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┣━━━● *माह- ए - सफर - की*
┣━━━━━━● *बिद'अतें*
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*✿☞ _ तेरह तेज़ी की हक़ीक़त ✦*
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*✪_ इस्लाम से बेपरवाह और जाहिल लोगों ने जहां और बहुत सारी बिद'आत व खुराफात को जन्म दिया है वहीं माहे सफर की वह बिद'आत भी जारी की है जिसको आमतौर पर लोग "तेरा तेजी " कहते हैं । इसकी शर'अन हैसियत को लिखने से पहले ज़रूरी है कि आवाम की नज़र में इस तेरह तेजी की हकीकत क्या है इसको बयान किया जाए।*
*✪_ लोग कहते हैं कि माहे सफर के शुरू के 13 दिनों में नहुसत है क्योंकि इन दिनों में सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सख्त बीमार हो गए थे, यह बीमारी इसी नहूसत का असर है और शायद इस महीने को तेरा तेज़ी भी इसी वजह से कहते हैं कि यह सख्त और बुरे और मनहूस दिन ख्याल कर लिए गए हैं और तेज़ी का मतलब भी सख्ती और परेशानी है।*
*✪_ इस तरह आम लोगों के नज़दीक 13 तेज़ी का मतलब यह हुआ कि सफर के महीने के शुरू के 13 दिन निहायत मनहूस और बुरे हैं ।यह लोगों का गलत अकी़दा है फिर इस गलत अक़ीदे पर जिन कामों की बुनियाद रखी गई है वह भी बेकार और बातिल (झूठे) है।*
*✪_ मसलन:- इन दिनों में किसी चीज़ की खरीद करना मनहूस और बुरा समझा जाता है, शादी या कोई खुशी की तकरीब ( प्रोग्राम ) करना बुरा समझा जाता है यानी लोगों की नज़र में यह दिन इतने मनहूस समझे जाते हैं कि इन दिनों में कोई खुशी व मसर्रत का काम नहीं किया जा सकता और किया जाए तो भी नहूसत के असर से वह काम ना होगा या रंजीदा (गमगीन ) साबित होगा ।*
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*✿☞ _ गौर करने की बातें_,✦*
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*✪_ तेरा तेजी के इस गलत अक़ाइद और इसके मुताल्लिक कामों की शर'अन हैसियत मालूम करने के लिए हमें दो बातों पर गौर करना चाहिए,*
*✪_1- एक यह कि क्या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम सफर के शुरू में 13 दिन बीमार रहे ? ज़ाहिर है ये एक तारीखी बात है जिसका जवाब हमें तारीख ही दे सकती है ।*
*✪_2-दूसरा यह कि अगर वाक़ई आप इन दिनों बीमार रहे थे तो क्या इसकी वजह से उन दिनों की नहूसत है और क्या हमें इसकी बिना पर इन दिनो को मनहुस क़रार देना और इनमें शादी ब्याह और खुशी की तक़रीबात से और खरीद-फरोख्त से परहेज़ करना जायज़ है ?*
*☞ _रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की बीमारी के अय्याम _,*
*✪_ पहले हम पहली बात को लेते हैं कि क्या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सफर के शुरू तेरा दिन बीमार रहे ? इसका जवाब यह है कि आप अपने मरजुल वफात में तेरा दिन बीमार तो रहे मगर यह तेरा दिन कौन से थे ? इसमें अक्सर उल्मा का क़ौल यह है कि यह सफर के आखिरी और रबीउल अव्वल के शुरू के दिन थे ,*
*✪_जैसा कि अल्लामा इब्ने हजर की फताहुल बारी-8/129 और इब्ने हिबान की सक़ात इब्ने हिबान-3/130 से साबित होता है _,*
*✪_ और सीरत इब्ने हिशाम में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का मरजुल वफात सफर के आखिरी दिनों में या रबी उल अव्वल के इब्तिदाई दिनों में शुरू हुआ _,"*
*®_(सीरत इब्ने हिशाम-2/ 642)*
*✪_ इससे मालूम हुआ कि आपकी बीमारी के बारे में दो क़ौल हैं , एक यह कि सफर के आखिरी और रबी उल अव्वल के शुरू में बीमार होकर वफात पाएं, दूसरा क़ौल यह है कि आप रबी उल अव्वल के शुरू में बीमार होकर वफात पाएं ।*
*✪_इससे पता चलता है कि तारीख के ऐतबार से यह बात सही नहीं है कि आप सफर के शुरू तेरा दिन बीमार रहे बल्कि सही यह है कि आप की बीमारी सफर के आखिरी दिनों में शुरू हुई और रबी उल अव्वल में जाकर खत्म हुई।*
*✪_ अब आप ही गौर कीजिए कि जब तेरा तेजी की बिद'अत की बुनियाद गलत हो गई तो फिर जो अक़ीदा व अमल का़यम किया गया है वह कैसे दुरुस्त हो सकता है।
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*✿☞ तेरहवे दिन खुशी का तमाशा _,*
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*✪_ एक अजीब बात यह है एक तरफ से यह कहा जाता है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सफर के शुरू में तेरा दिन बीमार रहे और दूसरी तरफ सेहत इफाक़ा को सफर के आखरी बुध के साथ मखसूस करते हैं , ज़ाहिर है कि जब आप 13 दिन बीमार रहे तो 13 दिन के बाद ठीक हो गए होंगे तो तेहरवे दिन को से याबी का दिन क्यों नहीं क़रार दिया जाता है ( आखरी बुध ही को क्यों ?)*
*✪_ और अगर कहा जाए कि यह तेरा दिन की बीमारी किसी और मौके की है और आखिरी बुध की सेहत याबी किसी और बीमारी के बाद हुई है तो फिर यह सवाल पैदा होता है कि लोगों ने जिस तरह आखिरी बुध को सेहत याबी का दिन क़रार देकर खुशी व तफरीह को लाज़िम किया है उसी तरह वो तेरा तेजी की बीमारी के बाद तेरहवें दिल दिन को खुशी का दिन क्यों क़रार नहीं देते ?*
*"✪_मालूम होता है कि नफ्स ने जो समझाया उसको अख्तियार कर लिया अक़्ल को काम में लिया ही नहीं गया ।
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*✿☞ _क्या बीमारी नहूसत से आती है ✦*
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*✪_अगर हम बिल फर्ज यह मान लें कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सफर के शुरू दिनों में ही बीमार हुए या कि किसी और मौक़े पर इन दिनों में बीमार हुए थे तो क्या इसकी वजह से इन दिनों को या सफर के महीने को मनहूस समझना दुरुस्त होगा ?और क्या बीमारी को मनहूस खयाल करना या यह समझना की बीमारी नहूसत से आती है सही होगा ? यह दूसरा नुक्ता है जिस पर हमें गौर करना चाहिए।*
*✪_ इस सिलसिले में अर्ज़ है कि इस्लामी तालीम के मुताबिक ना खुद बीमारी मनहूस है और ना ही यह नहूसत से आती है बल्कि मोमिन के लिए यह सरासर रहमत और नियामत है और अल्लाह ताला की तरफ से आती है ,हदीस शरीफ में इसका ज़िक्र मोजूद है ।*
*✪_ हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अल्लाह जिस शख्स के साथ भलाई का इरादा फरमाते हैं उसे मुसीबत (या बीमारी ) में मुब्तिला कर देते हैं ।*
*®_(बुखारी-२/८४३, मौता इमाम मोहम्मद-३९९)*
*✪_ हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में आपकी बीमारी के ज़माने में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया कि आपको तो सख्त बुखार है ।*
*"_आप ने फरमाया कि हां , मुझे अकेले तुम में से दो के बराबर बुखार है। मैंने अर्ज़ किया यह शायद इसलिए कि आपको दो अजर् (सवाब) मिले?*
*"_फरमाया कि हां ,यह इसलिए है और इसलिए कि मोमिन को कांटा या इससे भी कम कोई (तकलीफ) चीज़ पहुंचती है तो अल्लाह ता'ला उसको उसके गुनाहों का कफ्फारा (बदला) बना देते हैं, जैसे खुश्क दरख़्त के पत्ते गिरते हैं ( गुनाह भी ऐसे ही गिरते हैं )*
*®_(बुखारी 2/ 843, मुस्लिम 2/ 318)*
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*✿☞ _ बीमारी रहमत व बरकत है ✦*
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*✪_ और बाज़ रिवायात में है कि बीमारी से अजरो सवाब और दरजात की बुलंदी नसीब होती है, जैसा कि मुस्लिम शरीफ में मुताद्दिद रिवायात में मजक़ूर है।*
*®_( मुस्लिम -2/318- 319)*
*✪_एक हदीस में है कि मोमिन के मामले पर ताज्जुब है कि उसकी हर बात खैर ही खैर है और अगर उसको खुशी हासिल हुई और उसने उस पर शुक्र किया तो यह उसके लिए भलाई और खैर है और अगर उसको तंगी व परेशानी हुई और इस पर उसने सब्र किया तो यह भी उसके लिए भलाई और खैर है ।*
*®_(मिश्कात 452)*
*✪_हजरत उम्मुल साइब रजियल्लाहु अन्हा बीमार थी, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उनके पास गए देखा कि वह ठुटरी है ,पूछा कि क्या हाल है ? उन्होंने कहा कि बुखार है ,अल्लाह इस में बरकत ना दे ।आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया- बुखार को बुरा भला ना कहो यह इंसानों के गुनाहों को इस तरह खत्म कर देती है जैसे भट्टी लोहे के मेल( जंग )को साफ कर देती है ।*
*®_(मुस्लिम-2/ 319)*
*✪_इन सब अहादीस से मालूम हुआ की बीमारी खुदा की तरफ से आती है और यह उसे आती है जिसके साथ अल्लाह ताला भलाई करना चाहते हैं और यह कि महज़ रहमत और बरकत है, जिससे गुनहगारों के गुनाह धुल जाते हैं और नेकियों के दरजात बुलंद हो जाते हैं ।*
*✪_और यह भी मालूम हुआ कि बीमारी को बुरा भला कहने और बुरा समझने की इजाज़त नहीं, अब देख लीजिए कि तेरा तेजी का अकी़दा जिसमें सफर को भी बीमारी की वजह से मनहूस और बुरा समझा जाता है ,क्या यह इस्लाम के खिलाफ नहीं है ? बिला शुब्हा इस्लाम के खिलाफ है । अल्लाह ताला समझने की तौफीक दे।
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*✿☞ _सफर की नहूसत का अक़ीदा जहालत है ✦*
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*✪_ पिछले पार्ट की तफसील से साफ मालूम हुआ है कि माहे सफर के 13 दिनों को या सफर के महीने को मनहूस समझना गलत है बल्कि अहादीस से मालूम होता है कि माहे सफर की नहूसत का अकी़दा जमाना ए जाहिलियत के जाहिल लोगों का अक़ीदा था और इस्लाम ने उसको बातिल क़रार दिया है । चुंनाचे एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया -" ला सफर" कि सफर (की नहूसत का अकी़दा) कोई चीज़ नहीं (बल्कि गलत और बातिल है ) _,"*
*®_( बुखारी किताबुल तिब-2/230, मुस्लिम-2/230)*
*✪_ इस हदीस के मुताद्दिद मतलब व मानी उलमा ने बयान फ़रमाया है उनमें से एक यह है कि अरब के लोग जमाना जाहिलियत में सफर के महीने को मनहूस समझकर उसके आने से बदफाली करते थे इस बातिल व गलत अक़ीदे की तरदीद में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु वसल्लम ने फरमाया -"ला सफर" कि सफर कुछ नहीं यानी इसकी नहूसत और इसका गलत अकी़दा कुछ नहीं है । अल्लामा क़ारी रहमतुल्लाह ने (मिरक़ात शरह मिश्कात-9/4) में इसको बयान फरमाया है,*
*✪_ इसके अलावा मुताद्दिद अहादीस से साबित है कि किसी भी चीज़ में नहूसत नहीं और किसी चीज़ से बदफाली लेना दुरुस्त नहीं चुनांचे एक हदीस में फरमाया " ला तयाराह " कि बदफाली लेना जायज़ नहीं,*
*®_( बूखारी -2/853, मुस्लिम-2/230,मिश्कात-391)*
*✪__ हदीस में बदहाली लेने का यही मतलब है कि किसी चीज को मनहूस समझ कर उसको बुरा ख्याल किया जाए यह बात इस्लामी नुक्ता ए नज़र से गलत व बातिल है । जब किसी भी चीज़ को बदफाली का सबब ख्याल करना जायज़ नहीं तो सफर के महीने को मनहूस समझ कर उससे बदफाली लेना कैसे जायज़ हो सकता है।
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*✿☞_ तीन चीजों में नहूसत का मतलब_✦*
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*✪_ और बाज़ रिवायात में आया है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि नहूसत तीन चीजों में है ,औरत, घर और घोड़ा जैसा की कुतुब हदीस में मर्वी है । (बुखारी 2/ 856, मुस्लिम 2/232 तहावी 2/317)*
*✪_इस हदीस की तशरीह में उल्मा का इख्तिलाफ है, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का मतलब यह नहीं कि इन चीजों में नहूसत है, बल्कि आपने सिर्फ अहले जाहिलियत का कौ़ल नक़ल किया है कि यह जाहिल लोग इस तरह कहते हैं _," (तहावी 2/318)*
*✪_और इमाम तहावी ने फरमाया कि मतलब यह है कि अगर बिल फर्ज किसी चीज में नहूसत होती तो इन चीज़ों में होती , जब इनमें नहीं तो किसी ने भी नहीं है _," ( तहावी -2/318)*
*✪_इसकी ताईद इस हदीस से होती है जिसमें अल्लाह ताला के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने खुद फरमाया की बदफाली कोई चीज़ नहीं , अगर किसी चीज़ में नहूसत होती तो औरत, घर और घोड़े में होती _," ( बुखारी 1/ 400, मुस्लिम 2/ 232 तहावी 2 318 / तिर्मीजी 2750)*
*"✪_ यह हदीस बता रही है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का मक़सद इन चीजों में नहूसत बताना नहीं बल्कि इनसे नहूसत की नफी ( इंकार) करना मकसूद है कि अगर किसी चीज़ में नहूसत होती तो इनमे होती , जब इनमें भी नहीं है तो किसी और चीज़ में भी नहीं है ।*
*✪_अलगर्ज़ किसी चीज में नहूसत का ख्याल करना और उससे बदफाली लेना इस्लामी नुक्ता नज़र से सही नहीं है ,इसी तरह सफर के महीने को मनहूस जान कर उससे बदफाली लेना भी सही नहीं है ।*
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*✿☞ _असल नहूसत क्या है ? ✦*
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*✪_ असल नहूसत बद आमाली, बद अख़लाकी़, शरीयत व दीन से गफलत व लापरवाही से आती है और बद अमल व बेदीन लोगों के हक़ में हर दिन हर माह और हर चीज़ मनहूस है इसलिए क़ुरान में कौ़मे आद के जिक्र में कहा गया है, ( तर्जुमा ) हमने उन ( क़ौमे आद ) पर एक सख्त हवा भेजी ऐसे दिन में जो दाइमी नहूसत वाला है _," (सूरह क़मर -19)*
*✪_ अल्लाह ताला ने इस आयत में उस दिन को मनहूस बताया है जिसमें क़ौमे आद को हलाक़ किया क्यों ? इसलिए कि उनकी बेईमानी व बद आमाली ने उनको इस नतीजे तक पहुंचाया वरना तो वही दिन जिसमें उनको हलाक़ किया गया, हजरत हूद अलैहिस्सलाम और मोमिन हजरात के लिए निहायत ही मुबारक था, अगर वह दिन ही मनहूस होता तो सब के लिए होता, अल्लामा कुर्तुबी रहमतुल्लाह ने इसकी वजाहत यूं की है :- जैसे वो मनहूस दिन जिनका जिक्र कुरान में आया है वह क़ौमें आद के कुफ्फार पर मनहूस थे ना कि उनके नबी के हक़ में और ईमान वालों के हक़ में _,"*
*®_( क़ुर्तुबी 17 /132)*
*✪_खुलासा यह है कि किसी दिन या माह में नहूसत नहीं है बल्कि बेईमानी, बद आमाली , बद अख़लाकी़ की वजह से बाज़ लोगों के हक़ में बाज़ दिन या महीने मनहूस हो जाते हैं तो यह नहूसत दिनों या महीनों की नहीं बल्कि बद आमाली, बद अख़लाकी़, व बेईमानी की है। चुनांचे एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इरशाद है :- नहूसत बद अख़लाकी़ है ।*
*✪_ मालूम हुआ कि नहूसत किसी चीज़ में नहीं हमारे बुरे आमाल व बुरे अखलाक़ में हैं, इसलिए नहूसत से बचने की खातिर गुनाहों से ,अल्लाह ताला की नाफरमानी और बद अख़लाकी़ से बाज़ आने की ज़रूरत है, सफर के नहूसत का अकी़दा रखना बातिल है।*
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*✿☞ _एक बे असल हदीस _✦*
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*✪_यहां यह अर्ज़ करना भी ज़रूरी है की बाज़ निडर बेखौफ लोगों ने सफर की नहूसत पर एक हदीस भी गड़ रखी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि जो मुझे सफर के चले जाने की बशारत सुनाएगा मैं उसको जन्नत की खुशखबरी देता हूं _,"*
*"_मगर यहां देखना यह है कि क्या सचमुच कभी ऐसा फरमाया है और क्या यह वाक़ई अल्लाह के रसूल की हदीस है ?*
*✪_जवाब यह है कि -नहीं ! यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हदीस नहीं है बल्कि मनगढ़ंत है लोगों ने इसको गड़ लिया चूनांचे उल्मा ए हदीस ने हदीस को मौज़ू यानी मनगढ़ंत करार दिया है । मशहूर व मारूफ मुहद्दिस मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्लाह ने अपनी किताब मौजू़आते कबीर में इस हदीस को लिखकर फरमाया इस हदीस की कोई असल नहीं है बल्कि वह बेअसल हदीस है ।*
*®_( मौज़ूआते कबीर-६९ हर्फ मीम )*
*✪_ माहे सफर की एक बिद'अत किसको लोग आखरी चाहार शंभा कहते हैं वह भी गलत बेबुनियाद अक़ीदे और बातिल उमूर पर मुश्तमिल है । मगर बहुत से लोग बड़े अहतमाम के साथ इस रस्म को मनाते हैं हम पहले बताएंगे कि लोगों के नजदीक आखिरी चहार शंभा यानी आखिरी बुध की हक़ीक़त क्या है, फिर इस पर शरई नुक्ता ए नज़र से बहस लिखेंगे ।*
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*✿☞ _आखरी बुध लोगों की नज़र में _✦*
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*✪_आखरी बुध की हकीकत क्या है ? लोग कहते हैं कि आखरी चहार शंबा सफर के महीने का आखिरी बुध जिसमें हुजूर अक़दस सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम बीमारी के बाद सब्ज़ा की सैर को तशरीफ ले गए ( आवाम ) मुसलमान इस दिन को मुबारक समझकर सैरो तफरीह करना अच्छा समझते हैं।*
*✪_ गोया आखरी बुध की दो चीजें हैं - एक अक़ीदा और दूसरा अमल । अक़ीदा यह है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम बीमारी से आखरी बुध को शिफायाब होकर सैरो तफरीह को तशरीफ ले गए थे और अमल यह कि लोग इसको मुबारक समझ कर खुद भी सैरो तफरीह के लिए जाते हैं और बाज़ जगहों पर खास चीजों जैसे अंडा तेल वगैरह खैरात भी करते हैं।*
*✪_ जहां तक आखिरी बुध को आपके सहतयाब होने का ताल्लुक है इसके बारे में अर्ज़ है कि अगर इसे मर्जुल वफात से सहत पाना मुराद है तो यह सरासर गलत और बातिल है क्योंकि इस बीमारी से आप सहत नहीं पाए थे जैसा कि यह बात बिल्कुल जाहिर है और इसी वजह से इसको मर्जुल वफात कहते हैं।*
*✪_ और अगर किसी और मौके की बीमारी से सहत व शिफा पाना मुराद है तो तारीख व सीरत से इसका सबूत होना चाहिए मगर इसका कोई सबूत नहीं है लिहाज़ा बे दलील सबूत किसी बात को अपने अक़ीदे की बुनियाद बनाना कैसे और क्यों कर जायज हो सकता है।*
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*✿☞ _एक इंकसाफ और अंदेशा _,✦*
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*✪_ इसके अलावा यह भी मालूम होना चाहिए यह हजराते उलमा ने लिखा है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का मर्जुल वफात सफर के आखिरी बुध से शुरू हुआ था , चुनांचे इमाम ए हदीस व तारीख इब्ने हिबान रहमतुल्लाह ने किताबुल शुक़ात में लिखा है :- सबसे पहले जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को बीमारी की शिकायत पैदा हुई वह आखरी बुध का दिन था ,जबकि सफर के महीने में सिर्फ 2 दिन बाक़ी थे । (शुका़त इब्ने हिबान -2/ 130) इसी तरह तबक़ात इब्ने साद में भी यह रिवायत मौजूद है ।(बा-हवाला फताल बारी-8/130)*
*✪_ मौलाना अहमद रज़ा खान बरेलवी का फतवा भी अहकामे शरीयत में दर्ज़ है :- आखरी चहार शंबा की कोई असल नहीं , ना उस दिन सहत याबी हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का कोई सबूत है, बल्कि मर्जे अक़दस जिसमें वफात मुबारक हुई इसकी इब्तिदा इसी दिन से बताई जाती है । ( एहकामें शरीयत -2/649)*
*✪__जा़हिर है कि सफर के खत्म होने में 2 दिन बाकी हों तो जो चहार शंबा होगा वह आखरी ही होगा, इससे मालूम हुआ कि आपका मर्जुल वफात एक कॉल के मुताबिक सफर के आखरी चहार शंबा को शुरू हुआ है, अगरचे इसके मुताबिक और भी अक़वाल हैं, एक कॉल यह भी है और बहुत से उलमा ने इसको भी अख्त्यार किया है कि इसके पेशे नजर तो सफर का आखरी चहार शंबा खुशी का दिन ना होना चाहिए बल्कि गम का दिन होना चाहिए ।*
*✪__यह भी इम्कान है कि किसी दुश्मन ए रसूल और मुनाफिक ने आपकी बीमारी के दिन खुशी मनाई हो और मुसलमानों को बहकाने के लिए यह कह दिया हो कि इस दिन आप सेहहत्याब हुए थे और मुसलमानों में से जाहिलों ने इसको सही समझकर क़ुबूल कर लिया हो , अगर ऐसा है तब तो मामला बड़ा संगीन है।*
*✪_ दुश्मन और मुनाफिक लोगों की तरफ से ऐसा होना कोई बईद नहीं और इसी तरह दूसरी मिसालें भी मौजूद है, मसलन रज्जब की 22 तारीख को कूंडों की रस्म है, इसके बारे में मशहूर तो यह है इस दिन इमाम जाफर सादिक पैदा हुए थे हालांकि यह गलत है । इमाम जाफर सादिक की विलादत 17 रबी उल अव्वल को हुई है , हां 22 रज्जब को हजरत माविया रजियल्लाहु अन्हु की वफात हुई और शिया लोगों ने उनके इंतकाल की खुशी में यह तकरीब की है , बिल्कुल इसी तरह इमकान है कि किसी दुश्मन ने आपकी बीमारी के दिन खुशी मनाई हो और धोखा देने के लिए ज़ाहिर कर दिया कि आप सहतयाब हुए थे ।*
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*✿☞ _सेहत व इफाक़ा के कुछ तज़किरे _,✦*
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*✪_फिर अगर यह साबित भी हो जाए कि इस सफर के आखिरी चहार शंबा में आपको सेहत हासिल हुई थी तो सवाल यह है कि खास सफर की आखरी बुध को क्या खुसूसियत है कि इसको मनाया जाता है ,जबकि आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम को दूसरे मौकों पर भी बीमारी से सेहतयाबी हासिल हुई है ? चुनांचे सेहत व इफाक़ा के कुछ तज़किरे हदीस में मिलते हैं ।*
*✪_ मसलन मर्जुल वफात ही में एक दिन आपको इफाक़ा हुआ और तबीयत कुछ हल्की महसूस हुई तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम दो आदमियों के सहारे मस्जिद तशरीफ ले गए।( बुखारी 1/95, मुस्लिम 1/71)*
*✪_ यह वाक्य़ा इंतकाल से 5 दिन पहले का है और चूंकि आपका विसाल मुबारक पीर के दिन हुआ इसलिए यह मुतैय्यन है कि यह वाक्य़ा इफाक़ा का जुम्मेरात के दिन पेश आया है ।(फताहुल बारी 8 /142 )*
*"_तो यह रबी उल अव्वल की पहली जुमेरात है , तो क्या रबिउव अव्वल की पहली जुमेरात भी मनाई जाएगी , अगर नहीं तो क्यों ?*
*✪_बुखारी वगैरह की सही तरीन रिवायात से साबित है कि एक यहूदी लुबैद बिन आसिम ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर जादू कर दिया था जिसकी वजह से आप सख्त बीमार हो गए थे । (बुखारी 2/857 ,मुस्लिम 2/ 221)*
*"_यह बीमारी मुहर्रम उल हराम में शुरू होगी और 6 माह तक रही।( फताहुल बारी 10/226)*
*✪_ इस लिहाज़ से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस बीमारी से जमादिउस सानी में सहतयाब हुएं तो क्या जमादिउस सानी को भी मनाया जाएगा ? अगर नहीं तो क्यों ?*
*✪_मालूम हुआ कि नफ्स परस्तों ने बेवजह इस आखिरी बुध की रस्म को जारी कर दिया है वरना इसकी खुसूसियत की कोई दलील नहीं।*
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*✿☞_ बिदअत दीन की तहरीफ है✦*
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*✪_ अगर किसी सबब से आप ﷺ ने सैर फरमाई हो तो सब लोगों का सैर को जाना और मर्दो औरतों का पार्को में जमा होना, बे-पर्दगी व खिलाफे शरीयत उमूर का इर्तिकाब करना क्या दीन और सुन्नत है? या दीन में तहरीफ है? इसिलिये हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी रह. ने लिखा है कि - "_आदाब व सुनन में तशद्दुद और उनको उनके दर्जे से बढ़ा देना भी तहरीफे दीन का सबब है और यहूद व नसारा की आदत है_" ( हुज्जतुलाह अल बालगत : 1/ 120)*
*✪_ये बात बिल्कुल सही है क्योंकि इससे दीन का हुलिया बिगड़ जाता है, जब अदब व सुनन को उनके दर्जे से बढ़ा देना भी बुरा है, तो खेल तमाशो को दीन का नाम देना और बिदअत व खुराफ़ात को दीन समझ लेना कितना बुरा होगा ?*
*✪_गौर किजिए कि लोगों को शैतान ने किस तरह धोखा दे रखा है और उनको नमाज़ का और दूसरे फराईज़ व वाजिबात का, अल्लाह के नबी की सुन्नतों का, किसी का भी एहतमाम नहीं है मगर आखिरी बुध की सैरो तफरीह का बड़ा एहतमाम करते है और हज़ारों खिलाफ़े शरीयत कामो में मुब्तिला होते हैं, अफ़सोस ये है कि मनगढ़ंत काम को अदा करने के लिए कई फ़राज़ और सुन्नतों को तर्क किया जाता है और हज़ारों क़िस्म के गुनाहों का वबाल अपने सर पर लिया जाता है,*
*✪_अलगर्ज़ ये सब महज़ शैतानी धोखा और फ़रेब है या नफ़्स की चालबाज़ी है कि दीन के नाम पर तेरह तेज़ी और आख़िरी बुध की मनगढ़ंत रस्म और बिदअत मे फंसा दिया, दीन से हक़ीक़त में इनका कोई जोड़ नहीं है,*
*"__दुआ है अल्लाह तआला अहले इस्लाम को सही फहम अता फरमाये, कुरान व सुन्नत की तालीमात को हासिल करने और उन पर अमल करने की तौफीक़ अता फरमाये, तमाम खुराफात व बिद'आत से बचायें _" (आमीन),*
*┬ अलहम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुआ_,*
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*🗂 माहे सफर की दो बिद'अतें (हज़रत मुफ्ती मौलाना शोएबुल्लाह ख़ान साहब मफताही)*
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