हज का मुकम्मल तरीक़ा - Hajj Ka Mukammal Tariqa ( Hindi)


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      *ﺑِﺴْــــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
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             ✿ *हज- के -अहकाम* ✿                  
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*☞ हज से गुनाहों की माफी और गुनाहों से पाक होना ?*

*★_ हज बहुत बड़ी इबादत है जिससे गुनाह माफ हो जाते हैं। गोया आज ही अपनी मां के पेट से पैदा हुआ । यह गुनाहों से पाक होने को समझाने के लिए है कि जिस तरह मौलूद बच्चा गुनाहों से पाक साफ होता है इसी तरह हज मबरुर के बाद आदमी गुनाहों से पाक साफ हो जाता है।*

*☞हज मक़बूल की पहचान _,*

*★_ हज मक़बूल वही है जिससे जिंदगी की लाइन बदल जाए, आइंदा के लिए गुनाहों से बचने का एहतमाम हो और इताअत की पाबंदी की जाए । हज के बाद जिस शख्स की जिंदगी में खुशगवार इंकलाब नहीं आता उसका मामला मशकूक है।*

*📕आपके मसाइल और उनका हल-४/२५ _,*

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*•·☞ हज और उमरा जैसे मुकद्दस अमल को गुनाहों से पाक रखा जाए,*

*★_ हज उमरा में भी लोग गुनाहों से बाज नहीं आते दीन के मसाईल ना किसी से पूछते हैं और ना ही ज़रूरत महसूस करते हैं। लोग डाढियां मुंडा कर रोज़ा ए अतहर पर जाते हैं और उन्हें ज़रा भी शर्म नहीं आती और दावा इश्के रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम करते हैं मगर शक्ल दुश्मनों जैसी बनाते हैं ।*

*★_इससे यह मक़सद नहीं है कि ऐसे लोगों को हज उमरे पर जाना नहीं चाहिए बल्कि मक़सद यह है कि मुकद्दस आमालों को गुनाहों से पाक रखना चाहिए।*

*📕आपके मसाइल और उनका हल-४/२५ _,* 

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            *☞_ हज की फरजियत _,*

*★- हज की फरजियत के लिए साहिबे निसाब होना ही काफी नहीं बल्कि जिसके पास हज का सफर खर्च भी हो और अपनी गैर हाजिरी में अहलो अयाल का खर्च भी हो । हज से वापसी पर इतनी रकम उसके पास होना चाहिए जिससे उसके अहलो अयाल की बा क़द्रे जरूरत किफायत हो सके।*

*☞ गरीब को उसकी नियत पर हज का सवाब _,*

*★_ और जो गरीब आदमी पैसा पैसा जमा करके हज की तैयारी करता रहा मगर इतना शरमाया मयस्सर ना आ सका की हज के लिए जाए इंशा अल्लाह ताला उसकी नियत पर उसको हज का सवाब मिलेगा ।*

*📕आपके मसाइल और उनका हल-४/२५ _,* 

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 *☞_ कारोबार की नियत से हज करना ?*

*★_ हज के दौरान कारोबार की इजाजत कुराने पाक में दी गई है लेकिन सफरे हज से मकसूद ही कारोबार हो तो जाहिर है कि उसको अपनी नियत के मुताबिक बदला मिलेगा।*

*☞ पहले बेटी की या बेटे की शादी करें या हज ?*

*★_ फुक़हा ने लिखा है कि अगर एक शख्स के पास इतनी रक़म हो कि वह अपनी शादी कर सकता है या हज कर सकता है तो अगर हज के अय्याम हो तो उसके जिम्मे हज फ़र्ज़ है।*

*★_ इसी से इस मसले का हल समझ लेना चाहिए कि पहले हज करें वरना गुनाहगार होगा।* 

*📕आपके मसाइल और उनका हल-४/३० _,*

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           *☞ चंद अहम मसाइल ,*

*★_ हज पर जाने वाले के लिए यह ज़रूरी है की हज पर जाने से पहले तमाम अहले हुकूक के हुकूक अदा करें और सबसे हुकुम माफ कराएं ।*

*★_ हज औरत पर भी उसी तरह फर्ज है जैसे मर्दो पर फर्ज है जब कोई महरम मयस्सर ना हो तो मरने से पहले हज बदल की वसीयत कर दे ।*

*★_हज फर्ज के लिए औरत को अपने शौहर से इजाजत लेना (बशर्ते कि उसके साथ कोई महरम जा रहा हो ) और बेटे को मां बाप की इजाजत लेना जरूरी नहीं ।*

*★_बेवा इद्दत पूरी होने से पहले हज ना करें । हामिला औरत भी हज कर सकती है, पेट के बच्चे का हज नहीं होता । नाबालिग का हज निफ्ल होता है ,बालिग हो जाने के बाद अगर इस्तेतात हो तो उन पर हज फर्ज होगा ।*

*📕आपके मसाईल और उनका हल ,जिल्द -4,_,*

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    *☞हज फर्ज के लिए कर्ज लेना ।*

*★_ अगर हज फर्ज है और कर्ज मिल सकता है और कर्ज बा सहुलत अदा हो जाने की तवक्को हो तो अगर हज फर्ज ना भी हो तो भी कर्ज लेकर हज करना जायज़ है ।*

*★_ कबीरा गुनाहों के बाद सबसे बड़ा गुनाह यह है कि आदमी मक़रूज़ होकर दुनिया से जाए और इतना माल छोड़कर ना जाए जिससे उसका कर्ज अदा हो सके। इसलिए अदाएं कर्ज का अहतमाम सबसे अहम है।*

*☞ उमरा करने से क्या हज लाज़िम हो जाता है ?*

*★_ उमरा अदा करने से हज लाज़िम नहीं होता जब तक कि यह 2 शर्ते ना पाई जाएं :-*
*१_ अगर हज के दिनों में मक्का मुकर्रमा पहुंच जाए,*
*२_ और हज तक वहां ठहरना भी मुमकिन हो तो हज फर्ज हो जाता है ।*
*अगर यह दोनों शर्तें ना पाई जाती हो तो हज फर्ज नहीं होता ।*

*📕आप के मसाईल और उनका हल ,जिल्द-4 _,*

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*☞_ इस्तेतात के बावजूद हज से पहले उमरा करना ,*

*★_ उमरा हज का बदल नहीं है, जिस शख्स पर हज फ़र्ज़ हो उसके लिए जरूरी है कि वह हज करें । जिस शख्स को हज के दिनों में बैतुल्लाह तक पहुंचने और हज तक वहां रहने की ताक़त हो उस पर हज फ़र्ज़ हो जाता है । इसलिए ऐसे शख्स को जो सिर्फ एक बार बैतुल्लाह शरीफ पहुंचने की तमन्ना रखता हो हज पर जाना चाहिए, उमरा के लिए सफर करना और फर्जियत के बावजूद हज ना करना बहुत गलत बात है।*

*☞ उमरा का सवाब पहुंचाना _,*

*★_ जिस तरह दूसरे नेक कामों का इसाले सवाब हो सकता है इसी तरह उमरे का भी इसाले सवाब हो सकता है, इसकी दो सूरते हैं :-*
*१_आसान यह है कि उमरा अपनी तरफ से करके सवाब बख्श दे।*
*२_ और अगर किसी की तरफ से उमरा करना हो तो अहराम बांधते वक्त जिनके लिए करने जा रहे हो उनके लिए नियत करके उनके नाम से अहराम बांधे और दुआ करें ,"_या अल्लाह यह उमरा मेरे लिए आसान फरमा और फलां (नाम ले) की तरफ से इसे कुबूल फरमा।*

*📕आपके मसाईल और उनका हल जिंल्द -4 _,*

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*☞ सऊदी अरब में मुलाजमत करने वालों का उमरा व हज,*

*★_ जो लोग मुलाजमत के सिलसिले में सऊदी अरब गए हो और हज के दिनों में बैतुल्लाह शरीफ पहुंच सकते हों उन पर हज फर्ज है ।*

*"_ अगर इखलास के साथ हज और उमरा के अरकान भी सही अदा करें तो इंशाल्लाह उनको भी हज और उमरे का इतना ही सवाब मिलेगा जितना कि अपने वतन से जाने वालों को ।*

*📕आप के मसाईल और उनका हल- जिल्द-4,_,* 

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 *☞ ना जायज़ कमाई से हज करना ,*

*★_ हदीस शरीफ में है :- "_एक शख्स दूर से (बैतुल्लाह के ) सफर पर जाता है उसके सर के बाल बिखरे हुए हैं बदन मेल कुचेल से अटा हुआ है वह रो-रोकर अल्लाह ताला को "या रब या रब" कहकर पुकारता है हालांकि उसका खाना हराम का लिबास हराम का उसकी गिजा़ हराम की उसकी दुआ कैसे कुबूल हो ?*

*★_हदीस में है :- "_जिस जिस्म की गिजा़ हराम हो दोज़ख की आग उसकी ज़्यादा मुस्तहिक है ।*

*☞_ हराम रक़म के बदले गैर मुस्लिम से क़र्ज़ लेकर हज करना,*

*★_ जिस शख्स की कमाई हराम है और हज करने का ख्वाहिशमंद है ऐसा शख्स किसी गैर मुस्लिम से क़र्ज़ ले लेगा तो यह रक़म उसके लिए हलाल होगी इससे हज भी कर सकता है खैर के तमाम काम कर सकता है ।बाद में उसका क़र्ज़ हराम रक़म से अदा करेगा तो यह गुनाह तो होगा लेकिन हज में हराम रक़म इस्तेमाल ना होगी।*

*📕_ आप के मसाईल और उनका हल जिल्द-४_,*

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    *☞ हज और उमरा की इस्तलाहात_,*
*★_ हज के मसाइल में बाज़ अरबी अल्फाज इस्तेमाल होते हैं इसलिए मोअल्लिमुल हुज्जाज से नकल करके चंद अल्फाज़ के माअनी लिखे जाते हैं :-*
*इस्तलाम :- हजरे अस्वद को बोसा देना और हाथ लगाना।*
*इधतबा अहराम की चादर को दाहिने बगल के नीचे से निकाल कर बाएं कंधे पर डालना।*
*आफाकी़ वह शख्स जो मीकात की हो हुदूद से बाहर रहता हो जैसे इंडियन पाकिस्तानी मिश्री, ईरानी वगैरह ।*
*अय्यामें तशरीक__ जि़ल हिज्जा की 11,12, 13 तारीख अय्यामें तशरीक कहलाती हैं क्योंकि इसमें भी 9,10 जि़ल हिज्जा की तरह हर फर्ज नमाज के बाद तकबीरे तशरीक पढ़ी जाती है ।*
*अय्यामें नाहर _ 10 जि़ल हिज्जा से 12 तक ।*
*अफराद__ सिर्फ हज का अहराम बांधना और सिर्फ हज के अफ'आल करना।*
*तस्बीह__ सुब्हानल्लाह कहना ।*
*★_ तमत्तो _ हज के महीने में पहले उमरा करना फिर उसी साल हज का अहराम बांधकर हज करना ।*
*★_तलबिया_ लब्बैक पूरी पढ़ना ।*
*तहलील_ ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ना।*
*★_ जमरात या जमार _ मीना के तीन मकाम जहां सुतूनों पर कंकरिया मारी जाती है।*
*★_रमल_ तवाफ के पहले तीन फैरों में अकड़ कर शाना हिलाते हुए करीब-करीब कदम रखकर जरा तेजी से चलना।*
*★_रमी_ कंकरियां फैंकना ।*
*★_ ज़मज़म_ बेतुल्लाह के करीब मशहूर चश्मा है जो अब कुए की शक्ल में है ।*
*★_सई _ सफा( बैतुल्लाह के करीब एक छोटी सी पहाड़ी )और मरवा के दरमियान मखसूस तरीके से साथ चक्कर लगाना।*
*★_ शोत _एक चक्कर बेतुल्लाह के चारों तरफ लगाना ।*
*★_तवाफ_ बैतुल्लाह के सात चक्कर मखसूस तरीके से लगाना।*
*★_ उमराह _ हल या मीकात से अहराम बांधकर बैतुल्लाह का तवाफ और सफा मरवा की सई करना,*
*★_अराफात या अराफा _ मक्का मुकर्रमा से तकरीबन 9 मील मशरिक की तरफ एक मैदान है जहां हाजी लोग नौ जि़लहिज्जा को ठहरते हैं ।*
*★_क़िरान_ हज और उमरा दोनों का अहराम एक साथ बांधकर पहले उमरा करना फिर हज करना ।*
*★_का़रिन _ क़िरान करने वाला।*
*★_ क़रन_ तकरीबन 42 मील पर एक पहाड़ है जो यमन और हिजाज़ और तहामा से आने वालों की मिकात है ।*
*★_कसर्_ बाल कतरवाना।*
*★_ मेहरम _अहराम बांधने वाला।*
*★_ मुफर्रद_ हज करने वाला, जिसने मीकात से अकेले हज का अहराम बांधा हो ।*
*★_मीकात_ वह मकाम जहां से मक्का मुकर्रमा जाने वाले के लिए अहराम बांधना वाजिब है।*
*★_ जन्नतुल माला _ मक्का मुकर्रमा का कब्रिस्तान ।*
*★_जबले रहमत_ अराफात में एक पहाड़ है।*
*★_ हजरे अस्वद_ सियाह पत्थर, यह जन्नत का पत्थर है ।जन्नत से आने के वक्त दूध जैसा सफेद था लेकिन बनी आदम के गुनाहों ने इसे सियाह कर दिया ।*
*★_हरम_ मक्का मुकर्रमा के चारों तरफ कुछ दूर तक जमीन हरम कहलाती है। इसमें हो हुदूद निशानात लगे हुए हैं ।इसमें शिकार खेलना, दरख़्त काटना घास जानवर को चराना हराम है।* *★_हल_ हरम के चारों तरफ मीकात तक जमीन को हल कहते हैं।*
*★_ हलक़_ सर के बाल मुंडवाना।*
*★_हतीम _बैतुल्लाह के शुमाली जानिब एक दीवार है जहां कुछ हिस्सा तकरीबन 6 गज शरई जमीन छुटी हुई है ।*
*★_दम_ अहराम की हालत में बाज़ काम जो मना है करने से बकरी वगैरा जिबह करना वाजिब होता है इसे दम कहते हैं।*
*★_रुकने यमानी_ बैतुल्लाह के जुनूबी मग़रिबी गोशे को कहते हैं।*
*★_ मुताफ_ तवाफ करने की जगह ।*
*★_मका़में इब्राहिम _ जन्नती पत्थर है ,हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने इस पर खड़े होकर बैतुल्लाह को बनाया था। इसे एक जालीदार कुब्बे में रखा हुआ है ।*
*★_मुल्ताजि़म _ हजरे अस्वद और बैतुल्लाह के दरवाजे के दरमियान की दीवार जिससे लिपटकर दुआ मांगना मसनून है।*
*★_ मस्जिद खैफ_ मीना की बड़ी मस्जिद।*
*★_ मस्जिद नमरा _अराफात के किनारे एक मस्जिद ।*
*★_मुदई_ दुआ मांगने की जगह मस्जिदे हराम और मक्का मुकर्रमा के कब्रिस्तान के दरमियान एक जगह है जहां दुआ मांगना मक्का मुकर्रमा में दाखिल होते वक्त मुस्तहब है।*
*★_ मुज़दलफा_ मीना और अराफात के दरमियान एक मैदान है जो मीना से तीन मील मशरिक की तरफ है ।*
*★_मोहस्सर_ मुज़दलफा से मिला हुआ एक मैदान जहां से गुजरते वक्त दौड़ कर निकलते हैं।*
*★_ मरवा_ एक छोटी-सी पहाड़ी जहां सई खत्म होती है ।*
*★_हादी_ जो जानवर हाजी हरम में कुर्बानी के लिए साथ लाता है ।*
*★_यौमे अरफा _नौ जि़लहिज्जा जिस दिन हज होता है और हाजी लोग अराफात में ठहरते हैं ।*
*★_यलमलम_ मक्का मुकर्रमा से जुनूब की तरफ दो मंजिल पर एक पहाड़ है इसे सादिया भी कहते हैं ,यमन और इंडिया से आने वालों की मिकात है।*

*📕_आपके मसाइल और उनका हल-जिल्द-४ _,*

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   *☞_ हज और उमरा की फजी़लत -*

*★_ हज इस्लाम का अजीमुश्शान रुक्न है इस्लाम की तकमील का ऐलान हज्जतुल विदा के मौके पर हुआ और हज ही से अरकाने इस्लाम की तकमील होती है।*

*★_ जिस ने महज अल्लाह ताला की रज़ा के लिए हज किया फिर उसने ना कोई फहश बात की और ना नाफरमानी की , वो ऐसा पाक साफ होकर आता है जैसा विलादत के दिन था। ( मिश्कात- 221)*

*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से दरयाफ्त किया गया की सबसे अफज़ल अमल कौन सा है ?*
*फरमाया :-अल्लाह ताला और उसके रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर ईमान लाना।*
*अर्ज किया गया इसके बाद ?फरमाया कि अल्लाह की राह में जिहाद करना ।*
*अर्ज किया गया इसके बाद?फरमाया हज मबरूर । ( मिश्कात -२२१)*

*★_एक उमरा के बाद दूसरा उमरा दरमियानी अर्से के गुनाहों का कफ्फारा है और हज मबरूर की जजा़ जन्नत के सिवा कुछ और हो ही नहीं सकती।*

*★_ पे दर पे हज और उमरा किया करो क्योंकि यह दोनों फक़र् और गुनाहों को इस तरह साफ कर देते हैं जैसे भट्टी लोहे और सोने-चांदी की मैल को साफ कर देती है और हज मबरूर का सवाब सिर्फ जन्नत है । ( मिश्कात- 222 )*

*★_हज इश्के इलाही का मजहर है और बैतुल्लाह शरीफ मरकज़े तजल्लियाते इलाही है । इसलिए बेतुल्लाह शरीफ की जियारत और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बारगाह ए इलाही में हाजिरी हर मोमिन की जाने तमन्ना है ।अगर किसी के दिल में यह आरजू ना हो तो उसके ईमान की जड़े खुश्क है ।*

*★_जो शख्स बैतुल्लाह तक पहुंचने के लिए ज़द और अहलियत रखता था उसके बावजूद उसने हज नहीं किया तो उसके हक़ में कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह यहूदी या नसरानी हो कर मरे । ( मिशकात-222)*

*🗂️_ आपके मसाइल और उनका हल - जिल्द 4 _,*                   

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*☞ हज करने वालों के लिए हिदायत_,*

*★_ हज की शराइत और आदाब की रियायत करते हुए सही-सही अदा करें । हज की फिल्में देखकर हज सीखने के बजाय मसाईल ए हज की किताबों और मौतबर उल्मा किराम से हज के मसाइल सीखने की कोशिश करें। सफर में इसका अहतमाम करें।*

*★_ इन किताबों का भी मुताला करें :-*
*१_फजाईले हज (हजरत शेखुल हदीस मौलाना मोहम्मद ज़करिया नूरुल्लाहु मरक़दहु )*
*२_आप हज कैसे करें ( हजरत मौलाना मंजूर नोमानी मदजि़ल्लहु)*
*३_मुअल्लिमुल हुज्जाज (मौलाना मुफ्ती सईद अहमद मरहूम )*

*★_नाम नमूद और नुमाइश से परहेज करें और हुक़ूक़ की अदायगी का ख्याल रखें । रुखसती के वक्त फूलों के हार पहनना, दावते करना, वीडियो फिल्में और फोटोग्राफी करना ऐसी लगवियात से बचते हुए हुक़ूक़ की अदायगी, खसियत और तक़वा़, मामलात की सफाई और सफर के आदाब का एहतमाम होना चाहिए ।*

*★_सफर ए हज में नमाजे बा जमात का एहतमाम करें । हज के दौरान फहश कलामी , हुक्म उदूली और लड़ाई झगड़े से बचें । ज्यादा से ज्यादा वक्त हरम शरीफ में गुजारे ।*

*★_बगैर ज़रूरत बाजारों का गश्त बिल्कुल ना करें ,खरीदारी का अहतमाम बिल्कुल ना करें।*

*★_ किसी को कोई अमल करते हुए देखकर अमल शुरू न करें बल्कि तहकी़क़ करें कि यह हनफी मसलक के मुताबिक सही भी है या नहीं । क्योंकि हज के मौके पर मुख्तलिफ मसलक के लोग जमा होते हैं।*

*★_ नमाज ए फजर से इशराक तक और असर के बाद गुरूब तक और मकरूह औकात में दोगाना तवाफ पढ़ने की इजाजत नहीं लेकिन बहुत से लोग दूसरों की देखा देखी पढ़ते रहते हैं ।*

*★_ अहराम खोलने के बाद सर का मुढाना अफ़ज़ल है कम से कम चौथाई सर का साफ कराना ज़रूरी है ।लेकिन लोग जिन्हें मसले का सही इल्म नहीं होता देखा देखी कानों के ऊपर से चंद बाल कटवा लेते हैं।*

*🗂️ _आप के मसाईल और उनका हल जिल्द 4 _,*

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*☞_ हज के अक़साम की तफसील _,*

*★_हज के अक़साम तीन हैं :- १_क़िरान, २_ तमत्तो ,३_ अफराद ।*
*"_हज कि़रान यह है :- कि मीकात से गुजरते वक्त हज और उमरा दोनों का एक साथ अहराम बांधा जाए ,पहले उमरा के अफआल अदा किए जाएं फिर हज के अरकान अदा किए जाएं और 10 ज़िल हिज्जा को रमी और कुर्बानी के बाद दोनों का अहराम एक साथ खोला जाए ।*

*★_हज तमत्तो यह है :- कि मीकात से उमरा का अहराम बांधा जाए और उमरे के अफआल अदा करके अहराम खोल दिया जाए और 8 ज़िल हिज्जा को हज का अहराम बांधा जाए और 10 ज़िल हिज्जा को रमी और कुर्बानी के बाद अहराम खोल दिया जाए ।*

*★_हज अफराद यह है कि :- मीकात से सिर्फ हज का अहराम बांधा जाए और 10 ज़िल हिज्जा को रमी के बाद अहराम खोल दिया जाए , (इस सूरत में कुर्बानी वाजिब नहीं)*

*★_ पहली सूरत यानी हज कि़रान अफजल है और दूसरी सूरत यानी हज तमत्तो तीसरी से यानी हज अफराद से अफज़ल भी है और सहल भी है । जिस शख्स पर हज फर्ज हो उसके लिए भी यही तरतीब है।*

*🗂️_ आपके मसाइल और उनका हल जिल्द 4 _,*

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       *☞_ हज तमत्तो का तरीक़ा _,*
*★_ हज तमत्तों का तरीक़ा ये है कि :- मीका़त से पहले (जहाज में सवार होने से पहले) सिर्फ उमरा का अहराम बांध ले।*
*⇨मक्का मुकर्रमा पहुंचकर उमरा के अरकान (तवाफ और सई) अदा करके अहराम खोल दे।*

*⇨ अब आप पर अहराम की कोई पाबंदी नहीं है। 8 ज़िल हिज्जा को मीना जाने से पहले हज का अहराम बांध लें और अराफात और मुजदलफा से वापस आकर 10 ज़िल हिज्जा को पहले बड़े शैतान की रमी करें फिर कुर्बानी करें और बाल साफ करा कर (औरत उंगली के पौरे के बराबर सर के बाल काट लें) अहराम खोल दे ।*

*⇨ फिर तवाफे जियारत के लिए बेतुल्लाह शरीफ जाएं और तवाफ के बाद हज की सई करें और अगर मीना जाने से पहले अहराम बांध कर नफली तवाफ कर लिया और उसके बाद हज की सई पहले कर ली तो यह भी जायज़ है।*

*🗂️_ आप के मसाईल और उनका हल जिल्द 4 _,*

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                  *☞ हज ए बदल _,*

*★_ जिस शख्स पर हज फ़र्ज़ हो और उसने इतना माल छोड़ा हो कि उसके तिहाई हिस्से से हज कराया जा सकता है और उसने हज बदल कराने की वसीयत भी की हो तो उसकी तरफ से हज बदल कराना उसके वारिसों पर फर्ज़ है।*

*★_ जिस शख्स के जिम्मे हज फर्ज़ था मगर उसने इतना माल नहीं छोड़ा या उसने हज बदल कराने की वसीयत नहीं की, उसकी तरफ से हज बदल कराना वारिसों पर लाज़िम नहीं लेकिन अगर वारिस उसकी तरफ से खुद हज बदल करें या किसी दूसरे को हज बदल के लिए भेज दे तो अल्लाह की रहमत से उम्मीद है कि मरहूम का हज फ़र्ज़ अदा हो जाएगा ।*

*★_ और जिस शख्स पर हज फ़र्ज़ नहीं अगर वारिस उसकी तरफ से हज बदल करें या किसी को भेज दे तो यह हज निफली हज बराऐ इसाले सवाब होगा।*

*★_ अगर ऐसी बीमारी या कमज़ोरी जिसकी वजह से खुद हज को जाने से मजबूर है तो भी किसी को हज बदल पर भेज सकता है।*

*★_ हज बदल ऐसा शख्स करे जिसने पहले अपना हज किया हो जिसने अपना हज नहीं किया ऐसा शख्स का हज बदल करना मक़रूह है ।*

*★_हज बदल अपने वतन से किया जाए सऊदी अरब से जायज़ नहीं।*

*★_ नाबालिक हज बदल नहीं कर सकता।*

*★_ हज बदल करने वाले को सिर्फ हज का अहराम बांधना चाहिए । उसका हज अफराद होगा और हज अफराद में हज की वजह से कुर्बानी नहीं होती।*

*★_ अगर हज बदल करने वाला अगर तमत्तो करें ( यानी मीकात से सिर्फ उमराह का अहराम बांधे और उमराह से फारिग हो कर 8 जि़ल हिज्जा को हज का अहराम बांधे ) तो तमत्तो की वजह से कुर्बानी खुद अपने माल से लाज़िम है, अगर भेजने वाले ने इजाज़त दे दी हो तो उनके माल से कुर्बानी कर सकता है।*

*🗂️_ आपके मसाइल और उनका हल जिल्द 4 _,* 

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 *☞ अहराम बांधने के मसाइल _,*

*★_ हज और उमरा के लिए अहराम बांधने के मक़ाम को मीकात कहां जाता है । इंडिया पाकिस्तान और बांग्लादेश और अहले यमन की मीकात यलमलम है ।*

*★_ हवाई सफर की सूरत में रवानगी के वक्त एयरपोर्ट से ही अहराम बांध लेना बेहतर है ,मगर हज और उमराह का तलबिया मुता'लका मीकात से उस वक्त शुरू किया जाए जब एयरप्लेन में बाका़यदा ऐलान हो ।*

*★_अहले हरम (मक्का मुकर्रमा के रहने वाले लोग) हज के लिए तो अपने घरों से ही अहराम बांधेंगे जबकि उमराह की अदायगी के लिए इन्हें हरम की हुदूद से बाहर ( तनईम या जूराना ) किसी भी जगह से अहराम बांधना होगा ।*

*★_वह लोग जो हरम की हुदूद से बाहर जबकि मीकात के अंदर रिहाइश रखते हैं वह हज और उमराह दोनों के लिए अपनी रिहाईशगाह ही से अहराम बांधेंगे ।*

*🗂️_ हज और उमराह गाइड-३३ _,*

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*☞ अहराम के वक्त मसनून काम-*

*★__ हज या उमरा का अहराम के लिए पहले गुस्ल किया जाए। ( तिर्मिजी )*

*★_मर्द हजरात सिर्फ अपने बदन पर ( ना कि अहराम की चादर पर) खुशबू लगाए । ( बुखारी शरीफ )*

*★_मर्दों के लिए दो साफ सूथरी बिना सिली चादरे (सफेद हो तो बेहतर है ) एक तेहबंद और दूसरी ऊपर ओड़ने के लिए लेकिन सर और चेहरा नंगा रखे । जूता कोई भी पहना जा सकता है मगर टखने नंगे होना चाहिए। ( बुखारी शरीफ)*

*★_ उमरा या हज दोनों की नियत के लिए मीकात से रवाना होते वक्त अल्फाज की अदायगी के साथ नियत करें-*
*मसलन :- या इलाही मैं तेरी बारगाह में हज उमरा के लिए हाजिर हूं। अगर किसी की तरफ से हज या उमरा कर रहे हैं तो या इलाही तेरी बारगाह में फला ( उसका नाम वल्दियत के साथ ले जिसकी तरफ से किया जाए ) की तरफ से हज या उमरा की अदायगी के लिए हाजिर हूं ।*

*★_अगर अहराम बांधते वक़्त किसी बीमारी या कानूनी अड़चन की बिना पर हरम तक पहुंचना मुश्किल नज़र आ रहा हो तो उसे चाहिए कि ये अल्फ़ाज़ कहे - या इलाही मेरे हलाल होने की जगह वही है जहां तू मुझे रोक देगा,* *(बुखारी शरीफ)*

*"_इस नियत का फायदा ये होगा कि अगर रुकावट आने की सूरत में अहराम खोलना पड़े तो फिदया की अदायगी से बच जाएगा और हज या उमराह नफ्ली है तो क़ज़ा भी नही ,,,बा सूरत एक जानवर क़ुरबानी के लिए हरम भेज दे, और अंदाज़न कि ज़िबह हो जाने पर बाल कटवा कर अहराम खोल दे,*

*★_अगर क़ुरबानी का जानवर हरमे मक्का नही भेज सकता तो रुकावट के मक़ाम पर ही क़ुरबानी जिबह करे, और अगर वहां भी क़ुरबानी की ताक़त नहीं रखता तो (हज तमत्तो की तरह )10 रोज़े रखे ।*
*(वल्लाहु आलम)*

*★_अहराम के बाद ही मीक़ात से तलबिया शुरू करे,*
*"_अगर मुमकिन हो सके तो हज या उमराह का अहराम नमाज़े ज़ुहर के बाद बांधना चाहिए, मगर मुसाफिर की सहूलियत के ऐतेबार से किसी भी वक़्त बांधा जा सकता है,*

*🗂️हज और उमराह (गाइड बुक), सफा नंबर 33,*

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             *☞औरतों का अहराम*

*★_औरतें भी अहराम से पहले ग़ुस्ल करे, और हैज़ व निफ़ास की हालत में है तो भी ग़ुस्ल करे, (मुस्लिम)*

*★_औरतों के लिए हज और उमराह दोनो की अदायगी के लिए कोई खास अहराम नही , औरतें आम लिबास में अहराम की नीयत करेंगी, अलबत्ता ना दस्ताने पहने और ना नक़ाब डाले जबकि जेबो ज़ीनत से बचते हुए रंगीन कपड़े ज़ेवर पहनने की इजाज़त है । (अबु दावूद)*

*★_पर्दे के एहतमाम हज और उमराह के मौके पर भी ज़रूरी है , या तो पेशानी से ऊपर सर पर कोई छज्जा सा लगाए ताकि पर्दा भी हो जाए और कपड़ा चेहरे पर भी न लगे , या कोई पंखा वगैरह हाथ मे रख ले और उसे चेहरे के आगे कर लिया करे , इसमे कोई शक नही की ऐसे हालात में पर्दे की पाबंदी बड़ी मुश्किल है , लेकिन जहां तक हो सके पर्दा का एहतमाम ज़रूरी है और जो अपने बस से बाहर हो तो अल्लाह ताअला माफ फरमाए,*
*🗂️(आपके मसाइल और उनका हल)*

*☞_नाबालिग बच्चों का अहराम,*

*★_नाबालिग बच्चे भी हज और उमराह अदा कर सकते हैं,जिनका अजरो सवाब उनके वाल्दैन को मिलेगा। (मुस्लिम शरीफ)*

*🗂️_ हज और उमराह (गाइड बुक)-३४ _,* 

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*☞_ अहराम की हालत में जायज़ उमूर*

*★_अहराम की हालत में बा वक़्ते ज़रूरत दर्जे ज़ैल काम की इजाज़त है:-*
*"_ग़ुस्ल करना, सर, बदन खुजलाना, मरहम पट्टी करना, खाना पीना, आंखों में सुरमा लगाना, दावा डालना, मुजी जानवर को मारना,अहराम की चादरें बदलना, अंगूठी , घड़ी, ऐनक (ग्लास) पेटी , छतरी का इस्तेमाल करना, बगैर खुशबू वाले तेल और साबुन का इस्तेमाल करना, समुंदरी शिकार करना, बच्चों या मुलाजीमो को तालीम व तरबियत के लिए सज़ा देंना, रोज़े रखना, इलाज कराना,*

*🗂️_हज और उमराह (गाइड बुक) ३४ _,*

*☞_ अहराम की हालत में मर्द और औरत दोनों के लिए नाजाइज़ उमूर*

*★_मियां बीवी की हमबिस्तरी और जिमा से मुताल्लिक़ मुताला करना, लड़ाई झगड़ा, गुनाह और नाफ़रमानी के काम, खुशबू लगाना, निकाह करना या करवाना, पैगाम भिजवाना, खुश्की पर शिकार करना, खुश्की पर शिकारी की शिकार मारने या हांकने में मदद करना, शिकार किया हुआ जानवर जिबह करना, बाल या नाखून काटना,*

*★_इन उमूरों के अलावा 3 काम सिर्फ मर्दों के लिए नाजाइज़ है मगर औरतों के लिए नही:-*
*1-सिला हुआ कपड़ा पहनना,*
*2-सर पर टोपी या पगड़ी वगैरह रखना,*
*3-मोजे या जुराबें पहनना,*

*"_और मजीद काम औरतों के लिए मना है,:-*
*1-अहराम में नक़ाब इस्तेमाल करना,*
*2-अहराम में दस्ताने पहनना,*

*🗂️_हज और उमराह (गाइड बुक) सफा नंबर 35*

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          *☞_तवज्जोह तलब उमूर*

*★_अहराम की हालत में अगर कोई शख्स जहालत या भूल जाने की बिना पर या बेख्याली में सिला हुआ कपड़ा पहन लें या अपना सर ढाँप ले या खुशबू लगा ले तो इल्म होने पर याद आ जाने पर उससे फौरन रुक जाए और इस सूरत में उसपर कोई फिदया वगैरह नही होगा,*

*★_हज या उमराह करने वाला जब काबा शरीफ पर पहुंच जाए तो तवाफ़ शुरू करने से पहले तलबिया पढ़ना बन्द कर दे,*

*★_अहराम की हालत में फौत (डेथ) हो जाने वाले शख्स को न खुशबू लगाई जाए, न उसका सर ढाँपा जाए और उसे अहराम की चादरों में ही कफन दिया जाए, क़यामत के दिन (इंशाअल्लाह ताला) वो इसी हालात में तलबिया पुकारता हुआ उठेगा,*

*★_मीक़ात से अगर बगैर अहराम के गुज़र जाए तो दम वाजिब हो गया लेकिन अगर वापस आकर मीक़ात से अहराम बांध लिया तो दम साकित हो गया,*

*🗂️_आपके मसाइल और उनका हल,,, जिल्द-4सफा नंबर 102,*

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*☞_ अहराम खोलने का तरीका*

*★_अहराम खोलने के लिए हलक़ (यानी सर के बाल साफ करना) अफ़ज़ल है और कसर जाइज़ है,*

*★_इमाम अबु हनीफा र.अ. के नज़दीक अहराम खोलने के लिए ये शर्त है कि कम से कम चौथाई सर के बाल एक पोरे के बराबर काट लिए जाए,*
*"_अगर सर के बाल छोटे हो और एक पोरे से कम हो तो उस्तरे से साफ कराना जरूरी है इसके बगैर अहराम नही खुलता,*

*★_उमराह के अहराम से फारिग होने के बाद से हज का अहराम बांधने के वक़्त तक जो वक़्फा है उसमें कोई पाबंदी नही,*

*★_अहराम के कपड़ो का बाद में आम कपड़ों की तरह इस्तेमाल जाइज़ है,*

*🗂️_ आपके मसाइल और उनका हल जिल्द-4 सफा नंबर, 102,*

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             *☞_ हज के फ़राइज़ _"*
*★__जिस तरह नमाज़ में फ़राइज़, वाजिबात और सुन्नतें हैं इसी तरह हज में भी है, इनको ज़हन नशीन कर लें,*

                *☞_हज में तीन फ़र्ज़ हैं*
*★_1-अहराम :- दिल से हज की नीयत कर के तलबिया यानी "लब्बेक अल्लाहुम्मा लब्बेक,"आखिर तक पढ़ना इसको अहराम कहते है,*
*"_बगेर सिले हुए कपड़े जो अहराम में पहने जाते हैं, मिजाज़न उनको भी अहराम कहा जाता है,*

*★_2-वक़ूफ़ ए अराफात:- नवी ज़िल्हिज्जा को ज़वाले आफताब के बाद से लेकर दसवीं ज़िल्हिज्जा की सुबह सादिक़ के दरम्यान अराफात में ठहरना, चाहे ज़रा सी देर के लिए हो,*

*★_3-तवाफे ज़ियारत:- ये वक़ूफ़ ए अराफात के बाद किया जाता है, (इससे पहले जो तवाफ़ हो वो फ़र्ज़ में शुमार नही होगा)*

*★_इन तीनों फ़राइज़ में से अगर कोई चीज़ छूट जाए तो हज न होगा और उसकी तलाफ़ी दम देने से भी नही हो सकती है,*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात , सफा नंबर 357,*

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               *☞_ वाजिबाते हज_,*

*★_ हज के 6 वाजिबात हैं:-*
*1- मुज़दलफ़ा में वक़ूफ़ के वक़्त फजर के बाद रोशनी अच्छी तरह फैलने तक ठहरना,*

*2-सफा और मरवा के दरमियान सई करना,*

*3-रमी जमर करना यानी कंकरियां मारना,*

*4- का़रिन और मुत्मता को क़ुरबानी करना,*

*5- हलक़ यानी सर के बाल मुंडवाना या तकसीर यानी कतरवाना,*

*6-आफाकी़ यानी मीक़ात से बाहर रहने वाले को तवाफे विदा करना,*
*( हिदाया-१/२१९)*

*★_नोट:- 1-का़रिन - जिसका अहराम हज व उमराह दोनो का है,*
*2-मुत्मता -जिसने उमराह कर के अहराम खोल दिया है,*

*🗂️ फिक़हुल इबादात- सफा -३५८,*

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              *☞_ हज की सुन्नतें*

*★_हज की सुन्नतें ये हैं:-*
*1-मुफ़र्रीद (जिसका अहराम सिर्फ हज का है) आफाकी़ और का़रीन (जिसका अहराम हज व उमराह दोनो का है) को तावाफे क़दूम करना,*

*2-तावाफे क़दूम में रमल और इज़तबा करना, -अगर इसके बाद सई करना हो, अगर तावाफे क़दूम के बाद सई न की तो तवाफे ज़ियारत के बाद सई करनी होगी और उस वक़्त तवाफे ज़ियारत में रमल करना होगा,*

*3-आंठवी ज़िहिज्जा की सुबह को मीना के लिए रवाना होना और वहां पांच नमाज़े पढ़ना ,*

*4-तुलू आफताब के बाद नवी ज़िल्हिज्जा को मीना से अराफात के लिए रवाना होना,*

*5-अराफात से ग़ुरूबे आफताब के बाद इमामे हज से पहले रवाना न होना,*

*6-अराफात से वापस होकर रात को मुज़दलफ़ा में ठहरना,*

*7-अराफात में ग़ुस्ल करना,*
*8-अय्यामे मिना में रात को मीना में ठहरना,*
*( मुअल्लिमुल हिजाज-९५)"*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात-३५९ _,*

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*☞_ हज के 5 दिन , पहला दिन-8ज़िल्हिज्जा*

*★_आज तुलू आफताब के बाद हालाते अहराम में सब हाजियों को मीना जाना है, मुफ़र्रिद (जिसका अहराम सिर्फ हज का है)और का़रीन (जिसका अहराम हज और उमराह दोनों का है) उनके अहराम पहले से बंधे हुए हैं, मुत्मता (जिसने उमराह कर के अहराम खोल दिया था) और इसी तरह अहले हरम आज हज का अहराम बांधें,*

*★_सुन्नत के मुताबिक ग़ुस्ल कर के अहराम की चादरें पहन लें, अहराम के लिए 2 रकअत पढ़ें और हज की नीयत कर के तलबिया पढ़ें,*
*"__तलबिया पढ़ते ही अहराम शुरू हो गया, अब अहराम की तमाम पाबंदियां लाज़िम हो गई (जो पहले गुज़र चुकी है)*

*★_इसके बाद मीना को रवाना हो जाएं,*
*"__मीना मक्का मुकर्रमा से 3 मील के फासले पर 2 तरफा पहाड़ों के दरमियान एक बहुत बड़ा मैदान है, 8 वी तारीख की ज़ुहर से 9 वी तारीख की सुबह तक मीना में 5 नमाज़ें पढ़ें और इस रात को मीना में क़याम करना सुन्नत है, अगर इस रात को मक्का मुकर्रमा में रहा या अराफात में पहुंच गया तो मकरूह है,*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात-३६४ _,*

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*☞_हज के 5दिन, दूसरा दिन -9ज़िल्हिज्जा-*

*★_आज हज का सबसे बड़ा रुक्न यानी वक़ूफ़ ए अरफा अदा करना है, जिसके बगैर हज नही होता,*

*★_तुलू आफताब के बाद जब कुछ धूप फेल जाए मीना से अराफात के लिए रवाना हो जाएं जो मीना से तक़रीबन 6 मील है, मीना से अराफात के लिए रवाना होते वक़्त तलबिया, तहलील , तकबीर, दुआ और दरूद पढ़ते हुए चले,*
*"__फिर जब जबले रहमत पर नज़र पढ़े (जो मैदाने अराफात में एक पहाड़ है) तो तस्बीह , तहलील व तकबीर कहे और जो चाहे दुआ मांगे,*

*★_9वी ज़िल्हिज्जा को ज़वाल के बाद सुबह सादिक़ के दरमियानी हिस्से में अहरामें हज की हालत में अगर थोड़ी सी देर के लिए भी अराफात में ठहर जाऐं या वहां से गुज़र जाऐं तो हज हो जाएगा,*
*"__अगर उस वक़्त में ज़रा देर के लिए भी अराफात न पहुंचा तो हज नही होगा,*

*★_मुस्तहब ये है कि ज़वाल के बाद ग़ुस्ल कर लें और इसका मौक़ा न मिले तो वजू कर लें और वक़्त की इब्तिदा में नमाज़ अदा कर के वक़ूफ़ शुरू कर दे,*

*★__सुन्नत तरीक़ा ये है कि ज़ुहर और असर की नमाज़ इकट्ठी अमीरे हज की इक़्तदा में पढ़ी जाए,*
*"__यानी असर को भी ज़ुहर के वक़्त में पढ़ लें, वहां जो बड़ी मस्जिद हैं जिसको मस्जिदे नमरा कहते हैं, इसमे इमाम दोनों नमाज़ें इकट्ठी पढ़ाता है, लेकिन चूंकि हर शख्स वहां पहुंच नही सकता और सब हाजी इसमे शामिल नही हो सकते और बगेर अमीरे हज की इक़तिदा के दोनों नमाज़ों को जमा करना भी दुरुस्त भी नही है,*

*★__इसीलिए इंडिया, पाक , बांग्लादेश ,अफ़ग़ानिस्तान वगैरह के हनफी उलमा हाजियों को यही फतवा देते हैं कि वो अपने अपने खेमों में ज़ुहर के वक़्त में और असर के वक़्त में बा जमात पढ़े और नमाज़ों के अलावा जो वक़्त है उसे ज़िक्र व दुआ और तलबिया में लगाए,,*

*🗂️_ फिकहुल इबादात-३६६ _,*

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          *☞_ वक़ूफ़ ए अराफ़ात_,*

*★_ज़वाल के बाद से ग़ुरूब तक पूरे मैदाने अराफ़ात में जहां चाहे वक़ूफ़ कर सकते हैं, मगर अफ़ज़ल ये है कि जबले रहमत जो अराफ़ात का मशहूर पहाड़ है, उसके करीब जिस जगह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वक़ूफ़ किया था, उस जगह वक़ूफ़ करे, बिल्कुल उस जगह मुमकिन न हो तो जितना उससे क़रीब हो बेहतर है, लेकिन अगर जबले रहमत के पास जाने में दुशवारी हो या वतलाशे वक़्त अपना खेमा तलाश करना मुश्किल हो तो अपने खेमो में वक़ूफ़ करे,*

*★_बेहतर ये है कि क़िब्ला रुख खड़ा होकर मग़रिब तक वक़ूफ़ करे और हाथ उठाकर दुआएं करें, अगर पूरा वक़्त खड़ा ना हो सके तो जिस क़दर भी खड़ा रह सकता हो खड़ा रहे, फिर बैठ जाए, फिर जब क़ुव्वत हो खड़ा हो जाए,और पूरे वक़्त में खुशु खुज़ू और गिर्यावजा़री क साथ ज़िकरुल्लाह ,दुआ, इस्तग़फ़ार में मशगूल रहे,और थोड़े थोड़े वक़्त में तलबिया पढता रहे,*

*"_और दीनी और दुनियावी मक़सद के लिए अपने वास्ते , अपने मुताल्लिक़ीन व अहबाब के वास्ते , खासकर उन लोगों के वास्ते जिन्होंने दुआ के लिए दरख्वास्त की है और तमाम मुसलमान के लिए दुआएं मांगे,*

*★_ये वक़्त कुबुलियते दुआ का खास वक़्त है और हमेशा नसीब नही होता ,इस दिन बिला ज़रूरत आपस की जाइज़ गुफ्तगू से परहेज़ करे, पूरा वक़्त दुआओं, ज़िकरुल्लाह में सर्फ करे,।*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात-३६५ _,*

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   *☞_ अराफ़ात से मुज़दलफ़ा रवानगी*

*★_मुज़दलफ़ा अराफ़ात से वापस मक्का मुकार्रमह की तरफ 3 मील के फासले पर है, आफताब ग़ुरूब होते ही मुज़दलफ़ा के लिए रवाना हो जाएं, रास्ते मे ज़िकरुल्लाह ओर तलबिया पढ़ते रहें,*

*★_ इस रोज़ हुज्जाज को मग़रिब की नमाज़ अराफ़ात या रास्ते मे पढ़ना जाइज़ नही, वाजिब ये है कि मग़रिब को मोअखर कर के ईशा के वक़्त नमाज़े ईशा के साथ पढ़े,*.

*★_मुज़दल्फा पहुंचकर अव्वल मग़रिब के फ़र्ज़ पढ़े और फ़ौरन बाद ईशा के फ़र्ज़ पढ़े , मगरिब की सुन्नतें , ईशा की सुन्नतें , और वित्र बाद में पढ़े , मुज़दलफ़ा में मग़रिब व ईशा दोनो नमाज़ें एक अज़ान और इक़ामत से पढ़ी जाएं और मुज़दलफ़ा में दोनों नमाज़ों को इकट्ठा पढ़ने के लिए जमात शर्त नही , तन्हा हो तब भी इकट्ठा कर के पढ़े ,*

*★_अगर मग़रिब की नमाज़ अराफ़ात में या रास्ते मे पढ़ ली तो मुज़दलफ़ा पहुंचकर इसको दोहराना वाजिब है, अगर ईशा के वक़्त से पहले मुज़दलफ़ा पहुंच गया तो अभी मग़रिब की नमाज़ न पढ़े, इशा के वक़्त का इंतज़ार करे और इशा के वक़्त दोनो नमाज़ों को इकट्ठा पढ़े,*

*★_मुज़दलफ़ा की रात में जागना इबादत में मशगूल रहना मुस्तहब है, और इस रात मुज़दलफ़ा में रहना सुन्नत मुअक्क़दा है,*

*★_बहुत से लोग वक़्त से पहले ही फजर की अज़ान देकर नमाज़े फजर मुज़दलफ़ा में पढ़ कर मीना को चले जाते हैं, अव्वल तो वक़्त से पहले नमाज़ नही होगी, दूसरा वक़ूफ़ ए मुज़दलफ़ा छोड़ने का गुनाह होता है, जो वाजिब है, और दम भी वाजिब होता है,*

*★_अलबत्ता अगर औरत हुजूम की वजह से मुज़दलफ़ा में न ठहरे, सीधी मीना चली जाए तो उसके लिए गुंजाइश है, उस पर दम वाजिब नही होगा, लेकिन मर्द के लिए जाइज़ नही,*

*★_मुज़दलफ़ा में रात गुज़ारना सुन्नतें मुअक्क़दा है और सुबह सादिक़ के बाद मुज़दलफ़ा में रहना वाजिब है, वाजिब के छूट जाने से दम वाजिब होता है,*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात-३७० _,*

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*☞ हज के 5 दिन, तीसरा दिन - 10 ज़िल्हिज्जा*

*★_ज़िल्हिज्जा की 10 वी तारीख में हज के चंद अहकाम में पहला हुक्म वक़ूफ़ ए मुज़दलफ़ा है जो वाजिब है, इसका वक़्त तुलू फजर से तुलू आफताब तक है,*

*★_अगर कोई शख्स तुलू फजर के बाद थोड़ी देर ठहर कर मीना चला जाए, तुलू आफताब का इंतज़ार न करे तो भी वाजिब वक़ूफ़ अदा हो गया,*

*★_वाजिब की अदायगी के लिए इतना काफी है की नमाज़े फजर मुज़दलफ़ा में पढ़ ले, मगर सुन्नत यही है कि तुलू आफताब से कुछ पहले तक ठहरे,*

*★_मुज़दलफ़ा के मैदान में जहां चाहे वक़ूफ़ कर सकता है, सिवाए वादिए मुहस्सीर के जो मीना की जानिब मुज़दलफ़ा से बाहर वो जगह है जहां असहाबे फील पर अज़ाब आया था, अफ़ज़ल ये है कि जबले क़ुज़ह के करीब वक़ूफ़ करे, अगर रश की वजह से वहां पहुंचना मुश्किल हो तो मुज़दलफ़ा में जिस जगह ठहरा है वही सुबह की नमाज़ अंधेरे में पढ़ कर वक़ूफ़ करे,*

*★_इस वक़ूफ़ मे भी तलबिया, तकबीर, तहलील और तौबा व अस्तग़फ़ार और दुआ कसरत से करे,*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात-३७२ _,*

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*☞ _मुज़दलफ़ा से मीना रवानगी*

*★_जब सूरज तुलू होने में 2 रकअत अदा करने के बक़दर वक़्त रह जाए तो मुज़दलफ़ा से मीना के लिए रवाना हो जाएं, इसके बाद ताखीर करना ख़िलाफ़े सुन्नत है, और बेहतर ये है कि रमी के लिए कंकरियां चने या खजूर की गुठलियों के बराबर मुज़दलफ़ा से उठाकर साथ ले जाए, वरना कहीं से भी उठाले,*

*☞_ जमराह उक़बा (बड़ा शैतान) की रमी करना*

*★_मीना पहुंचकर सबसे पहला काम जमराह उक़बा की रमी करना है, मीना में 3 सुतून ऊंचे बने है इनको जमारात और 1 को जमराह कहा जाता है,*

*★_इन मे से जो मस्जिदे खैफ के करीब हैं उनको जमराह अवला और उसके बाद वाले को जमराह वसति और उसके बाद वाले को जो सबसे आखिर में है जमराह उक़बा कहते हैं,*

*★_इन सुतून के गिर्द घेरा बना हुआ है, इसमे कंकरियां फेंकने को रमी कहते हैं,*

*★_10वी तारीख को सिर्फ जमराह उकबा (बड़ा शैतान ) की रमी होती है, जब मीना पहुंचे तो पहले और दूसरे जमराह को छोड़कर सीधा जमराह उकबा पर जाए और उसको 7 कंकरियां मारे, और पहली कंकरी के साथ ही तलबिया पढ़ना खत्म कर दें,*

*★_रमी करते हुए हर कंकरी के मारने के वक़्त तकबीर और दुआ (अगर याद हो) पढ़े, तकबीर के बजाए "सुब्हानल्लाह" या "ला इलाहा इल्लल्लाह" पढ़ना भी जाइज़ है, लेकिन ज़िक्र करना बिल्कुल न छोड़ें,*

*🗂️_ फिक़हुल इबादात -३७२_,*

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     *☞_ कंकरियां मारने का वक़्त*

*★_पहले दिन 10 ज़िल्हिज्जा को सिर्फ जमराह उक़बा (बड़ा शैतान) की रमी की जाती है, इसका वक़्त सुबह सादिक़ से शुरू होता है, मगर तुलू आफताब से पहले रमी करना ख़िलाफ़े सुन्नत है,*

*"_मसनून वक़्त तुलू आफताब से ज़वाल तक है, ज़वाल से ग़ुरूब तक बिला कराहत और ग़ुरूब से अगले दिन सुबह सादिक़ तक कराहत के साथ जाइज़ है, अगर कोई उज़्र (औरतें , बच्चे, बीमार, कमज़ोर) हो तो ग़ुरूब के बाद भी बिला कराहत जाइज़ है,*

*★_11वी और 12वी ज़िल्हिज्जा की रमी का वक़्त ज़वाल के बाद से शुरू होता है, ग़ुरूब आफताब तक बिला कराहत और ग़ुरूब से सुबह सादिक़ तक कराहत के साथ जाइज़ है, मगर आज कल हुजूम की वजह से ग़ुरूब के पहले रमी न कर सके तो ग़ुरूब के बाद बिला कराहत जाइज़ है,*

*★_13 वी तारीख की रमी का मसनून वक़्त तो ज़वाल के बाद है लेकिन सुबह सादिक़ के बाद ज़वाल से पहले इस दिन की रमी करना इमाम अबु हनीफा र.अ. के नज़दीक कराहत के साथ जाइज़ है, बीमार या कमज़ोर आदमी का दूसरे से रमी कराना जाइज़ है,*

*📘 आपके मसाइल और उनका हल,४/१३१ _,* 
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*☞_ रमी तर्क करने से दम वाजिब होता है_,"*

*★_जो लोग खुद रमी कर सकते हैं, बहुत से लोग उनकी तरफ से भी रमी कर देते हैं, ये दुरुस्त नहीं है, इस तरह करने से रमी छोड़ने का गुनाह होता है और दम वाजिब होता है,*

*★_गुरूबे आफताब के बाद वो लोग रमी कर लें जो भीड़ और रश की वजह से दूसरों को नायब बना देते हैं औरतों को रात में रमी करादे, इससे तकलीफ न होगी,*

*★_ अगर किसी ने सुबह सादिक़ तक भी रमी नही की तो क़ज़ा होगी ,11वी तारीख को उसकी क़ज़ा करे और दम भी दे,*

*📘 फिक़हुल इबादात-३७३ _,*

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                    *☞ _क़ुरबानी*

*★_जमराह उक़बा की रमी से फारिग होकर बतौर शुक्रिया हज की कुरबानी मुफररीद के लिए मुस्तहब है और कारिन और मुत्मता पर वाजिब है,*

*★_मुफररीद ने अगर क़ुरबानी से पहले हलक़ या कसर करा लिया और उसके बाद क़ुरबानी की तो उस पर दम वगैरह वाजिब नही, अलबत्ता उसके लिए रमि ज़िबह से पहले और ज़िबह हलक़ या कसर से पहले मुस्तहब है और रमि हलक़ या कसर से पहले वाजिब है,*
*"_और कारिन और मुत्मता पर रमि और ज़िबह हलक़ या कसर से पहले वाजिब है,*

*★_जो शख्स ज़िबह करना जानता हो, उसके लिए अपने हाथ से ज़िबह करना अफ़ज़ल है और ज़िबह करना न जानता हो तो ज़िबह के वक़्त क़ुरबानी के पास खड़ा होना मुस्तहब है, अगर ज़िबह की जगह हाज़िर भी न हो और दूसरे से ज़िबह करा दे तो ये भी दुरुस्त है,*

*☞ _हाजी पर ईद की क़ुरबानी का हुक्म*

*★_ईद की जो क़ुरबानी साहिबे निसाब पर जो वाजिब होती है उसका हुक्म हाजियों के बारे में ये है कि उनमें से जो शख्स हज से पहले मक्का मुकार्रमह में 15 दिन या इससे ज़्यादा की नियत कर के मुकीम था और वो हज के अहकाम अदा करने के लिए मीना और अराफ़ात आया है तो उस पर वो दूसरी क़ुरबानी भी वाजिब है, लेकिन उसका मीना या हरम में होना ज़रूरी नही, अगर अपने वतन में करा दे तब भी दुरुस्त है, और जो शख्स मक्का मुअज़्ज़मा में 15 दिन या उससे ज़्यादा की नियत कर के मुकीम नहीं था बल्कि 15 दिन से कम मुद्दत मक्का में रह कर मीना व अराफ़ात के लिए रवाना हो गया तो उस पर वो (ईद)की क़ुरबानी वाजिब नहीं,*

*★_का़रिन और मुत्मता पर क़ुरबानी वाजिब है यानी एक बकरी या भेड़ या दुम्बा जिसकी उम्र कम से कम 1 साल हो ज़िबह करे, या 5 साला ऊंट या 2 साला बड़ा जानवर में सांतवा हिस्सा ले ले,*
*"_तमत्तो और कारिन की क़ुरबानी हुदूद हरम में होना वाजिब और मीना में होना अफ़ज़ल है,*

*📘फिक़हुल इबादात-३७५ _,*

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*☞_ अगर क़ुरबानी की इस्तेताअत न हो?*

*★_अगर कोई मुत्मता या का़रिन पैसा न होने की वजह से क़ुरबानी न कर सके तो वो इसके बदले 10 रोज़े रखे, लेकिन शर्त ये है कि 3 रोज़े 10 वी ज़िल्हिज्जा से पहले पहले और अहराम के बाद रखे हो, और हज के महीने में यानी शव्वाल , ज़िलक़द्द, ज़िल्हिज्जा में रखे हो, और 7 रोज़े अय्यामे तशरीक़ गुज़र जाने के बाद रखे , चाहे मक्का में रखे चाहे किसी ओर जगह , लेकिन घर आकर रखना अफ़ज़ल है,*

*★_अगर किसी कारिन या मुत्तमा ने 10 वी तारीख से पहले ये तीनो रोज़े नही रखे तो अब क़ुरबानी ही करनी पड़ेगी अगर उस वक़्त क़ुरबानी की क़ुदरत नही है तो सर मुंडाकर या बाल काटकर अहराम से निकल जाए, लेकिन जब मकदूर हो जाए तो एक दम किरान और तमत्तो का और एक दम ज़िबह से पहले हलाल होने का दे दे, यानी 2 कुर्बानियां दे, और अगर अय्यामे नहर के बाद ज़िबह करे तो तीसरा दम अय्यामे नहर से मोअखर करने का लाज़िम होगा,*

           *☞_ क़ुरबानी का वक़्त*

*★_ क़ुरबानी 10वी , 11वी, 12 वी तारीखों में से किसी तारिख में करना लाज़िम है, 12वी का सूरज गुरूब होने से पहले क़ुरबानी कर दे, लेकिन तमत्तो और किरान वाला जब तक क़ुरबानी न करे उस वक़्त तक उसको सर मुंडाना या बाल कटाना जाइज़ नही, अगर ऐसा करेगा तो 1 दम वाजिब होगा,जो हज की क़ुरबानी के अलावा होगा,*

*★_किसी वजह से 10वी तारीख को क़ुरबानी न कर सके तो 11 , 12 को कर ले, लेकिन किरान या तमत्तो में बाल मुंडाना या कतराना क़ुरबानी के बाद ही होगा, इसको खूब समझ लेना चाहिए,*

*📘 फिक़हुल इबादात-३७६ _,*

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*☞ _ हलक़ और कसर का बयान*

*★_हलक़ सर मुंडाने को और कसर बाल काटने को कहते हैं,*

*★_अहराम उमराह का हो या हज का या दोनों का एक साथ बांधा हो, हर सूरत में हलक़ और कसर ही के ज़रिए अहराम से निकलना मुमकिन होगा, जब तक हलक़ या कसर न करेगा अहराम से नही निकलेगा,*

*★_अगर सिले हुए कपड़े हलक़ या कसर से पहले पहन लिये या सर के अलावा किसी और जगह के बाल मूंड ले या नाखून काट ले या खुशबू लगा ले, तो क़ज़ा वाजिब होगी,*

*☞_ हलक़ और कसर का वक़्त*

*★_उमराह करने वाला शख्स जब उमराह की सई से फारिग हो जाए हलक़ या कसर करा लें और हज्जे अफ़राद वाला और तमत्तो वाला (जिसने 8 तारीख को मक्का से हज का अहराम बांधा था और इससे पहले उमराह कर के फारिग हो चुका था) और कारिन, ये तीनो 10वी तारिख को मिना में रमि और क़ुरबानी के बाद हलक़ या कसर कराए,*

*★_अगर 12 वी तारीख का सूरज गुरूब होने से पहले तक हलक़ या कसर को मोअखर कर दे तो ये भी जाइज़ है, 12 वी तारीख का सूरज गुरूब होने के बाद हलक़ या कसर करेंगे तो दम वाजिब होगा और ये भी जानना चाहिए कि हलक़ या कसर हरम ही में वाजिब है, अगर हरम के बाहर किया तो इसकी वजह से एक दम वाजिब होगा,*

*★_जिसका सिर्फ हज का अहराम हो यानी मुफरृद हो वो 10 तारीख को रमि करने के बाद हलक़ या कसर करा सकता है क्योंकि क़ुरबानी उस पर वाजिब नहीं, मुस्तहब है, अगर वो मुस्तहब पर अमल करता है तो बेहतर है कि क़ुरबानी के बाद हलक़ या कसर कराए,*

*📘 फिक़हुल इबादात-३७७ _,*

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*☞_ हलक़ और कसर का तरीका*

*★_कि़बला रुख बैठ कर सर के बाल मुंडाइये या क़तरवाईए, अपनी दायीं जानिब से सर मुंडाना या कतारवाना शुरू करें,*

*★_चौथाई सर के बाल मूंड देना या चौथाई सर के बाल कम से कम उंगली के एक पोरे के बराबर काट देना अहराम से निकलने के लिए वाजिब है, इससे कम मुंडवाना या काटने से अहराम से नही निकलेगा,*
*"__उमराह और हज दोनों में एक ही हुक्म है, अफ़ज़ल ये है कि पूरे सर के बाल मुंडवा दें।अगर न मुंडवाए तो पूरे सर के बाल उंगली के एक पोरे के बराबर कटवा दें,*

*★_कुछ मुंडवाना ,कुछ छोड़ देना ममनू है, लिहाज़ा पूरा सर मुंडवाए या पूरे सर के बाल उंगली के एक पोरे के बराबर कटवाए ताकि सुन्नत के खिलाफ न हो,*

*★_औरत के लिए सर मुंडवाना हराम है, वो एक पोरे के बराबर बाल काटकर ही अहराम से निकल सकती है, मगर कम से कम चौथाई सर के बाल एक पोरे के बक़दर ज़रूर कटवा ले।*

*"_हलक़ और कसर करवाने के बाद हाजी के लिए ममनुआत अहराम की पाबंदी खत्म हो जाती है, अलबत्ता मियां बीवी वाले खास ताल्लुक़ात हलाल नही होते , वो तावाफे ज़ियारत के बाद हलाल होते है,*

*📘फिकहुल इबादात-३७७ _,* 

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              *☞_ तवाफे ज़ियारत*

*★_मीना में रमि , ज़िबह और हलक़ या कसर करने के बाद मक्का मुअज़्ज़मा जाकर तवाफे बैतुल्लाह करे, ये तवाफ़ हज के फ़राइज़ में से है, जिसको तवाफे रुक्न और तवाफे ज़ियारत कहते हैं_, इसका अव्वल वक़्त 10वी ज़िल्हिज्जा की सुबह सादिक़ तुलू होते ही शुरू होता है, इससे पहले जाइज़ नही,*

*★_और तावाफे ज़ियारत 10, 11, 12 तीनो दिनों में हो सकता है, अलबत्ता 10वी ज़िल्हिज्जा को अदा कर लेना अफ़ज़ल है, और जब 12वी ज़िल्हिज्जा का आफताब ग़ुरूब हो गया तो इसका वक़्त खत्म हो गया, अब आगे तवाफ़ करेगा तो तवाफ़ अदा नही होगा लेकिन 1 दम वाजिब होगा,*

*★_अगर किसी ने तवाफे कदूम के साथ हज की सई कर ली थी तो अब तवाफे ज़ियारत में रमल न करे और अगर उस वक़्त सई नही की थी तो अब तवाफे ज़ियारत के बाद सई कर ले और शुरू के तीन चक्करों में रमल भी करे,*

*☞_तवाफे ज़ियारत के बाद मीना वापसी*

*★_10वी तारिख को तवाफे ज़ियारत के बाद मीना वापस आ जाए और 11, 12वी शब मीना में गुज़ारे, और इन दोनों दिनों में ज़वाल के बाद तीनों जमारात (तीनों शैतान) की रमी करे।*

*★_10 तारिख को तवाफे ज़ियारत न किया हो तो 11 वी, 12वी तारीख में से किसी वक़्त, रात को या दिन को मक्का मुअज़्ज़मा जाकर तवाफ़ कर लें।*

*📘फिक़हुल इबादात -३७८ _,*

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      *☞ _ 4 था दिन- 11 ज़िल्हिज्जा*

*★_ अगर क़ुरबानी या तवाफे ज़ियारत किसी वजह से 10 तारीख को नही कर सका तो 12 वी को कर ले,,ज़वाल के बाद तीनों जमारात की रमी करे, ज़वाल से पहले दुरुस्त नही,*

*★_इस दिन की रमी का मुस्तहब वक़्त ज़वाल के बाद शुरू होकर ग़ुरूब तक है,ग़ुरूब के बाद मकरूह है, मगर 12 तारीख को सुबह तुलू होने से पहले पहले कर ली जाये तो अदा हो जाती है, दम देना नही पड़ता,*

*★_और अगर 12वी तारीख की सुबह हो गई तो अब 11वी तारीख की रमी का वक़्त खत्म हो गया, इसकी क़ज़ा और जज़ा दोनों लाज़मी होगी,यानी 12वी तारीख को उस दिन की रमी भी करे और 11वी की क़ज़ा भी करे और दम भी दे।*

*📘फिक़हुल इबादात-३७९ _,*

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 *☞_ 11 जिलहिज्जा को रमी का तरीका_,*

*★__ 11 तारीख की रमी इस तरह करें कि पहले जमराह अवला पर सात कंकरिया इस तरीक़े से मारे जिस तरह दसवीं तारीख को जमराह उक़बा की रमी कर चुका है ।*
*"_इस से फारिग होकर मजमें से हटकर क़िब्ला रुख खड़ा होकर हाथ उठा कर दुआ करें इतनी देर ठहरे जितनी देर में 20 रकाते पढ़ी जा सके ,इस वक्फे में तकबीर तहलील इस्तगफार और दरूद शरीफ में मशगूल रहे अपने और अपने मां बाप और आम मुसलमानों के लिए दुआ करें यह भी कुबूलियत का मुका़म है ।*

*★_इसके बाद जमराह वसति पर आए और उसी तरह सात कंकरिया मारे और मजमा से हटकर क़िब्ला रुख होकर दुआ व इस्तगफार में कुछ देर मशगूल रहे ।*

*★_फिर जमराह उक़बा पर आएं, सात कंकरिया मारे और इसके बाद दुआ के लिए ना ठहरे क्योंकि यहां दुआ के लिए ठहरना सुन्नत से साबित नहीं अलबत्ता यहां से वापस होकर चलते हुए दुआ मांग ले ।*
*"_11 वीं तारीख का काम पूरा हो गया बाक़ी औका़त अपनी जगह पर मीना में गुजा़रे ।*

*📘 फिक़हुल इबादात-३८० _,*

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*☞_ पांचवां दिन- १२ जिलहिज्जा _,*

*★__ इस दिन का काम तीनों जमरात की रमी करना है , ज़वाल के बाद तीनों जमरात की रमी करें जिस तरह 11वीं तारीख को की।*

*★_ 12वीं तारीख की रमी का मसनून वक्त ज़वाल से गुरूब तक है और गुरूब से लेकर सुबह सादिक़ तक वक्ते मकरुह है ,मगर औरतों और कमजोरों के लिए मकरूह नहीं और ज़वाल से पहले इस दिन की रमी भी दुरुस्त नहीं ।*

*★_अगर अब तक कुर्बानी ना की हो या तवाफे जियारत नहीं किया हो तो इस दिन सूरज डूबने से पहले जरूर करें और आज की रमी भी करें ।*

*📘 फिक़हुल इबादात -३८१_,*

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*☞_13ज़िल्हिज्जा की रमी और मक्का मुअज़्ज़मा वापसी,*

*★_12तारीख को रमी करने के बाद 13वी तारीख की रमी कर लें, मीना में मज़ीद क़याम करने या न करने का इख़्तेयार है, अगर चाहे तो 12तारीख की रमी से फारिग हो कर मक्का मुअज़्ज़मा जा सकते है, बशर्ते कि गुरूब से पहले मीना से निकल जाए, अगर 12 तारीख को सूरज मीना में गुरूब हो गया तो अब निकलना मकरूह है, अब मीना में क़याम करें, 13वी तारीख को रमी कर के मक्का मुअज़्ज़मा जाए,*

*★_अफ़ज़ल यही है कि 12वी तारीख को रमी के बाद गुरूब से पहले जाना जाइज़ होने के बावजूद खुद अपने इरादे से रात को वहां ठहरे और सुबह को ज़वाल के बाद तीनों जमारात की रमी कर के मक्का मुअज़्ज़मा जाएं,*

*★_12वी और 13वी की रमी कर के मक्का मुअज़्ज़मा आ जाए, और मक्का मुअज़्ज़मा से रवाना होने तक आमाले सालेहा में मशगूल रहे, ख़ुसूसन तवाफ़ कसरत से करे और चाहे तो उमराह करता रहे लेकिन ज़्यादा तवाफ़ करना ज़्यादा उमराह करने से बेहतर है,*

*"_और जो उमराह करे 13 तारीख के बाद करे।*

*📘फिक़हुल इबादात-३८३ _,*

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                *☞_ तवाफे विदा_"*

*★_ मीक़ात से बाहर रहने वालों पर वाजिब है कि तवाफे ज़ियारत के बाद रुखसती तवाफ़ भी करे, इस तवाफ़ को तवाफे विदा कहते हैं,और ये हज का आखरी वाजिब है और इसमें हज की तीनों किस्में बराबर है यानी हर किस्म का हज करने वाले पर वाजिब है, अलबत्ता ये तवाफ़ अहले हरम और हुदूदे मीक़ात के अंदर रहने वालों पर वाजिब नही,*

*★_अगर तवाफे विदा कर लेने के बाद किसी ज़रूरत से मक्का में क़याम करे तो रवाना होते वक़्त तवाफे विदा दोबारा करना मुस्तहब है।*

*★_तवाफे विदा के बाद 2 रकात नमाज़ पढ़े,फिर किबला रुख होकर जम जम का पानी पिये, फिर हरम से रुखसत हो।*

*★_इस मौके पर कोई खास दुआ मसनून नही, जो चाहे दुआ मांग लें।और वापसी पर हसरत और अफसोस करे और बार बार आने की दुआ करे,*

*★_जो औरत हज के सब अरकान व वाजिबात अदा कर चुकी हो और तवाफे ज़ियारत के बाद उसको हैज़ आ गया और अभी पाक नही हुई है, उसका महरम रवाना होने लगा तो तवाफे विदा उसके ज़िम्मे वाजिब नहीं, वो अपने महरम के साथ बगेर तवाफे विदा के चली जाए,*

*📘फिक़हुल इबादात -३८३ _,*

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*☞_ मदीना मुनव्वरा की हाजरी_,*

*★__ हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के रोज़ा ए अतहर की जियारत के बगैर जो शख्स वापस आ जाए हज तो उसका अदा हो गया लेकिन उसने बेमुरव्वती से काम लिया और जियारत ए शरीफा की बरकत से महरूम रहा ।*
*"_हदीस पाक में है कि जिस शख्स ने बेतुल्लाह शरीफ का हज किया और मेरी जियारत को ना आया उसने मुझसे बेमुरव्वती की _," ( रवाह इब्ने अदी)*

*★_ रोज़ा ए अतहर की जियारत के आदाब:-,*
*"_जम्हूर अक़ाबिरे उम्मत के नज़दीक रोज़ा ए शरीफ की जियारत की भी नियत करें, बारगाहे आली में सलाम पेश करने के बाद शफाअत की दरख्वास्त करें। क़िब्ला रुख होकर दुआएं मांगे।*

*"_ हिस्ने हसीन में है कि अगर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की कब्र मुबारक के पास दुआएं कुबूल नहीं होंगी तो फिर कहां होंगी ?*

*★_ मदीना तैय्यबा में दरूद शरीफ कसरत से पढ़ना चाहिए।*

*★_ मस्जिद-ए-नबवी में 40 नमाजे तकबीरे तेहरीमा से अदा करना ।*
*"_हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया जिस शख्स ने मेरी मस्जिद में 40 नमाजे इस तरह अदा की कि उसकी कोई भी नमाज ( बा-जमात) फौत ना हो ,उसके लिए दोजख से और अजा़ब से बराअत लिखी जाएगी और निफ़ाक से बरी होगा । (मुसनद अहमद )*

*📘आप के मसाईल और उनका हल _,*

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*☞_ चंद गलतियों की तरह इशारा_ *

*★__१_ अपने रास्ते के मीकात से बगैर अहराम के गुज़र जाना - जो शख्स ऐसा करें उस पर लाज़िम हैं कि वह दोबारा मीकात से आकर अहराम बांधे । अगर ऐसा ना कर सके तो दम अदा करें ।*

*★_२_ तवाफ करते हुए आसानी या जल्दी की बिना पर हजरे इस्माइल ( हतीम ) के अंदर से गुज़रना- जो कि काबे का ही हिस्सा है इस सूरत में तवाफ बातिल हो जाता है ।*

*★_३_ हजरे असवद पर चेहरा या सर का कोई हिस्सा बरकत के लिए रगड़ना जबकि इसे सिर्फ हाथ से छूना या बौसा देना ही सुन्नत है।*

*★_४_ काबा शरीफ के चारों कोनों को चूमना दीवारों को चूमना अपने जिस्म रगड़ना जबकि हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सिवाय रूकने यमानी और हजरे अस्वद के किसी और जगह को नहीं छुआ।*

*★_५_ तवाफ करने वालों को बुलंद आवाज से जिक्र और दुआएं पढ़ना जो कि लोगों के लिए सख्त तक़लीफ का बाइस बनता है ।*

*★_६_तवाफ के बाद मका़मे इब्राहिम पर ही लोगों का कसरत के बावजूद 2 रकात अदा करना जबकि इस सूरत में 2 रकात मस्जिदे हराम के किसी भी जगह अदा करना दुरुस्त है ।*

*★_७_ सई के आगाज़ में या फिर हर चक्कर के खत्म पर बाज़ लोगों का सफा मरवा पर चढ़कर काबा शरीफ की तरफ मुंह करके दोनों हाथों से तकबीर कहते हुए इस तरह इशारा करना जैसे वो नमाज में तकबीरे तेहरीमा के वक्त दोनों हाथ उठाते हैं जबकि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सिर्फ हाथों को उठाकर क़िब्ला रुख दुआ की है ।*

*★_८_ बाज़ हाजियों का मैदाने अराफात से बाहर किसी जगह ठहरना और सारा दिन गुज़ार कर इसी जगह से मुज़दलफा का रुख करना ,इससे उनका हज ज़ाया हो जाता है क्योंकि वक़ूफे अराफात हज का रुक्न है।*

*★_९_ बाज़ लोगों का काबातुल्लाह के जबले रहमत की तरफ मुंह करके दुआए मांगना जबकी सुन्नत तरीका कि़ब्ला रूख हो कर दुआएं मांगना है ।*

*★_१०_ बाज़ लोगों का अरफा का रोज़ा रखना जो कि सरासर खिलाफे सुन्नत है ।*

*★_ 11-बाज़ लोगों का एक ही मुट्ठी में 7 कंकरियां लेकर एक बार ही फेकना, उलेमा ने इस सूरत में उसे सिर्फ एक कंकरी ही शुमार किया है,*

*★_12-बाज़ लोगों का और खास तौर पर औरतों का लोगों की भीड़ के खौफ से दूसरों से कंकरियां मरवाना, जबकि ये रुखसत सिर्फ किसी बीमार या ताक़त न रखने वालों के लिए है,*

*★_13-बाज़ लोगों का तवाफे विदा के बाद मस्जिदे हराम से उल्टे पांव काबा की तरफ रुख करते हुए इस गुमान से निकलना कि ये बैतुल्लाह की ताज़ीम है, इसकी शरीयत में कोई दलील नही,*

*★_14-इसी तरह मस्जिदे हराम के बैरूनी दरवाज़े पर बैठ कर मुसलसल दुआए करना और ये ख्याल करना के वो बैतुल्लाह को विदा कर रहे है, इसका कोई शरई सबूत नही, जबकि सवाब की नीयत से किये जाने वाले किसी भी अमल के लिए शरई दलील ज़रूरी है,*

*★_15-बाज़ ज़ायरीन मक्का मुकर्रमह के क़याम के दौरान मुख्तलिफ मक़ामात की ज़ियारत का एहतमाम करते हैं, और मस्जिदे हराम की एक लाख नमाज़ों की अजरो सवाब रखने वाली बा-जमात नमाज़ को छोड़ देते हैं, या क़ज़ा कर के अदा करते है,*

*★_16-बाज़ मक़ामात जैसे गारे सौर गारे हीरा ,जबले सौर ,जबले हीरा,जबले रहमत तक मशक्कत झेल कर जाना,वहां बैठकर लंबी इबादतें करना ,चिल्ले काटना वगैरह ,ये सब काम गैर मशरूआ है,*

*★_17- हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्र मुबारक की ज़ियारत के वक़्त रोज़ाए अक़दस का तवाफ़ करना, उसकी दीवारों और लोहे की जालयों को हाथ फेरना ,मुंह चेहरा जिस्म रगड़ना, ऐसे ही खिड़कियों ,जालियों पर धागे बांधना ,गैर शरई अमल है जबकि शरई तरीक़ा ये है कि दरूद सलाम पढ़ा जाए और क़िब्ला रुख होकर दुआए की जाए,*

*★_19- जन्नतुल बक़ी या शोहदा ए उहद की क़ब्रों की ज़ियारत करते वक़्त उनकी तरफ रुपया पैसा पटकना, लिखे खत फेंकना, मुरादे मांगना, ख़िलाफ़े सुन्नत है,*

*★_20-मस्जिदे नबवी की ज़ियारत के बाद उल्टे पांव वापस आना सुन्नत से साबित नही,*

*▶️_ अल्लाह ताअला से दुआ है कि वो मुसलमानों के हालात दुरुस्त फरमाएं, उन्हें दीन कि सही समझ देकर हमे और उन सबको गुमराहियों से बचाए, बेशक वो सुनने वाला और क़ुबूल करने वाला है,(आमीन)*

*📘 हज और उमराह (गाइड बुक) सफा 80_,*

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*☞_ हज के मुतफर्रिक़ मसाइल*

*★_हज और उमराह के बाद भी अगर गुनाहों से न बचे तो गोया उसका हज मक़बूल नही हुआ, हज के मक़बूल होने की अलामत ये है कि हज के बाद आदमी की ज़िन्दगी में दीनी इन्कलाब आ जाए और उसका रुख खैर और नेकी की तरफ बदल जाए,*

*★_हरमैन शरीफैन पहुंच कर वहां की नमाज़ बा-जमात से महरूम रहना बहुत बड़ी महरूमी है, हरमैन शरीफैन के आइम्मा इमाम अहमद बिन हम्बल र.अ. के मुक़ललिद हैं, अहले सुन्नत है, अगरचे हमारे मसाइल में इख़्तिलाफ़ है लेकिन ये नही कि उनके पीछे नमाज़ ही न पढ़ी जाए,*

*☞_ हज के दौरान फोटोग्राफी*

*★_अगर हज में कोई गुनाह का काम किया जाए तो हज "हज्जे मबरूर"नही रहता, हज के दौरान फोटोग्राफी करना ,वीडियो बनाना, ऐसे अमाल हैं जिनसे सवाब ज़ाया हो जाता है,*

*☞_हरम शरीफ में छोड़े हुए चप्पल और जूतों का शरई हुक्म*

*★_जिन चप्पलों के बारे में ख्याल है कि मालिक इनको तलाश करेगा उनका पहनना सही नहीं और जिनको इस ख्याल से छोड़ दिया गया है कि चाहे कोई भी पहने उनका पहनना सही है,*

*★_बगैर इजाज़त कंपनी की गाड़ी और दूसरे समान वगैरह का इस्तेमाल जाइज़ नही ,ये खयानत और चोरी है,*

*☞_हाजियों को तोहफे तहाइफ देना*

*★_अज़ीज़ अक़ारिब को तोहफे देने का शरीयत में हुक्म है कि इससे मोहब्बत बढ़ती है, लेकिन दिली मोहब्बत और रग़बत के बगैर महज़ नाम के लिए या रस्म निभाने के लिए गलत बात है, आज कल ये एक रस्मीयत और रिवाज़ हो गया है इसीलिए ये शरअन छोड़ देना बेहतर है,*

*☞_हाजी कहलवाना या नाम के साथ लिखना*

*★_हाजी का अपने नाम के साथ हाजी का लक़ब लगाना भी रियाकारी के सिवा कुछ नही,हज तो रज़ाए इलाही के लिए किया जाता है, हाजी कहलाने के लिए नही ,*

*☞_हाजियों का इस्तक़बाल करना*

*★_हाजियों का इस्तक़बाल तो अच्छी बात है,उनसे मुसाफा और मुआनका़ भी जाइज़ है,और उनसे दुआ कराने का भी हुक्म है, लेकिन फूलों का हार, नारे, जुलूस, वग़ैरह से ऐतराज़ करना बेहतर है,*

*🌹अल्हम्दुलिल्लाह मुकम्मल🌹*

*📘 आपके मसाइल और उनका हल- 4/154 _,*
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