Gharelu Jhagdo Se Nijaat - Padosiyo Ke Jhagde ( Hindi)

🎍﷽ 🎍
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*●• घरेलू झगड़ों से निजात •●*
*●• (पड़ोसियों के झगडे़) •●*
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*⊙⇨दीन ए इस्लाम में कुशादा रुई की तालीमः-*

*★_ दीन ऐ इस्लाम दीने फिरत है। हर इंसान को आपस में प्यार और मुहब्बत से ज़िंदगी गुज़ारने का सबक सिखाता है। इसलिये क़ुरान मजीद में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस बात की तालीम दी कि हमारी जिस बंदे से भी मुलाक़ात हो हम उससे कुशादा रूई के साथ मिलें और अच्छे अंदाज़ से गुफ़्तगू करें। इसमें मुसलमान और गैर मुस्लिम का कोई फ़र्क नहीं।*

*★_ दो इंसान जब आपस में मिलते हैं तो इंसानियत का तकाज़ा यह है कि आपस में इंसानों की तरह मिलें। चुनांचे शरीअत ने कहाः- लोगो सामने मुंह ना फुलाओ ! जब तुम इंसानों से मिलो तो कुशादा चेहरे के साथ मिलो । तेवरियां चढ़ाकर मिलना, मुंह बना कर मिलना, शरीअत ने इसको पसंद नहीं किया।*

*★_ तो सबसे पहले फरमाया कि जब तुम दूसरे को मिलोगे तो एक दूसरे के चेहरे से तुम्हें अंदाज़ा होगा कि तुम्हारे अंदर खुशी है या गुस्सा है, खैर है या शर है? जब तुम खुले चेहरे के साथ मिलोगे, कुशादा चेहरे के साथ मिलोगे, मुस्कुराते चेहरे के साथ मिलेंगे तो दूसरा बंदा तुम्हारे क़रीब आने की कोशिश करेगा। तो मोमिन को चाहिये कि जब भी किसी से मिले तो कुशादा चेहरे के साथ मिले।* 
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*⊙⇨ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नते मुबारकाः-*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदते मुबारका थी, हज़रत आइशा सिद्दीका (रजि०) फरमाती हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब भी घर में तशरीफ लाते थे हमेशा मुस्कुराते चेहरे के साथ आते थे। कुछ नौजवानों को देखा दफ़्तर में, मजलिस में, दोस्तों के साथ खूब गपशप होती है और घर आते हैं तो चेहरे के ऊपर ऐसी संजीदगी होती है कि मालूम नहीं वह किस मुसीबत के अंदर गिरफ्तार हो गए हैं! यह भी खिलाफे सुन्नत है।*

*★_ दो मुसलमानों का मिलना तो बहुत ही बड़ी बात है, शरीअत ने कहा कि इंसान होने के नाते किसी गैर मुस्लिम से भी मिलो तो कुशादा चेहरे से मिलो, मुस्कुरा कर बात करो। दूसरी जगह फरमाया कि जब तुम्हें गुफ़्तगू करनी पड़े तो शीरीं ज़बानी से बात करो,लोगों से अच्छे अंदाज़ से गुफ़्तगू करो,*

*★_ तुम्हारे मुंह से जो गुफ़्तगू निकले उसमें मुहब्बत, हमदर्दी, ग़मगुसारी, शीरीं कलामी होनी चाहिये। आप देखिये कि मोमिन और गैर मोमिन इसमें कोई फर्क नहीं। शरीअत ने इसमें للناس (लिन्नास) का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया यानी इंसानों के लिये।*

*★_ तो यह दो बातें किस क़द्र अहम हैं! और इस्लाम की हक्का़नियत की कितनी प्यारी दलील हैं कि जो हर एक के साथ, खुले चेहरे के साथ शीरीं ज़बानी की गुफ्तगू करने की तालीम देता है।*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि आसानियां करो मुश्किल न करो लोगों के लिये, गोया तीन बातें मालूम हो गईं। एक कुशादा रवी, दूसरा शीरीं कलामी और तीसरा सहूलत व आसानी तो इस दीन की तालीमात किस क़दर खूबसूरत हैं,* 
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*⊙⇨ ज़्यादा गर्मजोशी से मिलने की फजीलतः-*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इर्शाद का मफहूम है कि जब दो मुसलमान भाई आपस में मिलते हैं, तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उन पर सत्तर रहमतें नाज़िल फरमाते हैं। इनमें से उनहत्तर रहमतें उसको मिलती हैं जो दोनों में से ज़्यादा प्यार, ज़्यादा मुहब्बत और ज़्यादा गरमजोशी के साथ मिलता है।*

*★_ क्या खूबसूरत बात कही गई? आपकी आते जाते दर्जनों लोगों के साथ सलामु अलैकुम होती है तो अगर आप खिले चेहरे से सलाम करें, मुहब्बत, प्यार से हाल अहवाल पूछें और मिलने में गर्मजोशी दिखाएं तो फरमाया कि सत्तर रहमतें नाज़िल होंगी और उनमें से उनहत्तर रहमतें उस पर नाज़िल होंगी जो ज़्यादा गर्मजोशी से मिलेगा, जो ज़्यादा मुहब्बत का इज़हार करेगा।*
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*⊙⇨ दो भाई दो हाथों की मानिंद हैं:-*

*★_ एक हदीसे पाक में है कि दो भाईयों की मिसाल दो हाथों की सी है। जिस तरह दोनों हाथ एक दूसरे को धोते हैं उसी तरह जब दो मुसलमान भाई आपस में मिलते हैं तो वह एक दूसरे के गुनाहों के झड़ने का सबब बन जाते हैं। सुब्हानल्लाह ! क्या खबसरत तालीम दी गई! इसका मतलब यह हुआ जब भी दो मुसलमान भाई आपस में मिलते हैं तो उन दोनों का मिलना इस तरह है। जिस तरह दो हाथ एक दूसरे को धोने का सबब बनते हैं, उनके मिलने से उनके गुनाह झड़ जाते हैं।*

*★_ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को मुहब्बत प्यार से मिलना अगर इतना पसंद है तो मुहब्बत प्यार के साथ रहना सहना कितना पसंद होगा ! चुनांचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक मर्तबा सफर पर तशरीफ ले गए एक सहाबी भी साथ थे, रास्ते में मिस्वाक बनाने की ज़रूरत पेश आई, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो मिस्वाकें बनाई उनमें से जो ज़्यादा सीधी थी और खूबसूरत थी वह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबी को दी तो वह सहाबी कहने लगेः ऐ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के प्यारे हबीब सल्ल० ! मेरा जी चाहता है, यह सीधी और खूबसूरत मिस्वाक आप के पास हो। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुस्कुरा के जवाब दिया कि जिस तरह तुम्हारा यह जी चाहता है कि यह मेरे पास हो, तुम मेरे रफीके सफर हो, मेरा भी जी चाहता है कि यह तुम्हारे पास हो।*

*★_ चुनांचे मुहब्बत प्यार से एक दूसरे के साथ रहना, एक दूसरे का इकराम करना, इज़्ज़त करना यह दीन की बुनियादी तालीमात में से है।*
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*⊙⇨ साथ रहने का मजाः-*

*★_ हमारे बुजुर्ग इस तरह रहते थे कि दूसरों को उनके साथ रहने का मज़ा आ जाता था। चुनांचे एक साहब कहते हैं कि मुझे अब्दुल्लाह राज़ी रह० के साथ सफर करने का मौका मिला सफर शुरू होने से पहले उन्होंने कहा कि अच्छा बताओ ! हम में से अमीर कौन है? मैंने अब्दुल्लाह राज़ी रह० से कहाः जी आप सबके अमीरे सफर हैं। उन्होंने कहाः बहुत अच्छा! अब अगर मैं अमीर बन गया तो तुम्हें पूरे सफर में मेरी बात को मानना होगा। मैंने कहा, हाज़िर हूं ।*

*★_ चुनांचे उन्होंने अपने और मेरे सामान को बांधा और अपने सर पे रख लिया। मैंने कहाः जी मुझे उठाने दें कहने लगे कि आप मुझे अमीर मान चुके हैं अब जो मैं कर रहा हूं मुझे करने दें। मैं बड़ा हैरान। चुनांचे दोनों का सामान उन्होंने खुद उठाया, चले, रास्ते में जब खाने का वक़्त आता तो वह खाना मेरे सामने रखते और मुझे हुक्मन ज़्यादा खिलाते हत्ताकि एक जगह बारिश हो गई तो वह अपनी चादर लेकर एक घंटा मेरे ऊपर साया किये रहे ताकि मैं बारिश से बचा रहूं और आराम की नींद सोया रहूं। मैंने कहा कि जी मुझे आपकी खिदमत करनी चाहिये। जब मैं बात करता तो वह कहतेः देखो! आप मुझे अमीर मान चुके हैं। लिहाज़ा अब जो मैं कहूंगा वह आपको करना होगा।*

*★_ तो कहने लगे कि मैं अफसोस ही करता रहा कि काश मैंने उन्हें अमीर ना बनाया होता। मैं तो उनकी खिदमत ही न कर सका, सारी खिदमत उन्होंने अपने ही ज़िम्मे ले ली। अब ऐसे रफीके सफर कहां मिलते हैं? शरीअत ने इस कद्र खूबसूरत अंदाज़ से मिल जुल कर रहने की तालीमात दी कि अगर बंदा शरीअत के मुताबिक रहे तो उसको ज़िंदगी गुज़ारने का मज़ा आ जाए।*
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*⊙⇨तालीमाते शरीअतः-*

*★_ चुनांचे जब एक दूसरे के साथ रहें तो शरीअत कहती है कि एक दूसरे से झूठ न बोलें, खयानत न करें, ग़ीबत न करें, एक दूसरे के राज़ फाश न करें। बल्कि हमारे असलाफ फरमाया करते थे "दोस्ती के क़ाबिल वह शख़्स होता है कि जिसको तेरे किसी ऐब का पूर पता हो और फिर वह तेरे ऐब को छुपाए" बल्कि उनके अल्फ़ाज़ यह थे "जो तेरे ऐब को इस तरह जाने जिस तरह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तेरे ऐब को जानते हैं और फिर वह तेरे ऐब को इस तरह छुपाए जिस तरह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तेरे ऐब को छुपाते हैं"। अल्लाहु अक्बर कबीरा।*

*★_ यह बात पढ़कर हैरान हो जाते हैं। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के अखलाक़ से अपने आपको मुज़य्यन करो। इसका नमूना देखना हो तो असलाफ की जिंदगियों को देखना चाहिये।चुनांचे फरमाया करते थे कि जो शख़्स चार हालात में बदल जाए, चार सूरते हाल में जो बदल जाए वह नाका़बिले भरोसा होता हैः खुशी मिले और वह अपने साथियों को भूल जाए। गुस्सा में अपने ताल्लुक़ को भूल जाए। किसी चीज़ की तमअ हो और अपने ताल्लुक़ को भूल जाए। ख़्वाहिशे नफ़्सानी की खातिर ताल्लुक़ का ख़्याल न रखे, तो फरमाया कि ऐसा आदमी नाका़बिले भरोसा होता है, दोस्ती के क़ाबिल नहीं होता।*
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*⊙⇨ जो अपने लिये पसंद वहीं दूसरों के लियेः-*
  
*★_ अबू दर्दा रज़ि० एक जगह गए तो दो बैल जो हल में इस्तेमाल होते थे इकट्ठे बैठे हुए थे। यह जैसे ही क़रीब से गुज़रे तो एक बैल उठा और साथ ही दूसरा भी उठ गया। अबू दर्दा रज़ि० की आंखों में से आंसू आ गए, फरमाने लगे देखो! यह जानवर हैं, बैल हैं, एक उठा है तो दूसरा उसके साथ उठ खड़ा हुआ। अगर यह अपने साथ को इस तरह निभा सकते हैं तो क्या इंसान एक दूसरे के साथ को इस तरह नहीं निभा सकते? इन्ही जानवरों को देखकर भी वह सबक़ हासिल करते थे।*

*★_ चुनांचे दीने इस्लाम ने एक बहुत ही प्यारी तालीम दी, यह कहा कि जो तुम अपने लिये पसंद करते हो वही तुम दूसरे के लिये पसंद करो। यह ज़िंदगी गुज़ारने का इस कद्र खूबसूरत उसूल है कि पूरी दुनिया में आप चले जाएं आपको इससे ज्यादा हसीन और खूबसूरत उसूल और कोई नहीं मिल सकता।*

*★_ अब इंसान चाहता हे कि लोग उसकी इज़्ज़त करें तो उसे चाहिये कि वह दूसरों की इज़्ज़त करे, इंसान चाहता है कि दूसरे उसकी ग़लतियों को मुआफ कर दें तो वह दूसरों की ग़लतियों को मुआफ करे, इंसान चाहता है कि उसके घर की इज़्ज़त की लोग हिफाज़त करें तो उसे चाहिये कि दूसरों की इज़्ज़त की हिफाज़त करे। यह कितना प्यारा उसूल है कि जो तुम अपने लिये पसंद करते हो वही चीज़ तुम दूसरों के लिये पसंद करो।* 
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*⊙⇨ भलाई हर एक के लिये :-*

*★_ चुनांचे शरीअत ने कहा कि इंसान को चाहिये कि हर एक के साथ भलाई करे अगर्चे नेक हो या बद हो यअनी नेक के साथ भी भलाई करे और बुरे के साथ भी भलाई करे। बुरे के साथ भलाई क्या होगी कि प्यार मुहब्बत के साथ उसको बुराई से रोक ले, ऐसी मुहब्बत दे कि वह दूसरा बुराई से बाज़ आ जाए।*

*★_ किसी ने कहा कि नेक तो भलाई के क़ाबिल होता है बद तो भलाई के क़ाबिल नहीं होता। उन्होंने जवाब दिया कि अगर्चे वह इस काबिल नहीं होता मगर तुम इस क़ाबिल हो कि तुम दूसरे के साथ भलाई का मुआमला करो। तो अपने को देखो इसलिये कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने नेक और बद हर एक के साथ भलाई करते हैं और हमें अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के ख़ुल्क़ को अपने अंदर लेना है।*

*★_हमारे हज़रत मुर्शिद आलम रह० हरम शरीफ में बैठे थे तो वहां बअज़ दफा मांगने वाले भी आ जाते हैं। इन मांगने वालों में बड़े सिहतमंद नौजवान भी नज़र आ जाते हैं तो एक शख़्स हज़रत की खिदमत में अर्ज़ करने लगा कि हज़रत ! बहुत मांगने वाले यहां आते हैं। हमें क्या पता कि कौन मुस्तहिक है या मुस्तहिक नहीं, तो हम क्या करें?*

*★_ हज़रत मुर्शिद आलम रह० ने उसकी तरफ देखा और उससे पूछा कि अच्छा तुम यह बताओ कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जो कुछ तुम्हें दे रहा है उसके तुम मुस्तहिक़ हो? उसने कहा नहीं। तो फ़रमाया कि जब तुम्हें मुस्तहिक़ होने के बगैर भी सब कुछ दे रहा है तो तुम भी अल्लाह के बंदों को दो। हां इतना फ़र्क है कि जो ज़्यादा मुस्तहिक नज़र आए उसको ज़्यादा दे दो जो कम नज़र आए उसको ज़रा कम दे दो, दिया ज़रूर करो !*

*★_ और फिर एक अजीब बात समझाई, फरमाया कि इस नियत से दिया करो कि अल्लाह मैं तेरा शुक्र अदा करता हूं कि तूने मुझे लेने वालों में से नहीं, देने वालों में से बनाया है। अल्लाह का शुक्र अदा किया करो! देखें अल्लाह वाले कैसे अच्छी और प्यारी बातें दूसरे बंदे के दिल में उतार देते हैं।* 
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*⊙⇨सिफ्ते सत्तारी पैदा करने की ज़रुरतः-*

*★_ चुनांचे मिल जुल कर रहना हो तो इंसान एक दूसरे के साथ प्यार और मुहब्बत से रहे और अगर किसी के ऐब नज़र आएं तो उनकी पर्दा पोशी करे। उसूल याद रखें! किसी के पोशीदा ऐबों को हमेशा पोशीदा रखना चाहिये। सतर पोशी, ऐबों को छुपा लेना अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की सिफ्त है और बंदे को भी यह सिफत अपने अंदर रखनी चाहिये। और अगर हम गौर करें तो हम तो जी ही इसी सिफ्त के सदके रहे हैं,*

*★_ सच्ची बात है। एक बुजुर्ग फरमाते हैं:-"ऐ दोस्त! जिसने तेरी तारीफ की उसने दर हक़ीक़त तेरे परवरदिगार की सिफ्ते सत्तारी की तारीफ की।" वह तेरी तारीफ नहीं कर रहा। तेरी हक़ीक़त तो ऐसी है अगर खुल जाए तो लोग तुझे मुंह न लगाएं । तो हम तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की सिफ्ते सत्तारी के सदके ही जी रहे हैं। अगर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमारे अंदर का हर पोल खोल दें तो हम तो पूरी दुनिया में ज़लील हो जाएं।*

*★_ हदीसे पाक में आता है अल्लाह तआला क़यामत के दिन एक बंदे को खड़ा फरमाएंगे और उसके गिर्द अपनी रहमतों की चादर को तान लेंगे पर्दा कर लेंगे, मख़्लूक से वह बंदा छुप जाएगा अब उस बंदे को कहेंगे ऐ मेरे बंदे ! तूने फलां दिन यह किया, फलां दिन यह किया, वह कहेगा जी! उसके बड़े बड़े सब गुनाह उसको गिनवाएंगे। हत्ताकि उस बंदे को यक़ीन हो जाएगा कि आज मैं जहन्नम की आग से बिल्कुल नहीं बच सकता। जब उसके दिल में पक्का यक़ीन हो जाएगा तो अल्लाह तआला फरमाएंगेः गुनाह तो तू करता था लेकिन हमसे डरता भी था, गुनाहों पर छुप छुप कर रोता भी था। हमने दुनिया में भी तेरे ऐबों की पर्दा पोशी की, हम यहां भी तेरे ऐबों की पर्दा पोशी फरमाते हैं। जाओ! इस छुप छुप कर रोने की वजह से हमने तुम्हारे गुनाहों को नेकियों में बदल दिया।*

*★_ जब रहमत का पर्दा हटेगा तो मख़्लूक देखेगी कि इस बंदे के नामा ए आमाल में एक भी गुनाह दर्ज नहीं। लोग सोचेंगे कि शायद अंबिया में से यह कोई नबी हैं कि जिसने कभी गुनाह का इर्तिकाब ही नहीं किया। अल्लाहु अकबर कबीरा......ऐ मौला! आप कितने सत्तार हैं? किस कद्र मेहरबान हैं? ऐबों को देखने के बावजूद आप बंदे के ऊपर सत्तारी का मुआमला फरमाते हैं।*

*★_ हमें भी इसी तरह करना चाहिये कि पड़ोसी चूंकि एक दूसरे के बहुत करीब होते हैं इसलिये उन्हें एक दूसरे के ऐबों का जल्दी पता चलता है तो शरीअत ने कहा कि छुपते ऐबों को छुपाएं, हां कोई एलानिया ऐब करे, खुल्लम खुल्ला करे तो अब तो उसने अपने ऐब को खुद ही ज़ाहिर कर दिया। तो छुपे ऐबों को हमेशा छुपाने की कोशिश करनी चाहिये। यह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के ख़ुल्क़ में से है।*
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*⊙⇨ रुसवा करोगे रुसवा होगे -*

*★_ एक और बात यह कि जो बंदा दूसरों के ऐबों को खोलने का आदी हो, दिल के कानों से सुनिये! फरमाया कि जो बंदा दूसरों के ऐबों को खोलने का आदी हो यह बंदा अपनी जिंदगी में देखेगा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसके ऐबों को खोल कर उसको रुसवा करेंगे, चाहे उसे घर वालों के सामने ही रुसवा करें, यह दूसरों को रुसवा करता है अल्लाह तआला इसको रुसवा करेंगे।*

*★_ सय्यदना उमर रज़ि० की आदते मुबारका थी, रात को आप चक्कर लगाते थे, देखते थे कि रिआया किस हाल में है।अमीरुल मोमिनीन थे, ज़िम्मेदारी भी बनती थी। चुनांचे आप एक मकान के करीब से गुज़रे उसमें कुछ रौशनी नज़र आई, कुछ बातों की आवाज़ सुनाई दी। आप को महसूस हुआ यहां ज़रूर कोई न कोई गड़बड़ है।आप खड़े होकर देखते सोचते रहे। फिर अंदर से कभी कहकहों की आवाज़ आती। कभी किसी मर्द और औरत की आवाज़ आती हत्ताकि आप की बसीरत ने यह कहा कि अंदर कोई गुनाह हो रहा है। दरवाज़ा बंद था।*

*★_ उमर फारूक रज़ि० थे। हमिय्यते इस्लामी दिल में बहुत थी। चुनांचे उन्होंन क्या किया कि दीवार के ऊपर चढ़ गए। जब दीवार के ऊपर चढ़कर उन्होंने घर के अंदर झांक कर देखा तो एक मर्द था और एक औरत थी। वह औरत उसकी बीवी नहीं थी बल्कि उस औरत को उसने गुनाह के लिये रात को अपने पास बुलाया था। उमर फारूक रजि० ने जब उसको देखा तो उसको दूर से कहा ओ ज़िना करने वाले ! अल्लाह से खौफ कर, अल्लाह से डर !*

*★_ जब आपने उसको यह कहा तो उसने आगे से जवाब दिया कि ऐ अमीरुल मोमिनीन! मैंने एक गुनाह किया आपने तीन गुनाह किये। पूछा कि वह कैसे? उसने कहा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मजीद में फरमाया कि तुम तजस्सुस न करो। आपने तजस्सुस किया और मेरे बंद घर के अंदर मुझे देखा। दूसरी कि तुम घरों में उनके दरवाज़ों से दाखिल हो और आप दरवाज़े के बजाए दीवार पर चढ़ कर देख रहे हैं। क़ुरान मजीद ने कहा कि तुम बगैर इजाज़त के दाखिल न हो और अहले खाना को सलाम करके घर में दाखिल हो और आपने बगैर इसके मुझसे गुफ्तगू की।*

*★_ जब उसने यह कहा तो सय्यदना उमर रज़ि. को भी यह हुआ कि इसने जो यह तीन बातें की हैं, हैं तो यह सच्ची। तो उमर रज़ि० ने फरमाया कि अच्छा अगर तू सच्ची तौबा का वादा करे तो मैं इस गुनाह को मुआफ करने का वादा करता हूं। चुनांचे उसने सच्ची तौबा की कि मैं आज के बाद इस गुनाह का मुर्तकिब नहीं हूंगा। उमर रजि० ने कहा कि अच्छा तुम मेरी गलती को मुआफ़ कर दो और यह कहकर फिर आप वहां से आगे तशरीफ ले गए।* 
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*⊙⇨पड़ोसी के तीन दर्जेः-*

*★_शरीअत ने कहा कि पड़ोसी के तीन दर्जे होते हैं:-*
*(1) एक दर्जा तो यह कि पड़ोसी गैर मुस्लिम हो। यह भी अच्छे अख़लाक़ और हुस्ने सुलूक का मुस्तहिक है, इसलिये कि पड़ोसी जो हुआ।*

*★_(2) दूसरा दर्जा यह कि पड़ोसी भी हो और मुसलमान भी हो। अब उसमें दो हक़ आ गये, पड़ोसी होने का भी हक़ और मुसलमान होने का भी हक़।*
*(3)_ एक तीसरा दर्जा कि पड़ोसी भी है, मुसलमान भी है और रिशतेदार भी है, क़राबतदार भी है, फरमाया कि इसका हक़ तीन गुना हो गया।*

*★_ सोचिये कि जब शरीअत गैर पड़ोसी का भी हक़ कायम करती है तो अगर क़राबतदार, रिशतेदार एक दूसरे के पड़ोसी होंगे तो उनका एक दूसरे पर कितना हक़ होगा !*

*★_नबी सल्ल० ने एक सहाबी को कहा कि तुम मस्जिद के दरवाज़े पर खड़े होकर एलान करो कि जहां बंदे का घर होता है उसके दाएं बाएं आगे पीछे हर तरफ चालीस घरों तक जितने घर होते हैं वह उसके पड़ोसी होते हैं। तो पड़ोसी सिर्फ वही नहीं होता कि जिसकी दीवार उससे इकट्ठी हो, नहीं! नबी सल्ल० ने फरमाया कि पड़ोस चालीस मकानों तक होता है। और चारों अतराफ में चालीस मकान, यह तो पूरा मुहल्ला बन जाता है। तो यूं समझिये कि शरीअत की नज़र में पूरे मुहल्ला के लोग पड़ोस के हुक्म में होते हैं।*

*★_ चुनांचे नबी सल्ल० ने फरमाया कि जिब्राईल अलै० मेरे पास इतनी दफा पड़ोसी के हुक्म की ताकीद के लिये आए कि मुझे यह डर होने लगा कि कहीं बंदे के मरने के बाद पड़ोसी को उसकी विरासत में न शामिल कर लिया जाए। इससे हम अंदाजा़ लगा सकते हैं कि पड़ोसी का कितना हक़ होगा _,*
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*⊙⇨ पड़ोसी के हुकूक:-*

*★_ चुनांचे पड़ोसी का हक़ है कि उन्हें अच्छे नाम से पुकारे, सलाम में पहल करे, मिलें तो उन्हें बिठाने में पहल करे, हदिया भेजने में पहल करे, अपने घर के धुवें से, कूड़ा कर्कट से उसे परेशान न करे, हत्ता कि अगर फल खरीद कर लाए तो या तो पड़ोसी को हदिया दे वर्ना इस तरह छुपाकर खाए कि पड़ोसी के बच्चों को पता न चले, ऐसा न हो उनका दिल टूटे कि हमें हमारे वालिदैन ने फल क्यों न लाकर दिये।*

*★_ फरमाया कि तुम अपनी दीवार को इतना बुलंद न करो कि हमसाए की धूप रुके या उसकी हवा रुक जाए। उसके बेटे या उसके गुलाम से गुफ़्तगू करनी हो तो शफक़त की गुफ़्तगू करो। ज़रूरत के वक़्त वह कर्ज़ मांगे और तुम देने की पोज़ीशन में हो तो पड़ोसी को इंकार न करो। अपने पड़ोसी की ग़ीबत न करो। उसकी मदद करो।पड़ोसी की गैर मौजूदगी में अगर कभी उसका तज़किरा छिड़े तो तुम उसकी साईड लो और उसकी हिमायत किया करो। वह तुम्हारा पड़ोसी है।*

*★_ ज़िंदगी में भी उसके लिये दुआ मांगो और उसकी वफात के बाद भी उसके लिये दुआ मांगते रहो।पड़ोसी के दुशमन के साथ तुम कभी अपनी दोस्ती मत करो। सुब्हानल्लाह ! क्या अजीब बात की! फरमाया देखो ! जो तुम्हारा पड़ोसी है यह तो तुम्हारा क़रीबी हो गया अब अगर उसकी किसी के साथ दुशमनी है तो तुम उसके साथ दोस्ती के ताल्लुक़ात मत जोड़ो, इससे तुम्हारे पड़ोसी को ईज़ा पहुंचेगी।*

*★_ पड़ोसी की जान, माल, इज़्ज़त आबरू की हिफाज़त तुम्हारे ज़िम्मा है। इसलिये ज़िना का गुना होता है लेकिन शरीअत ने कहा कि जो पड़ोसी की औरत से ज़िना करे उसके गुनाह से कई गुनाह इस बंदे को सज़ा ज़्यादा होती है। फरमाया कि तुम उसके घर में न झांको। बात करने का मौक़ा हो तो दरवाज़ा खटखटाकर एक तरफ को हट जाओ ऐसा न हो कि दरवाज़ा खुले तो बेपर्दगी का एहतिमाल हो।*

*★_ पड़ोसी को खौफ जुदा करो ! ऐसा काम न करो कि जिससे तुम्हारा पड़ोसी ख़ौफ़ज़दा रहे। कई लोग होते हैं कि इर्दगिर्द के लोगों को दबा कर रखते हैं। शरीअत ने कहाः ऐसा कोई काम न करो कि तुम्हारे पड़ोसी तुमसे खौफज़दा रहें। उससे तीन दिन से ज़्यादा नाराज़गी की हालत में भी कलाम बंद न करो। उससे कृतअ ताल्लुक़ी नहीं कर सकते इसलिये कि नाराज़ होंगे तो साफ ज़ाहिर है कि गीबत करेंगे।*
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*⊙⇨ अजीज रिशतेदारों से भी ज़्यादा हक़ पड़ोसी का है:-*

*★_ शरीअत ने कहा कि अज़ीज़ रिशतेदारों से भी ज़्यादा हक़ पड़ोसी का है इसलिये कि वह क़रीब होता है। और वाक़ई वक़्त बेवक़्त पड़ोसी ही काम आते हैं। दुख सुख में भी वही शरीक होते हैं।*

*★_ जिसे पड़ोसी अच्छा कहें, अल्लाह की नज़र में वह अच्छा है, चुनांचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक अजीब बात फरमाई। फरमाया कि अगर पड़ोसी तुझे अच्छा कहते हैं तो अल्लाह की नज़र में भी अच्छा है और अगर पड़ोसी तुझे बुरा कहते हैं तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की नज़र में भी तू बुरा है।*

*★_ औरतें आम तौर पर नाजुक ज़हन की होती हैं बअज़ दफा एक बात का उल्टा मतलब ले लेती हैं, उल्टा असर ले लेती हैं, यहीं से झगड़ों की इब्तिदा होती है। लिहाज़ा जितने करीब के पड़ोसी होते हैं उतने एक दूसरे के साथ झगड़े भी ज़्यादा होते हैं। हुस्ने मुआशिरत यह है कि पड़ोसियों के साथ अच्छा सुलूक रखे ताकि उनकी ज़बान से तारीफ निकले और आप यह समझ कर रहें कि अगर पड़ोसी की ज़बान से तारीफें निकल आई तो यूं समझें कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के दफ़्तर में हमारी तारीफ लिख दी गई।* 
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*⊙⇨पड़ोसी को इस्तेमाल की चीज से इंकार न करें:-*

*★_ रोज़मर्रा की इस्तेमाल की चीजें अगर पड़ोसी मांगें तो इंकार न करें। अगर आप पड़ोसी से कोइ चीज़ मांगें तो उसे बेएहतियाती से इस्तेमाल न करें। झगड़े यहीं से शुरू होते हैं कि चीज़ मांगी, इस्तेमाल करने में बेएहतियाती कर ली, इस्तेमाल करने के बाद भी पड़ी रही, लौटाना ही भूल गई। एहसान फरामोश न बनें।*

*★_पड़ोसियों से हसद से बचेंः- पड़ोसियों के साथ हसद से भी बचें। उसके बेटे को नौकरी मिल गई, उसकी बेटी को अच्छा रिश्ता मिल गया, इन चीज़ों से हसद आता है। अगर अल्लाह ने उसके साथ अच्छा किया तो आप भी खुश हों कि अल्लाह उन्हें और ज़्यादा इज़्ज़तें दे। माल पैसे पर नज़रें न रखें। अल्लाह के नज़दीक इज़्ज़त वाला वह है जो ज़्यादा मुत्तकी़ है।* 
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*⊙⇨सहेली भी पड़ोसन के हुक्म में है:-*

*★_ शरीअत ने कहा कि सहेली भी पड़ोसन के हुक्म में होती है। कई मर्तबा औरतों की आपस में प्यार मुहब्बत हो जाती है। दोनों क्लास फेलोज़ थीं, शादी के बाद भी एक दूसरे के साथ प्यार मुहब्बत रहा या कहीं मुलाक़ात हुई तबीअतें एक दूसरे की तरफ मुतवज्जेह हुई, तो ऐसी औरतें एक दूसरे को सहेली कहती हैं। शरीअत ने कहा कि सहेली के हुकूक भी पड़ोसन के हुक्म में।*

*★_ मगर यहां एक बात ज़रा तवज्जोह तलब भी है कि औरतों की आपस की दोस्ती बड़ी अजीब होती है, कभी एक दूसरे के साथ इतनी दोस्ती कि हाए मैं कुर्बान और कभी छोटी सी बात पर एक दूसरे की दुश्मन नम्बर एक। कभी तो इतनी मुहब्बत कि एक जैसे कपड़े पहन रही हैं कि जैसे कपड़े यह पहनेंगी वैसे कपड़े मैं बनवाऊंगी, और कभी छोटी सी बात पर एक दूसरे से वेर पड़ जाता है। इसी को इफरात व तफरीत कहते हैं।*

*★_ लिहाज़ा हमारी समझ में तो यह आता है कि किसी को सहेली बनाना ही नहीं चाहिये, अगर कोई औरत सहेली बनाना चाहे तो अपनी बहनों को बनाए, अपनी मां को बनाए। कितनी अच्छी सहेली! जो हर वक़्त आप के घर में मौजूद होगी, हर वक़्त आप के साथ होगी। घर की चार दीवारी से बाहर किसी से क्या दिल लगाना, परेशानी होती है। तो आसान तरीक़ा यह है कि अपनी बहनों को अपनी सहेली बनाओ अपनी वालिदा को अपनी सहेली बनाओ।*
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*⊙⇨ बच्चों के झगड़े में हिस्सेदार न बनेंः-*

*★_ हमसाए से झगड़े का एक बड़ा सबब आम तौर पर बच्चे बन जाते हैं वह आपस मे मिल कर खेलते हैं, झगड़ते हैं और उनका झगड़ा फिर बड़ों में आ जाता है, (इस पर अलहम्दु लिल्लाह एक मुस्तकि़ल पोस्ट पहले हो चुकी है) और अब आप समझ गए होंगे कि बच्चों की लड़ाई में बड़ों को हिस्सेदार नहीं बनना चाहिये।*

*★_ यह भी ज़हन में रखें कि हमारा अपना अमल दूसरे के रद्दे हमल को मुतअय्यन करता है। हम मुहब्बत का हाथ बढ़ाएंगे तो दूसरा भी मुहब्बत का हाथ बढ़ाएगा, हम अगर खिंचे रहेंगे तो दूसरा भी खिंचा रहेगा। जो हम करेंगे इसी का रद्दे अमल आगे से ज़ाहिर होगा। तो हमें चाहिये कि हम पड़ोसियों के साथ मुहब्बत का ताल्लुक़ रखें क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें इसका हुक्म दिया।*

*★_ सुनिये और दिल के कानों से सुनिये! चूंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के प्यारे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हदीसे पाक में फरमाया कि जो अल्लाह पर ईमान रखता है और यौमे आखिरत पर ईमान रखता है, उसे चाहिये कि अपने पड़ोसी की इज़्ज़त करे।*
*★_अब सोचिये कि इतने वाज़ेह लफ़्ज़ों में एक बात कही गई कि अगर तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो और अल्लाह की मुलाक़ात पर ईमान रखते हो तो तुम्हें चाहिये कि अपने पड़ोसी के साथ इज़्ज़त का मुआमला करो।*
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*⊙⇨पड़ोसी से हुस्ने सुलूक की तालीम:-*

*★_ एक बंदा क़यामत के रोज़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुजूर पेश होगा। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाएंगे, मेरे बंदे मैं भूका था तूने मुझे खाना ही न खिलाया, मैं प्यासा था तूने मुझे पानी ही न पिलाया, मैं बीमार था तूने मेरी तबीअत ही न पूछी, वह बंदा बड़ा हैरान होगा, कहेगाः ऐ रब्बे करीम ! आप इन चीज़ों से मंज़ा और मुबर्रा हैं, आपको भूक प्यास और बीमारी का क्या मअनी?*

*★_ फिर अल्लाह तआला फरमाएंगे कि देखो कि फलां मौक़ा पर तुम्हारा पड़ोसी भूका था, अगर तुम ने उसे खाना खिलाया होता तो ऐसे ही होता कि गोया तुमने मुझे खाना खिलाया, तुम उसे पानी पिलाते ऐसे ही होता जैसे तुमने मुझे पानी पिलाया और अगर तुम उसकी तबअ पुर्सी, इयादत करते ऐसे ही होता जैसे तुमने मेरी इयादत की।*

*★_ अब ज़रा सोचिये कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अगर यूं फरमाएंगे कि पड़ोसी की इयादत करना ऐसे ही है जैसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इयादत करना और किन अलफाज़ में पड़ोसी के साथ हुस्ने सुलूक की तालीम दी जाए। मुझे तो लगता है कि इसके बाद अलफाज़ ही खत्म हो जाते हैं। अल्लाहु अकबर कबीरा!* 
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*⊙⇨ सात घरों का चक्करः-*

*★_ हमारे अकाबिर पड़ोसी के साथ इतना अच्छा सुलूक करते थे कि दौरे सहाबा की बात है कि एक घर में बकरी का गोश्त बनाया गया। उन्होंने सोचा कि इस बकरी की जो सिरी है वह हम हमसाए के घर भेज देते हैं, वह पका कर खा लेंगे। उन्होंने वह सिरी हमसाए के घर में भेज दी। हमसाए की औरत ने सोचा कि हमारे घर में तो सब्ज़ी है हम पका ही लेंगे, पता नहीं हमारे फलां पड़ोसी के घर में कुछ है या नहीं यह सिरी उनके घर में भेज देती हूं, उसने वह सिरी उनके घर में भेज दी।*

*★_ जब तीसरी पड़ोसन के घर में पहुंची तो उसने सोचा कि मेरे घर में तो दाल है, पका ही लूंगी चलो मैं यह अपनी फलां पड़ोसन के घर में भेज देती हूं, उसने आगे चौथे घर में भेज दी। चौथी ने भी यही सोचा, पहले से सालन मौजूद है फलां के घर भेज देती हूं उसने आगे पांचवीं के घर भेज दी, पांचवीं ने भी यही सोचा कि मैं अपनी फलां पड़ोसन के घर में भेज देती हूं, उसने भी आगे भेज दी, तो इस तरह वह सिरी लौट कर उसी घर में आई जहां से वह चली थी।*

*★_ छः (6) घरों में से होकर वह बिल आखिर उसी घर में वापस आती है, इतना एक दूसरे के साथ मुहब्बत प्यार का ताल्लुक़ होता था।*
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*⊙⇨औरत घोड़े और घर में बरकतः-*

*★_ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि औरत, घोड़े और घर के अंदर एक बरकत होती है। सहाबी ने अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के प्यारे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! वह क्या बरकत है?फरमाया कि औरत की बरकत तो यह है कि उसका महर कम हो, शादी करना उससे आसान हो, उसके अंदर नेकी दीनदारी हो, यह औरत के अंदर बरकत होती है।*

*★_ घोड़े के अंदर बरकत यह है कि वह सवार को आसानी से सवारी करने दे, उसे लात वगैरा न मारे।*
*"_और घर की बरकत यह है कि घर खुला हो और घर के पड़ोसी नेक और अच्छे हों। यह घर के अंदर बरकत होती है।*

*★_ लिहाज़ा हमारे अकाबिर जब घर खरीदने या बनाने लगते थे तो पड़ोस को पहले देखा करते थे। पहले पड़ोस बाद में घर इसलिये अकसर अहबाब मस्जिद के करीब घर बनाते थे कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से बेहतर पड़ोसी और कौन हो सकता है।*
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*⊙⇨पड़ोस की की़मतः-*

*★_ अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक रह० एक बुजुर्ग थे। उनके पड़ोस में एक यहूदी रहता था। यहूदी ने कहीं और जाना था, सोचा कि मैं अपना मकान बेचता हूं। एक मुसलमान उसका मकान खरीदने के लिये पहुंचा। उसने कहा कि जी मकान की क्या क़ीमत मांगते हैं? उसने कहा कि दो हज़ार दीनार। वह खरीदार बड़ा हैरान हुआ कि इतनी ज़्यादा क़ीमत। कहने लगा कि इस इलाके में मकान एक हज़ार दीनार में आराम से मिल जाते हैं? यहूदी ने जवाब दिया कि एक हज़ार दीनार तो मकान की क़ीमत है और दूसरा हज़ार दीनार अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक के पड़ोस की कीमत है।*

*★_ सोचें कि एक वक़्त ऐसा था कि हम कितने अच्छे हुस्ने सुलूक से ज़िंदगी गुज़ारते थे कि हमारे पड़ोस के मकानों की कीमतें बढ़ जाया करती थीं। काश अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें ऐसा ही पड़ोसी बना दे।* 
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*⊙⇨पड़ोसी को ईज़ा पहुंचाने का अज़ाबः-*

*★_ और अगर हम पड़ोसी को ईज़ा देते हैं, तकलीफ देते हैं, उसके हुक़ूक़ पूरे नहीं करते तो यह भी ज़हन में रखिये कि अल्लाह की तरफ से उस पर अज़ाब भी है। चुनांचे शरीअत ने कहा कि जो शख़्स पड़ोसी का दिल दुखाता होगा अल्लाह तआला उसको क़यामत के दिन जहन्नम में डालेंगे और उसको खारिश की बीमारी में मुब्तला कर देंगे। और वह खारिश की बीमारी ऐसी होगी कि यह अपने नाखुनों से अपने गोश्त को खुजाना शुरू करेगा, इतना खुजाएगा कि गोश्त कट कर उसमें से हड्डियां नज़र आने लगे जाएंगी।*

*★_ इतना खुजाएगा इतनी खारिश होगी। फिर जिस्म ठीक कर दिया जाएगा फिर खारिश महसूस होगी और यह अपने जिस्म को फिर खुजाएगा हत्ताकि गोश्त कट कर फिर हड्डियां नज़र आने लग जाएंगी। फ़रिश्ते पूछेंगेः इसको यह अज़ाब क्यों मिला? बताया जाएगा कि यह पड़ोसी का दिल दुखाता रहता था, इसके बदले अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इसको जहन्नम में यह अज़ाब दिया।* 

*★_ चुनांचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने तज़किरा हुआ कि ऐ अल्लाह के प्यारे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! एक औरत है नमाज़ें भी पढ़ती है, रोज़ा भी रखती है, नेक पर्दादार भी है मगर ज़बान की तेज़ है, पड़ोसी के साथ उसकी तल्ख कलामी होती रहती है। पड़ोसी खुश नहीं हैं पड़ोसियों का दिल दुखाती है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो औरत पड़ोसियों का दिल दुखाती है अपने रोज़े नमाज़ों के बावजूद क़यामत के दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसको जहन्नम के अंदर डालेंगे,*

*★_ इतनी वज़ाहत से नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह बात बता दी कि अगर पड़ोसी का दिल दुखाया तो अपनी नेकी और नमाज़ों के बावजूद जहन्नम में जाएंगे।
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*⊙⇨ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को सुलह पसंद हैः-*

*★_ कई दफा मां बाप बहन भाईयों के घर करीब ही चार दीवारी के अंदर बना देते हैं। अब यह बहन भाई भी हुए और पड़ोसी भी हुए। और देखा यह गया है कि सबसे ज़्यादा झगड़े भी यहीं होते हैं। तो तसव्वुर कीजिये कि भाई भी है, ईमान वाला भी है, पड़ोसी भी है लेकिन फिर उसके साथ अंदर की लड़ाईयां हैं, रकाबतें और अदावतें हैं। तो क़यामत के दिन जहन्नम की आग से हमें बचना कैसे नसीब होगा?*

*★_ आज दिल में यह फैसला कर लीजिये कि हमने पड़ासियों के हुक़ूक़ में आज तक जो कोताही की हम उससे तौबा करते हैं। हम उन पड़ोसियों से भी अच्छे अलफाज़ में मुआफी मांग लेंगे और आइंदा हुस्ने सुलूक, मुहब्बत प्यार रहने की कोशिश करेंगे। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को सुलह बहुत पसंद है। चुनांचे हदीसे पाक में एक अजीब मज़मून बताया गया कि क़यामत के दिन सबसे पहले जो दो आदमी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के सामने मुकद्दमा पेश करेंगे वह पड़ोसी होंगे।*

*★_ क़यामत के दिन जो दो बंदे अल्लाह के सामने हुकूकुल इबाद में अपना मुकद्दमा पेश करेंगे वह पड़ोसी होंगे। उनमें एक कहेगाः इसने मेरा दिल दुखाया, मुझे परेशान किया, बड़ा नेक नमाज़ी था, मुझे सताता था, अल्लाह मुझे अब इसका बदला दिलवाइये। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाएंगे कि अच्छा तुम इसकी नेकियां ले लो। अब जब नेकियां लेने लगेगा, तो यह बंदा उसकी ज़िंदगी की सारी नेकियां ले लेगा। पूरी नेकियां लेने के बाद फिर भी मुतमइन नहीं होगा।*

*★_ कहेगा! अल्लाह! इसके पास नेकियां थोड़ी हैं, मुझे तो इसने ज़्यादा सताया है, मुझे ज़्यादा नेकियां चाहियें। अल्लाह तआला फरमाएंगे अच्छा तमाम अपने गुनाह इसके सर डाल दो। चुनांचे यह पड़ोसी अपने सारे के सारे गुनाह उसके सर पर डाल देगा और फिर कहेगाः ऐ अल्लाह! सारे गुनाह उसके सर डालने के बावजूद जो इसने मेरा दिल दुखाया था, मेरा दिल भी खुश तो नहीं हुआ, अल्लाह तआला फरमाएंगेः अच्छा तुम ज़रा फलां तरफ देखो! यह शख़्स उस तरफ देखेगा तो उसे जन्नत के मकान नज़र आएंगे, इस कद्र खूबसूरत, इतने प्यारे ! इन मुक़ामात की तरफ देखकर उस बंदे के दिल में यह तमन्ना होगी कि मैं इन मकानों में चला जाऊं और वहां जाकर रहूं। अल्लाह तआला फरमाएंगेः ऐ मेरे बंदे ! क्या तू इन मकानों में जाना चाहता है? वह कहेगा या अल्लाह! मैं जाना चाहता हूं। अल्लाह तआला फरमाएंगेः अच्छा अगर तुम अपने इस भाई को मुआफ कर दो तो मैं तुम्हें इन मकानों में जगह दे दूंगा।*

*★_ चुनांचे यह पड़ोसी जिसका दिल दुखा था वह कहेगा कि अल्लाह! मैंने इसको मुआफ कर दिया तू मुझे जन्नत में घर अता कर दे। अल्लाह फरमाएंगे अच्छा जब तुमने इसको मुआफ कर दिया तो तुम अकेले जन्नत में न जाओ, अपने पड़ोसी भाई को अपने साथ जन्नत में लेकर चले जाओ, मुझे सुलह पसंद है।*

*★_ तो अल्लाह तआला को तो क़यामत के दिन भी दो पड़ासियों में सुलह ही पसंद है। इसलिये हमें चाहिये कि हम आज पड़ोसियों के साथ सुलह सफाई से रहने वाले बन जाएं ताकि अल्लाह तआला हमसे राज़ी हो जाएं। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें सुलह और पाकीज़गी की जिंदगी गुज़ारने की तौफीक अता फरमा। आमीन सुम्मा आमीन।*

*★_ अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई _,*

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