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✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
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*■ उममाहातुल मोमिनीन ■*
*⚂ हज़रत खदीजा रजि. ⚂*
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*❥ _ एक रोज़ हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अपने चाचा की खिदमत में हाज़िर हुए तो उन्होंने कहा:- भतीजे! मैं एक गरीब आदमी हूं मेरे हालात बहुत सख्त हैं बहुत तंगी में दिन गुज़र रहे हैं, यहां एक मालदार खातून हैं वह अपना तिजारत का सामान शाम वगैरा की तरफ भेजती हैं, यह काम वह तुम्हारी क़ौम के यानी कु़रेश के लोगों से लेती हैं, इस तरह वह लोग उसके माल से तिजारत करते हैं खुद भी नफा हासिल करते हैं और उस खातून को भी नफा हासिल हो जाता है, मेरा मशवरा यह है कि तुम उनके पास जाओ, इस बात का इमकान है कि वह तुम्हें अपना माले तिजारत दे दें, वह तुम्हें जानती हैं, तुम्हारी सदाक़त और पाकीज़गी के बारे में उन्हें इल्म है_,"*
*❥_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने चाचा के मशवरे पर अमल किया, उस खातून की तरफ चल पड़े, अबू तालिब ने अपनी बांदी नबी'आ को उनके पीछे भेज दिया, वह यह जानने के लिए बेचैन थे कि वहां क्या होता है, वह खातून आपसे कैसे पेश आती हैं _,"*
*❀__यह खातून हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा थीं, वह आपसे खंदा पेशानी से मिलीं, आपको इज़्ज़त से बिठाया, दरअसल आपके बारे में बहुत कुछ जानती थीं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बारे में जो बातें वहां के मा'शरे में फैल चुकी थीं वह भी उन तक पहुंची थीं, इसलिए इस मुलाक़ात से पहले ही आपसे बहुत मुतास्सिर हो चुकी थीं _,*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपनी आमद का मकसद बयान फरमाया, इस पर हजरत खदीजा ने फरमाया :- मैं आपकी सच्चाई अमानतदारी और हुस्ने अखलाक से वाकिफ हूं मैं आपको दूसरों की निस्बत दोगुना माल दूंगी _,"*
*★_ यह सुनकर आपने इत्मीनान महसूस किया, उनका शुक्रिया अदा किया और वहां से अबू तालिब के पास आए, उन्हें बताया :- उन्होंने अपना माले तिजारत मुझे देने पर रज़ामंदी ज़ाहिर कर दी है_,"*
*"_ अबू तालिब यह सुनकर खुश हुए और बोले :- यह रिज़्क़ हैं जो अल्लाह ताला ने आपकी तरफ भेजा है _,"*
*★_ बाज़ रिवायात में है कि अबू तालिब की बहन आतीका बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब यानी आपकी फूफी ने भी इस सिलसिले में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मुलाक़ात की थी, हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इरादे के बारे में जब उन्होंने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से ज़िक्र किया तो आपने जवाब में फरमाया :- मुझे मालूम नहीं था कि वे इस पेशे का इरादा रखते हैं _,"*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा इससे पहले ही आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को आपकी फूफी हजरत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हुमा के यहां देख चुकी थी, इस तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पाकीज़ा आदात से ला इल्म नहीं थीं _,"*
[5/4, 6:11 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★"_ आप रज़ियल्लाहु अन्हा का ताल्लुक़ खानदाने कुरैश से था, आपके वालिद का नाम खुवेल्द बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा था, यह अब्दे मुनाफ के भाई थे और अब्दे मुनाफ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दादाओं में से थे, अब्दुल उज़्ज़ा और अब्दे मुनाफ के वालिद क़ुस'ई बिन किलाब थे, इस तरह हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा का सिलसिला नसब चौथी पुश्त में आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से जा मिलता है _,"*
*★_ आपके वालिद खुवेल्द जमाना जहिलियत में अरबों के सिपहसालारों में से थे, फुजार की लड़ाई में अपने क़बीले की क़यादत की थी, जब तब'अ हजरे अस्वद को उखेड़कर यमन ले गया तो उसके वापस लाने में भी खुवेल्द की कोशिश का दखल था _,"*
*★_ खुवेल्द की औलाद बहुत थी, उनमें हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा सबसे ज़्यादा मशहूर हैं, आपकी वाल्दा का नाम फ़ातिमा बिंते जा़यदा बिन अल असम बिन आसिम बिन लुवई है और नानी का नाम हाला बिन्ते अब्दे मुनाफ है_,"*
*★_आपके वालिद खुवेल्द बहुत बा इज्ज़त आदमी थे कुरेश में उन्हें अहतराम की निगाह से देखा जाता था, मक्का में रहते थे, फातमा बिन्त जा़यदा से शादी हुई और उनसे हाथियों वाले साल (अबरहा के हमले का साल) से 15 साल पहले हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा पैदा हुईं, जिनके मुक़द्दर में पहली उम्मूल मोमिनीन होना लिखा जा चुका था _,"*
[5/15, 9:21 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपने खाते पीते घराने में परवरिश पाई, तारीख की किताबों में आपके बचपन के हालात नहीं मिलते इतना ज़रूर मिलता है कि आप बहुत खुदा तुर्स थीं, गरीबों को खाना खिलाती थीं ज़रूरतमंदों की मदद करती थीं, अल्लाह ताला ने उन्हें एक खास मुका़म के लिए चुन लिया था।*
*★_ आपके एक चचाजा़द भाई वरका़ बिन नोफल थे, यह तौरात और इंजील के बहुत बड़े आलिम थे, मज़हब के एतबार से ईसाई थे, हजरत खदीजा के वालिद उनसे अपनी बेटी की शादी करना चाहते थे लेकिन किसी वजह से यह निकाह ना हो सका और आपकी शादी अतीक़ बिन आबिद बिन अब्दुल्लाह बिन मखज़ूम से हो गई, बाज़ रिवायात की रु से पहली शादी अबु हाला बिन बनाश से हुई।*
*★_ अतीक़ बिन आबिद से आपके यहां एक बच्चा अब्दुल्लाह पैदा हुआ, उसके बाद अतीक़ बिन आबिद का इंतका़ल हो गया ,आपकी बेवगी को ज़्यादा अर्सा नहीं गुज़रा था कि अबु हाला बिन बनास ने निकाह का पैगाम दिया, इस तरह आपकी दूसरी शादी अबु हाला से हो गई, अबू हाला से आपके यहां दो बेटे हिंद और हारिस और एक लड़की ज़ैनब पैदा हुई।*
*★_ फिर फुजार की लड़ाई में आपके वालिद वफात पा गए, उनके बाद आपके दूसरे शौहर ने वफात पाई, बाप और शौहर की वफात की वजह से आपको मुश्किलात का सामना करना पड़ा, बच्चों की देखभाल अब उन्हीं के ज़िम्मे थी, क़ुरेश के कई नौजवानों ने आपको शादी का पैगाम भेजा लेकिन आपने बच्चों की वजह से इंकार कर दिया, आपने सोच लिया था कि बच्चों की तर्बीयत करेंगी और शादी नहीं करेंगी ।*
[5/15, 5:16 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आपके खानदान का पेशा चूंकि तिजारत था इसलिए आपने भी वही पेशा अख्तियार किया लेकिन चूंकि औरत थी इसलिए अपना माल दूसरे लोगों को दे देती थी, वह दूसरे मुल्कों में माल ले जाते, इस तरह नफे में से उन्हें अपना हिस्सा मिल जाता था ।*
*★_ बहुत जल्दी आप मक्का की मशहूर ताजिर बन गईं, एक खास बात यह है कि दूसरों की तरह आप बुतों को नहीं पूजती थीं, बाज़ क़रीबी लोगों ने उनसे कहा भी कि आप घर में एक बुत रख लें, यह सुनकर आप हमेशा मुस्कुरा दिया करती, आप अच्छी तरह जानती थी कि इन बुतों की क्या हैसियत है, उन्हें इल्म था कि यह पत्थर के बुत तो किसी को नफा पहुंचाने की ताक़त रखते हैं ना नुक़सान पहुंचाने की ।*
*★_ उन्होंने कई मर्तबा अपने भतीजे हकीम बिन हिजाम को भी बुतों के क़रीब जाने से रोका, वो उनसे फरमाया करती थीं :- अपने माल को गरीबों और मिस्कीनों पर खर्च किया करो, इससे अल्लाह खुश होता है_,"*
*★_ आप अपने चचाज़ाद भाई वरका़ बिन नोफल से आसमानी किताबें तौरात और इंजील सुना करती थीं, उन किताबों का सुनना आपको बहुत अच्छा लगता था, वरका़ बिन नोफल उन्हें बताया करते थे कि अल्लाह के एक रसूल आने वाले हैं और उन्हीं में आने वाले हैं, अल्लाह ताला उन्हें लोगों की हिदायत के लिए भेजेंगे उनकी कौ़म उनकी मुखा़लफत पर डट जाएगी लेकिन आखिर उन्हें गलबा हासिल होगा _,"*
[5/16, 10:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत खदीजा यह बातें सुनती तो ख्वाहिश करती, काश वह अल्लाह के रसूल का दीदार कर सकें, उनके दिल में यह ख्वाहिश भी सर उभारती थी कि उन्हें उस रसूले अरबी की पैरवी नसीब हो जाए और यह उनकी हर मुमकिन मदद करें।*
*★_ आखिर तिजारती काफिले की रवानगी के दिन आ गए, हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हुमा ने अपना तिजारती माल आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के हवाले कर दिया, साथ ही आपने अपने गुलाम मैसरह को आपके साथ रवाना किया और उन्हें हिदायत दी :- खबरदार ! उनकी नाफरमानी ना करना और उनकी किसी राय से इख्तिलाफ ना करना _,"*
*★_ इससे मालूम हुआ, आपने मैसरह को आप की निगरानी करने के लिए नहीं भेजा था बल्कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का हर तरह से ख्याल रखने और खिदमत गुजारी के लिए भेजा था ।*
*★_ वो तिजारती का़फिला 16 ज़िलहिज्जा को रवाना हुआ, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चचा आप को अलविदा कहने के लिए आए, और फिर वह काफ़िला रवाना हुआ जिसमें वह हस्ती थी जो अल्लाह ताला की सारी मखलूक से अफज़ल और आला थी, अल्लाह ताला उस हस्ती की निगहबानी फरमा रहे थे, उस क़ाफिले की एक खास बात ये थी कि हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के माल बरदारों की तादाद बाक़ी तमाम लोगों के ऊंटों की मजमुई तादाद से ज़्यादा थी, आखिर यह का़फिला शाम के शहर बसरा पहुंच गया, का़फिले ने एक गिरजे के क़रीब पढ़ाव डाला ।*
[5/17, 9:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने बचपन में अपने चचा अबू तालिब के साथ ही एक तिजारती सफर किया था, उस सफर में भी आप इसी गिरजे के क़रीब उतरे थे, उस वक्त यहां आपकी मुलाक़ात एक पादरी से हुई थी उसका नाम बहीरह था लेकिन अब जब आप यहां उतरे थे तो इस गिरजे का पादरी नस्तूरा था और दोनों सफरों के दरमियानी मुद्दत 13 साल थी, पहले सफर में आपकी उम्र 12 साल थी और अब आप 25 साल के हो चुके थे ,*
*★_ नस्तूरा की नज़र आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर पड़ी तो वह तेज़ी से आपकी तरफ बढ़ा, काफिले के लोगों ने उसे तेज़ी से आपकी तरह बढ़ते देखा तो उन्हें खयाल हुआ यह किसी बुरी नियत से आ रहा है लिहाज़ा उनमें से एक ने फौरन तलवार सौंत ली और चिल्ला उठा :- ए कुरेश ! ए कुरेश !*
*★_ चारों तरफ से लोग दौड़ पड़े, यह देखकर वह डर गया और डर कर गिरजे में दाखिल हो गया, गिरजे का दरवाजा बंद करके उसने एक खिड़की खोली और पुकारा :- ए लोगों तुम किस बात से डर गए यह देखो मेरे पास एक तहरीर है, क़सम है उस ज़ात की जिसने आसमानों को बगैर सुतून के उठा दिया, मैं इस तहरीर में लिखा हुआ पाता हूं कि इस दरख़्त के नीचे उतरने वाला शख्स रब्बुल आलमीन का पैगंबर यानी अल्लाह का रसूल होगा, जिसे अल्लाह ताला नंगी तलवार और ज़बरदस्त इमदाद के साथ ज़ाहिर फरमाएंगे, वह खातिमुन नबिय्यीन है, उनके बाद कोई नबी आने वाला नहीं, अब जो शख्स उनकी इता'त और फरमाबरदारी करेगा वह निजात आएगा और जो उनकी नाफरमानी करेगा वह ज़लील व ख्वार होगा _,"*
*★_ दूसरी रिवायात में यह वाकि़या इस तरह लिखा है कि वह गिरजा से बाहर आया और बोला :- यह कौन साहब हैं जो इस दरख़्त को नीचे तशरीफ़ फरमा हैं ? जवाब में मैसरह ने कहा:- यह मक्का के एक कुरेशी जवान है_,"*
*"_अब राहिब ने आपको और करीब जाकर देखा, फिर आपके सर और क़दमों को बौसा देने के बाद बोला :- मैं आप पर ईमान ले आया हूं और मैं गवाही देता हूं कि आप वही हैं जिनका जिक्र अल्लाह ताला ने तौरात में किया है_,"*
*"_फिर उसने मोहरे नबूवत को देखा और चूमा, फिर बोला:- मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के रसूल है, नबी उम्मी हैं, जिन की आमद की बशारत हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने दी है _," ( सीरत हलबिया )*
*★_ आप उस वक्त जिस दरख्त के नीचे आराम फरमा थे उसके बारे में नस्तूरा ने यह कहा :- इस दरख़्त के नीचे नबी के सिवा कोई नहीं उतरा _,"*
[5/17, 11:00 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ गर्ज़ इस वाक़िये के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम काफ़िले के लोगों के साथ बाजा़रे बसरा तशरीफ लाए और सामाने तिजारत फरोख्त किया, कुछ माल खरीदा, ऐसे में एक शख्स आप से झगड़ पड़ा, उसने कहा:- लात व उज़्ज़ा की क़सम खाओ _," उसकी बात के जवाब में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- मैंने इन तीनों के नाम पर कभी हलफ नहीं उठाया _," वह शख्स भी गालिबन कोई आलिम था, उसने आपकी तरफ गौर से देखा और पहचान कर बोला :- आप ठीक कहते हैं _,"*
*"_ उसके बाद यह शख्स मैसरह से मिला उसे क़दर फासले पर ले गया और कहने लगा :- क़सम है उस जा़त की यह वहीं हैं जिनका जिक्र हमारे राहिब अपनी किताबों में पाते हैं _,"*
*★_ मैसरह ने उसकी बात को गौर से सुनी और उसे अपने दिमाग में महफूज़ कर लिया, बसरा पहुंचने से पहले एक वाक्य़ा और पेश आया था, क़ाफिले के दो ऊंट बहुत ज़्यादा थक गए थे और चलने के काबिल नहीं रहे गए थे, उन ऊंटों की वजह से मैसरह भी काफिले से पीछे रह गया, उस वक्त आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम काफ़िले के अगले हिस्से में थे, मैसरह ने ऊंटों के बारे में परेशानी महसूस की, साथ ही उसे यह फिक्र हुई कि वह खुद भी काफिले से पीछे रह गया है, चुनांचे वह दौड़ता हुआ क़ाफिले तक पहुंचा और अगले हिस्से में मौजूद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पास आया, अपनी परेशानी के बारे में आपको बताया, आप उसके साथ उन दोनों ऊंटों के पास तशरीफ लाए, उनकी कमरों पर अपना हाथ फेरा, कुछ पढ़ कर उन पर दम किया, इसका फौरी तौर पर असर हुआ, ऊंट फौरन खड़े हो गए और फिर इस क़दर तेज़ चले कि काफिले के अगले हिस्से में पहुंच गए और अपनी चुस्ती और तेज़ चलने का इज़हार मुंह से आवाज़ निकालकर करने लगे,*
*★_ फिर तिजारत का काम शुरू हुआ, काफिले का माल फरोख्त किया गया और कुछ माल खरीदा भी गया, इस खरीद-फरोख्त में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इतना नफा कमाया कि पहले कभी इतना नफा नहीं कमा सके थे, चुनांचे मैसरह ने आपसे कहा :- ए मोहम्मद! हम बरसों से खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के लिए तिजारत कर रहे हैं लेकिन इतना ज़बरदस्त नफा हमें कभी हासिल नहीं हुआ _,*
*★_ आखिर तिजारत से फारिग होकर काफिला वापस रवाना हुआ, रास्ते में मैसरा ने एक बात यह नोट की कि जब दोपहर का वक्त होता था और गर्मी जो़रों पर होती थी और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने ऊंट पर सवार होते थे, तब आप पर एक बदली साया किए रहती थी,*
[5/18, 6:36 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस तरह अल्लाह ताला ने मैसरह के दिल में हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए बहुत मोहब्बत पैदा कर दी, इस सफर में उसने क़दम बा क़दम पर आपकी नेकी शराफत सच्चाई और दयानतदारी का मुज़ाहिरा किया और फिर तो यूं महसूस होने लगा जैसे मैसरह खुद आपका गुलाम हो ।*
*★_ आखिर काफ़िला मरज़ोहरान के मुकाम पर पहुंचा, यह मक्का और असफान के दरमियान एक वादी है, अब इस वादी का नाम वादी ए फातिमा है, यहां पहुंचकर मैसरह ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अर्ज़ किया :- क्या आप पसंद फरमाएंगे कि आप खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास हम से पहले पहुंच जाएं और उन्हें तमाम हालात बताएं कि इस मर्तबा तिजारत में किस क़दर ज्यादा नफा हुआ है, मुमकिन है वह यह बात सुनकर आपके मुआवज़े में इज़ाफ़ा कर दें और 2 जवान ऊंटों के बजाय आपको 3 ऊंटनियां दें _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मैसराह के इस मशवरे को क़ुबूल कर लिया, अपनी ऊंटनी पर सवार होकर मर ज़ोहरान से आगे रवाना हो गए, आप दोपहर के वक्त मक्का मुअज़्ज़मा में दाखिल हुए, उस वक्त हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने मकान के ऊपर वाले हिस्से में बैठी थीं, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा में दाखिल हुए तो हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको दूर से देख लिया, आप ऊंट पर सवार थे और एक बदली आप पर साया किए हुए थी, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने खुद तो यह मंजर देखा ही अपने पास बैठी दूसरी औरतों को भी दिखाया, वह सब भी यह मंजर देख कर बहुत हैरान हुईं ।*
*★_ आखिर आप खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास पहुंचे, उन्हें तिजारत में मुनाफे वगैरा के बारे में बताया, यह नफा उस नफे से दोगुना था जो पहले आपको हासिल हो रहा था, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा इस मुनाफे का हाल जानकर बहुत खुश हुईं, फिर उन्होंने पूछा :- और मैसरह कहां है ? आपने बताया :- मैंने उन्हें जंगल में पीछे छोड़ा है, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- उसके पास जाएं ताकि वह जल्द से जल्द यहां पहुंच जाए_,"*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको वापस इसलिए भेजा कि वह देखना चाहती थी, थोड़ी देर पहले जो बदली आप पर साया किए हुए थी क्या अब भी वह बदली आप पर साया करती है या वह सिर्फ एक इत्तेफाक था, आप वापस रवाना हुए तो हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा छत पर चढ़ गईं और आपको देखने लगीं, उन्होंने देखा कि वह बदली अब भी आप पर साया किए हुए थी और उसी शान से चले जा रहे थे जिस शान से तशरीफ लाए थे ।*
[5/18, 7:01 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ कुछ देर बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मैसरह के साथ वापस तशरीफ लाए, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मैसरह से वह कैफियत बयान की जो आपने देखी थी, मैसरह फोरन बोल पड़ा :- मैं यह मंज़र उस वक्त से देखता रहा हूं जब हम शाम से रवाना हुए थे, इसके बाद मैसरह ने नस्तूरा राहिब से मुलाक़ात के बारे में बताया और जिससे खरीद फरोख्त के वक्त झगड़ा हुआ था उसने जो बताया था वह सारी बात भी बताई, दो ऊंट जो पीछे रह गए थे उनका वाक्य़ा भी सुनाया, यह तमाम वाक्य़ात सुनने के बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने तयशुदा उजरत से दोगुना उजरत आपको दी, जबकि पहली उजरत भी दूसरे लोगों की निसबत 2 गुना थी, फिर वापसी पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम वहां से कपड़ा खरीद कर लाए थे उसने भी बहुत नफा हुआ ।*
*★_ इन तमाम वाक़िआत ने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को हद दर्जा मुतास्सिर किया, आपको आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बहुत लगाव पैदा हो गया, चुनांचे आपने अपनी एक अज़ीज़ नफी़सा बिन्ते मुनैया को आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में खुफिया तौर पर भेजा, उसने आपके पास आकर कहा :- ऐ मोहम्मद ( सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) आप शादी क्यों नहीं कर लेते? जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- भला मेरे पास क्या है कि शादी कर सकूं _," उसने कहा :- और अगर आपको इसकी जरूरत ही ना पड़े बल्कि आपको माल व दौलत, इज्ज़त, हुस्न व जमाल, इज्ज़त सब कुछ मिल जाए तो क्या आप क़ुबूल कर लेंगे ?*
*★_ नफी़सा की बात का मतलब यह था कि अगर ऐसी कोई खातून जिसमें शराफ़त पाक बाज़ी वगैरा तमाम खूबियां मौजूद हों और माल व दौलत भी जिसके पास हो और वह खुद ही आपको निकाह की दावत दे तो क्या आप मान लेंगे _,"*
*"_ आपने यह सुनकर पूछा :- और वह कौन खातून हैं ? उसने कहा :- वह खदीजा बिन्त खुवेल्द हैं _," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पूछा :-उन तक मेरी रसाई कैसे होगी _," यह कहने से आप का मतलब यह था कि मैं एक गरीब आदमी हूं और वह बहुत मालदार हैं, इस पर नफीसा ने कहा :- इसका ज़िम्मा में लेती हूं।*
*★_ आपने रजा़मंदी ज़ाहिर कर दी, इस तरह शादी की तारीख तय हो गई, मुक़र्रह तारीख पर क़बीले के र'ईस, मक्का मुअज़्ज़मा के शुरफा और उमरा जमा हुए, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की तरफ से उनके चाचा अमरु बिन असद वकील थे, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ से आपके चाचा अबू तालिब वकील थे, इस तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी अंजाम पाई, यह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पहली शादी मुबारक थी, उस वक्त आपकी उम्र मुबारक 25 साल और सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की उमर 40 साल थी ।*
*★_ निकाह के बाद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने वलीमे की दावत दी, आपने 2 ऊंट ज़िबह फरमाए, उस रोज़ अबु तालिब भी बहुत खुश थे, उन्होंने इस मौक़े पर कहा :- अल्लाह ताला का शुक्र है कि उसने मुसीबतों और गमों को हम से दूर कर दिया _,"*
[5/19, 4:38 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से पहले कुरेश के बहुत से लोग हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को शादी का पैगाम दे चुके थे लेकिन आप हर मर्तबा इंकार करती रहीं थीं, इसलिए कि अल्लाह ताला ने आपका रिश्ता आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से लिख दिया था, शादी के बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपनी सारी दौलत आपके क़दमों में ढेर कर दी, आपको उसका मालिक बना दिया और खुद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में दिन रात लगी रहने लगीं ।*
*★_ अब जों जों आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्र 40 साल के क़रीब पहुंच रही थी एलाने नबूवत का वक़्त क़रीब आ रहा था, आपका वक्त ज्यादातर तन्हाई में बसर होने लगा था, फिर आप गारे हिरा में जाने लगे, तनहाई में आपको एक आवाज़ सुनाई देती ::- ए मोहम्मद ! ए मोहम्मद ! और कभी एक नूर नज़र आता, यह नूर आपको जागने की हालत में नज़र आता, आप खौफ सा भी महसूस करते और फरमाते :- मुझे डर है कि इस सूरते हाल के पेशे नज़र कोई बात ना पेश आ जाए _,"*
*★_ आपकी इस बात के जवाब में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आप से फरमाती:- हरगिज़ नहीं ! अल्लाह ताला आपके साथ ऐसा कुछ नहीं करेगा क्योंकि खुदा की क़सम ! आप अमानत अदा करने वाले हैं रिश्तेदारों की खबर गिरी करने वाले हैं और हमेशा सच कहने वाले हैं _,"*
*★_ इन दिनों आपको तनहाई बहुत महबूब हो गई थी, तन्हाई के लिए ही आप गारे हिरा में चले जाते थे, जब खाने की चीज़ खत्म हो जाती तो आप वापस हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आ जाते, खाना ले लेते और फिर गारे हिरा तशरीफ ले जाते थे, गारे हिरा से वापस आते तो खाना काबा में भी तशरीफ ले जाते, तवाफ करते फिर घर तशरीफ ले जाते ।*
[5/19, 4:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आखिर में वो रात आ गई जब आपको नबूवत और रिसालत मिलने वाली थी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते हैं (जिसका मफहूम है) :- मैं सो रहा था मेरे पास जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक रेशमी कपड़ा लिए हुए आए, उसमें एक किताब थी यानी एक तहरीर थी, उन्होंने मुझसे कहा :- इक़रा यानी पढ़िए , मैंने कहा:- मैं नहीं पढ़ सकता यानी मैं अनपढ़ हूं पढ़ लिख नहीं सकता _,"*
*★_ इस पर उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर उस रेशमी कपड़े समेत इस तरह भींचा कि वह कपड़ा मेरे नाक और मुंह से छू रहा था, उन्होंने मुझे इस ज़ोर से भींचा कि मुझे ख्याल आया कि कहीं मेरी मौत ना वाक़े हो जाए, इसके बाद उन्होंने मुझे छोड़ दिया और फिर कहां :- पढ़िए यानी उस लिखे हुए के बजाय वैसे ही पढ़ो यानी जो मैं कहूं वह कहिए, इस पर मैंने कहा :- मैं क्या पढ़ूं और क्या कहूं __,*
*★_ अब उन्होंने कहा :-*
*"_ اِقۡرَاۡ بِاسۡمِ رَبِّكَ الَّذِىۡ خَلَقَۚ ۞ خَلَقَ الۡاِنۡسَانَ مِنۡ عَلَقٍۚ ۞ اِقۡرَاۡ وَرَبُّكَ الۡاَكۡرَمُۙ ۞ الَّذِىۡ عَلَّمَ بِالۡقَلَمِۙ ۞ عَلَّمَ الۡاِنۡسَانَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡؕ ۞*
*"_ (तर्जुमा)_ ए पैगंबर ! आप पर जो क़ुरान ( नाजिल हुआ करेगा) अपने उस रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए (यानी जब पढ़ें, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहकर पढ़ा कीजिए) जिसने मख़लुक़ात को पैदा किया जिसने इंसान को खून के लोथड़े से पैदा किया, आप क़ुरान पढ़ा कीजिए, आपका रब बड़ा करीम हैं (जो चाहता है अता फरमाता है और ऐसा है) जिसने (पढ़े लिखे को) क़लम से तालीम दी (और) इंसान को (उमूमन दूसरे ज़राए से ) उन चीज़ों की तालीम दी जिनको वह नहीं जानता था_," (सूरत अल -अलक़)*
[5/21, 8:48 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाते हैं ( जिसका मफहूम है):- मैंने इन आयात को उसी तरह पढ़ दिया, इसके बाद जिब्राइल अलैहिस्सलाम मेरे पास से चले गए, इसके बाद लगता था गोया मेरे दिल में एक तहरीर लिख दी गई है, मैं गार से निकल कर एक तरफ चला, जब मैं पहाड़ के एक जानिब पहुंचा तो मैंने आसमान से आने वाली एक आवाज़ सुनी, वह आवाज़ कह रही थी :- ए मोहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्राइल हूं _,"*
*"_ मैं वहीं रुक कर आवाज़ की तरफ देखने लगा, अचानक मैंने जिब्राइल अलैहिस्सलाम को इंसानी शकल में देखा, वह खड़े हुए थे, वह कह रहे थे :- ए मोहम्मद ! आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्राइल हूं _,"*
*★_ मैं वहीं रुक कर आवाज़ की तरफ देखने लगा, मैंने उन पर से नज़र हटा कर आसमान की तरफ देखा मगर सामने जिब्राइल ही नज़र आए, मैं इसी हालत में देर तक खड़ा रहा, उधर खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मेरे लिए खाना तैयार किया था और खाना गार में भिजवाया लेकिन मैं गार में नहीं था, जब यह खबर खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को मिली तो उन्होंने मेरी तलाश में चाचाओं और मामूओं के घर आदमी भेजें मगर मैं किसी के यहां भी नहीं मिला, इस पर वह परेशान हो गईं, अभी इसी परेशानी में थीं कि मैं अचानक उनके पास पहुंच गया, मैंने उन्हें सारा वाक़िया सुनाया, उन्हें जिब्राइल अलैहिस्सलाम के बारे में बताया, जो आवाज़ सुनी थी उसके बारे में भी बताया ।*
*★_ सारी बात सुनकर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया:- आपको खुशखबरी हो, आप यक़ीन कीजिए, क़सम है उस जा़त की जिसके क़ब्जे में मेरी जान है, मुझे उम्मीद है आप इस उम्मत के नबी हैं _,"*
*★_ इसके बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने चचाज़ाद भाई वरका़ बिन नोफल के पास गईं, वह ईसाई आलिम थे, उन्हें सारा वाक़िया सुनाया, वरक़ा बिन नोफल यह सारा वाक़िया सुन कर पुकार उठे :- अगर तुम सच कह रही हो तो इसमें कोई शक नहीं कि उनके पास वही नामूसे अकबर यानी जिब्राइल अलैहिस्सलाम आए हैं जो मूसा अलैहिस्सलाम के पास आया करते थे इसलिए मैं यह बात यक़ीन से कह सकता हूं कि वे इस उम्मत के नबी हैं _,"*
*★_ वरका़ बिन नोफल को जिब्राइल अलैहिस्सलाम का नाम सुनकर इसलिए ताज्जुब हुआ कि मक्का और अरब के दूसरे शहरों में लोगों ने यह नाम सुना भी नहीं था, गर्ज़ इसके बाद हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास वापस आई और वरक़ा बिन नोफल ने जो कुछ कहा था, वह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बताया ।*
[5/21, 8:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन्हीं दिनों आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बैतुल्लाह का तवाफ करने के लिए आए, तवाफ के दौरान आपकी मुलाक़ात वरक़ा बिन नोफल से हो गई, वह भी उस वक्त तवाफ कर रहे थे, उन्होंने खुद आपके मुंह से वह वाक़िया सुनने की ख्वाहिश की, आपने उन्हें भी बताया कि किस तरह जिब्राइल अलैहिस्सलाम उनके पास आए, सारा वाक़िया सुनकर वरक़ा बिन नोफल ने अपना मुंह झुकाया और आपके सर के दरमियान बोसा दिया, उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अपने घर लौट आए।*
*★_ पहली वही के बारे में यह तफसील भी उलमा ने लिखी है कि आप पर उस वक्त घबराहट तारी होती थी, आप हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ लाए तो फरमाया :- मुझे कंबल उड़ा दो, मुझे कंबल उड़ा दो _,"*
*"_ चुनांचे उन्होंने फौरन आप पर कंबल डाल दिया, यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की घबराहट दूर हो गई, फिर आपने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया :- मुझे अपनी जान का खौफ पैदा हो गया है _,"*
*★_ इस पर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- हरगिज़ नहीं ! आपको खुशखबरी हो, अल्लाह ताला आपको हरगिज़ हरगिज़ रुसवा नहीं करेगा क्योंकि आप रिश्तेदारों की खबर गिरी करते हैं, सच्ची बात कहते हैं, दूसरों के लिए मुसीबत और परेशानियां उठाते हैं, बेकस मुफलिसों की इमदाद करते हैं, मेहमानों की मेहमान नवाज़ियां करते हैं और नेक कामों में लोगों की मदद करते हैं, इस मामले में आपके लिए खैर ही खैर है ।*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को नबूवत मिलने के बाद सबसे पहले ईमान लाने वाली हस्ती हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ही हैं _",*
[5/23, 9:36 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अफीफ कुंदी एक ताजिर थे, वह मक्का में तिजारत की गरज़ से आते रहते थे, एक मर्तबा उनकी मुलाक़ात तिजारत के सिलसिले में इब्ने अब्दुल मुत्तलिब से हुई, वह यमन से अतर लाकर फरोख्त किया करते थे और हज के मौसम में मक्का में फरोख्त करते थे, अफीफ कुंदी बैतुल्लाह में हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु के पास बैठे थे कि अचानक एक नौजवान क़रीब के खे़मे से निकला, उसने सूरज की तरफ देखा, जब उसने देख लिया कि सूरज मगरिब में झुक गया है यानी गुरूब हो गया है, तो उसने बहुत अच्छी तरह वज़ू किया और फिर नमाज़ पढ़ने लगा, फिर एक लड़का खेमे में से निकला, वह बालिग होने के क़रीब था, उसने भी वज़ू किया और नौजवान के बराबर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगा, फिर उस खेमे में से एक औरत निकली वह भी उन दोनों के पीछे नमाज़ की नियत बांधकर खड़ी हो गई, उसके बाद उस नौजवान ने रुकू किया तो वह लड़का और वह औरत भी रुकू में चले गए, फिर नौजवान ने सजदा किया तो वह लड़का और औरत भी सजदे में चले गए ।*
*★_ अफीफ कुंदी हैरत से यह मंज़र देख रहे थे, उन्होंने हजरत अब्बास से पूछा:- यह क्या हो रहा है ? उन्होंने बताया :- यह मेरे भाई अब्दुल्लाह के बेटे मोहम्मद हैं, यह उनका दीन है, उनका दावा है कि अल्लाह ताला ने उन्हें पैगंबर बनाकर भेजा है, यह लड़का मेरा भतीजा अली इब्ने अबी तालिब है और यह मोहम्मद की बीबी खदीजा है,*
*अफीफ कुंदी कहते हैं:- काश उस वक्त चोथा मुसलमान मैं होता _,"*
*★_ ये अफीफ कुंदी बाद में मुसलमान हो गए थे, इस मौक़े पर शायद ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु मौजूद नहीं थे, यह आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के गुलाम थे और आप उस ज़माने में आपके साथ यह भी नमाज़ पढ़ा करते थे, या फिर हजरत ज़ैद उस वक्त तक मुसलमान नहीं हुए थे।*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा औरतों में सबसे पहले मुसलमान हुई, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बाद जो खवातीन सबसे पहले मुसलमान हुई उनके नाम यह हैं :- हजरत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी उम्मे फज़ल रज़ियल्लाहु अन्हा, हजरत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की साहबजादी हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की बहन उम्मे जमील रज़ियल्लाहु अन्हा, इनका नाम फातिमा बिन्त खत्ताब था, यह भी रिवायत मिलती है कि उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा उम्मे फज़ल से भी पहले मुसलमान हुई थी ।*
*★_ बहरहाल तमाम मुसलमानों का इस बात पर इत्तेफाक है कि हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे पहले मुसलमान हुईं थीं, इनसे पहले ना कोई मर्द मुसलमान हुआ ना कोई औरत, मतलब यह है कि जब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को पैगंबरी मिली तो सबसे पहले आपने खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को इस्लाम की दावत दी और अल्लाह ताला की इबादत की तरफ उनकी रहनुमाई फरमाई, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बगैर किसी झिझक के इस्लाम को क़ुबूल कर लिया और सबक़त ले गईं, तमाम पहल करने वालों में पहल कर गईं,*
[5/23, 11:57 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ इस सिलसिले में एक आलिम लिखते हैं:- आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को साथ लिया और उस चश्मे पर ले गए जो हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम के पांव मुबारक की बरकत से गारे हीरा के पास नमुदार हो गया था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उस चश्मे पर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को वज़ू का तरीक़ा बताया, यह तरीक़ा आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने बताया था, फिर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें नमाज पढ़ना सिखाया _,"*
*★_ उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उनसे यह भी फरमाया था :- ए खदीजा ! यह जिब्राइल हैं अल्लाह ताला की तरफ से तुम्हें सलाम देने के लिए आए हैं _,"*
*"_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह सुनकर सलाम का जवाब दिया, हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ईमान ले आईं तो उसी रोज़ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के घर आए, उस वक्त हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तर्बीयत आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जिम्मे थी, वह आपके घर में दाखिल हुए तो आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को नमाज़ पढ़ते देखा, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हैरान हो गए और बोले :-यह आप क्या कर रहे हैं ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- यह अल्लाह का दीन है, मैं तुम्हें भी इसकी दावत देता हूं कि अल्लाह ताला के एक होने की गवाही दो, वह तन्हा है, उसका कोई शरीक़ नहीं, मैं तुम्हें लात और उज़्ज़ा (बुतों) को छोड़ देने की दावत देता हूं _,"*
*★_ इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:- मैंने इस दीन के बारे में किसी से नहीं सुना, मैं अपने वालिद के मशवरे के बगैर कोई काम नहीं करता, अगर इजाज़त हो तो उनसे मशवरा कर लूं _,"*
*"_ इस पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया:- अगर तुम्हारा ईमान लाने का इरादा ना बने तो किसी दूसरे को इसके बारे में ना बताना_,"*
*"_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया:- जी अच्छा _,"*
*★_ फिर उसी रात अल्लाह ताला ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर दिल खोल दिया, सुबह हुई तो आप रसूले करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए और इस्लाम क़ुबूल किया ।*
[5/25, 9:24 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में उलमा ने लिखा है कि आप नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को नबुवत मिलने से भी पहले आप पर ईमान ला चुके थे क्योंकि यमन में एक बूढ़े आलिम से उनकी जो बातचीत हुई थी उससे वह जान चुके थे कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अल्लाह के रसूल है, वही रसूल जिनका दुनिया को इंतज़ार है, हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु जब यमन में उस बूढ़े आलिम के पास रुके थे तो उसने कहा था :- मेरा ख्याल है तुम हरम के रहने वाले हो ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया था:- हां मैं हरम का रहने वाला हूं, इस पर उसने कहा था :- और मेरा ख्याल है तुम कुरेशी हो? आपने जवाब दिया :- हां मैं कुरेशी हूं, फिर उसने कहा था :- मेरा ख्याल है तुम खानदाने तैयमी के हो? आपने जवाब दिया:- हां मैं खानदान तैयमी से हूं, फिर उसने कहा था :- अब आपसे एक सवाल और पूछना चाहता हूं, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा :- और वह सवाल क्या है? उसने कहा था :- अपना पेट खोल कर दिखा दो, इस पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया था:- यह मै उस वक्त तक नहीं करूंगा जब तक कि तुम इसकी वजह नहीं बता दोगे _,"*
*★_ उस वक्त उसने कहा था:- मैं अपने सच्चे और मजबूत इल्म की बुनियाद पर खबर पाता हूं कि हरम के इलाक़े में एक नबी का ज़हूर होने वाला है, उसकी मदद करने वाला एक नौजवान और पुख्ता उम्र का आदमी होगा, वह मुश्किलात में कूद जाने वाला और परेशानियों को रोकने वाला होगा, उसका रंग सफेद और जिस्म कमजोर होगा, उसके पेट पर एक बालदार निशान होगा और उसकी बांई रान पर भी एक अलामत होगी _,"*
*"_यह कहने के बाद उसने कहा:- अब यह भी ज़रूरी नहीं कि तुम मुझे अपना पेट खोलकर दिखाओ क्योंकि तुममे बाकी तमाम अलामात मौजूद है _,"*
*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब मैं यमन में अपनी खरीद-फरोख्त का काम पूरा कर चुका तो उससे रुखसत होने के लिए उसके पास आया, तब उसने कहा:- मेरी तरफ से चंद शेर सुन लो, यह शेर मैंने उसी नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में कहें है _," मैंने कहा - सुनाओ , उसने वे शेर सुनाएं _,"*
[5/25, 9:51 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ फिर मैं मक्का मुकर्रमा वापस पहुंचा तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नबूवत का ऐलान कर चुके थे, फौरन ही मेरे पास कुरेश के बड़े सरदार उक़बा बिन अबू मुईत, शैबा, रबिया, अबू जहल और अबुल बख्तरी वगैरह आए और कहने लगे :- ऐ अबू बकर ! अबू तालिब के यतीम भतीजे ने यह दावा किया है कि वह नबी है, अगर आपका इंतजार नहीं होता तो हम इस मामले में सब्र ना करते, अब आप आ गए हैं इसलिए उससे निबटना आप ही का काम है_,"*
*★_ यह बात उन्होंने इसलिए कही थी कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम और अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु करीबी दोस्त थे, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं :- मैंने उन्हें अच्छे अंदाज में टाल दिया और खुद आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के घर पहुंच गया, दरवाज़े पर दस्तक दी, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम बाहर तशरीफ लाए, आपने मुझे देखकर फरमाया:- ऐ अबू बकर मैं तुम्हारी और तमाम इंसानों की तरफ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूं, इसलिए तुम अल्लाह ताला पर और उसके रसूल पर ईमान ले आओ _,"*
*★_ मैंने अर्ज़ किया :- क्या आपके पास इसका सबूत है ? आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया :- उस बूढ़े आलिम के शेर जो उसने तुम्हें सुनाए थे_," मैंने हैरान होकर अर्ज़ किया :- मेरे दोस्त ! आपको उन अश'आर के बारे में कैसे पता चला ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- मुझे उस अज़ीम फरिश्ते के ज़रिए पता चला जो मुझसे पहले भी तमाम नबियों के पास आता रहा है _,"*
*"_ अब मैंने अर्ज़ किया :- अपना हाथ लाएं, मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई मा'बूद नहीं और आप अल्लाह के रसूल है _,"*
*★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- मेरे इस्लाम को क़ुबूल करने से आपको बेतहाशा खुशी हुई, सब लोगों के सामने अपने ईमान लाने का ऐलान सबसे पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ही ने किया था, सबसे पहले ईमान लाने वालों की तरतीब इस तरह है, मर्दों में सबसे पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हुम ईमान लाए, औरतों में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे पहले ईमान लाईं और गुलामों में सबसे पहले हज़रत ज़ैद बिन हारीसा रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए, वह उस वक्त तक बालिग नहीं हुए थे ।*
[5/25, 11:55 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ अब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने आसपास के लोगों को इस्लाम की दावत शुरू की, इस सिलसिले में जो मुश्किलात थी उनके सामने हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा डट गईं, अपना तन मन और धन सब कुछ कुर्बान करने पर तुल गई।*
*★_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की साहबजा़दी हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा के शौहर अबुल आस गज़वा बदर में गिरफ्तार हुए, यह उस वक्त की बात है जब मुशरिकों से निकाह ना करने का हुक्म नाजिल नहीं हुआ था और हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी अबुल आस से हो चुकी थी, दूसरे कैदियों की तरह इनसे भी कहा गया :- आप भी फिदिए की रक़म अदा करें ताकि आप को रिहा किया जा सके_," उन्होंने हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को पैगाम भेजा कि उनकी आजादी के लिए फिदये की रक़म भेज दें, हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा को यह पैगाम मिला तो आप परेशान हो गई, क्योंकि उस वक्त आपके पास कोई रक़म नहीं थी, अलबत्ता शादी के मौक़े पर उन्हें जो जहेज़ मिला था उसमें एक हार भी था, उन्होंने वही हार भेज दिया, वह हार दर असल हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का था ।*
*★_ जब यह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में पेश किया गया तो आपने उस हार को पहचान लिया, आपको हजरत खदीजा याद आ गईं, आपकी मुबारक आंखों से आंसू जारी हो गए, आप को रोते देखकर सहाबा किराम भी रोने लगे, उन्होंने अर्ज किया:- ऐ अल्लाह के रसूल ! आप यह हार बेटी को वापस कर दें, फिदिए की रकम हम अदा कर देते हैं _,"*
*"_ इस वाक़िए से साबित है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से किस क़दर मोहब्बत थी ।*
*★_ इसी तरह हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- एक मर्तबा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की बहन हाला हमारे यहां आईं, उन्होंने इजाज़त तलब करने के लिए आवाज़ दी, उनकी आवाज़ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से बहुत मिलती थी, फिर क्या था यह आवाज़ सुनकर हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा याद आ गईं, आप हैरत और मसर्रत के आलम में पुकार उठे :- या अल्लाह ! यह तो हाला लगती है _,"*
*"_उस वक्त मैंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से कहा :-आप क़ुरेश की एक बूढ़ी औरत को क्या हर वक्त याद करते रहते हैं, उन्हें तो फौत हुए भी अरसा हो गया, अल्लाह पाक ने आपको उससे बेहतर बीवी अता फरमा दी है_," यह सुनकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम जलाल में आ गए, यहां तक कि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने नादिम होकर अर्ज किया :- ए अल्लाह के रसूल ! मुझसे गलती हो गई, आइंदा मै उनका जिक्र अच्छे अल्फाज़ ही में करूंगी _,"*
[5/29, 8:33 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ जब बिल्कुल नज़दीक के लोग आप पर ईमान ला चुके तो अल्लाह ताला ने हुक्म नाज़िल फरमाया :- अपने क़रीबी लोगों को डराइये _," यह हुक्म नाज़िल होने पर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम कोहे सफा पर तशरीफ ले गए और पुकार कर फरमाया:- ए बनी अब्दुल मुत्तलिब ! ए बनी फहरा और ए बनी का'ब ! अगर मैं तुमसे कहूं कि इस पहाड़ के पीछे दुश्मन जमा हो गए हैं और तुम पर हमला करने वाले हैं तो बताओ क्या तुम मेरी इत्तेला को दुरुस्त समझोगे ? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बात के जवाब में सब ने कहा :- हां ! हम आपकी बात को दुरुस्त समझेंगे इसलिए कि आपने कभी झूठ नहीं बोला _,*
*"_इस पर आप ने फरमाया:- तो फिर जान लो ! मेरे पास तुम्हारे लिए सख्त अज़ाब की इत्तेला है _,"*
*★_ अबू लहब यह सुनकर सख्त नाराज़ हुआ, उसने भिन्ना कर कहा :- तू हमेशा बर्बाद रहे.. क्या तूने बस यही सुनाने के लिए बुलाया था (नाऊज़ु बिल्लाह)_," फिर लोग बढ़ बढ़ाते हुए वापस लौट गए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तबलीग का काम जारी रखा, इस पर क़ुरेश शदीद मुखालफत पर उतर आए, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को जब भी कुरेशे मक्का की तरफ से सदमा पहुंचता तो आप सीधा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ लाते, सैयदा खदीजा आपकी बातों की तस्दीक़ करतीं तो आपका सदमा दूर हो जाता, गर्ज़ हर मुश्किल वक्त में सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आप की खिदमत में कोई कसर उठा ना रखी _,*
*★_ जब इस्लाम आहिस्ता आहिस्ता फैलने लगा तो कुरेश बहुत फ़िक्र मंद हुए, उन्होंने अबू तालिब को बुलाकर कहा:- ए अबू तालिब ! अगर आपके भाई के बेटे हमारे दीन को और जिन बुतों की हम पूजा करते हैं उनको इसी तरह बुरा कहते रहे और आप इसी तरह उनकी मदद करते रहे तो हम समझेंगे कि आपने भी हमारे मुक़ाबले में सिर्फ उनकी मदद की ठान रखी है, इस सूरत में हम जो कुछ भी करें फिर शिकायत ना करें _,"*
*"_अबू तालिब ने उन्हें समझा-बुझाकर वापस भेज दिया, इधर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बराबर तबलीग करते रहे, इस पर कुरेश फिर जमा हुए, अबू तालिब के पास आए, उन्होंने कहा:- अगर आपने अब भी अपने भतीजे को ना रोका तो हमारे और आपके दरमियान कोई वास्ता नहीं रह जाएगा और यह भी हो सकता है कि हममे से कोई मारा जाए _,"*
*★_ अबू तालिब ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से बात की और कहा:- भतीजे ! अपने दीन के एतबार से तुम मुझ पर इतना बोझ ना डालो कि मैं उठा ना सकूं _," उनकी बात के जवाब में आपने फरमाया :- चाचा जान ! अगर यह लोग मेरे एक हाथ पर सूरज और दूसरे पर चांद रख दें और मुझसे कहें कि जो कुछ में कह रहा हूं उससे बाज़ आ जाओ तो भी मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगा, चाहे मेरी जान क्यों ना चली जाए _,"*
*"_यह सुनकर अबू तालिब ने कहा :- भतीजे ! तुम जो चाहो करो, मैं आइंदा तुम्हें नहीं टोकूंगा_,"*
[5/29, 8:52 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ क़ुरेश ने भी जान लिया कि अबू तालिब इस सिलसिले में कुछ भी करने को तैयार नहीं है तो वह एक बार फिर जमा हो गए और अबू तालिब से बोले:- ऐ अबू तालिब ! आपके भतीजे का एक ही इलाज है और वह यह है कि उसे हमारे हवाले कर दें ताकि हम उसे क़त्ल कर दें, उस एक के ना होने से आखिर क्या फर्क पड़ जाएगा_,"*
*"_ यह सुनकर अबू तालिब बोले :- बड़े अफसोस की बात है, अगर मैं तुम में से किसी के बैटे को सिर्फ अपनी मुखालफत की बुनियाद पर तुम से मांगू ताकि उसे क़त्ल कर सकूं तो क्या तुम ऐसा करोगे, नहीं करोगे, तो मैं क्यों अपने भतीजे को तुम्हारे हवाले करूं, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकता _,"*
*"_इस पर सब ने कहा:- ऐ अबू तालिब ! तुम अपनी क़ौम के सिर्फ एक शख्स के लिए क़ौम में तफरीक़ डाल रहे हो, तुमने अपनी सारी क़ौम को अपने भतीजे के खातिर ज़लील करके रख दिया है _,"*
*★_ यह कहकर क़ुरेश लौट गए, अब अबू जहल वगैरह ने एक जगह जमा होकर सोच विचार की और आखिर इस नतीजे पर पहुंचे कि जब तक बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिमायत तर्क नहीं करते और उन्हें हमारे हवाले नहीं करते उस वक्त तक उन लोगों से कोई कारोबार न किया जाए ना उनके हाथ कोई चीज़ फरोख्त की जाए, ना उनसे खरीदी जाए, ना उनके यहां बेटी बेटे का रिश्ता किया जाए, ना उनके साथ बैठा जाए ना किसी क़िस्म का मेलजोल रखा जाए, कोई शख्स अगर किसी मुसलमान का मक़रूज है तो क़र्ज़ अदा ना करें और उन्हें श'अब अबी तालिब में रहने पर मजबूर कर दिया जाए, श'अब अबी तालिब एक घाटी का नाम था, आज के दौर में इस क़िस्म के मुआहिदे को सोशल बॉयकॉट कहा जाता है यानी माशरती तालुका़त खत्म कर देना, इन सब हजरात को वहां रहने पर मजबूर कर दिया गया _,"*
*★_ यह बायकाट नबूवत के सातवे साल यकम मोहर्रम को शुरू हुआ और नबूवत के दसवें साल मोहर्रम में खत्म हुआ, इन 3 सालों में रसूले करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम, आपके घर वालों, गरीब और नादार मुसलमानों, अबू तालिब, बनी हाशिम, बनी अब्दुल मुत्तलिब और उनके साथियों ने मुसीबतों और मुश्किलात का बड़ी जुर्रात से मुक़ाबला किया, क़ुरेश के मज़ालिम के मुक़ाबले में कोई कमज़ोरी ना दिखाई, सब के सब आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हिमायत में डटे रहे ।*
*★_ हालत यह थी कि ना यह हजरात किसी से कोई लेन देन कर सकते थे ना मक्का के बाजा़रों में खरीद-फरोख्त कर सकते थे, श'अब अबी तालिब कोहे अबू कु़बेस की घाटियों में से एक घांटी थी, यह हरम से एक किलोमीटर के फासले पर थी, बनी अब्दुल मुत्तलिब और बनी हाशिम के अक्सर घराने इसी मोहल्ले में रहते थे या फिर इसके इर्द-गिर्द रहते थे, जब कुफ्फार ने बायकाट का मुआहिदा लिखकर हरम में लटका दिया तो अबू तालिब ने दूसरे मोहल्लों में रहने वाले बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब के घर वालों को भी इस घांटी में आ जाने के लिए कहा _,*
*★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का आबाई मकान दूसरे मोहल्ले में था लेकिन आप अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ रहती थीं, उन्होंने भी अपना ज़रूरी सामान लिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इस घांटी में आ गईं, बाज़ दूसरे हामी कबीले और गरीब मुसलमान भी यहीं आ गए, उनका ताल्लुक कुरेश के खानदान से नहीं था, इन सब हजरात के एक जगह जमा होकर रहने का फैसला अबू तालिब का था, यह फैसला इस लिहाज़ से बहुत अच्छा था कि मुसलमान अपने अपने मोहल्लों में बिखरे रहते तो उनके लिए यह 3 साल गुजा़रना और ज़्यादा मुश्किल होता, सब ने मिलजुल कर एक दूसरे का दुख दर्द बांट कर यह साल गुजार लिए, यह और बात है कि यह 3 साल इंतेहाई मुश्किल साल थे, बाहर से आकर कोई मदद नहीं करता था, अलबत्ता आपस में यह सब एक दूसरे के गम गुसार थे ।*
[5/30, 9:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शा'अब अबी तालिब में रहने वाले ना तो तिजारत कर सकते थे ना मक्का मुअज़्ज़मा के बाजा़रों में खरीद-फरोख्त कर सकते थे, बाहर से कोई का़फिला आता तो कुरेश उसका सारा माल महंगे दामों में खरीद लेते थे, अबू लहब उन ताजिरों से कहता :- कोई मुसलमान या बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब का कोई शख्स तुमसे कुछ खरीदना चाहे तो क़ीमत इतनी ज़्यादा बताना कि खरीद ना सकें, अगर तुम्हारा माल ना बिक सका तो मैं खुद सारा माल खरीद लूंगा _,"*
*★_ साल में 4 महीने रज्जब, जी़का़'दा, जु़लहज और मोहर्रम हुरमत के महीने थे, इन चार महीनों में इन हजरात को कुछ खरीद फरोख्त का मौक़ा मिलता था लेकिन आमदनी का कोई ज़रिया नहीं था, रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास जो कुछ था उससे आप दोनों गरीब मुसलमानों की मदद करते रहे और इस तरह इस बायकाट के खत्म होते इनकी अपनी माली हालत बहुत कमज़ोर हो गई, हजरत उमर भी मुख्तलिफ तरीकों से मुसलमानों की मदद करते रहते थे लेकिन सैकड़ों लोगों की ज़रूरत पूरी करना आसान काम नहीं था ।*
*★_जब इन लोगों की पूंजी बिल्कुल खत्म हो गई तो घरेलू चीज़ें बिकने लगीं, आखिरी दिनों में जब हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में एक हांडी और मिट्टी का प्याला रह गया, घांटी में रहने वाले दरख्तों के पत्ते खाने पर मजबूर हो गए, वह पहाड़ी इलाका था वहां दरख़्त भी बहुत कम थे, उन दिनों की हालत बयान करते हुए हजरत सा'द बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक रात उन्हें ऊंट के चमड़े का सूखा हुआ टुकड़ा मिल गया, उन्होंने उसे धोया और उबालकर 3 दिन तक उसी से गुजारा किया _,"*
*"_यह दुनिया की तारीख का जा़लिमाना तरीन बायकाट था, क़ुरेशे मक्का बाका़यदा निगरानी करते थे कि मक्का का कोई फर्द चोरी-छिपे इन हजरात को खाने पीने की कोई चीज़ ना पहुंचा दें ।*
*★_ असल में कुरेशे मक्का चाहते थे कि इन हजरात की कोई हिमायत ना करें, उसके बाद उनके लिए कुरेश के दीगर खानदानों से अपने अपने मुसलमान हो जाने वाले अफराद की हिमायत छुड़ा देना आसान हो जाता और जब तमाम क़बीले मुसलमानों की हिमायत से हाथ उठा लेते तो क़ुरेश के लिए मुसलमानों से निपटना आसान हो जाता लेकिन हुआ यह कि इन दोनों खानदानों ने हर किस्म की तकालीफ तो बर्दाश्त कर ली लेकिन क़ुरेश के मुकाबले में हार ना मानी, नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके गरीब साथियों के मुसीबतों से डटे रहने में कोई फ़र्क ना आया ।*
[5/30, 9:47 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के भतीजे हजरत हकीम बिन हिजाम रज़ियल्लाहु अन्हु चोरी-छिपे सामान ले आते थे, एक रोज़ गुलाम के साथ गल्ला ला रहे थे कि ऊंट पर सवार अबू जहल उधर से आ निकला, उसने पुकार कर कहा:- क्या तू यह राशन बनु हाशिम के लिए ले जा रहा है, खुदा की क़सम तेरा यह गुलाम वहां गल्ला नहीं ले जा सकता, मैं तुम्हें सारे मक्का में रुसवा कर दूंगा कि तुमने मूआहिदे की खिलाफ वर्जी की है_,"*
*★_ अबू जहल अभी उन से झगड़ रहा था कि बनु असद का सरदार अबुल बख्तरी उन्हें देख कर रुक गया, उसने अबू जहल से पूछा :- क्या है, तुम इससे क्यों झगड़ रहे हो ? जवाब में अबू जहल ने कहा :- यह बनु हाशिम के लिए गल्ला ले जा रहा है_," अबुल बख्तरी ने फौरन कहा :- यह इसकी फूफी का गल्ला है जो उसके पास रखा था, अब उसने मंगवाया है तो तू उसे कैसे रोक सकता है, जाने दो इसे _," "_ नहीं मैं नहीं जाने दूंगा _," अबू जहल उससे भी झगड़ा पड़ा ।*
*★ दोनों में तेज़ लहजे में बात होने लगी, अबुल बख्तरी ने अबू जहल के ऊंट की गर्दन पकड़कर झटका दिया तो ऊंट बैठ गया, उसने अबू जहल को गुद्दी से पकड़ कर नीचे खींच लिया, फिर लातों और घूंसों से उसकी मरम्मत की, यहां तक कि करीब पड़ी एक हड्डी उठाकर उसके सर पर दे मारी, उसके सर से खून बहने लगा, ऐसे में हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु उधर से गुज़रे, आप उन्हें लड़ते देख कर रुक गए, उन्हें रुकते देखकर दोनों अपनी लड़ाई से बाज़ आ गए ताकि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तक उनकी आपस की लड़ाई की खबर ना पहुंचे ।*
*★_ तारीख की किताबों में मुसीबतों भरे इन 3 सालों की बहुत तफसील बयान हुई है, इब्ने क़य्यिम कहते हैं :- बनी हाशिम के बच्चे भूख के मारे इस कदर जोर-जोर से रोते थे उनके रोने की आवाजें घाटी के बाहर तक सुनाई देती थी _,"*
*"₹इमाम क़ुस्तलानी ने लिखा है :- बनी हाशिम के बच्चों के रोने की आवाजें रात के सन्नाटे में तमाम शहर में सुनाई देती थी, संगदिल और बेरहम कुरेशी सुनते थे और हंसा करते थे और तंज़ किया करते थे _,"*.
*"_शिब्ली नोमानी लिखते हैं:- उन दिनों में दरख़्तों के पत्ते खा खा कर गुजर-बसर की गई _,"*
[5/31, 6:49 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ उन तमाम सख्तियों और तकालीफ के बावजूद मुसलमान साबित क़दम रहें, उनके क़दम ज़रा भी ना डगमगाए, एक रात हाशिम बिन अमरू बिन हारिस तीन ऊंटों पर खाना लेकर घाटी में दाखिल हो गए, यह मुसलमानों के हमदर्द थे और अभी मुसलमान नहीं हुए थे, कुरेश को इसका पता चल गया, उन्होंने दूसरी सुबह हाशिम से बाज़ पुर्स की, इस पर उन्होंने कहा :- ठीक है, आइंदा में ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जो आप के खिलाफ हो _,"*
*"_इसके बाद एक रात फिर दो ऊंटों पर खाने का सामान लेकर घाटी में पहुंच गए, क़ुरेश को इसका भी पता चल गया, इस मर्तबा क़ुरेश सख्त गज़ब नाक हुए और हाशिम पर हमला कर दिया लेकिन उस वक्त अबू सुफियान ने कहा :- इसे छोड़ दो, इसने सिलह रहमी की है, रिश्तेदारों का हक़ पूरा करने के लिए ऐसा किया है _,"*
*★_ और फिर अल्लाह ताला ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इत्तेला दी कि दीमक ने कु़रेश के लिखे हुए मुआहिदे को चाट लिया है, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह बात अपने चाचा अबू तालिब को बताई, उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा:- सितारों की क़सम! तुमने कभी झूठ नहीं बोला, (मुशरिक लोग इस क़िस्म की कसमें खाते थे), अब सब ने घाटी से निकलने का फैसला किया, सब वहां से निकलकर मस्जिद ए हराम में आ गए, क़ुरेश ने इन लोगों को देखा तो समझे कि यह लोग मुसीबतों से घबराकर निकल आए हैं ताकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मुशरिकों के हवाले कर दें, अबू तालिब ने उनसे कहा :- हमारे और तुम्हारे दरमियान मामलात बहुत तूल पकड़ गए हैं इसलिए अब तुम लोग अपना वह हलफनामा ले आओ, मुमकिन है हमारे और तुम्हारे दरमियां सुलह की कोई शक्ल निकल आए _,"*
*★_ अबू तालिब में असल बात बताने की बजाय यह बात इसलिए कही कि कहीं क़ुरेश हलफनामा सामने लाने से पहले उसे देख ना ले क्योंकि इस सूरत में वह उसको लेकर ही ना आते, गर्ज़ वे हलफनामा ले आए, उन्हें इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि यह लोग अब रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को उनके हवाले करना चाहते हैं क्योंकि यह तमाम हलफनामा और मुआहिदा आन हज़रत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वजह से हुए थे, आखिर वह हलफनामा ले आए, साथ ही कहने लगे :-आखिर तुम लोग पीछे हट गए ना !*
*"_ इस पर अबू तालिब ने कहा :- मैं तुम्हारे पास एक इंसाफ की बात लेकर आया हूं इसमें तुम्हारी कोई बेइज्जती है ना हमारी और वह बात यह है कि मेरे भतीजे की यानी आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बताया है कि तुम्हारे इस हलफनामे पर जो तुम्हारे हाथ में है अल्लाह ताला ने एक कीड़ा मुसल्लत कर दिया है, उस कीड़े ने इसमें से अल्फाज़ चाट लिए हैं, अगर बात इसी तरह है जैसे मेरे भतीजे ने बताया है तो मामला खत्म हो जाता है लिहाज़ा तुम अपनी गलत बात से बाज़ आ जाओ, अगर बाज़ नहीं आए तो भी खुदा की क़सम जब तक हममे से आखिरी आदमी भी जिंदा है हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को तुम्हारे हवाले नहीं करेंगे और अगर मेरे भतीजे की बात गलत निकली तो हम उन्हें तुम्हारे हवाले कर देंगे, फिर तुम चाहे उन्हें क़त्ल करो चाहे जिंदा रखो _,"*
*★_ इस पर क़ुरेश ने कहा :- हमें तुम्हारी बात मंजूर है _,", अब उन्होंने अहदनामा खोल कर देखा, अहद नामा को वाकई दिमाग चाट चुकी थी, यह देख कर वह पुकार उठे :- यह तुम्हारे भतीजे का जादू है _,"*
*"_इस वाक़ए के बाद उन लोगों का ज़ुल्म और बढ़ गया, अलबत्ता उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो दीमक वाले वाक़िए पर शर्मिंदा हुए, उन्होंने कहा :- अब हमारी तरफ से ऐसी सख्ती अपने भाइयों पर ज़ुल्म है _," फिर ये लोग घाटी में पहुंचे और इन हजरात से यूं बोले :- आप सब लोग अपने अपने घरों में आ जाएं, चुनांचे सब लोग उसी वक्त घाटी से निकलकर अपने घरों में आ गए, इस तरह 3 साल बाद यह बायकाट खत्म हुआ ।*
[5/31, 8:05 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ शा'अब अबी तालिब की घाटी से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके साथियों की रिहाई नबुवत के दसवें साल में हुई, उसके बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तबलीग का काम पहले से भी ज़्यादा सरगर्मी से शुरू कर दिया था, इन हालात में उस ज़ालिमाना बायकाट को खत्म हुए अभी एक महीना भी नहीं गुजरा था कि आपके मेहरबान चाचा अबू तालिब इस दुनिया से रुखसत हो गए, उनकी वफात पर आपको बहुत सदमा हुआ और इस सदमे को अभी एक हफ्ता नहीं हुआ था कि उम्मुल मोमिनीन सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी इस दारे फानी से कूच किया, ऊपर तले दो सदमें आपके लिए बहुत सख्त थे, आपने इस साल को "गम का साल" क़रार दिया ।*
*★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा पहली हस्ती थीं जिन्होंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की क़दर और अज़मत को पहचाना और अपना तन मन और धन आपकी खिदमत के लिए वक्फ कर दिया, हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से शादी के बाद 25 साल की जिंदगी में बेपनाह मुश्किलात आईं, मगर इन तमाम मुश्किलात में आपने हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का पूरी तरह साथ दिया, क़ुरेशे मक्का क़दम क़दम पर आपको तकलीफ पहुंचाते थे और सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा आपको आराम व सुकून पहुंचाती थीं, आपने अपनी हर खुशी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर न्योछावर कर दी, आप की मौजूदगी में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को घर और बच्चों की देखभाल की कोई फिक्र नहीं होती थी, सब काम आपने संभाले हुए थे ।*
*★_ सबसे पहले ईमान भी आप ही लाईं, आपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का बेमिसाल साथ दिया, नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एक मर्तबा सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बारे में फरमाया:- खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने जो मुझसे वफादारी की उसके सबब मुझे उनकी याद बहुत मरगूब है, जब लोगों ने मेरी नबूवत का इनकार किया तो वह मुझ पर ईमान लाईं, जब लोग मेरी मदद करने से डरते थे तो वह चट्टान की मानिंद मजबूती से मेरे साथ खड़ी रहीं, वह बेहतरीन साथी थीं और मेरे बच्चों की मां _,"*
*★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के बतन से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के यहां 6 बच्चे पैदा हुए, दो साहबजादे और चार साहब जादियां, साहबजादे बचपन ही में फौत हो गए, जब सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात हुई तो उस वक्त तक आपकी दो बेटियों की शादी हो चुकी थीं, दो बेटियां हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा घर में थीं, हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र उस वक्त 8 - 9 साल की थी, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी आपके घर में ही परवरिश पाई थी, वह भी अभी छोटे थे ।*
[6/3, 5:18 PM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ बुखारी शरीफ में सैयदा हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की शान में यह हदीस मौजूद है :- "_ हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक रोज़ जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप की खिदमत में हाजिर हुए और यूं अर्ज़ करने लगे :- ऐ अल्लाह के रसूल ! खदीजा एक बर्तन लेकर अभी आने वाली हैं उस बर्तन में सालन है, जब वह आएं तो उन्हें उनके रब की तरफ से और मेरी तरफ से सलाम कह दीजिएगा और उन्हें यह खुशखबरी सुनाइएगा कि अल्लाह ताला ने मोतियों से बना हुआ एक महल जन्नत में उन्हें अता फरमाया है, उसमें ना किसी किस्म का शोर होगा ना परेशानी _,"*
*★_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की ज़िंदगी में दूसरी शादी का कभी ख्याल तक नहीं फरमाया, आप की वफात के बाद भी आप उनका ज़िक्र बहुत मोहब्बत से फरमाते थे, आपकी सहेलियों से भी बहुत शफ़क़त का बर्ताव करते, हर मौक़े पर उनका ख्याल रखते थे, अक्सर उनकी तारीफ फरमाते यहां तक कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अजवाज़ मुताहरात को रश्क़ आने लगता, आप कोई बकरी ज़िबह फरमाते तो उसका गोश्त हजरत सैयदा की सहेलियों को भी भिजवाते ।*
*✿●•·आप की वफात की खबर सुनकर मक्का मुअज़्ज़मा के लोग रंज व गम के समंदर में डूब गए, हर शख्स की ज़ुबान पर उन्हीं का ज़िक्र था, उन्होंने कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाई थी, कभी ज़ुबान से ऐसा लफ्ज़ नहीं निकाला जो किसी की दिल शिकनी का सबब बनता, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तकालीफ को देखकर वह कभी मायूस ना होतीं, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हौसला अफजा़ई करतीं और तबलीग के काम में हर मुमकिन मदद करतीं, दूसरे लोगों को तकलीफ पहुंचाई जाती तो आप उन्हें भी हौसला दिलाती, उन्हें यकीन दिलाती कि अल्लाह हमारे साथ है, मक्का में किसी की ज़ुबान पर भी उनकी बुराई नहीं थी, हर शख्स उनकी तारीफ करता था ।*
*✿●•·सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को हुजूम के कब्रिस्तान में दफन किया गया, दफन के वक्त आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खुद क़बर में उतरे, इंतकाल के वक्त उनकी उम्र 63 साल थी, इस वक्त तक नमाजे़ जनाजा़ का हुक्म नहीं आया था ।*
[6/4, 6:41 AM] Haqq Ka Daayi Official: *★_ सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से शादी के बाद 25 साल तक ज़िंदा रहीं यानी इतनी तवील मुद्दत तक आपने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथ दिया, जब आप बीमार थी तो एक दिन आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम आपके पास तशरीफ लाएं और फरमाया :- जो कुछ मैंने तुम्हारे लिए देखा है क्या तुम उससे खुश नहीं, अल्लाह ताला नापसंदीदगी में ही खैर फरमाने वाला है यानी हमारी जुदाई के इस गम में भी खैर है, तुम्हें मालूम नहीं अल्लाह ताला ने मुझे खबर दी है कि उसने जन्नत में तुम्हारे साथ साथ मरियम बिन्ते इमरान यानी मसीह अलैहिस्सलाम की वालिदा, मूसा अलैहिस्सलाम की बहन कुलसुम और फिरौन की बीवी आसिया से मेरी शादी कर दी है (यानी ये जन्नत में तुम्हारी साथी हो गई),*
*★_ यह सुनकर हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया :- ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ! क्या अल्लाह ताला ने आपको इस बात की खबर भी दी है_," आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- हां ! इस पर हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा :- अल्लाह ताला मोहब्बत व बरकत अता फरमाए _,"*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आपसे यह भी फरमाया :- जन्नत तुम्हारे दीदार की मुस्ताक़ है, तमाम उम्महातुल मोमिनीन से बेहतर हो, तुम तमाम औरतों से अफज़ल हो तो मरियम बिन्ते इमरान और फिरौन की बीवी आसिया से ज्यादा बुज़ुर्ग हो _,"*
*"_आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तमाम औलाद सिवाय इब्राहिम रज़ियल्लाहु अन्हु के सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से हुई, सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां सबसे पहले क़ासिम रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए, फिर ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा, फिर उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा और फिर हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, यह तमाम नबुवत से पहले पैदा हुए, उनके बाद अब्दुल्लाह पैदा हुए, तैयब और ताहिर इन्हीं के लक़ब थे, बहरहाल इस पर सबका इत्तेफाक है कि बेटे बचपन ही में फौत हो गए थे, बेटियां जवान हुईं उनकी शादियां हुई और उनसे औलाद हुईं _,*
*★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तमाम औलाद का सिलसिला नसब हजरत खदीजातुल कुबरा रज़ियल्लाहु अन्हा पर खत्म होता है, आप अपनी ज़िंदगी में हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए दुआ करते रहे, उनकी मौजूदगी में आपने दूसरी शादी नहीं की, आपने उन्हें तमाम औरतों से अफज़ल क़रार दिया (बाज़ रिवायात की रू से हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को अफ़ज़ल क़रार दिया) जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह ताला का सलाम आपके ज़रिए सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को पहुंचाया, सैयदा ने अपना सारा माल अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दिया, आपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इंतिहाई तकलीफ दह हालात में साथ दिया, अल्लाह की उन पर करोड़ों रहमते हों ।*
*📓उम्माहातुल मोमिनीन, क़दम बा क़दम,,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
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