*✭ KHILAFAT E RASHIDA .✭*
*✿_ खिलाफते राशिदा _✿*
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*┱ ✿-*"_दौरे फारुक़ी का आगाज़ _,*
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु जब खलीफा बने तो आपके सामने ईरान और रोम से जंगे हो रही थी, खिलाफत से पहले दिन से ही लोग बैत के लिए आने लगे, सिलसिला 3 दिन तक जारी रहा, आपने मौक़ा पा कर मुसलमानों के सामने खुतबा दिया जिसमें अल्लाह के रास्ते के फज़ाइल बयान फरमाएं ,
★_ रोम और ईरान के हुक्मरान क़ैसर व किसरा कहलाते थे, यह दोनों बहुत बड़ी सल्तनतें थी यानी उस वक्त खुद को सुपर ताकत समझने वाली यही तो ताकते थी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु इराक के तमाम सरहदी इलाक़े फतह कर चुके थे और कुछ ही दिनों में पूरा इराक फतह कर सकते थे लेकिन उन्हीं दिनों शाम की मुहिम पेश आ गई, इसलिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा कि फोरन शाम की तरफ रवाना हों और मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हू को अपना जांनशीन कर जाएं, चुनांचे हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु शाम की तरफ रवाना हो गए, इस तरह इराक में फुतूहात का सिलसिला रुक गया ।
★_ ईरान की मलका उन दिनों " पुरान दुख्त " थी, उसने अपने मुल्क के एक बहादुर जरनील रुस्तम को अपना वज़ीर बना लिया था , उसने रुस्तम को हुक्म दिया कि मुसलमानों को इराक से निकाल दें, रुस्तम ने जंग की तैयारियां शुरू कर दी, उसने अपने लश्कर के दो हिस्से किए, एक हिस्से का सालार जाबान को मुकर्रर किया जबकि दूसरे हिस्से का सालार शहजादा नरसी को बनाया।
★_ इधर मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु और अबू उबैदा रहमतुल्लाह हीरा तक पहुंच चुके थे, दोनों फौजें आमने-सामने हुई, मुसलमानों में गजब का जज्बा देखने में आया, आखिर उनके जज्बे के आगे ईरानी लश्कर के पांव उखड़ गए, दोनों सालार मौक़े पर ही गिरफ्तार हो गए ।
★_ अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने मोरके़ के बाद कस्कर का रूख किया, यहां शहजादा नरसी फ़ौज लिए खड़ा था , मक़ातिया में दोनों लश्कर आमने-सामने हुए, नरसी के साथ बहुत बड़ा लश्कर था, नरसी अभी जंग शुरू करने के हक़ में नहीं था, उसे खबर मिली थी कि उसकी मदद के लिए मजी़द ईरानी फौजे रवाना हो चुकी है , वह उन फौजो का इंतजार कर रहा था और उनकी आमद से पहले लड़ाई शुरू नहीं करना चाहता था।
★_ दूसरी तरफ हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह को भी यह इत्तेलात मिल गई, उन्होंने देर करना मुनासिब ना समझा और हमला कर दिया , बहुत बड़ा मोरका हुआ और आखिर नरसी को शिकस्त हुई, अबू उबैदा रहमतुल्लाह खुद वहीं ठहरे और फौज के छोटे-छोटे दस्ते चारों तरफ रवाना कर दिये ताकि भागने वाले ईरानियों का पीछा किया जा सके और उनका जहां तक हो सके सफाया किया जा सके।
★_ इस शिकस्त की खबर सुनकर रूस्तम बहुत चिराग पा हुआ, उसने बहमन को एक लश्कर देकर रवाना किया , दोनों लश्कर मरूहा के मुकाम पर आमने सामने आ गए , दोनों लश्कर के दरमियान दरिया फरात था , बहमन ने मुसलमानों को पैगाम भेजा कि तुम इस तरफ आते हो या हम आएं ? अबू उबैदा रहमतुल्लाह के सालारो ने उन्हें मशवरा दिया कि बहमन को अपने लश्कर के साथ इस तरफ आने की दावत दी जाए, मगर हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने कहां - यह तो बुजदिली होगी ! उधर बहमन के क़ासिद ने उन मुसलमानों की बातें सुन कर यह कहा - हम लोगों का भी यही ख्याल था कि अरब मर्दे मैदान नहीं है ,
★_ उसने यह बात मुसलमानों को जोश दिलाने के लिए कही थी और वाकई अबू उबैदा रहमतुल्लाह जोश में आ गए, उन्होंने फौज को तैयारी का हुक्म दे दिया, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु और बड़े-बड़े सरदार अभी भी इस क़दम के खिलाफ थे, हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबू उबैदा रहमतुल्लाह से फरमाया- अगरचे हमें यक़ीन है कि दरिया पार करने से फौज के शदीद नुक्सान होगा लेकिन चूंकि सिपह सालार इस वक्त आप है और अफसर की हुक्म उदूली हमारा तरीका नहीं इसलिए हम तैयार हैं ।
★_ कश्तियों का पुल बांधा गया और तमाम फौज उस पुल के ज़रिए दरिया पार कर गई लेकिन वहां ईरानियों ने इस्लामी फौज के लिए जगह बहुत तंग छोड़ी थी, इस्लामी फौज को सफबंदी की जगह भी ना मिल सकी, दूसरी तरफ ईरानी फौज के साथ खौफनाक हाथी भी थे और उन पर बड़े-बड़े घंटे लटकाए गए थे, जब हाथी चलते तो घंटे ज़ोर ज़ोर से बजने लगते ,
★_ मुसलमानों के अरबी घोड़ों ने ऐसे हाथी और समूर की टोपियों वाले फौजी पहले नहीं देखे थे, घोड़े उनको देखकर बिदक कर पीछे हट गए, जब अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने देखा कि हाथियों के मुकाबले में घोड़े नाकारा साबित हो रहे हैं तो घोड़े से कूद पड़े और लश्कर के अपने साथियों से कहा - जांबाजो़ ! हाथियों को दरमियान में ले लो और होदजों को सवार समेत उलट दो _,"
★_ इस एलान के साथ सब मुसलमान घोड़ों से कूद पड़े और होदजो की रस्सियां काट काट कर हाथी सवारों को नीचे गिराने लगे, इसके बावजूद हाथियों की वजह से मुसलमानों का बहुत नुकसान हो रहा था, यह सूरते हाल देखकर हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने सफेद हाथी पर हमला किया , यह सब हाथियों का सरदार था, उन्होंने हाथी की सूंड पर तलवार मारी, सूंड़ कट गई , हाथी गुस्से में आगे बढ़ा और उन्हें ज़मीन पर गिरा कर अपना पांव उनके सीने पर रख दिया और वह शहीद हो गए।
★_ उनकी शहादत के बाद उनके भाई हकम ने अलम हाथ में ले लिया और पुरजोश अंदाज में हाथी पर हमलावर हुए, उसने हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह की तरह तरह उन्हें भी पांव के नीचे कुचल दिया, इस तरह सात आदमियों ने बारी-बारी अलम हाथ में लिया और मारे गए, यह सातों खानदाने सक़ीफ से थे।
★_ आखिर हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अलम हाथ में लिया, उस वक्त तक जंग का नक्शा बदल चुका था और ईरानी मुसलमानों को दरिया की तरफ धकेल रहे थे, ऐसे में किसी ने पुल भी तोड़ दिया, मुसलमान इस क़दर बदहवास हुए कि टूटा पुल देख कर दरिया में कूद पड़े, ऐसे में हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़ौज को संभाला , पुल बंधवाया और सवारों के दस्ते के जि़म्मे लगाया कि पुल पार करते लोगों की मदद करें, खुद एक दस्ते को साथ लेकर दुश्मन के मुकाबले पर डटे रहें , इस कद़र जवां मर्दी से लड़े कि दुश्मन जो बराबर बढ़ता चला आ रहा था उसका बढ़ना रुक गया।
★_ उस वक्त तक 9 हज़ार सिपाहियों में से सिर्फ तीन हज़ार अपनी जान बचाकर दूसरे किनारे तक पहुंच सके, उन तीन हजार का बचाव भी हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु की हिकमत अमली से हुआ ।
★_ इस्लाम की तारीख में मैदान-ए-जंग से भागने की मिसालें बहुत कम मिलती हैं, इस लड़ाई में जिन मुसलमानों की पसपाई की वजह से इस्लामी लश्कर को शिकस्त हुई थी वो मारे शरम के अपने घरों में ना गये, इधर उधर जंगलों में फिरते रहते थे और रोते रहते थे, मदीना मुनव्वरा में यह खबर पहुंची तो मुसलमानों को बहुत रंज हुआ, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु बेहद गमगीन हो गए , फिर भी दूसरे को तसल्ली देते रहे लेकिन उन्हें खुद तसल्ली ना होती थी,
★_ मुसलमानों की इस शिकस्त ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु पर एक इज्तराब तारी कर दिया, आपने जोर शोर से जंग की तैयारियां शुरू कर दी, सारे अरब में पुरजोश तकरीरे करने वाले हजरात भेजे गए, उनकी तकरीरो ने जजी़रातुल अरब में आग लगा दी, हर तरफ से अरब के क़बाइल आने लगे, उधर हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने तमाम सरहदी मक़ामात की तरफ पैगाम भेजे और इस तरह एक बड़ी फौज जमा कर ली ,
★_ इस्लामी लश्कर बोयब के मुकाम पर रुका, बोयब कूफा के करीब वाके़ था, उधर मेहरान अपनी फौज के साथ रवाना हुआ, बोयब के मुका़म पर पहुंचकर मेहरान ने दरिया फरात के किनारे पड़ाव किया, सुबह होते ही उसने दरिया पार किया और मुसलमानों के लश्कर के सामने सफबंदी शुरू कर दी।
★_ हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने निहायत तरतीब से इस्लामी लश्कर की सफबंदी की, इस्लामी फौज का जंग शुरु करने का तरीका यह था कि सिपहसालार 3 मर्तबा अल्लाहु अकबर कहता था पहली तकबीर पर फौज हमला करने के लिए तैयार हो जाती थी दूसरी तकबीर पर फौज हथियार संभाल लेती थी और तीसरी तकबीर पर हमला कर दिया जाता था।
★_ हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अभी दूसरी तक़बीर भी नहीं कही थी कि ईरानियों ने हमला कर दिया, जबरदस्त जंग शुरू हुई, मुसलमानों के बड़े बड़े अफसर शहीद हुए लेकिन हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हू साबित क़दम रहे, उनकी साबित क़दमी की वजह से मुसलमानों को फतह हुई, मेहरान क़त्ल हुआ, महरान के क़त्ल की खबर ने ईरानियों के हौसले खत्म कर दिए, वह बदहवास होकर भागे, हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन अपने दस्ते के साथ पुल पर पहुंच गए ताकि ईरानी भाग ना सके, उस जगह इतने ईरानी क़त्ल हुए की लाशों का अंबार लग गया, मो'रखों ने लिखा है कि किसी लड़ाई में इतनी लाशें नहीं गिरी जितनी बोयब की लड़ाई में गिरी, मुद्दतों बाद मुसलमानों का उधर से गुज़र होगा तो उस वक्त भी वहां हड्डियों के अंबार नजर आए ।
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*"_ क़ादसिया की तरफ लश्करे इस्लाम _,*
★_ इस मोरके के बाद मुसलमान तमाम इराक में फैल गए आज जहां बगदाद है वहां उस ज़माने में बहुत बड़ा बाजार लगता था, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने वहां उस दिन हमला किया जिस दिन बाजार लगा था , सब लोग जान बचाने के लिए भागे, मुसलमानों के हाथ बेतहाशा माल आया।
★_ ईरान के दारुल हुकूमत में यह खबर पहुंची तो वहां खलबली मच गई, ईरान की मलका पुरान दुख्त को ना अहल क़रार दिया और तख्त से उतारकर यज़्दगर्द को बिठाया, यज़्दगर्द 16 साला नौजवान था, किसरा के खानदान में यही रह गया था, इस तरह यज़्दगर्द की तख्त नशीनी से ईरानी हुकूमत के पांव एक बार फिर जम गए ।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को खबर मिली तो आपने हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा - फौजों को हर तरफ से समेटकर अरब की सरहद तरफ हट आओ , रबिया और मुजिर के कबीलों को भी तलब कर लो_,"
इसके अलावा उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हर तरफ काशिद दौड़ाएं, हर तरफ से लोगों को बुलाया गया, हज का जमाना था खुद भी मक्का मुकर्रमा पहुंचे, अभी आप हज से फारिग भी नहीं हुए थे कि हर तरफ से क़बीलों के काफिले उमड़ आए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु हज करके वापस आए तो बड़ी तादाद में मुजाहिदीन मदीना मुनव्वरा में जमा हो चुके थे, आपने हुक्म दिया- लश्कर को तरतीब दिया जाए मैं खुद सिपहसालार बनकर साथ जाऊंगा_,"
★_ जब लश्कर तरतीब दिया जा चुका तो खुद मदीना मुनव्वरा से निकल आए और इराक की तरफ रवाना हो गए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के इस तरह साथ चल पड़ने से मुसलमानों में बेतहाशा जोश पैदा हो गया, मदीना मुनव्वरा से 3 मील के फासले पर लश्कर ने पड़ाव किया, उस वक्त बड़े-बड़े सहाबा ने मशवरा करके हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से अर्ज किया- ऐ अमीरुल मोमिनीन ! आप लश्कर के साथ ना जाएं, खुदा ना खास्ता आप को कुछ हो गया तो यह इस्लाम के लिए बहुत बड़ा सानहा होगा_,"
हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उनकी राय कुबूल फरमा कर हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु को लश्कर का सिपहसालार बनाया ।
★_ हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हू लश्कर को लेकर रवाना हो गए 17 या 18 मंजिलें तय करके आप सालबा पहुंचे, यहां पहुंचकर क़याम किया, सालबा कूफा से तीन मंजिल पर है, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु 8000 के लश्कर के साथ ज़िका़र के मुका़म पर ठहरे हुए थे, उन्हें हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर का इंतजार था।
★_ वह चाहते थे कि लश्कर कूफा की तरफ बढ़े तो उसके साथ शामिल हो जाएं, उन्हें पुल की लड़ाई में शहीद जख्म आए थे और जख्म अभी ठीक नहीं हुए थे और इस मुका़म पर उन जख्मों की ताब ना ला कर वफात पाई, यह इतने बड़े सालार थे कि सदियों बाद ऐसे लोग पैदा होते हैं, जिहाद में जिंदगी खत्म कर दी और आखरी दम तक ईरानियों को नाकों चने चबवाते रहे, अल्लाह उन पर रहम फरमाए उनके दर्जात बुलंद फरमाएं, आमीन ।
★_ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु अभी शराफ के मुका़म पर थे कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की तरफ से हुक्म आया - शराफ से आगे बढ़कर का़दसिया में क़याम करें और इस तरह मोर्चे बनाओ कि सामने अजम की ज़मीन हो और कमर पर अरब के पहाड़ हों ताकि फतेह हो तो जहां तक चाहो बढ़ते चले जाओ और खुदा ना खास्ता दूसरी सूरत पेश आए तो हटकर पहाड़ों की पनाह ले सको,
★_ क़ादसिया एक बहुत महफूज मुका़म था यह शादाब इलाका था इसमें नहरें और पुल भी थे, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम से पहले तिजारत वगैरा के लिए इन इलाकों से गुजरा करते थे लिहाजा इन इलाकों से खूब वाकिफ थे, इसके बाद हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हू शराफ से चले तो उजैब पहुंचे, यहां अजमियों का असलहा खाना मौजूद था, वह इस्लामी लश्कर के हाथ लगा, आखिर क़ादसिया पहुंच गए ।
★_ ईरानी लश्कर का सिपहसालार रुस्तम को मुकर्रर किया गया था, यह मदाइन से रवाना होकर साबात में ठहरा था, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को इत्तिला भेजी , वहां से जवाब आया - जंग से पहले कुछ सफीर ईरानियों की तरफ भेजे जाएं ... उन्हें इस्लाम की दावत दी जाए_,"
हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने 14 का़बिल तरीन साथियों को मुंतखब किया जिनमें आसिम बिन उमर , अमरू बिन मादी कर्ब , मूगीरा बिन शोबा, मुइन बिन हारिसा और नोमान बिन मकरन रज़ियल्लाहु अन्हुम ज्यादा मशहूर है, यह हजरात अक़्ल, तदबीर और सियासत में अपना जवाब नहीं रखते थे ।
★_ यह सफीर घोड़ों पर सवार मदाइन पहुंचे, रास्ते में जिधर से गुज़रते लोगों की भीड़ लग जाती है उनकी ज़ाहिरी सूरत यह थी कि घोड़ों पर जी़न नहीं थी हाथों में हथियार नहीं थे मगर बेबाकी और दिलेरी उनके चेहरे से टपकती थी, देखने वाले फोरन मुतास्सिर हो जाते थे, उनकी सवारी में जो घोड़े थे वह खूब सेहतमंद और चाक चोबंद थे, उनकी ज़ोरदार टापों की आवाज़ यज़्दगर्द तक पहुंची तो उसने पूछा - यह कैसी आवाज है ? उसे बताया गया इस्लामी लश्कर के सफीर आए हैं ।
★_ यह इत्तेला मिलने पर उसने अपना दरबार सजाया, खूब साज़ो सामान से उसको आरास्ता किया ताकि मुसलमान सफीरों पर उसकी धाक बैठ जाए, रास्ते के दोनों तरफ अपने जंगजू खड़े किए , उन के दरमियान से गुजरकर इस्लामी सफीरों को उस तक जाना था, यह तमाम इंतजामात करने के बाद उसने उन सफीरों को तलब किया ,
★_ इस्लामी सफीर अरबी जुब्बे पहने कंधों पर चादर डाले हाथों में कोड़े लिए दरबार में दाखिल हुए ... मुसलमानों की मुसलसल फुतूहात ने ईरानियों पर पहले ही धाक जमा दी थी, ... यज़्दगर्द ने सफीरों की यह शान देखी तो उस पर हैबत तारी हो गई ।
★_ ( यह थी किसी ज़माने में मुसलमानों की शान कि दुनिया की सुपर पावर कहलाने वाली मुमलिकतों के हुक्मरान उनसे डरते थे ... आज के मुसलमान यहूदो नसारा से डरते हैं और मुस्लिम हुक्मरान उनके आगे हाथ जोड़ते हैं , सद अफसोस )
★_ यज़्दगर्द ने उनसे पहला सवाल किया तुम इस मुल्क में क्यों आए हो ? हजरत नोमान बिन मकरन रज़ियल्लाहु अन्हु उस जमात के अमीर थे उन्होंने उन्हें पहले तो इस्लाम के बारे में बताया फिर फरमाया- हम तमाम दुनिया के सामने यह चीजें पेश करते हैं इस्लाम कबूल कर लो या जिज़या देना क़ुबूल कर लो वरना फिर तलवार हमारे और तुम्हारे दरमियान फैसला करेगी _,"
★_ उनकी बात सुनकर यज़्दगर्द ने कहा - क्या तुम्हें याद नहीं कि तमाम दुनिया में तुमसे ज्यादा कमजोर और बदबख्त कौ़म कोई नहीं थी तुम जब कभी हमसे बगावत करते थे तो हम सरहद के जमींदारों को भेज देते थे वह तुम्हें सीधा कर देते थे _,"
★_ उनकी यह बात हजरत मुगीरा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु से ज़ब्त ना हो सकी उन्होंने अपने साथियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह अरब के रईसों में से हैं अपनी बुर्दबारी और वका़र की वजह से ज्यादा बात नहीं करते थे, इन्होंने जो कहा वही मुनासिब था लेकिन कुछ बातें रह गई वह बातें मै बयान कर देता हूं , ए बादशाह ! यह सच है कि हम बदबख्त और गुमराह थे आपस में लड़ते मरते रहते थे अपनी लड़कियों को जिंदा दफन कर देते थे लेकिन अल्लाह ताला ने हममे एक पैगंबर भेजा वह हसब नसब में हम से आला था, शुरू शुरू में हमने उनकी मुखालफत की लेकिन फिर रफ्ता रफ्ता उसकी बातों ने दिलों पर असर किया _,"
"_ वो जो कहता था अल्लाह के हुक्म से कहता था और जो कुछ करता था अल्लाह के हुक्म से करता था, उसने हमें हुक्म दिया कि इस मज़हब को तमाम दुनिया के सामने पेश करो, जो इस्लाम ले आएं वह तमाम हुक़ूक़ में तुम्हारे बराबर है, जिन्हें इस्लाम से इंकार हुआ और जिज़्ये पर रज़ामंद हों वह इस्लाम की हिमायत में रहें और जिन लोगों को इन दोनों बातों से इंकार है उनके लिए तलवार है _,"
★_ यज़्दगर्द तैश में आ गया , उसने कहा - अगर कासिद का क़त्ल जायज़ होता तो तुममे से कोई जिंदा बचकर नहीं जाता _," उसने हुक्म दिया एक मिट्टी का टोकरा लाया जाए, जल्द ही मिट्टी का टोकरा लाया गया, उसने हुक्म दिया, टोकरा इनमें से किसी के सर पर रख दो _,"
वो टोकरा का हजरत आसिम बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु के सर पर रखा गया, उसने इसी हालत में उन्हें वापस लौट जाने को कहा , यह लोग वापस रवाना हुए , आखिर अपने लश्कर में पहुंच गए, हजरत साद बिन वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पहुंच कर उन्होंने कहा - फतेह मुबारक हो, दुश्मन ने अपनी ज़मीन खुद ही हमें दे दी _,"
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*★_ रुस्तम के दरबार में सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम_,*
★_ रुस्तम 60 हज़ार का लश्कर लेकर साबात से निकला और क़ादसिया के मैदान में जा पहुंचा, रुस्तम का लश्कर जहां से भी गुजरा वहां के लोगों के साथ बुरा सुलूक करता आया, यहां तक कि लोगों में यह खयाल आम हो गया कि अजम की सल्तनत के ज़वाल का वक्त करीब है ।
★_ कई माह तक दोनों लश्कर आमने सामने पड़े रहे, रुस्तम अब तक लड़ने से जी चुराता रहा था, शायद उसे अपनी शिकस्त का पहले ही अंदाजा हो गया था, उसने एक मर्तबा फिर सुलह की कोशिश की, उसने हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पैगाम भेजा - अपना कोई का़सिद मेरे पास भेजो... मैं सुलह की बात करना चाहता हूं _,"
★_ हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा, वह इस अंदाज़ में रवाना हुए कि तलवार के दस्ते पर चमड़े लपेट रखे थे और लिबास बिल्कुल सादा था कमर में रस्सी का पट्टा था तलवार उससे लटक रही थी ।
★_ उधर ईरानियों ने उन्हें अपनी शान और शौकत दिखाने के लिए खूब तैयारियों की, दरबार को खूब सजाया, दिबा का फर्श बिछाया रेशम के पर्दे लटकाए, शाही तख्त को सजाया बनाया, रास्ते के दोनों तरफ सिपाही खड़े किए, हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु उन के दरमियान में चलते दरबार तक आए , दिबा के फर्श के पास घोड़े से उतरे, उसकी बाग को गाव तकिये से लटकाया, दरबारियों ने बाहर हथियार ले लेने की कोशिश की, उन्होंने हथियार उतारने से इनकार कर दिया और कहा - तुम लोगों ने बुलाया है तो मैं आया हूं .. अगर तुम्हें इस हालत में मेरा दरबार तक जाना मंजूर नहीं तो मैं लौट जाता हूं _,"
★_ दरबारियों ने यह बात रुस्तम को बताइ, उसने इजाजत दे दी, रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु निहायत लापरवाही की हालत में आगे बढ़े, हाथ में नेज़ा था उस नेज़े को कालीन में घोंकते चले गए इस तरह वह कालीन जगह-जगह से कट गया, तख्त के नजदीक पहुंच कर उन्होंने अपना नेज़ा ज़मीन में मारा, नेजा़ जमीन में गड़ गया।
★_ अब बातचीत शुरू हुई, रुस्तम ने पूछा इस मुल्क में क्यों आए हो ? "_ हम इसलिए आए हैं कि मखलूक की इबादत के बजाय खालिक़ की इबादत की जाए _," इस पर रुस्तम ने कहा - मैं अरकाने सल्तनत से मशवरा करके जवाब दूंगा _,"
इस दौरान दरबारी बार-बार उठकर हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आने लगे उनके हथियार देखने लगे, उनमें से एक ने तंजिया अंदाज में कहा - क्या इन हथियारों से ईरान फतह करने का इरादा है ?
★_ यह सुनते ही हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तलवार म्यान से निकाली, उसकी चमक उनकी आंखों को खैराहा कर गई बिजली सी कौंध गई थी, उन्होंने कहा- अगर मेरी तलवार की कारट देखना चाहते हो तो ढाला आगे करो_,"
एक सिपाही ने ढाल आगे कर दी, हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस पर तलवार मारी , ढ़ाल दो टुकड़े हो गई,
★ हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से सुलह की बातचीत नाकाम रही , आखिर में हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु गए, हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हू घोड़े से उतर कर सीधे रुस्तम की तरफ गए , उसके जानू से जानू मिला कर बैठ गए, उनके नजदीक यह गुस्ताखी थी, चोबदारों ने उन्हें बाज़ू पकड़कर तख्त से उतार दिया, अब हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - मैं खुद नहीं आया हूं तुम ने बुलाया है मेहमान के साथ यह सुलूक ठीक नहीं_," उनके अलफाज़ सुनकर उन्हें शर्म महसूस हुई, रुस्तम भी शर्मिंदा होकर बोल उठा - यह मुलाजमीन की गलती थी मेरे हुक्म से ऐसा नहीं हुआ _,"
★_ अब रुस्तम ने बे तकल्लुफी के अंदाज में हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु के तरकश से तीर निकाले और उनको हाथों में लेकर कहा -इन तकलों से क्या होगा? हजरत मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु जवाब में बोले - आग की लौ अगरचे छोटी होती है लेकिन फिर भी आग है _,"
रुस्तम में उनकी सलवार के मियान को देख कर कहा - यह किस क़दर बोसीदा है ? जवाब में उन्होंने कहा - हां , लेकिन तलवार की धार अभी तेज़ की गई है ।
★_ अब रुस्तम ने कहा - मैं तुम्हें मशवरा देता हूं अब भी वक्त है वापस चले जाओ हम तुम्हें नहीं रोकेंगे बल्कि कुछ इनाम व इकराम देकर रुखसत करेंगे _,"
हजरत मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने तलवार के दस्ते पर हाथ रखते हुए फरमाया - हमारी बस तीन बातें हैं, इस्लाम क़ुबूल करो, या जिज़या देना मंजूर करो वरना इस तलवार से फैसला होगा _",
★_ यह सुन कर रुस्तम गुस्से में भड़क उठा, उसने चीख कर कहा - सूरज की कसम ! मैं कल सारे अरब को बर्बाद कर दूंगा _,"
इस तरह यह बातचीत भी नाकाम हो गई , रुस्तम अब तक लड़ाई को बराबर टालता रहा था लेकिन इस बातचीत के बाद इस कदर तैश में आया कि उसने उसी वक्त फौजों को तैयारी का हुक्म दे दिया, दरमियान एक नहर थी, उसने हुक्म दिया सुबह होने से पहले पहले नहर को पाट दिया जाए ताकि रास्ता साफ हो जाए _,"
★_ सुबह तक नहर को पाटा जा चुका था और लश्कर के गुज़रने के लिए सड़क बना दी गई थी, दोपहर तक तमाम फौज नहर के दूसरी तरफ जा चुकी थी, अब रुस्तम ने दोहोरी जि़रा पहनी, सर पर खोद रखा, हथियार लगाएं, फिर अपना खास घोड़ा तलब किया, उस पर सवार कर पुरजोश अंदाज में बोला - मैं सारे अरब को चकनाचूर कर दूंगा _,"
किसी सिपाही के मुंह से यह अल्फाज़ निकल गये - हां , अगर खुदा ने चाहा _,"
यह सुनकर उसने कहा- अगर खुदा ने ना चाहा तो मैं तब भी अरब को बर्बाद कर दूंगा _,"
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*"_ क़ादसिया की जंग _,"*
★_ दोनों फौजें आमने-सामने हो गई, हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हू ने क़ायदे के मुताबिक 3 नारे लगाए, चौथे नारे में जंग शुरू हो गई, देर तक दोनों तरफ से बहादुर मैदान में आते रहे मुकाबले होते रहे, बाका़यदा जंग शुरू होने से पहले ही ईरानियों के बड़े-बड़े कई सरदार मारे गए।
★_ आखिर दोनों फौजें पूरी ताकत से एक दूसरे पर हमला आवर हुई, हजरत का़'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक अनोखी तदबीर की, इस्लामी लश्कर में हाथी नहीं थे जबकि ईरानियों के पास हाथी थे, उनकी वजह से इस्लामी लश्कर के घोड़े बिदक जाते थे, और हजरत क़ा'क़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह किया कि कई कई ऊंटों को मिलाकर उन पर चादर डाल दी, चादर में लिपटे यह ऊंट जब आगे लाए गए तो हाथी से भी ज्यादा खौफनाक जानवर नजर आए, इनको देखकर ईरानियों के घोड़े बिदकने लगे, यह तदबीर भी खूब कारगर रही,
★_ हजरत खनसा रज़ियल्लाहु अन्हा अरब की मशहूर शायरा थी, वह भी इस जंग में शरीक़ थी, उनके चार बेटे थे, चारों इस्लामी लश्कर में शामिल थे और दुश्मन से लड़ रहे थे, लड़ाई शुरू होने पर इन्होंने अपने बेटों से कहा था - प्यारे बेटों, जाओ दुश्मन से लड़ो और आखिर तक लड़ो _,"
★_ चारों एक साथ आगे बढ़े और दुश्मन पर टूट पड़े, जब लड़ते-लड़ते इस क़दर दूर निकल गए कि आंखों से ओझल हो गए तो हजरत खनसा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा - ऐ अल्लाह ! मेरे बेटों की हिफाजत फरमा _,"
उस रोज जंग में 2000 मुसलमान शहीद हुए उनके मुकाबले में 10 हजार के करीब ईरानी मारे गए या जख्मी हुए, फतेह और शिकस्त का फैसला ना हो सका, सूरज गुरूब होने के साथ ही दोनों लश्कर वापस पलट गए ।
★_ हजरत अबू उबेदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने शाम से सात सौ सवार भेजे थे वह भी पहुंच गए, उनके पहुंचने पर खूब नारे गूंजे, शाम से आने वाले दस्ते के सालार हिशाम थे , उन्होंने आते ही फौज से खिताब किया - तुम्हारे भाइयों ने शाम फतह कर लिया है, ईरान की फतेह का जो वादा तुमसे अल्लाह ताला का है वह भी पूरा होगा _,"
★_ फिर जंग का आगाज़ हुआ, ईरानियों की फौज में दो हाथी बहुत बड़े और खौफनाक थे, बाक़ी हाथी उनके पीछे चलते थे, मुसलमानों के घोड़े सबसे ज्यादा इन दो हाथियों से डर रहे थे, इन सब का जायज़ा लेने के बाद हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत क़ा'का़ रज़ियल्लाहु अन्हू और उनके खास साथियों को बुलाकर कहा - हाथियों की मुहिम अब तुम्हारे हाथ में है, उनकी आंखे फोड़ दो और सूंड़ काट दो , यह बेकार हो जाएंगे _,"
★_ हजरत क़ा'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ सवार पैदल मुजाहिद हाथियों की तरफ रवाना किए, उनके बाद खुद आगे बढ़े, हाथ में नेजा़ था , उन दो बड़े हाथियों में से एक की तरफ बढ़े, आसिम रहमतुल्लाह उनके साथ साथ थे, दोनों ने एक साथ ताक कर नेज़े मारे, दोनों नेज़े हाथी की दोनों आंखों में लगे, हाथी ने एक जबरदस्त झुरझुरी ली और पीछे हटा , साथ ही तलवार इस ज़ोर से उसकी सूंड पर मारी कि सूंड कट कर गिर गई ।
★_ दूसरी तरफ उनके साथियों ने दूसरे बड़े हाथी पर हमला किया वह भी जख्मी हुआ और उल्टा भागा, अब तमाम हाथी भी उन दोनों हाथियों के पीछे भागे, इस तरह इस्लामी फौज को इस स्याह मुसीबत से निजात मिली, अब उन्हें घोड़े बिदकने की परेशानी नहीं रही थी, इस ज़ोर की जंग हुई कि नारों की गूंज से ज़मीन हिलने लगी ।
★_ दोनों लश्करों पर जोश का एक ऐसा आलम तारी हो चुका था कि सूरज गुरुब होने के बाद भी लड़ाई बंद ना हो सकी यहां तक कि रात हो गई, लड़ाई फिर भी ना रुकी, आखिर हजरत का़'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने चंद नामूर बहादुरों को साथ लिया और रुस्तम की तरफ रुख किया, रुस्तम उस वक्त अपने तख्त पर बैठा था, उसने उन्हें अपनी तरफ का रुख करते देखा तो तख्त पर बैठा ना रह सका नीचे उतरा, उसने भी अपनी तलवार सौंत ली और मर्दानावार जंग करने लगा, बहुत देर तक लड़ता रहा यहां तक कि ज़ख्मों से चूर हो गया और भाग निकला।
★_ बिलाल नामी एक सहाबी ने उसका पीछा किया, ऐसे में एक नहर सामने आ गई, रुस्तम कूद पड़ा कि तैर कर निकल जाएं, बिलाल भी घोड़े से कूद पड़े , उसे टांगों से पकड़कर नहर से निकाल लाए फिर तलवार के एक वार से उसका काम तमाम कर दिया , उन्होंने लाश खच्चर के पैरों के पास डाल दी और खुद तख्त पर चढ़कर पुकार उठे - मैंने रुस्तम को क़त्ल कर दिया है _,"
★_ ईरानियों ने तख्त की तरफ देखा, उस पर रुस्तम ना था, बस फिर क्या था पूरी फौज में भगदड़ मच गई , मुसलमानों ने दूर तक उनका पीछा किया ।
★_ हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु ने फतह की खबर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को भेजी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु खबर सुनने को बुरी तरह बेचेन थे, बेचैनी के आलम में आप रोजाना सुबह सवेरे से बाहर निकल आते और क़ासिद की राह देखते रहते, जब का़सिद के आने की उम्मीद ना रह जाती तब वापस लौटते ।
★_ इसी तरह एक दिन का़सिद के इंतजार में दूर तक नज़रे जमाए खड़े थे कि एक सवार आता नज़र आया वह ऊंट पर सवार था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उसके नजदीक आने का इंतजार ना किया खुद उसकी तरफ दौड़ पड़े, वह हजरत साद का का़सिद था सीधा मैदान-ए-जंग से चला आ रहा था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा - कहां से आ रहे हो ? वह हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को पहचानता नहीं था चुनांचे लापरवाही के आलम में बोला- का़दसिया से आ रहा हूं । हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने बेताबाना पूछा - जंग की क्या खबर है ? उसने बताया - अल्लाह ताला ने मुसलमानों को फतेह अता फरमाई ।
★__ यह कहते हुए वो आपके पास से गुजर कर आगे बढ़ गया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु उसके साथ साथ दौड़ने लगे, साथ साथ जंग के हालात पूछते जाते हैं और दौड़ते जाते थे यहां तक कि इसी हालत में क़ासिद मदीना मुनव्वरा में दाखिल हो गया , अब जो लोग सामने आ रहे थे उन्होंने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को देखकर फोरन कहा - अमीरुल मोमिनीन अस्सलामु अलैकुम... अमीरुल मोमिनीन अस्सलामु अलैकुम _,"
★_ अब क़ासिद को मालूम हुआ कि यह शख्स इतनी दूर से उसके ऊंठ के साथ-साथ भागा चला आ रहा है वह तो मुसलमानों के हुक्मरान हैं यानी दूसरे खलीफा हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु है जिनसे कैसरो किसरा थरथर कांप रहे हैं, यह मालूम होते ही वह लरज़ गया फौरन अपने ऊंट से नीचे उतर आया, परेशानी के आलम में बोला - अमीरुल मोमिनीन मुझे माफ कर दीजिए मैं आपको पहचानता नहीं था _,"
"_कोई हर्ज नहीं तुम फिक्र ना करो बस जंग के हालात सुनाते रहो और ऊंट पर सवार हो जाओ मैं इसी तरह तुम्हारे साथ साथ चलूंगा _,"
★_ चुंनाचे उसे फिर ऊंट पर सवार होने पर मजबूर कर दिया, आप उसके साथ साथ चलते रहे जंग के बारे में पूछते रहे यहां तक कि घर आ गया , अब आपने सब लोगों को जमा करके फतेह की खुशखबरी सुनाई, एक बहुत ज़बरदस्त तक़रीर मुसलमानों के सामने की, आखिर में फरमाया -
"_ मुसलमानों ! मैं बादशाह नहीं कि तुम्हें गुलाम बनाना चाहता हूं , नहीं ! मैं तो खुद अल्लाह ताला का गुलाम हूं अलबत्ता खिलाफत का बोझ मेरे सर पर रख दिया गया है, अगर मैं उसी तरह तुम्हारे काम करूं कि तुम चैन से घरों में सोओ तो यह मेरे लिए स'आदत की बात है और अगर मैं यह ख्वाहिश करूं कि तुम मेरे दरवाज़े पर हाज़िरी दो तो यह मेरे लिए बद बख्ती की बात है, मैं तुम्हें तालीम लेना चाहता हूं लेकिन बातों से नहीं, अमल से _,"
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*"_ मदाइन की फतह और सहाबा का दरिया दज़ला में घोड़े डाल देना _,*
★_ उधर ईरानी का़दसिया से भागे तो बाबुल पहुंचकर दम लिया, यह एक महफूज और बड़ा मुकाम था, यहां आकर एक बार फिर उन्होंने जंग की तैयारी शुरू कर दी, फिरोजा़न को लश्कर का सिपहसालार मुकर्रर कर लिया, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु 15 हिजरी में बाबुल की तरफ बढ़े, बाबुल में ईरानियों के बड़े-बड़े सरदार जमा थे इसके बावजूद यह लोग इस्लामी लश्कर के पहले ही हमले में भाग निकले,
★_ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु बाबुल में ठहरे अलबत्ता कुछ फौज आगे रवाना कर दी, उस फौज का सालार उन्होंने जो़हराह को मुकर्रर फरमाया, ईरानी फौज बाबुल से फरार होकर कोसी पर पहुंच गई थी, यहां ईरानियों का सालार शहरयार था जो़हराह कोसी के मुकाम पर पहुंचे और शहरयार को शिकस्त देकर आगे बढ़े।
★_ हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु मदाइन के लिए रवाना हुए, आगे बढ़े तो उनके सामने दरिया दज़ला था, इस पर जहां-जहां पुल बने हुए थे ईरानियों ने मुसलमानों की आमद की खबर पाकर सब पुलों को तोड़ दिए थे, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु जब दरिया के किनारे पहुंचे तो वहां ना कोई फुल था ना कश्ती ।
★_ आपने फौज से मुखातिब होकर कहा - बिरादराने इस्लाम ! दुश्मन ने हर तरफ से मजबूर होकर दरिया के दामन में पनाह ली है, तुम यह मुहिम भी सर कर लो, फिर मैदान साफ है _,"
यह कह कर आपने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया, उन्हें देखकर फौज ने भी हिम्मत की और सब दरिया में उतर गए, दरिया में बहुत तुगयानी थी और वह मौजे मार रहा था, मौजे घोड़ों से आकर टकराती रही और यह रकाब से रकाब मिला कर आपस में बातें करते आगे बढ़ते रहे यहां तक कि फौज की तरतीब तक में फर्क ना आया ।
★_ दूसरी तरफ ईरानी हैरतजदा अंदाज में यह मंज़र देख रहे थे, फौज जब किनारे के करीब पहुंच गई तो उन्हें ख्याल आया, ये इंसान नहीं है चुनांचे चिल्ला उठे - देव आ गए ... देव आ गए _,"
यह कहते हुए खौफजदा होकर भागे ।
★_ उनके सिपहसालार खुज़राव की फौज ने मुसलमानों पर तीरों की बारिश शुरू कर दी, मुसलमानों ने उन तीरों की कोई परवाह ना की और बराबर आगे बढ़ते रहें यहां तक कि तीरंदाजों को मलिया मेट कर दिया, यज़्दगर्द में जब यह खबर सुनी तो शहर छोड़कर निकल भागा, हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु मदाइन में दाखिल हुए तो हर तरफ सन्नाटा था ।
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*"_मदाइन की फतह _,*
★_ फौज ने वहां जुमे की नमाज अदा की इस तरह यह वहां पहला जुम्मा था जो इराक में अदा किया गया, इस्लामी लश्कर को वहां से बहुत माले गनीमत हाथ आया , नौशेरवान से लेकर मौजूदा दौर तक की तमाम कीमती चीजें लाकर हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने ढ़ेर कर दी गई,
★_ इनमें हजारों ज़िरहे, तलवारे खंजर, सोने के ताज और शाही लिबास थे , सोने का एक घोड़ा भी था उस पर चांदी की जीन कसी थी, सीने पर याकूत और ज़ुमर्द जड़े हुए थे , चांदी की एक ऊंटनी थी उस पर सोने की पालान थी, उसकी मुहार में याकूत जड़े हुए थे सवार भी सर से लेकर पर तक जवाहरात से अटा हुआ था, इन सब से भी ज्यादा अजीब एक कालीन था ईरानी उस कालीन को बहार के नाम से पुकारते थे , उस कालीन पर दरख़्त थे सब्ज़ा था फूल थे यानी पूरा बाग था और यह सब जवाहरात से तैयार किया गया था यानी सोने चांदी और मोतियों से तैयार किया गया था,
★_ यह सब का सब सामान मुजाहिदीन को मिला था लेकिन क्या मजाल कि किसी ने उस में से कोई चीज खुद उठाई हो , जो चीज जिस हालत में पाई लाकर सालार के आगे रख दी, जब यह सारा सामान लाकर सजाया गया तो दूर-दूर तक मैदान-ए-जंग जगमगा उठा, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु भी हैरतजदा रह गए,
★_ माले गनीमत का़यदे के मुताबिक तक़सीम किया गया और पांचवा हिस्सा दरबारे खिलाफत को भेज दिया गया, फर्श और क़ालीन यादगारें ज्यो त्यों भेज दी गई, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के सामने जब यह सारा सामान चुना गया तो आपको भी फौज की दयानत पर हैरत हुई ,
★_ मदीने में एक शख्स मुहालिम नामी रहता था वह बहुत लंबे क़द का था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हुक्म दिया - नौशेरवान के लिबास लाकर मुहालिम को पहनाए जाएं_,"
यह लिबास मुख्तलिफ हालात के थे सवारी का अलग दरबार का अलग जश्न का अलग मुबारक बादी का अलग,
★_ चुनांचे बारी-बारी यह सब उसे पहनाए गए, जब उसे खास लिबास पहना कर ताज सर पर रखा गया तो देखने वालों की आंखें खैरा हो गई, लोग दैर तक उसे हैरत ज़दा अंदाज़ में देखते रहे ,
का़लीन के बारे में लोगों की राय थी कि उसे ज्यों का त्यों रहने दिया जाए लेकिन फिर काटकर तक़सीम कर देने का फैसला हुआ।
★_ मदाइन के बाद सिर्फ जलूला बाक़ी रह गया था, मदाइन से भागकर ईरानी यहां जमा हो गए थे और जंग की तैयारी कर रहे थे, खरज़ाद रुस्तम का भाई उसका सालार था उसने शहर के गिर्द खंदक तैयार करा दी रास्तों और गुज़रगाहों पर गोखर्द ( लोहे की कीलें ) बिछवा दिए, हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु को यह इत्तेला मिली तो आपने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को खत लिखा, वहां से हुक्म आया - हाशिम बिन उतबा 12 हज़ार फौज लेकर इस मुहिम पर जाए_,"
★_ इस तरह हाशिम बिन उतबा 12 हज़ार फौज लेकर जलूला की तरफ बढ़े , 4 दिन बाद वहां पहुंचकर शहर का मुहासरा कर लिया, यह मुहासरा कई माह तक ज़ारी रहा, आखिर एक दिन ईरानी खूब तैयारी के साथ बाहर निकले, मुसलमानों ने भी खूब जमकर उनका मुकाबला किया, फिर अल्लाह ताला ने खास मेहरबानी फरमाई, एक ज़बरदस्त आंधी आई जिससे घुप अंधेरा हो गया , हजारों इरानी अंधेरे की वजह से खंदक में गिर गई, ईरानियों के पांव उखड़ गए वह बदहवास होकर भागे, मुसलमानों के हाथ बेतहाशा माले गनीमत आया , इसका अंदाजा 3 करोड़ लगाया गया ।
★ _ हज़रत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु न फ़तेह की ख़ुश खबरी के साथ माले गनीमत का पांचवा हिस्सा मदीना मुनव्वरा भिजवाया, यह ख़ुश ख़बरी ले कर ज़ियाद रह. ग्रे, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे जंग के हालात सुने फ़िर तमाम मुसल्मानो को जमा होने का हुकम फ़रमाया और ज़ियाद रेह. से फ़रमाया - सबके सामने तमाम वक़ियात बयान करें _, “उहोन भरे मजमे को हालात सुनाएं और इस तरह बयान किया कि पूरा मंजर लोगो को नज़र अाने लग, आप हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे - खतीब इसे कहते हैं, "
★ _ माले गनीमत का मस्जिद के सहन में ढ़ेर कर दिया गया लेकिन उस वक्त तक अंधेरा फैल चुका था चुनांचे सुबह तक़सीम करने का फैसला हुआ, सुबह के वक्त लोगों के सामने माले गनीमत से चादर हटाई गई, दिरहम व दीनार के अलावा वहां जवाहिरत के भी अम्बार लगे हुए थे, ये देख कर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बे साख़्ता रो पड़े,
★ _ लोग उनके रोने पर बहुत हैरान हुए कि यह रोने का कौनसा मौक़ा है यह तो खुशी का मौक़ा है, लोगों को हैरान देखकर आपने फरमाया - जहां माल व बदौलत आती है वहां रश्क व हसद भी साथ आता है _, "
★ _ यज़्दगर्द को जलूला में इरानियो की शिकस्त की ख़बर मिली तो वो हलवान को छोड कर रे की तरफ़ चला गया, हलवान में चंद दस्ते फौज के छोड गया, उनका सालार ख़ुसरो शानून को मुक़र्रर किया था,
अब हज़रत सअद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत क़’आक़ा’अ रज़ियल्लाहु अन्हु को हलवान की तरफ रवाना किया, ये हलवान से तीन मील के फ़ासले पर थे कि ख़ुसरो ख़ुद आगे बढ़ आया, पहले तो उसने डट कर मुकाबला किया लेकिन फ़िर शिकस्त के असार देख कर भाग निकला, इस तरह हलवान भी मुसलमानों के क़ब्ज़े में आ गया,
★_ हज़रत क़ा’आक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अमन का ऐलान क़रा दिया, इस तरह चारो तरफ़ से ईरानी उनकी खिदमत में हाज़िर होने लगे और जिज़िया क़ुबूल करन लगे, इस तरह यह लोग इस्लाम की हिमायत मे आ गए , इस मुक़ाम पर इराक़ की हद खत्म हो जाती थी, इस इलाके के फतेह के साथ ही पूरा ईरान फतेह हो गया, इस तरह हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौरे ख़िलाफ़त में ईरान के फ़ुतुहात का सिलसिला मुकम्मल हो गया,
★_ उधर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का शाम के फुतूहात का सिलसिला जारी था और दमिश्क फतेह हो चुका था, दमिश्क की फतेह ने रोमियो में आग सी लगा दी, दमिश्क की फतेह के बाद मुसलमानों ने उर्दून का रुख किया था, इसलिए रोमियो ने भी उर्दून के शहर बीसान में फौजे जमा कर ली, इस तरह वहां 40 हजार के करीब रोमी लश्कर जमा हो गया , इस लश्कर के सालार का नाम सकर था।
★_ शाम का मुल्क छह जिलों में तक़सीम था उनमें दमिश्क हिम्स उर्दून और फिलिस्तीन मशहूर जिले थे,
★_ रोमियो ने वहां जिस कदर भी नहरें थी उन सब के बंद तोड़ दिए, इस तरह वहां पानी ही पानी हो गया, कीचड़ और पानी की वजह से तमाम रास्ते रुक गए लेकिन इस्लाम का सैलाब भला उनसे कब रुक सकता था, इस्लामी लश्कर फिर भी बीसान पहुंच गया, उनकी यह मजबूती देखकर ईसाई फौज ने सुलह का पैगाम भेजा लेकिन सुलह ना हो सकी, जंग शुरु हुई तकरीबन 1 घंटे जंग जारी रही, आखिर रोमियो के पांव उखड़ गए वह बुरी तरह बदहवास होकर भागे,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने फतह की खुशखबरी मदीना मुनव्वरा भेजी और अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से मालूम करवाया कि इन लोगों के साथ क्या सलूक किया जाए , उधर से जवाब आया - रिआया को ज़िम्मी क़रार दिया जाए और ज़मीन बा दस्तूर जमींदारों के कब्जे में छोड़ दी जाए_,"
★_ इस अज़ीमुश्शान फतेह के बाद उर्दून के तमाम शहर आसानी से फतेह होते चले गए, हर मुकाम पर यह लिख कर दिया गया - फतेह किए गए लोगों की जान माल ज़मीन मकानात गिरिजे और दूसरी इबादतगाहें सब की सब महफूज़ रहेंगी सिर्फ मस्जिदों की तामीर के लिए किसी क़दर जमीन ली जाएगी _,"
यानी किसी के साथ भी कोई नागवार सुलूक नहीं किया गया जबकि रोमी और ईरानी फतेह किए गए इलाकों के लोगों पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ते रहे थे ।
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*"__हिम्स की फतह _,*
★ _ अब हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हिम्स का रुख किया, शाम के तमाम ज़िलो मेरे से यह एक बडा ज़िला था, पुराना शहर था, उरदुन का बाद अब सिर्फ तीन शेहर बाकि रह गए थे, इन तीनो के फतेह होने का मतलब था पूरा शाम फ़तेह हो गया, ये तेनो शेहर बैतुल मुक़द्दस, हिम्स और अन्ताक़िया थे, अन्ताक़िया मे ख़ुद हिरक्कल मौज़ूद था, इन तीनों में हिम्स ज़्यादा क़रीब था, इसीलिए हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने पहले इसी का रुख किया ,
★ _ हिम्स के नज़दीक रोमियो ने ख़ुद आगे बढ़ कर मुक़ाबला करना चाहा, एक बड़ी फ़ौज हिम्स से निक्ली, जोसिया के मुक़ाम पर दोनो फौज आमने सामने आ गई, हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के पहले ही हमले में उनके पांव उखड़ गए,
★ _ हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुसीरह बिन मसरूक़ को थोडी सी फौज दे कर हिम्स की तरफ़ रवाना किया , रास्ते में रोमीयो की शिकस्त खाई हुइ फ़ौज से मुक़ाबला होता रहा, उन मुकाबलों में भी मुसलमानों को फतह हुई ।
★ _ इधर हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हिम्स का रुख किया, हिम्स को घेरे में लिया गया, मोसम बहुत सर्द था, रोमियो को यक़ीन था कि मुसलमान सर्दी का मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे, हिरक्कल का पैगाम भी उन्हें पहंच चूका था कि बहूत जल्दी मदद पहंच जायगी और हिरक्कल एक बड़ा लश्कर रवाना कर चुका था, लेकिन हजरत सा’द बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस लश्कर को रोकने के लिए अपनी तरफ से इस्लामी लश्कर भेज दिया , हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक़्त इराक़ की मुहिम पर थे, उन्के लश्कर ने रोमी फ़ौज को वही रोक लिया और वो हिम्स ना पहुंच सकी ।
★_ अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू आगे बढ़े, रास्ते में जो इलाके आते गए वह आसानी से फतेह होते चले गए, यहां तक की लाज़क़िया तक पहुंच गए, लाज़किया बहुत पुराना शहर था, उसकी मजबूती को देखकर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने उससे कुछ फासले पर पड़ाव किया,
★_ यहां हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने अजीब हिकमत अमली अपनाई, आपने मैदान में खाइयां खुदवाई, यह इस तरह खोदी गई कि दुश्मन को पता ना चल सका, फिर एक दिन फौज को कूच का हुक्म दे दिया, रोमियो ने लश्कर को वापस जाते देख लिया वह समझे कि मुसलमान मायूस हो कर चले गए लेकिन हुआ सिर्फ यह था कि रात की तारीकी में इस्लामी लश्कर निहायत खामोशी से लौट आया था और उन खाइयों में छुप गया था,
★_ उधर रोमी इस लंबे मुहासरे से तंग आए हुए थे उन्होंने जब देखा कि मुसलमान जा चुके हैं तो शहर के दरवाजे खोलकर बाहर निकल आए और रोज़मर्रा के कामों में बेफिक्री से मशगूल हो गए, यही वक्त था जिसका मुसलमानों को इंतजार था, वह खाइयों से निकल आए और उन पर अचानक हमला कर दिया, इस तरह शहर फौरन फतेह हो गया,
★_ हिम्स की फतेह के बाद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने हिरक्कल के पाया तख्त का रुख करने का इरादा किया लेकिन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का हुक्म आया कि इस साल और आगे ना बढ़ो, चुनांचे रवानगी रोक दी गई, फतह किए इलाकों में बड़े बड़े अफसरों को भेज दिया गया , चुनांचे हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु दमिश्क चले गए, हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने उर्दून में क़याम किया, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू खुद हिम्स में ठहरे ।
▪•═════••════•▪
*"_ यरमूक की तैयारी _,"*
★"_ दमिश्क और हिम्स से शिकस्त खाकर यहूदी अंताकिया पहुंचे उन्होंने हिरक्कल से फरियाद की, कि अरबों ने तमाम शाम फतेह कर लिया है, हिरक्कल ने उनमें से चंद होशियार आदमियों को दरबार में तलब किया और उनसे कहा - अरब तुमसे ताक़ में और साज़ो सामान में कम है.. फिर तुम उनके के मुकाबले में क्यों नहीं ठहर सके ?
★_ उनके सर शर्म से झुक गए कोई कुछ ना बोलो आखिर एक बूढ़े ने कहा - अरबों के अखलाक़ हमारे अखलाक़ से अच्छे हैं वह रात को इबादत करते हैं दिन को रोज़े रखते हैं किसी पर जुल्म नहीं करते एक दूसरे से भाइयों की तरह मिलते है कोई खुद को दूसरे से बड़ा नहीं समझता जबकि हमारा हाल यह है कि शराब पीते हैं बदकारियां करते हैं अहद की पाबंदी नहीं करते , दूसरे पर जुल्म करते हैं, उनका यह असर है कि उनके काम में जोश पाया जाता है हम मे जोश और जज्बा नहीं है _,"
★_ इस बातचीत के बाद केशर ने रोम, कुस्तुनतुनिया, जजी़रा, आर्मीनिया, गर्ज़ हर तरफ अहकामात भेजें कि तमाम फौजे पाया तख्त अंताकिया मे एक मुकर्रर तारीख को जमा हो जाएं, उसने तमाम जिलों के अफसरों को लिखा कि जिस क़दर आदमी जहां से भी मुहैया हो सके, रवाना कर दिए जाएं, यह अहकामात के पहुंचते ही हर तरफ से इंसानों का सैलाब अंताकिया की तरफ चला पड़ा , अंताकिया के चारों तरफ जहां तक नजर जाती थी फौज ही फौज नजर आती थी,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को यह खबर मिल चुकी थी , उन्होंने सबको जमा किया और उनके सामने एक पुरजोश तकरीर की, उस तकरीर में आपने फरमाया :- "_मुसलमानों ! अल्लाह ताला ने तुम्हें बार-बार जांचा .., तुम हर बार उसकी जांच में पूरे उतरे, इसके बदले अल्लाह ताला ने भी तुम्हें कामयाबियां अता फरमाई, अब तुम्हारा दुश्मन उस साजो सामान से तुम्हारे मुकाबले में आया है कि जमीन कांप उठी है ... अब बताओ तुम क्या कहते हो ?
★_ आखिर यह मशवरा हुआ कि हिम्स को छोड़कर दमिश्क की तरफ रवाना हो जाएं वहां खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु मौजूद हैं और अरब की सर जमीन वहां से करीब है, यह बात तय हो गई तो हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने हबीब बिन मुस्लिमों को बुलाया, यह अफसर ए खजाना थे, आपने उनसे फरमाया :-
"_ हम ईसाईयों से जिया लेते रहे हैं उसके बदले में उनकी हिफाजत करते रहे लेकिन इस वक्त हमारी हालत यह है कि उनकी हिफाजत नहीं कर सकते लिहाजा इस वक्त तक उन से जितना ज़िज्या लिया है वह सब का सब उन्हें वापस कर दें और उनसे कह दे कि हमें तुमसे जो ताल्लुक था वह अब भी है लेकिन चु़की इस वक्त हम तुम्हारी हिफाज़त की जिम्मेदारी पूरी नहीं कर सकते इसलिए जिज़्या वापस करते हैं क्योंकि जिस दिया दरअसल हिफाजत करने का मुआवजा़ होता है ,
★_ जब यह लाखों की रकम वापस की गई तो ईसाइयों पर इसका इस क़दर असर हुआ कि वह रोने लगे, रोते जाते थे और कहते जाते थे खुदा तुम्हें वापस लाएं _,"
यहूदियों पर भी बहुत असर हुआ उन्होंने कहा - तौरात की क़सम, जब तक हम जिंदा हैं कैसर हिम्स पर कब्जा नहीं कर सकता _,"
और फिर उन्होंने शहर के दरवाज़े बंद कर लिए, जगह-जगह पहरे बिठा दिए, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने यह सुलूक सिर्फ हिम्स वालों ही से नहीं किया बल्कि जिस क़दर जि़ले फतेह हो चुके थे हर जगह लिख भेजा :-
"_ जिज़्ए कि जिस क़दर रकम वसूल की है सारी की सारी वापस कर दी जाए _,"*
★_ गर्ज़ इसके बाद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु दमिश्क की तरफ रवाना हुए, उन्होंने इन तमाम हालात की खबर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को भी कर दी, जब हजरत उमर रज़ि. को यह मालूम हुआ कि मुसलमान रोमियों के डर से हिम्स छोड़ कर चले आए हैं तो आपको बहुत रंज हुआ लेकिन जब उन्हें बताया गया की फौज के तमाम अफसरों का फैसला यही था तब उन्हें इत्मिनान हुआ, आपने फरमाया - अल्लाह ताला ने किसी मसलिहत के तहत ही तमाम मुसलमानों को इस राय पर जमा किया होगा _,"
★_ फिर आपने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु को लिखा - मैं मदद के लिए सईद बिन आमिर रज़ि. को भेज रहा हूं लेकिन फतेह शिकस्त फौज की ज्यादती पर नहीं है_,"
हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने दानिश के पहुंचकर तमाम अफसरों को जमा किया और उनसे मशवरा किया, अभी मशवरा हो रहा था कि हजरत अमरू बिन आस रजि. का का़शिद खत लेकर पहुंचा, खत का मजमून यह था - उर्दून के जि़लों में आम बगावत फैल गई है, रोमियो की हर तरफ से आमद ने हर तरफ हलचल मचा दी है अफरा तफरी फैल गई है, हिम्स छोड़कर चले आने से बहुत नुक़सान हुआ है ..हमारा रौब उठ गया _,"
★_ इसके जवाब में हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने लिखा - हमने हिम्स को डर कर नहीं छोड़ा बल्कि मक़सद यह था कि दुश्मन महफूज मका़म से निकल आए और इस्लामी फौजें जो जगह-जगह फैली हुई हैं वह सब एक जगह जमा हो जाएं.. और आप वहीं ठहरे, हम आ रहे हैं _,"
दूसरे दिन उन्होंने उर्दुन की हुदूद में पहुंचकर मरमूक़ के मुकाम पर क़याम किया, हजरत अमरु बिन आस रज़ि. भी उनसे यहीं आ मिले _,"
★_ यह मुका़म जंग के लिए इस वजह से मुनासिब था कि अरब की सरहद यहां से क़रीब तरीन थी, इस्लामी लश्कर को यह फायदा था कि जहां तक चाहते हट सकते थे, हजरत सईद बिन आमिर रजियल्लाहु अन्हु भी 1हज़ार का लश्कर लेकर वहां पहुंच गए _,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने एक और खत हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को लिखा, उसके अल्फाज यह थे :- "_ रोमी खुश्की और समुंदर से उबल पड़े हैं हालांकि उनके जोश का यह आलम है कि फौज जिस रास्ते से गुजरती है वहां के राहिब और पादरी भी उनके साथ शामिल होते जा रहे हैं उन लोगों ने कभी भी इबादत खानों से क़दम बाहर नहीं निकाले थे, यह सब मिलकर अपनी फौज को जोश दिला रहे हैं _,"
★_ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को यह खत मिला तो उन्होंने तमाम मुहाजिरीन और अन्सार को जमा कर लिया ,खत उन्हें पढ़कर सुनाया, तमाम सहाबा बे अख्त्यार रो पड़े और निहायत पुरजोश अंदाज में पुकार उठे, ऐ अमीरुल मोमिनीन ! हमें इजाजत दीजिए हम भी जाते हैं अपने भाइयों के साथ मिलकर दीन पर निसार होते हैं _,"
अब तो मुहाजिरीन और अंसार का जोश बेतहाशा बढ़ गया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू के नाम एक जोरदार लिखा और कासिद से फरमाया - तुम खुद एक एक सफ में जा कर यह खत सुनाना _,"
★_ क़ासिद खत लेकर पहुंचा उसने एक-एक सफ में जा कर खत सुनाया, इससे मुसलमानों का हौसला बड़ा, उन्होंने पुरजोश अंदाज में तैयारी शुरू कर दी, दूसरी तरफ रोमी लश्कर भी खूब साजो सामान से लेस हो कर आगे बढ़े , उनकी तादाद 2 लाख से कहीं ज्यादा थी, कुल फौज की 24 सफें थी , फौज के आगे मजहबी पेशवा पादरी वगैरह हाथों में सलीबे लिए जोश दिला रहे थे और फिर दोनों फौजे आमने-सामने आ गई और यरमूक का मैदान था।
★_ रोमी बारी-बारी अपने लश्कर सामने लाते रहे, उन्होंने हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु के दस्तों के मुकाबले में अलग-अलग फौजें आगे भेजी लेकिन उन सब ने बारी-बारी शिकस्त खाई ।
★_ रोमी सिपहसालार बाहान ने रात के वक्त अपने सरदारों को जमा किया है और कहा :- अरबों को शाम की दौलत का मज़ा पड़ गया है बेहतर यह है कि माल व दौलत देकर उन्हें टाला जाए _,"
इस राय से सबने इत्तेफ़ाक किया, दूसरे दिन उन्होंने एक क़ासिदद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू की तरफ भेजा, उसने आपकी खिदमत में हाज़िर होकर कहा - हमारे सिपह सालार चाहते हैं आप बातचीत के लिए किसी अफसर को भेजें _,"
★_ उस वक्त मगरिब की नमाज़ का वक्त हो चला था, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने उसे ठहराया कि नमाज़ के बाद बात करते हैं, वह उन्हें नमाज़ पढ़ते हुए हैरतज़दा अंदाज में देखता रहा, नमाज़ हो चुकी तो उसने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू से पूछा - हजरत ईसा के बारे में तुम्हारा क्या अक़ीदा है ?
जवाब में हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने सूरह निसा की आयत 171 तिलावत की :-
"_ (तर्जुमा) ऐ अहले किताब ! तुम अपने दीन में हद से ना निकलो और अल्लाह की शान में सिवाय पक्की बात के ना कहो बेशक मसीह ईशा मरियम के बेटे और अल्लाह के रसूल हैं और अल्लाह का एक कलमा हैं जिन्हें अल्लाह ने मरियम तक पहुंचाया और अल्लाह की तरफ से एक जान हैं, सो अल्लाह पर और उसके सब रसूलों पर ईमान लाओ, और यह ना कहो कि खुदा तीन है इस बात को छोड़ दो तुम्हारे लिए बेहतर होगा, बेशक अल्लाह अकेला मा'बूद है वह इससे पाक है कि उसकी औलाद हो, उसी का है जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह कारसाज़ काफी है, मसीह खुदा का बंदा बनने से हरगिज़ आर नहीं करेगा और ना मुक़र्रब फरिश्ते और जो कोई उसकी बंदगी से इनकार करेगा और तक़ब्बुर करेगा अल्लाह ता'ला उन सबको अपनी तरफ इकट्ठा करेगा _,"
★_ मुतर्जिम ने जब इस आयत का तर्जुमा क़ासिद के सामने किया तो वह बे अख्तियार पुकार कर बोला - "_बेशक ईसा अलैहिस्सलाम के यही औसाफ है और बेशक तुम्हारा पैगंबर सच्चा है_,"
यह कहकर उसने कलमा तौहीद पड़ा और मुसलमान हो गया ... साथ ही उसने कहा - "_बस अब मैं अपनी कौम के पास वापस नहीं जाऊंगा _,"
★_ इस पर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़ासिद से कहा- इस तरह रोमी कहेंगे कि मुसलमानों ने बे अहदी की, हमारे क़ासिद को रोक लिया.. लिहाजा तुम इस वक्त तो चले जाओ कल जब हमारा का़सिद वहां से आए तो तुम उसके साथ चले आना _," उसने यह बात मान ली ।
★_ दूसरे दिन हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु रोमियो के लश्कर में पहुंचे, रोमियों ने उन्हें अपनी शान शौकत दिखाने के ज़बरदस्त इंतजाम कर रखे थे, रास्ते के दोनों तरफ सवारों की सफे क़ायम की थी, वह सवार सर से पैर तक लोहे में गर्क़ थे, लेकिन हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ज़रा भी उनसे मर'ऊब ना हुए, उल्टा हिकारत भरी नजरों से उन्हें देखते हुए गुजरते चले गए, बिल्कुल ऐसा मालूम हो रहा था जैसे शेर बकरियों के रेवड़ को चरता आगे बढ़ रहा है ( गौर करो मुसलमानों कभी हमारा यह हाल था, आज हम दीन की मेहनत को छोड़कर किस हाल में पहुंच गए हैं ),
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बाहान के खेमे के पास पहुंचे तो उसने बहुत अहतराम से आपका इस्तकबाल किया और अपने बराबर बिठाया, मुतर्जिम के जरिए बातचीत शुरू हुई, पहले उसने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तारीफ की फिर कैसर के बारे में बोला - हमारा बादशाह तमाम बादशाहों का शहंशाह है..., अभी यहां तक ही कह पाया था कि हजरत खालिद बोल उठे :-
"_ तुम्हारा बादशाह जरूर ऐसा होगा लेकिन हमने जिस शख्स को अपना सरदार बना रखा है अगर उसे एक लम्हे के लिए भी बादशाहत का ख्याल आ जाए तो हम फौरन उसे माज़ूल कर दें _,"
★_ बाहान ने उनके खामोश होने पर फिर अपनी तक़रीर शुरू की :- ऐ अहले अरब ! तुम्हारी कौम के लोग हमारे मुल्क में आकर आबाद हुए हमने हमेशा उनके साथ दोस्ताना सुलूक किया हमारा ख्याल था हमारे इस सुलूक की वजह से पूरा अरब हमारा शुक्रगुजार होगा लेकिन इसके खिलाफ तुम हमारे मुल्क पर चढ़ आएं अब तुम चाहते हो कि हमें हमारे मुल्क से निकाल दो.. तुम नहीं जानते इससे पहले भी बहुत क़ौमो ने ऐसा करना चाहा लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए, अब तुम आए हो तुमसे ज्यादा जाहिल और बे साज़ो सामान क़ौम और कोई भी नहीं, इस पर तुमने यह जुर्रत की, खैर.. दर गुजर करते हैं .. अगर तुम यहां से चले जाना मंजूर कर लो तो हम इनाम के तौर पर सिपहसालार को 10 हज़ार दीनार और अफसरों को हजार हजार दीनार और आम सिपाहियों को सौ सौ दीनार देंगे _," बाहान यहां तक कह कर खामोश हो गया ,
★_ अब हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा -
"_ बेशक तुम दौलतमंद हो हुकूमत के मालिक हो, तुम ने अपने हमसाया अरबों के साथ जो सुलूक किया है वह भी हमें मालूम है लेकिन यह तुमने उन पर कोई एहसान नहीं किया था बल्कि यह तुम्हारा अपने दीन की इशाअत ( प्रचार ) का तरीका था, इसका असर यह हुआ कि वह ईसाई हो गए और वह आज खुद हमारे मुकाबले में तुम्हारे साथ हैं, यह भी दुरुस्त है कि हम निहायत मोहताज तंगदस्त और खानाबदोश थे , हमारा हाल यह था कि ताकतवर कमज़ोर को कुचल देता था, क़बाइल आपस में लड़ लड़ कर मर जाते थे, हमने बहुत से खुदा बना रखे थे, उन्हें पूजते थे, अपने हाथ से बुत तराशते थे और उसकी इबादत किया करते थे..,"
★_ .. अल्लाह ताला ने हम पर रहम फरमाया और हममें एक पैगंबर भेजा वह खुद हमारी कौ़म से थे, हम में सबसे ज्यादा शरीफ पाक बाज़ और सखी थे, उन्होंने हमें तोहीद का सबक़ दिया, हमें बताया कि अल्लाह का कोई शरीक नहीं ना उसकी कोई बीवी है ना औलाद, वह बिल्कुल यकता ( अकेला ) है, उन्होंने हमें यह भी हुक्म दिया कि हम इन अक़ाइद को दुनिया के सामने पेश करें, .. जो इनको मानले वह मुसलमान हैं हमारा भाई है, जो इंकार करे वह जिज़या देना कुबूल करें हम उसकी हिफाजत के ज़िम्मेदार हैं, जो इन दोनों बातों से इनकार करेगा उससे हम मुकाबला करेंगे _,"
★_ बाहान ने यह सुनकर सर्द आह भरी और बोला :- हम की़मत पर भी जिज़या नहीं देंगे.. हम तो जिज़या लेते हैं, देते नहीं _,"
इस तरह कोई बात तैय ना हो सकी और हजरत खालिद रजियल्लाह अन्हु वापस आ गए, चुनांचे लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी गई,
★_ हजरत खालिद रज़ियल्लाहू अन्हू के चले जाने के बाद बाहान ने सरदारों को जमा किया और उनसे बोला :- तुमने सुना यह क्या कह गए .. उनका दावा है कि जब तक तुम उनकी रिआया ना बन जाओ जंग नहीं टल सकती, क्या तुम्हें उनकी गुलामी मंज़ूर है ?
वह सब के सब पुरजोश अंदाज में बोल उठे - हम मर तो जाएंगे उनकी गुलामी कुबूल नहीं करेंगे _,"
चुनांचे जंग का फैसला कर लिया गया।
★_ दूसरी सुबह रोमी लश्कर इस क़दर साजो सामान के साथ आया कि मुसलमान हैरान रह गए, इस्लामी फौज की तादाद सिर्फ 36 हज़ार थी जबकि रोमियो की तादाद 2 लाख से ज्यादा थी, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह देखकर अपनी फौज के 36 हिस्से किए और आगे पीछे उनकी सफें क़ायम की , इस तरह उनकी 36 सफें बन गई, फौज के क़ल्ब यानी दरमियान पर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को मुकर्रर किया, दाएं हिस्से पर हजरत अमरू बिन आस और हजरत शर्जील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हु को, जबकि बाएं बाजू पर यजीद बिन अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर फरमाया, इनके अलावा हर सफ का भी एक अफसर था, इस तरह 36 अफसर मुकर्रर किये ।
★_ इस्लामी लश्कर की तादाद अगरचे दुश्मन के मुकाबले में बहुत कम थी लेकिन उनमें चुने हुए हजरात थे, इनमें 100 सहाबा वो थे जिन्होंने बदर की लड़ाई में हिस्सा लिया था, बदरी सहाबा का तो अपना मुका़म है, क़बीला हमीर की एक बड़ी जमात थी, क़बीला हमदान, खोलाना, लाहम, जुज़ाम वगैरा के मशहूर बहादुर भी शामिल थे, एक खास बात यह थी कि इस्लामी लश्कर में खवातीन भी शामिल थी जो मुजाहिदीन को मुख्तलिफ खिदमात और मरहम पट्टी वगैरा पर मामूर थी।
★_ हजरत मिक़दाद रजियल्लाहु अन्हु की आवाज बहुत दिलकश थी, वह फौज के आगे सूरह अनफाल पढ़ते जाते थे,
आखिर जंग शुरु हुई इब्तेदा रोमियो की तरफ से हुई, सहाबा ने इस मौके पर इस शिद्दत से जंग की कि रोमियों की सफे दर्हम बर्हम हो गई,
★_ हजरत इक्रमा रज़ियल्लाहु अन्हू इस्लाम लाने से पहले कुफ्फार के लशकरों में शामिल होकर मुसलमानों के खिलाफ लड़ चुके थे, यह अबू जहल के बैटे थे, इन्होंने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और पुकारे - ईसाइयों ! मैं किसी जमाने में मुसलमानों से लड़ता रहा हूं, आज तुम्हारे मुकाबले में भला किस तरह पीछे हट सकता हूं _," यह कहा और अपनी फौज की तरफ रुख करके बोले - आओ.. आज मौत पर कौन बैत करता है ? , 400 मुजाहिदीन ने मौत पर उनसे बैत की इनमें ज़रार बिन नज़्द भी थे, ये साबित क़दमी से लड़े यहां तक कि सब के सब शहीद हो गए, ये हजरात अगरचे शहीद हो गए लेकिन इन्होंने रोमियो के हजारों आदमी काट कर रख दिए थे, इस पर हजरत खालिद अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हमलों ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें उन्हें दबाते चले गए ।
★_ कबास बिन अशीम, स'ईद बिन ज़ुबैर, यजीद बिन अबी सुफियान, अमरू बिन आस, शरज़ील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हुम जम कर लड़े, कबास बिन अशीम का हाल यह था कि नेज़े और तलवारे उनके हाथों से टूट कर गिर रहे थे मगर एक कदम पीछे नहीं हट रहे थे, नेजा़ टूट कर गिरता तो कहते - कोई है जो उस शख्स को हथियार दे जिसने अल्लाह से इक़रार किया है कि मैदान-ए-जंग से हटेगा तो मर कर हटेगा _,"
लोग फौरन तलवार या नेज़ा उन्हें पकड़ा देते, वो फिर शेर की तरह दुश्मन पर झपट पड़ते,
★_ अबू अलानूर ने तो यहां तक किया कि घोड़े से कूद पड़े और अपने दस्ते से मुखातिब होते हुए बोले - सब्र और इस्तक़लाल दुनिया में इज्जत है और उक़बा (आखिरत) में रहमत.. देखना यह दौलत हाथ से जाने ना पाए_,"
इसी तरह यज़ीद बिन अबी सुफियान रजियल्लाहु अन्हु बड़ी बे जिगरी और साबित कदमी से लड़ रहे थे, यह हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई थे, ऐसे में उनके वालिद हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु उनकी तरफ निकल आए, यह मुसलमानों में जोश दिलाते फिर रहे थे, बेटे पर नजर पड़ी तो कहने लगे:- बेटा इस वक्त हर एक बहादुरी के जौहर दिखा रहा है, तू तो सिपहसालार है .. तुझे शुजाअत दिखाने का ज्यादा हक़ है, तेरी फौज का एक सिपाही भी अगर तुझसे बाजी ले गया तो यह तेरे लिए शर्म की बात होगी _,"
★_ हजरत शरज़ील रज़ियल्लाहु अन्हू का यह हाल था कि रोमियो ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था, यह उन के दरमियान पहाड़ की तरह खड़े थे, लड़ रहे थे और कुरान ए करीम की यह आयत तिलावत करते जाते थे ,
(तर्जुमा)_ अल्लाह के साथ सौदा करने वाले और अल्लाह के हमसाए बनने वाले कहां हैं ?"
फौज को साथ लेकर आगे बढ़े और रोमियों की पेश कदमी को रोक कर रख दिया,
★_ औरतों में भी इस मौके पर कमाल की बहादुरी दिखाई , वो भी रोमियों के मुकाबले पर डट गई, उनसे भी मुसलमानों को बहुत हिम्मत मिली, औरतों ने चिल्ला चिल्ला कर यह अल्फाज़ कहे - मैदान से कदम कदम हटाया तो फिर हमारा मुंह ना देखना _,"
★_ अब तक जंग बराबर की जारी थी दोनों लश्कर पूरी तरह डटे हुए थे बल्कि रोमियों का पल्ला क़दरे भारी था, ऐसे में अचानक हजरत क़ैस बिन बहीरा लश्कर के पीछे से निकल कर सामने आए, उन्हें हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौज के एक हिस्से पर अफसर मुक़र्रर कर रखा था उन्हें उसी हिस्से के लश्कर में पिछली तरफ रहने का हुक्म था, इस मौक़े पर आगे आए और इस तरह रोमियो का टूटे कि रोमी सरदार खुद को संभाल ना सके,
★_ रोमियो ने अपने कदम जमाने की पूरी कोशिश कर डाली एडी से लेकर चोटी का जोर लगा डाला मगर कैस बिन बहीरा के हमले से उनके उखड़े कदम रूक ना सके यहां तक कि उनकी सफे दरहम बरहम हो गई, उनके साथ ही हजरत स'ईद बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने लश्कर के क़ल्ब से निकलकर हमला किया, रोमी पीछे हटते चले गए, उनकी पुस्त पर एक नाला था वह पीछे हटते हटते उस नाले के किनारे तक पहुंच गए, अब जंग उस नाले के पास होने लगी, रोमियो की लाशें उसमें इस क़दर गिरने लगी कि नाला भर गया,
★_ ऐसे में खास वाक्या भी हुआ, घमासान की जंग में हबास् बिन कैश बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे इस दौरान किसी ने उनके पांव पर तलवार का वार किया उनका पांव कट कर अलग हो गया उन्हें पता तक नहीं चला कि पांव कट कर जिस्म से अलग हो गया, कुछ देर बाद जब पता चला तो मैदान-ए-जंग में तलाश करने लगे कि मेरा पांव कहां है, उनके क़बीले के लोग इस वाक्य़ पर फख्र किया करते थे,
★_ कैस बिन बहीरा के हमले के बाद रोमियो के जो पांव उखड़े तो फिर जम ना सके, भागते चले गए, रही सही कसर नाले ने पूरी कर दी, मो'रखीन ने लिखा है कि एक लाख के क़रीब रोमी मारे गए और मुसलमान तीन हजार के क़रीब शहीद हुए,
रोमियो का बादशाह कैसर उस वक्त अंताकिया में था , उसे अपने लश्कर की शिकस्त की खबर वहीं मिली, उसने उसी वक्त वहां से चलने की ठानी और चलते वक्त यह अल्फाज़ कहे - अलविदा ए शाम ।
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★_ बैतुल मुकद्दस की फतह _,*
★_ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को यह पैगाम मिला तो आपने बड़े-बड़े सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को जमा फरमा लिया, उनसे मशवरा किया कि इस सिलसिले में क्या करना चाहिए । हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने मशवरा दिया - "_ उन्होंने बुलाया है तो आपको जाना चाहिए_,"
आखिर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के मशवरे को पसंद फरमाया और सफर के लिए तैयार हो गए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना नायब मुकर्रर किया,
★_ आप रज्जब 16 हिजरी में मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए और इस अंदाज से रवाना हुए कि ना तो कोई फौजी दस्ता साथ लिया ना बॉडीगार्ड, ना खिदमत गुज़ार की फौज साथ ली, ना किसी और क़िस्म का साज़ो सामान साथ लिया, यहां तक कि खेमा भी साथ ना लिया , सवारी के लिए ऊंट था और सिर्फ चंद मुहाजिरीन और अन्सार साथ थे ,
★_ आपने फौज के सालारो को पैगाम भेजा कि जाबिया के मुकाम पर उनसे आ मिले, चुनांचे हजरत यजीद बिन अबी सुफियान और हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसी मुकाम पर आपका इस्तकबाल किया, आप शहर के करीब पहुंचे तो एक ऊंचे टीले पर खड़े होकर चारों तरफ नज़र दौड़ाई, दुश्मन के बुलंद व बाला दिलकश मकानात आपके सामने थे ।
★_ जाबिया में कुछ दिन क़याम फरमाया, ईसाइयों को आप की आमद की खबर मिल चुकी थी, चुनांचे वह भी इसी मुकाम पर पहुंच गए, यह लोग शहर के र'ईसो में थे, जब यह लोग पहुंचे तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फौज के हल्के में बैठे थे, मुसलमानों ने उनको आते देखा तो ख्याल किया यह लोग हमले की नियत से आगे बढ़ते चले आ रहे हैं, चुनांचे उन्होंने फौरन हथियार संभाल लिये,
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने पूछा - क्या बात है तुमने हथियार क्यों संभाल लिये ? उन्होंने आने वालों की तरफ इशारा किया उनके कंधों पर तलवार लटक रही थी, इनकी तरफ देखकर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - घबराओ नहीं .. यह लोग तो ईमान तलब करने के लिए आ रहे हैं _,"
★_ इस तरह ईसाइयों और मुसलमानों के दरमियान मुआहिदा हुआ, उस पर दस्तखत किए गए, मुआहिदा हो चुका तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फिलिस्तीन में दाखिल होने के इरादे से उठे, उनके लिए एक उम्दा तर नस्ल का घोड़ा लाया गया आप उस पर सवार होने लगे तो वह शोखी दिखाने लगा, आप उस पर भी सवार ना हुए और पैदल बैतूल मुकद्दस की तरफ रवाना हो गए,
★_ बैतुल मुक़द्दस नजदीक आया तो हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू और दूसरे सालार इस्तक़लाल के लिए आए, उस वक्त हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का लिबास बहुत मामूली था, इस लिबास को देखकर इन हजरात में सोचा, आपका लिबास क़ीमती होना चाहिए ताकि बेतुल मुकद्दस के लोगों पर असर पड़े, चुनांचे तुर्की घोड़े के साथ एक कीमती पोशाक भी पेश की, उसको देखकर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - अल्लाह ने हमें जो इज्जत दी है वह इस्लाम की इज्जत है .. और हमारे लिए यही काफी है_,"
★_ गर्ज़ उसी हालत में बेतुल मुकद्दस में दाखिल हुए, सबसे पहले मस्जिद में गये, मेहराब के पास जाकर सुरह स्वाद की आयते सजदा पड़ी और कसजदि किया, फिर ईसाइयों के गिरजे में गये, इधर-उधर घूम कर उसको देखा ,
*"हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की शिकायत और अज़ान _,*
★_ बेतुल मुकद्दस में आपने कई दिन तक क़याम किया, ज़रूरत के अहकामात जारी किये, उस दिन हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने आकर यह शिकायत की :- ऐ अमीरुल मोमिनीन ! हमारे अफसर परिंदों का गोस्त और मैदे की रोटी खाते हैं,.. लेकिन आम मुसलमानों को मामूली खाना भी नसीब नहीं होता _,"
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अफसरों की तरफ देखा, उन्होंने कहा - अमीरूल मोमिनीन ! इस मुल्क में तमाम चीजें मिल सकती है... जितनी कीमत में हिजाज़ में रोटी और खजूर मिलती है यहां उसी कीमत में परिंदे का गोस्त और मैदा मिलता है,
यह सुन कर आपने हुक्म फरमाया - माले गनीमत और तंख्वाह के अलावा हर सिपाही का खाना भी मुकर्रर किया जाए_,"
★_ एक दिन नमाज के वक्त हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु से दरखास्त की, ए बिलाल ! आज आप अज़ान दें _,"
हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - मैं अज़्म कर चुका हूं कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के बाद किसी के लिए अज़ान नहीं दूंगा, फिर भी आपकी फरमाइश को टाल नहीं सकता, आज अज़ान दे देता हूं _,"
★_ जब उन्होंने अजान शुरू की तो तमाम सहाबा को हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का ज़माना मुबारक याद आ गया, सब पर गम तारी हो गया , हजरत अबू उबैदा और हजरत मा'ज़ बिन ज़बल रज़ियल्लाहु अन्हुम तो रोते-रोते बेताब हो गए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की भी हिचकियां बंद गई, देर तक यह असर बाक़ी रहा,
★_ इसी तरह का वाकिया एक बार मदीना मुनव्वरा में पेश आया जब हजराते हसनैन रज़ियल्लाहु अन्हुम की दरख्वास्त पर आपने अज़ान दी,
★_ एक दिन मस्जिदे अक्सा गए, वहां का'ब बिन अहबार रहमतुल्लाह को बुलाया और उनसे पूछा नमाज कहां पड़ी जाए ? यह पहले यहूदी थे, इस बुनियाद पर उनसे पूछा क्योंकि उन्हें मस्जिद ए अक्सा के बारे में ज्यादा मालूम था, उन्होंने अर्ज किया - सकराह के पास पढ़ें_," मस्जिदे अक्सा में भी हजरे अस्वद की तरह एक पत्थर है यह पत्थर अंबिया अलैहिस्सलाम की यादगार है, इस पत्थर को सकराह कहते हैं।
★_ इस्लामी फुतूहात का दायरा रोज़ बा रोज़ बढ़ता ही जा रहा था, इसलिए हमसाया सल्तनतों को खौफ महसूस हुआ कि अब हमारी बारी भी आएगी, चुंनाचे जजी़रा के लोगों में कैसर को लिखा - नए सिरे से हिम्मत करें हम साथ देने को तैयार हैं _,"
उनका पैगाम सुनकर कैसर ने एक बड़ी फौज हिम्स की तरफ रवाना की, जजी़रा वाले 30 हज़ार की फौज के साथ हिम्स की तरफ बढ़े, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने भी उनके मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को तमाम हालात की इत्तेला दी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने आठ बड़े-बड़े शहरों में फौजी छावनियां क़ायम कर रखी थी, हर मुका़म पर चार चार हजार घोड़े हर वक्त तैयार रहते थे ताकि कोई फौरी जरूरत पेश आ जाए तो हर जगह फौजी रवाना होकर मौके पर पहुंच सके, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू का खत मिलते ही आपने हर तरफ घोड़े दौड़ा दिए ।
★_ हजरत क़ाअक़ा रज़ियल्लाहु अन्हू लश्कर की मदद के लिए कूफा से 4 हज़ार का लश्कर लेकर रवाना हुए, वह अभी रास्ते में थे की जंग छिड़ने की खबर सुनी, लिहाज़ा फौरन लश्कर से अलग होकर सौ घुड़सवारों के साथ आगे बढ़े और इस्लामी लश्कर तक पहुंच गए और मैदान ए जंग में कूद पड़े
★_ मुसलमानों के पहले ही हमले में अरब के क़बाइल पसपा हो गए जैसा कि उन्होंने पहले ही तय कर लिया था, बस उनके बसपा होते ही ईसाइयों के भी छक्के छूट गए, उसके बाद तो बस वह बहुत थोड़ी देर मैदान में ठहर सके फिर बदहवास होकर भागे, यह शाम के ईसाईयों के साथ सहाबा किराम की आखिरी जंग थी , इसके बाद ईसाइयों को मज़ीद लड़ने की हिम्मत ना हुई ।
★_ इन फुतूहात के दौरान एक खास वाकया़ पेश आया था कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को सिपह सालारी से हटा दिया था और हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को सिपहसालारी सौंप दी थी, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु फिर भी एक अफसर की हैसियत से इस्लामी लश्कर में शामिल रहे थे,
★_ यह बात नहीं कि उन्हें बिल्कुल ही इस्लामी लश्कर से अलग कर दिया था जैसा कि बाज़ लोग बयान करते हैं , इस सिलसिले में बाज़ मोरखीन ने यह भी लिखा है कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने खलीफा बनते ही पहला हुक्म हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को माज़ूली का दिया था, जबकि यह बात बिल्कुल गलत है। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु 13 हिजरी में खलीफा बने थे जबकि हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को 17 हिजरी में सिपहसालारी से हटाया गया, अगरचे उनकी एक तजुर्बा कार अफसर की हैसियत बाक़ी रही थी,
★_ इस बारे में बहुत सी मुख्तलिफ रिवायात तारीखी किताबों में दर्ज हैं, इस सिलसिले में खुद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के अल्फाज आप पढ़ ले , हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु जंगों से फारिग होने के बाद जब मदीना मुनव्वरा आए तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें देखकर फरमाया - खालिद ! अल्लाह की कसम तुम मुझे महबूब हो, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं _,"
★_ इसके बाद आप ने तमाम गवर्नरों को यह पैगाम इरसाल फरमाया :- मैंने खालिद को किसी नाराज़गी या खयानत की बिना पर माज़ूल नहीं किया बल्कि इसकी वजह यह है कि मैं देखता था लोग इस ख्याल पर पुख्ता होते जा रहे हैं कि मुसलमानों को फतह खालिद की सिपहसालारी की वजह से हो रही है जबकि ऐसा नहीं है, फुतूहात तो हमें अल्लाह ता'ला आता कर रहे हैं, बस में लोगों को बताना चाहता था कि जो कुछ करता है अल्लाह करता है _,"
मालूम हुआ कि असल बात यह थी, लिहाजा हमें इख्तिलाफी रिवायता पढ़कर सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम की तरफ से दिल में किसी बदगुमानी को जगह नहीं देना चाहिए,
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: *"_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू की वफात _,"*
★_ 18 हिजरी में शाम मिश्र और इराक में ताऊन की वबा फैली, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को जब इस वबा के फैलने और बड़ी तादाद में लोगों के हलाक होने की खबर मिली तो इंतजामात के लिए खुद रवाना हुए, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया - बीमारी का ज़ोर बढ़ता ही जा रहा है_," इस पर आपने मुहाजिरीन और अंसार को बुलाया और उनसे मशवरा किया, लोगों ने मुख्तलिफ मशवरे दिए, एक साहब ने कहा - आपका यहां ठहरना मुनासिब नहीं , हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया - हम कल यहां से रवाना होंगे _,"
★_ उनकी यह बात सुनकर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने कहा - ऐ उमर ! अल्लाह की तकदीर से भागते हो _,"
जवाब में हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - हां , तकदीर ए इलाही से भागता हूं ... मगर भागता भी तो तकदीर ए इलाही की तरफ हूं _,"
इसके बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा चले आए और हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को खत लिखा - "_ मुझे आपसे कुछ काम है, आप कुछ दिन के लिए मदीना मुनव्वरा चले आएं _,"
★_हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू समझ गए कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु उन्हें इस वबा के खौफ से मदीना मुनव्वरा में बुला रहे हैं, चुनांचे जवाब में लिख भेजा :- "_मैं मुसलमानों को यहां छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिए यहां से नहीं आऊंगा _,"
हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु यह खत पढ़ कर रो पड़े और फिर उन्हें लिखा :- "_ इस वक्त फौज जहां मौजूद है वह जगह नशीब में है और मरतूब है, आप लश्कर को लेकर और जगह चले जाएं _,"
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने हुक्म की तामील की और जाबिया में चले गए, वहां पहुंचकर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू इस बीमारी की जद में आ गए, आपने लोगों को जमा किया, उन्हें नसीहतें फरमाई, आपने हजरत मा'ज़ बिन ज़बल रज़ियल्लाहु अन्हु को अपनी जगह सिपहसालार मुकर्रर फरमाया, उस वक्त नमाज का वक्त हो चुका था, चुनांचे उनसे कहा - आप नमाज पढ़ाएं, हजरत मा'ज़ बिन ज़बल रज़ियल्लाहु अन्हु ने नमाज पढ़ाई, ... इधर सलाम फैरा , उधर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू इंतकाल कर गए, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजीऊन _,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहू अन्हू का नाम आमिर बिन अब्दुल्लाह बिन जर्राह था, आप अशरा मुबश्शरा में से हैं यानी यह उन 10 सहाबा किराम में शामिल हैं जिन्हें दुनिया में जन्नती होने की बशारत मिली, इस्लाम लाने में आपका नवा नंबर है यानी इस्लाम लाने में भी सबसे पहलों में शामिल है, आप हबशा की तरफ हिजरत करने वालों में भी शामिल थे, फिर मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत की ।
★_ तमाम गज़वात में नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ रहे, आपके वालिद ईमान नहीं लाए थे आपने गज़वा बदर में उनसे भी जंग की, इस पर अल्लाह ताला की तरफ से सूरह अल मुजादिला कि यह आयत नाज़िल हुई :-
(तर्जुमा )_ अल्लाह और कयामत पर इमान रखने वालों को तुम कभी नहीं देखोगे कि वह खुदा और रसूल के दुश्मनों से मोहब्बत रखते हैं अगरचे उनके मां-बाप हो या औलाद या भाई या रिश्तेदार हों _,"
★_ गज़वा उहद में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पेशानी मुबारक में खोद की दो कड़ियां गड़ गई थी तो हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने उन कड़ियों को अपने दांतों से पकड़कर खींचा था और इस कोशिश में आपके सामने के 2 दांत निकल गए थे, वफात के वक्त आपकी उम्र 58 साल थी , अल्लाह उन पर करोड़ों रहमते नाजि़ल करें, आमीन ।
★_ आपके बारे में नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- "_ हर उम्मत का एक अमीन होता है इस उम्मत के अमीन अबू उबैदा बिन जर्राह है _," *( बुखारी, मुस्लिम व मिश्कात )*
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*★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के इंतजामात _,"*
★_ हजरत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के गुलाम यरफा के अलावा उनके साथ कुछ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम थे, एक मुक़ाम ईला के करीब पहुंचे तो अपनी सवारी से उतर गए, उस पर गुलाम को बिठा दिया, खुद ऊंट पर सवार हो गए, रास्ते में कोई पूंछता - अमीरुल मोमिनीन कहां है ? , तो जवाब में फरमाते - तुम्हारे आगे है _,"
★_ इस तरह ईला में दाखिल हुए, यहां 2 दिन ठहरे, आपका कुर्ता सफर के दौरान सवारी के कजावे से रगड़ खा खाकर फट गया था, उसे मरम्मत के लिए ईला के पादरी को दिया, उसने अपने हाथ से पेवंद लगा दिया साथ में एक नया कुर्ता आपको पेश किया, आपने अपना कुर्ता पहना और फरमाया - इसमें पसीना खूब जज्ब़ होता है _,"
★_ आप ईला से दमिश्क आए, उसके जि़लों में 2- 2, 4- 4 दिन कया़म फरमाते रहे, मुनासिब इंतजामात फरमाते रहे, जो लोग वबा से हलाक हो गए थे उनके वारिसों को बुलाकर उनकी जायदाद वगैरह उनके हवाले की, वबा की वजह से जो जगह खाली हो गई थी उन जगहों पर नए आदमी मुकर्रर किए,
★_ उस साल सख्त क़हत पड़ा, आपने कह़त के दिनों में इस कदर जबरदस्त इंतजामात किए कि लाखों लोगों को भूख से बचा लिया गया, इसी साल आपने मुहाजिर, अंसार और दूसरे क़बाइल की तनख्वाहे मुकर्रर की ,
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*खोज़िस्तान का मोरका _,*
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू की वफात के बाद आपने इस्लामी लश्कर की जिम्मेदारी हजरत यजीद बिन अबी सुफियान रजियल्लाहु अन्हु को सौंपी, उन्हें क़ैसार की मुहिम पर रवाना किया यह शहर फिलिस्तीन के जिलों में शुमार था और उस जमाने में बड़ा शहर था उसमें तीन सौ बाजार थे।
★_ यहां पहुंचकर यजीद बिन अबी सुफियान रजियल्लाहु अन्हु बीमार हो गए, उन्होंने लश्कर पर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर फरमाया, हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने साज़ो सामान के साथ क़ैसार का मुहासरा किया, शहर के लोग शहर से निकलकर हमला करते रहे, जब उन्हें शिकस्त होने लगती तो फौरन शहर में चले जाते और दरवाज़े बंद कर लेते, इस तरह शहर फतेह होने का नाम नहीं ले रहा था।
★_ एक दिन एक यहूदी हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु के पास आया उसका नाम युसूफ था उसने एक सुरंग के बारे में बताया वह शहर के अंदर तक जाती थी, हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने चंद बहादुरों को उस सुरंग के जरिए किले के अंदर जाने का हुक्म दिया, उन्होंने अंदर पहुंचकर दरवाजा खोल दिया, दरवाजा खुलते ही इस्लामी फ़ौज अंदर दाखिल हो गई और फतेह हुई,
★_ फुतुहात का सिलसिला यहां तक पहुंचा था कि २१ हिजरी में असफहान, २३ हिजरी में फारस करमान, सयसतान, खुरासान फतेह हुए और 26 जि़लहिज्जा 23 हिजरी को हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु पर का़तिलाना हमला हुआ , इसकी तफसील यह है,
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*★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की शहादत _,*
★_ मदीना मुनव्वरा में फिरोज़ नामी एक पारसी गुलाम था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में ही नेहावंद फतेह हुआ तो यह क़ैदियों में शामिल था और दूसरे कैदियों के साथ मदीना मुनव्वरा भेजा गया था, एक रोज़ यह शख्स अमीरुल मोमिनीन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुआ, उसने आपसे अर्ज किया - मेरे आका़ मुगीरा बिन शोबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने मुझ पर बहुत भारी महसूल मुकर्रर कर रखा है, आप कम करवा दीजिए_,"
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा - अच्छा तुम्हें कितना महसूल देना पड़ता है ? उसने बताया - मुझे रोजाना 2 दिरहम (43 पैसे) देना पढ़ते हैं, आपने उससे पूछा - तुम क्या काम करते हो ? उसने कहा - मैं नक्का़शी और आईन गिरी का काम करता हूं हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह सुनकर इरशाद फरमाया - इस काम के मुक़ाबले में तो यह रक़म ज़्यादा नहीं है _,"
★_ फीरोज़ आपका जवाब सुनकर नाराज़ हो गया, ऐसे में हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उससे फरमाया - तुम मेरे लिए भी एक चक्की बना दो , जवाब में उसने कहा - आपके लिए तो मैं ऐसी चक्की बनाउंगा कि आप याद करेंगे _,'
यह कह कर वह चला गया... आपने आसपास मौजूद लोगों से फरमाया - यह शख्स मुझे क़त्ल की धमकी देकर गया है।
★_ दूसरे दिन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु सुबह की नमाज के लिए निकले, फिरोज़ उनसे पहले ही मस्जिद में आ चुका था उसके पास एक खंजर था, वह उसने अपनी आस्तीन में छिपा रखा था मस्जिद के एक कोने में दुबका हुआ था, ऐसे में हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु इमामत कराने के लिए आगे आए, उस वक्त तक सफें दुरुस्त हो चुकी थी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने सफें दुरुस्त कराने के लिए कुछ लोग मुकर्रर कर रखे थे,
★_ जोंही आपने नमाज शुरु की फिरोज़ अचानक घात से निकला और आप पर खंजर के 6 वार किए, उनमें से एक बार नाफ के नीचे लगा, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फौरन हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़कर उन्हें अपनी जगह खड़ा कर दिया और खुद गिर पड़े।
★_ हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस हालत में नमाज पढ़ाई की हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु पास ही में पड़े तड़प रहे थे, फिरोज़ वार करके भागा कुछ लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसने उन पर भी वार किए कुछ लोग जख्मी हुए, फिरोज़ ने जब देखा कि उसे घेर लिया गया है उसने वही खंजर अपने पेट में घोंप कर खुदकुशी कर ली ।
★_ लोग हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को उठाकर घर लाए, उस वक्त तक उनका ख्याल था कि जख्म मामूली है, चुनांचे तबीब को बुलाया गया उसने शहद और दूध मंगवाया, आपको पिलाया गया तो दोनों चीजें जख्मों के रास्ते बाहर निकल आईं, उस वक्त लोगों को अहसास हुआ कि आप बच नहीं पाएंगे।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने होश में आने के बाद पूछा - मेरा कातिल कौन है ? लोगों ने बताया- फिरोज़ पारसी , आपने कहा - अल्लाह का शुक्र है, मैं किसी मुसलमान के हाथों नहीं मारा गया _,"
★_ अब आप ने अपने बेटे हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उनसे कहा - आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के पास जाओ उनसे कहो उमर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास दफन होने की इजाज़त चाहता है _,
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु सैयदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आए तो वह बुरी तरह रो रही थी , उन्होंने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का पैगाम पहुंचाया, आपने फरमाया - इस जगह को मैं अपने लिए महफूज़ रखना चाहती थी लेकिन आज मैं उमर को अपने आप पर तरजीह देती हूं _,"
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के जमाने में शाम इराक जज़ीरा, खोजिस्तान अजम और आरमीना आजरहाई जान, फारस करमान , खुरासान और मकरान होते हुए, बलूचिस्तान का कुछ हिस्सा भी फतेह हुआ।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि जो उनकी राय होती थी अक्सर वही बात पेश आ जाती थी, यहां तक कि उनकी बहुत सी राय मज़हब के अहकाम बन गई, कई मौकों पर खुद अल्लाह ताला ने उनकी राय की ताईद फरमाई।
*"_हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की शहादत _,*
★"_ नमाज के ऐलान के लिए जब एक तरीका तय करने का मसला सामने आया तो लोगों ने मुख्तलिफ मशवरे दिए, किसी ने कहा नाक़ूस बजा लिया जाए किसी ने नकारा बजाने की राय दी किसी ने आग जलाने की बात कही, लेकिन उस वक्त हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने यह राय दी - क्यों ना एक आदमी मुकर्रर किया जाए जो नमाज की मुनादी किया करें ?
आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि अज़ान दें, चुंनाचे यह पहला दिन था जब अज़ान का तरीका शुरू हुआ और दर हकीकत अज़ान से बेहतर कोई और तरीक़ा हो ही नहीं सकता था।
★_ बदर के कैदियों का मामला पेश आया तो जो राय हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने दी, वही भी उसी के मुताबिक नाजिल हुई,
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की अज़वाज मुताहरात पहले शर'ई पर्दा नहीं करती थी क्योंकि पर्दे का हुक्म नाज़िल नहीं हुआ था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को बार-बार इस बात का ख्याल आया, आखिर उन्होंने अर्ज़ कर ही दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल पर्दा करवाया करें, दूसरी तरफ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस बारे में वही का इंतजार था, आखिर पर्दे की आयत नाजि़ल हुई और तमाम मुसलमानों औरतों पर पर्दा फर्ज हो गया,
★_ अब्दुल्लाह बिन उब'ई मुनाफ़िक़ों का सरदार था , जब वह मरा तो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से उसकी नमाज़ जनाजा पढ़ने की दरख्वास्त की गई, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने भी चाहा की नमाजे जनाजा पढ़ा दे, लेकिन उस मौके पर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने रोका, मगर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसकी नमाज़ जनाजा पढ़ा दी, उस वक्त अल्लाह ताला की तरफ से आयत नाजि़ल हुई उसमें मुनाफ़िक़ों की नमाजे जनाजा पढ़ने से रोक दिया गया,
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु एक रोज़ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए और उन्होंने यह राय दी - ऐ अमीरुल मोमिनीन मेरी राय है कि कुरान को एक जगह जमा कर दिया जाए _," हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु ने फरमाया - मैं वह काम किस तरह कर सकता हूं जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने नहीं किया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने कई बार हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से यही कहा, आखिर अल्लाह ताला की तरफ से हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दिल में यह बात डाली कि हजरत उमर की राय दुरुस्त है, तब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया - कुरान को एक जगह जमा करो _,"
★_ इस क़िस्म के कई और भी वाक्यात पेश आए जब हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की राय ही दुरुस्त साबित हुई, आप आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ताल्लुक का बहुत लिहाज़ रखते थे, जब सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के वजी़फे मुकर्रर करने का इरादा फरमाया तो हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु का मशवरा यह था कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का वजी़फा सबसे पहले मुकर्रर किया जाए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - नहीं सबसे पहले आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुताल्लिकीन के मुकर्रर किए जाएंगे _,"
★_ चुनांचे सबसे पहले बनू हाशिम से शुरू किए गए उनमें भी हजरत अली और हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हुम से इब्तदा की गई, बनू हाशिम के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से निस्बत में करीब तरतीब से सबके नाम लिखे गए, तंख्वाहों में भी इसी तरह का लिहाज़ रखा गया, सबसे ज्यादा तनख़ाहे असहाबे बदर की थी।
★_ हजरत हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम अगरचे बदर में शामिल नहीं थे यह बदर की लड़ाई के वक्त बहुत छोटे थे लेकिन उनकी तनख़ाहें उसी हिसाब से मुकर्रर की और यह सबसे ज्यादा मिक़दार थी, ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु की तनख्वाह अपने बेटे अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु से ज्यादा मुकर्रर की, इस पर हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु ने एतराज़ किया और कहा - आपने मेरी तनख्वाह ओसामा बिन ज़ैद से कम मुकर्रर की है....?
जवाब में आपने फरमाया - रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ओसामा को तुझसे और ओसामा के बाप को तेरे बाप से ज्यादा अज़ीज़ रखते थे _,"
★_ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के मशवरे के बगैर खिलाफत का काम अंजाम नहीं देते थे, हजरत अली भी निहायत दोस्ताना अंदाज में पूरे खुलूस से मशवरा देते थे, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को जब बेतुल मुकद्दस जाना पड़ा तो आपने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना क़ायम मुका़म मुकर्रर कर गए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का हद दर्जे पास और लिहाज़ रखते थे, यहां तक कि आपने अपनी प्यारी बेटी हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा को हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के निकाह में दे दिया, यह उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी थी।
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*"_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत का हाल _,*
★_ अपनी पूरी खिलाफत के दौरान उनका हाल एक तरफ तो कुछ इस तरह था कि रोम और शाम की तरफ फौजें भेज रहे हैं, कैसर व किसरा के सफीरों से बातचीत कर रहे हैं, इस्लामी लश्कर के सिपहसालारों से पूछ कुछ कर रहे हैं, गवर्नरों के नाम अहकामात लिख रहे हैं ...,
★_ दूसरी तरफ हाल यह था कि बदन पर जो लिबास है उसमें 12 पेबंद लगे हुए हैं, सेहरा की रेत पर कोड़े का तकिया बनाएं सो रहे हैं और पसीना रेट पर बह रहा है, सर पर फटा हुआ अमामा है, पांव में फटी हुई जूतियां है और कांधे पर पानी की मसक उठाए जा रहे हैं कि बेवा औरतों के घरों का पानी भरना है ..,
★_ रातों को शहर का गश्त लगाया जा रहा है, किसी बद्दू की बीवी के यहां बच्चा पैदा होने वाला है तो अपनी जोज़ा मोहतरमा को उसके घर पहुंचाने जा रहे हैं, रात को किसी बेवा के बच्चे भूख से रोते सुनाई दे गए तो घर से खाने पीने की चीजें बोरी में डालकर अपनी कमर पर लाद कर उसके घर पहुंचाने जा रहे हैं.. खादिम खुद उठाने की कोशिश करता है तो उसे नहीं उठाने देते,
★_ खिलाफत के काम करते करते थक गए तो मस्जिद के फर्श पर लेट गए, मदीना मुनव्वरा से मक्का मदीना का सफर करना पड़ गया तो कोई खैमा या सामियाना साथ नहीं ले जा रहे, किसी दरख़्त के नीचे चादर बिछाई और लेट गए , तबक़ात इब्ने साद की रिवायत के मुताबिक रोजाना का खर्च 2 दिरहम था ।
★_ अहनाफ बिन क़ैस और अरब के र'ईसों ने एक बार आपसे मुलाकात का प्रोग्राम तय किया, वहां गए तो देखा आस्तीन चढ़ा रखी है और इधर उधर दौड़ रहे हैं, अहनफ बिन क़ैस पर नज़र पड़ी तो बोले :- आओ .. तुम भी मेरी मदद करो , बेतुलमाल का एक ऊंट भाग गया है और तुम जानते ही हो एक ऊंट में कितने गरीबों का हिस्सा होता है _,"
ऐसे में एक शख्स ने कह दिया - "_अमीरुल मोमिनीन आप क्यों तकलीफ करते हैं किसी गुलाम से कह दें वह ढूंढ लाएगा _,"
उसके जवाब में आप ने फरमाया - मुझसे बढ़कर कौन गुलाम हो सकता है?"
★_ शाम के सफर में कज़ा ए हाजत के लिए सवारी से उतरे, आपके गुलाम असलम साथ थे, वापस लौटे तो उनके ऊंट पर सवार हो गए, इधर अहले शाम इस्तक़बाल के लिए आ रहे थे, जो आता.. पहले असलम की तरफ मुतवज्जह होता , वह हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की तरफ इशारा करते, लोगों को हैरत होती आपस में सरगोशियां करते थे कि यह कैसे अमीरूल मोमिनीन है ? उस पर आप ने फरमाया - इन लोगों की नज़रें दर असल अजमी शानो शौकत को तलाश कर रही है, लेकिन वह यहां उन्हें कहां नज़र आएगी ?_,"
★_ एक मर्तबा खुतबा दे रहे थे उसमें फरमाया - लोगों ! मै एक ज़माने में इस क़दर गरीब था कि लोगों को पानी भर कर दिया करता था, वह उसके बदले में मुझे छुआरे दे देते थे, वही खाकर अपना पेट भरता था _,"
यह कहा और मिंबर से उतरे.. लोगों को बहुत हैरत हुई कि यह भी कोई बताने की बात थी, इस पर वजाहत करने के लिए फरमाया - बात दरअसल यह है कि मेरी तबीयत में गुरूर आ गया था, यह मैंने उसका इलाज किया है _,"
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने कई निकाह किये, आपके यहां औलाद भी कसरत से हुई, उनमें हजरत हफसा रज़ियल्लाहु अन्हा इसलिए मुमताज़ है कि वह अज़वाजे मुताहरात में शामिल हुई, नरीना औलाद में हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु बहुत मशहूर सहाबी हुए, यह बहुत बड़े फकी़ह थे, आगे चलकर इनके बेटे सालिम बिन अब्दुल्लाह फक़ीह हुए, यह मदीना के सात बड़े फक़ीहों में से एक थे, अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु के अलावा आपके बेटे आसिम रज़ियल्लाहु अन्हु भी बहुत बड़े आलिम फाजि़ल हुए।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के बारे में यह बात मशहूर है कि दुनिया में अगर एक उमर और पैदा हो जाता तो सारी दुनिया में इस्लाम आम होता, .. गर्ज़ आपकी खूबियों को शुमार करना हमारे लिए मुमकिन नहीं, अल्ल्लाह ता'ला उन पर करोड़ों हा करोड़ रहमते नाजि़ल फरमाएं, आमीन ।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने ज़ख्मी होने के बाद छह सहाबा किराम के नाम तजवीज़ फरमाए थे और इरशाद फरमाया था कि इनमें से किसी एक को खलीफा बना लेना,
वह 6 नाम यह है - हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत जु़बेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु ।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद मजलिस ए शूरा का इजलास हुआ, हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह तजवीज़ पेश की - हममे से शख्स एक के नाम की सिफारिश करें _," यह तजवीज़ सब ने मंजूर की, हजरत जुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली का, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु का और हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम तजवीज किया,
★_ इसलिए खलीफा के लिए 3 नाम रह गए, उनमें से भी हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - मैं अपना नाम वापस लेता हूं आप दोनों अपना मामला मुझ पर छोड़ दो जिसे मैं खिलाफत के लिए मुंतखब करूं दूसरे हजरात उसे खुशी से कबूल कर लें _,"
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*📕_ Khilafate Rashida _Qadam Ba Qadam ( Writer- Abdullah Farani ),
*📕_ खिलाफते राशिदा _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी)- *
╨─────────────────────❥ _ *✍🏻 Haqq Ka Daayi_*
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