Zakaat Ke Masa'il -( Hindi)

*🏵﷽ 🏵*
│ ✦ *जकात के मसाइल* ✦ ┗─────────────
             *★_ज़का़त के मानी _★*

*★_जकात के मानी पाकीज़गी, बढ़ोतरी और बरकत के है।*

*★_अल्लाह ताला का इरशाद है:- उनके माल से जकात लो ताकि उनको पाक करें और बरकत करें उसकी वजह से और दुआ दें उनको । (सूरह तौबा 103)*

*★_ शरई इस्तलाह में माल के उस खास हिस्से को जकात कहते हैं जिसको अल्लाह ताला के हुक्म के मुताबिक फकीरों मोहताजो वगैरह को देकर उनको मालिक बना दिया जाए ।*

*📓जकात के मसाईल -हजरत मुफ्ती नजीब कासमी,*
 
*★_जकात का हुक्म:- तोहिद व रिसालत और नमाज के बाद इस्लाम का तीसरा सबसे बड़ा रुक्न जकात है । क़ुरआने करीम में सत्तर से ज्यादा मकामात में अक़ामते सलात और अदाएं जकात का हुक्म साथ साथ किया गया है ।जिससे मालूम होता है कि दीन में इन दोनों का मकाम करीब करीब है और जकात की फरज़ियत का मुंकिर दीन ए इस्लाम से खारिज है, नमाज की तरह जकात का हुक्म भी अगली शरीयत में मौजूद था ।*

*★_हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम के बारे में है :- वो अपने घर वालों को नमाज और जकात का हुक्म देते हैं । (सूरह मरियम- 55 )*

*📓फिक़हुल इबाद-270,*

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             *★_जकात के पहलू _★*

*✷_नेकी और फवाइद के लिहाज से जकात में 3 पहलू हैं :-*
*★1_ अपना कमाया हुआ माल अल्लाह ता'ला के हुकुम के मुताबिक अल्लाह ता'ला के बंदों पर खर्च करता है तो गोया अल्लाह ताला के हुज़ूर माली नज़राना पेश करके अपनी आजिजी़ व इन्कसारी का इज़हार करता है कि:- यह माल दर हक़ीक़त आपका अतिया था जो मैंने आप को राज़ी करने के लिए खर्च किया ।"*

*★_2_ जकात के ज़रिए गरीब व मोहताज बंदों की खिदमत व उनकी इआनत होती है, इस तरह उनकी खूब दुआएं हासिल होती है।*

*★_3_ जकात के मानी पाकी है, जिस तरह मैला कपड़ा धोने से पाक हो जाता है, मैला जिस्म नहाने से साफ हो जाता है, इसी तरह जकात निकालने से वो माल पाक साफ हो जाता है और खुद जकात देने वाले को भी पाकी हासिल होती है ।उसके अंदर से माल की हिर्स मोहब्बत बुख्ल बगैरा अंदरूनी बीमारियों का इलाज होता है ।*
*"_ए नबी ! आप मुसलमानों के अमवाल में से सदका (जकात) वसूल कीजिए जिससे उनके कु़लूब की ततहीर और उनके नफ्सों का तज़किया हो । (सूरह तौबा -103)*

*📓 फिक़हुल इबादात 270,*
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   *★जकात अदा करने की फजीलत ★*
*★_जो लोग अल्लाह की राह में अपने मालों को खर्च करते हैं उनके खर्च किए हुए मालों की हालत ऐसी है जैसे एक दाने की हालत ,जिससे (फर्ज करो )सात बाले (और) हर बाल के अंदर सो दाने हो और यह अफज़ूनी खुदा ताला जिसको चाहता है अता फरमाता है और अल्लाह ताला बड़ी वुसत वाले हैं, जानने वाले हैं ।*
*" _जो लोग अपना माल अल्लाह की राह में खर्च करते हैं फिर खर्च करने के बाद ना तो (उस पर) एहसान जताते हैं और ना (बर्ताव) से उसको अजा़र पहुंचाते हैं ,इन लोगों को इनके( आमाल) का सवाब मिलेगा ,उनके परवरदिगार के पास और ना उन पर कोई खतरा होगा और ना यह मगमूम होंगे ।*
*(सूरह अल बकरा -261 -262)*

*★_ हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाहू अन्हु फरमाते हैं की हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि :- जो शख्स एक खजूर के दाने के बराबर पाक कमाई से सदका़ करें और अल्लाह ताला सिर्फ पाक ही को कुबूल फरमाता है ,तो अल्लाह ताला उसको अपने दस्त में लेकर कबूल फरमाते हैं फिर उसके मालिक के लिए उसकी परवरिश फरमाते हैं जिस तरह कि तुम में से एक शख्स अपनी घोड़ी के बच्चे की परवरिश करता है। यहां तक कि वह एक खजूर के दाने का सदका़ कयामत के दिन पहाड़ के बराबर हो जाएगा । (सही बुखारी मुस्लिम)* 

*📓आपके मसाइल और उनका हल -3 /341,*

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*✷_जकात अदा ना करने का वबाल _✷*
*✷_अल्लाह ताला का इरशाद है :- "_ जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उनको अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते तो आप उनको एक बड़ी दर्दनाक सजा की खबर सुना दीजिए कि उस रोज वाके़ होगी कि उनको दोजख की आग में अव्वल तपाया जाएगा फिर इनसे उन लोगों की पेशानियों और उनकी करवटों और उनकी पुश्तो को दाग दिया जाएगा। ये वो है जिसको तुमने अपने वास्ते जमा करके रखा था अब अपने जमा करने का मजा चखो । ( सूरह तौबा 34 35)*

*✷_ हजरत इब्ने मसूद रजियल्लाहु अन्हु हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का इरशाद नकल करते हैं कि जो शख्स अपने माल की जकात अदा नहीं करता कयामत के दिन उसका माल गंजे सांप की शक्ल में इसकी गर्दन में डाल दिया जाएगा।" , फिर आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इस मजमून की आयत हमें पढ़कर सुनाई । (आयत का तर्जुमा यह है) "_और हरगिज़ ख्याल ना करें ऐसे लोग जो ऐसी चीज में बुख्ल करते हैं जो अल्लाह ताला ने उनको अपने फजल से दी है कि यह बात कुछ उनके लिए अच्छी होगी बल्कि यह बात उन की बहुत बुरी है, वो लोग कयामत के रोज तौक पहना दिए जाएंगे उसका जिसमें उन्होंने बुख्ल किया था । (रवाह अल तिर्मिजी)*

*✷_हजरत आयशा रजियल्लाहू अन्हा से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सुना है कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम फरमाते थे कि, "_ जकात का माल जब दूसरे माल से मखलूत हो तो जरूर उसको तबाह कर देगा । (मुसनद शाफई)*

*📓आप के मसाइल और उनका हल 3 /343,*
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*★_जकात किस पर फर्ज है -★*

*★_जकात बालिग पर वाजिब है, नाबालिग बच्चों के माल पर जकात नहीं। अलबत्ता सदका ए फित्र नाबालिग की तरफ से अदा करना भी जरुरी है ।(अगर नाबालिग साहिबे माल हो )*

*★_मजनून ,पागल के माल पर जकात नहीं ।*

*★_जेवर औरत की मिल्कियत होते हैं और जकात अदा करने की जिम्मेदारी भी मालिक ही पर होगी ।शोहर अगर उसके कहने पर जकात अदा करें तो अदा हो जाएगी । शौहर और बीवी की जकात का हिसाब अलग अलग है ।मरहूम शोहर की जकात बेवा के जिम्में फर्ज नहीं ।अगर वारिस अदा करें तो अच्छी बात है।*

*★_ अगर नाबालिक लड़की को जेवर की मालिक बना दिया तो जब तक लड़की बालिग नहीं होगी जकात फर्ज नहीं है । सिर्फ यह कह देना या यह नियत कर लेना कि जेवर लड़की के दहेज में दिया जाएगा ज़कात से मुशतसना नहीं करार दिया जा सकता ।जब तक कि लड़की को जेवर का मालिक ना बना दिया जाए और लड़की को मालिक बना देने के बाद उस जेवर को खुद इस्तेमाल करना जायज नहीं होगा ।*

*📓आप के मसाइल और उनका हल -3 /344,*
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*★_ जकात इन चीजों पर फर्ज है :-*
*1_ सोना जबकि साढ़े 7 तोला ( यानी 87.479 ग्राम ) या इससे ज्यादा हो ।*
*2_चांदी जबकि साढे 52 तोला यानी( 612. 35 ग्राम )या इससे ज्यादा हो ।*
*3_रुपया पैसा और माले तिजारत जबकि इसकी मालीयत साढे 52 तोला चांदी( 612. 35 ग्राम )के बराबर हो ।*

*★_अगर किसी के पास थोड़ा सा सोना है कुछ चांदी है कुछ नगद रुपया है या कुछ माले तिजारत है और इनकी मजमूई( इन सब की कीमत जोड़ने के बाद) मालीयात साढे 52 तोला चांदी के बराबर है, तो इस पर भी ज़कात फर्ज है ।*

*★"_ इसी तरह अगर कुछ सोना है कुछ चांदी है या कुछ सोना है कुछ नकद रूपया ‌है या कुछ चांदी है कुछ मारले तिजारत है, तब भी इन को मिलाकर देखा जाएगा कि साढे 52 तोला चांदी की मालियत बनती है या नहीं ।अगर बनती है तो जकात वाजिब होगी वरना नहीं।*

*★✔ खुलासा यह है सोना चांदी नगदी माले तिजारत में से कोई सी भी दो या दो से ज्यादा चीजों की मालियत जब चांदी के निसाब के बराबर हो तो उस पर जकात फर्ज होगी।*

*★_4_ इन (जो ऊपर मज़कूर हुईं) चीजों के अलावा चढरने वाले मवेशियों पर भी जकात फर्ज है। इसमें भेड़ बकरी गाय भैंस ऊंट के अलग-अलग निसाब हैं ।जो लोग मवेशी रखते हैं अहले इल्म मौतबर उल्मा हजरात से दरियाफ्त कर ले । (इसमें तफसील ज्यादा है इसलिए इसको नहीं लिखा)*

*★_5_ उशरी जमीन की पैदावार पर भी जकात फर्ज है । जिसको उशर् कहा जाता है । (तफसील आगे जिक्र की जाएगी इंशाल्लाह)*

*📓 आप के मसाइल और उनका हल -3/ 345 ,*
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*✷_ माले तिजारत में क्या दाखिल है ?★*

*✷_माले तिजारत में हर वह चीज दाखिल है जिसको आदमी ने बेचने की नियत से खरीदा हो और यही नियत बाक़ी हो।*

*✷_ लिहाज़ा जो लोग इन्वेस्टमेंट की गर्ज़ से प्लाट खरीद लेते हैं और शुरु ही से नियत होती है कि जब अच्छे पैसे मिलेंगे तो उसको फरोख्त करके उससे मुनाफा कमा लेंगे तो उस प्लाट पर भी जकात वाजिब है ।*

*✷_लेकिन अगर प्लॉट इस नियत से खरीदा कि अगर मौका हुआ तो उस पर रिहाइस (रेजिडेंस )के लिए मकान बनवा लेंगे या मौका होगा तो उसको किराए पर छोड़ देंगे या कभी मौका होगा तो उसको फरोख्त कर देंगे यानी कोई वाजे़ नियत नहीं है बल्कि वैसे ही खरीद लिया है तो इस सूरत में उस प्लॉट की कीमत पर जकात वाजिब नहीं है ।*

*📓जकात के मसाईल *(मुफ्ती मोहम्मद नजीब कासमी)*
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*★_जकात के हिसाब के लिए तारीख मुतय्यन करना_,*

*★_अक्सर लोग सिर्फ रमजान में जकात निकालते हैं और उसी में हिसाब करते हैं। रमजानुल मुबारक में जकात निकालने की फजीलत तो है लेकिन अपने माल का हिसाब भी रमजान ही में किया जाए ? इसमें बहुत सी खराबियां है , इसलिए कि जकात का सही तरीका यह है कि आप कमरी माह (चांद की तारीख) की जिस तारीख को साहिबे निसाब हुए थे हमेशा वही तारीख आप की जकात के हिसाब के लिए मुतैयन रहेगी।*

*★_ इसी तारीख में आपके पास जो सोना चांदी माले तिजारत और नगदी जो कुछ भी हो ,चाहे एक रोज पहले ही मिला हो सब पर जकात फर्ज होगी। जकात का हिसाब इसी तारीख को होगा अदा चाहे जब करें ।*

*★_अगर दरमियानी साल में हिसाब के मुताबिक माल बिल्कुल नहीं रहा तो अब फिर दोबारा जिस तारीख में साहिबे निसाब होंगे वह तारीख तय होगी ।*

*★_अगर साहिबे निसाब बनने की कमरी तारीख (चांद की तारीख) याद नहीं हो तो गौरो फिक्र के बाद जिस तारीख का इतमिनान ज्यादा हो वह मुतय्यन होगी । अगर किसी तारीख का भी इतमिनान ना हो तो खुद कोई कमरी तारीख तय कर लीजिए । इस में अंग्रेजी साल से हिसाब करना दुरुस्त नहीं है ।*

*📓अहसनुल फतावा 4 /205, फिकहुल इबादात 147 ,*
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*★_जकात की मिक़दार _★*

*★_ सोना चांदी माले तिजारत की कीमत लगा कर इसमें नगदी जमा करके जब मजमुई मालीयात (जमा पूंजी) मालूम होगी तो अब जकात की मिक़दार ढाई परसेंट (2.5 %) यानी 40 वां हिस्सा या ₹40 पर ₹1 जकात अदा करना जरूरी है ।*

*★_सोना चांदी माले तिजारत में उस दिन की कीमत (बाजार की रेट ) के एतबार से हिसाब होगा ।*

*★_ सोना चांदी पर जकात _★*
*★_ सोना चांदी की हर चीज पर जकात वाजिब है ।असली ज़री सोना चांदी के बर्तन वगैरह इन सब पर जकात फर्ज है चाहे ठप्पा गोटा और ज़री कपड़े में लगे हो।*

*★_ तमबीह_ बहुत से लोगों का ख्याल होता है कि सोना चांदी के इस्तेमाली जेवरात वगैरा पर जकात फर्ज नहीं हालांकि शर'अन जेवरात इस्तेमाल हो या गैर इस्तेमाल सब पर जकात फर्ज है ।*

*★_हजरत अब्दुल्लाह बिन अमर् बिन आस रजियल्लाहू अन्हू से रिवायत है की एक खातून अपनी एक लड़की को लेकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुई उस लड़की के हाथ में सोने के मोटे भारी कंगन थे । आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पूछा :-क्या तुम इन कंगनों की जकात देती हो ? उसने अर्ज किया कि मैं जकात नहीं देती । आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया :- क्या तुम्हारे लिए यह बात खुशी की होगी कि अल्लाह ताला तुम्हें कंगनों की (जकात ना देने की) वजह से कयामत के दिन आग के कंगन पहनाएं ? अल्लाह ताला की उस बंदे ने दोनों कंगन हाथ से उतारकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने डाल दिए और अर्ज किया - ये अल्लाह ताला और उसके रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के लिए है ।*

*📓सुनन अबि दाऊद , जामिया तिर्मिजी , फिक़हुल इबादात-275*

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 *★_ कंपनी के शेयर्स पर जकात _,★*

*★_ मिलो और कंपनियों के शेयर्स पर भी जकात फर्ज है बशर्ते कि शेयर की कीमत बा-कदरे निसाब हो या उसके अलावा दीगर माल से शेयर्स होल्डर मालिके निसाब बन जाए । अलबत्ता कंपनीज के शेयर्स की कीमत में क्योंकि मशीनरी और मकान ,फर्नीचर की लागत भी शामिल होती है जो दर हकीकत जकात से अलग है । इसलिए अगर कोई शख्स कंपनी से मालूम करके जितनी रकम उसकी मशीनरी मकान और फर्नीचर में लगी हुई है उसको अपने हिस्से के मुताबिक शेयर्स की कीमत में से कम करके बाकी की जकात दे तो यह भी जायज है।*

*★_ साल के खत्म पर जब जकात देने लगे उस वक्त जो शेयर्स की कीमत होगी वही लगेगी ।*

*★_ मिल कारखानों पर जकात _★*

*★_कारखाना और मिल की इमारत और मशीन वगैरा पर जकात फर्ज नहीं लेकिन उसमें जो माल तैयार होता है उस पर जकात फर्ज है। इसी तरह जो खाम माल ( रा मेटेरियल) कारखाने में सामान तैयार करने के लिए रखा है उस पर भी जकात फर्ज है ।*

*📓दुर्रे मुख्तार ,शामी , फिक़हुल इबादात -276 ,*

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*★_प्रोविडेंट फंड पर जकात-_,*★

*★_ प्रोविडेंट फंड में जो रकम मुलाजिम की तनख्वाह से काटी जाती है और उस पर माहाना या सालाना इजाफा किया जाता है यह सब मुलाजिम की खिदमत का वह मुआवजा है जो अभी उसके कब्जे में नहीं आया लिहाजा वह महकमे के जिम्मे मुलाजिम का कर्ज हैं ।जकात के मामले में फुक़हा किराम ने कर्ज़ की तीन किस्में बयान फरमाई हैं जिनमें से बाज़ पर जकात वाजिब होती है और बाज़ पर नहीं होती, वसूल होने के बाद जाबते के मुताबिक जकात वाजिब होगी जिसकी तफसील यह है :-*

*★1_ मुलाजिम अगर पहले से साहिबे निसाब नहीं था मगर उस रकम के मिलने से साहिबे निसाब हो गया तो वसूल होने के वक्त से एक क़मरी साल पूरा होने पर जकात वाजिब होगी बशर्ते उस वक्त तक यह शख्स साहिबे निसाब रहे ।*

*★_अगर साल पूरा होने से पहले माल खर्च होकर इतना कम रह गया कि साहिबे निसाब नहीं रहा तो जकात वाजिब नहीं होगी ,*
*"_और अगर खर्च या जा़या होने के बावजूद साल के आखिर तक माल बा कदरे निसाब बचा रहा तो जितना बाकी बच गया सिर्फ उसकी जकात वाजिब होगी जो खर्च हो गया उसकी नहीं होगी।*

*★_ 2_ अगर यह मुलाजिम पहले से साहिबे निसाब था तो फंड की रकम चाहे मिक़दारे निसाब से कम मिले या ज्यादा उसका साल अलग से शुमार नहीं होगा ।बल्कि जो माल पहले से उसके पास था जब उसका साल पूरा होगा यानी पहले से मौजूदा निसाब की जकात निकालने की तारीख आएगी तो फंड की वसूल शुदा रक़म की जकात भी उस वक्त वाजिब हो जाएगी। चाहे उस नई रकम पर एक दिन ही गुजरा हो।*

*★_ जकात कि यह तफ्सील इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्ला के कॉल पर मुबनी है सहाबीन रहमतुल्लाह के कॉल के मुताबिक क़र्ज़ की हर किस्म पर जकात फर्ज है ।लिहाजा अगर कोई अहतयात पर अमल करते हुए गुजिश्ता तमाम सालों की जकात अदा करें तो बेहतर है।*

*★_ इसका बेहतर तरीका यह है कि जब से यह मुलाजिम साहिबे निसाब हो उस वक्त से हर साल के खत्म पर हिसाब कर लिया जाए कि उसके फंड में कितनी रकम जमा है , जितनी रकम जमा है उसकी जकात अदा कर दें । इसी तरह हर साल करता रहे ।*

*★_ अगर उसने यह रकम किसी शख्स ,बैंक, इंश्योरेंस कंपनी या किसी और तिजारती कंपनी में या मुलाजिमीन के नुमाइंदों पर मुशतमिल बोर्ड की तरफ मुंतकिल करवा दी हो तो यह ऐसा है जैसे खुद अपने कब्जे में ले ली हो। क्योंकि इस तरह वह शख्स या कंपनी उस मुलाजिम की वकील होगी और वकील का कब्जा शरअन मुवक्किल के कब्जे के हुक्म में है ।लिहाजा जब से यह रकम उस कंपनी की तरफ मुंतकिल हुई उस वक्त से उस पर बिला इत्तेफाक जकात वाजिब होगी और हर साल की जकात मुज़कुरा बाला जाब्ते के मुताबिक लाजिम होगी ।*

*★_तिजारती कंपनी को नफा नुकसान में शिरकत की बुनियाद पर देने की सूरत में जबसे उस पर नफा मिलना शुरू होगा उस वक्त से नफे पर भी जकात वाजिब होगी ।*

*★_इंश्योरेंस कंपनी या किसी और सूदी कारोबार करने वाली कंपनी को देने की सूरत में नफा हराम है ।*

*📓फिक़हुल इबादात- 277,*

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*★_ तिजारती प्लॉट पर जकात ★*

*★_ अगर कोई शख्स तिजारत की नियत से प्लॉट खरीदे और यही नियत बाकी रहे तो प्लॉट की कीमत पर जकात वाजिब होगी । दूसरे तिजारती माल के साथ इसकी जकात भी अदा की जाए । और अगर दूसरा माल ना हो तो प्लॉट की कीमत निसाब के बा कद्र होने की सूरत में जकात वाजिब है ।*
*®_( अहसनुल फतावा -4/305)*

*★_मसला नं:-1- खरीदे गए प्लॉट और मकान पर खरीदते वक्त उसमें 3 किस्म की नियत होती हैं- कभी तो यह नियत होती है कि यहां मकान बनाकर रिहाईस अखत्यार करेंगे ।अगर इस नियत से प्लॉट खरीदा है तो ऐसे प्लॉट पर जकात नहीं ।*

*★_मसला नं:-2- इसी तरह अगर खरीदते वक्त ना तो फरोख्त करने की नियत थी और ना ही खुद रहने की नियत थी ।इस सूरत में भी उस पर जकात नहीं।*

*★_ मसला नंबर 3- जो मकान या प्लॉट इस नियत से खरीदा जाए कि उसको बाद में फरोख्त कर देंगे तो ऐसे मकान और प्लॉट की हैसियत तिजारती माल की होगी। इस सूरत में उनकी कुल कीमत पर हर साल जितनी कीमत होगी जकात फर्ज होगी ।* 
*®_(बा हवाला दुर्रे मुख्तार 2/ 298 )*

*📓(फिक़हुल इबादात -279)*

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*★_ फिक्स डिपॉजिट पर जकात _★*

*★_ बैंक में रकम जमा करने का एक तरीका फिक्स डिपॉजिट है। इसकी सूरत यह है कि रकम को बैंक में एक मखसूस मुद्दत के लिए ( 3 या 5 या 7 साल ) इस शर्त पर रखते हैं कि मुद्दत मुकर्ररह से पहले यह रकम ना काबिले वापस होगी ,इस मुद्दत के खत्म होने पर यह रकम एक मुकर्ररह सूद के साथ वापस मिल जाती है । इस पर जो सूद मिलता है वह नाजायज और हराम होने की वजह से बगैर सवाब की नियत से सदका करना जरूरी है । असल जमा सुदा रकम पर जकात वाजिब है लेकिन उसकी अदायगी वसूली के साथ ही वाजिब होगी । वसूल होने से पहले वाजिब नहीं ,जायज़ है। अगर किसी ने वसूली से पहले ही जकात अदा कर दी तो भी जकात अदा हो जाएगी ।* *®_( माखूजाज़ -जदीद फिक़ही मसाइल- 132)*

*★_बैंक में जमा शुदा रक़म पर जकात_★*

*★_ बैंक में जमा शुदा रकम पर भी जकात वाजिब है ।साल गुजरने पर दूसरे माल के साथ उनकी (बैंक में जमा शुदा रकम की ) जकात भी अदा की जाए।*

*★_ फिक्स डिपॉजिट के अलावा दिगर अकाउंट्स जिनमें हर वक्त रकम निकालने का अख्त्यार होता है, उनमें वसूली का इंतजार ना करें ।*
*®_ (माखूजाज़- अहसनुल फतावा 4 /311)*
*🗂️_( फिक़हुल इबादात 279 )*

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*✷_ हज या मकान या बेटी की शादी के लिए रखी हुई रकम पर जकात_,✷* 
*★_ अगर किसी शख्स ने इतनी रकम जो साहिबे निसाब तक पहुंची है इसलिए जमा कर रखी है कि मैं इस से हज करूंगा या इससे मकान खरीद लूंगा या बनाऊंगा या इससे बेटी की शादी करूंगा वगैरा-वगैरा । तो अगर उस रकम पर साल गुजर गया तो उस पर जकात वाजिब हो गई। जब तक यह रकम रखी रहेगी खर्च नहीं हो जाएगी उस वक्त तक मालिक को हर साल जकात अदा करनी होगी । हज का इरादा करना या मकान खरीदना, बनवाना, बेटी की शादी वगैरह सब काम पर जकात की अदायगी के लिए उज्र तसव्वुर नहीं होंगे ।*
 *®_(फतावा दारुल उलूम देवबंद- जिल्द-6, बा हवाला दुर्रे मुख्तार- 7/2)*

*✷_ हज के लिए जमा रकम पर जकात _✷* 
*★_ मालदार होने के ऐतबार से जकात वाजिब होने की तारीखें मुख्तलिफ होती हैं ।मुकर्ररह तारीख में जो माल मिल्क में मौजूद होगा उस पर जकात फर्ज होगी ।अब अगर किसी ने हज के लिए रकम जमा करवाई है और उसका साल पूरा हो रहा है एक रमजान को ,तो आमदो रफ्त का किराया और मूअल्लिम वगैरह की फीस के लिए जो रकम दी गई है उस पर जकात नहीं। इससे ज्यादा जो रकम करेंसी की सूरत में उसको वापस मिलेगी उस पर जकात फर्ज है । दूसरी रकम के साथ उसकी जकात अदा करें ।*
 *®( माखूजाज़- अहसनुल फतावा -4/264)*
*( फिक़हुल इबादात-280)*

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 *★_किराए पर देने के लिए खरीदे हुए मकान या सामान पर जकात_★*

*❀_ एक शख्स के पास रहने के अलावा बहुत से मकान है और उन मकानों को किराए पर चलाने के लिए खरीदा है और मकसूद यह भी है ताकि उसका रुपया भी महफूज रहे तो ऐसे मकानात की कीमत पर जकात फर्ज ना होगी चाहे वह कितनी ही कीमत के हो। अलबत्ता उनके किराए से हासिल शुदा रकम निसाब के बा-कद्र या उससे ज्यादा जमा हो और साल भी गुजर जाए तो उसकी जकात देना जरूरी है ।*

*❀"_लेकिन अगर इस नियत से खरीदा है कि जब कीमत बढ़ जाएगी तो फरोख्त करके नफा कमाएंगे उस वक्त तक किराए चलता रहे तो फिर कीमत पर जकात फर्ज होगी।*
*®_(आप के मसाइल और उनका हल _जिल्द -3 )* 

*❀_इसी तरह अगर कोई शख्स बर्तन शामियाना फर्नीचर साइकिल वगैरा या और कोई सामान किराए पर देने के लिए खरीदता है और किराए पर चलाता है तो इन चीजों पर भी जकात फर्ज नहीं ।अलबत्ता किराए की वसूली शुदा रकम अगर बा-कद्र निसाब हो और उस पर 1 साल गुजर जाए तो इस रकम पर जकात फर्ज होगी।*

*❀"_ और अगर दूसरे माल का निसाब भी मौजूद है तो किराए की रकम को उसी माल में शामिल कर दिया जाएगा ।उस पर फिर मुस्तकिल साल गुजरना जरूरी नहीं होगा।*
 *®( फतावा क़ाजी खान_ 1/17)*
*📓 फिक़हुल इबादात-281*
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*✷ मक़रूज़ पर जकात का हुक्म_✷*

*★_ अगर कोई शख्स ऐसा है जिसके पास कुछ सोना और कुछ चांदी भी है जिस पर जकात फर्ज हो सकती है लेकिन वह मकरूज़ भी है । तो ऐसा शख्स अपनी तमाम चीजों को यानी सोना चांदी नकदी तिजारती माल वगैरा जो कुछ उसकी मिल्क में है उसको जमा करके फिर देखें कि कर्ज चुकाने के बाद उसके पास बा-कद्र निसाब यानी साढे बावन तोला चांदी की कीमत के बराबर रकम बचती है या नहीं ।अगर इतनी रकम बचती है तो उस पर उस ज़ाइद बची हुई रकम पर जकातकात फर्ज होगी ।*

*✷"_ अगर बा-कदरे निसाब रकम नहीं बचती तो मकरूज़ पर जकात फर्ज नहीं ।*
*®_(बा हवाला शराह बिदाया -2/168)*

*📓फिक़हुल इबादात-281,*
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*★_ कर्ज पर दी हुई रकम पर जकात_★*

*★_ कर्ज़ देना अपने मुसलमान भाई की जरूरत को पूरा करना है और यह बहुत अजरो सवाब का काम है ।कर्ज़ पर दी हुई रकम पर जकात कर्ज़ देने वाले के जिम्मे लाजिम है, लेने वाले के जिम्मे नहीं ।क्योंकि इसकी मालियात रकम कर्ज देने वाले की मिल्क में दाखिल है ।

*★_अगर किसी ने कुछ रकम कर्ज दे रखी है या फरोख्त शुदा माल की कीमत खरीदार के जिम्मे बाकी है ,तो उस रकम की जकात मालिक पर हर साल वाजिब होगी। अलबत्ता अख्तियार होगा कि चाहे वसूल होने से पहले जकात निकाल दे या जब यह कर्ज वसूल हो जाए (जितने सालों में भी वसूल हो ) तो गुजिश्ता तमाम सालों की जकात इकट्ठी निकाल दे।*

*📓 फिक़हुल इबादात -283,*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ लड़कियों के नाम किए हुए जेवरों पर जकात का हुक्म _★*

*★_ बाज़ लोग बच्चों के दहेज के नाम पर जेवरात खरीद लेते हैं उन पर जकात का हुक्म यह है कि अगर बच्चों को मालिक नहीं बनाया तो बाप के जिम्मे लाजिम है कि दूसरे माल के साथ उन जेवरात की भी जकात अदा करें।*

*★_ अगर बच्चों को मालिक बना दिया तो बालिग होने से पहले उस माल पर जकात फर्ज नहीं, बालिग होने के बाद जो लड़की साहिबे निसाब होगी उस पर जकात फर्ज होगी।*
*®_( बा हवाला- दुर्रे मुख्तार -2/ 258)*

*★_ लड़कियों पर जकात वाजिब होने की सूरत में अदायगी की दो सूरते हैं :-*
*(1) या तो बाप उनकी तरफ से जकात अदा करें ,*
*(2)_या लड़कियां अपनी तरफ से अदा करें।*
*"_ अगर ऐसी कोई सूरत ना हो तो जे़वरात का कुछ हिस्सा बेच करके जकात अदा कर दी जाए ।*

*📓फिक़हुल इबादात -282,*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
 *★_ चंदे की रकम पर जकात का हुक्म_★*

*★_अगर किसी इदारे ने बेवा या यतीम वगैरह मुस्तहकीन पर खर्च करने की नियत से चंदा करके जकात की रकम इकट्ठा की और वह रकम निसाब से ज्यादा है, साल के दौरान कुछ रकम आती रही और हस्बे जाब्ता कुछ खर्च होती रही । साल के आखिर में बा कदरे निसाब या इससे ज्यादा की बचत हो तो उस जकात की बची हुई रकम पर जकात फर्ज नहीं होगी क्योंकि यह कुल रकम ही जकात ही की है और यह किसी फर्दे वाहिद की मिल्क में दाखिल भी नहीं है ।*
*®_(अहसनुल फतावा- 4 /299)*

*★_ मुर्गी खाना और मछली के तालाब पर जकात ★*

*★_ मुर्गी खाना और मछली के तालाब की जमीन मकान और इससे मुतालिक सामान पर जकात नहीं। मुर्गियां और चूजें खरीदते वक्त अगर उन्हीं को बेचने की नियत हो तो उनकी मालियात पर जकात है और अगर उनकी बजाए उनके अंडे और बच्चे बेचने की नीयत हो तो जकात वाजिब नहीं ।*
*®_(फतावा क़ाज़ी खान-1/ 117)*

*★_ तालाब में मछलियां या उनके बच्चे खरीद कर डाले हैं तो उनकी मालियात पर जकात फर्ज है वरना नहीं । मुर्गी खाना और तालाब की आमदनी पर बा -हर सूरत जकात है ।*
*®_ (अहसनुल फतावा-4 /300)*

*📓 फिक़हुल इबादात -285,*
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*★_ मसारिफे जकात और उसकी तफसील _★*

*★_जकात की अदायगी के लिए शरीयत मुतहरा ने यह उसूल मुकर्रर फरमाया है कि जकात सिर्फ उन्हीं लोगों को दी जा सकती है जो मुस्तहिक़ हो और मुस्तहिके जकात वह लोग हैं जिनके पास साढे 52 तोला चांदी या इसकी कीमत की बराबर रकम या इतनी मालियात का कोई सामान जरूरत से ज्यादा ना हो ।*
*®_(बा हवाला -दुर्रे मुख्तार 2/ 3467)* 

*★_जकात की अदायगी की शर्त_★*

*★_ जकात की अदायगी के लिए यह शर्त लाजिम है कि किसी मुस्तहिक शख्स को बगैर किसी आवाज के महज लिल्लाह फिल्लाह मालिक बना कर दे दी जाए । लिहाजा जिन सूरतों में किसी को मालिक नहीं बनाया जाए उनमें जकात अदा नहीं होगी ।*
*®_(बा-हवाला दुर्रे मुख्तार- 2/ 344)*

*★_ मशरफ तलाश करने में कोताही _★*

*★_ इस सिलसिले में बाज़ लोग यह कोताही बरतते हैं कि जकात निकालते तो हैं लेकिन इसकी परवाह नहीं करते कि सही मसरफ में लग रही है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि लापरवाही में गैर मुस्तहिक को जकात दे दी और समझते रहे अपने जिम्में से फारिग हो गए ।*

*★_हालांकि गैर मुस्तहिक को देने की वजह से जिम्मा फारिग नहीं हुआ क्योंकि जिस तरह मालदार का जकात की अदायगी जरूरी है मुस्तहिक तलाश करना भी जरूरी है ।*

*★_बगैर तहकी़क़ किसी भी शख्स को जकात की रकम पकड़ा दी तो उससे ना जकात अदा होगी ना जिम्मा फारिग होगा, इसलिए खूब तहकीक करके देना लाज़िम है ।*

*📓 फिक़़हुल इबादात- 286*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ गरीब रिश्तेदारों को जकात देने की फजीलत_,★*

*★_ अगर आपके अजी़जो़ अका़रिब में गरीब लोग मुस्तहिके जकात हो तो उनको जकात व सदकात देना ज्यादा बेहतर है और दोहरा सवाब रखता है ।अव्वल सदके का और दूसरा सिलह रहमी का , इसमें यह भी जरूरी नहीं है कि उन्हें यह बता कर जकात दे कि सद्का या जकात दे रहा हूं बल्कि किसी तोहफा या हदिया के उनवान से भी दिया जा सकता है ताकि लेने वाले शरीफ आदमी को अपनी खफ्त महसूस ना हो ।*

*★_ सुलेमान बिन आमिर रजियल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि किसी अजनबी मिस्कीन को अल्लाह के लिए कुछ देना सिर्फ सदका है और अपने किसी अज़ीज़ व अक़ारिब (जरूरतमंद ) को अल्लाह के लिए देने में दो पहलू हैं और दो तरह का सवाब है ।*
*"_एक यह कि सदका है दूसरा यह कि सीलह रहमी हैं (यानी हके़ क़राबत की अदायगी जो बजाय खुद बड़ी नेकी है)*
*®_(मुसनद अहमद , तिर्मिज़ी )*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
 *★_ जकात अदा करने का तरीका-_★*

*★_ जकात देते वक्त जकात की नियत जरूरी है जो चीज जकात की नियत से ना दी जाए उससे जकात अदा नहीं होगी ।बेहतर है कि जकात की नियत करके कुछ रकम अलग रख ली जाए और फिर उसमें वकतन फा वकतन थोड़ी-थोड़ी देते रहे तो जकात अदा हो जाएगी ।*

*★_एकमुश्त जकात अदा हो जाती है मगर किसी को एकमुश्त इतनी जकात दे देना कि वह साहिबे निसाब हो जाए मकरूह है।*

*★_ जकात देते वक्त यह बताना जरूरी नहीं है यह जकात है हदिया या तोहफा के उनवान से अदा की जाए और अदा करते वक्त नियत जकात की कर ली जाए तो जकात अदा हो जाएगी।*

*★_अगर दूसरा आदमी साहिबे माल के हुक्म या इजाजत से उसकी तरफ से जकात अदा कर दें तो जकात हो जाएगी वरना नहीं ।*

*★_रियाकारी और नुमाइश की गरज से जकात की तशहीर जायज़ नहीं बल्कि इससे सवाब बातिल हो जाता है ।*

*★_पेशगी जकात अदा करना भी सही है जकात अदा हो जाएगी। अगर कोई शख्स गफलत और कोताही की वजह से फराइज को छोड़ता है तो फराइज़ माफ नहीं होंगे बल्कि हिसाब करके जकात जितने सालों की जिम्मे है वकतन फा वकतन थोड़ी थोड़ी अदा करते रहे यहां तक कि जकात पूरी हो जाए ।*

*★_दुकान में जितना मालियात का सामान है उनकी कीमत लगाकर जो कर्ज अगर जिम्मे हो उसको घटाकर जो रकम बचे उसका 40 वां हिस्सा जकात अदा कर दें ।*

*★_जकात की रकम का जब तक किसी मिस्कीन फकीर या मुस्तहिक को मालिक नहीं बना दिया जाएगा जकात अदा नहीं होगी ।*

*★_रद्दी और ना बिकने वाली चीज का जकात में देना इखलास के खिलाफ है ।*

*★_कर्ज़ दी हुई रकम में जकात की नियत करने से जकात अदा नहीं होगी क्योंकि कर्ज देते वक्त जकात की नियत नहीं होती है और जकात अदा करते वक्त नियत करना शर्त है । ऐसे ही मुलाजिम को एडवांस दी हुई रकम की जकात की नियत करना दुरुस्त नहीं ।जकात की रकम से मुलाजिम को तन्खाह देना जायज़ नहीं ।इमदाद के लिए जरूरत या मोहताज समझकर तनखाह के अलावा जकात दे दी जाए तो जकात अदा हो जाएगी ।*

*★_जकात की रकम को मस्जिद में लगाना जायज नहीं ।*

*★_औरत के पास रुपया पैसा ना हो तो जेवर बेचकर जकात अदा करें ।*

*★_अगर रुपया पैसा ना हो तो साबका और आइंदा सालों की जकात में जेवर दे सकते हैं।*

*★_ इनकम टैक्स अदा करने से जकात अदा नहीं होती ।इनकम टैक्स मुल्की जरूरत के लिए गवर्नमेंट की तरफ से मुकर्रर होता है जबकि जकात एक मुसलमान के लिए फरीज़ा ए खुदावंदी और इबादत है ।इनकम टैक्स अदा करने से जकात अदा नहीं होती बल्कि जकात का अलग अदा करना जरूरी है ।*

*📓आप के मसाइल और उनका हल -3/ 382*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ इन रिश्तेदारों को जकात दे सकते हैं_★*

*★_ इन रिश्तेदारों को जकात दी जा सकती है बशर्ते की वह मुस्तहिके जकात हो :-*
*"_१_अपने हकीकी भाई बहन (जिनके मां बाप एक हों), आलाती भाई बहन (जिनके बाप एक हों लेकिन मां अलग-अलग हों), अखियाफी भाई बहन( जिनकी मां एक और बाप अलग-अलग हों), रजा़ई भाई बहन (जिन्होंने मुद्दतें रजा़अत में एक ही औरत का दूध पिया हो ) इनको जकात दे ना दुरुस्त है इसी तरह इनके अलावा को भी देना दुरुस्त है ।*

*२_अपने चाचा चाची फूफा फूफी मामू मुमानी खाला खालू और इन सब की औलादों को भी जकात देना दुरुस्त है ।*
*३_अपने सौतेले मां बाप ,रजाई मां बाप ,रजाई बेटा बेटी और इन सब की औलादों को भी जकात दे ना दुरुस्त है ।*
*४_अपने ससुर सास और उनकी औलाद को भी जकात देना दुरुस्त है ।*

*५_शौहर अपनी बीवी की ऐसी औलाद जो उसके पहले शौहर से हो ,इसी तरह से बीवी अपने शौहर की ऐसी औलाद जो पहली बीवी से हो उनको जकात देना दुरुस्त है ।*
*६_अपने दामाद और बहू को भी जकात देना दुरुस्त है।*
*®_(फतावा दारुल उलूम देवबंद जिल्द- 6 )*

*★_ इन रिश्तेदारों को जकात नहीं दे सकते ★*

*★_१-अपने मां बाप दादा दादी और परदादा परदादी को जकात देना दुरुस्त नहीं है ।*
*२_अपने नाना नानी और परनाना और परनानी को भी जकात दे ना दुरुस्त नहीं है ।*
*३_अपने हकीकी बेटा बेटी और उनकी औलाद यानी पोता पोती और परपोते परपोती नवासा नवासी परनवासा परनवासी को भी जकात देना दुरुस्त नहीं है।*
*४_ शौहर अपनी बीवी को और बीवी अपने शौहर को भी जकात नहीं दे सकती है।*

*📘 फिक़हुल इबादात- 288,*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ शादीशुदा औरत को जकात देना_★*

*★_ औरत जिसका महर निसाब के बराबर या उससे ज्यादा हो और यह उम्मीद हो कि जब यह औरत मेहर तलब करेगी तो उसका शौहर बिला ताअमुल दे देगा तो ऐसी औरत को जकात देना नाजायज है । लेकिन अगर शौहर इतना गरीब है कि मेहर अदा नहीं कर सकता या मालदार तो है लेकिन नहीं देता और खुद औरत के पास निसाब के बा कद्र माल मौजूद नहीं तो ऐसी औरत को जकात देना दुरुस्त है ।*
*®_(बा हवाला -शरह तनवीर -2/ 113)*

*★_ सैयद को जकात का हुक्म_★*

*★_ सैयद को भी जकात देना नाजायज है । अलबत्ता अगर उसकी बीवी गैर सैयद हो और मुस्तहिके जकात है तो उसको जकात दे सकते हैं । वह जकात की मालिक होने के बाद चाहे तो अपने शौहर पर और बच्चों पर भी खर्च कर सकती है।*

*★_ बनी हाशिम को जकात_★*

*★_ इसी तरह हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु हजरत ज़ाफर रजियल्लाहु अन्हु हजरत अकील रजियल्लाहु अन्हु हजरत हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब रजियल्लाहु अन्हु की औलाद को भी जकात देना नाजायज है । क्योंकि यह सब हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के खानदान से है । अगर यह गरीब है तो उनकी मदद और इआनत हदाया, अतियात से करनी चाहिए ।*
*(शरह बिदाया- 2/188)*

*📘 फिक़हुल इबादात-289,*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
           *★_ मुतफर्रिक _★*

*★_ जकात लेने वाले के ज़ाहिर का ऐतबार होगा अगर ज़ाहिर के हाल को देखकर दिल मानता हो कि यह मुस्तहिक होगा उसको जकात दे दी जाए। अगर कोई मुस्तहिक ना हो बल्कि अपने आप को ज़ाहिर करें और उसके ज़ाहिर को देख कर गुमान के मुताबिक जकात दे दी गई तो जकात अदा हो गई। मगर जकात ऐसे भीख मंगों को नहीं देना चाहिए ।*

*★_जिस को जकात दी जाए उसको बताना जरूरी नहीं कि यह जकात की रकम है सिर्फ जकात की नियत कर लेना काफी है।*

*★_ इमामे मस्जिद मुश्तहिक है तो जकात दे सकते हैं लेकिन तनख्वाह में जकात की रकम नहीं दे सकते ।*

*★_गैर मुस्लिम को जकात देना जायज नहीं। निफ्ली सदका दे सकते हैं ।*

*★_दीनी मदारिस को जकात देना बेहतर है क्योंकि गुरबा मसाकीन की इआनत के साथ साथ उलूमें दीनियात की सरपरस्ती भी होती है ।*

*★_फलाही इदारे तमाम (जो जकात वसूल कर के मुस्तहिक तक पहुंचाते हैं )जकात के वकील हैं , जब तक मुस्तहिक को अदा ना कर दे ।*

*★_जकात से चंदा वसूल करने वाले को मुकर्ररह हिस्सा (कमीशन) देना जायज नहीं ।*

*📘आप के मसाइल और उनका हल 3 /390 ,*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
 *★_ बेवा को जकात का हुक्म_★*

*★_ बाज़ लोग यह समझते हैं कि अगर कोई बेवा है तो उसको जकात जरूर देनी चाहिए हालांकि यहां भी शर्त यह है कि वह मुस्तहिके जकात हो ,साहिबे निसाब ना हो । अगर बेवा मुस्तहिके जकात है तो उसकी मदद करना बड़ी अच्छी बात है लेकिन अगर कोई बेवा खातून मुस्तहिके जकात नहीं तो महज बेवा होने की वजह से वह मशरफे जकात नहीं ।(यानी उसको जकात नहीं दे सकते) बल्कि ऐसी खातून पर तो खुद जकात की अदायगी फर्ज होती है।*

*★_ लिहाजा खूब तहकी़क़ के बाद जकात दी जाए ।बहुत सी बेवाओं के बारे में पता चलता रहता है उनके पास बहुत कुछ माल है जिसकी वजह से वह खुद साहिबे निसाब है , बहरहाल सिर्फ बेवा होना इस्तहका़क़ की जमानत नहीं है ।*
*®_(हिन्दिया -1/137 )*
 
*★_ यतीम को जकात का हुक्म_★*

*★_ इसी तरह यतीम को जकात देना उसकी मदद करना भी बहुत अच्छी बात है ।यहां भी देखा जाए कि वह मुस्तहिके जकात है कि नहीं । अगर वह साहिबे निसाब है तो फिर यतीम होने की वजह से जकात नहीं दी जा सकती , लिहाजा इन अहकामात को मद्देनजर रखते हुए जकात देनी चाहिए।*

*📘 फिक़हुल इबादात-290,*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
 *★_ खैर और तामीर के काम में जकात_★*

*★_मस्जिद मदरसा खानका़ह कुआं पुलिया किसी इदारे की तामीर वगैरह में जकात की रकम खर्च करना जायज नहीं ।अगर उसमें खर्च कर दी गई तो जकात अदा नहीं होगी । क्योंकि उस माल में जकात को मालिकाना तौर पर नहीं दिया गया जबकि अदा ए जकात के लिए मुस्तहिक शख्स को मालिक बना कर देना जरूरी है_,*
*®_(शरह तनवीर-2/100)*

*★_ जकात की रकम इन कामों में भी खर्च की जा सकती है_★*

*★_१- जकात की रकम से दीनी किताबें और कुरान मजीद छपवा कर या खरीद कर मुस्तहिक तलबा और अहले इल्म को मालिक बना कर देना ।*

*★_२_जकात की रकम से मदरसे के तलबा का माहाना वजीफा मुकर्रर करना ।*

*★_३_जकात की रकम से मदरसे के गरीब उस्तादों की मुआवनत करना। ( तनख्वाह के अलावा)*

*★_४_ जकात की रकम से किसी जरूरतमंद और हाजत मंद का माहाना मुकर्रर करना।*

*★_५_ जकात की रकम से मुजाहिदीन कि जिहाद की जरूरत पूरी करना।*

*★_६- जकात की रकम से गरीब वालदेन की लड़की (जो साहिबे निसाब ना हो )की शादी में मुआवनत करना वगैरा-वगैरा ।*

*🗂️_ (फिक़हुल इबादात- 290)*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
     *★_ हीला तमलीक़ _★*

*★_ बाज लोग जो मदारिस या मस्जिद के मसारिफ आम में जकात सर्फ करने के लिए एक हीला किया करते हैं कि अव्वल किसी मिस्कीन को समझा दिया कि हम तुमको रुपया देंगे फिर तुम मस्जिद या मदरसे में दे देना और फिर उसको जकात की रकम देते हैं वह मदरसा और मस्जिद में दे देता है और इसको हिला तमलीक़ कहा जाता है।*

*"★_ चूंकि यकीनी बात है इसमें देने वाला हकीकत में उस मिस्कीन को मालिक नहीं बनाता महज़ सूरत तमलीकी़ है और ना ही देने वाला मिस्कीन बा तैयब खातिर मस्जिद या मदरसे को देता है। लिहाजा इस तरह जकात अदा नहीं होती।*

*★ _ तमलीक की सही सूरत :--*  
*"★_ अगर कहीं ऐसे मौके पर जकात से इमदाद करने की जरूरत हो तो इसकी एक तदबीर है जो बिल्कुल क़वायद के मुताबिक है, यह है कि किसी मिस्कीन को मशवरा दिया जाए कि तुम मसलन (1000) रूपया किसी से कर्ज लेकर फलां सैय्यद को दे दो या मस्जिद या मदरसे में दे दो तो हम तुम्हारी इआनत अदाएं कर्ज में करा देंगे। जब वह मिस्कीन वहां दे दे तो तुम उस मिस्कीन को (1000) रूपया जकात में दे दो ।*
*( माखूज़- इस्लाहुल मुस्लिमीन)*

*📘 फिक़हुल इबादात-291*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_कर्ज माफ करने से जकात अदा का हुक्म_★*

*★_ अगर किसी गरीब आदमी पर आपके मसलन ₹1000 कर्ज हैं और आपके माल की जकात भी ₹1000 या इससे ज्यादा है तो अगर आपने अपना कर्ज उसको जकात की नियत से माफ कर दिया तो जकात अदा नहीं होगी ।*

*"★_ अलबत्ता अगर उसको ₹1000 जकात की नियत से दे दे तो जकात अदा हो गई ।अब वही ₹1000 अगर अपने कर्ज में उसे वसूल कर लें तो दुरुस्त है ।*
*®_(दुर्रे मुख्तार -2/ 18)* 

*★_अमानत और पेशगी रकम पर जकात_★*

*★_ अगर किसी के पास रकम रखवाई है तो उसकी जकात अमानत रखवाने वाले के जिम्मे होगी ना कि जिसके पास रखी है क्योंकि यह रकम अमानत रखवाने वाले की मिल्क है ।*
*®_(किफायतुल मुफ्ती ,जिल्द 4)*

*★_ किराए के मकान और दुकान के लिए जो रकम बतौर जमानत पेशगी किराएदार से ली जाती है वह मालिके मकान व दुकान के पास अमानत रहती है और काबिले वापसी होती है। लिहाजा इस की जकात किराएदार के जिम्मे है मालिक दुकान या मकान के जिम्मे नहीं ।*
*(आप के मसाइल और उनका हल- जिल्द 3)*

*📘 फिकहुल इबादात-295*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ जकात की नियत का हुक्म _★*

*★_ जकात की अदायगी के लिए नियत अदाएं जकात भी जरूरी है। जिस वक्त जकात का रुपया वगैरह किसी मुस्तहिक को दे उस वक्त दिल में यह नियत जरूर कर लेना चाहिए कि मैं जकात अदा करता हूं ।*
*"_अगर किसी ने यूं किया कि जकात की रकम हिसाब करके अलग करके रखी कि जब मुस्तहिक आ जाएंगे तो देता जाऊं। तो यह नियत भी काफी हो जाएगी फिर चाहे देते वक्त नियत ना करें।*
*®_( बा-हवाला -शरह बिदाया 1/ 180)*

 *★_अगर किसी मुस्तहिक को जकात का माल देते वक्त अदा ए जकात की नियत नहीं की तो जब तक वह माल उस गरीब( जिसको जकात दे गई) के पास मौजूद है उस वक्त तक भी नियत कर लेना दुरुस्त है, अब नियत करने से भी जकात अदा हो जाएगी ।*
*"_अलबत्ता फकीर के पास से उस माल के खर्च हो जाने के बाद नियत की तो उस नियत का ऐतबार नहीं ।अब दोबारा जकात देना पड़ेगी।*
*®_(बा हवाला दुर्रे मुख्तार- 2/16)*

*📘 फिक़हुल इबादात- 292,*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ थोड़ी थोड़ी और अश्या की शक्ल में जकात_★*

*★_ जितनी मिक़दार में जकात वाजिब हुई है उसकी अदायगी जरूरी है चाहे तो साल के आखिर में एकमुश्त अदा करें तो यह भी दुरुस्त है और चाहे तो हर माह कुछ रकम थोड़ी थोड़ी करके पेशगी साल भर जकात की नियत से निकालता रहे ताकि साल के खत्म पर बोझ ना पड़े, यह भी दुरुस्त तरीका है।*

*"_बहरहाल मिकदार जकात वाजिब है जिसका अदा करना जरूरी है चाहे किसी भी तरीके से हो ।*
*📘आप के मसाइल और उनका हल- जिल्द 3,*

*★_ कोई शख्स अगर रकम देने के बजाय जकात के रूपयों से गल्ला कपड़ा या दीगर इश्तेमाली चीजों को खरीद कर मुस्तहिक़ को देता है इससे भी जकात अदा हो जाएगी ।*
*"_हालत को देखकर चाहे रकम दे दी जाए या इस्तेमाली चीजें खरीद कर हदिया या तोहफा के नाम से दे दी जाए दोनों सूरतों में जकात अदा हो जाएगी बशर्ते कि मालिक बना कर दी जाए।*
*📘 अहसनुल फतावा-4/291,*

○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
*★_ सूदी अकाउंट पर जकात _★*

*★_ बैंक अकाउंट से जकात वसूल करने पर बाज़ जहनों में यह खिलजान रहता है कि सूदी अकाउंट है और सूद और जकात कैसे जमा हो सकते हैं ,*

*★_अगर किसी शख्स की आमदनी हलाल और हराम से मखलूत (मिली जुली) हो और वह मजमुआ( कुल जमा रकम) मे से जकात निकाल दे तो कोई कबाहत नहीं । फर्क सिर्फ इतना है कि हलाल आमदनी का ढाई पर्सेंट शरअन जकात होगा और हराम आमदनी का ढाई पर्सेंट जकात नहीं होगा बल्कि सदका़ समझा जाएगा ,जो हराम आमदनी से जान छुड़ाने के लिए करना वाजिब था ।*

*★_असल शरअन हुक्म यह है कि सूद लेना कतअन हराम है लेकिन अगर कोई शख्स सूद वसूल कर ले तो वह पूरा का पूरा (सूदी रकम) फुक़रा व मसाकीन को दे देना वाजिब है।*

*★_ गुजिश्ता सालों की जकात_★*

*★_ एक शख्स ने 2-3 (या इससे ज्यादा) साल की जकात अदा नहीं की । अब दूसरे, तीसरे (या इससे ज्यादा) सालों की जकात अदा करने की सूरत यह है कि पहले साल की जकात मुनहमा करने के बाद (हिसाब करने के बाद ) जो रकम बचती है दूसरे साल उस पर जकात अदा करें, फिर उसके बाद जो रकम बचती है तीसरे साल उसकी जकात अदा करें।*

*"★_( इसी तरह गुजिस्ता तमाम बकि़या सालों का हिसाब करके जकात अदा करें ।)*
*®_( बा हवाला- बिदाया-2/7*
 
*📘 फिक़हुल इबादात-298*
○═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅═┅○
 *★_ जकात देने में गल्ती हो जाए तो इसका हुक्म_★*

*★_ अगर किसी शख्स ने किसी को गरीब व मुस्तहिक समझ कर जकात दे दी, फिर मालूम हुआ कि वह तो जि़म्मी काफिर (यानी ऐसा काफिर जो दारुल इस्लाम के शहरी हुक़ूक़ रखता हो) या मालदार या सैयद है ।*
*"_या रात के अंधेरे में किसी को दे दिया फिर मालूम हुआ कि वह उसकी मां उसका बाप या कोई ऐसा रिश्तेदार है इसको जकात देना उसके लिए दुरुस्त नहीं था।*

*"★_ इन सूरतों में जकात अदा हो गई दोबारा लौटाने की जरूरत नहीं क्योंकि जकात की रकम उसके मिल्क से निकल कर महले सवाब में पहुंच चुकी है और जो गलती किसी अंधेरी या मुगालते की वजह से हो गई वह माफ है।*
*®_( फतावा दारुल उलूम- जिल्द 2)*

*★_और अगर जकात देने के बाद मालूम हुआ कि जिसको जकात दी है वह गैर काफिर है (यानी ऐसा काफिर जो दारुल इस्लाम के शहरी हुक़ूक़ ना रखता हो) तो फिर जकात अदा नहीं होगी दोबारा अदा करना पड़ेगी ।*

*★"_अगर किसी के बारे में शक हो कि मालूम नहीं मुस्तहिक है या नहीं?तो जब तक तहकीक़ ना हो जाए उस वक्त तक उसको जकात ना दें लेकिन अगर बगैर तहकी़क़ के दे दी अब अगर गुमान है यह गरीब था तो जकात अदा हो गई और गालिब गुमान यह हो कि मालदार था तो जकात अदा नहीं होगी दोबारा अदा करनी पड़ेगी ।*

*📘 फिक़हुल इबादात-297*

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*★_ पैदावार पर जकात (उशर्)_★*

*★_ उशर् जमीन की पैदावार की जकात है। अगर जमीन बारानी हो कि बारिश के पानी से सैराब होती हो तो पैदावार उठने के वक्त उसका दसवां हिस्सा अल्लाह ताला के रास्ते में देना वाजिब है।*

*★_ अगर जमीन को खुद सैराब ( पानी देकर) किया जाता है (कुआं ट्यूबवेल नहर तालाब से) तो पैदावार का 20 वां हिस्सा सदका़ करना वाजिब है ।*

*★_हमारे इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलैह के नजदीक पैदावार कम हो या ज्यादा उस पर उशर् वाजिब है ।*

*★_जानवरों के चारे के लिए कास्त की गई फसल पर भी उशर् वाजिब है ।*

*★_एक बार उशर् अदा करने के बाद जब तक उसको बेचा नहीं जाता उस फसल पर दोबारा उशर् नहीं है, ना ही जकात।*

*★_ फसल बेचने के बाद जो रकम हासिल होगी उस पर जकात उस वक्त वाजिब होगी जब साल गुज़र जाए, अगर यह शख्स पहले से ही साहिबे निसाब है तो जिस वक्त यह अपने निसाब पर साल पूरा होने पर जकात अदा करेगा तो इस रकम पर भी जकात अदा करेगा ।*

*★_जमीन में जो अख़राजात ( खर्च ) होते हैं ( बीज खाद ट्रैक्टर वगैरह ) पैदावार में से इसको घटाया (उनका खर्च कम नहीं किया जाएगा) नहीं जाएगा, बल्कि पूरी फसल पर 20 वा या दसवा (जैसी फसल है) हिस्सा अदा करना होगा ।*

*★_काबिले फरोख्त बाग या काबिले नफा फल होने पर बेचने वाले मालिक के जिम्मे उशर् होगा।*

*★_ हिस्सेदारी की पैदावार पर अपने अपने हिस्से की पैदावार का उशर् अदा करें। उसूल यह है कि फसल जिसके घर आएगी जमीन का उशर् भी उसके जिम्मे होगा ।*

*★_उशर् की रकम को भी फुक़रा मसाकीन को दी जाएगी ।* 

*➡ तमाम मसाईल को बेहतर यह है कि अपने उलमा किराम से समझा जाए।*

*★_अल्हम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुए _,*

*📘 आप के मसाइल और उनका हल -3/ 408,*
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