इसकी वजह से जलने और मरने के बड़े बड़े नुक़सानात भी हो जाते हैं जिनके किस्से हर साल पढ़ने और आंखों से देखने को मिलता है,*
*❉ _ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद मंक़ूल है:- जो किसी मोमिन को डराए और उसे ख़ौफ़ज़दा कर दे अल्लाह ताला क़यामत के दिन उसे खौफ से अमन नही देंगे,®_( शौबुल ईमान -१०६०५)*
*☞ 2:- चरागां करना (लाइटिंग)*
*❉__ मुबारक रातों में न जाने किस सोच और नज़रिए के तहत घरों में ,मस्जिदों में और अहम मुक़ामो पर रोशनियां की जाती है, मोमबत्तियां जलाई जाती है, चिराग जलाए जाते हैं,कुमकुमे रौशन किये जाते हैं,लाइटिंग किये जाते हैं, और इन कामो पर फ़िज़ूल खर्ची किया जाता है,और इस पर जुल्म ये की इसको सवाब का काम समझा जाता है,*
*"_ खुद सोचिए! और हर बार सोचिए! भला जो काम अजरो सवाब का बाइस हो क्या नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि के जांनिसार सहाबा किराम और उनके नक़्शे कदम को अपनी मंज़िल समझने वाले उम्मत के असलाफ़ व अकाबीरीन उससे मुस्तग़नी या बेखबर रह सकते थे? अगर नही और यक़ीनन इसका जवाब नही में ही है तो क्या वजह है कि जिस काम को सहाबा किराम उम्मत के सुल्हा व अस्फिया ने नही किया उसे अजरो सवाब का बाइस समझना और बताना कहा कि अक्लमंदी है, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है," जिसने हमारे दीन में ऐसी कोई बात निकाली जो उसमे नही तो वो बातिल व मरदूद है_,"*
*®_( बुखारी-२६९७ )*
*❉_ इसके अलावा इसमें माल का फ़िज़ूल खर्च भी है जो खुद किसी काम के हराम होने का सबब है,अल्लाह ताला ने क़ुरान करीम में साफ इरशाद फरमाया की अल्लाह ताला फिज़ूल खर्ची वाले को पसंद नही करतेऔर फ़िज़ूल खर्ची करने वाले को शैतान का भाई फरमाया गया है,*
*☞_ क़ाबिले तर्क काम ,2 :- हलवा बनाना:-*
*❉ __शबे बारात में हलवा और पूरी बनाने की रस्म भी बहुत से नादान मुसलमान बड़े शौक व ज़ौक़ से अदा करते हैं और उसे अजरो सवाब का काम समझते हैं, बाज़ लोग इसकी वजह बयान करते हुए कहते हैं कि ये आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दंदाने मुबारक शहीद होने के बाद हलवा खाने की यादगार है,और बाज़ ये कहते हैं कि हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु इस तारीख को शहीद हुए थे,उनके इसाले सवाब के लिए ये किया जाता है,लेकिन ज़ाहिर है कि इसके लिए दिन व तरीके को मख़सूस किया जाता है,हालांकि इस तारीख से इन दोनों वाकियों का कोई ताल्लुक नही,फिर अगर मान भी लिया जाए तो इस तरीके के मशरू होने की क्या दलील है? क्या कही इसका जिक्र है या हज़रात सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम व ताब’ईन या असलाफ़ व अकाबीरीन से इस पर अमल करना मंक़ूल है?*
*"_ज़ाहिर है कि इनमें से कुछ भी नही फिर किसलिए अपनी ख्वाइश को दीन बना कर शैतान को खुश किया जाता है,*
*☞_4-क़ब्रिस्तान धूम धाम से जाना:*
*❉_इस रात में एक और काम बड़ी धूम धाम से किया जाता है और वो ये है कि क़ब्रिस्तान बड़े एहतेमाम के साथ धूम धाम से गाड़ियां बुक करा के जाते हैं मेले ठेले लगते हैं, चादरें चढ़ाई जाती है,फूल डाले जाते है,और मर्दों के शाना ब शाना (साथ साथ ) औरतें भी इस काम मे शरीक होती हैं ,जिससे बड़े फ़ितनों के दरवाजे खुलते हैं,*
*❉_हज़रत मुफ़्ती तक़ी उस्मानी फरमाते हैं ,इस रात में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये साबित है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जन्नतुल बक़ी तशरीफ़ ले गए थे,लेकिन मुफ़्ती शफी साहब रह. ने बड़े काम की बात बयान फरमाया करते थे जो हमेशा याद रखनी चाहिए, फरमाया करते थे कि जो चीज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जिस दर्जे में साबित हो उसी दर्जे में उसको रखना चाहिए ,इससे आगे नही बढ़ना चाहिए,*
*❉_लिहाज़ा सारी हयाते तैयबा में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक मर्तबा जाना मरवी है,की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शबे बारात में जन्नतुल बक़ी तशरीफ़ ले गए,चूंकि एक मर्तबा जाना मरवी हैं इसीलिए ज़िंदगी मे कभी एक मर्तबा तमाम बिद्दत और खुराफात से बचते हुए इन्फिरादी तौर पर जाया जाए तो कोई हर्ज नही,लेकिन हर शबे बारात में एहतेमाम करना,इलतिज़ाम करना,इसको ज़रूरी समझना और इसको शबे बारात के अरकान में दाखिल करना,और इसको शबे बारात का हिस्सा समझना और इसके बगैर शबे बारात नही हुई ऐसा समझना ,ये इसको उसके दर्जे से आगे बढ़ाने वाली बात है,जिससे बचना ज़रूरी है,*
*☞_5:-शबे बारात में इज्तिमाई इबादत का एहतेमाम:*
*❉_शबे बारात हो या कोई भी मुबारक रात,मक़सद उससे ये होता है कि इंसान अल्लाह ताला की तरफ यकसुई और दिलजोई के साथ मुतवज्जह हो,और ज़ाहिर है कि ये मक़सद इन्फिरादी इबादत के ज़रिए ही हासिल हो सकता है, आप हज़रत सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम या आपके सहाबा व असलाफ़ से भी इज्तेमाई तौर पर मुबारक रातों में इबादत करना मंक़ूल नही,*
*❉_इसके अलावा मस्जिदों में इज्तिमाई तौर पर जो इबादत की शक्लें कायम की जाती है वो बहुत सी बिद्दत और खुराफात का मजमुआ बन जाती है,इसीलिए इन्फिरादी तौर पर जितना हो सके इबादत करना चाहिए, इंशा अल्लाह वो कम भी होगी तो ज़्यादा अजरो सवाब का बाइस होगी, अल्लाह ताला हमे दीन की सही समझ अता फरमाए और इस पर अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाए, अपनी मख़सूस दुआओं में इस खाकसार को भी नाम ले कर और हक़ का दाई की पूरी टीम को याद रखिए,हक का दाई के पूरी टीम को याद रखिए, अल्लाह सही समझ और अखलास के साथ दीन का काम करने की तौफ़ीक़ अता करे, आमीन,*
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*☞ _मुबारक रातों में पाई जाने वाली चंद उमूमी गलतियों की इस्लाह,*
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*❀_ 1-इस रात में इबादत का कोई खास तरीका साबित नही, जैसा अमूमन समझा जाता है,चुनांचे बाज़ लोग इस रात की खास नमाज़ें बयान करते हैं कि इतनी रक्कत पढ़ी जाए, फलां रक़ात में फलां सूरत इतनी मर्तबा पढ़ी जाए,*
*❀_"_खूब समझ लेना चाहिए कि ऐसी कोई नामाज़ या इबादत इस रात में साबित नही,बल्कि नफ्ली इबादत जिस क़दर हो सके इस रात में अंजाम देनी चाहिए ,नफ्ली नमाज़ें पढ़ें , क़ुरआन करीम की तिलावत करें, ज़िक्र करें,तस्बीह पढ़ें, दुआएं करें,ये सारी इबादते इस रात में की जा सकती है, लेकिन कोई खास तारिका साबित नही,*
*❀_2:-बा बरकत रातों में जागने का मतलब पूरी रात जागना नही होता बल्कि आसानी के साथ जिस क़दर जाग कर इबादत करना मुमकिन हो इबादत करना चाहिए और जब नींद का ग़लबा हो तो सो जाना चाहिए,*
*❀"_ बाज़ लोग पूरी रात जागने को ज़रूरी समझते हैं,और इसको हासिल करने के लिए पूरी रात जागने की बेतकल्लुफ कोशिश करते हैं ,और जब नींद का ग़लबा होता है तो आपस मे गपशप, हंसी मजाक ,पान गुटखा और खाने पीने चाय वगैरह के अंदर मशगूल हो जाते हैं और मस्जिद के आदाब व तक़ददूस को भी पामाल किया जाता है,*
*"_याद रखिए! इस तरह फ़िज़ूलियात या किसी गैर शरई काम मे लग कर नेकी बर्बाद और गुनाह लाज़िम का मिस्दाक़ नही बनना चाहिए,*
*❀_3:-गुरूबे आफताब ही से इस रात की इब्तिदा हो जाती है लिहाज़ा मग़रिब ही से मुबारक रातों की बरकत को समेटने में लग जाना चाहिए ,ईशा के बाद का इंतज़ार नही करना चाहिए,*
*❀"_जैसा कि अमूमन देखने में आता है कि लोग रात को जागने का मतलब ये समझते है कि 11-12 बजे जब बिस्तर पर जाने का वक़्त होता है,उस वक़्त बिस्तर पर जाने के बजाए मस्जिद में जा कर इबादत की जाए,इस गलत फहमी की वजह से रात का एक बड़ा हिस्सा जाय हो जाता है,*
*❀_4:-मुबारक रातों में जागने का मतलब सिर्फ जागना नही बल्कि इबादत करना है,चुनांचे सिर्फ हंसी मजाक ,गपशप बातचीत ,खाने पीने पिलाने का दौर में जागते हुए सुबह कर देना कोई इबादत नही,*
*❀"_बल्कि बाज़ अवकात इन अज़ीम और बा बर्क़त रातो में भी झूठ ,चुगल खोरी,ग़ीबत करने सुनने जैसे बड़े गुनाहों में शामिल हो कर इंसान और भी बड़े अज़ाब का मुस्तहिक़ बन जाता है, इसीलिए इन्फिरादी तौर पर यकसुई के साथ जिस क़दर आसानी से मुमकिन हो इबादत करनी चाहिए और हर किस्म के हल्ले गुल्ले से बिल्कुल बचना चाहिए,*
*❀_5:-मुबारक रातों में इज्तिमाई इबादत के बजाए इन्फिरादी इबादत का एहतेमाम करना चाहिए इसीलिए की इन रातों में इज्तिमाई इबादत का नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई सबूत नही,इसीलिए खुलूस, यकसुई और अल्लाह ताला के साथ राज़ो नियाज़ इन्फिरादी इबादत में नसीब हो सकता है वो इज्तिमाई इबादत में कहां ।*
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*☞ _मुबारक रातों को कैसे गुज़ारें,*
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*☞-1:-तौबा व इस्तग़फ़ार,*
*❉_ दो रक्कत सलातुत तौबा पढ़ कर सच्ची तौबा करें,अपने गुनाहोंपर शर्मिंदगी व नदामत के साथ अल्लाह ताला से सच्चे दिल से माफी मांगे,_ चुनांचे शबे क़द्र के बारे में हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया कि या रसूलुल्लाह! अगर मैं शबे क़द्र पा लूं तो उसमें क्या पढूं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको कोई बड़ा ज़िक्र या कोई बड़ी नमाज़ और तस्बीह पढ़ने के लिए नही कहा बल्कि एक मुख्तसर और आसान सी दुआ तलक़ीन फरमाई जिसमे अफु दरगुज़र की दरख्वास्त की गई है:-*
*"_ अल्लाहम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिबबुल अफवा फा'फु अन्नी _,*
*"_ऐ अल्लाह तू बहुत ही माफ करने वाला है,माफ करने को पसंद फरमाता है,पस तू मुझे माफ़ फर्मा दे,"*
*®_( तिरमिज़ी -३५१३ )*
*❉__ इससे मालूम हुआ कि बा बरकत रातों में सबसे बड़ा करने का करने का काम उमूमन लोग नही करते वो ये है कि अपने गुज़िश्ता ज़िंदगी पर सच्चे दिल से शर्मसार हो कर आइंदा ज़िंदगी मे अमलन तब्दीली लाने का सच्चा इरादा कर ले कि तौबा इस्तिग़फ़ार किया जाए,ये अमल मुबारक रातों की बरकतों को समेटने का सबसे अहम और सही तरीका है,*
*☞ 2_ नमाज़े बा जमात की अदायगी _,*
*❉ __ इस रात में 3 नमाज़े आती है , मगरिब इशा और फजर , इन तीनों को जमात के साथ सफे अव्वल में खुशू व खुजू़ के साथ अदा कीजिए ।*
*"_ कम से कम इन नमाजों को जमात के साथ अदा करने वाला रात की इबादत से मेहरूम नहीं रहेगा ।" चुनांचे हदीस शरीफ़ में आता है ,हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह इरशाद मंकूल है - जिसने इशा की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने ग़या आधी रात इबादत की और जिसने सुबह की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने गोया उसने पूरी रात नमाज पढ़ी ।*
*®( मुस्लिम शरीफ - ६५६ )*
*☞ _ क़ज़ा नमाज़ो की अदायगी _,*
*❉__जिंदगी में जो नमाज अदा करने से रह गई हो उनको क़जा़ करना लाजिम होता है उनकी कजा़ ना की जाए तो कल बा रोज़े क़यामत उनका हिसाब देना होगा, जैसा पहले तोबा की शराइत में गुज़रा उन शरई वाजिबात का अदा करना और उनसे सुबुक दोष होना जरूरी है ।*
*"_लिहाजा़ अपनी तोबा की तकमील की नियत से जिंदगी भर की नमाज़ों का हिसाब करके उनकी कज़ा करने की फिक्र की जानी चाहिए और मुबारक रातों में निफ्ली इबादत में मशगूल होने के बा दर्जहा बेहतर उन नमाजो की कज़ा को अदा किया जाए, इंशाल्लाह इसमें नवाफिल में मशगूल होने से ज्यादा सवाब हासिल होगा क्योंकि नवाफिल ना पढ़ने का हिसाब नहीं जबकि फर्ज नमाज़ की अगर क़जा ना की जाए तो उसका हिसाब है ।*
*☞_ क़ज़ा नमाज़े पढ़ने का तरीका :-*
*❉__ इसका तरीक़ा यह है कि बालिग होने के बाद से लेकर अब तक जितनी नमाजे छुटी है उनका हिसाब करें और मुमकिन ना हो तो गालिब गुमान के मुताबिक एक अंदाजा और तखमीना लगाएं और उसको कहीं लिख ले उसके बाद उसकी कजा़ करना शुरू कर दें। और इसमें आसानी के लिए यूं किया जा सकता है कि हर वक्ती नमाज़ के साथ वही (उसी वक्त की जो जिम्मे है ) क़ज़ा भी -पढ़ते जाएं और जितनी नमाजे क़ज़ा अदा होती जाए उनको लिखे हुए रिकॉर्ड ( जो हिसाब लगाकर लिखा गया था ) मे से काटते जाएं, इससे इंशाल्लाह महीने में 1 महीने की और साल में 1 साल की नमाज़े बड़ी आसानी के साथ कजा़ अदा हो जाएगी ।*
*☞__ क़ज़ा की नियत :-*
*❉__ क़ज़ा नमाज़ों में नियत करने का एक तरीका यह है कि हर नमाज़ में यूं नियत करें कि मैं अपनी तमाम कजा़ शुदा नमाजो़ में जो पहली नमाज है उसकी कज़ा करता हूं । क्योंकि हर पहली नमाज कजा कर लेने के बाद उससे अगली खुद-ब-खुद पहली बन जाएगी।*
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*☞ _ कुछ फ़ज़ीलत वाले आमाल:_,,*
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*❉__ जैसा कि पहले अर्ज़ किया जा चुका है कि मुबारक रातों में कोई मख़सूस अमल तक साबित नही, अलबत्ता फ़ज़ीलत वाले आमाल जिनमे कम वक्त के अंदर ज़्यादा नेकियों का ज़ख़ीरा जमा किया जा सकता है, उनको उनको बगैर किसी तख्सीस के तैयन के इख्तियार कीजिए ताकि ज़्यादा नेकियाँ जमा की जा सके,*
*❉_1:-अव्वाबीन की नमाज़:-_ मग़रिब के बाद अव्वाबीन कि नमाज़ जिसकी कम से कम 6 रका'त है और ज़्यादा से ज़्यादा 20 हैं,*
*"_आप कोशिश कीजिए कि मुबारक रात की बरकतों को समेटने के लिए 20 रक्कत अदा कीजिए, हदीस के मुताबिक 12 साल की इबादत का सवाब हासिल होता है,*
*❉__हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:-जिसने मग़रिब की नमाज़ के बाद 6 रका'त इस तरह अदा की कि उनके दरमियान कोई बुरी बात न की हो तो उनका सवाब बाराह (12) साल की इबादत के बराबर होता है _,"*
*( तिरमिज़ी-४३५)*
*❉__याद रहे कि अव्वाबीन की नमाज़ की ये फ़ज़ीलत सिर्फ मुबारक रातों में नही बल्कि पूरे साल भर इस फ़ज़ीलत को सिर्फ चंद मिनटों में आसानी से हासिल किए जा सकता हैं, मुबारक रातों में ऐसे आमाल का तो और भी ज़्यादा एहतेमाम और तवज्जोह से इख़्तेयार करना चाहिए,*
*☞ _सलातुत तस्बीह की नमाज़ _,*
*❉__सलातुत तस्बीह की 4 रकातें हैं जिनको एक सलाम से पढ़ा जाता है, इस नमाज़ कि अहादीस में बड़ी फज़ीलतें मंक़ूल हैं,इंसान इसके जरिए कम से कम वक़्त के अंदर ज़्यादा से ज़्यादा नफा हासिल कर सकता है,*
*❉"_इसीलिए साल भर में वक़्तन फ वक़्तन इसके पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए और मुबारक रातों में तो इसको और भी ज़्यादा एहतेमाम से पढ़ना चाहिए और ये कोई मुश्किल नही, बस दिल मे नेकी के हुसूल का जज़्बा शौक़ होना चाहिए, अल्लाह ताला अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाए,(आमीन)*
*☞__सलातुत तस्बीह के फजा़इल:-*
*❉1-ये वो नामाज़ है जिसके पढ़ने की बरकत से 10 किस्म के गुनाह माफ हो जाते हैं,-*
*_सलातुत तस्बीह पढ़ने से 1-अगले,2-पिछले,3-पुराने,4-नए,5-गलती से किए हुए,6-जान बूझ कर किये हुए, 7-छोटे, 8-बड़े, 9 छुप कर किए हुए, 10-और खुल्लम खुल्ला किये हुए सब गुनाह माफ होते हैं,*
*❉2:-ये वो नमाज़ हैं जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अगर रोज़ाना हफ्ता महीना या कम से कम साल में भी अगर पढ़ सकते हो तो अपनी पूरी ज़िंदगी मे कम से कम एक मर्तबा पढ़ लो, इससे इस नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है,*
*❉3:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अगर तुम सारी दुनिया के लोगों से भी ज़्यादा गुनाहगार होंगे तो तुम्हारे गुनाह माफ कर दिए जाएंगे,*
*❉4:-ये वो नमाज़ है जिसे आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने चाचा हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को बताते हुए इस नमाज़ को तोहफा, बख्शीश और खुश खबरी क़रार दिया,*
*❉5:-ये वो नमाज़ है जिसको पढ़ते हुए बंदे को 300 मर्तबा तीसरा कलमा की सूरत में अल्लाह ताला की हम्दो सना करने की सआदत हासिल होती है,*
*"_हालांकि एक मर्तबा तीसरा कलमा पढ़ने पर जन्नत में एक दरख़्त लग जाता है,*
*"_तीसरा कलमा अल्लाह ताला को सबसे मेहबूब कलमा है,*
*"_जन्नत एक चटियल मैंदान हैऔर तीसरा कलमा जन्नत के पौधे हैं,*
*"_तीसरा कलमा के हर एक कलमें का सवाब उहद पहाड़ से ज़्यादा है,*
*"_तीसरे कलमें का हर कलमा आमाल नामे में तुलने के ऐतेबार से सबसे ज़्यादा वज़नी है,*
*❉6:-ये वो नमाज़ है जिसका हर ज़माने में उल्माए उम्मत, मुहद्दिसीन, फुकहा और सूफियों ने एहतेमाम किया है,*
*❉7:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अब्दुल अजीज बिन रववाद रह फरमाते हैं कि जिसका जन्नत में जाने का इरादा हो उसके लिए ज़रूरी है कि सलातुत तस्बीह को मजबूती से पकड़ ले,*
*❉8:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अबु उस्मान हैरी रह. फरमाते है कि मैंने मुसीबतों और गमों के इज़ाले के लिए सलातुत तस्बीह जैसी चीज नही देखी,*
*❉9:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में अल्लामा तकि उद्दीन सबकी रह फरमाते हैं कि जो शख्स इस नमाज़ कि फज़ीलत व अहमियत को सुन कर भी गफलत इख्तियार करे वो दीन के बारे में सुस्ती करने वाला है,सुलहा के कामो से दूर है,उसको पक्का आदमी न समझा जाए,*
*®_( फज़ाइले ज़िक्र )*
*☞_ क़यामुल लैल (तहज्जुद की नामाज़ )का एहतेमाम,*
*❉ __ तहज्जुद फ़राइज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ है,साल भर बल्कि ज़िंदगी भर इसका एहतेमाम करना चाहिए ,और फ़ज़ीलत व बरकत वाली रातों में इसका और भी ज़्यादा शौक़ व ज़ौक़ और तवज्जोह से एहतेमाम करना चाहिए,*
*☞ तहज्जुद की फ़ज़ीलत*
*❉ __ इरशादे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है:-"फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ वो है जो रात के दर्मियान पढ़ी जाए" (मुसनद अहमद-८५०७)*
*❉ __ हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं':- "_रात के क़याम यानी तहज्जुद को अपने ऊपर लाज़िम कर लो क्योंकि ये तुमसे पहले नेक लोगों का तरीका है,तुम्हारे रब के क़ुर्ब का जरिया है,गुमाहों को मिटाने वाली,और गुनाहों को रोकने वाली है,*
*एक रिवायात में इसके साथ जिस्म की बीमारियों को दूर करने वाली है मंक़ूल है,( तिरमिज़ी-३५४९)*
*❉ _ हज़रत अमरू बिन अबसा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:- "_बंदा अपने रब का सबसे ज़्यादा करीब उस वक़्त होता है जब वो रात के आखरी पहर अपने रब के सामने हाज़िर होता है,पस अगर तुम उन लोगों में से होने की ताकत रखते हो तो जो उस घड़ी में अल्लाह ताला को याद करते हैं तो ज़रूर हो जाओ," ( तिरमिज़ी-३५७९)*
*❉ _ हज़रत अबु सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद मंक़ूल है कि,"_तीन आदमी ऐसे हैं जिन्हें देख कर अल्लाह ताला खुश होते हैं,एक वो शख्स जब वो रात को नमाज़ में खड़ा होता है,दूसरे वो लोग जब वो नमाज़ में सफ बांधते हैं,तीसरे वो लोग जब वो जिहाद में दुश्मन से कि़ताल करते हुए सफ बांधते हैं, ( मिशकातुल मसाबेह-१२२८)*
*❉ _हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया गया कि कोनसी दुआ सबसे ज़्यादा सुनी जाती है (यानी क़ुबूल होती है) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ,रात के आखरी पहर और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद मांगी जाने वाली दुआ । ( तिरमिज़ी-३४९९)*
*❉ _ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, बेशक जन्नत में ऐसे बाला खाने हैं जिनका ज़ाहिरी हिस्सा अंदर से और अंदरूनी हिस्सा बाहर से नज़र आता है,*
*"_एक अरबी खड़े हुए और सवाल किया,-या रसूलुल्लाह वो किसके लिए है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,-उसके लिए जो कलाम में नरमी रखे ,खाना खिलाए,पै दर पै रोज़े रखे और रात को नमाज़ पढ़े जबकि लोग सो रहे हो" (तिरमिज़ी-१९८४)*
*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, मेरी उम्मत के सबसे मुअज़्ज़िज़ लोग क़ुरआन के हाफ़िज़ और तहज्जुद गुज़ार हैं," ( शौबुल ईमान-२४४७)*
*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु जो यहूदियों के एक बड़े आलिम थे (इस्लाम से पहले)उन्होंने सबसे पहली मर्तबा जब आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार किया तो फरमाते हैं कि मैं समझ गया की ये चेहरा किसी झूठे का हरगिज़ नही हो सकता और सबसे पहली बात जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाई वो ये थी:-*
*"_ऐ लोगों !आपस मे सलाम को फैलाओ,खाना खिलाओ,सिलह रहमी करो, रात को नामाज़ पढ़ो जबकि लोग सो रहे हों,तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे," ( तिरमिज़ी-२४८५)*
*❉ __ हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरफुआ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल है कि जो शख्स रात को कसरत से नमाज़ पढ़ता है दिन को उसका चेहरा हसीन होता है, ( शौबुल ईमान-२४४८)*
*❉ __ इन तमाम फजा़यल को हर शख्स हासिल कर सकता है, जिसका तरीक़ा ये है कि अपने आप को तहज्जुद का पाबंद बनाया जाए और ये मामूल ज़िंदगी भर अपनाने का है, बिलखुसूस मुबारक रातों में इस अमल को और भी ज़्यादा एहतेमाम से करना चाहिए और इसका तरीका ये है कि 2-2 रक्कत कर के 8 रकत पढ़ी जाए और उसमें जो भी सूरतें याद हों उनकी ज़्यादा तिलावत की कोशिश की जाए,*
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*☞__ सलातुत तस्बीह का तरीका _,*
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*❉_ इसके दो तरीके मंक़ूल है, किसी भी तरीक़े के मुताबिक यह नमाज़ पढ़ी जा सकती है ,*
*☞ पहला तरीका _,:- इस नमाज़ को पढ़ने का तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक से तिर्मिज़ी शरीफ में मज़कूर है यह है कि तकबीरे तहरीमा के बाद सना यानी " सुब्हाना कल्लाहुमा ..." पढ़ें, फिर तस्बीह यानी सुब्हानल्लाहि वल हमदुलिल्लाहि वा लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर _" 15 मर्तबा पढ़ें, आ'उज़ुबिल्लाहि मिनश शैयतानिर रजीम, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, पढ़ें फिर अल्हम्दु शरीफ और सूरत पढ़े, फिर क़याम में ही रुकू में जाने से पहले ही तस्बीह 10 मर्तबा पढ़ें, फिर रुकू करें और रुकू की तस्बीह के बाद वही कलमात 10 मर्तबा कहे, फिर रुकू से उठकर को़मा में, समी'अल्लाह.., के बाद 10 बार और दोनों सजदों में सजदे की तस्बीह के बाद 10 -10 बार और दोनों सज्दों के दरमियान बैठने की हालत में यानी जलसे में 10 बार वही कलामाते तस्बीह पड़े , इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा और 4 रक़ात में तीन सौ मर्तबा यह तस्बीह हो जाएंगी ।*
*✪_और अगर इन कलमात के बाद "_ वला हौवला वला कु़व्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिययिल अज़ीम _," भी मिला लें तो बेहतर है । क्योंकि इससे बहुत सवाब मिलता है और एक रिवात में इन अल्फाज़ की ज्यादती मनक़ूल है।*
*☞ दूसरा तरीका़ :- दूसरा तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से तिर्मीजी़ शरीफ में मंकूल है वह यह है कि सना के बाद और अल्हम्दु शरीफ से पहले किसी रकात में इन कलमाते तस्बीह को ना पड़े बल्कि हर रकात में अल्हम्दु और सूरत पढ़ने के बाद 15 मर्तबा पड़े और रुकू और कौमा और दोनों सजदों और जलसे में बा तरतीब 10-10 मर्तबा पड़े और दूसरे सजदे के बाद बैठकर यानी जलसा इस्तराहत में 10 मर्तबा पड़े इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा पढ़ें और दोनों क़ायदों में अत्तहियात से पहले पढ़ ले।*
*✪_ यह दोनों तरीके़ सही हैं लेकिन बाज़ फुक़हा ने दूसरे तरीक़े को तरजीह दी है क्योंकि यह हदीस मरफू से साबित है बेहतर यह है कि कभी एक रिवायत पर अमल करें और कभी दूसरी पर ताकि दोनों पर अमल हो जाए,*
*❉__ सलातुत तस्बीह में कोई भी सूरत पढ़ी जा सकती है अलबत्ता अलल तरतीब " तकासुर , असर् , काफिरून और इखलास और कभी " इजा़जु़ल, आदियात, इजा़जा़ और इखलास_," का पढ़ना बेहतर है।*
*✪_अगर तसबीह के कलमात भूलकर किसी जगह 10 से कम पढ़े जाएं या बिल्कुल ना पड़े जाएं तो इसको दूसरी जगह यानी तसबीह पढ़ने के आगे वाले मौक़े में पढ़ ले ताकि तादाद पूरी हो जाए लेकिन रुकू में भूले हुए कलमाते तसबीह को़मा में ना पड़ें बल्कि दूसरे सजदे में पड़े क्योंकि को़मा और जलसा का रुकू व सजदे से तवील करना मकरूह है, कलमाते तसबीह को उंगलियों पर शुमार ना करना चाहिए बल्कि अगर दिल के साथ शुमार कर सकता हो इस तरह की नमाज़ की हुजूरी में फ़र्क ना आए तो यही बेहतर है वरना उंगलियां दबा कर शुमार करें,*
*"_ सलातुल तसबीह में तसबिहात को हाथों से शुमार करना दुरुस्त नहीं और अगर याद ना रहता हो तो उंगलियों को हरकत दिए बगैर महज़ दबाकर याद रखा जा सकता है_,"*
*( दुर्रे मुख्तार- 2/28)*
*📚_ फज़ाइले ज़िक्र _,*
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*☞ _मगफिरत में रुकावट वाले उमूर से तौबा*
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*❉ __ शबे बारात बहुत ही बा बरकत और अज़ीम रात है जैसा कि फज़ीलते तफसील से गुज़र चुकी है,लेकिन कुछ ऐसे भी बद किस्मत लोग होते हैं जो इस रात की बरकत और बिल ख़ुसूस सबसे अहम चीज़ मगफिरते खुदावन्दी से महरूम रह जाते हैं, वह कौन लोग हैं ? कई हदीसों में उनकी निशानदेही की गई है, जिनसे उन मेहरूम होने वालो के मग्फिरत से मेहरूम रह जाने के असबाब भी मालूम होते हैं, ऐसे असबाब और उमूर को मा'ने मग्फिरत उमूर कहा जाता है, जिनमे शामिल होने से हर सूरत में बचा जाए और अगर खुदा न ख़्वास्ता कोई मुब्तिला हो तो फौरन तौबा कर के अल्लाह ताला की तरफ रुजू करना चाहिए, वरना इस अज़ीम और बा बरकत रात में मगफिरत हासिल न हो सकेगी,*
*❉ __(१)_ मुशरिक ( शिर्क करने वाला)*
*(२)_कीना रखने वाला,*
*(३)_वाल्दैन की नाफरमानी करने वाला ,*
*(४)_कता रहमी करने वाला (रिश्ते तोड़नेवाला)*
*(५)_ इज़ार टखनों से नीचे लटकाने वाला (यानी लुंगी पाजामा पेंट को टखनों से नीचे लटका कर रखने वाला)*
*(६)_शराब का आदी ,*
*(७)_क़ातिल _,*
*( ८)_ और ज़ानी,*.
*"_ अल्लाह ताला तमाम मुसलमानों की इन गुनाहों से हिफाज़त फरमाए, आमीन,*
*❉ __ दुआ कीजिए अल्लाह ताला मुझ गुनहगार को भी, आप को भी और हर मोमिन को इन मग्फिरत वाले आमाल की पाबंदी नसीब फरमाए और मुबारक रात की बरकात व मग्फिरत नसीब फरमाए, आमीन (एडमिन हक़ का दाई)*
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