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*✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮*
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*❈ प्यारे नबी की प्यारी सुन्नते ❈*
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*☞_ सो कर उठने की सुन्नतें,*
*❉ 1- नींद से उठते ही दोनों हाथों से चेहरा और आंखों को मलना ताकि नींद का खुमार दूर हो जाए,*
*➧2- सुबह जब आंख खुले तो ये दुआ पढ़े:-*
*"अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अहयाना बा'दा मा अमातना वा इलैहिन नुशूर,"*
*(तर्जुमा) सब तारीफें अल्लाह तआला के लिए हैं जिसने हमें मरने के बाद ज़िंदा किया और उसी की तरफ उठ कर जाना है,*
*❉ 3- जब सो कर उठे तो मिस्वाक कर लें,*
*➧वज़ू में दोबारा मिस्वाक की जाए, सो कर उठ कर मिस्वाक करना अलहिदा सुन्नत है,*
*❉ 4- पायजामा या शलवार पहनें तो दाहिने पांव में फिर बाए पांव में, कुर्ता या कमीज़ पहने तो पहले दाईं आस्तीन में हाथ डालें फिर बाएं में,*
*➧ इसी तरह जूता पहने तो पहले दाए पांव में वापस आएं और जब उतारे तो पहले बाएं तरफ का उतारें फिर बाएं तरफ का,*
*➧ और बदन की पहचान हुई हर चीज़ के (पहनने और) उतारने का यही तरीक़ा मसनून है,*
*❉ 5- बर्तन में हाथ डालने से पहले तीन मर्तबा हाथों को अच्छी तरह धोलें,*
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*☞_ बैतूल खला आने जाने की सुन्नतें,*
*❉ 1- इस्तंजे के लिए पानी और ढ़ेले दोनों ले जाएं, तीन ढेलें या पत्थर हो तो मुस्तहब है, बाज़ उलमा किराम ने टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने का मशवरा दिया है ताकि फ्लश ख़राब ना हो,*
*➧ 2- हुजूर ﷺ सर ढांक कर और जूता पहन कर बैतूल खला तशरीफ ले जाते थे,*
*❉ 3 – बैतूल खला में दाख़िल होने से पहले ये दुआ पढ़े,*
*➧ ''बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा इन्नी आउज़ुबिका मिनल ख़ुबुसी वल ख़बाइस'' (बुख़ारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा)*
*(तर्जुमा) ए अल्लाह मैं तेरी पनाह चाहता हूँ खबीस जिन्नो से मर्द हों या औरत,*
*❉ 4- बैतूल खला में दाखिल होते वक़्त बायां क़दम रखे,*
*➧5- जब बदन नंगा हो तो आसानी के साथ जितना नीचा हो कर खोल सकें उतना ही बेहतर है,*
*➧ 6- बैतूल खाला से निकलते वक़्त दाहिना पैर बाहर निकालें और बाहर आ कर ये दुआ पढ़े,*
*➧ ''गुफरानका अल्हम्दुलिल्लाहिल्लज़ी अज़हबा अनिल अज़ा वा आफ़ानी,''(इब्ने माजा)*
*(तर्जुमा) ए अल्लाह मैं तुझसे मग़फिरत का सवाल करता हूं, सब तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं जिसने मुझसे इज़ा देने वाली चीज़ दूर की और मुझे आफियत अता फरमाई,*
*❉ 7- बैतूल खला जाने से पहले अंगुठी या किसी चीज़ पर क़ुरान शरीफ की आयत या हुजूर ﷺ का मुबारक नाम लिखा हो और वो दिखाई देता हो तो उसको उतार कर बाहर ही छोड़ दें, तावीज़ जिसको मोमजामा किया गया हो या कपड़े में सी लिया हो उसको पहन कर जाना जाइज़ है,*
*❉ 8- रफ़ा हाजत के वक़्त क़िब्ला की तरफ न चेहरा करें और न उस तरफ पीठ करें,*
*➧9- रफ़ा हाजत करते वक़्त बिला ज़रूरतें शदीद कलाम न करे, इसी तरह अल्लाह तआला का ज़िक्र भी न करे,*
*❉10- पेशाब पाखाने के छींटों से बहुत बचें क्योंकि अक्सर अजाबे क़ब्र पेशाब के छींटों से ना बचने से होता है,*
*➧11- पेशाब करते वक्त या इस्तंजा करते वक़्त उज्व खास को दायां हाथ न लगाएं, बल्कि बायां हाथ लगाए,*
*❉ 12- बाज़ जगह बैतुल खला नहीं होता उस वक़्त ऐसी आड़ की जगह में रफ़ा हाजत करना चाहिए जहां कोई दूसरे आदमी की निगाह न पड़े,*
*➧13- पेशाब करने के लिए नरम जगह तलाश करें ताकि छींटे न उड़े और ज़मीन जज्ब करती जाये,*
*❉14- बैठ कर पेशाब करे खड़े हो कर पेशाब न करे,*
*➧15- पेशाब करने के बाद इस्तंजा सुखाना हो तो दीवार वगैरा कि आड़ में सुखाना चाहिए,*
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*☞_ मस्जिद में दाख़िल होने और बाहर निकलने की सुन्नतें,*
*☞_ मस्जिद में दाख़िल होने की सुन्नत:-*
*❉ 1- दाहिना पैर मस्जिद में दाख़िल करना,*
*➧ 2- बिस्मिल्लाह पढना ,*
*❉ 3- दरूद शरीफ़ पढना,*
*➧मसलन "अस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिल्लाह,"*
*❉ 4- दुआ पढना,*
*➧ मसलन "अल्लाहु मफ़्ताअली अबवाबा रहमतिका,"*
*❉ 5- एतकाफ की नियत करना,*
*█ वज़ू सुन्नत के मुताबिक घर पर करना चाहिए और सुन्नत घर पर पढ़ कर जाना चाहिए, मौका ना हो तो मस्जिद में पढ़ना चाहिए,*
*☞ मस्जिद से बाहर निकलने की सुन्नते,*
*❉ 1- बायां पैर मस्जिद से बाहर निकलना,*
*➧ 2- बिस्मिल्लाह पढना,*
*❉ 3- दरूद शरीफ़ पढना,*
*➧ मसलन "अस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिल्लाह,"*
*❉ 4- दुआ पढना,*
*➧ मसलन "अल्लाहुम्मा इन्नी अस'अलुका मिन फ़ज़लिका,"*
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*☞__वज़ू की सुन्नते ,*
*█ वज़ू में 18 सुन्नतें हैं, इनको अदा करने से कामिल तरीक़े से वज़ू हो जाएगा _,*
*❉ 1- वज़ू की नियत करना, मसलन ये कि मैं नमाज़ के मुबाह होने के लिए वज़ू करता हूं,*
*➧ 2 - "बिस्मिल्लाहिर रहमानिर्रहीम" पढ़ कर वज़ू करना,*
*"_बाज़ रिवायतों में वज़ू की बिस्मिल्लाह इस तरह आती है :- "बिस्मिल्लाहिल अज़ीमी वलहमदुलिल्लाहि अला दीनिल इस्लाम,"*
*"_ और बाज़ रिवायतों में इस तरह है -"बिस्मिल्लाहि वल्हमदुलिल्लाहि_,*
*"_और वज़ू के दौरान ये दुआ पढ़ना मसनून है:-*
*"अल्लाहुम्मग़ फ़िर ली ज़मबी वा वससी' ली फ़ी दारी वा बारिक ली फ़ी रिज़्की"*
*❉ 3- दोनों हाथों को पहुंचों तक धोना,*
*➧4- मिस्वाक करना अगर मिस्वाक ना हो तो उंगली से दांतों को मलना,*
*➧ हर वज़ू करते वक़्त मिस्वाक करना सुन्नत है, मिस्वाक पकड़ने का मसनून तरीक़ा जो हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि दाहिने हाथ की छुगलियां मिस्वाक के नीचे रखें और अंगूठा मिस्वाक ऊपरी सिरे के नीचे रखें और बाक़ी उंगलिया मिस्वाक के ऊपर रखें,*
*❉ 5– तीन बार कुल्ली करना,*
*➧ 6- तीन बार नाक में पानी डालना और तीन बार नाक छिनकना,*
*❉ 7 - कुल्ली और नाक में पानी चढ़ाने में मुबालगा करना अगर रोज़ा न हो,*
*➧ 8 – हर उज़्व को तीन बार धोना,*
*❉9- चेहरा धोते वक्त डाढ़ी का खिलाल करना,*
*"_ मसनून तरीक़ा ये है कि तीन बार चेहरा धोने के बाद हथेली में पानी ले कर ठोड़ी के पास तालु में डाले और डाढ़ी का खिलाल करें और कहे- "हा कज़ा अमारनी रब्बी_,"*
*➧10- हाथों और पैरों को धोते वक़्त उंगलियों का खिलाल करना,*
*❉ 11- एक बार तमाम सर का मसाह करना,*
*➧ 12 – सर के मसाह के साथ कानों का मसाह करना,*
*❉ 13– आज़ा ए वज़ू को मल मल कर धोना,*
*➧14 – पे दर पे वज़ू करना,*
*❉ 15- तरतीब वार वज़ू करना,*
*➧ 16 – दाहिनी तरफ से पहले धोना ,*
*❉ 17- सर के अगले हिस्से से मसाह शुरू करना,*
*➧18- गर्दन का मसाह करना, हलक़ का मसाह ना करें ये बिदअत है,*
*❉ 19– वज़ू के बाद कलमा शहादत पढ़ कर ये दुआ पढ़े:-*
*➧ "अल्लाहुम्मज अलनी मिनत तव्वाबीना वज अलनी मिनल मुताहिरीन,"*
*(तर्जुमा):- ए अल्लाह ! तू मुझे बहुत तौबा करने वालों में और खूब पाकी हासिल करने वालों में शामिल फरमा _,*
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*☞_ फ़राइज़ ए वज़ु _,*
*❉ _ वज़ु में बाज़ चीज़ें फ़र्ज़ है कि अगर उनमें से एक भी छूट जाए या कुछ कमी रह जाए तो वज़ु नहीं होता और आदमी बेवज़ु रहता है,*
*❉ _ वज़ू में सिर्फ़ चार चीज़ें फ़र्ज़ हैं:-*
*1_एक मरतबा सारा मुंह धोना_,*
*2_ एक एक बार कोहनियों समेत दोनो हाथ धोना,*
*3_ एक बार चौथाई सर का मसाह करना,*
*4_ एक एक मर्तबा टखनों समेत दोनों पांव धोना,*
*❉ _ इतना करने से वज़ु हो जाएगा लेकिन सुन्नत के मुताबिक़ वज़ु करने से वज़ु कामिल होता है और ज़्यादा सवाब मिलता है,*
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*☞__ गुस्ल करने का मसनून तरीक़ा,*
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*❉ पहले दोनों हाथ गट्टो तक धोना, फिर इस्तंजे की जगह धोना चाहे नजासत लगी हो या न लगी हो हर हाल में हाथ और इस्तंजे को धोना चाहिए, (और इस्तंजे की जगह धोने से मतलब ये है कि छोटा और बड़ा दोनों इस्तंजे की जगह धोना )*
*❉ _फिर बदन पर किसी जगह नापाकी लगी हो तो उसको पाक करना,*
*➧ फ़िर मसनून तरीके पर वज़ू करना,*
*❉_वज़ू के बाद तीन मरतबा सर पर पानी डाले, (इतना पानी डाले कि सर से पांव तक सारे बदन पर बह जाए ) और बदन को हाथों से मलना ताकि बदन का कोई हिस्सा खुश्क न रह पाए, अगर बाल बराबर भी खुश्क रह गया तो गुस्ल न होगा,*
*➧ फिर वहां से हट कर पाक जगह पर आ कर पांव धोना लेकिन अगर वजू के वक्त पांव धो लिए हों तो अब धोने की ज़रूरत नहीं,*
*❉_गुस्ल के बाद बदन को कपड़े से पूछना भी साबित है और ना पूछना भी, लिहाजा दोनों में से जो सूरत भी अख्तियार की जाए सुन्नत होने की नियत कर लीजिये,*
*☞ फ़राइज़ ए गुस्ल_,*
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*❉_ ग़ुस्ल में बाज़ चीज़ें फ़र्ज़ है कि उनके बगैर ग़ुस्ल दुरस्त नहीं होता और आदमी नापाक रहता है, लिहाज़ा गुस्ल के फ़राइज़ का इल्म होना ज़रूरी है, ग़ुस्ल में सिर्फ तीन चीज़ें फ़र्ज़ हैं:-*
*1_कुल्ली करना, इस तरह कि सारे मुंह में पानी पहुंच जाए,*
*2_ नाक में पानी डालना (जहाँ तक नाक नरम है)*
*3_सारे बदन पर पानी पहुंचाना,*
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*☞_ अज़ान व अक़ामत की सुन्नतें,*
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*❉ 1- अज़ान व अकामत किबला रु कहना सुन्नत है,*
*➧ 2- अज़ान के अल्फ़ाज़ ठहर ठहर कर अदा करना और अक़ामत के अल्फाज़ जल्दी जल्दी अदा करना सुन्नत है,*
*❉ 3- अज़ान में "हय्या अलस्सलाह, हय्या अलल फलाह," कहते वक़्त मोअज़्ज़िन को दाये और बाए मुंह फैरना सुन्नत है लेकिन सीना और क़दम क़िब्ला रुख़ ही रहे,*
*➧ 4- जब मोअज़्ज़िन से अज़ान के कलमात सुनें तो जिस तरह वो कहे उसकी तरह कहें जाए, और "हय्या अलस्सलाह, व "हय्या अलल फलाह," के जवाब में "ला हवला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाही," कहें,*
*❉ 5- फजर की अज़ान में ”अस्सलातु खैरुम मिनननौम” के जवाब में “सदाक़ता वा बररता,”कहा जाये,*
*➧6- अक़ामत का जवाब भी अज़ान की तरह दिया जाए लेकिन "क़द क़ामतिस सलातु," के जवाब में "अक़ा महल्लाहु वा अदा महा," कहा जाए,*
*❉ 7- अज़ान का जवाब देने के बाद दरूद शरीफ़ पढ़ना सुन्नत है,*
*➧ दरूद शरीफ पढ़ कर ये दुआ पढ़े जो बुखारी शरीफ में मनकूल है,*
*“अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़िहिद दाअवतित ताम्मति वस्सलातिल क़ाइअमाती आति मुहम्मदा निल वसीलता वल फज़ीलता वब असहु मक़ामम महमूदा निल्लज़ी वा अत्तहु इन्नाका ला तुख़लिफुल मीआद,''*
*➧” इन्नाका ला तुखलिफुल मीआद, “बुखारी शरीफ में नहीं है, इसको इमाम बैहकी़ ने सुनन कबीर में नक़ल किया है,*
*➧ "वद दराजातर रफ़ीअता" का लफ़्ज़ और, "या अरहमर राहीमीन," वगेरा अल्फ़ाज़ जो मशहूर है, इनका सबुत रिवायात में नहीं,*
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*☞_ नमाज़ कि सुन्नतें,- (1)-क़ियाम कि सुन्नतें,*
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*❉ 1- तकबीर ए तहरीमा के वक़्त सीधा खड़ा होना यानी सर को पस्त (झुका कर) न रखना,*
*➧ 2- दोनों पैरों के दरमियान 4 उंगल का फासला रखना और पैरों की उंगली क़िब्ला की तरफ रखना,*
*➧ बाज़ फुक्हा किराम ने 4 उंगल के फासले को मुस्तहब कहा है,*
*❉ 3- मुक्तदी की तकबीर ए तहरीमा इमाम की तकबीर ए तहरीमा के साथ होना,*
*➧ 4- तकबीर ए तहरीमा के वक़्त दोनो हाथ कानों तक उठाना,*
*❉ 5- हाथेलियों को क़िब्ला की तरफ रखना (तकबीर के वक़्त),*
*➧ 6- उंगलियों को अपनी हालत पर रखना, यानि ना ज़्यादा खुली हो और ना ज़्यादा बंद हो, (तकबीर के वक्त)*
*❉ 7- दाहिने हाथ की हथेली बाए हाथ की हथेली की पुश्त पर रखना,*
*➧ 8- छुंगलियां और अंगुठे से हल्का बना कर गट्टे को पकड़ना,*
*❉ 9- दरमियानी 3 उंगलियों को कलाई पर रखना,*
*➧10- नाफ के नीचे हाथ बांधना,*
*❉ 11- सना पढना ,*
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*☞__नमाज़ कि सुन्नतें, 2- क़िरात कि सुन्नतें,*
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*❉ 1- ताअवुज़ यानि '' आउज़ु बिल्लाही....'' पढना,*
*➧ 2- तस्मिया यानी ''बिस्मिल्लाहि......'' पढना,*
*❉ 3- चुपके से आमीन कहना,*
*➧ 4- फजर और ज़ुहर में ''तवाले मुफस्सल'' यानी सूरह हुजरात से सूरह बुरुज तक, असर व इशा में ”अवसाते मुफस्सल” यानी सूरह बुरुज से सूरह लम यकुन तक,*
*➧ और मगरिब में” क़सारे मुफस्सल” यानी सूरह लम यकुन से सूरह नास तक की सुरतों में से कोई सूरत पढना,*
*❉ 5- फ़ज्र की पहली रकअत तवील (लंबी) करना,*
*➧ 6- सना, तअवुज़, तस्मिया और आमीन को आहिस्ता कहना,*
*❉ 7- फ़र्ज़ की तीसरी और छोटी रकअत में सिर्फ सूरह फातिहा का पढ़ना,*
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*☞_ रुकु कि सुन्नतें,*
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*❉ 1- रुकू कि तकबीर कहना,*
*➧2- रुकु में दोनों हाथों से घुटनों को पकड़ना,*
*❉ 3- घुटनों को पकड़ने में उंगलियों को कुशादा रखना,*
*➧4- पीठ को बिछा देना,*
*❉5- पिंडलियों को सीधा रखना,*
*➧ 6- सर और सुरीन को बराबर रखना,*
*❉ 7- रुकू में तीन बार ” सुबहाना रब्बियल अज़ीमी,” पढना,*
*➧ 8- रुकू से उठने में इमाम को ”समी अल्लाहु लिमन हमीदा” बा- आवाज़ बुलंद कहना और मुक़्तदी को, ''रब्बाना लकल हम्दु,'' और मुनफरिद (तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले) को दोनों कहना (आहिस्ता से) और रुकू के बाद इत्मिनान से सीधा खड़ा होना,*
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*☞_ सजदे की सुन्नतें,*
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*❉ 1- सजदे में जाते वक़्त तकबीर कहना,*
*➧ 2- सजदे में पहले दोनो घुटनों को रखना,*
*❉ 3- फिर दोनों हाथों को रखना,*
*➧ 4- फिर नाक रखना,*
*❉ 5- फ़िर पेशानी रखना,*
*➧ 6- सजदे में सर दोनों हाथों के दरमियान रखना,*
*❉ 7- सजदे में पेट को रानों से अलग रखना और पहलूओं को बाजु़ओं से अलग रखना,*
*➧ 8- कोहनियों को ज़मीन से अलग रखना,*
*❉9- सजदे में तीन बार “सुबहाना रब्बियल आला,” पढ़ना,*
*➧ 10- सजदे से उठने की तकबीर कहना,*
*❉ 11- सजदे से उठने मे पहले पेशानी, फिर नाक, फिर हाथों को, फिर घुटनों को उठाना,*
*➧12- दोनों सजदों के दरमियान इत्मिनान से बैठना,*
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*☞__क़ायदे की सुन्नतें,*
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*❉ 1- दाये पैर को खड़ा रखना और बाए पैर को बिछा कर उस पर पर बैठना,*
*➧2- दोनों हाथों को रानों पर रखना,*
*❉ 3- तशहुद में "अशहदु अल्ला इलाहा," पर शहादत की उंगली को उठाना और "इल्लल्लाह" पर झुका देना,*
*➧ 4- क़ाअदा आख़िर में दरूद शरीफ़ पढना,*
*❉ 5- दरूद शरीफ़ के बाद दुआ ए मासूरा उन अल्फ़ाज़ में जो क़ुरान व हदीस के मुशाबा हो पढ़ना,*
*➧ 6- दोनों तरफ (दाए बाए) सलाम फेरना ,*
*❉ 7- सलाम की इब्तिदा दाहिनी तरफ से करना,*
*➧ 8- इमाम को मुक़्तदियो, फ़रिश्तो और सालेह जिन्नात की नियत करना,*
*❉ 9- मुक़्तदियो को इमाम, फरिश्तो और सालेह जिन्नात और दाये बाए मुक़्तदियो की नियत करना,*
*➧10- मुनफरिद (तन्हा नमाज पढ़ने वाले) को सिर्फ फरिश्तो की नियत करना,*
*❉ 11- मुक़्तदी को इमाम के साथ सलाम फेरना,*
*➧12- दूसरे सलाम की आवाज़ को पहले सलाम की आवाज़ से पस्त (हल्की) करना,*
*❉ 13- मसबूक़ को इमाम के फ़ारिग़ होने का इंतज़ार करना,*
*📚ताहतावी,
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*☞__ जुमा की सुन्नतें,*
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*❉ 1- गुस्ल करना,*
*➧ 2 – अच्छे और साफ कपड़े पहनना,*
*❉ 3 – मस्जिद में जल्दी जाने की फिक्र करना,*
*➧ 4 – मस्जिद पैदल जाना,*
*❉ 5 – इमाम के करीब बैठने की कोशिश करना,*
*➧ 6 – अगर सफे पुर हों तो लोगों की गर्दनें फांदकर आगे न बढ़ना,*
*❉ 7 – कोई फिज़ूल काम न करना यानि मसलन अपने कपड़ों से या बालों से लहू व लहब (खेल) न करना,*
*➧ 8 – ख़ुत्बा को गोर से सुनना,*
*❉ 9 – जुमा के दिन जो सूरह कहफ़ पढ़ेगा उसके लिए अर्श के नीचे से आसमान के बराबर बुलंद एक नूर ज़ाहिर होगा जो क़यामत के अंधेरे में उसके काम आएगा और इस जुमा से पहले जुमा तक के तमाम गुनाह (सगीरा) उसके माफ़ हो जाएँगे,*
*➧ 10 – नबी करीम ﷺ का इरशाद है कि जुमा के दिन मुझ पर कसरत से दरूद भेजा करो कि दरूद मेरे हुज़ूर पेश किया जाता है,*
*❉ 11 – जुमा के दिन बालों में तेल लगाना और खुशबू या इत्र का इस्तेमाल करना मसनून है,*
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*☞__खाने की सुन्नतें,*
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*❉ 1- दस्तरख्वान बिछाना,*
*➧2- दोनों हाथों को गट्टो तक धोना,*
*❉ 3-"बिस्मिल्लाह" पढ़ना बुलंद आवाज़ से,*
*➧4 – दाहिने हाथ से खाना,*
*❉ 5 - खाने की मजलिस में जो शख्स सबसे ज्यादा बुजुर्ग और बड़ा हो उससे खाना शुरू कराना,*
*➧ 6 – खाना एक क़िस्म का हो तो अपने सामने से खाना,*
*❉ 7 – टेक लगा कर ना खाना,*
*➧ 8 – खाने में कोई ऐब ना निकालना,*
*❉ 9 - अगर कोई लुक्मा गिर जाए तो उठा कर साफ करके खा लेना,*
*➧10- जूता उतार कर खाना खाना,*
*❉ 11 - खाने के वक्त उकडू बैठना कि दोनों घुटने खड़े हों और सुरीन जमीन पर हो, या एक घुटना खड़ा हो और दूसरे घुटने को बिछा कर उस पर बैठें, या दोनों घुटने जमीन पर बिछा कर क़ायदे की तरह बैठे और आगे की तरफ जरा झुक कर बैठे,*
*➧ 12- खाने के बर्तन, प्याला व प्लेट को साफ कर लेना, फिर बर्तन उसके लिए दुआ ए मगफिरत करता है,*
*❉ 13 – खाने के बाद उंगलियों को चाटना,*
*➧14 – खाने के बाद दुआ पढना,*
*➧ "अलहम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अतामना वा सक़ाना वा जलना मुस्लिमीन,"*
*❉ 15- पहले दस्तरख्वान उठाना फिर खुद उठना,*
*➧ 16 – दोनों हाथ धोना,*
*❉ 17 – कुल्ली करना,*
*➧ 18 – अगर शुरू में “_बिस्मिल्लाह” पढ़ना भूल जाएं तो यूं पढ़े- “बिस्मिल्लाहि अव्वल्लहु वा आख़िरहु,”*
*❉19– जब कोई दावत खाए तो मैज़बान को ये दुआ दे :-*
*➧ _"अल्लाहुम्मा अतइम मन अतामनी वसकी मन सकानी,"*
*❉ 20 – सिरका इस्तेमाल करना सुन्नत है,जिस घर में सिरका मोजूद है वो घर सालन का मोहताज नहीं समझा जा सकता,*
*➧ 21 - खालिस गंदुम अगर कोई इस्तेमाल करता है तो उसे चाहिए कि उसमें कुछ जो भी मिला ले चाहे थोड़ी मिक़दार में हो ताकि सुन्नत पर अमल का सवाब हासिल हो जाए,*
*❉ 22 - गोश्त खाना सुन्नत है, रसूले अकरम ﷺ का फरमान है कि दुनिया और आख़िरत में खानों का सरदार गोश्त है,*
*➧ 23 - अपने मुसलमान भाई की दावत कुबूल करना सुन्नत है, अलबत्ता अगर (ज़्यादा आमदनी) सूद या रिश्वत (किसी भी हराम कमाई) की हो या बदकारी में मुब्तिला हो तो उसकी दावत कुबूल नहीं करना चाहिए,*
*❉ 24 -मय्यत के रिश्तेदारों यानि मय्यत के घर के लोगों को खाना देना मसनून है,*
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*☞__ पानी पीने की सुन्नतें,*
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*❉ 1 - दाये हाथ से पीना, क्योंकि बाए हाथ से शैतान पीता है,*
*➧ 2 – पानी पीने से पहले अगर खड़े हो तो बैठ जाना खड़े हो कर पीना मना है,*
*❉ 3 - "बिस्मिल्लाह" कह कर पीना और पीने के बाद, "अल्हम्दुलिल्लाह" कहना,*
*➧ 4 – तीन सांस में पीना और सांस लेते वक्त बर्तन को मूंह से अलग करना,*
*❉ 5 – बर्तन के टूटे हुए किनारे कि तरफ से ना पीना,*
*➧ 6– मशक से मूंह लगा कर पानी ना पिए या कोई भी ऐसा बर्तन जिससे दफतन पानी ज़्यादा आ जाने का अहतमाल हो या ये अंदेशा हो कि इसमें कोई सांप या बिच्छू आ जाए,*
*❉ 7- पानी पी कर अगर दूसरे को देना है तो पहले दाहिने वाले को दे और फिर उसी तरतीब से दौर खत्म हो, इसी तरह चाय या शरबत भी पेश करें,*
*➧ 8 – दूध पीने के बाद ये दुआ पढ़े ,:-*
*➧ "अल्लाहुम्मा बारिक लना फ़िही वा ज़िदना मिन्हु,"*
*❉9- पिलाने वाले को आखिर में पीना,*
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*☞__ लिबास की सुन्नतें,*
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*❉ 1- हुजूर ﷺ को सफेद रंग का कपड़ा पसंद था,*
*➧ 2- क़मीज़, कुर्ता वगेरा पहनें तो पहले दायां हाथ आस्तीन में डाले, फिर बायां हाथ, इसी तरह पायजामा और शलवार के लिए पहले दायां पांव फिर बायां पांव,*
*❉ 3- पायजामा, शलवार या लुंगी टखने से ऊंची रखें, टखने से नीचे लटकाने से अल्लाह ताला नाराऊज होते हैं,*
*➧4- नया कपड़ा पहन कर ये दुआ पढ़े,:-*
*➧” अलहम्दु लिल्लाहिल्लज़ी कसानी हाज़ा वा रज़कनिही मिन गैरी हवलिम मिन्नी वला कुव्वतिन, ''*
*❉5- अमामा के नीचे टोपी रखना सुन्नत है,*
*➧ 6- हुजूर ﷺ को कुर्ता बहुत पसंद था,*
*❉ 7- सियाह साफा बांधना मसनून है, शमला छोड़ना भी मसनून है,*
*➧8- टोपी पहनना सुन्नत है,*
*❉9- क़मीज़ या कुर्ता वगेरा उतारना हो तो पहले बायां हाथ आस्तीन से निकालें फिर दायां हाथ, इसी तरह शलवार और पायजामा उतारते वक़्त पहले बायां पैर बाहर निकालें फिर दायां,*
*➧10- जूता पहले दाए पांव में पहनें फ़िर बाए पांव में,*
*❉ 11- उतारते वक़्त पहले बाएं पांव से उतारें फिर दाएं पांव से,*
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*☞__ बालो कि सुन्नतें,*
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*❉ 1- नबी करीम ﷺ के सर मुबारक के बालों की लंबाई कानों के दरमियान तक और दूसरी रिवायत के मुताबिक़ कानों तक और एक और रिवायत के मुताबिक कानों की लो तक थी, उनके करीब तक होने की भी रिवायत है,*
*➧ 2- पूरे सर के बाल रखना कानों की लो तक या इससे किसी क़दर नीचे सुन्नत है और पूरा सर मुंडाना भी सुन्नत है और अगर कतरवाना चाहें तो पूरे सर के बाल सब तरफ से बराबर कतरवाना जायज़ है,*
*➧लेकिन आगे की तरफ से बड़े रखना और गर्दन की तरफ छोटे करा देना जिसको अंग्रेजी बाल कहते हैं जायज़ नहीं,*
*➧ इसी तरह सर का कुछ हिस्सा मुंडवा देना और कुछ छोड़ देना भी जायज़ नहीं, अल्लाह तआला हर मुसलमान को इससे बचाए,*
*❉ 3- दाढ़ी को बढ़ाने और मूंछों को कम करने के मुताल्लिक़ हदीस में हुक्म वारिद है,*
*➧दाढ़ी मुंडवाना या एक मुश्त से कम कतरवाना हराम है, अल्लाह तआला हर मुसलमान को इससे महफूज़ रखे, एक मुश्त दाढ़ी रखना वाजिब है और एक मुश्त की मिक़दार सुन्नत से साबित है,*
*❉4- मूंछों को कतरने में मुबालगा करना सुन्नत है, लम्बी लम्बी मूंछें रखने पर हदीस में शख्त वईद आई है,*
*➧ 5- ज़ेरे नाफ़, बगल और मूंछो के बाल और नाख़ून वगेरा दूर करके साफ़ सुथरा रहना चाहिए, अगर 40 दिन गुज़र जाए और सफ़ाई न करे तो गुनहगार होगा,*
*❉ 6- बालों को धोना, तेल लगाना और कंघा करना मसनून है, लेकिन ज़रूरत ना हो तो बीच में एक आध दिन नागा कर देना चाहिए,*
*➧7- कंघा करें तो पहले दाईं तरफ से शुरू करे,*
*❉ 8- कंघा करते हुए या हस्बे ज़रूरत जब भी आईना देखें तो ये दुआ करें,:-*
*➧"अल्लाहुम्मा अन्ता हस्सन्ता खलकी़ फा हस्सिन खुलुकी़,*
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*☞_ बीमारी, इलाज और अयादत की सुन्नतें,*
█
*❉ 1- बीमारी में दवा और इलाज कराना मसनून है, इलाज कराता रहे मगर बीमारी की शिफा ए नज़र अल्लाह तआला ही पर रखे,,*
*➧ 2- कलौंजी और शहद के साथ इलाज करना सुन्नत है,*
*❉ 3- इलाज के दौरान नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों से बचना चाहिए,*
*➧ 4- अपने बीमार भाई की अयादत के लिए जाना सुन्नत है,,*
*❉ 5- बीमार पुर्सी कर के जल्दी लौट आना सुन्नत है, कहीं तुम्हारे ज़्यादा देर तक बैठने से बीमार को तकलीफ़ न हो या घर वालों को काम में खलल न पड़े,*
*➧ 6- बीमार की हर तरह तसल्ली करना मसनून है, मसलन उससे ये कहें कि इंशा अल्लाह तुम जल्दी अच्छे हो जाओगे, अल्लाह तआला बड़ी कुदरत वाले हैं कोई डर या खौफ पैदा करने वाली बात बीमार से न कहें,*
*❉ 7- जब किसी मरीज़ की अयादत करे तो उसे यूँ कहें -ला बअ-स तहुरुन इनशाल्लाह (कोई हर्ज नहीं इंशा अल्लाह ये बीमारी गुनाहों से पाक करने वाली है) फिर उसकी शिफायाबी के लिए सात मर्तबा ये दुआ पढ़ें :-*
*➧ ” अस’अलुल्लाहल अज़ीमा रब्बल अर्शिल अज़ीमी अय्यशफियका,*
*➧ हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया के सात मर्तबा इसको पढ़ने से मरीज़ को शिफ़ा होगी, हाँ अगर उसकी मौत ही आ गई हो तो दूसरी बात है,*
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*☞_ सफर की सुन्नतें,*
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*❉ 1- जहां तक हो सके सफर में कम से कम दो आदमी जाएं, तन्हा आदमी सफर न करे, अलबत्ता जरूरत और मजबूरी में कोई हर्ज नहीं,*
*➧ 2- सवारी के लिए रकाब में पांव रखें तो ”बिस्मिल्लाह” पढ़ें, (या सवारी पर चढ़ते वक्त)*
*❉ 3- सवारी पर अच्छी तरह बैठ जाएं तो तीन मर्तबा ”अल्लाहु अकबर” कहे फिर ये दुआ पढ़ें :-*
*➧ ” सुबहानल्लज़ी सख्खर लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रिनिना वा इन्ना इला रब्बीना ला मुनक़लिबून,”*
*❉ 4 – रास्ते में ठहरने की ज़रूरत पेश आए तो सुन्नत ये है कि रास्ते से हट कर क़याम करें, रास्ते में पड़ाव न डालें कि आने जाने वालों का रास्ता रुके और उनको तकलीफ़ हो,*
*➧ 5– सफ़र के दौरान जब सवारी ऊँचाई पर चढ़े तो ”अल्लाहु अकबर” कहे,*
*❉ 6– जब सवारी ऊँचाई से नीचे आने लगे तो तो ”सुब्हानल्लाह” कहे,*
*➧ मिरकात में है कि ये सुन्नत सफ़र की है लेकिन अपने घरों में या मस्जिद की सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त दाहिना पाँव बढ़ाए तो ”अल्लाहु अकबर” कहे चाहे एक ही सीढ़ी हो और नीचे उतरते वक़्त बायाँ पाँव आगे बढ़ाए तो ”सुब्हानल्लाह” कहे चाहे मामूली उतरना हो, तो सुन्नत के सवाब की तवक़्क़ो है,*
*❉ 7- जिस शहर या गाँव में जाने का इरादा हो जब उसमें दाखिल होने लगें तो तीन बार ये दुआ पढ़ें,:-*
*➧ ”अल्लाहुम्मा बारिक लना फीहा,”*
*➧ फिर ये दुआ पढ़ें,*
*”_अल्लाहुम्मरज़ु़क़ना जनाहा वा हबीबना इला अहलिहा वा हबीबा सालिही आहलिहा इलैना,”*
*❉ 9 – रसूलल्लाह ﷺ का इरशाद है कि जब सफ़र की ज़रूरत पूरी हो जाए तो अपने घर लौट आएं, सफ़र में ठहरना अच्छा नहीं,*
*➧ 10– दूर दराज़ के सफर से बहुत दिनों बाद ज्यादा रात गए अगर घर आएं तो उसी वक्त घर में न जाएं बल्कि बेहतर है कि सुबह मकान में जाए,*
*➧ अलबत्ता अगर घर वालों को देर से आने की खबर हो और उनको तुम्हारा इंतजार भी हो तो उसी वक्त घर में दाखिल होने में कोई हर्ज नहीं,*
*❉ 11 – सफर में कुत्ता और घुंघरू साथ रखने की मुमानत आती है, क्योंकि इनकी वजह से शैतान पीछे लग जाता है और सफर की बरकत जाती रहती है,*
*➧ 12– सफर से लौट कर आने वाले के लिए ये मसनून है कि घर में दाखिल होने से पहले मस्जिद में जाकर दो रकात नमाज़ पढ़ें,*
*❉ 13– जब सफ़र से वापस आएं तो ये दुआ पढ़ें,:-*
*➧ ”आइबूना ताइबूना आबिदूना ली रब्बीना हामिदूना ,”*
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*☞_ निकाह की सुन्नतें,*
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*❉ 1- मसनून (बरकत वाला) निकाह वो है जो सादा हो जिसमें हंगामा या ज़्यादा तकल्लुफ़ और जहेज़ वगेरा का झंझट न हो,*
*➧ 2- निकाह के लिए नेक और सालेह फर्द को तलाश करना और मंगनी या पैगाम भेजना मसनून है,*
*❉ 3- जुमा के दिन मस्जिद में निकाह करना पसंदीदा और मसनून है,*
*➧ 4- निकाह को मशहूर करना सुन्नत है,*
*❉ 5- हैसियत के मुताबिक़ महर मुकर्रर करना सुन्नत है,*
*➧ 6- शादी की पहली रात हो तो बीवी की पेशानी पकड़ कर ये दुआ पढ़ें,::—*
*➧ ”अल्लाहुम्मा इन्नी अस्’अलुका ख़ैरा हा व ख़ैरा मा जबलतहा अलैहि वा आ’उज़ु बिका मिन शररिहा वा शररी मा जबलतहा अलैहि ,”*
*❉ 7- जब बीवी से सोहबत का इरादा करे तो ये दुआ पढ़ ले फिर अगर औलाद होगी तो उस पर शैतान मुसल्लत नहीं हो सकता और उसको नुक़सान नहीं पहुंचा सकता ,, दुआ ये है ,:::—*
*➧”बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा जन्निबनश शैताना व जन्निबिश शैताना मा रज़क़तना ,”*
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*☞_ वलीमा की सुन्नतें,*
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*❉ शबे उरूसी (बीवी के साथ पहली रात) गुज़ारने के बाद अपने अज़ीज़ों, दोस्तों, रिश्तेदारों और मसाकीनों को वलीमे का खाना खिलाना सुन्नत है,*
*➧ वलीमे के लिए ज़रूरी नहीं है कि बड़े पैमानों पर खाना तैयार करके खिलाएं बल्कि थोड़ा खाना, हैसियत के मुताबिक तैयार करके खिलाना भी अदाएगी ए सुन्नत के लिए काफ़ी है,*
*❉ बहुत ही बुरा वलीमा है कि मालदार और दुनियादार लोगों को तो बुलाया जाए मगर गरीब मिस्कीन, मोहताज और दीनदार लोगों को धुत्कार दिया जाए, ऐसे वलीमे से बचना चाहिए,*
*➧ वलीमे में अदायगी सुन्नत की नीयत रखो, दीनदार गरीब और मोहताज लोगों को बुलाओ, अमीरों में से भी जिसको दिल चाहे बुलाओ मगर गरीबों को धक्का न दो,*
*❉ जो वलीमा नाम और दिखावे के लिए या लोगों की तारीफ के लिए किया जाए उसका कोई सवाब नहीं बल्कि अल्लाह तआला की नाराज़गी और गुस्से का अंदेशा है,*
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*☞_ बच्चा पैदा होने की सुन्नतें,*
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*❉ 1- जब बच्चा पैदा हो तो उसके दाएं कान में अज़ान और बाएं कान में तकबीर कहना,*
*➧ 2- जब बच्चा सात रोज़ का हो जाए तो उसका अच्छा सा नाम रखना,*
*❉ 3- सातवे रोज़ अकीका करना, अगर सातवे (7) रोज़ अकीका न कर सके तो चौधवे (14) रोज़ वर्ना इक्कीसवे (21) रोज़ कर दे,*
*➧ 4- बच्चे का सर मुंडवा कर बालों के वज़न के बराबर चांदी खैरात करना,*
*❉ 5- सर मुंडने के बाद बच्चे के सर में ज़ाफ़रान लगा देना,*
*➧ 6- लड़के के अकीक में दो बकरे या दो बकरियां और लड़की के अकीके में एक बकरा या बकरी ज़िबाह करना,*
*❉ 7- अकीके का गोश्त दादा, दादी, नाना, नानी वगेरा सब ही खा सकते हैं,*
*➧ 8- अकीके का गोश्त पका कर या कच्चा तक़सीम किया जा सकता है,*
*❉ 9- किसी बुज़ुर्ग से छुआरा चबवा कर बच्चे के मुंह में डालना या चटाना और दुआ कराना,*
*➧ 10- जब बच्चा सात बरस का हो जाए उसे नमाज़ के दीगर दीन की बातें सिखाना,*
*❉ 11- जब बच्चा दस बरस का हो जाए तो सख्ती से डांट करके नमाज़ पढ़ाना और ज़रूरत पेश आए तो सज़ा देना ताकि नमाज़ का आदी हो जाए,*
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*☞_ मआशरत की चंद सुन्नतें–
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*❉ 1- सलाम करना मुसलमानों के लिए बहुत बड़ी सुन्नत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने इसकी बहुत ताकीद फरमाई है, इससे आपस में मुहब्बत बढ़ती है,*
*➧ हर मुसलमान को सलाम करना चाहिए चाहे पहचान हो या न हो, क्योंकि सलाम इस्लामी हक़ है किसी के जानने और सनासायी पर मोकूफ नहीं,*
*⚀•रवी :- बुखारी शरीफ ,2/921,*
*❉ 2- बच्चों को भी सलाम करना सुन्नत है,*
*⚀•रवी :- बुखारी ,2/921 मुस्लिम ,2/214,*
*➧ 3- सलाम करने का सुन्नत तरीका है कि ज़बान से, ”अस्सलामु अलैकुम” कहे, हाथ से या उंगली के इशारे से सलाम करना या इसका जवाब देना सुन्नत के खिलाफ है, अगर दूर हो तो ज़बान और हाथ दोनों से सलाम करे,*
*⚀•RєԲ :- मिश्कात ,2/399 तिर्मिज़ी ,2/99,*
*❉ 4- किसी मुसलमान भाई से मुलाक़ात हो तो सलाम के बाद मुसाफ़ा करना मसनून है, औरत औरत से मुसाफ़ा कर सकती है,*
*⚀•RєԲ :- मिश्कात ,2/401,*
*❉ 5- अगर किसी मजलिस में जाएं तो जहां मौक़ा मिले जगह मिले बैठ जाओ दूसरों को उठाकर खुद बैठ जाना गुनाह की बात और मकरूह है,*
*⚀•रєԲ :-बुखारी शरीफ, 2/401,मुस्लिम,2/21,*
█
*❉ 6- अगर कोई शख्स आपसे मिलने आए तो आप अपनी जगह से ज़रा सा खिसक जाएं, चाहे मजलिस में गूंजाइश हो, ये भी सुन्नत है और इसमें उस आने वाले का इकराम है,*
*⚀•RєԲ :- ज़ादुल तालिबीन ,56 शोबुल ईमान ,6/468,*
*❉ 7- कहीं अगर सिर्फ़ तीन आदमी हों तो एक को छोड़कर काना फूसी की इजाज़त नहीं कि ख्वाहमखाह उसका दिल शुबहात की वजह से रंजीदा होगा और मुसलमान भाई को रंजीदा करना (दिल दुखाना) बहुत बड़ा गुनाह है,*
*⚀•RєԲ :- मुस्लिम ,2/219,*
*❉ 8- किसी के मकान पर जाना हो तो उससे इजाज़त लेकर दाखिल होना चाहिए,*
*⚀•RєԲ :- मिश्कात ,2/401,*
*❉ 9- जब जमाई आए तो सुन्नत ये है कि उसको रोकने की पूरी कोशिश करे,*
*⚀• :- बुखारी ,2/919,*
*➧ और अगर मुँह कोशिश के बावजूद बंद न रख सके तो बाएं हाथ की पुश्त को मुँह पर रख ले और हा हा की आवाज़ निकालना ये हदीस में ममनू है,*
*❉ 10- अगर किसी का अच्छा नाम सुनो तो उससे अपने मक़सद के लिए नेक फाल समझना सुन्नत है, और उससे खुश होना भी सुन्नत है, बद फाली लेने को सख़्त मना फ़रमाया गया है,*
*➧ जैसे रास्ते चलते किसी को छींक आ गई तो ये समझना कि काम न होगा या कव्वा बोला, या बंदर नज़र आ गया या उल्लू बोला तो इनसे आफ़त आने का गुमान करना सख़्त नादानी है और बिल्कुल बे-असल और ग़लत और गुमराही का अक़ीदा है, इसी तरह किसी को मनहूस समझना या किसी दिन को मनहूस समझना बहुत बुरा है,*
*⚀•RєԲ :- मिर्कात ,9/2-6,*
*➧ सुन्नत पर अमल करने से बंदा अल्लाह तआला का महबूब हो जाता है, इसलिए अहतमाम से इस पर अमल करना चाहिए,*
●════════●
*☞_ मौत और उसके बाद की सुन्नतें:-*
█
*❉_ 1_ जब ये मालूम होने लगे कि मौत का वक़्त करीब है तो उस वक़्त जो लोग वहाँ मोजूद हों उसका मुंह क़िब्ला की तरफ़ फ़ैर दे और कलमा की तलक़ीन करें यानी कलमा पढ़ने लगें,*
*❉2_ जब मौत करीब मालूम हो तो ये दुआ पढ़ें- अल्लाहुम्मग़फिरलि वरहमनी वा अलहिक़नि बिर्रफीक़िल अ'ला _,*
*❉(तरजुमा) - ए अल्लाह मुझको बख्श दे और मुझ पर रहम फ़रमा और मुझे ऊपर वाले साथियों में पहुँँचा दे,*
*❉3_ जब रूह निकलने के आसार महसूस हों तो ये दुआ पढ़ें- अललाहुम्मा आ'इन्नी अला ग़मरातिल मवती वा सकारातिल मवती _,*
*(तर्जुमा)- ए अल्लाह मौत की सख्तियों के मोके़ पर मेरी मदद फरमा,*
*❉4_ जब मौत वाके़ हो जाए तो अहले ताल्लुक़ ये दुआ पढ़े- "इन्ना लिल्लाहि वा इन्ना इलैहि राजिऊन, अल्लाहुम्मा आजिरनि फि मुसीबति वख़लुफ ली खैरम मिनहा _,*
*❉(तर्जुमा)- बेशक हम अल्लाह ही के लिए हैं और हम अल्लाह ही की तरफ लोटने वाले हैं, ए अल्लाह मुझे मेरी मुसीबत में अजर् दे और इसके एवज़ मुझे इससे अच्छा बदल इनायत फरमा _,*
*❉5_ रूह निकल जाने के बाद मय्यत की आंखे बंद कर दें,*
*❉6_ जो शख़्स मय्यत को तख्त पर रखने के लिए उठाए या जनाज़ा उठाए तो बिस्मिल्लाह कहें,*
*❉7_ मय्यत को दफ़न करने में जल्दी करना सुन्नत है,*
*❉8_ जब मय्यत को क़ब्र में रखें तो ये दुआ पढ़ें- "बिस्मिल्लाहि वा अला मिल्लति रसूलिल लाही सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम_",*
*❉9_ मय्यत को क़ब्र में दाहिनी करवट पर इस तरह लिटाना चाहिए कि पूरा सीना काबा की तरफ़ हो और पुश्त को क़ब्र की दीवार से लगा दें,*
*"❉_ आज कल लोग सिर्फ़ मुँह काबा की तरफ़ कर देते हैं और चित लिटा देते हैं कि सीना आसमान की तरफ़ होता है, ये बिल्कुल ख़िलाफ़े सुन्नत है,*
*❉10_ मय्यत के घर वालों को खाना देना मसनून है, इस खाने को तमाम बिरादरी या रिश्तेदारों को खाना जाइज़ नहीं, नाम और दिखावे के लिए ऐसा करना जाइज़ नहीं जो मोजूद हो दे दिया जाए,*
*❉11_ जब मय्यत के दफ़न से हुज़ूर ﷺ फ़ारिग होते तो खुद भी और दूसरों से फ़रमाते कि अपने भाई के लिए इस्तगफ़ार करो और साबित क़दम रहने की दुआ करो कि अल्लाह तआला उसे मुंकर नकीर के जवाब में साबित क़दम रखे,*
*❉12_ दफ़न के बाद मुर्दा के लिए क़िब्ला रुख़ हो कर दुआ करना मसनून है, लेकिन नमाज़े जनाज़ा के बाद दुआ करना जैसा कि आज कल रिवाज हो गया है ज़ाइज़ नहीं _,*
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*☞__बाज़ आदतें खसलते नबवी ﷺ और मुतफ़र्रिक़ सुन्नतें:-*
█
*❉1_ जब आप ﷺ चलते थे तो लोगों को आगे से हटाया नहीं जाता था,*
*❉2_ आप ﷺ ज़ाइज़ काम को मना नहीं फरमाते थे, अगर कोई सवाल करता और उसको पूरा करने का इरादा होता तो हाँ कह देते वर्ना खामोश हो जाते,*
*❉3_ आप ﷺ अपना चेहरा किसी से न फैरते, जब तक वो न फैरते, और अगर कोई चुपके से बात कहना चाहता तो आप कान उसकी तरफ कर देते और जब तक वो फारिग नहीं होता था आप ﷺ कान नहीं हटाते थे,*
*❉4_ जब आप ﷺ किसी को रुख़सत फरमाते तो ये दुआ फरमाते-*
*"_ अस्तवदिउल्लाहा दीनाकुम वा अमानताकुम वा ख्वातिमा आ'मालिकुम _, (तिर्मिज़ी)*
*❉5_ जब आन हज़रत ﷺ कोई पसंदीदा चीज़ देखते तो फरमाते-*
*"_ अल्हम्दुलिल्लाहिल्लज़ी बि नि'अमतिहि ततिममुस सालिहातु _,*
*"❉_ और जब नगावारी की हालत पेश आती तो फरमाते-*
*"_ अल्हम्दुलिल्लाहि अला कुल्ली हाली _,( इब्ने माजा)*
*❉6_ जब कोई मिलता तो पहले आप ﷺ सलाम करते थे, ( शमा'इल ए तिर्मिज़ी-12)*
*❉7_ जब किसी चीज़ को करवट की तरफ देखते तो पूरा चेहरा फैर कर देखते, मुतकब्बिरों की तरह कनखियों से न देखते, (ख़सा'इल शरह शमा'इल -12)*
*❉8_ निगाह नीची रखते थे, गायते हया की वजह से निगाह भर कर न देखते थे, (ख़सा'इल -12)*
*❉9_ बर्ताव में सख़्ती न फ़रमाते नर्मी को पसंद फ़रमाते, आप इंतेहाई नर्म मिज़ाज हलीमुल तबीयत और रहमदिल थे, (मिश्कात फ़ज़ाइल सय्यदुल मुरसलीन -2/512)*
*❉10_ हुज़ूर ﷺ चलते वक़्त पांव उठाते तो क़दम कुव्वत से उठता था और क़दम इस तरह रखते थे कि ज़रा आगे को झुक जाते, तवाज़ों के साथ क़दम बढ़ाकर चलते गोया किसी बुलंदी से पस्ती में उतर रहे हों, (खसाइल -13/73)*
█
*❉_11_ सबसे मिले जुले रहते थे (यानि शान बना कर ना रहते थे) बल्कि कभी कभी मज़ाक भी फरमाते थे,*
*❉_12_ अगर कोई ग़रीब आता या बुढ़िया आपसे बात करना चाहती तो आप ﷺ सड़क के एक किनारे पर सुनने के लिए बैठ जाते,*
*❉_13_ नमाज़ में क़ुरान मजीद की तिलावत फरमाते तो सीना मुबारक से हांडी खोलने की सी सदा आती, खौफे खुदा की वजह से ये हालत होती थी,*
*❉_14_ घर वालों का बहुत ख्याल रखते कि किसी को आप ﷺ से तकलीफ़ न पहुँचें, इसीलिए रात को बाहर जाना होता तो आहिस्ता से दरवाज़ा खोलते आहिस्ता से बाहर चले जाते,*
*"❉__ इसी तरह घर में तशरीफ़ लाते तो आहिस्ता से आते ताकि सोने वालों को तकलीफ़ ना हो और किसी की नींद खराब न हो जाए, (मिश्कात-280)*
*❉_15_ जब चलते तो निगाह नीची ज़मीन की तरफ रखते, मजमे के साथ चलते तो सबसे पीछे होते और कोई सामने से आता तो सबसे पहले सलाम आपﷺ ही करते, (शमाईल ए तिर्मिज़ी-12)*
*❉_16_ किसी क़ौम का इज्ज़तदार आदमी हो तो उसके साथ इज़्ज़त से पेश आते,*
*❉_17_ अपने औका़त में से कुछ वक़्त अल्लाह की इबादत के लिए, कुछ घर वालों के हुक़ूक़ अदा करने के लिए जैसे उनसे हँसना बोलना और एक हिस्सा अपने बदन की राहत के लिए निकालना, (शमाइल ए तिर्मिज़ी-198)*
*❉_18_ सरवरे दो आलम ﷺ पर दरूद शरीफ पढ़ते रहना, (नशरुल तैयब-170)*
*❉_19_ पड़ोसी के साथ अहसान करना, बड़ों की इज़्ज़त करना और छोटों पर रहम करना, (मिश्कात-2/424)*
*❉_20_ कोई रिश्तेदार बद सुलूकी करे तो उसके साथ मोहसिन सुलूक से पेश आना, (मिश्कात- 519)*
*❉_21_ जो लोग दुनिया के ऐतबार से कमज़ोर हैं उनका ख़्याल रखना,*
*❉_22_ दाईं या बाईं जानिब तकिया लगाना, (शमाइल-ए-तिर्मिज़ी मअ खसाइल-ए-नबवी-76)*
*❉_23_ बीवी का दिल खुश करने के लिए उससे मज़ाक करना और हंसी की बातें करना भी सुन्नत है, (खसाइल-शरह शमाइल -198)*
*❉_24_ बाद नमाज़ फजर इशराक तक आप ﷺ मस्जिद में मुरब्बा (आलती पालती) बैठते थे, और अपने असहाब में भी आप ﷺ मुरब्बा बैठते थे, (खसाइल शरह शमा'इल -76)*
*❉_25_ अपने मुसलमान भाई से कुशादा चेहरा मिलना, (तिर्मिज़ी -2/18)*
*❉_26_ सवारी पर उसके मालिक को आगे बैठने के लिए कहना और उसकी सरीह इजाज़त के बगेर आगे ना बैठना सुन्नत है, (मिश्कात)*
*❉_ नक़्शे क़दम नबी के हैं जन्नत के रास्ते, अल्लाह से मिलाते हैं सुन्नत के रास्ते _,*
*❉_ अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई _,*
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