SHAB E BARA'AT KE A'AMAAL-(HINDI)

*🎍﷽ 🎍*              
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     *●• शाब ए बरा'त- के- आमाल •●* ╥────────────────────❥ 
*☞ _मुबारक रातों में पाई जाने वाली चंद उमूमी गलतियों की इस्लाह*
*★_ 1-इस रात में इबादत का कोई खास तरीका साबित नही, जैसा अमूमन समझा जाता है,चुनांचे बाज़ लोग इस रात की खास नमाज़ें बयान करते हैं कि इतनी रक्कत पढ़ी जाए, फलां रक़ात में फलां सूरत इतनी मर्तबा पढ़ी जाए,*
*"_खूब समझ लेना चाहिए कि ऐसी कोई नामाज़ या इबादत इस रात में साबित नही,बल्कि नफ्ली इबादत जिस क़दर हो सके इस रात में अंजाम देनी चाहिए, नफ्ली नमाज़ें पढ़ें , क़ुरआन करीम की तिलावत करें, ज़िक्र करें,तस्बीह पढ़ें, दुआएं करें,ये सारी इबादते इस रात में की जा सकती है, लेकिन कोई खास तारिका साबित नही,*

*2:-बा बरकत रातों में जागने का मतलब पूरी रात जागना नही होता बल्कि आसानी के साथ जिस क़दर जाग कर इबादत करना मुमकिन हो इबादत करना चाहिए और जब नींद का ग़लबा हो तो सो जाना चाहिए,*
*"_ बाज़ लोग पूरी रात जागने को ज़रूरी समझते हैं,और इसको हासिल करने के लिए पूरी रात जागने की बेतकल्लुफ कोशिश करते हैं ,और जब नींद का ग़लबा होता है तो आपस मे गपशप, हंसी मजाक, पान गुटखा और खाने पीने चाय वगैरह के अंदर मशगूल हो जाते हैं और मस्जिद के आदाब व तक़ददूस को भी पामाल किया जाता है,*
*"_याद रखिए! इस तरह फ़िज़ूलियात या किसी गैर शरई काम मे लग कर नेकी बर्बाद और गुनाह लाज़िम का मिस्दाक़ नही बनना चाहिए,*

*3:-गुरूबे आफताब ही से इस रात की इब्तिदा हो जाती है लिहाज़ा मग़रिब ही से मुबारक रातों की बरकत को समेटने में लग जाना चाहिए ,ईशा के बाद का इंतज़ार नही करना चाहिए,*
*"_जैसा कि अमूमन देखने में आता है कि लोग रात को जागने का मतलब ये समझते है कि 11-12 बजे जब बिस्तर पर जाने का वक़्त होता है,उस वक़्त बिस्तर पर जाने के बजाए मस्जिद में जा कर इबादत की जाए, इस गलत फहमी की वजह से रात का एक बड़ा हिस्सा जाय हो जाता है,*

*4:-मुबारक रातों में जागने का मतलब सिर्फ जागना नही बल्कि इबादत करना है,चुनांचे सिर्फ हंसी मजाक ,गपशप बातचीत ,खाने पीने पिलाने का दौर में जागते हुए सुबह कर देना कोई इबादत नही,*
*"_बल्कि बाज़ अवकात इन अज़ीम और बा बर्क़त रातो में भी झूठ ,चुगल खोरी,ग़ीबत करने सुनने जैसे बड़े गुनाहों में शामिल हो कर इंसान और भी बड़े अज़ाब का मुस्तहिक़ बन जाता है, इसीलिए इन्फिरादी तौर पर यकसुई के साथ जिस क़दर आसानी से मुमकिन हो इबादत करनी चाहिए और हर किस्म के हल्ले गुल्ले से बिल्कुल बचना चाहिए,*

*5:-मुबारक रातों में इज्तिमाई इबादत के बजाए इन्फिरादी इबादत का एहतेमाम करना चाहिए इसीलिए की इन रातों में इज्तिमाई इबादत का नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई सबूत नही, इसीलिए खुलूस, यकसुई और अल्लाह ताला के साथ राज़ो नियाज़ इन्फिरादी इबादत में नसीब हो सकता है वो इज्तिमाई इबादत में कहां ।* ╥────────────────────❥ 
*☞_ मुबारक रातों को कैसे गुज़ारें, -*
*"_ 1:-तौबा व इस्तग़फ़ार*
*★_ दो रक्कत सलातुत तौबा पढ़ कर सच्ची तौबा करें,अपने गुनाहोंपर शर्मिंदगी व नदामत के साथ अल्लाह ताला से सच्चे दिल से माफी मांगे,*

*★_ चुनांचे शबे क़द्र के बारे में हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया कि या रसूलुल्लाह! अगर मैं शबे क़द्र पा लूं तो उसमें क्या पढूं,*

*"_तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको कोई बड़ा ज़िक्र या कोई बड़ी नमाज़ और तस्बीह पढ़ने के लिए नही कहा बल्कि एक मुख्तसर और आसान सी दुआ तलक़ीन फरमाई जिसमे अफु दरगुज़र की दरख्वास्त की गई है:-*
*"_ अल्लाहम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिबबुल अफवा फा'फु अन्नी _,*
*"_ऐ अल्लाह तू बहुत ही माफ करने वाला है,माफ करने को पसंद फरमाता है,पस तू मुझे माफ़ फर्मा दे,"*
*( तिरमिज़ी -३५१३ )*

*★_ इससे मालूम हुआ कि बा बरकत रातों में सबसे बड़ा करने का करने का काम उमूमन लोग नही करते वो ये है कि अपने गुज़िश्ता ज़िंदगी पर सच्चे दिल से शर्मसार हो कर आइंदा ज़िंदगी मे अमलन तब्दीली लाने का सच्चा इरादा कर ले कि तौबा इस्तिग़फ़ार किया जाए,ये अमल मुबारक रातों की बरकतों को समेटने का सबसे अहम और सही तरीका है,*

 *☞ 2_ नमाज़े बा जमात की अदायगी _,*
*❉ __ इस रात में 3 नमाज़े आती है , मगरिब इशा और फजर , इन तीनों को जमात के साथ सफे अव्वल में खुशू व खुजू़ के साथ अदा कीजिए ।*
*"_ कम से कम इन नमाजों को जमात के साथ अदा करने वाला रात की इबादत से मेहरूम नहीं रहेगा ।"*

*★_ चुनांचे हदीस शरीफ़ में आता है ,हजरत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह इरशाद मंकूल है -*
*"_ जिसने इशा की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने ग़या आधी रात इबादत की और जिसने सुबह की नमाज़ जमात के साथ अदा की उसने गोया उसने पूरी रात नमाज पढ़ी ।*
*( मुस्लिम शरीफ - ६५६ )*
 
   *☞_ 3- क़ज़ा नमाज़ो की अदायगी _,*

*❉__जिंदगी में जो नमाज अदा करने से रह गई हो उनको क़जा़ करना लाजिम होता है उनकी कजा़ ना की जाए तो कल बा रोज़े क़यामत उनका हिसाब देना होगा, जैसा पहले तोबा की शराइत में गुज़रा उन शरई वाजिबात का अदा करना और उनसे सुबुक दोष होना जरूरी है ।*
*"_लिहाजा़ अपनी तोबा की तकमील की नियत से जिंदगी भर की नमाज़ों का हिसाब करके उनकी कज़ा करने की फिक्र की जानी चाहिए और मुबारक रातों में निफ्ली इबादत में मशगूल होने के बा दर्जहा बेहतर उन नमाजो की कज़ा को अदा किया जाए, इंशाल्लाह इसमें नवाफिल में मशगूल होने से ज्यादा सवाब हासिल होगा क्योंकि नवाफिल ना पढ़ने का हिसाब नहीं जबकि फर्ज नमाज़ की अगर क़जा ना की जाए तो उसका हिसाब है ।*

*☞_ क़ज़ा नमाज़े पढ़ने का तरीका :-*
*"_ इसका तरीक़ा यह है कि बालिग होने के बाद से लेकर अब तक जितनी नमाजे छुटी है उनका हिसाब करें और मुमकिन ना हो तो गालिब गुमान के मुताबिक एक अंदाजा और तखमीना लगाएं और उसको कहीं लिख ले उसके बाद उसकी कजा़ करना शुरू कर दें।*

*"★_और इसमें आसानी के लिए यूं किया जा सकता है कि हर वक्ती नमाज़ के साथ वही (उसी वक्त की जो जिम्मे है ) क़ज़ा भी -पढ़ते जाएं और जितनी नमाजे क़ज़ा अदा होती जाए उनको लिखे हुए रिकॉर्ड ( जो हिसाब लगाकर लिखा गया था ) मे से काटते जाएं, इससे इंशाल्लाह महीने में 1 महीने की और साल में 1 साल की नमाज़े बड़ी आसानी के साथ कजा़ अदा हो जाएगी ।*

*☞__ क़ज़ा की नियत :- _ क़ज़ा नमाज़ों में नियत करने का एक तरीका यह है कि हर नमाज़ में यूं नियत करें कि मैं अपनी तमाम कजा़ शुदा नमाजो़ में जो पहली नमाज है उसकी कज़ा करता हूं । क्योंकि हर पहली नमाज कजा कर लेने के बाद उससे अगली खुद-ब-खुद पहली बन जाएगी।* ╥────────────────────❥ 
*☞ _ कुछ फ़ज़ीलत वाले आमाल:- 1-अव्वाबीन की नामाज़_,*
*★_ जैसा कि पहले अर्ज़ किया जा चुका है कि मुबारक रातों में कोई मख़सूस अमल तक साबित नही, अलबत्ता फ़ज़ीलत वाले आमाल जिनमे कम वक्त के अंदर ज़्यादा नेकियों का ज़ख़ीरा जमा किया जा सकता है, उनको उनको बगैर किसी तख्सीस के तैयन के इख्तियार कीजिए ताकि ज़्यादा नेकियाँ जमा की जा सके,*

*1:-अव्वाबीन की नमाज़:-_ मग़रिब के बाद अव्वाबीन कि नमाज़ जिसकी कम से कम 6 रका'त है और ज़्यादा से ज़्यादा 20 हैं,*
*"_आप कोशिश कीजिए कि मुबारक रात की बरकतों को समेटने के लिए 20 रक्कत अदा कीजिए, हदीस के मुताबिक 12 साल की इबादत का सवाब हासिल होता है,*

*★_हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:-*
*"_ जिसने मग़रिब की नमाज़ के बाद 6 रका'त इस तरह अदा की कि उनके दरमियान कोई बुरी बात न की हो तो उनका सवाब बाराह (12) साल की इबादत के बराबर होता है_,"*
*( तिरमिज़ी-४३५)*

*★_याद रहे कि अव्वाबीन की नमाज़ की ये फ़ज़ीलत सिर्फ मुबारक रातों में नही बल्कि पूरे साल भर इस फ़ज़ीलत को सिर्फ चंद मिनटों में आसानी से हासिल किए जा सकता हैं ,मुबारक रातों में ऐसे आमाल का तो और भी ज़्यादा एहतेमाम और तवज्जोह से इख़्तेयार करना चाहिए,* ╥────────────────────❥ 
*☞_ सलातुत तस्बीह की नमाज़*
*"_सलातुत तस्बीह की 4 रकातें हैं जिनको एक सलाम से पढ़ा जाता है, इस नमाज़ कि अहादीस में बड़ी फज़ीलतें मंक़ूल हैं, इंसान इसके जरिए कम से कम वक़्त के अंदर ज़्यादा से ज़्यादा नफा हासिल कर सकता है,*
*"_इसीलिए साल भर में वक़्तन फ वक़्तन इसके पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए और मुबारक रातों में तो इसको और भी ज़्यादा एहतेमाम से पढ़ना चाहिए और ये कोई मुश्किल नही,बस दिल मे नेकी के हुसूल का जज़्बा शौक़ होना चाहिए, अल्लाह ताला अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाए,(आमीन)*

*☞__सलातुत तस्बीह के फजायल:-*
*1-ये वो नामाज़ है जिसके पढ़ने की बरकत से 10 किस्म के गुनाह माफ हो जाते हैं,-*
*_सलातुत तस्बीह पढ़ने से 1-अगले,2-पिछले,3-पुराने,4-नए,5-गलती से किए हुए,6-जान बूझ कर किये हुए, 7-छोटे, 8-बड़े, 9 छुप कर किए हुए, 10-और खुल्लम खुल्ला किये हुए सब गुनाह माफ होते हैं,*

*2:-ये वो नमाज़ हैं जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- अगर रोज़ाना हफ्ता महीना या कम से कम साल में भी अगर पढ़ सकते हो तो अपनी पूरी ज़िंदगी मे कम से कम एक मर्तबा पढ़ लो, इससे इस नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है,*

*3:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अगर तुम सारी दुनिया के लोगों से भी ज़्यादा गुनाहगार होंगे तो तुम्हारे गुनाह माफ कर दिए जाएंगे,*

*4:-ये वो नमाज़ है जिसे आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने चाचा हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को बताते हुए इस नमाज़ को तोहफा, बख्शीश और खुश खबरी क़रार दिया,*

*5:-ये वो नमाज़ है जिसको पढ़ते हुए बंदे को 300 मर्तबा तीसरा कलमा की सूरत में अल्लाह ताला की हम्दो सना करने की सआदत हासिल होती है,*
*"_हालांकि एक मर्तबा तीसरा कलमा पढ़ने पर जन्नत में एक दरख़्त लग जाता है,*
*"_तीसरा कलमा अल्लाह ताला को सबसे मेहबूब कलमा है,*
*"_जन्नत एक चटियल मैंदान हैऔर तीसरा कलमा जन्नत के पौधे हैं,*
*"_तीसरा कलमा के हर एक कलमें का सवाब उहद पहाड़ से ज़्यादा है,*
*"_तीसरे कलमें का हर कलमा आमाल नामे में तुलने के ऐतेबार से सबसे ज़्यादा वज़नी है,*

*6:-ये वो नमाज़ है जिसका हर ज़माने में उल्माए उम्मत, मुहद्दिसीन, फुकहा और सूफियों ने एहतेमाम किया है,*
*7:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अब्दुल अजीज बिन रववाद रह फरमाते हैं कि जिसका जन्नत में जाने का इरादा हो उसके लिए ज़रूरी है कि सलातुत तस्बीह को मजबूती से पकड़ ले,*

*8:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में हज़रत अबु उस्मान हैरी रह. फरमाते है कि मैंने मुसीबतों और गमों के इज़ाले के लिए सलातुत तस्बीह जैसी चीज नही देखी,*
*9:-ये वो नमाज़ है जिसके बारे में अल्लामा तकि उद्दीन सबकी रह फरमाते हैं कि जो शख्स इस नमाज़ कि फज़ीलत व अहमियत को सुन कर भी गफलत इख्तियार करे वो दीन के बारे में सुस्ती करने वाला है, सुलहा के कामो से दूर है, उसको पक्का आदमी न समझा जाए, ( फज़ाइले ज़िक्र )* ╥────────────────────❥ 
*☞_ सलातुत तस्बीह का तरीका _,*
*✪_ इसके दो तरीके मंक़ूल है, किसी भी तरीक़े के मुताबिक यह नमाज़ पढ़ी जा सकती है ,*

*☞_ पहला तरीका _,:- इस नमाज़ को पढ़ने का तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक से तिर्मिज़ी शरीफ में मज़कूर है यह है कि तकबीरे तहरीमा के बाद सना यानी " सुब्हाना कल्लाहुमा ..." पढ़ें, फिर तस्बीह यानी सुब्हानल्लाहि वल हमदुलिल्लाहि वा लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर _" 15 मर्तबा पढ़ें, आ'उज़ुबिल्लाहि मिनश शैयतानिर रजीम, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, पढ़ें फिर अल्हम्दु शरीफ और सूरत पढ़े, फिर क़याम में ही रुकू में जाने से पहले ही तस्बीह 10 मर्तबा पढ़ें, फिर रुकू करें और रुकू की तस्बीह के बाद वही कलमात 10 मर्तबा कहे, फिर रुकू से उठकर को़मा में, समी'अल्लाह.., के बाद 10 बार और दोनों सजदों में सजदे की तस्बीह के बाद 10 -10 बार और दोनों सज्दों के दरमियान बैठने की हालत में यानी जलसे में 10 बार वही कलामाते तस्बीह पड़े , इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा और 4 रक़ात में तीन सौ मर्तबा यह तस्बीह हो जाएंगी ।*

*✪__और अगर इन कलमात के बाद "_ वला हौवला वला कु़व्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिययिल अज़ीम _," भी मिला लें तो बेहतर है । क्योंकि इससे बहुत सवाब मिलता है और एक रिवात में इन अल्फाज़ की ज्यादती मनक़ूल है।*

*☞_ दूसरा तरीका़ :- _ दूसरा तरीक़ा जो हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से तिर्मीजी़ शरीफ में मंकूल है वह यह है कि सना के बाद और अल्हम्दु शरीफ से पहले किसी रकात में इन कलमाते तस्बीह को ना पड़े बल्कि हर रकात में अल्हम्दु और सूरत पढ़ने के बाद 15 मर्तबा पड़े और रुकू और कौमा और दोनों सजदों और जलसे में बा तरतीब 10-10 मर्तबा पड़े और दूसरे सजदे के बाद बैठकर यानी जलसा इस्तराहत में 10 मर्तबा पड़े इस तरह हर रकात में 75 मर्तबा पढ़ें और दोनों क़ायदों में अत्तहियात से पहले पढ़ ले।*

*✪_ यह दोनों तरीके़ सही हैं लेकिन बाज़ फुक़हा ने दूसरे तरीक़े को तरजीह दी है क्योंकि यह हदीस मरफू से साबित है बेहतर यह है कि कभी एक रिवायत पर अमल करें और कभी दूसरी पर ताकि दोनों पर अमल हो जाए,* 
*_ सलातुत तस्बीह में कोई भी सूरत पढ़ी जा सकती है अलबत्ता अलल तरतीब " तकासुर , असर् , काफिरून और इखलास और कभी " इजा़जु़ल, आदियात, इजा़जा़ और इखलास_," का पढ़ना बेहतर है।*

*✪_अगर तसबीह के कलमात भूलकर किसी जगह 10 से कम पढ़े जाएं या बिल्कुल ना पड़े जाएं तो इसको दूसरी जगह यानी तसबीह पढ़ने के आगे वाले मौक़े में पढ़ ले ताकि तादाद पूरी हो जाए लेकिन रुकू में भूले हुए कलमाते तसबीह को़मा में ना पड़ें बल्कि दूसरे सजदे में पड़े क्योंकि को़मा और जलसा का रुकू व सजदे से तवील करना मकरूह है, कलमाते तसबीह को उंगलियों पर शुमार ना करना चाहिए बल्कि अगर दिल के साथ शुमार कर सकता हो इस तरह की नमाज़ की हुजूरी में फ़र्क ना आए तो यही बेहतर है वरना उंगलियां दबा कर शुमार करें,*
*"_ सलातुल तसबीह में तसबिहात को हाथों से शुमार करना दुरुस्त नहीं और अगर याद ना रहता हो तो उंगलियों को हरकत दिए बगैर महज़ दबाकर याद रखा जा सकता है_,"*
*( दुर्रे मुख्तार- 2/28)*

*📚_ फज़ाइले ज़िक्र _,* ╥────────────────────❥ 
*☞ क़यामुल लैल (तहज्जुद की नामाज़ )का एहतेमाम*
*❉ __ तहज्जुद फ़राइज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ है,साल भर बल्कि ज़िंदगी भर इसका एहतेमाम करना चाहिए ,और फ़ज़ीलत व बरकत वाली रातों में इसका और भी ज़्यादा शौक़ व ज़ौक़ और तवज्जोह से एहतेमाम करना चाहिए,*

*☞ तहज्जुद की फ़ज़ीलत*
*❉ __ इरशादे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है:-"फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सबसे अफ़ज़ल नमाज़ वो है जो रात के दर्मियान पढ़ी जाए" ( मुसनद अहमद-८५०७)*

*❉ __ हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं':- "_रात के क़याम यानी तहज्जुद को अपने ऊपर लाज़िम कर लो क्योंकि ये तुमसे पहले नेक लोगों का तरीका है,तुम्हारे रब के क़ुर्ब का जरिया है,गुमाहों को मिटाने वाली,और गुनाहों को रोकने वाली है,*
*एक रिवायात में इसके साथ जिस्म की बीमारियों को दूर करने वाली है मंक़ूल है,( तिरमिज़ी-३५४९)*

*❉ _ हज़रत अमरू बिन अबसा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं:- "_बंदा अपने रब का सबसे ज़्यादा करीब उस वक़्त होता है जब वो रात के आखरी पहर अपने रब के सामने हाज़िर होता है,पस अगर तुम उन लोगों में से होने की ताकत रखते हो तो जो उस घड़ी में अल्लाह ताला को याद करते हैं तो ज़रूर हो जाओ," ( तिरमिज़ी-३५७९)*

*❉ _ हज़रत अबु सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद मंक़ूल है कि,"_तीन आदमी ऐसे हैं जिन्हें देख कर अल्लाह ताला खुश होते हैं,एक वो शख्स जब वो रात को नमाज़ में खड़ा होता है,दूसरे वो लोग जब वो नमाज़ में सफ बांधते हैं,तीसरे वो लोग जब वो जिहाद में दुश्मन से कि़ताल करते हुए सफ बांधते हैं, ( मिशकातुल मसाबेह-१२२८)*

*❉ _हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया गया कि कोनसी दुआ सबसे ज़्यादा सुनी जाती है (यानी क़ुबूल होती है) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ,रात के आखरी पहर और फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद मांगी जाने वाली दुआ । ( तिरमिज़ी-३४९९)*

*❉ _ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, बेशक जन्नत में ऐसे बाला खाने हैं जिनका ज़ाहिरी हिस्सा अंदर से और अंदरूनी हिस्सा बाहर से नज़र आता है,*
*"_एक अरबी खड़े हुए और सवाल किया,-या रसूलुल्लाह वो किसके लिए है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,-उसके लिए जो कलाम में नरमी रखे ,खाना खिलाए,पै दर पै रोज़े रखे और रात को नमाज़ पढ़े जबकि लोग सो रहे हो" (तिरमिज़ी-१९८४)*

*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल फरमाते हैं, मेरी उम्मत के सबसे मुअज़्ज़िज़ लोग क़ुरआन के हाफ़िज़ और तहज्जुद गुज़ार हैं," ( शौबुल ईमान-२४४७)*

*❉ _ हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु जो यहूदियों के एक बड़े आलिम थे (इस्लाम से पहले)उन्होंने सबसे पहली मर्तबा जब आप हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार किया तो फरमाते हैं कि मैं समझ गया की ये चेहरा किसी झूठे का हरगिज़ नही हो सकता और सबसे पहली बात जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाई वो ये थी:-*
*"_ऐ लोगों !आपस मे सलाम को फैलाओ,खाना खिलाओ,सिलह रहमी करो,रात को नामाज़ पढ़ो जबकि लोग सो रहे हों,तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे," ( तिरमिज़ी-२४८५)*

*❉ __ हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरफुआ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद नक़ल है कि जो शख्स रात को कसरत से नमाज़ पढ़ता है दिन को उसका चेहरा हसीन होता है, ( शौबुल ईमान-२४४८)*

*❉ __ इन तमाम फजा़यल को हर शख्स हासिल कर सकता है, जिसका तरीक़ा ये है कि अपने आप को तहज्जुद का पाबंद बनाया जाए और ये मामूल ज़िंदगी भर अपनाने का है, बिलखुसूस मुबारक रातों में इस अमल को और भी ज़्यादा एहतेमाम से करना चाहिए और इसका तरीका ये है कि 2-2 रक्कत कर के 8 रकत पढ़ी जाए और उसमें जो भी सूरतें याद हों उनकी ज़्यादा तिलावत की कोशिश की जाए,* ╥────────────────────❥ 
*☞ मगफिरत में रुकावट वाले उमूर से तौबा*,
*❉ __ शबे बारात बहुत ही बा बरकत और अज़ीम रात है जैसा कि फज़ीलते तफसील से गुज़र चुकी है,लेकिन कुछ ऐसे भी बद किस्मत लोग होते हैं जो इस रात की बरकत और बिल ख़ुसूस सबसे अहम चीज़ मगफिरते खुदावन्दी से महरूम रह जाते हैं, वह कौन लोग हैं ? कई हदीसों में उनकी निशानदेही की गई है, जिनसे उन मेहरूम होने वालो के मग्फिरत से मेहरूम रह जाने के असबाब भी मालूम होते हैं, ऐसे असबाब और उमूर को मा'ने मग्फिरत उमूर कहा जाता है, जिनमे शामिल होने से हर सूरत में बचा जाए और अगर खुदा न ख़्वास्ता कोई मुब्तिला हो तो फौरन तौबा कर के अल्लाह ताला की तरफ रुजू करना चाहिए, वरना इस अज़ीम और बा बरकत रात में मगफिरत हासिल न हो सकेगी,*

*❉ __(१)_ मुशरिक ( शिर्क करने वाला)*
*(२)_कीना रखने वाला,*
*(३)_वाल्दैन की नाफरमानी करने वाला ,*
*(४)_कता रहमी करने वाला (रिश्ते तोड़नेवाला)*
*(५)_ इज़ार टखनों से नीचे लटकाने वाला (यानी लुंगी पाजामा पेंट को टखनों से नीचे लटका कर रखने वाला)*
*(६)_शराब का आदी ,*
*(७)_क़ातिल _,*
*( ८)_ और ज़ानी,*.
*"_ अल्लाह ताला तमाम मुसलमानों की इन गुनाहों से हिफाज़त फरमाए, आमीन,*

*❉ __ दुआ कीजिए अल्लाह ताला मुझ गुनहगार को भी, आप को भी और हर मोमिन को इन मग्फिरत वाले आमाल की पाबंदी नसीब फरमाए और मुबारक रात की बरकात व मग्फिरत नसीब फरमाए, आमीन (एडमिन हक़ का दाई)* 

*📓माहे शाबान के फज़ाइल व आमाल ,* ╭┄┅┅◐═══◐══♡◐♡══◐═══◐┅┅┄╮
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